Book Title: Kamrupa Panchashika
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ ॥२५॥ विसम-सम-उभयपक्खा रवि-ससि मुणिऊण दाहिणं इयरं । नियनियकाले जाणह निदि(दि)टुं जोइविदेण ॥२३॥ ससिखित्ते समवन्नो सूरे विसमक्खरो हवइ जइया । जत्थत्थि तत्थ सहलं सुन्ने सुन्नं वियाणेह. ||२४|| पुच्छइ सुन्नम्मि ठिओ दूओ अत्थि ति(त्ति) भणइ कज्जाइं। नत्थि ति(त्ति) तं वियाणह होइ धुवं जीवठाणेसु नटुं दटुं मूयं पहरिय - जरियं च वाहिसंभूयं ।। पुच्छइ जियम्मि ढिओ अस्थि त्ति अ [तं] (?) विआणेहि ॥२६।। पढमं चिय सुन्नहरे पच्छा जीवेसु जइ हवइ दूओ। मुच्छं गओ वि जीवइ निद्दिटुं जोइविंदेण ॥२७॥ पढमं जीयट्ठाणे पच्छा सुन्नम्मि जइ हवइ दूओ। सो जाणह तह मूओ जस्स निमित्ते कया पन्हा ॥२८॥ जीवपवेसे लाहो हवइ न लाहो विनिग्गए सासे । सहलं पवेसयाले निग्गमणे मरइ निब्भंतं ॥२९॥ पुट्टिट्ठिएण सूरो अहवा पुरयम्मि संठिओ चंदो। रवि-ससिखित्तं नाउं जीयाजीयं वियाणेहि ||३०|| असि-मसि-किसिवाणिज्जे दिक्खा-वीवाह जीवसंठाणे । जइ पुच्छइ होइ फलं सुन्ने हाणी वियाणीहि ॥३१॥ [भरिएसु होइ भरियं रित्तं रित्तेसु नत्थि संदेहो। सूरमयंकेसु तहा जीयाजीयं वियाणेहि ॥३२।।] गब्भनिमित्ते पुच्छइ ससि(स)हरट्ठा (ठाणेसु संठिया जुवई । सूरेण य होइ नरो इत्थ वियप्पो न कायव्वो ॥३२॥ सज्जीवे चिरजीवो मरइ धुवं सुन्नठाणपुच्छाए। संगमपवेसयाले जीयाजि(जी)यं वियाणेह ६३ ॥३३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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