Book Title: Kamrupa Panchashika Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 7
________________ १३६ ॥५६॥ ॥५७॥ १५८॥ ॥५९॥ ॥६ ॥ ज्झह(ल)हलियतेससिहिणा कालानलकीडिपुंजसारिच्छं। ज्झाइज्जइ नासग्गे पाविज्जइ सासयं ठाणं रवि-ससिकोडिव्व पहे ज्झायह कोवंडमज्जगो अप्पा । विप्फुरइ जेण सहसा अट्ठविहो सिद्धिसंघाओ नहमंडलमज्झत्थो अप्पा नहमज्झसंठिओ सयलं । जाणइ तिविहं नाणं अणवरयं भाविओ नूणं सव्वंगो सव्वगओ सव्वं जाणेइ तिहुयणं सयलं । गयणंगणम्मि अप्पा भावियमित्तो वियाणेह नाहंकारं न नहं अप्पसहावं च नत्थि वावारं । लोणं व जलविलीणं न हु हवइ पुणन्नवा सिद्धी चित्ते बद्धे बद्धो सुक्क सुक्को वि नत्थि संदेहो। विमलसहावो अप्पा मइलिज्जइ मइलिए चित्ते उंदरदट्ठफर्णिदं पिच्छइ अहिदट्ठउंदराइं च। संकाबद्धसहावो मरइ धुयं नत्थि संदेहो चिंताए सुहभाओ नियनियपडिबिंबभाविदो कुसलो । अणुहूयहूयपव्वय- पच्चक्खं पइडए नाणं दूरा भूचंकमणं दूरा सवणं च दंसणं दूरा। उप(प्प)ज्जइ जत्थ धुवं सुन्नसहावे गओ अप्पा नवलक्खं नवठाणं ज्झाणं नवभावभेयसंजुत्तं । अणवरयभावियाणं पच्चक्खा होति सिद्धीओ ज्झाणेण य हरइ विसं अहवा ज्झाणेण हवइ आइट्ठी । ज्झाणेण हवइ नाणं ज्झाणं तियलोयसारवरं । ॥६ ॥ ॥६२।। ॥६३॥ ॥६४॥ ॥६५॥ ॥६६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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