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कामरूपपञ्चाशिका
- विजयशीलचन्द्रसूरि
प्रस्तुत कृति योगशास्त्र तेमज स्वरोदयशास्त्रने लगती, प्राकृत भाषानी एक अपूर्व कृति होवानुं मालूम पडे छे. नाडीओ अने तत्त्वो वगेरेनुं ज्ञान तेमज तेना पर अंकुश प्राप्त करनार मनुष्यने केवी केवी सिद्धिओ तथा फलनी प्राप्ति थाय छे, तेनुं आमां विशद निरूपण थयुं छे. आने 'गाहापंचासिया' (गाथा पंचाशिका) (गा. ४, क्षे.गा. ८८/३) तरीके कृतिमा ओळखावी छे. आना कर्ता कोण हशे, ते हजी स्पष्ट नथी थतुं. परंतु, गा. ४ मां 'जोइणिविंद-योगिवृन्द' एवो, गा. २३, २७, ४५, क्षे.गा. ८८/१, आमां 'जोइविंद-योगिवृन्द' एवो क्षे.गा. ८८/२मा 'कामरूपपीठनी योगिनी' एवो, क्षे.गा. ८८/२ मां योगिनीवृंद' एवो योगिनी-'योगीन्द्रकथित' एवो उल्लेख छे, ते जोतां कामरूप-प्रदेशमा वर्तती कोई योगविद्या-पीठना योगी/योगिनीओए रचेल आ रचना हशे तेवी अटकळ थई शके तेम छे.
__ आ विषय मारा माटे तद्दन अज्ञात छे. मात्र प्राकृत कृति होवाने लीधे ज एना प्रति ध्यान आकर्षायु, अने भाषानी दृष्टिए आवड्युं तेवू संपादन करी अहीं मूकी छे. आना विषय उपर विशेष प्रकाश तो ते विषयना तज्ज्ञो ज पाडी शके.
मारी पासे आनी २ हस्तप्रतिओ हती, तेना आधारे आ वाचना तैयार करी छे.
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॥१॥
॥२॥
॥३॥
॥४॥
कामरूपपञ्चाशिका ॥ सो जयउ जस्स सयलं तिहुयणमाबंभनाहिमज्झत्थं । विप्फुरइ नहसमग्गं नाहंग्गे ज्झाणचिंताए चिंतियमित्ते सयलं तिहुयणमाबंभभुयणमज्झत्थं । नाइज्जइ जेण फुडं तं चिय नाणं पवक्खामि नाणं तिविहपयारं मि(मी)सिय-संकेय-केवलं भणियं । इड-पिंगल-मज्झत्थं नाइज्झइ गुरूवएसेणं इय कामरूवसंठिय - जोइणिविदेण जं फुडं दिटुं। दिव्वं नाणपहाणं गाहापंचासियं नाम दूयलक्खणस्स पढमं बीयं कालस्स लक्खवंचणयं । विसनिग्गहणंतइयं सिवतत्तं कामतत्तं च दूरा भूचंकमणं दूरा वसणं च दंसणं दूरा। मंतबलसामत्थं आइट्ठी विविहसिद्धि(द्धी)ओ एताहे बहुभेयं भूबलसरसत्थकालविन्नाणं । तिविहपयारं ज्झाणं कहामि फुडं निसामेह तव तविए जव जविए बहुकालेण हुंति सिद्धयरा । निट्ठहियसयलकम्म ज्झाणेण य तक्खणा सिद्धी सियवन्ने विसहरणं रत्तावन्नेण हवइ आइट्ठी। थंभइ पीयलवन्नं मारइ तह किण्हज्झाणेण वरुणहुयासणमज्झे कुंडलवलियाई भुयंगरूवेण। सयलब्भासियज्झाणे जाणिज्जइ सच्छमंत्राओ नाहिमूले सत्तिकुंडलि तडितरलतेयभासंती । जो ज्झायइ अणवरयं सो जाणइ सयलतियलोयं
॥६॥
||७||
॥८॥
।।९।।
॥१०॥
॥११॥
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२६
. ॥१२॥
॥१३॥
॥१४॥
३२
॥१५॥
॥१६॥
BE
कोयंडचक्कमज्झे अइया रविकोडितेयभासाए । जो ज्झायइ अगवरयं सुच्चिय मयणो न संदेहो सिंदूरारुणतेयं जं जं चिंतेइ तरणिसंकासं। तडितरलतेयनासं आणइ दूरट्ठिया नारी जवकुसुमसंनिहाणं ज्झाणं तियलोयसयलसरवंतं । जो ज्झायइ अणवरयं सो पायइ जुवइसंघायं सवरंरवन्नरूच्छं ईसरषिंडिंदुबिंदुसोहिल्लं। जो जवइ लक्खविहिणा सो पावइ चिंतिया नारी ससिठाणे विसहरणं सूरो मारेइ तिहुयणं सयलं । पावेइ सयलसिद्धी रविससिमझट्ठिए नूण ससिकोडितरलतेया वरिसंती बंभमंडले सत्ती। अवहरइ सयलदुरियं जरमरणं वाहिसंघायं अजरामरे सुचक्के हंसं ठविऊण सुन्नभावेण । नासइ सुन्नेण धुवं जरमरणं वाहिसंघाओ सुत्रं न होइ सुन्नं दीसइ सयलं पि तिहुयणं सुन्न । अवहरइ पावपुन्नं सुन्नसहावे गओ अप्पा सुन्नट्ठिए सुसुन्न
भरिए भरियं च तिहुयणं सयलं । सूर-मयंकग्गामे सयलकलालंकियं भुवणं अक्को मयंकखित्ते बारह संकमणसविघडियाओ। वहइ दिणं अह राई . एक्केक्कं पंच घडियाओ पंच पहा दो मग्गा इक्को चिय वहइ तिहुयणे सयले । जत्थ गओ तहिं अच्छइ सुन्ने सुन्नं वियाणाहि
॥१७॥
॥१८॥
॥१९॥
॥२०॥
॥२१॥
॥२२॥
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॥२५॥
विसम-सम-उभयपक्खा रवि-ससि मुणिऊण दाहिणं इयरं । नियनियकाले जाणह निदि(दि)टुं जोइविदेण
॥२३॥ ससिखित्ते समवन्नो सूरे विसमक्खरो हवइ जइया । जत्थत्थि तत्थ सहलं सुन्ने सुन्नं वियाणेह.
||२४|| पुच्छइ सुन्नम्मि ठिओ दूओ अत्थि ति(त्ति) भणइ कज्जाइं। नत्थि ति(त्ति) तं वियाणह होइ धुवं जीवठाणेसु नटुं दटुं मूयं पहरिय - जरियं च वाहिसंभूयं ।। पुच्छइ जियम्मि ढिओ अस्थि त्ति अ [तं] (?) विआणेहि ॥२६।। पढमं चिय सुन्नहरे पच्छा जीवेसु जइ हवइ दूओ। मुच्छं गओ वि जीवइ निद्दिटुं जोइविंदेण
॥२७॥ पढमं जीयट्ठाणे पच्छा सुन्नम्मि जइ हवइ दूओ। सो जाणह तह मूओ जस्स निमित्ते कया पन्हा
॥२८॥ जीवपवेसे लाहो हवइ न लाहो विनिग्गए सासे । सहलं पवेसयाले निग्गमणे मरइ निब्भंतं
॥२९॥ पुट्टिट्ठिएण सूरो अहवा पुरयम्मि संठिओ चंदो। रवि-ससिखित्तं नाउं जीयाजीयं वियाणेहि
||३०|| असि-मसि-किसिवाणिज्जे दिक्खा-वीवाह जीवसंठाणे । जइ पुच्छइ होइ फलं सुन्ने हाणी वियाणीहि
॥३१॥ [भरिएसु होइ भरियं रित्तं रित्तेसु नत्थि संदेहो। सूरमयंकेसु तहा जीयाजीयं वियाणेहि
॥३२।।] गब्भनिमित्ते पुच्छइ ससि(स)हरट्ठा (ठाणेसु संठिया जुवई । सूरेण य होइ नरो इत्थ वियप्पो न कायव्वो
॥३२॥ सज्जीवे चिरजीवो मरइ धुवं सुन्नठाणपुच्छाए। संगमपवेसयाले जीयाजि(जी)यं वियाणेह
६३
॥३३॥
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अह परचक्कागमणं नत्थि त्ति सुन्नट्ठा (ठा) जे
अहवा जीवनिमित्ते
कहवि फुडं निब्भंत
जइ कहवि हवइ सूरो मापमाणेण तहा
मासेण व छम्मासं
दह राँये णव[णव]
८८
दुनि दिणे दोवरिसं अट्ठदिणेच्छवंरिसं
एणकमेण य विहिणा सो लहइ सयलसिद्धी
अहवा नियपडिबिंबं नियच्छा (छा) यादिट्ठीए
५.७
पिच्छइ नहमज्झगयं
जाणिज्जइ तेण फुडं
असिरेण च छम्मासं
べら
दोवरिसेण व मरणं
१०१
जो पु (पि) च्छइ संपुत्रं
सो पाई सुहसिद्धी
さら
हरिणो अहव विरंची
ぐる
तह जाणिज्जइ मरणं
5
SE
होइ मयंकम्म वारए सूरो । जीवहरे होइ निब्भतं
૩૮
कालं नाउण परह- अप्पाणं ।
निर्दि (द्दि) टुं जोइविंदेण
૮૨
८३
दिणमिक्कं पंचराइयं पक्खं ।
जाणह कालं निसामेह
तेमासं मरइ तह व पक्खेण । पक्खिक्कं पंचराएण
तेवरिसं इक्कराइमाणेण । सूरपवाहे वियाणेहि
१
०२
निसिनाहो जस्स सकंमइ देहे धणकणगसमिद्धिया जुवई
नहमज्झे जो वि पिक्खए नूणं । जारिसिया तारिसं रूवं
पुरिसं सुरूवफलिहसंकासं ।
कालं छम्मासियं नूणं
जंघाहीणेण मरइ वरिसेण ।
नाइज्जइ बाहुहीणेण
१०२
पुरिसं[सं] सुद्धफलहसंकासं ।
अजरामरसासयं ठाणं
१०५
सरिसा निवडंति जत्थ गयणतले ।
सत्ताहे नत्थि संदेहो
||३४|
||३५||
||३६||
॥३७॥
||३८|
॥३९॥
॥४०॥
॥४१॥
॥४२॥
॥४३॥
॥४४॥
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॥४५॥
॥४६॥
॥४७॥
॥४८॥
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.
॥४९।।
जो पिक्खइ अप्पाणं नियसिरहीणं च दप्पणे सहसा । पक्खिक्केण य मरणं निद्दिटुं जोइविंदेण इय जाणिऊण कालं पच्छा कालस्स वेचणं कुणह। अमुहियकालसहावे किं कीरइ.कालचिंताएं सुन्ने अमियमयंके वरिसंतो ज्झाणलक्खाओ। जो ज्झाणइ अणवरयं सो च्चिय कालं निवारेइ गुरुमि-गंठिनाही हियए कंठेसु तह य नासग्गे । कोदंडे नहमज्झे जाणिज्जइ ज्झाणलक्खाओ तत्तम्गिकणयतेयं दिप्पंतं पुहइमंडलं मझे। ज्झाइज्जइ चउवन्नं वज्जंकं पढमचक्केसु बंभकुडीए कुम्मो पीडिज्जंतो वि कणयसंकासो। थंभइ जल-जलण-तुरंग-गयभाविउ(ओ) नूणं ससिकोडितरलतेया भासंति(ती) बंभमंडले सत्ती । ज्झाइयमाणा गरलं हरइ विसं कालदट्ठस्स सिंदूरारुणतेयं तिक्कोणं बंभगंठिमज्झत्थं । ज्झाणेण ये कुणय(इ) वसं अमरवहूसिद्धिसप्पायं अट्ठदलं सियवनं पउमं चिय सुद्धफलहिसंकासं । नाहीमज्झम्मि गयं ज्झाणेणवहरइ दुक्खाई हंसासणम्मि हंसो सो च्चिय परिठवह हिययचक्कम्मि । रविकोडितेयभासं परिभावह सयलवावारं गलबहुललोलतुहिणं वरिसंतं चंदमंडलं सलिलं । चिंतिज्जइ कंठयले हरइ विसं कालदट्ठस्स
॥५०॥
||५१॥
॥५२॥
॥५३॥
॥५४॥
॥५५॥
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१३६
॥५६॥
॥५७॥
१५८॥
॥५९॥
॥६
॥
ज्झह(ल)हलियतेससिहिणा कालानलकीडिपुंजसारिच्छं। ज्झाइज्जइ नासग्गे पाविज्जइ सासयं ठाणं रवि-ससिकोडिव्व पहे ज्झायह कोवंडमज्जगो अप्पा । विप्फुरइ जेण सहसा अट्ठविहो सिद्धिसंघाओ नहमंडलमज्झत्थो अप्पा नहमज्झसंठिओ सयलं । जाणइ तिविहं नाणं अणवरयं भाविओ नूणं सव्वंगो सव्वगओ सव्वं जाणेइ तिहुयणं सयलं । गयणंगणम्मि अप्पा भावियमित्तो वियाणेह नाहंकारं न नहं
अप्पसहावं च नत्थि वावारं । लोणं व जलविलीणं न हु हवइ पुणन्नवा सिद्धी चित्ते बद्धे बद्धो सुक्क सुक्को वि नत्थि संदेहो। विमलसहावो अप्पा मइलिज्जइ मइलिए चित्ते उंदरदट्ठफर्णिदं पिच्छइ अहिदट्ठउंदराइं च। संकाबद्धसहावो मरइ धुयं नत्थि संदेहो चिंताए सुहभाओ नियनियपडिबिंबभाविदो कुसलो । अणुहूयहूयपव्वय- पच्चक्खं पइडए नाणं दूरा भूचंकमणं दूरा सवणं च दंसणं दूरा। उप(प्प)ज्जइ जत्थ धुवं सुन्नसहावे गओ अप्पा नवलक्खं नवठाणं ज्झाणं नवभावभेयसंजुत्तं । अणवरयभावियाणं पच्चक्खा होति सिद्धीओ ज्झाणेण य हरइ विसं अहवा ज्झाणेण हवइ आइट्ठी । ज्झाणेण हवइ नाणं ज्झाणं तियलोयसारवरं ।
॥६
॥
॥६२।।
॥६३॥
॥६४॥
॥६५॥
॥६६॥
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१५४
पंचसु ठाणे बीयं दूरट्टिउ (ओ) विआणइ
थंभइ लयारबीयं
१५८
दावइ एव लपिंडे
छट्टसरेण व सुत्रं ज्झाइज्झइ भूमज्झे
FER
दह अलिहिय सुनं हरहसियफुंक्कियाए
१६४
बीयमबीयं तिउणं मयभिभलउम्मत्ता
२७१
मज्झेण वहइ पुहइ उद्धेण वहइ तेऊ
सुन्नं सुन्नसहावं अक्कमयंकेसु तहा
'1'55
पुहई - जलेण लाहो
सुत्रेण होइ सुन्न
पुहइपहावे लं तेयपवाहे धाउं
8
१५५
समरसभावेण भाविओ नूणं । जोयणसयसंठिआ नारी
१५७
मायाबीयं च कुणइ आइट्ठी ।
पंचसु ठाणेसुमब्भसिओ
EE
अक्केण खुद्दकम् [सुहकम्मं ] कुणह-रयणिनाहेण ।
साहइ मणवंछियं सयलं
१६८
तत्तविसेसेण फुडं पुहइ - जल-तेय - वाया नियनियसहावसहलं
सविसग्गं बिंदुनायसोहिल्लं । नाणाविह कुणइ सामत्थं पच्छिमबीयस्स फुंसए नूणं । हरइ विसं कालदट्ठस्स
१६३
१६५
मज्झगयं जस्स नाम संपुन्नं । आणइ दूरट्टिया नारी
२६९
सुत्रं एक्केक्कनाडिमज्झम्मि | जाणिज्जइ सयलचिंताओ
१७२
जलणं अहमग्गसंठियं वहइ । तिज्जगओ वह सम्मीरो
१७५
مات ؟
पंचसु तत्तेसु संठियं वहइ । नहतत्तं सव्वगं जाण
हाणी - महणं च तेय-पवणेण ।
जं संयलं चितियं कज्जं
2:30
जीयं जल - मारुयाण चिंताए । सुन्ने सुन्नं वियाणेह
॥६७॥
॥६८॥
॥६९॥
110611
॥७१॥
॥७२॥
॥७३॥
।।७४।।
॥७५॥
॥७६॥
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॥७८॥
१८२
॥८
॥
१८४
||८२॥
१८८
॥८३11
चंदेण होइ लाहो हाणी मरणं च होइ सूरेण । अक्क-मयंकेसु तहा गमणागमणं वियाणेह [दूराहाणे च दो कुणइ धुवं सयलसुहससि(मि)द्धीओ। आसन्ने आसन्नो सूरे सूरत्तणं कुणइ । जइ दाहिणम्मि रुद्दो सूरपवाहेसु संठिओ हवइ । ------ -- -- ---- -- -- - - - - - - - - - - - - - - तो वं] चेविणु रुद्धो जिप्पइ सयरायरं भुयणं सूरग्गमणे बाला-घडियचउक्कम्मि सम्मुहो जिणइ । तह उद्धेण य वामा पुट्ठिट्ठि(ठि)या जिणइ रयणीए सूरपवाहे सूरो जाणइ कुज्जाई सत्तिसाहीणे । जयइ धुयं संकमणे गय[घड] भडलक्खसंघायं अमियपवाहे बाला अहवा पुरयम्मि संठिया वहइ । ठाणट्ठिओ वि समरे जयइ धुयं नत्थि संदेहो इयरबलं निज्जीवे नियबल नाऊण ठवह सज्जीवे । जीवो जिणेइ धुयं सरोअए इत्तियं सारं हरिवसहेण च सूरो धयगयठाणेसु ससहरो बलिओ। तुरिएण जिणइ सूरो निसिनाहो जिणइ सेसेसु [रविदाहिणम्मि सूरो ससहरठाणेसु संठिया सत्ती । अत्यंते उणचंदो जिणइ नरो जो गउओयरे ॥ चंदपवाहे सत्ती सुन्नहरे अहव पच्छिमे सूरो । सुन्नगए गहनाहे थक्को ठायम्मि अखिलं जिणइ ।।] को जयइ गहियनामं रवि-ससिखित्तम्मि संठिओ दूओ। जीवहरे पढमयरो सुनहरे पच्छिमो जयइ
१२०
11८४॥
॥८५||
॥८६॥
11८७||
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[सुनहरे सुन्नयरं पिच्छायाले जाणह
अप्पा पवेसयाले
सहलं तस्स निरुत्तं
१०
जिए जियं च तिहुयणं सयलं । कत्थ य ठाट्ठिओ दूओ ॥]
२०३
२०४
२०५
पुच्छर जीवेसु संठिओ कज्जं । सुन्ने सुन्नं गओ जीवो
२०६
[ धम्मत्थकाममोक्खं कहियं गाहेहिं चउविह (हं) नाणं । ज्झाणं तिविहपयारं निहिं जोड़विदेण ॥
परमत्थेण य भणियं नाणं कामरू (रु) यपीढि जोइणिहिं । सव्वं चिय लोइ दिढं सव्वं चिय जोइसारो य ॥ इत्थं उवएसनिरुत्तं जोइणि जोइंदकहियसंसाओ । सव्वं नाणपहाणं गाहापंचासियासव्वं ॥ जो पढइ जो य निसुणइ जोइणिनाणं च तिहुयणे सयले । सो पावर निव्वाणं लहइ जसं तिहुयणे सयले ॥]
ज्झाणं नाणं तिलोयसारयरं ।
इय कामरूपसंठिय भावियजणस्स दिज्जइ मा दिज्जइ भावहीणम्मि
२०९
इति कामरूपपंचासिका समाप्तः || शुभं भवतु कल्याणमस्तु ॥
॥८८॥
२०८
॥८९॥
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11
टिप्पणी :
१. ० आबंभ० । २. नासग्गे । ३ ० चिंताओ । ४० आबंभ० । ५. मीसिय० ।
६.
गुरुवएसेण । ७० रूय० । ८. परं । ९. ०सिया नामा | १०. दूयस्स लक्खणं प० । ११. सवणं । १२. ०बलं । १३. सयल० । १४. इत्ताहे । १५. विविह० । १६. कहमि फुडं तं नि० । १७. बहुविहकालेण । १८. सिद्धि० । १९. निद्दहइ कम्म सयलं । २०. ज्झाणे पुण तक्खणे सिद्धी । २१. ०हरणे । २२. होइ । २३. कुंडलिवलिया मु० । २४. सयमब्भा० । २५. सत्थ० । २६. ओ रवि० । २७ ० भासाओ । २८. अणुदियहं । २९. सो चिय । ३०. ०भासं । ३१. ० सरवनं । ३२. ०रूढं । ३३. ईसरखंडेंदुनाइ- सोहिल्लं । ३४. मारइ । ३५. ०ट्ठिया । ३६ वरसंती । ३७. ० संघाओ । ३८. हंसो ।
३९.
४४.
४९.
५६.
६१.
गए ।
६८.
७३.
७८.
० भावेणं । ४०. च । ४१. अक्कमयंकछिते । ४२. हवइ । ४३. राए । एक्को । ४५. हवइ । ४६. वियाणेह । ४७ सुणि० । ४८. ०च्छित्ते समवण्णा । ०क्खरा य जयवंता। ५० सयलं । ५१. भणिय० । ५२. जीवम्मि । ५३. अस्थि धुवं तं वियाह । ५४. हवइ जइ पन्हा । ५५. २७-२८ गाथयोः व्युत्क्रमः पा० प्रतौ । जीव० । ५७. हवइ जइ । ५८. तो। ५९. सो । ६०. विणिग्गए जीए । ० काले । ६२. पट्टि० । ६३. "पुव्वाभिमुहेण ससहरो जाण" । ६४. ०छित्तंमि ६५. ०णेह। ६६. २९-३० गाथयोर्व्युत्क्रमः पा. प्रतौ । ६७ ० वाणिज्जं । ०णेह । ६९. ३१ गाथानन्तरमेका गाथाऽधिका पा. प्रतौ, साऽत्र [] चिह्नान्तर्गता । ७०. गब्भपउए पिच्छइ । ७१. ससिरवि संठाण संठिया । ७२. सूरेण होइ पुरिसो । एत्थ । ७४. सुन्नपिच्छाए । ७५. संगह० । ७६. होइ ससी वा० । ७७. ०हरो । सरह । ७९. कहमि । ८०. निव्वाणं । ८१. जं दिवं । ८२. मेक्कं । ८३. एक्कं । सास० । ८५. कालस्स परिमाणं । ८६. 'तहव' नास्ति पा. । ८७. 'राये णव मासं पक्खेकं • ८८. दोनि । ८९. एकरायमाणेण । ९०. छव्वरिसं । ९१. ०णेह । ९२. 'देहे' न पा । ९३. विमलसिध्धी । ९४. ०कणय० । ९५. नहयलमज्झम्मि पिक्खए । ९६. ०सया तारिसं जाण । ९७. पिक्खइ । ९८. सुद्धब्भफलिह० । ९९. जंघविहीणेण । १००. य। १०१. पेक्खइ । १०२. फलिह० । १०३. पावइ । १०४. हरो विरिंची । १०५. भुवणयले । १०६. जाणिज्जइ तह० । १०७. अप्पा । १०८. पक्खेण होइ म० । १०९. बंधणं । ११०. अमुणिय० । १११. ० चिंताओ । ११२. ० मयंको । अमियधारसंघाओ । ११४. ज्झायइ । ११५. चिय । ११६. अदमेह गंठनाही । ११७. इ । ११८. कोयंडे । ११९. ज्झाइज्जइ । १२०. ०मंडली० । १२२. ०तेयं । १२३. भासतं बंभगंठिमूलेसु । १२४. धुयं ।
८४.
११३.
१२१. ५० तमगाथा न पा. ।
१२५. तिकूणं । १२६. व ।
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________________ 127. अमरबहुसिद्धजक्खसंघायं / 128. पउमरायसंफासं। 129. परिटुवह हिययचक्कमज्झम्मि / 130. ०भासो। 131. परिहरिउं सयल० / 132. जल० / 133. 0 तुहिणा। 134. 'वरिसंती चंदमंडले सयलं'। 135. चिन्तिय कंठयले यं। 136. ज्झलहलिय०। 137. पहो। 138, कोयंड मज्झिमो। 139. तह०। 140. भाविदो। 141. गणेसु। 142. ०मत्तो। 143. च। 144. पुणं नवा! 145.6162-63 गाथाः पा. न। 146. ०चंकमणं। 147. धुवे। 148. नवभेयभाव० 149. विविह० / 150. व / 151. कुणइ.। 152. तेलोय० / 153. ०यरं / 154. ठाएसु वियं / 155. एच(व)लयं भाव भाविदो०। 156. ट्ठिया / 157. ०ठिया / 158. लपिंडो। 159. ठाएसु भासीओ। 160. छटुमसरेण य। 161. नाइ० / 162. भुयमज्झे। 163. पुच्छए। 164. ०फुक्कियाए / 165. ०संजुत्तं / 166. [ ] एतदन्तर्गतं पा. प्रतावेव। 167. तह य वि० / 168. ०वाउ० / 169. ०मज्झत्थं। 170. ०सयलं / 171. वामेण / 172. वरुणं / 173. तेओ। 174. 0 गओ तह हवइ वाऊ। 175. हवइ। 176. सूर-म० | 177. पुहइ-जलेण य० / 178. जं जं सयलं च चिन्तेइ। 179. ०मारुयस्स चिंताए / 180. धाऊ। 181. लाहो। 182. [] एतदन्तर्गतपाठः पा. प्रतावेव। 183. रुद्दो। 184. '८२'तमगाथा '८४'तमगाथातः पश्चात् पा. प्रतौ। सा चेत्थं "सूरगमिए वाला घडियचउक्कमि समुहा जयइ / तह उद्धेण य वामा पुट्ठिगया जिणइ रयणीए / / 80 // " 185. प्पवाहे। 186. बाला कामंगसत्तिसाहीणा' / 187. धुवं / 188. [] एतद्गतं पा. / १८९.०संघाओ.। 190. अमय० / 191. पुरसंमि। 192. हवइ। 193. ट्ठिएसु समरं। 194. धुवं / 195. ख्विह / 196. "जीवं जिपइ सउनो'। 197. चलिओ (?) / 198. ठाणेसु। 199. [ ] एतदन्तर्गतं गाथाद्वयधिक पा. प्रतौ / 200. विजइ / 201. छित्तम्मि कुणइ पिच्छाओ। 202. ०हरो। 203. [ ] एतदन्तर्गता गाथाऽधिका पा. प्रतौ। 204. पिच्छद। 205. जीएसु / 206. गए जीए / 207. [] एतदन्तर्गतं गाथाचतुष्कं अधिकं पा प्रतौ। 208. नेयं गाथा पा. प्रतौ। 209. कामरूयपंचासिया सम्मत्ता /