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पंचसु ठाणे बीयं दूरट्टिउ (ओ) विआणइ
थंभइ लयारबीयं
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दावइ एव लपिंडे
छट्टसरेण व सुत्रं ज्झाइज्झइ भूमज्झे
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दह अलिहिय सुनं हरहसियफुंक्कियाए
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बीयमबीयं तिउणं मयभिभलउम्मत्ता
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मज्झेण वहइ पुहइ उद्धेण वहइ तेऊ
सुन्नं सुन्नसहावं अक्कमयंकेसु तहा
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पुहई - जलेण लाहो
सुत्रेण होइ सुन्न
पुहइपहावे लं तेयपवाहे धाउं
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समरसभावेण भाविओ नूणं । जोयणसयसंठिआ नारी
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मायाबीयं च कुणइ आइट्ठी ।
पंचसु ठाणेसुमब्भसिओ
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अक्केण खुद्दकम् [सुहकम्मं ] कुणह-रयणिनाहेण ।
साहइ मणवंछियं सयलं
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तत्तविसेसेण फुडं पुहइ - जल-तेय - वाया नियनियसहावसहलं
सविसग्गं बिंदुनायसोहिल्लं । नाणाविह कुणइ सामत्थं पच्छिमबीयस्स फुंसए नूणं । हरइ विसं कालदट्ठस्स
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मज्झगयं जस्स नाम संपुन्नं । आणइ दूरट्टिया नारी
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सुत्रं एक्केक्कनाडिमज्झम्मि | जाणिज्जइ सयलचिंताओ
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जलणं अहमग्गसंठियं वहइ । तिज्जगओ वह सम्मीरो
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مات ؟
पंचसु तत्तेसु संठियं वहइ । नहतत्तं सव्वगं जाण
हाणी - महणं च तेय-पवणेण ।
जं संयलं चितियं कज्जं
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जीयं जल - मारुयाण चिंताए । सुन्ने सुन्नं वियाणेह
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॥६७॥
॥६८॥
॥६९॥
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॥७१॥
॥७२॥
॥७३॥
।।७४।।
॥७५॥
॥७६॥
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