Book Title: Kamrupa Panchashika
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ २६ . ॥१२॥ ॥१३॥ ॥१४॥ ३२ ॥१५॥ ॥१६॥ BE कोयंडचक्कमज्झे अइया रविकोडितेयभासाए । जो ज्झायइ अगवरयं सुच्चिय मयणो न संदेहो सिंदूरारुणतेयं जं जं चिंतेइ तरणिसंकासं। तडितरलतेयनासं आणइ दूरट्ठिया नारी जवकुसुमसंनिहाणं ज्झाणं तियलोयसयलसरवंतं । जो ज्झायइ अणवरयं सो पायइ जुवइसंघायं सवरंरवन्नरूच्छं ईसरषिंडिंदुबिंदुसोहिल्लं। जो जवइ लक्खविहिणा सो पावइ चिंतिया नारी ससिठाणे विसहरणं सूरो मारेइ तिहुयणं सयलं । पावेइ सयलसिद्धी रविससिमझट्ठिए नूण ससिकोडितरलतेया वरिसंती बंभमंडले सत्ती। अवहरइ सयलदुरियं जरमरणं वाहिसंघायं अजरामरे सुचक्के हंसं ठविऊण सुन्नभावेण । नासइ सुन्नेण धुवं जरमरणं वाहिसंघाओ सुत्रं न होइ सुन्नं दीसइ सयलं पि तिहुयणं सुन्न । अवहरइ पावपुन्नं सुन्नसहावे गओ अप्पा सुन्नट्ठिए सुसुन्न भरिए भरियं च तिहुयणं सयलं । सूर-मयंकग्गामे सयलकलालंकियं भुवणं अक्को मयंकखित्ते बारह संकमणसविघडियाओ। वहइ दिणं अह राई . एक्केक्कं पंच घडियाओ पंच पहा दो मग्गा इक्को चिय वहइ तिहुयणे सयले । जत्थ गओ तहिं अच्छइ सुन्ने सुन्नं वियाणाहि ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ ॥२०॥ ॥२१॥ ॥२२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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