Book Title: Kalplatavatarika
Author(s): Amrutsuri
Publisher: Jain Sahityavardhak Sabha

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Page 10
________________ [ ] - (3) नियति-नियति, भवितव्यता, भाविभाव, जे थवार्नु होय तेज थाय, इत्यादि विचार धरावनारा कार्यमात्रमा नियतिने कारण माने छे. गमे तेटलुं करवामां आवे पण होनहार मिथ्या थाय नहिं, ए एमनो मुद्रालेख छे. कोई पण कार्य माटे नियतिवादीने पूछो तो कहेशे के ए तो एमज थवानुं हतुं, कार्य न थाय तो कहेशे. के एतो थवानुज न हतुं, ए रीते भवितव्यतावादीओ मतिनो सर्व निचोड भवितव्यताने अर्पण करी दे छे. (4) कर्म-कर्म, भाग्य, अदृष्ट, पुण्य-पाप, पूर्वकृत वगेरे समानार्थक शब्दो छे. कर्मवादीओ कमवश कार्यमात्र थाय छे, कर्मथी दुःखी सुखी बने छे .अने सुखी दुःखी थाय छे. रक राजा थाय अने राजा रङ्क बने, ए कर्मनी बलहारी छे. कर्म नचावे ए प्रमाणे सर्वे नाचे छे. श्राम कर्मवादीओ कर्मनेज प्रधान माने छे. (5) पुरुषार्थ-यत्न, उद्यम, पुरुषार्थनेज कार्यमां कारण माननारा कहे छे के काळ-भाविभाव-स्वभाव के कमने आगळ करीने हाथ जोडीने बेसी रहेQ ए•मूढता छे. असाध्य पण प्रयत्नथी साध्य बने छे. कल्पनामां पण न आवी शके एवा क यो उद्यमथी सिद्ध थया छे, ए हकीकत छे. इत्यादि कहीने उद्यमवादीओ पुरुषार्थ उपरज निर्भर रहे छे. ___ काळादि पांचेमा आंशिक कर्तृत्व छे अने पांचे एकत्रित थाय त्यारेज तेमां पूर्ण कर्तृत्व छे ए सिद्धान्त छे. कोई पण कार्यने सूक्ष्मदृष्टिए विचारतां तेमां पांचेनो यथायोग्य अंश स्पष्ट जणाशे. - केरी आपवानो स्वभाव आंबानो छे-लिंबडामा केरी आवती नथी. आंबो पण योग्य काळे फळे छे. फळेला आंबामां पण भवितव्या-...

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