Book Title: Kalplatavatarika
Author(s): Amrutsuri
Publisher: Jain Sahityavardhak Sabha

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Page 15
________________ [ 14 ] करनार अन्तक छे अर्थात् सूत्रान्तक छे पण सौत्रान्तिक ए तो लिपिदोषथी प्रसिद्ध थयेल छे. ए सूक्त आ प्रमाणे छे. . रक्त: प्रसक्तः क्षणिकत्वसिद्धौ, यदुक्तसूत्रं हतवान् स्वकीयम् / सूत्रान्तकोऽप्येष लिपिभ्रमेण, सौत्रान्तिको लोक इति प्रसिद्धः / / श्राम त्रण स्तवकोमा अनेक सूक्ष्म विचारो तर्कबद्ध निरूप्या छे. स्याद्वादकल्पलतामा विस्तारथी बौद्धमतनी गंभीर मीमांसा आलेखी छे. बौद्धदर्शनना ते ते विशिष्ट दार्शनिक ग्रन्थोना द्वार जो आ टीकार्नु व्यवस्थित अध्ययन कयु.होय तो खुली जाय छे. बौद्धदर्शननी विशिष्ट विचारणा माटे उदयनाचार्यना 'आत्मतत्त्वविवेक'ने अने पू० उपाध्यायजी महाराजना 'न्यायखण्डनखाद्य'नु परिशीलन कर आवश्यक छे. बौद्धोने परास्त करवामां जैनाचार्योनी जेम उदयनाचार्ये पण सारी जहमत ऊठावी छ. उदयननो एक प्रसिद्ध श्लोक आ अंगे साक्षी पूरे छे, ते आ-, - ऐश्वर्यमदमत्तोऽसि, मामवज्ञासि दुर्मते 1 उपस्थितेषु बौद्धेषु, मदधीना तव स्थितिः // . ... जो के पराभूत थएला बौद्धोनुं भारतमा छेल्ला शतदशकाथी विशिष्ट अस्तित्व नथी देखातुं छतां भविष्यमा पुन: प्रवेश थवाना चिन्हो देखाय छे. एटले तेमना मन्तव्योर्नु अध्ययन विशेष उपयोगी थशे. . आ रीते 4-5-6 स्तवको गहन छतां उपयुक्त छे. . ७-स्तवक-सातमा स्तवकमां जैनदर्शनना सिद्धान्तो निरूप्या छ. स्याद्वादकल्पलताना आदि त्रण सूक्तो श्रीशान्तिनाथ-श्रीपार्श्वनाथ अने श्रीवर्धमानस्वामीनी स्तुतिरूप कण्ठस्थ राखवा योग्य छे.

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