Book Title: Kalpasutram
Author(s): Bhadrabahuswami, Vinayvijay, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Yashovijay Pustakalay

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Page 15
________________ सिरि मुणिचंद मुर्णिदो, संजाओ चालीसम्मि पट्टम्मि । सिरिअजिअदेवमूरी, एगाहिअचालिसे पट्टे ॥ १४॥ सिरिविजयसिंहमूरी, बायालो सव्वमूरी गुणकलिओ। सोमप्पह-मणिरयणा, तेआला दो वि पट्टधरा ॥१५॥ जगचंदो जगचंदो, चउआलो तह मुणीसदेविंदो । पणयालो छायाले, पट्टे सिरिधम्मघोसमुणी ॥ १६॥ सिरि सोमप्पहरि. सगयालो सोमतिलय अडचत्तो। सिरि देवसुंदरगुरू, एगुणवण्णो अ पट्टधरो ॥ १७॥ पंचासइमे पट्टे, मूरिवरो सोमसुंदरो परमो । सिरिमणिसुंदरसूरी, एगावण्णो महासत्तो ॥ १८ ॥ सिरिरयणसेहरो वि अ, बावण्णो लच्छीसायरो सरी । पट्टधरो तेवण्णो चउवण्णो, समुइसाहु गुरु ॥ १९ ॥ सिरिहेमविमलसूरी, पणवण्णो पवरलद्धसोहग्गो । आणंदविमलसूरी, छावण्णो सुद्धमग्गधरो ॥ २० ॥ भविअजणाऽऽणंदकरो, गुणनिलओ विजयदाणमूरिंदो । सगवण्णो पट्टपहू, संजाओ सव्वजणइहो ॥२१॥ सबजगज्जणहिअओ, भूवणाणंदोअ सीलगुणकलिओ। सिरिहीरविजयसूरी, जाओ अडवनपट्टपहू ॥ २२ ॥ सिरिसोहग्गनिहाणो, सूरिवरो विजयसेणमुणिवरो । एगुणे सहितमे, पट्टे सोहम्मसामिसमो ॥ २३ ॥ तप्पट्टे सहितमो, पट्टधरो विजयतिलयमूरिसो, भाणुन्च भविअमाणस-पकयबोहत्यमुप्पनो ॥ २४ ॥ संपइ इगसद्वितमो, तत्पट्टे गणहरो विहरमाणो । वायगबुहजइजुत्तो विजयाणंदो जयइ मूरि ॥२५॥ सिरिविजयदाणगणहर, सीसा वरवायगा भुवणपुज्जा । नामेण विमलहरिसा, कुवाइमयदलणलद्धजया ॥ २६॥ १८-सहस्रावधानकरणम् राज्ञः सकाशात् काली सरस्वतीति विरुद्धं प्राप्तः इति स्वोपज्ञवृत्तौ ॥

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