Book Title: Kalpa Vyakhyan Mandani Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ March-2004 पूर्वे थयेला महान् आचार्योनुं स्मरण-वर्णन कर्तुं छे. तेमां प्रथम विभागमा गणधर सुधमास्वामी, जम्बूस्वामी, प्रभवस्वामी, शय्यंभवसूरि, यशोभद्रसूरि, भद्रबाहु स्वामी, स्थूलिभद्रजी, आर्यमहागिरि, आर्य सुहस्ती, श्री वज्रस्वामी आटलां नामो जोवा मळे छे. अहीं नोंधपात्र वात ए छे के आर्य सुहस्ती साथे जोडायेला राजा संप्रतिना वर्णनमां "जीणई सोल सहस्र प्रासाद करावी जिनमंडित पृथ्वी कोधी" - एवो उल्लेख छे. प्रचलित परम्पराप्राप्त मान्यता अनुसार संप्रतिए सवा लाख मन्दिर बनावेलां. ज्यारे अहीं मात्र '१६ हजार' ज कह्यां छे. इतिहासनी दृष्टिए आ मुद्दानी छणावट विचारणा थवी जोईए. 16 ¬ का पछी पालित्ताचार्य तथा बप्पभट्टसूरिनां नामो आवे छे. अहीं पण एक ऐतिहासिक विसंगति जोवा मळे छे, ते ए के मुरंड राजानो सम्बन्ध बप्पभट्टिसूरि जोडे होवानुं प्रसिद्ध छे, छतां तेनो सम्बन्ध पादलिप्ताचार्य साथे जोडी देवायो छे. कालव्यत्ययनो दोष घणा आचार्योना सन्दर्भमां थयेलो जोवा मळे छे. जेमके वृद्धवादी, मल्लवादीने नागेन्द्रगच्छीय गणाव्या छे, तथा रत्नप्रभसूरिने बहु पछीथी नोंध्या छे. कर्तानो आशय इतिहासनी परम्परा नोंधवानी जराय नथी; तेमना मनमां महान् आचार्योनुं गुणवर्णन ज छे ते, अलबत्त, स्वीकारीने ज चालवुं जोईए. त्रीजा तबक्कामां, वायडा जिनदत्तसूरि, वेणीकृपाण अमरचन्द्रसूरि, नागेन्द्रगच्छे देवेन्द्रसूरि, शीलगुणसूरि, संडेरगच्छे यशोभद्रसूरि, विजयसेनसूरि, उपकेशगच्छे रत्नप्रभसूरि तथा सिद्धसूरि दरेक आचार्यना नाम साथे तेमनी विशिष्टता पण कर्ताए नोंधी छे, जे मोटा भागे ऐतिहासिक छे. Jain Education International नाणावालगच्छना शान्तिसूरि, कोरंटगच्छे नन्नसूरि, भावडारगच्छे वीरसूरि, नवांगवृत्तिकार श्री अभयदेवसूरि. अहीं अभयदेवसूरिना नाम पूर्वे 'खरतरगच्छे' वो शब्द नथी ते खास सूचक तथा ध्यानार्ह गणाय. वास्तवमां 'खरतरगच्छ' बुं नामाभिधान बहु मोडुं थयुं छे, ते पण ऐतिहासिक तथ्य छे. खरतरगच्छे जिनप्रभसूरि, कासहदगच्छे उद्योतनसूरि, डगच्छे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14