Book Title: Kalpa Vyakhyan Mandani
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ 14 अनुसंधान-२७ कंटाळो न चडे ते रीते तेनुं व्याख्यान थर्बु जोईए. आ कारणे ज, जेम अनेक विद्वान् मुनिवरोए सेंकडोनी संख्यामां कल्पसूत्रनी टीकाओ तेमज अन्तर्वाच्योनी रचना करी छे, तेम अनेक मुनिओए कल्पसूत्र पर बालावबोध के स्तबक (टबा) पण रच्या छे. अनी भाषा गुजराती के मारुगुर्जर प्रकारनी लोकभाषा होय छे. प्रस्तुत कृति ए कल्पसूत्रनुं संस्कृत विवरण पण नथी के बालावबोध पण नथी. परन्तु, कल्पसूत्र ज्यारे वांचवानुं होय त्यारे तेनी भूमिका केवी रीते बांधी शकाय के बांधवी जोईए, तेनो एक सुन्दर नमूनो कर्ताए आ कृतिरूपे पेश कर्यो छे. तेमणे आनुं नाम पण बहुज सार्थक आप्युं छे : कल्पव्याख्यान मांडणी : कल्पसूत्र उपर व्याख्यान करवा इच्छनारे तेनी मांडणी एटले के पूर्वभूमिका के पीठिका केवी, केवी रीते, बांधवी जोईए तेनी पद्धति. तेमणे प्रारम्भ-श्लोकमां ज कारणमालागभित मुखडं बांधी दीधुं छे के लोको सुख इच्छे; सुख धर्मथी; धर्म ज्ञानथी; ज्ञान शास्त्राध्ययनथी; ने छेल्ले उमेर्यु के शास्त्रना त्रण प्रकार छे. आ श्लोक, भाषा-विवरण करतां तेओ धर्मशास्त्र एटले के कल्पशास्त्र सुधी पहोंचे छे, तेटलामा आठेक पद्योनां सार्थ उद्धरण आपीने प्रतिपादनने वजनदार अने रसिक बनावी मूके छे. 'कल्प' शब्द आवतां तेना अनेक प्रकारो दर्शावीने अहीं कल्पसूत्रनी ज वात- व्याख्यान करवानं छे ते कहेवानी साथेज, आवा सूत्रने 'हूं वखाणिसू'- अर्थात् 'हुं आ सूत्रनुं व्याख्यान करीश' - एम कहेवामां पोतानी केवी धृष्टता तथा मूढता थाय-गणाय ते दर्शावे छे, अने पोते, आम छतां, आ व्याख्यान करी रह्या छे तेमां सद्गुरुनी तथा श्रीसंघनी कृपा ज मुख्य कारण छे तेम जणावीने पोतानी गुरुपरतंत्रता तथा संघाधीनता प्रगट बतावी दे छे. गुरुना तथा संघना महिमानुं वर्णन तथा पोतानी हीनतानुं वर्णन करवामां कर्ताए जे हृदयस्पर्शी वातो करी छे तथा उद्धरणो टांक्यां छे, ते अत्यन्त मननीय लागे छे. कुल मळीने प्रथम पद्यना विवरणमा १४ पद्यो तेमणे टांक्यां छे. द्वितीय पद्यमां श्रीगौतमस्वामीनी वन्दनारूप मंगल आचरीने तेमणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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