Book Title: Kalpa Vyakhyan Mandani
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ 18 कल्प- व्याख्यान- मांडणी ॥ ।। ६० ।। सर्वो जनः सुखार्थी, तत् सौख्यं धर्मतः स च ज्ञानात् । ज्ञानं च शास्त्र ( स्त्रा ) धिगमात् त्रिविधं शास्त्रं बुधाः प्राहुः ॥ १ ॥ सहूइ एकेन्द्रिय आदि देई जीववर्ग सौख्य वांछइ, अनइ दुःखतु बीहइ । " सव्वे वि सुक्खकंखी, सव्वेवि [य] दुक्ख भीरुणो जीवा । सव्वे वि जीवियपिया, सव्वे मरणाउ बीहंति || " जीवितव्यसौख्य सहूइ वांछइ । तं सौख्य जीव धर्मतु पामइ । " यद्वन्न तृषाशान्ति - जलं विनाऽनेन [न] क्षुधाहानिः । जलदं विना न सलिलं, न शर्म धर्माद् ऋते क्वचित् ॥ " विनय पाखें विद्याप्राप्ति नहीं | औषध पाखइ रोगशान्ति नही । सच्छंग पाखइ सद्बुद्धि नही । विवसाय पाखइ रद्धि नही । शुक्लध्यान पाखइ सिद्धि नही | तिम धर्म पाखइ सुख नहीं || " जलेभ्यो जायते सस्यं, सस्येभ्यो जायते प्रजाः । प्रजाभ्यो जायते धर्मो, धर्मान्मोक्षं च गच्छति ॥" अनुसंधान - २७ प्रथम पहिलु मेघवृष्टि हुइ । पाणीयें करी तेहहुंती अन्ननी प्राप्ति हुई । अन्नवृद्धि हुंती प्रजा सुखी हुइ । सुखहुंती धर्म चालइ । धर्मथिकी जीव मोक्ष पामइ ॥ " धर्मसिद्धौ ध्रुवा सिद्धि-घुम्न | प्रद्युम्नयोरपि । दुग्धोपलम्भे सुलभा, संप्राप्तिर्दधिसर्पिषोः ॥" Jain Education International जइ जीवप्राणी तणई पोतइ पूर्वाभव ( वो) पार्जित धर्म हुइ तु तेहना धर्म थिकी अर्थनी प्राप्ति नीपजइ । अर्थतु कामभोग पामइ । जिम पहिलं दुग्धनी प्राप्ति नीपजइ तु तेह दुग्ध थिकी दधि अनइ आज्य कहीइ घृत - अमृत ते सुप्राप्य नीपजइ जिम, तिम धर्मतु अर्थ, अनइ अर्थतु कामभोग लहइ । ते धर्म प्राणीआ प्रतिइं पंचविध ज्ञानतु हुइ || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14