Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 8
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 365
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरण प्रमोद शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि: सरसति मुझ रे मात दिओ अंतिः परमसुख इम मांगीड़, गाथा - ६. "" ३३२४१. चैत्यवंदनभाष्य, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५x९.५, १४४४६). चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ४० अपूर्ण तक है.) ३३२४२. सुकोशलऋषि रास अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे. (२४.५x११, १३४३७). सुकोशलमुनि रास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रहि उठी रे भगवति, अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा - १७ अपूर्ण तक है.) ३३२४५. (+) प्रकरण व कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. श्राव. मकंदजी भीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२४.५x१०.५, १२x४४). 3 १. पे. नाम. विचारसारषत्रिशतिका, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा- ४४. २. पे. नाम. बावीसअभक्षबत्रीसानंतकाय कुलक, पृ. ३अ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कुलक, प्रा., पद्य, आदि: पंचुबर चउविगई हिम; अंति: परिहरिअव्वा पयत्तेणं, गाथा- ७. ३३२४६. पाखीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३-१२ (१ से १२) = १, जैदे., (२४.५x९.५, ८x२५). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (१) मिच्छामि दुक्कडं, (२) जेसिं सुयसायरे भत्ति. ३३२४७. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जै. (२५.५४१०.५ ११५३०). "" क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आवरि जीव क्षमागुण, अंतिः चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा - ३६. ३३२४९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, जैदे. (२४.५x१०.५, १९४२०). १. पे. नाम ऋषभ तवन, पृ. १अ संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, मु. खुस्यालचंद, रा., पद्य, आदि: सुभरी घडी हो प्रभु अंति कर जोडीने अरज करी, गाथा- ९. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि पिवा चल्या गिरवर कुं, अति हलाहल बेर बेर मरनी, गाथा-७. ३. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. " आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदिः आदीशर सुखकारी हो; अंति: प्रभू आवागवण निवारि, गाथा-५. ४. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर सेवना; अंति: मोहन० भेट्यो अंग उदार, गाथा-७. ३३२५०. नमस्कार महामंत्र सह कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५x११.५, १०X३७). " नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं, अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद- ९. 3 नमस्कार महामंत्र- कल्प, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: व्यापारे फल मध्यमं, अंतिः पामिसि मीत्र करे. ३३२५१. () स्तोत्र संग्रह, सिद्धाचल स्तुति व श्रावकधर्मकृत्य, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ४, पू.वि. पत्रांक फटा हुआ होने के कारण पत्र क्रमांक अनुमानित दिया हुआ है., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १५X४८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि तिहुयण जणमणमोरगणरंजण, अंतिः पसीयह मुज्झ सयं धणीव, गाथा १५, (वि. पत्र फटा हुआ होने के कारण कर्ता नाम नहीं पढा जा रहा है. ) २. पे. नाम. पार्श्वजिन अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कीर्तिरत्न, सं., पद्म, आदि कल्याणकेलिसदनं महिमा, अंतिः सततं जिनपार्श्वनाथः, श्लोक ८. ३. पे. नाम. विमलगिरी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धाचल स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धो जत्थाइ चक्की, अंति: तित्त्थमेयं नमामि गाथा - १. For Private And Personal Use Only

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