Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 8
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड- १,१.८) KAILASA SRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol-1.1.8) यह प्रमाण अणा ब्रह्माणावादयगमु चदरिसीणामिवमा वादमनगरावति॥ गानामा डिएडि आचार्य श्री कैलावमहावीर ससागरसूरि कोबा तीर्थ फैला For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म सानमंदर ना श्रीयादी dams रमना Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.८) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची के आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५३६ ० वि.सं. २०६६ ० ई. २०१० For Private And Personal use only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairthora Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ८ Acārya Shri Kailāsasā garasūi Smrti Granthasūci - Ratna 8 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.८ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci: 1.1.8 संपादक पं. मनोज र. जैन Editors Pt. Manoj R. Jain खंड संयोजक आशिष आर. शाह Volume Co-ordinators Ashish R. Shah सह संपादन शैलेष प्र. महेता नवीन वि. जैन Co-Editors Shailesh P. Maheta Navin V. Jain - कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग 6 केतन दी. शाह Computer Programmings Ketan D. Shah For Private And Personal use only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ८ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिरे देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृतसूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची • वर्ग - १ : जैन साहित्य खंड - ८ के आशीर्वाद व प्रेरणा से आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Dēvarddhigaại Kşamāśramaņa Hastaprata Bhāņdāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section-I: Manuscripts' Catalogue * Class - I: Jain Literature Volume - 8 Blessings & Inspirations 6 Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Published bys Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, India 2010 For Private And Personal use only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 8 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.8 Preserved in Dēvarddhigani kşamāśramana Hastaprata Bhāndāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir o Copy rights : Reserved by Publisher o Vir Samvat 2536, Vikram Samvat 2066, A.D. 2010 OEdition: First 0 प्रकाशन सौजन्यः श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर O Available at: Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth OPublished by: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205,23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir @kobatirth.org O Price: Rs. 750/ OPrinted by: Navprabhat Printing Press, Ahmedabad Tel. No. (M) 9825598855 0 ISBN: 81-89177-00-1 (Set) 978-81-89177-23-2 (Vol.8) * उपलक्ष * श्रुतोद्धारक आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी ___75 वाँ जन्मवर्ष पूर्णाहुति हीरक समारोह वि.सं. 2066, भाद्रपद शुक्ल 11, दि. 18-09-2010 भवानीपुर, कोलकाता For Private And Personal use only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी www.kobatirth.org गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir || अर्हम नमः ।। ॐ मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; उस जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखने वाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार आदि श्रमण संहति का भी मैं ऋण स्वीकृति पूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्रायः हुआ. इन सब कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत-से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर, सर्वप्रथम सन् १९७४ में, अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान, ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके, उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से, कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रहीत करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी आधुनिक साधनों का इस ज्ञानमंदिर में सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का भगीरथ कार्य हमारे मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने जिस समर्पित भाव से किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर पंन्यास श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता. गणि श्री नयपद्मसागरजी आदि मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सभी की भी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के निदेशक श्री कनुभाई शाह की देखरेख में पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को अंतिम रूप दिया है वह अपने आप में अनूठा व इतिहास सर्जक है. श्री मनोजभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री शैलेषभाई महेता, श्री नवीनभाई जैन, श्री आशिषभाई शाह आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकरों को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. ज्ञानमंदिर विभाग का कार्य सम्हालने वाले संस्था के ट्रस्टी श्री गिरीशभाई एवं कारोबारी सदस्य श्री मोहितभाई आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थ के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर एवं समस्त ट्रस्टीगण के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार की कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का खंड ८ प्रकाशित होने जा रहा हैं, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर का विद्वद्वर्ग इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होगा. संस्था अपने विकास पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. पभसागर सरि For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २ सादर समर्पण - कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के कर कमलों में... जिनकी बदौलत यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही. For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kothata Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नाकोडा पार्श्वनाथ नाकोडा भैरवनाथ सौजन्य श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर For Private And Personal use only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के अष्टम खंड को श्री भवानीपुर जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, कोलकाता की पावन धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की शुभ निश्रा में पूज्य श्रुतोद्धारक श्री के ही जन्म के ७५ वर्षों की पूर्णाहुति के शुभ प्रसंग पर चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, वह भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. ___ हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रखरखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. यद्यपि प्रस्तुत ग्रंथसूची के मूल आधार पूज्य मुनिश्री ही है, तथापि खण्ड ५ के बाद पूज्यश्री ने अपनी निस्पृहता का परिचय देते हुए सूचीकर्ता के रूप में स्वयं का नाम न छापने का आदेश किया है. हमारी आकंठ इच्छा होने के बावजूद भी हम पूज्यश्री के आदेश के आगे विवश है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितजनों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य गणिवर्य श्री नयपद्मसागरजी का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है. मुनिश्री ने हस्तप्रतों आदि के प्रारंभिक अनेक कार्यों में अपना उल्लासभरा सहयोग तो दिया ही है परंतु जिनशासन के विशिष्ट शासनप्रभावक के रूप में उभर कर संस्था व ज्ञानमंदिर को जो सहयोग दिलाया हैं उसकी वजह से ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिला है. संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगीयों व शुभेच्छकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. सात पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकरों के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या इसी तरह के अन्य अनुदान को न लेकर मात्र समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियों हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. खास कर शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी - अहमदाबाद की ओर से सूचीकरण के इस भगीरथ कार्य एवं ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों हेतु ज्ञानद्रव्य में से जो निरंतर योगदान मिलता रहा है, उसने हमेशा हमारी चेतना को विकस्वर रखा है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस अष्टम खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर व तीर्थ के ट्रस्टीगण के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस अष्टम रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट कोबातीर्थ, गांधीनगर iii For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में कैलासश्रुतसागर ग्रंथसूची के अष्टम रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. वर्तमान कार्य के परिणाम स्वरूप प्राकृत, संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल, टीका, अवचूरी आदि व व्याख्या साहित्य की लघु कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही हैं. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक विद्वानों की कृतियाँ भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. इस खंड में लघु प्रतों की ही सूची है. सामान्यतः ऐसी प्रतें कम महत्त्व की समझकर जत्थे में बांधकर उपेक्षणीय सी रख दी जाती हैं. लेकिन परिशिष्टों को देखने से पता चलेगा कि आश्चर्यजनक रूप से ऐसी प्रतों में से भी प्रचुरमात्रा में अप्रकाशित लघु कृतियाँ प्राप्त हुई हैं. इन लघु प्रतों का वर्गीकरण से लगाकर सूचीकरण तक का सारा कार्य बडा कष्टसाध्य होता है, लेकिन उसका यह सुंदर परिणाम बड़ा ही संतोष दे रहा है. नेमिचंद्र कृत सं. ऋषभपंचाशिका-टीका, लालचंद्र शिष्य का सं. अध्यात्मोपनिषत् सावचूरिक, शांतिसूरि की सं. घटखर्पर काव्य-टीका, जंबू कवि का सं. चंद्रदूत काव्य, रत्नशेखरसूरि का प्रा. छंदकोश, मतिप्रभसूरि रचित प्रा. दुषम दंडिका, रूपसिंह कृत सं. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, वाचक लक्ष्मीनिवास का सं. मेघाभ्युदय काव्य व अज्ञात मुनि कृत सं. अवचूरि, मुनिचंद्रसूरि रचित प्रा. वनस्पति सप्ततिका, अज्ञात श्रमण का प्रा. शतपंचाशिका प्रकरण, पद्मसुंदरसूरि कृत सं. स्याद्वादसुंदर द्वात्रिंशिका आदि अनेक प्रकरण, कुलक व चरित्र आदि अनेक प्रकार के ग्रंथ अप्रकाशित प्रतीत हुए हैं. ऐसा ही देशी भाषा की कृतियों में भी है. इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सब का विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपयां वहाँ पर देख लेवें. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत बड़ा जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित, द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री इस तरह छ: भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इस में प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री - इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकृत कर दिया गया है. प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों के मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी की वर्षों की महेनत से बनाई थी. उसी को आधार रख कर हमने यह संपादन कार्य किया है. मुनिश्री के हम अनेकशः कृतज्ञ है. समग्र कार्य दौरान पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक पंन्यास श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्यप्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे है, यह जान कर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है, हमें हमारा श्रम सार्थक प्रतीत होता है. प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु श्री संजयभाई गुर्जर तथा ग्रंथालय विभाग के श्री हेमंतकुमारसिंह, श्री दिलावरसिंह विहोल एवं श्री परबतभाई ठाकोर आदि सभी सहकार्यकरों को त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्रस्तुति के लिए हम त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडं देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रही भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, जिससे अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना.. समर्पण .............. ................. प्रकाशकीय .... प्राक्कथन अनुक्रमणिका ........... प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत ............ .vi-viil हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य. ............ viii हस्तप्रत सूची. .......१-४७३ परिशिष्ट: कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या.. ....... ........४७४-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १............ ................४७४-५१९ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ .......... ...........५२०-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सब का विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपयां वहाँ पर देख लेवें. प्रस्तुत खंड ८ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. 0 प्रत क्रमांक - ३००३० से ३४४५०। ० इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से ३७४४ प्रतों की सूचनाओं का समावेश इस खंड में हुआ है. ० समाविष्ट प्रतों में कुल ३९३९ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ० इन परिवारों की कुल ४४६५ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. ० सूची में उपरोक्त कृतियों कुल ६७६७ बार आई हैं. For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत .......... कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. ............ प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. (7) ........ प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. .......... कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. .. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती है. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में उर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--)...........आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप.............अपभ्रंश (कृति भाषा) अंतिः ........ अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ.......... .आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप. ........... प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा......... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ. ......... ऋषि (विद्वान स्वरूप) क........... कवि (विद्वान स्वरूप) ........... ..कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं........मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्व ग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पे......... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत........... प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को..............कोष्टक (कृति स्वरूप) ग. .......... गणि (विद्वान स्वरूप) गडी............गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य............गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा. .............गाथा (कृति परिमाण) गु. .............गुजराती (कृति भाषा) गुटका ........बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गृही. गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) गोल .. गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ग्रं................ ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) जै.. जै.क. जैदे. ते. दत्त. दि. देना. पं. ...पंजाबी (कृति भाषा ) पं. .......... पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) पठ. प+ग पद्य. -जैन दिगंबर कृति (कृति परिशिष्ट ) ............देवनागरी (प्रत लिपि) पा. पु. हिं. पूर्व. पू. वि. ....Hassan पू. पे. नाम. पे. वि. पै. प्र. वि. प्रले. ... जैन कृति (कृति परिशिष्ट) . जैन कवि (विद्वान स्वरूप ) . जैन देवनागरी (प्रत लिपि) ... जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. विद्वान) पु. प्रा. प्र. ले. पु. www.kobatirth.org: . पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) . पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार ) ..पद्यबद्ध (कृति प्रकार ) पाठक (विद्वान स्वरूप ) पुरानी हिंदी (कृति भाषा ) पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व कृतिमाहिती स्तर) .. कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि.' 'श.' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. . पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर ) . पेटाकृति नाम . पेटाकृति विशेष . पैशाची प्राकृत (कृति भाषा ) प्रत विशेष. . प्रतिलेखक, लहिया, Scribe (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) • प्रतिलेखन पुष्पिका की - ( प्रत / पेटाकृति / कृति स्तर) ('सामान्य, मध्यम आदि उपलब्धता सूचक.) प्र. ले. श्लो..... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक ( जलात् रक्षेत् .... इत्यादि) .. प्राकृत (कृति भाषा ) vii प्रे. बौ. म. महा. मा. मा. मु. मु. मूपू. यं. रा. गु. विक्र. व्याप. वै. श. रा................ राजस्थानी (कृति भाषा ) राज्यकाल .... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो, राज्ये. जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो. लिख. प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान ) ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वाचक (विद्वान स्वरूप ) वा. श्राव. श्रवि. वी................ वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत यथा वी. २००० वर्ष संख्या पश्चात् होने पर वी सदी यथा ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष ) वि................ विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्रे. ले. श्रु.. श्वे. सं. सम. सा. स्था. हिं. प्रतलेखन प्रेरक (प्र. ले. पु. विद्वान) बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) ... मराठी (कृति भाषा ) . महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा ) . मागधी प्राकृत (कृति भाषा ) .मारुगुर्जर (कृति भाषा ) मुनि (विद्वान स्वरूप) . मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) . जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) ********* .यंत्र (कृति स्वरूप) राजा (विद्वान स्वरूप) ......... For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - रचना वर्ष) विक्रेता प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) व्याख्याने पठित विद्वान द्वारा (प्र. ले. पु. पु., कृति विद्वान) वैदिक कृति (कृति परिशिष्ट ) . शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र. ले. पु.) श्रावक (विद्वान स्वरूप ) श्राविका (विद्वान स्वरूप) श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान) . जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट ) (प्र. ले. पु. विद्वान ) साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) . संस्कृत (कृति भाषा ) समर्पक ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला, . जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट ) .हिंदी (कृति भाषा ) Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: सुकृत के सहभागी हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी २. श्री शांतिलाल भुवरमल अदाणी परिवार ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर ४. शेठी झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर ५. श्री प्लेजेंट पेलेस जैनसंघ ६. श्री गोवालिया टेंक जैनसंघ ७. श्री प्रेमलभाई कापडीआ ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट १३. श्री सांताक्रुज तपागच्छ जैन संघ १४. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसीएशन इन नॉर्थ अमेरिका, "जैना" ह. डॉ. प्रेम गडा १५. श्री एम. जे. फाउन्डेशन १६. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. श्रीमद् यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाळा अने श्री जैन श्रेयस्कर मंडळ २. श्री अर्बुद गिरीराज जैन श्वे. तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट ३. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ ४. शेठ श्री शायरचंदजी नाहर ५. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर ट्रस्ट, पालडी ६. संघवी श्री पुखराजजी हंजारीमलजी दांतेवाडीया मांडवला ७. श्री रांदेर रोड जैनसंघ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर, रांदेर रोड ८. श्री जिन आराधक मंडळ, कांदीवली मुंबई मुंबई १७. श्री सांताक्रुझ जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन देरासर मार्ग, सांताक्रुझ (वे.) मुंबई १८. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी १९. श्री . मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, अहमदाबाद सुरत ९. श्री जयेशभाई हिरजीभाई शाह, नरीमान पोईन्ट १०. प. पू. आ. देव श्री जगच्चन्द्रसूरीश्वरजी महाराजानी प्रेरणाथी श्री सिद्धगिरि महातीर्थ चातुर्मास आराधना निमित्ते श्री बेतालीसना विशा श्रीमाळी जैन ज्ञाति मंडळ viii For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहमदाबाद अहमदाबाद मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई अमेरिका अहमदाबाद मुंबई मुंबई मुंबई अमेरिका महेसाणा इन्दोर अहमदाबाद मुंबई अहमदाबाद चेन्नई सुरत मुंबई मुंबई मुंबई Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ॥श्रीमहावीराय नमः॥ ॥श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३००३०. मरुदेवीनो चोढालीओ, संपूर्ण, वि. १८८५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मांडवीबंदर, जैदे., (२५४१२.५, १८४४१). मरुदेवीमाता चौढालियो, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: माताजी मरुदेवारा रे; अंति: दुकृत सगला टालजो, ढाल-४. ३००३१. (+) अतिचार व प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४४०). १. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ३००३२. ५ महाव्रत भांगा, संपूर्ण, वि. १९६७, आषाढ़ कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सवाइ जयपुर, प्रले. सा. लाछाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२-१४४३५-४२). ५ महाव्रत भांगा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३००३३. संथारापोरसी विधिसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, ११४३३). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: जाव नमोजिणाणं. ३००३४. नवतत्त्व काव्य व जिनश्लोक, संपूर्ण, वि. १७८४, फाल्गुन शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. हुकमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तक दृष्ट, जैदे., (२५.५४११, ४४२८). १. पे. नाम. नवेतत्त्व काव्य सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवतत्त्वादि श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि९ व्रत१२; अंति: ज्ञेया सुधीभिः सदा, श्लोक-१. नवतत्त्वादि श्लोक संग्रह-अवचूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्त्वानि नवतत्त्व; अंति: देवता कृत हुवइ इति. २. पे. नाम. जिन श्लोक सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट, सं., पद्य, आदि: त्रैकाल्यं द्रव्यषड; अंति: स च वैशुद्धदृष्टि, श्लोक-१. जिनोपदिष्ट धर्ममूल श्लोक-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: त्रैकाल्यं अतीत१; अंति: दस पास तिन्न सेसाणं. ३००३५. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, २३४३७-४२). १.पे. नाम. बंधशतक बोल संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. बंधशतक-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाय लेस पखी दिठी; अंति: तीजो इग्यार उद्देशा. २.पे. नाम. पचीस प्रकार क्रिया बोल संग्रह, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. क्रिया के २५ भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: क्रिया दोय प्रकारनी; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल २३ तक के प्रारंभिक अंश तक है.) ३००३७. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१२, १२४३२). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कुरुदेशे गजपुर ठामे; अंति: करजोडीने वंदे पाय रे, ढाल-४. For Private And Personal use only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८ आदि पाप आलोउं छ्रं आपणा, अंति: आलोयण छतिसि उछांहि गाथा - ३६. ३००३८. आलोयणाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२५x१२, १२३०). ३००३९. अमकानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२५x१२, १२४३२). अमकासती सज्झाय, पंडित. वीरविजय, मा.गु, पद्य, आदि अमका ते बादल उगियो, अंतिः वीरविजय गुण गावता रे, गाथा- २३. ३००४०. सनतकुमारचक्री सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२५x१२, १२x२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाव, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कुरुदेशे गजपुर ठामे, अंतिः करजोडी बंदे पाय रे, ढाल - ४, गाथा - २९. ३००४१. (+) भगवतीसूत्र- शतक ८ उद्देश ६गत एषणीय अनेषणीय आहारादिदानफल प्रश्नोत्तर सह टीका, संपूर्ण, वि. १९०८, माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. आगरा, प्र. वि. प्रथम पत्र पर संवत १९०८ के मिति माघ वदि ७ दिने आगरा मध्ये लिखितम् तथा दूसरे पत्र पर श्रीआगरामध्ये सं. १९०८ के मिति माघवदि ११ लिखा हुआ है. पाठ देखने से प्रतीत होता है कि दोनों पत्रों के बीच एक तीसरा पत्र होना चाहिये, क्योंकि दूसरे पत्र के पाठ का आरम्भ अपूर्ण रूप से हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४x११, ११-१३X३९). भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक ८ उद्देश गत एषणीय अनेषणीय आहारादिदानफल प्रश्नोत्तर, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: समणेवासगस्सणं भंते, अंतिः थलोह० नरयाउयं निबंधइ. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ८ उद्देश गत एषणीय अनेषणीय आहारादिदानफल प्रश्नोत्तर की टीका, सं., गद्य, आदि: पंचमे श्रमणोपासकाधिक अंतिः तद्विपक्ष इति. ३००४२. छंद व स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११, १३४४१). १. पे नाम. संखेश्वरपार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीपास शंखेसरा सार, अंतिः रेख महाराज भीजो, गाथा ५. २. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण पड. मु. अभयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणंद भलै भेट्य, अंतिः रंग बन्यो रंग बन्यो, गाथा-५. ३००४३. थुलभद्र सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. जैदे. (२६४११.५ १६x४४). स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पंडित नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोस्या कामिनि कहे, अंतिः ग्यान करे निसदीसो रे, गाथा - २२. ३००४४. एकादशी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२६४१२, १२४२८). " एकादशी तिथि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः आज एकादसी रे नणदल अंति: उदयरतन० लीला लहेसे, गाथा-७. ३००४५. (+) सझाय, स्तवन व सामायिक दोष, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) -२, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११, १६x४६). १. पे. नाम. नंदिषेण सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. दशरथ, मा.गु, पद्य, आदिः (-); अंति: सुख पाइये हो लाल, गाथा-२२, (पू. वि. प्रारंभ से गाथा १७ तक का पाठ नहीं है.) २. पे. नाम. कुंथुनाथ स्तवन, पृ. ३अ - ४आ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, मु. प्रागजी, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: श्रीजिनवाणी शारदा, अंति: वंछित लहै मंगलमाल ए, ढाल - ५. ३. पे. नाम. सामायिक बत्तीस दोष, पृ. ४आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पालखी न जोडई १ अथिर; अंति: (अपठनीय). For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३००४६ (+) विधिपचवीसी सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, वढवाण, राज्येऋ, तेजसिंघ (गुरु आ. केशवजी, लुकागच्छ); प्रले. मु. हरजी (गुरु मु. जीवराजजी ऋषि), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६X११.५, ५X३९). विधिपंचविंशतिका. क्र. तेजसिंघ, सं., पद्म, आदिः यदुकुलांवरचंद्रक नेम, अंतिः मा पठतीह सुनिश्चय, श्लोक-२६. विधिपंचविंशतिका-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः यादवनुं कुल ते रूपी अंतिः निश्चय पामे ज्ञान. ३००४७. सज्झाच संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ ( १ ) -२, कुल पे. ३, जैवे. (२६.५४११.५, १३४३२-३४). १. पे. नाम. सीयल सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., मात्र अंतिम दो गाथा है. औपदेशिक सज्झाय - शीयलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदै महास विसतरई, गाथा - १०. २. पे. नाम, सीयल सज्झाय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. परनारीपरिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणी सुण कंता रे सीख; अंतिः भवे भवे उजलो, गाथा १०. ३. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि चंपानगरी अतिभली हुं, अंतिः प्रणम्या पातक जाय रे, गाथा-५. ३००४८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X१०.५, १x२२). १. पे नाम, गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रुघपति, मा.गु., पद्य, आदि: बामासुत वरदाई पुन्ये, अंतिः चरणे चित राखे रे, गाथा-११, (वि. दो गाथाओं को एक मानकर गिना गया है.) २. पे नाम, जिननामआधार स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिननाम आधार हो; अंति: ( अपठनीय), गाथा-४, (वि. पत्र का कोना खंडित होने से अंतिमवाक्य का कुछ अंश अनुपलब्ध है. ) ३००५०. ककावतीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४. दे. (२४४११.५, ८x२०). , कक्काबत्रीसी, मु. राम, मा.गु., पद्य, वि. १९४३, आदि: कका किरिया किजियसे; अंति: ककाबतीसी सार रे, गाथा-३३. ३००५१. स्तुति व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७X११, १६X५०). १. पे. नाम. २४ दंडक स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि, अंतिः दद्यादलं भारती भारती, (वि. अंतिम श्लोक ३ के बाद क्रम में न देकर पेटांक २ के बाद लिखा गया है.) २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिगुणसंख्या गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा., सं., गद्य, आदि : बारसगुण अरिहंता सिद, अंति: साहु सगवीस अट्ठयं. ३. पे. नाम, पानीपडिकमणविधि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पाक्षिक प्रतिक्रमणविधि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुचरणजुअं नमिउ, अंतिः जेय ते उत्तम प्राणी, गाथा ११. ३००५२. पारसनाथजी की निसाणी, संपूर्ण वि. १८२६ कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, कसनगढ़, जैदे. (२६.५४११, १७x४३). पार्श्वजिन निसाणी- घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपति दायक सुरनर, अंति: जिणहरष कहंदा है, गाथा-१०२, (वि. कृति संपूर्ण समान है परंतु एकेक पाद की गाथा गिनने से कुल गाथा - १०२ हुई है.) ३००५३. वाख्यान मांडणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. लाघा ऋषि; पठ. मु. जगसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५X११, १६x४०). ३ व्याख्यान मांडणी, मा.गु., सं., प+ग., आदि: प्रथम नवकार कहीइं; अंति: वितराग वदे ते सत्य. ३००५४. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंतिम पंक्ति चुहे द्वारा कुतरे जाने से अप्राप्त है., जैदे., (२६४११.५, १९३६). For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु पणमिअदेव; अंति: (अपठनीय), गाथा-२१. ३००५५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२, १४४४९). १. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. सौभाग्यलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतजिन सहज विलासी; अंति: एतो समकितसुख निसाणी, गाथा-९. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एतो प्रथम तीर्थंकर; अंति: मोहनविजय जयकार, गाथा-७. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. __मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिनेसर विनती; अंति: इम वीर नमे करजोडी रे, गाथा-५. ३००५७. (-) वृद्धशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११, १२४३६). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जयनं जयती शासनाः. ३००५८. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १०४३४-३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. जिनसंभव, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर साहिब; अंति: भवभय संकट छीजैजी, गाथा-६. २. पे. नाम. राणपुराजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, आ. जिनसंभवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: आव्यो हुसरणै ताहरै; अंति: ___ ग्यानवग्ग सुधार ए, गाथा-११. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: आयो आयो री समरतो; अंति: परमानंद सुख पायौरी, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: आज ऋषभ घर आवे देखो; अंति: साधुकीरति गुण गावे, गाथा-३. ५.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, प्रले. पं. धनरूप, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारद वदन अमृतनी वाणी; अंति: भाग्यदशा इम जागीरे, गाथा-७. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८४५, पौष शुक्ल, १०. औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर विहारी आतम माहर; अंति: बलिहारी नाम तुमारे, गाथा-८. ७. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वनाथजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: सयल रिपुजीपतो, गाथा-५. ८. पे. नाम. स्वयंभूपार्श्वजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तवन-स्वयंभू, मु. हर्षकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: मोरै पासजिन मन लीनो; अंति: बिन बिन पातिक छिनौ, गाथा-५. ९.पे. नाम. आदिसरजीरोस्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. जसकुशल पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: श्रीआदिसर प्रणमीयै; अंति: सयल संघ सुखदाय रे, गाथा-७. १०.पे. नाम. सुविधनाथ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, मु. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: सुविध जिणेसर वंदीयौ; अंति: आवागमण निवार हो, गाथा-५. ३००६०. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११,१०४२७). For Private And Personal use only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org महावीरजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सरसति सामण वीनवु, अंति: नित प्रणमु पाय रे, गाथा-१३. ३००६१. (#) शास्वतजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १५५१, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ८x४० ). शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिउसह वद्धमाणं, अंतिः तु भवियाण सिद्धिसुहं, गाथा - २४. शाश्वतचैत्य स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ श्रीवर्धमान, अंतिः तव्या छइ ते देउ भाव०, (वि. अंतिमवाक्य का अंतिम भाग जीर्ण होने से अवाच्य है.) ३००६३. (+४) सज्झाच संग्रह व पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८१४, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. उपा. देवविजय (गुरु उपा. गुणविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, १३X३५). १. पे नाम, स्थूलभद्र सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सहिगरुं वचन सुर मनधर, अंतिः ते घरि हुई रंगरोलु, 1 गाथा - १५. २. पे. नाम, सतीनी सज्झाय, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. शील सज्झाय, उपा. हंससोम, मा.गु, पद्य, आदि: सोमविमलगुरु पाअ नमी, अंतिः ते घर जयजयकारे जी, गाथा- १७. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. २अ ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: ब्रह्मवादिनी, अंति: तस घर मंगल जब करो, डाल-५, गाथा ५५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३००६६. बृहत्संग्रहणी का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., ( २६.५X११, १४X३५-४०). बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं फल, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३००६७. उपदेशरत्नकोश व प्रश्नोत्तररत्नमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., ( २६११, १०x४४-४७). १. पे. नाम. उपदेशरत्नकोश, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि उवएसरयणकोसं नासिअ अंतिः विउलं उवएसमालमिणं, गाथा-२६. २. पे. नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिणवरेंद्र; अंतिः कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. ३००६८. नेमजिन बारमासो, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२६४१२, १५X३५). नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: प्रणमुं विजया रे; अंति: घरि संपदा अविचल था. ३००७० (+) अर्बुदाचलगिरि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८११, माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २, प्रले. पं. वसंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित जैदे. (२६५११, १०x३३). १. पे. नाम. अर्बुदाचल स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. नित्यविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सकल करम पाल्हें, अंतिः श्रीविजनित जयकार हो, गाथा - १३. २. पे. नाम. अर्बुदाचलतीर्थ स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. · अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १८०५, आदि अरबुद सीखर सोहामणो अंतिः अरबुदगिरि ० गुण गायजी, गाथा १८. ३००७१. पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९४८, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २६.५X११.५, ८x१९-२६). तपागच्छीय पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: राज श्रीमोहनकीर्तिजी, (वि. विजयजिनेंद्रसूरि के बाद ७ पीढ़ी और जोड़ी गयी है.) ३००७२. स्तवन संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५X११.५, १५×५२). १. पे. नाम पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, ले. स्थल. नव्य नगर. , For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., पद्य, आदि: पदमप्रभु पद प्यारा, अंतिः नेमि मेघनी वीनती, गाथा- ९. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मेघ, मा.गु., पद्य, आदिः संभवजिन शरणागयस्वामी; अंतिः न रहे न्यारो रे, गाथा- ९. ३. पे नाम, नेमिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदिः आज सखी में आपणो कीधो, अंतिः नेमे अविचल लीनो रे, गाथा- ७. ४. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह में, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-४, ३००७३. नवकार पंचपद भास, संपूर्ण, वि. १८५६, कार्तिक शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. धोराजी, प्रले. मु. रायचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१२, ११४३४). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वारी जाउ अरिहंतनें; अंतिः ज्ञानविमल गुणधारो रे, ढाल-५. " " ३००७४. सझाय व स्तवन अपूर्ण, वि. १८६६ पौष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १ कुल पे २ जैदे. (२५४१२, १४४३३). १. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाच, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करणी दुखहरणी छे एह गाथा - २१, (पू. वि. मात्र अंतिम दो गाथाएँ हैं.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी ताहरो, अंति: आनंद मुनिवर वीनवी, गाथा- ९. ३००७५. व्याख्यान पीठीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६१२, ११३६). व्याख्यान पीठिका, मा.गु., सं., पद्य, आदि: (१) नमो अरिहंताणं, (२) इहां श्रीअरिहंत, अंति: वीतराग वदे ति सत्य. ३००७७. (+) संघपट्टो, संपूर्ण, वि. १८४७, माघ कृष्ण श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. जेसलमेरुदुर्ग, प्रले. मु. नगराज ऋषि (गुज. लोकागच्छ); राज्ये आ. माणकचंद (गुज. लोकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ि संकेत- क्रियापद संकेत- टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६४१२, १५X३७). संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: वह्निज्वालावलीढं अंति: यापीत्थं कदम, श्लोक ४०. ३००७८. ऋषभदेव स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५X११.५, ६x४०-४२). आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ पणमिय देव, अंतिः विजयतिलय निरंजणो, गाथा ३८. आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि मांगलिक्व भणि प्रथम, अंतिः सासन विजयतिलकनी पाय. ३००७९. तारा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (२६४१२, १६४३८). तारासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरण नमेव; अंति: पठन क्रिया आराधो सही, गाथा- १५. ३००८०. सज्झाय, स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ९, पठ. पं. हंसक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १८४५३-५४). १. पे नाम, नंदिषेणमुनि महाऋषि स्वाध्याय, पृ. १अ संपूर्ण नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसयां धणि परिहरी, अंति: लबधिविजय निसदीसो रे, गाथा - १६. २. पे नाम हीरविजयसूरीश्वर स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि भास, मु. सहजविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आज सकल सिद्धांत; अंति: इम सहज दीइं आसीस, गाथा - ९. For Private And Personal Use Only ३. पे. नाम. शालिभद्रमहारुषी स्वध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदिः महिमंडलमां विचरता रे, अंति: लखमी लील विलास, गाथा - ११. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४. पे. नाम. अजाहरा पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरा, वा. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी रे पास अझाहर; अंति: निरूपम ताहरे नामि रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. अंतरिक पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, ग. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जिनजी पूजाइं; अंति: अंतरीक कहिब निवाज, गाथा-६. ६. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: फागखेलत हैं फूलबाग; अंति: मन भाए शांति भगवंत, गाथा-७. ७. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मिविजय, पुहि., पद्य, आदि: मई मन तोऊं दीनौ; अंति: निरूपम न्यांन खजानो, गाथा-५. ८.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आतम आरति वारति भारति; अंति: उवझाय पाय नमी विनवई, गाथा-१३. ९. पे. नाम. अझाहर पार्श्वनाथ चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अजाहरा, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनवर पास आस; अंति: महिर करि पास कृपाल, गाथा-५. ३००८१. मंदीरसामीनोरासडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया; लिख. श्रावि. चंपाबेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४४२). सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: ओमारा सीमंधरस्वामी; अंति: तो वेगला जइ वस्या, ग्रं. १८, (वि. गाथानुक्रम संख्या नहीं दी गयी है.) ३००८३. (+) २४ जिन कल्याणक व गोचरीदोष सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०९, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. नव्य नगर, प्रले. मु. मयाचंद ऋषि (गुरु मु. लीलाधर ऋषि, लुंकागच्छ); राज्ये आ. वालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४४६-५५). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन पंचकल्याणक, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कार्तिक वदि ५; अंति: सुदि १५ नमि च्यवन. २. पे. नाम. गोचरी के ४२ दोष सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. गोचरी के ४२ दोष, प्रा., पद्य, आदि: आहाकमु १ देसिय २; अंति: वारसहेउ दवसंजोगा, गाथा-६. गोचरी के ४२ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: साधूनइं अर्थे छकायनो; अंति: करइंए ५ मांडलना दोष. ३००८४. (+) कर्मविपाक गौतमपृच्छा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, २०४५०). कर्मविपाक गौतमपृच्छा, क. नंदलाल, पुहि., पद्य, वि. १८९०, आदि: ज्ञाताधर्म कथा मध्ये; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रश्न-५३ तक लिखा गया है.) ३००८५. (+#) पदार्थसार व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रावण कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६४४६). १. पे. नाम. पदार्थसार-प्रथमगाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पदार्थसार, प्रा., पद्य, आदि: मजं विषय कषाया; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण. तपागच्छीय पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीवर्धमान; अंति: एवंकारे पाट ६८ जाणवा. ३००८६. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, १८४४२). बोल संग्रह *प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ से ५८ तक है.) For Private And Personal use only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३००८८. पार्श्वजिन नीसाणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहर्ष कहंदा हे, गाथा-२७. ३००९०. ऋषिदत्तासती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १४४३८). ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: सासणनायक सिमरतां पाम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ दोहा-४ तक है.) ३००९१. विसस्थानकतप उच्चरणविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४६). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)श्रीदयदर्हत्पदवीदवी, (२)प्रथम शुभदिवसे पोषध; अंति: वीतरागपणुंथाय. ३००९२. गमायंत्र-भगवतीसूत्रे, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. “पंक्ति-अक्षर अनियमित है। एक ही यंत्र-पत्र को बडे आकार का होने के कारण १२ भागों में मोडा गया है., जैदे., (२६.५४११.५, ११४२९). भगवतीसूत्र-विचार संग्रह*, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३००९३. मल्लिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १६४३७). मल्लिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत आराधीय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१ तक है.) ३००९४. (+#) गौतमऋषिभाषित कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, भाद्रपद शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले.मु.सुमेरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने अपने दूसरे चातुर्मास में इस प्रत के लेखन का कार्य किया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ५४४०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अच्छपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ कथासंकेत, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमज्जिनं प्रणम्य, (२)लोभिया मनुष्य छै ते; अंति: पामइ छइ भव्यजन छइ ते. ३००९५. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११-१३४३८-४१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३००९८. जंबुकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रानुक्रम नहीं दिया गया है. प्रारंभिक पाठ से प्रत अपूर्ण लगती है. अतः प्रथम पत्र को घटते पत्र देकर उपलब्ध पत्र को पत्रांक २ दिया गया है., जैदे., (२६४१२, १८४३९-४०). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १७ अपूर्ण तक है.) ३००९९. जीवविचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. आबिथडी, प्रले. पंडित. सुमतिकमल (गुरु आ. हंसरत्नसूरि); पठ. मु. पुण्यकमल (गुरु पडित. सुमतिकमल, तपगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १०४३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३०१०१. तत्त्वसार, संपूर्ण, वि. १७३२, फाल्गुन शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. उचनगर, प्रले. मु. जैतसी पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४७-५२). तत्त्वसार, आ. देवसेन, प्रा., पद्य, आदि: झाणग्गिदढकम्मे; अंति: सो पावै सासयं सुखं, गाथा-७४. ३०१०३. स्तवन, श्लोक संग्रह, तंत्र, औषध संग्रह व दहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२६४११.५, १३४३७-४०). १.पे. नाम. दीपोछवी श्लोक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org दीपावलीपर्व स्तवन, पं. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: ब्रह्माचि बाला वांणी, अंति: दीवाली उगते सुर, गाथा - २९. २. पे नाम औपदेशिक दहा, पृ. २अ, संपूर्ण, गाथा - १. औपदेशिक दूहा, मा.गु., पद्य, आदि: कुल बोलेने कहेस्ये; अंति: कहे भाई केम अणसन होय, ३. पे. नाम. तंत्र प्रयोग, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कंटेसालियानु झाड शनि, अंतिः बांधीइ तो मुठ न लागे. ४. पे नाम, घोडा का उपचार संग्रह, प्र. २अ, संपूर्ण औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पोडानें चर्म पडचा अंतिः घोडानो सलेखम नास मटे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन २२ श्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययन सूत्र - अध्ययन २२ की १०वी गाथा" संबद्ध, प्रा. पद्म, आदि: मतं च गंध हत्थं अंति: (-). ६. पे. नाम. उठपदा दुहा, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रूडी होइ रसोइ उची, अंति: वाट अर्कनो पाट, गाथा-२२. ३०१०४. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. प्रतापहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११.५, १२x२६). नमस्कार महामंत्र छंद, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा - १७. ३०१०५. (०) जुगार वर्जन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फेल गयी है, जैवे., (२७४११.५, १९x४७). पांडव सज्झाय, मु. कुसल, पुहिं., पद्य, आदि: गुरुमुख समझ लीज्यौ, अंति: कुसल सदा सुखकारा, गाथा - १०. ३०१०६. समवसरण स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. चंद्रधर्म (गुरु ग. शुभसुंदर, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५x११, २५८१). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं, अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थंकरं समवसरणस्थं अंतिः मोक्षपदस्थं करोतु, " ३०१०७. अनेकार्थध्वनिमंजरी नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२६४११.५, १६x४१). अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., पद्य, आदि: शुद्धवर्णमनेकार्य अंतिः (-) (पू. वि. अध्याय ३ के श्लोक २ अपूर्ण तक है.) ३०१०८. संथारापोरसी सह टबार्थ, दीक्षाविधि व नवमांक विवरण, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले. स्थल. द्राफा, प्र. मु. खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४१०.५, ४३६). " १. पे नाम, संधारापोरसीसूत्र सह टवार्थ, पृ. ९अ- ३अ, संपूर्ण, संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निसिही निसिही निसीहि अंतिः इअ समतं मए गहिअं, गाथा १४ (वि. १८४३, फाल्गुन कृष्ण, १४) संधारापोरसीसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पाप व्यापार रहित बार, अंतिः ए सम्यक्त्वमह लीधु (वि. १८४३, फाल्गुन शुक्ल, १५, रविवार, वि. इस प्रत की प्रतिलेखन पुष्पिका में "फाल्गुण विद १५ रवी" ऐसा उल्लेख किया गया है.) २. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. दीक्षाविधि प्रा. सं., मा.गु., प+ग, आदि: दीक्षा देन्हार पूरवे; अंतिः दिगीशानादितः क्रमात् " ३. पे. नाम. नवमांक विवरण, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रभु ते १ आंधलुं २; अंति: लाडवी पाणी मेघ झाकल.. ३०१०९. पच्चक्खाण, उपदेशमाला सज्झाव, देसावगासिक व तपपारणा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैवे. (२६.५४११.५, १२४३०). १. पे नाम, प्रत्याख्यानसूत्र. पू. १अ २अ संपूर्ण संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि उग्गए सुरे नमकारसिय, अंतिः श्रावकने नही केहेणो. For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. उपदेशमाला स्वाध्याय, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण, वि. १९९९, ले. स्थल. मक्षुदाबाद, पठ. श्राव. लक्ष्मीपत प्रतापचंद दुगड, प्रले. आ. रत्नचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभी अंतिः उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा- ३३. ३. पे. नाम. देसावगासिक पच्चक्खाणं, पृ. ४अ, संपूर्ण. देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंतिः वत्तिआगारेण वोसिरइ. ४. पे. नाम. तपपारणा विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरीयावहि, अंति: दान सनमान कीजै. ३०११०. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २६.५X११.५, १५X४७). १. पे. नाम. राजुल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती सज्झाय, सा. चंदनबाला, मा.गु., पद्य, आदि: जिणजी अरज करे छे; अंति: चंदनबाला० सरण सुवाई, गाथा - १०. २. पे. नाम, नाकोडा पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः आपण घर बेठा लील करो; अंतिः समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरजी सुणजो, अंति: लालचंद० एही अरदासोजी, गाथा-७. ३०११३. दिक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैये. (२५.५४१२.५, १८x४६-४८). प्रव्रज्या विधि, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: सांझरी वेला चारित्रो, अंति: अक्षत चलाईजै. ३०११४. श्रावकव्रत भांगा व धार्मिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. *पंक्ति - अक्षर अनियमित हैं, जै., (२५x१०.५, २१४२३-३७). १. पे. नाम. श्रावकव्रत भांगा, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. , י प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: चउवीस लखइ गुवाल सहस, अंतिः ए उगणपचास भंगी. २. पे. नाम जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्म, आदि: वर्जयित्वाष्टनाभि अंतिः मेकत्वं समुपागता, श्लोक ५. ३०११५. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२६११.५, १३४३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ३०११६. ऋषभपंचासिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १५५२, कार्तिक शुक्ल ९, मध्यम, पृ. ३, प्रले. वा. समयभक्त (गुरु ग. रत्नकीर्ति, खरतरगच्छ); पठ. मु. हेमधर्म (गुरु वा. समवभक्त, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ, जैये. (२६.५४११. १०X३२). ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा - ५०. ऋषभपंचाशिका-टीका, ग. नेमिचंद्र, सं., गद्य, आदि: नमस्तुभ्यमस्तु इति; अंति: बोधिनिमित्तम्३०११७, (+) इकवीस ठाणा, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ ( २ ) = ३, प्र. मु. हेमविनय पंडित (गुरुग लब्धिमंडन); पठ. श्रावि. निवारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X१०.५, १३X५६ ). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-) अंतिः असेस साहारणा भणिया, गाथा- ६४, ( पू. वि. गाथा १ से १० नहीं है. ) ३०११८. (+) यति प्रतिक्रमण विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जै., (२४.५४१०.५, १२-१३४३६-४३). १. पे नाम यतिप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, ले, स्थल, कृष्णगढ, For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः (१)चत्तारि मंगलं अरिहंत, (२)इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: सन्नो देवीदेयादंबा, श्लोक-१. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ३अ., संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी केवला; अंति: आवागमण निवार निवार, गाथा-१. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: दधतां शिवं वः, श्लोक-१. ५. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय कर मंगलदीपक; अंति: कमला भालतिलक वर हीर, गाथा-१. ६.पे. नाम. गुणठाणा विचार गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ७. पे. नाम. धर्मसूरि गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. विजयधर्मसूरि गहुली, मु. बुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजयधर्मसूरीसरूं; अंति: बुद्धिकुशल जयकार, गाथा-१०. ३०११९. (+) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. धर्मसी ऋषि (गुरु मु. हरजी ऋषि); पठ. श्रावि. सेवंतरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ६४३४). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अच्छपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी मनुष्य द्रव्यनइ; अंति: सदाय जीव सुख लहइ. ३०१२१. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२, १९४५५). १.पे. नाम. गजसुकमाल चौढालीयो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि चौढालियो, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७९८, आदि: नेमि प्रभु वांदी करी; अंति: ते लहै सुख वरमाल ए, ढाल-४. २. पे. नाम. २४ जिन भववर्णन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय चोवीसे जिन; अंति: श्रीदेवइ इम गुण गाया, गाथा-५. ३. पे. नाम. आत्मा गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीऊडा जिनचरणांनी; अंति: मोहन अनुभव मांगै, गाथा-३. ३०१२३. सुडतालीष दोष सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १३४२८). पिंडबत्रीसी सज्झाय, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसर प्रणमुं; अंति: पिंडबत्रीसी करी, गाथा-३२. ३०१२४. चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मांडवी, पठ. संकर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३०१२५. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११, १२४२८-३०). १. पे. नाम. श्रावक २१ गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: धम्मरयणस्स जुग्गो; अंति: वीस गुण्णो हवइ सट्टो, गाथा-३. २.पे. नाम. श्रावक एकवीसगुण वर्णन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मनई विषइ १ मन वचन; अति: गुण श्रावकना जाणवा. ३. पे. नाम. सामायकपौषध दोष एवं गुरुअसातना संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सामायिकपौषध दोष एवं गुरुआशातना संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: ३२ दोष सामायकना मनना; अंति: गुरुनी आशातना ३३. ३०१२६. षड्दर्शन व लघुषट्दर्शनसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११,१५४५४). १. पे. नाम. षड्दर्शन समुच्चय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण... आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, ई. ८वी, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: सुबुद्धिभिः, श्लोक-८७. २.पे. नाम. लघुषड्दर्शनसमुच्चय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. षड्दर्शनसमुच्चय-लघु, संक्षेप, सं., पद्य, आदि: जैन नैयायिकं बौद्ध; अंति: श्रेयोर्थिभिर्बुधैः. ३०१२७. विचारषट्त्रिंशिका सह स्वोपज्ञ अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-५(१ से ५)=४, पू.वि. गाथा-१ से २२ नहीं है., जैदे., (२६.५४१२, १३४३०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३९. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदिः (-); अंति: मत्वेदं बालचापल्यम्. ३०१२९. (+) ककाबत्रीशी व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८६०, श्रावण शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, पठ.मु. विनयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १५४४४). १.पे. नाम. ककानो पाठ, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कक्काबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भवसायर सेजे तरो, गाथा-३४, (पू.वि. प्रारंभ से गाथा १७ तक नहीं है.) २. पे. नाम. बुद्धि रास, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देव अंबाई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३२ अपूर्ण तक है.) ३०१३०. (+) सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १७४५९). सुभाषित संग्रह-प्रासंगिक, सं., पद्य, आदि: शशिनि खलु कलंक कंटक; अंति: जरां दागभृतां हिताय. ३०१३१. (+) झूरणउं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४६). त्रिशलामाता झूरj, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इयाणिं तो एयई एमाहर; अंति: नही लीजइ पछइ लीजीसिइ. ३०१३२. चार शरणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११, १४४७०). ४ शरण, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै चार सरणा करवा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३०१३३. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४१२, १५-१८x२८-३६). ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले ४ गति नरक १; अंति: (अपठनीय). ३०१३४. नेमनाथजी को बारामास्यो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. गज, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र का प्रारंभिक भाग खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा गया है., जैदे., (२७४११, १२४३६). नेमराजिमती बारमासो, पुहि., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: अब जाय मुगत मे जोडी, गाथा-१८. ३०१३७. प्रियंकरराजानोसंबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, ४४२४). प्रियंकरराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीआदिसरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ से ११ तक है.) ३०१३८. होलीरजपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११, १३४४७). होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: प्रणम्य सम्यक् परमार; अंति: श्चिरं वाच्यताम्, श्लोक-३३. ३०१४०. सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४२८). सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८उ, आदि: पहिले पद जपीइ अरिहंत; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ३०१४१. वीरजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३३, चैत्र कृष्ण, ३०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मांडवी, प्रले. मु. वीरचंद तेजसी ऋषि; पठ. मु. फूलचंद ताराचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३९). For Private And Personal use only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ महावीरजिन स्तवन, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: जय जय प्रभु वीरजिणंद; अंति: वृद्धि आनंद लहे, गाथा-२२. ३०१४२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. जेसलमेरगढ, प्रले. मु. चतुरचंद्र ऋषि (गुज.लुंकागच्छ.), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १९४४३). १.पे. नाम. गुणतीसी भावना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २९ भावना छंद, मा.गु., पद्य, आदि: अविचल पद मन थिर करी; अंति: समरशे ते तरशे संसार, गाथा-२९. २. पे. नाम. लघु साधुवंदना, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. साधुवंदना लघु, ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नम अनंत चोविसी; अंति: कहेइ एहीज तरणरो दाव, गाथा-२९. ३. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र की सज्झाय, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा निलो; अंति: गीत रच्या सुखकार, अध्याय-१०. ३०१४३. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १५४४०). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पउगपरिणयत्ति जीव; अंति: निरवद्यत्वादिति. ३०१४५. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२, २२४४५). १.पे. नाम. ढंढणमुनि सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१७ अपूर्ण तक नहीं है. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. प्रेममुनि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: गातांरे गातां जयकार, गाथा-२१. २. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्राव. संघो, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ पापनु मुल छे एह; अंति: संघो० पोहोते तेह, गाथा-२०. ३. पे. नाम. दानशीलतपभाव सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१६ अपूर्ण तक है. मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेसर चीत धरी; अंति: (-). ३०१४६. योगविधि यंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १२४४५). योगविधियंत्र, सं., यं., आदिः (-); अति: (-). ३०१४७. स्थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, ७४३६). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चापो मोर्यो हे आंगण; अंति: रूप० लहीए सुख पारजी, गाथा-६. ३०१४८. (-) महावीरजिन चौढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १६४३४). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सीधारथ कमल उपना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२५ तक लिखा है.) ३०१४९. शांतिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४३०). शांतिनाथ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज; अंति: मनरंग सुपंडित रूपनो, गाथा-७. ३०१५१. दिक्षा ग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १८७२, पौष शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, १६x४७). प्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: योग्य पुरुष स्त्री; अंति: नोकारवाली १ गणवी. ३०१५२. (+) वयरस्वामी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७७५, ज्येष्ठ कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. वहालचंद्र (गुरु ग. वीरचंद्र); पठ. श्रावि. कपूरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, १२४४५). वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: जिनहर्ष० गुण गाया रे, ढाल-१५. ३०१५३. पंचमहाव्रत भांगा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४१). पंचमहाव्रत भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: तत्र प्रथम महाव्रत; अंति: एक वाडे करी सहित. For Private And Personal use only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०१५४. (+) लोकबत्तीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७२, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. राखी, प्र. वि. यंत्र सहित, पदच्छेद सूचक लकीरें- पंचपाठ जैदे. (२६.५X११, २०४४९). " " लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जं; अंति: जहा मह भिसं, गाथा- ३२, (प्रले. मु. बालू ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य) लोकनालिद्वात्रिंशिका - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिण० राग रोषनो जीपण, अंति: परिभ्रमण न करउ, (प्रले. मु. वसंत, प्र.ले.पु. सामान्य ) ३०१५६. आठकर्म विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) १, कुल पे. ३, जैदे. (२६४१२, १६४४०). १. पे. नाम. आठकर्म पांसठियो, पृ. ३अ, संपूर्ण. ८ कर्म पांसठियो, मा.गु., को., आदि: ज्ञानावर्णीमांहे जीव अंति: १४ उपयोग १२ लेश्या. २. पे. नाम, आठकरम की नियमा भजना, पृ. ३अ संपूर्ण. ८ कर्म भजना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी री नियमा; अंति: १४८ प्रकृति जाणवी . ३. पे. नाम. आठ कर्मबंध व भोग प्रकार, पृ. ३आ, संपूर्ण ८ कर्मबंध विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानपनणीवाए १ ज्ञान, अंति: १० इडो पुरषा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי 7 ३०१५८. (+#) साधारणजिन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. हर्षसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४.५X११, १८X३०). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंतिः भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक - ९. साधारण जिन स्तव वृत्ति की अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: हे प्रभो सत्वमया, अंति कृतार्थेमयप्रत्ययः. ३०१५९. योगशास्त्र-१ प्रकाश, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५X११, १२X४२). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि, अंति: (-), प्रतिपूर्ण ३०१६२. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२६४११, १०x३६). . सरस्वतीदेवी स्तोत्र, मु. उत्तमसागर, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वचनं अंतिः समुत्पादयतीह शस्वत, लोक-१३. ३०१६३. पोसह विधि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२४.५४११, १७४३५). 7 " पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम थापना थापी राई, अंतिः पछे इच्छामि इच्छकार, ३०९६४. सम्यक्त्वकौमुदी कथाना बोधदायक श्लोको, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६.५x११, १८४४८-५२). सम्यक्त्वकौमुदी कथा के बोधदायक श्लोक, उपा. विनीतसागर, सं., पद्य, आदि: सारंगी सिंहशावं; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३०१६५. दानविषये सुमित्रकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैवे. (२६४११, १४०४१)सुमित्रकुमार चौपाई, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १५६७, आदि: पणिमिसु मण वइ तणु अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २३ तक है.) ३०१६६. सारदामाता छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. पं. न्यानविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x१०.५, १९४५१). शारदामाता छंद, प्रा.,मा.गु. सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकल सिद्धि दातार, अंति: होउ सया संघकल्लाणम्, श्लोक-४४. ३०१६७. (+०) शीलनी नववाहिनी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७६३, चैत्र कृष्ण, ३, मध्यम, पू. ३, प्र. मु. उदयरत्न, पठ. श्रावि. आणंदबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत- ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६.५४११.५, १०X३७). " ९ वाड सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी, अंति: तेहने जाउ भामणि, गाथा-४३. For Private And Personal Use Only ३०१६९. (+) लघुशांति स्तव सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५६ आश्विन शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, करणपुर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२६.५४११.५, ३३७-३९). Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०x३१). ९. पे. नाम, सीमंधर वीनती, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. लघुशांति स्तव - टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंतिः मान० कर्ता जाणवो. ३०१७९. () शनिसरराय स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. जैवे. (२५x११, १३४३६). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति, अंति: तुं सुप्रसन्न शनीसर, गाथा- १७. ३०१७२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८७, वैशाख कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले. स्थल, पाटण, जैवे., (२५.५X११.५, "" . सीमंधरजिन विनती, वा. उदय, मा.गु, पद्य, आदि: मनडुं ते माहरू मोकलु अंति: उदे० वस्ता दूर वीसाल, गाथा-८. २. पे. नाम ऋषभदेवजिन स्तुति स्तवन, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. ऋषभजिन स्तवन, मु. माधव, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: सर्वारथ सीधथी चवी; अंति: हीयडे हरख न माय, गाथा - १४. ३. पे. नाम, नेमराजुल स्तवन, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण नेमराजिमती स्तवन, मु. विनयचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमि प्रथम, अंतिः विने० सुंदर सामलीबा, गाथा - १२. ३०१७३. महावीर स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. जैदे. (२५x११.५, १०x३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " महावीरजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: राणी यशोदा हो वीनवे, अंति: सहज स्वरूप सूहेज, गाथा-७. ३०९७४. पर्युषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५x११.५, १३४३९). " पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदिः परव पजुसण आवियों रे, अंति: मतिहंस नमे करजोड रे, गाथा - ११. ३०१७५. (+) गीतचौबीसी व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १७४४ माघ शुक्ल १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) =१, कुल पे. २, प्रले. मु. चतुरविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय); पठ. मु. विवेकविजय (गुरु मु. चतुरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, ८-११x४३-४७). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन गीत, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २४ जिन गीत, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि (-) अंतिः चढती दोलति पावउनी (पू.वि. मात्र अंतिम गीत है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक सुभाषित संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०१७६. (+) दानादि कुलक व श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., जैदे., ( २५X११.५, १८x४९). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले. स्थल. गोंडल, पठ. मु. देवजी ऋषि (गुरु मु. सामजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण, अंतिः सूरि खमउ तेणं, गाथा ४९ २. पे. नाम. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक १६ अपूर्ण तक है. आ. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन, अंति: (-). ३०१७७. धनफलीगण सारणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २५X११.५, १३x४४). धनफलीगण सारणी, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य भास्करादीं; अंतिः भवति योगस्पष्टता, श्लोक-१४. ३०१७८. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७४४, वैशाख कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५X११.५, १५X४७). १. पे. नाम. आचार्यतेजसिंघजी भास, पृ. १अ, संपूर्ण. तेजसिंघ आचार्य भास, मु. नरसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरना प्रणमीस पाया; अंति: मनवंछत आणंद पाया, गाथा - ९. For Private And Personal Use Only १५ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. झूठातपसी भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सीवसी, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर गुणनीलो; अंति: गावता पुहचि मन आसा, गाथा-१०. ३. पे. नाम. लीलावती री ढाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. लीलावती ढाल, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लीलावती हो सांभलि; अंति: हो लाल पुछतो विरतंत, गाथा-१५. ३०१८१. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४११, २०४६४). १. पे. नाम. विधवै सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. बुढ़ापा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण बूढापो आवीयो; अंति: कवियण ग्यानरे लाल, गाथा-१८. २. पे. नाम. जीवकाया सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहि., पद्य, आदि: तुं मेरा पिय साजणा; अंति: पांमइ रंग सुख कोडी, गाथा-९. ३. पे. नाम. ढंढणरिषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, रा., पद्य, आदि: ढंढण रिषनै वंदणो; अंति: कहै जिणहरष सुजाण रे, गाथा-९. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन १० भववर्णन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय नमेस; अंति: सेवकनै सुखीया करै, गाथा-११. ३०१८२. करमछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जावाल, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४२७). कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करमथी को छूटे नही; अंति: धरम तणे प्रमाणजी, गाथा-३६. ३०१८३. जिनकुशलसूरि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५३, कार्तिक शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. १, पठ. हरखु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १५४३७). जिनकुशलसूरि स्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १४८१, आदि: रिसहजिणेसर सो जयो; अंति: मनवंछित फल ते लहै ए, गाथा-१९. ३०१८४. असज्झायनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. मानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १०४३१). असज्झायविचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिइ वीर जिणेसर राय; अंति: रमणि जिम लीलई वरउ, गाथा-२४. ३०१८५. विचारषविंशिका सह स्वोपज्ञ अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६४६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. दिवबंदर, प्रले. मु. विनयशेखर ऋषि (गुरु पं. सत्यशेखर गणि, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, १५४३६-५३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ. गाथा-३८. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामय; अंति: मत्वेदं बालचापल्यम्. ३०१८६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१०, १३४५०). १. पे. नाम. छिन्नु जिनवरगर्भित स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वर्तमान चोवीसी; अंति: सदा जिणचंदसुर ए, ढाल-४. २. पे. नाम. उपधानगर्भित महावीर स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर धरम; अंति: भणै वंछिय सुखकरो, ढाल-३, गाथा-१८. For Private And Personal use only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०१८७. महावीरजिन स्तवन व नेमिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. तत्त्वचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४३०). १.पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जइज्झा समणे भयवं महा; अंति: सुसतुरमतसुआवी, गाथा-२१. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दया आणी जिणि पसु; अंति: दिन प्रति हमारी, गाथा-४. ३०१८८. (#) स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १९४३७). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विक्रम, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: प्रथम आदिजिनंद वंदत; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सवैया संग्रह", पुहिं., पद्य, आदि: या दिन सै वीसडै रघु; अंति: चाहै तो जिनशरणै आवै, सवैया-१०, (वि. विभिन्न स्वतंत्र सवैयों का क्रमशः संकलन.) ३०१८९. विजयदेवसूरि सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १३४४२). १. पे. नाम. विजयदेवसूरि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रंगसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरसति सामिणी रे; अंति: पूरइ आसा मुझ तणि, गाथा-९. २.पे. नाम. विजयदेवसूरि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: जि हो पासजिनेसर मनि; अंति: संभली श्रीगुरु वाणी. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०१९०. सीद्धचक्रनो महिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४४). नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो; अंति: दानविजय जयकारा रे, गाथा-२३. ३०१९१. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५४३१). १. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कनककुशल, पुहिं., पद्य, आदि: आइयौ आइयौ नाटक नित्य; अंति: इहीज मेवा मांगे लो, गाथा-७. २. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचनै वैरागीयो हो; अंति: अमां होवै जयजयकार, गाथा-१३. ३०१९२. (-) श्रेणिकराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११, १६४३५). श्रेणिकराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: में तो पुरव सुकृत; अंति: नांनडीय सुख मालो रे, गाथा-१२. ३०१९३. अजितशांति स्तव अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १५४४७). अजितशांति स्तवबृहत्-अंचलगच्छीय की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं जिनं श्रीअजितनाथ; अंति: भाजनं स्थानमित्यर्थः. ३०१९४. वृद्धचौदसुपन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५०, वैशाख शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वीसलनगर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १४४३२). १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तिर्थंकर गुणमणि; अंति: लावण्यसम भणेजी, गाथा-४५. ३०१९७. इग्यारअंग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १४४४९). ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: आचारांग वडु का; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., समवायांगसूत्र-सज्झाय प्रारंभिक अंश तक लिखा है.) For Private And Personal use only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०१९८. (+) २४ जिन स्तुति-प्रार्थना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, ९४३२-३४). २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने वीनवू; अंति: सुणी सुख पाया रे, गाथा-२५. ३०१९९. जत्ता विही, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, १३४४१). तीर्थयात्रा विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, आदि: सोयअहिणवसूरि तित्थजत; अंति: च संबद्धारिज्झत्ति. ३०२०१. (-) सुषमछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९२१, भाद्रपद कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४२८-३५). सुषमछत्रीसी, मु. उदय ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: सुषमछतीसी सांभल; अंति: कीधो ग्यांन विचारजी, गाथा-६२. ३०२०२. (+) माणिकचंदजी भास, संपूर्ण, वि. १८४२, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जोधपुर, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, १३४३५). माणिकचंदमुनि भास, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: सरसति सामिन वीनवू; अंति: गाइ भास हो, गाथा-२०. ३०२०३. सझाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १९४५६). १.पे. नाम. राजुल स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. राजिमतीसती सज्झाय, मु. भूधर ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: कौरे फेरि जाऊरे पीय; अंति: ऋषि भूधर गुण गाए रे, गाथा-५. २. पे. नाम. लाभउपदेशबत्रीसी, प्र. १अ-२अ, संपूर्ण. उपदेशबत्तीसी-लाभ, मु. भूधर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८१५, आदि: परम पद पामवा प्राणी; अंति: भूधर सुख नीते संपदा, गाथा-३२. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-चौदस्वप्नफलगर्भित, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नफलगर्भित, मु. भूधर ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवर्धमाननी मात; अंति: सुंदरलक्ष्मीनी संपदा, गाथा-१३. ४. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. भूधर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८१६, आदि: प्रातुकाले प्रभुपाय; अंति: सुसंपदा सेजे थई, गाथा-१५. ३०२०४. (+#) नमीपवजाज्झयण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. मु. दोलतराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १४४३१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३०२०५. क्षयोपशम सम्यक्त्व स्वरूप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२,१३४४७). क्षयोपशमसम्यक्त्व स्वरूप, मा.गु., गद्य, आदि: प्रश्न क्षयोपशम; अंति: मोहनीनो उदय ७ ए सात. ३०२०६. गुरुगुण गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, ९x४०). गुरुगुण गीत, मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: पुन्यजोगे सतगुरु मिल, अंति: कुसालचंदजोर प्रकासी, गाथा-७. ३०२०७. चतुःशरण प्रकीर्णक व जीवविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १४४३५). १.पे. नाम. चतु:शरण प्रकीर्णक, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. प्रारंभ से गाथा २४ तक नहीं है.) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. ३०२०८. प्रदेशीराजा चरित्र सह टबार्थव श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, ६४३९). १.पे. नाम. प्रदेशीराजा चरित्र सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ प्रदेशीराजा चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: जप्पभिइंचणं पदिसीराय, अंतिः करिसंति सेस भते. प्रदेशीराजा चरित्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जड़ दिवसथी मांडी करी, अंतिः तुमे का तिमेज. २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १. ३०२०९. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, कुल पे. ४, जैदे., ( २४.५X११.५, २१X५५). १. पे. नाम. ३३ आशातना गुरुसंबंधी, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., आशातना- २५ तक नहीं है. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उंचे आसण बेसे तो. २. पे नाम. पांच बादि अधिकार, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण ५ वादि अधिकार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१) कालसभावनीती, (२) कालवादी बोल्यो एक; अंति: मोटी कर्मनिर्जरा करे.. ३. पे नाम. पोसह अदारदोष, पृ. ९आ, संपूर्ण. १८ पौषध दोष, मा.गु, गद्य, आदिः १ बोले पोसानी रातने अंति: आओ पधारो पुछवो नही. ४. पे नाम सामायिक बत्तीसदोष, पृ. ९आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., काया के ६ बोल तक है. सामायिक ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १० दोष मननां ते किम, अंति: (-). ३०२१०. संधारा विधि, संपूर्ण, वि. १७१४, फाल्गुन शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पू. १, ले. स्थल अर्गलपुर, अन्य रावसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४१०, १०x३८). संधारापोरसीसूत्र, प्रा. पद्म, आदि: चउकसाय पडीमल लूरण; अंतिः इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा- १४. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२११. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५X११.५, १३X३४-३७). १. पे नाम. जिनपूजा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ८ प्रकारी पूजा . मा.गु. सं., पद्य, आदि: न्हवण पूजा करो हर्ष अंतिः पामस्यो शिवसार रे. " २. पे. नाम मुनिविनती सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण. साधु आगमन सज्झाय, मु. चिमन, मा.गु., पद्य, आदिः आज वधावी आपणे हे अंति: आतमनौ उद्धार के, गाथा- ७. ३०२१२. नेम को संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २४.५x११.५, १७३५). नेमिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारामती नगरी भली, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २ की गाथा ११ तक है.) गाथा - १९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि आलिगारओ ऊंदिरओ नित अंतिः ममता तजओ उत्तरो भवपार, गाथा ५. १९ " ३०२१३. (+) सज्झाच संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४१०.५, १४४४६). १. पे. नाम. वज्रस्वामि सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. वज्रस्वामी सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सिंहगिरिसीस धनगिरि, अंति: सहई लाछि तस नामि रे, ३०२१४. सरस्वती स्तोत्र व पार्श्वजिन अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. रायचंद पठ. नेवी प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५४११.५, १३४३२). " १. पे नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ संपूर्ण. For Private And Personal Use Only सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु शारदादेवी, अंतिः निशेषजाड्यापहा श्लोक-१०. २. पे. नाम. गोडीजी रो अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: नाथजी दुखनी जाल तोडी, गाथा-८. ३०२१५. महासती कुलक व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, १०X३६). १. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि; भरहेसर बाहुबली अभय अंति: जस पढहो तिहुयणे सवले, गाथा १२. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादि पुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ३०२१७. चौईसी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रत्नचंद्र ऋषि (गुरु मु. मोतिचंद्र ऋषि), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, जैदे., (२४.५४१०.५, ९४२७). २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वंछितपूरण सुरतरु जेह; अंति: शिवगतिना सुख नेडारे, गाथा-५. ३०२१८. महासतामहासती कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १६४३७). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ३०२१९. नेमिनाथ बारहमास सवाया व बारहमास दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०, २०४७१-७४). १. पे. नाम. नेमिनाथ बारहमासा, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: घनघोर घटा घन कीउनई; अंति: साहेब सिद्ध जयो है, गाथा-१२. २. पे. नाम. बारहमास दूहा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ मास दूहा, मु. जसराज, पुहि., पद्य, आदि: किम चलौ पदमणि कहै; अंति: गोरंगी जसराज, गाथा-१२. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. वैराग्य पद, पुहि., पद्य, आदि: विषय न सेव; अंति: दुर्जन० प्रीतडी करि, गाथा-१. ३०२२०. (+) बिंबप्रवेश विधि संग्रह व स्तूपप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १७७५१). १. पे. नाम. बिंबप्रवेश विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनबिंबप्रवेश विधि, सं., गद्य, आदि: गुरुशुक्रोदये भव्यं; अंति: स्नात्रं कार्यम्. २.पे. नाम. बिंबप्रवेश संक्षिप्तविधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनबिंबप्रवेश विधि-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, आदि: प्रवेशदिन पहिला दिन; अंति: दिन १० स्नात्र कीजै. ३. पे. नाम. स्तूपप्रतिष्ठा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: शुभदिने चंद्रबले; अंति: यथाशक्ति कार्या. ३०२२१. चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, ११४३८). चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चंदनबाला बारणइ रे; अंति: राय० मेरे प्यारे रे, गाथा-६. ३०२२२. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१०,११४२६). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: मुझ एहीज देवारे; अंति: ते माहरै मन वसीया रे, गाथा-५. २.पे. नाम. सेत्रुजा स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. गिरनारश@जयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखाओ; अंति: ज्ञानविमल सिर धरीया, गाथा-६. ३. पे. नाम. चोवीसजिन नाम, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., २०वें भगवान तक है. २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी; अंति: (-). ३०२२३. मांगलिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ६४३७). मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: कृतापराधेपिजने कृपा; अंति: वीसं वंदामि तिथयरा. ३०२२४. परमेश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, १०४३०). जिनपंचकप्रभाती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेश्वरा परम; अंति: उदय० कीर्ति भणतां, गाथा-७. ३०२२५. व्याख्यान पीठीका, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खोड, प्रले. मु. तीर्थसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १५४४०). For Private And Personal use only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीभगवंत तरणतारण; अंति: सुख संपदा पामस्यै. ३०२२६. रास व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १७४४६). १. पे. नाम. राजुल लेख, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती कागल, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरैवतगिरे; अंति: सीस रूपविजय तुम दास, गाथा-१९. २.पे. नाम. स्थूलिभद्र रास, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थूलिभद्रमुनि रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन दीओ; अंति: (-). ३०२२७. (+) वंकचूल रास व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४७). १.पे. नाम. वंकचूल रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिनवर आदि जिनवर; अंति: सयल संघनी पूरइ आस, गाथा-९५. २. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो; अंति: श्रीविजयदेवसूर के, गाथा-२५. ३०२२८. (+) आर्यवसुधारा धारिणी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. स्वर्णप्रभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४६). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. ३०२२९. तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रावण कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. गेनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १५४३५-४३). ___ तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी चक्क; अंति: मंगलमाला विस्तरो. ३०२३०. (+) नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०, १८४५४-५७). धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ४७ तक है.) ३०२३१. (+) होलिका चउपई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३८). होलिका चौपाई, मु. डुंगर, मा.गु., पद्य, वि. १६२९, आदि: (-); अंति: तिहि घरि बहुइ संपदा, गाथा-८३, (पू.वि. प्रारंभ से गाथा १८ अपूर्ण तक नहीं है.) ३०२३२. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, १५४५१). १.पे. नाम. चोघडीयो, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक चोघडीयो, म. कल्याण, रा., पद्य, आदि: भाई थारी मिनखा देही; अंति: एहवा पथरा पाका जो, गाथा-६. २.पे. नाम. पासजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन साहिब सांभल; अंति: मुज वंदना त्रिकाल, गाथा-७. ३.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मीठाचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणसुप्रीत; अंति: जोडि जिनगुण गावे रे, गाथा-१४. ३०२३३. नेमराजिमती गीत व चेलणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १३४३०). १.पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यदुनायक लायक हो के; अंति: मान मंगलकारी, गाथा-७. २. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वादी वलता थका; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-६. ३०२३४. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२६४११.५, १०४३८). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजूंजो सिणगार; अंति: आराधीइं आगमवाणी वनीत, गाथा-३. २.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीदेवाधिदेव; अंति: प्रवचन वाणी विनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय विनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहेन सुदर्शना; अंति: धरे सुणज्यो एक चित्त, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवत्सरी दिन; अंति: वीरने चरणे नमु शीस, गाथा-३. ३०२३५. पक्खीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३७). पक्खीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: देवसिय आलो० इच्छाकार; अंति: देवसिनी विधि लेवी. ३०२३६. नवप्रकारै समकित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१२,११४३०). ९ सम्यक्त्व प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: एहवू सांभलीनै शिष्य; अंति: स्वरूप विचारवो. ३०२३७. रत्नप्रभसूरि कवित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११,१०४३३). रत्नप्रभसूरि कवित, मा.गु., पद्य, आदि: विक्रमादैत्य थकि वरस; अंति: वस्तुपाल मइ मंडले, गाथा-३. ३०२३८. (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १०, प्र.वि. अंतिम पत्र के अंतिम पंक्ति में प्रतिलेखक द्वारा "इति स्तुतिचतुष्टयं समस्यामयं कृत गुणविजयेन" लिखित है, किन्तु अंतिम ४ कृतियों में गुणविजयजी के नाम का कहीं उल्लेख नहीं है., संशोधित., दे., (२६.५४११, ११४४४). १. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. २.पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद; अंति: नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय ज्ञानकला निधानम, श्लोक-४. ५. पे. नाम. नेमजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: कमलवल्लपनं तव राजते; अंति: विभाभरनिर्जितभाधिपा, श्लोक-४. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., पद्य, आदि: ज्ञात्वा प्रश्नं; अंति: पूर्णे प्रसन्नाः, श्लोक-४. ७. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: शैवेयः शंखकेतुः कलित; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ८.पे. नाम. वीरजि स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-स्नातस्यास्तुति पादपूर्तिगर्भित, सं., पद्य, आदि: स्फूर्जद्भक्तिनतेंद; अंति: बालचंद्राभदंष्ट्रम्, श्लोक-४. ९.पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नरेंद्रमौलिप्रपतत; अंति: रिमलालीढलोलालिमालाम, श्लोक-४. १०. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: भावानयाणेग नरिंदबिंद, अंति: गोक्खिरतुसारवन्ना, गाथा-४. ३०२३९. आदिजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जैदे. (२४.५x११.५. ८-११४३२). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम शब्द नहीं है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जग वालहो; अंतिः सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नही मानुं रे अवरनी, अंति: मारा भवोभवना बंध छोड, गाथा- ७. ३०२४१ (१) जिनपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९३२, माघ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. हेमविजय, मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे (२४.५४११.५, १२-१५X४०). जिनपूजा विधि, मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम सवारना पोरमा; अंति: (१) आरति करी आरती गावी, (२) रीते नावुं कह्युं छे. ३०२४२. अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै, (२२.५४१२, ८४२९). अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि अलग अजित जिनंदनी, अंतिः मोहन० जिन अंतरजामी, गाथा ५. ३०२४३. ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै, (२३.५X११.५, १५४४२). ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम उदयिकभाव, अंति: लाभइ तेहनइ अनुसारइ. ३०२४४. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ..' जैदे. (२४४११.५. ३०२४५. स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., ( २४ ११, १५X३५). १. पे नाम ऋषभजिन पद, प्र. १अ संपूर्ण. १७x४५). १. पे. नाम. ककानी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपदेशकारककक्का सज्झाय, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी बात करी रे अतिः भवसावर हेजे तरे, गाथा-३४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद - निद्रात्याग, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि नींदरडी वेरण होय रही; अंतिः भाषे हो कनकनिधान के गाथा-७. आदिजिन पद, मु. ज्ञानचंद, पुष्टिं पद्य, आदिः ऋषभदेव स्वामी हो काल, अंतिः जे शिवसुखगामी हो, गाथा- ३. २. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हो सुंदर अजित जिनेसर, अंति: मोडी परम आणंद पाउं, गाथा- ३. ३. पे. नाम संभवजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानचंद, पुहिं, पद्य, आदिः धन्य हो धन्य जिन, अंतिः सदा स्वामी वाणी, गाथा ५. ४. पे. नाम. सामाइकबतीसदोष सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: सामावक व्रत शुद्ध, अंतिः सामायक सुज्ञान रे, गाथा-१४. " ३०२४६ (+) अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे (२४.५x११, १८x४२). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं, अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा ४०. २३ "" ३०२४७ सिद्धचक्र गहुली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. मु. धर्मचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२४४११.५ १०X३६). सिद्धचक्र गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि आवो सखि संजमीया गावा, अंतिः वीर कहे भवजल तरसे, गाथा - १२. For Private And Personal Use Only ३०२४८. (+) रंगरस व्याव नेमजी, संपूर्ण, वि. १८७६ कार्तिक कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. चीतोड, प्रले. मुगतिराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३.५X११.५, २२X५०). Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती रंगरस व्याह, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., पद्म, वि. १८६९, आदि: समदरवीजे के नंद, अंतिः राम० मस्तक नमाइ रे, गाथा ४९. ३०२४९. नारी चरीत्र व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५x१०.५, १०x४२). १. पे. नाम. नारी चरीत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नारी सज्झाय, मु. नीतिविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि जुओ जुओ चरित्र नारी अंतिः बोले नीतिनो बाल रे, गाथा - १०. २. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः निरख्यो नेमि जिनंदने अंतिः चैत्यवृक्ष तिम जोडी, गाथा-७, ३०२५०. स्तवनचोवीसी, अपूर्ण, बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०-८ (१ से ८) -२, जैवे. (२४४११.५ ९४३५). . स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: जीवन प्राण आधारो रे, स्तवन- २४, (पू.वि. प्रारंभ से अरजिन स्तवन गाथा ३ तक नहीं है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२५१. पट्टावली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४x१०.५, १३X२८). १. पे. नाम. पट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण. पट्टावली*, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदिः श्रीवर्धमानस्वामी, अंतिः देवसूरि यशोभद्रसूरि, अंक ३९ (वि. ३९ पाट तक है.) २. पे. नाम. पट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जीवरिषजी रूपरिषजी अंतिः श्रीजगतचंद्रजी, अंक १४ (वि. १४ पाट तक है.) ३०२५२. नेमिजिन गीत व दुहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६×१२, ११४३९). १. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जादु मांने कई तजो छो; अंतिः भाव० अवगुण नीरधार २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह - प्रासंगिक, सं., पद्य, आदिः शशिनि खलु कलंक कंटक, अंति: (-). ३०२५३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४X११, ९X२८). १. पे. नाम गौतमस्वामी स्तवन, पृ. ९आ-२अ संपूर्ण मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्म, आदि ग्रह उठी गौतम प्रणमी, अंतिः उदय प्रगट्यो परधान, गाथा ८. २. पे. नाम पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. २अ-२ आ. संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदिः पद्मप्रभू जिन सेवीयै, अंतिः नित नित मंगलमाल, गाथा-७, ३०२५४. महावीरजिन स्तवन- १४ स्वप्नगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६ १०.५, १२३८). महावीरजिन स्तवन- १४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि एक मन चांदु श्रीवीर, अंतिः आसा पुरो मन तणी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा-१९ के बाद गाथांक नहीं लिखा है.) ३०२५५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५१, आश्विन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. नींबडी, प्रले. मु. राजऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४११, १२०४४). "" १. पे. नाम. सिचीयायमातानो छंद, प्र. १अ. संपूर्ण सिचीयायमाता छंद, हेम, मा.गु., पद्य, आदि: सानिधि साचल मात तणी; अंति: नयर राणी चलणै मनरंजै, गाथा - ६. २. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पासजिनेसर की, अंति बीनती यह अलवेसर की, पद-५. ३. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहो अति घणो; अंति: प्रेम घणो जिणचंद रे, गाथा- ७. ३०२५६. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (२३४११, १६४३५). " १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण, वि. १९१८, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मंगलवार, ले. स्थल, पाली, प्रले. छगना आ. जिनसूरि, मा.गु., पद्म, आदि: चंचल जीवडारे में अंतिः जिणसूरि० जपो नवकार, गाथा- ११. For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २.पे. नाम. रसना पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. रामचंद, पुहिं., पद्य, आदि: वीनां वीचारी तु; अंति: रामचंद० रसना वरजुछु, गाथा-९. ३०२५७. खरतरगच्छ गुरु गुणावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नागोर, पठ. रेवतजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, ११४३६). खरतरगच्छ गुरुगुणावली, श्राव. जोरावरमल, रा., पद्य, आदि: श्रीलिछमश्रीजी महा; अंति: जोरावर० सफल कर दीजो, गाथा-१७. ३०२५८. पारसनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १४४४०). पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय; अंति: मतिविसाल सुखै करी, गाथा-१२. ३०२५९. (+) गिरनारतीर्थ गजल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४.५४११, १५४४६). गिरनारतीर्थ गजल, मु. कल्याण, पुहि., पद्य, वि. १८२८, आदि: वरदे मात वागेश्वरी; अंति: यु कहत है कल्याण, गाथा-५९. ३०२६०. (#) बृहत्संग्रहणी*, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १२४४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ तक लिखा है.) ३०२६१. पंचेंद्री चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. गंगराड, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४५३). पंचेंद्रिय चौपाई, म. शिवरायशिष्य, पुहि., पद्य, आदि: परथम परणाम जिनदेव को; अंति: वसै सब को मंगल कीन, ढाल-७. ३०२६२. जीव रास, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पालीताणा, जैदे., (२४४१२, १०४३०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे तत्काळ, ढाल-३, गाथा-३५. ३०२६३. माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १२४४०). माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा; अंति: शिवकीर्ति० सुजस कहे, गाथा-९. ३०२६४. नेमिजिन गीत व पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११.५, १९४१५). १.पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हेमाचंद, म.,मा.गु., पद्य, आदि: बोले राजीमति भामनी; अंति: राजुल गोष्टी करती रे, गाथा-५. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि गुणविवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: बारस गुण अरिहंता; अंति: साहु सगवीस अट्ठसयं, गाथा-१. ३०२६६. (+) वीरथुई अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १६४३२). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: देवाहिव आगमिस्संति, गाथा-२९. ३०२६७. विपाकसूत्र-श्रुतस्कंध-२, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२, १५४५५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेवं भंते सेवं भंते, प्रतिपूर्ण. ३०२६८. सील स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४१०.५, १२४३३). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंता रे सिख; अंति: कुमुदचंद्रगणी कहै, गाथा-१०. For Private And Personal use only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०२६९. (+) मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. गोवर्द्धन ऋषि, पठ. मु. मोणसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३.५४१०.५, १५४३६). " मेघकुमार चौडालियो, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुण नीलो, अंतिः भणता रे सुख धाय, डाल-४, गाथा- २३. ३०२७०. महावीरजिन संगीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. कर्मसी ऋषि (गुरु ऋ. भूधर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४९.५, ११४३४). महावीरजिन छंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर जनमीया; अंति: जास घरि होये मुदा, गाथा-६. ३०२७२. हरिवल चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५.५x१३, १७४३९). י' हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधर जगधणी; अंति: (-), (अपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम ढाल तक लिखा है.) ३०२७३. बलिभद्रकृष्ण सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३X१०, १३x४०). कृष्णबलभद्रमुनि सज्झाब, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तुझ आगल सुं कहु अंति: निसदिन जिनवर्धमान रे, गाथा २१. ३०२७५. (+) धर्मजिन स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ, जैदे. (२४४११.५, १२x२७). " धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिनेश्वर गाउं रंग, अंति: (-), (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) ३०२७६. शांतिजिन आरती व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१७X१३, १५X१७). १. पे नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १अ संपूर्ण. ११X१७). १. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति, अंति: उतारे तेने पार उतारे, गाथा- ९. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं, पद्म, आदि: सुण सुण शेत्रुज, अंति (-), (पू. वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ३०२७७. आठ कर्मनी १५८ प्रकृति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२६४१२.५). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानवरणीय दर्शनावरण, अंति: उपभोगां० वीर्यांतराय. ३०२७८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे २, प्रले. मु. कस्तुरचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२२४१३, आ. जिनराजसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: मन मधुकर मोही राउ, अंतिः सेवे वे कर जोडी रे, गाथा-५, २. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १आ, संपूर्ण मराजिमती पद, मु. जिनदास, मा.गु., पद्म, आदि; गिरनारी कब मीलसि; अंतिः छुटे नेम राजुलनो री, पद-४. ३०२७९. (+) निह्नव सज्झाय सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५x११, १३X३१). निह्नव सज्झाय, पंचायण, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु पाय प्रणमी, अंति: दुक्कडु तेह रे, गाथा- १७. निह्नव सज्झाय- टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: साधनइ सिद्धांत भणवान, अंतिः ठामे उपासिरा कह्या. ३०२८०. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. नेमविजय (गुरु ग. क्षमाविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२४४१२, २४३४). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदिः सकलकुशलवल्ली, अंतिः श्रेयसे शांतिनाथ, श्लोक-१. सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि हो भवी प्राणी सकल अंतिः संपदा पणु पामे चेतन. ३०२८१. औपदेशिक पद व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. डुंगरविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., . (२३.५x११, १२४३४). For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: देखो भाई महाविकल; अंति: वणारसी० निधि लुंटै, गाथा-८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. ३०२८३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. मु. कस्तुरचंद्र ऋषि; राज्ये गच्छाधिपति नरपतसिंघसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७४१४, २०-२७४१३-१९). १. पे. नाम. मुनिसुव्रत स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतस्वामि स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रत कीजे मया; अंति: न रह्यो अजर प्रस्ताव, गाथा-५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुष्कलवइ विजये जयो; अंति: भयभंजण भगवंत, गाथा-७. ३. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद; अंति: मान कहे शिर नामी ऋषभ, गाथा-५. ३०२८४. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६०२, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२१४११, ५४२६). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सूरे उग्गए पुरिमर्द; अंति: गारेणं वोसिरामि. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यनइ उदय बिपुहुर; अंति: घालुं इस्यु भाव. ३०२८५. चारप्रत्येकबुद्ध सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, पू.वि. चौथे प्रत्येकबुद्ध की ढाल नहीं है., जैदे., (२०.५४११,१०४२२). १. पे. नाम. नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरवरधनपुर राजीयो; अंति: प्रत्येकबुद्ध हो, गाथा-६. २.पे. नाम. दुमह सिजाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. दुमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर कपीलानो धणी रे; अंति: नित प्रणमुं पाय रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. नमी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर सुदरसण राय हो; अंति: सुंदर० प्रणमूं पाय, गाथा-६. ३०२८६. कृष्णनेमजिन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१९.५४११.५, १३४२३). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय कुलचंदलो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ७ गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ३०२८८. भक्तामर स्तोत्र व दोहा, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. पं. धनरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १४४३०). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा, पं. जसवंत, पुहिं., पद्य, आदि: जसवंत इस संसार में; अंति: बाजत है दिन रयण, गाथा-१. ३०२८९. पार्श्वनाथ बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. प्रतिलेखक ने अपना नाम नहीं लिखा है, परन्तु उतावलेपन में लिखे जाने का उल्लेख किया है., जैदे., (२३४११.५, १३४४५). पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सांवण मासै उलस्यो; अंति: जिणहर्ष सदा आणंदरे, गाथा-१३. For Private And Personal use only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ર૮ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०२९०. (+) श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १८९९, आषाढ़ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. देवीचंद; पठ. श्रावि. वरजकुवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१६.५४११, १३४२२). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. चारित्राचार तक लिखा है.) ३०२९१. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४४९.५, १५४५५). १. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: थूलभद्र सील गुणे करि; अंति: चरण कमल चित लाय रे, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. भागचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तूं अविनासी आत्मारे; अंति: जिनरंग० सुख ठाम रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. मोहनी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मोहप्रबल सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: मोह महाबलवंत कवण; अंति: प्रगट वचने करी रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., मात्र प्रथम गाथा है. मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: चतुर विहारी आतम माहर; अंति: (-). ३०२९२. (+) २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३६). २४ जिन स्तवन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमुं प्रथम; अंति: लहै पामै सुख अमित्त, गाथा-९. ३०२९३. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र (पायचंदगच्छीय), संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२०.५४११,११४२७). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-४३. ३०२९४. (+) तीजयपहुत्त स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४११, १६४२७). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३०२९५. धर्मपापनी सझाय, संपूर्ण, वि. १८५४, फाल्गुन कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. श्रीमानकुआ, प्रले. मु. सवजी वरधमालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के दो टुकडे हो गये हैं.,प्र.ले.श्लो. (८०१) कागद थोडो ने गुण घणो, (८०२) धरती सब कागद करू, जैदे., (१४.५४११, १४४३०). आत्मशिक्षा सज्झाय, वा. चारुदत्त, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरनां प्रणमी; अंति: करई ते शिवसुख लहै, गाथा-२४. ३०२९६. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२१.५४११, १५४३७). १.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८४३, भाद्रपद शुक्ल, ३, शनिवार, ले.स्थल. विकानेर, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन, मु. गुणचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: प्रणमिय सारद मातनें; अंति: दीजिये सुखकंद ए, ढाल-२, गाथा-३२. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८४३, कार्तिक कृष्ण, ३०, ले.स्थल. बीकानेर, पठ. मु. लाधाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन, म. गुणचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: वीरजिणेसर ध्यावो; अंति: लहीये परमाणंद रे. गाथा-११. ३. पे. नाम. नवकार स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. गुणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी जिनवर पाय; अंति: शिष्य गुणचंद वीनवै, गाथा-७. ३०२९७. नेमराजिमती गीत व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, ११४३०). १.पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रिय मीलवानइ काजि; अंति: भवनकीरती जयकार रे, गाथा-९. २.पे. नाम. १४ पूर्वि आहार विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ पूर्वी आहार विचार, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारियवाराउ चऊदस; अंति: चिंतिय सुरवरोदुहिओ, गाथा-४. For Private And Personal use only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०२९८. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१६.५४११.५, २८x१९-२०). पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीर; अंति: सूरतिमध्ये पदवी, (वि. महावीरस्वामी से लेकर सा. नेतसी सं.१७२१ तक की पट्टावली है.) ३०२९९. नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. पत्र १४४ हैं., प्र.वि. मोडे हुए पत्र., जैदे., (१६४१०, १६४२९). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. १.नवकार, २.उवसग्गहर, ३.संतिकर, (४. तिजयपहुत्त, ५. नमिऊण दोनों (उल्लेखमात्र) व ६. अजितशांति स्तोत्र लिखा है.) ३०३०१. राजमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. भोगो आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४०). राजिमतीसती गीत, मु. विनय, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: समुद्रविजय नंदन चढे; अंति: लाल विनयनइ सुखकंद, गाथा-११. ३०३०२. (+) संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १२४३६). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अति: मज्झवि तेह खमंतु, गाथा-१६. ३०३०३. (+) अब्भारी शारदा छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४१०, १६४३३). शारदामाता छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकलसिद्धिदातार; अंति: होउ सया संघकल्लाणम्, श्लोक-४२. ३०३०४. मौनएकादशीतप गरj, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१.५४११, १८४३१). मौनएकादशीतप गणj, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३०३०५. चौवीसजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (१५.५४१०, ९x१५). १.पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभ अजित जिनदेव; अंति: जिनदास प्रभु चरन से, गाथा-८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अति: (-). ३०३०६. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९.५४१०.५, ८४३०). महावीरजिन स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, पुहि., पद्य, वि. २०वी, आदि: मना रे वीरजीणंदनी; अंति: छवि वसज्यो सदाई रे, गाथा-११. ३०३०८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९x११, १७४३७). १.पे. नाम. सनत्कुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदिः सुरपति प्रशंसा करे; अंति: पाम भवतणौ पारो, गाथा-२३. २. पे. नाम. पोसहव्रत नियम, पृ. १आ, संपूर्ण. पौषधदोष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पोसा नीमंते बुदी; अंति: सुखसाता पुछवी नहीं, (वि. कुल नियम १८.) ३०३०९. (+) मौनैकादशी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८०५, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १५४३९). एकादशीपर्वतिथि सज्झाय, आ. विशालसोमसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पुछि वीरने सुणो; अंति: सुरूप सज्झाय भणी, गाथा-१५. ३०३१०. पंचमीनाणतणी सझाइ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १४४३९). पंचमीतिथि स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १४६६, आदि: पहीलउ प्रणमु गोइम; अंति: बारसि ससीवासर कवइ, गाथा-१५. ३०३११. जंबुस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२२४१०.५, २२४४७). ___ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७०९, आदि: जिनवर जिनवर नमु; अंति: रायचंद० दिन सफल थाय, ढाल-२, गाथा-२५, संपूर्ण. ३०३१२. स्तवन व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३४). १.पे. नाम. तीर्थंकर आयुमान सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. मु. खंगार (गुरु मु. जसवंत ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. For Private And Personal use only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिनआयु स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वंदीय वीरजिणेश्वर; अंति: सिवपुरी मुझ देयो वास, गाथा-७. २.पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ३०३१३. सज्झाय व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९४११, २४-३४४१७). १.पे. नाम. चारप्रहर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ४ प्रहर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलो पोहोर भयो; अंति: पामो अविचल राज्य, गाथा-१३. २. पे. नाम. औषध संग्रह , पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ३०३१५. (+) अष्टप्रकारी पूजा व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१६, रसशशिब्रह्मभेद, ?, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. लींबडी, पठ. श्रावि. वजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र लम्बा होने से इसे दो भागों में मोडा गया है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (४७४१०, ७-४७४१३-२०). १.पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, पं. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१३, आदि: श्रुतधर जस समरे सदा; अंति: अरुज मागो सुख अनंत. २.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. __मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. आदि-अंतिमवाक्य अवाच्य है.) ३०३१६.-) इवंतोमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १६४३३). अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वादीने; अंति: पूजे अम घर वरवली, गाथा-१९. ३०३१७. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ११४३८). १.पे. नाम. तीर्थराज स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शQजयतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीसिद्धक्षेत्र; अंति: सुधर्मो कृति शर्मदः, श्लोक-१२. २. पे. नाम. ओपसग्गहर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ३०३१८. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४१२, १२४३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण श्रीशांतिजी; अंति: परसोतम गुण गायाजी, ढाल-५, गाथा-४२. ३०३१९. बोल व कुंडली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१६४११, १४४३२). १.पे. नाम. चंद्राप्रभुजी कथित बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन कथित बोल, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ए बोल चंद्राप्रभुजी, (२)प्रषदा मध्ये छन्नू; अंति: जिनवलभ० वात साची छै. २. पे. नाम. कुंडली, पृ. १आ, संपूर्ण. कुंडली-ज्योतिष, मा.गु., कुं., आदि: (-); अंति: (-). ३०३२०. स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (१७४९.५, १५४१५). १. पे. नाम. नेमिजिन पद, प्र. १अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: खेलत नैम कुमार ऐसे; अंति: कीनो निज अधिकार, पद-६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. धर्मकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: मन लागो श्रीजिनराजसु, अंति: चरण सरण मुझ आजसुं, पद-५. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ पुहि., पद्य, आदि: मोह नदि जल पुर वहीत; अंति: कोइ उभरत सोऊ तेरीबे, पद-५. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: जागीयै नृप नाभिनंदन; अंति: खेम प्रात वारे, गाथा-५. ३०३२१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११, ९४२३). १. पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. राजसमुद्र, पुहि., पद्य, आदि: आज की काल चलेसी रे; अंति: नारी विनां सोभागीरे, गाथा-७. २. पे. नाम. जीवकाया सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: विणजारा रे वालंभ सुण; अंति: आपणै जीवसुंयुं कही, गाथा-७. ३०३२२. सुभाषित पद व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२१४११.५, १०x२३). १.पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न किजीये; अंति: समयसुंदर रुडी रीत, गाथा-६. २.पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., गाथा-१४ से २१ अपूर्ण तक है. सुभाषित श्लोक संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३०३२३. चैत्यवंदन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२, २४४१८). १.पे. नाम. शास्वता अशास्वताजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वतअशाश्वतजिन चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठीने प्रणमीए; अंति: सुभ मने पामे मंगलमाल, गाथा-१५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनलक्षण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम गुरु जैन कहो; अंति: ज्ञानदशा जस उंची, गाथा-१०. ३०३२४. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४४१०.५, १३४२६). १.पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुंभावशं; अंति: धर्म निदान लालरे, गाथा-८. २.पे. नाम. आत्मप्रतिसुमतीसिक्ष्या सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मारे घर आवजो रे वाला; अंति: सांभलज्यो चित्त साखै, गाथा-१६. ३०३२५. (+) सूत्रकृतांगसूत्रे वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१८, श्रावण शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. भजरी, प्रले. मु. दोलतराम; पठ. मु. निहाल (गुरु मु. दोलतराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ५४३६). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमेस्संतित्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० श्रीजंबूस्वामी; अंति: तिम कहुं छु. ३०३२६. औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१३.५४१०, १४४१४). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: देख्यौ भला देख्या; अंति: मुल स्वरूप परकासारे, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. __ पुहिं., पद्य, आदि: चेत रे चित माहि चेत; अंति: भुल ए मन की मिटाय, गाथा-८. ३०३२७. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, ८x३०). For Private And Personal use only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२ www.kobatirth.org शांतिजिन स्तवन, पं. धीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन शांति प्रभु अंति: गुण गवाय रसीया, गाथा-६ ३०३२८. पार्श्वजिन पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. मकसुदाबाद, प्रले. मु. सुमतिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६X१२, ११x२५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. अबीर, पुहिं., पद्य, आदि मेरा जीयरा पापी क्यों अंतिः प्रभू का करणा है, गाथा - ७. २. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन पद - पुरिसादानी, मु. अबीर, पुहिं., पद्य, आदि: अरज हमारी चित्त धरो; अंति: कहत अबीर ए वात, गाथा-५. ३०३२९. अंतरीक पार्श्वनाथनो छंद, संपूर्ण वि. १८७२ आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. नानरत्न प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., *, प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वे.मू. पू. में संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+गा, आदि (-); अंति: (-)३०३३३. गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२०x११, १२x२०). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६४१२, १४x२९-३१). पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंतिः भणै जयो देव जय जयकरण, गाथा - ५१. ३०३३१. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-३९ (१ से ३९) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. ,जैदे., ( १५४८.५, १३X३२). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पं. नथमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर आवंता मे सुण्य; अंति: स्वामी आवागमण निवार, गाथा-५. ३०३३४. एकादशी कथा, संपूर्ण वि. १८४०, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, पादरु, जैदे., (२५.५x११.५, १८४५६). एकादशी कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीरं नत्वा, अंतिः माराधनतत्पराः समभवन्. ३०३३५. महावीरजन्म स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२५४११.५, १२x२१). ', (१९.५X१४.५, २१X३१). १. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण, मु. कांति, पुहिं., पद्य, आदि: भोरी देखो ध्यान रंग, अंति: कांति नमैं चरनननन, गाथा-५. २. पे नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: सो प्रभु मेरे वीर, अंतिः प्रगट कल्यान भयो, गाथा-५. ३०३३६. (४) स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये., ३०३३७. सुक्मिणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२५x१२.५, १२४३४). पुहिं., पद्य, आवि: पीया प्यारेने मोरी, अंतिः सुरंग मुगत कुं गई, गाथा- ७. . ३. पे नाम, आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, आदिजिन स्तवन, मु. भाव, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण यो प्रभु रिषभः अंतिः भाव० टाली भव फेरा, गाथा-७, ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदिः आठ कोडी छपन लाख सत्त; अंति: ते पर घर काम करत, गाथा-५. रुक्मिणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम नेमि; अंति: राजविजय रंगे भणेजी, गाथा - १५. ३०३३८. जुगटुं, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे (२५.५४१२, १३x४२) औपदेशिक पद - जुगारत्याग, मा.गु., पद्य, आदि: पांडव जुगटुं रमवा, अंति: वनवन हिंडावुं रोती, गाथा- १५. ३०३३९. नागिलानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५४१२, ११४३३). For Private And Personal Use Only नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाई घर आवीया, अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा- १६. Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०३४०. रतनाकरपचीसी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. नारायण नथुभाई बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १०४२८-३०). रत्नाकरपच्चीसी स्तवन, मु. गंभीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लक्ष्मी शिवकल्याणनी, अंति: गंभीर करजुग शिर धरी, ढाल-४. ३०३४१. चंदनबाला स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९५४, आश्विन कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. मगनलाल खुशालचंद जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीकुंथुनाथजी प्रसादात्., दे., (२५.५४१२, ९४३४). चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुंआरी चंदनबाला; अंति: कुंवर कहे करजोडिरे, गाथा-१३. ३०३४३. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १२४३२). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केवलकमलापति विश्वधणी; अंति: उदय महोच्छव जयमाला, गाथा-९. ३०३४४. अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२.५, ८४३२). अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ अष्टापद नित नमी; अंति: जिणेंद्रसाग० पाया रे, गाथा-८. ३०३४५. औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२.५, १३४३३). १.पे. नाम. मूढशिक्षा पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे क्युं प्रभु पाईइ; अंति: विना तूं समजत नाही, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे क्यु० सुणि पंडित; अंति: एक है तब को का भैटे, गाथा-८. ३०३४६. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४११, १५४४६). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर पदकमल सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ प्रारंभ तक ३०३४७. चौदगुणठाणा भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१३.५४६, १४४११). १४ गुणस्थानक भेद, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३०३४८. उरजनमाली को चौढाल्यो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. गुलाबकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११, १९४३५). अर्जुनमालीमुनि चौढालिया, रा., पद्य, आदि: सोदागर मीलीया पछ नयी; अंति: वरत्या जयजयकार हो, ढाल-६. ३०३४९. नेमिजिन नवमंगल व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. गुलामरवा, जैदे., (२६.५४११, २२४४५). १. पे. नाम. नेमिजिन नवमंगल, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मु. सुनंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: एरि गुरु गणधर देव; अंति: लाल मंगल गाईया, ढाल-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. रायचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८३९, आदि: करम न छुटैरे प्राणी; अंति: ढाल कीइ पेम धरीजी, गाथा-१६. ३०३५०. ऋषभजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. १, जैदे., (१२४७, ९४२४). आदिजिन पद, पुहि., पद्य, आदि: ऋषभनाथ कुंरंग है; अंति: अरिहंत तुंही वडो है, गाथा-४. ३०३५१. माहावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन व एकपूर्व के वर्षसंख्या दुहा, संपूर्ण, वि. १८८८-१९४२, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३-१५४३५-३८). १.पे. नाम. माहावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, वि. १८८८, आश्विन कृष्ण, ३०, ले.स्थल. जावाल. For Private And Personal use only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३. २.पे. नाम. एकपूर्व की वर्षसंख्या दहो, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १९४२, चैत्र शुक्ल, ७, रविवार. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३०३५३. अनाथीरिषराज चरित, संपूर्ण, वि. १८५८, आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. आगरा, प्रले. सा. सीता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १७४३४). अनाथीमुनि रास, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: वंदियै वीर जिणेसर; अंति: लहे पामे कोडि कल्याण, ढाल-८, (वि. रचनाप्रशस्ति नहीं है.) ३०३५४. (+) आउरपच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. सवजी जोसी; लिख. वा. कमलशेखर (गुरु वा. लाभशेखर, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४४३). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुरियाणं, गाथा-८४. ३०३५५. (+) आजीवक विवरण सह टीका व चार भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१४.५४९.५, १७४१८). १.पे. नाम. उपदेशमाला-आजीवक गाथा सह हेयोपादेया टीका, पृ. १अ, संपूर्ण. उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. चारभावना, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. कूर्मचक्र चित्रित है. ४ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनंत भावना जिम भरत; अंति: जिम नेमीराजानी परे. ३०३५६. नंदण मणियार को च्योढाल व विमलजिन ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, २०४३८-४१). १.पे. नाम. नदण मीणयार को च्योढाल, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. नंदमणियार चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञातार तेरवा अध्ययन; अंति: आतमा रो उद्धार ए, ढाल-४. २.पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण, पुहि., पद्य, वि. १८५३, आदि: जीवडा जप लीज्योरे; अंति: चंद्रभाण० धरी तनमनमै, गाथा-१६. ३०३५७. बारमासो नेमराजुल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१०.५४६, २०x१४). नेमराजिमती बारमासो, पुहिं., पद्य, आदि: सईयां मो से मिलके, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ तक है.) ३०३५८. महावीरजिन सतावीसभवनुंस्तवन, संपूर्ण, वि. १९५५, पौष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४११.५, ११४३५). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, पंडित. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: श्रीशुभविजय सुगुरू; अंति: सेवक वीरविजय जयकरो, ढाल-५. ३०३५९. नवकारमंत्र व नेमराजुल बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पालनपुर, जैदे., (२५.५४११.५, १३४२७). १.पे. नाम. नवकारमंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवइ मंगलं, पद-९. २. पे. नाम. नेमराजुल बारमास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजुल बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: एह नवनिध पामिरे, गाथा-१३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने अपूर्ण गाथा-८ से लिखना प्रारंभ किया है.) ३०३६१. (#) नेमनाथ सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. सा. मंगा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, २०७४४). नेमराजिमती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: अरी नेम मनाया ना मनइ; अंति: वरत्या जै जैकारोरी, गाथा-२३. For Private And Personal use only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०३६३. सिद्धमंगल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. मेडता, जैदे., ( २४x११.५, १६X३०-३८). सिद्धमंगल सज्झाय, ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, आदि: बीजो मंगल मन सुध धाव, अंति: मंगल सिद्धनउ मनत, गाथा- १८. ३०३६५. विचार संग्रह व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३X११, १५X३०). १. पे. नाम. चारयुगप्रमाणादि विचारसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: च्यार युगांरा प्रमाण, अंति: नक्षत्र कह्या छै, (वि. युगप्रमाण, १४ रत्न व नक्षत्र नाम.) २. पे नाम. आदिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. " आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: हां मोरा आतमराम कुण; अंति: अमे परमानंद पास्यु, गाथा-७. ३०३६६. महावीरजीरो पारणो, संपूर्ण, वि. १९२४ वैशाख शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल फलोधी, प्रले. मु. पनालाल महात्मा, पठ. मु. रूपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२०.५४९.५, १०×१७). महावीरजिन स्तवन- पारणा, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण अंतिः तेहने नमे मुनि माल, गाथा - ३०. ३०३६७. (४) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (१९४१४, १६x२५). पार्श्वजिन स्तवन, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरत जग जाण; अंति: मेगराज जिनगुण गाये, गाथा - १२. ३०३६८. प्रास्ताविक लोक संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैये. (२१.५x११.५, १२४३१). प्रास्ताविक लोक संग्रह, प्रा. सं., पद्य, आदि: जिवदया जिण धमो सावय, अंतिः धर्म सर हे सइण मेव, (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रत संपूर्ण है, किंतु प्रतिलेखक ने श्लोक२२ से प्रारंभ किया है.) ३०३६९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, जैदे. (२३x१०.५, १२x४२). १. पे नाम. धर्मजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रामचंद, पुहिं, पद्य, आदि: हांजि हांजी के धर्म, अंतिः प्रभुजी तुमसुं एकतान, गाथा ५. २. पे नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रामचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मल्लिजिणंद मया करो; अंति: मूकीजे संग मेरे लाल, गाथा - १०. ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. गुणचंद, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीजिननायक पास, अंति: गुणचंद कहे करजोडी रे, गाथा-५. ३०३७०. साधारण गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. वेलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४११, १०x२९). साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सकल समता सुरलतानो; अंति: हो 3 जमाव रे, गाथा-८. ३५ " ३०३७१. (-) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे. (२३.५x१०.५, १७४३९-४६). १. पे. नाम. राणपुर तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. " आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु. पच, वि. १७९५, आदिः राणपुरै मन मोहियो रे, अंति: लाल सिवसुंदर सुख था, गाथा-१६. २. पे नाम. गोडीपारसनाथ स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सुहावे जनजी; अंतिः सदा केसर कवी थीव, गाथा- ७. For Private And Personal Use Only ३. पे. नाम. पर्युषण पर्व सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. खेमो ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १७७७, आदि: सरसत समरूं सारद माय अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ३०३७२. (#) पारसनाथजीरो छंद, अपूर्ण, वि. १८५४, वैशाख शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) = ३, प्रले. मु. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, प्र. ले. लो. (६०८) जिहां लगे मेरू अडग हैं, जैवे. (२३४११, १२x२४-२७). " Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी धवलधिंग, मु. वनीतराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धणी सदा गोडीराय सहाय, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक नहीं है.) ३०३७३. नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४४३). नवग्रह स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: शांतिमुदाहृता, श्लोक-११. ३०३७४. (+) गुणचंद्रने लालचंद को लिखा जेसलमेर चातुर्मास आज्ञा पत्र, संपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. मु. गुणचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२१४१०, १६४१८). गुणचंद्रमुनि ने लालचंदमुनि को लिखा पत्र, मु. गुणचंद्र ऋषि, मा.गु., गद्य, वि. १८४१, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंति: पत्र संभारी लिखज्यो. ३०३७५. (+) धीरविजयने अमृतविजय को लिखा पत्र, संपूर्ण, वि. १९०८, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मकसुदाबाद (अजीम, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (१४४९, १७४१८). धीरविजय ने अमृतविजय को लिखा पत्र, पं. धीरविजय, मा.गु., गद्य, वि. १९०८, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंति: लिखाय भेजज्यो. ३०३७६. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (१४.५४१२, १४४१६). १. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आघा आम पधारो पूज्य; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा-१८. २.पे. नाम. पंचमी स्वाध्याय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मतिज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु पंचमी दीवसे; अंति: विजयलक्ष्मी लहो संत, गाथा-६. ३०३७७. (#) स्तवन, औषध व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, २३४१७). १.पे. नाम. चोवीसतीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जणेसर प्रणमु; अंति: तास सीस प्रणम् आणंद, गाथा-२९. २. पे. नाम. औषध संग्रह*, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. यंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. यंत्र संग्रह , मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ३०३७८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११, ११४२३). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: अंगन कल्प फल्योरी; अंति: समयसुंदर० सोहिलोरी, गाथा-३. ३०३७९. जिनदास रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१४४९, १६४३१). आध्यात्मिकरास, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: सरस माल सवासेर खावें; अंति: कूत्ता गाम का भडके, गाथा-१३. ३०३८०. (#) स्तवन व पद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११.५, ८x१६-१९). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. य. रामचंद्र चुनिलाल, प्र.ले.पु. सामान्य. पा. वालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदिश्वर विनती सुण; अंति: प्रणमें पद अरविंदा, गाथा-११. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२ तक है. रा., पद्य, आदि: एक एक अक्षर भणे भणे; अंति: (-). For Private And Personal use only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ _____३७ ३०३८२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. नंदासण, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद्र (पार्श्वचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११, १५४३२). १. पे. नाम. रहनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: राजमती रंगि कहि; अंति: नयविमल गुण गाय, गाथा-१७. २.पे. नाम. वैराग्य जकडी, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: काया कामनी बे लाल; अंति: यूं अभिद्यइ तो मिलूं, गाथा-५. ३०३८३. जीव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१२.५४११.५, ९४२१). औपदेशिक सज्झाय, मु. अमीचंद, रा., पद्य, आदि: महेसर में कोठे थारो; अंति: अमी० राखो थारी टेक, गाथा-५. ३०३८४. पुंडरीककुंडरीकनो चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. उमेदचंद ऋषि (लुकागच्छ); पठ. मु. हरखचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, १४४३७). पुंडरीककंडरीक चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरीक कुंडरीकजी; अंति: ते अमरविमाणा जाए रे, ढाल-४. ३०३८५. सुमतिकुमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४११.५, १४४४२). सुमति सज्झाय, मु. विनयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सदा सुकलीणी; अंति: सुमति थकी सुखदाय, गाथा-१३. ३०३८६. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, ९४२२-३०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज आपे चालो सहीयां; अंति: घणी चित्त आणी रे, गाथा-९. ३०३८७. निगोद विचार सह टीका, पद संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, दे., (२३.५४११.५, ३३४५०-६०). १. पे. नाम. निगोदषट्विंशिका सह टीका, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषविंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सेगपएसे जहणयपय; अंति: ते अणता असखा वा, गाथा-३६. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषत्रिंशिका प्रकरण कीटीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ पंचमांग एवैकादशशत; अंति: प्यसंख्येया अवसेयाः. २. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रूपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: सांवरो न जानै सहीया; अंति: गई पीया संग सारी, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रूप, पुहिं., पद्य, आदि: नैन रे निहारो पीयां; अंति: वा को नाम संभारी, गाथा-५. ४. पे. नाम. आत्मनिंदाष्टकगत श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३०३८८. पासत्थादि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४११.५, १०४३०). जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०३८९. चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११.५, १०x२६). सकलतीर्थवंदना, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थ वंदु कर; अंति: जिनने करुं प्रणाम, गाथा-१६. ३०३९०. आवश्यक विचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८०, कार्तिक कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि; पठ.सा. तेजश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२३.५४११.५,११४२७-३१). छआवश्यक विचार स्तवन, वा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसइं जिन चीतवीं; अंति: तेह शिवसंपद लहे, ढाल-६, गाथा-४४. ३०३९१. क्षमाछतीसीसझाय व नेमराजुल पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०,१३४३१-३९). १.पे. नाम. क्षमाछतीसी सझाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६. For Private And Personal use only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ३आ, संपूर्ण.. नेमराजिमती पद, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: कांई जाइ रे कांई जाई; अंति: शिवरमणी परणी खेमोजी, गाथा-५. ३०३९२. (+) अनूपचंदने चुनिलाल को लिखा पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (१३.५४१०.५, १५४२६). अनूपचंद ने चुनिलाल को लिखा पत्र, मु. अनूपचंद ऋषि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्वे; अंति: धर्मलाभ वंचनाजी. ३०३९३. नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९४५, २४x७). नेमराजिमती पद, पुहि., पद्य, आदि: नेम दुलौ व्याहन आयो; अंति: सब ही जीव छुडायो रे, गाथा-६. ३०३९४. (+) प्रेमजीने नरसिंघजी को लिखा पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२०४९.५, १७४१५). प्रेमजीमुनि ने नरसिंघजी को लिखा पत्र, मु. प्रेमजी, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीआदिजिन; अंति: करी थोभज्यो सही. ३०३९५. (+) विजयकुमरनो चोढालियो, संपूर्ण, वि. १९२८, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२४४११.५, १४४३३). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. रामचंद, पुहिं., पद्य, वि. १९१०, आदि: आदिनाथ आदिसरु सकल; अंति: रामचंद० मीछादोकड मोय, ढाल-४. ३०३९६. जैनसिद्धांत स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४१२.५, १०x४६). सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा गुरुभ्यः श्रुत; अंति: तत्समागमनोत्सवं, श्लोक-४६. ३०३९७. (+) सनीशर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८३३, आश्विन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. कालू, प्रले. मु. प्रीतिविलास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०, १२४३३-३५). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: तु सुप्रसन्न शनिस्वर, गाथा-१७. ३०३९८. शीवरमणीपुर गुणवर्णन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२,११४४०). सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम पृच्छा करे; अंति: सुख अथाग हो गौतम, (वि. कर्तानाम नहीं लिखा है.) ३०३९९. वीरद्वात्रिंशका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १५४४६). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसात्म्यात; अंति: तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३. ३०४००. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३६). १. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे संभव; अंति: सुखे हेलां ते तरे, गाथा-१२. २. पे. नाम. पारसनाथजी को स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. साधुहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन वांदता आपो; अंति: जीवत जनम प्रमाण, गाथा-५. ३०४०१. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. चुनीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८x११.५, १०४२५). १. पे. नाम. महावीरजिन पद, प्र. १अ, संपूर्ण. मु. अजय, पुहिं., पद्य, आदि: हजूर तुम सैं कहु में; अंति: लागी चरण में मतीयां, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. अजय, पुहि., पद्य, आदि: प्रीत लगी है तुम सें; अंति: अजयराज० लाभ हजारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन जन्मबधाई पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ आदिजिन पद- जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: सखी गावो बधाई प्यारी, अंतिः चिहंजी रहो बरदाई, गाथा ५. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चतुरंग रस की बात, अंति: धाकितकित्तीकडाधाधा, गाथा-४. ३०४०२. आठमनो तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैये. (२५x१२, १२४३३). अष्टमीतिथि स्तवन, पंन्या. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुं सदा अंतिः संघने कोड कल्याण रे, ढाल - ४. मातापुत्र सज्झाय, श्राव. संघो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाव्यं तेवुं लणजो, गाथा- १६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०४०३. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१)-२, कुल पे. २, जैवे. (१६x८, ९४२१) " , १. पे. नाम. मादीकरानी सज्झाय, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. गाथा ५ से है. वि. १८७३ आश्विन शुक्ल, ८, प्रले. लवजी, पठ. मु. जेठोजी ऋषि. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण, प्रले. ऋ. भाणजी, प्र.ले.पु. सामान्य. पुहिं., पद्य, आदि मनडी तेरे प्रीत पर अंतिः पुन तणो नवि आवे पार, गाथा-२. ३०४०५. पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (१२x१०, ११५२१). , पार्श्वजिन पद, रा. पद्य, आदि आवो म्हारा रसीया, अंति: अमर फल पास्वां, गाथा- ७. ३०४०६. आदिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, लिख. सा. जेठीश्रीजी; पठ. सा. सोभागश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२.५, १३४३७). १. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि जगचिंतामणी जगगुरु, अति: सवि सुख धाव लाल रे, गाधा-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: माता मरुदेवीना नंद, अंति: ताहरी टालो भवभय फंद, गाथा-६. ३०४०७. लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे ३, जैदे. (२५.५४१२, २१४४६). १. पे. नाम. मान लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीराचंद्र, पुहिं, पद्य, आदि: तजो मान की टेव माहा, अंति: हीराचंद वंद गुरु पाइ, गाथा-५. २. पे. नाम क्रोध की लावणी, पृ. १अ संपूर्ण. क्रोध लावणी, मु. हीराचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तजो क्रोध का जेर; अंति: हीराचंद० नमो मद मोडो, गाथा- ६. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ३९ मु. हीराचंद्र, पुर्हि, पद्य, आदि ले मानव अवतार मति कर, अंतिः लाभ तजो सब धंधार, गाथा ६. ३०४०८. रास, भास व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२-१८(१ से १०,१३ से २०) ४, कुल पे. ४, जैवे., (१०.५४९, १२x१९). १. पे. नाम गौतमस्वामी रास, पृ. ११अ १२आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं. गाथा ६ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक हैं. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सोधर्म गुहली भास, पृ. २१अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only सुधर्मागणधर गुहली, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी उद्यान, अंति: साद गुयली गीत भणेरी, गाथा- ७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २१ आ-२२आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सुहावे जिनने, अंति: नमीने वंदु विजयहीर, गाथा-७. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मात्र प्रथम गाथा है... मा.गु., पद्य, आदि: विश्वसेन वर राया, अंति: (-). ३०४०९. सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५. ५x१२.५, १४x२९). Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः आदिनाथ आदि जिनवर, अंति: लेसे सुख संपदा ए, गाथा - १७. ३०४१०. शत्रुंजयतीर्थ रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६१२.५, १३X३३). शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी अंतिः (-). (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल -३ गाथा-४ तक लिखा है.) ३०४१२. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X१०.५, १४४४६). विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: नैव पुष्पं द्विधा, अंति: (-), (वि. श्रीजिनप्रासाद, जिनप्रतिमाप्रमाण, द्रव्यपूजादि श्रावकाचार संग्रह . ) ३०४१३. चौतीसअतीशय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९x११.५, १९X३८). १. पे. नाम. ३४ अतिशय गाथा, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय आलापक, प्रा., गद्य, आदि: चउत्तीसं बुधा सेसा अंति: क्खिप्पामेव उवसमंति, गाथा-३४. २. पे. नाम. वीसविहरमान स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: पंच धणुसे माणे; अंति: जिणवयणं निरयाणम्. ३०४१४. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२५.५४११, १४४६०). कालिकाचार्य कथा * सं., गद्य, आदि; जंबूद्वीपे भरत अंतिः (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३०४१५. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, जीवे. (२५४१२, १३x२९-४०). " क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, आदिः आदर जीव क्षमागुण अंतिः संघ जगीश जी, गाथा-३६. ३०४१६. मरघापुतनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६११.५, १०X३४). मृगापुत्र सज्झाय, मु. हंसविमल, मा.गु, पद्य, आदि: सूगरीब नवरी सोहामणी: अंतिः हंसविमल० तस परिणाम रे, गाथा - २८. ३०४१७. गणधरवाद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५x११.५, १६x४३). गणधरवाद, मा.गु., गद्य, आदि: जंभीका नगरीइ केवल अंति: थोडै कहइ घणौ समजै. ३०४१८. धूलिभद्रजीरो नवरास, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले, स्थल, जारडा, जैदे. (२५x११, १८x४७). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " स्थूलभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सवा अंति: एह स्थूलभद्र ऋषिराय, डाल-८, गाथा-७४. ३०४१९. (+) सकलार्हत् स्तोत्र व पाक्षिक स्तुति, संपूर्ण, वि. १९४०, आषाढ़ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. मक्सुदाबाद अजीम, प्रले. ऋ. अबीरेंदु (वडतपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें, जै.. (२५.५x१२.५, १२x२८) १२x२२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. १. पे. नाम, सकलात् स्तोत्र, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः श्रीवीरं प्रणिदध्महे, श्लोक-३०. २. पे नाम चतुर्दशी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण पाक्षिकस्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३०४२० (०) स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१८.५x११, मु. भोज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पासजिणंद; अंति: पामइ कल्याणनी कोडी, गाथा - ११. २. पे. नाम मांगलिक लोक, पृ. १आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदिः ॐकार बिंदु संयुक्तं अंतिः क्षेमकारा भवंतु, श्लोक-३. ३०४२१. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै, (१८x१०, २३४१८). For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. वसंत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीत्रेवीसमो जिन; अंति: नित प्रते प्रपुरज्यो, गाथा-७. ३०४२२. श्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१८.५४११, ३४२४). १.पे. नाम. ६ द्रव्यपरिणाम विचार सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण.. ६ द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा., पद्य, आदि: परिणामि जीव मुत्ता; अंति: सवगदमियरहीयपवेसो, गाथा-१. ६ द्रव्यपरिणाम विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे षद्रव्यने; अंति: इणी रीते विचारवं. २. पे. नाम. जैन गाथासंग्रह*, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३०४२३. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४०, वैशाख कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. सुमतिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीभागीरथीस्तटे., जैदे., (२६४१२.५, १२४२९). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ३०४२४. (+) नवतत्त्व प्रकरण व गौतमपृच्छा, अपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१९.५४११, १३४२९). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. ग. दयावर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: यट्टतो भवे सिद्धि, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-१५ तक नहीं है.) २.पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३५ अपूर्ण तक है. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-). ३०४२५. ६ भाव विचार, संपूर्ण, वि. १९२०, माघ शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१३, १३४३५-३९). ६ भाव विचार, मा.गु., गद्य, आदिः रे आत्मा कर्म वस्ये; अंति: स्थानक कीस्यु छे. ३०४२६. चतुर्दशीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४२७-३१). चतुर्दशीतिथितप स्तवन, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: चौदश तप कर भावसुं; अंति: उतारे पार लाल रे, गाथा-११. ३०४२७. सिद्धचक्र आराधन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १५४४९). नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: आसो सुदि सातमी तथा; अंति: प्रतै २००० हजार कीजै. ३०४२८.(#) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४१०, १०४२३). आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो; अंति: इम राम मुनि गुण गाजो, गाथा-५. ३०४२९. धन्नाजी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०५, आषाढ़ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सिवचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १६४४३). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वचन चित्तधारी, अंति: अमरसी० होय नव सिद्ध, गाथा-१९. ३०४३१. अकलंकाष्ट स्तोत्र व अजैन श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. देवकृष्ण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १६x४९). १. पे. नाम. अकलंकाष्ट स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यं सकलं; अंति: मतिः संताडितेतस्ततः, श्लोक-१६. २. पे. नाम. अजैन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ अजैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३०४३२. (+) चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., (२६४१२, १५४४३). For Private And Personal use only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२ कालकुंडदंड और 8. पृ. १, जैदे. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ३०४३३. रत्नसार कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१२४११.५, १७४३०). रत्नसार कथा, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदे; अंति: वारे मुक्ति पामसे. ३०४३४. (+) भैरवनाथ अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, ९४२९). भैरवाष्टक, आ. हेमचंदसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तीन भुवन के नायक; अंति: हेमचंद० नमो भैरवनाथ, गाथा-७. ३०४३५. (+) पद्मावती स्तोत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. लखणेउ, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२,११४३४). पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, सं.,मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमत्कलिकुंडदंड; अंति: हर्ष० पूजो सुखकारणी, गाथा-११. ३०४३६. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१६.५४११, १२४२७). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: सुदी अगियारस वडी, गाथा-१३. ३०४३७. चौदनियम गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०४११.५, २४१५). श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. श्रावक १४ नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सचित अनपाणीनी मरजादा; अंति: घर जमवानी मरजादा. ३०४३८. व्याख्यान पीठीका, संपूर्ण, वि. १९३३, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४४०). व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: तत्संबंधनी वाचना. ३०४३९. पुद्गलपरावर्तन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १६x४५). पुद्गलपरावर्तन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: च्यारे प्रकारे; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३०४४१. आदिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०, १३४२४). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एतो प्रथम तीर्थंकर; अंति: मोहनविजय जयकार, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-राणकपुर, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरोरलीयामणौ रे; ___ अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. ३०४४२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२४११.५, ११४३१). १.पे. नाम. गोडीजी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजी बीराजे बंगला; अंति: मारो गोडीजी पारसनाथ, गाथा-४. २.पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: नेमीस्वर बनडो बण्यो; अंति: मोरी लीजी हे ये माय, गाथा-७. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नथुकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: कुम कुमने पगले पधारो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३०४४३. (#) प्रतिक्रमण व देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७.५४१०.५, २०४२१). १. पे. नाम. प्रातःप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. _प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम कपडा मुहुपती; अंति: मंगलमांगल्यं कहै. २.पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्रभू आगे; अंति: पछै नमोत्थुणं कहै. ३०४४४. नाडी परीक्षा व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४११.५, ३३४१६). For Private And Personal use only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जब जानो पेउ प्राहुना; अंति: कहां रोए राज नलहिइं, गाथा-३. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: काहां अज्ञानि जियऊ; अंति: काहु कुं सेज मिटावे, गाथा-३. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्यूरे सूवे उठ जाग; अंति: निरंजन देव गायो रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिउ जाने मेरि सफर; अंति: नर मोयो माया कां करि, गाथा-३. ५. पे. नाम. नाडी परीक्षा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). ३०४४५. (#) बावीस अभक्ष्य स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. नाहांनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१३४६.५, १७-२३४५-१८). २२ अभक्ष्य सज्झाय, मु. कुंयरविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणंद प्रणमी करि; अंति: कुयर० करे धरम सगाइ, गाथा-६५. ३०४४६. आदिजिन स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ८४३०). आदिजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: बालत्तणमि सामिय; अंति: पुणोवि जिणसासणे बोही, गाथा-२३. आदिजिन स्तोत्र सहटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बालक पणइ स्वामी; अंति: जिनशासनि बोधि पामुं. ३०४४७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९४११, १५४२८-३३). १.पे. नाम. नेमनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: अजरामर सुख पाया रे, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीत; अंति: भवना म्हारा बंधण तोड, गाथा-९. ३०४४८. स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, जैदे., (२४४११,१९४२४). १.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: कालीने पीली चांदली; अंति: पोहती मुगत मझार, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आप स्वरुपी होय के; अंति: तुझ पद पंकज सेव हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. पच्चक्खाण समय यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहजानंदी थयो; अंति: जिनविजयानंद सोहावै, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त, मु. केसव, पुहिं., पद्य, आदि: लिखीयो लेख लीलाट; अंति: मानव चिंता म करि, गाथा-१. ६. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. क. दयाल, पुहि., पद्य, आदि: कहा मन मोह धरै उ दिन; अंति: चीठी हाथ परमरे, गाथा-१. ७. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. क. हेम, पुहिं., पद्य, आदि: सबल भुयंगम साह कसण; अंति: हेम० संकट सविटल्यो, गाथा-१. For Private And Personal use only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४ www.kobatirth.org ३०४५१. हली संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (१५४३.५, २३-२५४८). १. पे. नाम. गुरूगुण गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. ८. पे. नाम. लेख भावे कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. भवितव्यता कवित्त, सुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: कहां श्रवण जल भरे; अंति: लिखत लेख नां मिटै, गाथा- १. ३०४४९. प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (१९.५X१०, ८x२३). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उगए सुरे नमुकारसिय; अंतिः असित्थेण वा वोसिरै ३०४५०. जीवविचार बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. वाहली, प्रले. पं. तिलोकविजय (गुरु पं. नित्यविजय), जैदे., ( १६.५X११, १६x२८). जीवविचार बोल, मा.गु, गद्य, आदि: (-): अंति: (-). गुरुगुण गहुली, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मात मया करी, अंति: मूलस्वरूप दिखारो, गाथा-५. २. पे. नाम. विजयचंदसूर गहुली पृ. १ आ. संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि आणिवो सुंदर बेनी धवल, अंति: राज रमन रिधी पावो, गाथा-५. ३०४५२. भावली स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, जैवे. (३१.५x११, २७४१९). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती सज्झाय, मु. घोडमल, पुहिं., पद्य, आदि भावली सासुजी का जाया; अंतिः चोथमल लेगा संजम भार, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा- ६. ३०४५३. (#) नेमनाथ नवरसो, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२०x११, १३X२४). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंतिः प्रभु उतारो भवपार (पू. वि. ढाल ८ गाथा १ अपूर्ण तक नहीं है.) ३०४५४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१२.५X११, १७X२०-२४). १. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि इन पर राजुल विनवें, अंति: हरीवंसनो पुनमचंद, गाथा- ६. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. जसवंत शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि: सुरपति सुरपति सुरपति, अंतिः सीस० जोवण उछक अती, गाथा- ९. ३०४५५. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (१२.५४११, १२४२८). आदिजिन स्तवन, मु. भाव, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण द्यो प्रभु रिषभ अंतिः भाव कहै० भव फेरो, गाथा ८. ३०४५६. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०x११.५, ११x२३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि जाय छे जिवित चाल्युं अंतिः माने तेनि बलिहारी रे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुरख मन माने छे मारु; अंति: विचारे विरला प्राणी, गाथा- ६. ३०४५७. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, कुल पे. ३, जैदे., (२१x११.५, १३X३०). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ७अ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पहली गाथा अपूर्ण सा है. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-) अंतिः अर्पणा आनंदयन पद रेह, गाथा ६. २. पे. नाम. समेतशिखरगिरि स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. * , सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पंन्या. रुपविजयजी, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: जइ पूजो लाल समेतशिखर, अंति: रूपविजय मुझ ते हेवा, गाथा - ८. ३. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा- ३ अपूर्ण तक है. वा. उदयरत्न, मा.गु, पद्म, वि. १८वी, आदि आदिनाथ आदे रे जिनवर, अंतिः (-). ३०४५९. स्वप्नचोपाइ, संपूर्ण, वि. १९१वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (१४४११, ३२४३२). " For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ स्वप्न चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५६०, आदि: पहिलो मन जोइ करि,; अंति: वर शिवसुख इणिपरि कहइ, ___ गाथा-४२. ३०४६०. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२०.५४११, ११४२४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पा. सदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा पासजिनराय सूरत; अंति: काई सीधा सगला काज, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: धन धन पारकर देश धन; अंति: प्रेम अधिक जिणचंद, गाथा-७. ३. पे. नाम. लोद्रपुरचिंतामणी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रपुर, मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: लोद्रपुरे रलीयामणो; अंति: कहै चंद करो आणंद, गाथा-७. ४. पे. नाम. गोडी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-३ अपूर्ण तक है. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति यति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीपुर पास नमी; अंति: (-). ३०४६१. (+) जिनचंद्रसूरि विनती, संपूर्ण, वि. १८५७, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२१४११, १५४३८). जिनचंद्रसूरि विनती, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८५७, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंति: जिनचंद्रसूरीश्वरान्. ३०४६२. (#) बत्तीसबोलनो परव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, २९x१९-२४). चतुर्विधसंघ ३२ बोल, मा.गु., गद्य, वि. १६७१, आदि: आचार्य श्रीरत्नसीहजी; अंति: श्रावक० संभारवा सही, सूत्र-३२. ३०४६३. वृधशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१४११.५, १३४३३). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ३०४६४. दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२१.५४११.५, १३४३४). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ. गाथा-४०. ३०४६५. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२२.५४११, १५४३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ३०४६६. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११, १२४२९). १. पे. नाम. संवररूपीवृक्ष वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: संवर रूपीउ वृक्ष्य; अंति: परम अतुल सुख पामे. २.पे. नाम. विचार संग्रह ,पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०४६७. (4) पद्मावती छंद व गुरु पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र लम्बा होने से इसे मोडा गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (६४४१२.५, ७१४२५). १.पे. नाम. पद्वावती छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी छंद, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सगती सदा सानिध करो; अंति: कल्याणनै जयकारणी, गाथा-२५. २. पे. नाम. गुरु पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भुधर, पुहि., पद्य, आदि: अब पुरी कर नींदडी; अंति: भुधर० गुरु सरण सहाई, गाथा-४. ३०४६८. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३४). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: करेमिभंते सामाइयं; अंति: लाख जीवा जोन जाणवी. For Private And Personal use only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०४६९. (०) सज्झाच, श्लोक संग्रह व ग्रंथसूचि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २१.५८.५, १३X३५). १. पे. नाम. नमस्कारमंत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंग; अंति: जास अपार री माई, गाथा- ९. २. पे. नाम श्लोक संग्रह, पू. १अ संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. ग्रंथसूचि, पृ. १आ, संपूर्ण. ग्रंथटिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: व्याकरणना पाना १३२; अंति: (-). ३०४७१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २१.५X१०.५, १३×३१). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: जगपति तारक श्रीजिनदे; अंति: भगवंत भावशुं भेटीयो, गाथा-५. २. पे. नाम. सेत्रुंजय स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवस्ये; अंति: चाहै नित जिणंद, गाथा- ७. ३०४७३. प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २४.५X११.५, १०X३३). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उग्गए सुरे नमुकारसिय; अंति: महत्तरागारेणं वोसरे. ३०४७४. शांतनाथ छंद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे. (२१.५x११.५ १८x४६). , शांतिजिन छंद, क्र. रुगनाथ, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: श्रीशांति जीनेशरना, अंति: बोधबीज साचा तुम देव, गाथा-१६. "" " ३०४७५ (+) शनीचर छंद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैदे. (२१.५४१२, १५४१८). शनिवर स्तोत्र, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति, अंतिः तु सुप्रसन्न शनिस्वर, गाथा- १२. ३०४७६. (#) नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., । १९५२६). (२२.५X११, नेमराजिमती सज्झाय, ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी कहै, अंति: प्रीत करै जी के जी, गाथा-१३. ३०४७७. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४)=१, कुल पे. ३, जैदे. (२२.५x११, २०x४१). १. पे. नाम, वैराग्यपरि स्वाध्याय, पृ. ५अ. संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. गुणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीति न कीजै रे सही; अंतिः धन धन तेह सुजाण, गाथा-९. २. पे. नाम, सीता सज्झाच. पू. ५२-५आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाव, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो पिउ छोडि, अंतिः प्रणमुं भाव रिदय धरी, गाथा- १०. ३. पे. नाम. नागीला भवदेव सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाई घर आवीया, अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा - १७. " ३०४७८. पार्श्वजिन व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जै. (२३.५x१०.५, १३४३२). १. पे. नाम. संखेसरा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन अंतिः जिणचंद करमरीपू जपतो, गाथा-५. २. पे. नाम. उदीयापुर शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन- उदयपुर, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सीतलजिन सहज सुरंगा अंति: गुणसागर गुण गाया रे, गाथा-८. For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०४७९. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. चतुरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १०-१५४२२-३५). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १५अ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नणंदल हे नणदल सीधारथ; अंति: प्रीत० गुण गाय नणदल, गाथा-१३. २.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंभवस्वामी अंतर; अंति: सकल प्रकारनी रेख, गाथा-५. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर करजो मया मुझ; अंति: कहे मत मुको वीसार, गाथा-७. ४. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे संभव; अंति: सुखे हेला ते तरे, गाथा-८. ३०४८०.(+) लघुशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४१०,१०४३८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (१)सूरिः श्रीमानदेवश्च, (२)जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१७+२. ३०४८३. स्तवन, सज्झाय व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. पाली, प्रले.सा. मनांजी (गुरु सा. फुलाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १८४४६). १.पे. नाम. १६ जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: ऋषभ अजित संभवस्वामी; अंति: कीयां भवसागर तीरणा, गाथा-१२. २. पे. नाम. जैन गाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७, (वि. किसी मा.गु. भाषावाली कृति से चुनी गयी गाथाओं का संग्रह.) ३. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांलि ओढी; अंति: प्रसन्न सदा पद्मावती, गाथा-७. ३०४८४. जिनभक्ति पद, चक्र विचार, श्लोक संग्रह व औषध, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. वाघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८०५) कर कंपे लेखन डरत, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३४). १.पे. नाम. जिनभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. इसी पद को दूसरी बार लिखा गया है. साधारणजिन पद, मु. सुरेंद्रकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: मेरो नेह लग्यो जिन; अंति: पूरणपद कै काजसुं, पद-५. २.पे. नाम. चक्र विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १० चक्र विचार हो, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम चक्र धनवंत; अंति: चक्र सो पंडित कहिये, गाथा-१. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक सुभाषित, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, सं., पद्य, आदि: वृक्षं क्षीणफलं त्यज; अंति: नो कस्य को वल्लभाः. ४. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०४८५. सझाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १३४५०). १.पे. नाम. द्रौपदीसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८३०, चैत्र शुक्ल, ३, सोमवार, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. मु. लालजी ऋषि; पठ. मु. कुयरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आव्या नारद मुनिवर; अंति: भावे वीनव्या रे लो, गाथा-१०. २.पे. नाम. जैन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८३०, चैत्र शुक्ल, २, प्रले. मु. कर्मसीव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०४८६. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१०.५, १३४२८-३८). For Private And Personal use only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. रायचंद ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १८४२, आदि: हरीया रंग भरीया हो; अंति: हीयडे हर्ष हुलास, गाथा-१३. ३०४८८.(+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७४, वैशाख कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पावा, प्रले. श्राव.खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११.५, १०४३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ३०४८९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११, १८४३१). १.पे. नाम. कमलावतीरानी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. तालनगर. कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं., पद्य, आदि: मैहलां मै बैठी राणी; अंति: मिच्छामिदुक्कडं मोय, गाथा-३१. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: मारे पेरण लजीया चीर; अंति: सींघासणरो वेसणो. ३.पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: कृष्णना पिता माता; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३०४९०. सनत्कुमार प्रबंध व सामायिक ३२ दोष सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १६४३८). १.पे. नाम. सनत्कुमार प्रबंध, पृ. १अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध, प्रा., गद्य, आदि: सणंकुमारेणं भंते; अंति: मंतं करेति सिव भंते. २. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंति: श्रीकमलविजय गुरु शीष, गाथा-१३. ३०४९१. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२२.५४११.५, १०४२७). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. ३०४९२. स्तोत्र व गीत, संपूर्ण, वि. १८०४, वैशाख कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कोटडी, प्रले. ग. धैर्यसागर; पठ. मु. कमलापति ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १३४३९). १.पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जगजयो रवि; अंति: वली वली एम वखाणीए, गाथा-१६. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही राउ; अंति: सेवे बे कर जोडी रे, गाथा-५. ३०४९३. पद्मावती आराधना व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, २०४५६). १. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: जीम राणि पदमावति रास; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३४ तक है.) २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा संग्रह, मा.गु.,प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०४९४. अतिचार आलोचना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५४१०.५, १२४३६). अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजूणा चौपुहरा दिवस; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३०४९५. (#) संखेसर पार्श्वनाथनो सलोको, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२३.५४११.५, १२४३७). पार्श्वजिन सलोको-शंखेश्वर, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सरसती प्रणमु; अंति: देवविजय मंगलिक थाइ, गाथा-४२. For Private And Personal use only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०४९६, (+) नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३४११, १x२९). नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८ आदि सहु नरनारी मली आवो अंतिः पायो विनीतसागर मुदा, गाथा- ७. ३०४९७. नवकार मंत्र व उवसग्गहरं स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे २, जैदे. (२४.५४१२, ९३२). " १. पे. नाम. नवकार मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद- ९. २. पे. नाम. उवसग्गाहर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं पासं, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ३०४९८. डंडणऋषि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११-१० (१ से १०) १, प्रले. चंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२२x१०.५, ७X२५). ढणऋषि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, रा., पद्य, आदि: दंदणरिष जिनवंदना हुस; अंतिः रीषजीने वंदना हुवारी, गाथा-९, संपूर्ण. ३०४९९. अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २४४१०.५, ९३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन- अष्टापदतीर्थ, ग. भाणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीअष्टापद ऊपरे जाण; अंत: फले सपली आश के, गाथा- २३. ३०५०० (+) पुण्योपरि गुणावली वार्त्ता संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२४४१०.५, २१४५५). गुणावली कथा - पुण्योपरि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: अस्मिन् जंबूद्वीपे; अंति: सासता सुख पामिस ३०५०१. (+) सबीजमंत्रक चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४.५४१०.५, १३४४६). " चंद्रप्रभजिन स्तोत्र-सवीजमंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद, अंतिः नाशिनी नियतम्, ३०५०२. आर्यवसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८०६, कार्तिक कृष्ण, १३ अधिकतिथि, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल . सिरोही, प्र. वि. श्री जीरावला पार्श्वनाथ प्रसादात्., प्र. ले. श्री. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैवे. (२४.५४११.५, १७४४०). , वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयवैन्यस्य अंति: मभ्यनंदन्निति ३०५०३. भेरुजीरौ छंद, कवित्त व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८४०, आश्विन कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. नथुसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५X१०.५, १२४२९). " १. पे नाम, भैरुजी छंद. पू. १अ २अ, संपूर्ण. भैरव छंद, सा. सुखा, मा.गु., पद्य, आदि: सुंडालो नित समरीयै; अंति: मोटा खामंद माहरा, गाथा-१८. २. पे. नाम. कवित्त संग्रह. पू. २आ, संपूर्ण. ३. पे. नाम. शीतलामाता मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. कवित संग्रह * पुहिं, मा.गु., रा., पद्य, आदिः आसराज पोरवार त कर अंतिः हुआ संवत वारैव चोतरे, गाथा-१. 1 . यंत्र-मंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४९ For Private And Personal Use Only ३०५०४. आचार्यवसुधारा धारणी, संपूर्ण वि. १८५१, कार्तिक कृष्ण १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, धामली, प्र. मु. खुश्यालहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२४.५४११, १६४३९-४९). " वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य, अंति: मभ्यनंदन्निति. ३०५०५. शीतलजिन व नेमराजुल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. भूपतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४१०.५, १२४३६). १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दिनकरसागर, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीशीतलजिन सुखकर अंतिः पंकज नमे निसदीस, गाथा ५. २. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, ऋ. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि: जोवनवेस में झीलतो; अंति: चोथमल गुण गाया रे, गाथा - १२. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०५०६. आदिजिन स्तवन व पार्श्वजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल गढमंडणो; अंति: जयकार हो, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. परमभाण, पुहि., पद्य, आदि: पासजी रे जीउ जान तुम; अंति: तो मेरी साची बनेगी, गाथा-४. ३०५०७. नेमनाथ रास, संपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. ललितसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १७X४२). नेमजिन रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: पुन्यरतन० जिणंदकै, गाथा-६५. ३०५०८. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२४.५४११, १३४३७). १. पे. नाम. नेमनाथजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तवन, मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: द्वारापुरी नगरी कै; अंति: वांदे नित पाया हो, गाथा-७. २.पे. नाम. नेमजी पद, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८५६, आषाढ़ शुक्ल, ४, शनिवार, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. तुलसीदास ऋषि; पठ. मु. ऋषभदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन पद, रा., पद्य, आदि: म्हानै प्यारो लागै; अंति: चरणकमल अरिविंद, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मालदास, पुहि., पद्य, आदि: भलै मुख देख्यौ; अंति: भव भव हुंप्रभु तेरो, गाथा-३. ४. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: मो मन वीर सुहावै; अंति: भुवनकीरत गुण गावे, गाथा-५. ५. पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: मुख नीको शीतलनाथ कौ; अंति: हुं सेवक जिनजी को, गाथा-५. ६. पे. नाम. पारसजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: नित नमीयै पारसनाथजी; अंति: रमसी एह अनाथा नाथजी, गाथा-५. ७. पे. नाम. सुबुधिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सुविधिजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गुण अनंत अपार प्रभु; अंति: स्वामी तुमारो आधार, गाथा-३. ३०५०९. सप्तनय विचार सह अर्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अंतिम एवंभूतनय विवरण अनुपलब्ध है., जैदे., (२३.५४११,११४३५). अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरुप, प्रा., गद्य, आदि: से किं तं नए सत्तमूल; अंति: (-). अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरुप का विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: तत्थ कहिता सातनय; अंति: (-). ३०५१०. दीख्यापचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३८-४१). दीक्षापच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: तीजा अंगने ठाणे तीसर; अंति: जोडी जुगते सुंढाल, गाथा-२५. ३०५११. (#) ज्ञानपचीसी, संपूर्ण, वि. १८३८, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १३४३४). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जगजोनि; अंति: आपको उदे करण के हेतु, गाथा-२५. ३०५१२.(+) शारदामाता छंद संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १६x४१). १. पे. नाम. शारदामाता छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पठ. मु. हेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private And Personal use only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org ५१ सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: आस्या फलस्यै माहरी, गाथा - ३५. २. पे नाम. शारदामाता छंद, पृ. २अ-३आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदिः सकलसिद्धिदातार, अंति: (-), (पू.वि. अंतिम प्रशस्तिगाथा अपूर्ण तक है.) ३०५१३. चितबर्मदत्त सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४४१०.५, १२X३६). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त कहे ब्रह्मराव अंतिः कहे सिववेगी वरसी हो, गाथा- १७. ३०५१४. पंचमी लघुस्तवन, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. ग. उदयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ज्ञानपंचमी उत्सव के अवसर पर यह प्रत लिखी गयी., जैदे., ( २४.५X११, ७३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी तप तुम्हे करो; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा- ५. ३०५१५. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २-१ (१)=१, कुल पे. ३, जैदे. (२४४१०, ११४४६). १. पे. नाम चतुर्विंशतिजिनगणधरसाधुसाध्वीसंख्या वृद्धस्तवन, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन स्तवनवृद्ध गणधर साधु-साध्वी संख्यामय, मु. धरमसी, मा.गु, पद्य, वि. १७५३, आदि: (-); अंति ध्याईये धर्मदेव ए. गाथा- १९. (पू. वि. प्रारंभ से गाथा १६ तक नहीं है.) २. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनप्रतिमा हो जिन, अंति: जिनप्रतिमासं नेह गाथा - ७. ३. .पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८७१, आदि: सुगुण सहेजा सांभलो अंतिः श्रीजिनभक्तिसुरंद, गाथा १२. ३०५१७. नमिऊण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५x११, १२४३६-३८). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणवसुरगण, अंतिः सबल भुवणच्चित्र चलणो, गाथा-२१. ३०५१८. लेखनी विचार व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. ले. श्लो. (८०६) स्वस्तिहीन रजोहीन, जै.., (२४.५X११, १४X३१). १. पे. नाम. लेखनी विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. लेखनी शुभाशुभ विचार, सं., पद्य, आदि: पंचसप्तनवमांशात्, अंतिः धनधान्य समागमः, श्लोक-२७. , २. पे. नाम औपदेशिक गाथासंग्रह, पृ. १अ. संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३०५१९. ग्यानपचीसी व शारदाष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, १७४७). १. पे. नाम ग्यानपचीसी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. 3 ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं, पद्य वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि अंतिः वनारसी० कर्म कइ हेतु, गाथा - २५. २. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल रुप भगवान, अंति: सुख तजे संसार कलेस, गाथा - १०. ३०५२०. (+#) पद्मावती आराधना व शनीश्वर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. *पत्र अबरख युक्त है., पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०.५, १२-१६४५२). १. पे. नाम. आलोचना, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण, ले. स्थल. कालू, प्रले. मु. माधा ऋषि (नागोरीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७बी, आदि: हिव राणी पदमावती, अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, डाल-३, गाथा-६८, (वि. समीप - समीप में गाथांक दिया गया है. प्रायः अन्य प्रतों में मूल गाथांक ३६ के आस-पास ही मिलते हैं.) For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. शनीश्वर स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८२८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, ले. स्थल. बांता, प्रले. मु. गुलालविजय, पठ. मु. माधोचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. श्रीपार्श्वजिन प्रसादात्, शनिग्रह स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा, अंतिः वृद्धिं जयं कुरु श्लोक-११. ', ३०५२२. दशवेकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे., (२५x१०, १०-१७४३४-४९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे, अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन - ३ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ३०५२३. स्तवन व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे, २, जैदे. (२४४१०, १०x२९). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. शत्रुंजयगीरनारतीर्थ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. शत्रुंजयगिरनारतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: पंथी कहोने संदेसडो; अंति: कनक० आवागमन निवार, गाथा-८. २. पे. नाम. अजयपाल के उपर प्रयुक्त किया गया मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. अजयपाल के ऊपर प्रयुक्त ज्वर मंत्र, रा., गद्य, आदिः ॐ नमो गढअजमेर वसै; अंति: अजैपाल०माथै चक्र पडै. ३०५२५. गुरुमहिमा पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. सोजत, प्रले. सा. चंपा, पठ. सा. मानाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४१०.५, ९४३६). गुरुमहिमा पद, मु. गोरधन ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि आप तीर अवैरां कुं, अंतिः ले जाये मुगत हजुरा, गाधा ८. ३०५२६. सिद्धरा भेद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है, जै, (२२.५x१०, ११५२७). सिद्ध भेद विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रवेशी, अंति: (-). ३०५२७. तप संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X११, ४०X१०-१७). तप संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. ४ तप.) ३०५२८. नेमिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२३.५x११, १३४३३). १. पे. नाम, नेमजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी चालो तो तुमने, अंति: रुपविजय जय जयकार जो, गाथा - १२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आगमसागर, रा., पद्य, आदि: मे थन गाहिडरा हो गाढ; अंति: आगमसागर० करे परणाम. ३०५३० (+) रिषभदेव लावणी, संपूर्ण वि. १८७४ श्रावण अधिकमास कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, सरीयारी, प्रले. मु. राजा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४X१०.५, १३X२८). आदिजिन लावणी, पुहिं., पद्य, वि. १८६०, आदि: सरसती माता सुमति की; अंति: सलूंबरमा प्यारे, गाथा - २५. ३०५३१. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, कुल पे ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे... (२५X११.५, १६x४८). १. पे. नाम. राजिमतीसती सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा- १४ तक नहीं है. मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: (-); अंति: श्रावक आग्रह करीजी, गाथा- १८. २. पे. नाम. धनासालिभद्र सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. शालिभद्रधन्ना सज्झाय, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: अजीया धनासालिभद्र, अंति: पाम्या भवजल पार रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. पनर तीथी, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन- १५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुख कमले राजे; अंति: कहे कृष्णविजयनो वास, गाथा- २३. ४. पे नाम, नेमराजूल सजाव, पृ. ३आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है, गाथा ९ अपूर्ण तक है. मराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कांइ रिसाणो हो नेम, अंति: (-). ३०५३२. प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे. (२३४१०.५, २४४५५), "" For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहै पूर मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ अष्टमी स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. अग्यारसतिथि स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मात्र प्रथम गाथा ही है. नेमिजिन स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: (-). ३०५३३. सुभाषित व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १५४३८). १.पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., गाथा-१४ से २४ तक है. सुभाषित संग्रह-, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२आ, संपूर्ण.. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू अनुभव कलिका; अंति: जगावै अलख कहावे सोई, गाथा-४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: साधो भाई समता रंग; अंति: हित कर कंठ लगाई, गाथा-४. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: हम बैठे अपने मौन; अंति: संगति सुरझै आवागमनसौ, गाथा-४. ३०५३४. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १५९८, आषाढ़ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. विजयराज (गुरु उपा. देवतिलक, खरतरगच्छ); पठ. ग. रत्ननिधि, राज्ये गच्छाधिपति जिनमाणिक्यसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मन आणंदै संथुवा, गाथा-८८. ३०५३५. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १३४४१). १. पे. नाम. संथारा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सूखी करे संथारो धन; अंति: लागो अति प्यारो, गाथा-१४. २. पे. नाम. साधु आचार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-१४ अपूर्ण तक है. रा., पद्य, आदि: उलखणा दोरी भव जीवा; अंति: (-). ३०५३७. (+) पून्य कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, ८x२९). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्त; अंति: पभूय पून्नेहिं, गाथा-१०. ३०५३८. (#) मृगापुत्र सज्झाय, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैदे., (२३.५४१०, १२४३५). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीव नयर सुहामणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक ३०५३९. (#) मरीचि चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४४८). मरीचि चरित्र, सं., गद्य, आदि: च्युत्वा ऋषभदेवस्य; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३०५४०. इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, ९४३२). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नामे एलापूत्र जाणीइं; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ३०५४१. दोधक बावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, २०४५६). For Private And Personal use only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अक्षरबावनी, मु. जसराजजी; मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, वि. १७३८, आदि: ॐ यह अक्षर सार हे; अंति: पूरन करी कृता गाढ, गाथा-५४. ३०५४२. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४६४). १.पे. नाम. कल्पवृक्षबंध वर्द्धमान स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-कल्पवृक्षबंध, मु. भुवनतिलक, सं., पद्य, आदि: परब्रह्मरूपं तमस्ताप; अंति: फलमेतु कैवल्यराज्यं, श्लोक-९. २. पे. नाम. क्याराबंध गतप्रत्यागत श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण.. गतप्रत्यागत श्लोक-क्याराबंध, सं., पद्य, आदि: विदितो यशसासार नमाया; अंति: रसासाशयतो दिवि, श्लोक-१. ३. पे. नाम. ६०पांखडीकमलबंध दिलदारखान वर्णन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दिलदारखान वर्णन-६० पांखडी कमलबंध, सं., पद्य, आदि: कलतारलपंकृतदानमदं गज; अंति: ___ मघवाजंतुनाकीशितारं, श्लोक-१४. ३०५४३. (+) ऋषिमंडलयंत्र पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४४२-४५). ऋषिमंडल स्तोत्र पूजाविधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीश; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___अपूर्ण., अक्षीणमहानसी पूजा अपूर्ण तक है.) ३०५४४. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७२५, आश्विन शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, पठ. श्रावि. रहीया बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ११४३६). १.पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रथम गाथा अपूर्ण से है. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: दिओसमता रस पारणा, गाथा-५. २.पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु जिन; अंति: टालि मुज भवफंदरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: में कीनो नहीं तुम; अंति: लीजें भक्ति पराग, गाथा-५. ३०५४५. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १३४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला-महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति: लभेत् ध्रुवम्, श्लोक-१४. २. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. १आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., पद्य, आदि: गब्भ अवयारि सोहम्म; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम गाथा नहीं है.) ३०५४७. नक्षत्रफल विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२, ९x४०). १.पे. नाम. अष्टाविंशतिनक्षत्र फल, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सूर्यप्रज्ञप्ति-२८ नक्षत्र शुभाशुभफल विचार, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: अश्वनी अर्थनी; अंति: हर्ष परमसंतोष उपजे. २. पे. नाम. नक्षत्रफल विचार-समवयांगसूत्रानुसार, पृ. ३आ, संपूर्ण. नक्षत्रफल विचार-समवायांगसूत्रानुसार, मा.गु., गद्य, आदि: अथ समवायांगे नक्षत्र; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३०५४८. (+) पुरुसादाणी पार्श्वजिन स्तवन-दसभव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११, १५४४२). पार्श्वजिन १० भव स्तवन-पुरिसादानी, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुशल संपत्त करा; अंति: दीक्ष्या लीये हो लाल, ढाल-३. For Private And Personal use only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०५४९. (+) नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७१, वैशाख शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खोड, प्रले. मु. दानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १२४२५). नेमराजिमती सज्झाय, ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी कहै; अंति: प्रीत करै जी के जी, गाथा-८. ३०५५०. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, गु., (२४४११.५, १७४१६). १.पे. नाम. पंचकल्याणक पूजाढाल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हवे शक्र सुघोषा बजाव; अंति: शुभवीरविजय जयकार, गाथा-१३. २. पे. नाम. दीपाली स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: गावो गीत वधावो गरुने; अंति: सुधरमा अणगार रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पंचकल्याणक पूजाढाल, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मात्र प्रथम गाथा है. पार्श्वजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रूडोमास वसंत फली; अंति: (-). ३०५५१. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३३). औपदेशिक सज्झाय, मु. भाणविजय, पुहि., पद्य, आदि: मन वशि कीजइ मन वशि; अंति: तिनका सुरनर बंदाबे, गाथा-९. ३०५५२. सोलसती स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १६४४३). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: लेसे सुख संपदा ए, गाथा-१७. ३०५५३. (+) कालसत्तरी सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. प्रारंभ से गाथा २४ तक नहीं है., प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४४६). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: कालसरूवं किमवि भणिय, गाथा-७४. कालसप्ततिका-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०५५४. धना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ७४२९). धन्नाअणगार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरवचन सुणि करी धना; अंति: विघन न व्यापेरे कोय, गाथा-१२. ३०५५५. स्तवन, मांगलिक व पूजा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५, १८४३६). १. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पू.वि. पत्र का ऊपरी भाग फटा हुआ है. २४ जिन स्तवन, मु. मोतीराम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ अजित संभव; अंति: कर जोडी मोतीराम० पाय, गाथा-६. २. पे. नाम. मंगलीक सरणा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: प्रह उठीने समरीजे हो; अंति: चोथमल० एसरणा तत सार, गाथा-११. ३. पे. नाम. क्षेत्रपाल पूजा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सोभाचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जैन को उद्योत भैरु; अंति: गावे गीत भेरुलाल को, गाथा-११. ३०५५६. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०८, फाल्गुन कृष्ण, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. श्राव. परसोत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपलवीयाजी प्रसादात्., जैदे., (२२.५४११, १०४३०). सीमंधरजिन स्तवन, मु. संतोषी, मा.गु., पद्य, आदि: सूण सूण सरसती भगवती; अंति: पुरव पुन्ये पायो रे, ढाल-७, गाथा-४०. ३०५५८. पौषधविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, ११४३२). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरिआवहि; अंति: त्रीकाल देव वंदवा. ३०५५९. स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १३४४५). For Private And Personal use only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. आदिजिन विवाहलो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, प्रले. मु. रामचंद ऋषि (लोंकागछ); पठ. मु. खुस्यालचंद ऋषि (गुरु मु. रामचंद ऋषि, लोंकागछ), प्र.ले.पु. सामान्य. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: आदि धरम जिणे ऊधर्यो; अंति: मुगतनार नर तेजे वरतो, गाथा-७२. २.पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रांमत रमवा हगइ; अंति: सफल फल्यो अवतार रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. जैन गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३०५६०. सामाचारी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४३७). सामाचारीप्रकरण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: आयारमयं वीरं वंदिय; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३०५६१. अणगछ अधिकार, संपूर्ण, वि. १८४४, कार्तिक शुक्ल, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मुंजा, प्रले. श्राव. यगरूप अमरचंद सा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १३४४३). __ अणगस गीत, मु. माणिक, रा., पद्य, आदि: ऊंघतजी आधी रात री; अंति: करज्यो वारोवार, गाथा-२०. ३०५६२. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक नहीं है.) ३०५६३. अरणिकमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, १५४३६). अरणिकमुनि चौपाई, मु. नयप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: पारसनाथ पसाउथी पामी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३०५६४. वैराग्यबोल सज्झाय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, ९४३८). वैराग्यबोल सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, आदि: बाई हे मि कउतिगदीठ; अंति: सुख सखीउ किम हूउ हे, गाथा-२३. वैराग्यबोल सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: समकित विना जीव मोक्ष; अंति: वण सुखउ सुखी हूउ. ३०५६५. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५). सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुध विमल करणी विविध; अंति: देवी नित नमेवी जगपती, गाथा-९. ३०५६६. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५,११४३२). १.पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: उजवालडी बीजै चंदा तु; अंति: अहिनिश वीस जिणंद, गाथा-४. २.पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुविधिनाथ जिन जनम; अंति: जेह तेहने सुखकरणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, पूर्ण, पू.वि. अतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ३०५६७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१०, १४४२७). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९०१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, शनिवार, ले.स्थल. भावनगर बिंदर. मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा-१४. २. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बेकर जोडी वीनवुरे; अंति: समविषमी जिनराज रे, गाथा-५. ३०५६८. तप संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, ४०x१०-१५). तप संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३०५६९. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १४४३२). १.पे. नाम. असमाधिना स्थानक, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २० असमाधिस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उतावलु चालिवउ; अंति: विषइ प्रमाद नो करवो, कडी-२०. २. पे. नाम. एकवीस सबला नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २१ सबला नाम, मा.गु., गद्य, आदि: हस्तकर्म१ मैथुनकर्म२; अंति: लेवो तथा आहारिवउ, सूत्र-२१. ३०५७०. परनारी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. जीवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८०७) तादृशं कथितं त्वया, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३५). औपदेशिक सज्झाय-शीयलविषे, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ए तो नारि रे बारि छइ; अंति: जगमाहि जयकरा, गाथा-४. ३०५७१. प्रियंकरनृप कथा-उवसग्गहर स्तोत्र प्रभावे, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १६x४०). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की प्रियंकरनृप कथा, म. जिनसूर मुनि, प्रा.,सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: वंशाब्जश्रीकरोहंसो; अंति: (-). ३०५७३. नमिराय व वीर थुई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३३). १.पे. नाम. नमि प्रव्रज्या अध्ययन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ९, हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइऊण देवलोगाओ उवयन्न; अंति: जहा से नमी रासरिसि, गाथा-६२. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-८ अपूर्ण तक है. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: (-). ३०५७४. शक्रस्तव की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५,१५४४०). शक्रस्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते परमात्म; अंति: (-). ३०५७५. भास व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४११.५, ३९५२४). १.पे. नाम. जिनलाभसूरि भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: आज वधाऊडौ आवीयो; अंति: राजनै० आसीस हौ राज, गाथा-१३. २. पे. नाम. जिनलाभसूरि भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___उपा. नैणसी पाठक, पुहिं., पद्य, आदि: पुज्य पधार्या पुरि; अंति: अधिकै मन आणंदै है, गाथा-१३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणापुर राजीया; अंति: जिनभक्ति० मनोरथ माल, गाथा-७. ४. पे. नाम. पुरीसादाणी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरीसादाणी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: परता पूरण पासजिणेसर; अंति: सेवक जाण कृपा करौ, गाथा-४. ५.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: आज सकल मंगल मिलै आज; अंति: अनुभव रस माने, गाथा-५. ३०५७६. यंत्र, मंत्रप्रयोग व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १३४१९). १. पे. नाम. चौदराजलोक चित्र, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ राजलोक विवरण यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. मंत्र प्रयोग, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३०५७७. सज्झाय, स्तवन व तीर्थंकर बल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १५४३७). १.पे. नाम. रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: पुरष पाप सुणो मन; अंति: माणस कोणने पंखी कुणी, गाथा-६. २. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी सुवधी जीणेसर; अंति: के दरसण दीजीये रे लो, गाथा-५. ३. पे. नाम. तीर्थंकरबल विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. जिनबल विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सुण वीरज बल विसाल; अंति: (-). ३०५७८. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०, १६x४७). १.पे. नाम. नीलकंठ पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन स्तोत्र-नीलकंठ, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लक्खीलाहं परमरम्म, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. गौतम अष्टक, पृ. ३अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तव, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत; अंति: लभंते सुतरां क्रमेण, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. अन्नपूर्णा स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: नित्यानंदकरी पराभयकर; अंति: मातान्नपूर्णेश्वरी, श्लोक-५. ३०५८०. पचक्खाणसूत्र व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, २२४२७). १.पे. नाम. पचक्खाण संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सुरे नमुक्कारस; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि. २.पे. नाम. लघुशांति स्तव, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनंजयति शासनम्, श्लोक-१७+२. ३०५८२. चिंतामणी पार्श्वनाथ स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८६३, हुतवहदर्शनसिद्धभू, आश्विन शुक्ल, ५ अधिकतिथि, बुधवार, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, ले.स्थल. बिकानेर, जैदे., (२५४११, ११४३५). पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-६, संपूर्ण. ३०५८४. गहुँली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४७). १.पे. नाम. सोहमस्वामि गोयली, पृ. १अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहंली, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यान; अंति: साद गोहली गीत भणेरी, गाथा-७. २. पे. नाम. सुधर्मास्वामि घुयली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: चेलणा ल्यावें घुयली; अंति: श्रीजिनशासन रीति, गाथा-७. ३. पे. नाम. षट्त्रीसीकागर्भित गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहंली, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानादिक गुणखाणि; अंति: गावें जिनशासन घणी, गाथा-९. ४. पे. नाम. गौतमस्वामी गुहयली, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गहुली, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही रलियामणि जिह; अंति: सुहावो गुहुयली रे, गाथा-६. ३०५८६. जिनविज्ञप्तिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, ४७४२२-२५). जिनविज्ञप्तिका, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रियं यत्पद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २३ तक ३०५८७. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १९x४२-४५). विचार संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. यति के ६५ अतिचार, अजीव भेद, मंत्रजप व विधि आदि.) ३०५८८. सज्झाय, स्तवन व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, ११४३७). १.पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय नृप नंदन; अंति: जय नेमिजिनेश्वर धीर, गाथा-१०. For Private And Personal use only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २. पे. नाम. सीता गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. सीतासती गीत-शियलविषे, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर वाणी हीइडलइ; अंति: संयोग मलीया रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. विंछी मंत्रप्रयोग, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र के ऊपरी भाग में लिखा है. मंत्र प्रयोग, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०५८९. जिन आंतरां, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १६x४३). २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर २४; अंति: सहस्र ऊणां जाणवां. ३०५९०. गहुंली व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४११, ११४३८). १. पे. नाम. गुरूगुण गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आगम वयण सुधारस पीजे; अंति: सकल मंगल घरि लावेरे, गाथा-५. २. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ चंद्रानन वंदन; अंति: पद्मविजय नमे पायाजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. शाश्वतअशाश्वतजिन नमस्कार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. शाश्वताअशाश्वताजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कोडी सातने लाख बहोतर; अंति: जो प्रभू अट्ठीमीजें, गाथा-१३. ४. पे. नाम. गोडी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: उपसमना बाजारमा रे; अंति: तारें नाम नवनीधी थाय, गाथा-५. ३०५९३. जीवपर्याप्ति विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, १६४४८). जीवपर्याप्ति विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (१)जीव गइंदियकाए जोगे, (२)जीव जीवपणै सर्वकाल; अंति: असंख्यातमो भाग. ३०५९५. माणिभद्रजी को छंद, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रावण अधिकमास कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्राव. धनरूपमल छाजड, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ९४२८). माणिभद्रवीर छंद, पं. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: लाख लक्ष रीजा लहै. ३०५९६. दशार्णभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, २०४४०-४२). दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: समत सतरछ सछीइसी, ढाल-४. ३०५९७. विजयसेठविजयासेठाणी रास-शीलविषये, संपूर्ण, वि. १८४९, कार्तिक शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. चासटु, प्रले. मुली; पठ.सा. पनाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, २४४४५). विजयसेठविजयासेठाणी रास-शीलविषये, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६८६, आदि: ऋषभादिकरी जिण चोवीसी; अंति: रच्यो ए कृत धरि मुदा, ढाल-६. ३०५९८. (+#) बृहत्संग्रहणी सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७-३(१ से ३)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-७१ अपूर्ण से १६५ तक है., प्र.वि. प्रतिलेखक ने अवचूरि को टबार्थ शैली में लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ९४५४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-). बृहत्संग्रहणी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०५९९. (+) चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., (२४४१०.५, १२४३७). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ३०६०४. सझाय व घातचंद्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३५). For Private And Personal use only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. चौदस्वप्न सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: राए सिद्धारथ घर पट; अंति: धन माता सुफलो भयो ए, गाथा-७. २.पे. नाम. पुरुषस्त्री घातचंद्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह*, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३०६०५. वीसथानिकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, १०४३९). २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं सरसति गुरु; अंति: कांति० सोहामणो रे लो, गाथा-८. ३०६०९. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर विहारी रे आतम; अंति: बलिहारी नाम तिहारी, गाथा-८. २. पे. नाम. जीवकाया गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रीउडो; अंति: नारी विनां सोभागी रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतमगुण जाण रे; अंति: ओर न तोहि छोडावणहार, गाथा-४. ३०६१०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ९४३६). औपदेशिक सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, पुहि., पद्य, आदि: मोहराय से लडीयारे; अंति: जिनै सै वातडीया रे, गाथा-२०. ३०६११. ज्योतिष श्लोक व स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८२, आषाढ़ कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले.ग. शांतिरत्न; पठ. ग. गुणनंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष संवत् १७८२ लिखा गया है, किन्तु लिखावट देखने से १९वीं शताब्दी की प्रति प्रतीत होती है., जैदे., (२५.५४११, ११४३३). १. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह*, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. पंचासरापार्श्वस्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पाटणमंडण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवकनी सुणी राव हो; अंति: खास उदयरतन कहे आसिरो, गाथा-९. ३०६१२. (+) महावीर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १९x४९). महावीरजिन स्तोत्र, मु. रूप, सं., पद्य, आदि: विबूधरंजकवीरककारको; अंति: रुपकेण प्रसिद्धा, श्लोक-७. महावीरजिन स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: लोके प्रसिद्धा. ३०६१३. (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, २३४५२). १.पे. नाम. आठ प्रवचनमातारा बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इर्यासमितिना ४ भेद; अंति: ते कायगुप्ति. २.पे. नाम. २५ प्रकार मिथ्यात्व विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मिथ्यात्व २५ भेद विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: अधमेधम सभा सिद्धांते; अंति: (-). ३०६१४. (+) आउरकालीआराधना पइन्नं सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १५४४६). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: अरहंता मंगलं मज्झ; अंति: सव्वं तिविहेण वोसिरे, गाथा-२८. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: माहरइ अरिहंतनाम ते; अंति: करी वोसिराविवउ. ३०६१५. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. दुरगू ऋषि; पठ. श्रावि. कसोबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४४६). १.पे. नाम. आठकर्म एकसोअडतालीसप्रकृति विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ८ कर्म १४८ प्रकृति विचार, मा.गु, गद्य, आदि: मूल प्रकृति ८ ज्ञाना अंतिः वीर्यातराय. २. पे. नाम. चौदगुणस्थान नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिध्यात्व गुणठाणो १: अंतिः सयोगी १३ अयोगी १४. ३. पे. नाम. बासठियागाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ६२ बोल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: गइ इंदिए काए जोए वेए, अंति: भवसम्मे सन्नि आहारे, गाथा - १. ४. पे. नाम. सर्वक्षेत्रे तीर्थंकरकेवली आदि की संख्या व गुणस्थानक विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०६१६. जीव रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. मांडवी बंदर, जैदे., ( २५.५X१२.५, १४X३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल ३, गाथा-३४. ३०६१७. (+) प्रत्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०६, आषाढ़ कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. फलोघी, प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., प्र.ले. श्लो. (८०८) पान पदार्थ नर, जैदे., ( २४.५x११.५, १३X३०). ६१ आवश्यकसूत्र- प्रत्याख्यानसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उग्गए सूरे नमोक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. ३०६१८. (#) दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १ से ३, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २४.५X११, १२X४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे, अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ से अध्ययन ३ की गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ३०६२०. (+) आहाकम्मउदेसीउ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५x११.५, ५x२७). गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मं १ उदेसिय; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा- ६. आधाकर्मींगोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः आधाकर्मी कहीय जतीन अंति हेतइ संजोगनइ मेले लड़ ३०६२२. (+) दानशीलतपभावना रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. नारदपुर, प्रले. पं. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१०.५, १३x४३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे, डाल-४, गाथा-१००. , " ३०६२३. स्तवनचोवीसी, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. जैदे. (२५.५४११.५, १५४४६). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमधुकर मोही रह्यो, अंति: (-), (पू.वि. चोवीसी का अंति नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). नवतत्त्व प्रकरण टवार्थ *, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०६२५. वाद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५X११.५, १९X३२-३६). महावीरजिन स्तवन नहीं है.) " ३०६२४ (१) नवतत्व सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-३(१ से ३) -४, पू. वि. बीच के पत्र हैं. गाथा १५ से २९ तक है.. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, ३X३३). २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणसुं वाद विवाद न; अंति: एकण ढालमें घाल्याजी, गाथा - २४, (वि. अधिक पाठ सहित ) For Private And Personal Use Only ३०६२६. (+) शत्रुंजय उद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-६ (२ से ७) = २, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ११×३१). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल, अंतिः (-), (पू.वि. गाथा १से ६ व १०३ से ११३ तक है.) Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०६२७. गोडीजी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१०.५,११४३४). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति द्यो मुझ; अंति: धवलद्धिग गोडी थुण्यो, गाथा-९. ३०६२८. प्रश्नोत्तररत्नमाला व स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १६x४६). १.पे. नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिनविनती स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, मु. उदयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदायक रे सुंदर गुण; अंति: (-), (पू.वि. पहली ढाल तक है.) ३०६२९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२३४११, १२x२३). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदय, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: जगपति तु तो देवाधि; अंति: भगवंत चोवीसमो भेटीया, गाथा-५. २. पे. नाम. विजयापद सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सवैया संग्रह , पुहि., पद्य, आदि: जबथे चपटी मुख में; अंति: बिन रंग तरंग किस्यो, सवैया-१. ३. पे. नाम. मातंगऋषि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मातंगसाधु सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनि रे मातंग महाऋषि; अंति: धरी गुण गयानोजी, गाथा-१२. ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: चाख्या चाहिये प्रेम; अंति: कुंबगसे जगदीश, गाथा-१. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर जगधणी रे; अंति: एम जपे बुध दान, गाथा-९. ३०६३०. सरस्वतीमाता छंद व माणिभद्रवीर आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १०४२५-३९). १. पे. नाम. सरस्वतीमाता छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २९ तक है.) २. पे. नाम. माणिभद्रवीर पद, पृ. २आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर आरती, श्यामसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: रिमझिम रिमझिम करु; अंति: हुज्यो मुझसीरनामी, गाथा-६. ३०६३१. (+) नवकार प्रधान, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, ९४३०). नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: उक्कोसो सज्झाउ चउदस; अंति: परमपदं तपि पावंति, गाथा-७. ३०६३२. (+) ढुंढणपचवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १०x१८-२१). ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी प्रणमी; अंति: पयंप हितकार अधिकार, गाथा-२५. ३०६३३. नेमिजिन रास व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, २१४७३). १. पे. नाम. नेमिजिन रास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. पृथ्वीराम ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: खेतर भरत मुजार रे; अंति: जोधपुर में गायो, ढाल-४. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सांवण विनवू; अंति: तिण कारण परणा नहीं, गाथा-९. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: फिकर अब लगी मेरा; अंति: पद दीजे प्रभु हमकुं, गाथा-४. ३०६३४. (+) ढुंढीया चर्चा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १९४४८). For Private And Personal use only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org ६३ ढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, पुष्टिं गद्य, आदि: पात्रो १ थापइ छइ अनइ, अंतिः (-) (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. आगमिक विविध साक्षिपाठ सहित ) ३०६३५. (+) काव्यव्याख्या दृष्टांत, स्थानांग चतुभंगी विचार व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैदे. (२५४११, २२-२३४५६). " " १. पे. नाम. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक सह कथा, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक, सं., पद्य, आदि: लज्जातो भयतो वितर्क, अंतिः तेषाममेवं फलम् श्लोक-१. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक-कथा, सं., पद्य, आदि: पितुर्मातुस्तथा; अंति: दृष्टांता ज्ञेयाः.. २. पे. नाम. स्थानांग चतुर्भगीगत विचार, पृ. १आ, संपूर्ण स्थानांगसूत्र- चतुर्भगी विचार, संबद्ध, प्रा. गद्य, आदिः चत्तारि कुंभा पन्न, अंतिः विसकुंभे विसपिहाणे. ३. पे नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह में, सं., पद्य, आदि: लोके को न वशं याति अंतिः वृद्धस्य तरुणी विषम्, श्लोक-२३. ३०६३६. जिन आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०.५, १४४४४). साधारणजिन आरती, श्राव. अमरदास, पुहिं., पद्य, आदि: जय जिणवरदेवा प्रभु; अंतिः वंछित निश्चय फल पावे, गाथा - १२. ३०६३७. आचारदिनकर, संपूर्ण, वि. १७६३, मध्यम, पृ. ४, जैदे., ( २६.५X११.५, १७५५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग, आदि: तत्त्वज्ञानमयो लोके; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पीठिकारूप अरुणोदय संपूर्ण एवं प्रथम उदय प्रारंभ मात्र है.) ३०६३८, (+) गहुली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५७, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे २, ले. स्थल, रानेर, प्रले. पंन्या. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत, जैदे. (२६५११, १४४४० ). १. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. "" मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मासे नवमे महावीर, अंतिः पोहोति निज आवासे, गाथा-८. " २. पे. नाम. सिद्धचक्र गहुंली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः हारे मोरे जिनआणा, अंतिः वात निदाननी रे लो, गाथा ५. , ३०६३९. (+०) चतुर्विंशति जिनांतरा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे.. (२४.५X११, १८४५४). २४ जिन अंतरा, मा.गु, गद्य, आदिः अहार कोडाकोडी सागरनै; अंतिः स्वामी सर्वगत थया. ३०६४०. (+#) वासपुज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५x११, ९४२२). वासुपूज्यजिन स्तवन, ग. क्षमाविजय, मा.गु, पद्य, आदि आवो मुझ मनमंदिरे, अंतिः खिमाविजय जिनगेह हो, गाथा - ६. 3 ३०६४१. अजितनाथ स्तवन व इलाचीकुमार सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, कुल पे. २, जैवे. (२७४११. १७X३२-३८). १. पे नाम. अजितनाथ सझाय, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण अजितजिन स्तवन क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरत मे, अंति: हुं प्रणमुं कृपानाथ, गाथा- ३५. २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. . मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्म, वि. १९वी आदि नाम इलापुत्र जाणीए अंतिः लब्धिविजय गुण गाय, गाथा ९. ३०६४२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २६.५X११, १४-२०x४३-५४). १. पे. नाम. स्त्रीदुर्गुणविषे सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्त्रीदुर्गुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नारी हार हाथी नजी; अंति: खण दाता खण सुमजी, गाथा-१४. २. पे. नाम. ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६४ www.kobatirth.org मु. रायचंद, रा., पद्य, वि. १८४३, आदि: रीखव राजा रे राणी दो अंतिः महिमामै कमी नहीं काइ, गाथा-२१. ३. पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अनेक गानोत कर उतम, अंति: मोख मारग फल पाया, गाथा-६. ३०६४३, (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२५.५X१०, १६X५५). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व, अंति: (-). ३०६४४. भणेनो अर्थ, अपूर्ण, वि. १८४०, श्रावण कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-६ (१ से ६) =२, ले. स्थल, जैतपुर, प्रले. मु. भीमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १६x४०). 1 भले का अर्थ- महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धार्थ राजाई; अंति: अर्थ सभा समक्ष कह्यो, संपूर्ण ३०६४६. स्तवन, सज्झाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७२-७१(१ से ७१) १. कुल पे. ५, जैवे. (२५४११, १८x४०). १. पे. नाम. इग्यारगणधर स्तवन, पृ. ७२अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. ११ गणधर स्तवन, मु. आसकरण, मा.गु. रा. पद्य वि. १८४३, आदि (-); अंति: चोमासो कीनो पीपाड, गाथा १२. (पू. वि. गाथा- ७ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम, उपदेशी स्तवन, पृ. ७२अ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्म, आदि: भुलो मन भमरा कांइ, अंतिः लेखो साहिब हाथ, गाथा- १२. ३. पे. नाम. कृष्ण पद, प्र. ७२अ संपूर्ण सुरदासजी, पुहिं, पद्म, आदि बन वेर्ण बंसी बाज रह; अंतिः सुरदास० की बलहारीया, गाथा-४. ४. पे. नाम. कृष्ण पद, पृ. ७२अ-७२आ, संपूर्ण. राम हजारी, पुहिं., पद्य, आदि: स्याम हमारो आंचल, अंति: मेरी लाज रखो बनवारीया, गाथा-४. ५. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ७२आ, संपूर्ण मु. दानविजय, पुहिं.रा., पद्य, आदि ठग लाग्यो तोरी लार, अंतिः कीस विध उतरोगे पार, गाथा ४. ३०६४९. सज्झाय, स्तवन व नमस्कार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७८९ पौष शुक्ल ५, श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( २ ) = १ कुल पे. ४. ले. स्थल, नवानगर, प्रले. पंन्या. हंसविजय (गुरु पंन्या. जयवंतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६११, १९९५०). १. पे. नाम. सोलसुपन सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. गाथा-९ तक नहीं है. " १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दृढ तेहज गुणनो गेहजी, गाथा - १४. २. पे. नाम ऋषभदेव स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तव, मु. जीवविजय, सं., पद्य, आदिः श्रीवृषभाख्य जिनं अंतिः संस्तुतं सुख० सद्यम्, गाधा ४. ३. पे नाम, चौवीसजिन नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण २४ जिन नमस्कार, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अविकल केवलनाण रयण; अंति: प्रभु नामि निसदिह, गाथा-५. ४. पे. नाम. वीसविहरमान नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन नमस्कार, मु. हित, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमुं प्रथम, अंतिः सदा जिन जंपे जयकार, गाथा- ३. ३०६५०. अजितजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, ९४३८). " अजितजिन स्तवन वा मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर चरणनी, अंति: हुवो मुज मन कामो, गाथा-७. ३०६५१. सिद्धाचलगिरि स्तव, संपूर्ण, वि. १९६०, गगनरसांकशशांक, आश्विन शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पु. २, For Private And Personal Use Only पठ. श्रावि. परसनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X११.५, ९-११४४८). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालोने जहए, अंतिः नेह घरी गिरिराजने रे, गाथा - १३. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०६५३. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२५.५४११, १८४५४). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. ज्ञानचंद, पुहि., पद्य, आदि: ऋषभदेव स्वामी हो काल; अंति: जे शिवसुखगामी हो, गाथा-३. २. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अजितजिन पद, मु. ज्ञानचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हो सुंदर अजित जिनेसर; अंति: दल मोडी परमाणंद पाऊं, गाथा-३. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. संभवजिन पद, मु. ज्ञानचंद, पुहि., पद्य, आदि: धन्य हो धन्य जिन; अंति: सदा स्वामी वाणी, गाथा-५. ४. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन पद, मु. ज्ञानचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अभिनंदन जिनरायजी हो; अंति: कोडनै पूरूं आपणारे, गाथा-३. ५. पे. नाम. सुमतिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सुमतिजिन द्यओ मुझ; अंति: भगति वचन अरिहंत, गाथा-७. ६. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, पुहिं., पद्य, आदि: पद्मप्रभु तेरी पदम; अंति: छांडत तओ पावत मुगती, गाथा-५. ७. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, पुहिं., पद्य, आदि: रेजीउंगायल्यै जिन; अंति: फिर न पावत ग्यांन, गाथा-५. ३०६५४. सज्झाय व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १६x४८). १.पे. नाम. शीयलविषये स्त्रीशिखामण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीयलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम रे सीखामण; अंति: उदय महाजस विस्तरे, गाथा-१०. २. पे. नाम. जैनदुहा संग्रह*, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अलग-अलग विषयों के दोहा संगृहीत हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३+२+१. ३०६५५. बुद्धि रास व पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८९६, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. मुदराबंदर, प्रले. मु. अजरामल ऋषि; पठ. श्राव. फूलचंद कुसलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १५४३५). १. पे. नाम. बुद्ध रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देवि अंबाई; अंति: ते घरेटले कलेस तो, गाथा-७०. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: वामामात उयर जगवंदन; अंति: वाट घाट टालै विघन, गाथा-१०. ३०६५६. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १४४२८). सरस्वतीदेवी छंद, मु. भूधर ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो देवादिदेवं तास; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) ३०६५७. खरतरगच्छ पट्टावली, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४८.५, ८४३१). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरतीर्थे गणभृद; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३१ तक है.) ३०६५९. गुरुगुण गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, २७४५३). १. पे. नाम. शीलविजयगणिनिर्वाण भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कल्याणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि समरूं; अंति: सेवक कल्याणचंदो जी, गाथा-१७. २. पे. नाम. परमगुरु गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि गीत, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: तपगछराउजी चिर तुन; अंति: गुण गावइ मुनि मालजी, गाथा-११. ३०६६०. सज्झाय व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२७४११, ११-१६x४२-५३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पांच सखी मील मोहीयो; अंति: होसी धरमसु ध्यान, गाथा-१४. For Private And Personal use only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६६ २. पे नाम, मधुबिंदु द्रष्टांत, पृ. २आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (-). ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. 1 www.kobatirth.org लोकसंग्रह प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-) अंति: (-). ३०६६१. सपाइडा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५X११.५, १०X२९). औपदेशिक सज्झाय- सिपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सपाहीडा रे वखसे मुक्त; अंति: सूरपुरष हरखें भरो रे, गाथा- १४. ३०६६२. सेडुंजारो वन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२२.५x१०.५, १२४३४). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी चालो; अंति: ऋद्धिहरष जोडि हाथ है, गाथा- १३. ३०६६३. आलोयणा छत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३ ११, १२X३५). आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोइ तुं आपणा; अंति: करी आलोयण उच्छाहि, गाथा-३६. ३०६६४. २४ दंडक स्तवन सह टवार्थ व गुणस्थान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैवे. (२६४११.५, ५x२६). १. पे. नाम. २४ दंडक स्तवन, पृ. १अ - ४आ, संपूर्ण, वि. १८२८, पौष शुक्ल ५, प्रले. पं. रतनसी, पठ. सा. वखतु, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पारसनाथ प्रह, अंतिः पास० परमार्थ लहै, गाथा- २३. 3 पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकगर्भित टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः प्रह समै पारस्वनाथजी अंतिः परमार्थ पाम्यो. २. पे. नाम. गुणस्थानक विचार, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिन धर्मनो आणवी अंतिः (-). ३०६६५. पांच बोल स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४१, भाद्रपद कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. कनकविजय गण (गुरु पं. कपूरविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५X१०.५, १२४३४-३८). "" ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये अंतिः परे विनय कहे आणंद ए, ढाल - ६, गाथा - ५८. ३०६६६. मतिज्ञान चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्रले. नाथा सरुपचंद बहोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५x११, १२X३१). पंचमी तिथि चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपंचमी तणो; अंति: केवळ लक्ष्मी निधान, गाथा-३. ३०६६७. स्तवन व गहुंली संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. ३, जैवे. (२३४११, १०x२५-२७). " १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, मु. अमीयकुवर, मा.गु., पद्य, आदि आज आनंद बधामणा, अंतिः मोक्ष तणा प्रभु मेवा, गाथा- ७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. अमीयकुवर, मा.गु., पद्य, आदि: रीषभ जिणंदजीसुं; अंति: अमीयकुंवरने तार, गाथा-५. ३. पे. नाम. गुरुगुण गहुली, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. अमीयकुवर, मा.गु., पद्य, आदिः सांभल रे तुं चेनी, अंति: अनुभव लीला वरता, गाथा-६, ३०६६९. १४ गुणस्थाने ८ कर्मनी १५८ प्रकृतिविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जै., (२६X११, २४X१६). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बंध १२० प्रकृतिनड, अंति: (-). ३०६७०. चैत्यवंदनसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, जैदे., (२३.५X१०.५, ११x२७). For Private And Personal Use Only चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०६७१. चौवीसतीर्थंकर कल्याणक तिथि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, १२४२७). २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, मा.गु., को., आदि: कार्तिकसुदि १ सुविधि; अंति: सुदी १५ च्यवन नेमनाथ. ३०६७२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १०४३४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. रत्नसागर, पुहि., पद्य, आदि: रंग मच्यौ जिनद्वार; अंति: मुख बोलो जयकार, गाथा-४. २. पे. नाम. वसंत पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शQजयतीर्थ स्तवन-वसंत पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालोसखी शेजा; अंति: भणे जनम जनम तोरो दास, गाथा-५. ३०६७३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४४१०.५, २२४६१). १. पे. नाम. देवलोकनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. देवलोक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: साध श्रावक व्रत पाल; अंति: वैला पामो पार रे, गाथा-३२. २.पे. नाम. अभव्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भगवंत आगल बेसीने; अंति: समझे किमही न प्राणी, गाथा-९. ३. पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: सीस रंगइ जे इम कहै, गाथा-९. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पुहि., पद्य, आदि: काहुंकु सतावै न तावै; अंति: भाव मिल आदरसु लेत है, गाथा-१. ३०६७४. सम्यक्त्वचोढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२४४११.५, १३४३२-३९). सम्यक्त्व चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: समकीत माहे दीढ रह्या; अंति: समकितना सहु दोष हो, ढाल-४. ३०६७६. सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१२,१५४४५-५१). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५५, आदि: मारो मन लागो हो; अंति: दिपतो मेडतनगर चोमास, गाथा-१७. २. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चोखचंद, रा., पद्य, आदि: सीता सत राख्यो वनमे; अंति: चोख० दया राख दिल में, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुभाषित गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: हल हलवो भुइ पतली; अंति: नेणा करे निद पाण, गाथा-१. ३०६७८. महावीरजिन स्तवन-चोवीसदंडकविचारमय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., मात्र गाथा-४ तक है., जैदे., (२४४१०, ४४२६). महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरि सरसती सामिणि; अंति: (-). महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकविचारमय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसरस्वती मातानइं; अंति: (-). ३०६७९. फलवधि पार्श्वगीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४२८). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. विजयप्रताप, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: फलवधी पास विराजे हो; अंति: विजयप्रताप शुभ बुध, गाथा-९. ३०६८०. १२ व्रत विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१०.५, ४१४२२). १२ व्रत विचार, रा., गद्य, आदि: पहिलो व्रत तसकायरो; अंति: (-). ३०६८१. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०,११४४०). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., पद्य, आदि: जलधिनंदनचंदनचंद्रमा; अंति: कल्पलताफलमश्नुते, श्लोक-९. ३०६८५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १३४३८). For Private And Personal use only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. नवतत्त्वगर्भित महावीर स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. चतुरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन-नवतत्त्वगर्भित, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: श्रीवर्द्धमानजिन सुख; अंति: ते लहिस्यइं शिवराज, ढाल-४, गाथा-५३. २. पे. नाम. दसस्थानकगर्भित चतुर्विशतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-१० स्थानकगर्भित, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीसे जिनवर करूं; अंति: ऋषभ इम लहइ सुभ साज ए, गाथा-२९. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, पं. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी हो पास; अंति: नामइं तरुए मोटी उमेद, गाथा-९. ३०६८६. शीलांकरथ आम्नाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. कोष्ठक सहित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४१५-५३). १८ हजार शीलांगरथ आम्नाय, प्रा., पद्य, आदि: जे नो करति मणसा; अंति: बंभंच होइ जइधम्मो, गाथा-४. ३०६८७. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, अन्य. मु. जीवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४३८). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिह० सव्वसाहूण; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं. २.पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशदं; अंति: पुण्यानि पुराकृतानि, श्लोक-१२. ३०६९०. (+) कीर्तध्वजरी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४४११, १५४४०-४१). कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, वि. १९३१, आदि: श्रीश्रीआदिजिनेश्वरु; अंति: ढाल करी एकमन्न हो, गाथा-७४. ३०६९१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १४४३४). १.पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. इस प्रत में कर्ता का नाम रूचीवमल लिखा है. नेमराजिमती स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मात सिवादेवी जाया; अंति: रूचीवमल० सूख पाया, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. बाट, प्रले. मु. कृपाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोनानी आंगी हे सुंदर; अंति: रामविजय शुभ सीसने जी, गाथा-१०. ३०६९३. प्रतिक्रमणादि विधिसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४११, ५४३३-३७). १. पे. नाम. राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कुसमणदुसमणं राइय सोल; अंति: संदेसावहभवनहंतीमेवी, गाथा-५. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि-टबार्थ, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह; अंति: संदेसाहू बोहल करू. २. पे. नाम. देवसीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधिगाथा सह टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय देवसीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: अरीआइ चउसगौ लोगसचइ; अंति: देवसी पडिकमण भणीयं, गाथा-४. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय देवसीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधिगाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहि पडिकमी ४; अंति: शांति कहवी लोगस. For Private And Personal use only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. पक्खी चौमासी संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय पक्खीचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि मुपत्तिवंदणय समुदा; अंति: एसविहिपक्खिपडिकमणं, गाथा- ३. पंचप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय पक्खीचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाथा- टवार्थ, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण सर्वेसह, अंति: चोमासीसंवच्छरी विधि. ४. पे. नाम. पाखी खामणा, पृ. २आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: अहमवि वंदामि चेइआई, आलाप-४. ३०६९४. पार्श्वनाथजीरी घघर नीसाणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. विनयविजय (गुरु मु. मनोहरविजय); पठ. मु. सगराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४X११, १३X३३). पार्श्वजिन निसाणी - घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्ति दायक सुर; अंति: जिनहरष० कहंदा है, गाथा - २८. ३०६९६. जीव रास, संपूर्ण, वि. १९वी, पौष कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५X११.५, १५X३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्म, वि. १७वी, आदिः हवे राणी पद्मावती, अंति: हुं हुंटु ततकाल, ढाल - ३, गाथा - ३४. ३०६९७. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., ( २६१२, १०X३०). १. पे. नाम. संतिकर स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं, अंतिः स लहइ सुह संपर्व परमं, गाथा - १३. २. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १आ- ३अ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण, अंति: नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. ३०६९९. छंद व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६X११, १६x४१). १. पे. नाम. गीता छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. राम, मा.गु., पद्य, आदि: समद्रे ठडीया बे कुअड, अंति: वखानइ यौवनलाहु लीजइ, गाथा-४. २. पे. नाम. काकसु गीत, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, वि. १५५०, आदि: पाणी बिहरी पाधरा जात; अंतिः पोसाल केरह पास रे, गाथा- १२. ३. पे. नाम, हीचोला गीत पृ. १आ, संपूर्ण. 3 मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदिः पुण्यमय वृक्ष पुढउ; अंति: नित हीचवा लागे, गाथा- ६. ३०७००. (+) स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६ १०.५, १५X४१). १. पे. नाम. महावीरजीनुं स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभोवन जन आणंदाना; अंति: जई सेवक चरणे नमई ए, गाथा - १८. २. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. जयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक पुरुष अतिरूअडो रे; अंति: लहीअ वंछित सिद्ध रे, गाथा - ५. ३०७०१. इषुकारकमलावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४X१०, २०५१-५४). इषुकारकमलावती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिणवर नमुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ दोहा ५ तक है.) ३०७०३. (-#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२६x१०.५, १२३७). औपदेशिक सज्झाय, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: मनि धरज्यो चोल, गाथा - १६. ३०७०४. आत्म सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२३.५x११, १२४३६). " ६९ For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-दुर्मति विषये, मा.गु., पद्य, आदि: हो दुरमति वेरण थइने; अंति: महानंदमां जई मिलस्ये, ढाल-२, गाथा-१४. ३०७०५. नवतत्त्व चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४१). नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: पास जिणेसर प्रणमी; अति: (-), (पू.वि. गाथा ७२ तक है.) ३०७०६. विविध विषय बोल संग्रह-प्रज्ञापनासूत्रे, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १७X४३-५३). प्रज्ञापनासूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे ५९ बोल पन्नवणा; अंति: अहंकार त्यागे. ३०७०८. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८५५, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११, १३४४०). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: नितनित मंगल उदय करो, गाथा-४७. ३०७०९. (#) रज:पर्व कथानक, संपूर्ण, वि. १८११, चैत्र कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि., प्रले.मु. देवचंद्र यति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६४३९). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक-६५. ३०७१०. एकसोसित्तेरजिन नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ३६४१२-१५). १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीप्रसन्नचंद्र; अंति: (-), (पू.वि. ३२ जिन नाम तक है.) ३०७११. एलापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५,१३४३३). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नाम एलापुत्र जाणिये; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-१५. ३०७१२. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., काव्य १० अपूर्ण तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६९५, आदि: पार्श्वनाथं जिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र काव्य ३ तक की टीका उपलब्ध है.) ३०७१३. श्रावक आवश्यकविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, ९-१३४३०-३३). छआवश्यक विचार स्तवन, वा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिन चितवी; अंति: तेह शिव संपद लहे, ढाल-६, गाथा-४३. ३०७१४. सज्झाय, पच्चक्खाण विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे., (२३४१०.५, १३४४०-४२). १.पे. नाम. मन्नहजिणाणं सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-तपागच्छीय प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह की मन्हजिणाण सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. २. पे. नाम. पच्चक्खाणपारण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पच्चक्खाण पारने की विधि, मा.गु., गद्य, आदि: खमा० इरिया० पडिक्कमी; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. नाम. सिद्धचक्रजीरो नमस्कार स्तोत्र चैत्यवंदन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८८०, आश्विन शुक्ल, ९, ले.स्थल. सोजत, प्रले. मु. विजयसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. सिद्धचक्र स्तोत्र, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: विश्व जयकार पावे, गाथा-२२. ४. पे. नाम. नवपदजीरी दिनक्रिया विधि, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. नवपद विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम छठरे दिन; अंति: असित्थेण वा वोसिरे. ३०७१५. सिद्धाचल जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३३). For Private And Personal use only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माहरु डुंगरीये मन, अंति: सिद्धिविजय सुखवास हो, गाथा - १३. ३०७१६, (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१०, १९३६). १. पे. नाम रहनेमराजीमतिनी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. रथनेमिराजीमती सज्झाय, नीको, मा.गु., पद्य, आदि: पावस ऋतु वरसइ घनमाली; अंति: शीख नीको कहे सारी रे, , י गाथा - १४. २. पे. नाम. मनकमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो मनक महामुनिः अंतिः अरथ आतमनो साधो रे, गाथा १०. ३. पे. नाम ऋषिहरिकेशी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरिकेशिमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनि मातंगज महाऋषि; अंति: धरी गुण ग्यानाजी, गाथा - १२. ३०७१७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. पं. फतेंद्रसागर, पठ. मु. चमना (गुरु पं. फतेंद्रसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X११, १५x५२). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम, अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. २. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति चरण कज आतम, अंति: संपजै आनंदघन रस पोष, गाथा- ६. ३. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्म, आदि: पद्मप्रभजिन तुझ मुझ अंति: आनंदघन रस पूर, गाथा- ६. ४. पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु, पद्य वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभु मुखचंद, अंतिः तरु आनंदघन प्रभु पाय, ७१ गाथा-७. ३०७१८. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. उदयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X११, १०X३१). महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाटडी विलोकुं रे; अंति: नितनित कोडि कल्याण, गाथा-६. ३०७१९. एकसोआठ पार्श्वनाथ नामावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे. (२३.५४११, १०x१३-१८). " १०८ पार्श्वजिन नामावली, मा.गु., को., आदि: कोका पार्श्वनाथ; अंति: सलूणा पार्श्वनाथजी. ३०७२०. सामायक ३२दोष सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२३.५x११.५, १२x२७). " सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंतिः श्रीकमलविजय गुरु शीष, गाथा- १३. ३०७२१. (+) १२ भावना, १० गच्छोत्पत्ति व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले. स्थल. जालोर, प्रा. पं. जैनेंद्रसागर गणि पठ पं. सूर्यसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जै. (२४१०.५, १६५०). १. पे. नाम. द्वादशभावना, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. " For Private And Personal Use Only १२ भावना सझाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी, अंतिः भणी जेसलमेर मझार, ढाल १३, गाथा- १२८, ग्रं. २००. २. पे. नाम. दश गच्छोत्पत्ति विवरण, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. १० गच्छत्पत्ति कालनिर्णय, मा.गु, गद्य, आदि: विक्रमादित्य थकी अंतिः पुण्णिमागमिया० अरि ३. पे. नाम. देवलोकादि गामी आत्माओं के नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०७२२. (+) नेमराजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६.५४९, ८४२९). "" Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७२ ३०७२३. महावीरजिन पाट पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२६.५x११, ३७४११-१८) www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल छोडी नेमजी रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ तक है.) יי 3 पट्टावली * मा.गु, गद्य, आदिः श्रीमहावीरजिन तत्पट, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ६६वी पाट परंपरा श्रीविजयधर्मसूरि तक है.) ३०७२४. (+) ज्ञानक्रिया संवाद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६.५X११, १७X६२). ज्ञानक्रिया संवाद, सं., गद्य, आदिः श्रीमद्भिः कानि कानि; अंति: तन्निश्चयेन मंतव्यम्, (पू. वि. संवादसूचक अंक १५ गये है.) ३०७२५. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२६.५x११, ७-१२४३४-४३). १. पे नाम, नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तोत्र - नवग्रहगर्भित, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं थुणामि पासं; अंतिः अवतिष्टंतु स्वाहा, गाथा- १३. २. पे नाम. शनि स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः यः परा नष्टं राज्यं, अति मंद न भवति कदाचन, श्लोक-६. ३०७२६. (+) कल्याणमंदिर भाषा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. मु. माणकचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे. (२६.५१२, १५X४०). 1 कल्याणमंदिर स्तोत्र - पद्यानुवाद, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परमज्योति परमातमा; अंतिः कारन समकित शुद्धि, गाथा-४६. ३०७२७. चोवीसदंडकचौवीसद्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. पत्र १x२ . जै (२६११.५, १३x६०). २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को, आदि: दंडक २४ नामानि शरीर, अंति: बादर अभिवी अधिक ३. ३०७२९ (क) अहिमताऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४११, १३×३६). (२४४१०.५, १४४३८). १. पे. नाम. प्रभात सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनंद वांदीने अंतिः ते मुनिवरना पाया, गाथा १८. ३०७३१. अंतरायनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६११.५, ११X३०). अंतराय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिमाता आदे नमीने, अंतिः वहेला वरसो सिद्धि, गाथा - ११. ३०७३२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्रले. पं. प्रेमकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. 1 भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय, अंति: जस पडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. २. पे. नाम. थुलिभद्र होली, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. अमरचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि आवो रे धुलिभद्र रंगे, अंति: तुझ चरण नमेसे, गाथा-५. ३०७३३. श्रद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५८, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, सीरोही, प्रा. पं. भक्तिविजयजी गणि पठ श्राव, थाणीया माणीया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२३११.५, ८४२८). आवश्यक सूत्र- श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि बंदिनु सव्वसिद्धे अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा - ५०. ३०७३४. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे. (२३४११, १४४३३). आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. ऋद्धिविमल, मा.गु., पद्य, आदि आवोजी आवोजी सुधा, अंतिः तो जीजू कांइन कामजी गाथा - २७. ३०७३५. स्तवन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. उमेद, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे (२४४१०.५, १०x२५). For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पासजीरे, अंति: दूषण सघला टलीया, गाथा-५. २. पे नाम औषध संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह", मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०७३६. (+) सज्झाच संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४४१०.५, २३४५८)१. पे. नाम. चेतन प्रति समताविज्ञप्ति सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७४३, चैत्र शुक्ल, २. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: अणसमज्यां दिलमें, अंति: अब म्हे पण सेवक छाजी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ३१. २. पे. नाम. धन्यासालिभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि धन धन धन्ना सालिभद्र, अंतिः ते रचणीदाह रे, गाथा - ११. ३. पे. नाम. सीता सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रावण प्रति मंदोदरीकथन सज्झाय, मु. विद्याचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सीता हरी रावण घर आणी अंति: विद्याचंद बखाणी हे, गाथा १३. (+) ३०७३८. पाहुड विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. यंत्र सहित., जैदे., ( २६.५X११, १०x६३). पाहु विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्राभृते १; अंति: ऊंचउ आवीनइ ऊगइ. ३०७३९. स्तवन व बारमासा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४x११, १६x४०). १. पे. नाम. जिनदर्शनपूजनफल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९वी, माघ शुक्ल, २, ले. स्थल. कैलवाल, प्रले. मु. भोपतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि सरसती देवी घरी मनरंग; अंतिः इम कवि मान कहे करजोड, गाथा - ११. २. पे. नाम. नेमनाथराजेमतीबारेमास्यौ, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, जै. क. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदिः सखीरी सांभलरे तुं अंतिः सुखदाइ हो लाल, गाथा १३. ३०७४०. नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित., जैदे., ( २४४१०.५, ३३९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १७ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण - अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: (-). ७३ For Private And Personal Use Only ३०७४९. संख्यातादिभेद विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. यंत्र सहित. जैदे., (२७४११, " १७X२९). संख्यातादिभेद विचार, मु. पार्श्वचंद्र, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: से किंतं गणण संखा, अंति: (-). ३०७४५ (+) अजितशांतिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, कालद्वीनगर, प्रले. पं. राजविजय मु, मोतीविजय; पंन्या सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६.५५११.५, ९४३५). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह गाथा ४०. " ३०७४७. (+) ऊकेशवंश वर्णन, अपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४८.५, ६x२९). उकेशवंश वर्णन, सं., पद्य, आदि: ऊकेशवंशोत्तमकल्प, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २० अपूर्ण तक है.) ३०७४८. झांझरीयामुनीनो चोदालीउ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दाल-३ गाथा-८ अपूर्ण तक हैं., जैदे., ( २६.५X१२, ११३१). झांझरियाऋषि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीस नमावी, अंति: (-). Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०७४९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १२४३७). १. पे. नाम. निंद्रा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: निद्रडी वेरण हुइ रही; अंति: भाषे हो कनकनिधान के, गाथा-८. २. पे. नाम. सामायीक लाभ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक लाभ सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिक्कमणुंभावसुं; अंति: मुगति निदान लाल रे, गाथा-६. ३०७५०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६२, पौष कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. मुंदराबंदर, प्रले. मु. चतुरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १९४५५). १.पे. नाम. वंकचूलराजा षढालीया सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. वंकचूलराजाषढाल सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: परमातम परमेसरू परम; अंति: तस घर मंगलिक माल ए, ढाल-६. २. पे. नाम. सात व्यसन सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: रंगे विजेरंग इम भणे, गाथा-९. ३. पे. नाम. राजेमती सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: देवर दूर खडो रहो कें; अंति: वंदना वेग त्रिकाला, गाथा-८. ४. पे. नाम. राजेमती सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजूल घर थकी नीसरी, अंति: सुख बोले स्याबास, गाथा-१२. ३०७५१. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १२४३०). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रदक्षिणात्रयं; अंति: गुरु मासुस्स वित्तजइ. ३०७५२. पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ९४३६). पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंच पदनै ध्यावो; अंति: विजयजिनेंद्रसूरिराय, गाथा-४. ३०७५३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६१, वैशाख शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. पालीताणा, जैदे., (२७४१२, १३४३३-३६). १.पे. नाम. बीजनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित विविध विनोद रे, गाथा-८. २.पे. नाम. पंचमी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती चरण नमि करी रे; अंति: हंसविजय जयकार रे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमी सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यजिणेसर; अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल-५. ४. पे. नाम. अष्टमी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठम कहे आठिम दिने; अंति: पुण्यनी रेहरे, गाथा-९. ३०७५४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३६). १.पे. नाम. अज्झारा पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. पं. सुबुद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८०९) देव पुजा दया दानं. For Private And Personal use only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरा, मु. नीबा, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सरसतिरे एक; अंति: नीबो० आपो मन रूली, गाथा-१४. २.पे. नाम. महावीरजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: विर जिणेसर राया वालो; अंति: मुने वीर जीनेसर राया, गाथा-२. ३०७५६. निद्रा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४२). निद्रा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: थानै सतगुरु देवै; अंति: घणा करै हौ घूरराटा, गाथा-१६. ३०७५७. (+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३०-३३). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: थूलिभद्र मुनीसर आवो; अंति: जांलगि धूनी तारी, गाथा-१७. ३०७५८. असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १७४३८). __ असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय वीर जिनेसर राय; अंति: रमणी जेम लीला वरो, गाथा-२५. ३०७५९. महात्मामहासती कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-४३(१ से ४३)=१, जैदे., (२६.५४११, १३४३५). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३, संपूर्ण. ३०७६०. रोहणी स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-४४(१ से ४४)=१, ले.स्थल. प्रांतिज, प्रले. मु. बेहचर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ६-१२४३०-३२). रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नक्षत्र रोहिणी जे; अंति: पद्मविजय गुण गाय, गाथा-४, संपूर्ण. ३०७६१. पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१,३)=२, कुल पे.८, प्रले. य. कस्तुरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ९x४५). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. गुणविलास, रा., पद्य, आदि: थोडासा दिनारो छे जी; अंति: दीजो सिवपुर ठाम, गाथा-४. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जयकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: इण कलयुग में; अंति: मीठी अमृतरस कुंडी रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, पुहि., पद्य, आदि: सब दुख टालोगे महावीर; अंति: तारोजी तारो भवतीर, गाथा-५. ४. पे. नाम. मल्लिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मोहे केसे तारोगे दीन; अंति: रूपचंद गुण गाय, गाथा-५. ५.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: प्रभु थारो रूप वन्यो; अंति: सफल जनम वाहूंको, गाथा-५. ६.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पं. रत्नसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: अंखीयां सकल भई; अंति: वरत्या जै जैकार, गाथा-७. ७. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सांवलीया मानै तारो; अंति: भवजल पार उतारो जी, गाथा-५. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. कुसल, पुहिं., पद्य, आदि: सुकरत करले रे मुंजी; अंति: कुसल कहां से होय, गाथा-५. ३०७६२. सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, २२४४१). १.पे. नाम. राजुल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जदि नीकस भवन सुठाडी; अंति: मन वंछित ही फल पावे, गाथा-१८. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, आदि: भाव वंदु आद जिणंदजी; अंति: मुगति मझार जी, गाथा-१४. For Private And Personal use only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोक-३ सुभाषित श्लोक संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०७६४. सज्झाय, अतिचार, स्तोत्र व स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२७४११.५, १६४५७). १.पे. नाम. नंदीसूत्र पीठीका स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) २. पे. नाम. तप काउसग्ग, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिअ; अंति: नायव्वो विरियायारो, गाथा-८. ३. पे. नाम. एकसोचोवीस अतिचार भेद, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले.ऋ. भूधर; पठ. मु. कर्मसी ऋषि (गुरु ऋ. भूधर), प्र.ले.पु. सामान्य. श्रावक व्रत १२४ अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानना ८ दर्शनना ८; अंति: वीर्यना ३ एवं १२४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वेलजी, सं., पद्य, आदि: नौमि वीरं महावीर; अंति: वेलजी वदते धृवम्, श्लोक-९. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी ताहरूं; अंति: आनंदवर्धन विनवे, गाथा-९. ३०७६५. करमपरिख्या स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बालापुर, प्रले. य. कस्तुरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १७४३८). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीदेव दाणव तीर्थं; अंति: हर्ष० करमसमो नहि कोई, गाथा-१८. ३०७६६.(+) ऊर्ध्वलोकप्रासाद संख्या व गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १२४३१). १.पे. नाम. २० स्थानक गणj, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हांसीयामें लिखी है. २० स्थानकतप गणj, प्रा.,मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-), पद-२०. २. पे. नाम. ऊर्ध्वलोक प्रासाद संख्या, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ऊर्ध्वलोकजिनप्रासाद व जिनप्रतिमासंख्यासंक्षिप्त विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: हवइ पहिलि सौधर्मदेव; अंति: जिन बिंब नमस्कलं. ३०७६७. गौतमपृच्छा का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १२-१४४३५-३७). गौतमपृच्छा-बालावबोध, मु. वृद्धिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं बालाव; अंति: (-). ३०७६८. (+#) मौनएकादसी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११, ८-१०४३०-३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहे मंगल अतिघणो, ढाल-३. ३०७७०. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८६७, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. मणिवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११, १३४३३). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जै जयति शासनम्, श्लोक-१७+२. ३०७७१. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन की व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १५४५१). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: आयाति० के पुरुषाः; अंति: माणिक्यसूरिनाम्ना. ३०७७२. चेलणारो चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. गुलाब, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १७४३४). For Private And Personal use only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ७७ चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: उसर ते नर अटकलै चेतो; अंति: वीतरागजीरा वचन परमाण, ढाल-४. ३०७७४. आषाढभूती चोढालीओ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रावण शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मुदाराबिंदर, प्रले. पंडित. चतुरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, २०४५०). आषाढाभूतिमुनि चौढालियो, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: वाणी अमृत सारसी आपो; अंति: माल मुनी हितकार, ढाल-४. ३०७७५. बारहचक्रवर्ती विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, १३४२७). १२ चक्रवर्ति नामआयुआदि विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३०७७६. (#) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. मनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४२८). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अच्छपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: लोभी नर अर्थ लक्ष्मी; अंति: अनंत सूख पामइ. ३०७७७. समकीत स्वरूप वशीयलव्रत पाठ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अंजार, प्रले. मु. जेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १४४४८). १.पे. नाम. ५ समकित स्वरूप, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो उपशम समकित; अंति: पिण न समाचरीयव्वा. २. पे. नाम. शीलव्रत पाठ, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: अहं भते तुम्हाणं; अंति: दूकरंजे करंति ते. ३०७७८. औपदेशिक कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२४-१२२(१ से १२२)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, ११४४२-४५). __ कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०७७९. अभव्य कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. पं. हर्षविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५,११४३७). अभव्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: जह अभवियजीवहिं न; अंति: हावि तेसिनसंपत्ता, गाथा-९. ३०७८०. (+) सिंदूरप्रकर सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ३,५ से ६)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, ८४६३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-). सिंदूरप्रकर-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०७८१. सकोसलनी चौपाई, संपूर्ण, वि. १६७७, भाद्रपद कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. हलवद, प्रले. मु. वणायग ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, ११४४६). सुकोशलमुनि चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू वयणे सांभलीजी; अंति: देवराज प्रणमइ पाय, ढाल-६. ३०७८२. सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ९४३४). सीतासती सज्झाय, मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: नित होजो परिणाम, गाथा-७. ३०७८३. (-) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४११, १८४३४). साधुवंदना, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: पो सम उठ्या भावस्यु; अंति: घणो रिष जमलजी कइ मोए, गाथा-४१. ३०७८४. वीसस्थानकतप विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११,१०४२८). २० स्थानकतपविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३०७८५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (३६.५४११, ११४३०). १.पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: वंदेरे बे करजोडि, गाथा-९. २. पे. नाम. स्वार्थ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: स्वारथ की सब हेरे; अंति: साचा एक है धरम सखाई, गाथा-६. ३०७८६. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४६). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवका; अंति: जोड० पार्श्वदेवाधिवर, गाथा-९. २. पे. नाम. बादशाह प्रतिबोधन वैराग्य स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-बादशाह प्रतिबोधन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: या दुनिया फना फरमाए; अंति: ___ हमकु फूनां तीहारीबो, गाथा-७. ३०७८७. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३९). १. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ३०७८९. विविधविषय विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६०-१८६२, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ८, जैदे., (२७४११, ८४५२). १. पे. नाम. इंद्रिपद विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इंद्रियपदविचार यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. तपयंत्र विधिसंग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. तपयंत्र विधि संग्रह, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. ज्योतिषमंडल का विवरण, पृ. २आ, संपूर्ण. __ ज्योतिषमंडल-विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. गतिद्वार विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण, वि. १८६०, माघ कृष्ण, ९, गुरुवार. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५.पे. नाम. बलदेववासुदेव का विवरण, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. बलदेववासुदेव-विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ६. पे. नाम. १४ गुणठाणाना नाम, पृ. ४अ, संपूर्ण.. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७. पे. नाम. पनरजोग विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण. १५ योग विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ८. पे. नाम. छभाव विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण, वि. १८६२, माघ कृष्ण, ४. ६ भाव विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उदयउदय दुविहेप्पन्नत; अंति: एषयसम्मपरिणामे. ३०७९०. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, ३१४७४). स्तवनचौबीसी, मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी आदेशर अलवेसर; अंति: सुपसाये सुख लहे रे, स्तवन-२४. ३०७९१. (+) कर्मग्रंथ की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, १५४४६-५६). कर्मविपाक नव्यग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: दिनेशवद्ध्यानवरप्रता; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal use only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०७९२. बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. मात्र गाथा-१८ तक ही लिखा है., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १९४३४-३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउ अरिहंताई ठिइ भव; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउ० अरिहंत कहीइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३०७९३. चौवीसजिन विवरण संग्रह व पंचकविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९-३८(१ से ३८)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२७४११.५, १४४३९). १.पे. नाम. वर्तमानचोवीसीना जन्मनक्षत्र अनें जन्मरासी, पृ. ३९अ, संपूर्ण. वर्तमान २४ तीर्थंकरों के जन्मनक्षत्र और जन्मराशि, मा.गु., गद्य, आदि: उतराषाढा न.; अंति: कन्याराशि जन्मराशि. २. पे. नाम. पंचक विचार, पृ. ३९आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: रोग पंचके व्रत उपरे: अंति: पंचकमांवीहवा न करो. ३. पे. नाम. चोवीसतीर्थंकरना पंचरंग, पृ. ३९आ, संपूर्ण. २४ जिन वर्ण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पद्मप्रभु राता वर्णे; अंति: बीजा सोल पीला वरणइ. ४. पे. नाम. चोवीसतीर्थंकरनी सीधगतीनाथांनक, पृ. ३९आ, संपूर्ण. २४ जिन निर्वाण स्थल वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: अष्टापदें सीधा पहेला; अंति: पावापुरी० चोवीसमा. ३०७९४. साढीपचविसआर्यदेसनाम व अनार्यदेससंख्या, अपूर्ण, वि. १८९०, चैत्र शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०३-१०२(१ से १०२)=१, प्रले.ऋ. बेचर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ९४३०). साढीपचविसआर्यदेशनाम व अनार्यदेस संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: १. मगध देस-राजग्रही; अंति: अनार्यक्षेत्र जाणवां, संपूर्ण. ३०७९५. बुढापा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १४४३७). औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, मा.गु., पद्य, आदि: बुढो हलवै हलवैचालै; अंति: संसारसू मुरछा आणी, गाथा-१५. ३०७९६. विविध नाम संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, कुल पे. ६, जैदे., (२६.५४११.५, १४४२९). १.पे. नाम. ७ कुलगर नाम, पृ. १७अ, संपूर्ण. ७ कुलकर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ विमलवाहन २ सुदाम; अंति: ६ सुमुख ७ समुची. २. पे. नाम. २४ तीर्थंकर अनागत, पृ. १७अ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर नाम- अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: पद्मनाथ १ सुरदेव२; अंति: भद्रक्रत २४. ३.पे. नाम. १८ व्याकरण नाम, पृ. १७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १. ऐंद्रव्याकर्ण २.: अंति: १८ जयहेमव्याकर्ण. ४. पे. नाम. १८ भक्षभोजन राजानी रसोई, पृ. १७अ, संपूर्ण. १८ भक्ष्य भोजन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सिरो१ सींग २ घाट ३; अंति: तीखो रस कडुओ कसाय. ५. पे. नाम. त्रेसठसीलाकापुरुष नाम, पृ. १७आ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १२ चक्री १ दिर्घदंत; अंति: नंद ८ पद्म ९ संकर्षण. ६.पे. नाम. अढारपुराण नाम व ग्रंथसंख्या, पृ. १७आ, संपूर्ण. १८ पुराण नाम व ग्रंथ संख्या, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ब्रह्मपुराण्ण १ विष; अंति: चउलखा ग्रंथ संख्या. ३०७९७. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १७४३९). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिन धर्मध्यान धरो; अंति: कोडी भाव उलासांणी, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रियाआदरे, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतकाल भमतां थका रे; अंति: रायचंद० किरियासु पेम, गाथा-१४. For Private And Personal use only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. स्वाध्याय उपदेसी, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, ऋ रायचंद, मा.गु, पद्य, आदि: एकेक पुनवंत इसड़ां, अंति: रिष रायचंदनी रिती, गाथा-५. ३०७९८. आलोयण भाष्य, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२७४११.५, ९४३५). खामणा कुलक, अमियकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजीने खामणां; अंतिः अमियकुंमर० मंगलमाल, गाथा - २८, (वि. दो पद के हिसाब से २८ गाथा लिखी गई है. ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ३०७९९. नवतत्त्व, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२ (१, ३) ४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. जैवे. (२६४११, ७X२०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण से गाथा- ३९ अपूर्ण तक है.) ३०८००. स्थापनाचार्य कल्प, दक्षिणावर्तशंख विधि व कंचनकल्प, संपूर्ण, वि. १९७३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६.५x११.५, १४४३८-४१). १. पे. नाम. स्थापनाचार्य कल्पगर्भित स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९७३, फाल्गुन शुक्ल, ८, ले. स्थल. वीजापुर, प्रले. पं. पद्मांभोधि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. मुनिचंद्रसूरि महाराज की प्रति से प्रतिलिपि की गयी है. स्थापनाकल्प सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूरव नवमथी उद्धरी, अंति: वाचक गुण हरे, गाथा - १४. २. पे नाम, दक्षिणावर्तशंख विधि पू. १आ-२अ, संपूर्ण सं., पग, आदिः यस्य सद्मनि तिष्टति अंति: (१) नारिसूत सुतंध्रुवं, (२) श्रीशंखनिधये नमः, श्लोक ५. ३. पे. नाम. कंचन कल्प - औषध संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. कंचन कल्प, मा.गु., गद्य, आदि कंचन बीज टां १। कुटक, अंति: (-). ३०८०१. (+) आत्मशिक्षा शतक, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. ग. लाभप्रिय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, १५×५२-५४). आत्मशिक्षा प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि केवल अप्प सरूवं लोअग, अंति: किरणजलो विहरे, गाथा- १००. ३०८०२. विनयना प्रकार, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. दे. (२६११, १४४३२). "" विनयप्रकार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (१) वीनयना सात भेद नांण, (२) बीनाना सातभेद नांण, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३०८०४. नालंदापहाड सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६.५X११.५, १२X३९). महावीरजिन स्तवन- नालंदापाडा, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मगध देशमांहि विराजै; अंति: ग्यान तणो प्रकासोजी, गाधा- २०. भरपूर, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ३०८०५. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, ३, जै. (२६१२, १०x४७). 7 "" १. पे. नाम. घोघामंडन पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- घोघामंडन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समतारस शीतल छाया; अंति: कांतिविजय स पाया, गाथा ५. २. पे. नाम. नवखंडाजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- नवखंडा, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नवखंडाजी हो पास मनडु, अंतिः आपना तो कांति मु. धरमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धरणीदा करे सेवना; अंति: धरमचंद० सहो सोय रे, गाथा-६. ३०८०६. विविधमुद्रा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. माईदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, ११x२६-४१). विविध मुद्रा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गरुडमुद्रा डावा हाथ, अंतिः अंगुठा आडा उभा मूकवा. ३०८०७. जवाराजर्षि कथानक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे. (२६४११, १३४४५). " यवराजर्षि कथा, सं., पद्य, आदि: विशालास्ति पुरी जैन, अंतिः गुणे कुरु निःसपत्नम्, लोक-११२. , For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०८०८. चउक्कसायसूत्र, आयरियउवज्झायसूत्र, साधारणजिन स्तुति व संथारापोरिसीसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, ६४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लरण; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भुवनत्रयस्वामी पार्श; अंति: तया लांछितश्चिह्नितः. २. पे. नाम. आयरियउवज्झायसूत्र सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. आयरियउवज्झायसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्रगत, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: आयरिय उवज्झाय सीसे; अंति: खमामि सव्वस __ अहयंपि, गाथा-३. आयरियउवज्झायसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आयरि. ये मेमयाके; अंति: त्मायंविनयेनस्तथा. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: ददतां शिवं वः, श्लोक-१. साधारणजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीतीर्थाधिपतिर्वो; अंति: रावरेण्य प्रभावदाताः. ४. पे. नाम. संथारापोरिसि सह अवचूरि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-२ तक है. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: (-). संथारापोरसीसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: निसीही ३ कृत स्वाध्य; अंति: (-). ३०८१२. वसुधारा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले.पं. जसविजय (गुरु ग. पद्मविजय); गुपि.ग. पद्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १७-१८४५५-५६). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. ३०८१३. (+) रत्नाकरपचीसी, संपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. डुगरपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १४४३१). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. ३०८१४. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. साथरा, प्रले.पं. तेजविजय (गुरु ग. हेमविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. हेमविजय (गुरु ग. भीमविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३-१४४३७-३९). स्नात्रपूजा संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)केसरनि चोखा एकठा करी, (२)मुक्तालंकार विकार; अंति: समकित सुजस सवायो रे. ३०८१५. जिनस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. मु. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३१). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मयगल घरबारी नार; अंति: संघने सुख देवई, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कुगति कुमति छोडी; अंति: नेमी सेवइ सुदेवा, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: जलण जल वियोगा नाग; अंति: जाणइ अमित वंदो, गाथा-४. ४. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: कठिन करम मेली काठिया; अंति: संघना कोडि पालई, गाथा-४. ३०८१६. (+) मौनएकादशी कल्याणक स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५,१५४३२). १. पे. नाम. अरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: अढारमा जिनवर भवियण; अंति: गणेशरुची सुखकारीजी, गाथा-४. २. पे. नाम. मल्लिजिन जन्मकल्याणक स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मल्लिजिन स्तुति-जन्मकल्याणक, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: मागशिर सुदि एकादशी; अंति: आपो मुगतिर्नु दान तो, गाथा-४. ३.पे. नाम. मल्लिजिन दिक्षाकल्याणक स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तुति-दीक्षाकल्याणक, ग. गणेशरुचि, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीमल्लि जिणेसर ओगण; अंति: केरोशीश नमे दिनरात, गाथा-४. ४. पे. नाम. मल्लीजिन केवलज्ञानकल्याणक स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तुति- केवलज्ञानकल्याणक, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमल्लि जिणेसर; अंति: आगे मागे सुख समाज जी, गाथा-४. ५. पे. नाम. नमिजिन केवलकल्याणक स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नमिजिन स्तुति-केवलज्ञानकल्याणक, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: एकवीशमा श्रीजिनवर; अंति: गणेशरुचि कहे शुभमना, गाथा-४. ६. पे. नाम. नमिजिन केवलज्ञानकल्याणक स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. नमिजिन स्तुति-केवलज्ञानकल्याणक, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: इकवीसमां श्रीनमी जिन; अंति: प्रणमुं नामी सीस, गाथा-४. ३०८१७. पंचतीर्थी स्तव व गुरु स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ८x२८). १.पे. नाम. पंचतीर्थी स्तव, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्राचीमेकां पुनानामि; अंति: मुक्तिकांतानुरक्तान्, श्लोक-६. २.पे. नाम. गुरु स्तुति, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. ___ चंद्रसूरि गुरुगुण स्तुति, मु. ज्ञानचंद्र, सं., पद्य, वि. १९४३, आदि: सुगुरु चरणं सेवेशश्च; अंति: स्तुति ज्ञानचंद्रेण, श्लोक-९. ३०८१८. शंखेसरपार्श्वनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १७-१८४४३-४८). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. चारित्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: ऐंद्रपदप्रियरूपभूप; अंति: विनेय चारित्र सुहकर, गाथा-६४. ३०८१९. सज्झाय संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. १०, प्रले. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १९४४६). १. पे. नाम. इग्यारस सीज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, पंन्या. देव वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु पाय नमीइं; अंति: वाचक देव कहंदाजी, ___ गाथा-११. २. पे. नाम. सालीभद्र सीज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणे भव; अंति: भव भव तमारो दास, गाथा-२१. ३. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: नित नित होयो परिणाम, गाथा-८. ४. पे. नाम. रुषमणी सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. रुक्मिणीसती सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी संघासण सांकडु; अंति: मोहन वचने संथुण्यो, गाथा-२६. ५. पे. नाम. धन्नाकाकंदीनी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: वरते जय जयकार रे, गाथा-१३. ६. पे. नाम. आत्मशिक्षा सीझाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कांइ नवि चिंते चितमा; अंति: पांमे मोक्ष दुवारि, गाथा-६. For Private And Personal use only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ७. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. ८. पे. नाम. अनाथी सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मगध देश को राज राजे; अंति: छोडवयो गर्भवास कि, गाथा-२०. ९. पे. नाम. विजयरत्नसूरि विनती, पृ. ४आ, संपूर्ण. विजयरत्नसूरि गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमिरस पाउं थाने दाडि; अंति: दूधडे वूठ्या मेह हो, गाथा-७. १०. पे. नाम. मेतारज सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संयम गुणना आगरूजी; अंति: साधु तणी ए सज्झाय, गाथा-१३. ३०८२०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ९, जैदे., (२५.५४११.५, १६-१७४२६-३१). १. पे. नाम. क्रोध उपरि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करिये भोला; अंति: उपसम आणी पासे रे, गाथा-९. २. पे. नाम. मान उपरि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म करस्यो कोई; अंति: नवेनगर रही चोमासु हो, गाथा-८. ३. पे. नाम. माया परिहार स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. माया सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: सुख निरवाणि हो, गाथा-७. ४. पे. नाम. लोभ परिहार स्वाध्याय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: लोभ बुरोरे संसार, गाथा-८. ५. पे. नाम. अनाथी स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिकराय रेवाडी; अंति: वंदे रे बे करजोडि, गाथा-९. ६. पे. नाम. रहनेमी स्वाध्याय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छेडो नांजी देवरीया; अंति: ज्ञानविमल गुण माला, गाथा-५. ७. पे. नाम. नेमराजुल स्वाध्याय, पृ. ३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्वाध्याय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अवल गोख अमुल झरूखा; अंति: सेवक देव कहे हितकारी, गाथा-७. ८.पे. नाम. धन्ना स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, प्रले. मु. माणिक्य, प्र.ले.पु. सामान्य. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन्नो ऋषि वंदीयै; अंति: नाम थकी निस्तार रे, गाथा-७. ९. पे. नाम. दोहिलो मानवभव स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानवभव, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चितमां विचारो रे जीव; अंति: ते पांमस्ये भवनो पार, गाथा-६. ३०८२१. मन निश्चल्योप-औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, १३४४६). मन निश्चलता सज्झाय, मु. शुभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: मइ सेवी रे देवी सरसत; अंति: तेह नर मंगल करू, गाथा-२०. For Private And Personal use only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०८२२. (+) अजितशांति व बृहत्शांति, पूर्ण, वि. १८४८, आषाढ़ कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, ले.स्थल. सणवानगर, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि (गुरु ग. वनीतविजय); गुपि.ग. वनीतविजय (गुरु ग. रत्नविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३८-४१). १.पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. २अ-३आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा ९ से है.) २. पे. नाम. वृधिशांति, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जईनं जयति शासनं. ३०८२३. ५६३ जीवभेद व सिद्धदंडिका यंत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १६४१३-४५). १.पे. नाम. ५६३ जीवना भेद ६२ मार्गणा द्वार, पृ. १अ, संपूर्ण. ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नरकगति तिर्यंचगति; अंति: देवना ९९ अप्रजाप्ता. २. पे. नाम. सिद्धदंडिका यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३०८२४. ज्ञानपंचमी व मौनएकादशीपर्व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११,१०४३२). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिन उपदेशी मौनएक; अंति: संघ मंगल करा, गाथा-४. ३०८२५. क्षेत्रसमास प्रकरण यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४२३-४२). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-यंत्र संग्रह *, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३०८२७. (+) सेट् अनिट्कारिका सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मेदनीतटे, प्रले. मु. जिनराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्र.ले.वर्ष अवाच्य है., त्रिपाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४१०.५, २४५२). सेट् अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १६६३, आदि: प्रणम्य परमं ज्योति; अंति: हर्ष० मुनीश्वरैः, श्लोक-२२. सेट् अनिट्कारिका-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: जिनगिरं गुरुं नत्वा; अंति: हर्षकीर्त्तिवृत्ति. ३०८२८. गुरुवंदनभाष्य व प्रत्याख्यानभाष्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. धोयपुर, जैदे., (२५.५४११.५, १५-१६x४६-४७). १.पे. नाम. गुरुवंदन भाष्य, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __ गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुरुवंदनणमह तिविह; अंति: अणभिनिवेसीयमच्छरिणो, गाथा-४१. २.पे. नाम. प्रत्याख्यान भाष्य, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दशपच्चखाण चउविहि; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, गाथा-४८. ३०८२९. अनुबंधफल व वृत्तगणफल सह टीका, संपूर्ण, वि. १६५०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४१०.५, ७४४४). १.पे. नाम. धातुप्रत्ययानुबंध फल सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अनुबंधफल, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: उच्चारणेस्त्यवर्णाद; अंति: चानुबंधः कथितो मया, श्लोक-१०. अनुबंधफल-टीका, सं., गद्य, आदि: यथावदव्यक्तयां वाचि; अंति: भवदाय: भवतोरिकणायसौ. २. पे. नाम. अनुबधफल सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ वृत्तगणफल, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: द्युतादेरद्यतन्यां; अंति: चैतदीषितं वानरेण हि, श्लोक-६. वृत्तगणफल-टीका, ग. वानर्षि, सं., गद्य, आदि: द्युति दीप्तौद्युरन्; अंति: स्वमात्रस्येच्छंति. ३०८३०. उपवासनो फलाफल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५). तप फल, मा.गु., गद्य, आदि: भगवती शास्त्रोक्तं; अंति: उपवासनो फल. ३०८३२. भगवतिपदमाउती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७९४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मकसूदावाद, प्रले. पंडित. धीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११-१२४३७-४१). पद्मावतीदेवी छंद, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सक्ति सदा सांनिधरो; अंति: कल्याण. जय जयकारणी, गाथा-२५. ३०८३३. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७३५, वैशाख शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३, प्रले. ग. विचारसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १७-१८४५५). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. चारित्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: ऐंद्रपदप्रियरूपभूप; अंति: विनेय चारित्र सुहकर, गाथा-६४. ३०८३४. (+) तपविषये रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १७४४, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग.शुभसागर; पठ. श्रावि. सौभाग्यदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४११, १०-११४२६-३०). रोहिणीतप स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: स्वस्ति श्रीदायक सदा; अंति: पार्श्वनाथ सुखकरो, ढाल-४. ३०८३५. (+) संथारापोरसीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३२). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: एसमत्तमे गहीइं, गाथा-११. संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुउ क्षमा; अंति: सम्यक्त्व० ग्राउं. ३०८३६. पंचहेतुस्वरुप सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १७४६८). भगवतीसूत्र-हिस्सा पंचम शतक सप्तम उद्देश पंचहेतुस्वरूप, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: पंचहेऊ प० तं० हेऊन; अंति: केवली मरणं मरति, गाथा-८. भगवतीसूत्र-हिस्सा पंचम शतक सप्तम उद्देश पंचहेतुस्वरूप-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्ररूप्या भगवंते ते; अति: व्यापारेण प्राप्नोति. ३०८३७. (-) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३.५४११, १५४३५). महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मगध देशरमाहि विराज; अंति: मुगतमहलमा जासीजी, गाथा-१९. ३०८३८. (+) विचार संग्रह व सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २१४५८). १.पे. नाम. विविधविषय विचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. विषयविषया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिकगीत, म. लब्धिविजय, पुहि., पद्य, आदि: जब लगइ विषय विषयान; अंति: जिणे विष वेली कटी जब, गाथा-५. ३०८३९. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १७X४७). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १७५०, ले.स्थल. खरवा, प्रले. मु. मयगलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private And Personal use only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा; अंति: प्रभु उगतइ सुर तो, गाथा-५४. २. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. सामायिक के ३२ दोष स्वाध्याय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंति: श्रीकमलविजय गुरु सीस, गाथा-१३. ३०८४०. (+) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १९-२०७५९-६८). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं नमस्कृत्य; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१३८. ३०८४१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १७X४२-४५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रातःकाल में बोलने योग्य स्तवन. मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी ताहरो; अंति: आनंद मुनिवर वीनवै, गाथा-९. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद सोभा; अंति: एहवी उदयरतन कहे वाणी, ___ गाथा-१०. ३०८४२. (+) गौतमदीपालिका व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, ११-१२४४०-४७). १. पे. नाम. गौतमस्वामीदीपालिका रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी दीपालिका रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गौतम भणई; अंति: हीरगुरु गुण विचारी, ढाल-१३, गाथा-७३. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३०८४३. (+) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११-१२४३५-४१). महावीरजिन स्तवन-वडलीमंडण, ग. नगा, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरणो; अंति: भणइ नग्गगणि मंडल करो, गाथा-५३. ३०८४५. (+) नंदी स्तुति व योगनंदिसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४३९). १. पे. नाम. नंदीसूत्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: अर्हस्तनोतु स श्रेय; अंति: विघ्न विघातदक्षाः, श्लोक-८. २. पे. नाम. योगनंदीसूत्र, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदि: नाणं पंचविहं पण्णत्त; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक कुछ अंश ही है.) ३०८४७. (+#) नमस्कार स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३७). २४ जिननमस्कार स्तवन, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम ऋषभजिणेसर पाय; अंति: कुंअरविजयवाचक सुखकरा, गाथा-२९. ३०८४८. अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिशिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १९४६०). अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अगम्यमध्यात्मविदाम; अंति: मयमुपाधि विधृतवान्, श्लोक-३२. ३०८४९. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १८८३, फाल्गुन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. रायद्वणपुर, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४४४४-४९). स्तवनचौबीसी, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: तेरो दरस भलें पायो; अंति: हुं नवनिधी पायौं, स्तवन-२४, गाथा-१०९. For Private And Personal use only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 3 हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०८५० (+) कातंतविभ्रम, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. जगरूपसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२५x११, १५X३५). " कातंत्रविभ्रम, सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंति: चैव वह्यनालयमसालयं, श्लोक-२०. ३०८५१. (+) रास, पद व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे (२५.५X११, १०-११X३५). १. पे. नाम. बुद्धि रास, पृ. १अ - ४आ, संपूर्ण. आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देव अंबाई, अंति: टलइ सयल किलेस तो, गाथा-६७. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. क. कांति, पुहिं., पद्य, आदि: फकर कीज करमें मत पडे, अंति: दुख दूर सवी होयगो, गाथा - १. ३. पे नाम, चंद्रबाहुजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण, मु. न्यायसागर, रा., पद्य, आदि: चंद्रबाहु जिनराज था; अंति: न्यायसागर सुखकारि बो, गाथा-८. ३०८५२. नष्टजातक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२५X११, १३x४१). ज्ञानचतुर्विशिका, उपा. नरचंद्र, सं., पद्य, आदिः श्रीवीराय जिनेशाय अंतिः चक्रे चतुर्विंशिका, श्लोक-२४. ज्ञानचतुर्विशिका - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: एलैर्मषादिक्रांतिदिन, अंति: पंचानां सर्वलग्नतः. ३०८५४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, जैदे. (२५x१० १२X४४). १. पे. नाम. गौतमगणधर स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि : वीरजिणेसर केरोसीस, अंति: तूठां संपति कोडि, गाथा - ९. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: करो रे कसीदा इण विधि; अंतिः कीजै होडाहोडि रे, गाथा- ६. ३०८५५. गरणुं व पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैदे. (२५x११.५ १४४४४). १. पे. नाम. निसाल गरणुं, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ले. स्थल. लिंबडी, प्रले. पं. क्षमावर्द्धन (गुरु पं. धर्मवर्द्धन गणि); पठ. ग. कीर्त्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन नीसाल गरणु, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनजिन आणंदो ए; अंतिः सेवक तुझ चरणे नमे ए, गाथा- १९. २. पे. नाम. कागजलेखनी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मसिकागज पद, मा.गु., पद्य, आदि: मस काली गुण उजला लेख, अंति: मिले ते जाणे मनदुख, गाथा-३. ३०८५६. स्तवन संग्रह व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५X११.५, १६x४५). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. ऋषभसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणेसर माहेरै मन; अंतिः भेटता पुगी मनह जगीस, गाथा-७. २. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. कल्याणहंस, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन साहिबा कुमत; अंति: दरसण द्यो महाराजजी, गाथा ९. ३. पे. नाम. अजितनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, आदि जिन सकल सोभागी अजित, अंति: जपै सुमति उल्लास, गाथा ४. ४. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. देवसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: भाव भलै नित भेटीयै; अंति: देवसोभाग चित लायरे, गाथा - १२. ३०८५७. चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४१०.५, १३-१४X४७-४९). ८७ For Private And Personal Use Only २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः बोधवीज साथी जिन सेव, गाथा-२७. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची "" ३०८५८. (-) सिद्ध द्वार विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ- दुर्वाच्य जैदे. (२३.५४१०-११.०, १८x२९). सिद्धद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ३ लोक माहि ए सीझ, अंतिः तीर्थकरणाना होइ सिझ. ३०८५९. (+) राजुलपचवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, १२-१५x२३-३८). राजुल पच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथमहि समरुं अरिहंत, अंतिः न सब संघ को मंगल करे, गाथा-२६. ३०८६०. अल्पबहुत्व सह टीका व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१०.५, १५x५१). १. पे. नाम. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, प्रा., पद्य, आदि: पपुवउ कमसो जीवा जल, अंतिः गामा दाहिणो झुसिरं, गाथा-२. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व - टीका, सं., गद्य, आदि: पपुदउत्ति पश्चिम, अंति: बहुतमोवायुरिति २. पे. नाम. विचार संग्रह. पू. १अ संपूर्ण. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविधविचार संग्रह, गु., प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-) अंति: (-), (वि. विशेषावश्यक, प्रवचनसारोद्धारादि विविध ग्रन्थों से संगृहीत मूलप्रकृति स्थितिबंध, साधुप्रकरणादि विषय.) ३०८६१. (०) स्थिरावली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१०.५, १२-१३X३१-४१). नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ, अंतिः णाणस्सपरूवणं वोच्छं, गाथा - ५०. ३०८६२. आदिनाथ स्तवन व अध्यात्म गीत संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे. (२४.५४१०.५ ११-१३x४२). १. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. वनीतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि आदिनाथ जगन्नाथ विमला, अंतिः शासनंते भवेभवे, श्लोक ५. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. क. जगमाल, मा.गु., पद्य, आदि: जपो रे भविका नवपद, अंति: चीत्तथी मत रे वीसारो, गाथा-८, (वि. दो-दो पाद की १ गाथा गिनकर ८ गाथा लिखा है.) ३. पे. नाम. अध्यात्म गीत, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: सांइ सलुणां केसे; अंतिः विनय० नजर मोही जोय, गाथा-५. ४. पे. नाम. अध्यात्म गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. विनयविवेक, पुहिं., पद्य, आदि: जीओ मगन भयो माहा मोह, अंतिः सदा सुख सोहमें, गाथा-४ ३०८६३. सेज स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, कनकावती, प्रले नंदलपति, पठ सा. नाथी (गुरु सा. अमरादे), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १०x३३). आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सबल सुखकर सबल सुखकर, अंति: भणई वयण सुहंकरो, गाथा २०. ३०८६४. क्रोधादि अशीतीभंगा भगवतीसूत्र प्रथमशतक के पंचम उद्देश की लघुवृत्तिगत, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X११, २३X६३). भगवतीसूत्र - लघुवृत्ति, आ. दानशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. भगवतीसूत्र प्रथम शतक के पंचम उद्देश की टीकागत क्रोधादि कषाय के भंग भावना) ३०८६५. प्रश्नोत्तररत्नमाला, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५x११.५, २०६०). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. ३०८६६. (+) श्लोक संग्रह सह शब्दार्थ, संपूर्ण वि. १६१३, पौष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५x१०.५, ४-५४३३-५०), " जैन श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२, (वि. १६१३, पौष कृष्ण, ११) जैन श्लोक की अवचूरि", सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ___८९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०८६७. (#) छंद संग्रह व अमृतधुनि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२,१९४४१). १. पे. नाम. भीडभंजन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-भीडभंजन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वारु विश्वमा देस; अंति: तो नवे निद्ध पामी, गाथा-२४. २. पे. नाम. शनि छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. शनिश्चर छंद, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामिनि मति; अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा-२७. ३. पे. नाम. अमृतधुनिसीद्धी-गोडि पार्श्वजिन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजीअमृतधुनि, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तंबागड दीव जेहे नोबत; अंति: अमृतद्धनि कि सीद्धी, गाथा-३. ३०८६९. आलोयणा स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६७११, १३४३४-३५). १. पे. नाम. आलोयणविनती स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, ११, गुरुवार, ले.स्थल. विसलपुर, प्रले. मु. चंद्रसागर (गुरु ग. विजयसागर); गुपि.ग. विजयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा; अंति: प्रभु आणंद पूर तु, गाथा-५६. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. __ आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुक्तियहार सुतार; अंति: सुहाणि कुणे सुसया, गाथा-४. ३०८७१. (#) नेमनवभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. लखूऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४९.५, १३४३२-३७). नेमिजिन स्तवन-९भवगर्भित, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: श्रीनेमीसर गुणी नीला; अंति: कल्याण जइ जइकार ए, ढाल-९. ३०८७२. संघगुण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, २०४४३-४६). भरूच छःरीपालितयात्रासंघवर्णन स्तवन, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: श्रीगरुचरण नमी करी; अंति: संघ गुणे कह्या सार ए, ढाल-३. ३०८७३. बार भावना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५४१०.५, १७४४९). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पाय नमी सह; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२५. ३०८७४. सुरप्रीयाऋषि सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, १२-१३४४४). सुरप्रियमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवसदा मनि धरू; अंति: ते निश्चइ भवजल तिलइ, गाथा-७०. ३०८७५. आदिश्वर वीनती, संपूर्ण, वि. १७२०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. जीवा ऋषि (गुरु मु. धनजी ऋषि); गुपि. मु. धनजी ऋषि (गुरु मु. सोमजी ऋषि); पठ. श्रावि. मेघबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४३३-३६). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; ___ अंति: मन वयरागई इम भणीय, गाथा-४५. ३०८७६. आदिजिन व पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १७X५५). १. पे. नाम. परिसादाणीपार्श्वजिन प्रभाति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु दरिसन की प्यास; अंति: साई समकित लील विलासी, गाथा-५. २. पे. नाम. ऋषभदेव माला, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, वा. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: श्रीसरसति लही वाणी ए; अंति: लक्ष्मीविजय जय करो, गाथा-६७. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा-२ श्लोक संग्रह*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०८७७. आदिजिन विवाहलो व चोवीशजिन छंद, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैवे (२५.५४११.५, १३४३०). १. पे. नाम. आदिजिन विवाहलो, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि आदि धरम जिणे ऊधर्यो, अंति: कविता नर ऋषभदासो, गाथा - ६७. २. पे. नाम. पांच बोले चोविशजिन छंद, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं, अंतिः (-), (पू. वि. मात्र प्रथम गाथा है. ) ३०८७८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७०९, श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे, २, ले. स्थल, मसूदानगर, प्रलेग. ऋद्धिसुंदर (गुरु ग. राजसुंदर पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११, १८x४८). १. पे. नाम. नेमीश्वर बारमास, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमास, आ. जयवंतसूरि, मा.गु पच आदिः विमल विहंगमवाहिनी अंतिः वाणी सुणतां हुई आनंद, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-७७. २. पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, पंडित. जयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: ओ सखी अमीय रसाल कइ, अंति: नारिकि नेमिदं समधरी, गाथा - ३. ३०८७९. अरिहन्नकमहामुनि रास, संपूर्ण, वि. १८१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. ढसरा, प्रले. ग. न्यानवर्धन, पठ.. केक्स, प्र.ले.पु. सामान्य जैवे. (२६४११.५, १७-१८४४४-४६). अरणिकमुनि रास, मु. आनंद, मा.गु., पद्म, वि. १७०२, आदि: सरसति सामिणि वीनवें अंतिः कह्यो रास विलास कि, ढाल-८. ३०८८० (क) अरहन्त्रक रास, संपूर्ण वि. १७४० आश्विन शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, धारानगरी, प्रले. ग. विनयानंद (गुरु ग. देवानंद पंडित); गुपि. ग. देवानंद पंडित (गुरु ग. जयानंद पंडित); ग. जयानंद पंडित, पठ. सा. राजश्री, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १३x४६-४७). अरणिकमुनि रास, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: सरसति सामिणि वीनवुं अंतिः भेट्यौ रे गुरुराज, ढाल-८. ३०८८१. (#) हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५-१६४३७-४१). " अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १३वी आदिः प्रणिपत्यार्हतः अंति (-), (पू.वि. देवकांड द्वितीय श्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) ३०८८२. नेमजीरा नवभव, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२३.५४११.५, १५४४४). " राजिमती : भव वर्णन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि; कीम आया कीम फिर अंतिः जादु रथ पाछो फेरोजी, गाथा- १८. ३०८८३. लघुसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., ( २६१२, १०x२७-२८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चउविसजिणे तसु; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४२. ३०८८४. संसारदावानल स्तुति सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. महिंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ., जैवे. (२५.५४११. २४३९-४०). " संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर, अंति देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. संसारदावानल स्तुति- अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: अहं वीरं नमामीति, अंतिः इति पंचाशकवृत्ती. ३०८८५ (+४) अढीद्वीपनो विचारसंग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११, १६-२३x४५-५४). अढीद्वीप वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: भरत ५ हेमवत ५ हरिवास; अंति: शेषांक १८३४७२. For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०८८६. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ९, जैदे., (२६४११.५, १७४४२). १. पे. नाम. अष्टमि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल याठ करि जस आगल; अंति: तपथी कोडि कल्याणजी, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रे उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८उ, आदि: पहिले पद जपीइ अरिहंत; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: जो तुसे देव अंबाई, गाथा-४. ६. पे. नाम. राधनपुरमंडन ऋषभदेव स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-राधनपुरमंडन, मु. ऋद्धिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर अति अलवेस; अंति: पंडित वृद्धिदोजी, गाथा-१. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति-दीपावली, पृ. २अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. शुभविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान प्रभु विच; अंति: नित नित मंगल गावेजी, गाथा-४. ८. पे. नाम. आध्यातमिक स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. मु. उत्तमचंद; पठ. मु. बालकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठी सवारे सामायिक; अंति: थाउ सीवपद भोगीजी, गाथा-४. ९. पे. नाम. पार्श्वनाथजी थुइ, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, वा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवु पाय; अंति: देवविजय जयकारि, गाथा-४. ३०८८७. गुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. लधा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५, ११-१२४३५-३८). गुरु सज्झाय, ग. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवा सुरत; अंति: बुद्धिसागर गुरु सीसी, गाथा-१६. ३०८८८. द्वादशव्रत स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११, १३४४४-४७). १२ व्रत चौपाई, मु. आनंदकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: प्रणमुं सरसति सामिणी; अंति: आनंद० दिन होइ कल्याण, गाथा-७४. ३०८८९. (+) गुणस्थानकक्रमारोह सूत्र, अपूर्ण, वि. १८०९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, जीर्ण, पृ. ५-१(१)=४, प्रले. ग. जससागर; पठ. मु. जसवंतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १३४४७). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदिः (-); अंति: चैव रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३५, (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से है.) ३०८९१. (+) पचखाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४७, आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. आडिसनगर, प्रले.पं. वीरमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथ प्रसादात्।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १८४५२). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: अप्पाणं वोसरामि. ३०८९२. (#) स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पठनार्थे का नाम मिटाया हुआ है।, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३७-४१). १.पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन, मु. भयरव, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनपतिरे वीर; अंति: भयरव० सूख संपति देव, गाथा-३९. For Private And Personal use only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. ओगणत्रीश भावना छंद, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. २९ भावना छंद, मा.गु., पद्य, आदि: अविचल पद मन थिर करी; अंति: समरशे ते तरशे संसार, गाथा-३१. ३०८९३. सीमंधरजिन वीनति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. द्रांगद्र, जैदे., (२६४१२, १५४३५). सीमंधरजिनविनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुणि श्रीमंधर साहिबा; अंति: मुज मानस सर हंस, गाथा-३४. ३०८९४. कथा व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १७४३५). १.पे. नाम. सुरप्रीयाश्रेष्टी कथा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अशोकदत्त कथा-वंचनाविषये, सं., गद्य, आदि: दक्षिणमथुरायां अशोक; अंति: कर्मफलमत्र वदति संतः. २. पे. नाम. सीमंधरजिन वीनती, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिनविनती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्री जीरे सीमंधर; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३०८९५. (#) बावनी, कवित, स्तवन व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२५-१८५३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १७X४७-५१). १.पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, वि. १८२५, आषाढ़ शुक्ल, ७, मंगलवार. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: ॐ अक्षर सार सयल; अति: कीध सुगुरू पाए नमी, गाथा-५३. २.पे. नाम. कवित-स्त्रीचरित्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. क. गद, मा.गु., पद्य, आदि: स्त्री चरीत्र एकलष; अंति: नारि आगल कुण नर नचया, गाथा-२. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन- गोडी, पृ. ४आ, संपूर्ण, वि. १८५३, पौष शुक्ल, १५, प्रले. पं. विवेक, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: अमे आउनेहडो कदी; अंति: गीड्यों खीली हुआ खीर, गाथा-७. ४. पे. नाम. सवैयो, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: गंग तुरंग समुद्धल; अंति: महाराज हमारी आशीष हे, गाथा-१. ५. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण.. दूहा संग्रह , मा.गु., पद्य, आदि: फूल वीण झुरे पेपली; अंति: पुत्र वीण झुरे जाय, गाथा-१. ३०८९६. हस्तसंजीवन व भाग्यपंचाशक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११,१७४५४). १. पे. नाम. हस्तसंजीवन-स्त्रीभाग्यपंचाशिका, पृ. १अ, संपूर्ण. स्त्रीभाग्यपंचाशिका-हस्तसंजीवन, हिस्सा, सं., गद्य, आदि: विवेकात क्रियते; अंति: स्त्रीभाग्यपंचाशिका. २.पे. नाम. पुरुषभाग्यपंचाशक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भाग्यपंचाशिका-पुरुष, सं., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपार्श्वे; अंति: नित्यंयतः प्रैधते, श्लोक-२१. ३०८९७. चतुर्विंशतिजिनेंद्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३३-३८). २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं करीजे; अंति: भक्ति द्यो कंठमेरे, गाथा-३१. ३०८९९. युगप्रधान स्वरूप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, -१४-१). युगप्रधान विवरण कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३०९०१. वसुधाराविद्या-कल्प सहित, संपूर्ण, वि. १८३१, आश्विन कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सुरतबिंदर, प्रले. पं. सुमतिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १९-२०४४२-४३). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: (१)मभ्यनंदन्निति, (२)विजयकरं भवति. ३०९०२. (+) आर्यवसुधारा धारिणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १६४५२-६१). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. ३०९०३. शत्रुजयमहातीर्थ कल्प, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. पूरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, ११४३५). शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुय धम्मकित्तियं तं; अंति: लहुं सितुंजय सिद्धिं, गाथा-३९. ३०९०४. (#) वर्धमान सत्तावीसभवविस्तार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. गमानविजय; पठ. श्रावि. गुलाब, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३-१४४३६-३९). For Private And Personal use only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंति: विजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८७. ३०९०७. साधारणजिन स्तोत्र सह अवचूरि व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११,७४३३). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तव सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो य; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, आदि: देवाः प्रभोयमिति; अंति: श्रीजयानंदसूरिनाम. २. पे. नाम. समासलक्षण श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३०९०८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७०७, आश्विन कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. मतिलाभ गणि (गुरु ग. हेमलाभ, अंचलगच्छ); गुपि.ग. हेमलाभ (अंचलगच्छ); पठ. श्रावि. सहज्यो, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४३१-३८). १. पे. नाम. सीमंधिरस्वामि स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: पूरि आस्या मनतणी, गाथा-१८. २. पे. नाम. थंभणापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मूरति सामी थंभणो; अंति: पसायइ तत्व परिछीइ, गाथा-५. ३०९०९. स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १९४४३). १. पे. नाम. शंखेसर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी कल्प; अंति: पास जिनवरतणी राजगीता, गाथा-३६. २. पे. नाम. भ्रमर गीता नेमजी स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समुद्रविजयनृप कुलतिल; अंति: प्रभु थुण्या सानुकूल, गाथा-२७. ३. पे. नाम. बीलभद्र महामुनि सझाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका हुंती नीकल; अंति: ए धर्मने नही को तोलि, गाथा-२९. ३०९१०.(+) वंदित्तुसूत्र सह अर्थदीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १८-१९४५८-६१). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-). वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: जयति सततोदयश्रीः; अंति: (-). ३०९११. वीतराग स्तोत्र की अवचूरि-१ प्रकाश, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १९४६१). वीतराग स्तोत्र-अवचूरि, मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., गद्य, वि. १५१२, आदि: जयति श्रीजिनो वीरः; अंति: (-). ३०९१२. विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १७X४६). विंशतिजिन स्तवन, म. जिनदास, प्रा., पद्य, आदि: भव्वकमलमायंडं सिद्धं; अंति: भणिदं जिणदास बंभेण, गाथा-२६. ३०९१३. जीवविचार स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४११,१६४५२). आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउं पणमीय देव; अंति: विजयतिलओ निरंजणो, गाथा-२१, संपूर्ण. ३०९१४. पार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले.ग. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४४०). For Private And Personal use only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिअ गौतम गणहरू ए अंतिः विनयकुशल मंगल करो, गाथा ४३. ३०९१५. ऋषभ समतामुखलता स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२६.५x११.५, ९-१०४३४). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन- समतामुखलतागुणगर्भित, वा. सकलचंद्र, प्रा. मा.गु., पद्य, आदि: विबुहारियामयदिष्ठि; अंतिः सेवक सकलचंद कृपा करी, गाथा ३०. ग्रं. ४०. ३०९१७. समक्त्वद्वादशव्रत आलापक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५X११, १६-१७x४४-४८). सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक संग्रह, प्रा. सं., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणा, अंति: उवसंपज्जताणं विहरामि ३०९१८. (+) योगविधि कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें वचन विभक्ति संकेत., जैवे. (२६११, "" , १७४४८). योगानुष्ठान कुलक, प्रा., पद्य, आदि: जोगाणुड्डाणविहिं अंतिः ता सुत्तं अहिवंतु, गाथा- ३०. ३०९२०. (+) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६x११.५, १३x२९-३२). १. पे. नाम, नववाडि सज्झाय, प्र. १-३आ, संपूर्ण ९ वाड सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी, अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल १०. २. पे. नाम. शीयल विषे सीखामण सज्जाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीयलविषे, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदिः एतो नारि रे बारि छे; अंति: जे जगमांहि जयकरा, गाथा - १०. ३०९२२. सिद्धदंडिका विचार व अंख्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६१०.५, १३x४१). १. पे नाम. सिद्धदंडिकाअंख्य, पृ. १अ संपूर्ण. सिद्धदंडिका यंत्र, सं., को. आदि: (-) अंति: (-). 1 २. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाउ अंतमुह, अंतिः दिआदितु सिद्धि सुहं गाया- १३. (+) ३०९२३. ज्ञानाज्ञान विचार भगवतीसूत्रे संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२६११, २३१७-५४). भगवतीसूत्र - विचार संग्रह संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३०९२४. (+) वासठ वर्गणा, संपूर्ण वि. १६४२, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ मु. केसर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६.५X११. ३५-३७४१६-१९). , ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चउदभेद जीवना; अंति: १५ लेश्या ६ लाभइ. " ३०९२५. । सझाय व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२६.५४११.५. ११x४०). १. पे. नाम. सीखामण स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम तणो मुज ऊपरि; अंति: रंग० साचो दीन दयाल, गाथा-६. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामाह्वयति नियमेन, श्लोक - ९. ३०९२६. (#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६X१२, १६ X५३-५६). १. पे. नाम. सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. समकितना सड़सठ बोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल - १२, गाथा- ७७. २. पे नाम, लक्ष्मीसूरि भास. पू. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ लक्ष्मीविजयसूरि भास, मा.गु., पद्य, आदि: घडीय न विसरे ला घडीय; अंति: रटडे बेली सांभरोला, गाथा-५. ३०९२७. (#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६-१७-२६-३२). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. ग. तत्त्व, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर सुणो वीनती; अंति: तत्व नमिइं नीत पाय, गाथा-१२. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. ग. तत्त्व, मा.गु., पद्य, आदि: सामवरण श्रीनेमिजिणेस; अंति: तत्त्व कहि सुखकार, गाथा-११. ३०९२८. स्तवन व सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३४३७). १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो स्वामि हे; अंति: वाचक रामविजय कहेजी, गाथा-९. २.पे. नाम. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलूंका; अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय २ तक है.) ३०९२९. सझाय संग्रह व स्तवन, अपूर्ण, वि. १७४९, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रारंभिक पाठ नहीं है एवं प्रतिलेखक ने पत्र क्रमांक १ दिया है. जो अशुद्ध होने से यहाँ काल्पनिक पत्र क्रमांक २ दिया गया है., जैदे., (२६४११, १३४३६). १.पे. नाम. समकित के पंचभूषण विचार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २.पे. नाम. सीमंधरस्वामी विहरमान विनती स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. पं. मतिहंस (गुरु ग. तत्त्वहंस); पठ. ग. सुमतिधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सारकर सारकर सामी; अंति: माहरी सकल सिद्धी, गाथा-७. ३. पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. मति, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति धर्म साचो जती; अंति: मति० जियारो भाग, गाथा-५. ३०९३०. वादिमत निरासस्थल, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. देवगिरि, जैदे., (२५४१०.५, १६४५४-५८). वादिमत निरासस्थल, सं., पद्य, आदि: शब्दोयप्रतिपन्नशब्द; अंति: परस्पर सव्यपेक्षान्, श्लोक-२६. ३०९३१. (+) एकाक्षरी नाममाला व अमृतध्वनीसह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १३४४०-५४). १.पे. नाम. एकाक्षर नाममाला, पृ. १अ, संपूर्ण. __एकाक्षरनाममाला, सं., पद्य, आदि: अः कृष्णः आः स्वयंभू; अंति: काक्षराणमियमया, गाथा-२०. २. पे. नाम. अमृतध्वनि सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. अमृतध्वनि, पं. भानुविजय, सं., पद्य, आदि: जनतानंदन मंदनर परतर; अंति: प्रवहण सिद्धिप्रकरण, श्लोक-२. अमृतध्वनि छंद-टीका, सं., गद्य, आदि: न विद्यते कुकुत्सिता; अंति: अनेन सस्यामंत्रणे. ३०९३२. पंचंगुलिमंगल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४१०.५, १३४४८). पंचांगुलिमंगल स्तोत्र, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सामी सीमंधर पइ नमेवि; अंति: इम हरख पयंपइ वार वार, गाथा-३६. ३०९३३. स्वप्न विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १०-११४४२-४४). स्वप्न चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५६०, आदि: पहिलुमन जोई करी, अंति: संघकुसल एणी परि कहे, गाथा-४२. ३०९३४. शेव्रुजा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १२४३४). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामिनी, अंति: सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा-१६. For Private And Personal use only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०९३६. नवकार छंद व पार्श्वजिन स्तव, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ., (२३.५४११, १२४३८). १. पे. नाम. नवकारपंचपरमेष्टीमहा सझाय, पृ. २अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: गुण सुंदर सीस रसाल, गाथा-१४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: योगातमानं मधुरंधुरं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र अंतिम पद नहीं है.) ३०९३७. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. चंपाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२-१३४४९-५०). २४ जिन नमस्कार, मु. लखमो, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पढम जिनवर पढम जिनवर; अंति: भणे सफल करूं संसार, गाथा-२५. ३०९३८. चैत्यवंदनभाष्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १७-१८४४५-४९). चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: परमपयं पावइ लहुं सो, गाथा-६३. ३०९३९. स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १५४३७). १. पे. नाम. नंदीसर स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, मु. मेरु, अप.,मा.गु., पद्य, आदि: सिरि निलय जंबुदीवो; अंति: मेरु सुभत्तइ बोलइ, गाथा-२५. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जागत सुत निसि गति भइ; अंति: कीनी भलइ आए व्रत लाल, (वि. गाथा क्रमांक नहीं लिखा है।) ३०९४०. नेमिनाथ हमची, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११, १४४४१-४३). नेमिजिन हमचडी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सरस वचन दिउ सरसती रे; अंति: वरतिउ जयजयकारो रे, अधिकार-२, गाथा-८२. ३०९४२. श्रावक व श्राविकाइछा प्रमाण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. आ. माणिक्यकुंजरसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १९४४८). १.पे. नाम. श्रावकइछा प्रमाण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ श्रावक इच्छापरिमाण, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय सुहुगुरु लेइसु; अंति: मासि अमुका गिहिधम्म, गाथा-२३. २.पे. नाम. श्राविकाइछा परिमाण, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राविकाइच्छा परिमाण, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: वंदीय गाथा दिवसि; अंति: मासि साविय गिहिधम्मं, गाथा-२२. ३०९४४. ऋषभदेवनु सलोको, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११, ११-१२४३३-३४). आदिजिन सलोको, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमीय; अंति: प्रेमविजय० उलट आणी, गाथा-४०. ३०९४५. (+) स्तुतिचोवीसी सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४१०.५, १५४४७). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: (-), (पू.वि. सुपार्श्वजिन स्तुति-२ __अपूर्ण तक है.) स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: म० महत्यो नष्टा आपदो; अंति: (-). ३०९४६. बारव्रतउच्चार विधि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४०). १२ व्रतउच्चारण विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: प्रथम्मनंदित्रिः; अंति: (-). ३०९४७. (+) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १६५२, कार्तिक कृष्ण, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, ले.स्थल. देवपत्तन, प्रले. मु. हंसविजय (गुरु ग. विमलहष); गुपि.ग. विमलहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ९-११४३३-३७). For Private And Personal use only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रूद्दाओ सुअ समुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा - २९ अपूर्ण से है.) ३०९४८. अनुयोगद्वार की वृत्ति स्थापनाचार्यविचार, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५-३ (१ से ३ ) -२, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैवे., (२६×११, १६-१७४५१-५३). अनुयोगद्वारसूत्र - टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३०९४९. संभवजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५X११.५, १५X४०). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गांगा, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जीनवर रुपे रुडा, अंति: गंग० एणी परे उचरे रे, गाथा-११, (वि. दो पाद के हिसाब से गाथांक ११ लिखा है.) २. पे. नाम. निशालगरणुं, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- निसालगरणुं, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जीन आणंदो ए; अंतिः सेवक तुझ चरणे नमे ए, ९७ गाथा - १९. ३०९५०. पार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६७, नागषडश्व चंद्र, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. गाथा- २३., प्रले. मु. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६११, १४-१८४५५-५९). " पार्श्वजिन स्तवन, उपा. शांतिचंद्र, मा.गु, पद्य, आदि: मंगलमाला मंदिरु केवला, अंतिः संतिचंद्र कहै जयो, गाथा- २३. ३०९५१. (4) सीलबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६११, ११४३४-३९). शीलबीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सील रतन जतने करि राख; अंति: राजसमुद्र० विचार जी, गाथा-३२. ३०९५२. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६११.५, १६×३९). विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीये क्रमस्य; अंति: ७ में कह्यौ छे. " ३०९५३. श्रीपूज्य वाहण गीत, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. आंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२६४११, ११४४२-४३). श्रीपूज्य वाहण गीत, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो प्रणमुं प्रथम, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-४७ अपूर्ण तक है.) "" ३०९५४. (+) आदिनाथ स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. मु. भुवनविजय (गुरु ग. भुवनकीर्ति); पि. ग. भुवनकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२६११, ५-७x४१-४७). आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं पणमीय देव, अंतिः विजयतिलक निरंजणो, गाथा २१. - आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीविजयतिलकमहो; अंतिः कविनां निष्कलंक:, ३०९५५. षष्टिशतक प्रकरण व एकविंशतिस्थान प्रकरण, अपूर्ण, वि. १५वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैवे. (२६४११.५, २०४६१-६८). १. पे. नाम षष्टिशतक प्रकरण, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. आव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जाणंतु जंतु सिवं, गाथा- १६१. २. पे. नाम. एकविंशतिस्थान प्रकरण, पृ. ३-३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३५ अपूर्ण तक है.) ३०९५६. बुध रासो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६ १०, १३-१४X४६-४८). 1 बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु. पथ, आदि: पणमवि देवि अंबाई, अंतिः तिणसुंटले कलेस तो, गाथा- ६९. ३०९५७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३०, आषाढ़ शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. देहेगाम, प्र. मु. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५४११.५, १३४३३-३७). १. पे. नाम. त्रिंसठसलाखापुरुष स्तवन, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. ब्रह्मकामराज, मा.गु., पद्य, आदि: आनंदामरीत छंदा घरी; अंति: सीध वली आगलि कह्या, गाथा-२६. २.पे. नाम. बंभणवाडि स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-बंभणवाडतीर्थ, मु. भाव, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: सरस वचन दिउ सरसति; अंति: संघ सकलनइं जय करो, गाथा-३२. ३०९५८. (+) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १९४५२). देवपूजाफल कथासंग्रह, सं., गद्य, आदि: देवपूजाफले थोरीकुरुन; अंति: (-), (पू.वि. सत्यकी कथा तक है.) ३०९५९. कायाकुटुंब गीत सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, ४४३९). औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलु न मानइ रे काइ; अंति: पंडित अर्थ विचार, गाथा-१२. औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावनाइं माहि; अंति: मात्र सोधी वांचज्यो. ३०९६०. (+) स्तवन, स्तुति व चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८१२, भाद्रपद, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ४, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक संदिग्ध १ से ३ दिया है, लेकिन प्रारंभ की कृति अपूर्ण है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ११४३३-३५). १.पे. नाम. वीतरागअष्टोत्तरनाम स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मान० होय अविचल संपदा, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से : २. पे. नाम. छन्नूतीर्थंकर नमस्कार, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. ९६ जिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण भाव धरी घणो; अंति: मान नमइ आणंद, गाथा-६. ३. पे. नाम. वासुपूज्यजिन नमस्कार, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य जिणंद देव; अंति: मान० हुई भवनो छेह, गाथा-४. ४. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रोहिणी चंद्र नक्षत्र; अंति: मान कहइं उत्साहें, गाथा-४. ३०९६१. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२६४११.५, १७७५२). १. पे. नाम. तपविषये स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. तप सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदिः (१)निरलोभी इछातणो रोध, (२)शक्ति सभावे तप कह्यो; अंति: ज्ञान० प्रगटे आतमरूप, गाथा-२+१३. २. पे. नाम. द्वादसवत सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, फाल्गुन शुक्ल, ३, ले.स्थल. मंगलपुर. १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी धन वुठडो भवि; अंति: तिलकविजय जयकार, ढाल-१२. ३. पे. नाम. सामायकव्रतविषये स्वाध्याय, पृ. ३अ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक मन सुद्धे; अंति: व्रत पालो निसदिस, गाथा-५. ४. पे. नाम. जीवउपरे सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: किसकेरे चेले किसके; अंति: विनय० सुखे भरपूर, गाथा-६. ५. पे. नाम. आठकर्मविषे स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: कर्म समो नही कोई, गाथा-१८. ३०९६२. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-२०(१ से २०)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११,१९-२१४५८-६५). १.पे. नाम. तीर्थमाला, पृ. २१अ-२२आ, संपूर्ण. तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: अरिहंत भगवंत; अंति: मुणिविंद थुय महिया, गाथा-१११. For Private And Personal use only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ९३०-३३). www.kobatirth.org २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २३अ २३आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि जयतिहुयणवर कप्परुक्ख, अंतिः विष्णव अणिदिय, गाथा - ३०. , ३. पे. नाम, शांतिनाथदेव स्तवन, पृ. २३आ, संपूर्ण शांतिजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि शांतं कांतं शिवपदगतं, अंतिः सत्यनामा जिनेंद्र, श्लोक-३. ३०९६३. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण वि. १७७४ आश्विन शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, गोधरा, जैदे. (२६५११, . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . पगामसझायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि पडिक्कमिङ, अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं. ३०९६५. (+) केसरीया ऋषभदेव छंद, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. वीरमगाम, प्रले. पं. ऋषभसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित जैये. (२६४१२, १३-१४४३०-३३). आदिजिन छंद - केसरीयातीर्थ, पं. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि धरणेंद्र इंद्राणी, अंति: जस जपे तस नवनिधये ३०९६६. स्तवन-सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, ले. स्थल. झेरडा, प्रले. मु. मेघविजय (गुरु मु. नेमिवजय); गुपि. मु. नेमिवजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११, २२x६२-६६). १. पे. नाम. पार्श्व १२ मास, पृ. १अ, संपूर्ण, ले. स्थल. झेरडा. पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण पावस उलह्यो; अंति: आपे जिनहर्ष आणंद रे, गाथा - १३. २. पे. नाम. धन्नाकाकंदीनी स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. अन्ना अणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने ववरागी हो, अंतिः देवविजय० जय जयकार रे, गाथा - १२. ३. पे नाम. शुलीभद्र नवरस, पृ. १आ २आ, संपूर्ण स्थूलभद्रमुनि नवरसो, वा उदयरत्न, मा.गु, पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत्ति दायक सदा अंतिः मनोरथ सवि फल्या रे, ढाल - ९. ४. पे. नाम. बुद्ध रास, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, ले. स्थल. वातिमनगर. बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवी अंबाई पंच, अंति: तस टले सकल कलेश तो, 3 ९९ गाथा - ६१. ५. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. तिलकविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः आसापूरण पास में दीठो अंतिः मिलहो सुजगीश हो, गाथा - ११. ६. पे नाम. अज्ञात कृति अंश, पृ. ३आ, संपूर्ण. " अपूर्ण जैन काव्य / चैत्य / स्त / स्तु / सझाय / रास / चौपाई / छंद / स्तोत्रादि *, प्रा., मा.गु. सं., हिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १५ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक लिखा है., वि. यह अज्ञ रासादि कृति का अंश मात्र प्रतीत होता है.) ३०९६७, (+) व्रण नेसरणी संग्रह, संपूर्ण वि. १९०८, आषाद शुक्त, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३. ले. स्थल, बजांणा, प्रले. मु. जशानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिजिन प्रसादात्।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १४४३१-३३). १. पे. नाम. मोक्ष सरणि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मोक्ष निसरणि, मु. हुकमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेशर पाए नमुं; अंति: ते लहे सिवरमणिने गेह, गाथा - १९. २. पे. नाम सरण नेसरणि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. हुकमचंद मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जनेसर पाए नमी, अंतिः किधि श्राविका हेत, गाथा-१५. ३. पे. नाम. नरक नेंसरणि, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. नरक निसरणि, मु. हुकमचंद मा.गु., पद्य, आदि: जंबू प्रसन पुछियु, अंतिः विघां नरक दुबार रे, गाथा-२०. . For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०९६८. (#) नवरस गीत, संपूर्ण, वि. १७७९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. प्रेमकुशल (गुरु मु. विद्याकुशल); गुपि.मु. विद्याकुशल (गुरु ग. केशरकुशल); ग. केशरकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५-१६x४७-५०). स्थूलिभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: करी शृंगार कोशा कहि; अंति: कहि० हुं जाउ बलिहारी, ढाल-९. ३०९६९. (#) सुबाहुरिषि संधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १३४४१-४३). सुबाहकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६०४, आदि: पणमि पास जिणेसर केरा; अंति: थायउ नित भणतां, गाथा-८९. ३०९७०. (+) स्तोत्र संग्रह व नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १८-१९४४२-४४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. २.पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. शंखेश्वर स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, सं., पद्य, आदि: सौभाग्यभाग्या; अंति: देव सदास्व सेवा, श्लोक-१५. ४. पे. नाम. चउविसतिजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, ग. संघविजय, सं., पद्य, आदि: वृषभलांछनलांछित; अंति: भवतु देहवतां सदैव, श्लोक-२९. ५. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, आ. विजयसेनसूरि, सं., पद्य, आदि: मनसि मानव मानव; अंति: लभते सुदृशां श्रियम्, श्लोक-१०. ६. पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, वि. १८३८, चैत्र कृष्ण, ४, ले.स्थल. अंजारनगर, पठ. मु. बालकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. ७. पे. नाम. नवकारनो छंद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: सिद्धि वंछित लहे, गाथा-१३. ३०९७१. (#) सप्ततिशतजिननामग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६४६, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मुंडाडानगर, प्रले.ग. विजयसुंदर; पठ. श्राव. साहजी रंगा वुहरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५४-५५). सत्तरिसयजिन स्तवन, पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरसति भगवति; अंति: सेवा श्रीजिनवरतणी, गाथा-६१. ३०९७२. वीतराग स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ४-६४४२-४४). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा परं; अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश ४ तक है.) वीतराग स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: यः किल परात्मा सश्रद; अंति: (-). ३०९७३. भक्तामर भाषा व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, १४-१५४५२-६०). १.पे. नाम. भक्तामरकाव्य गीता, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. देवविजय, पुहिं., पद्य, वि. १७३०, आदि: भक्त अमरगण प्रणत; अंति: ते नर लछि के भरतार, स्तवन-४४. १२. For Private And Personal use only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १०१ २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. वा. देव, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिन साभलो; अंति: दीजइ ज्ञान सनूर हो, गाथा-७. ३०९७४. (+) भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, १३४४४-४८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भक्ता० य० अहमपि; अंति: उच्चं तुंगमाश्रयति. ३०९७५. (+) माण्णिभद्रनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ११४३४). माणिभद्रवीर छंद, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति नित सेवीत सुभ; अंति: माणिभद्र जय जय करण, गाथा-२१. ३०९७६. अमृतवेली, संपूर्ण, वि. १८०८, चैत्र कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. धनकुअरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४३७). अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजुवालीए; अंति: सुजस ____ रंगरेलिरे, गाथा-२९. ३०९७७. सिद्धसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. श्राव. पनजी रतन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १६-१७४४६-४८). सिद्धसहस्रनाम कोश, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्री श्री:प्रणिधान; अंति: (१)धीरः श्रीरमणः श्रिये, (२)यांति न संशयोत्र, अध्याय-१० शतक, श्लोक-११३. ३०९७८. वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य.ग. लावण्यलब्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४४८-५८). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा पर; अंति: नातः परं ब्रुवे, प्रकाश-२०. ३०९८०.(+) गौतमस्वामीनो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ११-१३४३६-३९). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: विरजिणेसर चरण कमल; अंति: विजयभद्र० इम __ भणे ए, गाथा-६१. ३०९८१. महावीर स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ९४५०). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: पढयकयं अभयसूरिहिं, गाथा-२२. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जइवंत हवो कुण ते; अंति: अभयदेवसूरिनो कीधो. ३०९८२. स्वाध्याय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४११, १८४३५-४७). १.पे. नाम. साधुपद स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुपद सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साधक साधज्यो रे निज; अंति: नमिये ते मुनिराज, गाथा-१३. २.पे. नाम. मुनिगुण स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगतमें सदा सुखी मुनि, अंति: जाई निज संपति महाराज, गाथा-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु नाथ तूं त्रिहु; अंति: नित्यात्म रस सुख पीन, गाथा-२१. ४. पे. नाम. वज्रधरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: मुक्ति मुझ आपयो, गाथा-७. For Private And Personal use only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०९८४. स्तवन संग्रह व स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, पठ. गंगा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५४१०.५, ११x४२-४३). १. पे नाम. गुणस्थानविचारगर्भित महावीर स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. - महावीरजिन स्तवन १४ गुणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर जिनरावना पत्र अंति वीरजिण सेवउ सदा, गाथा- २३. २. पे. नाम. चवीसडकविचारगर्भित महावीर स्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तवन- २४ दंडक विचारगर्भित, मु. उदयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल विमल जिणवर तणा, अंति उदयसागर सुहंकरो, गाथा-२३. ३. पे. नाम. इग्यारसिनी थुई, पृ. ३आ, संपूर्ण. एकादशी तिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीरिषभ अजित अंतिः सवि पूर संघ कज्ज, गाथा-४. ३०९८५. (+) विचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. ग. मानविजय (गुरु मु. मेघविजय); गुपि. मु. मेघविजय (गुरु मु. अमरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें त्रिपाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६५११, ५x५२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदिः नमिडं चडवीस जिणे, अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ " गाथा - ३८. " ३०९८७ विचार संग्रह व स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (२५x९.५, ३२x१६-१७). १. पे. नाम षड्द्रव्यस्वरूप विवरण- योगशास्त्रवृती, पृ. १अ १आ, संपूर्ण योगशास्त्र- स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. दशार्णभद्रनृपस्मचद्रुहइंद्रस्य, पृ. १आ, संपूर्ण. सं. गद्य, आदि: ६४ करिण ५१२ मुखानि अंति: २६२१४४०००००कमलदलानि ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सर्वापराधविगमप्रकटी; अंतिः प्रदेयात्सर्वदाभितः, श्लोक-१. ३०९८८. साधुपाक्षिकादिअतिचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे., (२५.५x११. १०-११X३५-३९). साधुपाक्षिक अतिचार क्षे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०: अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०९८९. जिन चोविसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५X११.५, १६x४५-५३). 1 जिनगीतचौवीसी, मु. आनंद, मा.गु. पद्य वि. १५८१, आदि आदि जिनंद मया करो, अंति: आणंद मुनि गुणगाया, स्तवन- २४. ३०९९० वीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे, (२५X११.५, १४४४०-४३ ). गौतमस्वामी दीपालिका रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गौतम भणई; अंति: हीरगुण गुरु विचारी, गाथा-७५. ३०९९१. (+) चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, १५X४३). २४ जिन स्तवन, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४९, आदि: कमलदल सम लोचना चंद्र, अंति: तत्व एणी पर मुदा, गाथा-५६. ३०९९२ तेरेकाठीया सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२४४११, १३४३३). १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि सोभागी भाई काठीया, अंतिः शीस उत्तम गुण गेह, गाथा- १५. ३०९९३ चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २, पठ श्रावि बाइ रामो, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x१०.५, ११X३४). २४ जिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: जिनर्षभप्रीणितभव्य अंति: हृदये समास्ताम् श्लोक- ९. For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १०३ ३०९९४. (+) गुणमालिनीनामअध्यात्मोपनिषत् सह लघुविवरण, संपूर्ण, वि. १७९३, वैशाख, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. "वैशाखार्द्धरत्नेनरत्नत्रयसंपदेषिणा" ऐसा पाठ मिलता है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४११, ११४३७-३८). गुणमालिनीनाम अध्यात्मोपनिषत्, मु. रक्तचंद्र शिष्य, प्रा.,सं., प+ग., आदि: गुणरत्नाकरं वंदे; अंति: चंद्राय गुरवे नमः. गुणमालिनीनाम अध्यात्मोपनिषत्-लघुविवरण, सं., गद्य, आदि: ॐनमो विश्वरूपाय; अंति: रत्नशंकरी भूयात्. ३०९९५. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४११, १४४४२). चतुर्विंशतिजिन स्तुति, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: श्रीमानाद्यजिन श्रिय; अंति: हृदया सामोददे हे मदे, श्लोक-२८. ३०९९६. पुण्यफल सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १३४३४). पुण्यफल कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस; अंति: पणवीसं सास उसग्गो, गाथा-१५. पुण्यपाप कुलक-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुषनउं आऊसुवरस; अंति: वीतरागनुधर्म करिवु. ३०९९७. (4) गुरुनाममिश्रितचउवीसजिन थवनथूईनमस्कार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. सा. गुणश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४४२). स्तुतिचतुर्विंशतिका-दानसूरि-हीरसूरिनाममिश्रित, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस सकोमल वाणी; अंति: सूरिंद पुहवी जयउयउ, गाथा-२९. ३०९९९. लक्ष्मीनाममाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४१०.५, १५-१७४३८-४३). पाइअलच्छी नाममाला, जै.क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. १०२९, आदि: णमिऊण परम पुरिसे; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीय कांड तक लिखा है।) ३१०००. अध्यात्मगीता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्राव. त्रीकमजी माहवजी दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३८-४०). अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमियै विश्वहित; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४८. ३१००१. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. कीर्तिसागर; पठ. मु. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३८. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: वीतराग नमोस्तु ते, श्लोक-२७. ३१००२. वह च्यैतवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. श्लोक-१५ अपूर्ण से है., जैदे., (२५.५४११, १३४४२). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: हरो० नमस्तस्मै, श्लोक-४३. ३१००३. सकलार्हत् चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक-२८ तक है., जैदे., (२५.५४१२, १५४३०). सकलाहत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-). ३१००४. (१) वासुपूज्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५.५४१२, १२४३०-३३). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: शासनदेवता सामणी ए; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३२. For Private And Personal use only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१००५. (#) साधारणजिन स्तव सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक-२ तक है., प्र. वि. त्रिपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, २x४५ ). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं, अंति: (-). साधारणजिन स्तव टीका, सं., गद्य, आदि: हे प्रभो हे स्वामिन: अंति: (-). www.kobatirth.org - ३१००६. अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. विरपुर, जैदे., (२५.५X१२, १२X३२). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम् ३१००७. तीरथमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५X१०, ९-१०X२८-३३). तीर्थमाला स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य वि. १७वी, आदिः समरसि समरसि सरसति, अंतिः स्ये मंगलमाला ते 1 लहे, गाथा - ५५. ३१००८_ (+) नवस्थानसहित चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे., (२६X११, १३x४८). २४ जिन स्तवन- ९ बोल युक्त, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: ऋषभ प्रमुख चउवीस, अंति: मंगल सुख लहइ, गाथा - २७. ३१००९ (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. कनककुशल, पठ. ग. जगरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११, ११३०-३३). २४ जिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: मूर्द्धन्यी भाव अंतिः सुयुक्ति युक्ता, श्लोक-२८. ३१०१०. परमेष्टिनमस्कार सज्झाय व पंचमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. सुरत, जैदे., (२५.५X११, ९-१०X३०-३१). , १. पे. नाम. परमेष्टिनमस्कार सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- ९ बोल युक्त, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: ऋषभ प्रमुख चउवीस; अंति: सकल मंगल सुख लहइ, गाथा-२७. २. पे नाम. पंचमी स्तवन, पृ. २अ ३आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तवन, मु. परमसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि प्रणमी, अंति: परम० संघ मंगल करो, ढाल - २, गाथा - २२. ३१०११. पंचमीमहिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५X११, ९X३०-३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय, अंति: भग भाव प्रशंसीयो, ढाल -३, गाथा - २०. ३१०१२. थुलिभद्र सजाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X१०.५, १३X३३-४५). " स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: थुलिभद्र मुनिसर आवो; अंति: लगी द्रुनी तारी, गाथा - १७. ३१०१३. जीवदया सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५x११, १२४३४). ', दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करु रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १८ तक लिखा है।) "" ३१०१४. महावीर स्तवन सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे. (२५.५X१०.५, ३४४१-४८). महावीरजिन स्तव बृहत् आ. अभयसूरि, प्रा. पद्य, आदि: जवज्जा समणे भववं अंतिः सतुमितेसु वा वि, गाथा-२१. " महावीरजिन स्तव - बृहत् - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जय क० कल्याण जा क०; अंति: होइ अनंत सुख पाम इ. ३१०१६. दसबोले चोवीसेजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८४३, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. वीरपूर, प्रले. मु. जीतहंस; पठ श्राव. कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४१२, १३४४३-४९). चैत्यवंदन चौवीसी, ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम जिन युगादिदेव अंतिः सीसना सरीया सथला काज, चैत्यवंदन- २४, गाथा-७५. For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१०१७. उद्धरण गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., ( २६११, १३-१५X४४-४५). जैन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाधा- १००. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१०१८ (०) शांतिजिन स्तुति सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, २-३x४०). ', शांतिजिन स्तुति, आ. ललितप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः यः स्वामी कारुण्यात्; अंति: वृद्धिं सिद्धं मे श्लोक-४. शांतिजिन स्तुति- टीका, मु. भावरत्न, सं. गद्य वि. १७६५, आदि: अहं तं शांति शांति, अंति: (१) पूर्णीभूतेष्टतेजसः, " (२)अथवोपलक्षणे तृतीयेति, ३१०१९. दादाजी की पूजाविधि व ज्ञानजी की आरती, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, १३×३२). १. पे नाम, दादाजी की अष्टप्रकारी पूजाविधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मु. ज्ञानसार, मा.गु. सं., पद्य, आदि: सकलगुणगरिष्टान् अंतिः रची शोधो कविजनवृंद. २. पे. नाम. ग्यांन की आरती, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्ञानगुण आरती, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: जयजय आरती ज्ञान, अंति: चिदानंद० तेज अमंदा, गाथा-५. ३१०२०. संख्यादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५X१०.५, १४-१५X४१-४२). संख्यातादि विचार, मु. सहजरत्न, मा.गु गद्य, आदि; संख्यात असंख्याताना; अंति: (१) शिष्यवर्गहितोषिणा, (२) श्रीसर्वज्ञ जाणे, १०५ ३१०२१. जीवअल्पबहुत्व विचार पन्नवणासूत्रगत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैवे. (२५.५४१०.५, १२x२१-३४)प्रज्ञापनासूत्र - बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. ९८ बोला) ३१०२२. (+) भव २७ संक्षेप, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रलं. ग. लब्धिउदय (गुरु वा. ज्ञानराज, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैये. (२५.५४११. १३४४०-४३). महावीरजिन २७ भव संक्षेपवर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: ( १ ) ग्रामेशस्त्रिदशो, ( २ ) जंबूद्वीप तिहां, अंति: आउ पाली मोक्ष पहुंता. ३१०२३. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५४११, १७४३८). " पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, सं., पद्य, आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस अंतिः बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११. ३१०२५. वसुधाराधारणी, संपूर्ण वि. १८११ आश्विन शुक्ल, १ बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. ग. भाणविजय (गुरु ग. दीपविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १४४४०-४३). आर्यवसुधारा, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंतिः मध्यनंदन्निति, ३१०२६. जीवविचार सह अक्षरार्थदीपिका अवचूरि, संपूर्ण वि. १६३८, श्रावण अधिकमास कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. स्वर्णगिरि, प्रले. मु. हंसविमल (गुरु ग. विवेकविमल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., ७-११×३९-४६). ,जैदे. (२६४१०.५, जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः रुद्दाओ सुवसमुदाओ, गाथा ५१. जीवविचार प्रकरण- अक्षरार्थदीपिका अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं किंचिदपि जीव अंतिः सकलसंघश्रेयसे त्विति ३१०३१. आठकर्म अट्ठावनसोप्रकृति विचार संक्षेपमात्र, संपूर्ण, वि. १८६४, माघ शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. मु. अमरसी (गुरु पं. उत्तमविजय गणि) पठ. श्राव. कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४१२, १६x४३-४९). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा, अंति: विषे उद्यम करवो. ३१०३२. विवेकमंजरी प्रकरण, अपूर्ण, वि. १५७२, आषाढ़ कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) =४, जैदे., (२५.५X१०.५, १५-१७४४३). " 1 विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि, प्रा. पद्य वि. १२४८, आदिः (-); अंतिः जलहिदिणेस वरिसम्मि, गाथा - १४४, (पू. वि. गाथा- ३५ तक नहीं है.) For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ ३१०३३. अध्यात्म सज्झाय सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३ ले, स्थल, वीर्यपुर, प्रले. पं. माणिकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. शांति प्रसादात् जैदे. (२६४११.५, ४x२३). , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलो न मांने रे; अंति: जोज्यो पंडित विचार, गाथा - ११. औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावनामांहि, अंति: होय ते विचारी जोजो. ३१०३४. इष्टोपदेश व पाणवत्तिया विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४. कुल पे २, जैदे. (२६११, १९४०-४४). १. पे. नाम. इष्टोपदेश, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. आ. देवनंदी, सं., पद्म, वि. ५वी आदिः यस्य स्वयं स्वभावाप; अंतिः निरूपमामुपयाति भव्यः श्लोक ५१. २. पे. नाम. पाणवत्तिया विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण. विचार संग्रह प्रा. मा. गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ३१०३५. शंखेश्वरपार्श्वनाथजी रो स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., ( २६११, ९-१०x२२-२८). पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती चित्तधरी; अंति: कल्याणसागर ज करो, गाथा-३४. ३१०३६. पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ६५ वी पाटे विजयदयासूरि तक है., जैदे., (२५.५x१०.५, २९५६-१६). पट्टावली*, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीर, अंति: (-). ३१०३७. थुलिभद्रनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५X११.५, ९-१०X२४-२५). 1 स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांति, मा.गु., पद्य, आदि: बोली गयो मुख बोल; अंति: पभणे शांतिमया थकीजी, गाथा - १३. ३१०३८. (१) महावीर व धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४४३). १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. कुशलहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: सरस वचनरस जिन तणु रे अंतिः नितु नवलि दिवाजे, १२-१५x२८-३४). १. पे नाम. झांझरिआॠषि सज्झाय, प्र. १अ- ३अ, संपूर्ण. गाथा - १३. २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मु. कुशलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः आज सफल दिन मुज तणो ए; अंति: आशा सवि फली ए, गाथा - ११. ३१०३९. झांझरियाऋषि सज्झाय व गीत संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे. ४, जैवे. (२५.५x१०.५, झांझरियाऋषि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महियलि मांहि मुनिवरु; अंति: लब्धिविजय कहि मनखंति, गाथा-३८. For Private And Personal Use Only २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मन तज्य रे गाम गमारा; अंति: मन मानइ० रस पीजीअ जी, गाथा-२. ३. पे. नाम, नेमनाथ गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. विद्याबुध, पुहिं., पद्य, आदि: अजब अजब अजब वीज; अंति: विद्याबुध नेमि वखाणइ, गाथा - १०. ४. पे नाम. विजयदेवसूरि पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. विजय, मा.गु, पद्य, आदि: चंदलीआ तुं पंथि छह अंतिः तत्त्वविजय दिन आशिष गाथा ५. ३१०४०. अतिचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२५.५x११.५, १५-१६४४०-५०). "3 साधुपाक्षिक अतिचार क्षे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०: अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्, " " Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १०७ ३१०४१, (+) स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११, १७४४४-४८). स्नात्रपूजा संग्रह”, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., आदि: प्रथम नित्यविधि, अंति: जाम गयण शशिभाण. 3., 4.,: ३१०४२. (+०) स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १७४५, मध्यम, पृ. ३ ले, स्थल, सांगानेर, प्रले. ग. युक्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १४-१६x४७). स्नात्रपूजा सविधि, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार, अंतिः पवाहिणं दितो. ३१०४३. (+) सबीजयोग, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पु. २, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६११, १४-१५४५६). १. पे. नाम. श्राद्धसबीजयोग विधि, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पट्टकुलनु मंडप, अंति: धनेषु० इणइ मंत्रि. २. पे. नाम श्राविकासबीजयोग विधि, पृ. २आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: तिहां पहिलं आरवाला; अंति: काम संघाति न हुई. ३१०४४. (+) राडंचपुरमंडण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैसे.. 1 (२६X११, १३X३५). महावीरजिन स्तवन- छट्टाआरानुं, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमी; अंतिः सयल संघ कल्याण करो, ढाल - ५, गाथा- ६५. ३१०४५. स्तवन संग्रह व हीरविजयसूरि गीत, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैवे. (२५.५४११, १५X४५-४७). १. पे नाम चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण २४ जिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु, पद्य, आदि: करि कच्छपी धरती अंतिः सेवक सकलचंद सुतारणं, गाथा- ३८. २. पे. नाम. शांतिनाथ रागमाला स्तवन, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन- रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरण मनोहरु; अंति: विनवै० सुख ते अनुभव, गाथा-३५. ३. पे. नाम. हीरगुरु स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि गीत, मु. सकल, मा.गु., पद्म, आदि: जेण दिन हीर गुरु वदन अंतिः सकल० गुण गंभीरो, गाथा-५. ३१०४६. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. ३. पू. वि. गा, जैये. (२६४११, १५४५१-५२). पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. चारित्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: ऐंद्रपदप्रियरूपभूप, अंतिः विनेय चारित्र सुहंकर, गाथा - ६५. ३१०४७. सत्तरभेदी पूजा व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५x१२, १९-२०X३८-४८). १. पे. नाम. सतरभेदी पूजा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पच, आदि: अरिहंत मुखकज वासिनी, अंतिः विनयवंत सफल करो, ढाल १७. २. पे. नाम. सत्तरभेदीपूजा स्तवन, पू. ३आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनि सोह; अंतिः बाधो सकल सवारथ धोरे. ( २५X११, ११३०-३८). १. पे. नाम. गर्भधारण विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ३१०४८. उपदेशमाला शकुन विचार, संपूर्ण, वि. १६६६, चैत्र शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. राजनगर, प्र. ग. उदयचंद्र (गुरुग. भानुचंद्र ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x११, १५४४४). " उपदेशमाला - शकुन विचार, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि उपदेशमालागाथायाः अंति भवउ मे स्वाहा वार ३. ३१०४९. गर्भधारण, साधु-साध्वीसंघट्टा विचार व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैवे., गर्भधारण - अधारण विचार - स्थानांगसूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: पांच जागइ स्त्री, अंति: एहवु दान न दीधुं हुइ. २. पे. नाम. साधु-साध्वीसंघट्टा विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०८ www.kobatirth.org १६X५३). १. पे. नाम. अतीचार गाथाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुसाध्वी संघट्टा विचार, मा.गु, गद्य, आदि: साधु साध्वी पांच अंतिः पण राहमार्गना नथी. ३. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. दहा संग्रह प्रा.मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. , ३१०५०. अतिचार गाधा, नमस्काराष्टक व पुण्य कुलक, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, जैदे. (२६x१०, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिअ; अंति: नायव्वो विरियायारो, गाथा-८. २. पे. नाम. नमस्काराष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. जिननमस्काराष्टक, सं., पद्य, आदि: नाभेयाय नमस्तस्मै, अंति: रसामोदाः प्रमोदामहे, श्लोक ८. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. पुण्य कुलं, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. पुण्यफल कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, बि. १५वी आदि छत्तीसविणसहस्सा वासस, अंतिः धम्मम्मि उज्जमह, गाथा - १६. ३१०५१. मौनएकादशी गणणुं, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२५.५४११, १२४३३). मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते, अंति: (-). ३१०५२. समेतशिखर स्तवन, संपूर्ण वि. १७२८ माघ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३, प्र. मु. विचार, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ९८४४९-५४). सम्मेतशिखर तीर्थमाला, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: प्रणमीय प्रथम परमेसर अंति: थुइ भणी बहु सुख धरी, ढाल - ६. ३१०५३. कुगुरुपचीछी, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, जैदे., (२५.५X११.५, ७-८X२७). कुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी हियडे, अंति: लोयण भोखण प्रतिमेह, गाथा-२५. ३१०५४. तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२६५११, १४४६२). तीर्थमाला स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: शेत्रुज सामी रिसह, अंति: पाप घट हुइ निरमलु, गाथा- ९२. ३१०५५. (#) पाक्षिक नमस्कार व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११, ८-१२४३२-३३). १. पे. नाम. पाक्षिक नमस्कार, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः श्रीवीरं प्रणिदध्महे, श्लोक-४२. २. पे. नाम जिनस्तुति संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. ३१०५७. अनेकार्थध्वनिमंजरी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२५४१०, १३x४१-४५). जिनस्तुत्यादि संग्रह, मा.गु. सं., पद्म, आदि (-) अंति: (-), श्लोक ७. ३१०५६. चवीस स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. जैदे. (२५X११, १३४३५). २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सबल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः साची दओ जिण सेव, गाथा - २७. For Private And Personal Use Only अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., पद्य, आदिः शुद्धवर्णमनेकार्थ, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक ७२ तक लिखा है।) ३१०५८. गुणस्थानक्रमारोह प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लोक-६६ अपूर्ण तक है., जैवे., (२५.५X१०.५, १३x४१-४४). , गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं. पद्य वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत, अंति: (-). ३१०५९. (d) धर्मोपरि उपदेश, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१२, १९x४८-५२). , י Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१०६०. (+#) सिद्धांत स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६४१, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. नेमिविजय (गुरु ग. सुमतिविजय, तपागच्छ); राज्ये आ. हीरविजयसूरि (गुरु आ. दानसूरि, तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - पंचपाठ. अक्षर पत्रों आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, ९-१०X३१-३४). १०९ सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा गुरुभ्यः श्रुत, अंतिः तत्समागमनोत्सवं श्लोक-४६. सिद्धांत स्तव - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सर्वसिद्धांतस्तवो; अंतिः स्वनामाभिहितवान्. ३१०६१. अनाथीऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जै, (२५X११, ८४२३-२५). . अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुर्हि, पद्य, आदि: मगध देश को राज राजे अंतिः बोले छोड्यो गरभावास, गाथा - २१. ३१०६२. (#) योगशास्त्र- प्रकाश १, श्लोक व अरहन्नक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७९१, चैत्र शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, पठ. श्राव. हरजीवनकुंवरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५, १३-१४४३६-४६)१. पे. नाम. योगशास्त्र- प्रकाश १, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि, अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम प्रकाश है.) २. पे. नाम. श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण. सामान्य लोक सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३. पे. नाम. अरहन्नक सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि धन धन जननी रे लाल, अंतिः लब्धि भइ० आगम सुणी, गाधा १८. ३१०६३ (+) अनाथीराजऋषि अष्टढाल संधि, संपूर्ण वि. १६७४, आषाढ़ शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. महिमासागर (गुरु ग. खेमकलश, खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. थोभणदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., ( २६१२, १५x५७). ३१०६६. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२५.५४११.५, ११४३०). अनाथीमुनि संधि, ग. खेमकलश, मा.गु., पथ, वि. १६६८, आदि: श्रीजिणवर चडवीसमउरे, अंतिः भणता परि नवनिधि थाई, ढाल -८, गाथा - १२४. ३१०६४. (+) जणपालजणैरख्यानो चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. १८३५, ज्येष्ठ, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. भांणपुर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, १७४७). जिनरक्षितजिनपाल चौडालिया, रा., पद्य, आदि अनंत चोवीसी आगे हुई, अंतिः पामी भवनो पार, दाल-४. ३१०६५. निर्वाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२५.५४११, ११-१३x४२-४३). विजयदेवसूरिनिर्वाण सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस सुमति आपो मुज, अंतिः सौभाग्यविजय मंगल करो, गाथा - ५८. For Private And Personal Use Only २४ जिन स्तुति, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमंत परमानंद: अंतिः क्षमा०कल्याणविशारदेन, स्तुति- २४, श्लोक-४९. "" ३१०६७. (+) भववैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६४११.५, १३४४८). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि, अंति: लहड़ जिओ सासयं ठाणं, गाथा १०४, ग्रं. १२९. ३१०६८. महावीरस्वामी व सुधर्मागणधर भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६११.५, ११x४२). १. पे. नाम. सौधर्मगणधर भास, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. खिमाविजय, मा.गु, पद्य, आदि: चउनाणी चंपावने संयम, अंतिः अतिशय च्यार निधान रे, गाथा ७. २. पे. नाम. गोधूलिका, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. महावीरजिन भास, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयर म्हारी अरिहंत, अंति: सोहावो केवलश्री फले, गाथा-५. Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११० ३१०६९_ (*) सिद्धहेमशब्दानुशासनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, द्वितीय अध्याय प्रथम पाद अपूर्ण तक है., प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५x१०.५, १९६०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अर्हं सिद्धिः स्याद, अंति: (-). ३१०७०. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्रले. मु. गोविंददास, प्र. ले. पु. सामान्य, वे. (२६४११.५, १०x३९). संभवजिन स्तवन, मु. न्याय, मा.गु., पद्म, आदि साहिब सांभलोरे संभव, अंतिः सुणज्यो देवाधिदेवा, गाथा १३. ३१०७१. चतुःशरण प्रकीर्णक व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, ११४३३). १. पे. नाम. चउसरण, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्ज जोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, , गाथा- ६३. २. पे. नाम औषध संग्रह, पू. ४आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, सं., प्रा., मा.गु. गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१०७२. (#) पार्श्वनाथ स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०, ९३३). १. पे नाम, पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुखदेव, मा.गु., पद्य, वि. १८०१, आदि: जिनराज जय महाराज, अंति: पास० परतिष परचा पूर, गाथा-७. २. पे नाम पुरिसादाणी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ ३आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- पुरिसादाणी, मु. सुखदेव, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: वाणारसनगरे सोभताजी; अंतिः ( अपठनीय), गाथा-१०, (वि. पानी से पत्र भींगे होने के कारण अंतिम पाठांश अवाच्य है।) ३१०७३. भिडभंजनपार्श्वनाथनो छंद, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, १३X३१). पार्श्वजिन छंद - भीडभंजन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वारु विश्वमां देस; अंति: तो आज नवनिधि पामी, गाथा - २५. ३१०७४. संभवनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७६, आषाढ़ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५x११.५, १०x३४). संभवजिन स्तवन, मु. गांगा, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जिनवर रुपे रुडा, अंतिः अणी परे उच्चरे रे लो, गाथा-६, (वि. चार पाद के हिसाब से गाथांक ६ लिखा है.) ३१०७५. (+) वर्तमान स्वाध्याय, पूर्ण, वि. १७७८, भाद्रपद कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण से है., ले. स्थल. बिकानेर, प्रले. मु. राजविजय पठ श्रावि. केसरबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., ( २४.५X११, ११-१३३७-४३). क्षमाविजयगुरु सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७७७, आदिः (-); अंति: इम रूप सदा सुखकार, गाथा - २१. ३१०७६ मेघमुनि सिझाव, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२६४११.५, ९-१३x२८-३३). मेघकुमार सज्झाय, मु. जयसागर मा.गु, पद्य, आदि: समरी सारद स्वामिनी अंतिः प्रेमे प्रणमुं पाय, ढाल ६. ३१०७७. (४) मालवीऋषिस्वाध्याय प्रबंध, संपूर्ण, वि. १७२३, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल. जीर्णदुर्ग, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६११, १५४४४-४५) मालवीऋषि सज्झाय, मु. जयवल्लभ, मु. मतिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: गोयम गणहर ज्ञानवंत; अंतिः जयकार मुनिवरूरे, ढाल ६, गाथा-५६. ३१०७८. असज्झाई सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६.५x११, १२४३५). असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी समरी मात; अंति: शिवलच्छी तस वरे, गाथा - १६. ३१०७९. महावीर स्तव, विद्वद्गोष्ठी व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२५.५X१०.५, १७४५५). For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १. पे नाम, महावीर स्तव, पृ. १अ संपूर्ण. 3 www.kobatirth.org महावीरजिन स्तव - बृहत्, आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं; अंति: सत्तुमित्तेसु वा वि, गाथा - २१. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम विगोष्ठी, पृ. १आ, संपूर्ण पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीभोजराजरसभायां०; अंतिः तव च किदृशाः स्युः, श्लोक-२१. ३१०८०. नयगर्भित शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. जैवे. (२६४११.५, १६x४०-४७). शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर केसर, अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल ६. ३१०८१. धर्मराजा मोहराजानु स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. नयकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५४११.५, १६x४६-४९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतवुं, अंतिः विनयविजय रसपूर, गाथा-१३८. ३१०८२. गुणत्रीसी भावना व सर्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैवे. (२६४१०.५, १२-१३४३४-३६). १. पे. नाम. गुणत्रीसीभावना, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, वि. १८वी, चैत्र कृष्ण, २, गुरुवार, ले. स्थल. अलावलपुर. २९ भावना छंद, मा.गु., पद्य, आदि: अविचल पद मन थिर करी; अंति: समरशे ते तरशे संसार, गाथा- ३१. २. पे. नाम. सर्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके, अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक १०. ३१०८३. आदिजिन, पार्श्वजिन स्तव व लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६०, चैत्र शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, ले. स्थल, चासोपवतीपुरी, जैये. (२६४११, १४४५०). १. पे. नाम. ऋषभदेवाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन अष्टक, मु. अजबसागर, सं., पद्य, आदि : आदिदेवः सततं सुखानि; अंति: यच्छतु सौख्यमालां, श्लोक ९. २. पे नाम, फलवर्द्धिपार्थ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. १८४४२). १. पे. नाम. अनागतादि १० पच्चक्खाण गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ- १आ, संपूर्ण. १११ पार्श्वजिन स्तव - फलवर्द्धि, मु. अजबसागर, सं., पद्य, आदि: भूयिष्ट राजन्य; अंति: देवेश नतांहि युग्म, श्लोक - ५. ३. पे. नाम. लोक संग्रह, पृ. १आ. संपूर्ण. सामान्य लोक सं., पद्य, आदि (-) अंति: (-) श्लोक-१४. ३१०८४. (#) मनोरथमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १४X३२-४०). चारित्रमनोरथमाला, मु. खेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिसर पाय नमी अंतिः खेमराज० पामइ भवपार, गाथा - ५२. ३१०८५. पच्चक्खाणभेद गाथा सह बालावबोध व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२५४१०.५, २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पच्चक्खाणभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अणागतमयक्कत, अंति: दाणुवएसे जह समाही, गाथा-२. पचक्खाण भेद गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अनागत किसं कहीय, अंतिः अद्धापच्चक्खाण कहीयइ. जैन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. For Private And Personal Use Only ३१०८६. (४) ३४ अतिशय आलापक, पार्श्व व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १२३३-३६). १. पे. नाम चउत्तीसअतिसय अलापक, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. ३४ अतिशय आलापक, प्रा., गद्य, आदि: चडतीसं बुधा सेसा अंति: उवसामिति तिबेमि Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. छंद पहाडगति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवकां; अंति: मुक्ति देजो शुभगति, गाथा-९. ३. पे. नाम. महावीरनो छंद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन छंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर जनमीया; अंति: जपैदास घट द्वै मुदा, गाथा-६. ३१०८७. (+) जिनस्तव संग्रह सह टीका, संपूर्ण, वि. १७४५, माघ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १६-१७४४८-५०). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तव सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयश्रियां धाम सुधामध; अंति: तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-६. साधारणजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, आदि: हे श्रीजिन हे कल्याण; अंति: सूचकं मुनिसुंदर. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन सह अवचूरि, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभोय; अंति: भावंजयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. साधारणजिन स्तव-वृत्ति की अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: हे प्रभो सत्वमया; अंति: (१)द्विचत्वारिंशताधिकम, (२)कृतार्थेमयद्प्रत्ययः, ग्रं. १४२. ३१०८८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. डभोइ, प्रले. ग. गुणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, २१४५५-५६). १.पे. नाम. वडलीमंडन महावीरजिन स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-वडलीमंडण, ग. नगा, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरणो; अंति: नगा गणि मंगल करो, गाथा-५१. २. पे. नाम. कलकलतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-सकलभववर्णन, ग. नगा, मा.गु., पद्य, वि. १६५७, आदि: समरिय सरसति देव; अंति: पभणइ नगागणि मंगलकरा, गाथा-७१. ३१०८९. प्रतिलेखना विचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक नहीं है., ले.स्थल. वीरपुर, प्रले. मु. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ४-५४२७-३०). पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सीसेणं विजयविमलेणं, गाथा-२८. पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: विजयविमल शिष्येण कृत. ३१०९०. विचार व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६७, कार्तिक कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, ले.स्थल. वीरपुर, जैदे., (२६.५४११.५, १३-१६x४५). १.पे. नाम. असज्झाई विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: महिया जाव पडंति; अंति: तत्र विलोकनीया. २. पे. नाम. सिद्धना १५ भेद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जैन गाथा ,प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पोषधना १८ दषण, पृ. २आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. वीसस्थानकतप विधि, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं २०००; अंति: अवश्य पौषध करवो. ५. पे. नाम. मोटाबोलनी आलोयण, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: अगलित जल वावर्ये; अंति: चाबखी खोइ तो उपवास १. For Private And Personal use only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१०९१. गच्छाधीश को पत्रलेखन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल थिरपद्र, प्रले. मु. गौतमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५४११.५, १४-१६४४०-४१). गच्छाधीश को पत्रलेखन विधि, सं., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रीरभवमरालवय, अंतिः णि प्रसाद्ये वः तत्र श्लोक ५७. ३१०९२. मौनएकादशीदिने १५० कल्याणक गुणनो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे. (२६११.५, १२४३३). मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: श्रीचरणनाथाय नमः . ३१०९३. (+) तपविषये पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५४, भाद्रपद शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल, स्वस्थानकपुर, प्रले. पंन्या. ऋषभसागर (गुरु मु. ऋद्धिसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रथमादर्श प्रति होने का उल्लेख है., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६x११, १७-१८x४४-४९). וי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचमीतिथि स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: परम पुरुष गुरु प्रणम, अंति: ऋषभसाग० संघ मंगल करो, ढाल - ५. ३१०९४. त्रीहसट्ठिशिलाकाबधपुरुष आयु देहमान नाम आंतरा गत्यादिविचार गर्भित स्तोत्र व जीवस्थापना गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे २, जै. (२६११, १६x४० ). ,, १. पे नाम. श्रीहसडुिशिलाकावधपुरुष आयु देहमान नाम आंतरा गत्यादिविचार गर्भित स्तोत्र, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण ६३ शलाकापुरुष रास, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य वि. १६८२, आदि: श्रीजिनचरण पसाउल, अंतिः दयाकुशल० सुख सही हु, ढाल ७. २. पे. नाम. जीवव्यवस्था स्थापना गाथा, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण जीवस्थापनाविचार प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवो अणाइनिहणो; अंति: पुव्वनिबद्धा० विराई, गाथा-२५. ३१०९५ (+) ऋषभनम्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६६३, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. जीतविजय (गुरु पंडित लाभविजयजीगणि); १९३ पठ. मु. वृद्धिविजय (गुरु ग. संघविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. संघविजय (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि *, तपागच्छ); राज्ये गच्छाधिपति विजयसेनसूरि (गुरु आ. हीरसूरि *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११, १२X४०). २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ऋषभनम्रसुरासुरशेखर अंतिः जरसा रहितं पदम् श्लोक-२९. ३१०९६ (+) आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६X१२, १०X३८). आदिजिन स्तव, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपुंडरिकाचलहस्ति; अंतिः स्यात् सदा शर्मदाता श्लोक-२१. ३१०९७. लउलामंडन आदिनाथ स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८९०, चैत्र कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. सीरोही, प्रले. पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५X१२, ७-९X३०-३४). आदिजिन स्तवन- देउलामंडन, मु. शुभसुंदर, प्रा. सं., पद्य, आदि जय सुरअसुरनरिंदबिंद, अंतिः सेवासुखं प्रार्थये, ३१०९८. अष्टादशस्तवी, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२६४११, १७४४४-५१). 3 गाथा ४९. आदिजिन स्तवन- देउलामंडन-वृत्ति, ग. चंद्रधर्म, मा.गु. सं., गद्य, आदिः कियदनुभूतमंत्रयंत्रे, अति राखीये धारबंधं करोति. अष्टादशस्तवी, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४९७, आदि स्तुवे पार्श्व अंति: (१) सोमदेवमणिर्गुणी, (२)वास्तवश्रिये, स्तवन-१८. For Private And Personal Use Only ३११००. सातठाणा, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. ग. भावरंग, प्र.ले.पु. सामान्य, जै.. (२६.५x११, १६४५५). सप्तस्थान प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं कणयणि; अंति: सो णिबुदं सोक्खं, गाथा- ३९. ३११०१. पंचास्तिकाय भाषा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २६११, १४४४२-४४). पंचास्तिकायसार - भाषा, मा.गु., पद्य, आदि: स्वपरप्रकाशक विमल, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३११०२. (क) १० आवक सज्झाय व १६ सती श्लोक, संपूर्ण, वि. १६९९, श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे २ प्रले. मु. ऋषभ, पठ. श्रावि. अमोला बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १२X३६). Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. दशश्रावक सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: जिण चुवीसी करुं; अंति: कोरंटगछि पभणइ ननसूरि, गाथा-३२. २. पे. नाम. १६ सती स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ३११०३. दश पच्चक्खाण स्वाध्याय व पुण्य कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १४४४४). १.पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. - पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथ नंदन नमुं; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३१. २. पे. नाम. पुण्यफल कुलक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __ आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस; अंति: धम्ममि उज्जमेह, गाथा-१६. ३११०४. (+) चोरासीआशातना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, ४४३९). जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं १ केली २ कलि ३; अंति: वजे जिणिंदालये, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: खेलं क० सलेख १ रामति; अंति: तेहनो दोष नही सही. ३११०५. (+) साधु अतिचार, तप आलापक व वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले.पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १५४४०-४२). १.पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. २. पे. नाम. पाक्षिकादितप आलापक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: करी तप प्रवेश. ३. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३११०६. पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. समउ, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४४२). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. ३११०७. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, २३४५९). प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्माज्जन्मकुले शरीर; अंति: (-). ३११०८. तृतीय कर्मस्तव यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ३७४११). बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३११०९. चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३-५०(१ से ५०)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १४-१६४३९-४२). १.पे. नाम. महावीरजिन व सरस्वती स्तुति, पृ. ५१अ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-३. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ५१अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय सिद्ध; अंति: जिनवर करुं प्रणाम, गाथा-३. ३. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ५१अ-५३अ, संपूर्ण. म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नम श्रीआदि; अंति: रुप सदा आणंद, चैत्यवंदन-२५ ३१११०. पंचकल्याणकादिगर्भित जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११, १३४५१). चतुर्विंशतिजिन स्तुति, आ. सुमतिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रयं श्रीसदन; अंति: सिद्धि सृजता, श्लोक-२९. For Private And Personal use only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३११११. महावीरजिनद्वात्रिंशिका, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. ग. रामविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२६४११, १३x४२). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसात्म्यात् अंतिः तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३. ३१११२. (+) वीरथुई अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९९, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. नवानगर, प्र. मु. राजधर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, ६x४५). सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पद्य, आदिः पुत्थिस्सुणं समणा; अंति आगमिस्संति तिबेमि, गाथा २९. सूत्रकृतांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंबू सुधर्मस्वामी; अंति: पालस्यइ ते सीजस्यइ. ३१११३. तीरथमाला, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. सथाणानगर, जैदे., (२६×११, १३-१४X४२-४५). तीर्थमाला स्तवन, मु. मेघ, मा.गु, पद्य वि. १५वी, आदि: शेतुंज सामी रिसह अंतिः जाइ पापघट हुइ निरमलो, गाथा - ९३. " ३१११४. पंचबोलगर्भित चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जै. (२६.५४११ ९४३८-४१). चतुर्विंशतिजिन स्तुति - पंचबोलगर्भित, मु. क्षेमकुशल, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीजिन मात पिता अंतिः क्षेमकुशलि ते मिलइ, गाथा - २९. ३१११५. जिनेश स्तुति सह टीका, संपूर्ण वि. १७९५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, जयतारमपुर, प्रले. मु. तेजसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२६X११, ५x२६). साधारणजिन स्तुति, ग. साधुराज, सं., पद्य, आदि : आंबारायण सेलडी खडहडी, अंति: वितनोति लक्ष्मीम्, श्लोक-१२. साधारण जिन स्तुति- टीका, सं., गद्य, आदि चित्तकारि स्तुतेर्थ, अंतिः पटुः परः अत्र स्तोता. ३१११६. (+०) महावीरदेव सप्ताविंशतिभव व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ १०.५, १५-१६x४४-४७). महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: ग्रामेशस्त्रिदशो अंतिः सागरायुर्देवोभूदिति, ग्रं. १००. ३१११७. स्यादिसमुच्चय सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. पंचपाठ, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे (२६x११, ५-९x१८-४६). स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशारदां हृदि, अंतिः स्यादिशब्दानां उल्लास ४ ग्रं. ५५. स्यादिशब्दसमुच्चय- स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, आ. अमरचंद्रसूरि, सं. गद्य, आदि: श्रीशारदामित्यादि अंतिः , ११५ शब्दोल्लासश्चतुर्थः. ३१११८. (+) काव्य संग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १४८८, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- पंचपाठ., जैदे., ( २६.५X११, १५x५०-५३). १. पे. नाम. वृंदावन काव्य सह अवचूरी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. वृंदावन काव्य, सं., पद्य, आदि: वर्द्धमानं मुधामानं; अंति: दशनैः सह लीलाजानाम्, श्लोक-२८. वृंदावन काव्य- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तस्मै नमः यं अंतिः भूतो बलः पतने गृहे. २. पे. नाम. मेघाभ्युदयकाव्य सह अवचूरि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मेघाभ्युदय काव्य, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., पद्य, आदि: जितालिमाला मधुभित्तम, अंतिः समये प्रिययस्तवारिः, श्लोक-२५. मेघाभ्युदय काव्य- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: कापि स्त्री मेघागम, अंति: ते तव अरिः गच्छतु. ३. पे नाम. घटखप्पर काव्य सह अवचूरि, प्र. २आ-३अ, संपूर्ण. घटखप्पर काव्य, क. घटकर्पर, सं., पद्य, आदि: निचितं खमुपेत्य नीरद, अंतिः चुंबति यूधिकालता, श्लोक-१७. घटखर काव्य- अवचूरि, सं., गद्य, आदि अब्देरखच्छन्नं आगत्य अंतिः दृष्ट्वा कस्य मधुनः. ४. पे नाम. चंद्रदूत काव्य सह अवचूरि, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंद्रदूत काव्य, क. जंबू, सं., पद्य, आदि: यदतिसितशराग्रग्रस्त; अंति: सत्वरं त्वं गदंग, श्लोक-१४. चंद्रदूत काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे लोकाः स्मरतानंत; अंति: वाच्यं निस्नेहत्वात्. ५. पे. नाम. शिवभद्र काव्य सह अवचूरि, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण... शिवभद्र काव्य, शिवभद्र, सं., पद्य, आदि: प्रणमत सदसि गदंत; अंति: भूयोभिमन्यसे कमलाभ, श्लोक-१९. शिवभद्र काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तं हरिं नमत किं भूतं; अंति: मन्यसे सर्व लाभ एव. ६. पे. नाम. शिवभद्र काव्य सह अवचूरि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शिवभद्र काव्य, शिवभद्र, सं., पद्य, आदि: अथ शुभ चापगुणेषु; अंति: तेन बलवानपि न योजयति, श्लोक-२८. शिवभद्र काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अथ राम प्रेषणानंतरं; अंति: न योजयति न करोति. ३१११९. छंदोनुशासन अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, २५४७५). छंदोनुशासन-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: वाचं० सर्वादि; अंति: (-). ३११२०.(+) महावीरजिन स्तव सह टिप्पण, स्तोत्र संग्रह व युगप्रधानआचार्यादि संख्याविचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, २०४५४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तव सह टिप्पण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तव-टिप्पण*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमो ते छिन्नसंसार; अंति: संकुलम्मि भवं नवे, गाथा-५. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभस्वामि स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: चंद्रप्रभविभुभूरि; अंति: सुप्रसन्नो ददातु मे, श्लोक-५. ४. पे. नाम. युगप्रधानाचार्यादि संख्याविचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३११२१. (+) पच्चक्खाण संग्रह, बारव्रत नाम व चौदनियम सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, भाद्रपद कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. सायला, प्रले. मु. मयारत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १०४३८-४१). १.पे. नाम. पचखाण विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सूरे उग्गए अभत्तट्ठ; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. २. पे. नाम. बारव्रत नाम सह टबार्थ, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पेहेले प्राणातिपात; अंति: अतिथि संविभाग १२. १२ व्रत नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवदया पालवी; अंति: साधूने आपीने जमवू. ३. पे. नाम. चौदनेम नाम सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. श्रावक १४ नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व फल आदे देइने; अंति: भोजननुं परीमाण. ३११२२. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८४८, कार्तिक शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले.पं. भाग्यविजय (गुरु ग. वनीतविजय, तपागच्छ); पठ. श्राव. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १६x४२-४९). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: सयल संघ आणंद करो, गाथा-७३. ३११२३. सूत्रना बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १६x४७). __आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: भगवतीसूत्र मध्ये; अंति: भगवंते धर्मरथ कह्यो. ३११२४. आलोयण भास व सीमंधर नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०, १६४५४). For Private And Personal use only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ११७ १.पे. नाम. आलोयण भास, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आलोअण भास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा; अंति: प्रभु आणंद पूरि तो, गाथा-४८. २. पे. नाम. सीमंधर नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व दिसि इशांनकुंण; अंति: पूरवउ संघ जगीस, गाथा-८. ३११२५. (+) संयोगबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १७-१९४४२-५१). संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: बुधि वचन वरदायिनी; अंति: रचीयु संयोगबत्तीसी, अध्ययन-४ उन्माद, गाथा-७४. ३११२६. बलिभद्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सोजित, पठ.मु. इसरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४४). बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका नगरीथी; अंति: निश्चये ऋद्धि पामीजै, गाथा-३१. ३११२७. कर्मविपाकफल व चेलणाराणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १४४३४). १. पे. नाम. कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८. २.पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ३११२९. चौवीसतीर्थंकर सवैया, संपूर्ण, वि. १८६६, वैशाख शुक्ल, ५, जीर्ण, पृ. २, ले.स्थल. लौद्रा, प्रले. मु. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १६४३९-४५). चोविसजिन सवैया, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता गिर्वाणी; अंति: भाव धरीने भणो नरनारी, गाथा-२७. ३११३०. सजनचित्तवल्लभ महाकाव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११, १०४२७-२९). सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं जगत्त्; अंति: संसार विच्छित्तये, श्लोक-२५. ३११३१. (+) अभिधानचिंतामणी शिलोंछ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. दंतीपुर, प्रले. पं. ऋषभसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १८-१९४४१-४३). अभिधानचिंतामणि नाममाला-शिलोंछ, संबद्ध, आ. जिनदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १४३३, आदि: अहँ बीज नमस्कृत्य; अंति: जिनदेव मुनीश्वरैः, श्लोक-१३९. ३११३३. कर्मप्रकृतिनी बंधस्थति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११.५, ६-७४२८-३७). कर्मप्रकृति बंधस्थिति, प्रा., पद्य, आदि: एगिदियाण बंधो आदि; अंति: साह जणो भणइ जिणवयणं, गाथा-२९. कर्मप्रकृति बंधस्थिति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सायरसत्तः एक सागरना; अंति: आहारक संघातन ४. ३११३४. कर्मग्रंथ-१-कर्मविपाक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. हर्षकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४४१). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६१. ३११३६. (+) षट्दर्शन समुच्चय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १२४५०). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, ई. ८वी, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७. For Private And Personal use only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३११३७. अढारनातरा सज्झाय व नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०६, श्रावण कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटण, जैदे., (२६४११.५, १५४४०). १.पे. नाम. अढारनातरा सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलाने समरु रेपास; अंति: ऋद्धिविजय गण गाय रे, ढाल-३, गाथा-३४. २. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आवी जोर न कीजें; अंति: उदय० करे वीनती रे जो. गाथा-८. ३११३८. आत्मानुशासन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११, १७४५०). आत्मानुशासन, ग. पार्श्वनाग, सं., पद्य, वि. १०४२, आदि: सकलत्रिभुवनतिलकं; अंति: भाद्रपदिकायां, श्लोक-७७. ३११३९. बारबोल अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. समीनगर, प्रले. ग. हेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३३). १२ बोल संग्रह-अर्थ, मा.गु., गद्य, वि. १६४६, आदि: सं. १६४६ पोषासीत १३; अंति: कृत द्वादशजल्प पट्टः. ३११४०. (#) नेमिनाथ ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले.ग. उत्तमविजय (गुरु ग. वनीतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १८४४१-४७). नेमिजिन ढाल, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: चंद्रकांति चंद्राननी; अंति: तत्वविजय कवि सुहकरो, ढाल-१७, गाथा-१३२. ३११४१. विविधतप संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११, १८४३८). विविधतपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ७३ तपों का संग्रह है।) ३११४२. नंदि विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १८४५०). नंदी विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: नमोर्ह अहस्तनोतु; अंति: करेमिकाउस्सग्गं. ३११४३. (+) विजयानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४२२-२६). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: सील तणी महिमा सांभल; अंति: अट्ठावनें जोधपुरमाइ, गाथा-२३. ३११४४. गुणठाणा चउपई, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, ले.स्थल. कृष्णदर्ग, प्रले. मु. विनयवल्ल्भ (गुरु आ. जिनरंगसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, ११४३२-४३). गुणठाणा चौपाई, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लहइ एसयल संघ सुखकार, गाथा-७७, (पू.वि. गाथा-८ तक नहीं है.) ३११४७. भगवतीसूत्र विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, २२४६७). भगवतीसूत्र-विचार संग्रह , संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अति: (-). ३११४८. घटकप्रकाव्य सह टीका, संपूर्ण, वि. १७०९, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. कृष्णदुर्ग, प्रले. मु. जससागर (गुरु ग. कल्याणसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १५४४८-५०). घटखप्पर काव्य, क. घटकर्पर, सं., पद्य, आदि: निचितं खमुपेत्य नीरद; अंति: घटकप्परण, श्लोक-२२. घटखर्पर काव्य-टीका, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, आदि: नीरदैर्जलधरैः कर्तृ; अंति: मुकुलपातव्यमित्यर्थः. ३११४९. (+) विषमकाव्य सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मंडपदुर्ग, प्रले. मु. साधुविजय शिष्य (गुरु पं. साधुविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ७-९४३९-४५). विषम काव्य-बहुभाषामय, अप.,प्रा.,फा.,सं., पद्य, आदि: यामाता ममता माया; अंति: पियुसुमरतिगय, श्लोक-२२. विषम काव्य-वृत्ति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: यामेति गक्षेति गंगा; अंति: (१)एवं स्मरंतीति योज्यं, (२)श्रीजिनप्रभसूरिभिः. For Private And Personal use only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३११५०. मनोरथमाला व अतिचार गाथा, संपूर्ण, वि. १६०२, चैत्र शुक्ल, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. दशपुरनगर, प्रले. नाथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ८८, जैदे., ( २६४११, ११-१३४५१). १. पे. नाम. चारित्रमनोरथमाला, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. आ. पार्श्व चंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सुह गुरुपय प्रणमठं अंतिः मिली शिवसुखदायक होइ, गाथा-४१. २. पे. नाम. पंचाचार अतिचार गाथा, पू. ३आ, संपूर्ण संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिअ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ३ तक ही लिखा है.) ३११५१. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२६४११, १५४१८-३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी, अंति: तत्पट्टे हंसविमलसूरि.. ३११५२. (+) सिद्धदंडिका स्तवन व सिद्धस्वरूपवर्णन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. राधनपुर, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित जैवे. (२६४११, ११४३९-४०) १. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: पद्मविजय जिनराया रे, ढाल-५, गाथा - ३९. २. पे. नाम. सिद्धस्वरूपवर्णन स्वाध्याय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध निरंजन तेह रे; अंति: लबधी सदा प्रणमेह रे, गाथा - १२. ३११५३. औपदेशिक पीठिका, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. विवेकसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२६४११.५, १३X३७). 1 औपदेशिक पीठिका, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हंत भगवंत असरण, अंति: ते मंगलमाला विस्तरो. ३११५५. वयरस्वामीनी भास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२६. ५X११.५, १५४४०-४८). " वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: जिनहर्ष० गुण गाया रे, ढाल - १५. ३११५७, (+०) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, ९X३३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्ज जोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा ६३. ३११५९. भयहर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५X११, ५-८x२८-३१). नमिण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण, अंतिः नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. मऊण स्तोत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः आदी कविमंगलाभिधान०; अंतिः प्रशमयतु पार्श्वजिनः. ३११६०. गणधरवाद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६.५x११.५, १५X४०). गणधरवाद, मा.गु., गद्य, आदि: जंभीका नगरीह केवल अंतिः वेद पद प्रतिबोध्या. ३११६१. महावीरशासन प्रसंग वर्णन व दशमत स्वरुप, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गजसागर (गुरु पं.राजसागर गण), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., गुटका, (२५.५X१०.५, ३८x२९). १. पे. नाम महावीरशासन प्रसंगवर्णन, पृ. १अ+१आ, संपूर्ण. १९९ महावीर जिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, सं., गद्य, आदिः १. श्रीवीर केवलात्; अंतिः लुंपाकमतं तद्वेषधराः. २. पे. नाम. दशमत स्वरूप, पृ. १अ, संपूर्ण. १० मत स्वरूप, सं., गद्य, आदि: वीरात् ६०९ वर्षे, अंति: मत प्रकटितं. ३११६२. सत्यकाभगवती विज्ञप्ति व प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२५x१०.५, १५X४७). १. पे. नाम, सत्यकाभगवती विज्ञमि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिचियायमाता छंद, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मनि आसा आज फली; अंति: सिद्धसूरि० प्रसन सही, गाथा-२१. २. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३११६३. (+) गौतमस्वामी रास, पद्मावती स्तवन व वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८४३, कार्तिक कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. लाकडिआ नगर, प्रले. मु. उत्तमविजय; पठ. श्राव. धर्मसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३४३६-४२). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-८०. २.पे. नाम. पद्मावती स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, सं.,मा.गु., पद्य, आदि: श्रीकलिकुंडदंड श्री; अंति: हर्ष० पूजो सुखकारणी, गाथा-८. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३११६४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). १.पे. नाम. युगमंधरजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयुगमंधर जिन; अंति: पंडित जिनविजये गायो, गाथा-९. २. पे. नाम. परनिंदात्याग लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: किसी की भूडी नही; अंति: जिन दरसण चहीयरे, गाथा-४. ३. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, पा. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: मानुष लोक सुदेस; अंति: भले दीन पूजीयै, गाथा-५. ४. पे. नाम. नमिनाथजी स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नमिजिन स्तवन, पा. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: नायक नमिना नामानी; अंति: पदपंकज नाह न छोडैरे, गाथा-६. ५. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. मोहनरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: सुविधि जिनेसर नवमा; अंति: मुगत रमण सुख पायारे, गाथा-८. ६.पे. नाम. सिद्धचल स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. सिद्धाचल स्तवन, मु. खीमारतन, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचल गिरि भेट्या; अंति: प्रभूप्यारा रे, गाथा-५. ७.पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि: रस भरीया माहाराजरी; अंति: आवागमण निवारजी, गाथा-६. ३११६५. काया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. केसरचंद्र; पठ. श्रावि. लेहेरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १०४३४). औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नरभव नगर सोहामणुं; अंति: पामीश अविचल ठाम, गाथा-५. ३११६६. अष्टप्रकारी पूजादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, ले.स्थल. जालना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १९४४४). १. पे. नाम. दादाजीरी अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सुरनदी जलनिर्मल धारय; अंति: निर्वियामि ते स्वाहा. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पद्म कल्याण विद्या; अंति: भोक्ता च वक्ता च, श्लोक-९. For Private And Personal use only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३. पे. नाम. जिनदत्तसूरि अष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सुरकिन्नर वंदित; अंति: वागीश्वराः श्रीधराः, श्लोक-९. ४. पे. नाम. दादाजी पदं, पृ. २अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, हिं., पद्य, आदि: कैसे कैसे अवसरमें; अंति: तेरा वडा भरोसा भारी, गाथा-४. ५. पे. नाम. चोत्रीसअतिशयजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमति दायक दुरित; अंति: पय सेव मागु भवभवे, गाथा-११. ६. पे. नाम. चोवीसजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन पद, ग. श्रीधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: नित नित गुण प्रभु; अंति: फल पाउंगा मैं, गाथा-४. ३११६७. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १७८६, आषाढ़ कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. ग. तिलकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४४८). अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्र प्रथम उपगरण; अंति: कुरु कुरु स्वाहा. ३११६८. जीव-अजीवभेद विचार व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १८x२७). १.पे. नाम. जीव-अजीवभेद विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३११६९. दयासूरि धुयली व श्राविका गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३२). १.पे. नाम. दयासूरी धुयली, पृ. १अ, संपूर्ण. दयासूरि गहुली, पं. प्रितीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल सोभागी जाणीये; अंति: सहुनी पुरे आस, गाथा-७. २.पे. नाम. श्राविका गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरु गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रूडीने रढियाली रे; अंति: पद्म कहे अमीअसींचाय, गाथा-७. ३११७०. (+) सज्झाय, स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १६७५, कार्तिक शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११.५, १२४४०). १. पे. नाम. शीतपरिसह सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शीतपरिषह सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरी वसईय; अंति: विवेकहर्ष कल्याण करो, गाथा-६. २. पे. नाम. हीरविजयसूरि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती भगवती वर लही; अंति: छबिली मुह्नई मेल रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. विजयहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मम कर माहरुमाहरूं; अंति: मुगतवधूतणो संगरे, गाथा-७. ४. पे. नाम. मल्लीनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. विजयहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल दिन माहरो मुज; अंति: मुज आवागमन निवार रे, गाथा-८. ५. पे. नाम. वीरवडामंडणपार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-वीरवडामंडण, मु. विजयहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीरवाडापुर वर मंडणो; अंति: विजयहरख सुखदायिका, गाथा-४. ६. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन अजित सवे जिन; अंति: मुनि ध्याइ मुदा, गाथा-१. ३११७१. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १६४५, रसचंदसंवत्सरवेदवरसअहिनाण, माघ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १२४५२). For Private And Personal use only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन स्तवन, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन तारण तीरथ; अंति: सयल मंगल सुरवरा, गाथा-४३. ३११७२. सीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२६११, ११४४५). सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः परम मुणि झाणवण गहण; अंतिः सेवक सकलचंद कृपा करो, ढाल-४, गाथा - ३२. ३११७३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२६X११, २१X५६). १. पे. नाम. साधारणजिन स्वतन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, अप., पद्य, आदि: एहि मुखए च देहि, अंति: चिंतिअं देहि, गाथा-२७. २. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुरिसोत्तम नीराग मुज, अंति: हृदय वस्यो दीपंतो, गाथा - १५. ३. पे. नाम ऋषभसमतासुरलता स्तवन, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- समतामुखलतागुणगर्भित, वा. सकलचंद्र, प्रा. मा.गु., पद्य, आदि; विबुहाहिवामयदिडि, अंतिः सेवक सकलचंद कृपा करी, गाथा - ३१. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः जिनमुख वासिनी अमृत अंतिः सकलचंद चित्त खोले, गाया-२९. ३११७४. सिद्धांत स्तव सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., ( २६११, ७-११x२९-३७). सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्म, आदि; नत्वा गुरुभ्यः श्रुत: अंतिः तत्समागमनोत्सवं श्लोक-४७. सिद्धांत स्तव अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सर्वसिद्धांतस्तवो; अंतिः विवृत्तिर्लिखितामिता. ३११७५. कायाकुटुंब स्वाध्याय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४२, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २३-२१ (१ से २१)=२, ले. स्थल, लूणापुर, प्रले. मु. हंसविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२६.५५१२, ५३१-३६). औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदिः नालियो न माने रे कोई, अंतिः जोज्यो पंडित विचार, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ११, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावनामांहि; अंति: होय ते विचारी जोजो, संपूर्ण. ३११७६. द्वादशभावना स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे (२६५११.५, १५-१६४४५-४८). " " १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: घरि घरि होइ बधावोरे, डाल- १३. ३११७७. दस यतिधर्म सज्झाय - ढाल १ से ५, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. दयाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., . (२५.५X१२, ११-१४X३२-३३). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः सुकृतलता वन सींचवा अंतिः (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. ढाल - ५, पंचम तप धर्म तक ही है.) ३११७८. तीर्थोत्थापनविवाद स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६X११.५, १३x४०). तीर्थोत्थापनविवाद सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुविहित कहि हितकारी, अंति: लबधि भइ जयकारी रे, गाथा - ३४. ३११७९. नववाडि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैये. (२६.५४११.५, १३४३३-३६). ९ वाड सज्झाय, वा. उदयरन, मा.गु, पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी, अंतिः तेहने जाउ भामणि, ढाल १०. ३११८०. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (२५.५X११.५, ९४३९). सीमंधरजिन स्तवन, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सामी सीमंधर जगधणी, अंति: नित्यविजय गुण गाय रे, गाथा - ९. ३१९८१. होलीका कथानक, संपूर्ण, वि. १७९८ फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२४.५X१०.५, १३४३३). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे, अंतिः यतो धर्मस्ततो जयः श्लोक- ६५. For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३११८२. पडलेहणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५x१०.५, ९३०). पडिलेहणा सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्माणी रे विनय, अंति: मुगति वधू हेला वरइ, गाथा- ११. ३११८३. सेनुंजाभास, संपूर्ण, वि. ११वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५x१०.५, १०४४०). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ भास, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहियां मोरी चालो; अंति: अरिहंत श्री आदिनाथ हे, गाथा- १३. ३११८४. पार्श्वनाथ स्तवन व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (२४.५x१०.५, ९४२६)१. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- अजाहरा, मु. विद्यासागर शिष्य, अप., पद्य, आदि: पणमवि सुगुरुचरण; अंति: ऋद्धि वृद्धि करे घणी, गाथा- ७. २. पे नाम, मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अलग-अलग २ मंत्रों का संग्रह.) ३११८५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, १६३७). १. पे. नाम. आदिजिन वीनती, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. लालसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदिः सेतुंज केरी वाटडीआ अंति लालसोम० जिनराज रे, गाथा- ११. २. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: नीलकमल दल सामलु रे; अंति: पामइ अविचल राज, गाथा-७. ३१९८६. मालवीरिषि स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. मु. साधुविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जै., (२५x१०.५, १५X३३-३६). ३११८७. नेमराजुल बार्हामासिया, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X११.५, १६X३४). मालवीऋषि सज्झाय, मु. जयवल्लभ, मु. मतिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: गोयम गणहर ज्ञानवंत, अंतिः जयकार एक मनि रे, ढाल - ६, गाथा - ५०. १२३ नेमराजिमती बारमासो, मु. अमरविशाल, मा.गु., पद्य, आदिः यादव मुझनैं सांभरै; अंति: भणी विनवै अमरविशाल, गाथा - १९. ३११८८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०८, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. किल्लाधार, जैदे., (२५.५X१२, १६x४२). १. पे. नाम. नागसीरी सज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण. नागी सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि धर्मघोष आचार्यना, अंति: सब दुख जात परेरा रे, दाल २. २. पे. नाम. शीलगुणव्रतनी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. शील सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: इण संसारमांजी शील; अंति: ऋषि लालचंद गुण गाय, गाथा - १७. ३११९१. लघुशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५X११, ९x२५-३१). ३११८९. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, १०X३२-३५). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वालेसर मुज विनति; अंति: इम जपे जिनराज रे, गाथा- ७. ३१९९० (+) छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे २, जै. (२४.५x१०.५, १८-२२x६१-६५). " १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. शील, मा.गु, पद्य, आदिः प्रणवि प्रणवि पशु, अंतिः सकल देव शंखेसरा, (वि. गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. आदिमाता छंद, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार आदि अपरम पर नाद, अंतिः कुशललाभ० पूर ईश्वरी (वि. गाथा क्रमांक नहीं लिखा है ) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं, अति जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१७+२. For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३११९२. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०, ११४३२-३४). १.पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.. शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवना; अंति: तुता श्रीधर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. २. पे. नाम. गौतम स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: ॐ नमस्त्रिजगन्नेतुर; अंति: भव सर्वार्थसिद्धये, श्लोक-९. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभ स्तव, पृ. ३अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभ प्रभाधी; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-४. ३११९३. समवसरण स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, ७४३९). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि,प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२५. समवसरण स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्तवीश केवलज्ञानीनी; अंति: उतावलुंजन प्रते. ३११९४. पाक्षिकदिन नमस्कार स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, ९४३२-३३). पाक्षिकदिन नमस्कार, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२९. ३११९५. नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. कपूरविजय (गुरु ग. सत्यविजय); गुपि.ग. सत्यविजय; पठ. मु. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४४३). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: इय पयनवगं नमसामि, श्लोक-३२. ३११९६. नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, पठ. ग. अमरलच्छि , प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४४१). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-२८. ३११९७. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२५४१०, १४४४१-४२). १.पे. नाम. शेजेजयतीर्थाधिराज स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन बृहत्-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि सयल जिणंद पाय; अंति: जिम पामो भवपार ए, गाथा-२२. २.पे. नाम. पंचतीर्थंकर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि ए आदि ए आदिजिने; अंति: मुनि लावण्यसमय भणे ए, गाथा-११. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जगवालहो काई; अंति: राख्यो हो एह ज टेक, गाथा-७. ४. पे. नाम. नाकोडापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: कहै गुण जोडो, गाथा-८. ५.पे. नाम. थंभणपुरमंडन पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: मंडण पासनाह चउसालो, गाथा-८. ३११९८.(+) चोवीसजिन स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, २२-२३४५४-६३). स्तवनचौबीसी-१० बोल गर्भित, ग. सुखसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर प्रणमीइ; अंति: बालक सुखसागर गुण गाय, स्तवन-२४. ३११९९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १९४४४). 4 ). For Private And Personal use only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १. पे. नाम. उपधानविधि स्तवन, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, वि. १८३७, भाद्रपद कृष्ण, ७, बुधवार, ले. स्थल. सांतलपुर, प्रले. पं. शुभविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. उपधानतप स्तवन, ग. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: समरी सरसति सारदा रे, अंति: उत्तमचंद मंगल करो, ढाल - ५. २. पे. नाम. १७ भेदी पूजा सज्झाय, पू. ३आ, संपूर्ण उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेद पूजा फल, अंतिः तेह तयनि तारे रे, गाथा- ९. ३१२००. अंतरिषजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२५४११, ११४३२-३७). ३१२०१. अरिष्टनेमिषट्भाषा स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५X११, ११x४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्ष, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: धन मन वचनई रहइ, गाथा - ५५. १२५ नेमिजिन स्तवन-षड्भाषामय, मु. पद्मसुंदर, अ.भा., अप., प्रा., माग, शौ., सं., पद्य, आदि: विजित्य दुर्वारमनंग, अंति: सततध्यानावधाना त्वयि गाथा - ३०. ३१२०२. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., ( २४.५X१०.५, १५X४५). १. पे. नाम. चतुर्मुखविहारशृंगार आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण, ले. स्थल. छाणी, प्रले. मु. मेरुरत्न शिष्य (गुरु पं. मेरुरत्न गणि); गुपि. पं. मेरुरत्न गणि, पठ. श्राव. मणोर नरदे, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन- राणकपुरतीर्थ, मु. मेहो, अप., मा.गु., पद्य, वि. १४९९, आदि: वीर जिणेसर चलणे लागी, अंति: कीडं मनरंग उल्हासे, गाथा- ४८. २. पे. नाम, नवसारीमंडन श्रीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- नवसारीमंडन, ग. संघमंगल, अप., मा.गु., पद्य, आदि: नवसारी मंडण पाससामी, अंति: दंसण नाण लहडं विभव गाथा- २३. पे नाम, आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयमंडन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. ३१२०३. सामायकना बत्रीसदोष सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X११.५, ११x२६). पंचतीर्थ जिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, आदि आदिहि आदि जिणेसरु ए. अंति: (-), (पू.बि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंतिः श्रीकमलविजय गुरु सीस, गाथा १३. ३१२०४. मिथ्यादृष्टि गुणस्थानक कालमान गाथा सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. सा. कीर्तिविजया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०.५, १६x४७). मिथ्यादृष्टि गुणस्थानक कालमान गाथा-पंचसंग्रहगत हिस्सा, प्रा., पद्म, आदि: होइ अणाइ अनंतो अणाइ; अंतिः सव्वेणुमसो, गाथा ६. मिथ्यादृष्टि गुणस्थानक कालमान गाथा-पंचसंग्रहगत टीका, सं., गद्य, आदि: (१) संप्रत्येकस्मिन् जीव, (२) इह मिथ्यादृष्टि काल, अंति: गुणस्थानकालमानं. ३१२०५. (+) उपदेशरत्नकोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९३, कार्तिक कृष्ण, ६, रविवार, जीर्ण, पृ. २, ले. स्थल. जेसरमेरुनगर, For Private And Personal Use Only " प्रले. पं. राजसोम (बृहत्खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनसागरसूरि (गुरु वा. उदयरत्न, खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. सज्जीवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्रो. (८४९) लिखीया अक्षर चिर रहइ (८५०) लिखणहारा नवि रहइ, जैवे. (२५.५४१०.५, ७४४२). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि : उवएसरयणकोसं नासिअ अंति: हियए रमइ संसारे, गाथा - २५. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः उपदेश रुपीया रत्न, अंति: रमइ स्वेच्छायइ करी. ३१२०७. छंदछप्पनी, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४-१ ( २ ) = ३, जैदे., ( २५X११, १७५५-६१). Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची छंदछप्पनी, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाराक्षर प्रथम जैन; अंति: भावदेव गच्छपति तिके, सवैया-५६, (पू.वि. सवैया-८ अपूर्ण से २४ अपूर्ण तक नहीं है.) ३१२०८. (+) तीरथमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. जयसागर ऋषि; पठ. श्राव. प्रेमजी वेलजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. आदर्श प्रति होने की संभावना है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४.५४१०.५,१५४४६). तीर्थमाला, मु. मतिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: सद्गुरु चरणे नमी; अंति: मतिसागर० भव नवि भमइ, गाथा-३३. ३१२०९. (+) नेमि स्तुतिसमस्या, संपूर्ण, वि. १७३७, फाल्गुन कृष्ण, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, प्रले.ग. रामचंद्र (गुरु मु. भीमचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-पदच्छेद सूचक लकीरे-सधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५४१०, १२४४२). नेमिजिन स्तुति-समस्यापूर्ति, ग. रामचंद्र, सं., पद्य, वि. १७३७, आदि: स्वस्ति श्रीकीर्ति; अंति: श्रेयसे स्तात्सदा वः, श्लोक-१८. ३१२१०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. वांछितिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १४४३३). १.पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष; अंति: तूठां संपति कोडि, गाथा-९. २. पे. नाम. एलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नामे एलापूत्र जाणीइं; अंति: इम लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-१२. ३१२११. दृढप्रहारी गीत व जैन गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १४४५१). १. पे. नाम. दृढप्रहारी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: पय पणमिय सरसति वरसति; अंति: लावण्यसम० सिद्धिगामी, गाथा-२४. २.पे. नाम. जैन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३१२१२. निनवछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१३.५, १४४३८). निह्नवछत्रीसी, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: इण आरे निह्नव नीकलीय; अंति: रे कोइ म जाणो रोसजी, गाथा-३८. ३१२१३. चतुर्विंसतिजिनानां स्तवनं, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ३, पू.वि. नमिनाथ स्तवन तक नहीं है., जैदे., (२५४१२, १४४३८). १. पे. नाम. नेमनाथजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, क. लाभहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सामळिया सुंदर देहि; अंति: लाभहर्ष इम बोल्या रे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: एकरस्यु जिनराजि सवाइ; अंति: सदा माहरी याहि ज टेव, गाथा-७. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: आवो साहेली थाउ वहेली; अंति: उत्तम पदवी पाइ रे, गाथा-७. ३१२१४. शेव्रुजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, १०४२७). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा-१६. For Private And Personal use only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १२७ ३१२१५. सीमंधरस्वामी विनती, संपूर्ण, वि. १८८६, भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. श्राव. वाहलचंद दलीचंद दोसी; लिख. मु. जीतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ९४२७-३०). सीमंधरजिनविनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुण सीमंधर साहिबाजी, अंति: मुज मानस सर हंस, गाथा-३५. ३१२१७. अष्टप्रकारीपूजा, संपूर्ण, वि. १८७८, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. मेताग्राम, अन्य. मु. विवेकविजय (गुरु ग. मानविजय); गुपि.ग. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रति लिखने के बाद किसी ने पुष्पिका लिखी है. जो इस प्रकार है. 'सं. १८८१ पोस सुद २ दिने पं. श्री मानविजय गणि शिष्य विवेकविजय लिपिकृतं धनेरानगर साडोमोर देवचंदने परमार्थे लखी छे श्रीथरानगरे पोहवे पं. मानविजयजी परत १ मूकी छेई चेल साथै.', जैदे., (२५४११.८, १४४३८). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: यांति दोषं हि वीराज, ढाल-९. ३१२१८. उपधान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. मतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३७). महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीर जिणेसर सुपरइ; अंति: मुझ देयो भवि भवि, गाथा-२६. ३१२२०. सिद्धचक्रयंत्रोद्धार श्लोक सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पाडलिपुर, प्रले.मु. जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १४४४६). सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गयणमकलियायत उद्दाह; अंति: सिज्झति महंतसिद्धिओ, गाथा-१२. सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ गगनादिसंज्ञा; अंति: रहस्यभूतमित्यर्थः. ३१२२१. पार्श्वनाथ स्तवन ववीशस्थानकतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३९). १.पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. मनु ऋषि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मतिदायक नमी; अंति: आपु सेवा तुम्ह तणी, गाथा-७. २. पे. नाम. वीसस्थानकतप सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप सज्झाय, मु. मनु ऋषि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर प्रणमी; अंति: आराधउ भवियण निसदिस, गाथा-८. ३१२२२. इकवीसठाणा व दोसोउनसत्तरपर्वतपाठ-जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, संपूर्ण, वि. १६९५, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. सूरतबंदर, प्रले.ग. देवविजय (गुरु ग. संघविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. संघविजय (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि', तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२-१३४३८). १. पे. नाम. जिनानामेकविंशतिस्थानानि, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. २.पे. नाम. जंबूद्वीपमध्ये २६९ पर्वत विचार-जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रोक्त, पृ. ४आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१२२३. षट्दर्शनसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, २३४६९). षड्दर्शनसमुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, ई. ८वी, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८६. ३१२२४. गुर्वावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १५४५४). पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतोसुहहेउ; अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-२१. For Private And Personal use only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra יי www.kobatirth.org १२८ ३१२२५. प्रव्रज्या कुलक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. कासीदास (गुरु ग. ज्ञानशील); गुपि. ग. ज्ञानशील, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५X१०.५, १५४५३). प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसम सायर भवजल, अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ३१२२६. गुंहली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ७, जैदे., ( २४.५X१०.५, १२X३२-३९). १. पे नाम. हली, पृ. १अ. संपूर्ण. गुणसागरसूरि गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब कीओ मुनिराव, अंति: सुणि पामें शिवराज, गाधा- ७. २. पे. नाम. गुंहली, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. महावीर जिन गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि; चक्र चलें आकाशमां अंतिः पद्मविजय होय शुद्ध, गाथा-६. ३. पे. नाम. गुंहली. पू. १आ-२अ संपूर्ण गौतमस्वामीगणधर गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तियाम वनखंड मझारि अंतिः पद पद्म वधावे तो, गाथा- ७. ४. पे. नाम गुहली, पृ. २अ २आ, संपूर्ण गुरुगुण गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही उद्यानमा अंति: करती लहे शिवठाण रे, गाथा- ७. ५. पे. नाम गुहली. पृ. २आ, संपूर्ण , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरु गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रूडीने रढियाली रे अंतिः पद्म कहे अमीअ सींचाय, गाथा-७. ६. पे. नाम. गुंहली, पृ. ३अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुधर्मास्वामी गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि राजग्रही रलियामणी, अंतिः अव्याबाध उदारो रे, गाथा- ७. ७. पे नाम, गुंडली, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण (२५X११, ११४३४). महावीरजिन गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीतभय पाटण वीरजी, अंतिः तस पद पद्म नमो नित, गाथा- ६. ३१२२७. ऋषभदेवनी हमची संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे आदिजिन हमची, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवीर जिणेसर जगमां अंति हमची गाई अभिराम रे, गाथा- ३५. ३१२२८. (+) आदीश्वर विज्ञप्तिका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. कमलसी ऋषि, पठ. मु. देवचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५४११ १३४४४-४७). " आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु, पद्य, आदि: सकल आदि जिणंद जुहारि, अंतिः भवि भवि अविहड रंग, गाथा-५५. ३१२२९. सुरप्रियकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७१५ आश्विन कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. सा. तेजश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x११, १४-१५X३८-४२). सुरप्रियमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु. पच, आदि: सिरि शांति जिणेसर, अंतिः ते भवसावर उत्तरड़, गाथा - १९. ४. पे नाम, पार्श्वजिन छंद. पू. ३अ-३आ, संपूर्ण " गाथा ६३. ३१२३०. छंद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. कुल पे, ५, पठ. ग. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२५X११.५, १९-२०X३८-४७). १. पे. नाम. माणिभद्र छंद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदिवः सरस्वती स्वामनी पाय अंति: आपो मुज सुख संपदा, गाथा ४०. २. पे. नाम, पार्श्वनाथ गोडीजीनो छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गोडि पास धणी, अंति: गोडीजी देजो हेज धरी, गाथा - ११. पे. नाम, पार्श्वजिन छंद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. भाण, मा.गु., पद्य, आदि: गोडी गिरुउ गाजतो धवल; अंति: भणे भाण० अम तुं धणी, For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरती श्रीपास; अंति: नवनिधि सदा आणंद घणे, गाथा-११. ५. पे. नाम. नाकोडापार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपणडे घरे बेठा लील; अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. ३१२३१. सिद्धचक्र स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १२४३१). १. पे. नाम. सिद्धक्रनी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: उत्तम सीस सदाई, गाथा-४. २. पे. नाम. सीधचक्र स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेशर अति अलवेसर; अंति: सानिध कीजो मायजी, गाथा-४. ३१२३२. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६९, आश्विन कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १३, प्रले. मु. माणिक्यविजय (गुरु ग. महिमाविजय); गुपि.ग. महिमाविजय (गुरु ग. मानविजय); ग. मानविजय; अन्य. ग. केसरविजय (गुरु ग. मानविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११.५, १३४४१-४२). १.पे. नाम. वीसविहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिला जिनवर विहरमान; अंति: नय वंदे करजोडि, गाथा-३. २. पे. नाम. अनागतचोवीशजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मनाभ पहेला जिणंद; अंति: नयविमल कहे सीस, गाथा-१५, (वि. प्रतिलेखक के द्वारा तीन-तीन गाथाओं को एक गाथा गिने जाने से प्रति में ५ गाथा लिखी है.) ३. पे. नाम. जिनलंछन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-लंछनगर्भित, मु. नय, मा.गु., पद्य, आदि: वृषभ गज हय कपि; अंति: नय समरे निसदीस, गाथा-३. ४. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम जिणंद तणा भला; अंति: नय प्रणमे जिन नेह, गाथा-३. ५. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरिसयठाणइं कह्या; अंति: नय० वंदो जिन चौवीस, गाथा-३. ६.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय नृप कुल; अंति: एहथी लहीइं जयजयकार, गाथा-६. ७. पे. नाम. २४ जिनवर्णगर्भित चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मप्रभुने वासुपुज; अंति: तणो नय वंदे निसदीस, गाथा-३. ८. पे. नाम. अढारदोषवर्जनगर्भित चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-१८ दूषणवर्जनगर्भित, आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: दान लाभ भोगोपभोग बल; अंति: कीजई तेहनी सेव, गाथा-३. ९. पे. नाम. ३४ अतिशयगर्भितजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-३४ अतिशयगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अतिशय च्यार ज अतिभला; अंति: इम चोत्रीस उदार, गाथा-३, (वि. इस प्रति में कर्ता के नाम संबंधी कोई विवरण नहीं मिलता है.) १०. पे. नाम. आठप्रातिहार्यगर्भितजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन चैत्यवंदन-८ प्रातिहार्यगर्भित, आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: बारगुणो तनुथी अशोक; अंति: ते जिनसुं मुझ नेह, गाथा-३. ११. पे. नाम. अढारपापस्थानकचैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-१८ दोषवर्जनगर्भित, आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध मान मद लोभ माय; अंति: पुण्य तणो भंडार, गाथा-३. १२. पे. नाम. पंचपरमेष्टिगुणचैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: बारस गुण अरिहंत देव; अंति: तणो नय कहे जगसार, गाथा-३. १३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि चैत्यवंदन, आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सामलवानि सोहामणा; अंति: कहइं धन धन जगमे तेह, गाथा-३. ३१२३३. सझायसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२५४१२, १६-१७४३८). १. पे. नाम. गुरु गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. देवगुप्तसूरि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: आज घडी सुप्रमाण सफल; अंति: सुगुरु अविचल रहे, गाथा-६. २. पे. नाम. देवगुप्तसूरि को मेडतासंघ के द्वारा चातुर्मासविनंति गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रायसिंघ, रा., पद्य, आदि: पंथीडा संदेसो पूजजी; अंति: तीरथ जुगस्युंजी, गाथा-७. ३. पे. नाम. देवगुप्तसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खुस्यालसुंदर, रा., पद्य, आदि: पंथीडा संदेसो पूजजी; अंति: बालपणारी टेकरे, गाथा-७. ४. पे. नाम. नेमराजुल बारहमासौ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १८६५, माघ कृष्ण, १४. नेमराजिमती बारमासो, मु. अमरविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: यादव मुझ सांभरै; अंति: भणी विनवै अमरविशाल, गाथा-१९. ५. पे. नाम. गुरु गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. देवगुप्तसूरि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहो जी हो अति; अंति: चिरंजीवो कहै रत्र, गाथा-७. ६. पे. नाम. देवगुप्तसूरिजीवनी गीत, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: जिणसासण सिणगार वंदो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ३१२३५. ४ मंगल प्रभाति व शांतिनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८०, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले.पं. राज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४४८). १. पे. नाम. प्रभाती च्यारमंगलिक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धारथ भूपति सोहे; अंति: उदयरत्न भाखे एम, गाथा-१८. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय नमु शिरनामी; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२०. ३१२३६. चिंतामणिपार्श्वनाथ महास्तवन, वाग्देवी स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १७४३०). १. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ महास्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३३. २.पे. नाम. सरस्वतीदेवी मंत्र विधिसहित, पृ. २अ, संपूर्ण.. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. वाग्देवी स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामाहवति चिरकालं, श्लोक-९. For Private And Personal use only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१२३७. (+) स्तोत्र संग्रह व जापमंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६x४३). १.पे. नाम. महावीर निर्वाणकल्याणक स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. जीर्णद्रंग, पठ.मु. हेतुसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. __ महावीरजिन स्तोत्र-निर्वाणकल्याणक, पंन्या. विजयसागर, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीपरिसेव्य; अंति: सर्वदा श्रेयसे, श्लोक-२८. २. पे. नाम. अझारपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तोत्र-अजाहरा, मु. पद्मसागर, सं., पद्य, आदि: अझारपार्श्वस्तुतिमार; अंति: सेवाकर लोकवत्सलः, श्लोक-५. ३. पे. नाम. विद्याप्राप्ति एवं लक्ष्मीप्राप्ति मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३१२३८. गोडीपार्श्वनाथजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८५१, कार्तिक शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जावाल, प्रले. ग. नायकविजय; पठ.मु. किसना (गुरु ग. नायकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १३४२८). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जीत कहि हरखि सदा, गाथा-२३. ३१२३९. स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (३५४११.५, १४४३८). १.पे. नाम. महावीर गणधरवाद स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. गणधरवाद स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सो सुत त्रिसलादेवी; अंति: सेवक सकलचंद कृपाकर, गाथा-४७. २.पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. पद्महर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रामत करती अंगिरंग; अंति: कल्याणहर्षकवि सीस, गाथा-५. ३. पे. नाम. मनःशिक्षारूप स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनशिक्षा, मु. पद्महर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मन गढ वंका क्युं अंति: जुंपामो राज अविनाशी, गाथा-६. ३१२४०. भवानी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७५९, फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०, १३४४०-४१). ___ भवानी स्तोत्र, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकति सदा सानिधि करो; अंति: कल्याणनै जयकारणी, गाथा-२५. ३१२४१. (+) आलोचनाप्रदान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १६४३८-३९). आलोचनाप्रदान विचार-विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ज्ञानाचार पोथी पाटी; अंति: वार्षिकं तपो भवति. ३१२४२. पार्श्वजिन छंद, सामान्यजिन गीत व सुभाषित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १४-१५४३४-४०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भणै जयो देव जय जयकरण, गाथा-५२. २. पे. नाम. गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: क्यु जिन भक्ति; अंति: अवगति की गति न्यारी, गाथा-७. ३. पे. नाम. सुभाषित, पृ. ३आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३१२४३. पार्श्वनाथजिन चोवीसदंडक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, ११४२९-३२). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: आदरि जिव क्षिमा गुण; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४. ३१२४४. १४ गुणठाणे १३ बोल विचार, संपूर्ण, वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, १७४५१-५२). For Private And Personal use only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ गुणस्थानक के १३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार लक्षणद्वार; अंति: मार्गणा १ मोक्ष जाय. ३१२४५. (+) चउसिरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४४४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३१२४६. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रतिलेखन पुष्पिका अपूर्ण है., प्रले. ग. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४३). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१, संपूर्ण. ३१२४७. थेरावलिया, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, १०४३६). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. ३१२४८. बारव्रत विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. प्रारंभिक पाठ नहीं है एवं प्रतिलेखक ने पत्र क्रमांक १ ___ दिया है. जो अशुद्ध होने से यहाँ काल्पनिक पत्र क्रमांक २ दिया गया है., जैदे., (२४.५४११.५, १६४३६). १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: रोगादिक कारणे जयणा. ३१२४९. अध्यात्मभावना विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. उजमलाल नरभेराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १३४३३). अध्यात्मभावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार; अंति: करीने वंदणा होजो. ३१२५०. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, ११४३३). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथि, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: उद्योत्सारं शोभागार; अंति: तारा भूत्यै स्तात्, श्लोक-४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंति: वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. ३१२५१. हितोपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५७, कार्तिक कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, दे., (२५४११.५, १४४३९-४०). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरसति; अंति: तस जगवल्लभ गुण गाय, गाथा-१६. ३१२५२. पोसोलेवन विधि, देसावगासिक पाठ व एकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १४४३४-३७). १. पे. नाम. पोसोलेवन विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम राई पडिकमणो; अंति: ए पाटी कहनी. २. पे. नाम. देसावगासिक पाठ, पृ. ३अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. एकादसी सिज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: अविचल लीला लहिस्यै, गाथा-६. ३१२५३. मल्लिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पत्र के एक तरफ का हिस्सा टूटा होने से किसी ने अन्य पत्र पर उतना भाग लिखकर चिपका दिया है., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७-४३). मल्लिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन प्रभुरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ प्रारंभ तक है.) ३१२५४. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४२७). पट्टावली तपागग्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान देव; अंति: विजयदेवेंद्रसूरि. ३१२५५. चोविसजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १०४३४). २४ जिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: जिनर्षभ प्रीणते भव्य; अंति: लोक्यलक्ष्मीश्वरा, श्लोक-८. For Private And Personal use only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१२५६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, १३४४३). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आज ऊमाहो अतिघणोजी; अंति: पूरवो मनह जगीस, गाथा-७. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. नरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल दिन मुझ तणोजी; अंति: सिद्धि तणो उपाय, गाथा-८. ३. पे. नाम. सुविधिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, मु. सोमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: ग्यान सुधारस दरियो; अंति: थुणतां सेवक सुख पाया, गाथा-५. ३१२५७. शांतिजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४५१). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय नमु शिरनामी; अंति: वंछित फल निश्चै पावै, गाथा-२१. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदीश्वर अरिहंतजी रे; अंति: वंछित फल दातार, गाथा-७. ३१२५८. सीता गीत व पार्श्वनाथ नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४४१). १.पे. नाम. सीता गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीतासती गीत, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: लखमणजीरा वीराजी हो; अंति: राजसमुद्र भणइरे, गाथा-९. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: सदा ध्यायामि मानसे, श्लोक-२. ३१२५९. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६८, श्रावण कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. कृष्णदुर्ग, प्रले. मु. अजबसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४५४). १.पे. नाम. सुबाहुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ऋषभसागर, रा., पद्य, आदि: सांभली साहिब तुम्ह; अंति: मोपरि परतीत तो परि, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमिजिन त्रिपदी, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुखनिधान सुणीयै; अंति: सदा सोभाग्य दयाल, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमजी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, मु. गौतमसोम, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: गौतमसोम इम बोलै वाणी, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. कर्ता ने स्वयं यह कृति लिखी है. पार्श्वजिन स्तवन, मु. अजबसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: अश्वसेन सुत पास; अंति: सेवो जिम हवै खेम, गाथा-९. ३१२६१. तीरथमाला स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १८४५०). १.पे. नाम. तीरथमाला स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १७३५, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, ले.स्थल. वीठोरानगर, प्रले. ग. महिमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य. तीर्थमाला स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: समरसि समरसि सरसति; अंति: मंगलमाला ते लहइ, गाथा-५५. २. पे. नाम. सीयलवाडि सझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शीलनववाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलं प्रणमुंगोयम; अंति: शीलवंतने जाउ भामणे, गाथा-२७. ३. पे. नाम. चेलणा गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थका; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा ६. ३१२६२. विजयआणंदसूरिश्वर सज्झाय, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले, स्थल, बर्हानपुर, प्रो. ग. रामचंद्र (गुरु उपा. हीरचंद्र); गुपि. उपा. हीरचंद्र, पठ. श्रावि. जीवादे शंभु दोसी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५X११, ११×३३). विजयआणंदसूरि सज्झाय, मु. कमलविजय पंडित, मा.गु., पद्य, आदि सिरि सरसति रे वीणा, अंतिः प्रतपो कोडि वरिस ए. गाथा - ९. ३१२६३. विजयसेनसूरि स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे (२५.५X११, १३-१६४४२-४३). , विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती भगवती भारती; अंति: गुणविजय ० तपगच्छ धणी, गाथा - ५३. ३१२६५. अंतरिकपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५x११.५ १६ १७३२-३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी, अंति: भणै जय देव जय जयकरण, गाथा-५१. ३१२६६. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जै, (२५.५x१०, ९३३). १. पे. नाम. जूठातपसी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. झूठातपसी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रातसमे जिनश्रवण अंतिः झूठारिषनै नितनित नमो गाथा ५. २. पे. नाम, अनाथी स्वाध्याय, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण 1 अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि श्रेणिक रचवाडी चड्यो, अंतिः वंदे रे वे करजोडि , गाथा - १०. ३१२६७. बुध रासो, संपूर्ण, वि. १७८०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. कृष्णगढनगर, प्रले. मु. दयासागर (गुरु ग. अनोपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २५X११.५, १६५०). बुध रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणवि देवी अंबाई, अंति: ते सहुं टले कलेस तो, गाथा-६६. ३१२६८. महावीरहीडी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. पदमसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०.५, १३५१). महावीरजिन स्तवन- हुंडि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आसीन्मनो यस्य रसे; अंतिः शमचरो अमृ हो, गाथा - ३७. ३१२६९. पाणिग्रहणाधिकारसलोकबंधबंधुर द्रव्यभावमांगलिकमंदिरप्रशस्तशब्दसुंदर श्रीपार्श्वजिनपुरंदर प्रधानतर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २५x११, १४X३५). पार्श्वजिन स्तवन, मु. लाभसागर, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीगुरुराय पाए नमी अंतिः पास जिनवर नमो जिणाणं, गाथा- ३१. ३१२७० (+) पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., (२५X१२, ५X३१-४६). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति सह अवचूरि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरस वरस, अंतिः शिवसुंदरसौख्यभरम्, श्लोक- ७. पार्श्वजिन चैत्यवंदन - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरं प्रधाना संवरस्य; अंति: संबोधनं शेषं सुगम . २. पे. नाम. पार्श्व लघुस्तव सह अवचूरि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्म्या निदानं अंति: तीर्त्वा भवांभोनिधिं, श्लोक ७. पार्श्वजिन लघुस्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं पार्श्व नुवामि, अंति: विनाशने दक्षं चतुरं ३१२७१. महावीरहीडि] स्तवन, संपूर्ण, वि. १६६०, चैत्र कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल अहम्हदानगर, प्रलं. ग. हीरचंद्र (गुरु ग. धीरचंद्र); गुपि. ग. धीरचंद्र, पठ. श्राव. जसू संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १०-११३६-३७). महावीरजिन स्तवन- हुंडि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आसीन्मनो यस्य रसे; अंति: अधरो शमवरो अमृतजी हो, गाथा ४६. For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१२७२. महावीर स्तवन सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. जगजीवन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४११, ९x४४). महावीरजिन स्तव, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं दयालो मयि, लोक-३०. ग्रं. ३५७. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंतरंग वयरी रागद्वेष, अंतिः तिणइ कारणइ मइ. ३१२७३. गौतम परसौतर, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., ( २६११.५, १३x४४). ३१२७४. सनतकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X१०.५, ११३६). १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरसति भगवति भारती, अंति: रीषभ० कहे मंगल करूं, ढाल - १२, गाथा- ७८. (२५X११.५, १५X४८). १. पे. नाम. मंगलाचार, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि सनतकुमार हो; अंति: कहे ऋषिजी समरंताजी, गाथा ७. ३१२७५. (+) विधि संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३८-४७). १. पे. नाम. सम्यक्त्व ब्रह्मचर्यव्रतादि उच्चार विधि, पृ. १-३अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वब्रह्मचर्यादि व्रतोच्चार विधि, सं. गद्य, आदि: प्रथम नालिकेरादि: अंतिः मुक्खो जिणसासणे भणिओ. २. पे. नाम. अणसण विधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, प्रले. मु. न्यानरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य. अनशन विधि, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि गलाणनहं देव दरसण अंति: उवसंपजित्ता० विद्यामि " ३. पे. नाम. जैन श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन श्लोक सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), श्लोक-१ 1 ३१२७६. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६३, फाल्गुन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. राजहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ४ मंगल पद, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धरम उछव समै जैनपद, अंति: देवचंद्र पद अनुसरि ए, गाथा-४. २. पे नाम, पीठथापना, पृ. ९अ, संपूर्ण पीठस्थापना पद, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी भूमि, अंति: देवचंद० कल्याण वृंद, गाथा-५. ३. पे. नाम. मंगलाचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिलो ए मंगल जिनतणो, अंति: भवजलनिधि त ए. गाथा - ६. १३५ ३१२७७. वणजारा भास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X११, ९X२८). औपदेशिक भास, कीकु, मा.गु., पद्य, आदिः वणजारा रे उभउ रही; अंति: सुकृत करियाणं वुहरजे, गाथा -१७. ३१२७८. नंदीश्वरद्वीपांतर्गत द्वापंचाशज्जिनेंद्रालय पूजाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे. (२५.५४११.५. १९४४०). नंदीश्वरद्वीप अष्टप्रकारी पूजा, सं., प+ग, आदि: नंदीजलं केशवनारिकेतु अंतिः सुधास्वादजानंदभाजः . ३१२७९ (+) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. माणिक्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक ३१२८०. बारव्रतनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५x१०.५, १०X३६). " लकीरें., जैदे., (२५.५X११.५, १२-१४X३२-३४). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: जिम शाखा विस्तरो ए. गाथा- ४९. For Private And Personal Use Only १२ व्रत सज्झाय, मु. सुमतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर पाय नमीजे; अंति: साधु साधर्मिने तोले, गाथा - १७. ३१२८१. हित सज्झाय व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X१०.५, १२X३८). Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. हित उपरै सझाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंचल जीवडारे में, अंति: कीरत जपो श्रीनवकार, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ११. २. पे नाम आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८४७, पौष कृष्ण, १३ रविवार, ले. स्थल, चाणोद. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि आदिसर सुखकारी हो, अंतिः प्रभु आवागमन निवार, गाथा ५. ३१२८२. मनभमरा गीत, संपूर्ण, वि. १६६०, चैत्र शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. तिलकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x१०.५, १०x४८). औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु, पद्य, आदि: वाडी फूली अति भली, अंतिः शीख कहइ मुनि माल, गाथा- १९. ३१२८३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, १८x४२). १. पे नाम. अमुत्तामुनि सज्झाच, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद बांदीने, अंतिः लागु रे जिनने पाया, गाथा-१५. י २. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सोहामणु; अंतिः णा होज्यो त्रिकाल हो, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) ३१२८४. संतिकरं स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७२, फाल्गुन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०.५, १०x४०). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकर संतिजिणं, अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा - १३. ३१२८५. सज्झाय संग्रह व स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) =४, कुल पे. ३, प्रले. ग. गोकलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४९.५, ८२५). १. पे. नाम. लीख सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नरनारी भवभव सुख करै, गाथा - १४, (पू. वि. गाथा - ६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अइमतारषीसर सज्झाय, पृ. २आ ४आ, संपूर्ण वि. १७८१ कार्तिक कृष्ण, ४, ले. स्थल. भामोलाव. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनंद वांदीने, अंतिः ते मुनिवरना पाया, गाथा - १९. ३. पे. नाम. बरकाण्णा पर्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ४-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणा, मु. जिण, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणै वरमंडण पास, अंति: देज्यो तुम्ह पाइ वास, गाथा - १०. ३१२८६. नेमराजुल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X१०.५, १४४४९). नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठि करी हरि मनावीयो; अंति: लाल दोलितरा दातार रे, गाथा-३१. ३१२८७. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५x१०.५, १२X४६). सिद्धचक्र गीत, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: सहिए श्रीसिद्धचक्रने, अंतिः प्रभुपाय सेवा है, गाथा - ९. ३१२८८. स्तुति, स्तवन व सज्झाच संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. ७, दे., (२५.५४११.५, ९४३१). १. पे नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोविसे जिनवर हु; अंति: कहे एम सासन सुर सजाण, गाथा-४. २. पे नाम श्रुतपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रुतपद नमिया भावे; अंति: सौभाग्यलक्ष्मी० वेदे, गाथा-७. ३. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्म, आदि; भरतने पाटे भूपति रे, अंतिः रहेव्यो हईडा हजूर, गाथा-८. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: किन गुन भयो रे उदासी, अंति: जाय करवत ल्यूं कासी, गाथा-३. ५. पे नाम. मृषावाद स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १३७ मृषावादविरमणव्रत सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुगति से जाई मील्यो; अंति: कल्पवृक्ष फल्यो रे, गाथा-६. ६. पे. नाम. पजुसण स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतरभेदे जिनपूजा रचीन; अंति: पूरो देव सदाईजी, गाथा-४. ७. पे. नाम. आदिसर स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित द्वार गभारे; अंति: खीमाविजय० आगम रीत रे, गाथा-६. ३१२८९. (+) नवपदवर्णन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. अमृतानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४४). नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: सिद्धचक्र प्रधाना, गाथा-२१. ३१२९०. चतुर्विंशतिजिन स्तुतिस्तोत्र पद्धति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १८४५४). २४ जिन स्तोत्र, म. विजयसेनसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: प्रणतमिंद्रगणैः; अंति: शिष्याणुना श्रेयसे, श्लोक-२५. ३१२९१. स्तव संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५०). १.पे. नाम. ऋषभदेव स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकगिरिवर धणी रे; अंति: पुहती मनह जगीस, गाथा-१६. २. पे. नाम. संभवनाथ स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. दयानंद, पुहि., पद्य, आदि: सेना का सुत तुं; अंति: दाता लीलविलास मिलावै, गाथा-९. ३१२९२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. राणकपुर, जैदे., (२५.५४११.५, १३४५२). १.पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८५२, आषाढ़ कृष्ण, ११, प्रले. मु. तेजविजय (गुरु ग. हेमविजय); गुपि.ग. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. प्रत में यह पेटांक १आ पर दिया गया है. परंतु इस पेटांक का वर्ष अन्य पेटांकों से कम होने से इस पेटांक के पत्रांक को काल्पनिक १अ देकर कम्प्युटर में माहिती भरी गई है. आदिजिन स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: सुगुण सहेजा सांभलो; अंति: श्रीजिनभक्तिसुरंद, गाथा-१२, (वि. प्रत में इस कृति की रचना संवत् १८७१ एवं लेखन संवत् १८५२ लिखी हुई है. अतः संशोधन करने की आवश्यकता है.) २.पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८५४, आषाढ़ कृष्ण, ५, पे.वि. प्रत में इस पेटांक को पत्रांक १अपर लिखा गया है. परन्तु पूर्व पेटांक का लेखन वर्ष इस पेटांक के पहले का होने से इसे एवं इसके बाद के पेटांक को कम्प्युटर में काल्पनिक पत्रांक १आ भरा गया है. मु. न्यायसागर, पुहि., पद्य, आदि: क्युन रमै चित; अंति: हर ब्रह्मा कौन नमे, गाथा-६. ३. पे. नाम. संखेश्वर माहाराजा स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८५४, आषाढ़ कृष्ण, ११, पे.वि. काल्पनिक पत्रांक १आ. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंग, रा., पद्य, आदि: तारक जिन त्रेवीसमो; अंति: पामे परम कल्याण, गाथा-७. ३१२९३. थंभणपुर पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४९.५,१२४३८). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: मंडण पासनाह चउसालो, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने १६ गाथाओँको ८ गाथा में ही समावेश कर दिया है.) ३१२९४. कंसारीपुरवरमंडन पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. कान्हकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४४७). पार्श्वजिन स्तवन-कंसारीपुरमंडन, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्य प्रभावई सांभल; अंति: जिम वंछित फल पाउं, गाथा-१५. ३१२९५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४५४). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. जस वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: तुज दरसण दीठों अमृत; अंति: तुझ तोलई कोइरे, गाथा-५. २. पे. नाम. अजित स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अजितजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जिनेसर हेतलई भेटीयो; अंति: पभणै हो इम दीपसोभाग, गाथा - १०. ३१२९६. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५X१०, १३x४९). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. कनकसागर, मा.गु., पद्य, बि. १७७८, आदि: सोलमो जिनवर देव नितः अंतिः कनकसागर सकल मंगल करो, गाथा - १९. २. पे. नाम वीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण महावीर जिन स्तवन- स्वर्णगिरिमंडन, मु. लावण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीर जिनेश्वर जगि राय, अंति पामी सुख संपदा, गाथा- ११. ३. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन, मु. कनकसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि सारद पदपंकज नमी रे, अंतिः कहे रे पूरो संघ जगीस, गाथा- ७. ४. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तारक जिन तेवीसमा, अंति: सरणाई साधार जी, गाथा-६. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदिः एकरसो जिनराज मया कर अंतिः (-) (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३१२९७. नेमनाथजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. नरेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, १२X४३). नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि हठ करी हरि मनावियो अंति: दोलतिरा दातार रे, गाथा-३२. ३१२९८. पार्श्वनाथजीरो पालणो, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैवे. (२४.५४१०.५, १२४३६-४०)पार्श्वजिन पालणुं, मा.गु., पद्य, आदि: माता वामादे झुलावै, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १२ अपूर्ण तक है.) ३१२९९. सझाय व स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (२४.५४११.५, १२४३८). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. विजयेक्षेमासूरि स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. ग. खिमाविजय; पठ. मु. बालकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. विजयक्षमासूरि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजयरत्नसूरिंदना; अंति: सहियर मोहनविजय जयकार, गाथा- ७. २. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा शांति जिणंद; अंति: गाया भवि दुखवारक हो, गाथा- ७. ३१३०० (+) सेडुंजगिर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६२, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अमरसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२४.५X१०.५, १५४५०). " आदिजिन स्तवन बृहत् - शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि सयल जिणंद पाय; अंति: जिम पामो भवपार ए., गाथा - २२. ३१३०१. विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ५, जै. (२५.५४१२, १५४१). १. पे. नाम. चारआहार विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अससालिज्वारि बरटी, अंति: आहारनउ विचार जाणिवओ. २. पे. नाम. अणाहार विचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. अणाहारीवस्तु विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नींबनी छालि मूल पान, अंति: लीजइ ते अणहार हुइ. ३. पे. नाम. १३ किरीयानाम, प्र. १आ, संपूर्ण. १३ क्रियानाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अट्ठा १ अड्डा २ अंति: रियावहिया १३. गाथा- १. . ४. पे. नाम. असमाधिस्थानवीस गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण २० असमाधिस्थान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दवदवचारि १ अपमज्जिय; अंतिः वीस इमे एसणासमिए २०, गाथा ३. For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org ५. पे. नाम. जैनसामान्य कृति, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१३०२. संबोह सत्तरी, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रावण शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. सदासागर, पठ. श्राव. नारायण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४१०.५, १३४४०-४२). "" संबोधसत्तरी, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं, अंतिः सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा- ८४. ३१३०३. कायोत्सर्गमध्ये तपचिंतावण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०.५, ११४३५). १२४३८-४९). १. पे. नाम. सामायिक लेवा-पारवानी विधि, पृ. १अ. संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज्यप्रतिक्रमण में छमासी तपचिंतन विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: कोशांबी नगरी; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. ३१३०४. सामयिक, पौषध व पक्खिप्रतिक्रमणादि विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे, ३, जैदे. (२४.५x१०.५, सामायिक विधि, गु., प्रा., मा.गु., हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. पौषध विधि, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरिवावही अंतिः काजो काढीजे सुध कीजै. ३. पे. नाम. पक्खीप्रतिक्रमण विधि, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: देवसी पडिक्कमणो करे; अंति: देवसिपडिकमणो चलावीजै. ३१३०५. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, १८x४५). १. पे. नाम. भीनमालपारसनाथ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- भिनमाल, मु. मेरो, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिण विनमुं; अंति: मुझने आवागमण निवारकै, १३९ गाथा - १८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - भीडभंजन, उपा, उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदिः भीडभंजन भवभयभीतिहरं, अंतिः मदनमोहरिपुमर्दनं, , गाथा - ११. ३१३०६. (+) मंत्रगर्भित श्रीपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैये. (२५.५४११.५, ९४२७) ३१३०७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे (२४.५४११, ९४३५). " पार्श्वजिन स्तोत्र - कलिकुंड, सं., पद्म, आदिः ॐ ह्रीं तं नमह अंतिः स्वामिने नमः स्वाहा, श्लोक-४ (वि. साथ में विधि दी गई है.) " औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि करीइ पर ऊपगार मुंकी, अंतिः सुधारस दीवडो रे, गाथा- ७. ३१३०८. दंडक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, खेरवा, प्रले. मु. तखतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४४१०, ९X३३-३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा - ३८. . ३१३०९. सेठविजयविजयाखीनो स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जै. (२४.५४१०.५, १४४२८-३४). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच, अंति: कुशल नित घर अवतरे, बाल-३, गाथा- २३. ३१३१०. (+) थूलभद्र सज्झाय व औपदेशिक पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. मु. अमरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., ( २४४११, १५X३९-४४). १. पे. नाम. थूलभद्र नवरशियो, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, मु. वरमल्ल, मा.गु., पद्य, आदि: इण भरतखेत्र में सोहै; अंति: जीणवर दाखीयाजी, ढाल-४. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: लगै धन पारको नीको; अंति: मेघ मुनिवर की, गाथा-६. ३. पे. नाम. थुलभद्र सिज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल दे मात मल्हार; अंति: लबधि लीछमी घणीजी, गाथा-१७. ३१३११. (#) पिंडविशुद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६००, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. गोरा; लिख. श्राव. देवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५-१७४४६). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: बोहिंतु सोहिंतु य, गाथा-१०४. ३१३१२. आराधनासूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४११, १२४३७). __ आराधना सूत्र, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. ३१३१३. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५४११, १४४४७-५४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र चैत्यवंदन व गुरुवंदन भाष्य ही है.) ३१३१४. (+) भगवतीसूत्र-शतक१८, उद्देशो-१०, सोमिल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. मु. भागचंद ऋषि; सा. रतना; सा.रुपा; सा. वीराई; सा. लीला, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ११४३९). भगवतीसूत्र-हिस्सा*, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३१३१५. चतुःशरण पइन्नं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. वीरविमल गणि (गुरु आ. आनंदविमलसूरि); गुपि. आ. आनंदविमलसूरि (गुरु उपा. धीरविमल), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, २५४४२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३१३१६. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(२)=४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज जोग विरई, अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६१, (पू.वि. गाथा-८ से २१ नहीं है.) ३१३१७. संयमश्रेणी विचार सह वृत्ति-पिंडनियुक्तिसूत्रे, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. उपा. रविवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १७-१८४६३). पिंडनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. पिंडनियुक्ति-टीका, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३१३१८. नमिपव्वज्जाज्झयण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४५४). नमिपव्वजा अज्झयण, हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइऊण देवलोगाओ उवयन्न; अंति: नमीराय रिसित्ति बेमि, गाथा-६२. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ९ की-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अनंतराध्ययने निर्लोभ; अंति: विधेयमिति ब्रवीमि. ३१३२२. बीज स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, ८४३६). बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३१३२३. पद्मावती स्तोत्र व सारदादेवी छंद, संपूर्ण, वि. १८१२, चैत्र शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, पठ. पं. हस्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १५४३७). १. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org पद्मावतीदेवी छंद, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि सकति सदा सानिधि करो, अंतिः कल्याणनुं जैकारणी, गाथा - २५. २. पे. नाम. सारदा छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सारदादेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) ३१३२४. (+) सागरबावनी व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५X११, १९५१). १. पे. नाम सागरबावनी, पृ. १अ २अ संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि: सरसति सामिणि सुणो अंतिः तेस्युं गच्छमां लीधा, गाथा-५२. २. पे. नाम वीर स्तवन पांचबोल विचारसुं. पू. २अ २आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तवन- पांचबोलविचार, मु. सिंहविजय, मा.गु, पद्य, वि. १६७४, आदि: वाणी वाणी हितकरीजी; अंति: शासननायक वीर गायो, गाथा - ४१. ३१३२५. प्रवज्या विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जै, (२५४११.५, १४४३१-३५). प्रव्रज्या विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: सांझरी वेला चारित्र, अंतिः तिपयाहिण वास उसगो, ३१३२६. शत्रुंजयचैत्यप्रपाटिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११, १३x४५). शत्रुंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६८६, आदिः आज मनोरथ पूरीबइ, अंति: जय जिन भेटा लीध, गाथा २६. ३१३२७. साधु अतिचार, अपूर्ण, वि. १८०९, आषाढ़ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ४- १ (१) = ३, पठ. मु. चतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५x११.५, ११४३०). "" आवश्यक सूत्र - साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का साधु पाक्षिक अतिचार, संबद्ध, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि (-); अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. विशेष ३१३२८. (+) अग्वारगणधर वेदपदव्याख्यासूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७-३ (१ से ३) २४, प्र. वि. टिप्पण युक्त पाठ- त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैवे. (२५x११. ४०४३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्यारगणधर वेदपदव्याख्यासूत्र, प्रा., सं., पद्य, आदि: वेदपदानि तु स वै अयम, अंतिः सव्वे चउदसपुव्विणो, सूत्र - १३, संपूर्ण. अग्यारगणधर वेदपदव्याख्यासूत्र टीका, सं., गद्य, आदि: विज्ञानघन एवैतेभ्यो अंतिः नुष्ठानं विधेयमिति, संपूर्ण. ३१३२९. चतुर्दश प्रश्नोत्तर संपूर्ण वि. १८२१ माघ शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, पत्तन, जैदे., (२५x११.५ 1 . , - १३-१५४४२). १४ प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्रश्न तुम्हे, अंति: ग्रंथनी साखी छ, प्रश्न- १४, अं. ८१. ३१३३०. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५X१०.५, १७X५४). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा- ६८. गौतमपृच्छा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर तीर्थंकर, अंति: महार्थइ गौतमपृच्छा. ३१३३१. द्विजवदनचपेटानाम वेदांकुश, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५x११.५, १८x४८-५२). द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः कूर्मवामनमीनाद्यैरवत अंतिः तिष्ठति विप्राः. ३१३३२. चर्चा अधिकार व लोक संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे. २, जैदे., (२५x११.५, २०४४४-४८). , " १. पे. नाम. चर्चा अधिकार, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. चर्चा अधिकार-स्थानकवासीमत खंडन, मा.गु., गद्य, आदि: भ्रमामती कहै हुं, अंति: प्राप्त होगा. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. י' प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १. ३१३३४. क्षेत्रद्वार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जै, (२५x११ २०-२१x४६-४९). १४१ For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्षेत्रद्वार, मा.गु., गद्य, आदि: खेत्रआश्री जोवतां, अंति: माटइ विशेषाधिक कहीयइ. ३१३३५. अठाणद्वार, संपूर्ण वि. १९५०, श्रावण शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले, स्थल, वीरमगाम, प्रले. श्राव. अमूलख वलूभाई शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५. ५X११, १५४३९-४२). www.kobatirth.org " " अल्पबहुत्व द्वार के ९८ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: केहा जीव थोडा केहा, अंतिः जीव विशेष अधिका. ३१३३६. विचार संग्रह, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पंन्या. हेममंदिर (गुरु गच्छाधिपति जिनसिंहसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६११, १७४४८-५३). विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१३३७. प्रश्नसंग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे, ३, जैदे. (२५.५x११, १९-२०४५८-६०). "" १. पे. नाम. लूंकानि पूछवाना बोल, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. लुंकामतीय प्रश्नबोल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीडवाईमांहि अंबडनी, अंतिः तो केहूं ज्ञान कही. २. पे नाम, लुंकामतीय समाचारीआश्रयीप्रश्न, पृ. २आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लुंकामतीय समाचारीप्रश्न, मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते १ लोगस्स; अंतिः विगम वा धुवे वा. ३. पे. नाम. सिद्धांत आश्री लुंकामतीय प्रश्न, पृ. २- ३आ, संपूर्ण. , सैद्धांतिक प्रश्न- लुकामतीय, प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः सव्वे पाणा सव्वे भूआ अंति: मेलइ जोड़ लिखयो प्रश्न- १३. ३१३३८. मंगलवादसुखावबोध प्रश्नोत्तरपद्धति, संपूर्ण, वि. १६९९ चैत्र अधिकमास ८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल राजदंग प्रले. ग. विनयसागर (गुरु उपा. सुमतिसागर, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि उपा. सुमतिसागर (गुरु उपा. पुण्यप्रधान, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. पुण्यप्रधान (बृहत्खरतरगच्छ); राज्ये गच्छाधिपति जिनसागरसूरि (बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, १७X५४). मंगलवाद, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदिः ननु भो ये विशिष्ट, अंतिः धिरेवेत्यलं विस्तरेण. ३१३३९. प्रश्नोत्तरत्नमालाप्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १५२२ फाल्गुन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, अहम्मदाबादनगर, प्र. मु. सोममंगल शिष्य (गुरु ग. सोममंगल); गुपि. ग. सोममंगल, पठ. मु. शुभरत्न शिष्य (गुरु उपा. शुभरत्न); गुपि. उपा. शुभरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१०.५, ९x४८). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनवरेंद्र, अंतिः कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करी केवलीतणु; अंतिः सविहुं हइ अलंकरइ. ३१३४०. प्रश्नोत्तररत्नमालाप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. अमरसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २५X११, ७x४१). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र, अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करी केवलीतणु; अंति: अलंकरइ अपितु अलंकरइ. ३१३४१. सम्यक्त्वस्वरूप गाथा सह विवरण व तेवीसपदवी विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५X४६-५७). १. पे. नाम. सम्यक्त्वस्वरूप गाथा सह विवरण, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वस्वरूप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खइयं खउवसमियं वेइय, अंति: पन्नत्तं वीयरागेहिं, गाथा - १. सम्यक्त्वस्वरूप गाथा- विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलौ समकित क्षायिक, अंति: वेला लगै लहै. २. पे नाम, २३ पदवी विचार, पृ. २आ-४अ संपूर्ण मा. गु, गद्य, आदि: चक्ररतन छत्ररतनर अंतिः दृष्टी साधु एदोय. ३१३४२. ५६३ जीवभेदे गतागत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५X११.५, १२४३९). गतागतिनां बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकी प्रजाप्ता; अंति: जाये नरके नीयमा ३१३४३. अढारपापस्थानक सज्झाव, संपूर्ण, वि. १८०९ कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. सुबुद्धिविजय पठ. मु. वसंतविजय (गुरु पं. सुबुद्धिविजय), प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२६४११.५, १९-२०४४८-५२). " For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org १४३ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापधानक पहिलूं का अंतिः वाचक जस इम भाजी, सज्झाय- १८, (वि. गाथा - १३५ ) ३१३४४. आदिजिन गीता, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६११.५, १६x३९). 3 आदिजिन गीता, मु. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि आदि पुरुष श्रीआदिजिन, अंतिः केसर० अधिक आनंद पायो, गाथा - ३६. ३१३४५. योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६.५X११.५, ११४३८-४१). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदिः नमो दुर्वाररागावि, अंति: (-), (पू. वि. प्रकाश-२ श्रो-२० तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१३४६. अंचलमत विचार व खरतरगच्छीय गणव्यवस्थाविचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २ ) =१, कुल पे. २, जैदे. (२६११, १६-१८४५६). १. पे. नाम. अंचलमत विचार, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ग्रहणं अनुजानंति. २. पे. नाम. गणव्यवस्था विचार, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. खरतरगच्छीय गणव्यवस्था विचार, सं., गद्य, आदि: चंद्रगच्छे बज्रशाखा, अंतिः वचनं प्रवर्तयति. ३१३४७. विजयसेनसूरिनिर्वाण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६X११, १३x४४). विजयसेनसूरिनिर्वाण सज्झाय, ग. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी - १७वी, आदि: समरीय सरसति वरसति; अंतिः देवविजय मंगल करो, गाथा-३८. ३१३४८. स्तोत्र व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, ले. स्थल. मंडइबंदिर, प्रले. मु. हंसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६११, १५४३९-४१). १. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ २अ संपूर्ण आनंदविजय शिष्य, सं., पद्य, आदिः श्रेयो लताविपिनपल्लव, अंति: कैवल्यलक्ष्मीमयं, श्लोक-२८. गाथा-५. ४. पे. नाम. वैराग्य स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, सं., पद्य, आदिः ऋषभदेवमहं महिमालयं अंतिः शिवरमा वरमानवमानिताः, श्लोक-२८. ३. पे. नाम. वैरागय स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर तुं चाखि मुज, अंति: जयादि सुख सकल सीझई, वैराग्य सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मन मेरा मोह निवारि; अंति: नित गुरुवचनामृतपान, गाथा-५. ३१३४९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. ग. मेरुविजय (गुरु ग. आणंदविजय, तपगच्छ); गुपि. ग. आणंदविजय (गुरु आ . हीरविजयसूरि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, १०-११x२६-३४). १. पे. नाम. शीयलनववाड सज्झाच, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. क. विजयभद्र, मा.गु, पद्य, आदि पहिलउं प्रणमुं गायम अंतिः सीयलवंतनइ जाउ भामणे, गाथा-२७. २. पे. नाम. ५ इंद्रीय सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, रा., पद्य, आदि: मात उरे मयगल वनमाहि; अंति: हंसा रे विषय न राचिइ, गाथा- ७. ३१३५०. बाहूबलीऋषी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२६४१२, ११-१२x२७-३०). बाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: स्वस्ति श्रीवरवा अंतिः रामविजय जय श्रीबरे, ढाल-४. ३१३५१. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४०-१८५३, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५X११, १४-१८x४५-५०). १. पे. नाम. परदेशीराजा सज्झाय, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, वि. १८४०, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, मंगलवार, ले. स्थल. नागपुर. प्रदेशीराजा चौढालियो, मा.गु, पद्य, आदि: हाथ जोड़ी की वीनती, अंतिः नामै बृतजपाल रे, दाल-४. For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४४ www.kobatirth.org २. पे. नाम. बुढ़ापा सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण, वि. १८५३, माघ शुक्ल, १३, गुरुवार, ले. स्थल. अजमेर. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण बुढापो आइयो; अंति: कवियण ग्यान रे लाल, गाथा - १८. ३१३५३. साधु वंदना, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (२४.५x११.५, १७४३९-४३) . पंचपरमेष्ठि वंदना, मा.गु., गद्य, आदि: (१) नमो अरिहंताणं नमो, (२) नमो क० नमोस्कार होवो; अंति: वडे लोडडो खमावुं छु. ३१३५४. पुंडरीक स्तुति, स्तवन व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., ( २६.५X११.५, १२X३३). १. पे नाम. पुंडरीक स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदिः सिद्धं श्रीपुंडरीका, अंति: विद्याश्च मे श्रुता, श्लोक-४. २. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: पुंडरीकगिरि राजशेखरं; अंति: मे श्रुतसुरी शिवंकरी, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पुंडरीक स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पुंडरीकस्वामी स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि जवठ जयउ सिरिगणहर अंति: सिवसुख सिद्धि सनाथ, गाथा ६. ४. पे. नाम. यात्रापुण्य स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अप, पद्य, आदि जे पुण्य नंदीसरजत, अंति: (-) (पू. वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ३१३५५. अष्टापदगिरि स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६९-६७(१ से ६७) - २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२६.५x११.५, ११४४०). अष्टापदतीर्थ स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति अमृत वसति मुखि, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ३२ अपूर्ण तक है. गाथाक्रम अव्यवस्थित है. लहिया ने अंतिम गाथा बीच में ही लिखकर आगे की गाथा पुनः क्रमांक १ से प्रारंभ किया है. वस्तुतः एक ही कृति है.) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१३५६. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-२५ (१ से २५) = २, कुल पे. ३, जैदे., ( २६११, १९५३). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तव, पृ. २६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. लोक-३५ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे नाम आदिजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. २. पे. नाम. जीरापल्लीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २६अ - २७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, आ. महेंद्रप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रभुं जीरिकापल्लि अति: महेंद्रस्तवार्हाः, श्लोक-४५. ३. पे, नाम, सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २७अ २७आ, संपूर्ण - सीमंधरजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: नमिरसुर असुर नरवंदि अंतिः भव मे बोधिवीजह दायगो, गाथा २१. ३१३५७. (+) ध्वंसाभावस्वरूप व स्तुति, स्तोत्र, स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. मु. अजनसागर (गुरु मु. अनोपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५X१०.५, १४X६१-६७). १. पे नाम, ध्वंसाभाव स्वरूप, पृ. ९अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ध्वंसो हि सर्वागत्व, अंतिः एवेति वाच्यं. सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीललना, अंति: सौख्यं क्रियात्, श्लोक-४. ३. पे नाम, नेमि स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि कलालि हे ते म्हारो अंतिः जसो देव कहे शिष्य गाथा ६. ४. पे. नाम. कृष्णदुर्गचिंतामणि पार्श्वस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-कृष्णदुर्गमंडन, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वसमस्त अंतिः श्रीपार्श्ववामांगजः, श्लोक ५. ५. पे. नाम. चारित्रसागर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अजबसागर, सं., पद्य, आदि: जन्यं स्वस्ति श्रिया, अंतिः संपूज्यमानस्क्रमः, श्लोक - १. ६. पे, नाम, पास तवन, पृ. १आ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १४५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. अजबसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वामांगज जिन वंदीये; अंति: अजब जिनेश्वर संत, गाथा-६. ३१३५८. पार्श्वनाथ स्तव सह स्वोपज्ञ वृत्ति व हरिषा मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, ४-६४४५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित सह स्वोपज्ञ वृत्ति, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनक, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, ई. १२००, आदि: जसु सासणदेवि वएसिकया; अंति: पार्श्वस्तोत्रमेतत्, गाथा-३७. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि: जंसंथवणं विहिअं; अंति: तय होउ जगे मुक्खिअं. २. पे. नाम. हरिषा मंत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. अर्शरोगनिवारण मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ऊँई अलीती अलीपी अली; अंति: पाणी वावरतां कहीइ. ३१३६०. श्रावकबारव्रत व विविध विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, जैदे., (२६४१०.५, १७-१८४६०-६२). १.पे. नाम. श्रावकबारव्रत विवरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. श्रावक १२ व्रत विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रावक धर्मनइ विषई; अंति: संसारी कहवराइ. २.पे. नाम. द्रव्यविचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. द्रव्य विचार, प्रा., पद्य, आदि: परिणामी जीव मुत्ता; अंति: सव्वगयं इयर अप्पवेसे, गाथा-१. द्रव्य विचार-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: जीव पुद्गल परिणामी; अंति: प्रदेसे रहइ छइं. ३. पे. नाम. अग्यारपद छव्वीसउत्तरभेद गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. ११ पद २६ उत्तरभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दुन्निय १ एकं २ एकं; अंति: ११ इगदसपयमुत्तरं एयं, गाथा-१. ४. पे. नाम. लेश्याविचार गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: लेसा तिन्नि पमत्तंता; अंति: निरुद्धलेसा अजोगीय, गाथा-१. ५. पे. नाम. सत्तरभेदपूजा नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. १७ भेद पूजा नाम, मा.गु., गद्य, आदि: गंधोदकि स्नानपूजा १; अंति: ए सत्तरभेद पूजा. ६. पे. नाम. अष्टप्रकारीपूजा गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. अष्टप्रकारी पूजा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वरगंध १ धूव २ चोखख; अंति: जिणपूया अट्ठहा होइ, गाथा-१. ३१३६१. नंदीविधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१०.५, १५४५२). नंदी विधि, सं., पद्य, आदि: प्रथमं पवित्रनेपथ्यं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३१३६२. चारित्र लेवानी विधि, संपूर्ण, वि. १८९७, चैत्र कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. राजपुरनेडागाम), प्रले. मु. रामनाथ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२४३२). चारित्र विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम सचित्त वस्तु; अंति: पावकम्मं न बंइइ. ३१३६३. (+) बाहुविहरमानजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पठ.ग. मतिहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४१०.५, २-३४४०-४४). बाहुजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४९, आदि: विहरमान जिन सांभली; अंति: मन मेलू महाराज रे, गाथा-१७. बाहुजिन स्तवन-बालावबोध, मु. शांतिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि: श्रीशंखेश्वरपार्श्व; अंति: सम्यक्त्व कहीइ. ३१३६४. बारआरा स्तवन, संपूर्ण, वि. १६९०, पौष शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४४१-४४). १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरसति भगवति भारती; अंति: कहि गच्छ मंगल करो, गाथा-७६. ३१३६५. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १२४२९). For Private And Personal use only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: भगवती भगवती अंगि; अंति: मांगइ अविचल वाणी, गाथा-१३. ३१३६७. (+) प्रकरण संग्रह व पच्चक्खाणफल, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रावण शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, प्रले. मु. नित्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १५४४५). १.पे. नाम. भाव प्रकरण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: रम्माओ पुव्वगंथाओ, गाथा-३०. २. पे. नाम. पच्चक्खाणफल, पृ. २अ, संपूर्ण. पच्चक्खाणफल कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सुगुरु चलणं; अंति: सया पच्चक्खाणाई, गाथा-७. ३. पे. नाम. सिद्धपंचाशिकासूत्र, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०. ४. पे. नाम. सिद्धदंडिका, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंतमुह; अंति: दिंतु सिद्धि सुह, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव- यंत्र, सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ३१३६८. प्रश्नोत्तररत्नमालिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ.सा. कृष्णा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, ६४३०-३३). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमान स्वामिइ; अंति: पुरुषइ अलंकरीयइ नही. ३१३६९. पौषध व संथारापोरसी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४३८-४२). १.पे. नाम. पौषधविधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडीकम; अंति: संथारापोरसी भणाववी. २. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो भगवन; अंति: (१)इअसमत्तं मए गहिअं, (२)वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-१४. ३१३७०. संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. खुसालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ७४२४-२८). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४, (वि. प्रारंभ में विधि दी गई है.) ३१३७१. सामायिकग्रहण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३५-३८). सामायिकग्रहण विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आत्मार्थी जीवे; अंति: समकितिक प्रमाण नही. ३१३७२. ढुंढिआ उत्पत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११, १५-१६x४२-४३). ढूंढकोत्पत्ति रास, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरु साची सारदा; अंति: विजय० निज समकित जासे, ढाल-५. ३१३७३. दिगंबरमत विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १८-२०४६२-६४). दिगंबरमत विचार, आ. महेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: तत्र च परिधापनिका; अंति: शूद्रादपि न दुष्यति. ३१३७४. लमाद्योत्पत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४१०.५, १३४५०). लमाद्योत्पत्ति-लोकामतोत्पत्ति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मालवा देश मध्यइं; अंति: भक्ति थकी चूकस्यो मा. ३१३७५. स्थली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १९४७५). १. पे. नाम. सर्वज्ञस्थली, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: इहहि केचिदज्ञान महाम; अंति: यवस्थितः सर्वज्ञ इति. २. पे. नाम. शब्दांबरगुणत्वनिषेधस्थली, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ये केचन श्रोत्रियाः; अंति: पुद्गलमय इति स्थितं. For Private And Personal use only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १४७ ३१३७६. आउरपचखाणंसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११, १३४४३). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुरियाणं, गाथा-६०. ३१३७७. (+) प्रकरण, विचार, गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १३४४२). १. पे. नाम. आतुरपचक्खाण, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. आउरपच्चक्खाण पयन्ना, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणम्, गाथा-५९. २. पे. नाम. शय्यातर की त्याज्यवस्तुएँ, पृ. ४अ, संपूर्ण. शय्यातर त्याज्य दोष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: असणादि ४ वसू ५ पात्त; अंति: माहि कु जीव मरे नहि. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५. ४. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र की रोगजलजलणादि ३ गाथाएँ, पृ. ४अ+४आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३१३७८. स्तुतिचोवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १७X४९-६०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुविधिजिन से लेकर कुंथुजिन तक की ही स्तुतियाँ हैं.) ३१३७९. चउसरणपयन्ना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. राघव ऋषि; पठ. श्रावि. नगीना बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १३४३५). चउसरणपयन्नासूत्र, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३१३८०. गजसुकुमालमहर्षि रास, संपूर्ण, वि. १७१०, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, १५४४४-४६). गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंति: वली अविचल संपदा थाइ, गाथा-९५. ३१३८१. नवतत्व व कर्मप्रकृति भेदविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १९४२४-४९). १. पे. नाम. नवतत्त्व २७६ भेद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व चेतनालक्षण; अंति: सिद्ध संख्यातगुणा. २. पे. नाम. आठकर्मप्रकृति नाम, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीयकर्म; अंति: वीर्यांतराय. ३१३८२. रहनेमिराजेमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४२). रहनेमीराजीमती सज्झाय, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण चतुर सुजाण; अंति: जपे इम जैतसी हो, गाथा-८. ३१३८३. (+) धन्नाऋषि पंचढालीयो व संसारदुःख सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४४११.५, १७४५१-६०). १.पे. नाम. धन्नाऋषि पंचढालीयो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. वीरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: स्वस्तिश्री वरवा भणी; अंति: किधी सिझाय ए सुंदरु, ढाल-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. । सपूण. For Private And Personal use only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-संसारदःखविषये, मु. वीरचंद, मा.ग., पद्य, वि. १८४८, आदि: जनम जराने व्याधि मरण: ___ अंति: मुनि इणि पर उच्चरै, गाथा-१७. ३१३८४. आगम साक्षीपाठ, संपूर्ण, वि. १९१२, चैत्र शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. साहारणपुर, प्रले. मु. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १९४५४-५६). जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१३८५. (-) कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४१). कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, मु. खिमा, मा.गु., पद्य, आदि: नगर अजोध्या रायजी; अंति: माकर भवसार ए तिरेजी, ढाल-२, गाथा-२५, (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम गाथा अपूर्ण लिखी है.) ३१३८६. भवभावना, अपूर्ण, वि. १५०५, आषाढ़ शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, जैदे., (२६४११, १४४५४). भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वलीइकीरउ अलंकारो, गाथा-५३१, (पू.वि. गाथा-४९८ अपूर्ण तक नहीं है.) ३१३८७. नवसारीमंडणपार्श्वनाथ वीनती, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १४४३६). पार्श्वजिन स्तवन-नवसारीमंडन, ग. संघमंगल, अप.,मा.गु., पद्य, आदि: नवसारी मंडण पाससामी; अंति: दसण नाण लहई विभव, गाथा-२३. ३१३८८. चौदगुणठाणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १८४४६). आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: जगि पसरंत अणंतकंति; अंति: पूरवउ सुखसंपदा, गाथा-२१. ३१३८९. दीवालीरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४०). दीपावलीपर्व रास, ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवानरो गणधर; अंति: जैमल० दिवालीनै मान, गाथा-४०. ३१३९०. आदीश्वरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १५४३२). आदिजिन स्तवन, ग. तत्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर अरिहंतजी; अंति: विजय गुण गायो रे, गाथा-२२. ३१३९१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, १४४५१). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: महानंद कल्याणवल्ली; अंति: श्रीपासजीरंगि गायु, गाथा-११. २. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सुखकारणमुत्तमं ऋषभं; अंति: पार्श्वचंद्रेण, श्लोक-८. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,र., पद्य, आदि: नमो अरिहताण निरुपम; अंति: करेइ श्रीसंघकल्लाणं, गाथा-५. ३१३९२. सेजमंडणरिषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२). आदिजिन स्तवन- शत्रुजयमंडन, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति आपु भली; अंति: कुसल शिष्य बोले रे, गाथा-१५. ३१३९३. विजयदानसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, ११४३४). विजयदानसूरि गीत, उपा. हर्षसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चरण कमल पेखंता गुरु; अंति: गुरु नामे जय जयकार, गाथा-१०. ३१३९४. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-४४(१ से ४४)=१, जैदे., (२६४११, २१४७४). विचार संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ३१३९५. संथाराविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. धीरसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०,१३४३७). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. ३१३९६. विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१०.५, ६४५१). For Private And Personal use only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org १. पे. नाम. सामायिकपारण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. सामायिकपारणसूत्र, हिस्सा, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: सामाइअ वय जुत्तो; अंति: सेसो संसार फल हेउ, गाथा- ३. २. पे. नाम. पौषधपारणसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पोसह पारवानुं सूत्र, संबद्ध, गु., प्रा., गद्य, आदि: सागरचंदो कामो चंद, अंतिः वं दढव्वयंतो महावीरो (वि. गाथा-२) ३. पे. नाम, वीसस्थानकनाम गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ संपूर्ण. २१ धोवनपानी नाम, प्रा., पद्य, आदिः उसेइमं वा १ संसेइम, अंति: चिवीपाणगं वा २१, गाथा - १. ५. पे. नाम, आगमसूत्रनाम, पृ. १आ, संपूर्ण, आगमसूत्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि आदि श्री ए आचारंग १: अंतिः कल्प ए छत्रिसुत्र. ३१३९७. पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., ( २६११, ४X३७). . १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं सिद्ध पवयण; अंति: पवयणपभावणया एएहिं, गाथा-३. २० स्थानकपद गाथा - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंत भक्ति करवी अंतिः तीरथकरपुणु लहइ जीव. ४. पे. नाम. इकवीसधोवणनाम गाथा, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ! य. अगरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सांइया रे हमकुं तार, अंति: पल में कर दे पार, गाथा-४. २. पे. नाम. आठकर्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ कर्म सज्झाय, य. अगरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: बताव रे घर तेरा मुझे, अंतिः अगरचंद रह न्यारे, गाथा - ९. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. 7 ३१३९९. पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०, १६x४७). ब. अगरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हांरे प्रभु म्हारा, अंति: अचल करौजे सुख मेवा, गाथा- ७. ४. पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. य. अगरचंद, मा.गु., पद्य, आदि; भज सीतलनाथ सही तारन, अंतिः खटमें रही रही भजसी, गाथा ४. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. य. अगरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सारे जनम गयो जम जोर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ३१३९८. वीसविहरमान स्तवन व वीसबोल सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५x११, १५४४९). १. पे. नाम. वीसविहरमान स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. " विहरमान २० जिन स्तवन, आव. शीतल, मा.गु., पद्म, आदि तीर्थंकर जयवंत नमु अंतिः सेवक जाणि उतारो पार, गाथा - ९. २. पे. नाम बीसबोल सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणसुं वाद विवाद न, अंति: कातीमास चोमासजी, गाथा २२. तपागच्छीय पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी अंतिः धर्मसूरीसूर राजे. ३१४००. सामायक सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४५). For Private And Personal Use Only १४९ सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंतिः श्रीकमलविजय गुरु शीष, गाथा- १३. ३१४०२. सुमतपचीसी व जैन काव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जै.., (२४x११, १२X४३). १. पे. नाम. सुमतपचीसी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, सुमतिपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., पद्य, आदि: ए संसार अथिर करि जाण; अंति: कहइ नसुं टलना एते, गाथा - २५. २. पे नाम, जैन काव्य प्र. १आ, संपूर्ण. 1 जैनकाव्य संग्रह *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. गाथा- २ ) Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१४०३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्रले. मु. नायक; पठ. श्रावि. कल्याणीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३-१४४३५-३९). १. पे. नाम. क्रोधोपरि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करीइ भोला; अंति: उपसम आणी पासे रे, गाथा-९. २. पे. नाम. मानपरिहार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म करस्यो कोई; अंति: भाव० रहीयै चौमासै रै, गाथा-८. ३. पे. नाम. मायापरीहार सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मायापरिहार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: सुख निरवाणि हो, गाथा-७. ४. पे. नाम. लोभपरिहार स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: पहुचे मनह जगीस, गाथा-८. ५. पे. नाम. हितोपदेश स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. हितोपदेश सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडा तुं माहरी सुणि; अंति: भजे तुं श्रीभगवंतरे, गाथा-५. ३१४०४. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. कृष्णगढनगर, प्रले. मु. ऋषभसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३४-३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३१४०५. (+) अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १९४६५). अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: सानंद महानंदैककारणं, प्रकाश-१०. ३१४०६. (+) शीलांगरथ व ध्रुवांक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४८.५, १०४२०-३६). १. पे. नाम. सीलांगरथ, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांगादिरथ संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: करणे जोए सन्ना इंदिय; अंति: खंति जुयति मुणी वंदे, गाथा-२. २. पे. नाम. ध्रुवांक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१४०७. चतुःशरणप्रकीर्णक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., मू+बाला. गाथा-२४ अपूर्ण तक है., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४१२, १९४४७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-). चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१४०८. स्तवन संग्रह व रहनेमि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५४११.५, १८४४४). १.पे. नाम. भटेवाभिधपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भटेवा, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: भट्टेवा पासनी रे भलद; अंति: मल गुण० चित वासो रे, गाथा-९. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुखसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपंचासर पासजी; अंति: मनमोहना लाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. अष्टापद स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १५१ अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापद जिनजात्र करण; अंतिः सुरनर नायक गावे, गाथा ८. ४. पे. नाम. रहनेमी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छेडो नाजी ३ देवरिया, अंतिः तव ज्ञानविमल गुणमाला, गाथा ६. ५. पे. नाम. संखेसर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: दरिसण द्योजी ३ संखेसर, अंति: ए प्रतीत में पामी, गाथा-५. ३१४०९. नवकारवाली व अजितनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, १७५२). १. पे. नाम. नवकारवाली स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १८३१, आदि: अरिहंत पहलै पद जाणी; अंति: नहीतर जपतां कटै जाली, २. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १२. अजितजिन स्तवन, क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरत मे; अंति: हुं प्रणमुं कृपानाथ, गाथा-१८. ३१४११. विविधविधि संग्रह व नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण वि. १६५८, श्रावण कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, ले. स्थल. भुजनगर, प्रले. मु. विद्याहर्ष (गुरु पंन्या. विवेकहर्ष, तपागच्छ); गुपि. पंन्या. विवेकहर्ष (गुरु आ. विजयदेवसूरि, तपागच्छ); राज्यकालरा. भारमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७११.५, १५-१७X५१). १. पे नाम, ग्रहशांतिक विधि, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. ग्रहशांति विधि, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: नत्वा जिनं महावीर, अंति: ग्रहशांतिविधिः शुभा श्लोक-५०२. पे. नाम. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथम समी भूमिकाई, अंतिः ए सातस्मरण कही. ३. पे नाम. ग्रहस्थापन व विसर्जनविधि, पृ. २आ - ३अ, संपूर्ण प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्रीखंडेन स्थाले; अंति: नागान् ब्राह्मणमेव च. ४. पे. नाम. अष्टोत्तरी विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु, गद्य, आदि: पितापितामह पढपितामह अंतिः वात्सल्य संघार्चा. ५. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. ९ ग्रह स्तोत्र क्र. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: तरणितारकराजि कुजेदुज, अंतिः ये चान्ये गृहपीडका, श्लोक १३. ३१४१२. ज्ञानपंचमी स्तवन व रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जैदे. (२४.५x१०.५, २३४५७). १. पे नाम ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय, अंति: भगवं भाव प्रशंसी, ढाल - ३, गाथा - २०. २. पे. नाम. रात्रिभोजन स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. रात्रीभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: अवनितल नयरी वसेजी अंतिः सार्या आपणां काजरे, गाथा - २०. For Private And Personal Use Only ३१४१४. सुबाहु गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६ ११, ११३५). बाहुजिन स्तवन, ग, जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रामति रमवा हूं गई अंति कीयो अवतार रे माइ, गाथा-८. ३१४१५. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, १३३६-४१). १. पे नाम वीरजिन स्तोत्र, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, मु. विचारसागर शिष्य, प्रा., पद्य, आदि: पणमिऊण जिणंद पर्यबुअं अंतिः सीस परम सुहंकरो, गाथा-२६. २. पे. नाम हीरविजयसूरीश्वर स्वाध्याय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हीरविजयसूरि सज्झाय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिअवीर जिणंद; अंति: संगइ आजयउ जणपूजा, गाथा-१५. ३१४१६. आचारांगसूत्रगत चौभंगी, संपूर्ण, वि. १८७७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. माधोपुर, प्रले. सा. उदा आर्याजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, २१४५५). आश्रव-परिश्रव चौभंगी-आचारांगसूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: जे आसवा ते परिसवा; अंति: कल्याण होसी सही. ३१४१७. पद संग्रह व रत्नरास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४१२, १३४४१). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दुनीयां तो दीवानी रे; अंति: जगतमांजाहेर जुजे, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मूलदास, मा.गु., पद्य, आदि: समज्या विना रे सुख; अंति: जीवपणु क्यम जाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. हरिवंश रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: अकल सकल अमरेशनी जिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक ५ गाथाएँ है.) ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ऋ. धीरा भगत, मा.गु., पद्य, आदि: हीरानी परिक्षा रे; अंति: प्रभु प्रिते रटवाने, गाथा-४. ३१४१८. सत्तरिसयं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८०, चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्राव. तारक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३२-३८). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४, (वि. कृति के अंत में श्रीहरिभद्रसूरिभः कृतं सत्तरिसयं स्तोत्रं इस तरह लिखा हुआ मिलता है.) ३१४१९. गीत व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. श्रावि. लाडॉ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ११४४२). १. पे. नाम. महावीर गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, ग. कल्याणकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन दरसणि दोहग टलइ; अंति: करइ तुम्ह गुणगान, गाथा-७. २.पे. नाम. महावीर गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन गीत, मु. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: सखीरी नाम जपउ; अंति: पूरति वंछित मनकउ, गाथा-१. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४. पे. नाम. सद्गुरू गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रहउ २ वाल्हहा सदगुरु; अंति: जेहनइ षटकायनो रखवाल. ३१४२०. रत्नरासो, संपूर्ण, वि. १८२४, वैशाख शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. शांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, २४४४८-५६). रत्न रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: सकल समीहित पूरण; अंति: मोहन० जयकर जगतगुरु. ३१४२१. (+) ऋषभपंचासिका अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५५६, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. हर्षनंदन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५४५१). ऋषभपंचाशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जयजंत्वित्यादि व्याख, अंति: दर्शयति धनपाल इति. ३१४२२. (+) शतपंचाशिका प्रकरण व नवनारद नाम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, १५४५५-५८). १.पे. नाम. शतपंचाशिका प्रकरण, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चउवीसं तित्थयरा बारस; अंति: हुति तेणाणवतो, गाथा-१५९. For Private And Personal use only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २.पे. नाम. नवनारद नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. ९ नारद नाम, मा.गु., पद्य, आदि: भीम १ महाभीम २ रुद्र; अंति: नरमुख ८ उनमुख एवं ९, गाथा-१. ३१४२३. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. साधुविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. १८०, जैदे., (२६.५४११.५, ४-६x४२-५०). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि,प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-४०. लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिणदसणं० जिनदर्शन; अंति: एवावचूरिर्विलोक्या. ३१४२४. साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १९५७, वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालीतणा, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३०). श्रमण अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमि० विशेषतश्चारि; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३१४२५. होलीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, १८४४२). होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: प्रणम्य सम्यक् परमार; अंति: श्चिरं वाच्यताम्, श्लोक-३४. ३१४२६. दशश्रावककुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७४१२.५, ५४३४). १० श्रावक कुलक, प्रा., पद्य, आदि: जव्वयणामयसित्ता अणंत; अंति: भणिअंसुसाहु धीरेहिं, गाथा-१७. १० श्रावक कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जेह भगवंतनई अमृत; अंति: जाये कहु सुसाधू धीरे. ३१४२७. पगामसज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२७४१२, ११४३६). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३१४२८. सिद्धहेमशब्दानुशासन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ३,५)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १७४६५). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: (-); अंति: (-). ३१४२९. (+#) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह टीका-कांड ८, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सूत्र व टीका-६८ तक ही है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १६-१८४४७-५१). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथ प्राकृतम् बहुल; अति: (-), प्रतिअपूर्ण. प्राकृत व्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अथ शब्द आनंतर्यार्थो; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ३१४३०. वीरजिन २७ भव व लक्ष्मीगृहशोभादि वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, पू.वि. पत्रांक नहीं दिया हुआ है., जैदे., (२६.५४१२, २२४५८). १. पे. नाम. वीरजिन २७ भववर्णन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. महावीरजिन २७ भव वर्णन, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: भवे भगवान् वीरः. २. पे. नाम. लक्ष्मीगृहशोभा वर्णन, पृ. २अ, संपूर्ण. लक्ष्मीदेवी वर्णन-चौदहस्वप्नगत, सं., गद्य, आदि: हिमवतः पर्वतात् आगता; अंति: स्वप्ने सापश्यत्. ३. पे. नाम. शृंगार वर्णन, पृ. २अ, संपूर्ण.. षोडशशृंगार नाम, सं., पद्य, आदि: आदौ मज्जनचारुचीरतिलक, अंति: शृंगारका षोडशकाः, श्लोक-१. ४. पे. नाम. स्वप्न विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: हवै स्वप्न विचार; अंति: पाठके राजा आगल कह्या. ३१४३१. ऋषभदेव चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७४११, १५-१८४४०-४१). आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: हवें श्रीऋषभदेव वाधे; अंति: देवे उत्सव कर्यो. For Private And Personal use only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१४३२. सांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १६८५, चैत्र शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. रंगनिधान शिष्य (गुरु उपा. रंगनिधान, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. उपा. रंगनिधान (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); पठ. मु. भावहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १३४४८). शांतिजिन स्तवन, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. ००८४, आदि: जय जय जिणवर शांतिजिण; अंति: नमउ जय मंगल करइ, ढाल-५, गाथा-३०. ३१४३३. विज्ञप्तिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११, १५-१८४४०-५०). विजयसिंहसूरि विज्ञप्तिका, उपा. लावण्यविजय, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रियं; अंति: विजयाभिध वाचकेंद्राः, श्लोक-७३. ३१४३४. योगसार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११, ११४४४-४६). योगसार, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रस्ताव-२, गाथा-८४ तक है.) ३१४३५. शीलोपदेशमाला प्रकरण, शील कुलक व विहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १५७१, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. ग. अमरप्रभ (गुरु उपा. अनन्तहस, तपागच्छ); गुपि. उपा. अनन्तहस (गुरु मु. जिनमाणिक्य, तपागच्छ); राज्ये आ. हेमविमलसूरि (तपागच्छ); पठ. श्रावि. रूपाई, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११, १५४४७-४९). १.पे. नाम. शीलोपदेशमाला प्रकरण, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३, गाथा-११६. २. पे. नाम. शीलकुलं, पृ. ४आ, संपूर्ण. शील कुलक, प्रा., पद्य, आदि: सीलं उत्तमवित्तं; अंति: सीलस्स दुल्ललियं, गाथा-५. ३. पे. नाम. विहरमान स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, उपा. अनन्तहंस, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवि नमउं; अंति: इम जंपइ जिनमाणिकसीस, गाथा-९. ३१४३६. कायस्थिति सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४११.५, २-४४४२-४५). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: सामान्यतो जीवत्व; अंति: सिद्धास्तत्पदसंपदम्. ३१४३७. (+) तत्त्वार्थसूत्र, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रावण शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. मालपुर, प्रले. ग. अजबसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१०.५, १७४५२-५४). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंति: मरणं दुःखं णिवारेइणं, अध्याय-१०. ३१४३८. बंभणवाड छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १५४४०-४५). महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसती सेवक; अंति: (१)माणिकमुनी गावंदा है, (२)माणिक० पाप तिन पीर, गाथा-३९. ३१४३९. संथाराविधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, आषाढ़ कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. दशरथपूर, प्रले.पं. क्षमावर्द्धन (गुरु पं. धर्मवर्द्धन गणि); पठ. मु. देवचंद (गुरु पं. क्षमावर्द्धन), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, ८४४०-४२). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार विना बीजो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ गाथा-११ तक ही है.) ३१४४०. चौदगुणस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, ११४३२-३७). १४ गुणस्थानक सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: चंद्रकला निर्मल सुह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३० अपूर्ण तक लिखा है.) For Private And Personal use only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१४४२. (+) लघुशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. सुंदररुचि (गुरु ग. नयनरूचि); गुपि. ग. नयनरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२७४११, ३४३४). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमानदेव आचार्य, अंति: पद स्थानक पामइ. ३१४४३. गजसुकुमाल सजाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७X११.५, १०-११४३४-३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि द्वारिका नगरी ऋद्धि, अंति: हुजो सुगुरु सहीय रे, ढाल -३, गाथा - ३८. ३१४४४. पार्श्वजिनेंद्र स्तव सह टीका व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल, कुसुमपुर, प्रले. सा. लखमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११, १७४५१-५३). १. पे. नाम. कलिकुंडस्तंभनकपार्श्वजिनेंद्र स्तव सह वृत्ति, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव स्तंभनक मंत्रगर्भित ग. पूर्णकलश, प्रा. सं., पद्य, ई. १२००, आदि जसु सासणदेवि विवएस अंतिः पार्श्वस्तोत्रमेतत्, गाथा-४१. मंत्र संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१४४५. सनत्कुमार सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२७१२, १५x५१). १. पे नाम. सनतकुमाररो चौडालीयो, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित - स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि: जुमोणेण इत्यादि, अंत: सर्वे अनुयायी भवति, (वि. गाथा ३९ तक की टीका है.) २. पे नाम, मंत्र संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण १५५ सनत्कुमारचक्रवर्ति चौडालियो, मु. कुशलनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: सुखदायक सासणधणी, अंति: चरण नमुं सुखकंद ए. दाल-४. २. पे. नाम. सनत्कुमार स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाब, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे, अंतिः कहे धुणतां सुख पावै, गाथा-१७. ३१४४६. (+) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १६७०, माघ शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. अणहिल्लपत्तन, प्रले. ग. संघविजय (गुरु मु. गुणविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. गुणविजय (गुरु आ. हीरसूरि *, तपागच्छ); पठ. श्राव. नानजी साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित जैवे. (२७४११, १५-१६x४८-५०). आदिजिन स्तवन, ग. संघविजय, मा.गु., पद्य वि. १६६९, आदि: सरसति भगति भारति कवि अंति: कहि सयलसंघ 7 7 गाथा-५९. ३१४४८. मोनएकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-७ (१ से ७) = २, जैदे., (२६X११, ४४४३). मंगलकरूं, गाथा - ७१. ३१४४७. (+) द्वादशव्रतसंबंधीच्छा परिमाण, संपूर्ण, वि. १५९८, आषाढ़ शुक्ल, २ मध्यम, पृ. ४, पठ श्रावि. लखमीदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., ( २६.५X११, ११X३९-४१). द्वादशव्रत इच्छापरिमाण रास, मा.गु., पद्य, वि. १५९८ आदि: वंदिय गोयम सकति अंतिः सुगुरु वयणि गिहिधम्म, मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: (-); अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४, (पू.वि. डा-१, गाथा ६ तक नहीं है.) ३१४४९. शाश्वताजिनबिंब संख्या, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७X१२, १०X३४-३५). शाश्वतजिनविवसंख्या विचार, मा.गु, गद्य, आदि: पहिले त्रि छेलो किं; अंतिः जिनबिंचने नमस्कार हो, पद-४७. ३१४५०. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति सह अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पू. ६-२ (१ से २) ४, पू. वि. मू+अवचू. श्लोक-२३ पूर्ण नही है. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें त्रिपाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, ११-१२X४३). " For Private And Personal Use Only स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य वि. ९वी, आदि: (-); अंतिः याधमं बाधमंबा, स्तुति- २४, श्लोक - ९६. " Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तुतिचतुर्विंशतिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., गद्य, वि. ९वी, आदि: (-); अंति: बाधमपनीयादिति संबंधः, अध्याय-२४. ३१४५१. अध्यात्मोपयोगी स्तुति सह बालावबोध व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., प्र.ले.श्लो. (४०६) मूषकानलचौरेभ्यः, (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (८४८) भग्नमुष्टि कटिग्रीवा, जैदे., (२६.५४११.५, ३४४१). १. पे. नाम. अध्यात्मउपयोगीनी स्तुति, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठी सवेरे सामायिक; अंति: साधे ते शिवपद भोगीजी, गाथा-४. औपदेशिक स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: महिमाप्रभसूरीस गुरु; अंति: पद भोगी थाई छई. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण.. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-२. ३१४५२. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१२, १२४३४). नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पढम जिणवर पढम जिणवर; अंति: भणि सफल करो अवतार, गाथा-२५. ३१४५३. मंत्रीश्वरवस्तुपालतेजपाले धर्मस्थानके द्रव्यसंख्यां, संपूर्ण, वि. १८९९, आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. जसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५, ११४३४). वस्तुपालतेजपालकृत धर्ममार्ग धनव्यय संख्या, अप., गद्य, आदि: १२५०००० बारलाख पचास; अंति: धर्मस्थानके वापरओ. ३१४५४. गौतमाष्टक टीका, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४१०.५, १४-१५४३८-४३). गौतमाष्टक-टीका, सं., गद्य, आदि: सरस्वत्याः प्रसादेन; अंति: (-). ३१४५५. (+) क्षुल्लकभव प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११,११४४५). क्षुल्लकभव प्रकरण, ग. धर्मशेखर, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्ता सिरिवीर; अंति: सहेअव्वं सुअहरेहि, गाथा-२५. क्षुल्लकभव प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. धर्मशेखर, सं., गद्य, आदि: वंदित्ता० सुगमा नवर; अंति: सशोध्य श्रुतधरैरिति. ३१४५६. नवतत्त्व प्रकरण व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १७४३५-३६). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-४६. २.पे. नाम. ८ कर्म स्थिति, पृ. ३अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-हेयज्ञेयउपादेय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जीवो संवर निजर मुंखो; अंति: तिनीविएए उपादेया, गाथा-२. ३. पे. नाम. अरिहंतबारगुण गाथा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्ष १ सुर; अंति: ए जिनेश्वरना, गाथा-२. ३१४५९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १६x४७). १.पे. नाम. नंदीषण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर महियल विचरे; अंति: सुकवि इण परि विनवे, गाथा-६. २. पे. नाम. राजुल स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. राजिमतीसती सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: पीउ वंदण वेगे परवारी; अंति: महीमानो राम मनोहरु, गाथा-१४. ३. पे. नाम. जंबुकुमारनो चोढालीउ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १५७ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: राजग्रही नगरी भली रे; अंति: सौभाग्य धरी उत्साहरे, ___ढाल-४, गाथा-३२. ३१४६०. (+) दशआश्चर्य वर्णन व अष्टमहाप्रतिहार्य नाम, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, २१४४७). १. पे. नाम. दशआश्चर्य गाथा सह कथा, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,सं., गद्य, आदि: दशाश्चर्याणि अस्याम; अंति: (-). २.पे. नाम. अष्टमहाप्रातीहार्य नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमहाप्रातिहार्य नाम, सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष १ कुसुम; अंति: अष्टमाहाप्रातीहार्यः... ३१४६१. (+) सिद्धचक्रकल्प सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, १४४४५-४९). सिद्धचक्रयंत्रोद्वार, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: गयणमकलियायं तं; अंति: महंत सिद्धिओ, गाथा-१२. सिद्धचक्रयंत्रोद्वार- व्याख्या, सं., गद्य, आदि: अथ गगनादिसंज्ञा; अंति: रहस्यभूतमित्यर्थः. ३१४६२. आदिनाथ स्तुति सह टबार्थव श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. बुद्धिविजय (गुरु ग. तत्त्वविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. तत्त्वविजय (गुरु ग. देवविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ६४३७-४४). १.पे. नाम. आदिनाथजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयः कल्याण; अंति: करुं वांछउ प्राथु. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण.. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३१४६३. जीवरास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. हर्षविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४३२). जीवराशि क्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवेइराणी पदमावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-३४. ३१४६४. (#) समकितना सतसठिबोल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. दामाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, -१४-१). सम्यक्त्व ६७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: समकितनी चारिसदहण कही; अंति: विसुध समकित पालवं. ३१४६५. (+) श्रीथूलीभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४१२, १२४३५). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि: श्रीथूलीभद्र आगि करि; अंति: खेत्र ध्रांगे रही, गाथा-२३. ३१४६६. आहाकम्म सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४१२, २४३७). आधाकर्मीआहारदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मु १ देसिय २; अंति: रस हेउदच संयोगा, गाथा-६. आधाकर्मी-आहारदोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आह० आधाकर्मि ते कहीइ; अंति: एवं दोष ४७ जाणवा. ३१४६८. सीमंधरजिनवीनतीस्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मू+टबा गाथा१४ तक है., जैदे., (२६.५४११.५, २-४४३६-३९). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: (-). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: हे श्रीसीमंधरस्वामी; अंति: (-). ३१४७३. श्रीमंधरजिन स्तवन व संखेश्वरजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १०४३५). For Private And Personal use only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. श्रीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीसीमंधर साहिबा हु, अंतिः होज्यो मुज चित्त हो, गाथा- ९. २. पे. नाम. संखेश्वरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन - शंखेश्वर, पंन्या. रुपविजयजी, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सकल भविजन चमत्कारी; अंतिः रुप कहे प्रभुता वरो, गाथा- ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४७४. पंचतीर्थी स्तवन व अनाथीजी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५X१२, १०X३३). १. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदिः आदए आदए आदिजिणेसरु ए; अंति: मुनि लावण्यसमय भणे ए, गाथा-८. २. पे. नाम. अनाथीजी सिज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रेणिक रयवाडी चढ्यो, अति: वंदु रे नित बे करजोड, गाथा - ९. ३१४७५. विजयसेनसूरीश्वर स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७X११.५, १४X४२). विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती भगवति भारती; अंति: चिर तपु तपगछ घणी, ढाल-३, गाथा - ५३. ३१४७६. (+) साधारणजिन स्तव, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, १७४९-५२). साधारणजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: कल्याणसिद्धिसदनं सदन, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ५८ अपूर्ण तक है.) ३१४७७. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६X११.५, १०x४२). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: वदन अनोपम चंदलो गोडि; अंति: करतां सुख लहइ, गाथा-३४. ३१४७८. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) =१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५X११, १७X६१). १. पे नाम. अष्टापद स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अष्टापदतीर्थ स्तोत्र, सं., पद्य, आदि (-): अंतिः भव्यो लभेताद्भुतं (पू.वि. लोक-२२ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे नाम. अर्बुदगिरि स्तोत्र, पृ. २अ २आ, संपूर्ण अर्बुदगिरितीर्थ स्तोत्र, सं., पद्य, आदि जैनमंदिरशिरोप्रसंगतं अंतिः स्वभक्तिं सवा श्लोक-२०. "" ३१४७९. पंचकारण स्तवन, संपूर्ण वि. १८५५, पौष कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२७११.५, ११४३१-३४). महावीर जिन स्तवन- पंचकारणगर्भित, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आविः सिद्धारथसुत बंदिये, अंतिः विनय कहे आनंद ए. डाल- ६, गाथा ५९. ३१४८० (+) स्तव संग्रह सह अवचूरी, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे. (२६.५X११.५. ८-१४४४३-४७). १. पे. नाम. विहरमानइकवीसठाणो. पू. १अ २अ संपूर्ण. विहरमानजिन २१ स्थानक प्रकरण, आ. शीलदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संपइ वट्टंताणं नाम, अंतिः रवं सम्मत्तलाभाय, गाथा- ४०. विहरमानइकवीसढाणो- अवचूरी, सं., गद्य, आदि: संप्रति वर्त्तमाना; अंतिः सम्यक्त्वलाभहेत. २. पे. नाम. मनुष्यसंख्या स्तव, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जिणवुत्त चरित्तेण; अंति: बहुहातो पसिय चरणेण, गाथा-११. मनुष्यसंख्या स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिनोक्तचारित्रेण, अंतिः प्रसादं कुरु. ३. पे. नाम. मनुष्यसंख्या विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मणुआण जहन्नपए, अंति: एवइवा वेगला मणुआ, गाथा- ५. मनुष्यसंख्या विचार- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः एतेषां च पूर्वोक्ता, अंतिः प्रणीता गाथा. For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१४८१. पंचबोल स्तवन, संपूर्ण, वि. १७३७, आषाढ़ कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११, १३४४८-५३). सीमंधरजिन स्तवन-५ बोल, मु. इंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पदकज सीमंधर तणाजी; अंति: कहई धन मुज ए गुरु, __ढाल-६, गाथा-३८. ३१४८२. सुयहीलुप्पत्ती अज्झयण, संपूर्ण, वि. १६९६, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११, १३४४६-४९). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभर नमिर सिरिसेह; अंति: होह पया दियाहं. ३१४८३. अजीव ५६० भेद व पुद्गलपरावर्त्त विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १२४१९-३२). १. पे. नाम. आजीव पांचसोसांठभेद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अजीव ५६० भेद, अज्ञा.,मा.गु., गद्य, आदि: हवे अजीवना भेद ५६०; अंति: ५ रस लाभे २ गंध. २. पे. नाम. पुद्गलपरावर्तन विचार, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य क्षेत्र काल; अंति: परावर्त मान जाणिवो. ३१४८४. प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७४१२, १६४४५). साधुप्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउं; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३१४८५. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५३, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. प्रह्लाद मोहनलाल बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १६४३९). साधुप्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउं; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३१४८६. नवकारमहामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मनोहरपूर, प्रले.ग. क्षेमलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, २२४५१). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम होइ मंगलं, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार अरिहंत; अंति: सकल वांछित फल पामइ. ३१४८७. नवकार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६१०, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. अहम्मदाबाद, प्रले. उपा. कनकराज (गुरु गच्छाधिपति कक्कसूरि, कोरंटगच्छ); गुपि.गच्छाधिपति कक्कसूरि (कोरंटगच्छ); पठ. श्रावि. फदू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.७५, जैदे., (२६४११, १३४४४). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमहोइ मंगलं, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरउ; अंति: भणी सिद्ध वडा कहियइ. ३१४८८. प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १०४३७). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गोयम पूछे श्रीमहावीर; अंति: भविजन भवजल पाररे, गाथा-१३. ३१४८९. (+) स्तवन संग्रह व मंत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १८४५९). १. पे. नाम. महावीरजन्माभिषेक स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-जन्माभिषेक, आ. रत्नशेखरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणवर गुरुअ; अंति: सिवसुहसंपय देउदै, गाथा-१७. २. पे. नाम. शत्रुजयसंख्या स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थोद्धारक व संघपतिसंख्या स्तवन, आ. उद्यानंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: माई एसेत्रुजिमंडण; अंति: सिहरि वास मज्झो, गाथा-१८. ३. पे. नाम. चोरने भगाडवानो मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१४९०. जिनआगमबहुमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२, १३४३१). जिनआगमबहुमान स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय , मागु., पद्य, वि. १८०९, आदि: श्रीअरिहंत मंडप भलौ, अंति: उत्तम कोड कल्याण, ढाल-२. For Private And Personal use only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४x२४). १. पे नाम, नेमिनाथ गीत पृ. १अ, संपूर्ण १६० ३१४९१. नेमिनाथ गीत, स्थूलिभद्र बारमासो व अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ,जैवे. (२५.५x१०.५. नेमिजिन गीत, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काय रिसाणा हो नेमि, अंति: मुगति पुहति मारा लाल, गाथा-५. २. पे नाम. द्वादश मास, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि बारमासो, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्रे चंपा रे मोरवा, अंतिः श्रीसंघ होये रे आनंद, गाथा- १५. ३. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण अष्टमीतिथि स्तुति, मु. गजाणंद, मा.गु., पद्य, आदि: जयश्रीदायक आठमपर्व अंतिः अविचल पर्व जगीश, गाथा-४. ३१४९२. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., ( २६ ११.५, ९x४३). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेत्रुजो सिणगार; अंति: आराधीइं आगमवाणी वनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीदेवाधी अंतिः प्रवचन वाणी विनीत, गाथा- ३. ३. पे. नाम. त्रीजु चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः कल्पतरुवर कल्पसूत्र अंतिः उपजे विनय विनीत, गाथा - ३. ४. पे. नाम. चोथु चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा- ३. ५. पे. नाम. पांचमुं चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि जिननी बेहेनी सुदर्शन; अंतिः घरे सुणव्यो एक चित्त, गाथा - ३. ६. पे. नाम. छड्डु चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि; पास जिणेसर नेमनाथ, अंतिः सारखी बंदु सदा विनीत, गाथा - ३. ७. पे. नाम. सातमुं चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः परवराज संवत्सरी दिन, अंतिः वीरने चरणे नाम शीस, गाथा - ३. ३१४९३. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६९, ज्येष्ठ अधिकमास शुरू, मध्यम, पृ. १. कुल पे ७, जै, (२५.५४११.५, १०४४१). १. पे. नाम. प्रथम चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीसेजो सीणगार, अंतिः आराधीए आगम वाणी वनीत, गाथा - ३. २. पे. नाम. चैत्यवंदन द्वितीय, पू. १अ संपूर्ण. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीदेवाधी अंतिः प्रवचन वाणी विनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. तृतीय चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय विनीत, For Private And Personal Use Only गाथा - ३. ४. पे. नाम. चतुर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा - ३. ५. पे नाम, पंचम चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण, Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १६१ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बेहेनी सुदर्शन; अंति: धरे सुणज्यो एक चित्त, ___ गाथा-३. ६. पे. नाम. षष्ठ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सारखी वंदु सदा विनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. सप्तम चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वराज संवच्छरी दिन; अंति: वीरने चरणे नामु शीस, गाथा-३. ३१४९४. ऋषभपंचासिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६७०, माघ शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. ग. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १०x४१). ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा-५०. ऋषभपंचाशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जय० व्याख्या नमोस्तु; अंति: इति बवयोरैक्यात. ३१४९५. सिद्धपंचासिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६१७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सारंगपुरनगर, प्रले. पांडेदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४१०.५, ९x४५). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०. सिद्धपंचाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सिद्धत्थ० सिद्धाः; अंति: रहंकारता ख्यापनार्थं. ३१४९६. निगोदषट्विंशिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, ७X४२). निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सेगपएसे जहणयपय; अंति: ते अणता असंखा वा, ___ गाथा-३६. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण कीटीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ पंचमांग एवैकादशशत; अंति: प्यसंख्येया अवसेयाः. ३१४९७. प्रज्ञाप्रकाशछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४१२, ११४२६-२८). प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशिका, आ. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७. ३१४९८. (+) भावार्थसितक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १५४४७). भावार्थशतक, सं., पद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: तथारं प्रवदं भुतज्ञा, श्लोक-१०१. ३१४९९. जिनशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. पद्महस गणि; पठ. श्राव. रायचंद ठकुर; प्रले. पं. वीरविमल गणि (गुरु आ. आनंदविमलसूरि); गुपि. आ. आनंदविमलसूरि (गुरु उपा. धीरविमल); पठ.मु. देवविमल (गुरु पं. वीरविमल गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११, ११४३८). जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., पद्य, वि. १००१-१०२५, आदि: श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. परिच्छेद-१ श्लोक-२५ तक ही है.) ३१५००. रामतीआलाचेला प्रबंधव वीसविहरमानजिन वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १९४४४). १.पे. नाम. रामतीआलाचेलानो प्रबंध, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. चंचलशिष्य प्रबंध, मा.गु., गद्य, आदि: महावीर मुगति पहुता; अंति: सुखइ सुखीयो कहीयइ. २. पे. नाम. वीसविहरमानजिन वर्णन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन मातापितादिवर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमंधरस्वामि; अंति: श्रीअजितवीर्यस्वामि. ३१५०१. स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७९, पौष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, ले.स्थल. लूणकरणसर, प्रले. पं. खेमचंद मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १०४२९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर सं., पद्य, आदि: धर्म्ममहारथिसारथसार, अतिः सूनुमचंड यूयमखंडम, श्लोक ५ २. पे नाम सारदा स्तुति, पृ. १अ २अ, संपूर्ण सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजती श्रीमतीदेवता; अंति: मेधावी बुद्धि विभवेत, श्लोक - ९. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदि: वंदे देवाधिदेवं तं अंतिः मम भुवात् भवे भवे, श्लोक-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: अमरतरु कामधेनु चिंता; अंति: कुणसु पहु पास, गाथा-३, ५. पे नाम, गोडिपुर पार्श्वजिन पद पृ. २अ २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कमलरत्न, प्रा., पद्य, आदि: नमिय सुरासुर कोडी, अंति: पासजिणो वंछियं कुणह गाथा ५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तव - फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदिः ॐ मम हरओ जरं मम, अंति: अपवग्गं कुणउ पासजिणो, गाथा - ३. ३१५०२. नेमिजिन वारमास, सझाय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (२६४११, ३४x२८). १. पे. नाम. नेमिनाथ बारमास, पृ. १ अ. संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदिः पारधीयानी ए अजुआलि, अंति: आणंद बारे मास, गाथा- १३. २. पे. नाम. बीजदीन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीजतिथि स्तुति, मु. गजानंद, मा.गु., पद्य, आदि: अजुआली बीज सुहावें; अंतिः आणंद विख्याता रे, गाथा-४. ३. पे. नाम रहनेमराजमति सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: देखी मन देवर का अंति: ऋद्धिहर्ष कहे एम, गाथा-१९. ३१५०३. पांडुरगिरिमंडन पुंडरीकगणधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै. (२६.५x११.५ १५५५१). 1 " पुंडरीकगणधर स्तवन- पांडुरगिरिमंडन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि नाभि नरेसर कुल; अंति: सबल संघ मंगल करो, गाथा - २५. ३१५०४. (4) विचार संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२५.५X११.५, ६X३३). १. पे. नाम. चक्रवर्त्ति विचार सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. चक्रवर्ती विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि उसभा भरहो अजीए सगर, अंति: अरिङ पासंत ते बंभो, गाथा-३. चक्रवर्त्ति विचार-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि आदिनाथनें बारे भरत, अंति: ब्रह्मदत्त हुउ २. पे. नाम. विचार संग्रह सह टवार्थ, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. विचार गाथा संग्रह, प्रा. सं., गद्य, आदि बत्तीसं कवलाहारो; अंतिः एअं महणतय पमाणं, गाथा ३. विचार संग्रह - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बत्तीसं क० भरत, अंतिः परमाण जाणवू. ३१५०५. मलिनाथजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X१०.५, १४X३५). मल्लिजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदिः हिव दान छिमछर दे जिण अंतिः लेता ज लीलबिलासो, गाथा- १६. ३१५०६. दंडकसूत्र व नवकारसी पचखाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, १४x२९-३६). १. पे. नाम. दंडकसूत्र, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-३८. २. पे. नाम. नवकारशी पच्चक्खाण, पृ. ३आ, संपूर्ण कारसह आदि पचखाण, संबद्ध, गु., प्रा., प+ग, आदिः उगे सुरे नमुक्कार, अंतिः गारेणं वोसी रे. ३१५०७. नागिला गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X१०.५, ११×३७). For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org भवदेव- नागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदत्तभाई घरे आवीओ, अंति: समयसुंदर बंदड़ पाय रे, गाथा- ८. ३१५०८. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३ जैवे. (२५x११ १३x२३-३७). विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: देव श्रीअरिहंत अढार, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३१५०९. सेडुंजा रास, संपूर्ण वि. १८७८, भाद्रपद कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल मेडता, पठ. सा. चनणा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५X१२, १३x४१-४६). शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. पच, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंतिः ए सुणतां आनंद धाय, डाल- ६. ३१५१०. वीरधवल- सकोसल रास, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२६.५x११, १५४७१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुकोशलमुनि चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., पद्य, आदि: सह गुरु वाणीं सांभली, अंति: (१)देवराज प्रणमइ पाय, (२) दीहडा जैही वंदस्युं, ढाल-७. ३१५११. विधि रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. लब्धिमेरु गणि, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २६ ११, १५X४८). विधि रास, आ. धर्ममूर्तिसूरि, मा. गु., पद्य, वि. १६०६, आदि: सरसति सामणि वीनवी ए; अंति: (१)बहु दिनि दिनि दीप, (२)भए सुणियो मनरंगी, गाथा- १०७. ३१५१२. वस्तुपालतेजपाल रास, संपूर्ण वि. १५६७, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, कुमरगिरि, प्रले. ग. हर्षरत्न (गुरु ग. शुभवर्द्धन); गुपि. ग. शुभवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५४११, १३४०-४७). वस्तुपालतेजपाल रास, मु. लक्ष्मीसागर, मा.गु, पद्य वि. १५०० १५६७, आदि: वीर जिणेसर नमिय पाय अंतिः अष्टमहासिद्धि पूरि, गाथा ६८. ३१५१४. अष्टमी स्तवन व पजूसण सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५X११.५, ११x२८). १. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः हारे म्हारे ठाम अंतिः कांति सुख पामे घणु, दाल-२, गाथा- २३. २. पे. नाम. पजूसण सिज्झाव, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण पर्युषण पर्व सज्झाय, मु.] मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदिः परब पजूसण आवीयारे, अंतिः मतिहंस नमै करजोड रे, गाथा - ११. "" ३१५१६. वनस्पतिसप्ततिकासूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पंचपाठ, जैवे. (२६४११, १५४४३). वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि उसभाइए जिणिंदे पत्ते, अंति: मुणिचंदसूरीहिं, गाथा- ७७. वनस्पतिसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: उसभेत्यादि गाथा ४, अंति: प्रत्येकाभवतीति. ३१५१७. दर्शनसत्तरीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६.५X११, १४४५६). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्म, आदि दंसणसुद्धिपवास अंतिः दंसणसुद्धि धुवं लहह, गाथा- ७१. ३१५१८. बंधषट्त्रिंशिकासूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२६X११, ५-७X५१-५३). भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्म, आदिः ओरालसव्वबंधा धोवा, अंति १६३ आहारगलद्धिए मुत्तुं, गाथा - ३६. बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण - अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि: श्रीभगवत्यंगाष्टमशतक; अंति: षण्म इति. ३१५१९. होलीरजपर्वकथा सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८१०, ज्येष्ठ शुक्ल १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, देवकपत्तन, जैदे., ( २६X११, ८x४०). होलीपर्व कथा, सं., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा, अंतिः विज्ञानां वाचनोचितः, श्लोक-४९. होलीरजपर्व कथा - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेवने नमीन, अंतिः सर्वनेवांचनारपुरुषे. For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१५२०. (+) सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ शु. ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले, स्थल, महिमापुर मकसूदाबाद, प्रले. पं. उद्योतविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसुभधिनाथ प्रसादात्. भागीरथी तटे., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५X११, १४X३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन, अंति: कार्यो भवद्भिरद्भूतं. ३१५२१. एकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. प्रेमसागर गणि, प्र. ले. पु. सामान्य, जैये., (२५.५४१०.५, १५X४३). मौनएकादशी कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीरं नत्वा, अंति: माराधनतत्पराः समभवन्. ३१५२२. संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, संपूर्ण वि. १७६३, आषाढ़ शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२६४१०.५, १५४५५-६०). संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: बुधि वचन वरदायिनी, अंतिः रचीयुं संयोगबत्तीसी, 11 अध्ययन-४ उन्माद. जै.. (२६४११. ३१५२३. (+) स्याद्वादसुंदरद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., १३x४३-४५). स्याद्वादसुंदरद्वात्रिंशिका, आ. पद्मसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: बंदारुसुंदर पुरंदर; अंति: त्तवमतमुदारं विजयतो, श्लोक-३३. ३९५२४. (+) होलीरजपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत- टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, १३x४२). होलिकापर्व कथा, आ, जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि; वर्द्धमानजिनं नत्वा, अंतिः विज्ञानायांचनोचितः श्लोक-५१. ३१५२५. गौतमकुलक, वीर स्तुति सह टबार्थ व अनंताद्रव्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैवे. (२६४११.५, ५X३८). १. पे. नाम, गौतम कुलक सह टवार्थ, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण, , गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अच्छपरा, अंतिः सेवित्तु सुहं लहति, गाथा २०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे लुबध ते लोभी नर, अंति: जिनधर्म हुते पामें. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं अंति: सनो देवी दवा दंभा, श्लोक-१. महावीरजिन स्तुति - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीरस्वामीनें नित्यें; अंति: उपद्रव प्रते टालती.. ३. पे. नाम. आठ अनंताद्रव्य विचार, पृ. ३अ संपूर्ण ८ अनंताद्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि साधना जीव अनंता १: अंतिः ज्ञान अ. ७ अलोकअन. ८. ३१५२६. चौराशीप्रकार के जीवसे खामणा व खामणाकुलक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५x१०.५, ११४३५). १. पे नाम, क्षमापना लोकसंग्रह सह अर्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. क्षमापना श्लोक संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि अणते परिभ; अंति: अविरइ० तेवि खामेमि, गाथा- ८४, (वि. मात्र प्रारंभ की गाथा संपूर्ण लिखकर बाकी गाथाओं के पाठभेद वाले भाग लिखकर गाथा संख्या दी गई है.) For Private And Personal Use Only २. पे. नाम. खामणक कुलक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संथारा पच्चक्खाण, प्रा.सं., पद्य, आदि: संसारंमि अणते परिभम, अंति: देव क्षमस्व परमेश्वर, गाथा - ११. ३१५२७. ऋषिभासितकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल सोजितनगर, जैवे. (२६४१०.५, ७४४८). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धारा अत्थपरा हव अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा २०. " गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य अर्थनइ, अंति: जइ पुण्यसारनी कथा. ३१५२८. पार्श्वजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६११.५, ९४२६). १. पे. नाम. धरणीनी सजाय, पृ. १अ, संपूर्ण. Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १६५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. धरमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धरणिंदा करे सेवना; अंति: धर्मचंद केवल सोयरे, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: भवोभव तुम पाय सेव हो, गाथा-५. ३१५२९. जयतिहुअण नमस्कार, संपूर्ण, वि. १७५५, वैशाख कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. उदयचंद, पठ. मु. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४४३). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ अणंदीय, गाथा-३०. ३१५३०. (+) श्लोक संग्रह व सकलकुशलवल्ली चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८२२, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ५४४४). १. पे. नाम. सुभाषित श्लोक सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्माजन्मकुले शरीर; अंति: (१)जिह्वानल कदर्थितः, (२)मूलमंत्र वसीकरणम्, गाथा-२२. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म थकी भला कुलनइ; अंति: कद• वली न बोलइ, (वि. १८२२, चैत्र शुक्ल, ३, प्रले. मु. नयणचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१५३१. (#) साधुवंदना स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४३). साधुवंदना, ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: वीर जिणेसर प्रणमुं; अंति: (अपठनीय), गाथा-२९, (वि. अतिमवाक्य अवाच्य है.) ३१५३३. (+) गुणठाणा स्तवन, श्लोक व धर्मोपदेश श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १७४५०). १.पे. नाम. गुणठाणा स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-१४ गुणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर जिनरायना पय; अंति: वीरजिण सेवउ सदा, गाथा-२३. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-२. ३. पे. नाम. धर्मोपदेश श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सुधर्मोपदेश, सं., पद्य, आदि: लज्जातो भयतो वितर्क, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ तक लिखा है.) ३१५३४. आठकर्मनी स्थिति व श्रावकपाक्षिकअतिचार-लघु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२६४१०.५, २३४५२). १. पे. नाम. आठकर्म स्थितीविचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ कर्म स्थिति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ५ ज्ञानावर्णी ४ दर्श; अंति: असंख्यातमइ उणी. २. पे. नाम. ज्ञानातिचार आलोचना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिक अतिचार-लघु, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीज्ञाननइ विषैइ; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. ३१५३५. मौनएकादसी गणनु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १८४४५). For Private And Personal use only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशी गणना, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजससर्वज्ञाय; अंति: आरणनाथाय नमः. ३१५३६. (+) स्नात्रपूजा विधि व जिनप्रतिमामाहात्म्य श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १६४५८). १.पे. नाम. स्नात्र पूजा विधिसहित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)पहिलउ धोयाणउ लेई धूप, (२)मुक्तालंकार विकार; अंति: कही मंगलेवउखमावेयइ. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा माहात्म्य, मु. बनारसी, हिं., पद्य, आदि: जिनप्रतिमा जिनसरखी; अंति: बणारसी० सिरखी जाणै, गाथा-३. ३१५३७. लघुनितिवडिनीतिनां मांडला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १८x१९). २४ मांडला, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आगाडे आसन्ने उच्चारे; अंति: पासवणे अहियासे ६. ३१५३८. स्तुति संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४६). १.पे. नाम. नेमजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तुति, पंन्या. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: श्रीगीरनारसीखर सीण; अंति: दीन दीन नीत्य दीवाली, गाथा-४. २. पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालोने प्रीतमजी; अंति: बनी सेवा ए संबल लीजे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिद्धचक्क थुई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजुत्ताण सत्ताण; अंति: थुणंताण कल्लाणयम्, गाथा-४. ४. पे. नाम. विमलाचल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रत्रिदश; अंति: विघ्नमर्दीकपर्दी, श्लोक-४. ३१५३९. नवकार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५४). नवकार रास, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह समइ लेइसु अरह; अंति: लखमीकीरति जगि जयकार, गाथा-१५. ३१५४०. (#) स्तुति संग्रह व पार्श्वस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४२). १.पे. नाम. वृद्धि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंति: दद्यादलं भारती भारती, श्लोक-४. २.पे. नाम. पार्श्व स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तोत्र-अष्टमहाप्रातिहार्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: स्वर्ण सिंहासनं; अंति: श्रेणकस्येव शाखी, श्लोक-३. ३. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. ३१५४२. (+) संबोधसत्तरी प्रकरण सह टबार्थ व तीर्थंकरबल वर्णन, संपूर्ण, वि. १८३८, चैत्र शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, ९x४३-५१). १. पे. नाम. संबोधसत्तरी प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-७३. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमसकार करीनई त्रिलोक; अंति: जीव इहा संदेह नही. २.पे. नाम. बल वर्णन, पृ. ४आ, संपूर्ण. तीर्थंकरबल वर्णन, मु. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: वार पुरुष बलवान वृषभ; अंति: केशव० अनंत वखानीयै, गाथा-२. ३१५४३. (+) पिंडविशुद्धिप्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. गाथा-१०४., ले.स्थल. कुमरगिरिनगर, प्रले. अनंत; अन्य. आ. विजयसेनसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४४१). For Private And Personal use only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १६७ पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: बोहिंतु सोहिंतु अ, गाथा-१०४. ३१५४४. इर्यापथिकामिथ्यादःकृत सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. गाथा-८., प्रले. ग. शांतिविमल (गुरु पं. हर्षविमल गणि); गुपि. पं. हर्षविमल गणि; पठ. सा. विवेकलक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ४४३८). इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह; अंति: जीव निच्वंपि, (वि. गाथा क्रमांक नहीं लिखा इरियावही कुलक-टीका, सं., गद्य, आदि: सप्तनरक पृथ्वी; अंति: गुणिता १८२४१२०. ३१५४५. नमस्कार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १५४४०). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मुनिसुव्रतस्वामी गाथा-२२ तक लिखा है.) सकलार्हत् स्तोत्र-नमस्कार अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं आर्हन्यं प्रणिद; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३१५४६. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, ७४३६). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. पगामसज्झायसूत्र-अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदि: यतश्चमंलगपूर्वक; ___अंति: वृत्तेरवचूरिरियम्. ३१५४७. (+) प्रतिक्रमणसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३६). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: इच्छामिपडिक्कमिउं; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: मूलप्रतिक्रमणस्यादौ; अंति: सूत्रं ज्ञातव्यम्. ३१५४८. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. गढडा, प्रले. श्राव. देवचंद त्रीभुवन शा; अन्य. मु. दुलभविजय (गुरु पं. गंभीरविजय गणि); गुपि.पं. गंभीरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४४३६). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ३१५४९. (+) भाष्यत्रय की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, २३-२४४६५-६६). भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: वंदि० वंदनीयान् परमे; अंति: मर्शादियोपि लब्धयः. ३१५५०. (+) ज्ञातोपनया-ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ९-१०४३५-३६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा चतुर्थ कुर्मअध्ययन का ज्ञातोपनय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उखित्तणाए १ संघाडे; अंति: जाई निव्वाणम्. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा चतुर्थ कुर्मअध्ययन का ज्ञातोपनय की टीका, सं., गद्य, आदि: उक्षिप्तं उखिता; अंति: यस्तु गाथाभिर्जेयः. ३१५५१. षष्टिशतक प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११, २०४७०). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६५ अपूर्ण तक है.) ३१५५२. बावन अनाचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४९.५, १५४२७-३१). ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, मा.गु., गद्य, आदि: उद्देसीक भोगवे तो; अंति: सोभाविभुषा करै. ३१५५३. नेमराजिमती सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ९४६०). १.पे. नाम. नेमिजिन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काइ रिसाणो हो नेम; अंति: हो मुगति पहुंती, गाथा - ९. २. पे. नाम. नेमिजिन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहरख, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि कांइ फिर चाल्यो, अंति: जिनहर्ष पयंपै हो, (वि. गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) ३१५५४. (+) वारव्रत टीप, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. श्रावि पराणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, ११४३८-४३). १२ व्रत सज्झाय, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: सकल जिणेसर पर नमी, अंतिः शुभविजय भावह भगरे, गाथा ४८ . ६६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१५५५. (+) हैमीनामबीजक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६.५x१०.५, २४४५५), अभिधानचिंतामणि नाममाला- बीजक, सं., गद्य, आदि नाममाला पीठिका जिनेश, अंति: (-), (पू.वि. चतुर्थकांड के ६७ नाम तक है.) ३१५५६. पट्टावली-तपागच्छीय, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६X११, ३२X७-२३). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी, अंति: (-), (पू.वि. ६४ पाट श्री विजयमानसूरि तक है.) ३१५५७. पंचनिर्ग्रथी प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., ( २६ ११, १४X३९-४२). भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११२८, आदि: पनवण वेब रागे कप्प, अंतिः रहया भावत्थसरणत्वं, गाथा- १०६. पंचनिर्ग्रथी प्रकरण - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: स्वरूपसंख्यादि, अंति: सं० तेभ्यः सकषायाः. ३१५५८. पंचमआरास्वरूप वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५x११. १७४२९-३२). पंचम आरास्वरूप वर्णन पद, मा.गु., पद्य, आदि जमी नीरस हुइ गइ पांण, अंतिः जुग कीनी कइ सुवीचारी, गाथा- १३. ३१५५९. पार्श्वनाथजीरो सिलोको, संपूर्ण, वि. १९५७, फाल्गुन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५x११.५, १३X३५). पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल, अंति: व राज से अंतरजामी, गाथा- ५४. ३१५६०. पच्चक्खाणभाष्य प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. श्राव नवरंगदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५.५४१०.५, ११x४५). प्रत्याख्यानभाष्य, प्रा., पद्य, आदि भावि अईयं कोडी सहियं अंतिः सासय सुक्खं अणाचाहं, गाथा- ६०. ३१५६१. पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५X११.५, १४X३५). " पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमानदेव‍ चतुर, अंति: (-), (पू.वि. पाट-७ संभूतविजयस्वामी तक है.) ३१५६२. संधारापोरसी व बलदेव सझाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैदे. (२५.५४१०.५, १२४३८). १. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि निसीही ३ नमो खमासमणा, अंतिः (-) (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १५ अपूर्ण तक लिखा हुआ है.) २. पे. नाम. गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. , י For Private And Personal Use Only बलदेवसाधु सज्झाय, मु. सकल, मा.गु, पद्य, आदि: तुगियागिरि सिखरि सोह; अंतिः सकल मुनि सुख देइ रे, गाथा ८. ३१५६४. (+) एकवीस स्थानक, संपूर्ण, वि. १६६८, फाल्गुन कृष्ण, १. शनिवार, श्रेष्ठ, पु. २ ले स्थल. पल्लीग्राम, प्रले. पं. विनयकीर्ति पठ श्रावि. रतनबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, १५×५२). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा. पद्य, आदि; चवण विमाणा नवरी जणवा अंतिः असेस साहारणा भणिया, गाथा - ६६. ३१५६५. अष्टक, अष्टकटीका व सझाय, संपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२६.५४११.५ १६४४९) , Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम दुव्यक्षरनेमि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण नेमिजिन द्विअक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानून मानेनानोन्, अंतिः नाम्नानमानानूनममीम् श्लोक ८. २. पे. नाम. द्व्यक्षरनेमिजिन स्तुति की टीका, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मिजिन द्विअक्षर स्तोत्र व्याख्या, सं. गद्य, आदिः आनुमः स्तुमः के अंतिः परिभोगयोग्याः ! ३. पे. नाम. हरियाली सज्झाय, पू. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, आ. हंसभवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि; च्यार पुरुष जब बंधन, अंतिः पंडित ते कुण नार, गाथा ५. ३१५६६. स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X१०.५, १२X३१). १. पे. नाम, आदीश्वर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, आदिजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिरायकेरो नान्हडीउ, अंतिः तब हमकुं समरेवी रे, गाथा ५. २. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि चरमतीथंकर श्रीमहावीर, अंतिः सवल संघनइ मंगल करी, " गाथा-४. ३१५६८. सिद्धाचलजीनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६x११, २९x२२). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. युक्तसेन, मा.गु. पच, वि. १९७१, आदि: सुणो सहू जनजी श्रीसि अंतिः जिन युक्तसेन मन हरसै, गाथा - १५. ३१५६९. मृगापुत्र सिज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२४.५४११, १८४३९) . मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु, पद्य, आदि: पुर सुग्रीव सोहावणी, अंतिः तिकारण सुध प्रणाम हो, गाथा- १२. ३१५७०. इलाचीकुमार चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११, १८X३८). इलाचीकुमार चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुणनिलो, अंतिः केवलम्यान वशेष, डाल-४. ३१५७१. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२६.५x११, ११४३१-३९). 3 " " दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्विड, अंति: (-), (पू.वि. छज्जीवणियज्झयण-४ अपूर्ण तक है.) ३१५७२. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, १९३३). १. पे. नाम. पनरतिथि सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. १५ तिथि सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रांराणी अमाऊ सरण; अंति: मोन समगत आइ, २. पे. नाम. संतनाथजी की सजाइ, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. रूपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: संतजणेसर सोलवाजी, अंतिः मो वणी मोटो जंजाल, गाथा - १८. गाथा ८. ३१५७४. सज्झाय संग्रह व जैनश्लोक, संपूर्ण, वि. १९१८, चैत्र कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११.५, ११३६). १. पे नाम, मद आठनी सझाय, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठे माहामुनी वारी; अंतिः पद ल्यो नरनारी रे, गाथा - ११. For Private And Personal Use Only १६९ २. पे. नाम. पांचसेत्रेसठभेदजीवनातेहनी सझाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. जीवभेद सज्झाय, मु. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारव चितमा धरि अंतिः जिन वचन थकी सुख लहे, बाल- २. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), गाथा-३. ३१५७५. गौतमपृच्छा व स्थानांगसूत्र- चतुर्थस्थान, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१)-२, कुल पे. २, जैवे. (२६४११.५, १८४५२). १. पे नाम, गौतमपृच्छा, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६५, (पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ठाणांगना बोल, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ चौथेस्थानक के बोल लिखे हैं.) ३१५७६. जिनसहस्रनाम, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १७X४७). जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेन, सं., पद्य, आदि: स्वयंभुवे नमस्तुभ्यम; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१५० अपूर्ण तक ३१५७७. ठाणांगे बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १३४४०). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३१५७८.(+) अक्षयतृतीया व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८७४, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४३-४७). अक्षयतृतीया व्याख्यान, प्रा.,सं., प+ग., आदि: उसभस्स पारणणे इखुरसो; अंति: मोष्यधाम भगवानृषभः. ३१५७९. (-) वीसवेहेरमानजीन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ११४२९). विहरमान २० जिन छंद, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन शुधे समर्या सरसती; अंति: जीन० जीनना गुणगाय, गाथा-९. ३१५८१. (+) सिद्धपंचाशिका प्रकीर्ण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३६, माघ शुक्ल, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४५७-६७). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०. सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सि० प्रसिद्ध सि० सिद; अंति: देवेंद्र० आचार्यई. ३१५८२. सुलसासती सजाय व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १०x४२). १.पे. नाम. सुलसासती सजाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन सुलसा साची; अंति: कल्याणविमल गुणगाय रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३१५८३. पार्श्वशतक, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, जैदे., (२६.५४११.५, १४४५७). पार्श्वजिन शतक, मु. रामचंद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रामचंद्रश्चकार, श्लोक-११६, (पू.वि. श्लोक १०८ अपूर्ण से आगे है.) ३१५८४. श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, १७४५३-५८). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ से ९६ अपूर्ण तक है.) ३१५८५. (#) वृद्धशांति, वज्रपंजरस्तोत्र व नवग्रह मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३४). १. पे. नाम. शांतिसूरिवादिवेतालकृत वृद्ध शांति, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सिवं भवंतु स्वाहा. २.पे. नाम. वज्रपिंजर स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्टी नमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३. पे. नाम. नवग्रह मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. ९ ग्रह मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ आइच्चसोममंगल बुध; अंति: सुप्रनाभवतुमे स्वाहा, श्लोक-१. ३१५८६. संबोहसत्तरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४१०.५, १२४३७). For Private And Personal use only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १७१ संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरु; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-१५. ३१५८७. मौनएकादशी स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६.५४१२, १६४४६). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमु जिन; अंति: (-), (पू.वि. मात्र अंतिम भाग नहीं है.) ३१५८९. पांचभावना के त्रेप्पनउत्तरभेद नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १७७३४). ५ भावना के ५३ उत्तरभेद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १. उपसम भाव भेद २; अंति: खाअक१ परिणामीकर. ३१५९०. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११,११-१४४३८). १.पे. नाम. अचित्तभूमिकानो विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-विचार संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मलमूत्रनी भूमिका; अंति: अंगुल १०१ अचित्त. २. पे. नाम. पांचस्थावर के वर्ण विचार-विचारषट्त्रिंशिका, पृ. १अ, संपूर्ण. __ ५ स्थावर वर्णविचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथवीकायनो वर्ण नीलौ; अंति: वनस्प० नाना प्रकारनो. ३. पे. नाम. प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेव थकी; अंति: श्रीजीराउली पार्श्वः. ३१५९२. फलवधिपारसनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. पोहकर ऋषि; पठ. मु. अखा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, २४२४-४१). पार्श्वजिन स्तवन-फलवृद्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परत्यापुरण प्रणमीए; अंति: सेवकने सानिध करै, गाथा-२२. ३१५९३. (-) देवसीराईप्रतिक्रमणविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४४०). प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामायक लेइ; अंति: नोकार गणीने घरे जाइ. ३१५९४. व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२७). व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत; अंति: तेह वाख्या करे छे. ३१५९५. (+) विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. आडीसनगर, प्रले. ग. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीश्रेयांसजी श्रीआदीजिन प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १७४५२). १. पे. नाम. संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण विधि ,संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वंदित्तू कहिने; अंति: पाछु देवसीपडकमj. २. पे. नाम. पोशहलेवा विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पहेलूं राइओ पडिकमj; अंति: इय समतं मए गहिइं. ३. पे. नाम. सज्झाय विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. सज्झाय विधिसंग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: वखांण चरीत्र वाचवू. ३१५९६. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १८:५२). २४ जिन स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभजिणेसर केसर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १५-धर्मनाथ स्तुति तक लिखा है.) ३१५९७. शत्रुजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ११४२७). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: लाहो लेयो रे लाहो; अंति: अविचल ध्याने रहेयो, गाथा-७. ३१५९८. (+) इंद्रियपराजयशतक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४९-५४). इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिअसूरो सो; अंति: संवेग रसायणं निच्चं, गाथा-१०२. ३१५९९. साधुविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११५, १२४४२). For Private And Personal use only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. साधुप्रभातपडिलेहन विधि, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. गोचरी विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: हवें छ घडीने आसिरें; अंति: वरसाले५ सीयाले४. ३१६००. (+) आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४२६-२९). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवराणी पदमावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ३१६०१. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१,३ से ५)=२, कुल पे. ६, प्रले. ग. हंसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १६४३३). १.पे. नाम. अंतरीक्ष-पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: हांजी दिष्यणदेस अती; अंति: जय करज्यो जीनराज रे, गाथा-१४. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामीनो स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुं तो महाविदेहनो; अंति: कांत० नीत ताहराजी, गाथा-९. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करोरे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सेजगिरमंडण स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. वेलो, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वेलो० भावु भावना रे, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: घडी घडी में वाटडी; अंति: ज्ञान० प्रभूजीना पाय, गाथा-४, (वि. अतिमवाक्य अवाच्य है.) ६. पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उंचूनेंचू वन रे मझार; अंति: लबधी० स्वामी संपजेए, गाथा-७. ३१६०२. सज्झाय व स्तवनसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १४४४३). १.पे. नाम. आणंदादि श्रावक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आनंदादि दशश्रावक सज्झाय, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: आणंदजी रे सिवानंदा; अंति: चोलमजीठनो रंग हो, गाथा-१६. २. पे. नाम. सीमंधरजीरो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सिमंधरजी सुणज्यो; अंति: लालचंद० एह अरदासजी, गाथा-६. ३१६०३. अनाथीअध्ययन चउपई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. हेमसमुद्र (गुरु ग. विद्यासमुद्र पंडित); गुपि.ग. विद्यासमुद्र पंडित; अन्य. श्राव. नथमल वाघमल सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४३६-३९). अनाथीमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १४वी, आदि: सिद्धि सवेनई करूं; अंति: मोह वेगते विरचइ सही, गाथा-६२. ३१६०४. निर्वाण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११, १०-११४३१-३७). हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरस वचन दिउ सरसती; अंति: विवेकहर्ष सुहकरो, ढाल-२, गाथा-२२. ३१६०५. भावनोपरि इलापुत्रमहामुनि चतुपदी, संपूर्ण, वि. १७२५, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. मतिमाणिक्य (गुरु मु. प्रेमहर्ष); गुपि.मु. प्रेमहर्ष; पठ.मु. ज्ञानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १७४५३-५५). For Private And Personal use only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १७३ इचालीकुमार चौपाई, मु. दयासागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१०, आदि: प्रणमी पारसनाथनई; अंति: दयासागर दिल हरसइजी, ढाल-११. ३१६०६. अजितशांति सह अवचूरी व स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, १२४४८-५४). १. पे. नाम. अजितशांति स्तव सह अवचूरि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४१. अजितशांति स्तव-अवचूरि*,सं., गद्य, आदि: प्रशांताः प्रकर्षेणा; अंति: नंदिप्रापयतु. २. पे. नाम. चैत्यवंदना स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण.. जिनचैत्यवंदना स्तुति, सं., पद्य, आदि: देवोनेकभवार्जितो जित; अंति: श्रीशांतिनाथोजिनः, श्लोक-१. ३१६०७. अजितशांतिस्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ९-११४४३-४८). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. अजितशांति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भगवति गर्भस्थे; अंति: श्रवणान्नश्यंतीति. ३१६०८. (+) कायस्थिति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६१३, चैत्र शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. कूअरिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत., जैदे., (२६४११, ९४३७). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. ३१६०९. सामाइककुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२, ४४३०). सामायिकफल कुलक, प्रा., पद्य, आदि: सामाइयवयजुत्तो जावमण; अंति: करेइ न पुहप्पए तस्स, गाथा-११. सामायिकफल कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सामाईके व्रत युक्त; अंति: फल जाणी सामायक करवो. ३१६१०. पुण्यकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२५, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, ५४३०). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपुन्न इदियतं सुमाण; अंति: पभूय पन्नेहि, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुरु पंचिन्द्रियपणो; अंति: हे जीव तुंसांभल. ३१६११. शिलकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. सा. उमेदश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ५४३२). शीलगुप्ति कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं भणामिह; अंति: अचिरेण विमाणवासं वा, गाथा-२२. शीलगुप्ति कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भणु हुं शिलगुप्तीनो; अंति: मांहि विमानवास पामे. ३१६१२. दानशीलतपभावनाकुलक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्राव. रहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १३४४१). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रज्जसारो; अंति: सो लहइ सिद्धिसुहं, वक्षस्कार-४, गाथा-८१. ३१६१३. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १६५२-१६५८, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३४३९-४३). १. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १६५२, कार्तिक शुक्ल, ५, ले.स्थल. नागपुर, प्रले.ग. कीर्तिविजय (गुरु ग. कमलविजय); गुपि.ग. कमलविजय (गुरु ग. हंसविजय); अन्य. ग. पद्मसागर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभते पदमव्ययम्, श्लोक-८५. २. पे. नाम. हीरविजयसूरीश्वर पादुकाष्टक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, वि. १६५८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, प्र.ले.पु. सामान्य. हीरविजयसूरि पादुकाष्टक, मु. हेमविजय, सं., पद्य, आदि: श्रीमानूकामगवीव; अंति: हेमविजय० संपत्तयः, श्लोक-९. ३१६१४. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १२-१३४४१-४७). पार्श्वजिन स्तोत्र, ग. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि जगि; अंति: मानसागर०अम्ह जिणेसरो, गाथा-३५. For Private And Personal use only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१६१५. स्तवन व सझायसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८१२-१८१३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १८४४६-५४). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवनगर्भित विचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८१२, वैशाख शुक्ल, १५. सीमंधरजिन स्तवन, म. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनंत चोवीसी जिन नम; अंति: भविक जन मंगल करो, ढाल-७, गाथा-११३. २. पे. नाम. शीयलविषये विजयविजया सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, वि. १८१३, आषाढ़ शुक्ल, ७. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठीरे पंच; अंति: कूल नितु घर अवतरे, गाथा-१९. ३. पे. नाम. आबिल सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: समरी सुतदेवी सारदा; अंति: भाखे विनयविजय उवझाय, गाथा-११. ३१६१६. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १६४३२-३६). १. पे. नाम. खंडकरषीनी सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. खंधकमुनि सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: तिर्थंकर चरणे नमि; अंति: नारायण० अविचल राज, ढाल-४. २. पे. नाम. द्रढप्रहारीरुषिनी सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमि सरसति वरसति; अंति: मुनि जंपे जय सीधगामी, गाथा-१२, (वि. प्रतिलेखक ने चार पाद के हिसाब से गाथा १२ लिखा है.) ३१६१७. परमानंद स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११.५, ३-५४३०-३५). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंपन्नं; अंति: परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५. परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उत्कृष्टो आनंद तेणें; अंति: ते प्रति पामीनई. ३१६१८. सझाय संग्रह, विधि व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, १६४५६). १. पे. नाम. साधुदिनचर्या सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ आ. आनंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम पूछे वीर पास; अंति: साधुभव तरस्यें तेह, गाथा-६१. २.पे. नाम. पौषध विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिक; अंति: काढवो साझनी विधि. ३. पे. नाम. श्रीमंदिर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हिअडुं हेजालूओ; अंति: कहे मत मूको विसार, गाथा-७. ४. पे. नाम. नारीत्याग स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: बेटीस्यूंवीलूधो जूओ; अंति: बोलें न को तीर्थराजा, गाथा-१०. ३१६१९. सम्यक्त्वसतसठिबोलनि सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१७, चैत्र शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १६x४१-४४). समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२. ३१६२०. उपसर्ग्रह स्तोत्र की लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ग. अनंतहस (गुरु ग. जिनमाणिक्य); गुपि.ग. जिनमाणिक्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, २१४५४). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ लघुवृत्ति, आ. पूर्णचंद्राचार्य, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: नमस्कृत्य परब्रह्म; अंति: द्यावादाभिधग्रंथात. ३१६२१. कल्याणमंदिर भाषा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है।, जैदे., (२६४११, १२४३०). For Private And Personal use only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १७५ कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: परमज्योति परमातमा; अंति: बनारसी कारण समकत सुध, गाथा-४४. ३१६२२. (+) मिथ्यात्वस्थानकुलक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-पंचपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १०x४१). मिथ्यात्व कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लोइअलोउत्तरिअंदेव; अंति: धुवं सिवं सुहाई, गाथा-२६, संपूर्ण. मिथ्यात्वस्थान कुलक-वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: मिथ्यात्वस्य चातुर्व; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथाओं की वृत्ति नहीं लिखी गई है.) ३१६२३. पुण्यकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ग. माणिक्यविमल; अन्य. ग. अमृतविमल पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ५४३८). पुण्यफल कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस; अंति: धम्मम्मि उजमह, गाथा-१६. पुण्यफल कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यनु आऊखु सो; अंति: जिनकीर्तिसूरि कहे छइ. ३१६२४. बिबजोडविडालहणादेवी, संपूर्ण, वि. १६६५, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. ज्ञानराज मुनि (गुरु पं. प्रेमरत्न मुनि, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. पं. प्रेमरत्न मुनि (गुरु उपा. रत्नविजय, बृहत्खरतरगच्छ); उपा. रत्नविजय (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४१०, १३४३९-४४). २४ जिन राशिनक्षत्र, सं., गद्य, आदि: नक्षत्र योनिश्च षडाष; अंति: महावीर विश्वा१० लहणा. ३१६२५. शत्रुजयउद्धार व स्तुति, संपूर्ण, वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १७X४८). १. पे. नाम. शेजेजय उद्धार, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १७९९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३ अधिकतिथि, प्रले. पंडित. श्रीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० जय करु, ___ गाथा-१२२. २. पे. नाम. सेव॑जामंडण ऋषभजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, प्रले. मु. जीवणहंस, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तुति-शत्रुजयतीर्थ, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजामंडण दुरित; अंति: द्यो संघने सुखशाताजी, गाथा-४. ३१६२६. लघुशांती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. हकमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनंजयति शासनम्, श्लोक-१७+२. ३१६२९. पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३४). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुरे उग्गए अब्भत्तट; अंति: गारेणं वोसिरामि. ३१६३०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १७४२९). १.पे. नाम. वज्रकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वज्रकुमार-मनोरमासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नगर अजोध्याराय जीहो; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक ___ द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने मात्र प्रथम ढाल लिखा है.) २. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चढ्यो; अंति: वंदेरे बे कर जोड, गाथा-९. ३१६३१. (-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, १८४४०-४१). १. पे. नाम. नेमिजिन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सोजत, प्रले. मु. चोथा, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: समदवीजे राजाजीरा नंद; अंति: सुके सातो आसीजी सीवद, गाथा-१४. २. पे. नाम. सीतासतीरी सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पउ For Private And Personal use only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीतासती सज्झाय-शीयलविणे, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: करै सीतासती रेलाल, गाथा-९. ३१६३२.) क्षमानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १८x१६). उपशम सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भयभंजण रंजण जिनदेव; अंति: गरभावास ते नहु अवतर, गाथा-१२. ३१६३३. चौवीसदंडक स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५२, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. गुंदवच, प्रले. उपा. आनंदनिधान (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, १५४४२). २४ दंडक स्तवन, मु. मतिवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: सुख सहुसंपद सुजसजस; अंति: मतिवर्धन गणि सुख लहै, गाथा-२३. ३१६३४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. दयासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४९.५, १३४५२). १. पे. नाम. राणकपुर आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणपुरो रलियामणोरे; अंति: सिवसुंदर सुख थाइ, गाथा-१४. २. पे. नाम. सुमति गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि सुमति जिनेस; अंति: महरवान व्है जिणहीसुं, गाथा-५. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर इकमनां; अंति: संपद हो जेनइ होइकै, गाथा-५. ३१६३५. नेमनाथ गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४८.५, ७४३६). नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., पद्य, आदि: बाविस सुभटनी चित हु; अंति: पीर पीर बाई बाई नेम, गाथा-४. ३१६३६. (+) सीमंधर गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०, १५४५२). सीमंधरजिन स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माहरा मनना रे मेलू; अंति: सुख अनोपम सासता रे, गाथा-११. ३१६३८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १५४३६). १. पे. नाम. सीलविषे चतुर्थीवाडि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. नारीरुप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चित्रलिखित जे पूतली; अंति: कहै जिनहर्ष प्रबंध, गाथा-१०. २. पे. नाम. बार भावनारी सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ भावना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: ईम भवभव जे दूख सह्या; अंति: एम बूझ्यो नमिरायो रे, गाथा-२+७. ३१६३९. विहरमानजिन स्तवनवीशी, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४६). विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-९ की अंतिमगाथा से स्तवन १२ तक है.) ३१६४०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, १०४२४). औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण मोकल्यु; अंति: सहीजसुंदर उपदेस रे, गाथा-६. ३१६४१. स्तवनचोवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, ले.स्थल. सथाणानगर, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४९). स्तवनचौबीसी, मु. अजब, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्तवन २० की गाथा ३ अपूर्ण से स्तवन-२३ तक है.) ३१६४२. मंत्र, स्तोत्रसंग्रह व सामान्य कृति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, जैदे., (२५४१०.५, १९४५७-६४). For Private And Personal use only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org षोडशी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: कल्याणवृष्टिभिरिवा, अंति: जागर्त्ति दीर्घ वपुः, ४. पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. १. पे नाम, जापमंत्र, पृ. १अ संपूर्ण सं., प+ग, आदि ऍपरेभ्यो गुरुपदिभः अंतिः सिद्धिः दशांश हवनम्. २. पे. नाम. लघु स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि ऐंद्रस्यैव शरासनस्य अंतिः यस्मान्मवापि ध्रुवम् श्लोक-२१. ३. पे. नाम. कल्याणवृष्टि स्तोत्र, पृ. १आ- २अ संपूर्ण. श्लोक-१५. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता, अंति: मेधामावहति सततमिह, श्लोक - ९. ५. पे. नाम जिनराजसमवशरणविचारगर्भित स्तवन, पृ. २अ ३अ, संपूर्ण. समवसरण स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सत्केवलज्ञान महाप्रभः अंतिः मालम्बतां निर्वृतिम् श्लोक-३४. ६. पे. नाम. अज्ञात सामान्य कृति, पृ. ३आ, संपूर्ण. सामान्य कृति, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७७ ३१६४३. भववैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. विनीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११, १६x४२). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि, अंति: लहिओ जिओ सासयं ठाणं, गाथा- १०३. ३१६४४. क्षमाछत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२५.५४११.५, १५४३६). " क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आवरि जीव क्षमागुण अंतिः चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा- ३६. ३१६४५. संबोधसत्तरी प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १६८१, कार्तिक शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. वा. विवेकसागर, पठ श्रावि. राजा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ, जैवे. (२५४११, ९४४८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोयगुरु अंतिः सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा ७४. संबोधसत्तरी प्रकरण- टीका, सं., गद्य, आदि: वीरं त्रैलोक्य गुरुं; अंति: सलभतेनात्र संदेहः. ३१६४६. (+) स्तवन व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) -३, कुल पे २, प्र. वि. प्रत में पत्रांक १ से ३ दिया गया है एवं एक कृति का अंतिम भाग मात्र है। कृति के प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक रूप से प्रथम पत्र का क्रमांक २ गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११, ९२७). १. पे. नाम संबोधसप्ततिका, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे. वि. पत्रांक काल्पनिक दिया गया है. यह कृति प्रत में पत्रांक ३आ पर है, परंतु नियमानुसार इसे प्रथम पेटांक के रूप में भरा गया है आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा - १००, ( पू. वि. गाथा ९८ अपूर्ण से १०० तक है.) For Private And Personal Use Only २. पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण, प्रले. मु. हीरसागर, पठ. श्रावि. रूपाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. पत्रक काल्पनिक दिया गया है. प्रत में यह कृति पत्रांक १ से ३ पर संपूर्ण है. नवपद स्तवन, मु. हीरविजयसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर पाय नमीने; अंति: हेलाए सार मइ जाणिओ, गाथा - २१. ३१६४७. विचारषट्त्रिंशिकावचूरि, संपूर्ण वि. १८९२, आश्विन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, बीकानेर, प्रले. पं. मनरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५X४६-५०). दंडक प्रकरण- स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेयं अंतिः मत्वेदं बालचापल्यम्. ३१६४८. लोकनालिद्वात्रिंशतिकावचूरि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जै, (२५.५X१०.५, १८४४२-४३). लोकनालिद्वात्रिंशिका - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिणदंस वइसाह प्रसारि; अंति: ज्ञात्वेतिभावार्थ:, ग्रं. १२०. ३१६४९. लोकनालिद्वात्रिंशतिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६६९, आश्विन कृष्ण, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. पतन, प्र. मु. केशव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे., (२५.५x११.५, ३-४४४८-५३). Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिणदंसणं० जिनदर्शनं; अंति: एवावचूरिर्विलोक्या, ग्रं. १८०. ३१६५०. (+) जिनकुशलसूरिदिव्याष्टक व पंजिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४२-४८). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि दिव्याष्टक की पंजिका, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टक-वृत्ति, मु. धरणीधर कवि, सं., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं गुरुं; अंति: कविवर कृतौ पंजिकाम्. २.पे. नाम. जिनकुशलसूरिगुरुदेव दिव्याष्टक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टक, आ. जिनपद्मसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: सुखं सर्वा सम्यद्वसत; अंति: लक्ष्मीश्चिरस्थायिनी, गाथा-९. ३१६५१. (+) मौनएकादशीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. डुंगरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४५). मौनएकादशीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य पार्श्वनाथ, (२)श्रीमाहावीर प्रति; अंति: परलोक सुखी थाइं. ३१६५२. मौनैकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १७७३, पौष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. शुद्धिदंती, जैदे., (२५४१०.५, १७X४७). ___ मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: हम्मीरपुरसंश्रितैः, श्लोक-११८. ३१६५३. एकादशीव्रतोपरि सुव्रत कथानक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४१०.५, १६४५१). मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ; अंति: तह मुक्खसुक्खं, गाथा-१५३. ३१६५४. (+) होलीरजपर्वप्रबंध कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १५४४१). होलीपर्व कथा, सं., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति: विज्ञानां वाचनोचितः, श्लोक-५३. ३१६५५. सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. इलेपुरी, प्रले. अभयराम; पठ.पं. कस्तुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४३). सौभाग्यपंचमी कथा-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य पार्श्वनाथां, (२)सकल मंगलवेलि वधारवा; अंति: ख्यात वधाइ आणंद पाइ. ३१६५६. प्रस्ताविक गाथाकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११,५४३४). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अच्छपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर अर्थ लक्ष्मी; अंति: सुख प्रतें पांमे. ३१६५७. गौतमकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. राजसी पंडित; पठ. श्रावि. वेलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ५४२९). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धानरा अत्थपरा हव; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य हुवइ; अंति: सेवइ ते सुख लहइं. ३१६५८. गौतमकुलक सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ४४४२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धानरा अत्थपरा हव; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: लुद्धा० लोभी नरा; अंति: सुख लहइ सदा सुख पामइ. ३१६५९. वृद्धगणधर रास, संपूर्ण, वि. १८२१, माघ शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. विजेंवानगर, प्रले. ग. अजितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, २१४५२-५४). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विनयभद्रसूरी इम भणैए, गाथा-८३, (वि. इस प्रत में कृति कर्ता के रूप में विनयभद्रसूरि का नाम मिलता है.) ३१६६१. बृहच्छांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४४). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-). For Private And Personal use only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१६६२. संथारा विधि व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४४११, १२x३२). १. पे. नाम. संथाराविधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि अंतिः इय सम्मतं मए गहिवं, गाथा- १४. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. लोकसंग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३१६६३. () साधु अतिचार व संवत्छरी आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५X१२, १४x२७). १. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पाक्षिक अतिचार, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ, अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम संवछरी आलोयणा, पृ. ४आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा. मा. गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह, अंतिः तप करी पाँचाडवो. ३१६६४. (-) ३१ सूत्र के नाम व देवलोकआयुष्य विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे., २. पे. नाम. देवलोकरो आबुखारी वीगत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. देव आयुष्य विवरण, मा.गु, गद्य, आदि: १ पेहलोदेवलोक आऊखो अंतिः २५ सागरोपमरो, ३१६६५. (-) सझाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., १. पे. नाम, नारी अधिकार, पृ. १अ, संपूर्ण, (२४४११, १४४२८). १. पे नाम. अगतीससुरा नाम, पृ. १अ, संपूर्ण, ३१ आगमसूत्रो के नाम-स्थानकवासी, मा.गु., गद्य, आदि: दसवीकालक१ अबाही २ राय, अंति: ३० पनावागर ३१ वीपाक. " विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र २५ वीं ढाल लिखा है.) २. पे नाम, स्वायंप्रभ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. स्वयंप्रभजिन गीत, मा.गु., पद्य, आदिः सामी स्वायंप्रभु अंति: केहनई छेह न विंति गाथा ५. ३१६६६. रिषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (१९४१०.५, ११४२० ). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१६६७. शत्रुंजय माहात्म्य, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, जैवे. (१९४११, १६५३६). "" जैवे. (२५.५x१०.५, १५४४४). आदिजिन स्तवन- छिपियापुरमंडण, मु. विद्यारत्न, मा.गु, पद्य, आदिः रिषभ जिणेसर राजीयो अंतिः विद्या० निज मन उही, गाथा - ९. १७९ शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय अंति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २१ तक लिखा है.) ३१६६८. स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी- १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ५, जैवे. (२४.५४१०.५, १७४४४). " १. पे नाम, अजितजिनवर स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. अजितजिन स्तुति, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंदा मुख पुणम, अंति: तत्व० होई मुझ माताजी, गाथा-४. ३. पे नाम, पार्श्वनाथजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गाथा-४. २. पे नाम, शांतिनाथ जिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण शांतिजिन स्तुति, ग. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिनाथ भजो भगवंत, अंति: भणइ देवविजय कवि मुदा, For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास जिणेसर भुवन, अंति: वंछित ए आपिजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. धमडकानगरमहावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १७५०, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधि जुडी हुई है. महावीरजिन स्तुति-धमडकानगर, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशलानंदन त्रिजग, अंतिः बंछित देउ मुझ माईजी, गाथा- ४. ५. पे. नाम. धमडकानगरमहावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण प्रले. पं. माणकविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. यह कृति बाद में लिखी गई है। महावीरजिन स्तुति - धमडकानगर, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशलानंदन त्रिजग; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम गाथा लिखी हुई है.) ३१६६९. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. पं. मनरुपजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०.५, १२X४१). शांतिजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु, पद्य वि. १७८४, आदि: शांति जिणेसर सेवीइं अंतिः दीप० मनरंगे रे लाला, गाथा- १२. ३१६७१. नमिऊण स्तोत्र सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. गाथा ५ तक लिखा है, जैदे., (२४.५X१०.५-११.५, ४X५१). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण, अंति: (-), प्रतिपूर्ण नमिऊण स्तोत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण नमस्करी पणाय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३१६७२. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५०, फाल्गुन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. जावालग्राम, पठ. मु. जगरूप (गुरु पं. नायक विजय गणि); प्रले. पं. नायक विजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४११.५, १६४३४). " २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदिः कनक तिलक भाले हार; अंति: लावण्यसमय सदा भणे, गाथा - २७. ३१६७३ पोसा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२५x११.५, ११४३४). " पौषध विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: इरियाबही पडिकमै अंतिः विहरावी पारणो करें. ३१६७४. अजितशांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४.५४११, १७४४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए; अंति: मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा- ३२. ३१६७५ वर्द्धमान स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (२५.५x१०.५, ६x४०). ., महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि जयसिरिजिणवर तिहुअणजण, अंतिः निअपयसुहदाणओ अइरा, गाथा ५. ३१६७६. सझाय व स्तवनसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५X११.५, १७x४३). १. पे नाम. ईर्ष्यापथिकी हरियाली, पृ. १अ संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि नारी रे में दीठी अंतिः एहनी घणी करो सेव रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पं. विनयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: समरू कविजन सारदा, अंतिः हो माहरा मननी आस, गाथा- ७. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु, पच, आदिः सगुरु चरण नमी करी, अंतिः देव लहे सुख वास, गाथा-७, ४. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र की नवम अध्ययन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. नवम् अध्ययन की सज्झाय.) For Private And Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१६७८. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १६४४५). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, गाथा-२०. ३१६८०. इरियावहीमिच्छामिदुक्कडभेद विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, २१४२२). इरियावही मिच्छामिदुक्कडं विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ते मिच्छा दुक्कड जे; अंति: (-). ३१६८१. चेलणा चौढालीयो व लोभपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १८४५४). १. पे. नाम. समकित चेलणारोचउढालीयो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर जे नर अटकलै तेह; अंति: वितरागरा वचन प्रमाण, ढाल-४. २.पे. नाम. लोभ पचीसी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. लोभपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: इण लोभी मनुष्यसु; अंति: तिणनें स्याबासोजी, गाथा-२५. ३१६८२. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३९). १.पे. नाम. सत्याविसभव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गंधारे महावीर जिणंदा; अंति: जसविजय जयकारी, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शामळा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेरू महिधर सुंदर; अंति: मोहनविजय जयकारं, गाथा-४. ३१६८३. सिद्धचक्र थुई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५,७४२५). सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: पढम पय निविट्ठ नाण; अंति: देवि चक्केसरीया, गाथा-४. ३१६८४. दस पच्चखाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०, ११४२६). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गेसुरे नोकारसी; अंति: सव्वसमाहीवतियागारेणं. ३१६८५. मौनएकादसी गणनु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३६). मौनएकादशीतप गणj, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३१६८६. (+) उपदेसमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४.५४११.५, ९४२५). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (१)नमिऊण जिणवरिंदे इंद, (२)जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. गाथा ३४ तक लिखी हुई है.) ३१६८७. स्तवन व अनागत २४ तिर्थंकरनाम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३६). १.पे. नाम. त्रिणचोवीसीजिननाम स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अतीतअनागतवर्तमानजिनचौवीसीनाम स्तवन, वा. तेजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सितरिसो जिन करि; अंति: संघ __ जयलच्छी लहइ, गाथा-२१. २. पे. नाम. आवतीचउवीसीतीर्थंकर और जीव नाम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर नाम- अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपद्मनाथ१ श्रेणिक; अंति: भद्रकृत्२४ स्वाति२४. ३१६८८. श्रीपालरास, अपूर्ण, वि. १८२१, पौष शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४५-४१(१ से ४१)=४, ले.स्थल. ध्राणपुर, प्रले. मु. देवेंद्रविजय (गुरु ग. क्षमाविजय); गुपि.ग. क्षमाविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहेशे ज्ञान विशालाजी, खंड-४ ढाल ४१, (पू.वि. खंड-४, ढाल ११वीं की गाथा-३ अपूर्ण से है.) For Private And Personal use only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१६८९. संथारापोरिस विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. चांदा (गुरु ग. तीर्थविजय); गुपि.ग. तीर्थविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ११४४२). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: चउकसाय पडीमल लूरण; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१५. ३१६९०. (-) गतागती २४ दंडक ५६३ भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. उमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४११.५, १९४३९-४५). गतागति २४ दंडक के ५६३ भेद विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: सप्त नरके समुचे गति; अंति: एवं सरव २५०. ३१६९१. (-) शाश्वताजिनसंख्या स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११, ९४३४). शाश्वताजिनसंख्या स्तवन, क. देपाल, मा.गु., पद्य, आदि: लवण विसात कोडिलाष; अंति: पामि बोलि कवी देपाल, गाथा-१२. ३१६९२. (-) अंजना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३.५४११, २१४३७-४२). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३१६९३. स्तवन, सज्झाय व नेमिजिन ख्याल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४७). १. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथजी लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरचिंतामणि, ग. हर्षनंदन, रा., पद्य, आदि: चिंतामणिपास पूजीयै; अंति: संघनै सानिधि करौ, गाथा-६. २.पे. नाम. थूलभद्रमुनि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चौमासै आय; अंति: सुख सवाया हो रिषजी, गाथा-११. ३. पे. नाम. नेमजी ख्याल, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन ख्याल, बालकृष्ण, रा., पद्य, आदि: नेम विन की कहां होजी; अंति: वालकृष्णगुण गाईयांवे, गाथा-३. ३१६९४. (+) शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १८४३, चैत्र शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बलूंदा, प्रले. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३०). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. ३१६९५. नवपदपूजा व दादाजी की आरती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (३४.५४११, १६x४३). १.पे. नाम. नवपदजी की पूजाविधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद पूजाविधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अथ सबकै जाणने को नव; अंति: पूजा करै आरती करै. २. पे. नाम. दादाजी की आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि आरती, मा.गु., पद्य, आदि: पहली आरती दादाजी की; अंति: चरणकमल बलिहारी, गाथा-९. ३१६९६. विविधस्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११, १४४५२). १.पे. नाम. जिन जन्मोत्सव, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनमुख देखण जावू; अंति: विमल गुण गावुरे, गाथा-१०. २.पे. नाम. पूजाअष्ट विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनपूजा विधि स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: झारी रतन जडाव की; अंति: श्रीजिन पूजो रूप, गाथा-९. ३. पे. नाम. चौवीशजिन वर्ण स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वंछितपूरण सुरतरु जेह; अंति: शिवगतिना सुख नीडा रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-रामपुरमंडन, मु. केसराज, मा.गु., पद्य, आदि: अदभुत रूप अनुप खरो; अंति: रामपुरै नमो आदिजिनं, गाथा-८. For Private And Personal use only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १८३ ३१६९९. अष्टकर्मोत्तर प्रकृति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. लखणे, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जै.., (२४X११, ९X३४). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अथ कर्मनीमूल प्रकृति; अंति: प्रकृति १५८ जाणवी. ३१७०० अरणिकमुनि सज्झाय व पद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे २, जै. (२४४११, १२४३०). १. पे. नाम. अरहनकरुषि स्वाध्याय पृ. १ अ १आ, संपूर्ण. " गाथा-८. २. पे नाम. कबीर पद, पृ. २आ, संपूर्ण अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधोजी, आध्यात्मिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: साम सामक रटेरी, अंति: चरणन लाग रहिए. ३१००१. फलवधीपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (२४.५४११.५, १४४३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- फलवृद्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः परतापूरण प्रणमीइ अरि, अंतिः सेवकने सानिध करै, गाथा - २१. ३१००२. शालिभद्रमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५४११.५, १५x५०). 3 शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच की ढाल लिखी हुई है, दीक्षा अनुमति वर्णन . ) 1 ३१००३. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४६, ज्येष्ठ शुक्ल १५ रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल सोझत, प्रले. पं. श्रीचंद (खरतरगच्छ जिनभद्रसूरिशाखा); पठ. मु. भवानीदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १४X३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३१००४. वीर स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (२४.५x१०.५, १०x२९). महावीरजिन स्तवन- भांडुप, मु. ज्ञानअमृत, मा.गु., पद्य, वि. १९२५, आदिः श्रीमहावीर कृपाल परम; अंति: ग्यानामृत सुध दीजे, गाथा- ७. ३१७०५. नवग्रह स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२४.५x११.५, १२४४३) १. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंतिः शांतिविधिं शुभाम्, श्लोक-११. २. पे. नाम. नवग्रह पूजा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. नवग्रहपूजा स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः शनैश्चरः कृष्णवर्ण, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, आदित्यपूजा तक लिखा है.) " ३१००६. पार्श्वजिन स्तव, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे., (२५.५x११.५, १७४५६). पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: तेजः पुष्णातु; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ६४ तक है.) ३१७०७. श्रेयांसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २१(१) १, जैवे. (२५.५४११.५, ७४३४). "" श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्म, आदि (-) अंति: आनंदघन मतवासी रे, गाथा-६, (पू. वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) ३१७०८ ।। सासउसास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैवे. (२४.५४१०.५, १४४३६-३९) (-) श्वासोश्वास बोल संग्रह-प्रज्ञापनासूत्रगत, मा.गु, गद्य, आदि: राजगरी नगरी सीणकराजा; अंतिः कोड सोकोड सोकोड, ३१७०९. () नक्षत्रचूडामणी व गुरुप्रदक्षिणा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५X१०.५, १७४५२). १. पे. नाम. नक्षत्र चूडामणी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. ग. उदयहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: पुरंदर सुराधीशः पत्र अंतिः बृहस्पति समाहृतम्, श्लोक-२८. २. पे. नाम. गुरुप्रदक्षिणा गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: गोअम सोहम जंबू पभवो; अंति: तुह सुगुरु मह कमले श्लोक -९, (वि. चार पद के हिसाब से गाया संख्या ९ लिखा है.) 1 ३१७१०. आदिजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४.५X१०.५, १४४५१). १. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पठ. ग. जीतकुशल (गुरु ग. दीपकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन, मु. शुभकलस शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरसति भगवती, अंतिः सवल संघ मंगल करो, गाथा - १७. २. पे. नाम. लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. शाक-भाजी, फलों आदि के नाम लिखे हुए हैं. लोक संग्रह *, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-) अंति: (-). ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. सं., पद्य, आदि: स्नाने सिंह समारणे, अंति: एवं वृथा ब्रामणा, श्लोक-१. " ३१७११. सिद्धचक्र स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैये., (२५४११.५, १९३४). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भगति युगतिं भवियण, अंतिः सुखविजय जयकारी जी, गाथा ४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: अष्ट महासिद्धि संपजे; अंति: उतम० मोरी बहिनी रे, गाथा - ६. ३१७१२. मल्लिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५.५x१०.५, ११४३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मल्लिजिन स्तवन, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निज गुरु चरण कमल; अंतिः कुंअरविजय० करयो सार, गाथा-७. ३१७१३. (+) जिनसागरसूरि गीतसंग्रह व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, पठ श्रावि चिम्मो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२५x१०.५, १३४३४). १. पे. नाम. आचार्य गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनसागरसूरि गीत, मु. सुखसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनसागरसूरिजी अंतिः सुखसा० आसफली मुझ आज, गाथा-७. २. पे. नाम. जिनसागरसूरि गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. सुखसागर, मा.गु, पद्य, आदि: मेडतउनयर सुहामणउ जी, अंतिः सुख० पायो परम उल्लास, गाथा- ६. ३. पे नाम, पंचपरमेष्ठि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: अर्हंतो भगवंत इंद्र, अंतिः तं स्तौमिवीर प्रभुम् श्लोक-२. ३१७१४. स्तवन व पोसहसूत्र, संपूर्ण वि. १७५८ फाल्गुन कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३x४५). १. पे. नाम. महावीरस्वामीनी वीनती, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, आदिः वीर सुणो मोरी वीनती अंतिः थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-१९. २. पे. नाम. पोसहपारवा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पोसह पारवानुं सूत्र, संबद्ध, गु., प्रा., गद्य, आदि: सामाइक पोसोसिंडीयस, अंति: मिच्छाकडंसिद्धि. ३१७१५. श्रुत सह व्याख्या, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे., (२५x११.५, १६x४५). " (२४४१०, १७x४५). १. पे. नाम गौतमस्वामि स्तोत्र, प्र. १अ संपूर्ण. वैराग्यबोल सज्झाय, पुहिं., रा., पद्य, आदि: बाई ए मई कोतिगि दीठ; अंति: विण सूखीउ किम थउ, गाथा - २२. वैराग्यवोल सज्झायटीका, सं. गद्य, आदिः श्रीवीर निर्वाणात्, अंतिः नंत सुख भागिजज्ञे. " ३१७१६. (१) स्तोत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., For Private And Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १८५ गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: ॐ नमस्त्रिजगन्नेतुर; अंति: भव सर्वार्थसिद्धये, ___ श्लोक-९. २. पे. नाम. गौतमस्वामि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमगणधर स्तवन, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनसासन जाचौ; अंति: हरषवल्लभ बहुमान, गाथा-९. ३. पे. नाम. अंबकादेवी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. ____ अंबिकादेवी स्तोत्र, मु. पुण्य, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ अंबिका जय जय माय; अंति: पुण्य० नमो आणंद, गाथा-११. ३१७१७. सझाय व श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३०). १.पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण, वि. १८४०, आश्विन कृष्ण, १, ले.स्थल.रांनेर. ___चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुंआरी चंदनबाला; अंति: कुंवर कहे करजोडिरे, गाथा-१३. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: लंब करणो दुराचारी; अंति: (-), श्लोक-४. ३१७१८. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १७X४१). १. पे. नाम. च्यारप्रत्यैकबूधस्वाध्याय सझाय, पृ. १८अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गाया पाटण परसिद्ध, गाथा-५, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सालभद्रनी स्वाध्याय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धन्ना सालिभद्र; अंति: लहे ते रयणी देहरे, गाथा-१२. ३. पे. नाम. सीतानी सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीयलविषे, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: प्रणमेयो तेहना पायरे, गाथा-९. ३१७२०. धरमीनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४२). औपदेशिक सज्झाय, वा. चारुदत्त, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरनां प्रणमी; अंति: धरम करिते सिवसुख लहि, गाथा-२३. ३१७२१. सारदा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४५). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ३१७२२. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, पठ. सा. देवश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १५४२९). १.पे. नाम. विजयकुमरविजयाकुमारीसीयल सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुसल नित घरे आंगणइ, गाथा-३२, (पू.वि. मात्र अंतिम दो गाथा है.) २.पे. नाम. भगवतीसूत्र की सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: भावे भवियण भगवई; अंति: जिन अधिक उछाह गवाणी, गाथा-६. ३१७२३. गोडीजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३१-३६). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आप; अंति: करण धवलधींग गोडी धणी, गाथा-१८. For Private And Personal use only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१७२४. विशस्थानकतपनुं गरणुं, संपूर्ण वि. १९११ आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ श्रावि बाई अंबा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११.५, २३४१०-१८). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, आदि: लोगस१२ नमोअरहंताणं१; अंतिः लोगस५ नमोतिथस २०. ३१७२५. स्तवन, भास व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५x११.५, १७३५). १. पे. नाम. वेरमान स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. गुणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वेरमान जिन वंदो, अंति: गुण गाया गुणचंदो, गाथा- ७. २. पे नाम. विजयधर्मसूरि भास, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. विजयधर्मसूरि सज्झाय, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., पद्य, आदि सारद प्रणमी पावा, अंति: ज्ञानविजय पभणंदा रे, गाथा- ९. ३. पे. नाम. विजयजिनेंद्रसूरि भास, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनेंद्रसूरि गहूंली, मु. वल्लभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चालो साहेला सह मलि, अंति: वल्लभसागर गुण गाय रे, गाथा - ६. ४. पे. नाम. प्रहेलिका लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रहेलिका श्लोक संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम देस नगर, अंति: मोरीओ जोवा गईति कंत, गाथा- २ ३१७२६. (#) नववाडिनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. विमलदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०.५, १५४४७). शीयलनववाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंतिः शीलवंतनय जांउ भामणय, गाथा २७. ३१७२७. अंतरीक्षपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५x११, ११x४२). पार्श्वजिन स्तोत्र - अंतरीक्ष मु. हीरविजयसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि: विश्वव्याप्तिविद्धिः अंतिः स्मिन्विधतांविभुः, श्लोक-१५. ३१७२८. पुण्यपापस्वरूपकुलक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. ले, श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२५X१२, १३X३०-३५). पुण्यफल कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस, अंति: सम्मं धम्मंमि उज्जमह, गाथा - १६. पुण्यफल कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सोए वरसे छत्रीसहजार; अंति: जिम परम सुख पामई. ३१७२९. शीलकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५X१२, ५X३०). शीलगुप्ति कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं भणामिह अंति: अचिरेण विमाणवासं वा, गाथा - २२. शीलगुप्ति कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भणु हुं शिलगुमीनो, अंतिः मांहि विमानवास पामे. ३१७३० (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे. (२५.५x११.५. १२-१६x२६-३१). १. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्म, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. ३१७३१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५.५x११, १७४३८). १. पे. नाम. संखेश्वरा छंद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक, अंतिः मुदा प्रसन्नः, गाथा - ३२. For Private And Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org २. पे. नाम. विसविहरमानजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन छंद, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन शुधे समर्या सरसती; अंति: जीन० जीनना गुणगाय, गाथा - ९. ३. पे. नाम. चौवीसजिन स्तोत्र, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य वि. १७६७, आदि: समरी सरसती सामणि माय; अंतिः जंपे प्रतपो जगदीस, गाथा- ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१७३३. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., ( २६१२, ११X३२-३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ३१७३४. बृहच्छांति कि अवचूरि, संपूर्ण वि. १७११, कार्तिक कृष्ण, १ बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२५.५११, १५४५३-५६). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १६५६, आदि: स्ताच्छांतिः शांति, अंतिः 3 विहिता बृहत्छांतिः ग्रं. २१५. יי गाथा ६८. ३१७३९. विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., ( २४१२, १७३४). १. पे. नाम. गुणतीशनाम विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. २९ द्वार २४ दंडक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: एकंद्रीकानाप्रसइंद्र, अंति: (-). ३१७३५. बृहत्छांति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५X१०.५, १२X३२-४२). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ३१७३६. सहसठियोल समकितना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जै, (२५.५४११.५, १३४४२-४४). (२६११, १०x३२). समकितना सड़सठ बोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदिः सुकृतवह्नि कादंबिनी, अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल - १२, गाथा- ६८. ३१७३७. जिनपंजरमहामंत्र स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अहं अंतिः मनोवांछित पूरणाय श्लोक-२४. ३१७३८. आत्मनिंदाविषये सुरप्रियरूषि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२६४११, ११-१३४५१-५२). सुरप्रियसाधु रास, मु. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि: सरसतिदेवि सदा मनि; अंतिः तरह विणजारा रे, " २. पे. नाम. ६३ कर्मप्रकृति विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१) कर्मप्रकृति क्षय करी, (२) ज्ञाना०५ दर्शना० ९; अंति: करी केवल पांइ छेड़. ३. पे नाम. नवकलपी विहार, पृ. १आ, संपूर्ण. १८७ नवकल्पीविहार विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: अत्र चउमासाना कलप ४; अंति: नवकल्पी विहार कहीए. ४. पे. नाम. आवलिकानी संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only आवलिका संख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदिः आवलिका ते असंख्याता; अंतिः एक दीवसनी आवलिका थइ. ५. पे. नाम. खूलाकभवनी संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. क्षुल्लकभव विचार, मा.गु., गद्य, आदिः एकसास उसासमाही साठी, अंतिः खूलाकभव ७०७७८८८०००००. ३१७४०. सझायसंग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६X१२, १२x४२). १. पे. नाम. सीतामहासती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, मु. भोजसागर, मा.गु., पद्म, आदि: दशरथ नरवर राजीयो, अंतिः सीलवंत तणो हुं दास गाथा- १७. २. पे नाम, आध्यात्मिक हरियाली, पृ. २अ, संपूर्ण. पं. रंगविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेंज्यो चतुर नर ते, अंति: रंगविजय रंगे मन धारी, गाथा-५. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि हां रे प्रभु संभवस्व, अंतिः नो सवि लेखे थइ रे लो, गाथा ५. Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१७४१. संबोधसत्तरि, संपूर्ण, वि. १८वी, पौष कृष्ण, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. "गौरीतिथौ " ऐसा लिखा है।, जैदे., (२४.५x१०.५, १३४३७). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरु; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-८६. ३१७४२. सझायसंग्रह व नवकार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-१० (१ से १०)=४, कुल पे. ३, जैदे. (२४.५x११.५, १६४३४). १. पे. नाम. अष्टोकर्म स्वाध्याय, पृ. ११ अ १४आ, संपूर्ण वि. १८४४, चैत्र शुक्ल, ५, ले. स्थल. धीरानगर, प्रले. ग. तेजविजय (गुरु पंन्या. रत्नविजय); गुपि. पंन्या. रत्नविजय (गुरु ग. देवविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. अष्टकर्म सज्झाय, मु. जीवन कवि, मा.गु., पद्म, आदि: गुणनीधी गोत्तमगणधरुं; अंतिः कर्मधी नवि राचीइ, दाल-८. २. पे. नाम. जीपउपरे सज्झाय, पृ. १४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: जीव वारु छु मोरा अंतिः प्रभू आवागमन नीवार, गाथा-५. ३. पे. नाम, नमस्कार महामंत्र, पृ. १४आ, संपूर्ण. शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद- ९. ३१७४३. सझाय व चैत्यवंदनसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, पठ. ग. जितविजय, प्रले. पं. जिनचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५४११, ११-१५४४४-४५) १. पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. भरसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय, अंति: जस पडहो तिहुवणे सबले, गाथा-१३. २. पे. नाम. नमस्कार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २४ जिनवृद्ध चैत्यवंदन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणमुं प्रथम, अंतिः लहिं पामिं सुख अनंत, गाथा-७. ३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ग. विजयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमहाव्रत सुधा पालि; अंतिः तस पाय वंदन कीजइ, गाथा ८. ४. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदिः आदिदेव अरिहंत धनुष, अंति: बहु जन पाम्या पार, चैत्यवंदन- २४. ३१७४४. तपागच्छाधिराज श्रीहीरविजयसूरिश्वरनिर्वाण सज्झाय, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. ग. भाग्यसागर पठ. श्रावि. अरघां, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x११, ११x२८-३४). हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरस वचन दिउ सरसती; अंति: विवेक सुहंकर, दाल-२, गाथा-२२. ३१७४६. त्रिहसट्ठिशिलाकाबद्धपुरुष आयुर्देहमानाभिधानांतराणिगत्यादिविचारगर्भित स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७४०, वैशाख शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. नवानगर, प्रले. मु. खेमविजय (गुरुग. संघविजय); गुपि. ग. संघविजय (तपागच्छ); पठ. श्रावि. नागबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५.५४११, १२४४१-४२). " ६३ शलाकापुरुष रास, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीजिनचरण पसाउलाइ अंतिः दयाकुशल ० सुख सही लहु गाथा - ६०. ३१७४७. बार भावना, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५X१०.५, १७x४९). १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि : आदिश्वर जिणवर तणा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ४२ अपूर्ण तक है.) " ३१७४८. देवलोकेजिनप्रासाद व जिनसंख्याविचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२४.५४११.५, १५४३८). शाश्वताजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तत्रप्रथम बारदेवलोक, अंतिः ऊर्ध्वलोके वांदु. ३१७४९. (+) शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५४, आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जगनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५X११, १२x२९). For Private And Personal Use Only लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ३१७५०. सीमंधरजिन स्तवन व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (२४.५x१०.५, १२४४५). Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org १. पे. नाम. सीमंधरजिनवीनती स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी, अंति: हंस० दरसण दीजे नाथ, गाथा-१६. २. पे. नाम. श्रीमंदीरसामी चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमंदिरजिन विचरता, अंति: कांति० भगते बे कर जोड, गाथा-५. संभवजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: वांके गढ फोज चढी अंतिः बांधी मंगाउं आठे चोर, गाथा-४. " २. पे. नाम. नेम गीत, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ३१७५१. सनत्कुमारचक्रवर्ति कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०.५, १६४५४). सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रसंग, मा.गु., गद्य, आदि: सनत्कुमार चक्रवर्ति, अंति: करीनई सुगति पहुता. ३१७५२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X११.५, ११×३५). 1 १. पे. नाम. अजित स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने कृति के अंत में 'अजित स्तवन' लिखा है एवं कृति में 'सुभ जिणेसर' इस प्रकार लिखा है. परन्तु हकीकत में यह कृति संभवजिन एवं सुविधिजिन के नाम से है. यहाँ पर सुभद सिर इस प्रकार लिखे होने से संभवजिन लिखा गया है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेमि, अंति: अजरामर पद पाया रे, गाथा-८. ३१७५३. पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४X११, ११X३१-३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आविः प्रणमी पासजिणेसर, अंति: (-), (पू.वि. डाल-५ गाथा ३ पूर्ण है.) १८९ " ३१७५४. सचित्ताचित विवरण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जै. (२४.५१०५, १५४६०). चित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी, अंतिः नयविमल कहे सज्झाव, गाथा - २५. "" ३१७५५. अषाडभूत चउपड़, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, दत्त. गणेश व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४१०.५, ११४३०). आषाढाभूतिमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सिरी संति जिणेसर भवण, अंतिः पाम्य केवलनाणउ ए. गाथा ५७ (वि. प्रस्तुत कृति में कर्ता संबंधी सूचना वाली गाथाओं को नहीं लिखा है.) ३१७५७. आंबिलतप स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४४१०.५, ९x४०). आयंबिलत सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, बि. १७३, आदिः समरी श्रुतदेवी सारदा, अंति: भाखे विनयविजय उवझाय, गाथा- ११. "" ३१७५९. २४ दंडके शरीरादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे. (२४.५४१०.५, १६-१९४३२-४५). २४ दंडक विचार, मा.गु., सं., गद्य, आदि: नारकदंडके शरीर ३; अंतिः और व्यंतर ज्युं सर्व. ३१७६२. अनाधीऋपनी सीजाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२३.५४११, ९८४३८). अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक, अंति: सुण्यो वचन अनाथी, , गाथा - २८. ३१७६३. महावीरनी स्तुति सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५X११.५, ४४३३). " गाथा-८. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर, अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. संसारदावानल स्तुति - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसाररूप जे दावाप्रि; अंतिः सरस्वती० मोक्ष प्रति ३१७६५. सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५x१०.५, ११x२९). १. पे. नाम. सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुको मोहतणी मत सगली, अंति: उजल धरम आराधो रे, For Private And Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९० www.kobatirth.org मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन पास वडे धमचक, अंति: जीत निसाण धुराउं लाल, गाथा- ६. ३१०६६. गीत व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे ४, जैदे. (२४.५४१०.५, १६४५३). १. पे. नाम. प्रस्ताविक दूहा, पृ. १अ + १आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह, प्रा.मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-): अंति: (-), गाथा- १२. २. पे नाम, नेमराजुल गीत, पृ. १आ. संपूर्ण नेमराजिमती गीत, मु. लाभउदय, पुहिं., पद्य, आदि: जादव जीवनप्राणी हो, अंतिः वाणी मोरड़ मन मानी हो, गाथा ४. ३. पे नाम, शांतिनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, आदिः सखीरी शांतिनाथ सुर, अंतिः सुधकुं सुखकारी, गाथा-३. ४. पे. नाम सुकलकृष्णपखि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण ब्रह्मचर्य पद, मु. राज, मा.गु., पद्य, आदिः याली धनओ पीउ धनउ, अंति: नखसिख परिवारं डारी, गाथा ३. ३१७६७. (+) सज्झाय व बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४.५X१०.५, १५X३२). १. पे. नाम. काया सिझाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- इंद्रिय लोलुपता, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: पामी श्रीजिनवर तणो अंति: लब्धि० भजो भगवंत, गाथा - १५. २. पे. नाम. बारमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयक्षमासूरि बारमासो, मु. जसवंतसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: विजयक्षमासूरिसर, अंतिः होजो सुखनो साज, गाथा - १४. ३१७६८. दशपचखाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२४.५X११.५, १९४३८-३९). ३१७६९. छकाय सज्झाय, संपूर्ण वि. १८४४ मध्यम, पृ. १, जैदे. (२३.५x११.५, १५४३७). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि सिद्धारथ नंदन नमुं अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल -३, गाथा- ३३. ६ काय सज्झाय, मु. दयारत्न, मा.गु., पद्य, आदि: हूया हुसि आज छे जी; अंति: जे घर अजरामर सुख होइ, गाथा - २४. ३१७७१. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २४४११.५, १८x३१). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरसति आपजो मुज, अंति: (-), (पू.वि. ढाल -३ गाथा-७ तक है.) ३१७७२. चउरासी आशातनाविचार गाथा सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे (२५४११, ५४२४). जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं १ केली २ कलि ३; अंति: वज्जे जिणिदालये, गाथा- ४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्लेष्मा अंटोलादि; अंति: जीवे मोक्ष वांछतई. ३१७७३. तेवीसपदवी स्तवन व ध्यानभेदविचार पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४४११.५, २७२२). काव्य / दुहा/कवित्त / ३१७७५, नेमराजुल पद, संपूर्ण, वि. १. पे. नाम. तेवीसपदवी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २३ पदवी स्तवन, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि पदवी तेवीस जु प्रगट, अंतिः प्रधासुं ग्रह्मो, गाथा - १५. २. पे नाम, ध्यानभेदविचार पद, पृ. १आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: मन परिणामसु ध्यान, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ८ गाथा तक लिखी है.) ३१७७४. साधारणजिन विनती स्तवन व कवित, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २ अन्य सा सीता, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२४X१०.५, ११X३८). १. पे. नाम. साधारणजिन विनती स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. भूधर, मा.गु, पद्य, आदि: त्रिभुवनगुरु स्वामी; अंति: निर्भय कीजीए जी, गाथा- १८. २. पे. नाम. कवित व दुहो, पृ. १आ, संपूर्ण. *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. २०वी, मध्यम, पृ. १. दे. (२४.५x११.५, ९४३२). " For Private And Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १९१ नेमराजिमती पद, हरिबल, मा.गु., पद्य, आदि: नवभव केरी प्रीत सहि; अंति: हरिबल० बदिखाना छोडी, गाथा-९. ३१७७७. इर्यापिथिकी कुलं सह टबार्थव मिच्छामिदुक्कडं भेद, संपूर्ण, वि. १७९४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. संखेसरनगर, पठ. ग. भाणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ४४३४-३६). १.पे. नाम. इरीयावही कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: पणमिअ सिरिवीरजिणं; अंति: खमामिरे जीव नितंमि, गाथा-१२. इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पणमि क० प्रणमी करीनइ; अंति: रे जीवो नित्यप्रतइं. २. पे. नाम. इरिया मिच्छामिदक्कडं, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. ईर्यापथिकी मिच्छामिदुक्कडं भेद, मा.गु., गद्य, आदि: अढारसलाखई चउवीससहसइ; अंति: अनु० १८२४२० साखि. ३१७७८. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जयसागर; अन्य. मु. अनोप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४५). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ३१७७९. इग्यारसरी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०, ९४३५). एकादशीतिथि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: अविचललीला लेसी, गाथा-७. ३१७८०. सिद्धचक्र स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२४४१०.५, १५४४०-४४). १. पे. नाम. सिधचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो; अंति: दानविजय जयकार रे. गाथा-२३. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, प्र. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वखाण्यौ; अंति: कांतिसा० सुख पाया रे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदमहिमासार सांभलज; अंति: नवपद महिमा जाणीयौ, गाथा-५. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो कहै; अंति: जपे हो बहु सुख पाया, गाथा-५. ३१७८१. (+) खरतरगच्छीय पट्टावलि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४९.५, १३४३५-३७). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: श्रीगौतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१२. ३१७८२. साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, ११४१८). साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: तुसे देवी अंबाई, गाथा-४. ३१७८३. अग्यारस को स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८८, पौष कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. हरखचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४३१). एकादशीतिथि स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन प्रभुरे; अंति: सेवे ते शिवसुख लहे, गाथा-३१, (वि. कहीं-कहीं एक-एक गाथा को दो-दो गाथाओं में विभाजित करने से परिमाण ३१ गाथा है.) ३१७८४. जिनवंदनविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४११, १३४३१). जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीसे करूं; अंति: कीर्तिविमल शुभ भाव, गाथा-११. ३१७८५. गोडीपार्श्वनाथजी तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२४१०.५, ३९४२३). For Private And Personal use only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: वदन अनोपम चंदलो गोडि; अंतिः सेव करतां सुख लहे, गाथा ४१. ३१७८६. दसेश्रावक गीत, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२२.५४११, ११४३६) " १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमुं दसे; अंति: कहइ मुनि श्रीसार रे, गाथा - १४. ३१७८७. खरतरगच्छनी सामाचारी, संपूर्ण वि. १६९२ मध्यम पू. १, प्र. मु. रत्नकीर्ति पठ. मु. गुणवर्द्धन (गुरु मु. रत्नकीर्ति), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४९.५, ११x२८). खरतरगच्छीय सामाचारी, मा.गु., गद्य, आदि: तिथि २ थाइ तिवारइ, अंति: सिद्धांतनी शाखे सही. ३१७८८. विजयदेवसूरीश्वर निर्वाण सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२४४११, ११४४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयदेवसूरिनिर्वाण सज्झाय, ग. दर्शनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवति भारती रे, अंतिः दर्शनविजय० सुरतरो गाथा- ३१. ३१७८९. (+) विजयदेवसूरि निर्वाण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२४.५x११.५, १३X३९-४०). विजयदेवसूरि निर्वाण स्वाध्याय, मु. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो पास जिणेसर पाय; अंतिः सेवक प्रेमचंद जगीस ए, ढाल - ४, गाथा - ३७. ३१७९०. सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X११, १८४५१). १. पे. नाम. स्थूलभद्रकोस्या नवरस, पृ. १अ २आ, संपूर्ण स्थूलभद्रमुनि नवरसो, वा उदयरत्न, मा.गु., पद्य वि. १७५९, आदिः सुखसंपत्ति दायक सदा, अंति: मनोरथ सवि फल्या रे, ढाल - ९. २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जीतसागर, मा.गु., पद्य, आदि प्रेम छे जी प्रेम के अंतिः जीतसागर० लेम छे राजि, गाथा ८. ३१७९१. बारव्रतनी टीप, संपूर्ण, वि. १७५१, फाल्गुन शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. ग. लाभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२२x१०, १६x४३). १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आविः प्रथम समकितनो विचार, अंतिः मध्ये वार १ वांचवी. ३१७९३. पच्चक्खाण संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २२x११, १२x२३). पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: गारेणं वोसिरामि. ३१७९४. साधारण खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे (२३४१२, १३४२८). औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: मनि धरज्यो चोल, गाथा - १६. ३१७९६. () झांझरियामुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२२.५x११.५, १६x२८-३२)झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसती चर्ण सीस नमाउं; अंति: पभणे सांभलता आनंद के, ढाल ४. ३१७९७. नवपदमहिमा सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (२२.५x११, १३३९). नवपदमहिमा स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इण परि भवियण नवपद, अंति: कहै० नवपदनो आधार रे, गाथा - १५. ३१७९८. स्तोत्र संग्रह व त्रिभुवनस्वामिनी विद्या, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२३४१०.५, ११४३१)१. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्यसत; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक- ९. २. पे. नाम, पार्श्वनाथमंत्राक्षर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: अमरतरु कामधेनु चिंता, अंति: कुणइसु पहु सुपास, गाथा-३. ३. पे. नाम. त्रिभुवन स्वामिनी विद्या, पृ. १आ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ३१७९९. ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२२.५x११, ९२६). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी तप तमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेदरे, गाथा-५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१८००. राजिमतीसती इकवीसी व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२३४१०, १५x५०). १. पे. नाम. संबोधसत्तरि, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन गाथा, प्रा., पच, आदि (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा- २ अपूर्ण तक लिखी हुई है.) ', श्लोक-४४. २. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूर्व मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. ३१८०२. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२३.५X१०.५, १५X३१). १. पे. नाम. नागला री ढाल, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. २. पे. नाम. राजिमतीसती इकवीसी, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. . चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: सासननायक सुमरिय; अंति: हो पीपार गाम मझार, गाथा-२१. ३१८०१. पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३५, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. ग. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३x११, १२x२९-३१). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर श्रीपार्श्व स्तवन, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अति: मोक्षं प्रपद्यंते, १९३ जंबूस्वामीपंचभव सज्झाव, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि सारद प्रणमु हो के अंतिः हो के मुनिवर रामजी, गाथा-३३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: मुनिले रसासाद करी, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ३१८०४. नेमी स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे. (२२x१२, १२x२१). " राजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी रे वीनवूं, अंति: भणे मेहले मुगत मझार, गाथा- २३. ३१८०६. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १९, जैदे., (२२.५x१०, १२x४२). १. पे. नाम. सवैया व सुभाषित संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., पद्म, आदि (-); अंति: (-). काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य, २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. ३१८०५. सिद्धाचलजी स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, जैदे. (२३४११.५, ९४२८). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं, पद्य, आदि: सुण सुण शत्रुंजयगिरि, अंतिः श्रीजिनभक्तिसुरंदा, गावा- ११. , २. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- नव्वाणुयात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण, अंति: सिद्धाचल गुण गाईये, गाथा-१५. पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहिं., पद्य, आदि: नीकी मूरति पास जिणंद, अंति: सेवा दाता परमानंद की, गाथा-५, (वि. दो-दो गाथा को एक गाथा गिनने से प्रत में तीन गाथा ही है.) For Private And Personal Use Only ३. पे. नाम आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, पुहिं, पद्य, आदि: अईयो अइयो नाटक नाचें, अति: एही मेवा मांगेलो, गाथा-५. ४. पे. नाम, फलवर्द्धिपार्श्वनाथ पद, पृ. २अ संपूर्ण. Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन पद-फलवर्द्धिमंडन, पुहिं., पद्य, आदि: सुरत पारसनाथ की सब; अंति: ताहरी वंछित फल पावे, गाथा-३. ५.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मे परदेसी दूरका दरसन; अंति: कहे० निरंजन गुण गाया, गाथा-४. ६.पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मत जाओ रे पीया तुम; अंति: मगन भये संजम भार में, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक सही नहीं लिखा है.) ७. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चित चाहत सेवा चरण; अंति: भीत मिटावो मरन की, गाथा-७, (वि. दो-दो गाथा को एक गाथा गिनने से प्रत में ४ गाथा लिखी हुई है.) ८.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण.. पुहि., पद्य, आदि: नाभिजी को नंद; अंति: आंखे अवदातोरे, गाथा-३. ९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: जागीयै नृप नाभिनंदन; अंति: मंगलतूर खेम जेतवारे, गाथा-५, (वि. दो-दो गाथा को एक गाथा गिनने से प्रत में ३ गाथा गिनी गई है.) १०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, टोडर, पुहिं., पद्य, आदि: उठ तेरो मुख देखु; अंति: ध्यान धरत जागो वंदा, गाथा-५. ११. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, बाल, मा.गु., पद्य, आदि: परमेसरजी मरुदेवीनंदन; अंति: बाल० ज्युं सुख पावो, गाथा-५. १२. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष-शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: कुसल करण गुरु कुसल, अंति: प्रतिदिन शुभ वरतेरा, गाथा-४. १३. पे. नाम. जिनकुशलसूरीसर गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दादो परतिख देवता; अंति: सारेज्यो सगला काज, गाथा-५. १४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीगणधर जिनकुशलसूरि; अंति: बेर बेर बलिहारी, गाथा-३. १५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कुशल गुरु अब मोहि; अंति: अपनो कर जाणीजै, गाथा-३. १६. पे. नाम. ऋषभ पद, पृ. ३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पालिताणा. आदिजिन पद, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर जिनराय; अंति: आगे या विनती करे जी, गाथा-५. १७. पे. नाम. जिनहर्षसूरजीरीगुहली, पृ. ४अ, संपूर्ण. जिनहर्षसूरि पद, मा.गु., पद्य, आदि: पूजी जे दीये छे देशन; अंति: चरणकमल चित लाय, गाथा-५. १८. पे. नाम. चोवीसैजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, ग. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथपति त्रिभुवन सुख; अंति: शुद्ध अनुभव मानीये, गाथा-३. १९. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-भुजनगर, आ. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: हारे हुं तो गइती; अंति: जिनलाभसुरींद० वाणजो, गाथा-५. ३१८०७. (+) माहावीरजी रोस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४११.५, १०४२६). महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभ, पुहि., पद्य, आदि: श्रीमहावीर जिनेसर; अंति: बांहे ग्रहनी लाज रे, गाथा-११. For Private And Personal use only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१८०८. अर्हन्नामसहस्त्रसमुच्चय स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२३.५४१०, १३४३७). अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश ४ श्लोक-७ अपूर्ण से प्रकाश-६ तक है.) ३१८०९. सिद्धदंडिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, ११४२७-३२). सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: पद्मविजय जिनराया रे, ढाल-५, गाथा-३८. ३१८१०. मानतुंगमानवती चौपड़, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१०.५, १५४४५-५२). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद चरणांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल की गाथा-७ अपूर्ण तक हैं.) ३१८११. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. रूपा; मु. आणंदा; प्रले. मु. रिद्धिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०, ११४३७). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ३१८१२. वर्तमानचोवीसजिन नगरी, माता, पितादिविचार कोष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२२.५४१०.५, १८४५१). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३१८१३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १८४३४). १.पे. नाम. निश्चयव्यवहार स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर रे देशना; अंति: वीतराग एणि परे कहे, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक द्वारा दो-दो गाथाओँ को एक गाथा गिनने से प्रत में ८ गाथा लिखी गई है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, आदि: हुसीडा भाई प्राणीडा; अंति: साधुहस० लाभे भाई रे, गाथा-६. ३१८१४. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, १२४२९). पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वारि हुं वामानंदा; अंति: सुहाया रामे रंगथी, गाथा-११. ३१८१५. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, प्रतिलेखना कालमान व द्वादशराश्यंश श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१०.५, ९४३८). १. पे. नाम. प्रतिलेखनादि कालमान, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनादि कालमान यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. द्वादशराश्यंश श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा-५ प्रारंभ तक लिखी है.) ३१८१६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०, १३४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. भोजसागर, पुहिं., पद्य, आदि: धवल धिंग प्रभु परता; अंति: भोजसाग० ध्यानै धरियो, गाथा-७. २. पे. नाम. सधचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमासार सांभलज; अंति: नवपद महिमा जाणीयै, गाथा-५. ३१८१७. नववाडि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८५२, चैत्र कृष्ण, ३०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बर्हानपुर, प्रले. मु. लखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचंद्रप्रभुप्रसादात्., जैदे., (२३.५४११, १२४२७-३२). ९ वाड सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: जाउं तेहने भामणे, ढाल-१०. ३१८१८. रूपीस्त्री सज्झाय व नेमराजुल गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४४६). १.पे. नाम. रूपीस्त्री सज्झाय-कर्मविपाकविषये, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: करमतणी गति एम कहुं; अंति: राम० लहइ मानवी रे लो, गाथा-९. २.पे. नाम. राजुल गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अवल गोखने अवल झरोखा; अंति: सेवक देव कहै हितकारी, गाथा-७. ३१८१९. स्तवनचोवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२३.५४११.५, ११४२८). स्तवनचौबीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अरजिन स्तवन अंतिम गाथा से नमिजिन स्तवन प्रारंभ तक है.) ३१८२०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०, १६४४०-४८). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र की सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदि प्रणमी प्रेमस्य; अंति: विनयविजय गुण गाय रे, गाथा-२१. २. पे. नाम. बलदेवऋषि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. बलदेवसाधु सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगियागिरि शिखर; अंति: सकल मुनि सुख देइ रे, गाथा-८. ३१८२२. (+) मेवाडदेश वर्णन, कवित्त संग्रह, स्तवन व चक्रवर्ति नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४११.५, १७४४३). १.पे. नाम. मेवाड को वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मेवाडदेश वर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., पद्य, वि. १८१४, आदि: मन धर माता भारथी कवि; अंति: सो रहेज्यो चिर नंद, गाथा-१२. २.पे. नाम. कवित-दहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-६. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जयो जगनायक जग गुरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ४. पे. नाम. चक्रवर्तिनाम, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१८२३. पाक्षिक क्षामणक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. प्रतापविजय; पठ. मु. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११,११४४२). पाक्षिकखामणा, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: नित्थारग पारगाहोह, आलाप-४. ३१८२४. माणिभद्रजी को छंद, संपूर्ण, वि. १८३१, माघ कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२२.५४११, १३४४४-४७). माणिभद्रवीर छंद, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति सेवित शुभ; अंति: माणिभद्र जयजय करण, गाथा-२१. ३१८२६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११.५, १८४३९). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ग. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणंदा परमाणंदा; अंति: वनीतविजय गुण गाया जी, गाथा-५. २.पे. नाम. जिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कांई रिसाणो हो नेम; अंति: जिनहर्ष० मुगति पोहति, गाथा-३. ३१८२७. पद व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४१०.५, १०४२९-३४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनप्रतिमासु नेह, __गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. क. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मानव रो भव पामीयो; अंति: लेज्यो चतुर सुजाण, ढाल-२, गाथा-९. ३. पे. नाम. अरणिकमुनि सीझाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधोजी, गाथा-१४. ३१८२८. माणिभद्र अष्टक व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७८९, कार्तिक शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कृष्णगढनगर, प्रले.पं. अजबसागर (गुरु ग. अनोपसागर); गुपि.ग. अनोपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११, १८x२३). १.पे. नाम. माणिभद्राष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर अष्टक, सं., पद्य, आदि: स्वस्त्यद्रराजप्रण; अंति: तपागच्छसहायकारी, श्लोक-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनस्तुत्यादि संग्रह*, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३१८२९. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२२.५४११, ९४२८-३०). पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भविका श्रीजिनबिंब; अंति: श्रीजिनचंद सवाइरे, गाथा-११, संपूर्ण. ३१८३२. ज्ञानपंचमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१०.५, ९४३२). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कारतकसुद पंचमी तप की; अंति: जसविजय अधिक विराजे, गाथा-४. ३१८३३. पद्मावतीपूजा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२२४१०, ९४३५). पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथजिननाय; अंति: पूजयामीष्टसिद्ध्यै, श्लोक-११. ३१८३४. चिंतामणिपार्श्वनाथनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२३४१०.५-११.५, १०४३०-३२). पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, चेतन, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: कल्पवेल चिंतामणि; अंति: समरो मन वच काय, ढाल-२, गाथा-२६. ३१८३५. कमलावती की ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२२.५४१०.५, १३४२७-२९). कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं., पद्य, आदि: मेहला में बेठी रानी; अंति: मिच्छामिदुकडो होय, गाथा-२९, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ से २१ तक नहीं लिखी हुई है., वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १अपर गाथा-६ तक लिखकर पत्रांक १आ पर गाथा-२१ के अंतिम भाग से लिखना प्रारंभ किया है.) ३१८३६. नेमराजुल गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४१०,७४२४). नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: विनवे छे राजुल नार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखी हुई है.) For Private And Personal use only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१८३७. गोडीपार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५९, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. मु. रविविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में 'सं. १७९९ वर्षे मीती आसोज बदि६ दिने भणवानै पानो दियो' इस प्रकार लिखा हुआ है., जैदे., (२१.५४८.५, ११४२९). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहिं., पद्य, आदि: सुजस तुमारो हो श्रवण; अंति: जगरूप० फली मोरी आस, गाथा-७. ३१८३८. सारदाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२२४११, १०x२८). शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल नमो केवल; अंति: परमसुख तज संसार कलेश, गाथा-१०. ३१८३९. साधु श्रावक प्रतिमा विचार, संपूर्ण, वि. १९२३, पौष शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पंचपाड, प्रले. हरखचंद; पठ. हुकमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४११, ९४३२-३५). १. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रमणोपासक कहतां साध; अंति: गच्छ० वृत्तिथी जाणवी. २. पे. नाम. साधु १२ प्रतिमा विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहिली प्रतिमा एक मास; अंति: पडिमा साधुनी जाणवी. ३१८४०. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४३४-४१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३१८४१. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८३९, पौष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. जयपुर, जैदे., (२१४११.५, १२-१३४२५-२७). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आयंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम, श्लोक-९७. ३१८४२. श्रीपाल रास - चतुर्थ खंडे बारहवीं ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४१०.५-११.५, १५४२६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र चतुर्थ खंड की बारहवीं ढाल है.) ३१८४३. इरियावही स्तवन व ज्योतिष दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०.५, १६४५३). १.पे. नाम. इरियावही स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इरियावही मिच्छामिदुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: पद पंकज रे प्रणमी; अंति: इम संथव्यो भावइ करी, ढाल-४, गाथा-१५. २. पे. नाम. गतव्यक्ति के आगमन विषय में परप्रश्न उत्तर दोहे, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (वि. गाथा-३.) ३१८४४. गयसुकमालनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१.५४१०.५, १६४३७). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देस मझार दुवारक; अंति: समरू ए मनराजीयो जी, गाथा-३६. ३१८४५. धनाजी की सज्या, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४१२, २०४३०). धन्नाऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुभद्रा कहे धन्ना; अंति: सुण मोरी अरदास, गाथा-३१. ३१८४६. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. धना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११, ११४२२). सीमंधरजिन स्तवन, मु. दोलतहंस, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरजिन सांभलो सेव; अंति: तु खिण खिण आवै चित्त, गाथा-१०. ३१८४७. स्तवन संग्रह व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२०.५४११.५, ३४४२२). १.पे. नाम. नेमराजुल धमाल गीत स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती धमाल, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: खेलइ नेम कन्हीआरंग; अंति: मूगति स्यौ प्यार, गाथा-१५. २.पे. नाम. आदिसर गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर अरिहंत रे जग; अंति: ताहरा तेज स्युरे, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब गोडी पास रे मन; अंति: दीजई देव दया करी रे, गाथा-८. ४.पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, संपूर्ण. वर्णमाला*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्वर संपूर्ण, व्यंजन में द पर्यन्त ३१८४८. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२१.५४१०.५, १२४३४-३९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३१८४९. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ.सा. केशरीश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५, १३४४४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सा. रामश्री शिष्या, मा.गु., पद्य, आदि: सहु मिलि आवो हे सहीय; अंति: नंदन अधिक विराजै जी, गाथा-१०. २.पे. नाम. मुंहपत्ती स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. मुहपत्ति ५० बोल सज्झाय, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसहगुरु वंदी आणंद; अंति: अरिहंत पुरै आस, गाथा-८. ३१८५०. शांतिजिन स्तवन, पत्र व औषध श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२०.५४११.५, १८x१८). १. पे. नाम. शांतिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. सुजशविलास, मा.गु., पद्य, आदि: अचिरानंदन उलग मानो; अंति: तो सुजसविलास ते लीजे, गाथा-७. २.पे. नाम. हमराजजी द्वारा लिखा गया पत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हमराज, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. औषध श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह **, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. श्लोक-१.) ३१८५१. वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५४१०.५, १०४२४). वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपूज्यजिन बार; अंति: इम जीत वदे नितमेवरे, गाथा-५. ३१८५२. (+) श्रीथूलिभद्रकोसासंवाद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. अगस्तपूर, प्रले. मु. रामचंद्र (गुरु पंन्या. मेघजी); गुपि.पंन्या. मेघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१४१०.५, १४४३८). १. पे. नाम. श्रीथूलिभद्रकोसासंवाद सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनिकोशावेश्या सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: गोयम गणहर पाय प्रणमी; अंति: ___ गायु सरलि हो साद, गाथा-२९. २. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझने रे मात; अंति: पइ परमसुख मइ मागिओ, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने दो-दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) ३१८५३. (#) धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११.५, २७४१८-२१). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन स्वामी अंतरज; अंति: विनयचंद गुण गाया, गाथा-१३. For Private And Personal use only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१८५४. (+) आबूगिरि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वडगाम, प्रले. पं. उत्तमविजय; पठ. श्रावि. इच्छा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२२४१०.५, १२४३२). अर्बुदगिरितीर्थस्तवन, पं. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि: अरबुदगिरि अंतरजामी; अंति: उत्तम शिववरने रे, गाथा-१९. ३१८५५. घीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२१४१०.५, ११४२७). घीसज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण भाव धरी घणो; अंति: घीना गुण कह्या, गाथा-१९. ३१८५६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१४११.५, १५४४३). १. पे. नाम. शेजयमंडनआदिश्वरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर जिनदेव सुरनर; अंति: सेव॒जागिरनी सेव, गाथा-१९. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, प्र. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साहिब; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. ३१८५७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (४१४११, ५०-६०४१६-२७). १.पे. नाम. श्रावकशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण प्रणमी; अंति: धर्म थकी लहीइ सीवसीध, गाथा-२७. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यजिणेसर; अंति: संघ सयल सुखदाय रे, ढाल-५. ३१८५८. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२१.५४११.५, १६४३०-३१). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जडाव, मा.गु., पद्य, वि. १९५२, आदि: रहो रहो रे जगतसं; अंति: चेत मास उजियाला, गाथा-९. २. पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवहितशिक्षा, मु. जडाव, मा.गु., पद्य, वि. १९५८, आदि: मत जाणो हां रे मती; अंति: __ हितसीखामण है मेरी, गाथा-१०. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जडाव, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतो रे दस बोल; अंति: सिवरमणी न्यारी रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जडाव, मा.गु., पद्य, वि. १९६७, आदि: जोव जी जगत का तनक; अंति: मोए आवता हासा हे, गाथा-७. ३१८५९. सझाय, स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२०.५४११, ११४२५). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: देखोरि जिनंदा प्यारा; अंति: मेरो आनंदघन उपगार, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जग उपगारी रे साहिब; अंति: लळी लळी लागु हो पाय, गाथा-५. ३. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, आदि: सवारथ सीधथी चव्या ए; अंति: नयधरी नेह निहालतो, गाथा-४. ३१८६०. (+) अट्ठावीस लब्धि स्तवन व विहरमानजिन मातापितालंछननाम, संपूर्ण, वि. १७९४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०.५४१२, १२-१३४३३). For Private And Personal use only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २०१ १. पे. नाम. अट्ठावीसलब्धि स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुंप्रथम जिनेसर; अंति: प्रगट ___ ग्यान प्रकाश, ढाल-३, गाथा-२५. २. पे. नाम. वीसविहरमानजिन मातापितालंछननामानि, पृ. २आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन मातापितादिविगत यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१८६१. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२०४११, १८४४२). १. पे. नाम. कुंथुनाथजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनडुं किम हि न बाझे अंति: साचुं करी जाणुं हो, गाथा-९. २.पे. नाम. प्रथम सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. हिंसा पापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानिक पहिलूं; अंति: हिंसा नाम बलायरे, गाथा-६. ३. पे. नाम. एलापुत्ररी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. इलाचीपुत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ३१८६२. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, ले.स्थल. ध्रांगद्रादुर्ग, प्रले. मु. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११, २६४२७). १.पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: सुविधि जिणेसर साहिबा; अंति: सुमतिवधुनो साथ, गाथा-७. २. पे. नाम. संखेश्वरप्रभौ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: थे छो म्हाहरा ठाकुरा; अंति: आज० पायो सुख साजजी, गाथा-५. ३. पे. नाम. सामलियापार्श्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८१४, आश्विन शुक्ल, १४. पार्श्वजिन स्तवन-शामळीया, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वढवाणरी आज वार मारे; अंति: पामी मुगति पसाय हो, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, पुहि., पद्य, आदि: अखियां हरखन लागी; अंति: भव भय भावठ भागी, गाथा-६. ५. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. हीरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अजब ज्योति मेरे जिन; अंति: आशा पूरो मेरे मनकी, गाथा-३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८१४, चैत्र शुक्ल, ७. ___ मा.गु., पद्य, आदि: पारसनाथ आधार प्रभु; अंति: सेवकनी रेकरो सार, गाथा-३. ३१८६३. अणगाराध्ययन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. गाथा-५., जैदे., (१८.५४१०.५, १५४१७). अणगार सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै भविकने पालो; अंति: दिसै उदयविजय उवझायरा, गाथा-५. ३१८६४. नेमिजिन व समेतसिखर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११, ११४३०). १.पे. नाम. नेमिजन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: काइ हठ मांड्यो छे; अंति: कहे० लीधो संजम भार, गाथा-८. २. पे. नाम. समेतसिखर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: तो नमोनमो समेतशिखर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने मात्र प्रथम गाथा ही लिखी है.) ३१८६५. पार्श्विजन स्तोत्र व शब्दसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९.५४१०.५, १५४४२). For Private And Personal use only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. मध्याक्षरेण पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अकल अजर प्रभु एण कलै; अंति: तवन जिनहरखै कीयौ, ढाल-३. २. पे. नाम. शब्द संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. शब्द संग्रह , मा.गु.,सं.,हिं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३१८६६. ब्रह्मचर्यसम्यक्त्वादि व्रतोच्चारविधि, संपूर्ण, वि. १९१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. नगविजय; पठ.पं. चुनीविजय गणि (गुरु पं. नगविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११, २३-२७४४७-५२). सम्यक्त्वब्रह्मचर्यादि व्रतोच्चार विधि, सं., गद्य, आदि: महोत्सवपूर्वक; अंति: विधि विस्तारे छे. ३१८६७. देववंदन व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पं. नगविजय; पठ. पं. चुनीविजय गणि (गुरु पं. नगविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०.५, २३४४८). १. पे. नाम. चैत्रीपूनम देववंदनविधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रतिमा ४ माडी; अंति: विस्तारपणि जाणिवो. २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१८६८. स्तवन, पद व दूहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (३८.५४११, ४४४२३). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर प्रणमु; अंति: गावे श्रीदयासागरसूर, गाथा-१९. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन प्रभाति, आ. हीरसूरि , मा.गु., पद्य, आदि: अजब ज्योत मेरे जिनकी; अंति: आशा पूरो मेरे मनकी, गाथा-३. ४. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: देखो माई आज ऋषभ घरि; अंति: साधुकीरति गुण गावे, गाथा-३. ३१८६९. वीसविहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५४१०.५, १८x२७). विहरमान २० जिन स्तवन, ऋ. लीबो, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला स्वामी सीमंधर; अंति: अविचल पदवी ए मांगु, ___ गाथा-१८, (वि. गाथा क्रमांक नहीं दिया हुआ है.) ३१८७०. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (१६.५४१२, २०४१६-२०). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनपद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: एसें जिन चरणे चित्त; अंति: आनंदघन पद पावरे, गाथा-३. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिया जानै मेरी सफल; अंति: नर मोह्यो माया ककरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. जिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: हम आए है जिनराज; अंति: सहाय जैसै नंदनकुं, गाथा-२. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधुं क्या सोवै तन; अंति: नाथ निरंजन पावै, गाथा-४. ५.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधूनाम हमारा राखे; अंति: सेवकजन बलि जाहीं, गाथा-४. ३१८७१. महावीरना चोढालीया, संपूर्ण, वि. १९००, ?, चैत्र कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११, १४-१६x२८-३१). For Private And Personal use only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org ३१८७३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२९, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२०×१०, ९×२६-२९). १. पे नाम, अनंतकाय स्वाध्याय, पृ. ९अ २अ संपूर्ण वि. १९२९, ज्येष्ठ कृष्ण, १. महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुलमां रे; अंति: कयो दीवाली दीन, ढाल - ४. अनंतकाच सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि अनंतकावना दोष अनंता, अंतिः भावसागर आनंदा रे, गाथा - १२. २. पे नाम, त्रयोदशकाठिया सिझाय, पृ. २अ-३अ. संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीगीतम गण; अंतिः सूरीस्वर सीसे कही, गाथा - १५. ३. पे नाम, सर्वार्थसिद्धविमान स्वाध्याय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि जगदानंदन गुणनीलो रे, अंति: पुन्य थकी फले आसोरे, गाथा - १६. ३१८७५. वीर स्तुतिनाम षष्टमध्ययन, संपूर्ण वि. १८४९ आषाद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १ ले स्थल. दुंदडा, प्रले. मु. जीतमल (गुरु आ . तुलसीराम); गुपि. आ. तुलसीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९x११.५, १९x४४). महावीरजिन स्तुति हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पद्य, आदिः पुच्छिस्सणं समणा, अंतिः आगमिस्संति तिबेमि गाथा - २९. ३१८७६. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (१९x११.५, २०४३०). יי , महावीर जिन विनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: यो तिलो, गाथा - १९. ३१८७८. (+) नवतत्त्व स्तुति, संपूर्ण वि. १९२८, ज्येष्ठ शुक्ल ५, मध्यम, पू. १, प्रले. श्राव. उगरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०X११, ११x२८). वस्तुति, मु. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि जीवा रे जीवा पुन्य; अंति: गुण चित धरज्योजी, गाथा-४. ३१८७९. शीलव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१९x११, १३x२९). शीयल सज्झाय, मु. चोधमल, मा.गु., पद्म, आदि; सीलव्रत सुध पालजो रे, अंतिः सगलोने एम कहे, गाथा- १५. ३१८८०. पार्श्वनाथनी लावणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (१९४११.५, १२४२८). पार्श्वजिन लावणी, मा.गु., पद्य, आदि: जगत भविक कज महेर, अंति: नव नव छंदे नाचंदा, गाथा-९. ३१८८२. गीत, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२०.५X११, २४X१६). १. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा-७. ४. पे नाम, औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, मु. हेमचंद, म., मा.गु., पद्य, आदि बोले राजीमति भामनी अंति: नेमराजुल गोष्टी केलि, गाथा ५. २. पे नाम, साधारणजिन पद, प्र. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). मु. रुपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मनभावन जिन तन मन अंतिः मुजरा हमारा लो रे, गाथा- ३. ३. पे नाम, समोवसरण स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. समवसरण स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आज गइती हुं समोवसरण; अंति: जीतना डंका वाजे रे, ३१८८३. धन्नाजी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१९.५x१५.५, ७X२२). २०३ गाथा - १७. ३१८८४. प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२०x११.५, २७४२२). " धन्नाकाकदी सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु, पद्य, आदिः काकंदी वासी सकज भद्र, अंतिः जोग सहेजो रे माई, For Private And Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने प्रश्न क्रमांक- ९ से प्रारंभ किया है.) " ३१८८५. (-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. लबजांणानगर, प्रले. गुलाबो, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जै. (२०.५x११, १६x२५). औपदेशिक पद, पु,ि पद्य, आदिः साधु सुपात्र बढे, अंति: वोसी असी मोज पाउंगा, गाथा ९. ३१८८६. नंदिषेणरिषी सझाब व पंचक विचार, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) -१, कुल पे. २, जैवे. (१४४११.५, १५x२०). १. पे. नाम, नंदिषेणरी सझाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. नंदिषेणमुनि सज्झाय, क. श्रुतरंग, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवि श्रुतरंग विनवै, गाथा-६, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक नहीं है., वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा के रूप में गिना है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम, पंचक विचार, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्योतिष संग्रह *, मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ३१८८७. स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे, ५, जैदे. (१६४१०, १३-१६४१९-२८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख, अंति: विण्णव अणिदिय, गाथा-३०. २. पे. नाम. परमेष्ठिमंत्र स्तवन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः परमेष्टी नमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक ८. ३. पे. नाम, साधारणजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण, तीर्थराजजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराज पदपद्म, अंतिः वदतां शिवं वः, श्लोक १. ४. पे. नाम वीर स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण, महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं, अंतिः शं नो देवीः देयादंबा, श्लोक-१. ५. पे. नाम. नमस्कार, पृ. ४आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. " ३१८८८. शीतलजिन स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२०x११, १८४१५). १. पे. नाम, शीतलनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, शीतलजिन स्तवन, मु. कल्याणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलनाथ स्वामि; अंति: अरस फरस मिल जाउंगा, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कल्याणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रे आतम मन चेत ले; अंति: आतम० भज सांइ सवारा, गाथा-४. ३. पे. नाम. संभवजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कल्याणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: संभव साहिब जगधणी, अंतिः दिजीये तुम दरसण मेवा, गाथा- ३. ३१८८९. आदीश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. गाथा १६. जै. (१९१०, १४४२८). " आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आदिसर जिनदेव सुरनर, अंतिः सेजागिरी सेव, गाथा १६. ३१८९० पद संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, जैदे. (२०.५X१०.५, ११४२९). "" १. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. १अ संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७वी आदि रे जीव जिनधर्म अंतिः मुक्त तणा फल त्यांह, गाथा- ६. २. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. खूबचंद, मा.गु., पद्य, आदि: भजी श्रीऋषभजिणंद कुं, अति: भजो हिरवे लिवलाई, गाथा ४. ३. पे. नाम. साचलमाता गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ पुहिं.,रा., पद्य, आदि: भजौ श्रीसाचलमात कू; अंति: वीनती० नह रैवै काइ, गाथा-६. ३१८९१. पर्युषणा स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, जैदे., (२०.५४११.५, १३४२६). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जिन पूजा; अंति: पूरवे देवी अंबाइजी, गाथा-४, संपूर्ण. ३१८९२. धनाशालभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१९.५४१०.५, १६x२६). धन्नाशालीभद्र सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणे भव; अंति: भवि भवि तुम्ह सो दास, गाथा-२१. ३१८९४. विवध गाथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२०x१०.५, ९४३५). १.पे. नाम. बतीस लख्यण, पृ. १अ, संपूर्ण. ३२ लक्षण गाथा, सं., पद्य, आदि: प्रमाण१ सुकृतं२ सील; अंति: पुरुषानेति लक्षणं, गाथा-४. २.पे. नाम. चउदसपूर्व नामानि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ पूर्वनाम, प्रा., गद्य, आदि: उपायं च मगोणिय; अंति: ते बिंदुसारंच१४. ३. पे. नाम. अभव्यजीव गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण... प्रा., पद्य, आदि: संगम य१ कालसूरय२; अंति: अभव्वजीवेहिनोपत्तं, गाथा-२. ४. पे. नाम. चवदै नेमगाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ५. पे. नाम. नववाडी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९ वाड नाम-ब्रह्मचर्यविषयक, मा.गु., गद्य, आदि: एक ठामि स्त्रीपुरुष; अंति: (-), (पू.वि. वाडि-८ अपूर्ण तक है.) ३१८९५. रतुवंतीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५४१०.५, १७४१८). ऋतुवंतीनी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिसामीण समरु मात; अंति: सीवलच्छी ते वरे, गाथा-१३. ३१८९६. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१५४१०.५, १५४२२). १.पे. नाम. निश्चयव्यावहार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवररे देशना; अंति: वीतराग इणी परे कहे, गाथा-८, (वि. दो-दो गाथा की एक गाथा गिनने से ८ गाथा लिखी गई है.) २.पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मुणिवर सोध इरजी जीव; अंति: राखो सीयलनी वाल, गाथा-२३. ३. पे. नाम. समकित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कृपासागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचननी रचना घणी; अंति: कहे छांडोरे मदरे, गाथा-१०. ३१८९७. नारकी विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५४१०.५, १४४२०). जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१८९८. अध्यात्म स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५४१०, ९४२५). साधारणजिन स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवजीवन प्रभु मारा; अंति: जगतारण जग जय नेता, गाथा-१०. ३१८९९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१४४११, १६४१५). १.पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ विहरमान २० जिन स्तवन, मु. गुणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान जिन वंदो; अंति: गुण गाया गुणचंदो, गाथा-७. २.पे. नाम. संखेश्वरजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वरजी रे; अंति: साहिब करि सुपसाउ, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उठो रे नाभि दुलारे; अंति: पातिक न्यारे हमारे, गाथा-३. ३१९००. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२-४१(१ से ४१)=१, जैदे., (२१४११, १२४१२). For Private And Personal use only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३१९०१. जिनपाल जिनरक्षित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२२४१०.५, १३४३०). जिनपाल जिनरक्षित सज्झाय, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: जासी मोखरे, ढाल-४. ३१९०३. समगत देवानी विधि, संपूर्ण, वि. १९५७, पौष शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४११, १८४४८). सम्यक्त्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आज पछे तुमारे खोटा; अंति: अप्पाणं वोसिरामी. ३१९०४. खंधकऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२०.५४१०.५, ७X१९-२१). खंधकमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: तिण अवसर मुनिराय; अंति: जिनमारग कीधो उजलौ ए, गाथा-२५. ३१९०५. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२४११,११४३२). पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति अविनाशी काशी; अंति: रुपविजय शिवराज हो, गाथा-६. ३१९०६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१४११,७४२२). १. पे. नाम. मल्लीजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, आदि: तुं सरीखो प्रभु; अंति: वसोतुं निजरमां रे, गाथा-३. २. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रत महाराज; अंति: ज्योति विकासी रे, गाथा-३. ३१९०७. कल्याणमंदर, संपूर्ण, वि. १८४५, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. आलयाग्राम, जैदे., (२१४११.५,१३४२८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३१९०८. तुंबडानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२४११, ११४३०). द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि*, गु., पद्य, आदि: साधुजीने तुंबडु; अंति: जाशे मुक्ति मोझार रे, गाथा-१०. ३१९०९. अनागतचौवीसी स्तवन व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०, १४४३०). १. पे. नाम. आगमिककालिभावीतिर्थंकर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अनागत चौवीसी स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे भविसंति अणागए; अंति: साच करी सरदह्या, गाथा-९. २.पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह *, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३१९१०. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (१८x१२, १७४२४). १.पे. नाम. सील सिज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. शीयल सज्झाय, मु. ज्ञानकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम उठी मनने भाय; अंति: लहियै परमानंद, गाथा-३१. २. पे. नाम. सुमतिकुमति सिज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सुमतिकुमति सज्झाय, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन छांडो या रिति; अंति: सुमति करि पटराणी, गाथा-११. ३१९११. अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८२, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. गागरड, प्रले. मु. रणजितसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५४१०.५,१५४११). अनाथीमुनि सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगध देस राजग्रही; अंति: साधुतणा गुण गाय रे, गाथा-१३. ३१९१२. संबोहसत्तरि, संपूर्ण, वि. १७९१, भाद्रपद शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ४, पठ. मु. फतेहचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१०.५, १३४३५-३८). संबोधसत्तरी, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंतिलोयगुरुं; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-७९. For Private And Personal use only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१९१३. लघुदंडकद्वार श्रीजीवाभिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२२x११, १६x३६). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघेण अंति: चारित्र अनंतशक्ति. ३१९१४. चोपडि की सिझाय, संपूर्ण, वि. १८००, भाद्रपद शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २२x१०.५, १२X३४). चौपटखेल सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम अशुभ मल झाटिके, अंति: इण विधि खेलि रे, गाथा - ९. , ३१९१५. नवकार व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) -१, कुल पे. ३, जैवे. (१६.५x११.५, १६५१३). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण. शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं, अति: पढमं हवह मंगलं, पद- ९. २. पे. नाम. उवसग्गाहर स्तोत्र, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. 3 उपसगंहर स्तोत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्म, आदि; उवसगहरं पासं पासं अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ३. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि वंदे देवाधिदेवं तं अंतिः कल्याण वितनोतु मे (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ३१९१७. वीर ५ जिन स्तुति व द्वितीया स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्रले. मु. इंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. 'पृष्ठ संख्या अंकित नहीं है. जैवे. (२२x१०.५ १२४३४). १. पे. नाम. वीर ५ जिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. कलाकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि कलाकंद पढमं अंतिः अम्ह सवा पसत्था, गाथा-४. २. पे नाम. द्वितीया स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३१९१८. वीरथुइ नामज्झयणं व गाथा संग्रह, संपूर्ण वि. १९३७, १ चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल, पाली, जैदे., (२१X११, १२x३२). १. पे. नाम. वीरथुइ नामज्झयणं, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तुति, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा, अतिः आगमिस्संति तिबेमि, २०७ गाथा - २९. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: पंच महव्वय सुवय मूलं; अंति: संलेहणा पंडितमरणं, गाथा-५. ३१९१९. भीडभंजनपार्श्वनाथजी प्रभाति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे. (२०.५४१०.५, १३४२६). पार्श्वजिन छंद - भीडभंजन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वारु विश्वमा देस; अंति: तो नवे निद्ध पामी, गाथा-२५. ३१९२०. प्रस्ताविकगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५x११.५, १३१८). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - ६. ३१९२१. आतम प्रतिबोध, संपूर्ण वि. १८८७ माघ शुक्ल १०, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, अजवाणा, प्रले. मु. कचरा (गुरु मु. जसराज), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२x११, १२x२७). शीखामण सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल चरण नमीजे चरण; अंति: गरभावास कदे न अवतरे, १७X३६). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा - २५. ३१९२२. पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (१९४९.५, ८४१८). पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारे मन खोल खोल अंतिः रातो चोल चोल चोल, गाथा-३. ३१९२३. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन व सामाकदोष सिझाव, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२१.५x१०.५. For Private And Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: प्रभु श्रीगोडीपासजी; अंति: मान मुनवर सुखकरूं, गाथा-१५. २.पे. नाम. सामाइकदोष सिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक मन सुद्ध; अंति: सामाइक करौ निसदीस, गाथा-५. ३१९२४. सिधचक्रजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४११.५, १३४३३). सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर सेवो हो भविका; अंति: मन वचन कहे सार, गाथा-११. ३१९२५. नवकार, गाथा संग्रह व महावीरजिन कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४११, १८४३८). १.पे. नाम. नवकार मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. नवकार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ+१आ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१०. ३. पे. नाम. वीरजिन कथा-संक्षिप्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन कथा-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१९२६. सुखविपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९७७, फाल्गुन शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जोधपुर, जैदे., (२२४११, १५४४५). सुखविपाक-द्वितीय श्रुतस्कंध विपाकसूत्रगत, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: विसेसं जहा आयारस्स, अध्याय-१०. ३१९२७. तेसट्ठिसलाका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२०.५४११.५, १०x२८-३१). ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., पद्य, आदि: धरम महारथ सारथ सारं; अंति: नमै मुनि वसतौ मुदा, गाथा-१८. ३१९२८. पार्श्वजिन स्तवन व नेमराजीमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१५.५४९.५, ११४३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. सदाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हा रे मोरा पासजी; अति: सीधा सघला काज, गाथा-५. २.पे. नाम. नेमनाथराजीमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नेम कांइ फिर चाल्या; अंति: मिलुं जिनहरख पयंपैजी, गाथा-९. ३१९२९. शेव्रुजगिरि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१.५४१०.५, ११४३३). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी चालो; अंति: ऋद्धिहरष जोडि हाथ हे, गाथा-१२. ३१९३०. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२४११, २४४१९). महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी तुमे तो; अंति: कहे एह वडाई प्यारा, गाथा-१३. ३१९३१. वडीशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२१.५४११.५, ९४३०-३४). बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्या शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ३१९३२. चारआहार सज्झाय व २२ अभक्ष्यादिविचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१४९, १६४५२). १.पे. नाम. च्यारआहार सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ४ आहार सज्झाय, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पयकमल; अंति: वाधइ सुखनी वेलि, ढाल-३. २. पे. नाम. बावीस अभक्ष्यादि विचर, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१९३३. गोडीचाजीनुंस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०४११, १९४३५). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सुरत प्यारी हो; अंति: सफल फली मुज आस, गाथा-९. ३१९३४. (+) मेरुतुंगसूरि कथा, संपूर्ण, वि. १८४५, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वडनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१४११.५, १६४२७). For Private And Personal use only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ कथा संग्रह** प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१९३५. झांझरीयाऋषि सज्झाय व मुनिसुव्रत स्तवन, अपूर्ण, वि. १८२१, आषाढ़ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११, १५४२५). १. पे. नाम. झांझरीयाऋषी सिज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: (-); अंति: सहु वृंदारे, (पू.वि. ढा-४, गाथा-६ से संपूर्ण है.) २. पे. नाम. जीन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: वरसे वरसे वचन सुधा; अंति: सीच्यो समकित छोडि, गाथा-९. ३१९३६. (+) शीलपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८८७, ज्येष्ठ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालि, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२०.५४११, १५४४०). शीलपच्चीसी, मु. कुसालचंद शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: सीलधर्म सारो सिरे इम; अंति: चौखे हौ कीयौ चौमास, गाथा-२५. ३१९३७. (+) पंदरतिथि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२०.५४१०.५, १४४२८). १५ तिथि सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, वि. १९४३, आदि: वीतो पखवारो धरमे करो; अंति: भारते मंगलमाल रे, गाथा-१५. ३१९३८. सोलसती सज्झायसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९०४, ?, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. तीजी (गुरु सा. छोटा सती); गुपि.सा. छोटा सती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०.५, १५४२४-३२). १. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांलि ओढी; अंति: प्रसाद सदा पदमावती, गाथा-१४. २.पे. नाम. सोलसती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतल जीणवर करु परणाम; अंति: सतीयां समरो निसदीस, गाथा-५. ३१९३९. त्रिकालचौवीसी भाष, पार्श्वनाथ स्तवन व ज्योतिष संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९-२७(२ से २८)=२, कुल पे. ३, ले.स्थल. लींच, पठ. मु. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११.५, ३०४२४). १.पे. नाम. अतीतअनागतवर्तमानचौवीसी भाषा, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ अतीतअनागतवर्तमान जिनचौवीसी भाष, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल कारण पणमिउण; अंति: (-). २.पे. नाम. सेरीसापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. पार्श्वजिन स्तवन-शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: (-); अंति: नमो जिन त्रिभुवन धणी, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-७ तक नहीं है., वि. दो-दो गाथा को एक गाथा गिनी गई है.) ३. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. २९आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह *, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३१९४०. (+) नेमिजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६३, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.ग. अजबसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (११.५४१०.५, १३४२०). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. अजबचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नेम पिया की सूरति; अंति: अजब पाइ सुख मैरीरी, गाथा-५. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३१९४१. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२१४१०, १३४२०-३०). औपदेशिक सज्झाय-जीवशीखामण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: उंडोजी अरथ विचारज्यो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२७ तक लिखी हुई है.) For Private And Personal use only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१९४२. जमाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४११, १५४३२). जमाली सज्झाय, मु. चौथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: सासणनायक श्रीविर; अंति: मेडते कीयोजी चोमास, गाथा-११. ३१९४३. स्तुति, गाथा व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१२.५४१०.५, ११x१७. १.पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनस्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भवबीजांकुरजनना; अंति: जिनो वा नमस्तस्मै, गाथा-१. २. पे. नाम. २७ बोल गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: गइ ४ जाइ ५ काय ६; अंति: संजम १७ गुण भंग ४९, गाथा-२. ३. पे. नाम. पंचबीज मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. मंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१९४४. जिनगीतचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५४११.५, १४४३४). जिनगीत चौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमधुकर मोही रह्यो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गीत-३ तक है.) ३१९४५. देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५४११, १३४३४). देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि खमासणो वंदि०; अंति: जैनं जयति शासनं. ३१९४६. स्तवनचोवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (१९.५४१०, १४४४९). स्तवनचौवोसी, ग. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-५, गाथा-५ से स्तवन-९ तक है.) ३१९४८. थिवरावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्राव. गुलाबचंद; अन्य. श्राव. कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८x१०.५, ११-१२४२८-२९). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: केवलनाणंच पंचमं, गाथा-५१. ३१९५१. (#) गौतम रासो-लघ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१x१०.५, ९४२२). गौतमस्वामी गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी नित प्रणमीय; अंति: होज्यो वंदना वारंवार, गाथा-५. ३१९५२. स्तुतिचौवीसी व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, पौष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. खिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११, १८-२०४३०). १.पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. पार्श्वनाथ स्तुति तक लिखी हुई है.) २.पे. नाम. शुक्रउदयास्त विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: लातं बंगाल देसेष: अंति: करे तव चोपाहाण, श्लोक-४. ३१९५४. स्तवन चोवीसी, संपूर्ण, वि. १७७३, चैत्र शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. रयदिरपुर, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८x११.५,१३-२२४३०-४१). स्तवनचौवीसी, मु. मतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: ऋषभ दयालू हो राजी; अंति: मतिविजय लीलावलं, स्तवन-२४. ३१९५५. (+) एकीभाव स्तवन, संपूर्ण, वि. १७००, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. गाथा-२५., प्रले. ग. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१३.५४११, १२-१३४२४-२७). एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: एकीभावं गत इव मया; अंति: वादिराजमनुभव्य सहाय, श्लोक-२६. ३१९५६. (-) पचासबोल थोकडा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१.५४१०.५, १७४२७-२८). ५० बोल थोकडा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २११ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१९५७. रतनकवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४११,१७४६१). रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण आगलारे; अंति: दीपे जिम तंबोल, गाथा-४४. ३१९५८. सिद्धचक्रस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (१९x१०,१३४२५). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. पंन्या. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति:क्ष्मीविजेय सुख पाया, गाथा-४. ३१९५९. लघुशांति व श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४९.५, १६x४५). १.पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनंजयति शासनम्, श्लोक-१९. २. पे. नाम. श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिकगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: जंजं समयं जीवो; अंति: लोभंसों तो सो जिणे, गाथा-४. औपदेशिकगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जेजे समयनें विषइ; अंति: करीने लोभ वस करवो. ३१९६१. नेमराजिमती गीत व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, लिख. पं. राम; अन्य. मु. कपुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११, २१x१८). १.पे. नाम. नेमनाथ राजेमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. दीप ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजैसीवादेवी; अंति: दीपो श्रीसंघने जयकार, गाथा-१०. २. पे. नाम. सवैयादुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अक्षर अशुद्ध होने से आदि-अंतिम बाक्य नहीं भरा गया है। सवैया संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३१९६३. छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१७.५४११.५, १८x१७). १.पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमृतरत्न, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८५९, आदि: जयजय श्रीजगदीश्वर जय; अंति: रचितं बहु हर्षे, गाथा-९. २. पे. नाम. शनैश्वर छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जगिजयो रवि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखी हुई है.) ३१९६४. नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१४११, १५४३९). नेमिजिन स्तवन, मु. धनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति पद पंकज थकी; अंति: धनविजय शिवसुख करो, गाथा-३८. ३१९६५. (-) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१.५४१०, १४४२५-२७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, मु. जगरुपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरशती सामणि बीणवूअंति: अमीझरो जपे एम जदरूप, गाथा-११. २. पे. नाम. मनमोहनपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोहन मूरति ताहरी जी; अंति: राम०पूरि पूगा दाव हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, प्र. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंग सुरंगी अंगीया; अंति: सदा नमुंकापरहेडापास, गाथा-७. For Private And Personal use only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३१९६६. नेमजीराजुल बारमास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. ग. मानहस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १३४३८-४२). नेमराजिमती बारमासो, मु. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणथी रथ फिर गए राज; अंति: भणि करज्यो एहवो सनेह, गाथा-१६. ३१९६७. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०.५, १५४३२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: केवल रे महोछव सुरवर; अंति: जिनराज० सवे सुख थाय, गाथा-१६. २. पे. नाम. गर्भावास सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: माता उदर उंधे मस्तकि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ३१९६८. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११.५, १०४२७). १. पे. नाम. जीरावला स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तवन, मु. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: जीरावलउ छइंकलिकाल; अंति: ए वीनती बोलइ ___ भगतिलाभ, गाथा-८. २. पे. नाम. जीरावलापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: जीरावलादेव करुं जुहा; अंति: करी सेवक मुझ थापउ, गाथा-१०. ३१९६९. (-) पार्श्वनाथजिन स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. नाडोलनगर, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५४१०.५, १६x४३). १.पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक तुं एक तुं अरिहंत; अंति: तेहने नित निवाजै, गाथा-११. २. पे. नाम. जैन श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र बीच का ३ __ श्लोक लिखा हुआ है.) ३१९७१. नवतत्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०४११.५, ८x२४). नवतत्त्व भेद, प्रा., पद्य, आदि: समणोवासका भवंति अभिग; अंति: भावे माण विहरति. नवतत्त्व भेद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स० समणोपासक यतीनउ; अंति: थकी वि० विचरइ छइ. ३१९७२. सातलाखसूत्र व मुहपत्ति के ५० बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. कपूराबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११,१४४२६). १. पे. नाम. चोरासीलाख जीवायोनि, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. मुंहमतीबोल गुणचास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थतत्त्व; अंति: आदरं जीमणै पगै. ३१९७३. नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४११, ११४२७). नेमिजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: सुरत थारी हौ प्यारा; अंति: थे तो दाज्यौ सवाईमान, गाथा-५. ३१९७४. पंडित पहेलीयां-हरीयाली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१.५४१०, १२४२८). आदिजिन हरियाली, मा.गु., पद्य, आदि: एक अचंभो उपनो कहोजी; अंति: सुणो भविक सहु संत, गाथा-१०. ३१९७५. शांतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१८.५४१०, ३६४२४). शांतिजिन स्तवन, मु. शीलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणी वीनमुं; अंति: शीलविजय० मंगल करो, ढाल-४, गाथा-२७. ३१९७६. मिथ्यात्व बत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९२०, वैशाख शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१.५४११, ११४३०). मिथ्यात्वबत्रीसी, मु. माणिक्यरंग, रा., पद्य, आदि: सरसतनै समरी करी लागु; अंति: तो उतरो भव पार, गाथा-३२. For Private And Personal use only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१९७७. थूलभद्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१८.५४१०, १३४२०). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल देमात मलार साध; अंति: लक्ष्मीविजय लीला घणी, गाथा-१५. ३१९७८. सूतक व सचित्त अचित्त भेद, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. फलोघी, उप. मु. चंद्रविजय; प्रले. मु. पनालाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११,१०४२४-३१). १.पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्म्यां १०; अंति: प्रहर १२ सूतक रखै. २.पे. नाम. सचित्त अचित्त विचार, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. सचित्तअचित्त विचार, आ. धीरविमलसूरि, रा., गद्य, आदि: अथ षट ऋतु नाम मृगसर; अंति: धीरविमल कृत जाणवा. ३१९७९. (+) अभव्य कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२१४११, ९४२८). अभव्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: जह अभवियजीवेहिन; अंति: तिहा जिणुदिट्ठा. गाथा-९. ३१९८०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२१.५४११, १३४३१-३३). १. पे. नाम. क्रोध सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करिये भोला; अंति: उपसम आणी पासे रे, गाथा-९. २.पे. नाम. मान की सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म करस्यो कोई; अंति: नवनगर रह्या चोमासैरे, गाथा-८. ३. पे. नाम. मायानी सिझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. माया सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: सुख निरवाणि हो, गाथा-७. ४. पे. नाम. लोभ सिज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: पहोंचीजे सयल जगीस, गाथा-८. ३१९८१. सातलाखसूत्र व मुहपत्ति के ५० बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०.५, १५४२७). १.पे. नाम. चोरासीलाख जीवायोनि, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. २. पे. नाम. मुंहपतीरा बोल गुणचास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व; अंति: आदरं जीमणै पगै. ३१९८२. आठमनुं चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (११.५४१०, २६४१४). अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: अठावे गीरी संग भरपइ; अंति: मुगतिवधुलीला वरे ए, गाथा-९. ३१९८३. (+) नेमिजिन लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१४११, १३४२८). नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: में अबला हुं अजाण; अंति: जुर जुर काया सुकी, गाथा-६. ३१९८४. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०, ९x१८). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमि तप तुम्हे करो; अंति: ज्ञाननो पाचमो भेदरे, गाथा-५. ३१९८५. अक्षरबत्तीसी व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१८-१८२२, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४९.५, १४४३६). १.पे. नाम. अक्षरबतीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८१८, चैत्र शुक्ल, ११, ले.स्थल. कानोड, प्रले. मु. माधा ऋषि (नागोरीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. For Private And Personal use only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अक्षरबत्तीसी, मु. महेश, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: कका ते क्रिया करो; अंति: मुनि महेस हित जाण, गाथा-३४. २. पे. नाम. साधु सिध्याय, पृ. २अ, संपूर्ण, वि. १८२२, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, ले.स्थल. बिलाडा, प्र.ले.पु. सामान्य. साधुगुण सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सांति जिणेसर पाय नमी; अंति: ते प्रणमुअणगार, गाथा-७. ३. पे. नाम. जंबूकूमार सिझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसै; अंति: सिद्धविजय सुपसाया रे, गाथा-१४. ३१९८७. स्तव व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१४४११, २२४२२). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्कं नमामि, गाथा-६. २. पे. नाम. विमलाचल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकप्रत्रिदश; अंति: विघ्नमर्दीकपर्दी, श्लोक-४. ३१९८८. स्तवन व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (१४४११.५, १५४१७). १. पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. २अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रूपविजय जयकार रे, गाथा-७, (पू.वि. प्रथम गाथा नहीं है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र थूई, पृ. २आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजूत्ताण सत्ताण; अंति: थुणताण कल्लाणयम्, गाथा-४. ३१९८९. महावीरजिन पारगुं, संपूर्ण, वि. १९४५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अजयदुर्ग, प्रले. मु. गौतमहस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११, १०४२०). महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोमासी पारणो आवे; अंति: शुभवीर वचनरस गावेरे, गाथा-९. ३१९९१. मल्लिजिन व मुनिसुव्रतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११, ७४२३). १. पे. नाम. मल्लीजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... मल्लिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: तुं सरीखो प्रभु; अंति: वसो तुं निजरमा रे, गाथा-३. २. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रत महाराज; अंति: उदय० योति विकासी रे, गाथा-३. ३१९९२. (+) दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रावण कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१४११, ९४३२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४०. ३१९९३. महावीर निर्वाण गौतमविलाप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१४१०, ९४२४). महावीरजिननिर्वाण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आधार ज हूतो रे एक; अंति: वरीया शीवपद सार, गाथा-१५. ३१९९४. स्तंभनकपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४१०.५, १३४३७). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुरि सिरि पासजिण; अंति: मंडण पासनाह चउसालो, गाथा-८, (वि. चार पाद के हिसाब से ८ गाथा लिखी हुई है.) ३१९९५. (-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. चंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१.५४११.५, १९४३३). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भव जीव आद जीणेसर; अंति: हो कीजो चीत नीरमली, गाथा-१९. ३१९९६. दशबोल सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४११, १०४२०). १० बोल सज्झाय, मु. मगन, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन चेतोरे दशबोल; अंति: पुरुष महिमा कहावेरे, गाथा-७. For Private And Personal use only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१९९७. तिथिपक्ष विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१७४१०, १२४३२). तिथिपक्ष विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमिऊण सयल जिणवर; अंति: (१)एसविवहा सुणेयव्वो, (२)तरि ते निर्दोष, गाथा-१५, (वि. साथ में यंत्र भी दिया हुआ है.) ३१९९८. नवकार पचीसी व चारगोला सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११, १९४४३). १.पे. नाम. नवकार पचीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवकार गुणपच्चीसी, ग. आनंदनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणवर दै इम; अंति: आनंदनिधान० सफल अवतार, गाथा-२५. २.पे. नाम. चारगोला सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ गोला सज्झाय, रा., पद्य, आदि: (१)पेलो मेणनो गोलो१, (२)साधांतणी वाणी सुणी; अंति: तिम तिम चढते रंग, गाथा-२१. ३१९९९. स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, जैदे., (१६४१०, १०x१८-२२). १.पे. नाम. रिषभ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, पं. रत्नसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: अंखिया सफल भई भेट्या; अंति: हेरे वर ते जय जयकार, गाथा-७. २. पे. नाम. सीद्धाचल पद, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. खीमारतन, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचल गिरि भेट्या; अंति: रतन प्रभु प्यारा रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सीद्धाचलजी रो स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीद्धाचल वंदो रे; अंति: भक्ति करु एक तारी, गाथा-६. ४. पे. नाम. रिषभ चैत्यवंदन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदि; अंति: धणी रुप कहे गुणगेह, गाथा-३. ५. पे. नाम. अजीत चैत्यवंदन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. अजितजिन चैत्यवंदन, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजीत अजोध्यानो धणी; अंति: प्रभु आवागमन निवार, गाथा-३. ६.पे. नाम. सुमतिजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: मेघराय अजोध्यानो धणी; अंति: तुजइ मलीयो मुज ईस, गाथा-३. ३२०००. बावीसपरिसह सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२२४११, १६४३१). २२ परिषह सज्झाय, मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी रो मारग कठन; अंति: पुज सबलदासजी भाखे, गाथा-२५. ३२००१. श्रावकाराधना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२२४११, ३१४५२-५८). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रपणम; अंति: जैनं जयति शासनं. ३२००२. दीवाळी स्तुति सह अर्थ व होलिका कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११, ११४२९). १. पे. नाम. दीवालीपर्व सिलोक सह अर्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: संस्तौमि वीरं विभुं, श्लोक-१. दीपावलीपर्व स्तुति-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत असरणसरण; अंति: मंगलीकमाला संपजै. २. पे. नाम. होलिका कथा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. होलिकापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: तर मंगलीकमाला संपजे. ३२००३. अइमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. लखमीचंद; पठ.पं. चतुरसागर; अन्य. पं. हेतुसागर; पं. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४९, ११४३८). For Private And Personal use only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा-१५. ३२००५. निह्नव गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०x१०.५, १३४२९-३३). जैन गाथासंग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५, (वि. भीखम नामक निह्नव संबंधित चर्चा है.) जैन गाथासंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२००६. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२४११,११४३०). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अविरल कवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ३.पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण है.) ३२००७. जिनशासन की प्राचीनताविषयक स्मृति-पुराण आदि के साक्षीपाठ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१४११, २५-३२४१९). जिनशासन की प्राचीनता विषयक स्मृति-पुराण आदि के साक्षीपाठ, सं., गद्य, आदि: तथाचेदं श्रीजिनशासनं; अंति: यत्रोपविशते मुनिः. ३२००८. श्रीमद्वर्धमानप्रभो स्तुति सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अहमदावाद, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (१९.५४१०.५, १२४४१). महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: मयि विस्तरो गिराम्, श्लोक-३. महावीरजिन स्तुति-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: वर्द्धमानाय नमोस्तु; अंति: वृत्ताक्षरार्थोयम्. ३२००९. गुरुगुण व विजयक्षमासूरि स्तुति, संपूर्ण, वि. १७७३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१६.५४९.५, २५४१९). १. पे. नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीमच्छ्रीक्षितिपाक; अंति: भूरि गुणास्पदं, श्लोक-१२. २. पे. नाम. क्षमासूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयक्षमासूरि स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीमच्छ्रीविजयादि; अंति: नमस्कारक्रियाकर्मठ, श्लोक-१. ३२०१३. दशपच्चखाण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जरो., (२०.५४११, १०४२५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३२०१४. आदिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४११.५, ११४२८). आदिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: नाभिजन्मा जिनेंद्रः, श्लोक-१०. ३२०१५. वीरजिन स्तवन व थुलभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०४९.५, २४४२१). १.पे. नाम. वीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो प्रभुजी को; अंति: सेवकने शिवसुख करीया, गाथा-५. २.पे. नाम. थुलभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, सपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासे; अंति: दिन दिन सुख सवाया, गाथा-११. ३२०१६. (#) होलिकापर्व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, ___ जैदे., (२०.५४११.५, १६४२९). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३२ अपूर्ण तक है.) ३२०१७. (-#) संभवजिन स्तवन, श्लोक व कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९४११.५, १३४२६). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ मु. जीव, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर मुरत हे साहिब, अंति: जीव जीवन सुभ काजथीजी, गाथा - ५. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३. पे. नाम. कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३, ३२०१८. अंतरीक्षपार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१ ( १ ) = ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२१X१०.५, ११×३०). पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ९ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक है.) ३२०१९. गोचरीदोष भांगाविचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (१९.५४१०.५, १४४३५). गोचरीदोष भांगाविचार, प्रा., सं., गद्य, आदि: संसद्वेय रहत्थो मत्त; अंति: माश्रित्य कल्प्यते. ३२०२०. सझाय, स्तवन व गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५. जैदे. (२०.५x११.५, १९x४२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. 7 मु. राम, मा.गु, पद्य, आदि: ग्रह शमें भाव धरिजे, अंतिः राम वदे चिरनंदोरे, गाथा-६, २. पे. नाम. गौतमगणधर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर जिनशासन, अंति: पामे लाभ अपार, गाथा - ७. ३. पे. नाम. गौतमगणधर स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही रलीयामणी, अंतिः भावना वजडावो मंगलतूर, गाथा-५. ४. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. सुधर्मागणधर गहुंली. मु. सोहब, मा.गु, पद्य, आदि: चेलणा लावे गहुंली; अंतिः श्रीजिनशासन रीति, गाथा ७. ५. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गुंडली, पृ. १आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुली, मा.गु., पद्म, आदि: चंपानयरी उद्यान सुरत अंतिः साधु गुहलि गीत भणे, गाथा ७. ३२०२१. पोसह सज्झाच, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैवे. (२१.५x१०.५, ८४२८-३०). पौषध सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्नह जिणाणमाणं मिच; अंति: निच्चं सुगुरु व सेणं, गाथा-५. ३२०२२, नेमिजिन स्तुति व चोवीसजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जै. (२१.५११, १२४३४-३८). १. पे. नाम नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. "" सं., पद्म, आदि: भो भो भव्याः श्रुणुत; अंतिः पक्कविवाधरोष्ठा, श्लोक-४. २. पे. नाम. जिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. . भवसंख्यागर्भित चौवीसजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि: प्रथम तीर्थंकरतणा अंति: नय प्रणमे धरी नेह, गाथा - ३. ३२०२३. (+) पंचपरमेष्टिमहामंत्र वडोनवकार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., १४X३०-३३). जै.. (२२४१२, नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: ती देज्यो नित, गाथा - १३. ३२०२४. नमि प्रव्रज्या अध्ययन-उत्तराध्ययनसूत्रांतर्गत अध्ययन - ९, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२१.५X११, १३X३२-३४). नमि प्रव्रज्या अध्ययन, हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइउणं देवलोगाओ उववन्; अंति: नमीरा र तिमि गाथा - ६२. For Private And Personal Use Only २१७ ३२०२५. जीवभेद व अंत आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५X११, १५-१७X२७). १. पे. नाम, जीव के इक्यासीभेद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: १ पुढवीकाय जीवा, अंतिः ८१ अविश्यभावेण जीवा. Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. अंत आराधना, पृ. १आ, संपूर्ण. अंतिम आराधना संग्रह, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: वेरं मज्झं न कुणइ. ३२०२६. गौतमगणधरदेव स्तवनारार्त्तिकमयी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२०.५x९, १४४३६). गौतमस्वामी स्तव, क. धरणीधर, सं., पद्य, आदि: जय परम कृपालो २ जय; अंति: भास्कर आगमहृदयालो, लोक-१४. ३२०२७. (+) दसश्रावक छत्रीसवोल यंत्र, संपूर्ण वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल जंबूसर प्रले. पं. दीपविजय कवि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित जै. (२०.५४९.५, २०१६). " " १० श्रावक ३६ बोल यंत्र, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., को. वि. १८९९, आदि: (-); अंति: (-). ३२०२९. श्रमण व आवक प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल, द्रांगद्रा, प्रले. ग. उत्तमविजय (गुरुग. वनीतविजय): पठ मु. कानजी (गुरुग. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जै. (२१x१०.५, १४४३५-३७). १. पे. नाम. श्रमणप्रतिक्रमणसूत्र. पू. १अ ३अ, संपूर्ण. साधु प्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः नमो अ० करेमि अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं सूत्र- २१. २. पे. नाम. श्रावकप्रक्रमणसूत्र, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा-५०. ३२०३०. साधारणजिन स्तव, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २१x११, ११x२४). साधारणजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जयपयडपयावं मेघगंभीर, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २३ अपूर्ण तक है.) ३२०३१. सझाय संग्रह, दोहा व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ११, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९x१०, १३X३६). १. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि : चंपानगरी अतिभली हु; अंति: पाप पुलाय रे, गाथा-५. २. पे. नाम. बीजो प्रत्येकदूमह, पृ. १अ, संपूर्ण. दूमराव - प्रत्येकबुद्ध सज्झाच, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर कपीलानो धणी रे अंतिः प्रति प्रणमुं पाय, गाथा-८. ३. पे. नाम. नमिराज सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयर सुंदरसण राय हो; अंति: सुंदर कहे साधुनेजी, गाथा-६. ४. पे. नाम. चोथो नगई सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नीगइराय- प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरवरधनपुर राजीवो, अंतिः प्रत्येकबुद्ध हो, गाथा- ६. ५. पे. नाम. चारप्रत्येकबुद्ध सीझाय, पृ. २अ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिसथी च्यारे, अंति: पाटणपूर सिद्धकि, गाथा-५. ६. पे. नाम. चेलणा सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदीने चलता; अंति: पामीयो भवतणो पार, For Private And Personal Use Only गाथा-६. ७. पे. नाम. कायावाडी स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय काया, मु. पदमतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: वनमाली धन अप करे, अंतिः नीत ज्यो ज्यो संभाली, गाथा - ११. ८. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. चंद्रनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: माया कपट नवि कीजीड़, अंतिः दाखवे भमसे तेह संसार, गाथा ५. Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ९. पे. नाम. काया सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: काया पुर पाटण मोकलु; अंति: सहजसुंदर उपदेश रे, गाथा-६. १०. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ११. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३अआ, संपूर्ण. मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लह्यो में जिनराजी बे; अंति: वनीते सदा अडग वासाजी, गाथा-७. ३२०३२. परमानंदविज्ञप्ति, पद, श्लोक, मदनपल्लवी व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२१.५४१०, १३४४२). १.पे. नाम. परमानंदविज्ञप्ति, पृ. १अ, संपूर्ण. परमानंद विज्ञप्ति, मा.गु., पद्य, आदि: जागती ज्योति जगमाहि; अंति: कुण जगती ढूंदू अनेरा, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: करम को कहो को भरम; अंति: उपरां सूरि उगै, गाथा-४. ३. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४. पे. नाम. मदनपल्लवी, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राशिगुणवसुरस नयनयुग; अंति: सुंदरिवर्गपरक्ष, श्लोक-१. ५. पे. नाम. यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., य., आदि: (-); अति: (-). ३२०३४. गोडीपार्श्वनाथजी छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२०.५४१०.५,११४२७-२९). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. धरमसीह, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धरमसीह ध्याने धरण, गाथा-२९. ३२०३५. स्तवन संग्रह व बारमासो, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२०.५४१०.५, १४-१७४३३-३८). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरण मनोहरु; अंति: विनवै० सुख ते अनुभवै, गाथा-३१. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: लगी लगी आंखीयाने; अंति: कहे० वाध्यो छे प्रेम, गाथा-५. ३. पे. नाम. कृष्णभक्ति बारमासो, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गणपति तुमने हुं; अंति: राधा मनडा केरि आस, गाथा-१५. ३२०३६. असजाइ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. विवेककुशल पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४१०.५, १४४२७). असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी समरी मात; अंति: सीवलच्छी तेवरे, गाथा-१६. ३२०३७. (+) पाखिप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४९.५, ११४३०). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: देवसिय आलोय पडिकंत्त; अंति: लोगस्स४ वडीशांति कही. ३२०३९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४११.५, १८-२०४३५-३९). १. पे. नाम. मौनइग्यारसगणणु दोढसोजीन कल्याणक, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व स्तवन- १५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य वि. १७३२, आदि धुरि प्रणमुं जिन, अंति: जसविजय जयसिरि लही, ढाल - १२. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, आदि: चिदानंदधन परम निरंजन, अंति: जस कहे भलजल तारो, गाथा २५. ३. पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जयो पास जिनराज; अंति: संकट तणा चक्र चूरे, गाथा-५. ३२०४०. सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. हंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१X११.५, २४x२०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८उ, आदि: पहिले पद जपीइ अरिहंत, अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ३२०४३. उवसग्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २१.५x११.५, २४X१६). 1 उपसर्गहर स्तोत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्म, आदिः उवसग्गहरं पासं० ॐ अंतिः पास जिणचंद नम॑सामि गाथा- ९. ३२०४४. (*) नवपद पूजा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे.. ( २२x१०.५, १२x२४-३१). १. पे नाम, नवपद पूजा, पृ. १अ, संपूर्ण उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). प्रा.,मा.गु.,सं., ३२०४५. श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २१.५X१०.५, १३x४५). श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११ अपूर्ण तक है.) ३२०४६. (+) जैनगाथा संग्रह सह टबार्थ व ९६ पाखंडी नाम, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २४.५X१०.५, ९x४३). १. पे. नाम. गाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैन गाथासंग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). जैन गाथासंग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम छदर्शन छन्नवइपाखंड नामानि पृ. १ अ. संपूर्ण. , ६ दर्शने ९६ पाखंडी नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जैनदर्शन श्वेतांबर अंतिः रसीआ धातुर्वादि ३२०४९. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २१.५X१०.५, ११×३१). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधविजय- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता, अंति: (-) (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ३२०५०. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २१x११.५, १३X३०). १. पे. नाम. दंडणऋषि सज्झाय, पृ. १ अ. संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, रा. पच, आदि टंढण रिखीजीने वंदणा, अंतिः कठै जिणहरष सुजाण रे, गाथा- ९. " २. पे. नाम. जीवहित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १२X३३). १. पे नाम, पंचमी थोड़, पृ. १अ, संपूर्ण मु. क्षमाविजय, गु, पद्य, आदि: गरभावासमां चिंतवे रे, अंतिः तो जइए मुगति मझार के, गाथा- ९. " ३२०५२. स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. अमरसी, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२१.५x१०.५, For Private And Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २२१ पंचमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय; मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८४-१८००, आदि: पंचमी दिन जनम्या नेम; अंति: सीस जीवविजय जयकार, गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन दीपावलिस्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वाणीजी, गाथा-४. ३२०५३. स्नात्रपूजा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, पू.वि. बीचव अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१.५४१०.५, १०४२६). स्नात्रपूजा संग्रह*, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: (-), (पू.वि. महावीर जन्माभिषेक अपूर्ण तक है.) ३२०५४. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, जैदे., (२१४१०, ९४२६). १.पे. नाम. रोहिणी स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. रोहिणीतप स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: (-); अंति: पार्श्वनाथ सुखकरो, (पू.वि. मात्र __ अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इणे डुंगरीये मन मोही; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक ३२०५५. जलयात्रा विधिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४१०.५, २३४४१). जलयात्रा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३२०५६. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३४११.५, ७४१७). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: रेंद्रे कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ३२०५७. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४११.५, १९४३०). १. पे. नाम. सीता सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रावण हितशिक्षा सज्झाय, मु. विद्याचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सीता हरी रावण जब आणी; अंति: सीता दे का आणी रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. स्थुलभद्र स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल देमात मल्हार; अंति: लीलालखमी घणी जी, गाथा-१७. ३. पे. नाम. गयसुकमालनीस्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. लबधि, मा.गु., पद्य, आदि: पुत्र तुमारा रे देवक; अंति: लबधि० कीजइ सफल विहाण, गाथा-२३. ३२०५८. स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ९, ले.स्थल. लाकडीआ, जैदे., (२१.५४११.५, १२४२६-३०). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: अंगदेसे चंपापुरी, अंति: उदय० घर नित दीवाली, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमासार सांभलज; अंति: महिमा जेणे जाणीयो, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवोरे भवी भावे; अंति: कांतिसागर नीसदीस, गाथा-५. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: भवियां श्रीसिधचक्र; अंति: रस चाखें हो लाल, गाथा-७. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधिय; अंति: ज्ञान० प्रसिध लाल रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: गोत्तम पूछत श्रीजीन; अंति: भगति करो भगवानकिं, गाथा-७. ७. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सांभलो; अंति: हो भव भव आधार कें, गाथा-५. ८.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणि हो के कहे; अंति: कांति बहं सुख पाया, गाथा-५. ९. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन नेमि जिनेसर; अंति: रत्नविमल जयमाल, गाथा-४. ३२०५९. (-) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१.५४१०.५, ९४२६). महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: जगपति तूं प्रभु देवा; अंति: उदय नमन० सासो मेटीये, गाथा-५. ३२०६१. (-) गीत व पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१.५४११, १४४२६). १. पे. नाम. पहेलिका पद, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रहेलिका पद, मा.गु., पद्य, आदि: हे अटकां उत्तर घरि; अंति: कियां पित जायजी, गाथा-४. २.पे. नाम. थुलभद्र गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि गीत, रा., पद्य, आदि: वाट जोयै वनीता घणी; अंति: गलैने रूपारी डोर, गाथा-७. ३. पे. नाम. पहेलिका पद, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रहेलिका पद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२०६२. (#) पार्श्वनाथ अष्टक व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १८९५, भाद्रपद शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. पेमचंद (चंद्रगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमहामायाजी प्रसादा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १६x४४). १. पे. नाम. पार्श्वनाथाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवेंद्रवृंदा; अंति: तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक-८, (वि. अंत में मंत्र दिया हुआ है.) २. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल; अंति: ल व श ष स ह ल्लं क्ष. ३२०६३. स्तुति व गीतसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४१३, २७७१३). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गजकुंभे बेसी आवे; अंति: विबुधनो मोहन जयजयकार, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: रंगीले नेम होरी खेली; अंति: राजुलसु व्याह जोरीये, गाथा-५. ३. पे. नाम. दधिसुत गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दधीसुताए दद्धीसुत; अंति: स्यांम करो बगसीस, गाथा-३. ३२०६४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४१०.५, १२४३५). १. पे. नाम. ऋषभदेवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जग वालहो; अंति: सुखनो पोष लालरे, गाथा-५. २. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २२३ महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रभुजि वीर जिणंदने, अंति: साहिब तुम पर सेव हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन प्रभाति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जब जिनराज कृपा होवे, अंति: नय० जिन उपम आवे, गाथा-५. ३२०६५. जिनस्तुति प्रार्थना संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे (२२x११.५ ११५३०). जिनस्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: दर्शनं देव देवस्य अंति: सदामेस्तु भवे भवे, गाथा- १५. ३२०६६. स्तवन व पद, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२१.५x१०.५, ९४२२). "" १. पे. नाम. रुषभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. www.kobatirth.org आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मन मधुकर मोहि रह्यो, अंतिः सेबीजे कर जोडी रे, गाथा ५. २. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. १५X३४). १. पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जागि जागि रेन गइ भोर, अंति: (-), (पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ३२०६७, (+) लघुशांति व पार्श्व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२१x११, , "" (२२x११, १४४३४). १. पे नाम. बृहत्शांति, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत, अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. २. पे नाम. संखेचरपार्श्व स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरव मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. ३२०६८. बृहत्शांति व तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. श्राव. अगरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., 3 बृहत्शांति स्तोत्र - खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्या शृणुत; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. २. पे. नाम. मंत्रगर्भित तिजचपहुत्त स्तोत्र, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपवासव अड्ड, अंतिः निब्भंत निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३२०६९. () मरुदेवामाता सझाय व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५x११, १३३०). १. पे. नाम मरुदेवामाता सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मोरादे जी हो माता कह, अंति: मो दुखि पार उतारो रे, गाथा - १६. २. पे. नाम श्लोक संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२०७१. साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., ( २१. ५X११.५, १३X२५). साधुपाक्षिक अतिचार .मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय, अति तस्स मिच्छामिदुकडं. ३२०७२. स्तवन व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X१०.५, १५X४०-४२). १. पे. नाम. सीमंधरजिन विचारस्तवन, पृ. १अ - ४आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७१३, आदि अनंत चोवीसी जिन नमुं अंतिः भविक जन मंगल करो, गाथा- ११३. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. ३२०७३. छंद, श्लोकसंग्रह व गणपती ध्यान, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५x१०, १५X४०-४३). १. पे. नाम. मातात्रिपुराजीनो छंद, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. भुवनेश्वरी छंद, मु. गुणानंद-शिष्य, मा.गु, पद्य, आदिः प्रणमी पार्श्व जिनंद अंतिः जयतु त्रिपूरा देवता, गाथा ३७. For Private And Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. विभिन्न देवदेवी स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. दशविद्यादिदेवी स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. गणपति ध्यान, पृ. ३आ, संपूर्ण.. ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: गणपति परिवार चारु; अंति: वंदे वक्रतुंडावतारम्, गाथा-३. ३२०७५. अढारनातरानी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४१२, १८४३१). १८ नातरा सज्झाय, मु. छीतरऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: करम सबल जग जाणीयें; अंति: छीतर द्यै उपदेश रे, गाथा-२३. ३२०७६. चंदनबाला सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४९.५, १०४२६). चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुंआरी चंदनबाला; अंति: कुंवर कहे करजोडिरे, गाथा-१३. ३२०७८. संखेसरपार्श्वनाथ राजगीता, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले.ग. माणिक्यविजय; पठ.पं. गौतमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११.५, १४-१५४३०-३१). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी कल्प; अंति: पास जिनवरतणी राजगीता, गाथा-३४. ३२०८०. चोवीस तिर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४८, फाल्गुन शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. बेड, प्रले. पं. हर्षविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०, १०४२७-३१). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जीनेसर प्रणमी; अंति: चरण कमल प्रण, आणंद, गाथा-२८. ३२०८१. चंद्रगुप्तिराजा सोलेंस्वपना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. जोरसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १०४२७-२९). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलिपुर नामा नगर; अंति: चंद्रगुप्तराजा सुणो, गाथा-४०. ३२०८२. (+) सर्वज्ञवर्णनोनाम स्तवन व ग्रहशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०.५, ११४३४-३५). १. पे. नाम. सर्वज्ञवर्णनोनाम स्तवनरत्न, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सर्वज्ञवर्णन स्तवन, मु. जसवंतसागर, सं., पद्य, आदि: ॐकार रूपं परमेष्टि; अंति: सौभाग्य सिद्धि प्रदा, श्लोक-२८. २. पे. नाम. ग्रहशांति स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधि श्रुतः, श्लोक-११. ३२०८३. (+) जिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४१०.५, १२४३२). साधारणजिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: कल्याणपादपाराम; अंति: भावतोचर्चा नमामि, श्लोक-१७. ३२०८७. (#) चैत्यवंदन, स्तुति, सझाय व श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८५४, भाद्रपद कृष्ण, मध्यम, पृ. ७-४(१ से ४)=३, कुल पे. ६, प्रले. मु. जगनाथ (गुरु मु. गुमानसागर); गुपि. मु. गुमानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४१०.५, ९४२६). १. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ५अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: सिद्धचक्कं नमामि, गाथा-६, (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिशि इशान कुण; अंति: पूरवउ संघ जगीस, गाथा-९. ३. पे. नाम. जंकिंचि सूत्र, पृ. ६अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जं किंचि नाम तित्थं; अंति: ताइं सव्वाइं वंदामि, गाथा-१. ४. पे. नाम. सीमंधर थूई, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २२५ सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझनै; अंति: शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. ५.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ६-७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हूं तो वारुं छु; अंति: मन धरम खरो थिर थापो, गाथा-५. ६. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: गई मा कुरस्यर करे; अंति: हन्यंसु दबादयंति, गाथा-४. ३२०८९. (+) अध्यात्मतेत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. दसादाग्राम, प्रले. पं. वनीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४११.५, १५४३७). अध्यात्मबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: शुद्ध वचन सदगुरु कहै; अंति: एह तत लहि पावे भवपार, गाथा-३३. ३२०९२. मुनिसुव्रत स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४११.५, ११४२६). मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमुनिसुव्रतजिन; अंति: कहि कवियण करजोडिरे, गाथा-६. ३२०९४. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२४१०.५, १०४२६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), ___(पू.वि. नमुत्थुणसूत्र अपूर्ण तक है.) ३२०९५. (#) दानसील को चोढाल्यो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१.५४११.५, ११४३१). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण तक है.) ३२०९८. चौदगुणठाणा सझाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१०.५, १२४३७). १४ गुणस्थानक सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: चंद्रकला निर्मल सुह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५५, १३ वां गुणस्थान अपूर्ण तक है.) ३२०९९. स्नात्रपूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४९.५, ११४३८). स्नात्रपूजा संग्रह*, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३२१००. स्तवन संग्रह व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१०.५, १३४१९). १. पे. नाम. शंखेश्वर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी प्रणमें पास; अंति: शिष्य गुण गाया, गाथा-११. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: नमु सारदा सार पादार; अंति: सौख्यप्रदः सर्वदा, गाथा-१४. ३. पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामाह्वयति नियमेन, श्लोक-९. ३२१०२. सीद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०, १३४३५). सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८उ, आदि: पहिले पद जपीइ अरिहंत; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ३२१०३. (+) मुखवस्त्रिकाविचार गाथा सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०४१०, १६४३८). मुखवस्त्रिकाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चउरंगुलं विहत्थीएय; अंति: दुक्कडं पुरिमड्ढवा, गाथा-३. मुखवस्त्रिकाविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: चत्वारी अंगुलानि; अंति: तेथी उत्थापक जाणवा. For Private And Personal use only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२१०६. (-) चक्रेस्वरी स्तोत्र व माणीभद्रमंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२०x१०.५, १६४२८). १. पे. नाम. चक्रेस्वरी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: पाहिमां देवी चक्रे, श्लोक-९. २. पे. नाम. माणीभद्र मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र का अंतिम किनारा खंडित होने से अंतिम वाक्य नहीं भरा गया है। माणिभद्रवीर जाप मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीमाणिभद्र; अंति: (-), सूत्र-१. ३२१०७. (+) अवंतिपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. अमीचंद (गुरु मु. आणंदचंद, तपगच्छ); पठ. मु. मुनिचंद्र (गुरु ग. अमीचंद, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२०x१०, ११४२२). पार्श्वजिन स्तवन-अवंति, ग. अमीचंद, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य सिद्धखेत्रं; अंति: अमी० स्तुतिः कृताः, श्लोक-१०. ३२११०. सझाय, स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११, १२४३२). १.पे. नाम. आलोयषट्विंशका, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोय तुं आपणा; अंति: करी __ आलोयणि उच्छाह, गाथा-३५. २. पे. नाम. आदिनाथ गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन गीत, मु. नेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सेजगिरि; अंति: इम जिनगुण गाया लो, गाथा-७. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३२१११. स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १७३६, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ७, ले.स्थल. जीर्णदुर्ग, प्रले. ग. आणंदकुशल (गुरु ग. विनीतकुशल); गुपि.ग. विनीतकुशल (गुरु ग. विवेककुशल पंडित); ग. विवेककुशल पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०,१३४४०-४६). १. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आदिजिन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेज रलीआमणो; अंति: नन्न० मननइं उल्हासई, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दहीइपुरि दीपइ जोता; अंति: नन० समरथ तुंहज देवा, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऊजलगिरि अम्हे जाइ; अंति: नन्न सेवक उद्धरुए, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मूरति त्रेवीशमो; अंति: भणे ननसूरि मंगल करुए, गाथा-५. ५. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-सांचोरमंडन, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मरुधरदेस मझारि पुर; अंति: नन्न० सुख दायक सवे, गाथा-९. ६. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: मुनि लावन्यसमइ भणइ, गाथा-२८. ७. पे. नाम. श्राद्धनामनमस्कार स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. श्राद्धनमस्कार स्तुति, आ. विजयदानसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिक दसक्षेत्र; अंति: जयो जयो चिर नंदए. गाथा-४. ३२११३. जिनस्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १५४४०). For Private And Personal use only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org गाथा - ३७. ३२९१४. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे ३, जैदे., (२३४१०.५, १९३९-४२). १. पे. नाम. कवनाऋषि स्वाध्याय, पृ. १अ २अ संपूर्ण. १. पे नाम चतुर्विंशतिजिनपंचकल्याणकदिनयुक्त स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- पंचकल्याणकदिन युक्त, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय दायक जगधणी जग, अति: मेरुविजय सुख दीजी, गाथा- ३६. २. पे. नाम. त्रणचोवीसीविहरमानवीसच्यारशाश्वत ए छन्नूजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. ९६ जिन स्तवन, ग. जयविजय मा.गु, पद्य, आदि: सारवमाता मनि घरी सह अंतिः सेवक जयविजय मंगल करो, 3 कयवन्ना सज्झाय-दानविषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि : आदि जिनवर ध्याउं; अंति: लालविजय कहे० उलट आणी गाथा २८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. सूदर्शन सझाय, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. सुदर्शनसेठ सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु, पद्य, आदिः संवमीधीर सुगुरुपय, अंतिः उदय हुइ सुजस सवाय रे, ढाल-६, गाथा - ६८. ३. पे नाम. रात्रीभोजननी सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल वारूं वसेंजी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-४ तक है.) ३२९१५. आवक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण वि. १८३७, आश्विन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, जै. (२३.५x१०.५, १८४३९). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक ताइ, अंतिः मिथ्या० कीधा " मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज, अंतिः कठै पूर मनोरथ माय गाथा ४. २. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंचरूप करि मेरुशिखर, अंतिः हरजो विधन अमाराजि, गाथा-४, ३. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी, अंतिः संघ तणा निसदिस, गाथा ४. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. २२७ होई. ३२९१६. गतागती २४ दंडकनी ५६३ जीवना भेद, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, सीतामोहग्राम प्रले. मु. सोभागचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५x१०.५, २२४५९). गतागति २४ दंडक के ५६३ भेद विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: सप्त नरके समुचे गति; अंति: समदीष्ट में ऊपजेई. ३२९१७. स्तुतिसंग्रह व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे, १२, जैदे. (२३.५४११, १७-१८४३३-४२). १. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ५. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति स्नातस्या, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ६. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंदा मुख पुणम, अंति: तत्व० होई मुझ माताजी, गाथा-४. .पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, ग. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिनाथ भजो भगवंत, अंति: भणह देवविजय कवि मुदा, गाथा ४. ८. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति - शंखेश्वर, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पाशजिणेसर भुवन दीणेस; अंति: छ एह आपिजी, गाथा- ४. ९. पे नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तुति-धमडकानगर, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशलानंदन त्रिजग; अंति: वंछित द्यो मुझ माईजि, गाथा-४. १०. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्ति जुत्ताण सत्ताण; अंति: थुणताण कल्लाणयम्, गाथा-४. ११. पे. नाम. विमलाचल स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रस्त्रि; अंति: विघ्नमर्दीकपर्दी, श्लोक-४. १२. पे. नाम. पंचमि सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. परिग्रह पापस्थानक सज्झाय, हिस्सा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: परिग्रह ममता परिहरो; अंति: रही साधु सुजस समकंद, गाथा-८. ३२११८. स्तवन चोवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४४१०.५, ११-१२४३४). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्तवन १ से ९ सुविधिनाथ तक है.) । ३२१२०. छआवश्यक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नाडोलनगर, प्रले. पंन्या. षुस्यालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, ९-१०४२३-३१). ६ आवश्यकविचार स्तवन, वा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिन वीनती; अंति: तेह शिवसंपद लहै, गाथा-४३. ३२१२१. चंद्रसेनचंद्रद्योतनाटिकीया प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. दयारत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १६x४४-४९). चंद्रसेनचंद्रद्योत नाटकिया प्रबंध, ग. दयाशील, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: विमल कमल दल लोचनं; अंति: ___ दयाशील लहु अविचल वास, ढाल-१३, गाथा-१५०. ३२१२२. आषाढभूत रास, संपूर्ण, वि. १७४३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. गागुरड, जैदे., (२३४११, १६४३८-४१). आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: विचार सब श्रीसुखकारा, गाथा-६४. ३२१२४. विषापहार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३४११.५, १२४२४-३२). विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: वीस्वनाथ वीमलगुण इस; अंति: पारस जीनेश्वर नाम, गाथा-४१. ३२१२५. संतिकरं स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८३९, पौष कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. पं. अमृत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसिद्धाचलमंडण श्रीऋषभप्रभुजी प्रसादात्, त्रिपाठ., जैदे., (२३.५४११.५, २-३४३७-४२). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: सिद्धी भणइ सिसो, गाथा-१४. संतिकरं स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीमनिसंदरसूरि; अंति: चिद्विरोध उद्भावनीय. ३२१२६. शनीसर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, १४४१४). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: संपदा अलगी टालै आपदा, गाथा-१६. ३२१२७. शांतिक विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१४११, ११४२८-३०). शांतिकमहापूजन विधि, हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तिहां प्रथम शुभदिने; अंति: (-), (पू.वि. चारित्रपूजन अपूर्ण तक है.) ३२१२८. सजाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४२९). १.पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: बंधव गज थकी उतरो, गाथा-७. For Private And Personal use only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २. पे. नाम. दसारणभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभ की मात्र २ गाथा लिखी हुई है.) ३२१२९. वीर शासने प्रमुख घटना व काल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०४१०.५, १०-१३४३०). वीरशासने प्रमुख घटना व काल, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: श्रीवीरोरा मोक्षथी; अंति: एवं समय भणियमत्थि. ३२१३०. (#) सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-२६(१ से २६)=४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९x१०.५, १२४३४). सुभाषित श्लोक संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भग्नाशशिकरंडपीडिततनु; अंति: शेवितेपंचभिरेदिपंच, गाथा-३७, संपूर्ण. ३२१३३. स्तवन, श्लोक व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११.५, ११-१३४२६-३२). १.पे. नाम. बंभणवाडि महावीर स्तवन, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण, ले.स्थल. अहमदानगर. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा; अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: विद्यारत्नं सरस कवित; अंति: तथाहं तव दर्शनम्, श्लोक-३. ३. पे. नाम. दहा संग्रह, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दहा संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: गांमंतरं घर गोरडी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३२१३४. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १५-१८४३५-३९). १.पे. नाम. सत्तावीसभव महावीरनो स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंति: विजय शिष्य जयकरो, ढाल-६. २. पे. नाम. सचीतअचीत्त सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी सदा; अंति: नयविमल किधो सज्झाय, गाथा-२४. ३२१३५. (#) सझाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०.५, २०४४५). १. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १५अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीकमलविजयगुरु शीश, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से २. पे. नाम. पडिलेहण सज्झाय, पृ. १५अ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन वचन सदा अणु; अंति: कुशल कहे मन उल्लास, गाथा-८. ३. पे. नाम. सीद्धाचल स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: सुगण सहेजा सांभलो; अंति: श्रीजिनभक्तिसुरंद, गाथा-१२. ४. पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सुणि सुणि सेवेंज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ३२१३६. भावितीर्थंकरजीवनाम स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१x१०.५, १३४२३-२८). For Private And Personal use only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अनागत चौवीसी स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे भविसति अणागए; अंति: साच करी सरदह्या, गाथा-९. ३२१३७. भारती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, ३५४२५). भारती स्तोत्र, मु. कल्याणसागर-शिष्य, सं., पद्य, आदि: प्रणतित तयस्तत्व; अंति: सागर सिंधुराणाम्, श्लोक-२०. ३२१३९. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, १३४४४). १. पे. नाम. नेमिनाथ बारमास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १७९२, भाद्रपद कृष्ण, ५, ले.स्थल. रविनगर, प्रले. पंडित. श्रीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन बारमासो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आजो रे आजोरे सखी; अंति: लाव० त्रिभोवननाथ रे, गाथा-२८. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धोबीडा तुं धोजे रे; अंति: शीखडली शीवसुखदाय रे, गाथा-६. ३२१४०. सझाय व सवैयासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९०६, फाल्गुन, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. गुलाबचंद्र (गुरु मु. रत्नचंद्र); गुपि. मु. रत्नचंद्र (गुरु मु. विजयपाल); मु. विजयपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १३४३४-४०). १. पे. नाम. गजसुकमालनु त्रिढालियु, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: द्वारिका नगरी ऋद्धि; अंति: होयो सुगुरु सहाय रे, ढाल-३. २.पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. खोडीदास ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: धीरज तात क्षमा जननी; अंति: खोडीदासजायगो अजानमे, गाथा-३. ३२१४१. चतुस्त्रीशयअतिशय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३५). ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसूमति दायक; अंति: पय सेव मांगु भवभवे, गाथा-११. ३२१४४. सरस्वती स्तोत्रसंग्रह व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२१.५४१०.५, १४४३९). १.पे. नाम. सरस्वती अष्टक, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नित नमेवी जगपती, (पू.वि. मात्र अंतिम दो गाथा है.) २. पे. नाम. सरस्वती अष्टक, पृ. ५आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, वि. १५२७, आदि: कमलभूतनया मुखपंकजे, अंति: विबुधं सुमति श्रेयम्, श्लोक-११. ३. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., पद्य, आदि: जलधिनंदनचंदनचंद्रमा; अंति: कल्पलताफलमश्नुते, श्लोक-९. ४. पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३२१४५. नवतत्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१४१०.५, १०x१७-२२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८ तक है.) ३२१४६. (+) गौतमस्वामि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२१.५४११, १७४४०). गौतमस्वामी स्तवन, आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदि: स्वर्णाष्टाग्रसहस्र; अंति: श्रेयांसि भूयांसि नः, श्लोक-१२. ३२१४७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८९, फाल्गुन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. नोहरनगर, प्रले. पं.सत्यसागर; पठ. श्रावि. भागांबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसांतिनाथजी सहाय छै।, जैदे., (२२.५४१०.५-११.०,१०४२९-३१). १. पे. नाम. क्रोधपरिहार स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २३१ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करीइ भोला; अंति: उपसम आणी पासैं रे, गाथा-९. २. पे. नाम. मानपरिहार स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म करस्यो कोई; अंति: नवैनगर रही चोमासै रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. मायापरिहार स्वाध्याय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. माया सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: कहे० सुख निरवाण हो, गाथा-७. ४. पे. नाम. लोभपरिहार स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करियै प्राणीया; अंति: पहुंचै सयल जगीस, गाथा-८. ३२१४८. (-) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र-सबीजमंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२४११, १२४२७). चंद्रप्रभजिन स्तोत्र-सबीजमंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: पुरे पुरे स्वाहा:. ३२१४९. नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, ९४३२). नेमराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी करी वात रे; अंति: चरणन मारा पानुरे, (वि. कृति में गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) ३२१५०. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२२.५४११.५, २३४५१). १. पे. नाम. मासतुसमुनि कथा, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मासतुसमुनि कथा-प्रमादविषये, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विषइ प्रमाद न करवउं. २.पे. नाम. गिरनार श्रीनेमिनाथ स्तुतिरूप, पृ. ६अ, संपूर्ण. गिरनारतीर्थ इतिहास कथा, मा.गु., गद्य, आदि: आगइ श्रीगिरनारतीर्थ; अंति: हर्षपूरी पाछउ गिउ. ३. पे. नाम. उवस्सगहरमहामंत्र कथा, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. भद्रबाहु वराहमिहिर कथा, मा.गु., गद्य, आदि: एकइंगांम बे भाई; अंति: पांचजि गाथा भणइ छइ. ४. पे. नाम. कृष्णमहाराय वीरासालवी कथा, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कृष्णमहाराज-वीरासालवी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: एकवार नेमिनाथ; अति: (-). ३२१५२. जिनराजसमवशरणविचारगर्भित स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. जगरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, ११४३२-३६). समवसरण स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सत्केवलज्ञान महाप्रभ; अंति: मालम्बतां निर्वृतिम्, श्लोक-३४. ३२१५३. संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८३५, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२२.५४१०, १५४३२-३४). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरु; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-७२. ३२१५५. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९३९, चैत्र कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ११-७(१ से ७)=४, ले.स्थल. अजिमगंज, प्रले. मु. सोभागचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपद्मप्रभूजी प्रसादात्. भागीरथीस्तटे मध्यान्हसमये., जैदे., (२१४११.५, ११४२१). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: तदनुधर्म नियमश्चक्रे. ३२१५६. जयतिहुअण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१.५४१०.५,१३४३५). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ३२१५७. (+) साधारणजिन स्तवन सह व्याख्या व अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. रतलामनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १७४४५-५०). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाःप्रभो यं विधिना; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. For Private And Personal use only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन स्तव-व्याख्या, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि: देवाः१३ प्रभो११ यं२१; अंति: जयानंदमय११ प्रदेयाः९. साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, आदि: हे प्रभो हे स्वामिन्; अंति: कारः गुणश्च प्रदेयाः. ३२१५८. शास्वतजिन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८५६, चैत्र, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. विरपुर, प्रले. पं. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२४.५४११, ४-५४३६-४२). शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसिरिउसह वद्धमाणं; अंति: भविआण सिद्धि सुहंइ, गाथा-२४. शाश्वतचैत्य स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीऋषभ वर्द्धमान; अंति: संख्यामाह परमेत्यादि. ३२१५९. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, १२-१३४३४-३६). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर केसर; अंति: जसविजयइं सीवपुर लही, ढाल-६. ३२१६०. वर्द्धमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. कडीनगर, जैदे., (२४.५४११, १८४४१). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: सेवक विनय कहे __ आणंद ए, गाथा-५७. ३२१६१. तिर्थंकरनामादि विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (१९.५४११, २०४३१). तीर्थंकरनामादि विचार संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: सिद्धत्थ१ पुन्नघोस२; अंति: काशंते इत्याकाशम्. ३२१६२. (+) उर्ध्वलोके विमानश्रेणिसंख्या व देवांगनासंख्या विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३६-३७). १.पे. नाम. उर्ध्वलोकेवट्टाहि संख्या, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. कर्णपुर, प्रले. मु. नित्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. ऊर्ध्वलोके विमानश्रेणिसंख्या विचार, प्रा., पद्य, आदि: पन्नट्ठमट्ठसीया; अंति: नवनव सयाणि सेसेषु, गाथा-२०. २. पे. नाम. देवांगनानी संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण... देवांगना संख्यागाथा, प्रा., पद्य, आदि: दोकोडाकोडिओ हवंति; अंति: चवंति इंदस्स जम्मंमि, गाथा-२. ३२१६३. इर्यापथिकी कुलक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, ६x४३). इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह; अंति: पमाणमेयं सुए भणियं, गाथा-१०. इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चवद भेद नारकीना; अंति: सिद्धांतइ कह्यओ छइ. ३२१६४.(-) विविधबोल संग्रह सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११, ६x२०-३१). १.पे. नाम. पच्चीस क्रिया सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. २५ क्रिया गाथा, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: काइया१ अहिगरणीया२; अंति: दोस२४ इरीयावही२५, गाथा-३. २५ क्रिया गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: का० कायसु लागइ किरीय; अंति: तिजई समय क्षइ करइ. २. पे. नाम. दसजतीधरमना भेद सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १० यतिधर्म भेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खंती मुत्ती अज्झबे; अंति: चियाएर बंभचेरवासे१०, गाथा-१. १० यतिधर्म भेद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ख०क्षमानो करबो; अंति: विषइ पालवो सेववो. ३. पे. नाम. दसकल्पवृक्ष सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. १० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मतगा१ भियगार तुडिया; अंति: गेहागारा९ अनिगिणाय१०, गाथा-२. १० कल्पवृक्षनाम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दसप्रकारनां कल्पवृक्; अंति: परी मुक्तारी मालाई. ३२१६५. महालक्ष्मी स्तोत्र व पचक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३६). १.पे. नाम. माहालक्ष्मी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्यसत; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक-९. २. पे. नाम. पचक्खाणसूत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org २३३ प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुरे उग्गए नमुक्कार, अंति: असिथेणवा वोसरेह, (प्रतिपूर्ण, वि. तिविहार उपवास व एकासणा का पंचक्खाण लिखा है.) ३२१६६. () संथारारी पाटी, संपूर्ण, वि. १९८२, फाल्गुन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. नंदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे. (२१x११.५, १४४३२). संलेखना पाठ, प्रा.मा.गु., गद्य, आदिः अहं भंते अपछिम मारणं; अंति: मिच्छामिदुक्कडम् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२१६७. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६७, वैशाख शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २४११, १५-१६x४२-४४). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य वि. १७१२, आदिः श्रीसरसतीजी वरसति; अंतिः विजय भणइ आणंदकारी, गाथा- ७९. ३२१६८. (४) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. ११x४९). (२४.५x१०.५, कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं. पद्य वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, " श्लोक-४४. ३२१६९, (४) सीमंधरस्वामी वीनती, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२४४११, १३४४३-४५), सीमंधरजिनविज्ञप्ति स्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: स्वस्ति श्रीपुष्कलाव; अंति: विहरतो देउ भद्द, ढाल ७. ३२१७०. धर्मध्यान विचार, संपूर्ण वि. १७३८ आश्विन अधिकमास शुक्र १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, खुरमपुर, प्रले. पं. चंद्रविजय गणि (गुरुग. नित्यविजय): गुपि. ग. नित्यविजय (गुरु उपा. लावण्यविजय गणि); उपा. लावण्यविजय गणि (गुरु आ. विजयदेवसूरि); पठ. श्रावि. चांपाबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २४.५X११, १४-१५X४३-४५). धर्मध्यान लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मेज्झाणे चउविहे; अंतिः सदा धरम ध्यान धाइई. ३२१७१. बारभावना व अतिचारगाथा, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८-४ (१ से ४) ४, कुल पे. २, जैवे. (२४४१०.५, १५X३९-४२). १. पे. नाम. द्वादश भावना, पृ. ५अ-८आ, संपूर्ण. १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल कुल कमलना हंस; अंति: ध्यान कल आणउ, ढाल १४. २. पे. नाम. साधु देवसिक अतिचार आलोयण गाथा, पृ. ८आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सवणासणन्नपाणें चेईय, अंतिः वितहायरणे अईयारो, गाथा १. ३२१७२. उपदेशरत्नकोश सह बालाविबोध, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२४.५४१०.५, ११४३७-३८). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि प्रा. पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासिअ अंतिः वच्छयले रमइ सच्छाए "" गाथा - २५. उपदेशरत्नमाला - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि उपदेशरत्नरूपनउ कोश, अंतिः स्थलिं स्वेच्छाइ रमि ३२१७३. चतुर्विंशति नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२४.५x१०.५, ९४२८). सकलात् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १२वी आदिः सकलात्प्रतिष्ठान, अंतिः मरालाचाहते नमः, श्लोक-२६. , ३२१७४. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२४.५४१०.५, १५३४). चतुर्विंशतिजिन स्तुति, वा. उदयविजय, सं., पद्य, आदि: ऐंद्र शरासन माला, अंति: जिनपाः प्रसीदंतु, श्लोक-३२. ३२१७५. चैत्रपरिवाडि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैये. (२४.५४१०.५, १३४४७). For Private And Personal Use Only चैत्य परिवाडि स्तवन, आ. महिमासूरि, मा.गु., पद्य वि. १७२२, आदि श्रीवागेश्वरी वीनवु अंतिः श्रीसंघनि जयकार, , ढाल - ५. Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२१७७. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १७४७, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. कृष्णगढनगर, प्रले. ग. अनोप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, १२४४१). १.पे. नाम. पांडव सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)मुझ आवागमण निवारि रे, (२)दीपता अति सोहै रे, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. सीता सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो प्रिउ छोडि; अंति: हो धरम हीये धरीजी, गाथा-११. ३२१७८. ऋषिमंडल स्तोत्र व आम्नायसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १३४४८). १. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्रविधि, पृ. १अ, संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रां हिँ ह; अंति: दर्शनादेशश्च भवति. २.पे. नाम. जिनदत्तसूरिआदिगुरुप्रदत्त आम्नायसंग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: अट्ठगणाधीसरेबंदे. ३२१७९. गच्छाचारस्थाहारविधिर्वृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, जैदे., (२४.५४११, १४४४२). गच्छाचार प्रकीर्णक-आहारग्रहणविधि टीकांश, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि: पिंडश्चतुर्विधाहार; अंति: भक्तपानपूतिः स्यात्. ३२१८०. स्तवन चौवीसी व सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १६-१८४३८-४१). १.पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १७६८, चैत्र शुक्ल, ४, ले.स्थल. दसाडा नगर, प्रले. पं. न्यायकुशल (गुरु ग. मतिकुशल); गुपि.ग. मतिकुशल (गुरु पंन्या. वीरकुशल); पंन्या. वीरकुशल (गुरु ग. लालकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमधुकर मोही रह्यो; अंति: चडती दोलति पाओ जी, स्तवन-२४. २. पे. नाम. थुलभद्र सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. गुणानंद, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंतने समजावनें; अंति: एज मन शुद्ध प्रीति, गाथा-१३. ३२१८१. जमणवार व नेमिजिनवर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०, २१४४६). १. पे. नाम. राजानुं जमणवार, पृ. १अ, संपूर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य. राजा के भोजन का वर्णन-जिमणवार, मा.गु., गद्य, आदि: राजाने जमवा तेडे ते; अंति: करवा पांणि मंगावे. २.पे. नाम, नेमिजिन ऋद्धिवर्णन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन वर्णन-लौकिकवार्तायां, मा.गु., गद्य, आदि: उग्रसेन प्रभुष सोल; अंति: विसीष्ट परिवार. ३२१८२. रिषिनी विनति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४१२, १४४३८). साधुवंदना, ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: वीर जिणेसर प्रणम: अंति: भक्तिवि० पभणे निसदिस. गाथा-२९. ३२१८३. जकडी, स्वाध्याय संग्रह, स्तोत्र व विहरमानजिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १०, जैदे., (२४.५४११, १६४३६-४४). १.पे. नाम. पुण्यलब्धविनितावाडी जकडी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कमल, पुहिं., पद्य, आदि: भोगी भुंराबेतई फिरत; अंति: कमल० कण कंचण चूडी, गाथा-५. २. पे. नाम. हितोपदेश जकडी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक जकडी, मु. कमल, पुहिं., पद्य, आदि: लालन मेराबे मानो; अंति: कमल०अमरमणी परणी रमणी, गाथा-५. ३. पे. नाम. मधुकरोपदेश जकडी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक जकडी-मधुकर, मु. कमल, पुहिं., पद्य, आदि: मधुकर मोह्योबे कुसुम; अंति: कमल मम मधुकर कामई, गाथा-५. ४. पे. नाम. चातकस्यहितोपदेश जकडी, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २३५ औपदेशिक जकडी-चातकहितोपदेश, क. कमलविजय, पुहिं., पद्य, आदि: चातक चाहइंबे घोरघना; अंति: चातक मत मनमई झुरई, गाथा-५. ५. पे. नाम. प्रितिहांपरिहारोपदेश जकडी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक जकडी-प्रितिहांपरिहार, मु. कमल, पुहिं., पद्य, आदि: सजन सुणीइंबे ए हित; अंति: नहिं सज्ज अइंसा कोई, गाथा-५. ६. पे. नाम. आत्म स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि: किसके चेले किसके; अंति: विराजे सुख भरपूर, गाथा-७. ७. पे. नाम. परस्त्रीत्याग स्वाध्याय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री निषेध, मु. लक्ष्मीविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मत को विस्वास करो; अंति: धरहो ध्यान जिनवर को, गाथा-५. ८. पे. नाम. विजयदेवसूरीश्वर स्वाध्याय, पृ. ४अ, संपूर्ण. विजयदेवसूरि सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजयदेवसूरीस वड; अंति: तेज० प्रभु तुहिज ईस, गाथा-५. ९. पे. नाम. विहरमानजिन स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, पं. सुधनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिन विहरमान; अंति: सुधनहर्ष० भयो दिन आज, गाथा-६. १०. पे. नाम. विहरमान २० जिन नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर१ युगमंधर२; अंति: अजितवीर्यतीर्थंकर२०. ३२१८४. सीमंधर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४१२, १३४३०). सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: लाभै० पुरी आसा मनतणी, गाथा-१८. ३२१८५. (+) प्रतिलेखनादिगाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४१०.५, १७४२०-२२). प्रतिलेखनकालमान गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: आसाढे पउणपहरो दो पयछ; अंति: छाया एहिंसहणि अद्धा, गाथा-१३, (संपूर्ण, वि. साथ में प्रतिलेखन काल का कोष्ठक भी दिया गया है.) ३२१८६. सारदा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७९३, फाल्गुन कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४१०.५, १५४३२). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: फलस्यइं सविताहरी, गाथा-३४. ३२१८८. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११,१७४४४-५७). १.पे. नाम. नेमराजुल बारैमासो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ कृष्ण, ९, सोमवार. नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: विनवे उग्रसेन की लाड; अंति: लालविनोदनैं गाए, गाथा-२६. २. पे. नाम. निर्भयसेनकुमार स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. निर्भयसेनकुमार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: द्वारमतीने बाहिरे; अंति: विनय० वंछित पूरै आस, गाथा-१४. ३२१८९. कल्याणमंदिर की भाषा, संपूर्ण, वि. १८३०, भाद्रपद शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सूरखंड, जैदे., (२४.५४१२, १३-१४४२७-३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परमज्योति परमातमा; अंति: ___ कारन समकित शुद्धि, गाथा-४४. ३२१९०. परमात्म स्वरूप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४१०.५, ११४३९). परमात्मस्वरूप स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चिदानंद रूपं सुरूपं; अंति: तच्छिशुर्दाननामा, गाथा-३२. For Private And Personal use only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२१९२. पूजाविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४११, ११४३६). महावीरजिन पूजाविधि स्तवन-दिल्लीमंडन, मु. गुणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिअवीर जिणेसर; अंति: गुणविमल भजु जगदीस, गाथा-२७. ३२१९३. अरहन्नकचौपि, संपूर्ण, वि. १७४९, भाद्रपद कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. बिद्रावती, प्रले. मु. हरजी (गुरु मु. टीलाजी ऋषि); गुपि.मु. टीलाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४९.५, १२४४६). अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: सरसति सामिणि वीनवं; अंति: कहीओरास विलास कि, ढाल-८. ३२१९४. गुणस्थानकचतुर्दश व ४८ लब्धि विचार गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४५३). १.पे. नाम. गुणस्थानकचतुर्दश विचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६. २.पे. नाम. ४८ लब्धिविचार गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मीसेखीणिसयोगे नमरते; अंति: तेरसए आउ नहु हंति, गाथा-५. ३२१९५. चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. अनोपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १०-१२४३८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३२१९६. (-) आवश्यकक्रीयासूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३३). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३२१९७. (+) पद्मावतीस्तोत्र, भक्तामरकाव्य व गणपतिमंत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १८४४७). १.पे. नाम. पद्मावतीस्तोत्र मंत्रविधि सहित, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदिः (१)ॐ अस्य श्रीपद्मावती, (२)श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: (१)दुर्भिक्ष दावानला, (२)प्रसीद परमेश्वरि, श्लोक-३४. २. पे. नाम. मानतुंगकृत भक्तामरचतुष्कभंडार काव्य, पृ. ३अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-चतुष्कभंडार काव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: यः संस्कृवैगुणभृतां; अंति: जिनयतोः प्रथमोजिनेशः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. गणपति मंत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं, अंति: गोली १०८ होमे कार्य. ३२१९८. अनंतनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०,१२४३६). अनंतजिन स्तवन, मु. भाव, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां ए सहीयां मोरा; अंति: नीहालो नायक नेहसु, गाथा-७. ३२१९९. वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १७४५०). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अरिहंतपुजा त्रिकाल; अंति: करेइ सो पावए सिद्धिं. ३२२००. आत्म निंदा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२३.५४११.५, ८x२९). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: सो नर सुगुण प्रवीन. ३२२०१. (#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४६९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. For Private And Personal use only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २३७ ३२२०२. मोखमारग - सूत्रकृतांगसूत्र के प्रथम शृतस्कंध का हिस्सा मार्गनामक ११ वाँ अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४११, १३४३८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: विहरति त्ति बेमि, ग्रं. २१००, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. सूत्रकृतांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध का हिस्सा ग्यारहवाँ मार्ग नामक अध्ययन.) ३२२०३. (+) महावीर स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२४.५४११, २५४४३). महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, ___ श्लोक-४. संसारदावानल स्तुति-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: अहं वीरं नमामीति; अंति: इति पंचाशकवृत्तौ. ३२२०४. (+) आत्मगर्हा स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १६४३९). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ३२२०५. पदमावती, संपूर्ण, वि. १९७४, माघ कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. जोधपुर, जैदे., (२४.५४११, १२४३८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोटी सति पदमावती; अंति: पापथी छूटे ते तत्काल, ढाल-३, गाथा-८२. ३२२०६. चतुर्विंशतिजिन स्तुति सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक लिखने की जगह का भाग टूटा होने से पत्रांक काल्पनिक दिया गया है., जैदे., (२४.५४११.५, १९४३७). २४ जिन सवैया, मु. सार, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: कविसार महासुख देने, सवैया-२५, (पू.वि. सवैया-१४ तक नहीं है.) ३२२०७. (+) संघसरूव कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, ४४३१). संघस्वरूप कुलक, प्रा., पद्य, आदि: केई उम्मग्गठिअं; अंति: दूसमकालेवि सो संघो, गाथा-२१. संघस्वरूप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: केतला अज्ञान लोक; अंति: आरि पणि ते संघ जाणवो. ३२२०८. (+) पार्श्वनाथ सप्रभाव स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. वा. सुमतिनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२४.५४११, ८-११४४९-५१). पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, ई. १२००, आदि: जसु सासणदेवि पसायकया; अंति: पार्श्वस्तोत्रमेतत्, गाथा-३७, (वि. प्रति में कृति के अंत में जिनदत्तसूरिकृत लिखा है, परन्तु कृति के कर्ता पूर्णकलश है.) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि: जं संथवणं विहिअं; अंति: तवं होउ जगि सुक्खयं. ३२२०९. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. चारित्रकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, ६x४६). पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं तमहं; अंति: भ्यर्चनोभीष्टलब्ध्यै, श्लोक-१३. पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध-टीका, सं., गद्य, आदि: अहं श्रीपार्श्वनाथं; अंति: भीष्टलब्ध्यै स्यात्. ३२२१०. सज्झाय संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०,१०४२८). १.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. २. पे. नाम. नवकार रास, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगै; अंति: जास अपार री माई, गाथा-९. ३. पे. नाम. ब्रह्मचायी सिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्याध्ययन सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचर्यना दश; अंति: उदयविज० गुरु धन्य रे, गाथा-६. For Private And Personal use only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२२११. पजूसणनी थोई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. लाभविजय; पठ. श्रावि. धोलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३६). __ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतरभेदे जिनपूजा रचीन; अंति: पुरवे देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ३२२१३. लघु शांतिनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६८, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालीनगर, पठ. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५,१६४३८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३२२१४. शत्रुजयतीर्थ कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. कुल ग्रं. १००, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३२). शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२५, ग्रं. ३३. शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अइमुत्तइ केवलीई; अंति: यात्रा फल पामे, ग्रं. ६७. ३२२१५. ऋषभजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. जीवी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३८). १.पे. नाम. ऋषभदेव गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन गीत-वटपद्रमंडन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवी वाणी बोले; अंति: प्रीतिविजय०निसदिस रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. शेव्रुजमंडण रीषभदेव स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयगिरिमंडन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी रे जयकारी रे; अंति: प्रीति वधारी रे, गाथा-५. ३२२१६. (+) शांतिनाथवीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. चंगाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, ९४३०). शांतिजिनविनतीस्तवन, मु. विमलविनय, मा.गु., पद्य, आदि: कुशल कमलवन दिनकरू; अंति: विमलविनय गुण गाईय ए, गाथा-५. ३२२१७. संथारा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५,११४३७). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: (१)ताणि सव्वाणि वोसिरयं, (२)निरंतरं वसइ हिययंमि, गाथा-१९, (वि. गाथा १५+४.) ३२२१९. (+) सम्यक्त्वस्वरूपगर्भित वीर स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. श्राव. तेजसी गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, १७४४५-४७). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: होउ सम्मत्त संपत्ती, गाथा-२४. सम्यक्त्वस्वरूपगर्भित वीरजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा येन औपशमिकत्वादि; अंति: भवतु अन्यत्सुगमं. ३२२२०. बावीसअभक्ष्यबत्रीसअनंतकाय सज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १५४३१). १. पे. नाम. बावीसअभक्षबत्रीसअनंतकाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रेशुद्ध; अंति: जाणी तो सेवा सुख लहै, गाथा-८. २. पे. नाम. साहमीसंतोषछत्रीसी, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. संतोषछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: सामीसुं संतोष करीजे; अंति: कीधी संघ जगीस जी, गाथा-३६. ३. पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: वीर जिणेसर वंदिने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ३२२२२. एकादशीव्रत, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५४). For Private And Personal use only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ; अंति: तह मुक्खसुक्खं, गाथा-१५७. ३२२२३. अष्टप्रकारीपूजा अष्टक व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३८). १.पे. नाम. अष्टप्रकारी पुजा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनपूजा अष्टक, मु. सुजयसौभाग्य, सं., पद्य, आदि: अमल निर्मल केवल; अंति: वाचकं वाच्यसिद्धिं, श्लोक-९. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जाण्यो रे मै मन; अंति: पसरत सहज सभाव समाधि, गाथा-१०. ३२२२४. निगोदछत्रीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२४.५४११, १२४४५-४८). निगोदछत्रीसी, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सेगपएसे जहणयपय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., __गाथा-४ अपूर्ण तक लिखी हुई है.) निगोदषत्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: लोक चउद रजवात्मक तेह; अंति: असंख्याति जाणवी, संपूर्ण. ३२२२५. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १७४५९). १.पे. नाम. तीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तीर्थमाला स्तवन, सं., पद्य, आदि: पंचाणुत्तरशरणाग्रैवे; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२४. २. पे. नाम. मंगल स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवनाधिवा; अंति: तुता श्रीधर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. ३. पे. नाम. गौतमस्वामि स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदि: स्वर्णाष्टाग्रसहस्र; अंति: श्रेयांसि भूयांसि नः, श्लोक-११. ३२२२६. गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ग. जीतविजय (गुरु ग. डुंगरविजय); गुपि. ग. डुंगरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ८४३२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अच्छपरा; अंति: निसेवंति सुखं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: लुभिया मनुष्य अर्थ; अंति: भव्या सुखं लभंते. ३२२२७. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३२२२८. वनस्पतिसप्ततिका व इर्यापथिकी कुलक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १६४५४). १.पे. नाम. वनस्पतिसप्ततिका, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. जीर्णदुर्गनगर, प्रले.ग. हंसविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभाइ जिणिंदे पत्तेय; अंति: मुणिचंदसूरीहिं, गाथा-७६. २. पे. नाम. इर्यापथिकी कुलं, पृ. ३अ, संपूर्ण. इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह; अंति: पमाणमेयं सुए भणियं, गाथा-१०. ३२२२९. महासती कुल, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. नय; वा. कीर्तिहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ११४३२-३६). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ३२२३०. नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३०-३५). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ____ अपूर्ण., नवकार, उवसग्गहरं, संतिकरं, तिजयपहुत्त संपूर्ण नमिऊण स्तोत्र गाथा-८ अपूर्ण पर्यन्त है.) ३२२३१. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३४). १.पे. नाम. पारस्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: तारक देव त्रेवीसमो; अंति: दिनदिन कोड कल्याण, गाथा-२२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोनारी अंगी है सुंदर; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) For Private And Personal use only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२२३२. गौतम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४३४). गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ३२२३३. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. प्रत में पत्रांक दो प्रकार से दिये गये हैं प्रथम प्रकार में पत्रांक २ से ३ है एवं द्वितीय प्रकार में पत्रांक १ से २ है., जैदे., (२५.५४११, १३४२८). १.पे. नाम. स्वांतोद्भवविकल्पप्रकाशनवैणपजजन श्रीजिन स्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२४. २. पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तव, उपा. राजविमल, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रातु शिवं राजविमलस्य, श्लोक-२७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक द्वारा श्लोक-१८ अपूर्ण से लिखा गया है., वि. प्रतिलेखक ने श्लोक-१८ से पत्रांक ३आ पर लिखना प्रारंभ किया है, संभवतः प्रारंभिक श्लोक प्रथम पत्र पर लिखे हों.) ३२२३४. समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. कास्माबाजार, जैदे., (२५४११, ११४३२). पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरो जग; अंति: पाठक धरमवरधन धार ए, ढाल-२, गाथा-२८. ३२२३५. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४३, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. माटलगढ, प्रले. भोजराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३२२३६. जिनबिंब नक्षत्र, गण, योनि आदि विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४६१). जिनबिंब गण नक्षत्र योनि आदि विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इह देवस्य तद्विंबकार; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३२२३७. सझाय संग्रह व गीत, संपूर्ण, वि. १८२३, चैत्र कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४५). १. पे. नाम. अमल सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अमलवर्जनविषये, मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी मन धरी; अंति: तणो कहि माणिक मनोहार, गाथा-२३. २. पे. नाम. तंबाखु स्वध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. तमाकपरिहार सज्झाय, म. आणंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती विनवे; अंति: ते लहे कोडि कल्याण. गाथा-१७. ३. पे. नाम. सोगठांरी सिज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही हो सांभल; अंति: आणंद कहे करजोडी रे, गाथा-११. ४. पे. नाम. नमिराजा सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणी ऋधि भोगवी; अंति: विजयसिंहगुरु वचनै रे, गाथा-८. ५. पे. नाम. शंभव गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संभव भवदुख वारण तारण; अंति: पसाए नितनित मंगल थाय, गाथा-५. ३२२३८. (+) सामायिक पर्यायेष्वष्ट कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७X४८). सामायिक पर्याय के विषय में कथा संग्रह, सं., पद्य, आदि: सामायिकावश्यकपौषधानि; अंति: प्रत्याख्य० मनीषि तं, कथा-८. ३२२४०. वंकचूलनी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४९). For Private And Personal use only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ वंकचूल कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावस्ती नामा नगरी; अंति: नीम च्यारि पाली करी. ३२२४१. सम्यक्त्वरहस्य प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, २०४६६). सम्यक्त्वरहस्य प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पत्तभवो अहितीरं कोहा; अंति: सिग्घं जति निव्वाणं, ___ गाथा-९२. ३२२४२. (#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४०). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामीगणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंदसंपदं, श्लोक-९२, ग्रं. १५०. ३२२४३. औपदेशिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८३०, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. विक्रमपुर, जैदे., (२६४१०.५, १७४५२-६३). औपदेशिक व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: धर्मः कामगवी यदीय; अंति: लोक सुखी परलोक सुखी. ३२२४४. (+) विविध विषये साक्षीपाठ संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७४४५). जैन सामान्यकृति प्रा.,मा.गु..सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२२४५. आवश्यकथिरावली, गाथा संग्रह व पंचपरमेष्टिगुण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. समीनगर, प्रले. मु. जीवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४३९). १.पे. नाम. आवश्यकथिरावली, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्सपरूवण वुच्छ, गाथा-५०. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि के १०८ गुण वर्णन, पृ. २आ, संपूर्ण. ५परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: बार गुण अरिहंतना रूप; अंति: खमे ए २७ गुण साधुना. ३२२४६. खरतरगच्छीय पट्टावली, वीरजिनशासने ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १४४५२). १.पे. नाम. वीरजिनशासने प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिनशासने प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरे मोक्षं; अंति: वीजाप० तपागच्छो जातः. २. पे. नाम. खरतरगच्छीय पट्टावली, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरायुर्वर्ष ७२; अंति: गणधाराश्चिरं जयंतु. ३. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५. ३२२४७. (+) रास, पद, श्लोक व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २१४५६). १.पे. नाम. महावीरात् साधुसमुदाय पट्टावली, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ढुंढकमत पट्टावली दुढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: वांदु सिरी चोवीसमा; अंति: दुरगति दूर निवारि, ढाल-२. २. पे. नाम. पटावली, पृ. २अ, संपूर्ण. ८४ गच्छ विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै चोरासीगच्छना सर; अंति: साची प्ररूपणा कीधी. ३. पे. नाम. निह्नव विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: वीर केवलात १४ वर्षे, अंति: मिच्छामिदुक० नदीधो. For Private And Personal use only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पूण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. समवसरण विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भौमि थकी अढाइ गाउ; अंति: समवसरण दिन १० रहे. ५. पे. नाम. अल्पाबहुत्वचतुर्दश बोल, पृ. २आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६. पे. नाम. सातवेरी पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-७ वेरी, मा.गु., पद्य, आदि: मन है वैरी आपणो दूजो; अंति: शिवसुख सहिज वरीस, गाथा-४. ७. पे. नाम. गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३२२४८. जैन श्लोक सह बालावबोधव पनरयोग नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सूरतबंदिर, प्रले. मु. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४१०.५, २४४०). १.पे. नाम. तत्त्व व्रतादिप्रकार श्लोक सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जैन श्लोक सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. जैन श्लोक का बालावबोध ,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्त्वानि नवतत्त्व; अंति: चउत्रीस अतिशय जाणवा. २. पे. नाम. पनरयोग नाम, पृ. १आ, संपूर्ण.. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२२४९. (+) स्थानांगसूत्रे पंचमस्थानगत आलावो, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४३). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. स्थानांगसूत्र के पंचमस्थानगत आलावा.) ३२२५०. स्तोत्र संग्रह की भंडार गाथाएँ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, ११४५०). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र की भंडार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररवपुरिदिग्वि; अंति: परिणतगुणैः प्रयोज्या, श्लोक-४. २.पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र की भंडार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: परमेसर सिरिपासनाह; अंति: सिद्धि मह वंछियपूरण, गाथा-२. ३. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्रस्य भंडार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा*,संबद्ध, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: ॐ विसहर दावानल साइणि; अंति: नीलकंठपसाएणं, गाथा-२. ३२२५२. (+) पुंडरीकपूजाकरण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १६४५१). पुंडरीकगणधर पूजाविधि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: उस्सप्पिणीय पढम; अंति: (१)चैत्रपूर्णिमा, (२)यात्राफलं भवति. ३२२६०. (-) जुगमंदिरजिनो तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ११४२८). युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयुगमंधर जिन; अंति: जिनविजये गायो जीरे, गाथा-९. ३२२६१. हमचिनि स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४३). हितशीखामण हमची, मु. वर्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामिण पाये नमी; अंति: ते नरभव अजूआलइरे, गाथा-२६, संपूर्ण. ३२२६२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, ३३४१९). १.पे. नाम. एकादसीव्रत गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. एकादशीव्रत गीत, मा.गु., पद्य, आदि: मेरुशिखरि सोनानु; अंति: जे व्रत करइ एकादसी, गाथा-११. २. पे. नाम. माना गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. गर्भावास सज्झाय, संघो, मा.गु., पद्य, आदि: माता उदरि रहिउ दसमास; अंति: मावित्र दीधउ छेह, गाथा-१५. For Private And Personal use only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २४३ ३२२६३. सामायक बत्रीसदोष सीझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ११४२८). सामायिक के ३२ दोष स्वाध्याय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंति: श्रीकमलविजय गुरु शीष, गाथा-१३. ३२२६४. नवकार मंत्र, संपूर्ण, वि. १७५२, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, प्रले.ग. कीर्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४९). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण; अंति: तणी सेवा __ कीजै नित, गाथा-१३. ३२२६५. स्तवन, सझाय संग्रह व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६०, श्रावण शुक्ल, १४ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. जोबनेर, प्रले. मु. मनोज्ञसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १८४५४). १.पे. नाम. नेमनाथजिन स्तवन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनमुं; अंति: वैरागी गिरनारै ठायौ, गाथा-७. २. पे. नाम. श्रीविचार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. असनादि काल प्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगौतम गण; अंति: वीरविमल करि जोडी कहइ, गाथा-१७. ३. पे. नाम. साधुसज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मेतार्यमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मेतारज मुनि, अंति: राम लहीयै उत्तम ठाम, गाथा-१५. ४. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३२२६६. चंद्रप्रभ स्तवन व गुरु भास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०). १.पे. नाम. चंद्रप्रभ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु चरण नमी करी; अंति: इम होउ मह दुःख खंडणो, गाथा-११. २. पे. नाम. गुरु भास, पृ. १आ, संपूर्ण. भानुचंद्र उपाध्याय भास, मु. भावचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भविजन वंदो भाव धरी; अंति: चीरजीवो मुनिराय रे, गाथा-४. ३२२६८. शतिगुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७६५, पौष शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सूर्यपूर, प्रले. पं. चतुरसागर; पठ. श्रावि. हीरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३६). सतीगुण सज्झाय, मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदि: सुप्रभाति नितु समरिइ; अंति: पाप ताप सहु जाई, गाथा-१७. ३२२६९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १६४४२). १.पे. नाम. शत्रुजयगिरनार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठदेश दिखाउनै; अंति: प्रभु सेर धिरीया, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दोलतदाई दीदार देखाउ; अंति: बोधकमल दिल रसीया, गाथा-७. ३. पे. नाम. गोडी स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: लाखिणो सोहावे जिननी; अंति: सदा भाजें दुखण जंजीर, गाथा-७. ४. पे. नाम. राजीमती स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती स्तवन, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर सारि बालकुंवार; अंति: सकल मनोरथ फलियां, गाथा-६. ३२२७०. नंदीसूत्र मंगलगाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १२४३५). नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जग जीवजोणी; अंति: संघसमुद्दस्स रुंदस्स, गाथा-११. ३२२७२. दान कुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४२). दान कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: (-). दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेवनै नमस्कार; अंति: (-). ३२२७३. प्रव्रज्या विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, ११४३४). प्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पहिली इरियावही; अंति: ते मारगै सिद्धावे. ३२२७५. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, २२४४५). १.पे. नाम. सचित्ताचित्त विवरण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: नयविमल कहे सज्झाय, गाथा-२३. २. पे. नाम. काउसग्ग ओगणीसदोष सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. काउसग्ग १९ दोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव समरी अरिहंत; अंति: नयविमल कहे निसदीस, गाथा-१४. ३२२७६. वृद्धगुरु स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १०४२६). विजयक्षमासूरि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजयरत्नसूरिंदना; अंति: मोहनविजय जयकार, गाथा-७. ३२२७७. चौवीसजिन नमस्कार, सिद्धचक्र स्तव व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x६०). १.पे. नाम. चउवीसजिन नमस्कार, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. नमस्कारचौवीसी, मा.गु., पद्य, आदि: जाणउं जगनाथ सावनामई; अंति: सुपसाउ करी दिवारउ, गाथा-२५. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तव, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्क नमामि, गाथा-६. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अरिहं सिद्धायरिआ; अंति: नवपयतत्तं सया वंदे, गाथा-१. ४. पे. नाम. सिद्धचक्क नमस्कार, पृ. ८आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र नमस्कार, अप., पद्य, आदि: जो धुरि सिरि अरिहंत; अंति: अम्हं मणवंछीउ दियउ, गाथा-३, (वि. गाथा क्रमांक नहीं दिया हुआ है.) ३२२७८. स्तुति संग्रह व पच्चक्खाण सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १२-१६x४०). १. पे. नाम. सुखडी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: तुसे देवी अंबाई, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजी की स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: सर्व विघ्न दूरे हरई, गाथा-४. ३. पे. नाम. पच्चक्खाण सिज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दसपच्चक्खाण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविह प्रह ऊठी; अंति: पामो निश्चै निरवांण, गाथा-७. ३२२७९. (+) फलवधीपार्श्वनाथ फाग, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १५४५२). पार्श्वजिन फाग-फलवर्द्धि, मु. खेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु सिरोमणि मनि; अंति: नितु खेमकुशल विलसंति, गाथा-२३. For Private And Personal use only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३२२८०. नेमि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४२७). नेमिजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., पद्य, आदि: राजी करीई आजकै आजकै; अंति: सर भरे हो लाल के, गाथा-५. ३२२८१. नेमिजिन गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ.मु. जयवंतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४३). १. पे. नाम. नेमिराजुल गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल बोलइ हो बेकर; अंति: फलीया म्हारा लाल, गाथा-९. २.पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणथी रथ वालि वल्या; अंति: लाल दुख सवि टालीयै, गाथा-९. ३२२८२. पार्श्वनाथ स्तवन व शत्रुजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४३). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समरथ साहिब सांवलो; अंति: कल्याण० सानिधि करई, गाथा-२१. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: न भेत्तव्यं न; अंति: मेकवेलं निरीक्षय, श्लोक-१. ३२२८३. (+) दानविषये गजभंजन कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १४४३७-४३). गजभंजन कथा-दानविषये, सं., गद्य, आदि: (१)दानेन लभते सौख्यं, (२)इहलोक फलितं पुण्यं प; अंति: परलोकं प्राप्तः. ३२२८४. विचारषत्रिंशिकावचूरि, संपूर्ण, वि. १८५८, पौष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. मुक्तेंदु ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४५०-५६). दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेय; अंति: मत्वेद बालचापल्यम्. ३२२८५. पार्श्वजिन व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. जयगोपाल पीरोयत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ९४३६). १.पे. नाम. कलिकुंडपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह; अंति: कलिकुंडस्वामिने नमः, श्लोक-४. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधो; अंति: जिनचंदे हीये मे आणी, गाथा-९. ३२२८६. पारसनाथजीरो स्तवन व उवसग्गहरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. कानमल्ल; पठ. सा. श्रीकुंवरजी (गुरु सा. धापांजी, स्थानकवासी); गुपि. सा. धापांजी (गुरु सा. राजाजी, स्थानकवासी); सा. राजाजी (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. पारसनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेमकरण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि; अंति: प्रभु पारसनाथ कीए, गाथा-१५. २. पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. उपसर्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ३२२८७. सिद्धचक्र स्तुति व गायत्री मंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४१८). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजुत्ताण सत्ताण; अंति: महंताण कल्लाणयम्, गाथा-४, (वि. कृति के अंतर्गत यंत्र भी दिया हुआ है.) २. पे. नाम. गायत्री, पृ. १आ, संपूर्ण. गायत्री मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ भूर्भुवः स्वः; अंति: धियो योनः प्रचोदयात्. ३२२८८. जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४४५). For Private And Personal use only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंतिः श्रीकमलप्रभाख्य, श्लोक-२५. ३२२८९. उवसग्गहरं स्तोत्र, चौदनियम गाथा सह टवार्थ व पद्मावती मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी चैत्र कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. मु. प्रेमचंद (गुरु मु. ताराचंद ऋषि, चंद्रगच्छ); गुपि. मु. ताराचंद ऋषि (चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. लेखन सं.१८ के बाद पत्र खंडित होने के कारण आगे का अंक पढ़ा नहीं जा रहा है., जैदे. (२५.५x१२, ६x४१). " १. पे. नाम. पास स्तुति सह टबार्थ, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसगहरं पासं पासं, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ९. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ९-टबार्थ, मा.गु. गद्य, आदि: पंच परमिष्ठनइ नमस्का, अंतिः सर्वकार्य सिद्धि धाय. २. पे. नाम पद्मावतीदेवी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं. गद्य, आदिः ॐ औं क्रीं ह्रीं ऐं अंति: हाँ फुट् स्वाहा. ३. पे. नाम. चउदहनेम चीतारणगाथा सह टवार्थ, पू. १आ, संपूर्ण चौदनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा - १. श्रावक १४ नियम गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: फूल फल बीज सर्व सचित; अंति: पाणी इतरा सेर राखणा. ३२२९०. (+) ४७ गोचरी दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, ४X४२). गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदिः आहाकम्मु १ देसिय २; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा- ६. गोचरी दोष- बार्थ, मा.गु, गद्य, आदि आधाकर्मी ते कहीइ जे अंतिः दोष मांडलाना जाणिवा. ३२२९१. कल्याणमंदिर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२९, फाल्गुन कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. वडनगर, प्र. वि. श्रीमहावीर प्रसाद], जैवे. (२५.५x११, १३४४२-४४). " कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, " श्लोक-४४. ३२२९३. १९ अंग सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५x११.५, १२४३४) " ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि : आचारांग पहेलुं कह्यु; अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्वाध्याय-३ गाथा-४ तक है.) ३२२९४. गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ४, जैवे. (२४.५४१०.५, १२४४३). , १. पे. नाम. आत्मा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: ए काया अरु कामणी; अंति: स्वारथ का संसार, गाथा - ५. २. पे नाम, जकड़ी गीतं, पृ. १अ संपूर्ण. आध्यात्मिक जकडी, मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: लालण मेरा हो जीवन, अंति: जिन० वली पीहर नर ही, गाथा - ५. ३. पे. नाम जकडी गीतं, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक जकडी, मु. जिनराज, पुहिं, पद्म, आदि: कबहुं न करि हुं री; अंति: बहुरि न खबरी गहेसी, गाथा-३. ४. पे. नाम. जकडी गीतं, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक जकडी, मु. जिनराज, पुहिं, पच, आदिः परदेसी मीति न करीयर अंतिः पेमके पंथ न परीवैरी, गाथा-५, ३२२९५. संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पढ श्राव, भगलो, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५.५४११.५, १५४३७). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा - १३. ३२२९६. (-) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. रतनचंद, पठ. मु. नवलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैवे. (२५.५४११.५, १६४५३). १. पे नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २४७ आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु., पद्म, आदि: श्रीऋषभ जिणेसर जगत, अंतिः इम मुनी कीसन भणी, गाथा १८. २. पे. नाम. पार्श्वजीन स्तवन, पृ. १आ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेमकरण, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण चिंतामणि देव, अंति: पार्श्व मुखे कीये, गाथा - १५. ३२२९७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. दानसिंघ बारोट; पठ. श्रावि. उजमेश्वरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४११.५, ७४२६). १. पे. नाम. शत्रुंजय स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, रा., पद्य, आदि मोहनगारा हो राज रूडा, अंतिः एहमां नही संदेह के, गाथा-७, २. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देश सुहामणो; अंति: देखाड जनममरण निवार, गाथा- १२. ३. पे नाम. सिद्धक्षेत्र तीर्थफलसंख्या स्तवन. पू. ३अ ३आ, संपूर्ण. सिद्धक्षेत्र तीर्थफल स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. पच आदिः सिद्धगिरि ध्याउ, अंतिः विमलसूरि इम गुण गावे, " गाथा-८. ३२२९८. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२५४११.५, १४X३१-३७) "" साधु प्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः नमो अ० करेमि अंतिः वंदामि जिणे चवीसं सूत्र- २१. ३२२९९. उपदेसरत्नमाला व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, १५x५५). १. पे. नाम उपदेसरत्नमाला, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि प्रा. पद्म, आदि उवएसरयणकोसं नासिअ अंतिः विठलं उवएसमालमिणं, गाथा - २६. २. पे. नाम गाथा संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण. जैन गाथा", प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ३२३०० (४) चंद्रकीर्ति टीकागत समास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे., (२४.५x११.५, १६x४९) चंद्रकीर्ति टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं. गद्य वि. १६२३, आदि (-) अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं , हैं. ३२३०३. पट्टावली व विविधविषय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ४, प्र. वि. त्रिपाठ, जैवे. (२६४११, १२x२६-२८). १. पे. नाम. तपागच्छीय पट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण. पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी, अंति: ५९- श्रीहीरविजयसूरि (वि. ५९ वीं पाट श्रीहीरविजयसूरि तक है.) २. पे. नाम. महावीरशासन की अविरल घटनाएँ, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति पेज के एक हिस्से में लिखी गई है। वीरशासने प्रमुख घटना व काल, प्रा., रा.सं., गद्य, आदि: श्रीवीरात् १७५५; अंति: (-), (वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य अवाच्य है.) ३. पे. नाम. अज्ञात जैन आगम कृति, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. पत्र के किनारे में लिखा हुआ है. पत्र खंडित होने से आदि- अंतिमवाक्य अवाच्य है.) ४. पे. नाम. सप्तनय विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. नैगमादिसप्तनय विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: नैगम१ संग्रहर व्यव; अंति: शोभति ते कुंभ कही. ३२३०४. देवपूजाधिकार व जिनदर्शनपूजा फल, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X१०.५, २२x१०२). १. पे. नाम. देवपूजाधिकार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जिनपूजा अधिकार, सं., गद्य, आदि: पूजाहिद्विविधाश्राद्, अंतिः इत्यादि० स्पष्टाः संति, For Private And Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४८ www.kobatirth.org २. पे. नाम. जिनदर्शनपूजा फल विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनदर्शनपूजा फल, सं., पद्य, आदि: यास्यामीतिजिनालये; अंति: तीर्थेश पूजाफलम्, श्लोक-४. ३२३०५. दानशीलतपभावना गाथा सह अर्थ संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (२५.५x१०.५, ९४३१). - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुभाषित श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशुद, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रथम गाथा लिखी हुई है.) दानशीलतपभावना गाथा- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि दान सुपात्रनै विषे अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा का अर्थ तक लिखा है.) ३२३०६. (+) वीर चरित्र सह अवचूरि व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १६८२ श्रावण कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे. २, ले. स्थल. कापरहेडा, प्रले. पं. सूर्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैवे., (२५.५x११, १२x११-३०). १. पे. नाम वीर चरित्र सह अवचूरि पृ. १अ ३आ, संपूर्ण दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिवरय समीरं मोहपंक, अंति: सवा पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. दुरिअरयसमीर स्तोत्र अवचूरि, सं., गद्य, आदि: दुरियरय० दुरित जः; अंतिः पाद प्रणामः तव भवतु, २. पे. नाम श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ३२३०७. स्तव संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X१०.५, १२X३६). १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले. स्थल. राडधरा, प्रले. मु. क्षमाशेखर, पठ. मु. रतना ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जयइ नवनलिनकुवलयवियसि, अंति: दिसउ खयं सव्वदुरिआणं, गाथा- ६. , २. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., पद्य, आदि गब्भ अवयारि सुहम्म, अंतिः सुह सवल संपज्जए, गाथा-८. ३२३०८. नेमीस्वर गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५x११, १४४४४). नेमिजिन स्तवन, मु. करमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब यदुपति आवीय, अंतिः करमचंद आणंद पूरि रे, गाथा-२४. ३२३०९. नेमिनाथ गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X१०.५, १५x५०-५२). नेमिजिन स्तवन, पं. सहजसागर पंडित, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: स्वस्ति श्रीजिनवरनमी, अंति: संघ सकल मंगल करू, गाथा - २१. ३२३१०. आचार्यना ३६ गुणवर्णन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५X१०, १९४६१). For Private And Personal Use Only आचार्य ३६ गुणवर्णन, प्रा. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२३११. स्तुति, स्तवन व हरीबाली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२५.५४११, १५४३३)१. पे. नाम. नेमिनाथस्तूतिरूप पंचमी स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण, प्रले. पं. तिलकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल अंति: म्हारी सफल फली मन आस, गाथा- ९. ३. पे. नाम. गूढार्थ हरीयाली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कीडी चाली सासरे नवमण; अंति: सो भी मत मांनो जूठ, गाथा - ६. ३२३१२. शीलोपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२६४१९, १३x४१-४६). Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 5 . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २४९ शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: निम्महिय सयलहीलंदुह; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, गाथा-११५. ३२३१३. हीरविजय स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४५१). हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जबलगिं जलन की जोति; अंति: नाम ग्रहि रसना सफली, गाथा-१२. ३२३१४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०). १. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, आ. रत्नसागरसूरि, रा., पद्य, आदि: समुद्रविजय कौ नेम; अंति: रतन० चरणे चित लावोन, गाथा-८. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सूरति मूरति मोहनगारी; अंति: जिनहरष धरै मन ध्यान, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पूजो पासजिनंदा; अंति: तुम्ह तुटै आनंदा, गाथा-५. ४. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वंस इखागै राजयो; अंति: वीनती सफल करेसोजी, गाथा-७. ३२३१५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३३). १. पे. नाम. पारसनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: बलिहारी हुं उस पासकी; अंति: अहनिसि लागी है आसकी, गाथा-५. २. पे. नाम. वीरजिन तप स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन तपस्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी बुध द्यो; अंति: स्वामी आपो सुख घणा, गाथा-११. ३२३१६. अढारपापथानिक स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, प्रले. पं. बुद्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३८). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवक वाचकजस इम ___आखेजी, सज्झाय-१८, (पू.वि. ढाल-१७ गाथा-१ अपूर्ण से है.) ३२३१७. रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, ८४३०). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. ३२३१८. गोडीचानो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. टीकर, प्रले. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १८४५३). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आप; अंति: करण धवलधींग गोडी धणी, गाथा-२२. ३२३१९. सीतलनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३१). शीतलजिन स्तवन, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलओसीतल कर मयाजी; अंति: जिणरंग० आस्या फली, गाथा-११. ३२३२०. अरजिन स्तुति सह विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. समितपुर, प्रले. मु. मुनींद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १६x४५). अरजिन स्तुति, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदिः (१)अरजिन तेरर्थः सारो, (२)सारोसारसरोसरोसरसरो: अंति: दरदरादारादरादादरात्, श्लोक-१. अरजिन स्तुति-विवरण, मु. शिवसुंदर, सं., गद्य, आदि: अस्य व्याख्या अरो; अंति: अरादरात्संसारात्. ३२३२१. स्तवन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १७४५९). For Private And Personal use only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. पासजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: गुण० साहिब ए सम दूजो, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-प्रार्थना, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयल टोली भांभर भोल; अंति: गुण गावइ भावना भावई, गाथा-१. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ श्लोक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन सलोको, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता धरीय ऊलास; अंति: विशेषज्ञ जय जयकार, गाथा-२१. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोभागिणि मृगनयणि; अंति: अंबाई अति चंगी, गाथा-४. ३२३२२. सर्वाधिष्ठाइका स्तोत्र व काव्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४३९). १. पे. नाम. सर्वाधिष्ठाइका स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __गणधरदेव स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तं जयो जए तित्थं जमि; अंति: निट्ठियट्ठो सुही होइ, गाथा-२६. २. पे. नाम. अज्ञात कृतिसंग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-)... ३२३२५. (+) वाक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४४). वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं; अंति: हितो वाक्यप्रकाशोयम्, श्लोक-१२५. ३२३२७. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. मु. जसवंत पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १३४४५). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात नमौ सिरनामी; अंति: वंछित फल निहचे पावै, गाथा-१९. ३२३२८. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०२, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वारकाणा, पठ. देवा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४९.५, १४४४२). शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इणि डुंगरिइं मनमोहिऊ; अंति: सफल जनम जगि जासि हो, गाथा-१३. ३२३२९. (+) रत्नाकरावतारिकापदार्थसंख्या व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९७-९५(१ से ९५)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १२४४४). १.पे. नाम. रत्नाकरावतारिकायांवादार्थ संख्या, पृ. ९६अ-९७आ, संपूर्ण, ले.स्थल. मसूदाग्राम. वादार्थसंख्या निरूपण-रत्नाकरावतारिकागत, हिस्सा, पं. यशस्वत्सागर, सं., पद्य, आदि: अहँबीजं भावतश्चाभि; अंति: विषमाप्रायशो०साम्, परिच्छेद-८, श्लोक-४७. २. पे. नाम. वादी प्रतिवादी, पृ. ९७आ, संपूर्ण... वादीप्रतिवादी कोष्ठक, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. षटमत नाम, पृ. ९७आ, संपूर्ण. ६ मत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. दर्शनपंचकनयाभास स्वरूप, पृ. ९७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२३३०. पुण्यपापबंधविचारगर्भ कुलक व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १६४५१). १.पे. नाम. पुण्यपापबंधविचारगर्भ कुलक, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ पुण्यफल कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस; अंति: जिण० धम्म उज्जमह, गाथा-१६. २. पे. नाम. कलादिविविधप्रकार के मापसंख्या विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-८. ३२३३१. वीरजिनपंचवधावा कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जंबुशनगर, जैदे., (२५.५४११.५, १९४२७). महावीरजिन पंचवधावा, मा.गु., पद्य, आदि: विवाह अवशर आविओरे; अंति: अजूआले ए सासननु ए, ढाल-५. ३२३३२. दसपच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १०-११४३०-३८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., एकासणापचक्खाण अपूर्ण तक लिखा है.) ३२३३३. चौवीसजिन व अभिनंदन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३६). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: मुनि लावण्यसमे भणे, गाथा-२८. २. पे. नाम. अभिनंदन स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: त्वमशुभान्यभिनंदननंद; अंति: सुरभियाततनुंतमहारिणा, श्लोक-४. ३२३३४. सझाय संग्रह व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १७X४०). १.पे. नाम. मरुदेवीमाता स्वाध्याय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कल्याण गुण गावइ रे, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. सीमंधरजुगबाहु स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर वंदीयै; अंति: ध्यान धरइ समझाय हो, गाथा-१४. ३. पे. नाम. राजमतीनी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. राजिमतीसती सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी हे राजल; अंति: रिषभ० छइ सील भंडारो, गाथा-९. ३२३३५. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ७, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४१). १. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जगगुरु साचौ स्वामि; अंति: वंछित पूरवौ माहरा, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: सुगुण नर श्रीजिनगुण; अंति: परमपद संपदकुं भजनां, गाथा-५. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंभव जिनरायजी; अंति: अवधारौ अरदास हो, गाथा-५. ४. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: श्रीशंखेसरपासजी रे; अंति: साधु क्षमाकल्याण, गाथा-७. ५. पे. नाम. गिरनारमंडननेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: श्रीनेमीश्वर वंदीयै; अंति: अंबिका सानिध करी, गाथा-१३. ६. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: अविकल कुल इक्ष्वाकु; अंति: आत्मगुण निरमल कर्या, गाथा-१५. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: श्रीआदीसर साहिब सेवि; __अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है. मात्र अंतिम पंक्ति नहीं है.) ३२३३६. उपधानतप विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११,१५४४२). उपधानतपआदि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२३३७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११,१५४४२). १. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जीनजी प्यारो ३ हो; अंति: बाहिं ग्रहिने तार हो, गाथा-९. २.पे. नाम. संखसरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसरपास जिणेसर; अंति: अरि जीपतो साहिबजी, गाथा-५.. ३२३४०. (+) दशार्णभद्रनृप कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, २१४८८). दशार्णभद्रराजर्षि कथा, सं., गद्य, आदि: भगवांस्तीर्थकरों; अंति: रूपत्वेनभण्यत एवेति. ३२३४१. गुरु स्तुति व माणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४४७). १. पे. नाम. गुरु स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. वृद्धिसागरसूरिस्तुति, मु. जिनेंद्र, सं., पद्य, आदि: विशारदांबां जगतसवि; अंति: मिति वै जिणेंद्रः, श्लोक-९. २. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति नित सेवीत सुभ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३२३४६. गौतमस्वामि स्तवन व शांतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. सोमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५-२६.०x१०.५, १०४३२). १.पे. नाम. गौतमस्वामि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, उपा. जयविजय वाचक, सं., पद्य, आदि: ॐश्रीपार्श्वजिनं देव; अंति: रातु भूतो गणेशः, श्लोक-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भक्तिचंद्र, सं., पद्य, आदि: प्राप्तमहाभवजलनिधि; अंति: नुता किल भक्तिचंद्रः, श्लोक-८. ३२३४७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११,१२४३८). १. पे. नाम. आदेशरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तवन, मु. नागेश्वर, मा.गु., पद्य, आदि: आदेशरजिन सेवीयेरे; अंति: संसार पार उतार, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नागेश्वर, मा.गु., पद्य, आदि: परम नरमजिन मोहन; अंति: आपो सिवसुख साथ, गाथा-५. ३. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. नागेश्वर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमोहन पारसनाथ; अंति: नागे० प्रभुमलजोरे, गाथा-३. ३२३४८. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १९४७३). १. पे. नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६००, आदि: सरस सकोमल सारदा वाणी; अंति: सफल सफल दइ आज हे, गाथा-७८. २.पे. नाम. आलोअण तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २५३ शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी विनवूजी; अंति: समयसुंदर गुण थुणो, गाथा-२८. ३२३४९. छंद व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९१६, फाल्गुन कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३३). १. पे. नाम. अंतरीकनो छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पाशजि ताहरूं; अंति: आणंद वधे इम वेनवे, गाथा-९. २. पे. नाम. अष्टमी स्तुती, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल पाठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोड कल्याणजी, गाथा-४. ३२३५०. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४५). १. पे. नाम. चैत्यवंदनविचार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शरसतिदेवी नमी मनरंग; अंति: कवी मान कहे ___ करजोडि, गाथा-१२. २.पे. नाम. श्रावक करणी सीज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावकनी करणी सांभलो; अंति: समयसुंदरतो साचो कहे, गाथा-१४. ३२३५१. गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, ४-६४३५). जैन गाथासंग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२३५३. वनस्पति विचार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, १५४५६). वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभाइए जिणिंदे पत्ते; अंति: मुणिचंदसूरीहिं, गाथा-७६. वनस्पतिसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: उसभाइ०४ गाथा सुगमाः; अंति: रं ततः प्रत्येक इति. ३२३५४. वनस्पती विचार सहटीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. हंसविमल (गुरु ग. विवेकविमल); गुपि. ग. विवेकविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११, ७-९४५१-६०). वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभाइए जिणिंदे पत्ते; अंति: मुणिचंदसूरीहिं, गाथा-७७, (ले.स्थल. उन्नतदुर्ग) वनस्पतिसप्ततिका-टीका, सं., गद्य, आदि: उसभेत्यादि ४ रुक्खा०; अंति: विवर्णमानः प्रत्येकः, (ले.स्थल. देलवाडा) ३२३५९. प्रश्नप्रकाश, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२६४११, २०-२५४६६-६९). प्रश्नप्रकाश, उपा. नरचंद्र, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: जीयाच्चिरं भूतले, प्रकाश-२०, ग्रं. ३६०, (पू.वि. प्रकाश-४, श्लोक-२ तक नहीं है.) ३२३६०. छंद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९९६, कार्तिक कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, ले.स्थल. राणीखेडा, जैदे., (२६४११.५, १८४५१). १. पे. नाम. सरस्वतीभवानीश्रक, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमल करणी; अंति: नित नमेवी जगपती, गाथा-९. २. पे. नाम. सीख स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. सीधा ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जेणी दीधो तेणी लाधो; अंति: दीधो लाभे भाइ रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-संसार अनित्यता, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव जगत सुपनो; अंति: ज्यो भज्यां फल होय, गाथा-९. ४. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु. पच, आदि सीवादेवी सुखदावा अंति: (-), (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन- संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंतिः दिज्यो भवभव सेव रे, गाथा - ९. ६. पे. नाम. राजुल सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. राजिमतीसती सज्झाय, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण हो चंदावदन, अंति: संघ सुहाइ मारा लाल, गाथा - १४. ३२३६१. सप्तभंगी स्वरूप सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, ८x२५ ). सप्तभंगी विचार, प्रा., पद्य, आदि सिवा अरिब १ सिया, अंतिः सव्वभावे सुसमया, गाथा-३. सप्तभंगी स्वरूप - विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: सकल पदार्थ आप आपणे; अंति: सर्वपदार्थे समन्. ३२३६३. दशधासूत्र विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २६ १०.५, २०५२-५४). दशधासूत्र विवरण, मु. नयसुंदर, सं., गद्य, आदिः अत्र शब्दानामनंत अंतिः क्षेपतः सूत्रलक्षणं. ३२३६४. परिभाषासूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६X११, २२x५९). परिभाषासूत्र, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पंचम्या निर्दिष्टे, अंतिः समर्थः पदविधिः १९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिभाषासूत्र-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: पंचम्या निर्दिष्टे, अंति: किं हि वचनान्न भवति. ३२३६७. स्पर्द्धयाप्रेषिता षट्त्रिंशत्श्लोक की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, जैदे., (२५.५X११.५, २१X७२). स्पर्द्धयाप्रेषितागाधाषट्त्रिंशदर्थ टीका, पं. विवेकसागर गणि, सं., गद्य, आदि; (-); अंतिः वरतरं विलोकयेति भावः, ( पू. वि. श्लोक - २३ अपूर्ण तक की टीका नहीं है.) ३२३६८. नेमिश्वरजिन स्तवन व जीवआयुष्यविचार सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२६.५४११.५, १३x४७). १. पे. नाम. नेमीस्वरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहियां मोरी साहिबो; अंति: पति पामी शुभ परे जो, गाथा-५. २. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु चरण कमल प्रणमीन; अंति: मे सज्झाय दाखीजी, गाथा - १०. ३२३६९. विविध आलापकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैवे (२५x१०.५, १७४५५). १. पे. नाम. नंदी स्तोत्र, पृ. १अ + १आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: अर्हस्तनोतु स श्रेय अंतिः विघ्न विघातवक्षाः, श्लोक ८. २. पे. नाम. सम्यक्त्व आलापक, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक संग्रह, प्रा., सं., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: उवसंपज्जताणं विहरामि ३. पे. नाम. ब्रह्मव्रत दंडक, पृ. १अ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रत आलापक, प्रा. मा.गु, गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंतिः अप्पसक्खियं अणुसरामि ४. पे. नाम. बारप्रतिमा दंडक, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आद्वैकादश प्रतिमा, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: अहन्नं० मिच्छतं दव्व अतिः नित्थार पारगा हो. , ५. पे, नाम, बीसस्थानक पंचमिरोहिणीतप दंडक, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: नित्थारग पारगा हो.. ६. पे. नाम. योगोद्वहनविधि गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २५५ योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: ओमिति नमो भगवओ; अंति: जिणाण नवकार उद्धरिणं, गाथा-५. हानीयंठियाज्झयणं-अध्यय२० उत्तराध्ययनसूत्रे, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १७X४२). ___ महानिग्रंथीय अध्ययन-हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धाणे नमो किच्चाण; अंति: विगयमोहो त्ति बेमि, गाथा-६०. ३२३७१. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, अन्य. मु. विशेषसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४४-५०). १. पे. नाम. महादेव द्वात्रिंशिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांत दर्शनं यस्य; अंति: सिद्धिमिच्छता, श्लोक-३३. २. पे. नाम. वासुद्वात्रिंशिका, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अपराजितवास्तुशास्त्रगत जिनमूर्तिश्लोक, हिस्सा, विश्वकर्मा, सं., पद्य, आदि: सुमेरु शिखरं दृष्ट्व; अंति: लोकांते वासिन जिनं, श्लोक-३२. ३. पे. नाम. साधारण स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. वीतराग स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतरागसर्वज्ञ; अंति: भक्तिर्मम केवलास्तु, श्लोक-१३. ४. पे. नाम. प्रातः स्तोत्रम्, पृ. २आ, संपूर्ण.. साधारणजिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतराग विगतस्मर; अंति: भावयन्न० वीतरागः, श्लोक-९. ३२३७२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३४). १.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: हारेगवडीपुरुमंडण; अंति: लाभसूरीश्वर वंदै हो, गाथा-७. २. पे. नाम. स्तवनं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अमृतधर्म शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीफलवर्द्धिपुर जइय; अंति: प्रभु गुन गावैरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: इण वन सामी समोसर्या; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ३२३७३. पार्श्वजिन स्तोत्र संगर्ह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १२४४०). १.पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन स्तवनम्, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. कुशल, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर; अंति: नमामः कुशलं लभामः, श्लोक-५. २. पे. नाम. स्तंभनकपार्श्वस्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: योगात्मनां यं परं; अंति: यद्धानकस्य प्रियं, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, म. लक्ष्मीरत्न, सं., पद्य, आदि: समीचीनमीनध्वजाकारतार; अंति: प्राभवायास्तु सोहन, श्लोक-५. ३२३७४. वसुधारा महाविद्या, अपूर्ण, वि. १८५४, कार्तिक कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. जैतरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३३). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वसुधाराप्रसादात्. ३२३७६. बारभावना विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२५.५४११, ११४४०). १२ भावना.मा.ग.. पद्य, आदिः -): अंति: घणा करमतं आणइ छेह, गाथा-८८, (पृ.वि. गाथा-७२ तक नहीं है.) ३२३७७. तीर्थोद्गाली प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-३७(१ से ३७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४५). For Private And Personal use only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०८७ अपूर्ण से १११५ तक ही है.) ३२३७८. मुनिसुव्रत स्तवन व अर्जुनमारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१९, माघ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १९x४४). १. पे. नाम. मुनिसुव्रत सतनं, पृ. १अ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: वरसे वरसे वचन सुधा; अंति: सीच्यो समकित छोडि, गाथा-९. २.पे. नाम. अर्जुनमारी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: सद्गुरु चरणे नमी; अंति: गति तणा फल देयो देव, गाथा-१६. ३२३७९. समवसरण स्तव व कायस्थिति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १५४३९). १.पे. नाम. समोसरण स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलित्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. २.पे. नाम. कायस्थिति स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. ३२३८०. शरपुरीकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १४४४०). सुरप्रिय केवली रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६७, आदि: राजगृह रलीयामणउं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६२ अपूर्ण तक है.) ३२३८१. सालीभद्र रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-२(१,४)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१०.५, ९४३२). शालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से गाथा-७४ अपूर्ण तक है.) ३२३८२. (+) नवतत्त्वसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. कनक; पठ.सा. स्वर्णसिद्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१०.५, ६४३८-४७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४३. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: अनागतकाल अनंतगुणउ छइ. ३२३८३. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५०. ३२३८४. (+) जंबूद्वीप संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ६४३९-४४). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण सव्वन्न; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय क० प्रणाम करीने; अंति: श्रीहरिभद्रसूरिइं. ३२३८५. (+) अंगुलविचार सह अवचूरि व जंबूद्वीप संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १५४५१-५८). १. पे. नाम. अंगुलविचार सप्ततिका सह अवचूरि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभसमगमणमुसभं जिणमणि; अंति: रइअमिणं सपरगुणहेडं, गाथा-७०. अंगुलसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: एकस्मिन् श्रेणिप्रमा; अंति: प्ररुपयितुं श्रीमत्. २. पे. नाम. जंबूद्वीप संग्रहणी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्न; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-२८. ३२३८६. जीवविचार प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८४२, कार्तिक कृष्ण, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११.५, ७४४७). For Private And Personal use only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २५७ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्दाओ सुअ समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: अबुधबोधार्थं मूर्खजन; अंति: क्षिप्तः उद्धृतोस्ति. ३२३८७. विचारषत्रिंशिका सह टबार्थ, संज्ञा कुलक व १५ योग नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, पठ.मु. वालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ६x४१-४२). १. पे. नाम. विचारषट्विंशिका स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४२. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउवीस तीर्थंकर; अंति: आपणा हितनइ काजइ. २.पे. नाम. संज्ञा कुलक, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: रुक्खं जलआरुहो सीतपण; अंति: रुक्खेसु वल्लीओ, गाथा-४. ३. पे. नाम. पनरयोग नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. १५ योग नाम-मनवचनकाया के, मा.गु., गद्य, आदि: सत्यमनोयोग १ असत्य; अंति: ए १५योगनां नाम. ३२३८८. (+) विचारषट्विंशिकासूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११,७-९४३७-४१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४३. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेय; अंति: मत्वेद बालचापल्यम्. ३२३८९. जीव विचार,नवतत्त्व प्रकरण, गीत व सवैया आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, ले.स्थल. जंबूसर, प्रले. मु. देवचंद्र; मु. हर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४३३-३७). १. पे. नाम. सूक्ष्मार्थविचारसार प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: उसप्पिणीओ असंखिज्जा, गाथा-५१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा का प्रारंभ गाथा-४२ अपूर्ण से किया है.) ३. पे. नाम. पार्श्व गीतं, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, मा.गु., पद्य, आदि: भोर भयो भोर भयो जागि; अंति: नील तनु अतिहि छोटो, गाथा-३. ४. पे. नाम. सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: सबे मृगनयणी चली; अंति: कवि सोम कहे० पेटनटा, गाथा-१. ५.पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण.. मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: तन की तृष्णा सह लहे; अंति: सब ही मन के पूंठि, गाथा-६. ३२३९०. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६७३, श्रावण कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. खभाय, जैदे., (२६४११, ९४३३-४२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४९. ३२३९१. प्रश्नोत्तर रत्नमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.ले.श्लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४४५-५०). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. ३२३९२. स्तवनचौवीसी व वाहन-सुत-रिपुनाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १८:५८). १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private And Personal use only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौबीसी, मु. अजब, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी चालो ऋषभजी; अंति: (-), (पू.वि. गीत-१९, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. वाहन, सुत व रिपुनाम, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनेतर सामान्य कृति , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३२३९३. (+) अजितनाथ व कायाजीव संवाद गीत, संपूर्ण, वि. १७४९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. जयतिसागर; पठ. श्रावि. सरुपाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२६४१०.५, १३४३४). १.पे. नाम. अजीतनाथ गीतं, पृ. १अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. जयतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीनवूछइ करजोडि; अंति: गावे भावे रागस्युं, गाथा-९. २.पे. नाम. कायाजीव संवाद गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: चतुर विहारी रे आतम; अंति: बलिहारी नाम तिहारइ, गाथा-८. ३२३९४. कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १७७५२-५५). १.पे. नाम. रत्नचूड कथा, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (१)क एष रत्नचूडाख्य इति, (२)इहास्ति भरते क्षेत्र; अंति: पुष्टिविधिस्त्वया, श्लोक-१४७. २. पे. नाम. अंतरंगमित्रत्रय कथा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: नयरमि खिइपइटे; अंति: माहात्म्यमिदं वदति, श्लोक-५०. ३२३९५. (+) विचारषत्रिंशिका, गाथा संग्रह व गति आगति विचार, संपूर्ण, वि. १६५७, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. ग. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४५१-५२). १. पे. नाम. विचारषट्विंशिकारूपा अर्हद्विज्ञप्ति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-३८. २.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जैन गाथा*.प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. ३. पे. नाम. चउवीसदंडकनी गतिआगति, पृ. २आ, संपूर्ण, ले.स्थल. नागोर. गति आगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकी गति२ आगति२; अंति: आवई मनुष्यमाहि जाइ. ३२३९७. (+) नवतत्त्वसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५३१, आश्विन कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. मंडपमहादुर्ग, प्रले. मु. खीमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४३०, जैदे., (२६.५४११, ५-७४२४-३४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२९. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: शीघ्रं प्राप्नुवंति. ३२३९८. प्रदेशी राजा चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, १४४४८). प्रदेशीराजा चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: हाथ जोडी करै वीनती; अंति: नामै वृतजपाल रे, ढाल-४. ३२३९९. तपागच्छपट्टानुक्रम गुर्वावली छंद, संपूर्ण, वि. १६५३, भाद्रपद कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११,१७४५२). तपागच्छपट्टानुक्रम गुर्वावली छंद, मु. विबुधविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जयति जगत्रय जन उद्धर; अंति: कमल सयल संघ मंगल करइ, गाथा-११२. ३२४००. (+) लघुक्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. विमलचंद्र (गुरु ग. रामचंद्र); गुपि.ग. रामचंद्र (गुरु पं. रंगचंद्र); पं. रंगचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १४-१५४४४-४९). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहर निभस्स; अंति: समत्ताइ दुक्खाई, गाथा-१२३. ३२४०१. लघुपर्यंतआराधना, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१-६०(१ से ६०)=१, जैदे., (२६४११.५, १९४५८). लघु साधु आराधना, सं., पद्य, आदि: खामेसु सव्वसत्ते; अंति: उज्जेणिअवंतिसुकुमालो, श्लोक-४२, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २५९ ३२४०३. पांचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, ९४३०). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमीतप तुमे करो; अंति: ज्ञाननो पाचमो भेद रे, गाथा-५. ३२४०४. (-) पांचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११, ९४३०). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमीतप तुमे करो; अंति: ज्ञाननो पाचमो भेद रे, गाथा-५. ३२४०५. (+) षष्टिशतक प्रकरण व प्रतिलेखनबोल गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १७-१८४५६). १.पे. नाम, भंडारीनेमिचंद्रविरचितं-षष्टिशतक प्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जिणंतु जंतु सिवं, गाथा-१६१. २.पे. नाम. प्रतिलेखनबोल गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-०५.. ३२४०६. (#) बार भावना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४३८). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ तक है.) ३२४०७. स्तुति व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४११, १३४४१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वरदायक सुख नयणम्, (पू.वि. मात्र अंतिम दो गाथा है.) २. पे. नाम. संभवजिन स्तोत्र, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: संभवनाथ करजोडी तुम; अंति: कान्हजी साहिब संभवा, गाथा-८. ३. पे. नाम. गौतमस्वामीनूस्तोत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन शुक्ल, ९, ले.स्थल. कपासण, प्रले. मु. महावजी ऋषि, पठ. श्राव. गलाबचंद हीराचंद मेहता, प्र.ले.पु. सामान्य. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूती वसूभूत; अंति: लभते नितरांक्रमेण, श्लोक-९. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तोत्र, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. आ. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: अनंत कल्याणकर; अंति: (-), (पू.वि. मात्र गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३२४१०. (+) गुरुगुण जोड व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८६, वैशाख कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मेरठ, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, १६x४२). १. पे. नाम. गुरुगुण जोड, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुगुणवर्णन जोड, मु. भगवानदास ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १८८५, आदि: सतगुर हे सोदाग भारी; अंति: भगवान जब कीधी परकासो, गाथा-१५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भगवानदास ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८८५, आदि: हथणापुर देख हरखीय; अंति: सुध मन जोड्यो तान, गाथा-११. ३२४११. बिंबजोडावाड उलहणादेवी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. ग. धर्मसोम (गुरु आ. विशालसोमसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. विशालसोमसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११,१६x४५). जिनबिंब गण नक्षत्र योनि आदि विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: धर्मनाथविश्वा१० लहणा, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ३२४१२. तीर्थंकरना अतिशय व गणधरलब्धिविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, २२४७२). १. पे. नाम. तीर्थंकरना ३४ अतिशय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. तीर्थकर भगवान के समवसरण का चित्र दिया गया है। ३४ अतिशय विवरण-तीर्थंकर, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो टाली पांचमा; अंति: तमसानो अर्थ. For Private And Personal use only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. गणधरांनी लब्धिनी विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. गणधरलब्धि विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पढ० तीन पद तीर्थंकर; अंति: ऊपरि सर्व सूत्र रचइ. ३२४१३. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४११,१५-१६x६०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२९ अपूर्ण तक है.) ३२४१४. (+) जैन गाथासंग्रह सह वृत्ति व ज्योतिषसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, १२-१३४२६-४८). १.पे. नाम. पिंडविशुद्धिप्रकरणगत कालादिपांचकारण गाथा सह वृत्ति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. जैन गाथासंग्रह@वृत्ति, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह*, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३२४१५. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, ११४३०). १. पे. नाम. पंचतीर्थीजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजनी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ३२४१६. वीसस्थानकतप गणणु व समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०, १४४२५-४२). १. पे. नाम. वीसस्थानक गण-, पृ. १अ, संपूर्ण.. २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं २०००; अंति: प्रभावना कीजइ २०००. २. पे. नाम. समूर्छिमजीव उत्पत्तिस्थान, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उच्चारेसु वा क०; अंति: आयु २० वर्ष पंचदिने. ३२४१७. (#) प्रतिलेखनाविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १५-१६x४३). प्रतिलेखना विधि, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३२४१८. उवसग्गहर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०८, ज्येष्ठ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. धर्मसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, ४४३२). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पासं वंदामि० श्रीपार; अंति: ते मूहनइं देयज्यो. ३२४२०. चौद स्वप्न स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६). १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीदेव तीर्थंकर केर; अंति: लावन० ते पामे भवपार. गाथा-१५. ३२४२१. मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, १४४४१). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३२४२२. कथारत्नकोश, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-७(१ से७)=४, जैदे., (२६४११, १९-२१४६४-६६). For Private And Personal use only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ कथारत्नकोश, आ. देवभद्रसूरि, प्रा., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रथमगुणव्रते शिवभूति कथा तक लिखा है.) ३२४२३. विविधविषय विचार संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४१०.५, ७४४०-४६). १. पे. नाम. अतिसय सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: रय रोयसोयरहिओ हेहो; अंति: जिणंदा ण होइ इमा, गाथा-१०. ३४ अतिशय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जरारोगरहित शरीर; अंति: तिर्थंकरानई हुई. २.पे. नाम. अष्टप्रातिहार्य गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ प्रातिहार्यगाथा, प्रा., पद्य, आदि: किंकिल्ले कुसमवुट्ठी; अंति: जयंतु जिणपाडिहेराइं, गाथा-१. ८ प्रातिहार्यगाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अशोक१ कुसुमवृष्टि२; अंति: जिन अष्टप्रतिहार्य. ३. पे. नाम. त्रयोदशकाष्टधारका सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. १३ काठिया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आलस्स१ मोहर वन्ना३; अंति: संसारूत्तारणं जीव, गाथा-२. १३ काठिया गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आलस १ मोह २ अवज्ञा; अंति: आगे संसार न उतरवउ. ४. पे. नाम. बत्रीसअनंतकाय गाथा सह टबार्थ, पृ. २अ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सव्वाउ कंदजाई; अंति: गूढसिरसंधिपव्वं, गाथा-६. ३२ अनंतकाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वकंदनी जाति सूरण; अंति: तेहना लक्षणयुक् कहइ. ५. पे. नाम. ३२ दोषपरिहारसामाइक गाथा सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पल्हथी१ अथिरासण२; अंति: वसे सव्व सुह लच्छी, गाथा-३. सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पालगठी मारी बेसई; अंति: संबंधिन लक्ष्मी हुई. ६. पे. नाम. गुणत्रीसभावना सह टबार्थ, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. २९ भावना प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: मुच्चह सव्व दुक्खाणं, गाथा-२९. एगणतीसी भावना-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जनममरणरूप संसार असार; अंति: थकी आपणनउं मेल्हावि. ३२४२४. सप्ततिशतजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. गंगसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४४८). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३२४२५. (+) ६७ बोल व छंदसंग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १०४४१). १.पे. नाम. समकितना ६७ बोलभेद सह विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: चउसद्दहण तिलिंग दस; अंति: विसुद्धं च सम्मत्तं, गाथा-२. सम्यक्त्व के६७ बोलभेद-विवरण, प्रा., गद्य, आदि: जाणतस्स विआगमअब्भास; अंति: (-), (वि. अंतिमवाक्य अवाच्य है.) २. पे. नाम. अजितशांति स्तव का छंद संग्रह सह अवचूरि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव-छंद संग्रह, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नेयामत्ताछंदे तिचउ; अंति: व्वेहिंतदवरंतिया होइ. अजितशांति स्तव-छंद संग्रह की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तत्रद्विमात्र: कगणो; अंति: पादरथोधूतोश्चयम्. ३२४२६. मंगल स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१८, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. खुशालचंद मलुकचंद वसा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३५). ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेलुंए मंगल जिनतणु; अंति: भवजलनिधि तरोए, गाथा-१२. ३२४२८. वृहधसांति, संपूर्ण, वि. १९३७, पौष कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. पं. मुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३४). बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्या शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. For Private And Personal use only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२४३०. वृहच्छांति स्तवन व सूर्यताप विचार, संपूर्ण, वि. १८१७, आषाढ़ कृष्ण, २ अधिकतिथि, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसूदाबाद, जैदे., (२५४११, १२४४२). १. पे. नाम. शांतिवादिवेलातसूरिविहित वृहच्छांतिस्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्या शृणुत; अंति: पसवं सिवं भवउ स्वाहा, (वि. प्रत में "शांतिवादिवेलातसूरिविहित" ऐसा पाठ मिलता है.) २. पे. नाम. सूर्यताप विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति ,प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३२४३२. स्याद्वादकलिका व अपशब्दनिराकरणस्थल, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, २०४७५). १. पे. नाम. स्याद्वाद कलिका, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण, पे.वि. एक ही श्लोकांक दो-दो बार आने से अनियमितता आयी है, पर पाठ क्रमशः है. मूलपाठ श्लोक-४० है पर पूर्वोक्त कारण से श्लोक-४१ दिया गया है. स्याद्वादकलिका, आ. राजशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: षद्रव्यज्ञं जिनं; अंति: सूरिः श्रीराजशेखरः, श्लोक-४१. २. पे. नाम. प्रमेयरत्नकोशे-अपशब्दनिराकरणस्थल, पृ. २४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: येम्यमी शाब्दिका; अंति: दुर्मेधसां वो बोधः. ३२४३३. युगादेव पारणक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रारंभ में वसुदेवहिंडीगत आदिजिन के वर्षीतप के पारणा का वृत्तांत उद्धृत किया है., जैदे., (२६४११.५, १५४५५). आदिजिन पारणक विवरण, सं., पद्य, आदि: श्रेयांसकुमारस्य; अंति: द्वरूपप्रथिता जिनेसा, श्लोक-४१. ३२४३४. (+) चंद्रप्रभजिन स्तवनसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७६२, भाद्रपद कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मालपुर, प्रले. मु. अजबसागर (गुरु मु. अनोपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४६४). १. पे. नाम. चंद्रप्रभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन-मालपुर, मु. अजबसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आवो सखि वंदो हे किं; अंति: वीनती अजब करे, गाथा-६. २.पे. नाम. चंद्रप्रभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन-मालपुर, मु. अजबसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभ जिनवर; अंति: शिष्यने अजबने शविराज, गाथा-७. ३२४३५. (+) उपदेशरत्नमाला व प्रतिलेखनबोल गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, ७७५२). १.पे. नाम. उपदेशरत्नकोश सह टबार्थ, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: विउलं उवएसमालमिणं, गाथा-२५. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रत्न तेहनु; अंति: रत्नरूप फल मानेए. २. पे. नाम. मुहपतीपडिलेहणविचार सज्झाय सह टबार्थ, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-०५. प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुत्र१ अर्थ२ तत्त्व; अंति: रिषीश्वरेए अर्थ कहिउ. ३२४३६. (#) जीवरास, स्तवन, श्लोक व सवैया, अपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, २०७४४). १. पे. नाम. जिवरास, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, वि. १८१६, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, रविवार, प्रले. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणि पदमावति; अंति: पापथि छुटे ततकाल, गाथा-३२. For Private And Personal use only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन - समवसरणविचारगर्भित, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. सोमसुंदरसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि जायवकुल सिणगार सिरि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र १ गाथा है.) . ३. पे. नाम. विद्यामहत्त्व लोकसंग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण. विद्यामहत्त्ववर्णन श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: विद्या नाम नरस्य रूप, अंतिः विद्या विहिन (२५.५X१०.५, १२४३८). १. पे. नाम. धर्मअर्थकाममोक्ष यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: लछक हे सुण रे उमेआ; अंतिः भारी पण चोरी न करीए, गाथा-२. ३२४३७. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, जैवे. (२६.५x११.५, १२४३५) "" १. पे. नाम. सीतलनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो; अंतिः समवसुंदर० जनमन मोहए, गाथा - १५. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: समोवसरण बेठा भगवंत अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ की गाथा-३ अपूर्ण तक है.) मा.गु. सं., को, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र. पू. १अ १आ, संपूर्ण. ३२४३८. सीमंधर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२६५११, १३४५६). सीमंधरजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि नमिरसुरअसुर नरविंद, अंतिः भवमे बोधवीजह दाविको गाथा २१. ३२४३९. (+) प्रमाणनयतत्त्वव्यवस्थापन, अपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., (२५.५X११, ११x४५). " 3 प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं. पा., वि. १९५२-१२२६, आदि: रागद्वेषविजेतारं अति: (-). "" " (पू. वि. प्रथम परिच्छेद सूत्र- २१ तक है.) ३२४४०. (#) यंत्र, स्तोत्र, श्लोक व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: दिन दस मेलवा बिसे, अंति: गुणा दिनमान कहिवा, गाथा-१. ४. पे नाम. हडक्याविष मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक-१. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. रत्नविजय, सं., पद्य, आदि: वाग्दैवतायाश्चरणं; अंतिः रत्नविजय शिवायभूयात्, श्लोक-११. ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. कविष मंत्र, मा.गु., सं., गद्य, आदिः ॐनमो लुंडी हसी लुंडी, अंति: हडक्यानो विष उतरे. ३२४४१. नवकार पंचपद स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य पं. उत्तम. प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५x११.५, ३४x२६). ३२४४३. स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ९, जैदे., (२६X११.५, ५२X३४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वारी जाउं हुं अरिहंत, अंतिः ज्ञानविमल० वाधो रे, बाल-५. २६३ मु. विजयराजलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: राणी ताहरो चरणजीवो अंतिः कह्या तेहवा धीर गाथा- ७. २. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मनडुं ते माहरू, अंति: उदय० वसता दुरे विसार, गाथा- ८. ३. पे नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, For Private And Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६४ www.kobatirth.org मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्म, आदि: जगजीवन जगतार रे विजय अंतिः उदय० गावो में सुखे रे, गाथा ५. ४. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. जगजीवन, मा.गु., पद्य, वि. १८२४, आदि: वालो वीर जिणेशर शिव, अंति: जगजीवन० आश्या फली रे, गाथा-५. ५. पे. नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल चारीत्र लीयो, अंतिः विमलकीरत गुण गाय, गाथा- ११. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंतिः नवनिधि कोड कल्याण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - ७. ७. पे. नाम. मायापरिहार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. माया सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदिः समकितनुं बीज जाणजोजी, अंतिः ए छे मारग शुद्धि रे, गाथा-६. ८. पे. नाम नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि; जी हो मिथुलानगरीनो अंतिः जी हो पामीजे भवपार, गाथा-७. ९. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, मा.गु, पद्य, आदि धारणी मनावे रे मेघ अति अनुत्तर विमान उल्लास, गाथा-५ ३२४४४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. ग. हंसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की (#) फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १७X३४). १. पे. नाम. सूबद्धिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरी अजबसी योगनी, अंति: मुज मन मंदिर आवो रे, गाथा-५. २. पे नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण अजितजिन स्तवन- तारंगाचल, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजीत जिणेसर उलगत, अंति: हर्षवीजय० साहेबजी गाथा-५. ३. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज, अंति: पंडित रूपनो ललना, गाथा- ७. ३२४४५. नरक विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १ जैवे. (२६४११.५, ३२x२१) , नरक विचार, मा.गु, गद्य, आदि: पहिली नरग एक लाख, अंतिः ६ विशेषे अंधकार, ३२४४६. नरक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र हैं., जैवे., (२५.५x११, ३१x२०). ३२४४८. नरक विचार, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२४४७. थिरावली व लोक, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३ कुल पे. २, जैवे. (२५.५४११.५, ११४३९). १. पे नाम. थिरावली, पृ. ९अ- ३आ, संपूर्ण पठ श्रावि. श्राविका गोगी, प्र.ले.पु. सामान्य. नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः नास्स परुवर्णवर्छ, गाथा ५०. २. पे नाम श्लोक संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण लोक संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). (#) ) गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२६.५४११.५. १२X४०). ३२४४९. बलिभद्र सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जै. (२६.५X११.५, १०३७). " गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कान, मा.गु., पद्य, वि. १७५३, आदि: श्रीजिननेम आगमसुणि, अंतिः सेवक कहै मुनि कानरे, गाथा - ९. . For Private And Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगीआगीरि शिखर सौहै; अंति: सकल भवीक सुख देई रे, गाथा-४. ३२४५२. (+#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३९). १. पे. नाम. जिनशाश्वतचैत्य स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: (१)यानि चैत्यानि वंदे, (२)तत्र चैत्यानि वंदे, श्लोक-१०. २. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्टी नमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३२४५३. कायस्थिति स्तवन सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पंचपाठ. कुल ग्रं. २७५, जैदे., (२५.५४१०.५, ३-५४३०-३५). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (१)वर्द्धमानं जिनं, (२)इह हि श्रीप्रज्ञापनो; अंति: भ्यधिकपूर्वकोटिरिति. ३२४५४. पर्यंताराधना प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७०४, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. ग. आणंदविजय (गुरु ग. लब्धिविजय); गुपि.ग. लब्धिविजय; पठ. श्रावि. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४२७-३८). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. ३२४५५. (+) जादवारोरास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. रामपुरा, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १६x४०). यादव रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: होज्यो नेमि जिणंद कि, गाथा-६३. ३२४५६. धनपाल कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अलग-अलग मिलते हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४२४). धनपालकवि कथा, सं., पद्य, आदि: न शुद्धसिद्धांतविरुद; अंति: चक्रवाकस्तटाकः, श्लोक-५. ३२४५७. चतुर्विंशति दंडक स्तवन, अपूर्ण, वि. १७८७, गुरुवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६४११.५, १०४५३). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक नहीं है.) ३२४५८. जंबूद्वीपसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.ग. सत्यविजय (गुरु ग. तेजविजय); गुपि.ग. तेजविजय; पठ. श्राव. नरर वांठीया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४३८). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. ३२४६०. षटकसाल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, ७४४८). औपदेशिक सज्झाय-जयणा विषये, खीम, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सावयकुल अवतार लहीने; अंति: पंचमगति फल लहस्यैरे, गाथा-७. ३२४६१. ज्ञानविमलकृत सांकलीया चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ११, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३७). १. पे. नाम. जिनवर्ण चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मप्रभुने वासुपुज; अंति: ज्ञानविमल कहै सीस, गाथा-३. २. पे. नाम. २४ जिनदेहमान चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसया धनुमान जाण; अंति: नय प्रणमे निसदीस, गाथा-३. ३. पे. नाम. जिनलंछन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वृषभ गज हय कपि अंकुश; अंति: ज्ञानविम० शिवसुख धाम, गाथा-३. ४. पे. नाम. २४ जिनदीक्षातपचैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षासमयतपगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिनाथ एकासगुंकरी, अंति: पारणु अवर जिनेश, गाथा-३. ५. पे. नाम. २४ जिनदिक्षास्थल एवं राज्यविगतगर्भित चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षास्थानादिगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनितानयरीइं लीइं; अंति: थया ज्ञानविमल गुणगेह, गाथा-३. ६.पे. नाम. २४ जिनदिक्षापरिवारगर्भित चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षापरिवारगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: च्यार सहेसुसुंऋषभ; अंति: होज्यो जिन सुपसाय, गाथा-३. ७. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम जिणंद तणा भला; अंति: नय प्रणमे धरी नेह, गाथा-३. ८. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरिसयठाणई कह्या; अंति: कहै वंदो जिन चौवीस, गाथा-३. ९. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: बारस गुण अरिहंत देव; अंति: तणो नय प्रणमे सुखकार, गाथा-३. १०. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चउजिन जंबूद्वीपमा; अंति: शिर धरीये शुभ आण, गाथा-३. ११. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन-१८ दूषणवर्जनगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. __ आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: दान लाभ भोगोपभोग बल; अंति: चरणनी कीजे अहनिश सेव, गाथा-३. ३२४६२. (#) मध्यक्षेत्रसमास सूत्र, अपूर्ण, वि. १८४२, कार्तिक कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १३-१०(१ से १०)=३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४१). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: कुसलरंगमइं पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-३००, ग्रं. ४१०, (पू.वि. गाथा-२३९ अपूर्ण से है., वि. ग्रंथाग्र- ४१० एवं ८ अक्षर.) ३२४६५. ज्योतिकभाषाग्रंथ, अपूर्ण, वि. १८०१, फाल्गुन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. बेलाग्राम, प्रले. ग. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनमिनाथ प्रसादात्., जैदे., (२६४११.५, १६x४६). __पंचांग विधि, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: (-); अंति: क्षत्री गोवर्धन काज, गाथा-५६. ३२४६८. सज्झाय, स्तवन, पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, ले.स्थल. राद्धणपर, प्रले. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५,१४४५२). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., पद्य, आदि: ध्यान धरम का धरना; अंति: सीवसुंदरी सुख बरना, गाथा-६. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहि., पद्य, आदि: चेतन समता मिलना; अंति: चिदानंद हित करना, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: मायाने वस खोटु बोले; अंति: तेहथी ___ अनुभव लहीई रे, गाथा-१४. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: नहीं आकुंजी माहरे; अंति: रामविबुध० रसाल छै, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ५.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: नेडो नां करिए निगुणा; अंति: नेडो इम करीए, गाथा-५. ६.पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___ धर्मजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त अटक्युं प्रभु; अंति: अमृतपद रंगे वरीये, गाथा-५. ३२४६९. (+) समवसरण स्तोत्र व जैन गाथा सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १-५४५०). १.पे. नाम. समवसरण स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थंकरं समवसरणस्थ; अंति: मोक्षपदस्थं करोतु. २. पे. नाम. निदानविचार गाथा सह वृत्ति, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. जैन गाथा-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२४७०. (+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१०.५-११.५, १०४३६). __ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भदलपुरवासि षटबांधवै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण पर्यन्त है.) ३२४७१. आउरपच्चक्खाण पइन्नं, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, १३४४३-४५). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणं, गाथा-६०. ३२४७२. (+) अणुत्तरोववाईसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८). ___ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: (-). ३२४७३. बृहत्ग्रहशांति आदि स्तोत्र संग्रह व ज्योतिष श्लोक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, २०४५४). १. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ३अ+३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ___ ज्योतिष संग्रह*, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. बृहत्ग्रहशांतिक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नवग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगत्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: शांतिविधिं श्रुतं, श्लोक-२८. ३.पे. नाम. शनीश्चर स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यः पुरा भ्रष्टराजाय; अंति: पीडा न भवंति कदान, श्लोक-७. ४. पे. नाम. बृहस्पती स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पति सुराचार्य, अंति: शुभग्रह नमोस्तुते, श्लोक-५. ३२४७४. अट्ठावीसलब्धि सह टबार्थ व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १७२७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जैतपुर, जैदे., (२५४१०.५, २३४३८-६७). १. पे. नाम. वासुदेव बलदेवादि आयु विचार, छमासीतपचिंतवन विधि आदि बोल संग्रह, पृ. १अ+१आ, संपूर्ण, वि. १७२७, आषाढ़ कृष्ण, १०. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. अट्ठावीसलब्धि गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७२७, आषाढ़ कृष्ण, ८. २८ लब्धि विचार, प्रा., पद्य, आदि: आमोसहि विप्पोसहि; अंति: एमाई हंति लद्धिउ, गाथा-४. २८ लब्धि विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जेहनइ शरीरनइ फरसइ कर; अंति: एवं आदिक २८ उपजइ. ३२४७६. स्तवन संग्रह व बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२, ४३४२४). For Private And Personal use only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिन गुणधाम; अंति: परमानंद लहइ परतीत, गाथा-८. २.पे. नाम. पासजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. धीरविमल शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देव दया कर ठाकुराजी; अंति: मत मुकोजी विसार, गाथा-१६. ३. पे. नाम. जंबूद्वीप की शाश्वत नदी विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२४७७. बत्तीसबांगड बोली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४९.५, ३८x१८). बांगडबोलीबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि सुणो; अंति: अनंत संसारी थापइ, गाथा-३४. ३२४७८. योगविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, ३३४२७). योगविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२४७९. (#) महावीरजिन कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४२). महावीरजिन कथा, मा.गु., गद्य, आदि: हवे भगवंत वाधे ते; अंति: (-). ३२४८१. पुन्य कूलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ४-७४४०). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: मोहो पासो लब्भंति, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांच इंद्री पडवडा; अंति: शाश्वता सुख पांमै. ३२४८२. उपधान विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १२४४२). उपधानतप विधि, सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पंचमंगल महासुअक्खंधे; अंति: (-). ३२४८४. जैन प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., गाथा ६१ अपूर्ण से ८८ अपूर्ण तक है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, ५८४७२). अपूर्ण जैन काव्य/चैत्य/स्त/स्तु/सझाय/रास/चौपाई/छंद/स्तोत्रादि*, प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). अपूर्ण जैन काव्य/चैत्य/स्त/स्तु/सझाय/रास/चौपाई/छंद/स्तोत्रादि-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२४८५. सिंदर प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, ५४२८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२१ अपूर्ण तक ३२४८७. दानादिफलविषयक कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९-६(१ से ६)=३, जैदे., (२६.५४११, १३४३८-५०). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: षट्देवलोकं गतः. ३२४८८. सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४४३). जैनदुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३७. ३२४८९. (+) श्रावकना तीन मनोरथ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३९). श्रावकतीनमनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रावकना तीन मनोरथ, (२)पहिले मनोरथ श्रमणोपा; अंति: मुझने समाधिमरण __ होजो. ३२४९०. कालसत्तरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १६x४३-४६). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदणयं विज्जाणंद; अंति: कालसरूवं किमवि भणिय, गाथा-७४. ३२४९२. (+#) दसोटण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९४५१). For Private And Personal use only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ वर्धमानजिन नामकरण आश्रयी भोजन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: भलो उत्तंग तोरण; अंति: वर्द्धमान नाम दीधो. ३२४९३. (+) समकित स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १३४४१). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. ३२४९४. (+) त्रिशलामाता गर्भस्तंभन कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४१). जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. किसी सूत्र से इतना प्रसंग ही उद्धृत किया गया है.) ३२४९७. (#) रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १४४३७-३८). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: शासनदेवता सामणी ए; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४. ३२४९८. मेघरथराजा रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३६). कमलासती चौपाई-शीयलविषये, मा.गु., पद्य, आदि: नमुंवीर जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ३२५००. शांतिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९८-९७(१ से ९७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४७). शांतिजिन चरित्र , सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक क्रमांक २४ से ५७ अपूर्ण तक है. (इस क्रमांक के प्रारंभिक अंश का पता नहीं चल रहा है)) ३२५०१. ४७ गौचरीदोष गाथा सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, २१४६५). जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). जैन गाथा - टीका , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५०५. ऋषभपंचासिका सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मू+अवचू. गाथा ४७ से ५० तक है., प्रले. मु. रत्नविमल (गुरु पं. विवेकविमल); गुपि.पं. विवेकविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, ४४४४). ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा-५०. ऋषभपंचाशिका-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५०७. (+) शत्रुजयमंडनयुगादिदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. १६४५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, पठ. श्रावि. कप्पू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०,११४३९-४३). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुंपणमीय देव; अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा-२१. ३२५०८. दंडकप्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मू+बाला. गाथा १२ तक है., जैदे., (२६.५४११, १७X५२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: (-). दंडक प्रकरण-बालावबोध, मु. अभयधर्म, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वनाथं नमस्कृत्; अंति: (-). ३२५१०. (#) साधूनामअतीचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ११४४४). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ३२५११. भयहरश्रीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४०). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: नासइ तस्स दरेण, गाथा-२४. ३२५१२. (+) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ८४४६). For Private And Personal use only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धानरा अत्थपरा हव; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य अर्थनइ; अंति: जीव सर्वसुख ते लहइ. ३२५१३. (+) साधारणजिन स्तोत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मू+अवचू. श्लोक-८ तक नही है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, १४४६०). साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: यो मतिमान स्तुते, श्लोक-३७. साधारणजिन स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कैर्वर्द्धमानत्वमिति. ३२५१४. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. ग. अमृतविजय (गुरु ग. अमरविजय); गुपि.ग. अमरविजय; पठ. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ८४४६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्दाओ सुअ समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमाहे प्रदीप; अंति: सिद्धांतसमुद्र थकी, ग्रं. १८०. ३२५१५. सूत्रकृतांगसूत्रे मोक्षमार्गनामक ११वाँ अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १६४५०). सूत्रकृतांगसूत्र का प्रथमश्रुतस्कंधगत ११वाँ मोक्षमार्गअध्ययन*, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अध्याय-११. ३२५१६. एकाक्षरनाममाला व संख्यानिर्णय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १८४४९). १.पे. नाम. एकाक्षर नाममाला, पृ. २अ, संपूर्ण. एकाक्षरनाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: विश्वाभिधानकोशानि; अंति: थैकाक्षराणामियं मया, श्लोक-२०. २. पे. नाम. संख्यानिर्णय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. संख्यारूप विचार, उपा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: एकः एका एकं द्वौ; अंति: कृतसंख्याविनिर्णयः. ३२५१७. सज्जनचितवल्लभ, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६.५४११, १०४३३). सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं जगत्त्; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२३ अपूर्ण तक है.) ३२५१८. (+) समवसरण स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. ग. बुद्धिसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, ५४४१). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वयं थुणिमो स्तुमः कं; अंति: मोक्षपदस्थं वा करोतु. ३२५१९. असज्झायस्थानसूत्र सह टबार्थव बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ६४३८). १.पे. नाम. असज्झाय स्थानसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). जैन सामान्यकृति-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. गमा व छव्रत आदि बोलसंग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५२२. (+#) अजितशांति स्तव सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., मू+बाला. गाथा-१ से ८ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५०). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: (-). अजितशांति स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अजिअं अजितनाथ किसउ; अंति: (-). ३२५२३. मार्गशीर्षेकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८८९, चैत्र शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनवलखाजी प्रसादात्ा, जैदे., (२४.५४११.५, १४२६-२८). For Private And Personal use only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं नत्व; अंति: साद्यमा समभवन्निति. ३२५२४. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४११, १२४३५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९. ३२५२५. (+) उत्तराध्ययनसूत्रे असंखयं अध्ययन सह बालावबोध व प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १७५५, आश्विन शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. सुरत, प्रले.पं. रत्नसागर; पठ. ग. रत्नसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १३४४३). १.पे. नाम. असंखयं अध्ययन सह बालावबोध, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ४, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: असंखयं जीविय मा पमाय; अंति: व सरीरभेउ त्ति बेमि, गाथा-१३. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ४ का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्र नासे मिलितो; अंति: जंबू प्रति कहइ. २.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सूरे उग्गे अब्भत्तठं; अंति: गारेणं वोसिरामि. ३२५२६. देवपूजायां तेजसार कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११, १४४४०). तेजसारकुमार कथा, सं., गद्य, आदि: सुकुलजन्म विभूतिरनेक; अंति: देवो मोक्षं गमी. ३२५२७. साधुपडीलेहणादि विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा गया है., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८). साधु आवश्यक विधिसंग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५२८. रोहणी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य. आ. विजयानंदसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४७). रोहिणी कथा, मा.गु., पद्य, आदि: तपना महीमाथी सकल; अंति: सुख जीव पाम्या. ३२५२९. पट्टावली व छकायजीव विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १५४५०). १.पे. नाम. पट्टावली, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: श्रीवीरपट्टे सुधर्मा; अंति: कस्य न स्यां नमस्य. २. पे. नाम. छकायजीव विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. ६ काय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथिकाय वरण नीलो; अंति: पल्पोपम नुहुवै. ३२५३०. चतुर्विंशतिजिननाम प्रशस्ति-मथुरायां सुपार्श्वस्तूपे, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११, १९४६४). अतीतअनागतवर्तमान २४ जिननाम प्रशस्ति, सं., पद्य, आदि: चतुर्विंशतयोतीता; अंति: प्रशस्तिरर्हतामियं, श्लोक-११२. ३२५३१. साधुउपमासूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११, १४२९). जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). जैन सामान्यकृति-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५३२. कथा व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १७X४२). १.पे. नाम. आरामशोभा कथानक, पृ. २अ-५आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: इहैव भरते कुशाढ्यदेश; अंति: मोक्षं यास्यतः. २. पे. नाम. वणिग्दृष्टांत, पृ. ५आ, संपूर्ण. जैन कथाकोश, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. गाथासंग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. For Private And Personal use only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२५३३. थुलिभद्रमहामुनि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७५६, फाल्गुन कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सुद्धदंतीनगर, पठ. ग. शांतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४१). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: थुलिभद्र मुनिसर आवो; अंति: लगी द्रुनी तारी, गाथा-१७. ३२५३४. नेमिश्वर तुकबावनी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४५०). नेमिजिन तुकबावनी, मु. न्यानसागर, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सो कोइ नत्थि सुयणो; अंति: कहइ तुकबावनी रचाणी, गाथा-१३. ३२५३६. संथारापोरसी विधि व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, २३४२६-२८). १.पे. नाम. संथारा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. संथारापोरसी विधिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अति: इअसमत्तं मए गहिअंगाथा-१४. २.पे. नाम. पट्टावली, पृ. १आ, संपूर्ण. __पट्टावली*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामी १; अंति: विजयउदयसूरि चिरंजीवी. ३२५३८. (+) ज्योतिषसार सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-). ज्योतिषसार-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५३९. (#) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५४१. सिद्धिदंडिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. अजुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३३). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाउ अंतमुह; अंति: दिंतु सिद्धि सुह, गाथा-१३. ३२५४२. अंतरीक्षपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०, ११४३८). पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल पुरंदरि पूज्यो; अंति: सुखदायक सो छाजइ, गाथा-९. ३२५४४. आठकर्मभंदविचार व भगवतीसूत्र-शतक-१ उद्देश-२, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, २४४५५). १.पे. नाम. आठकर्मप्रकृति विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कर्मप्रकृति भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरण कर्मभेद ५; अंति: गातंराय वीर्यांतराय. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र-शतक-१ द्वीतीयोद्देश, पृ. १आ, संपूर्ण.. __ भगवतीसूत्र-हिस्सा*, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५४५. (#) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४९.५, ११४४२). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३९ अपूर्ण तक है.) ३२५४७. वसुधारानाम धारिणी महाविद्या, संपूर्ण, वि. १७२८, आश्विन शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. सौभाग्यहंस; पठ. मु. विनयहस; मु. रत्नहस (गुरु ग. सौभाग्यहस), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भोगंच करोति. ३२५४९. गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४९.५, ३९x१६). जैन गाथासंग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २७३ ३२५५०. (+#) शीलोपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४५२). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहइ ___ बोहिफलं, गाथा-११६. ३२५५१. (#) विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-३०(१ से ३०)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६४३९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५५४. श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३२). श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१९. ३२५५५. श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४१). श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५५७. चरणसित्तरीकरणसित्तरी आदि विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १५४४५). १.पे. नाम. चरणसत्तरीकरणसत्तरी विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.. __ चरणसित्तरी-करणसित्तरी विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: वय५ समणधम्म१० संजम१७; अंति: क्षेत्र काल भावरूपा. २.पे. नाम. विविधविचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३२५५८. पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन, श्लोक संग्रह व कल्याणक टिप्पनिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, २३४७७). १.पे. नाम. पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण.. प्रा.,सं., प+ग., आदि: बारस गुण अरिहता; अंति: मरणं उवसग्ग सहणंच. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. कल्याणक टिप्पनिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन कल्याणक टिप्पनिका, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५५९. (#) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४४३). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. अपूर्ण तृतीय अदत्तादान आलापक तक ३२५६०. (#) संबोधसत्तरि सह वृति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-८(१ से ६,८,१०)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३९). संबोधसत्तरी, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). संबोधसत्तरी प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५६३. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१०.५, १३४४२). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३२५६४. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१५(१ से १५)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, १५४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-टीका*,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२५६५. सिंघटप निसानी व अधुरबंध कवित्त, संपूर्ण, वि. १८५७, चैत्र कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १८४४३). १. पे. नाम. पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सिंघटप निसानी, आ. कनककुशलसूरि भट्टारक, पुहिं.,फा., पद्य, आदि: अविचल भुजपति भुज अचल; अंति: भट्टारक सपरिवार समाज, गाथा-५२. २.पे. नाम. अधुरबंध कवित्त, पृ. २अ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३२५६६. (+) गौतम कुलक व पुन्य कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३२, आश्विन कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. राणपुर, प्रले. मु. ठाकुरसी (अंचलगच्छ); पठ. सा. मेही आर्या (गुरु सा. प्रेमा आर्या, अंचलगच्छ); गुपि. सा. प्रेमा आर्या (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ५४३१-३४). १. पे. नाम. गौतमकुलं सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीनइ मनुष्य अर्थ; अंति: सुख पामइ मोख्य पामइ. २. पे. नाम. पुन्यकुलं सह टबार्थ, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांच इंद्री पडवडा-; अंति: सासता सुख मोक्ष लहि. ३२५६८. सिद्धचक्र स्तवन व आदिजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३३). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. कुशलसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वाणी इम; अंति: तस सीस जंपइ सुख थाय, गाथा-१२. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.. आदिजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदि: श्रियं दिशतु वो देवः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ३२५७०. स्तुति, श्लोक व यंत्रादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (१८.५४११, ३०x१७). १.पे. नाम. बृहदंडक स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-२४ महादंडक, आ. भुवनहितसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरपतिकोटिकोटीर; अंति: सदा सारदा शारदा, श्लोक-४. २. पे. नाम. यंत्रभरण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. यंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ यंत्र संग्रह , मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. मेघदूतादिकृतिसंबंधित चर्चा, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५७१. महावीरजिन स्तुति व इंद्रसंख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १०x१९). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरिजिणवर तिहुअणजण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक __ द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा गया है.) २.पे. नाम. १२ देवलोकइंद्र संख्या, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ देवलोक इंद्र संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले देवलोके ५०; अंति: छपन उपरि इंद्र. ३२५७३. आत्मप्रबोध जकडी व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३७). For Private And Personal use only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १. पे. नाम. आत्मप्रबोध जकडी, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. जसकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: समजी रे चंचल जीवडा; अंति: देव मनी ध्याइयइ, गाथा-४. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काशीदेश वणारसी नयरी; अंति: पूरौ मुझ मन आस, गाथा-११. ३२५७४. नेम विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १५४५१). नेमिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ से ३८ तक है.) ३२५७५. (#) सप्तवार सज्झाय व पंचतीर्थी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कर्णपुर, प्रले. मु. जयंतरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३४). १. पे. नाम. सप्तवार स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ७वार सज्झाय, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदित्य उगई उठिइं; अंति: कमलविजय जयकार रे. गाथा-९. २. पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुरि समरु श्रीआदिदेव; अंति: कहै त्यां घर जयजयकार, गाथा-६. ३२५७६. कथाप्रदीप, विद्वगोष्ठी व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, १३४४४). १.पे. नाम. कथाप्रदीप, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: निरंजनं नित्यमनंतरूप; अंति: मरणं एतद्धि रामायणं, श्लोक-६१. २. पे. नाम. विद्वद्गोष्ठी, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीभोजराज सभाया; अंति: नैव च कीदृशाः स्युः, श्लोक-२१. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-६. ३२५७७. कालमांडला आदि विधिसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३०). ___ कालमांडलादियोग विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५७८. प्रत्याख्यानसूत्र व पच्चक्खाण पारने की विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १५४२९). १.पे. नाम. दसपच्चक्खाणसूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सूरे नमोक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरे. २.पे. नाम. पचखाणविधि, पृ. २अ, संपूर्ण. पच्चक्खाण पारवाने की विधि, मा.गु., गद्य, आदि: मुठी भीडी तिन नवकार; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३२५७९. (#) दशार्णद्रराजऋषी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८४२, फाल्गुन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, ले.स्थल. उंबरी, प्रले. पं. हंसविजय (गुरु पं. रविविजय गणि); गुपि.पं. रविविजय गणि (गुरु पं. केशरविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १८४३७). दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: लालविजय निश दिश, गाथा-१८, संपूर्ण. ३२५८०. (+#) श्रमणपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. चारित्राचार तक है.) ३२५८२. (+) जिनस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३७). १. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन; अंति: नवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: पमज्जन स्वस्तिनजाघः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अणरगिरिशिरस्थः स्फार; अंति: श्रुतं नः श्रुतांगी, श्लोक-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जिनो जयति यस्याही; अंति: क्लेशनाशाय संतु नः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३२५८३. (+) भास संग्रह व गुंहली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५,१३४३२). १.पे. नाम. गौतमस्वामी भास, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चंपा नयरि अति मनोहार; अंति: रत्न अमूलक लेवेरे, गाथा-६. २.पे. नाम. गुंहली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्राविका सुधाचार जाण; अंति: रत्न गुणे भर्याजी, गाथा-१३. ३.पे. नाम. सुधर्मस्वामी भास, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी भास, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरि सोहामणिजी; अंति: रत्ननी चडती जगीस, गाथा-१०. ३२५८४. आलापपद्धति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १९४५१). नयचक्रोपरि आलापपद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तर; अंति: (-). ३२५८५. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४१). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहजानंदी थयो; अंति: जिनविजय आनंदसु भावे, गाथा-५. २.पे. नाम. चतुर्थजिनस्य रूपारुपिग्यानगर्भित स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तुज दरिसण; अंति: रस मिल्यो एकताने, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोनानी अंगी है सुंदर; अंति: रामविजय शुभ सीसने जी, गाथा-५. ३२५८६. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्र के किनारे खंडित होने से पत्रांक पता नहीं चल रहा है., जैदे., (२५४११, १६x४६). १.पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन स्तवन, मु. महाकवि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: न छोडु उपासना रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ तक नहीं २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. महाकवि, अज्ञा., पद्य, आदि: साहिबा अजित जिणेसर; अंति: देजो भव भव सेव हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर सेवना; अंति: मोहनविजय जयकार, गाथा-७. ४. पे. नाम. सुमतीनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. महाकवि, मा.गु., पद्य, आदि: वालो मारो साहिब; अंति: पासा ढुल्या हें, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३२५८८. (#) नेमिजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १० - ९(१ से ९) = १, कुल पे. ३, पठ. मु. तिलकविजय (गुरु मु. बुद्धिविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. बुद्धिविजय (गुरु ग. तत्त्वविजय, तपागच्छ); ग. तत्त्वविजय (गुरु ग. देवविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १४४४०). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १०अ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुज पूरे आस तो, गाथा-९, (पू. वि. प्रथम गाथा नहीं है. ) २. पे नाम. सत्तावीसगुणसाधनी स्वाध्याय, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण. २७ साधुगुण सज्झाय, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तावीस गुण साधना, अंति: कहे धन्न तस दीहो रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. तेतरिआ, पृ. १०आ, संपूर्ण. ३२५८९. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२५X११.५, ३१x२३). १. पे. नाम वीरजिन पद, पृ. १अ. संपूर्ण विजयदेवसूरि सज्झाय, मु. विजयप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्म, आदि; तेतरिया भाई तेतरिया अंतिः शिवसुख लहिर रे, गाथा- ९. महावीरजिन पद, मु. जयराम, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनराज के असरन, अंति: समकितधर सीलवंत आज के, गाथा-४. २. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: सुनोरी अरी खरी; अंति: सहीया तेरी जुवेरी, गाथा - ३. ३. पे. नाम लक्ष्मीसूरि भास, पृ. १अ संपूर्ण. विजयलक्ष्मीसूरि भास, मा.गु, पद्य, आदि: घडीय न विसरे ला घडीय; अंतिः रटडे बेली सांभरो ला, गाथा ५. ४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: तुं गति मेरी जाने, अंति: जयुं अमृत मन माने, गाथा-५. ५. पे नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदिः जय जयवंती तुंही एक; अंति: मेरे जीउ को ठरन हैं, गाथा-४. ६. पे. नाम, नेमी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण २७७ नेमिजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: को मनाज्यो रे रूठडा; अंति: शिवसुख अमृत बेनसुं, गाथा-६. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. अमृत, पुहिं, पद्म, आदि: चेतन तुं क्या करे, अंतिः केरा० युग सवेरा, गाथा-५. " ३२५९०. स्नात्र पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २-१ (१) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैये. (२५.५x११.५, १४X३५). स्नात्र पूजा, मा.गु, प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ३२५९३. (४) बारमासो, अष्टमीतिथि स्तुति व जिनपालजिनरक्षित सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३-२ (१ से २) - १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, २०५९). १. पे. नाम, द्वादसमास, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. नेमिजिन बारमासो, मु. आनंदवर्धन, मा.गु., पद्य वि. १६१७, आदि: (-) अंति: वरितुं बारहमास रे. ( पू. वि. गाथा- १९ तक नहीं है.) २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल, अंतिः तपथी कोडि कल्याणजी, गाथा-४. ३. पे नाम, जिनपालजिनरक्षित सज्झाय, पृ. ३अ ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिन पालित- जिनरक्षित सज्झाय, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसररे पद पंकज, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा ४४ तक है.) For Private And Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २७८ ३२५९४, (४) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) =१, कुल पे. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १८४३२). १. पे नाम. आदिसरजिन स्तवन, पृ. ३अ संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणकपुर रलीयामणु; अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा ७. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण मु. रूपविमल, मा.गु, पद्य, आदि अरज सुणो प्रभु अंति: रुपविमल सुखकार, गाथा ५. ३. पे. नाम. आसोईचईत्री स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. नवपद सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्म, आदि; जगदंबा प्रणमी कहूं अंतिः तिलकविजय जय जयकार, गाथा ५. ४. पे. नाम. त्रिजासंभवजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मन संभवजिनथी; अंति: सीस पाठ भणावे रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा ५. ५. पे नाम, शत्रुंजय स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः यारो सेंत्रुजो रे, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ३२५९५. वीर स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५x१०.५, १५-१७X३०-३५). , १. पे. नाम वीर थुई नाम छट्टो अज्झयणं, पृ. १अ २अ संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधमांस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिसुणं समणामाहणा: अंतिः आगमिस्संति तिबेमि, गाथा - २९. २. पे. नाम. सुयगडांगसूत्र हिस्सा पृ. २अ २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा., मा.गु. सं., पद्म, आदि पंचमहव्वयसुव्वयमुलं अंतिः जुंबु स्वामी जाणिये, गाथा ६. ३२५९६. वृद्धशांति व सवैया, अपूर्ण, वि. १८४६ माघ, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५.५४११, १५४४१). " ९. पे नाम, वृद्धशांति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम्. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. सवैया संग्रह, पु, पद्य, आदि (-); अंति: (-), सवैया-२. ग्रंथसूचि, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५९७. (+#) ग्रंथसूचि, स्तवन व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. धनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ८४३९). १. पे. नाम. ग्रंथ सूचिपत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २. पे नाम, शांति स्तवनम्, पृ. १आ, संपूर्ण सुबाहुजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि : देव सुबाहू मोहना रे; अंति: कांति केह सुजगीस, गाथा-७. ३. पे नाम औषध संग्रह, प्र. १आ, संपूर्ण, औषध संग्रह ०. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२५९८. (#) ऋषभजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११, १३५०). आदिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: सासनदेवीय पाय प्रणमे अंति: (-) (पू.वि. ढा-१, गाथा १८ अपूर्ण तक है.) " For Private And Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३२५९९. (#) नवकारमंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., मू+बा. पद-६ तक है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३५). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरिहंत; अंति: (-). ३२६०१. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जगगुरु श्रीगोडीपुर; अंति: क्षमा० सवाई थायै हो, गाथा-७. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अमृतवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण दीजै पासजी; अंति: नितमेव हो गोडीजी, गाथा-५. ३२६०२. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६५, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, अन्य. उपा. कुशलसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४३३). पार्श्वजिन स्तवन, मु. पद्मसागर शिष्य, सं., पद्य, आदि: कैवल्यलीला कमलासनाथ; अंति: मासाद्य परं गुरुणाम्, श्लोक-१५. ३२६०३. सीमंधरस्वामि वीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१४, वैशाख कृष्ण, ६, रविवार, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, २५४५७). आलोयणविनती स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा; अंति: प्रभु आणंद पूरितो, गाथा-४७. ३२६०४. स्तवन संग्रह व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४५४). १. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: लेजा लेजा जीरे माहरो; अंति: अमृत पदकुं देजा, गाथा-३. २.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: नही जाने देउ भला; अंति: रंगकी उमंगसे रमुं, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मनमोहनन छेह ते दीधो; अंति: अमृतरस रंगथी पीधोरे, गाथा-५. ४. पे. नाम. अध्यात्म टपो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक टपो, पुहि., पद्य, आदि: करणि फकीरि तो काहा; अंति: जोतमें जोत समाणाजी, गाथा-५. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु शांतिजिणंद भलै; अंति: दरीसणना हीतकांमी रे, गाथा-७. ६.पे. नाम. ऋषभ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन गीत, लिंबो, पुहि., पद्य, आदि: माता मरुदेवा बोलें; अंति: लिंबो० पूजो आदिजिणंद, गाथा-४. ३२६०५. शेव्रुजयमंडनआदिनाथ आलोचना स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-८(१ से ८)=२, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७). शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी विनवूजी, अंति: समयसुंदर गुण भणै, गाथा-३१, संपूर्ण ३२६०६. पट्टावली-खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १३४४७). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: जिन० ताइ प्रवर्तउ, (वि. खरतरगच्छीयपट्टावली के साथ श्रीमहावीरप्रभु के पंचकल्याणक का उल्लेख किया है.) For Private And Personal use only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२६०८. नेमि लेख, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. देवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११.५, १६x४६). नेमिजिन लेख, मु. जयसोम - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः यदुपति पए नमी गढगिर; अंति: गढगिरनारि सुठाम, गाथा-२१. ३२६०९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०५, फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४.५X१०.५, १५X३६). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वयण अमारो लाल हियडै; अंति: (१) तुम्हारा हुं बंदालाल, (२) अंतर खोलम लिजे लाल, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, मु. गौतमसोम, मा.गु., पद्य, आदि समुद्रविजय सुत नेम, अंतिः अवगुण मन कांड तजी रे, गाधा-४. ३. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुगुण भास, रा., पद्य, आदि थे सुमता रे रंग भीना, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रथम गाथा है.) ३२६११. रत्नावली छंद व महापुरुष के मांगलीकनाम, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जै, (२५.५४११.५, १३×३१). १. पे. नाम. रत्नावली छंद, प्र. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु. पच, आदि: गोडिचा कोटे गढे, अंतिः चढी सेंची कुमर नरिंद, गाथा-१४ (वि. विविध विषय से संबंधित दोहा संग्रह . ) २. पे. नाम. महापुरुष के मांगलीकनाम, पृ. १आ, संपूर्ण. महापुरुषों के मांगलिक नाम, मा.गु., गद्य, आदि गौतमस्वामीनी लब्धि, अंतिः थुलभद्रजी जग विख्यात. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६१२. (+) शीलकुलक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. सरुपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल . ५७१६, जैवे. (२५.५११, ५४२८). : शीलगुप्ति कुलक, प्रा., पद्म, आदि: नमिऊण महावीरं भणामिह अंतिः अचिरेण विमाणवासं च गाथा-२२. शीलगुप्ति कुलक-टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: नमीनइ श्रीमहावीरनई, अंति: कालि विमान वास, ३२६१३. (+) ईर्यापथिककुलक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६४७ आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पू. १, प्रले. पं. हर्षसिह, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२५.५x१०.५, ७३२). इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह अंतिः पमाणमेयं सुए भणियं गाथा १०. इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चवदह भेद नारकीना, अंति: सिद्धांत कह्यओ छइ. ३२६१४. साधुप्रतिक्रमण सुत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५X११, १३x४३). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं. ३२६१६. सम्यक्तवसत्तरी व जीवद्रव्यादिलक्षण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X१०.५, १७x४६). १. पे. नाम. सम्यक्तवसत्तरी, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: दंसणसुद्धिं धुवं लहइ, (पू. वि. गाथा ४७ अपूर्ण है.) २. पे. नाम. जीवद्रव्यादिलक्षण, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जीवद्रव्यादि लक्षण, सं., पद्य, आदि: तत्त्वातत्त्व स्वरुप, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - २३ अपूर्ण तक है.) ३२६१७. श्रावकनीइग्यार प्रतिमा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X११, ११३२). श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दंसण१ वयर सामाइय३; अंति: चज्जएसमणभूए य, गाथा - १. आवक ११ प्रतिमा गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली प्रतिमा मासश्नी अंति नहींतरि घरि आवइ. For Private And Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २८१ ३२६१८. क्षामणकानि समाधीनि, अपूर्ण, वि. १६५४, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पठ. मु. श्रीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ३४३८). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)मणसा मत्थएण वंदामि, (२)नित्थारग पारगा होह, आलाप-४, (पू.वि. मात्र ४था खामणा अपूर्ण है.) ३२६१९. (#) सरस्वती स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४१). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: सोई नित पूजो सरस्वती, गाथा-१४. ३२६२०. कायस्थिति सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, १८४३९). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: पदं ददस्व ममेति शेषः. ३२६२१. सरस्वती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८४८, फाल्गुन शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, प्रले. पं. भाग्यविजय (गुरु ग. वनीतविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. वनीतविजय (गुरु ग. रत्नविजय, तपागच्छ); पठ. श्राव. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १९४४५). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन; अंति: वाचा फलसें माहरी, गाथा-२९, __ संपूर्ण. ३२६२२. (2) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८-७(१ से ७)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३०). १. पे. नाम. भीलडीयानो स्तवन, पृ.८अ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीलडीया, ग. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: साचो समरूं स्वामी; अंति: सहनी पूगी मनरूली, गाथा-७. २. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चउदलोक कें पार किनार; अंति: चरण सरण का वासा हें, गाथा-४. ३२६२३. शिवकुमारकथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, २०४४१). शिवकुमार कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपुरनगरनइ विषइ; अंति: (-). ३२६२४. गौतमस्वामि रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, २१४६९). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: (अपठनीय), गाथा-४४, (वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य नहीं भरा है.) ३२६२५. गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. पीतांबर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १५४४७). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धानरा अत्थपरा हव; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. ३२६२७. आठकर्म व सामायिकभेदस्थिति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ३४४१७). १. पे. नाम. आठकर्मनी स्थिति, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ८ कर्म स्थिति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीना भेद५; अंति: आवे भोगविवा मांडे. २.पे. नाम. सामायिकभेदस्थिति विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सामायिक नी ज.समु १; अंति: यथाप नास्ती अंतरूं. ३२६३०. चरणसत्तरीकरणसत्तरी बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३७). चरणसत्तरी-करणसत्तरी के सत्तर-सत्तर बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal use only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२६३२. (+) उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. सुमतिसार (गुरु पं. जिनमाणिक्य गणि); गुपि.पं. जिनमाणिक्य गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, २०४५८). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम पौषध ग्रहण खमा; अंति: विधिः श्राद्धा मिवैव. ३२६३३. सझाय, श्लोक व कुलक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ७, जैदे., (२५४११, २१४६०). १.पे. नाम. हमची सीख सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ___ औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, मु. वर्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ते नरभव अजूआलइ रे, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रत्याख्यान कुलक, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ पच्चक्खाणफल कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सुगुरु चलणं; अंति: सया पच्चक्खाणाई, गाथा-७. ३. पे. नाम. दशश्राद्ध कुलक, पृ. २अ, संपूर्ण. १० श्राद्ध कुलक, प्रा., पद्य, आदि: आणंद१ कामदेवेअर गाहा; अंति: बारस वय धारय चैव, गाथा-१४. ४. पे. नाम. वीसस्थानिक कुलक, पृ. २आ, संपूर्ण. २० स्थानक कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं निज्जि; अंति: पुन्नं सुहफलं तस्स, गाथा-१३. ५. पे. नाम. बत्रीसअनंतकाय गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सव्वाउ कंदजाई; अंति: सव्वाई पत्तेयं, गाथा-५. ६.पे. नाम. बाईसअभक्ष्य गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचुंबरि५ चउविगई४; अंति: वजहवजाणि बावीसं, गाथा-२. ७. पे. नाम. सातविगइ श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. ७ विगई श्लोक, सं., पद्य, आदि: घृतं तैलं तथा पक्कं; अंति: सप्तसुतेन लभ्यते, श्लोक-१. ३२६३४. पाक्षिक क्षामणक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४३). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पीयं चम्मे जम्मे; अंति: (१)मणसा मत्थएण वंदामि, (२)नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ३२६३५. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १८४६३). विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अद्दामलग पमाणे पूढवि; अंति: (-), (पू.वि. विचार-१४४ तक है.) ३२६४०. पदविवरण-पण्णवणानुसारे, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १७४५३). पद विवरण-पण्णवणा, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (१)समणं भगवं वीरं नमिऊण, (२)पण्णवणा कहितां; अंति: ३२६४२. (+) जैनगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४६, कार्तिक कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सूरत बिंदर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (८५१) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२५४११, १०४३८). ___ जैन गाथा-टबार्थ **, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७, (वि. तत्त्वार्थसूत्रकर्ता स्तुति आदि गाथा संग्रह.) ३२६४३. सुभाषित श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, १२४२९). सुभाषित संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अप्रतिबद्धे श्रोतरि; अंति: आविओ चुला कुंकण नाम, श्लोक-४३. ३२६४५. स्वभाव परिणीती व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४३९). १.पे. नाम. स्वभावपरिणीत प्रकरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्वभावपरिणीति प्रकरण, मा.गु., गद्य, आदि: स्वभाव२१ जीवने होइं; अंति: स्वभाव विचारी जोवा. २. पे. नाम. आठदृष्टि विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.. ८ दृष्टि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मित्रादृष्टि१ तारा; अंति: समान ए आठ ८ दृष्टि. ३. पे. नाम. कोदृसिला विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. कोटीशिला विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: कोट्टसिला १ जोयणनी; अंति: नीयासा वासुदेवेहिं. ४. पे. नाम. भार मान, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ मा.गु., गद्य, आदि: साडत्रीशकोडिने बार; अंति: वली ते मणे एक भार. ३२६४६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५,१६x४३). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: विषम विषयनी वासना; अंति: कांति०तरस्यां हो राज, गाथा-७. २. पे. नाम. रुक्मिणी सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रुक्मिणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामोगाम नेमज; अंति: राजवीजय रंगे भणेजी, गाथा-७, (वि. गाथा चार पद के हिसाब से लिखी हुई है.) ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाटकी विलोऊं रे मारा; अंति: नितनित कोडि कल्याण, गाथा-६. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडण, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सूरतमंडण दूरितविहंडन; अंति: लहें भाणविजय आणंद, गाथा-५. ३२६४७. नारकीपृथ्वीविचार संग्रह सह अर्थ व पंचमहाव्रत भेद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४७). १. पे. नाम. नारकीपृथ्वी आंतराविचार सह अर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. नारकीपृथ्वी आंतराविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: बिसहस्सूणा पुढवी; अंति: भायया पत्थंडतरियं, गाथा-१. नारकीपृथ्वी आंतराविचार गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिल नरकिपृथ्वी; अंति: ३००० विचालई हई. २. पे. नाम. नारकभूमिप्रतरमान गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तेसीया पंचसया एक्कार; अंति: छट्ठ पुढवीइ नेयव्वं, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमहाव्रत १२६ भेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपातना भेद ८१; अंति: प्राणातिपातादि वेरमण. ३२६४९. महावीरजिन सत्तावीसभव विचार व नवकोटी कवित, अपूर्ण, वि. १७८७, श्रेष्ठ, पृ. ३५-३४(१ से ३४)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १०x४०). १. पे. नाम. सत्तावीस भव, पृ. ३५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., वि. १७८७, ज्येष्ठ शुक्ल, २, प्रले. मु. वीरजी, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन २७ भव विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कारइ कही वखाणस्यइ. २. पे. नाम. नवकोटी कवित्त, पृ. ३५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मंडोवर सामंत हुओ १; अंति: कोटि वांटि जुजुकीया, गाथा-१. ३२६५०. शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ.मु. कनक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १५४५४). त्रैलोक्यशाश्वत जिनप्रतिमा स्तवन, आ. तरुणप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीऋषभवर्द्धमानक; अंति: तरुणप्रभया दृशस्वां, श्लोक-४१. ३२६५१. शीलांगरथ व इर्यापथिकीरथ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४२०-३३). १.पे. नाम. शीलांगरथ गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांगरथ आम्नाय, प्रा., पद्य, आदि: जे नो करति मणसा; अंति: बभंच होइ जइधम्मो, गाथा-२. २.पे. नाम. ईर्यापथिकी रथ, पृ. १अ, संपूर्ण.. इरियावहीरथ यंत्र सहित, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: उवसम धरेण मणसा कोह; अंति: अभिहिया खमावेमि, गाथा-१, (वि. ईर्यापथिकीरथ का कोष्टक दिया है।) ३२६५३. विविध पुराणो से उद्धृत श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४६२). औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अक्रोधवैराग्यजितेंद; अंति: चैतच्चंडाललक्षणम्, श्लोक-१०१, (वि. श्लोक संख्या ८२+१०+९=१०१) For Private And Personal use only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२६५४. बंभणवाडि वीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१०.५, १५४३८). महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदाये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ३२६५५. विद्वद्गोष्टी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १४४३८). विद्वद्गोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीभोजराज सभाया; अंति: नैव च कीदृशाः स्युः, श्लोक-२१. ३२६५६. नवतत्त्व, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-५५, (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से है.) ३२६५७. चर्चा वाद, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. गागरडुगाम, प्रले. जगन्नाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०, १३४५५). चर्चा वाद, सं., गद्य, आदि: अवसऽग्रेमंडली स्रो; अंति: अहोभ्यां इति सिद्धं, सूत्र-५२. ३२६५८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ८४४६). १.पे. नाम. पार्श्वजीस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोहन मूरति ताहरी जी; अंति: साहिबा वारी जाउंरे, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तुं जग जीवन वालहो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखी ३२६६०. मनुष्यभव १० द्रष्टांत गाथा सह कथा, परमेष्ठिगुण गाथा व अष्टप्रातिहार्य गाथा सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२०.५-२५.०४९.५, १५-१७४४८). १. पे. नाम. मनुष्यभव १० द्रष्टांत गाथा सह कथा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चूल्लग१ पासगर धन्ने३; अंति: दसदिठूनामणुयलंभे, गाथा-१. मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रथम चूलक भोजन खीर, (२)कपिलपुर नगरे ब्रह्म; अंति: संसारुत्तारणी जीवउ. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि गुणविवरण सह अर्थ, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि गुणविवरण, प्रा., पद्य, आदि: बारस गुण अरिहंता; अंति: साहु सगवीस अट्ठसय, गाथा-१. पंचपरमेष्ठि गुणविवरण-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बारसगुण अरिहंता कहता; अंति: एकसोआठगुण १०८ जाणिवा. ३. पे. नाम. ८ प्रातिहार्य श्लोक सह अर्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. ८ प्रातिहार्य श्लोक, सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्ष सुरपुष्प; अंति: जिनेश्वराणाम्, श्लोक-१, संपूर्ण. ८ प्रातिहार्य श्लोक-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत अशोकवृक्ष तलइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., सुरपुष्पवृष्टि तक लिखा है।) ३२६६१. थिरावली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १६४५१). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२६ तक लिखी हुई है.) । ३२६६३. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३६). १.पे. नाम. बृहच्छांति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. दयासागर, प्र.ले.पु. सामान्य. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, (पू.वि. मात्र अंतिम ४ गाथा है.) २. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रितस्तस्य जायते, श्लोक-५. ३. पे. नाम. मंगल स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. भार्गव, सं., पद्य, आदि: ॐनमो मंगलो भूमि; अंति: शंसयः स्वाहा, श्लोक-४. For Private And Personal use only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org ४. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पठ. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा, अंतिः कुरु कुरु स्वाहा, श्लोक १२. . ३२६६४. जैनदुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, १६५३). जैनदुहा संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६६५. झांझरीयामुनि स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-६ (१ से ६ ) -२, जैवे. (२५.५x१०.५, ११४३५). झांझरियाऋषि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महियल महिमा मुनिवर; अंति: कहै मन तणी रे खंति, गाथा- ३७, संपूर्ण ३२६६६. चैत्यवंदन भाष्यत्रय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२५.५४१०.५, १२X३७). ३२६६८. वर्णमाला व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, जैदे. (२४.५X११.५, ७४२३). "" चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ८ तक है.) देववंदन भाष्य- बालावबोध मे, मा.गु. गद्य, आदि: हुं वांदिवा योग्य, अंति: (-) ३२६६७. चतुस्सरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. सामंत (बृहत्खरतरगच्छ ), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२४४१०.५, १९४४४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: (१) सावज जोग विरई, (२) अमरिंद नरिंद बंदियं, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. १. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ; अंति: (१) के कै को कौ कं कः, (२) ३४५६७८९१० ११. २. पे. नाम. गोडिजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि गोडि राजा त्रिलोकि, अंतिः मान० संपद पावे हो, गाथा-७. ३२६६९. भरतबाहुबल सझाय, संपूर्ण, वि. १७९५, आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. इंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X११.५, २३X५८). २८५ भरतबाहुबलि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु, पद्य, आदि आदि आदिजिणेसरुरे, अंति: लाल० परे मुगते जाइये, " गाथा - ३२. ३२६७०. नवकार छंद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, जैवे. (२४.५x११.५, १३४३४)नमस्कार महामंत्र छंद. वा. कुशललाभ, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध अंतिः (-), ( पू. वि. गाथा - ११ अपूर्ण तक है.) ३२६७१. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) -१, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है, जैवे. (२५x१०.५, १९४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ८ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक है.) ३२६७२. पच्चक्खाण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५४११, ११४४१). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उग्गए सुरे नमुकारसिय; अंतिः गारेणं वोसिरामि, (वि. ९ पचक्खाण.) ३२६७३. स्तवन, गीत व सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३X११, १४X३४). १. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि चंदाजी थे गगन करो; अंतिः हीरालाल हरख अपारेसुं, गाथा- ६. २. पे. नाम. उदेचंद महाराज गीत पृ. १ अ १आ, संपूर्ण. उदयचंद महाराज गीत, मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: गानीवंत गुणाकासुं; अंतिः भव जीव मुगत का गरजी, गाथा-५, ३. पे. नाम. साधुगुण सवइयो, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुगुण सवैया, मु. खूबचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: अणी जीनसासणमे केइ; अंति: खूबचंद० सुख पावे रे, गाथा-२. Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २८६ ३२६७४. पार्श्वनाथ स्तोत्र, आदिजिन स्तुति व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ३, प्र. ले. श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५X११, ९X३४). १. पे. नाम. वरकाणापार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र- वरकाणा, मु. जिनविजय, सं., पद्य, आदि कल्याणवली विपिनेवं; अंतिः शिवशमं भुक्तिम्, श्लोक-२१. २. पे नाम. आदिनाथ स्मृति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: दरमुत्तियहारसतारगणं, अंति: सुहाणि कुणे सुसया, गाथा-४. ३. पे. नाम. सामान्य जैनश्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण जैन सामान्यकृति*, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२६७५. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. ५०-४९ (१ से ४९)-१, कुल पे. ९, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५८). १. पे. नाम. भावना १२, पृ. ५०अ, संपूर्ण. १२ भावना, मा.गु., गद्य, आदि: अनित्यभावना१ असरणभा०; अंतिः बोधिलाभभा० १२. २. पे. नाम. ३६ गुण आचार्चना, पृ. ५०अ, संपूर्ण. आचार्य ३६ गुणवर्णन, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि पडिरूबाई चउदस१४ खंती, अंतिः सुमति५ गुपति आचार५, गाथा-५. ३. पे. नाम. षड्त्रिंशद्राजदंडायुधानि, पृ. ५०अ, संपूर्ण. ३६ आयुध प्रकार, सं., गद्य, आदि: चक्र खड्ग वज्र छुरि, अंति: तारिका सारंग धनुषः ४. पे. नाम. ३६ षड्विंशत राजपात्र, पृ. ५०अ, संपूर्ण. ३६ राजपात्र विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मपात्र अर्थपात्र; अंति: पात्र गुणज्ञपात्र. ५. पे. नाम. पडत्रिशद्राज विनोद, पृ. ५०अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ राजविनोद वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि दर्शनविनोद श्रवण, अंतिः क्रीडा सूत्रविनोद ६. पे. नाम. ३६ राजवंश, पृ. ५०अ, संपूर्ण. ३६ राजकुल नाम, मा.गु, गद्य, आदि सूर्यवंश चंद्रवंशर अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वंश १५ डाभिक तक लिखा है.) ७. पे. नाम. विचारछत्रीसी प्रकरण, पृ. ५०अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, वि. १६४५, आदि: (-); अंति: वुच्छंमि नियकज्जे, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र अंतिम लिखी हुई है.) ८. पे. नाम. आसातना ८४ जिनमंदिरेवर्ज्य, पृ. ५०-५०आ, संपूर्ण, वि. १८१९ आषाढ़ शुरू. १०. गुरुवार, ले. स्थल. जेसलमेर, प्रले. वा. राजधर्म (गुरु आ जिनलाभसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनलाभसूरि (गुरु आ. जिनभक्तिसूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं केलि कलिं कला; अंति: वेज्जे जिणिदालये, गाथा-४. ९. पे. नाम बत्रीसअनंतकाय गाथा, पू. ५०आ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., पद्म, आदि सव्वाउ कंदजाई, अंति: लखण जुत्ताउ समयाओ, गाथा-५, ३२६७६. श्रेणिकराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२४.५४११.५, ८४२८). श्रेणिकराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: में तो पूरब सुकरत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ तक लिखी हुई है.) ३२६७८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X११.५, १३X३४). १. पे. नाम संभवनाथजी स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. गाथा - ९. २. पे नाम. शेत्रुंजयतीरथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्म, आदि हां रे लाला संभवजिन, अंतिः संघ कल्याण रे लाला, For Private And Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org 3 २८७ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि : आंखडीयां मै आज अंतिः श्रीआदीसरजी तूठा रे, गाथा-८. ३२६७९. व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५x११.५, ११४३१). व्याख्यान संग्रह *, मा.गु. रा. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ३२६८०. औपदेशिक श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, ७X२२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक लोकसंग्रह, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: माछर्य मुच्छार्य; अंति: सजना खलरडीआलाछडी, गाथा-६. ३२६८२. संगीत स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. ले. श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२५X१०.५, १२X३१). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: क्रेंद्रे कि क्रेंद, अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ३२६८३. शत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२४.५x११, ९३३). ', आदिजिन स्तवन बृहत् शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमवि सबल जिणंद, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक लिखी है.) " " ३२६८४. षष्टिशतक प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे., (२५x१०.५, १३३०). षष्टिशतक प्रकरण, श्रव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू, अंति: (-), (पू. वि. गाथा २३ तक है.) ३२६८५. कायाजीव सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११, ८x२०). 3 औपदेशिक सज्झाय- परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: एक काया अरु कामनी; अंतिः स्वारथ को संसार, गाथा-६. ३२६८६. समकितनो विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २४.५X११.५, १६X३६). सम्यक्त्वस्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: देव श्रीअरिहंत१८ दोष, अंति: (-). ३२६८८. स्तोत्र व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) = १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, ८X२८-३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हरिणाहरि देशतः, श्लोक-२५ (पू. वि. श्लोक-२३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जैन सामान्यकृति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा. मा. गु. सं., गद्य, आदि (-): अंति: (-). " ३२६८९. (+) पार्श्वजिनाधिष्टायिका पद्मावतीस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११, २१X७०). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदिः श्रीमद्वीर्वाणचक्र, अंति: पद्मावतीस्तोत्रम् श्लोक-२७. ३२६९१. कर्मप्रकृति रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., ( २४.५X१०, १५X४७). 1 कर्मप्रकृति रास, मा.गु., पद्य, आदि आदि स्वयंभु शंकर शिव, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ६२ अपूर्ण तक है.) ३२६९३. (+) विविधविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३ - १२ (१ से १२) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११.५, १५X३९). १. पे. नाम. ५६० अजीवरा भेद, पू. १३अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. अजीव ५६० भेद, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अजीवरा थया इति जाणवा. २. पे. नाम. साधुसाध्वी उपकरण, पृ. १३अ, संपूर्ण. साधुसाध्वी उपकरण विवरण, प्रा., पद्म, आदिः पत्तं पत्ताबंधो पावठ अंतिः ए अज्जाणं पणवीसंतु, गाथा- ७. ३. पे. नाम. गोमटसार दिगंबर, पृ. १३अ, संपूर्ण. पुरुषस्त्रीनपुंसक वेदविचार गाथा - गोमटसारे, प्रा., पद्य, आदिः पुंवेया अडवाला इत्थी अंतिः समये एगेण सिज्झति, गाथा - १. ४. पे नाम, मुहपतिरा ५० बोला, पृ. १३आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सूत्रार्थ, अंतिः षट्कायनी रक्षा करु. ३२६९६, (-) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. जैदे. (२४.५x१०.५, १७३८). ', " For Private And Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१३, आदि: नीचलै पूजीव्यैनी सखी; अंति: कुशल० कोडि कल्याणनी, गाथा-५. २. पे. नाम. शत्रुजयगीरनारतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा सेजो; अंति: रहसी सदाइ अभंग, गाथा-५. ३. पे. नाम. स्वयंप्रभु गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. स्वयंप्रभजिन गीत, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामि स्वयंप्रभु; अंति: केहनइं छेह न दिति, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमराजिमती स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारा सांवलीया रे; अंति: सगली बात सुधारी, गाथा-६. ३२६९८.(-) सज्झाय संग्रह व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११, १९४५७). १. पे. नाम. इर्यापथिकी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अमे इरियावही पडिकम; अंति: कमला अनुभवस्या रे, गाथा-१८. २.पे. नाम. एलापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नामइ एलापुत्र जाणीइ; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ३. पे. नाम. निग्रंथ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. चारित्रवर्णनरूप सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर सवेनिं करू; अंति: सेवकनइ देयो परमत्व, गाथा-१५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रीरभजत्; अंति: (अपठनीय), श्लोक-५, (वि. स्याही फैलने से अंतिमवाक्य अवाच्य है.) ३२६९९. मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४३८). मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जीवना वासइ वसइ; अंति: कल्याण गुण गावइ रे, गाथा-१३. ३२७००. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, ३१४१७). १. पे. नाम. मार्गणाद्वार यंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ स्थानक मार्गणा द्वार, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. जनसामान्य गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. भगवतीसूत्र की १ मात्र गाथा लिखी है.) ३. पे. नाम. ३२ दोष गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पल्हत्थिय१ अथिरासण२; अंति: वसे सव्व सुह लच्छी, गाथा-६. ३२७०१. अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १०४३२). अष्टप्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२, गाथा-१ जल पूजा तक है.) ३२७०२. १०० बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सींघाणा, प्रले. सा. सीता (गुरु सा. गुमानाजी); गुपि.सा. गुमानाजी (गुरु सा. चनणा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १४४२५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाताधर्मकथा साढि; अंति: किधी ते प्रतापे, प्रश्न-१००. ३२७०५. स्तवन संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५, १४४४१). १.पे. नाम, वरकाणापार्श्वनाथ बृहत्स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २८९ पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवरकाणउ साचउ जाणउ; अंति: कीरति पामइ निरमली, गाथा-११. २.पे. नाम. चिंतमणि लघुस्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तव-चिंतमणि, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धरि उमेद मनमांहे घणी; अंति: कहइ० आस फली भरपूरि, गाथा-७. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३२७०७. परमानंद पचीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३९). परमानंद पच्चीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंपन्नं; अंति: प्राप्य परमपदमात्मनः, ___ श्लोक-२५. ३२७०९. (#) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, ११४३१). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७५ तक ३२७१०. (-) शांतिनाथजीनो कलश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३.५४११, १५४५१). शांतिजिन जन्माभिषेक कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजेमंगलाभुद अतावल; अंति: जंपे सांतिजिन जेकार, (पू.वि. गाथा क्रमांक नहीं दिया गया है.) ३२७११. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १२४३८). १.पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु; अंति: प्रभुपार्श्वजिनस्तवं, श्लोक-७. २.पे. नाम. प्रभातीयो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठोनें मेरे आतमराम; अंति: वरतुं सिद्धवधाई रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. प्रभाती, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पावापुर महावीर जिणेस; अंति: जिनचरणै चित लावा, गाथा-४. ४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी वंदन जाइये; अंति: हेते वंदो विमल जिणंद, गाथा-४. ३२७१२. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४१०.५, १७४३१). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: माई जो तूंसे अंबाई, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-राधनपुरमंडन, मु. ऋद्धिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर अति; अंति: पंडित ऋद्धिचंदोजी. गाथा-१. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सौधर्म देवलोक ___ पहिलो; अंति: कांतिविजय गुण गाय. ४. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय कर मंगल दीपक; अंति: कमला भालतिलक वर हीर. गाथा-१. ३२७१३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, ११४३२). १.पे. नाम. पद्मप्रभूजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मप्रभजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु आगळ रही; अंति: जिन ग्रह्यो बाहि, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्व गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, गु., पद्य, आदि: चाल चाल रे कुमर; अंति: प्रभुतुजने नमे रे, गाथा-३. ३२७१४. पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२४४११.५, १६४३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. रत्नसमुद्र शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सीस इणि परि जंपइ, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-३ तक नहीं है.) ३२७१५. पूजाविधि छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, ११४३४). जिनपूजाविधि छंद, मु. प्रीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुविधिनाथनी पूजा; अंति: प्रीतविमल० मन उल्लास, गाथा-१३. ३२७१६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४४३). १. पे. नाम. वीर वीनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभूपाय लागी करूं; अंति: सामी सदा सुख देस्ये, गाथा-१०. २. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, क्र. लीबो, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला स्वामी सीमंधर; अंति: सारो वंछित काज, गाथा-७. ३. पे. नाम. छन्नुजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ९६ जिन गीत, ऋ. लीबो, मा.गु., पद्य, आदि: अतीत अनागतने वर्तमान; अंति: (अपठनीय), गाथा-१२, (वि. किनारा खंडित होने से अंतिम वाक्य नहीं पढ़ा जा रहा है.) ३२७१७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, १३४४४). १. पे. नाम. संखेसरपार्श्वस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, क. कमलविजय, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरा साहिब मइ; अंति: पंडित कमलविजय जयकर, गाथा-१३. २. पे. नाम. पद्मप्रभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: दिज्यो ___ भवभव सेवरे, गाथा-९. ३. पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमुं प्रथम; अंति: पद लहे पामे सुख अनंत, गाथा-८. ३२७१८. सरस्वती स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४९.५, ११४३९). १.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-अष्टोत्तरशतनामगर्भित, सं., पद्य, आदि: धिषणा धीर्मतिर्मेधा; अंति: भारती किल्बिषं मे, ___ श्लोक-१४, (वि. अंत में सरस्वती मंत्र भी दिया हुआ है.) २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३२७१९. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३२७२०. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३९). १.पे. नाम. संख्यातु असंख्यातु अनंत विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. असंख्यात अनंत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: यथा ए जंबूद्वीप; अंति: इम १८ भेद हुइ. २. पे. नाम. तीर्थंकरगोत्रबंध विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २९१ ३२७२२. (+) पार्श्वजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, ९४३०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: छांजि छांजि छांजि; अंति: मोहनविजे एपायो, गाथा-८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (-); अति: (-), श्लोक-६. ३२७२३. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३८). १.पे. नाम. जभडली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जीभ सज्झाय, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जाणवंतनी जीभडिलीरे; अंति: कल्याण कहत मोटारे, गाथा-१२. २.पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुंअरिहंतना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ३२७२४. साधुप्रतिक्रमणसूत्र व आलोचना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १७X४०). १.पे. नाम. पगाम सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० इच्छामि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. २. पे. नाम. आलोचना, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. आलोचना विधि-साधुधर्म, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाननि विषे जे; अंति: होए तस मीछामी दुकडं. ३२७२५. वीरजिन स्तवन, दीक्षापच्चीसी व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. उदियापुर, प्रले. मु. हेमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०, १२-१६४३४). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. रायचंद, रा., पद्य, वि. १८३०, आदि: तुमै सुणजौ ए आरजीयां; अंति: रिजे थारी भगतसू, गाथा-२३. २. पे. नाम. दिख्या पचवीसी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. दीक्षापच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: तीजा अंगने ठाणे तीसर; अंति: ज्यूगतसूं जोडी ढाल, गाथा-२५. ३.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. ३२७२६. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४५०). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कवियण, पुहिं., पद्य, आदि: वात वटाऊ कहि न इसी; अंति: दिन दिन अधिकइ रंग, गाथा-९. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सूरति सलूणा हो साहिब; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ३२७२८. शीतल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, १५४२०). शीतलजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिनपति सेवीइंए; अंति: एपद्मविजय कहे आज, गाथा-८. ३२७३०. भटेवापार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८५७, पौष कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. मूडेठानगर, प्रले. पं. हसविजय (गुरु पं. रविविजय गणि); गुपि. पं. रविविजय गणि (गुरु पं. केशरविजय गणि); पं. केशरविजय गणि (गुरु पं. वनीतविजय गणि); पठ. मु. पनजी (गुरु पं. हंसविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १८४३७). पार्श्वजिन स्तवन-भटेवा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनशासन जयकरूं, ढाल-४, (पू.वि. ढा-२, गाथा-७ तक नहीं है.) For Private And Personal use only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२७३१. (+) जिनआगमबहुमान स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३.५४११.५, ११४२७). जिनआगमबहमान स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८०९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१८ से ढाल-२,गाथा-१० तक है.) ३२७३२. नेमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, १९४१३). नेमिजिन स्तवन, ग. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुन अज्ञानी चित्तमां; अंति: कहे दुजो नांहि बे, गाथा-७. ३२७३३. संध्यापडिलेहणा समय निर्णय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, २४४१५). संध्यापडिलेहणा समय निर्णय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२७३४. सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३१). सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के ___ पत्र नहीं हैं., गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ३२७३५. (#) २४जिन नमस्कार व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११, १२४२९). १. पे. नाम. जिन नमस्कार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २४ जिन नमस्कार, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: जिण चउवीसइ पाय, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-२३ तक नहीं है.) २. पे. नाम. महात्मामहासती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ३. पे. नाम. श्रावकदिनकृत्य सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. ३२७३६. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२३४१०.५, ३२४१८). १. पे. नाम. अजितजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अजोध्यानो धणी; अंति: प्रभु आवागमन निवार, गाथा-३. २. पे. नाम. वीसविहरमान नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिला जिनवर विहरमान; अंति: नय वंदे करजोडि, गाथा-३. ३. पे. नाम. नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: परमेश्वर परमात्मा; अंति: चिदानंद सुख थाय, गाथा-३. ४. पे. नाम. नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन नमस्कार, मा.गु., पद्य, आदि: संखेसर गाममे; अंति: घणो पउमावे धरणेंद्र, गाथा-३. ५. पे. नाम. नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. शQजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय सिद्ध; अंति: जिनवर करुं प्रणाम, गाथा-३. ६. पे. नाम. जिनवर्णनमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिनवर्ण चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: सोल तीर्थंकर जाणीये; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने प्रथम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ३२७३८. पद, कवित्त व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६६, चैत्र शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, प्रले. मु. मोहनविमल (गुरु ग. माणिक्य विमल); गुपि.ग. माणिक्य विमल (गुरु पं. रतनविमल); पं. रतनविमल; अन्य. पं. न्यायकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, ३८४२६). १. पे. नाम. कवित्त संग्रह, पृ. १अ+१आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org २. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि दिल ध्यान धरूं तेरी, अंतिः वालिद कुं दूर कीओ, गाथा- १. .पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. , पार्श्वजिन पद- शंखेश्वर, मु. भाण, मा.गु, पद्य, आदिः संखेसर पास पूरे मन अंतिः भाण० नेक निहारीइजी, गाथा १. ४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: इतथे उतथइ हरि गोपि; अंति: स्वामी प्रियउ धरि, गाथा-२. ५. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ + १आ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अति: (-). ६. पे. नाम. स्थुलीभद्र कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि कवित्त, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: चम चम चमकति चंचल, अंति: कोश के चित्त हर्यो, गाथा-२. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), सवैया-१. ८. पे. नाम पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृपा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), पद-४. ३२७३९. स्तवन संग्रह व सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५x१०.५, ११X३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रभुजी वीरजिनंदने; अंतिः भवोभव तुम पाय सेव हो, गाथा ५. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अति अलवेस, अंति: सानिध करजो मायाजी, गाथा-४. ३२७४०. पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२३.५X१०.५, १५४५२). " मु. जिनवर्द्धन, मा.गु, पद्य, आदि: सरसत्ती सामीने वीनवु अंतिः ए जिनवर्धन गुण गाय, गाथा ५८, (वि. प्रतिलेखक ने अंक संख्या लिखने में गलती की है, गाथा२७ के बाद सीधा गाथांक ३० दे दिया है.) प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि उग्गएसूरे नवकारसहियं अंतिः असित्थेणवा बोसरह, (वि. साथ में आगार संख्या भी दी हुई है.) ३२७४१. अनंतवीर्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. लालचंद ठाकरसी, लिख. ग. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५x१०.५, ८४२२). अनंतवीर्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिम मधुकर मन मालतीरे, अंति: तुज गुण रंगरेल रे, गाथा ६. ३२७४२. नवग्रह व चतुर्विंशथिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X११.५, १३X३७). १. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्व, अंति: ग्रहशांतिमुदीरिता, श्लोक-११. २. पे नाम चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण २४ जिन स्तव - चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. राजतिलकसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि आदौ नेमिजिनं नौमि, अंतिः मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक - ८. २९३ ३२७४३. पाक्षिक अडिओसूत्र व पाक्षिक खामणा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, पठ मु. वल्लभसागर (गुरु आ. विद्यासागरसूरि अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२३.५x१० १२४३६). १. पे. नाम. पाक्षिक अब्भुट्ठिओसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. अब्भुडिओमिसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छा० संदि० अब्भु अंति: मिच्छामि दुक्कडम् For Private And Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. क्षामणकानि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पाक्षिकखामणा, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ३२७४४. (+) वस्तुपालसंक्षिप्तजीवन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १४४४१). वस्तुपाल संक्षिप्तजीवनचरित्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संवत् १२६२ वर्षे; अंति: केवलं सातुश्च. ३२७४५. चत्तारिअट्ठदस स्तव व जंबूद्वीपपरिमाण विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १५४३६). १.पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चत्तारिअट्ठदस स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारिअट्ठदसदोअ; अंति: जगगुरु बिंति, गाथा-१३. २. पे. नाम. जंबूद्वीपपरिमाण विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३२७४६. सरवारथसिद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४३४). सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सरवारथ सिद्ध चंद्र; अंति: बोलइ एणी परि वाणी रे, गाथा-११. ३२७५०. अष्टापदतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४९.५,७४२४). अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथ अष्टापद नित; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ३२७५२. (+) प्रतिक्रणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १३४३५). १.पे. नाम. रात्रि प्रतिक्रमण, पृ. १अ, संपूर्ण. राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कुसुमिण दुसुमिण राईय; अंति: भगवानहं त्तिबेमि, गाथा-५. २. पे. नाम. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुहपत्तिवंदणय; अंति: (१)संवछरीतप विवरोज्ञेयं, (२)सक्ति करी पोहसावजो. ३२७५३. अढीद्वीपक्षेत्रविवरण यंत्र, अपूर्ण, वि. १८००, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. सूर्यपुर्या, जैदे., (२३.५४१०, ३८x१२-२९). ढाईद्वीप क्षेत्रविवरण यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३२७५६. स्तवन व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२३४१०.५, १६४३८). १.पे. नाम. सेव॒जया स्तवन, पृ. ८अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीजिनभक्तिसूरिंदा, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण, ले.स्थल. आबीया, प्रले. मु. क्षेमविलास पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: सफल फली सहु आस, गाथा-९. ३. पे. नाम. आतमस्वरूप स्वाध्याय, पृ. ८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: एक काया अरु कामनी; अंति: एह संसार वीचार, गाथा-७. ४. पे. नाम. सामायक सझाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामाइक मन सुद्धे करो; अंति: सामाइक पालु निसदीसा, गाथा-५. ३२७५८. (#) सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५,११४४२). For Private And Personal use only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १. पे. नाम. नोकार सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: गज्यो नित नवकारतो, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. पांडव स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचपांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलो; अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा-१९. ३२७६०. सनी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०, १३४४५). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: सुप्रसन्न सनीसरवर, गाथा-१४. ३२७६१. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-३३(१ से ३३)=२, कुल पे. ४, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४२७). १.पे. नाम. मक्षिपार्श्वनाथजीन स्तवन, पृ. ३४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पौष कृष्ण, ९, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-मक्षी, मु. जससौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जससौ० सोभा अधिक बनी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३४अ, संपूर्ण. मु. देवब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन को आछो दाव; अंति: मुगती फल ल्यो उमगो, गाथा-७. ३. पे. नाम. रुखमणीराणी सज्झाय, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण, वि. १८५३, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, प्रले.मु. विवेकविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. रुक्मिणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणेजी, गाथा-१६. ४. पे. नाम. मुक्तावलिवृत कि विधी, पृ. ३५अ-३५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मुक्तावलीतप सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण नीत समरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ३२७६२. सीद्धचक्रजीरो चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४११, १४४४१). नवपद चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: विनय कहे कर जोड, गाथा-१४. ३२७६३. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. दयाविजय भिक्षु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०,१०४२६). १.पे. नाम. बारबोल संयमना, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ बोल संयम, मा.गु., गद्य, आदि: १ बोलें संजमनो घर; अंति: निमीते अर्थ छे १२. २. पे. नाम. धर्म परिवार के ८ बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८ बोल धर्मपरिवार, मा.गु., गद्य, आदि: धरम को पिता श्रीवित; अंति: धरम को मूल खिमा छे. ३. पे. नाम. पाप परिवार के ८ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ बोल पापपरिवार विषयक, रा., गद्य, आदि: पाप को बाप लोभ छे; अंति: पाप को मूल क्रोध छे. ३२७६४. (+) दशारणभद्रराजऋषि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८४६, कार्तिक कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. दिवबंदर, प्रले. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२२.५४१०, १५४३०). दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: वीर जिणेसर पद नमी; अंति: सकल संघ दिन दिन सदा, ढाल-५. ३२७६६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४३५). १.पे. नाम. नेमजीनो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे रथ वालो; अंति: नणदीना वीरा हठ तज, गाथा-७. For Private And Personal use only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. मंदीरसांमीनुंस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडुंते माहरु मोकलु; अंति: वसता दुरीत वीस्तार, गाथा-८. ३२७६७. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२२.५४११.५,१४४३५). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: प्रणम्य परमानंद दायक, अंति: (-). ३२७६८. आदिजिन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, प्र.वि. पत्रांक नहीं है, पत्रांक १० काल्पनिक दिया गया है।, जैदे., (२२.५४११, २०४३३). आदिजिन चौपाई, क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३४वीं तक संपूर्ण व ढाल-३५ की गाथा-४ तक है.) ३२७६९. (-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. लालश्रीजी (गुरु सा. अणदु आर्या); गुपि.सा. अणदु आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५४११.५, ११४२४). ४ प्रहर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पलो पोरो भयो बालकनी; अंति: मुगत तणा सुख पामो, गाथा-१३. ३२७७०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मोडा हुआ पत्र., जैदे., (१२.५४११.५, २२४१७). १. पे. नाम. चोदसुपन द्रव्यभावगर्भित स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन १४ स्वप्न स्तवन-द्रव्यभावगर्भित, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांतिकरणजिन शांत; अंति: __ज्ञान० सुरगुरु अवतार, गाथा-१६+२, (वि. गाथांक चार पद के हिसाब से १६ दिया है.) २.पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: जीणंदराय जिणंदराय; अंति: लीये सकल कर जोडी, गाथा-३. ३२७७१. स्तवन, पद व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२२.५४११, ८x१९). १. पे. नाम. भ्रमर औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-भ्रमर, क. गिरधर, पुहि., पद्य, आदि: भौंरा भ्रम तुंछाडदे; अंति: रहै तौ रहि रे भौरा, गाथा-१. २. पे. नाम. संखेस्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: सिरिसंखेसरपासंपउमाइ; अंति: सययं कल्लाणसुक्खकरो, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रगडो सांमी पास आस; अंति: कामत पूरण कलपतरू, (वि. कृति में गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. जैनश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३२७७३. (#) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१०, ११४३३-३६). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१ श्लोक-३९ अपूर्ण से प्रकाश-२ श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) । ३२७७४. कवित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, ९४२४). १. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त, मु. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: काचकीसी काया तामे; अंति: हेम० काल ही मर जायगो, पद-३. २. पे. नाम. औपदेशिक दूहा, पृ. २आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: सजन फलज्यो फुलज्यो; अंति: तो उणही रंगरहज्यो, गाथा-१. ३२७७५. स्तवनचौवीसी व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४३०-३६). १.पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनमधुकर मोही रह्यो; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्तवन-६ पद्मप्रभ तक लिखा है.) For Private And Personal use only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २.पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, रा., पद्य, आदि: ढंढण रिषनै वंदना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखी है.) ३२७७६. (-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२४१०.५, ११४३४). १.पे. नाम. स्थुलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछ दे मात मलार बहु; अंति: ससनेही समकीत सुखडीजी, गाथा-१७. २. पे. नाम. सोलसती छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदनाथ जिनवर वादि सफल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखी हुई है.) ३२७७८. स्थंभनपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२१.५४११.५, १८४३२). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमीसरे पास; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ३२७७९. पद, कवित व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२२४१०.५, १२४३२). १.पे. नाम. वीसवहीरमानरा नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: वहिरमांनजिन वीसे; अंति: प्रणम्यांतसुखेम, गाथा-३. २.पे. नाम. चौवीसजिन कवित, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: आद रिषभ अरिहंत अजित; अंति: वीर त्रिभुवन तीलो, गाथा-३. ३. पे. नाम. नवकारमंत्र छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र महिमा छंद, पुहिं., पद्य, आदि: ईसो मंत्र नवकार भुख; अंति: और मंत्र कासु भणै, गाथा-२. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीवैक वारधेचंद्रौः; अंति: युष्माकं सोख्य दायक, श्लोक-१. ५. पे. नाम. अष्टप्रातीहार्य श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ प्रातिहार्य श्लोक, सं., पद्य, आदि: असोखवृक्ष्यसूरपुष्फ; अंति: जिनेश्वराणाम्, श्लोक-१. ३२७८०.(+) नेमराजिमती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४९.५, २३४१६). नेमराजिमतीस्तवन, मु. जस शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजसगुरु चरमें नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-३ तक ३२७८१. सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११, १४४३१-३६). १.पे. नाम. सप्तव्यसन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ७व्यसन सज्झाय, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथकुल कलस कलस; अंति: जिम हुइलील विलास, गाथा-११. २.पे. नाम. वैराग्य गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. रत्ननिधान, पुहिं., पद्य, आदि: मीठी अइसी सुणि रे; अंति: रत्ननि० कहइ सुविचारा, गाथा-६. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-६. ३२७८२. नेमजीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, १२४३६). नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: राणी राजुल करजोडी; अंति: गुण गाया सरीकार रे, गाथा-१५. ३२७८३. नेमराजिमती स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, १५४३६). For Private And Personal use only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: नगरी सोरापरी सोभती; अंति: साधवी पोता मुगत मजार, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४६, आदि: रांणी राजल जंपैए; अंति: चोमासो मेरतै कीधोए, गाथा-१४. ३२७८४. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०.५, १६४३९). १.पे. नाम. चंद्रावती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जस मुख सोहें सरसति; अंति: कहे विवेक भजो जगदीस, गाथा-२१. २.पे. नाम. सुमतिकूमति सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सुमतिकुमति सज्झाय, ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सोहागण वीनवै; अंति: भक्यि युक्ति उपाई, गाथा-९. ३२७८५. (-) चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५४११, १२४३६). २४ जिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, आदि: भाव वदु श्रीआदजीणंद; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रत में गाथा क्रमांक नहीं लिखा है. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण लिखे होने की संभावना है.) ३२७८६. जातक पद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४३४). जातकपद्धति, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमदर्हत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५० अपूर्ण तक लिखा है.) ३२७८७. सज्झाय, स्तवन व सवैयासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४११, ३५४२८). १. पे. नाम. अरिणिकऋषि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन जननी बे लाल जे; अंति: लबधि० गुण आगम सूणि, गाथा-१८. २.पे. नाम. गौतमस्वामी स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलो गणधर वीरनोरे; अंति: वीर नमे निसदिस, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: प्रीती की रीत महा; अंति: (-), (वि. अंतिमवाक्य अवाच्य होने से नहीं भरा है.) ३२७८८. नेमिनाथ सामेला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४१०, १३४४५). नेमिजिन स्तवन-सामेला, मु. ज्ञानकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: नेमजी राजीमतिरांणी; अंति: ज्ञान सासुडी वधायोहे, गाथा-२९. ३२७८९. जीवविषय सझाइ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४११, १६४३५-३७). जीवविषय सज्झाय, मु. अखेराज, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञांनी गुरुजी जाण; अंति: येवडी ऊपजेजी कांई, गाथा-१०. ३२७९०. सरस्वती छंद संग्रह व जैनकृति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(३)=३, कुल पे. ३, पू.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक नं.३ लिखा है लेकिन अंतिम कृति गाथा-१७ अपूर्ण से २३ अपूर्ण तक है, अतः पत्रांक ४ काल्पनिक दिया है।, जैदे., (२३४१०.५, १०x२९). १.पे. नाम. सरस्वती पहिलो छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमस्ते सारदादेवी; अंति: वीणा पूस्तक धारिणी, श्लोक-११. २.पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, प्रले. जसरूप; पठ. सरुप, प्र.ले.पु. सामान्य. सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ससीकर समुज्वल मराल; अंति: सोइ पूजो नित सरस्वति, ढाल-३, गाथा-१४. ३. पे. नाम. अज्ञातजैन लावणी, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. For Private And Personal use only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org अपूर्ण जैन काव्य / चैत्य / स्त/स्तु / सझाय / रास / चौपाई / छंद / स्तोत्रादि *, प्रा., मा.गु., सं., हिं., पद्य, आदि: (-); अति: (-), (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से २३ अपूर्ण तक है.) " " ३२७९१. स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (२३४१०, १४४३२-३८). १. पे. नाम. शीतलजीन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८५१, चैत्र शुक्ल, १५. गाथा - ५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजीन सहेजानंदी; अंति: जीनवीजय आनंद शभावे, ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: रिष जिनेसर चरण कमलने; अंति: गणी मेघराज उलाशे, गाथा-६. पे. नाम रहनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्र संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः ॐनमो नमो आदेश गुरुकै अंति: एक सास्यो कहीजै. २. पे नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोरदे रे तुं विषय, अंतिः शिवसुखथी न ओसरीया, गाथा- ६. ३२७९२. भक्तामर स्तोत्र व मंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२१.५x११, १x२९). १. पे. नाम. वैदिक मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ३२७९३. अभिनंदन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२२.५४११, २६४१५-१८). " अभिनंदनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अकलकला अवीरूध ध्यान, अंति: सनमुख उमाहे घणेजी, गाथा-७. ३२७९५. बोल संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२३.५x१०.५, १३X२१-५७). " १. पे. नाम. चारित्रवोल संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. चारित्र बोल संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे नाम, चौदगुणस्थानक बोलसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण १४ गुणठाणा जीवभेद, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२७९६. () आदिजिन पारणा स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( २३११.५, १६३०). २९९ आदिजिन स्तवन- वर्षीतप पारणा, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सांवण वीनवु अंति: (-), (पू. वि. गाथा ९ तक है.) ३२७९७. (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. हेमराज, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२२x१०.५, ९४२२). " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. वसता, रा., पद्य, आदि: जोर बन्यो जोर बन्यो; अंति: राज मानज्यो नितमेव, गाथा - ९. ३२७९८. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, जैदे., ( २१.५X११.५, १८३८). 7 १. पे. नाम औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. २अ, अपूर्ण. पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि (-); अंति: पून्य प्रमाण रे, गाथा - १२, (पू. वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम. राजूलनेम सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजूल घर थकी नीसरी, अंतिः सूख कहे स्याबास, गाथा - ६. ३. पे नाम, धनारिषिनी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण धन्नाऋषि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमणि वीनवुं; अंति: मूझने साधुनु सरण, गाथा - १५. For Private And Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२७९९. चोविसतिर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६५, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. मु. चेनमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८५३) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२३.५४११.५, ११४२८). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणम; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ३२८०१. चंद्रगुणलेखा लेख, संपूर्ण, वि. १९०७, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. खीमाणदी, प्रले. सा. लक्ष्मीश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमाहावीरजी प्रसादात्., दे., (२३.५४११, १२४२८). चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमरुदेवीन; अंति: सहू फलस्ये आसरे, गाथा-७४. ३२८०३. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१४११, ८४३३). औपदेशिक पद, मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: वात सुणो रे एक ज्ञान; अंति: राम० संगत गणवान की, गाथा-१०. ३२८०४. (+) मेतारजमुनि ढाल व जैन प्राकृत बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं किया गया है., संशोधित., दे., (२०.५४११, १३४३०). १. पे. नाम. जैन प्राकृत बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. किसी सूत्र का किंचित् पाठ उद्धृत किया गया है.) २. पे. नाम. नेतारज की ढाल, पृ. १अ, संपूर्ण. मेतारजमुनि सज्झाय, मु. मनरुप, मा.गु., पद्य, वि. १८१५, आदि: (-); अंति: (१)धन धन तपसी पुरा, (२)मनरुपजी गुण गाया, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण से है., वि. यहाँ पर कृति का अंतिम कुछ पाठ लिखा गया है. यह पाठ किसी अंतिम ढाल का अंश या स्वतंत्र रूप से अंतिम गाथाएँ भी हो सकती हैं. कृति की मात्र अंतिम कुछेक गाथाएँ उपलब्ध होने से अंतिमवाक्य का सही-सही पता नहीं लगने पर दो अंतिमवाक्य भरे गये है.) ३२८०५. परमाहामी का बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१x१०.५, १६४३३). जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२८०६. (#) पजुसणारी थुइ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सदाराम; पठ. श्राव. हेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १०४३२). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुन्ये; अंति: संतोषी गुण गाय जी, गाथा-४. ३२८०७. नाकोडापार्श्व स्तवन व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (१९.५४११, १०४२४). १.पे. नाम. नाकोडापार्श्व स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणै घर बेठा लील करो; अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-७. २. पे. नाम. परमात्मा स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. जिनस्तुत्यादि संग्रह*, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३२८०९. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०.५४१०.५, १०४२२). १.पे. नाम. सोलासती सझाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांलि ओढी; अंति: प्रसन्न सदा पद्मावती, गाथा-१४, (वि. दो-दो गाथा को एक गाथा के रूप में गिनने से प्रति मैं गाथांक ७ तक लिखी गई है.) २.पे. नाम. ऋषभ चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण, प्रले. मु. केशवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय स्वामी युगादि; अंति: करो वेगे सुधारो काज, गाथा-२. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जग वालहो; अंति: सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०१ ४.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिन सहज सुरंगा; अंति: सुबुद्धि० सुपसाया रे, गाथा-५. ३२८१०. पंचमआरास्वरूप पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२१४११,१७४२५). पंचमआरास्वरूप वर्णन पद, मा.गु., पद्य, आदि: जमी नीरस हुइ गइ पांण; अंति: जुग कीनी कइ सुवीचारी, गाथा-१३. ३२८११. सुवधिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२०.५४१०.५, ११४२३). सुविधिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो एक सुविधि; अंति: मोहनविजय कहे शिरनामी, गाथा-७. ३२८१२. पदमप्रभुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. गेरीता, प्रले. मु. राज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०४११, १५४२०). पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दरिसन दीजे हो राज; अंति: वंदो दीपविजय जयकार, गाथा-५. ३२८१३. सेत्रुजा रिषभदेव स्तव व सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०४११-११.५, १३४२३). १.पे. नाम. सेत्रुजा रिषभदेव स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. सारंग भोजक; पठ. मयाराम गलबि (पिता सारंग भोजक), प्र.ले.पु. सामान्य. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, लेबो, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारी ते प्रीउने; अंति: आ भव पार उतार, गाथा-७. २.पे. नाम. कवित्त दूहा संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२८१४. (+) कृष्णसुकलपख्यदंपति सिझाय, संपूर्ण, वि. १८५०, माघ कृष्ण, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. नागपूर, प्रले. सा. कुसला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२०.५४११.५, ९४२२-२७). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पांच परम; अंति: हरष० नित घरि अवतरइ, ढाल-३, गाथा-२०. ३२८१५. संगीत छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४१०.५, १२४३३). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवकां; अंति: मुक्ति देजो सुभगत, गाथा-९. ३२८१६. मोहनपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १७६५, आश्विन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४११.५, १७४२९). मोहनपच्चीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अकलरूप अविगत अगम; अंति: मोहनविज० सुगन के कीन, गाथा-२६. ३२८१७. चोवीसमाहाराजरोतवन व थुई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२०x१०.५, ६x२१). १.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: केरो श्रावकरीषभदास, गाथा-४, (पू.वि. अंतिम गाथा ___ का कुछ अंश ही दिया गया है., वि. कृति का अंतिम कुछ पाठांश लिखे बिना ही कृति को पूर्ण किया गया है.) २.पे. नाम. चोवीसमाहाराजरोतवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे तो जिनेंद्र देव; अंति: मान० पाप मेल धोई, गाथा-५. ३२८१८. औपदेशिक सज्झाय, सवैयो व औषध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२०x१०.५, २८४२१). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: वटाउडा न कही जुरणा; अंति: देखने ता पर एय वणाइ, गाथा-१४. २.पे. नाम. अरिहंत बारागुणवरण स्वइयो, पृ. १आ, संपूर्ण. अरिहंतगुण सवैया, मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: असोगवर और फटक सिंगाण; अंति: हीरालाल सुविराजता, सवैया-१. ३. पे. नाम. मसारी दवा, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२८१९. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१.५४१०.५, ११४३३). ___ सीमंधरजिन स्तवन, मु. संतोषी, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि सरसति; अंति: पुन्ये दरसण पायो रे, ढाल-७. ३२८२०. दसाणभद्र सझाय व कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, पठ. मु. मलूकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४१०.५, १८४३४-३६). १. पे. नाम. दसाणभद्र सझाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजा सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारदा बुधदायक सेवक, अंति: लालवि० प्रणमइ निसदिस, गाथा-१७, (वि. प्रत्येक गाथा क्रमांक को दो-दो बार एवं क्रमांक ५ को तीन बार लिखा होने से प्रति में गाथा संख्या ८ दी गई है.) २. पे. नाम. कवित्त संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. कवित संग्रह*, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: आसराज पोरवार तणै कर; अंति: हुआ संवत वारैय चोतरे, सवैया-६. ३२८२२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. विवेकविजय; अन्य.पं. कपूर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (४०x१०.५, ५०४२१). १. पे. नाम. जीवनी रक्षा चाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थंकर करूं; अंति: सुखे शिवपद पाइये, गाथा-२९. २.पे. नाम. जीव उपरे सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुधो धर्म मकिस विनय; अंति: ते नर सदा ____ आनंदो रे, गाथा-८. ३२८२४. (+) वैराग्य स्वाध्याय व शीतलनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, १७X४०). १. पे. नाम. वैराग्य स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो; अंति: श्रीविजयदेवसूर कि, गाथा-१६. २. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो; अंति: (-), गाथा-१५, (वि. पत्र के दोनों तरफ का हिस्सा टूटा होने से अंतिमवाक्य का पता नहीं चल रहा है.) ३२८२५. अनंत पूजा, जयमाला व सारदा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४१०.५, २४४४९). १.पे. नाम. अनंत पूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. __अनंतजिन पूजाष्टक, पुहिं.,सं., प+ग., आदि: स्वामिन्संवौषट् कृता; अंति: श्रीजिनचरण चढाईए. २.पे. नाम. अनंत जयमाला, पृ. १अ, संपूर्ण. अनंतजिन जयमाला, सं., पद्य, आदि: भवजलनिधितारण शिवसुख; अंति: कुरु शिवमसम दयापर, श्लोक-८. ३. पे. नाम. सारदाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल रुप भगवान; अंति: परमपद तजि संसार कलेस, गाथा-१०. ३२८२६. अजितनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०.५, ११४३१). अजितजिन स्तवन, मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता पाये नमी; अंति: कुशलविजय गुण गाय. ३२८२७. (+) स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०.५४१०.५, १८४३७). १.पे. नाम. नोकारवाली सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नवकारवाली सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८३१, आदि: अरिहंत पहलै पद जाणी; अंति: दुरगत बंधण द्यो टाली, गाथा-११. २. पे. नाम. वीसविहरमान जीण तीर्थंकरदेव स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३०३ विहरमान २० जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह जिणवर वीस; अंति: प्रते देतु कल्याण, गाथा-६. ३. पे. नाम. श्रीमदिरस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. __ सीमंधरजिन स्तवन, मु. गंग मुनि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: सीमंधरस्वामी सुणो; अंति: मुनीसर करूं प्रणाम, गाथा-१३. ३२८२८. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४९.५, २३४१६). महावीरजिन स्तव, मु. लालकुशल, सं., पद्य, आदि: वंदे वीरं वारंवार; अंति: लालकुशल बुध जयकार, गाथा-७. ३२८२९. विजयप्रभसूरि व जिनअंगुली पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १८४३०). १. पे. नाम. विजयप्रभसूरि पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: मनथी किम न विसरै; अंति: वचन बोल न पलटाई, गाथा-१५. २. पे. नाम. तीर्थंकरबल कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनबल विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वीर्य बोलो; अंति: अग्र कुंजिन तेजो, गाथा-१. ३२८३१. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मोतीलाल; पठ. जीता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १७४३३). औपदेशिक पद, मु. रायकिसन ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८६६, आदि: चेत चेत रे नर कहते; अंति: ए उपदेस सुणाणा हे, गाथा-९. ३२८३३. महावीरस्वामी स्तवन, पद व अष्टमी थुइ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१.५४१०.५, १३४३२). १.पे. नाम. अष्टमीनी थुइ, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: हासंति कल्याणादाता, गाथा-४. २.पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुआरे गुण तुम; अंति: जीवन प्राण आधारो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरस्वामी पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: माई मेरो मन तेरो; अंति: सबही काज सरे रे, गाथा-५. ३२८३४. पारस स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४११, २३४१९). पार्श्वजिन स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम प्रभु परमेस; अंति: भाणनी जयत करेवी, गाथा-४. ३२८३५. पंचपरमेष्टी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४१०.५, १३४४२). ५ परमेष्ठि चौपाई, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त धरी भगवति भारत; अंति: (-), (पू.वि. आचार्य गुण स्तवन चतुर्थ ढाल पर्यन्त है.) ३२८३६. पद्मप्रभ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४९.५, २१x१४). पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभ प्रेमे हो; अंति: हवे मुगतिर्नु काजसुं, गाथा-८, (वि. प्रति में दो-दो गाथा को एक गाथा गिनने से गाथा संख्या ४ लिखी गई है.) ३२८३७. स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४११.५, १२४२८). १.पे. नाम. सेतुजारो तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८९२, भाद्रपद शुक्ल, १, पठ. मयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुगर ठाडोरे डुगर; अंति: छे अण भवपारो रे, गाथा-६. २.पे. नाम. नेमराजल रोत्वन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे रहो रे यादव; अंति: हरखित मेरी आंखडीयां, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमराजमती सज्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, म. रंगसोम, रा., पद्य, आदि: विनवे राजुल नारी हो; अंति: जायसोमरंग विनवे, गाथा-११. ४. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, सुखदेव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ जिनेश्वर; अंति: गायो मुगतविहारी जी, गाथा-११. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८९२. आदिजिन पद-धुलेवा, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: जगभूलो किउ भटके छै; अंति: ऋषभदास गुण रटके छै, गाथा-५. ३२८३८. स्तवन संग्रह व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११,११४३३). १. पे. नाम. औपदेशिक सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रीउडो; अंति: नर गावै सुख पावैरे, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरी अस्तुत, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सेवग अरज करे छे राज; अंति: मो पर भवसागरथी टालो, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी कहे; अंति: जिण घर नवनिध संपजे, (पू.वि. प्रथम गाथा मात्र है.) ३२८३९. देवलोक वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, १९४५८). देवलोक वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वली परि कोट १; अंति: ४ योजन उंचु. ३२८४०. दसपच्चखाण सज्झाय व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. दोनों कृतियाँ अलग-अलग प्रतिलेखकों द्वारा लिखी गई है., जैदे., (२०४११.५, ९४२१). १. पे. नाम. दसपच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविधि प्र उठी; अंति: पामो निहचै सुखठांण, गाथा-८. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-श@जयतीर्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजामंडण दुरित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ३२८४१. विविधगच्छ मतांतर संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४४११, १५४३८). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२८४२. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१९.५४११, ३०४२२). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रगट थया पारकरस्वाम; अंति: वनीतविजये गाया, गाथा-९. ३२८४३. ५४ उत्तम पुरुष स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४११, २४४१५). ५४ उत्तम पुरुष स्तवन, मु.रीखवदास, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिनेसर पाय प्रणम; अंति: रची मुनिरीखवदास ए, गाथा-९. ३२८४४. छम्मासीतप चिंतवणरी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सुमतिसोम पंडित; पठ. श्रावि. सज्जी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १७४१३-१६). छमासीतपचितवन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: रे जीव महावीर भगवंत; अंति: देई पच्चक्खाण कीजइ. ३२८४५. थुलीभद्र मुनिराज ऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४१०, ११४३०). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ईण आंगडै प्रीउ रमीयो; अंति: वाट जोउंचोमासे रे, गाथा-८. ३२८४६. नरभव सज्झाय व सुबाहूजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १२४३४). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नरभव नगर सोहामणो हो; अंति: थकी पामे अविचल ठाम, गाथा-६. २. पे. नाम. सूबाहूजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org बाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु, पद्य, आदि: अरज सुणो रुडा राजिआ, अंति हो जी जिनजी दिनदयाल, गाथा-६. " ३२८४७. समतसिखर व वीरप्रभु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४. कुल पे. २, जैवे. (२३.५x१०, ९४३४). १. पे. नाम. समतसीखर वीसजीनजीनुं स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. सम्मेतशिखरगिरि स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, वि. १७४४, आदि: अष्टापद आदिसर सीद्धा अंतिः भावे चैत्यवंदन करी, गाथा - ६. २. पे. नाम वीरप्रभु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: मनमोहन महावीर जिनेसर, अंतिः मोतीवडे मेह बुठारे, गाथा-७, ३२८४८. चोवीसतीर्थंकर स्तवन, औपदेशिक सज्झाव व पद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैवे. (२२.५x१०.५, रा., पद्य, आदि: चेला पांचा बलदो गाडल, अंति: बेस पतर की नाव, गाथा ५. ३. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. १४X३०-३५ ). १. पे. नाम. चोवीसतीथोकररा तीवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले. स्थल. कुचामण. २४ जिन स्तवन- १० स्थानकगर्भित, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीसे जिनवर करूं, अंति: ऋषभ इम लह सुभ साज ए. गाथा २९. २. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि निंदा मोरी कोइ करो, अंतिः मेला उजल कर देसी मोय, गाथा-४ ३२८४९. मेघकुमार इकवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. कुल ग्रं. ३६, दे., (२२.५X१०.५, ९३३). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्म, आदि: बीर जिनंद समोसर्याजी, अंतिः भणेजी ते पामे भवपार, गाथा-२१. ३२८५०. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १८४४, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. कनकदुर्ग, प्र. वि. श्रीशांतिजिन प्रसादात्., जैवे., (२२.५४१०.५, १४४३७). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: सनालिकेरं प्रदक्षिणा, अंति: परमंगनै इत्यादिक. ३२८५१. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४७, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६.५x१०.५, ८x१८). पार्श्वजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, रा., पद्य, आदि : थारा दरसण री बलिहारी; अंति: विमल० पामी संपत सारी, गाथा-७. ३२८५२. ग्यानपंचमी वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३११.५, ११x२७-३०). ३०५ ३२८५३. कवित्त व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (१५.५X१०.५, १३X२१). १. पे नाम, कवित्त संग्रह, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीगुरुपाय, अंति: भ भाव प्रशंसीयो, ढाल - ३, गाथा-२०. सुभाषित श्लोक संग्रह से, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). *, For Private And Personal Use Only ३२८५४. गौतम अष्टक व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (१९.५x९.५, २८x१६). " १. पे. नाम. गौतमस्याष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमाष्टक, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत, अंति: लभते नितरां क्रमेण श्लोक ९. २. पे. नाम. पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्वान छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सौइ गाम सुहामणो पण, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखी हुई है.) Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. तुंबडाना गुण, पृ. १आ, संपूर्ण. फाग टांगा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तुंबड़ पवित्र पात्र; अंति: न होय तो लाज जाइ. ४. पे. नाम. कर्मना भाव, पृ. १आ, संपूर्ण. कर्मभाव पद, मा.गु., पद्य, आदि: करे कर्म ते न करे; अंति: कुयर वदे से गयो, गाथा-१. ३२८५५. (#) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. गगडाण, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १७४२९). आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाभि कुलगर चंद नमु; अंति: जिन अतिशय कोई न तोलइ, गाथा-२७. ३२८५६. शांतिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२१, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०,११४२७-२९). १.पे. नाम. संतनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर हथणापुर अतीय भलो; अंति: गुण रो कोइ पार नही, गाथा-२७. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: तुं धन तुं धन तुं धन; अंति: बतावो और सह भर पामी, गाथा-५. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभात उठ श्रीसंत; अंति: पापी लाय कषाय टली, गाथा-५. ३२८५७. शुक-राणीसंवाद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१२.५४९.५, १५४१८). शुक-राणीसंवाद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कहै राणी रे सुणडा इम; अंति: प्रगटे पुण्य अंकुरा, गाथा-१५. ३२८५८. दादापार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ.मु. पेथा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११, ११४३२). सुमति विलाप सज्झाय, मु. उदयरत्न, गु., पद्य, आदि: पडजो कुमतिगढना कांगर; अंति: पद लेशे सवाय व्हाला, गाथा-७. ३२८५९. नववाडी सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२०७११, २८x१८). १.पे. नाम. नववाडी सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंति: सीयलवंतनइ जाउ भामणे, गाथा-२८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. ३२८६०. विचारगाथा कुलं, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१५.५४१०.५, ११४२६). विचारगाथा कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारिअट्ठदसदोय; अंति: जगगुरु बिंति, गाथा-१६. ३२८६१. पासाकैवली सुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (१७४९.५, १०x२१). पाशाकेवली-भाषा *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३२८६३. पंचज्ञान आरति व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.सा. लहेरी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०.५, ११४२८). १.पे. नाम. पंचज्ञान आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ ज्ञान आरती, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय पारस देवा जय पारस; अंति: से सौभाग्य गुण गाशे, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: बोळ अथाणुंकदीए न; अंति: सुपातर दान देजो रे, गाथा-७. For Private And Personal use only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ " ३२८६४. ५६३ जीवभेद विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२०x१०.५, १३४३८). ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह में, मा.गु., गद्य, आदि: भरतखेत्रमां केटला अंति: थइने ३५१ भेद लाभे. ३२८६५. दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२२४८.५, १२४४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. दुर्गदास, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल जीवडा रे दान ज; अंति: दुरघदास इम भाखी, गाथा ४. ३२८६६. होली सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१६ (१ से १६) = ३, कुल पे. ३, प्रले. श्रावि. रायकुंवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जै, (२१x१०, १४x२४-३५). १. पे. नाम. होलिका ढाल, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण ३०७ होलिकापर्व ढाल, मु. रामकिसन शिष्य, मा.गु, पद्य वि. १८६६, आदि: असी खेलोजी होली असी अंति: फागुण पुनम सनीसर वार, गाथा-२५. २. पे. नाम. गजसुखमाल की होली, पृ. १७-१८ अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि होली. मु. लालजी, मा.गु, पद्य, वि. १८८३, आदि: सील संजमतणी करल्यी अंतिः सो लालजी गुण गाइए, गाथा ११. ३. पे. नाम औपदेशिक होली, पृ. १८अ १९अ, संपूर्ण. औपदेशिक होरी, मा.गु., पद्य, आदि: मनखा देही पाय लावो; अंति: भवजल पार उतरो वेगा, गाथा-१३. ३२८६७. नेमिजिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, पू.वि. पत्रांक नहीं दीया हुआ है. जैवे. (२१x११, १६४५०-५४). १. पे. नाम. साधुव्रत सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. धर्मचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुधरे भव दोय हो, गाधा-७, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम, नेमराजेमती स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण मराजिमती स्तवन, मु. धर्मचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आयो नेमजी राजुल; अंति: शिवसुख संपति थान रे, गाथा - १५. ३. पे नाम, सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मन भमरा कांइ, अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा- ९. ३२८६८. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैये. (१५.५४९.५, १६x२२) " पार्श्वजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदि: मालामालानचाहुर्दधददध, अंतिः वलयवलयश्यामदेहामदेहा, श्लोक-४. ३२८६९. गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( १५.५x९.५, २२x१८). जैन गाथासंग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२८७०. सिद्धगीरी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१३, फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २०x१०.५, १८x१२-१७). आदिजिन पद, पं. रत्नसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: अंखीया सफल भयि म्हे; अंति: वरत्यौ जय जयकार, गाथा- ७. ३२८७१. कागहंस कथा, संपूर्ण, वि. १७८०, फाल्गुन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, पू. वि. पेज नंबर नहीं हैं, प्रले. पं. कपूरविजय, पठ. श्राव. मानसिंग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८.५४१०, १५X३६). काहंस कथा, मु. कान्हजी मा.गु., पद्य वि. १६९२, आदि: वायस आयौ उडतो से अंतिः (अपठनीय), गाथा- ४८, (वि. अंतिम पत्र का किनारा खंडित होने से अंतिमवाक्य नहीं पढ़ा जा रहा है.) ३२८७२. स्तुति व कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. मु. सुरेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२१.५५११, १७४४२). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३, आदि: पहिले पद जपीड़ अरिहंत अंतिः कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पजुसणपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पजुसण पुण्ये; अंति: सुजस महोदय कीजे, गाथा-४. ३. पे. नाम. कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. कवित्त संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३२८७३. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४१). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहिं., पद्य, आदि: सुजस तुमारो हो श्रवण; अंति: भेटतां सफल मोरी आस, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: मन मोहनगारो साम सही; अंति: अपणो अपणौ करी जी लौ, गाथा-१०, (वि. दो-दो गाथा एक गाथा के रूप में गिनी गई है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जसोवर्द्धन, रा., पद्य, आदि: हुं बलिहारी थारी वार; अंति: दरसन तुरत दिराजो राज. ३२८७४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२४१०.५, ९४३४). १.पे. नाम. कुंथुनाथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: साहेल्यां एकुंथु; अंति: जस कहे इणिपरे हो लाल, गाथा-५. २. पे. नाम. मल्लिजीन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तुज मुज रीजनी रीज; अंति: सुसीस एह चित्त धरेरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीअरजिन भवजलनो; अंति: ए प्रभुना गुण गाउं, गाथा-५. ३२८७५. चोवितिर्थंकर स्तवन व विनय सीज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, ११४३२). १.पे. नाम. चोवितिर्थंकर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहे गुरु चरण नमि करी; अंति: बुध सुखविजय कहे सीस, गाथा-१०. २. पे. नाम. विनयनी सीज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. विनय सज्झाय, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माताने पाए नमि; अंति: मुनी रंग वदे इम वाणि, गाथा-७. ३२८७७. चंदप्रभु थुइसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०x१०.५, १६७३७). १. पे. नाम. चंदप्रभु थुइ, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तुति, आ. क्षमासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चंदप्रभु जिण वंदिये; अंति: खेमासागरि सुरी तणा ए, गाथा-४. २.पे. नाम. चंदप्रभु थुइ, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तुति, आ. महिमासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चंदप्रभु जिण राजे ए; अंति: महिमासागर सुरतरु ए, गाथा-४. ३२८८०. इलाचीकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१९.५४१०, ७X१५). इलाचीकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: इलावर्द्धनपुरमै वसे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० तक है.) ३२८८१.(-) सतनाथजी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१.५४१०.५, ११४२७). पार्श्वजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: पुजीजे पारसनाथ सदा; अंति: ममा जाण गणी जपणी, गाथा-७. For Private And Personal use only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३२८८२. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१४१०.५, १५४३०-३५). १.पे. नाम. बाहुबलनी सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. बाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसु० प्रणमे पाय रे, गाथा-६. २.पे. नाम. संभवनुंस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर रीषभ; अंति: होजो तुम पाय सेवा, गाथा-१३. ३. पे. नाम. माननी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मानपरिहार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे मानवी रे; अंति: प्रीती तास वखाण रे, गाथा-५. ३२८८३. दूहा व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०.५, १२४३०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: साध कहे सुण जीवडारे; अंति: देवगुरा रे प्रसाद, गाथा-१३. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रेजीव समदभीज घर नार; अंति: मोह उतो जीणहां, गाथा-९. ३२८८४. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८००, आषाढ़ शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. ढोस्या, प्रले.सा. रायकंवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२१.५४१०.५, १३४२९). १. पे. नाम. सीमंधरयुगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: सीमंधर युगमधरस्वामी; अंति: पापकर्म देतो ठेली, गाथा-९. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: महाविदेह मे प्रभु रो; अंति: साहेब दरसण दीजे, गाथा-९. ३२८८५. सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९.५४११.५, १३४३२). सुमतिजिन स्तवन, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि वीनQ; अंति: देवकुशल जयकार, गाथा-९. ३२८८६. आदिजिन व दीपालवी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८५२) जब लग मेरु अडग हे, जैदे., (२३.५४१०, ११४४५). १. पे. नाम. गीतं-आदिजिन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: धन्य धन्य नित प्रभु; अंति: जेम जिणंदारे, गाथा-७. २. पे. नाम. दीवालीनी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ए दिवाली पर्व पनौतु; अंति: संघ सकल आणंदाजी, गाथा-४. ३२८८७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (१९.५४१०, ७X१९-२५). १. पे. नाम. केसरीयानाथजीरो स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मा.गु., पद्य, आदि: केसरीयाने जाजको लोक; अंति: मनवंछत सुख पायो, गाथा-११. २. पे. नाम. सीतलजीन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिन सहज सुरंगा; अंति: कुसल गुण गाया हो, गाथा-९. ३. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आष्टापदगिर जात्रा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक है.) . For Private And Personal use only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२८८८. सुमतिजिन स्तवन, पद व कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२०४११.५, ११४२१). १. पे. नाम. पद संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. पद संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. २. पे. नाम. जिनसुमतनाथनो स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, ग. कानजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुमत जिणेसर साहिबा; अंति: सुमत सदा सुखदाय रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. पांडव कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२८८९. ११ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०x१०.५, १०४२३). ११ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले चोवीस; अंति: माहरो नमस्कार होज्यो. ३२८९०. भाषा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०x१०, १५४२९). भाषासमिति सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: सत्य विवहार भाषा; अंति: कहे ग्यानतणो ए सार, गाथा-१९. ३२८९१. साढापच्चीसदेश नाम व त्रेसठसलाकापुरुष वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०४११, १३४२९). १. पे. नाम. साढापच्चीस आर्यदेश नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: १. मगध देस राजग्रही; अंति: ६३ सलाका पुरुषोत्तम. २. पे. नाम. चक्रवर्तीवासुदेवबलदेव के नाम,काया, मातापित, आयुष्यादि वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. ६३ शलाका पुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२८९२. आलोयणा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२०.५४१०.५, १४४३७). आलोचना विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध श्रीपरमातमा; अंति: पावे मुकति समाध. ३२८९३. रोहिणी तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२०x१०.५, ९४२९). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेव सामनी ए मुझ; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-३२. ३२८९४. पद, सवैया व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२०x१०.५, ३०x१६). १. पे. नाम. मेघराजा सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. उधो, मा.गु., पद्य, आदि: आज सयाणंद वरतिया; अंति: सदा गुण उधो गाई, गाथा-३. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: देखो माइ आज रिषभ घर; अंति: साधुकीरति गुण गावे, गाथा-३. ३. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५. ३२८९५. (+) माणीभद्रजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पूना, प्रले. मु. गोवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपारसनाथजी प्रचसादाता, संशोधित., जैदे., (२०x१०.५, १३४२१). माणिभद्रजी छंद, पं. उदयकुशल, मागु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: लाख लाख मोजा लहे, गाथा-२६. ३२८९६. होलिपर्व कथा, श्लोक व काग शुकन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. लोहावट, प्रले. पं. चोथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१३.५४१०.५, -१४-१). १. पे. नाम. होलीपर्व कथा, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. होलिकापर्व कथा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं; अंति: धर्म करसी तिको तरसी. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३. पे. नाम. काग सुकन, पृ. ४आ, संपूर्ण.. काग शुकन, मा.गु., पद्य, आदि: काग वचन सुणो तम भाया; अंति: एह वचन मनमाहे लावे, गाथा-३. ३२८९८. (+) छट्ठाआरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३.५४११, १२४४६). छट्ठाआरा सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९६३, आदि: सीरी गोतमसामी वीनवे; अंति: हीरालाल आसोज मासजी, गाथा-१३. ३२८९९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. उजलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १७४३५). औपदेशिक सज्झाय-शोक, मु. भगवान ऋषि, रा., पद्य, वि. १८८५, आदि: कोल वचन करने सुक, अंति: कुसालचंदजी रे पास, गाथा-२६. ३२९००. अंतराय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११,११४३२). अंतराय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदि नमि; अंति: वहेला वरसो सिद्धि, गाथा-११. ३२९०१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०४११.५, १३४३२). १. पे. नाम. सीखांमण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वाणोतरशेठ, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेठ भणइ सांभल वांणोत; अंति: ए सीखांमण सारी रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हक मरणा हक यांणा; अंति: हरदम साहिब जाना, गाथा-४. ३२९०२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३०, वैशाख कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०.५, ११४३०). १. पे. नाम. गोडीजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीपुरमंडण; अंति: क्षमा० सवाई थायै हो, गाथा-६. २.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. जिनचंद, रा., पद्य, आदि: संभव जिनजीरी सिवा; अंति: चंद तणी मानैज्यौ हो, गाथा-५. ३२९०३. (-) खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. चनणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५४१०, १५४३५). खंधकमुनि चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: सावारथा नगरी सुहावण; अंति: मुगता तणा यो जोग, गाथा-२४. ३२९०४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०x११.५, १५४३५). १.पे. नाम. सुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रतजिन वंदतां; अंति: पण मनमां हे परखाय रे, गाथा-५. २. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअनंत जिनशुंकरो; अंति: तेम मुज प्रेम प्रसंग, गाथा-५. ३२९०५. विविध बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (१९.५४१०.५, १६४४१). १. पे. नाम. पांचमाआरामध्ये आराधकसाधुनी संख्या, पृ. १अ, संपूर्ण. __ पांचमाआरामध्ये आराधकसाधु संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: इग्यारलाख सोलहजार एह; अंति: दुपसायार्य हुस्यई. २.पे. नाम. जीवना दसपरिणाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १० प्रकार जीव परिणाम, मा.गु., गद्य, आदि: गईपरिणामे१ इंद्रीपरि; अंति: वेदपरिणामे१०. For Private And Personal use only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१२ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. अजीवना दसपरिणाम, पृ. १अ. संपूर्ण. १० प्रकार अजीव परिणाम, मा.गु., गद्य, आदि: बंधण परिणामे१ गईपरि, अंतिः सद्दपरिणामे १०. ४. पे नाम. योगदृष्टि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ८ दृष्टि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंद परमातमरूप अंतिः विमलसूरि कहे भविहित, गाथा - १२. ५. पे. नाम. पंचमारके आयुविचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. आयुष्य विचार, अप., पद्य, आदि: मणुआण वीसोत्तरसयं, अंति: पंचम अरए आऊ जिणेदिठं, गाथा ५. ६. पे नाम, जवऋषिकथा गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. 3 राजर्षि गाथा, प्रा., पद्य, आदिः ऊआवस्सई पोआवस्सइ ममं अंतिः अपड चूला अणोलिका, गाथा- ३. ३२९०६. भक्तामर स्तोत्र-स्तुति प्रार्थना श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१)-२, जैवे. (१४४८.५, ७४१२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. श्लोक-२ से ६ अपूर्ण तक है., वि. बीच-बीच के श्लोकों को स्तुति प्रार्थना के रूप में संकलन किया गया है.) ३२९०७. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन ४, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैये. (२२x११.५, ८-१०x२३-२७)दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, वी. रवी आदि (-) अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा " " अपूर्ण., अध्ययन -४ के सूत्र - ९ अपूर्ण तक लिखा है.) ३२९०८. विजयराजसूरि सवैया व कुंडलीयो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (१९.५x११.५, २६x२४). १. पे नाम, विजयराजसूरि सवैया, पृ. १अ संपूर्ण मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: सासनसुरी समरी करी; अंति: दोलत मुझ आनंद आगे, गाथा-६. २. पे नाम, विजयराजसूरि कुडलीयो, पृ. १अ संपूर्ण विजयराजसूरि कुंडलीयो, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीजयराजसूरीस्वरु, अंति: सकलसंघ खुसी भयो, गाथा-५. ३२९०९. () सज्झाय संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे., (२१X१०.५, ९X३०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची יי औपदेशिक पद- निंदाविषयक, मा.गु., पद्य, आदि: नीद्या मोरी कोईरो रे; अंति: सोने काट न होय, गाथा- ३. २. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ. संपूर्ण. मु. गोरधन ऋषि, रा. पच, आदि कीरत वधारीये माता अंतिः दुरे टलादे हे माता, गाथा-६, 1 ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि: इस करने से मेरी अंति: आपेंड़ हो जाति है, गाथा-२. " मु. रामचंद्र, रा., पद्य, आदि: कांई रे गुमान करे आप; अंति: रामचंद्र ० डरतो रहिजे, गाथा - ११. ३२९१०. () संतीजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९८५, आषाढ़ कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. कमालपुर, प्रले. मु. चतुरसोम; ग. हेमसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपल्लवीहारपार्श्वनाथ. श्रीसंभवनाथ., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२०x१२, ११x२८). शांतिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि (अपठनीय); अंतिः जे जीन दरसण कांमी रे, गाथा-८, (वि. किनारा खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा है. ) ४. पे. नाम औपदेशिक पद पृ. १आ-२अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: करजे वालेकुं भाग्य, अंति: आपेंड़ हो जाति है, गाथा-२. ३२९११. औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ८, जैदे., (२०X११, १६x२९). १. पे. नाम. उपदेशी पद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, देवीसींग, पुहिं., पद्य, आदि: दम परदम हर भज नहि, अंति देवी० इसी हो दमका, पद-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि: बॅपार इहां का बोत, अंतिः ये धोके केसी टटी हैं, गाथा-३. For Private And Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३१३ ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ मु. जोगींद्र, पुहि., पद्य, आदि: यहां तो रहेना भी नहि; अंति: जंगल बीच तेरा घर रे, गाथा-५. ६.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. अमीचंद, रा., पद्य, आदि: साची तो कहोरे मौजी; अंति: कहे राखो मारी टेक, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: थाने आइरे अनादी नींद; अंति: चतुरनर पोंडो तो सही, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कायापींड काचो राज; अंति: नटवा थइने मति नाचो, गाथा-४. ३२९१२. मोरादेजी सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. लसकर, प्रले. मु. हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०.५, १४४२५). मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मोरादेजी वो माता कहै; अंति: वरत्या जय जयकारो रे, गाथा-१७. ३२९१३. कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४१०.५, ११४२२). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ____ मात्र प्रथम पत्र ही लिखा है.) ३२९१४. (4) पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-४१(१ से ४१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्रले. ग. माणिक्यचंद्र; पठ. श्राव. रूपचंद रायचंद कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८.५४११.५, २०४१६). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीगुरुपाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ३२९१५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१४१०.५, १८४४०). १.पे. नाम. उपदेशगर्भित वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन-औपदेशिक, मु. कुसालचंद, रा., पद्य, वि. १८७०, आदि: जाग हो जाग हो जीवतु; अंति: आहीजरीत अमोल पाइ, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमनाथजीरोतवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, रा., पद्य, आदि: वंके वंके नेमजी मोनु; अंति: रूप रस गंध नही रे, गाथा-७. ३२९१६. मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४१०.५, १२४२२). मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगर वनीता भली वीराज; अंति: ते नर पामें साताजी, गाथा-१२. ३२९१७. (-) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२०.५४११, ११४२४-२८). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: इम शासन देवी सुजाण, गाथा-४. ४. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कुवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. For Private And Personal use only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: (-), गाथा-४, (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र अंतिम पद नहीं है.) ३२९१८. (#) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१९४११.५, १३४३५). १.पे. नाम. वरकाणापार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. मनूशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचरण कमलनमी; अंति: जागइ जगि महिमा भलु, गाथा-९. २.पे. नाम. मंडोरापार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मंडोरा, मु. मनु ऋषि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति वरकमल वदनमाता; अंति: जयु जिन मंगल करू, गाथा-७. ३२९१९. नात रासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४११.५, २६४२८). नात रासो, क. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति आपो सुमति; अंति: रुप०अविचल ससीहर तरुण, गाथा-५१. ३२९२०. शांति अष्टक, संपूर्ण, वि. १८४८, आषाढ़ कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सीकरनगर, प्र.वि. जैनमंदरे., जैदे., (२३४१०.५,११४३२). शांतिजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्याधिपतित्व; अंति: श्रीशांतिनाथःसदा, श्लोक-९. ३२९२१. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १७८५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (१९४११.५, ११४२७). १.पे. नाम. जीरावलापार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १७८५, चैत्र कृष्ण, ११, शनिवार. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: जिराउलामंडण जिनपास; अंति: तुठि नवनिधी आगणि, गाथा-३८. २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम दो पद लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. वैराग्य सज्झाय, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्या तन मांजता रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३२९२३. पार्श्वनाथ स्तोत्र व सिद्धदत्त कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१२४१२, ११४२६). १. पे. नाम. चिंतामणपार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, मु. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: स्फुरदेवनागेंद्र; अंति: चिंतामणिः पार्श्वः, श्लोक-७. २. पे. नाम. सिद्धदत्त कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: प्राप्तव्यमर्थं लभते; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक दो श्लोक लिखा है.) ३२९२४. नमस्कारमहामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९२३, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जावद, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशातिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२०४११, १२४२५). नमस्कार महामंत्र छंद, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पुरो विवधवर; अंति: वीवधरीद्ध वांछित लहै, गाथा-१७. । ३२९२५. (+) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२०४११, २१४२२). आदिजिन स्तवन, मु. भक्तिचतुर शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: प्रणमु प्रथम जीणंदने; अंति: प्रेमे वंदे नितमेव, गाथा-९. ३२९२६. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५४११, १५४३८). For Private And Personal use only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही हो सांभल; अंति: आणंदजी कहइरेजोड रे, गाथा-११. ३२९२७. पार्श्वनाथ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१७४१०.५, १८x२४). पार्श्वजिन स्तुति-प्रार्थना संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंति: पार्श्वनाथाय तायिने, ___श्लोक-१०, (वि. कृति संग्रहरूप है, लेकिन गाथांक क्रमशः लिखा हुआ है.) ३२९२८. (-#) स्तवन व औषधादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४११.५, १५४२२). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीउडा जिन चरणां री; अंति: मोहन अनुभव मागें, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-सांचोरमंडन, उपा. सुमतिसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: सरसती सांमण मूझ दिउ; अंति: सुमति० सुभ मनिई, गाथा-१५. ३. पे. नाम. राणकपुर आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरो रलीयामणौ रे; अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. ४.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औषधादि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२९३२. नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४११, ११४१८). नेमराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीत पुराणी आयलाग; अंति: रूपचंद बहु सुख थाय, गाथा-५. ३२९३३. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४११, १३४३५). सीमंधरजिन स्तवन, ग. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: विजय विराजै पुखलवई, अंति: हजूर मोरा जिनवरजी, गाथा-७. ३२९३४. चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९.५४१०, १४४२६). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चीतजी कय बीमरायन कछु; अंति: ते सीवपुर बरसी हो, गाथा-२०. ३२९३५. स्तवन व दहासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पृ.वि. पत्र १४२ हैं., जैदे., (१९.५४१०.५, २४४१७). १.पे. नाम. अष्टापदजीनुंस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, ग. भाणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीअष्टापद उपरे इणे; अंति: भास०फले सगलेरी आस के, गाथा-२२. २. पे. नाम. जैन सामान्य कृति, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनदहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३२९३६. बलभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०,१२४४४). बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिकाहूती नीसर्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२१ तक लिखी हुई है.) ३२९३७. सामायिकविधि व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४१०.५, १६४३२-४५). १. पे. नाम. सामायकग्रहण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण, अन्य.ग. शिवनिधान (गुरु मु. हर्षसागर); गुपि. मु. हर्षसागर (गुरु आ. पद्मदेवसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य. सामायिक लेने की विधि-खरतरगच्छीय जिनपतिसूरि समाचारी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: विधिपूर्वक पडिलेह्या; अंति: सूत्रनैवचनै इरियावही. २.पे. नाम. पयूषणापर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पौष शुक्ल, १४, प्रले. मु. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private And Personal use only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर; अंति: भणे बुधविजय जयकारीजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सेर्बुजा स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पौष शुक्ल, १४. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., पद्य, आदि: आगे पूरब वार निनांणू; अंति: कारिज सिध हमारीजी, गाथा-४. ३२९३८. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२८, आश्विन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२१.५४१०.५, ९४३१). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज आपे चालो सहीयां; अंति: घणी चित्त आणी रे, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: रामकुं सिमरो रे भाई; अंति: मूलचंद० भगवंत भज भाई, गाथा-७. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जै जै हो जुगतारण दीन; अंति: गावत ग्यांन रसाल, गाथा-८. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणी, मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन मोयो छै; अंति: मूलचंद० चरण कै पास, गाथा-४. ३२९३९. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१३.५४११, १९४३०). नमस्कार महामंत्र छंद, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: कुशल रिद्ध वंछित लहै, गाथा-१७. ३२९४०. गुरदेवरी पटाउली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. पत्र १४४ हैं., जैदे., (२१x११.५, २३४१०-१८). गुरुपरंपरा पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: चंद्रसूरथी श्रीचंद्र; अंति: वा रतनोजी रामोजी, (वि. ४३ पाट तक लिखा है.) ३२९४१. बीज स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१४१०.५, ९४२५). बीजतिथि स्तवन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: सरस्वतिदेवि नमी करी; अंति: फतेंद्रसागर०दोलत थाय, गाथा-१३. ३२९४२. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२१.५४११,११४४३). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ अपूर्ण से ढाल ३ अपूर्ण तक है.) ३२९४३. मह फल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१४११.५, १०-१२४१३-१७). मह फल सज्झाय, मु. जुगराज, रा., पद्य, वि. १९वी, आदि: चालो चेतनजी मह फल; अंति: शुकल तीज रविवारीजी, गाथा-१५. ३२९४४. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१४११,१४४३१). १.पे. नाम. रूषभ स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. आदिजिन स्तवन, मु. धर्म, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धर्म सदा सुख संगे, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्म, मा.गु., पद्य, आदि: वसंत वसंत वसंत ही आय; अंति: धर्मने सुख अभंग, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी, मु. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: नवल वसंत नवल मली; अंति: जिन कहे वंदन मोरी, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्म, मा.गु., पद्य, आदि: आरे संसारमा एकठारे; अंति: धरमो० दुख भाग्यो, गाथा-६. ३२९४५. स्तवन, सज्झाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४११, १०४२५). १.पे. नाम. सुपासजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलुणो हो मिलियो; अंति: पूरो प्रेम विलास, गाथा-७. For Private And Personal use only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. धीरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. वनमाली सज्झाच, मु. पचतिलक, मा.गु., पद्य, आदि बनमाली धन आप करी, अंतिः काया रे बाडी कारमी, गाथा- ९. ३. पे. नाम. एकादसी की थइ, पृ. २आ, संपूर्ण. एकादशी तिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीयंसजिण ग्यार; अंति: नित तेहनें मंगल करु, गाथा-४. ३२९४६. क्षमाछत्रीसी व स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. पठ. पं. रत्नसिंपुर (गुरु ग. भक्तिविशाल वाचक); प्र. ग. भक्तिविशाल वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १६३६-३८). १. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि आदरि जीव खिमागुण आदर, अंति (-), गाथा- ३६, (वि. पत्र खंडित होने से अंतिमवाक्य नहीं भरा है . ) २. पे. नाम, जीराउलापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: जीराउलादेव करुं जुहा, अंति: करी सेवक मुझ थापर, गाथा - १०. ३२९४७. सज्झाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, जैदे., (२१X१०.५, १४X३३). १. पे. नाम. सातव्यसन सझाय, पृ. २अ २आ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. वि. १८४८ वैशाख कृष्ण, १, रविवार, ले. स्थल, कालंद्री, प्रले. ग. कपुरविजय (गुरु पं. केशरविजय): गुपि पं. केशरविजय पठ मु. क्षमाविजय (गुरु ग. पुरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. , ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रंगे जरांगे कहै, गाथा - ९, (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्म, आदि प्रभुजी वीरजिणंदने, अंतिः भवोभव तुम पाव सेव हो, गाथा-५. ३२९४८. पोरसी प्रमाण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (२०x११.५, ९x९-२१). " पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३२९४९. गोतमसांमीजीरा गुण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. पाली, प्रले. मु. नथमल ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. चुनाजी की सराय मधे. जैवे. (२०.५x१०, १४x२७-३२). ब्राह्मणलक्षण पद, पुहिं., पद्य, आदि: ब्राह्मण नाम धराय के; अंतिः विप्र बहुधा सुख पावे, गाथा-२. २. पे. नाम. ब्राह्मणलक्षण लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ब्राह्मणलक्षण लोक संग्रह, सं., पद्य, आदिः ज्ञानशीलं क्षमायुक्त, अंतिः राज्ञां च लक्षणम्, श्लोक-३. गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा. पच. वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गौतम तणा; अंति: बीकानेर कीवो " चोमासजी, गाथा - १३. ३२९५०. ब्राह्मणलक्षण पद व लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. आगर, प्रले. श्राव. भैरूराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२०x११, १०x२४) १. पे. नाम. औपदेशिक पद- ब्राह्मण लक्षण, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ३१७ ३२९५१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. सूरतबंदर, पठ. श्राव. वलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में कुछ बीजमंत्र लिखे गये हैं, जैदे. (२०x११.५, १५X१६). " १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चंदकुशल, पुहिं., पद्य, आदि देखो रे आवेसर साहेब, अंतिः चंदकुशल गुण गाया रे, गाथा-५. २. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आविः श्रीशांतिनाथ दयानिधि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ३ तक लिखी हुई है.) For Private And Personal Use Only ३२९५२. आत्मबोध स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. सुमतिसागर (गुरु मु. वल्लभसागर); गुपि. मु. वल्लभसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५X११.५, १३-१४x२५). उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सवाने तुंः अंतिः सहगुरु सीख सुणावीजी, गाधा-३२. " Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३२९५३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०४११, १६-१७४४०). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९२५, आश्विन कृष्ण, २, शुक्रवार, ले.स्थल. संनेआबाद, पे.वि. लेखनस्थल अशुद्ध प्रतीत हो रहा है. मु. सरुपचंद, रा., पद्य, वि. १८८८, आदि: मारी विनतडी अवधारो; अंति: सरुपचंद० गरीब नवाज, गाथा-२१. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. भावजी शिष्य, पुहि., पद्य, आदि: आदि जिणंद मन वचन; अंति: भावजी का दास लहुजी, (वि. लेखन अशुद्ध एवं अस्पष्ट होने से गाथा संख्या का पता नहीं चल रहा है.) ३२९५४. (+) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र व ग्रहजाप विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१.५४१७, २०७१२-२५). १.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ छंद स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, मु. मलुकचंद, सं., पद्य, आदि: श्रेयः संतते कारक; अंति: जिनवरो विजितमदराग, श्लोक-९. २.पे. नाम. नवग्रह जापसंख्या द्रव्य वस्त्रादि विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२९५५. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. सखीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११,१३४२९). नमस्कार महामंत्र छंद, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविह परे; अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा-१८. ३२९५६. (-) शतरुजातीरथनो महिमा, संपूर्ण, वि. १९२७, फाल्गुन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१४११, १३४३५). शत्रुजयतीर्थ माहात्म्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेव पुंडरिक, अंति: माटे अनर्थदंड न करवो. ३२९५७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४११.५, १३४२८). १.पे. नाम. जिनसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. जडाव, मा.गु., पद्य, वि. १९५९, आदि: भुलु नही सखी ए मात; अंति: सुण लीज्यो घर रीज, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण... मु. जडाव, रा., पद्य, वि. १९५३, आदि: नेम प्रभु राखो सरण; अंति: नाम प्रभु एक थारो, गाथा-८. ३२९५८. मौनइग्यारस स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१.५४११.५, १३४२८). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम बोले ग्रंथ; अंति: श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. ३२९५९. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, जैदे., (१३.५४११.५,११४१७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. भोजसागर, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: भोजसाग० ध्यानै धरियो, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि ध्यावं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ३२९६०. नरक गत्यागति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१.५४१०.५, ८x२१-२८). जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२९६१. जिनप्रतिमानो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. जेठा गोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रति के अंत में 'मरचो मेठो खांड सो जेठा गोर तमने रसोडो भलाव्यो छे..' इस प्रकार का उल्लेख है., जैदे., (१८x१०, १४४१७). जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. जस, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिके उद्धारज; अंति: वाचक जसनी वाणी हो, गाथा-१०. ३२९६२. अरिहंत मंगल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२१४११, १४४३१). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध शुद्ध; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रथम ढाल मात्र.) For Private And Personal use only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३२९६३. (+) वीरप्रभु तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०.५४११, १०४२३). महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नही मानुरे अवरनी; अंति: भव भय बंधन छोड, गाथा-७. ३२९६४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२०.५४११, १९४२८). १.पे. नाम. दीवाली स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व रास, ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंत को; अंति: जैमल दिवालीनै मान, गाथा-४४. २. पे. नाम. इग्यार गुणदरारा तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ११ गणधर स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: परनम वीराज्यां; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-१४ तक लिखी हुई है.) ३२९६५. शील चोढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२१४११,११४२४). शील चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: पहेला प्रणाम करूं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ अपूर्ण तक लिखी है.) ३२९६६. (+) नेमिनाथ रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१०.५, १३४४१-४४). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: सुप्रसन्न नेमि जिणंद, गाथा-६४. ३२९६७. चंद्रगच्छोत्पत्ति सवैया व चंद्रगच्छ की गोत्रवही, संपूर्ण, वि. २०वी, ज्येष्ठ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. जिनचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, २३४१७). १. पे. नाम. चंद्रगच्छोत्पत्ति सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रगच्छोत्पत्ति गोत्रसंख्या सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणाथी मांड प्रथम; अंति: विद्या चवद वखाणीय, सवैया-२. २. पे. नाम. चंद्रगच्छीय गोत्र वही, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२९६८. नवपद विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२१४१०.५, २१४४७-५०). नवपदतप विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वर्णसिंहासनस्थिताय; अंति: सासनं ताइ कहीजे. ३२९६९. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१४११, १४४२६). औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: आतम दमवो रे प्राणिया; अंति: पिण वांछु प्रभु एह, गाथा-९. ३२९७२. नेमिजिन निसानी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. श्रीचंद (गुरु मु. रुघनाथ); गुपि. मु. रुघनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४११.५, १०४३०). नेमिजिन स्तवन, मु. गोकल, रा., पद्य, आदि: नेमि सजन की याही; अंति: गोकल लगे स्तुतिकरण, गाथा-५. ३२९७३. स्थूलभद्र सवैया, संपूर्ण, वि. १९५३, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२१४११, ९४३०-३३). स्थूलिभद्रमुनि सवैया, मु. भगोतीदास, पुहि., पद्य, आदि: एक समें चारो शिष्य; अंति: थुलिभद्र सुप्रसन्नजी, गाथा-९. ३२९७५. (#) योगीरास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १६x६१). योगीरास, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरुष जो आदि ज; अंति: सिद्ध है सुमरण कीयो, गाथा-४२. ३२९७६. अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ५)=२, जैदे., (१५.५४१०.५, ८x१९). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: दर्शनं स लभंते, (पू.वि. नैवेद्य पूजा अपूर्ण से ३२९७७. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रूपनगर, पठ.सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १५४३४-३६). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर जिणेसर भाखी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने प्रथम ढाल की गाथा-१५ तक लिखकर संपूर्ण कर दिया है. वस्तुतः संपूर्ण नहीं है.) ३२९७८. आतमनद्या व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२३४१२, २३४५७). १. पे. नाम. आतमनद्या, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक भावना-आत्मनिंदाविषये, म. ज्ञानसार, पुहिं., गद्य, आदि: हे आतमा हे चेतन ए; अंति: (१)सकारसी तो लेख लागसी, (२)सो नर सुगुन प्रविण. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हे प्रभु हे प्रभु; अंति: जयह द्रीढता कर देह. ३२९८०. स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११.५, १४४४१). १. पे. नाम. भीडिभंजन पार्श्वजिन छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन छंद-भीडभंजन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदयरत्न० निधि पामी, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. मोह स्तवना, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: बेटी से विलुधो जुवो; अंति: बोले नमो तीर्थराजा, गाथा-११. ३. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. क. भालण, मा.गु., पद्य, आदि: स्यौं कहीय जो मूल ज; अंति: बीजो कोइ देखाडो अलगो, गाथा-८. ३२९८२. (+) गौतमस्वामी सज्झाय व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०, १२४२५). १. पे. नाम. गौतमस्वामि प्रभाति मंगल सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. गौतमस्वामी सज्झाय, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर श्रीवर्धमान; अंति: मेघराज मुनि सुजस कहे, गाथा-९. २. पे. नाम. नेम स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. ज्ञानभूषण, मा.गु., पद्य, आदि: फूलडे चंपे लाव छे; अंति: ज्ञान०की पाय छे मालण, गाथा-३. ३२९८३. माणिभद्रजीनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२१x१०.५, ९४२१-२३). माणिभद्रवीर छंद, पं. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसति; अंति: लाख लाख रिझा मले, गाथा-२६. ३२९८४. समवसरण तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ३., (२१४११, १०४२८). बाहुजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रामत रमवा हु गइ; अंति: सफल कीयो अवतार हे, गाथा-८. ३२९८५. वरकाणापास स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ.सा. सुखा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १३४३६-३८). पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. समयप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीवरकाणउ विघन; अंति: जंपइ समयप्रमोदारे, गाथा-१७. ३२९८६. फलवर्द्धिपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८२६, कार्तिक शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. रूपचंद (गुरु ग. दयाभक्ति); गुपि.ग. दयाभक्ति (गुरु ग. सिद्धविजय); ग. सिद्धविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १८:५५). पार्श्वजिन छंद-फलवर्द्धि, कान्ह कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदे पास जिणंद चंद; अंति: फलवधि अधिपत्ति सत्ति, गाथा-१२४. ३२९८७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५४११, १२४२८). १.पे. नाम. पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम रस भीनो म्हारो; अंति: पूरजो सकल जगीस हो, गाथा-७. २.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. मनोहरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी म्हारा आज; अंति: दिल धरी रे मारा राय, गाथा-११, (वि. दो-दो पद की एक गाथा गिनने से ११ गाथा लिखी गई है.) ३. पे. नाम. सीद्धाचल स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यात्रा नवाणु करीए; अंति: पद्म कहै भव तरीयै, गाथा-१०. ३२९८८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १३४४८). For Private And Personal use only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३२१ १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहिं., पद्य, आदि: सुजस तुमारो हो श्रवण; अंति: जगरूप० फली मोरी आस, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जसोवर्द्धन, रा., पद्य, आदि: हुं बलिहारी थारी वार; अंति: दरसन तुरत दिराजो राज, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.. नेमराजिमती गीत, मु. जसोवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: ससनेही राजुल विनवै; अंति: हो पुरी पूरो संसार, गाथा-७. ३२९८९. नेमजी वारैमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४११.५, ९४२७). नेमिजिन बारमासो, मु. पदमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आयो पावस मास श्रवण; अंति: मास पदमचंदे कह्यो, गाथा-१२. ३२९९०. स्तवन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२४४१०.५, १९४५७). १.पे. नाम. युगमंधर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: चांदलीया जिनजीने; अंति: नितनित उगते सूर रे, गाथा-५. २.पे. नाम. नेदषेणजी स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. __नंदिषेणमुनि सज्झाय, क. चतुरंग, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर महियल विचरे; अंति: कवि चतुरंग वीनवी, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___पार्श्वजिन स्तवन, मु. खुशालसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: पास जिन तुम विन कौंन; अंति: विनती अवर न काई, गाथा-५. ४. पे. नाम. सेत्रुजागिर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुगर टाढोरे डुगर; अंति: पामे कोड कल्याणोरे, गाथा-७. ५. पे. नाम. शंखेश्वर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. खुशालसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: नगर संखेसर नायक हो; अंति: सदा प्रभु सुखकार, गाथा-७. ६. पे. नाम. आत्म स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो; अंति: श्रीविजयदेवसूर कि, गाथा-१६. ७. पे. नाम. दुहा, पृ. १आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३२९९१. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, ८x१९). आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. ३२९९२. साम की सामायक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. देवसी प्रतिक्रमण विधि., जैदे., (२४.५४११.५, १०४३२). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तिन नवकार गुणके थापन; अंति: दादाजी का तवन पढे. ३२९९३. (+) गौतमस्वामी सज्झाय व सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १५४४६). १. पे. नाम. गौतमस्वामीजीरी सिझ्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: तुठां सुखसंपदानी कोड, गाथा-९. २. पे. नाम. सीमंधरजिन तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६८, आदि: महाविदेह विराजीया; अंति: हीवेअन काढो आघोजी, गाथा-११. ३२९९४. आलोयण व चौदनियम गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, २०४२९). For Private And Personal use only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. आलोयण विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आलोयणा विचार आवक हेतु, रा. गद्य, आदि: मोटका बोल अणगलित जल, अंतिः १ आंचल १ भर देणा. २. पे. नाम. चउदेनियम गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा- १. ३२९९५. (+) वडीदीक्षादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., १७४४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १९. २. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. २आ, संपूर्ण. asiदीक्षादि विधि संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमी; अंति: एवं मास १ रो तप. ३२९९६. साधु भगवंत विषयक विविधशास्त्रोक्त बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५X११.५, २०x४५-५१). बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३२९९७. (+) शीलशिरोमणि श्रीसुदर्शन भास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५x११.५, ९X३४). सुदर्शनसेठ सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच विषयरस राती कपिल; अंति: मझ सेवकनुं सारु काज, गाथा - १८. ३२९९९. रोहिणीत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२४४१०.५, ९३०). रोहिणीत सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य नमी, अति: अमृतपदनो० स्वामी हो, गाथा ११. ३३०००. सौभाग्यपंचमी तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५X११, १०X३४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमी पासजिणेसर, अंति: गुणविजय रंगि मुणी ढाल ६, 3 जैवे. (२५x१०.५. गाथा ४९. ३३००१. (+) १५ तिथि पखवाडो व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२२x१०.५, १०X२८). " १. पे. नाम. १५ तिखिरी पखवाडो, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. १५ तिथि पखवाडो, मु. मूलचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०४, आदि : भजियै भगवान परम; अंति: तंत परमपद पावै, पदसंग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). " ३३००२ (-) जीरावला पारसनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे. (२३४१०.५, ८x१५-१९ ). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: महानंद कल्याणवल्ली; अंति: नाथ जीरावलो रंग गायो, गाथा- ११. ३३००३. गौतमस्वामी व अभिनंदनजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जै, (२२.५४९, १५४४९). १. पे नाम, तवन, पृ. १अ संपूर्ण गौतमस्वामी स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. पद्य वि. १८५७, आदि: जंबूदिप दिपा रे बिचम, अंति: चंदजी भणे उल्लास रे, गाथा - १०. २. पे. नाम. अभिनंदणजीरी सिझ्या, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु, पद्य वि. १८२६, आदि वनीता नगरी अतिभारी अंतिः जालोर भज्यो जगदीसो, गाथा - २६. ३३००४. (+) अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. वेलचंद साहाजी (कडुंयामतीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. जैवे. (२२.५x११, २६x२४). अजितजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: अजित जिनेसर साहेबा; अंति: सोभता एह जिनराय, गाथा - ११. ३३००५. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) = २, कुल पे. ३, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित जैवे. (२०x११. ९४२१). For Private And Personal Use Only १. पे. नाम. भेरुनाथ गीत, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. भैरवनाथ गीत. मु. सुमेरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अजर अमर पद पावुं हो, गाथा-६, (पू. वि. गाथा-५ तक नहीं है., वि. गाथा-६ के बाद गाथा-४ लिखी गई है. ) Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३२३ २.पे. नाम. केसरीयाजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मु. कीर्तिनिधि, रा., पद्य, आदि: थारो रूप देखीने रंग; अंति: निधी० मुगतिमेल बगसाय, गाथा-१०. ३.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, प्र. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. फूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: संतनाथ बाबो हे भारी; अंति: चाकर आवागमन नीवार रे, गाथा-६. ३३००६. (#) पार्श्वजिन स्तवन व मोक्ष सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११, १६x२६). १. पे. नाम. पारसजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पूजनफल स्तवन, मु. हितधीर, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: त्रिभुवनपति तेवीसमा; अंति: जयो जयो दिनकार ए. गाथा-११. २.पे. नाम. सज्झाय-मोक्ष, पृ. १आ, संपूर्ण. मोक्षनगर सज्झाय, मु. सहजसुंदर, रा., पद्य, आदि: मोक्षनगर माहरु सासरु; अंति: छे मुक्तिनो वासरे, गाथा-५. ३३००७. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. जालना, प्रले. मु. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११.५, १०x२२). १. पे. नाम. रात्रीभोजनपरिहार स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. रात्रिभोजन सज्झाय, वा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु समरी रे वाणि; अंति: सुखडी संभारो निसदीस, ढाल-२, गाथा-१४. २. पे. नाम. चतुर्दश गुणस्थानक स्वाध्याय, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थान सज्झाय, मु. धर्मसागर, मागु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: तसु मन जिनवर आण रे, गाथा-१८. ३. पे. नाम. मेतार्यमुनि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मेतारज मुनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० तक है.) ३३००८. १८बोल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ.सा. मानाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०.५, १७४३१). १८ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहलो बोल भणवा गुणवा; अंति: पडसी सरवसुत्रनी साख. ३३००९. पदवी दुवार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२०४११, १६४२५). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ७ एकंदरी रतन ७ पंचं; अंति: साधु समदृष्टि. ३३०१०. महावीरजिन स्तवन व बुढापा सज्झ्य, संपूर्ण, वि. १९६३, कार्तिक कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०x१०, २०४३३). १.पे. नाम. महावीरजिन चौढालियो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __महावीरजिन स्तवन-चौढालीयो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: से दिवाली रे दीन ए, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम ढाल है.) २.पे. नाम. बुढापा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: बुढाने भावे खीचडी रे; अंति: बांधइ व्रतरी पाल, गाथा-११. ३३०११.(+) नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३०, चैत्र कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जूनागढ, प्रले. उपा. क्षमाप्रमोद गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२०.५४११.५, १८४४२). नवपद उलाळा, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: तीर्थपति अरिहा नमुं; अंति: देवचंद्र सुसोभता, गाथा-११, (वि. दो-दो गाथा एक गाथा के रूप में गिनी गई है.) ३३०१२. सज्झाय व कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, पू.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक नही लिखा हुआ है., जैदे., (२०४११.५, १६४३०). १.पे. नाम. राग विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. म. For Private And Personal use only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रहरानुसार राग विचार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पुहर राग च्यार; अंति: नटनारायण एह राग जो. २. पे. नाम. परनारीत्याग सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. परनारीपरिहार सज्झाय, मु. जिनहर्ष*, मा.गु., पद्य, आदि: सीख सुणोरे पीया; अंति: रेहीयडे आगमवेण, गाथा-११. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सब स्वारथ के मित्र; अंति: पुरष है उणही तै आरा, गाथा-३. ४. पे. नाम. किवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. स्त्रीस्वभाव कवित्त, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: लोइणभर निरखंति; अंति: सो इण आचारे जाणीयै, गाथा-१. ३३०१३. नेमगोपी संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२०x१०.५, ११४२७). नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-५, गाथा-३, अपूर्ण तक है.) ३३०१४. युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. रायकुंवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११, १८४३१). युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: जगमंदरजीण साभलो रे; अंति: कातक मास अभ्यासा, गाथा-१३. ३३०१६. मुनीएकादसी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. नित्यविमल (गुरु पं. विनयविमल); पठ. श्राव. परसोत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०,१०४२७). मौनएकादशीपर्व स्तुति, पं. विद्याविमल, मा.गु., पद्य, आदि: ओजल गीरवरमंडन जिनवर; अंति: संकट तेहना चुरोजी, गाथा-४. ३३०१७. थूलभद्रजीरी सज्झाय व गौडीपार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९.५४१०, १३४२५). १.पे. नाम. थूलभद्रजीरी सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासे; अंति: दिन दिन सुख सवाया, गाथा-११. २. पे. नाम. गौडीपार्श्वस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. राजसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: हां जी महाराज मूरत; अंति: जन्म सफल थयो आज, गाथा-९. ३३०१८. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२०४११, १७X४१). १. पे. नाम. प्रथवीसचित्तअचित्त सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम धरुं सहगुरुनो; अंति: सूगडांग वृत्तिथी लहे, गाथा-५. २. पे. नाम. सुमतिनाथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजीथी बांधी, अंति: वाल्हा तो जिनवर एह, गाथा-७. ३. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु जगजीवन जगबंधु; अंति: चरणनी सेवा दीजे रे, गाथा-७. ३३०१९. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पू.वि. पत्रांक नही लिखा हुआ है अतः अनुमानित पत्रांक दिया हुआ है., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२०४१०, १५४३५). १. पे. नाम. जयमलऋषि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण.. जयमलऋषि सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: पूज्य जयमलजी हुवा; अंति: जयमलजी रो जाप जपो, गाथा-८. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३२५ औपदेशिक सज्झाय, पं. बगतावरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समज मन हो उमर जात; अंति: काइ कर तूंहे फेल, गाथा-८. ३३०२०. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१६४११.५, १६४३१). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: सेज केरी वाटडीआ; अंति: धन धन आ दिन आजरे, गाथा-११. ३३०२१. स्तव संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२४११, १४४४१). १.पे. नाम. नेमि स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन द्विअक्षर स्तोत्र, म. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानूनमानेन नोन्न; अंति: वध्वाः परिभोगयोग्याः, श्लोक-९. २. पे. नाम. शांति स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण.. शांतिजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: वासवानतदेवेन रंगागार; अंति: भगेदाम नतनाससनातनः, श्लोक-५.. ३. पे. नाम. नेमिस्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमीशशमिने; अंति: न वेदे न जानातु ते, श्लोक-५. ३३०२२. बालचंद बत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (१४.५४११.५, २१४१९). बालचंदबत्रीसी, मु. बालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसरकुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ से ७ अपूर्ण तक है.) ३३०२३. सोले सतीयांरी व अरणिकमुनि सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, ११४२८). १.पे. नाम. सोले सतीयांरी सजाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सोलसती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: लेसे सुख संपदा ए, गाथा-१७. २.पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनीवर चाल्या; अंति: विजय कहे० फल सीधोजी, गाथा-८. ३३०२४. (+) अमीझरापार्श्वप्रभुजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४११, १३४२९). पार्श्वजिन छंद-अमीझरा, मा.गु., पद्य, आदि: उठ प्रभात अमिझरो; अंति: निरमल इति पुरो आसए, गाथा-१९. ३३०२५. महाविरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक नही लिखा है अतः अनुमानित नंबर दीया हुआ है., जैदे., (२२४११.५, १४-१६४३०-३५). महावीरजिन स्तवन, मु. रुपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु संजोगथी मे; अंति: रुपचंद विनतिकारी, गाथा-२२. ३३०२६. आलोयणा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२१४११, १३४३३-३७). आलोचनासूत्र-देवसिसिप्रतिक्रमणगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदीसह; अंति: ते मिच्छामी दुक्कडं. ३३०२७. रात्रीभोजन को तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पृथ्वीराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११.५, १२४२७). रात्रिभोजन सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: छठो वरत रेणीतणो ए; अंति: रात्रीभोजन टाल के, गाथा-१८. ३३०२८. पंचतीर्थी व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११, ९४३१). १.पे. नाम. पंचतीर्थी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदए आदए आदिजिणेसरु ए; अंति: समय० सुख आपै सासता, गाथा-१२. २.पे. नाम. गोडीजीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: पूजीजै मनरंगै गोडीजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., मात्र गाथा-२ तक है.) ३३०२९. नवतत्त्व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२१.५४११,१५४३६). For Private And Personal use only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र अजीवतत्त्व तक लिखा है.) ३३०३०. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, २२४४४). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतखत्रैरेसमुकतीर; अंति: कुशल नितु नितु अवतरे, ढाल-३, गाथा-२४. ३३०३१. करमविपाक सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. भगवान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १४४३८). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजारे, गाथा-१७. ३३०३२. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, ११४२८). १.पे. नाम. गोडीजीस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिये रे वारि वंदिय; अंति: पासजीने चालौ वंदिये, गाथा-५. २. पे. नाम. मेतार्यमुनि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरुजी; अंति: साधुतणी एसज्झाय, गाथा-१२. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: घोर घटा कर आयो हो जल; अंति: परमानंद पायो हो, गाथा-३. ३३०३३. साधुगुण सज्झाय व नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. सांझांजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११,१३४३८). १.पे. नाम. साधुगुण सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचे इंद्री रे; अंति: इम भणइ विजयदेवसरोजी. गाथा-१२. २. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, म. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथसारथिसारं; अंति: चंड नंदतु यूयमखंड, श्लोक-५. ३३०३४. मुहपत्तिपडिलेहणा सज्झाय व देवलोक नामादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १३४३७). १.पे. नाम. मुहपत्ति पडिलेहणा, पृ. १अ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, मु. शांतिसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेशर पाय पणमे; अंति: शांतिसूरि गुरु शीश, गाथा-११. २. पे. नाम. देवलोक, चक्रवर्ति ,बलदेव, वासुदेवादि के नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३३०३५. हीरविजयसूरि सज्झाय व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१०.५, २१-२५४११-१५). १.पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोकसंग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. २.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. हीरसूरि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, ग. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सांभरीआ गुण गावा मुज; अंति: हर्षइ० बि करजोड रे, गाथा-९. For Private And Personal use only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३२७ ३३०३६. (+) रुक्मिणी सज्झाय व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११.५, १२४३२). १.पे. नाम. सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रुक्मिणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम नेमि; अंति: जाय राजविजय रंगे भणे. गाथा-८. २. पे. नाम. कालअनुसार आहार विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह*, सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३०३७. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०,११४२८). १. पे. नाम. सामायक बत्रीसदोस सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संयमे धीर सुगुरु पाय; अंति: विमल गुण वाधइ नूर, गाथा-१०. २.पे. नाम. सचित्तअचित्त सज्झाय, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ३३०३८. स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, अन्य. मु. कल्याणजी (गुरु मु. लालविजय); गुपि. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (४१४११.५, ६८४२२-३०). १. पे. नाम. नेमीश्वरना बारमास, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: धुरे रे आसाढ धडुकीओ; अंति: पुहता मुगत मझार रे, गाथा-१६. २. पे. नाम. काय गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुण बहिनी प्रीउडो; अंति: नारी विना सोभागीरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमजीनो रास, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन रास, मु. श्रीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जो तम चालोसीवपुरी; अंति: उतारो भव पार रे, गाथा-९?. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सवैया संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५. ५. पे. नाम. सेनुंजा तीरथ, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इणे डूंगरीये मन मोही; अंति: जनम सफल होइ तास हो. गाथा-१३. ६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: महारा आतमराम किणी; अंति: दिन परमानंद पद पासुं, गाथा-७. ७. पे. नाम. राणड, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपूरे रलीयामणो रे; ___अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. ३३०३९. वीसबोल सज्झाय व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११.५, २१४३१). १. पे. नाम. सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० बोल सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र गीनता अध्ययन; अंति: चौथमल० सुखरी छौड हो, गाथा-१४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नगरनरेश रूठो खान; अंति: सरग मुगत तीणाथी लहै, गाथा-२. ३३०४०. अबोधप्रतिबोधन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १५४३८). उपदेशगुणतीसी सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: वरसइ पुष्करावर्त; अंति: कहि जोज्यो मनरंगि, गाथा-२९. For Private And Personal use only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३०४१. (#) ज्योतिष श्लोक व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२०.५X११.५, १६x२५). १. पे नाम ज्योतिषलोक संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण. ज्योतिष लोक, मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-) श्लोक-२. २. पे. नाम. पंचमी स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति चरण पसाउलि रे; अंति: कांतिविजय गुण गाई, गाथा- ७. ३. पे. नाम सज्झाच, पृ. १आ, संपूर्ण. विषयविषया सज्झाय, मु. लब्धिविजय, पुहिं, पद्य, आदि जब लगि विषया विषय अंतिः लब्धिविजय० वेलि कटि " गाथा - ५. ३३०४२. खामणा दृष्टांतसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैवे (२२x९, ११४३५). क्षमापना दृष्टांत संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सिंधुसौवीर देशनो धणी; अंति: दृष्टांत जाणवो. ३३०४३. श्वासोच्छवास बोल, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२०,५X११, १६x२६). " श्वासोश्वास बोल संग्रह- प्रज्ञापनासूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: मगददेस राजगरी नगरी, अंतिः महेरा सुख भोगवे छे. ३३०४४. ग्यानपंचमी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २१x११.५, १०X३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पवित्र, अंति: पाचं प्रदक्षेण दैणी. ३३०४५. गुरुगुण स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे (२०.५x१०.५, ९४३०). १. पे. नाम. जिनदत्तसूरि अष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि गुर्वाष्टक, सं., पद्य, आदि नमाम्यहं श्रीजिनदत्त, अंतिः सर्वाणि समीहितानि श्लोक ८. २. पे नाम, जिनकुशलसूरि स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीसौभाग्यविद्या, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ३३०४६. राईपडिकमणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०X१०.५, २८x१७). प्रतिक्रमणविधि संग्रह - विविधगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ३३०४७. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१ (१) १, कुल पे. २. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा पत्रांक गलत लिखे जाने के 3 कारण पत्रांक अनुमानित दीया हुआ है., जैदे., (२१X११.५, ११x२०-२८). १. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंतिः सुरनर नायक गावे, गाथा-८, (पू. वि. गाथा-७ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. आदजन स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्धमंडन, मु. ज्ञानविमल, गु., पद्य, आदि: नमो नमो श्रीआदि, अंतिः ज्ञानविमल मति जागी, ३३०४८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५X११, १०X२८). गाथा - १०. १. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. जिनविजय, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीजुगमंधरने केहजो अंतिः पंडित जिनविजये गायो, गाथा ८. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि शांति जिणेशर साहिबा अंतिः मोहन जय जयकार, गाथा-७, ३३०४९. (#) गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५X११, ११x२९). पार्श्वजिन छंद - गौडी, मा.गु., पद्य, आदि: नमु सारदा सार पादार, अंति: सौख्यप्रदः सर्वदा, गाथा-१४. For Private And Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३३०५०. अनाथीजीनी सीझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४११, १०४२४). अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रेवाडि चढ्यो; अंति: पाय वांदुबे करजोडी, गाथा-९. ३३०५१. मधुबिंदु सझाय, संपूर्ण, वि. १९२७, फाल्गुन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. श्राव. भुरा त्रीकम संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वनाथ प्रसादे., जैदे., (१९.५४१०, २४४१४). मधुबिंदुसज्झाय, पं. शुभवीर, मा.गु., पद्य, आदि: मधु बंदू समो संसार; अंति: सुभवीर० सदा मनवालता, गाथा-१८. ३३०५२. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. हरिदुर्ग, प्रले.मु. शिवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०.५, ११४३३). १.पे. नाम. चिंतामणी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, पं. सदासागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८५, आदि: श्रीचिंतामणि पासजीरे; अंति: हूं वलिहारी साहिबजी, गाथा-७. २. पे. नाम. पास तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोहन मूरति ताहरी जी; अंति: पूगा डाव हो साहिवा, गाथा-५. ३३०५३. रोहिणीतपवृद्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२०.५४१०.५, १६४३५). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: शासनदेवता सामणी ए; अंति: हिव सफल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. ३३०५४. नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४१०, १०x२६). नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काई रथ वालो होराजि; अंति: मोहन पंडित रूपनो, गाथा-७. ३३०५५. स्तव, सझाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. १७६०, चैत्र शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. आसोपनगर, प्रले. ग. अजबसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११.५, १४४३९). १.पे. नाम. विमलनाथजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. विमलजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: भूमी धनैः प्रवरगंध; अंति: खलुविष्णुपुर्याम्, श्लोक-१०. २. पे. नाम. स्थुलिभद्रकोशा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनिकोशावेश्या सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. प्रत ___का ऊपरी भाग खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण लिखा हुआ प्रतीत होता है.) ३. पे. नाम. कल्याणसागर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अजबसागर, सं., पद्य, आदि: श्रीकल्याण पयोधिराज; अंति: कल्याणदोभूस्पृशाम्, श्लोक-१. ३३०५६. सीमंधरजीतवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४११, २५४१०). सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरजीकुंवंदना; अंति: तणो जिनंद थुणंदा जी, गाथा-७. ३३०५७. (#) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११, १०x४२). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., प+ग., वि. ११५२-१२२६, आदि: रागद्वेषविजेतार; अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद ३ पद ५४ तक है.) ३३०५८. पार्श्वजिन छंद व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०४११, १३४३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पोसिणा, म. कल्याणविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती समरी कवी जिन; अंति: सेवे ते नवनिधि लहे, गाथा-१५. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. For Private And Personal use only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३०५९. माहावीरजीरो पालणो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. मु. हमीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४१०.५ १x२०-२५). महावीरजिन हालरडुं, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला झुलावे; अंति: होजो दीपविजय कविराज, गाथा - १८. ३३०६०. पार्श्वजिन स्तवन व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२१.५४९.५, ७२०). १. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण प्रले. ब्रधमान, प्र. ले. पु. सामान्य. 7 पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सी गती थासे मोरी, अंति: श्रीपारसनाथ ले तारी, गाथा-५. २. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तुं क्या फरें; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र १ गाथा है.) ३३०६१. लावणी व पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे, ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे. (२०.५x१०.५, १४x२२-३०). १. पे. नाम. अर्जुनमाली लावणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं, पद्य, आदि: राजग्रीनगरी के अंदर, अंति: मोहे ममत अलगी टाली, गाथा-६. २. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. चोथमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: इसी नाम के अरथ वीचार; अंति: जे नरमती छतीरो रे, गाथा - ५. ३. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: चंचल चीत मारो वरज्यो; अंतिः चोथमल गुण गावेजी, गाथा-५. ३३०६५. नेमजीनो बारोमासो, संपूर्ण वि. १८०४ आश्विन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. मु. देवज्ञसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( १९.५x१०, २६१८). २५X१६). १. पे नाम. पार्श्वनाथ गीत, पृ. १अ संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वामि, अंति: नवे निधि पामी रे, गाथा-१३. ३३०६६. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१(१) = १, कुल पे २, जैदे. (२०.५x१०.५, १०x२९). १. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पूरि आस्या मनतणी, (पू.वि. मात्र अंतिम दो गाथा है.) २. पे नाम, नेमराजिमती स्तवन, पृ. २आ, पूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मात शिवादेवीरा जाया, अति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३३०६७, (४) स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (१९.५४९.५, पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं, पद्य, आदि: बलिहारी हूं उस पासकी अंतिः अहनिसि लागी है आसकी, गाथा-५. २. पे नाम. विजयप्रभसूरि पद पृ. १ अ १आ, संपूर्ण मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: गुरु पंचमहाव्रत पालत, अंति: गुरुजी उसवंस उजवालतु, गाथा- ३. ३३०६८. करमनो स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२०५४१०५, १२x१८). "" कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि देव दाणव तीर्थकर, अंति: कर्मराजा रे प्राणी, गाथा - १६. ३३०६९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पू. वि. पेज नंबर नहीं हैं., जैदे., (१९.५X१०, १०x२८). १. पे नाम. वैराग्य सज्झाच, पृ. १अ संपूर्ण मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि ते रसीवो रे भाई ते अंतिः सुख कोडि विलसीयो रे, गाथा-५. २. पे. नाम. प्रसनचंद्रऋषि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मारगमें मूझने मिल्यो, अंति: समयसुंदर मनवाल, गाथा-५. For Private And Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३३१ ३३०७०. गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०x१०, ७X२३). गुरुगुण गहुंली, मु. शांतिरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज परमानंद वधावणारे; अंति: कोड जूगां कल्याण रे, गाथा-६. ३३०७३. भरहेसर सझाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२१.५४११.५, १०४२१). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३३०७४. चतुर्विंसती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जेसडा, प्रले. पंन्या. खांतिविजय; पठ. ग. लाभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०, १३४३८). चतुर्विंशतिजिन स्तवन, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमता नलने बोहवा; अंति: थूण्या चोवीसे जिनवरा, गाथा-२६. ३३०७५. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०.५, १६४३६). १. पे. नाम. करमविपाकफल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८. २.पे. नाम. रहनेमि राजिमती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: तुं तो जादव कुलनो रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ३३०७६. संथारा ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(२ से ५)=२, जैदे., (२०x१०.५, १५४३०). संथारा ढाल, मु. माणकचंद, रा., पद्य, आदि: ए संसार असार माहा; अंति: तीणरो खेबो पारो रे. ३३०७८. स्तवन, सझाय संग्रह व दोहरो, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ९, जैदे., (२१.५४१०, १३४३२). १. पे. नाम. संखेस्वर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजिनेसर; अंति: रंग सदा सीवसुख दांनी, गाथा-५. २. पे. नाम. नेम गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कांई रीसाणा हो नेम; अंति: मुगते पोहति मारा लाल, गाथा-९. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: चेत चेतरे आतम; अंति: वसतो० आवागमण निवारं, गाथा-५. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत-काया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: आतम कहे रे काया; अंति: वसतो० भजलीओ भगवांना, गाथा-६. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आध्यामिक गीत, मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: चेतनजि तुमे चेति लेज; अंति: वदे वसतो ईम वाणी, गाथा-५. ६.पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ अध्यात्म गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात भयो प्रात भयो; अंति: समय० शिवसुख कुंण लहे, गाथा-६. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तुंक्या फरें; अंति: प्रभुसे अरज हे मोरी, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक कुंडलीयो, पृ. २आ, संपूर्ण. गीरधर, मा.गु., पद्य, आदि: चिता जल सरीरमें दव; अंति: जसकुं वापत हे चिता, पद-१. ९. पे. नाम. दूहरो संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण... दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३३०७९. सझाय संग्रह व स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४१०.५, १५४३७). १.पे. नाम. सोलस्वप्न सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. For Private And Personal use only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: करी गिरुआ एह गुणेयो, गाथा १८ (पू. वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम. पार्श्व गीत, पृ. २अ, संपूर्ण, प्रले. पं. महिमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरमंडन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पूजो पासजिनंदा, अंति: तुम्ह तूठै पासजिणंदा, गाथा - ५. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक हीयाली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसे कांबल भींजे, अंति: मुरख देपाल बखाणे, गाथा-६. ३३०८०. (+) विजयदेवसूरिगुरु स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२२x१०.५, ३४x२५). विजयदेवसूरि स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: विजयदेव गुरुं प्रणमा, अंतिः सायुक्तश्चनांकेनयुक्, श्लोक-१५. ३३०८१. स्वाध्याय व नमस्कार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०x१०.५, १९x१४). १. पे. नाम. जंबूस्वामीनी स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी भास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जाउं बलिहारी जंबू, अंतिः चरण नमुं निसदीस रे, गाथा-५. २. पे नाम. शांतिनाथ नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन नमस्कार, पं. कीर्तिरत्न पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिजिणेसर सोलमु मन, अंति: कीर्तिरत्न धरी रंग, गाथा - १. ३३०८२. स्तुति संग्रह व स्तवन, अपूर्ण, वि. १८६३-१८६४, श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१)= ३, कुल पे. ६, जैदे., ( २१.५X१०.५, १२X४५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन जगजन वंदन, अंति: पास जिणंद मन भावेजी, गाथा-४. २. पे नाम आदिजिन स्तवन, पृ. २अ ४अ, संपूर्ण, वि. १८६३, माघ शुक्ल ८. रविवार, ले. स्थल, टांकरनगर, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि (गुरु ग. वनीतविजय); गुपि. ग. वनीतविजय (गुरु ग. रत्नविजय); पठ. श्राव. अमरसी कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन वृहत् शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु, पद्य, आदि (अपठनीय) अंतिः ते पांमे भवनो पार ए. गाथा - ४१. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. पंन्या. रतनविमल, मा.गु., पद्य, आदि अबेली छबेली रंगेली, अंतिः देवी सानिध करो अमारी, गाथा- १. ४. पे नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रे उठि बंदु वीर, अंतिः तस घर कोड कल्याण, गाथा- १. ५. पे. नाम. श्रीमंदिरजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण, प्रले. अमरसी, प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंधरसामी, अंति: मन वंछित फल दातार, गाथा - १. ६. पे. नाम. आदिजिन थोई, पृ. ४आ, संपूर्ण, वि. १८६४, वैशाख. आदिजिन स्तुति - राधनपुरमंडन, मु. ऋद्धिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि आदि जिणेसर अति अलवेस, अंति: पंडित वृद्धिचंदोजी, गाथा- १. ३३०८३, (४) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ५, पठ. ग. जयविजय प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैसे. (२१४९.५, ९-११४२७). " १. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रभु प्रथम, अंति: माणीक माथेही थेम, गाथा-५. २. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: तेरो दरसन भलें पायो, अंतिः इतने में नवनीधी पायो, गाथा - ६. ३. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ पुहिं., पद्य, आदि: देखो भक्तिरंग हो एसो; अंति: शिवपद सूख जनन, गाथा-७. ४. पे. नाम. माहावीर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसला देवीनो नंद; अंति: वंदे नित नित रंग, गाथा-५, (वि. चार पद के हिसाब से गाथांक ५ लिखा है.) ५. पे. नाम. समेतशिखरतीर्थ पद, पृ. २आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ होरी पद, पुहिं., पद्य, आदि: मधूवनमे धुम मचि होरी; अंति: पायो दरसण अनुभोरी, गाथा-७. ३३०८४. स्तवन, सझाय संग्रह व लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२१.५४११.५, ३३४२६). १.पे. नाम. पंचतीर्थ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.. पंचतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: चलो अब जइइं हो सेत्र; अंति: ज्ञान० महिला उर हार, गाथा-६. २. पे. नाम. चारमंगल गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ मंगल पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज घरि नाथ पधारे; अंति: चरण कमल जाउं वार रे, पद-३. ३. पे. नाम. विमलाचल गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-वसंत पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चलो सखी वीमलांचल जइइ; अंति: जन्म जनम तुर्यो दास, गाथा-४. ४. पे. नाम. रोमसोम लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: साहकारकुं काम पड्या; अंति: भेंजो कासी की जोडी, गाथा-५. ५. पे. नाम. संखेस्वर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति अवनासी कासी; अंति: रुपविजय शिवराज हो, गाथा-६. ६.पे. नाम. अध्यात्म सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवनासीनी सेजडीयें; अंति: प्रीत बंधाणीजी, गाथा-६. ३३०८५. चतुस्त्रिंशदतिशयजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४५, माघ शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पारकरनगर, जैदे., (२१.५४११.५, १६x४४). ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिदायक कुमति घायक; अंति: पद सेव मागुंभवोभवे, गाथा-१२. ३३०८६. गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४११.५, ११४३२). गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम गुरु प्रभात; अंति: वीजयसीखरकहे सुवीलासे, गाथा-१३. ३३०८७. छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०.५, १३४३७). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कल्याणविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वरदायन सारददेवी रे; अंति: भणे जे त्रिभुवन धणी, गाथा-९. २.पे. नाम. शनीनो छंद, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. शनिश्चर छंद, पंडित. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक पाठ है.) ३३०८८. सझाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (४२४२२, १३४४२). १.पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर जीनवर आवी; अंति: दान के एहवा मनीवरू, गाथा-१७. २.पे. नाम. कुंथुनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जिनजि मोरारे रात; अंति: पद्मने मंगल माल लाल, गाथा-७. ३३०९०. (-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२०४११, २०४४०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. __मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १९७७, आदि: भुलो मन भमरा कई; अंति: कहे भावोदधी तारो रे, गाथा-६. २. पे. नाम. सट्टा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. जुगारत्याग सज्झाय, मु. चोथमल, रा., पद्य, आदि: मत कीजो सटा ऊभ जावे; अंति: मत कीजो रे सटा रे, गाथा-८. ३३०९१. जिनचउवीस गणधर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. कनकविजय (गुरु ग. अमरविजय); गुपि.ग. अमरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, ७-१०४२९). २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती आपइ सरस वचन; अंति: वृद्धिविजय गुणगाय, गाथा-९. ३३०९२. नागपुर श्रेयांसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०x१०, ७४२३). श्रेयांसजिन स्तवन-नागपुरमंडन, मु. रत्नचिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोयो जिन मुख मटकै मन; अंति: अधिकारी होय बेठे, गाथा-५, प्र.ले.पु. सामान्य. ३३०९३. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२४१०.५, २८x१८). १.पे. नाम. सीधाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी सिद्धाचल; अंति: सीष्य कनक गुण गायजी, गाथा-१४. २. पे. नाम. गोडीजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पास गोडिचा नाम तुम; अंति: जे जीन सरीयां काज, गाथा-७. ३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: नरनारी नरनारी सिद्धा; अंति: भक्ति करूं एक ताहरी, गाथा-३. ४.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजी प्रगट; अंति: अवलंब्या तुझ पाय रे, गाथा-५. ५.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मुने संभवजिनसुं; अंति: सुमतिसीस० धारो रे, गाथा-६. ३३०९४. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९.५४१०, १६४३०). साधारणजिन स्तवन, मु. जिनभक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: मन वच काय करजी तुम; अंति: सुंणतां सुख लहौजी, गाथा-१७. ३३०९५. स्तवन व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. मु. देवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४११, २५४२५). १.पे. नाम. तीर्थयात्रा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पोरबंदर, पे.वि. श्रीशांतिनाथ तथा श्रीशीतलनाथ प्रशादात. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजे ऋषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१५. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: वाग्वादिनी नमस्तुभ्य; अंति: बुद्धि मिंदिरम्, श्लोक-६. ३३०९६. बारमासो व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०, १२४३७). For Private And Personal use only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org ३३०९९. छंद व ज्योतिषसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X१०.५, २७X२०). १. पे. नाम ढूंढ छंद, पृ. १अ संपूर्ण " १. पे. नाम, नेमजीना बारमास, पृ. १अ १आ, संपूर्ण नेमराजिमती बारमासो, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: (१) श्रीससतिनें नमीऐं, (२) श्रीसरसतिने नमीऐं; अंति: जोड कहें की कांन, गाथा- १६. २. पे. नाम, सोलश्रुंगार पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. ग्यान, पुहिं., पद्य, आदि: अंकुन मंजन चंदन चीर, अंतिः सोल सुगार बनावत गोरी, गाथा- १. ३३०९७. () श्रावकधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे., (२०x१०.५, १४x२५). श्रावकधर्म सज्झाय, पुहिं, पद्य, आदि मारग सावग का सो ती अंतिः सीद्धांतसाध चित लाना, गाथा ८. ३३०९८. गुरुराज स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २१.५x९.५, ४०X२१). विजयरत्नसूरि सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः आज अविषाद जस वाद जग; अंति: उदय आसीस लहि एह सवाई, गाथा - १४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढुंढक छंद, क. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: देसामाहे सीरोमणी मरु; अंति: कहो ढुढ केम ऊधरे, गाथा - ११. २. पे. नाम ज्योतिष संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण. ३३५ ज्योतिष संग्रह, मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ३३१००. (-) तुंगीया श्रावक सज्झाव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. जैवे. (१९.५x१०, १६४३२). तुंगीया श्रावक सज्झाय, मु. कनीराम, रा., पद्य, आदि: श्रावग तुंगीया तणो; अंतिः कनीरामजी गुण गाय, गाथा - १७. ३३१०१. साधारणजिन लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १ ले स्थल. वडाद, प्रले. श्राव. जीवचंद रुगनाथदास, 2 , י प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५X१०, ८x१२). साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., पद्य, आदि: धान प्रभु का धरणा; अंति: शिवसुंदरी सुख वरना, गाथा-५. ३३१०२. (०) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-१ (१) ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२१.५४११, १०x२८) For Private And Personal Use Only भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः समुपैति लक्ष्मी:, श्लोक-४४, (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण क नहीं है.) ३३१०३. स्तवन व सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) -२, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक नहीं दिया गया है. बीच के पत्र होने से काल्पनिक पत्रांक भरा गया है., जैवे. (२१.५x१०.५, १०x३३). १. पे. नाम आदीसरजिनवीनती स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है, मात्र अंतिम गाथा का चतुर्थ पाद है. आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि (-): अंति: बोले पाय आलोड आपणां, गाथा-५७, (पू.वि. अंतिम गाथा का अंतिम पाद मात्र है . ) २. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. २अ- ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देश मझारि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) ३३१०४. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक नहीं दिया गया है. बीच के पत्र होने से काल्पनिक पत्रांक भरा गया है.. जैवे. (२१.५x१०.५, ११४३६). १. पे. नाम. सीमंधरवीनती तवन, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: माहरी सकल सिद्धी, गाथा-७, (पू.वि. गाथा- ६ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. पंचासरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: छांजि छांजि छांजि, अंति: मोहनविजये पायो, गाथा- ७. Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३१०५. चंदाप्रभु को तवन कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. सीता आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४१०.५, १३४२५). १.पे. नाम. चंदाप्रभु को तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. साधुजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: चंद्रपुरी नगरी भलीजी; अंति: सायपुर सेर चोमास, गाथा-९. २. पे. नाम. कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. कवित संग्रह*, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), सवैया-१. ३३१०६. १८ नातरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२०.५४१०.५, १३४२६). १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नमुंजी जिनवर के चरणा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ३३१०७. नेमिजिन स्तवन व औषध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४११.५, २७४१९). १.पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (१)मारा नेम पीयारा, (२)नेमजी सामलिओ सामलि; अंति: आस्या सफल थई रेलोल, गाथा-६. २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह ,सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३११०. मोरादेवीजी की स्वाध्याय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (१९.५४११, १२४२६-३०). १.पे. नाम. मोरादेवीजी की स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मोरादेवीजी माता कहै; अंति: वरत्या जय जयकारोरे, गाथा-१८. २.पे. नाम. पठनमहत्ता विषयक श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३३१११. आदीश्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०, ८४३६). आदिजिन स्तुति, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: मनवंछित पूरण आदि; अंति: तुहि ज सिवसुख दाता, गाथा-४. ३३११२. दादैजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८७०, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. महाजन, प्रले. पं. गुणविलास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५,१३४३४-४१). जिनकुशलसूरि छंद, मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: वदनकमल वाणी विमल; अंति: धन्य हो खरतरधणी, गाथा-५०. ३३११४. अठारे पाप की लावेणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५४१०, १४४२८). १८ पापस्थानक लावणी, पुहिं., पद्य, वि. १९५६, आदि: पाप अढार माहाबुरा है; अंति: सतगुरु इम फुरमावि, गाथा-१३. ३३११५. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१x१०.५, १२४३४). १. पे. नाम. अंतरीक स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: आसातना रखे कोई करे, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमतीस्तवन, ग. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: जब मेरो साहिब तोरण; अंति: साची प्रीत लगाई, गाथा-५. ३३११६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०.५, १६४३७). १.पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. विहरमान २० जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीसे विहरमाण जिणवर; अंति: भवभव तुम पाय सेवा, गाथा-४. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३३७ दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म; अंति: सेवज्यो पामो भवपार, गाथा-६. ३३११७. फलवधिपार्श्व स्तवन व ज्योतिषसार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं किया गया है., जैदे., (१९.५४१०, १०४३७). १.पे. नाम. फलवधिपार्श्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: फलवधिमंडण पास एक करु; अंति: समैसु० जात्रा प्रमाण, गाथा-१०. २.पे. नाम. ज्योतिषसार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभ का ही लिखा गया है.) ३३११८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०.५, २०४१४). १. पे. नाम. सीमंधिर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. सीमंधरजिन स्तवन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर साहिबा वीनवडी; अंति: तुंप्रभु गरिब निवाज, गाथा-९. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीसागरसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणंद जुहारीइं; अंति: दीजै शिवसुख दान, गाथा-५. ३३११९. सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रावण शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (३९४११, ४०x१३-१७). सुमतिजिन स्तवन, मु. मुक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी पंचम जिनने; अंति: मुक्ति नमे नीतमेव हो, गाथा-९. ३३१२१. नवकार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२१.५४१०.५, ९-१५४२९-४२). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताण; अंति: पढम होइ मंगलं, पद-९. नमस्कार महामंत्र-पंचपद बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार; अंति: खवेइ ऊसासमित्तेणं, (वि. मात्र प्रथम पाँच पदों का ही बालावबोध है.) ३३१२२. स्वाध्यायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्रांक की जगह का भाग कटा हुआ है, जिसके कारण काल्पनिक पत्रांक २ दिया गया है., जैदे., (२१४११, १८४४२). १.पे. नाम. नवाड, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., ले.स्थल. लेंबडी, प्रले. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. अंतिम भाग होने से सही पता नहीं चल रहा है परन्तु अनुमान है कि यह कृति ढालबद्ध परिमाणवाली होनी चाहिए नववाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: केसरकुशल जयकार, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है., वि. यह परिमाण अंतिम ढाल का होने की संभावना है.) २. पे. नाम. नेमराजिमती स्वाध्याय, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर सारी बालकुंआरी; अंति: मनोरथ फलीया, गाथा-६. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, ले.स्थल. राधनपुर, पे.वि. प्रतिलेखन के बाद में लेखन स्थल लिखा गया है. साधारणजिन पद, मु. आनंद, पुहि., पद्य, आदि: तुं तारक क्यु हि; अंति: कारन पवन बिचार्यो, गाथा-३. ४. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. २आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: क्यारे मने मलशे मारो; अंति: कीम जीवै महुमेही, गाथा-२. ५. पे. नाम. शुक्र छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. शुक्रग्रहदेव छंद, क. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: असूरां गुर आदेशं वेश; अंति: शुक्रदेव जुगल सकल, गाथा-६. ६. पे. नाम. हणुंपाल छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. राहुग्रह छंद, क. शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. For Private And Personal use only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३१२४. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३.५४१०, १०४३७). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-). ३३१२५. सोलै सुपना व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ. सा. अखु,प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४९.५, १२४४२-४७). १. पे. नाम. सेला सुपना, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलिपुर नामे नगर; अंति: अन्न हुसी थोडा जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सहु नरनारी मली आवो; अंति: पावै विनीतसागर मुदा, गाथा-७. ३३१२६. स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, दे., (२१.५४११,११४४१). १. पे. नाम. रिषभजीरो स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: सुन सुन सेतुंजगिरि; अंति: श्रीजिनभक्तिसुरंदा, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमराजुलजीरो स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, आ. लब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: जंबूद्वीप भल दीपतो; अंति: काई लबधसूरिराय, गाथा-७. ३. पे. नाम. ढंढणऋषीजीरी सीज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, रा., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: सुजाने हुंवारी लाल, गाथा-९. ४. पे. नाम. अष्टमिरो स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अष्टमीतिथि स्तवन, म. कांति, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हा रे मारे ठाम धर्म; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ३३१२७. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४६, वैशाख कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११.५, १६४३४). १. पे. नाम. नमीनाथ स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. नमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: घननिभांबोधितनयाः समा, श्लोक-४, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमदमरशिरोरुहस्रस्तसा; अंति: गजारावसन्नासि, श्लोक-४, (वि. अंतिमवाक्य अशुद्ध प्रतीत हो रहा है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिनाग्रे धरणेद्रपद्मावतीनाटिक विरचीत ध्वनि स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: निशं दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ३३१२८. पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. जगरुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कल्याणसागर शिष्य, सं., पद्य, आदि: संस्तुवे श्रीमतं; अंति: पूर्तयेसाडा, श्लोक-७, (वि. पत्र के कुछ भाग का अक्षर अस्पष्ट होने से अंतिमवाक्य का सही-सही पता नहीं चल रहा है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३३१२९. धनासालिभद्र सीझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४३३). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धन्ना सालिभद्र; अंति: कहे ते रयणने दिह रे, गाथा-१३. For Private And Personal use only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३३९ ३३१३०. सेणस्यनाथ नमोस्कर, संपूर्ण, वि. १९१३, आश्विन शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४११, १०४२८-३०). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ३३१३१. कुमतिसंगनिवारण जिनबिंबथापन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२१४११, १३४२७). कुमतिसंगनिवारण जिनबिंबस्थापना स्तवन, श्राव. लधो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन पदपंकज प्रणम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ तक है.) ३३१३२. नवकार छंद व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१४९.५, १४४२६-३०). १.पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा-७, (वि. दो-दो गाथा एक गाथा के रूप में गिनी गई है.) २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. ज्योतिष श्लोक-१.) ३३१३३. परमानंद स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य.पं. अजितसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संवत् १७५४ वर्षे भादरवा वद ११ को पं. अजितसागर द्वारा लिखित प्रति के ऊपर से यह प्रति लिखी गई है., जैदे., (२२.५४९.५, १२४३७). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंयुक्तं; अंति: यो जानाति स पंडितः, श्लोक-२४. ३३१३५. मौनएकादशी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. प्रत के बीच का पत्र है एवं पत्र क्रमांक १ लिखा होने से काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२२.५४११.५, १४४३७). __ मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुव्रतशेठ की कथा मात्र है.) ३३१३६. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७१, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले.पं. जसरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११.५, १०४२५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३३१३७. (#) मेघकवर की सज्य, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(२ से ३)=२, ले.स्थल. रुपाणा, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा पत्रांक गलत लिखा गया हो ऐसी संभावना है अथवा कृति ढालमय गाथा क्रमांक वाली होने की संभावना है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२१.५४१०, १३४२२-२६). मेघकुमार सज्झाय, मु. रायचंद, गु., पद्य, आदि: जी हो वाणी सुणी भगवं; अंति: रायचं कवर मन चिंतवे, गाथा-२०. (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक नहीं है.) ३३१३९. (#) घासीरामजी की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कीसनगढ, प्रले.सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२१४११, १६४३२). घासीरामजी सज्झाय, रा., पद्य, आदि: मरुधर देशमें गाम लाड; अंति: लीधी प्रत्यक्ष देख, गाथा-२४. ३३१४०. चौदगुणठाणाविचार सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३४११, १०४३१). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मुक्तिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: निज गुरु केरा प्रणमी; अति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ३३१४१. स्तवन सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३+१(१)=४, कुल पे. ५, ले.स्थल. कोइला, प्रले. जसरुप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १२४३३-३६). १.पे. नाम. गोडीजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिणेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: गोडीचो साहिब गाविता; अंति: दीजेजी वंछित पेम, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन विनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिणेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेश्वर साहिबा; अंति: हिवे मुझ पार उतार, गाथा-७. For Private And Personal use only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. पार्श्वविनती, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिणेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअश्वसेन नृप नंदन; अंति: समयो हित धरी रेलो, गाथा-७. ४. पे. नाम. सेतुरुजाजी रोस्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शQजयतीर्थस्तवन, मु. जिणेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जेह दिवस वसे विमलाचल; अंति: तीरथ मुज मन भाया हे. ५. पे. नाम. जीवउपर हितसिख्या, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. जिणेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे भाई जिन समर्य; अंति: तो निहसे सुख थासे, गाथा-२१. ३३१४२. सीतासती सीझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०, १२४३४). सीतासती सज्झाय-शीयलविणे, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: झलझलती बलती घणी रे; अंति: धीर रे सोजान सीताजी, गाथा-८. ३३१४४. सूत्रकृतांगसूत्र का मोक्षमार्ग अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. गुमान, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४११.५, १५४४३). सूत्रकृतांगसूत्र का प्रथमश्रुतस्कंधगत ११वाँमोक्षमार्गअध्ययन*, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. प्रथम श्रुतस्कंध का ग्यारहवाँ मोक्षमार्ग अध्ययन.) ३३१४५. आखात्रीजनी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १४४५१-५३). अक्षयतृतीयापर्व कथा, मु. कनक कवि, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंति: कनककवि कथा निरुपिता. ३३१४६. भास संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२३.५४१०.५, ९४३५). १. पे. नाम. पूज्यानां भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. जिनलाभसूरि भास, मु. चतुरहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आज म्हारे अधिक उमाह; अंति: चतुरहर्ष इण पर कहै, गाथा-७. २. पे. नाम. देसना, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि भास, मु. लावण्यकमल, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनिधि जिणचंद मुणि; अंति: लावण्यकमल सुख पावै, गाथा-८. ३३१४७. शेजगिरि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३.५४११.५, १०४२५). शत्रुजयतीर्थ भास, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहियां मोरी चालो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ३३१४९. गुरुगीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०४, भाद्रपद कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. भक्तिविनय; पठ. श्रावि. वरजूबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१०.५, ९४३२). १.पे. नाम. गुरु गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि गीत, मु. जीतरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु सेवो शुभ भावै; अंति: जीतरंग नमै भव आणी, गाथा-८. २.पे. नाम. गुरुगीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. गुरुगुण गीत, मु. जीतरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल रे तुं सजनी, अंति: जीतर० आणंद कुशले आवो, गाथा-९. ३. पे. नाम. गीत पद, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. जिनहर्षसूरि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनहर्षसूरीसरुजी; अंति: मुनिजन पूर्णानंद, गाथा-११. ३३१५०. थूलभद्र सझाइ व द्रुपद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११, २२४१७). १. पे. नाम. थूलभद्र सझाइ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आसानंद, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंतन समझाविवा चाल; अंति: ज मन शुद्ध प्रीति, गाथा-१३. २. पे. नाम. द्रूपद, पृ. १आ, संपूर्ण. विष्णुभक्ति पद, नायक, पुहि., पद्य, आदि: मोहे भविकजनां मेरा; अंति: नायक वंदित तेरा, गाथा-३. ३३१५१. सज्झाय संग्रह व महादसा फल, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. हर्षवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, २५४५१). For Private And Personal use only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. अढारनातरा सज्झाय, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. वीरसागर, मा.गु., पथ, आदि: सरसति माता रे निज, अंतिः विरसागर बूध गाय रे, दाल- ३. २. पे. नाम. महादसा वर्ष, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह " मा.गु. सं., पण., आदि (-): अंति: (-). ३. पे नाम, संतोष सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, वैराग्य सज्झाय, मु. विनयविजय, गु., पद्य, आदिः सज्झाय भली रे संतोष अंति: लहे केवल सुखकारी रे, गाथा-५. ३३१५३. (+) भवभावना प्रकरण, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५x९.५, १३x४३). भवभावना प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आविः नमिउण नमिरसुरवर मणि, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा - ३८ तक ही है.) ३३१५४. पार्श्व छंद व कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २३११.५, ३२x२४). १. पे. नाम. पार्श्व छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति द्ये तं सुमति; अंति: एह धवलधिंग गौडी धणी, गाथा-९. २. पे. नाम. कवित्त संग्रह, पृ. १अ + १आ, संपूर्ण. काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य में, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३१५७. जिनवंदनफल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै. (२२.५x१०, ९३२). " , जिनवंदनफल स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि जिन चोवीसे करू, अंति: किर्तिविमल सुखकार, गाथा- ११. ३३१५८. सता गीत व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जै. (२३.५x१०.५, १०४०). "" ३४१ १. पे. नाम. सत्ता गीतं, पृ. १-१आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि सील सुरंगी भांतिसु, अंतिः प्रसन्न सदा पदमावती, गाथा-७२. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३१५९. सुभद्रासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३x१०, २८x१८). सुभद्रासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर केरुं सीस अंतिः प्रभावै शिवसंपद मलि, गाथा-२१. ३३१६०] (4) शालीभद्र सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५X१०.५, १५X३९). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्री नगरी श्रेणक, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - २२ अपूर्ण तक है.) ३३१६२. (+) पखवाडो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२२x९.५, १७x४१). , १५ तिथि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एकम के है तु एकलो रे; अंति: तीके गया जमारो हार, गाथा- १७. ३३१६३. अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, जैवे. (२४.५४११, ८४२९) अष्टप्रकारी पूजा, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जलपूजा तक नहीं है, प्रतिलेखक ने चंदन पूजा तक लिखा है.) ३३१६४. ज्योतिष संग्रह व पद्मप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, जैवे. (२२x११, २७४१६). १. पे नाम श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, ज्योतिष लोकसंग्रह, मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-८. २. पे. नाम. पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कानजी, मा.गु., पद्य, आदि; धन धन संप्रति साचो अंतिः दीजो प्रभु पद सेव रे, गाथा- ९. ३३१६५. (+) आठकरण गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे., (२४.५X११.५, १०x२८). For Private And Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ करण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: बंधण १ संकमणु २ वटणा; अंति: कायणा ८ वित्तिकरणाइ, गाथा-१. ८ करण गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए आठ करणनि गाथा तिहा; अंति: करणवीर्य विशेष भणिता. ३३१६६. (+) नवकार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. पेज नंबर नहीं हैं अतः अनुमानित नंबर दीया हुआ हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १५-१८४४५-४८). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलोजी ल्युं अरिहंत; अंति: एसमो अवर न कोइ आधार, गाथा-२१. ३३१६७. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, १०-१३४३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३३१६८. पुण्य कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०, ३६४११). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपुन्न इदियत्तं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०. ३३१७०. चकेसरमाता गीत व २४जिन आंतरा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पू.वि. पेज नंबर नहीं हैं., जैदे., (२३.५४११, २७४१८). १. पे. नाम. चकेसरी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. चक्केश्वरीमाता गरबो, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलबेली चकेसरी मात; अंति: छे बहु सोभा तारी, गाथा-९. २.पे. नाम. २४तीर्थंकर आंतरा, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: महावीर देहीत सात; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंद्रप्रभ तक ही लिखा है.) ३३१७१. योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२४.५४९.५, ११४३८). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रकाश-२, श्लोक-५ तक नहीं है व प्रकश-२ के श्लोक-१७ तक ही लिखा है.) ३३१७२. सेव॒जा व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४३०). १. पे. नाम. सेQजानो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शQजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी देखाउरे जिन; अंति: अनुभव ल्यो सुविचारी, गाथा-७. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रंग तो खूब जमाया रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक उपलब्ध है.) ३३१७३. संथारा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३५). रात्रीसंथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमोखमासमणा; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-१४. ३३१७४. (-) चउसरण पयन्नो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४९.५, ११४३३). चउसरणपयन्नासूत्र, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३३१७५. वीरजिन स्तवन, बृहस्पति स्तोत्र व गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. श्राव. चिमु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४४४). १.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. तेजहंस, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात ह्रदय धरी; अंति: तुं मुझ प्राण आधार, गाथा-८. २.पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रीतं तस्य जायते, श्लोक-५. ३. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३४३ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने मात्र बीच की गाथा संख्या १२ और १३ लिखा है.) ३३१७७. संथारापोरिसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२३.५४११.५, ७४२५). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: इअसमत्तं मए गहिरं, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१० तक नहीं है.) ३३१७८. सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२४४११, १९४३१-३७). १. पे. नाम. उपदेसी लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण.. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम तजो जगत का ख्याल; अंति: उपदेस सुनो मत काना, गाथा-४. २. पे. नाम. सुमतिकुमति की लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुमतिकुमति लावणी, जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुंकुमत कलेसण नार; अंति: कि बात खोटी मत खेडे, गाथा-४. ३. पे. नाम. अरणकमुनिनो तान, पृ. १आ, संपूर्ण. अरणकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधो जी, गाथा-८. ४. पे. नाम. सीताजीरो तान, पृ. २अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जल झलती मीलती घणी रे; अंति: नित प्रणमुपाय रे, गाथा-८. ५. पे. नाम. म्रिगापुत्र को तावन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनगर सुहामणोजी; अंति: लीजे नित प्रते नाम, गाथा-१४. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. खूबचंद, मा.गु., पद्य, आदि: लोभो जीव जाप्रदसा; अंति: एक आप सारु लावजो, गाथा-३. ३३१७९. रेखराज स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११.५, १४४४०). रेखराज सज्झाय, मु. नथमल, रा., पद्य, आदि: अनडांनै रे नमावतारे; अंति: उदयै हुइ अंतरायो रे, गाथा-१३. ३३१८०. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२४.५४१०.५, ७४२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२१ अपूर्ण तक लिखा है.) ३३१८१. श्रीछंद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. मुनिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, १९४५९-६३). अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर परमेश्वरकुं; अंति: इंद रंग मन आणीइं, गाथा-३३. ३३१८२. धन्नाकाकंदी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, ११४२८). धन्नाकाकंदी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धना; अंति: गुण गावै मनमै गहगही, गाथा-२४. ३३१८३. (#) राजुल एकवीसी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११, १८४३६). राजुल एकवीसी, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: सासणनायक सिमरीयौ मन; अंति: सुदि पांचम मंगलवार, गाथा-२२. ३३१८४. स्तवन संग्रह व सहजानंदी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११, २४४१५). १.पे. नाम. रोहणीनुं तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. रोहिणी स्तवन, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारा वासु; अंति: रोहिणी गुण गाईया, ढाल-५. २. पे. नाम. जीवविचारनुं तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: सरसतीजी वरसती वचन; अंति: वृद्धी भणे आणंदकारी, ढाल-९, गाथा-८३. ३. पे. नाम. सहजानंदीनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सहजानंदी सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सहजानंदी रे आतमा; अंति: भवजल तरीया अनेक रे, गाथा-११. ३३१८५. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४१०, १३४४७). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. २४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. २४अ-२४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ३३१८८. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १५९४, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक नही लिखा है अतः अनुमानित पत्र क्रमांक दिया हुआ है., ले.स्थल. मरोट, पठ.पं.समयवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४५०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सोहेयव्वं पयत्तेण, गाथा-५४३, (पू.वि. गाथा-५३३ अपूर्ण तक नहीं है.) ३३१८९. तीरथमाल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९.५४११, २२४२३). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय ऋषभ समोसर्य; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१७. ३३१९०. नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०x१०, ९x१७-२६). नेमराजिमती स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४६, आदि: सहीयांराणी राजुल; अंति: चौमासो मेडते कीधो ए, गाथा-१४. ३३१९१. औपदेशिक सज्झाय व मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. जसकरण भारथी; पठ. मु. जेठा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४११, २३४१६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मन भवरांकाइ भव; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-७. २.पे. नाम. हनुमान मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह*, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३३१९२. संखेसर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १४४३९). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. कनकरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: सरसति सार सदा बुध; अंति: लतां भविजन मन सिद्धो. ३३१९३. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४३, आषाढ़ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. रामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३५). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: जो तुसे देव अंबाई, गाथा-४. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उगमते ऋषभ जिणंद; अंति: सुखकार रामविजय जयकार, गाथा-४. ३३१९४. नाडंदापाडानी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. आदेसुर प्रसादाता, जैदे., (२४४११.५, १३४३८). नालंदापाडा सज्झाय, मु. हरखविजय, मा.गु., पद्य, वि. १५४४, आदि: मगधदेशमाही बिराजे; अंति: ज्ञान तणो प्रकासोजी, गाथा-२१, (वि. इस प्रति की कृति में 'संवत इग्यारसे चोमाले' इस तरह लिखा हुआ है.) For Private And Personal use only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३४५ ३३१९७. ब्रह्मचर्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. सा. जीउ (गुरु सा. पना); पठ. सा. जैताजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, १५४२७). ब्रह्मचर्य सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: जगमै जोरसुंरंगो लाल; अंति: आसकरणजी० धरम उपगारो, गाथा-१४. ३३१९८. (+) शाश्वतजिनभवन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. ऋषभदास (तपागच्छ); पठ. श्रावि. मानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ५४२५-२९). शाश्वतजिन स्तवन, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिउसह वद्धमाणं; अंति: तु भवियाण सिद्धिसुहं, गाथा-२४. शाश्वतचैत्य स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिरि उसह कहतां ऋषभ; अंति: सूत्र पूर्ण थयुं छइं. ३३२०१. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १५४३७). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: निचय श्रीवीरभद्रंजय, श्लोक-२७. ३३२०२. सीलांगरथ व श्रावक ११ प्रतिमा गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, २-९४२९-४०). १.पे. नाम. सीलांग रथ, पृ. २अ, संपूर्ण. सीलांगरथ १८ हजार भेदविचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: अठारसहस्ससीलंगधारा; अंति: करतां अठार हजार थाइं. २. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दसण१ वयर सामाइय३; अंति: वज्जए समण भूआए, गाथा-१. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहेली दर्शनप्रतिमा; अंति: देही कहे ११ मास लगे. ३३२०३. गच्छनायकपट्टावली स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७००, कार्तिक कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. ज्ञानसूंदर (गुरु पं. जयसुंदर, तपागच्छ); गुपि.पं. जयसुंदर (परंपरा आ. विशालसोमसूरि, तपागच्छ); आ. विशालसोमसूरि (तपागच्छ); पठ. मु. कीर्तिसुंदर, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२४.५४१०,१५४४६). गच्छनायकपट्टावली सज्झाय-तपागच्छीय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६०२, आदि: सरसति दुमति मुज अति; अंति: तेरसिं रसि सुखकरा, गाथा-५१. ३३२०४. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. नेमविजय; मु. प्रेमविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४४). साधारणजिन स्तवन, मु. गुणविजय, सं., पद्य, आदि: सुखसिद्धि शिवर्द्धि; अंति: शाश्वत श्रीजिनेंद्रः, श्लोक-९. ३३२०६. (+) दानविधि व चैत्यवंदनक विधि, संपूर्ण, वि. १५९९, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. विनयसमुद्र (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); गुपि.आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहससूरि, खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. अमृतादे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३४). १.पे. नाम. दान विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मिथ्यात्वमथन प्रकरण-दानविधि, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: धम्मोवग्गह दाणं दिज; अंति: लोयणाण धम्मो मणे ठाइ, गाथा-२५. २. पे. नाम. चैत्यवंदनक विधि, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. चैत्यवंदनविधि कुलक, प्रा., पद्य, आदि: तिन्नि निसीही तिन्नि; अंति: धम्मो आणाइ पडिबद्धो, गाथा-३५. ३३२०७. आउर पच्चखाण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, ११४३६). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: अरिहंता मंगलं मज्झ; अंति: सव्वंतिविहेण वोसिरइ, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३३२०८. दसपचखांण व संथारापोरसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०, १५४४५). १.पे. नाम. दसपचखांण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुरे उग्गए नमुकार; अंति: गारेणं वोसिरामि. For Private And Personal use only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. संथारापोरसी, पृ. १आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: तत्तं एसमत्तंमेगहियं, गाथा-१४. ३३२०९. ऋषभपंचाशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०२, आश्विन शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. जेसलमेरनगर, प्रले. ग. महिमारूचि (गुरु ग. गजेंद्र, तपगच्छ); गुपि.ग. गजेंद्र (गुरु ग. तेजरूचि पंडित, तपगच्छ); ग. तेजरूचि पंडित (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ७X४४). ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा-५०. ऋषभपंचाशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जगना जीवनइं विषइ; अंति: बोधिबीज जिम फले. ३३२१०. पुन्यकुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११.५,११४२८-४४). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: लभंति सो सासयं सुखं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)पूनिकूलं परि करण ते, (२)इंदियत्तं कहिता; अंति: आराधतो मोक्ष जाइ, (वि. ५५ बोल.) ३३२११. वृहद्ग्रहशांतिक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १७X४२). ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिर्मुदाहृतम्, श्लोक-२८. ३३२१२. सम्यक्त्व गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १०४३३). सम्यक्त्व गीत, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत जगत जिन; अंति: सुलभबोधि मुझ होज्यो, गाथा-५. ३३२१३. लघुसंग्रहणी का गणितपद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, १०४२८). लघुसंग्रहणी-गणितपद विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तइन लाखने सो गुणा; अंति: धनुष१५ अंगूल६० थया. ३३२१४. अभिधानचिंतामणि शेष नाममाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, १५४३६). अभिधानचिंतामणि नाममाला-शेष नाममाला, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक३५ तक लिखा है.) ३३२१५. (+) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. मु. कोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ४४४०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नरते द्रव्य मेल; अंति: बिइ धर्मनी सेवीनइ. ३३२१६. गुरु स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७३, आषाढ़ शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. राज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ५४२५-३४). गुरुगुण गहुंली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवयणे अनुरंगी मुनि; अंति: रमातम धर्मने वरतारे, गाथा-६. गुरुगुण गहुँली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: रागद्वेष रहित ज; अंति: भक्तिथी स्तव्यो. ३३२१७. कल्याणमंदिर व उवसग्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३३). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. २.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पास पासं०; अंति: पास जिणंदो नमसामि, गाथा-९. ३३२१८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२४.५४११, ३३४२१). १.पे. नाम. नवपद स्तवन-प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, क. जगमाल, मा.गु., पद्य, आदि: जपो जपो रे भविका नव; अंति: चितथी मत को विसारो, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. विमलजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ विमलजिन स्तवन, मु. लब्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: विमल वदन मन मोहें; अंति: मो मन कमल में सोहें, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. सुमति गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सुमतिजिन गीत, मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति जिणेसर साहिब; अंति: कहें एहस्युं मन लाउं, गाथा-३. ४. पे. नाम. चौदस्वप्न आदिजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन गीत-१४ स्वप्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुभ सुपनांतर प्यारा; अंति: नायक नवेलाउलकारा, गाथा-३. ५. पे. नाम. नवखंडापार्श्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-घोघामंडननवखंडा, वा. दान, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु श्रीनवखंडापास; अंति: दान० गरीब निवाज हो, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, पुहि., पद्य, आदि: मेरे साहिब तुम हीं; अंति: सुख संपति लहीइं, गाथा-५. ३३२१९. (#) स@जानु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १७X४५). शत्रुजयतीर्थमहिमा स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत वचने रे प्यारी; अंति: स्तवियो गीर सोहेकर, गाथा-२७. ३३२२०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १७४३५-४०). १.पे. नाम. फल वृद्धि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवृद्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परता पुरण प्रणमीइं; अंति: सेवकनें सांनिध करें, गाथा-२१. २. पे. नाम. पदमप्रभूजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपदमप्रभू राजियो; अंति: बिहू नैण हुआ धन्य धन, गाथा-५. ३३२२१. पासजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३०). १. पे. नाम. पासजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे साहिब पासजी; अंति: प्रभुपद अरबिंदा, गाथा-६. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३२२२. फलविधिपार्श्व छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, ११४४०). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवकां; अंति: अभयसोम० दायक भगति, गाथा-९. ३३२२३. वीसविहरमाननो तवन, संपूर्ण, वि. १९३१, आश्विन शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. चिमनलाल (गुरु मु. ग्यानचंद); गुपि. मु. ग्यानचंद (गुरु मु. जीवराज); मु. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १९४३८). २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: श्रीमंदरस्वामी वेदेह; अंति: चरण सीस बदो बारुवारो, गाथा-२५. ३३२२४. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १०४३९). १.पे. नाम. द्रमपप्फियाध्ययन सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: तेण वुच्चंति साहुणो, गाथा-५. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म उत्क्रष्टो दया; अंति: विषैतिके साध कहीए. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४८ www.kobatirth.org मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदिः काया पुर पाटण मोकली, अंति: सहजसुंदर० उपदेस रे, गाथा- ६. ३. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय - काया. मु. पदमतिलक, मा.गु, पद्य, आदि: वनमाली धणी अप करे, अंति: नित जोज्यो संभाली, गाथा ९. ३३२२६. जिन स्तव व स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ६, जैदे. (२४.५x१०.५, ९४२८). १. पे. नाम. अष्टप्रातिहार्याष्टकगर्भित स्तव, पृ. १ अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: स्तौमि वीर प्रभुम् श्लोक - १. ३. पे नाम, मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण जिन स्तव - अष्टप्रातिहार्याष्टकगर्भित, सं., पद्य, आदि: सुवर्ण सिंहासनं, अंतिः श्रीः श्रेणकस्येवसापि, श्लोक-३. २. पे. नाम. दीपावली पर्व स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण, " सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि, अंतिः विपदः पंचकमदः, श्लोक १. ४. पे नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अं ही कूर्म युगं अंतिः नीक्षध्वमेनजिनम्, श्लोक-१. ५. पे. नाम. नंदीवरद्वीप स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नंदीश्वरद्वीप महीपर, अंतिः प्रसादं निज दर्शनेन, श्लोक-१. ६. पे नाम, साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ३३२२९. (+) साधुप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२४४११, ११४३२-३६) "" सं., पद्य, आदि: गर्जितबधरी कृत ककुभा; अंति: सापि भृतानजलेन, श्लोक - १. ३३२२७. चौरगुणस्थान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-७ (१ से ७) =२, जैदे., (२४.५X११, १५X३४). 1 १४ गुणस्थानक विचार, प्रा., सं., पद्य, आदि: अथ प्रथम गुणस्थानके; अंति: (-), पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ३३२२८. आहार विचार, स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४.५X११, ३२x१९). १. पे. नाम, च्यार आहार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ४ आहार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१) हविं च्यार प्रकारना, (२) प्रथम अशन विचार लखी, अंति: सर्व अनाहार जाणवु २. पे. नाम. वीर स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः सीद्धारथ राजानो नंदन; अंति: नंदन जयजय श्रीमहावीर, गाथा- ७. ३. पे. नाम. राहुचक्र, पृ. १आ, संपूर्ण. राहुचक्र लोक, सं., पद्य, आदि: राहु प्राच्यां तथा अंतिः रहरा च तिष्ठति श्लोक-१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु, प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि अंतिः वंदामि "" २१४३९-४२). १. पे नाम, प्रथम प्रत्येकबुद्धनी स्वाध्याय, पृ. १७अ, संपूर्ण. जिणे चउवीसं. ३३२३०. चारप्रत्येकबूध स्वाध्याच संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७-१६ (१ से १६) = १ कुल पे. ५, जैवे. (२४.५x११.५, 3 " י करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी आदि चंपानगरी अतिभली हुं, अंतिः प्रणमें पाय पलाय रे, गाथा-५. २. पे. नाम. द्वीतीय प्रत्येकबुधनी स्वाध्याय, पृ. १७अ - १७आ, संपूर्ण. दूमराय- प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी कपीलानो धणी रे; अंति: नीतनी प्रणमुं पाय, गाथा-८. ३. पे. नाम. त्रीजो प्रत्येकबुद्धनी स्वाध्याय, पृ. १७आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयर सुंदरसण राय हो; अंति: समयसुंदर कहै साधुनै, गाथा-६. For Private And Personal Use Only 3 Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org ४. पे. नाम. चोथो प्रत्येकनी स्वाध्याय, पृ. १७आ, संपूर्ण. नीगइराय- प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुंड व्रधनपूर राजीओ, अंति: चोथो प्रतेकबूध हैं, गाथा ६. .पे. नाम. चार प्रत्येकबुद्ध स्वाध्याय, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि चिहूं दिसथी चारे आवी; अंतिः (-), (पू.वि. गाथा- २ तक है. ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३२३१. बलभद्रऋषी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८४४, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. थीरानगर, प्रले. पं. हंसविजय (गुरु पं. रविविजय गणि); गुपि. पं. रविविजय गणि (गुरु पं. केशरविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, १६३७). बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारीका हुंति निसर, अंति: ते पामे मोक्ष दूआरी, गाथा - २९. ३३२३२. सझाय व श्लोक संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) -२, कुल पे. २. पू. वि. प्रतिलेखकले पत्रांक नंबर नहीं लिखा है। परंतु प्रथम कृति अपूर्ण होने से पत्रांक नंबर २-३ काल्पनिक दीया है., जैदे., ( २४.५x९.५, १०x४३). १. पे. नाम. कठियारादृष्टांतेआत्महितोपदेश सझाय, पृ. २अ - ३अ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ३३२३७. दीक्षायोग्यअयोग्य विचार सह अर्थ, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२६४११, १३४४५). 3 " कठियारादृष्टांत सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्म, आदि (-); अंतिः परम पद जिम पांमीये, गाथा-७, (पू. वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. लोकसंग्रह प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदिः (-) अंति: (-), गाथा- १. ३३२३३. औपदेशिक सबैईआ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. वा. देव, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४११.५, , १२४४२). औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: संत सदा उपदेश वतावत; अंतिः प्रगट रहत न लखत जिन, गाथा- ९. ३३२३४. (-) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९२९ चैत्र शुक्र ११, श्रेष्ठ, पू. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, बे. (२४.५x११, १२४२५-३५). 3 भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ३३२३५. जिनकुशलसूरि स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, जैदे. (२४.५x११, १३४३३). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ,, मु. विनयलाभ, सं., पद्य, आदि: भूयिष्टायस्यकीर्त्ति, अंति: विनयलाभेन संतुष्टये, श्लोक - १०. २. पे नाम, श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण ३४९ दीक्षायोग्य अयोग्य विचार, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: अट्ठारसपुरिसेसुंवीस, अंति: सूंघइ ते सौगंधिका. दीक्षायोग्य अयोग्य विचार - अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुषमाहि अढार अयोग्; अंति: रहई अर्हयोग्य कहिया. ३३२३९. अजितशांति स्तवन व पद्मावतीमंत्र, अपूर्ण, वि. १८७०, फाल्गुन शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ७-५ (१ से ५)-२, कुल पे. २, ले. स्थल. हरिदुर्ग, जैवे (२४.५४९.५, १०४३७). .. १. पे नाम. अजितशांतितीर्थवृद्धय स्तवन, पृ. ६ अ-७अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा. पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आवरं कुणह, गाथा ४०, ( पू. वि. गाथा - २४ अपूर्ण से है. ) २. पे. नाम. पद्मावती जापमंत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only पद्मावतीदेवी जापमंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐहीँश्रीं क्राँ, अंति: सिध्यै कुरुस्वाहा. ३३२४०. मधुबिंदुआ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११, १४४४१) Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरण प्रमोद शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि: सरसति मुझ रे मात दिओ अंतिः परमसुख इम मांगीड़, गाथा - ६. "" ३३२४१. चैत्यवंदनभाष्य, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५x९.५, १४४४६). चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे, अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ४० अपूर्ण तक है.) ३३२४२. सुकोशलऋषि रास अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे. (२४.५x११, १३४३७). सुकोशलमुनि रास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रहि उठी रे भगवति, अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा - १७ अपूर्ण तक है.) ३३२४५. (+) प्रकरण व कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. श्राव. मकंदजी भीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२४.५x१०.५, १२x४४). 3 १. पे. नाम. विचारसारषत्रिशतिका, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा- ४४. २. पे. नाम. बावीसअभक्षबत्रीसानंतकाय कुलक, पृ. ३अ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कुलक, प्रा., पद्य, आदि: पंचुबर चउविगई हिम; अंति: परिहरिअव्वा पयत्तेणं, गाथा- ७. ३३२४६. पाखीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३-१२ (१ से १२) = १, जैदे., (२४.५x९.५, ८x२५). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (१) मिच्छामि दुक्कडं, (२) जेसिं सुयसायरे भत्ति. ३३२४७. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जै. (२५.५४१०.५ ११५३०). "" क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आवरि जीव क्षमागुण, अंतिः चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा - ३६. ३३२४९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, जैदे. (२४.५x१०.५, १९४२०). १. पे. नाम ऋषभ तवन, पृ. १अ संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, मु. खुस्यालचंद, रा., पद्य, आदि: सुभरी घडी हो प्रभु अंति कर जोडीने अरज करी, गाथा- ९. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि पिवा चल्या गिरवर कुं, अति हलाहल बेर बेर मरनी, गाथा-७. ३. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. " आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदिः आदीशर सुखकारी हो; अंति: प्रभू आवागवण निवारि, गाथा-५. ४. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकर सेवना; अंति: मोहन० भेट्यो अंग उदार, गाथा-७. ३३२५०. नमस्कार महामंत्र सह कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५x११.५, १०X३७). " नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं, अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद- ९. 3 नमस्कार महामंत्र- कल्प, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: व्यापारे फल मध्यमं, अंतिः पामिसि मीत्र करे. ३३२५१. () स्तोत्र संग्रह, सिद्धाचल स्तुति व श्रावकधर्मकृत्य, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ४, पू.वि. पत्रांक फटा हुआ होने के कारण पत्र क्रमांक अनुमानित दिया हुआ है., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १५X४८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि तिहुयण जणमणमोरगणरंजण, अंतिः पसीयह मुज्झ सयं धणीव, गाथा १५, (वि. पत्र फटा हुआ होने के कारण कर्ता नाम नहीं पढा जा रहा है. ) २. पे. नाम. पार्श्वजिन अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कीर्तिरत्न, सं., पद्म, आदि कल्याणकेलिसदनं महिमा, अंतिः सततं जिनपार्श्वनाथः, श्लोक ८. ३. पे. नाम. विमलगिरी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धाचल स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धो जत्थाइ चक्की, अंति: तित्त्थमेयं नमामि गाथा - १. For Private And Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३५१ ४. पे. नाम. श्रावकधर्मकृत्य, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, वि. १३१३, आदि: भेजुर्यस्याङ्घ्रियुग; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम श्लोक है.) ३३२५७. (#) थूलभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १७४३५). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोस्या कामिनि कहे; अंति: गुण गाणरि तस हसी रे, गाथा-२२. ३३२५८. प्रवचनसार सह छाया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. द्वितीय अधिकार के द्रव्यविशेष चर्चा अंतर्गत की गाथाएँव उसकी संस्कृत छाया का संकलन किया हुआ है., जैदे., (२४.५४११, २१४६०). प्रवचनसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. प्रवचनसार-छाया, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३३२५९. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११,७४३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: तवेण पडिसद्धई, गाथा-५०. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: तपइ करि सुद्ध थइ छइ. ३३२६०. कुलक व श्रावकानामादि विचार संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, ४४४२). १. पे. नाम. दशश्रावककुलक सह टबार्थ, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१४ अपूर्ण तक नहीं है. १० श्रावक कुलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भणियं सुसाहुधीरेहिं, गाथा-१७. १० श्रावक कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुसाधुधीरे पुरुषे. २. पे. नाम. श्रावकबारव्रत भांगा, पृ. २अ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: भगवती सूत्रना ७ मां; अंति: दान द्यइ इत्यादिक. ३. पे. नाम. विविधआगमसूत्रे श्रावकनाम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्रावकनाम विविधआगमसूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयांस श्रावक १; अंति: सूत्रमध्ये कह्या छइ. ४. पे. नाम. वीसस्थानकपद गाथा सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. २० स्थानक नाम, प्रा., पद्य, आदि: (१)इमेहियणं वीसाए कारणे, (२)अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: तित्थयरत्तं लहइ सोउं, गाथा-३. २० स्थानक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए आगलि कहीस्सइ तेणे; अंति: जीव तीर्थंकरपणु पामइ. ३३२६२. ढंढणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. नरसींघजी (गुरु मु. केशवजी); गुपि. मु. केशवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०,१४४४०). ढंढणऋषि सज्झाय, मु. प्रेममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेशर वादिने; अंति: गावतारे गावता जयकार, गाथा-२१. ३३२६४. (#) चतुर्विंशतिजिन १३८ भवकथन स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४८). चतुर्विंशतिजिन पूर्वभवकथन स्तव, ग. संघविजय, सं., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पार्श्व; अंति: हितविधौ सुरशाखिशाखा, श्लोक-२७. ३३२६५. (+) साधारणजिन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७१४, फाल्गुन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. खंभायतिबंदर, प्रले. पं. अमरविजय गणि (गुरु आ. विजयानंदसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. विजयानंदसूरि (तपागच्छ); पठ. मु. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १८४४८-६३). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाःप्रभो यं विधिना; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. साधारणजिन स्तव-वृत्ति की अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: हे प्रभो सत्वमया; अंति: द्विचत्वारिंशताधिकम्, ग्रं. १४२. For Private And Personal use only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३२६६. गौतम व पुण्य कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. मांडण ऋषि (गुरु मु.कीका ऋषि); गुपि.मु. कीका ऋषि; पठ. श्रावि. कन्हा बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४३२-३६). १.पे. नाम. गौतम कुलं सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर लक्ष्मी; अंति: राखिवउ अनंतसुख पामइ. २. पे. नाम. पुन्य कुलं, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्त; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पंचेद्रीयपणउ मनुष्य; अंति: शाश्वता मोक्षना सुख. ३३२६७. नेमिजिन स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. महिमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १३४४३). १. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: नेमजी हो पेखी पशु; अंति: लाल ऋद्धिहर्ष करजोडी, गाथा-२०. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३३२६९. आत्मानुशासन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, ९४३३). औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडला रे जीवडला; अंति: कहे० चढत सवाई रे, गाथा-११. ३३२७०. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. पं. मुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३२-३४). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: पुव्वुप्प० विणासंति, गाथा-३९. ३३२७१. नवकारसी-पोरसीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३३). नवकारसी-पोरसीसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गएसूरे नमुक्कार; अंति: आगारेणं वोसिरामि, संपूर्ण. नवकारसी-पोरसीसूत्र-बालावबोध, सं., गद्य, आदि: उद्गते सूर्य नमस्का; अंति: कारणं स एवाकारः, संपूर्ण. ३३२७२. पक्खीपडिक्कमणविधि व चरण-करणसित्तरी गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२३, ?, फाल्गुन कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. विरमगाम, जैदे., (२५४११, ४४३३). १. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमणविधिगाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-पाक्षिकादिप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुहपत्ति वंदणय; अंति: पक्खिपडिक्कमणं, गाथा-३. पक्खीचोमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तुक कह्या पछी; अंति: ए पाखि पडिकमणो. २. पे. नाम. चरणकरणसप्तत्ति सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय ५ समण धम्म १०; अंति: चेव करणं तु, गाथा-३. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात १ मृषा; अंति: ते करणसत्तरी जाणवी. ३३२७४. गौतमपृच्छा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, ११४२९). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ तक है.) ३३२७६. नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, १२४३१). नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वचन सुधारस वरसति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-३६ तक ही है.) ३३२७७. वीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १४४३९). महावीरजिन स्तवन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नंदन कुंतीसला; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) For Private And Personal use only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३५३ ३३२७८. नवतत्त प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४४, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१५ तक नहीं है.) ३३२७९. सूरिमंत्रपूजा विधि व सूरिमंत्र स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १२४२८-३१). १.पे. नाम. सूरिमंत्रपूजा विधि, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भैरुत्रयं पठिष्यति. २.पे. नाम. सूरिमंत्र स्तोत्र, पृ. ४-५आ, संपूर्ण. सूरिमंत्र स्तव, प्रा., पद्य, आदि: पढमपए सुनिविट्ठा; अंति: निट्ठिअकम्मट्ठिअ, गाथा-२०. ३३२८०.(-) स्तुति संग्रह व आदिनाथ चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १३४२३). १.पे. नाम. स्तुति संग्रह, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१९, (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. आदीनाथ चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ३३२८१. श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५४). श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: समस्त संपत्तिसमूह; अंति: ज्यां हरइ समुपल टसइ, गाथा-७७. ३३२८२. चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७७५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४११.५, १७७५५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३३२८३. मौनएकादशी गणणु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १८४४७). मौनएकादशी गणj, सं., को., आदि: महाजस सर्वज्ञाय नमः; अंति: आरण्यकनाथाय नमः. ३३२८४. स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४६६). १.पे. नाम. स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे शांतिजिणस्यु; अंति: निजरे जोवो वारंवार, गाथा-७. २. पे. नाम. स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: आज थकी पामी घणी; अंति: प्रभु देयो नवल दीदार, गाथा-६. ३. पे. नाम. स्तवन सीमंधरस्य, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: शासनपति अंतरजामी नित; अंति: अपणायति जाणि रहीयो, गाथा-११. ४. पे. नाम. १० सुपन स्वध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. १० स्वप्न सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: तेणी काले ते समे सखि; अंति: निजगुरु चर्णे लाग, ढाल-२, गाथा-११. ५. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वैरागीयो हो; अंति: अम्मा होवै जै जैकार, गाथा-१२. ३३२८५. संखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १४४४०). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समरथ साहिब सांवलो; अंति: कल्याण सानिधि करई, गाथा-२०. ३३२८६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १४४४०). १. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन मल्लिनाथ को; अंति: इम राम कहे शुभ सीस, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी के दरबार चलो अंति: मोहे बंछित पूरणहार, गाथा-५. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पारकर देस; अंति: होस्यु सीवरमणी रसीया, गाथा- ७. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अचिराना नंदन उलगुं; अंति: सीस राम लहे आणंद हो, गाथा- ७. ३३२८८. पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२४.५४१०.५, १५४५३). १. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. २. पे. नाम. स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद शिष्य, मा.गु., पच, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि अंतिः पूरवड मनह जगीस ए. गाथा - ७, (वि. दो-दो गाथा एक गाथा के रूप में गिनी गई है. ) - www.kobatirth.org ३३२८९. गुहली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, ११४३३). पार्श्व चंद्रसूरि गहुली, मु. श्रीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: गछ पासचंद सूरिस्वरू; अंति: ते लहे सुजस विलास हो, गाथा - ११. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३२९२. (+) अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, १५×६३). अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: मूलनायक पवासणाधश्च अंतिः एकाहारी ब्रह्मचारी. ३. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष, पृ. १आ, संपूर्ण. ३३२९३. (+) सूयगडांग हिस्सा, सामायिक ३२ दोष व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५x१०.५, १४४४७). १. पे नाम. सूयगडांगसूत्र, पृ. १९अ १आ, संपूर्ण. आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. श्रुतस्कंध - २, अध्ययन- २ का कुछ पाठ दिया हुआ है.) २. पे. नाम गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: कायाना १२ दोष पालठी अंतिः करइ भक्तिरहित करइ. ३३२९४. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्रभाषा व चौदनियम विवरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३- २ (१ से २) = १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५.५x११, १०x४३). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर भाषा, पृ. ३अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा ४. २. पे नाम, गीतं, पृ. ९अ. संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र - पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंतिः कारन समकित शुद्धि, गाथा- ४४, (पू.वि. गाथा- ३७ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. चौदहनियम गाथा विवरण, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा- विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त१ वस्तु को; अंति: पांचे तिथि छोड.. ३३२९५. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., ( २४.५X११, १८x४२). १. पे नाम, गीतं, पृ. ९अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुखदायक सुख एव जगत, अंति: की करत वनारसि सेव, For Private And Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३५५ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन उलटी चाल चाले; अंति: चढ बेठे ते निकले, गाथा-४. ३. पे. नाम. गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: दुविद्या कबजे है या; अंति: वलि वलि वाछिण की, गाथा-४. ४. पे. नाम. आध्यातम गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: हम बैठे अपने मौन; अंति: सुरझै आवागौनसों, गाथा-४. ५.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधुं क्या सोवै तन; अंति: नाथ निरंजन पावै, गाथा-४. ६.पे. नाम. आध्यातम गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: आसा ओरन की क्या; अंति: देखे लोक तमासा, गाथा-४. ३३२९६. पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १८४५३). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रत्नसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंद दयाल के अंति: पहंचै मनरली हो, गाथा-१०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, वा. तेजस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामण पासजी रे; अंति: तवने ए गुण गावुरे. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वीरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिसर वीनती; अंति: भव भव ताहरो हो सरण, गाथा-८. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-पुरिसादानी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मनगमतो साहिब मिल्यो; अंति: न को बीजो चित्तन रे, गाथा-५. ३३२९७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १४४३०). १.पे. नाम. गणधर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिनगणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वति आपो सरस वचन; अंति: वृद्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नवनिध आपे नवलखो दोलत; अंति: सदा पामे परम विलास, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानभूषण, मा.गु., पद्य, आदि: फूलडे चंगे लाउरे; अंति: मुने उतारो भवपार बे, गाथा-४. ३३२९८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३०). १.पे. नाम. गीत-शीतलजिन, पृ. १अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतल रमो मन मोरडइरे; अंति: तुम पद ध्यान रे, गाथा-५. २.पे. नाम. नेमनाथ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो सुणो रे नेमजी; अंति: किरतविजइ सुख पायो रे, गाथा-८. ३३२९९. स्तवन संग्रह व क्रोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १५४४२). १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नणंदल हे नणदल सीधारथ; अंति: प्रीत० गुण गाय नणदल, गाथा-१५. २.पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५६ www.kobatirth.org मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल वांछित फल्यो; अंति: आवई यू सदा सदोडी, गाथा-५. ३३३००. कायाकुटुंब गीत सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११.५, ७X३५). मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न कीजे हो भविअ, अंति: कहे मोहन वचन अभिराम, गाथा-५. ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु, पद्य, आदि: नाहलु न माने रे काइ: अंतिः पंडित अर्थ विचार, गाथा ११. औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावनामांहि, अंति: अर्थ पंडिते विचारवो. ३३३०१. ज्ञानपच्चीसी व पद संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे ३, जैदे. (२५.५४११, १४४४९). "" कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम ज्ञानपंचवीसी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ज्ञानपच्चीसी, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरि जग जोनिमइ, अंति: उदय करन के हेत, गाथा - २५. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रव. भीम साह, मा.गु., पद्य, आदि उठो उठो उद्यम करो, अंतिः भीम० निद्रा सुवो नही, गाथा- ३. ३. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, (२५.५X११, २१x६३). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रव. भीम साह, मा.गु., पद्य, आदि: नवल तुरंगम नवो नेह, अंतिः एतासु गाढ न कीजीई, गाथा-३. ३३३०२. नेमराजुल लेख व शेत्रुनु तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, १५X४८). १. पे नाम, नेमराजुल लेख, पृ. १अ १आ, संपूर्ण नेमराजिमती लेख, मु. जससोम, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्तिश्री जदुपति, अंति: गढ गिरनार सुठाम गाथा - २१. २. पे. नाम. शेत्रुनु तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजगिरि भेट, अंतिः प्रभु ए भव तारु रे, गाथा- ७. ३३३०३, (४) स्तवन संग्रह व चोरपृच्छा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., मु. रामविजय, मा.गु, पद्य, आदि: ताहरी मुद्रानी बलिहा, अंतिः रामे आनंद पायो रे, गाथा-५, २. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुनि साद प्यारा बे; अंति: राम लहे जयकारा रे, गाथा-७. ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदिः धूम परि द्वारि चलो, अति मोहि बंछित पूरनहार, गाधा-१०. ४. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु, पद्य, आदि हुं तो आव्यो राजि, अंतिः राम कहे शिरनामी रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. चोरपृच्छा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति पत्र के बायें हिस्से के रिक्त भाग (हाशिया) में लिखी गई है. ज्योतिष, मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. चोरपृच्छा श्लोक-१.) ६. पे. नाम. नेम बारमास, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: घन गुहि रे कारी घटा, अंति: सुजस सघले होइ, गाथा- १२. ७. पे नाम, नेमजिन बारमासो, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. 1 नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदिः उंचो गढ गिरनार को; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १९ पर्यन्त है.) ३३३०४. सम्यक्त्वपूर्वक १२ व्रत आरोपण विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जै. (२५x११, १८४६३-६७). सम्यक्त्वादिव्रत आरोपण विधि, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि (१) तच्छाईए सम्मत्तारोवण, (२) चिइ १ संति सत्तावीसा अंतिः ते उचराववो पूर्ववत्. ३३३०५. जिनचंद्रसूरि स्तव व पार्श्व स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जैदे. (२५x१०.५, २१४५९). १. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३५७ सं., पद्य, आदि: यतिनां प्रभुः पृथु; अंति: श्रीजिनचंद्रयतीश्वरः, श्लोक-२५. २. पे. नाम. पार्श्व स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, ग. धर्मकीर्ति, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं कमला; अंति: गणि धर्मकीर्तिना, श्लोक-५. ३३३०६. (+) मृगापुत्र तणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १६x४९). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीव नयर सुहामणो; अंति: होजो तास प्रणाम रे, गाथा-२२. ३३३०७. सेवेंज स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२५४११.५, १०४३०). १.पे. नाम. सेज स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कोइ सेजे राय बत; अंति: ज्ञानविमल० गावेरे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पांडुर पान थके परिपा; अंति: पुन्ये पोहचे जगीसोजी, गाथा-७. ३३३०८. सज्झाय संग्रह व सुभाषित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४६). १.पे. नाम. नवपद सीझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदंबा प्रणमी कहू; अंति: तिलकविजय जयकारीजी, ढाल-३, गाथा-२१. २. पे. नाम. सीतासतीशील सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीयलविणे, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती भलती घणी रे; अंति: भावे प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ पर्यन्त है.) ३३३०९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३७). १. पे. नाम. सुपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हो मेह बपीहडां; अंति: सुपार्सने हो राजि, गाथा-७. २. पे. नाम. पद्मप्रभू स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम रस भीनो म्हारो; अंति: पूरे सकल जगीश हो, गाथा-७. ३३३१०. सजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. सिणगारदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४७). आदिजिन स्तवन- शत्रुजयमंडन, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति आपुंभली; अंति: दयाकुशलसीस बोलइरे, गाथा-१६. ३३३११. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. तृतीय अध्ययन प्रथम गाथा तक है., जैदे., (२५.५४११, ५४३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० जीवनइ दुर्गति; अंति: तीर्थंकरनु प्ररुप्यु, अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३३३१३. (+) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सोजत, प्रले. मु. किशोरचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १६४४७-४८). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. For Private And Personal use only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: एहवा श्रीपार्श्वनाथ; अंति: क० कल्याणमाला संपजै. ३३३१४. चौवीसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, १५४३७-३८). २४ जिन स्तवन, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४९, आदि: कमलदल समलोचना चंद्र; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४८ अपूर्ण तक है.) ३३३१५. चतुर्विंशतिजिनानां स्तोत्र व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. हाजीपुर पट्टणा, जैदे., (२५.५४११.५, ९x४८). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: नाणपंचमी नाणपंचमी; अंति: महिमा न लहुं पार, गाथा-४. २.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनानां स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुरकिन्नरनागनरेंद्र; अंति: मले राजहंसं समप्रभम्, श्लोक-५. ३३३१६. (+) वीरजिन स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, फाल्गुन, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. अमरविजय (गुरु ग. मानविजय); गुपि.ग. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., गु., (२५४११, ४४४२). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्नान कराव्यु छि; अंति: कार्यनी सिद्ध प्रति. ३३३१७. (+) वर्द्धमान विद्या, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६x४५). वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. सिंहतिलकसूरि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: श्रीवीरं जिनं नत्वा; अंति: प्रस्तुतं वच्मि, श्लोक-६५, (वि. कर्ता के नामोल्लेख वाले एवं कुछ अन्य श्लोक नहीं लिखे हैं. प्रतिलेखक ने परिमाण श्लोक-६५ लिखा है. प्रतिलेखक द्वारा श्लोक संख्या लिखने में भूल के कारण यह अंतर दिखता है, अपितु कृति परिमाण में सामान्य फर्क ही है.) ३३३१८. जिन स्तुति संग्रह व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५४३४). १.पे. नाम. जिनस्तुति संग्रह, पृ. २अ-२आ, पूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. जिनस्तुत्यादि संग्रह*, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पार्श्वनाथाय तायिने, श्लोक-२०, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चइतवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ३३३१९. अष्टप्रकारी पूजा काव्यानि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३९). ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: विमल केवल भासन; अंति: मूलं दर्शनं सल्लभंति, श्लोक-९. ३३३२०. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ९४२९). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: जोग जुगति जाण्या; अंति: विना गिणती नवि आवे, गाथा-४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज सखी मेरे वालमा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक उपलब्ध है.) ३३३२१. (+#) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३० अपूर्ण तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ६४५०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-). नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-). ३३३२३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १४४४५). १.पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. शीलनववाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पशुपंड तणी रे; अंति: विजैदेवसूरीस कै, गाथा-१३. २. पे. नाम. परनिंदानिवारक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३५९ परनिंदात्याग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मकर हो जीव परतात; अंति: एह हित सीख माने, गाथा-९. ३. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: प्रीतविजय० तणा पास, गाथा-५. ३३३२४. चउसरण कुसलाणुबंधियनामाज्झयण व व्याकरण के सूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, पठ. मु. जसवंत ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र के दोनों तरफ के हाशिए कटे होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., जैदे., (२५.५४११, १९४५०). १.पे. नाम. चउसरण कुसलाणुवंधियनामाज्झयणं, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २.पे. नाम. व्याकरणगत सूत्र विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. व्याकरण", सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अति: (-). ३३३२५. शत्रुजय रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-३(१ से ३)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४११.५, १०४२९). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४२ अपूर्ण से गाथा-१०८ अपूर्ण तक है.) ३३३२६. पुन्य कुल सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४१०.५, १३४३२). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपुन्न इदियत्तं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: संपुन्नं संपूर्ण इंद; अंति: प्रभूत पुन्य कहीयई. ३३३२७. गाथा संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. पार्वती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ७X४३). जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-९, (वि. चैत्यवंदना करते समय के १९७ बोल विचार.) जैन गाथा का बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे पहला सोल आगरा; अंति: सत्ताणुं बोल साचवइ. ३३३२८. नंदीविधि व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३६). १.पे. नाम. नंदि विधि, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. नंदी विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिख्या पसाउ करउ. २. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. संयम के सत्रह प्रकार, ब्रह्मचर्य ९ गुप्ति एवं वैयावच्च के १० भेद नाम विचार.) ३. पे. नाम. करणसत्तरीचरणसत्तरी गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. चरणसत्तरी-करणसत्तरीगाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय समणधम्म संजम वेया; अंति: चेव करणं तु, गाथा-२. ३३३३१. (+) साधारणजिन स्तुति व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३७). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ साधारणजिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमन् धर्मः श्रय; अंति: श्रियं देहि मे, श्लोक-८. २. पे. नाम. श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३३३३३. साधारणजिन आरती, स्तवन व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १३४४५). १. पे. नाम. आरति, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ साधारणजिन आरती, मु. द्यानत, मा.गु., पद्य, आदि: इहिविधि मंगल आरति; अंति: सुरग मुक्ति सुखदानी, गाथा-८. २.पे. नाम. द्रुपद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन द्रूपद, मु. गुणविलास, पुहि., पद्य, आदि: कौन शिखर चढि जैलो; अंति: शिवमै मेलो व्हेलो, गाथा-६. For Private And Personal use only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. होरी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरी, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन खेलो होली; अंति: खेलौ इनविधि होरी, गाथा-४. ३३३३४. (+) पंचपरमेष्टिरक्षा स्तवन, गाथा संग्रह, श्लोक व विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ११४५०). १. पे. नाम. पचपरमेष्टिरक्षा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३. पे. नाम. श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. ___सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४.पे. नाम. व्रत संबंधि विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. अपूर्ण जैन काव्य/चैत्य/स्त/स्तु/सझाय/रास/चौपाई/छंद/स्तोत्रादि*, प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., व्रत विषयक कृति है. प्रारंभिक कुछ अंश मात्र लिखा है.) ३३३३५. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.४४१०.५, ११४३७). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं नमो; अंति: (-). ३३३३६. (+) गुर्वावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०, १६x४०-४२). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: दसाणकप्पाणुववहारे, श्लोक-१३. ३३३३७. वीरसतिनामाध्ययन-सूत्रकृतांगसूत्रे, संपूर्ण, वि. १९६३, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बीकानेर, जैदे., (२५.५४११, १३४४४). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. ३३३३८. संस्तारक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. प्रेमसागर; पठ. सूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ३२४१९). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१२. ३३३३९. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, १५-१८४३९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२७. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउ जीवतत्व बीजउ; अंति: ए निश्चय जाणिवउं. ३३३४०. (-) चौवीसजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११.५, १४४२५). चतुर्विंशतिजिननमस्कार स्तवन, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलाहत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरजिननेत्रयोः, श्लोक-२६. ३३३४१. सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८३, कार्तिक शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. ग. दानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३४). सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुथी बांधी प्रीतड; अंति: मुजने वालो जिनवर एह, गाथा-७. ३३३४२. यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४११, १०४३२-३४). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. पगामसज्झायसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: वंदत इति वा वंदयेत्, (वि. प्रत का उपरी भाग जीर्ण होने के कारण आदिवाक्य नहीं पढ़ा जा रहा है.) ३३३४३. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५,७४२०). १. पे. नाम. गोडीजी स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, चंदा, मा.गु., पद्य, वि. १८००, आदि: पारकमाहे स्वामी तुं; अंति: तो प्रभुजीनो बंदा, गाथा-१३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३३३४४. (+) त्रयोदस काठिया, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४३६). १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जे वट पारै वाटमै करै; अंति: दसा कहियै तेरह तीनि, गाथा-१७. ३३३४५. पुंडरीक पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १७४६१). ___ पुंडरीकगिरि पूजाविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पूर्वं सकल श्रीसंघ; अंति: २००० गुणनं कर्तव्यं. ३३३४६. (+#) वीरत्थुति अध्ययन - सूयगडांगसूत्रे, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १२४३९). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्सति त्तिबेमि, गाथा-२९. ३३३४७. चक्रवर्तिऋद्धि, आठ मंगल व अनानुपूर्वि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, १९४३५-४४). १. पे. नाम. चक्रवर्तिनी ऋद्धि, पृ. १अ, संपूर्ण. चक्रवर्तिऋद्धि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: छ खंड भरतक्षेत्र; अंति: सात पंचेंद्री जाणवा. २.पे. नाम. आठमंगलिक नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. अनानुपूर्वी विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. अनानुपूर्वी गाथा यंत्रसहित, प्रा., पद्य, आदि: जंछम्मासिय वरसिय; अंति: गुणणे तय खणद्धेण, गाथा-१. ३३३४८. (+) जीवप्रतिशिक्षा सज्झाय व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४४). १.पे. नाम. जीवप्रतिशिक्षा, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवहितशिक्षा, ग. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: समता रस मनि आणे; अंति: ते जिनधर्म प्रसाद, गाथा-८. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. दहा संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीय गाथा अपूर्ण तक है.) ३३३४९. पडिकमणा विधि, अपूर्ण, वि. १८९९, फाल्गुन कृष्ण, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. कृष्णगढ, पठ. श्रावि. जडावबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १ से ३ दिया है जो गलत होने से प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक क्रमांक २ से ४ दिया गया है., जैदे., (२५४११.५, ७४२५). प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तीन नवकार गुणीजे, (पू.वि. सामायिक पारने की विधि ३३३५०. गुणस्थानक्रम व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १५४३९-४६). १.पे. नाम. गुणस्थानक्रम, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, वि. १७७१, कार्तिक कृष्ण, १०, ले.स्थल. कर्मवाटी, प्रले.मु. धनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६. २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण, प्रले. पं. धनजी, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private And Personal use only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिष, मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (वि. चंद्रवासो एवं लग्नाढ्या नामक लघुकृति.) ३३३५१. (+) क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) = ४, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११.५, १५X३१). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३४ अपूर्ण १९८ अपूर्ण तक है.) ३३३५२. (+) कर्मग्रंथ ६-सप्ततिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., गाथा-५८ से ६८ तक है., प्र. वि. पत्रांक वाला भाग नहीं होने से काल्पनिक अंक दिया हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५x१०.५, ५X४२). सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी- ९४वी, आदि: (-); अंति: (-). सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३३५३. सुवधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५x११, १५४४९). सुविधिजिन स्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: श्रीयसुवधिजिणंद, अंति: गुण देवाधिदेवना रे, ढाल - २, गाथा - २६. ३३३५४. भगवतीसूत्र - शतक १० के उद्देश ४-५, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२५.५x११, १९५०). " भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३३५५. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. भक्तिधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १४X३८). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-१२. ३३३५६. पद्माअष्टक व सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. भामोलाव, प्रले. मु. जीवणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, १२X३०). १. पे. नाम. पद्मा अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी अष्टक - इलमपुरमंडण, मा.गु., पद्य, आदिः प्रह उठी नित्य प्रणम, अंति: मंडणो नाम परमानंद, गाथा-८. २. पे नाम. पार्श्वजिन सवईयो, पृ. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन सवैयो, चंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भाव कुं जाण पिछाण; अंति: चंद्र० वदिया तर थारी, गाथा - १. ३३३५७. कुमुदचंद्र - देवसूरिवाद व जैन श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५x१०.५, १५X४५). १. पे. नाम. कुमुदचंद्र - देवसूरिवाद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. कुमुदचंद्र देवसूरिवाद - दिगंबरमतखंडन, प्रा. सं., पद्य, आदि: हंहोश्चेतपटाः किमेष: अंति: (१) मयमेवं देवसूरीणम्, (२) नग्गो वलि नग्गो किओ श्लोक-१३. २. पे. नाम. जैनश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: (-): अंति: (-), श्लोक-२. ३३३५८. (०) पाक्षिक स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. शिहविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे, (२५४१०.५, ८४२७). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३३३५९. महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सुखविजय, " प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३५). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. पाक्षिकस्तुति - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चोसठि इंद्रइं न्हवरा, अंतिः प्रतिमंगलीक प्रति. ३३३६० (+) ज्ञानपंचमी स्तुति सह टीका, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, खीमेल, प्रले. मु. चिमनसागर (गुरु 1 ग. फतेंद्रसागर); गुपि. ग. फतेंद्रसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें त्रिपाठ. कुल ग्रं. १३२, जैवे. (२५४११, १५X४६). लोक-४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रीनेमिः पंचरूप, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, . For Private And Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टीका, ग. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: श्रीनेमिः पंचमीसत्तप; अंति: (१)श्रग्धरासाप्रसिद्धा, (२)संख्यास्तुतेरियम्. ३३३६१. सझाय, श्लोक, गीत व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१०.५, १७४४७). १.पे. नाम. आत्मप्रतिबोध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: आपणपो संभालीयइरे; अंति: केशव सूविचार रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहो, मा.गु., पद्य, आदि: कसतूरी मृगमां वसि; अंति: हिरा मन वसि घट माहि, गाथा-१. ३. पे. नाम. केशवजी आचार्यपद गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. केशवजी आचार्यपदस्थापन गीत, मु. किसन, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: श्रीसुरत मदरि सदा; अंति: गोगदानगर मझारो जी, गाथा-१४. ४. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: बेकरजोडी वीनवीरे; अंति: जनराजरे दयाला राय, गाथा-५. ३३३६२. सर्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १९४४२-४४). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ३३३६३. (+) औपदेशिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ४४३५). औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अक्रोधवैराग्यजितेंद; अंति: दुप्पवेसं एगनिखमणम्, श्लोक-१०. औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अ० अक्रोधीपणु; अंति: पेसवु ए०एक नीकलवं. ३३३६४. (+) पौषध सज्झाय, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५४३६). पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३३ अपूर्ण तक है.) ३३३६६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७२, आषाढ़ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. आंबोरी, प्रले. पं. नथमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०, १३४४३-४५). १. पे. नाम. सेजाजीरो स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन बृहत्-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिवि सयल जिणंद; अंति: जिम पामो भवपार ए, गाथा-२२. २.पे. नाम. काप्रेडामंडण पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कापडहेडा, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: कापडहेडा सै धणी रे; अंति: हरष० विघन विहंडणो, गाथा-११. ३३३६८. (+) सूर्यचंद्रमंडल विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १९४७७). १. पे. नाम. चंद्रसूर्यमंडलविचार प्रकरण, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: इह दीवे दुन्नि रवी; अंति: वुड्डिहाणीसु, गाथा-२४. २. पे. नाम. सूर्यचंद्रमंडल विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: जंबूदीवे १८० योजनान्; अंति: (-). ३३३६९. (+) नेमिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४९). नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, म. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसे नेमकुमर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २२ गाथा३ अपूर्ण तक है.) For Private And Personal use only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३३७०. सझाय, श्लोक, स्तुति संग्रह व जिननमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५x१०.५, १७३९). १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. www.kobatirth.org मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदिः उंचो गढ गिरिनारनौ; अंति: भेट्या पुगी आस हो, गाथा-८. २. पे. नाम. सुभाषित गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: हल हलवो भुई पतली; अंति: हाथी कीयो निदाण, गाथा- १. ३. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, प्र. १आ, संपूर्ण मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि आज सखी दिन सोहीला, अंतिः भीं भी हुं पाव, गाथा- ७. ४. पे. नाम. जिन स्तुति संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. १४४४७). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. परमात्म स्तुति, सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: हन्यते जिनदर्शनात्, श्लोक-१०. ५. पे नाम. अढाईद्वीपतीनचोवीसीजिन नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. शाश्वतअशाश्वतजिन नमस्कार, मा.गु., गद्य, आदि: तीनचौवीसी बहोत्तरी, अंति: त्रिकाल नमस्कार छै. ३३३७१. महावीरजिन स्तव, कुलक, स्तुति व पूजोपकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैये. (२५.५४१०.५, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे. नाम. पुजोपकरण, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमोऽर्हते भगवते स्वय; अंति: त्रिजगत्स्वामिने नमः, श्लोक-१७. २. पे. नाम. नवभिकुलक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. जिनेश्वर स्तुति - विशेषणमय, सं., पद्य, आदि: शौडीर्यवान् गज इव, अंति: लोकोधिपतिस्तेजसामिव श्लोक- ९. ३. पे नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. परमात्म स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. पूजोपकरण नाम, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३३७२. (+) नेमराजिमती ९भव वर्णन श्लोक सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X१०.५, ११x४०). नेमराजिमती : भव वर्णन श्लोक सं., पद्य, आदि लक्ष्म्यै स्ताद्धन, अंति: नेमिस्तु९ राजीमती९ श्लोक-१. ९ , मराजिमती : भव वर्णन लोक- अर्थ, सं., गद्य, आदि: भगवतः केवलज्ञानोत्प, अंतिः श्रीनेमिः राजिमती च. ३३३७३. प्रस्तावपंचविंशतिका व कलियुगाष्टक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २)=१, कुल पे. २, जैवे. (२६.५x११.५, १६X३७). १. पे. नाम. प्रस्तावपंचविंशतिका, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. तेजसिंह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पंचविंशतिका वरा, (पू. वि. गाथा - १७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, कलियुगाष्टक, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि: तुर्य्यांरांतेपि अंतिः कलौ युगाष्टकः, श्लोक - ९. ३३३७४. नवकार रास, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. धनश्रीजी (गुरु सा प्रेमश्रीजी); गुपि. सा. प्रेमश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, १५X४०-४३). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलाजी लेसि अरहंतनउ; अंति: भुवनमाहे एही ज सार, गाथा-१६. ३३३७५. शारदाछंद व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. ऋषि मावजी की प्रति के ऊपर से प्रतिलिपि की गई है., जैदे., (२५.५X११.५, १८४५३). १. पे. नाम. शारदाद्वादशमासोछंद स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. भूधर ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ नमो देवाधिदेवं ताम, अंतिः भूधर सुमत्ते गणो, गाथा- १६. २. पे नाम, सारदा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, For Private And Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: वाग्वादिनी नमस्तुभ्य; अंति: निर्मलबुद्धि मंदरम्, श्लोक-७. ३३३७७. (#) वंदेत्तु सावक की, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. भुसौ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३२). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चोबीसं, गाथा-५०. ३३३७८. नवकार बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७५२, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ६-२(४ से ५)=४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११.५, १४४५०-५२). ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: बारस गुण अरिहंता; अंति: सुश्रावक सुश्राविका. ३३३७९. पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १६-१८४४७). पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसीह, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचनदि सरसति एह; अंति: धर्मसिअ धने धरण, गाथा-२९. ३३३८०. (+) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १७४६०). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश २ गाथा १ अपूर्ण तक है.) ३३३८१. स्तुति, एकलयध्यान पुन्य व व्याकरण संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४१). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-जेसलमेर, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन जेसलमेर जुहा; अंति: तुंद्यइ मंगलमाला जी, गाथा-४. २. पे. नाम. एकलय पुन्यमान, पृ. १अ, संपूर्ण. एकलयध्यान पुन्यमान, मा.गु., पद्य, आदि: कोडि पूजा करता; अंति: एकइं ध्यानइं पुन्य, पद-३. ३. पे. नाम. व्याकरण संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३३८२. (+) चौराशी आशातना सह टबार्थ व कषाय विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ९-१२x२७-३६). १.पे. नाम. चउरासी आशातना सह टबार्थ, पृ. ११-१आ, संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं १ केली २ कलि ३; अंति: जुजुओ वजे जिणिलए, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्लेषार क्रीडार कलह३; अंति: उद्यमवंत हुंतउ भव्य. २. पे. नाम. १६ कषाय विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३३८३. जैन बाराखडी व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. दयालदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, २२४७२). १. पे. नाम. जैन वाराखडी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. बारहखडी छंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम नमो अरिहंत को; अंति: छंद कहे छत्तीस, गाथा-७७. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३३३८४. महावीरजिन चौढालिया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४४१०, ११४३६). For Private And Personal use only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir वीर स्तुति, पति ,मा.गु., अपूर्ण, वि. ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धार्थ कुल ऊपनों; अंति: कीयो दीवाली दिन ए, ढाल-४. ३३३८६. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३०). १.पे. नाम. नेमजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदीय पाय; अंति: करो अंबिका देवयां, गाथा-४. २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि तीर्थ; अंति: जीव सुख संपति वरै, गाथा-४. ३३३८७. ऋषभपंचाशिका व शत्रुजयतीर्थ कल्प, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १८४५४). १. पे. नाम. रुषभपंचाशिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा-५०. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ कल्प, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुअ धम्मकित्तिअंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३३३८८. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x११, २१४६६-६८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*,संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (अपठनीय), (वि. किनारा खंडित होने से अंतिमवाक्य नहीं भरा है.) ३३३८९. चौवीसदंडक स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, १३४५१). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूरि मनोरथ पासजिणेसर; ____अंति: (-), (पू.वि. गाथा २८ अपूर्ण तक है.) ३३३९०. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ३७४२०). १. पे. नाम. नेमराजीमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: नेमजी हो पेखी पशु; अंति: ऋद्धहरख० मूझ मन आस, गाथा-१९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मागु., पद्य, आदि: मुरत तोरी जोर बनी; अंति: रूपचंद कहे वाणी रे, गाथा-८. ३३३९२. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३४३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी ताहरु; अंति: आनंद मुनिवर वीनवै, गाथा-९. २.पे. नाम. पंचेंद्री स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: जाण लहौ सुख सासता, गाथा-६. ३३३९३. औपदेशिक सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४१०.५, ११४३२-३६). औपदेशिक सवैया संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: पांडव पांचेही सूरहरि; अंति: अख्यर राज दीवान, ग्रं. सवैया ३१. ३३३९४. स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमणी श्रीगुरुपाय; अंति: भगति ___ भाव पशंसियो, गाथा-२०. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ___३६७ श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ३३३९५. (4) पंचमीमहिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३१). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीगुरुपाय; अंति: भगती भाव प्रसंसीउ, गाथा-२०. ३३३९६. (+) विदग्धमुखमंडन काव्य सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १६४५०). विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदि: सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३७ तक विदग्धमुखमंडन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सिद्धौषधानि नित्यनौष; अंति: (-). ३३३९७. नंदिसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. नेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १२४२९). योगनंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदि: नाणं पंचविहं पण्णत्त; अंति: उद्देसानंदी पवत्तई. ३३३९८. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, १०४३२). १. पे. नाम. वरकाणापार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणातीर्थ, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारदा हो पाय नमे; अंति: सेवकने सुखीआ करे, गाथा-१३. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: लाहो लीज्यो रे लाहो; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ३३३९९. शांतीनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १२४३७). शांतिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जगत्त दीवाकर जगत; अंति: सकल मनोरथ सीधोरे, गाथा-८. ३३४००. स्तुति व पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०, ९x४५). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २.पे. नाम. पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पद संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अति: (-). ३३४०१. (+) क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १५४४३-४४). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिण वंदिय; अंति: बुहजणत्थं जहा लिहिअं, गाथा-७७. ३३४०२. (+) बृहत्संग्रहणी व बृहत्क्षेत्रसमास की चयनित गाथाओं का संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४४६). १.पे. नाम. बृहत्संग्रहणी की चयनित गाथासंग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-चयनित गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: होइ परित्तो अणंतो वा, गाथा-६८. २.पे. नाम. बृहक्षेत्रसमास की चयनित गाथासंग्रह, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. क्षेत्रसमास प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहर निभस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने सिर्फ ३९ गाथा तक ही लिखा है.) ३३४०३. जंबुद्वीप संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११, ४-५४३५). जंबूद्वीप संग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०, संपूर्ण. लघुसंग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय क० प्रणमी करीनइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक ही है.) ३३४०५. पाक्षिकसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, २३४७५). पाक्षिकसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: तित्थंक० अर्हत्प्रवच; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम आलापक अपूर्ण तक है.) For Private And Personal use only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३४०६. उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरी, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-९(१ से ९)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ९४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३४०७. (#) शाश्वततीर्थमाला स्तवन व तत्त्वभेद संख्या, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४४२). १.पे. नाम. शाश्वत तीर्थमाला, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शाश्वततीर्थमाला स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भविअण पंकज दिनकरूं, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-११ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. तत्त्वभेद संख्या , पृ. १४आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३३४०८. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१७, चैत्र शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, २१४५४). शांतिजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरथ समरी सारदा मन; अंति: विनयविजय भगति भणी, गाथा-३८. ३३४०९. जिराउलिपासजिन गीत, संपूर्ण, वि. १६०१, माघ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. कुशलभुवन गणि (गुरु आ. हसभुवनसूरि); गुपि. आ. हंसभुवनसूरि; पठ. श्रावि. सिणगारदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ३५४११). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: सूकडि मिलीआ गिर तणी; अंति: बिहुँ जण संपरे, गाथा-१०. ३३४१०.(+) सीमंधरजिन स्तवन-मतिसंवाद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १४४५७). सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिन त्रिभुवन; अंति: सेवक सकलचंद दया करो, गाथा-३०. ३३४११. चोविशजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रावण शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. बोवाली, प्रले. पं. शुभविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १८४३९). चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदि; अंति: रुप सदा आणंद, चैत्यवंदन-२४, गाथा-७२. ३३४१२. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. नरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: करुणा कल्पलता श्रीमह; अति: ण० अनंत सुखनो सदारे, गाथा-१३. ३३४१३. सुमंगलाचार्य दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४४८). सुमंगलाचार्य कथा, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सुहभाइणो जा भविस्सति. ३३४१४. बंभणवाडि महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १६४४, पौष कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. कुंअरविजय; पठ. मु. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४७). महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा; अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. ३३४१५. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १३४४०). शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर प्रणमु; अंति: गावे श्रीदयासागरसूर, गाथा-१८. ३३४१६. दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १४४३६). For Private And Personal use only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org ३६९ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. पच, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय अंति: (-). (पू.वि. ढाल २, गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ३३४१७. आलोयणास्वरूपं कुलकं, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. जेठा ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x१२.५, १३X३४). " रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं. पद्य वि. २४वी, आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक-२५. ३३४१८. (#) बालचंदबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. श्राव. लालभाई, प्रले. अमौलक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२.५, १६३९). बालचंदबत्रीसी, मु. बालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर परमेश्वरकुं; अंति: इंद रंग मन आणी, गाथा - ३३. ३३४२० पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे, ४, जैदे., (२५.५x११.५, ११x२४). १. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लखी लहो रे लखी लहो; अंति: आसन ध्यान लगाउ रे, गाथा-२. २. पे नाम, साधारणजिन पद, प्र. २अ संपूर्ण, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: राखो मोहि राखो नाथ; अंति: निरंजनजी संभारो रे, गाथा- ३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हम लोक निरंजन लाल के; अंति: हरखे गुन गावे, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि: प्रीत पीयारे लालकी अंतिः रूपचंद भउ दासा, गाथा ५. ३३४२१. (#) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८६४, आश्विन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २, ले. स्थल. जयनगर, प्रले. मु. जयवंतसागर; पठ. श्राव. गणेश; अन्य. मु. केशवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १३x४८). नवतत्व प्रकरण, प्रा., पद्म, आदि: (-); अंतिः बोहिय इकणिकाय, गाथा ५१ (पू.वि. गाथा १३ तक नहीं है.) ३३४२२. चोवीसजिन सवैया व पुत्रशिक्षण विचार, संपूर्ण, वि. १८६०, फाल्गुन शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल, वढवाण, प्रले. पं. रामविजय, अन्य पं. राजवर्द्धन, पं. धर्मवर्द्धन गणि (गुरु पं. विवेकवर्द्धन गणि) पं. वीरवर्द्धन, पं. क्षमावर्द्धन (गुरु पं. धर्मवर्द्धन गणि) पं. रामवर्द्धन, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११.५, २०४४९). १. पे. नाम. चोविसजिन सवैया, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. चोवीसजिन छंद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसें जिनवर तणा; अंतिः भाव धरीने भणो नरनारी, गाथा-२७. २. पे. नाम. पुत्रशिक्षण विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. विचार संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३३४२४. सझाय संग्रह व आदीश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X१२.५, ११X३२). १. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, नग, पुहिं., पद्य, आदि: काया माया दोनुं अंतिः कर ले जिनसो मेल, गाथा-८. २. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. नग, रा., पद्य, आदि: थोरें दिन का जीवणा; अंति: जब देखसी जम की फोज, गाथा - ८. ३. पे. नाम. आदीश्वर स्तवन, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. יי आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६१५, आदि: राणपुरो रलियामणो रे, अंति: लाल शिवसुंदर सुख धाव, गाथा- १६. ३३४२५, (४) आवकातीचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) =४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे (२४.५४१२, १३४३८) For Private And Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३३४२६. स्तोत्र व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ४ जैवे. (२५४१२ ३४४२७). १. पे. नाम, मंगलाष्टक, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण. कालिदास, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पंकज विष्टरो; अंति: राप्नोति पुण्यं महत्, श्लोक - ९. २. पे नाम, परदेशिराजानी सज्झाय, पृ. १९आ, संपूर्ण प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि सेतंबिका नवरि सोहांम, अंतिः कवियण० सुभ उपगार रे, गाथा-१९. ३. पे नाम, सामायिक, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक मन सुधे करो; अंति: पालज्यो निसदिस, गाथा-५. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चलंति तारा विचलति; अंति: क्यो न चलति धर्मम्, श्लोक-१. ३३४२७. (#) पद्मावती आराधना व पार्श्वजिन पद, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १५X४१). १. पे. नाम, जीवराशिगर्भित स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः हवे राणि पदमावति, अंतिः पापथि छुटे ततकाल, ढाल -३, गाथा-३२. २. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, गु., पद्य, आदि: चाल चाल रे कुमर, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) ३३४२८, वडीशांति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, फलवर्द्धि, प्रले. मु. चुनीलाल; पठ श्रावि, माजी साहचा, , प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१३, १०X२६). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ३३४२९. (+) परमाणुस्थापना विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१२.५, १७x४६). परमाणुस्थापना विचार, सं., गद्य, आदिः ये संस्थानपरिणतास्ते, अंति: (-). ३३४३० (-) चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे. (२५४१२, ११४२८). १. पे नाम, अष्टमी चैतबंदन, पृ. १अ संपूर्ण अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: महा सुद आठम दिने, अंतिः सेव्य शिववास, गाथा-७. २. पे नाम, लंछन चैतवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. चोविसजिन लंछन चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि आदिदेव लंछन वृषभ, अंति: नामश्री भने सुख होजो, गाथा - ९. ३३४३१. शांति स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९०८, कार्तिक शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल कीनगढ, प्रले. पं. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x१२.५, ९४२२-२६). शांति स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्म, आदि शांति शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ३३४३२. नेमनाथ जिनराजगुणवर्णनमय तिथी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. रंगबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांति प्रसादात् जैये. (२५.५४११.५ १५X३७) नेमराजिमती स्तवन- १५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुख कमले राजे; अंति: विरहनी वेदना टलस्यें, गाथा- २३. For Private And Personal Use Only ३३४३३. स्तवन संग्रह व प्रार्थना स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५x१२.५, १३४३२). १. पे नाम, जिनगीत, पृ. १अ संपूर्ण Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३७१ साधारणजिन स्तवन, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: लाग्या नेह जिन चरण; अंति: चिदानंद मन आनंद आने, गाथा-५. २. पे. नाम. अर गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. अरजिन स्तवन, ग. अमृतविजय, पुहि., पद्य, आदि: पदकज लीनौ भृग मानु; अंति: अमृत पद रंग, गाथा-३. ३. पे. नाम. जिनस्तुति प्रार्थना संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: कुर्वंतो वो मंगलं, गाथा-४. ३३४३४. (+) जयतिहुयण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३७). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक ही है.) ३३४३५. श्रीमंधरजी रो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०८, आश्विन कृष्ण, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२.५, १०४३०). सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए; अंति: पूर आस्या मनतणी, गाथा-१८. ३३४३६. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३७). १.पे. नाम. सर्वजिनमिश्रितं स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: वंदे धर्मजिनं सदा; अंति: संग्रंथितः सौख्यदः, श्लोक-४. २. पे. नाम. महावीराष्टकं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन अष्टक, मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्सुधीर; अंति: प्रजज्ञे मम जन्मसार, श्लोक-९. ३. पे. नाम. शांत्यष्टकं, प्र. १आ-२अ, संपूर्ण. __ शांतिजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि: भक्त्या क्रमाब्जं; अंति: देहि देवेशसमीहितं मे, श्लोक-८. ३३४३७. (#) विविधविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १०४३५). १. पे. नाम. अठ्यासीग्रह नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८८ ग्रह नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अंगारक वीकालक लोहिता; अंति: पुष्पकेतु भावकेतु. २. पे. नाम. असज्झाई विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चउहा महा पडिवा; अंति: इत्यादि असिज्झाई. ३. पे. नाम. चरणकरणसत्तरी, पृ. २अ, संपूर्ण. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय ५ समणधम्म १५; अंति: चेव करणंतु, गाथा-२. ४. पे. नाम. दिगंबरश्वेतांबर के चोरासीवाद, पृ. २आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. दिगंबरश्वेतांबर के ८४ भेद विचार, पुहि., गद्य, आदि: १ केवली कुंआहार न; अंति: पुस्तक में नहीं है, (पू.वि. मात्र २९वें मतांतर तक है.) ३३४३८. नेमिनाथजिन नवभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८३, भाद्रपद कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. हरिदुर्ग, प्रले. पं. रत्नचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२.५, ११४३८). नेमराजिमती नवभव स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: नेमजी आया रे सहसाबन; अंति: पद्मविजय जिनराय, गाथा-१७. ३३४३९. (+) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १६x४१-४४). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा वासे चिइ वेस; अंति: प्रतिबद्धत्वादिती. ३३४४०. वीसस्थानक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१२, ११४२६-३०). वीसस्थानकतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: नित्थार पारगाहोह. For Private And Personal use only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३४४१. प्रतिक्रमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२, १३४२६-२७). साधुप्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३३४४२. गाथा संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३३). जैन गाथासंग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अइ लज्जइ अइ बीहइ; अंति: अक्खर अडयाल जिणधम्मो, गाथा-८. जैन गाथासंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३४४३. मोहराज कथागर्भितवीरजिनेश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२३.५४१३.५, २२-२४४१४-१७). महावीरजिन स्तवन-मोहराजा कथागर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर भुवन दिने; अंति: मानमुनि मंगल करं, गाथा-५३. ३३४४४. शीलोपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. दुर्गा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १५४५६). शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आबाल बंभयारि नेमि; अंति: जयवल्लहा० बोहि फलं, गाथा-११५. ३३४४५. (-) संथारापोरिसी, अतिचार चितवन पौषधसूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१३, १३४३१). १.पे. नाम. संथारा गाथा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: जीवा कम्मवसु० खमंतु, गाथा-२२, (वि. इसमें प्रक्षेप गाथा है, अतः गाथा परिमाण २२ है.) २. पे. नाम. पौषधसूत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पौषधपच्चक्खाणसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ३. पे. नाम. साधु अतिचार गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणेय अइयरो, गाथा-१. ४. पे. नाम. गोचरी गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. गोचरचर्या गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कालेणय गोअरिआ; अंति: जंकिंचि अणुउत्तं, गाथा-१. ५.पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. २आ, संपूर्ण. अतिचार आलोचना, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजूणा चउपहुर दिवसमा; अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. ३३४४६. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१२.५, १५४२८). १. पे. नाम. स्वाध्याय-तृष्णा, पृ. १अ, संपूर्ण. तृष्णा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध मान मद मच्छर; अंति: विघन विना निरवाणे, गाथा-११. २. पे. नाम. सेजगिर स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इणे डुगरीये मन मोही; अंति: जन्म हुवई तास हो, गाथा-१३. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पं. विनयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: समरू कविजन सारदा; अंति: मारा मनडानी आस, गाथा-७. ३३४४८. (#) सप्तव्यसन सज्झाय व सुपखरो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२.५, १४४२४). १.पे. नाम. सप्तव्यसन सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिधारथ कुलतिलो; अंति: भणेजी संभारो जिनवाण. २.पे. नाम. सुपखरो, पृ. ३आ, संपूर्ण. क्षेत्रपाल छंद, माधो, मा.गु., गद्य, आदि: ध्रुवे मादलां मृग; अंति: भणे वाह वाह देववाह. ३३४४९. प्रज्ञाप्रकाशषविंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३.५४१२, १८४४३). For Private And Personal use only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org ३७३ प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, आ. रूपसिंह, सं., पद्म, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन अंति: (-), (पू.वि, श्लोक-३२ अपूर्ण तक है.) ३३४५०. (-#) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) = ३, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५x११.५, ११४३५). १. पे. नाम. नेमीराजुल संवाद, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: गाये० एह जिनवर बताए, गाथा - २६, (पू.वि. गाथा-७ तक नहीं है.) २. पे. नाम. वीतराग पद, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. मु. विजयकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: बीतराग तेरी वा छबि, अंतिः आतमतत्त्व लुभाया बे, गाधा ४. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं, अंतिः (-). ( पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है.) ३३४५१. पुण्यफल कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५x११.५, १३४३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्यफल कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा, अंति: धम्मम्मि उज्जमह, गाथा - १६. ३३४५२. नेमिराजूल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२३.५x१२, १३x२०). नेमराजिमती स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल गेली करी छे; अंति: गाइ छे उछांहि रे, गाथा-८. ३३४५३. कायस्थिति, संपूर्ण वि. १९२९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, ले, स्थल, पालिताणा, प्रले. श्राव, दीपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४×११, ११x२५-३७). Shareस्थति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदंसणरहिओ कायठि, अंति: अकायपयसंपयं देसु गाथा - २४. ३३४५४. गोडी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३.५X११, १३×३९). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशें अंति: नमो नमो गोडीधवल, गाथा - ३७. יי ३३४५५. परभंजनानी सीज्झाय, संपूर्ण वि. १८७१, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ श्राव. मोहनभाई संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३४१२.५, १५४३३-४१). प्रभंजना सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने उपरे; अंति: मंगललील सदाई रे, ढाल -३. ३३४५६. शनिश्चरनो छंद, कवित्त, यंत्र व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ४, जै, (२५४११.५, १४-१५X४०). १. पे. नाम. शनीश्वरनो छंद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, शुक्रवार, ले. स्थल. चोबारी. शनिश्चर छंद, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिण मति दिओ; अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा-४६. २. पे. नाम. पंचमआरे यतिविचार कवित्त, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: जे केई बालक बापडा, अंति: साधु इणे पंचम आरे, सवैया - १. ३. पे नाम. संतान होने का तुरकी यंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). " ४. पे. नाम औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण औषधवैद्यक संग्रह, सं., प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ३३४५७, (४) वंदितु, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-१ (१) २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२३.५x१२.५, ११४३०). For Private And Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दिसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि (-) अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं गाथा - ५०, (पू. वि. गाथा १८ अपूर्ण तक नहीं है.) ३३४५८. दुसमदंडिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, १४४६). दुसमदंडिका, आ. मतिप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अवसप्पिणि उसप्पिणि; अंति: मइपहसूरिहिं संकलियं, गाथा-२८. ३३४५९. चार मंगल सझाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२३.५४१२.५, ३६x२०). , ', ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धारथ भूपति सोहिए; अंति: उदयरत्न भाखे एम, गाथा - २०. ३३४६०. वीरद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५४११.५, १८४४८). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसात्म्यात्; अंति: तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३. " ३३४६१. आत्मनिंदाष्टक व लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २ जैदे. (२५.५११, १४४७). १. पे. नाम. आत्मनिंदाष्टक, पृ. १-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः श्रुत्वा श्रद्धाय; अंतिः कार्यं हहा कर्मभिः, श्लोक - १०. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ३३४६२. स्थानकवासी मतखंडन प्रश्न संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२७४१२, ११४३८). स्थानकवासी मतखंडन प्रश्न संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: मुहानंतयं आयामेणं, अंति: ज्युंही करणाजी. ३३४६३. (+) स्तोत्र, सज्झाय व काव्य संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी १९१०, श्रेष्ठ, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२६.५४११.५, १३४४९). " " १. पे. नाम. श्रीमंदिर स्तोत्र, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. सीमंधरजिन स्तोत्र, आ. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: (-): अंतिः तेषां वर साधुरूपा, श्लोक ५, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जिनबल विचार छंद, पृ. ७अ, संपूर्ण. जिनबल विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वीर्य बोलो, अंतिः अग्र बल नेम ते तो, गाथा - १. ३. पे. नाम, सामायकनी सिझाय, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक मन सुद्धे, अंति: सामायक कीजे निसदीस, गाथा - ५. ४. पे. नाम. जैन काव्य संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण, वि. १९१०, माघ शुक्ल, १५ वि. १९१०, फाल्गुन कृष्ण, २, ले.स्थल. रेलमगरेली,रेलमगरा, प्रले. मु. मेघराज, पठ. श्राव. मोतीचंद वैरागी, पे. वि. प्रारंभ के कुछ काव्य सं. १९१० मा सुदि १५ को एवं बाद के कुछ काव्य सं. १९१० फाल्गुन बदि २ को लिखा गया है. प्रतिलेखन स्थल के रूप में एक जगह रेलमगरेली एवं एक जगह रेलमगरा ग्राम इस प्रकार लिखा गया है. एक ही गाँव होने की संभावना है. जैन श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-६. ३३४६४. गौतम कुले सह वार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ४ वे. (२४.५x११, ४४३६-४६). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अच्छपरा, अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लु० लोभि तिष्ठा नरा; अंतिः परम उत्कष्ट सुख पांमइ. ३३४६५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण वि. १९२९, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पू. ३, प्रले. मु. गमना (गुरुग. खतिविजय); गुपि. ग. खंतिविजय (गुरु पं. उत्तमविजय): पं. उत्तमविजय (गुरु पंन्या. कांतिविजय), प्र. ले. पु. सामान्य, दे. (२४.५४११.५, १९३०). आवश्यक सूत्र- श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा - ५०. ३३४६६. जीवविचारसूत्र प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. राणीगाम, पठ. मु. जोधा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X११, १४X३४-३७). For Private And Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३३४६७. (#) रोहिणि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४१२.५, १९-२०४३९-४२). रोहिणीतप रास, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुखपंकजवासिनी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-८ तक है.) ३३४६८. नेमिनाथजी गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (१९x१२.५, १०४२१-२८). नेमराजिमती स्तवन, म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांभली रेसांमलीया; अंति: किम विरचइ वरदाइ रे, गाथा-५. ३३४६९. जिनबिंब-जिनप्रासादस्थापन विधि व पंचमीदंडक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १७४४३-४६). १. पे. नाम. नविनजिनबिंब-जिनप्रासादस्थापन विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. जिनबिंब-जिनप्रासाद स्थापना विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: नमस्कारत्रयेण; अंति: दानं श्रीसंघभक्तिश्च. २. पे. नाम. पंचमी दंडक, पृ. २आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. ज्ञानपंचमी तप विषयक कोई आलावा है.) ३३४७१. चोवीसदंडकगर्भित श्रीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. क्षिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२.५, २२४३६). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुपासनाह प्रसम; अंति: प्रसादे परमारथ लहै, गाथा-२४. ३३४७२. सिद्धचक्र चैत्यवंदन संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (१९.५४१२, २०४२२). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहिं., पद्य, आदि: जिणंदा ताहरी वाणीइं; अंति: गावे इम कवि कांति रे, गाथा-५. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुखदायक सिद्धचक्र; अंति: लहीइं अविचल लील, गाथा-३. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नमो अरिहंत पहेले; अंति: पदे एगणणानो पाठ, गाथा-३. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चंपापूरीनो नरवरु नाम; अंति: धरिए एहनुं ध्यान, गाथा-३. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र नमस्कार, आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आसो मासने चैत्र मास; अंति: तणो नयविमल कहै सीस, गाथा-३. ३३४७३. स्तोत्र संग्रह व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२३-१९५३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ७, दे., (२५.५४१२, १३४४०). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजी यमकमय स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्यसत; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक-९. २.पे. नाम. देव-देवी मंत्र संग्रह, पृ. १अ-१आ+२अ, संपूर्ण, पे.वि. १अ-१आ, २अ, ४आ.इन तीनों अलग-अलग पत्रों पर मंत्र दिये गये हैं. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. कलिकुंड पार्श्वनाथ, नमिऊण मंत्र, कामधेनु मंत्र एवं पंचागुली मंत्र का संग्रह.) ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि अंगरक्षा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. For Private And Personal use only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि: ओं नमो भगवते; अंति: शुभगतामपि वांछितानि, श्लोक-९. ५. पे. नाम. ऋषिमंडल महास्तोत्र, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: ऊँ आद्यताक्षरसंलक्ष; अंति: लभ्यते पदमुत्तमं, श्लोक-६३, ग्रं. १५०. ६. पे. नाम. ऊँघंटाकर्णमहावीर मंत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, वि. १९२३, फाल्गुन, ६.. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ७. पे. नाम. कमलो व उसरणी रोग निवारण मंत्र संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण, वि. १९५३, आश्विन शुक्ल, ६, सोमवार, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. उपा. कल्याणनिधान; पठ. चतरा साह, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३३४७४. साधु अतिचार व पक्खी , चौमासी, संवछरीतप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १२४३४). १.पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण... साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. पाक्षिक, चौमासी, संवच्छरीतप विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण. पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चउत्थेणं एक उपवास; अंति: तप करी पोहचाडवो. ३३४७५. कल्याण पूजन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १७४३५). कल्याण पूजन, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशा; अंति: संस्तुयते संस्तवैः. ३३४७७. पाखीखामणा व चौमासी-संवत्सरीतप विचार, संपूर्ण, वि. १९३०, पौष, ११, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. हीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ७४१५). १. पे. नाम. पाखीखामणा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमा०; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. २. पे. नाम. चौमासी-संवत्सरीतप विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. चौमासी-संवत्सरी तप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चोमासीतप छटेणं २; अंति: ४० लोगस्स रो काउसग्ग. ३३४७८. पच्चक्खाण विचार व अग्यार अंग परिमाण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. पं. चारित्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५४११.५, १२४३०). १.पे. नाम. चतुर्थव्रत पच्चक्खाणविधि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मैथुनविरमणव्रत उचरावण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहं भंते दिव्वं मेहु; अंति: ए गाथा १ केणी. २. पे. नाम. अणसण पच्चक्खाण, पृ. १अ, संपूर्ण. भवचरिम पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि: भवचरिमं पच्चक्खामि; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरे. ३. पे. नाम. ग्यारह अंग परिमाण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ११ अंग परिमाण, मा.गु., गद्य, आदि: पढमं आयारंग; अंति: ९४४८५९२५११४८८७०००. ३३४७९. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पठ. सा. फतु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १२४३१-३९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३३४८१. प्रभातप्रतीकमणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १४४४८). __ प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरीयावही कही; अंति: सामयिक परावीइं. ३३४८३. आदिदेवमहिम्न स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१२.५, १०४२९). For Private And Personal use only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org आदिदेव महिम्न स्तोत्र, मु. रत्नशेखर, सं., पद्य, आदि: महिम्नः पारं ते परम, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३० तक उपलब्ध है.) ३३४८४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. हुकमचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- पंचपाठ., जैदे., ( २४.५X१२, १०X३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. " कल्याणमंदिर स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं श्रीसिद्धसेनदिवा, अंति: वाम्नायात् विज्ञेयाः. ३३४८५. सज्झाय, लोक संग्रह व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६-१२ (१ से १२) =४, कुल पे ६, जैदे., (२०x१२.५, २०X३८). १. पे. नाम. श्रावकगुण सज्झाय, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, आदि (-); अंतिः सफल जन्म तिन लाधो जी, गाथा-२१ (पू. वि. गाथा १५ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाव-घृत विषये, पृ. १३ अ १३आ, संपूर्ण. मु. लाल विजय, मा.गु, पद्य, आदि भविवण भाव घरी पणुं अंति लालविजै० स्तवना कही, गाथा- १८. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १३आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-६. ४. पे नाम, गोडि स्तवन, पृ. १३ आ.१५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी, अंति: नामं अभिरामं मंते, दाल-५, गाथा-५५. ५. पे. नाम. कलियुग माहातम, पृ. १५अ- १६अ, संपूर्ण, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. कलियुगमाहात्म्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हवणां हरि बुद्धा, अंतिः दीधा दान ते साथे होय, गाथा- ३७. ६. पे नाम मुनिविचार कवित्त, पृ. १६अ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: पाला चालें पंथ शीश; अंति: कछुक दुखी तो वरतीया, पद- १. ३३४८६. चतुर्विंशतिजिन स्तवन व प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जै, (२५.५x१२, १४४४३). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, सं., पद्य, आदिः ॐकार ध्येयरूपः प्रथम, अंति: साक्षात् सुरोद्रुमः, श्लोक-१२. ३३४८७. चोविसजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२६४१२, १२४३१). . , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम. चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाच, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि चिहुं दिसथी च्यारे, अंति: गावा हे पाटण परसिद्ध, गाथा - ५. २४ जिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि जिनर्षभप्रीणतभव्यसार, अंतिः त्रैलोक्यलक्ष्मीसुरा, श्लोक ८. ३३४८८. अठोत्तरीस्नात्र विधि व विदललक्षण गाधा, संपूर्ण वि. १८९३ कार्तिक कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४. कुल पे. २, प्रले. पं. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१२, १३x२३). १. पे. नाम. विदललक्षण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन गाथा", प्रा., पद्य, आदि (-): अंति: (-), गाथा- १. प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४१२, १०४३४). "" ३७७ २. पे. नाम. अठोतरीस्नात्र विधि, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: प्रथम सर्ववस्तु १०८ अंतिः क्रिया० श्लोक कहि ३३४८९ वृहदशांति, संपूर्ण वि. १८५२ श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल, सुरतविंदर, प्रले. मु. जीवणविजय, For Private And Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: छिद्यति विघ्नवल्लयः. ३३४९०. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४३५). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: अहो जिणेहिं असावज्जा; अंति: करी मिच्छामिदुक्कडं. ३३४९१. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२४४१३, ९-१०४२५-२७). शांतिजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., पद्य, आदि: संतिकर संति मति आपि; अंति: मेघ० दिओ शिवसुख आसना, ढाल-३. ३३४९२. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. किसणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ११४३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३३४९३. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह व हस्तरेखा चित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२६.५४१२, १८४४५). १.पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सुरे नमुकारसिय; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि. २. पे. नाम. हस्तरेखा चित्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. हस्तरेखा का चित्र एवं रेखाओं के स्थान की जानकारी दी गई ३३४९४. बृहच्छांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४१३, १२४४०). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ३३४९५. अभव्य कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. राजेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १०x४०). अभव्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: जह अभवियजीवेहिंन; अंति: हावि तेसिंन संपत्ता, गाथा-९. ३३४९६. (+) सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११.५, १४४४०). १.पे. नाम. रात्रीभोजनी सज्झाअ, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, प्रले. पंन्या. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितलि वारू वसइजी; अंति: सारे आतम काज रे, गाथा-१९. २. पे. नाम. जैनदुहा संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण... जैनदहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. ३३४९७. त्रणचोविसीजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पत्र की एक तरफ लिखा है एवं दूसरी तरफ कुछ नहीं लिखे होने से अंत के पत्र नहीं है या प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, यह दोनों में से कोई भी हो सकता है., दे., (२४.५४१२, ८x२७). ३ चौवीसीजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ३३४९८. (+) नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१२.५, १५४३६). नेमिजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: नेमजी हो पेखी पशु रथ; अंति: ऋद्धिहर्ष करजोडि, गाथा-१९. ३३४९९. (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थव आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ३-१०४२५-३१). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आबुगढ तीरथ ताजा अष्ट; अंति: गाया जिनेंद्रसागरि, गाथा-८. २. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-२ तक है. For Private And Personal use only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे, अंति: (-). दंडक प्रकरण-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदिः नमीठं क० नमस्कार करी, अंति: (-). (२४x११.५, १८x२८). १. पे. नाम पद संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३५००. (+) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक-२ अपूर्ण तक है., प्र. वि. टीका टबार्थ की तरह लिखी गई है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, ४X३६). पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, सं., पद्य, आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस, अंति: (-). पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि- टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथस्य, अंति: (-). ३३५०१ (+) पद संग्रह, स्तवन व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., मा.गु., पद्य, आदि: फतमल पाणिडा गईति, अंति: लगेइ मारा साहिबा, गाथा - ११. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजीनो स्तवण, पृ. १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. भीमासर. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: अमा आंओ नेहडो कंदी, अंति: गम्यो खलीहु थया पीर, गाथा-५. ३. पे. नाम, कालाभैरव मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो आदेस गुरुकु; अंति: फुरो मंत्र सारोवाच. ३३५०२. सरस्वतीदेवी छंद व स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२३.५५१२.५, १७x४०). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदिः ससीकरनिकर समुज्वल, अंतिः सोइ पूजो नित सरस्वति गाथा १४. २. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडी न कीजे रे; अंति: समयसुदर प्रभू रीत रे, गाथा - ५. ३३५०३. अनाथीऋषि स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जयविजय (तपागच्छ). प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १५X४३). अनाथीमुनि सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगध देश राजगृहि नयरी, अंतिः तणा गूंण गावा रे, गाथा - १३. ३३५०४. मौन एकादशीनुं गणणुं, संपूर्ण, वि. १९०८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. उदयपूर, प्रले. आ. आणंदसागरसूरि (वृद्धतपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, १३X३१-३२). मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, सं., को., आदि: जंबू भ० अतित २४ पंच, अंति: श्रीप्रथमनाथाय नमः ३३५०५. (४) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे., (२४.५X१२.५, १२X३३). १. पे. नाम. नवपदजी पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: सुरमणी सम सहु मंत्र, अंतिः जिनलाभ० जश लीजे रे, गाथा - १३, (वि. प्रतिलेखक नें गाथा क्रमांक ६ तक ही दिया है. बाद की गाथा का क्रमांक नहीं लिखा है.) ३७९ २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र सुहामणो; अंति: (-), (पू. वि. मात्र प्रारंभ की दो पंक्ति है.) ३३५०६. भरतनृप सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २४.५X१२.५, १०x२९). भरतनृप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: साधर्मिक वच्छल करीए; अंति: जिनहरष० कही मनरंग, गाथा - २५. ३३५०७. तिजयपहुत्ति वृत्ति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पृष्ठ संख्या ३ आ पर यंत्र दिया गया है., जैवे. (२६४१२, १६x४२-४८). तिजयपहुत्त स्तोत्र - टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: कृत्वा चतुर्णां अंति: (१) नित्यं अर्चयेत्, (२) वृत्तिमातनुत. For Private And Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३५०८. मुनि इग्यारसको गुणनो, संपूर्ण, वि. १८७५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. बिक्रमपुर, प्रले. मु. नेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १२४३६). मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, सं., को., आदि: जंबूद्वीप भरत; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ३३५०९. आत्मनिंदा, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३०). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: (-). ३३५१०. चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, १४४३८). २४ जिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भावें वंदो रेचोवीसै; अंति: जिनपद रंग रमीजै, गाथा-१३. ३३५११. शांतिकर स्तोत्र सह टबार्थ व सप्ततिशतजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. जैयतारण, प्रले. मु. राजहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३, ६x४२). १. पे. नाम. शांतिकर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुअसंपयं परमं, गाथा-१३. संतिकरंस्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जगमाहि शांतिनो करण; अंति: सदा निरंतरणे. २. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुतपयासय अठमहा; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिणि जगत्रनी प्रभू; अंति: पणे नित्यई पूज्यो. ३३५१२. मुंनि ईग्यारसरोगुणवो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, सं., को., आदि: जंबुद्वीपे भरते; अंति: श्रीप्रथमनाथाय नमः. ३३५१३. स्तवन संग्रह व गुरु भास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४११.५,१५४३९). १.पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रह समे भाव धरी घणो; अंति: नीत होय जगीसा, गाथा-५. २. पे. नाम. जिनराज स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: जब जिनराज कृपा करे; अंति: नथी बहु शीवसुख पावे, गाथा-५. ३. पे. नाम. शांति पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: आंगण कल्प फल्यो री; अंति: हुं रहेस सुहल्योरी, गाथा-५. ४. पे. नाम. गुरु भास, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयधर्मसूरि भास, उपा. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज सूविहांण गुण भाण; अंति: आज सकली हुइ आस मारी, गाथा-९. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: मन लागो पारसनाथस्यु; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभ की एक पंक्ति है.) ३३५१४. अढार नातरानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वीरमग्राम, पठ. श्रावि. फूल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १३४३४-३८). १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलो प्रणमुंपास; अंति: ऋद्धिविजय गुण गाय रे, ढाल-३, गाथा-३२. ३३५१५. जीवविचारगर्भित शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४१२, ११४३३). शांतिजिन स्तवन-जीवविचारगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा ९ अपूर्ण से ढाल २ गाथा ५ अपूर्ण तक है.) For Private And Personal use only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३३५१६. मुखवखिकाप्रतिलेखन के ५० वोल व आवक १२ व्रत नाम, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., 1 (२४x१०, ११x२०). १. पे नाम. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सुत्र अर्थ तत्त्वकरि, अंति: (१) त्रस विराधना परिहरु, (२) स्त्रिने जाणवा. २. पे. नाम. श्रावकनां बारव्रतना नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपातव्रत मृषा, अंति: अतिथिसंविभागव्रत. ३३५१७. कार्तिकशुक्ल पंचमी कथा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२४.५४१२, १५X३८). वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व, अंति: मुक्तिं गतः. " ३३५१८. भरहेसर सज्झाय, नवग्रह स्तोत्र व दशवैकालिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४.५४११.५, १४४३८). १. पे. नाम. भरहेसर बाहुबलि, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबलि अभय; अंति: पडहो तिहुअणे सयले, गाथा-१३. २. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरु नमस्कृत्य, अंति: ग्राहसांतिमुदिरिता, श्लोक ११. ३. पे. नाम. दशवैकालिक सूत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंति: (-), (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ३३५१९. मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., ( २४.५X१२, १२x२२-२८). मौन एकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, सं., को, आदि: जंबुद्वीप भरत अतीता, अंतिः श्रीआरणनाथाय नमः ३३५२० (+) मनुष्यक्षेत्रे शाश्वतजिन स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, ले. स्थल, छायापुर प्रले. मु. हेतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पृष्ठ संख्या नहीं दिया गया है। श्रीशांति प्रशादात्।, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७X१२, १०X३१). शाश्वतजिन स्तोत्र - मनुष्यक्षेत्रे, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य वृषभं शंभू, अंति: कल्यांण सौभाग्य भूः, श्लोक १७. ३३५२१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १८४३ वैशाख कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २ प्रले. मु. हंसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैवे. (२५.५४११.५ १५३०) ', (२५.५X११.५, १९X३७). १. पे. नाम. बावीसमा रहनेमीनो अध्ययन सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सोरीपुर अति सुंदर, अंति: उदयविजय गुण गाय, गाथा - १४. २. पे. नाम. मांकणनी सिज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मांकण, मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदि: मांकणनो चटको दोहिलो अंति: माणिकमुनि० गायो रे, गाथा- ८. ३३५२२. लोच विधि, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२८४१२.५ १२४४८-५०). " ३८१ लोच विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि लोचं कारयिता दृढसत्व; अंतिः यथाशक्तिः कुर्वते. ३३५२४. () स्तवन व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) -२ कुल पे. ३, प्र. मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, १. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदो नेमिजनं नौमि अति: लक्ष्मी नीवासणं, श्लोक-१. २. पे. नाम वीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. 2 For Private And Personal Use Only " महावीरजिन स्तोत्र, आ. विजयसेनसूरि, सं., पद्य, आदि मनसि मानव मानव, अंतिः लभते सुदृशां श्रियम्, श्लोक १०. ३. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, सं. पद्य, आदि: कि कर्पूरमयं सुधारस, अंतिः बोधिविजं ददातु श्लोक-११. . Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३५२५. सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रत के दूसरे तरफ किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखा गया है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१२, १२४३५). १.पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सिद्धपुर, प्रले. परसोत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पटओ तीहणे सयले, गाथा-१३, (वि. गाथा १२-१३ अन्य व्यक्ति द्वारा लिखित है.) २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३५२६. (+) चंडाप्रचंडाविषये मदनधनदेव कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १९४५४). मदनधनदेव कथा-चंडाप्रचंडाविषये, सं., गद्य, आदि: विचार्य कुरुते कार्य; अंति: क्रमेण सेत्स्यति. ३३५२७. दंडक प्रकर्ण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १३४४२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: विनत्ती अप्पहिया, गाथा-४०. ३३५२८. जीराउला पार्श्वजिन वीनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१२, १४४४५). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: जीराउला मंडण जीन पास; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा ३१ अपूर्ण तक है.) ३३५२९. साधुना यतिचार, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४१३.५, १२४३७). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमी दसणंमि; अंति: हुआइ होय ते सवि०. ३३५३०. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३४). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: संखेसर वंदो रे वंदो; अंति: पद्म० कहे पूरवो जगीस, गाथा-८. ३३५३१. (+) मुनि इग्यारस गुणनो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९x१२.५, १०४३३). मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, सं., को., आदि: जंबूद्वीपरी भरत; अंति: श्रीआरण्यकनाथाय नमः. ३३५३२. (#) स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४४६). १. पे. नाम. विहरमांन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. गुणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमांन जिनवंदो; अंति: गाया गुणी गुणचंदो, गाथा-७. २. पे. नाम. गतचोवीसी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अतीतचौवीसी स्तवन, मु. गुणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जागो रे सुग्यानि जीव; अंति: सदा सफल विहाण रे, गाथा-९ ३. पे. नाम. भाविजिन चोवीसी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. आडीसर, प्रले.ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. अनागत चतुर्विंशतिजिन स्तवन, मु. गुणचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभातें उठीनैं भावी; अंति: होस्यै सफल जगीस, गाथा-९. ४. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नहीं मानुरें अवरनी; अंति: रामविजय० बंधन छोडि, गाथा-७. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-षट्दर्शन प्रबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ओ रंग से रंगन्यारा; अंति: चरन सरन तुहारा हई, गाथा-९. ३३५३३. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२८x१३, १५४४९). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमेरीशानो; अंति: हश्रीरपुर संश्रितैः, श्लोक-११६, (वि. श्लोक क्रमांक देने में अनियमितता हुई है.) ३३५३४. ६२ मार्गणा यंत्र व आत्मा द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३२). १.पे. नाम. ६२ मार्गणा यंत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३८३ मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. आत्मा द्वार, पृ. ४आ, संपूर्ण. __आत्मद्वार-गुणस्थानक-दंडक-योनिआश्रयी, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले १ तीजइं ३; अंति: निरंतर आंतरोन पडै. ३३५३५. नंदीसूत्र-स्थविरावली व दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४८, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३, १७४४५). १.पे. नाम. थेरावली नंदीसूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८४८, भाद्रपद कृष्ण, ३, मंगलवार, ले.स्थल. नागोर. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी विआणओ; अंति: परुवणां वुच्छ, गाथा-४९. २. पे. नाम. दुमपुफियाध्ययण, पृ. २आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगल मुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ३३५३६. वंदेतू सूत्र, संपूर्ण, वि. १८७५, पौष कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. रायभाण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १०४२५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चौवीसं, गाथा-४३. ३३५३७. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. नानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३४). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी की सोभा करें; अंति: मनथी नविटाले रे, गाथा-७. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: मान कह्या अब मेरा; अंति: बहु न रहे भव फेरा, गाथा-३. ३. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: अजित जिनंद देव थिर; अंति: नंद० सिवपुर पाईयै, गाथा-८. ३३५३८.(-) भक्तामर स्तोत्र व नमस्कार महामंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३६). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवइ मंगलं, पद-९. ३३५३९. (+) सम्यक्त्व स्वरूपगर्भित वीरजिन स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२.५, ५४३१). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवइओ सम्मत्त संपत्ती, गाथा-२६. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो पल्लेइ महल्ले धणं; अंति: (-), (वि. अंतिम गाथाओं का टबार्थ नहीं किया है.) ३३५४०. अक्षयतृतीया व्याख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२८x१३, १३४४६). अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभुं; अंति: कल्याण पाठकैः, ग्रं. ७०. ३३५४१. मुहपत्ति निर्णय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४११.५, १०४५-३६). मुहपत्ति निर्णय, पुहि.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: ओघनीयुक्ति गाथा; अंति: पुरिमईच. ३३५४२. (-) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४४, वैशाख शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसुदाबाद अजीमगंज, प्रले. मु. सिखरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४१२, १२४२४). १.पे. नाम. चौवीस तिर्थंकर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: लक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८. For Private And Personal use only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: व्रतसुमुदय मूल संजम; अंति: हे धर्म मां पालयम्, श्लोक-४. ३३५४३. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. प्रहर्षमंदिर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १५४३७-४४). १.पे. नाम. सर्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीमन् धर्मः श्रय; अंति: श्रियं देहि मे, श्लोक-८. ३३५४४. इक्कीस प्रकार के पानी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बजाणानगर, प्र.वि. जशविजय की प्रति से प्रतिलिपि की गई है., जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३६). २१ प्रकार के पानी, प्रा., पद्य, आदि: उस्से इम १ संसेइम; अंति: परं रोई सच्चित्ते, गाथा-६. ३३५४५. चक्रेश्वरी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७५, माघ शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. कुशलदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १५४२९). चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: पाहि मां देवी चक्रे, श्लोक-८. ३३५४६. देवलोक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४२७-२८). देवलोक विमान विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: सोधर्म इशान देवलोके; अंति: आवली बंधी वेमान पांच. ३३५४७. (+) नेमिजिन स्तुति प्रकाश व नेमिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १३४३१-३९). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति की प्रकाशटीका, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति-प्रकाशटीका, मु. रामचंद्र ऋषि, सं., गद्य, वि. १९२३, आदि: नमोस्तु व्याप्ति रूप; अंति: भविनामयं चिरं नंदतु. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: जय जय यादव वंस वतंस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३३५४८. साधु पाक्षिक अतिचार व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १६४४१). १. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमि दसणमि; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २.पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. ३३५४९. साधु पाक्षिक अतिचार व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १६x४४). १. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमि दसणमि; अंति: करि मिच्छामि दुक्कड. २. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. ३३५५०. सकलार्हत् स्तोत्र व पाखी खांमणा सूत्र, संपूर्ण, वि. १९३६, कार्तिक कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीनगर, जैदे., (२६.५४१४, ११४३५). १. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२८. २.पे. नाम. पाखीखांमणा सूत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिअं; अंति: निथार पारग्ग होह, आलाप-४. For Private And Personal use only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३३५५१. २४ दंडक यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६-२७.५४१२.५). २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३३५५३. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, ३४२४). दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मोमंगल मुक्किट्ठ; अंति: तेण वुच्चंति साहुणो, गाथा-५. दशवकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म रूपीओ मंगलीक्; अंति: हुं श्रीशिद्यभवसूरि. ३३५५५. (+) बंधी पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १३-१७X४६). बंधशतक-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाय१ लेस८ पखी२; अंति: पहिलो तीजो भांगोलाभे. ३३५५६. (#) रीषभ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२१.५४१३.५, १९४१९). आदिजिन स्तवन, मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रभु प्रभुता; अंति: माण्यक माथे हाथ, गाथा-७. ३३५५७. गोतम रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२०.५४१३, ९x१९-२२). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा-५ से ९ तक नहीं है. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ३३५५८. स्तोत्र, अष्टक, स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६१, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२२४१३.५, ९४२५). १.पे. नाम. ज्वालामुखी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७६१, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, ले.स्थल. थाणा, प्रले. मु. अजबसागर (गुरु मु. अनोपसागर); गुपि.मु. अनोपसागर (गुरु मु. महिमासागर), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. वर्द्धमानसागर, सं., पद्य, आदि: ज्वालामुखी नाम धरा; अंति: वर्धमान० संस्तुतासा, श्लोक-८. २. पे. नाम. पद्मावती छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अच्छव्य पद्ये दिशती; अंति: वंदिता सत्वरंसा, श्लोक-८. ३. पे. नाम. सरस्वत्यष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: जय सरस्वति देवि मही; अंति: नराणां गणे भासमाना, श्लोक-९. ४. पे. नाम. चिंतामणिमनमोहन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणिमनमोहन, सं., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणि पार्श्व; अंति: षेव्यमानो नरदेवनाथैः, श्लोक-२. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दी, दर्शन ताहरई; अंति: पद श्रीअश्वसेनांगज, गाथा-१. ६.पे. नाम. सामान्य श्लोकसंग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३५५९. श्राधप्रतिक्रमण सुत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. विद्याशाला, प्रले. डाहा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत मूल्य-३ पैसा., जैदे., (२६४१२, ८४३८). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चोवीसं, गाथा-५०. ३३५६०. शाश्वतजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४१३, २२४१५-१८). शाश्वतजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभाननजिन व्रध; अंति: अधिक आणी रंग ए, गाथा-३१. ३३५६१. सुदर्शनसेठनी सजाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४१३, २४४१५-१६). सुदर्शनसेठ सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: सहिगुरु पद पंकज नमी; अंति: लालविजय नमि कर जोडि, गाथा-४५. ३३५६२. सिद्धदंडिकास्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, ३४३७). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जंउसभ केवलाओ अंतमूह; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: जंके० जे उसभ के०; अंति: वधारिएए विशेषार्थ. For Private And Personal use only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३५६३. परमानंदपचवीसी स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४७, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. जीवणसिह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १३४, जैदे., (२७४१३, ४४३२-३४). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजीगणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंपन्नं; अंति: परमं पदमात्मन:, श्लोक-२५. परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आनंद आत्मा अनुभवता; अंति: ते प्रतेइ पांमई. ३३५६४. सालभद्रनी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, चैत्र शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. बाधलपूर, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्रावि. जमानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, ८x२४-२६). शालिभद्रमुनि सज्झाय, ग. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवालीया तणे; अंति: समयसुंदरनी वाण, गाथा-३४. ३३५६५. साधु पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१३,१३४४१). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: करि मिच्छामि दुक्कडं. ३३५६६. आत्मभावना व श्रावकमनोरथ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२७४१३, १५४४२). १.पे. नाम. आत्म भावना, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, प्रले. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ मा.गु., प+ग., आदि: धन्य हो प्रभु संसार; अंति: करीने वंदणा होज्यौ. २. पे. नाम. तीन मनोरथ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्रावक मनोरथ, मा.गु., पद्य, आदि: पहिले मनोरथेसमणो; अंति: काले एहवो मुझने होजो. ३३५६७. (+) वीरथुई सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. लाडुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२.५, ५४४०-४५). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणामाहणा; अंति: __आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: काले इम हुं कहुं छु, (वि. प्रत का ऊपरी भाग जीवाणु भक्षित होने से आदिवाक्य नहीं भरा है.) ३३५६८. सुबाहुकुमरनो चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १८८७, माघ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. अजरामल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १३४२८). सुबाहुकुमार चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम सुबाहु वखाणीए; अंति: चल्यो एकलो नीराधार, ढाल-४. ३३५६९. ५६३ जीवभेद व पापपुण्य परिवार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१३, १३-१४४२६-३५). १. पे. नाम. जीवनापांचसोत्रेसठ भेद, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *मा.गु., गद्य, आदि: १४ भेद नारकी सात; अंति: मिल्यां ५६३ भेद हुआ. २.पे. नाम. पाप व धर्मनो परिवार, पृ. ३आ, संपूर्ण. ८ बोल पापपरिवार विषयक, रा., गद्य, आदि: पापरो बाप लोभ पापरी; अंति: अवसिआए जसनो गोत्ति. ३३५७०. (+) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पं. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१३.५, २४-२५४१५-१८). १. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतलि नय वसइ जी; अंति: सार्यां आतम काजरे, गाथा-२०. २.पे. नाम. तेरकाठीयानी सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं श्रीगौतम गणधार; अंति: जे जीपइ तस जय जयकार, गाथा-१६. ३३५७१. (#) स्तुति निर्णय प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पिथापुर, प्र.वि. श्रीसुबुधिजिन प्रशादात्।, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १६४३०-५०). स्तुतिनिर्णय प्रकरण, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: चैत्यवंदनमां सूत्रमा; अंति: मेतार्यादिक० जाणवो. ३३५७३. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२.५, १०४३७). For Private And Personal use only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org (२६.५४१३.५, १४४४५). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम आठ मूल प्रकृति; अंति: जीव मुक्ति पुहचै. ३३५७७. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे (२४४१३ १०२४३). शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला, अंतिः पद्मविजय सुहितकरम्, श्लोक- ८. ३३५७४. जांजरीया सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, राज्येगच्छाधिपति पासचंदसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४१३.५, १०४२३-२५). "" झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य वि. १७५६, आदि: सरसती चरणें सीस नमा, अंतिः सांभलता आणंदक, ढाल ४. ', ३३५७५. अढारपापस्थानकनिवारण सझाय, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, जैवे. (२६४१३.५, ९X२७). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलूं कह्यु; अंतिः (-). (पू.वि. सज्झाय १ गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ३३५७६. आठकर्मनी एकसौअठावन प्रकृतिविचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. जिनदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ३३५७९. सझाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२६X१३, ३३X२०). १. पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन- २७ भवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति द्यो मात; अंतिः (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २ गाथा ८ अपूर्ण तक लिखा है.) ३३५७८. आध्यात्मगीता, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२७४१४, ११४३४) अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीइ विश्वहित जैन, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ९ वाड सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी, अंतिः हो तेहने जाउ भामणे, ढाल - १०. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामि स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. ३८७ सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंधरस्वामिजी, अंति: हंस० दरशन दीजे नाथ, गाथा-१६. ३. पे. नाम, दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. ३अ, संपूर्ण दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजिइ, अंति: मुगति तणां फल पाव, गाथा- ६. ४. पे. नाम, भीडभंजन स्तवन, पू. ३अ. संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्या माटे साहिब साहम; अंति: लाभनो रहिउं लाछो, गाथा - ५. ५. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ३३५८०. पंचमी तपमहिमा स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०-९ (१ से ९) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे., (२४१३.५, ३०X१९). For Private And Personal Use Only ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पासजिनेसर, अंति: (-), (पू.वि. ढाल -३ गाथा-४ तक है.) ३३५८१. (+) विविधविचार संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५X१५, ८-१६x४८). १. पे. नाम. आलोयण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: अणगल जल वावर्यइं; अंति: नवकोडाकोडि मणुआणं. २. पे. नाम. चक्रवर्तीनी ९ सेना, पृ. १अ, संपूर्ण. चक्रवर्ती ९ सेना, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. मनुष्यनेसमुर्छिमजिवना १४ स्थानक, पृ. १अ, संपूर्ण. समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वडिनिती में १ लघुनित; अंति: समुर्छिम जिव उपजई. ४. पे. नाम. प्रस्ताविक गाथासंग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. प्रस्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: उसभस्सपीआनागेसेसाण; अंति: अभव्वजीवा न पावति, गाथा-२१. प्रस्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवना पीता; अंति: वाना अभव्यने नहोइं. ५. पे. नाम. पच्चक्खाणआगार गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: फासिअ१ पालियर सोहिय; अंति: तस्समिच्छामी दकडं, गाथा-२. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पचखाण विधे करी; अंति: मेठ घनचिताय आंबिल१. ३३५८२. दशपच्चखाण व चौदनियम गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृश पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१४, ४४३२). १. पे. नाम. दशपच्चखांण सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गेएसुरे नमूकारसीय; अंति: आराहिअंतस्स मिछामि. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यना उदयथी मांडी; अंति: रीते आराधु ए शुधि. २. पे. नाम. चौदनियम गाथा सह टबार्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचित दव्व विगइ वाहण; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. श्रावक १४ नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पाणि फल बीज दांतण ते; अंति: भातपाणीनुं मानराखे१४. ३३५८३. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१५, १२४३१). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: प्रसीद परमेश्वरी, श्लोक-३६. ३३५८६. अजितशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३१, श्रावण कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पाडला, प्रले. डामर दोसी; लिख. श्रावि. बाईधोरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सं.१९०९ के फागुण वद ११ को लिखित गोरजी गोतमचंद की प्रत के ऊपर से यह प्रतिलिपि की गई है।, जैदे., (२२.५४१३.५, १४४२७-३२). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: अजिअसंति जिणनाहस्स, गाथा-४२. ३३५८८.(+) चतुःशरण प्रकीर्णक व कायस्थिति प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, पू.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक नंबर १ से ३ क्रमशः लिखा है परंतु प्रथम कृति मात्र अंतिम ४ गाथा ही है इसको दर्शाने के लिए प्रथम पत्र घटते किया गया है।, प्रले. तलजाराम बारोट; लिख. श्राव. प्रेमचंद सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१४, ६४३५). १. पे. नाम. चतुःशहण सह टबार्थ, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. मात्र अंतिम ४ गाथा है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुखनो ते माटि ध्याओ. २. पे. नाम. कायठिई प्रकरण सह टबार्थ, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ* मा.गु., गद्य, आदि: हे जिन ताहरा दर्शनथी; अंति: हवि मोक्षपद शीघ्र दइ. For Private And Personal use only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३८९ ३३५९०. माणभद्रजीनो छंद, संपूर्ण, वि. १९२५, वैशाख शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१४.५, १२४२५). माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरस्वती, अंति: लाख रीज मो जाल है, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) ३३५९३. विविधतपगणणो संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२८.५४१५, १४४४९). विविधतपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ पिस्तालिस आगमनो; अंति: पद १२ कोडी ५० लाख. ३३५९४. जोगशतक-भावशतक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२९.५४१४, १४४३९). आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: उप्पंजत्ता सिवंति, श्लोक-८८. ३३५९९. कल्प संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२३, फाल्गुन शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. रविविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अजितनाथ प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (८५४) यादृसांपूस्तका दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१३.५, १२४३८). १. पे. नाम. विजययंत्र कल्प, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पुव्वंचेईनेरईए उत्तर; अंति: श्रीविजय यंत्रोयम्, श्लोक-२६. २.पे. नाम. आदिदेवपुराणे जैत्रपताका यंत्रकल्प, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. जयपताका यंत्रकल्प-आदिदेवपुराणे, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: पूर्वनैऋचोतरा वायूमध; अंति: संपूर्ण ज्ञेयम्, श्लोक-२२, (वि. अंत में खंड तथा पूजोपकरण आदि सूची दी गई है.) ३३६००. नवब्रह्मचर्य वाड, संपूर्ण, वि. १९५६, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. हठीसंग मानसंग बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३१४१५, १०४३५-३९). ९ वाड सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: वाडि राख्यो निर्मली, ढाल-१०. ३३६०२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. कुल ग्रं. २८, जैदे., (३०.५४१५.५, १०४३५). १.पे. नाम. रहनेमी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि; अंति: निर्मल सुंदर देह रे, गाथा-८. २. पे. नाम. नोकारवालीनी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नवकारवाली सज्झाय, पंन्या. रुपविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: करी पडीकमणो प्रेमथी; अंति: तो नरसुर शिवसद्म, गाथा-९. ३. पे. नाम. मेघमुनि सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावेरे मेघ; अंति: म्हारा मनडानी आश, गाथा-५. ३३६०६. उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन-९-नामि पविजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४१२.५, १५४३९-४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. ३३६०७. ऋषभदेव व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. मनरूपहंस (गुरु ग. प्रधानहंस); पठ. उपा. मूलचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १५४३७). १.पे. नाम. श्रीऋषभदेव स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. २. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वनाथजीरो स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधबीजं ददाती, श्लोक-११. ३३६०८. लोच विधि व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८x१२.५, १४४४४-४७). १.पे. नाम. लोच विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. प्रा., गद्य, आदि: पच्चइएण लोओ कायव्वो; अंति: सावण पवेयणाइ न करेइ. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३६०९. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (३१X१६, २५x५५). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि मनना मनोरथ सवि फळ्या अंतिः ए घर घर मंगलमाल, गाथा-८. २. पे. नाम. मुनिआगमने विनंती सज्झाय, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण, पे. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित. गुरु आगमन गहुंली, मु. मणिउद्योत, मा.गु., पद्य, वि. १९१४, आदि: श्रीसंखेसर पाये नमी, अंतिः पेरे दया पालो शीववास, गाथा २७. ३. पे. नाम. विहारविनंती सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. गुरुविहार विनती, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पाये अंतिः ए विनति चितमा धार, गाथा २०. ३३६१०. सीखामण छत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (३१x१५.५, ३३४८४). शिखामणछत्रीसी, पंडित. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सज्जन नर, अंतिः शुभवीर वाणी मोहनवेली, गाथा - ३६. י' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६११. साधुपाक्षिक अतिचार व छींकविचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५४ आश्विन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पू. ३, कुल पे. ६, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. प्रभु प्रोयत, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (३६X१५, ११x४८). १. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार छे.मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०, अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. २. पे. नाम. पाक्षिक छींक विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. छींक विचार, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदि जो अतिचार कह्या पहले अंतिः करिबुं छींक दोस टले. ३. पे. नाम. वंदना, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. पक्खीखामणा, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय अंतिः नित्थारग पारगा होह, आलाप ४. ४. पे. नाम. साधुअतिचार चिंतवनगाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचितवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः सयणासणन्नपाणे, अंतिः वितहायरणे अईयारो, गाथा- १. ५. पे. नाम. स्थापनाचार्य कल्प, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. स्थापनाचार्य विधि, सं., पद्य, आदि स्थापनाविधिप्रवक्षा, अंतिः ष्वर्थेषुसिद्धिवि, श्लोक १०. .पे. नाम, विशेषाविशेष विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण स्थापनाचार्य विशेषविधि, सं., गद्य, आदि: संध्यायां दुग्ध मध्य, अंतिः तदा राज वस्यकृत्. ३३६१३. शारदाष्टक व लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैवे. (३६४१४.५, १२X४८). 3 " १. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंत समस्तलोक, अंति: भवत्युत्तम संपदः, श्लोक - ९. २. पे नाम. लोक संग्रह, प्र. १आ- ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३६१४. आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु, नवलरत्न (गुरु मु. ऋषभरत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३५.५X११, ७X५५). आलोचना लेने की विधि - तपागच्छीय, गु., प्रा., प+ग., आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (वि. ऊपरी भाग कटा होने के कारण आदिवाक्य नहीं पढा जा रहा है.) ३३६२१. पंचपरमेष्ठी मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (३४.५X१३.५, १५६७-८२). पंचपरमेष्ठी मंत्र संग्रह, प्रा. सं. गद्य, आदिः सिद्धेभ्यः कानिचित् अंतिः वादशास्त्रानुसारतः, " For Private And Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३३६२२. अंगस्फुरण, विविधविचार व मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे, ३, जैदे. (३५.५४१४, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे, नाम, मंत्र संग्रह, प्र. २अ संपूर्ण, ४२X१७-२०). १. पे. नाम. अंगपुरकण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. अंगस्फुरण विचार, मु. हीररत्न, मा.गु., पद्य, आदि: माथै फुरके पुहवीराज, अंतिः वाणि जिसी गुरु भणी, गाथा-२१. २. पे नाम. विविधविचार संग्रह, पू. १आ- २अ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३३६२३. संतिकरं स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (३५X१४, ११x४६-४७). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं, अंति: सिद्धी भणई सीसो, गाथा - १४. संतिकरं स्तोत्र - टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीमुनिसुंदरसूरि; अंति: चिद्विरोध उद्भावनीय. ३३६२५. गजसुकुमालमुनी सीज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४१, कार्तिक शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. चाणसमा, प्रले. मु. केशरविजय (गुरु पं. गुलाब); गुपि. पं. गुलाब, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (८५५) भग्न प्रष्टी कटी ग्रीवा, जैदे., ( ३५X१४, १२X४१-४२). गजसुकुमालमुनि सज्झाय. ग. देवचंद्र, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि द्वारिका नगरी ऋद्धि: अंतिः सुगुरु सहाय रे, ढाल -३, गाथा - ३८. ३३६२६. (+) चातुर्मासीकृत्य वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२७.५x१२.५, , १४X५२-५४). मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह प्रा.मा.गु. सं. पण, आदि (-); अंति: (-). " 1 चातुर्मासिक व्याख्यान, आ. विजयलक्ष्मीसूरि. सं., पद्य, आदि आषाढ्याख्यचतुर्मास्य अंतिः सुसाध्यशालिभिः, ३३६२७. सुकनावली व मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१० चैत्र शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पू. ४, कुल पे. २, जैवे. (३३.५४१३, १०X३९-४४). १. पे. नाम. सुकनावली, पृ. १अ - ४आ, संपूर्ण. शुकनावली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: वीरदेवं नमस्कृत्य के, अति उपनी प्रमाण चढसी. २. पे नाम, मंत्र संग्रह, प्र. ४आ, संपूर्ण ३९१ ३३६२९. नवकारमंत्र सह बालावबोध व पल्योपममान विचार, संपूर्ण, वि. १८७६, भाद्रपद कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. खजवाणा, प्रले. पं. दीपसुंदर (कवलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३३X१०, १२X४५). १. पे. नाम. नवकार सह बालावबोध, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नवकारमंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९. For Private And Personal Use Only नवकार महामंत्र- वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: माहरओ नमस्कार, अंतिः भणी सिद्ध वडा कही. २. पे. नाम. पल्योपमनो मान, पृ. १आ, संपूर्ण. पल्योपममान विचार, रा., गद्य, आदि : आंख मीची उघाडीए एतला; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३३६३०. ककावत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (३३४१३, ११४४२) ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: सीस जीवो ऋष इम भणइ, गाथा- ३३. ३३६३१. हिंगुल प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२७.५x१३, १३x४८). " " हिंगुल प्रकरण, उपा. विनयसागर सं., पद्य, आदिः श्रीमच्छ्रीवासुपूज्य, अंति: ( ) ( पू. वि. राग प्रकरण तक ही है.) ३३६३२. (+) ललितछंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (३३X१३, ५X१३). ललितछंद, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: जैनदेव वंदी करी करु; अंति: खोडीदास० जोड ए कही, गाथा- २३. Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३९२ २३६३३. सीमंधरस्वामिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (३३४१२.५, ७४३९-४२). " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर विनति अंतिः सुजश विलासने वरशे रे, गाथा- ३८. 1 २३६३४. नेमजीना चोक, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. कुल ग्रं. ४२, जैवे. (३२.५x१२ ९४५३-५९). नेमिजिन लावणी, मु. माणेक मा.गु., पद्म, आदि: श्रीनेमि निरंजन बाल, अंतिः गावे लावणी मनने कोडे, ढाल-४, गाथा - १६. २३६३५. सकलत्रैलोक्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२७.५४१३, १२४३४). 1 " 1 त्रैलोक्य स्तव, सं., पद्य, आदिः सद्भक्ता देवलोके रवि, अंतिः वानि चैत्यानि यानि श्लोक-१०. ३३६३६. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. धोलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२.५, १३×३२). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म, अंति: कांति सुख पावे घणो, יי ढाल - २, गाथा - २४. ३३६३७. गौतमऋषि कुलक, वीर स्तुति सह टवार्थ व ८ अनंताद्रव्य विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. मु. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे (२६.५X१२, ५-६X३७-३८). १. पे. नाम. गौतमऋषि कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य, आदिः परिहरियरज्जसारो अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, יי पू. वि. वक्षस्कार- १, गाथा - २० है . ) दानशीलतपभावना कुलक- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः परिहर्यो छे राज्यरूप, अंतिः जिनधर्म हुंते पामै संपूर्ण. २. पे. नाम. वीर स्तुति सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं, अंति: सनो देवी दया दंभा, श्लोक - १. महावीरजिन स्तुति-टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: वीरस्वामीनें नित्यें अंति: उपद्रव प्रते टालती. ३. पे. नाम. आठअनंता द्रव्यविचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. ८ अनंताद्रव्य विचार, मा.गु, गद्य, आदि: साधना जीव अनंता १ अंतः ज्ञान अ. ७ अलोकअन. ८. ३३६३८. (+) मुनिमालिका संपूर्ण वि. १८७९ आश्विन अधिकमास कृष्ण, ७ श्रेष्ठ, पृ. ३. ले. स्थल, कृष्णगटनगर, प्रले. हीरानंद मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ८३, जैदे., ( २६.५X१२.५, १२X३६). मुनिमालिका स्तवन ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पाय अंतिः फलै सदा सदा कल्याण, गाथा - ३६, (वि. ढाल -३ है.) ३३६३९. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. गोतरकाग्राम, प्रले. ग. कस्तुरविजय (गुरु ग. मोहनविजय); गुपि. ग. मोहनविजय, पट. पं. चतुरविजय (गुरु पंन्या. हेमविजय); गुपि पंन्या. हेमविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (३२४१३, ३x४६). १. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र, पृ. १अ - ४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य, अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. २. पे. नाम, औषध संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औषध संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३६४० (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति-चित्रबंध काव्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३२x१३, १५X४५). चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र - चित्रबंधकाव्य, मु. सत्यसागर, सं., पद्य, आदि: दिवादिवादेवविदेवदेवं, अंति: ददरं सुसुरं ददं, श्लोक-२५. ३३६४१. छंदकोस, संपूर्ण वि. १६६९, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, राजपाटिकानगर, प्रले. पं. बालाजी मुनि ( खरतरगच्छ ); पठ. मु. धर्मराज (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (३१x१४, १३४५४-५८). प्राकृत छंदकोश, प्रा., पद्य, आदिः आजोवणडियाणं सुरनर, अंतिः इहयं छंदस्स को संमि, गाथा ७७. For Private And Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३९३ ३३६४३. अडिओसूत्र सह टीका व क्षामणासूत्र सह टिप्पणक, संपूर्ण वि. १७६४ श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. भावरत्न, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ, कुल ग्रं. १०५ जैदे. (३०x१४, १४४५५-७८). १. पे. नाम. अब्भुट्ठिओसूत्र सह टीका, पृ. १अ, संपूर्ण. अडिओमिसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छा० संदि० अब्भुः अंतिः मिच्छामि दुक्कडम् आवश्यक सूत्र-गुरुवंदनसूत्र की टीका, आ. यशोदेवसूरि. सं., गद्य वि. १९८०, आदि इच्छामि अभिलषामि, अंति पत्तिरूपमपराधक्षामणं. २. पे नाम, पाक्षिकक्षामणकसूत्र सह टीका, पृ. १अ २आ, संपूर्ण क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंतिः नित्थार पारगा होह, आलाप-४. क्षामणकसूत्र- अवचूरि. सं., गद्य, आदिः यथा राजानं पुष्पमाण, अंतिः एवेवमितिव्यदोषः. ३३६४४. क्षामणकसूत्र सह अवचूरी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., मू+अवचू. आलाप-२ तक ही है., प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे., (२७.५४१३, १५४४१). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं, अंतिः (-). क्षामणकसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यथा राजानं पुष्पमाण; अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६४५. साम्यशतं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. पाटडी, प्रले. श्राव. अमृतलाल हंसराज सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३०.५X१४, १३५१). साम्यशतक, आ. विजयसिंहसूरि, सं., पद्म, वि. १२वी, आदि: अहंकारादिरहितं; अंति: हृदामुज्जागरूकं हृदि, श्लोक-१०६. ३३६४६. सर्वार्धनिराकरण वादस्थलं संपूर्ण, वि. १९५७, माघ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, पाटण, प्रले. पुष्कर ब्राह्मण, अन्य रामनारायण (औदिच्यसहस्रज्ञा) (औदिच्यसहस्रज्ञा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३१X१२, १६x६६). सर्वार्थनिरासस्थल, सं., गद्य, आदिः यः कश्चिद्विपश्चिदिह अंति: दिग्मात्रवादस्थलं. ३३६४७. (+) प्रास्ताविक लोक संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७X१३.५, ७X३७). प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि : आहारनिद्राभयमैथुनानि; अंति: महिलाचरियं न जाणंति, श्लोक-२२. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि : आहार निद्रा भय मेथुन, अंति: पंडीत पिण न जाणे. ३३६४८. (+) साधुना ८ अतीचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. जीवणविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३, १२४३९). साधुपाक्षिक अतिचार .मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अति: तस्स मिच्छामिवुकडं. ३३६४९. आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. अमदावाद, प्रले. प्रहलाद मोहनलाल बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (३०x१३.५, १४४३५). आदिजिन स्तव, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपुंडरिकाचलहस्ति, अंतिः स्यात् सदा शर्मदाता श्लोक २१. ३३६५०. पर्याप्तागर्भजमनुष्य विचार व प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी सह टीका, संपूर्ण वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल मेईयाग्राम, जैये. (२७४१२.५, २-८३२-३५) १. पे. नाम. पर्याप्तागर्भजमनुष्यभेद विचार सह विवेचन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र - गर्भजपर्याप्त मनुष्यभेद विचार, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: मनुस्साणं भंते केवइआ: अंतिः भवतीति स्थितं, २. पे. नाम. प्रदेशीनृप प्रश्नोत्तरी सह टीका, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी, प्रा., पद्य, आदि: अजय १ अज्जा २ कुंभ अंतिः भारोवाह १० पव्विवयण, गाथा २. प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी- टीका, सं., गद्य, आदि: केवई देशे श्वेतांबि; अंतिः नृपस्योत्तरो दत्तः. ३३६५१. वज्रपंजर स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३३, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२७.५४१३, १२४३३). For Private And Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. आत्मरक्षा नवपदनू वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्टी नमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २. पे. नाम. जैनमंत्र संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंग शुद्धि आदि मंत्रों का संग्रह है.) ३३६५२. यतिप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७X१२.५, १२४४१). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते. चत्तारि०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ३३६५३. यतिप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७७१२.५, १२४४२). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ३३६५४. श्रावक प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रावण शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. बिणोलो, प्रले. मु. मंगलसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, १७४३८). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: वंदामि जिणे चोविसं. ३३६५५. पंचपरमेष्टीस्तोत्र सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९४८, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. सीताराम मनीराम व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४१२.५, १-८४३८-४३). पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभर अमर पणय; अंति: पुत्थय भरेहि, गाथा-३५. पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र-अवचूरी, सं., गद्य, आदि: भक्ति भरामर प्रणतं; अंति: (१)पठत पुस्तकभरेण, (२)साधव सदा स्मरतः. ३३६५६. चउवीसदंडक विचारछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७४१२, ११४३७-३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विणत्ति अप्पहिया, गाथा-४४. ३३६५७. स्थापनाकल्प सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१३, १२४३५). स्थापनाकल्प सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूरव नवमथी उद्धरी; अंति: वाचक यश गुण गेहरे, गाथा-१५. ३३६५८. स्थापनाकल्प सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १०४३३). स्थापनाकल्प सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूर्व नवमाथी उद्धरी; अंति: वाचक यश गुण गेहरे, गाथा-१५. ३३६५९. समवसरण स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (३१x१४, १-४४४८-७३). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलित्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिनं प्रणम्य वयं; अंति: मोक्षपदस्थंकरोतु. ३३६६०. लघुशांति स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (३०.५४१४, २४६६-६७). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति स्तव-वृत्ति, ग. धर्मप्रमोद, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीशांतये श्रीमंत, (२)श्रीमंतंबोधिदं नत्वा; अंति: पदयायादित्यर्थः, ग्रं. २१७. ३३६६१. दिक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२८.५४१४.५, १५४३९-४२). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम दिक्षा आपवानु; अंति: नोकारवाली गुणावे. ३३६६२. मृतकसाधुपरिष्टापन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२८x१४, १२४३५-३८). साधुसाध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्नान करावQ; अंति: पछे श्लोक कहेवो. ३३६६४. प्रश्नोत्तररत्नमालासूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनीलाल भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१३, १०४२८). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. For Private And Personal use only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३९५ ३३६६५. योगसार-चयनितश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५७, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पाटडी, प्रले. श्राव. अमृतलाल हंसराज सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९x१३.५, १३४४५). योगसार-चयन, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: विध्वंसयति लीलया, श्लोक-६२. ३३६६६. वृद्धिविजयगणिनिर्वाण भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२९x१३.५, ११-१२४३९-५६). वृद्धिविजयगणिनिर्वाण भास, क. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेमै प्रणमी पाय; अंति: जिम लहो सुख संपदा, गाथा-८४. ३३६६७. धर्मनाथ आत्मज्ञानप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८३, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले.पं. विवेकविजय; पठ. कुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १६४५१-५४). धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतवू, अंति: विनय विनय रस पूर, गाथा-१३८. ३३६६८. सिद्धांत स्तव व जिन स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३.५, १३४३३). १.पे. नाम. सिद्धांत स्तव, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा गुरुभ्यः श्रुत; अंति: तत्समागमनोत्सवं, श्लोक-४५. २.पे. नाम. जिनस्तुति संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है। जिन स्तुति-प्रार्थना संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अद्या भवत् सकलता नयन; अंति: सेलंतमहं थुणामि, श्लोक-६. ३३६६९. ६२ मार्गणा बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७.५४१४, १३४२७). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३३६७०. असझाय व बीसभाषा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१४, २१४१३-२९). १.पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धूआरि जे पडे ते असीज; अंति: ढुकडा हूइ तो असज्झाई. २.पे. नाम. २० भाषा साधुने न बोलवी, पृ. १आ, संपूर्ण. साधु को न बोलने की २० भाषा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जवयणय १ समत्थ २ वचणा; अंति: भाषा साधुने न बोलवी. ३३६७१. इंद्रियपराजयशतक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. *ग्रंथ के कुल ४ पत्र हैं. लेकिन पत्रों के दोनों ओर संख्या दी गयी है, इसलिए ७ तक की संख्या है।, जैदे., (२७४१४, १३४५०-५२). इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिअसूरो सो; अंति: संवेग रसायणं निच्चं, गाथा-९८. ३३६७२. अक्षयनिधि तपआराधना विधि, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रावण शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. पंन्या. धर्मविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१४, १०-१२४४८-५६). __अक्षयनिधितप आराधना विधि, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: ज्ञानपद भजीये रे; अंति: शेषविधि गुरुगम्य. ३३६७३. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७.५४१४, १२-१३४३४-३७). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ३३६७४. (+) वीरजिनस्तुति संग्रह व पार्श्वनाथ चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१४, १४४३५). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पत्तित्रुटितत्रुटितर; अंति: वसापात्वसौ वर्द्धमान, श्लोक-१. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पापा धाधानि धाधा; अंति: वसापात्वसौ वर्द्धमान, श्लोक-४. ३. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, प्रले.ग. मेरुविजय, प्र.ले.प. सामान्य. __ महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: महारमा वीर करांगतार१; अंति: मे भवतादमाया, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तूति, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीमहंतुल्य सती; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक-९. ३३६७५. स्थापनाचार्य विधि संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. बदरीनारायण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१४, ६४३८). १.पे. नाम. स्थापनाचार्य विधि सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्य विधि, सं., पद्य, आदि: स्थापनाविधिप्रवक्षा; अंति: ष्वर्थेषुसिद्धिदि, श्लोक-१०. स्थापनाचार्य विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: थापनानोविधि ते प्रति; अंति: सिद्धिना देणहार छई. २.पे. नाम. स्थापनाचार्य विशेषविधि सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्य विशेषविधि, सं., गद्य, आदि: संध्यायां दुग्ध मध्य; अंति: तदा राज वस्यकृत्. स्थापनाचार्य विशेषविधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सांजई समयई दूधमांह; अंति: तो राजानई वस्य करई. ३३६७६. सिद्धपंचासिका बोल यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१४, १७४२४-३२).. सिद्धपंचासिका बोल यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: एके समे मोक्ष संसार; अंति: ते अपडवाई एके समे. ३३६७७. एकसोपांच बोलयंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७.५४१४, ३७४१०-२८). जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), (वि. जीव पर्याप्ता अपर्याप्ता विचार संग्रह.) ३३६७८. एकसो पांच बोलयंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७.५४१४, २९४१६). जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३३६७९. नरकभूमिविवरण बोलयंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७.५४१४, १९४१७). नरकभूमिविवरण बोलयंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३३६८०. बासठ मार्गणा बोलयंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१४, ३४४१८). ६२ मार्गणाउदय यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३३६८१. विविधक्षेत्रे जीवउपस्थिति बोलयंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१४, १५४१०). ५६३ जीव भेद यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३३६८२. अट्ठाणुबोल यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७.५४१४, ३७४२३). ९८ बोल, मा.गु., को., आदि: सरवथी थोडा गर्भज; अंति: जीव वीसेषाधीक तेमां. ३३६८३. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ७, जैदे., (२७.५४१३.५, १६४५१-६०). १.पे. नाम. अनुकंपाछत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अनुकंपाछत्तीसी-समकितविषये, मु. ज्ञानसुंदर, पुहि., पद्य, वि. १९७२, आदि: समकितरत्न सीरोभणी; अंति: गयबर ___ करदो बेडा पारजी, गाथा-३७. २. पे. नाम. दानछत्तीसी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. गयवर, मा.गु., पद्य, वि. १९७२, आदि: आदिनाथ प्रणमु सदा; अंति: ढाल दान की खासजी, गाथा-३७. ३. पे. नाम. किवाडविषये स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-द्वारपिधानविषये, मु. गयवर, रा., पद्य, वि. १९७२, आदि: पाखंडि किवाड जडणां; अंति: काति वद सातम सनीवारो, गाथा-१६. ४. पे. नाम. ओसीया वीरजिनवाणी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-ओसीयातीर्थ, पुहिं., पद्य, आदि: मंगल शांशनधीसजी मंगल; अंति: वाचौ नर और नार, गाथा-५. ५. पे. नाम. ओसीयातीर्थ वीरजिनवाणी स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. महावीरजिनवाणी स्तवन-ओसीयातीर्थ, मु. गयवर, पुहि., पद्य, आदि: दों मूर्ती मोहनगारी; अंति: आपको चरणांमे आयो रे, गाथा-११. ६. पे. नाम. ओसीयाऋषभजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३९७ आदिजिन स्तवन-ओसीयातीर्थ, मु. गयवर, रा., पद्य, वि. १९७२, आदि: मासु मुढे बोल बोल; अंति: गयवर० प्रणमु पाया रे, गाथा-११. ७. पे. नाम. जिनवाणी स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. गयवर, पुहिं., पद्य, वि. २०वी, आदि: जिन वाणी इसिरे इसिरे; अंति: गयवर वंदे वारंवार, गाथा-२५. ३३६८४. उपदेश सित्तरी, संपूर्ण, वि. १९३७, भाद्रपद कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मोहन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १५४४३). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत जोज्यो आपणी मन; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-७१. ३३६८५. संवेगद्रुमकंदली, संपूर्ण, वि. १९६४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. श्रीकृष्ण मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. **ग्रंथ के कुल ४ पत्र हैं. लेकिन पत्रों के दोनों ओर संख्या दी गयी है, इसलिए ७ तक की संख्या है।, जैदे., (२७.५४१३.५, १५४४२). संवेगद्रुमकंदली, आ. विमलाचार्य, सं., पद्य, आदि: दूरीभूतभवार्तिभिः; अंति: बद्धो भवद्भ्योंजलिः, श्लोक-५२. ३३६८६. समकीतस्वरूप व जैनश्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८.५४१२.५, १६४५७). १.पे. नाम. समकित स्वरूप, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सम्यक्त्वस्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीदेवाधिदेवना चरण; अंति: (-). २.पे. नाम. अज्ञात जैनश्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३३६८७. कायस्थितिभवसंबेध सत्व सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. देवशंकर रघनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२८x१२.५, ३-७४२६-३०). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: वर्द्धमानं जिन; अंति: पदं ददस्व ममेति शेष:. ३३६८९. देवसूरि जीवनप्रसंग, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२८x१२.५, १५४४९). देवसूरि जीवनप्रसंग, सं., गद्य, आदि: अन्यदा भृगुकच्छे; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३३६९०. (+) उपाधि प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४१२.५, १५४४६-५१). उपाधि प्रकरण, सं., गद्य, आदि: उपाधिस्तु साधना; अंति: अतोनेदन दूषणमिति. ३३६९१. आनंदविमलसूरि रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२८x१३, १७४६१-६५). आणंदविमलसूरि रास, मु. वासण, मा.गु., पद्य, वि. १५९७, आदि: सकल पदारथ पामीइ जपता; अंति: णमि ए आणी नरमल चित्त, (वि. गाथा-११० के बाद गाथांक नहीं है.) ३३६९२. औपदेशिक पद व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३, १४४३०-४१). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. औपदेशिक पद-नरभव दुर्लभता, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सतगुरु यो दरसाया रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. समकित स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु.क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित द्वार गभारे; अंति: खेमाविजय० आगम रीत रे, गाथा-६. ३३६९३. स्थापनाकल्प सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२८x१३, ११४३९). For Private And Personal use only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थापनाकल्प सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूरव नवमाथी उद्धरी; अंति: वाचक यश गुण गेहरे, गाथा-१५. ३३६९४. (+-) महावीरस्वामीनी सजाय, संपूर्ण, वि. १८७३, माघ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. फतेगढ, प्रले. झवेरचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, १२४२७). महावीरजिन स्तवन-पारणा, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरीहत अनंतगूण; अंति: मनमे मुनी माल, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ३३६९६. (+) स्तवन संग्रह व सझाय, संपूर्ण, वि. १८३८, फाल्गुन कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. नाहडसर, प्रले. मु. आनंदचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२, १७४५३). १. पे. नाम. बाहजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: जंबूदीप मजारहीसहीए; अंति: खेम० पूरै मनरी आस ए, ढाल-२, गाथा-१७. २. पे. नाम. राजेमती सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. खेम, पुहि., पद्य, आदि: राजल कहै सुण माइ सुण; अंति: अविचल हुज्यो ए जोडी, गाथा-११. ३. पे. नाम. चोवीसजिनगुण स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिनगुण स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: ऋषभ जिणेसरदेव अजित; अंति: खेम० सदा चढतैवान ए, गाथा-८. ३३६९७. बूद्धरास व सचितअचित सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२८x१२, १३४४०-४६). १.पे. नाम. बूद्ध रासो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमेविदेविं अंबाई; अंति: सवी टले कलेशतो, गाथा-६५. २. पे. नाम. सचितअचित सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. असणादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमूं श्रीगोत्तमगण; अंति: वीरविमल करजोडी __ कहे, गाथा-१७. ३३६९८. (+) साधु पाक्षिक अतिचार, स्तुति व पाक्षिक आदितप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. पुनमचंद बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३, १०४३२). १. पे. नाम. साधू अतिचार, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. ___ साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. पाक्षिकादितप आलापक, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है। पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एवंगकारे श्रीसाधुतणे; अंति: तप करी पहोंचाडवो. ३३६९९. स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. खेमाविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, १४-१६x४२-४५). स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकारवीकारसार; अंति: उच्छलतिशलिलधाराय. ३३७००. पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७४१२.५, १२४३६). वासुपूज्यजिन स्तवन-पंचकल्याणक, पा. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: मूरत श्रीवासुपूज्यनी; अंति: जगजीव मिलोगा तेहमै, स्तवन-५, गाथा-२५. ३३७०१. सिद्धांतसार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (१७.५४१३, ११४४२). For Private And Personal use only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३९९ रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे उवया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक ३३७०२. धर्मरत्नपरीक्षा, अपूर्ण, वि. १९७०, आश्विन कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८-१५(१ से १५)=३, ले.स्थल. साद्रिपुरी, प्रले. भवानीशंकर शर्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१२.५, १०४३५-३७). धर्मरत्न परीक्षा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: समीहितं समागच्छति. ३३७०३. (+) छंदकोष, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२.५, १४४४७). छंद कोश, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सामन्नेणं वारस अढारस; अंति: पढिज्जमाणो सुहं दयओ, गाथा-२४. ३३७०४. बोल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. मु. भगवानदास ऋषि शिष्य (गुरु मु. भगवानदास ऋषि); गुपि. मु. भगवानदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, ११४३१-३५). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३७०५. (+) देशी नाममाला सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७.५४१३, १२४३८-४१). देशीनाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा., पद्य, आदि: गमणय पमाण गहिरा सहिय; अंति: (-). देशीनाममाला-स्वोपज्ञ टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: देशी दुःसंदर्भा प्रा; अंति: (-). ३३७०६. पंचनयगर्भित वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७.५४१२.५, १५४३७-४०). पंचनयगर्भित वीर स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: परे विनय कहि आणंद ए, ढाल-६. ३३७०७. अहारगवेषणाएषणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७७१३, ११४३९). आहारगवेषणा सज्झाय, वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: जी ते लहे सुख संजोग, गाथा-३६. ३३७०८. कुमतिबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७२, आषाढ़ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. बालाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, १२४५५-५७). औपदेशिक सज्झाय-कलिकालबोल, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: अरिहतने प्रणमी करी; अंति: गुण० पूज्यां शिव होय, गाथा-६१. ३३७०९. पोसहविधि-दिवससंबंधिचोपुहरी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७.५४१३, १३-१४४२९-३८). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: रात्रि के पाछिले पहर; अंति: (-). ३३७१०. औपदेशिक छंद-जीवदयाविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१३, १६४३२). दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करु; अंति: विवेकचंद० एह विचार, गाथा-२५. ३३७११. छत्रीसबोल विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२८.५४१३, १५४५१-५५). षट्त्रिंशजल्पविचार संग्रह, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६७९, आदि: ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथ; अंति: (-). ३३७१२. चतुरवीसीजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९१६, चैत्र कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८.५४१२.५, १४४३५). २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: गुनह गंभीर अचल जिउं; अंति: दूर भाव धरी ध्यावं, गाथा-४. ३३७१३. संथारापोरसीसूत्र विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२८x१२.५, १४४३८). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निस्सही नमो खमासमणाण; अंति: (१)सिज्झाय कहणी, (२)पछे संथारे सुववो, गाथा-१४. ३३७१४. (+) हिंसाष्टक सह अवचूरि व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४७, माघ कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. सूर्यपुर, प्रले. ग. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसूर्यमंडण पार्श्व प्रसादात्., संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२९.५४१२.५, १५४४८-५४). For Private And Personal use only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम हिंसाष्टक सह अवचूरि, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. हिंसाष्टक, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अविधायापि हि हिंसा, अंति: नयचक्रसंचाराः, श्लोक ८. हिंसाष्टक - स्वोपज्ञ अवचूर्णि, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अपारपारावारसंसारतल्प; अंति: बुद्धनयचक्रसंचाराः. २. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. जैन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-) अंति: (-), गाथा-३. ३३७१५. पार्श्वजिन अष्टक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २ वे. (२७.५x१२.५, ९३०). १. पे. नाम. शंखेश्वराष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक - शंखेश्वरमंडन, आ. धर्मविजय, सं., पद्य, आदि: विभोंगिनां सौख्यततिं; अंति: कल्याणपरंपरां शुभाम्. २. पे. नाम. पार्श्वजिन अष्टक-शंखेश्वर, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण मु. धर्मविजय, सं., पद्य, आदिः श्रेयः पतिं श्रीनरदेव अंतिः या प्रभुपार्श्वदेवम् श्लोक-द ३३७१६. चउसरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. वीजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पठनार्थे बाद में लिखा है., दे., (२७.५X१२.५, ११४३३). चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्म, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३. " ३३७१७. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, पाली, प्रले. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७१२.५, १२X३५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उग्गए सुरे नमुक्कारस, अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३३७१८. चतुर्विंशतिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैवे. (२६.५x११, १३x४५-४७)१. पे नाम चतुर्विंशतिजिन वस्तुगृहीतमुक्तयमकमय स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण २४ जिन स्तव - यमकमय, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रथमजिनवरनिखिलनरनाथ, अंति: सकल जगत्त्रय वीर, श्लोक-२५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार, अंति: लावण्यसमइ सदा भाइ, गाथा - २८. ३३७२१. (+) कर्मप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जै.., (२९.५X१२, २२४५०). कर्मप्रकृति - दिगंबरीय, मु. अभयचंद्र, सं., गद्य, आदि: प्रक्षीणावरणद्वैत, अंतिः सुखवीर्वा जिनेश्वराः ३३७२२. वीरजिन २७ भववर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२८.५४१२, १२x४३). महावीरजिन स्तवन- २७ भव, पंडित. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: श्रीशुभविजय सुगुरू; अंति: सेवक वीरविजय जयकरो, बाल-५. ३३७२३. स्तवन संग्रह व आरती, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७X१२.५, १४X३७). १. पे नाम आरती, पृ. १अ. संपूर्ण. नेमिजिन आरती, मा.गु, पद्य, आदि जे जे आरती नेमि, अंतिः निरंजन की आरती गाइ, गाथा ६. २. पे नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सेहेजानंदी; अंति: जिनविजयाणंदे सभावे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: ध्रुवपद रामी हो; अंति: आनंदघन मुजमांहि, गाथा-८. ३३०२४. गहुली, सज्झाय व लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे ३, जैदे. (२५४११.५, १४४४४). १. पे नाम, गुरु सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org ४०१ विजयप्रभसूरि गहुली, मु. लालकुशल, मा.गु., पच, आदिः श्रीगुरु मुहलि पधारी अंति: लालकुशल० रंगीला लाल, गाथा-५. २. पे. नाम. विजयप्रभसूरि सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. ग. उत्तमचंद्र, प्र. ले. पु. सामान्य. मु. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनरायजी पय नमी; अंति: लाल० मनोहरपुर वासी, गाथा- ७. ३. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १आ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन लावणी, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि : आहे अति झीणी अति; अंति: कहिं लबधिविजय करजोडि (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३३७२५. (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ लघुवृत्ति प्रथम अध्याय पाद १-२ संपूर्ण वि. १६वी, मध्यम, पू. ३, पू. वि. प्रथम अध्याय के प्रथम व द्वितीय पाद है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९.५X१२, १६६१). सिद्धमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. गद्य वि. ११९३, आदि: अहं सिद्धिः स्याद; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, सिद्धहेमशब्दानुशासन - स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य परमात्मानं, (२) अर्हमित्येतदक्षर, अंति: (-), प्रतिपूर्ण. " ३३७३०. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे ३, जैदे (२६११.५, ९५३०). १. पे. नाम. अग्यारीस श्रेयांस स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण वि. १८६२, ले. स्थल. पाडलिनगर. श्रेयांसजिन स्तवन, मु. केशराज, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीश्रेयांस जिनवर, अंतिः अग्यारमो जिनवर जयो, गाथा १६. २. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. २अ ४आ, संपूर्ण वि. १८६२, ले. स्थल. पटणानगर, प्रले. मु. गंगा विसन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन प्रणमी पाय अंतिः पानीयै सुख सर्वदा, ढाल ५, गाथा - २५. ३. पे. नाम. पंचमी को वृद्धस्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. पंचमीतिथि वृद्धस्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं सरसति माय, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ३३७३१. स्तुतिचौवीसी व स्तवन की अवचूरि व स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैवे. (२८४११.५, १९६५-६७). १. पे नाम, स्तुतिचतुर्विंशतिका की स्वोपज्ञ अवचूरि. पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. अंतिः स्तुतिचतुर्विंशतिका - स्वोपज्ञ अवचूरि, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., गद्य, वि. ९वी, आदि: पारिजाताः कल्पद्रुमा; बाधमपनीयादिति संबंध, अध्याय- २४. २. पे नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण साधारणजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: गवरायं गयरावं गयरावं, अंतिः सुअजमभयं महप देसु, गाथा-८. ३. पे नाम. साधारणजिन स्तवन की अवचूरि, पृ. ४आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव अवचूरि, सं., गद्य, आदिः गतरागं वीतरागं गदा, अंतिः शेषं कंव्यं. ३३७३२. पार्श्वजिन स्तवन- जिरपल्ली, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्र के दोनों तरफ के किनारे का भाग नहीं है., जैदे., (२८x११.५, १५x५५). पार्श्वजिन स्तवन- जीरापल्ली, सं., पद्य, आदिः यत्पादाग्रलसन्नखेषु; अंति: ( अपठनीय), (वि. पत्र टूटा हुआ होने से अंतिमवाक्य का पता नहीं चल रहा है.) ३३७३३. आदिनाथ फागु, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले सा. महिमलच्छि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कृति रचना के समीपवर्ति काल में ही प्रति लिखी गई हो, ऐसी संभावना है. जैदे. (२९x११.५, १७-१८४५७-६१). " आदिजिन फाग, मु. चारित्रतिलकसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि सिरि सीमंधर, अंति: लछिय पढइं जे फागु, गाथा - ९८. ३३७३४. तिजयपहुत्त स्तोत्र व दुहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जै. (२६४१२, १२३४). For Private And Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ३३७३५. पारणा व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२८x१२, ११४२६). १. पे. नाम. वर्द्धमानस्वामीनुं पारj, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसलाई पुत्र; अंति: कहे थास्ये लीलालेर, गाथा-१८. २.पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. नारकी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान जिन वीनवं; अंति: यामणो परम कृपाल उदार, ढाल-६. ३३७३७. (+) कालकाचार्य कथानक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४११.५, ११-१२४३७-४५). कालिकाचार्य कथा, आ. महेश्वरसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: पंचम्यां विदितं पर्व; अंति: यान नित्यं स कालकः, श्लोक-५२. ३३७३८. (+) शक्र स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ३४२९-३५). शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमोत्थुणं अरिहंताणं; अंति: नमो जिणाणं जियभयाणं. शक्रस्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमु० अर० भग० नमस्कार; अंति: गणधरनउंकीधउं. ३३७३९. गुरुगुणषट्विंशिका सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, पू.वि. गाथा ३९-४० है., अन्य. ग. सूरविजय (गुरु उपा. कीर्तिवजय); गुपि. उपा. कीर्तिवजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र पत्रांक की जगह से टूटा हुआ होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२९.५४१०.५, १०४४६). गुरुगुणषट्त्रिंशत्पत्रिंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पावंतु कल्लाणं, गाथा-४०. गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ दीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: स्म विवृतिमिमाम्, ग्रं. १३००. ३३७४०. (+) ऋषभपंचासिका सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३० अपूर्ण तक है., प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (३०.५४११, १३४५१). ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: (-). ऋषभपंचाशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे जगज्जंतुकल्पपादप; अंति: (-). ३३७४१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. जेठो, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, १६x४१). १.पे. नाम. चतुरथी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. दिः कलाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजीन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: मदमदन रहित नरहित; अंति: बतादुनदुन सतारासतारा, श्लोक-४. ३३७४२. सीखांमण छंद व हो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१३, १४४३३). १.पे. नाम. सीखांमण छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: लक्ष्मी० मन धरजो चोल, गाथा-१६. For Private And Personal use only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ २. पे. नाम. दुहो, पृ. १आ, संपूर्ण. दहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १. www.kobatirth.org " " "" ३३७४३. विधिसंग्रह व पच्चक्खाण, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) =१, कुल पे ३, दे. (२७४१२५, १४४३५). १. पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंतिः सहसागारेणं बोसिरामि २. पे. नाम. संथारा विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एक सागारी संथारो दूज, अंति: लेवे शुभ ध्यान करे. ३. पे नाम. ब्रह्मचर्यउच्चारण विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, (२७.५X१३, १३३५-४०). १. पे. नाम. पोसानी विधि, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: पूर्वक तीनवार उचरै. ३३७४४. पोसह विधि, दशवैकालिकसूत्र-प्रथम अध्ययन व पगला विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम थापना थापी राई; अंति: पछे पार करे. २. पे नाम. दशवैकालिकसूत्र द्रुमपीतीचाज्झयण, पृ. ४अ, संपूर्ण, दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किहं, अंतिः तेण दुच्वंति साहुणो, गाथा ५. ३. पे. नाम. बारेमास पगला विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा. मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३७४५. रात्रिचोपुहरीपोसा विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७.५x१३, १२४३२-३७). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., पग, आदि तथा जे श्रावक उपवासी, अंतिः आप आहार करे. ३३७४६. अठपहरी पोसह विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२७.५X१३, १३-१४x२९-३८). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि: रात्री पिछली घडी २; अंतिः पीछे आप पारणो करै. ३३७४७. थापनाकल्प सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८x१३, ११x४०). स्थापनाकल्प सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूरव नवमाथी उद्धरी, अंति: वाचक यश गुण हरे, गाथा - १५. ३३७४८. मौनएकादशी तवन, संपूर्ण वि. १९०४ कार्तिक कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. एवलाग्राम, प्रले. पं. नेमविमल, लिख श्राव. अंबाईदास नगीनदास साह, प्र. ले. पु. सामान्य प्र. वि. श्री अवंतिपार्थ प्रसादात् एकादशी उद्यापन मध्ये लिखा है., दे., (२७.५X१३, १४४३४). मौन एकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद, अंति जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल ४, गाथा -४२. गाथा - २४. कायस्थति प्रकरण - अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: सामान्यतो जीवत्व; अंति: सिद्धास्तत्पदसंपदम्. ३३७५०. स्थापनाकल्प सजाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२७.५X१२.५, ११४३६) ४०३ ३३७४९. कायस्थिति स्तव सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७.५X१३, २-४X४७-५४). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदंसणरहिओ कायठि, अंतिः अकावपयसंपदेसु, स्थापनाकल्प सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूरव नवमाथी उद्धरी, अंतिः वाचक यश गुण हरे, गाथा - १५. ३३७५१. () समोवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. ११वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. प्रतापविजय, पठ. जेठा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैवे. (२७.५४१२.५, १४४३४). For Private And Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक वार वछदेस आवजो; अंति: रहतां ओछवरंग वधामणां, गाथा-१५. ३३७५३. यतिधर्मबत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२८x१३, ११४४०). यतिधर्मबत्रीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भाव जती तेहने कहो; अंति: जश० ते पामे शिव सात, गाथा-३३. ३३७५४. (+) बृहत्संग्रहणी सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३, ४४२५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: आदौ शास्त्रकाराभीष्ट; अंति: (-), (वि. टीका टबार्थ पद्धति से लिखा है.) ३३७५५. कायस्थिती सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. वास्तव में टबार्थ है, परंतु प्र.ले. ने नाम में बालावबोध लिखा है।, जैदे., (२७४१२, ४४३८-४१). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जिम ताहरा दर्शण रहित; अंति: संपदा प्रति दिओ, ग्रं. १३४. ३३७५७. अजितशांतिजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४१२, ११४४३). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ३३७५८. नवतत्त्व बोल व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१२.५, १४४३८). १.पे. नाम. नवतत्त्व बोल, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १९१०, श्रावण शुक्ल, ३, रविवार, प्रले. जेठा, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसाद्यात्. नवतत्त्व प्रकरण-बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तत्वना ९ भेद जाणवा. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९१०, ?, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ४, गुरुवार. महावीरजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक सीवशुख दायक; अंति: पद्म०पद करी मारा लाल, गाथा-५. ३३७५९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०९, माघ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१२.५, १६४३४). १.पे. नाम. गीरनारजीनु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गिरनारतीर्थ स्तवन, ग. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सेहसावन जइ वसीइं; अंति: श्रीशुभवीर विलसीइं, गाथा-९. २. पे. नाम. वीरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, पंडित. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसलानंदन चिंदन; अंति: वीरकहे पछे देजो आसीस, ___ गाथा-११. ३३७६०. सुगमविवाहशोधन क्रिया व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१२, १४४४१). १. पे. नाम. सुगमविवाहशोधन क्रिया, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८३६, फाल्गुन कृष्ण, १३ अधिकतिथि, ले.स्थल. मेदिनीपुर. विवाह पद्धति, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु वाणी समर; अंति: लिखी जोतिस तणो मरम्म, गाथा-३६. २.पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह-, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: चैत्रस्य द्वितीये; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal use only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३३७६१. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७.५x१२, १६४३७). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद, अंति जिनविजय जयश्री वरी, ढाल ४, गाथा - ४१. ३३७६२. सरस्वतीजी रो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२८x१२, १३४४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी अंतिः वे विद्या परमेश्वरी, गाथा - ३५. ३३७६३. नवकार छंद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-१ ( २ ) =२, जैदे. (२६.५४१२.५, ८x२०). नमस्कार महामंत्र छंद. वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: बंछित पूरो विविधवर, अंति: विविधऋद्धि वंछित लहै, गाथा- १३, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से ९ अपूर्ण तक नहीं है.) ३३७६४. जलजात्रा भास, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै (२७.५x१२.५, १४४४८). जलयात्रा भास, मु. दुर्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोविसिजिन नमः अंति: गलमाल करजो थई उजमाल, गाथा- १६. ३३७६५. अष्टमी स्तवन व सिद्धचक्र स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) ३, कुल पे. २, जैवे. (२६.५x११.५, ११४३९) " १. पे नाम, अष्टमी स्तवन, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि (-); अंति: कांति सुख पांमे घणुं, ढाल -२, ( पू. वि. ढाल - २ गाथा ३ से १५+१ तक है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः नमोनंत संत प्रमोदानं, अंतिः विश्व जयकार पावे, गाथा-२१. ३३७६६. प्रोहितपुत चोढाल्यो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. उग्रसेननगर, प्रले. मु. सुंदररुचि (गुरु ग. नयनरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जै, (२७.५X१२, ११४४०). पुरोहितपुत्र सज्झाय, उपा. सहजसागर, मा.गु., पद्य, बि. १६६९, आदि: सहज सलूणा हो साधुजी, अंतिः मुझ सफल फली मन आस, ढाल - ३. ३३७६७. महादंडक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८५६ कार्तिक शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७४१२, ४X३७-४४). महादंडक स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवंमी भमीओ जिण अंति: सामिणूतर पवदेसु, गाथा-२०. महादंडक स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भिमे० विहामणो भवंमि०; अंति: पद ते देसू० द्यो. ३३७६८. चउविस दंडक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. बजाणा, प्रले. पं. सुभविजय, पठ. श्रावि. फूलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x१२, १२-१३४३९). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊं चउवीस जिणे तसु; अंति: एसा विनत्ति अपहिया, ४०५ ३. पे. नाम. सरस्वत्यष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शारदादेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: प्रथमं भारती नाम अंतिः विद्यादानवर प्रदा, लोक- ९. ४. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण सं., पद्य, आदि: सरस्वती महाभागे वरदे; अंति: देहि विद्यांममेश्वरी, श्लोक-१. ५. पे. नाम. १६ सती स्तुति सह टबार्थ, पृ. २अ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका, अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. १६ सती स्तुति-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: ब्राह्मी सुंदरी२ अंतिः प्रभावती० पद्मावती १६. गाथा ४६. ३३७६९. नाम, स्तवन व स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७ जैये. (२६.५x१२, ११४३०-३९). १. पे नाम. वर्तमानचतुर्विंशतिजिन नाम, पृ. १अ संपूर्ण २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी, अंति: पार्श्वनाथ० महावीरजी. २. पे. नाम. गौतम स्तव, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तव, प्रा. सं., पद्य, आदिः सर्व्वारिष्टप्रणाशाय अंतिः भरहे साहू न सीयंति, श्लोक ५. For Private And Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. वीसविहरमान नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी१; अंति: श्रीअजितवीर्यजी२०. ७. पे. नाम. ११ गणधर नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिजी१; अंति: श्रीप्रभासजी११. ३३७७१. मायाबीज स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७४१२.५, १२४२८). मायाबीज स्तुति, सं., पद्य, आदि: ॐनमः सवर्णपार्श्व; अंति: पदं लभते क्रमात्सः, श्लोक-१६. ३३७७२. बासठमार्गणायंत्र व विविधनाम संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१२.५, १०४३६). १.पे. नाम. ६२ मार्गणाद्वार विचार, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: गइ१ इंदिअर काए३ जोए४; अंति: भागै सिद्ध पदमै छै. २.पे. नाम. १५ योग नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १५ योग नाम-मनवचनकाया के, मा.गु., गद्य, आदि: सत्यमनोयोग १ असत्य; अंति: १५ तेजस कार्मण. ३. पे. नाम. १२ उपयोग नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान २ स्रुतज्ञा; अंति: १२ केवलदर्शन. ४. पे. नाम. १४ गुणठाणा नाम, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति हुंडी में लिखी गई है। १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व१ सास्वादन२; अंति: केवली अजोगिकेवली. ३३७७३. (-) स्तवन संग्रह व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १४४३३). १. पे. नाम. सीद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम नाणी हो केहे; अंति: कांती० सीवसुख पाया, गाथा-५. २.पे. नाम. सीद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमासार सांभलज; अंति: महिमा जीणे जाणीयोजी, गाथा-५. ३. पे. नाम. सीद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १९१०, आषाढ़ शुक्ल, १. सिद्धचक्र स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराहिइ; अंति: कहे नय कविराज के, गाथा-७. ४. पे. नाम. स्नातस्या थोइ, पृ. २अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ३ अपूर्ण तक है., वि. पृष्ठांक २आ तरफ का भाग कोरा है.) ३३७७४. दीपावली चैत्यवंदन संग्रह व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३८). १.पे. नाम. दीवाली चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.. महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, मु. नय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनवर वीर जिनवर; अंति: मिलिया नृपति ___ अढार, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखक ने संपूर्ण कृति को १ गाथा में लिखा है.) २.पे. नाम. दीवाली चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: देव मिलिया देव मिलिय; ___ अंति: धन धन दिहाडो तेह, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखक ने संपूर्ण कृति को १ गाथा में लिखा है.) ३. पे. नाम. दीवाली चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धारथ नृपकुल; अंति: नय तेह गुण खांणि, गाथा-१. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, पूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु.ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मनोहर मुरत महावीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३३७७५. स्तवन, पद, गीत व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२६.५४१२, १५४४१). १.पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहि., पद्य, आदि: हां रे मनमोहन छेह; अंति: रंग रस करी पीधोरे, गाथा-५. २. पे. नाम. अदत्तादानपापस्थानक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. जस, मा.गु., पद्य, आदि: चोरी व्यसन निवारीइं; अंति: जस० पुन्यसुं प्रेमके, गाथा-६. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: एगीररायकुं हमारी; अंति: गीरी कर्म निकंदनारे, गाथा-४. ४. पे. नाम. जिनदर्शनपूजा गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनपूजा गीत, पुहिं., पद्य, आदि: सुख च्याहें तो दरसण; अंति: जीनजीकुं सीस नमाईले, गाथा-५. ५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हारे सीद्धगीरीजी; अंति: रूप० भवोभव पार उतरले, गाथा-४. ६. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. विनितविजय, पुहिं., पद्य, आदि: दील लगारे सीतल नामसे; अंति: विनतविजय जयकारी, गाथा-५. ३३७७६. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, १६४५२). १. पे. नाम. बलभद्रजीनी सीझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारामतिथी श्रीकृष; अंति: मुनि गुण हिअडे धरी, गाथा-१८. २. पे. नाम. सीयल सीझाय नेमराजेमती, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय-शीयल, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: तिन गुपत ताणो भण्यो; अंति: हीर० ते भवपारोरे, गाथा-९. ३. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सरस्वती पद पंकज नमी; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक ३३७७७. पुरुषलक्षण, चौदविद्या व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४२). १. पे. नाम. पुरुषलक्षण संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: लखण लख्यण तेहिज पछे; अंति: प्रमाण तीर्थंकर हूई. २. पे. नाम. चौदविद्या नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सगोवंगाणंशिष्या१; अंति: धर्मशास्त्र१४. ३. पे. नाम. कार्तिकसेठ कथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है। मा.गु., पद्य, आदि: प्रथवी भुषण नगर तिहा; अंति: चेतवंदन करवा उठे. ३३७७८. (-) स्तवन व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १६४३३). १. पे. नाम. सीद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुसल कमलानो मंदर; अंति: दानविजय जयकार रे, गाथा-२३. २. पे. नाम. जैन अज्ञात कृति, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बीच में लिखी हुई है. कल्पसूत्र अपूर्ण व छूटक पाना **, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आदिवाक्य-तेणं कालेणं लिखा है. कृति की ४ पंक्ति लिखकर अपूर्ण छोड दिया गया है. फुटकर कृति.) ३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: नमुं० मोक्ष ग्यांमे, गाथा-५. ४. पे. नाम. वेरमांन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदर जुगमंदर जिन; अंति: नयविजय नमे नीसदीस, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखक ने तीन गाथाओं का १ ही गाथांक लिखा है.) For Private And Personal use only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. श्रीमंद्धरस्वामी चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पेहला प्रणमुं; अंति: नय कहे कर जोड, गाथा-६. ३३७८०. श्रीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १७४४९). सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिन त्रिभुवन; अंति: सेवक सकलचंद दया करो, गाथा-३०. ३३७८१. सझाय संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, १९४३८). १. पे. नाम. मेघकुमार सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: समयसुंदर० भव तणो पार, गाथा-५. २.पे. नाम. नालंदापाडानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नालंदापाडा सज्झाय, मु. हरखविजय, मा.गु., पद्य, वि. १५४४, आदि: मगध देसमाहे वीराजे; अंति: हर्ष ज्ञान प्रकाशोजी, गाथा-२१. ३. पे. नाम. युगमंधरजीन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, पंडित. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जइ युगमंदिरने केहजो; अंति: पंडित जिनविजये गायो, गाथा-८. ३३७८३. डंडक सूत्र, संपूर्ण, वि. १८१९, आश्विन शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. जीतरत्न; पठ. श्रावि. लाधीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ९४२५-२९). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमीउंचऊवीसजिणे तसूत; अंति: एसा वीणती अपहिया, गाथा-४४. ३३७८४. (-) पांचसमिति त्रणगुप्ति सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १७X४२). ५ समिति ३ गुप्ति सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम अहिंसकव्रत्त; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ मनोगुप्ति सज्झाय अपूर्ण तक है.) ३३७८५. उवसग्गहर स्तोत्र-भंडारगाथा सह विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४१२.५, १४४४८). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडार गाथा, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: ॐ णट्ठट्ठमयठाणे; अंति: सव्वेवि दासत्तं. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडार गाथा की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम शुभ मास लिजे; अंति: ___ सर्वभय टलै मनोरथ फलै. ३३७८६. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४४१-४४). ८ प्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तिर्थोदकैर्मिश्रित; अंति: कर्मोछेदनाय फलं यजा०, ढाल-८. ३३७८७. लूंकारी चरचा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-४८(१ से ४८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४१२.५, १०x४८). लुंका चर्चा विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३३७८८. दीपालिका देववंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३३). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: प्रगटे सकल गुणखांणि, (पू.वि. अंतिम स्तवन गाथा ३ अपूर्ण से है.) ३३७९० (-) श्लोक संग्रह व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४१२.५, ११४२८). १. पे. नाम. प्रस्ताविकश्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा. सं., पद्य, आदि: अक्रोधवैराग्यजितेंद्; अंति: नरके गत्तस्य, श्लोक - ६. २. पे. नाम. पार्श्वजीन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस, अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक- ७. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ३३७९३. वारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२६४१२.५, १२४२८). मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-२. ३३७९१. (+) समवसरण स्तव सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे. (२६.५४१३, १३५३१-३५). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलित्थं; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) समवसरण स्तव-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: स्तवीश केवलज्ञानीनी अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३७९४. कुंभस्थापना गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६.५x१२.५, ११४२९-३२). ४०९ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२) तेणं कालेणं० समणे, अंतिः (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कुंभस्थापना गीत, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: इण विध कीजे रे ठवणा; अंतिः रंगे जेम शिव घरणी, गाथा - १३. ३३७९५. परमानंद स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०५, कार्तिक शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. पाटडी, लिय. पं. सुखविजय प्रले प्रेमचंद जेठाचंद ठाकोर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, ५X३३-४०). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदिः परमानंदसंपन्नं अंतिः परमंपदमात्मनम्, श्लोक-२५. परमानंद स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीशुद्धमस्वामि (२)उतक्रीष्टो जे आनंद, अंतिः स्वरुप ते द्वारे छे. ३३७९६. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. सुज्ञानगढ, प्रले. आ. जिनरामचंद्रसूरि पठ. श्राव. विनयचंद सा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१३, १०X२८). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२७. ५. पे. नाम. नेमनाथ स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: कमलवल्लुपनं तव राजते, अंतिः विभाभरनिर्जितभाधिपा, श्लोक-४. .पे. नाम सांमलियापार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. ३३७९७. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, पठ. श्राव. राधाभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५x१२.५, १३x२२). पार्श्वजिन स्तव - चिंतामणि, मु. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रमंदार, अंति: चिंतामणिः पार्श्वः, श्लोक- ७. ३३८०१. स्तुति संग्रह, छंद व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ८, प्रले. मु. सौभाग्यसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे., (२७X१२, १४X३९). १. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमवद्यभेदी, अंति: नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. ३. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मंगल अंतिः जय ज्ञान कला निधान, श्लोक-४. ४. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली: अंतिः वः श्रेयसे शांतिनाथ, श्लोक-४. , For Private And Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति - शामळा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेरु महीधर सुंदर; अंति: वाधार मोहन जयजयकार, गाथा-४. ७. पे. नाम. सरस्वतीनो छंद, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति विद्यानी देनार, अंति: तोरी बलिहारी, गाथा-७. ८. पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ३३८०२. चतुर्विंशतिजिन चतुर्विधसंघ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. मु. राजा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२७.५X११.५, १३X३७). २४ जिन स्तवन- चतुर्विधसंघ परिवारविचार गर्भित, मु. विनयराज, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिणेसर तणा साध अंतिः मुक्तिना सुख ते लहि, गाधा- २६. ३३८०३. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८२४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. भुपतिविजय (गुरु ग. प्रतापविजय): गुपि. ग. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. ले. लो. (८५६) जाद्रिसं पुस्तकं द्रीष्टा, जै, (२७.५४१२, ११-१२४३२-३५), शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि शांति जिणेसर केसर, अंति: जसविजय जयसिरी लही, ढाल ६. " ३३८०४. (+) स्तवन, सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. (२७.५X१२.५, १२X३२). १. पे. नाम. पंचइंद्रिनी सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचेंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आपु तुजने शीख चतुरनर, अंति: लहो सुख शाश्वता, गाथा-७. २. पे. नाम. सुमतिजिन ध्रुपद, पृ. १आ, संपूर्ण. सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुजी जो तुम तारक; अंति: बाहिं ग्रहि नीरवहिरं, गाथा- ४. .पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रीत पीयारे लाल की, अंति: रूपचंद भओ दासा, गाथा-५. ३३८०५ (+) उदाईराजा चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे. (२६.५X१२, ११४३४). उदायीनृप चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३८०६. (+) वीरना पांचकल्याणकना पांचवधावा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) = ३, प्र. मु. प्रमोदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअमीझरा पार्श्व प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X१२, १३३४). महावीर जिन स्तवन- पंचकल्याणकवधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तीरथ फल महारा वाला, ढाल-५, (पू.वि. जन्मकल्याणक बधाई की गाथा-८ अपूर्ण से है.) ३३८०८. आलोचना, संपूर्ण, वि. १९३६ माघ शुक्र ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, वे. (२६४१२, १८४४५). श्रावक आलोषणा विचार, प्रा. सं., गद्य, आदि: हत्बुत्तरसवणतिगे, अंतिः मुपवासः शोध्यते. ३३८०९. जिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९०७, पौष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, प्रले. ज्येष्टिराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., जैदे.. For Private And Personal Use Only (२७.५X११.५, १३४३६). जिनगुण स्तोत्र, मा.गु. सं., पद्य, आदि (-) अंति: वसुर्दाननामा, गाथा- ३१, (पू. वि. गाथा १७ अपूर्ण तक नहीं है.) ३३८१०. स्नात्रपूजा व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (४) =४, कुल पे. ३, दे., (२७.५x११.५, ९४३१). १. पे. नाम. स्नात्रपुजा, पृ. १आ-५अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १९०७, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, मंगलवार, ले.स्थल. बजाणानगर, प्रले. ज्येष्टिराम, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. श्रीशांतिजिन प्रसादात्. स्नात्रपूजा सविधि, प्रा., मा.गु, सं., पद्य, आदि: नमो० नमो० मुक्ता०: अंतिः महोछव पूजा पभणीजे. २. पे. नाम. फुलपूजा दोहा, पृ. ५-५आ, संपूर्ण. Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ फूलपूजा दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: मोगर लाल गुलाल मालती, अंति: सर्व उपद्रव ध्रुजो, गाथा-४. ३. पे. नाम. दहा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३३८११. पालगोपाल कथानक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७४११, २१४७३). पालगोपाल कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: ये शीलं सुखकल्लीलं; अंति: धर्मे यत्नो मनीषिभिः, श्लोक-२३५. ३३८१२. (+) दंडक स्तुति सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १०४३१). २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंति: दद्यादलं भारती भारती, श्लोक-४, संपूर्ण. २४ दंडक स्तुति-वृत्ति, मु. अमरकीर्तिसूरि शिष्य, सं., गद्य, आदि: अहं तीर्थेश्वरं जिनं; अंति: वीणाः प्रसंद्यात्, (पूर्ण, __ पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रशस्ति का कुछ भाग नहीं है.) ३३८१३. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १५, जैदे., (२७.५४११.५, ११४४५). १.पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मूरति मन मोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. २. पे. नाम. गौतमि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिमधिपं; अंति: मंगल सिद्धये स्तात्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल करो अंबा देविये, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदि; अंति: सूरि तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४. ५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भनाथनिभानन; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. ६. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-३ तक है.) ७. पे. नाम. पर्युषणा स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुंध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. ८. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. ९. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पंचमीतिथितप स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंच अनंत महंत गुणाकर; अंति: यै कहै जिणचंद मुणिंद, गाथा-४. १०.पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वनायक लायक जितशत; अंति: जिनलाभसूरि० जयजयकारी, गाथा-४. ११. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: कलत्र बहु वित्त, गाथा-४. १२. पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरंत; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. १३. पे. नाम. द्वितीयातिथौ, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. १४. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. १५. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ प्रारंभ पर्यन्त है.) ३३८१४. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२६.५४११.५, १२४४३). पार्श्वजिन स्तवन, उपा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी जगधणी रे साहिब; अंति: दरिसण दीठे सुख थाय, गाथा-१४. ३३८१५. जीरणशेठ सझाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४११.५, १४४५६). १. पे. नाम. जीरणसेठ सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणा, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: तेहने नमे मुनि माल, गाथा-३१. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ३३८१६. गणधरपर्याय व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४११.५, १८४६०-७०). १.पे. नाम. गणधर पर्यायाः, पृ. १अ, संपूर्ण. गणधर पर्याय, प्रा., पद्य, आदि: पन्नासा गिहवासे तीसा; अंति: पूसमित्तस्स, गाथा-२९. २.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३८१७. स्तवन व बावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२७.५४११.५, ११४३७). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: पासजी तोरा पाय पलक; अंति: जोता वाध्यो ___ छै प्रेम, गाथा-५. २. पे. नाम. ब्रह्मबावनी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार अमर अमपार आप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक ३३८१८. पंचपरमेष्ठि मंत्रजाप विचार, जापविचार श्लोक संग्रह व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १४४४०-४६). १.पे. नाम. पंचपरमिष्ट विवरण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि मंत्राराधन विवरण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताण; अंति: निउणा साहू सयासरह. २.पे. नाम. चिंतामणिकल्प ग्रंथे जाप विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. चिंतामणि कल्पे जाप विचार, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अंगुष्टजापो मोक्षाय; अंति: निप्फलं होइ गोयमा, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. गाथा प्राकृत, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३३८१९. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थव अग्यारगणधर विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ६४३६-४२). १.पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारंभिक कुछ अंश ही हैं. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चपाए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक कुछ अंशमात्र है.) For Private And Personal use only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)तेणइ कालि ते चउथ आरइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक कुछ अंशमात्र है.) २. पे. नाम. अग्यारगणधर के आयु, गृहस्थ समय, छद्मस्थ समय व केवलज्ञान समय विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३८२०. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२७.५४११.५, ३३४१७). १. पे. नाम. ज्ञानरस पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-ज्ञान, मु. राजाराम, पुहिं., पद्य, आदि: ज्ञान रसायन पाइरे; अंति: ज्ञान ज्ञान भज भाइ, गाथा-४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अजब जोत है तेरी आतम; अंति: अपना दुरमत दुरन खेरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. अखो, पुहि., पद्य, आदि: जातसुं पुछो संतनी; अंति: कहे वातुं विरले जाणी, गाथा-४. ४. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुण साहेली सतगुरु; अंति: मंगलिकमाला ते वरसे, गाथा-९. ३३८२१. परमानंदपचवीसी स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४७, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. जीवणसी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, ३-४४३५-३८). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंपन्नं; अंति: परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५. परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आनंद आत्मा अनुभवतां; अंति: ते प्रतेइ पांमई, ग्रं. १३४. ३३८२२. (+) पंचनिग्रंथी, संपूर्ण, वि. १५८८, चैत्र शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. विनयमंडन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४११, २६४८३). पंचनिग्रंथी प्रकरण, हिस्सा, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११२८, आदि: पन्नवण वेय रागे कप्प; अंति: रइया भावत्थसरणत्थं, गाथा-१०६. ३३८२३. भक्तामर भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७.५४१२, १२-१४४३७-४१). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरुष आदि सज्जन; अंति: ते पावही शिव पेत, गाथा-४९. ३३८२५. आदिजिन स्तव सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३३ अपूर्ण तक है., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२७.५४११.५, १४४५४). आदिजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: अष्टापदरुचिमष्टापद; अंति: (-). आदिजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अष्टा० अष्टापदं; अंति: (-). ३३८२७. सूयगडांगसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. सूत्र का अंतिम भाग अंशमात्र है., प्र.वि. पत्रांक नहीं होने से काल्पनिक पत्रांक २ दिया गया है., त्रिपाठ., दे., (२६.५४११, १२४५१). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: विहरइ त्तिबेमि, अध्याय-२३. सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: ३३८२८. अष्टादशशीलांगरथ व लिंग विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२८x११.५, १२४४१). १. पे. नाम. अष्टादशशीलांगरथ, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. लिंग विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. पाठ की सिद्धि के लिए कुछ गाथाएँ एवं विवरण. जैन सामान्यकृति ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३८३०. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४९). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सुगुण सोभागी; अंति: हो जी पुरो परम विलास, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीजा अजित जिणंदजी रे; अंति: कांति नमे करजोड रे, गाथा-७. ३३८३२. तिजयपहुत्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, ११४३७). तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भत निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३३८३३. आठकर्मनी प्रकृति व समस्यादूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४१). १. पे. नाम. आठकर्मनी प्रकृति, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ८ कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा पहिल; अंति: विषई उद्यम करवो. २.पे. नाम. समस्या दूहा, पृ. ४आ, संपूर्ण.. दहा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-२. ३३८३४. क्षेत्रसमास यंत्रकाणि कियंति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४२-४७). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-यंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: मनुष्यक्षेत्रविस्तार; अंति: दैर्घ्य ५० योजनानि. ३३८३५. गुणस्थानक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. रायधणपुर, प्रले. रामदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पठनार्थे लिखकर मिटा दिया गया है., जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४६-४९). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३५. ३३८३६. क्षेत्रसमास विवरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११, २०-२३४६९-७६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-विवरण, सं., गद्य, आदि: मनुष्यक्षेत्रपरिधिः; अंति: सर्वं फड्डकमध्येस्ति. ३३८३७. (+) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११.५, १७४५७). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२४ अपूर्ण तक है.) ३३८३८. नमुत्थुणं स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १९४५४). नमोत्थुणसूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमोत्थुणं अरिहंताणं; अंति: नमो जिणाणं जियभयाणं. शक्रस्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुओ इसउं; अंति: गणधरनउंकीधउं. ३३८४०. (+) जंबूद्वीपसंग्रहणीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०३, वैशाख शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. हीरानंद (गुरु पं. ज्ञानविजय); गुपि.पं. ज्ञानविजय (गुरु उपा. कर्मचंद); उपा. कर्मचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५४३७-३९). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं जिणसव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनै जिन; अंति: हरिभद्रसूरि आचार्यै. ३३८४१. (+) सिद्धिदंडिकासूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, २१४६१). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंतमुह; अंति: दिआदितु सिद्धि सुह, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदित्ययशोनृपप्रभृतयो; अंति: नाम्नारूढिरिति. ३३८४२. दीपालिका कल्प, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १८४४३). दीपावलीपर्व कल्प, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य सम्यक् परमा; अंति: (-). ३३८४३. कर्मविपाक कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा-५ तक है., जैदे., (२६४११.५, २४३९). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ,म. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीरं; अंति: (-). ३३८४६. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२७.५४११, १९४६८-७५). For Private And Personal use only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसंनाणमहोमयाणं; अंति: सिद्धचक्क नमामि, गाथा-६. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: अखिलमंगलकारणमीश्वरं; अंति: तत्त्वपदं शाश्वतं, श्लोक-९. ३. पे. नाम. पुंडरीक स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंसयल सुरासुर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ३३८४८. (+) अन्निकापुत्राचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४३६). अर्णिकापुत्रमुनि कथा, सं., पद्य, आदि: जवान्नैमित्तकश्चैको; अंति: गंगातटविभूषणं, श्लोक-५३. ३३८४९. पट्टावलि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, ३९४६-२३). पट्टावली, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: (-), (पू.वि. श्रीसौभाग्यनंदिसूरि पाट परंपरा ५५ तक तक है.) ३३८५०. जिनशासननी पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. विजयऋद्धिसूरि तक की पाट परंपरा दी गई है., जैदे., (२७४११.५,१३-१४४४८-५२). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: ६४ मी पाटै विराज्यते. ३३८५१. क्षीम्या छत्रसी, संपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. देशलपुर, प्रले. मु. अजरामलजी (गुरु मु. जसराजजी); गुपि. मु. जसराजजी; पठ. सा. लीलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३०). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: चतुर्विध संघ सुजगीस, गाथा-३६. ३३८५२. मौनएकादशी स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३६). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: (-); अंति: कहै कहौ द्याहडी, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) ३३८५३. विविधविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४११.५, १७४५०). विविधविचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३८५४. श्रावकव्रतभंगविचार गाथा व अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१०.५, १७४५३). १.पे. नाम. श्रावकव्रतभंगविचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावकव्रतभंग प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: पणमिअसमत्थपरमत्थवत; अंति: ग वित्थरं नाउमुज्जमह, श्लोक-४१. २. पे. नाम. श्रावकव्रतभंगविचार गाथा की अवचूरि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रावकव्रतभंग प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: व्रतं नियमविशेषः; अंति: (-). ३३८५५. वीरथुई अज्झयण व प्रास्ताविक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. गिरधरलाल बोहरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १४४३६). १.पे. नाम. वीरत्थुई नामछटुं अज्झयणं, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. वीरथुई अज्झयण, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच महव्वय सुवय मूलं; अंति: वयणेन चलंति धर्म, गाथा-९. ३३८५६. उपदेशरत्नमाला, संपूर्ण, वि. १९११, चैत्र शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, ९४२८). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: विउलं उवएसमालमिणं, गाथा-२६. ३३८५७. बहुवक्तव्यतापद अध्ययन-पण्णवणासूत्रे, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५,११४३४). For Private And Personal use only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पण्णवणासुत्त, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३३८५८. (+) भाष्यत्रयम्, संपूर्ण, वि. १७२९, श्रावण शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. शिवपुरी, प्रले. मु. प्रेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५८-६५). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र गुरुवंदन व पच्चक्खाण भाष्य ही है., वि. पहले पच्चक्खाण भाष्य और बाद में गुरुवंदन भाष्य दिया हुआ है.) ३३८५९. संबोध सत्तरी, आध्यात्मिक पदव औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १२४३०-३३). १. पे. नाम. संबोधसत्तरी प्रकरण, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-७५. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. ___ मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि: किसका चेला किसका पूत; अंति: विराजै सुख भरपूरजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण.. औषधवैद्यक संग्रह*, सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३८६०. भरत-बाहुबलि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४३). भरतबाहुबलि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: संपत करण सदा सरस्वती, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३० अपूर्ण तक है.) ३३८६१. पंचमी नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. लखमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४४४). पंचमीतिथि नमस्कार, मु. जीवविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर पंचबाण; अंति: जीवविमल गुणगाय, गाथा-२७. ३३८६२. सज्झाय, कवित्त व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४३). १. पे. नाम. आंबिल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: समरी श्रुतदेवी शारदा; अंति: भाखे विनयविजय उवझाय, गाथा-११. २. पे. नाम. रात्रिज्ञान कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. __काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. __ ज्योतिष संग्रह *, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३३८६४. आलापपद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१२, १४४४०). नयचक्रोपरि आलापपद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तर; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३३८६५. थंभप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३७-४२). स्तूपप्रतिष्ठा विधि, सं., गद्य, आदि: स्तूप पार्श्वे सर्वत; अंति: कारी प्रतिमा दृढकारी. ३३८६६. गौतमस्वाम रास, संपूर्ण, वि. १८६४, पौष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. जयनगर, पठ. श्राव. जगरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५, १२४४४). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: बहु विद्या निलउए, गाथा-७२. ३३८६७. (+) संथारापोरसि विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बर्हाणपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४२). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. For Private And Personal use only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४१७ ३३८६८. सकलार्हत् चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सूर्यपूर, प्रले.पं.खेमविजय (गुरु पं. विनयविजय, आणंदसूरगच्छ); गुपि.पं. विनयविजय (गुरु पं. जीतविजय, आणंदसूरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ९४२४-३०). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२९. ३३८६९. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२७४११.५, १९४५४-५५). १.पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रूपसींघ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम दीपे दीपतारे; अंति: मोटा श्रीमाहावीर के, गाथा-७. २. पे. नाम. अजित स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. __अजितजिन स्तवन, मु. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: चोथो आरो जिनवर वारो; अंति: जिनवरना गुण जुगते, गाथा-५. ३. पे. नाम. शांति स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. श्रीपति, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिनाथ सोलमा रे; अंति: हो करो सांति पसाय, ढाल-२, गाथा-१९. ४. पे. नाम. सोलसुपन सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. १६ स्वप्न सज्झाय, ग. जसी, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरुने चरण नमी; अंति: वांदु त्रिण कालो रे, गाथा-२०. ५. पे. नाम. नीसाणी, पृ. २अ, संपूर्ण. तेजसिंघजी निसाणी, मु. कुशला, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचोवीसे विसवा; अंति: कुशला ऋषि कहंदा हैं, गाथा-७. ६.पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: वंदे अयमंतो अणगार, गाथा-१९. ३३८७०. शांतिचक्रपूजा स्तवन, अपूर्ण, वि. १७९२, आषाढ़ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२५.५४११, १०-१२४४०). शांतिचक्र पूजा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीशांतिनाथः सदा, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ३३८७१. तीर्थवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४११, ४४२९-३६). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: मनसा चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ३३८७२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९७-१९४(१ से १९४)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., मू+टबा. अध्ययन-३२ गाथा-६५ अपूर्ण से ८५ तक हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३४-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३८७३. (+) सिंदूर प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१२(१ से १२)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., मू+टी. श्लोक-२५ से ४४ अपूर्ण तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १६४५२). सिंदूर प्रकरण, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-). सिंदरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदिः (-); अंति: (-). ३३८७४. पंचनिग्रंथी प्रकरण-भगवतीसूत्रे, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११, १३४४०). पंचनिग्रंथी प्रकरण, हिस्सा, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११२८, आदि: पन्नवण वेय रागे कप्प; अंति: रइया भावत्थसरणत्थं, गाथा-१०६. ३३८७५. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१०, १०४३१-३७). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ३३८७६. (+#) नीतिदीपक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १६x४०). For Private And Personal use only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नीतिदीपिका, मु. कानजीस्वामी, सं., पद्य, आदि: यद्वाक् चंद्रिकया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४४ तक ही है.) ३३८७७. रत्नप्रभसूरिस्तोत्र व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३९). १. पे. नाम. रत्नप्रभसूरिगुरो स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रत्नप्रभसूरि अष्टक, सं., पद्य, आदि: भव्यावलीकमलकाननराज; अंति: राज्यलक्ष्मीः स्वयं, श्लोक-९. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३८७८. श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १८४४९). सुभाषित श्लोक संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७१ तक ही ३३८७९. (+) सीमंधर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १९४४३). सीमंधरजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिरसुर असुर नरवंदि; अंति: भवमे बोधबीजह दायिको, गाथा-२१. ३३८८०. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १५४४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास शंखेश्वरा सार; अंति: रेख माहाराज भाज्यो, गाथा-५. २. पे. नाम. हरिआली, पृ. १अ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नारी रे में दीठी; अंति: एहनी घणी करो सेवरे, गाथा-६. ३. पे. नाम. सुंदरपुरुष सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, ग. जयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरुष पनोतों बहु गुण; अंति: मनवंछित फल साधे रे, गाथा-६. ३३८८१. (+) प्रस्ताविक गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. खीमजी; पठ. श्रावि. रंगबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५४२८). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच महव्वय सुव्वय; अंति: हुति परित्तसंसारी, गाथा-९. प्रस्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पं० पांच म० महाव्रत; अंति: (१)प० थोडा संसारना धणी, (२)नित सुबुद्धि होइ. ३३८८२. साम्यशतं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पाटडी, प्रले. श्राव. अमृतलाल हंसराज सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४४३). साम्यशतक, आ. विजयसिंहसूरि, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अहंकारादिरहितं; अंति: हृदामुज्जागरूकं हृदि, श्लोक-१०६. ३३८८३. गुरुगुण गूहली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १०४३१). गुरुगुण गहुंली, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आज आ नगरी मझार अति; अंति: रंग लीला लछी धरइरी, गाथा-८. ३३८८४. जीवविचार, संपूर्ण, वि. १८८७, चैत्र शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. घाणोरा, प्रले. पं. लहेरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १२४२९-३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३३८८६. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२६.५४१२, १२४३४). १. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४१९ सुपार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. जीवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वंदौ भवियण वार वार; अंति: करै मनमै चाह अतीव, गाथा-३. २. पे. नाम. श्रेयांस स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रेयांसजिन चैत्यवंदन, मु. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय सुरवर वृंद; अंति: नमै जाणी निरुपम भूप, गाथा-३. ३. पे. नाम. वासुपुज्यजी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. वासुपुज्यजिन चैत्यवंदन, मु. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: भावै जगजन अंगदेश; अंति: रह्यौ पूरण हरख मझार, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: सेवौ जगपति पासनाह; अंति: कीयौ हीरधर्म गणियाम, गाथा-३. ५. पे. नाम. अरिहंतपद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ अरिहंतपद चैत्यवंदन, मु. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय मगहा मगहादेसा; अंति: रमत हीरधर्म अलिसंत, गाथा-३. ६. पे. नाम. सिद्धपद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धपद चैत्यवंदन, मु. हीरधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: शैलेशी पूर्वप्रांत; अंति: धर्म वंद धरि सुभभाव, गाथा-३. ७. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. नवपद चैत्यवंदन, अप., पद्य, आदि: यो धुरि सुरि अरिहंत; अंति: अम्ह मनवंछित दीओ, गाथा-३. ३३८८७. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४५, पौष कृष्ण, ३०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. द्रांगद्रानगर, प्र.वि. संभवजिन प्रसादात्., जैदे., (२५.५४१२, १५४३९). नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: आंखडीयुं कामणगारी; अंति: त्यां अलगा रहीई हो, गाथा-३२. ३३८८८. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, १०४३९-४१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३३८८९. नवतत्त्व प्रकरण व कृष्ण-बलभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ११-१३४३१-३८). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५५. २. पे. नाम. बलभद्र-कृष्ण सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. कृष्णबलभद्र सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारकानगरीथी; अंति: पांचमि देवलोक मझारे, गाथा-१८. ३३८९०. (+#) पंचप्रमाद सज्झाय व रुक्मणीकृत्य गुंहली, अपूर्ण, वि. १८४०, पौष कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-४(१ से ४)=३, कुल पे. २, ले.स्थल. द्रांगपुर, पठ. श्रावि. केसर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४३८). १.पे. नाम. पांचप्रमाद स्वाध्याय, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. ५ प्रमाद सज्झाय, मु. प्रताप, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमाद पहिलो परीहरो; अंति: घरि फळि मंगलवेलि हो, स्वाध्याय-५. २. पे. नाम. रुक्मणीकृत्य गुंहली, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. रुक्मणीकृत्य गहंली, मु. प्रताप, मा.गु., पद्य, आदि: भवीआंसहसावन्नमां; अंति: लहीये शीवपूर वास, गाथा-११. ३३८९१. (+) इच्छापरिमाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ११४५१-५५). औपदेशिक सज्झाय-इच्छापरिमाण विषये, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत देव सुसाधु; अंति: सुंदरे आणी मनि उहलास, गाथा-५०. पण. For Private And Personal use only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३८९२. (+) स्वप्न अध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, २४४३६). स्वप्नविचार प्रकरण, सं., पद्य, आदि: श्रुतामृतातिसंपूर्णे; अंति: निर्दिष्टं च यथागमं, श्लोक-७५. ३३८९३. द्वादशाधिकार गाथा सह व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८९०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १,ले.स्थल. मुमाईबिंदर, प्रले. मु. शांतिरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १४४६२). ६ द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा., पद्य, आदि: परिणामि जीव मुत्ता; अंति: सुद्धबुद्धिहिं, गाथा-३. ६ द्रव्यपरिणाम विचार-व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: अनादि निधने द्रव्ये; अंति: स्वरुपं न त्यजंतीति. ३३८९४. (+) अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३२-४२). अजितशांति स्तोत्र, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ३३८९५. मूत्रपरीक्षा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. कालाउना, प्रले. ग. प्रेमचंद (गुरु मु. लुंपक ऋषि, नागोरीगच्छ); गुपि.मु. लुपक ऋषि (नागोरीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२,७४३७). मूत्रपरीक्षा, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधी; अंति: ज्ञेयो विचक्षणैः, श्लोक-२४. मूत्रपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ; अंति: पुरुषां कह्यो छे. ३३८९६. अंतरिक छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १७४४३). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: जयो देव जयजय करण, गाथा-५१. ३३८९७. वंदेत्तुसूत्र व पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मेडता, प्रले. पं. पृथ्वीहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १५४३५-३७). १.पे. नाम. वंदेत्तुसूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २.पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल करो अंबा देविये, गाथा-४. ३३८९८. अध्यात्म पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१२.५, १८४४८). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: साधो भाई समता रंग; अंति: हित कर कंठ लगाई, गाथा-४. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नाम हमारा राखे; अंति: सेवकजन बलि जाहीं, गाथा-४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू क्या मागुंगुनह; अंति: रटन करूं गुण धामा, गाथा-४. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवधू नट नागर की बाजी; अंति: रस परमारथ सो पावे, गाथा-४. ३३८९९. ४९श्राविका पच्चक्खाण -भगवतीमध्ये, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रावण कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. हमीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ११-१५४२८-३१). भगवतीसूत्र-विचार संग्रह , संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३३९००. (+) सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ८४३२). सुभाषित श्लोक संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२१ तक उपलब्ध है.) ३३९०१. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४१२.५, १२-१४४२९-३३). For Private And Personal use only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलिख्य; अंति: लभते पदमव्ययम्, श्लोक-८४. ३३९०२. चौमासीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१३, ११४३३). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू; अंति: (-). ३३९०३. पद्मावती पटल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४३८). पार्श्वधरणेद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐनमो भगवते; अंति: आज्ञापयति स्वाहा. ३३९०४. छंद कोश, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१३, १४-१५४४४-५५). प्राकृत छंदकोश, प्रा., पद्य, आदि: आजोयणट्ठियाणं सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४२ अपूर्ण तक है.) ३३९०५. क्रोधमांनमायालोभ सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०४, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. दसपुर, जैदे., (२५.५४१३, ११४३२). क्रोधलोभमानमाया सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पेहलुं सरसती लीजें; अंति: विजय हर्षे गुण गाय, गाथा-३२. ३३९०६. चुल्हकोपरि चंद्रोदय विषये-मृगसुंदरी कथा, संपूर्ण, वि. १९८१, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. भूजनगर, प्रले. मु.सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १३४५३-५८). मृगसुंदरी कथा, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य प्रथमं देवं; अंति: तेषां स्युः सुखसंपदः, श्लोक-१४७. ३३९०९. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ८४३३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: कथंभूतं वीरं; अंति: रूप जे समुद्र ते थकी. ३३९१०. पार्श्वनाथ कलश व आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १४४४६). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ कलश-मांगरोळमंडन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन कलश-नवपल्लव-मांगरोलमंडन, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुरासुरेसमध्ये; अंति: जयो जयो भगवंतजी, गाथा-२२. २.पे. नाम. स्नात्र विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन आरती, मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: अपछरा करति आरति जिन; अंति: करजो जाणी पोतानो बाल, गाथा-६. ३३९११. (#) इर्यापथिकी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. रंगबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. रचना वर्ष वि. सं. १७३३ मिलता है।, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, १४४४३). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति: विनयविजय उवझाय रे, ढाल-२, गाथा-२५. ३३९१२. (#) मदनरेखा चौपई-ढालसातमी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १४४४०). मदनरेखासती चौपई, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र ७वीं ढाल है.) ३३९१३. (+) चर्पटशत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १४४४८). चप्पटशतक, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ नत्वा; अंति: तस्य न गर्भाधानम, श्लोक-१००. ३३९१४. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४१२.५, ४४३३). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) गौतमपृच्छा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: (-). ३३९१५. यतिप्रतिक्रमणसूत्र वंदितुं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४१२.५, ११४३२-३४). For Private And Personal use only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir . . ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिण चउवीसम्. ३३९१७. जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४१२.५, ११४३३). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: श्रीकमलप्रभाख्य, श्लोक-२५. ३३९१८. जिननाम, १० गणधरनाम व औषधादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१२, ३४४१९-२१). १.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. अढीद्वीप ३२ विजय जिन नाम, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीजयदेव सर्वज्ञाय; अंति: बलिभद्र सर्वज्ञाय नम. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन १० गणधर नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: सुभगणधराय नम; अंति: विजयस्वामि गणधराय नम. ४. पे. नाम. पांच मेरुपर्वत नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुदर्शनमेरु; अंति: विधुनमालामेरु. ५. पे. नाम. मंत्र यंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३९१९. चार ध्यानस्वरूप चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १३४४२). ध्यानस्वरुपनिरुपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: सकल जिणेशर पाय; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम आर्तध्यानस्वरूप एवं द्वितीय ध्यानस्वरूप की गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३३९२०. स्तवन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. जोधपुर, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४५४). १. पे. नाम. कापडहेडापार्श्वनाथ रास, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, वि. १९७०, फाल्गुन शुक्ल, १, प्रले. बालाराम ललितराम, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-कापडहेडा, मु. दयारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: हुं बलिहारी पासजी; अंति: सविहि दयारतन सुसीसकि, गाथा-४३. २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३९२१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ८, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३६-३८). १.पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिलुंए मंगल जिनतणु; अंति: वधावणा ए भवनिधि तरोए, गाथा-६. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उच्छवरंग वधावणारे; अंति: कहितां नावै पार तो, गाथा-७. ३. पे. नाम. आदिजिन भास-शत्रुजयतीर्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन भास-शQजयतीर्थमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: संघपति भरत नरेसरू; अंति: हो तूं अक्षयभंडार तो, गाथा-७. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संघपति भरत नरेसरु; अंति: ज्ञानविमल भाखैरे लो, गाथा-५. ५. पे. नाम. पंचमंगल स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ५ मंगल स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुंए मंगल मनधरो; अंति: सुभ गुण ते वरें ए, गाथा-८. ६. पे. नाम. सांजनु मंगलीक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४२३ संध्या मांगलिक गीत, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: प्रणमीय शासनदेवता; अंति: नमुं पदमविजय कहै ए, गाथा-१७. ७. पे. नाम. पूर्णकुंभ स्थापना, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. कुंभस्थापना स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धरम उत्सव समै जैन पद; अंति: देवचंद पद अनुसरै ए, गाथा-४. ८. पे. नाम. वेदिकामंगल स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. रत्नहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: हिवै प्रतिष्ठा कारणे; अंति: रत्नहरख प्रमाण तो, गाथा-११. ३३९२२. स्तोत्र व चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(२)=४, कुल पे. ६, जैदे., (२६४१३, १३४३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पार्श्वजिनं स्तुव, श्लोक-७, (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. सर्वजिन स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीशेāजय रैवता; अंति: कुक्त वो मंगलम्, श्लोक-५. ४. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. उपा. कुशलसागर, सं., पद्य, आदि: सकल देव नरेसर वंदितं; अंति: स्तोत्रमेय पठंति, श्लोक-१३. ५. पे. नाम. सर्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. सर्वज्ञाष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., पद्य, आदि: जयति जंगमकल्पमहीरुहो; अंति: सिवं श्रीजिनः, श्लोक-११. ६. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जयादिनाथ प्रतित्तथै; अंति: बलं जयादिता, श्लोक-८. ३३९२३. नवकार महिमा स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, ८x२१). १.पे. नाम. नवकार महिमा स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवीयण समरो; अंति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा-१४. २. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंडित. बनारसीदासजी, पुहिं., पद्य, आदि: देहरा खोल अम आए दरसण; अंति: तुम पर जाउं हमघोल, गाथा-२. ३३९२४. औपदेशिक सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३४). १.पे. नाम. उतपति बहुत्तरी, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोय जीव आपणी; अंति: कहै मुनि श्रीसार ए, गाथा-७२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ४आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ३३९२५. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५,१३४३२). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल वीरा; अंति: जिनचंद० फली मन आस, गाथा-९.. ३३९२६. गौचरीदोष व दसअछेरा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३३). १.पे. नाम. गोचरी ४२ दोष, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गोचरी के ४२ दोष*मा.गु., गद्य, आदि: १६ दोषदायक थकी लागे; अंति: पिण भोगविवो नहीं. २.पे. नाम. दश अच्छेरा, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (१)उवसग्ग१ गब्भहरणं, (२)भगवंत श्रीमहावीर; अंति: (-). ३३९२७. संथारापोरिसिविधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६४१२.५, ९४२७). For Private And Personal use only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: इय सम्मतं मए गहियं, गाथा - १४, (पू. वि. गाथा ७ अपूर्ण से है.) ३३९२८. अन्नामुनिचउडालीयो, अपूर्ण, वि. १८७५, आषाद कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ४-१ (१) ३ ले. स्थल, कृष्णगढ, प्रले. वासुदेव लक्ष्मणशास्त्री पणशीकर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२५.५४१२.५, १०x३४). " धन्नाऋषि चौढालिया, मु. गुणचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: (-); अंति: गुणचंद० नित मंगलमाल, ढाल-४, गाथा ४९, (पू. वि. डाल-२ गाथा १३ अपूर्ण तक नहीं है.) ३३९२९. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ - उद्देश९ शतक७, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X१२.५, ६-८X५०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रथम उद्देशक शतक- ७.) भगवतीसूत्र - टवार्थ में, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ३३९३१. जिनभवन चौरासी आशातना, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६×१२.५, १०X३४). ८४ आशातना स्तवन, मु. धर्मसिंहजी, मा.गु, पद्य, आदि; जय जय जिण पास जग, अंति: (-) (पू. वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ३३९३४. जयपताका यंत्रकल्प व विधिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) -२, कुल पे. ३, जैवे. (२५.५४१२.५, १४X३८-४४). १. पे. नाम. आदिदेवपुराणे यंत्रपताकायंत्र, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. जयपताका यंत्रकल्प-आदिदेवपुराणे, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वांछित सीध्ये, श्लोक-४५, (पू.वि. श्लोक २४ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम. जयपताका यंत्रविधि, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. जयपताकायंत्र विधि, सं., पद्य, आदिः ॐकारस्यमध्येतु अंति: मंत्राराधन सेवकान् श्लोक- ९. ३. पे नाम, अर्जुनजपताकायंत्र आम्नाय पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण विजययंत्र कल्प, सं., पद्य, आदि: पुव्विंचिय नेरईए; अंति: करणं एसो न संदेहो, श्लोक-१९. ३३९३५ (4) तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६.५x१२.५, १०X२६-२८). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३३९३६ स्तवन व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( २ ) = १, कुल पे. २, जै, (२५.५x१२.५, १९३६). 3 " १. पे नाम, चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं., पद्य, आदिः (-); अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४, (पू. वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण, नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि ग्रह सम प्रणमों नेमि, अंति: अहनिश करे प्रणाम, गाधा- २. ३३९३८. पखीमडिकमणा विधि, संपूर्ण, वि. १८८२, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. रंगकुशल, पठ. अमरकवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५x११, १८४५१-५८). "" पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: तिहां पहली वदेतु अंतिः तवन अजितशांति कहै. ३३९३९ चउवीस दंडक, संपूर्ण, वि. ११वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे. (२६४१२, १३x२९-३६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदिः नमिऊं चडवीस जिणे तसु अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४४. ३३९४२. सिद्धदंडिका स्तवन संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२६४१२.५, १३x२६-२७). " सिद्धदंडिका स्तवन पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंतिः पद्मविजय जिनराया रे, ढाल-५, गाथा ३९. For Private And Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४२५ ३३९४३. (+) इक्कीसठाणा सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ११४४०). विहरमानजिन २१ स्थानक प्रकरण, आ. शीलदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संपइ वटुंताणं नाम; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-३८ तक है.) विहरमानजिन २१ स्थानक प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: संप्रति वर्तमाना; अंति: (-), पूर्ण. ३३९४४. जीवविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. गोवरधन भोजक; पठ. श्रावि. जडावबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवन पइवं वीरं नमीऊण; अंति: रुद्दाओ ___ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. ३३९४६. कालिकाचार्य व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८४६, श्रावण शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, ले.स्थल. थिरा, प्रले. मु. भक्तिविजय (गुरु ग. रूपविजय); गुपि.ग. रूपविजय (गुरु ग. विवेकविजय); ग. विवेकविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय); ग. ऋद्धिविजय (गुरु ग. लालविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १३-१४४३६). कालिकाचार्य व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: त्राणुंवरसे थयौ. ३३९४७. नंदीश्वरद्वीप स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, ३८x१९). नंदीश्वरद्वीप स्तुति, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आज चलो सखी वंदण जईयै; अंति: जैनचंद्रगुण गावो रे, गाथा-१५. ३३९४८. सझाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१२, १२४३१-३४). १.पे. नाम. गजसूषमालरी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराज तणी; अंति: आया जिणीदि सजाय, गाथा-२७. २. पे. नाम. हितोपदेस शीज्झाय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: मोह मिथ्यातरी नीदमै; अंति: श्रीजिन भाख्यो एम, गाथा-३४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु; अंति: अविचल पद निरधार, गाथा-७. ४. पे. नाम. समेतसिखर स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: आज भलै मै भेट्या हो; अंति: थई जात्र सफल जयकार, गाथा-९. ३३९४९. श्लोक संग्रह व असनादि काल प्रमाण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-८(१ से ८)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १०४३३). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ९अ, संपूर्ण. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. २. २. पे. नाम. असनादिकाल प्रमाण सज्झाय, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. असनादि काल प्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगौतम गण; अंति: वीरविमल करि जोडी कहइ, गाथा-१९. ३३९५०. पोसहविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. “पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, जैदे., (२६४१२.५, -१४-१). पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहि पडिकमिई; अंति: (-). ३३९५१. पूजादोहा व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १४४२७). १. पे. नाम. पूजा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण.. जिनपूजा अष्टक, पुहि., पद्य, आदि: जलधारा चंदन पुहप; अंति: दिजें सुचिय अभंग, गाथा-९. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पदनी सेवा कुंन; अंति: आगम अवीचल सुख वरे, गाथा-४. For Private And Personal use only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. आध्यात्मिक स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा., पद्य, आदि: निसदिन जोउ तोरी वाट; अंति: आवसे सेजडि रंगरोला, गाथा-५. ३३९५२. पार्श्वनाथ कलस, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १४४३७). पार्श्वजिन कलश-नवपल्लव-मांगरोलमंडन, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौराष्ट्रदेस मध; अंति: वछ० जयो जयो जयवंतजी, गाथा-१८. ३३९५३. अणआहारीक वस्तु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाटडी, प्रले. हरजीवन प्रेमचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ११४३५). अणाहारीवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, आदि: त्रीफलां३ कडु२ करीया; अंति: खारो फटकी चीमेड. ३३९५४. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२७७१३, ६४२८-३२). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२३ तक उपलब्ध है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असार करि देखाड; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३३९५५. आश्रवद्वार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-७(१ से ५,७ से ८)=२, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३६). आश्रवद्वार सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: (-); अंति: आसोजसुदि वारस रविवार, गाथा-७४, (पू.वि. गाथा १ से १८ अपूर्ण और ३६ अपूर्ण से ७२ अपूर्ण तक नहीं है.) । ३३९५६. जंबूस्वामी ब्रह्मगीता स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४१२, ११४३०-३४). जंबूस्वामी ब्रह्मगीता, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: समरीय सरसती विश्वमा; अंति: अधिक पूरयो मन जगीस, गाथा-२८.. ३३९५७. (+) भक्तामर स्तोत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, ९४३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. मात्र अंतिमगाथा नहीं है.) ३३९५८. (+) कायस्थिति प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ४४३४-३९). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपयसंपयंदेसू, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जग क० जिम तुह हे जिन; अंति: प्रते दे० मने द्यो. ३३९५९. उपदेशरत्नकोश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१२.५, ४-५४२६-२८). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: वच्छयले रमइसेछाए, गाथा-२५. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरुप रतननो भंडार; अंति: आवि रमे पोतानी इछाई. ३३९६०. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. भानुसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १३-१४४२९-३१). सुव्रतऋषि कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरं नत्वा; अंति: माराधनतत्पराः समभवन. ३३९६१. जैनगाथा संग्रह सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. आवश्यकसूत्र व प्रवचनसारोद्धार से उद्धृत सम्यक्त्व विषयक गाथाएँ।, पंचपाठ., जैदे., (२६४११, २०-२३४८०). जैन गाथासंग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). जैन गाथासंग्रहवृत्ति, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३९६२. कालसप्ततिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११,७-१३४३९). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदणयं विजाणंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) For Private And Personal use only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४२७ .. कालसप्ततिका - अवचूरि * सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. वि. प्रारंभ में वनस्पतिसप्ततिका की अवचूरि का अंतिम भाग दिया है, तत्पश्चात् कालसप्ततिका की अवचूरि दी गई है.) ३३९६३. चौदगुणस्थानेकर्मप्रकृति विचार व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६x११.५, २५x५९). १. पे. नाम, चौदगुणस्थाने कर्मप्रकृति विचार, पृ. ९अ-२अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक में कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि : उधि बंध १२० प्रकृति; अंति: उदीरणा३ सत्ता ए ४. २. पे. नाम. चौदगुणस्थाने - कर्मप्रकृति विचारयंत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक में ८ कर्म १२० प्रकृति विचार यंत्र, मा.गु., को. आदिः (-); अंति: (-). ३३९६४. इंद्रपर्षदा विचारयंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११, १२x२७-६८). इंद्रपर्वदा विचारयंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३३९६५. खेत्ताणुवाए विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-७ (१ से ७) =२, जैदे. (२६.५x११.५, २९x१६-७०). क्षेत्रोपपत्ति, मा.गु., गद्य, आदि: खेताणुवाएणं सव्वत्थो, अंति: शेषपुद्गलवत्, संपूर्ण. ३३९६६. संख्याताअसंख्याता अनंतामान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. जैदे. (२६.५४११, २१४३२-३८). " " संख्याता असंख्याता अनंता मान विचार, मा.गु, गद्य, आदि: पाला च्यार ते मधे, अति: अनंता अनंतो नथी. ३३९६७. पुद्गल तीनभेद विचार-भगवतीशतक ८ उद्देशा१, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११, १८x२५-३०). पुद्गल भेद विचार- भगवतीशतक ८ उद्देशा१, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथण पउगसा ते जीव; अंति: रस३ स्पर्श४ संठाण५. ३३९६८. ऋषिमंडल स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. ग. नमिसागर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११. १३X३६). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य, अंतिः परमानंद नंदितः, गाथा-६७. ३३९७०. प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३८-३७ (१ से ३७) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैये., (२६.५X१२.५, १३X३५). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: (-), (पू.वि. नवकारमंत्र से तिज पहुत्त गाथा २ तक है.) ३३९७१. स्तवन संग्रह व सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११, १२x२६-३१). १. पे नाम, संख्रेसरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुणि अलवेसर, अंति: जिनहर्ष ० सागरथि तारो, गाथा - ५. २. पे नाम, विरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३ आदि सिद्धारथना रे नंदन, अंतिः विनयविजय गुण गाय, गाथा-५. ३. पे नाम, दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. २आ, संपूर्ण दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजीय, अंति: सहज० भव वांहि, गाथा-६. "" ३३९७४. सुरपतिनृप रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. जैदे. (२५.५x११, १५X४०). सुरपति राजा रास- दानधर्मे, मु. दामोदर, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणमुं स्वामि शांति, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा ४० अपूर्ण तक है.) , " ३३९७५. नेमराजुल बारमासो, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे. (२६४११.५, १२४३०). नेमराजिमती बारमासो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सरसति सांमिणि रे पाए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- १६ अपूर्ण तक है.) ३३९७६. चारप्रत्येकबुद्ध रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २२-२० (१ से २०) २. पू. वि. बीच के पत्र हैं. जैवे. (२६११.५, " १५X३९). For Private And Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल-१२ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-१४ गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ३३९७७. प्रमाद कुलक, पात्रफलगाथा व चरणसत्तरीकरणसत्तरीनी गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२,१०४३२). १.पे. नाम. प्रमाद कुलक, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. प्रमादपरिहार कुलक, प्रा., पद्य, आदि: दुक्खसुक्खे सयामोहं; अंति: जिणपयसेवा फलं रम, गाथा-३३. २. पे. नाम. पात्रफलनी गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. पात्रफल गाथा, सं., पद्य, आदि: मिथ्यादृष्टीसहस्रेषु; अंति: नयभूता न भवसती, गाथा-२. ३. पे. नाम. चरणसत्तरीकरणसत्तरीनी गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. करणसित्तरिचरणचित्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय५ समणधम्म१० संजम१७; अंति: अभिग्गहा चेव करणं तु, गाथा-२. ३३९७८. साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७४१२, ११४३८). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि०; अंति: अचखु विसय हूओ. ३३९७९. स्वाध्याय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १२४३९). १.पे. नाम. परमगुरु स्वाध्याय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. परमगुरु सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अमरमुनि सूरि गाया, (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मायात्याग स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, अमरचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: क्या करि क्या करि; अंति: अमरचंद० सही मन गमता, गाथा-६. ३. पे. नाम. निंदापर स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. निंदात्याग सज्झाय, अमरचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मम करि म म करिनिंदा; अंति: शिव वनिता बहुमान रे, गाथा-७. ३३९८०. राम रस, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०८-१०६(१ से ९२,९४ से १०७)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, १४४३९). रामसीतारास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५१-५२ तथा ५७-५८ अपूर्ण है.) ३३९८१. पार्श्वजिन व पाक्षिक चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८९६, फाल्गुन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. श्रीपल्लिका, पठ. मु. ऋषभदास (गुरु मु. प्रेमचंद); प्रले. मु. प्रेमचंद (गुरु मु. जीवचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १९४४७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोक क्रमांक क्रमशः लिखा हुआ है. १-२. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंति: पार्श्व जिनेश्वरम्, श्लोक-२. २. पे. नाम. पाक्षिक चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोक क्रमांक क्रमशः लिखा हुआ है. ३-४१. __सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: सीमधरजिनपतिर्जयति, श्लोक-४१, (वि. सकलार्हत् के मूल नियत पाठ के बाद अन्य विद्वान रचित मांगलिक रूप पाठ दिया गया है.) ३३९८२. प्रमाद सझाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १६x४५). १.पे. नाम. प्रमाद सीज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वैराग्यपच्चीसी, गोपालदास, पुहिं., पद्य, आदि: एह प्रमादी जीव जग; अंति: गोपाल० वैकुंठ ले जाइ, गाथा-२५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. चौवीसजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ करिजे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ३३९८३. गाथालक्षण, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, १५४४७-५१). नंदिताढ्य छंद, मु. नन्दिताढ्य, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण चलण जुयल नेमि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७७ अपूर्ण तक है.) For Private And Personal use only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३३९८४. (+) आदिजिन महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०, ११-१५४४७-५४). आदिजिन महावीरजिन स्तवन-जीर्णगढमंडण, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आदिहि आदिजिणेसर; अंति: सयल मंगल सुखकरा, ढाल-७, गाथा-४०.. ३३९८५. नेमराजुल लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १७४४०). १.पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. हंस, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: समदबज सेवादे जाननण; अंति: जोधाण हंस करी गाइय, गाथा-२१. २. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चतुरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: नेमनाथ मोरी अरज सुनी; अंति: फेर फर नही फरणेका, गाथा-१०. ३३९८७. इंद्री कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, ७७३८-४०). सुभाषितावली, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: लहंति ते सासयं सुखम्, गाथा-१०. सुभाषितावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इं० पांचइ इंद्रिय पड; अंति: सा० सास्वतो सु० सुख. ३३९८९. श्राद्धविधि प्रकरण की विधिकौमुदि टीका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३६). श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदि: अर्हत्सिद्धगणींद्र; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमदी टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध आचार्य; अंति: (-). ३३९९०. बृहत्शांति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १०४३१). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-). ३३९९१. स्तोत्र व मंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१०.५, १२४४७). १. पे. नाम. सरस्वतीषोडषनाम स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमस्ते सारदादेवी; अंति: सारदा वरदायनी, श्लोक-४. २. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: घंटाकर्ण नमोस्तुते, श्लोक-४. ३. पे. नाम. जैनमंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. __ मंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. दीपालिकापर्वस्थितिकारक-महावीर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-दीपालिकापर्व, पं. रविसागर, सं., पद्य, आदि: श्रीत्रिशला शोभन; अंति: प्रणतं रविसागरोत्र, श्लोक-७. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. सं., पद्य, आदि: श्रीगौतमोगणधरो रुचिर; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ तक है.) ३३९९२. यमकबंध पार्श्वनाथस्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, १८४४७). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वर; अंति: शिवसुंदरसौख्यभरम्, श्लोक-७. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरं प्रधाना संवरस्य; अंति: संबोधनं शेष सुगम. ३३९९३. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, १७४५२). कथा संग्रह**प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. चंद्रशेखर राजा, जयसेन राजा आदि की कथाएँ संगृहीत ३३९९४. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७-३(१ से २,६)=४, कुल पे. ९, जैदे., (२५.५४११, १५४४३). १. पे. नाम. क्षेत्रपालाष्टक, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३० www.kobatirth.org क्षेत्रपाल छंद, सं., पद्य, आदिः यययंरावरावंदशदिशि, अंति: भैरवं क्षेत्रपालम् श्लोक - ९. २. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा अंतिः पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक ७, ३. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - नवग्रहगर्भित, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं थुणामि पास; अंति: अवतिष्टंतु स्वाहा, गाथा - १३. ४. पे नाम चतुःषष्टियोगिनीनाम स्तवन, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीँ दिव्ययोगी, अंतिः तस्यविघ्नं प्रणस्यति, श्लोक - ११. ५. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि परमेष्टी नमस्कार, अंतिः दुःखं न प्राप्यते श्लोक ८. ६. पे. नाम. वैरोट्या स्तोत्र, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. वैरोट्या स्तव, अप, पद्य, आदि: नमिऊण जिणंपासं अंतिः भीसीओ राखउ पारसनाथ, गाथा-३२. ७. पे. नाम. मंत्राधिराज स्तोत्र, पृ. ५आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सं., पद्य, आदि: मंत्राधिराजाक्षरवर्ण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ८. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धसारस्वत स्तव, आ. वप्यभट्टसूरि, सं., पद्म, वि. ९वी, आदि (-); अंति: रंजयति स्फुटम् श्लोक-१३, ( पू. वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक नहीं हैं.) ९. पे. नाम. चौसठियोगिनी स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, आपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ६४ योगिनी स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: जगमब्भ वासिणीणं जग, अंति: (-), (पू.वि. लोक १४ अपूर्ण तक है.) ३३९९५. वीर स्तुति अध्ययन व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६१२, २०x४८). १. पे. नाम वीरस्तुतीनाम अध्ययन, पृ. १ अ १आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंतिः आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९. २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-) (वि. भगवतीसूत्रादि आगमसूत्रों से संकलित गाथाएँ.) ३३९९६. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. पत्रांक नहीं लिखा है, प्रारंभ व अंतिम कृ अपूर्ण होने से काल्पनिक पत्रांक २ दिया गया है।, जैदे., (२५.५X११, १२X३३). १. पे नाम, घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. יי घंटाकर्ण महावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: घंटाकर्ण नमोस्तु ते, (पू.वि. मात्र अंतिम पद है.) २. पे नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदी नेमिजिनं नौमि अंतिः मोक्षलक्ष्मीनिवासम् श्लोक ८. ३. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तोत्र, आ. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि अनंत कल्याणकर, अति तेषां वर साधुरूपा, श्लोक ५. ४. पे नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. जयसागर सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथसारथिसारं अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) ३३९९७. समकित सड़सठ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२६.५X१०, १२४३२). सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: जीवादीक पदारथ जाणवा, अंति: ए मोक्ष जावानो उपाए . ३३९९८. वीरजिन स्तुति सह टीका व सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. नवलरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६. ५x१२, ९३३). १. पे. नाम वीरजिन स्तुति सह टीका, पृ. १अ संपूर्ण. " For Private And Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४३१ संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, __श्लोक-४. संसारदावानल स्तुति-टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नमामि प्रणम; अंति: (१)मोक्ष देहि मह्यमिति, (२)नंदिताच्चिरम्. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: जय जयदेवी सरस्वती, गाथा-६. ३३९९९. पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. शंकरसौभाग्य गणि-शिष्य (गुरु पं. शंकरसौभाग्य गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १६४४७). पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, मु. जयशेखर, सं., पद्य, आदि: परम परमेष्टि पंचकं; अंति: दयमयं नियतं प्रदत्ते, श्लोक-३७. ३४०००. अर्हन्नाम स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१०.५, १६x४५). शक्रस्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते परमात्म; अंति: (-). ३४००२. नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१२, १३४३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५३. ३४००३. नववाडि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४३६-४५). शीलनववाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलइ प्रणमुंगोयम; अंति: सीलवंतनइ जाउं भामणइ, गाथा-२८. ३४००४. सुरदत्तश्रेष्ठि चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पंन्या. धनविजय (गुरु पंन्या. माणिक्यविजय); पठ. पंन्या. गौतमविजय (गुरु पंन्या. धनविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३.५, १६४३९). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथां; अंति: इदं कथानकं कृत्यं. ३४००५. (+) दंडक स्तवन व नवदसार पुरुषाधिकार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. भरत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७७१३, ६४५६). १.पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४५. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ चउवीस; अंति: आपणा हितनइ अर्थिइ. २. पे. नाम. नवदसार पुरुषाधिकार सह टबार्थ, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.. नवदसार पुरुषाधिकार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूदीवेणं० उसप्पिणी; अंति: केसवा भायरो होत्था. नवदसार पुरुषाधिकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूदीप नामि दीपनइ; अंति: नव वासुदेव भाई हुवा. ३४००६. प्रस्ताविकश्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१३, ५४३५). प्रस्ताविकश्लोककाव्यादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: शीतलः साधू संगमः, श्लोक-७, ग्रं. २५५१. । सूक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतीनाथ भगवान; अंति: ते महासीतल जाणवी. ३४००७. अध्यात्मकल्पद्रुम-अधिकार ४ से ८, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १४४३८). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अधिकार-४ से ८ गाथा-९७ अपूर्ण तक है.) ३४००८. गुरुगुण गीत-विजयप्रभसूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १७४३५). विजयप्रभसूरि गीत, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर समरी करि; अंति: कहइ तुस तारे रे, गाथा-२७. For Private And Personal use only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४००९. (+) नवतत्त्व सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, २१४४०-६४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-३१. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जीवः सचेतनः अजीवस्तद; अंति: तो भवति तदावसेय इति. ३४०१०. कूलवालूककथा-सीलोपदेशबालावबोधे, अपूर्ण, वि. १६६८, पौष कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, __ ले.स्थल. छभांड, प्रले. मु. राघव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३४-३९). शीलोपदेशमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: भव संसारमाहि भमिउ. ३४०११. भाव प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४१२,१४४३३-३६). __ भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: रम्माओ पुव्वगंथाओ, गाथा-३०. ३४०१२. (+) महावीरषविंशतिका स्तव, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १७४६५). महावीरजिन षट्त्रिंशिका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: पराक्रमेणेव पराजितोय; अंति: वरदपूर्णमेतावता, श्लोक-३६. ३४०१४. (+) पंचप्रतिक्रमणविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८२१, चैत्र शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(३ से ५)=३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १२४३०). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: पछी बडी सांति कहीजै. ३४०१५. (+) नारिंगपुरपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १४४५०). पार्श्वजिन स्तवन-नारिंगपुरमंडन, ग. कल्याणधीर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल श्रीपास जिनवर; अंति: नाम तुज हियडइ धरी, गाथा-१५. ३४०१६. प्रमादपरिहार कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. श्राव. जैसा साह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५, ९४३८). प्रमादपरिहार कुलक, प्रा., पद्य, आदि: दुक्खसुक्खे सयामोहे; अंति: जिणपयसेवा फलं रम्मं, गाथा-३३. ३४०१७. (+) वनस्पतिसप्ततिका आवचूरि व समवसरण विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १५४३८-४२). १. पे. नाम. वनस्पतिसप्ततिका की अवचूरि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. वनस्पतिसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति:रंततः प्रत्येक इति, अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २.पे. नाम. समवसरण विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: बाह्यरुप्यमये प्रकार; अंति: चेति पर्षदस्तिष्ठति. ३४०१८. पौषधविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४३७-४०). आवश्यकसूत्र-पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरीयावही पडीकमीयु; अंति: इच्छामि० सज्झाय करूं. ३४०१९. (#) युगादिदेवमहिम्न: स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १२४३७-३९). आदिदेव महिम्न स्तोत्र, मु. रत्नशेखर, सं., पद्य, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: रमा ब्रह्मैकतेजोमयी, श्लोक-३८. ३४०२०. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८-६७(१ से ६७)=१, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. सा. रतुजी (गुरु सा. वदुजी); गुपि. सा. वदुजी (गुरु सा. अजवाजी); सा. अजवाजी (गुरु सा. हरुजी); सा. हरुजी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११, ७४३०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: दिवसेसु अंग तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२. For Private And Personal use only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपासक दशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करीनइ उ० उपदेस दीघउ, ३४०२४. नेमिनाथ व ज्ञानपंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १४६९, आषाढ़ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २४-२३ (१ से २३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६X११, २०७२). १. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन छंदनिबद्धं, पृ. २४अ - २४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन स्तव - छंदबद्ध, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: त्यात्मविद्यालयस्थं, श्लोक-२८, (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे नाम ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. २४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशैवेयं यादवविशाल, अंति: गतिः पंचमं पंचमी वा लोक-२४. १. पे. नाम. मृगावती कथा, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र - कथा संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. मंगलाचरण गाथा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. ३४०२५. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७११, ९४२५). पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ तुज, अंति: करी सेवक मनि थापो, गाथा-१०. ३४०२६. कल्पसूत्र की मृगावती कथा, मंगलाचरण गाथा संग्रह व पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११.५, १३x४१-४९). ४३३ जैन गाथा", प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. पट्टावली, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पट्टावली*, प्रा., मा.गु.,सं., गद्य, आदिः श्रीवर्धमान स्वामी, अंति: (-), (पू.वि. पट्टावली आठवीं पाट तक ही है.) ३४०२७. अष्टमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, जैवे. (२६११.५, ११४२८). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि (-); अंतिः कांति सुख पामे घणु, ढाल २, गाथा २४, (पू.वि. ढाल - २, गाथा-६ अपूर्ण तक नहीं है.) ३४०२८. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २५.५X११, ११×३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदार, अंति: (-). (पू.वि. श्लोक-३२ तक है.) ३४०२९ बसहीआदि दसदान कथा, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे. (२६.५४११.५ १३४३८-४२). " "" वसतिदानादि विषयक दृष्टांत कथासंग्रह, प्रा. सं., गद्य, आदि: वसही सयणासण भत्तपाण; अंति: (-). ३४०३०. शक्रस्तव, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२६.५x११.५, १७४५९). शक्रस्तव अत्रामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., प+ग, आदिः ॐ नमोर्हते परमात्म; अंतिः (-). ३४०३१. स्तुति चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५X११, १०X३०-३६). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदिः भव्यांभोजविबोधनैक, अंति: (-), (पू. वि. स्तुति-३ श्लोक-१२ " " अपूर्ण तक है.) ३४०३२. (+) द्रव्य संग्रह प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२६४११, १७४४१). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि जीवमजीवं दव्वं जिणवर, अंतिः मुणिणा भणिवं जं, अधिकार-३, गाथा- ६०. ३४०३३. (+) वीरजिनवीनती स्तवन व विचार संग्रह सह अनुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १४X३९-४९). १. पे. नाम वीरजिनवीनती स्तवन, पृ. १४-३अ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-वडलीमंडण, ग. नगा, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरणो; अंति: नगा गणि मंगल करो, गाथा-५१. २.पे. नाम. जीव के पांचनिजाणमार्ग-ठाणांगसूत्रे सह अनुवाद, पृ. ३अ, संपूर्ण. जीव के पांच निजाणमार्ग-ठाणांगसूत्रे, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पंचविहे जीवस्स; अंति: सिरेणं सव्वंगेहिं. जीव के पांच निजाणमार्ग-ठाणांगसूत्रे-अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: पंचे ठामे जीवनीसरइ; अंति: अंगा हूंती नीसरइ. ३४०३४. लघुसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १५४४६-५२). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. ३४०३५. जिननमस्कार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १३४४५). जिननमस्कार स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते विश्वनाथाय; अंति: श्रीजिनं शांतमुद्र, श्लोक-२५. ३४०३६. (+) चतुर्विंशति नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४३८). साधारणजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जयपयडपयावं मेघगंभीर; अंति: देउ सुक्खं सुअंगी, गाथा-२८. ३४०३७. भवीयकुटुंब सज्झाय, संपूर्ण, वि. १५८८, भाद्रपद शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. देकावारक, प्रले. पं. मुनिराज गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११,१३४४७). समकितगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि रिसहेसर मनिहि; अंति: ते पामइ सर्वसिद्धि, ढाल-२, गाथा-३२. ३४०३८. यमक स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, ११४४०). यमक स्तव, सं., पद्य, आदि: त्वयिल सद्गुणचंदन; अंति: रसोदर सोदर सोद्यमः, श्लोक-१४. ३४०४०. स्थिरावली, संथारापोरसी व आगमिकगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, ११४४०). १.पे. नाम. स्थविरावली, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: केवलनाणंच पंचमयं, गाथा-५०. २.पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: आसज आसज निसीही निसही; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. संथारापोरसी की चयनित गाथाएँ लिखी हुई है.) ३. पे. नाम. आगमिक गाथासंग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण.. आगमिकगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४०४१. स्थिरावलीया, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १२४३६). स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीविआणओ; अंति: केवलनाणं च पंचमयं, गाथा-५०. ३४०४२. उपदेशरत्नकोश सह बालावबोध व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १५३६, फाल्गुन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. श्रावि. रूपाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४४०). १.पे. नाम. उपदेशरत्नमाला सह बालावबोध, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: वच्छयले रमइ सेछाए, गाथा-२६. उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रत्न तेह; अंति: स्वेच्छाइ रमइ सदैव. २.पे. नाम. जैन गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३४०४३. पंचाशिका, संपूर्ण, वि. १५४३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सीणउरामहानगर, प्रले. ग. श्रुतरंग (गुरु पं. जयसाधु गणि, तपागच्छ); गुपि.पं. जयसाधु गणि (गुरु आ. लक्ष्मीसागरसूरि, तपागच्छ); आ. लक्ष्मीसागरसूरि (गुरु आ. रत्नशेखरसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४४०). For Private And Personal use only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४३५ धनपालपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा-५०. ३४०४४. महावीर स्तवन व इरियावही सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, १४४४५-५५). १.पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, मु. लालकुशल, सं., पद्य, आदि: वंदेहं तं वीरमुदार; अंति: कुशलेन जिनेश्वरोसौ, श्लोक-८. २.पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नारि रे मे दिठि एक; अंति: एहनी करो घणी सेवरे, गाथा-६. ३४०४५. नंदीश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १०४३६). नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसरदीविहि मणहराइं; अंति: सिविसुह सिरसइ वरइ ए, गाथा-६. ३४०४६. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११, १२४३०). बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३४०४७. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११,१५४५०). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. ३४०४८. (+) कालसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११,११४४०-५०). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: देविंदणयं विजाणंद; अंति: कालसरूवं किमवि भणियं, गाथा-७४. ३४०४९. जैनगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १३४३५-४०). __ जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१२. ३४०५०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०, १२४४६). १.पे. नाम. विमलाचल गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. भुवनमेरु, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल भेटीयइ; अंति: प्रधान मेरे लाल हो, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमि गीतं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... नेमिजिन स्तवन, ग. भुवनमेरु, मा.गु., पद्य, आदि: वेगि मनावउ हे सहिया; अंति: कहइ भुवनमेरु गणि आम, गाथा-९. ३४०५१. लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १०४३१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-१९. ३४०५३. (+) योगशास्त्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ६४३७). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य सिद्धाद्भुत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३४०५४. श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४१०.५, १२४३३-३६). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं, गाथा-५०. ३४०५५. (+) एकविंशतिस्थानक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १७४४०-४६). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. ३४०५६. विजयसेठविजयासेठानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, १८४३६). विजयसेठविजयासेठाणी लावणी, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणेसरदेव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ३४०५७.(-) मीरगलेखा चोपी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११.५, १५४३६). मृगांकलेखा चौपाई, क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: व्रतनह लेइ चुकीनई; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ तक है.) For Private And Personal use only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४०५८. ढुढणपचवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६४११.५, ६४३६). ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पयंपे हितकारी अधिकार, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक नहीं है.) ३४०५९. (+) सातमौउपधानतप मालारोपणविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४x१०.५, १५४३८-४२). उपधानमालारोपण विधि, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मालग्राही भव्य माला; अंति: थुईयै देव वांदवा. ३४०६०. (#) साधारणजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. नाना ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १२४३४-३६). साधारणजिन चैत्यवंदन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (१)इच्छाकारेण संदेह भगव, (२)जय जय महाप्रभ देवाधि; अंति: तीयलोए चेईए वंद, गाथा-११. ३४०६१. अजितशांति स्तव व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, ११-१६४५१). १.पे. नाम. अजितशांति स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. ग. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. अजितशांति स्तवबृहत्-अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलसुखनिवहदानाय सुर; अंति: जनयतु संघस्य मुदम्, श्लोक-१७. २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३४०६२.(-) स्तवन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११, १७४४०-४५). १.पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले.ऋ. खीमजी (गुरु मु. वेलजी ऋषि); गुपि.मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन स्तवन, मु. धनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धनविजय सव सुख करू, (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. बलभद्र कृष्ण सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारकानगरथी नीसर्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) ३४०६३. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १९४४५-७०). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सेय मिथ्यामत बहोत; अंति: मुनिगुण गावो भ्राता, गाथा-९. २.पे. नाम. मोहनगर सज्झाय, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कंताजी औलग चलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ३४०६४. (+) पुद्गलपरावर्त स्तव सह अवचूरी, विचार व चैत्यवंदनसूत्र विवरण, अपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. ७१-७०(१ से ७०)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. रायधणपुर, प्रले. मु. मुक्तिरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११,१७४३४). १. पे. नाम. पुद्गलावर्त स्तवन सह अपचूरि, पृ. ७१अ, संपूर्ण. पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतराग भगवंस्तव; अंति: श्रेयःश्रियं प्रापय, श्लोक-११. पुद्गलपरावर्त स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तथा अनंत उसर्पिणी; अंति: पुद्गलपरावर्त्तः. २. पे. नाम. पुद्गलपरावर्त विचार, पृ. ७१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: औ१ वै २ ते ३ भा ४; अंति: (-). ३. पे. नाम. चैत्यवंदनसूत्र विवरण, पृ. ७१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४३७ ३४०६७. नवतत्वाभिधान प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८३७, भाद्रपद शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. श्रीजिनकुशलसूरिजी प्रसादात्।, जैदे., (२५.५४११, १४४३४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धिबोहिकणिकाय, गाथा-४९. ३४०६८.(-) जयतिहुअण स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, ७४२८). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ अपूर्ण तक है.) जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: जयवंतो वरति तीन भुवन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक टबार्थ लिखा है.) ३४०७०. दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८७२, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १२४३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊण चउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४२. ३४०७१. जयतिहुण स्तव सह अवचूरि व गाथा सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. देवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ९४३६-४४). १.पे. नाम. जयतिहुणणपार्श्वनाथ स्तव सह अवचूरि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ अणिदिय, गाथा-३०, ग्रं. ५७. जयतिहअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्धसंप्रदा; अंति: स्त्रिलोकलोकश्लाघितः, ग्रं. २९३. २. पे. नाम. ईर्यापथिकी गाथा सह टीका, पृ. ३आ, संपूर्ण. ईर्यापथिकीभंग गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चउदससय अडचत्ता तिसय; अंति: पणसहसाछसयतीसहिआ, गाथा-१. ईर्यापथिकी गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: पर्याप्तापर्याप्ता; अंति: मिथ्यात्व क्रियतो. ३४०७४. कोणिकराजा कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, २२४६१). कोणिकराजा कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४०७६. (+) साधर्मिक कुलक व नमिनाथ गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १२४३५-३९). १.पे. नाम. साधर्मिक कुलक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पासजिणं वुच्छं; अंति: कयपुन्ना जे महासत्ता, गाथा-२६. २.पे. नाम. नमिनाथ गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नमिजिन गीत, मु. खेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनमिनाथ जिणिंद पय; अंति: खेमराज० सेवक तेरउ, गाथा-४. ३४०७७. चारित्रमनोरथमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १५४५१). चारित्रमनोरथमाला, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुह गुरुपय प्रणमउं; अंति: मिली शिवसुखदायक होइ, गाथा-४१. ३४०७८. समसरण स्तव व व्याख्या , अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, २०४५३). १.पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. २.पे. नाम. समवसरण स्तव व्याख्या, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. समवसरण स्तव-व्याख्या , सं., गद्य, आदि: उभयपार्श्ववप्रउयसत्; अति: (-). ३४०७९. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १७X५५). १.पे. नाम. शक्रस्तव, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ले.स्थल. द्वीपबिंदर, प्रले. मु. यशोराज, प्र.ले.पु. सामान्य. शक्रस्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: लिलेखे संपदां पदम्. २. पे. नाम. चंद्रप्रभ स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभ प्रभाधी; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-४. ३४०८०. आर्याभेद विचार व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ११४४०). १.पे. नाम. आर्या भेद विचार, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आर्याभेद विचार, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भेदा प्रकीर्तिताः, श्लोक-८५, (पू.वि. श्लोक-७० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सर्वाधिकार गाथासंग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. म. ज्ञानविमलसूरि-शिष्य, प्रा.,सं., पद्य, आदि: पढमो बारसमत्तो बीओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक है.) ३४०८१. (+) संखेश्वरजीनो छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १६४४५). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: लब्धि० मुदा प्रणम्य, गाथा-३२. ३४०८२. नेमीनाथ चौक, संपूर्ण, वि. १९०४, कार्तिक कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३४४६). नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समर्या देवी सारदा; अंति: तस सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. ३४०८३. (+) निर्जरातत्त्व विचार-विविधशाश्त्रोक्त, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १८४५०). निर्जरातत्त्व विचार-विविधशास्त्रोक्त, प्रा.,सं., गद्य, आदि: अकाम तण्हाएत्ति अकाम; अंति: (-). ३४०८५. मालारोपण व दीक्षाविधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-५(१ से ५)=३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १७४४६). १.पे. नाम. मालारोपण विधि, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. उपधानमालारोपण विधि, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: जो मालनो पहिरनार विण; अंति: व्रतादि पच्चखाण करई. २.पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा १ वासे २ चिई; अंति: (-). ३४०८६. सम्यक्त्व दृढ वर्णन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४११, १२४२९-३६). सम्यक्त्वदृढ वर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: सुकल कला गुण जिणवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३८ अपूर्ण तक उपलब्ध है.) ३४०८७. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, १३४५१). १.पे. नाम. मायाबीज स्तव, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मायाबीज स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पदं लभते क्रमात्सः, श्लोक-१६, (पू.वि. श्लोक-१३ तक नहीं है.) २. पे. नाम. महालक्ष्मी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आदौ प्रणवस्ततःश्रीं; अंति: मन्येमहत्थस्थितिः, श्लोक-१३. ३. पे. नाम. अंबिकादेवी स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. अंबिकादेवी स्तोत्र, म. पुण्य, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ जय जय अंबिक माय; अंति: पुण्य० नमो आणंद, गाथा-११. ३४०८९. वीरजिन स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १६४५१). १.पे. नाम. महावीर स्तव, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नूतः पलियोगजीयाः, (पू.वि. श्लोक-३० अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. वीरजिन स्तव, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: यस्याब्धिदुहितुर्दा; अंति: सज्जन तारिकाश्री, श्लोक-२७. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तव, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: स्तोष्ये सुरासुरैः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१५ अपूर्ण तक है.) ३४०९०. सझाय व ज्योतिषश्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १२४३२). For Private And Personal use only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम, पडिलेहणविचार सज्झाय, प्र. १अ १आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन सज्झाव, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदिः निअ गुरु चरण नमी, अंतिः जाणी रे जिनवचन विलास, गाथा - १३. २. पे. नाम. ज्योतिष लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ३४०९१. नेमिजिन बारमासो संग्रह, अपूर्ण, वि. १८३९, भाद्रपद कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९५ - ९२ (१ से ९२)=३, कुल पे. ४, ले. स्थल, चाडवास, जैदे. (२५४११, १६x४६). "" १. पे. नाम. नेमजीराजुल बारैमासौ, पृ. ९३अ- ९३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. अमरविशाल, मा.गु, पद्म, आदिः यादव मुझनें सांभर, अंतिः भणी विनवे अमरविशाल, ४३९ गाथा - १९. २. पे. नाम. नेमिराजुल बारहमासीयौ, पृ. ९३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अंति: पालै अविहिड प्रीत रे, गाथा- १३. ३. पे नाम, नेमिनाथजीरी वारेमासी, पृ. ९४अ- ९४आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदिः सखीरी सांभलि हे तूं अंति: लील विलासी हो लाल, गाथा १६. ४. पे. नाम. नेमिनाथजीराजेमतीजीरौ बारैमासौ, पृ. ९४-९५अ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मु. खुस्यालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७९८ आदिः समरु सरसति मातने, अंतिः नित नमैं सुभ भावसुं गाथा-२८. ३४०९२. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५.५११, १६४४३). सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु, पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुं, अंतिः पूरि आसा अम्ह तणी, गाथा - १९. ३४०९३. (-) पन्नवणासूत्र - पद ३, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५X११.५, ८X३७). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ३४०९४. विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ८, जैदे., ( २६११, ४१x२८). १. पे. नाम आर्यदेश नाम, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ मगधदेश राजग्रहीनगर, अंति: (१) खत्रीकुंडथी कोष ५०, (२) स्थापना विचर्या छै. २. पे. नाम. विहरमान २० जिन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधरस्वामी श्रीजुग; अंतिः श्रीअजितवीर्यजी २०. ३. पे नाम, कामविकार विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ७. पे. नाम. पासथाना बोल, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पासत्था के बोल, मा.गु., गद्य, आदिः आधाकर्मीपिढ फलग भोग; अंति: भगवती मध्ये शकत१. ८. पे नाम, विविधविचार संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण देव-मनुष्य काम विचार, मा.गु, गद्य, आदि देवतानो मइथुन स्थित अंतिः ६ एणी मेले निचई. ४. पे. नाम. अढारभार वनस्पति मान कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पतिमान कवित, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: तीन कोडि तरु जात; अंतिः प्रमसी० भारह अदार सहस गाथा - २. ५. पे. नाम. दशप्रकारे दीक्षा, पृ. १आ, संपूर्ण. १० दीक्षा प्रकार, प्रा., मा.गु. प+ग, आदि: दसविहा प्रवज्जा अंतिः दिख्या लिये निधे, ६. पे. नाम. जंबूद्वीपप्रमाण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. लघुसंग्रहणी - जंबूद्वीप विचार से संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. सक्रेन्द्र की सभा, मोती उत्पन्न होने के सात स्थानों का संग्रह है.) 1 . , ३४०९५ (+) संग्रहणी सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२६५११. १९४२). " ', बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ५२ से ६४ अपूर्ण तक है.) ३४०९९. स्तवन, सझाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २६११.५, १०x३२). १. पे. नाम, नाकोडापार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, www.kobatirth.org पार्श्वजिन छंद - नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि अपने घर बेठा लील करो, अंति समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय पुण्योपरि, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, आदि पारकी होड तुंम कर, अंतिः रिद्ध कोटानकोटी, गाथा-३, ३. पे. नाम. विद्या काव्य, पृ. १आ, संपूर्ण. विद्यामहत्त्ववर्णन श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: विद्या नाम नरस्य रूप; अंति: विद्या विहिन पसुः, श्लोक-१. ३४१०० (4) ज्योतिष व गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१)=२, कुल पे. ३, पठ. सा. पदमासिद्धि (गुरु सा मानसिद्धि); गुपि. सा. मानसिद्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०, ११×३९). १. पे. नाम ज्योतिष संग्रह, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिष संग्रह, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे नाम. सित्रुंजयगीत, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीवह दक्षण भरत, अंतिः भाव० पूजउए मुझ मन रली, गाथा ८. ३. पे. नाम. संभवजिन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, आ. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: हरिह बहु परिजेइया ते; अंति: भजउ भवह वन उदाह, गाथा-५. ३४१०१. पर्यताराधना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२६.५४१२.५, १३४४६). " 1 पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा- ७०. ३४१०२. (+) रोहणीतप कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३ (१ से ३) = ३, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२६.५x१३.५, १६४३९). " रोहिणीतपफल कथा, मा.गु. सं., गद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यमानम्य; अंतिः प्राप्नोति निश्चितं, संपूर्ण. ३४१०३. प्रव्रज्या कुल व सर्वज्ञ स्तव, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. हेमसोम गाणि तपगच्छ); पठ. मु. भवनकुंजर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१२.५, १२X४०). १. पे. नाम. प्रव्रज्या कुलक, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: संसार विसम सायर भवजल, अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. २. पे. नाम, सर्वज्ञस्तव, पृ. २अ २आ, संपूर्ण १३४३४-३९). आदिजिन आज्ञास्तव, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नयगमभंगपहाणा विराहि; अंति: कुणउ अम्हाणं, गाथा- ११. ३४१०४. स्थंभणकपार्श्वजिननमस्कार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५x११.५, १५X४०). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख, अंतिः अभयदेव 1 " विनवह आणदिव गाथा ३०. ३४१०५. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. ग. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५x१०.५, साधुप्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि, अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र - २१. ३४१०९. (+) नवकार कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११.५, १५X४५). For Private And Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: इहलोके एतन्नमस्कार, अंतिः सिद्धिरासादिता. ३४११०. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जेवे. (२४.५४११.५, १३४३९)नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: (-), (पू.वि. नमिउण स्तोत्र गाथा - १० तक ही है.) ३४१११. पंचपरमेष्ठि स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२५x११, ११४३२). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंतिः श्रियं स लभते नरः, श्लोक-२५. ३४११३. शाश्वतजिनप्रतिमा विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. राजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., १५X१२-५४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाश्वताजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्मे प्रासाद; अंति: बिंब संख्या जाणिव ३४११४. सप्ततिसतजिन स्तवन सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल. सुरतबंदिर, जैवे. (२५.५४११.५. ४X२७-२९). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिण जगत्रनी प्रभु; अंति: पूजो लोक सुखाथी. ३४११५ (+) संतिकर स्तव आम्नाय संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४ ११, १६x५५). " ३४१२९. षट्द्रव्य विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४.५४११, २५x२३-६०). ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मद्रव्य शुद्ध लोक; अंति: कालद्रव्य व्याखाण. ३४१२२. बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३४३७-४०). ४४१ (२५X१०.५, संतिकरं स्तोत्र-संतिकरस्तव आम्नाय संबद्ध, सं., गद्य, आदिः एतत्स्तोत्रं त्रिकाल अति: सर्वाभ्युदयहेतुरिति३४११७. पट्टावली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२६४११, १६४१०-२४). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरादनु पालक; अंतिः श्रीविजयजिनेंद्रसूरि, (वि. ६७ पाट तक है.) ३४११८. जीवरास खमावन, संपूर्ण, वि. १८५५ आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, जोधपुर, प्रले. ग. जुक्तविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ५-१९३२७-४५). " जीवराशि क्षमापना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १७वी, आदि हिव राणी पदमावती अंति: कहइ पापथी ३-३९x१९-२३). १. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र आम्नाय पृ. १अ संपूर्ण. छुटइ ततकाल, ढाल -३, गाथा-३६. ३४११९ (+) सणंकुमरनो आलावो, संपूर्ण वि. १८६३ श्रावण अधिकमास शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, गोंडल, प्रले. मु. हेमचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., ( २६४११, ५४२७). सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध, प्रा., गद्य, आदि: सणकुमारेण भंते, अंति: करीसंति सेवं भंते. सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स० सनतकुमार भ० है; अंति: गौतम कहे से नेहेन . ३४१२०. (+) संयोगद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रावण शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. चिमनराम ऋषि (गुरु मु. कर्मचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११, १४X६४-७० ). योगवीसी, मु. मान, मा.गु. पच, वि. १७३१, आदि: बुद्धिवचन वरदायनी अंतिः रचीवुं संयोगबत्तीसी अध्ययन-४ " उन्माद, गाथा- ७३. For Private And Personal Use Only बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., पग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. , " ३४१२३. () पाक्षिक नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे. (२५X१०, १४X३२-३७). पाक्षिकदिन नमस्कार, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः श्रीवीरजिननेत्रयोः, श्लोक-२६. ३४१२४. भक्तामरस्तोत्र आम्नाय व चौदनियम गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X१०.५, Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र आम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भक्तामरेति प्रथम; अंति: महत्त्व लखमी वाधइ. २. पे. नाम. श्रावक १४ नियम गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ३४१२६. णिजंतकिबंतयुष्मत्प्रोयगगर्भ: पार्श्वस्तव सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पंचपाठ. कुल ग्रं. ८१, जैदे., (२६४११, ५४३७-४२). पार्श्वजिन स्तव-णिजंतकिबंतयुष्मत्प्रोयगगर्भित, पं. चंद्ररत्न गणि, सं., पद्य, आदि: स्तुवते यं जिनराज; अंति: जिन प्रसीद मयि तुवयि, श्लोक-८. पार्श्वजिन स्तव-णिजंतकिबंतयुष्मत्प्रयोगगर्भित-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: अत्र स्तवे पूर्वं; अंति: के रूपसिद्धिः.. ३४१२७. श्रीपाल रास, औपदेशिक पद व पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, पू.वि. पत्रांक नही दिया हुआ है., प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३-१४४३५-४४). १.पे. नाम. श्रीपाल रास, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. खंड-४, ढाल-२ तक ही है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: जादिन मातन तात न; अंति: कछु संबल ले रे, गाथा-१. ३. पे. नाम. अमीझरा छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अमीझरा, मा.गु., पद्य, आदि: उठत प्रभात अमीझरो; अंति: निर्मल एथी पुरो आसये, गाथा-१८. ३४१२८. विजयदेवसूरि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४२-४७). विजयदेवसूरि रास, ग. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ से ७४ अपूर्ण तक है.) ३४१२९. कथा संग्रह-नवकारविषये, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, १५४४१). नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, मा.गु., प+ग., आदि: एकषष्टिलघ्वक्षराणि; अंति: संजातो जैनमंत्रतः. ३४१३०. अनाथीमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, ११४२७-३०). अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक सुख; अंति: (-). ३४१३१. धर्मअधर्म सज्झाय व वीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४३८). १.पे. नाम. धर्मअधर्म सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पामो सुख सवपुर ठाइ, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा-११ तक नहीं है.) २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सदा जिन चोवीस मनि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ तक है.) ३४१३२. पुण्यकुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११, १८४५९). पुन्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्त; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इंदि० पांचे इंद्रीय; अंति: आराधना करी मोक्ष जाइ. ३४१३३. समता सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १८४३५). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दया उत्तम प्राणी दया; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-५३ तक है.) ३४१३५. विसविहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. पाली, प्रले.पं. सांवतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ८-११४२९-३७). वीसविहरमानजिन स्तवनबीसी, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: (-); अंति: धर्मध्यान सुख पाया, स्तवन-२०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., स्तवन-२०, गाथा-४ तक नहीं है.) ३४१३६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. दासू पांडे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १०४३५-४०). For Private And Personal use only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्ष प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३४१३७. पार्श्वजिन स्तोत्र सह अवचूरि व शांतिजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, १९४५१-५७). १. पे. नाम. दोसावहारदक्खो स्तोत्र सह अवचूरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा न पीडंति, गाथा-१०, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: दोषा दूषणानि रात्रि; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा-९ अपूर्ण तक अवचूरि लिखी है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: जयसिरि दाया संति; अंति: लहति सुहसंपयं सपथं, गाथा-६. ३४१३८. राचाबत्तीसी वस्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ७, जैदे., (२५४१०.५, १५-१६४१०-४४). १.पे. नाम. राचाबत्तीसी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रुडां कहै छे राचो, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण.. मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: दांकिटि दांकिटि दां; अंति: नोबत या विध वाजै, गाथा-१. ३. पे. नाम. सवैया- पार्श्वजिन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. जैनसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: समीयाणपुरे अतिसोहत; अंति: देख प्रभा परमेसर की, गाथा-१. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आ. उदयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उपगार अपार कीयो अधिक; अंति: जिनंद सेवो सुखकारी, गाथा-१. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. उदयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कर स्याम घटा प्रगटा; अंति: राजमती नित प्रीत धरे, गाथा-१. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सजी सोल शृंगार उछाह; अंति: चंदन अंग खोलै वणावो, गाथा-१. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. जिनउदयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: हारे शांतजिणेसर; अंति: जिनउदयैः आपसरीसै तोल, गाथा-१०. ३४१४०. संज्ञा स्तव सह अवचूर्णि-प्रज्ञापनासूत्रे, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. तेजरुचि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४१०.५, २०-२३४५७-६१). प्रज्ञापनासूत्रे संज्ञापद, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिपणमंतसुरवरकिरीड; अंति: हवेतिय पुणज्जवाएया, गाथा-११. संज्ञा पद-टीका, सं., गद्य, आदि: भत्तीति सुगम आहारस; अंति: (१)चतुष्टयसमुदायार्थः, (२)तथा एताः संज्ञा इति. ३४१४२. यतिप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७५६, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. माणिक्यविजय (गुरु पं. मुनिविजय); गुपि. पं. मुनिविजय (गुरु पं. तत्त्वविजय); पं. तत्त्वविजय (गुरु पं. कनकविजय); पं. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १२४४७). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३४१४३. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४१). १.पे. नाम. रिषभनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही रह्यउ; अंति: सेवे बे कर जोडी रे, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार करतार संसार सागर; अंति: ते तरइ जे रहइ पासइ, गाथा-४. ३. पे. नाम. संभवनाथ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९४, आदि: विणझारा रे नायक संभव; अंति: अरि पण मूल नको कळे, गाथा-७. ४. पे. नाम. अभिनंदन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: बेकर जोडी वीनवुरे; अंति: समविषमे जिनराज रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. सुमतिनाथ गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सुमतिजिन गीत, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कर तासु तउ प्रीति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३४१४४. उपदेशरत्नाकर, संपूर्ण, वि. १८३१, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४१०.५, १५४४३-४६). उपदेशरत्नाकर, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: जय सिरिवंछिअसुहए; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मयूराष्टक तक है.) ३४१४५. (+) पार्श्वनाथसमस्या स्तवन सह टीका, संपूर्ण, वि. १६७८, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. गोविंद (गुरु पं. पार्श्वचंद्र); गुपि.पं. पार्श्वचंद्र (गुरु ग. जीवसुंदर); ग. जीवसुंदर (गुरु उपा. पुण्यसर); उपा. पुण्यसर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, २०४४५-४८). पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं तमह; अंति: भ्यर्चनोभीष्टलब्ध्यै, श्लोक-१३. पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध-टीका, सं., गद्य, आदि: अहं तं श्रीपार्श्व; अंति: भीष्टलब्ध्यै स्यात्. ३४१४६. (#) विचार काव्य सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, २४२४). नवतत्त्वादि श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि९ व्रत५; अंति: ज्ञेया सुधीभिः सदा, श्लोक-१. तत्त्वव्रतधर्मादिभेद श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: महिंछइ सर्वद्वार, (वि. ऊपर का भाग ___कटा हुआ होने के कारण आदिवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) ३४१४७. द्वादशभावना, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, २५-२८४६७-७०). द्वादशभावना, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनेंद्र गुरुं; अंति: किं तत्र कौतूहलम्, भावना-१२, श्लोक-१३५. ३४१४८. (+#) राजप्रश्नीयसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १७४४५). राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंति: (-). ३४१४९. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १६७०, माघ शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, ले.स्थल. अमरसर, प्रले. पंन्या. सुयशकीर्ति (गुरु ग. सुखनिधान, खरतरगच्छ); गुपि.ग. सुखनिधान (गुरु मु. समयकलश, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १९४६८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. मू+टबा. श्लोक-३८ तक नहीं है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: पार्श्वनाथप्रसादतः, (पू.वि. मू+टबा. श्लोक-३८ तक नहीं है.) ३४१५०. (+) सिंदूर प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३१-४१). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक For Private And Personal use only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३४१५१. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४११, ४४३२-६९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण क० मंगलिक; अंति: (-). ३४१५२. (+) पार्श्वजिन स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८०३, फाल्गुन शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ३३-३२(१ से ३२)=१, ले.स्थल. नागैरनगर, प्रले. पं. सुंदरमुनि (गुरु मु. ज्ञानभद्र); गुपि. मु. ज्ञानभद्र (गुरु ग. यशशील); ग. यशशील (गुरु मु. ज्ञानसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ८७५, प्र.ले.श्लो. (६१३) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षे, (८५७) मूषकानलचौरेभ्य, जैदे., (२५४११, ११४३५-३९). पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बालावबोध का भाग है.) पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पिणि ___ अतिशयवंत करौ. ३४१५३. षट्पुरुष चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४११, १-१५४१४-३९). षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमकर, सं., प+ग., आदि: श्रीअर्हतश्चतुस्; अंति: (-). ३४१५४. चउवीसदंडक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६४६, आषाढ़ कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. थिरपुद्र, प्रले. मु. सवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, २१४४५-४९). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुपासनाह प्रहि; अंति: प्रसादि परमारथ लहइ, गाथा-२४. पार्श्वजिन स्तवन-चोवीसदंडकगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमुं० श्रीपार्श्व; अंति: ए परमार्थ जाणिउ. ३४१५५. २४ जिनस्तुति, अष्टक व विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२४४१०, १२४३५-४१). १.पे. नाम. चतुरबिंसततीर्थंकरा की जयमाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. माघनंदि, सं., पद्य, आदि: वंदेतानमरप्रवेकमुकुट; अंति: मोक्षलक्ष्मीवधूनां, श्लोक-१५. २.पे. नाम. अष्टप्रकारीपूजा अष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: स्वरापगादि दिव्यनाद; अंति: रूप धूपकै फलार्घकै, श्लोक-९. ३. पे. नाम. दशदिग्पाल स्थापन, पृ. २अ, संपूर्ण. १० दिक्पालस्थापन विधि, सं., पद्य, आदि: सौगंध संगत मधुव्रत; अंति: आगच्छ सोमाय स्वाहा, श्लोक-९. ४. पे. नाम. जिनबिंबस्थापनादि विधिसंग्रह, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सं., प+ग., आदि: नाथ त्रिलोक महताय; अंति: (-). ३४१५६. योगप्रकाश-प्रकाश १, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अंचलगच्छे., जैदे., (२५४११, १४४३६). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३४१५७. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, स्तवन व स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०,१३४३८). १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. केशरविजय; पठ. श्रावि. पांचु जयवंती, प्र.ले.पु. सामान्य. __ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जिण पास पयच्छो वंछिय. २.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, मु. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: स्फुरदेवनागेंद्र; अंति: चिंतामणिः पार्श्वः, श्लोक-७, (वि. आदिवाक्य वाला भाग खंडित है.) ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४६ www.kobatirth.org १. पे नाम, श्राद्धपाक्षिक अतिचार, पृ. ४अ-६अ, त्रुटक, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. श्रावकसंक्षिप्त अतिचार”, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम गौतमस्वामी रास, पृ. ६ अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदि: त्वमशुभान्यभिनंदननंद, अंतिः सुरभिवाततनुंतमहारिणा श्लोक-४. ३४१५८. पाक्षिकअतिचार व गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-४ (१ से ३,५ )= ३, कुल पे. २, जैवे. ( २४.५X१०, १२-१५X३५-३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु, पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल अंतिः (-) (पू. वि. गाथा- ३५ अपूर्ण तक है.) ३४१५९. छुटकलोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६३ श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. शिवचंद्र यती की प्रति से प्रतिलिपि की गई है., जैदे., (२५x१०, ९-१०४५-३१). प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: न चोरहार्यं नचराजहार; अंतिः अहहकलीकालः प्रभवती. ३४१६१. (#) चतुःशरण प्रकीर्णक व षट्मत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ११x३६). १. पे, नाम, चउसरण, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्ज जोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३. २. पे. नाम. षट्मत, पृ. ४अ, संपूर्ण. ६ मत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जैनमत वीतरागदेव नव; अंति: मोक्ष नरक न मानइ. " ३४१६२. (+) संतिकरं स्तोत्र व मन्हजिणाणं सज्झाय, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., ( १७.५x९.५, १३X३०). १. पे. नाम. शांति स्तोत्र महामंत्रमय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि संतिकरं संतिजिणं, अंतिः स लहइ सुह संपयं परमं, ,, गाथा - १३. २. पे. नाम. श्राद्धदिनकृत्यकुलक स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. महजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि; मन्त्रह जिणाण आणं; अंतिः निच्वं सुगुरूवरसेणं, गाथा ५. ३४१६४. नंदीसूत्रनी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५X११.५, ५X४०). नंदी सूत्रगत४ बुद्धिविषयक कथा संग्रह, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि उपतिया वेणंइया कम्म, अंतिः ए एमाइड उदाहरणं, , " गाथा - १४. नंदी सूत्रगत४ बुद्धिविषयक कथा संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि उत्पातिका वैनयक, अंतिः ए आदि उदाहरण - जाणवा. ३४१६५. पौषध सज्झाय व प्रतिक्रमणविधि संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. त्रिपाठ. जैदे. (२५x११, १३x४०). १. पे. नाम. पौषध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषध सज्झाय - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभो अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-६ तक लिखी गई हैं.) For Private And Personal Use Only २. पे. नाम. लघुदैवसिक प्रतिक्रमणविधि, पृ. १अ संपूर्ण. लघुप्रतिक्रमणविधि-संध्याकालीन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः उपास्रइ आवी पहिलुं; अंतिः सज्झायं करेमि . ३. पे. नाम. रात्रिकलघु प्रतिक्रमणविधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. लघु प्रतिक्रमणविधि प्राभातिक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलुं इरियावही पडिक अंति: अथवा ७ सज्झाय कीजइ. ३४१६६. लोकनालि स्तवन व मुहपत्ति ५० वोल, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जैदे. (२६११.५. १६-१९४४७-५२). Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org १. पे. नाम लोकनालि स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४बी, आदि जिणदंसणं विणा जं, अंति: जहा भ्रमह न इह भिसं, गाथा-३२. २. पे नाम. मुहपत्ति प्रतिलेखनाविधि, पृ. १आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्व देखु; अंति: सकाय विराधना परिहरउ. ३४१६७. स्तोत्र, मंत्र व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-१४ (१ से १४) =४, कुल पे ७, जैदे. (२४.५४१०.५, १७-१९x४४-४८). १. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणिमहामंत्रगर्भित, धरणेंद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: शस्वदन्येषणायम्, श्लोक-३२, ( पू. वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १५अ संपूर्ण. आनंद *, मा.गु., पद्य, आदि: करीय सुद्ध सब अंग; अंति: आनंद सूर देहै सतुव, गाथा - १. ३. पे. नाम. सूर्यद्वादशनाम स्तोत्र, पृ. १५ अ- १५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि आदित्यं प्रथमं नामः: अंतिः धनधान्यपुत्रलाभं च श्लोक- ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे. नाम. सिद्धिसारस्वत स्तोत्र, पृ. १५आ - १६अ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना, अंति: यच्छत्पनंतंसताम्, लोक-१४. ५. पे. नाम. गणेशद्वादश नाम, पृ. १६अ, संपूर्ण. गणेशद्वादशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सुमुखश्चैक दंतस्य; अंतिः विघ्नं तस्यं च जायते, श्लोक-३. ६. पे. नाम पद्मावतीस्तोत्र पूजनविधि, पृ. १६अ १८ आ, संपूर्ण पद्मावतीदेवी स्तोत्र - पूजनविधि सहित, आ. पृथ्वीभूषणसूरि, मा.गु., सं., पद्य, आदि: अस्य श्रीमंत्रराजस्य, अंतिः पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-३९. ७. पे. नाम. विविधमंत्र संग्रह. पू. १८आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४१६९ रत्नाकरपचीसी, चैत्यवंदन व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३- १(१ ) -२, कुल पे. ४, जैवे. (२५.५४११, ४४७ १३-१४X३०-३७). १. पे नाम. रत्नाकरपच्चीसी, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य वि. १४वी आदि (-); अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक-२५ (पू. वि. लोक २१ अपूर्ण तक 1 नहीं है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण, पठ. नाथी, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस, अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, " For Private And Personal Use Only श्लोक-११. ३. पे. नाम. इग्यारसनुं चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, सं., पद्म, आदि: अहो तिर्थस्य माहात्म; अंतिः कोटी यत्र यज्ञफलं श्लोक-६. ४. पे. नाम. आदिजिन नमस्कार, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि जय जगनाथां जना, अंतिः चूकल प्रामाणी, श्लोक-२. ३४१७०. योगविलास मालोपधान क्रीया, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X११, १३-१४४४१-४४). योगविलास मालोपधान क्रिया, सं., पद्य, आदिः श्रीवीरं प्रणिपत्य अंतिः (-) (पू.वि, श्लोक ३० अपूर्ण तक है.) ३४१७१. मंत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५x११, २२X४३-५४). १. पे, नाम, मंत्र संग्रह, पृ. ९अ, संपूर्ण, Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन अष्टोत्तरशताभिधानगर्भित स्तोत्रमंत्राक्षरसहित पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्थः पातु अंतिः भवति सुस्थिरा, श्लोक-३४. ३. पे नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन द्वात्रिंशिका, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका चिंतामणि, सं., पद्य, आदि जगद्गुरू जगदेवं अंति: (-), (पू.वि., श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) ३४१७२. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-६ (१ से ६) = ३, कुल पे. १७, जैदे., ( २६१२, १३३५-४६). १. पे नाम, सीमंधर स्तुति, पृ. ७अ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंतिः शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४, ( पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, पार्श्व स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजिणैसर पूज कर; अंति: सुख संपति हितकार, गाथा-४. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति - फलवर्द्धि, मु. देवकुशल, रा., पद्य, आदिः फलविधिरो मंडण जगतधणी अंतिः देवकुशलनी० सफल करै, गाथा-४. ४. पे नाम. पार्श्व स्तुति, प्र. ७आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति - पौषदशमीतिथि, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पास देवा करु; अंति: संघ पूरणी, गाथा- ४. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर बंदिय पाय अंतिः करतु अधिक देवीया, गाथा-४. ६. पे. नाम. संगीतपाठमवि पार्श्व स्तुति, पृ. ८ अ-८आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति - नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रें दें कि धप, अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ७. पे. नाम ऋषभ स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथि, सं., पद्य, आदिः उद्यत्सारं शोभागार, अंतिः तारा भूत्यै स्तात् श्लोक-४. ८. पे. नाम. विजयरत्नसूरि बीजस्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., पद्य, आदिः नृपतिनाभिकुलांवरभास अंति: गणाद्विपती श्रियम् श्लोक-४. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति, अंति: सत्कल्याणमाहात्म्यतः, श्लोक-१. १५. पे नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. ९. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति - वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: बीसलपुर बांदु आदि, अंतिः संघना विघन निवारो, गाथा- ४. १०. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रत्रिदश; अंतिः विघ्नमर्दीकपर्दी, श्लोक-४. ११. पे नाम, दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय कर मंगलदीपक; अंति: भालतिलक भर हीर, गाथा - १. १२. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि जय मानव सेवित श्रीवर अंतिः तीर्थाधिप सुरराज, गाथा १. " १३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं अंति सनोदेवी दया दमा, श्लोक १. For Private And Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकगिर स्वामी; अंति: सौभाग्यनो दातार, गाथा-१. १६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अंति: सौभाग्य दे सुखकंदाजी, गाथा-१. १७. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पंचमीतिथि स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धवधु केरो सिणगार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण तक है.) ३४१७३. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १२-१४४३४-५४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्दाउ सुय समुदाउ, गाथा-५१. जीवविचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि प्रदीप; अंति: सिद्धांतनउ लेइनइ. ३४१७४. (+) पुण्यसामग्री कुलं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, ५४३५). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपुन्न इंदियत्त; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पूरुं पंचेंद्रिय पणउ; अंति: शाश्वत सुखनो ज लक्षण. ३४१७५. (#) सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०,११-१२४३८-५२). १.पे. नाम. परनिंदानिवारक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७८५, वैशाख कृष्ण, ७, पठ. श्राव. कपुरचंद साह, प्र.ले.पु. सामान्य. परनिंदात्याग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: म करि हो जिव परताति; अंति: जीवडा एहीज शीख मानइं, गाथा-९. २. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुनि मन मानस हंसलो; अंति: सकलचंद सुखकारोरे, गाथा-८. ३४१७८. (+) नवतत्त्वादिछव्वीसभेद श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०, ४४२८). नवतत्त्वादि श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि९ व्रत१२; अंति: ज्ञेया सुधीभिः सदा, श्लोक-१. तत्त्वव्रतधर्मादिभेद श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: देवतानी कोडि६, (वि. ऊपरी भाग खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा है.) ३४१७९. कार्तिकसौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १७६४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. श्रीवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, १६४१८-४०). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१४६. ३४१८०. वस्तुपाल तेजपाल रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४१०.५, १४४३५-३८). वस्तुपालतेजपाल रास, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जिण चउवीसइ चलण नमेवी; अंति: सुणइ ते सुख लहंति, गाथा-८५. ३४१८१. दशवैकालिक गीत, संपूर्ण, वि. १७७४, फाल्गुन शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. फतेपुर, प्रले. मु. ठाकुरसी ऋषि (गुरु मु. तिलोकसी); गुपि.मु. तिलोकसी; पठ. श्रावि. हीराबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३८-४५). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा निलो; अंति: जैतसी जय जय रंग, अध्याय-१०. ३४१८२. सुपात्रदान महिमागर्भितश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०, १५४३०-४४). सुभाषित श्लोक संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशुद; अंति: निब्भरंजायएपिमम, श्लोक-२८. ३४१८३. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८१७, आषाढ़ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १२-१६४५-५१). For Private And Personal use only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-४७. ३४१८६. शत्रुजयकुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. जसलक्ष्मी; पठ.सा. जयलक्ष्मी (गुरु सा. जसलक्ष्मी ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ६-१४४३६-५३). शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सित्तुंजजत्तफलं, गाथा-२४. शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अइमुत्तइ केवलीइं; अंति: जात्रारउ फल पामइ. ३४१८९. सौभाग्यपंचमीतपोपरि कथा, संपूर्ण, वि. १८४५, कार्तिक शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बांतानगर, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३९). वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व, अंति: मुक्तिं गत. ३४१९०. ज्ञानक्रिया संवाद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, २१४६७). ज्ञानक्रिया संवाद, सं., गद्य, आदि: श्रीमद्भिः कानि कानि; अंति: तन्निश्चयेन मंतव्यम्. ३४१९१. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमी पूछे वीरने; अंति: (अपठनीय), ___ ढाल-३, गाथा-२८, (वि. किनारा खंडित होने से अंतिमवाक्य नहीं भरा है.) ३४१९२. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३५, वैशाख शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सीरोहीनगर, प्रले. मु. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४३८). नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो; अंति: दानविजय जयकार रे, गाथा-२३. ३४१९३. चैत्यवंदन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १४४३३). चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर आदि; अंति: (-), (पू.वि. चंद्रप्रभ चैत्यवंदन-८ तक है.) ३४१९५. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, ले.स्थल. वडनगर, प्रले. पं. शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ९४३०). १. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामीअष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गौतम समरीजै; अंति: उदय प्रगट्यौ प्रधान, गाथा-८. २. पे. नाम. सरस्वति स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, वि. १५२७, आदि: कमलभूतनया मुखपंकजे; अंति: विबुधं सुमति श्रेयम्, श्लोक-११. ३. पे. नाम. सरस्वति स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., पद्य, आदि: जलधिनंदनचंदनचंद्रमा; अंति: कल्पलताफलमश्नुते, श्लोक-९. ४. पे. नाम. शनिभार्या नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: धमनिधामनीचैव कंकालि; अंति: न भवंति कदाचिन, श्लोक-२. ५. पे. नाम. शनिसरजीरोस्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ यत्पुरा राज; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-९. ३४१९६. (+) महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६९, चैत्र शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मंगलपुर, पठ. मु. प्रेमजी ऋषि (गुरु मु. हीरजी ऋषि); प्रले. मु. हीरजी ऋषि (गुरु मु. ओधवजी ऋषि); गुपि. मु. ओधवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ७४३०). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४५१ महावीरजिन स्तवन, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जइज्जा समणे भयवं महा; अंति: सत्तुमित्तेसुवावि, गाथा-२२. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान प्रभु; अंति: वीनती सेवकनी सफल करो. २. पे. नाम. आगमसूत्रों के बोलसंग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. ठाणांग व ज्ञातासूत्र के बोल.) ३४१९७. सकलात चैत्यवंदण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. गाथा- १४ से २७ तक दूबारा लिखा हुआ है।, जैदे., (२६४११.५, १२४३५-४१). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: __ भावतोहं नमामि, श्लोक-३३. ३४१९८. बृहत्संग्रणी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. पत्रांक नहीं दिया हुआ है। कृति अपूर्ण दर्शाने के लिए काल्पनिक संख्या दी गई है।, जैदे., (२४.५४११,११४३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२०४ अपूर्ण से २१० अपूर्ण तक ३४१९९. (+) नेमिनाथ स्तवन व अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १७४६१). १.पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन द्विअक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानूनमानेन नोन्न; अंति: वध्वाः परिभोगयोग्याः, श्लोक-९. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तव की अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन द्विअक्षर स्तोत्र-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: आनुमः स्तुमः के; अंति: उत्कीर्तनमित्यर्थः. ३४२००. स्तवन, सज्झाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पंन्या. धनविजय; पठ. श्रावि. कस्तूरां, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४५). १.पे. नाम. सुवर्णगिरिमहादर्गविभूषम वर्द्धमानजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-सुवर्णगिरि-जालौरदुर्गमंडन, उपा. सुमतिविजय, सं., पद्य, आदि: प्रणम्यसंपिडितदिष्ट; अंति: वीर जिनादिशनुभद्राणि, श्लोक-८. २.पे. नाम. जैन श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३. पे. नाम. हीरविजयसूरि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, उपा. सुमतिविजय, सं., पद्य, आदि: संयम कमलाकेलि निवास; अंति: सुमतिविजयवांछितकारम्, श्लोक-१०. ३४२०१. (+) गौतमकुलक सह टबार्थव श्रावकव्रतभांगा आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ९x४४). १.पे. नाम. गौतमऋषि भाषित कुलक सह टबार्थ, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., मू+टबा गाथा १४ तक नहीं है. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मनुष्य सर्वसुख लहइ. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ३. पे. नाम. श्रावक ओगणपचास भांगा, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावकव्रत भांगा, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. यंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " साधुवंदना, आ. पाचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आविः रिसहजिण पमुह चउवीस, अंतिः मनि आदि संधुवा, ढाल-७, गाथा - ८८, (पू.वि. गाथा- १७ से ३४ तक नहीं है.) ३४२०३, (+४) आगमिकपाठ संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, १८-२०X५६-६९). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.सं., गद्य, आदि: वाण्यायोजनसर्पिण्या अंति: ५ शते उद्देशे ८. ३४२०४. नेमराजेमती लेख संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५४११.५, १२X४३). " नेमिजिन लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीरैवत गिरे, अंति: रुपविजय तु दास गाथा १८. ३४२०५. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५X११.५, १६३७). साधु प्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं सूत्र- २१. ३४२०६. निमतीद्वार गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. ख्यालीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, १३x१६). निव्वती द्वार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाणं निव्वती कमपगड; अंतिः तिउठा अणुत्ता चेव. ३४२०२. साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ ( २ ) =४, जैदे (२६११, १३x४०). www.kobatirth.org ३४२०७. जयतिहुअण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वीं, फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल कानुडनगर, प्रले. श्राव. सहजराम प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X११, १३×३४). जयतिहुण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि जयतिहुयणवर कप्परुक्ख, अंतिः अभवदेव 7 १ विनवड अदीब, गाथा- ३०. ३४२०९. मोक्षपंचाशिका, अपूर्ण, वि. १८८५, चैत्र कृष्ण, ११ श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १ ले स्थल, जालोरनगर, प्रले. मु. खुबकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, १३X३३). יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोक्षपंचाशिका, श्राव. दलपतिराय श्रमणोपासक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विकारेभ्यो निवर्तते, (पू. वि. श्लोक-३२ तक नहीं है.) ३४२१०. चतुर्विंशतिजिन स्तव संग्रह, अपूर्ण, वि. १४९४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X११.५, १६४६०). १. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेय शोचिर्निचयैर्न, अंतिः श्री संश्रयाः आयसी, श्लोक-२९. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चतुर्विंशतिजिन स्तुति- यमकमय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि तत्त्वानि, अंति: (-). ( पू. वि. श्लोक-१ तक है.) " ३४२११. शुद्धश्रद्धान स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-३३ (१ से ३३)=१, जैदे. (२५x११, १९५०). शुद्धश्रद्धा सज्झाय, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह पमुह जिनवर चडवी, अंतिः सचंद नितु करे प्रणाम, गाथा - ३६, संपूर्ण. ३४२१२. बावनी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै, (२५x१०, २०७०). अक्षरबावनी, उपा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ परब्रह्म अणुसर, अंति: सुरनर अक्षयपद लहह, गाथा-५३. ३४२१३. पौषधकुलक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. गाथा १६. पठ श्रावि. राणीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे.. יי (२५X१०.५, १३x४०-४५). पुण्यफल कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा. पद्य वि. १५वी आदिः छत्तीसविणसहस्सा वाससः अंतिः धम्मम्मि 2 उज्जमह, गाथा - १६. ३४२१४. गुरु गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X१०.५, १०X३८). " कुशलगुरु गीत, उपा. समयराज, मा.गु., पद्य, आदि: इच्छ गुरू पंचनविपतिः अंति: जतीसर समवराज सुखकारी, गाथा ६. ३४२१५. वंदित्तुसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्रावि. हीरा, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०.५, १३x४२). वंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: बंदिनु सव्वसिद्धे, अति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. For Private And Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४५३ ३४२१६. चउतीसं अतिशय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४४२). ३४ अतिशय आलापक, प्रा., गद्य, आदि: चउत्तीसंबुद्धाति; अंति: खिप्पामेव उवासामंति. ३४२१७. गौतमस्वामि रास, संपूर्ण, वि. १७८२, चैत्र कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. शुभटपुर, प्रले. पंन्या. दयावल्लभ (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (४७२) पोथीउ प्रति पेह, (८५८) जहां लग मेर अडग है, जैदे., (२५.५४११, १४४३८-३९). गौतमस्वामीरास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-६८. ३४२१८. चौदस्वाप्न स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३६). शांतिजिन १४ स्वप्न स्तवन-द्रव्यभावगर्भित, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञान० सुरगुरु अवतार, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक नहीं है., वि. दो गाथा की एक गाथा गिनी हुई है.) ३४२१९. गौतमकूलक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १४४३६). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धानरा अत्थपरा हव; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. ३४२२०. (+) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ५-९४३०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३४ तक है.) ३४२२१. आनुपूर्वीविचार गाथा सह आम्नाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४१०.५, १८४५०). आनुपूर्वी विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पढमाय आणुपुव्वी चरमा; अंति: पुव्वक्कमो सेसो, गाथा-८... आनुपूर्वी विचार गाथा-आम्नाय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कोइ पूछे एकविसमु; अंति: मेवेति वृत्तार्थः. ३४२२२. (+) पौषध, प्रतिक्रमण व सज्झायविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १३४३०-३५). १.पे. नाम. पौषध विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही कहीइ; अंति: गाथा भणवी सामाइयव. २.पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पक्खि चउमासी संवत्छरी पडिक्कमणादिविधि , संबद्ध, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. सज्झाय विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३४२२५. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१०, चैत्र शुक्ल, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४११, १३४३२-४०). औपदेशिक श्लोक संग्रह, सं.,प्रा., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: साक्षात् सुरद्रुमः, श्लोक-२९. ३४२२६. (#) ८४-३३ आशातना सह विवरण व सिद्धिदंडिका स्तव सह अवचरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. सोमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २४x७०). १. पे. नाम. जनालय ८४आशातना सह विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेल केलि कलिंकला; अंति: वजे जिणिंदालये, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-विवरण, सं., गद्य, आदि: कला धनुर्वेदादिका; अंति: मजनं तत्र करोति. २. पे. नाम. गुरुप्रति ३३आशातना सह विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. ३३ आशातना-गुरुप्रति, प्रा., पद्य, आदि: पुरओ पक्खासन्ने गंता; अंति: तित्तीसासयणा होइ, गाथा-४. ३३ आशातना-गुरुप्रति-विवरण, सं., गद्य, आदि: पुरतोग्रतो गंता; अंति: स्त्रिंशत् आशातनाः. ३. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तव सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाउ अंतमुह; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदित्ययशोनृपप्रभृतयो; अंति: दंडिका सुभावनीयं. For Private And Personal use only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४२२९, (+) दीक्षा व अनुयोगविधि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जै., (२५x११, १२X३९). १. पे. नाम. प्रवज्या विधि, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रव्रज्या विधि, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: दीक्षा लेतां एतला; अंति: १ नोकारवाली गुणावी . २. पे नाम, अनुयोग विधि, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि वसतिशोधन प्रमार्जन, अंति: (-). ३४२३०. पार्श्वनाथ स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१ ( १ ) -२, प्रले. ग. गजकुशल, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११x४४). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि (-); अति: विष्णव अणिदिय, गाथा - ३०, " (पू. वि. गाथा ११ अपूर्ण तक नहीं है.) " ३४२३१. साधारणजिन स्तव व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जै, (२५.५x१०.५, ११२२-४०). १. पे. नाम जिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन अतिशय चैत्यवंदन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: तेषां च देोद्भुतरूप; अंतिः जम्मंतर संचियं पालं, लोक-८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-८. ३४२३२. नेमिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X१०.५, १५X४५). १. पे. नाम. नेमि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः यादव कुल केरु राजीउ; अंति: पूरो मनह जगीस रे, गाथा- १७. २. पे. नाम. नेमीश्वर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निज गुरु चरण पसाउ लइ; अंति: विजय सुख थाय है, गाथा- १३. ३४२३३. अनाथी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. कर्मसिंह ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १३x४४). अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहिं, पद्य, आदिः मगध देश को राज राजे अंतिः बोले छोड्यो गरभावास, गाथा - २०. ३४२३४. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, जैदे., (२५X१०.५, १४X३९). महावीरजिन स्तवन- पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करी महोच्छव सिद्धारथ; अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा - २५ अपूर्ण तक नहीं है.) ३४२३५. कानड कठीचारा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८५७ आषाढ़ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ७५ (१ से ५)= २, ले. स्थल, देवगढ, प्रले. मु. व्रजलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, १३X३९). कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु, पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमं सदा, अंतिः दिन दिन वधते रंग, ढाल-९, संपूर्ण " ३४२३६. स्तवन चोवीसी व उपदेशी सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) -१, कुल पे. २, जैवे. (२५.५४१०, १६४४५). १. पे. नाम. चौवीसी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भक्ति द्यो कंठमे रे, गाथा - ३१, (पू. वि. गाथा - ११ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. उपदेशी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि धर्म पावे तो कोई अंतिः रोटी साटे मति हारजी, गाथा-५. ३४२३७. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ - अध्ययन ११, अपूर्ण, वि. १७००, चैत्र शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, प्रले. मु. विमलदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६×११, १७X३४-३९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: (-); अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. मू+टबा. गाथा-३५ अपूर्ण तक नहीं है.) "" For Private And Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org सूत्रकृतांगसूत्र- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., मू+टबा. गाथा-३५ अपूर्ण तक नहीं है.) ३४२३८. जादव रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) = ३, ले. स्थल. मालपुरा, प्रले. सा. वखता (गुरु सा. फूला ); गुपि. सा. फूला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०.५, १०-१३X३६). यादव रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुप्रसन्न नेमि जिणंद, गाथा - ६५, (पू. वि. गाथा - ९ तक नहीं है.) ३४२३९. लोकनालिबत्तीसी सह टीका, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३ जीवे. (२६११, २० - २६x४०-४६ ). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्म, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जं, अंतिः जहा भ्रमह न इह भिसं, गाथा-३३. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति (-), (पू.वि. श्लोक-३४ व ३५ ही है.) भक्तामर स्तोत्र - कथा, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). लोकनालिद्वात्रिंशिका - टीका, सं., गद्य, आदि: जिण० वयसा० बाणमोचन; अंति: कुरुथ यथा इह न भ्रमथ. ३४२४०. कारकाष्टक, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ग. रविंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४११.५, ६४४१). कारकाष्टक, मु. तेजसिंह, सं., पद्य, आदि: नो दानं कृपणे ददाति अंति: तेजसिंहेन सत्वरं लोक- ९. " ३४२४१. भक्तामर स्तोत्र सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३८-३४ (१ से ३४ ) = ४, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५x१०.५, १२X४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४२४३. वीर स्तुति व पुण्य कुलं, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५X१०, १३३२-४२). १. पे. नाम वीर स्तुति, पृ. १अ २अ संपूर्ण ३४२४२, (+) साधारणजिन स्तोत्र व ग्रंथसूचि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे २ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे., (२५X१०.५, ९५३६). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि देवाः प्रभो वं; अंति: (-) (पू. वि, श्लोक ७ अपूर्ण तक ही है.) २. पे. नाम. ग्रंथसूचि, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). महावीरजिन स्तुति हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिस्सणं समणा: अंतिः आगमिस्संति तिबेमि गाथा - २९. २. पे. नाम. पुण्यकुलं, पृ. २अ, संपूर्ण. पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसतं अंतिः मोह पासा लब्धंति, गाथा- १०. ३४२४४. चतुः षष्टीइंद्र पूजन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२६४११.५ १३x४०). चतुः षष्टी इंद्रस्थापना पूजन, सं., प+ग, आदिः ये तीर्थेस्वर जन्मपर, अंतिः परिपिंडितापूजाः. ३४२४५. नवतत्त्व भेद, उत्मपुरुष विवरण व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १२-१४४४१-४५). १. पे. नाम. नवतत्त्व भेद, पृ. १अ -४अ, संपूर्ण. नवव प्रकरण-रुपी अरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: नवतत्त्व मांहि रुपि अंतिः अनंतगुणे अधिका छे. २. पे. नाम. चोपनउत्तमपुरूष पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. चोपन उत्तमपुरूष पद, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे नाम, औषध संग्रह, प्र. ४-४आ, संपूर्ण. औषध संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४२४६. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २५X११.५, ११x२५). ४५५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हरखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केवल कमलावास पास जिण; अंतिः दया करुं परिमाणंद ए, गाथा - २१. For Private And Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५६ www.kobatirth.org ३४२४७. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ५, जैदे. (२४.५४११, १७४४०-५२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: म्हारी सफल फली मन आस, गाथा ९. २. पे नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणी, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: साचो साहिब सेवयइ रे, अंतिः वंछित चढ्या प्रमाण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - ९. ३. पे. नाम गउडीपार्श्वजिन द्रुपद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद - गउडीपुर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमहाराज मनावउ जिम, अंति: चंदसूरि० चढउत दावउ, गाथा ४. ४. पे. नाम. धूलिभद्रकोश्या गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडी न कीजै नारी; अंति: समयसुंदर कहै प्रीति, गाथा-७. ५. पे. नाम. गीत- काचाअनित्यता, पृ. १आ, संपूर्ण कायाअनित्यता सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: विणझारा रे वालिम, अंति: आपणइ जीवि न सु कही, गाथा-७. ३४२४९ (+) पार्श्वजिन स्तोत्र व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x११, १३४७). १. पे. नाम. विचारगर्भित श्रीपार्श्व स्तोत्र, पृ. १आ- ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारणभिंत, मु. राजसमुद्र, प्रा. मा. गु., पद्य, वि. १६६५, आदिः नमिय सिरि पास जिण, अंतिः दिनयर सबल अतिसयसंजुओ, बाल-३, गाथा- १९. २. पे नाम, अमृतझरा पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ३अ संपूर्ण गाथा - १५. २४२५१. महावीर चरित्र, संपूर्ण वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५x११, १८४६०). पार्श्वजिन स्तवन- अमृतझरा, मा.गु., पद्य, आदि: परतखि पास अमीझरउ; अंति: इम दिन तडतइ दावइ रे, गाथा - ९. ३४२५०. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x११, १३४४५). मिजिन स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदिः प्रीतडली मुझ मनि षट, अंति: कहि लबधिविजय तस बेली, दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंतिः सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४, (वि. पत्र खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा है.) ३४२५५. चैत्यवंदन व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२५ फाल्गुन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ४, ले. स्थल, बिदासर, प्र. मु. सिखरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x१२, १२४३६-४३). १. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदौ नेमिजिनं नौमि अंतिः मोक्षलक्ष्मी निवासः, श्लोक ८ २. पे. नाम. सर्वजिनमिश्रित स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पंचषष्टियंत्र चैत्यवंदन, मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: वंदे धर्मजिनं सदा; अंति: संग्रथितः सौख्यदः, श्लोक-४. ३. पे नाम, महावीराष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण महावीरजिन अष्टक, मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्सुधीर, अंति: प्रजज्ञे मम जन्मसार, श्लोक - ९. ४. पे. नाम. शांत्यष्टक, पृ. २अ संपूर्ण. शांतिजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि भक्त्वा क्रमाब्जे अंतिः देहि देवेशसमीहितं मे श्लोक ८. " For Private And Personal Use Only ३४२५६. प्रश्नोत्तर व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) = १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५x११.५, १८x४६). १. पे. नाम. परदेशीराजा के ग्यारह प्रश्नोत्तर, पृ. ३अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है., ले. स्थल. रीया. Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org ४५७ प्रदेशीराजा के प्रश्न- राजप्रश्रीयसूत्रे, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: व्रत श्रावकना आदरीया, प्रश्न- ११ (पू.वि. प्रश्न- ९ अपूर्ण से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. यवराजर्षिकथा के श्लोकसंग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३४२५७. (+) १० पच्चखाणसूत्र व २२ आगारशब्दार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२५.५४११.५, १५४३६-४१). १. पे नाम. १० पच्चखाण, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उग्गए सुरे नमुकारसिय; अंति: वत्तियागारेण वोसिरई. २. पे. नाम. बावीस आगार शब्दार्थ, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र- २२ आगारशब्दार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अन्नत्थ पद सर्वत्र अंतिः ते असित्थेणवा कहिइ. ३४२५८. विचार संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) =२, कुल पे. २, जैदे., (२५x११.५, १७X३४). १. पे. नाम. लोगस्ससूत्र काउसग्गफलगाथा - षडावश्यके सह अर्थ, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. लोगस्ससूत्र - काउसग्गफल गाथा, संबद्ध, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: त्रिकरण शुद्धि पंच, गाथा- १२, (पू. वि. गाथा ११ अपूर्ण तक नहीं है.) लोगस्ससूत्र- काउसग्गफल गाथा - अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आउखुं श्रावक उपारजे. २. पे नाम, पडिलेहनवीचार गाथा षडावश्यक सह बालावबोध, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण " प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः सुतत्थतत्थादिट्ठी, अति ताणत्थं मुणि विंति गाथा ५. प्रतिलेखनबोल गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मुहपत्तीनी; अंति: च्यार एवं ७ न होई. ३४२५९. पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X१०.५, १३x४०). १. पे. नाम. पार्श्वनाथमहामंत्रमयं स्तोत्र, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन स्तोत्र-मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा. सं., पद्य, ई. १२००, आदि: (-); अंति: ते स्तोत्रमेतत्, श्लोक-३७, ( पू. वि. गाथा - ३० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन अष्टक, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक - मंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नागेंद्ररूद्र, अंति: पातुमो पार्श्वनाथः, श्लोक ८. ३४२६०. (१) गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १८६३ वैशाख, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१०.५, १२-१६X३२-४०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धानरा अत्थपरा हव; अंति: निवितु सुहं तिज्झति, गाथा-२०. ३४२६१. (+) प्रथम कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जै, (२६X११, ११X३६-४० ). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), (पू. वि. गाथा-५८ अपूर्ण तक है.) ३४२६२. भूयस्कारादि विचार प्रकरण संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. ले, लो, (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे. (२४.५४११.५, ११४४४). भूवस्कारादि विचार प्रकरण, ग. लच्छिविजय, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण नायपुतं वर, अंतिः सीसेणं लच्छिविजयएणं, गाथा - ६०. ३४२६३. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण वि. १९०८, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. दोलतविजय, लिय श्रावि लखमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. सं. १८१७ में लिखित प्रत के ऊपर से प्रतिलिपि की गई है. सरावकीणि लखमी ओली उजमी तणरा पाठा रुमाल पांना लखाया., जैदे., ( २४.५X११, १०X३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंतिः रुदाओ सुयसमुदाओ, गाथा ५१. For Private And Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४२६४. मोटीशांति, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६४११.५, १२४२९). बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्या शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. शिवमस्तु श्लोक तक है.) ३४२६७. पक्खीखामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १५४२६). आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं: अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४.. ३४२६८. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १२४३८-४०). २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ऋषभनम्रसुरासुरशेखर; अंति: मयता मयतामिह नम्रताः, श्लोक-२९. ३४२७०. चत्तारिअट्ठदसगाथा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक शुक्ल, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. शिवराम पानाचंद ठाकोर; पठ. श्रावि. आधारबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११, १०४२७). चत्तारिअट्ठदसदोयगाथा स्तोत्र, वा. विनयविजय, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं; अंति: जिणाइमे विणयविजयेण, गाथा-२७. ३४२७१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, ९x४०). १.पे. नाम. वीरथुईनामज्झयण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. प्रश्नव्याकरणे गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमुलं; अंति: मोखपदस्स छंडिसंगभूयं, गाथा-३. ३४२७२. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४१). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३४२७५. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६१, श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, ले.स्थल. जावाल, प्रले. पं. नायकविजय; पठ. मु. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४४३९). १.पे. नाम. पंचतीर्थीजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरूं श्रीआदिदेव; अंति: त्यां घर जेय जेयकार, गाथा-६. २.पे. नाम. ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पुजो आदिदेव; अंति: श्रीधर्मनाथरे नाम, गाथा-५. ३. पे. नाम. ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: आदीनाथ जगन्नाथ विमला; अंति: शासनंती भवेभवे, श्लोक-५. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पुरोहीमे वांछितनाथ, श्लोक-५. ५.पे. नाम. शांतीनाथधर्मोउपदेस चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. ६. पे. नाम. जिनस्तुति प्रार्थना संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शण देवीदेवस्य; अंति: ताई सवाए वंदामी, गाथा-५. ३४२७६. चिंतामणीपार्श्व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १५४३४). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजंबोधबीजं ददातु, श्लोक-११. ३४२७७. गौतम कुलक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२५४११, ५४३२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) ३४२७८. धनपालकवि कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४७०). धनपालकवि कथा, सं., गद्य, आदि: पुरा समृद्धिविशालाया; अंति: त्रयेपदकरोत्पुरुषः. For Private And Personal use only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४५९ ३४२७९. (+) संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत.., जैदे., (२५x१०.५ ११५५०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २५ तक लिखी गई है.) ३४२८०. साधु अकल्पनीय चलितरस आहार वर्णन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११, ४X३७). साधु अकल्पनीय चलितरस आहार वर्णन, प्रा., पद्य, आदि रसज पाणेहिव रसया रस, अंति: फासूयं जाव पडिग्ग साधु अकल्पनीय चलितरस आहार वर्णन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः एतानिजायगुसुत्रमांहि अंति: सातमी पिंडेषणा छइ. ३४२८१. नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे. (२५x११, १६x२८). " नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पू.वि. नवकार. उवसग्गहरं. संतिकरं व तिजयपहुत्त.) जै.... ३४२८२. (+) जंबुद्विपप्रज्ञमिसूत्रगत विचार संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. (२४.५X१०.५, १४४४८). विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-) अंति: (-). ३४२८३. पंचव्यवहार, सात समुद्धात व सातनय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५X११, २४X७१). १. पे. नाम. पंच व्यवहार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: व्यवहार किसुं कहिये, अंतिः कीधो ते जीवत व्यवहार. २. पे. नाम. सात समुद्धात सह अर्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ७ समुद्धात, प्रा., पद्य, आदि: वेयण कसाय मारण वेउवि; अंतिः केवलि समुद्धात. ७ समुद्वात- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वेदनीसमुद्धात कषाय, अंति: त्रिन्ह समय अणाहारी. ३. पे. नाम. सात नय, पृ. १आ, संपूर्ण. नैगमादिसप्तनय विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: नैगमनय१ संग्रहनयर; अंति: आगली शुद्ध जाणवा. ३४२८४. मौनएकादशीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे (२५४११, १५x४३). " मौनएकादशीपर्व कथा, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंतिः श्रेयेभिरेवाप्यते श्लोक ११३. ३४२८५. बोल संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४.५X१०, ४X३४). १. पे. नाम. धर्म्मप्राप्ति हेतुवृत्त सह टवार्थ, पृ. १अ संपूर्ण. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक सं., पद्म, आदि: लज्जातो भयतो वितर्क, अंतिः ममसमं तेषाममेयं फलम्, श्लोक-१. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लज्जाथकी अर्द्धमांडि, अंति: फल अमेय छै घणूं छइ. २. पे. नाम. श्राद्धगुण सह टवार्थ पू. १अ १आ, संपूर्ण. आवक के १४ प्रकार, सं., पद्य, आदिः मृत्१ चालिनीर महिष३; अंतिः भुवि चतुर्दशधा भवति श्लोक-१. श्रावक के १४ प्रकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माटीनी परई गुरुवचने, अंति: भवंति कहतां हुवइ छइ. ३. पे नाम, सद्गतिदुर्लभ गाथा सह टवार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण सङ्गतिदुर्लभ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नाणं १ नियमग्गहणं २ अंति: दुलहा सुग्गई तस्स, गाथा- १. सद्गतिदुर्लभ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाननु भणवउं भणावि, अंति: गति दुर्लभ न हुवई. ३४२८६. सकलाई स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२४४११, ११४३५-३९). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी आदिः सकलात्प्रतिष्ठान, अंतिः श्रीवीर भद्रं दिश, लोक-२८. " ३४२८७ पौषव्रत विचार, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जै. (२४.५x११.५, ११४३८). पौषव्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवइ इग्यारमो पौषधपवा; अंति: (-). For Private And Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४२८८. मौनैकादशी गुणणो व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे २, ले. स्थल, रामसीण, प्र. ग. ग्यानविजय पं. प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे, (२५४११, १२४३४). १. पे. नाम. मौनैकादशी गुणणो. पृ. १अ २आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को., आदिः श्रीमहायशसर्वज्ञाय; अंतिः श्रीआरणनाथाय नम. २. पे नाम, दहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा संग्रह, मा.गु., प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाधा-२ ३४२८९. संक्षिप्त अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २३११, १०x३२). श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: नाणंमि दंसणंमि चरणं, अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. ३४२९१. रत्नाकरपच्चीसी सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे. (२४.५४११.५, २४३२). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंति: (-), (अपूर्ण, " पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ अपूर्ण तक लिखा है.) रत्नाकरपच्चीसी टीका. ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमदर्हन्त्र अंतिः (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. 3 ३४२९२. जिन स्तुति, षट्दर्शन विवरण व श्लोक संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, जैवे. (२४.५X१०, ४-६४३५). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शांतये शांतिकामाय; अंति: पापशंतिर्भवेभवे, श्लोक-३. २. पे. नाम. षट्दर्शन विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. ६ दर्शन विवरण, सं., पद्य, आदि: बौद्धं१ नैयायिक२; अंति: धर्मजीव पंचभूत वादी, श्लोक ७. ३. पे. नाम श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४२९३. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैये. (२४.५४१०, ६-९४३१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक १० अपूर्ण तक लिखा है.) ३४२९४. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. योगा ऋषि (गुरु मु. माइदास ऋषि); पठ. क्रमयतीबाई, गुपि. मु. माइदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४१०.५, १०X३६). महावीर जिन स्तव बृहत् आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भववं अंतिः सतुमिते सुवासि, गाथा-२१. ३४२९५. चउसरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५x१०.५, १५X४८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज जोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३४२९६. (+) पार्श्वनाथ स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैये., (२५x११.५, ३५३६). पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. पद्य वि. २४वी, आदिः दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा . , न पीडंति, गाथा - १०. पार्श्वजिन स्तोत्र - नवग्रहगर्भितबालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: दोस कहतां राग द्वेषा, अंति: ग्रह पीडइ पीडा न करइ. ३४२९८. प्रायचित्तप्रदान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे (२५४१२.५, १४४३३). प्रायश्चित्तप्रदान बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान आशातनायै जघन्य; अंति: तेहिज पचक्खाण करीजें. ३४२९९. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X११.५, १७४२). १. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private And Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org नेमराजिमती गीत ग. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि; होजी रथ फिरि चाल्या, अंतिः जिनहरख भलीपरे हो लाल, 1 गाथा - ११. २. पे. नाम. जुवटानि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सीखामण सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदिः सुगण सनेही हो सांभले, अंतिः आणंद कह कर जोड रे, गाथा- ११. ३४३००. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५. जैवे. (२४.५x१०.५, ११४३८) १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एसी विध तेने पाई रे; अंति: भव जल निधि तरजा, गाथा-३. २. पे. नाम. आदिजिन जन्मबधाई पद, पृ. १अ संपूर्ण. आदिजिन पद - जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: सखी गावो वधाइ प्यारी; अंति: हर कर हेत कराई री, गाथा- ३. ३. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पुहिं., पद्य, आदि: जिन देवा तुमारी सेवा, अंति: आवागमण निवेरा हो, गाथा-४. ४. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पद - ५. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: कंत चतुर दिल जानी; अंति: बूझे भविजन प्रानी हो, ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: हे जिन के पाय लाग रे; अंति: आनंदघन पाय लाग रे, गाथा-२. ३४३०१. कायस्थित स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५.५४१०.५, १३४५७). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कार्यस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदंसणरहिओ कायठि, अंतिः अकायपयसंपयं देसु, रूपीअरूपी बोल, मा.गु., गद्य, आदि: कम्मट्ठ पाव ठाणा मण; अंति: द्रव्य विचार जाणवो. ३. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४३०५. पोरिसीविधि गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X११, १३x२५). गाथा - २४. ३४३०२. (#) जिनप्रतिमामतस्थापना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६२८, वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. लीलादे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १२४३२). जिनप्रतिमा मतस्थापना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल विमल जिणवर तणा; अंति: कहइ सकल सोभागी थाई, गाथा - १५, (वि. प्रत का कोना थोडा कटा हुआ होने के कारण कर्ता का नाम नहीं पढा जा रहा है.) ३४३०३. आवक ४९ भांगा, रुपीअरुपी बोल व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे ३, जैदे. (२४४११, १६x२४-५४). १. पे. नाम. श्रावक के ४९ भांगा, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण आवकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि श्रीभगवतीसूत्रे शतक अंति: अनागतकालना भांगा. २. पे. नाम. आठफरसी गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. ४६१ संधारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निसिही निसिही निसीहि अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा १६. ३४३०६. श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १६४५, ज्येष्ठ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. लक्ष्मीविजय, पठ. मु. रविसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४१०.५, १५X३८-४१). श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: काया हंसं विना नदी, अंति: ज्यां हरइ समुपल टसइ, गाथा-२४. ३४३०७. वसुधारालघु व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८१, वैशाख कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२४.५x१०.५, १२४४६). १. पे नाम, लघुवसुधारा, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. वसुधारा- लघु, सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवते वज्रधर, अंतिः आर्यवसुधारा ज्ञेयाः. २. पे नाम, मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. बिच्छु का विष उतारने का मंत्र. For Private And Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३४३०८. सज्झाय संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. कृष्णभामनी, प्रले. मु. दयाबहादुर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ७४३५-४०). १.पे. नाम. वयरस्वामीगुणगर्भित फूलडाहरियाली सज्झाय सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. हरियाली-वज्रस्वामीगुणगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखि रे में कौतक दीठु; अंति: शुभवीरने वाल्हडां रे, गाथा-८. वज्रस्वामीगुणगर्भित हरियाली-टबार्थ, पं. वीरविजय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवयरस्वामी ६ मास; अंति: ए अरथ वलभ वचन छे. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मू+टबा. गाथा-१० अपूर्ण तक है. औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलो न माने रे; अंति: (-). औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावनामांहि; अंति: (-). ३४३०९. नववाडि सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. पाटण, प्रले.पं. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, ८४३२). ९ वाड सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: तेहनई जाउं भाणमें, ढाल-१०, गाथा-४३, (पू.वि. ढाल-१०, गाथा-२ तक नहीं है.) ३४३१०. अतिचारसूत्र, संपूर्ण, वि. १८०५, आश्विन कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वाल्हीनगर, प्रले.पं. अमृतविजय गणि; पठ.मु. वजा (गुरु पं. अमृतविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगोडीजी प्रसादो, जैदे., (२४.५४११, १२४४२-४४). आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का साधु पाक्षिक अतिचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि०; अंति: अनेरोजे कोई अतिचार. ३४३११. पगाम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९००, भाद्रपद शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. ब्रानपुर, प्रले.मु.ज्ञानसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८६०) कागल थोडोने हेत घणो, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४२८-३८). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३४३१२. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५,१५४२८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. ३४३१३. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. १, जैदे., (२४४११, ११४२७). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नरेंद्र फणींद्र; अंति: दीजे अविचल थान, गाथा-१०. ३४३१५. (+) सिद्धदंडिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ३४३३-३७). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाओ अंतमूह; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभदेवने केवल; अंति: सुख प्रते दिउ. ३४३१६. वसुधारा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४५२-५७). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. ३४३१७. पडिक्कमणसूत्तम्, संपूर्ण, वि. १८६२, आश्विन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४१०.५,११४३१). साधुप्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३४३१९. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११, ५४३७). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: (-). ३४३२१. मुहपत्तिपडिलेहणविचार गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, ७४३०). प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. ३४३२२. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५, ११४३६). For Private And Personal use only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ १.पे. नाम. पंचमीदिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हरज्यो विघन अमारोजी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं २. पे. नाम. इग्यारसिदिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: गोपीपति पूछे पभणे; अंति: पसरे शासन विनय करत, गाथा-४. ३. पे. नाम. विविधतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __पंडित. धनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद पर्वते; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ३४३२३. महावीर तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०, १६४५०). महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरानु, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: तुम्ह दरसण दीठां सयल; अंति: सयल संघ मंगल करो, ढाल-५, गाथा-६४. ३४३२५. बृहच्छांति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४२८). वृद्धशांति, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ३४३२६. जंबूद्वीप संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५६, माघ शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जैनगर, प्रले. मु. जगनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ५४२५). जंबूद्वीप संग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-२९. ३४३२७. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, ९४३३). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामि स्तुति, पृ. १८अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहु मे सुद्धनाणं, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ३. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषे विहरंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३४३२८. गौतमऋषि कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१७, चैत्र कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जगत्तारिणी, प्रले. पं. उदयहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, ७X४१). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धानरा अत्थपरा हव; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: लुब्धा लोभिष्ठा; अंति: भव्याः सुखं लभंते. ३४३२९. (+) भरत चरित्र, तीर्थंकरनामकर्मबंधक नाम व आलापक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५२, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, ले.स्थल. सिरियारी, प्रले. मु. हरखाजी ऋषि (गुरु मु. खेतसिंह ऋषि); पठ. मु. टीलाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ६x४७). १.पे. नाम. भरहेसर चरित्र सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. भरत चरित्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: तेणं से भरहे राया; अंति: सव्वदुक्खप्पहीणे, वक्षस्कार-३. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा भरत चरित्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिहवार पछी ते भरतराज; अंति: सर्वदख क्षय कीधा. २. पे. नाम. तीर्थंकरनामकर्मबंधक नाम सह टबार्थ, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. तीर्थंकरनामकर्मबंधक नाम, प्रा., गद्य, आदि: समणस्सणं भगवउ महावीर; अंति: सावियाए रेवतीए. तीर्थंकरनामकर्मबंधक नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रमण भगवंत; अंति: श्राविका अने रेवती. ३. पे. नाम. शुभकर्मबंध प्रकार सह टबार्थ, पृ. ४आ, संपूर्ण. शुभकर्मबंध आलापक, प्रा., गद्य, आदि: कहिणं भंते जीवा सुह; अंति: सुहकम्मं बंधई. शुभकर्मबंध आलापक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: केणइ प्रकारइहे; अंति: सुभ नामकर्मनइ बांधइ. ४. पे. नाम. दसविधदान प्रकार, पृ. ४आ, संपूर्ण. काव For Private And Personal use only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दसविधदान आलापक, प्रा., गद्य, आदि: दसविहे दाणे पण्णते; अंति: काहं तिय कतंतिय. ३४३३०. चिंतामणीपार्श्व स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३-१६४३२). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ३४३३१. कल्पसूत्र की पीठीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१०, १२४२८). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: यथा द्रुमेषु कल्प; अंति: (-). ३४३३२. पंचकल्याणक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. उपा. सौभाग्यचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५४-५८). पंचकल्याणक स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नमिय पयकमल सुभ भावि; अति: पुण्यसाग० आराहउमुदा, गाथा-२३. ३४३३३. दीक्षाग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, १५४५७). दीक्षाग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दीक्षाथी पहिलै दिवसै; अंति: प्रथम विहार करावीजै. ३४३३४. नवग्रह स्तोत्र, १२पर्षदा स्तुति व सचित्ताचित्त सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४४१). १.पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. नवग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिमुदाहृता, श्लोक-११. २. पे. नाम. १२ पर्षदा स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आग्नेयां गणभृद्विमान; अंति: संभूषितं पातु वः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. सचित्तअचित्तभूमि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. अचित्तसचित्त सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमुसहिगुर; अंति: सूगडांग वृत्तिथी लहे, ___ गाथा-५. ३४३३५. (+) विधिप्रपानुसारे दीक्षाविधि, संपूर्ण, वि. १७७२, श्रावण कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. तोलीयासर, प्रले. उपा. लाभसुंदर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, १८४५२). प्रव्रज्याविधि-विधिमार्गप्रपानुसार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रोप; अंति: पयाहिण वास उवसग्गो. ३४३३६. पार्श्वनाथकेवलाक्षर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, ८४३२). पार्श्वजिन स्तोत्र-केवलाक्षरमय, उपा. समयराज, सं., पद्य, आदि: जयजय नयनतमतकरण जलभरण; अंति: समयराजगणिः स भद्रः, श्लोक-७. ३४३३८. स्तुति, स्तवन व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५३, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १४४४२-५०). १.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-९. २. पे. नाम. अतिचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अतिचार आलोचना, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजूणा चउपहराद दीह; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. करहेटकपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., पद्य, आदि: आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण; अंति: हृदि मे यदि मेरुधीर, श्लोक-५. ४. पे. नाम. पंचमीस्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ३४३४०. प्रतिक्रमणअष्टप्रकार गाथा सह कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४१०.५, १६४३९). प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पडिक्कमणा परियरणा; अंति: पडिक्कमणउ अट्ठहा होई, गाथा-१. प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: कहै छै जिम कोइक राजा; अंति: प्रकारनी शुद्धि करे. For Private And Personal use only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३४३४५. त्रिषष्ठिशलाकापुरुष नाम श्लोक-दीवालीकल्प मध्ये, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्रावि. मंगाई बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८५९) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२५४११, १३४४२). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. श्लोक परिमाण १९ है.) ३४३४६. (+) महावीरजिन स्तोत्र व जैन गाथा संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ६x४५). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं; अंति: एअंपढह कय अभयसूरीहि, गाथा-२२. महावीरजिन वृद्धस्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वर्द्धमानजिनं नत्वा, (२)जइज्जा क० जयवंता; अंति: श्रीअभयदेवसुरे तिणे. २. पे. नाम. गाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. जैन गाथासंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४३४७. (+) रात्रिसंथारा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४८). संथारापचक्खाण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रहर रात्रि झाझेरी; अंति: कही बार भावना भावियइ. ३४३४८. (+) विचारकाव्य सहटबार्थ, महावीरजिन स्तोत्र व श्लोक संग्रह सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १७५२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, २५४४३-५३). १.पे. नाम. विचार काव्य सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. नवतत्त्वादि श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि७ व्रत१२; अंति: ज्ञेया सुधीभिः सदा, श्लोक-१. तत्त्वव्रतधर्मादिभेद श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीव तत्त्व १ अजीव; अंति: ते पंडिते समजी लेवा. २. पे. नाम. संसारदावापदगर्भितवर्द्धमान स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र-संसारदावापदगर्भित, सं., पद्य, आदि: कल्याणवल्लीवनवारिवाह; अंति: श्रीजिनो वर्धमानः, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह सह व्याख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-३. श्लोक संग्रह-व्याख्या*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४३४९. विचारषविंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३२, फाल्गुन कृष्ण, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पठनासपुर, प्रले. मु. पेमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, ८x२४). विचारषट्त्रिंशिका प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार करी च० चउ; अंति: हित करकै हि० लिखि. ३४३५०. स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-२२(१ से २२)=१, कुल पे. ७, जैदे., (२४४११.५, १३४३५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २३अ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: तुं मेरे मनमें प्रभु; अंति: साहिब तीन भुवनमें, गाथा-३. २.पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. २३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: गौडी गाइयै मनरंग एक; अंति: कदेय न होय चित्तभंग, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २३अ, संपूर्ण. मु. गुणविलास, मा.गु., पद्य, आदि: करो इसी बगसीस प्रभु; अंति: पूरौ करोनि आप सरीस, गाथा-३. ४. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तेरे गुण अनंत; अंति: स्वामी नाम आधार, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २३आ, संपूर्ण. राज, मा.गु., पद्य, आदि: मन रे तुंछोडि माया; अंति: स्वामि नाम संभाल, गाथा-३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २३आ, संपूर्ण. मु. वृद्धिकुशल, रा., पद्य, आदि: तेवीसमा जिनराज जोरी; अंति: वैभवभव दीज्यौ दीदार, गाथा-३. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. २३आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुणि अलवेसर; अंति: मुजनै भवसायरथी तारौ, गाथा-५. ३४३५२. (+) सुखविपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, १८४५२). सुखविपाक-द्वितीय श्रुतस्कंध विपाकसूत्रगत, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: वि सेसं जहा आयारस्स, अध्याय-१०. ३४३५३. बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११.५, १४४३४). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ३४३५५. गौतमाष्टक व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १५४३८). १.पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: नमते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. २.पे. नाम. ग्रहस्तुति श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५. ३. पे. नाम. सुभाषित, पृ. १आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३४३५९. जैन गाथा, श्लोक संग्रह व मंत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, २४४५१). १.पे. नाम. जैन गाथा, श्लोक संग्रह, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., पे.वि. जैन प्राकृत गाथाएँ, श्लोक व सामान्य श्लोकों का संग्रह. जैन गाथा*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. पार्श्वनाथ मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३४३६०. कल्पसूत्र की मांडणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. साहिबकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १२४३८). कल्पसूत्र-मांडणी, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: साधुसमाचारी ३. ३४३६२. चतुर्विंशतिजिन स्तुति व भववैराग्यशतक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १२४२७-३५). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जिनेन येन क्रियते; अंति: समान छविभाल कांता, श्लोक-२७. २.पे. नाम. भववैराग्यशतक, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३४३६३. महावीरजिन स्तवन-स्वप्न, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-९(१ से ९)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३४१०, ११४२७-३०). महावीरजिन स्तवन-स्वप्न विषये, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से ६९ अपूर्ण तक है.) ३४३६४. सिद्धदंडिका स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१२, ३४२५-२८). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाओ अंतमूह; अंति: दिआदितु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंक० जे उसभ क० ऋषभ; अंति: ते सिद्धिनां सुख आपो. For Private And Personal use only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ३४३६५. शांतिजिन स्तोत्र व सर्वजिन नमस्कारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक की जगह से पत्र टूटा हुआ होने के कारण पत्रांक काल्पनिक दिया गया है., जैदे., (२५४१०.५, १४४३५). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. शांतिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रुवर हर्षधर्मह वीनवइ, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सर्वजिन नमस्कार, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. विविध स्तुतियों का संग्रह. जिनस्तुत्यादि संग्रह*, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-७. ३. पे. नाम. गीत नेमनाथ, पृ. २आ, संपूर्ण.. नेमिजिन गीत, मु. वछउ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: यादव कुलसुं परिवर्यउ; अंति: वछउ ऋषि प्रणमइ पाय, गाथा-१२. ३४३६६. पद संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३४११.५, १३४२४). १.पे. नाम. सामान्य श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २.पे. नाम. ऋषभजिनपद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: आज ऋषभ घरि आवै देखो; अंति: साधुकीरत गुण गावै, गाथा-५, (वि. दो-दो पदों की एक गाथा गिनने से गाथांक ५ है.) ३. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: भज मन नाभिनंदन चरण; अंति: सहजसुंदर० जिनपद शरण, गाथा-५, (वि. दो-दो पद की एक गाथा गिनने से ५ गाथा है.) ४. पे. नाम. ऋषभ पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समर समर जिन प्रथम; अंति: सदा प्रभुपद नलिनं, गाथा-३. ३४३६७. कल्पसूत्र की माडणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१०.५, १०४३५). कल्पसूत्र-मांडणी, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: लेणौ पछै आगै वाचणो. ३४३६८. (+) साश्वतातीर्थसंख्या स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १८४३८-४२). शाश्वतजिन स्तवन, आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति शुभमति सासती; अंति: जिनलब्धि० मुनिवर कही, गाथा-४७. ३४३६९. सूत्रकृतांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध का ग्यारहवाँ मोक्षमार्ग अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४११, ९४३७). सूत्रकृतांगसूत्र का प्रथमश्रुतस्कंधगत ११वाँ मोक्षमार्गअध्ययन*, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४३७१. (#) शीलोपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४४१-४५). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहह बोहिसुह, कथा-४३, गाथा-११५, (पू.वि. गाथा-५८ अपूर्ण से ८८ तक नहीं है.) ३४३७२. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सींघाणा, प्रले. मु. ख्यालीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१०.५, २४४८४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्ष प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३४३७३. (#) रहनेमिराजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक अनुपलब्ध है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, ११४३१). For Private And Personal use only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु, पद्य, आदि सतगुरु प्रणमुजी पाय अंति: सिवपुर लीला भोजवेजी, गाथा - १५. ३४३७४. सरस्वतीदेवी स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २, जैवे. (२४.५x११, ९४२८). 7 " १. पे नाम, सरस्वती मंत्रगर्भित स्तोत्र, पृ. १अ २अ संपूर्ण सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, लोक-१३. २. पे नाम, सरस्वतीदेवी मंत्र, प्र. २अ २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ३४३७६ (+) श्रीमति चौढालीयो व सगरराजा री वारता, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२३४११.५, १४४३५). १. पे नाम. श्रीमतीनी चौढाल्यो, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. श्रीमती चौढालिया, मु. धर्मसी, मा.गु, पद्य, आदि: ईनही ज दक्षिण भरत; अंतिः सुफल फलै सब आस, डाल-४, २. पे. नाम. सगरचक्री सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है.. सगरचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सगर रायनी वारता कहुं, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ११ अपूर्ण पर्यन्त है.) ३४३७७. (#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३X११.५, १४४४३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन- पालनपुरमंडन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भक्तिविजय भणे, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा - ६ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. गौतमविजय, मा.गु., पद्म, आदि: शांति जिणंदनी भेटेइ अंतिः गौतमना छो दयाल, गाथा-८, ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- पल्लविया, पृ. २आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदिः परम पुरुष परमेसरु, अंति: (-), (पू.वि. अंतिम कुछ अंश नहीं है. ) ३४३७८. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४. दे. (२४.५४११.५, १२X३५-४१). १. पे. नाम. मोटिशांत, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. וי वृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्, २. पे. नाम. नानी संत, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. श्री महावीर प्रसादे. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत, अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१७+२. ३. पे नाम, सप्ततिशतंजिन स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, वि. १९२९ फाल्गुन शुक्त. ११, रविवार, तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपवासय अड, अंतिः निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ४. पे नाम, नवग्रहनुं महास्तोत्र, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरु नमस्कृत्वा, अंति: ग्रहशांतिमुदीरिता, श्लोक-११. ३४३८३. सम्यक्त्वस्वरूप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ४, बे. (१०x१०, ७४२९). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं अंतिः हवेठ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा २५. ३४३८५. प्रश्नोत्तररत्नमाला, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२३४११, १०x२८). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनवरेंद्र, अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. ३४३८६. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५६, भाद्रपद कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४X११, १२X३०). वंदित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि बंदिनु सव्वसिद्धे अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा-५०. ३४३८७. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ - द्रुमपुष्पियध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४X११, ४X३१). For Private And Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ ४६९ दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: गुरु कहै शिष्य प्रतै. ३४३८९. कल्पसूत्र की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-२६(१ से २६)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, १५४३८). कल्पसूत्र-अवचूरि*सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरस्वामी के द्वारा पूर्वभव में नीचगोत्रबंध विचार.) ३४३९०. बावनबोल अनाचीर्ण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खारिया, प्रले. पं. धनरुप, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११, १४५४२). अनाचीर्ण५२ बोल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: न्यान अनै दसण चारित; अंति: जिनहर्ष करुं प्रणाम, गाथा-२३. ३४३९२. प्रव्रज्या कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३.५४११, १५४३८-४०). प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ३४३९३. पाक्षिक्षामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४४७). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: इच्छामोणुसटुिं, आलाप-४. ३४३९६. समुद्धात विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११,१६४५२). समुद्धात विचार - विविध आगमों से उद्धत, प्रा.,सं., गद्य, आदि: कतिण भंते समुग्घाया; अंति: आगामि सव्वट्ठत्ति. ३४३९७. अष्टप्रकारी पूजा काव्यादिक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कनकपुर, प्रले. उदेचंद; पठ. श्राव. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १२४३६). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: दर्शनसल्लभंते, ढाल-८, श्लोक-९. ३४३९८. (+#) जंबूद्दीपसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १७०३, आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. जयमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १९४५०). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्न; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-२८. ३४३९९. (+) रात्रि में जिनमंदिर गमन, दीपककरणादि विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १६४५३). रात्रि में जिनमंदिरगमन, दीपककरणादि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: रात्रौ देवगृहे गमनं१; अंति: केलि हीचोलिउंलोकिक. ३४४००. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११, ११४४१). १. पे. नाम. स्तंभनकतीर्थराज पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९३८, भाद्रपद कृष्ण, ४, प्रले. मु. गुलराज महात्मा; पठ. श्राव. रेखचंद लुणावत, प्र.ले.पु. सामान्य. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ आणंदिय, गाथा-३०. २. पे. नाम. युगमंधरजीनो स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दधिसुत विनतडी सुणजो; अंति: जिनविजये गायो रे, गाथा-९. ३४४०३. (+) गाथा संग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, २३४४३-४५). १. पे. नाम. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय विचार गाथा सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अभक्ष्यानंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सव्वावि कंदजाई सूरण; अंति: वजह दव्वाणि बावीसं, गाथा-७. अभक्ष्यानंतकाय गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सर्वापि कंदजातिरनंत; अंति: पातादि दोष संभवते. For Private And Personal use only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. आशातनाजिनेंद्रालयस्य चतुरशीति: सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं केलि कलिं कला; अंति: वजे जिणिंदालये, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्लेष्मा१ क्रीडार; अंति: मज्जनं तत्र करोति. ३४४०५. शाश्वत जिनभवन जिनबिंब विचार स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२२४१०, ११४२८). शाश्वतजिनबिंबविचार स्तवन, मु. विजयप्रभसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., तृतीय ढाल प्रारंभ से कलश अपूर्ण पर्यन्त है.) ३४४०६. समोसरण स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२१.५४१०, १०४३८). समवसरणविचार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंजोत सरूप; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ प्रारंभ तक है.) ३४४०८. औपदेशिक पद संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३.५४१२, १५४४२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहि., पद्य, आदि: बाबू बन गये जेंटलमेन; अंति: फकीरा साफ सुनानेवाले, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. अलग-अलग ३ लघु कृतियों का संग्रह. पद संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. माहावीरसामि कोतवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन पारj, पुहि., पद्य, आदि: झुले श्रीवीर जिनंद; अंति: थकी ए सुरासुर वृंद, गाथा-५. ३४४०९. सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२३.५४११.५, १३४३४). सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गयणमकलियायत उद्दाह; अंति: सिझंति महंतसिद्धिओ, गाथा-१२. सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्र गगनादि संज्ञा; अंति: लिखितचक्राद्वावसेयम्. ३४४१२. नथी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४११, ११-१४४३५). जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१४.. ३४४१४. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. रुपविजय (गुरु ग. गंगविजय); गुपि.ग. गंगविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि; पठ. श्राव. दयाराम, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२४४११, १३४३७). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८. ३४४१५. संथारपोरसी व औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१०, १२४३७). १. पे. नाम. संथारपोरसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. सांगा ऋषि; पठ. श्रावि. कपूरदे, प्र.ले.पु. सामान्य. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसाय पडिमल्ल० न; अंति: इअसमत्तं मए गहिरं, गाथा-१४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जगमै संत सुखी अणगार; अंति: करत उग्र विहारी, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जीवत जरासा दुख जन्म; अंति: सावन का तमासा, गाथा-३. ३४४१६. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२३४११,१२४३४). १. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल करो अंबा देविये, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमीनाथ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३४४१७. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३४११, १५४३२). For Private And Personal use only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. तृतीय अध्ययन गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ३४४१८. मन्हजिणाणसूत्र व गाथा संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैवे. (२२.५x११, ८x२७). १. पे. नाम गाथा, पृ. १अ संपूर्ण जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - १. २. पे. नाम. मन्हजिणाणं सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. महजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः मन्हजिणाणं आणं मिच्छ, अंति: निच्वं सुगुरूवरसेणं, , जैन श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १. जैन श्लोक का टबार्थ मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ५. ३४४२२. लघुशांति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२३४११, १०x३६). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सुखी भवंतु लोकः, श्लोक-२०. ३४४२४. गौतम कुलक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८५२ आषाढ़ कृष्ण, १ श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. भिन्नमाल, जैवे., (२४X११.५, ४X३५). १. पे नाम, गौतम कुलक सह टवार्थ, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण, पे. वि. कृति का परिमाण गाथा २१ लिखकर अन्य कृति के एक श्लोक का भी इसी कृति मे समावेश कर लिया है, जो योग्य नहीं है. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहंतु, गाथा - २०. गौतम कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर लक्ष्मी, अंतिः सेवे ते जीव सुख लहे. २. पे. नाम. जैन श्लोक सह टबार्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. ४७१ ३४४२६. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८०७ आश्विन कृष्ण, १ बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, मढाडनगर, पठ. मु. भाणजी महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १२३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. ३४४२७. वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२३४११.५, १२४३८). २० स्थानकतप विधि, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं हजार २; अंतिः श्रीऋषभदेव कर वांदवा. ३४४२८. स्तुति संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२२.५X११, १५X४०). १. पे नाम, ऋषिभ स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रोत्कटविकटसदोद्भट, अंतिः चक्केसरी कुशल करा, गाथा-४. २. पे. नाम. वासपूज्य स्तुति, पृ. १ अ १आ, संपूर्ण. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. भीमसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: पंच भरह अझवै पंच अंतिः भीमसूरिंदजी० सुख करो, गाथा-४. ४. पे. नाम. जैन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तुति- अग्गलपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: वासुपूज्य जिणचंद अंति: गुणसागर ० मंगल करति, गाथा-४. जैन श्लोक सं., पद्य, आदि (-); अंति (-) श्लोक-१. ३४४२९. भरथबाहुबल चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २१.५X१०.५, ११३५). भरत बाहुबली चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सुरसती समरं सदा, अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभिक गाथा अंशमात्र है.) ३४४३०. पोसहलेवानी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. दे. (२३४१२, १०x३८). " पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरिया० ४ नवका० अंति: होय तिके पडिलेहणा. For Private And Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४४३४. नवतत्व, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हाशिया के एक तरफ का भाग काटा गया है. प्रति के अंत में अन्य विद्वान द्वारा 'संवत् १८३२ वर्षे पं. जीवसागरजी उली वीसथानिकनी मांडी छै आसाढ सुदि २ माडी भादरवा सुदि २ संपूर्ण इस प्रकार का उल्लेख किया गया है., जैदे., (२४४११.५, ७४३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४५. ३४४३६. पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. प्रतिलेखक ने गलत पत्रांक लिखा है. वास्तव में अंतिम पत्र है. प्रतिलेखक द्वारा १ पत्रांक लिखे होने से प्रारंभिक भाग की अपूर्णता दर्शाने हेतु काल्पनिक पत्रांक-२ भरा गया है., जैदे., (२३.५४११.५, १०x४०). पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)पद्मावती पाहि मां, (२)तस्य पद्मावती स्वयं, श्लोक-१६, (पू.वि. श्लोक-११ से है.) ३४४३८. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४११,११४२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३४४३९. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अजितनाथ स्तवन व अष्टमी स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१०.५, १२४२८-३०). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८४०, फाल्गुन शुक्ल, १३, प्रले. मु. रुपा; अन्य. मु. खुसाल (गुरु पं. धनविजय); गुपि.पं. धनविजय (गुरु पं. भक्तिविजय); पं. भक्तिविजय (गुरु पं. धनविजय); पं. धनविजय, प्र.ले.पु. मध्यम. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, प्रले. मु. रुपचंद (गुरु पं. धनविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: जिणंदस्युं प्रीतडी, गाथा-५. ३.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट प्रमाद; अंति: सुर सानिधी करेइ, गाथा-४. ३४४४०. (+) भयहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०१, पौष शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जुहारचंद (गुरु मु. सरूपचंद ऋषि); गुपि.मु. सरूपचंद ऋषि; पठ. मु.तुहभज (गुरु मु. जुहारचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, ९४३४). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ३४४४२. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२४४१०.५, ११४४३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षप्रपद्यते, ____ श्लोक-४४. ३४४४३. भयहर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, २०४६०-६३). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: परमपयत्थं फुडं पासं, गाथा-२३. नमिऊण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदौ कविर्मंगलाभिधान०; अंति: शमयतु पार्थो जिनः. ३४४४७. पाक्षिक क्षामणक, संपूर्ण, वि. १८६६, आश्विन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. आउआनगर, जैदे., (२४४११.५, ११४२५). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पिअंच मे जंभे हट्ठा; अंति: नित्थार पारगा होह, आलाप-४. ३४४४८. स्तवन व सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०.५, १२४३२). १. पे. नाम. शेत्रुजाजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. विनयचंद कवि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक सहु कोइ आगल; अंति: विनयचंद कवि कीधीरे, गाथा-११. २. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: पुर सुग्रीव सोहामणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ३४४४९. बालचंदबत्तीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२.५४१०.५, १०४३४). अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसरकुं; अंति: (-), (पू.वि. पद-२३ अपूर्ण तक है.) ३४४५०. शालिभद्रधन्ना रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२२४१०.५, ११४३२). धन्नाशालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९९ अपूर्ण से ३१५ अपूर्ण तक है.) ARR For Private And Personal use only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), ३३३७८($) ५ महाव्रत भांगा, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३००३२ ५ वादि अधिकार, मा.गु. सं., गद्य, वे., (कालसभावनीती) ३०२०९-२ ५ समकित स्वरूप, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो उपशम समकित ), ३०७७७-१ ६ दर्शन विवरण, सं., श्लो. ७, पद्य, जै., वै., बौ., (बौद्ध१ नैयायिक२), ३४२९२-२ ६ द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा. गा. ३, पद्य, भूपू (परिणामि जीव मुत्ता). ३०४२२-१, ३३८९३ 1 (२) ६ द्रव्यपरिणाम विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे षट्द्रव्यने), ३०४२२-१ (२) ६ द्रव्यपरिणाम विचार व्याख्यान, सं., गद्य, म्पू. (अनादि निधने द्रव्ये), ३३८९३ ६ भाव विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू. (उदयउदय दुविहेप्पन्नत), ३०७८९-८ ७ विगई श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (घृतं तैलं तथा पक्कं), ३२६३३-७ ७ समुद्धात प्रा., गा. २, पद्य, भूपू. (वेयण कसाय मरणे), ३४२८३-२ (२) ७ समुद्धात - अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( वेदनीसमुद्धात कषाय), ३४२८३-२ ८ करण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, भूपू (बंधण १ संक्रमण २ वटणा), ३३१६५ () (२) ८ करण गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए आठ करणनि गाथा तिहा), ३३१६५ (+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., ढा. ८, श्लो. ८, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), ३४३९७, ३२७०१($), ३२९७६(३) ८ प्रकारी पूजा, मा.गु., सं., ढा. ८, पद्य, मूपू., (तिर्थोदकैर्मिश्रित), ३३७८६ ८ प्रकारी पूजा, मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (न्हवण पूजा करो हर्ष), ३०२११-१ ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विमल केवल भासन), ३३३१९ ८ प्रातिहार्य गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू (किंकिल्ले कुसमवुडी), ३२४२३-२ (२) ८ प्रातिहार्य गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष १ कुसुम), ३२४२३-२ ८ प्रातिहार्य श्लोक सं., श्रो. १, पद्य, मूपू (असोखवृक्ष्यसूरपुष्फ), ३२६६०-३, ३२७७९-५ (२) ८ प्रातिहार्य श्लोक- अर्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (भगवंत अशोकवृक्ष तल), ३२६६०-३ (६) ९ ग्रह मंत्र, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (ॐ आइच्चसोममंगल बुध), ३१५८५-३(#) ९ ग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., ( जपाकुसुमसंकासं), ३१४११-५ १० आश्चर्य वर्णन, प्रा., मा.गु. ग्रं. ११३, पद्य, म्पू (उवसगर गब्धहरणं) ३३९२६-२(६) १० आश्चर्य वर्णन, प्रा. सं., गद्य, मूपू., (दशाश्चर्याणि अस्याम), ३१४६०-१ (+$) १० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (तेसिमत्तंग १ भिंगा २), ३२१६४-३) (२) १० कल्पवृक्षनाम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू.. (मितगनामा अंगनामे), ३२१६४-३() १० दिक्पालस्थापन विधि, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे. (सौगंध संगत मधुव्रत) ३४१५५-३ १० दीक्षा प्रकार, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (दसविहा प्रवज्जा), ३४०९४-५ १० मत स्वरूप, सं., गद्य, म्पू., (वीरात् ६०९ वर्षे), ३११६१-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० यतिधर्म भेद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (खंती मुत्ती अज्झबे), ३२१६४-२ (२) १० यतिधर्म भेद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ख० क्षमानो करबो), ३२१६४-२) १० श्राद्ध कुलक, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू. (आणंदर कामदेवेअर गाहा). ३२६३३-३ १० श्रावक कुलक, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., ( जव्वयणामयसित्ता अनंत), ३१४२६ (२) १० श्रावक कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेह भगवंतनई अमृत), ३१४२६ १० श्रावक कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (वाणियगामपुरम्मि आणंद), ३३२६०-१ ($) परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५५ For Private And Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७५ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) १० श्रावक कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३३२६०-१(६) ११ पद २६ उत्तरभेद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (दुन्निय १ एकं २ एक), ३१३६०-३ १२ पर्षदा स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (आग्नेयां गणभृद्विमान), ३४३३४-२ १२ व्रतउच्चारण विधि, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (सम्यक्त्वदंड भणति), ३०९४६(5) १३ काठिया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (आलस मोह अवन्ना थभा), ३२४२३-३ (२) १३ काठिया गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलस मोह अवर्णवाद), ३२४२३-३ १३ क्रियानाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (अट्ठा १ अणट्ठा २), ३१३०१-३ १४ गुणस्थानक विचार, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (अथ प्रथम गुणस्थानके), ३३२२७($) १४ पूर्व नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (उपायं च मगोणिय), ३१८९४-२ १४ पूर्वी आहार विचार, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (चत्तारियवाराउ चऊदस), ३०२९७-२ १६ शृंगार नाम, सं., श्लो. १, पद्य, (आदौ मज्जनचारुचीरतिलक), ३१४३०-३ १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ३३७६९-५, ३११०२-२(2) (२) १६ सती स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबाला), ३३७६९-५ १८ पुराण नाम व ग्रंथ संख्या, प्रा.,मा.गु., गद्य, वै., (ब्रह्मपुराण्ण १ विष), ३०७९६-६ १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., गा. १८, पद्य, म्पू., (जेनो करंति मणसा), प्रतहीन. (२) १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ३३८२८-१ १८ हजार शीलांगरथ आम्नाय, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जे नो करति मणसा), ३०६८६, ३२६५१-१ १८ हजार शीलांगादिरथ संग्रह, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (जोए करणे सन्ना इंदिय), ३१४०६-१(+) २० असमाधिस्थान गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दवदवचारि १ अपमज्जिय), ३१३०१-४ २० स्थानक कुलक, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं निज्जि), ३२६३३-४ २० स्थानकतप आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), ३२३६९-५ २० स्थानकतप गणj, प्रा.,मा.गु., पद. २०, को., मूपू., (--), ३०७६६-१(+) २० स्थानकतप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ३१३९६-३, ३३२६०-४ (२) २० स्थानक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतभक्ति सिद्ध), ३३२६०-४ (२) २० स्थानकपद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतना गुणग्राम), ३१३९६-३ २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहताण २०००), ३१७२४ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (१. नमो अरिहंताणं), ३२१९९, ३०७८४($) २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथमनालिकेरादि), ३१०९०-४, ३२४१६-१ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीदयदर्हत्पदवीदवी), ३००९१ २१ प्रकार के पानी, प्रा., गा. २, पद्य, म्पू., (उस्सेयम संसेयम उदल), ३३५४४ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय कुलक, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंचुबर चउविगई हिम), ३३२४५-२(+) २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पचुंबर चउविगई हिम), ३२६३३-६ २४ जिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जिनर्षभप्रीणितभव्य), ३०९९३, ३१२५५, ३३४८७ २४ जिन राशिनक्षत्र, सं., गद्य, मूपू., (नक्षत्र योनिश्च षडाष), ३१६२४ २४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. राजतिलकसूरि शिष्य, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिन नौमि), ३२७४२-२ २४ जिन स्तवन, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (मूर्द्धन्यौ भाव), ३१००९(+) । २४ जिन स्तव-यमकमय, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (प्रथमजिनवरनिखिलनरनाथ), ३३७१८-१ २४ जिन स्तुति, मु. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ४९, पद्य, मूपू., (श्रीमंतं परमानंद), ३१०६६ २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (ऋषभनम्रसुरासुरशेखर), ३१०९५(+), ३४२६८ २४ जिन स्तुति, आ. माघनंदि , सं., श्लो. १५, पद्य, दि., (वंदेतानमरप्रवेकमुकुट), ३४१५५-१ For Private And Personal use only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (जिनेन येन क्रियते), ३४३६२-१ २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (सुरकिन्नरनागनरेंद्र), ३३३१५-२ २४ जिन स्तोत्र, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (प्रणतमिंद्रगणैः), ३१२९० २४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ३३९९६-२, ३४२५५-१, ३३५२४-१(-), ३३५४२-१(-) २४ दंडक विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नारकदंडके शरीर ३), ३१७५९ २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (रुचितरुचिमहामणि), ३३८१२(+), ३००५१-१,३१५४०-१(2) (२) २४ दंडक स्तुति-वृत्ति, मु. अमरकीर्तिसूरि शिष्य, सं., गद्य, मूपू., (अहं तीर्थेश्वरं जिन), ३३८१२(+) २४ मांडला, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (६ हाथ १प्र०१ आगाढे), ३१५३७ २७ बोल गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (गइ ४ जाइ ५ काय ६), ३१९४३-२ २८ लब्धि विचार, प्रा., गा.४, पद्य, मूपू., (आमोसहि विप्पोसहि), ३२४७४-२ (२) २८ लब्धि विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेहनै सरीरने फरस से), ३२४७४-२ २९ भावना प्रकरण, प्रा., गा. ३०, पद्य, श्वे., (संसारम्मि असारे), ३२४२३-६ (२) एगूणतीसी भावना-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, श्वे., (संसार असाररूप छइ), ३२४२३-६ ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (सव्वाउ कंदजाई), ३२४२३-४, ३२६३३-५, ३२६७५-९ (२) ३२ अनंतकाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (सर्व कंदजाति अणंतकाय), ३२४२३-४ ३२ लक्षण गाथा, सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रमाणं१ सुकृतं२ सील), ३१८९४-१ ३३ आशातना-गुरुप्रति, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पुरओ पक्खासन्ने गंता), ३४२२६-२(#) (२) ३३ आशातना-गुरुप्रति-विवरण, सं., गद्य, मूपू., (पुरतोग्रतो गंता), ३४२२६-२(#) ३४ अतिशय आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (चउत्तीसं बुधा सेसा), ३०४१३-१, ३४२१६, ३१०८६-१(#) ३४ अतिशय गाथा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (रय रोयसोयरहिओ हेहो), ३२४२३-१ (२) ३४ अतिशय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू, (जरारोगरहित शरीर), ३२४२३-१ ३६ आयुध प्रकार, सं., गद्य, (चक्र धनु वज्र खड्ग), ३२६७५-३ ४८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मीसेखीणिसयोगे नमरते), ३२१९४-२ ५० बोल थोकडा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (-), ३१९५६(-) ६२ बोल गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (गइ इंदिएकाए जोए वेए), ३०६१५-३ ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ दिव्यजोगी महाजोगी), ३३९९४-४ ६४ योगिनी स्तोत्र, प्रा., पद्य, म्पू., (जगमब्भ वासिणीणं जग), ३३९९४-९(६) अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (उसभसमगमणमुसभजिणमणि), ३२३८५-१(+) (२) अंगुलसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (ऋषभगामिनं अनिमिष), ३२३८५-१(+) अंचलमत विचार, सं., गद्य, मूपू., (--), ३१३४६-१(६) अंतरंगमित्रत्रय कथा, प्रा.,सं., श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (नयरंमि खिइपइटे), ३२३९४-२ अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (प्रथम इरियावही), ३२०२५-२ अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., श्लो. १६, पद्य, दि., (त्रैलोक्यं सकलं), ३०४३१-१ अक्षयतृतीयापर्व कथा, मु. कनक कवि, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखदातार), ३३१४५ अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं.७०, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य प्रभु), ३३५४० अक्षयतृतीया व्याख्यान, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (उसभस्स पारणणे इखुरसो), ३१५७८(+) अक्षयनिधितप आराधना विधि, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (ज्ञानपद भजीये रे), ३३६७२ अग्यारगणधर वेदपदव्याख्यासूत्र, प्रा.,सं., सूत्र. १३, पद्य, मूपू., (वेदपदानि तु स वै अयम), ३१३२८(+) (२) अग्यारगणधर वेदपदव्याख्यासूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (विज्ञानघन एवैतेभ्यो), ३१३२८(+) For Private And Personal use only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४७७ अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जिय सव्वभयं), ३०२४६(+), ३०७४५(+), ३०८२२-१(+), ३२५२२(+#$), ३३८९४(+), ३१६०६-१, ३१६०७, ३३२७०, ३३५८६, ३३७५७, ३३८७५, ३३२३९-१(६) (२) अजितशांति स्तव-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा चिदानंदमयं जिन), ३१६०६-१ (२) अजितशांति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भगवति गर्भस्थे), ३१६०७ (२) अजितशांति स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजिअं अजितनाथ किसउ), ३२५२२(+#$) (२) अजितशांति स्तव-छंद संग्रह, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (नेयामत्ताछंदे दुतिचउ), ३२४२५-२(+) (३) अजितशांति स्तव-छंद संग्रह की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तत्रद्विमात्रः कगणो), ३२४२५-२(+) (२) अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (मंगल कमलाकंद ए), ३१६७४ अजितशांति स्तवबृहत्-अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सकलसुखनिवहदानाय सुर), ३४०६१-१ (२) अजितशांति स्तवबृहत्-अंचलगच्छीय की अवचूरि, सं., गद्य, पू., (अहं जिनं श्रीअजितनाथ), ३०१९३ अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., गा.८, पद्य, मूपू., (गब्भ अवयार सोहम्मसुर), ३०५४५-२, ३२३०७-२ अजैन श्लोक, सं., पद्य, वै., (--), ३०४३१-२ अढीद्वीप ३२ विजय जिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीजयदेवनाथाय), ३३९१८-२ अतीतअनागतवर्तमान २४ जिननाम प्रशस्ति, सं., श्लो. ११२, पद्य, मूपू., (चतुर्विंशतयोतीता), ३२५३० अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., अधि. १६, श्लो. २७२, पद्य, मूपू., (जयश्रीरांतरारीणां), ३४००७($) अनंतजिन जयमाला, सं., श्लो. ८, पद्य, जै.?, (भवजलनिधितारण शिवसुख), ३२८२५-२ अनंतजिन पूजाष्टक, पुहि.,सं., प+ग., दि., (स्वामिन्संवौषट् कृता), ३२८२५-१ अनशन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (गलाणनई देव दरसण), ३१२७५-२(+) अनानुपूर्वी गाथा यंत्रसहित, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जं छम्मासिय वरसिय), ३३३४७-३ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), ३२४७२(+$) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., मूपू., (नाणं पंचविह), प्रतहीन. (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (--), ३०९४८(६) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरुप, प्रा., गद्य, मूपू., (सत्तमूलनया पणत्ता तं), ३०५०९ (३) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरुप का विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअनुयोगद्वार मूल), ३०५०९ (२) अनुयोगद्वारसूत्र- गर्भजपर्याप्त मनुष्यभेद विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (मणुस्साणं भंते केवइआ), ३३६५०-१ अनुयोग विधि, सं.,प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (वसतिशोधन प्रमार्जन), ३४२२९-२(+$) अनूपचंद ने चुनिलाल को लिखा पत्र, मु. अनूपचंद ऋषि, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीपार्श्वे), ३०३९२(+) अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., अधि. ३, श्लो. २१९, पद्य, मूपू., (शुद्धवर्णमनेकार्थ), ३०१०७(६), ३१०५७(5) अन्नपूर्णा स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (नित्यानंदकरी पराभयकर), ३०५७८-३ अपराजितवास्तुशास्त्र, विश्वकर्मा, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) अपराजितवास्तुशास्त्रगत जिनमूर्तिश्लोक, हिस्सा, विश्वकर्मा, सं., श्लो. ३५, पद्य, जै., वै., (सुमेरु शिखरं दृष्ट्व), ३२३७१-२ अपूर्ण जैन काव्य/चैत्य/स्त/स्तु/सझाय/रास/चौपाई/छंद/स्तोत्रादि, प्रा.,मा.गु.,.,हिं., पद्य, श्वे., (--), ३३३३४-४(+$), ३०९६६-६(६), ३२४८४(६), ३२७९०-३($) (२) अपूर्ण जैन काव्य/चैत्य/स्त/स्तु/सझाय/रास/चौपाई/छंद/स्तोत्रादि-टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), ३२४८४(६) अभक्ष्यानंतकाय गाथा, प्रा., गा.७, पद्य, मूपू., (सव्वावि कंदजाई सूरण), ३४४०३-१(+) (२) अभक्ष्यानंतकाय गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वापि कंदजातिरनंत), ३४४०३-१(+) अभव्य कुलक, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (जह अभवियजीवेहिं न), ३१९७९(+), ३०७७९, ३३४९५ अभव्यजीव गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, भूपू., (संगम य१ कालसूरय२), ३१८९४-३ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः), ३०८८१(#$) For Private And Personal use only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला - शिलोंछ, संबद्ध, आ. जिनदेवसूरि, सं., कां. ६, श्लो. १३९, वि. १४३३, पद्य, मू., ( नमस्कृत्य), ३११३१(+) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला - शेष नाममाला, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २०४, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः), ३३२१४($) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला- बीजक, सं., गद्य, मूपू ( नाममाला पीठिका जिनेश), ३१५५५ (+) अभिनंदनजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (त्वमशुभान्यभिनंदननंद), ३२३३३-२, ३४१५७-३ अमृतध्वनि, पं. भानुविजय, सं., श्लो. २, पद्य, भूपू (जनतानंदन मंदनर परतर), ३०९३१-२(+) - (२) अमृतध्वनि छंद टीका, सं., गद्य, मूपु. ( न विद्यते कुकुत्सिता). ३०२३१-२(+) अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (अगम्यमध्यात्मविदाम), www.kobatirth.org ३०८४८ अरजिन स्तुति, मु, शिवसुंदर सं., श्लो. १, पद्य, मृपू. (अरजिन तेरर्थः सारो), ३२३२० (२) अरजिन स्तुति - विवरण, मु. शिवसुंदर, सं., गद्य, मूपू., (अस्य व्याख्या अरो), ३२३२० अरिहंतबारगुण गाथा, मा.गु. सं., गा. २, पद्य, भूपू (अशोकवृक्ष १ सुर), ३१४५६-३ " अर्णिकापुत्रमुनि कथा, सं. श्री. ५३, पद्य, भूपू (जवान्नैमित्तकको ३३८४८(१) अर्बुदगिरितीर्थ स्तोत्र, सं., श्लो. २०, पद्य, भूपू (जैनमंदिर शिरोग्रसंगत), ३१४७८-२ अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०. वि. १२वी १३वी, पद्य, म्पू, (अर्हन्नामापि कर्ण), , ३१४०५ (+), ३१८०८(४) . अशोकदत्त कथा - वंचनाविषये सं., गद्य, वे (दक्षिणमथुरायां अशोक), ३०८९४-१ अष्टप्रकारी पूजा, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, भूपू (-), ३३१६३ (६) अष्टप्रकारीपूजा अष्टक, सं., श्लो. ९, प+ग, भूपू (स्वरापगादि दिव्यनाद), ३४१५५-२ अष्टप्रकारी पूजा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (वरगंध १ धूव २ चोखख), ३१३६०-६ अष्टमहाप्रातिहार्यं नाम, सं., गद्य, म्पू. (अशोकवृक्ष १ कुसुम), ३१४६०-२(+) अष्टादशस्तवी, आ. सोमसुंदरसूरि सं. स्त. १८ वि. १४९७, पद्य, मूपू. (स्तुवे पाच), ३१०९८ (-), ३९४७८-१(३) अष्टापदतीर्थ स्तोत्र, सं., श्लो. २८, पद्य, भूपू अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु. सं., गद्य, भूपू (ते मांहिली शांतिकविध ), ३३२९२(+), ३११६७, ३१४११-२, ३३४८८-२ असज्झाय विचार, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, भूपू (महिया जाव पडंति), ३१०९०-१, ३३६७०-१ आगमिकगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, मूपू., (--), ३४०४०-३ आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.सं., गद्य, मूपू., (कप्पर निधाण वा), ३४२०३ (+) आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा., मा.गु., गद्य, श्वे., (तेणं कालेणं तेणं), ३११२३ आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ४०, प+ग, मूपू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), ३०६३७($) י: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י: (२) आचारदिनकर-शांतिकमहापूजन विधि, हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु., सं., प+ग., मूपू., ( तिहां प्रथम शुभदिने), ३२१२७(S) आचार्य ३६ गुणवर्णन, प्रा. मा.गु., पद्य, भूपू (पडिरूवाई चउदस१४ खंती), ३२६७५-२, ३२३१०(३) " आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, वि. ११वी, प+ग, मूपू., (देसिक्कदेसविरओ), ३०३५४(+), ३१३७७-१(+), ३१३७६, ३२४७१, ३३२०७ आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. ३०, पद्य, भूपू (अरहंता मंगलं मज्झ ), ३०६१४(+) (२) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरड़ अरिहंतनाम ते), ३०६१४(+) आत्मनिंदाष्टक, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू (श्रुत्वा श्रद्धाय), ३३४६९-१ आत्मशिक्षा प्रकरण, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., (केवल अप्प सरूवं लोअग), ३०८०१ (+) आत्मानुशासन, ग. पार्श्वनाग, सं., श्लो. ७७, वि. १०४२, पद्य, दि., (सकलत्रिभुवनतिलकं), ३११३८ आदिजिन अष्टक, मु. अजबसागर सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (आदिदेवः सततं सुखानि), ३१०८३-१ For Private And Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ आदिजिन आज्ञास्तव, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (नयगममंगपहाणा विराहि), ३४१०३-२ आदिजिन चैत्यवंदन, सं. लो. ८, पद्य, भूपू (जयादिनाथ प्रतितर्थसर) ३३९२२-६ 3 आदिजिन नमस्कार, सं., श्लो. २, पद्य, भूपू (जय जगनाथां जना), ३४१६९-४ आदिजिन नमस्कार, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (वंदे देवाधिदेवं तं), ३१५०१-३ आदिजिन नमस्कार, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (श्रियं दिशतु वो देवः), ३२५६८-२($) आदिजिन पारणक विवरण, सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू. (श्रेयांसकुमारस्य), ३२४३३ " आदिजिन स्तव, मु. जीवविजय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (श्रीवृषभाख्य जिनं) ३०६४९-२ आदिजिन स्तव, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपु (श्रीपुंडरिकाचलहस्ति), ३१०९६(+), ३३६४९ आदिजिन स्तव, सं., पद्य, मूपू., (अष्टापदरुचिमष्टापद), ३३८२५ ($) (२) आदिजिन स्तव अवचूरि, सं., गद्य, मूपू (अष्टा० अष्टापद), ३३८२५(३) 11 आदिजिन स्तवन- देउलामंडन, मु. शुभसुंदर, प्रा. सं., गा. २४, पद्य, मूपू (जय सुर असुरनरिदबिंद), ३१०९७ (२) आदिजिन स्तवन- देउलामंडन-वृत्ति, ग. चंद्रधर्म, मा.गु. सं., गद्य, मूपू (कियदनुभूतमंत्रयंत्र), ३१०९७ आदिजिन स्तवन- राणकपुरतीर्थ, मु. मेहो, अप. मा.गु.. गा. ४८, वि. १४९९, पद्य, म्पू, (वीर जिणेसर चलणे लागी), ३१२०२-१ आदिजिन स्तवन- समतामुखलतागुणगर्भित, वा. सकलचंद्र, प्रा., मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू. (विबुहाहियामवदिट्ठि), ३०९१५, , ३११७३-३ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (आनंदानम्रकप्रत्रिदश), ३१५३८-४, ३१९८७-२, ३२११७-११, ३४१७२-१० आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू, (ऋषभनाथ भनाथनिभानन), ३३८१३-५ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., ( न भेत्तव्यं न), ३२२८२-२ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), ३०२३८-१(+), ३३८०१-१ (युगादि पुरुषैद्राव), ३०२१५-२ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीललना), ३१३५७-२(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू " आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, भूपू (वरमुक्तियहार सुतार, ३०८६९-२, ३२६७४-२ आदिजिन स्तुति - चतुर्थीतिथि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( उद्यत्सारं शोभागार), ३१२५०-१, ३४१७२-७ आदिजिन स्तोत्र, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (सुखकारणमुत्तमं ऋषभ), ३१३९१-२ आदिजिन स्तोत्र, सं., श्रो. १०, पद्य, भूपू (पूर्णानंदमयं महोदयमय) ३२०१४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) आधाकर्मीगोचरी दोष-वालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू. (आह० आधाकर्मि ते कहीइ), ३१४६६ आनुपूर्वी विचार गाथा, प्रा. गा. ८, पद्य, म्पू, (पढमाय आणुपुव्वी चरमा), ३४२२१ (२) आनुपूर्वी विचार गाथा- आम्नाव, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (कोइ पूछे एकविसमुं), ३४२२१ आयुष्य विचार, अप., गा. ५, पद्य, मूपु. ( मणुआण वीसोत्तरस्य), ३२९०५-५ आदिजिन स्तोत्र, प्रा., गा. २३, पद्य, मूपू., (बालत्तणंमि सामिय), ३०४४६ (२) आदिजिन स्तोत्र सहटबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बालक पणइ स्वामी), ३०४४६ आदिदेव महिम्न स्तोत्र, मु. रत्नशेखर, सं., श्लो. ३८, पच, मूपू (महिम्नः पारं ते परम), ३४०१९(२), ३३४८३ (३) आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा. श्रो. ८८, पद्य, भूपू (संसारे नत्थि सुहं), ३३५९४ " आदिपुराण, आ. जिनसेनाचार्य, सं., पर्व. ४७, पद्य, दि. ( श्रीमते सकलज्ञानसाम्) प्रतहीन. (२) जयपताका यंत्रकल्प आदिदेवपुराणे, हिस्सा, सं., श्लो. ४५, पद्य, दि., (पूर्वनैऋचोतरा वायूमध) ३३५९९-२, ३३९३४-१(३) आधाकर्मी आहारदोष गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., ( आहाकम्मु १ देसिय २ ), ३१४६६ आरामशोभा कथानक, सं., गद्य, मूपू., (सद्धर्ममूलसम्यक्त्व), ३२५३२-१ आर्याभेद विचार, सं., श्लो. ८५, पद्य, श्वे., (--), ३४०८०-१($) ४७९ आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., अधि. १९, सू. २२८, वि. १०वी, पद्य, दि., (गुणानां विस्तरं), ३२५८४ (६), ३३८६४($) आलोचनाप्रदान विचार विधिसहित, मा.गु. सं., गद्य, मृपू., (ज्ञानाचार पोथी पाटी), ३१२४१(+) For Private And Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ आलोचना लेने की विधि-तपागच्छीय, गु.,प्रा., प+ग., मूपू., (--), ३३६१४ आलोचनासूत्र-देवसिसिप्रतिक्रमणगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदेसह), ३३०२६ आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहताणं० सव्व), प्रतहीन. (२) आयरियउवज्झायसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्रगत, हिस्सा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (आयरिय उवज्झाय सीसे), ३०८०८-२ (३) आयरियउवज्झायसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आयरि. ये मेमयाके), ३०८०८-२ (२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ३०६७०(६) (२) लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (लोगस्स उज्जोअगरे), प्रतहीन. (३) लोगस्ससूत्र-काउसग्गफल गाथा, संबद्ध, प्रा.,सं., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), ३४२५८-१(६) (४) लोगस्ससूत्र-काउसग्गफल गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३४२५८-१(६) (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमुत्थुणं अरिहंताणं), ३३७३८(+), ३३८३८ (३) शक्रस्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हो अरिहंतने), ३३७३८(+), ३३८३८ (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), ३१५३०-२(+), ३३३१३(+), ३०२८०, ३४२७५-५ (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंत), ३३३१३(+) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल कहीइ समत्तं न), ३०२८० (२) अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आजुणा चौपहुर दिवसमाह), ३०४९४, ३४३३८-२, ३३४४५-५(-) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (इरियावही पडिक्कमशुं), ३२६९८-१(-) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवीना चरण नमी), ३३९११(#) (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम), ३१९१७-१, ३२४१५-१, ३३७४१-२, ३०७८७-१(#) (२) गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छा० संदि० अब्भु), ३२७४३-१, ३३६४३-१ (३) गुरुवंदनसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., वि. ११८०, गद्य, मूपू., (सांप्रतं शेषप्रतिक्र), ३३६४३-१ (२) देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, श्वे., (अहन्नं भंते तुम्हाण), ३०१०९-३ (२) नमुक्कारसहि आदि पचखाण, संबद्ध, गु.,प्रा., प+ग., मूपू., (उग्गे सुरे नमुक्कार), ३१५०६-२ (२) नवकारसी-पोरसीसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गएसूरे नमुक्कार), ३३२७१ (३) नवकारसी-पोरसीसूत्र-बालावबोध, सं., गद्य, मूपू., (उद्गते सूर्य नमस्का ), ३३२७१ । (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), प्रतहीन. (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय देवसीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधिगाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरीआइ चउसगौ लोगसचइ), ३०६९३-२ (४) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय देवसीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि पडिकमी ४), ३०६९३-२ (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय पक्खीचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, पू., (मुपत्तिवंदणय समुदा), ३०६९३-३ (४) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय पक्खीचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाथा-टबार्थ, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदेसह), ३०६९३-३ (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, पू., (कुसमणदुसमणं राइय सोल), ३०६९३-१ (४) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि-टबार्थ, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदेसह), ३०६९३-१ For Private And Personal use only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३९३८ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, संबद्ध, गु., प्रा., गद्य, मूपू., (सागरचंदो कामो चंद), ३१३९६-२, ३१७१४-२ (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा. मा.गु, गद्य, भूपू (करेमि भंते पोसह), ३३४४५-२) (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, म्पू. (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), ३४१६२-२ (०) ३०७१४-१, ३२०२१, ३४४१८-२, ३२७३५-३०१ (२) पाक्षिकचमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, मूपू (इच्छाकारेण संदिसह), ३११०५-२(+), ३३६९८-३(+), ३१६६३-२) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुहपत्तिवंदणयं), ३२७५२-२(+), ३३२७२-१, (३) पक्खीचोमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-वार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (प्रथम देवसी पडिकमणो), ३३२७२-१ (३) क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्षांबिकाद्या), ३३६९८-२ (+), ३३५४८-२, ३३५४९-२ (३) छींक विचार, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (पाखी पडिकमणा करता), ३३६११-२ (२) पाक्षिकादिप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु, गद्य, मृपू., (देवसिय आलो० इच्छाकार), ३०२३५ - (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि पडिकमिइं), ३३९५० (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू, (प्रथम इरियावाही पडिक) ३४२२२-१(+), ३१३०४-२, ३१३६९-१, ३१६१८-२, ३१६७३, ३३७४६, ३४०१८, ३४४३०, ३३७०९ ($) (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि चार नवकारनो), ३०५५८, ३१२५२-१ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग, भूपू (खमासमण देइनें इरिया), ३१५९५-२(+), ३०१६३, ३३७४४-१, ३३७४५ (२) प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ३१५९५-१(+), ३३३४९(३) ३१५९३) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू (पाछिली रात्र शय्या), ३२९९२, ३०४४३-१(१) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलोय पडिकंत्त), ३२०३७ (+), ३४०१४(+$), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वेतांबर" संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, मूपू, नमो अरिहंताणं० करेमि ), ३०५३२-१ "" (२) प्रतिलेखनकालमान गाधा, संबद्ध, प्रा., गा. २२, पद्य, मृपू., (आसाढे मासे दुप्पया), ३२१८५ (+) ३३४८१ (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-विविधगच्छीय, संबद्ध, प्रा.मा.गु. सं., प+ग, भूपू (-), ३३०४६ (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (कर पडिकमणुं भावशु), ३०७४९-२, ३०३२४-१(०) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १३. वि. १८वी, पद्य, मूपू (गोयम पूछे श्रीमहावीर), ३१४८८ " (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वे. मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो ), ३३३८८(+), ३०३३१($), ३२०९४(३), ३२५६३(5) ३३१२४(३) ३३३३५(5) ३२१९६ (-) ४८१ (३) प्रत्याख्यानसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यनइ उदये बै घटिक), ३३५८२-१ (३) प्रत्याख्यानसूत्र- २२ आगारशब्दार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (अन्नत्थ पद सर्वत्र), ३४२५७-२(+) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू (दो चेव नम्मोकारे), ३३५८१-५०) (४) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पचखांण विधें करी), ३३५८१-५(+) (२) प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू.. (सुतत्थतत्वदिट्ठी), ३२४०५-२(०), ३२४३५-२(०), ३४२५८-२, ३४३२१ (३) प्रतिलेखनबोल गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम मुहपत्तीनी), ३४२५८-२ (३) प्रतिलेखनबोल गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली पडिलेहणानुं), ३२४३५-२(+) (२) प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, भूपू (उगए सुरे नमकारसिय), ३०६१७(+), ३०८९१०), ३११२१-१(+), ३२५२५-२(+), ३४२५७-१(+), ३०१०९-१, ३०२८४, ३०४४९, ३०४७३, ३०५८०-१, ३१६२९, ३१६८४, ३१७९३, ३२३३२, ३२५७८-१, ३२६७२, ३२७४०, ३३२०८-१, ३३४९३-९, ३३५८२-१, ३३७१७, ३२१६५-२, ३२०१३($), ३३७४३-१($) (३) प्रत्याख्यानसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (सूर्य उग्ये थके इतरे), ३०२८४ For Private And Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ (२) मुखवत्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ३२६९३-४(*), ३१९७२-२, ३१९८१-२, ३३५१६-९, ३४९६६-२ (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. दयाकुशल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिन वचन सदा अणुसरी), ३२१३५-२(#) (२) राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू (कुसुमिण दुसुमिण राई), ३२७५२-१(+) " (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो ), प्रतहीन. (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ३०२१५-१, ३०२१८, ३०७३२-१, ३०७५९, ३१७४३-९, ३२२२९, ३३५१८-१, ३३५२५-१, ३२७३५.२० ३३०७३(३) (२) लघुप्रतिक्रमणविधि प्राभातिक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली इरियावही पडीक), ३४१६५-३ (२) लघुप्रतिक्रमणविधि-संध्याकालीन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू. (प्रथम इरिबावही पडिक), ३४१६५-२ 1 (२) बंदिसूत्र संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू (वंदित्तु सव्वसिद्धे), ३०९१० (+), ३०२९३, ३०७३३, ३१८११, ३२०२९-२, ३३४६५, ३३५३६, ३३५५९, ३३८९७-१, ३४०५४, ३४२१५, ३४३८६ ३२२०१ (०) ३३३७७०) ३३४५७ (१६) (३) वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अधि. ५, ग्रं. ६६४४, वि. १४९६, गद्य, मूपू., (जयति सततोदयश्रीः), ३०९१०(+३) (३) सामायिकपारणसूत्र, हिस्सा, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (सामाइअ वय जुत्तो), ३१३९६-१ (३) इरियावही रथ यंत्र सहित, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गा. १, प+ग., मूपू., ( उवसम धरेण मणसा कोह), ३२६५१-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं. प+ग, भूपू, णमो अरिहंताणं णमो) प्रतहीन. " (३) पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), ३३३६४ (+), ३०१०९-२, ३४१६५-१($) (२) आवकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं), ३४१५७-१(३) 13 (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (वे. मू. पू.), संबद्ध, प्रा., मा.गु., पग, मृपू, नमो अरिहं० सव्वसाहून), ३०६८७-१ (०), ३३६५४ (३) पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मिअ), ३०७६४-२, ३१०५०-१, ३११५०-२($) (३) आवक देवसिकआलोयणासूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, गु., पद्य, मृपू, (सातलाख पृथ्वीकाय), ३१९७२-१, ३१९८१-१ (३) आवकपाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु, गद्य, भूपू (नाणंमि दंसणमि०), ३००३१-१(०), ३०२९००), ३२११५, ३३४२५ (#$), ३१६६३-१ (-) (२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, संबद्ध, मा.गु., पण., भूपू (पण संलेहणा पनरस), ३४२८९, ३४१५८-११४) (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीरं), ३२२०३(+), ३०५३२-४, ३०८८४, ३१७६३, ३३९९८-१, ३०७८७-३(#) - (३) संसारदावानल स्तुति- टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, मूपु. ( श्रीवीरं नमामि प्रणम), ३३९९८-१ ', (३) संसारदावानल स्तुति- अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, मूपू., (अहं वीरं नमामीति), ३२२०३ (+), ३०८८४ (३) संसारदावानल स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसाररूपीउ दावानलनो), ३१७६३ (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं. पण, मूपू, णमो अरिहंताणं० करेमि), ३११६२-२(७) (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. प+ग, भूपू (नमो अरिहंताणं नमो), ३३२२९(+), ३२६१४ (२) साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह वे. पू. पू. संबद्ध, प्रा. सं., प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं नमो), ३००३१-२(+), ३१५४७(+), ३३४९० (३) साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू. (मूलप्रतिक्रमणस्वादी), ३१५४७(१) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, म्पू. (इच्छामि खमासमणो पिय), ३०६९३-४, ३१८२३, ३२६३४, ३२७४३-२, " ३३४७७-१, ३३५५०-२, ३३६११-३, ३३६४३-२, ३४२६७, ३४३९३, ३४४४७, ३२६१८(६) ३३६४४(३) (४) क्षामणकसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, म्पू. (यथा राजानं मंगलपाठका), ३३६४३-२३३६४४) (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा. सू. २१, गद्य, मूप (करेमि भंते ० चत्तारि०) ३०११८-१(+), ३०९६३, ३१२४६, ३१४२७, ३१४८४, ३१४८५, ३१५४६, ३१५४८, ३२०२९-१, ३२२९८, ३२७२४-१, ३३३४२, ३३४४१, ३३६५२, ३३६५३. ३३६७३, ३३९१५, ३४१०५ ३४१४२, ३४२०५ ३४३११, ३४३१७, ३४४३९-१(३) For Private And Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (४) पगामसज्झायसूत्र - अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., वि. १३६४, गद्य म्पू. (नत्वा श्रीवीरजिनं), ३१५४६ (४) पगामसज्झायसूत्र अवचूरि, सं. गद्य, भूपू (सर्व नमस्कारपूर्व), ३३३४२ " (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ३४०४७(+), ३२५५९ (#$), ३३२४६ (६), ३४३१९($) (४) पाक्षिकसूत्र - टीका, सं., गद्य, मूपू., (तित्थंक० अर्हत्प्रवच), ३३४०५ ($) (३) प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पडिक्कमणा परियरणा), ३४३४० (४) प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, म्पू., (कहे छे जिम कोइक राजा), ३४३४० (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सयणासणन्नपाणे), ३२१७१-२, ३३६११-४, ३३४४५-३(-) (३) साधुपाक्षिक अतिचार वे.मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि० ), ३११०५-१(०) ३२५८०(+), ३३६४८(०) ३३६९८-१(+), ३१००६, ३१०४०, ३११०६, ३२०७१, ३३४७४-१, ३३५२९, ३३५४८-१, ३३५४९-१. ३३५६५, ३३६११-१, ३३९७८, ३४२७२, ३४३१०, ३२५१० (# ), ३०९८८ ($), ३१३२७($) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+गा., म्पू., (नमो अरिहंताणं नमो ), ३०४६८ (३) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (चउक्सायपडिमलुल्लूरण), ३०८०८-१ (४) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (भुवनत्रयस्वामी पार्श), ३०८०८-१ (२) सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम १० मन संबंधी), ३००४५-३(+), ३३२९३-३(+) (२) सामायिक ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (१० दोष मननां ते किम), ३०२०९-४ (२) सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू.. (पालद्धी अधिरासण विसि), ३२४२३-५, ३२७००-३ (३) सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. पालखीइं न बेसीई), ३२४२३-५ (२) सामायिक लेने की विधि- खरतरगच्छीय जिनपतिसूरि समाचारी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावक बे घडी पाछली), ३२९३७-१ इंद्रियपदविचार यंत्र, प्रा., मा.गु., को. भूपू., (--), ३०७८९-१ इंद्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., (सुच्चिअ सूरो सो), ३१५९८ (+), ३३६७१ इकवीसधोवणनाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., ( उसेइमं वा १ संसेइमं), ३१३९६-४ इरियावही कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (चउदस पय अडचत्ता तिगह), ३२६१३(+), ३१५४४, ३१७७७-१, ३२१६३, ३२२२८-२ (२) इरियावही कुलक- टीका, सं., गद्य, मूपू., (सप्तनरक पृथ्वी), ३१५४४ (२) इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चौदह नारकी ४८ तीर्यच), ३२६१३ (+), ३१७७७-१, ३२१६३ इष्टोपदेश, आ. देवनंदी, सं., श्लो. ५१, वि. ५वी, पद्य, दि., (यस्य स्वयं स्वभावाप), ३१०३४-१ ईर्यापथिकीभंग गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (चउदससय अडचत्ता तिसय), ३४०७१-२ (२) ईर्यापथिकी गाथा - टीका, सं., गद्य, मूपू., (पर्याप्तापर्याप्ता), ३४०७१-२ उकेशवंश वर्णन, सं., पद्य, मूपू., (ऊकेशवंशोत्तमकल्प), ३०७४७(+$) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६ ग्रं. २०००, प+ग, भूपू. (संजोगाविष्यमुक्कस्स) २०२०४००, ३३८७२(०३), २३६०६, ३३४०६ (5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (संजोगा० संयोगान्), ३३४०६ ($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (संयोग से प्रकारे), ३३८७२ (+४) (२) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ४ हिस्सा, प्रा., गा. १३, पद्य, भूपू (असंखयं जीविय मा पमाय), ३२५२५-१०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י: , ३१३१८, ३२०२४ (३) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ९ की अवचूरि, सं., गद्य, म्पू. (अनंतराध्ययने निर्लोभ), ३१३१८ 25 (२) महानिर्ग्रथीय अध्ययन - हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (सिद्धाणं मनो किच्चा), ३२३७० (२) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन २२ की १०वी गाथा", संबद्ध, प्रा., पद्य, मूप, (मत्तं च गंध हत्थे), ३०१०३-५ (३) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ४ का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंद्र नासे मिलितो), ३२५२५-१(+) (२) उत्तराध्ययन सूत्र - अध्ययन ९ हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न), ३०५७३-१, " ४८३ For Private And Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्तधरीजी), ३१६७६-४ उदायीनृप चरित्र, प्रा., गद्य, मूपू., (--), ३३८०५(+$) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ३०३५५-१(+), ३१६८६(+), ३३१८८($) (२) उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., ग्रं. ९५००, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (हेयोपादेयार्थोपदेश), ३०३५५-१(+) (२) उपदेशमाला शकुनविचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, भूपू., (उपदेशमालागाथायाः), ३१०४८ उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (उवएसरयणकोसं नासिअ), ३१२०५(+), ३२४३५-१(+), ३००६७-१, ३२१७२, ३२२९९-१, ३३८५६, ३३९५९, ३४०४२-१ (२) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर चउवीसमु), ३२१७२, ३४०४२-१ (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपदेशरूप रतन तेहनो), ३१२०५(+), ३२४३५-१(+), ३३९५९ उपदेशरत्नाकर, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा.,सं., अधि. ३ अंश १६, पद्य, मूपू., (जय सिरिवंछिअसुहए), ३४१४४ उपधानतपआदि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम द्वितीयोपध्यान), ३२३३६($) उपधानतप विधि, सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पंचमंगल महासुअक्खधे), ३२४८२(६) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (प्रथम शुभदिवसे पोषध), ३२६३२(+) उपधानमालारोपण विधि, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (शुभमुर्हते पूर्व), ३४०५९(+), ३४०८५-१ उपाधि प्रकरण, सं., गद्य, मूपू., (उपाधिस्तु साधना), ३३६९०(+) उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नामं नयरी), ३४०२० (६) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ३४०२०($) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं० ॐ), ३२०४३ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पास), ३०३१२-२, ३०३१७-२, ३०४९७-२, ३१९१५-२, ३२२८६-२, ३२४१८ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ लघुवृत्ति, आ. पूर्णचंद्राचार्य, सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., (नमस्कृत्य परब्रह्म), ३१६२० (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपसर्ग जे विघ्न तेहन), ३२४१८ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की प्रियंकरनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, प्रा.,सं., वि. १६वी, गद्य, मूपू., (वंशाब्जश्रीकरोहसो), ३०५७१(६) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भद्रबाह वराहमिहिर कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकई गांम बे भाई), ३२१५०-३ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडार गाथा, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (ॐ णट्ठट्ठमयठाणे), ३३७८५ (३) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडार गाथा की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम शुभ मास लिजे), ३३७८५ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (तुह दंसणेण सामिय), ३२२५०-३ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पासं०), ३२२८९-१, ३३२१७-२ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंच परमिष्ठनइ नमस्का), ३२२८९-१ ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., गा. ५०, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (जयजंतुकप्पपायव चंदाय), ३३७४०(+$), ३०११६, ३१४९४, ३३२०९, ३३३८७-१, ३४०४३, ३२५०५(६) (२) ऋषभपंचाशिका-टीका, ग. नेमिचंद्र, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा जिनेंद्रवीर), ३०११६ (२) ऋषभपंचाशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयजत्वित्यादि व्याख), ३१४२१(+), ३१४९४ (२) ऋषभपंचाशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे जगज्जंतुकल्पपादप), ३३७४०(+$) (२) ऋषभपंचाशिका-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (--), ३२५०५(६) (२) ऋषभपंचाशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जगजंतु कल्पपादप संबो), ३३२०९ ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), ३१६१३-१, ३१८४१, ३३४७३-५, ३३९०१, ३२२४२(#), ३२७०९(#$) For Private And Personal use only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८५ ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६३, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), ३३९६८ (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रां हिँह), ३२१७८-१ (२) ऋषिमंडल स्तोत्र पूजाविधि, संबद्ध, सं., ग्रं. ३८३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ३०५४३(+$) एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ३०११७(+$), ३१५६४(+), ३४०५५(+), ३१२२२-१, ३०९५५-२($) एकाक्षरनाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २१, पद्य, भूपू., (विश्वाभिधानकोशानि), ३२५१६-१ एकाक्षरनाममाला, सं., श्लो. १९, पद्य, जै., (अः कृष्णः आः स्वयंभू), ३०९३१-१(+) एकादशीतिथि चैत्यवंदन, सं., श्लो. ६, पद्य, दि., (अहो तिर्थस्य माहात्म), ३४१६९-३ एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., श्लो. २६, ई. ११वी, पद्य, दि., (एकीभावंगत इव मया), ३१९५५(+) औपदेशिकगाथा संग्रह, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जंजं समयं जीवो), ३१९५९-२ (२) औपदेशिकगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे जे समयने विषइ), ३१९५९-२ औपदेशिक हा संग्रह, मा.गु.,प्रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (काम वली सवही पुरहे), ३०४९३-२, ३४२८८-२ औपदेशिक व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (धर्मः कामगवी यदीय), ३२२४३ औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां काले), ३३३६३(+), ३२६५३, ३३७९०-१(-) (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, जै., वै., (अ० अक्रोधीपणु), ३३३६३(+) औपदेशिक श्लोकसंग्रह, प्रा.,मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (माछर्य मुच्छार्य), ३२६८० औपदेशिक श्लोक संग्रह, सं.,प्रा., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली पुष्कर), ३४२२५ औषधवैद्यक संग्रह, सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, वै., (--), ३३०३६-२(+), ३१०७१-२, ३२८१८-३, ३३१०७-२, ३३४५६-४, ३३८५९-३ औषध संग्रह *, सं., पद्य, ?, (--), ३२५९७-३(+#), ३१८५०-३ औषधादि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, (--), ३२९२८-४(-2) कथाप्रदीप, सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (निरंजनं नित्यमनंतरूप), ३२५७६-१ कथारत्नकोश, आ. देवभद्रसूरि, प्रा., वि. १२वी, गद्य, मूपू., (पडिबिंबियपणयजणा), ३२४२२($) कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (पश्चिम विदेहे गंधिला), ३१९००($) कथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानु नाम), ३१९३४(+), ३१०५९(#), ३०७७८($), ३२१५५($), ३२४८७($), ३३९९३($) कर्मग्रंथ (१ से६), आ. देवेंद्रसूरि; आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., अ. ६, गा. ३९७, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), प्रतहीन. (२) कर्मविपाक नव्यग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (दिनेशवद्ध्यानवरप्रता), ३०७९१(+$) कर्मप्रकृति-दिगंबरीय, मु. अभयचंद्र, सं., गद्य, दि., (प्रक्षीणावरणद्वैत), ३३७२१(+) कर्मप्रकृति बंधस्थिति, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (एगिदियाण बंधो आदि), ३११३३ (२) कर्मप्रकृति बंधस्थिति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सायरसत्तः एक सागरना), ३११३३ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६०, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ३४२६१(+s), ३११३४, ३३८४३() (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ , मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं वीर), ३३८४३() कलियुगाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, वै.?, (तुर्थ्यांरांतेपि), ३३३७३-२ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० समणे), ३२५६४(६), ३३७९३($) (२) कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, म्पू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ३२५६४($) (२) कल्पसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (अत्राध्ययने त्रयं), ३४३८९(5) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, भूपू., (नमो अरिहताणं), ३२७६७(६), ३२९१३($) (२) कल्पसूत्र-मांडणी, प्रा.,मा.गु., गद्य, पू., (ए नाणं पंचविहं पन्नत), ३४३६०, ३४३६७ (२) कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (बलदेव बलिदेव वासुदेव), ३४०२६-१ For Private And Personal use only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८६ (२) कल्पसूत्र अपूर्ण व छूटक पाना *, संबद्ध, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३३७७८-२($) (२) कल्पसूत्र - पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हंत भगवंत उत्पन्न), ३४३३१($) (२) कल्पसूत्र - पीठिका, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ३२६०६ कल्याण पूजन, सं., गद्य, दि., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशा), ३३४७५ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, म्पू, (कल्याणमंदिरमुदार), ३००९५ (१०), ३१७३०-१(+), ३३१६७ (+), ३३४८४(+), ३३४९२(+), ३४१३६(+), ३४१४९(+०३), ३४४४२(+), ३१४०४, ३१७०३, ३१८०१-१, ३१८४८, ३१९०७, ३२२९१, ३३२१७-१, ३३४७९, ३४३७२, ३२१६८(#), ३३१३६(#), ३०५६२($), ३०७१२(३), ३१३५६-१(३), ३४०२८(३), ३४१५१(३), ३४२९३(३) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६९५, गद्य, भूपू (पार्श्वनाथं जिनं), ३०७१२(३) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिनं), ३४१४९(+#$) 11 (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू (अहं श्रीसिद्धसेन), ३३४८४(क) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (पार्श्वनाथजीरा चरण), ३४१५१(३) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं. गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मूपू. दि., (परमज्योति परमातमा). ३०७२६ (+), ३१६२९, ३२९८९, ३३२९४-१ (०६) कल्याणसागर स्तुति, मु. अजबसागर, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीकल्याण पयोधिराज), ३३०५५-३ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा. गा. २४, पद्य, भूपू (जह तुहदंसणरहिओ कावठि ), ३१६०८ (+), ३३५८८-२(५), ३३९५८(+), ३९४३६, ३२३७९-२, ३२४५३, ३३४५३, ३३६८७, ३३७४९, ३३७५५, ३४३०१, ३२६२०(5) (२) कायस्थिति प्रकरण- टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिनं), ३२४५३, ३३६८७, ३२६२० ($) (२) कायस्थिति प्रकरण-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (सामान्यतो जीवत्व), ३१४३६, ३३७४९ (२) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ में मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे दर्शन), ३३५८८-२(+), ३३९५८(+), ३३७५५ कारकाष्टक, मु. तेजसिंह, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नो दानं कृपणे ददाति), ३४२४० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालमांडलादियोग विधि, प्रा., मा.गु, गद्य, भूपू (--), ३२५७७ कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. ७४, पद्य, भूपू (वेविंदणयं विजानंद), ३०५५३ (+), ३४०४८(+) ३२४९० ३३९६२ (४) (२) कालसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ३०५५३(+$), ३३९६२ ($) कालिकाचार्य कथा, आ. महेश्वरसूरि सं. लो. ५२, वि. १३वी, पद्य, मृपू. (पंचम्यां विदितं पर्व), ३३७३७ (+) कालिकाचार्य कथा " सं. गद्य म्पू (जंबूद्वीपे भरत), ३०४१४(०३) कुमुदचंद्र देवसूरिवाद - दिगंबरमतखंडन, प्रा., सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (हंहोश्वेतपटाः किमेष), ३३३५७-१ कोटीशिला विवरण, प्रा. मा.गु., गद्य थे. (कोडसिला १ जोयणनी), ३२६४५-३ "9 " क्षमापना श्लोक संग्रह, प्रा., गा. ८४, पद्य, मूपू., (संसारम्मि अणते परभव), ३१५२६-१ क्षुल्लकभव प्रकरण, ग. धर्मशेखर, प्रा., गा. २५, पद्य, भूपू (वंदित्ता सिरिवीरं), ३१४५५(०) (२) क्षुल्लकभव प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. धर्मशेखर, सं., गद्य, मूपू., ( वंदित्ता० सुगमा नवरं), ३१४५५ (+) क्षेत्रपाल छंद, सं., श्लो. ९, पद्य, वै. (यं यं यं यक्षरूप), ३३९९४-१ " खरतरगच्छीय गणव्यवस्था विचार, सं., गद्य, भूपू (चंद्रगच्छे वज्रशाखा), ३१३४६-२ गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा. गा. १३७, पद्य, भूपू (नमिऊण महावीरं), प्रतहीन. " गणधरदेव स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (तं जयउ जए तित्थं), ३२३२२-१ गणधर पर्याय, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पन्नासा गिहवासे तीसा), ३३८१६-१ गणपति मंत्र, सं., गद्य, वै., (ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं) ३२९९७-३(+) (२) गच्छाचार प्रकीर्णक आहारग्रहणविधि टीकांश, ग. विजयविमल, सं., गद्य, मृपू. (पिंडश्चतुर्विधाहार), ३२१७९ गच्छाधीश को पत्रलेखन विधि, सं., श्लो. ५७, पद्य, म्पू. (स्वस्तिश्रीरभवमरालदव), ३१०९१ गजभंजन कथा - दानविषये, सं., गद्य, भूपू (दानेन लभते सौख्यं), ३२२८३ (+) + For Private And Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ गणेशअष्टक, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (गणपति परिवारं चारु), ३२०७३-३ गणेशद्वादशनाम स्तोत्र, सं., श्रो, ३, पद्य, वै., (सुमुखश्चैक दंतस्य), ३४९६७-५ गतप्रत्यागत श्लोक - क्याराबंध, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (विदितो यशसासार नमाया), ३०५४२-२ गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, श्वे., (--), ३१३७७-५ (+) गायत्री मंत्र, सं., श्लो. १, पद्य, वै. (ॐ भूर्भुवः स्वः), ३२२८७-२ "" गुणमालिनीनाम अध्यात्मोपनिषत्, मु, रक्तचंद्र शिष्य, प्रा. सं., प+ग, मूपू (गुणरत्नाकरं वंदे), ३०९९४(+) (२) गुणमालिनीनाम अध्यात्मोपनिषत् लघुविवरण, सं., गद्य, मूपू (ॐनमो विश्वरूपाय), ३०९९४(+) 1 " गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोहहत), ३०८८९(+$), ३२१९४-१, ३३३५०-१, ३३८३५, ३१०५८ ($) गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूपू., (गुरुवंदनणमह तिविह), ३०८२८-१ गोरी आलोअण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (कालेणय गोअरिआ), ३३४४५-४(-) गुणावली कथा पुण्योपरि, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (अस्मिन् जंबूद्वीपे), ३०५०० (+) गुरुगुणषट्त्रिंशत्पदित्रंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., षट् ३६ गा. ४०, पद्य, मूपू. ( वीरस्स पए पणमिय सिरि), ३३७३९ (७) (२) गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक- स्वोपज्ञ दीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., ग्रं. १३००, वि. १५वी, गद्य, मूपू., (श्रीमद पदं जीयात), ३३७३९ ($) गुरुगुण स्तुति, सं., श्रो, १२ पद्य, मूपू. (श्रीमच्छ्रीक्षितिपाक), ३२००९-१ " गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहाकम्मं १ उदेसिय), ३००८३-२ (+), ३०६२० (+), ३२२९० (+) (२) आधाकर्मीगोचरी दोष-टवार्थ, मा.गु. गद्य, भूपू (आ० साधु के वास्ते छ), ३०६२० (+) " (२) गोचरी दोष - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आ० आधाकरमी ते कहीइ), ३२२९० (+) (२) गोधरी दोष-टवार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (गृहस्थ सचीत फेडी), ३००८३-२(+) गोचरीदोष भांगाविचार, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (संसद्वेय रहत्थो मत्त), ३२०१९ गोवरी विधि, प्रा. मा. गु, गद्य, मूपू, (हवें छ घडीनें आसिरें), ३१५९९-२ गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा. कां. २ अधिकार ३१, गा. १७०५, पद्य, दि. (सिद्धं सुद्धं पणमिय), प्रतहीन. " , (२) मिथ्यादृष्टि गुणस्थानक कालमान गाथा - पंचसंग्रहगत हिस्सा, प्रा. गा. ६, पद्य, मूपू., (होइ अणाइ अणंतो अणाइ), ३१२०४ (३) मिथ्यादृष्टि गुणस्थानक कालमान गाथा- पंचसंग्रहगत टीका, सं., गद्य, मूपू (संप्रत्येकस्मिन् जीव), ३१२०४ गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू.. (लुद्धा नरा अच्छपरा), ३००९४(०) ३०११९(+), ३२५१२ (०) ३२५६६-१(०), ३३२१५ (+), 13 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) गौतम कुलक-बालावबोध *, मा.गु, गद्य म्पू, (लुद्धा० लोभी नरा), ३१६५८ , ३४२०१-१(+$), ३१५२५-१, ३१५२७, ३१६५६, ३१६५७, ३१६५८, ३२२२६, ३२६२५, ३३२६६-१, ३३४६४, ३४२१९, ३४३२८, ३४४२४-१ ३०७७६(४) ३४२६०(१) ३४२७७(5) ४८७ (२) गौतम कुलक- टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (लुब्धा लोभिष्ठा), ३४३२८ (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (लुभिया मनुष्य अर्थ), ३२२२६, ३०७७६(#) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ३०११९ (+), ३२५१२ (+), ३२५६६-१(+), ३३२१५(+), ३४२०१-१(+$), ३१५२५-१, ३१५२७, ३१६५६, ३१६५७, ३३२६६-१, ३३४६४, ३४४२४-१ (२) गौतम कुलक-टवार्थ+कथासंकेत, मा.गु., गद्य, मूपू (श्रीमज्जिनं प्रणम्य), ३००९४००) गौतमपृच्छा, प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाहं), ३०४२४-२ (+$), ३१३३०, ३१५७५-१($), ३३२७४($), ३३९१४ (5) (२) गौतमपृच्छा - बालावबोध, मु. वृद्धिचंद्र, मा.गु, गद्य, मूपू (नत्वा वीरजिनं बालाव), ३०७६७(६) " (२) गौतमपृच्छा - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ३१३३० (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ३३९१४($) गौतमस्वामी स्तव, क. धरणीधर, सं., श्लो. १४, पद्य, भूपू (जय परम कृपालो २ जय), ३२०२६ " For Private And Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ गौतमस्वामी स्तव, प्रा.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (सर्वारिष्टप्रणाशाय), ३३७६९-२ गौतमस्वामी स्तवन, उपा. जयविजय वाचक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐश्रीपार्श्वजिनं देव), ३२३४६-१ गौतमस्वामी स्तवन, आ. वज्रस्वामि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (स्वर्णाष्टाग्रसहस्र), ३२१४६(+), ३२२२५-३ गौतमस्वामी स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूतिमधिपं), ३३८१३-२ गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिजगन्नेतुर), ३११९२-२, ३१७१६-१(#) गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), ३०५७८-२, ३२२३२, ३२४०७-३, ३२८५४-१, ____३४३५५-१ (२) गौतमाष्टक-टीका, सं., गद्य, मपू., (सरस्वत्याः प्रसादेन), ३१४५४ गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, मूपू., (श्रीगौतमोगणधरो रुचिर), ३३९९१-५($) ग्रहशांति विधि, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (नत्वा जिनं महावीर), ३१४११-१ ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ३२०८२-२(+), ३०३७३, ३१७०५-१, ३२७४२-१, ३३२११, ३३५१८-२, ३४३३४-१, ३४३७८-४ । ग्रहस्थापन व विसर्जनविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीखंडेन स्थाले), ३१४११-३ घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ३३४७३-६, ३३९९१-२, ३३९९६-१(६) घटखर्पर काव्य, क. घटकर्पर, सं., श्लो. २१, पद्य, वै., (निचितं खमुपेत्य नीरद), ३१११८-३(+), ३११४८ (२) घटखर्पर काव्य-टीका, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (प्रोषितप्रमदयेदमुच्य), ३११४८ (२) घटखप्पर काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (अब्दैरवच्छन्नं आगत्य), ३१११८-३(+) चंद्रदूत काव्य, क. जंबू, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (यदतिसितशराग्रग्रस्त), ३१११८-४(+) (२) चंद्रदूत काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे लोकाः स्मरतानंत), ३१११८-४(+) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ चंद्रप्रभ प्रभाधी), ३११९२-३, ३४०७९-२ चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (चंद्रप्रभविभुं भूरि), ३११२०-३(+) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र-सबीजमंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ३०५०१(+), ३२१४८(-) चंद्रसूरि गुरुगुण स्तुति, मु. ज्ञानचंद्र, सं., श्लो. ९, वि. १९४३, पद्य, मूपू., (सुगुरु चरणं सेवेशश्च), ३०८१७-२ चंद्रसूर्यमंडलविचार प्रकरण, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, पू., (इह दीवे दुन्नि रवी), ३३३६८-१(+) चक्रवर्ती विचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (उसभा भरहो अजीए सगर), ३१५०४-१(#) (२) चक्रवर्ति विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिनाथनें वारे भरत), ३१५०४-१(#) चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ३३५४५, ३२१०६-१(-) चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सावज जोग विरई), ३११५७(+#), ३१२४५(+), ३१३१६(+), ३३५८८-१(+$), ३०१२४, ३१०७१-१,३१३१५, ३१३७९, ३२१९५, ३२६६७, ३३२८२, ३३३२४-१, ३३७१६, ३४२९५, ३४१६१-१(#), ३०२०७-१(६), ३१४०७($), ३३१७४(-) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (सावद्य योग विरति ते), ३१४०७($) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), ३३५८८-१(+$) चतुःषष्टी इंद्रस्थापना पूजन, सं., प+ग., मूपू., (ये तीर्थेस्वर जन्मपर), ३४२४४ चतुर्विंशतिजिन कल्याणक टिप्पनिका, प्रा., गद्य, मूपू., (--), ३२५५८-३ । चतुर्विंशतिजिन पूर्वभवकथन स्तव, ग. संघविजय, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पार्श्व), ३३२६४(#) चतुर्विंशतिजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (नाभेय शोचिर्निचयैन), ३४२१०-१ चतुर्विंशतिजिन स्तवन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (--), ३३९३६-१(६) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मु. आनंदविजय शिष्य, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (श्रेयो लताविपिनपल्लव), ३१३४८-१ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, वा. उदयविजय, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (ऐंद्र शरासन माला), ३२१७४ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. २८, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (श्रीमानाद्यजिन श्रिय), ३०९९५ For Private And Personal use only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ चतुर्विंशतिजिन स्तुति- यमकमय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २८, पद्य, भूपू (तत्त्वानि तत्त्वानि), ३४२१०-२ (४) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, ग. संघविजय, सं., श्लो. २९, पद्य, भूपू (वृषभलांछनलांछित), ३०९७०-४(+) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, श्वे. (वंदे देवाधिदेवं तं), ३१९१५-३(४) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र - चित्रबंधकाव्य, मु. सत्यसागर, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (दिवादिवादेवविदेवदेवं), ३३६४०(+) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र - पंचषष्ठियंत्रगर्भित, मु. नेतृसिंह कवि, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू, (वंदे धर्मजिनं सदा), ३३४३६-१(+), ३४२५५-२ चतुर्विशतिजिन स्तव- चत्तारिअट्ठदसदोय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (चत्तारिअट्ठदसदोय), ३२७४५-१, ३२८६० चरणसत्तरीकरणसत्तरी गाधा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपु. (एवय समणधम्म १० संजम), ३३२७२-२, ३३३२८-३, ३३९७७-३, ३३४३७-३(१) " (२) चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलुं बोल वय पंचमहा), ३३२७२-२ चरणसित्तरी करणसित्तरी विचार, प्रा. सं., गद्य, भूपू (वय५ समणधम्म१० संजम१७), ३२५५७-१ "" " चर्चा वाद, सं., सूत्र. ५२, गद्य, श्वे. (अवसऽग्रेमंडली स्रो), ३२६५७ " चर्पटशतक, सं., श्लो. १००, पद्य, मूपू., (श्रीसर्व्वज्ञं नत्वा), ३३९१३(+) चातुर्मासिक व्याख्यान, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, सं., पद्य, मूपू., (चतुर्थव्रतधारक), ३३६२६(+) चारित्र विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., ( प्रथम सचित्त वस्तु), ३१३६२ चारित्रसागर स्तुति, मु. अजबसागर सं., श्लो. १, पद्य, भूपू चिंतामणि कल्पे जाप विचार, प्रा. सं., श्रो. १०, पद्य, भूपू चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ३०९३८, ३२६६६(s), ३३२४१ ($) (२) चैत्यवंदनभाष्य-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हुं वांदिवा योग्य), ३२६६६ ($) चैत्यवंदनविधि कुलक, प्रा., गा. ३५, पद्य, मूपू. (तिन्नि निसीही तिन्नि), ३३२०६-२(५) चैत्यवंदनसूत्र विवरण, प्रा., मा.गु., सं., को., वे., (--), ३४०६४-३(+) छंद कोश, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. गा. २४, पद्य, भूपू (सामन्त्रेणं वारस अढारस), ३३७०३ (+) 1 (जन्यं स्वस्ति श्रिया), ३१३५७-५(१) (अंगुष्टजापो मोक्षाय), ३३८१८-२ छंदोनुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, गद्य, मूपू., (वाचं ध्यात्वार्हतीं), प्रतहीन. (२) छंदोनुशासन- अवचूर्णि सं., गद्य, म्पू (वाचं० सर्वादि), ३१११९(३) ', जंकिंचि सूत्र, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जं किंचि नाम तित्थ), ३२०८७-३(-#) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष, ७ नं. ४१४६, गद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं० तेणं), प्रतहीन, " . (२) जयतिहुअण स्तोत्र - टीका, सं. ग्रं. २५०, गद्य, मूपू. (अत्रायं वृद्धसंप्रदा), ३४०७१-१ " (२) जयतिहुअण स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (जयवंतो वर्ति) ३४०६८/-) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे- भरत चरित्र, प्रा., वक्ष. ३, सू. ६७७१, गद्य, मूपू., (तेणं से भरहे राया), ३४३२९-१(+) (३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - हिस्सा भरत चरित्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहवार पछी ते भरतराज), ३४३२९-१(+) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जयतिहुयणवर कप्परुक्ख), ३०९६२-२(+), ३३४३४(+६), ३४४००-१(+), ३१५२९, ३१८८७-१, ३४०७१-१, ३४१०४, ३४२०७, ३२१५६ (३), ३४२३०(३) ३४०६८(४) जलयात्रा विधि संग्रह, मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (--), ३२०५५ जातक पद्धति, सं., पद्य, वे., (प्रणम्य श्रीमदर्हतं), ३२७८६ ($) जापमंत्र, सं., प+ग, जे. वै., बी. (ऍपरेभ्यो गुरुपदिभ), ३१६४२-१ " " " (२) जयतिहुअण स्तोत्र - भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (परमेसर सिरिपासनाह), ३२२५०-२ जयपताकायंत्र विधि, सं., श्लो. ९, पद्य, जै. ?, (ॐकारस्यमध्येतु), ३३९३४-२ י' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनकुशलसूरि अष्टक, आ. जिनपद्मसूरि, सं., श्लो. ९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (सुखं सर्वा सम्यद्वसत), ३१६५०-२(+) (२) जिनकुशलसूरि अष्टक-वृत्ति, मु, धरणीधर कवि, सं., गद्य, मूपु. ( श्रीसर्वज्ञं गुरु), ३१६५०-१ (+) जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू (श्रीधरालक्ष्मीसीभाग), ३३०४५-२(६) For Private And Personal Use Only ४८९ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ जिनकुशलसूरि अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (पद्म कल्याण विद्या), ३११६६-२ जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मु. ज्ञानसार, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सकलगुणगरिष्टान्), ३१०१९-१ जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (सुरनदी जलनिर्मल धारय), ३११६६-१ जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. विनयलाभ, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (भूयिष्टायस्यकीर्ति), ३३२३५-१ जिनगुण स्तोत्र, मा.गु.,सं., गा. ३१, पद्य, मूपू., (चिदानंदरूपं सुरूपं), ३३८०९($) जिनचंद्रसूरि विनती, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु.,सं., वि. १८५७, गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपार्श्व), ३०४६१(+) जिनचंद्रसूरि स्तोत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (यतिनां प्रभुः पृथु), ३३३०५-१ जिनचैत्यवंदना स्तुति, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (देवोनेकभवार्जितो जित), ३१६०६-२ जिनदत्तसूरि अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सुरकिन्नर वंदित), ३११६६-३ जिनदत्तसूरिआदिगुरुप्रदत्त आम्नायसंग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ३२१७८-२ जिनदत्तसूरि गुर्वाष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (नमाम्यहं श्रीजिनदत्त), ३३०४५-१ जिनदर्शनपूजा फल, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यास्याम्यापतन), ३२३०४-२ जिननमस्कार स्तोत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (नमस्ते विश्वनाथाय), ३४०३५ जिननमस्काराष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (नाभेयाय नमस्तस्मै), ३१०५०-२ जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ३१७३७, ३२२८८, ३३९१७, ३४१११ जिनपूजा अधिकार, सं., गद्य, मूपू., (पूजाहिद्विविधाश्राद), ३२३०४-१ जिनपूजा अष्टक, मु. सुजयसौभाग्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (अमल निर्मल केवल), ३२२२३-१ जिनबिंब गण नक्षत्र योनि आदि विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (इह देवस्य तबिंबकार), ३२२३६ (६), ३२४११(६) जिनबिंब-जिनप्रासाद स्थापना विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (नमस्कारत्रयेण), ३३४६९-१ जिनबिंबप्रवेश विधि, सं., गद्य, मूपू., (सुमुहूंते गृहसन्मुख), ३०२२०-१(+) जिनबिंबस्थापनादि विधिसंग्रह, सं., प+ग., मपू., (नाथ त्रिलोक महताय), ३४१५५-४($) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (खेलं १ केली २ कलि ३), ३११०४(+), ३३३८२-१(+), ३४४०३-२(+), ३१७७२, ३२६७५-८, ३४२२६-१(2) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू, (श्लेष्मा१ क्रीडार), ३४४०३-२(+) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मां १ क्रीडा), ३११०४(+) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मा क्रीडा हासा), ३३३८२-१(+), ३१७७२ (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-विवरण, सं., गद्य, मूपू., (कला धनुरेवेदादिका४), ३४२२६-१(#) जिनविज्ञप्तिका, सं., पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रियं यत्पद), ३०५८६(६) जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., परि. ४, श्लो. १००, वि. १००१-१०२५, पद्य, मूपू., (श्रीमद्भिः स्वैर्महो), ३१४९९ जिनशासन की प्राचीनता विषयक स्मृति-पुराण आदि के साक्षीपाठ, सं., गद्य, श्वे., (तथाचेदं श्रीजिनशासन), ३२००७ जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेन, सं., श्लो. १६६, पद्य, दि., (प्रसिद्धाष्टसहस्रेद), ३१५७६ जिन स्तव-अष्टप्रातिहार्याष्टकगर्भित, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (सुवर्ण सिंहासन), ३३२२६-१ जिन स्तुति-प्रार्थना संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (अद्या भवत् सकलता नयन), ३३६६८-२ जिनस्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ३१९४३-१, ३२०६५, ३३४३३-३, ३४२७५-६, ३३२८०-१(-१) जिनस्तुत्यादि संग्रह, मा.गु.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतो भगवंत), ३१८२८-२, ३२८०७-२, ३३३१८-१, ३४३६५-२, ३१०५५-२(#) जिनेश्वर स्तुति-विशेषणमय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शौडीर्यवान् गज इव), ३३३७१-२ जीवद्रव्यादि लक्षण, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., (तत्त्वातत्त्व स्वरुप), ३२६१६-२($) जीवपर्याप्ति विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (जीव गइंदियकाए जोगे), ३०५९३ For Private And Personal use only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९१ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, पू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ३०९४७(+$), ३२५१४(+), ३३८८८(+), ३३९०९(+), ३४१७३(+), ३४४३८(+), ३००९९, ३०२०७-२, ३१०२६, ३२२२७, ३२३८३, ३२३८६, ३२३८९-१, ३३४६६,३३८८४,३३९४४, ३४२६३ (२) जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं किंचिदपि जीव), ३१०२६ (२) जीवविचार प्रकरण-टीका, सं., गद्य, मूपू., (अबुधबोधार्थं मूर्खजन), ३२३८६ (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विष), ३२५१४(+), ३३९०९(+), ३४१७३(+) जीवस्थापनाविचार प्रकरण, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जीवो अणाइनिहणो), ३१०९४-२ जैन कथाकोश, सं., गद्य, मूपू., (यांति दृष्टं दुरितान), ३२५३२-२ जैन गाथा, प्रा., पद्य, श्वे., (--), ३२२४७-७(+), ३२३९५-२(+), ३२४६९-२(+), ३३२९३-२(+), ३३३३४-२(+), ३३७१४-२(+), ३१०१७, ३१०८५-२, ३१०९०-२, ३१२११-२, ३२२४५-२, ३२२९९-२, ३२५३२-३, ३३३२७, ३३४८८-१, ३३८१८-३, ३४०२६-२, ३४०४९, ३४४१८-१, ३१८००-१(६), ३२५०१(६) जैन गाथा, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (--), ३२२४६-३, ३२३०३-३, ३३८१६-२, ३४३५९-१(६) (२) जैन गाथा - टीका, सं., गद्य, श्वे., (--), ३२४६९-२(+), ३२५०१(६) (२) जैन गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पचास आंगुल लांबो), ३३३२७ (२) जैन गाथा -टबार्थ*, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३२६४२(+) जैन गाथासंग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ३०११८-६(+), ३०८४२-२(+), ३२०४६-१(+$), ३२४१४-१(+), ३४२०१-२(+), ३४३४६-२(+), ३०४२२-२, ३०५१८-२, ३११०९-१,३११६८-२, ३१९२५-२, ३२००५, ३२३५१, ३२५४९, ३२७२५-३, ३२७३८-५, ३२८६९, ३३४४२, ३३९६१, ३४३०३-३, ३३०३५-२($) (२) जैन गाथासंग्रह वृत्ति, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (--), ३२४१४-१(+), ३३९६१ (२) जैन गाथासंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३२०४६-१(+$), ३४३४६-२(+), ३२००५, ३३४४२ जैनदुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (--), ३३४९६-२(+), ३०६५४-२, ३२४८८, ३२६६४, ३२८८३-२, ३२९३५-२(5) जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), ३१८८४($) जैन श्लोक, सं., पद्य, मूपू., (--), ३०८६६(+), ३१२७५-३(+), ३३४६३-४(+), ३०३८७-४, ३२२४८-१, ३३६८६-२, ३४२००-२, ३४४१२, ३४४२४-२, ३४४२८-४ (२) जैन श्लोक की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ३०८६६(+) (२) जैन श्लोक का बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (तत्त्वानि नवतत्त्व), ३२२४८-१ (२) जैन श्लोक काटबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३४४२४-२ जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), ३१८२२-४(+), ३२२४४(+$), ३२२४७-५(+), ३२४९४(+), ३२८०४-१(+), ३२९५४-२(+), ३३३८२-२(+), ३०३८८, ३१०९०-३, ३१२२२-२, ३१२५२-२, ३१३०१-५, ३१३८४, ३१८९७, ३१९३२-२, ३२२४८-२, ३२४३०-२, ३२५१९-१, ३२५७०-४, ३२६७४-३, ३२६८८-२, ३२७००-२, ३२७४५-२, ३२८०५, ३२९६०, ३२९६७-२, ३३३४७-२, ३३४६९-२, ३३७४४-३, ३३८१९-२, ३३८२८-२, ३३४०७-२(#), ३०९२९-१(६), ३२५३१(5) (२) जैन सामान्यकृति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), ३२५३१(६) (२) जैन सामान्यकृति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३२५१९-१ जैनेतर सामान्य कृति, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (--), ३२३९२-२ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चंपाए), ३३८१९-१(६) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., ग्रं. ८५००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ३३८१९-१(६) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा चतुर्थ कुर्मअध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (जइणं भंते समणेणं भग), प्रतहीन. (३) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा चतुर्थ कुर्मअध्ययन का ज्ञातोपनय, संबद्ध, प्रा., पद्य, मूपू., (उखित्तणाए १ संघाडे), ३१५५०(+) (४) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा चतुर्थ कुर्मअध्ययन का ज्ञातोपनय की टीका, सं., गद्य, मूपू., (उक्षिप्तं उखिता), ३१५५०(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., प्रश्न. १००, गद्य, मूपू., (ज्ञाताधर्मकथा साढि), ३२७०२ For Private And Personal use only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ ज्ञानक्रिया संवाद, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्भिः कानि कानि), ३०७२४(+), ३४१९० ज्ञानचतुर्विंशिका, उपा. नरचंद्र, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (श्रीवीराय जिनेशाय), ३०८५२ (२) ज्ञानचतुर्विंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (एलैर्मषादिक्रांतिदिन), ३०८५२ ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (तिहां प्रथम खमा इरिय), ३३४४० ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू, (श्रीशैवेयं यादवविशाल), ३४०२४-२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतक सुप्रपंच), ३३८१३-१४, ३४३२७-२, ३४३३८-४, ३२००६-३($), ३२९१७-२(-) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शैवेयः शंखकेतुः कलित), ३०२३८-७(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), ३३३६०(+), ३०५३२-३, ३०८२४-१, ३२११७-४, ३२३११-१, ३३४००-१, ३३७४१-३, ३४४१६-२, ३२४१५-३(६) (२) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टीका, ग. कनककुशल, सं., वि. १६५२, गद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचमीसत्तप), ३३३६०(+) ज्योतिष, मा.गु.,सं., प+ग., (--), ३२४१४-२(+), ३०६०४-२, ३०६११-१, ३१८१५-२, ३१८४३-२, ३१९०९-२, ३१९३९-३, ३३०९९-२, ३३१३२-२, ३३१५१-२, ३३१९१-३, ३३३५०-२, ३३४९३-२, ३३८६२-३, ३३३०३-५(#), ३१८८६-२($), ३२४७३-१(६), ३३७६०-२($) ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, (ज्येष्टार्क पश्चिमो), ३३०३५-१, ३३१६४-१, ३४०९०-२, ३३०४१-१(#) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), ३२५३८(+६), ३४२२०(+$), ३३११७-२($) (२) ज्योतिषसार-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ३२५३८(+$) ज्वालामुखी स्तोत्र, मु. वर्द्धमानसागर, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ज्वालामुखी नाम धरा), ३३५५८-१ तत्त्व विचार श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (तत्त्वानि७ व्रत१२), ३४१७८(+), ३४३४८-१(+), ३००३४-१, ३४१४६(#) (२) तत्त्व विचार श्लोकसंग्रह-अवचूरि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (तत्त्वानि नवतत्त्व), ३००३४-१ (२) तत्त्वव्रतधर्मादिभेद श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३४१४६(#) (२) तत्त्वव्रतधर्मादिभेद श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव तत्त्व १ अजीव), ३४१७८(+), ३४३४८-१(+) तत्त्वसार, आ. देवसेन, प्रा., पर्व. ६, गा. ७४, पद्य, दि., (झाणग्गिदढकम्मे), ३०१०१ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, गद्य, मूपू., दि., (सम्यग्दर्शनशुद्ध), ३१४३७(+) तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ३११४१ तपपारणा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरीयावहि), ३०१०९-४ तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ), ३०२९४(+), ३४४४०(+), ३१४१८, ३२०६८-२, ३२४२४, ३३५११-२, ३३७३४-१, ३३८३२, ३४११४, ३४३७८-३, ३३९३५(#) (२) तिजयपहत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (कृत्वा चतुर्णा संपूर), ३३५०७ (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., पद्य, मूपू., (तीन जगत्रन प्रभुताना), ३३५११-२, ३४११४ तिथिपक्ष विचार, प्रा.,मा.गु., गा. १५, प+ग., मूपू., (नमिऊण सयल जिणवर), ३१९९७ तीर्थंकरनामकर्मबंधक नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (समणस्सणं भगवउ महावीर), ३४३२९-२(+) (२) तीर्थंकरनामकर्मबंधक नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रमण भगवंत), ३४३२९-२(+) तीर्थंकरनामादि विचार संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (सिद्धत्थ१ पुन्नघोसं२), ३२१६१ तीर्थमाला स्तवन, सं., श्लो. २३, पद्य, पू., (पंचानुत्तरसरणाग्रैवे), ३२२२५-१ तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., गा. १११, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (अरिहंत भगवंत), ३०९६२-१(+) तीर्थयात्रा विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, मूपू., (सोयअहिणवसूरि तित्थजत), ३०१९९ तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या देवलोके), ३०९७०-२(+), ३२४५२-१(+#), ३१०८२-२, ३३६३५, ३३८७१, ३२१४४-४(६) तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक, प्रा., गा. १२३३, ग्रं. १५६५, पद्य, मूपू., (जयइ ससिपायनिम्मलतिहु), ३२३७७($) For Private And Personal use only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९३ तेजसारकुमार कथा, सं., गद्य, श्वे., (सुकुलजन्म विभूतिरनेक), ३२५२६ त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै., (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), ३१६४२-२ त्रिपुरासुंदरी स्तुति, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (कल्याणवृष्टिभिरिवा), ३१६४२-३ त्रिशलामाता झूरj, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (इयाणिं तो एयई एमाहर), ३०१३१(+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०+परिशिष्ट, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), ३४३४५ (२) सकलाहत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ३०४१९-१(+), ३१००१, ३११९४, ३११९५, ३११९६, ३२१७३, ३३२०१, ३३५५०-१, ३३८६८, ३३९८१-२, ३४१९७, ३४२८६, ३१०५५-१(#), ३१००२(६), ३१००३(5), ३१५४५(5), ३३३४०(-), ३४१२३(२) (३) सकलार्हत स्तोत्र-नमस्कार अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं आर्हन्यं प्रणिद), ३१५४५(६) त्रैलोक्यशाश्वत जिनप्रतिमा स्तवन, आ. तरुणप्रभसूरि, सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभवर्द्धमानक), ३२६५० दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउंचउवीस जिणे), ३०९८५(+), ३१९९२(+), ३२३८८(+), ३२३९५-१(+), ३३२४५-१(+), ३३४९९-२(+), ३४००५-१(+), ३०१८५, ३०४६४, ३०८८३, ३१३०८, ३१५०६-१, ३२३८७-१, ३३५२७, ३३६५६, ३३७६८, ३३७८३, ३३९३९, ३४०७०, ३४३४९, ३०१२७(), ३२५०८(६) (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयं महिमामयं), ३२३८८(+), ३०१८५, ३१६४७, ३२२८४, ३०१२७(६) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध, मु. अभयधर्म, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथं नमस्कृत्), ३२५०८($) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी चउवीस), ३३४९९-२(+$), ३४००५-१(+), ३२३८७-१, ३४३४९ दक्षिणावर्तशंख विधि, सं., श्लो. ५, प+ग., वै., (यस्य सद्मनि तिष्टति), ३०८००-२ दशधासूत्र विवरण, मु. नयसुंदर, सं., गद्य, मूपू., (अत्र शब्दानामनंत), ३२३६३ दशविद्यादिदेवी स्तुति संग्रह, सं., पद्य, वै., (--), ३२०७३-२ । दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ३०६१८(#S), ३०५२२($), ३१५७१(६), ३२९०७(६), ३३३११(६), ३३५१८-३(s), ३४४१७(६) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ दुर्गति), ३३३११(६) (२) दशवकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ३३२२४-१, ३३५३५-२, ३३५५३, ३३७४४-२, ३४३८७ (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म मंगलीक उत्कृष्ट), ३३२२४-१, ३३५५३, ३४३८७ (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो), ३०१४२-३, ___३४१८१ दशार्णभद्रनृपस्मयगृहइंद्रस्य, सं., गद्य, श्वे., (६४ करिण ५१२ मुखानि), ३०९८७-२ दशार्णभद्रराजर्षि कथा, सं., गद्य, मूपू., (भगवांस्तीर्थकरों), ३२३४०(+) दसविधदान आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (दसविहे दाणे पण्णते), ३४३२९-४(+) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (देवाहिदेवं नमिऊण), ३०१७६-१(+), ३२२७२($) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवाधिदेवनइं नमस्कार), ३२२७२($) दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मूपू., (परिहरिय रजसारो), ३१६१२, ३३६३७-१ (२) दानशीलतपभावना कुलक- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परिहर्यो छे राज्यरूप), ३३६३७-१ दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पपुदउ कमसो जीवा जल), ३०८६०-१(+) (२) दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व-टीका, सं., गद्य, मूपू., (पपुदउत्ति पश्चिम), ३०८६०-१(+) दिगंबरमत विचार, आ. महेंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (तत्र च परिधापनिका), ३१३७३ For Private And Personal use only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ दिलदारखान वर्णन-६० पांखडी कमलबंध, सं., श्लो. १४, पद्य, ?, (कलतारलपंकृतदानमदं गज), ३०५४२-३ दीक्षाग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (दीक्षा थकी पहिलइ), ३४३३३ दीक्षायोग्यअयोग्य विचार, प्रा.,मा.गु., पद्य, श्वे., (अट्ठारसपुरिसेसुंवीस), ३३२३७ (२) दीक्षायोग्यअयोग्य विचार-अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (पुरुषमाहि अढार अयोग्), ३३२३७ दीक्षाविधि*, प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., मूपू., (दीक्षा देन्हार पूरवे), ३०१०८-२ दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पुच्छा वासे चिइ वेस), ३३४३९(+), ३०७५१, ३४०८५-२($) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम दिक्षा आपवानु), ३३६६१ दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम दिने सांझरी), ३१३२५, ३२८५० दीपावलीपर्व कल्प, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सम्यक् परमा), ३३८४२(5) दीपावलीपर्व स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (पापायां पुरि चारु), ३२००२-१, ३३२२६-२ (२) दीपावलीपर्व स्तुति-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्त भगवंत असरणसरण), ३२००२-१ दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (दुरिअरयसमीरं मोहपंको), ३२३०६-१(+), ३४२५१ (२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (दुरियरय० दुरित जः), ३२३०६-१(+) दुसमदंडिका, आ. मतिप्रभसूरि, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (अवसप्पिणि उसप्पिणि), ३३४५८ दुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, ?, (--), ३३३४८-२(+$), ३१०४९-३, ३१२४२-३, ३१७६६-१, ३२९९०-७, ३३०७८-९, ३३७४२-२, ३३८३३-२, ३३९४९-१, ३३३०८-३($), ३३७३४-२($) देवपूजाफल कथासंग्रह, सं., गद्य, मूपू., (देवपूजाफले थोरीकुरुन), ३०९५८(+$) देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने), ३१९४५ देवसूरि जीवनप्रसंग, सं., गद्य, मूपू., (अन्यदा भृगुकच्छे), ३३६८९($) देवांगना संख्यागाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (दोकोडाकोडिओ हवंति), ३२१६२-२(+) देशीनाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा., वर्ग.८, ग्रं. ३७५, पद्य, मूपू., (गमणय पमाण गहिरा सहिय), ३३७०५(+$) (२) देशीनाममाला-स्वोपज्ञ टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., (देशी दुःसंदर्भाप्रा), ३३७०५(+$) द्रव्य विचार, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (परिणामी जीव मुत्ता), ३१३६०-२ (२) द्रव्य विचार-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव पुद्गल परिणामी), ३१३६०-२ द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), ३४०३२(+) द्वादशभावना, सं., भा. १२, श्लो. १३३, पद्य, मूपू., (ग्रस्यते वज्रसारारं), ३४१४७ द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, मूपू., (कूर्मवामनमीनाद्यैरवत), ३१३३१ धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. २११, पद्य, दि., (तन्नमामि परं ज्योति), ३०२३०(+$) धनपालकवि कथा, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (न शुद्धसिद्धांतविरुद), ३२४५६ धनपालकवि कथा, सं., गद्य, मूपू., (पुरा समृद्धिविशालाया), ३४२७८ धनफलीगण सारणी, सं., श्लो. १४, पद्य, श्वे., (प्रणम्य भास्करादी), ३०१७७ धर्मअर्थकाममोक्ष यंत्र, मा.गु.,सं., को., श्वे., (--), ३२४४०-१(#) धर्मजिन स्तव, उपा. राजविमल, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (--), ३२२३३-२($) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (लज्जातो भयतो वितर्क), ३०६३५-१(+), ३४२८५-१ (२) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (लज्जाथकी अर्द्धमाडि), ३४२८५-१ (२) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक-कथा, सं., कथा. १९, पद्य, मूपू., (पितुर्मातुस्तथा), ३०६३५-१(+) धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (त्रैकाल्यं द्रव्यषड), ३००३४-२ (२) जिनोपदिष्ट धर्ममूल श्लोक-अवचूरि, सं., गद्य, श्वे., (त्रैकाल्यं अतीत१), ३००३४-२ धर्मरत्न परीक्षा, सं., गद्य, मूपू., (--), ३३७०२($) ध्रुवांक संग्रह, सं., पद्य, (--), ३१४०६-२(+) For Private And Personal use only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ध्वंसाभाव स्वरूप, सं., गद्य, वै., (ध्वंसो हि सर्वांगत्व), ३१३५७-१(+) नंदिताढ्य छंद, मु. नन्दिताढ्य, प्रा. गा. ९४, पद्य, थे. (णमिऊण चलणजुयलं नेमि), ३३९८३ "" नंदी विधि, प्रा.सं., गद्य, भूपू (नमोह० अर्हस्तनोतु), ३११४२ " नंदी विधि, सं., पद्य, मूपू., (प्रथमं पवित्रनेपथ्यं), ३१३६१($) नंदी विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू. (-), ३३३२८-१(३) नंदीश्वरद्वीप अष्टप्रकारी पूजा, सं., प+ग, मूपू., (नंदीजलं केशवनारिकेतु), ३१२७८ नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (नंदीश्वरद्वीप महीपर), ३३२२६-५ नंदीवरद्वीप स्तोत्र, मु. मेरु, अप., मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सिरि निलय जंबुदीवो), ३०९३९-१ नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ३०७६४-१ ($) (२) नंदीसूत्रगत - ४ बुद्धिविषयक कथा संग्रह, संबद्ध, प्रा., गा. १४, पद्य, मृपू., ( उपतिया वेणंइया कम्म), ३४१६४ (३) नंदीसूत्रगत - ४ बुद्धिविषयक कथा संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (उत्पातिका वैनयक), ३४१६४ (२) नंदीसूत्र - मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (जयइ जग जीवजोणी), ३२२७० (२) नंदीसूत्र स्तुति, संबद्ध सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू (अर्हस्तनोतु स श्रेय), ३०८४५-१(+), ३२३६९-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा. गा. ५०, पद्य, मूपू (जवइ जगजीवजोणी वियाणओ), ३१२४७, ३१९४८, 1 + ३२२४५-१, ३२४४७-१, ३३५३५-१, ३४०४०-१, ३४०४१, ३०८६१ (#), ३२६६१ ($) नक्षत्र चूडामणी, सं., श्लो. २८, पद्य, वै., (पुरंदर सुराधीशः पत्र), ३१७०९-१) नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा. पद. ९, पद्य, मूपू (णमो अरिहंताणं), ३०३५९-१, ३०४९७-१, ३१४८६, ३१४८७, ३१७४२-३, ३१९१५-१, ३१९२५-१, ३३१२१, ३३२५०, ३३६२९-१, ३२५९९ (#$), ३३५३८-२ (-) (२) नमस्कार महामंत्र- पंचपद बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (माहरउ नमस्कार), ३३१२१ (२) नमस्कार महामंत्र - वालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू (अरिहंतन माउ), ३१४८७ (२) नमस्कार महामंत्र - बालावबोध", मा.गु., गद्य, म्पू, (बारसगुण अरिहंता), ३१४८६, ३३६२९-१, ३२५९९(३) (२) नमस्कार महामंत्र- कल्प, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (अथ कतिपय पंचपरमेष्ठि), ३३२५० नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, सं. गद्य, मृपू., (नमस्कारप्रभावे इह), ३४१०९(+) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (उक्कोसो सज्झाउ चउदस), ३०६३१(+) नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (नमिऊण पणयसुरगण), ३०५१७, ३०६९७-२, ३११५९, ३२५११, ३४४४३, ३१६७१, ३३१८५-२ ($) (२) नमिऊण स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आदौ कविर्मंगलाभिधान०), ३११५९, ३४४४३ (२) नमिऊण स्तोत्र वालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (नमिऊण० नमिऊण कहिता). ३१६७१ नमिजिन स्तुति, सं., वो ४, पद्य, भूपू (-) ३३१२७-१(३) י नवग्रहपूजा स्तोत्र, सं., पद्य, श्वे., ( शनैश्चरः कृष्णवर्ण), ३१७०५-२ ($) नवग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (जगत्गुरुं नमस्कृत्य), ३२४७३-२ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपु (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ३०४२४-१(+), ३०७४० (+६) ३२३८२(०) ३२३९७(+), 2 ३३२५९(+), ३३३२१(+#$), ३४००९(+), ३१४५६-१, ३२३९०, ३२५२४, ३३३३९, ३३८८९-१, ३४००२, ३४०६७, ३४३१२, ३४४३४, ३०६२४(१६), ३३४२१(३), ३०७९९ (३), ३२१४५(३), ३२३८९-२ (६) ३२६५६ (३), ३३२७८ (६) (२) नवतत्त्व प्रकरण अवचूरि, आ. साधुरत्नसूर, सं., गद्य, भूपू (जयति श्रीमहावीर) ३०७४०३), ३२३९७(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जीव: सचेतनः अजीवस्तद), ३४००९(+) (२) नवतत्व प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू ( जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ३३३३९, ३३०२९ " (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतां च्यार), ३२३८२(+), ३३२५९(+), ३३३२१ (+#$), ३०६२४(#$) (२) २५ क्रिया गाथा, हिस्सा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (काइअ १ अहिगरणीया २), ३२१६४-१(-) (३) २५ क्रिया गाथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु.. (कायाई की कर्म), ३२१६४-१(-) For Private And Personal Use Only ४९५ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४९६ " (२) नवतत्त्व प्रकरण- बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ३३७५८-१($) (२) नवतत्व प्रकरण-रुपी अरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, भूपू (नवतत्त्व मांहि रुपि), ३४२४५-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण - यज्ञेयउपादेय, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (हेया बंधासव पुन्ना), ३१४५६-२ नवतत्त्व भेद, प्रा., पद्य, मूपू., (समणोवासका भवंति अभिग), ३१९७१ (२) नवतत्त्व भेद-वार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (स० समणो पासक यतीनउ), ३१९७१ "1 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ नवपदतप विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (स्वर्णसिंहासनस्थिताय), ३२९६८ नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), ३२०४४-१(#$), ३२९४२ ($) नवपद पूजाविधि, मा.गु. सं., प+ग., मूपू., (नवपद मंडल विधि लिख्य), ३१६९५-१ नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., स्मर. ९, प+ग, मूपू., ( नमो अरिहंताणं० हवइ), ३०२९९, ३४२८१, ३२२३०($), ३३९७० ($), ३४११० ($) नारकभूमिप्रतरमान गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, चे., (तेसीई पंचसया इक्कार), ३२६४७-२ " नारकीपृथ्वी आंतराविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, वे., (बिसहस्सूणा पुढवी), ३२६४७-१ (२) नारकीपृथ्वी आंतराविचार गाथा - अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिल नरकिपृथ्वी), ३२६४७-१ निर्जरातत्त्व विचार- विविधशाखोक्त, प्रा. सं., गद्य, भूपू (अकाम तण्हाएत्ति अकाम), ३४०८३(+४) . " निव्वती द्वार गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवाणं निव्वती कमपगड), ३४२०६ नीतिदीपिका, मु. कानजीस्वामी, सं., श्लो. १००, पद्य, स्था., (यद्वाक् चंद्रिकया), ३३८७६(+#$) नेमराजिमती ९ भव वर्णन श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., ( लक्ष्म्यै स्ताद्धन), ३३३७२ (+) (२) नेमराजिमती : भव वर्णन श्लोक- अर्थ, सं., गद्य, मूपु. ( भगवतः केवलज्ञानोत्प), ३३३७२ (*) नेमिजिन तुकवावनी, मु. न्यानसागर, प्रा., मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपू (सो कोइ नत्थि सुवणो), ३२५३४ नेमिजिन द्विअक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं. श्री. ९, पद्य, दि., (मानेनानून मानेनानोन्), ३४१९९-१(०) ३१५६५-१, ३३०२१-१ (२) नेमिजिन द्विअक्षर स्तोत्र - व्याख्या, सं., गद्य, दि., (आनुमः स्तुमः के), ३४१९९-२(+), ३१५६५-२ नेमिजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि सं. श्री. ५, पद्य, भूपू (श्रीनेमीशशमिने), ३३०२९-३ नेमिजिन स्तव - छंदबद्ध, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (--), ३४०२४- १(s) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन स्तवन - षड्भाषामय, मु. पद्मसुंदर, अ.भा., अप., प्रा., माग. शौ., सं., गा. ३०, पद्य, मूपू., (विजित्य दुर्वारमनंग), ३१२०१ नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (कमलवलपनं तव राजते), ३०२३८-५ (+), ३३८०१-५ नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, भूपू (जय जय यादव वंस वतंस), ३३५४७-२(+३) नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भो भो भव्याः श्रुणुत), ३२०२२-१ जिन स्तुति - समस्यापूर्ति, ग. रामचंद्र, सं., श्लो. १८, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीकीर्ति), ३१२०९(+) पंचकल्याणकादिगर्भित जिन स्तुति, आ. सुमतिसुंदरसूरि, सं. लो. २९, पद्य, मूपु. ( श्रयं श्रीसदनं), ३९११० पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुंजयमुख्य), ३३८१३-६ ($) " " पंचतीर्थी स्तव, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (प्राचीमेकां पुनानामि), ३०८१७-१ पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता सिद), ३००५१-२ पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, प्रा. सं., पण., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), ३२५५८-१ पंचपरमेष्ठि गुणविवरण, प्रा. गा. १, पद्य, मूपू (बारस गुण अरिहंता), ३०२६४-२, ३२६६०-२ "" 13 (२) पंचपरमेष्ठि गुणविवरण- अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (बारसगुण अरिहंता कहता). ३२६६०-२ पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. ३५, पद्य, मूपू., (भत्तिभर अमर पणयं), ३३६५५ (२) पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र- अवचूरी, सं., गद्य, मृपू., (परमेष्ठीपंचकं) ३३६५५ , पंचपरमेष्ठि मंत्राराधन विवरण, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो अरिहंताणं), ३३८१८-१ पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (अर्हतो भगवंत इंद्र), ३१७१३-३(+) पंचपरमेष्ठि स्तुति, प्रा.र., गा. ५, पद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं निरुपम), ३१३९१-३ For Private And Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, मु. जयशेखर, सं., श्लो. ३७, पद्य, मूपू., (परम परमेष्टि पंचकं), ३३९९९ पंचपरमेष्ठी मंत्र संग्रह, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (सिद्धेभ्यः कानिचित् ), ३३६२१ . पंचास्तिकाय, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., गा. १७३, पद्य, दि. (इंदसदवंदियाणं तिहुवण), प्रतहीन. (२) पंचास्तिकायसार-भाषा, मा.गु., पद्य, दि., (स्वपरप्रकाशक विमल), ३११०१($) पक्खि चउमासी संवत्छरी पडिक्रमण विधि, प्रा. गा. ३, पद्य, मूपू (मूहपत्ति वंदिणयं), प्रतहीन, "1 "" . (२) पक्खि चउमासी संवत्छरी पडिक्कमणादिविधि, संबद्ध, सं., प्रा., मा.गु., प+ग., जै., (--), ३४२२२-२ (+) पक्खीचीमासीसंवच्छरी तप विचार, प्रा. मा.गु., गद्य, मूपू. (चउत्थेणं एक उपवास), ३३४७४-२ पच्चक्खाणफल कुलक, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नमिऊण सुगुरु चलणं), ३१३६७-२ (+), ३२६३३-२ पच्चक्खाणभेद गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूप, (अणागतमयवंतं). ३१०८५-१ " (२) पच्चक्खाण भेद गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनागत किसं कहीयइ), ३१०८५-१ पट्टावली, प्रा., मा.गु. सं., अंक. ३९ पाट, गद्य, मूपू (श्रीमहावीर) ३०२५१-१, ३०२९८, ३१०३६(३) ३४०२६-३(३) पट्टावली, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), ३३८४९ (६) पट्टावली, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरपट्टे सुधर्मा), ३२५२९-१ पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १३, पद्य, भूपू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाव), ३१७८१(+), ३३३३६(+) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, मूपू (श्रीवीरतीर्थे गणभृद्), ३०६५७(5) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, म्पू, (श्रीवीरायुर्वर्ष ७२), ३२२४६-२ पट्टावली तपागच्छीय उपा धर्मसागरगणि, प्रा. गा. २१, पद्य, मूपू (सिरिमंतो सुहहेड), ३१२२४ ', पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरादनु ६० वर्षे), ३४११७ पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (पडिलेहणा विशेष), ३१०८९($) (२) पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रतिलेखनाना विशेष), ३१०८९($) पदार्थ संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३०७२१-३(+), ३११६८-१ पदार्थसार, प्रा. गा. ३, पद्य, मूप, (मज्जं विषय कषाया), २००८५-१(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, सं. मा.गु. गा. १०, पद्य, मूपू, (ॐ ह्रीं कलिकुंड), ३०४३५ (+), ३११६३-२(+) पद्मावतीदेवी जापमंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं ऑक्राँ), ३३२३९-२ पद्मावतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ आँ क्रोँ हीँ ए), ३२२८९-२ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ३२९९७-१(+), ३२६८९(+), ३३८३७(+४), ३३३५५, ३३५८३. + ३३७९६ + पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, वे (अच्छव्य पचे दिशती), ३३५५८-२ पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (धरणयक्षवलक्षविषाह्य), ३१८३३ पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू. (-), ३४४३६ (६) पद्मावतीदेवी स्तोत्र - पूजनविधि सहित, आ. पृथ्वीभूषणसूरि, मा.गु., सं., श्लो. ३९, पद्य, श्वे., (अस्य श्रीमंत्रराजस्य), ३४१६७-६ परमाणु स्थापना विचार, सं., गद्य, मूपू., (ये संस्थानपरिणतास्ते), ३३४२९ (+$) परमात्म स्तुति, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (दर्शनं देवदेवस्य), ३३३७०-४, ३३३७१-३ परमात्मस्वरूप स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु. सं., गा. ३२, पद्य, भूपू (चिदानंद रूपं सुरूपं), ३२१९० परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परमानंदसंपन्नं), ३१६१७, ३२७०७, ३३१३३, ३३५६३, ३३७९५ ३३८२१ (२) परमानंद स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (परमात्माने नमस्कार), ३१६१७, ३३५६३, ३३७९५, ३३८२१ परिपाटीचतुर्दशक, वा. विनयविजय, प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं), ३४२७० पर्वताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, भूपू (नमिउण भणइ एवं भयव), ३१३१२, ३२४५४, ३४१०१ पाइअलच्छी नाममाला, जे. क. धनपाल, प्रा., विव. ९९८, वि. १०२९, पद्य, जे. (नमिऊण परमपुरिसं पुरि) ३०९९९ For Private And Personal Use Only ४९७ Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), ३०४१९-२(+), ३३३१६(+), ३३३५८(+), ३२११७-५, ३३३५९, ३३७४१-१, ३०७८७-२(#), ३३७७३-४(-) (२) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नान कराव्यु छे), ३३३१६(+), ३३३५९ पात्रफल गाथा, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (मिथ्यादृष्टीसहस्रेषु), ३३९७७-२ पार्श्वजिन १० गणधर नाम, सं., गद्य, मूपू., (श्री शुभगणधराय नमः), ३३९१८-३ पार्श्वजिन अष्टक, मु. कीर्तिरत्न, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू., (कल्याणकेलिसदनं महिमा), ३३२५१-२(#) पार्श्वजिन अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते), ३३४७३-४ पार्श्वजिन अष्टक-मंत्रगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमन्नागेंद्ररूद्र), ३४२५९-२ पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्देवेंद्रवृंदा), ३२०६२-१(#) पार्श्वजिन अष्टक-शंखेश्वरमंडन, आ. धर्मविजय, सं., पद्य, मूपू., (विभोगिनां सौख्यतति), ३३७१५-१ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ३१७३०-२(+), ३२०६७-२(+), ३१८०१-२, ३३१२८-२, ३४२७५-४ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), ३३९८१-१ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (वरसं वरसं वरसं वरस), ३१२७०-१(+), ३३९९२, ३३७९०-२(-) (२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वरं प्रधाना संवरस्य), ३१२७०-१(+), ३३९९२ पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका-चिंतामणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं जगद्देव), ३४१७१-३($) पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वः पातु), ३१२३६-१, ३४१७१-२ पार्श्वजिन शतक, मु. रामचंद्र, सं., श्लो. ११६, पद्य, श्वे., (--), ३१५८३($) पार्श्वजिन श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीवैक वारधेचंद्रौः), ३२७७९-४ पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (अखिलमंगलकारणमीश्वरं), ३३८४६-२ पार्श्वजिन स्तव, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (तिहुयण जणमणमोरगणरंजण), ३३२५१-१(#) पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, म्पू., (तेज: पुष्णातु), ३१७०६($) पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (लक्ष्मीनिदानं गुरु), ३१२७०-२(+) (२) पार्श्वजिनस्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं पार्श्व नुवामि), ३१२७०-२(+) पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण), ३४३३८-३ पार्श्वजिन स्तव-कृष्णदुर्गमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वसमस्त), ३१३५७-४(+) पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, मु. देवकुशल पाठक, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (स्फुरदेवनागेंद्र), ३२९२३-१, ३३७९७, ३४१५७-२ पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणिमनमोहन, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (श्रीचिंतामणि पार्श्व), ३३५५८-४ पार्श्वजिन स्तव-णिजंतकिबंतयुष्मत्प्रोयगगर्भित, पं. चंद्ररत्न गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (स्तुवते यं जिनराज), ३४१२६ (२) पार्श्वजिन स्तव-णिजंतकिबंतयुष्मत्प्रयोगगर्भित-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (अत्र स्तवे पूर्व), ३४१२६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. पद्मसागर शिष्य, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (कैवल्यलीला कमलासनाथं), ३२६०२ पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरा, मु. विद्यासागर शिष्य, अप., गा.७, पद्य, मूपू., (पणमवि सुगुरुचरण), ३११८४-१ पार्श्वजिन स्तवन-अवंति, ग. अमीचंद, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सिद्धक्षेत्र), ३२१०७(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कमलरत्न, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (नमिय सुरासुर कोडी), ३१५०१-५ पार्श्वजिन स्तवन-जीरापल्ली, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (यत्पादाग्रलसन्नखेषु), ३३७३२ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, आ. महेंद्रप्रभसूरि, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., (प्रभुंजीरिकापल्लि), ३१३५६-२ पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मा.गु., ढा. ३, गा. १९, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (नमिअसिरिपासजिण सुजण), ३४१५२(+$), ३४२४९-१(+) (२) पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगणस्थानकविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३४१५२(+$) For Private And Personal use only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९९ पार्श्वजिन स्तवन-नवसारीमंडन, ग. संघमंगल, अप.,मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (नवसारी मंडण पाससामी), ३१२०२-२, ३१३८७ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (सौभाग्यभाग्या), ३०९७०-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आयाति नित्यं परमारमा), प्रतहीन. (२) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (आयाति० के पुरुषाः), ३०७७१ पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, मु. अजबसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (भूयिष्ट राजन्य), ३१०८३-२ पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (ॐ नमो हराउ जरं मम), ३१५०१-६ पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., गा. ३७, ई. १२००, पद्य, मूपू., (जसु सासणदेवि विवएस), ३२२०८(+), ३१३५८-१, ३१४४४-१, ३४२५९-१(६) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, मूपू., (जं संथवणं विहि), ३२२०८(+), ३१३५८-१, ३१४४४-१ पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (योगात्मनां यं मधुरं), ३०९३६-२, ३२३७३-२ पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (श्रीसेढीतटिनीतटे), ३१२५८-२ पार्श्वजिन स्तुति, मु.शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मालामालानबाहुर्दधददध), ३२८६८ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अमरगिरिशिरस्थस्फार), ३२५८२-३(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), ३४१७२-१४ पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु.,सं., गा. १, पद्य, श्वे., (दी, दर्शन ताहरई), ३३५५८-५ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मदमदन रहित नरहित), ३३७४१-४ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ३०२३८-४(+), ३३८०१-३ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (--), ३२४०७-१(६) पार्श्वजिन स्तुति-२४ महादंडक, आ. भुवनहितसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (जिनपति विततिस्तनोतु), ३२५७०-१ पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नै दें कि धप), ३२०५६, ३२६८२, ३४१७२-६ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), ३१२५०-२ ।। पार्श्वजिन स्तुति-प्रार्थना संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), ३२९२७ पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोक), ३२५८२-२(+), ३३१२७-३ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. कल्याणसागर शिष्य, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (संस्तुवे श्रीमत), ३३१२८-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. कुशल, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर), ३२३७३-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (धर्ममहारथसारथिसारं), ३१५०१-१, ३३०३३-२, ३३९९६-४ पार्श्वजिन स्तोत्र, ग. धर्मकीर्ति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं कमला), ३३३०५-२ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. लक्ष्मीरत्न, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (समीचीनमीनध्वजाकारतार), ३२३७३-३ पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अमरतरु कामधेनु चिंता), ३१५०१-४, ३१७९८-२ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमामि सदा प्रभु), ३२७११-१, ३३९२२-२(5) पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिरिसंखेसरपासं पउमाइ), ३२७७१-२ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (स्वस्तिश्रीरभजत्), ३२६९८-४(-) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (--), ३२६८८-१(६) पार्श्वजिन स्तोत्र-अंतरीक्ष, मु. हीरविजयसूरि शिष्य, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (विश्वव्याप्तिविद्धि), ३१७२७ पार्श्वजिन स्तोत्र-अजाहरा, मु. पद्मसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अझारपार्श्वस्तुतिमार), ३१२३७-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं तं नमह), ३१३०६(+), ३२२८५-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-केवलाक्षरमय, उपा. समयराज, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (जयजय नयनतमतकरण जलभरण), ३४३३६ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, मु. मलुकचंद, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रेयः संतते कारक), ३२९५४-१(+) For Private And Personal use only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०० www.kobatirth.org पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ३०४३२ (+), ३०५९९ (+), ३०९७०-१(+), ३३५०० (+), ३१०२३, ३३२८८-१, ३३६०७-२, ३४१६९-२, ३४२७६, ३४३३०, ३१८१५-३(३) ३३९२२-१ (४), ३३५२४-३) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि- टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथस्य), ३३५०० (+$) पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणिमहामंत्रणभिंत, धरणेंद्र, सं., श्लो. ३२, पद्य, भूपू (ॐ ह्रीं श्रीं अ), ३४९६७-१ (६) पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला - महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो देवदेवाय नित्य), "" י' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ ३०५४५-१ पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. गा. १०, वि. १४वी, पद्य, म्पू, (दोसावहारवक्खो नालिया), ३४२९६ (+), ३४१३७-१ (२) पार्श्वजिन स्तोत्र - नवग्रहगर्भित - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (दोषादीनां भूतादीनां), ३४१३७-१ ($) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भितवालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, (दोस कहतां राग द्वेषा), ३४२९६ (+) पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित प्रा. गा. १२, पद्य, भूपू (अरिहं धुणामि पास), ३०७२५-१, ३३९९४-३ " , पार्श्वजिन स्तोत्र - नीलकंठ, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ३०५७८-१($) पार्श्वजिन स्तोत्र - लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (लक्ष्मीर्महस्तुल्यसत), ३३६७४ - ४(+), ३१७९८-१, ३२१६५-१, ३३४७३-१ पार्श्वजिन स्तोत्र- वरकाणा, मु. जिनविजय, सं., श्लो. २१, पद्य, भूपू (कल्याणवली विपिनेव), ३२६७४-१ पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, भूपू (जय जय जगनावक), ३४०८१(+), १ ३१७३१-१ पार्श्वजिन स्तोत्र- समस्याबंध, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं तमहं ), ३२२०९(+), ३४१४५(+) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र- समस्याबंध- टीका, सं., गद्य, मूपू (अहं श्रीपार्श्वनाथ), ३२२०९(+), ३४१४५(०) पार्श्वजिनाष्टक शंखेश्वर, मु. धर्मविजय, सं., श्लो. ८, पद्य, मृपू. (श्रेयः पतिं श्रीनरदेव), ३३७१५-२ पार्श्वधरणेंद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., (नमो भगवते श्रीपार्श), ३३९०३ पालगोपाल कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि सं. लो. २३८, पद्य, मूपु. (ये शील सुख कुलील), ३३८११ पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., (महादेवं नमस्कृत्य), ३०८४० (+), ३३६२७-१ (२) पाशाकेवली - भाषा *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे. (१११ उत्तम थानक लाभ), ३२८६१ ($) पिंडनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ६७१, पद्य, मूपू., (पिंडे उगम उप्पाय), ३१३१७ (२) पिंडनिर्युक्ति- टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), ३१३१७ " पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि प्रा. गा. १०३ पद्य, मूपू. (वेविंदविदवंदिय पवार), ३१५४३+), ३१३११(१) पुंडरीकगणधर पूजाविधि, प्रा., सं., प+ग., मूपू., (उस्सप्पिणीय पढमं), ३२२५२(+) पुंडरीकगिरि पूजाविधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (पूर्वं सकल श्रीसंघ), ३३३४५ पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, भूपू (सपुन्न इंदिअत्त माणु), ३०५३७(०) ३२५६६-२(०), ३४१७४(+), ३१६१०, ३२४८१. ३३१६८, ३३२१०, ३३२६६-२, ३३३२६, ३४१३२, ३४२४३-२ (२) पुण्य कुलक-बालावबोध, मा.गु, गद्य, मूपू (पुनिकुल प्रकीर्ति), ३३२१०, ३३३२६, ३४१३२ (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच इंद्री पडवडा), ३२५६६-२ (+), ३२४८१ ३११०३-२, ३१६२३, ३१७२८, ३२३३०-१, ३३४५१, ३४२१३ (२) पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवै सो वर्षना दिन), ३१६२३, ३१७२८ (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( पुरु पंचिन्द्रियपणो), ३४१७४ (+), ३१६१०, ३३२६६-२ पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवससहस्सा), ३०९९६, ३१०५०-३, (२) पुण्यपाप कुलक- अर्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (पुरुषन आऊ सुवरस), ३०९९६ पुद्रलपरावर्त स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू (श्रीवीतराग भगवंस्तव), ३४०६४-१(+) For Private And Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- १ ५०१ (२) पुद्गलपरावर्त स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तथा अनंत उसर्पिणी), ३४०६४-१(+) पुरुषस्त्रीनपुंसक वेदविचार गाथा-गोमटसारे, प्रा., गा. १, पद्य, दि., (पुंवेया अडयाला इत्थी), ३२६९३-३(+) पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथां), ३४००४ प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), ३३८५७, ३४०९३(-) (२) प्रज्ञापनासूत्र-(प्रा+मा.गु.) पदविवरण, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. ५, प+ग., मूपू., (समणं भगवं वीरं नमिऊण), ३२६४०($) (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३१०२१ (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जाव गय इंदिय काय जोय), ३०७०६ (२) संज्ञा पद, संबद्ध, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (भत्तिपणमंतसुरवरकिरीड), ३४१४० (३) संज्ञा पद-टीका, सं., गद्य, मूपू., (भत्तीति सुगम आहारस), ३४१४० प्रज्ञाप्रकाशषविंशिका, आ. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ३०१७६-२(+$), ३१४९७, ३३४४९($) प्रतिलेखना विधि, प्रा., प+ग., मूपू., (--), ३२४१७(#$) प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४८, पद्य, मूपू., (दस पच्चक्खाण चउविहि), ३०८२८-२ प्रत्याख्यानभाष्य, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (भावि अईयं कोडि अहिय), ३१५६० प्रदेशीराजा चरित्र, प्रा., गद्य, मूपू., (जप्पभिइचणं पदिसीराय), ३०२०८-१ (२) प्रदेशीराजा चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जइ दिवसथी मांडी करी), ३०२०८-१ प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अजय १ अज्जा २ कुंभ), ३३६५०-२ (२) प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी-टीका, सं., गद्य, मूपू., (केवई देशे श्वेताबि), ३३६५०-२ प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (गोयम सोहम जंबू पभवो), ३१७०९-२(-) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि. ८, सू. ३७९, वि. ११५२-१२२६, प+ग., मूपू., (रागद्वेषविजेतार), ३२४३९(+$), ३३०५७(#S) (२) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि. ८, गद्य, मूपू., (नमः परमविज्ञानदर्शना), प्रतहीन. (३) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., परि.८, ग्रं. ५६८०, वि. १३वी, प+ग., म्पू., (सिद्धये वर्द्धमान), प्रतहीन. (४) वादार्थसंख्या निरूपण-रत्नाकरावतारिकागत, हिस्सा, पं. यशस्वत्सागर, सं., परि.८, श्लो. ४७, पद्य, म्पू., (अहँबीजं भावतश्चाभि), ३२३२९-१(+) प्रमादपरिहार कुलक, प्रा., गा. ३१, पद्य, मूपू., (दुक्खे सुक्खे सयामोह), ३३९७७-१, ३४०१६ प्रमेयरत्नकोशे-अपशब्दनिराकरणस्थल, सं., गद्य, मूपू., (येम्यमी शाब्दिका), ३२४३२-२ प्रवचनसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ३, गा. २७५, पद्य, दि., (एससुरासुरमणुसिंदवंद), ३३२५८ (२) प्रवचनसार-छाया, सं., पद्य, दि., (--), ३३२५८ प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसार विसम सायर भवजल), ३१२२५, ३४१०३-१, ३४३९२ प्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (दीक्षा लेतां एतला), ३४२२९-१(+), ३०११३, ३०१५१, ३२२७३ प्रश्नप्रकाश, उपा. नरचंद्र, सं., प्रका. २०, ग्रं. ३६०, पद्य, मूपू., (--), ३२३५९(5) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ३००६७-२, ३०६२८-१, ३०८६५, ३१३३९, ३१३४०, ३१३६८, ३२३९१, ३३६६४, ३४३८५ । (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमी करी श्रीमहावीर), ३१३३९, ३१३४०, ३१३६८ प्रस्तावपंचविंशतिका, मु. तेजसिंह, सं., श्लो. २६, पद्य, श्वे., (--), ३३३७३-१(६) प्रस्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (उसभस्सपीआनागे सेसाणं), ३३५८१-४(+) (२) प्रस्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेवना पीता), ३३५८१-४(+) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे.?, (आहारनिद्राभयमैथुनानि), ३३६४७(+) For Private And Personal use only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ (२) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे.?, (आहार निद्रा भय मेथुन), ३३६४७(+) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ४, पद्य, जै.?, (गर्ब मा कुरस्यर करे), ३२०८७-६(-१) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., गा. ६१, पद्य, मूपू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), ३१५३०-१(+), ३११०७(5) (२) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म थकी भला कुलनइ), ३१५३०-१(+) प्राकृत छंदकोश, प्रा., गा. ८०, पद्य, मूपू., (आजोयणट्ठियाणं सुरनर), ३३६४१, ३३९०४(६) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मूपू., (पंच महव्वय सुव्वय), ३३८८१(+), ३१९१८-२, ३१९२०, ३३८५५-२, ३३९९५-२ (२) प्रस्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे सुव्रत जंबु प०), ३३८८१(+) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चलंति तारा विचलंति), ३३४२६-४ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., गा. ३६, पद्य, श्वे., (जिवदया जिण धमो सावय), ३०३६८ फाग टांगा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ३२८५४-३ बंधशतक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, जै., (जीवाय १ लेस्स २ पखिय), प्रतहीन. (२) बंधशतक-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवाय लेस पखी दिठी), ३००३५-१(+), ३३५५५(+) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्कं), प्रतहीन. (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., मूपू., (श्रीवर्द्धमान जिनचंद), ३११०८ बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ३२००६-२, ३३८१३-१३, ३४३२७-१, ३२९१७-१(-) बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि.५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), प्रतहीन. (२) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहर निभस्स), ३२४००(+), ३३४०२-२(+$) बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., मपू., (भो भो भव्या शृणुत), ३१९३१, ३२०६८-१, ३२४२८, ३२४३०-१, ३४२६४ बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ३०८२२-२(+), ३०४६३, ३१७३५, ३३४२८, ३३४८९, ३३४९४, ३४१२२, ३४३२५, ३४३५३, ३४३७८-१, ३१५८५-१(#), ३१६६१(s), ३२५९६-१(६), ३२६६३-१(६), ३३९९०(६), ३००५७(-) (२) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५६, गद्य, मूपू., (स्ताच्छांतिः शांति), ३१७३४ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ३०५९८(+#$), ३३७५४(+$), ३४०९५(+S), ३४२७९(+$), ३०२६०(#$), ३०७९२(), ३४१९८(६) (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (अत्यद्भुतं योगिभि), ३३७५४(+s) (२) बृहत्संग्रहणी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा प्रणम्य), ३०५९८(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं फल), ३००६६(६) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता), ३०७९२(६) (२) बृहत्संग्रहणी-चयनित गाथा संग्रह, प्रा., गा. ६८, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ३३४०२-१(+) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), ३२४७३-४, ३२६६३-२, ३३१७५-२ बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछे), ३०१४३(+), ३४१९६-२(+), ३००८६(5) बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), ३२४७४-१, ३२४७६-३, ३२५१९-२, ३२८४१, ३२९९६, ३३३२८-२, ३३७०४, ३४०९४-८, ३४०४६(३) । ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ३२३६९-३, ३३४७८-१, ३३७४३-३ ब्राह्मणलक्षण श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ३, पद्य, जै., वै., (ज्ञानशीलं क्षमायुक्त), ३२९५०-२ For Private And Personal use only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०३ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, भूपू ( भक्तामरप्रणतमौलि), २०४६५ (+), ३०४८८(+), ३०९७४(+), ३३९५७(+), ३०११५, ३०२८८-१, ३१७३३, ३१८४०, ३२२३५, ३४४२६, ३३१०२(१६) ३२४१३(३) ३२६७१(३) ३२७९२-२४), ३२९०६(३), ३३१८०(३) ३४२४१(३) ३३२३४) ३३५३८-११ " (२) भक्तामर स्तोत्र अवचूरि, सं., गद्य, मूपू (भक्ता अमरा देवा), ३०९७४(+) (२) भक्तामर स्तोत्र - भाषानुवाद, मु. देवविजय, पुहिं., स्त. ४४, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (भक्त अमरगण प्रणत), ३०९७३-१ (२) भक्तामर स्तोत्र - पद्यानुवाद, जै. क. बनारसीदास, मा.गु., गा. ४९, पद्य, मूपू., दि., (आदि पुरुष आदि सज्जन), ३३८२३ (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, सं., गद्य, म्पू, (--), ३४२४१(३) (२) भक्तामर स्तोत्र - शेषकाव्य हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू. दि., (गंभीरताररवपुरिदिग्धि), ३२१९७-२(०), ३२२५०-१ (२) भक्तामर स्तोत्र आम्नाय संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, भूपू (भक्तामरेति प्रथम), ३४१२४-१ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, म्पू, नमो अरहंताणं० सव्व), ३०६४३ (६) ३३९२९(०) ३३३५४ (२) भगवतीसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), प्रतहीन.. (३) भगवतीसूत्र - टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (लोगस्सेगपएसे जहंणयपय), ३०३८७-१, ३९४९६ ३२२२४(३) - (४) भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण कीटीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, भूपू (अथ पंचमांग एवैकादशशत), ३०३८७-१, ३१४९६ (४) निगोदषट्त्रिंशिका - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इम लोकाकाश प्रदेशनें), ३२२२४ 1 (३) भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि प्रा. गा. १०६, वि. १९२८, पद्य, म्पू, (पन्नवण वेय रागे कप्प), ३३८२२(+), ३१५५७, ३३८७४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४) पंचनिग्रंथी प्रकरण अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (पन्नवण इति द्वारणाथा), ३१५५७ ', (३) भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा. गा. ३६, पद्म, मूपू (ओरालसव्वबंधा थोवा), ३१५१८ " (४) बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण-अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, म्पू, (श्रीभगवत्यंगाष्टमशतक), ३१५१८ (२) भगवतीसूत्र - लघुवृत्ति, आ. दानशेखरसूरि, सं., ग्रं. १२०००, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नमसित्वा० ), ३०८६४ (२) भगवतीसूत्र - टवार्थ से, मा.गु., गद्य, मृपू., (ते कालनइ विषय ते), ३३९२९(+) , (२) भगवतीसूत्र - हिस्सा *, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (--), ३१३१४०, ३२५४४-२ " (२) भगवतीसूत्र - हिस्सा पंचम शतक सप्तम उद्देश पंचहेतुस्वरूप, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. सू. ८, गद्य, भूपू (पंचहेऊ प० त० हेऊ न), ३०८३६ (३) भगवतीसूत्र - हिस्सा पंचम शतक सप्तम उद्देश पंचहेतुस्वरूप- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्ररूप्या भगवंते ते), ३०८३६ (२) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक ८ उद्देश ६गत एषणीय अनेषणीय आहारादिदानफल प्रश्नोत्तर, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, म्पू, (समणेवासगस्सणं भंते), ३००४१(+) (३) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक ८ उद्देश ६ गत एषणीय अनेषणीय आहारादिदानफल प्रश्नोत्तर की टीका, सं., गद्य, म्पू, (पंचमे श्रमणोपासकाधिक) ३००४१(+) (२) भगवतीसूत्र-विचार संग्रह संबद्ध, मा.गु., को. म्पू. (-), ३००९२, ३०९२३, ३११४७, ३३८९९ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जिन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. भावें भविवण भगवई), ३१७२२-२ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (वंदि प्रणमी प्रेमस्य), ३१८२०-१ (२) श्रावकपच्चक्खाण भांगा ४९, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र भगवती सतक ८मे), ३४३०३-१ भवचरिम पच्चक्खाण, प्रा. गद्य, भूपू ( भवचरिमं पच्चखामि), ३३४७८-२ " भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५३१, पद्य, मूपू., (णमिऊण णमिरसुरवर मणि), ३३१५३(+), ३१३८६($) भाग्यपंचाशिका पुरुष, सं., श्लो. २१, पद्य, जे.? (श्रीशंखेश्वरपार्श्वे), ३०८९६-२ For Private And Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ भारती स्तोत्र, मु. कल्याणसागर-शिष्य, सं., श्लो. २०, पद्य, मूपू., (प्रणतित तयस्तत्व), ३२१३७ भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., (आणंदभरिय नयणो आणंद), ३१३६७-१(+), ३४०११ भावार्थशतक, सं., श्लो. १०१, पद्य, श्वे., (सरस्वतीं नमस्कृत्य), ३१४९८(+) भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, गा. १४५, वि. १४वी, पद्य, म्पू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ३३८५८(+), ३१३१३ (२) भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदि० वंदनीयान् सर्व), ३१५४९(+) भूयस्कारादि विचार प्रकरण, ग. लच्छिविजय, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (नमिऊण नायपुत्तं वर), ३४२६२ मंगलवाद, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, मूपू., (ननु भो ये विशिष्ट), ३१३३८ मंगल स्तोत्र, भार्गव, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (मंगलो भूमिपुत्रश्च), ३२६६३-३ मंगलाष्टक, कालिदास, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (श्रीमत्पंकज विष्टरो), ३३४२६-१ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., (--), ३१२३७-३(+), ३४२०१-४(+), ३११८४-२, ३१२३६-२, ३१७९८-३, ३३४५६-३, ३३४७३-२, ३३४७३-७, ३३६२७-२, ३३८०१-८, ३४०६१-२, ३४३०७-२, ३४३५९-२, ३४३७४-२, ३३६२२-३(5) मंत्र प्रयोग, मा.गु.,सं., गद्य, जै., (--), ३०५७६-२ मंत्र यंत्र संग्रह, सं., गद्य, ?, (ॐ हिं यकाटुवऊरु), ३३९१८-५ मंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो भगवओ बाहूबलि), ३१९४३-३, ३४१७१-१ मंत्र संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (--), ३३६५१-२, ३३९९१-३ मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, वै., (--), ३१४४४-२, ३३१९१-२, ३४१६७-७ मंत्र संग्रह, प्रा., गद्य, जै., (--), ३१४८९-३(+), ३१८६७-२ मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (मंत्राधिराजाक्षरवर्ण), ३३९९४-७ मदनधनदेव कथा-चंडाप्रचंडाविषये, सं., गद्य, मूपू., (विचार्य कुरुते कार्य), ३३५२६(+) मदनपल्लवी, सं., श्लो. १, पद्य, (राशिगुणवसुरस नयनयुग), ३२०३२-४ मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (चूलग पासग धन्ने जूए), ३२६६०-१ (२) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम चूलक भोजन खीर), ३२६६०-१ मनुष्यसंख्या विचार, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मणुआण जहन्नपए), ३१४८०-३(+) (२) मनुष्यसंख्या विचार-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (एतेषां च पूर्वोक्ता), ३१४८०-३(+) मनुष्यसंख्या स्तव, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिणवुत्त चरित्तेण), ३१४८०-२(+) (२) मनुष्यसंख्या स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिनोक्तचारित्रेण), ३१४८०-२(+) मरीचि चरित्र, सं., गद्य, श्वे., (च्युत्वा ऋषभदेवस्य), ३०५३९(#$) महादंडक स्तोत्र, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (भीमे भवम्मि भमिओ), ३३७६७ (२) महादंडक स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भिमे० विहामणो भवंमि०), ३३७६७ महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४४, पद्य, भूपू., (प्रशांतं दर्शनं यस्य), ३२३७१-१ महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (आद्यं प्रणवस्ततः), ३४०८७-२ महावीरजिन २७ भव वर्णन, सं., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीपापरविदेहे), ३१४३०-१(६) महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, सं., ग्रं. १००, गद्य, मूपू., (ग्रामेशस्त्रिदशो), ३१११६(+#) महावीरजिन अष्टक, मु. नेतृसिंह कवि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमत्सुधीर), ३३४३६-२(+), ३४२५५-३ महावीरजिनद्वात्रिंशिका स्तव, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३३, वि. १वी, पद्य, मूपू., (सदा योगसात्म्यात्), ३०३९९, ३११११, ३३४६० महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, सं., गद्य, मूपू., (१. श्रीवीर केवलात), ३११६१-१ महावीरजिनशासने प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरे मोक्षं), ३२२४६-१ महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ३६, पद्य, मूपू., (पराक्रमेणेव पराजितोय), ३४०१२(+) महावीरजिन स्तव, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ३०, ग्रं. ३५७, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), ३११२०-१(+), ३१२७२ For Private And Personal use only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०५ (२) महावीरजिन स्तव-टिप्पण *, सं., गद्य, मूपू., (--), ३११२०-१(+) (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतरंग वयरी क्रोधादि), ३१२७२ महावीरजिन स्तव, मु. लालकुशल, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (वंदे वीरं वारंवार), ३२८२८ महावीरजिन स्तव, मु. लालकुशल, सं., श्लो.८, पद्य, म्पू., (वंदेहं तं वीरमुदार), ३४०४४-१ महावीरजिन स्तव, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (नमोऽर्हते भगवते स्वय), ३३३७१-१ महावीरजिन स्तव, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (जइज्झा समणे भयवं महा), ३०१८७-१ महावीरजिन स्तव, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जयइ नवनलिनकुवलयवियसि), ३२३०७-१ महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (यस्याब्धिदुहितुर्दा), ३४०८९-२ महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, भूपू., (स्तोष्ये सुरासुरैः), ३४०८९-३($) महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (--), ३४०८९-१($) महावीरजिन स्तव-दीपालिकापर्व, पं. रविसागर, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (श्रीत्रिशला शोभन), ३३९९१-४ महावीरजिन स्तवन, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. २२, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणं भयवं महा), ३४१९६-१(+) (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान प्रभु), ३४१९६-१(+) महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइ जासमणे भगव), ३४३४६-१(+), ३०९८१, ३१०१४, ३१०७९-१, ३४२९४ (२) महावीरजिन स्तव-बृहत्-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जय क० कल्याण जा क०), ३१०१४ (२) महावीरजिन स्तव-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जइज्जा समणे नो अर्थ), ३४३४६-१(+) (२) महावीरजिन स्तव-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जइवंत हवो कुण ते), ३०९८१ महावीरजिन स्तव-सुवर्णगिरि-जालौरदुर्गमंडन, उपा. सुमतिविजय, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (प्रणम्यसंपिडितदिष्ट), ३४२००-१ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदारमवद), ३०२३८-२(+), ३३८०१-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमदसर सीरो रूह सवस्स), ३३१२७-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमोस्तु वर्द्धमानाय), ३२००८, ३१५४०-३(#) (२) महावीरजिन स्तुति-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, मूपू., (नमो वर्धमानाय नमोस्त), ३२००८ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमेंद्रमौलिप्रपतत), ३०२३८-९(+) महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), ३२५९५-२, ३४२७१-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (पत्तित्रुटितत्रुटितर), ३३६७४-१(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पापा धाधानि धाधा), ३३६७४-२(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भावानयाणेग नरिंदविंद), ३०२३८-१०(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (महारमा वीर करांगतार१), ३३६७४-३(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदंह्रिनमनादेव देहिन), ३२५८२-१(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्य), ३०११८-२(+), ३१५२५-२, ३१८८७-४, ३३६३७-२, ३४१७२-१३ (२) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरस्वामीनें नित्ये), ३१५२५-२, ३३६३७-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वापराधविगमप्रकटी), ३०९८७-३ महावीरजिन स्तुति-कल्पवृक्षबंध, मु. भुवनतिलक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (परब्रह्मरूपं तमस्ताप), ३०५४२-१ महावीरजिन स्तुति-स्नातस्यास्तुति पादपूर्तिगर्भित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्फूर्जद्भक्तिनतेंद), ३०२३८-८(+) महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. ५, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयसिरिजिणवर तिहुअणजण), ३१६७५, ३२५७१-१(६) महावीरजिन स्तोत्र, मु. रूप, सं., श्लो. ७, पद्य, स्था., (विबूधरंजकवीरककारको), ३०६१२(+) (२) महावीरजिन स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, स्था., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ३०६१२(+) । महावीरजिन स्तोत्र, मु. विचारसागर शिष्य, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (पणमिऊण जिणंद पयंबु), ३१४१५-१ महावीरजिन स्तोत्र, आ. विजयसेनसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (मनसि मानव मानव), ३०९७०-५(+), ३३५२४-२(-) For Private And Personal use only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ महावीरजिन स्तोत्र, मु. वेलजी, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (नौमि वीरं महावीर), ३०७६४-४ महावीरजिन स्तोत्र-निर्वाणकल्याणक, पंन्या. विजयसागर, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपरिसेव्य), ३१२३७-१(+) महावीरजिन स्तोत्र-संसारदावापदगर्भित, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (कल्याणवल्लीवनवारिवाह), ३४३४८-२(+) मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्तं), ३०४२०-२(#) मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (कृतापराधेपिजने कृपा), ३०२२३ माणिभद्रवीर अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (स्वस्त्द्र राजप्रण), ३१८२८-१ माणिभद्रवीर छंद, मु. अमृतरत्न, मा.गु.,सं., गा. ९, वि. १८५९, पद्य, पू., (जयजय श्रीजगदीश्वर जय), ३१९६३-१ माणिभद्रवीर जाप मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ह्रीं श्रीं क्ली), ३२१०६-२(-) । मायाबीज स्तुति, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (ॐनमः सवर्णपार्श्व), ३३७७१, ३४०८७-१(६) मिथ्यात्व कुलक, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (लोइअलोउत्तरिय देवगय), ३१६२२(+) (२) मिथ्यात्व कुलक-वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्वस्य चातुर्व), ३१६२२(+) मिथ्यात्वमथन प्रकरण, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (न गुले मणिए गुलिय), प्रतहीन. (२) मिथ्यात्वमथन प्रकरण-दानविधि, संबद्ध, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (धम्मोवग्गह दाणं दिज), ३३२०६-१(+) मुखवस्त्रिकाविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चउरंगुलं विहत्थीएय), ३२१०३(+) (२) मुखवस्त्रिकाविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (चत्वारी अंगुलानि), ३२१०३(+) मुहपत्ति निर्णय, पुहि.,प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (ढूंढिये कहते हैं कि), ३३५४१ मूत्रपरीक्षा, सं., श्लो. ३०, पद्य, श्वे., (श्रीमत्पार्श्वभिध), ३३८९५ ।। (२) मूत्रपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीपार्श्वनाथ), ३३८९५ मृगसुंदरी कथा, सं., श्लो. १४७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रथमं देव), ३३९०६ मेघाभ्युदय काव्य, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., श्लो. ३६, पद्य, श्वे., (जितालिमाला मधुभित्तम), ३१११८-२(+) (२) मेघाभ्युदय काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (कापि स्त्री मेघागम), ३१११८-२(+) मोक्षपंचाशिका, श्राव. दलपतिराय श्रमणोपासक, सं., श्लो. ४९, पद्य, मूपू., (--), ३४२०९(5) मौनएकादशी गणना, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहाजससर्वज्ञाय), ३१५३५ मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), ३१६५२, ३३५३३ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., श्लो. ११३, पद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ३४२८४ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), ३०३३४, ३१५२१, ३२५२३, ३३९६० मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., गा. १५७, पद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ), ३१६५३, ३२२२२ मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते), ३३२८३, ३४२८८-१, ३१०५१(६) मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते अतीत), ३३५३१(+), ३१०९२, ३३५०४, ३३५०८, ३३५१२, ३३५१९ मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ३३१३५(६) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ३३२२६-३, ३२९१७-४(-) यंत्र, मा.गु.,सं., यं., जै., वै., (--), ३२०३२-५ यंत्र-मंत्र संग्रह, सं., गद्य, वै., (--), ३०५०३-३ यंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., को., जै., वै., (--), ३२५७०-३, ३०३७७-३(#) यवराजर्षि कथा, सं., श्लो. ११२, पद्य, मूपू., (विशालास्ति पुरी जैन), ३०८०७ यवराजर्षि गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (उहावसीहा पुयावसहा), ३२९०५-६ यात्रापुण्य स्तोत्र, अप., पद्य, मूपू., (जे पुण्य नंदीसरजत्त), ३१३५४-४(5) युगप्रधानआचार्यादि संख्याविचार, प्रा., गद्य, मूपू., (पढमे वीस बीए तेवीस), ३११२०-४(+) योगनंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सू. ९, गद्य, मूपू., (नाणं पंचविहं पण्णत्त), ३०८४५-२(+$), ३३३९७ For Private And Personal use only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०७ योगविधि यंत्र, सं., यं., मूपू., (--), ३०१४६ योगविलास मालोपधान क्रिया, सं., पद्य, म्पू., (श्रीवीरं प्रणिपत्य), ३४१७०($) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, भूपू., (नमो दुर्वाररागादि), ३३३८०(+s), ३४०५३(+), ३०१५९, ३४१५६, ३१०६२-१(#), ३२५४५(#s), ३२७७३(#$), ३१३४५(६), ३३१७१(६) (२) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (अत्र महावीरायेति), ३४०५३(+), ३०९८७-१ योगसार, सं., प्र.५, श्लो. २०६, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), ३१४३४ (२) योगसार- चयन, सं., श्लो. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), ३३६६५ योगानुष्ठान कुलक, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जोगाणुट्ठाणविहिं), ३०९१८(+) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओमिति नमो भगवओ), ३२३६९-६ योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअक्खंधो), ३२४७८($) रत्नचूड कथा, सं., श्लो. १४७, पद्य, मूपू., (क एष रत्नचूडाख्य इति), ३२३९४-१ रत्नप्रभसूरि अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (भव्यावलीकमलकाननराज), ३३८७७-१ रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., श्लो. ५५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे उवया), ३३७०१(६) रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ३०८१३(+), ३०९७०-६(+), ३२२०४(+), ३१४६२-१, ३२२३३-१, ३३३६२, ३३४१७, ३३६०७-१, ३४१६९-१(६), ३४२९१(5) (२) रत्नाकरपच्चीसी-टीका, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. ३००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमदर्हन्न), ३४२९१(5) (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो कल्याणक लक्ष्मी), ३१४६२-१ राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), प्रतहीन. (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३७००, गद्य, मूपू., (प्रणमत वीरजिनेश्वर), ३४१४८(+#$) रात्रि में जिनमंदिरगमन, दीपककरणादि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (रात्रौ देवगृहे गमनं१), ३४३९९(+) राहुचक्र श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (राहु प्राच्यां तथा), ३३२२८-३ रोहिणीतपफल कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्यमानम्य), ३४१०२(+) लक्ष्मीदेवी वर्णन-चौदहस्वप्नगत, सं., गद्य, मूपू., (हिमवतः पर्वतात् आगता), ३१४३०-२ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपट्ठिय), ३३३५१(+$), ३२४६२(#$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-विवरण, सं., गद्य, मूपू., (मनुष्यक्षेत्रपरिधिः), ३३८३६ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-यंत्र संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (मनुष्यक्षेत्रविस्तार), ३३८३४ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-यंत्र संग्रह *मा.गु., को., पू., (--), ३०८२५ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, प्रा., गा. ७७, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिण वंदिय), ३३४०१(+) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७+२, पद्य, मूपू., (शांति शांतिनिशांत), ३०१६९(+), ३०४८०(+), ३१४४२(+), ३१७४९(+), ३२०६७-१(+), ३०५८०-२, ३०७७०, ३११९१, ३१६२६, ३१९५९-१, ३२२१३, ३३४३१, ३३६६०, ३४०५१, ३४३७८-२, ३४४२२, ३२७१९(#), ३३१८५-१($) (२) लघुशांति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६४४, गद्य, मूपू., (सर्वसर्व सिद्ध्यर्थ), प्रतहीन. (३) लघुशांति स्तव-टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसार्व सर्वसिद्ध), ३०१६९(+) (२) लघुशांति स्तव-वृत्ति, ग. धर्मप्रमोद, सं., ग्रं. २१७, गद्य, मूपू., (श्रीशांतये श्रीमंत), ३३६६० (२) लघुशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमानदेव आचार्य), ३१४४२(+) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), ३२३८४(+), ३२३८५-२(+), ३३८४०(+), ३४३९८(+#), ३२४५८, ३३४०३, ३४०३४, ३४३२६ (२) लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय क० नमस्कार करी), ३२३८४(+), ३३८४०(+), ३३४०३($) (२) लघुसंग्रहणी-गणितपद विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रणलाखने सो गुणा), ३३२१३ For Private And Personal use only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ (२) लघुसंग्रहणी-जंबूद्वीप विचार *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३४०९४-६ लघु साधु आराधना, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (चरमव्यवहाराख्ये राशौ), ३२४०१ लेखनी शुभाशुभ विचार, सं., श्लो. २७, पद्य, श्वे., (पंचसप्तनवमांशात्), ३०५१८-१ लेश्याविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (लेसा तिन्नि पमत्तता), ३१३६०-४ लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणदंसणं विणा जं), ३०१५४(+), ३१४२३, ३१६४९, ३४१६६-१, ३४२३९ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टीका, सं., गद्य, मूपू., (जिणदंसणं गाथा जिन), ३४२३९ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिणदंसणेति० जिनदर्शन), ३१४२३, ३१६४९ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिणहस वइसाह प्रसारि), ३१६४८ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनंतज्ञानकलित हतदोष), ३०१५४(+) लोच विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ३३५२२ लोच विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (पच्चइएणय लोओ कायव्वो), ३३६०८-१ वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमियसुरवर), ३१४८२ वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठि), ३११०५-३(+), ३२४५२-२(+#), ३३३३४-१(+), ३१८८७-२, ३३४७३-३, ३३६५१-१, ३३९९४-५, ३१५८५-२(#) वडीदीक्षादि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिक्कमी), ३२९९५(+) वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७१, पद्य, मूपू., (उसभाइ जिणिंदे पत्तेय), ३१५१६, ३२२२८-१, ३२३५३, ३२३५४ (२) वनस्पतिसप्ततिका-टीका, सं., गद्य, मूपू., (उसभेत्यादि ४ रुक्खा०), ३२३५४ (२) वनस्पतिसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (उसभेत्यादि गाथा ४), ३४०१७-१(+S), ३१५१६, ३२३५३ वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ३४१७९ वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानं सारं सर्व), ३३५१७, ३४१८९ वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. सिंहतिलकसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ९६, प+ग., मूपू., (श्रीवीरं जिनं नत्वा), ३३३१७(+) वसतिदानादि विषयक दृष्टांत कथासंग्रह, प्रा.,सं., कथा.८, गद्य, मूपू., (वसही सयणासण भत्तपाणे), ३४०२९(5) वसुधारा-लघु, सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ), ३४३०७-१ वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, म्पू., बी., (संसारद्वयदैन्यस्य), ३०२२८(+), ३०९०२(+), ३०५०२, ३०५०४, ३०८१२,३०९०१, ३१०२५, __३२५४७, ३३६३९-१, ३४३१६, ३२५३९(#s), ३२३७४($) वस्तुपालतेजपालकृत धर्ममार्ग धनव्यय संख्या, अप., गद्य, मूपू., (१२५०००० बारलाख पचास), ३१४५३ वस्तुपाल संक्षिप्तजीवनचरित्र, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (संवत् १२६२ वर्षे), ३२७४४(+) वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., श्लो. १२५, वि. १५०७, पद्य, मूपू., (प्रणम्यात्मविद), ३२३२५(+) वादिमत निरासस्थल, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (शब्दोयंप्रतिपन्नशब्द), ३०९३० विंशतिजिन स्तवन, मु. जिनदास, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (भव्वकमलमायंडं सिद्ध), ३०९१२ विचार गाथा संग्रह, प्रा.,सं., गा. ३, गद्य, मूपू., (बत्तीसं कवलाहारो), ३१५०४-२(#) (२) विचार संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बत्तीसंक० भरत), ३१५०४-२(#) विचारछत्रीसी प्रकरण, प्रा., वि. १६४५, पद्य, मूपू., (नमिय परमिट्ठ कहियं), ३२६७५-७($) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (अद्दामलग पमाणे पूढवि), ३२६३५(5) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (नवकार इक अक्खर पावं), ३१३३६ विचार संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (विहवाणुसारउ पुण सत्त), ३१३९४ विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), ३१३७७-४(+), ३२५५७-२ विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ३०८३८-१(+), ३४२८२(+), ३०४६६-२, ३०५८७, ३१०३४-२, ३३४२२-२(5) विजयक्षमासूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीमच्छ्रीविजयादि), ३२००९-२ For Private And Personal use only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- १ ५०९ विजयदेवसूरिस्तोत्र, सं., श्लो. १५, पद्य, म्पू., (विजयदेव गुरुं प्रणमा), ३३०८०(+) विजययंत्र कल्प, सं., श्लो. २६, पद्य, जै.?, (पुव्वं चियने रइए), ३३५९९-१, ३३९३४-३ विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नृपतिनाभिकुलांबरभास), ३४१७२-८ विजयसिंहसूरि विज्ञप्तिका, उपा. लावण्यविजय, सं., श्लो. ७३, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रियं), ३१४३३ विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., परि. ४, श्लो. २७६, पद्य, बौ., (सिद्धौषधानि भवदुःख), ३३३९६(+$) (२) विदग्धमुखमंडन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., बौ., (ग्रंथादौ धर्मदासनामा), ३३३९६(+$) विद्यामहत्त्ववर्णन श्लोक संग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., वै., (विद्या नाम नरस्य रूप), ३४०९९-३, ३२४३६-३(#) विद्वद्गोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (येषां न विद्या न तपो), ३१०७९-३, ३२५७६-२, ३२६५५ विधिपंचविंशतिका, ऋ. तेजसिंघ, सं., श्लो. २६, पद्य, श्वे., (यदुकुलांबरचंद्रक नेम), ३००४६(+) (२) विधिपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (यादव- कुल ते रूपी), ३००४६(+) विधिप्रपा, प्रा., पद्य, जै., (संपयंपुण सम्मत्तारो), प्रतहीन. (२) प्रव्रज्याविधि-विधिमार्गप्रपानुसार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां चारित्रोप), ३४३३५(+) विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ३०२६७, ३२५५१(#$) विमलजिन स्तवन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (भूमी धनैः प्रवरगंध), ३३०५५-१ विमानश्रेणिसंख्या विचार-ऊर्ध्वलोके, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (पन्नट्ठमट्ठसीया), ३२१६२-१(+) विविधतपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ पिस्तालिस आगमनो), ३३५९३ विविधविचार संग्रह, प्रा., पद्य, मूपू., (वासासु सगदिण उवरि), ३३६२२-२ विविधविचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (--), ३०८६०-२(+), ३३८५३(5) विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि , प्रा., गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मूपू, (सिद्धिपुरसत्थवाह), ३१०३२(६) विषम काव्य-बहुभाषामय, अप.,प्रा.,फा.,सं., गा. २२, पद्य, मूपू., वै., (यामाता ममता माया), ३११४९(+) (२) विषम काव्य-वृत्ति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (यामेति गक्षेति गंगा), ३११४९(+) विहरमान २० जिन स्तव, प्रा., पद्य, मूपू., (पंच धणुसे माणे), ३०४१३-२ विहरमानजिन २१ स्थानक प्रकरण, आ. शीलदेवसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (संपइ वट्टताणं नाम), ३१४८०-१(+), ३३९४३(+) (२) विहरमानजिन २१ स्थानक प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (संप्रति वर्तमाना), ३१४८०-१(+), ३३९४३(+) वीतराग स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीवीतरागसर्वज्ञ), ३२३७१-३ वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), ३०९७८, ३०९७२($) (२) वीतराग स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (यः किल परात्मा सश्रद), ३०९७२(६) (२) वीतराग स्तोत्र-अवचूरि , मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., प्रका. २०, ग्रं. ६२५, वि. १५१२, गद्य, मूपू., (जयति श्रीजिनो वीरः), ३०९११ वीरशासने प्रमुख घटना व काल, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरात् २९१ संप्र), ३२१२९, ३२३०३-२ वृंदावन काव्य, सं., श्लो. ५२, पद्य, वै., (वरदाय नमो हरये पतति), ३१११८-१(+) (२) वृंदावन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (तस्मै नमः य), ३१११८-१(+) वृद्धिसागरसूरि स्तुति, मु. जिनेंद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विशारदांबां जगतसवि), ३२३४१-१ वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०५, पद्य, मूपू., (संसारंमि असारे नत्थि), ३१०६७(+), ३१६४३, ३३९५४(६), ३४३६२-२($) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार असारमाहि नथी), ३३९५४($) वैरोट्यादेवी स्तुति, अप., गा. ३२, पद्य, मूपू., (नमिउण पासनाहं असुरिं), ३३९९४-६ व्याकरण, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., वै., (रंते भव: दंत्य: देत), ३३३२४-२ व्याकरण संग्रह, सं., गद्य, (--), ३३३८१-३ व्याख्यान पीठिका, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (नमो अरिहताण), ३००७५, ३०२२५, ३०४३८, ३१५९४ व्याख्यान मांडणी, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम नवकार कहीइ), ३००५३ For Private And Personal use only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१० www.kobatirth.org व्याख्यान वांचन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, वे., (प्रथम इरियावहियं), ३४२२२-३(+) व्याख्यान संग्रह *, मा.गु., रा. सं., गद्य, मूपू., (देवपूजा दया दानं), ३२६७९ ($) शक्रस्तव - अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग, मूपू., (ॐ नमोर्हते भगवते), ३०५७४ ($), ३४००० ($), ३४०३० ($), ३४०७९-१(5) शतपंचाशिका प्रकरण, प्रा., गा. १५९, पद्य, मूपू (चउवीसं तित्थयरा बारस), ३१४२२-१(+) " " शत्रुंजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३९, पद्य, मूपू., (सुअ धम्मकित्तिअंत), ३०९०३, ३३३८७-२ ($) शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (विमलकेवल ज्ञानकमला), ३३५७३ शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, भूपू (आदिनाथ जगन्नाथ विमला) ३०८६२-१, ३४२७५-३ शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ), ३२२१४, ३३८४६-३, ३४१८६ (२) शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अइमुत्तइ केवलीइं), ३२२१४ (२) शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प- अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अइमुत्तइ केवलीइं), ३४१८६ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पुंडरीकगिरि राजशेखरं), ३१३५४-२ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धक्षेत्र), ३०३१७-१ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (सिद्धं श्रीपुंडरीका) ३१३५४-१ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सिद्धो विज्जाइ चक्की), ३३२५१-३(#) शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. १००००, पद्य, मूपू., ( ॐ नमो विश्वनाथाय), ३१६६७($) शनिभार्या नाम सं., श्लो. २, पद्य, वै., (ध्वजनी धामनी चैव), ३४१९५-४ शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टा), ३०५२०-२ (+#), ३०७२५-२, ३२४७३-३, ३२६६३-४, ३३९९४-२, ३४१९५-५ शब्द संग्रह *, मा.गु., सं., हिं., गद्य, (--), ३१८६५-२ शब्दांबरगुणत्वनिषेधस्थली, सं., गद्य, मूपू., (ये केचन श्रोत्रियाः), ३१३७५-२ शांतिचक्र पूजा, सं., गद्य, वे. (अर्हद्वीजमनाहतं च), ३३८७०(३) शांतिजिन अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (त्रैलोक्याधिपतित्व), ३२९२० शांतिजिन अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (भक्त्या क्रमाब्ज), ३३४३६-३ (+), ३४२५५-४ शांतिजिन चरित्र, सं., पद्य, मूपू., (--), ३२५०० ($) " शांतिजिन स्तव, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., शांतिजिन स्तवन, प्रा., गा. ६, पद्य, भूपू शांतिजिन स्तवन, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू शांतिजिन स्तुति, आ. ललितप्रभसूरि, सं. " शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. कुशलसागर सं., श्लो. १३, पद्य, मूपु (सकलदेवनरेश्वरवंदितं), ३३९२२-४ "" - (वासवानतदेवेन रंगागार), ३३०२१-२ (जयसिरि दाया संति), ३४१३७-२ (शांतं कांतं शिवपदगतं) ३०९६२-३(+) श्री. ४, पद्य, मूपू., (वः स्वामी कारुण्यात्). ३१०१८(+) (२) शांतिजिन स्तुति टीका, मु. भावरत्न, सं., वि. १७६५, गद्य, मूपू (अहं तं शांति शांति), ३१०१८ (+) こ शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., ( अं ही कूर्म युगं), ३३२२६-४ शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), ३०२३८-३(+), ३३८०१-४ - कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ , शांतिजिन स्तोत्र, मु. भक्तिचंद्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., ( प्राप्तमहाभवजलनिधि), ३२३४६-२ शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (शांतये शांतिकामाय ), ३४२९२-१ शारदादेवी स्तुति, सं., भो. ८, पद्य, वै., (प्रथमं भारती नाम), ३३७६९-३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only शारदामाता छंद, प्रा., मा.गु., सं., गा. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे., (सकल सिद्धि दातार), ३०३०३ (+), ३०५१२-२(+), ३०१६६ शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (सिरिउसह वद्धमाणं), ३३१९८ (+), ३२१५८, ३००६१(#) (२) शाश्वतचैत्यस्तव अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (श्रीऋषभ वर्द्धमान), ३२१५८ " (२) शाश्वतचैत्य स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (ऋषभनाथ वर्द्धमान), ३३१९८(+), ३००६१) , Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५११ शाश्वतजिन स्तोत्र-मनुष्यक्षेत्रे, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य वृषभं शंभू), ३३५२०(+) शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (नित्ये श्रीभुवना), ३११९२-१, ३२२२५-२ शिवभद्र काव्य, शिवभद्र, सं., श्लो. २८, पद्य, वै., (अथ शुभ चापगुणेषु), ३१११८-६(+) (२) शिवभद्र काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (अथ राम प्रेषणानंतर), ३१११८-६(+) शिवभद्र काव्य, शिवभद्र, सं., श्लो. १९, पद्य, वै., (प्रणमत सदसि गदत), ३१११८-५(+) (२) शिवभद्र काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (तं हरिं नमत किं भूत), ३१११८-५(+) शीलकुलं, प्रा., गा. ५, पद्य, भूपू., (सीलं उत्तमवित्त), ३१४३५-२ शीलगुप्ति कुलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीर भणामिह), ३२६१२(+), ३१६११, ३१७२९ (२) शीलगुप्ति कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भणु हुं शिलगुप्तीनो), ३२६१२(+), ३१६११, ३१७२९ शीलव्रत पाठ, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (अहं भंते तुम्हाणं), ३०७७७-२ शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मूपू., (आबालबभयारि नेमि), ३२५५०(+#), ३१४३५-१, ३२३१२, ३४३७१(#$) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आबाल ब्रह्मचारी बालक), ३४०१०(5) शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., गा. ११६, पद्य, मूपू., (आबाल बंभयारि नेमि), ३३४४४ शुक्रउदयास्त विचार, मा.गु.,सं., श्लो. ४, पद्य, (लातं बंगाल देसेषू), ३१९५२-२ शुभकर्मबंध आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (कहिणं भंते जीवा सुह), ३४३२९-३(+) (२) शुभकर्मबंध आलापक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (केणइ प्रकारइ हे), ३४३२९-३(+) श्रमण अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (विशेषतश्चारित्रारी), ३१४२४ श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४१, ग्रं. ३९०, पद्य, भूपू., (वीरं नमिऊण तिलोयभाणु), ३१५८४($) श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., प्रका. ६, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं पणमिय), प्रतहीन. (२) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., प्रका. ६, ग्रं. ६७६१, वि. १५०६, गद्य, मूपू., (अर्हत्सिद्धगणींद्र), ३३९८९ (६) (३) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत सिद्ध), ३३९८९($) श्रावक ११ प्रतिमा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अहन्नं० मिच्छतं दव्व), ३२३६९-४ श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (दसण वय सामाई पोसह), ३२६१७, ३३२०२-२ (२) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पढम उव० पहिली दसण), ३२६१७ (२) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मास लगइ समकित), ३३२०२-२ श्रावक १२ व्रत विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावक धर्मनइ विषई), ३१३६०-१ श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ३११२१-३(+), ३०४३७, ३१८९४-४, ३२२८९-३, ३२९९४-२,३३५८२-२, ३४१२४-२ (२) श्रावक १४ नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणी फल बीज दातण ते), ३११२१-३(+), ३०४३७, ३२२८९-३, ३३५८२-२ (२) श्रावक १४ नियम गाथा-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (किनहीक श्रावक पांच), ३३२९४-२(#) श्रावक २१ गुण, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (धम्मरयणस्स जुग्गो), ३०१२५-१ श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ प्रणिपत), ३२००१ श्रावकआलोयणा विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (हत्थुत्तरसवणतिगे), ३३८०८ श्रावक इच्छापरिमाण, प्रा.,मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (वंदिय सुहगुरु लेइसु), ३०९४२-१ श्रावक के १४ प्रकार, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (मृता चालिणी महिख हश), ३४२८५-२ (२) श्रावक के १४ प्रकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुखे भेदवा योग्य), ३४२८५-२ श्रावकधर्मकृत्य, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., गा. २४५, वि. १३१३, पद्य, भूपू., (भेजुर्यस्याङ्घ्रियुग), ३३२५१-४(#$) For Private And Personal use only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१२ www.kobatirth.org יי श्रावकव्रतभंग प्रकरण, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूपू., (पणमिअ समत्थपरमत्थवत), ३३८५४-१ (२) श्रावकव्रतभंग प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., ( व्रतं नियमविशेषः), ३३८५४-२ ($) श्रवकव्रत भांगा, प्रा., मा.गु., गद्य, से., (चउवीस लखइ गुयाल सहस), ३०११४-१ श्राविकाइच्छा परिमाण, प्रा. मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू. (वंदीय गाधार दिवसि), ३०९४२-२ लोक संग्रह, सं., श्लो. ११, पद्य, (अस्मान् विचित्रवपुषि), ३२७१८-२ श्लोक संग्रह, प्रा., पद्य, वे. (उसलाइ जिनवरिंदे), ३२४४७-२ श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), ३११६३-३ (+), ३४३४८-३(+), ३०२०८-२, ३०२८१-२, ३०३०५-२, ३०६६०-३, ३०८१९-७, ३१३३२-२, ३१४१९-३, ३१४५१-२, ३१५७४-३, ३१५८२-२, ३१६६२-२, ३१७१०-२, ३१८८७-५, ३२११०३, ३२३३०-२, ३२५५४, ३२५५५, ३२५५८-२, ३२५७६-३, ३२७८१-३, ३२८५९-२, ३२८९४-४, ३२८९६-२, ३३०५८-२, ३३०९५-२, ३३२२१-२, ३३२३२-२, ३३२६७-२, ३३२८१, ३३३८३-२, ३३५२५-२, ३३५५८-६, ३४२३१-२, ३४२५६-२, ३४३०६, ३४३३८-१, ३२०४४-२ (०) ३२०४५ (३), ३२०१७-२ (५), ३२०६९-२) (२) श्लोक संग्रह- व्याख्या, सं., गद्य, भूपू (--), ३४३४८-३(+) लोक संग्रह, सं., पद्य, जे. वे., (जिनेंद्र पूजा गुरु), ३१३७७-३(+), ३१९४०-२(+), ३१४६२-२, ३३१५८-२ लोक संग्रह, प्रा.सं., पद्य, (--), ३२५८२-५ (+), ३०८७६-३, ३१७१०-३, ३१७१७-२, ३२१३३-२, ३२२१०-१, ३३३९४-२, ३४३५५-२ श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, वे., (देहे निर्ममता गुरौ ३०१७५-२(+) ३०६८७-२(+), ३१५३०-३(+), ३१५३३-२(+), ३२७२२-२(+), ३०११४-२, ३२७०५-३, ३२७७१-४, ३३२३५-२, ३३३५७-२, ३३६०८-२, ३३६१३-२, ३४२९२-३, ३१९६९-२(-$) षट्त्रिंशजल्पविचार संग्रह, मु. भावविजय, सं. वि. १६७९, गद्य, मूपू (ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथ), ३३७११(5) षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमंकर, सं., प+ग, भूपू (श्रीअतश्चतुस्), ३४१५३(5) "" कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि सं., अधि. ७, श्लो. ८७, ई. ८वी, पद्य, भूपू (सद्दर्शनं जिनं नत्वा), ३११३६(+), ३०१२६-१. こ ३१२२३ संख्यातादिभेद विचार, मु. पार्श्वचंद्र, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (से किंतं गणण संखा), ३०७४१($) संख्यारूप विचार, उपा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., (एक: एका एकं द्वौ), ३२५१६-२ संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (वह्निज्वालावलीढं), ३००७७ (+) संघस्वरूप कुलक, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., ( केई उम्मग्गठिअं), ३२२०७ (+) (२) षड्दर्शनसमुच्चय-लघु, संक्षेप, सं., पद्य, मूपू., (जैनं नैयायिकं बौद्ध), ३०१२६-२ षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १६१+४, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो सुगुरू), ३२४०५-१ (+), ३०९५५-१, ३१५५१(३) ३२६८४) (२) संघस्वरूप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (केतला अज्ञान लोक), ३२२०७(+) संज्ञा कुलक, प्रा. गा. ५, पद्य, थे. (रुक्खाण जलाहारो), ३२३८७-२ "" संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि प्रा. गा. १४ वि. १५वी, पद्य, मूपू (संतिकरं संतिजिणं), ३४१६२-१(+), ३०६९७-१, ३१२८४, ३२१२५, ३२२९५, ३३५११-१३३६२३ (२) संतिकरं स्तोत्र - टीका, सं., गद्य, मूपू., (मुनिसुंदरसूरिप्रणितश), ३२१२५, ३३६२३ (२) संतिकरं स्तोत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (जगमांहि शांतिनो करण), ३३५११-१ (२) संतिकरं स्तोत्र-संतिकरस्तव आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., ( एतत्स्तोत्रं त्रिकाल), ३४११५(+#) संधारापचक्खाण विधि, प्रा., मा.गु, गद्य, स्था. (प्रथम इरियावही), ३४३४७(+) "" संधारा पच्चक्खाण, प्रा. सं., गा. १२, पद्य, म्पू, (संसारम्मि अणते परिभ), ३१५२६-२ , For Private And Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१३ संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (निसिही निसिही निसीहि), ३०३०२(+), ३०८३५ (+), ३३८६७(+), ३००३३, ३०१०८-१, ३०२१०, ३१३६९-२, ३१३७०, ३१३९५, ३१४३९, ३१५६२-१, ३१६६२-१, ३१६८९, ३२२१७, ३२५३६-१, ३३१७३, ३३२०८-२, ३३३३८, ३३७१३, ३४३०५, ३४४१५-१, ३४०४०-२, ३०८०८-४($), ३३१७७($), ३३९२७($), ३३४४५-१(-) (२) संथारापोरसीसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (निसीही ३ कृत स्वाध्य), ३०८०८-४($) (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार विना बीजो), ३१४३९(5) (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुउ क्षमा), ३०८३५(+) (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवै ३ वारने), ३०१०८-१ संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५+२, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरु), ३१५४२-१(+), ३१६४६-१(+$), ३१३०२, ३१५८६, ३१६४५, ३१७४१, ३१९१२, ३२१५३, ३३८५९-१, ३२५६०(#$) (२) संबोधसप्ततिका-टीका, सं., गद्य, मूपू., (वीरं त्रैलोक्य गुरु), ३१६४५, ३२५६०(#$) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार करीनइ तिन), ३१५४२-१(+) संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अहं भंते अपछिम मारणं), ३२१६६(-) संवेगद्रुमकंदली, आ. विमलाचार्य, सं., श्लो. ५२, पद्य, मूपू., (दूरीभूतभवार्तिभिः), ३३६८५ सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (नत्वा वीरजिनं जगत्त), ३११३०, ३२५१७ सज्झाय विधिसंग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ३१५९५-३(+) सद्गतिदुर्लभ गाथा, प्रा., गा.१, पद्य, मूपू., (नाणं १ नियमग्गहण २), ३४२८५-३ (२) सद्गतिदुर्लभ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञाननु भणवउं भणावि), ३४२८५-३ सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध, प्रा., गद्य, श्वे., (सणकुमारेण भंते), ३४११९(+), ३०४९०-१ (२) सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (सनंतकुमार हे पुज), ३४११९(+) सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ७२, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थं), ३३३५२(+$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (सिद्ध निश्चल पद छइ), ३३३५२(+$) सप्तभंगी स्वरूप, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिया अत्थि १ सिया), ३२३६१ (२) सप्तभंगी स्वरूप-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल पदार्थ आप आपणे), ३२३६१ सप्तस्थान प्रकरण, प्रा., गा. ३९, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं कणयणि), ३११०० समवसरण विचार, सं., गद्य, मूपू., (बाह्यरुप्यमये प्रकार), ३४०१७-२(+) समवसरणविचार स्तवन, सं., श्लो. ३४, पद्य, मूपू., (सत्केवलज्ञान महाप्रभ), ३१६४२-५, ३२१५२ समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (थुणिमो केवलीवत्थं), ३२४६९-१(+), ३२५१८(+), ३३७९१(+$), ३०१०६, ३११९३, ३२३७९-१, ३३६५९, ३४०७८-१ (२) समवसरण स्तव-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (उभयपाधैवप्रउयसत्), ३४०७८-२($) (२) समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थंकरं समवसरणस्थ), ३२४६९-१(+), ३२५१८(+), ३०१०६, ३३६५९ (२) समवसरण स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्तवीश केवलज्ञानीनी), ३३७९१(+$), ३११९३ समुद्धात विचार - विविध आगमों से उद्धृत, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (कतिणं भंते समुग्घाया), ३४३९६ समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उच्चारेसु वा क०), ३३५८१-३(+), ३२४१६-२ सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चउसद्दहण तिलिंग दस), ३२४२५-१(+) (२) सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद-विवरण, प्रा., गद्य, मूपू., (जाणंतस्स विआगमअब्भास), ३२४२५-१(+) (२) सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम चार सद्देहणा), ३३९९७ सम्यक्त्वकौमुदी कथा, उपा. विनीतसागर, सं., ग्रं. १५८७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), प्रतहीन. (२) सम्यक्त्वकौमुदी कथा के बोधदायक श्लोक, उपा. विनीतसागर, सं., श्लो. १५१, पद्य, मूपू., (सारंगी सिंहशाव), ३०१६४(६) सम्यक्त्व पच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूव), ३२२१९(+), ३२४९३(+), ३३५३९(+), ३४३८३ (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा येन औपशमिकत्वादि), ३२२१९(+) For Private And Personal use only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह कहतां जे उपशमादिक), ३३५३९(+) सम्यक्त्वब्रह्मचर्यादिव्रतोच्चार विधि, सं., गद्य, मूपू., (प्रथम नालिकेरादि), ३१२७५-१(+), ३१८६६ सम्यक्त्वरहस्य प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ९२, पद्य, मूपू., (पत्तभवो अहितीरं कोहा), ३२२४१ सम्यक्त्व सप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (दसणसुद्धिपयास), ३१५१७, ३२६१६-१(६) सम्यक्त्व स्वरूप गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (खइयं खउवसमियं वेइय), ३१३४१-१ (२) सम्यक्त्वस्वरूप गाथा-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलौसमकित क्षायिक), ३१३४१-१ सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणा), ३०९१७, ३२३६९-२ सम्यक्त्वादिव्रत आरोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (तच्छाईए सम्मत्तारोवण), ३३३०४ सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (जय सरस्वति देवि मही), ३३५५८-३ सरस्वतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, जै.?, (सरस्वती महाभागे वरदे), ३३७६९-४ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, मु. उत्तमसागर, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (नमोस्तु वचन), ३०१६२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जलधिनंदनचंदनचंद्रमा), ३०६८१, ३२१४४-३, ३४१९५-३ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. रत्नविजय, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (वाग्दैवतायाश्चरणं), ३२४४०-२(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., श्लो. ११, वि. १५२७, पद्य, मूपू., (कमलभूतनया मुखपंकजे), ३२१४४-२, ३४१९५-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (नमोस्तु शारदादेवी), ३०२१४-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), ३०९२५-२(+), ३१२३६-३, ३१५०१-२, ३१६४२-४, ३२१००-३ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (वाग्वादिनी नमस्तुभ्य), ३३०९५-३, ३३३७५-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (व्याप्तानंत समस्तलोक), ३३६१३-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र-अष्टोत्तरशतनामगर्भित, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (धिषणा धीर्मतिर्मेधा), ३२७१८-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., श्लो. १२, पद्य, जै.?, (नमस्ते शारदा देवी), ३२७९०-१, ३३९९१-१ सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मानं), प्रतहीन. (३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., वृ. ३, ग्रं. ७५००, वि. १६२३, गद्य, मूपू., वै., (नमोस्तु सर्वकल्याणपद), ३२३००(#S) सर्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशेजय रैवता), ३३९२२-३ सर्वज्ञवर्णन स्तवन, मु. जसवंतसागर, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (ॐकार रूपं परमेष्टि), ३२०८२-१(+) सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. ६८, पद्य, मूपू., (लक्ष्मीभृद्वीतरागः), ३१३७५-१ सर्वज्ञाष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जयति जंगमकल्पमहीरुहो), ३३९२२-५ सर्वाधिकार गाथासंग्रह, मु. ज्ञानविमलसूरि-शिष्य, प्रा.,सं., गा. ३३९, पद्य, मूपू., (पढमो बारसमत्तो बीओ), ३४०८०-२($) सर्वार्थनिरासस्थल, सं., गद्य, मूपू., (य: कार्य सिद्धिपार्श), ३३६४६ साधर्मिक कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (नमिऊण पासजिणं वुच्छ), ३४०७६-१(+) साधारणजिन अतिशय चैत्यवंदन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (तेषां च देहोद्भूतरूप), ३४२३१-१ साधारणजिन चैत्यवंदन, प्रा.,मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदेह भगव), ३४०६०(#) साधारणजिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (कल्याणपादपाराम), ३२०८३(+) साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभो य), ३०१५८(+#), ३१०८७-२(+), ३१६९४(+), ३२१५७(+), ३३२६५(+), ३३५४३-१(+), ३४२४२-१(+$), ३०९०७-१, ३१००५(#$) (२) साधारणजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथं नमस्कृत), ३१००५(#$) (२) साधारणजिन स्तव-वृत्ति, मु. कनककुशल, सं.,ग्रं. १४२, गद्य, जै., (देवाः प्रभो. द्याख्य), प्रतहीन. (३) साधारणजिन स्तव-वृत्ति की अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. १४२, गद्य, मूपू., (हे प्रभो सत्वमया), ३०१५८(+#), ३१०८७-२(+), ३३२६५(+) For Private And Personal use only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) साधारणजिन स्तव-व्याख्या, ग. विजयविमल, सं., गद्य, मूपू., (देवाः१३ प्रभो११ यं२१), ३२१५७(+) (२) साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, मूपू., (देवाः प्रभोयमित्यादि), ३२१५७(+), ३०९०७-१ साधारणजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयश्रियां धाम सुधामध), ३१०८७-१(+) (२) साधारणजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, मूपू., (हे श्रीजिन हे कल्याण), ३१०८७-१(+) साधारणजिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (वीतरागविगत्स्मरकोपमा), ३२३७१-४ साधारणजिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो.८, पद्य, मूपू., (श्रीमन् धर्मः श्रय), ३३३३१-१(+), ३३५४३-२(+) साधारणजिन स्तव, सं., पद्य, म्पू., (कल्याणसिद्धिसदनं सदन), ३१४७६(+$) साधारणजिन स्तव, प्रा., गा.८, पद्य, मूपू., (गयरायं गयरायं गयराय), ३३७३१-२ (२) साधारणजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (गतरागं वीतरागं गदा), ३३७३१-३ साधारणजिन स्तव, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (जयपयडपयावं मेघगंभीर), ३४०३६(+), ३२०३०(७) साधारणजिन स्तवन, मु. गुणविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सुखसिद्धि शिवद्धि), ३३२०४ साधारणजिन स्तवन, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (ॐकार ध्येयरूपः प्रथम), ३३४८६-१ साधारणजिन स्तवन, अप., गा. २७, पद्य, मूपू., (एहि मुखए च देहि), ३११७३-१ साधारणजिन स्तवन, प्रा., पद्य, मूपू., (नमिउंसयल सुरासुर), ३३८४६-४($) साधारणजिन स्तवन, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (नमो ते छिन्नसंसार), ३११२०-२(+) साधारणजिन स्तव-यमक, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (त्वयिल सद्गणचंदन), ३४०३८ साधारणजिन स्तुति, ग. साधुराज, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (आंबारायण सेलडी खडहडी), ३१११५ (२) साधारणजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (चित्तकारि स्तुतेर्थ), ३१११५ साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराज: पदपद्म), ३०११८-४(+), ३०८०८-३, ३१८८७-३ (२) साधारणजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीतीर्थाधिपतिर्वो), ३०८०८-३ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरलकमलगवल), ३२००६-१, ३२९१७-५(-) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू., (गर्जितबधरी कृत ककुभा), ३३२२६-६ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (जिनो जयति यस्याही), ३२५८२-४(+) साधारणजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (व्रतसुमुदय मूल संजम), ३३५४२-२(-) साधारणजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३७, पद्य, मूपू., (--), ३२५१३(+$) (२) साधारणजिन स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ३२५१३(+$) साधारणजिन स्तोत्र-अष्टमहाप्रातिहार्यगर्भित, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (स्वर्ण सिंहासन), ३१५४०-२(2) साधु अकल्पनीय-चलितरस आहार वर्णन, प्रा., पद्य, मूपू., (रसज पाणेहिव रसया रस), ३४२८० (२) साधु अकल्पनीय-चलितरस आहार वर्णन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एतानिजायगुसुत्रमाहि), ३४२८० साधु को न बोलने की २० भाषा, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (जवयणय १ समत्थ २ वचणा), ३३६७०-२ साधुप्रभातपडिलेहन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३१५९९-१(६) । साधुविधिप्रकाश, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर गणधर प्रते), ३२५२७($) साधुसाध्वी उपकरण विवरण, प्रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (पत्तं पत्ताबंधो पायठ), ३२६९३-२(+) सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., गद्य, म्पू., (आयारमयं वीरं वंदिय), ३०५६०($) सामान्य कृति, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., ?, (--), ३१६४२-६ सामान्य श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (--), ३३३३१-२(+), ३३३३४-३(+), ३०९०७-२, ३१०७९-२, ३१०८३-३, ३३११०-२, ३३४६१-२, ३३४८५-३, ३३८१५-२, ३४३५५-३, ३४३६६-१, ३१०६२-२(#) सामायिकग्रहण विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (आत्मार्थी जीवे), ३१३७१ सामायिक पर्याय के विषय में कथा संग्रह, सं., कथा. ८, पद्य, मूपू., (सामायिकावश्यकपौषधानि), ३२२३८(+) सामायिकफल कुलक, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (सामाइयवयजुत्तो जावमण), ३१६०९ For Private And Personal use only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ (२) सामायिकफल कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सामाईके व्रत युक्त), ३१६०९ सामायिक विधि, गु.,प्रा.,मा.गु.,हिं., प+ग., पू., (--), ३१३०४-१ साम्यशतक, आ. विजयसिंहसूरि, सं., श्लो. १००+६, वि. १२वी, पद्य, मूपू, (अहंकारादिरहित), ३३६४५, ३३८८२ सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः), ३०७८०(+$), ३३८७३(+$), ३४१५०(+$), ३२४८५(६) (२) सिंदरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, म्पू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ३३८७३(+$) (२) सिंदूरप्रकर-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (--), ३०७८०(+$) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ३१९८७-१, ३२२७७-२, ३३८४६-१, ३२०८७-१(-2), ३३७७८-३(-) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, अप., गा. ३, पद्य, मूपू., (जो धुरि सिरि अरिहंत), ३२२७७-४, ३३८८६-७ सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ज्ञात्वा प्रश्नं), ३०२३८-६(+) सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (अरिहं सिद्धायरिआ), ३२२७७-३ सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (पढम पय निविट्ठ नाण), ३१६८३ सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भत्तिजुत्ताण सत्ताण), ३१५३८-३, ३१९८८-२, ३२११७-१०, ३२२८७-१ सिद्धदंडिका यंत्र, मा.गु.,सं., यं., मूपू., (अनुलोम सिद्धिदंडिका), ३०८२३-२ सिद्धदंडिका यंत्र, सं., को., मूपू., (--), ३०९२२-१ सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जं उसहकेवलाओ अंतमुह), ३१३६७-४(+), ३३८४१(+), ३४३१५(+), ३०९२२-२, ३२५४१, ३३५६२, ३४३६४, ३४२२६-३(#) (२) सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आदित्ययशोनृपप्रभृतयो), ३३८४१(+), ३४२२६-३(#) (२) सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंक० जे उसभ क० ऋषभ), ३४३६४ (२) सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., पद्य, मूपू., (जं के. ऋषभस्वामिने), ३४३१५(+), ३३५६२ (२) सिद्धदंडिका स्तव- यंत्र, सं., को., मूपू., (--), ३१३६७-४(+) सिद्धदत्त कथा, सं., गद्य, मूपू., (प्राप्तव्यमर्थं लभते), ३२९२३-२($) सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सिद्धं सिद्धत्थसु), ३१३६७-३(+), ३१५८१(+), ३१४९५ (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नवरं सिद्धं निष्ठिता), ३१४९५ (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध कहतां मोक्ष), ३१५८१(+) सिद्धसहस्रनाम कोश, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., शत. १०, श्लो. १००, पद्य, मूपू., (ऐंद्री श्री:प्रणिधान), ३०९७७ सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), ३१७२१, ३४१६७-४, ३४३७४-१, ३३९९४-८($) सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (अर्ह सिद्धि: स्याद), ३१०६९(+#$), ३३७२५(+), ३१४२८($) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०००, गद्य, मूपू., (अर्हमित्येतदक्षर), ३३७२५(+) (२) प्राकृत व्याकरण, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पाद. ४, सू. १११९, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अथ प्राकृतम् बहुल), ३१४२९(+#S) (३) प्राकृत व्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. २१८५, गद्य, पू., (अथ शब्द आनंतर्यार्थो), ३१४२९(+#$) (२) अनुबंधफल, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (उच्चारणेस्त्यवर्णाद), ३०८२९-१ (३) अनुबंधफल-टीका, सं., गद्य, मूपू., (यथावदव्यक्तयां वाचि), ३०८२९-१ (२) वृत्तगणफल, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (धुतादेरद्यतन्या), ३०८२९-२ For Private And Personal use only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१७ (३) वृत्तगणफल- टीका, ग. वानर्षि, सं., गद्य, मूपू., (द्युति दीप्तौधुरन्), ३०८२९-२ (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमपरिभाषासूत्र, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२वी, पद्य, मूपू., (स्वं स्वं शब्दस्याशब), ३२३६४ (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमपरिभाषासूत्र की टीका, सं., गद्य, मूपू., (पंचम्या निर्दिष्टे), ३२३६४ (२) सेट् अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., श्लो. २२, वि. १६६३, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योति), ३०८२७(+) (३) सेट अनिट्कारिका-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिनगिरं गुरुं नत्वा), ३०८२७(+) सिद्धांतषट्त्रिंशिका, प्रा.,मा.गु.,सं., अधि. ३६, प+ग., मूपू., (प्रथमं तावत्जिनाझै), ३०४१२ सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, पद्य, मूपू., (नत्वा गुरुभ्यः श्रुत), ३१०६०(+#), ३०३९६, ३११७४, ३३६६८-१ (२) सिद्धांत स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वसिद्धांतस्तवो), ३१०६०(+#), ३११७४ सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपयाइं झायित), प्रतहीन. (२) सिद्धचक्रयंत्रोद्वार, हिस्सा, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (गयणमकलियायं तं), ३१४६१(+) (३) सिद्धचक्रयंत्रोद्वार- व्याख्या , सं., गद्य, मूपू., (अथ गगनादिसंज्ञा), ३१४६१(+) (२) सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (गयणमकलियायत उद्दाह), ३१२२०, ३४४०९ (३) सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (अथ गगनादिसंज्ञा), ३१२२०, ३४४०९ सीमंधरजिन स्तोत्र, आ. रूपसिंह, सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (अनंत कल्याणकर), ३३४६३-१(+$), ३३९९६-३, ३२४०७-४($) सीमंधरजिन स्तोत्र, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमिरसुर असुर नरवंदि), ३३८७९(+), ३१३५६-३, ३२४३८ सीलांगरथ १८ हजार भेदविचार, प्रा.,मा.गु., गा. ५, प+ग., मूपू., (सीलगाण सहस्सा अट्ठा), ३३२०२-१ सुखविपाक-द्वितीय श्रुतस्कंध विपाकसूत्रगत, प्रा., अ.१०, पद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेण), ३४३५२(+), ३१९२६ सुधर्मोपदेश, सं., श्लो. १०८, पद्य, मूपू., (लज्जातो भयतो वितर्क), ३१५३३-३(+$) सुभाषित श्लोक संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद), ३२३०६-२(+), ३३९००(+$), ३००७२-४, ३०५७६-३, ३०७६२-३, ३२६४३, ३२८५३-२, ३४००६, ३४१५९, ३४१८२, ३२१३०(#), ३०३२२-२(६), ३२३०५(६), ३३८७८($) (२) सुभाषित श्लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल क० समस्त कुसल), ३४००६ (२) सुभाषित संग्रह-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दान सुपात्रनै विषै), ३२३०५(5) सुभाषित संग्रह *, सं., पद्य, (नागो भाति मदेन कंजलर), ३०१३०(+), ३०६३५-३(+), ३०२५२-२, ३०४८४-३ सुभाषित संग्रह-,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, (--), ३०५३३-१(६) । सुभाषितावली, प्रा., गा. ३१, पद्य, मूपू., (इंदियत्तं माणुसत्त), ३३९८७ (२) सुभाषितावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच इंद्री परवडा), ३३९८७ सुमंगलाचार्य कथा, प्रा., गद्य, भूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ३३४१३ सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज), ३३२९३-१(+), ३४२३७(+$), ३२२०२, ३३८२७(६) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., ग्रं. १२८५०, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (स्वपरसमयार्थसूचकमनंत), ३३८२७(६) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झेज कहता जाणइ), ३४२३७(+$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झि० छकाय जीवना), ३१११२(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ३०२६६(+), ३०३२५(+), ३१११२(+), ३३३४६(+#), ३३५६७(+), ३१८७५, ३१९१८-१, ३२५९५-१, ३३३३७, ३३८५५-१, ३३९९५-१, ३४२४३-१, ३४२७१-१, ३०५७३-२($) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पु० पुछता हवा कोण), ३०३२५(+), ३३५६७(+) For Private And Personal use only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-विचार संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मलमूत्रनी भूमिका), ३१५९०-१ सूत्रकृतांगसूत्र का प्रथमश्रुतस्कंधगत ११वाँ मोक्षमार्गअध्ययन", आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ११वाँ, पद्य, मूपू., (--), ३२५१५, ३३१४४, ३४३६९ सूरिमंत्रपूजा विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ क्रौं ह्रीं श्रीं), ३३२७९-१(६) सूरिमंत्र स्तव, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (पढमपय सुपयट्ठा० भत्त), ३३२७९-२ सूर्यचंद्रमंडल विचार, सं., गद्य, मपू., (जंबूदीवे १८० योजनान्), ३३३६८-२(+s) सूर्यद्वादशनाम स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (आदित्यं च नमस्कार), ३४१६७-३ सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. २२००, गद्य, मूपू., (नमो अरि० तेणं० मिथिल), प्रतहीन. (२) सूर्यप्रज्ञप्ति-२८ नक्षत्रशुभाशुभफल विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अश्वनी अर्थनी), ३०५४७-१ सैद्धांतिक प्रश्न-लुंकामतीय, प्रा.,मा.गु., प्रश्न. १३, गद्य, मूपू., (सव्वे पाणा सव्वे भूआ), ३१३३७-३ सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथां), प्रतहीन. (२) सौभाग्यपंचमी कथा-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथां), ३१६५५ सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ३१५२०(+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (नमेंद्रमौलिगलितो), ३१४५०(+$) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., अ. २४, वि. ९वी, गद्य, मूपू., (पारिजाताः कल्पद्रुमा), ३१४५०(+$), ३३७३१-१ स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. मेरुविजय, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (ऋषभदेवमहं महिमालय), ३१३४८-२ स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), ३०९४५(+$), ३१९५२-१, ३१३७८(s), ३४०३१(६) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि*, सं., गद्य, मपू., (भव्यांभोज० भव्या), ३०९४५(+$) स्तुतिनिर्णय प्रकरण, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., भूपू., (चैत्यवंदनमां सूत्रमा), ३३५७१(#) स्तूपप्रतिष्ठा विधि, सं., गद्य, मूपू., (शुभदिने चंद्रबले), ३०२२०-३(+), ३३८६५ स्थानकवासी मतखंडन प्रश्न संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (मुहानंतयं आयामेण), ३३४६२ स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेणं), ३२२४९(+), ३१५७७, ३१५७५-२(5) (२) जीव के पांच निजाणमार्ग-ठाणांगसूत्रे, हिस्सा, प्रा., गद्य, म्पू., (पंचविहे जीवस्स), ३४०३३-२(+) (३) जीव के पांच निजाणमार्ग-ठाणांगसूत्रे-अनुवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंचे ठामे जीवनीसरइ), ३४०३३-२(+) (२) स्थानांगसूत्र-चतुर्भंगी विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (चत्तारि कुंभा पन्न), ३०६३५-२(+) स्थापनाचार्य विधि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (स्थापनाविधिप्रवक्षा), ३३६११-५, ३३६७५-१ (२) स्थापनाचार्य विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (थापनानोविधि ते प्रति), ३३६७५-१ स्थापनाचार्य विशेषविधि, सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां दुग्ध मध्य), ३३६११-६, ३३६७५-२ (२) स्थापनाचार्य विशेषविधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सांजे दुधमांहि थापना), ३३६७५-२ स्नात्रपूजा संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मागु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ३१०४१(+#), ३०८१४, ३२०५३(), ३२०९९(६) स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (पूर्वे तथा उत्तरदिसे), ३१०४२(+#), ३१५३६-१(+), ३३६९९, ३३८१०-१($) स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., उल्ला. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशारदां हृदि), ३१११७ । (२) स्यादिशब्दसमुच्चय-स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीशारदामित्यादि), ३१११७ स्याद्वादकलिका, आ. राजशेखरसूरि, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (षद्रव्यज्ञं जिन), ३२४३२-१ स्याद्वादसुंदरद्वात्रिंशिका, आ. पद्मसुंदरसूरि, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (बंदारुसुंदर पुरंदर), ३१५२३(+) स्वप्नविचार प्रकरण, सं., श्लो. ७५, पद्य, मूपू., (श्रुतामृतातिसंपूर्णे), ३३८९२(+) For Private And Personal use only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१९ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- १ हड़कविष मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, वै., (ॐनमो लुंडी हसी लुंडी), ३२४४०-४(#) हरसमस्सा मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, (ऊँ ई अलीती अलीपी अली), ३१३५८-२ हस्तसंजीवन, उपा. मेघविजय, सं., श्लो. २८३, ग्रं. ५२५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीभरण), प्रतहीन. (२) स्त्रीभाग्यपंचाशिका-हस्तसंजीवन, हिस्सा, सं., गद्य, जै.?, (विवेकात् क्रियते), ३०८९६-१ हिंगुल प्रकरण, उपा. विनयसागर, सं., श्लो. १८०, पद्य, मूपू., (श्रीमच्छ्रीवासुपूज्य), ३३६३१(६) हिंसाष्टक, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अविधायापि हि हिंसा), ३३७१४-१(+) (२) हिंसाष्टक-स्वोपज्ञ अवचूर्णि, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, मूपू., (अपारपारावारसंसारतल्प), ३३७१४-१(+) हीरविजयसूरि पादुकाष्टक, मु. हेमविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमानूकामगवीव), ३१६१३-२ हीरविजयसूरि सज्झाय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (पणमिअवीर जिणंद), ३१४१५-२ हीरविजयसूरि सज्झाय, उपा. सुमतिविजय, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (संयम कमलाकेलि निवास), ३४२००-३ हैमविभ्रम, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (कस्य धातोस्तिवादीनाम), ३०८५०(+) होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५३, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ३१५२४(+) होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मूपू., (ऋषभस्वामिनं वंदे), ३११८१, ३०७०९(2), ३२०१६ (#$) होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., श्लो. ३४, वि. १४८५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सम्यक् परमार), ३०१३८, ३१४२५ होलीपर्व कथा , सं., श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ३१६५४(+), ३१५१९ (२) होलीरजपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामी), ३१५१९ For Private And Personal use only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ३ चौवीसीजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमी), ३३४९७($) ४ आहार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हविं च्यार प्रकारना), ३३२२८-१ ४ आहार सज्झाय, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पयकमल), ३१९३२-१ ४ गोला सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (साधांतणी वाणी सुणी), ३१९९८-२ ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ शशिकुलतिलो), ३३९७६() ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चिहुं दिसथी च्यारे), ३१७१८-१, ३२०३१-५, ३३४८६-२, ३३२३०-५(६) ४ प्रहर सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (पेहेलो पोहोर भयो), ३०३१३-१, ३२७६९(-) ४ भावना विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अनंत भावना जिम भरत), ३०३५५-२(+) ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ३१२३५-१, ३३४५९ ४ मंगल पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहेलुंए मंगल जिनतणु), ३१२७६-३, ३२४२६, ३३९२१-१ ४ मंगल पद, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (धरम उछव समैजैनपद), ३१२७६-१, ३३९२१-७ ४ मंगल पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद. ५, पद्य, मूपू., (आज घरे नाथजी पधारे), ३३०८४-२ ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी जे नमु), ३२९६२ ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (पो उठीनें समरीजै हौ), ३०५५५-२ ४ शरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवै चार सरणा करवा), ३०१३२($) ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काम अंध गजराज अगाज), ३३३९२-२ ५ इंद्रिय सज्झाय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (मात उरे मयगल वनमाहि), ३१३४९-२ ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा.५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ३०६६५, ३१४७९, ३२१६०, ३३७०६ ५ ज्ञान आरती, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, भूपू., (जय पारस देवा जय पारस), ३२८६३-१ ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंतना रूप), ३२२४५-३ ५ परमेष्ठि चौपाई, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, म्पू., (चित्त धरी भगवति भारत), ३२८३५($) ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ३२७५८-२(#), ३२१७७-१(६) ५ प्रमाद सज्झाय, मु. प्रताप, मा.गु., स्वा. ५, पद्य, मूपू., (प्रमाद पहिलो परीहरो), ३३८९०-१(+#) ५ भावना के ५३ उत्तरभेद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१. उपसम भाव भेद २), ३१५८९ ५मंगल स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पहिलुंए मंगल मनधरो), ३३९२१-५ ५ महाव्रत १२६ भेद वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपातना भेद ८१), ३२६४७-३ ५महाव्रत भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्र प्रथम महाव्रत), ३०१५३ ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुरतरुनी परि दोहिलो), ३०२२७-२(+), ३२८२४-१(+), ३२९९०-६ ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम उदयिकभाव), ३०२४३ ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुदर्शनमेरु विजयमेरु), ३३९१८-४ ५ समिति ३ गुप्ति सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम अहिंसकव्रत्त), ३३७८४(-) ५ स्थावर वर्णविचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथवीकायनो वर्ण नीलौ), ३१५९०-२ ६ आवश्यकविचास्तवनवा.विनयविजयमा.गु., ढा.६,गा.४४, पद्यम्पू., (चोवीसइंजिनचीतवीं, ३०३९१३०७१३३२१२० ६ कायजीव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथ्वीकाय अपकाय), ३२५२९-२ ६ काय सज्झाय, मु. दयारत्न, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (हृया हुसि आज छे जी), ३१७६९ For Private And Personal use only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ६ दर्शने ९६ पाखंडी नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (जैनदर्शने श्वेतांबर), ३२०४६-२(+) ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मद्रव्य शुद्ध लोक), ३४१२१ ६ भाव विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (रे आत्मा कर्म वस्ये), ३०४२५ ६ मत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३२३२९-३(+) ६ मत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जैनमत वीतरागदेव नव), ३४१६१-२(#) ७ कुलकर नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ विमलवाहन २ सुदाम), ३०७९६-१ ७ वार सज्झाय, क. कमलविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आदित्य उगई उठिई), ३२५७५-१(#) ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), ३०६७३-३, ३०७५०-२, ३२९४७-१ ७ व्यसन सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू., (श्रीसिधारथ कुलतिलो), ३३४४८-१(#) ७ व्यसन सज्झाय, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सिद्धारथनृप कुलतिलो), ३२७८१-१ ८ अनंताद्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधना जीव अनंता १), ३१५२५-३, ३३६३७-३ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ३०२७७, ३०६१५-१, ३१०३१, ३१६९९, ३१७३९-२, ३२५४४-१, ३३५७६, ३०६६९(8) ८ कर्म पांसठियो, मा.गु., को., मूपू., (ज्ञानावर्णीमाहे जीव), ३०१५६-१ ८ कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आठ कर्म ते केहा पहिल), ३३८३३-१ ८ कर्मबंध विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (घट पटादिशेषरूप वस्तु), ३०१५६-३ ८ कर्म भजना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणीरी नियमा), ३०१५६-२ ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानावरणीयकर्म), ३१३८१-२ ।। ८ कर्म सज्झाय, य. अगरचंद, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (बतावरे घर तेरा मुझे), ३१३९७-२ ८ कर्म सज्झाय, मु. जीवन कवि, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (गुणनीधी गोत्तमगणधरूं), ३१७४२-१ ८ कर्म स्थिति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणीनी स्थिति), ३१५३४-१, ३२६२७-१ ८ दृष्टि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (मित्रादृष्टि१ तारा), ३२६४५-२ ८ दृष्टि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चिदानंद परमातमरूप), ३२९०५-४ ८ प्रकारी पूजा, पं. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. ३७, वि. १८१३, पद्य, मूपू., (श्रुतधर जस समरें सदा), ३०३१५-१(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर निकलंकजे), ३१२१७ ८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (इर्यासमितिना ४ भेद), ३०६१३-१(+) ८ बोल धर्मपरिवार, मा.गु., गद्य, श्वे., (धरम को पिता श्रीवित), ३२७६३-२ ८ बोल पापपरिवार विषयक, रा., गद्य, श्वे., (पाप को बाप लोभ छे), ३२७६३-३, ३३५६९-२ ९ नारद नाम, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (भीम १ महाभीम २ रुद्र), ३१४२२-२(+) ९ वाड नाम-ब्रह्मचर्यविषयक, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक ठामि स्त्रीपुरुष), ३१८९४-५($) ९ वाड सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ३०१६७(+#), ३०९२०-१(+), ३११७९, ३१८१७, ३३५७९-१, ३३६००, ३४३०९($) ९ सम्यक्त्व प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवू सांभलीनै शिष्य), ३०२३६ १० गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय, मा.गु., गद्य, मूपू., (विक्रमादित्य थकी), ३०७२१-२(+) १० चक्र विचार हो, मा.गु., पद्य, श्वे., (प्रथम चक्र धनवंत), ३०४८४-२ १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), ३२२७८-३, ३२८४०-१ १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ नंदन नमु), ३११०३-१, ३१७६८ १० प्रकार अजीव परिणाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (बंधण परिणामे१ गईपरि), ३२९०५-३ १० प्रकार जीव परिणाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (गईपरिणामे१ इंद्रीपरि), ३२९०५-२ For Private And Personal use only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ १० बोल सज्झाय, मु. मगन, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (चेतन चेतोरे दशबोल), ३१९९६ १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ११, गा. १३६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृतलता वन सींचवा), ३११७७ १० श्रावक ३६ बोल यंत्र, पं.दीपविजय कवि, मा.गु., वि. १८९९, को., मूपू., (--), ३२०२७(+) १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ३२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (जिण चुवीसी करुं), ३११०२-१(#) १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रह उठि प्रणमुदसे), ३१७८६ १० स्वप्न सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., ढा. २, गा. ११, पद्य, मूपू., (तेणी काले ते समे सखि), ३३२८४-४ ११ अंग परिमाण, मा.गु., गद्य, मूपू., (पढम आयारंग), ३३४७८-३ ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (आचारांग पहेलुका ), ३०१९७($), ३२२९३(६) ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंद्रभूति अग्निभूति), ३३७६९-७ ११ गणधर स्तवन, मु. आसकरण, मा.गु.,रा., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, स्था., (इंद्रभुतिना लीजे), ३०६४६-१(६) ११ गणधर स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (परनम वीराज्यां), ३२९६४-२(६) ११ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिले बोले चोवीस), ३२८८९ १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. १२, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति भारती), ३१२७३, ३१३६४ १२ उपयोग नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान २ सुतज्ञा), ३३७७२-३ १२ चक्रवर्ति नामआयुआदि विवरण, मा.गु., को., मूपू., (--), ३०७७५ १२ देवलोक इंद्र संख्या , मा.गु., गद्य, मपू., (पहिले देवलोके ५०), ३२५७१-२ १२ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) १२ बोल संग्रह-अर्थ, मा.गु., वि. १६४६, गद्य, मूपू., (सं. १६४६ पोषासीत १३), ३११३९ १२ बोल संयम, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ बोलें संजमनो घर), ३२७६३-१ १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२, गा.७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (आदिसर जिणवर तणा पदप), ३१७४७($) १२ भावना, मा.गु., गद्य, मूपू., (अन्यत्व भावना ते छे), ३२६७५-१ १२ भावना, मा.गु., गा. ८८, पद्य, मूपू., (--), ३२३७६(5) १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ३०७२१-१(+), ३०८७३, ३११७६, ३२४०६(#S) १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. १४, पद्य, मूपू., (विमल कुल कमलना हस), ३२१७१-१ १२ भावना सज्झाय, मा.गु., गा. २+७, पद्य, मूपू., (ईम भवभव जे दूख सह्या), ३१६३८-२ १२ मास दूहा, मु. जसराज, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (पीउ चाल्यौ पदमण कहे), ३०२१९-२ १२ व्रत चौपाई, मु. आनंदकीर्ति, मा.गु., गा. ७४, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सरसति सामिणी), ३०८८८ १२ व्रतटीप, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सम्यक्त्व देव), ३१७९१ १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३१२४८(5) १२ व्रतनाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेहेले प्राणातिपात), ३११२१-२(+) (२) १२ व्रत नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवदया पालवी), ३११२१-२(+) १२ व्रतनाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपातव्रत मृषा), ३३५१६-२ १२ व्रत विचार, रा., गद्य, श्वे., (पहिलो व्रत तसकायरो), ३०६८०(६) १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., ढा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवाणी धन वुठडो भवि), ३०९६१-२ १२ व्रत सज्झाय, मु. शुभविजय, मा.गु., गा. ४८, वि. १६९९, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर पय नमी), ३१५५४(+) १२ व्रत सज्झाय, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर पाय नमीजे), ३१२८० १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, दि., (जे वट पारे वाट मै), ३३३४४(+) १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा.१६, पद्य, मूपू., (सोभागी भाई काठीया),३०९९२ For Private And Personal use only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १३ काठिया सज्झाय, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुंगौतम), ३१८७३-२ १३ काठिया सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर प्रणमी पाय), ३३५७०-२(+) १४ गुणठाणा जीवभेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिले गुणठाणे), ३२७९५-२ १४ गुणस्थानक के १३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), ३१२४४ १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व गुणठाणो १), ३०६१५-२, ३३७७२-४ १४ गुणस्थानक भेद, मा.गु., को., मूपू., (--), ३०३४७ १४ गुणस्थानक मे ८ कर्म १२० प्रकृति विचार यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ३३९६३-२ १४ गुणस्थानक में कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उधि बंध १२० प्रकृति), ३३९६३-१ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं जिन), ३०६६४-२($) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ३०७८९-६ १४ गुणस्थानक सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., गा. ६४, वि. १७६८, पद्य, मूपू., (चंद्रकला निर्मल सुह), ३१४४०(६), ३२०९८($) १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मुक्तिविजय शिष्य, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (निज गुरु केरा प्रणमी), ३३१४०(5) १४ गुणस्थान सज्झाय, मु. धर्मसागर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ३३००७-२ १४ प्रश्नोत्तर, मा.गु., प्रश्न. १४, ग्रं. ८१, गद्य, मूपू., (प्रथम प्रश्ने तुम्हे), ३१३२९ १४ राजलोक विवरण यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (--), ३०५७६-१ १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (विद्याकला रसायण), ३३७७७-२ १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रीदेव तीर्थंकर केर), ३०१९४, ३२४२० १५ तिथि पखवाडो, मु. मूलचंद, मा.गु., गा. १९, वि. १९०४, पद्य, मूपू., (भजियै भगवान परम), ३३००१-१(+) १५ तिथि सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. १५, वि. १९४३, पद्य, मूपू., (वीतो पखवारो धरमे करो), ३१९३७(+) १५ तिथि सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (एकम कहै तू एकलो रे), ३३१६२(+) । १५ तिथि सज्झाय, मा.गु., गा. १८, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (प्राराणी अमाऊ सरण), ३१५७२-१ १५ योग नाम-मनवचनकाया के, मा.गु., गद्य, मूपू., (सत्यमनोयोग १ असत्य), ३२३८७-३, ३३७७२-२ १५ योग विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ३०७८९-७ १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १२, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (ऋषभ अजित संभवस्वामी), ३०४८३-१ १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ३०४०९, ३०५५२, ३३०२३-१, ३०४५७-३($), ३२७७६-२(-६) १६ सती सज्झायमु.प्रेमराज, पुहि., गा.१४, पद्य, श्वे., (सीलसुरंगीभालि ओढी), ३२८०९.१(+), ३०४८३३, ३१९३८१, ३३१५८१ १६ सती सज्झाय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (शीतल जिणवर करी), ३१९३८-२ १६ स्वप्न सज्झाय, ग. जसी, मा.गु., गा. २०, पद्य, स्था., (सदगुरुने चरण नमी), ३३८६९-४ १६ स्वप्न सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (पाडलीपुर नयरी चंद्र), ३०६४९-१(६) १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मागु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीन), ३३०७९-१(६) १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (पाडलिपुर नामे नगर), ३३१२५-१ १७ भेदी पूजा नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (गंधोदकि स्नानपूजा १), ३१३६०-५ १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, गा. १०८, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ३१०४७-१ १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सत्तरभेद पूजा फल), ३११९९-२ १७ भेदी पूजा स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासनि सोह), ३१०४७-२ १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (पहिलो प्रणमुंपास), ३११३७-१, ३३५१४ १८ नातरा सज्झाय, मु. छीतरऋषि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (कर्म सबल जग जाणीई कर), ३२०७५ १८ नातरा सज्झाय, मु. वीरसागर, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (सरसति माता रे निज), ३३१५१-१ १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (नमुंजी जिनवर के चरणा), ३३१०६($) For Private And Personal use only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), ३१३४३, ३०९२८-२(s), ३२३१६(s), ३३५७५ ($) (२) परिग्रह पापस्थानक सज्झाय, हिस्सा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (परिग्रह ममता परिहरो), ३२११७-१२ १८ पापस्थानक लावणी, पुहि., गा. १३, वि. १९५६, पद्य, मूपू., (पाप अढार माहाबुरा है), ३३११४ १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बोले पोसानी रातने), ३०२०९-३ १८ बोल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहलो बोल भणवा गुणवा), ३३००८ १८ भक्ष्य भोजन नाम, मा.गु., गद्य, जै., (सिरो १ सींग २ घाट ३), ३०७९६-४ १८ भार वनस्पतिमान कवित्त, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (तीन कोडि तरु जात), ३४०९४-४ १८ व्याकरण नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१. ऐंद्रव्याकर्ण २.), ३०७९६-३ २० असमाधिस्थानक नाम, मा.गु., कडी. २०, गद्य, श्वे., (उतावलु चालिवउ), ३०५६९-१ २० बोल सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सूत्र गीनता अध्ययन), ३३०३९-१ २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (किणसुं वाद विवाद न), ३०६२५, ३१३९८-२ २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८६८, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधरस्वामि), ३३२२३ २०विहरमानजिन मातापितादिवर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमंधरस्वामि), ३१५००-२ २० विहरमानजिन मातापितादिविगत यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३१८६०-२(+) २० स्थानकतप विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं), ३४४२७ २० स्थानकतप सज्झाय, मु. मनु ऋषि शिष्य, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर प्रणमी), ३१२२१-२ २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सरसत हारे मारे), ३०६०५ २१ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (हस्तकर्म करै तो सबल), ३०५६९-२ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे शुद्ध), ३२२२०-१ २२ अभक्ष्य सज्झाय, मु. कुंयरविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ६५, पद्य, श्वे., (पास जिणंद प्रणमी करि), ३०४४५(#) २२ परिषह सज्झाय, मु. सबलदास, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (साधुजी रो मारग कठन), ३२००० २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ३१३४१-२, ३३००९ २३ पदवी स्तवन, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पदवी तेवीस जुप्रगट), ३१७७३-१ २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, मा.गु., को., मपू., (कार्तिकसुदि १सुविधि), ३०६७१ २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० कोडि लाख सागर), ३०६३९(+#), ३०५८९, ३३१७०-२(६) २४ जिनआयु स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (वंदीइ वीरजणेसर राय), ३०३१२-१ २४ जिन कवित्त, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आद रिषभ अरिहंत अजित), ३२७७९-२ २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसती आपे सरस वचन), ३३०९१, ३३२९७-१ २४ जिन गीत, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३०१७५-१(+६) २४ जिनगुण स्तवन, मु.खेम, मा.गु., गा. ८, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसरदेव अजित), ३३६९६-३(+) २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (पद्मनाभ पहेला जिणंद), ३१२३२-२ २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षापरिवारगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चार सहस्सथी ऋषभदेव), ३२४६१-६ २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षासमयतपगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ एकासगुंकरी), ३२४६१-४ २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षास्थानादिगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विनीतानगरीए लीये दीक), ३२४६१-५ २४ जिन चैत्यवंदन-देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पंचसया धनुमान जाण), ३२४६१-२ २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकरतणा), ३१२३२-४, ३२०२२-२, ३२४६१-७ २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भिता. ज्ञानविमलसूरिमा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सत्तरिसयठाणकह्या), ३१२३२५, ३२४६१८८ २४ जिन चैत्यवंदन-लंछनगर्भित, मु. नय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वृषभ गज हय कपि), ३१२३२-३ For Private And Personal use only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५२५ २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भितआ. ज्ञानविमलसूरिमा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभनेवासपूज्य), ३१२३२७, ३२४६११ २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वृषभ गज हय कपि अंकुश), ३२४६१-३ २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., मूपू., (--), ३१८१२ २४ जिन छंद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (चोवीसें जिनवर तणा), ३३४२२-१ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुजे ऋषभ समोसर्य), ३३०९५-१ २४ जिन नमस्कार, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अविकल केवलनाण रयण), ३०६४९-३ २४ जिन नमस्कार, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (--), ३२७३५-१(#$) २४ जिन नमस्कार स्तवन, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (प्रथम ऋषभजिणेसर पाय), ३०८४७(+#) २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेवजी अजित), ३३७६९-१, ३०२२२-३($) २४ जिन निर्वाण स्थल वर्णन, मा.गु., गद्य, म्पू., (अष्टापदें सीधा पहेला), ३०७९३-४ २४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कार्तिक वदि ५), ३००८३-१(+) २४ जिन पद, ग. श्रीधर्म, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (नित नित गुण प्रभु), ३११६६-६ २४ जिन भववर्णन स्तवन, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (प्रणमीय चोवीसे जिन), ३०१२१-२ २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (आदिदेव लंछन वृषभ), ३३४३०-२(-) २४ जिनवर्ण चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सोल तीर्थंकर जाणीये), ३२७३६-६() २४ जिन वर्ण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद्मप्रभु राता वर्णे), ३०७९३-३ २४ जिन सवैया, मु. सार, पुहिं., सवै. २५, पद्य, श्वे., (--), ३२२०६($) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ करिजे), ३३९८२-२($) २४ जिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भावे वंदो रे चोवीसे), ३३५१० २४ जिन स्तवन, मु.खेमो ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुप्रथम), ३०२९२(+), ३१७४३-२, ३२७१७-३ २४ जिन स्तवन, मु. जिनदास, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (रिषभ अजित जिनदेव), ३०३०५-१ २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रह समे भाव धरी), ३३५१३-१ २४ जिन स्तवन, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. ५६, वि. १७४९, पद्य, मूपू., (कमलदल सम लोचना चंद्र), ३०९९१(+), ३३३१४(६) २४ जिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (भाव वंदु आद जिणंदजी), ३०७६२-२, ३२७८५(-) २४ जिन स्तवन, मु. भूधर ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८१६, पद्य, श्वे., (प्रातुकाले प्रभु पाय), ३०२०३-४ २४ जिन स्तवन, मु. मान, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरे तो जिनेंद्र देव), ३२८१७-२ २४ जिन स्तवन, मु. मोतीराम, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभ अजित संभव), ३०५५५-१ २४ जिन स्तवन, मु. राजविजय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सुमता नलने बोहवा), ३३०७४ २४ जिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (करि कच्छपी धरती), ३१०४५-१ २४ जिन स्तवन, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सहगुरु चरण नमीकरी ए), ३२८७५-१ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंछितपूरण सुरतरु जेह), ३०२१७, ३१६९६-३ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ कीजे), ३०८९७, ३४२३६-१(5) २४ जिन स्तवन-१० स्थानकगर्भित, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (चउवीसे जिनवर करूं), ३०६८५-२, ३२८४८-१ २४ जिन स्तवन- ९ बोल युक्त, वा. पद्मराज, मा.गु., गा. २७, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख चउवीस), ३१००८(+), ३१०१०-१ २४ जिन स्तवन-चतुर्विधसंघ परिवारविचारगर्भित, मु. विनयराज, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (रिसह जिणेसर तणा साध), ३३८०२ २४ जिन स्तवन-पंचकल्याणकदिन युक्त, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, पू., (जय जय दायक जगधणी जग), ३२११३-१ २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमु), ३०४२३, ३०८५७, ३१०५६, ३१७७८, ३२०८०, ३२७९९, ३०३७७-१(#), ३०८७७-२($), ३३४५०-३(-#S) २४ जिन स्तवनवृद्ध-गणधर-साधु-साध्वी संख्यामय, मु. धरमसी, मा.गु., गा. १९, वि. १७५३, पद्य, मूपू., (--), ३०५१५-१(६) For Private And Personal use only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ २४ जिन स्तवन-सकलभववर्णन, ग. नगा, मा.गु., गा.७१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (समरिय सरसति देव), ३१०८८-२ २४ जिन स्तुति, ग. अमृतधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तीरथपति त्रिभुवन सुख), ३१८०६-१८ २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी), ३११२९ २४ जिन स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर केसर चरचि), ३१५९६($) २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (कनक तिलक भाले हार), ३१६७२, ३२१११-६, ३२३३३-१, ३३७१८-२ २४ जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गुनह गंभीर अचल जिउं), ३३७१२ २४ जिन स्तुति, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसत सामीने वीनवु), ३०१९८(+) २४ जिन स्तुति -पंचबोलगर्भित, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (श्रीजिन मात पिता),३१११४ २४ जिन स्तोत्र, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (समरी सरसती सामणि माय), ३१७३१-३ २४ तीर्थंकर नाम- अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ३०७९६-२, ३१६८७-२ २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., मूपू., (दंडक २४ नामानि शरीर), ३०७२७, ३३५५१ २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर अवगाहणा संघयण), ३१९१३ २४ दंडक स्तवन, मु. मतिवर्द्धन, मा.गु., गा. २३, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (सुख सहुसंपद सुजसजस), ३१६३३ २४ स्थानक मार्गणा द्वार, मा.गु., को., मूपू., (गइंदियकाए जोएवेएकषाय), ३२७००-१ २७ साधुगुण सज्झाय, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सत्तावीस गुण साधना), ३२५८८-२(#) २९ द्वार २४ दंडक नाम, मा.गु.,ग्रं. २८०, गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजू), ३१७३९-१ २९ भावना छंद, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (अविचल पद मन थिर करी), ३०१४२-१, ३१०८२-१, ३०८९२-२(#) ३१ आगमसूत्रो के नाम-स्थानकवासी, मा.गु., गद्य, श्वे., (दसवीकालक१ अबाहीर राय), ३१६६४-१(-) ३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (संयम धर सुगुरु प्राय), ३३०३७-१ ३३ आशातना गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलो बोल गुरु आगल), ३०२०९-१(६) ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसुमति दायक कुमति), ३११६६-५, ३२१४१, ३३०८५ ३४ अतिशय विवरण-तीर्थंकर, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेलो अतिशय तीर्थंकर), ३२४१२-१ ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेले बोले गति चार), ३०१३३ ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, (सूर्यवंश १ सोमवंश २), ३२६७५-६(१) ३६ राजपात्र विचार, मा.गु., गद्य, जै., (धर्मपात्र अर्थपात्र), ३२६७५-४ ३६ राजविनोद वर्णन, मा.गु., गद्य, जै., (दर्शनविनोद श्रवण), ३२६७५-५ ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, मा.गु., गद्य, मूपू., (उद्देशिक आहार लेवें), ३१५५२ ५४ उत्तमपुरुष पद, मा.गु., को., मूपू., (--), ३४२४५-२ ५४ उत्तम पुरुष स्तवन, मु. रीखवदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेसर पाय प्रणम), ३२८४३ ६२ मार्गणाउदय यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (अथ नरक गत उदय यंत्रक), ३३६८० ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई बोले), ३०९२४(+), ३३७७२-१ ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ३३५३४-१, ३३६६९ ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२ चक्री १ दिर्घदंत), ३०७९६-५ ६३ शलाका पुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३२८९१-२ ६३ शलाकापुरुष रास, ग. दयाकुशल, मा.गु., ढा. ७, गा. ५९, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (जिनचरण पसाउले मनह), ३१०९४-१, ३१७४६ ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. ब्रह्मकामराज, मा.गु., गा. २६, पद्य, जै.?, (आनंदामरीत छंदा घरी), ३०९५७-१ ८४ आशातना स्तवन, मु. धर्मसिंहजी, मा.गु., गा. १८, पद्य, भूपू., (जय जय जिण पास जग), ३३९३१(६) ८४ गच्छ विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (हिवै चोरासीगच्छना सर), ३२२४७-२(+) For Private And Personal use only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ ८८ ग्रह नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंगारक वीकालक लोहिता), ३३४३७-१(#) ९६ जिन गीत, ऋ. लीबो, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (अतीत अनागतने वर्तमान), ३२७१६-३ ९६ जिन स्तवन, ग. जयविजय मा.गु., गा. ३७, पद्य, भूपू (सारदमाता मनि घरी सह), ३२११३-२ ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., डा. ५, गा. २३, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (वरतमान चोवीसे बंद), ३०१८६-१ ९६ जिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू. (भविवण भाव घरी घणी), ३०९६०-२ (+) ९८ बोल, मा.गु., को., श्वे., (सरवथी थोडा गर्भज), ३३६८२ ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहमंते सव्व जीवा), ३१३३५ १०८ पार्श्वजिन नामावली, मा.गु., को., मूपू., (कोका पार्श्वनाथ), ३०७१९ १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, भूपू. (श्रीप्रसन्नचंद्र), ३०७१०(३) , ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात नारकी पर्याप्ता), ३०८२३-१, ३१३४२ ५६३ जीव भेद यंत्र, मा.गु., को. भूपू (--), ३३६८१ ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, मा.गु., गद्य, मूपू., ( जीव का भेद बेइंद्री), ३२८६४, ३३५६९-१ अंगस्फुरण विचार, मु. हीररत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (माथै फुरके पुहवीराज), ३३६२२-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., खं. ३ ढाल २२, गा. ६३२, वि. १६८९, पद्य, मूपू., ( गणधर गौतम प्रमुख), ३१६९२($) अंबिकादेवी स्तोत्र, मु. पुण्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., ( जय जय अंबिक माय प्रह), ३४०८७-३, ३१७१६-३(#) अइमुत्तामुनि सज्झाच, मु. लक्ष्मीचंद, मा.गु., गा. १९, पद्य, वे (बीरजिणंद बांदीने), ३०३१६ (-) " अमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु, गा. १८, पद्य, भूपू (वीरजिणंद वांदीने), ३०३७६-१, ३१२८३-१, ३१२८५-२, ३२००३, ३३८६९-६, ३०७२९ (#) अक्षरबत्तीसी, मु. महेश, मा.गु., गा. ३२, वि. १७२५, पद्य, थे. (कका कछु कारज करो), ३१९८५-१ " अक्षरबावनी, मु. जसराजजी, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ५६, वि. १७३८, पद्य, मूपू., ( ॐकार अपार जगत आधार), ३०५४१ अक्षरबावनी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५३, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (ॐ अक्षर सार सयल), ३०८९५-१(#) अक्षरबावनी, उपा. मतिशेखर, मा.गु., गा. ५३, पद्य, भूपू (पहिलड परब्रह्म अणुसर), ३४२१२ अजयपाल ज्वर मंत्र, रा., गद्य, वै. ?, ( ॐ नमो गढअजमेर वसै), ३०५२३-२ अजितजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजित अजोध्यानो धणी), ३१९९९-५, ३२७३६-१ अजितजिन पद, मु. ज्ञानचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (हो सुंदर अजित जिनेसर), ३०२४५-२, ३०६५३-२ अजितजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्म, मूपू, (तुं गति मेरी जाने), ३२५८९-४ अजितजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (जगजीवन जगतार रे विजय), ३२४४३-३ अजितजिन स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (अजित जिनेसर इकमनां). ३१६३४-३ अजितजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (बीजा अजित जिणंदजी रे) ३३८३०-२ अजितजिन स्तवन, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसति माता पाये नमी), ३२८२६ अजितजिन स्तवन, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजित जिनंद देव थीर), ३३५३७-३ अजितजिन स्तवन, मु. जयतिसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( वीनवुं छइ करजोडि), ३२३९३-१(+) अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु गा. ५, पद्य, मूपु. ( तार किरतार संसार), ३४१४३-२ अजितजिन स्तवन, मु. तेजसिंह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चोथो आरो जिनवर वारो), ३३८६९-२ अजितजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनेसर हेतलई भेटीयो), ३१२९५-२ " अजितजिन स्तवन, मु. देवसौभाग्य, मा.गु., गा. १२, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (भाव भलै नित भेटीयै), ३०८५६-४ अजितजिन स्तवन, मु. महाकवि, अज्ञा., गा. ५, पद्य, मृपू., ( साहिबा अजित जिणेसर), ३२५८६-२ अजितजिन स्तवन वा मानविजय, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू., ( अजित जिणेसर चरणनी), ३०६५० अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओलग अजित जिणंदनी), ३०२४२ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (अजित जिणंदस्यु प्रीत), ३४४३९-२ For Private And Personal Use Only ५२७ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ अजितजिन स्तवन, मु. रत्नसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अजित जिणंद दयाल के), ३३२९६-१ अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ताहरी मुद्रानी बलिहा), ३३३०३-१(#) अजितजिन स्तवन, ऋ. रायचंद, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (जंबूदीपना भरत मे), ३०६४१-१, ३१४०९-२ अजितजिन स्तवन, मु.सुमति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिन सकल सोभागी अजित), ३०८५६-३ अजितजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (अजित जिनेसर साहेबा), ३३००४(+) अजितजिन स्तवन-तारंगातीर्थ, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजीत जिणेसर उलगत), ३२४४४-२(#) अजितजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विश्वनायक लायक जितशत), ३३८१३-१० अजितजिन स्तुति, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजित जिणंदा मुख पुणम), ३१६६८-१, ३२११७-६ अजितजिन स्तुति, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (श्रीजिन अजित सवे जिन), ३११७०-६(+) अजीव ५६० भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय खंध), ३२६९३-१(+$) अजीव ५६० भेद, अज्ञा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (हवे अजीवना भेद ५६०), ३१४८३-१ अढीद्वीप वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थोलोकमां असंख्य), ३०८८५(+#) अणगस गीत, मु. माणिक, रा., गा. २३, पद्य, मूपू., (अणगस करवो कालि बाई), ३०५६१ अणगार सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीर कहै भविकने पालो), ३१८६३ अणाहारीवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (हलदेर १ बेहडा २ आबला), ३३९५३ अणाहारीवस्तु विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नींबनी छालि मूल पान), ३१३०१-२ अतीतअनागतवर्तमानजिनचौवीसीनाम स्तवन, वा. तेजविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सितरिसो जिन करि), ३१६८७-१ अतीतअनागतवर्तमानजिनचौवीसी भाष, मा.गु., पद्य, मूपू., (मंगल कारण पणमिउण), ३१९३९-१(६) अतीतचौवीसी स्तवन, मु. गुणचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जागो रे सुग्यानि जीव), ३३५३२-२(#) अदत्तादानपापस्थानक सज्झाय, उपा. जस, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चोरी व्यसन निवारीये), ३३७७५-२ अध्यात्म गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रात भयो प्रात भयो), ३३०७८-६ अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित), ३१०००, ३३५७८(६) अध्यात्म पद, पडित. बनारसीदासजी, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (देहरा खोल अम आए दरसण), ३३९२३-२ अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद, पुहि., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, श्वे., (अजर अमर पद परमेसरकुं), ३३१८१, ३३४१८(#), ३३०२२(६), ३४४४९(६) अध्यात्मबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुध वचन सदगुरु कहें), ३२०८९(+) अध्यात्मभावना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धन्य हो प्रभु संसार), ३१२४९ अनंतकाय सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (अनंतकायना दोष अनंता), ३१८७३-१ अनंतजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु.,गा. ९, पद्य, मूपू., (जीनजी प्यारो ३ हो), ३२३३७-१ अनंतजिन स्तवन, मु. भाव, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सहीया एसहीयां मोरा), ३२१९८ अनंतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीअनंत जिनशुंकरो), ३२९०४-२ अनंतजिन स्तवन, आ. सौभाग्यलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अनंत जिन सहेज विलासी), ३००५५-१ अनंतवीर्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिम मधुकर मन मालतीरे), ३२७४१ अनागत चतुर्विंशतिजिन स्तवन, मु. गुणचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभातें उठीनें भावे), ३३५३२-३(#) अनागत चौवीसी स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जे भविसंति अणागए), ३१९०९-१, ३२१३६ अनाचीर्ण ५२ बोल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (न्यान अनै दसण चारित), ३४३९० अनाथीमुनि चौपाई, मा.गु., गा. ६३, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (सिद्ध सवेनइ करुं), ३१६०३ अनाथीमुनि रास, मु.खेमो ऋषि, मा.गु., ढा. ८, वि. १७३५, पद्य, मूपू., (वंदियै वीर जिणेसर), ३०३५३ अनाथीमुनि संधि, ग. खेमकलश, मा.गु., ढा. ८, गा. १२४, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (श्रीजिणवर चउवीसमउरे), ३१०६३(+) अनाथीमुनि सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मगध देस राजग्रही), ३१९११, ३३५०३ For Private And Personal use only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (मगधाधिप श्रेणिक), ३१७६२, ३४१३०($) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ३०७८५-१, ३०८२०-५, ३१२६६-२, ३१४७४-२, ३१६३०-२, ३३०५० अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहि., गा. १९, पद्य, मूपू., (मगध देश को राज राजे), ३०८१९-८, ३१०६१, ३४२३३ अनुकंपाछत्तीसी-समकितविषये, मु. ज्ञानसुंदर, पुहि., गा. ३७, वि. १९७२, पद्य, मूपू., (समकित रत्न सीरो भणा), ३३६८३-१ अभव्य सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (भगवंत आगल बेसीने), ३०६७३-२ अभिनंदनजिन पद, मु. ज्ञानचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अभिनंदन जिनरायजी हो), ३०६५३-४ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बे कर जोडी वीनवुरे), ३३३६१-४, ३४१४३-४ अभिनंदनजिन स्तवन, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बे कर जोडी वीनवुरे), ३०५६७-२ अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रभु तुम दर्सण मलिय), ३२५८५-२(#) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अकल कला अविरुद्ध), ३२७९३ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २६, वि. १८२६, पद्य, श्वे., (वनीता नगरी अतिभारी), ३३००३-२ अमकासती सज्झाय, पंडित. वीरविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (अमका ते वादल उगीयो), ३००३९ अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान अजुवालीए), ३०९७६ अरजिन स्तवन, ग. अमृतविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन जिन पदकज लीनो), ३३४३३-२ अरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीअरजिन भवजलनो), ३२८७४-३ अरजिन स्तुति, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अढारमा जिनवर भवियण), ३०८१६-१(+) अरणिकमुनि चौपाई, मु. नयप्रमोद, मा.गु., खं. ४, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (पारसनाथ पसाउथी पामी), ३०५६३($) अरणिकमुनिरास, मु. आणंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीनवु), ३०८७९, ३२१९३, ३०८८०(#) अरणिकमुनि सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ३१७००-१, ३१८२७-३ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनीवर चाल्या), ३३०२३-२ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (धन धन जननी रे लाल), ३२७८७-१, ३१०६२-३(#) अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ३३१७८-३ अरिहंतगुण सवैया, मु. हीरालाल, रा., सवै. १, पद्य, श्वे., (असोकवृक्ष और फटिक), ३२८१८-२ अरिहंतपद चैत्यवंदन, मु. हीरधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय मगहा मगहादेसा), ३३८८६-५ अर्जुनमालीमुनि चौढालिया, रा., ढा. ६, पद्य, श्वे., (सोदागर मीलीया पछ नयी), ३०३४८ अर्जुनमालीमुनि लावणी, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (राजग्रीनगरी के अंदर), ३३०६१-१(-) अर्जुनमालीमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, वि. १७४७, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरणे नमी), ३२३७८-२ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पं. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १९, वि. १८७९, पद्य, मूपू., (अरबुदगिरि अंतरजामी), ३१८५४(+) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आबुगढ तीरथ ताजा अष्ट), ३३४९९-१(+) अर्बुदगिरितीर्थस्तवन, मु. नित्यविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सकल करम पाल्हे), ३००७०-१(+) अर्बुदगिरितीर्थस्तवन, मु. सिंहकुशल, मा.गु., गा. १८, वि. १८०५, पद्य, मूपू., (अरबुद सीखर सोहामणो), ३००७०-२(+) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (महा सुदी आठमने दिने), ३३४३०-१(-) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अठावे गीरी संग भरपइ), ३१९८२ अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मद आठ महामुनि वारीइं), ३१५७४-१ अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आठम कहे आठिम दिने), ३०७५३-४ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांति, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ३१५१४-१, ३३६३६, ३३१२६-४(६), ३३७६५-१(६), ३४०२७($) अष्टमीतिथि स्तवन, मु. केशराज, मा.गु., ढा. ५, गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीजिन प्रणमी पाय), ३३७३०-२ अष्टमीतिथि स्तवन, पंन्या. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (पंचतिरथ प्रणमु सदा), ३०४०२ For Private And Personal use only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ अष्टमीतिथि स्तुति, मु. गजानंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (जयश्रीदायका आठमी), ३१४९१-३ " अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (चोवीसे जिनवर प्रणमुं), ३१२८८-१, ३२९१७-३(-) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मृपू, (मंगल आठ करी जिन आगल), ३०८८६-१, ३२३४९-२, ३२५९३-२(#) अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, (अष्टमी अष्ट परमाद), ३०५६६-३, ३२२७८-२, ३४४३९-३ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), ३२८३३-१, ३३८१३-१५($) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तिरथ अष्टापद नित), ३०३४४, ३२७५० अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु गा. ८, वि. १८वी, पद्य, भूपू (अष्टापदगिरि जात्रा), ३१४०८-३, ३२८८७-३ (६), ३३०४७-१ (६) अष्टापदतीर्थ स्तोत्र, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (सरसति अम्रत वसति), ३१३५५ ($) अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु., गद्य, मृपू, पितापितामह पडपितामह), ३१४११-४ असंख्यात अनंत विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (यथोक्त भेद स्पष्ट), ३२७२०-१ " असझाय विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (चउहा महा पडिवा), ३३४३७-२ (०) " असज्झायविचार सज्झाच, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु, गा. २४, पद्य, मूपू., (वंदि वीर जिणेसर राय), ३०१८४ असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति माता आदे नमीई), ३०७३१, ३२९०० असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पवयण समरी सासणमाता), ३१०७८, ३१८९५, ३२०३६ असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (वांद वीर जिनेश्वर), ३०७५८ असणादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), ३२२६५-२, ३३६९७-२, ३३९४९-२ आगमसूत्र नाम, मा.गु., गद्य, श्वे. (आदि श्री ए आचारंग १), ३१३९६-५ " आचार्य गीत, मु. सुखसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (श्रीजिनसागरसूरिजी ), ३१७१३-१(+) , आणंदविमलसूरि रास, मु. वासण, मा.गु., वि. १५९७, पद्य, मूपू (सकल पदारथ पामीड़ जपता), ३३६९१ आत्मद्वार-गुणस्थानक- दंडक - योनिआश्रयी, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलें १ तीजई ३), ३३५३४-२ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गद्य, श्वे. (हे आत्मा हे चेतन ऐ), ३२९७८-१, ३२२०० ($), ३३५०९ ($) आत्मप्रबोध जकडी, मु. जसकीर्ति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (समजी रे चंचल जीवडा), ३२५७३-१ आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु. गा. १०, पद्य, मूपू (प्रभु पाय लागी करूं), ३२७१६-१ आदिजिन आरती, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (अपछरा करती आरती जिन), ३३९१०-२ आदिजिन गीत, आ. नयविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू.. (हां मोरा आतमराम कुण), ३०३६५-२ आदिजिन गीत, मु. नेम, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (सुनि सेतुंजगिरि) ३२९१०-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " आदिजिन गीत, लिंबो, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (माता मरुदेवा बोलें), ३२६०४-६ आदिजिन गीत- १४ स्वप्न, मा.गु, गा. ३, पद्य, भूपू (सुभ सुपनांतर प्यारा), ३३२१८-४ आदिजिन गीत-वटपद्रमंडन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मरुदेवी वाणी बोले), ३२२१५-१ आदिजिन गीता, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदि पुरुष श्रीआदिजिन), ३१३४४ आदिजिन चरित्र, मा.गु, गद्य, वे. (हवें श्रीऋषभदेव वाधे), ३१४३१ " " आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू (प्रथम पुजो आदिदेव), ३४२७५-२ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकर आदि), ३१९९९-४ आदिजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, म्पू, (जय जय स्वामी युगादि), ३२८०९.२ (+) " आदिजिन चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, श्वे. (अरिहंत सिद्धनै आयरिय), ३२७६८ ($) आदिजिन छंद-केसरीयातीर्थ, पं. ऋषभसागर, मा.गु., दोहा. ५२, पद्य, मूपू., ( धरणेंद्र इंद्राणी), ३०९६५ (+) आदिजिन पद, मु. अजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. (प्रीत लगी है तुम सें), ३०४०१-२ For Private And Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन पद वा क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (आदिसर जिनराय), ३१८०६-१६ आदिजिन पद, मु. खूबचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, वे., (भज श्रीऋषभ जिनंद कुं), ३१८९०-२ आदिजिन पद, मु. खेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू, (जागीयै नृप नाभिनंदन), ३०३२०-४, ३१८०६-९ आदिजिन पद, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु. गा. ३, पद्य, मूपू (समर समर जिन प्रथम), ३४३६६-४ आदिजिन पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( आज सकल मंगल मिलै आज), ३०५७५-५ आदिजिन पद, मु. ज्ञानचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव स्वामी हो काल), ३०२४५-१, ३०६५३-१ आदिजिन पद, पं. रत्नसुंदर, मा.गु., गा. ६, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (भेट्या रे नाभीकुमार), ३०७६१-६, ३१९९९-१, ३२८७० आदिजिन पद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भज मन नाभिनंदन चरण), ३४३६६-३ आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), ३००५८-४ (+), ३१८६८-४, ३२८९४-२, ३४३६६-२ आदिजिन पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूप, ऋषभनाथ कुं रंग है), ३०३५० आदिजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाभिजी को नंद), ३१८०६-८ आदिजिन पद. रा. गा. ५. पथ, भूपू (सांवलीया माने तारो), ३०७६१-७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन पद- जन्मबधाई, मा.गु., गा. ५, पद्य, खे, (सखि गावो बधाई प्यारी), ३०४०१-३, ३४३००-२ , "" आदिजिन पद-धुलेवामंडन, श्राव ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (जगभूलो किउ भटके ), ३२८३७५ आदिजिन फाग, मु. चारित्रतिलकसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ९८, पद्य, मूपू., (पणमवि सिरि सीमंधर), ३३७३३ आदिजिन भास- शत्रुंजयतीर्थमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु गा. ७. वि. १८वी, पद्य, मूपू (संघपति भरतनरेसरू), ३३९२९-३ आदिजिन महावीरजिन स्तवन- जीर्णगढमंडण, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., ढा. ७, गा. ३९, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आदिह आदिजिणेसर प्रणम). ३३९८४(+) ५३१ आदिजिन लावणी, मु लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, मूपू. (आहे अति झीणी अति) ३३७२४-३ आदिजिन लावणी, पुहिं., गा. २५, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (सरसती माता सुमति की), ३०५३० (+) आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., डा. ५, गा. ५७, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसर बंदु पाय), ३३१०३-१(३) आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सकल आदि जिणंद जुहारि), ३१२२८(+) आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू. (जय पहम जिणेसर), ३०८७५ आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विजयतिलक, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू (पहिलं पणमीय देव), ३०९५४(+), ३२५०७/१) (२) आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीविजयतिलकमहो), ३०९५४(+) आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मूपू., (आदि धर्म जिणि उधर्यो), ३०५५९-१, ३०८७७-१ आदिजिन विवाहलो, मा.गु., ढा. ४४, गा. २४३, पद्य, मूपू., (सासनदेवीय पाय प्रणमे), ३२५९८(#$) " आदिजिन सलोको, मु, प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू (सयल जिणेसर प्रणमीय), ३०९४४ आदिजिन सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (गंगतरंग समुहजल कीरत), ३०८९५-४(#) आदिजिन स्तवन, मु. अमीयकुवर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (रीषभ जिणंदजीसुं), ३०६६७-२ आदिजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहिं, गा. ६, पद्य, भूपू (तेरो दरसन भलें पायो), ३३०८३-२ (४) आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( प्रथम तिर्थंकर रीषभ), ३२८८२-२ आदिजिन स्तवन, मु. कवियण, पुहिं., पद्य, भूपू " (वात वटाऊ कहि न इसी), ३२७२६-१ आदिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (सुगुण सुगुण सोभागी), ३३८३०-१ आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), ३०४५७-१, ३०७१७-१, ३२९९१ आदिजिन स्तवन, मु. ऋषभसौभाग्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर माहरै मन), ३०८५६-१ आदिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, पुहिं. गा. ६, पद्य, मूपू (अईयो अइयो नाटक नाचे), ३०९९१-१, ३१८०६-३ " , For Private And Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभजिणेसर जगत), ३२२९६-१(-) आदिजिन स्तवन, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जयो जगनायक गुरु रे), ३१८२२-३(+$) आदिजिन स्तवन, मु. खुस्यालचंद, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (सुभरी घडी हो प्रभु), ३३२४९-१ आदिजिन स्तवन, मु. चंदकुशल, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (देखोने आदेसर बाबा), ३२९५१-१ आदिजिन स्तवन, मु. जसकुशल पाठक, मा.गु., गा. ७, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर प्रणमीय), ३००५८-९(+) आदिजिन स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. १२, वि. १८७१, पद्य, पू., (सुगुण सहेजा सांभलो), ३०५१५-३, ३१२९२-१, ३२१३५-३(2) आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मधुकर मोही रह्यउ), ३०२७८-१, ३०४९२-२, ३२०६६-१, ३४१४३-१ आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आदिसर सुखकारी हो), ३१२८१-२, ३३२४९-३ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. २, गा. २६, वि. १८वी, पद्य, श्वे., (श्रीनाभिकुलगुर), ३२८५५(#) आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदीसर अरिहंत रेजग), ३१८४७-२ आदिजिन स्तवन, टोडर, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (उठ तेरो मुख देखु), ३१८०६-१० आदिजिन स्तवन, ग. तत्वविजय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (आदिसर अरिहंतजी), ३१३९० आदिजिन स्तवन, मु. दयानंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पुंडरिकगिरिवर धणी रे), ३१२९१-१ आदिजिन स्तवन, मु. धर्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ३२९४४-१(+६) आदिजिन स्तवन, मु. नागेश्वर, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (आदेशरजिन सेवीये रे), ३२३४७-१ आदिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जग उपगारी रे साहिब), ३१८५९-२ आदिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जगचिंतामणी जगगुरु), ३०४०६-१ आदिजिन स्तवन, बाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (परमेसरजी मरुदेवीनंदन), ३१८०६-११ आदिजिन स्तवन, मु. भक्तिचतुर शिष्य, मा.गु., गा. ९, वि. १९२०, पद्य, श्वे., (प्रणमु प्रथम जीणंदने), ३२९२५(+) आदिजिन स्तवन, मु. भावजी शिष्य, पुहिं., पद्य, मूपू., (आदि जिणंद मन वचन), ३२९५३-२ आदिजिन स्तवन, मु. भाव, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (दरसण द्यो प्रभु रिषभ), ३०४५५, ३०३३६-३(#) आदिजिन स्तवन, मु. महाकवि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (--), ३२५८६-१(६) आदिजिन स्तवन, मु. माणिक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रभु प्रथम), ३३०८३-१(१), ३३५५६() आदिजिन स्तवन, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (माता मरुदेवीना नंद), ३०४०६-२ आदिजिन स्तवन, मु. माधव, मा.गु., गा. १४, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (सर्वारथ सीधथी चवी), ३०१७२-२ आदिजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आदीश्वर अरिहंतजी रे), ३१२५७-२ आदिजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद), ३०२८३-३ आदिजिन स्तवन, मु. मीठाचंद्र, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणसुं प्रीत), ३०२३२-३ आदिजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर चरण कमलने), ३२७९१-२ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (उठ हो नाभि दूलारे), ३१८९९-३ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एतो प्रथम तीर्थंकर), ३००५५-२, ३०४४१-१ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ३०१२१-३, ३२९२८-१(-2) आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जग वालहो), ३२८०९-३(+), ३०२३९-१,३२०६४-१ आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ३०४२८(#) आदिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आतम आरति वारति भारति), ३००८०-८ आदिजिन स्तवन, वा. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ६८, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति लही वाणी ए), ३०८७६-२ आदिजिन स्तवन, ग. वनीतविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (आदि जिणंदा परमाणंदा), ३१८२६-१ For Private And Personal use only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन, पा. वालचंद, मा.गु., गा.११, पद्य, श्वे., (आदिश्वर विनती सुण), ३०३८०-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. विक्रम, मा.गु., वि. १७२१, पद्य, मूपू., (प्रथम आदिजिनंद वंदत), ३०१८८-१(#$) आदिजिन स्तवन, मु. विमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालो सखी वंदन जाइये), ३२७११-४ आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिजिनेसर विनती), ३००५५-३ आदिजिन स्तवन, मु. वीरचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर वीनती), ३३२९६-३ आदिजिन स्तवन, मु.शुभकलस शिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (समरी सरसति भगवती), ३१७१०-१ आदिजिन स्तवन, ग. संघविजय, मा.गु., गा. ७१, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (सरसति भगति भारति कवि), ३१४४६(+) आदिजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नाभिरायकेरो नान्हडीउ), ३१५६६-१ आदिजिन स्तवन, सुखदेव, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ जिनेश्वर), ३२८३७-४ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सोरठ देश सुहामणो), ३२२९७-२ आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जगपसरंत अनंतकंत गुण), ३१३८८ आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमुंप्रथम जिनेसर), ३१८६०-१(+) आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, ग. भाणविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीअष्टापद ऊपरे जाण), ३०४९९, ३२९३५-१ आदिजिन स्तवन-ओसीयातीर्थ, मु. गयवर, रा., गा. ११, वि. १९७२, पद्य, मूपू., (मासु मुढे बोल बोल), ३३६८३-६ आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (धन्य धन्य नित प्रभु), ३२८८६-१ आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (केसरीयाने जाज को लोक), ३२८८७-१ आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मु. कीर्तिनिधि, रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (थारो रूप देखीने रंग), ३३००५-२(+) आदिजिन स्तवन-छिपियापुरमंडण, मु. विद्यारत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (रिषभ जिणेसर राजीयो), ३१६६६ आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पहिलु पणमिअ देव), ३००५४, ३००७८, ३०९१३ (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मांगलिक्य भणि प्रथम), ३००७८ आदिजिन स्तवन बृहत्-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), ३१३००(+), ३११९७-१, ३३०८२-२, ३३३६६-१, ३२६८३(5) आदिजिन स्तवन-राणकपुरतीर्थ, आ. जिनसंभवसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (आव्यो हुसरणै ताहरै), ३००५८-२(+) आदिजिन स्तवन-राणकपुरतीर्थ, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १६, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (राणपुर नमौ हियो रे), ३१६३४-१, ३०३७१-१(-) आदिजिन स्तवन-राणकपुरतीर्थ, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १६, वि. १६१५, पद्य, मूपू., (राणपुरोरलियामणो रे), ३३४२४-३ आदिजिन स्तवन-राणकपुरतीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणोरे), ३०४४१-२, ३३०३८-७, ३२५९४-१(#), ३२९२८-३(-#) आदिजिन स्तवन-रामपुरमंडन, मु. केसराज, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अदभुत रूप अनुप खरो), ३१६९६-४ आदिजिन स्तवन-वर्षीतप पारणा, मा.गु., पद्य, श्वे., (सरसत सांवण वीन), ३२७९६(-६) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (जयकारी रे जयकारी रे), ३२२१५-२ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (लाहओ लेयोरे लाहो), ३१५९७, ३३३९८-२($) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. ऋद्धिविमल, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (आवोजी आवोजी सुधा), ३०७३४ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. १५, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (अविकल कुल इक्ष्वाकु), ३२३३५-६ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. १४, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसर साहिब सेवि), ३२३३५-७ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (विमलाचल गढमंडणो), ३०५०६-१ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. ज्ञानविमल, गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमो नमो श्रीआदि), ३३०४७-२ For Private And Personal use only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ आदिजिन स्तवन-शजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (आदिसर जिनदेव सुरनर), ३१८५६-१, ३१८८९ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (सेजेज केरी वाटडीआ), ३३०२० आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लालसोम, मा.गु., गा. ११, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (सेज केरी वाटडीआ), ३११८५-१ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सयलि सुहकर सयलि सुहक), ३०८६३ आदिजिन स्तवन- शत्रुजयतीर्थ, ग. दयाकुशल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति मति आपु भली), ३१३९२, ३३३१० आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकित द्वार गभारे), ३१२८८-७, ३३६९२-२ आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ३०८८६-२, ३२८१७-१(६) आदिजिन स्तुति, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रहि ऊगमतई ऋषभजिणंद), ३३१९३-२ आदिजिन स्तुति, मु. विनय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मनवंछित पूरण आदि), ३३१११ आदिजिन स्तुति, मु. सुमति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सवारथ सीधथी चव्या ए), ३१८५९-३ आदिजिन स्तुति, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकगिर स्वामी), ३४१७२-१५ आदिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रोत्कटविकटसदोद्भट), ३४४२८-१ आदिजिन स्तुति-९ तत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्यने पाव), ३१८७८(+) आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गजकुंभे बेसी आवे), ३२०६३-१ आदिजिन स्तुति-राधनपुरमंडन, मु. ऋद्धिचंद्र, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (आदि जिणेसर अति अलवेस), ३०८८६-६, ३२७१२-२, ३३०८२-६ आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विसलपुर वांदु), ३४१७२-९ आदिजिन स्तुति-शत्रुजयतीर्थ, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शेर्बुजामंडण दुरित), ३१६२५-२, ३२८४०-२($) आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सुधर्म देवलोक पहिलो), ३२७१२-३ आदिजिन हमची, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर जगमाहि), ३१२२७ आदिजिन हरियाली, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अचंभो उपनो कहोजी), ३१९७४ आदिमाता छंद, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, मूपू., (ॐकार आदि अपरम पर नाद), ३११९०-२(+) आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जबलगे विषय घटा न घटी), ३०८३८-२(+), ३३०४१-३(#) आध्यात्मिक गीत, मु. वसतो, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (चेत चेतरे आतम), ३३०७८-३ आध्यात्मिक गीत-काया, मु. वसतो, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (आतम कहे रे काया), ३३०७८-४ आध्यात्मिक जकडी, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कबहु न करि हुरी), ३२२९४-३ आध्यात्मिक जकडी, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (लालण मेरा हो जीवन), ३२२९४-२ आध्यात्मिक टपो, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (करणि फकीरि तो काहा), ३२६०४-४ आध्यात्मिक पद, मु. अमृत, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन तुंक्या करे), ३२५८९-७ आध्यात्मिक पद, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेडो ना करिए निगुणा), ३२४६८-५ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू अनुभव कलिका), ३०५३३-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू क्या मागुंगुनह), ३३८९८-३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू नट नागर की बाजी), ३३८९८-४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवधू नाम हमारा राखे), ३१८७०-५, ३३८९८-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आस्या औरन की कहा), ३३२९५-६ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (औधू क्या सौचे तन), ३१८७०-४, ३३२९५-५ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., (कंत चतुर दिल जानी), ३४३००-४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (किन गुन भयो रे उदासी), ३१२८८-४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (क्यारे मने मलशे मारो), ३३१२२-४ For Private And Personal use only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ "" आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, भूपू (क्या सोवै उठि जाग), ३०४४४-३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिया जानै मेरी सफल), ३०४४४-४, ३१८७०-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (निसदीन जोउं थांरी), ३३९५१-३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू. (साधो भाई सुमता रंग), ३०५३३-३, ३३८९८-१ आध्यात्मिक पद, कबीरदास संत, पुहिं, पद्य, वै.. (साम सामक रटेरी), ३१७००-२ आध्यात्मिक पद, मु. ग्यान, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (अंकुन मंजन चंदन चीर), ३३०९६-२ आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, मृपू., ( आज सखी मेरे बालमा), ३३३२०-२ (६) " " आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू (चेतन समता मिलना), ३२४६८-२ आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जोग जुगति जाण्या), ३३३२०-१ आध्यात्मिक पद, मु. जुगराज, रा. गा. १५. वि. ११वी, पद्य, जे.? (चालो चेतनजी मह फल), ३२९४३ आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (तुं आतमगुण जाण रे), ३०६०९-३(+) आध्यात्मिक पद, मु. रुपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अविनाशीनि सेजडीयें), ३३०८४-६ आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, भूपू (चेतन तुं क्या फरें). ३३०७८-७, ३३०६०-२(३) आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (लख लहो रे लख लहो रे), ३३४२०-१ आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (किसके बे चेले किसके), ३०९६१-४, ३२१८३-६, ३३८५९-२ आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजब जोत है तेरी आतम), ३३८२०-२ आध्यात्मिक पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, क्षे., (जब जानो पेड प्राहुना), ३०४४४-१ आध्यात्मिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जागत सुत निसि गति भइ), ३०९३९-२ आध्यात्मिक पद, मा.गु गा. २, पद्य, थे., (नगरनरेश रूठो खान), ३३०३९-२ आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., (मोह नदि जल पुर वहीत), ३०३२०-३ . ', आध्यात्मिक पद पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (हम बैठे अपनी मोनसी), २०५३३-४, ३३२९५-४ 1 आध्यात्मिक रास, मु. जिनवास, पुहिं. गा. १३, पद्य, खे, (सरस माल सवासेर खावें), ३०३७९ " आध्यात्मिक सज्झाय, ग. जयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पुरुष पनोतों बहु गुण), ३३८८०-३ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. दयानंद, मा.गु. गा. २९, पद्य, मूपू (अणसमज्यां दिलमें), ३०७३६-१(+) आध्यात्मिक सज्झाय, नग, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपु.. (काया माया कारमी), ३३४२४-१ , आध्यात्मिक सज्झाय, मु. नग, रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (थोरें दिन का जीवणा), ३३४२४-२ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. विजयहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मम कर माहरु माहरु), ३११७०-३(+) आध्यात्मिक सज्झाय, रा., पद्य, वे. (मारे पेरण लजीया चीर) ३०४८९-२ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६. वि. १६वी, पद्य, म्पू, (वरसे कांबल भींजे), ३३०७९-३ . आध्यात्मिक हरियाली, पं. रंगविजय गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कहेंज्यो चतुर नर ते), ३१७४०-२ आध्यात्मिक होरी, मु. चानत, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू, (चेतन खेलो होली), ३३३३३-३ ३३८६२-१ आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ मगधदेश राजग्रहीनगर), ३४०९४-१ आलोचना विचार, मा.गु., पद्य, वे (सिद्ध श्रीपरमातमा), ३२८९२ ', आध्यामिक गीत, मु. वसतो, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेतनजि तुमे चेति लेज), ३३०७८-५ आनंदादि १० श्रावक सज्झाय, ऋ. रायचंद, मा.गु., गा. १८, वि. १८२९, पद्य, श्वे., (आणंद ने सेवानंदा रे), ३१६०२-१ आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (समरी श्रुतदेवी सारदा), ३१६१५-३, ३१७५७, आलोचना विधि - साधुधर्म, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञाननि विषे जे), ३२७२४-२ आलोयणविनती स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५६, वि. १५६२, पद्य, मूपू (आज अनंता भवतणां कीधा) ३०८३९-१, ३०८६९-१, ३११२४-१, ३२६०३ " For Private And Personal Use Only ५३५ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (पाप आलोयु आपणां सिद), ३००३८, ३०६६३, ३२११०-१ आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (अतीत काल अठार पाप), ३३५८१-१(+) आवलिका संख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आवलिका ते असंख्याता), ३१७३९-४ आश्रवद्वार सज्झाय, मा.गु., गा. ७४, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (--), ३३९५५($) आश्रव-परिश्रव चौभंगी-आचारांगसूत्रगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे आसवा ते परिसवा), ३१४१६ आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ६७, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवदन निवासिनी), ३२१२२ आषाढाभूतिमुनि चौढालियो, मु. माल, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३०, पद्य, स्था., (वाणी अमृत सारसी आपो), ३०७७४ आषाढाभूतिमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., गा. ५७, पद्य, भूपू., (श्रीसंति जिणेसर भुवण), ३१७५५ आहारगवेषणा सज्झाय, वा. मेघविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ३३७०७ इंद्रपर्षदा विचारयंत्र, मा.गु., को., श्वे., (--), ३३९६४ इचालीकुमार चौपाई, मु. दयासागर, मा.गु., ढा. ११, वि. १७१०, पद्य, मूपू., (प्रणमी पारसनाथनई), ३१६०५ इरियावही मिच्छामिदुक्कडं विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते मिच्छा दुक्कड जे), ३१६८०($) इरियावही मिच्छामिदुक्कडंसंख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. ४, गा. १५, पद्य, मूपू., (पद पंकज रे प्रणमी), ३१८४३-१ इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नारी मे दीठी इक आवती), ३१६७६-१, ३३८८०-२, ३४०४४-२ इलाचीकुमार चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (प्रथम गुणधर गुणनीलो), ३१५७० इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ३०५४०, ३०६४१-२, ३०७११, ३१२१०-२, ३१८६१-३, ३२६९८-२(-) इलाचीकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (इलावर्द्धनपुरमै वसे), ३२८८०($) इषुकारकमलावती चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (चोवीसे जिणवर नमु), ३०७०१(६) ईर्यापथिकी मिच्छामिदुक्कडं भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (अढारसलाखइं चउवीससहसइ), ३१७७७-२ उठपदा दुहा, मा.गु., दोहा. २२, पद्य, श्वे., (रूडी होइ रसोइ उची), ३०१०३-६ उदयचंद महाराज गीत, मु. हीरालाल, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (गानीवत गुणाकासु), ३२६७३-२ उपदेशगुणतीसी सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (वरसे पुष्करावर्त), ३३०४० उपदेशछत्रीसी, पंडित. वीरविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सांभलज्यो सज्जन नर), ३३६१० उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., गा. ३०, पद्य, मूपू., (आतमराम सयाने ते), ३२९५२ उपदेशबत्रीसी-लाभ, मु. भूधर ऋषि, मा.गु., गा. ३२, वि. १८१५, पद्य, श्वे., (परम पद पामवा प्राणी), ३०२०३-२ उपधानतप स्तवन, ग. उत्तमचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १७११, पद्य, मूपू., (समरी सरसति सारदा रे), ३११९९-१ उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर धरम), ३०१८६-२ उपशम सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (भयभंजण रंजण जगदेव), ३१६३२(-) ऊर्ध्वलोकजिनप्रासाद व जिनप्रतिमासंख्यासंक्षिप्त विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (सलौधर्म देवलोके जिन), ३०७६६-२(+) ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५७, वि. १८६४, पद्य, श्वे., (सासणनायक सिमरतांपाम), ३००९०() एकलयध्यान पुन्यमान, मा.गु., पद. ३, पद्य, श्वे., (कोडि पूजा करतां), ३३३८१-२ एकादशीतिथि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल), ३००४४, ३१२५२-३, ३१७७९ एकादशीतिथि सज्झाय, आ. विशालसोमसूरि, मा.गु., गा.१५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे वीरने सुणो), ३०३०९(+) एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीरिषभ अजित), ३०९८४-३ एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांस जिन), ३२९४५-३ एकादशीव्रत गीत, मा.गु., गा. ११, पद्य, वै., (मेरुशिखरि सोनानु), ३२२६२-१ औपदेशिक कवित्त, मु. केसव, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (लिखीयो लेख लीलाट), ३०४४८-५ औपदेशिक कवित्त, क. दयाल, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (कहा मन मोह धरै उ दिन), ३०४४८-६ For Private And Personal use only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक कवित्त, मु. हेमराज, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (काचकीसी काया तामे), ३२७७४-१ औपदेशिक कवित्त, क. हेम, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (सबल भुयंगम साह कसण), ३०४४८-७ औपदेशिक कुंडलीयो, गीरधर, मा.गु., गा. ३, पद्य, जै., वै.?, (चिता जल सरीरमें दव), ३३०७८-८ औपदेशिक गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तूं अविनासी आत्मा रे), ३०२९१-२ औपदेशिक गीत, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ५, पद्य, पू., (परदेसी मीत न करीये), ३२२९४-४ औपदेशिक गीत, क. भालण, मा.गु., गा. ८, पद्य, जै.?, (स्यौं कहीय जो मूल ज), ३२९८०-३ औपदेशिक चोघडीयो, मु. कल्याण, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (भाई थारी मिनखा देही), ३०२३२-१ औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चरण), ३१७९४, ३३७४२-१, ३०७०३(-#) औपदेशिक जकडी, मु. कमल, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (लालन मेराबे मानो), ३२१८३-२ औपदेशिक जकडी-चातकहितोपदेश, क. कमलविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (चातक चाहइंबे घोरघना), ३२१८३-४ औपदेशिक जकडी-प्रीतिपरिहार, मु. कमल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (सज्जन सुणीइंबे ए हित), ३२१८३-५ औपदेशिक जकडी-मधुकर, मु. कमल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (मधुकर मोह्योबे कुसुम), ३२१८३-३ औपदेशिक दूहा, पं. जसवंत, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (जसवंत इस संसार में), ३०२८८-२ औपदेशिक दूहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (कुल बोलेने कहेस्ये), ३०१०३-२ औपदेशिक दूहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सजन फल जिम फूलजो वड), ३२७७४-२ औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं., गा. १३, पद्य, ?, (एक समे जब सींह कू), ३०६२९-४ औपदेशिक दूहो, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (कसतूरी मृगमां वसि), ३३३६१-२ औपदेशिक पद, अखो, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (जातसुं पुछो संतनी), ३३८२०-३ औपदेशिक पद, मु. अमीचंद, रा., गा. ४, पद्य, जै., वै.?, (साची तो कहो रे मौजी), ३२९११-६ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिनचरणे चित ल्याव मन), ३१८७०-१ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (हे जिन के पाय लाग रे), ३४३००-५ औपदेशिक पद, मु. कल्याणचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (रे आतम मन चेत ले), ३१८८८-२ औपदेशिक पद, क. कांति, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (फकर कीज करमें मत पडे), ३०८५१-२(+) औपदेशिक पद, मु. कुसल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुकरत करले रे मुंजी), ३०७६१-८ औपदेशिक पद, मु. खूबचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (लोभो जीव जाप्रदसां), ३३१७८-६ औपदेशिक पद, मु. गुणविलास, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (थोडासा दिनारो छे जी), ३०७६१-१ औपदेशिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मान कहा अब मेरा मधुक), ३३५३७-२ औपदेशिक पद, मु. चिदानंद, पुहि.,मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (स्वामी की सोभा करें), ३३५३७-१ औपदेशिक पद, मु. चोथमल ऋषि, पुहि., गा.५, पद्य, स्था., (इसी नाम के अरथ वीचार), ३३०६१-२(-) औपदेशिक पद, मु. चोथमल ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, स्था., (चंचल चीत मारो वरज्यो), ३३०६१-३(-) औपदेशिक पद, मु. जयकीर्ति, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (इण कलयुग में), ३०७६१-२ औपदेशिक पद, मु. जयराम, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (असरण सरण चरण कमल), ३२५८९-१ औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तुम तजौ जगत का ख्याल), ३३१७८-१ औपदेशिक पद, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सब स्वारथ के मित्र), ३३०१२-३ औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहारे अग्यानी जीवकु), ३०४४४-२ औपदेशिक पद, मु. जोगींद्र, पुहि., गा. ५, पद्य, जै., वै.?, (यहां तो रहेना भी नहि), ३२९११-५ औपदेशिक पद, मु. दानविजय, पुहि.,रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (ठग लाग्यो तोरी लार), ३०६४६-५ औपदेशिक पद, मु. देवब्रह्म, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (चेतन को आछो दाव), ३२७६१-२ औपदेशिक पद, देवीसींग, पुहिं., पद. ५, पद्य, वै., (दम परदम हर भज नहि), ३२९११-१ औपदेशिक पद, क्र. धीरा भगत, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (हीरानी परिक्षारे), ३१४१७-४ For Private And Personal use only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन उलटी चाल चाले), ३३२९५-२ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा.८, वि. १७वी, पद्य, दि., (देखो भाई महाविकल), ३०२८१-१ औपदेशिक पद, श्राव. भीम साह, मा.गु., गा. ३, पद्य, जै.?, (उठो उठो उद्यम करो), ३३३०१-२ औपदेशिक पद, श्राव. भीम साह, मा.गु., गा. ३, पद्य, जै.?, (नवल तुरंगम नवो नेह), ३३३०१-३ औपदेशिक पद, मु. मान, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जादि न मात न तात न), ३४१२७-२ औपदेशिक पद, मूलचंद, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (रामकुं सिमरो रे भाई), ३२९३८-२ औपदेशिक पद, मूलदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (समज्या विना रे सुख), ३१४१७-२ औपदेशिक पद, राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मनरेछार मायाजाल), ३४३५०-५ औपदेशिक पद, मु. रामचंद, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीनां वीचारी तु), ३०२५६-२ औपदेशिक पद, मु. राम, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (वात सुणो रे एक ज्ञान), ३२८०३ औपदेशिक पद, मु. रायकिसन ऋषि, पुहि., गा. ९, वि. १८६६, पद्य, श्वे.?, (चेत चेत रे नर कहते), ३२८३१ औपदेशिक पद, मु. विनयविवेक, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मगन भयो माह मोह मे), ३०८६२-४ औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (साइ सलुणां केसे), ३०८६२-३ औपदेशिक पद, सुंदर, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (कहां श्रवण जल भरे), ३०४४८-८ औपदेशिक पद, मु. हुकमचंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (प्रथम जनेसर पाए नमी), ३०९६७-२(+#) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (आतम दमवो रे प्राणिया), ३२९६९ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, जै.?, (इस करजे से मेरी), ३२९११-३ औपदेशिक पद, रा., पद्य, श्वे., (एक एक अक्षर भणे भणे), ३०३८०-२(#$) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (एसी विध तेने पाईरे), ३४३००-१ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (ऐसे क्यु० सुणि पंडित), ३०३४५-२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, जै.?, (करजे वालेकुंभाग्य), ३२९११-४ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (करम को कहो को भरम), ३२०३२-२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कायापिंड काचो राज), ३२९११-८ औपदेशिक पद, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (काहंकु सतावै न तावै), ३०६७३-४ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (चेत रे चित माहि चेत), ३०३२६-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, भूपू., (जगमै संत सुखी अणगार), ३४४१५-२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागि जागिरेन गइ भोर), ३२०६६-२(5) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीवत जरासा दुख जन्म), ३४४१५-३ औपदेशिक पद, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (थाने आइ अनादि नींद), ३२९११-७ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (दुनीयां तो दीवानी रे), ३१४१७-१ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (दुविद्या कबजे है या), ३३२९५-३ औपदेशिक पद, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (देख्यौ भला देख्या), ३०३२६-१ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (निंदा मोरी कोइ करो), ३२८४८-३ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (बाबू बन गये जेंटलमेन), ३४४०८-१ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, जै.?, (बेंपार इहां का बोत), ३२९११-२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (मनडी तेरे प्रीत पर), ३०४०३-२ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (मन तज्य रे गाम गमारा), ३१०३९-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (लगै धन पारको नीको), ३१३१०-२(+) औपदेशिक पद, पुहि., पद्य, श्वे.?, (हे प्रभु हे प्रभु), ३२९७८-२ औपदेशिक पद-७ वेरी, मा.गु., गा. ४, पद्य, स्पू., (मन है वैरी आपणो दूजो), ३२२४७-६(+) For Private And Personal use only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद-जुगारत्याग, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (पांडव जुगटुं रमवा), ३०३३८ औपदेशिक पद-ज्ञान, मु. राजाराम, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे.?, (ज्ञान रसायन पाइ रे), ३३८२०-१ औपदेशिक पद-नरभवदुर्लभता, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पूरव पुन्य उदय करी), ३३६९२-१(६) औपदेशिक पद-निंदाविषयक, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (निंद्या मारी कोइ करे), ३२९०९-१(-) औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (निंदरडी वेरण हुइ), ३०२४४-२(+), ३०७४९-१ औपदेशिक पद-भ्रमर, क. गिरधर, पुहि., गा. १, पद्य, जै., वै., (भौंरा भ्रम तुंछाडदे), ३२७७१-१ औपदेशिक पीठिका, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहँत भगवंत असरण), ३११५३ औपदेशिक भास, कीकु, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (वणजारा रे उभउ रही), ३१२७७ औपदेशिक लावणी, मु. हीराचंद्र, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (ले मानव अवतार मति कर), ३०४०७-३ औपदेशिक सज्झाय, अमरचंद्र, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (क्या करि जुठि माया), ३३९७९-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. अमीचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (महेसर में कोठे थारो), ३०३८३ औपदेशिक सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पांडुर पान थके परिपा), ३३३०७-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चतुर तुंचाखि मुज), ३१३४८-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चंचल जीवडारे में), ३१२८१-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. कृपासागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रवचननी रचना घणी), ३१८९६-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. केशव, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आपणपो संभालीयइरे), ३३३६१-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २३, वि. १८२०, पद्य, स्था., (परम देवनो देव तुं), ३३६३२(+) औपदेशिक सज्झाय, वा. चारुदत्त, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरनां प्रणमी), ३०२९५, ३१७२० औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. ६, वि. १९७७, पद्य, श्वे., (भुलो मन भमरा कई), ३३०९०-१(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८६०, पद्य, श्वे., (साध कहे सुण जीवडा रे), ३२८८३-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. जडाव, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेतन चेतो रे दस बोल), ३१८५८-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. जडाव, मा.गु., गा. ७, वि. १९६७, पद्य, श्वे., (जोव जी जगत का तनक), ३१८५८-४(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. जडाव, मा.गु., गा. ९, वि. १९५२, पद्य, श्वे., (रहो रहो रे जगतसु), ३१८५८-१(+) औपदेशिक सज्झाय, ग. जयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक पुरुष अतिरूअडोरे), ३०७००-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. जिणेंद्रविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (हां रे भाई जिन समय), ३३१४१-५ औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (केवल रे महोछव सुरवर), ३१९६७-१ औपदेशिक सज्झाय, आ. जिनसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चंचल जीवडारे में), ३०२५६-१ औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नरभव नयर सोहामणो), ३११६५, ३२८४६-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नाहलो न माने रे), ३०९५९, ३१०३३, ३११७५, ३३३००, ३४३०८-२() (२) औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार भावनामांहि), ३०९५९, ३१०३३, ३११७५, ३३३००, ३४३०८-२($) औपदेशिक सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, पू., (जाय छे जिवित चाल्यु), ३०४५६-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुरख मन माने छे मारु), ३०४५६-२ औपदेशिक सज्झाय, पं. बगतावरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (समझ मन आउ जावै जिन), ३३०१९-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. भाणविजय, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (मन वशि कीजइ मन वशि), ३०५५१ औपदेशिक सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., गा. २०, पद्य, मूपू., (मोहराय से लडीया रे), ३०६१० औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहि., गा.८, पद्य, मूपू., (चतुर विहारी आतम माहर), ३००५८-६(+), ३०६०९-१(+), ३२३९३-२(+), ३०२९१-४(६) औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै.?, (भूलो ज्ञान भमरा कांई), ३०६४६-२, ३२८६७-३, ३३१९१-१ औपदेशिक सज्झाय, क.मानसागर, मा.गु., ढा. २, गा.११, पद्य, मूपू., (मानव भव पामीयो पाम्य), ३१८२७-२ For Private And Personal use only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा.१८, पद्य, मूपू., (वाडी फूली अति भली), ३१२८२ औपदेशिक सज्झाय, वा. मेघविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मुको मोहतणी मत सगली), ३१७६५-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रीतम तणो मुज ऊपरि), ३०९२५-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. रत्ननिधान, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मीठी अइसी सुणि रे), ३२७८१-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (विणजारा रे वालभ सुण), ३०३२१-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. रामचंद्र, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (काई रे गुमान करे आप), ३२९०९-३(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नहीं आकुंजी माहरे), ३२४६८-४ औपदेशिक सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रह शमें भाव धरिजे), ३२०२०-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आज सखी दिन सोहीला), ३३३७०-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १७, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (मारो मन लागो हो), ३०६७६-१ औपदेशिक सज्झाय, ऋ. रायचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (एकेक पुनवंत इसडां), ३०७९७-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद, पुहिं., गा. १६, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (करम न छुटैरे प्राणी), ३०३४९-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काइ नवी चेतोरे चित), ३०८१९-६ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), ३२८२२-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), ३१९२१ औपदेशिक सज्झाय, मु.शुभवर्द्धन, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मइ सेवी रे देवी सरसत), ३०८२१ औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (करीइ पर ऊपगार मुंकी), ३१३०७ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (स्वारथ की सब हे रे), ३०७८५-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया पुर पाटण मोकलौ), ३१६४०, ३२०३१-९, ३३२२४-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुंधोजे मननु), ३२१३९-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुहंस, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हुंसीडा भाई प्राणीडा), ३१८१३-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बापडला रे जीवडला), ३३२६९ औपदेशिक सज्झाय, मु. सीधा ऋषि, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (जेणी दीधो तेणी लाधो), ३२३६०-२ औपदेशिक सज्झाय, आ. हंसभवनसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (च्यार पुरुष जब बंधन), ३१५६५-३ औपदेशिक सज्झाय, हीरालाल, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., (वटाउडा न कही जुरणा), ३२८१८-१ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (आलीगारो उंदिरो नित), ३०२१३-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (कंताजी औलग चलो), ३४०६३-२($) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (करो रे कसीदा इण विधि), ३०८५४-२ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेला पांचा बलदो गाडल), ३२८४८-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (जिन धर्मध्यान धरो), ३०७९७-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (दया उत्तम प्राणी दया), ३४१३३($) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (धर्म पावे तो कोई), ३४२३६-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (पांच सखी मील मोहीयो), ३०६६०-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (बोळ अथाणुकदीए न), ३२८६३-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (भविजीवो आदिजिणेसर वी), ३१९९५(-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (मुनि ले रसासाद करी), ३१८०२-२($) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (रे जीव समदभीज घर नार), ३२८८३-३ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीवीर जिणेसर भाखी), ३२९७७(+$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सरसत सांवण विनवू), ३०६३३-२ औपदेशिक सज्झाय-अफीणवर्जनविषये, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जिनवाणी मन धरी), ३२२३७-१ For Private And Personal use only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मायाने वस खोटु बोले), ३२४६८-३ औपदेशिक सज्झाय-इंद्रिय लोलुपता, मु. लब्धि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पामी श्रीजिनवर तणो), ३१७६७-१(+) औपदेशिक सज्झाय-इच्छापरिमाणविषये, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (अरिहंत देव सुसाधु), ३३८९१(+) औपदेशिक सज्झाय-कलिकालबोल, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ६१, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (अरिहंतने प्रणमी करी), ३३७०८ औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. पदमतिलक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वनमाली धणी इम कहे), ३२०३१-७, ३३२२४-३ औपदेशिक सज्झाय-क्रियाआदरे, ऋ. रायचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (अनंतकाल भमतां थका रे), ३०७९७-२ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्रोध न करिये भोला), ३०८२०-१, ३१४०३-१, ३१९८०-१, ३२१४७-१ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ३३६८४, ३३९२४-१ औपदेशिक सज्झाय-घृतविषये, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (भवियण भाव घणो धरी), ३३४८५-२ औपदेशिक सज्झाय-जयणाविषये, खीम, मा.गु., गा. ७, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (श्रावककुल अवतार लहीन), ३२४६० औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (तुं मेरा पिय साजणा), ३०१८१-२ औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सकल तीर्थंकर करु), ३२८२२-१ औपदेशिक सज्झाय-जीवशीखामण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मपू., (उंडोजी अरथ विचारज्यो), ३१९४१() औपदेशिक सज्झाय-जीवहितशिक्षा, मु. जडाव, मा.गु., गा. १०, वि. १९५८, पद्य, श्वे., (मत जाणो हां रे मती), ३१८५८-२(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवहितशिक्षा, ग. हर्षकुशल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (समता रस मनि आणे), ३३३४८-१(+) औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीयाजी), ३२७९८-१(६) औपदेशिक सज्झाय-दुर्मतिविषये, मा.गु., ढा. २, गा.७+८, पद्य, मूपू., (दुरमतडी वेरण थई लीधो), ३०७०४ औपदेशिक सज्झाय-द्वारपिधानविषये, मु. गयवर, रा., गा. १६, वि. १९७२, पद्य, मूपू., (पाखंडि किवाड जडणां), ३३६८३-३ औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बेटी से विलुधो जुवो), ३१६१८-४, ३२९८०-२ औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (एक काया दुजी कामनी), ३२२९४-१, ३२६८५, ३२७५६-३ औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंता रे सिख), ३०२६८ औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीव वारु छु मोरा), ३१७४२-२, ३२०८७-५(-2) औपदेशिक सज्झाय- परनारीपरिहार, मु. लक्ष्मीविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मत को विस्वास करो), ३२१८३-७ औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), ३४०९९-२ औपदेशिक सज्झाय-बादशाह प्रतिबोधन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (या दुनिया फना फरमाए), ३०७८६-२ औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (बुढो हलवे हलवे चाले), ३०७९५ ।। औपदेशिक सज्झाय-मनशिक्षा, मु. पद्महर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मन गढ वंका क्यु), ३१२३९-३ औपदेशिक सज्झाय-मांकण, मु. माणिक, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मांकणनो चटको दोहिलो), ३३५२१-२ औपदेशिक सज्झाय-मानवभव, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चितमां विचारोरे जीव), ३०८२०-९ औपदेशिक सज्झाय-मानोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अभिमान न करस्यो कोई), ३०८२०-२, ३१४०३-२, ३१९८०-२, ३२१४७-२ । औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (लोभ न करीये प्राणीया), ३०८२०-४, ३१४०३-४, ३१९८०-४, ३२१४७-४ औपदेशिक सज्झाय-वाणोतरशेठ, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सेठ भणइ सांभल वाणोत), ३२९०१-१ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, ऋ. जैमल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ३३९४८-२ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसी रे), ३०६०९-२(+), ३०३२१-१, ३२८३८-१ औपदेशिक सज्झाय-शीयलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कही), ३०६५४-१, ३००४७-१(६) For Private And Personal use only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ औपदेशिक सज्झाय-शीयलविषये, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एतो नारि रे बारि छे), ३०९२०-२(+), ३०५७० औपदेशिक सज्झाय-शोक, मु. भगवान ऋषि, रा., गा. २९, वि. १८८५, पद्य, श्वे., (समरु श्रीजिनराजनै), ३२८९९ औपदेशिक सज्झाय-षट्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (ओरन से रंगन्यारा), ३३५३२-५(#) औपदेशिक सज्झाय-संसार अनित्यता, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (रे जीव जगत सुपनो), ३२३६०-३ औपदेशिक सज्झाय-संसारदुःखविषये, मु. वीरचंद, मा.गु., गा. १७, वि. १८४८, पद्य, मूपू., (जनम जराने व्याधि मरण), ३१३८३-२(+) औपदेशिक सज्झाय-सिपाई, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सपाहीडारे वखसे मुकत), ३०६६१ औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही हो सांभल), ३२२३७-३, ३२९२६ औपदेशिक सवैया, मु. खोडीदास ऋषि, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (धीरज तात क्षमा जननी), ३२१४०-२ औपदेशिक सवैया, क. गंग, पुहिं., सवै. ३, पद्य, वै., (जो तेरी देह सनेह की), ३२७३८-७ औपदेशिक सवैया, मु. जसराज, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तन की तृष्णा सह लहे), ३२३८९-५ औपदेशिक सवैया, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. १, पद्य, पू., (सब गुणरीति गहै हठमै), ३२४३६-४(#) औपदेशिक सवैया, पुहि., पद्य, श्वे.?, (प्रीती की रीत महा), ३२७८७-३ औपदेशिक सवैया, मा.गु., गा. ९, पद्य, जै., वै.?, (संत सदा उपदेश वतावत), ३३२३३ औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३२८९४-३ औपदेशिक सवैया संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, जै., वै.?, (पांडव पांचेही सूरहरि), ३३३९३ औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उठी सवेरे सामायिक), ३०८८६-८, ३१४५१-१ (२) औपदेशिक स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (महिमाप्रभसूरीस गुरु), ३१४५१-१ औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, मु. वर्धमान, मागु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसती सामिण पाये नमी), ३२२६१, ३२६३३-१(६) औपदेशिक होरी, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (मनखा देही पाय लावो), ३२८६६-३ औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (घोडाने चर्म पड्या), ३०१०३-४ औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., (-), ३०३१३-२, ३०४८४-४, ३०७३५-२, ३१८८२-४, ३३६३९-२, ३३८७७-२, ३३९१८-१, ३३९२०-२, ३४२४५-३, ३०३७७-२(#) कंचन कल्प, मा.गु., गद्य, (कंचन बीज टां १। कुटक), ३०८००-३ ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कका करमनी वात करी), ३०१२९-१(+$), ३०२४४-१(+), ३३६३० कक्काबत्रीसी, मु. राम, मागु., गा. ३३, वि. १९४३, पद्य, श्वे., (कका किरिया किजियसे), ३००५० कठियारादृष्टांत सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर रे गोयम गण), ३३२३२-१ कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं., गा. २९, पद्य, श्वे., (महिला में बेठी राणी), ३०४८९-१, ३१८३५(5) कमलासती चौपाई-शीयलविषये, मा.गु., पद्य, मूपू., (नमुवीर जिणेसर), ३२४९८(5) कयवन्ना सज्झाय-दानविषये, मु. लालविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १६८०, पद्य, मपू., (आदि जिनवर ध्याउं), ३२११४-१ करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (चंपानगरी अतिभली हु), ३००४७-३, ३२०३१-१, ३३२३०-१ कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), ३०१८२ कर्मप्रकृति रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (आदि स्वयंभु शंकर शिव), ३२६९१(६) कर्मभाव पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (करे कर्म ते न करे), ३२८५४-४ कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देव दाणव तीर्थंकर), ३०७६५, ३०९६१-५, ३११२७-१, ३३०३१, ३३०६८, ३३०७५-१ कलियुगमाहात्म्य सज्झाय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., वै., (हवणां हरि बुद्धा), ३३४८५-५ कवित्त संग्रह, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, (आसराज पोरवार तणै कर), ३०५०३-२, ३२८२०-२, ३३१०५-२ कवित्त संग्रह, मा.गु., पद्य, जै., (--), ३२८५३-१, ३२८७२-३ For Private And Personal use only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ " काउसग्ग १९ दोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सकल देव समरी अरिहंत), ३२२७५-२ काकसु गीत, मु, लावण्यसमय, मा.गु, गा. १२, वि. १५५०, पद्य, भूपू (पाणी विहरी पाधरा जात), ३०६९९-२ काग शुकन, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (काग वचन सुणो तम भाया), ३२८९६-३ कागहंस कथा, मु. कान्हजी, मा.गु., गा. ४९, वि. १६९२, पद्य, श्वे. (वायस आयौ उडतो से), ३२८७१ कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुं सदा), ३४२३५ कायाअनित्यता सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुण बहीनी प्रीउडो), ३३०३८-२, ३४२४७-५ कार्तिकसेठ कथा, मा.गु., पद्य, श्वे. (प्रथवी भुषण नगर तिहा), ३३७७७-३ " कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ७४, वि. १९३१, पद्य, स्था., (श्रीआदिजिनेश्वरू वंस), ३०६९० (+) कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, मु. खिमा, मा.गु., ढा. २, गा. २८, पद्य, श्वे., (नगर अजोध्या रायजी), ३१३८५ (-) कुंडली - ज्योतिष, मा.गु., कुं., (--), ३०३१९-२ कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुंथुजिन मनडुं किमहि), ३१८६१-१ कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., ( रात दिवस नित सांभरो), ३३०८८-२ कुंथुजिन स्तवन, मु. प्रागजी मा.गु., डा. ५. बि. १७६१, पद्य, भूपू (जिनवाणी सारदा प्रणमी), ३००४५- ३(०) कुंथुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहेला हे कुंथु), ३२८७४-१ कुंभस्थापना गीत, मु. खुशालचंद, मा.गु. गा. १३, पद्य, वे. (इण विध कीजे रे ठवणा). ३३७९४ कुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाणी हियडे), ३१०५३ कालाभैरव मंत्र, मा.गु, गद्य, जै. वै., (ॐ नमो आदेस गुरुकु), ३३५०१-३(+) कालिकाचार्य व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे थिरावली मांहि क), ३३९४६ ($) काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., पंच ? (--), ३१८२२-२(+), ३१७७४-२, ३१८०६-१, ३२३२२-२, ३२५६५-२, ३३१५४-२, ३३८६२-२, ३२८१३-२४) ३२०१७-३(१) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३२४७, ३३८५१ क्षमापना दृष्टांत संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंधुसौवीर देशनो धणी), ३३०४२ क्षमाविजयगुरु सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १७७७, पद्य, मूपू., (--), ३१०७५ (+) क्षयोपशमसम्यक्त्व स्वरूप, मा.गु., गद्य, श्वे. (प्रश्न क्षयोपशम), ३०२०५ " क्षुल्लकभव विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकसास उसासमांही साढी), ३१७३९-५ क्षेत्रद्वार, मा.गु., गद्य, मूप, (खेत्रआश्री जोवतां), ३१३३४ कुमतिसंगनिवारण जिनबिंबस्थापना स्तवन, श्राव. लधो, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीजिन पंकज प्रणमी), ३३१३१($) कृष्ण पद, राम हजारी, पुहिं, गा. ४, पद्य, वै., (स्वाम हमारो आंचल), ३०६४६-४ . " कृष्ण पद, सुरदासजी, पुठि, गा. ४, पद्य, वै., (बन वेर्ण बंसी बाज रह), ३०६४६-३ कृष्णभक्ति बारमासो, मा.गु., गा. १५, पद्य, वै., (गणपति तुमने हुं), ३२०३५-३ कृष्णमहाराज- वीरासालवी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू. (एकवार नेमिनाथ), ३२१५०-४(३) केशवजी आचार्य पदस्थापन गीत, मु. किसन, मा.गु गा. १४. वि. १७२२, पद्म, वे (श्रीसुरत मदरि सदा), ३३३६१-३ कोणिकराजा कथा, मा.गु., गद्य थे. (-), ३४०७४) क्रिया के २५ भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, थे., (क्रिया दोय प्रकारनी), ३००३५-२(ख) " " क्रोध लावणी, मु. हीराचंद्र, पुहिं. गा. ६, पद्य, थे. (तुम तजो क्रोध का जेर), ३०४०७-२ " " क्रोधलोभमानमाया सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३२, वि. १८३५, पद्य, मूपू., (पेलुं सरस्वतीनुं), ३३९०५ क्रोध सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( क्रोध न कीजे हो भविअ), ३३२९९-२ क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ३०३९१-१, ३०४१५, ३१६४४, ३२९४६-१, क्षेत्रपाल छंद, माधो, मा.गु., गद्य, वै., (धूवै मादलां मृदं), ३३४४८-२(#) क्षेत्रपाल पूजा, मु. सोभाचंद, पुहिं., गा. १३, पद्य, मूपू., (जैन को उद्योत भैरु), ३०५५५-३ ५४३ For Private And Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४४ www.kobatirth.org יי १ क्षेत्रोपपत्ति, मा.गु., गद्य, श्वे. (खेताणुवाएणं सव्वत्थो), ३३९६५ खंधकमुनि चौडालीयो, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, पद्य, भूपू खंधकमुनि सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु. डा. ४, पद्य, थे. खंधकमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (तिण अवसर मुनिराय), ३१९०४ खरतरगच्छ गुरुगुणावली, श्राव. जोरावरमल, रा. गा. १७, पद्य, मूपू (श्रीलिछमश्रीजी महा), ३०२५७ " खरतरगच्छीय सामाचारी, मा.गु., गद्य, भूपू (तिथि २ थाइ तिवार), ३१७८७ खामणा कुलक, अमियकुंबर, मा.गु., गा. १४, पद्य, म्पू, (अरिहंतजीने खामणां), ३०७९८ गच्छनायकपट्टावली सज्झाय-तपागच्छीय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ५१, वि. १६०२, पद्य, मूपू (सरसति दु मति मुज (सावत्थी नगरी सोहामणी), ३२९०३ () (तिर्थंकर चरणे नमि), ३१६१६-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू. (वाणी श्रीजिनराज तनी) ३३९४८-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु, पद्य, मूपू (--), ३३१७५-३(5) "" कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ (अति), ३३२०३ गजसुकुमालमुनि चौढालियो, मु. रायचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १७९८, पद्य, श्वे., ( नेमि प्रभु वांदी करी), ३०१२१-१ गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., गा. ९१, पद्य, मूपू (देस सोरठ द्वारापुरी), ३१३८० गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. कान, मा.गु., गा. ९, वि. १७५३, पद्य, थे. (श्रीजिननेम आगमसुणि), ३२४४८(०) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु, दानविजय, मा.गु, गा. १७, पद्य, मूपु. ( श्रीनेमिसर जिनवर ), ३३०८८-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (द्वारिका नगरी ऋद्धि), ३१४४३, ३२१४०-१, ३३६२५ जिनवर आवंता मे सुण्य), ३०३३३ (पुत्र तुमारा रे देवक), ३२०५७-३ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पं. नथमल, मा.गु, गा. ५, पद्य, थे, गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. लबधि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपु गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), ३१८४४, ३३१०३-२($) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु, पद्य, मूपू (भदलपुरवासि षटबांधवे), ३२४७० (+) "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गजसुकुमालमुनि होली, मु. लालजी, मा.गु., गा. ११, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (सील संजमतणी करल्यौ), ३२८६६-२ गणधरलब्धि विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पह० तीन पद तीर्थंकर) ३२४१२-२ गणधरवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंभीका नगरीइ केवल ), ३०४१७, ३११६० गणधरवाद स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ४८, पद्य, भूपू (सो सुत त्रिसलादेवी), ३१२३९-१ तागति २४ दंडक के ५६३ भेद विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू (सप्त नरके समुचे गति), ३२९१६, ३१६९०) गति आगति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू (नारकीनी गति ४० ते), ३२३९५-३(+) गतिद्वार विचार, मा.गु. गद्य, भूपू., (--), ३०७८९-४ गर्भधारण- अधारण विचार स्थानांगसूत्रगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच जागइ स्त्री), ३१०४९-१ गर्भावास सज्झाय, संघो, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (माता उदरि वस्यो दस), ३२२६२-२ गर्भावास सज्झाय, मा.गु., पद्य, भूपू (माता उदर उंधे मस्तकि), ३१९६७-२ (३) गाथा संग्रह, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३२०३२-३ गिरनारतीर्थ इतिहास कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (आगइ श्रीगिरनारतीर्थ), ३२१५०-२ For Private And Personal Use Only गिरनारतीर्थ गजल, मु. कल्याण, पुहिं. गा. ५९. वि. १८२८, पद्य, मूपू (वरदे मात वागेश्वरी), ३०२५९(+) "" गिरनारतीर्थ स्तवन, ग. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सहसावन जए वसीये चालो), ३३७५९-१ गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), ३०२२२-२, ३२२६९-१ गीता छंद. राम, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (समद्रे उडीया वे कुअड), ३०६९९-१ गुणचंद्रमुनि ने लालचंदमुनि को लिखा पत्र, मु. गुणचंद्र ऋषि, मा.गु., वि. १८४१, गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीपार्श्व), ३०३७४(+) गुणठाणा चौपाई, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ७६, पद्य, मूपू., (पंचपरमिट्टि मिट्टम), ३११४४ गुणसागरसूरि गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोल वरसें संयम लिओ), ३१२२६-१ Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ गुरु आगमन गहुंली, मु. मणिउद्योत, मा.गु., वि. १९१४, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर पाये नमी), ३३६०९-२(+) गुरु गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू (रूडीने रढिवाली रे) ३११६९-२, ३१२२६-५ गुरुगुण गहुली, मु. अमीयकुवर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सांभल रे तुं बेनी), ३०६६७-३ गुरुगुण गहुंली, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आज आ नगरी मझार अति), ३३८८३ गुरुगुण गहुली, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( आगम वयण सुधारस पीजे), ३०५९०-१ गुरुगुण गहुली, मु. रत्न, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., ( श्राविका सुधाचार जाण), ३२५८३-२ (+) गुरुगुण गहुली, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (आज परमानंद वधावणारे) ३३०७० गुरुगुण गहुली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु, गा. ६, पद्य, मृपू. (जिनवयणे अनुरंगी), ३३२१६ (२) गुरुगुण गहुंली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (रागद्वेष रहित ज), ३३२१६ (सरसती मात मया करी), ३०४५१-१ (सुण साहेली सतगुरु), ३३८२०-४ ७, पद्य, मूपू., (राजग्रही उद्यानमां), ३१२२६-४ गुरुगुण गहुली, मा.गु., गा. ५, पद्य, थे. गुरुगुण गहुली, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू गुरुगुण गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. गुरुगुण गीत, मु. कुसालचंद, मा.गु., गा. ७, वि. १८८८, पद्य, ओ., ( पुन्यजोगे सतगुरु मिल), ३०२०६ " गुरुगुण गीत, मु. जीतरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सांभल रे तुं सजनी), ३३१४९-२ गुरुगुण भास, रा., पद्य, मूपू., (थे सुमता रै रंग भीना), ३२६०९-३ (७) गुरुगुणवर्णन जोड, मु. भगवानदास ऋषि, पुहिं. गा. १५. वि. १८८५, पद्य, ओ., (सतगुर हे सोदाग भारी). ३२४१०-१(+) " " गुरु पद, मु. भुधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (अब पुरी कर नींदडी), ३०४६७ - २(#) गुरुपरंपरा पट्टावली, मा.गु., गद्य, श्वे., (चंद्रसूरथी श्रीचंद्र ), ३२९४० गुरु महिमा पद. मु. गोरधन ऋषि, पुहिं., गा. ८, पद्य, वे. (आप तीर अवैरां कुं). ३०५२५ "" गुरुविहार विनती, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पाये), ३३६०९-३(+) गुरु सज्झाय, ग. मानसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवा सुरत), ३०८८७ गूढार्थ हरीयाली, मा.गु., गा. ६, पद्य, जै.? (कीडी चाली सासरे नवमण), ३२३११-३ गोचरी के ४२ दोष *, मा.गु., गद्य, मूपू., ( उद्गम दोष श्रावकथी), ३३९२६-१ गौतमपृच्छा, क. नंदलाल, पुहिं., गा. २१५, वि. १८९०, पद्य, श्वे., (ज्ञाताधर्मकथामांहि), ३००८४(+$) गीतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (प्रह ऊठी गौतम प्रणमी), ३४९९५-१ गौतमस्वामी गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (हस्तिवाम वनखंड मझारि), ३१२२६-३ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमस्वामी रास, मा.गु., गा. ४६, पद्य, म्पू., (वीर जिनेसर चरण कमल), ३४१५८-२(६) गौतमस्वामी सज्झाय, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जिनवर श्रीवर्धमान), ३२९८२-१(+) गौतमस्वामी स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुनिवर जिनशासन), ३२०२०-२ गौतमस्वामी गहुली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजगृही रलियामणि जिह), ३०५८४-४ गीतमस्वामी गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (प्रह उठी नित प्रणमीय), ३१९५१(०) . गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ३२९९३-१(+), ३०८५४-१, ३१२१०-१, ३२९२१-२(क) गौतमस्वामी दीपालिका रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., डा. १३, गा. ७६, पद्य, म्पू (इंद्रभूति गौतम भणई), ३०८४२-१(+), ३०९९० गौतमस्वामी भास, मु. रत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपा नयरि अति मनोहार), ३२५८३-१(+) गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १४, वि. १८३४, पद्य, श्वे. (गुण गाउ गौतम तणा), ३२९४९ (वीरजिणेसर चरणकमल कमल). ३११२२ गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., डा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., गीतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ३०९८० (+), ३११६३-१(+), ३१२७९ (+), ३०७०८, ३१६५९, ३२६२४, ३३८६६, ३४१८३, ३४२१७, ३०४०८-१(३), ३३५५७( For Private And Personal Use Only ५४५ Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४६ www.kobatirth.org ग्रंथसूचि, मा.गु, गद्य, जे. (--), ३२५९७-१(+), ३४२४२-२(+) घासीरामजी सज्झाय, रा., गा. २४, पद्य, श्वे., (मरुधर देशमें गाम लाड), ३३१३९(#) गौतमस्वामी स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजग्रही रलीयामणी), ३२०२०-३ गीतमस्वामी स्तवन, मु, पुण्यउदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (प्रभाते गोतम प्रणमी), ३०२५३-१ गौतमस्वामी स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८५७, पद्य, श्वे. (जंबूदिप दिपा रे बिचम), ३३००३-१ गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहेलो गणधर वीरनो रे), ३२७८७-२ गौतमस्वामी स्तवन, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु, गा. ९, पद्य, मूपू (श्रीजिनसासन जाची) ३१७१६-२(४) गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., ( श्रीगौतम गुरु प्रभात), ३३०८६ ग्रंथटिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू. (व्याकरणना पाना १३२), ३०४६९-३ () . . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ घृतगुण सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (भवियण भाव धरी घणो ), ३१८५५ चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू, (बालकुंआरी चंदनबाला) ३०३४१, ३१७१७-१, ३२०७६ चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (चंदनबाला वारणै रे), ३०२२१ चंद्रगच्छोत्पत्ति गोत्रसंख्या सवैया, मा.गु., सवै. २, पद्य, मूपू., (बालपणाथी मांड प्रथम), ३२९६७-१ יי चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. जैमल, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., ( पाडलीपुर नामे नगर), ३२०८१ चंद्रप्रभजिन कथित बोल, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रषदा मध्ये छन्नू), ३०३१९-१ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु. गा. ७. वि. १८वी, पद्य, मूपू (चंद्रप्रभु मुखचंद), ३०७१७-४ चंद्रप्रभजिन स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरण नमी करी), ३१६७६-३ चंद्रप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु जिन), ३०५४४-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. साधुजी ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८५०, पद्य, श्वे., (चंद्रपुरी नगरी भलीजी), ३३१०५-१ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरण नमी करी), ३२२६६-१ चंद्रप्रभजिन स्तवन- मालपुर, मु. अजबसागर, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपू., (आवो सखि बंदी हे किं), ३२४३४-१(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन- मालपुर, मु. अजबसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभ जिनवर ), ३२४३४-२(+) चंद्रप्रभजिन स्तुति, आ. क्षमासागरसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंदप्रभु जिण वंदिये), ३२८७७-१ पद्य, मृपू., (चंदप्रभु जिण राजे ए), ३२८७७-२ चंद्रप्रभजिन स्तुति, आ. महिमासागरसूरि, मा.गु., गा. ४, चंद्रवाहुजिन स्तवन, मु, न्यायसागर, रा. गा. ८, पद्य, भूपू (चंद्रबाहु जिनराज), ३०८५१-३(+) चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७४, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमरुदेवीन), ३२८०१ " चंद्रसेनचंद्रद्योत नाटकिया प्रबंध, ग. दयाशील, मा.गु., ढा. १३, गा. १५०, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (विमल कमल दल लोचनं), ३२१२१ चंद्रावती भीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू (जिन मुख सोहे सरस्वति), ३२७८४-१ चक्रवर्ती ९ सेना, मा.गु., ., ., (--), ३३५८१-२०१ चक्रवर्तीऋद्धि विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (छ खंड भरतक्षेत्र), २३३४७-१ + चक्रेश्वरीमाता गरबो, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अलबेली रे चक्केसरी), ३३१७०-१ चतुर्दशीतिथितप स्तवन, मु. चेतनविजय, मा.गु गा. ११, वि. १८७३, पद्य, मूपू (चौदश तप कर भावसुं), ३०४२६ चरणसत्तरी-करणसत्तरी के सत्तर-सत्तर बोल, मा.गु. गद्य, म्पू, (चरण सीतरे ना सीतर), ३२६३०(३) चर्चा अधिकार - स्थानकवासीमत खंडन, मा.गु., गद्य, मूपू., (भ्रमामती कहै हुं), ३१३३२-१ चामुंडा छंद, सा. सुखा, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सुंडालो नित समरीये), ३०५०३-१ चारआहार विचार, मा.गु, गद्य, म्पू, (अससालिज्वारि बरटी), ३१३०१-१ चारित्र बोल संग्रह, मा.गु., को. म्पू., (-), ३२७९५-१ " For Private And Personal Use Only चारित्रमनोरथमाला, मु. खेमराज, मा.गु., गा. ५३, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर पाय नमी), ३१०८४(#) चारित्रमनोरथमाला, आ. पार्थचंद्रसूरि मा.गु., गा. ४१, प्र. ८८, पद्य, म्पू, (सुह गुरुपच प्रणमड), ३११५०-१, ३४०७७ Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), ३०५१३, ३२९३४ चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (अवसर जो नर अटकलो), ३०७७२, ३१६८१-१ चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), ३०२३३-२, ३१२६१-३, ३२०३१-६, ३११२७-२(६) चैत्यपरिवाडि स्तवन, आ. महिमासूरि, मा.गु., ढा. ५, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (श्रीवागेश्वरी वीनवू), ३२१७५ चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., चैत्यव. २४, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), ३१७४३-४ चैत्यवंदनचौवीसी, ग. जिनविजय, मा.गु., चैत्यव. २४, गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम जिन युगादिदेव), ३१०१६ चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., चैत्यव. २५, गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं श्रीआदि), ३११०९-३, ३३४११, ३४१९३($) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम प्रतिमा ४ माडी), ३१८६७-१ चौपटखेल सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, पुहिं., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रथम अशुभ मल झाटिके), ३१९१४ चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), ३३९०२(5) चौमासी-संवत्सरी तप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोमासीतप छट्टेणं २), ३३४७७-२ छंदछप्पनी, मु. माल, मा.गु., सवै.५६, पद्य, मूपू., (ॐकाराक्षर प्रथम जैन), ३१२०७(६) छट्ठाआरा सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १३, वि. १९६३, पद्य, श्वे., (सीरी गोतमसामी वीनवे), ३२८९८(+) छमासीतपचितवन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (रे जीव महावीर भगवंत), ३२८४४ जंबूस्वामीपंचभव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमु हो के), ३१८०२-१ जंबूस्वामी ब्रह्मगीता, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३०, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (समरीये सरसती विश्वमा), ३३९५६ जंबूस्वामी भास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जाउं बलिहारी जंबू), ३३०८१-१ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., ढा. २, गा. २५, वि. १७०९, पद्य, श्वे., (जिनवर जिनवर नमु), ३०३११ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे), ३१९८५-३ जंबूस्वामी सज्झाय, मु.सौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (सरस्वती पद पंकज नमी), ३१४५९-३, ३३७७६-३($) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३००९८($) जमाली सज्झाय, मु. चौथमल, मा.गु., गा. ११, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (सासणनायक श्रीविर), ३१९४२ जयमलऋषि सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (पूज्य जयमलजी हुवा), ३३०१९-१(क) जलयात्रा भास, मु. दुर्लभ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (अनंत चोविसिजिन नमु), ३३७६४ जिनआगमबहुमान स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., ढा. २, वि. १८०९, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत मंडप भलौ), ३२७३१(+$), ३१४९० जिनकुशलसूरि आरती, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहिली आरती दादाजी), ३१६९५-२ जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयराज, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (इच्छ गुरू पंचनदिपति), ३४२१४ जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आयो आयो री समरंतो), ३००५८-३(+) जिनकुशलसूरि छंद, मु. राज, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वदनकमल वाणी विमल), ३३११२ जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु अब मोहि), ३१८०६-१५ जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनहर्ष-शिष्य, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुसल करण गुरु कुसल), ३१८०६-१२ जिनकुशलसूरि पद, मु. राज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीगणधर जिनकुशलसूरि), ३१८०६-१४ जिनकुशलसूरि पद, हिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कैसे कैसे अवसरमें), ३११६६-४ जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दादौ परतिष देवता), ३१८०६-१३ जिनकुशलसूरि स्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., गा. १९, वि. १४८१, पद्य, मूपू., (रिसहजिणेसर सो जयो), ३०१८३ जिनगीतचौवीसी, मु. आनंद, मा.गु., स्त. २४, वि. १५८१, पद्य, मूपू., (आदि जिणंद मया करो), ३०९८९ जिनचंद्रसूरि गीत, मु. जीतरंग, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सदगुरु सेवो शुभ भावै), ३३१४९-१ For Private And Personal use only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ जिनचंद्रसूरि भास, मु. लावण्यकमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (गुणनिधि जिणचंद मुणि), ३३१४६-२ , "" जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु, मानविजय, मा.गु. गा. ११, पद्य, भूपू (सरसती देवी धरी मनरंग), ३०७३९.१, ३२३५०-१ जिननामआधार स्तवन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिननाम आधार हो), ३००४८-२ जिनपंचकप्रभाती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंच परमेश्व० परम), ३०२२४ जिनपालितजिनरक्षित सज्झाय, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसररे पद पंकज), ३२५९३-३(#$) " , जिनपूजा अष्टक, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (जलधारा चंदन पुहप), ३३९५१-१ जिनपूजा गीत, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुख चाहे तो दरिशण), ३३७७५-४ जिनपूजा विधि, मा.गु, प+ग, भूपू (प्रथम सवारना पोरमा), ३०२४१(०) जिनपूजाविधि छंद, मु. प्रीतविमल, मा.गु, गा. १३, पद्य, म्पू, (सुविधिनाथनी पूजा), ३२७१५ जिनप्रतिमा मतस्थापना सझाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू (सकल विमल जिणवर तणा), ३४३०२) जिनप्रतिमा माहात्म्य, मु. बनारसी, हिं., गा. ३, पद्य, वे (जिनप्रतिमा जिनसरखी), ३१५३६-२(+) जिनबल विचार, मा.गु., गा. १, पद्य, वे (सुणो वीर्य बोलु), ३३४६३-२(०), ३२८२९-२, ३०५७७-३(३) जिनबिंबप्रवेश विधि - संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रवेशदिन पहिला दिन), ३०२२०-२(+) जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. जस, मा.गु., गा. १०, पद्य, मृपू., (भरतादिके उद्धारज), ३२९६१ जिनरक्षित जिनपाल चौढालिया, रा., ढा. ४, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ३१०६४ (+), ३१९०१ जिनलाभसूरि भास, मु. चतुरहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज म्हारे अधिक उमाह), ३३१४६-१ जिनलाभसूरि भास, उपा. नेणसी पाठक, पुहिं., गा. १३, पद्य, मूपू. ( पुज्य पधार्या पुरि), ३०५७५-२ जिनलाभसूरि भास, मु. राज, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आज वधाऊडौ आवीयो), ३०५७५-१ जिनवंदनफल स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिन चोवीसे करु), ३३१५७ जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु, गा. ११, पद्य, मूपू (सयल तीर्थंकर करु), ३१७८४ जिनवाणी स्तवन, मु. गयवर, पुहिं. गा. २५, वि. २०वी, पद्य, म्पू, (जिन वाणी इसिरे इसिरे), ३३६८३-७ जिनसागरसूरि गीत, मु. सुखसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेडतउनयर सुहामणउ जी), ३१७१३-२(+) जिनसूरि गीत, मु. जडाव, मा.गु.. गा. ९. वि. १९५९, पद्य, मूपू., (भुलु नही सखी ए मात), ३२९५७-१ जिनहर्षसूरि गीत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीजिनहर्षसूरीसरुजी), ३३१४९-३ , जिनहर्षसूरि पद, मा.गु, गा. ५, पद्म, मूपू, (पूजी जे दीये छे देशन), ३१८०६-१७ जिनेंद्रसूरि गहूंली, मु. वल्लभसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चालो सहेली सहु मिलि), ३१७२५-३ जीभ सझाय, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जाणवंतनी जीभडिली रे), ३२७२३-१ जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु, गा. १०, पद्य, मूपू. (गुरु चरण कमल प्रणमीन), ३२३६८-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीव के इक्यासीभेद, मा.गु., गद्य, श्वे. (१ पुढवीकाय जीवा), ३२०२५-१ ! जीवभेद सज्झाय, मु. जिन, मा.गु. बा. २ गा. २० पद्य म्पू, (श्रीसारद चितमें धरी), ३१५७४-२ जीवविचार बोल", मा.गु., गद्य, भूपू (--), ३०४५० जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती रे वरसती), ३२१६७, ३३१८४-२ जीवविषय सज्झाय, मु. अखेराज, मा.गु गा. १०, पद्य, थे., (ज्ञांनी गुरुजी जाण), ३२७८९ " For Private And Personal Use Only जीवहित सज्झाय, मु. क्षमाविजय, गु., गा. ८, पद्य, म्पू. (गरभावासमे चिंतबइहे), ३२०५०-२ जुगारत्याग सज्झाय, मु. चोथमल, रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (मत कीजो सटा ऊभ जावे), ३३०९०-२ (-) जैनकाव्य संग्रह, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३१४०२-२ जैन गाथा, मा.गु., पद्य, म्पू. (--), ३०३५१-२, ३०४८३-२, ३०४८५-२, ३०५५९-३, ३२२६५-४, ३३८१०-३, ३४०४२-२ जैनदर्शनमंडनछत्रीसी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (रिसह पमुह जिणवर चउवी), ३४२११ जैनयंत्र संग्रह ( कोष्ठक), मा.गु., यं., म्पू., (--), ३३६७७, ३३६७८ जैनलक्षणसज्झाच, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जैन कहो क्युं होवे), ३०३२३-२ Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ज्ञानगुण आरती, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जयजय आरती ज्ञान), ३१०१९-२ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, आ. नयविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय नृप कुल), ३१२३२-६ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नाणपंचमी नाणपंचमी), ३३३१५-१ ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम पवित्र), ३३०४४ ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगुरुपाय), ३१०११, ३१४१२-१, ३१६७८, ३२८५२, ३३३९४-१, ३२९१४(#$), ३३३९५(#) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा.१६, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्यजिणेसर), ३०७५३-३, ३१८५७-२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पासजिणेसर), ३३०००, ३१७५३($), ३३५८०($) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. रत्नसमुद्र शिष्य, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (-), ३२७१४(६) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करोरे), ३०५१४, ३१६०१-३, ३१७९९, ३१९८४, ३२४०३, ३२४०४(-) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कारतकसुद पंचमी तप की), ३१८३२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिन नेमि जिनेसर), ३२०५८-९ ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), ३०५१९-१, ३३३०१-१, ३०५११(#) ज्योतिषमंडल, अज्ञा., मूपू., (--), प्रतहीन. (२) ज्योतिषमंडल-(मा.गु.+अंक)विवरण, मा.गु., को., मूपू., (--), ३०७८९-३ ज्योतिष श्लोक, मा.गु., गा. १, पद्य, (दिन दस मेलवा विसे), ३२४४०-३() ज्योतिष संग्रह-, मा.गु., गद्य, (--), ३४१००-१(#$) झांझरियाऋषि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (महियलि माहि मुनिवरु), ३१०३९-१, ३२६६५ झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे शीश नमावी), ३३५७४, ३०७४८(६), ३१९३५-१(६), ३१७९६(-) झांझरियामुनि सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ७८, वि. १६००, पद्य, मूपू., (सरस सकोमल सारदा वाणी), ३२३४८-१ झूठातपसी भास, मु.सीवसी, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (गोयम गणहर गुणनीलो), ३०१७८-२ झूठातपसी सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रातसमै जिनश्रवण), ३१२६६-१ ढंढणऋषि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ३०१८१-३, ३०४९८, ३२०५०-१, ३३१२६-३, ३२७७५-२($) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. प्रेममुनि, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (प्रथम जिनेशर वांदिने), ३३२६२, ३०१४५-१(६) ढाईद्वीप क्षेत्रविवरण यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (--), ३२७५३() ढुंढक छंद, क. प्रेम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (देसामाहे सीरोमणी मरु), ३३०९९-१ ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी प्रणमी), ३०६३२(+), ३४०५८($) ढुंढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहिं., ग्रं. २४०, गद्य, मूपू., (ढुंढियो कहे हुं), ३०६३४(+$) ढुंढकमत पट्टावली दुढालियो, मा.गु., ढा. २, पद्य, स्था., (वांदु सिरी चोवीसमा), ३२२४७-१(+) ढुंढकोत्पत्ति रास, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (समरु साची सारदा), ३१३७२ तंत्र प्रयोग, मा.गु., गद्य, श्वे., (कंटेसालियानु झाड शनि), ३०१०३-३ तप फल, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवती शास्त्रोक्त), ३०८३० तपयंत्र विधि संग्रह, मा.गु., यं., मूपू., (-), ३०७८९-२ तप संग्रह, मा.गु., को., मूपू., (--), ३०५२७, ३०५६८ तप सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. २+१३, पद्य, मूपू., (निरलोभी इछातणो रोध), ३०९६१-१ तपागच्छपट्टानुक्रम गुर्वावली छंद, मु. विबुधविमल, मा.गु., गा. ११२, पद्य, मूपू., (जयति जगत्रय जन उद्धर), ३२३९९ तमाकुपरिहार सज्झाय, मु. आणंदवर्द्धन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती विनवे), ३२२३७-२ For Private And Personal use only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ तारासती चौपाई, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (वीरजिणेसर चरण नमेव), ३००७९ तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (तित्थयरा गणहारी चक्क), ३०२२९ तीर्थंकरबल वर्णन, मु. केशव, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (वार पुरुष बलवान वृषभ), ३१५४२-२(+) तीर्थमाला, मु. मतिसागर, मा.गु., गा. ३३, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरणे नमी), ३१२०८(+) तीर्थमाला स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (समरसि समरसि सरसति), ३१००७, ३१२६१-१ तीर्थमाला स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., गा. ९२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (शेव्रुज सामी रिसह), ३१०५४, ३१११३ तीर्थोत्थापनविवाद सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (सुविहित कहि हितकारी), ३११७८ तुंगीया श्रावक सज्झाय, मु. कनीराम, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (श्रावग तुंगीया तणो), ३३१००(८) तृष्णा सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (क्रोधमान मद मच्छर), ३३४४६-१ तेजसिंघ आचार्य भास, मु. नरसिंह, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सहगुरना प्रणमीस पाया), ३०१७८-१ तेजसिंघजी निसाणी, मु. कुशला, मा.गु., गा.१०, पद्य, स्था., (श्रीजिनचोवीसे विसवा), ३३८६९-५ त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राए सिद्धारथ घर पट), ३०६०४-१ त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरणकमल मन), ३१९२७ दधिसुत गीत, पुहि., गा. ३, पद्य, जै., (दधीसुताए दद्धीसुत), ३२०६३-३ दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु रे), ३३७१०, ३१०१३($) दयासूरि गहुंली, पं. प्रितीचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सयल सोभागी जाणीये), ३११६९-१ दर्शनपंचकनयाभास स्वरूप, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३२३२९-४(+) दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८६, पद्य, मूपू., (सारदमात मनरली समरु), ३०५९६, ३२१२८-२(5) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ६, वि. १७५७, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर वदिने), ३२२२०-३($) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८३२, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर पद नमी), ३२७६४(+) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाइ सेवक), ३२८२०-१, ३२५७९(#) दानछत्रीसी, मु. गयवर, मा.गु., गा. ४२, वि. १९७२, पद्य, मूपू., (आदिनाथ प्रणमु सदा), ३३६८३-२ दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय), ३१८९०-१, ३३११६-२, ३३५७९-३ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ३०६२२(+), ३२०९५(#$), ३३४१६() दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. दुर्गदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सांभलौजी बारे दान ज), ३२८६५ दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रे जीव जिनधर्म कीजीय), ३३९७१-३ दानशीलतपभाव सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (धरमजिणेसर चीत धरी), ३०१४५-३($) दिगंबरश्वेतांबर के ८४ भेद विचार, पुहि., गद्य, मूपू., (१ केवली कुं आहार न), ३३४३७-४(#$) दीक्षापच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (तीजा अंगने ठाणे तीसर), ३०५१०, ३२७२५-२ दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथ नृपकुल), ३३७७४-३ दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ३३७८८($) दीपावलीपर्व रास, ऋ. जेमल, मा.गु., गा. ४३, पद्य, श्वे., (भजन करो श्रीभगवंतरो), ३१३८९, ३२९६४-१ दीपावलीपर्व स्तवन, पं. मानविजय, मा.गु., गा. २९, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (ब्रह्माचि बाला वाणी), ३०१०३-१ दीपावलीपर्व स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (गावो गीत वधावो गरुने), ३०५५०-२ दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ए दिवाली पर्व पनौतु), ३२८८६-२ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जयजय कर मंगलदीपक), ३०११८-५(+), ३२७१२-४, ३४१७२-११ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), ३२०५२-२ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. शुभविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान प्रभु विच), ३०८८६-७ For Private And Personal use only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ दूमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नगर कपीलानो धणी रे), ३०२८५-२, ३२०३१-२, ३३२३०-२ दहा संग्रह*, मा.गु., पद्य, जै.?, (गांमंतरं घर गोरडी), ३०८९५-५(#), ३२१३३-३() दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (पय पणमीअसरसति सरसति), ३१२११-१, ३१६१६-२ देव आयुष्य विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (१. उडूनामा पटल ६४५१६), ३१६६४-२(-) देवगुप्तसूरि को मेडतासंघ के द्वारा चातुर्मासविनति गीत, रायसिंघ, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (पंथीडा संदेसो पूजजी), ३१२३३-२ देवगुप्तसूरि गीत, मु. खुस्यालसुंदर, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंथीडा संदेसो पूजजी), ३१२३३-३ देवगुप्तसूरि गीत, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अंग उमाहो जी हो अति), ३१२३३-५ देवगुप्तसूरि गीत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज घडी सुप्रमाण सफल), ३१२३३-१ देवगुप्तसूरिजीवनी गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (जिणसासण सिणगार वंदो), ३१२३३-६(६) देव-मनुष्य काम विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (देवतानो मइथुन स्थित), ३४०९४-३ देवलोक वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वली परि कोट १), ३२८३९ देवलोक विमान विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोधर्म इशान देवलोके), ३३५४६ देवलोक सज्झाय, रा., गा. २९, पद्य, श्वे., (साध श्रावक व्रत पाल), ३०६७३-१ देववंदन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम प्रभू आगे), ३०४४३-२(#) दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (--), ३१८६८-२, ३२०३१-१० द्रौपदीसती सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., गा.१०, पद्य, श्वे., (आव्या नारद मुनिवर), ३०४८५-१ द्रौपदीसती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि*, गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजीने तुंबडु), ३१९०८ द्वादशव्रत इच्छापरिमाण रास, मा.गु., गा. ५९, वि. १५९८, पद्य, मूपू., (वंदिय गोयम सकतिइ), ३१४४७(+) धन्नाअणगार चौढालिया, मु. गुणचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ४९, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (--), ३३९२८(5) धन्नाअणगार पंचढालीयो, मु. वीरचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८५०, पद्य, मूपू., (स्वस्तिश्री वरवा भणी), ३१३८३-१(+) धन्नाअणगार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनि वीनवू), ३२७९८-३ धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (सुभद्रा कहे धन्ना), ३१८४५ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर वचन चित्तधारी), ३०४२९ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, स्था., (जिनशासन स्वामी अंतरज), ३१८५३(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवचने वयरागी हो), ३०१९१-२, ३०८१९-५, ३०९६६-२, ३३२८४-५ धन्नाअणगार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वीरवचन सुणि करी धना), ३०५५४ धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (धन धन्नो ऋषि वंदीयै), ३०८२०-८ धन्नाकाकंदी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाणीरे धना), ३३१८२ धन्नाकाकदी सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (काकंदी वासी सकज भद्र), ३१८८३ धन्नाशालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३४४५०(5) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (धन धन धन्ना सालिभद्र), ३०७३६-२(+), ३१७१८-२, ३३१२९ धर्मअधर्म सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (--), ३४१३१-१(क) धर्मजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चित्त अटक्यु प्रभु), ३२४६८-६ धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ३०२७५(+) धर्मजिन स्तवन, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन मुज तणो ए), ३१०३८-२(#) धर्मजिन स्तवन, मु. जीतसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रेम छे जी प्रेम छे), ३१७९०-२ धर्मजिन स्तवन, मु. रामचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (हाजि हांजी के धर्म), ३०३६९-१ For Private And Personal use only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १३८, वि. १७१६, पद्य, मूपू., (चिदानंद चित चिंतवू), ३१०८१, ३३६६७ धर्मध्यान लक्षण, मा.गु., गद्य, मूपू., (धम्मेज्झाणे चउविहे), ३२१७० धर्म भावना, मा.गु., प+ग., श्वे., (धन्य हो प्रभु संसार), ३३५६६-१ धीरविजय ने अमृतविजय को लिखा पत्र, पं. धीरविजय, मा.गु., वि. १९०८, गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपार्श्व), ३०३७५(+) ध्यानभेदविचार पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (मन परिणामसु ध्यान), ३१७७३-२($) ध्यानस्वरुपनिरुपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. १६३, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर पाय वंदे), ३३९१९(5) नंदमणियार चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (ज्ञातार तेरवा अध्ययन), ३०३५६-१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, क. चतुरंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनिवर महियल विचरे), ३२९९०-२ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. दशरथ, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नंदिषेण नयर मझार), ३००४५-१(+$) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पंचसयां धणि परिहरी), ३००८०-१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, क. श्रुतरंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (मुनीवर महिअल विचरई), ३१८८६-१(६) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनिवर महियल विचरे), ३१४५९-१ नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (नंदीसरदीविहि मणहराई), ३४०४५ नंदीश्वरद्वीप स्तुति, मु. जैनचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (आज चलो सखी वंदण जईयै), ३३९४७ नक्षत्रफल विचार-समवायांगसूत्रानुसार, मा.गु., गद्य, जै., (अथ समवायांगे नक्षत्र), ३०५४७-२($) नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., गा. २५, वि. १६वी, पद्य, श्वे., (पढम जिणवर पढम जिणवर), ३०९३७, ३१४५२ नमस्कारचौवीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (जाणउं जगनाथ सावनामई), ३२२७७-१ नमस्कार महामंत्र कथा संग्रह, मा.गु., प+ग., मपू., (एकषष्टिलघ्वक्षराणि), ३४१२९ नमस्कार महामंत्र गुणपच्चीसी, ग. आनंदनिधान, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (श्रीजिणवर दै इम), ३१९९८-१ नमस्कार महामंत्र छंद, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा.१८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ३०९७०-७(+), ३०१०४, ३२९२४, ३२९३९, ३२९५५, ३२६७०($), ३३७६३($) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ३०५६७-१, ३०९३६-१, ३३१३२-१, ३३९२३-१ नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ३२०२३(+), ३२२६४ नमस्कार महामंत्र महिमा छंद, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (ईसो मंत्र नवकार भुख), ३२७७९-३ नमस्कार महामंत्र रास, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रह समइ लेइसु अरह), ३१५३९ नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पहिलो लीजि), ३३१६६(+), ३३३७४ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. गुणचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (प्रणमी जिनवर पाय), ३०२९६-३(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. ४१, वि. १८वी, पद्य, पू., (वारी जाउ अरिहंतने), ३००७३, ३२४४१ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बार जपुंअरिहंतना), ३२७५८-१(#$), ३२७२३-२(5) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार जपो मनरंग), ३२२१०-२, ३०४६९-१(#) नमिजिन गीत, मु.खेमराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनमिनाथ जिणिंद पय), ३४०७६-२(+) नमिजिन स्तवन, पा. हीरधर्म, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नायक नमिना नामानी), ३११६४-४ नमिजिन स्तुति-केवलज्ञानकल्याणक, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (इकवीसमां श्रीनमी जिन), ३०८१६-६(+) नमिजिन स्तुति-केवलज्ञानकल्याणक, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकवीशमा श्रीजिनवर), ३०८१६-५(+) नमिराजर्षि सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देवतणी ऋधि भोगवी), ३२२३७-४ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जी हो मिथीला नगरीनो), ३२४४३-८ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नयर सुंदरसण राय हो), ३०२८५-३, ३२०३१-३, ३३२३०-३ For Private And Personal use only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नरक निसरणि, मु. हुकमचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (जंबू प्रसन पुछियु), ३०९६७-३(+#) नरकभूमिविवरण बोलयंत्र, मा.गु., को., श्वे., (रतनप्रभा योजन १०), ३३६७९(क) नरक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिली नरग एक लाख), ३२४४५, ३२४४६(६) नवकल्पीविहार विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीस दिन २० विहार), ३१७३९-३ नवकारवाली सज्झाय, पंन्या. रुपविजयजी , मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (करी पडीकमणो प्रेमथी), ३३६०२-२ नवकारवाली स्तवन, मा.गु., गा. १२, वि. १८३१, पद्य, मूपू., (अरिहंत पहलै पद जाणी), ३२८२७-१(+), ३१४०९-१ नवकोटी कवित्त, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., वै., (मंडोवर सामंत हुओ १), ३२६४९-२ नवतत्त्व २७६ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व १४ भेद), ३१३८१-१ नवतत्त्व चौपाई, मु. वरसिंह ऋषि, मा.गु., गा. १३५, वि. १७६६, पद्य, स्था., (पास जिनेसर प्रणमी), ३०७०५($) नवदसार पुरुषाधिकार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूदीवेणं० उसप्पिणी), ३४००५-२(+) (२) नवदसार पुरुषाधिकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूदीप नामि दीपनइ), ३४००५-२(+) नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (आसो सुदि सातमी तथा), ३०४२७ नवपद उलाळा, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. २१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तीर्थपति अरिहा नमु), ३३०११(+) नवपद चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधता), ३२७६२ नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमोनंत संत प्रमोद), ३१२८९(+), ३०७१४-३, ३३७६५-२ नवपदमहिमा स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (इण परि भवियण नवपद), ३१७९७ नवपद विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम छठरे दिन), ३०७१४-४ नवपद सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २१, पद्य, मूपू., (जगदंबा प्रणमी कहु), ३३३०८-१ नवपद सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जगदंबा प्रणमी कहूं), ३२५९४-३(#) नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोयम नाणी हो कहै), ३१७८०-४ नवपद स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेवो रे भवी भावे), ३२०५८-३ नवपद स्तवन, क. जगमाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जपो जपो रे भवीकारे), ३०८६२-२, ३३२१८-१ नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलानो), ३०१९०, ३१७८०-१, ३४१९२, ३३७७८-१(-) नवपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्री सिद्धचक्र आराधी), ३३७७३-३(-) नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (सहु नरनारी मली आवो), ३०४९६(+), ३३१२५-२ नवपद स्तवन, मु. हीरविजयसूरि शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर पाय नमीने), ३१६४६-२(+) नवमांक विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रभुते १ आंधलु २), ३०१०८-३ नववाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (--), ३३१२२-१(६) नागश्री सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. २, गा. ४६, पद्य, मूपू., (धर्मघोष आचार्यना), ३११८८-१ नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया), ३०३३९, ३०४७७-३ नाडी परीक्षा, मा.गु., गद्य, (--), ३०४४४-५ नात रासो, क. रूप, मा.गु., गा.५१, पद्य, मपू., (श्रीसरसति आपो सुमति), ३२९१९ नारकी सज्झाय, मा.गु., ढा. ६, गा. ३६, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिन विनवू), ३३७३५-२ नारीरुप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (चित्रलिखित जे पूतली), ३१६३८-१ नारी सज्झाय, मु. नीतिविजय-शिष्य, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (जुओ जुओ चरित्र नारी), ३०२४९-१ नालंदापाडा सज्झाय, मु. हरखविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १५४४, पद्य, मूपू., (मगधदेशमाही बिराजे), ३३१९४, ३३७८१-२ निंदात्याग सज्झाय, अमरचंद्र, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (म म करि म म करिनिंदा), ३३९७९-३ निद्रा सज्झाय, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (थानै सतगुरु देवै), ३०७५६ निर्भयसेनकुमार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. १४, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (द्वारमतीने बाहिरे), ३२१८८-२ For Private And Personal use only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीय जिनवर रे देशना ), ३१८१३-१, ३१८९६-१ निह्नवछत्रीसी, मु. रायचंद, मा.गु., गा. ३८, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (इण आरे निन्हव उगडीया), ३१२१२ निह्नव विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (वीर केवलात १४ वर्षे), ३२२४७-३(+) निह्नव सज्झाय, पंचायण, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सद्गुरु पाय प्रणमी), ३०२७९(+) (२) निह्नव सज्झाय-टिप्पण, मा.गु., गद्य, म्पू, (साधनइ सिद्धांत भगवान), ३०२७९(+) " नीगइराय- प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पुंडपुर वर्धन राजीयो), ३०२८५-१, ३२०३१-४, ३३२३०-४ गोपी संवाद- चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु, चोक, २४. वि. १८३९, पच, मूपु. ( एक दिवस वसै नेमकुंवर), ३३३६९(+४), ३४०८२, ३३०१३(३) नेमराजिमती ९ भव वर्णन स्तवन, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (कीम आया कीम फिर), ३०८८२ राजिमती भव वर्णन स्तवन, मु. कल्याण, मा.गु., डा. ९, वि. १६७३, पद्य, वे. (श्रीनेमीसर गुणी नीला) ३०८७१(४) ९ " नेमराजिमती ९ भव वर्णन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १७३७, पद्य, मूपू. (नेमजी आव्या रे सहसाव), ३३४३८ नेमराजिमती कागल, मु. रूपविजय, मा.गु, गा. १९, पद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीरेवंतगिर) ३०२२६-१, ३४२०४ " राजिमती गीत, पंडित. जयवंत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (ओ सखी अमीय रसाल कइ), ३०८७८-२ नेमराजिमती गीत, मु. जसोवर्द्धन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ससनेही राजुल विनवे), ३२९८८-३ (होजी रथ फेरी चाल्या), ३४२९९-१ " नेमराजिमती गीत, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., नेमराजिमती गीत. ग. जीतसागर, पुहिं. गा. १५, पद्य, भूपू राजिमती गीत, मु. दीप ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे. नेमराजिमती गीत, मु. परमसागर, मा.गु. गा. ९, पद्य, म्पू., (तोरण आया हे सखी कहे), ३०५४९(+), ३०४७६(४), ३२८३८-३ (समुद्रवजय शिवादेवी), ३१९६१-१ , , (राजुल बोलइ हो वे कर), ३२२८१-१ " मराजिमती गीत, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (जादु मांने कई तजो छो), ३०२५२-१ (प्रिय मीलवानइ काजि ), ३०२९७-१ नेमराजिमती गीत, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., नेमराजिमती गीत. ग. मानविजय, मा.गु., गा. ७. पद्य, मूपू (यदुनायक लायक हो के), ३०२३३-१ नेमराजिमती गीत, आ. रत्नसागरसूरि रा. गा. ८, पद्य, भूपू (समुद्रविजय कौ नेम), ३२३१४-१ नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (रंगीले नेम होरी खेली), ३२०६३-२ राजिमती गीत, मु. लाभउदय, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (जादव जीवनप्राणी हो), ३१७६६-२ י: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजिमती गीत, मु. विद्याबुध, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (अजब अजब अजब वीज), ३१०३९-३ नेमराजिमती गीत, मु. हेमाचंद, म., मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( बोले राजीमति भामनी), ३०२६४-१, ३१८८२-१ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु, ( आज सखी में आपणो कीधो) ३००७२-३ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे. (इण पर राजुल विनवें), ३०४५४-१ " राजिमती गीत, मा.गु., पद्य, श्वे., (विनवे छे राजुल नार), ३१८३६ ($) नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२८, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं विजया रे), ३००६८ नेमराजिमती धमाल, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., ( खेलइ नेम कन्हीआ रंग), ३१८४७-१ नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), ३०४५३ (#$), ३०२८६($) नेमराजिमती पद, मु. अमृत, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू (लेजा लेजा जीरे माहरो), ३२६०४-१ ', मराजिमती पद, मु. खेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, क्षे., (कांई जाइ रे काई जाई), ३०३९१-२ नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, मा.गु, पद. ४, पद्य, भूपू (गिरनारी कब मीलसि), ३०२७८-२ नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू, (नव भव केरी प्रीत), ३०४४७-२ नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (नहि ज्याने दुगी मे), ३२६०४-२ नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूप, (मनमोहनन छेह ते दीघो), ३२६०४-३, ३३७७५-१ नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपु. ( मत जाओ रे पीया तुम), ३१८०६-६ For Private And Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती पद, मु. रूप, पुहि., गा.५, पद्य, म्पू., (नैन रे निहारो पीयां), ३०३८७-३ नेमराजिमती पद, मु. रूपविजय, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (सांवरो न जानै सहीया), ३०३८७-२ नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बावीस सुभटने जीपवा), ३१६३५ नेमराजिमती पद, हरिबल, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नवभव केरी प्रीत सहि), ३१७७५ नेमराजिमती पद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (कालीने पीली चांदली), ३०४४८-१ नेमराजिमती पद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (नेम दुलौ व्याहन आयो), ३०३९३ नेमराजिमती पद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (पिया चल्या गिरवर कुं), ३३२४९-२ नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (पीया प्यारेनै मोरी), ३०३३६-२(#) नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रस भरीया माहाराजरी), ३११६४-७ नेमराजिमती बारमासो, मु. अमरविशाल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (यादव मुझनैं सांभरै), ३११८७, ३१२३३-४, ३४०९१-१ नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सांवण मासे स्वाम), ३३०६५, ३०३५९-२(5) नेमराजिमती बारमासो, मु. कान कवि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राणी राजुलनो भरतार), ३३०९६-१ नेमराजिमती बारमासो, मु. जसराज, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (घनघोर घटा घन कीउनई), ३०२१९-१ नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राणी राजुल इण परि), ३४०९१-२ नेमराजिमती बारमासो, मु. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (तोरणथी रथ फिर गए राज), ३१९६६ नेमराजिमती बारमासो, जै.क. मानसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सखीरी सांभलरे तु), ३०७३९-२ नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहिं., गा. २६, पद्य, श्वे., (विनवे उग्रसेन की), ३२१८८-१, ३३४५०-१(-#$) नेमराजिमती बारमासो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २७, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सरसती सामणी विनवू), ३३९७५(5) नेमराजिमती बारमासो, पुहि., पद्य, श्वे., (सईयां मो से मिलके), ३०३५७($) नेमराजिमती बारमासो, पुहिं., गा. १८, पद्य, श्वे., (--), ३०१३४ नेमराजिमती रंगरस ब्याह, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., गा. ४९, वि. १८६९, पद्य, श्वे., (समदरवीजे के नंद), ३०२४८(+) नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (सारद पय पणमी करी), ३२४५५(+), ३२९६६(+), ३०५०७, ३४२३८($) नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नेमनाथ मेरी अज), ३३९८५-२ नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (फिकर अब लगी मेरा), ३०६३३-३ नेमराजिमती लावणी, पं. हंस, मा.गु., गा. २१, वि. १८५७, पद्य, श्वे., (समदबज सेवादे जाननण), ३३९८५-१ नेमराजिमती लेख, मु. जससोम, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्वस्तिश्री जदुपति), ३३३०२-१ नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., गा. ३२, पद्य, म्पू., (हठ करी हरीय मनावीय), ३१२८६, ३१२९७ नेमराजिमती सज्झाय, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (उंचो गढ गिरिनारनौ), ३३३७०-१ नेमराजिमती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (म्हारा सांवलीया रे), ३२६९६-४(८) नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १५, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (राणी राजील करजोडी), ३२७८२ नेमराजिमती सज्झाय, मु.खेम, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (राजल कहै सुण माइ सुण), ३३६९६-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, सा. चंदनबाला, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (जिणजी अरज करे छे), ३०११०-१ नेमराजिमती सज्झाय, ऋ. चोथमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (जोवनवेस में झीलतो), ३०५०५-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (भायली सासुजी का जाया), ३०४५२ नेमराजिमती सज्झाय, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुंदर सारी बालकुंआरी), ३३१२२-२ नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काइ रिसाणो हो नेम), ३०५३१-४(+), ३१४९१-१, ३१५५३-१, ३१८२६-२, ३३०७८-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नेम कांइ फिर चाल्या), ३१९२८-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रंगसोम, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (विनवे राजुल नारी हो), ३२८३७-३ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (नगर सोरीपुर शोभता), ३२७८३-१ For Private And Personal use only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीने वीनवु), ३१८०४ नेमराजिमती सज्झाय, रा., गा. २३, पद्य, श्वे., (अरी नेम मनाया ना मनइ), ३०३६१(2) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (जदि नीकस भवन सुठाडी), ३०७६२-१ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (राजुल छोडी नेमजी रे), ३०७२२(+$) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सीवादेवी सुखदाया), ३२३६०-४($) नेमराजिमती सज्झाय-शीयल, मु. हीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तिन गुपत ताणो भण्यो), ३३७७६-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. २०, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (नेमजी हो पेखी पशु), ३३४९८(+), ३३२६७-१, ३३३९०-१(२) नेमराजिमती स्तवन, मु. जस शिष्य, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीजसगुरु चरमें नमी), ३२७८०(+$) नेमराजिमती स्तवन, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुंदर सारि बालकुंवार), ३२२६९-४ नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांभल रे सांवलीया), ३३४६८ नेमराजिमतीस्तवन, ग. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब मेरो साहिब तोरण), ३३११५-२(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुमे रहो रे यादव), ३२८३७-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (राजुल गेली करी छे), ३३४५२ नेमराजिमती स्तवन, मु. धर्मचंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (तोरण आयो नेमजी राजुल), ३२८६७-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे रथ वालो), ३२७६६-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कां रथ वाळो हो राज), ३३०५४ नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), ३२४४३-६ नेमराजिमती स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १४, वि. १८४६, पद्य, श्वे., (राणी राजल जपैए), ३२७८३-२, ३३१९० नेमराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, मूपू., (नेमजी करी वात रे), ३२१४९ नेमराजिमती स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रीत पुरांणी आयलाग), ३२९३२ नेमराजिमती स्तवन, आ. लब्धिसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८५५, पद्य, मूपू., (जंबूद्वीप भल दीपतो), ३३१२६-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. विनयचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (हुं तो प्रणमि प्रथम), ३०१७२-३ नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (आंखडीयुकामणगारी), ३३८८७ नेमराजिमती स्तवन, पुहिं., गा.७, पद्य, म्पू., (नेमीस्वर बनडो बण्यो), ३०४४२-२ नेमराजिमती स्तवन, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (वंके वंके नेमजी मोनु), ३२९१५-२ नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, पू., (जे जिन मुख कमले), ३०५३१-३(+), ३३४३२ नेमराजिमती स्तवन-लघु, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (काइ हठ मांड्यो छे), ३१८६४-१ नेमराजिमती होरी, मु. जिन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवल वसंत नवल मली), ३२९४४-३(+) नेमिजिन आरती, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (जे जे आरती नेमि), ३३७२३-१ नेमिजिन ख्याल, बालकृष्ण, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेम विन की कहां होजी), ३१६९३-३ नेमिजिन गहुंली, मु. प्रताप, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भवीआंसहसावन्नमा), ३३८९०-२(+#) नेमिजिन गीत, मु. गौतमसोम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), ३१२५९-३(+), ३२६०९-२ नेमिजिन गीत, मु. परमसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तोरणथी रथ वालि वल्या), ३२२८१-२ नेमिजिन गीत, मु. वछउ ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (यादव कुलसुं परिवर्यउ), ३४३६५-३ नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रह सम प्रणमू नेम), ३३९३६-२ नेमिजिन ढाल, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., ढा. १७, गा. १३२, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (चंद्रकांति चंद्राननी), ३११४०(2) नेमिजिन तपकल्याणक स्तवन, मु. सुनंदलाल, मा.गु., ढा. ९, गा. ४२, वि. १७४४, पद्य, श्वे., (अरि गुरु गणधर देव), ३०३४९-१ नेमिजिन त्रिपदी, मा.गु., गा. ३, पद्य, पू., (सुखनिधान सुणीय), ३१२५९-२(+) नेमिजिन द्रुपद, मु. गुणविलास, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (कौन शिखर चढि जैलो), ३३३३३-२ For Private And Personal use only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन पद, मु. अमृत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुनोरी अरी खरी), ३२५८९-२ नेमिजिन पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद. ९, पद्य, मूपू., (खेलत नैम कुमार ऐसे), ३०३२०-१ नेमिजिन पद, मु. ज्ञानभूषण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (फूलडे चंगे लाउरे), ३२९८२-२(+), ३३२९७-३ नेमिजिन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (इतथे उतथइ हरि गोपि), ३२७३८-४ नेमिजिन पद, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (म्हानै प्यारो लागै), ३०५०८-२ नेमिजिन बारमासो, मु. आनंदवर्धन, मा.गु., गा. २४, वि. १६१७, पद्य, मूपू., (--), ३२५९३-१(#$) नेमिजिन बारमासो, मु. खुस्यालचंद, मा.गु., गा. २८, वि. १७९८, पद्य, मूपू., (समरु सरसति मातने), ३४०९१-४ नेमिजिन बारमासो, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., गा. ७७, पद्य, मूपू., (विमल विहंगमवाहिनी), ३०८७८-१ नेमिजिन बारमासो, मु. पदमचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आयो पावस मास श्रवण), ३२९८९ नेमिजिन बारमासो, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (धुरे रे आसाढ धडुकीओ), ३३०३८-१ नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. १६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सखीरी सांभलि हे तूं), ३४०९१-३ नेमिजिन बारमासो, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (आजो रे आजो रे सखी), ३२१३९-१ नेमिजिन बारमासो, मु. सुजस, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (घन गुहिरे कारी घटा), ३३३०३-६(#) नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, मूपू., (उंचो गढ गिरनार को), ३३३०३-७(#$) नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (पारधीयानी ए अजुआलि), ३१५०२-१ नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय कुलचंदलो), ३०९०९-२ नेमिजिन रास, मु. पृथ्वीराम ऋषि, मा.गु., ढा. ४, वि. १८७१, पद्य, श्वे., (खेतर भरत मुजार रे), ३०६३३-१ नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (में अबला हुं अजाण), ३१९८३(+) नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीनेमि निरंजन बाल), ३३६३४ नेमिजिन लेख, मु. जयसोम-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (यदुपति पए नमी गढगिर), ३२६०८ नेमिजिन वर्णन-लौकिकवार्तायां, मा.गु., गद्य, श्वे., (उग्रसेन प्रभुष सोल), ३२१८१-२ नेमिजिन विवाहलो, मा.गु., ढा. २, पद्य, मूपू., (द्वारामती नगरी भली), ३०२१२($) नेमिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३२५७४($) नेमिजिन सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (समदवीजे राजाजीरा नंद), ३१६३१-१(-) नेमिजिन स्तवन, मु. अजबचंद ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेम पिया की सूरति), ३१९४०-१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (को मनाज्यो रे रूठडा), ३२५८९-६ नेमिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तोरण आवी जोर न कीजे), ३११३७-२ नेमिजिन स्तवन, मु. करमचंद, मा.गु., गा. २४, पद्य, श्वे., (साहिब यदुपति आवीयइ), ३२३०८ नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा.७, पद्य, भूपू., (विषम विषयनी वासना), ३२६४६-१ नेमिजिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुणो सुणो रे नेमजी), ३३२९८-२ नेमिजिन स्तवन, मु. कुशल, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (द्वारापुरी नगरी कै), ३०५०८-१ नेमिजिन स्तवन, मु. गोकल, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (नेमि सजन की याही), ३२९७२ नेमिजिन स्तवन, मु. जडाव, रा., गा. ८, वि. १९५३, पद्य, मूपू., (नेम प्रभु राखो सरण), ३२९५७-२ नेमिजिन स्तवन, वा. जस वाचक, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (तुज दरसण दीठों अमृत), ३१२९५-१ नेमिजिन स्तवन, मु. जिनहरख, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नेमि काइ घिरि), ३१५५३-२ नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (घडी घडी में वाटडी), ३१६०१-५ नेमिजिन स्तवन, ग. तत्त्व, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सामवरण श्रीनेमिजिणेस), ३०९२७-२(#) नेमिजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अवल गोखने अजब जरोखे), ३०८२०-७, ३१८१८-२ नेमिजिन स्तवन, मु. धनविजय, मा.गु., गा.५१, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाये नमी), ३१९६४, ३४०६२-१(-$) नेमिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उज्जलगिरी अमहे जाइ), ३२१११-३ For Private And Personal use only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ नेमिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (निरख्यो नेमि जिणंदने), ३०२४९-२ नेमिजिन स्तवन, मु. पद्महर्ष, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (रामत करती अंगिरंग), ३१२३९-२ नेमिजिन स्तवन, ग. भुवनमेरु, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वेगि मनावउ हे सहिया), ३४०५०-२ नेमिजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (राजी करीइं आजकै आजकै), ३२२८० नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहियां मोरी साहिबो), ३२३६८-१ नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सुनि साद प्यारा बे), ३३३०३-२(#) नेमिजिन स्तवन, मु.रुचिरविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मात सिवादेवी जाया), ३०६९१-१, ३३०६६-२ नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मारा नेम पीयारा), ३३१०७-१ नेमिजिन स्तवन, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (नेमजी चालो तो तुमने), ३०५२८-१ नेमिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (--), ३१९८८-१ नेमिजिन स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (उचूनेंचूवन रे मझार), ३१६०१-६ नेमिजिन स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रीतडली मुझ मनि षट), ३४२५० नेमिजिन स्तवन, क. लाभहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सामळिया सुंदर देहि), ३१२१३-१ नेमिजिन स्तवन, ग. वनीतविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सुन अज्ञानी चित्तमां), ३२७३२ नेमिजिन स्तवन, मु. श्रीचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जो तम चालो सीवपुरी), ३३०३८-३ नेमिजिन स्तवन, पं. सहजसागर पंडित, मा.गु., गा. २१, वि. १७६८, पद्य, भूपू., (स्वस्ति श्रीजिनवरनमी), ३२३०९ नेमिजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (निज गुरु चरण पसाउ लइ), ३४२३२-२ नेमिजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (यादव कुल केरु राजीउ), ३४२३२-१ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कलालि हे ते म्हारो), ३१३५७-३(+) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (वचन सुधारस वरसति), ३३२७६($) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय नृप नंदन), ३०५८८-१ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), ३०४४७-१, ३१७५२-२ नेमिजिन स्तवन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुरत थारी हौ प्यारा), ३१९७३ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), ३२५८८-१(#) नेमिजिन स्तवन-गिरनारतीर्थ, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. १३, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर वंदीय), ३२३३५-५ नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., कडी. ३६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जायवकुल सिणगार सिरि), ३२४३६-२(#$) नेमिजिन स्तवन-सामेला, मु. ज्ञानकुशल, पुहिं., गा. २९, पद्य, मूपू., (नेमजी राजीमती रमणी), ३२७८८ नेमिजिन स्तुति, आ. उदयसूरि, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (कर स्याम घटा प्रगटा), ३४१३८-५ नेमिजिन स्तुति, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (शोभागणी मृगनेपणे सरा), ३२३२१-४ नेमिजिन स्तुति, चतुर्भुज, अज्ञा., पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) नेमिजिन स्तुति-प्रकाश टीका, मु. रामचंद्र ऋषि, सं., वि. १९२३, गद्य, मूपू., (नमोस्तु व्याप्ति रूप), ३३५४७-१(+) नेमिजिन स्तुति, पंन्या. महिमाविजय, मा.गु., गा. ४, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (श्रीगिरनारशिखर सिणगा), ३१५३८-१ नेमिजिन स्तुति, पंन्या. रतनविमल, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अबेली छबेली रंगेली), ३३०८२-३ नेमिजिन स्तुति, मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., गा. १, पद्य, भूपू., (दांकिटि दाकिटि दां), ३४१३८-२ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुगति कुमति छोडी), ३०८१५-२ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दया आणी जिणि पसु), ३०१८७-२ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनमु), ३२२६५-१ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय), ३३३८६-१, ३३८१३-३, ३३८९७-२, ३४१७२-५, ३४४१६-१ नेमिजिन हमचडी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., अधि. २, गा. ८५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सरस वचन दिउ सरसती रे), ३०९४० For Private And Personal use only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नैगमादिसप्तनय विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (नैगम संग्रह व्यवहार), ३२३०३-४, ३४२८३-३ पंचकल्याणक स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमिय पयकमल सुभ भावि), ३४३३२ पंचक विचार, मा.गु., गद्य, जै.?, (रोगपंचके व्रत उपरे), ३०७९३-२ पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धुर समरुं श्रीआदिदेव), ३४२७५-१, ३२५७५-२(#) पंचतीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ३११९७-२, ३१४७४-१, ३३०२८-१, ३१२०२-३(s) पंचतीर्थजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा.६, पद्य, मूपू., (चलो अब जइई हो सेत्र), ३३०८४-१ पंचपरमेष्ठि वंदना, मा.गु., गद्य, श्वे., (नमो अरिहंताणं नमो), ३१३५३ पंचमआरास्वरूप वर्णन पद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (जमी नीरस हुइ गइ पाण), ३१५५८, ३२८१० पंचमीतिथि चैत्यवंदन, आ. नयविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सामलवानि सोहामणा), ३१२३२-१३ पंचमीतिथि चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी तणो), ३०६६६ पंचमीतिथि नमस्कार, मु. जीवविमल, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (नेमीसर पंचबाण गयगंजण), ३३८६१ पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सरसति चरण पसाउलि रे), ३३०४१-२(#) पंचमीतिथि सज्झाय, मु. हसविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसती चरण नमि करी रे), ३०७५३-२ पंचमीतिथि स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., ढा. ५, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (परम पुरुष गुरु प्रणम), ३१०९३(+) पंचमीतिथि स्तवन, मु. परमसौभाग्य, मा.गु., ढा. २, गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि प्रणमी), ३१०१०-२ पंचमीतिथि स्तवन-वृद्ध, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रणमुं सरसति माय), ३३७३०-३(5) पंचमीतिथि स्तवन, मा.गु., गा. १५, वि. १४६६, पद्य, मूपू., (पहिला समरु गोयम), ३०३१० पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंच अनंत महंत गुणाकर), ३३८१३-९ पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंच पदनै ध्यावो), ३०७५२ पंचमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय; मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १७८४-१८००, पद्य, मूपू., (पंचमी दिन जनम्या नेम), ३२०५२-१ पंचमीतिथि स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धवधु केरो सिणगार), ३४१७२-१७(5) पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचरूप करि मेरुशिखर), ३२११७-२ पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुविधिनाथ जिन जनम), ३०५६६-२ पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (--), ३४३२२-१(६) पंच व्यवहार, मा.गु., गद्य, मूपू., (व्यवहार किसु कहिये), ३४२८३-१ पंचांग विधि, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५८, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (गवरीनंद आनंद करि), ३२४६५(६) पंचांगुलिमंगल स्तोत्र, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सामी सीमंधर पइ नमेवि), ३०९३२ ।। पंचेंद्रिय चौपाई, मु. शिवरायशिष्य, पुहिं., ढा. ७, पद्य, दि.?, (परथम परणाम जिनदेव को), ३०२६१ पंचेंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आपु तुजने शीख चतुरनर), ३३८०४-१(+) पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (आसाढ मासे दुपया कहता), ३०४४८-३, ३२९४८ पच्चक्खाण पारने की विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (खमा० इरिया० पडिक्कमी), ३०७१४-२, ३२५७८-२ पट्टावली, मा.गु., अंक. १४ पाट, गद्य, श्वे., (जीवरिषजी रुपरिषजी), ३०२५१-२ पट्टावली*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानतीर्थं), ३२५३६-२, ३०७२३($) पट्टावली तपागग्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान देव), ३१२५४ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य त्रिविध), ३००८५-२(+#), ३११५१ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामि शिष), ३३८५० पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान तीर्थं), ३००७१, ३१३९९, ३१५५६, ३२३०३-१, ३१५६१(६) पडिलेहणा सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (ब्रह्माणी रे विनय), ३११८२ For Private And Personal use only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ पद संग्रह, कृपा, मा.गु., पद. ४, पद्य, वै., (-), ३२७३८-८ पद संग्रह, मा.गु., गा. ११, पद्य, (फतमल पाणिडा गईति), ३३५०१-१(+) पद संग्रह, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३३००१-२(+) पद संग्रह, मा.गु., पद्य, जै., वै.?, (--), ३२८८८-१, ३३४००-२, ३४४०८-२ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभजिन तुझ मुझ), ३०७१७-३ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभ प्रेमे हो), ३२८३६ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपदमप्रभू राजियो), ३३२२०-२ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कानजी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धन धन संप्रति साचो), ३३१६४-२ पद्मप्रभजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु आगळ रही), ३२७१३-१ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु तेरी पदम), ३०६५३-६ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दरिसन दीजे हो राज), ३२८१२ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरे बोल तुं निमाणां), ३१९२२ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पदमप्रभु पद प्यारा), ३००७२-१ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परम रस भीनो म्हारो), ३२९८७-१, ३३३०९-२ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभू जिन सेवीयै), ३०२५३-२ पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन संप्रति साचो), ३२३६०-५, ३२७१७-२ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ३०५२०-१(+#), ३१६००(+), ३०२६२, ३०४९१, ३०६१६, ३०६९६, ३१४६३, ३४११८, ३२४३६-१(#), ३३४२७-१(१), ३०४९३-१(६) पद्मावती ढाल-जीवराशीक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ८२, पद्य, मूपू., (हिवे राणी पद्मावति), ३२२०५ पद्मावतीदेवी अष्टक-इलमपुरमंडण, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (प्रह उठी नित्य प्रणम), ३३३५६-१ परनारीपरिहार सज्झाय, मु. जिनहर्ष*, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सीख सुणो रे पीया), ३३०१२-२ परनारीपरिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुणी सुण कंता रे सीख), ३००४७-२ परनिंदात्याग पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (किसी की नंद्या न करी), ३११६४-२ परनिंदात्याग सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (म कर हो जीव परतांत), ३३३२३-२, ३४१७५-१(#) परमगुरु गीत, मु. माल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (तपगछराउजी चिर तुन), ३०६५९-२ परमगुरु सज्झाय, मु. अमर, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (--), ३३९७९-१(६) परमानंद विज्ञप्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जागती ज्योति जगमाहि), ३२०३२-१ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परवराज संवत्सरी दिन), ३०२३४-७, ३१४९२-७, ३१४९३-७ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ३०२३४-३, ३१४९२-३, ३१४९३-३ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिननी बहिन सुदर्शना), ३०२३४-५, ३१४९२-५, ३१४९३-५ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर नेमनाथ), ३०२३४-६, ३१४९२-६, ३१४९३-६ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीदेवाधि), ३१४९२-२,३१४९३-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीदेवाधिदेव), ३०२३४-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय शृंगार), ३०२३४-१, ३१४९२-१, ३१४९३-१ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुपन विधि कहे सुत), ३०२३४-४, ३१४९२-४, ३१४९३-४ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु.खेमो ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १७७७, पद्य, मूपू., (सरसति समरूं शारद माय), ३०३७१-३(-६) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमुं सरस्वत), ३१२५१ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुषण आवीया रे), ३०१७४, ३१५१४-२ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुंध्यावं), ३३८१३-७ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ३२८७२-२ For Private And Personal use only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६१ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अतिअलवेसर), ३२९३७-२ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ३१२८८-६, ३१८९१, ३२२११ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुन्थे), ३२८०६(#) पल्योपममान विचार, रा., गद्य, मूपू., (च्यार कोस को कुवो), ३३६२९-२(६) पांडव कवित्त, मा.गु., पद्य, जै., (--), ३२८८८-३ पांडव सज्झाय, मु. कुसल, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (गुरुमुख समझ लीज्यौ), ३०१०५(#) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसी अर्धनु वंदेतु), ३१३०४-३ पाक्षिकप्रतिक्रमणविधि सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गुरुचरणजुनमिङ), ३००५१-३ पार्श्वचंद्रसूरि गहुंली, मु. श्रीचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (गछ पासचंद सूरिस्वरू), ३३२८९ पार्श्वजिन १० भववर्णन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीसारद हो पाय), ३०१८१-४ पार्श्वजिन १० भव स्तवन-पुरिसादानी, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (सकल कुशल संपत्त करा), ३०५४८(+) पार्श्वजिन कलश-नवपल्लव-मांगरोलमंडन, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (श्रीसौराष्ट्र देश), ३३९१०-१, ३३९५२ पार्श्वजिन गीत, मु. परमभाण, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (पासजीरे जीउ जान तुम), ३०५०६-२ पार्श्वजिन गीत, मु. रत्नसागर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (रंग मच्यौ जिनद्वार), ३०६७२-१ पार्श्वजिन गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भोर भयो भोर भयो जागि), ३२३८९-३ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. हीरधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (सेवौ जगपति पासनाह), ३३८८६-४ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अजाहरातीर्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (जय जय जिनवर पास आस), ३००८०-९ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रुपविजयजी, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सकल भविजन चमत्कारी), ३१४७३-२ पार्श्वजिन छंद, मु. नारायण, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (वामामात उयर जगवंदन), ३०६५५-२ पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षतीर्थ, वा. भावविजय, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (सरसत मात मना करी), ३०३२९, ३१२४२-१, ३१२६५, ३३८९६, ३२०१८(६) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा.५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति), ३१२०० पार्श्वजिन छंद-अमीझरा, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (उठत प्रभात अमीझरो), ३३०२४(+), ३४१२७-३ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धवल धिंग गोडी धणी), ३०२१४-२ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कल्याणविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वरदायन सारददेवी रे), ३३०८७-१ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), ३१७२३, ३२३१८ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जय जय गोडि पास धणी), ३१२३०-२ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (सरसति द्यो मुझ), ३०६२७, ३३१५४-१ पार्श्वजिन छंद-गोडीजीअमृतधुनि, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तंबागड दीव जेहे नोबत), ३०८६७-३(#) पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, चेतन, मा.गु., ढा. २, गा. २६, वि. १८३७, पद्य, मूपू., (कल्पवेल चिंतामणि), ३१८३४ पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), ३०११०-२, ३११९७-४, ३१२३०-५, ३२८०७-१, ३४०९९-१ पार्श्वजिन छंद-फलवर्द्धि, कान्ह कवि, मा.गु., गा. १२४, पद्य, मूपू., (वंदे पास जिणंद चंद), ३२९८६ पार्श्वजिन छंद-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भीडभंजन भवभयभीतिहर), ३१३०५-२ पार्श्वजिन छंद-भीडभंजन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (वारु विश्वमा देस), ३१०७३, ३१९१९, ३०८६७-१(#), ३२९८०-१(६) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पास शंखेश्वरा सार), ३००४२-१, ३३८८०-१ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ३३१३० पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कनकरत्न, मा.गु., गा. २५, वि. १७११, पद्य, मूपू., (सरसति सार सदा बुध), ३३१९२ For Private And Personal use only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org יי ५६२ पार्श्वजिन नमस्कार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (संखेसर गाममे), ३२७३६-४ पार्श्वजिन निसाणी घरघर, मु. जिनहर्ष, पुहिं, गा. २७, पद्य, भूपू (सुखसंपत्ति दायक सुर), ३००५२, ३००८८, ३०६९४ पार्श्वजिन पद, मु. अबीर, पुहिं. गा. ७, पद्य, श्वे. (मेरा जीयरा पापी क्यों), ३०३२८-१ पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू. (तूं मेरे मन में तू), ३४३५०-१ पार्श्वजिन पद, मु. कांति, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (भोरी देखो ध्यान रंग), ३०३३६-१(१) , " पार्श्वजिन पद, मु. गुणविलास, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (करो ऐसी बगसीस प्रभु), ३४३५०-३ पार्श्वजिन पद, मु. धर्मकल्याण, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., (मन लागो श्रीजिनराजसु ), ३०३२०-२ पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ३, पद्म, वे. (नित नमीयै पारसनाथजी), ३०५०८-६ , पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेवीसमा जिनराज जोडी), ३४३५०-६ पार्श्वजिन पद, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., ( आवौ म्हारा रसीया), ३०४०५ पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., ( जय बोलो पासजिनेसर की), ३०२५५-२ पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( पारशनाथ आधार मेरो), ३१८६२-६ पार्श्वजिन पद - गोडीजी, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीमहाराज मनावउ जिम), ३४२४७-३ पार्श्वजिन पद - गोडीजी, मु. धरमसींह, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सरसती एह), ३२०३४, ३३३७९ पार्श्वजिन पद - गोडीजी, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (गौडी गाइयै मनरंग एक), ३४३५०-२ पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, मूलचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, भूपू (मेरो मन मोबो ), ३२९३८-४ 11 , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ पार्श्वजिन पद- पुरिसादानी, मु. अबीर, पुहिं. गा. ५, पद्य, थे. (अरज हमारी चित्त धरो), ३०३२८-२ " י पार्श्वजिन पद- पुरिसादानी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन गमतो साहिब मिल्यौ), ३३२९६-४ पार्श्वजिन पद- फलवद्धिं पुहिं. गा. ३, पद्य, भूपू (सुरत पारसनाथ की सब), ३१८०६-४ "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only पार्श्वजिन पद- शंखेश्वरतीर्थ, मु. भाण, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (संखेसर पास पूरे मन), ३२७३८-३ पार्श्वजिन पालणुं, मा.गु., पद्य, मूपू., (माता वामादे झुलावै), ३१२९८ ($) पार्श्वजिन फाग - फलवर्द्धि, मु. खेमकुशल, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सुगुरु सिरोमणि मनि), ३२२७९(+) पार्श्वजिन वारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु गा. १३, पद्य, मूपू (श्रावण पावस उलह्यो), ३०२८९, ३०९६६-१ " , पार्श्वजिन लघुस्तव - चिंतामणि, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धरि उमेद मनमांहे घणी), ३२७०५-२ पार्श्वजिन लघुस्तवन, मु. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जीरावलौ छइ कलिकाल), ३१९६८-१ पार्श्वजिन लावणी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (जगत भविक कज महरे), ३१८८० पार्श्वजिन सलोको, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सरसति माता धरीय ऊलास), ३२३२१-३ " पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा., गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, श्वे. (प्रणमुं परमातम अविचल ), ३१५५९ पार्श्वजिन सलोको शंखेवरतीर्थ, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ४६, पद्य, भूपू (देवी सरसती प्रणम), ३०४९५(१) पार्श्वजिन सवैयो, चंद्र, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (भाव कुं जांण पिछांण), ३३३५६-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. अजबसागर, मा.गु. गा. ९. वि. १७६८, पद्य, मूपु. ( अश्वसेन सुत पास), ३१२५९-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अजबसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वामांगज जिन वंदीये), ३१३५७-६(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल वांछित फल्यो), ३३२९९-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमीयकुवर, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (आज आणंद वधामणा), ३०६६७-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. आगमसागर, रा., पद्य, मूपू., (मे थन गाहिडरा हो गाढ), ३०५२८-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, पुडिं, गा. ५, पद्य, मूपु (घोर घटा करी आयोरी), ३३०३२-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू. (ध्रुवपद रामी हो), ३३७२३-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चाल चाल रे कुमर), ३२७१३-२, ३३४२७-२(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा. गा. ५, पद्य, भूपू (थे छो म्हाहरा ठाकुरा), ३९८६२-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (तारक देव त्रेवीसमो), ३२२३१-१ + Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (बलिहारी हुं उस पासकी), ३२३१५-१, ३३०६७-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तारक जिन तेवीसमा), ३१२९६-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कनकसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (सारद पदपंकज नमी रे), ३१२९६-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (एकरस्यु जिनराजि सवाइ), ३१२१३-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (काशीदेश वणारसी नयरी), ३२५७३-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगुण नर श्रीजिनगुण), ३२३३५-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु.खुशालसुंदर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास जिन तुम विन कौंन), ३२९९०-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेमकरण, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसुगुरु चिंतामणि), ३२२८६-१, ३२२९६-२(-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गुणचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक पास), ३०३६९-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (--), ३२३२१-१(६) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मन मोहनगारो साम सहि), ३२८७३-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसोवर्द्धन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (हुं बलिहारी थारी वार), ३२८७३-३, ३२९८८-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिणेंद्रविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पास जिणेश्वर साहिबा), ३३१४१-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिणेंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीअश्वसेन नृप नंदन), ३३१४१-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ६०, पद्य, मूपू., (सरसत्ती सामीने वीनवु), ३२७३९-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनसंभव, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर साहिब), ३००५८-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वयण अम्हारा लाल हीयड), ३२६०९-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुरत मुरत मोहनगारि), ३२३१४-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारद वदन अमृतनी वाणी), ३००५८-५(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंखीयां हरखण लागी), ३१८६२-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिन पास बडे धमचक्कु), ३१७६५-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब पासजी), ३३२२१-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संखेसर साहिब दरिसन), ३१४०८-५ पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (दोलतदाई दीदार देखाउ), ३२२६९-२ पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु दरिसन की प्यास), ३०८७६-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु.दान, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पास जिनेसर जगधणी रे), ३०६२९-५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. दानविजय, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम हीं), ३३२१८-६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. धरमचंद, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धरणेद्रा करे सेवना), ३०८०५-३, ३१५२८-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्म, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आरे संसारमा एकठारे), ३२९४४-४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वसंत वसंत वसंत ही आय), ३२९४४-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धीरविमल शिष्य, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (देव दया कर ठाकुराजी), ३२४७६-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नयविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जयो पास जिनराज), ३२०३९-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नरसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज ऊमाहो अतिघणोजी), ३१२५६-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नागेश्वर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (परम नरमजिन मोहन), ३२३४७-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. नागेश्वर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनमोहन पारसनाथ), ३२३४७-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमु पासजिणंद), ३०४२०-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मनु ऋषि शिष्य, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (सरसति मतिदायक नमी), ३१२२१-१ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपासजी प्रगट), ३३०९३-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मेघराज, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सकल सार सुरत जग जाण), ३०३६७(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (भगवती भगवती अंगि), ३१३६५ For Private And Personal use only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रभु जगजीवन जगबंधु), ३३०१८-३ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (चिदानंदघन परमनिरंजन), ३२०३९-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रणमुंपासजी रे), ३०७३५-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (पासजी के दरबार चालो), ३३२८६-२ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. रामविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पासजी जगधणी रे साहिब), ३३८१४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वारि हुँवामानंदा), ३१८१४ पार्श्वजिन स्तवन, सा. रामश्री शिष्या, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सहु मिलि आवो हे सहीय), ३१८४९-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (थारा दरसण री बलिहारी), ३२८५१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मुरत तोरी जोर बनी), ३३३९०-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नवनिध आपे नवलखो दोलत), ३३२९७-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उठो रे मारा आतमराम), ३२७११-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लाभसागर, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुराय पाए नमी), ३१२६९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. वसंत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीत्रेवीसमो जिन), ३०४२१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरती श्रीपास), ३१२३०-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयकुशल, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (प्रणमिअगौतम गणहरू ए), ३०९१४ पार्श्वजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (रूडो मास वसंत फली), ३०५५०-३($) पार्श्वजिन स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (हवे शक्र सुघोषा बजाव), ३०५५०-१ पार्श्वजिन स्तवन, शंकर, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे.?, (सरसति माता सेवकां), ३०७८६-१ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. शांतिचंद्र, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (मंगलमाला मंदिर केवल), ३०९५० पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नीकी मूरति पास जिणंद), ३१८०६-२ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. सदाचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (हां रे मोरा पासजी), ३१९२८-१ पार्श्वजिन स्तवन, पा. सदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोरा पासजिनराय सूरत), ३०४६०-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुखदेव, मा.गु., गा. ७, वि. १८०१, पद्य, श्वे., (जिनराज जयो महाराज), ३१०७२-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हरखविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (केवल कमलावास पास जिण), ३४२४६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रगडो सामी पास आस), ३२७७१-३ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (तुं जग जीवन वालहो), ३२६५८-२(६) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (धन धन पारकर देश धन), ३०४६०-२ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नरेंद्र फणींद्र), ३४३१३ पार्श्वजिन स्तवन, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (पुजीजे पारसनाथ सदा), ३२८८१(-) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (मन लागो पारसनाथस्यु), ३३५१३-५($) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शी गति थाशे भारी), ३३०६०-१ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति सरसति आपजो मुज), ३१७७१(६) पार्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुरत प्यारी हो), ३१९३३ पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीसारद हो पाय), ३०२५८ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रणमुपारसनाथ प्रह), ३०६६४-१, ३३४७१, ३४१५४ (२) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमुं० श्रीपार्श्व), ३४१५४ (२) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रह समै पारस्वनाथजी), ३०६६४-१ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (पूर मनोरथ पासजिणेसर), ३१२४३, ३२४५७(), ३३३८९(६) For Private And Personal use only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ___५६५ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षतीर्थ, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु पासजी ताहरो), ३००७४-२, ३०७६४-५, ३०८४१-१, ३२३४९-१, ३३३९२-१ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षतीर्थ, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (हां जी दिक्ष्मदेश), ३१६०१-१ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षतीर्थ, ग. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जगजीवन जिनजी पूजाइं), ३००८०-५ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षतीर्थ, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सकल पुरंदरि पूज्यो), ३२५४२ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षतीर्थ, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरसति), ३३११५-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरातीर्थ, मु. नीबा, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (देवी सरसतिरे एक), ३०७५४-१ पार्श्वजिन स्तवन-अजाहरातीर्थ, वा. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रभुजी रे पास अझाहर), ३००८०-४ पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, भूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), ३००६३-३(+#), ३३४८५-४, ३३५७९-५($) पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, मु. जगरुपसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति सामण विनवू), ३१९६५-१(-) पार्श्वजिन स्तवन-अमृतझरा, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (परतखि पास अमीझरउ), ३४२४९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-कंसारीपुरमंडन, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पुण्य प्रभावई सांभल), ३१२९४ पार्श्वजिन स्तवन-कापडहेडामंडन, मु. दयारत्न, मा.गु., गा. ४३, वि. १६९५, पद्य, मूपू., (हं बलिहारी पासजी), ३३९२०-१ पार्श्वजिन स्तवन-कापडहेडामंडन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (कापडहेडा सै धणी रे), ३३३६६-२ पार्श्वजिन स्तवन-कापरडामंडन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अंग सुरंगी अंगीयां), ३१९६५-३(-) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अमृतवल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दरसण दीजै पासजी), ३२६०१-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंदिये रे वारि वंदिय), ३३०३२-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ५, वि. १७८०, पद्य, मूपू., (लगी लगी आंखीयानें), ३२०३५-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू, (पास गोडिचा नाम तुम), ३३०९३-२(2) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीथलपति थलदेशे), ३३४५४ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (लाखेणो सोहोवे जनजी), ३२२६९-३, ३०३७१-२(-) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (साहिब गोडी पास रे मन), ३१८४७-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जगगुरु श्रीगोडीपुर), ३२६०१-१, ३२९०२-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, चंदा, मा.गु., गा. १३, वि. १८००, पद्य, मूपू., (पारकमाहे स्वामी तु), ३३३४३-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुजस तुमारो हो श्रवण), ३१८३७, ३२८७३-१, ३२९८८-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिणेंद्र, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (गोडीचो साहिब गाविता), ३३१४१-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति यति, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीगोडी प्रभु पास), ३०४६०-४($) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हेसर मुझ विनती), ३११८९ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (हा रे गवडीपुरुमंडण), ३२३७२-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (ॐकाररूप परमेश्वरा), ३१२३८ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. तिलकविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आसापूरण पास में दीठो), ३०९६६-५ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा.१२, पद्य, मूपू., (लाखीणो सोहावें जीनजी), ३०४०८-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. भाण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (गोडी गिरुउ गाजतो धवल), ३१२३०-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. भोजसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (धवल धिंग प्रभु परता), ३१८१६-१, ३२९५९-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मान, मा.गु., गा. १५, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (प्रभु श्रीगोडीपासजी), ३१९२३-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गोडि राजा त्रिलोकि), ३२६६८-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. राजसिंघ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हां जी महाराज मूरत), ३३०१७-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारो पारकर देस), ३३२८६-३ For Private And Personal use only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोनानी आंगी हे सुंदर), ३०६९१-२, ३२५८५-३(#), ३२२३१-२(5) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रुघपति, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (वामासुत वरदाई पुन्यै), ३००४८-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. वनीतविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रगट थया पारकरस्वाम), ३२८४२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वसता, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (जोर बन्यो जोर बन्यो), ३२७९७(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. विनय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (उपसमना बाजारमा रे), ३०५९०-४ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पं. विनयकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समरू कविजन सारदा), ३१६७६-२, ३३४४६-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (वदन अनोपम चंदलो गोडि), ३१४७७, ३१७८५ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहि., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (अमल कमल जिम धवल), ३२३११-२, ३२७५६-२, ३३९२४-२, ३३९२५, ३४२४७-१, ३३३४३-२(६) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु.साधुहर्ष, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (वामानंदन वांदता आपो), ३०४००-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अमे आउ नेहडो कदी), ३३५०१-२(+), ३०८९५-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, मूपू., (पूजीजै मनरंग गोडीजी), ३३०२८-२($) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजी बीराजे बंगला), ३०४४२-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी धवलधिंग, मु. वनीतराज, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (--), ३०३७२(#$) पार्श्वजिन स्तवन-घोघामंडन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समतारस शीतल छाया), ३०८०५-१ पार्श्वजिन स्तवन-घोघामंडननवखंडा, वा. दान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु श्रीनवखंडापास), ३३२१८-५ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (साचो साहिब सेवयइ रे), ३४२४७-२ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भविका श्रीजिनबिंब), ३१८२९ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, वा. तेजस, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीचिंतामण पासजी रे), ३३२९६-२ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., गा. १३, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (हरीया रंग भरीया हो), ३०४८६ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिनपति अवनासी कासी), ३१९०५, ३३०८४-५ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पं. सदासागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७८५, पद्य, मूपू., (श्रीचिंतामणि पासजीरे), ३३०५२-१ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव), ३०३७८-१, ३०५८२ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नीलकमल दल सामलुरे), ३११८५-२ पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनप्रतिमा हो जिन), ३०५१५-२, __३१८२७-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावलातीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (जीराउलि मंडण श्रीपास), ३२९२१-१, ३३५२८ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावलातीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सूकडि मिलीआ गिर तणी), ३३४०९ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावलातीर्थ, मा.गु., पद्य, मूपू., (जीराउला देव करङ), ३१९६८-२, ३२९४६-२, ३४०२५ पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवखंडाजी हो पास मनडु), ३०८०५-२ पार्श्वजिन स्तवन-नारिंगपुरमंडन, ग. कल्याणधीर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सकल श्रीपास जिनवर), ३४०१५(+) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (छाजि छाजि छांजी), ३२७२२-१(+), ३३१०४-२ पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु.रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमेसरु), ३३९४८-३, ३४३७७-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-पाटणमंडण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सेवकनी सुणी राव हो), ३०६११-२ पार्श्वजिन स्तवन-पालनपुरमंडन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), ३४३७७-१(#$) पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, मु. सुखदेव, मा.गु., गा. १०, वि. १७९०, पद्य, श्वे., (वाणारसनगरे सोभताजी), ३१०७२-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुखकारी हो साहिब), ३०५७५-४ पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, पं. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी हो पास), ३०६८५-३ For Private And Personal use only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६७ पार्श्वजिन स्तवन-पोसिना, मु. कल्याणविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, भूपू., (सरसति समरी कविजन), ३३०५८-१ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अभयसोम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति माता सेवका), ३२८१५, ३३२२२, ३१०८६-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. अमृतधर्म शिष्य, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीफलवर्द्धिपुर जइय), ३२३७२-२ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. विजयप्रताप, मा.गु., गा. ९, वि. १९०७, पद्य, मूपू., (फलवधी पास विराजे हो), ३०६७९ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (फलवर्द्धिमंडण पास), ३३११७-१ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरि), ३१५९२, ३१७०१, ३३२२०-१ पार्श्वजिन स्तवन-भटेवा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (--), ३२७३०(5) पार्श्वजिन स्तवन-भटेवा, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भटेवा पासजी रे भेट), ३१४०८-१ पार्श्वजिन स्तवन-भिनमाल, मु. मेरो, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सामिण विनमु), ३१३०५-१ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्या माटे साहिब सामु), ३३५७९-४ पार्श्वजिन स्तवन-भीलडीया, ग. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८३३, पद्य, मूपू., (साचो समरु स्वामी), ३२६२२-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-मंडोरा, मु. मनु ऋषि शिष्य, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (सरसति वरकमल वदनमाता), ३२९१८-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-मक्षीजी, मु. जससौभाग्य, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३२७६१-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोहन मूरति ताहरी जी), ३२६५८-१, ३३०५२-२, ३१९६५-२(-) पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. वसतो, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (त्रिभुवन साहिब सांभल), ३०२३२-२ पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, मु. चंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (लोद्रपुरे रलीयामणो), ३०४६०-३ पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरचिंतामणि, ग. हर्षनंदन, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (चिंतामणिपास पूजीय), ३१६९३-१ पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणातीर्थ, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीसारदा हो पाय नमे), ३३३९८-१ पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणातीर्थ, मु. जिण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वरकाणै वरमंडण पास), ३१२८५-३ पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणातीर्थ, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वरकाणापुर राजीया), ३०५७५-३ पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणातीर्थ, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीवरकाणउसाचउ जाणउ), ३२७०५-१ पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणातीर्थ, मु. मनूशिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीजिनचरण कमलनमी), ३२९१८-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणातीर्थ, मु. समयप्रमोद, मा.गु., गा. १७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रीवरकाणउ विघन), ३२९८५ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, वा. उदयरतन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आप अरुपी होय नय प्रभ), ३०४४८-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, वि. १७८०, पद्य, मूपू., (पासजी तोरा पाय पलक), ३३८१७-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल मंगल तणी कल्प), ३०९०९-१, ३२०७८ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, क. कमलविजय, पुहि., गा. १३, पद्य, मूपू., (तुं मेरा साहिब मइ), ३२७१७-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (भगवती भारती चित्तधरी), ३१०३५ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (समरथ साहिब सांवलो), ३२२८२-१, ३३२८५ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रह उठी प्रणमे), ३२१००-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.७, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेसरपासजी रे), ३२३३५-४ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. खुशालसुंदर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नगर संखेसर नायक हो), ३२९९०-५ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. चारित्रसागर, मा.गु., गा. ६५, पद्य, मूपू., (ऐंद्रपदप्रियरूपभूप), ३०८१८, ३०८३३, ३१०४६ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), ३००५८-७(+), ३०४७८-१, ३२३३७-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ३२८३८-२, ३३९७१-१, ३४३५०-७ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु पूजो पासजिनंदा), ३२३१४-३, ३३०७९-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (संखेश्वर वंदोरे भव), ३३५३० For Private And Personal use only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६८ www.kobatirth.org पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. रंग, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (तारक जिन त्रेवीसमो), ३१२९२-३ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पास), ३३०७८-१ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु, शील, मा.गु, पद्य, भूपू (प्रणवि प्रणवि पहु), ३११९०-१(+) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वरजी रे), ३१८९९-२ " י. " पार्श्वजिन स्तवन- शामळीया, मु. उदयरत्न, मा.गु. गा. ५, पद्य, भूपू (वढवाणरी आज वार मारे), ३१८६२-३ पार्श्वजिन स्तवन- शेरीसातीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३०, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (स्वामि सुहंकर श्रीसे), ३१९३९-२(s) पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन सेहरो जग), ३२२३४ पार्श्वजिन स्तवन- सुरतमंडण, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सूरतमंडण दूरितविहंडन), ३२६४६-४ पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, वा. कुशललाभ, मा.गु., डा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू (प्रभु प्रणमुं रे पास), ३२७७८(४) पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मूरत त्रेवीसमो), ३२१११-४ 13 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ (अंभणपुर श्रीपास जिण), ३११९७५, ३१२९३, ३१९९४ , पार्श्वजिन स्तवन स्तंभनतीर्थ, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू. पार्श्वजिन स्तवन स्थंभनतीर्थ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (सकल मूरति सामी थंभणो), ३०९०८-२ पार्श्वजिन स्तवन- स्वयंभू, मु. हर्षकुशल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोरै पासजिन मन लीनो), ३००५८-८(+) पार्श्वजिन स्तुति, मु. अमृत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जलण जल वियोगा नाग), ३०८१५-३ पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अश्वसेन नरेसर वामा), ३३८१३-११ पार्श्वजिन स्तुति, मु. जैनसमुद्र, पुहिं. गा. १, पद्य, म्पू, (समीवाणपुरे अतिसोहत) ३४१३८-३ " " पार्श्वजिन स्तुति, वा. देवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवे), ३०८८६-९ पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू (श्रीपास जिणेसर पुजा), ३४१७२-२ . पार्श्वजिन स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परम प्रभु परमेश्वर), ३२८३४ पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वामानंदन जगजन वंदन), ३३०८२-१ पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सजी सोल शृंगार उछाह ), ३४१३८-६ पार्श्वजिन स्तुति-जेसलमेरमंडन, मु. विनय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिन जेसलमेर जुहा), ३३३८१-१ पार्श्वजिन स्तुति - पौषदशमीतिथि, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू (जय पास देवा करूं), ३४१७२-४ १ पार्श्वजिन स्तुति - प्रार्थना, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सहीयल टोली भांभर भोल), ३२३२१-२ पार्श्वजिन स्तुति - वीरवडामंडण, मु. विजयहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू.. वीरवाडापुर वर मंडणो), ३११७०-५ (+) पार्श्वजिन स्तुति- शंखेश्वरतीर्थ, ग. तत्त्वविजय, मा.गु, गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मृपू., (श्रीपास जिणेसर भुवन), ३१६६८-३, ३२११७-८ पार्श्वजिन स्तुति - शामळा, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (मेरु महीधर सुंदर), ३१६८२-२, ३३८०१-६ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (एक तुं एक तुं अरिहंत), ३१९६९-१(-) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद - शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल सदा फल चिंतामणि), ३३२८८-२ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु, जिनहर्ष, मा.गु., डा. ३, पद्य, मूपू (अकल अजर प्रभु एण कलै), ३१८६५-१ こ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तोत्र, ग. मानसागर, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि जगि), ३१६१४ पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., ( नमु सारदा सार), ३२१००-२, ३३०४९(#) पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावलातीर्थ, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू (महानंद कल्याणवल्ली), ३१३९१-१, ३३००२ (-) こ पार्श्वजिन होरी, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धूम परि द्वारि चलो), ३३३०३-३(#) पासत्था के बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (आधाकर्मीपिढ फलग भोग), ३४०९४-७ पाहुड विवरण, मा.गु., गद्य, वे (प्रथम प्राभृते १) ३०७३८ ', पिंडबत्रीसी सज्झाय, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमुं), ३०१२३ पीठस्थापना पद, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मंगल तणी भूमि), ३१२७६-२ पुंडरीककंडरीक चौडालिया, मा.गु., डा. ४, पद्य, म्पू, (पुंडरिक कंडरिकजी भाइ), ३०३८४ For Private And Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६९ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पुंडरीकगणधर स्तवन-पांडुरगिरिमंडन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सिरि नाभि नरेसर कुल), ३१५०३ पुंडरीकस्वामी स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जयउ जयउ सिरिगणहर), ३१३५४-३ पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), ३४४१४ पुण्यलब्धविनितावाडी जकडी, मु. कमल, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (भोगी भुराबेतई फिरत), ३२१८३-१ पुद्गलपरावर्तन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य क्षेत्र काल), ३१४८३-२, ३०४३९(5) पुद्गलपरावर्तन विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (औ१ वै २ ते ३ भा ४), ३४०६४-२(+) पुद्गल भेद विचार-भगवतीशतक ८ उद्देशा१, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथण पउगसा ते जीव), ३३९६७ पुरुषलक्षण संग्रह, मा.गु., गद्य, जै., वै.?, (लखण लख्यण तेहिज पछे), ३३७७७-१ पुरोहितपुत्र सज्झाय, उपा. सहजसागर, मा.गु., ढा. ३, वि. १६६९, पद्य, म्पू., (सहज सलीणा हो साधजी), ३३७६६ पूजनफल स्तवन, मु. हितधीर, मा.गु., गा. १२, वि. १८३२, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनपति तेवीसमा), ३३००६-१(2) पूजोपकरण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३३३७१-४ पूज्यश्रीमहाजन पूजा, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., (झारी रतन जडाव की), ३१६९६-२ पौषधदोष विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पोसह ए श्रावकनि पोसा), ३०३०८-२ पौषधव्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवइ इग्यारमो पौषधपवा), ३४२८७($) प्रतिलेखनादि कालमान यंत्र, मा.गु., यं., मूपू., (--), ३१८१५-१ प्रदेशीराजा के प्रश्न-राजप्रश्नीयसूत्रे, मा.गु., प्रश्न. ११, गद्य, मूपू., (प्रथम हिवे ११ प्रश्न), ३४२५६-१($) प्रदेशीराजा चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (हाथ जोडी करै वीनती), ३१३५१-१, ३२३९८ प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सेतंबिका नयरि सोहांम), ३३४२६-२ प्रभंजना सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरि वैताढ्यने उपरे), ३३४५५ प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरदेव थकी), ३१५९०-३ प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मारगमा मुनिवर मल्यो), ३३०६९-२ प्रहरानुसार राग विचार, मा.गु., पद्य, (प्रथम पुहर राग च्यार), ३३०१२-१ प्रहेलिका पद, मा.गु., पद्य, जै., (जों मारै भोजनरो आधार), ३२०६१-३(-) प्रहेलिका पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., (हे अटका उत्तर घरि), ३२०६१-१(-) प्रहेलिका श्लोक संग्रह, मा.गु.,गा. २, पद्य, जै.?, (एक अनोपम देस नगर), ३१७२५-४ प्राणातिपात पापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पापस्थानिक पहिलू), ३१८६१-२ प्रायश्चित्तप्रदान बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञान आसातनाइं जघन्य), ३४२९८ प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहि., गा. २५, पद्य, (प्रीतिकाज छंडिजे), ३२७३८-१ प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ७१, पद्य, श्वे., (पडिवन्नइ माछा भला बग), ३०३१५-२(+) प्रियंकरराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीआदिसरु), ३०१३७($) प्रेमजीमुनि ने नरसिंघजी को लिखा पत्र, मु. प्रेमजी, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीआदिजिन), ३०३९४(+) फूलडा सज्झाय, पुहिं.,रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (बाई रे कोतिग दीठ), ३०५६४, ३१७१५ (२) फूलडा सज्झाय-टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीर निर्वाणात्), ३१७१५ (२) फूलडा सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरना निर्वाण), ३०५६४ फूलपूजा दोहा, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मोगर लाल गुलाल मालती), ३३८१०-२ बत्तीस बोलनो परव, मा.गु., सू. ३२, वि. १६७१, गद्य, मूपू., (आचार्य श्रीरत्नसीहजी), ३०४६२(#) बलदेववासुदेव, अज्ञा., जै., (--), प्रतहीन. (२) बलदेववासुदेव-(मा.+अंक)विवरण, मा.गु., को., मूपू., (--), ३०७८९-५ बलदेवसाधु सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तुंगीआगीर सीखर सोहे), ३१५६२-२, ३१८२०-२, ३२४४९ For Private And Personal use only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (द्वारकानगरथी नीसा), ३०९०९-३, ३११२६, ३३२३१, ३३८८९-२, ३४०६२-२(-) बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (द्वारिका हुती निकल), ३२९३६(5) बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (द्वारामतिथी श्रीकृष), ३३७७६-१ बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (हुं तुझ आगल सुंकहु), ३०२७३ बांगडबोलीबत्रीसी, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि सुणो), ३२४७७ बारहखडी छंद, पुहिं., गा. ७७, पद्य, श्वे., (प्रथम नमो अरिहंत को), ३३३८३-१ बाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरज सुणो रुडा राजिआ), ३२८४६-२ बाहुजिन स्तवन, मु.खेम, मा.गु., ढा. २, गा. १७, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (जंबूदीप मजारहीसहीए), ३३६९६-१(+) बाहुजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (रमत रमिवा मैं गईथी), ३०५५९-२, ३१४१४, ३२९८४ बाहुजिन स्तवन, मु.शांतिविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १७४९, पद्य, मूपू., (विहरमान जिन सांभली), ३१३६३(+) (२) बाहुजिन स्तवन-बालावबोध, मु. शांतिविजय, मा.गु., वि. १७४९, गद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वरपार्श्व), ३१३६३(+) बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बीज कहे भव्य जीवने), ३०७५३-१ बीजतिथि स्तवन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., गा. १३, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (सरस्वतिदेवि नमी करी), ३२९४१ बीजतिथि स्तुति, मु. गजानंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजुआली बीज सुहावें), ३१५०२-२ बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानसागरसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (अजवाली बीजे चंदा), ३०५६६-१ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ३०५३२-२, ३१३२२, ३१९१७-२, ३२११७-१, ३२४१५-२ बुढ़ापा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुगुण बुढापो आइयो), ३०१८१-१, ३१३५१-२ बुढापा सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (बुढाने भावे खीचडी रे), ३३०१०-२ बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमु देवी अंबाई), ३०१२९-२(+$), ३०८५१-१(+), ३०६५५-१, ३०९५६, ३०९६६-४, ३१२६७, ३३६९७-१ ब्रह्मचर्य पद, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (याली धनओ पीउ धनउ), ३१७६६-४ ब्रह्मचर्य सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८६२, पद्य, श्वे., (जगमै जोरसुंरंगो लाल), ३३१९७ ब्रह्मचर्याध्ययन सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ब्रह्मचर्यना दश), ३२२१०-३ ब्रह्मबावनी, मा.गु., पद्य, मूपू., (ॐकार अमर अमपार आप), ३३८१७-२($) ब्राह्मणलक्षण पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (ब्राह्मण नाम धराय के), ३२९५०-१ ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, मु. रायचंद, रा., गा. २१, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (रिखभ राजा रे राणी), ३०६४२-२ भरतचक्रवर्ति सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (साधर्मिक वच्छल करीए), ३३५०६ भरतबाहुबलि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (आदे आदि जिणेसरु रे), ३२६६९ भरतबाहुबलि सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (संपत करण सदा सरस्वती), ३३८६०(६) भरतबाहुबली चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुरसती समरु सदा), ३४४२९(5) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३८, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीवरवा), ३१३५० भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहुबल चारित लीयो), ३२४४३-५ भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), ३२१२८-१, ३२८८२-१ भरूच छ:रीपालितयात्रासंघवर्णन स्तवन, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. ३, वि. १८७४, पद्य, मूपू., (श्रीगरुचरण नमी करी), ३०८७२ भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रभु नीशाल बैठा), ३०६४४ भवदेव-नागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घरे आवीयो), ३१५०७ भवानी स्तोत्र, ग. कल्याणसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सकति सदा सानिधि करो), ३०८३२, ३१२४०, ३१३२३-१, ३०४६७-१(#) For Private And Personal use only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ भवीयकुटुंब सज्झाय, मा.गु. बा. २ गा. ३२, पद्य, मृपू (सिरि रिसहेसर मनिहि), ३४०३७ भानुचंद्र उपाध्याय भास, मु. भावचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (भविजन वंदो भाव धरी), ३२२६६-२ भार मान, मा.गु., गद्य, भूपू वै., (साडत्रीशकोडिने बार), ३२६४५-४ , भाषासमिति सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (सत्य विवहार भाषा), ३२८९० भुवनेश्वरी छंद, मु. गुणानंद-शिष्य, मा.गु., गा. ३६, पद्य, वे (प्रणमी पार्श्व जिनंद), ३२०७३-१ भैरवनाथ गीत, मु. सुमेरचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (--), ३३००५-१(+$) " भैरवाष्टक, आ. हेमचंदसूरि, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुम तीन भुवन के नायक), ३०४३४(+) मंत्र प्रयोग, मा.गु., गद्य, ?, (--), ३०५८८-३ मंत्र संग्रह, मा.गु., गद्य, जै. वै., ( ॐनमो नमो आदेश गुरुकै), ३२७९२-१ " मतिज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमो पंचमी दिवसे), ३०३७६-२ मदनरेखासती चौपड़, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, मूपु., (--), ३३९९२ (०३) मधुबिंदु द्रष्टांत, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३०६६०-२ मधुबिंदु सज्झाय, मु चरणप्रमोद शिष्य, मा.गु. गा. १०, पद्य, भूपू (सरसति मुझने रे मात), ३१८५२-२ (५), ३३२४० मधुबिंदु सज्झाव, पं. शुभवीर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मृपू. (मधु बंदू समो संसार), ३३०५१ मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( नमो नमो मनक महामुनि), ३०७१६-२(+) मरुदेवीमाता चौढालियो, मु. सेवक, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (माताजी मरुदेवारा रे), ३००३० मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू ( रिषभ जीवन वास वसई), ३२६९९, ३२३३४-१(5) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (नगरी वनीतां भली वीर), ३२९१६ मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (मरुदेवी माता कहे), ३२९१२, ३३११०-१, ३२०६९-१(-) मल्लिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. ( तुज सरीखो प्रभु तुंज), ३१९०६-१, ३१९९१-१ मल्लिजिन स्तवन, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (निज गुरु चरण कमल), ३१७१२ मल्लिजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण, पुहिं. गा. १६, वि. १८५३, पद्य, क्षे., (जीवडा जप लीज्योरे), ३०३५६-२ , " मल्लिजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (हवे दान संवछरि दिये), ३१५०५ मल्लिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (चीत कुंण रमे चित कुण), ३१२९२-२ मल्लिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु. गा. १९, पद्य, मूपू (त्रिभुवन प्रभु रे), ३१७८३, ३१२५३(३) मल्लिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू तुज मुज रीजनी रीज), ३२८७४-२ मल्लिजिन स्तवन, मु. रामचंद, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (मल्लिजिणंद मया करो), ३०३६९-२ मल्लिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (मनमोहन मल्लिनाथ को), ३३२८६-१ मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं, गा. ५, पद्य, भूपू (मोहे केसे तारोगे दीन), ३०७६१-४ " मल्लिजिन स्तवन, मु. विजयहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( आज सफल दिन माहरो मुज), ३११७०-४(+) मल्लिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत आराधीय), ३००९३($) " मल्लिजिन स्तुति - केवलज्ञानकल्याणक, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मल्लि जिनेसर प्रहसमे), ३०८१६-४(+) मल्लिजिन स्तुति - जन्मकल्याणक, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मागशिर सुदि एकादशी), ३०८१६-२(+) मल्लिजिन स्तुति-दीक्षा कल्याणक, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. ४, पच, म्पू, (श्रीमल्लि जिणेसर ओगण), ३०८१६-३(+) मसिकागज पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, (मस काली गुण उजला लेख), ३०८५५-२ महापुरुषों के मांगलिक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (गौतमस्वामीनी लब्धि), ३२६११-२ महावीरजिन २७ भव विचार, मा.गु., गद्य, क्षे., ( प्रथम भवि पश्चिम माह), ३२६४९-१(३) महावीरजिन २७ भव संक्षेपवर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (ग्रामेशस्त्रिदशो), ३१०२२ (+) महावीरजिन कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे भगवंत वाधे ते), ३२४७९(#$) महावीरजिन कथा - संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, श्वे. (इहां कुण जे श्रीसमण), ३१९२५-३ For Private And Personal Use Only ५७१ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ महावीरजिन गहली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मासे नवमे महावीर), ३०६३८-१(+) महावीरजिन गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चक्र चलें आकाशमा), ३१२२६-२ महावीरजिन गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (वीतभय पाटण वीरजी), ३१२२६-७ महावीरजिनगीत, मु. कल्याण, मा.गु., गा. २, पद्य, म्पू., (विर जिणेसर राया वालो), ३०७५४-२ महावीरजिन गीत, मु. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सखीरी नाम जपउ), ३१४१९-२ महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, आ. नयविमल, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (देव मलिया २ करे उछर), ३३७७४-२ महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, मु. नय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वीर जिनवर वीर जिनवर), ३३७७४-१ महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (सिद्धार्थकुलमई जी), ३१८७१, ३३३८४, ३३०१०-१,३०१४८(-१) महावीरजिन छंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर जनमीया), ३०२७०, ३१०८६-३(#) महावीरजिन तपस्तवन, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामीजी बुद्धि), ३२३१५-२ महावीरजिननिर्वाण सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (आधार जो हुतो रे एक), ३१९९३ महावीरजिन निसाणी-बामणवाडतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीमाता सरसती सेवक), ३१४३८ महावीरजिन पंचवधावा, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (विवाह अवशर आविओरे), ३२३३१ महावीरजिन पद, मु. अजय, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (हजूर तुम सैं कहु में), ३०४०१-१ महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पावापुर महावीर जिणेस), ३२७११-३ महावीरजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मो मन वीर सुहावै), ३०५०८-४ महावीरजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (सब दुख टालोगे महावीर), ३०७६१-३ महावीरजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (माई मेरो मन तेरो), ३२८३३-३ महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, पू., (माता त्रिशला ए पुत्र), ३३७३५-१ महावीरजिन पारj, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (झुले श्रीवीर जिनंद), ३४४०८-३ महावीरजिन पूजाविधि स्तवन-दिल्लीमंडन, मु. गुणविमल, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (प्रणमी वीर जिणेसर), ३२१९२ महावीरजिन भास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहीयर म्हारी अरिहत), ३१०६८-२ महावीरजिनवाणी स्तवन-ओसीयातीर्थ, मु. गयवर, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (दों मूर्ती मोहनगारी), ३३६८३-५ महावीरजिन विनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती), ३१७१४-१, ३१८७६ महावीरजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (त्रिसला देवीनो नंद), ३३०८३-४(#) महावीरजिन स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आवो साहेली थाउ वहेली), ३१२१३-३ महावीरजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा. ९, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (जगपति तु तो देवाधि), ३०६२९-१ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (जगपति तारक श्रीजिनदे), ३०४७१-१, ३२०५९(-) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीप्रभुजी तुमे तो), ३१९३० महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ राजानो नंदन), ३३२२८-२ महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभ, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर जिनेसर), ३१८०७(+) महावीरजिन स्तवन, ग. कल्याणकुशल, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू, (जिन दरसणि दोहग टलइ), ३१४१९-१ महावीरजिन स्तवन, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरस वचनरस जिन तणुरे), ३१०३८-१(#) महावीरजिन स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सो प्रभु मेरे वीर), ३०३३५ महावीरजिन स्तवन, मु. गुणचंद, मा.गु., ढा. २, गा. ३२, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (प्रणमिय सारद मातनें), ३०२९६-१(+) महावीरजिन स्तवन, मु. गुणचंद, मा.गु., गा.११, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (वीरजिणेसर ध्यावो), ३०२९६-२(+) महावीरजिन स्तवन, मु. गोरधन ऋषि, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (कीरत वधारीये माता), ३२९०९-२(-) महावीरजिन स्तवन, मु. जगजीवन, मा.गु., गा. ५, वि. १८२४, पद्य, मूपू., (वालो वीर जिणेशर शिव), ३२४४३-४ महावीरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मनमोहन महावीर जिनेसर), ३२८४७-२ For Private And Personal use only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (करुणा कल्पलता श्रीमह), ३३४१२ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनमुख देखण जावू), ३१६९६-१ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वाटडी विलोकुं रे), ३०७१८, ३२६४६-३ महावीरजिन स्तवन, मु. तेजहंस, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सारद मात हृदय धरी), ३३१७५-१ महावीरजिन स्तवन, मु. दान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्यारो प्रभुजी को), ३२०१५-१ महावीरजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (शासननायक शिवसुखदायक), ३३७५८-२ महावीरजिन स्तवन, मु. प्रमोदरुचि, पुहिं., गा. ११, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (मना रे वीरजीणंदनी), ३०३०६ महावीरजिन स्तवन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नणदल हे नणदल सीधारथ), ३०४७९-१, ३३२९९-१ महावीरजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राणी यशोदा हो वीनवे), ३०१७३ महावीरजिन स्तवन, मु. मनोहरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभुजी म्हारा आज), ३२९८७-२ महावीरजिन स्तवन, मु. मयाचंद, मा.गु., गा. २२, वि. १८२९, पद्य, श्वे., (जय जय प्रभु वीरजिणंद), ३०१४१ महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरुआरे गुण तुम), ३२८३३-२ महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीरजिणंदने), ३१५२८-२, ३२०६४-२, ३२७३९-२, ३२९४७-२ महावीरजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, मूपू., (सरसति सामण वीनवु), ३००६० महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (नारे प्रभु नहीं), ३२९६३(+), ३०२३९-२, ३३५३२-४(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सेवो स्वामिहे), ३०९२८-१ महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (हं तो आव्यो राजि), ३३३०३-४(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद, रा., गा. २३, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (थे सुणजो हे आरजीया), ३२७२५-१ महावीरजिन स्तवन, मु. रुपचंद, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सुगुरु संजोगथी मे), ३३०२५ महावीरजिन स्तवन, मु. रूपसींघ, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रथम दीपे दीपता रे), ३३८६९-१ महावीरजिन स्तवन, मु. विजयराजलक्ष्मी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राणी ताहरो चरणजीवो), ३२४४३-१ महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १७उ, पद्य, मपू., (सिद्धारथना रे नंदन), ३३९७१-२ महावीरजिन स्तवन, पंडित. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (त्रिसलानंदन चिंदन), ३३७५९-२ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (इण वन सामी समोसर्या), ३२३७२-३(६) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (त्रिभोवन जन आणंदाना), ३०७००-१(+) महावीरजिन स्तवन, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (देखो भक्तिरंग हो एसो), ३३०८३-३(#) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सदा जिन चोवीस मनि), ३४१३१-२($) महावीरजिन स्तवन-१४ गुणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (महावीर जिनरायना पय), ३१५३३-१(+), ३०९८४-१ महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (एक मन वंधु श्रीवीर), ३०२५४ महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नफलगर्भित, मु. भूधर ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीवर्धमाननी मात), ३०२०३-३ महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. उदयसागर, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सकल विमल जिणवर तणा), ३०९८४-२ महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ७९, पद्य, मूपू., (सरसति मनि समरी सदा), ३०६७८($) (२) महावीरजिन स्तवन-२४ दंडकविचारमय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसरस्वती मातानई), ३०६७८(5) महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, गा.८१, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमल कमलदल लोयणा), ३२१३४-१, ३०९०४(#) महावीरजिन स्तवन-२७ भवगर्भित, पंडित. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५२, वि. १९०१, पद्य, मूपू., (श्रीशुभविजय सुगुरू), ३०३५८, ३३७२२ महावीरजिन स्तवन- २७ भवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति दिओ मति), ३३५७७(5) For Private And Personal use only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे), ३१२१८ महावीरजिन स्तवन-ओसीयातीर्थ, पुहि., गा. ५, पद्य, पू., (मंगल शांशनधीसजी मंगल), ३३६८३-४ महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरावर्णन, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय नमी), ३१०४४(+#), ३४३२३ महावीरजिन स्तवन-जन्माभिषेक, आ. रत्नशेखरसूरि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (वीर जिणवर गुरुअ), ३१४८९-१(+) महावीरजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन, मु. भयरव, मा.गु., गा. ३९, पद्य, श्वे., (त्रिभुवनपतिरे वीर), ३०८९२-१(#) महावीरजिन स्तवन-नवतत्त्वगर्भित, मु. ऋषभदास, मा.गु., ढा. ४, गा. ५३, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानजिन सुख), ३०६८५-१ महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, ऋ. रायचंद, मा.गु., गा. २२, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (मगध देशमाहि विराजै), ३०८०४, ३०८३७(-) महावीरजिन स्तवन-निसालगरj, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जिण आणंदा), ३०८५५-१, ३०९४९-२ महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (करी महोच्छव सिद्धारथ), ३४२३४($) महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु), ३०३५१-१ महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणकवधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (वंदी जगजननी ब्रह्माण), ३३८०६(+$) महावीरजिन स्तवन-५ बोलविचार, मु. सिंहविजय, मा.गु., गा. ४१, वि. १६७४, पद्य, मूपू., (वाणी वाणी हितकरीजी), __३१३२४-२(+) महावीरजिन स्तवन-पारणा, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ३३६९४(+-), ३०३६६, ३३८१५-१ महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चोमासी पारणो आवे), ३१९८९ महावीरजिन स्तवन-बामणवाडतीर्थ, मु. भाव, मा.गु., गा. ३२, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (सरस वचन दिउ सरसति), ३०९५७-२ महावीरजिन स्तवन-बामणवाडतीर्थ, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), ३२१३३-१, ३३४१४, ३२६५४(5) महावीरजिन स्तवन-भांडुप, मु. ज्ञानअमृत, मा.गु., गा. ७, वि. १९२५, पद्य, मूपु., (श्रीमहावीर कृपाल परम), ३१७०४ महावीरजिन स्तवन-मोहराजा कथागर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५५, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर भुवन दिने), ३३४४३ महावीरजिन स्तवन-वडलीमंडण, ग. नगा, मा.गु., गा.५१, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरणो), ३०८४३(+), ३४०३३-१(+), ३१०८८-१ महावीरजिन स्तवन-सांचोरमंडन, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., (मरुधरदेस मझारि पुर), ३२१११-५ महावीरजिन स्तवन-सांचोरमंडन, उपा. सुमतिसुंदर, मा.गु., गा. १५, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (सरसती सांमण मूझ दिउ), ____३२९२८-२(-2) महावीरजिन स्तवन-स्वप्न विषये, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३४३६३(६) महावीरजिन स्तवन-स्वर्णगिरिमंडन, मु. लावण्यसागर, मा.गु., गा. ११, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीर जिनेश्वर जगिराय), ३१२९६-२ महावीरजिन स्तवन-इंडि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (आसीन्मनो यस्य रसे), ३१२६८, ३१२७१ महावीरजिन स्तुति, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८१३, पद्य, मूपू., (नीचलै पूजीव्यैनी सखी), ३२६९६-१(-) महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मनमोहन कंचन), ३३८१३-१ महावीरजिन स्तुति, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मनोहर मुरति महावीर), ३३७७४-४ महावीरजिन स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चरमतीथंकर श्रीमहावीर), ३१५६६-२ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कठन करम मेली काठीआ), ३०८१५-४ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जय जय मानव सेवित), ३४१७२-१२ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (प्रे उठि वंदु वीर), ३३०८२-४ महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गंधारें श्रीवीरजिणंद), ३१६८२-१ For Private And Personal use only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७५ महावीरजिन स्तुति-धमडकानगर, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा.४, पद्य, मूपू., (त्रिशलानंदन त्रिजग), ३१६६८-४, ३२११७-९, ३१६६८-५ महावीरजिन हमचडी-पंचकल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ६८, पद्य, मूपू., (नंदनकुं त्रिशला), ३३२७७($) महावीरजिन हालरथु, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला झुलावे), ३३०५९ माणिकचंदमुनि भास, मा.गु., गा. २०, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (सरसति सामिन वीनवु), ३०२०२(+) माणिभद्रवीर आरती, श्यामसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रिमझिम रिमझिम करु), ३०६३०-२ माणिभद्रवीर छंद, पं. उदयकुशल, मा.गु.,गा. २६, पद्य, म्पू., (सरस वचन द्यो सरसती), ३२८९५(+), ३०५९५, ३२९८३ माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरस्वती), ३३५९० माणिभद्रवीर छंद, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सुरपति सेवित शुभ), ३१८२४ माणिभद्रवीर छंद, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), ३०९७५(+), ३२३४१-२($) माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामनी पाय), ३१२३०-१ माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमाणिभद्र सदा), ३०२६३ मातापुत्र सज्झाय, श्राव. संघो, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (जारें मास केडे मास), ३०४०३-१(६) मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), ३१८१०(१), ३२४२१(६) मानपरिहार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मान न कीजे मानवी रे), ३२८८२-३ मान लावणी, मु. हीराचंद्र, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (तजो मान की टेव माहा), ३०४०७-१ माया सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), ३२४४३-७ माया सज्झाय, मु. चंद्रनाथ, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (माया कपट नवि कीजीह), ३२०३१-८ माया सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया मूल संसारनो), ३०८२०-३, ३१४०३-३, ३१९८०-३, ३२१४७-३ मालवीऋषि सज्झाय, मु. जयवल्लभ; मु. मतिसागर, मा.गु., ढा. ६, गा. ५६, वि. १६१६, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर ज्ञानवंत), ३११८६, ३१०७७(#) मासतुसमुनि कथा-प्रमादविषये, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३२१५०-१(६) मिथ्यात्व २५ भेद विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (अधमेधम सभा सिद्धांते), ३०६१३-२(+$) मिथ्यात्वबत्रीसी, मु. माणिक्यरंग, रा., गा. ३२, पद्य, मूपू., (सरसतनै समरी करी लागु), ३१९७६ मुक्तावलीतप सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति सामण नीत समरी), ३२७६१-४(s) । मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (निअगुरु चरण नमी), ३४०९०-१ मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, मु.शांतिसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि जिणेशर पाय पणमे), ३३०३४-१ मुनिगुण सज्झाय, मु. मति, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सुमति धर्म साचो जती), ३०९२९-३ मुनिगुण सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (अनेक गानोत कर उतम), ३०६४२-३ मुनिगुण स्वाध्याय, ग. देवचंद्र, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगतमें सदा सुखी मुनि), ३०९८२-२ मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख जिन पय), ३३६३८(+) मुनिविचार कवित्त, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (पाला चालें पंथ शीश), ३३४८५-६ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रत महाराज), ३१९०६-२, ३१९९१-२ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीमुनिसुव्रतजिन), ३२०९२ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, पू., (मुनिसुव्रत कीजे मया), ३०२८३-१ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (मुनिसुव्रतजिन वांदता), ३२९०४-१ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वरसे वरसे वचन सुधा), ३१९३५-२, ३२३७८-१ मुहपत्ति ५० बोल सज्झाय, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू., (श्रीसहगुरु वंदी आणंद), ३१८४९-२ For Private And Personal use only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसे क्युं प्रभु पाईइ), ३०३४५-१ मृगांकलेखा चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., ढा. ६२, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (आदेसर जिन आददे चोवीस), ३४०५७(-६) मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुगरीपुर नगर सोहामणौ), ३१५६९ मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुग्रीव नयर सुहामणो), ३३३०६(+), ३०५३८(#) मृगापुत्र सज्झाय, मु. हंसविमल, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (सूगरीव नयरी सोहामणी), ३०४१६ मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सुग्रीवनयर सोहामणु), ३३१७८-५, ३१२८३-२(%), ३४४४८-२(६) मृषावादविरमणव्रत सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुगति से जाई मील्यो), ३१२८८-५ मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., ढा. ४, गा. २३, पद्य, श्वे., (प्रथम गणधर गुण नीलो), ३०२६९(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. जयसागर, मा.गु., ढा. ६, गा. ५२, पद्य, मूपू., (समरी सारद स्वामिनी), ३१०७६ मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (वीर जिणंद समोसर्याजी), ३२८४९ मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ३२४४३-९, ३३३२३-३, ३३६०२-३ मेघकुमार सज्झाय, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ३३७८१-१ मेघराजा सवैया, उधो, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (आज सयाणंद वरतिया), ३२८९४-१ मेतारजमुनि सज्झाय, मु. मनरुप, मा.गु., वि. १८१५, पद्य, श्वे., (--), ३२८०४-२(+$) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरुजी), ३०८१९-१०, ३३०३२-२ मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा.१६, पद्य, मूपू., (धन धन मेतारज मुनि), ३२२६५-३, ३३००७-३($) मेवाडदेश वर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., गा. १२, वि. १८१४, पद्य, श्वे.?, (मन धरी माता भारती), ३१८२२-१(+) मोक्ष निसरणि, मु. हुकमचंद, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (श्रीसंखेशर पाए नमुं), ३०९६७-१(+#) मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोक्षनगर माहरु सासरु), ३३००६-२(#) मोहनपच्चीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (अकलरूप अविगत अगम), ३२८१६ मोहप्रबल सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोह महाबलवंत कवण), ३०२९१-३ मौनएकादशीतपगणगुं, मा.गु., को., मूपू., (--), ३०३०४, ३१६८५ मौनएकादशीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), ३१६५१(+) मौनएकादशीपर्व सज्झाय, पंन्या. देव वाचक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सद्गुरू पाय नमीजी), ३०८१९-१ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसर्य), ३०७६८(+#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), ३३७४८, ३३७६१, ३१४४८(s) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी पूछे वीरने), ३४१९१ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ४२, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांतिजी), ३०३१८ मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ३०४३६, ३३८५२, ३२४३७-२($) मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (धुरि प्रणमुं जिन), ३१५८७, ३२०३९-१ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ३२११७-३, ३०५३२-५ (६) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ), ३२९५८ मौनएकादशीपर्व स्तुति, पं. विद्याविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ओजल गीरवरमंडन जिनवर), ३३०१६ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. विनय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गोपीपति पूछे पभणे), ३४३२२-२ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमिजिन उपदेशी मौनएक), ३०८२४-२ यंत्रभरण विधि, मा.गु., गद्य, जै.?, (--), ३२५७०-२ यतिधर्मबत्रीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भाव यति तेने कहो), ३३७५३ For Private And Personal use only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ यतिविचार कवित्त-पंचमआरे, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., सवै. १, पद्य, मूपू., (जे केई बालक बापडा), ३३४५६-२ युगप्रधान विवरण कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ३०८९९ युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काया रे पामी अति), ३४४००-२(+), ३११६४-१, ३३०४८-१, ३२२६०-) युगमंधरजिन स्तवन, पंडित. जिनविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जइ युगमंदिरने केहजो), ३३७८१-३ युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (जगमंदरजीण सांभलो रे), ३३०१४ युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (महाविदेह मे प्रभु रो), ३२८८४-२(+) युगमंधरजिन स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (चांदलीया जिनजीन), ३२९९०-१ योगी रास, मा.गु., गा. ४२, पद्य, दि., (आदि पुरुष जो आदि ज), ३२९७५ (१) रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे), ३१९५७ रतिअरतिपरिषह सज्झाय-मेघकुमार, मु. रायचंद, गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वाणी सुणी भगवंतरी जि), ३३१३७(#$) रत्नप्रभसूरि कवित्त, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विक्रमादैत्य थकि वरस), ३०२३७ रत्नरास, मु. मोहनविजय, मा.गु., वि. १७५८, पद्य, मूपू., (सकल समीहित पूरण), ३१४२० रत्नसार कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीमहाविदे), ३०४३३ रत्नाकरपच्चीसी स्तवन, मु. गंभीरविजय, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (लक्ष्मी शिवकल्याणनी), ३०३४० रत्नावली छंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (गोडीया कोरे गढे), ३२६११-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सोरीयपुरि अति सुंदर), ३३५२१-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., गा. १९, पद्य, मूपू., (देखी मन देवर का), ३१५०२-३ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (छोरदे रे तुं विषय), ३२७९१-३ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सतगुरु प्रणमुजी पाय), ३४३७३(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (छेडो नाजी नाजी छेडो), ३०८२०-६, ३१४०८-४ रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (राजमती रंगि कहि), ३०३८२-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, नीको, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पावस ऋतु वरसे घनमाली), ३०७१६-१(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग ध्याने मुनि), ३३६०२-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (देवर दूर खडो रहो कें), ३०७५०-३ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (राजुल घरथी नीसरी रे), ३०७५०-४, ३२७९८-२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (तुं तो जादव कुलनो रे), ३३०७५-२($) रमतीयाल शिष्य प्रबंध, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीर मुगति पहुता), ३१५००-१ राइयप्रतिक्रमण में छमासी तपचिंतन विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर स्वामीना), ३१३०३ राचाबत्रीसी, श्राव. राचो, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (जीवडा जाग रे सोवे), ३४१३८-१(६) राजा के भोजन का वर्णन-जिमणवार, मा.गु., गद्य, जै., (राजाने जमवा तेडें ते), ३२१८१-१ राजिमतीसती इकवीसी, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (सासननायक सुमरिय), ३१८००-२, ३३१८३(#) राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि चतुर सुजाण), ३१३८२ राजिमतीसती गीत, मु. विनय, मा.गु., गा.११, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय नंदन चढे), ३०३०१ राजिमतीसती सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., (बे कर जोडी हे राजल), ३२३३४-३ राजिमतीसती सज्झाय, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसत सामण हो चंदावदन), ३२३६०-६ राजिमतीसती सज्झाय, मु. भूधर ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (कौरे फेरि जाऊ रे पीय), ३०२०३-१ राजिमतीसती सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. १५, वि. १८२२, पद्य, स्था., (गोखमा सखीयो संघात), ३०५३१-१(+$) राजिमतीसती सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पीउ वंदण वेगे परवारी), ३१४५९-२ राजुलपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (प्रथमहि समरु अरिहंत), ३०८५९(+) For Private And Personal use only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), ३३४९६-१(+), ३३५७०-१(+), ३२११४-३(5) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पुरष पाप सुणो मन), ३०५७७-१ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (छठो वरत रेणीतणो ए), ३३०२७ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, वा. देवविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १४, पद्य, मूपू., (गुरु चरणे रे भाव), ३३००७-१ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (अवनितल नयरी वसेजी), ३१४१२-२ रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ९, गा. २४१२, ग्रं. ३७०४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), ३३९८०(६) रावण हितशिक्षा सज्झाय, मु. विद्याचंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सीता हरी रावण घर आणी), ३०७३६-३(+), ३२०५७-१ राहुग्रह छंद, क. शंकर, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (धड विण मस्तक धारी), ३३१२२-६ रुक्मिणीसती सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सखी संघासण सांकडु), ३०८१९-४ रुक्मिणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामो गाम नेमि), ३३०३६-१(+), ३०३३७, ३२६४६-२, ३२७६१-३ रूपीअरूपी बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (कर्म ८ पाप १८ मन), ३४३०३-२ रूपवतीस्त्री सज्झाय-कर्मविपाकविषये, मु. राम, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (करमतणी गति एम कहु), ३१८१८-१ रेखराज सज्झाय, मु. नथमल, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (अनडानै रे नमावतारे), ३३१७९ रोमसोम लावणी, पुहिं., गा. ५, पद्य, जै.?, (साहुकारकुं काम पड्या), ३३०८४-४ रोहिणी कथा, मा.गु., पद्य, मूपू., (तपना महीमाथी सकल), ३२५२८ रोहिणीतप रास, वा. उदयविजय, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनमुखकजवासिनी), ३३४६७(#$) रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य नमी), ३२९९९ रोहिणीतप स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., ढा. ४, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीदायक सदा), ३०८३४(+), ३२०५४-१(६) रोहिणीतप स्तवन, क. दीपविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज), ३३१८४-१ रोहिणीतपस्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ३२३१७, ३२८९३, ३३०५३, ३१००४(#), ३२४९७(#) रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (नक्षत्र रोहिणी जे), ३०७६० रोहिणीतप स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (रोहिणी चंद्र नक्षत्र), ३०९६०-४(+) लक्ष्मीविजयसूरि भास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (घडीय न विसरे ला घडीय), ३२५८९-३, ३०९२६-२(#) लमाद्योत्पत्ति-लोकामतोत्पत्ति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मालवा देश मध्यई), ३१३७४ लीख सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (--), ३१२८५-१(६) लीलावती ढाल, मु. मानसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (लीलावती हो सांभलि), ३०१७८-३ लुंका चर्चा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३३७८७(5) लुंकामतीय प्रश्नबोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीउवाईमाहि अंबडनी), ३१३३७-१ लुंकामतीय समाचारीप्रश्न, मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमि भंते १ लोगस्स), ३१३३७-२ लोभपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २५, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (लोभि मनुषसूतो प्रीत), ३१६८१-२ लोभ सज्झाय, श्राव. संघो, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (लोभ पापनु मुल छे एह), ३०१४५-२ वंकचूल कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावस्ती नामा नगरी), ३२२४० वंकचूलराजाषढाल सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८३०, पद्य, स्था., (परमातम परमेसरू परम), ३०७५०-१ वंकचूल रास, मा.गु., गा. ९४, पद्य, श्वे., (आदि जिनवर आदि जिनवर), ३०२२७-१(+) वज्रकुमार-मनोरमासती सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (नगरी अजौध्या राय), ३१६३०-१ वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विहरमान भगवान सुणो), ३०९८२-४ वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १५, गा. ८९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (अरध भरतमांहि शोभतो), ३०१५२(+), ३११५५ For Private And Personal use only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७९ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ वज्रस्वामी सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सिंहगिरिसीस धनगिरि), ३०२१३-१(+) वज्रस्वामी हरियाली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सखि रे में कौतक दीठु), ३४३०८-१ (२) वज्रस्वामी हरियाली-टबार्थ, पं. वीरविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवयरस्वामी ६ मास), ३४३०८-१ वनमाली सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा.१०, पद्य, पू., (कायारे वाडी कारमी), ३२९४५-२ वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋतृ), ३२६६८-१, ३२०६२-२(#) वर्णमाला*, मा.गु., गद्य, (--), ३१८४७-४($) वर्तमान २४ तीर्थंकरों के जन्मनक्षत्र और जन्मराशि, मा.गु., गद्य, मूपू., (उतराषाढा न.), ३०७९३-१ वर्धमानजिन नामकरण आश्रयी भोजन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (भलो उत्तंग तोरण), ३२४९२(+#) वस्तुपालतेजपाल रास, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ८५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जिण चउवीसइ चलण नमेवी), ३४१८० वस्तुपालतेजपाल रास, मु. लक्ष्मीसागर, मा.गु., गा.५८, वि. १५००-१५६७, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर नमिय पाय), ३१५१२ वादीप्रतिवादी कोष्ठक, मा.गु., को., श्वे., (--), ३२३२९-२(+) वासुपुज्यजिन चैत्यवंदन, मु. हीरधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भावै जगजन अंगदेश), ३३८८६-३ वासुपूज्यजिन नमस्कार, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिणंद देव), ३०९६०-३(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, ग. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आवो आवो मुज मन-मंदिर), ३०६४०(+#) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिन बारमा), ३१८५१ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. सुखसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (श्रीपंचासर पासजी), ३१४०८-२ वासुपूज्यजिन स्तवन-औपदेशिक, मु. कुसालचंद, रा., गा. ११, वि. १८७०, पद्य, श्वे., (जाग हो जाग हो जीवतुं), ३२९१५-१ वासुपूज्यजिन स्तवन-पंचकल्याणक, पा. हीरधर्म, मा.गु., स्त. ५, गा. २५, पद्य, मूपू., (मूरत श्रीवासुपूज्यनी), ३३७०० वासुपूज्यजिन स्तुति-अग्गलपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिणचंद), ३४४२८-२ विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ५२, गा. ११६२, ग्रं. १६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सुखदाता संखेश्वरो), ३१६६५-१(-) विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (२० सतक उद्देसु), ३०६१५-४ विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिं त्रीजे), ३०३६५-१, ३०९५२, ३२७२०-२, ३३०३४-२, ३०४८९-३(६) विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (देव श्रीअरिहंत अढार), ३१५०८(5) विजयआणंदसूरिसज्झाय, मु. कमलविजय पंडित, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सिरि सरसतिरे वीणा), ३१२६२ विजयक्षमासूरि बारमासो, मु. जसवंतसागर शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विजयक्षमासूरिसरु), ३१७६७-२(+) विजयक्षमासूरि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीविजयरत्नसूरिंदना), ३१२९९-१, ३२२७६ विजयचंदसूरि गहुंली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आणिवो सुंदर बेनी धवल), ३०४५१-२ विजयदानसूरि गीत, उपा. हर्षसागर, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (चरण कमल पेखंता गुरु), ३१३९३ विजयदेवसूरि निर्वाण सज्झाय, ग. दर्शनविजय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति भारती रे), ३१७८८ विजयदेवसूरि निर्वाण सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ५८, पद्य, मूपू., (सरस सुमति आपो मुज), ३१०६५ विजयदेवसूरिनिर्वाण स्वाध्याय, मु. प्रेमचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ३७, पद्य, पू., (जी हो पास जिणेसर पाय), ३१७८९(+) विजयदेवसूरि पद, मु. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंदलीआ तुंपंथि छइ), ३१०३९-४ विजयदेवसूरि रास, ग. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३४१२८($) विजयदेवसूरि सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीविजयदेवसूरीस वड), ३२१८३-८ विजयदेवसूरि सज्झाय, मु. रंगसुंदर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सरसति सामिणी रे), ३०१८९-१ विजयदेवसूरि सज्झाय, मु. विजयप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तेतरिया भाई तेतरिया), ३२५८८-३(#) विजयदेवसूरि सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (जि हो पासजिनेसर मनि), ३०१८९-२ ।। विजयधर्मसूरि गहुली, मु. बुद्धिकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीविजयधर्मसूरीसरूं), ३०११८-७(+) विजयधर्मसूरि भास, उपा. राजविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., (आज सूविहाण गुण भाण), ३३५१३-४ For Private And Personal use only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८० www.kobatirth.org विजयधर्मसूरि सज्झाय, मु. ज्ञानविजय, मा.गु. गा. ९, पद्य, भूपू (सारद प्रणमी पाया), ३१७२५-२ विजयप्रभसूरि गहुली, मु. लालकुशल, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु मुहलि पधारी), ३३७२४-१ विजयप्रभसूरि गीत, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर समरी करि), ३४००८ विजयप्रभसूरि पद, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (गुरु पंचमहाव्रत पालत), ३३०६७-२(#) विजयप्रभसूरि पद, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (मनथी किम न विसरै), ३२८२९-१ विजयप्रभसूरि सज्झाय, मु. लालकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनरायजी पय नमी), ३३७२४-२ विजयरत्नसूरि गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अमिरस पाउं थाने दाडि), ३०८१९-९ विजयरत्नसूरि सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (आज अविषाद जस वाद जग), ३३०९८ विजयराजसूरि कुंडलीयो, मु. दोलत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीवीजयराजसूरीस्वरु), ३२९०८-२ विजयराजसूरि सवैया, मु. बोलत, मा.गु, गा. ६, पद्य, भूपू (सासनसुरी समरी करी), ३२९०८-१ विजयसेठविजयासेठाणी रास-शीलविषये, मु, रायचंद, मा.गु, ढा. ६. गा. ८९. वि. १६८६, पद्य, भूपू (ऋषभादिक जिन 11 " चवीसे), ३०५९७ विजयसेठविजयासेठाणी लावणी, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (श्रीवितरागदेव नमुं), ३४०५६($) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रे रे), ३१७२२-१($) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८५८, पद्य, श्वे. (शीयल तणी महिमा सांभल), " ३११४३+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रामचंद, पुहिं., डा. ४, वि. १९१०, पद्य, वे विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु. दा. ३, गा २४, पद्य, יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ ३१६१५-२, ३३०३० विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाव, मा.गु., पद्य, मूपू., ( श्रीनेमीसर पदकमल सदा), ३०३४६ (३) , विजयसेनसूरिनिर्वाण सज्झाय, ग. देवविजय, मा.गु, गा. ३८, वि. १७वी १७वी, पद्य, भूपू (समरीय सरसति वरसति), ३१३४७ विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु. बा. ३, गा. ५३, पद्य, मृपू (सरस्वती भगवति भारती), ३१२६३, ३१४७५ विधि रास, आ. धर्ममूर्तिसूरि, मा.गु., गा. १०७, वि. १६०६, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनवी ए), ३१५११ विनयप्रकार वर्णन, मा.गु, गद्य, वे (वीनयना सात भेद नांण), ३०८०२ (६) יי विनय सज्झाय, मु. रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसति माताने पाए नमि), ३२८७५-२ विमलजिन स्तवन, मु. लब्धिविजय, पुहिं, गा. ५, पद्य, मूपू (विमल वदन मन मोहें), ३३२१८-२ विवाह पद्धति, मु. रूपचंद, मा.गु. गा. ३७, पद्य, थे. (श्रीसद्गुरु वाणी), ३३७६०-१ विविधतीर्थं चैत्यवंदन, पंडित, धनहर्ष, मा.गु, गा. ७, पद्य, भूपू (श्रीअष्टापद पर्वतें), ३४३२२-३(5) विविध मुद्रा विचार, मा.गु., गद्य, जै., वै., बौ., (वज्रमुद्रा डाबा हाथ), ३०८०६ विषापहार स्तोत्रभाषा, आ. अचलकीर्ति, मा.गु., गा. ४२, वि. १७१५, पद्य, दि., (आत्मलीन अनंतगुण), ३२१२४ विष्णुभक्ति पद, नायक, पुहिं. गा. ३, पद्य, वै., (मोहे भविकजनां मेरा). ३३१५०-२ विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहेला जिनवर विहरमान), ३१२३२-१, ३२७३६-२ विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, मु. नयविजय, मा.गु, गा. ३, पच, भूपू (सीमंधर युगमंधर जिन), ३३७७८-४ (आदिनाथ आदिसरु सकल), ३०३९५ (+) मूपू (प्रह उठी रे पंच), ३२८१४(+), ३१३०९, , For Private And Personal Use Only विहरमान २० जिन छंद, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मन शुधे समर्या सरसती), ३१७३१-२, ३१५७९(-) विहरमान २० जिन नमस्कार, मु. हित, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुं प्रथम), ३०६४९-४ विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी श्रीजुग), ३२१८३-१०, ३३७६९-६, ३४०९४-२ विहरमान २० जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीसे विहरमाण जिणवर), ३३११६-१ विहरमान २० जिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वहिरमांनजिन वीसे), ३२७७९-१ विहरमान २० जिन स्तवन, उपा. अनन्तहंस, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (सरसति देवि नम), ३१४३५-३ . , Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८१ विहरमान २० जिन स्तवन, मु. गुणचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (विहरमान जिन वंदो), ३१७२५-१, ३१८९९-१, ३३५३२-१(#) विहरमान २० जिन स्तवन, ऋ. लीबो, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (पहिला स्वामी सीमंधर), ३१८६९, ३२७१६-२ विहरमान २० जिन स्तवन, श्राव. शीतल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तीर्थंकर जयवंत नमु), ३१३९८-१ विहरमान २० जिन स्तवन, पं. सुधनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीमंधर जिन विहरमान), ३२१८३-९ विहरमान २० जिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पंचविदेह जिणवर वीस), ३२८२७-२(+) विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय), ३३८१३-१२, ३४३२७-३($) विहरमानजिन स्तवनवीसी, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., स्त. २०, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (सुगुण सुगुण सोभागी), ३४१३५($) विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवर), ३१६३९(६) वीतरागअष्टोत्तरनाम स्तोत्र, उपा. मानविजय, मा.गु.,गा. २३, पद्य, मूपू., (--), ३०९६०-१(+$) वृद्धिविजयगणिनिर्वाण भास, क. हसविजय, मा.गु., गा. ८४, पद्य, मूपू., (प्रेमै प्रणमी पाय), ३३६६६ वेदिकामंगल स्तवन, मु. रत्नहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हिवै प्रतिष्ठा कारणे), ३३९२१-८ वैराग्य जकडी, पुहिं., गा.५, पद्य, श्वे., (काया कामनी बेलाल), ३०३८२-२ वैराग्यपच्चीसी, गोपालदास, पुहिं., गा. २५, पद्य, श्वे., (इह प्रमादी जीव जग), ३३९८२-१ वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (ए संसार अथिर करि जाण), ३१४०२-१ वैराग्य पद, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (विषय न सेव), ३०२१९-३ वैराग्य सज्झाय, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (क्या तन मांजता रे), ३२९२१-३($) वैराग्य सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (मन मेरा मोह निवारि), ३१३४८-४ वैराग्य सज्झाय, मु. गुणचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (प्रीति न कीजै रेसही), ३०४७७-१ वैराग्य सज्झाय, रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (हक मरना हक जानां), ३२९०१-२ वैराग्य सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ते रसीयो रे भाई ते), ३३०६९-१ वैराग्य सज्झाय, मु. विनयविजय, गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सज्झाय भली संतोषनी), ३३१५१-३ शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (पंथी कहोने संदेसडो), ३०५२३-१ शत्रुजयगिरनारतीर्थस्तवन, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (साहिबा सेव॒जो), ३२६९६-२(-) शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमाहे तिरथ), ३३३८६-२ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), ३०६२६(+$), ३१६२५-१ शत्रुजयतीर्थ गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (हारे सिद्धगीरीजी), ३३७७५-५ शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. २६, वि. १६८६, पद्य, मूपू., (आज मनोरथ पूरीयइ), ३१३२६ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शत्रुजय सिद्ध), ३११०९-२, ३२७३६-५ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ३३३१८-२, ३३२८०-२(-) शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे कर जोडी विनकुंजी), ३२३४८-२, ३२६०५ शत्रुजयतीर्थ माहात्म्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेव पुंडरिक), ३२९५६(-) शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ३१५०९, ३०४१०(s), ३३३२५() शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (आंखडीये रे में आज), ३२६७८-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (डुगर ठंडोरे डुगर), ३२८३७-१, ३२९९०-४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी चालो), ३०६६२, ३११८३, ३१९२९, ३३१४७(5) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चालो सखी सिद्धाचल), ३३०९३-१(#) श@जयतीर्थ स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामिनी), ३०९३४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. खीमारतन, मा.गु., गा. ५, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल गिरि भेट्या), ३११६४-६, ३१९९९-२ For Private And Personal use only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. चतुरकुशल, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (गिरिराजकू हमारी वंद), ३३७७५-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिणेंद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जेह दिवस वसे विमलाचल), ३३१४१-४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अंग उमाहो अति घणो), ३०२५५-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज आपे चालो सहीयां), ३०३८६, ३२९३८-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ३०४७१-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण शत्रुजयगिरि), ३१८०५-१, ३३१२६-१, ३२१३५-४(#s), ३०२७६-२(5), ३२७५६-१(5) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामनी), ३१२१४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल वंदो रे), ३३०९३-३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल वंदो रेनर), ३१९९९-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (उच्छवरंग वधामणाजी), ३३९२१-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कोइ सेजेजे राय बत), ३३३०७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोरा आतमराम कुण दिन), ३३०३८-६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संघपति भरत नरेसरु), ३३९२१-४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालोने प्रीतमजी), ३१५३८-२ । शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (यात्रा नवाणु करीए), ३२९८७-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. भावहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जंबूदीवइ दक्षण भरतइ), ३४१००-२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. भुवनमेरु, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल भेटीयइ), ३४०५०-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मणिउद्योत, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मनना मनोरथ सवि फळ्या), ३३६०९-१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेश्वर सेवना), ३२५८६-३, ३३२४९-४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. युक्तसेन, मा.गु., गा. १५, वि. १९७१, पद्य, मूपू., (सुणो सहू जनजी श्रीसि), ३१५६८ शत्रुजयतीर्थस्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नगरी देखाउरे जिन), ३३१७२-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोहनगारा राखु रूडा), ३२२९७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीसेजगिरि भेट), ३३३०२-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (अमृत वचनेरे प्यारी), ३३२१९(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, लेबो, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्यारी ते प्रीउने), ३२८१३-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. विनयचंद कवि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रावक सहु कोइ आगल), ३४४४८-१ शत्रुजयतीर्थस्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (भरतने पाटे भूपति रे), ३१२८८-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. वेलो, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (-), ३१६०१-४($) । शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (शत्रुजय ऋषभ समोसय), ३३१८९ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मारु डुंगरिये मन), ३०७१५, ३२३२८, ३३०३८-५, ३३४४६-२, ३२०५४-२(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. सौभाग्यविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चालो चालोने जइये), ३०६५१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (यारो सेंत्रुजो रे), ३२५९४-५(#$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आदिजिन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेव॒जा रलीआमणो), ३२१११-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलमंडण), ३१८०५-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन-वसंत पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो सखी विमलाचल), ३०६७२-२, ३३०८४-३ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (श्रीशत्रुजयमंडण), ३३८१३-४ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकमंडण पाय), ३४१७२-१६ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), ३२९३७-३ For Private And Personal use only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८३ शत्रुजयतीर्थोद्धारक व संघपतिसंख्या स्तवन, आ. उद्यानंदसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (माई ए सेत्रुजिमंडण), ३१४८९-२(+) शनिश्चर छंद, पडित. धर्महस, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं क्ली), ३३०८७-२(क) शनिश्चर छंद, पंडित. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणी मन दियो), ३३४५६-१, ३०८६७-२(#) शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (अहि नर असुर सुरपति), ३०३९७(+), ३०४७५(+), ३२१२६, ३२७६०, ३०१७१(-) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., वै., (छायानंदन जगजयो रवि), ३०४९२-१, ३१९६३-२($) शय्यातर त्याज्य दोष विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (असणादि ४ वसू५ पात्त), ३१३७७-२(+) शांतिजिन १४ स्वप्न स्तवन-द्रव्यभावगर्भित, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिकरणजिन संति), ३२७७०-१, ३४२१८() शांतिजिन आरती, सेवक, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (जय जय आरती शाति), ३०२७६-१ शांतिजिन छंद, ऋ. रुगनाथ, मा.गु., गा. १६, वि. १८९४, पद्य, श्वे., (शांतीनाथ को कीजे जाप), ३०४७४ शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरतीर्थ, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), ३१२३५-२, ३१२५७-१, ३२३२७ शांतिजिन जन्माभिषेक कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (श्रीजयमंगलकृत्स्न), ३२७१०(२) शांतिजिन नमस्कार, पं. कीर्तिरत्न पंडित, मा.गु., गा. १, पद्य, पू., (सांतिजिणेसर सोलमु मन), ३३०८१-२ शांतिजिन पद, मु.सकल, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीणंदराय जिणंदराय), ३२७७०-२ शांतिजिन पद, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (दिल ध्यान धरूं तेरी), ३२७३८-२ शांतिजिनविनती स्तवन, मु. विमलविनय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कुशल कमलवन दिनकरू), ३२२१६(+) शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरतन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुणो शांतिजिणंद सोभा), ३०८४१-२ शांतिजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सखीरी शांतिनाथ सुर), ३१७६६-३ शांतिजिन स्तवन, मु. कनकसागर, मा.गु., गा. १९, वि. १७७८, पद्य, मूपू., (सोलमो जिणवर देव नित), ३१२९६-१ शांतिजिन स्तवन, मु. गौतमविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शांति जिणंदनी भेटेइ), ३४३७७-२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (नगर हथिणापुर अतिहि), ३२८५६-१ शांतिजिन स्तवन, आ. जिनउदयसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (हारे शांतजिणेसर), ३४१३८-७ शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर प्रणमु), ३१८६८-१, ३३४१५ शांतिजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १७८४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर सेवीई), ३१६६९ शांतिजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ दयानिधि), ३२९५१-२(5) शांतिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जगत दिवाकर जगत कृपाव), ३३३९९ शांतिजिन स्तवन, पं. धीरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिन शांति प्रभु), ३०३२७ शांतिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देउइहपुरी दीपई), ३२१११-२ शांतिजिन स्तवन, मु. नरसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन मुझ तणोजी), ३१२५६-२ शांतिजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज थकी पामी घणी), ३३२८४-२ शांतिजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मेरे शांतिजिणस्यु), ३३२८४-१ शांतिजिन स्तवन, मु. फूलचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (संतनाथ बाबो हे भारी), ३३००५-३(+) शांतिजिन स्तवन, मु. भगवानदास ऋषि, पुहि., गा. ११, वि. १८८५, पद्य, श्वे., (हथणापुर देख हरखीय), ३२४१०-२(+) शांतिजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (संतिकर संति मति आपि), ३३४९१ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ३१८५६-२, ३३०४८-२ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सोलमा श्रीजिनराज), ३०१४९, ३२४४४-३(#) शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुं धन तुं धन तुं), ३२८५६-२ शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रात उठ श्रीसंतिजिण), ३२८५६-३ शांतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अचिराना नंदन उलगुं), ३३२८६-४ For Private And Personal use only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ शांतिजिन स्तवन, मु.रूपविजय कवि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (संतजणेसर सोलवाजी), ३१५७२-२ शांतिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु शांतिजिणंद भलै), ३००४२-२, ३२६०४-५, ३२९१०.) शांतिजिन स्तवन, मु. रूपविमल, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (अरज सुणो प्रभु), ३२५९४-२(१) शांतिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मिविजय, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (फाग खेलत हैं फूलबाग), ३००८०-६ शांतिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीसागरसूरि शिष्य, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (शांति जिणंद जुहारीइं), ३३११८-२ शांतिजिन स्तवन, मु. वनीतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साहिबा शांति जिणंद), ३१२९९-२ शांतिजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (समरथ समरी सारदा मन), ३३४०८(#) शांतिजिन स्तवन, मु. शिवचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. ३०, वि. ००८४, पद्य, मूपू., (जय जय जिणवर शांतिजिण), ३१४३२ शांतिजिन स्तवन, मु. श्रीपति, मा.गु., ढा. २, गा. १९, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ सोलमांरे), ३३८६९-३ शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो), ३०३७८-२, ३३५१३-३ शांतिजिन स्तवन, मु. सुजशविलास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अचिरानंदन उलग मानो), ३१८५०-१ शांतिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (चित चाहत सेवा चरण), ३१८०६-७ शांतिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सूरज ऊगमतइ नमुसंती), ३४३६५-१(६) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (रंग तो खूब जमाया रे), ३३१७२-२($) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (विश्वसेन वर राया), ३०४०८-४($) शांतिजिन स्तवन-जीवविचारगर्भित, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३३५१५(६) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर केसर), ३१०८०, ३२१५९, ३३८०३ शांतिजिन स्तवन-भुजनगर, आ. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हां रे हुं तो गइती), ३१८०६-१९ शांतिजिन स्तवन-रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (वंछित पूरण मनोहरु), ३१०४५-२, ३२०३५-१ शांतिजिन स्तुति, आ. उदयसूरि, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (उपगार अपार कीयो अधिक), ३४१३८-४ शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीइ), ३०८८६-३ शांतिजिन स्तुति, ग. देवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ भजो भगवंत), ३१६६८-२, ३२११७-७ शांतिजिन स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मयगल घरबारी नार), ३०८१५-१ शांतिजिन स्तुति, मु. शीलविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. २७, पद्य, मूपू., (सरसति सामणी वीनमु), ३१९७५ शांतिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, मु. देवकुशल, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (फलवधीरो मंडण सांति), ३४१७२-३ शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा.१०, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो केवल रुप भगवान), ३०५१९-२, ३१८३८,३२८२५-३ शालिभद्रधन्ना सज्झाय, वा. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजिया मुनि० वेभारगिर), ३०५३१-२(+) शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक समरिय), ३१७०२ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (महिमंडलमां विचरतारे), ३००८०-३ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. विनीतविमल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (राजगृही नगरीने), ३३१६०(#$) शालिभद्रमुनि सज्झाय, ग. समयसुंदर, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवालीया तणे), ३३५६४ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवाल तणे भवे), ३०८१९-२, ३१८९२ शालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३२३८१(६) शाश्वतअशाश्वतजिन चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रह ऊठीनें प्रणमीई), ३०३२३-१ शाश्वतअशाश्वतजिन नमस्कार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीनचौवीसी बहोत्तरी), ३३३७०-५ शाश्वतजिनबिंबविचार स्तवन, मु. विजयप्रभसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (--), ३४४०५(5) शाश्वतजिनबिंबसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिले त्रि छेलो किं), ३१४४९ शाश्वतजिनबिंबसंख्या स्तवन, क. देपाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (लवण विसात कोडिलाष), ३१६९१(-) शाश्वतजिन स्तवन, आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., गा. ४७, पद्य, मूपू., (सरसति शुभमति सासती), ३४३६८(+) For Private And Personal use only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शाश्वतजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., ढा.७, गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभाननजिन), ३३५६० शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभ चंद्रानन वंदन), ३०५९०-२ शाश्वततीर्थमाला स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (परम पुरूष परमातमा प्), ३३४०७-१(#$) शाश्वताअशाश्वताजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कोडी सातने लाख बहोतर), ३०५९०-३ शाश्वताजिनबिंबप्रासाद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सौधर्म देवलोके), ३१७४८, ३४११३ शिवकुमार कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीपुरनगरनइ विषइ), ३२६२३(5) शीतपरिषह सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरी वसईय), ३११७०-१(+) शीतलजिन पद, य. अगरचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (भज सीतलनाथ सही तारन), ३१३९७-४ शीतलजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुख नीको शीतलनाथ कौ), ३०५०८-५ शीतलजिन स्तवन, मु. कल्याणचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतलनाथ स्वामि), ३१८८८-१ शीतलजिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सीतल रमो मन मोरडइ रे), ३३२९८-१ शीतलजिन स्तवन, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सांभलओसीतल कर मयाजी), ३२३१९ शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतलजिन सहजानंदी थयो), ३०४४८-४, ३२७९१-१,३३७२३-२, ३२५८५-१(#) शीतलजिन स्तवन, मु. दिनकरसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशीतलजिन सुखकर), ३०५०५-१ शीतलजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (शीतल जिनपति सेवीइंए), ३२७२८ शीतलजिन स्तवन, मु. रत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (लह्यो में जिनराजी बे), ३२०३१-११ शीतलजिन स्तवन, ग. विनितविजय, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (दील लगारे सीतल नामसे), ३३७७५-६ शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ३२८०९-४(+), ३२८८७-२ शीतलजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुझ एहीज देवा रे), ३०२२२-१ शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडनउपा. समयसुंदरगणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (मोरासाहेबहो), ३२८२४-२(+), ३२४३७१ शीतलजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहज सुरंगा), ३०४७८-२ शीयलव्रत सज्झाय, उपा. हंससोम, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सोमविमल गुरूपय), ३००६३-२(+#) शीयल सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सीलव्रत सुध पालजो रे), ३१८७९ शीयल सज्झाय, मु. ज्ञानकीर्ति, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (प्रह सम उठी मने भावि), ३१९१०-१(+) शील चौढालियो, मा.गु., पद्य, श्वे., (पहेला प्रणाम करूं), ३२९६५(६) शीलनववाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (रमणी पशुपंडग तणी रे), ३३३२३-१ शीलनववाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (पहेला प्रणमुंगोयम), ३१२६१-२, ३१३४९-१, ३२८५९-१, ३४००३, ३१७२६(#) शीलपच्चीसी, मु. कुसालचंद शिष्य, मा.गु., गा. २५, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (सीलधर्म सारो सिरे इम), ३१९३६(+) शीलबत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (सील रतन यतने करि), ३०९५१(#) शीलविजयगणिनिर्वाण भास, मु. कल्याणचंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि समरू), ३०६५९-१ शील सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. १८, वि. १८५८, पद्य, स्था., (इण संसारमांजी शील), ३११८८-२ शुक-राणीसंवाद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (कहै राणी रे सुणडा इम), ३२८५७ शुक्रग्रहदेव छंद, क. केसर, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (असूरांगुर आदेश वेश), ३३१२२-५ श्राद्धनमस्कार स्तुति, आ. विजयदानसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भरतादिक दसक्षेत्र), ३२१११-७ श्राद्धसबीजयोग विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम पट्टकुलनु मंडप), ३१०४३-१(+) श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दरसन प्रतिमा१ ज्ञान), ३१८३९-१ श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मनई विषइ १ मन वचन), ३०१२५-२ श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (अगलित जल वावर्ये), ३१०९०-५ For Private And Personal use only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५८६ श्रावक आलोषणा, रा. गद्य, भूपू (अणगल जल वायें लाख), ३२९९४-१ आवककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु. गा. २३, पद्य, मूपू. (श्रावक तुं उठे परभात), ३००७४-१(5) आवककरणी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपु. ( श्रावकनी करणी सांभलो), ३२३५०-२ श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (कहिए मिलस्ये रे), ३३४८५-१(s) श्रावकतीनमनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( श्रावकना तीन मनोरथ), ३२४८९(+) श्रावकधर्म सज्झाय, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., ( मारग सावग का सो तौ), ३३०९७) श्रावक नाम विविध आगमसूत्रगत, मा.गु., गद्य, मूपू (श्रेयांस श्रावक १) ३३२६०-३ श्रावकपाक्षिक अतिचार- लघु, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीज्ञाननइ विषैइ), ३१५३४-२ श्रावकबारव्रत भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., ( भगवती सूत्रना ७ मां), ३३२६०-२ श्रावक मनोरथ, मा.गु., पद्य, मूपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ३३५६६-२ श्रावक व्रत १२४ अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना ८ दर्शनना ८), ३०७६४-३ श्रावकव्रत भांगा, मा.गु., को., मूपू., (--), ३४२०१-३(+) श्रावकशिक्षा सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (सरसति सामण प्रणमी), ३१८५७-१ श्राविकासबीजयोग विधि, मा.गु., गद्य, भूपू ( तिहां पहिलं आरवाला), ३१०४३-२(१) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., कवियण तणी) ३१८४२ ३१६८८३) ३४१२७-१(S) कल्पवेल श्रीपूज्य वाहण गीत, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मृपू, (पहिलो प्रणमुं प्रथम), ३०९५३ (३) श्रीमती चौढालिया, मु. धर्मसी, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (खीर खांड मिलीया खरा), ३४३७६-१(+) श्रुतपद स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू. ( श्रुतपद नमिया भावे), ३१२८८-२ श्रेणिकराजा सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, खे, (मतो पुरवसु करतान कीवो), ३२६७६ (३) ३०१९२०) श्रेयांसजिन चैत्यवंदन, मु. हीरधर्म, मा.गु गा. ३, पद्य, भूपू (जय जय सुरवर वृंद), ३३८८६-२ , 1 (श्रीश्रेयांस जिन), ३१७०७ ($) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., श्रेयांसजिन स्तवन, वा. कल्याणहंस, मा.गु गा. ९, पद्य, मूपू (जगदानंदन साहिबा कुमत), ३०८५६-२ श्रेयांसजिन स्तवन, मु. केशराज, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांस जिनवर), ३३७३०-१ श्रेयांसजिन स्तवन- नागपुरमंडन, मु. रत्नचिदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (मोयो जिन मुख मटकै मन), ३३०९२ लोक संग्रह, मा.गु., पद्य, (--), ३०९८९-३, ३२०७२-२, ३०४६९-२०) ३३७९०-३) श्वान छंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सौइ गाम सुहामणो पण), ३२८५४-२($) श्वासोश्वास बोल संग्रह - प्रज्ञापनासूत्रगत, मा.गु., गद्य, म्पू., (राजगरी नगरी सीणकराजा), ३३०४३, ३१७०८) संख्याताअसंख्याता अनंता मान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाला च्यार ते मधे), ३३९६६ संख्यातादि विचार, मु. सहजरत्न, मा.गु., गद्य, भूपू (संख्यात असंख्याताना), ३१०२० संतोषछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. ३६, वि. १६८४, पद्य, मूपू (सांहामी स्वयं संतोष), ३२२२०-२ , संधारा ढाल, मु. माणकचंद, रा., पद्य, वे (ए संसार असार माहा), ३३०७६ (5) "" संधारा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक सागारी संधारो दूज), ३३७४३-२ संथारा सज्झाय, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (सूखी करे संथारो धन), ३०५३५-१ संध्यापडिलेहणा समय निर्णय, मा.गु., गद्य, भूप, (--). ३२७३३ संध्या मांगलिक गीत, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १७, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (प्रणमीय शासनदेवता), ३३९२१-६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संभवजिन पद, मु. कल्याणचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे. (संभव साहिब जगधणी), ३१८८८-३ " संभवजिन पद, मु. ज्ञानचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( धन्य हो धन्य जिन), ३०२४५-३, ३०६५३-३ संभवजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वांके गढ फोज चढी), ३१७५२-१ संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (प्रभु प्रणमुजी संभव), ३०४००-१, ३०४७९-४ For Private And Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ संभवजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जयकारी जगवालहो काई), ३११९७-३ संभवजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (हां रे प्रभु संभवस्व), ३१७४०-३ संभवजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीसंभव जिनरायजी), ३२३३५-३ संभवजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर वीनती), ३२६७८-१ संभवजिन स्तवन, मु. गांगा, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (संभव जीनवर रुपे रुडा), ३०९४९-१, ३१०७४ संभवजिन स्तवन, मु. जिनचंद, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (संभव जिनजीरी सिवा), ३२९०२-२ संभवजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १६९४, पद्य, मूपू., (विणझारा रे नायक संभव), ३४१४३-३ संभवजिन स्तवन, मु. जीव, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुंदर मुरत हे साहिब), ३२०१७-१(-2) संभवजिन स्तवन, मु. दयानंद, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (सेना का सुत तु), ३१२९१-२ संभवजिन स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संभव भवदुख वारण तारण), ३२२३७-५ संभवजिन स्तवन, मु. न्याय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (साहिब सांभलोरे संभव), ३१०७० संभवजिन स्तवन, आ. भावहर्ष, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (हरिह बहु परिजेइया ते), ३४१००-३(#) संभवजिन स्तवन, मु. मयाचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (श्रीसंभवस्वामी अंतर), ३०४७९-२ संभवजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (संभवजिन शरणागयस्वामी), ३००७२-२ संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुने संभव जिनशु), ३२५९४-४(#), ३३०९३-५(#) संभवजिन स्तवन, पा. हीरधर्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मानुष लोक सुदेस), ३११६४-३ संभवजिन स्तोत्र, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (संभवनाथ करजोडी तुम), ३२४०७-२ संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., अध्य. ४ उन्माद, गा.७४, वि. १७३१, पद्य, श्वे., (बुद्धिवचन वरदायनी), ३११२५(+), ३४१२०(+), ३१५२२ संवररूपीवृक्ष वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (संवर रूपीउ वृक्ष्य), ३०४६६-१ सकलजिनविनती स्तवन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आबोलो स्याना ल्योछो), ३१८९८ सकलतीर्थवंदना, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सकल तीर्थ वंदु कर), ३०३८९ सगरचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सगर रायनी वारता कहु), ३४३७६-२(+$) सचित्तअचित्त विचार, आ. धीरविमलसूरि, रा., गद्य, भूपू., (अथ षट ऋतु नाम मृगसर), ३१९७८-२ सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रवचन अमरी समरी), ३१७५४, ३२१३४-२, ३२२७५-१, ३३०३७-२(६) सचित्तअचित्त सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमुं सहिगुर), ३३०१८-१, ३४३३४-३ सतीगुण सज्झाय, मु. माणिक, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुप्रभाति नितु समरिइ), ३२२६८ सत्तरिसयजिन स्तवन, पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूपू., (समरी सरसति भगवति), ३०९७१(#) सद्गुरू गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (रहउ २ वाल्हहा सदगुरु), ३१४१९-४ सनत्कुमारचक्रवर्ति चौढालियो, मु. कुशलनिधान, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (सुखदायक सासणधणी तिभु), ३१४४५-१ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (सुरपति प्रशंसा करे), ३०३०८-१, ३१४४५-२ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांभलि सनतकुमार हो), ३१२७४ सनत्कुमारचक्रवर्ति प्रसंग, मा.गु., गद्य, मूपू., (सनत्कुमार चक्रवर्ति), ३१७५१ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (कुरुदेशे गजपुर ठामे), ३००३७, ३००४० समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), ३१६१९, ३१७३६, ३०९२६-१(#) समवसरण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोधर्मो इंद्रनु), ३२२४७-४(+) समवसरणविचार स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रणमुंजोत सरूप), ३४४०६($) समवसरण स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आज गईती हुं समवसरणमा), ३१८८२-३ For Private And Personal use only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (एक बार वछ देश आवजो), ३३७५१(-) सम्मेतशिखर तीर्थमाला, मु. जयसागर, मा.गु., ढा. ६, गा. १३२, वि. १६११, पद्य, मूपू., (प्रणमीय प्रथम परमेसर), ३१०५२ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८४६, पद्य, मूपू., (आज भलै मै भेट्या हो), ३३९४८-४ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (अष्टापद आदिसर सीद्धा), ३२८४७-१ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.६, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (तुंही नमो नमो समेतशि), ३१८६४-२($) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पंन्या. रुपविजयजी , मा.गु., गा. ८, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (जइ पूजो लाल समेतशिखर), ३०४५७-२ सम्मेतशिखरतीर्थ होरी, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (मधूवनमे धुम मचि होरी), ३३०८३-५(#) सम्यक्त्व ६७ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (समकितनी चारिसदहण कही), ३१४६४(#) सम्यक्त्व गीत, मु. पुण्यसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत जगत जिन), ३३२१२ सम्यक्त्व चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (समकीत माहे दीढ रह्या), ३०६७४ सम्यक्त्वदृढ वर्णन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुकल कला गुण जिणवर), ३४०८६($) सम्यक्त्व विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आज पछे तुमारे खोटा), ३१९०३ ।। सम्यक्त्वस्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (देव श्रीअरिहंत१८ दोष), ३२६८६($), ३३६८६-१(६) सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), ३०५६५, ३२३६०-१, ३२१४४-१(६) सरस्वतीदेवी छंद, मु. भूधर ऋषि, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (ॐ नमो देवादिदेवं तास), ३३३७५-१, ३०६५६($) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन), ३०५१२-१(+), ३२१८६, ३२६२१, ३३७६२, ३०६३०-१(६), ३१३२३-२() सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर सम), ३२७९०-२, ३३५०२-१, ३२६१९(#) सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (भगवति विद्यानी देनार), ३३८०१-७ सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., गा.५, पद्य, वै., (वीणा पुस्तक धारणी), ३३९९८-२ सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलोरे), ३१८७३-३ सर्वार्थसिद्ध स्तवन, पं. धर्महर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरवारथ सिद्ध चंद्रुइ), ३२७४६ सवैया संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, मा.गु., पद्य, जै., (--), ३३०३८-४ सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, वै., (अली आय खरी सन्मुख), ३०६२९-२, ३२५९६-२, ३०१८८-२(#) सवैया संग्रह, मा.गु., पद्य, जै.?, (--), ३१९६१-२ सहजानंदी सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.११, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सहजानंदी रे आतीमा), ३३१८४-३ सागरबावनी, मा.गु., गा.५२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि सुणो), ३१३२४-१(+) साचलमाता गीत, पुहि.,रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (भजौ श्रीसाचलमात कू), ३१८९०-३ साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या , मा.गु., गद्य, मूपू., (मगधदेस राजग्रहीनगर), ३०७९४, ३२८९१-१ सातव्यसन सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (सुगण सनेही हो सांभले), ३४२९९-२ साधारणजिन आरती, श्राव. अमरदास, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (जय जिणवरदेवा प्रभु), ३०६३६ साधारणजिन आरती, मु. द्यानत, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (इहविध मंगल आरती कीजै), ३३३३३-१ साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब जिनराज कृपा होवे), ३२०६४-३, ३३५१३-२ साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (चउदलोक के पार किनार), ३२६२२-२(#) साधारणजिन गीत, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (साधु सुपात्र बडे), ३१८८५(-) साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परमेश्वर परमात्मा), ३२७३६-३ साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चउजिन जंबूद्वीपमा), ३२४६१-१० साधारणजिन चैत्यवंदन-१८ दूषणवर्जनगर्भित, आ. नयविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दान लाभ भोगोपभोग बल), ३१२३२-८, ३२४६१-११ साधारणजिन चैत्यवंदन-१८ दोषवर्जनगर्भित, आ. नयविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (क्रोध मान मद लोभ माय), ३१२३२-११ For Private And Personal use only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधारणजिन चैत्यवंदन-३४ अतिशयगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अतिशय चार अतिभला), ३१२३२-९ साधारणजिन चैत्यवंदन-८ प्रातिहार्यगर्भित, आ. नयविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (बारगुणो तनुथी अशोक), ३१२३२-१० साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंत देव), ३१२३२-१२, ३२४६१-९ साधारणजिन पद, य. अगरचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सांइया रे हमकुंतार), ३१३९७-१ साधारणजिन पद, य. अगरचंद, मा.गु., पद्य, श्वे., (सारे जनम गयो जम जोर), ३१३९७-५() साधारणजिन पद, य. अगरचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (हारे प्रभुम्हारा), ३१३९७-३ साधारणजिन पद, मु. आनंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुं तारक क्यु हि), ३३१२२-३ साधारणजिन पद, मु. द्यानत, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (हम आये हो जिनराज), ३१८७०-३ साधारणजिन पद, नथुकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कुम कुमने पगले पधारो), ३०४४२-३($) साधारणजिन पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुखदायक मुख एव जगत), ३३२९५-१ साधारणजिन पद, मु. मालदास, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (भलै मुख देख्यौ), ३०५०८-३ साधारणजिन पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (क्यु जिन भक्ति), ३१२४२-२ साधारणजिन पद, मु. रुपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मनभावन जिन तन मन), ३१८८२-२ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा.५, पद्य, म्पू., (प्रीत पीयारे लाल की), ३३८०४-३(+) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (राखो मोहि राखो नाथ), ३३४२०-२ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (हम लोक निरंजन लाल के), ३३४२०-३ साधारणजिन पद, मु. विजयकीर्ति, पुहिं., गा.४, पद्य, मूपू., (वीतराग तेरी या छबि), ३३४५०-२(-2) साधारणजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (रूप वण्यो अति नीको), ३०७६१-५ साधारणजिन पद, मु. सुरेंद्रकीर्त्ति, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., (मेरो नेह लग्यो जिन), ३०४८४-१ साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (चतुरंग रस की वात), ३०४०१-४ साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिन देवा तुमारी सेवा), ३४३००-३ साधारणजिन प्रभाति, आ. हीरसूरि , मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजब ज्योत मेरे जिनकी), ३१८६२-५, ३१८६८-३ साधारणजिन विनती स्तवन, मु. भुधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनगुरु स्वामी), ३१७७४-१ साधारणजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (देखोरे जिणंदा प्यारा), ३१८५९-१ साधारणजिन स्तवन, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन तारण तीरथ), ३११७१ साधारणजिन स्तवन, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (लाग्या नेह जिन चरण), ३३४३३-१ साधारणजिन स्तवन, मु. जसवंत शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुरपति सुरपति सुरपति), ३०४५४-२ साधारणजिन स्तवन, मु. जिनभक्ति, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (मन वच काय करजी तुम), ३३०९४ साधारणजिन स्तवन, मु.ज्ञानउद्योत, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (खतरा दूर करणा दूर), ३२४६८-१, ३३१०१ साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जाण्यो रे मै मन), ३२२२३-२ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सकल समता सुरलतानो), ३०३७० साधारणजिन स्तवन, मूलचंद, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (जै जै हो जुगतारण दीन), ३२९३८-३ साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (पृत पीयारे लाल कि), ३३४२०-४ साधारणजिन स्तवन, मु.रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मे परदेसी दूरका दरसन), ३१८०६-५ साधारणजिन स्तवन, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु पदनी सेवा कुन), ३३९५१-२ साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, म्पू., (एकरसो जिनराज मया कर), ३१२९६-५(६) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सूरति सलूणा हो साहिब), ३२७२६-२(5) साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिणंदा तोरी वाणीइ), ३३४७२-१ For Private And Personal use only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ साधारणजिन स्तुति, आनंद *, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (करीय सुद्ध सब अंग), ३४१६७-२ साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ३०८८६-५, ३१७८२, ३२२७८-१, ३२७१२-१, ३३१९३-१ साधारणजिन स्तुति, आ. भीमसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंच भरह अइरवै पंच), ३४४२८-३ साधारणजिन स्तुति संग्रह, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (आठ कोडी छपन लाख सत्त), ३०३३६-४(#) साधु ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलि प्रतिमा १ मास), ३१८३९-२ साधु आगमन सज्झाय, मु. चिमन, मा.गु., गा.७, पद्य, स्पू., (आज वधावौ आपणे हे), ३०२११-२ साधु आचार सज्झाय, रा., पद्य, श्वे., (उलखणा दोरी भव जीवा), ३०५३५-२($) साधुगुण सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सेय मिथ्यामत बहोत), ३४०६३-१ साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पांचे इंद्री रे), ३३०३३-१ साधुगुण सज्झाय, ग. विजयविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पंच महाव्रत सुधां), ३१७४३-३ साधुगुण सज्झाय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांति जिणेसर पाय नमी), ३१९८५-२ साधुगुण सवैया, मु. खूबचंद ऋषि, रा., गा. २, पद्य, श्वे., (अणी जीनसासणमे केइ), ३२६७३-३ साधुदिनचर्या सज्झाय, आ. आनंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे वीर पास), ३१६१८-१ साधुपद सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर सवे करी), ३२६९८-३(-) साधुपद सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साधक साधज्यो रे निज), ३०९८२-१ साधुवंदना, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ४१, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (पो सम उठ्या भावस्यु), ३०७८३(-) साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मागु., ढा. ७, गा. ८८, पद्य, मूपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), ३०५३४, ३४२०२(5) साधुवंदना, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गा. २९, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर प्रणमु), ३२१८२, ३१५३१(2) साधुवंदना लघु, ऋ. जेमल, मा.गु., गा. ५९, वि. १८०७, पद्य, श्वे., (नमुं अनंत चोविसी), ३०१४२-२ साधुव्रत सज्झाय, मु. धर्मचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (--), ३२८६७-१(६) साधुसाध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम स्नान करावयु), ३३६६२ साधुसाध्वीसंघट्टा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधु साध्वी पांच), ३१०४९-२ सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सामायक व्रत शुद्ध), ३०२४५-४ सामायिकपौषध दोष एवं गुरुआशातना संख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (३२ दोष सामायकना मनना), ३०१२५-३ सामायिकभेदस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सामायिक नी ज. समु १), ३२६२७-२ सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमिय श्रीगौतम), ३०४९०-२, ३०७२०, ३०८३९-२, ३१२०३, ३१४००, ३२२६३, ३२१३५-१(#) सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), ३३४६३-३(+), ३०९६१-३, ३१९२३-२, ३२७५६-४, ३३४२६-३ सिंघटप निसानी, आ. कनककुशलसूरि भट्टारक, पुहिं.,फा., गा. ५२, पद्य, मूपू., (अविचल भुजपति भुज अचल), ३२५६५-१ सिचियायमाता छंद, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (मुज मन आस्था अज फली), ३११६२-१ सिचीयायमाता छंद, हेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सानिधि साचल मात तणी), ३०२५५-१ सिद्धक्षेत्र तीर्थफल स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरि ध्याउ), ३२२९७-३ सिद्धचक्र गहुंली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हा रे महारे जिनआणा), ३०६३८-२(+) सिद्धचक्र गहली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आवो सखि संजमीया गावा), ३०२४७ सिद्धचक्र गीत, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सहिए श्रीसिद्धचक्रने), ३१२८७ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (केवलकमलापति विश्वधणी), ३०३४३ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधविजय-शिष्य, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधता), ३२०४९(5) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चंपापूरीनो नरवरु नाम), ३३४७२-४ For Private And Personal use only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (नमो अरिहंत पहेले), ३३४७२-३ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शिवसुखदायक सिद्धचक्र), ३३४७२-२ सिद्धचक्र नमस्कार, आ. नयविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आसो मासने चैत्र मास), ३३४७२-५ सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (नवपदमहिमासार सांभलज), ३१७८०-३, ३१८१६-२, ३२०५८-२, ३३७७३-२(-) सिद्धचक्र स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अष्ट महासिद्धि संपजे), ३१७११-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोयम नाणि हो के कहे), ३२०५८-८, ३३७७३-१८) सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वखाण्यौ), ३१७८०-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. कुशलसागर शिष्य, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर वाणी इम), ३२५६८-१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नवपदना गुन गावो तुम), ३२२८५-२ सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुरमणि सम सहू मंत्र), ३३५०५-१(#) सिद्धचक्र स्तवन, मु.ज्ञानविनोद, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (गौतम पूछत श्रीजिनभाष), ३२०५८-६ सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा सांभलो), ३२०५८-७ सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (भवियां श्रीसिधचक्र), ३२०५८-४ सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधिय), ३२०५८-५ सिद्धचक्र स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सुहामणो), ३३५०५-२(#$) सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति सामणि ध्यावं), ३२९५९-२(६) सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुखकर सेवो हो भविका), ३१९२४ सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), ३१२३१-१, ३१९५८-१ सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (अंगदेश चंपापुरी वासी), ३२०५८-१ सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८उ, पद्य, मूपू., (पहिले पद जपीइ अरिहंत), ३०१४०, ३०८८६-४, ३२०४०, ३२१०२, ३२८७२-१ सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक), ३३८१३-८, ३२९१७-६(८) सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अति अलवेस), ३२७३९-३ सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेशर अति अलवेसर), ३१२३१-२ सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सेवोशविचार), ३१९५८-२ सिद्धचक्र स्तुति, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भगति युगतिं भवियण), ३१७११-१ सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ३११५२-१(+), ३१८०९, ३३९४२ सिद्धद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (३ लोक माहि ए सीझ), ३०८५८(-) सिद्धपंचाशिका बोल यंत्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (एके समे मोक्ष संसार), ३३६७६ सिद्धपद चैत्यवंदन, मु. हीरधर्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शैलेशी पूर्वप्रांत), ३३८८६-६ सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम पृच्छा करे), ३०३९८ सिद्ध भेद विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (असंख्यात प्रदेशी), ३०५२६(६) सिद्धमंगल सज्झाय, ऋ. जेमल, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (बीजो मंगल मन सुध धाव), ३०३६३ सिद्धस्वरूपवर्णन स्वाध्याय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सिद्ध निरंजन तेह रे), ३११५२-२(+) सीतासतीगीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (छोडी हो पिउ छोडि), ३०४७७-२, ३२१७७-२ सीतासती गीत, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (लखमणजीरा वीराजी हो), ३१२५८-१ सीतासती गीत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिणवर वाणी हीइडलइ), ३०५८८-२ सीतासती सज्झाय, मु. उदयरतन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुँनाम), ३०७८२, ३०८१९-३ For Private And Personal use only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ सीतासती सज्झाय, मु. चोखचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे. (सीता सत राख्यो वनमे), ३०६७६-२ सीतासती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु. गा. ९, वि. १८वी, पद्य, भूपू (जलजलती मिलती घणी रे) ३१७१८-३, ३३१४२, " "" ३३१७८-४, ३३३०८-२, ३१६३१.२() 1 "3 सीतासती सज्झाच, मु. भोजसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू.. (दशरथ नरवर राजीयो), ३१७४०-१ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू (श्रीसीमंधर जिन विचरत), ३१७५०-२ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुं), ३३७७८-५ () सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (पूर्व दिशि इशान कुण), ३११२४-२, ३२०८७-२ (-१) सीमंधरजिनविनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मनडुं ते माहरु मोकलु), ३०१७२-१, ३२७६६-२ सीमंधरजिनविनती स्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. १०५, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपुष्कलाव), ३२१६९(#) सीमंधरजिनविनती स्तवन आ ज्ञानविमलसूरि मा.गु, गा. ३५, वि. १८वी, पद्य, मूपू (सुण सीमंधर साहिबाजी), ३०८९३, ३१२१५ सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु, गा. १९, पद्य, मूपू (सफल संसार अवतार हुं), ३०९०८-१, ३२१८४, ३३४३५, ३४०९२, ३२७३४६) ३३०६६-१(३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीमंधर जिनविनती स्तवन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारकर सारकर सामी), ३०९२९-२, ३३१०४-१(S) सीमंधर जिनविनती स्तवन, मा.गु., पद्य, थे. (श्री जी ने सीमंधर) ३०८९४-२(६) 3 सीमंधरजिनविनती स्तवन- १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामी सीमंधर विनती), ३९४६८३) (२) सीमंधरजिनविनती स्तवन- १२५ गाथा- टवार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, गद्य, मूपू (प्रणम्य पार्श्वदेव), ३१४६८(३) सीमंधर जिनविनती स्तवन- आत्मनिंदागर्भित, मु. उदयसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखदायक रे सुंदर गुण), ३०६२८-२ ($) सीमंधरजिन स्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (मनडुं ते माहरू), ३२४४३-२ सीमंधरजिन स्तवन, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सीमंधर जिन गुणधाम ), ३२४७६-१ सीमंधरजिन स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (माहरा मनना रे मेलू), ३१६३६ (+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महाविदेह क्षेत्रनो), ३१६०१-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. गंग मुनि शिष्य, मा.गु., गा. १३, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी सुणो), ३२८२७-३(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधर करजोड मया), ३०४७९-३ सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडुं हेजाळ ), ३१६१८-३ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिमंधरजीने वंदणा), ३३०५६ सीमंधर जिन स्तवन, ग. तत्त्व, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सीमंधर सुणो वीनती), ३०९२७-१(#) सीमंधरजिन स्तवन वा देव, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू (सीमंधर जिन सांभलो), ३०९७३-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. दोलतहंस, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सीमंधरजिन सांभलो सेव), ३१८४६ सीमंधरजिन स्तवन, मु. नित्यविजय, मा.गु, गा. ९, पद्य, मूपू., (सामी सीमंधर जगधनी), ३११८० सीमंधरजिन स्तवन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु, गा. ९, पद्य, भूपू (सीमंधर साहिबा वीनवडी), ३३११८-१ सीमंधर जिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (शासनपति अंतरजामी नित), ३३२८४-३ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुरुषोत्तम निराग मुज), ३११७३-२ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. गा. ७. वि. १८वी, पद्य, भूपू (पुष्कलवइ विजये जयो), ३०२८३-२ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर विनति), ३३६३३ सीमंधरजिन स्तवन, ग. रत्नविजय, मा.गु गा. ७. वि. १९वी पद्य, मूपू (विजय विराजै पुखलवई), ३२९३३ ', " " मंजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिबा हु), ३१४७३-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ११, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (महाविदेह विराजीया), ३२९९३-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), ३०११०-३, ३१६०२-२ For Private And Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ " सीमंधरजिन स्तवन, मु. संतोषी, मा.गु. डा. ७, गा. ४०, पद्य, भूपू (सुणि सुणि सरसती भगवत) ३०५५६, ३२८१९ सीमंधरजिन स्तवन, मु. सकलचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (मुनि मन मानस हंसलो), ३४१७५-२ (१) सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. २९, पद्य, म्पू, (जिनमुख वासिनि अमृत), ३११७३-४ सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., डा. ४, गा. ३२, पद्य, भूपू (परम मुणि झाणवण गहण), ३११७२ सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (सीमंधर जिन त्रिभुवन), ३३४१० (+), ३३७८० सीमंधरजिन स्तवन, मु. सरुपचंद, रा., गा. २१, वि. १८८८, पद्य, मूपू., (मारी विनतडी अवधारो), ३२९५३-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ११५, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी जिन नमुं), ३१६१५-१, ३२०७२-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू, (श्रीसीमंधरस्वामीजी), ३१७५०-१, ३३५७९-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. हीरालाल, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (चंदाजी थे गगन करो), ३२६७३-१ सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु, गा. ८, पद्य, म्पू, (ओ मारा सीमंधरस्वामी), ३००८१ ', सीमंधरजिन स्तवन- ५ बोल, मु. इंद्र, मा.गु., ढा. ६, गा. ३९, पद्य, मूपू., (पदकज सीमंधर तणाजी), ३१४८१ सीमंधरजिन स्तुति, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू (सीमंधर नित बंदीये), ३२३३४-२ सीमंधरजिन स्तुति, मु. देवचंद्रजी, मा.गु गा. २१, पद्य, भूपू (प्रभुनाथ तुं तियलोक), ३०९८२-३ सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (श्रीश्रीमंधरसामी), ३३०८२-५ सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मृपू., (सीमंधरस्वामी केवला), ३०११८-३(१) (श्रीसीमंधर मुझने), ३४१७२-१, ३२०८७-४(का सीमंधरयुगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ९, पद्य, वे., (सीमंधर युगमंधरस्वामी), ३२८८४ -१(+) सुकोशलमुनि चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., ढा. ६, पद्य, श्वे., (सुगुरू वयणे सांभलीजी), ३०७८१, ३१५१० सुकोशलमुनि रास, मा.गु., पद्य, मूपू. (प्रहि उठी रे भगवति), ३३२४२(३) सुदर्शनसेठ सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, पद्य, मूपू., (संयमीधीर सुगुरुपय), ३२११४-२ सुदर्शनसेठ सज्झाब, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४५, वि. १६७६, पद्य, म्पू, (श्रीगुरु पद पंकज नमी), ३३५६१ सुदर्शनसेठ सज्झाव, मा.गु गा. १८, पद्य, म्पू., (पंच विषवरस राती कपिल), ३२९९७(*) सुधर्मास्वामी गहुली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजग्रही रलियामणी), ३१२२६-६ सुधर्मास्वामी गहुली, मु. सोहव, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु, (चेलणा लावे गहुली), ३२०२०-४ सुधर्मास्वामी गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेलणा ल्यावें घोयली), ३०५८४-२ सुधर्मास्वामी भास, मु. रत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चंपानयरि सोहामणिजी), ३२५८३-३ (+) सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिक गुणखाणि), ३०५८४-३ ७ सुधर्मास्वामी भास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंपानयरी उद्यान सुरत), ३०४०८-२, ३०५८४-१, ३२०२०-५ सुपार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. जीवकुशल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपु (वंदी भवियण वार बार), ३३८८६-१ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु, कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (सहज सलुणो हो मिलियो), ३२९४५-१ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जगगुरु साचौ स्वामि), ३२३३५-१ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( रे जीउं गायल्यै जिन), ३०६५३-७ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु, मोहनविजय, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू (वाल्हा मेह बवीयडा), ३३३०९-१ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऐसें सामी सुपार्श्व), ३०५४४-१ सुबाहुकुमार चौडालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, वे (प्रथम सुबाहु वखांणीए), ३३५६८ " सुबाहुकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु, गा. ८९, ग्रं. १४०, वि. १६०४, पद्य, भूपू. (पणमि पास जिणेसर केरा), ३०९६९(१) सुबाहुजिन स्तवन, मु. ऋषभसागर, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांभली साहिब तुम्ह), ३१२५९-१(+) सुबाहुजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (देव सुबाहू मोहना रे), ३२५९७-२(+#) सुभद्रासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर केरुं सीस), ३३१५९ For Private And Personal Use Only ५९३ Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मुनिवर सोधेरे इरजा), ३१८९६-२ सुभाषित गाथा, रा., गा. १, पद्य, श्वे., (हल हलवो भुई पतली), ३०६७६-३, ३३३७०-२ सुमतिकुमति लावणी, जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (हारे तुंकुमति कलेस), ३३१७८-२ सुमतिकुमति सज्झाय, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुमति सोहागण वीनवै), ३२७८४-२ सुमतिकुमति सज्झाय, मु. लालविनोद, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (चेतन छांडो हो यह रीत), ३१९१०-२(+) सुमतिजिन गीत, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कर तासुं तो प्रीत), ३४१४३-५(६) सुमतिजिन गीत, मु. दान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुमति जिणेंसर साहिब), ३३२१८-३ सुमतिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (मेघराय अयोध्यानो धणी), ३१९९९-६ सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभुजी जो तुम तारक), ३३८०४-२(+) सुमतिजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय जयवंती तुंही एक), ३२५८९-५ सुमतिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुमति चरण तुज आतम), ३०७१७-२ सुमतिजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांभलि सुमति जिनेस), ३१६३४-२ सुमतिजिन स्तवन, ग. कानजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सुमत जिणेसर साहिबा), ३२८८८-२ सुमतिजिन स्तवन, मु.ज्ञानचंद, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (सुमतिजिन द्यओ मुझ), ३०६५३-५ सुमतिजिन स्तवन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनि वीन), ३२८८५ सुमतिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वेंस ईक्ष्यागइ राजीओ), ३२३१४-४ सुमतिजिन स्तवन, मु. महाकवि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (वालो मारो साहिब), ३२५८६-४ सुमतिजिन स्तवन, मु. मुक्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभुजी पंचम जिनने), ३३११९ सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुस्युं तो बांधी), ३३०१८-२, ३३३४१ सुमति विलाप सज्झाय, मु. उदयरत्न, गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पडजो कुमतिगढना कांगर), ३२८५८ सुमतिशिक्षा सज्झाय-आत्मप्रति, मु. महानंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (मारे घर आवजो रे वाला), ३०३२४-२(#) सुमति सज्झाय, मु. विनयविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुमति सदा सुकलीणी), ३०३८५ सुमित्रकुमार चौपाई, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., गा. ४३१, वि. १५६७, पद्य, मूपू., (पस्ममि सुमण वयण तण), ३०१६५(5) सुरपतिराजा रास-दानधर्मे, मु. दामोदर, मा.गु., वि. १६६५, पद्य, मूपू., (प्रणमुंस्वामि शांति), ३३९७४(६) सुरप्रियमुनि रास, मु. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ६८, पद्य, मूपू., (सरसति देवि सदा मनि), ३१७३८ सुरप्रियमुनि रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २००, वि. १५६७, पद्य, मूपू., (राजगृह रलीयामण), ३२३८०(5) सुरप्रियमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ६३, पद्य, भूपू., (सिरि शांति जिणेसर), ३१२२९ सुरप्रियमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ७०, पद्य, श्वे., (सरसति देवसदा मनि धरू), ३०८७४ सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन सुलसा साची), ३१५८२-१ सुविधिजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (गुण अनंत अपार प्रभु), ३०५०८-७, ३४३५०-४ सुविधिजिन स्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २, गा. २९, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (श्रीसुविधि जिणंद), ३३३५३ सुविधिजिन स्तवन, मु. कातिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ताहरी अजबशी जोगनी), ३२४४४-१(2) सुविधिजिन स्तवन, मु. मोहनरुचि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुविधि जिनेश्वर नवमा), ३११६४-५ सुविधिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अरज सुणो एक सुविधि), ३२८११ सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (में कीनो नहीं तुम), ३०५४४-३ सुविधिजिन स्तवन, मु. लक्ष्मिविजय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मई मन तोऊं दीनौ), ३००८०-७ सुविधिजिन स्तवन, मु. सुमतिहस, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुविध जिणेसर वंदीयौ), ३००५८-१०(+) सुविधिजिन स्तवन, मु. सोमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (ग्यान सुधारस दरियो), ३१२५६-३ सुविधिजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुविधि जिणेसर साहिबा), ३१८६२-१ सुविधिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी सुवधी जीणेसर), ३०५७७-२ For Private And Personal use only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सुषमछत्रीसी, मु. उदय ऋषि, मा.गु., गा. ५३, वि. १८४१, पद्य, श्वे., (सुषमछतीसी सांभल), ३०२०१(-) सूतक विचार, मा.गु, गद्य, भूपू (पुत्र जन्म्यां १०), ३१९७८-१ सौधर्मगणधर भास, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूषू, (चउनाणी चंपावने संयम), ३१०६८-१ स्तवनचौबीसी, मु. अमृत, पुहिं., स्त. २४, गा. १०९, पद्य, मूपू., (तेरो दरस भलें पायो), ३०८४९ स्तवनचौवीसी-१० बोल गर्भित, ग. सुखसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर प्रणमीइ), ३११९८ (+) स्तवनचौवीसी, मु. अजब, मा.गु., पद्य, मूपू., (सजनी मोरी चालो ऋषभजी), ३१६४१($), ३२३९२-१($) स्तवनचौवीसी, मु. खुशालमुनि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, श्वे. (प्रभुजी आदेशर अलवेसर), ३०७९० स्तवनचीवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु. स्त. २४, पद्य, मूपू., (मनमधुकर मोही रह्यो) ३०६२३, ३२१८०-१, ३२७७५-१, ३१९४४(३) स्तवनचौवीसी, मु. मतिविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (ऋषभ दयालू हो राजी), ३१९५४ स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (जगजीवन जगवाल्हो), ३२११८, ३०२५०(5) स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (--), ३१८१९ ($) स्तवनचीवीसी, ग. वनीतविजय, मा.गु., पद्य, भूपू (--), ३१९४६ (३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तुतिचतुर्विंशतिका - दानसूरि-हीरसूरिनाममिश्रित, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस कोमल वाणी निरमली), ३०९९७(१) स्त्रीचरित्र - कवित, क. गद, मा.गु., गा. २, पद्य, जै. ?, (स्त्री चरीत्र एकलष), ३०८९५-२(#) स्त्रीदुर्गुण सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे. ( नारी हार हाथी नजी), ३०६४२-१ " स्त्रीस्वभाव कवित्त, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (लोइणभर निरखंति), ३३०१२-४ स्थापनाकल्प सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पूरव नवमथी उद्धरी), ३०८००-१, ३३६५७, ३३६५८, ३३६९३, ३३७४७, ३३७५० स्थूलभद्रनवरस सज्झाच, मु. ज्ञानसागर, मा.गु. बा. ९. गा. ४९, पद्य, मूपू., (करी शृंगार कोशा कहि), ३०९६८(१) स्थूलभद्रमुनि कवित्त, मु. रतन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू, (चम चम चमकति चंचल), ३२७३८-६ स्थूलभद्रमुनि कोशावेश्या सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. २९, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पाय प्रणमी), स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. गुणानंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू (सीमंति समजावी चालता), ३२१८०-२ "3 ३१८५२-१(+) स्थूलभद्रमुनिकोशावेश्या सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (-), ३३०५५-२ स्थूलभद्रमुनि गीत, रा. गा. ७, पद्य, श्वे., (वाट जोयै वनीता घणी), ३२०६१-२(-) स्थूलभद्रमुनि नवरसो, वा उदयरत्न, मा.गु., डा. ९, वि. १७५९, पद्य, मूपू (सुखसंपत्ति दायक सदा), ३०९६६-३, ३१७९०-१ स्थूलभद्रमुनि नवरसो, मु. वरमल्ल, मा.गु. दा. ४, पद्य, मूपू, (इण भरतखेत्र में सो४), ३१३१०-१(०) स्थूलभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., डा. ९, गा. ७४ वि. १७५९, पद्य, मूपू.. (सुखसंपति दायक सदा), ३०४१८ स्थूलभद्रमुनि बारमासो, मु. मोहन, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (चैत्रे चंपा रे मोरया), ३१४९१-२ स्थूलभद्रमुनि रास, मा.गु., पद्य, भूपू (सरसति सरस वचन दीओ), ३०२२६-२(३) " स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. अमरचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आवो रे धुलिभद्र रंगे), ३०७३२-२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आसानंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सीमंतन समझाविवा चाल), ३३१५०-१ स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १८२३, पद्य, मूपू., (श्रीथूलीभद्र आगि करि), ३१४६५ (+) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (कोस्या कामिनि कहे), ३००४३, ३३२५७ (#) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु. गा. १५, पद्य, मूपू., (सद्गुरु वचन शिर धरी), ३००६३ - १(+०) स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (चंपा मोर्यों हे आंगणे), ३०१४७ ५९५ For Private And Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.८ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (लाछल दे मात मल्हार), ३१३१०-३(+), ३१९७७, ३२०५७-२, ३२७७६-१(-) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनिवर रहण चोमासे), ३१६९३-२, ३२०१५-२, ३३०१७-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांति, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (बोली गयो मुख बोल), ३१०३७ स्थूलिभद्रमुनि सज्झायउपा. समयसुंदरगणि, मागु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रीतडलीन किजीये), ३०३२२१, ३३५०२२, ३४२४७४ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एणे आंगणडे पीउ रमीओ), ३२८४५ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, भूपू., (थुलिभद्र मुनिसर आवो), ३०७५७(+), ३१०१२, ३२५३३ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, रा., गा.८, पद्य, मूपू., (थूलभद्र सील गुणे करि), ३०२९१-१ स्थूलिभद्रमुनि सवैया, मु. भगोतीदास, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (एक समें चारो शिष्य), ३२९७३ स्नात्र पूजा, मा.गु., प+ग., मूपू., (पूर्वे बाजोट उपरि), ३२५९०(६) स्पर्द्धयाप्रेषितागाथाषट्त्रिंशदर्थ, आ. गुणसमुद्रसूरि, अज्ञा., गद्य, जै., (--), प्रतहीन. (२) स्पर्द्धयाप्रेषितागाथाषट्त्रिंशदर्थ-टीका, पं. विवेकसागर गणि, सं., गद्य, मूपू., (--), ३२३६७(१) स्वप्न चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., गा. ४२, वि. १५६०, पद्य, श्वे., (पहिलो मन जोइ करि,), ३०४५९, ३०९३३ स्वप्न विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवै स्वप्न विचार), ३१४३०-४ स्वभावपरिणीति प्रकरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्वभाव२१ जीवने होइं), ३२६४५-१ स्वयंप्रभजिन गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (स्वामि स्वयंप्रभु), ३१६६५-२(-), ३२६९६-३(-) हमराजजी द्वारा लिखा गया पत्र, मु. हमराज, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३१८५०-२ हरिकेशिमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मुनि मातंगज महाऋषि), ३०७१६-३(+), ३०६२९-३ हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१, वि. १८१०, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधर जगधणी), ३०२७२(१) हरिवंश रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १२७, गा. २५०६, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (अकल सकल अमरेशनी जिन), ३१४१७-३($) हितोपदेश सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडा तुं माहरी सुणि), ३१४०३-५ हीचोला गीत, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पुण्यमय वृक्ष पुढउ), ३०६९९-३ हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सबे भृग नयन चलीगु), ३२३८९-४ हीरविजयसूरि गीत, मु. सकल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जेण दिन हीर गुरु वदन), ३१०४५-३ हीरविजयसूरि भास, मु. सहजविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज सकल सिद्धांत उपाउ), ३००८०-२ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सरसती भगवती वर लही), ३११७०-२(+) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., ढा. २, गा. २२, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरस वचन दिउ सरसती), ३१६०४, ३१७४४ हीरविजयसूरि सज्झाय, ग. हर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सांभरीआ गुण गावा मुज), ३३०३५-३ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. हेमविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जबलगिं जलन की जोति), ३२३१३ होलिका चौपाई, मु. डुंगर, मा.गु., गा. ८३, वि. १६२९, पद्य, मूपू., (--), ३०२३१(+$) होलिकापर्व कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिण. लोक होली कहै), ३२८९६-१ होलिकापर्व ढाल, मु. रामकिसन शिष्य, मा.गु., गा. २५, वि. १८६६, पद्य, श्वे., (असी खेलोजी होली असी), ३२८६६-१ होलिकापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ३२००२-२ For Private And Personal use only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sh Mahavir Jain Andhana kence www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassadersul Gyanmandir आराधना महावार द कोबा. 卐 अमृत विद्या Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org 'Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-81-89177-2321 Set:51-8917:00-1 For Private And Personal use only