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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में कैलासश्रुतसागर ग्रंथसूची के अष्टम रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. वर्तमान कार्य के परिणाम स्वरूप प्राकृत, संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल, टीका, अवचूरी आदि व व्याख्या साहित्य की लघु कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही हैं. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक विद्वानों की कृतियाँ भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. इस खंड में लघु प्रतों की ही सूची है. सामान्यतः ऐसी प्रतें कम महत्त्व की समझकर जत्थे में बांधकर उपेक्षणीय सी रख दी जाती हैं. लेकिन परिशिष्टों को देखने से पता चलेगा कि आश्चर्यजनक रूप से ऐसी प्रतों में से भी प्रचुरमात्रा में अप्रकाशित लघु कृतियाँ प्राप्त हुई हैं. इन लघु प्रतों का वर्गीकरण से लगाकर सूचीकरण तक का सारा कार्य बडा कष्टसाध्य होता है, लेकिन उसका यह सुंदर परिणाम बड़ा ही संतोष दे रहा है. नेमिचंद्र कृत सं. ऋषभपंचाशिका-टीका, लालचंद्र शिष्य का सं. अध्यात्मोपनिषत् सावचूरिक, शांतिसूरि की सं. घटखर्पर काव्य-टीका, जंबू कवि का सं. चंद्रदूत काव्य, रत्नशेखरसूरि का प्रा. छंदकोश, मतिप्रभसूरि रचित प्रा. दुषम दंडिका, रूपसिंह कृत सं. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, वाचक लक्ष्मीनिवास का सं. मेघाभ्युदय काव्य व अज्ञात मुनि कृत सं. अवचूरि, मुनिचंद्रसूरि रचित प्रा. वनस्पति सप्ततिका, अज्ञात श्रमण का प्रा. शतपंचाशिका प्रकरण, पद्मसुंदरसूरि कृत सं. स्याद्वादसुंदर द्वात्रिंशिका आदि अनेक प्रकरण, कुलक व चरित्र आदि अनेक प्रकार के ग्रंथ अप्रकाशित प्रतीत हुए हैं. ऐसा ही देशी भाषा की कृतियों में भी है. इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सब का विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपयां वहाँ पर देख लेवें. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत बड़ा जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित, द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री इस तरह छ: भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इस में प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री - इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकृत कर दिया गया है. प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों के मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी की वर्षों की महेनत से बनाई थी. उसी को आधार रख कर हमने यह संपादन कार्य किया है. मुनिश्री के हम अनेकशः कृतज्ञ है. समग्र कार्य दौरान पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक पंन्यास श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्यप्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे है, यह जान कर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है, हमें हमारा श्रम सार्थक प्रतीत होता है. प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु श्री संजयभाई गुर्जर तथा ग्रंथालय विभाग के श्री हेमंतकुमारसिंह, श्री दिलावरसिंह विहोल एवं श्री परबतभाई ठाकोर आदि सभी सहकार्यकरों को त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्रस्तुति के लिए हम त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडं देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रही भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, जिससे अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल For Private And Personal Use Only
SR No.018031
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size10 MB
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