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प्रकाशकीय
जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के अष्टम खंड को श्री भवानीपुर जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, कोलकाता की पावन धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की शुभ निश्रा में पूज्य श्रुतोद्धारक श्री के ही जन्म के ७५ वर्षों की पूर्णाहुति के शुभ प्रसंग पर चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है.
विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, वह भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. ___ हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रखरखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. यद्यपि प्रस्तुत ग्रंथसूची के मूल आधार पूज्य मुनिश्री ही है, तथापि खण्ड ५ के बाद पूज्यश्री ने अपनी निस्पृहता का परिचय देते हुए सूचीकर्ता के रूप में स्वयं का नाम न छापने का आदेश किया है. हमारी आकंठ इच्छा होने के बावजूद भी हम पूज्यश्री के आदेश के आगे विवश है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितजनों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य गणिवर्य श्री नयपद्मसागरजी का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है. मुनिश्री ने हस्तप्रतों आदि के प्रारंभिक अनेक कार्यों में अपना उल्लासभरा सहयोग तो दिया ही है परंतु जिनशासन के विशिष्ट शासनप्रभावक के रूप में उभर कर संस्था व ज्ञानमंदिर को जो सहयोग दिलाया हैं उसकी वजह से ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिला है. संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगीयों व शुभेच्छकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था.
सात पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकरों के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या इसी तरह के अन्य अनुदान को न लेकर मात्र समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियों हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. खास कर शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी - अहमदाबाद की ओर से सूचीकरण के इस भगीरथ कार्य एवं ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों हेतु ज्ञानद्रव्य में से जो निरंतर योगदान मिलता रहा है, उसने हमेशा हमारी चेतना को विकस्वर रखा है.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस अष्टम खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर व तीर्थ के ट्रस्टीगण के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस अष्टम रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है.
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट
कोबातीर्थ, गांधीनगर
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