Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 8
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)तेणइ कालि ते चउथ
आरइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक कुछ अंशमात्र है.) २. पे. नाम. अग्यारगणधर के आयु, गृहस्थ समय, छद्मस्थ समय व केवलज्ञान समय विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण.
जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३८२०. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२७.५४११.५, ३३४१७). १. पे. नाम. ज्ञानरस पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-ज्ञान, मु. राजाराम, पुहिं., पद्य, आदि: ज्ञान रसायन पाइरे; अंति: ज्ञान ज्ञान भज भाइ, गाथा-४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
पुहिं., पद्य, आदि: अजब जोत है तेरी आतम; अंति: अपना दुरमत दुरन खेरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.
अखो, पुहि., पद्य, आदि: जातसुं पुछो संतनी; अंति: कहे वातुं विरले जाणी, गाथा-४. ४. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सुण साहेली सतगुरु; अंति: मंगलिकमाला ते वरसे, गाथा-९. ३३८२१. परमानंदपचवीसी स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४७, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. जीवणसी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, ३-४४३५-३८). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंपन्नं; अंति: परमं पदमात्मनः,
श्लोक-२५.
परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आनंद आत्मा अनुभवतां; अंति: ते प्रतेइ पांमई, ग्रं. १३४. ३३८२२. (+) पंचनिग्रंथी, संपूर्ण, वि. १५८८, चैत्र शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. विनयमंडन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४११, २६४८३). पंचनिग्रंथी प्रकरण, हिस्सा, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११२८, आदि: पन्नवण वेय रागे कप्प; अंति: रइया
भावत्थसरणत्थं, गाथा-१०६. ३३८२३. भक्तामर भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७.५४१२, १२-१४४३७-४१).
भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरुष आदि सज्जन; अंति: ते पावही शिव
पेत, गाथा-४९. ३३८२५. आदिजिन स्तव सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३३ अपूर्ण तक है., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२७.५४११.५, १४४५४).
आदिजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: अष्टापदरुचिमष्टापद; अंति: (-).
आदिजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अष्टा० अष्टापदं; अंति: (-). ३३८२७. सूयगडांगसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. सूत्र का अंतिम भाग अंशमात्र है., प्र.वि. पत्रांक नहीं होने से काल्पनिक पत्रांक २ दिया गया है., त्रिपाठ., दे., (२६.५४११, १२४५१).
सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: विहरइ त्तिबेमि, अध्याय-२३.
सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: ३३८२८. अष्टादशशीलांगरथ व लिंग विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२८x११.५, १२४४१). १. पे. नाम. अष्टादशशीलांगरथ, पृ. १अ, संपूर्ण.
१८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. लिंग विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. पाठ की सिद्धि के लिए कुछ गाथाएँ एवं विवरण.
जैन सामान्यकृति ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३३८३०. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४९).
१.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
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