Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 8
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 486
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.८ www.kobatirth.org दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. तृतीय अध्ययन गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ३४४१८. मन्हजिणाणसूत्र व गाथा संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैवे. (२२.५x११, ८x२७). १. पे. नाम गाथा, पृ. १अ संपूर्ण जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - १. २. पे. नाम. मन्हजिणाणं सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. महजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः मन्हजिणाणं आणं मिच्छ, अंति: निच्वं सुगुरूवरसेणं, , जैन श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १. जैन श्लोक का टबार्थ मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ५. ३४४२२. लघुशांति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२३४११, १०x३६). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सुखी भवंतु लोकः, श्लोक-२०. ३४४२४. गौतम कुलक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८५२ आषाढ़ कृष्ण, १ श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. भिन्नमाल, जैवे., (२४X११.५, ४X३५). १. पे नाम, गौतम कुलक सह टवार्थ, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण, पे. वि. कृति का परिमाण गाथा २१ लिखकर अन्य कृति के एक श्लोक का भी इसी कृति मे समावेश कर लिया है, जो योग्य नहीं है. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहंतु, गाथा - २०. गौतम कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर लक्ष्मी, अंतिः सेवे ते जीव सुख लहे. २. पे. नाम. जैन श्लोक सह टबार्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. ४७१ ३४४२६. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८०७ आश्विन कृष्ण, १ बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, मढाडनगर, पठ. मु. भाणजी महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १२३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. ३४४२७. वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२३४११.५, १२४३८). २० स्थानकतप विधि, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं हजार २; अंतिः श्रीऋषभदेव कर वांदवा. ३४४२८. स्तुति संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२२.५X११, १५X४०). १. पे नाम, ऋषिभ स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रोत्कटविकटसदोद्भट, अंतिः चक्केसरी कुशल करा, गाथा-४. २. पे. नाम. वासपूज्य स्तुति, पृ. १ अ १आ, संपूर्ण. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. भीमसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: पंच भरह अझवै पंच अंतिः भीमसूरिंदजी० सुख करो, गाथा-४. ४. पे. नाम. जैन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तुति- अग्गलपुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: वासुपूज्य जिणचंद अंति: गुणसागर ० मंगल करति, गाथा-४. जैन श्लोक सं., पद्य, आदि (-); अंति (-) श्लोक-१. ३४४२९. भरथबाहुबल चौपई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २१.५X१०.५, ११३५). भरत बाहुबली चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सुरसती समरं सदा, अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभिक गाथा अंशमात्र है.) ३४४३०. पोसहलेवानी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. दे. (२३४१२, १०x३८). " पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरिया० ४ नवका० अंति: होय तिके पडिलेहणा. For Private And Personal Use Only

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