Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 5
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 427
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४०७ २०३०९. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मू+टबा. अ१ गा. १५ तक मिल रहा है., जैदे., (२५४११, १३४३८-४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: भिक्षो विनयं प्रादुष; अंति: (-), अपूर्ण. २०३१३. समस्याबद्धभक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, १-६४३३-३५). वीरभक्तामर, उपा. धर्मवर्धन, सं., पद्य, वि. १७३६, आदि: राज्यर्द्धिवृद्धि; अंति: धर्मसिंहो व्यधत्त, गाथा-४५. वीरभक्तामर-स्वोपज्ञ टीका, उपा. धर्मवर्धन, सं., गद्य, आदि: श्रीआदिशस्तुतिर्यत्र; अंति: नामगर्भित विशेषणं. २०३१४. खंदककवार रोचोढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.ले.श्लो. (६०७) जलं रक्षे थलं रक्षे, जैदे., (२५.५४११, १०x२८-३१). खंधकमुनि चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिध आचारज नमु; अंति: हो करज्यो सहु कोय, ढाल-४. २०३१५. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, ११-१२४२६-३२). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: तिखुत्तो आयाहीणं; अंति: (-), __ अपूर्ण. २०३१७. (#) संग्रहणीसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, पू.वि. नरकपृथ्वीमान तक हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४५९-६७). बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: नत्वा श्रीवीरजिनं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०३१८. नमस्मरणादि स्तोत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८५३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ४, ले.स्थल. कालद्री, प्रले. मु. जीतसागर (गुरु मु. दीपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ११४३६-४०). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-१७आ. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: मोक्ष प्रतिपद्यते, स्मरण-९. २. पे. नाम. लघुशांति स्तव, पृ. १०आ-११आ. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १३अ. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ४. पे. नाम. ऋषभादयजिन स्तुतयः, पृ. १३आ-१४आ. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरस्वामिने नमः, श्लोक-२६. २०३२४. प्रत्येकबुद्ध ४ ना ४ खंड रास, संपूर्ण, वि. १७१८, आश्विन कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. धोळका, प्रले. ग. जीतविजय (गुरु ग. रंगविजय); पठ. सा. तेजश्री (गुरु सा. गौरश्रीजी), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, जैदे., (२५.५४११, १४-१५४४१). For Private And Personal Use Only

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