Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 5
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५
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वृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिकं अरिहंताई थिइ अंतिः जा वीरजिण तित्थं,
गाथा - ३९४.
२०९२३.
कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५८-७ (१ से ७) = ५१, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६.५x१०.५, २९x४५-५२).
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कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. आठ वाचना तक
है. ( सामाचारी नहीं है))
कल्पसूत्र - टीका * सं., गद्य, आदि (-); अंति ज्ञेया वाच्याच, (अपूर्ण, पू. वि. सामाचारी २४ तक है. )
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२०९२४. चउसरणपन्न सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२६x१०.५,
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६X३८-४१).
चउसरण पण्णय, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्म, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३.
चतुःशरण प्रकीर्णक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (अपठनीय); अंतिः छै नि० मोक्षसुखनं.
२०९२५. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५, प्र. वि. संशोधित पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें.
जैन श्लोक सं., पद्य, आदि: (); अंति: (-).
"
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(२६.५४११.५, ८-११४४०-४५ ).
,
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स; अंतिः त्ति बेमि, अध्ययन- ३६. उत्तराध्ययनसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीउत्तराध्ययनानुयो; अंतिः तदधीतत्वात् स्येति नं. ८१००.
२०९२६.
(+) जीवविचार सह टवार्थ, श्लोक व पंचमआरे जीवआयुष्य विचार, संपूर्ण, वि. १७३३, आषाढ़ शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले. स्थल भइसरोड दुर्ग, प्रले. उपा. महिमाउदय; पठ. मु. कीर्तिविशाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. श्री. (६१२) बादृशं पुस्तके दृष्टं जैये., (२५.५x११, ५x२९-३९).
१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, पृ. १आ-६आ.
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पच, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ,
गाथा - ५१.
जीवविचार प्रकरण- टवार्थ में, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनर विषह दीवा; अंति: शास्त्र समुद्र की.
२. पे नाम, श्रोक, पृ. ६आ.
(२६x१२, १५x५१).
१. पे. नाम. पुन्यविषये राजकुमार श्रीकुलध्वजकुमार चतुःप्पदिका, पृ. १अ - १८आ.
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३. पे. नाम. पंचमआरे जीवआषुष्य विचार, पृ. ६आ.
जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).
. प्रेमराज,
२०९२७, (+) वैराग्यशतक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, वैशाख कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल, वीकानेर, अन्य. मु. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, ६x४५-५१).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, श्लोक - १०४. वैराग्यशतक - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असार अप्रधान; अंति: सास्वतो ठा० स्थानक,
२०९३०. पुन्यविषये राजकुमार श्रीकुलध्वजकुमार चतुःप्पदिका व दुहो, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, जैवे.,
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