Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 5
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Catalog link: https://jainqq.org/explore/018028/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirthoto Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir श्रुतसागर गथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड १.१.५) KAILĀSA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI ' Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol-1.1.5) शाहबमाणाधण बहाणवादयागामा ਬਵ ਈਸ਼ਰ वादमवणारावा रानामाजि माटावाभित आचार्य श्री कैलासत्सागरसारि ज्ञानमंदिर कोब्बा तीर्थसतान Fac Prvete And Personal use only यातरमनाया नया) मिश्राग्रादार nuans Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.५) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची : आशीर्वाद व प्रेरणा : आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महावीर आराधना ANIMATED SY Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमृतं तु विद्या प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५३३ ० वि.सं. २०६३ ० ई. २००६ For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ५ Ācārya Śhri Kailāsasāgarasūri Smrti Granthasūci - Ratna 5 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.५ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci : 1.1.5 : सूचीकर्ता : मुनि निर्वाणसागर : Compiler : Muni Nirvansagar : संपादक : पं. मनोज र. जैन : Editor : Pt. Manoj R. Jain : खंड संयोजक: शैलेष प्र. महेता : Part Co-ordinator : Shailesh P. Maheta : सह संपादन : संजय र. झा नवीन वि. जैन आशिष आर. शाह : Co-Editors : Sanjay R. Jha Navin V. Jain Ashish R. Shah : कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग : केतन दी. शाह : Computer Programming : Ketan D. Shah For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ५ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिरे देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृतसूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची - वर्ग - १ : जैन साहित्य खंड -५ : आशीर्वाद व प्रेरणा : आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Dēvarddhigaại Kşamāśramaņa Hastaprata Bhāndāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Class - I: Jain Literature Section - I: Manuscripts' Catalogue Volume - 5 : Blessings & Inspirations : Acharya Shri Padmasagarsurishwarji en Published by 6 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, India 2006 For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairthora Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 5 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.5 Preserved in Dēvarddhigani kşamāśramana Hastaprata Bhāndāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir o Copy rights : reserved by Publisher o 53rd Deeksha Day of H. H. Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Maharaj Kartik Shukla 3, Vir Samvat 2533, Vikram Samvat 2063, 8th November 2006 O Edition : First ० प्रकाशन सौजन्यः मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा मोहनलालजी रुघनाथमलजी सोनवाडीया परिवार, चेन्नई O Available at: Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth o Published by : Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382009. INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org, E_mail: gyanmandir @kobatirth.org O Price: Rs. 750/= Printed by : Neminath Printers, Shahibaug, Ahmedabad. Tel. No. 25625035 O ISBN 81-89177-00-1 (Set) 81-89177-05-2 (Vol.5) परम पूज्य आचार्य श्री पद्मसागरसूरि म.सा. के ५३वें दीक्षा दिन के उपलक्ष्य में (8844-2008) For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी www.kobatirth.org गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: अर्हम् नमः मंगल कामना जिनकी वाणी में सरस्वती का निवास है, ऐसे श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंथित किया है; उस जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखने वाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन जिनागम को समर्पित निर्मुक्तिकार भाष्यकार चूर्णिकार टीकाकार आदि आचार्य भगवंतों का भी मैं ऋण स्वीकृति पूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह - संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग में भी कमजोरी आ गई. इन सब कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे सर्वप्रथम विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रहित करने का कार्य प्रारंभ हुआ. . धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए आधुनिक साधनों से संपन्न यह ज्ञानमंदिर है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के कार्य में व उसके मार्गदर्शन में हमारे दो विद्वान मुनि श्री निर्वाणसागरजी और विशेष रूप से मुनि श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता. मुनि श्री नयपद्मसागरजी आदि मुनिराजों ने भी यथायोग्य सहयोग दिया है. मैं उन सभी के कार्यों की भी हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण का कार्य किया है वह अपने आप में अनूठा व इतिहास सर्जक है. श्री मनोजभाई श्री संजयकुमार झा, श्री शैलेषभाई, श्री नवीनभाई, श्री आशिषभाई आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई एवं सभी सहयोगी कार्यकरों को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के ट्रस्टी श्री किरीटभाई कोबावाला, श्री कल्पेशभाई, श्री गिरीशभाई एवं कारोबारी सभ्य श्री मोहितभाई आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थ के संरक्षण, सूचीकरण व प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले दाताओं को भी धन्यवाद देता , पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने आप में विशिष्ट प्रकार की कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची जैन हस्तलिखित साहित्यखंड ४ व ५ प्रकाशित होने जा रहे हैं, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्व भर का विद्वद्वर्ग इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होगा. संस्था अपने विकास पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. पद्मसागर मूरि १ For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir • सादर समर्पण कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के कर कमलों में... कि जिनकी बदौलत यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही. २ For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatinh.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वर्गीय मुथा मोहनलालजी रुघनाथमलजी सोनवाडीया स्वर्गीय मातुश्री पानीदेवी मोहनलालजी सोनवाडीया सौजन्य मांडवला (राज.) निवासी स्वर्गीय पिताश्री संघवी मुथा मोहनलालजी रुघनाथमलजी सोनवाडीया एवं स्वर्गीय मातुश्री पानीदेवी मोहनलालजी की स्मृति में पुत्र : हंसराज-कमलादेवी, रमेशकुमार-भाग्यवतीदेवी, सुरेशकुमार-मधुदेवी पौत्र : प्रफुल्ल-सरितादेवी, धीरज-कल्पनादेवी, कृणाल, प्रतिक, राहुल पौत्री : श्रद्धा, समता, राशि प्रपौत्र : स्पर्श, दर्श फर्म मोहन मुथा एक्सपोर्ट प्रा.लि. (एम.एम.एक्सपोर्ट) चेन्नई For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के चतुर्थ व पंचम खंडों को परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की दीक्षा के ५३वें वर्ष प्रवेश के पावन प्रसंग पर अनंत सिद्धों की सिद्धभूमि श्री सिद्धगिरिराज की पावनीय छत्रछाया में आदिज्ञानप्रवर्तक युगादिदेवश्री आदिनाथ प्रभु की परम कृपा से चतुर्विध संघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, वह भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. प्रस्तुत प्रकाशन में संस्था में ही विकसित किये गये कम्प्यूटर आधारित विशेष प्रोग्राम के अंदर प्रविष्ट हस्तप्रतों की विस्तृत सूचनाओं के आधार पर मात्र चुनी हुई सूचनाओं को यहाँ पर प्रकाशित किया जा रहा है. समग्र सूची और भी अधिक विस्तार से ज्ञानतीर्थ के कम्प्यूटरों पर वाचकों हेतु उपलब्ध है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रखरखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के सभी शिष्य-प्रशिष्यों का विशेष योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य मुनिराज श्री अजयसागरजी, यहाँ के पंडितजनों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य मुनिराज श्री नयपद्मसागरजी का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है. संस्था सभी की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. नौ पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकरों के माध्यम से श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या इसी तरह के अन्य अनुदान को न लेकर मात्र समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियों हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. खास कर शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी - अहमदाबाद की ओर से सूचीकरण के इस भगीरथ कार्य एवं ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों हेतु ज्ञानद्रव्य में से जो निरंतर योगदान मिलता रहा है, उसने हमेशा हमारी चेतना को विकस्वर रखा है. बाबू श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर, मुंबई व शेठश्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर, मुंबई की ओर से मिले ज्ञानद्रव्य के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. सभी के हम सदैव ऋणी रहेंगे. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य के इस पंचम खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता मांडवला (राज.) निवासी श्री संघवी मुथा मोहनलालजी रुघनाथमलजी सोनवाडीया परिवार, चेन्नई के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस पंचम रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. ट्रस्टीगण सुधीरभाई यू. मेहता, कल्पेश जे. शाह, गिरीशभाई वी. शाह, हेमंतभाई सी. ब्रोकर, श्रीपालभाई आर. शाह, अरविंदभाई टी. शाह, प्रवीणभाई एन. शाह, सोहनलाल एल. चौधरी, भीखुभाई चोकसी, किरीटभाई कोबावाला, सेवंतीलाल एम. मोरखिया, चांदमल पी. गोलिया, घीसूलालजी डी. राठोड, खूबीलालजी एल. राठोड. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट कोबातीर्थ, गांधीनगर For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य के प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की दीक्षा के ५३वें वर्ष प्रवेश के प्रसंग पर चतुर्थ व पंचम खंड का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशेष खुशी की बात है कि संस्था द्वारा अपनाए गए श्रेष्ठता की ओर निरंतर सुधार व विकास के अभिगम से प्रेरित होकर खण्ड ३ के प्रकाशन के बाद सूचीगत सूचनाओं को उपयोगिता की दृष्टि से और भी ज्यादा सटीक व तर्कसंगत ढंग से प्राप्त व प्रस्तुत किया जा सके, इस हेतु से बड़े ही श्रम, समय व धन के व्यय पूर्वक सूचीकरण का कम्प्यूटर प्रोग्राम नए सिरे से बनाया गया है. अतः प्रस्तुत खंडों से सूचनाएँ ज्यादा स्पष्टतापूर्वक व योग्य स्थान पर मिलेगी. यथा पेटाकृति व कृति माहिती के स्तर पर भी प्रतिलेखक द्वारा तत्-तत् स्तर पर प्रदत्त प्रतिलेखन पुष्पिका का लेखन वर्ष, स्थल आदि सूचनाएँ मिलेंगी. कृति का अध्याय, गाथा आदि परिमाण जिस तरह का प्रतों में उपलब्ध होगा, उसी तरह से यहाँ दिया गया है. ध्यातव्य है कि कई बार एक ही कृति हेतु भिन्न-भिन्न प्रतों में परिमाण माहिती थोडी-बहुत न्यूनाधिक भी मिलती है. इसी तरह कृति परिवार वाले परिशिष्ट में भी अकारादिक्रम की ज्यादा उपयोगी पद्धति अपनाई गई है. इस तरह के छोटे-बड़े अनेक परिवर्तन देखने को मिलेंगे. 2 आशा है यह नई प्रस्तुति विशेष उपयोगी सिद्ध होगी. वर्तमान कार्य के परिणाम स्वरूप प्राकृत संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल व व्याख्या साहित्य की छोटी-बड़ी कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही है. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक महत्व के विद्वानों की कृतियों भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं. ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सब का विस्तृत विवरण संकेतों का स्पष्टीकरण पृष्ठ ११ पर मुद्रित है. इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान / व्यक्ति व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ पृष्ठ ६ एवं प्रयुक्त जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण का एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित, द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. ग्रंथालय सूचना पद्धति में कृति की विभावना स्वयं में अनूठी एवं बहूपयोगी सिद्ध हुई है. कृति को विविध भंडारों की हस्तलिखित प्रतों, प्रकाशनों व सामयिकों के साथ संयोजित किया गया है, जिससे किसी भी कृति से सम्बन्धित सभी हस्तप्रतों, सभी मुद्रित प्रकाशनों एवं सामयिकों की सूचनाएँ एक साथ मिल जाती हैं. इसी तरह व्यक्ति विद्वान का भी कृति सर्जक, हस्तप्रत प्रतिलेखक आदि व प्रकाशन, सामयिक के संपादक, संकलनकार, संशोधक, संयोजक, प्रेरक एवं प्राचीन मूर्ति आदि के प्रतिष्ठापक एवं मूर्ति भरवानेवाले इत्यादि आयामों में एकीकृत परिचय रखा गया है. इस प्रकार प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्ध कर एकीकृत किया गया है. समग्र कार्य दौरान पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक मुनिराज श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व प्रोत्साहन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. मुद्रित ग्रंथों के आधार पर कृति संपादन हेतु श्री रामप्रकाश जगदीश झा, प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु श्री संजयभाई सोमाभाई गुर्जर तथा ग्रंथालय विभाग के श्री दिलावरसिंह प्रह्लादजी विहोल आदि सभी सहकार्यकरों को त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्ररूपणा के लिए हम त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडम् देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रही भूलों हेतु हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, जिससे अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. ४ For Private And Personal Use Only संपादक मंडल Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा इस परियोजना के तहत सूचीपत्र में मुख्य तीन विभाग किए गए हैं. १ हस्तप्रत माहिती. २ कृति माहिती. ३ विद्वान-व्यक्ति माहिती. यद्यपि कम्प्यूटर में सभी तरह की सूचनाएँ विस्तृत रूप से भरी जाती हैं एवं आगे भी उनमें परिष्कार, विस्तार जारी रखने का आयोजन है, तथापि प्रत्येक सूचीपत्र विभाग में मात्र तत् तत् विभाग की सूचनाएँ शक्य विस्तार से देकर अन्य विभागों की संबद्ध सूचनाओं को आवश्यक हद तक संक्षेप में ही दिया जाएगा. इन संक्षिप्त सूचनाओं की विस्तृत माहिती के लिए संबद्ध विभाग के सूचीपत्र की अपेक्षा रहेगी. उपयोगिता एवं अनुकूलता के अनुसार उपरोक्त तीनों विभागों के सूचीपत्रों के क्रमशः प्रकाशन का आयोजन है. www.kobatirth.org: यहाँ पर सूची प्रकाशन रूपरेखा की मूल अवधारणा में हुए परिवर्तनों, परिवर्द्धनों के साथ संक्षिप्त ढांचा ही दिया गया है, विस्तारपूर्वक जानने हेतु कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची - जैन हस्तलिखित साहित्य खंड १. १. १ में पृष्ठ २२ से २४ देखें. १. हस्तप्रत विभाग इस विभाग में महत्तम उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए हस्तप्रतगत कृति की धर्म आदि प्रधानता के अनुसार निम्न वर्ग किए गए हैं. ये सूचियाँ यथोपलब्ध प्रत क्रमांक के अनुक्रम से होंगी. १.१ जैन कृति वाली प्रत, १.२ धर्मेतर साहित्यिक आदि कृति वाली प्रतें १.३ वैदिक कृति वाली प्रतें १.४ शेष धर्मों की कृति वाली प्रतें. इनमें प्रथम, हस्तप्रत केन्द्रित इस सूची में सूचनाएँ तीन स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर : इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ उपयोगिता एवं सूची पुस्तक के कद की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए विविध अनुच्छेदों में शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. (२) पेटाकृति माहिती स्तर इस द्वितीय स्तर पर यदि प्रत में क्रमशः स्वतंत्र पृष्ठों पर एकाधिक कृतियाँ मिलती हों तो उन पेटाकृतियों के नाम, पृष्ठांक, पूर्णता आदि सूचनाएँ यथायोग्य दी गई हैं. खंड ४ से यह स्तर व्यक्तरूप से अलग किया गया है. (३) कृति माहिती स्तर : इस तृतीय स्तर पर प्रत में रही कृतियों का निर्णय करने हेतु आवश्यक लघुतम सूचनाएँ ही दी गई हैं. पुस्तक के कद को मर्यादित रखने के लिए भी यह आवश्यक था. कृति की शक्यतम विस्तृत माहिती द्वितीय कृति विभाग वाली सूची में दिए जाने का आयोजन है. - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्येक खंड में तत्-तत् खंड में आए कृति परिवारों का मूल कृति के अकारादि क्रम से तत् तत् कृति हेतु तत्-तत् खण्डगत प्रतों के क्रमांकों के साथ (१) संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषा की कृतियों हेतु एवं (२) मारुगुर्जर आदि देशी भाषा की कृतियों हेतु इस तरह दो परिशिष्ट दिए गए हैं. १.५ हस्तप्रत विभाग के परिशिष्ट : इस वर्ग में हस्तप्रत विभागीय विविध परिशिष्टों का समावेश किया जाएगा. १.५.१ प्रत, पेटाकृति व कृति लेखनगत विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिकाओं का संग्रह., १.५.२ प्रतिलेखन वर्ष से प्रत क्रमांक. १.५.३ प्रतिलेखन स्थल से प्रत क्रमांक १.५.४ विद्वान / व्यक्ति (प्रतिलेखक आदि) नाम से प्रत क्रमांक १.५.५ प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक संग्रह श्लोकानुक्रम से १.५.६ प्र. पु. श्लोक अकारादिक्रम से. २. कृति विभाग , - , इस विभाग के तहत कृति को केन्द्र में रखकर उससे संबद्ध अनेकविध सूचनाएँ निम्नोक्त प्रकार से आएँगी.. २.१ कृति पर से प्रत माहिती : यद्यपि खंड १.१.२ के प्रकाशन से प्रत्येक खंड के अंत में उस-उस खंड की कृतियों का यह परिशिष्ट संक्षिप्त रूप से दिया जा रहा है, तथापि सभी खंडों की कृतियों को अपनी महत्तम विस्तृत सूचनाओं के साथ संकलित रूप से देखने की सुविधा के लिए प्रतानुसार कृति माहिती के सभी खंड छप जाने के बाद निम्नोक्त प्रकार से अलग से भी प्रकाशित करने का आयोजन है. २.१.१.१ जैन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश भाषाओं की इत्यादि देशी भाषाओं की स्थिर कृतियाँ, २.१.१.३ स्थिर कृतियाँ २.१.१.२ जैन मारुगुर्जर, गुजराती, राजस्थानी जैन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश - फुटकर कृतियाँ, २.१.१.४ जैन ५ - For Private And Personal Use Only " Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मारूगुर्जर आदि देशी भाषा - फुटकर कृतियाँ, २.१.२.१ से ४ धर्मेतर शेष - उपरोक्त चारों प्रकार की स्थिर व फुटकर कृतियाँ, २.१.३.१ से ४ वैदिक - इसी तरह की चारों प्रकार की कृतियाँ एवं २.१.४.१ से ४ अन्य धर्म - चारों प्रकार की कृतियाँ. २.२ आदिवाक्य से कृति माहिती, २.३ अंतिमवाक्य से कृति माहिती, २.४ विद्वान नाम से कृति माहिती, २.५ रचना वर्ष से कृति माहिती, २.६ रचना स्थल से कृति माहिती, २.७ भाषा से कृति माहिती, २.८ विषय विभाग से कृति माहिती. ३. विद्वान/व्यक्ति व गच्छ माहिती विभाग इस विभाग में कृति व हस्तप्रतों से संबंधित विद्वान/व्यक्तियों एवं गच्छों की विविध प्रकार से सूचनाएँ देने का आयोजन है. ३.१ विद्वान/व्यक्ति माहिती : यह वर्ग विद्वान/व्यक्तियों से संबद्ध विस्तृत माहिती का होगा व विद्वान नाम/ उपनाम के अकारादि क्रम से यह सूची होगी. यह सूची अनेक उपवर्गों में विभक्त होगी. ३.१.१ जैन साधुओं की सूची, ३.१.२ जैन साध्वियों की सूची, ३.१.३ जैन श्रावकों की सूची, ३.१.४ जैन श्राविकाओं की सूची, ३.१.५ शेष विद्वान/व्यक्तियों की सूची. ३.२ विद्वान शिष्य/संतति माहिती, ३.३ विद्वान शिष्य परम्परा वंशवृक्ष. ३.४ विद्वान-गच्छ माहिती वर्ग : गच्छ को केन्द्र में रखते हुए निम्नोक्त वर्गों की सूचियाँ बनेंगी. ३.४.१ गच्छ माहिती, ३.४.२ गच्छ शाखा-प्रशाखा वंशवृक्ष, ३.४.३ गच्छानुसार विद्वान माहिती. सूची प्रकाशन की यह एक संभावित संक्षिप्त रूपरेखा है. अनुभवों, उपयोगिता एवं व्यावहारिक मर्यादाओं के आधार पर इसमें यथासमय योग्य परिवर्तन भी किया जाएगा. प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण जैन हस्तप्रतों का समावेश करनेवाली हस्तप्रत आधारित इस सूची में सूचनाएँ तीन स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर (२) पेटाकृति माहिती स्तर. (३) प्रत व पेटाकृतिगत कृति माहिती स्तर. पूर्व खंडों की तुलना में इस खंड से सूचनाओं में काफी बढ़ोत्तरी की गई है एवं सूचनाओं के क्रम में भी पर्याप्त फेरफार किया गया है. 'पेटाकृति माहिती स्तर' बढाया जाना यहाँ उल्लेखनीय है. यद्यपि मुख्यतः क्रम में फेरफार हुआ है, तथापि खंड 1.1.1 के पृष्ठ 33 से 38 पर दिया गया इन सूचनाओं का परिचय विस्ताररुचि वालों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा. यहाँ पर मात्र संक्षिप्त रूप से व प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद परिवर्तित व परिवर्द्धित सूचनाओं का ही परिचय दिया गया है. प्रत माहिती स्तर इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ विविध अनुच्छेदों में निम्नोक्त क्रम से शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. यद्यपि कम्प्यूटर पर ये सूचनाएँ और भी विस्तार से उपलब्ध हैं. १. प्रत क्रमांक : प्रत्येक प्रत का यह स्वतंत्र क्रमांक है. ग्रंथसूची के इस विभाग में मात्र जैन कृतियोंवाली प्रतों का ही समावेश होने से व बीच-बीच में जैनेतर आदि अन्य वर्गों की प्रतें भी अनुक्रम में होने से वे क्रमांक यहाँ नहीं मिलेंगे. यह क्रमांक अनुच्छेद-Paragraph की बायीं ओर निकला हुआ गाढ़े अक्षरों - Bold type में छपा है. २. प्रत महत्तादि सूचक चिह्न : प्रत की महत्ता का स्तर बताने के लिए क्रमांक के बाद कोष्ठक के अंदर इस तरह (+), (-), (#) चिह्न दिए गये हैं. २.१. प्रत संशोधित होने, टिप्पणक आदि से युक्त होने व कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित होने पर प्रत की महत्ता को बताने के लिए प्रत क्रमांक के बाद (+) का चिह्न लगाया गया है. यह चिह्न न होने का मतलब यह नहीं होता कि प्रत शुद्ध नहीं है या अल्प महत्व की ही है. सूची में इनका उल्लेख 'प्र.वि.' के तहत प्राप्त होगा. २.२ प्रत दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ वाली होने पर प्रत क्रमांक के बाद (.) का चिह्न लगाया गया है. इनका उल्लेख 'प्र.वि.' में प्राप्त होगा. २.३ कट, फट जाने आदि के कारण हुई प्रत व पाठ की विविध अवदशाओं की जानकारी कराने के लिए प्रत क्रमांक के For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अंत में (#) का चिह्न लगाया गया है. सूची में इनका उल्लेख 'दशा वि.' के तहत प्राप्त होगा. ३. प्रतनाम : यह नाम प्रत में रही कृति/कृतियों की प्रत में उपलब्धि तथा कृति/कृतियों के प्रत में उपलब्ध नाम के आधार से बनता है. यथा- बारसासूत्र, आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति व टीका, कल्पसूत्र सह टबार्थ व पट्टावली, गजसुकुमाल रास व स्तवन संग्रह, स्तवन संग्रह, जीवविचार, कर्मग्रंथ आदि प्रकरण सह टीका... इत्यादि. प्रत माहिती स्तर व पेटाकृति माहिती स्तर में दिए गए नामों से सम्बन्धित विस्तृत विवरण प्रथम खंड के पृष्ठ ३३-३४ पर देखें. ४. पूर्णता - हस्तप्रत की उपयोगिता व स्पष्टता को ध्यान में रखते हुए पूर्णता निम्न प्रकार से वर्गीकृत की गई है.. १. संपूर्ण : पूरी तरह से संपूर्ण प्रत, २. पूर्ण : मात्र एक देश से अत्यल्प अपूर्ण प्रतों को अपूर्ण न कह कर 'पूर्ण' संज्ञा दी गई है, ३. प्रतिपूर्ण : प्रतिलेखक द्वारा कोई खास अध्याय अंश मात्र ही लिखा गया हो और उतना संपूर्ण हो, ४. अपूर्ण : प्रत के आदि/अंत या मध्य का एक बड़ा अंश अनुपलब्ध हो.५. त्रुटक : बीच-बीच के अनेक पत्र अनुपलब्ध हों. ६. प्रतिअपूर्ण : प्रतिलेखक ने ही कोई खास अध्याय मात्र ही लिखा हो और उसमें भी पत्र अनुपलब्ध हो. ५. प्रतिलेखन संवत् : प्रत में विक्रम, शक आदि संवत् उपलब्ध हो तो वही वास्तविक रूप से दिया गया है, अन्यथा लेखन शैली, अक्षरों की लाक्षणिकता आदि के आधार पर विक्रम संवत् के अनुमानित शतक का उल्लेख किया गया है. इसके बाद प्रत में यथोपलब्ध वर्ष संख्या सूचक सांकेतिक शब्द - जो कि 'अंकानां वामतो गतिः' नियम से पढे जाते हैं - दिए गए हैं. तत्पश्चात वर्ष के संबंध में यदि कोई बात विचारणीय शंकास्पद लगी हो तो तत् सूचक '?' प्रश्नार्थ दिया गया है. उसके बाद मासनाम, अधिक मास संकेत, पक्ष तिथि, अधिक तिथि संकेत व वार यथोपलब्ध क्रमशः दिए गए हैं. क्वचित यथोपलब्ध वर्ष की एक अवधि भी दी गई है कि इन वर्षों के बीच यह प्रत लिखी गई है. ६. प्रत दशा प्रकार ('प्र. दशा') : श्रेष्ठ, मध्यम, जीर्ण. दशा सम्बन्धी विशेष माहिती अनुच्छेद १४ के अंतर्गत दी गई है. ७. पृष्ठ माहिती (पृ.) : प्रत के प्रथम व अंतिम उपलब्ध पृष्ठांक, घटते-बढते पृष्ठ का योग तथा पृष्ठांक एवं कुल उपलब्ध पृष्ठ, इतनी माहिती यहाँ आएगी. यथा - १ से ५०-४ (५,७, १५, २७) = ४६; ५ से ६०-३ (३*, १७, १८) = ५३; ५ से ६०-३ (३*, १७, २८) + २ (४, ३५) = ५५. यहाँ अंक पर * का चिह्न अवास्तविक घटते पत्र का सूचक है एवं '-' व '+' के चिह्न घटते व बढते पत्र के सूचक है. ८. कुल पेटाकृति : प्रत में यदि पेटाकृतियाँ हो तो उनका कुल योग यहाँ आएगा. ९. पूर्णता विशेष (पू.वि.) : प्रत के प्रारंभ से अंत तक के पाठ किसी कारण से अनुपलब्ध हो तो यहाँ पर मात्र अन्त के पत्र नहीं हैं, उसकी स्पष्टता की जाती है. इसके अतिरिक्त अपूर्णता प्रत में दिये पत्रांक से पता चल ही जाता है. पेटाकृति विहीन प्रत संपूर्ण नहीं होने पर कृति का कौन सा अंश उपलब्ध/अनुपलब्ध है, यह स्पष्टता भी यथाशक्य यहाँ देने का प्रयास किया गया है. यथा - दशवैकालिक सूत्र - अध्ययन ९ की प्रारंभिक ५ गाथा पर्यंत है. अथवा दूसरी चूलिका की अंतिम १९ गाथाएँ नहीं हैं. प्रत में यदि मूल के साथ टीका, टबार्थ आदि एकाधिक कृति हो और मूल की पूर्णता से यदि टीकादि की पूर्णता भिन्न हो तो ऐसे में पूर्णता की विशेष सूचना यहाँ न देकर कृति के साथ दी गई है. १०. प्रतिलेखन स्थल माहिति (ले.स्थल) : जिस स्थल पर प्रत-लेखन कार्य हुआ हो, उसका उल्लेख यहाँ दिया गया है. ११. प्रतिलेखक आदि : प्रत की प्रतिलिपि लिखने-लिखवाने वाले विद्वान या लहिया आदि के नाम गुरू, गच्छ माहिती के साथ यहाँ दिए गए हैं. उपदेशेन, क्रीत, गच्छाधिपति, पठनार्थे, प्रतिलेखक, राज्यकाल, लिखापितं, विक्रीत, व्याख्याने पठित, व्याख्याने श्रुत, समर्पित इत्यादि प्रकारों के विद्वान/व्यक्तियों का उल्लेख यहाँ दिया गया हैं.. १२. प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.) : प्रत में प्रतिलेखन पुष्पिका (प्रतिलेखक सम्बन्धी विस्तृत परंपरा का उल्लेख) की उपलब्धि की मात्रा के अग्रलिखित संकेत यहाँ दिए गए हैं. जैसे- प्रतिलेखन पुष्पिका अंतर्गत १ से लेकर ३ विद्वानों तक की सूचनाएँ प्रत में प्राप्त होती हैं तो सामान्य दिया गया है, ३ से लेकर ५ तक मिल रहे विद्वानों की सूचनाओं को मध्यम तथा ५ से ज्यादा मिल रहे विद्वानों हेतु विस्तृत प्रतिलेखन पुष्पिका प्रकार दिया गया है. १३. प्रतविशेष (प्र.वि.): प्रत सम्बन्धी शेष उल्लेखनीय अन्य मुद्दों एवं प्रतगत कृति सम्बन्धी परन्तु सम्भवतः इसी प्रत में उपलब्ध ऐसी उल्लेखनीय बातों का समावेश यहाँ किया गया है. प्रत क्रमांक के साथ (+) (-) द्वारा सूचित प्रत विशेषताओं का उल्लेख भी यहाँ होगा. १४. दशा विशेष (दशा.वि.) : प्रत क्रमांक के साथ () द्वारा सूचित प्रत की जीर्ण दशा व उसकी मात्रा आदि सम्बन्धी स्पष्टता For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: " यहाँ पर दी गई है. इसके आधार पर प्रत की उपयोगिता तय हो सकती है. १५. प्रतिलेखन श्लोक (प्र.ले. श्लो.) : प्रत के अंत में प्रतिलेखक द्वारा दिए जानेवाले हृदयोद्गार - श्लोकादि के संकेत अपने श्लोक क्रमांक के साथ यहाँ दिए गए हैं. यह श्लोक क्रमांक ज्ञानमंदिर में संग्रहित इस तरह के श्लोकों की सूची में से दिया गया है. यह सूची भविष्य में योग्य खंड में प्रकाशित की जाएगी. १६. लिपि माहिती प्रत देवनागरी जैन देवनागरी आदि जिस लिपि में लिखी गई है, उसका उल्लेख यहाँ किया गया है. १७. प्रत प्रकार : सामान्यतः कागज की बिना बंधे छुट्टे पत्रों वाली प्रतों से भिन्न, किसी भी पदार्थ पर लिखी गई गुटका आदि प्रकार की प्रत होगी तो उसका उल्लेख यहाँ आएगा. अन्यथा 'प्रत सर्व सामान्य कागज के बिन बंधे पत्रों की है' यह समझ लिया जाना चाहिए. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८. लंबाई, चौड़ाई : प्रत की लंबाई-चौड़ाई आधे सेंटीमीटर के अंतर की शुद्धि के साथ यहाँ दी गई है. १९. पंक्ति-अक्षर : पृष्ठगत पंक्ति व पंक्तिगत अक्षरों को भी अंदाजन गिन कर लघुतम व महत्तम रूप से दिया गया है. पेटाकृति माहिती स्तर जिन प्रतों में पेटाकृतियाँ होंगी, उन्हीं प्रतों हेतु यह स्तर होगा. इस स्तर पर निम्न सूचनाएँ दी जाएँगी. १. पेटांक: प्रतगत पेटाकृति का क्रमांक २. पेटाकृति नाम : (पे.नाम ) प्रतनाम की ही तरह यहाँ पर भी कृति का प्रत में सूचित नाम दिया गया है. मूल यदि टीका, बार्थ आदि युक्त हो तो प्रतनाम की तरह नियमानुसार 'सह' के साथ यह नाम दिया गया है. बहुधा कृति का मुख्य प्रस्थापित नाम यहाँ दिए गए नाम से भिन्न होता है. यह नाम Bold अक्षरों में दिया गया है. ३. पेटाकृति पृष्ठ : (पृ.) पेटाकृति का आदि अंत पृष्ठ क्रमांक. ४. पेटाकृति पूर्णता : यदि पेटांक की पूर्णता संपूर्ण के अतिरिक्त हो तथा उससे जुडी प्रथम कृति की पूर्णता पेटांक की पूर्णता से भिन्न हो तभी उसका उल्लेख यहाँ किया गया है. ५. पेटाकृति पूर्णता विशेष : ( पू.वि.) पेटाकृति के पृष्ठों में यदि कोई कमी हो तो वह कमी आदि, मध्य या अंत किस भाग में है यह संकेत यहाँ दिया गया है. आदि, मध्य में कौन से पृष्ठ कम हैं, उसकी यथार्थ सूचना प्रत माहिती की पृष्ठ सूचना के अंतर्गत मिलेगी. यहीं पर अन्तर्गत तत् तत् पेटांक में उपलब्ध कृति के अनुपलब्ध अंश का स्पष्ट उल्लेख भी किया गया है. इसमें कृति की पूर्णता संबंधी यथायोग्य सूचना दी जाती हैं. जैसे प्रथम पत्र न हो तो प्रारंभिक गाथा १० नहीं है.' इसी प्रकार अन्य संकेतों हेतु भी समझे. ६. पेटाकृति प्रतिलेखन संवत्, ७. पेटाकृति प्रतिलेखन स्थल (ले. स्थ), ८. पेटाकृति प्रतिलेखक आदि, ९. पेटाकृति प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.) १०. पेटाकृति प्रतिलेखन श्लोक (प्र.ले. श्लो.) पेटाकृतिगत इतनी सूचनाएँ हस्तप्रत स्तर की ही तरह यहाँ पर भी पेटाकृति हेतु भिन्न रूप से प्रत में यथोपलब्ध दी गई हैं. ११. पेटाकृति विशेष (पे.वि.) पेटाकृति के अन्य उल्लेखनीय तथ्यों का यहाँ समावेश किया गया है. जैसे- पेटाकृति प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गिनकर कुल गाथाएँ लिखी है. यह कृति प्रत में एकाधिक बार लिखी गई है. इत्यादि. कृति माहिती स्तर - प्रत व पेटाकृति स्तर के नाम में उल्लिखित कृतियों की सूचना इस स्तर पर दी गई है.. १. कृति नाम : कृति का प्रस्थापित / बहुप्रचलित नाम ही यहाँ देने का नियम रखा है. अतः यह नाम उपर दिए गए प्रत या पेटाकृति नाम से बहुधा भिन्न होगा. प्रत/ पेटाकृति स्तर पर प्रत में उपलब्ध नामों को प्रायः ज्यों का त्यों दे दिया गया है. किसी भी कृति के वैविध्यतापूर्ण इन नामों का भी अपना एक अलग महत्व होता है. यदि पेटाकृति नाम और कृति नाम समान हो तो कृति माहिती स्तर पर कृति नाम नहीं दिया गया है. For Private And Personal Use Only २. कृति स्वरूप : सामान्यतः कृति के टीका, टबार्थ आदि स्वरूप कृति नाम में ही उल्लिखित होते हैं, परंतु हिस्सा, संक्षेप व - संबद्ध इन तीन स्वरूपों में क्वचित ऐसा नहीं हो पाता. अतः इन तीन स्वरूपों को कृतिनाम के बाद अलग से भी दे दिया गया है. ३. कर्ता का स्वरूप व नाम, ४. कृति भाषा, ५. कृति का गद्य, पद्य आदि प्रकार, ६. कृति रचना संवत, ७. ( आदि :) प्रत ८ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir में उपलब्ध प्रत का प्रथम व क्वचित द्वितीय आदि वाक्य, ८.(अंति:) प्रत में उपलब्ध प्रत का प्रथम व क्वचित द्वितीय अंतिम वाक्य. ९. कृति परिमाण : प्रत में उपलब्ध कृति का यथायोग्य अध्याय-ढाल-खंड आदि, गाथा/श्लोक आदि तथा ग्रंथाग्र की सूचना यहाँ दी गई है. कई बार विविध प्रतों के परिमाण में अनेक कारणों से न्यूनाधिकता मिलती है, जो कि प्रचलित कृति परिमाण से भिन्न भी हुआ करती है. यदि यह भेद ज्यादा बडा हो तो विभिन्न परिमाणों वाली एकाधिक कृतियों की स्वतंत्र प्रविष्टि का नियम है. यथा - बृहत् व लघु ऋषिमंडल स्तोत्र. १०. कृति पूर्णता : प्रतगत कृति की निजी पूर्णता को यहाँ दिया गया है. प्रत व पेटांक की पूर्णता (जिनका आधार मात्र पृष्ठों की उपलब्धि/अनुपलब्धि पर होता है) से कृति की यह पूर्णता भिन्न हो सकती है. यथा - एक पेटाकृति के तहत मूल व टबार्थ दो कृतियाँ हों, प्रतिलेखक ने मूल संपूर्ण लिखा हो एवं टबार्थ बीच में से लिखते लिखते अधूरा ही छोड दिया हो तो ऐसे में पेटाकृति माहिती स्तर पर पूर्णता 'संपूर्ण' आएगी, जबकि कृति स्तर पर मूल की पूर्णता 'संपूर्ण' एवं टबार्थ की पूर्णता 'प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण' इस तरह की जाएगी. क्वचित् प्रत/पेटाकृति स्तर पर पूर्णता में 'संपूर्ण न हो तो भी कृति स्तर पर यह 'संपूर्ण' हो सकती है. यथा - अंत के ही एक दो पृष्ठ न हो, ऐसी प्रत में मूल संपूर्ण हो सकता है एवं टीका का अंत भाग न होने की वजह से टीका 'संपूर्ण नहीं होगी. इस तरह कृति स्तर पर भी पूर्णता की अपनी स्वतंत्र उपयोगिता है. - इसके बाद कृति गत प्रतिलेखन पुष्पिका की निम्नोक्त सूचनाएँ ( ) ब्रेकेट में दी गई है. कृपया यहाँ दिए गए वर्ष व स्थल आदि को कृति की रचना प्रशस्ति मानने की भूल न करें. रचना प्रशस्ति से इनकी भिन्नता बताने के लिए ही इन्हें ब्रेकेट में दिया गया है. इसके अंदर प्रत/पेटांक नाम के अनुरूप संयोजित कृति की प्रत में उपलब्ध पाठ का स्पष्टीकरण किया जाता है. इसमें कृति यदि स्वशाखायुक्त होती है तो दर्शाये गये प्रत/पेटांक के पत्र अनुसार सभी अपूर्ण भी हो सकते हैं तथा कृति शाखा में से मात्र कोई एक ही अपूर्ण हो सकती है. जैसे - कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका. मूल - संपूर्ण तथा टीका - अपूर्ण. स्पष्टता - यहाँ भी अपूर्णता के सभी प्रकार आ सकते हैं. किन्तु संयोजित कृति के लिये जो लागू पडता हो उसी का चयन अपेक्षित रहता है. जैसे - अंत के पत्र नहीं है, श्लोक ४० तक टीका है अथवा अंतिम ५ श्लोकों की टीका नहीं है. ११. कृति प्रतिलेखन संवत, १२. कृति पूर्णता विशेष (पू.वि.), १३. कृति प्रतिलेखन स्थल (ले.स्थल.), १४. कृति प्रतिलेखक आदि, १५. कृति प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.), १६. कृति प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक (प्र.पु.श्लो.), १७. कृति प्रतिलेखन विशेष (वि.) - कृति स्तरगत प्रतिलेखन संबंधी इतनी सूचनाएँ प्रत स्तर की ही तरह तत्-तत् कृति हेतु अलग से उपलब्ध होने पर यहाँ पर दी गई हैं. कई बार ऐसा पाया गया है कि मूल व टबार्थ दोनों की प्रतिलेखन पुष्पिका भिन्न होती है. खास कर ऐसे संयोगों में ही यहाँ पर ये सूचनाएँ मिलेंगी. कृति नाम के अंत में star *" हो तो वह कृति विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति रूप में जाननी चाहिए. ऐसा बहुधा टबार्थ व श्लोक संग्रह हेतु हुआ है. आदि, अंतिमवाक्य में अक्सर (१) व (२) कर के दो दो आदि/अंतिम वाक्य मिलेंगे. यह विभिन्न प्रतों में सामान्य या विशेष फर्क के साथ मिलनेवाले अनेक आदि/अंतिमवाक्यों की वजह से उत्पन्न होने वाले भ्रम को यथा संभव दूर करने के लिए किया गया है. टबार्थ, बालावबोध व स्तवन आदि देशी भाषाओं की कृतियों में ऐसा प्रचूरता से प्राप्त होता है. प्राकृत, संस्कृत भाषाबद्ध पाक्षिकसूत्र, उपदेशमाला जैसी कृतियों में भी प्रथम गाथा में फर्क पाया जाता है. आदि: कोलम में यदि प्रत में कृति जहाँ से प्रारंभ होती है, वह पृष्ठ न हो तो यहाँ पर आदि वाक्य की जगह (-) दिया गया है. यही बात अंतिमवाक्य के लिए भी लागू होती है. किसी कारण से अक्षर पढे नहीं जा रहे तो ऐसे में (अपठनीय) दिया गया है. कृति में कर्ता का नाम अनेक रूपों में मिलता है. यथा - उपा. यशोविजयजी हेतु यश, जश नाम भी प्रयुक्त मिलते है. ऐसे में तय होने पर कर्ता का मुख्य नाम ही यहाँ पर लिया गया है. कृति व विद्वान के एकाधिक अपरनाम यद्यपि कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं, फिर भी इस सूची में उनकी उपयोगिता अत्यल्प होने से व कद की मर्यादा होने से यहाँ नहीं दिए गए हैं. For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली अहमदाबाद मुंबई अमेरिका अहमदाबाद १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी २. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव ३. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया ४. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग ५. श्री शंभुकुमार कासलीवाल ६. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट ७. श्री सांताक्रुज तपागच्छ जैन संघ ८. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसीएशन इन नॉर्थ अमेरिका, "जैना" ह. डॉ. प्रेम गडा ९. एम. जे. फाउन्डेशन १०. कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी ११. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर १२. शेठश्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर मुंबई मुंबई मुंबई अमेरिका मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई आप सभी धर्मप्रेमी श्रीसंघों तथा महानुभावों की उदार दानशीलता के कारण ही हस्तलिखित ग्रंथों के संरक्षण व संवर्द्धन की ___ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबातीर्थ की प्रस्तुत परियोजना सफलता पूर्वक प्रगति के सोपान पर अग्रसर है. अन्यथा यह कार्य इतना सरल नहीं था. For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत कृति /प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक - कर्ता द्वारा लिखित प्रत, कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित, प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित पाठ, शुद्धप्राय पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद चिह्न, संधिसूचक चिह्न, वचन विभक्ति चिह्न, क्रियापद सूचक चिह्न आदि वाली प्रत. कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से उपयोगिता में कमी सूचक. इस हेतु दशा विशेष में निम्न संकेत हो सकते है. मूल पाठ का अंश नष्ट हो गया (खंडित). टीकादि का अंश नष्ट है. मूल व टीका का अंश नष्ट है. टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं. अक्षर मिट गये हैं. अक्षर पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं. जीर्णतावश नष्ट हो गये हैं. कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप. अपभ्रंश (भाषा) अंति: अंतिमवाक्य (कृति माहिती) आ. आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः आदिवाक्य (कृति माहिती) उप. जिस विद्वान के उपदेश से प्रत लिखी या लिखवाई गई हो, उसके लिए यह प्रकार आता है. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा. उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ. ऋषि (विद्वान स्वरूप) कवि (विद्वान स्वरूप) कुं. कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं. मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्व ग्रंथाग्र (परिमाण - प्रत व पेटाकृति विशेष में) कुल पे. कुल पेटाकृति (प्रत माहिती स्तर) क्रीत. किसी के द्वारा प्रत खरीदी गई हो तो. (प्र. ले. पु. विद्वान) को. कोष्टक (कृति स्वरूप) गणि (विद्वान स्वरूप) गा. गाथा (परिमाण) गच्छा . गच्छाधिपति (विद्वान स्वरूप) गद्य बद्ध (कृति प्रकार) गुजराती (भाषा) गृही. गृहीत आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) ग्रंथाग्र (परिमाण) जैन कृति (कृति परिशिष्ट) जै.क. जैन कवि (विद्वान स्वरूप) जैन देवनागरी (लिपि) जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) दत्त. आदान-प्रदान में प्रत देने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) जैन दिगंबर कृति. (कृ. परि.) देवनागरी (लिपि) क. ग. गद्य. जैदे. दि. देना. ११ For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पठ. प+ग पद्य. पा. पं. पं. पु. हिं.. पू.वि. पृ. पे. नाम. पे.वि. प्र.वि. प्रले. प्र.ले.पु. प्र.ले. श्लो. प्रा. प्रे. बौं बी. म. मा.गु. मु. मूपू. यं. रा. रा. राज्ये. लिख. ले. स्थल. वा. वी. वि. विक्र. व्याप. वै. श. श्राव. श्रु. श्वे. सं. राजस्थानी (भाषा) राज्यकाल जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. सम. सा. स्था. हिं. पठनार्थं जिस के पढने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र.ले.पु. विद्वान ) पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार ) पद्य बद्ध (कृति प्रकार) पाठक (विद्वान स्वरूप ) पंजाबी (भाषा) पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप ) पुरानी हिंदी (भाषा) पूर्णता विशेष (प्रत माहिती स्तर) पृष्ठ (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर ) पेटाकृति नाम पेटाकृति विशेष प्रत विशेष, कृति प्रतिलेखन विशेष. प्रतलेखन प्रेरक. (प्र.ले.पु. विद्वान) बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) मराठी (भाषा) www.kobatirth.org: प्रतिलेखक, लहिया, Scribe (प्रतिलेखन पुष्पिका) प्रतिलेखन पुष्पिका की प्रत / पेटाकृति / कृति प्रतिलेखन के अंत में 'सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धि सूचक. प्रत, पेटाकृति व कृति प्रतिलेखन के अंत में प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) प्राकृत (भाषा) मारुगुर्जर (भाषा) मुनि (विद्वान स्वरूप) जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) यंत्र (कृति स्वरूप) राजा (विद्वान स्वरूप ) - जिस विद्वान के गच्छनायकत्व में प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. प्रत लिखवाने वाला. (प्र.ले.पु. विद्वान ) लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वाचक (विद्वान स्वरूप) वर्ष संख्या के पूर्व होने पर वीर संवत यथा वी. २००० वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वीं सदी' यथा- ८वीं सदी. विक्रम संवत (वर्ष माहिती), कृति प्रतिलेखन विशेष. विक्रेता प्रत का. (प्र.ले.पु. विद्वान) व्याख्याने पठित विद्वान द्वारा. (प्र.ले.पु. विद्वान ) वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट ) शक संवत (वर्ष माहिती) श्रावक (विद्वान स्वरूप) जो किसी विद्वान के व्याख्यान में श्रुत-श्रोता द्वारा. (प्र.ले.पु. विद्वान) जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट ) संस्कृत भाषा समर्पक विद्वान या ज्ञानभंडारों को समर्पित करने वाला. साध्वीजी (विद्वान स्वरूप ) जैन श्वेतांबर स्थानकवासी. (कृति परिशिष्ट) हिंदी (भाषा) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना... समर्पण ............ प्रकाशकीय .......... प्राक्कथन ..... .............11-12 कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा .. .................................. ..5-6 प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण ......... .....6-9 हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य ...... ............10 प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत .. अनुक्रमणिका ..... ................. 13 हस्तप्रत सूची... .........1-474 परिशिष्टः कृति परिवार की मूल कृति के अकारादि क्रम से - परिचय... ...........475-477 १. कृति नाम से प्रत-पेटा कृति क्रमांक सूची (संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंशादि)... .478-531 २. कृति नाम से प्रत-पेटा कृति क्रमांक सूची (मा.गु., प्राचीन हिन्दी, राजस्थानी आदि). 532-590 प्रस्तुत सूची पत्र में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. ० प्रत क्रमांक - १७३०१ से २१०००. ० इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से २७०१ प्रतों का समावेश इस खंड में हुआ है. ० समाविष्ट प्रतों में कुल २३२० कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ० इन परिवारों की कुल ३००२ कृतियों का समावेश हुआ है. 0 उपरोक्त कृतियाँ प्रतों में कुल ५६८३ बार आई हैं. For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ॥श्री महावीराय नमः॥ ॥श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ।। कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७३०१. भवानीमाता पूजनविधि व पद्मावतीनाम स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६-१(१)=५, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५४४२-४७). १. पे. नाम. भवानीमाता पूजनविधि, पृ. २अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., श्लोक १ नहीं है. ___ भवानीदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: न हि किंचिदस्ति, श्लोक-४, अपूर्ण. २. पे. नाम. पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. २अ-६अ. सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: प्रीत्यपलायनैक्यं. १७३०३. दिगपट कपट, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४११.५, १२-१४४३७-४३). चतुरशीति बोलरचना, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण ज्ञान शुभध्यान; अंति: सोलहै मंगल ___ रंग अभंग, गाथा-१५७. १७३०४. लीलावती भाषा, संपूर्ण, वि. १७८१, फाल्गुन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. बीलानगर, प्रले. मु. सिवराज (गुरु ग. जीवसुख पंडित, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १७X४४-५०). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: ऐ वरतो जनसुख काज, अध्याय-१६, गाथा-७०७. १७३०५. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मुनि राजविमलजी के शिष्य ज्योतविमलजी द्वारा वि.सं. १७९९ लिखित प्रत पर से यह प्रत लिखी जाने की संभावना है., जैदे., (२५.५४११.५, ३-५४३९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: साचउ वस्तुनो स्वरूप; अंति: जिनवचन हुइ ते प्रमाण. १७३०६. उपदेशमाला, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-१(१)=३२, पू.वि. गाथा १-१३ तक नही है।, जैदे., (२५.५४११.५, । ९-१०४३७-४४). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, पूर्ण. १७३०७. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११८-६३(१ से १५,२२ से २४,६१ से ८०,९० से ११३,११५)=५५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१२, ५-१३४२७-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७३०८. सिंदूरप्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८०, माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. जेसलमेर, जैदे., (२५.५४१२.५, १३-१४४४०-४२). For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: (१)श्रीमत्पार्श्वजिनं, (२)पार्श्वप्रभोः श्री; अति: सादमाधाय तत्सर्वम्. १७३०९. गजसुकमाल व अष्टमी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ८x१९-२९). १. पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. १आ-६अ. गजसुकुमाल सज्झाय, मु. मकनमोहन, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (१)एक घर घोडा हाथीयाजी, (२)जी रे सरस्वती समरूं; अंति: मकनमोहन० भवनो पार रे, ढाल-२, गाथा-४३. २. पे. नाम. अष्टमी सज्झाय, पृ. ६अ-६आ. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अष्ट करम चूरण करी; अंति: देववाचक आणंद, गाथा-६. १७३१०. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. राजनगर, पठ. श्रावि. नवलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४-१५४४०-४२). जिनस्तवनचौवीशी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिकरण अरिहंतजी ओलगड; अंति: अनंतसुख पावे, स्तवन-२४. १७३१२. साधुश्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह सह टबार्थ, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२-५(७ से १०,८५)+१(४५)=८८, पू.वि. सूत्र ५०१, प्र.वि. जैदे., (२६४१२, ४-५४२९). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं०; अंति: भयाणं त्रिकाल वंदणा, पूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो कर्मरूप; अंति: त्रिकाल वंदणा होज्यो, ग्रं. १५८१, पूर्ण. १७३१३. शालिभद्रधन्नामहामुनि चोपै, संपूर्ण, वि. १८११, चैत्र शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. अगस्तपूर, प्रले. मु. विवेकविजय पं. (गुरु ग. न्यानविजय पं.), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १३-१५४३४-३६). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: मनवंछित फल लहस्येजी. १७३१४. मानतुंगमानवती व थुलिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२-४५). १. पे. नाम. मानतुंगमानवती रास, पृ. १आ-६अ. अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीजिन शांतिजिनेश्व; अंति: प्रसादे० जयनगरे कही, ढाल-८, ग्रं. ४०५. २. पे. नाम. स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पृ. ६अ-६आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३ गाथा-१ अपूर्ण तक है. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहकर पासजी; अंति: (-), अपूर्ण. १७३१५. नवस्मरण सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पृ.वि. प्रतिपूर्ण- ८ स्मरण है।, प्र.वि. खाली जगहों को विविध रंगों द्वारा कलात्मक ढंग से भरा गया है., जैदे., (२५.५४१२, ४-५४३५-३७). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: शिवं भवतु स्वाहा, प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ नवस्मरण- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः नमस्कार हओ अरिहन्त; अंतिः संघने मंगलिक अर्थे, प्रतिपूर्ण, १७३१६. (+) विदग्धमुखमंडन सह टीका व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९६, चैत्र कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. २, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. पं. कुंअरकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न - त्रिपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६X११.५, ५-७x४३-४५). १. पे. नाम. विदग्धमुखमंडन सह टीका, पृ. १आ- २५अ. विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदि: सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति: मेकान्तमदनोत्सवं, परिच्छेद ४ लोक-२७३, ग्रं. ४७६. विदग्धमुखमंडन काव्य-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: स्मृत्वा जिनेंद्रमपि अंतिः धावते पररूपं, ग्रं. १३७५. २. पे. नाम. सुभाषितलोक संग्रह, पृ. २५अ. श्लोक संग्रह*, प्रा., मा.गु., सं., हिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. १७३१७. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १६७४ माघ कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले, स्थल, दीवचंदर, पठ, श्रावि. लालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५४११.५, ७-११४३०-३३). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्म, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंतिः वयण विणिगया वाणी, गाथा - ५४४, ग्रं. ६६०. १७३१८. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८६५, कार्तिक शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, पू. वि. डाल- ४७, ले. स्थल. सरतांनपुर, प्रले. मु. वाघजी ऋषि (गुरु मु. जयानंद ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. जैदे., (२५.५X११, १४४३६-४१). मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंतिः होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल ४७, ग्रं. १४८५. १७३२२, (+) संग्रहणीसूत्र, वीसविहरमानजिन स्तवन व सुभाषित लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, प्रले. सा. जयणा; पठ. सा. रुक्मणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५X११, १३४३३). १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १आ - २६आ. आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिङ; अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा - २०६. २. पे. नाम. बीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. २६ आ-२७अ. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. दयाधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देव नमु निसदीस; अंतिः दयाधर्म हिव पाइवा, गाथा - ८. ३. पे. नाम. सुभाषित लोक, पृ. २७अ २७आ. श्लोकसंग्रह, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १. १७३२३. सुदर्शनसेठ रास, संपूर्ण, वि. १६१९, भाद्रपद कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. लाटापल्ली, पठ. श्राव. भोटा सिवा साह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., ( २६४११.५, १२-१३x४०-४२). सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५०१, आदि: पहिलउ प्रणमिसु अंति: सुजाण बुद्धि निहाण, गाथा - २६०. For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७३२४. पाक्षिक व खामणासूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. २, प्रले. ग. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ६x४०-४१). १. पे. नाम. पक्खियसुत्तं सह अक्षरार्थ, पृ. १आ-२३. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (१)जेसिं सुयसायरे भत्ति, (२)मिच्छामि दुक्कडं. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरसिद्ध; अंति: हुइ ते मिच्छामिदुकडं. २. पे. नाम. पाक्षिकखामणा सह अक्षरार्थ, पृ. २३अ-२४अ. खामणासूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे क्षमाक्षमण वांछु; अंति: मने करी वांदु छु. १७३२५. संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९+१(२७)=४०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गा. ३१७ तक है।, जैदे., (२५४११, ४-६४३६-३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), पूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीगुरु; अंति: (-), पूर्ण. १७३२६. (+) विचारषट्विंशिका सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १६९७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. मोचाचल, प्रले. पं. कमलहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १५४४५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: स्वस्ति श्रीवामेयं; अंति: विज्ञप्ति आत्महिता. १७३२७. शृंगारवैराग्यतरंगणीसह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५.५४११.५, १६४५०-५४). शंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: धर्मारामदवाग्निधूम; अंति: निशमेति नाशं, श्लोक-४६. शृंगारवैराग्यतरंगिणी-सुखबोधिका टीका, मु. नंदलाल, सं., गद्य, वि. १७८०, आदि: श्रीपार्श्वनाथ; अंति: वृंद नतपादांबुजद्वये. १७३२८. (+#) प्रत्येकबुद्ध चौपाई, संपूर्ण, वि. १७४१, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३७, ले.स्थल. साहिजहांनाबाद, प्रले. मु. महिमानंदन (गुरु मु. भुवनसुंदर पं.); पठ. श्रावि. अमरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३-१४४४०-४२). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: महामुनि गाइयइ, खंड-४, ढाल-४५. १७३२९. उपदेशमाला सह टबार्थ व सुभाषित, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ६x४३-४५). १. पे. नाम. उपदेशमाला सह टबार्थ, पृ. १आ-४३अ. उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: सोहियव्वं पयत्तेण, गाथा-५४३. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंति: मुख थिकउ निकली वाणी. २. पे. नाम. जैन धार्मिक विचार, पृ. ४३अ. विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७३३०. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. उदयसमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैवे. (२५४११, १०-१३X६५-६६ ). 19 पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग, आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंतिः जयो वांछितावाप्ति. १७३३२. अध्यात्मगीता सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४- १ (१) = १३, जैदे., (२६X११, ८-१३X३४-४६). अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीइ विश्वहित जैन; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा- ४९. अध्यात्मगीता-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. बालावबोध का प्रारंभिक अंश नहीं है व प्रतिलेखकने १७ वीं गाथा तक का ही बालावबोध लिखा है. ) १७३३३. वैराग्यशतक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, माघ कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल, घोघाबंदर, प्रले. पं. पद्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११.५, ४ - ६३९-४२). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहिओ जिओ सासयं ठाणं, गाथा - १०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसारमांहे जे; अंति: पामे जीव सद्यो. १७३३४. .(+) कर्मग्रंथ ५ शतक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. मूल पत्र-२९-४४ व प्रकरण पत्र १-१६., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १५४०, जैवे. (२६५११, ५३१-३७). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा - १००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. यशस्वी, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ रागादि; अंति: संभारवानई अर्थ. १७३३५. कुमारसंभव की सुबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८८-७९ (३ से १६,१८,२० से २७,२९ से ४५, ४७ से ५३,५५ से ७३,७५ से ८७) = ९, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., सर्ग - १ से ७ अपूर्ण तक है. उपलब्ध सभी सर्ग अधूरे हैं., जैवे. (२६११, १५-१९४३५-४८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारसंभव -सुबोधिका व्याख्या, ग. श्रीविजय, सं., गद्य, आदि (१) श्रीशंखेश्वरपार्श्वम, (२) अत्र भवान् कालिदासः अंति: (-), अपूर्ण. १७३३६. पाखीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ८-१ (३) = ७, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (२५.५x११, १३४३७-४०). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्थंकरे व तित्थे; अंति: (-), अपूर्ण. १७३३७. दीपोत्सवकल्प, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., ( २६११, १५४५६-५८). दीपावली पर्व कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य वि. १३८७, आदि: पणमिय वीरं वुच्छं; अंतिः समत्थिओ एस सत्थिकरो. , १७३३८. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७३८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में उल्लिखित बार्थकार का नाम मिटा दिया गया है. परन्तु आकार प्रकार व टबार्थ के आदि अंतिमवाक्य के आधार पर यह विद्वान लिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, जैवे. (२४.५४११, ४४३४-३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि कल्याणमंदिरमुदारम; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - टबार्थ, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण क० मंगलिक तेह; अंति: प्रपद्यते क पामई, ग्रं. ३५०. For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७३३९. (+) दीपालिकास्वरूप, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १०-१५४५०-५३). दीपावलीपर्व कल्प, आ. विनयचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १३४५, आदि: सन्तु श्रीवर्द्धमान; अंति: दीपालिकाकल्प, श्लोक-३०४. १७३४०. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. य. जीवण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ६४३४-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि दीवा; अंति: जे विचार कह्यो. १७३४१. (+) रात्रिभोजन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२४२ तक है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ११४३५-४१). रात्रिभोजन चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: पणमि गोयम गणहर राय; अंति: (-), अपूर्ण. १७३४२. चंद्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १७९९, आश्विन शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. डीसाग्राम, पठ. मु. गोविंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १९४५१-५४). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल-२९, गाथा-६२४. १७३४३. तिलोकसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. नारनोल, प्रले. मु. तुलसीराम (गुरु मु. धनराज), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १६४३८-४०). त्रैलोक्यसुंदरी चौपाई, क्र. कनीरामजी, मा.गु., पद्य, वि. १८११, आदि: अरिहंत सिद्ध अनंतगुण; अंति: दायक फल लुणसी रे लो, ढाल-२२. १७३४६. कालकाचार्य कथानक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४११, ९४३२-३३). कालिकाचार्य कथा, आ. जिनदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: मोहांधकारप्राग्भार; अंति: जयदेव मुनीश्वरः, श्लोक-९६. १७३४७. मानतुंगमानवती रास व कनकावती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १७-१८४४४-५२). १. पे. नाम. मानतुंगमानवती रास, पृ. १अ-९अ. उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुं माता सरसती; अंति: भेद मतिमंदिर लहै. २. पे. नाम. कनकावती रास, पृ. ९अ-२०अ. वा. ज्ञानशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १६४८, आदि: प्रथम जिणवर आदिजिण; अंति: न्यानशेखर० जग धीरजी, गाथा-४१९. १७३४८. चित्रसेनपद्मावती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदे., (२५४१०.५, ९-१४४३५-४०). चित्रसेनपद्मावती रास, उपा. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति आपौ सदा; अंति: रतनविमल० सुख वहिसीजी, ढाल-४१. For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७३४९. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४६, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. खंभातिबिंदर, प्रले. मु. रंगरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३-१४४३७-४०). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमु नित्य; अंति: इम नेमविजय जयकार, ढाल-१५. १७३५०. (+) संग्रहणीसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७१४, आश्विन शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. बोधिपुर, प्रले. पं. महिमारूचि गणि (गुरु पं. तेजरुचि गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संग्रहणी संबंधी विविध यन्त्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४४८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२८३. बृहत्संग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: सुष्ठ राजते शोभते; अंति: (-). १७३५१. मदनसेण चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४२, कार्तिक शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. हीराचंद ऋषि (गुरु मु. सरुपचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १५-१६४३६-३८). मदनसेन चौपाई, क्र. सांवतराम, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: प्रथम नमी भगवंतनै; अंति: दुरगति दुर नसाईये, ढाल-३१. १७३५२. वीरचरित्र सह टीका व जिनतपपारणादिवसगाथा की टीका, संपूर्ण, वि. १५१९-१६००, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्रले. पं. विनयसमुद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४१०.५, २-८x२४-३०). १. पे. नाम. दुरियरयसमीर स्तोत्र सह टीका, पृ. १आ-८अ. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. दरिअरयसमीर स्तोत्र-टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, वि. १५१९, आदि: वर्द्धयतु वर्द्धमानः; अंति: वाच्यमाना चिर __ जयतु. २.पे. नाम. जिनतपपारणादिवसश्लोक की व्याख्या, पृ. १अ. जिनतपपारणादिवस गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: दिवसूणू० जंभिय बहि०; अंति: तव केवलज्ञानमासीत्. १७३५३. योगशास्त्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पू.वि. प्रकाश १ से २ टबार्थ सहित है व प्रकाश ३ श्लोक ४ तक टबार्थ रहित है।, जैदे., (२५४११, ५-६४३२-३४). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. योगशास्त्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगुरु अज्ञानलोचन; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७३५४. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७६०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. लूणसरा, प्रले. मु. रूपा (गुरु मु. उदैभाण); पठ. मु. फांता पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११-१५४३५-३६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. १७३५५. राजप्रश्नीयसूत्रटीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९५, जैदे., (२६४११, १३४४४-४७). राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंति: ताडनानि कशादिघाताः. For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७३५७. (+) दशवैकालिकसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ४-५४२९-३५). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: पुछा कहणय विआरणासंघे, अध्ययन-१०, चूलिका २, गाथा-७००. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० जीवनइ दुर्गति; अंति: भव्य जीवने उपगार भणी. १७३५८. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४३९-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; ___अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. १७३५९. सूयगडांगसूत्र व सूत्रकृतांगनियुक्ति, संपूर्ण, वि. १६६६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ९२, कुल पे. २, प्रले. सचवीर लूणाणी चौधरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७२१) पयोपमं पत्र परंपरान्वितं, जैदे., (२६४११, ११४३३-३८). १. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र, पृ. १आ-८१आ. आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउडेज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३, ग्रं. २२५०. २. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्रनियुक्ति, पृ. ८२अ-९२अ. सूत्रकृतांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तित्थयरे य जिणवरे; अंति: सोउं कहियंमि उवसतो, गाथा-२२०. १७३६०. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिअपूर्ण, वि. १६५०, माघ शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६६-२(१ से २)=६४, पृ.वि. अध्ययन १ उद्देश-१ की प्रारंभिक १५ गाथाएँ नहीं है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (२२) उदकानलचोरेभ्यो, जैदे., (२५.५४११.५, ६x२६-३३). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १७३६१. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टिप्पण, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९३-१(६०)=९२, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., वर्ग ९ तक पूर्ण व वर्ग १० प्रारंभमात्र तक है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १८४४३-४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: (-), पूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टिप्पण", मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पूर्ण. १७३६३. हैमछंदानुशासन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२४४१०, १३४४६-४७). छंदोनुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: वाचं ध्यात्वार्हती; अंति: द्विघ्नानेकाध्वयोगः, अध्याय-८. १७३६४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०५-३६(१ से ३६)+१(४९)=७०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., अ. ९ गाथा ५१ से अ. २३ गाथा ८४ तक है।, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४४-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७३६५. हरीबल रास वचोसठजोगणी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७६३, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २९, कुल पे. २, प्रले. मु. गणपतिसागर पंडित (गुरु ग. हस्तिसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १७-१८४३७-४६). १. पे. नाम. हरिबल रास, पृ. १अ-२९अ. मु. जितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदाई समरु सदा; अंति: पूरे शंखेसर आसो रे, ढाल-३३. २. पे. नाम. देवीसिकोतरी छंद, पृ. २९अ-२९आ. सिकोतरीदेवी छंद, गांग, मा.गु., पद्य, आदि: अगम हुताहुं ऊतरी; अंति: गांगलो जाप० सीकोतरी, गाथा-१०. १७३६७. शालिभद्रधन्नाजीरी सिलोको, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५४१०.५, १३४३७-३९). शालिभद्रधन्नाजी शलोको, मु. सिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: सरसति सांमण समरूं; अंति: राजे सिंहमुनि गाया, गाथा-१४७. १७३६८. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.८४, जैदे., (२६४११,८-११४४०-४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६. १७३७०. हंसराजवच्छराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४७, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, ले.स्थल. पीही, प्रले. मु. माण्णकचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१७३) जलात् र? तैलात् रक्ष, जैदे., (२५४१०.५, १०-११४४१-४४). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीसर आदि करी चोऊवीस; __ अंति: ए हंस अनै वच्छराज, खंड-४, ढाल ४६. १७३७१. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ व धातुनिर्माण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, ४-११४४०-४१). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ-१८अ. आवश्यकसूत्र-तपागच्छीय श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: निदिय गरहिअदुर्ग. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहन्तनइ काजि; अंति: निश्चल जाणिवउ. २. पे. नाम. पारदेन सुवर्णादि धातुनिर्माण विधि, पृ. १अ-१८आ. औषधवैद्यक संग्रह , सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १७३७२. (#) दीपोत्सव कल्प, संपूर्ण, वि. १७८०, कार्तिक शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. संग्रामपुर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४८-५०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, वि. १३८७, आदि: पणमिय वीरं वुच्छं; अंति: समथिओ एस सत्थिकरो. १७३७४. (+#) मृगावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४-१५४४०-४३). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३. १७३७५. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४१०.५, ९x१९-२०). गौतमस्वामीरास, ऋ. जैमल, रा., पद्य, वि. १८२४, आदि: गुण गाय गोतम तणा; अंति: जैमलजी० चोमासाजी, गाथा-१८. For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७३७७. संथारा पयन्ना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६४३, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. हंसारकोट, प्रले. मु. जावड ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, ३-७४४०-४७). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं मम दिंतु, गाथा-१२१. संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मु. क्षेमराज, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवीरं च प्रणम्याद, (२)नमस्कार करीनइ केहनइ; अंति: (१)संस्तारकप्रकीर्णकस्य, (२)अभ्यर्थना ग्रंथकारनी. १७३७८. परदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२५४१०.५, १७४४८-५२). केशीगणधर-परदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहत; अंति: पार समकित सुद्ध आधार, ढाल-४१. १७३७९. संघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७५४, भाद्रपद कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. तेजरत्न (गुरु आ. भावरत्नसूरि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १२-१४४३५-४६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२८०. १७३८०. अंतगडदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७, जैदे., (२५४११, १०-११४३५-३७). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२. १७३८१. प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६९, आश्विन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६४१०.५, १४४४४-४६). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय%; __ अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२५०. १७३८३. संबोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९५, ज्येष्ठ, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२४.५४१०, ५४४१). संबोधसत्तरी, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-७३. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण नमिनइं त्रिलोक; अंति: लहै इहां संदेह नहीं. १७३८४. २४ दंडक ३० बोल विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२३.५४१०.५, १२-१३५२५-२९). २४ दंडक ३० बोल विचार, आ. रूपजीवर्षी, मा.गु., पद्य, आदि: दंडक १ लेसा २ ठिति; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७३८८. अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ११४, प्रले. मु. लालचंद्र (गुरु ग. भावरंग), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१२५) अदृष्टदोषान् मतिविभ्रमाद्वा , जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५६-५८). अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, आदि: सम्यक्सुरेंद्रकृत; अंति: रचिता प्रकृतवृत्तिः, ग्रं. ५९००. १७३८९. गजसुकमाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, जैदे., (२५.५४१०, १३-१५४३५-४०). गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: नेमसर जिनवरतणा चरण; अंति: जिनवर चरण नमीजइ, ढाल-३०, गाथा-६६१, ग्रं. २००. १७३९०. सुक्तावली व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. नाडुलनगर, प्रले. मु. त्रैलोक्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १२-१३४३८-४२). For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. सुक्तावली, पृ. १अ - ११अ. सूक्तावलि, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४. २. पे नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ११अ. सुभाषित संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १७३९२. कार्तिकसेठ व नंदनमणियारा को चौढालियो, संपूर्ण, वि. १८६३ आश्विन कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले. स्थल, जपुर, प्रले. सा. चंपा (गुरु सा. गंगाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. जैदे., (२५X१०, १८४४३-४५), १. पे नाम, कार्तिकशेठ चौढालीयो, पृ. १आ-३अ. मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: आदेसर आदि करी चोवीसु; अंति: भगवंत वाणी रसाल है, ढाल -४. २. पे. नाम. नंदणमणियारकोचौढालीयो, पृ. ३अ - ५आ. नंदनमणियार चौडालियो, रा., पद्य, आदि गिनातारा तेरवा; अंति कीजो आतमरो उद्धार ए, ढाल - ४. १७३९३. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. ५६, ले. स्थल. राणी, जैवे. (२५x१०.५, १०-१२x२८-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान - ९, ग्रं. १२१६. (+) १७३९४. | कल्पसूत्र सह टबार्थ + व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १७५५ कार्तिक शुक्ल, ९ शुक्रवार, मध्यम, पृ. ११४-१(१)=११३, ले. स्थल. सिद्धपुर, प्रले. मु. विवेकविजय (गुरु ग. दर्शनविजय); पठ. मु. तिलकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ५०००, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२५.५X११, ६X१५-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: उबव॑से ति बेमि, व्याख्यान ९. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) वर्द्धमानं जिनं, (२) अरिहंतनइ नमस्कार; अंति: (१) मनोवाक्कायशुद्धितः, (२) एतलइ गुरुक्त जाणवु. १७३९७. (+) उत्तमचरित्र कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, नागपूर, पठ. सा. वलभादे आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १८४५९-६५). उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, आदि: भक्त्या वस्त्राणि अंतिः महाविदेहे मुक्तिः, प्रले. १७३९८. कुमारपालराजऋषि रास, संपूर्ण, वि. १८०९ कार्तिक कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९९, ले. स्थल, सूर्यपुर, मु. . माहावजी ऋषि (गुरु मु. कृष्णजी, लोंकागछ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २५X११, १७-२०X५४-६१). कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: सकल सिद्ध सुपरि नमुं; अंति: नवनिधान पायो, गाथा- ४९४९. १७३९९ दण्डक, नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, जैवे., (२५.५x११, १५४५१-५९). १. पे नाम चतुर्विंशतिदंडक स्तवन, पृ. १अ २अ. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा -४४. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ - ३आ. प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः एवं चिय केसवा नेया, गाथा - ५९. १९ For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३आ-५अ. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. १७४००. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ३४२६-२८). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताण पंचिद; अंति: जिण पास पयछो वंछिओ. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अढार दोषरहित बार गुण; अंति: बंछित सुख प्रतेई. १७४०३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५३, कार्तिक शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ७५, प्रले. पं. राजसील, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १७४५५-५८). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, पंन्या. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; __ अंति: उत्तराध्ययनवृत्तिकथा. १७४०५. (+) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. धनविजय; पठ. ग. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४०-४७). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: मानेति शमेति नाशम्, श्लोक-१०२. १७४०६. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदे., (२५४११, १५४४१-४९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: वोसिरियं० मएगहियं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइं नमस्कार; अंति: देसावगासिअं कहीइ. १७४०७. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ-१ से १८ अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदे., (२४.५४११, ५४२९-३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १७४०९. संघयणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६२, कार्तिक कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३८, जैदे., (२६४११, ६४३९-४३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३५८. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतादि पांच पदनि; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा १४७ तक टबार्थ है.) १७४१२. (+) नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कांड ३ श्लोक ८६ तक है।, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११-१२४४०-४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), __ अपूर्ण. १७४१४. गणरत्न महोदधि, संपूर्ण, वि. १५८०, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. दुवकुलपाटकनगर, प्रले. ग. नयचंद्र (खरतरगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १४-१५४४१-४९). For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ गणरत्नमहोदधि, आ. वर्द्धमान, सं., गद्य, वि. ११९७, आदि: वाग्देवतायाः क्रम; अंति: दायादकाकगुहौ, अध्याय-८. १७४१५. प्रकरणचतुष्क व संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ३०, कुल पे. ४, ले.स्थल. मोढा, प्रले. पं. रविविजय गणि; पठ. श्राव. जीतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, जैदे., (२५.५४११, १०४३४-३७). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-३आ. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३आ-६अ. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अतिथसिद्धाय मरुदेवी, गाथा-५२. ३. पे. नाम. दंडगषट्विंशका, पृ. ६अ-८आ. दंडकषत्रिंशिका, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३९. ४. पे. नाम. संग्रहणीसूत्र, पृ. ८आ-३०आ. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३९४. १७४१६.(+) समैसार नाटक, पूर्ण, वि. १७२१, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ५६-१(१)=५५, पू.वि. गाथा १-५ तक नहीं है., ले.स्थल. गलकुंडा, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १३४४३-५०). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, गाथा-७४१, पूर्ण. १७४१७. (+) औपपातिकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६८४, माघ कृष्ण, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०६, ले.स्थल. आगरा, राज्यकाल रा. शाहजहाँ; लिख. आ. गुणसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, २-१०४३२-४०). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-१८९, ग्रं. १२५०. औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानमानम्य, (२)अथौपपातिकमिति कः; अंति: संशोधिता चेयम्, ग्रं. ३१३५. १७४१८. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १६१६, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५१-४(१,४३ से ४५)=४७, पू.वि. कांड-१ श्लोक १-१५ एवं कांड-४ श्लोक-३४३- तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., प्र.ले.श्लो. (५१८) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षेत्, जैदे., (२७४११, १३४४२-४७). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रोषोक्ताव नतौ नमः, कांड-६, अपूर्ण. १७४१९. (+) प्रज्ञापनासूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ६x४१-४३). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताण० ववगयज; अंति: (-), अपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ (+) www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७४२०. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७६२, आश्विन कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैवे., (२७.५x१२.५, ९x४०-४२). (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: उबदंसेड़ ति बेमि, व्याख्यान ९, ग्रं. १२१६. १७४२१. उहनिज्जुत्ती, संपूर्ण, वि. १५४६, वैशाख शुक्ल, २ शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले. स्थल. मांडवगड, राज्यकाल रा. गयासुद्दीन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५x१२, १३-१४X४७-५१). ओपनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अरहंते वंदिता चउदस; अंतिः अहिएहिं सम्मत्तो, गाथा - ११६३. १७४२२. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८७+१ (७७) = ८८, पठ, मु. आशा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैवे. (२७.५४११, ९४४४-४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्तस्स अंतिः त्ति बेमि, अध्ययन- ३६. १७४२३. (*) गौतमपृच्छा सह वृत्ति व कथा, संपूर्ण, वि. १९६३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६७, प्रले, छबीलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२७.५x११.५, १०x४१-४३). " गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६४. गौतमपृच्छा- टीका, मु.] मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंतिः मुत्तराणि ददुः, ग्रं. १७५०. गौतमपृच्छा - कथा, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, आदि: एकस्मिन् ग्रामे एको; अंति: मोक्षं यास्यति. १७४२४. उपदेशरत्नमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०१-५४ (१ से ३८, ४३ से ४४, ४७ से ५२,६८ से ७५ ) = ४७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., परिच्छेद ६ श्लोक ५१ से परिच्छेद १३ श्लोक १४७ तक है. जैवे. (२८x११, ९x४१-४५). उपदेशरत्नमाला, आ. सकलभूषण, सं., पद्य, वि. १६२७, आदि: (); अंति: ( - ), अपूर्ण. १७४२५. उपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६२८, आषाढ़ कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६५, ले. स्थल, मंगलपुर, पठ. श्राव. मांडण पटणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२८x११.५, १९×३६-३८). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्या वाणी, श्लोक ५४४. उपदेशमाला - बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १४८५, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनवरमा; अंति: भव्यजीवनोपकृत्यै, ग्रं. ५३५५. १७४२६. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२८.५x११, १०x३१-३५). " , दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पुच्छा १ वासे २ चिई; अंति: नोकार गुणवई. १७४२७. साधुपाक्षिकसूत्र, खामणा व अतिचार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ३, जैदे., ( २६.५X१०.५, १०x३२-३९). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ - १५आ. हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्यंकरे व तित्थे; अंति: जेसिं सुवसायरे भत्ति, २. पे. नाम. साधुपाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १५आ-१६अ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: इच्छं समोणसद्वियं ३. पे नाम, साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. १६अ १९आ. For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १७४२८. विमलमंत्रि प्रबंध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४-१२(१ से ९,१५ से १७)=१२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७.५४११, १३४४७-५०). विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७४३०. (+#) वीतराग स्तोत्र व अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ११०-९४(१ से ९४)=१६, कुल पे. २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, २१४३८-५२). १. पे. नाम. वीतराग स्तोत्र सह टिप्पण, पृ. ९५अ-१०७अ. वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: यः परात्मा पर; अंति: नातः परं ब्रुवे, प्रकाश-२०, श्लोक-१८७. वीतराग स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १०७अ-११०आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ३२ अपूर्ण तक है. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: (-), अपूर्ण. १७४३१. (+) षडशीति, शतक व सप्ततिका कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १३८-१२०(१ से १२०)=१८, कुल पे. ३, जैदे., (२७.५४१०.५, ९४३५). १. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १२१-१२६अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा १-१२ नहीं है. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६, अपूर्ण. २. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १२६अ-१३३अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ३. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. १३३अ-१३८आ. प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगुणा होइ नउइओ, गाथा-९३. १७४३२. कल्पसूत्र सह बालावबोध व गुरावली, अपूर्ण, वि. १७८५, श्रावण शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ६७-१२(६ से ८,१६ से २१,२३ से २५)+२(५१,६७) =५७, कुल पे. २, ले.स्थल. भेड, पठ. मु. श्रीचंद; मु. जयचंद; मु. रायचंद (गुरु आ. कक्कसूरि, उकेशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११, १५४४५-४७). १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-६५आ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, अपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नैतत् पर्वसमं पर्व; अंति: कथा वाच्यमान जाणवी, अपूर्ण. २. पे. नाम. गुरावली उकेशगच्छीय, पृ. ६५आ-६७अ. पट्टावली उकेशगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ तीर्थ; अंति: साधां श्रावका समक्ष. १७४३४. शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १७७९, आषाढ़ कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०८, ले.स्थल. धारुका, प्रले. मु. हरिरुचि (गुरु पंन्या. कनकरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१०.५, १७-१८४४५-५०). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंति: स करोतु शांतिः, प्रस्ताव-६, श्लोक-१५३७. For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७४३५. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कांड २ श्लोक-५१ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १३४३४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), अपूर्ण. १७४३७. अंतगडदशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४१०.५, ९-१३४५०-५९). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ११००. अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंति: विधीयतां सर्वथा, ग्रं. ४२०. १७४३८. जिनप्रतिमास्थापना चर्चा, संपूर्ण, वि. १८२५, कार्तिक शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. वालोचर, प्रले. सरूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १३४२८-३२). जिनप्रतिमास्थापना निक्षेपाचर्चा, मा.गु., गद्य, आदि: इहां कोई अग्यांनीजीव; अंति: ते मध्येज कल्याण छै. १७४४०.(+) प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १२४३५-३८). प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: तथा आप लिख्यौ इण; अंति: लिख्यौहीज छै.. १७४४२.(#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४-२(२ से ३)=२२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन २ की गाथा ६ तक एवं अध्ययन ४ अपूर्ण से अध्ययन ९ उद्देश २ की गाथा १७ अर्धपाद तक है., जैदे., (२६.५४११, १३४३४-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), अपूर्ण. १७४४३. वंकचूलचौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, जैदे., (२६.५४११, १३४३६). वंकचूल चौपाई, मु. तीकम, मा.गु., पद्य, वि. १७०६, आदि: श्रीरिसहेसर पायनमी; अंति: तीकम आणंद० सूख कंद, ___ढाल-१७, गाथा-३४१. १७४४५. आचारांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१ उद्देश ६ अपूर्ण तक है.,प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांकन ३ से किया है परन्तु पाठ प्रारंभ से ही मिलता है., पंचपाठ., जैदे., (२७४१२, ६-८x२५-३१). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), अपूर्ण. आचारांगसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत श्रीसुधर्म; अंति: (-), अपूर्ण. १७४४६. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९५, पौष कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६, ले.स्थल. षडवायाम, राज्ये गच्छा. शिवजी; प्रले. मु. देवजी (पार्श्वचंद्र गच्छ); पठ. मु. नरसिंग ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ५४४०-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, गाथा-७००. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरूपीओ मंगलिक; अंति: जे गति तेहनइ गइ पामइ. For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ (+) www.kobatirth.org सूरसेन रास, मु. हर्षराज, मा.गु., पद्य, वि. १६१३, आदि: पास जिणेसर धुरि; अंति: (-), पूर्ण. १७४५०. पज्जोसवणाकप्प, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदे., (२७X१२.५, १०X३८-४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४४८. 'उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरि- अध्ययन १-३१, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५०-१ (३८) = ४९, पू.वि. अध्ययन- २४ की १५ वी गाथा उत्तर पाद से अध्ययन २५ की २९ वी गाथा तक नहीं है., प्र. वि. पत्रांक ३७ के कोने पर पत्र ३८वाला मात्र कोना चिपका हुआ है. वस्तुतः पत्र ३७ है व ३८ नहीं है., पंचपाठ पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२६.५X११, ११-१३X३०-४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १७४४९. सूरसेन रास, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३१, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., र. प्र. अधूरी है, गाथा ८८७ तक है., जैदे., (२६.५४११.५, १५X४४-४७), कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९. १७४५१. स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८००, आश्विन शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९३, प्र. वि. त्रिपाठ ,जैदे., (२६.५X११.५, १३x४५-४७). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिनिंदसु प्रीतडी; अंतिः पूर्णानंद समाजोजी, स्तवन- २४. स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथ प्रमुख; अंति: मोक्षनो परम उपाय छे. १७४५३. (+) मलयसुंदरी चरित्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७-१२ (१ से १२) = ३५, पू. वि. प्रस्ताव २ श्लोक ८४ तक नही है., प्र. वि. संशोधित प्रायः शुद्ध पाठ., जैवे. (२७४११.५, १४-१६४५५-५६). मलवासुंदरी चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति: त्रिंशताभ्यधिकानि च, प्रस्ताव ४, ग्रं. २४३०, अपूर्ण. १७ १७४५४. नवकार रास, संपूर्ण, वि. १७६५, वैशाख शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. मु. सत्यमूर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५x११.५, १५X४७-४९). पंचपरमेष्टीमहामंत्र नवकार रास, मु. गौडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: सारद शुभमतिदायिनी; अंत: सकल संघ मंगल करु, ढाल - २४, गाथा - ६०५, ग्रं. ७८५. १७४५५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२५x११, , ८x४२-४४). For Private And Personal Use Only श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: (-), अपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार अरिहन्त विहर: अंति: (-), अपूर्ण. १७४५७. (+) पाक्षिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित - पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, ४-८X३२-४०). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्यंकरे अ तित्वे; अंतिः जेसिं सुवसायरे भत्ति, पाक्षिक सूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदि तित्थंकरे० च शब्दाद; अंतिः नाभिहितत्वात्. १७४५८. सील रास, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७-१ (६) = ६, पू. वि. गाथा ५५ से ६४ नही है।, जैदे., ( २६११, १४४४२). Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पहिली प्रणाम करौ; अंति: इम श्रीविजयदेवसूरि, गाथा - ६९, पूर्ण. १७४५९. महावीर जन्म महोत्सव, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २६.५X११, १३x४०-४३). महावीरजिनजन्म महोत्सव, मा.गु., गद्य, आदि: हिवइ भगवंत नइ चउसठि; अंति: आपणइ स्थानक पहुता. १७४६०. (+) वीतराग स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. पंचपाठ पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न - वचन विभक्ति संकेत- क्रियापद संकेत - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, ८-१४४४५). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, आदिः यः परात्मा परं; अंतिः फलमीप्सितम् प्रकाश - २०. वीतराग स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यः परा परमात्मा केवल; अंति: विज्ञापयिष्यामि . १७४६१. (+) कर्मविपाक प्रथमसूत्र सह टवार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७- २ (१ से २ ) = १५, पू. वि. प्रारंभिक ४ गाथाएँ नहीं है., प्रले. पं. भाणविजय (सागरगच्छ ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२७X११, ३५३१-३७). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: लिहिओ वेबिंदसूरीहिं, गाथा ६३, पूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सूरिने शिष्यै रचौ, , पूर्ण. १७४६२. (+) पाक्षिकसूत्र, खामणा, साधुप्रतिक्रमणसूत्र व नाभेय स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७X११, १५X४८-५४). १. पे नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ ६आ. हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्यंकरे व तित्थे; अंतिः (१) जेसिं सुयसावरे भत्ति, (२) मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. साधखामणा, पृ. ६आ-७अ. खामणासूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं; अंतिः नित्धारण पारगा होह, आलाप ४. ३. पे नाम, साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ७अ ८आ. पगाम सज्झायसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं. ४. पे. नाम. नाभेय स्तोत्र, पृ. ८आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ११ तक है. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणमुसभमुभयंस; अंति: (-), अपूर्ण. १७४६३. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २५, पठ. श्राव वाना दोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैवे. (२६४११, ११५४२-४९). For Private And Personal Use Only दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्किहं; अंतिः गई त्ति बेमि अध्ययन - १०, गाथा- ७००. १७४६४. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८६८ श्रावण शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैवे. (२६.५x११.५, १२४३०-३३). श्रावक पाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १७४६५. (+) श्रीपालनरेंद्र कथानक, संपूर्ण, वि. १५३८, पौष शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, ले. स्थल. अहमदाबाद, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे., (२५.५x११, १४५४६-४८). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वज् कहा एसा, गाथा - १३४०. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७४६६. सूयगडांगसूत्रवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१-१०(१४,३१ से ३६,४२ से ४४)+१(१२)=४२, पू.वि. अध्ययन ३ के उद्देश २ तक है., जैदे., (२६४११, १७७५०-५१). सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: स्वपरसमयार्थसूचकमनंत; __ अंति: (-), अपूर्ण. १७४६७. (+) कल्पसूत्र सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १४६८, आषाढ़ कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४८-५१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: तेणं इति प्राकृत; अंति: परीक्षागजशिष्यादिवत. १७४६९. (+) उपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६६९, चैत्र कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. मु. सौभाग्यकीर्ति (गुरु ग. लब्धिरत्न); पठ. श्राव. भयरव, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११-१५४४३-४८). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: सोहियव्वं पयत्तेण, श्लोक-५४४. १७४७१. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रावण शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. तोस्यांम, प्रले. मु. लखजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बालावबोध टबार्थ शैली मे लिखा गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ४-५४३३-३५). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रहबालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: (१)वासंति मत्थएण वंदामि, (२)निवृत्तउंछउं. १७४७२. सूयगडांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५-१(३)=६४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन १ उद्देश १ के सूत्र १२-१७ नहीं है एवं अध्ययन १६ उद्देश १ के सूत्र ४ तक है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, ५-६४३७-४१). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउद्देज; अंति: (-), अपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य सद्गुरुन्, (२)प्रथम श्रीआचारांग; ___अंति: (-), अपूर्ण. १७४७३. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १५८३-१६००, श्रेष्ठ, पृ. १५३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६.५४११, १५४४४-४९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३. सूत्रकृतांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८३, आदि: (१)प्रणम्य श्रीजिनं, (२)इह हि प्रवचने० __ अथेदं; अंति: सूत्रकृतांगदीपिका, ग्रं. ७०००. १७४७५. (+) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५९, कार्तिक कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. तोस्याम, प्रले. मु. लखजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. बालावबोध टबार्थ शैली में लिखा हुआ है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ३-५४४६-५२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहण; अंति: करेमि काउसग्गं. For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० नमस्कार थाउ; अंति: आर्यानउ अर्थ जाणिवउ. १७४७६. (+) मृगावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १६८८, चैत्र कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. २४, पठ. श्रावि. रोहिणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५४५०-५७). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३ ढाल ३८, गाथा-७४५, ग्रं. ११००. १७४७७. सिद्धहेमशब्दानुशासन चतुष्कावचूरि, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, पू.वि. अध्याय २ पाद ३ से अध्याय ३ पाद २ पर्यन्त., जैदे., (२६.५४११.५, १९-२०४६५). सिद्धहेमशब्दानुशासन-अवचूरि *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १७४८०.(#) अंजनासतीरास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-३ ढाल- २ दोहा- १ तक है।, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९-२०४५१-५८). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: (-), अपूर्ण. १७४८१. (+) उपदेशमाला सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, १६-१७४५४-५५). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, श्लोक-५४४. उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: शास्त्राभिधेया; अंति: त्वादि विशिष्टेभ्यः. १७४८२. (+) उपदेशमाला प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-६(१ से ६)=२१, पू.वि. गाथा ११२ तक नही हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ९-११४३९-४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वयण विणिग्गया वाणी, श्लोक-५४४, अपूर्ण. १७४८३. (+) उपासकदशांगसूत्र, अग्यारप्रतिमागाथा सह टबार्थ व बालावबोध व आनंदश्रावकना तपनो मेल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, कुल पे. ३, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ११४३६-३९). १. पे. नाम. उपासकदशांगसूत्र सह टिप्पण, पृ. १आ-३६अ. उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंग तहेव, अध्याय-१०. उपासकदशांगसूत्र-विषमस्थल टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: उपासगदसा० सातमा अंग; अंति: (-). २. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. ३६आ. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दसण वय सामाई पोसह; अंति: चज्जएसमणभूए य, गाथा-१. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एक मास लगइ समकित; अंति: नीपनो ते उदित कहिइ. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पढम उव० पहिली दसण; अंति: सहित ते अग्यारमासनी. ३. पे. नाम. आनंदश्रावकना तपनो मेल, पृ. ३६आ. आनंदश्रावक तप परिमाण, मा.गु., गद्य, आदि: १७१३ उपवास पारणा २६७; अंति: मान मास ६६ थाइ. १७४८४. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., महावीरस्वामीनिर्वाण तक है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ४-१२४२६-३०). For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअढार दोषे रहित; अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वसिद्धिकरादेवी; अंति: (-), अपूर्ण. १७४८५. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, पू.वि. गाथा ३१ व कथा १५ वी अधूरी तक हैं., जैदे., (२६४११.५, ११४३२-३७). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अबालबंभआरि नेमिकुमार; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण. शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेयश्रीसहि; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७४८७. कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, ११४३६). कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: एकदा समयनिं विषई; अंति: (-), अपूर्ण. १७४८९. (+) सूयगडांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, प्रले. गोवाला जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३७-३९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. १७४९१. षष्ठिशतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६१३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. मु. झांझण; राज्ये गच्छा. मुनिवर्द्धनसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२७४११.५, ११-१२४४०). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भांडागारिक, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जाणंतु जंतु सिवं, श्लोक-१६०. षष्टिशतक प्रकरण-अवचूरि*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धन्यानां कृतार्थानां; अंति: जानंतु गच्छतु मोक्षं, ग्रं. ३८५. १७४९२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४-१(१)=२३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन ५ गाथा १० से अध्ययन ३० गाथा १६ तक है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, १७४५९-६३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७४९३. योगशास्त्र १ से ४ प्रकाश की अवचूरि, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, माघ शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२६.५४११.५, २१-२४x७०-७५). योगशास्त्र प्रकाश १ से ४-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १७४९५. राजप्रश्नीयसत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४०, आश्विन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ११०, ले.स्थल. आगलोड, प्रले. मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. मोहनविजय गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. आगलोडवासी प्रेमचंद मूलचंद शाह की भार्या ने यह प्रति माणिक्यविजयजी को वहराई है., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (२६) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा, जैदे., (२६४१२, ७X४२-४७). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताणं० तेण; अंति: सुपस्सणीएणं नमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २२२०. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: तेह भणी नमस्कार थाओ, ग्रं. ३२८१. For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७४९६. उपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७१५, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २८-१(२५*)+१(२६)=२८, ले.स्थल. दीवबंदर, राज्ये गच्छा. विजयप्रभसूरि (गुरु आ. देवसूरि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४१-४७). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: सोहियव्वं पयत्तेण, श्लोक-५४४. १७४९७. (+) पुष्पमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पठ. ग. विनयलक्ष्मी; मु. रत्नलक्ष्मी (गुरु ग. विनयलक्ष्मी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १४४४९). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धमकम्ममविग्गह; अंति: सया सुहत्थिहिं, गाथा-५०५. १७४९८. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६-जीवाजीवविभत्ति, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. पूर्णता गाथा- २६९, प्रले. अनंतराम महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. १७४९९. विक्रमसेनचौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, प्रले. पं. सुगालचंद्र; पठ. पं. रतनचंद्र (गुरु पं. सुगालचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १६-१७४३२-४३). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: प्रम ज्योति प्रकाशकर; अंति: परमसागर आणंदो रे, ढाल-६४.. १७५००. प्रवचनसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्र.वि. संवत १६७० ज्येष्ठ सुद रविवार को ज्ञानसागर गणि के शिष्य हर्षसागरजी के शिष्य ने अकबरपुरीय चित्कोष में यह प्रति रखी., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४-५१). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: रामकहाणं नवद० पडिसे०, द्वार-२७६. १७५०३. भुवनदीपक सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदे., (२७४११.५, १५४५२-५३). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१६४. भुवनदीपक-टीका, सं., गद्य, आदि: सरस्वत्याः संबंधि; अंति: विस्तार्यमाणा बुधैः. १७५०४. (+) नंदीसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., जैदे., (२७४११.५, ११४३७-३९). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाइं नामाइं. नंदीसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: इन्द्रिय विषय कषाय; अंति: (-). १७५०६. सीताराम प्रबंध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-२(२,६)=१९, पू.वि. खंड- २ ढाल-७ गाथा- ५ अपूर्ण तक लिखा है।, जैदे., (२६.५४११.५, १२४२९-३२). रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७५०७. नमयासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०-२७(१ से २७)=३३, पू.वि. ढाल-२७ के दोहा नं-३ अपूर्ण तक नहीं है व ढाल-६२ गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है., जैदे., (२६४१२.५, १४-१५४३४-३८). For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ नर्मदासुंदरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७५०९. नेमजिन चौवीसचोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., चोक- १७ गाथा-१ अपूर्ण तक __ है., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३१-३३). नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति: (-), अपूर्ण. १७५११. कर्मग्रंथ-४-षडशीति सह टीका, संपूर्ण, वि. १५४७, श्रेष्ठ, पृ. ४७, प्रले. मु. भाणा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४६-५५). षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: निच्छिन्नमोहपास; अंति: सुणंतु गुणंतु जाणंतु, गाथा-८६. षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य सिद्धिशास्ता; अंति: तेनाश्रुता लोकः, ग्रं. २३१८. १७५१२. पंचपरमेष्ठि १०८ गुणविवरण, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक २ से ही लेखन कार्य आरंभ किया है, परन्तु अनुपलब्ध पत्रांक १ पर नवकार मन्त्र होना संभव है., जैदे., (२६.५४१२, १४४३८-४३). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: बारसगुण अरिहंता; अंति: एकसो आठ गुण कहिया. १७५१३. (#) भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पच्चक्खाणभाष्य- गाथा-२४ अपूर्ण तक है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, ३४२६-२९). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), अपूर्ण. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु क० वांदीने; अंति: (-), अपूर्ण. १७५१४. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८२८, फाल्गुन कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८, ले.स्थल. सदामापुर, प्रले. पं. रामकुशल गणि (गुरु पंन्या. प्रसिद्धकुशल),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पत्र ३९ से ५७ तक टबार्थ लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ६-१६४३४-३७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कलपवेलि कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४. १७५१५. सीमंधरजिनविज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, प्र.वि. प्र.ले. द्वारा अंतिम कलशका टबार्थ नहीं लिखा है., जैदे., (२६४१२, ४४३०-३३). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर साहिब आगई; अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल-१७, गाथा-३५४. सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीपार्श्व; __ अंति: नावा बेडी समान छे. १७५१७. उपमतिभवप्रपंचकथाबालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदे., (२६.५४१२, १५४४२-४३). उपमितिभवप्रपंचा कथा-हिस्सा संसारीजीव चरित्र का बालावबोध, ग. अमृतसागर, मा.गु., गद्य, आदिः (१)वाग्देवी प्रणिपत्य, (२)मनुष्यगति नामि नगरी; अंति: राज्यनो अभ्युदय हुइ. For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७५१८. नवतत्त्वपचीसबोल, संपूर्ण, वि. १९५०, वैशाख शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १३+१(३)=१४, ले.स्थल. काणुड, प्रले. ऋ. रघुनाथ (गुरु मु. मंगलसेन), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, २२-२५४३७-५२). नवतत्त्व प्रकरण-पचीसबोल, संबद्ध, मु. यश ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)सासणपति श्रीवीरजिन, (२)जीवाजीवपुन्नपावो आसव; अंति: यश नहीये विमास. १७५१९. (+) शांतिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९७२, भाद्रपद कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४३७-४१). शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अथ प्रतिष्ठायां वा; अंति: वाजा वागते धारादेवी. १७५२१. (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१८, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६२, ले.स्थल. मंगलपुर, प्रले. ग. हरिरुचि; पठ. पं. विशेषरुचि (गुरु ग. हरिरुचि),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ६४३४). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमो० नमस्कार अरिहंत, (२)नमो कहतां नमस्कार; अंति: ए ___ अधिकार ब्रवीमि, ग्रं. २२००. १७५२३. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पठ. श्राव. जोइता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११.५, ११-१२४३७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहताण पंचिद; अंति: इअसमत्त मएगांहिअं. १७५२४. सागरचंदमुनि रास व अरणकरुषि रास, संपूर्ण, वि. १७०३, कार्तिक शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, ले.स्थल. वणथली, प्रले. मु. मेघाजीशिष्य ऋषि (गुरु मु. मेघाजी ऋषि); पठ. मु. आंबा ऋषि (गुरु मु. मेघाजीशिष्य ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १३४३६-४३). १. पे. नाम. सामायिकविषये सागरचंदमुनि रास, पृ. १आ-७अ. सागरचंदमुनि रास, मु. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १६७९, आदि: सारद सार सदा दीयइं; अंति: शेखर कहि० ____ गाता रली, ढाल-८. २. पे. नाम. अरणकमनिरास. प. ७आ-१०आ. अरणिकमुनि रास, मु. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: विमल विमल मति दायक; अंति: पामइ सुख सही अंगइंजी, __ ढाल-८, गाथा-७८. १७५२५. (+) मेरतेरस कथा, संपूर्ण, वि. १८३६, आश्विन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १६४३९-४३). मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भारती; अंति: मुक्तिसाधनं कृतः. १७५२६. उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७४, कार्तिक शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२७४११.५, ८४३९-४१). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, श्लोक-५४४. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंति: मुखथिकुंनीसरी वांणी. For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७५२७. दीपालीकाकल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. ग. हरिरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४३५). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४३४. १७५२८.(+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४३-१८४४, श्रेष्ठ, पृ. ४१, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. मु. लखजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४११.५, ५-६x४८-५५). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१०, चूलिका २, गाथा-७००, (वि. १८४३, कार्तिक कृष्ण, २, सोमवार) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)धम्मो० दुर्गति पडता; अंति: करी ए सत्य वात, (वि. १८४४, कार्तिक शुक्ल, ६, शुक्रवार, प्र.ले.पु. सामान्य) १७५२९. गणधरवाद सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२७४१२, ६४३५-४०). कल्पसूत्र-कल्पसुबोधिकाटीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, आदि: अथ वेदपदानि च; अंति: तस्मादस्ति निर्वाणं. गणधरवाद-टबार्थ *, सं., गद्य, आदि: हवे वेद पद कहे छ; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. द्वितीय गणधर तक टबार्थ है.) १७५३०. उपदेशप्रासाद-स्तंभ ७ सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ६६, प्रले. मूलजी रामनारायण जानी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२६४१२, ६४३४-३६). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., प+ग., वि. १८४३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उपदेशप्रासाद-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १७५३१. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ व चौतीसअतिशय, संपूर्ण, वि. १७०१, वैशाख शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. मंगलपुर, जैदे., (२६.५४११.५, ३-४४४२-४५). १. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. १आ-९अ. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावज्ज क० सावद्य; अंति: करवू उत्तमपुरुषइ. २. पे. नाम. ३४ अतिशय, पृ. ९अ. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १७५३२. प्रकरणचतुष्क, रत्नाकरपचीसी, जिन स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे.७, ले.स्थल. विसलनगर, प्रले. पं. नेमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीकल्याणपार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., (२७४११.५, १३४३६-४१). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १आ-३आ. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३आ-५आ. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: कमाण विजाण तह रूवं, गाथा-५८. ३. पे. नाम. चोवीस दंडक, पृ. ५आ-७आ. For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा- ४५. ४. पे. नाम. लघुसंघेणी, पृ. ७आ ९अ. लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिठं जिणसव्वन्नु; अंतिः रईया हरिभदसूरिहिं गाथा - ३१. ५. पे. नाम. आलोचनागर्भित रत्नाकरपच्चीसी स्तोत्र, पृ. ९अ - १० अ. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रिया मंगल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये लोक-२५. ६. पे नाम, जिनस्तुत्यष्टक, पृ. १०अ ११अ. सर्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक - ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७. पे. नाम. भाष्यत्रय, पृ. ११अ - १८अ. चैत्यवंदन, गुरुवंदन व पच्चक्खाण भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु वंदणिज्जे अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा - १५२. १७५३३. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. जेठालाल जमनादास भावसार; पठ. मु. सिद्धविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२, १५x५४-५८). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-७अ. हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्यंको अतित्थे; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. खामणासूत्र, पृ. ७अ. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः पिवं च मे जं भे; अंतिः नित्थारग पारगा होह, आलाप - ४, १७५३४. सेडुंजय रास, संपूर्ण, वि. १९३६, पीष कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. पाली, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण; पठ. सा. चंपाश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x१२, १०x३६-३७). , शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः नयसुंदर जय करुं, गाथा - १२६, ग्रं. १८०. १७५३५. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. सुखराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., ( २६x१२, ११X३५-३७). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: (१) नमो अरिहंताण० हवइ, (२) आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: अट्ठगुणाधीसरं वंदे, श्लोक - १०८. १७५३६. कैवनाचौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४ - १ (२२*) = २३, पू.वि. अवास्तविक घटते पत्र., , जैदे. (२६४११.५, १७४३९-५०). " " कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य वि. १७२१, आदि: (१) देवपूजा दयादानं ( २ ) स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंतिः धरम करो मन उलसे, डाल- ३१, प्र. ७८५. १७५३७. (+) श्रीपाल कथा सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., ( २६४११.५, ६-८४३०-३६). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: ( - ), ( प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू. वि. गाथा ४५१ तक लिखा है.) For Private And Personal Use Only सिरिसिरिवाल कहा- टवार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., गद्य, वि. १८०६, आदिः स जयति सिद्धसमूहो; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू. वि. गाथा - १२९ तक लिखा हैं.) Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २७ १७५३८. कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिकाटीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९०+२(५,६७)=१९२, पू.वि. महावीरस्वामी इंद्रभूति संवाद तक लिखा है., प्र.वि. प्रतिकात्मक सूत्रपाठ लिखा है., जैदे., (२६४११.५, ९४२४-३२). कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७५३९. वसुदेवहिंडी द्वितीय खंड, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९५-१(१४३)=३९४, ले.स्थल. अणहिलपुरपत्तण, जैदे., (२६४११, १३४४३-५६). वसुदेवहिंडी, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण; ग. धर्मसेन, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: रोहिणी बालचंद्रा, ग्रं. १९०००, प्रतिअपूर्ण. १७५४०. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १६४६, भाद्रपद कृष्ण, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४२-३०(२५ से ५४)=३१२, ले.स्थल. सिधपूर, प्रले. ग. हरष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५६८) यन्मात्राक्षरपादबिंदुगलिते, जैदे., (२६४११, १५४४२-५७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: देव अविग्धं लिहतस्स, शतक-४१, ग्रं. १५६७५, अपूर्ण. १७५४१. चउवीसत्थासूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७०६, आषाढ़ कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. पाडलीपुर, प्रले. ग. वछलाभ; मु. अमरलाभ; पठ. श्रावि. झमकादे, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११, ९४३४-३९). लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्स उज्जोअगरे; अंति: सिद्धिं मम दिसंतु, गाथा-७. लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चऊद राजलोकमाहि; अंति: कहिता मुक्ति पद दिउ. १७५४२. शीलोपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.८-१(५)=७, पृ.वि. गाथा ६१ से ७५ तक नही है., जैदे., (२६४१०.५, ९४३१-३५). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आबालबभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, श्लोक-११६, अपूर्ण. १७५४३. (+) नवस्मरण, लघुशांति व पार्श्वनाथस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४१०.५, ११४३८-४७). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-१५आ. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: मोक्ष प्रतिपद्यते, स्मरण-९. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ११आ-१२आ. __ आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१५. ३. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १५आ. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. १७५४४. () दानाधिकारे श्रीविक्रमराइ सिंहासणबत्रीसीप्रबंध चउपइ, संपूर्ण, वि. १७४७, श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ५९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६-१९४४७-५५). दानाधिकारे श्रीविक्रमराइ सिंहासणबत्रीसीप्रबंध चउपड़, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: आराही श्रीआदिजिण; अंति: ऋद्धि पामै बहु परै, गाथा-१५२४. For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७५४६. (+) शीलपदेशमाला व परमेष्टिस्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६-१(४)=५, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ११४३९-४१). १. पे. नाम. शीलोपदेशमाला, पृ. १अ-६अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गाथा-६४ अपूर्ण से ८५ अपूर्ण तक नहीं है. ____ आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, गाथा-११४, अपूर्ण. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तुति, पृ. ६अ. सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. १७५४७. (+) आराधना, संपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. हरीगढ, प्रले. मु. हिन्दुमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४२५, १२४३७-४०). ___ आराधना, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलओ नमस्कार अरिहंत; अंति: सव्वत्थ सिद्धिविमाणइ, गाथा-९६. १७५४८. दीवालीकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४६, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले.स्थल. लेच, प्रले. पं. गलालविजय (गुरु पं. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ४४३६-३९). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, __ श्लोक-४२९. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: अहँ नत्वाल्पबुद्धि; अंति: घरे घणो मंगलिक होय. १७५५२. पर्युषणापर्वअष्टानिकाव्याख्यान, पूर्ण, वि. १९३३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३७-१(१)=३६, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. मु. किर्तीसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११-१४४३२-३९). __ अष्टाह्निकाव्रत कथानक, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: सुख संपदा पामे, ग्रं. १०००, पूर्ण. १७५५४. (+) सम्यक्त्वसंभवकाव्य-सुलसाचरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्रले. मु. आणंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३-१५४३७-४१). सुलसा चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: अहँ नमस्यामि; अंति: विलिखितं गणिनामरेण, सर्ग-८, ग्रं. ६४०. १७५५५. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १६३९, पौष कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. ग. विचारसोम (गुरु आ. सोमविमलसूरि, तपागच्छ); पठ. श्रावि. अहिवदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४९-५४). श्राविका अतिचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)नाणंमि दसणमि०, (२)विशेषतः श्रावक तणाइ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १७५६०. (#) धन्नाशालीभद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७३, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १०७, ले.स्थल. पालणपुर, राज्यकाल रा. समसेरखान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२-१३४३४-३९). धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: ऐंद्रश्रेणिं नत क्रम; अंति: जिनविजय० सुठायो रे, खंड-४, ढाल ८५, गाथा-२२९२, ग्रं. २८१५. १७५६१. शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १६४३, माघ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १४०-३१(१ से ३१)=१०९, पू.वि. प्रस्ताव-३ गाथा-९५ तक नही है., ले.स्थल. लाटद्रह, जैदे., (२५४११, १३-१५४३९-४६). For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि (-); अंतिः स करोतु शांति, प्रस्ताव- ६, ग्रं. ४८६३, अपूर्ण. १७५६३. (+) चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा - ३८ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X१०.५, ४X३३-३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई अंति: (-), अपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीक भणी पहिलो छहि; अंति: (-), अपूर्ण. १७५६४. (+) जंबूअध्ययनप्रकीर्णक सह टवार्थ, पूर्ण, वि. १७८५, चैत्र कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६०-१ (५९) =५९, ले. स्थल. अणहिलपुर, पत्तननगर, प्रले. मु. अमीविजय ( गुरु पं. हस्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११.५, ६x२७-३७). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक- २१, पूर्ण. जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनि विषय ते; अंतिः ते आराधक जीव कह्या, पूर्ण. १७५६५. धर्मपरीक्षा वार्त्तिक, संपूर्ण, वि. १८२३, आश्विन शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. विशलनगर, प्रले. पं. रूपविजय (गुरु पं. सुबुद्धिविजय गणि, तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १४-१५X३७-४३). धर्मपरीक्षा वार्त्तिक, मा.गु., गद्य, आदि: कोइक भलो शिष्य विनइ; अंति: ते सही करी मानीस .. १७५६७. (+) भक्तामरस्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जै.... (२६.५४११, १५४५३-५६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) श्रीमहावीर प्रणमी; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर बरड़. १७५६८. (+) चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. खंभायत, प्र. वि. पदच्छेद सूच लकीरें. जैवे., (२५x११, ३३०-३३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३. चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्य व्यापरनइ विषय; अंति: मोक्षना सुख पामीइ. १७५७२. (+) संघयणिसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४-१ (१८) = २३, पू. वि. गाथा २०५ से २१२ तक नही है।, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२६.५x११, ६३७-४४), बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा - २८८, पूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिनइ अरिहंतसिद्धादि; अंति: वीरनुं तीर्थ वर्त, पूर्ण. १७५७३. नव्यबृहत्क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२ - ३ (५ से ७) = ९, पू. वि. गाथा १०९ से २०१ नही है।, जैदे., २९ (२६४११, १४-१७४४८-६२). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: सिरिनिलयं केवलिणं; अंतिः सोहेबच्चो सुअहरेहिं गाथा - ३३०, ग्रं. ३८६, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७५७४. नंदीषण रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. खंभात, प्रले. मु. खिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३-१४४२९-३६). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सिद्धि नित गेहइ रे, ढाल-१६, ग्रं. ४२१. १७५७७. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदे., (२५.५४११.५, ६-१२४३२-३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४. १७५७८. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६७, प्र.वि. पं.श्रीगोपजी के शिष्य गणि रंगविजयजीने ज्ञानभंडार में रखा., जैदे., (२६४११.५, ९४३२-४२). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: किट्टि आराहिअम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रेयांस श्रीमहावीरः, (२)पहिलउं सकल मंगलीकनउ; अंति: (१)चउथइं पच्चक्खाण, (२)सोमसुंदर० बा० समाप्त. १७५८१. गौतमस्वामीपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, प्र.वि. प्र.पु.वर्ष मात्र-१८ दिखता है., जैदे., (२६४११.५, ११४३०-४०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. मुनिसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: सुधा भूषण सेविना. १७५८२. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८३५, आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५०-५(१४ से १८)=४५, पू.वि. खंड-२ ढाल-३ गाथा-२४ से खंड-२ ढाल-८ दोहा-४ तक नही है., जैदे., (२६४११.५, १४४३८-४५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, अपूर्ण. १७५८३. उपासकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३४, जैदे., (२६४११.५, ११४३७-४०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्याय-१०, ग्रं. ८१२. १७५८५. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८७, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५४११, ९-१०४३५). महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए. १७५८६. विमलाचलतीर्थ माला, अपूर्ण, वि. १९७१, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१,५)=५, प्रले. ग. धर्मविजय; पठ. श्राव. गुलाब, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३५-३७). विमलाचलतीर्थ माला, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: नित नमो गिरिराया रे, ढाल-१०+कलश, अपूर्ण. १७५८७. पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५.५४११.५, ५-६४३४-३८). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७१. पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर नमस्करी; अंति: जीव मोक्षना सुख लहइ. १७५८८. चैत्रीपुनमदेववंदनविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५.५४११.५, १२-१५४३३-४५). For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ चैत्रीपूनम देववंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तिहां प्रथम प्रतिमा; अंति: पूजें तो मोक्ष पामें. १७५८९. सामुद्रिकशास्त्र, संपूर्ण, वि. १७०७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४११, १३४३७-४२). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: रमयंति चित्रणी, श्लोक-१९८. १७५९०. चतुःशरणप्रकीर्णक व जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. विहकर्णनगर, प्रले. पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ५-७४३०-४०). १. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-७आ. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीक भणी पहिलो छहि; अंति: भव्य जीवनइ ए चउसरण. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ७आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मात्र प्रारंभकी ३ गाथा है. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), अपूर्ण. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन तीन लोकनइ; अंति: (-), अपूर्ण. १७५९१. प्रतिष्ठा कल्प, संपूर्ण, वि. १८५९, फाल्गुन कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदे., (२६४११.५, १५४४४-५०). प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तद्यथा सह वारक बहेंड; अंति: थिर चित्ते भणq. १७५९२. (+) चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६८०, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. कडाग्राम, प्रले. मु. गुणशील; पठ. श्रावि. पांखडी डाहीआ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ७X४२-४५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध व्यापार-; अंति: तेहभणि नित्य गुणिवउं. १७५९३. पासाकेवली व षडाष्टकआदियोग, संपूर्ण, वि. १८१४, माघ शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. द्रांगद्रानगर, प्रले. मु. राजरत्न (गुरु पंन्या. मलूकरत्न); राज्ये गच्छा. दानरत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअजीतनाथ प्रसादात्. पक्ष के लिए "माहमाशे वसूपक्षे" ऐसा लिखा है., जैदे., (२५.५४११.५, २०-२२४४६-४८). १. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १अ-६अ. पाशाकेवली-भाषा*, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति कुष्मांड; अंति: सत्य गुरु भक्ति करे. २. पे. नाम. षडाष्टकआदियोग, पृ. ६आ. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १७५९४. (१) सारसिखामण रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५४१०.५, १३-१५४४३-५०). सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५४८, आदि: श्रीजीराउलि पासनाह; अंति: नित्य मंगल जय करुए, गाथा-२३८. १७५९५. दशवैकालिकसूत्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. मु. नरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३-१५४४२-४८). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: ए गायो सकल जगीसे रे, सज्झाय-११. १७५९६. षडावश्यकसूत्र व देववंदनविधि, अपूर्ण, वि. १८५२, आश्विन कृष्ण, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-३(५,१२ से १३)=११, कुल पे. २, ले.स्थल. विसलनगर, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रशादात्., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३०-३१). For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, पृ. १आ-१४आ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. ___संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धिं, अपूर्ण. २. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. १४आ. देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमोत्थुणं कहीने; अंति: अरिहंताणं तवन कहे. १७५९७. (+) चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३३, फाल्गुन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १३, लिख. श्राव. आसकरण शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ४४२४-२७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: विणा न पामंति, गाथा-६४, ग्रं.८०. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्ययोग क० पाप; अंति: पुन्य थकीज पामीइ, ग्रं. २७५. १७५९८. प्रतिमाजीरा छूटक आलावा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदे., (२६४११.५, १२४३१-४१). आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: छे पिण द्रव्य मन नथी. १७५९९. चौमासीदेववंदनविधि, संपूर्ण, वि. १८७८, फाल्गुन कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. राधणपूर, जैदे., (२६४११.५, ९४२५-३०). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पद्मविजय०सामल चेईरई. १७६००. सिंदूरप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-५(१ से ५)=१८, पू.वि. गाथा-२० तक नहीं है., प्र.वि. जैदे., (२६४११.५, ५४२७-३२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: स जानाति जनाग्रतः, श्लोक-९७, अपूर्ण. सिंदरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ते जाणइ लोक आगलि, अपूर्ण. १७६०१. संग्रहणीप्रकरण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ अधिकमास शक्ल, १. श्रेष्ठ, प. ४४, जैदे.. (२४. ४४३५-४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: णमिउं अरिहंताई; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३०४. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमी वांदीनइ अरिहंतनइ; अंति: लोकमांहि प्रवर्त्तउ. १७६०२. सुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८४५-१८६४, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. मनफरा, प्रले. पं. सुमतिविजय गणि; पठ. मु. सुंदरविजय (गुरु मु. प्रतापविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्लोक १-२२९ का लेखन संवत १८४५ (माघ कृष्ण-११) में हुआ तथा श्लोक-२३०-२४१ का लेखन संवत १८६४ (पौष सुक्ल-१४) में हुआ. श्रीऋषभदेव प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११.५, १३४२८-३२). सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: राज्यं निःसचिवंगत; अंति: रिह वांछितार्थं, श्लोक-२२९. १७६०३. एकवीस प्रकारी पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १८७९, कार्तिक कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४३५-४०). २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमं प्रथम जिणंद; अंति: (१)हीरो जेम जडियो रे, (२)सर्वविघ्नविनाशक, ढाल-२१. १७६०५. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८५, फाल्गुन कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७+१(२)=८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ४४४०-४८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्ण पावा; अंति: अणतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५५. For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: आश्री अनंतगुणा छइं. १७६०७. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १२४२९-३७). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), अपूर्ण. १७६०९. सिद्धाचलनवाणंजात्रा पजा, संपूर्ण, वि. १८८८ वैशाख शक्क. १३. मध्यम, प. ८. जैदे.. (२५४११.५. ११-१२४२९-३३). ९९ प्रकारी पूजा, क. पद्मविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८५१, आदि: उत्तम गुरु चरणे नमी; अंति: श्रीविमलाचल पायो रे, गाथा-१११. १७६१०. चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.ले.श्लो. (२६) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा, (६०८) जिहां लगे मेरू अडग हैं, (६७१) जादृस्यं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११.५, १३-१४४२९-३६). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई १७६११. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५३, माघ कृष्ण, २ अधिकतिथि, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. मगनलाल खुशालचंद जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ८४३२-३६). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसती रे वरसती; अंति: विजय पभणे __ आनंदकारी, ढाल-९, गाथा-८३. १७६१२. महावीरस्वामीसतावीभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. उजमलाल नरभेराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १०४३०-३४). महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमलकमलदललोयणा दिसे; अंति: शुभविजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८३. १७६१३. चैत्रीपूनम देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७-२(१ से २)=५, जैदे., (२५४११.५, १४-१५४२८-३०). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दान अधिक आणंद, देववंदनजोडा-५, ग्रं. २००, अपूर्ण. १७६१४. महावीर रागमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पठ. पंन्या. सुखसागर; प्रले. श्राव. फतेचंद मुलचंद संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १०-११४३५). महावीर रागमाला, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८४, आदि: महावीरजिन वंदो भविक; अंति: न्यायसागर जय करो, ढाल-३६. १७६१५. (+) अजितशांति, बृहच्छांति व श्रावकअतिचार-पाक्षिक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. चूनिलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३-१५४२९-३३). १. पे. नाम. अजितशांति स्तव , पृ. १अ-३आ. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. ३आ-५आ. हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणत; अंति: जैनं जयति शासनम. ३. पे. नाम. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, पृ. ५आ-११आ. श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७६१६. (#) सिंदूरप्रकरण व पार्श्वजिनस्तवन, संपूर्ण, वि. १८६४-१८६९, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री शांतिनाथजी प्रासादात्.अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ११-१३४३५-४०). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर, पृ. १अ-८अ, वि. १८६४, माघ कृष्ण, ३, ले.स्थल. कानपुर, प्रले. ग. रामविजय; पठ. मु. मानीक्यचंद (गुरु पं. उदयविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (६०८) जिहां लगे मेरू अडग हैं. आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-९९. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९आ, वि. १८६९, माघ कृष्ण, ४, ले.स्थल. कोरटा. पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादाणी, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जिवन प्यारा लागो; अंति: ऋषभसुंदर० गाया हो जी, गाथा-८. १७६१७. वैराग्यशतक सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२१, आश्विन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. पं. कुशलविजय; पठ. श्रावि. धनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ६-७४२७-३१). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, श्लोक-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: शाश्वतु सुख प्रते. १७६१८. प्रतिष्ठाकल्प विधि, संपूर्ण, वि. १८५४, वैशाख शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. इडरगढ, प्रले. मु. केसरविजय (गुरु पं. ज्ञानविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१६, १२-१३४३२-३८). प्रतिष्ठाकल्प, आ. रत्नशेखरसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वेशो विभा; अंति: अहिगाराछइह कप्पे. १७६२०. स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १८६४, कार्तिक शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. प्रतिलेखकवाला भाग फटा हुआ है., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३६-४२). स्नात्र पूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: (१)प्रथम उपकरण मेलवां, (२)पवित्र उदक लेइ अंग; अंति: देपाल०० दिवो कहिइं. १७६२१. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सहटबार्थ+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-४(१ से २,९ से १०)=२५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ४-१६४२८-४७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७६२२. (+) अंतगडदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, प्रले. ऋ. मांडण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ११४३६-३८). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ८२५. १७६२३. (+) विचारषत्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७८, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. भिन्नमाल, प्रले. ग. अमरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ५४३५-३८). विचारषट्त्रिंशिका प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४६. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनइं चउवीस; अंति: आपणा जीवनइ हितकारिणी. १७६२४. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्रथम वाचना संपूर्ण है., जैदे.. (२५४१२, ११४२३-२६). For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३५ कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: अहँत भगवंत; अंति: (-), अपूर्ण. १७६२५. स्तवनचौवीसी व पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८४०, मार्गशीर्ष शुक्ल, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ३, प्रले. मु. गुमानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ११-१२४२३-२९). १.पे. नाम. आनंदघनकृतचतुर्विशी, पृ. १अ-१४आ. स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन परभू जागे रे, स्तवन-२४. २. पे. नाम. सवैओ, पृ. १५अ. ___ आध्यात्मिक सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: यार एक तार थिर साई; अंति: हक्क तु बोलितो ता, गाथा-१. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५अ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: आस्या ओरकी क्या कीजे; अंति: खेले देखै लोक तमासा, गाथा-४. १७६२६. (+) अंतगडदशांगसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(१)=२९, पठ. श्राव. वामा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, ११४४०-४६). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ८३५, पूर्ण. १७६२७. (+) सौभाग्यपंचमी स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, पू.वि. ढाल-१ गाथा-७ तक नही है., प्रले. मु. कनकरत्न; पठ. श्रावि. मूलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, ८४३०-३४). सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: (-); अंति: केशव कुशल जयकरो, ___ ढाल-५, पूर्ण. १७६२८. (+) अंतगडदशांगसूत्र सहटबार्थ, पूर्ण, वि. १७२६, जीर्ण, पृ. ३९-२(११ से १२)=३७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ७४४३-४९). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-९२, पूर्ण. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणइ कालि तिणइ; अंति: दशाना० परुप्यौ कह्यौ, पूर्ण. १७६२९. (+) संबोधसत्तरी व विचारषट्विंशिका सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७५१, आश्विन कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २०-१(१)=१९, कुल पे. २, ले.स्थल. चाणोद, प्रले. मु. ठाकुरसी (गुरु मु. वर्द्धमान ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, २-६४३४-३७). १. पे. नाम. संबोधसप्ततिका, पृ. २अ-१३अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है. आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-८५, पूर्ण. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मु. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७२३, आदि: (-); अंति: टबार्थममु जयसोमक, ग्रं. ७२५, पूर्ण. २. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १३आ-२०आ. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ; अंति: हेतइनी करणहार. For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७६३०. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५०, आश्विन कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. मु. ठाकुरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, २१४४९-६१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: तियागारेणं वोसिरामि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो नमस्कार हउं; अंति: आहार वोसिरावु छउं. १७६३१. वैद्यवल्लभ व औषधसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ८४३९-४४). १. पे. नाम. वैद्यवल्लभ, पृ. १अ-१९अ. मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि ध्यात्; अंति: (१)विनिर्मिता स्वयम्, (२)परोपकाराय विहितोयम्, विलास-८. वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: शारदा हृदये ध्याइनई; अंति: शिष्य कवि हस्तिरूचि. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १९आ. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). औषध संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १७६३२. रात्रीभोजनचौपाई, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. सेवाडी, प्रले. मु. तलोकविजय (गुरु मु. फतेविजय पं.), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४३०-३२). रयणीभोजन चोपी, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: सुबुधि लबधि नव निध; अंति: संघ सकल चित्तनंदैजी, ढाल-२४. १७६३३. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ३४२४-२९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण भुवन नइ विषइ; अंति: सिद्धांतसमुद्र थको. १७६३६. (#) वाग्भट्टलंकारकाव्य सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-१(१)=३६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४३-४८). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५, पूर्ण. वाग्भटालंकार-टीका, ग. सिंहदेव, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७६३७. मृगावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १७२६, कार्तिक कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. संखवाई ग्राम, प्रले. मु.खेमाविजय (गुरु मु. रंगविजय); पठ. मु. कीर्तिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४१०.५, १८-१९४५०-५६). मोहनवेली चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३ ढाल ३७, गाथा-७४३, ग्रं. ११७१. १७६४०. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९४-१(१)=९३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. *ग्रंथ के पन्ने अस्तव्यस्त है। बहुत से पेज उपर नंबरभी नहीं लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४३०-४१). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७६४३. (#) पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १६९०, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १०-११४३५-४०). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१४. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (१)जेसिं सुयसायरे भत्ति, (२)मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणकः, पृ. १४अ-१४आ. पाक्षिकखामणा, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. १७६४४. (+) योगशास्त्र-प्रकाश १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्रले. मु. हेम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, ७-११४२१-२९). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १७६४५. मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, प्रले. मु. रामजी ऋषि; पठ. मु. जोधा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४२४-२६). मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५०, आदि: गोयम गणधर गोयम गणधर; अंति: भणि गणि ते हर्ष ____ अपार, गाथा-६०३. १७६४६. (+) नवतत्त्व सह बालावबोध व छद्रव्यरा गुणपर्याय, संपूर्ण, वि. १७८८, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ३४, कुल पे. २, प्रले. मु. गुलालराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्र.पु. प्रथम पेटांक के अंत में लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, जैदे., (२६४११, १३४३१-३९). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-३०आ. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: एगते होई मिच्छत्तम्, गाथा-५३. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिनमती जीवानइं; अंति: बिहं बराबर पिण छै. २. पे. नाम.६ द्रव्यरा गुणपर्याय, पृ. ३१अ-३४आ. छ द्रव्यरा गुणपर्याय, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकायरा गुण; अंति: पर्यायइ करी वरतइ छै. १७६४७. (+#) श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १८१६, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. बुर्हानपुर, प्रले. मु. हर्षरत्न; पठ. श्रावि. लालीबा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३१-३६). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १७६४८. (+) होलीकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. पं. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५-६४३५-३८). हुताशिनीपर्व कथा, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., गद्य, आदि: पर्व हुताशनिसंज्ञ; अंति: पूर्वशास्त्रतः, ग्रं. १०८४. हुताशिनीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पर्वहोलीनु लोकसंबंध; अंति: मिथ्यात्व तजवू सही. १७६४९. (+) श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १३४३४-३८). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम. For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७६५०. पाक्षिकसूत्र व संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ९-१२४२१-३२). १. पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-१८आ. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (१)अन्नाणमोह दलणी जणणी, (२)तित्थंकरे अतित्थे; अंति: (१)मिच्छामि दुक्कडं, (२)जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १८आ-१९आ. __प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१३. १७६५१. (#) नवस्मरण व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८०६, फाल्गुन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४४१-४८). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-९आ. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताण हवइ; अंति: मोक्ष प्रतिपद्यते, स्मरण-९. २. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ९आ. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथ; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, गाथा-५. १७६५५.(+) भुवनदीपक व ज्योतिषश्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, फाल्गुन शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, ६४५३-५८). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७९. भुवनदीपक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधी जे; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम श्लोक का टबार्थ नहीं लिखा है.) १७६५६. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२२, फाल्गुन कृष्ण, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्रले. मु. लालविजय (गुरु पं. अविचलविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, (२८२) जीहा लग मेरु अडग हे, (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२६४११, १३४४४-४९). श्रीपालनरेन्द्र चरित्र, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वाइजता कहा एसा, गाथा-१३४४. १७६५७. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७३०, चैत्र शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, प्रले. सा. लावण्यलक्ष्मी; पठ. श्रावि. आणंदबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रथम पत्र पर भगवान का रंगीन चित्र है., जैदे., (२५४११.५, ११४३३-३५). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: बंभदिसिनाण भत्तेसु. षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत प्रति; अंति: चउदइ नियमनु संभारवउ. १७६५९. जयतिहुअणस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पठ. पं. भक्तिराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ७४३९-४१). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ अणिंदिय, गाथा-३०. जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: जय क० जयवंतउ थाओ; अंति: भगवंत निंदित नही. For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७६६०. (+) कर्मग्रंथ-५ शतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ४४२८-३२). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागनि नमीनि ध्रुव; अंति: अर्थिकीधु ए ग्रंथ. १७६६१. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६६, आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. रटीखान, प्रले. पं. विनयसुंदर; पठ. मु. मतिसुंदर (गुरु पं. विनयसुंदर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ६४३६-३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि दीवा; अंति: सिद्धांतनो लेइनइ. १७६६३. पुष्पमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. सखीदास भाट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२६४११.५, १४-१५४५१-५५). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धमकम्ममविग्गह; अंति: सया सुहत्थिहिं, गाथा-५०५. १७६६५. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पोसहसूत्र तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ७४३३-३८). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: (-), पूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार हूंवउ; अंति: (-), पूर्ण. १७६६६. सुसढक कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६४११.५, १६x४५-५२). सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: रायगिहे गुणसिलए; अंति: जयणं चिय धम्मकामा, गाथा-५१८. १७६६७. उतपतिसत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४११.५, १२-१४४२५-२६). उतपतिसत्तरी, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोय जीव आपणी; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-६९. १७६७०. (+) नववाड सीयलवेल, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. नेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १६४३६-३७). नववाड सीयलवेल, श्राव. मकन, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: श्रीसरसती समरु सदा; अंति: दुक्कडं होय जी, ढाल-८+कलश. १७६७१. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८७७, भाद्रपद कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२४.५४११.५, १०-११४३१-३७). साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १७६७२. चौवीसजिन वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. गलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३१-३९). चौवीसजिन वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभदेवस्वामि; अंति: एकावन पिता कह्या छे. For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७६७३. से@जयउद्धार व गुंहली, संपूर्ण, वि. १९५३, फाल्गुन शुक्ल, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्रले. हरीलाल बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४१९-३६). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, पृ. १अ-८अ. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: दर्शन जय करो, ढाल-१२, गाथा-१२४. २. पे. नाम. गुंहली, पृ. ८अ-८आ. औपदेशिक गहली, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: सासन वरते जिणंदवीर; अंति: कहे दोलत घरे लावो, गाथा-८. १७६७४. (#) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२२, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. गुलालचंद; पठ. श्रावि. मनछीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४२६-३०). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. १७६७५. (+) कमलकर्ममल कथा व नारीभेद श्लोक, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. बिजापुर, प्रले. पं. कुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिन्तामणिप्रासादे., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ५४३५-३८). १. पे. नाम. कमलकर्ममल कथा, पृ. १अ-५आ. उपदेशप्रासाद-कमलकर्ममल कथा, हिस्सा, सं., प+ग., आदि: अनुयोगसमयेस्वक्ति; अंति: नासनकृतिप्रभवः स्युः. उपदेशप्रासाद-कमलकर्ममल कथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वखाण समे पोतानी; अंति: उत्पत्ति कारण होइ. २. पे. नाम. नारीभेद श्लोक, पृ. ५आ. पद्मिन्यादि नारीलक्षण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)पद्म सुगंध स्वेद, (२)पद्मिनी पद्मगंधा च; अंति: (१)शतकादिवथी जाणजो, (२)शोकदक्षा च शंखिनी, श्लोक-११. १७६७६. (#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १०x२८-३१). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: जैनं जयति शासनम्. १७६७७. दसविधयतिधर्म सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-४(१ से ३,७) =८, ले.स्थल. सूरतिबंदिर, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ९४३१-३३). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानविमल० अनुभवें, अपूर्ण. १७६७८. वीरजिनस्तवन, शांतिलेख व सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, ११-१२४२८-३२). १. पे. नाम. महावीरदेव गुणठाणागर्भित स्तवन, पृ. १अ-५अ. महावीरजिन स्तवन-चौदगुणस्थानकगर्भित, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: वीर जिनेसर प्रणमी; अति: णठाण श्रीजिनवीरगाया, गाथा-७२. २.पे. नाम. शांतिलेख, पृ. ५अ-७अ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं सरसति पयकमल; अंति: मोहन करे गुणज्ञान ए. ३. पे. नाम. सवैया, पृ. ७अ. For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ हीरगुरु कवित, क. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: सबे भृग नयन चलीगु; अंति: कवि सोम कहे० पेटनटा, गाथा-१. १७६७९. सुक्तमाला व श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८६४, वैशाख शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-३(२ से ४)=८, कुल पे. २, ले.स्थल. चांणसमा, प्रले. मु. ऋषभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १४४३१-३८). १. पे. नाम. सुक्तमाला, पृ. १आ-११अ, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., वर्ग-१ गाथा-८ से ५७ तक नहीं है. सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, ___ वर्ग-४, अपूर्ण. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, पृ. ११अ-११आ. प्रा.,सं., पद्य, आदि: यत्पूर्वव्यवहारसार; अंति: रत्नदोषीकृतांताम्, श्लोक-४. १७६८०. समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा- ३२३ अपूर्ण तक है., जैदे., (२६४१२, १२-१४४२९-३५). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिरः ___ अंति: (-), अपूर्ण. १७६८१. दीपोत्सवीकल्प बालावबोध, पूर्ण, वि. १८३०, कार्तिक कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१)=११, ले.स्थल. विद्युतपुर ग्रा, प्रले. मु. मांणकसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२४३२-३४). दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: की वार्तिक कीधो, पूर्ण. १७६८३. परमानंदस्तोत्र, आत्मप्रबोधकुलक सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८३०, आश्विन शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. सूरतिबंदर, प्रले. पं. चंद्रभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ४४३०-३२). १. पे. नाम. परमानंद स्तोत्र, पृ. १आ-५अ. उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: परमानंदसंपन्नं; अंति: परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५. परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधास्वामी; अंति: आत्मानू स्वरूपतिवारइ. २. पे. नाम. आत्मावबोध कुलक, पृ. ५अ-१२अ. आ. जयशेखरसूरि *, प्रा., पद्य, आदि: धर्मपहरमणिज्जो; अंति: जिणं जयसेहरो होसि, श्लोक-४३. आत्मावबोध कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मनी प्रभा कांति; अंति: खपावी मोक्ष पहुचैं. १७६८४. आठकर्मप्रकृतिविचार, चौदहपूर्व व पिस्तालीसआगमनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.५, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१२.५, ११-१५४३८-४०). १.पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. १अ-५आ. मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा; अंति: विषे उद्यम करवो. २. पे. नाम. चौदपूर्वनाम, पृ. ५आ. १४ पूर्वनाम, मा.गु., गद्य, आदि: उत्पाद पूर्व १ अग्र; अंति: सासप्रवाद पूर्व १४. ३. पे. नाम. पिस्तालीस आगम नाम, पृ. ५आ. ४५ आगमनाम, मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग सुडांग ठाणां; अंति: ए दस पइन्ना जाणिवा. For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७६८५. आषाढभूति रास व पद, संपूर्ण, वि. १७९७, श्रावण शुक्ल, १ श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले. स्थल. हापा, प्रले. मु. अमीविजय (गुरु मु. केसरविजय, तपगच्छ); राज्यकाल रा. महिमुद साह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६x११.५, १४X४०-४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. आषाढाभूति चौपाई, पृ. १अ - ९अ. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंतिः होजो परम कल्याणो रे, ढाल - १६, ग्रं. ३५१. २. पे. नाम. पद, पृ. ९अ. जैन गाथासंग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). 9 १७६८६. थुलीभद्र सीयलवेल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. कोजडा, प्रले. मु. मनोहरविजय पं.; पठ. मु. खांतिविजय (गुरु मु. मनोहरविजय पं.), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. जैदे., ( २४.५X१२, १३-१४X३१-३४). स्थूलभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजी; अंति: विमला कमला वर रे, ढाल - १८, ग्रं. २४६. १७६८७. (+) पाखीसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १८४०, चैत्र शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, ले. स्थल. देहेगाम, प्रले. पं. कनकविजय; पठ. मु. वखतचंद ( गुरु पं. कनकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १३x२७-२९). १. पे नाम पाखिकसूत्र, पृ. १अ १४ आ. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्थंकरे व तित्थे अंतिः (१) जेसिं सुयसावरे भत्ति, (२) मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. साधुखामणा, पृ. १४-१५आ. खामणासूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं, आलाप ४. १७६८८. (#) थुलीभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६×११.५, १०X२७-३१). स्थूलिभद्र नवरसो, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत्ति दायक सदा; अंतिः थकी जे उभग्वा रे, ढाल - ९. १७६८९. (+) हुतासनी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- पदच्छेद सूचक लकीरें., जैवे. (२६५१२, ५४३५-४० ). हुताशनी कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं; अंतिः विज्ञानायांचनोचितः, श्लोक ५१. होलिकापर्व कथा - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमानस्वामी; अंतिः तेना हितने अर्थे कहो, १७६९०. (+) विमलागिरीमंडण उद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. अमीनगर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१२, ११x२४ - २९ ) . विमलगिरीउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: द्यो दरिशन जयकरो, गाथा १२१. १७६९१. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८५१, वैशाख शुरू, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. अगस्तपुर, प्र. मु. गलाबचंद (गुरु ग. कल्याणसागर पं.), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x१२.५, ११४३२-३४). For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४३ चतुर्विंशतीस्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जागै जी, स्तवन-२४. १७६९२. चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १८६९, माघ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२५.५४१२, १२४३१-४०). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई १७६९४. (+) सिंदूरप्रकरण, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा- ९६ अपूर्ण तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४१२, ११-१२४३१-३३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), पूर्ण. १७६९५. बारभावना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६४१२, ११४२६-३१). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेश्वर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार. १७६९७. दंडक ओगणतीस द्वार, संपूर्ण, वि. १९५५, माघ शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. विसलनगर, प्रले. दूर्लभराम रायचंद भोजक; पठ. मु. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ११४३१-३६). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार लेशाद्वार; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. १७६९८. जंबूचरित्र, संपूर्ण, वि. १८७५, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. ग. मानविजय पं., प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४-१५४२९-३३). जंबूस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सप्रभावं जिनं, (२)त्रैलोक्यना नायक; अंति: जंबू० मोक्षपोहतो. १७७०१. चौमासी देववंदन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. कुंथुनाथ चैत्यवंदन अपूर्ण तक लिखा है., जैदे., (२६४१२, १२-१३४३०-३४). चौमासीपर्व देववंदन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पढम जिनवर० पाय; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७७०३. चैत्रिपूनम देववंदनविधि, संपूर्ण, वि. १८७४, चैत्र शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. अहम्मदाबाद, प्रले. राज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११.५, १३-१४४३५-४०). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (१)तिहां प्रथम प्रतिमा, (२)आदीश्वर ___ अरिहंत देव; अंति: ज्ञानविमल घरि आवेरे. १७७०४. चौमासी देववंदन विधी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सिद्धाचलतीर्थ स्तवन तक है।, जैदे., (२७.५४१२, १२४३२-३५). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: (-), अपूर्ण. १७७०५. नेमिजिनचौवीस चोक व प्रथमआरामनुष्य वर्णन, संपूर्ण, वि. १८८५, फाल्गुन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. सवालीग्राम, प्रले. पंन्या. राजविजय (गुरु पंन्या. मनरूपविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, १०-११४३५-३९). १. पे. नाम. नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, पृ. १अ-७अ. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समर्या देवी सारदा; अंति: अमृतविजये गुण गाया, चोक-२४. २. पे. नाम. प्रथमआरामनुष्य वर्णन, पृ. ७अ-७आ. For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: पेला आरामां जुगलानी; अंति: जुगलीयाएकंतरआहारकरी. १७७०६. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, अग्यारअंगबारउपांगनाम व साधुसत्तावीसगुणगाथा, पूर्ण, वि. १८२८, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३२-१(३०)=३१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, २-४४४५-४९). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-३२आ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं, पूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत विहरमाण माहरो; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, पूर्ण. २. पे. नाम. ४५ आगम नाम, पृ. १अ. ४५ आगमनाम, मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग१. सुयगडांगर.; अंति: पुफावतंसकसुत्र. ३. पे. नाम. २७ गुण साधुना, पृ. १अ. २७ साधुगुणगाथा, प्रा., पद्य, आदि: छव्वय ६ छक्काय ६; अंति: मरणं उवसग्गसहणं च, गाथा-२. १७७०७. अणुत्तरोववाइदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. मु. जीवराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ६४३५-३६). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: अणुत्तरोववाईदसाणं, अध्याय-३३. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल ते चोथो आरो; अंति: धर्मकथानी परे जाणवा. १७७०८.(+) संग्रहणी व लोक, संपूर्ण, वि. १८४५, आश्विन शक्क, ८. श्रेष्ठ, प. १५, ले.स्थल. चंद्रवती, प्रले. विनय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, १२-१४४३०-४३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३२६. १७७०९. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३९, माघ कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, पठ. श्राव. भीमजी वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ५४२६-३०). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहसि जहा सासयं ठाणं, श्लोक-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असार जाणवो; अंति: सास्वतो स्थानक मुक्त. १७७१०. हरिचंदराजाराणीसूत्तारासील चरीत्र, संपूर्ण, वि. १९५८, वैशाख शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. मु. पूरणचंद (गुरु मु. हीरालाल),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५६०) जलात् रक्षेत् थला क्षे, जैदे., (२६.५४१२, १५-१६४३६-४०). हरिचंदराजाराणीसूत्तारा सीलचरित्र, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: पास जिणेसर पाय नमु; ____ अंति: सीमरतां पाप आलमाल रे, खंड-३ ढाल-२६, गाथा-४२३. १७७१२. वीरभाणउदयभाण रास, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रावण शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. ग. ललितविजय; पठ. मु. शुभविजय (गुरु ग. ललितविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६.५४१२, १५-१७४३९-४६). For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४५ वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: सदगुरुजी सानिध करो; अंति: सुख पामे श्रीकार, ढाल-६५. १७७१३. (+) चंद चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७१, आश्विन कृष्ण, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, २०-२१४४५-६२). चंदराजा चरित्र, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुण चंदना, ____ ढाल-१०८, ४ उल्लास, गाथा-२६७६, ग्रं. २७३३. १७७१४. दशदृष्टांत स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, जैदे., (२७४११.५, ११४३२-३६). मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत सज्झाय, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: श्रीजिन वीर नमी; अंति: तस्य घरे कोडि कल्याण, ढाल-१०. १७७१५. (+#) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७८१, फाल्गुन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. मद्राज, प्रले. ऋ. खेतसी; पठ. श्रावि. रामकुंवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १०x२९-३६). जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन-२४. १७७१६. (+) दशाश्रुतस्कंध सह विषमपदटिप्पण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२+१(२५)= ४३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ११४२५-२९). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहताणं० हवइ; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०, ग्रं.८००. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-विषमपद टिप्पण*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १७७१७. पौषधविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१२, १६-१७४३७-४०). पौषधविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: खमासमण देइनें इरिया; अंति: वेरमज न कुणइ. १७७१८. भुवनदीपक सह टबार्थव दिनमानश्लोक सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, वैशाख शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. पं. राजविजय गणि (तपगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ६४३१-३४). १. पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. १अ-१८अ. आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१८०. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधी जे; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. मातर अंतिम श्लोक का टबार्थ नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. दिनमान श्लोक सह अर्थ, पृ. १८अ. दिनमान श्लोक, सं., पद्य, आदि: अयनादिक वास २ राम; अंति: दिनकादिनिशा, श्लोक-१. दिनमान श्लोक-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अयनना दिन गया होवें; अंति: घटी शेष रहे ते पल. १७७२०. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८, ले.स्थल. सिघाणा, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ८-९x४५-४९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, अध्ययन २०,ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणई कालई चउथा; अंति: दस अध्ययन कह्या, ग्रं. ३५००. For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७७२१. गौतमकुलक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८५१, आषाढ़ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३७, ले.स्थल. सूरतबंदर, प्रले. मु. दीपविजय (गुरु पं. जिनविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १६४३७-४३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सुहं लहति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: नत्वा श्रीदेवगुरुन; अंति: भुवि चिरं जीयात्. १७७२४. (+) अवंतीसुकमाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३६-४०). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंति:शांतिहरख सुख पावई रे, गाथा-१०५. १७७२५. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. धर्मचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३५-३८). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १७७२६. वीरजिन पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५७, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. आगलोड, प्रले. ग. क्षमाविजय पं (गुरु पंन्या. कांतिविजय); पठ. श्रावि. रामकुयर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १२४३१-३५). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८+कलश. १७७२७. आउरपच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३५-३९). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणम्, गाथा-५९. १७७२९. (+) नारचंद्रज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ११४३१-३५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७७३०. कल्याणमंदिरस्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. कुशलचंद (गुरु पं. विवेकहर्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ७४३५-३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: कल्याणमंदिरं गृहं; अंति: प्राप्नुवंतीति. १७७३१. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६.५४११, ९४२९-३५). महावीरजिन स्तवन, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: वंदे० धन मुझ ए गुरो, गाथा-८३. १७७३२. (+) उपदेशमालासह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६१४, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २८-१(१)=२७, पू.वि. गाथा १-११ अपूर्ण तक नही है।, ले.स्थल. विक्रमनगर, पठ. मु. धर्मसिद्धि (खरतरगछ); राज्ये गच्छा. जिनचंद्रसूरि For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ (खरतरगच्छ); राज्यकाल रा. कल्याणमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ८४४६-५२). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सोहियव्वं पयत्तेण, श्लोक-५४३, पूर्ण. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: खमवउ यतने करी सोधवउ, पूर्ण. १७७३३. सिंदूर प्रकरण टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१२)=१३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, १३४४५-५०). सिंदूरप्रकर-टीका, सं., गद्य, आदि: पार्श्वप्रभोः क्रमयो; अंति: (-), अपूर्ण. १७७३४. (+) ऋषिमंडलस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७११, पौष कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, ले.स्थल. खंभायतनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ४५२५-२८). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: सो लहइ सिद्धिसुह, गाथा-२२४. ऋषिमंडल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्ति कहतां भक्ति; अंति: अनंता सुख प्रतइं. १७७३७. (+) औपपातिकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १-१५४२४-३३). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-१८९, ग्रं. ११२०. औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: संशोधिता चेयम्, ग्रं.३८५०. १७७३९. (+) भक्तामरस्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. कमलविजय गणि; श्राव. देवा मुंहता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११, ४-८४४३-५१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भक्त० या अहमपि प्रथम; अंति: उच्चं आश्रति. १७७४१. बारभावना, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२७४१०.५, ११४४४-४७). बारहभावना, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली अनित्य भावना; अंति: घणा कर्मनु आणइ छेह, गाथा-१७७. १७७४२. (#) योगशास्त्र-प्रकाश५ से १२, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(६)=७, पृ.वि. प्रकाश-८ गाथा- ५५ से प्र. १० गाथा- १ तक नही है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १९-२१४६२-६९). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भव्यो जनो भवतात्, प्रतिअपूर्ण. १७७४३. गुणरत्नाकर छंद, संपूर्ण, वि. १७१२, आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६४११.५, १७-१९४४१-४९). गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: करो सहिजसुंदर मया, अध्याय-४. १७७४४. अणुत्तरोववाईदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १५९२, कार्तिक कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. लाहानूरपुर, प्रले. लद्धा माणिक; सम. आ. भावदेवसूरि (गुरु आ. पुण्यप्रभसूरि, वडगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १३४४०-४५). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० नवमस्स; अंति: तहाणेयव्वं. For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७७४७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, २-१४४२०-२४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नत्वा श्रीवर्द्धमान, (२)धम्मो० धर्मरूपिउ; अंति: स्वामि आगलि इम कहिउ. १७७४९. समवायांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदे., (२६.५४१०.५, ११४४०). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७. १७७५०. (+) नवतत्त्वचौपाई, संपूर्ण, वि. १६१३, वैशाख शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. वासाग्राम, प्रले. मु. विवेकसमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४११, १९-२०४५७-६०). नवतत्त्व चौपाई, आ. आणंदवर्धनसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६०७, आदि: अरिहंतना पय जुगल; __ अंति: आणंदवर्धनसूरि० वरूं, गाथा-२८९. १७७५१. सारस्वतीप्रक्रीयावृत्ति-चंद्रकीर्तिनाम्नी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-१(६)=९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६x१०.५, १४४४४-४९). चंद्रकीर्ति टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याणपद; अंति: (-), अपूर्ण. १७७५२.(+) उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८+१(५८)=७९, प्र.वि. अलग-अलग प्रतिलेखकों द्वारा लिखीत प्रत., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ५-६४३८-५१). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-१८९. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: तिणी कालि चोथा आराने; अंति: सुख पाम्या थका. १७७५३. (#) सीलवतीरास, संपूर्ण, वि. १८५०, कार्तिक शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५३, ले.स्थल. दासलाणा, प्रले. मु. तेजहंस (गुरु मु. जीतहंस), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६२५) जलात रक्षेत तैलात रक्षेत, जैदे., (२६.५४११.५, १६-२१४३८-४९). शीलवती रास, मु. नेमीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५०, आदि: ॐकार अक्षर अधिक; अंति: नेमविजय कहे० थायो हे, खंड-६ ढाल८४, गाथा-२०६१, ग्रं. ३०३५. १७७५५. (+) शत्रुजय तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. १८५३, आश्विन कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. १०, पठ. श्रावि. जवरी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ९-११४३३-३६). शत्रुजय तीर्थमाला, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारु; अंति: नित नमो गिरिराया रे, ढाल-९. १७७५६. (+) दशवैकालीकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६४, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल. जैतारण, प्रले. मु. खेमा ऋषि; पठ. सा. रुखमा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ६x४७-४९). For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: दुर्गति पडतां जीवनइ; अंति: मोक्षगति इति ब्रविमि. १७७५७. (+) योगचिंतामणीबालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, ११४३४-४०). योगचिंतामणि-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्त्री योग्य; अंति: (-), अपूर्ण. १७७५९. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. आंतरोली, प्रले. पं. मेघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३१-३५). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८+कलश. १७७६०. (+) चतुःशरणप्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, २-४४५०-६०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६२. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: भवतीति गाथार्थः. १७७६१. (+#) एकविंशतिस्थान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. सिवाणा, प्रले. मु. उदेविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२७४११.५, ५-६४३४-३८). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६८. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे विमानथी चवीनें; अंति: पदे भण्या कह्या छे. १७७६३. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३१-३५). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१५३. १७७६४. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-अध्ययन ५, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १५४३७-४०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १७७६५. पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. पट्टावली ६७ वे पाट तक है., जैदे., (२६.५४११.५, १४४३६-४१). पट्टावली*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: (१)चंद्रगच्छ ए वइरीशाखा, (२)श्रीविजयधर्मसूरि. १७७६६. वसत्यादि अष्टदान दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १८२१, फाल्गुन शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. पोहपावती, प्रले. पंन्या. चतुरविजय (गुरु मु. हस्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११.५, १३४४४-४८). वसत्यादि अष्टदान दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य स्वगुरु; अंति: आठदान श्रावके देवा. १७७६७. चैत्रीपूनम देववंदनविधि व पार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १७७३, पौष कृष्ण, ३०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, ले.स्थल. उसमापुर, प्रले. मु. डुंगरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १३४३७-४०). १. पे. नाम. चैत्रीपुनम देववंदनविधि, पृ. १अ-८अ. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्री पुनिमदिने; अंति: दान अधिक आणंद, देववंदनजोडा-५. For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्व स्तवन, पृ. ७आ. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमेसर प्रभु सांभलौ; अंति: तिलक लहै रसरंग, गाथा-८. १७७६८. पुन्यप्रकाश स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रावण कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२७४११.५, १०-११४३२-३६). १.पे. नाम. पुण्यप्रकाश स्तवन, पृ. १आ-६आ. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८+कलश. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ६आ. श्लोक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. १७७६९. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७, पृ.वि. २४ स्तवन, ले.स्थल. इडरनगर, प्रले. मु. चंद्रविजय (गुरु पं. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२७.५४१२, १४४४१-४५). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदीनाथनी जो; अंति: रामविजय जयसिरी लहि, स्तवन-२४. १७७७१. (+) सेजय माहात्म्य-विषयसूचि, पूर्ण, वि. १९३६, चैत्र शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३३-२(११ से १२)+२(२७,२७) =३३, ले.स्थल. रायपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १८-२०४५२-६०). शत्रुजय माहात्म्य विषयसूचि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पूर्ण. १७७७२. मुमइबिंदरेबाह्यकोटे भुमिखला आदिजिन स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. ढाल-२ से है., जैदे., (२७४१२, ११४३६-४१). मुमइबिंदरकोटे भुमिखला स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: (-); अंति: शुभवीर वचनरस गावेंजी, ढाल-७, पूर्ण. १७७७३. (+) पांडव चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०९, ले.स्थल. सोझितनगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, १५४३१-३९). पांडव चरित्र रास, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: ज्ञाननिर्मल लहै तेह, खंड-६. १७७७४. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२४.५४१२.५, ५४२५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवनमें दीपक; अंति: शास्त्रसमुद्रसु. १७७७५. दीपोत्सवपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२४४१३, ११४२८-३५). दीपावली स्तवन, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणां, ढाल-१०, ___ गाथा-१२१. १७७७८. (#) नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७७१, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३, १२-१४४३५-४२). For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्ण पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: यथा यथास्थित साचउं; अंति: जिमाहि मोक्षइ जाइ. १७७७९. चउमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९४४, श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १६+१(४)=१७, ले.स्थल. पालि, प्रले. मु. धनरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१३, १३४२६-३४). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम इरियावही पडिकम, (२)विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सामलनु चेई रे. १७७८०. (+) शेजयउद्धार व प्रतिमा विचार, संपूर्ण, वि. १८८४, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. फुदेड,पेढामलीनगर, प्रले. ग. लक्ष्मीविजय (देवसूरगच्छ); पठ. श्रावि. रलियातबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (७०९) भग्न पृष्टि कटि ग्रीवा, जैदे., (२५४१३, १४४३४-४२). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, पृ. १अ-६अ. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: दर्शन जय करो, ढाल-११, गाथा-११९. २. पे. नाम. जिनप्रतिमा विचार, पृ. ६आ-७आ.. मा.गु., गद्य, आदि: पहिले तिर्छालोकें; अंति: जिनबिंब नमस्करूं. १७७८३. नवबोल, संपूर्ण, वि. १९५५, माघ कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. वीसलनगर, प्रले. हरगोवन मोतिराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१४, १३-१६४२७-३०). कुमतिलोकोने उत्तरदेवासारू विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसूगडांगना सूत्र; अंति: नयण सूरजथी अधीक छे. १७७८४. (+) आठकर्म एकसोअट्ठावन प्रकृति वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. उमेद नहालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१३.५, १४-१५४३७-४४). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इहां सुशिष्य पूछै; अंति: मुक्तपदार्थ मिले. १७७८५. (+) चोमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९१९, माघ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. वालीनगर, प्रले. पं. विनेयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१३, १३४२१-२६). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई १७७८६. (+) चौमासी देववंदन, ऋषभ स्तवन व सरस्वती नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९२८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. मु. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३, १९-२५४३९-४६). १. पे. नाम. चौमासीपर्व देववंदन, पृ. १अ-६आ. ___पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई रे. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, पृ. ६आ. ऋषभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेहि; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७. ३. पे. नाम. शाश्वतजिन चैत्यवंदन, पृ. ६आ. मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ चंद्रानन वारीषेण; अंति: रुप सदा आणंद, गाथा-३. For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७७८७. शेत्रुंजय माहात्म्य व सिद्धाचल एकवीसनाम, संपूर्ण, वि. १९५८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. २, ले.स्थल. बिजापूर, प्रले. हरीलाल मालजी बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१३, १२X३१-३६). १. पे नाम, शत्रुंजय माहात्म्य, पृ. १आ-२४आ. मा.गु., गद्य, आदि: ए श्रीविमलाचल; अंति: विमलवाहन राजाकरावसें. २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ एकवीसनाम, पृ. २५अ. शत्रुंजयतीर्थ २१ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय नमः; अंतिः अकर्मक सर्वकामदः, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७७८८. (+) चौवीसदंडक, संबोधसत्तरी, व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, ले. स्थल. मुहनपूर, प्रले. मु. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X१३, १२-१४x२७-३०). १. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. १अ - ३आ. मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३. २. पे. नाम. संबोधसप्ततिका, पृ. ३-७अ. आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तिलोअगुरु; अंतिः सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-८०. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ७अ ७आ. सं., पद्य, आदि: नमोस्तु देवदेवाय; अंति: स्वर्गाभवंति, श्लोक-६. १७७८९ (+) विचारषट्त्रिंशिका सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, फाल्गुन कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल अगस्तपुर, प्रले. मु. गुलाबचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ पदच्छेद सूचक लकीरें. प्र. ले. लो. (५७८) याप्रसं पुस्तकं द्रद्धा, जैवे., (२५४१३, २x२९-३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा- ४४. दंडक प्रकरण-वार्थ, रा., गद्य, आदि: नमिठं कहितां नमस्कार; अंतिः अने परने पण हितकारी, १७७९०. आत्म निंद्या, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. पाली, प्रले. पूनमचंद, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४२८-३०). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गद्य, आदि हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंतिः संसार पातलो पडे, " १७७९१. (+) दशवैकालीकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८-८ (२ से ९) १०, ले. स्थल. नागोर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५x१३, १४४४०-४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंतिः गई ति बेमि, अध्ययन १०, अपूर्ण. - १७७९२. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे., (२५x१२.५, ९४२३-२५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. १७७९३. (+) एकसौवीसकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९३८, ज्येष्ठ शुक्ल, १३ मंगलवार श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. अगस्तपुर, प्र. मु. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कृति कर्ता के द्वारा उसी गाँव उसी वर्ष में लिखी गई प्रत., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२५.५X१२.५, १६-१७X३६-४१). १२० जिनकल्याणक पूजा, मु. दोलतरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १९३८, आदि: श्रीपार्श्वनाथ; अंति: (१) दोलतरुचि प्रकास रे, (२) दोलत० सासन अखंड रहो, ढाल - २८. For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७७९४. मौनएकादशी देववंदन, संपूर्ण, वि. १८७१, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. आगलोड, प्रले. राजन पं, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १३४३२-३४). मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सयल संपत्ति सयल; अंति: लाल नामे नवनिध थाय. १७७९५. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, पू.वि. प्रथम व्याख्यान तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, ४-५४३०-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो अरिहंत; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७७९६. (+) प्रतिष्ठाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १६-१७४४५-४९). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य स्वस्ति; अंति: गच्छर स्वाहा. १७७९७. (+) स्नात्रपंचासिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७२, आश्विन शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले.स्थल. वलादग्राम, प्रले. श्राव. खुसालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, ११-१४४२५-३०). स्नात्रपंचाशिका, ग. शुभशील, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति: मुक्ति सुखार्थिना, कथा-५०, श्लोक-५०. स्नात्रपंचाशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य क० प्रणाम; अंति: सुख एकभव करी पामस्ये. १७७९८. महावीरदीवाली व सत्तरभेद स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५१, आश्विन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. अमनगर, प्रले. ग. कांतिविजय (गुरु पं. रूपविजय गणि, वृद्धपोसाल), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२-१३४३२-३५). १. पे. नाम. महाविरदिवाली स्तवन, पृ. १अ-७अ, वि. १८५१, आश्विन शुक्ल, १३, ले.स्थल. अमनगर, प्रले. ग. कांतिविजय (गुरु पं. रूपविजय गणि, वृद्धपोसाल), प्र.ले.पु. सामान्य. महावीर दीपावली स्तवन, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणे, ढाल-१०, गाथा-१२३. २. पे. नाम. १७ भेदी पूजा सज्झाय, पृ. ७आ, वि. १८५१, पठ. मु. रत्नविजय (गुरु पं. रूपविजय गणि, वृद्धपोसाल), प्र.ले.पु. सामान्य. सत्तरभेद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तर भेद पूजा फल; अंति: तेह तर्या ने तारे रे, गाथा-९. १७७९९. श्राद्धवंदित्तुसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१२, १०४२१-२५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. १७८००. नवपद क्षमाश्रमणदान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, जैदे., (२६४१२, १२-१३४३५-४०). नवपद क्षमाश्रमणदान विधि, पुहि.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पदै; अंति: सब भेद ३४६ होय. १७८०१. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. जैदे., (२६४१२, ६४३३-३८). For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, श्लोक-१०४, ग्रं. १४२. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: लहइ जीव शाश्वतुं ठाम, ग्रं. १९६. १७८०२. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८०, फाल्गुन कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६४, ले.स्थल. ईडरनगर, प्रले. ग. मनरूपविजय (गुरु ग. मयाविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४४३०-३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४. १७८०३. सुव्रतश्रेष्ठि कथा सह टबार्थव ज्ञानस्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, प्रले. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ५४३१-४३). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा सह टबार्थ, पृ. १अ-१९आ. मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२००, (प्र.ले.श्लो. (२०६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६१८) जलाद रक्षेत् स्थलाद रक्षेत्) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वदेवं नमस्कृत; अंति: १६५७ वर्षनै विषे. २. पे. नाम. ज्ञान स्तुति, पृ. १९आ. ज्ञानवर्णन स्तुति, सं., पद्य, आदि: असत्यं मुर्ख हेतु; अंति: तस्यनास्यतिज्ञानता, श्लोक-३. १७८०४. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ७X३४-४४). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनेंद्र; अंति: धर्मकथानी परे जाणवू. १७८०५. श@जयउद्धार व परताति सझाय, अपूर्ण, वि. १७८३, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. मु. लक्ष्मणसागर; पठ. श्रावि. रहीआ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४२७-३६). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, पृ. १आ-९अ.. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: द्यो दरिशन जयकरो, गाथा-१२२. २. पे. नाम. परताति सज्झाय, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है. परनिंदानिवारक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: म कर हो जीव परतांत; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७८०६.(+) मैणरेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१७, फाल्गुन शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १६४३८-३९). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जोवो मास दारू थकी; अंति: (१)परनारी त्यागीज्यो, (२)राजवियानइ राज पियारो, गाथा-१७५, ग्रं. २००. १७८०७. (+) चौदगुणठाणाद्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १७-१८४३३-४५). १४ गुणस्थानक ८८ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नामद्वार ते १४ गुणठा, (२)मिथ्यात गुणठाणा; अंति: ए ५ जोग सासता, गाथा-८८. For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७८०८. चौमासि देववंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. पं. भाणविजय (सागरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १२४३३-३५). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई १७८०९. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०४, आषाढ़ कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. सरसानगर, प्रले. पं. मानधर्म; पठ. पं. वखतावरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १३४३२-३६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. १७८११. मौन एकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८, कार्तिक कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. इल्लोका, प्रले. पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ६४३६-३७). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेव; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२००. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमुंछ श्रीऋषभ; अंति: संवत १६५७ वर्षनेविषे. १७८१२. (+) कात्तिकसौभाग्यपंचमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, फाल्गुन कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. कूयरग्राम, प्रले. मु. माणिक्यविजय; पठ. पंन्या. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ५४३४-३५). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेरुंता नगरे, श्लोक-१५३. वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीज्ञानवंत पार्श्व; अंति: मेडतानगरनि विषई. १७८१३. (+) चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९२९, फाल्गुन शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. मेशाणा, प्रले. शिवराम जोशि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १०४३०-३२). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सामलनु चेई रे. १७८१४. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. उत्तमविजय; पठ. पं. अमीकुसल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४४३०-३७). स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सुगुण सोभागी; अंति: मालाबालाने वरे रेलो, स्तवन-२४. १७८१५. थुलीभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १८७६, पौष कृष्ण, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. पेथापूर, प्रले. मु. भाग्यसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलिपि., जैदे., (२५४१२, ११४३९-४३). स्थूलिभद्र नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (१)सुखसंपति दायक सदा, (२)कहे थुलभद्र सुण भूपत; अंति: (१)मनना रे सवि फल्या रे, (२)कहा भणतां मंगलमाल, ढाल-९+ दुहा. १७८१६. (#) पृथ्वीचंद्रकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७०८, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६-१७४३३-३६). पृथ्वीचंद्रकुमार रास, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणमुंभगति भगवति; अंति: देवचंद्र० निशदीस, गाथा-१७४. For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७८१७. (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७०२, पौष शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. नंदरबार, प्रले. ग. कीर्तिविमल; पठ. मु. वृद्धिविजय (गुरु मु. सत्यविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४४१-४४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५१. १७८१८. (+) संबोधसत्तरी व श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९६, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २८, कुल पे. २, ले.स्थल. रायधनपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, ३-४४३१-३६). १. पे. नाम. संबोधसप्ततिका, पृ. १आ-२७आ. आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-१२४, ग्रं. ७००. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण क० नमस्कार करी; अंति: मोक्ष सुख हुई पामें. २. पे. नाम. चार रत्नगाथा सहटबार्थ, पृ. २८अ. ४ रत्न गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवदया जिणधम्मो; अंति: तावद्धम्म समायरे, गाथा-३. ४ रत्न गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वजीव उपरि दया; अंति: एहवओ धर्म करवओ. १७८१९. जंबूप्रीछा रास, संपूर्ण, वि. १७९४, फाल्गुन शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. पाटण, जैदे., (२७४१२, १३४५०-५८). जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सरवदा पुरे; अंति: वीरजी मुनि सुखकारी, ढाल-१३. १७८२०. पिस्तालीस आगम तप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६.५४१२, १२-१३४२८-३४). ४५ आगमतपविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम बीजें श्रीनंदि; अंति: उपांगसूत्राय नमः. १७८२२. चौवीसदंडक ओगणत्रीसद्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदे., (२६.५४१२, १२४३४-३९). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: त्रसठि जाणवा. १७८२४. नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. कल्याणमंदिर नहीं है., पठ. मु. केशरीसंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १३४२५-२९). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताण० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम्, प्रतिपूर्ण. व्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. बेलानगर, प्रले. पं. अमीविजय; पठ. मु. धनजी (गुरु मु. कानजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ६४३०-४०). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१५३. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनें वांदवानई; अंति: लक्षण अबाधारहित. १७८२६. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ-विस्तृत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. आगलौड, प्रले. मु. नेमिविजय शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ३४३४-३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: छप्पीय अणत पक्खेय, गाथा-५३. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मु. पद्महर्ष, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीपार्श्वदेवं, (२)जीव कहतां जीवतत्व; अंति: पद्महर्ष० पाठ हेतवे. For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७८२७. (+) कूर्मापुत्र चरित्र सह टबार्थ, चौदरत्न व मंगलिक वस्तुनाम, संपूर्ण, वि. १८६५, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. ३, ले.स्थल. पूनानगर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ५४२७-३४). १. पे. नाम. कुम्मापुत्त चरिअं, पृ. १आ-२६अ. म. जिनमाणिक्य; उपा. अनन्तहंस, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं असुर; अंति: वाइद्यत चिरं जयउ, गाथा-१९५. कुम्मापुत्त चरिअं-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशासन नायक; अंति: बिहु प्रकारे लहै. २. पे. नाम. १४ रत्न नाम, पृ. २६अ. सं., पद्य, आदि: लक्ष्मी कौस्तुभ; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. मंगलिकवस्तु नाम, पृ. २६अ. मांगलिकवस्तु नाम, सं., पद्य, आदि: अश्वत्थो वटवृक्ष; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ९. दशवकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७४, पौष शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, प. १५, ले.स्थल. ऐलम, प्रले. तुलसीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १६४५२-५८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: निच्चला होसु, अध्ययन-१०, चूलिका २. १७८३०. (+) भवणद्वार, संपूर्ण, वि. १९२३ कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. दोघट, प्रले. मु. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १४-२०४४६-५२). भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: लोक में अलोक में जे; अंति: मोक्ष रूप शाश्वत छइ. १७८३२. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पठ. श्रावि. रतनबाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, ३४१८-२०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० त्रिभुवनमाह; अंति: क० सूत्र समुद्र थकी. १७८३३. (+) योगशास्त्र १ से ४ प्रकाश सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १८४५, श्रावण शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ५३, ले.स्थल. आसंबीया, प्रले. मु. तेजवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ४-५४३०-३८). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. योगशास्त्र-बालावबोध, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७९२, आदि: (१)नमस्कृत्य महावीरम्, (२)तिहां प्रथम श्रीहेमच; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १७८३४. नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. कल्याणमंदिरस्तोत्र नहीं है., जैदे., (२७.५४१२.५, ११४३०-३६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १७८३५. (+) इलायचीकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९६६, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. सा. जीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १६x४५-५१). For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकलसिद्धदायक सदा; अंति: पाम सुग्यानी जीवडा, ढाल-१८. १७८३६. चंद्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १८९२, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. कौजरा, प्रले. ग. मोतीविजय (गुरु पं. मानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १६-१९४३५-४१). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल-२९, गाथा-६२४. १७८३७. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९११, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदे., (२७४१२.५, ३४३१-३५). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५२. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु कहिता; अंति: केहवा बाधारहित एवा. १७८३८. एकादशगणधर देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. कल्याण लक्ष्मीचंददास पटेल; पठ. मोतिकुंवर बहन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, ११४३३-३६). ११ गणधर देववंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बिरुद धरी सर्वज्ञनु; अंति: तो शुद्ध समकित लहिये. १७८३९. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६.५४१२.५, ११-१३४२६-२९). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. १७८४०. (#) द्रव्यगुणपर्याय रास, संपूर्ण, वि. १८१८, चैत्र शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, ११४३३-३७). द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीगुरू जीतविजय; अंति: जसविजय बुध जयकरी, ढाल-१७, गाथा-२८५. १७८४१. ज्ञानपंचमी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२७.५४१२.५, ११४३१-३६). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १७८४२. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २५००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२६.५४१२.५, ७-९४३२-५१). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेस अंगं तहेव, अध्याय-१०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदिः (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)तेणे काले चउथा आरा; अंति: अ०अनुज्ञापवेइ जइ. १७८४३. (+) देवाधिदेव रचना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, २१४४७-६१). देवाधिदेव रचना, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: सकल जगपति पर्व पद; अंति: भवकोड अघातपते सुधरे, गाथा-५६४. १७८४४. (+) यशोधर चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८४, कार्तिक कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १३४५०-५४). यशोधर चरित्र, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३९, आदि: सकलसुरनरेंद्रश्रेणि; अंति: सकलोपि तेन जनः. For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७८४५. गुणठाणाद्वार व दंडकद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९७०, कार्तिक कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, ले.स्थल. नागनेश, प्रले. रुगनाथ शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, १४४४६-४९). १. पे. नाम. चौदगुणठाणाद्वार, पृ. १आ-८अ. १४ गुणठाणा ४१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नाम लक्खण ठिइ अंतर, (२)मिथ्यात्व सास्वादन; अंति: अनंतगुणा __ अधीका. २. पे. नाम. २४ दंडक २९ बोल, पृ.८अ-१६अ. मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार लेशाद्वार; अंति: तेथी अनंतगुणा होय छे. १७८४६. (#) दशवैकालीकसूत्र-अध्ययन १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, ७४३३-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १७८४८. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३२-३४). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए. १७८५०. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९००, चैत्र कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. इल्लोल, प्रले. पं. सुरेंद्रविजय गणिः पठ. श्रावि. झवेर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३०-३४). महावीरजिन स्तवन, मु. हंसराज , मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरस्वति द्यो मति; अंति: हंसराज० ए मुझ गरौ, गाथा-८३. १७८५१. सीमंधरजिन स्तवन व पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १८३८, पौष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. खुशालचंद मलुकचंद वसा; पठ. श्राव. मुलचंद वकिल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १२-१४४३१-३३). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामिविनती स्तवन १२५ गाथा, पृ. १आ-८आ. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधरा वीनती; ___अंति: जसविजय बुध जयकरो. २. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ८आ. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सुरे नमुकारसिय; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. १७८५२. (+) नवतत्त्व व श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२६, आश्विन शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्रले. शिवराम जोशि; पठ. श्राव. सागरचंद सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२७४१२.५, ४४३३-३७). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-१२अ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: दुसय छसत्त नवतत्ते, गाथा-६४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: नवतत्वना२७६ भेदजाणवा. २. पे. नाम. तत्त्व संबंधि श्लोक सह टबार्थ, पृ. १२आ. तत्त्वसंबंधि श्लोक, प्रा., पद्य, आदि: सत्तविराहणपावं अणत; अंति: च पावं मुणेयव्वम्, गाथा-२. तत्त्वसंबंधि श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पृथव्यादि ४ पृथ्वी १; अंति: पंचेंद्रीनो पाप लागे. For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७८५३. आर्यवसुधारा, संपूर्ण, वि. १८९५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. मेशाणा, प्रले. ग. सुरेन्द्रविजय (गुरु पं. चतुरविजय); पठ. ग. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमनरंगापार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., (२७.५४१२.५, १४४३२-४०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. १७८५४. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६५, आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अगस्तपूर, जैदे., (२७४१२.५, ११४३०-३५). वीरजिन स्तवन, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: कहे धन मुझ एह गुरू, गाथा-७४. १७८५५. वसुधारा, संपूर्ण, वि. १८७८, कार्तिक कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. वासखेरालु, प्रले. पं. जीतविजय; पठ. पं. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १२-१३४२८-३२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: सर्व रात्र करQ. १७८५६. (#) नवतत्त्व प्रकरण, चोवीसदंडक व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रावण कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. ३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. पनालाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, ४४२०-३२). १. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-१०अ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५०. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मु. ऋद्धिसागर, मा.गु., गद्य, वि. १९१५, आदि: जी० जीवलो हवों जीवै; अंति: अनेक सिद्ध १५. २. पे. नाम. चोवीसदंडक सह टबार्थ, पृ. १०अ-१६आ. चौवीशदंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. ऋद्धिसागर, मा.गु., गद्य, वि. १९१५, आदि: न० चउवीस तीर्थंकरा; अंति: त्रिंशकानामें विनती. ३. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. १६आ-२४आ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मु. ऋद्धिसागर, मा.गु., गद्य, वि. १९१५, आदि: कैहवा करी भगवान छै; अंति: लेइनें रचनां करी छै. १७८५७. (+) पाक्षिकसूत्र, खामणा व क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ३, ले.स्थल. कलोल, प्रले. त्रिभोवन मोहनलाल बारोट; लिख. मु. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१३.५, १२४३८-४२). १. पे. नाम. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-११आ. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाखीखामणा, पृ. ११-१२अ. For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवश्यक सूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंतिः नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ३. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. १२अ. क्षुद्रोपद्रवशमन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक १. १७८५८. ज्ञानपंचमी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९५४, कार्तिक शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. पाली, प्रले. मु. धनरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X१४, १५X३४-४०). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१) प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: संघ सयल सुखदाइ रे. १७८५९. (१) स्नात्रमहोत्सव, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६)x१३.५, १३-१४X३०-३६). स्नात्रपूजा विधि, मा.गु., सं., पद्य, आदि: (१) प्रथम पूर्वदिसें तथा, (२) मुक्तालंकार विकार; अंति: (१) जयो जयो जयवंतजी, (२) दीप करीई मंगल्यं. १७८६१. पांत्रीस बोल, संपूर्ण, वि. १९५०, ज्येष्ठ शुक्त, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, फलोधी, प्रले. मु. सुजानमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२६.५४१३.५, १३४३४-३९). 19 ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले गति चार; अंति: गुण श्रावकना कह्या. १७८६२. (#) गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३५, चैत्र शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. विसलनगर, प्रले. मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२७x१३.५, १५-१७४३१-३५). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुं नित परमेश्वर अंति: इम नेमविजय जयकारे १७८६३. नवतत्त्व, जीवविचार व दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे, ३, जैदे., ( २६.५x१३.५, १३४३३-३६). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ - ३अ. प्रा., पद्म, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा - ५१. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३अ - ५अ. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुवसमुदाओ, गाथा-५१. ६१ ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ५अ-७अ. विचारषट्त्रिंशिका प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा -४०. For Private And Personal Use Only १७८६४. प्रतिष्ठाकल्प, संपूर्ण, वि. १८६२, चैत्र कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल, रूपाल्य, प्रले. पं. गुलाबसागर (गुरु पं. कल्याणसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१३.५, १६x४०-४६). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य स्वस्ति, (२) तिहां प्रथम भव्य; अंति: गच्छ२ स्वाहा. १७८६५. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७.५X१३, ११x२९-३१). " महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि सकल सिद्धिदायक सदा; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए, गाथा - १०१. Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७८६६. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ.८-१(२)=७, ले.स्थल. खेडाग्राम, प्रले. पं. धर्मरत्न; पठ. श्रावि. अंबाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३.५, १४-१५४३०-३७). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, अपूर्ण. १७८६७. अजितशांति व बृहच्छांति, संपूर्ण, वि. १९२६, भाद्रपद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. शिवराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमनरंगापार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., (२७.५४१३, ११४३७-४१). १. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १आ-४आ. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभय; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. ४आ-६अ. हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम. १७८६८. (+) जीवविचार व श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२६, भाद्रपद कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. शिवराम जोशि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३, ५४३३-३४). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमाहि दीवा; अंति: माहेथी कह्यो छै. २. पे. नाम. गुरुशिष्यलक्षण श्लोक सह टबार्थ, पृ. ७अ. गुरुशिष्य लक्षण श्लोक, प्रा., पद्य, आदि: सच्च वयण पडिवन्न; अंति: जणणी जणइ एरिसा विरला, गाथा-१. गुरुशिष्य लक्षण श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सत्य वचन पालें; अंति: पण एहवा विरला छै. १७८७१. (+) श्रीपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१८, आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. विनयसागर (खरतरगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२७७१३, ११४३४-३९). श्रीपाल चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: पातिकवन लुणिज्यौ रे, ढाल-४९, ग्रं. १२२५. १७८७२.(+) दंडक स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. ऐमदाबाद, प्रले. मु. उमेदचंद ऋषि; पठ. श्राव. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३, ४४२४-३३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउवीस तीर्थंकरदेवनई; अंति: आत्माने हितकारी. १७८७३. चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, जैदे., (२७.५४१३.५, १२४२६-३०). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सामलनु चेई रे. १७८७४. हठिसिंहकृत्य अंजनशीलाका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, जैदे., (२६.५४१३, १०x२९-३३). For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ हठिसिंहमंदिर अंजनशलाकाप्रतिष्ठा स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विनय विवेकी लोकतणा; अंति: शुभवीर० महाराजा रे, ढाल-५. १७८७६. बारभावना व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१३, १२४२९-३१). १.पे. नाम. १२ भावना सज्झाय, पृ. १आ-८आ. उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेश्वर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३. २. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. ८आ. हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. १७८७७. (+) सिद्धांतचंद्रिका सह सदानन्दी टीका-उत्तरार्द्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १९११, फाल्गुन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. गोविन्द तिवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१३, १४-१६४३१-३५). सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धिर्यथामातरादेः, प्रतिपूर्ण. सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: कृदंते कृतवानृजम्, प्रतिपूर्ण. १७८७८. वरदत्तगुणमंजरी कथाभाषा, संपूर्ण, वि. १९२२, फाल्गुन कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. श्रीमुनिसुव्रतस्वामी प्रासादात्., जैदे., (२७४१२.५, ११४४७-५०). सौभाग्यपंचमीपर्व कथा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधी; अंति: साधु थयां कवीता. १७८७९. (4) चौमासी देववंदन व भास, संपूर्ण, वि. १८७५, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. महिमाविजय; पठ. श्रावि. दुधीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७१३.५, १५४३९-४५).. १.पे. नाम. चौमासी देववंदन, पृ. १आ-७अ. चौमासीपर्व देववंदन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पढम जिनवर० पाय; अंति: वलि वलि अवधारो हेव. २. पे. नाम. मुनिगुण भास, पृ. ७अ, ले.स्थल. अगस्तपुर. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानदिवाकर सोभता; अंति: वीरवचन० सुहंकरसाधुजी, गाथा-६. १७८८०. चौमासी देववंदन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. मु. जीतविजय; पठ. श्रावि. पानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३.५, १५४२८-२९). १. पे. नाम. चौमासी देववंदन, पृ. १अ-७अ. चौमासीपर्व देववंदन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पढम जिनवर० पाय; अंति: नंदसूरि शिवसुख दायक. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ. मु. विवेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिन भावे भवीजन; अंति: विजय० सुगुण सलाम. १७८८२. विमलाचल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. मुंद्राद्वीकापू, प्रले. पंन्या. मोतीसागर; पठ. श्रावि. जतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१४, १३४३०). शत्रुजयतीर्थरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: ए सुणतां आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-१०९. For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७८८३. अक्षयतृतीया कथा, संपूर्ण, वि. १८७४, पौष कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. ग. भाग्यविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१३.५, १४४३५-३९). अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंति: कथा निरुपितास्ति. १७८८४. (+) पंचमी देववंदन व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४४, कार्तिक शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. ईलोल, प्रले. पं. जसविजय; पठ. ग. विद्याविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३.५, ११४३०-३४). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, पृ. १अ-११अ. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ११आ. ग. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मातना पाउले; अंति: पूजो भगवंतने जी रे, गाथा-७. १७८८६. (#) हस्तसंजीवनी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अधिकार-४ गाथा-२४ तक है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३.५, १३-१४४३७-४५). हस्तसंजीवन, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर; अंति: (-), अपूर्ण. १७८८७. ध्यान विचार, संपूर्ण, वि. १८८७, भाद्रपद कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. राधनपूर, पठ. सा. अविचलश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३.५, १२-१३४३३-३६). ध्यानस्वरुपनिरुपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: सकल जिणेसर पाय वंदे; अंति: रच्यो चित्त रंगे. १७८८८. साधुक्रियाबोल विचार, संपूर्ण, वि. १९१५, ज्येष्ठ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. राधनपूर, प्रले. य. कल्याणविजय; पठ. श्राव. खेतसी अवचल सा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३.५, १६-१७४४२-४४). साधुक्रियाबोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)अथप्रश्न शिष्य गुरु, (२)शिष्य गुरुने पुछे; अंति: समकीतनां जाणवा, ग्रं. ५३०. १७८८९. नवस्मरण, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., बडीशांति की कुछेक गाथा तथा कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है., जैदे., (२८x१३.५, १२४३१-३८). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताण० हवइ; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १७८९०. शेव्रुजयउद्धार, संपूर्ण, वि. १९०३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. सरदारपूर, प्रले. ग. जीतविजय; पठ. श्रावि. पानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३.५, ११-१४४२८-३२). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: द्यो दरिशन जयकरो, गाथा-१२३. १७८९१. (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, पूर्ण, वि. १९२०, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(९)=१३, ले.स्थल. लोदरा, प्रले. केसरचंद रुपचंद्र; पठ. श्राव. जेठा परसोत्तम सा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१३, १३४३६-४२). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं; अंति: जैन जयति शासनम्, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७८९२. (+) दंडग प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२६, भाद्रपद कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. शिवराम झुमखराम जोशी; पठ. श्राव. साकरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३, ५४३८-४८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४८. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने चोवीस; अंति: पोताने अर्थे कही. १७८९३. (+) चौवीस दंडक ओगणत्रीसद्वार, अपूर्ण, वि. १८८८, माघ शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १७-२(२ से ३)=१५, प्रले. ग. हेमविमल; पठ. श्रावि. सांकलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३.५, ११४२९-३५). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: अनंतगुणा अधिका कहवा, अपूर्ण. १७८९४. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२८x१३, १३४२६-३१). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७८९५. पंचमीतप महिमा, संपूर्ण, वि. १९४२, चैत्र कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७.५४१३, ११४३२-३६). पंचमीतप महिमा, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि ___ मंगल करे, ढाल-६. १७८९६. (+) ज्ञानपंचमी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३, ११४३७-४०). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १७८९७. (+) कर्मग्रंथ १-२-३ सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-१२(१ से १२)=२०, कुलपे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१३, ४४३६-४२). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १३अ-१६आ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-४५ अपूर्ण तक नहीं है. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६१, अपूर्ण.. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ , मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: (-); अंति: पूर्तिमगात्, अपूर्ण. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १६आ-२६आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: तथा तिणे प्रकारे; अंति: नामकस्य पूर्णमगात्. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. २६आ-३२अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: जीवप्रदेश साथे कर्म; अंति: पूर्तिमगात्. १७८९८. (+) अढारपापस्थानवर्णन स्वाध्याय व वयरस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२.५, १४-१६x४१-४४). १.पे. नाम. पापस्थानाष्टादशकवर्जन स्वाध्याय, पृ. १अ-७अ. For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलू का; अंति: वाचक जस इम भाखेजी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११. २. पे. नाम. वयरस्वामी सज्झाय, पृ. ७अ. वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गणधर दश पूरवधर सुंदर; अंति: विजय प्रभु बंदा हो, गाथा-१३. १७८९९. कानडकठियारा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८९, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२७७१३, १७-१८४३३-३५). कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुंसदा; अंति: दिन दिन वधते - रंग, ढाल-९. १७९०१. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., पीठिका भाग अपूर्ण है., जैदे.. (२८x१३, १८४४४-५०). कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: अज्ञान तिमिरांधानां; अंति: (-), अपूर्ण. १७९०२. (+) नवपद बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५९, चैत्र कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. कासंद्रा, प्रले. मु. शिवरत्न (गुरु पं. प्रतापरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (४) जलं रक्षेत् स्थलं रक्षेत्, (६६) भणे गणे जे साभले, (१२२) जब लग मेरु स्थिर रहें, जैदे., (२७.५४१३, १४-१५४२८-३०). नवपद-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सिद्ध सरूपी; अंति: नवपद सहित तप जाणवो. १७९०४. चंदनबाला रास व गोचरीके ४२ दोष, संपूर्ण, वि. १८९७, चैत्र कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. मु. सोभाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (३४०) जैसी अगैपडितथी, जैदे., (२६.५४१२.५, १९४४६). १. पे. नाम. चंदनबाला चौपाई, पृ. १आ-६अ. मु. ब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: मोह पिसाच वसकरणकुं; अंति: ब्रह्म० गुण वर्णउ, गाथा-१५९. २. पे. नाम. गोचरीदोष, पृ. ६अ. प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मं १ उदेसिय; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-५. १७९०५. मुनिपति चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदे., (२६४१२.५, १९४४१-४५). मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: श्रीशंखेसर सुख करू; अंति: नवेय निधानो रे, खंड-४, ढाल ६५. १७९०७. श्रृंगारवैराग्यतरंगणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, २४४५-४६). शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: धर्मारामदवाग्निधूम; अंति: निशमेति नाशं, श्लोक-४६. शृंगारवैराग्यतरंगिणी-सुखबोधिका टीका, मु. नंदलाल, सं., गद्य, वि. १७८०, आदि: श्रीपार्श्वनाथं; अंति: वृंद नतपादांबुजद्वये. १७९१०.(+) दंडक व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रावण शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, ले.स्थल. वढवाण, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ४४३०-३३). १. पे. नाम. चौवीशदंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-९अ. For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ चौवीशदंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४६. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीचउवीस तीर्थंकर; अंति: आपणा हितनेंकाजे लिखी. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ९अ-१६आ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनने विषे; अंति: थकी भणवाने अर्थे. १७९११. सत्तरभेदीपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (३६.५४११.५, ९४३२-३७). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखपंकज वासि; अंति: सिवपुर लणीओ रे, ढाल-१७. १७९१२. लोकनालीद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६८४, पौष कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. दीव, प्रले. मु. धना नारदजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ३-६४३०-३४). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागीना दर्शन; अंति: एहनइ विषइ भमइ नही. १७९१३. स्थुलिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १७०३, श्रावण शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १७४५६-६३). स्थुलिभद्रगुणकीर्तनछंद चौपाई, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: करो सहिजसुंदर मया, अध्याय-४. १७९१५. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९५१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, १४-१५४३८-४१). चातुर्मासिक व्याख्यान *, रा., गद्य, आदि: श्रीपार्श्व सुख; अंति: मिथ्या दुःकृतमस्तु. १७९१६. (+) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-पर्व १०-महावीरचरित्र, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२, १७X४७-५२). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७९१८. जीरिकापल्लिपार्श्वजिन स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. कोरटा, प्रले. मु. खीमासुंदर (गुरु मु. अमरतिलक); पठ. मु. महीतिलक (गुरु पं. पूर्णमंदिर, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १५-१६४५४-५५). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, आ. महेंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रभुंजीरिकापल्लि; अंति: महेंद्रस्तवार्हाः, श्लोक-४५. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला-टीका, सं., गद्य, आदि: अहं पार्श्वजिन; अंति: नाम ज्ञातव्यमिति. १७९१९. युष्मदस्मत्छब्दबहुव्रीहि स्तवसंग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पंचपाठ. कुल ग्रं. ४८२, जैदे., (२७४११.५, ६-१७४३०-३४). अष्टादशस्तवी, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४९७, आदि: स्तुवे पार्श्व; अंति: वास्तवश्रिये, स्तवन-१८. For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टादशस्तवी- अवचूरि, आ. सोमदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १४९७, आदि: बहुव्रीहेरेकवचने; अंति: (१) श्रिये शिवसंपदे, (२) सक्षिप्तावचूर्णिः. १७९२०. नेमिनाथ प्रबंध रंगरत्नाकर छंद, संपूर्ण, वि. १७०१ चैत्र अधिकमास कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह, लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X११.५, १९४५५-५७). नेमिजिन जिन प्रबंध रंगरत्नाकर छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४६, आदिः स्मृत्वा श्रीशारदी; अंति: जय जगजीवन कल्याणकर, खंड- २. १७९२१. योगदृष्टि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२७४११.५, ४-१४४३६-४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय- बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) ऐंद्रश्रेणिनतं, (२) शिव क० निरुपद्रव; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७९२३. आनंदघनवहोत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदे., (२७.५X१२, ९३९). " आनंदघन गीतवहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्युं शोवे उठि जाग; अंति: आनंदघन उछरंग, पद- ७४. १७९२४. संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८३४, माघ कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. जूनागढ, प्रले. ऋ. विजयचंद्र (गुरु आ. वाल्हचंदजी); पठ. मु. जीवा ऋषि (गुरु ऋ. विजयचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५x१२, १४-१६४३३-४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिडं अरिहंताई ठिङ; अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३३५. १७९२५. (+) साधु प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, पू. वि. नमोत्थुणं तक है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X१२, ६x२८-३१). साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह घे.मू. पू., संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहंताणं नमोः अंतिः सपत्ताणं नमो जिणाणं. साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह -टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः नमुस्कार श्री अरिहंतन; अंतिः मारहु नमस्कार हुआ, १७९२६. स्थुलीभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६९, भाद्रपद कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. मांघरोल, प्रले. मु. प्रेमजी ऋषि (गुरु मु. हीरजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. जैवे. (२६.५४१२, १४-१५४३९-४९). "" धुलिभद्रगुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पच, वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंतिः करो सहिजसुंदर मया, अध्याय ४, गाथा ४२०, ग्रं. ८००. १७९२७. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १७४८, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले. स्थल. दीवबंदर, 3 प्रले. मु. सगाल ऋषि (गुरु ऋ. सहस किरण) ; पठ. सा. महिया आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, १०X३८-४०). १. पे नाम, महावीरजिन २७ भव स्तवन, पृ. १अ ५अ. महावीरजिन स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमलकमलदललोयणा दिसे; अंति: विजय शिष्य जयकरो, गाथा-८५. २. पे नाम, प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. ५आ. मु. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि पंचप्रमाद तजी पडिकमण; अंतिः ते भव सायर तरसइ, गाथा-८, १७९२८. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैवे. (२७१२, १२४३२-३३). For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: जसपडहो तिहुअणे सयलें. १७९२९. रत्नाकरपच्चीसीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, आश्विन कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. गोधावी, प्रले. पं. जतनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, ४४३१). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयः क० कल्याण; अंति: बीजो काइ नथी मांगतो. १७९३३. दशवकालीकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्रले. ऋ. जेठा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, ११-१५४२३-३८). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, गाथा-७००, ग्रं.७००. १७९३४. पर्युषणअष्टान्हिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९१३, आषाढ़ कृष्ण, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. मुंबोईबींदर, प्रले. सिवलाल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, ११-१३४३८-४२). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबंध विलोक्य तत्. १७९३५. कल्पसूत्र-दशाश्चर्याधिकार का बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १८६८, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्रले. ऋ. कुंवरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४२५-२७). कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (१)नत्वा गुरुच वाग्देवी, (२)बारसगुणा अरिहंता; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १७९३७. दशवैकालीकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७११, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. दीवबंद्र, प्रले. मु. लीबजी ऋषि (गुरु मु. गोवा ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, १७४४७-५४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: कहणायवि आलणा ___ संघे, अध्ययन-१०, चूलिका २. १७९३८. चौवीसदंडक त्रीसबोल विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-१(२५)=२६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२.५, १६-१७४३५-४०). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेसा २ ठिइ ३; अंति: (-), अपूर्ण. १७९३९. (+) स्तुतिचौवीसी सह टिप्पण व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. पं. धनरुप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२.५, ५४३०-३४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. स्तुतिचतुर्विंशतिका-टिप्पण, मु. जयविजय, सं., गद्य, आदि: भव्या एवांभोजानि; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण, पू.वि. चंद्रप्रभस्तुति गाथा-१ तक लिखा है.) १७९४०. वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, पठ. श्रावि. माणिकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४३८-४०). For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव जिनो; ____ अंति: सिरिसंघ सुखविजय लाहो. १७९४१. (+) सिंदरप्रकरण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्रले. पं. प्रेमविजय; पठ. मु. वेणीदास (गुरु मु. कनकरत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ५४३०-३१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: ज्ञानगुणा स्तनोतु, श्लोक-१०४. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर कहिता; अंति: अर्थ पूरो थयउ छई. १७९४२. दंडक, गतिआगति व आयुष्यविचार, संपूर्ण, वि. १८८१, आश्विन शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, कुल पे. ३, प्रले. मु. अनोपरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ११४३४-४२). १. पे. नाम. २४ दंडक ३० द्वार विचार, पृ. १आ-३४अ. मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेसा २ ठिइ ३; अंति: छ मासनु आंतरु पडई. २. पे. नाम. गतिआगतिविचार, पृ. ३४अ-३५अ. गति आगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीनी गति ४० ते; अंति: दस ऐवं सर्वे मिलिता. ३. पे. नाम. आयुष्य विचार*, पृ. ३५अ. मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यनउ वरस १२५; अंति: सिंघनऊ वरस ४८. १७९४३. (+) आउर पच्चक्खाण, भत्त परिन्ना व संथारा पयन्ना, पूर्ण, वि. १६००, वैशाख शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(१)=२२, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ९४३५-४०). १. पे. नाम. आउर पच्चक्खाण, पृ. २अ-६अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सउखय सव रियाणं, गाथा-७१, पूर्ण. २. पे. नाम. भक्त परिन्ना, पृ. ६अ-१६अ. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महाइसयं महाणु; अंति: सुक्खं लहइ मुक्खं, गाथा-१७२. ३. पे. नाम. संथार पइन्नं, पृ. १६अ-२३आ. संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं मम दिंतु, गाथा-१२०. १७९४६. (+) कर्मग्रंथ-४-षडशीती सह यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-२५(१ से २५)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., मूलगाथा-१-८३ तक है।, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), पूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, आदि: जीवरा भेद १४ ६२; अंति: (-), पूर्ण. १७९४७. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६.५४१२, ११४३१-३८). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: अनंत सुखनो सदा रे, स्तवन-२४. For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७९४८. चउशरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७७२, माघ कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, प्रले. मु. उत्तमरत्न (गुरु पं. हंसरत्न); पठ. श्रावि. रहीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ९४३२-३५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १५९७, आदिः (१)वर्द्धमान जिनं, (२)ए श्रीचउसरणाध्ययन; अंति: प्रमाण करी जणाव्यु. १७९४९. महावीरजिन स्तवन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. मुक्तिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १४-१६४३८-४०). महावीरजिन हंडी स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय%; ____ अंति: आणा शिर वहस्ये जी, ढाल-७. १७९५०. (+) क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x११.५, ११४३१-३५). बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहर निभस्स; अंति: समयखेत्तस्स परिरओ, गाथा-१४२. १७९५१. नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १८७३, फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. कल्याणमंदिर नहीं है, शेष ८ स्मरण है., जैदे., (२७४१२, ९-१४४२७-३०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम्, प्रतिपूर्ण. १७९५२. (+) समरादित्य रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-१(१)=४४, पृ.वि. ढाल-१ गाथा-१ से १० तक नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा खंड- २ ढाल- २३ गाथा-७ तक लिखा है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १४४३९-४३). समरादित्यकेवली रास, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १७९५४. (+-) मुनिपति रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा ढाल २५ का बाकी पाठ प्रथम पृष्ठ पर लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १५-१९४५६-६४). मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५०, आदि: विरधमान विरधीकरन; अंति: मुनपतजी म्हाराज, ढाल-२७. १७९५५. इक्षुकारराजाकुमलावती रास, संपूर्ण, वि. १९५१, आश्विन शुक्ल, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. सीघाणा, जैदे., (२७.५४१२.५, १८४३८). इक्षुकारराजाकुमलावती संबंध, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: परम दयाल दयाकरो आसा; अंति: खेम भणैः कोडि कल्याण, ढाल-४, ग्रं. १५४ गाथा. १७९५६. आराधनासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४५, आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. मतिविजय; पठ. पं. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, ६-७४२९-३३). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: लहंति ते सासयं ठाणं, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने इम; अंति: ते सासता सुष प्रति. १७९५७. द्रव्यानुगमा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदे., (२७.५४१३, ७-८४४०-५१). भगवतीसूत्र-द्रव्यानुगम, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: कइ विहाणं भंते दव्वा; अंति: पज्जवा अणंत गुणा. For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७९५८. संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०७, वैशाख शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. पं. भीवसुंदर (कवलागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १२-१४४३७-३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊ अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२९४. १७९५९. पंचज्ञानपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९१३, कार्तिक शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. मुंडाडा, प्रले. पं. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, ११४४१-४६). ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल कुशल कमलावली; अंति: रुपविजय गुणगाया रे. १७९६०. मयणरेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. दादर, प्रले. सा. चंदाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १३-१४४२६-२८). मणरयासती चोपई, मा.गु., पद्य, आदि: जूआ मांस दारु थकी; अंति: हीर सेवग चितलायो रे, गाथा-१७९. १७९६१. स्तवनचौवीसी व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२५, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. २, ले.स्थल. मुंबइबंदर, प्रले. पं. जसविजय; पठ. श्राव. टीलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, ९४२७-३०). १. पे. नाम. आनंदघनकृत चौवीसी, पृ. १अ-१८आ. स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन परभू जागे रे, - स्तवन-२४. २. पे. नाम. रात्रीभोजन सज्झाय, पृ. १८आ-२१आ. रात्रिभोजन सज्झाय, क. प्रमाणहंस, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: सरसति श्रुतदेवी नमी; अंति: प्रमाणहंस प्रभणे एह, ढाल-३. १७९६२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१३, १३४३०). १. पे. नाम. आदिश्वरजीनी विनति, पृ. १अ-२आ. आदिजिन विनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी विनवूजी; अंति: समयसुंदर गुण थुणे, गाथा-३१. २. पे. नाम. आदिजिन विनंती स्तवन, पृ. २आ-३आ. आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेत्रुजा; अंति: हर्ष० देजो परमानंद, गाथा-१९. ३. पे. नाम. छन्नूजिन स्तवन, पृ. ३आ-६अ. वृद्धचैत्यवंदन, वा. मूला, मा.गु., पद्य, आदि: केवलनाणी श्रीनिरवाणी; अंति: ऋद्धि वृद्धि आणंदु ए, ढाल-८. १७९६५. षड्दर्शनसमुच्चय, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा ८५ तक है., जैदे., (२७४१३, ९-१०x२१-२७). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: (-), पूर्ण. १७९६६. सत्तरभेदी पूजा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. मात्र रचना प्रशस्ति का अंतिम भाग नहीं है., जैदे., (२७४१२.५, १३-१५४४३-४७). For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ७३ १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: ज्योति सकल जग जागती; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १७९६८. महानिशीथसूत्रभावार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. छबील पुस्कर्णाब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १४-१५४२८-३७). महानिशीथसूत्र-भावार्थ, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., गद्य, वि. १८९०, आदि: स्वस्ति श्रीमन्नपति; अंति: आराधक सिद्धि वरस्यै. १७९७०. नवपद विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२७७१३, १०-१४४३४-४१). नवपद आराधनाविधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम प्रभातें; अंति: (१)जीम होइ जगि जसरीत, (२)तांतणानो दीवो करवो. १७९७२. सुभाषित संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२७.५४१२, ५-६४३७-४०). सुभाषित श्लोक संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५९. सुभाषित श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १७९७३. पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. चालीनगर, प्रले. दलिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७१३) लेखण उर मचिड बडि, (७१४) दधिसुत लै दधिसुत भष्यो, जैदे., (२७४१३, ११४३४-४१). पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: वंछित दाय सहायो रे. १७९७५. (+) सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८९७, श्रावण शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४३-१०(१ से १०)=३३, पू.वि. खंड-१ ढाल-४ गाथा-३ तक नही है., ले.स्थल. महेसर, प्रले. पृथ्वीराज ब्राह्मण; पठ. मु. कुशल (गुरु य. कनकधर्म जती), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (५७८) याद्रसं पुस्तकं द्रष्ट्वा, जैदे., (२७७१३, ११-१२४२२-२६). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदिः (-); अंति: आनंद लील उमंगेजी, अध्याय-४, ढाल ३९, गाथा-६१९, अपूर्ण. १७९७६. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ श्लोक, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले.स्थल. जानाबाद, प्रले. सा. खुसाला (गुरु सा. जाम्मा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९x१३, ५-८४४८-५२). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाइं नामाई. नंदीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अथ नंदी इति कः शब्दा; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा. १७९७९. यशोधर चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा प्रतिलेखन पुष्पिका अपूर्ण है., जैदे., (२८x१२.५, १२४३५-४१). यशोधर चरित्र, आ. माणिक्यदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (१)करामलकवद्विश्वं, (२)उन्मिलन्ती शंखकुन्दा; ___ अंति: जन्मपंचत्वमुक्तम्, सर्ग-१४, ग्रं. १४८५. १७९८०. गुणठाणाद्वार व दंडकद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९७०, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, प्रले. रुगनाथ शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, १४४४३-४९). १. पे. नाम. १४ गुणठाणा ४१ द्वार, पृ. १आ-८अ. For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: (१)नाम लक्खण ठिइ अंतर, (२)मिथ्यात्व सास्वादन; अति: अनंतगुणा अधीका. २. पे. नाम. २४ दंडक २९ बोल, पृ. ८आ-१६अ.. मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार लेशाद्वार; अंति: तेथी अनंतगुणा होय छे. १७९८१. पर्वव्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६९, श्रावण शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७२, कुल पे. १२, ले.स्थल. नागोर, प्रले. रामधन दामोदरजी पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १२४४३-४५). १. पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान*, पृ. १आ-१६अ. ___रा., गद्य, आदि: (१)श्रीपार्श्व सुख, (२)सुखारा निवास इसा; अंति: दुक्कडं होज्यो. २. पे. नाम. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, पृ. १६आ-२६आ. रा., गद्य, आदि: (१)शांतीशं शांतिकर्ता, (२)अठै समपूर्ण खोटा; अंति: पर्व वखाण कह्यो. ३. पे. नाम. दिपमालिका वखांण, पृ. २६आ-४३अ. दीपावलीपर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: पणमिय वीरं वुच्छं; अंति: विषे आदर उद्यम करौ. ४. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी व्याख्यान, पृ. ४३अ-४७अ. सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: माला संपजै. ५. पे. नाम. कार्तिकपूनम व्याख्यान, पृ. ४७अ-५०अ. प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: सिद्धो विजाय चक्की: अंति: आपरो जणमारो सफल करणौ. ६. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा, पृ. ५०अ-५६अ. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सिरिवीरं नमिऊण, (२)श्रीमहावीरनै नमस्कार; अंति: आराधवाने उजमाल थया. ७. पे. नाम. पौषदशमीपर्व कथा, पृ. ५६अ-५८अ. रा., गद्य, आदि: (१)ध्यात्वा वामेयमहत, (२)अगणित महिमारा भंडार; अंति: तपस्या जानजीव अंगेजी. ८. पे. नाम. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पृ. ५८अ-६२आ. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-भाषांतर, मा.गु., गद्य, आदि: (१)मारुदेवं जिनं नत्वा, (२)श्रीऋषभदेवस्वामीनै अंति: अनंतानी प्राप्ती थाय. ९. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, पृ. ६२आ-६५अ. चैत्रीपूनम कथा, रा., गद्य, आदि: (१)तीर्थराजं नमस्कृत्य, (२)अहो भव्य जीवो; अंति: सुख संपदा पामै. १०. पे. नाम. आखातीजरौ वखाण, पृ. ६५अ-६७आ. अक्षयतृतीया व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: (१)प्रणिपत्य प्रभू, (२)उसभस्सय पारणए इक्खु; अंति: घणौ आदर कर उद्यम करौ. ११. पे. नाम. रोहिणी कथा, पृ. ६७आ-७०आ. रोहिणीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नलिखै तैहै उच्चिट्ठम, (२)उघराडि अने विरूऊ जूठ; अंति: क्षयकरी मुगतै गया. १२. पे. नाम. होलिका कथा, पृ. ७०आ-७२आ. होलिकापर्व कथा, मा.गु., गद्य, आदि: तिणनैं लोक होली कहै; अंति: मुक्ति रूप सुख मिलै. For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ७५ १७९८२.(+) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-७(१ से ३,५ से ७,१७)=१२, कुल पे. १५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२८x१२, ७-८x२३-२८). १. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ४अ, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., मात्र अंतिमगाथा है. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सीस० संघ तणा नीसदीस, गाथा-४, ___ अपूर्ण. २. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, पृ. ४अ-४आ. चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. सुखडीरी थुई, पृ. ८अ-९अ. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: जो तसे देवी अंबाई, गाथा-४. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ९अ-१०आ. श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय तीरथसार; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १०आ-११आ. मु. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. ६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२आ. ___ मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझनै; अंति: शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १२आ-१३आ. ___ मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अतिअलवेसर; अंति: भणे बुधविजय जयकारीजी, गाथा-४. ८. पे. नाम. दीपमालिका स्तुति, पृ. १३आ-१४आ. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वाणीजी, गाथा-४. ९. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तुति, पृ. १४आ-१६अ. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसर पास जिणंद; अंति: द्यो दोलति मुज माई, गाथा-४. १०. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १६अ-१६आ. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोड कल्याणजी, गाथा-४. ११. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. १६आ, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्रारंभिक मात्र स्तुति है. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासुपूज; अंति: (-), अपूर्ण. १२. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १८अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा २ अपूर्ण से है. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अष्टसुरसानंद करे, गाथा-४, अपूर्ण. १३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १८अ-१९अ. पुहि., पद्य, आदि: आगे पूरव वार नीवाणु; अंति: कारिज सिद्धि हमारीजी, गाथा-४. १४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १९अ-१९आ. For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेशर अति अलवेसर; अंति: सानिध करज्यो मायजी, गाथा-४. १५. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १९आ, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्रारंभिक मात्र है. पंचमी तिथि स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: (-), अपूर्ण. १७९८३. ज्ञानपंचमी देववंदनविधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२७.५X१२.५, ११३३-३९), ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१) प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १७९८४. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८४, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२८x१२, ११-१२X३४-३६). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: लावण्यसमय० वचने वसु, गाथा - १२५. १७९८५. वयरस्वामी भास, संपूर्ण, वि. १८७९, आश्विन कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. पाली, प्रले. पं. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५X१२, ११×३९). वयरस्वामी भास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरघ भरतमांहि शोभतो; अंतिः ववर गुण गाया रे, ढाल - १४. जैदे., १७९८६. (+) मृगलेखा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. " १९X५४). (२६.५X१२.५, मृगांकलेखा चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदिः आदेसर जिन आददे चोवीस; अंतिः वरते कोड कल्याण, ढाल - ६२. १७९८८. नवाणुप्रकारी पूजा व विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल विसलनगर, प्रले. खेमा जेठा ठाकोर लिख. मु. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, १२X३३-३९). नवाणुप्रकारी पूजा विधि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी अंति: आतम आप ठरायो रे, ढाल - ११ + कलश, ग्रं. १०५ गाथा. १७९८९. रोहिणी सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०१ श्रावण कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे २, ले. स्थल, कडीनगर, प्रले. पं. . चतुर (गुरु पं. सुरेंद्रविजय गणि); पठ. श्रावि. झवेर बाई, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, १२-१३X२८-३३). १. पे नाम रोहिणी व्रतविषय पंचमी स्वाध्याय प्र. १अ २अ. For Private And Personal Use Only रोहिणीव्रत पंचमीस्वाध्याय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: लक्ष्मी० सुख पावेरे, ढाल - ५. २. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. २अ ५अ. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासण देवता सामणीए; अंति: सफल मन आस्वा फली. १७९९०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल, बीसलनगर, जैदे., (२८x१२, ११४३२). १. पे. नाम. संघयात्रा स्तवन, पृ. १अ - ५ आ. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सिद्धाचल सीद्धगीरी; अंति: वीरविजय० तरस्ये रे. २. पे नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५आ-६अ, Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir وای हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: सुणो सखि संखेश्वर जइ; अंति: शुभवीर० कमला वरता, गाथा-१४. १७९९२. इकवीसठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. ठाकुर ऋषि; पठ. मु. दामा (गुरु मु. ठाकुर ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, ६४३३-३६). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-७०. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउन विमा नाम नगरीनाम; अंति: समय साधारणइ कह्या. १७९९३. शाश्वताजिनवर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२७.५४१२, ९४२७-३४). शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिकविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: वीर जिणेसर पाय नमी; अंति: माणिकविमल० संपति घणी, गाथा-८५.. १७९९४. (+) महाबलमलयसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. दादरी, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, २२४५९-६१). महाबलमलयसुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीपार्श्व प्रणमी; अंति: शुकलपंचमी खरी ए, खंड-४. १७९९५. प्रतिमाशतक सह स्वोपज्ञव्याख्या, संपूर्ण, वि. १८४६, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १६५, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. पं. जीवणविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीजीरावलापार्श्वनाथ प्रसादात, श्रीऋषभदेवजी, श्रीअजितनाथजी., त्रिपाठ-द्विपाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, (१११) भग्नपृष्टिकटीग्रीवा, जैदे., (२६.५४१२.५, १३-१५४३८-४५). प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणि नता; अंति: व्यक्तयुक्तिः, श्लोक-१०४. प्रतिमाशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिप्रणत; अंति: जैनो धर्मश्च मंगलम्. १७९९६. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४१, माघ कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७१, ले.स्थल. रायपूर, प्रले. पं. अमीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४१२.५, ५४४७-५१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० चपाए; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, अध्ययन-१९, ग्रं. ६०००. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, ग. प्रेमजी, मा.गु., गद्य, वि. १६९९, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)वीर तिणई कालि ते; अंति: (१)धर्मकथा समाप्त थइ, (२)प्रेमजिना टबार्थः. १७९९७. समरादित्यकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६८, वैशाख शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २९०, प्रले. रुगनाथ शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३०x१२.५, १२४४२-४९). समरादित्यकेवली चरित्र, वा. क्षमाकल्याण; पंन्या. सुमतिवर्धन, सं., प+ग., वि. १७७४, आदि: श्रीमंत ___ परमात्मतापद; अंति: (१)वर्द्धनं कृतं मिति, (२)मिथ्यादुष्कृतं भवतु, अध्याय-९. १७९९८. धर्मसंग्रह सह स्वोपज़टीका, पूर्ण, वि. १९५९, भाद्रपद कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५४-१०(१,१०१,१८४ से १९१)+६(४७,१००,१०६,१९२,२१७,२३५)=३५०, ले.स्थल. अहमदाबाद, जैदे., (२७.५४१३, १४-१५४४०-४६). For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धर्मसंग्रह, उपा. मानविजय, सं., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: सिद्धिमाप निरूपणम, प्रकरण-४, श्लोक-१५९, ग्रं. २२८, पूर्ण. धर्मसंग्रह-स्वोपज्ञ टीका, उपा. मानविजय, सं., गद्य, वि. १७३१, आदिः (-); अंति: परमानंदकारणम्, प्रकरण-४, ग्रं. १५६०८, पूर्ण. १७९९९. (+) भरतेसरवृत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६८, फाल्गुन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४९२, प्रले. अमरदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्र.पु.वर्ष १९६५ भी मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१३, ८४३७-४२). भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदि: युगादौ व्यवहाराध्वा; __ अंति: (१)कर्मक्षयान्मुक्तिगता, (२)पर्वणापर्मसंपूर्णम्, अध्याय-२. भरहेसर सज्झाय-टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: युगनै आदै व्यवहाररूप; अंति: गइ मोक्ष पाम्या. १८०००. छंद, स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ६, प्रले. ग. कांतिविजय; पठ. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १४४३३-३८). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-२अ. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जित कहे हरषे सदा, गाथा-२३. २. पे. नाम. आदिजिन विनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, पृ. २अ-४अ. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: मुनिलावण्य समें भणीय, गाथा-४७. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ. मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलो गणधर वीरनो रे; अंति: वीर नमे निसदिस, गाथा-७. ४. पे. नाम. सामायिक सज्झाय , पृ. ४अ-५अ. सामायिक के बत्तीसदोष स्वाध्याय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर प्रणमी; ___अंति: श्रीकमलविजयबुध सीस, गाथा-१३. ५. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-द्रमपुष्पिकाध्ययन, पृ. ५अ. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-अमीझरा, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. गाथा-३ तक है. ___ मा.गु., पद्य, आदि: उठत प्रभात अमीझरो; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८००१. (+) चंदकेवली रास, संपूर्ण, वि. १७३९, फाल्गुन कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९१, ले.स्थल. दधिग्राम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४४-४५). चंदकेवलीरास, मु. सुमतिरत्न-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६९२, आदि: सकल जिनेसर मनिधरीए; अंति: होजो जय कल्याण, प्रस्ताव-९. १८००२. श्रीपालरास सह टबार्थ-खंड ४, प्रतिपूर्ण, वि. १८४९, वैशाख कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५७, ले.स्थल. वडालवीग्राम, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२५४११, ५४२९-३१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उत्कंठा संपूर्ण थई, प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ____७९ . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १८००६. (#) नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नही हे., जैदे., (२४.५४११.५, १०x२८-३०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं हवइ; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, प्रतिपूर्ण. १८००७. (+) समयसारनाटक सह टबार्थ व जैनश्लोक, पूर्ण, वि. १८२५, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १५५, कुल पे. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ले.स्थल. मोरशीमनगर, प्रले. पं. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (६७८) भग्नपृष्टिः कटिग्रीवा, जैदे., (२४.५४११, ५४३९-४०). १. पे. नाम. पृ. १आ-१५५आ. समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर; अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, गाथा-७२७. समयसार नाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, ऋ. रूपचंद, पुहि., गद्य, आदि: जिन वचन समुदकौं कौंल; अंति: सिद्ध साख हम दीन. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १५५आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. जैन सुभाषित*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८००८. (+) त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र-पर्व १० - महावीर चरित्र, प्रतिपूर्ण, वि. १७२५, आश्विन शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७५, ले.स्थल. कडी, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. सर्ग १३, ग्रन्थाग्रन्थ ५१४५., प्र.ले.श्लो. (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (६५) यावत गंगातटे भातिपूर, (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२५.५४११, १९४५९). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: स्वान्योपकारेच्छया, प्रतिपूर्ण. १८००९. (+) महावीरजिन स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७X५८). दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. दुरिअरयसमीर स्तोत्र-वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: अथ श्रीवर्द्धमान; अंति: नामेति वृत्तार्थः १८०१०. (+) शालिभद्रधन्ना चरित्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०९, चैत्र, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. बिकानेर, पठ. ऋ. हमीरमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५-१६५३०-३१). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: भविक करो कछु वाधोजी, ढाल-२९, गाथा-५१०. १८०११. सुमति दुर्मति संबद्ध, संपूर्ण, वि. १८४२, माघ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. घ्राणपूर, प्रले. पं. चतुरविजय गणि; पठ. सा. ज्ञानश्रीजी (गुरु सा. केसरश्रीजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४१). सुमति दुर्मति संवाद, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: मन राजा तिण रे दोइ; अंति: छेदी परमगति पामें, अधिकार-९. १८०१२.(+) सम्यक्तकौमुदी कथा रास, संपूर्ण, वि. १८८९, कार्तिक शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४३४-३६). सम्यक्त्वकौमुदी कथाष्टक, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: विज समान श्रीवीरजिन; अंति: चल रिद्धि तिण पावीजी, ढाल-४२. For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८०१३. देवकुमार कथानक, संपूर्ण, वि. १९५८, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. धोलेराबंदर, प्रले. श्राव. दुलभजी सुंदरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०-४१). देवकुमार कथानक, सं., पद्य, आदि: प्राग्जन्मसुकृतान्; अंति: मुक्तिमाशिश्रयध्वं, श्लोक-५२३. १८०१६. (+) साधुवंदना व गाथा, संपूर्ण, वि. १७२४, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १३-१४४२८-३१). १. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १अ-६अ. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मनि आणदि संथुया, गाथा-८७. २. पे. नाम. जैन गाथा , पृ. ६आ.. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. १८०१७. सिद्धपंचासिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. पंचपाठ., प्र.ले.श्लो. (५३४) यदृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२६.५४११.५, ९-१०४२५-३०). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्ध सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०. सिद्धपंचाशिका प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धं० प्रसिद्ध छइ; अंति: सिद्ध अनंतगुण हीन. १८०१८. चातुर्मास व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. सामायिक पद तक व्याख्यान है., जैदे., (२५.५४११, १५४४१-४३). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८०१९. बारव्रत रास, संपूर्ण, वि. १८२३, आश्विन शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२, प्रले. पं. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३८-४१). १२ व्रत रास, वा. उदयरत्न, मा.ग.. पद्य, वि. १७८६, आदि: वंद अरिहंत सिद्धने: अंति: पाम्यो अवीचलराज रे. ढाल-७७, गाथा-१६६५, ग्रं. ११५८. १८०२०. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १६५६, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९५, पृ.वि. प्रतिलेखक का नाम मिटाया हुआ है., ले.स्थल. सरखेज, प्र.वि. ऋषि आंबा व मोतीचंदजी के चौमासे के दौरान श्राविका हीरुबाई ने वि.१९०६ में ज्ञानपंचमी का उत्सव किया तथा लोंकागच्छीय बडे पक्ष के ज्ञानभंडार में इस प्रति को रखी., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ग्रन्थाग्र ४०००., जैदे., (२५.५४११.५, ६४३६-३८). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: अंग जहा आयारस्स, अध्याय-१०, ग्रं. १२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबू ए प्रत्यक्ष; अंति: जाए अनंता सुख पामइ. १८०२१. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६४५, आषाढ़ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. सा. अनाराफू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x११, ९४२६-२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. १८०२३. भाष्यत्रय सह बालावबोध व आराधकविराधक विचार, संपूर्ण, वि. १७८०, श्रावण कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७, कुल पे. २, ले.स्थल. सीहपुर, प्रले. मु. लब्धिविजय (गुरु ग. अमरविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२६.५४११, २-३४४७). For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १. पे. नाम. भाष्यत्रय सह बालावबोध, पृ. १आ-३६आ. भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५२. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७५८, आदि: ऐंद्रश्रेणिनुतं; अंति: (१)इत्यादि ग्रंथ जोवा, (२)सततं निरपाय सौख्यतः. २. पे. नाम. आराधक-विराधक विचार, पृ. ३६आ. मा.गु., गद्य, आदि: न जाणे न आदरें न; अंति: पाले ए साधु श्रावक. १८०२४. (+) गौतमपृच्छा सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १३-१४४४४-४५). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नत्वा वीरं जिनं, (२)तीर्थना० श्रीमहावीर; अंति: (१)हर्षपूरेण भावतः, (२)ते इण माहिजि जाणिवा, ग्रं. १५००. गौतमपृच्छा-कथा संग्रह*,मा.गु., गद्य, आदि: एकै गामै एक वाणीयो; अंति: हुओ मोक्ष पामिस्यइ. १८०२५. (+) जंबचरित्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८२. मार्गशीर्ष शक्क. १३. बधवार, श्रेष्ठ, प. ४२+१(२७) =४३ ले.स्थल. पोरबंदर, प्र.वि. श्रीशान्तिजिनप्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ७X४२-४६). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगुरुने नमस्कार; अंति: ते आराधकजीव कह्यां. १८०२८. मुनिपति चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-४ ढाल-६ गाथा-७ तक है., जैदे., (२५४१२, १५-१७४४१-४३). मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: श्रीशंखेसर सुख करू; अंति: (-), अपूर्ण. १८०३०. (+) शालिभद्रमहामुनि चरित्र, अपूर्ण, वि. १८२२, पौष कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २८-७(२० से २६)=२१, पू.वि. ढाल- २१ दूहा- २ से ढाल- २८ गाथा-२ तक नही है., ले.स्थल. खंभायत, प्रले. पंन्या. रत्नविजय (गुरु पं. प्रेमविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३१-३५). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ, ढाल-२९, अपूर्ण. १८०३२. उपदेशमाला सह टबार्थव कथा, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११५, पू.वि. मू. गाथा १०२ कथा २९ तक है., जैदे., (२६४११.५, ३-१३४२७-३६). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उपदेशमाला कथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: हवि साध्वी आसा विनय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८०३३. नवतत्त्व बोलसंग्रह व २४ दंडक, संपूर्ण, वि. १८९९-१९०१, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, ले.स्थल. पोरबंदिर, प्रले. मु. वल्लभ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक १अ पर किसी अन्य कृति के मध्यभाग का अपूर्ण पाठ दिया गया है., जैदे., (२५४११, १२-१५४३१-४१). For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. नवतत्त्वना बोल, पृ. १आ-९आ, वि. १८९९. नवतत्त्व प्रकरण- बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः ते माहिथी मोक्ष जाव. २. पे. नाम. लघुदंडक लेशमात्र, पृ. ९आ १८अ वि. १९०१. २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंति: जाणवा सिद्धजोग नथी. १८०३४. समयसारनाटक, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा- ७११ अपूर्ण तक हैं., जै.., (२६११.५, १६५०-५४). समयसार नाटक - पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि : करम भरम जग तिमिर; अंति: (-), पूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८०३५. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७०९ आश्विन शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. पत्तननगर, प्रले. उपा. राजरत्न गणि पठ. मु. लक्ष्मीरत्न प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४,५१०५, ११४३१-३२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्थंकरे व तित्थे; अंति: जेसिं सुवसावरे भत्ति, १८०३८. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ४९ जैवे. (२६४११, ६५३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्किहं; अंतिः गई त्ति बेमि अध्ययन - १०, गाथा - ७००. १८०३९. (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला, शेषसंग्रह सारोद्धार, लिंगानुशासन व वृत्तरत्नाकर, संपूर्ण, वि. १५८४, पौष कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९९, कुल पे. ४, सम. श्राव. भैरवदास लक्ष्मीदास शाह; पठ. ग. कौतुकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. . मूल प्रति लेखन के बाद अंत में शेठ भैरवदास लक्ष्मीचंद द्वारा गणि कौतुकसागरजी को पठनार्थे यह प्रति समर्पित क उल्लेख है., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. ३०००, जैदे., .जी., (२६x११, ११४३३-३७). १. पे. नाम. अभिधानचिंतामणि नाममाला, पृ. १आ-७५अ. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. २०००, २. पे. नाम. शेषसंग्रह सारोद्धार, पृ. ७५अ - ८५अ. अभिधानचिंतामणि नाममाला - शेष नाममाला, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः निपात्यंते पदे पदे, ग्रं. २२५. ३. पे. नाम. लिंगानुशासनं, पृ. ८५-९३अ. हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः पुल्लिंगं कटणथपभमयर; अंति: शासनानि लिंगानाम्, ४. पे. नाम. वृत्तरत्नाकर, पृ. ९३अ - ९९आ. केदार भट्ट, सं., पद्य, आदि सुख संतान सिध्यर्थ; अंति: वृत्तरत्नाकराख्यम्, अध्याय ६. १८०४० (+) सप्तविभक्ति: त्रीणिउक्तेः समासषट्कं कियत्प्रत्ययो उदाहरणगर्भः साधारणजिन स्तवनं सह अवचूरि, संपूर्ण, वि.१८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६११, १४३२). " साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि देवाः प्रभो यं विधिन; अंतिः भावं जयानंदमवप्रवेया, लोक- ९. For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ साधारणजिन स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: देवाः प्रभोयमित्यादि; अंति: (१)प्रसादतः श्रियमस्तु, (२)इकारः गुणश्च प्रदेया. १८०४१. (+) कुमारपालभूपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८१, फाल्गुन शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०१+२(४ से ५)=१०३, ले.स्थल. वीरपुर, प्रले. मु. मोहनविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६८०) भग्नपृष्टी कटिग्रीवा, (६८१) जब लग मेरु अडग हैं, जैदे., (२५.५४१२, १५-१६४३९-४०). कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसरसति भगवति नमु; अंति: ओगणत्रीस ढाळ गावो हो, ढाल-१२९, गाथा-२८७६. १८०४३. (+) स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १९२१, वैशाख कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. पादलीत्यनगर, प्रले. मु. रूपविजय (गुरु पं. मेघविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (६७९) या पूस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४११.५, १३४२६-३०). स्नात्रपूजा संग्रह", मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)मुक्तालंकार विकार, (२)पवित्र उदक लेइ अंग; अंति: वंदे सिरी वद्धमाणं. १८०४४. कल्पसूत्र वाचना-व्याख्यान १, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४२८-३२). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*.मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८०४५. सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. जामला, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १०-११४२७-३१). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४. १८०४६. श्रीपाल चरित्र-खंड ३-४, प्रतिअपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८३-३६(१ से ३६)=४७, पू.वि. खंड-३ ढाल-४ गाथा-१० तक नही है., ले.स्थल. प्रांतीज, प्रले. पं. ऋद्धिसोम; लिख. श्राव. मलुकचंद लालचंद कोठारी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२४.५४१२, १२४२६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, प्रतिअपूर्ण. १८०४७. केवलिकानुशासनं, संपूर्ण, वि. १८६९, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. हरिगढ, जैदे., (२४.५४११, १३४५३-५५). अबयदीशुकनावली, सं., गद्य, आदि: संसारपासनाशार्थं; अंति: नात्र संदेह, प्रकरण-४. १८०४८. (+) श्रीपालनृप रास, संपूर्ण, वि. १७९३, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. सूरितबिंदर, प्रले. ग. लक्ष्मीसिंधुर (गुरु ग. लक्ष्मीकीर्ति), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४४११, ११४२८-३०). श्रीपाललघुरास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: चउवीसे प्रणमु जिनराय; अंति: सुणतां सदा कल्याण, ढाल-२०, गाथा-२७२. १८०५०. (+) लघुसंघयणी सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. मु. जयसागर; पठ. श्रावि. केवलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथजी सत्यं., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२, २४२६-३०). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८४ www.kobatirth.org १८०५७ लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय क० नमस्कार करि; अंति: सूरिहिं क० आचार्य. १८०५३. सुक्तमाला, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, जैवे. (२५.५x११.५, १५-१७४३३-३५). " (+) १. पे. नाम. सूक्तमाला, पृ. १अ - १०आ. मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवह्निवृंद अंतिः केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४. २. पे. नाम. अजैन सुभाषित, पृ. १० आ. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८०५४. (+) 'कल्पसूत्र सह टबार्ध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४३ - १३६ (१ से १३६) = ७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., सामाचारी व्याख्यान प्रारंभिक कुछ अंश तक है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१२, ४-७X३६-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण, कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ( - ); अंति: (-), अपूर्ण. १८०५५. अष्टप्रकारीपूजा गाथा सह कथा, संपूर्ण, वि. १८९९, आश्विन कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९०, पठ. मु. मानविजय; प्रले. हरिवंश व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, ११३४-३६). ८ प्रकारी पूजा, प्रा., पद्य, आदि विडय कम्मकलंक; अंतिः जह पत्तं विप्पधूअए, पूजा-८. १८०५६. ८ प्रकारी पूजा - कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीविजयचंद केवली; अंति: चंद्र केवली कह्यो छै, ग्रं. २२७५. . (+) तीर्थमाला स्तवनम्, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, १३X३१-३२). तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदि अरिहंत भगवंतं सव्वन; अंतिः द मुणिविंद धुव महिया, गाथा - १११. साधु प्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६ - १ (१) = ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५X११, ११-१३X३५-३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: अप्पाणं वोसिरामि, अपूर्ण. १८०६०. श्रीपालरास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले. स्थल. अवरंगावाद, प्रले. ग. रूपविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १०X३४). १८०६२. प्रीयमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६X११, १६x४६). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: जिम भूपति श्रीपाल, गाथा - ३७६. प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंतिः समयसुंदर० इधक प्रमोद, १८०६३. . (+) भीमसेन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रावण शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले. स्थल. नागोर, प्रले. कस्तुरचंद व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे., (२५.५५११.५, १३४५२). भीमसेन चरित्र, आ. अजितसागरसूरि, सं., पद्य, वि. १९६७, आदिः यद्वाक्यामृत सेविनो; अंतिः नृपतेथरितं रसालम्, सर्ग - १०. For Private And Personal Use Only १८०६४ संग्रहणी सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३४-६ (१ से ३,८,१८,३३ ) - २८, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., गाथा १३ से १६८ तक है। टबार्थ गाथा १५७ तक लिखा है।, जैवे. (२६४११, ४-५x२२-२८). " Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८०६५. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४३६). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. १८०६७. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७१, माघ शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. ग. ज्ञानसागर (गुरु पं. चतुरसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४०१, जैदे., (२५.५४११.५, ३४२८-३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य पार्श्वनाथ, (२)कल्याण कहिइं मंगलीक; अंति: पामि मोक्ष जाई. १८०६८. रघुवंशटीका व श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सर्ग-५ अपूर्ण तक है., जैदे.. (२६.५४११.५, १७४४३-४५). रघुवंश-टीका, मु. धर्ममेरु, सं., गद्य, वि. १७४८, आदि: वागर्थेति कवीना; अंति: (-), अपूर्ण. १८०७०. भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-४० तक है., जैदे., (२६४१२, ६x४६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), पूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत जे देवता; अंति: (-), पूर्ण.. १८०७१. आत्मानी आत्मता, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १५४४२). ___ आत्मानी आत्मता, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी; अंति: (-), अपूर्ण. १८०७३. श्राद्धजीतकल्प की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३७-३८). श्राद्धजीतकल्प-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: कृतः प्रकर्षण परसमय; अंति: कैरष्टभिरितिगम्यम्, ग्रं. ५००. १८०७५. रत्नपाल चौपाई, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-२(१७ से १८)=१८, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३८-४२). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमुं; अंति: सूरविजय० जय जयकार हो, खंड-३, पूर्ण. १८०७६. ढोलामारु चोपाई, संपूर्ण, वि. १७७५, मध्यम, पृ. ३८, प्र.वि. चित्रों के लिये कहीं-कहीं जगह खाली रखा है., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४०-४२). ढोलामारु चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: पहिलो प्रणमुं सरसती; अंति: रतनलाभ० पामें ___ संपदा, गाथा-८२१. १८०७८. (+) जयविजयकुंयरचौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १७-१८४३९-४०). सम्यक्त्वाधिकारे जयविजयकुंयर प्रबंध, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: आदि आदि जिणेसरु पय; अंति: ए अधिकार सनेहि रे, अधिकार-४, ग्रं. ७२५. For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८०७९. चैत्रीपुनमदेववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८५२, चैत्र कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. सुरत, प्रले. मु. अमृतसोम (लघुपोसालगछ); पठ. मु. रंगरतन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३४३१-३४). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम देहरासरनु, (२)नाभि नरेश्वर वंश; अंति: दान अधिक आणंद, देववंदनजोडा-५. १८०८०. समकितमूलबारव्रत टीप, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४११.५, ११४३३). सम्यक्त्वमूलबारव्रत टीप, मु. तिलकसागर कवि, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: सरसति सामिणि तुम्हनि; अंति: तिलकसा० तपगच्छनोधणी. १८०८१. नवतत्त्व विचार, अपूर्ण, वि. १८७३, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १७-६(१ से ६)=११, ले.स्थल. कुंचामण, प्रले. मु. घासी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १७-१८४३९-४२). नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: १५ भेद सिद्ध थाय छै, अपूर्ण. १८०८२. वच्छराजचरित्र सह टबार्थ व, संपूर्ण, वि. १८७४, ?, श्रावण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४४, कुल पे. २, प्रले. पं. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ६४३४-३६). १. पे. नाम. वच्छराज चरित्र, पृ. १आ-४४अ. वच्छराजनृप चरित्र कथा, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: अत्रांतरे जिन सर्व; अंति: आचार्याजीतप्रभश्च, श्लोक-४८२. वच्छराजराजर्षि चरित्र-स्वोपज्ञ टबार्थ, आ. अजितप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीपार्श्व, (२)एहवा अवसरने विषे जीन; अंति: अजितप्रभ० वीरच्यो. २. पे. नाम. साधुआचार बोल - आचारांगसूत्रगत, पृ. १अ. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८०८४. (+) नलदवदंती रास, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पृ.वि. खंड-२ तक लिखा है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १४४३४-३६). नलदमयंतीरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८०८५. जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ६१, ले.स्थल. फूगणी, जैदे., (२६४११.५, ६४३१-३४). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषइंते; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभिक पत्र ६ तक टबार्थ लिखा है.) १८०८७. स्तुति चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८६८, वैशाख कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १२४३९-४३). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १८०८८. चंदराजर्षि रास, संपूर्ण, वि. १७५२, फाल्गुन शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्रले. मु. जयमुर्ति (गुरु ग. राजनिधान पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४९-५१). चंदराजर्षि रास, मु. दर्शनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: श्रीसुखदायक जिनवरु; अंति: दिन दिन अधिक जगीश रे, ढाल-४४. १८०९१. दानशीलतप कुलक१-३ सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२७, प्रले. ग. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १५-१६x४१-४७). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिअरज्जसारो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. दानशीलतपभावना कुलक-बालावबोध, मु. विनयकुशल, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा जिनपद युगलं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८०९३. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८५३, भाद्रपद कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २०१-१(३२)=२००, ले.स्थल. भैमासर, प्रले. मु. सुंदरविजय (गुरु मु. प्रतापविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ८०००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२५.५४१२, ३-१५४२९-४१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: वोसिरियं० मएगहियं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७५१, ___ आदिः (१)श्रीऋषभादिक परमेश्वर, (२)बार गुणे करि सहित; अंति: निश्चल मनइं करी, पूर्ण. १८०९८. (+) द्रव्यानुयोगतर्कसूत्र सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १८५८, चैत्र कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले.स्थल. पल्लिका, प्रले. पं. धर्महर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीजिनकुशलसूरिजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५२-५९). द्रव्यानुयोगतर्कणा, मु. भोजसागर, सं., पद्य, आदि: श्रीयुगादिजिनं नत्वा; अंति: द्रव्यानुयोगतर्कणा, अध्याय-१५. द्रव्यानुयोगतर्कणा-स्वोपज्ञ टीका, मु. भोजसागर, सं., गद्य, आदि: श्रियां निवासं निखिल; अंति: समापत्ति प्रकीर्तिता. १८०९९. गौतमपृच्छा सहटबार्थव कथा, पूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ९६-३(१,५७ से ५८)=९३, प्रले. मु. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२-१५४३४-४०) गौतमपृच्छा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जिणवयणमोयगस्स; अंति: भवीयापडीबाहणवाइ, गाथा-५२, पूर्ण. गौतमपृच्छा-टबार्थव कथा, मा.गु., गद्य, आदि: तथा श्रीवीरनी वाणी; अंति: (१)परभवे सुखी थाओ, (२)पांमसे गौतम वाक्य, पूर्ण. १८१००. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. *ग्रंथ के पेजनंबर वाला भाग खंडित होने से नंबर नहीं है., जैदे., (२५४११, १३-१४४४४-५२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: (-), अपूर्ण. १८१०३. रत्नसंचय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२४.५४११, ११४३८-४०). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं वीरं उवया; अंति: नंदउ जा दुप्पसहसूरी, गाथा-२८९. १८१०४. कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १७५६, वैशाख शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८०-६(६९ से ७४)=७४, ले.स्थल. सूर्यपुरबिंदर, प्रले. मु. ऋद्धिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ९४३०-३१). For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)णमो अरिहंताण० पढम, (२)तेणं कालेण० समणे: अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, पूर्ण. १८१०८. उपासकदशांगसूत्र सह अवचूरि व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३१, माघ कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०७, ले.स्थल. द्वीपबंदिर, प्रले. ग. नयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ५४२९-३१). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्याय-१०. उपासकदशांगसूत्र-छाया, सं., गद्य, आदि: तस्मिन् काले तस्मिन; अंति: अंग संपूर्णम्, अध्ययन-१०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानमानम्य, (२)ते कालने विर्षे ते; अंति: सातमु अंग संपूरण. १८११०. कल्पसूत्र सह टीका-प्रथमवाचना, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १८१११. सिंघासणबत्रीसी, अपूर्ण, वि. १७३०, श्रावण शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६९-६(१ से ६)=६३, पू.वि. गाथा-१३५ अपूर्ण तक नहीं है., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३८-४०). सिंघासणबत्रीसी, ग. संघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: उपजइ सुणता एह चरित्र, गाथा-१६४२, अपूर्ण. १८११२. चंदराजानो रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०६, जैदे., (२५.५४१२, १३-१६४३८-४४). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुण चंदना, उल्लास-४, ढाल १०८, ग्रं. ३२२०. १८११४. आलोयणा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३९). १. पे. नाम. आलोयणा, पृ. १अ-६अ. आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं ३; अंति: ते मिच्छामि दुक्कडम्. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह-, पृ. ६अ-६आ. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८११५. चंदनमलयगिरीचौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४१०.५, २०४६४). चंदनमलयागिरी चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: गोयम गणधर पयनमी; अंति: लाभइ सघला थोक, ढाल-१९, गाथा-२७३. १८१२०. (+) द्रौपदी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२७, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १२-१३४३१-३२). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: कनककीरति सुखकार, ढाल-३९, ग्रं. १५००. १८१२१. पद्मनीचौपाई, अपूर्ण, वि. १८००, आश्विन कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ८५-१९(१ से ८,५७,६० से ६९)=६६, प्रले. मु. कपुरसुंदर (संडेरगछ); पठ. मु. माणिकसुंदर (संडेरगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ८-११४२१-३४). For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: (-); अंति: पद्मणि सील पसाउ, खंड-ढाल ४०, गाथा-५०४, अपूर्ण. १८१२२. स्तवन,सझाय,श्लोक,स्तोत्र,लावणी,पदसंग्रह व वर्ग, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ११, जैदे., (२४४११, ८x२५-२८). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ. अखपत, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: खबर नहिं हे पलकी; अंति: जिनकु विनती अखपतकी, गाथा-८. २. पे. नाम. प्रदक्षिणा गाथा, पृ. १आ, पू.वि. मात्र १ली गाथा लिखी है. प्रदक्षिणा दूहा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. २अ-२आ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ४. पे. नाम. पद, पृ. २आ. ___औपदेशिक पद, क. गिरधर, मा.गु., पद्य, आदि: वेरी वधू वावलो ज्यार; अंति: गीरधर० जाणी पूरावेरी, गाथा-३. ५. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. हरिदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रगटथा भला पासजी; अंति: अवीचल राख्यो नाम, गाथा-६. ६. पे. नाम. वीरप्रभूजीरो स्तवन, पृ. ३आ-४अ. वीरप्रभु स्तवन, रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: महावीरजी तुमारो जिन; अंति: भक्तिना रूपसंद रसीयो, गाथा-८. ७. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ४अ-४आ. मु. खीमारतन, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचल गिरि भेट्या; अंति: रतन प्रभु प्यारा रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. ऋषभजिनपद, पृ. ४आ-५अ. ऋषभजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: रमक झमक० आवै ऋषभ; अंति: सराग भाव संगसो वधावे, गाथा-४. ९.पे. नाम. सिद्धवर्णनअष्टक, पृ. ५अ-६अ. ___ सं., पद्य, आदि: शेवं सिद्धिबुद्धिपरं; अंति: श्रीमानभूदर्चितु, गाथा-९. १०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६अ-६आ. पुहिं., पद्य, आदि: तेरे दरसण के देखे; अंति: जलाजल से जलकता है, गाथा-३. ११. पे. नाम. वर्ग, पृ. ६आ. अक्षर वर्ग, मा.गु., गद्य, आदि: आईउऐ गुरड कखगघन; अंति: रंग वेरंगस्वनमीढयो. १८१२३. पासाकेवली व मोरसुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, ८-९४२०-२६). १. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १आ-११आ. ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मां; अंति: सत्या पासाय केवली. २. पे. नाम. मोरसुकनावली, पृ. ११आ. मा.गु., पद्य, आदि: दुखी चां चां पांख; अंति: कान विंधतांसो नार, गाथा-२. For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८१२४. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १७५४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १८-२(५,१७)=१६, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. नित्यविजय गणि; पठ. सा. गौकलश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १२४३४-३८). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: जिम भूपति श्रीपाल, गाथा-३२३, अपूर्ण. १८१२६. (+) मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. हीरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे.. (२४.५४११. १०४२८) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः. १८१२९. (+) हंसराज वछराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३४-४९). दानविषये हंसराजवछराजचउपड़, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीसर आदि करी चोऊवीस; अंति: दिन दिन हुयै जयजयकार, खंड-४, गाथा-९१४. १८१३०. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२४.५४१०.५, ९४२१-२४). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-४७. १८१३२. (+) स्तोत्र व प्रकरणसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-१९(१ से ६,१८,२५ से ३६)=२६, कुल पे. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, ९४२७-३६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, पृ. ७अ-७आ. आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा न पीडति, गाथा-१०. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ७आ-११आ.. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. ११आ-१५अ हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ४. पे. नाम. पंचपरमेष्टिमंत्र स्तवन, पृ. १५अ-१७अ, पे.वि. पत्र १७आ खाली है. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, रा., पद्य, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण; अंति: सेवा देज्यो नित्त, गाथा-१३. ५. पे. नाम. प्रव्रज्या कुलक, पृ. १९अ-२०अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा १५ से है. ___प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४, अपूर्ण. ६. पे. नाम. पोसहकुलक, पृ. २०अ-२२अ. ___पोसह सज्झाय, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. ७. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. २२अ-२४आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा २५ अपूर्ण तक है. आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: (-), पूर्ण. ८. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३७अ-३९आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-४ अपूर्ण से है. For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, पूर्ण. ९. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३९आ-४३अ. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५०. १०.पे. नाम. दंडक सूत्र, पृ. ४३अ-४५आ. मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३९. १८१३३. (+) सारस्वत व्याकरण-चंद्रकीर्तिटीका, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११२-१३(१ से १३)=९९, पू.वि. जीवविचार गाथा-४ अपूर्ण से दंडक तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ११-१८४३५-५३). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १८१३४. (+) रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०, १४४३६-४१). रत्नपाल रास, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: रुषभादिक जीनवर नमुं; अंति: सूरविजय० जय जयकार हो, खंड-३ढाल३२. १८१३५. रत्नचूड रास, संपूर्ण, वि. १६४८, आश्विन कृष्ण, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२५४१०, १३४४१-४४). रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५०९, आदि: सरसति देवी पाय नमी; अंति: जासि कर्म सवि दली, गाथा-३४३. १८१३७. श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १७५७, चैत्र कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. रूपनगर, जैदे., (२४.५४१०, ११४२७-३०). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)नाणंमि दंसणंमि०, (२)विशेषतः श्रावक तणाइ; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. १८१३८. सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८९२, आश्विन शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. सोझत, प्रले. मु. क्षमासागर; पठ. मु. भीमराज (गुरु मु. क्षमासागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमाणभद्रजी प्रसादात., जैदे., (२४.५४१०, १२४३१-३३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: शुक्तिरत्नावलीयं, श्लोक-१००. १८१४०. (+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८०९, श्रावण कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. कुबेरनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०, ९-१०४३२-३७). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सामाइकावश्यक पौषधानि; अंति: मिच्छामिदुक्कडं देवो. १८१४२. समवायांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६३०, श्रावण शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदे., (२६४१०.५, १३४४७-५०). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९. १८१४३. चंद्रलेहाचौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. कान्हा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४१-४९). For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंदलेहा चौपाई, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरस भगत नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह, ____ ढाल-२९, गाथा-६२४. १८१४४. चैत्यवंदनभाष्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८७, भाद्रपद कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. सदाराम (खरतरगछ); राज्ये गच्छा. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ५४२२-२३). चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: परमपयं पावइ लहुं सो, गाथा-६३. चैत्यवंदनभाष्य-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: वांदी कहीनई कुणनइ; अंति: पामइ परमपद पावै. १८१४५. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १७६२, आश्विन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१०.५, १३-१४४४२-४७). साधुवंदना, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पंचपरमिट्ठ पयकमल; अंति: पुण्यसागर० सुखकारणै, गाथा-८६. १८१४७. भुवनदीपक व नवग्रहउत्पत्तिस्थानक, पूर्ण, वि. १८५१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २२-१(१)=२१, कुल पे. २, ले.स्थल. कंटालीया, पठ. श्राव. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ५४३२-३५). १. पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. २अ-२१आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा १ से ५ तक नहीं है.. आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: (-); अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७३, पूर्ण. २. पे. नाम. नवग्रहउत्पत्तिस्थानक, पृ. २१आ-२२आ. नवग्रह उत्पत्तिस्थानक, प्रा., पद्य, आदि: भाणो कलिंगदेसे, भाणो कलिंगदेसे; अंति: केतो वासीय कुकणयं, श्लोक-३. १८१४९. शालीभद्रचौपाई, पूर्ण, वि. १७०१, फाल्गुन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१)=१५, ले.स्थल. सुभटपुर, प्रले. पं. हसहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५-१७४४४-५०). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ग्रं.७००, पूर्ण. १८१५०. समयसारनाटकभाषा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८-२५(२ से ११,१३ से २६,५७) =३३, पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., गाथा-७२२ अपूर्ण तक हैं., पत्रांक १२ खंडित है., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७-४६). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर; अंति: (-), अपूर्ण. १८१५३. (+) गौतमपृच्छा, तिजयपहुत्त स्तोत्र सह टबार्थ व कर्मप्रकृतिभेद नाम, संपूर्ण, वि. १७८२, कार्तिक कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, ले.स्थल. प्रल्हादपुर, प्रले. पं. गुलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पल्हविहार पार्श्व प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ६४३६-३९). १. पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. १आ-७अ. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: वीरइ उत्तर दीधो छइ. २. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ७अ-८अ. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन जग प्रभुत्व; अंति: सर्वकार्य सीझै. ३. पे. नाम. आठकर्म १५८ प्रकृतिनाम, पृ. १अ-८आ, पे.वि. इस कृति को पत्र १अ पर आरंभ व इसका अवशेष अंश ८आ पर पूर्ण किया गया है. For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी कर्मना ५; अंति: बायरत्ति १० थावरसुह. १८१५४. सझायकर्मछत्तीसी, ज्ञानपच्चीसी व श्रावकमनोरथआदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. १२, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). १. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. २अ, पू.वि. चार पद की एक गाथा के हिसाब से गाथा-५ है. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरस्वती रे द्यो; अंति: परमसुख में मांगीउं, गाथा-५. २. पे. नाम. पनरतिथि सज्झाय, पृ. २अ-२आ. १५तिथिसज्झाय, म. गंगदास, मा.ग., पद्य, आदि: अवगुण अंगीन आणिइये; अंति: कहे सेवक गंगदास गाथा-२०. ३. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. ३अ. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सीख दीउं ते सांभलि; अंति: आपणपो इम तारो रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ. मा.गु., पद्य, आदि: पहिला धुरि समरूं; अंति: जिम लहे जीव भवनो पार, गाथा-१९. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण कारिमो; अंति: सहजसुंदर उपदेश रे, गाथा-८. ६. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. ४अ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वादी वलता थका; अंति: पामशे भव तणो पार, गाथा-६. ७. पे. नाम. औपदेशिक सझाय, पृ. ४अ. औपदेशिक सज्झाय, मु. माला कवि, रा., पद्य, आदि: म्हारी परम सुहागण; अंति: गुणगाया माहरा प्रम, गाथा-४. ८. पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. ४अ-५अ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: कर्म थकी छूटे नही; अंति: समयसुंदर० सुपसायजी, गाथा-३६. ९. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. ५अ-६अ. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: वनारसी० कर्म कइ हेतु, गाथा-२५. १०. पे. नाम. श्रावक मनोरथ, पृ. ६अ-६आ. मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो मनोरथ समणोपासण; अंति: मरण मुझनइ होज्यो. ११. पे. नाम. पुरुषनागुण, पृ. ६आ. पुरुषगुण वर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: सिंघ अने छुग गुण एके; अंति: नर हुवे तो काइ नामणा. १२. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. ६आ. प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: पंचप्रमाद तजी पडिकमण; अंति: भाखे ते भवसायर तिरसी, गाथा-८. १८१५५. सुभाषित व जैनधार्मिक श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०, ६x४७-४८). १. पे. नाम. सुभाषित संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ. For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अन्ना सत्थे पेमं पाव; अंति: तेयालीस पलियाई, गाथा-७७. सुभाषित संग्रह-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्वीना शास्त्र; अंति: नरकना दुख भोगवै छै. २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, पृ. ६अ-६आ, पे.वि. ११ प्रतिमा गाथा, १४ नियम गाथा, १४ विद्यानाम आदि श्लोक है. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-४. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८१५६. स्तवन, सझाय, पद, गीत, गुंहली, स्तुतिआदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ६४, जैदे., (२५.५४१०.५,१३-१४४३७-५२). १. पे. नाम. पांचइंद्रीय स्वाध्याय, पृ. १अ. पांचइंद्रिय सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामे अंध गजराज अगाज; अंति: लहो सुख सास्वता, गाथा-६. २. पे. नाम. नंदिषेणमुनि स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ. ___ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: नही कोई तोले हों, ढाल-३, गाथा-१३. ३. पे. नाम. करकंडू स्वाध्याय, पृ. २अ. करकंडमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली; अंति: प्रणम्या पाप पलाय रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. दुमुहजीरी स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ. दूमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर कपीलानो धणी रे; अंति: नित प्रणम पाय रे, गाथा-८. ५. पे. नाम. नमइ स्वाध्याय, पृ. २आ. नमिराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयर सुंदरसण राय हो; ___ अंति: समयसुंदरकहे साधुनेजी, गाथा-६. ६.पे. नाम. निगई स्वाध्याय, पृ. २आ-३अ. नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरवरधनपुर राजीयो; अंति: प्रत्येक बुद्ध हो, गाथा-६. ७. पे. नाम. मुनिहित स्वाध्याय, पृ. ३अ. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: एहवा मुनीगुण रयणना; अंति: ज्ञानवि० विस्तरियाजी, गाथा-५. ८. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धविमान वर्णन सज्झाय, पृ. ३अ-३आ. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: पुन्य थकी फले आसो रे, गाथा-१६. ९. पे. नाम. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, पृ. ३आ-४अ. For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रे शुद्धि; अंति: लक्ष्मीसागर० सुख लहे, गाथा-१०, (वि. इस प्रत में कर्ता लक्ष्मीसागर मिलता है.) १०. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ४आ. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद जिनजात्र करण; अंति: निस सुरनर नायक गावे, गाथा-८. ११. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजीस्युं बांधी; अंति: मुने वालो जिनवर एह, गाथा-७. १२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जग वालहो; अंति: सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. १३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: नित नित गुण गाय के, गाथा-५. १४. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुपास जिनराज; अंति: वाचक जसे थुण्योजी, गाथा-५. १५. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ. ____ उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामि तुमे काइ; अंति: यश कहे हेजे हळशें, गाथा-५. १६. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ६अ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: थास्युं प्रेम बन्यौ; अंति: जस० मान्या छै मेरा, गाथा-५. १७. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ६अ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणथी रथफेरी गया; अंति: ए दंपति दोइ सिद्ध, गाथा-६. १८. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरुआ रे गुण तुम; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, गाथा-५. १९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ६आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कलवइ विजये जयो; अंति: रे भयभंजण भगवंत, गाथा-७. २०. पे. नाम. सुजातजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ. मु. नयविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: साचो स्वामी सुजात; अंति: कहे गुण हेज हिल्यौरी, गाथा-६. २१. पे. नाम. ऋषभाननजिन स्तवन, पृ. ७अ. मु. नयविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभानन गुणनिलौ; अंति: नयविजय० मित्त हो, गाथा-७. २२. पे. नाम. विशालजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धातकीखंडे हो के पछिम; अंति: के धरिइं चित्त खरे, गाथा-५. २३. पे. नाम. वज्रधरजिन स्तवन, पृ. ७आ. मु. जीवण, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर वज्रधर देवा; अंति: जीवण० गुण भणज्यौ हो, गाथा-५. २४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी अजित जिणंदनी; अंति: मोहन० जिन अंतरजामि, गाथा-५. For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९६ www.kobatirth.org २५. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ८अ. मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिन सहज सुरंगा; अंतिः कुशल गुण गाया रे, गाथा-६, २६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ८अ. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगनायक जगनायक; अंति: द्यौ दरसण सुखकंद, गाथा - ७. २७. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ८अ - ८आ. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तिरथ अष्टापद नित; अंतिः जिनेंद्र वधते नेह रे, गाथा-८. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २८. पे. नाम. रांणपुर स्तवन, पृ. ८आ-९अ. आदिजिन स्तवन- राणकपुर, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदिः राणपुरो रलीयामणी रे; अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा - ७. २९. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, पृ. ९अ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आणी मनसुद्धे आसता; अंति सुंदर कहे सुख भरपुर, गाथा- ७, ३०. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ. मु. मोहनविजय, रा., पद्य, आदिः मरुदेवी मात केरा; अंति: मोहनविजय गुण गाया, गाथा - ७. ३१. पे. नाम बाहुबली सज्झाय, पृ. ९आ. मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि चारित्र लीयो; अंति: विमलकीर्त्ति सुख थाय, गाथा - १२. ३२. पे. नाम बाहुबली सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी मांनो वीनती; अंति: ज्ञानसागर० होजो खास, ३३. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १०अ. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि धारणी मनावे रे मेघ; अंतिः प्रीतविजय० तणा पास, गाथा ५. ३४. पे. नाम कर्म सज्झाय, पृ. १०अ १० आ. ३८. पे. नाम. सुधर्मागणधर भास, पृ. १९ आ. मा.गु., पद्य, आदि ज्ञानादिक गुणखाणि अंति: गावे जिनशासन धणीजी, गाथा- ९. ३९. पे. नाम गौतमस्वामी गहुली, पृ. १९आ-१२अ. मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही रलियामणि जिह; अंतिः भावना वजडावो मंगलतुर, गाथा ५. ४०. पे नाम. साधारणजिन स्तवन- देवनाटक विचार, पृ. १२अ- १२आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only गाथा - ९. मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: सुख दुख सरज्यां पामी; अंति: धर्मसदा सुखकार रे, गाथा - ८. ३५. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १० आ मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः शेत्रुंजा गढना वासी; अंति: इम कहे उदयरतन करजोड, ३६. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १०आ - ११अ. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसे; अंतिः सीद्धविजय सुपसाया रे, गाथा - १४. ३७. पे. नाम. हली गीत, पृ. ११ अ ११ आ. गहुली गीत, मा.गु., पद्य, आदि चंपानगरी उद्यान सुरत; अंतिः साद गुंबली गीत भणेरी, गाथा- ७. गाथा - ५. Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु आगल नाचें सुर; अंति: जोवण उछक छे अति, गाथा-९. ४१. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १२आ-१३अ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज; अंति: के पंडित रुपनो लाल, गाथा-७. ४२. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १३अ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: कुंथुजिन मनडु किमहि; अंति: साचुं करी जाणुं हो, गाथा-९. ४३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एतो प्रथम तीर्थंकर; अंति: मोहनविजय जयकार, गाथा-७. ४४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १३आ-१४अ, पू.वि. चार पाद के हिसाब से ६ गाथाएँ लिखी है. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: हांजी विमलाचल मन०; अंति: जिनेन्द्र० कार हो जि, गाथा-६, (पू.वि. चार पाद की गणना से ६ गाथाएँ लिखी गयी है.) ४५. पे. नाम. वरकाण्णापार्श्वजिन स्तवन, पृ. १४अ. वरकाणापार्श्वजिन स्तवन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: श्रीवरकाणे वंदिये; अंति: वल्लभ० मनुडाना __ आस के, गाथा-७. ४६. पे. नाम. आबु स्तवन, पृ. १४अ. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आबुगढ तीरथ ताजा अष्ट; अंति: गाया जिनेंद्रसागरे, गाथा-८. ४७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, पृ. १४आ. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारदवदन जीन अमृतवाणी; अंति: भाग्यदसा इम जागीरे, गाथा-७. ४८. पे. नाम. बीजतिथि स्तवन, पृ. १४आ-१५अ. पंन्या. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: श्रीश्रुतदेवि पसाउले; अंति: गणेशरूचि० वंदु पाय, गाथा-१६. ४९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ. आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: क्युं न करे रे; अंति: अविचल सुख करे, गाथा-७. ५०. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १५आ. मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: सकल सुरासुर सेवित; अंति: सुविधिविजेय सुपसाय, गाथा-१२. ५१. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १५आ-१६अ. महावीरजिन स्तवन, पं. कपूरविजय गणि, रा., पद्य, वि. १८२३, आदि: वीरजिणेसर वंदीइं; अंति: कपूरविजय जयकार, गाथा-११. ५२. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १६अ. मु. कनककुशल, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मेरा रे; अंति: कनक० मेवा मांगु रे, गाथा-४. ५३. पे. नाम. सुलसामहासती स्वाध्याय, पृ. १६अ-१६आ. मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन सुलसा साची; अंति: विमल गुण गाय रे, गाथा-१०. ५४. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छंद, पृ. १६आ-१७आ. For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गोडीपार्श्वनाथजी छंद, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशें; अंति: नमो नमो गोडीधवल, गाथा-३७. ५५. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १७आ. मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय कर मंगलदीपक; अंति: कमला भालतिलक वर हीर, गाथा-१. ५६. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १७आ-१८अ. मा.गु., पद्य, आदि: जय मानव सेवित; अंति: तीर्थाधिप सुरराज, गाथा-१. ५७. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १८अ. मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकगिर स्वामी; अंति: सौभाग्यनो दातार, गाथा-१. ५८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १८अ. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अंति: द्यो सुख कंदाजी, गाथा-१. ५९. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १८अ-१८. आदिजिन स्तुति, उपा. कुशलसागर, सं., पद्य, आदि: जय वृषभध्वज देव; अंति: वाचक वंद्यचित्, श्लोक-१. ६०. पे. नाम. स्तुति, पृ. १८अ. साधारणजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गणधारक; अंति: माणिभद्र जस वीर, गाथा-१. ६१. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १८अ-१८आ. पार्श्वनाथ स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: भावे वंदो रे गोडीपास; अंति: पद्म कहें लहे पार, गाथा-९. ६२. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १८आ. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोभागी सुविधिजिणंद; अंति: जेनेंद्र वंदे नितमेव, गाथा-६. ६३. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १८आ. ___आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जब जिनराज कृपा होवे; अंति: नथी बहु शीवसुख पावे, गाथा-४. ६४. पे. नाम. पद, पृ. १८आ. गंगकवि पद, रा. अकबर, मा.गु., पद्य, आदि: गंग प्रवाह वहै अजी; अंति: सा अकबर नेह कीयो, गाथा-१. १८१५७. प्रभाति, स्तवन, सज्झाय, लावणी, होरीआदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७, पौष कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, कुल पे. २९, ले.स्थल. लीबडीग्राम, प्रले. मु. केवलगोविंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ११-१२४३०-३५). १. पे. नाम. प्रभाति, पृ. १आ. युगमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारा जुगबाहु; अंति: करी सेवकने हो तारो, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक प्रभाती, पृ. १आ-२अ. मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चुपे करीने तुम चेतो; अंति: रामजी० नथी ठेकाणु रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. रिखभ स्तवन-प्रभाती, पृ. २अ-२आ. __ऋषभजिन प्रभाती, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभाते पंखीडा बोले; अंति: राम० बे कर जोडी, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तवन प्रभाती, पृ. २आ-३अ. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठो रे मारा आतमराम; अंति: सदाइ करो सवाया रे, गाथा-५. For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org ५. पे. नाम वीरस्तुति - प्रभाती, पृ. ३-४ आ. महावीरजिन स्तोत्र- प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो वीरने चित्तमा; अंति: विवेके० दर्श तेरो, गाथा - १५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. पे. नाम. बीजो प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. ४आ. दूमराय प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर कपीलानो धणी रे; अंतिः समयसुंदर ० पातीक जाय, गाथा- ६. ७. पे. नाम. नमीनी सीझाय, पृ. ५अ. नमिराय प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, आदि: नगर सुदरसण राय हो; अंतिः समयसुंदर प्रणमें सदा, गाथा ६. ८. पे. नाम. चोथो प्रत्येकबुद्धनी सज्झाय, पृ. ५अ ५आ. नीगइराय- प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सहीया मोरी पंडुवर्धन; अंतिः प्रत्येक बुद्ध हो, गाथा - ६. ९. पे नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. ५-६ अ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: च्यारे दीसथी चारे; अंति: गाया पाटण परसिद्ध, गाथा-५. १०. पे. नाम. सातवार सज्झाय, पृ. ६अ - ६आ. मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीब्राह्मी प्रणमी; अंति: धरमदास० राधणपुर मझार, ११. पे. नाम. राजेमती सीझाय, पृ. ७अ -८आ. राजिमतीसती सज्झाय, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि गोखमा सखीयो संघात; अंतिः माल वदे नीत प्रते जी, गाथा - १५. १२. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी स्तवन, पृ. ८आ- ११अ. सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीअरिहंत प्रणमु; अंति: दोलत० पंचमी गुणमाल ए, ढाल - ५. १३. पे नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. ११ अ- १२अ. गाथा - १०. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीराजगृही शुभ ठाम; अंति: न्यायसागर गुण गाया, ढाल - २. १४. पे. नाम. पांचमी सज्झाय, पृ. १२-१२आ. ९९ For Private And Personal Use Only पंचमीतिथि सज्झाय, मु. अमीचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवती मनवसी; अंति: अमीचंद्र० सुख लहीजे, गाथा - १३. १५. पे. नाम. आठम स्वाध्याय, पृ. १२आ - १३आ. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: (१) आ छे लालजी गणधर गौतम, (२) गणधर गौतमस्वामी; अंतिः नंदपद पामे मुदाजी, गाथा- ९. १६. पे. नाम. धनासालभद्र सज्झाय, पृ. १३-१४अ. अनासालिभद्र सझाय, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि मुनीते वैभारे जड़ अंतिः उदय० भवजल तीर रे, गाथा- ७. Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७. पे. नाम. एलाचीकुमारछढालियु, पृ. १४अ-२२अ, वि. १९०७, पौष कृष्ण, १३, बुधवार, ले.स्थल. पाल्हणपुर, प्रले. मु. केवलगोविंद ऋषि. एलाचीकुमार छढालियुं, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: मात मया करो सरस्वती; अंति: मालमुनि गुण गाय, ढाल-६. १८. पे. नाम. राजेमती सझाय, पृ. २२अ-२२आ, वि. १९०७, वैशाख शुक्ल, ४, ले.स्थल. लिंबडी. राजिमतीसती सज्झाय, मु. प्रेम, रा., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: पद राजुल लह्यो जी, गाथा-११. १९. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. २३अ-२३आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मीथुला नयरीनो; अंति: हो प्रणम्या पातक जाय, गाथा-८. २०. पे. नाम. फाग, पृ. २३आ-२४अ. आध्यात्मिक फाग, मु. महानंद, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे आतमराम खेले होरी; अंति: महानंद० चरणे कर जोरी, गाथा-१२. २१. पे. नाम. फाग, पृ. २४अ-२४आ. चौवीसजिन फाग, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज सदा दिल ध्याइ; अंति: महानंद० अनंत सुख सार, गाथा-५. २२. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. २४आ-२५अ. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पांच सुमती ने पासे; अंति: नही फरे मोतनुं आणु, गाथा-१०. २३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, पृ. २५अ. आदिजिन प्रभाती, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो वधाइ राजा नाभि; अंति: आदेशर दरबार रे, गाथा-६. २४. पे. नाम. सनंतकुंमार सज्झाय, पृ. २५आ-२६आ. सनत्कुमार सज्झाय, मु. सिवकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती चरणे वचन हु; अंति: सीवकुसल० सनंतकुमार, गाथा-१६. २५. पे. नाम. रहनेमी सज्झाय, पृ. २६आ-२७अ. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंति: दीप० महापदवी लेसे रे, गाथा-१०. २६. पे. नाम. नेमराजुल ख्याल, पृ. २७आ. नेमराजिमती ख्याल, मा.गु., पद्य, आदि: नही करीयेजी नही करीय; अंति: संजमरंग रंगे वरीयेजी, गाथा-७. २७. पे. नाम. राजिमती लावणी, पृ. २७आ-२८अ. मा.गु., पद्य, आदि: मेरा पीया चले गीखरकु; अंति: उदेशी ए उरसर फीर नही, गाथा-५. २८. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. २८अ-२८आ. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: चल चेतन अब उठकर अपने; अंति: जिनदास० दर्शन चइए रे, गाथा-५. २९. पे. नाम. अढारनातरानी सज्झाय, पृ. २८आ-३०आ. १८ नातरा सज्झाय, मु. राघवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेले ने प्रणमुरे; अंति: राघवविजय गुण गाय, ढाल-३. For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १८१५८. स्तुतिचीवीसी सह वृत्ति व समास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५३, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५५११, १-१६४५०-५४). १. पे नाम. स्तुतिचीवीशी सह टीका, पृ. १आ- ३५अ, पूर्ण, पू.वि. टीका की अंतिम पंक्ति नहीं है. स्तुति चोविशी, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति - २४, श्लोक - ९६. सुखबोधाटीका, मु. जयविजय, सं., गद्य, वि. १६७१, आदि: प्रणम्य परमानंददायिन; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू. वि. मात्र टीका की अंतिम पंक्ति नहीं है. ) १०१ २. पे. नाम. स्तुतिचौवीशी समास, पृ. ३६अ-५३आ. स्तुतिचतुर्विंशतिका-समास, मु. जयविजय, सं., गद्य, आदि: भव्या एवांभोजानि; अंतिः सहस्रद्वितयं मया. १८१५९. (+) जीवाभिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १७७०, श्रेष्ठ, पृ. १३६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, जैदे., ( २६५११, १३x४४-५०). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः णमो उसभादियाणं चउवीस; अंतिः सेतं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति- १०, ग्रं. ४७००. १८१६२. आवक आराधना, संपूर्ण, वि. १८६४ श्रावण कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, वडलु, प्रले. चतुरभुज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, १२X३४-४६). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रभु; अंति: जैनं जयति शासनं, अधिकार ५. १८९६४. विवेक विलास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-६ (१ से २,१२ से १५ ) - २६, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., उ. १ गा. ६९ से उ. ११ गाथा ९३ तक है। प्र. वि. पेज नं. २७ से अन्य प्रतिलेखक है., जैवे. (२६४११, १३-१८x४७-५४). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८९६५. शत्रुंजयमाहात्म्य, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०१-६० (१ से २७,३२ से ६४ ) - ४१, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैवे. (२६. ५x११, १५-१६४५२ -६०). शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८१६७. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., ( २६ ११, ९X२४-२७). , स्तवनचौवीसी, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू ताहरी सूरति; अंति: न्याय० गटकै हो राजी, स्तवन- २४. १८१६८. सामुद्रिकशास्त्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. बीच बीच में शब्दार्थ किया है., जैदे., (२७X११, १५X४६-५२). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि : आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only १८१६९. (+) विपाकसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १५८१, माघ कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७ - १ ( ३३ ) = ३६, प्रले. मु. वीरसुंदर (मड्डाहडीअगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६.५X११, १३x४१-४४). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध - २, अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, पूर्ण. विपाकसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमाना; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८१७०. (+) आचारांगसूत्र-प्रथमश्रुतस्कंध सह टबार्थ, प्रतिअपूर्ण, वि. १७३१, श्रावण कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७-१(५६)=५६, पू.वि. गाथा ३-१५ नही है।, ले.स्थल. रेयानगर, प्रले. मु. ठाकुर (गुरु मु. वाघा ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३०२५, जैदे., (२६४११, ६४३७-४२). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), ग्रं. ८००, प्रतिअपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० सांभल्यउ मे० मइ; अंति: (-), ग्रं. २२२५, प्रतिअपूर्ण. १८१७१. (+) मेघदूतकाव्यटीका, संपूर्ण, वि. १७५७, माघ शुक्ल, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले.स्थल. आगरा, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १५-१६x४३-५१). मेघदूत-सुखबोधिकाटीका, वा. महिमासिंह, सं., गद्य, वि. १६९३, आदि: (१)नत्वा श्रीभास्कर, (२)इह किल पूर्वं; अंति: मेस्तुसौख्यदः, ग्रं. १८००. १८१७३. नेमिजिन बारमाशी व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१०.५, १०-११४२१-२७). १.पे. नाम. नेमिनाथ बारमाशि, पृ. १अ-३अ. नेमिजिन बारमासो, मु. रूपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: सुणो हो सनेही साहिब; अंति: सुखै मनोरथ फलिया लाल, गाथा-१५. २. पे. नाम. नेमनाथ बारमाशि, पृ. ३अ-५अ. नेमिजिन बारमासो, मु. गोपालदास, पुहिं., पद्य, आदि: (१)अथवा हमै देउ कन्ह, (२)फिरि ल्यावो रे जादु; अंति: गोपाल० अब हम छुटकाई, गाथा-२३. ३. पे. नाम. नेमबारमासी, पृ. ५अ-६अ. नेमिजिन बारमासो, मु. पद्मविजय, पुहि., पद्य, आदि: फिरि मेरी गली कब; अंति: पद्म फली मुझ आस हो, गाथा-१५. ४. पे. नाम. नेमनाथ बारमासी, पृ. ६आ-७आ. नेमिजिन बारमासो, पुहिं., पद्य, आदि: अब सखी आयो है सावण; अंति: दोइ सुख विलसइं आणंदा, गाथा-१४. ५. पे. नाम. नेमीजिणंद स्तवन, पृ. ७आ-१२आ. नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: पुन्यरतन० जिणंदकै, गाथा-६४. १८१७४. (+) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५.५४११, १२-१३४४२-४५). १.पे. नाम. नमस्कार माहात्म्य, पृ. १अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक ने प्रकाश-६ श्लोक-७ तक लिखकर ही पूरा कर दिया है परंतु वास्तव में कुल प्रकाश ८ है. आ. सिद्धसेनसूरि, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु गुरवे कल्प; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २.पे. नाम. पंचपरमेष्टिनमस्कारस्तोत्र, पृ. ४आ-५आ. पंचपरमेष्टि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभर अमर पणय; अंति: पुत्थय भरेहि, गाथा-३५. ३. पे. नाम. जैनरक्षा स्तवन, पृ. ५आ-६अ. ___ सं., पद्य, आदि: सर्वातिशय संपूर्णान्; अंति: प्रबुधस्तौ तथालिखेत्, श्लोक-१७. For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org ४. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिनद्वात्रिंशिका, पृ. ६अ - ७आ. पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं जगद्देवं; अंति: शश्वदन्वेषणीयम्, श्लोक-३२. ५. पे. नाम महावीरद्वात्रिंशिका, प्र. ७आ-८आ. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिनद्वात्रिंशिका स्तव, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः सदा योगसाम्यात् समुद अंति: तांचक्रिशक्रश्रियः श्लोक-३३. ६. पे. नाम. महावीरजिन द्वात्रिंशिका, पृ. ९अ - १०अ. महावीरजिनद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेन, सं., पद्य, आदि: स्तोष्ये जिनं; अंति: वर्द्धमानो जिनेंद्र, श्लोक-३२. ७. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १०अ १० आ. १०३ पंचषष्टियंत्र स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि : आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक - ८. ८. पे नाम, पार्श्वनाथलघुस्तोत्र, पृ. १०आ. पार्श्वजिन लघुस्तोत्र, प्रा., सं., पद्य, आदिः ॐ हत्यमिलेवण मुहमिलं; अंतिः पूरव मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. ९. पे. नाम ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १० आ-१२आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा ६२ तक है. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आचंताक्षरसंलक्ष्य अंति: (-), अपूर्ण, १८९७५. स्तवन चौवीसी व पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५x१०.५, १५-१८४४०-४९), १. पे नाम. स्तवनचीवीसी, पृ. १७अ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन परभू जागे रे, स्तवन- २४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७आ. पार्श्वजिन पद- गोडीचा, मु. कल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: लग्यो मेरो दिलडो; अंति: कल्याण० को वनडो, गाथा - ३. ३. पे. नाम. पद, पृ. ७आ. साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि दरसण करि करि अघ सब; अंति: भूधर० भयो सुखकारीवां, गाथा- ४. ४. पे. नाम. पद, पृ. ७आ. पार्श्वजिन पद, मु. रुप, पुहिं., पद्य, आदि: डगरा वतायदे पाहाडवा; अंति: रूप० पकड मोहि तार, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ७आ. नेमराजिमती पद, मु. भानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनारी डुंगर प्यारो; अंति: भानचंद० पार उतारो रे, गाथा-४. ६. पे. नाम अजितजिन पद, पृ. ७आ. For Private And Personal Use Only मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: अजितराय तुम दयाल मे; अंति: कीजई कहत कल्याण, गाथा-४. १८१७६. विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९५ आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. जोधपुर, प्र. वि. अंत में बिजक लिखा है., जैवे. (२४.५x१०.५, १२४५१-५५) विविध विचारसंग्रह, प्रा., हिं., गद्य, आदि: स्त्री के जब स्त्री; अंति: ए संक्षेप विधि जाणणा. १८१७८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. ३८, जैदे., (२६×११, ९x२९-३२). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ. मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्म, आदिः मरुदेवी सुत सुंदरू; अंतिः रूचिर० फली मुझ आस रे, गाथा ५. Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ. __मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिनेसर केसर चरित; अंति: प्रभूजी शिवसुख दाया, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मेंवारी जीयरा हो जीन; अंति: द्यो शिव संपति सारी, गाथा-५. ४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३अ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब अजित जिनेसर मन; अंति: रूचिर० वंछित काज हे, गाथा-५. ५. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संभव साहिब माहरो हु; अंति: रूचिर० अति आनंद थाय, गाथा-५. ६. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ३आ-४आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा प्रभु हो; अंति: रूचिर० प्रभु विना जी, गाथा-५. ७. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु सुणज्यो रे; अंति: रूचिर० बहु वीसरामकि, गाथा-५. ८. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: तुम मूरति मनमानी हो; अंति: सम अवर न दानी हो, गाथा-५. ९. पे. नाम. सुपासजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुसनेही साहिब मन; अंति: रूचिरविमल०परम उच्छाह, गाथा-५. १०. पे. नाम. सुपासजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलूणा साहिबा जीन; अंति: रूचिर० संपतिद्यो घणी, गाथा-५. ११. पे. नाम. सुपासजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जयो सकल सुख वारु; अंति: रूचिर० सेवो हजू रे, गाथा-५. १२. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु वंदीए; अंति: रूचिर० कोडी कल्याण, गाथा-५. १३. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ. म. रूचिरविमल, मा.ग., पद्य, आदि: भव भय भंजन छो भगवंता; अंति: रूचिर सदा जयकारी, गाथा-५. १४. पे. नाम. सीतलजिन स्तवन, पृ. ८अ-९अ. शीतलजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जनस्वामी; अंति: दिन विस्तारी आपीए, गाथा-५. १५. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांसजिणेदा; अंति: रुचिर सुख कामी हो, गाथा-५. १६. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आज अमीए मेह वुठोजी; अंति: रूचिर० उमंगीजी, गाथा-५. For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १०अ १० आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि अरज करूं कर जोडी; अंतिः रूचिर० उल्लस्योजी, गाथा - ५, १८. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १०आ - ११अ. मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी हो प्रभु अंति: रूचिर जनम सफलो थयोजी, गाथा ५. १९. पे नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. ११अ ११ आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि धर्म जीनेसर बंदीए अंति: रूचिर० अति उल्लास, गाथा ६. २०. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पु. ११ आ-१२अ. मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलूणो हो सुसनेही; अंतिः रुचिर० चितलाय, गाथा ५. २१. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १२अ - १२आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सांति जिणेसर साहिबा अंति: रूचिर०संभारी तारो रे, गाधा ५. २२. पे नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १२-१३अ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्म, आदि: कुंथुजिणेसर साहिब अंति रुचिर० सेवक ताहरो जी, गाथा-५, २३. पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ. १३अ - १३आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब अरजिन देव रे; अंति: रूचिर० आणीने रे, गाथा ५. २४. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १३आ - १४आ. मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मल्लीजिणेसर देव सेवु; अंति: रूचिर० संपति वरी, गाथा ५. २५. पे नाम. मुनिसुव्रत स्तवन, पृ. १४-१५अ. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रत सुव्रत, अंति: रूचिरविमल० संपतिसारी, गाथा - ५. २६. पे नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १५-१५ आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्म, आदि चित्रोडी राजा रे; अंतिः रूचिर० लली लली रे, गाथा-६, २७. पे. नाम नमिजिन स्तवन, पृ. १५-१६अ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि नमिजिनचंद नरिंद; अंतिः रूचिर० ताहरो हो लाल, गाथा ५. २८. पे. नाम. नमिजिन स्तवन, पृ. १६अ - १६ आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी सुरनर वंदन हो०; अंति: रूचिरविमल गाया, गाथा-५. २९. पे नाम नेमिजिन स्तवन, पृ. १६ आ-१७आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: यादव जान लेइ करी रे; अंति: रूचिरविमल० जय जयकारी, गाथा - ५. ३०. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १७-१८अ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सांमलीया तुम्हसों अंति: पावे सुख अछेह रे, गाथा ५. ३१. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १८अ १८ आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मात सिवादेवी जाया; अंति: रूचिरविमल० पाया राज, गाथा-६. ३२. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १८-१९आ. For Private And Personal Use Only १०५ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारा नेमि पियारालो; अंति: रूचिर० सफल थइ रे लो, गाथा-६. ३३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १९आ-२०अ. ___मु. रूचिरविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे लाल छबीले नेमजी; अंति: पाई सुखसंपति ढेरी रे, गाथा-५. ३४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २०अ-२०आ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन सुत सुंदर; अंति: रूचिर० परउपगारी हो, गाथा-५. ३५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २१अ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन जातक प्रति; अंति: रूचिर० वधारीए लाज, गाथा-६. ३६. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २१अ-२२अ. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुरति प्यारी हो; अंति: सफलफली मुझ आस, गाथा-९. ३७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २२अ-२३अ. मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ कुल कमल; अंति: रूचिर० मो मन ध्यान, गाथा-५. ३८. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. २३अ-२३आ. चौवीसजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: सकल सुहकर जिनवरा; अंति: भोजविमल. रूचिर जयकार, गाथा-५. १८१७९. सज्झाय, भास व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. १९, जैदे., (२५.५४११, १५-१७४३८). १. पे. नाम. गयसुकुमाल सज्झाय, पृ. १आ. गजसुकुमाल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: छप्पनकोडि यादवकुलि; अंति: तारु आवागमण निवारु, गाथा-१०. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सुखदुख अणवांछिउं; अंति: गउते नहीं आवइ दीह, गाथा-१०. ३. पे. नाम. औपदेशिक भास, पृ. २अ. मु. लावण्यसमय*, मा.गु., पद्य, आदि: जीव भणि सुणि जीभडली; अंति: लावण्यसमय० हवि भागी, गाथा-८. ४. पे. नाम. अनाथीऋषि सज्झाय, पृ. २अ. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रवाडी गयु; अंति: वंदे रे बे करजोडि, __ गाथा-९. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ. औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. पदमतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: मनमाली धणियय करइ; अंति: भणइ० जिम खोडी न लागइ, गाथा-७. ६. पे. नाम. १४ गुणठाणा सज्झाय, पृ. २आ-३अ. गुणस्थानक सज्झाय, मु. सुंदरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि वीरजिणेसर देव; अंति: सुंदरवि०हुइ सुख घj, गाथा-२३. ७. पे. नाम. दसदृष्टांत सज्झाय, पृ. ३अ-४अ. For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १० दृष्टांत सज्झाय, मु. विद्यारत्न शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समोसरणि जिनवीरजी; अंति: सीस कहइ अविलंब, गाथा-३५. ८. पे. नाम. लज्जाविशेसज्झाय, पृ. ४अ-४आ. लज्जा सज्झाय, मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि जीव पहिलु अपसम; अंति: हंस भणि तरीइ संसारि, गाथा-१३. ९. पे. नाम. सनतकुमार भास, पृ. ४आ. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन रस; अंति: लोग त्रीजे संभाली रे, गाथा-१२. १०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ-५अ. मु. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: ते बलीउ भाई ते बलिउ; अंति: पंडित कहइ हितकारी रे, गाथा-१०. ११. पे. नाम. नंदिषेण भास, पृ. ५अ. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आज पणि दसमा रे सखी; अंति: मिलिया मुगति आरि, गाथा-६. १२. पे. नाम. शीयल विषेसीखामण सजाय, पृ. ५अ-५आ. औपदेशिक सज्झाय-शीयलविषे, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ए तु नारी रे बारीछि; अंति: विजयभद्र० तस आवी वरइ, गाथा-१०. १३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ. ___ उपा. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ते सुरू भाई ते सुरु; अंति: कनकसुंदर०मनि भाणी रे, गाथा-६. १४. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि जीवडा रे; अंति: पदमकुमार०तणउ फल लीजए, गाथा-४. १५. पे. नाम. सील सज्झाय, पृ. ६अ-६आ. शीयल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: माय बापनी किजि भगति; अंति: पामुं नितु जय जयकार, गाथा-१७. १६. पे. नाम. संजयवर्णनरूप सज्झाय, पृ. ६आ-७अ. साधुपद सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर सवे करी; अंति: आणंद० लहिस्यइ तेह, गाथा-१६. १७. पे. नाम. धरममित्रकरण सज्झाय, पृ. ७अ-८अ. धर्ममित्रकरण सज्झाय, क. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन मुड; अंति: कनकसुंदर रे वयरागी, गाथा-१५. १८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: तुं तु धरम म मुकिसि; अंति: जिम चिरकालि नांदुरे, गाथा-७. १९. पे. नाम. पचखाण सज्झाय, पृ. ८अ-९आ. पच्चक्खाण सज्झाय, आ. सौभाग्यरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी करी; अंति: सौभाग्यरत्न __ आणंदि, गाथा-३८. १८१८०. चौमासी देववंदन व स्तवन संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१)=११, कुल पे. १२, जैदे., (२६४११.५, १०४३१-३४). For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. चौवीसजिनस्तुति नमस्कार, पृ. २अ-५अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-४ अपूर्ण से हैं. चौवीसजिन स्तुति नमस्कार, मु. लक्ष्मण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लखमण भणे० अवधारो हेव, पूर्ण. २. पे. नाम. चतुर्विंसतिजिन स्तुति, पृ. ५अ-८अ. २४ जिन ते, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: होउ मे ज्ञानधारा, गाथा-२७. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आदिजिन, पृ. ८अ-८आ.. ___ आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजूंजा; अंति: मागुमनने उल्लासे, गाथा-५. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ८आ. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंदा; अंति: नंदसूरि० तुहिज देवा, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ९अ. मा.गु., पद्य, आदि: (१)राजेमति इंम उचरइए, (२)उजलगिरि अहमइ जायसउए; अंति: सरणागत वज्रपंजरू ए, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभन, पृ. ९अ-९आ. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)सरसति मातनइं करूं, (२)सकल मूरति त्रेवीशमो; अंति: सेवक उद्धरु ए, गाथा-५. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-सांचोरमंडन, पृ. ९आ-१०अ. ___आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: साचोंपुरवर जगत्र; अंति: नंदसूरि शिव सुखदायक, गाथा-५. ८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १०अ-१०आ. आदिजिन स्तुति, मु. लावण्यसमय*, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भालें हार; अंति: हओ मे नाण धारा, गाथा-४. ९. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १०आ-११अ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मयगल घरबारी नार; अंति: संघने सुख देवें, गाथा-४. १०. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ११अ. मा.गु., पद्य, आदि: कुगति कुमति छोडी; अंति: देवा नेमिसेवै सुहेवा, गाथा-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ११अ-११आ. ____ मा.गु., पद्य, आदि: जलण जल वियोगा नाम; अंति: चंदो जाणे अमृतबिंदो, गाथा-४. १२. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२अ. मा.गु., पद्य, आदि: कठिन कर्म मेली काठिय; अंति: टाले संघना कोडि पाले, गाथा-४. १८१८१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २४, जैदे., (२५४११.५, १४-१५४२८-३३). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ. कल्लाणकंद स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ. For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १०९ पंचमीतिथि स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १आ-२अ. पंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ५. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. २अ-२आ. ___ मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: पालता सुर सानिधि करे, गाथा-४. ६. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. २आ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: सीस० संघ तणा नीसदीस, गाथा-४. ७. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, पृ. २आ-३अ. चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ३अ-३आ. श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेāजो तीरथ; अंति: पाया ऋषभदास गुणगाया, गाथा-४. ९. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३आ-४अ. मु. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. १०. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. ४अ... मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. ११. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. ४अ-४आ. शत्रुजयतीर्थस्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल गिरिवर राजे; अंति: अविचल मन तणी आस, गाथा-४. १२. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ४आ. मु. कृष्ण, मा.गु., पद्य, आदि: सासननो नायक जिनवर; अंति: दोलत देज्यो माई, गाथा-४. १३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४आ-५अ. मु. विजयदेवसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि: यां चक्रे भरतः; अंति: पुण्याब्धि चंद्रोदय, श्लोक-४. १४. पे. नाम. अजितजिन स्तुति-तारंगा, पृ. ५अ. मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तारंगा मुख मंडण अजीत; अंति: पुण्यसागर० सुखकार, गाथा-१. १५. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ५अ-५आ. मा.गु., पद्य, आदि: सुरअसुरवंदितपायपंकज; अंति: मंगलकरे अंबिकादेवीइं, गाथा-४. १६. पे. नाम. उन्नतपुरमंडन-आदिजिन स्तुति, पृ. ५आ. आदिजिन स्तुति-उन्नतपुर, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: उन्नतपुर मंडण जगतधणी; अंति: नवि पामे तेह नरा, गाथा-४. १७. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ५आ-६अ. मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अतिअलवेसर; अंति: भणे बुधविजय जयकारीजी, गाथा-४. १८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ६अ. For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १९. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ६अ - ६आ. श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. २०. पे. नाम आदिजिन स्तुति- वीसलपुरमंडन, पृ. ६आ. मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि बिसलपुर बांदु अंतिः संघना विघन निवार, गाथा-४. २१. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६आ-७अ. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिणेसर पुजा; अंति: जिनजी सुखसंपतहीतकार, गाथा-४. २२. पे नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ७अ ७आ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मंगल आठ करी जस आगल; अंतिः तपथी कोडि कल्याणजी, गाथा-४. २३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७आ. पंन्या. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणे वर मंडण पास; अंति: कमलविजय० सुखसंपदा, गाथा-४. २४. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. ७आ. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर मोटो जगनाथ; अंतिः रूचिने दोलित करें, गाथा-४. १८१८३. (+) अध्यात्मकल्पद्रुमवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६७७, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ७३, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., प्र. ले. श्लो. (५) सुर्याचंद्रमसौ यावतु, जैदे., ( २६.५X११.५, १३x४३-५०). जैदे., १८१८४. . (+) कल्याणमंदिर सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२६५११, ५-६X३०-३७). अध्यात्मकल्पद्रुम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., गद्य, वि. १६७४, आदि: प्रणत सुरासुरकोटी; अंतिः वर्द्धते वर्णयामलम्, अध्याय १६. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि कल्याणमंदिरमुदारम; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण कहीइ श्रेय; अंतिः मोक्षनि प्र० पामइ. १८१८५. कल्पसूत्र-साधुसमाचारी सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र. वि. जैदे., ( २६x११, १५X४२-५३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र - बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६८०, आदि: ( - ); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८१८६. अंजनासती रास, संपूर्ण, वि. १७३३, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. मंगलपुर, प्रले. ऋ. कल्याणजी ( गुरु ऋ. मेघजी, लुकागच्छ); पठ. मु. त्रीकम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११, १५X३४-३७). " अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि पहिलुने कडवं हो; अंतिः जगत्रनी मात तो गाथा - १५९. १८१८८. श्रावक आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२५.५x११, १२X४०-४२). 9 " श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वशं प्रणम्य; अंति: (१) मासजावज्जीवं वा कुरु, (२) जैनं जयति शासनं, अधिकार-५, For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १८१८९. (+४) चारप्रत्येकबुद्ध रास खंड २, ३, ४, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू. वि. खंड २,३,४ है, सर्व दाल ४५., - प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५४११, १५-१६४३६-५० ). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: आनंद लील विलास, ग्रं. ११२०, प्रतिपूर्ण. १८१९२. लघीयस्त्रय, संपूर्ण, वि. १८०७, माघ, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र. वि. अंत में न्यायकुमुदचंद्रोदय टीका का मात्र अंतिम पुष्पिका भाग दिया है., जैवे. (२६४११.५, ९-१३४३५-३७). ', लघीयस्त्रय, आ. अकलंकदेव, सं., पद्य, आदि धर्मतीर्थकरेभ्योस्तु अंतिः पदस्य महात्मनाम्, परिच्छेद ६. १८१९३. (+) भगवतीसूत्र- शतक- ९ उद्देश- ३३ जमालीचरित्र, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, ११X३९-४३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८९९५. भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १७८१ आश्विन शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल नाडुल, पठ. मु. कुशलरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६x११, ६X३२-३७). (+) भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१८६. १८१९७. (+) दशवैकालीकसूत्र - अध्ययन १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. १४, पठ. सा. जैसि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६११.५, ८x२२-२४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८१९८. (+) कल्याणमंदिरस्तोत्र सह टबार्थ - विस्तृत, संपूर्ण, वि. १७९५, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. पत्तननगर, प्रले. मु. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, ३X३६-४३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, लोक-४४. प्रले. मु. चारित्ररत्न; कल्याणमंदिर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंतिः मरण रहीत पणू ते पामइ. १८२०० (+) कर्मग्रंथ ४-पडशीती सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२५.५४११, ४X३६-३८). जै..... षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंतिः लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा -८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ तीर्थंकर; अंति: श्रीतपागच्छनायक. १८२०१. धातुपारायण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५X११, For Private And Personal Use Only १११ १२-१३x४२-४७). धातुपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अर्हं भू सत्तायां; अंति: बहुलमेतन्निदर्शनम्. १८२०२. (+) सिंदूरप्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं जैवे. (२५.५४११, ३-८४४२-४९). ', सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम् श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर- टीका, सं., गद्य, आदिः पार्श्वप्रभोः क्रमयो; अंति: ज्ञानगुणारतनोतुः. Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८२०३. जयविजयकथा व सम्यक्त्वविवरण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१८)=१९, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १५-१६x४५-४८). १. पे. नाम. जयविजयनृपकथा, पृ. १अ-१२आ. जयविजय चरित्र, सं., पद्य, आदि: अत्राभूद्भरतेभूरि; अंति: विधो विधिवद्यतद्यम्, श्लोक-४७२. २. पे. नाम. सम्यक्त्वविवरण, पृ. १२आ-२०अ, अपूर्ण. सम्यक्त्व विवरण, सं., गद्य, आदि: प्रथम सम्यक्त्व लाभ; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८२०५. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४०, आश्विन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १३, पठ. ताराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ५४२९-४०). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. टबार्थ गाथा-४४ तक लिखा है.) १८२०६. तपांसीसंग्रह, पूर्ण, वि. १६२३, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १७-१(७)=१६, कुल पे. २, ले.स्थल. समीचीनदुर्ग, प्रले. मु. रंगसार पं (गुरु आ. भावहर्षसूरि); राज्यकाल रा. चंद्रसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १९-२०४५३-५८). १. पे. नाम. तपांसि, पृ. १अ-९अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पे.वि. कुल-५७ तपों का संग्रह है. सं., पद्य, आदि: उपधानानि सर्वाणि; अंति: लक्ष्मी प्राप्तिः, तप-५७, पूर्ण. २. पे. नाम. तपांसि, पृ. ९अ-११आ, पे.वि. कुल-२७ तपों का संग्रह है. आ. पूर्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: (१)तत्र प्रथम सर्वांग, (२)शुक्लपक्षेष्टौपवासाः; अंति: लघु संसारुत्तारण, तप-२७. १८२०९. शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(४)=६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११, ३-४४१०-१२). शांतिजिन स्तवन, पं. ज्ञानविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर साहेब; अंति: (-), अपूर्ण. १८२१२. वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८५, भाद्रपद कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ.६, ले.स पठ. श्रावि. धारीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १०-११x१९-२६). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३. १८२१३. जिनशतक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६.५४११.५, ९-१०४४०-४७). जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., पद्य, वि. १००१-१०२५, आदि: श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंति: वागसौ द्राग्विधेयात, परिच्छेद-४, श्लोक-१००. १८२१४. शीयल रूपकमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४११, १६-१७X४०). रूपकमाला, मु. पुण्यनंदि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)स्मृत्वा गुरुपदांबुज, (२)आदि जिणेसर आदिसउ; अंति: पभणइ श्रीपुण्यनंदि, गाथा-३२. १८२१५. (+) दशवैकालीकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ११४३८-४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, गाथा-७००. For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ११३ १८२१६. माधवानलचौपाई, नेमजिन स्तवन, पद व षट्दर्शन नाम, संपूर्ण, वि. १७१०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ४, ले.स्थल. अह्मनगर, प्रले. मु. वृद्धिकुशल; पठ. मु. कीर्तिकुशल; मु. खेमकुशल, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, जैदे., (२५.५X११.५, २०x४६-६८). १. पे. नाम. माधवानल प्रबंध चौपाई, पृ. १अ - १० आ. माधवानल चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देव सरसति देव सरसति; अंति: भले सुख पामे संसार, गाथा - ५८०. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १० आ. वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पशु पुकार सुण्या अंति: उदयविजय० नयणां नयणकि, गाथा- ७. ३. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. १०आ. जै. क. बनारसीदास, मा.गु., पच, आदि हम बइठे अपने मौन; अंति बनारसि० आवागौनसुं, गाथा - ३. ४. पे नाम, षट्दर्शननाम, पृ. १० आ. षट्दर्शन नाम, सं., पद्य, आदिः यं शैवाः समुपासते; अंति: त्रैलोक्यनाथोहरिः, गाथा-१. १८२१७. प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, स्तुतिनमस्कारसंग्रह व जयतिहअणस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. १०, जैदे., (२५.५४११.५, ११-१२x२८-३२). १. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-६आ. खरतरगच्छीय श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ६आ-७अ. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक - ४. ३. पे नाम, साधारणजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: जो तुसे देवी अंबाई, गाथा-४. ४. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ. मु. जिनवर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: चोसठि इंद्र जसु सेवा; अंतिः वर्धमानने मंगल करो, गाथा-४. ५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ८अ . प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सिद्धिनाणं, गाथा ४. ६. पे. नाम. कल्लाणकंद, पृ. ८-८आ. कल्लाणकंद स्तुति, प्रा., पद्य, आदि; कल्लाणकंदं पढमं अंतिः अम्ह सवा पसत्था, गाथा-४. ७. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ८.आ. सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच अंतिः सिद्धायिका प्रायिका श्लोक-४. ८. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ९अ. मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. ९. पे नाम, चीवीशजिन स्तुति, पृ. ९अ ९आ. पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., पद्य, आदि नाभेवं संभवं तं अजिय; अंतिः सहिया पंचकलाण पसिं, गाथा-४, , For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११४ www.kobatirth.org १०. पे नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. ९आ-१२ आ. १८२१८. प्रले. आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ आनंदिय, गाधा- ३०. छंद व स्तोत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८१५, आषाढ़ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. ९, ले. स्थल. धांगद्रादुर्ग, . मोहनरत्न, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५४११.५, १४-१७४१-४७). १. पे. नाम. गुणरत्नाकर छंद, पृ. १अ १७आ, वि. १८१५, आश्विन शुक्ल, १, मंगलवार, ले. स्थल प्रांगद्रादुर्ग, प्र. मु. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि सशीकरनीकरसमुज्वल; अंतिः करो सहिजसुंदर मया, अध्याय- ४, २. पे. नाम. अंतरीकपार्श्वनाथ छंद, पृ. १७आ - १९आ. अंतरिक्षपार्श्वजिन छंद, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि सारदमात मवाकरी आपो; अंतिः भणे जय देव जय जयकरण, गाथा - ५१. ३. पे नाम, माणिभद्रवीर छंद, प्र. १९-२० आ. पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति नित सेवीत सुभ; अंतिः माणिभद्र जयजय करणं, गाथा - २१. ४. पे. नाम, भैरवाष्टक, प्र. २०-२१अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भैरवाष्टक स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: एकं खड्गांगहस्तं अंतिः उपद्रव्योवलयं जाति:. ५. पे. नाम. पद्मावतीपटल स्तोत्र, पृ. २१अ - २१ आ. सं., पद्य, आदि: श्रीमन्माणिक्यरश्मि; अंति: देवी मां रक्ष पद्म, श्लोक - ९. ६. पे नाम, भविष्योत्तरपुराण इंद्राक्षी स्तोत्र, पृ. २१-२२अ. भविष्योत्तरपुराण- इंद्राक्षी स्तोत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: (१)ॐ अस्य श्रीइंद्राक्ष, (२) पद्मे पूर्वतः अति: सर्वकामफलप्रदम्, श्लोक १३. ७. पे नाम, पद्मावती स्तोत्र, पृ. २२अ-२२आ. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिण सासणि; अंतिः करजोडी सेवक बीनविं, गाथा- १५. ८. पे. नाम. महालक्ष्मी स्तव, पृ. २२आ. सं., पद्य, आदि: आद्यं प्रणवस्ततो; अंति: सौभाग्यं भूतमिछता, श्लोक - १०. ९. पे नाम, पद्मावतीजपमंत्र विधिसहित, पृ. २२आ. १. पे. नाम पद्मावतीसतं, पृ. १आ-२अ. पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: प्रणमामि ताम्, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., प+ग., आदि: (१)ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं, (२) देवीयात्रिपुरा: अंति: (१) मासचतुष्टयम्, (२) पद्मावती तां स्तुवे, श्लोक-२. १८२१९. पद्मावतीशतादि स्तोत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. १०, जैवे. (२५x११.५, १०-११x२९-३१). २. पे. नाम. महाज्योतिवतीशत, पृ. २अ - ३अ. सं., पद्य, आदि: महाज्योतिर्वती माता; अंति: तषेप्राणी कालरीपिणी, श्लोक - १२. ३. पे. नाम. जिनमाताशत, प्र. ३अ-३आ. सं., पद्य, आदि जिनमाता जिनेंद्रा च अंतिः नित्यानंद विधायनी, श्लोक १२. ४. पे. नाम. वज्रहस्ताशत, पृ. ३-४अ. For Private And Personal Use Only श्लोक-११. Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ सं., पद्य, आदि: वज्रहस्ता च वरदा; अंति: प्रेयसी वसुदायिनी, श्लोक-१२. ५. पे. नाम. कामदाशत, पृ. ४अ-५अ. ___सं., पद्य, आदि: कामदा कमला कामा; अंति: कुसुमासनवासिनी, श्लोक-१३. ६. पे. नाम. सरस्वतीशत, पृ. ५अ-५आ. सरस्वतीशत स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सरस्वती सरण्या च सह; अंति: नमोस्तु सुभागिनी, श्लोक-११. ७. पे. नाम. भुवनेश्वरीशत, पृ. ५आ-६आ. ___ सं., पद्य, आदि: भुवनेश्वरी भूषणा; अंति: लोभ वर्जिता, श्लोक-११. ८. पे. नाम. लीलावतीशत, पृ. ६आ-७अ. लीलावतीशत स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: लीलावती लीलमाभा; अंति: नमस्तुभ्यं महेश्वरी, श्लोक-११. ९. पे. नाम. अंबाशत, पृ. ७अ-७आ. सं., पद्य, आदि: त्रिनेत्रा अंबका; अंति: चंडाचंड पराक्रमा, श्लोक-११. १०. पे. नाम. चक्रेश्वरी स्तोत्र, पृ. ७आ-९आ. सं., पद्य, आदि: चक्रेश्वरी च; अंति: प्रीत्य पलायनेकिम. १८२२०. सझाय, स्तवन, यंत्रश्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २९, जैदे., (२६४१२, २१४४९-५३). १. पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. १आ-२अ. ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: महलामे बेठीजी राणी; अंति: संजम लेइ होवै सासता, गाथा-२७. २. पे. नाम. जीवनी सज्झाय-गर्भावास, पृ. २अ-३अ. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोय जीव आपणी; अंति: बंधई कीजई तेही कर्म, गाथा-७०. ३. पे. नाम. चउवीसजिणवर प्रथमगणधर प्रथमसाहणीपरिवार स्तवन, पृ. ३अ-४अ. मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभादिक चउवीस जिणंद; अंति: ज्ञानचंद० सिवसुख लेह, गाथा-२७. ४. पे. नाम. सत्यबोल स्तवन, पृ. ४अ-४आ. २४ जिन मातापितादि ७ बोल स्तवन, मु. दीप, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: श्रीजिनवाणी सरस्वती; अंति: गुणे सुजस बखाणी ए, गाथा-२७. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ. मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: नाभिकुल गुरु कुल; अंति: ग्यानचंद० कोइ न तोलै, ढाल-२, गाथा-२६. ६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ. ऋ. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंदरसामी में; अंति: भवियण रे मन भाया हो, गाथा-२१. ७. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. ५आ-६अ. ऋ. खुशालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: मगध देश राजगृही नगरी; अंति: सील तणी महिमा आणी, गाथा-१५. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ६अ. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदर तमें सें मन; अंति: समगत सार रतनसुं, गाथा-६. For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११६ www.kobatirth.org ९. पे. नाम. पासजिन स्तवन, पृ. ६अ. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहरष, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर वाल्हा; अंति: जीणहरष० हुं बंदा लाल, गाथा-१४. १०. पे. नाम. लोभपचीसी, पृ. ६अ ६आ. क्र. रायचंद, पुहिं., पद्य, आदि: माहालोभी मनुषसु अंतिः रायचंद० अबही समता रे, गाथा - २५. ११. पे नाम. अमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ६आ-७अ आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवीरजिणंद वांदीने; अंतिः ते मुनिवरना पाया, गाथा - १८. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२. पे नाम. कलियुगवर्णन सज्झाय, पृ. ७अ-७आ. कलयुगवर्णन सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: श्रीजिण वर्ण कमल; अंति: लालचंद० प्रकास हो, गाथा - १५. १३. पे. नाम. बुढ़ापा सज्झाय, पृ. ७आ. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदिः सगुण बूढापो आवीयो; अंतिः कहै कवीयण ज्ञान रे, गाथा- १६. १४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ. क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीरजिणंद अंतिः दीज्यो मुक्तनो वास, गावा- १२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. ८अ ८आ. मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि बांधव बोल मानोजी; अंति की भवस्थिति नाई हो, गाथा १६. १६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८आ. पुहिं., पद्य, आदि: एह संसार खार सागर; अंति: जिन धूर की वेदन खोई, गाथा - १०. १७. पे. नाम. रामचंद्रजीरो मुदडो, पृ. ८आ - ९अ. मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण विनउं; अंति: रावन कीयो अन्याय हो, गाथा - ३१. १८. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ९अ ९आ. For Private And Personal Use Only मु. लक्ष्मीचंद, पुहिं., पद्य, आदि मुनिसुवरतस्यामी कुं; अंतिः लक्ष्मीचंद० सीरनाय, गाथा - १६. १९. पे नाम. दंदणऋषि सज्झाय, पृ. ९आ. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहै जिणहरष सुजाण रे, गाथा - ९. २०. पे नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ. मु. कीर्तिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: इक दिन अरणक जाम; अंतिः सोम इण परि कहै ए, गाथा - २२. २१. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १०अ १० आ. मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु आगम सांभलि; अंति: पुहुचै मुक्ति मंझार, गाथा - ३४. २२. पे नाम औपदेशिक सझाय, पृ. १० आ. मा.गु., पद्य, आदि: तु मनमोहन मीलवा रे; अंति: वरत्या जय जयकार रे, गाथा - १३. २३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १०आ. नेमराजिमती पद, मु. दान, पुहिं., पद्य, आदि: बलीहारी हो प्रभु; अंति: दानतमन आनंदकारी, गाथा-४. २४. पे. नाम. पुण्यपाप सज्झाय, पृ. १०आ - ११ आ. Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चारुंगत में भटकता; अंति: सतगुरु कहै समझाय रे, ढाल-२. २५. पे. नाम. मेतारजमुनी सज्झाय, पृ. ११आ. मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मेतारजमुनी जिन; अंति: कनकविजय० अवचल ठामुं, गाथा-१४. २६. पे. नाम. कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. ११आ-१२अ. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८. २७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १२अ. ___ मा.गु., पद्य, आदि: गणधर गौतम पाय नमीनें; अंति: यु ही जन्म गमाली, गाथा-१५. २८. पे. नाम. पद, पृ. १२अ. साधारण पद, मा.गु., पद्य, आदि: राय कहै ते पाधरो पास; अंति: जाणै वाज्यौ बाब, गाथा-१. २९. पे. नाम. यंत्र संग्रह, पृ. १२आ. मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), (वि. चार यंत्र है.) १८२२१. ज्योतिषसार, पूर्ण, वि. १८०७, श्रावण कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, पू.वि. गाथा १-१२ नही है।, ले.स्थल. बलभद्रनगर, जैदे., (२६४१०.५, ११-१३४४१-४५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: सन्मुखं गमनं शुभम, श्लोक-३५५, पूर्ण. १८२२२. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१९, चैत्र कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. दयाल (गुरु मु. धनजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ३-६४३७-४०). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगल निमित्ते ए पद; अंति: ए अंत मांगलिक कह्यो. १८२२३. छ:नियंठा छत्रिसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६४११.५, ११४२७-३१). ६ नियंठा ३६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण महावीर० पनवण; अंति: नामे निग्रंथोनी कहि. १८२२४. स्तवनचौवीसी व स्तवन संग्रह, पूर्ण, वि. १७९३, भाद्रपद शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १०-१(९)=९, कुल पे. ३, ले.स्थल. जावालपुर, प्रले. ग. विवेकसागर (गुरु पं. भुवनसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२-१३४४०-४५). १.पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ-१०अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., स्तवन-२० की गाथा-५ अपूर्ण से स्तवन-२४ की गाथा-६ अपूर्ण तक नहीं है. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर सुखकारी हो; अंति: उत्तम एहवी वाणी रे, स्तवन-२४, पूर्ण. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जैनेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तुं थल वट केरो पतसाह; अंति: जैनेन्द्र० रे सनाथ, गाथा-७. ३. पे. नाम. जीराउलापार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०आ. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो मुझ साहिबा; अंति: न्याय० प्रभुने नाम, गाथा-७. For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८२२५. (+) पिडंविशुद्धि सह बालावबोध व प्रतिलेखनगाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.५x११.५, १९५२-७२). १. पे. नाम. पिंडविशुद्धि प्रकरण, पृ. १-१५अ. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि देविंदविंदबंदिय पवार अंतिः जिणवल्ल० अहराबोहंतुआ, गाथा १०३. पिंडविशुद्धि प्रकरण - बालावबोध, ग. संवेगदेव, मा.गु., गद्य वि. १५१३, आदि: (१) श्रीमद्वीरजिनेशं, (२) देविंदए देवताना; अंति: इसिउं जाणीवउं. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. प्रतिलेखनकालमान गाथा, पृ. १५अ - १५आ. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: आसाढे मासे दुप्पया; अंति: भादव आसौ कत्तीअट्ठा. १८२२६. चंद्रलेहाचौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. रत्नमाल, जैये. (२६x१०, २०-२१५२-५७)चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पच, वि. १७२८, आदिः सरसति भगति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल - २९, गाथा - ६२४. १८२२७. जीनरस, संपूर्ण, वि. १८२३, पौष शुक्ल १०, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२४.५x११.५, १२-१६४३२-३८). जिणरस, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपत शारद पय नमि; अंति: वेणीराम० धजाद्वैधिग, गाथा - १९४. १८२२८. पांचकारण स्तवन, संपूर्ण वि. १९२४, आषाढ़ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२५x११.५, ९४२८-३३ ). ५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत प्रणमोइ; अंति: परे विनय कहे आणंद ए. गाथा ५९. १८२२९. सुक्तमाल, संपूर्ण, वि. १८७७, वैशाख कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.ले. श्लो. (६४४) याद्रिशं पुस्तकं द्रिष्ट्वा, जैदे., (२६.५X११.५, १०-१२x२८-३१). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंतिः मोक्ष साथै जि केइ, वर्ग-४. १८२३०. नवतत्त्व सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. सुधदंती, पठ. मु. कपुरजी (गुरु गच्छा. जिनचंद्रसूरि ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. ९५९, जैदे., ( २४४११.५, २-३४४५-५६), नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण अवचूरि, आ. साधुरत्वसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर अंतिः सेधनादनेकसिद्धाः. १८२३१. बुद्धिचतुष्क कथा व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे., (२५x११.५, १४४४०-४३), बुद्धिचतुष्क कथा, प्रा., सं., प+ग, आदि: (१) सेलघण कुडग चालिणि, (२) सचकाल्पतिकोमुद्रशैल; अंतिः बुद्धिरित्युदाहरणानि १८२३२. सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. मु. जालमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४११.५, १३X३१-४०). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४. For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ११९ १८२३३. धर्मलाभउपाय व सोलवचन, संपूर्ण, वि. १६९६, कायनंदशरशशिवर्षे, आषाढ़ शुक्र ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले. स्थल. पत्तन, पठ. मु. हीमराज ऋषिः प्रले. ऋ. मांडण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x११, १४-१५X२७-३२). १. पे नाम धर्मलाभउपाय रास, पृ. १अ ७आ. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१) धम्म सवणाणु रत्ता, (२) प्रणमिव साहु रयणगुरु; अंतिः श्रीपासचंद० शोभते, गाथा - १२८. २. पे. नाम. सोलवचन, पृ. ७आ. १६ वचन, मा.गु., गद्य, आदि: सोल वचन जाण्या जोइय; अंति: चित्तनइ विषइ धारिवा. १८२३४. दशवैकालीकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५१, पौष कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. मु. सहसमल, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२६११.५, १३४३८-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुनिं अंतिः कहणाववि आलणा संघे, अध्ययन - १०, चूलिका २. १८२३५. (+) वसुधारा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. गलणीया, प्रले. वखता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., ( २६११.५, १३-१४४४१-४२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: (१) मभ्यनंदन्निति, ( २ ) सौख्यं करोति. १८२३६. चंद्रलेखा चौपाई, पूर्ण, वि. १७४३, आश्विन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६ - १ (१) = ५, पू. वि. गाथा १ से १९ अपूर्ण तक नहीं है., ले. स्थल. मरोटकोट, प्रले. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, १५x५० ). चंद्रलेखा चौपाई, मु. हर्षमूर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १५६६, आदि: (-); अंति: गुणै ते सवि सुख लह पूर्ण. १८२३७. पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६१२, चैत्र शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. डूगर, प्रले. वा. अभयचंद्र (चैत्रगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. जैवे. (२५x११.५, ५x२७-३१). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीन; अंति: लहइ ते शाश्वता सुख. १८२३८. चौमासी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. पुस्पावती, प्र. वि. अवास्तविक घटते पत्र नं. २., जैदे., ( २४.५X१२, ११३४-३६). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई रे. १८२३९. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६X११.५, १२X३० ). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८+ कलश. १८२४१. (+) ऋषिमंडलस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५x११, ११४३७-३९). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर अंतिः सो लहड़ सिद्धिसुहं, " गाथा - २२०. १८२४२. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५x११.५, ११४२७-२९). For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-७७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८२४४. बालचंदबत्तीसी व पद, संपूर्ण, वि. १९३०, फाल्गुन, ७, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, पठ. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, ११-१२X३४-३९). १. पे. नाम. अध्यात्मबत्तीसी, पृ. १अ - ५आ. मु. बालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर तिहा; अंतिः सुखकंद रुपचंद जाणीए, गाथा - ३३. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ५आ. पुहिं., पद्य, आदि काहेकु सोचवीचार करे; अंतिः युही पीछताय रहगो गाथा- १. १८२४५. चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९५१, आषाढ़ शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. पाली, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण पठ. मु. तिलोक ( खरतरगच्छ ), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२७.५x११.५, ११४३२-४१). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद अंतिः सर्वेष्टार्थसिद्धिः, १८२४७. स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. स्तवन १८ की गाथा १ तक लिखा है., जैये. (२६x११.५, " १२x२८-३३). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: रिषभ जिनेसर प्रीतम; अंति: ( - ), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८२४९. (+) सिंदूरप्रकरण सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८०९, फाल्गुन कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल, रांडेयपुर, प्रले. मु. खुबसागर (गुरुग, खेमसागर), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X१२, ७X२७-३६). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: मानेति शमेति नाशम्, श्लोक-१०१. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीकहतां मंगलीक करी, (२) सिंदूरनो समूह जिम; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८२५०. दशवैकालीक सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६x११.५, २२x६६-७३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि; अंतिः गई ति बेमि, अध्ययन- १०. १८२५४. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, पठ. श्रावि. सुखमादे बाई, प्र. ल. पु. सामान्य, जैवे. (२६x११.५, ११४३९-४२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: उद्दिसंति त्ति बेमि, श्रुतस्कंध - २, अध्ययन २०, अं. १२१६. १८२५५. (#) सूर्यप्रज्ञप्ति कोष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१ (१) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, जैदे., ( २६४११). सूर्यप्रज्ञप्ति-यंत्र, मा.गु., को., आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. , १८२५७. कल्याणमंदिरस्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७२१, चैत्र कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. मेदिनीपुर, प्र. मु. भावविजय (गुरु पं. रत्नसमुद्र); पठ. सा. रंगश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x१०.५, १५४३४-४०). For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: वृद्धवादि आचार्यनउ; अंति: ऋद्धि वृद्धि संपजइ. १८२५८. नवकार बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदे., (२५४११.५, १०-११४२१-२५). नवकारमंत्र बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि: (१)श्रेयांसि श्रीमहावीर, (२)नमो अर्हद्भ्यः ; अंति: बेहु जणामोक्षलहिस्यै. १८२५९. जंबूस्वामी कथा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. ढाल-९ अढारनातरा सज्झाय दृष्टांत तक लिखा है., जैदे., (२४४११.५, १७-१८४३६-४०). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्रणमी पास जिणंदना; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८२६१. (+) नंदिसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७२५, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ९, पृ.वि. गाथा-४३ तक लिखा है., प्रले. पं. हीराणंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १९-२३४५२-६७). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. नंदीसूत्र-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)जयति भुवनैकभानुः, (२)इह सर्वेणैव संसारिणा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८२६२. (+) नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. कल्याणमंदिरस्तोत्र नही है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १०-११४२९-३३). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैन जयति शासनम्, प्रतिपूर्ण. १८२६३. नयचक्र बालावबोध व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८०२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. गारीआधर, प्रले. मु. रतनकुशल; पठ. ऋ. इंद्रजी (गुरु मु. भवानजी ऋषि), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६.५४१२, १५४३५-४१). नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., गद्य, वि. १७२६, आदि: वंदो श्रीजिनके वचन; अंति: कीनो वचन विलास. १८२६४. (+) कर्मग्रंथ १,२,३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७८, भाद्रपद कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. ३, ले.स्थल. वणारस, प्रले. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ९७५, जैदे., (२५४१२, ४-५४३०-३८). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १आ-१३अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेव प्रतइ; अंति: श्रीदेवेंद्रसूरइ. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १३अ-२०अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिम स्तबुंछु महावीर; अंति: ते महावीर प्रतइ. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. २०अ-२५अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कर्म बंधना प्रकारथी; अंति: कर्मस्तव सांभलीनई. १८२६५. (+) प्रतिक्रमणहेतुगर्भित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. पं. दयाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११.५, १३X२३ - ३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: जस० देयो मंगल कोडि, ढाल १९. - १८२६६. सारणी-माहादेवीदीपीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७- २ (१ से २ ) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित है। जैदे., (२५.५४११.५). " महादेवी दीपिका सारणी, वा. धनराज, सं., को., आदि: (-); अंति: ( - ), अपूर्ण. १८२६७. (+) यंत्रराजागम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें -संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत क्रियापद संकेत, जैदे. (२६४११.५, १३४४५-४७). " यंत्रराज- टीका, आ. मलयेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञपदांबुजं अंतिः कथनाध्यायोगमत्पंचमः, अध्याय ५. १८२६८. सिहलसिंह रास व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १६२०, श्रावण कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ५, ले. स्थल, उन्नतदुर्ग, प्रले, अनंत भट्ट, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १३-१४X४१-४४). १. पे नाम, दानविषये सिंघलसीह रास, पृ. १-१०अ. सिंघलसीह रास, मु. मलयचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १५१९, आदि: सरसति सामिणि मनि; अंति: मलयचंद्र० येह नइ आहि गाथा - २४२. २. पे. नाम लब्धिसागर गुरुगीत, पृ. १०अ. लब्धिसागरसूरि गीत, मा.गु., पद्य, आदि उदउ अवनिपतिजि सूरः अंति: लबुधिसागर० जगि जयवंत, गाथा - ३. ३. पे. नाम, नेमिजिन गीत, प्र. १०अ १० आ. मराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि आज सखी योवनि भरि अंतिः माणइ रे तोरी दासी, गाथा-२. ४. पे नाम, नेमिजिन गीत, पृ. १० आ. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: जाउ रइ सखी मोरो नाहो; अंति: आवागमण निवारी रे, गाथा-४. ५. पे. नाम. वीरजिन गीत, पृ. १० आ. महावीरजिन गीत, मा.गु., पद्य, आदि: पुरि जनजीवनजी; अंति: मन्न तु मोरा भवभव, गाथा - ३. १८२६९. षडावश्यकबालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १८७६, माघ कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, पू. वि. मात्र पच्चक्खाण आवश्यक है., प्र. वि. वस्तुतः इस प्रत मे मूल पत्रांक नं. १४१ से १५९ तक है परंतु प्रत्येक आवश्यक का अलग-अलग पत्रानुक्रम है, जैदे., ( २५x१२, ९-११x२१-२४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि: (-); अंति: हेमहंस० संपूर्णम्, प्रतिपूर्ण १८२७०. (+) दशवैकालीकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२ - ५ ( ५ से ९) = १७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५x११.५, १२-१३४३९-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि; अंतिः गई त्ति बेमि अध्ययन- १०, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १८२७१. (+) www.kobatirth.org जी., नवतत्त्व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८७, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२६.५X१२, २१X५२-६०). नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि उत्तराध्ययन सूत्र अंतिः खंध एकजातीयो मिलैतो. १८२७२. दसाणवाईबोल व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६११.५, १२४३३-३८). १. पे नाम, दसाणवाई बोल, पृ. १आ-६अ, दशाणवाई - बोल, मा.गु., गद्य, आदि: राजग्रही नगरी गुणसल; अंति: सेयं भंते सेयं भंते. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ६अ ६आ. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८२७३. चैत्यवंदनचीवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२६.५x११.५, १०x४७-५२). १८२७४. तपाखरतर विखवाद भेद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५.५X११.५, १०X२८-३२). " तपा - खरतर विखवाद, मा.गु., गद्य, आदिः एता बोल तपा तथा खरतर; अंति: वांचना जुदी न करइ. १८२७६. चोमासिपर्व व्याख्यान बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., ( २५X१२, १३३२-४०). चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भव्यजीवो वारंवार; अंति: पंचपरमेष्टि साखे. १८२७७. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, जैवे. (२५x११.५, १०x२४-२६). " १. पे. नाम. सूतकविचार संग्रह, पृ. १अ ५अ. सूतकप्रश्न संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: जेहने गृह मध्ये जन्म; अंति: फरसे ८ प्रहर सूतक. २. पे. नाम. जिनभवन ८४ आशातना सूत्र, पृ. ५-५आ. चैत्यवंदन चोविसी, वा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०९-१८४१ आदि सद्भक्त्या नतमीलि; अंति: देवता सा जयतादजस्रम्, लोक- ७७. प्रा., पद्य, आदि: खेलं १ केली २ कलि ३; अंति: वेज्जे जिणिंदालये. ३. पे नाम, विचार संग्रह, पृ. ६अ १० आ. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२३ १८२७८. आठकर्मएकसोअठावनप्रकृतिविचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैये. (२५.५x११.५, ९४२८-३०). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदिः आठ कर्म ते केहा; अंतिः प्रकृति बीलय थइ जाय, १८२७९. 'श्रावक आराधना, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६)x११.५, ११-१२x३०-३१). श्रावक आराधना, उपा, समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वशं प्रणिपत; अंतिः मासजावज्जीवं वा कुरु, अधिकार-५ १८२८०. नवतत्त्वभेद व पद, संपूर्ण, वि. १९४५, वैशाख कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, कुल पे. २, प्रले. सा. सोनाजी (गुरु सा. चंदरावलजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x१२, १९-२३४३६-४४). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण चौवीस भेद, पृ. १आ-४५अ. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवपदार्थना द्वार २४ अंतिः तत्व केवली गम्य छे. For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४५आ. ऋ. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ऐक अनेक कपायपड; अंति: पुनपाप परतख फिरे तह, गाथा-१. १८२८२. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९००, श्रावण, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. दिली, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, ६४३८-४६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं करेमि; अंति: फेर नमुत्थुणं कह. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगुरुदेवजीकु; अंति: पीछे सारी पट्टी कहणी. १८२८३. जंबुपृच्छा रास व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७४, आश्विन कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, ११४३२-३७). १. पे. नाम. जंबूपृच्छा, पृ. १आ-१७आ. मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सरवदा पुरे; अंति: वीरजी मुनि सुखकारी, ढाल-१३, ग्रं.५००. २. पे. नाम. मानमाया सज्झाय, पृ. १७आ-१९आ. क्रोधमानमायालोभपरिहार सज्झाय, मु. हर्षविमल-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरस्वतीमाय; अंति: प्रतपो कोडि वरीस रे, गाथा-३६. १८२८४. (+) नवकार रास, संपूर्ण, वि. १८५०, फाल्गुन शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. जावाल, प्रले. पं. नायकविजय (गुरु पं. कपूरविजय गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १६४३७-४३). नवकार रास, मु. गौडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: सारद शुभमतिदायिनी; अंति: भणे सकल संघ मंगल करु, ढाल-२४, गाथा-७०५, ग्रं. ८८५. १८२८५. भाससंग्रह, संपूर्ण, वि. १८४९, पौष कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. ३, ले.स्थल. पत्तन, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३०-३२). १. पे. नाम. कल्पसूत्र-भास, पृ. १आ-२४अ. कल्पसूत्र रास, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति ध्याउं; अंति: ज्ञान अनंतु पावेजी, ढाल-१७. २. पे. नाम. खाम्मणाभास, पृ. २४अ-२४आ. खामणा भास, मु. सुखसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अति अतिशयी अरिहंत; अंति: आतमा उत्तम एह चरित्र, गाथा-७. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी गहली, पृ. २४आ-२५अ. मु. सुखसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सखी गूंहली करो गुरु; अंति: पसरई समकित सारन रे, गाथा-५. १८२८६. रतनसारकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२५.५४११.५, १५-१६४३६-४१). रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५८२, आदि: सरसति हंसगमनि पय; अंति: सहज. बुधि प्रकासो रे, गाथा-३१७, ग्रं. ४२५.. १८२९०. रोहिणीया रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२४.५४११.५, १६४३७-४२). रोहिणीयानोरास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८८, आदि: सार सुकोमल बुद्धि; अंति: सकल संघ सुख थाइजी, गाथा-३३८. For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १२५ १८२९१. गुणकरंडक गुणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१२, कार्तिक शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. क्र. सुजाण; पठ. श्राव. पेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५-१७४४०-४६). गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: संपति सुखदायक सरस; अंति: थिर संपति जस थावैजी, ढाल-२७. १८२९२. (+) ऋषिदत्ता रास व बारमासो, अपूर्ण, वि. १७१३, पौष कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८-५(२,८,१३ से १५)=१३, कुल पे. २, ले.स्थल. सूरतबंदर, प्रले. मु. शांतिसागर (तपगछ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १५४४९-५२). १. पे. नाम. ऋषिदत्तासती रास, पृ. १आ-१८अ, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. आ. जयवंतसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४३, आदि: उदय अधिक दिन दिन; अंति: फल्यो दिन दिन आस, ढाल-४०, गाथा-५७१, ग्रं. ९००, त्रुटक. २.पे. नाम. नेमीश्वर बारमास, पृ. १८अ-१८आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२० तक है. आ. जयवंतसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल विहंगमवाहिनी; अंति: (-), अपूर्ण. १८२९३. नमस्कार स्तोत्र व पाक्षिकसूत्र-खामणा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९-२(६ से ७)=७, कुल पे. ३, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १३४४३-४६). १.पे. नाम. नमस्कार स्तोत्र, पृ. १अ. तीर्थमाला स्तवन, सं., पद्य, आदि: पंचानुत्तरसरणाग्रैवे; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२३. २. पे. नाम. पखियं सुत्तं, पृ. १आ-९आ, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. पक्खिसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, अपूर्ण. ३. पे. नाम. खामणासूत्र, पृ. ९आ, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: (-), अपूर्ण. १८२९४. लीलावती रास व नेमिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १७३३, कार्तिक शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२५४११,१५४३७-४२). १.पे. नाम. लीलावती रास, पृ. १अ-६अ. ___ मा.गु., पद्य, आदि: पहेलुं ते लंबोदर; अंति: गया पामुं सुख अपार, गाथा-१५२, ग्रं. २२८. २. पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. ६अ-६आ. नेमराजिमती गीत, मु. मेघाशिष्य ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सिणगार सजी करी; अंति: मेघाशिष्य० जलि नारि, गाथा-६. १८२९६. (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला सह बालावबोध व बीजक, संपूर्ण, वि. १७१३, चंद्राग्निभूमुनि, श्रेष्ठ, पृ. ५९, ले.स्थल. वारही, प्रले. मु. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४४७५, जैदे., (२५४११.५, १७-२५४५२-५५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्ताव नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १५३७. अभिधानचिंतामणि नाममाला-बालावबोध+बीजक, पं. देवविमल गणि, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रेयः श्रीरचनाभिराम, (२)हेमाचार्य नाममाला; अंति: देववि०श्रियांश्रेणयः, ग्रं. २०००. For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८२९९. (+) भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०७, कार्तिक शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. मेदिनीपुर, प्रले. पं. उमेदसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ११४२४-२८). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-५आ. ___आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ५आ-९आ. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. १८३००. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. आगरा, प्र.वि. जैदे., (२५.५४११, १६४३७-४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४+४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: किलइसइ सत्य वचनई; अंति: अमी समाणी जाणवी. १८३०२. जंबूस्वामी कथा, नेमराजिमति पद वदस बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४३१-३५). १.पे. नाम. जंबूस्वामी कथा, पृ. १अ-१७अ. मा.गु., गद्य, आदिः (१)सप्रभावं जिनं, (२)त्रैलोक्यना नायक; अंति: भवंति भवीनां सदा. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १७आ. मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुझ वन मेरी कुन खबर; अंति: रंग कहे सुखदानी, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानना १० बोल, पृ. १७आ. मा.गु., गद्य, आदि: मनपर्यवज्ञान १ परम; अंति: अधिमोक्षनी प्राप्ति. १८३०३. लोकप्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१)=१९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., सर्ग-३५ श्लोक-३० अपूर्ण से सर्ग-३७ श्लोक-१२ तक है., प्र.वि. पत्रांक १ से १९ है. किन्तु प्रारंभ अपूर्ण प्रतीत हो रहा है. अतः काल्पनिक रूप से प्रथम व अंतिम पत्र को २ एवं २० पत्रांक दिया हुआ है., जैदे., (२५.५४११, १४-१५४३८-४२). लोकप्रकाश , उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७०८, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८३०६. उत्तमकुमार रास, संपूर्ण, वि. १९१६, कार्तिक शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले.स्थल. कसनगढ, प्र.वि. जैदे., (२६४१२, १६-२०४३७-४१). उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सरसति सामण पय नमी; अंति: सुणीयो सहु मन रंग रे, ढाल-५१, ग्रं. १६३६. १८३०७. गुणावली रास, संपूर्ण, वि. १८१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. आ. कुंयर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३४४१-४३). गुणावली रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: जपे हो जिनहर्ष सुसीस, ढाल-२६, गाथा-४९३. १८३०८. रत्नचूडरास, संपूर्ण, वि. १८१५, चैत्र शुक्ल, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. पोरबिंदर, प्रले. मु. मोहन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३-१६४३४-३९). रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीसोभा; अंति: संपद लील कल्याणोरे, ढाल-२४. For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १२० १८३०९. तीर्थमाला स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७-१ (१) = १६, पू.वि. ढाल - १ गाथा - १० अपूर्ण तक नहीं है., जैदे., (२५.५४१२, ११-१२४३२-३८). तीर्थमाला स्तवन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८५, आदि: (-); अंति: सौभागविजय जय करो, ढाल - १३, पूर्ण. मु. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८३१०. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८५०, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९- १ (१) = ८, पू.वि. स्तवन -४ गाथा २ अपूर्ण तक नहीं है., ले.स्थल. राद्धीकापुर, प्रले. पं. जयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १२-१३३४-३९). स्तवनचौवीसी, रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: रामविजय जयसिरी लहि, स्तवन- २४, अपूर्ण. १८३११. सुनंदारूपसेन कथा, संपूर्ण, वि. १९८४, भाद्रपद शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. छगनलाल अविचलभाई लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४११.५, २०-२२५२-५७), सुनंदारूपसेन कथा, सं., गद्य, आदि: पृथ्वीभूषण नाम्नि; अंति: अक्षय पदं प्राप्ता. १८३१२. स्तवनचौवीसी- स्तवन ४ - २४, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६X१२, १२-१३३७-४१). स्तवनचौवीसी, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः पद्मविजय गुण गाया रे, प्रतिपूर्ण, १८३१४. ६ आरास्वरूप, संपूर्ण, वि. १८२८, भाद्रपद शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६x११, १४ - १६x४७-५०). ६ आरास्वरूप विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम; अंति: प्रकरण थकी जाणवो. १८३१५. पडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १४-१ (१) १३, प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे, (२५.५X११.५, ४-८X२६-३१). आवश्यक सूत्र- पडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (); अंति: (१)गारेण वोसिरामि, (२)करी मिच्छामि दुक्कडं, पूर्ण. षडावश्यक सूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करइ तउ पुण भंग नही, पूर्ण. १८३१६. मृगावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १६४७, वैशाख कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल स्थंभतीर्थ, प्रले. मु. महीपाल (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११.५, ११X३५-३९). मृगावती रास, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ नरपति कुलिं; अंति: भरू पुण्य तणा घडा, गाथा - ४११. १८३१७. मृगावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९ - १ (२) = ८, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रथम खंड २६९, ढाल १३ तक है, जैदे., (२५x११, १५-१९४३५-४१). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: (-), अपूर्ण. १८३१९. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६X११.५, ११X३३-३९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद अंतिः करी मिच्छामि दुक. " १८३२० (+) सुक्तमुक्तावली व प्रस्ताविक श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - वचन विभक्ति संकेत- टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, १३X३३-३९). १. पे. नाम. सूक्तावली, पृ. १अ-७आ. For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूक्तावली संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: वीरं विश्वगुरु; अंति: वांछितामिचजायते, श्लोक ११८. २. पे नाम, प्रस्ताविक लोक संग्रह, पृ. ७आ९आ. प्रस्ताविक लोकसंग्रह, मा.गु., सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा - १३. १८३२१. चौदगुणस्थान श्लोकसंग्रह टीका, अपूर्ण, वि. १७२१, वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३८-९ (२८ से ३६) = २९, जैदे., ( २६४११, १२x२९). गुणस्थानक टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: ( अपठनीय); अंतिः प्रकटित इत्यर्थः, अपूर्ण. १८३२३. (+) द्रव्यगुणपर्याय रास व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, पठ. सा. अनोपश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५x११, १२४३२-३७), " १. पे नाम, द्रव्यगुणपर्याय रास, पृ. १२-१६आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीगुरु जितविजय मन; अंति: जसविजय बुध जयकरी, ढाल - १७+ कलश, गाथा - २८३. २. पे. नाम संभवजिन स्तवन, पृ. १६ आ. मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मुने संभव जिनशुः अंतिः सुमतिसीस० धारो रे, गाथा- ७. १८३२४. मौनएकादशी कथा व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६५, पौष कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले. स्थल. पाली, प्रले. पं. दिणयरसागर; पठ. सा. गुमानश्री, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, ११X३८). १. पे नाम, मौनएकादशी कथा - बालावबोध, पृ. १आ-८अ मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामीनै; अंति: आराधवाने उजमाल थया. २. पे. नाम. कुमति स्तवन, पृ. ८अ -८आ. मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदिः भवियण पूजा करज्यो रे; अंतिः कहे मुगत तणा फल होय, गाथा- ९. १८३२५. पर्यंत आराधना, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैवे. (२६. ५x११, ११४३३-३७). पर्वताराधना, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि प्रथम इरियावही अंतिः नायव्वो वीरिवायारो १८३२६. अणुत्तरोववाईदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., ( २६११, ११×३७-३९). अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं नवमस्स; अंतिः अवमठ्ठे पण्णत्ते. १८३२७. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५.५X११, १५X४०-४२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि; कल्याणमंदिरमुदारम; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - सौभाग्यमंजरी टीका, सं., गद्य, आदि: (१) भास्वद्रत्नगभस्तिभि ( २ ) किलेति सत्ये एषः; अंतिः कविनास्वनामसूचितम् For Private And Personal Use Only १८३२८. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., मात्र ४४ वां श्लोक अपूर्ण है., जैवे. (२६११, ३४३९-४४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), पूर्ण. भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त जे अमर कहता; अंति: (-), पूर्ण. Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १२९ १८३२९. (+) कर्मग्रंथ १-६, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३९०, जैदे., (२६४११, ११-१२४३६-३८). १. पे. नाम. कर्मविपाक, पृ. १अ-५अ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. ५अ-७आ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व, पृ. ७आ-९आ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२४. ४. पे. नाम. षडसीति चतुर्थकर्मग्रन्थ, पृ. ९आ-१५आ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम. शतक कर्मग्रन्थ, पृ. १५-२२अ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ६. पे. नाम. सप्ततिका सूत्र, पृ. २२अ-२७आ. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगुणा होइ नउइओ, गाथा-९०. १८३३१. विक्रमराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-६३ दुहा-४ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२५४११, ११४२७-३०). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकाशकर; अंति: (-), अपूर्ण. १८३३२. नवकार बालावबोध, पूर्ण, वि. १७३४, भाद्रपद शुक्ल, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१२)=१४, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२५४११, ११४२८-३६). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: बारसगुण अरिहंता; अंति: सुश्रावक सुश्राविका, पूर्ण. १८३३८. नेमिजिन रास, संपूर्ण, वि. १५९३, ज्येष्ठ कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५४११, १६-१९४५३-६३). नेमिजिन प्रबंध रंगरत्नाकर छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४६, आदि: स्मृत्वा श्रीशारदौ; अंति: जय ___ जगजीवन कल्याणकर, खंड-२, ग्रं. ग्रन्था१८३. १८३३९. आउर पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४११, १०४२९-३३). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणम्, गाथा-७०. १८३४०. ईलापुत्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६, पू.वि. गाथा-११३ तक लिखा हैं., जैदे., (२६४११.५, १२-१३४३४-३७). For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धिदाई सदा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८३४१. विचारषत्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२६, भाद्रपद कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५४११.५, १५-१६४३९-४३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं क० नमस्कार; अंति: हितनी करणहारी छे. १८३४४. हैमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू.वि. कांड- ३ श्लोक-५२ तक है., जैदे., (२६४११, १०४२८-३७). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८३४५. (+) दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ५४३२-३५). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: सूरि खमउ तेणं, गाथा-४९. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंति: हुइ ते आचार्य खमायो. १८३४६. (+) पुराण श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(४)=२२, पृ.वि. श्लोक-४२-५५ नही है., प्रले. मु. दानविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ७X३१-३५). पुराणहुंडी, सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्मसर्वस्व; अंति: स एव गोरवरः, श्लोक-२८३+६, पूर्ण. पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म सघलाइं सांभल; अंति: एहवउ जे हुइ ते नर, पूर्ण. १८३४७.(+) होलीका माहात्म्य सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रावण शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. पं. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४११.५, १२-१३४३०-३४). होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: ज्ञानं विकाशय विधेहि; अंति: श्चिरं वाच्यताम्, श्लोक-३४. होलिकापर्व प्रबंध-टबार्थ, मु. कांतिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७९२, आदि: (१)ज्ञानविकाशय क० हे, (२)हे भविन हे प्राणीन; अंति: कात्यादिविजयो लिखत्. १८३४८. वीरजिननिर्वाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२७, माघ कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. भुदरदास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १०x२९-३०). वीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन, म. गणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: श्रीसंघहर्ष वधामणा, गाथा-१२५, ग्रं. २६०. १८३५२. अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८००, माघ शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. नामली, पठ. मु. नरेंद्रविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४-१६४३८-५०). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलइनइ कडावइ हो पाय; अंति: सती रे सिरोमणि गाईयइ, गाथा-१५९. १८३५३. मेरुत्रयोदशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. जामपुर, जैदे., (२६४१२, १३-१५४३३-३७). For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भारतीं; अंति: मुक्तिसाधनं भवति. १८३५४. पांत्रीस बोल, संपूर्ण, वि. १९११, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२५४११.५, १०४३१-३५). ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै गति च्यार; अंति: क्रिया करै एकवीसगुण. १८३५५. षटअट्ठाई स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. गौरीशंकर गोविंदजी भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १०४३१-३४). ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्याद्वाद शुद्धो; अंति: बहु संघ मंगल पाइया, ढाल-९, ग्रं. ८५. १८३५६. कयवन्ना रास, संपूर्ण, वि. १७६६, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. अर्जुनपुर, प्रले. पं. ऋद्धिविजय (गुरु ग. हर्षविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १६-१७४४२-४४). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: (१)पूज्य पूजा दयादानं, (२)स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: जेरंग० फल लीजे रे, ढाल-३१, ग्रं. ५६२. १८३५७. नवरस गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४११, १२४३१-३७). नवरस गीत, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: करी श्रृंगार कोश्या; अंति: कहि० हु जाउ बलिहारी, ढाल-९. १८३५८. दीपावली व्याख्यान, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(२)=१३, जैदे., (२६.५४११.५, १७X४५-४९). दीपावलीपर्व व्याख्यान, पा. मेदचंद्र, सं., गद्य, वि. १८९६, आदि: श्रीनेमीशं जिन; अंति: रम्यं कृतं शुभतराशया, पूर्ण. १८३५९. चंपकश्रेष्ठि कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. छगनलाल अविचलभाई लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १७४४४-४८). चंपकश्रेष्ठि कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: चंपानाम नगरी सौगंधिक; अंति: मोक्षं यास्यति. १८३६०. (+) शालीभद्र व संबप्रद्युम्न रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, २२४६०). १.पे. नाम. शालिभद्रर्षि रास, पृ. १अ-९अ. शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीइं; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ढाल-२९, गाथा-५२१. २. पे. नाम. सांब प्रद्युम्न प्रबंध, पृ. ९अ-१८अ. सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: पभणइ संघ सुजस जगीस ए, खंड-२, ढाल २२, गाथा-५४९. १८३६१. कलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १६६६, माघ कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(२ से ३)=४, पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से ४३ तक नहीं है., प्रले. मु. वछराज (नागपूरीतपागच्छ); पठ. श्रावि. रंभा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४३८). कलावतीसती चौपाई, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १५८०, आदि: वीर जिणेसर पयनमी; अंति: भुवनकीर्ति० मन गहगहइ, गाथा-८९, अपूर्ण. १८३६२. योगशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रकाश २ गाथा ९ पर्यंत., पठ. मु. राजसागर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४४६-४९). For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), अपूर्ण. योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य जिनसिद्धादीन, (२)हिवडां श्रीमहावीरना; अंति: (-), अपूर्ण. १८३६३. हरीबलऋषि चौपाई, पूर्ण, वि. १७८२, फाल्गुन शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(२)=२९, ले.स्थल. समीनगर, प्रले. ग. मोहनविजय; पठ. ग. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, जैदे., (२५४११, १५४४०-४७). हरिबलऋषी चोपड़, मु. जितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदाई समरु सदा; अंति: जीतविजय० पासो रे, ढाल-३१, गाथा-८६१, ग्रं. ११३५, पूर्ण. १८३६४. नेमिजिन रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.६, जैदे., (२६.५४१०.५, १५४६४-७६). नेमिजिन रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४६, आदि: स्मृत्वा सारदां देवी; अंति: जय जगजीवन कल्याणकर, खंड-२. १८३६६. (+) गाथाकोश, संपूर्ण, वि. १५५६, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. पत्तननगर, लिख. ग. पद्मवल्लभ (खरतरगछ); पठ. श्रावि. हसाई इसर शा; राज्ये गच्छा. जिनहससूरि (गुरु आ. जिनसमुद्रसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११४३५-४१). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भांडागारिक, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जिणंतु जंतु सिवं, गाथा-१६१. १८३६८.(+) सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८७४, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. स्वणेगढ, प्रले. मु. न्यालचंद (गुरु मु. भीमविजय पं.), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ११-१३४२९-३२). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: तेइ मोक्षसाधि जि केइ, वर्ग-४. १८३६९. (+) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १७४७, श्रेष्ठ, पृ. ५७-३(५० से ५२)+१(२१)=५५, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११, ११-१९४४६-५३). चंद्रराजारास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक समरीइं; अंति: ते पामे शिवसुख लील, खंड-६, १०३ ढाल, गाथा-२५०५, ग्रं. ३०५५, अपूर्ण. १८३७०. महाबलमलयसुंदरी रास, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२-१(१)=८१, जैदे., (२६४११, १५४४५-४९). मलयासुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: (-); अंति: ढाल एकागुंकीधी रे, खंड-४, ढाल-९१, पूर्ण. १८३७२. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८५५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले.स्थल. जालौरदुर्ग, प्रले. मु. विश्वानंद ऋषि (गुरु मु. महानंद ऋषि); पठ. मु. अजबचंद ऋषि (गुरु मु. विश्वानंद ऋषि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, जैदे., (२६४११, १५४५२-५७). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७. १८३७४. कयवंनासाधु चौपड़, संपूर्ण, वि. १८८५, वैशाख कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. गुढाकेसरसिंघ, प्रले. मु. जोधराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३-१४४३१-३७). For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org १३३ कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंतिः विकसे धरमरो मन उलसि, बाल- ३१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८३७५. गौतमपृच्छा सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा- ४३ तक है., जैवे., (२५.५X११, १३x२८-३७). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तित्थनाहं; अंति: (-), अपूर्ण. गौतमपृच्छा- टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: (१) वीरजिनं प्रणम्यादौ, (२) नत्वा तीर्थनाथं जान; अंति: (-), अपूर्ण. १८३०६. आनंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे. (२६४११, १४-१६४३५-४१). आनंदश्रावक संघ, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदिः कर्द्धमान जिनवर चरण; अंतिः पभणड़ मुनि श्रीसार, ढाल- १५. १८३७७. (+) संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८४८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. बेनातट, प्रले. ऋ. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २५X११, १२ - १३x३२-३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउ अरिहंताई ठिङ; अंतिः जा वीरजिण तित्वं, गाथा - २८३. १८३०८. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७१७, भाद्रपद शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल, खंभातबंदीर, प्र. ग. जीतविजय (गुरुग. रंगविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५. ५x११.५, ३X२९-३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मांगलिक्यनउ निकेतन; अंति: किसु मोक्ष सुख पामि. १८३७९, (+) अध्यात्मगीता व श्लोक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, ले. स्थल, जेसेलमेरदुर्ग, प्रले. मु. चतुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.५५११.५, ३-४X३०-३६). १. पे. नाम. अध्यात्मगीता सह टवार्थ, पृ. १आ- १४आ. अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमियै विश्वहित; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा- ४९. अध्यात्मगीता-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमियै कहतां अहो; अंतिः इतरे अर्थथी संपूर्ण. २. पे. नाम. वक्ता-श्रोतागुणश्लोक, पृ. १४आ-१५अ. वक्ता श्रोतागुण श्लोक, सं., पद्य, आदि: वाग्मी व्याससमासवित्; अंतिः प्रशस्या सदा, श्लोक-२. - वक्ता श्रोतागुण लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (१) अथ वक्तागुणावाम्मी, (२) पंडित मीठी वाणी बोली; अंति: देवता पिण वखाणे छे. १८३८३. उत्तराध्ययनसूत्र सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १८३२, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३३०, ले. स्थल भूज, प्रले. पं. अमृतधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १५ - १६x४६-५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८, आदि: अर्हतो ज्ञानभाजः; अंति: (१) महतामपीत्युक्ते:, (२) बोधाय सुदीपिकेयम्, ग्रं. १५३००, For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८३८४. नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदे., (२६४११.५, १-७४२५-४५). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाइं नामाई. नंदीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी कहता आणंदनो; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. टबार्थ पत्र ६५-अ तक है।) १८३८५.(+) पण्णवणासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१५, आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३२७, ले.स्थल. देशणोक, प्रले. मु. लब्धिकमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. २४०००, जैदे., (२५.५४११, ७X४४-५३). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगयज; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, ग्रं. ७७८७. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: सुख पाम्या छइ, ग्रं. १६०००. १८३८६. (+) भरहेसरवृत्ति, अपूर्ण, वि. १६९९, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३००-१५२(१ से १७,१०४,१३८ से २०१,२०३ से २०६,२२८ से २९३)=१४८, ले.स्थल. कालूपूर, प्रले. जगनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष १८१५ भी लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३८-४४). भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदि: (-); अंति: तमोर्हदादिसाक्षिकम्, अध्याय-२, अपूर्ण. १८३८७. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०३, माघ शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १५५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५५००, जैदे., (२५४११, ५-६४३३-३९). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताण तेण; अंति: पस्से पस्सावणीए णमो, ग्रं. २२२०. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो अरिहंत; अंति: तेह भणी नमस्कार थाओ, ग्रं. ३२८१. १८३८८. कर्मग्रंथ १-६ सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २९२, कुल पे. ६, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, १-३४६-३६). १.पे. नाम. कर्मविपाक सह वृत्ति, पृ. १आ-३८अ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: दिनेशवद्ध्यानवर; अंति: सर्वोपि तेन जनः, ग्रं. १८८२. २.पे. नाम. कर्मस्तव सह वृत्ति, पृ. ३८अ-५६आ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: बंधोदयोदीरण सत्पदस्थ; अंति: त्रुट्यंतु जगतोपि, ग्रं. ८२०. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह वृत्ति, पृ. ५७अ-६५आ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: सम्वग्बंधस्वामित्व अंति: (१) देशद्वारेण भणनात्, (२)रतोलेख्यवचूर्णिका, ग्रं. ४२०. ४. पे नाम, षडशीति सह टीका, प्र. ६५आ-१२३आ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा -८६. - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षडशीति नव्य कर्मग्रंथ स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (१) यद्भाषितार्थलवमाप्य, (२) जिनं नत्वा जीवस्थाना; अंति: विचारणाचतुरः ग्रं. २८००. , ५. पे. नाम. शतक सह टीका, पृ. १२४अ-२१३ आ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं ध्रुवबंधोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणड्डा, गाथा - १००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविना; अंति: सर्वोपि तेन जनः, ग्रं. ४३४०. ६. पे. नाम. सत्तरी सह टीका, पृ. २१४अ - २९२ आ. सत्तरी कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्वं; अति: एगूणा होइ नवईड, गाथा - ९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ - टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: अशेषकर्माशतमः समूह; अंति: ( १ ) शिष्येभ्यः कथयंतु, (२)धर्मं परममंगलम्, ग्रं. ३८८०. १८३८९. अष्टप्रकारी पूजा रास, संपूर्ण, वि. १८६५, वैशाख कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९४, ले. स्थल. खैरवानगर, प्रले. मु. क्षमासौभाग्य ( गुरु ग. रामसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २५X११, १२-१४x२६-४९). १३५ संपति० अष्ट प्रकारी पूजा रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: अजर अमर अविनाश जे; अंति: सुख पाया रे, ढाल - ७८. १८३९०. (+) कर्मग्रंथ १-५ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, आश्विन शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८७, कुल पे. ५, ले. स्थल, भुजनगर, प्रले, ऋ, वालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जै... (२६.५४११.५, २-१५X३३-५०). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १आ-१६अ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं बंदिय; अंतिः लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ + बावावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीरं; अंति: देवेंद्रसूरीए लख्यो. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टवार्थ, पृ. १६ अ-२५. For Private And Personal Use Only कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तथा तिणे प्रकारे; अंति: करो ते महावीर प्र... ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २५अ - ३१आ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि; बंधविहाणविमुखं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोडं, गाथा - २४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवप्रदेशनी साथे; अंति: तेहने अनुसारे जाणवु. Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ३१आ-५४आ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिननें नमस्कार करीने; अंति: देवेन्द्रन्यासको. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ५४आ-८७अ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिन प्रते नमस्कार; अंति: संभारवाने अर्थे. १८३९१. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६३-१७८(१ से १७८)=२८५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., १३८ शतक व १९२५ उद्देश है।, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०-४६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८३९२. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. १७९७, माघ कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६८-३(१,१९ से २०)=१६५, ले.स्थल. वणोद्र, प्रले. पं. शांतिविजय (गुरु ग. कृष्णविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२५.५४११, ३-१६४३३-४१). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, पूर्ण. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: (-); अंति: देवता ते पण सांभले, पूर्ण. १८३९४. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थव पद, संपूर्ण, वि. १६६४, वैशाख कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५, कुल पे. २, ले.स्थल. दीव, प्रले. धनजी पटीणी; पठ. मु. गुणराज ऋषि; लिख. मु. मंगल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ६४२९-३३). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-५५अ. दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, __ अध्ययन-१०, चूलिका २. दशवकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० जीवनइ दुर्गति; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा बीच-बीच व अंत में टबार्थ नही लिखा गया है.) २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५५आ. कबीर, पुहि., पद्य, आदि: थाकी रे नयण मएणगत; अंति: कबीर० ढारी जाण पासा. १८३९५. (+) राजप्रश्नीय सूत्र, संपूर्ण, वि. १६७१, वैशाख शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७८, ले.स्थल. मांगलपूर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ११-१४४२५-४१). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताणं० तेणं; अंति: पस्से पस्सावणीए णमो, ग्रं. २१००. १८३९६. सुक्तावली सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २३६, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. मु. जसराज (गुरु मु. वेलजी ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि.प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, जैदे., (२५.५४१२, १६-१८४३८-४७). For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १३७ सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: (१)मोक्ष साधै जि कोई, (२)केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४. सूक्तमाला-टबार्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८२७, आदि: सघलि पुण्य रुप वेलनी; अंति: ग्रंथ कीधो केशरवि. सूक्तमाला-कथा, मु. धर्मविजय, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रणमी सद्गुरु शारदा; अंति: संवाच्यमानाचिर. १८३९७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४-५४२९-३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सं० बाह्यअभ्यंतर; अंति: तुज प्रते कहुं छु. १८३९८. (+) उववाईसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३-१(२२)=९२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४०००, जैदे., (२६४११.५, ५-९४३०-३५). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, पूर्ण. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मु. राजचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वंदित्वा श्रीजिनं, (२)तेणइ कालि अवसर्पिणीन; अंति: सुख पाम्या थका, पूर्ण. १८३९९. सीताराम चौपाई, पूर्ण, वि. १९२३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०६-१(१)=१०५, ले.स्थल. सेवलीपेठ, प्रले. पं. कपूरचंद्र यती (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १३४३६-४३). रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: (-); अंति: आणंद कोडी कल्याणो रे, खंड-९, पूर्ण. १८४००. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, ले.स्थल. विह्नातट, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ४-६x४६-५१). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: में एहवो सांभल्यो हे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८४०१. आचारांगसूत्र सह टबार्थ-द्वितीयश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १९३२, पौष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १०६, ले.स्थल. पल्लीका, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण; पठ. श्राव. तेजमाल शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पन्ने १-७४ और १-३२ इस प्रकार १०६ है, पीछे के १ से ३२ पेज बाद के लिखे है., जैदे., (२६.५४११.५, ४-६x४०-४५). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चंति त्तिबेमि, प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रते ए अर्थ भाष्या, प्रतिपूर्ण. १८४०२. सम्यक्त्व कौमुदी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९२१, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११५, जैदे., (२५.५४१२, १५४३४-४२). सम्यक्त्वकौमुदी चौपाई, मु. आलमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: वीर जिणेसर चरण युग; अंति: आस्या सहूं सिद्धि जी, खंड-६, ग्रं. ५५००. १८४०३. नंदीसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२७४१२, १३-१४४३१-३९). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदीसूत्र - टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति भुवनैकभानुः; अंति: (-), अपूर्ण. १८४०४. ढालसागर हरिवंशप्रबंध, संपूर्ण, वि. १९३८, आश्विन कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १५२, ले. स्थल. उजीण, प्रले. श्राव. बगतावरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (३३४) पढण गुणन कुं पुस्तका, जैदे., (२५.५X१२, १५x२९-४१). ढालसागर, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: जंपे संघ रंग धामणो, खंड - ९, ढाल १५१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४०५. (+) शीलवती रास, पूर्ण, वि. १८४८, कार्तिक कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७१ - १ (१) = ७०, ले. स्थल. धमडका, प्रले. ग. गलालविजय (गुरु मु. लालविजय, तपागच्छ); राज्ये गच्छा. जिनचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. लो. (६१४) यासं पुस्तकं दृष्टा, जैवे. (२६.५x१२, १६-१८४३०-३८). शीलवती रास, मु. नेमीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५०, आदि: (-); अंति: नेमविजय० पद पायो हें, खंड-६, पूर्ण. १८४०६. (+) समरादित्यकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २६२, ले. स्थल. विक्रमपूर, प्रले. ताणीमंगूमल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६.५x१२.५, १४४४०-४४). " समरादित्यकेवली चरित्र, वा. क्षमाकल्याण; पंन्या. सुमतिवर्धन, सं., प+ग, वि. १७७४, आदि: श्रीमंतं परमात्मतापद अंति: (१) वर्द्धनं कृतं मिति, (२) मिथ्यादुष्कृतं भवतु, अध्याय-९, ग्रं. १००००, १८४०८. (+) श्रीपालचरित्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७६, आषाढ़ शुक्ल, ५, रविवार श्रेष्ठ, पृ. १३६+१ (४८) -१३७, ले. स्थल, लखणे, प्रले, मु. केसर ( पाससूरिगछ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३८००, जैदे., (२५X१२.५, ६-७X२८-३८). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वाइज्जंता कहा एसा, गाथा - १३४०, ग्रं. १६७४, (वि. १८७६, प्रले. पं. रंगविजय) सिरसिरवाल कहा- वार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंतादिक नवपद; अंतिः कथा या प्रवर्ती, (वि. १८७६, प्रले. सा. केसर (पार्श्वसूरिंगच्छ)) १८४०९. दशवैकालीकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०३, जैवे. (२७४१३, ३-४x२४-२९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि; अंतिः गई ति बेमि, अध्ययन- १०. दशवैकालिकसूत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरूपीओ मंगलिक; अंतिः कहे शिष्य प्रत ए. १८४११. जिनअष्टोत्तर नामावली, चौबीसजिन पूजा व काजल विधि, पूर्ण, वि. १८६५-१९६९, मध्यम, पृ. ९१-१ ( १ ) - ९०, कुल पे. ४, प्रले. केदार ब्राह्मण, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, जैदे., ( २४४१३, ८-१३X२२-३०). १. पे. नाम. जिनअष्टोत्तर नामावली, पृ. २अ - ४अ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., एक से छ नाम नहीं है. रामचंद्र, सं., गद्य, आदि (-); अंति: पावे मोक्ष निदान, पूर्ण. २. पे. नाम. चौवीसतीर्थंकरजी की पूजा, पृ. ४अ-८अ. २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा, रामचंद्र, पुहिं., प+ग, आदि: वृषभआदि अंति वीर अंति: रामचंद्र शिवतिय बरई ३. पे नाम, वृषभनाथ आदि प्रत्येकप्रत्येकजिन अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ८अ ९०आ, वि. १८६५, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, बुधवार, पे. वि. प्रत्येक जिन की अष्टप्रकारी पूजा के अंत में पंचकल्याणक के दोहे भी हैं. For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १३९ २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा-प्रत्येकजिनभिन्नभिन्न, रामचंद्र, पुहिं., प+ग., आदि: सुषमदखम थिति मेटी; अंति: कीर्ति जग विस्तरै. ४. पे. नाम. काजलनेत्रांजन विधि, पृ. ९१अ-९१आ, वि. १९६९, कार्तिक कृष्ण, १३. औषधवैद्यक संग्रह*, सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८४१२. कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रावण कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८५, ले.स्थल. जारडा, प्रले. मु. प्रतापहर्ष (गुरु पंन्या. नाथुहर्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (४६६) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२६४१३, १५४३२-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं तेणं; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: ॐकारबिंदुसंयुक्तं; अंति: तो सर्वप्रमाण चढे. १८४१३. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११८, प्रले. मु. महिमाविजय (गुरु मु. हीरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, ४-१३४२३-२८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कलपवेलि ___कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४. १८४१४. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथा, संपूर्ण, वि. १९४०, आषाढ़ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १८६, जैदे., (२५४१२, २-१८४३६-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमहावीरने वारे, (२)संजोग बि प्रकारे; अंति: तुज प्रते कहुं छु. १८४१५. (+) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९३२, कार्तिक शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २४५-११(३ से १३)=२३४, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. ऋ. फूलचंद (लूकानागौरीगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १६०००, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४१२.५, ७-९४३०-४०). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० णमो; अंति: सव्वजीवा पण्णत्ता, प्रतिपत्ति-१०, ग्रं. ५७००, पूर्ण. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७२, आदि: (१)प्रणम्य ज्ञानविज्ञान, (२)अरिहतने नमस्कार; अंति: वार्ता संपूर्ण थइ, ग्रं. ९७००, पूर्ण. १८४१६. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १६, जैदे., (२४.५४१२, १३४३७). १. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ. सीमंधरजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १आ-२अ. सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ. सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन; अंति: नवत् नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. अष्टमीतप स्तुति, पृ. २अ-२आ. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: ते संति कल्याणदाता, गाथा-४. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, पृ. २आ. अर्बुदाचलमंडन आदिजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: वरमुक्तियहार सुतार; अंति: सुहाणि कुणे सुसया, गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, पृ. २आ-३अ. सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पलबंध, पृ. ३अ. सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योतिर; अंति: सद्बुद्धिं वैदुष्यं, श्लोक-४. ९.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ. ____ सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. १०. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ३आ. सं., पद्य, आदि: अविरल कवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. १२. पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. १३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ४आ. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडण; अंति: सूरि तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४. १४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ४आ-५अ. ___ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. १५. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ५अ. __ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनार सिहरि पर नेमि; अंति: आस फले सुजगीस, गाथा-४. १६. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. ५अ-५आ. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वसुपूज्य नरेश्वर मात; अंति: जिनहरषै० सौख्यनिधान, गाथा-४. १८४१७. (+) चैत्यवंदन संग्रह व पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, १२४३७-३९). १. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमां जिनवर शांति; अंति: लहिए क्रोड कल्याण, गाथा-३. २. पे. नाम. सिद्धाचलतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान; अंति: पद्मविजय सुविहितकरम्, श्लोक-८. ३. पे. नाम. सिद्धाचलतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ. For Private And Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय सिद्ध; अंति: वंदता दुख जावै दूर, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरु; अंति: थकी लहीये अविचल ठाण, गाथा-३. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर परमातमा; अंति: शुभ वांछित फळ लीध, गाथा-९. ६. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ. उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. ७. पे. नाम. बीजतिथीनुं चैत्यवंदन, प्र. २आ-३अ. __ बीजतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दुविध धर्म जिणे; अंति: मने नमता होय सुख खाण, गाथा-७. ८. पे. नाम. ज्ञानपंचमीनु चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा वीर; अंति: रंगविजय लहो सार, गाथा-९. ९. पे. नाम. ज्ञानपंचमीनु चैत्यवंदन, पृ. ३आ. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: केवल लक्ष्मी निधान, गाथा-९. १०. पे. नाम. अष्टमीनुं चैत्यवंदन, पृ. ३आ-४अ. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महा सुदी आठमने दिने; अंति: सेव्याथी सिव वास, गाथा-७. ११. पे. नाम. एकादसीनु चैत्यवंदन, पृ. ४अ-४आ. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजी प्रभु; अंति: शासने सफल करो अवतार, गाथा-९. १२. पे. नाम. वीसथानक चैत्यवंदन, पृ. ४आ. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेले पद अरिहंत नमुं; अंति: नमतां होय सुख खाणी, गाथा-५. १३. पे. नाम. जीनराजनो चैत्यवंदन, पृ. ४आ-५अ. साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीजिनराज आज; अंति: मल्यो भवजल पार उतार, गाथा-६. १४. पे. नाम. पंचतिरथर्नु चैत्यवंदन, पृ. ५अ. पांचतीर्थ चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: आज देव अरिहंत नमुं; अंति: रिषभ कहे० मननी आस, गाथा-५. १५. पे. नाम. पंचपरमेष्टीनं चैत्यवंदन. प. ५अ. पंचपरमेष्ठिगुणगर्भितजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बार गुण अरिहंतदेव; अंति: नय प्रणमे नितसार, गाथा-३. १६. पे. नाम. पर्युसणवर्व- चैत्यवंदन, पृ. ५अ-५आ. For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी वदित, गाथा-३. १७. पे. नाम. पर्युसणपर्वतुं चैत्यवंदन, पृ. ५आ-६अ. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकलपर्व शृंगारहार; अंति:प्रमोद० जय जयकार, गाथा-१३. १८. पे. नाम. पुंडरीकस्वामी चैत्यवंदन, पृ. ६अ. पुंडरिकस्वामि चैत्यवंदन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिश्वर जिनरायनो; अंति: नाम दान सुखकंद, गाथा-३. १९. पे. नाम. समकीतभवगणत्रीनुं चैत्यवंदन, पृ. ६अ. भवसंख्यागर्भित चौबीसजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर तणा; अंति: तणो ज्ञानविमल गुणगेह, गाथा-३. २०. पे. नाम. चोवीसजिनवरणर्नु चैत्यवंदन, पृ. ६अ-६आ. २४ जिनवर्णगर्भित चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभने वासपूज्य; अंति: तणो नय वंदे निसदीस, गाथा-३. २१. पे. नाम. सांतिनाथजीर्नु चैत्यवंदन, पृ. ६आ. शांतिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर सोलमा अच; अंति: दीठे परम कल्याण, गाथा-३. २२. पे. नाम. नेमीनाथनुं चैत्यवंदन, पृ. ६आ. नेमिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिनाथ बावीसमा; अंति: पद्मने० अविचल स्थान, गाथा-३. २३. पे. नाम. पार्श्वजिननु चैत्यवंदन, पृ. ६आ-७अ. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आशा पूरे प्रभु पासजी; अंति: गया नमतां सुख निरधार, गाथा-३. २४. पे. नाम. वर्धमानस्वामीनं चैत्यवंदन, पृ. ७अ. महावीरजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ सुत वंदिये; अंति: पद्मविजय विख्यात, गाथा-३. २५. पे. नाम. परमात्मानुचैत्यवंदन, पृ. ७अ. साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: परमेश्वर परमात्मा; अंति: चिदानंद सुख थाय, गाथा-३. २६. पे. नाम. वीसस्थानकना काउसग्गनुं चैत्यवंदन, पृ. ७अ-७आ. २० स्थानकतप काउसग्ग चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस पन्नर; अंति: नमी निज कारज साधे, गाथा-५. २७. पे. नाम. रोहणीतपर्नु चैत्यवंदन, पृ. ७आ. रोहिणीतप चैत्यवंदन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रोहिणी तप आराधीए; अंति: करो जिम होय भवनो छेद, गाथा-६. For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org २८. पे. नाम. वीचरताजीननुं चैत्यवंदन, पृ. ७आ-८अ. सीमंधरप्रमुखजिन चैत्यवंदन, मु. महोदय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रमुख नमु; अंतिः महोदय पद दातार, गाथा - ९. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९. पे. नाम. चउदसेबावनगणधरनुं चैत्यवंदन, पृ. ८अ - ८आ. १४५२ गणधर चैत्यवंदन, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि गणधर चोराशी कह्या; अंतिः वंदन जब लग घटमां सास. ३०. पे नाम. संखेश्वरपार्श्वजिन छंद, प्र. ८आ. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंतिः पास संखेसरो आप तूठा, गाथा - ७. १८४१८. अवंतीसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१२.५, ११४२६-३१). अवंतीसुकुमाल तेर ढालिबुं, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: पास जिनेसर सेवीये; अंतिः शांतिहरख सुख पावे रे, ढाल - १३. १४३ १८४१९. (+) स्तवन-पद-प्रभाती बधाई - रेकता स्तोत्र होरी सझाय- केरवो लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९१९, पौष कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २५, ले. स्थल. पूर्णानगर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय; पठ. मु. गुलाबचंद (गुरु पं. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५X१२.५, १२४३७-४२). १. पे नाम. शत्रुंजयउद्धार स्तवन, पृ. १-१ आ. शत्रुंजयतीर्थउद्धार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिके उद्धारज; अंति: वाचक जसनी वाणी हो, गाथा - १०. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. खीमारतन, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचल गिरि भेट्या; अंतिः रतन प्रभु प्यारा रे, गाथा - ५. ३. पे नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ-२अ. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सिद्धगिरि ध्वायो; अंति: ज्ञानविमल० गुण गावे, गाथा- ७. - ४. पे नाम, शत्रुंजय प्रभाती, पृ. २अ. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालोने प्रीतमजी; अंतिः दानवीजे० ए समर लेइए, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन प्रभाती, पृ. २अ-२ आ. मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदिः उठोने मोरा आतमराम; अंति: भाग्यउदय० वधाइ रे, गाथा - ५. ६. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन पद, पृ. २आ. पार्श्वजिन पद- शंखेश्वर, मु. वीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अजब जोत मेरे प्रभु; अंति: वीरवीजय० मेरे मनकी, गाथा - ३. For Private And Personal Use Only ७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, पृ. २आ - ३अ. पार्श्वजिन पद, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासकि पासकि पासकि; अंतिः प्रभुसु लागी आसकी, गाथा ४. Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन पद, पृ. ३अ, पे.वि. प्रतिलेखक ने कर्तानाम में भानुचंद की जगह भाणचंद लिखा है. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. भानुचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज मे प्रभुजीको दरसण; अंति: अधिक आणंद पायौ, गाथा-३. ९. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. ३अ. सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मुजरा साहेब मुजरा; अंति: दास नीरंजन केरा रे, गाथा-३. १०. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ३अ. पुहि., पद्य, आदि: एक ध्यान संतजी का; अंति: शीवनारी वर वरणा, गाथा-४. ११. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन पद, पृ. ३अ-३आ. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कृपा करो ने गोडिपास; अंति: रूपचंद जावे बलीहारी, गाथा-४. १२. पे. नाम. नेमराजुल रेकता, पृ. ३आ. नेमराजिमती रेकता, मु. चंदविजय, पुहि., पद्य, आदि: राजुल पुकारे नेम; अंति: तमारे चरणे खडी रे, गाथा-५. १३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ-४अ. मु. मेघ, मा.गु., पद्य, आदि: नीप प्रतें नाम जप; अंति: मेघ० कोइ बुझे, गाथा-७. १४. पे. नाम. जिनपंचकप्रभाती स्तवन, पृ. ४अ-४आ. वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेश्वरा परम; अंति: उदय कीर्ति भणतां, गाथा-७. १५. पे. नाम. भीडभंजनपार्श्वजिन पद, पृ. ४आ. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, मु. उदय, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: श्रीभीडभंजन प्रभु; अंति: उदय० नाथजी हाथ सोयो, गाथा-५. १६. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. ५अ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ. सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु; अंति: पार्श्वजिनं शिवदम, श्लोक-७. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ. क. धर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: ऊगौ धन दिन आज सफले; अंति: कवि धर्मसी कहे री, गाथा-७. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६अ. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: नित नमीये पारसनाथजी; अंति: एह अनाथांनाथजी, गाथा-३. २०. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ६अ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अंगन कल्प फल्योरी; अंति: समयसुंदर० सोहिलो री, गाथा-३. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६आ. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मेरै पास प्रभु के; अंति: निरख्यो नवल वसंत, गाथा-४. २२. पे. नाम. आत्महितशिक्षा सज्झाय, पृ. ६आ. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी साथें जो; अंति: उदयरतन इम बोले रे, गाथा-६. For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org (-) २३. पे नाम. सम्मेतशिखर स्तवन, पृ. ७अ. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि हुं तो जाउं रे सिखर अंतिः पभणे श्रीजिनचंद रे, गाथा-७२४. पे. नाम. पुरिसादानीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ. पार्श्वजिन स्तवन- पुरिसादानी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदिः सुखकारी हो साहिब; अंतिः सेवक जाणी कृपा करो, गाथा-४. १८४२०. प्र. वि. २५. पे. नाम. भुजमंडनशांतिजिन स्तवन, पृ. ७आ. शांतिजिन स्तवन- भुजनगर, आ. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्म, आदि: हारे हुं तो गइती; अंतिः जिनलाभ० सुख करू रे लो, गाथा ५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सज्झाय, स्तुति, बारमासो, चौडालीयासंग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. १०, अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५X१२.५, १५-१६x२७-३१). १. पे. नाम. श्रावक करणी सज्झाय, पृ. १अ - २आ. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहरक० दुख हरणी छय २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३ आ. मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: गर्भावासे न अवतरे. ३. पे नाम, सिचियामाता छंद, पृ. ४-४आ. आ. सिद्धसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मुज मन आस्था अज फली; अंति: सिद्धसूरि प्रसन सही. ४. पे नाम, नेमिजिन वारमासो, पृ. ५अ-५ आ. मु. ललितसागर, मा.गु., पद्म, वि. १७२२, आदि: अरज सुणी मोरी साहबा अंति: ललित० पुरी बंछित आस, गाथा - १५. ५. पे नाम, बारमासो, प्र. ६२-६आ. मा.गु., पद्य, आदि आया मास असाद धूरा; अंतिः सर सर पर लवणी, ६. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. ७अ ७आ. मा.गु., पद्य, आदि: राजुल सहीयन इम कहथ; अंतिः भावसु कतीयन तम वांदु ७. पे नाम, जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, पृ. ८अ ११ आ. १४५ रा., पद्य, आदि: अनंत सिद्ध आगे हुवा; अंति: महाविदेह० मोक्ष जासी, ढाल-४. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११ आ-१२ आ. मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि मन मोहनगारो स्वाम सह; अंति: सहीज० सफल आपणो करजी, गाथा- १०. ९. पे नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १३-१४अ. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सेजे विचरता; अंति: दुधडो रहा सोनारा ठाम, गाथा-२०. १०. पे नाम, माताजी स्तुतिसंग्रह, पृ. १४-१५ आ. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगणपत सुख कद नीत; अंति: वीनती सुख संपत करी. १८४२१. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. १७, जैदे., ( २४१२, १३X३३-३९). १. पे नाम, महावीरजिन स्तवन- पंचकल्याणक प्र. १ आ-४अ. " For Private And Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३. २. पे. नाम. चौविसदंडकविचार स्तवन, पृ. ४अ-६अ. चोवीसदंडक स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: आदरि जिव क्षिमा गुण; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ३. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. ६अ-७आ. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथ नंदन नमुं; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ४. पे. नाम. सिद्धचक्रतपस्तवन, पृ. ७आ-८अ. सिद्धचक्र स्तवन, वा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६५१, आदि: भारती भगवति पाय नमी; अंति: विनय सिद्ध जाण, गाथा-१४. ५. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ८अ-१०अ. मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन शुद्धे अंति: धरमराग मन मे धरी, ढाल-५. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: श्रीनेमीश्वर वंदीयै; अंति: अंबिका सानिध करी, गाथा-१३. ७. पे. नाम. पजुसण स्तवन, पृ. ११अ-१२आ. पर्युषणपर्वविधि स्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पास जिणंदा; अंति: जपे हेम सोभाग हो, गाथा-३७. ८. पे. नाम. अष्टमीरो स्तवन, पृ. १२आ-१४अ. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिनेसर; अंति: प्रगट ग्यान प्रकाश, ढाल-३, गाथा-२५. ९. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १४अ-१५आ. पंन्या. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुं सदा; अंति: संघने कोड कल्याण रे. १०. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. १५आ-१७आ. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासण देवता सामणीए; अंति: हिव सकल मन आसा फली, गाथा-२६. ११. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १७आ-१८आ. शांतिजिन स्तवन, म. भावसागर, मा.ग., पद्य, आदि: सेवा शांति जिणेसरकी; अंति: मंगलकारी बेलो अहो. गाथा-१५. १२. पे. नाम. उपधानतपस्तवन, पृ. १८आ-१९आ. उपधान स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर धरम; अंति: भणै वंछिय सुखकरो, ढाल-३, गाथा-१७. १३. पे. नाम. पाक्षिकतपवृद्ध स्तवन, पृ. १९आ-२०आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुद्वीप सोहामणो; अंति: पभणे पूरो मनह जगीस, गाथा-१४. For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १४७ १४. पे. नाम. पर्युषणपर्व सज्झाय, पृ. २०आ-२१अ. मु. फतेसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वरस दिवसमांसार; अंति: सीव सुख आराधसी, गाथा-७. १५. पे. नाम. पौषधविधि स्तवन, पृ. २१अ-२३आ. पोसोयणविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: जेसलमेर नगर भलो जिहा; अंति: हो समयसुंदर भणई सीस, ढाल-५. १६. पे. नाम. सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, पृ. २३आ-२४आ. मु. कनककीर्ति शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो ध्यान धरीजे; अंति: कोइ न तोले हो, गाथा-१५. १७. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २४आ-२५अ. सीमंधरजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: श्रीसीमधर स्वाम हो; अंति: इम वीनवे महारा लाल, गाथा-११. १८४२२. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., मात्र अंतिम दो गाथा नहीं है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ३४२८-३१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: (-), पूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते चरण युगल केहवा; अंति: (-), पूर्ण. १८४२३. जंबू चरित्र व पद, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्रले. य. पूर्णानंद यति (गुरु मु. ताराचंदजी, चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१३, १५४३६-४१). १. पे. नाम. जंबूस्वामी रास, पृ. १आ-८आ. श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १५२२, आदि: गोयम गणहर पय नमी; अंति: दीपे सरस्यै तेहनां, गाथा-१८५. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८आ. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान भाण भयो भोर मे; अंति: आनंदघन० ओर न लाख करो, गाथा-३. १८४२४. सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२३.५४१३, ११४२४-२६). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुनि, ढाल-६, गाथा-४९. १८४२५. चौवीस दंडक ओगंत्रीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२४४१३, १४-१५४४२-४४). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: अनंतगुणा० कहिवाई. १८४२६. (+) छंद व वीस स्थानक पद काउसग्ग संख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. कडी, प्रले. मु. सौभाग्यसागर (गुरु मु. तेजसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२४४१३, ११४२९-३२). १. पे. नाम. चौवीसजिन छंद, पृ. १अ-५अ. मु. सौभाग्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: बह्माणि सुता वाणि; अंति: सौभाग्य० भणो नरनारि, गाथा-२८. २. पे. नाम. वीसस्थानकपद काउसग्गसंख्या, पृ. ५आ. २० स्थानकपद काउसग्ग संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं लोगस्स; अंति: नमोतिथस्स लो ५, अंक-२०. For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८४२७. (#) चौपाई, चौढालिया आदि संग्रह, पूर्ण, वि. १९१९, भाद्रपद शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४७-२(१ से २)=४५, कुल पे. २७, ले.स्थल. नागोर, प्रले. रामरतन जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, २१-२२४४५-५४). १. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. ३अ-७अ. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच इरव जाण; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३. २. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल रास, पृ. ७अ-९अ. अयवंतीसुकुमाल चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंति: शांतिहरख सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०७. ३. पे. नाम. शिलाधिकारे रतनकवर सज्झाय, पृ. ९अ-१०अ. रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण आगला रे; अंति: उपे जिम तंबोल, गाथा-४२. ४. पे. नाम. झाझरियामुनि सज्झाय, पृ. १०अ-११अ. मु. भावरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे सीस नमावि; अंति: इम सांभलतां आणंदे के, ढाल-४. ५. पे. नाम. संजतीरास चौढालियो. प.११अ-१२अ संयतीराजा चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: चरम जिनेस्वर पाय नमी; अंति: सफल हो कीयो अवतार, ढाल-४. ६. पे. नाम. कोणिक चोपाई, पृ. १२अ-१६अ. कोणिक चौपाई, मा.ग., पद्य, आदि: लोभ म कर रे जीवडा; अंति: जुं पामो सुख रसाल, ढाल-१७. ७. पे. नाम. भीमसेनचंद्रावती चौढालियो, पृ. १६अ-१७अ. मा.गु., पद्य, आदि: एक मुनी आगल थयो तीणै; अंति: मनमाही ज वात राखै, ढाल-४. ८. पे. नाम. श्रीमतिसती सज्झाय, पृ. १७अ-१७आ. मु. नरसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: (१)श्रीमित्र प्रसादथी, (२)भरतक्षेत्र छै अतिभलो; अंति: नरसिंघ कहै हरषसुंए, गाथा-३२. ९. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १७आ-१८अ. मा.गु., पद्य, आदि: कोई परठण जावैजी मातर; अंति: पामसी भवनो पार हो, ढाल-२, गाथा-१७. १०. पे. नाम. दृढप्रहारी सज्झाय, पृ. १८अ-१९अ. ऋ. आसकर्ण, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पंच प्रभूनें नीत नमु; अंति: गायोरीयातणे माय रे, ढाल-५. ११. पे. नाम. सुसीलादेवी सज्झाय, पृ. १९अ-१९आ. मु. सिवलाल, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: पंचपरमेष्टि हुं नमु; अंति: सिवलाल तवन उदारो, गाथा-२७. १२. पे. नाम. रेवती चौढालियो, पृ. १९आ-२०अ. रेवतीश्राविका चौढालियो, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: सिद्धारथ नंदण नमु; अंति: चोथमलजी चोढालीयोकीयो, ढाल-४. १३. पे. नाम. वंकचूल चौपाई, पृ. २०अ-२१आ. ऋ. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: वंकचूल भाखी कथा जथा; अंति: रतनचंद० सुवीसाले, ढाल-६. For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org १४. पे. नाम. सुभद्रारो वखाण, पृ. २१-२३आ, सुभद्रासती पंचढालीयो, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: सिवदायक लायक सदा; अंति: ढाल पां एकरी, ढाल ५. १५. पे नाम. धना चौडालियो, पृ. २३-२५अ. ऋ. आसकरण, रा., पद्य, वि. १८५९, आदि: नगरी काकंदी हो अति; अंति: आसकरण० पसाय कें, ढाल-७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६. पे. नाम. उदाइरो वखाण, पृ. २५अ - २७अ. उदाइराजा छडालियो, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, आदि चंपानगर पधारीया; अंतिः दुक्कडं मोयो रे, ढाल ६. , १७. पे. नाम. थावच्चापुत्ररो वखाण, पृ. २७अ २९अ. थावच्चापुत्र नवढालियो, रा., पद्य, आदि आरिसाना भवने बैठा; अंतिः नाम लियां निसतार, डाल- ९. १८. पे. नाम. नेमजिन लावणी, पृ. २९अ २९आ. नेमराजिमती लावणी, मु. गुमानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: छपनकोड जादव मिल आया; अंति: गावे० चित लावे, गाथा-३४. १९. पे. नाम. खरूकाचार्य, पृ. २९आ-३२अ. बलचंद रास, ऋ. सबलदास, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: श्रीजिन शांतिजिनेसरू; अंतिः सबलदास० निस्तारा रे, ढाल - १३. २०. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ३२अ - ३३अ. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंतिः ते संघने गह घट रे, ढाल ६. - २१. पे. नाम. जंबूचरित्र, पृ. ३३अ - ३४अ, पे. वि. पत्र का नीचला भाग फटे होने से अंतिमवाक्य नहीं भरा गया है. जंबू चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि: पाणी जोड प्रभवो कहें; अंति: (अपठनीय), ढाल -४. २२. पे नाम. वसुदेव चौढालियो, पृ. ३४-३५अ. मा.गु., पद्य, आदि: रुपसीरे लषणा सिरै; अंतिः सार तीण सुमोहीनयर री. २४. पे. नाम. चंदनबाला चौपाई, पृ. ३७आ - ३९अ. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि फणीमणीमंडित मिलतन; अंतिः भवपारो रे लो, ढाल १४. - १४९ २३. पे. नाम. पंचसुमति त्रणगुप्तिरी ढाल, पृ. ३५अ - ३७आ. ५ समिति ३ गुप्ति ढाल, ऋ. चौथमल, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: पांच सुमत तीने गुपत; अंतिः ऋष चौथमल ० कियो चौमास, ढाल ८. २५. पे. नाम. देवकीरीढाल, पृ. ३९-४२आ. गजसुकुमाल चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: भदलपुरनगर पधारी; अंति: पोता सीवपुर धांम. २६. पे नाम श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ४२-४५अ पे. वि. अशुद्ध सूत्रपाठ साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: (१) मरणांत कष्ट सहै, (२) भयाणं त्रिकाल वंदना. For Private And Personal Use Only २७. पे. नाम. अर्जुनमाली सज्झाय, पृ. ४५-४७आ. अर्जुनमाली ढाल, ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि: वर्द्धमान जिनवर नमुं अंतिः कातीसुद दिन पुनम ठाय Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८४२८. सज्झाय संग्रह व छंद, संपूर्ण, वि. १९६६, चैत्र शुक्ल, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२+१(१)=३३, कुल पे. ३६, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१३, १२४२५-३१). १. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १अ. ___संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुंभावशु; अंति: धर्म० निदान लाल रे, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-जीव, पृ. १आ. मा.गु., पद्य, आदि: आरंभ करतां रे जीव; अंति: जीव जाय मोक्षमां, गाथा-५. ३. पे. नाम. धर्म व पापनीसझाय, पृ. १अ-२अ, पे.वि. यह कृति बढते पत्र नं.१ से २ तक हैं. धर्म व पाप की सज्झाय, वा. चारुदत्त, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीनवरनाथ णमे पाय; अंति: चारुदत्त० सीवसुख लहे, गाथा-२३. ४. पे. नाम. होकानी सज्झाय, पृ. २अ-३अ. होका सज्झाय, मु. खुसालरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: होको रे होको सुं करो; अंति: खुशालरत्न सुजगीश रे, गाथा-१३. ५. पे. नाम. रोटलीसज्झाय, पृ. ३अ-३आ. तप सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरव देव देवमाहे; अंति: पास धीर मुनि गाजे, गाथा-१०. ६. पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. ३आ-४आ. ____ आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नित नित वंदु रे मुनि; अंति: भणे विजयदेव सूरोजी, गाथा-१३. ७. पे. नाम. आप स्वभाव सज्झाय, पृ. ४आ-५अ. आपस्वभाव सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आप स्वभाव मां रे; अंति: जीव वरे शिवनारी, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद-योवन, पृ. ५अ. यौवन सज्झाय, मु. उदयरत्न*, मा.गु., पद्य, आदि: जोबनियानी मोजा फोजा; अंति: उदयरत्न वातो केती रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. अमृतवेल सज्झाय, पृ. ५आ-७आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन ज्ञान अजुवाळीए; अंति: लहे सुयश रंग रेल रे, गाथा-२९. १०. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ७आ-८अ. साधुवंदना सज्झाय, ऋ. आशकरण, पुहिं., पद्य, वि. १८३८, आदि: साधुजीने वंदना नीत; अंति: उत्तम साधुनो दासरे, गाथा-१०. ११. पे. नाम. संवरनी सज्झाय, पृ. ८अ-९अ. संवर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गौतमने; अंति: शिवरमणी वेगे वरो, गाथा-६. १२. पे. नाम. १४ चौद समुर्छिमपंचिंद्रियउत्पत्तिस्थानक जीव सज्झाय, पृ. ९अ-१०अ. चौद स्थानकीया जीव सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गुरुना प्रणमी; अंति: सुणे तस लील विलास, गाथा-१३. १३. पे. नाम. बारव्रत सज्झाय, पृ. १०अ-१२आ. For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १५१ १२ व्रत सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: जीवदया नित पालीयें; अंति: मुगतिपुरीमा म्हालसे, गाथा-१३. १४. पे. नाम. जीवने उपदेशी सज्झाय, पृ. १२आ-१४अ. औपदेशिक सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी करी; अंति: खोडीदास जोड ए कही. १५. पे. नाम. मन भमरानी सज्झाय, पृ. १४अ-१५आ.. मनभमरानी सज्झाय, म. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भल्यो मन भमरा तं: अंति: लेख साहिब हाथ. गाथा-१६. १६. पे. नाम. जीवने शिखामणनी सज्झाय, पृ. १५आ. औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काइ नवी चेतोरे चित; अंति: लब्धि० मोक्षदुवार, गाथा-६. १७. पे. नाम. विनयअध्ययन सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ. वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी चीत धरीजी; अंति: विनय सयल सुखकंद, गाथा-८. १८. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. १६आ-१७आ. मु. वसता, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य संयोगे नरभव; अंति: मोक्षतणा अधिकारी रे. गाथा-१३. १९. पे. नाम. आउखानी सज्झाय, पृ. १७आ-१८अ, वि. १९६६, आश्विन कृष्ण, ८, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य. आयुष्य सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखु तुट्याने सांधो; अंति: जालोर सहर मझार रे, गाथा-८. २०. पे. नाम. आत्मप्रतिबोध, पृ. १८अ-१९अ. आत्मप्रतिबोध सज्झाय, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: मायाने वस खोटु बोले; अंति: नित्य०अनुभव लहिये रे, गाथा-१४. २१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, पृ. १९अ-२०अ. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीयाजी; अंति: लावन्य० फल जोय, गाथा-९. २२. पे. नाम. कर्मपचीसी, पृ. २०अ-२१आ. मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तिर्थंकर; अंति: हर्ष० कर्म महाराज रे, गाथा-२६. २३. पे. नाम. जीवोपदेश सज्झाय, पृ. २२अ-२२आ. नरभवरत्नचिंतामणि सज्झाय, अभयराम, मा.गु., पद्य, आदि: आ भव रत्नचिंतामणी; अंति: जीव अनंता तरीआजी, गाथा-१३. २४. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. २२आ-२३आ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-१५. २५. पे. नाम. मोक्षनगरीनी सज्झाय, पृ. २३आ-२४अ. मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, रा., पद्य, आदि: मोक्षनगर माहरु सासरु; अंति: आवागमन निवारजी, गाथा-६. २६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, पृ. २४अ-२४आ. For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्रोध सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुवां फल छे क्रोधना; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६. २७. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. २४आ-२५अ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए; अंति: मानने देजो देशवटो रे, गाथा-५. २८. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. २५अ-२५आ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मुल जाणीये; अंति: ए मारग छे शुद्ध रे, गाथा-६. २९. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. २५आ-२६अ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोजो लोभ; अंति: लोभ तजे तेहने सदा रे, गाथा-७. ३०. पे. नाम. जीवापांत्रीसी, पृ. २६अ-२८अ. ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद; अंति: रिषि जैमल कहे एमजी, गाथा-३५. ३१. पे. नाम. वैराग्यपच्चीसी, पृ. २८अ-२९आ. मु. मेघलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: माताने उदरे उपनो नव; अंति: मेघलाभ कहे हेते भावे, गाथा-२५. ३२. पे. नाम. आठमदनी सज्झाय, पृ. २९आ-३०आ. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनि वारीइं; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे, गाथा-११. ३३. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. ३०आ-३१अ. वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आज महारे एकादसी रे; अंति: उदयरतन० लीला लहेसे, गाथा-१२. ३४. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ३१आ. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: म्हारा मनडानी आश, गाथा-५. ३५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, पृ. ३१आ-३२अ, वि. १९६६, ले.स्थल. पालीताणा. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: निंदा म करजो कोईनी; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ३६. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्रना दशमाअध्ययननी सज्झाय, पृ. ३२आ. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १०-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ते मुनि वंदो ते मुनि अंति: वृद्धिविजय जयकार रे, गाथा-११. १८४२९. (-) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ३२, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१२.५, १२४३४-३६). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, पे.वि. मूल प्रत लिखने के बाद अन्य किसी द्वारा गुजराती लिपि में आधुनिक स्याही से लिखी गयी कृति. श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, पे.वि. मूल प्रत लिखने के बाद अन्य किसी द्वारा गुजराती लिपि में आधुनिक स्याही से लिखी गयी कृति. सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: दनमहानष्टापदाभासूरैः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. ऋषभदेवस्वामिनी थोई, पृ. १आ. For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १५३ आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदेश्वरजिननी थोय, पृ. १आ-२अ. आदिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिनवर राया जास; अंति: पद्मने सुख दिता, गाथा-४. ५. पे. नाम. सज्यातिर्थनी थोइ, पृ. २अ. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. रविबुधसागर, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय मंडण ऋषभ; अंति: संकट रिवबुधसागर चुर, गाथा-४. ६.पे. नाम. स→जयतीर्थनी थोड़, पृ. २आ-३अ. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय तीरथसार; अंति: पाया ऋषभदास गुणगाया, गाथा-४. ७. पे. नाम. सांतिनाथजीनी थोड़, पृ. ३अ. शांतिजिन स्तुति, क. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति सुहंकर साहिबो; अंति: तो कवि वीर ते जाणे, गाथा-४. ८. पे. नाम. नेमिनाथजीनी थोइ, पृ. ३आ. नेमिजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल वरनारी रुपथी; अंति: पद्मने जेह प्यारी, गाथा-४. ९.पे. नाम. पार्श्वजिननी थोड़, पृ. ३आ-४अ. पार्श्वजिन स्तुति, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शंखेश्वर पासजी पूजीए; अंति: नयविमलनां० पूरती, गाथा-४. १०. पे. नाम. महावीरस्वामीनी थोड़, पृ. ४अ. महावीरजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर जिणंदा राय; अंति: पद्म भाखे सुशिस, गाथा-४. ११. पे. नाम. महावीरस्वामीनी थोड़, पृ. ४अ-४आ. रात्रिभोजन स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजीए पामी; अंति: जीव कहे तस शिष्य तो, गाथा-४. १२. पे. नाम. सिद्धचक्रजीनी थोड़, पृ. ४आ-५अ. नवपद स्तुति, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन वंछित पूरण; अंति: राम कहै नितमेव, गाथा-४. १३. पे. नाम. सिद्धचक्रजीनी थोड़, पृ. ५अ. सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमो वळी सिद्ध; अंति: नय विमलेसर वर आपो, गाथा-४. १४. पे. नाम. शाश्वतजिननी थोड़, पृ. ५अ-५आ. शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ चंद्रानन वंदन; अंति: पद्मविजय नमे पायाजी, गाथा-४. १५. पे. नाम. बीजतिथिनी थोड़, पृ. ५आ-६अ. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. १६. पे. नाम. ज्ञानपंचमीनी थोइ, पृ. ६अ-६आ. For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि श्रावण सुदि दिन; अंतिः ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. १७. पे. नाम. अष्टमीनी थोई, पृ. ६आ-७अ. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मंगल आठ करी जस आगल; अंतिः तपथी कोड कल्याणजी, गाथा ४. १८. पे. नाम. एकादसीनी थोड़, पृ. ७अ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: सीस० संघ तणा नीसदीस, गाथा-४. १९. पे. नाम. चतुर्दसीनी थोड़, पृ. ७अ-७आ. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, २०. पे नाम. पर्युषणनी थोई, पृ. ७आ-८अ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंतिः पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा ४. २१. पे. नाम. पर्युषणनी थोई, पृ. ८अ -८आ. पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यनुं पोषण पापनुं; अंति: दिन दिन अधिक वधाईजी, गाथा- ४. २२. पे. नाम. पर्युषणनी थोई, पृ. ८आ-९अ. पर्युषणपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुण्ये; अंति: मन मान्यो फल लेशेजी, गाथा-४. २३. पे. नाम. पजुसणनी थोड़, पृ. ९अ - ९आ. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः पर्व पजुषण सर्व सजाई; अंति: उदयवाचक कहे एम जी, गाथा-४. २४. पे नाम. वीसस्थानकतप स्तुति, पृ. ९आ-१०अ. २० स्थानकतप स्तुति, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुछे गौतम वीर जिणंदा अंतिः आधार वीरविजय जयकार, गाथा-४. २५. पे नाम रोहणीतप स्तुति, पृ. १०अ १० आ. रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नक्षत्र रोहिणी जे; अंति: थाय पद्मविजय गुण गाय, गाथा-४. २६. पे. नाम. पंचतीर्थ थोय, पृ. १०-११अ. पंचतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशेत्रुंजयमुख्य; अंति: संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. २७. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. ११ अ. प्रा., पद्य, आदि कल्लाणकंदं पढमं; अंतिः अम्ह सवा पसत्था, गाथा-४, २८. पे. नाम. संसारदावानी स्तुति, पृ. १९अ ११ आ. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९. पे. नाम. अरजिन स्तुति, पृ. ११आ. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अरजिन आराधो संयम; अंति: होय संपूर्ण आसे, गाथा-४. ३०. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. ११-१२. महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय भवि हितकर वीर; अंति: गुण पुरो वांछ आस, गाथा-४. ३१. पे नाम. गौतम स्तुति, पृ. ११-१२अ. गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., पद्य, आदि; श्रीइंद्रभूर्ति; अंतिः वरदायकाश्च श्लोक-४. ३२. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १२आ, पे. वि. मूल प्रत लिखने के बाद अन्य किसी द्वारा गुजराती लिपि में आधुनिक स्याही से लिखी गयी कृति. मा.गु., पच, आदि: सुरअसुरबंदितपायपंकज अंति करो अंबिका देवीया, गाथा-४, १८४३०. स्तुतिचौवीसी व स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे १०, प्रले. मु. राजविजय; पठ. मोतीरूपा हकम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४x१२.५, १४X३४-३७). १. पे नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. १अ ७अ मु. शोधनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंतिः हारतारावलक्षेमदा, स्तुति- २४, श्लोक ९६. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ७अ. मा.गु., सं., पद्य, आदि: माहा केवलनाण कल्याण; अंतिः देवपतंगीयापुरीयासा, गाथा-४, ३. पे. नाम. कृश्नपक्षपंचमी स्तुति, पृ. ७अ-७आ. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि समुद्रभूपालकुलप्रदीप अंति: देवी जगतः किं लंबा, श्लोक-४. ४. पे. नाम. सीद्धगीरी स्तुती, पृ. ७-८अ. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आव, ऋषभदास, मा.गु., पच, आदि: श्रीसेजो तीरथ अंतिः पाय ऋषभदास गुण गाय, १५५ गाथा-४. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ८अ. आव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरी अंतिः सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा ४. For Private And Personal Use Only ६. पे नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. ८अ -८आ. मा.गु., पद्य, आदि: सुरसुरवंदितपायपंकज; अंति: करो ते अंबा देवीए, गाथा- ४. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ८- ९. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेदि जिन पूजा; अंति: पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ८. पे नाम. नवपद स्तुति, पृ. ९अ ९आ. सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३, आदि: पेहले पद जपीए अरिहंत; अंतिः कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ९. पे नाम आदिजिन स्तुति, पृ. ९आ. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदो ऋषभदेव; अंतिः ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १०. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ९. Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमाहे तिरथ; अंति: जीव ते संपदा वरे, गाथा-४. १८४३१. (+) सज्झाय संग्रह व नेमिजिनबारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.७४१२, १४-१५४४०-४४). १.पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, पृ. १अ, पे.वि. यह कृति पत्रांक ९ पर दूसरी बार लिखी गई है. __ मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे; अंति: कहे० मायां सुख पामै, गाथा-१६. २. पे. नाम. भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. १आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदत्तभाई घरे आवीओ; अंति: समयसुंदर वंदे पायजी, गाथा-८. ३. पे. नाम. क्रोधपरिसज्झाय, पृ. १आ-२अ. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करिये भोला; अंति: उपसम आणी पासे रे, गाथा-९. ४. पे. नाम. मानपरिहार स्वाध्याय, पृ. २अ. औपदेशिक सज्झाय-मानोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म करज्यो कोई अंति: भवनगर रहि चौमासै रे, गाथा-८. ५. पे. नाम. लोभपरिहरोपदेस स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: पामे सयल __ जगीस, गाथा-८. ६. पे. नाम. दानादिचतुप्रकार स्वाध्याय, पृ. २आ. दानशीलतपभावना सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: मुगति ___ तणा फल त्याह, गाथा-६. ७. पे. नाम. दशार्णभद्रराजा सज्झाय, पृ. २आ-३आ. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: भणे लालविजय निशदिश, गाथा-१४. ८. पे. नाम. सीतासतीशील सज्झाय, पृ. ३आ-४अ. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. ९. पे. नाम. जीवहित सज्झाय, पृ. ४अ-४आ. गर्भावास सज्झाय, मु. खिमा, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमे चिंतवइहै; अंति: तो जइए मुगति मझार कै, गाथा-८. १०. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. ४आ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ११. पे. नाम. दान स्वाध्याय, पृ. ४आ-५अ. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीयाजी; अंति: लावण्य० दानप्रमाण रे, गाथा-१२. १२. पे. नाम. नेमिजिन बारहमास, पृ. ५अ-५आ. मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु प्रणमिवे; अंति: धर्मविजै सुखदाया, गाथा-१५. १३. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ६अ-६आ. For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १५७ मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुरायना; अंति: विजय० नित नामु सीस, गाथा-२७. १४. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. ६आ-७अ. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: सरे हुंवारी लाल, गाथा-९. १५. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. ७अ-७आ. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मेतारजमुनी जिन; अंति: तस घरि कल्याण रे, गाथा-१५. १६. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. ७आ-८अ. वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणी ऋधि भोगवी; अंति: विजयसिंहगुरू वचन रे, गाथा-९. १७. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ८अ. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधोजी, गाथा-८. १८. पे. नाम. रहनेमराजिमती स्वाध्याय, पृ.८अ-८आ. रथनेमिराजिमती स्वाध्याय, मु. हितविजय, रा., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरुपाय; अंति: अवीचल पद राजुल लहे, गाथा-११. १९. पे. नाम. घडपण सज्झाय, पृ. ८आ-९अ. औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, क. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण बुढापो आवीयो; अंति: रायनो एम कहे कवि __मान, गाथा-२१. २०. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, पे.वि. यही कृति पत्रांक १ पर दूसरी बार लिखी गई है. मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे; अंति: कहै गायां सुख पामै, गाथा-१७. २१. पे. नाम. चित्तसंभूति स्वाध्याय, पृ. ९आ-१०अ. वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र अनि संभूतए; अंति: कहे गुण मुनि तणाए, गाथा-११. २२. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, पे.वि. अंतिमवाक्य की पंक्ति वाला भाग फटा हुआ है. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: साधु नै कुण तोले हो, ढाल-३. २३. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. १०आ, पे.वि. आदिवाक्य की पंक्तिवाला भाग फटा हुआ है. मु. प्रेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रसन्न सदा पद्मावती, गाथा-७. २४. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, पृ. १०आ. आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगल मुक्किठं; अंति: साहुणो तिब्बेमि, गाथा-५. २५. पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. ११अ-११आ. आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणीपशुपंडगतणी रे; अंति: बोले रे विजयदेवसूरके, गाथा-१५. २६. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. ११आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली; अंति: प्रणम्या पाप पलाय रे, गाथा-६. १८४३२. स्तवन, पद, लावणी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. १२, जैदे., (२४.५४१२.३, १२४२५-३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ. श्राव. मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: पास प्रभुजी कू पूजो; अंति: सिमर सूग्यानी, गाथा-७. For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. सद्गुरु पद, पृ. १अ-१आ. श्राव. मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सतगुरजी को मै दरसण; अंति: चंद० ग्यान अनंतो आवे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ. श्राव. मूलचंद, पुहि., पद्य, आदि: अश्वसेन तात विचार; अंति: प्रभुजी मुजने आपणै, गाथा-१५. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ. श्राव. मूलचंद, पुहि., पद्य, आदि: वरधमान भगवंत तीनलोक; अंति: तार लेज्यो मुझने सही, गाथा-१४. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ. श्राव. मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आदिसर जिनराय पणमु; अंति: भगती प्रभुजी तुम तणी, गाथा-१७. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ. मा.गु., पद्य, आदि: आजसुदिनभाइ मे जिनजी; अंति: अजर अमरपद देज्यो, गाथा-९. ७. पे. नाम. नेमीजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ. नेमिजिन स्तवन, पुहि., पद्य, आदि: सहीया ए मोरी नेमीसर; अंति: अरज मारी मान लेजो, गाथा-७. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ-५अ. श्राव. मूलचंद, पुहि., पद्य, आदि: सरणै तिहारै हुँ; अंति: दुरगत दुर निवारे, गाथा-७. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ. श्राव. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हांजी हुँतो पूज्यु; अंति: भणे प्रभु आरतुरिरे, गाथा-७. १०. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. ६अ-६आ. मा.गु., पद्य, आदि: रंगीला नेमजी चैत्र; अंति: पोहता मुगत मझार, गाथा-१३. ११. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ. शांतिजिन स्तवन-भुजनगर, आ. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: हारे हुं तो गइती; अंति: जीनलाभसुरींदनी वाणजो, गाथा-५. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७आ. मा.गु., पद्य, आदि: इमकुं सीमरो रे भाई; अंति: छीटकाइ मीलीया मन भाई, गाथा-६. १८४३३. (+) स्तोत्र, अष्टक, स्तुति, चैत्यवंदन, कवित व छपइसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२-१३४३३-३७). १. पे. नाम. सर्वज्ञाष्टक, पृ. १अ-१आ. मु. कनकप्रभविजय, सं., पद्य, आदि: जयति जंगमकल्पमहीरुहो; अंति: विश्वाधिपः सर्ववित्, श्लोक-९. २. पे. नाम. सर्वज्ञस्तव, पृ. १आ-२अ. सर्वज्ञ स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतराग विगतस्मर; अंति: भावयन्न० वीतरागः, श्लोक-९. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तव, पृ. २अ. ___आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रियाढ्यं कनकाभ; अंति: स्यविताप्रभुस्त्वम्, श्लोक-५. ४. पे. नाम. २४ जिननामगर्भित मंगलाष्टक, पृ. २अ-२आ. For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र, अंतिः मम मंगलम् श्लोक ९. ५. पे. नाम. परमात्माष्टक, पृ. २आ-३अ. सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्ध; अंतिः श्रीमानभूदं च्युताः, श्लोक - ९. ६. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. ३अ - ३आ. पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., पद्य, आदि: अतो भगवंत इंद्र; अंतिः श्रीवीरस्वामिने नमः, ७. पे. नाम. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ. श्लोक-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरुं श्रीआदिदेव; अंति: कहै त्यां घर जयजयकार, गाथा-६. ८. पे. नाम. ब्राह्मणवाडपार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ. पार्श्वजिन स्तुति- ब्राह्मणवाड, पुहिं., पद्य, आदि: पारसनाथ के नामसे सब; अंतिः कटे पाप तन पीड, गाथा-२, ९. पे. नाम. गौतमस्वामी अष्टक, पृ. ४अ. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक - १०. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन अष्टक - कलिकुंड, पृ. ४-४आ. मु. कल्याण, सं., पद्य, आदि विबुधाविराजैर्नतपाद; अंतिः स्तोत्रमिदं पठति, श्लोक ९. १९. पे नाम. मंत्राधिराजस्तोत्र, पृ. ४-६ अ. चिंतामणि कल्प, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्थः पातु अंतिः प्राप्नोति स श्रियम्, लोक-३३. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ६अ. सं., पद्य, आदि: देवोबालतमालकज्जल; अंति: सभवेत्पद्मावतीसंज्ञः, श्लोक-३. १३. पे. नाम. कलिकुंडपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ६अ-७अ सं., पद्य, आदिः पायाद्वः कलिकुंड; अंतिः पार्श्वभर्तुः, श्लोक ८. १४. पे नाम शाश्वतजिन स्तोत्र, पृ. ७अ ७आ. For Private And Personal Use Only तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततं चित्तमानंदकारि श्लोक- ९. १५. पे नाम. मगशीपार्श्वजि नस्तवन, पृ. ७आ-८अ. पार्श्वजिन स्तवन-मक्षी, पंन्या. कनकविजय, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रियोयच्चरण; अंति: नंदमेदस्विताम्, लोक- ९. १६. पे. नाम. पार्श्वपरमेश्वर स्तोत्र, पृ. ८अ ९अ. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. मानविजय, सं., पद्य, आदि: चरण कमलं श्रीवाग्देव; अंतिः भरतो मधुपूर्णिमायाम्, श्लोक १०. १७. पे. नाम. गौडीपार्श्वजिन स्तोत्राष्टकम्, पृ. ९अ - ९आ. पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी, आ. प्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सकल मंगल मंजुल मालिन; अंतिः पठता सुख हेतवे, लोक- ९. १८. पे. नाम जीरावलापार्श्वजिन चैत्यवंदन, प. ९आ. पृ. " पार्श्वजिन चैत्यवंदन- जीरावला, सं., पद्य, आदिः पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंति जयति जीरावली पार्श्व श्लोक-३, १९. पे नाम कवित, प्र. ९आ. १५९ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक कवित, क. गिरधर, पुहिं., पद्य, आदि: सांइ वेर न कीजीये; अंति: वेर कबु न करीये भाई, गाथा - १. २०. पे. नाम छप्पे, पृ. ९आ. अविश्वास कवित्त, क. गद्द, पुहिं., पद्य, आदि: सापां कीसो सेद ठगा; अंति: रहे गाफल हुआ ठगी जीए, गाथा-२. १८४३४. शेत्रुंजय रास, पार्श्वनाथ स्तवन संग्रह व पद, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ७, प्रले. य. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५x११.५, १२४३४-३६). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ रास, पृ. १अ ६आ, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, ले. स्थल. बंबोर मारवाड, प्रले. य. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंतिः थकां ए पामीजै भवपार, ढाल - ६. २. पे नाम, गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हैसर मुझ वींनती; अंति: इम जपे जिनराज रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम, गोडीपारसनाथ गीत, पृ. ७अ. पार्श्वजिन गीत- गोडीजी, मु. चारित्रकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: गुणसायर गौडीपासजी; अंति: चारितकीरति के० आसजी, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ७अ-७आ. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: अहनिसि सूर सेवे पाया; अंति: पाय अरविंदो रे, गाथा- ९. ५. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथलघु स्तवन, पृ. ७आ ९अ. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: इणै भव आइ जिणै धन; अंतिः सफल फली सहु आस. ६. पे. नाम, नाकोडापार्श्वजिन छंद, पृ. ९अ - ९आ. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अपणैघरि बैठा लील करो; अंति: नाम जपौ श्रीनाकोडो, गाथा-८. ७. पे. नाम. सवैया, पृ. ९आ. औपदेशिक सवैया, ऋ. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: सब गुणरीति गहै हठमै; अंति: धमसी० गूण ए सब है, गाथा - १. १८४३५. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, स्तुति, श्लोक व प्रहेलिका संग्रह आदि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. १५, जैवे., (२४.५४१२, १३४३२-३५ ). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वे.मू. पू. *, पृ. १ अ - ५ आ. संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंतिः अप्पाणं बोसिरामि २. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. ५आ-६अ. प्रा., पद्य, आदि कलाणकंदं पढमं अंति: अम्ह सवा पसत्था, गाथा ४. ३. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ६अ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज; अंतिः कठै पूर मनोरथ माय, गाथा-४, For Private And Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ६अ-६आ. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ५. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. ६आ-७अ. ___ आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ६. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ७अ. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: वारो संघ तणा निशदिश, गाथा-४. ७. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, पृ. ७अ-७आ. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ८. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ. __मा.गु., पद्य, आदि: सुरअसुरवंदितपायपंकज; अंति: मंगल करहुं अंबकदेवया, गाथा-४. ९. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ८अ. क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १०. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ८अ. मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकगिर स्वामी; अंति: सौभाग्यनो दातार, गाथा-१. ११. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ८अ-८आ. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: जो तुसे देवी अंबाई, गाथा-४. १२. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ८आ-९आ. ____ लघुशांति स्तव, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७+२. १३. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ९आ-१२आ. आ. मानतंगसरि.सं.. पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि: अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. १४. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १२आ-१४अ, पे.वि. विविध विषयों पर प्रहेलिका आदि का संग्रह हैं. सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १५. पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, पृ. १४आ. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सुरेनमुकारसिय; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. १८४३६. छंद, स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ८, प्रले. मु. शिवरत्न (गुरु मु. मुक्तिरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १५४३३-३५). १. पे. नाम. सारदा छंद, पृ. १अ-२आ. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन; अंति: आस्या सफल फलजो ताहरी, गाथा-३५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद-गोडी, पृ. २आ-४अ. गोडीपार्श्वजिन छंद, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जित कहे हरषे सदा, गाथा-२३. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजिन छंद, पृ. ४अ-५आ. For Private And Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि; सरसति सुमति आप; अंतिः करण धवलधींग गोडी धणी, गाथा-२२. ४. पे नाम. माणभद्रवीरनोअडतालो, पृ. ५आ-६आ. गाथा-४. माणिभद्रवीर अडतालो, देवरुपो, मा.गु., पद्य, आदि: ध्रु छे मादलां मृदंग; अंति: देवरूपो० वाह देव, ५. पे. नाम. अंबकाजीरो गीत, पृ. ६आ, प्रले. मु. सीवरतन, प्र.ले.पु. सामान्य. अंबिकामाता गीत, मा.गु., पद्य, आदि: भेसांभंजणी दहीतां; अंति: जोति जेही दाड वंदुकल, गाथा - १. ६. पे. नाम. पार्श्वनाथ अमृतध्वनी, पृ. ७अ. पार्श्वनाथ अमृतध्वनि, मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त धरि गुन ॐकारके; अंति: जसराज० गूण की जपमाल, गाथा-४. ७. पे नाम, पंचपरमेष्ठी स्तुति, पृ. ७अ-८अ. नमस्कार महामंत्र छंद, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरे विविध; अंति: कुसललाभ० वंछित लहर, गाथा - १६. ८. पे नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८आ. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शिवरत्न, मा.गु., पच, वि. १८६६, आदि: गोडीपासजी सेवीइ रे; अंतिः शीवरत्न वंदे लाल, गाथा - ९. १८४३७. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ११, जैदे., (२५.५X१२, १४४३९-४३), १. पे नाम, पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १अ-२अ. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवै रे; अंतिः भर्णे ते सुख लहे डाल ५. २. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२ आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रखवाडी चड्यो; अंतिः वंदे रे वे कर जोड, गाथा - ९. ३. पे. नाम. बाहूबली सज्झाय, पृ. २आ. बाहुबली सज्झाय, मु. माणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: बेहतर बोले बाहूबल; अंति: माणिकमुनी० चढते वान, गाथा - ५. ४. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. २आ- ३अ. मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक मन सुधे करो; अंति: सामायिक पालो निसदीस, गाथा ६. ५. पे. नाम. धन्नाशालीभद्र सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अजीया जोरावर कारमी; अंति: उदयरत्न० भवजलतीर रे, गाथा- ७. ६. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ३आ. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि धारणी मनावे रे मेघ; अंतिः प्रीतविजय० तणा पास, गाथा ५. ७. पे. नाम. वीसस्थानक सज्झाय, पृ. ३-४अ. २० स्थानक सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीगुरु चरणे करी; अंतिः लब्धि० आराधो नीसदीन, गाथा ७. ८. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. ४अ. For Private And Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १६३ नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कपूर होवे अति उजलो; अंति: सोमविमल० एहनी जोड रे, गाथा- ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९. पे. नाम. राजुलरहनेमी सज्झाय, पृ. ४-४आ. राजिमतीरहनेमि स्वाध्याय, मु. हितविजय, रा., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरुपाय; अंति: पद राजुल लह्योजी, गाथा - ११. १०. पे नाम औपदेशिक सज्झाय पुण्योपरि, पृ. ४-५अ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुं म कर; अंतिः पुण्यथी रोटी न दोटी, गाथा - ३. ११. पे. नाम. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, पृ. ५अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. सज्झाय ८ तक लिखा है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलूं कह्यु; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८४३८. पाक्षिकादिप्रतिक्रमणविधिसंग्रह, चैत्यवंदन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९३६, फाल्गुन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, ले. स्थल. पालीताणा, पठ. सा. रूपश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x१२, १४४३३). १. पे. नाम. चौवीसतीर्थंकर चैत्यवंदन, पृ. १० आ. २४ जिन चैत्यवंदन, श्राव. अमीकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव नमो; अंति: अमीकुमर विलास, गाथा-५. २. पे. नाम. जावरापुर मंडण शांतिजिन स्तुति, पृ. १० आ. शांतिजिन स्तुति- जावरापुर, मु. पुन्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि; सांतिकर सांतिकर; अंतिः सुखकर संपत घणुं, गाथा - १. ३. पे. नाम. पाक्षिकादिप्रतिक्रमण विधिसंग्रह, पृ. १अ १०आ, पे. वि. प्रतिक्रमणविधि अंतर्गत कहीं-कहीं पर सूत्र भी लिखे हैं. प्रतिक्रमणविधि संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही अंतिः कर्म विपातक छोड. १८४४०. स्तवन, सज्झाय, लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रावण शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १०, ले.स्थल. कलोल, प्रले. छोटा अमुलख शेठ; पठ. श्राव. छोटालाल डोसाभाई, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., १३४३९-४१). (२५.५X१२, १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ - २अ. ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: वामाराणीयें एक जायो; अंति: रायचंद० लागे प्यारो, २. पे. नाम. सोलजिनतीर्थंकर स्तवन, पृ. २अ - २आ. १६ जिन स्तवन, क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: ऋषभ अजीत संभवस्वामी; अंति: रायचंद ० सोवन वरणा, गाथा - १२. ३. पे नाम, आठती करना सरीरनावरणनुं प्रभातियुं, पृ. २आ-३अ ८ जिन स्तवन- वर्ण प्रभातिषु क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदिः प्रभातें उठीनें; अंति: रायचंद० आठे जीनजपतां गाथा १०. ४. पे नाम, रहनेमि सज्झाय, पृ. ३अ ३आ. रहनेमिराजीमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्म, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि; अंति: निर्मल सूंदर एह रे, गाथा - ८. For Private And Personal Use Only गाथा - १४. Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. मालानीसमस्यानी सज्झाय, पृ. ३आ. नवकारवाळी सज्झाय, मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केज्यो रे पंडीत ए; अंति: रुप भणे बुधी सारी रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. नरकनादुःखनी सज्झाय, पृ. ३आ-५अ. नरकदुःखवर्णन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हो प्राणी रे नरकतणा; अंति: पामस्यो अमरवीमान रे, गाथा-२३. ७. पे. नाम. राजुलनी लावणी, पृ. ५अ-५आ. राजिमती लावणी, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीतधरी; अंति: प्रमाण० गीरनारी चली, गाथा-१९. ८. पे. नाम. बाहुबलीमुनी सज्झाय, पृ. ५आ. बाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर० गुणगाया रे, गाथा-९. ९. पे. नाम. कामदेवश्रावकनी सज्झाय, पृ. ५आ-६आ. कामदेवश्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्रे; अंति: खुसालचंद० वासीजी, गाथा-१६. १०. पे. नाम. राजुलनी सज्झाय, पृ. ६आ. नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., पद्य, आदि: बावीस सुभट जीतवा रे; अंति: सीवरतन० मारी पीड पीड, गाथा-७. १८४४१. (+) कल्पसूत्र-स्थविरावलीसह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. अष्टमवाचनायां स्थविरावलीरूपो द्वितीयो अधिकार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२, २९x४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. न+कथा *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८४४४. (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-४(१ से ४)=२०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., खंड-१ ढाल-३ गाथा-८ से खंड- २ ढाल- ४ गाथा- २४ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १०-१६४१७-२९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८४४५. दशविधयतिधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९८, माघ कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६४११.५, ११-१२४२४-२७). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतलता वन सींचवा; अंति: ज्ञानविमल. अनुभवें, ढाल-११. १८४४६. (+#) हरिवंश रास, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रावण शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०३, प्रले. सा. सुंदर आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १७X४५-४९). ढालसागर, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: जपे संघ रंग वधामणो, खंड-९, ढाल १५१. For Private And Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १६५ १८४५०. (+) 'कल्पसूत्र सह टीका व्याख्यान ६, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६४१२, १३x४३-५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र - टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण १८४५१. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, वे. (२४.८x१२.३, १२४३२-३४). www.kobatirth.org १८४५२. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदे., (२५.४४१२.२, १८x४५-५० ). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसतीजी वरसति; अंतिः विजय भणे आनंदकारी, दाल-९, गाथा-८३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४५३. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १८६५, चैत्र शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. सूर्यपूर, प्रले. ऋ. लब्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६१२.२, १७-२९x४६-५३). विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: सुजस महोदय वृंदो रे, रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमुं; अंतिः वयों जयजयकार रे, खंड-३. अध्याय- २० स्तवन+कलश. १८४५४. शांतिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैवे. (२५.६४१२.२, ११४३२-३९). शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., सं., पद्य, आदिः यात्रायां क्षूद्रोप; अंति: वाजा वागते धारा देवी. १८४५७. (+) नवतत्त्व १३ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ,जैदे., (२५X१२.२, ९४२४-३१). नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तत्र प्रथमं मूल; अंति: तलावरुप मोक्ष जाणवो. १८४५८. आनंदसंधि व दुहा, पूर्ण, वि. १९०४, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १९-१ ( १ ) = १८, कुल पे २, ले. स्थल, वालूचर, प्र. मु. विजयविमल; पठ. श्राव. धर्मचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.६×१२.५, १०X२७-३४). २. पे. नाम. दुहासंग्रह, पृ. १९आ. १. पे. नाम. आनंदश्रावक संधि, पृ. २अ १९आ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: (-); अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल - १५, गाथा - २५२, पूर्ण. १८४६०. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५. १८४५९. भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. त्रिपाठ. जैवे. (२४.८x१२.३, १-३x४२-४७). " 19 (+) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदिः प्रणम्य परमानंददायकं अंति: (१) मावातीति मंगलम्, (२) संख्या निवेदिता, अं. ६९३. सुक्तमाला व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५x१२.२, ८x२३-३१). १. पे. नाम सूक्तमाला, पू. १अ २६अ. मु. केशरविमल, मा.गु., सं., पद्म, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवह्निवृंद, अंतिः केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४. For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६६ १८४६१. www.kobatirth.org (+) २. पे नाम. सुभाषितश्लोक, पृ. २६-२६आ. सुभाषित श्लोक, सं., पद्य, आदि: दुरितवनघनालीशोककासार; अंति: दूरतो मुंच मायां श्लोक-२. । वारव्रत पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.८४१२.२, १६x२८-३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ व्रत पूजाविधि, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: श्रीसंखेश्वरसाहिबो; अंति: (१) जग जस पडह वजायो रे, (२) टालवा १२४ दीवा करीई, गाथा - १२४. १८४६२. वीरजिननिर्वाण स्तवन, संपूर्ण, वि, २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पठ, श्रावि. जेठी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, ११x२३-२६). महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंतिः श्रीगुणहर्ष वधांमणई, ढाल - १०, गाथा - १२२. १८४६३. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. सूरत, जैदे., ( २४.५X१२.५, १२-१५X२४-४५). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: जे जिनवरनुं वस्युं, गाथा - १९८. १८४६४. चौवीसजिननो लेखो व नेमराजुल स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९३, भाद्रपद कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल. राधनपुर, जैवे. (२४.४-२५.१४१२, १३-१४X३१-३५). १. पे. नाम. चौवीसजिननो लेखो, पृ. १अ ६अ. चौवीसजिन लेखो, मा.गु., गद्य, आदि: पैहला वांदु श्रीऋषभ; अंति: वारोवार होज्यो, ढाल - २४. २. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. ६अ-६आ. नेमराजिमती सज्झाय, अमीकुवर, मा.गु., पद्य, आदि: लावें रे बालुडा धारो; अंति: मीकुवर ० हुवो जयजयकार, गाथा - १२. ९८४६५. (+) सारस्वतीप्रक्रीया सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, दे., (२५.५x११, ११४३७-४२). सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सारस्वत व्याकरण-वालावबोध, मु. अमीचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि (१) सिद्धजीवानं प्रणिपत्, (२) अस्मिन् श्लोके अष्टो; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८४६६. (+) अंबड चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६ - १ (८) = १५, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., आदेश १-४ पूर्ण व पांचवे का प्रारंभिक पाठ है., प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.९x१३, १३-१५X३०-३४ ). अंबड चरित्र, पं. अमरसुंदर, सं., गद्य, आदि धर्मात् संपद्यते; अंति (-), अपूर्ण. १८४६७. जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पठ. श्राव. अजनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२५.२४१३.२, ६३४-३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन जे त्रणि; अंति: समुद्र थकी उधरिओ. १८४६८. दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदे., (२५.४४१३, ७३२-४२), For Private And Personal Use Only दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: संतु श्रीवर्द्धमानस; अंति: याण वल्लि फलदा भवंतु, श्लोक-३१३. Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छई श्रीपदावीरसांवा; अंति: रूप वेल फलकी देणहार. १८४००. पासाकेवलि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (२५.६४१२.७, ११x२५-२८). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती कूष्मां; अंतिः सत्योपासक केवली, श्लोक १८५. १८४०१. पदवी दुवार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.२x१२.५, १४४३०-३८). जैदे., १६ द्वार २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम दुवार १ अर्थ; अंतिः समदृष्टिनी ए २ पामे. १८४०५. जिनसंहिता, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रावण कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, ले. स्थल, जपुर, प्रले. देवकृष्ण जोसी; लिख. मु. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२५.७४१२.७, १६x४६-५५). जिनसंहिता, आ. जिनसेन, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं त्रिजगलोक अंतिः रतेभ्यो समहोजनास्ते, अधिकार- ६. १८४०६. पण्णवणापद बोल, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १२, पू. वि. द्वार २० से कालद्वार जघन्य अल्पबहुत्व तक है., " जैवे. (२६१२.५, १६४३८-५०). १६७ प्रज्ञापनासूत्र - बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण है . ) १८४७७ (१) २४ दंडक २६ द्वार, संपूर्ण, वि. १८९०, भाद्रपद शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल सिंघाणा, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.८४१२.३, २२x४२-४८). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकी का १ दन्डक; अंति: जोग मन टल्या. १८४७८. चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९२८, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल, पाली, प्रले. पोखरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१२.७, १०X२७-३४). चौमासपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंतिः पास सामलनु चेई रे, प्र. ४१२. १८४०९. (+) वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण वि. १८६५, ज्येष्ठ शुक्त, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ४४, ले. स्थल, मगमुदाबाद, पठ. श्राव. सरूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X१२.५, १३X३५-४१). २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, पुहिं पग, आदिः श्रीमदर्हतमानम्य; अंति; अनंत सुख अनुभवै. १८४८०. (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०५, कार्तिक, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल. वटपद्रद्रंग, प्रले. ऋ. पीतांबर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. प्र. ले. लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, जैवे. (२५.२x१२.५, १३-१६४३४-४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिडं अरिहंताई ठिह; अंतिः जा वीरजिण तित्थं, " गाथा - ३४३. १८४८१. (+#) गौतम कुलक सह अर्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८८९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले. स्थल. सिंघाणा, प्रले. ऋ. लक्ष्मीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (६०४) जब लग मेरु अडिग है, जैदे., (२५.८x१२.५, २३५०-५५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सुहं लहंति, गाथा - २०. गौतम कुलक- अर्थ व कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुयदेवी समरि; अंति: सेवइ ते सुखी थायै. १८४८२. नंदीसूत्र व चौवीसजिनकाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, दे., ( २४.७१२.३, १९X५८-६८). १. पे. नाम. नंदीसूत्र, पृ. १आ-१०अ. आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जवह जगाजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं नंदी सम्मत्ता. For Private And Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे नाम, चौवीसजिनकाल, पृ. १०अ. चौवीसजिन काल, मा.गु., गद्य, आदि: ५० लाख कोड २. ३० लाख; अंति: २१००० वर्ष. १८४८३. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.८x१२.१, ८x१७-२१). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे अ तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. " १८४८४. (#) वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., विलास १ से ५ पूर्ण एवं छट्ठे की गाथा ८ तक है. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.३४१२.१, ६-८४२५-३२). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि ध्यात्; अंति: (-), अपूर्ण. वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसारदा प्रतै हीय; अंति: (-), अपूर्ण. १८४८५. चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, श्लोक ९२ तक है., जैदे., (२५.५x१२, ४४० ). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: (-), अपूर्ण. चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गद्य, आदि : आद्यं क० पेला युगला; अंति: (-), अपूर्ण. १८४८६. स्तवनचौवीसी व भास संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ ( २ ) = ६, कुल पे. ३, जैदे., (२५.६११.८, १४-१६४३५-४२). १. पे. नाम. स्तवनचौबीसी, पृ. २अ-७अ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., स्तवन- ५ गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है. स्तवनचीवीसी, मु. रवि, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि (-); अंति: रंग बरहानपुर मझारी, स्तवन- २४, पूर्ण. २. पे. नाम. तेजसिंहगुरु भास, पृ. ७आ. क्र. तेजसिंह- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि आजनुं दिवस भाई सफल; अंतिः रिषशिष्य भणी ए भास, गाथा ६. ३. पे. नाम. तेजसिंह भास, पृ. ७आ. मा.गु., पद्य, आदि: सह गुरु मन मोहनारे; अंति: प्रेम प्रभु गुणरोहना, गाथा-४. १८४८७. कर्मग्रंथ १-४, संपूर्ण वि. १९२३ चैत्र कृष्ण, ३०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ४, ले. स्थल. ममोइ (मुंबई), प्रले. नंदराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२, ११-१२X३४-४४). १. पे नाम, कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १-४आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहि गाथा - ६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४-६ आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. ३. पे. नाम, बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ६ आ-७आ. For Private And Personal Use Only आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा - २५. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ७आ - १२आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जियमगण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाधा-८६. १८४८८. कर्मग्रंथ १-४, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२४.७४११.१, ११५४२-४९). Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १-४आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय; अंतिः लिहिओ देविंदसूरीहि गाथा - ६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४आ- ६अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ६अ-७आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोठं, गाथा-२५. ४. पे. नाम षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ७आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मात्र प्रथम गाथा है. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जियमगण; अंति: (-), अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४८९. (+) चंपकमाला से रास, संपूर्ण, वि. १७०५, वैशाख शुक्त, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्रले. मु. धना ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११.६, १५-१७४३१-३९). चंपकमाला रास, क्र. पुनमचंद, मा.गु., पच, वि. १५७८, आदि आदि जिनवर २ आदि मुनी; अंतिः ते लहि कोडि कल्याण, गाथा - ६२०. १८४९०. कर्मग्रंथ १-४, संपूर्ण, वि. १८२७, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ४, ले. स्थल. सीहोर, जैदे., (२६x१२, ११४३२-३६). १६९ १. पे. नाम. प्रथमकर्मग्रंथ सूत्र, पृ. १अ - ४आ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं बंदिय; अंतिः लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६१. २. पे नाम. कर्मस्तव सूत्र, पृ. ४-६ आ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्म, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व, पृ. ६आ-८आ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा - २५. ४. पे. नाम. चतुर्थ कर्मग्रंथ, पृ. ८आ-१३आ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा -८६. १८४९१. (+) अंतगडदशासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.१४१२, " २-९४४०-४४). अंतकृदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेनं० चंपा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय ९२, ग्रं. ८९९. For Private And Personal Use Only अंतकृद्दशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणइ कालड़ चउथा; अंति: माहर मत थकी नथी कहतो. १८४९२. गोडीपार्श्वनाथजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५१ फाल्गुन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. वह प्रति में रचनावर्ष वि. १८०७ मिलता है. जै. (२४.५४११.५, १३-१५x२६-३३). " ラ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वनाथ स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुंनित परमेश्वर; अंति: इम नेमविजय जयकार, ढाल-१५. १८४९३. प्रश्नसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२४.५४११.५, २०-२३४४८-५६). प्रश्न संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: १ सिद्धविग्रहगइ; अंति: ग्रं. २८५ प्रश्न. १८४९४. (+) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८७४, वैशाख शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१२४) हेतकर पोथी लखी, जैदे., (२४.५४१२, ११-१२x२१-२८). स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर सेवना; अंति: वसीयो तु विसवावीस रे, - स्तवन-२४. १८४९६.(+) प्रत्येकबुद्ध चरित्र, संपूर्ण, वि. १९८३, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. खीमचंद पोपटलाल गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, २०४५७-६१). ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., पद्य, आदि: करकंडू कलिंगेषु; अंति: मोक्ष पदं प्राप्ताः. १८४९७. (+#) अमरकुमार सुरसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३२, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. ऋ. वच्छराज; पठ. पं. मनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३४-४०). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनउ सलहियइ; अंति: आनंद लील उमंगेजी, अध्याय-४ ढाल ४०, गाथा-६१३. १८४९८. (+) पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, ११-१३४२४-३५). पंचकल्याणक पूजा, सं., पद्य, आदि: वृषभाय नमस्तुभ्यं; अंति: पूजितो मुक्तिलोकः. १८४९९. नवतत्त्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.६४११.९, १५४३८-४०). नवतत्त्व विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: अथ जीवरा भेद १४; अंति: (-), अपूर्ण. १८५००. ऋषभदेव स्तोत्रम्, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५४१२.२, ९४२४-२८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. १८५०१. शीलसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल १७ गाथा ७ अपूर्ण तक है., जैदे., (२५४१२, १३-१५४३०-३६). शीलसुंदरी चौपाई, पंन्या. राजविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: त्रिहुं जगनो शंकर; अंति: (-), अपूर्ण. १८५०२. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(४,७) =७, जैदे., (२५.५४१२, ११-१२४२८-३४). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, अपूर्ण. १८५०३. सिद्धाचलएकवीसनाम व जयकल्परासीस्तुति, संपूर्ण, वि. १८८९, कार्तिक कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १२४३०-३२). १. पे. नाम. श्रीसिद्धाचलगिरीराज नाम २१, पृ. १अ. ___ शत्रुजयतीर्थ २१ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशेजय नमः; अंति: सर्वकामपूरणाय नमः. २. पे. नाम. श्रीसिद्धगिरी जयकल्परासी स्तुति, पृ. १अ-५आ. For Private And Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदेश्वर अजरामर; अंति: वेली सुजसे जय सिरि, गाथा-१०९. १८५०४. श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५४१२, १०४३४-३६). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. १८५०५. (+) भुवनदीपक सह टबार्थ व षडवर्गफल, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ७२३२-३७). १. पे. नाम. भुवनदीपक सह टबार्थ, पृ. १अ-१३आ. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७०. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती सबंधी यो मह; अंति: सूरि इसो नामे आचार्य. २. पे. नाम. षड्वर्गफल, पृ. १३आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: होरास्थिते वासरपश्य; अंति: (-), अपूर्ण. १८५०६. अभिधानचिंतामणी नाममाला-शेषसंग्रह, संपूर्ण, वि. १६७३, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६४१२, १३-१४४३०-३५). अभिधानचिंतामणि नाममाला-शेष नाममाला, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: निपात्यंते पदे पदे, श्लोक-२०४. १८५०७. (+) महानिशीथसूत्र गाथा दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १९३१, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. कामठी, प्रले. पं. केसरीसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १२-१६४२९-४६). महानिशीथसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भवसयसहस्स० अर्हत; अंति: अविधि करे तो पिण फलै. १८५०९. (+) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ११ गाथा २१ तक है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १२४२७-३१). साधुवंदना रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक गुणनिलो; अंति: (-), अपूर्ण. १८५१०. (+#) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ५ गाथा ४ अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ११४२८-३०). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), अपूर्ण. १८५११. (-) प्रीयमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६५, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. सोजत, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११.५, २२४३६-४६). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११. १८५१२. हरीबलमाछी रास, संपूर्ण, वि. १८१२, आश्विन शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. ४५+१(२६)=४६, प्रले. मु. मुकंद ऋषि; पठ. मु. हंसराज वैरागी ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२५.५४१२, ११-१२४३१-३७). हरिबल रास, मु. जितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदाई समरु सदा; अंति: पूरे शंखेसर आसो रे, गाथा-८३४. १८५१३. (+) तत्वार्थसारदीपक, पद व यंत्र, संपूर्ण, वि. १८६८, पौष शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, ले.स्थल. सुभटपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१२, १२४३२-३४). For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. तत्त्वार्थसारदीपक-ध्यानस्वरूप-अध्याय ५, पृ. १आ-१०अ. तत्त्वार्थसारदीपक, सं., प+ग., आदि: ज्ञानांदैकरुपाय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. गुरुगुण गीत, पृ. १०अ-१०आ. पुहिं., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरन सरोज; अंति: गाढीसु रतिसुं नितं. ३. पे. नाम. यंत्रसंग्रह, पृ. १०आ. यंत्र संग्रह, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). १८५१४. (+) वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. श्राव. कल्याणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १०४२१-२७). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३. १८५१६. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४२९-३५). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: सेत्तं परोक्खणाणं, गाथा-७००. १८५१८. संबोधसत्तरी व गौतमकुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, कुल पे. २, ले.स्थल. घ्राणपुर, प्रले. मु. बुधसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, ६४२७-३३). १.पे. नाम. संबोधसत्तरी सह टबार्थ, पृ. २अ-८अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा १२ तक नहीं है. संबोधसत्तरी, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-७२, अपूर्ण. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: पामइ इहां संदेह नही, अपूर्ण. २. पे. नाम. गौतम कुलक सह टबार्थ, पृ. ८अ-१०आ. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य अर्थने; अंति: भव्या सुख लहति. १८५२०. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४११, ९४३३-३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. १८५२१. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७५०, मार्गशीर्ष, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(२)=१८, पू.वि. गाथा ३-६ नही है., ले.स्थल. द्वीपबंदिर, प्रले. ग. विनयविजय; पठ. श्रावि. सुंदरबाई, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५००, जैदे., (२५४११.५, २४२४-२६). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०, पूर्ण. वंदित्तुसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ सर्व अरिहंत; अंति: चउवीस तिर्थंकर प्रति, पूर्ण. १८५२२. नवपद नमस्कार व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, ९-१३४२८-३१). १. पे. नाम. नव नमस्कार, पृ. १अ-९अ. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नये न अधूरी For Private And Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org २. पे. नाम. ८ प्रकारी पूजा, पृ. ९अ-१०अ. अष्टप्रकारी पूजा, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलभासनभासन; अंति: भिन्नन्तु भागवती, श्लोक १०. १८५२३. (+) अनुत्तरोववायदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११.५, ९X३४-३६). अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः अणुत्तरोबवाईदसाणं, अध्याय-३३. १८५२४. सुविधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., ( २४४११, ८- ९२६-३२), सुविधिजिन स्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुविधि जिणंद, अंति: गुण देवाधिदेवना रे, गाथा - ३१. १८५२९. सुदर्शनश्रेष्ठी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, जैदे., (२५X११, १२-१३X३१-३३). सुदर्शन श्रेष्ठी रास, मु. मुनिसुंदरसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५०१, आदि: पहिलउ प्रणमिसु; अंति: चतुर्विध संघ प्रसन्न, गाथा - २७०. १८५३०. स्थुलिभद्र शीयलवेल, संपूर्ण, वि. १८८२ वैशाख कृष्ण, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. १०+१ (८) -११, जैवे., (२५.५X११, १२-१३३०-३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थूलभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजी; अंति: विमला कमला वरशे रे, ढाल - १८. (+) १८५३२. (0) आलोयना विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये., (२४४११, ११-१३३७-३९). १. पे नाम. आलोचना, पू. १अ. आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदिः आलोचन वरस ५ लगि माता; अंति: सज्झाय ७००००. २. पे. नाम. आलोयना, पृ. १आ. आलोयणा, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि पणगई पणवीसं भिन्नो; अंतिः सोही एएण चित्रेण, गाथा ५. ३. पे. नाम. आलोयनाविधि, पृ. १७अ. आलोयना विधि, मा.गु., गद्य, आदि ज्ञानना अतिचार जघन्य; अंति भंगविकप्पे हि अईयारा. १८५३४. कुमारपालरास व श्लोक, पूर्ण, वि. १७८०, आश्विन शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०५ - ३ ( १०२ से १०४ ) = १०२, कुल पे. २, ले.स्थल. पत्तन, प्र. वि. संशोधित., प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२७४१२, १३x५३ ). १. पे. नाम. कुमारपाल रास, पृ. १आ-१०५अ पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. २. पे. नाम. लोक संग्रह, पृ. १०५आ. १७३ मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्म, वि. १७४२, आदि: श्रीसरसति भगवति नपुं; अंतिः ओगणत्रीस दाळ गावो हो, ढाल १२९, गाथा-२८७६, ग्रं. ४१६०, पूर्ण. श्लोक *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १. For Private And Personal Use Only १८५३६. (+) मुनिपतिचरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, आषाढ़ शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९१, ले. स्थल. गेडीग्राम, प्रले. मीचंद लिख. पं. खुस्यालविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे. (२६.५x११.५, ५४२५-२८). Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. ११७२, आदि नमिठण वद्धमाणं चठ; अंतिः रम्मं हरिभदसूरीहिं, " गाथा - ६४७. मुनिपति चरित्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमानंदप्रावं; अंतिः नामे सूरीइ रच्युं छे. १८५३७. आचारांगसूत्र सह टबार्थ प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७०-१ (२) - ६९, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., उपधान अध्ययन उद्देशक - ४ गाथा १३ तक है., जैदे., (२६X११.५, ५X३७-४२). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, ऋ. देवजी, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु सारसुरसाखी; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १८५३८. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८९९, भाद्रपद, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९६, ले. स्थल, राजद्रंग, प्रले. मु. वखतचंद; पठ. पं. शोभाचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २६४१२, १०x२९-३३). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: भव्य जीवने प्रतिबोध; अंतिः तिथि सफल फली मन आस. १८५३९. (+) संग्रहणीसूत्र, पातालकलश गाथा सह टबार्थ व सातनारक प्रस्तरनाम, संपूर्ण, वि. १७९०, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५१, कुल पे. ३, ले. स्थल. धूनाड, प्रले. पं. नायक; पठ. पं. अमृतविजय गणि (गुरु पं. भाणविजय गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंत मे द्विप समुद्र के नामादि का कोष्टक दिया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., .जैदे. (२६.५x१२, २-९४१८-५१). १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी सह टवार्थ, पृ. १-५१आ. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिठं अरिहंताई ठिङ; अंतिः जा वीरजिण तित्वं, गाथा - ३०५. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदिः नमिउं क० नमस्कार करी; अंतिः तां लगें जयवंत थाओ. २. पे. नाम. सप्तनारक प्रतरनाम, पृ. ५१ आ. प्रा., गद्य, आदि: सिमंत उच्छ पढमो बिउ अंति: उत्तर पासे महारूरो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. पातालकलश गाथा, पृ. ५१ अ. प्रा., पद्य, आदि जोयण सहस्सदसगं मूले; अंति: मज्झे वाउय उदगं च, गाथा ४. पातालकलश गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि हवे पातालकलश प्रमांण; अंतिः विचे वायुने पाणी छे, १८५४१. (#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९५३, भाद्रपद शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५७-११३(१ से ११३)=४४, पू.वि. नेमिजिनकल्याणक से अंत तक है., ले. स्थल. जैतपुर, प्रले. मु. अनोपचंद ( बृहन्नागपुरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १४४५-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान - ९, अपूर्ण. कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: गुरु कहे शिष्य प्रते, अपूर्ण. १८५४२. (+) चंद्रलेहा चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल २८ तक है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५X११.५, १२X३०-३१). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७५ १८५४३. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०९-९(१,८७,९५,१०३ से १०८)+१(७८)=१०१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., नवकारसूत्र के अपूर्ण बालावबोध से अड्डाईज्जेसुसूत्र तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२-१५४३०-५८). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८५४४. (+) सिंदूरप्रकर सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १९०१, आश्विन शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०२, कुल पे. २, ले.स्थल. सांडीया, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ९-१३४३०-३९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-बालावबोध व कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शारदाचरणयुग्ममतीतपाप; अंति: मयी मूर्खेकृतकृपैः. १८५४५. (+#) अभिधान चिंतामणी नाममाला, संपूर्ण, वि. १८६२, आषाढ़ शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. ८६, ले.स्थल. लोटोती, प्रले. ऋ. फतैचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (७०७) अज्ञानभावान्मतिविभ्रमाद्वा, जैदे., (२७४११.५, १३-१४४३६-४४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. १८५४६. (+) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टबार्थ व गाथा, संपूर्ण, वि. १८०२, वैशाख, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १३१, कुल पे. २, प्रले. मु. लाधाजी ऋषि; पठ. मु. श्रीराम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ११-१४४३७-४३). १. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १आ-१३१अ. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नवईउ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, म. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७०२, आदि: प्रणिपत्य पार्श्वदेव; अंति: न लोहोत्तमतां दधाति. २. पे. नाम. जिनमातापितागति गाथा, पृ. १३१अ. प्रा., पद्य, आदि: अट्ठहिं जणणीओ तित्थ; अंति: माहिंदे अट्ठ बोधव्वा, गाथा-२. १८५४७. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०७, कार्तिक शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३७३, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. ललितादास ब्राह्मण; पठ. रिधकर्ण कोठारी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४१२, ६४२५-३६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० चपाए; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, अध्ययन-१९, ग्रं. ६२००. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: धर्मकथा संपूर्ण थइ, ग्रं. १३०००. १८५४८. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथम श्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८१७, ज्येष्ठ, ३, मध्यम, पृ. ७९, पू.वि. प्रथम श्रुतस्कंध, आठ अध्ययन चतुर्थ उद्देशक तक है., ले.स्थल. काढली, प्रले. मु. दीपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ५-१४४३३-३७). For Private And Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग शब्दना पद २; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८५५१. (+) ठाणांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६३५, श्रेष्ठ, पृ. १३९, ले.स्थल. मांडण, प्रले. फलूआ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक ९९ व १०० दोनो एक ही पत्र पर है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, ११-१३४३०-३८). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणता पण्णत्ता, स्थान-१०, ग्रं. ३७७०. १८५५२.(+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ-द्वितीय श्रुतस्कंध, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७७-१(१)=१७६, प्र.वि. अंत में हरेक अध्ययन की सूत्र संख्या का कोष्टक दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५४३०). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चंति त्तिबेमि, प्रतिअपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होइ एम हुं कहुं छु, प्रतिअपूर्ण. १८५५३. (+) भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६८४, पौष शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५६+१(३२२)=४५७, ले.स्थल. जेसलमेरुदुर्ग, प्रले. श्राव. पुंजा लुंकागच्छ; श्राव. कचरा लुकागच्छ; पठ. मु. वर्धमान (लुकागच्छ); मु. धर्मसिंह (लुकागच्छ), प्र.ले.प. अतिविस्तृत, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका के अंत में "पर्यायार्थः किंचिन्न्यूनः पूर्वं लिपीकृतः स पूज्य श्रीकान्हजी तत्शिष्यः श्रीमद्वर्धमानस्तदंतेवासिना मुनित्रिविक्रमाभिधेन टीकाया नूतनः कृतः। पश्चात् पूज्यश्रीवर्धमानस्तच्छिष्येण मुनिपंचाननेन लिपीकृतः।" इस तरह का पाठ है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ८-१४४३५-५०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: संति करितं नमस्सामि, शतक-४१, ग्रं.१५७७५. भगवतीसूत्र-पर्यायार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ विवाहपन्नत्तित्ति; अंति: छइ इत्यर्थः. १८५५४. (+) प्रबोधचिंतामणी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१०, आषाढ़ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १४९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ८४२९-३४). प्रबोधचिंतामणि ढाल, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: चिदानंद चित चाहमुं; अंति: आपे नवेइ निधानाजी, खंड-६ ढाल ७६, ग्रं. २२००. १८५५५. (+) सारस्वती दीपिका टीका-आख्यात प्रक्रिया, पूर्ण, वि. १७८७, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ८८-१(५)=८७, ले.स्थल. वीकपुरी, प्रले. पं. जयसमुद्र (गुरु पं. लब्धिकमल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ६७+२१ इस प्रकार दो अनुक्रमों में पत्रांक दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १५४३८-४०). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: सरस्वती सदाभक्त; अंति: प्रभुचंद्रकीर्तिः, वृत्ति-३, ग्रं. ७५००, पूर्ण. १८५५६. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३३, कार्तिक शुक्ल, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. ऋ. दयालदास (गुरु ऋ. ज्वालानाथ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ६x६६-७०). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाण, गाथा-१०४, (वि. १८३३, कार्तिक शुक्ल, १४, रविवार) For Private And Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७७ वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चतुर्गति रूप संसार; अंति: शास्वत उठा० स्थानक. १८५५७. रत्नपाल चौपाई व श्लोक, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६३, कुल पे. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६४११, १३४२६-२८). १. पे. नाम. रत्नपालरत्नावती चौपाई, पृ. १अ-६३आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: (-), पूर्ण. २. पे. नाम. जैन श्लोक*, पृ. १अ. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८५५८. जीवाभिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९१, जैदे., (२७४११, ११४४०-४४). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०. १८५५९. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, पूर्ण, वि. १७७१, फाल्गुन शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. २१७-४(६४ से ६७)=२१३, ले.स्थल. अहिमदाबाद, प्रले. मु. अमृतसुंदर (गुरु मु. रत्नसुंदर); राज्ये गच्छा. लक्ष्मीचंद्रसूरि (गुरु आ. विमलचंद्रसूरि, पूर्णिमापक्ष), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४३४-३९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० चंपाए; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, __ अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००, पूर्ण.. १८५६०. धन्य चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पल्लव ५ गाथा ९८ तक है., प्र.वि. मात्र प्रथम पत्र पर टबार्थ है., जैदे., (२६.५४११.५, ६x४०-४३). धन्य चरित्र शाली, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स श्रेयस्त्रिजगद; अंति: (-), अपूर्ण. १८५६१. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ११४३५-४०). बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण , आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहर निभस्स; अंति: समयखेत्तस्स परिरओ, गाथा-१४२. १८५६२.(+#) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८, प्रले. मु. धर्मसिंह ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, ११४४०-४७). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाइं नामाई, गाथा-७००. १८५६३. चंदनबालासतीरास, संपूर्ण, वि. १८७३, कार्तिक शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. कांघल, प्रले. तुलसीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४३१-३३). चंदनबाला चौपाई, मु. ब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: मोह पिसाच वसकरणकुं; अंति: चहु गत तणां फंदतो, गाथा-१६०. १८५६४. (#) दशवकालीकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३०-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, __ अध्ययन-१०, गाथा-७००. १८५६५. (+) अनुत्तरोववाई दशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, ११४३७-३९). For Private And Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७८ www.kobatirth.org (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः अणुत्तरोबवाईदसाणं, अध्याय-३३. १८५६६. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे., (२७४११, ११४३६-४० ). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि; अंतिः गई त्ति बेमि, अध्ययन - १०, गाथा- ७००. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८५६७. (+) उपदेशचिंतामणीटीका व जंबूस्वामी कथा, अपूर्ण, वि. १५०१ श्रावण कृष्ण, १, बुधवार, जीर्ण, पृ. ४९-३२(१ से ३२)+१(३६)=१८, कुल पे. २, ले. स्थल. पत्तन, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X११.५, १५x५२-५६). १. पे नाम, उपदेशचिंतामणि टीका-जिनधर्मप्रशंसाधिकार, पृ. ३३अ, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. " उपदेशचिंतामणि- स्वोपज्ञ टीका, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य वि. १४३६, आदि: (); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २. पे नाम, जंबूस्वामी कथा, पृ. ४९. सं., पद्य, आदि देशोस्ति मगधनामा; अंतिः वव्रे यतस्तद्दिनात् श्लोक ७२१, 9 १८५६८. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण वि. १६९९ आश्विन शुक्ल, १०, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले. स्थल, देवपत्तन, लिख. वा. कल्याणसागर गणि पठ. पं. यशोविजय; मु. विद्याविजय मु. मेरुतिलक, मु. मानतिलक, मु. कीर्तिसमुद्र, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १३x४९-५५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय- १०, गाथा - १२५०. १८५६९. (+) दशवैकालीकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४७, पठ. सा. लीलाइ प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२७४११, २-८४३१-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे; अंति: गइं त्ति बेमि, अध्ययन - १०, गाथा - ७००. दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: दुर्गति पडतां जीवनइ; अंति: अपुनरागति मोक्षगति. १८५७०. (+) ऋषभजिन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६०९, आषाढ़ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. राजशेखर ( खरतरगच्छ); पठ, पं. जीवरंग ( खरतरगछ); राज्यकाल गच्छा. जिनमाणिक्यसूरि ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें पंचपाठ, प्र. ले. श्रो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं जैदे., ( २६.५४११, ७-११२६-२९). आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, आ. विजयतिलकसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं पणमीव देव; अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा - २१. आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीविजयतिलकमहो; अंतिः कविनां निष्कलंक:. For Private And Personal Use Only १८५७१. (+) नागश्री कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४ - ३ ( १, ४, ७) = ११, पू. वि. पूर्णता गाथा ३७१ है., ले.स्थल. नागपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X११, ११x४१-४५). नागश्री कथा, मु. ब्रह्म नेमिदत्त, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कुर्यात्सतां मंगलं, श्लोक-३७१, अपूर्ण. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १७९ १८५७२. (+) नलदमयंती रास, पूर्ण, वि. १६३२, फाल्गुन, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, पू.वि. गाथा १-२७ नही है., प्रले. ऋ. राजा (अंचलगछ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १५-१६x४४-४८). नलदमयंतीरास, आ. ऋषिवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५१२, आदि: (-); अंति: नवनिधि तही भणिए, गाथा-३२७, पूर्ण. १८५७३. (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, पठ. ऋ. कुंवरजी (गुरु ऋ. जीवराज, लोंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, १२-१५४३४-४०). विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: २० सतक उद्देस; अंति: बीजानी भणवू नही. १८५७४. सुरसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १६६४, फाल्गुन कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. श्रावि. रंगाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११, १३-१६४३५-३९). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: आदि धर्मनी करिवाए; अंति: भणइ सुख लहो आणंदपुरि, ढाल-२१, गाथा-५१०. १८५७५. (+) दशवैकालीकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., विनयसमाही अध्ययन ९ उद्देश ४ अपूर्ण तक है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, १३४४८-५५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), अपूर्ण. १८५७६. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पूर्णता अ. १० गाथा ६ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ११४४५-५१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), अपूर्ण. १८५७७. राजप्रश्नीयसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१(१)=४३, जैदे., (२६.५४११.५, १५-१६४४६-५२). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: पस्से पस्सावणीए णमो, ग्रं. २२२०, पूर्ण. १८५७८. (+) चौवीस दंडक त्रीस द्वारविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडकरणे शक्ति गाहाण; अंति: अने निरंतर बेहू उपजि. १८५८०. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-अध्ययन५, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १८४५३-६०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८५८१. पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७७३, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. संग्रामपुर, प्रले. पासदत्त; पठ. नीका व्यास, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११, १३४४४-४६). पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पार्श्वः पातु नतांगि; अंति: मुच्यते नात्र संशयः, श्लोक-१५०. १८५८२. (#) ज्योतिषसार सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ७४३४-४१). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विवर्जए शशिवत्, श्लोक-२१०, पूर्ण. ज्योतिषसार- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: चंद्रमानी परई, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८५८४. (#) योगविधान, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७४११, १६-१७४४६ ५६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगविधि, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण जिणवराणं गणहा; अंति: (-), अपूर्ण. १८५८५. अभिधानचिंतामणी नाममाला, संपूर्ण, वि. १७७७, आश्विन शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले. स्थल. देवलीया, प्रले. मु. पाथा; पठ. श्राव. नारायणजी; श्राव. वासणजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., ( २६.५X११.५, १३-१५X४३-४७). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्ताबु नतौ नमः, कांड-६. १८५८६. | हंसराजवच्छराज रास व जैन सुभाषित गाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. २, प्रले. मु. हाथी ऋषि ( गुरु ऋ. मांडण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे., ( २६.५x११.५, १३-१५X३५-४० ). १. पे. नाम. वच्छराजहंसराज चतुष्पदी, पृ. १आ - २१ आ. असाइत नायक, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: अमरावई समाणां पंखि; अंति: भगइ आसाइत अफला फलाइ, खंड- ४, गाथा- ४३८. २. पे. नाम. जैन सुभाषित गाथा, पृ. २१ आ. जैन गाथा *, प्रा., सं., पद्य, आदि: ( - ); अंति: ( - ), गाथा - ९. १८५८७. नवकार बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२६.५x११.५, ११X३०-३४). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं क०; अंति: (-), अपूर्ण. १८५८८. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५५ - २ (१ से २) = ५३, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७X११.५, ११X३३-३९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण, १८५८९. नवतत्त्वभाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, जैवे. (२६.५x११.५, ९-१२४३१-३८). नवत्त्वभाषा, मु. निहालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: मंगलकरन हरन दुखदंद; अंतिः दिन दिन अधिक रे आणंद, गाथा- १४९. " १८५९१. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, पू. वि. गा. १९४, जैवे. (२६.५x१२, ११४३६-४० ). वृहत्क्षेत्रसमास- लघुक्षेत्रसमास, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: झाज्जा सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५, गाथा - १९४. १८५९२. . (+) कामावती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, पठ. मु. लाघा ऋषि; प्रले. मु. रणछोड ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५x११.५, १३३०-३६). कामावती रास, शिवदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणपति सरस्वती; अंति: करुं सहुनी नरहरी, गाथा - ५६८. १८५९३. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६४५, कार्तिक शुक्ल, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. आणंदराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रारंभ की दो गाथा का टबार्थ मिलता है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७X११.५, ७X३०-३५), कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. For Private And Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १८१ १८५९४. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, ले.स्थल. जइतापुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४११.५, ५४२९-३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए चउशरणनी विषइ; अंति: सुख पामि अनंत. १८५९७. (+) आलावा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२४, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. दीवबिंदर, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४११.५, ७४३७-४२). भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८५९८.(+) वीरसेन रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१३.५, १५४४५-५३). वीरसेनराजा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: सरसती भगवती भारती; अंति: ते सुखीआ चिरकालजी. १८५९९. कल्पसूत्र समाचारी व्याख्यान सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. वाणारसी, प्रले. पं. लब्धिसागर; पठ. सा. सिखरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२, ५-११४३२-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ए भगवंते उपदेस दीधो, प्रतिपूर्ण. १८६००. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, जैदे., (२७४१२, १३४३१-३८). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: से तं नंदी सम्मत्ता, गाथा-७००. १८६०१. सिंदूरप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. गाथा ७९ अपूर्ण तक है., जैदे., (२६.५४११.५, ६४३३-३५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनउ समूह तपरुप; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८६०२. पाक्षिकसूत्र व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७९४, भाद्रपद कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३, ले.स्थल. जैतारण, प्रले. शिवराम; पठ. पं. दीपचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३३-४१). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १आ-११आ. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ११आ. प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमपतिमिर तरणं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. ३. पे. नाम. वीरजिनस्तुति, पृ. ११आ. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. For Private And Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८६०३. (+) चतु:शरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०९, भाद्रपद कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. धरांगधरादुर्ग, प्रले. मु. मोहनरत्न (गुरु मु. कल्याणरत्न-शिष्य), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४११.५, ५४४४-४६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६२. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावधयोग क० पाप; अंति: शास्त्र ते कारण छइ. १८६०४. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७६६, फाल्गुन कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. २०-४(२,१४ से १६)=१६, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. मानहंस, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४५). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: बंभदिसिनाण भत्तेसु, अपूर्ण. षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रति माहरु; अंति: नियम संभारवा संखेपवा, अपूर्ण. १८६०५. सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १८१५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. खेटक, प्रले. मु. अमृतरत्न (गुरु पं. जिनरत्न गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४३). ज्ञानपंचमीपर्व कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५२. १८६०६. चौवीसदंडक ओगणत्रीस द्वारविचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, जैदे., (२७४१२, ११४३२-३६). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: अनंतगुणा अधिका जाणवा. १८६०७. कल्पसूत्र की पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२७४११.५, १६४५०). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: थेरावली चरीयं. १८६०८. सेव॒जय रास, संपूर्ण, वि. १९०७, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२६.५४१२, ११४२२-२४). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: थकां ए पामीजै भवपार, ढाल-६, गाथा-१२२. १८६०९. अवंतीसुकमाल चोपाइ, संपूर्ण, वि. १८३७, वैशाख कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. वाढवास, प्रले. पं. कनकमूर्ति (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ११-१२४२८-३०). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: आदीसर अरिहंतने नमिण; अंति: संतहरख सुख पावैरे, ढाल-१३, गाथा-१०३. १८६१०. (+) चौवीसदंडकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. पतन, प्रले. पंन्या. ज्ञानविजय (गुरु पंन्या. नेमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध्यात्वा शंखेश्वर; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. अंतिम तीन ___ गाथा का टबार्थ नही लिखा गया है.) १८६१२. अयवंतीसुकमाल चौपी, संपूर्ण, वि. १८५७, वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. वाठवास, प्रले. पं. कनकमुर्ति (गुरु मु. उदयवल्लभ, भावहर्षसूरिगच्छ); पठ. मु. नंदलाल; मु. खुसालचंद (गुरु पं. कनकमुर्ति, भावहर्षसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४१०.५, ११-१३४३५-४१). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: आदीसर अरिहंतनें नमिण; अंति: शांतिहरख सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०३. For Private And Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १८३ १८६१३. शालिभद्रधन्ना चरित्र, संपूर्ण, वि. १८०८, कार्तिक शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. पं. कस्तुरविमल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (७१०) यादृसं लिखितं राम, जैदे., (२५.५४११.५, १७-१८४४३-४८). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासण नायक समरीये; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ, ढाल-२९, गाथा-५११. १८६१४. (+) शतक व सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ३४२३-२५). १. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १आ-२९आ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनइ जिन प्रति; अंति: संभारवाने अर्थइ. २. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. २९आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १ अपूर्ण तक है. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: (-), अपूर्ण. १८६१५. चौवीसदंडक ओगणत्रीसद्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. वीरपुर, जैदे., (२७४११.५, १२४३२-३८). दंडकना ओगंत्रीस द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: अनंतगुणा अधिका कहवा. १८६१६. संबप्रजून चोपाइ, संपूर्ण, वि. १७५३, पौष शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. रानेरबिंदर, प्रले. पं. मेघविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११.५, १४-१५४४६-५२). सांबप्रजुन चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: पभणइ संघ सुजस जगीस ए, खंड-२, ढाल २२, गाथा-५५०. १८६१७. (+-) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. सरवार, प्रले. सा. वेदन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११.५, २२४३६). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: परकम्मणो आवसहीइ; अंति: वोसिराइनइ कालअणवकं. १८६१८. रूपचंद्रकुमार रास, अपूर्ण, वि. १७१५, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ८२-४३(१८ से ६०)=३९, ले.स्थल. वासानगर, प्रले. ग. लक्ष्मीविजय (गुरु पं. कमलविजय गणि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६४११, १३४३९-४३). रूपचंद्रकुमार रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: अर्हतसिद्धगणेंद्रो; अंति: घर निश्चे अफळां फळे, खंड-६, अपूर्ण. १८६१९. (+) हरिवाहन व संग्रामसूर कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४-१७४४९-५१). १. पे. नाम. हरिवाहन कथा, पृ. १अ-६अ. सं., पद्य, आदि: भोगिभिर्विहितावासानं; अंति: श्रियः स्युर्यथा, श्लोक-२०८. २. पे. नाम. संग्रामसूर कथा, पृ. ६अ-९अ. प्रा., गद्य, आदि: अत्थि इहेव जंबुदीवे; अंति: समिहियत्थं जह पाउणेह. For Private And Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८६२०. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ- प्रथम श्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १६१५, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ५२, प्रले. सा. लीलाबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ७४२९-३६). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: एक दर्शनीनि केवल; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८६२१. (#) अंतगडदशांगसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १९४४९-५०). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: जहा नाया धम्मकहाणं, ग्रं. ७५०, पूर्ण. १८६२२.(#) पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २७, जैदे., (२६.५४११, ६x२९-३४). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर प्रति० संघ; अंति: सागरनइ विषइ भक्ति छइ. १८६२३. जिनस्तव संग्रह सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र.वि. पंचपाठ. कुल ग्रं. २३३, जैदे., (२७४१०.५, ७४३८-४०). १. पे. नाम. स्तंभनपार्श्वजिन स्तव, पृ. १अ-१आ. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: आयाति नित्यं परमारमा; ____ अंति: क्रियान्मंगलम्, गाथा-९. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: आयाति० के पुरुषाः; अंति: सुंदरसूरिनाम्ना. २. पे. नाम. ऋषभजिन सिंहावलोक स्तव, पृ. १अ-२आ. आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: मनोहरं तं जगतो; अंति: मांगल्यलक्ष्मीः सदा, गाथा-११. आदिजिन स्तव-सिंहावलोक-टीका, सं., गद्य, आदि: मनोहर० कं पुमान् तं; अंति: माणिक्यसुंदरसूरिणा. ३. पे. नाम. ऋषभजिन यमकबंध स्तव, पृ. २आ-४अ. आदिजिन स्तवन-यमकबंध, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: सुललितकल्याणरुचिं; अंति: जगत्प्रशस्य, गाथा-१६. आदिजिन स्तवन-यमकबंध-टीका, सं., गद्य, आदि: सुललिता० अहं वृषभं; अंति: भावः एवं० सुगम. ४. पे. नाम. युगादिनाथ स्तवन, पृ. २आ-५आ. आदिजिन स्तव, आ. माणिक्यसंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलदानवदेवसभाजितं; अंति: सेवां सदा प्रार्थये, श्लोक-२१. आदिजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, आदि: सकल० अहं चिरं चिरकाल; अंति: पययतात् ध्रुवं. १८६२४. (+) स्वाध्याय व स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १६४८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १४४३६-४४). १. पे. नाम. हीरविजयसूरि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ. मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं मनि समरी रे; अंति: सर्वसंघ सुहकरो, गाथा-१०. २. पे. नाम. हीरविजयसूरि स्वाध्याय, पृ. १आ. For Private And Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन भासन; अंति: प्रतपो कोडी वरीस, गाथा-६. ३. पे. नाम. गुरुस्वाध्याय, पृ. १आ-२अ. मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ थंभण पास जिणेसर; अंति: क्षेमकुशल करुं, गाथा-१६. ४. पे. नाम. विजयसेनसूरि स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ. मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय चरम जिणेसर वीर; अंति: नंदउ जिंहा मेरु महीस, गाथा-७. ५. पे. नाम. हीरविजयसूरि स्वाध्याय, पृ. २आ-३आ. ___ मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: समरिय सरसति माय; अंति: क्षेमकुशल करुं, गाथा-१३. ६. पे. नाम. गुरु स्वाध्याय, पृ. ३आ-४अ. हीरविजयसूरि स्वाध्याय गीत, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु चरणकमल नमी; अंति: मंगलकुशल क्षेमकर, गाथा-११. ७. पे. नाम. विजयसेनरि स्वाध्याय, पृ. ४अ-५अ. मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि वीनवू; अंति: क्षेमकुशल मंगलकरु, गाथा-२३. ८. पे. नाम. हीरविजयसूरि स्तुति, पृ. ५अ. मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु नयरीचंपा अवतरो; अंति: जय क्षेमकुशल मंगलकरा, गाथा-४. ९. पे. नाम. हीरविजयसूरि स्तुति, पृ. ५अ. गच्छा. विजयसेनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य कांति; अंति: विजयसेन० इम उच्चरइ, गाथा-४. १०. पे. नाम. गुरुसज्झाय गीत, पृ. ५अ-५आ. हीरविजयसूरिसज्झाय, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणधर पाए नमु; अंति: पुहंचइ मुज मन आस रे, गाथा-१०. ११. पे. नाम. गुरुसज्झाय गीत, पृ. ५आ-६अ. विजयसेनसूरि सज्झाय गीत, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि समरीइ; अंति: मधुकर दीइ आसीसरे, गाथा-१०. १२. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, पृ. ६अ-७अ. मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी चित्तधरी; अंति: खेमकुशलि ते मिलइ, गाथा-९. १३. पे. नाम. श्रीपट्टचतुष्कसूरिनामगत श्रीहीरविजयसूरि स्वाध्याय, पृ. ७अ-७आ. हीरविजयसूरि स्वाध्याय- पट्टचतुष्कसूरिनामगर्भित, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपति प्रणमइ जस पद; __ अंति: क्षेमकुशल० गच्छ धणी, गाथा-११. १८६२५. (+) विविध विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १९-२१४३७-४४). १. पे. नाम. १० द्वार विचार, पृ. १अ-४अ. लघुसंग्रहणी-जंबूद्वीप विचार*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. आठकर्म विचारसंग्रह, पृ. ४अ-१०आ. मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते कहीयै; अंति: ए तेरह क्षय करि सीझै. For Private And Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८६ www.kobatirth.org ३. पे. नाम, असमाधि स्थान, पृ. १० आ. मा.गु., गद्य, आदि: दबदब सुं चाले तउ; अंति: भाजण खरडी आहार लेवउ. ४. पे. नाम. ३३ गुरुआशातना, पृ. ११अ. ३३ गुरु आशातना, मा.गु., गद्य, आदिः शिष्य गुरु के आगलि; अंति: बैसै उभो रहि सूवै. ५. पे. नाम. मोहनीयकर्मबंध के तीसस्थानक, पृ. ११अ ११ आ. - मोहनीय कर्मबंध के ३० स्थानक, मा.गु., गद्य, आदि जे कोइक पुरुष त्रस; अंतिः अग्वानीनी संगत करे. ६. पे नाम. ३२ बोलसंग्रह प्र. ११ १२अ. मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोल अलोवनी सल; अंति: होय आराधना आराधे. ७. पे. नाम. ३४ तीर्थंकर अतिशय, पृ. १२अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४ अतिशय, मा.गु., गद्य, आदि केश श्मश्रु नख रोम; अंतिः शीघ्र उपशांत हुई. ८. पे. नाम. ३५ जिनवाणी गुण, पृ. १२ आ. मा.गु., गद्य, आदि: संसक्त वचन न बोलइ; अंतिः अविछिन्न वचन कहइ. ९. पे. नाम. आगमगाथा संख्या, पृ. १२आ. मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र नाम आचार ग्रंथ; अंति: १ देसमीकालक १ आसक १. १८६२६. आश्रवादि त्रिभंगीसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ६, जैदे., ( २६.५X११, १४X३६-४७). १. पे. नाम. आस्रवत्रिभंगी, पृ. १आ-३आ. मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: पणमिय सुरिंदपूजिय; अंति: बालिंदो चिरं जयऊ, गाथा-६३. २. पे. नाम. बंधत्रिभंगी, पू. ३५अ. मु. नेमिचंदजिन, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण णेमिचंद असहाय; अंति: बंधस्सं तो अणतो य, त्रिभंगी - ३, गाथा - ४१. ३. पे. नाम. उदयउदीरणा त्रिभंगी, पृ. ५अ-८अ. उदयत्रिभंगी, मु. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: पंचणवदोणिअट्ठावीसं; अंति: चंदच्चियणेमिचंदेण, त्रिभंगी-३, गाथा - ७३. ४. पे. नाम. सत्तात्रिभंगी, पृ. ८अ ९अ. मु. नेमिचंदजिन, प्रा., पद्य, आदि: पंचणवदोणिअट्ठावीसं०; अंतिः सिद्धिं समाहिं च त्रिभंगी- ३, गाथा- ३४. ५. पे. नाम. भावत्रिभंगी, पृ. ९अ - १३अ, पे. वि. गाथा-४४+७३=११७. For Private And Personal Use Only मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: खवियघणघाइकम्मे अरहंत; अंति: पुण्णा दुगुणपुण्णा, गाथा- ११७. ६. पे. नाम विशेषसत्ता त्रिभंगी, पृ. १३-१४आ. विशेषसत्तात्रिभंगी, मु. नेमिचंदजिन, प्रा., पद्य, आदि: णमिण वढमाणं कणयणि अंतिः छक्खंड साहियं सम्म, गाथा - ३९. १८६२७. शांतिक विधि व अष्टाह्निका स्नात्रविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, जैदे., (२६x१२, ११४३४-३७). १. पे नाम, शांतिक विधि, प्र. १-१७अ. मा.गु., सं., गद्य, आदि: अथात्र श्रीनंदीश्वर: अंति: थाली शांतिनिमित्त. Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ९८७ २. पे. नाम. अष्टाह्निका स्नात्रविधि, पृ. १७अ-१८आ. __अष्टाह्निका विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८६२८.(+) सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, २२४४१-५२). १. पे. नाम. सुभद्रासती ढाल, पृ. १अ-४अ. ऋ. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: अरिहंत समरु सदा; अंति: जैणा मुखसुवाचजो, ढाल-७. २. पे. नाम. धन्ना सझाय, पृ. ४अ-४आ. धन्ना सज्झाय, मु. तिलोकसी-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुतोदीप हो धन्ना; अंति: मनमे गहगह्याजी, गाथा-३४. ३. पे. नाम. भीलडी सज्झाय, पृ. ४आ-५अ.. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती स्वामीने; अंति: कह्या मुज असीस देजो, गाथा-२३. ४. पे. नाम. जंबुस्वामी रास, पृ. ५अ-७आ, अपूर्ण. जंबूस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: तीण दिन वात ज सांभलि; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८६२९. स्तवन, पद, सझाय, रेखता, होरी, धमाल, चौढालीयो आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८३९-१८४०, मध्यम, पृ. ५०-१०(२२ से २३,३१ से ३६,४७ से ४८)=४०, कुल पे. ८१, ले.स्थल. वांधोली, प्रले. खुशालराय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १६-१८४४०-५३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ. ___ मा.गु., पद्य, आदि: काया माया कारमी; अंति: कायमाता इण संसारमै, गाथा-५. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ. मु. चंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी हो; अंति: मोय आवागमन निवार, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ.। गंगादास, मा.गु., पद्य, आदि: हिवै जनम प्याला खूब; अंति: सतगुरु लहर पीलावइ, गाथा-४. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ. पुहिं., पद्य, आदि: तन का तनक भरोसा नाहि; अंति: ग्यानी रे तनका, गाथा-५. ५. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. २अ. पुहि., पद्य, आदि: गजसुकुमाल भये वैरागी; अंति: हुए मुक्ति के वासी, गाथा-६. ६. पे. नाम. काया पद, पृ. २अ-२आ. मा.गु., पद्य, आदि: काया मांजत कुन गुना; अंति: कै कडवापण न जाय ते, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: इस जगमाही कोइ नहीअंति: भला दाव ते पाया वे, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ. पुहिं., पद्य, आदि: गइ सो गइ अब राख रही; अंति: अनाथी इन कर्म रुलाया, गाथा-७. ९. पे. नाम. रेखता, पृ. ३अ. मा.गु., पद्य, आदि: सुवा गुजस्त स्याम; अंति: जव आनकै वात जमसै पडी, गाथा-५. For Private And Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८८ www.kobatirth.org १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ. सुखदेव, पुहिं., पद्य, आदि; दमका नही भरोसा वे; अंति: है भगवंतना उर आन, गाथा ५. ११. पे. नाम रेखता, पृ. ३अ-३आ. मा.गु., पद्य, आदि: ऐसी जीवा तै करी रे; अंति: करइ कीया जैसा जीव रे, गाथा-४. १६. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ ४आ. औपदेशिक रेखता, मा.गु., पद्य, आदि: झुठी जगत की आस तजि; अंति: वरै मिट जाय जंजार, गाथा-४. १२. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ३आ. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: नायक रामजी हमारो ऐजी; अंति: कबीर० अब के सावन आइ, गाथा ४. १३. पे नाम. आध्यात्मिक पद, प्र. ३आ. मा.गु., पद्य, आदि: तुझे विरानी क्या पडी; अंतिः तु चरणकमल चित देह, गाथा ५. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, वि. १८३९, माघ शुक्ल, ११, ले. स्थल. अलवर. मा.गु., पद्य, आदि: चेतन मानवै असाडी; अंति: ओर न दुजा सथिया, गाथा-४. १५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ. मा.गु., पद्य, आदि: जगत स्वपुनो जाण रे; अंति: जीवडा ज्यों सुख होइ, गाथा - ६. १७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ. मा.गु., पद्य, आदि: जगत स्वपुनों जाणि रे; अंति: न्याय तुं अवही पिछाण, गाथा - ११. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८. पे. नाम. बुढापा की सज्झाय, पृ. ४आ-५अ. बुढापा सज्झाय, मु. भुधर, पुहिं., पद्य, आदिः आयो रे बुढापो वेरी; अंति: पछताये हइ प्राणी, गाथा - ५. १९. पे. नाम. सीता की सज्झाय, पृ. ५अ. सीतासती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जलजलती वलती घणी रे; अंति: नित प्रणमुं पाय रे, गाथा - ९. २०. पे. नाम हेलीका सज्झाय, पृ. ५अ ५आ. सुखदेव, मा.गु., पद्य, आदि: अरी ए घर आपणा नाहि; अंति: जासी जनम वैजित हेली, गाथा - १०. २१. पे. नाम जीवदया सज्झाय, पृ. ५आ. मा.गु., पद्य, आदि: दयाधर्म विन मुक्ति न; अंति: सक न आणो लिगारा वै, गाथा- ७. २२. पे नाम सीयलमुंदडी, पृ. ५आ-६अ, शीयलमुंदडी सज्झाय, आव. पुनो, मा.गु., पद्य, आदिः सीयल मुंदडी खरीय; अंति: हमारी आवागमन नीवारजी, गाथा - ९. २३. पे. नाम. राजुल सज्झाय, पृ. ६अ-६आ. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु प्रणमुजी पाय; अंति: सिवपुर लीलाजी भोगवे, गाथा-१५. २४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ. मा.गु., पद्य, आदि; सोबत थोडी रे जीव उग; अंतिः मुंज तणी परे जोवोजी, गाथा ६. २५. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. ६आ-७आ. For Private And Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदिः सुग्रीवनगर सुहामणों अंतिः गया छकाया व्रतपालजी, गाथा - २७. २६. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. ७आ. संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुजी संभव; अंति: सुखै लीला से तिरु, गाथा-४. २७. पे. नाम. कबीर पद, पृ. ८अ. औपदेशिक पद, कबीरदास संत, मा.गु., पद्य, आदि: देखा संत सिपाहि सत; अंति: उपर अनहद बाजा बजाइ, गाथा - ८. २८. पे. नाम. तमाकुनी सज्झाय, पृ. ८अ -८आ. तमाकुपरिहार सज्झाय, मु. आणंद, मा.गु., पच, आदि प्रीतम सेती विनवे; अंतिः ते लहै कोडि कल्याण, गाथा १८. २९. पे नाम. जंबूस्वामीपंचभव सज्झाय, पृ. ८आ९आ. मु. रामजी, मा.गु., पद्य, आदि सारद प्रणमु हो के; अंतिः हो के मुनिवर रामजी, गाथा १९. ३०. पे. नाम. तारादे सीलरखन सज्झाय- १३वी ढाल, पृ. ९आ-१०अ. हरिश्चंद्रराजानो रास, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३१. पे. नाम. अरणकमुनिनी सज्झाय, पृ. १०अ १०आ. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनीवर चाल्या; अंतिः मनवंछित फल पामजी, गाथा - ८. ३२. पे. नाम. धनाअणगार सज्झाय, पृ. १०आ. अन्ना अणगार सज्झाय, सिघो, मा.गु., पद्य, आदि: समरुजी साध सिरोमणि; अंतिः भणे मुजने साधनो सरण, गाथा - १५. ३३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १०आ - ११ आ. शांतिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर सोलमा रे; अंति: लाल सेवकनै सुखदाय रे, गाथा - १७. ३४. पे. नाम. नेमफाग, प्र. ११आ. नेमिजिन होरी, मु. वर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमी जिनेश्वर; अंति: खेलै आवागमन मिटाव, गाथा- ११. ३५. पे. नाम. आतम सज्झाय, पृ. ११९आ - १२आ. क. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: दया विन करणी सवै; अंति: तो पावै मुक्त आवाश, गाथा - १०. ३६. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १२ आ-१३ अ. मु. पुनो, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्याजी; अंति: निवार हो स्वामी, गाथा - २२. ३७. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १३अ - १३आ. जीवो, मा.गु., पद्य, आदि: चंचल जीवडा रै मैं तु; अंति: जाप जपो श्रीनवकार, गाथा - १०. ३८. पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. १३-१४अ. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीवाजी; अंतिः ए फल दीघा प्रमाण, गाथा- १४. ३९. पे. नाम. पुंडरीककुंडरीक सज्झाय, पृ. १४-१५अ. For Private And Personal Use Only १८९ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुंडरिककंडरिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कंडरीक ऋद्धि तजी; अंति: महिलमै जाय रे लाला, गाथा-४०. ४०. पे. नाम. चारमंगल सज्झाय, पृ. १५अ-१६अ. मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो मंगल अरिहंतनो; अंति: ए जो मिलै जीभ अनेकतो, गाथा-२६. ४१. पे. नाम. वीर विनती, पृ. १६अ-१६आ. महावीरजिनविनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-२०. ४२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १६आ, वि. १८४०, ले.स्थल. रामगढ. जेठो, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मध्यान करो प्राणी; अंति: करजोडी भाव उलसाणी, गाथा-१०. ४३. पे. नाम. अठारानाता, पृ. १७अ-१८आ. अढारनातरा चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: मानव भव पायोजी उंचै; अंति: लोहट कीयो वखाण रे, ढाल-४. ४४. पे. नाम. प्रमादनी सज्झाय, पृ. १८आ-१९अ, वि. १८४०, वैशाख कृष्ण, ८, गुरुवार, ले.स्थल. वांधोली, पे.वि. दो-दो गाथा की एक गाथानुक्रम से १३ गाथा लिखी गयी है. प्रमाद सज्झाय, गोपालदास, पुहिं., पद्य, आदि: यो प्रमादी जीव जगि; अंति: करणी मुक्ति हि जाइ, गाथा-१३. ४५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १९अ-१९आ. मा.गु., पद्य, आदि: नरभव कुनिक दियावोगे; अंति: केवलग्यान उपाओहगे, गाथा-४. ४६. पे. नाम. बुढारी सज्झाय, पृ. १४आ, वि. १८४०, वैशाख कृष्ण, ९, शुक्रवार, ले.स्थल. वांधोली. बुढ़ापा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: बुढो होलुं होलुंचाल; अंति: बुढारो हुकम चलावइ, गाथा-१४. ४७. पे. नाम. धनाजी ऋष की सज्झाय, पृ. २०अ. धन्नाऋषि सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सुणवाणी वैरागीयोजी ए; अंति: तुम चेतो चतुर सुजाण, गाथा-१२. ४८. पे. नाम. साधुसंगति सज्झाय, पृ. २०अ-२०आ, ले.स्थल. बहादुरपुर. मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: धर वचन सिद्धांत; अंति: मुनि धर्मदास सभागी, गाथा-११. ४९. पे. नाम. गौडी पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. २०आ. पार्श्वजिन लघुस्तवन, वसंत, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन साहिब सांभल; अंति: मुज वंदना त्रिकाल, गाथा-७. ५०. पे. नाम. चित्रसंभूति चौढालीयो, पृ. २०आ-२१आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., तीन ढाल तक है. चित्तसंभुति चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु सरसति सामणी; अंति: (-), अपूर्ण. ५१. पे. नाम. जिनपालजिनरुष चौढालीयो, पृ. २४अ-२५अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रथम ढाल अपूर्ण गा-१२ से मिलता है., ले.स्थल. रामगढ. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: महाविदेह जासैं मोखे, ढाल-४, अपूर्ण. ५२. पे. नाम. शांतिजिनेश्वरजी को स्तवन, पृ. २५अ-२६अ. शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर हथिणापुर अतिहि; अंति: भवना पातिक दूर हरो, गाथा-२९. ५३. पे. नाम. साधुवंदना स्तवन, पृ. २६अ-२६आ. For Private And Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ समोसर्या; अंति: एग राते ने दिवसे ए, गाथा-१२. ५४. पे. नाम. खंधकमुनि चौढालियो, पृ. २६आ-२८अ, वि. १८४०, आषाढ़ शुक्ल, ३, मंगलवार, ले.स्थल. नोगामा. मा.गु., पद्य, वि. १८०५, आदि: आदि सिद्ध नवकार गुरु; अंति: बुधवार गुण गाय रे, ढाल-४. ५५. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २८अ-२८आ. मा.गु., पद्य, आदि: आण जिणारी वरतती रे; अंति: फेर न होवे आवण जीण, गाथा-१९. ५६. पे. नाम. रावणरी सज्झाय, पृ. २८आ-२९अ. रावण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन राणों राजवी; अंति: ज्ञानी वदै सो सार, गाथा-२१. ५७. पे. नाम. भरथरीराजा सज्झाय, पृ. २९आ. कालू, मा.गु., पद्य, आदि: मोती वैरागर छै घणा; अंति: गुरुज्ञान विचार्यो, गाथा-२१. ५८. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. ३०अ. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: ते गुरु मेरे उर वसे; अंति: चढै भूधर भाखै एम, गाथा-१३. ५९. पे. नाम. ४ शरण सज्झाय, पृ. ३०अ-३०आ. क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहलो मंगलीक कहुं एह; अंति: कवियण जीव हो न लहै, गाथा-६. ६०. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. ३०आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १४ तक ही है. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त कहे ब्रह्मराय; अंति: (-), अपूर्ण. ६१. पे. नाम. १४ स्वप्न सज्झाय, पृ. ३७अ, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नही पछिम उगै सुर, गाथा-१७, अपूर्ण. ६२. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. ३७अ-३७आ. मु. जयैतादास, मा.गु., पद्य, आदि: दान एक मन देह जीवडे; अंति: भविजन कहत जैतीदास रे. गाथा-१३. ६३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३७आ. औपदेशिक पद, पुहि., पद्य, आदि: साधु सुपात्र बडे; अंति: अजर अमर पद पाउंगा, गाथा-१२. ६४. पे. नाम. सीताजी सज्झाय, पृ. ३७अ-३८अ. सीतासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रतसामि कु; अंति: (-). ६५. पे. नाम. नवकार होरी, पृ. ३८अ-३८आ. मा.गु., पद्य, आदि: नमु आदि अरिहंतकु जी; अंति: फगुवाद्योह मंगाइ, गाथा-११. ६६. पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. ३८आ. नमस्कारमहामंत्र स्तवन, ऋ. रायचंद, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरिहंत; अंति: कोड भवानां पाप हरो, गाथा-११. ६७. पे. नाम. बाहुबलि सज्झाय, पृ. ३८अ, अपूर्ण, पू.वि. वस्तुतः यह कृति अपूर्ण है. मात्र इसकी अंतिम गाथा मिलती है, किन्तु पत्र क्रमशः है. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६८. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३९अ. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नित नित वांदुजी मुनि; अंति: श्रीविजयदेव सुरोजी, गाथा-९. For Private And Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९. पे. नाम. शिक्षा सज्झाय, पृ. ३८अ-३८आ. मु. केसा, मा.गु., पद्य, आदि: सीख भली हीयडै धरो रे; अंति: सुविचार रे प्रानी, गाथा-१३. ७०. पे. नाम. धमाल, पृ. ३९आ. __मा.गु., पद्य, आदि: दस लछन फाग सुहावनो; अंति: भुज भर करत मुमिलाण, गाथा-६. ७१. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३९आ-४०अ. मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीनाभिकुलगुर; अंति: ग्यानचंद० कोइ न तोल, ढाल-२, गाथा-२६. ७२. पे. नाम. ककाबत्तीसी, पृ. ४०आ-४१अ. ककाबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका कर कुछ काज धर्म; अंति: कोइ रेह पडीजे आयके, गाथा-३३. ७३. पे. नाम. जंबुस्वामी सज्झाय, पृ. ४१अ-४१आ. जंबूस्वामी सज्झाय, पं. शीलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृह नगरी वसै ऋषभ; अंति: सिध तणा गुण गावैजी, गाथा-१५. ७४. पे. नाम. खंधकऋषि चौढालीयो, पृ. ४१आ-४३अ. खंधकऋषि चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: पांचसैइ तिण अवसरै; अंति: करणी करज्यो सहु कोइ, ढाल-४. ७५. पे. नाम. सिवपुर सज्झाय, पृ. ४३अ-४३आ. शिवपुर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अहो सिधसिला सगला; अंति: महारी आवागमण निवार, गाथा-१८. ७६. पे. नाम. पार्श्वनाथ निशानी, पृ. ४३आ-४५अ, वि. १८४०, भाद्रपद शुक्ल, ५, ले.स्थल. नोगामा. पार्श्वजिन घग्घर नीसाणी, मु. जिनहर्ष *, मा.गु., पद्य, आदि: सुख संपति दायक सुरनर; अंति: गुण जिनहर्ष कहंदा हे, गाथा-४७. ७७. पे. नाम. वैराग सज्झाय, पृ. ४५अ-४६अ. वैराग्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु आगम साखिथी; अंति: उलटा बांध्या रे कर्म, गाथा-२७. ७८. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. ४६अ-४६आ. नववाडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जीणेस्वर प्रणमी; अंति: धन धन दुःकरकार हो, ढाल-१, गाथा-३१. ७९. पे. नाम, भरतेश्वर सज्झाय, पृ. ४९अ, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. भरतचक्रवर्ति सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आउ मुकत गया सुभागी, गाथा-१०, अपूर्ण. ८०.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४९अ. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. गंगाराम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौडी पारसनाथ सुन; अंति: गोडी हो गंगाराम कही, गाथा-७. ८१. पे. नाम. आषाढाभूति पंचढालिया, पृ. ४९अ-५०आ, अपूर्ण, पू.वि. ढाल ३ तक ही लिखा हुआ है. ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरशण परिसोवा वीसमो; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८६३०. स्तुति चौवीसी व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ९, ले.स्थल. सादडी, प्रले. तेकुमाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३६-३८). १. पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. १अ-७अ. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. For Private And Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ७. सं., पद्य, आदि: सकललब्धिपदं विपदापहं; अंति: मनंतफलं श्रुतदेवता. ३. पे. नाम. आदिजिन पूर्णिमा स्तुति, पृ. ७अ ७आ. आदिजिन पूर्णिमास्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, सं., पच, आदिः यां चक्रे भरतः; अंतिः पुण्याब्धि चंद्रोदव, लोक-४. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ७-८अ. मा.गु., पद्य, आदि: सुरअसुरवंदितपायपंकज; अंतिः करी अंबिका देवियें, गाथा-४. ५. पे नाम, अष्टमीपर्व स्तुति, पृ. ८.अ. महावीर जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: संप्राप्तसंसारसमुद्र अंति: देहि मे देवि सारं श्लोक-४. ६. पे. नाम. चतुर्दशीतिथि स्तुति, पृ. ८अ-८आ. सं., पद्य, आदि: देवाधीशयुतै भृशं; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ७. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ८आ. सं., पद्य, आदि समुद्रभूपालकुलप्रदीप; अंति देवी जगतः किं लंबा, श्लोक-४, ८. पे नाम. शांतिजिनस्तुतिसंकेत, पृ. ८आ. शांतिजिन स्तुतिसंकेत, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अचिरानं दरशण, मोहतम; अंति: निर्वाणी. पुण्यसा., गाथा-४. ९. पे नाम अजितजिन स्तुति संकेत, पृ. ८आ. अजितजिन स्तुति-तारंगा, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तारंगा मुख मंडण अजीत; अंतिः पुण्यसागर ० सुखकार, गाथा-१, (वि. पद का मात्र प्रारंभिक प्रतीक शब्द ही दिया गया है.) १९३ १८६३१. दसदृष्टांत, सज्झाय संग्रह व नेमराजुल बारमासो, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे ४, पठ, मु. कानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११, १५-१९४४२-४४). १. पे. नाम. दश दृष्टांत कुलानि, पृ. १अ ७अ. मानवभव १० दृष्टांत, आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कंपिलपुरि ब्रह्म नरे; अंतिः वसस्यइ सुख वासइ, कुल १०. २. पे. नाम. अढारनात्रा सज्झाय, पृ. ७अ-८अ. अढारनातरा सज्झाय, आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम गणधर पय नमीं; अंति: करउ धर्मस्युं रंग, गाथा - ३८. ३. पे. नाम. दशार्णभद्र प्रबंध, पृ. ८ अ-१०अ. आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद ए वंदी धरि; अंति: बोलइ० विनयदेवसूरि, ढाल - ४. ४. पे. नाम. नेमराजुल बारमासो, पृ. १०अ १० आ. मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण पहिलइ मासि हो; अंति: हो नेमि नामि सुख पाई, गाथा-१३. १८६३२. वैराग्यशतक सह टबार्थ व विविध विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ६, ले. स्थल. मेदनीपूर, दुगोली, जैदे., (२५.५X११.५, ४X३८-४१). For Private And Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १आ-१४आ. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, गाथा-१०४, (ले.स्थल. दुगोली) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसार असार विषै; अंति: जिउ लहई का जीव लाभइ, (ले.स्थल. मेदनीपुर) २. पे. नाम. महावीरजिन आयुविवरण गाथा सह अनुवाद, पृ. १४आ. महावीरजिन आयुविवरण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तिन्नि सय तीसासट्ढा; अंति: हीनयं जिना समये, गाथा-१. महावीरजिन आयुविवरण गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिथिपत्रे आह; अंति: ७२ वर्ष पूर्ण थया. ३. पे. नाम. चारित्रभेद विवरण, पृ. १४आ. ___मा.गु., गद्य, आदि: सामायक चारित्र मै; अंति: २ लेश्या १ शुक्ल. ४. पे. नाम. बारव्रतनाम, पृ. १अ. १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. श्रीपाल रास दोहा सह बालावबोध, पृ. १अ. श्रीपाल रास-दुहा, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: उद्ध उपर आथम्यु पसर; अंति: सदा लागै पवन उद्दाम, गाथा-१. श्रीपाल रास का दुहा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इहां प्रधान राजानै; अंति: समजाव्युं राजाने. ६. पे. नाम. भद्रबाहुसूरी कथा, पृ. १अ. भद्रबाहुसूरि कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजसोभद्रसूररै दोय; अंति: वरसे स्वर्ग पहुँता. १८६३३. वेदनिर्णयपंचाशिका, स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. १३, जैदे., (२७४११, १३४३७-४३). १. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. २अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं है. साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: तेरी कोंन कुवान परी, गाथा-३, अपूर्ण. २. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. २अ. साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहि., पद्य, आदि: हमरें तो प्रभु सुरति; अंति: जगतराम के अधम उधारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ. आदिजिन स्तवन, कमल, पुहि., पद्य, आदि: श्रीरिषभजी को ध्यान; अंति: चरणकमल सीस कौं नवाई, गाथा-६. ४. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. २अ-२आ. साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तुम विना कौंन; अंति: देखि निज दास ओरी, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २आ. मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: जादव ती सब मंगल गावे; अंति: नवल कहै यह भला, गाथा-३. ६. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २आ. ___पुहिं., पद्य, आदि: माधुरी जिनवानिमा; अंति: जगप्रभु सोहित मान, गाथा-४. ७. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. २आ. For Private And Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org १९५ शांतिकुंथुअरमल्लिजिन पद-राजपुरमंडन, पुहिं, पद्य, आदि: गजपुर जगमें सुखदाई; अंतिः अविचल पद को जाई, गाथा - ५. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: पुद्गल क्या विसवासा; अंति: जब लग घट में स्वासा, गाथा- ३. ९. पे. नाम. सामान्यजिन स्तवन, पृ. २आ - ३अ. साधारण जिन स्तवन, मु. गुरुदास, पुहिं., पद्य, आदि अरिहा रे मो मन जिन; अंतिः बारे भावना भावे रे, गाथा- ८. १०. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ३अ. पुहिं., पद्य, आदि: जिननाम सुमर मन वाव; अंति: है लीजो मन रटि के, गाथा-४. ११. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३-३आ. आव. बनारसीदास, पु.ि, पद्य, आदि देखो भाई महाविकल; अंति: बनारसी० अखेनिध लूटै, गाथा-८, १२. पे. नाम वेदनिर्णयपंचाशिका, पृ. ३आ-६आ. वेदनिर्णयपंचासिका, श्रव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जगत विलोचन जगतहित; अंतिः नर विवेक भुजबल रहित, गाथा - ५१. १३. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ६आ. औपदेशिक पद - काबाउपदेश, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: चरखा भया पुराना रे; अंतिः होगा भूवर समझि सवेरा, गाथा - ५. १८६३४. विविध स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) ५, कुल पे १०, जैदे., ( २६.५x११, ११-१२४३६-४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. . मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मोहन कहे तुज जगीश रे, गाथा-८, अपूर्ण. २. पे नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मने धर्मजिणंद; अंति: उलट अति घणे रे लो, गाथा - ७. ३. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. २आ- ३अ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदिः परम रस भीनो म्हारो; अंतिः पूज्यो कोडि जगीश हो, गाथा-७, ४. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ३-३आ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि का रथ वाळो हो राज ; अंति: मोहन पंडित रूपनो, गाथा- ७. ५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३-४अ. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, ७. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ. मु. . मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: साहिब ० तुज आगल विनती; अंति: मोहन तोसुं हित भणेजी, गाथा - ९. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४-४आ. , मा.गु., पद्य, आदि: राजुल० फेरो हो नणदीर; अंतिः तस मोहन ये स्याबास, गाथा-७, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: रे थलपति प्राण आधार, गाथा - ५. ८. पे. नाम संभवजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ. For Private And Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित दाता समकित; अंति: पभणे रसना पावन कीधी, गाथा-७. ९. पे. नाम. सम्यक्तदृढ स्तवन, पृ. ५अ-६आ. सम्यक्त्वदृढ स्तवन, श्राव. लधो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन पंकज प्रणमी; अंति: जिम चिरकाले नंदो, गाथा-२५. १०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ६आ. मु. आनंदरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: थां पर वारी हो नेम; अंति: मुगत पधारीया रे लो, गाथा-१२. १८६३५. (#) स्तवन, सज्झाय, ज्योतिष, पद, श्लोक आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७८४-१७८५, श्रेष्ठ, पृ. ८२-५३(१ से ४६,५० से ५५,७१)=२९, कुल पे. २८, प्रले. पंन्या. रत्नविजय (गुरु पंन्या. लक्ष्मीविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १८-२०४४४-५०). १. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. ४७अ-५०आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मां; अंति: (-), अपूर्ण. २. पे. नाम. वयरस्वामी ढाल, पृ. ५६अ-५९आ, वि. १७८४, पौष कृष्ण, २, ले.स्थल. पाटण, प्रले. पंन्या. रत्नविजय (गुरु पंन्या. लक्ष्मीविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: वयर गुण गाया रे, ढाल-१५, (वि. १७८४, पौष कृष्ण, २, प्रले. पंन्या. रत्नविजय (गुरु पंन्या. लक्ष्मीविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य) ३. पे. नाम. १२ भावना सज्झाय, पृ. ५९आ-६४अ. उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेश्वर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२६. ४. पे. नाम. साधारण पद, पृ. ६४अ-६४आ. औपदेशिक पद, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीत पडो भय जाय सखी; अंति: कहे० न देख न देरी, गाथा-७. ५. पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. ६४आ. सुभाषित श्लोकसंग्रह-, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२१. ६. पे. नाम. माधवानल चौपाई के छुटक दोहे व श्लोक संग्रह, पृ. ६५अ-६५आ. माधवानल चौपाई-चयन, मा.गु., पद्य, वि. १६५०, आदि: अक्षाण केली फलीयो; अंति: कलियुगे रघु विक्रमः, ___ गाथा-६१. ७. पे. नाम. नेमराजुल लेख, पृ. ६६अ-६७अ, वि. १७८५, ले.स्थल. दांता, प्रले. पं. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. रंग विजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: स्वस्ति श्रीगढ; अंति: रंगविजय रंगै कह्योजी, गाथा-४७. ८. पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. ६८अ. मु. केशवदास, पुहि., पद्य, वि. १७३६, आदि: ॐकार सदा सुख देउतहि; अंति: दुध पीलाउत काहे, गाथा-५. ९. पे. नाम. राजास्वागत गीत, पृ. ६८अ, ले.स्थल. गोलाग्राम, प्रले. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: मलीया मलीया हो; अंति: थांके अमल करास्यूं, गाथा-५. १०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६८अ. मा.गु., पद्य, आदि: हारे माहरें जोवनीआ; अंति: ते सबला कारणे रे लोल, गाथा-३. For Private And Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ११. पे. नाम. सामान्य गीत, पृ. ६८अ. साधारण गीत, मा.गु., पद्य, आदि: झीलण जास्यांजी सरोवर; अंति: काइ प्याला भरी, गाथा-३. १२. पे. नाम. अंबाजी छंद, पृ. ६८आ. अंबिकादेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सदा पूर्ण ब्रह्मांड; अंति: दुष्ट संकट खोती, गाथा-१९. १३. पे. नाम. पांचसहेलिया दोहा, पृ. ६९अ-७०अ. पंचसहेली रास, क. छहल, पुहि., पद्य, वि. १५७५, आदि: देख्या नगर सुहामणा; अंति: रची करी छ्यल प्रकार, गाथा-७१. १४. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ७०अ. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १५. पे. नाम. तत्त्वश्लोक संग्रह, पृ. ७०आ. तत्त्वश्लोकसंग्रह, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). १६. पे. नाम. ज्योतिषसार संग्रह, पृ. ७२अ-७५अ, वि. १७८४, चैत्र कृष्ण, १४, ले.स्थल. पालणपुर. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मंगलवार जया तिथि: अंति: कर्कयोगा प्रकीर्तिता. १७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, पृ. ७५अ-७८अ, वि. १७८४, चैत्र कृष्ण, ३०, ले.स्थल. पल्हादपुर. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: देहि दरसण जय करे, ढाल-१२, गाथा-१२४. १८. पे. नाम. अर्बुदाचलतीर्थ स्तवन, पृ. ७८अ-७९अ, वि. १७८४, फाल्गुन कृष्ण, ३०. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: आज अनोपम पुन्यथी में; अंति: दरसणे पोती सयल जगाश, गाथा-३४. १९. पे. नाम. तीर्थमाला, पृ. ७९अ-७९आ. मा.गु., गद्य, आदि: माहे कह्या तेतला; अंति: कीधीजी चोमासु पाटण. २०. पे. नाम. झांझरियाऋषि सज्झाय, पृ. ७९आ-८०आ, वि. १७८५, पौष शुक्ल, १३, ले.स्थल. सीधपुर. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महील माहें मुनीवर; अंति: लब्धिविजय कहि मनखंति, गाथा-३७. २१. पे. नाम. सभागुण गीत, पृ. ८०आ. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम सभा गुणहं जे; अंति: तीहा कवियण जाइ कला, गाथा-२. २२. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ८०आ, ले.स्थल. पालणपुर. श्लोक संग्रह-, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. २३. पे. नाम. विवधपद संग्रह, पृ. ८१अ. विविध पदसंग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: नीपट अती प्यारें मन; अंति: छहुरीत मे ही सा छती. २४. पे. नाम. सवैया, पृ. ८१अ-८१आ. औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: एक नारी जलमांहे तरे; अंति: चतुर चंपाली चित्तवसी, गाथा-६. २५. पे. नाम. रावणऋद्धिविस्तार कवित, पृ. ८१आ. क. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: लवण समुद्र मझार सतसय; अंति: गर्व वसे दुःखीया थया, गाथा-६. For Private And Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ८२अ. मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडलिन किनें हो; अंति: रे वयण बेलि अम पास, गाथा-७. २७. पे. नाम. दुहासंग्रह, पृ. ८२आ. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. २८. पे. नाम. श्रीमहावीर स्तवन, पृ. ८२आ. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहीबजीरी सेवा करस्य; अंति: नंदन जयजय श्रीमहावीर, गाथा-७, (ले.स्थल. पल्हादपुर) । महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. लहिया के द्वारा गाथा ३ से ५ तक का हीटबार्थ लिखा गया है.) १८६३६. ३६ बोल थोकडो, कल्पनाम संग्रह, समकितना ६७ बोल सह विवरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ५, जैदे., (२६४११.५, २८४४०). १. पे. नाम. छत्तीसबोलनो थोकडो, पृ. १अ-११अ. ३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: एगे संजमे एगे असंजमे; अंति: पापसेयां दुखी होईजे. २. पे. नाम. कल्पबोल संग्रह, पृ. ११अ. मा.गु., गद्य, आदि: काल्पथीतना १० बोल; अंति: ते कारज करवा मंड्यो. ३. पे. नाम. समकित नवनाम विचार सह विवरण, पृ. ११अ-११आ. सम्यक्त्व के ९ नाम विचार, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य समकित भाव; अंति: समकित दीपक समकित. सम्यक्त्व के ९ नाम विचार-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्यसमकित कहता; अंति: कहीयै ए नवमो समकित. ४. पे. नाम. समकितना ६७ बोलभेद, पृ. ११आ-१२अ. सम्यक्त्वना ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: चउसद्दहण तिलिंग दस; अंति: भेअविसुद्धिच समत्तं, गाथा-२. सम्यक्त्वना ६७ बोलभेद-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले नवतत्त्वसु; अंति: स्थानक ए समकितनी रीत. ५. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १२अ. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आचारांगनें २ श्रुत; अंति: ते सुत्र विरुद्ध छे. १८६३७. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २२, प्रले. जेवर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३७-४०). १. पे. नाम. श्रीशेāजाजी रोचैत्यवंदन, पृ. १अ. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, गाथा-५. २. पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल; अंति: नमो कारण क्षमाकल्याण, गाथा-३. ३. पे. नाम. श्रीशेजाजीरो चैत्यवंदन, पृ. १अ. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशजय सिद्ध; अंति: वंदता दुख जावै दूर, गाथा-४. ४. पे. नाम. श्रीशेज़ेजाजी रो चैत्यवंदन, पृ. १आ. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धो विजाय चक्की; अंति: महं तित्थमेयं नमामि, गाथा-१. For Private And Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org ५. पे नाम. श्रीऋषभदेवजीरो चैत्यवंदन, प्र. १आ. आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदि; अंतिः धणी रुप कहे गुणगेह, गाथा-३. ६. पे. नाम. पंचतीर्थी चैत्यवंदन, पृ. १आ. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: आज देव अरिहंत नमु; अंति: मन समरता ०मननी आश, गाथा-५. ७. पे. नाम. श्रीशत्रुंजाजीरो चैत्यवंदन, पृ. १आ - २अ. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान; अंतिः पद्मविजय सुविहितकरम् श्लोक-४. ८. पे नाम श्रीशत्रुंजाजीरो चैत्यवंदन, पृ. २अ. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि जय जय नाभिनरिंदनंद; अंतिः निस दिन नमत कल्याण, गाथा - ३. ९. पे नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ २आ. पार्श्वजिन चैत्यवंदन - चिंतामणी, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंतिः क्षूद्रहस्ते जयादिकं श्लोक-४, १०. पे नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, प्र. २आ. सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: बीजं बोधबीजं ददातु, गाथा - ३. ११. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ. सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्ण गजराज; अंतिः साक्षात्सुरद्रुमः, श्लोक-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " १७. पे नाम श्रीसीमंधरस्वामि चैत्यवंदन प्र. ५आ. " १२. पे. नाम. सीमंधरस्वामि चैत्यवंदन, पृ. ३अ. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर परमातमा शिव; अंतिः शुभ फळ लीध, गाथा - ९. शुभ वांछित १३. पे. नाम. वीस विहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. ३५अ. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदिः श्रीसीमंधरस्वामि; अंतिः सीस नमुं वैर वेरंग, गाथा - २५. १४. पे. नाम. सीमंधरस्वामीजीनो चैत्यवंदन. प्र. ५अ. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरबदिशि इशाण कुण; अंतिः द्यो पूरो संघ जगीश, गाथा - ३. १५. पे नाम श्रीवीसविहरमान चैत्यवंदन, पृ. ५अ. २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चउवीसी जिन नमुं; अंति: नमुं साधु सवे निसदीस, गाथा-२. १६. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ५आ. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: विनय घरे तुम ध्यान, गाथा- ३. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिणवर विहरमान; अंति: संपदा करण परमकल्याण, गाथा-२. १८. पे नाम. वीसविहरमान चैत्यवंदन, पृ. ५आ-६अ. For Private And Personal Use Only १९९ २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामि; अंतिः सास नाममिसु निसदिश गाथा - ३. १९. पे नाम श्रीविस विहरमाण चैत्यवंदन, पृ. ६अ. " Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, प्रा., पद्य, आदि: सीमंधर चेव जुगंधर; अंति: नमो विस जिनुत्तमाणं, गाथा-५. २०. पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. ६अ. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र; अंति: कहे० वांदुबे करजोड, गाथा-३. २१. पे. नाम. नवपदजीरोचैत्यवंदन, पृ. ६अ-६आ. नवपद चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र पद वंदिय; अंति: करी पामे शिवपुर पार, गाथा-४. २२. पे. नाम. नवपद नमस्कार, पृ. ६आ-७आ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: विश्व जयकार पावे, गाथा-२२. १८६३८. सज्झाय व गंहुलीसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८५५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २८, ले.स्थल. वेलाकुल, प्रले. ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११.५, १४४४२). १. पे. नाम. रहनेमि स्वाध्याय, पृ. १आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल चाली रंगसुरे; अंति: अविचल सुख सुकलीणा रे, गाथा-५. २.पे. नाम. सीतानी सज्झाय, पृ. १आ. ___ सीतासती सज्झाय, मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: नित नित करुं प्रणाम, गाथा-७. ३. पे. नाम. राजीमतीरहनेमि स्वाध्याय, पृ. २अ. राजिमतीरहनेमि स्वाध्याय, मु. हितविजय, रा., पद्य, आदि: प्रणमी नीजगुरुपाय; अंति: पद राजुल लडोजी, गाथा-११. ४. पे. नाम. राजीमती स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अगनिकुंडमां निज तनु; अंति: ज्ञानविमल गुणमाला, गाथा-५. ५.पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. २आ. संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: निज थानिकथी परथानीके; अंति: सुजस प्रमाण मेरे लाल, गाथा-५. ६. पे. नाम. सगपण सज्झाय, पृ. २आ-३अ. ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केहनां सगपण केहनी; अंति: इम तत्व कहे सखाई रे, गाथा-११. ७. पे. नाम. नवकारमंत्र सज्झाय, पृ. ३अ-३आ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: गुणयो रे श्रीनवकारतो, गाथा-९. ८. पे. नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. ३आ-४अ.. उपा. सकलचंद्रगणि, पुहि., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: पूछे उलट मनमा आणी, गाथा-१२. ९. पे. नाम. केशीगौतम स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ. ___मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमीये; अंति: रुपविजय गुण गायरे, गाथा-१६. १०.पे. नाम. महावीरजिन सज्झाय, पृ. ४आ-५अ. __ मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: एक वरसीजी ऋषभ करी; अंति: जिनवर सकलमुनि आधारए, गाथा-१२. ११. पे. नाम. बाहुबली स्वाध्याय, पृ. ५अ-५आ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबली वन काउसग; अंति: तेह समकित सिंधुरा, गाथा-१२. For Private And Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०१ १२. पे. नाम. सुधर्मागणधर गुहली, पृ. ६अ. __ मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी उद्यान; अंति: साधु गुहली गीत भणेरी, गाथा-७. १३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गंहुली, पृ. ६अ. सुधर्मास्वामी गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानादिक गुणखाणि; अंति: गावे जिनशासन धणीजी, गाथा-९. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, पृ. ६अ-६आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होडि तुंम करे; अंति: ऋद्धि कोटानुकोटी, गाथा-३. १५. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ६आ-७अ. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो: अंति: होवे जय जयकार हो. गाथा-११. १६. पे. नाम. श्रीनंदिषेण स्वाध्याय, पृ. ७अ-७आ. नंदिषेण स्वाध्याय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: नही कोई तोले हों, ढाल-३, गाथा-१३. १७. पे. नाम. सीतासती स्वाध्याय, पृ. ७आ-८अ. सीतासती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: झल झलति मलति घणु रे; अंति: नित प्रणमुंपाय रे, गाथा-८. १८. पे. नाम. रुखमणि स्वाध्याय, पृ. ८अ. रुक्मिणी सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामोगाम नेमज; अंति: जाय राजविजय रंगे भणे, गाथा-१४. १९. पे. नाम. मेघकुमार स्वाध्याय, पृ. ८अ-८आ. मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: रे छुटे भव तणो पास, गाथा-५. २०. पे. नाम. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, पृ. ८आ-९अ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदन; अंति: किजै तास वखाण रे, गाथा-१५. २१. पे. नाम. क्रोधपरिहार स्वाध्याय, पृ. ९अ. क्रोधपरिहार सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडवां फल छे क्रोधनां; अंति: निर्मली उपशमरसे नाही. गाथा-६. २२. पे. नाम. दशार्णभद्र स्वाध्याय, पृ. ९अ-१०आ. दशार्णभद्रराजा सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुद्धिदाई सेवक; अंति: भणे लालविजय निशदिश, गाथा-१४. २३. पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. १०आ-१२अ. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: जाउं तेहने भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३. २४. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १२आ. मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक मन सुद्ध; अंति: सामायक पालो नीसदिस, गाथा-५. २५. पे. नाम. थूलभद्र स्वाध्याय, पृ. १२आ-१३अ. स्थूलिभद्र सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आणे आंगण मैं पिउ; अंति: वाट जोउ चउमासे रे, गाथा-७. २६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३अ. For Private And Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: किसके बे चेले किसके; अंति: विराजे सुख भरपूर, गाथा- ७. २७. पे. नाम भवदेवभावदेव स्वाध्याय, पृ. १३अ १३आ. मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि नारी रे निरुपम नागील अंति: जपति जेहने रे नाम गाथा - ११. २८. पे. नाम. श्रीपाखीप्रतिक्रमण स्वाध्याय, पृ. १३आ. पाखिपडिकमण सज्झाय, संबद्ध, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: पाखी पडीकमणुं करजो; अंतिः रे कां आगमचिति, गाथा - ११. १८६३९. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ५, ले. स्थल. जावाल, प्रले. पं. उत्तमविजय; पठ, खुमचंद, प्र.ले.पु. मध्यम जैदे., ( २६.५X११, १२४३८-४४). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १अ - ५अ. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमिसर चरणयुग; अंति: व्रत पालज्यो ०नववाडी, ढाल-१०. २. पे. नाम. १० दृष्टांत सज्झाय, पृ. ५अ-१०अ. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत सज्झाय, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: श्रीजिन वीर नमी; अंतिः तस्य घरे कोडि कल्याण, ढाल - १०. ३. पे. नाम. १२ व्रत सज्झाय, पृ. १०अ १४अ. मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी धन वुठडो भवि; अंति: तिलकविजय जयकार, ढाल -१२. ४. पे. नाम. १२ भावना, पृ. १४अ १७आ, वि. १८८९ आश्विन शुक्ल, ११. उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदिः आदीसर जिणवर तणा पद; अंति: भणतां सवि सुख थाअइ, ढाल - १२, गाथा - ७२. For Private And Personal Use Only ५. पे. नाम. इरियावही मिच्छामि दुक्कडं संख्या स्तवन, पृ. १७आ, वि. १८८९, आश्विन शुक्ल, १५. ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि पद पंकज रे प्रणमी; अंतिः इम संवव्यो भावइ करी, दाल-४, गाथा - १४. १८६४० (+) कर्मग्रंथ १-४ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २९, कुल पे. ४, अन्य मु. धर्मसी ऋषि (गुरु मु. सिद्धराजजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें पंचपाठ, जैवे. (२८x११.५, ३-८४३८-३९). १. पे नाम, कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १आ-११आ. " कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं बंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान प्रति; अंति: देवेंद्रसूरि काउं. २. पे नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह वालावबोध, पृ. ११आ-१५अ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा- ३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिम श्रीमहावीर प्रति; अंति: ते श्रीमहावीरनइ नमुं. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १५अ - १९अ. स्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्त; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा - २४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि; बंध सामित्त विचार; अंतिः बंधसामित्व जाणिवठ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०३ ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १९अ-२९अ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, ___ गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमि गा० वीतरागदेवने; अंति: लिखि देवेंद्रसूरिहिं. १८६४१. धनंजय नाममाला, अनेकार्थ नाममाला व एकादशगणधर नाम, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. इस प्रति में धनंजयनाममाला को नृघंटशब्दसमय का प्रथम परिच्छेद एवं अनेकार्थनाममाला को द्वितीय परिच्छेद बताया गया हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १६x४५-४८). १.पे. नाम. धनंजयनाममाला, पृ. १अ-६आ, पे.वि. कृति को इस प्रत में नृघंटशब्दसमय का प्रथम परिच्छेद रूप बताया गया जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदिः तन्नमामि परं ज्योति: अंति:शब्दाः समत्पीडिताः, श्लोक-२०५ २. पे. नाम. अनेकार्थनाममाला, पृ. ६आ-७आ, पे.वि. कृति को इस प्रति में नृघंटशब्दसमय का द्वितीय परिच्छेद रूप बताया गया है. जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: गंभीरं रुचिरं चित्रं; अंति: शरणोत्तममंगलान, श्लोक-४६. ३. पे. नाम. इग्यारगणधरनाम, पृ. ७आ. एकादशगणधर नाम, सं., पद्य, आदि: गणानवास्यर्षिसंघा; अंति: प्रभासश्चपृथकुला, श्लोक-२. १८६४२. वैराग्यशतक सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, ले.स्थल. जालोर, प्रले. मु. खुसालसागर; पठ. मु. जीवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, ५४२८-३०). १. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १५. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमाहि असार जीव; अंति: जीव शाश्वतो ठाम छै. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह-, पृ. १५आ. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. १८६४३. पाक्षिकसूत्र व खामणा, पूर्ण, वि. १८३१, आश्विन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रले. पं. ऋद्धिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १०४३०-३४). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-१५अ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १५आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: (-), अपूर्ण. १८६४४. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३४-३७). क्षेत्रसमास प्रकरण, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहर निभस्स; __ अंति: समयखेत्तस्स परिरओ, गाथा-१३५. १८६४५. (+) नाममाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. यह प्रति कृति रचना के समीपवर्ति काल में लिखी होने की संभावना है., दे., (२७४१२, १४४४४-४६). For Private And Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नाममाला, मु. रुप, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य प्रमोदेन; अंति: प्रथमा३ दिमाने४, श्लोक-१२५. १८६४६. (+) अणुत्तरोववाईदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., जैदे., (२७.५४११, ११४३९-४३). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: तहा णेयव्वं. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. केवल बीच के भाग में ही टबार्थ है.) १८६४७. (+) सुरसुंदरी आख्यान, संपूर्ण, वि. १६७५, फाल्गुन कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल का नाम मिटाया गया है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४-१५४३४-४७). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: आदि धर्मनी करिवाए; अंति: इम भणइ आणंदपूरि, ढाल-२१, गाथा-५०७. १८६४८. (+) मानतुंगमानवती रास, पूर्ण, वि. १७८६, चैत्र कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२-१(१९)=३१, ले.स्थल. आनंदपुर, प्रले. ग. रंगचंद्र (गुरु ग. मयाचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४४-४५). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, पूर्ण. १८६४९. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(५)=६, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, ५-६४३१-३३). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-७अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१, अपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इछामि० वांछउं; अंति: चोवीस तीर्थंकर प्रतइ, अपूर्ण. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ७आ. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुण्ये; अंति: दिनदिन देज्यो वधाइजी, गाथा-४. १८६५०. (+) भक्तामर स्तोत्र व कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरि व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रावण कृष्ण, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. चानोद, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, ६x४०-४४). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरि वटबार्थ, पृ. १आ-७अ, वि. १७६२, आषाढ़ शुक्ल, १५, सोमवार, प्रले. मु. नारायण ऋषि (गुरु मु. चांपाजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४+४. भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिनस्य वीतरागस्य; अंति: तुंग मानतुंग तं. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत देवता नमन; अंति: पार्श्वे आयाति लखमी. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरिव टबार्थ, पृ.७अ-१२अ, वि. १७६२, श्रावण कृष्ण, ४, शुक्रवार, प्रले. मु. अचल ऋषि (गुरु मु. प्रेमाजी ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्ष प्रपद्यते, श्लोक-४४. For Private And Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०५ कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थानां ईश्वरः तीर; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कथंभूतं चरणकमलं; अंति: पामइ प्राप्नुवंति. १८६५३. नवतत्त्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४११, १४४३७). महावीरजिन स्तवन-नवतत्त्वविचारगर्भित, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: सरसती सरसती सरसती दे; अंति: विजय गुण गाय रे, कडी-९६. १८६५४. (+) नेमिनिर्वाण काव्य सह अवचूरि, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५-१(१६)+२(१९ से २०)=३६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., सर्ग-१५ श्लोक-८१ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ., जैदे., (२६४११, १३-१५४४३-५१). नेमिनिर्वाण महाकाव्य, क. मंडन कवि, सं., पद्य, ई. १२वी, आदि: श्रीनाभिसूनोः पदपद्म; अंति: (-), पूर्ण. नेमिनिर्वाण महाकाव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: युगादि देवस्य; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पृ.वि. अंत के कुछेक श्लोकों की अवचूरि नहीं लिखी गयी हैं.) १८६५५. वाक्यप्रकाश सह टीका व कंड्वादि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, २-१०४५२). १. पे. नाम. वाक्यप्रकाश, पृ.८. ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं; अंति: हितो वाक्यप्रकाशोयम्, श्लोक-१२४. वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८०, आदि: (१)श्रीमजिनेंद्रमानम, (२)प्रणम्येति० स्पष्टः; अंति: सुगम मुनिगगन० सुगमं. २. पे. नाम. कंड्वादि, पृ. ८अ. व्याकरण अपूर्ण व छूटक पन्ने*, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). १८६५६. दशवैकालिकसूत्र सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६.५४११, ८४३२-३५). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी: अंति: ए गायो सकल जगीसे रे, सज्झाय-११. १८६५७. अढारपापस्थानक सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. पं. क्षमासागर; पठ. श्राव. नगराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ९४३०-३१). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलू का; अंति: वाचकजस इम भाखेजी, सज्झाय-१८, (वि. १८ ढाल.) १८६५८. (+) बलिनरेंद्राख्यानकं, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १५४६०-६१). भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदि: अस्तीह जंबूद्वीपे; अंति: नरेंद्रर्षिः केवली, ग्रं. २१८८. १८६५९. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदे., (२६.५४११, ७X४४). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्याय-१०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: दिवसे श्रुतांग तिमज. For Private And Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८६६१. सिद्धहेमशब्दानुशासनसूत्र- अध्याय १ से ७, प्रतिपूर्ण, वि. १७६०, फाल्गुन शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. जगत्तारणी, उप. उपा. मेघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में शब्द का स्वरूप दिया गया है., जैदे., (२७४११, १५४४६-५०). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अर्ह सिद्धिः स्याद; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८६६२. गणरत्नमहोदधि सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ६१, ले.स्थल. अनहलपुर, प्रले. अंबावीदास मुरजी दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १९४६१-६५). गणरत्नमहोदधि, आ. वर्द्धमान, सं., गद्य, वि. ११९७, आदि: वाग्देवतायाः क्रम; अंति: दायादकाकगुहौ, अध्याय-८, श्लोक-४६०. गणरत्नमहोदधि-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वर्द्धमान, सं., गद्य, वि. ११९७, आदि: सुखेनैव ग्रहीष्यन्ति; __ अंति: आकृतिगणोयम्. १८६६३. साधुवंदणा, संपूर्ण, वि. १८४०, भाद्रपद शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. जयतारण, जैदे., (२६.५४११, १३४४१-४३). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मन आणंदै संथुवा, ढाल-७, गाथा-९३. १८६६५. चौवीसजिन विवरण, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., २४ वे जिन का विवरण नही है।, जैदे., (२६४११, १२४२७-३५). चौवीसजिन विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: आदिनाथ प्रथम; अंति: (-), पूर्ण. १८६६६.(#) सतरप्रकारे पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. गा. १०८, ले.स्थल. विक्रम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x१०.५, १३४३६-४०). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: ज्योति सकल जग जागती; अंति: सब लील सब सुख साजइ, ढाल-१७. १८६६७. हंसहर्षमाला रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२६.५४११, १६x४५-५२). हंसहर्षमाला रास, मु. लहुजी, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: सेवु सिद्धारथ सुत; अंति: सकल संघ जयकार रे, ढाल-२५, गाथा-५११. १८६६८. विक्रमादित्यनो अनैनवसें कन्यानीचोपई, संपूर्ण, वि. १७८६, माघ कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, पू.वि. ढाल-२७, ले.स्थल. रायपुर, प्रले. मु. अमर ऋषि (गुरु मु. महासिंघ ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १५-१६४४७-४८). विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरसादाणी प्रणमीयै; अंति: तेहने सदा हुइ कल्याण, ढाल-२७, गाथा-५८५. १८६६९. आयारदसाउ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, अन्य. मु. कल्याणभवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषि कल्याणभवान की प्रति है., जैदे., (२७४११, ११४२९-४०). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेण; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०. For Private And Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १८६७०. संबप्रद्युम्नप्रबंध, संपूर्ण, वि. १८०३, कार्तिक कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. कांघला, प्रले. तुलसीराम; लिख. मु. नूणकर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १५४३१-३४). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: इम पभणे संघ सुजगीस ए, खंड-२, ढाल २२, गाथा-५५३, ग्रं. १०००. १८६७१. सिद्धांतविचार व विचारसंग्रह, पूर्ण, वि. १७४६, पौष शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(४)=१७, कुल पे. २, ले.स्थल. सादडी, प्रले. मु. लाभसागर (गुरु ग. धनसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११, १६x४०-४४). १. पे. नाम. सिद्धांतविचार, पृ. १-१८अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. सिद्धांत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: समझवा हेतु मन राखवा; अंति: सतर असंयम जाणवा, पूर्ण. २. पे. नाम. विचारसंग्रह, पृ. १८आ. विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८६७२. पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १९-२१४७०-७२). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्रावचूरि, पृ. १अ-५आ. पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थंकरान् वंदे; अंति: मे दुःकृतमस्तु. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्रावचूरि, पृ. ५आ. क्षामणकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा राजानं पुष्प; अंति: युयमित्याशीर्वचनमिति. १८६७३. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-२(१ से २)=२०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४११, ४४११-१७). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८६७४. नवतत्त्व, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा ८ से ९४ तक है., जैदे., (२७४११, १२४३०-३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८६७५. कल्पसूत्रे चौदस्वप्न वर्णन सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १६५०, भाद्रपद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ८, पठ. सा. रतना आर्या; सा. रूपा आर्या; सा. नागिणि आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आर्या रुपा एवं आर्या लीला की प्रति है., जैदे., (२७४११, ६४३०-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८६७६. वीरजिन अंतिमदेशना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. पाली, प्रले. छगनलाल अविचलभाई लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १७४४७-५०). महावीरजिन अंतिमदेशना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अपापानगरीमा देवताओए; अंति: कीर्तना करी छै. १८६७७. विद्याविलास कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४११, १५४५०). विद्याविलास कथा, सं., गद्य, आदि: तपो विजयतामेकं कार्म; अंति: सर्वं समीहितं स्यात. For Private And Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०८ www.kobatirth.org १८६७८. दशवैकालिकसूत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७५, श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुल पे. २, ले. स्थल, अहम्मदाबाद, अन्य. आ. जिनचंद्रसूरि पठ. मु. दानविलास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. सं. १६१७ वर्षे श्री अहम्मदाबाद मध्ये श्री जिनचंद्रसूरिभिः विहारिता प्रदत्ता पं. दानविलास मुनये वाचनार्थ. जैवे. (२७४११, ११३२-३४). " १. पे नाम दशवैकालिकसूत्र, पृ. १आ-३२अ. आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गइं त्ति बेमि, अध्ययन - १०, गाथा- ७००. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह - पृ. ३२आ. " काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १. १८६८१. (#) दशवैकालिकसूत्र सह पर्याय, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४९ - २ (१ से २) + १ (३४) = ४८, ले. स्थल. सीरोही, प्र. मु. खेता ऋषि; पठ. सा. अदि आर्या (गुरु सा. करूभी आर्या ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७x९९, ६४३३-३८). १८६८२. सूयगडांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदे., (२६x११, १३-१५X४३-४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: गइं त्ति बेमि, अध्ययन - १०, पूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विषइ इति ब्रुवेमि, पूर्ण. सूयगडांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय- २३, ग्रं. २१३३. १८६८५. राजप्रनीय सूत्र सह टवार्थ, पूर्ण, वि. १७५७, श्रेष्ठ, पृ. ६३-१ (१) ६२, ले. स्थल. सोपुर, जैवे. (२६.५x११, ५-६x२८-३७). (+) राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: ( - ); अंति: सुसएस्सवणी पणमोत्था, सूत्र - १७५, ग्रं. २००८, पूर्ण. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हु स्तुत्तकेवली, पूर्ण. १८६८६. (+) संग्रहणीसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७१-५३ (१ से ५३ ) = १८, पू. वि. नरकद्वार की ५७ वी गाथा से हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, २-४X३५-४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, अपूर्ण. बृहत्संग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तिहां लगें ए आसीसवचन, अपूर्ण. १८६८८. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४१, पू. वि. १० अध्ययन, जैदे., (२८x११, ९४३१-३३), दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि; अंतिः गई ति बेमि अध्ययन - १०. १८६८९. विक्रमसेन लीलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४-१० (१,५,९,११ से १६, २३) १९४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., द्वितीय ढाल के प्रारंभ से ढाल २९ गाथा १५ वी अपूर्ण तक है., जैवे. (२६.५x११, १३३६-३९). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. " १८६९०. । भक्तामर स्तवन सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले, मु. धना ऋषि (गुरु मु. सीपा ऋषि); अन्य सा. लीला (गुरु सा. रुपा ), प्र. ले. पु. मध्यम, जैदे. (२६.५x११, ५-६x२७-३१), , भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४+४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत देवता नमता; अंतिः स्वयंवरइ लक्ष्मी वरइ. For Private And Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०९ १८६९१. कविशिक्षा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(३)=११, पू.वि. प्रथम प्रतान के पंचम स्तबक अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२६.५४११, ११४३९-४५). कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: वाचं नत्वा महानंदकर; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८६९२. सुयगडांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, प्रले. मु. सुराजी ऋषि; अन्य. मु. केशवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ६-८x२९-३८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुझ० जीवादि बुज्झ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८६९३. शालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-३(१,३,१०)=२४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १०-११४२८-३५). शालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८६९४. चतु:शरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, ४-६४३१-३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: सहस्रसाधुमध्ये. १८६९५. (+) कल्पसूत्र-साधुसमाचारी सह कल्पलता टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १७९३, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. हर्षचंद प्रतापसी (गुरु उपा. करमचंद), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १७X४२-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (१)तावन्नंदतु सापि हि, (२)समाप्तं समर्थित इति, प्रतिपूर्ण. १८६९६. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, अन्य. मु. थोभजी ऋषि; पठ. श्रावि. लक्ष्मीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १३-१४४४०-४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८६९७. सत्तरीसयठाणं, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२७४११, १५४६२-६८). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिंदे; अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे, गाथा-३५८. १८६९८.(+) संथार पयन्ना सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ७ अपूर्ण से गाथा १०७ अपूर्ण तक हैं., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ६-८x२७-३४). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८७०१. (+) पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. प्रथम पत्र नया लिखा गया हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १०-१३४३८-४४). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१०अ. For Private And Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १०अ, अपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८७०४. विक्रमादित्य खापरचोर नवसैकन्या चोपी, संपूर्ण, वि. १८७९, आश्विन शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, प्रले. श्राव. मनरूपचंद; पठ. मु. हुकमचंद (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, ९-१०४३०-३७). विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरसादाणी प्रणमीयै; अंति: तेहने सदा हुइ कल्याण, ढाल-२७. १८७०५. हुंडिनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रावण कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, ले.स्थल. रमलपुर, प्रले. गुलाचंद ब्राह्मण; पठ. श्राव. थानजी; लिख. पं. माणिक्यविजय (गुरु आ. जिनेन्द्रसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ९४२७-३१). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा सिर वहेस्येजी, ढाल-६. १८७०६. उपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४-३४(१ से ३३,५५)=५०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा १२९ से ३०१ तक हैं., जैदे., (२५४१०, १२-१३४३३-४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उपदेशमाला-बालावबोध*मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८७०७. पंचाख्यान सह कथा, अपूर्ण, वि. १७५०, माघ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से हैं., ले.स्थल. कोठारिया, प्रले. ग. खेमसौभाग्य; पठ. मु. शांतिसौभाग्य (गुरु ग. खेमसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रारंभ का ग्रंथभाग नहीं हैं एवं पत्रांक प्रारंभ से दिया गया हैं., जैदे., (२५.५४१०, १५-१६x४०-४३). पंचाख्यान वार्तिक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचा कदापि न श्रुता, श्लोक-४८, अपूर्ण. पंचाख्यान वार्तिक-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: स्यालई श्लोक कहीयो, अपूर्ण. १८७०८. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., छ उल्लास तक हैं., जैदे., (२४.५४११,७४३४-३८). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वती हृदि ध्यात्; अंति: (-), अपूर्ण. वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसरस्वति प्रतै; अंति: (-), अपूर्ण. १८७०९. से@जयउद्धार व पट्टावलीस्तवन, अपूर्ण, वि. १७४४, माघ कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, १५४४२-४५). १.पे. नाम. सेबूंजयउद्धार, पृ. १अ-५अ. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: दर्शन जय करो, ढाल-१२, गाथा-११२. २. पे. नाम. पट्टावली स्तवन, पृ. ५अ-५आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१८ प्रारंभ तक हैं. मु. सिंघविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी मनरंगि वीर; अंति: (-), अपूर्ण. १८७१०. सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७३४, श्रावण कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२४४१०.५, १५४३९-४३). For Private And Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २११ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: कलहमिच्छति शंखिनी. सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुष स्त्रीना लक्षण; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. अंतिम दो श्लोकों का बालावबोध नहीं लिखा गया है.) १८७११. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थव सिद्ध पंदरभेद गाथा, संपूर्ण, वि. १६७९, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. पं. राजसिंघ; पठ. श्रावि. फूला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ६४३७-४२). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ५. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४६. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: ए पनरह भेद सिद्धका. २. पे. नाम. सिद्ध पंदरभेद गाथा, पृ. ५आ. जैन गाथा , प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-४. १८७१२.(+) शालिभद्रमहामुनि चरित्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(१)=२२, प्रले. मु. कल्याणनिधान पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अंतर्गत प्रतिलेखक को छोड़कर बाकी सूचनाएँ मिटा दी गयी है., संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३७-४१). शालिभद्र चौपाई. आ. जिनराजसरि. मा.ग.. पद्य, वि. १६७८. आदिः (-): अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ढाल-२९, पूर्ण. १८७१३. जंबूस्वामी चरित्र, पूर्ण, वि. १७७२, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१०)=११, ले.स्थल. खीरसरा, प्रले. मु. जेठा खीमजी ऋषि (गुरु मु. राजपाल ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (६७१) जादृस्य पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १५-१७X४५-५४). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सप्रभावं जिनं नत्वा; अंति: भवंति भवता सदा, पूर्ण. १८७१४. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५५८, भाद्रपद शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, राज्ये गच्छा. हेमविमलसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ११४३९-४३). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-बालावबोध', मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: कही महांत अर्थइ छती. १८७१६.(+) पाखीसूत्र व खामणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १०००, जैदे., (२५.५४११, ५-६४३०-३३). १.पे. नाम. पाखीसूत्र सह बालावबोध, पृ. १आ-२७आ. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर प्रति वांदउ; अंति: विषे भक्ति छे. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र सह टबार्थ, पृ. २७आ-२९अ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, सूत्र-४. क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छु छु हे क्षमा; अंति: समुद्रथी पारगामी हो. १८७१७. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह वार्तिक व सुभाषित, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, २-३४३१-३९). For Private And Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह वार्तिक, पृ. १-१०आ. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मु. सहजरत्न, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमदाप्तं प्रणम्या, (२)जिन कहीइ तीर्थंकर; अंति: (१)विशोध्यं धीधनै शं, (२)तीर्थंकरे कहिउं छइ. २. पे. नाम. सुभाषित, पृ. १०आ. श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. १८७२०. उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूर्णि-अध्ययन १८, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, प्र.वि. द्विपाठ-त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, १-१५४१५-४०). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा की अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८७२१. स्तवनचौवीसी व चंदकुमरी वार्ता, अपूर्ण, वि. १८४७, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ११-१३४३२-३४). १. पे. नाम. जिनस्तवनचौवीशी-१४ बोल, पृ. १अ-९आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव नितु वंदिये; अंति: निज भजनमांदास राखो, स्तवन-२४. २. पे. नाम. चंद्रकुमार वार्ता, पृ. ९आ, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-५ अपूर्ण तक हैं. मा.ग., पद्य, आदि: समरूं सरसत माय गनपत: अंति: (-). अपर्ण. १८७२२. विमलमंत्री प्रबंध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., २ खंड तक है., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३६-४१). मलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि: आदिजिनवर आदिजिनवर; अंति: (-), अपूर्ण. १८७२३. पात्रदानविषये धन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदे., (२६.५४११, १०४३७-४२). धन्ना चौपाई, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १५१४, आदि: पहिलउं पणमी पयकमल; अंति: विलसइ नवइ निधान, गाथा-३२८. १८७२४. ठाणांगसूत्र सह टबार्थ, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पृ.वि. चतुर्थ स्थानक द्वितीय उद्देस उपूर्ण से तृतीय उद्देश अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२६.५४११, ६४३४-३७). ठाणांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १८७२५. (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला-कांड १,२, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२-१३४२९-३३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८७२७. (+) भाषालीलावती, अपूर्ण, वि. १७६६, फाल्गुन कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ११-२(६,८)=९, ले.स्थल. विस्तारणिद्रग, प्रले. मु. अमरचंद (गुरु मु. रायचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४११, १९४५१-५७). For Private And Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २१३ लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: ऐ वरतो जनसुख काज, अध्याय-१६, गाथा-७०७, अपूर्ण. १८७२८. (#) कुमारपालभूपाल रास, संपूर्ण, वि. १६८२, आषाढ़ कृष्ण, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्रले. ग. भानुविजय (गुरु आ. जयरत्नसूरि, बृहत्तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (७१७) लेखकानां वाचकानां, जैदे., (२६४११, १५४५०-५५). कुमारपाल रास, मु. हीरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६४०, आदि: पय पंकय जस प्रणमतां; अंति: नृपनइं करइं भांमणां, गाथा-८०४. १८७२९. योगविधि संग्रह व असज्झाइ विचार, संपूर्ण, वि. १६८०, फाल्गुन कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ३, ले.स्थल. अहमदाबाद, राज्ये गच्छा. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ); प्रले. पं. गुणसागर (गुरु मु. राजकलश, खरतरगच्छ); पठ. वा. राजसुदर (गुरु आ. जिनचद्रसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११, १३४३५-४२). १. पे. नाम. उपधाननंदि विधि, पृ. १अ-९अ. उपधाननंदीआदि विधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पूर्वं श्रावकादि लोक; अंति: तित्थयरत्तं लहइ जीवो. २. पे. नाम. योगविधि-कालग्रहण व क्रियाविधि, पृ. ९अ-११आ. योगविधि कालग्रहणविधि क्रियाविधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम शुभ दिन शुभ; अंति: भगवतीये सघलइ लीजइ. ३. पे. नाम. असज्झाइ विधि, पृ. ११-१२आ. असज्झाय विचार-खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: रज मांस रुधिर केशनइ; अंति: तउ एकपहर असज्झाइ. १८७३०. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९२२, भाद्रपद शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. पादलिप्तिका, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण; पठ. श्राव. कलबल; अन्य. आ. जिनपद्मसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आचार्य जिनपद्मसूरि के चातुर्मास में श्रीमत् नवल्लखा पार्श्वनाथजी के प्रसाद से यह प्रति लिखी गयी., जैदे., (२५.५४११, ११४३०-३२). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, ग्रं. २००. १८७३१. मृगापुत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४११, १३-१४४३२-३४). मृगापुत्र चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: वीर जिणेसर प्रणमुं; अंति: कर्मतणा मल तेहना टलइ, गाथा-१०३. १८७३२. क्षेत्रसमास व जैनगाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १४४३७-४२). १.पे. नाम. क्षेत्रसमास प्रकरण, पृ. १आ-१०आ. बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५. २. पे. नाम. जैन गाथा सह बालावबोध, पृ. १०आ. जैन गाथा", प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. जैन गाथा-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८७३३. विशेषणवती, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६४११, १५४४६-५०). For Private And Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विशेषणवती, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., प+ग., आदि: उस्सेहंगुलमेगं हवइ; अंति: कालेणाइच्चपेढंति, ग्रं. ४१९ अक्षर३. १८७३७. शांति चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२६४११.५, ९४३७-४२). शांतिजिन चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर; अंति: थाउ आतमा निरमल करुं, गाथा-१९६. १८७३८. वत्सराज चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. कनकहीर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, २०४५८-६५). वच्छराज रास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमसिउं पहिलं भाव; अंति: सीझइ मनवंछित सवि काज, गाथा-२७२. १८७३९. सम्यक्त्वकौमुदी की कथा, संपूर्ण, वि. १६६५, पौष शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. संगनर, प्रले. मु. धना ऋषि (गुरु मु. सीपा ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५-१६४३३-३७). सम्यक्त्व कौमुदी-कथा, मा.गु., गद्य, वि. १४५७-१६६५, आदि: मगध देश राजगृह नगरनइ; अंति: लिहसि सम्यक्त्ववसिइ. १८७४०. नवतत्त्व सह अवचूरि व गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. शिवचंद्र शिष्य (गुरु ग. शिवचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम मिटाया गया हैं., पंचपाठ., जैदे., (२६४१०.५, ३-७४२१-३१). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, पृ. १अ-५आ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्ण पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-३१. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)जयति श्रीमहावीर, (२)एतानि नवानां तत्त्वा; अंति: सेधनादनेकसिद्धाः. २.पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. ५आ. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. १८७४१. अनाथीरिषि चउपई, संपूर्ण, वि. १५९३, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. सुमतिमंडन; पठ. अलू; लिख. ग. विद्याचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ७४२८-३१). अनाथीमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १४वी, आदि: सिद्ध सवेनइ करूं; अंति: मोहरहित ते विचरइ मही, गाथा-६४. १८७४४. दंडक बोल ३०, छकायनां नाम एवं अजीव ५६० भेद, संपूर्ण, वि. १६५१, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, कुल पे. ३, ले.स्थल. मांगरोल, प्रले. मु. नारायण ऋषि; पठ. श्राव. पीतांबर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२५४११.५, ११-१४४३२-३९). १.पे. नाम. २४ दंडक बोल ३०, पृ. १अ-३०अ. २४ दंडक ३० द्वारविचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: विरहनइ बोलई जाणवू. २. पे. नाम. छकाय नाम, वर्णव अधिपति देव नाम, पृ. ३०अ. काय नाम, वर्ण व अधिपति नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इंदिय थावरकाय ते; अंति: प्रकारना पातालदेवता. ३. पे. नाम. अजीव ५०६ भेद, पृ. ३०अ-३०आ. अजीव ५६० भेद विचार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रोक्ता वर्णरसाकृति; अंति: भेद अजीवना कह्या छे. १८७४५. अनुत्तरोविवाईदशांगसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४३८-४१). For Private And Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २१५ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० नवमस्स; अंति: तहा णेयव्वं, अध्याय-३३. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. टबार्थ बीच के कुछेक भाग में ही लिखा है.) १८७४६. मुहूर्तमुक्तावली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५.५४६, ६४३१-३६). मुहर्तमुक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., पद्य, आदि: श्रीशं श्रीहरशारदा; अंति: पादपलतौषधिरोपणंच, श्लोक-४५. मुहूर्तमुक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीपार्श्वनाथ, (२)श्रीमहादेव श्रीकृष्ण; अंति: क० वृक्ष औषधा रोपिइ. १८७४७. दशाश्रुतस्कंधसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, जैदे., (२५४११, ५-११४३०-४०). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०, ग्रं.७५०. १८७४८. छूटकबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५७, आश्विन शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. माहालकल्याणपुर, प्रले. गोपालजी वीरजी खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १७४४४-५३). बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. २७५. १८७४९. बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदे., (२६४११.५, १७-१९४४२-४३). बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८७५०. भक्तामरस्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, अन्य. मु. कल्याण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११-१२४२८-३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य प्रथमं देवं, (२)किलेति सत्ये अहमपि; अंति: (१)विबुधैः शोध्यतामियम्, (२)वर्णविचित्रपुष्पाम्. १८७५१. (+) कर्मग्रंथ १-६ वगुणस्थान आरोहावरोह विचार, संपूर्ण, वि. १९००, भाद्रपद कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे.७, ले.स्थल. कांणांणा, प्रले. पं. जैतसी (भावहर्षसूरिगच्छ); पठ. श्राव. जुहारमल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १२४३९-४३). १. पे. नाम. प्रथम कर्मग्रंथ, पृ. १अ-३आ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम. द्वितीय कर्मग्रंथ, पृ. ३आ-५अ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व तृतीय कर्मग्रंथ, पृ. ५अ-६अ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति काव्य चतुर्थ कर्मग्रंथ, पृ. ६अ-१०अ. For Private And Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणं जियमगण; अंतिः लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा -८६. ५. पे. नाम. शतक पंचम कर्मग्रंथ, पृ. १०अ १४आ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणं ध्रुवबंधोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणड्डा, गाथा - १००. ६. पे. नाम. सप्ततिका पष्ठ कर्मग्रंथ, पृ. १४ आ-१८अ. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्म, आदि: सिद्धपएहिं महत्वं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ, गाथा- ९१. ७. पे नाम, गुणस्थान आरोहअवरोह विचार, पृ. १८ आ. गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: चउरिक्कदुपणपंचय अंतिः तिय दोहिं गच्छंति, गाथा - १. (+) गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा- विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: चउक्क० च्यारि पैडा; अंति: चवदमाथी मोक्ष जावै. १८७५३. (+) पडावश्यकसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ८८-३२ (२ से ३३ ) = ५६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., संसारदावा स्तोत्र तक है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें द्विपाठ., जैदे., (२५.५X११, १-१५X३३-४६). आवश्यक सूत्र- षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंति: (-), अपूर्ण. षडावश्यकसूत्र-वृत्ति, पंन्या. हितरूचि, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीया सेवित; अंति: (-), अपूर्ण. १८७५४. चौदस्वप्न विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६५९, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. ऋ. सागा (गुरु ऋ. सवसी), प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे., (२७४११.५, ५-६३०-३२ ). कल्पसूत्र-हिस्सा १४ स्वप्न विचार, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र - हिस्सा १४ स्वप्न विचार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सपना तत्र; अंति: त्रिसलादे राणीए दीठा. १८७५५. 'चतुः शरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६६७, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. कालावड, प्र. सा. रंगाइ आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्रत में लिखित पत्रांक २ से ९ गलत है., पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, ५X३०-३२ ). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि; सावज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्य जोगनुं वरजइ; अंति: कारण मोक्षनुं कारण. १८७५७. लघुस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. राजनगर, जैदे., (२६X११.५, १४X३४-३९). लघुस्नात्र विधि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: प्रथम नित्य जिसी; अंतिः प्रमुखनी भक्ति करवी. १८७५८. (*) दंडक प्रकरण व लघुक्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १८४४ श्रेष्ठ, पृ. १७-३ (१४ से १६) १४, कुल पे. २, ले.स्थल. पाल्हणपुर, पठ. मु. जेसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११.५, १२x२८-३७). १. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. १अ - ३आ. मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा - ५४. २. पे नाम, लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, पृ. ३आ-१४अ, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. For Private And Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा - २६४, अपूर्ण, २१७ १८७५९. जंबूद्वीपसंग्रहणी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. जैदे., ( २६.५x१२, १२X३४-३७). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा - ३०. लघुसंग्रहणी - अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय कहतां नमसकार; अंति: कहता श्रीहरिभद्रसूरि. १८७६०. दीपावलीकल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८१४, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४८ - १७ (१ से १७) = ३१, पू.वि. गाथा १३९ तक नही है., ले. स्थल. कठोरग्राम, प्रले. पं. देवेंद्रविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. ले. श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (६५५) जलात् रक्षेत् स्थलात् रक्षेत्, (६८०) भमपृष्टी कटिग्रीवा, (७१६) जले साचबज्यो स्थले साचवज्यो, जैदे., (२६.५४११.५, ४-५X३७-४२), दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: (-); अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये श्लोक - ४३२, अपूर्ण. दीपावली पर्व कल्प- टवार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: तिवार लगे प्रतपो अपूर्ण. १८७६१. स्तवनचीवीसी सह बालावबोध-१ से १५ स्तवन, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४१-१५ (२० से ३४ ) - २६, पू.वि. स्तवन ७ गाथा ८ से स्तवन १३ गाथा १ तक नही है., जैदे., (२६X११.५, ९X२८-३०). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: चिदानंदमय जिनवरु; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १८७६२. आवक प्रतिक्रमणसूत्र, पूर्ण, वि. १७१४, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ ( १ ) = ५, पू. वि. गाथा १५ तक नही है., ले. स्थल, कचराबाद, मु. हर्षसुंदर; पठ. श्रावि. वीरबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६X११, ५X३७-४२). प्रले. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा - ५०, पूर्ण. १८७६३. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे २, जैदे., (२५४११.५, १३x२८-३८). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, पृ. १आ - २५आ. उत्तराध्ययनसूत्र- सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीगुरु गौतम गुण; अंतिः ते मंगल कमला लहइसिई, सज्झाय - ३६. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २५आ. मिहिमूद काजी, मा.गु., पद्य, आदि: पारधीआ माहरु मृघो; अंति: एसा सांइ का विहिचार, गाथा-४. १८७६४. (*) विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८१३ चैत्र शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १४-१ (२) १३, पू. वि. गाधा ३-७ तक नही है., ले.स्थल. वांसा, प्रले. पं. ज्ञानविजय, पठ. मु. दुर्गा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६११.५, २-३३७-४० ). For Private And Personal Use Only दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस जिणे; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ गाया - ४४, पूर्ण. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हितनी करणहारी, (पूर्ण, पू. वि. लहिया ने प्रथम टवार्थ नही लिखा है. ) Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८७६५. बारभावना चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. कृष्णदास जोसी; पठ. श्राव. जिणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४५-४७). बारभावना चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: कहइ आगम सूत्रना अरथ; अंति: साध शुभमति मनिधरी, गाथा-१८६, ग्रं. २६०. १८७६६. (+) कल्याणमंदिर व तिजयपहत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ७-८x२५-२७). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ-७अ. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्ष प्रपद्यते, __ श्लोक-४४. २.पे. नाम. तिजयपहत्त स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ. सत्तरिसयजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. १८७६७. श्रावक आराधना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५४११.५, १०४३५-३८). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रपंपण; अंति: मुनिषडरसचंद्रवर्षे, ___ अधिकार-५. १८७६८. रूपसेन चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पू.वि. १७२ श्लोक तक है., जैदे., (२६४१२, १६४३६-४०). ___ रूपसेन चरित्र, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमंत विदुर शांत; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८७६९. (+) नलदवदंती संबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., खंड ४ की ढाल २ गाथा २ तक है।, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १७४४५-४९). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमधरस्वामी प्रमुख; अंति: (-), अपूर्ण. १८७७०. वसुधारानामधारणी व ज्योतिषश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७४, पौष शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. लोदरीया, प्रले. पं. लालरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७१८) भग्न दृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२४.५४११.५, ११-१२४३४-३८). १. पे. नाम. वसुधारानामधारणी, पृ. १अ-६अ. वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: वृद्धियशं पूर पूरयः. २. पे. नाम. ज्योतिषश्लोक संग्रह, पृ. ६आ. ज्योतिष श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-६. १८७७१. कर्मग्रंथ ३ से ४ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७-२३(१ से २३)=५४, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ३-१६४३१-४४). १.पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ का टबार्थ, पृ. २४अ, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., मात्र अंतिम गाथा का कुछेक अंतिम भाग एवं टबार्थप्रशस्ति है. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७१६, आदि: (-); अंति: सुधीरिमा मुक्तिं, ग्रं. ६५०, अपूर्ण. २. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २४अ-७७आ, पूर्ण, पृ.वि. गाथा-८५ तक है. For Private And Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. यशसोम-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणिधाय परंतेजो, (२)नमस्कार करीने; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८७७३. आषाढभुत चतुप्पदी, संपूर्ण, वि. १८७७, आषाढ़ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. राणावास, प्रले. मु. हुकमचंद (लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ११-१२४२४-२८). आषाढाभूति चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासणनायक सम करु; अंति: मानसागर सुभ वाण रे, ढाल-७. १८७७४. (#) दशवैकालीकसूत्र-अध्ययन १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पठ. श्रावि. अभंकुंवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४२७-३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८७७५. भक्तामरस्तोत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(२)=१७, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, १५-१७४३५-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४, पूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदिः (१)प्रणम्य परमानंददायकं, (२)भक्ता० यः संस्तुत०; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-४४ के अंतिम दो पादों की टीका नहीं हैं.) १८७७६. नवमांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४६, आषाढ़ शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. उगरावास, प्रले. मु. सरदारमलजी (गुरु मु. भोजराजजी), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११, ५-६४३८-४२). नवमांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: तहा णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणइ कालइ चउथा; अंति: त० तिमज ने० जाणवो, ग्रं. ५००. १८७७८. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. गाथा-३ तृतीय पाद से है., जैदे., (२६.५४११, ६x२३-२८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मोक्ष प्रपद्यते, श्लोक-४४, पूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८७७९. सप्तनय रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६४११.५, ९४३७-४४). सप्तनय रास, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणकमल; अंति: एह अनंत कल्याणकार, ढाल-१५, गाथा-१८९. १८७८०. ज्ञानपंचमीमाहात्म्य सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., श्लोक-१४७ के द्वितीय पाद तक है., जैदे., (२६४११, ६४३०-३४). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (-), पूर्ण. वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ प्रतै; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. श्लोक ११ तक ही टबार्थ लिखा गया है.) For Private And Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८७८९. मृगावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६ - ७ (१ से ७ ) - ९, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., ( २६. ५x११, १४-१५X३५-४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृगावती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८७८२. शालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १७१०, मार्गशीर्ष कृष्ण श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. राजकोट, जैदे., (२७X११.५, १३-१६x४४-५३). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीइं; अंति: मनवंछित फल लहस्यइजी डाल २९ गाथा ५३२. १८७८४. (+) रावप्रश्रेणीसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७८८, कार्तिक शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०४, प्रले. मु. दयाराज (गुरु मु. जगराजजी ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र. ले. श्लो. (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२६x११, ५X३०-३६). राजप्रश्रीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए: अंति: पस्से पस्सावणीए णमो सूत्र - १७५. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेण कालि अवसर्पिणी; अंति: नमस्कार थाओ माहर. १८७८५. सारस्वतप्रक्रिया की चंद्रकीर्ति टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., तद्धित प्रकरण अपूर्ण तक है., जैवे. (२६११, १५X३९-४३). " सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (१) नमोस्तु सर्वकल्याणपद, (२) प्रणम्येत्यादि० अथैत; अंति: (-), अपूर्ण. १८७८६. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ अध्ययन १ - २८, प्रतिपूर्ण, वि. १७८४ शुक्ल, ५, रविवार श्रेष्ठ, पू. १०१, ले. स्थल. पल्हादपुर, प्रले. पं. जसोविजय पठ. पं. वृद्धविजय (गुरु पं. जसोविजय), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पह्नविहार पार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., (२६X११, ४-५X४०-४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुकस्स; अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वसंयोग मातादिकनो अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण १८७८७. (+) महीवालनरेश्वर चरित्र, अपूर्ण, वि. १८८०, माघ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ७२-१२ (७ से ८, १५ से २२,२४ से २५)=६०, ले. स्थल, हैदराबाद, राज्ये गच्छा. जिनउदयसूरि प्रले, पं. गुलाबचंद्र (परंपरा गच्छा, जिनउदयसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३४-४१). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंति: निययगुरूणं पसाएण, गाथा - १८१४, अपूर्ण. १८७८८. अणुओगदारसुत्तं सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७०९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १६२-३१ (१ से ८,१२ से १५,६४ से ७४, ७६ से ७७,८६, १२३ से १२५, १४३ से १४४ ) = १३१, प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे., (२५.५४११.५, १-१०X३५-४३). , अणुओगदारसुत्तं, आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: जं चरणगुणओ साहू, गाधा १६०४, ग्रं. २००५, अपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र - बालावबोध, त्रा. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (१) पादानविधिकुशलैः, (२) पणि समाप्त युं ग्रं. ९५००, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २२१ १८७८९. प्रवचनसारोद्धार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५९, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २९६, प्रले. मु. वर्धमान (गुरु मु. कृष्णदास); लिख. ग. लालचंद शिष्य (गुरु ग. लालचंद, तपा पक्ष), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रारंभ में मूलपाठ प्रतीकमात्र ही हैं एवं अंत में क्रमशः मूलपाठ मिलता हैं., जैदे., (२६.५४११, १७४५३-५७). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: सुया तं विसोहंतु, ग्रं. २०००. प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, आदि: सन्नद्धैरपि यत्तमोभि3; अंति: गिरिर्जयतु तावदियम्, ग्रं. १६०००. १८७९१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५४३२-३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बई प्रकारइं; अंति: तुज प्रते कहुं छु. १८७९२. (+) प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ-विस्तृत, संपूर्ण, वि. १७८५, श्रावण शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ८८, ले.स्थल. घोघाबिंदर, प्रले. उपा. देवविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४९५०, प्र.ले.श्लो. (६६७) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेद्, (७६८) जादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१२, ४-१४४४१-४६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: वोसिरियं० मएगहियं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७५१, आदि: बार गुणे करि सहित; अंति: योंतेवासी मुख्यसुधीः. १८७९३. उत्तराध्ययनसूत्र सह सुखबोधा लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५०, पौष शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २६०, ले.स्थल. गिरिपुर, प्रले. मु. कनकशील, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२६.५४११.५, १७-१८४४९-६०). उत्तरज्झयणसूत्तं, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदिः (१)प्रणम्य विघ्नसंघात, (२)संयोगात्संबंधाद्; अंति: (१)रस्या विनिश्चितम्, (२)तदनतिक्रमेण यथायोगम्, ग्रं. १२०००. १८७९४. रजोछवीपर्वेकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. वखतापुर, प्रले. ग. पद्मविजय (गुरु ग. उमेदविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आदिजिन प्रसादात्., जैदे., (२६४१२, ४-५४२९-३०). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं मन्ये; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक-६९. होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवने नमिने; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा-३८ तक टबार्थ हैं.) १८७९५. रोहणीआरास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. ढाल-१७ गाथा-९ तक हैं., जैदे., (२६४१२, १४-१५४४४-४५). रोहिणीयाचोर रास, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., पद्य, वि. १६८८, आदि: सार सुकमल बुद्धि; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८७९६. पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकक्षामणं, संपूर्ण, वि. १९५४, फाल्गुन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, ११४३०-३५). For Private And Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१६अ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १६अ-१६आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: नित्थारग पारगा होह, सूत्र-४. १८७९८. विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रावण शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. सादडी, प्रले. मु. लालसागर (गुरु पं. नित्यसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में चिंतामणि पार्श्वनाथ का नामोल्लेख हैं., जैदे., (२६४१२, ३-४४२०-३५). विचारषत्रिंशिका प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउंक० नमस्कार करी; अंति: आत्माने हितनी करणहार. १८८००. (+) मृषावादविरमणाधिकारे मानतुंगमानवति चरित्र, पूर्ण, वि. १८३७, श्रावण शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७-१(१)=३६, पू.वि. प्रथम ढाल गाथा-६ अपूर्ण से हैं., ले.स्थल. चोबारी, प्रले. पं. कस्तुरविजय (गुरु ग. पुन्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १५-१६४३४-४०). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५, पूर्ण. १८८०१. सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १७८६, कार्तिक शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पाटण, लिख. श्राव. रिखवदास सामीदास शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४५-४९). सौभाग्यपंचमीपर्व कथा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमत्पार्श्वजिनाधी, (२)श्रीपार्श्वनाथ प्रति; अंति: (१)वार्तिकमातनोत्, (२)भेदवा भणी तुम्हो, ग्रं. २००. १८८०२. नलदमयंतीरास, नेमिजिनफाग व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ३, जैदे., (२७४११.५, २३-२५४६६-७२). १. पे. नाम. नलदमयंती संबंध, पृ. १२. नलदमयंतीरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: चतुर माणस चित्त वसी, खंड-६, ढाल ३९. २. पे. नाम. नेमिजिन फाग, पृ. १२आ. मु. वर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेम जिनेश्वर; अंति: प्राणी जैनधर्म ततसार, गाथा-११. ३. पे. नाम. नेमिराजीमती सज्झाय, पृ. १२आ. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुनि सुनि सहेलडी हे; अंति: हरिकुल चंद्रमा ए, गाथा-१०. १८८०३. मौनएकादशीदिन आराधनविषये सुव्रतऋषि कथानक, संपूर्ण, वि. १८५९, पौष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. लालचंद (गुरु मु. शिवचंद, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १२४३३). मौनएकादशीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमः श्रीपार्श्वनाथाय, (२)मागशिरमासनी उजली; अंति: ए पर्व ते विशेषि कहि. १८८०४. ऋषिमंडल स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १२४२९-३३). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १अ-६अ. For Private And Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आचंताक्षरसंलक्ष्य अंतिः पाल्लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक १०७. २. पे. नाम. मंत्र, पृ. ६आ. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह " सं., प्रा., मा.गु., प+ग, आदि (-); अंति: (-). 9 १८८०५. बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. "पंक्ति अक्षर अनियमित है। जैदे., (२७११.५). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८८०६. परदेशीराजानी चउपड़, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. विष्णुदास लिख श्रावि. सखमादे बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११.५, ९२९-३३). परदेशीराजा चोपाई, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीजिणपास; अंति: जोडीव भणइ श्रीपासचंद, गाथा - ५२. १८८०७. हंसावली रास, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२ - १ (७) = २१, ले. स्थल. छत्र, प्रले. ऋ. सारंग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५X११.५, १३-१५X३४-३९). (+) वच्छराजहंसराज चतुष्पदी, असाइत नायक, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: अमरावई समाणं; अंति: असाइत ते अफलां फल, खंड-४, गाथा-४२२, पूर्ण. १८८०८. (+) आरंभसिद्धि, पूर्ण, वि. १७४१, कार्तिक कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १६ - १ (१२) = १५, प्रले. ग. भीमसुंदर (गुरु ग. माणिक्यसुंदर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैये. (२६.५x११, १३-१६४३२-३५). "" १८८०९. रतनसारकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैवे. (२७४११, १२-१३३६-३८). आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी आदिः ॐ नमः सकलारंभसिद्धि; अंतिः प्रथयंति लक्ष्मीम्, विमर्श-५ ग्रं. ४६०, पूर्ण. २२३ रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५८२, आदि: सरसति हंसगमनि पय; अंति: सहज० बूधि प्रकासो रे, गाथा- ३२७, ग्रं. ४२५. १८८१०. 'भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X११, १७X७०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि (१) पूजाज्ञानवचोपायापगमा, (२) सम्यग् जिनपादयुगं; अंति: (१) पमतिः ० प्रायशः संति, ( २ ) स्वधिया व्याख्येयः, ग्रं. १५७२. १८८११. जंबूद्वीप प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैवे. (२६.५X११, ७४३२-३७). " बृहत्क्षेत्रसमास संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण सजलजलहर निस्स; अंति: ताण समताई दुक्खाई, गाथा - १५१. बृहत्क्षेत्रसमास- संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ जल; अंति: दुख क्षय जाई. १८८१२. खेत्रसमास, संपूर्ण वि. १७०१ आश्विन शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल खोखरा, प्रले. मु. मांडा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अंतर्गत पठनार्थे का नाम मिटाया गया है., जैदे., (२६.५४११.५, ११-१२४३९). For Private And Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५. १८८१३. (+) जीवविचार व चतुर्विंशतिदंडक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०१, श्रावण कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. अंद्री, प्रले. मु. काशी ऋषि (गुरु मु. उग्रसेण); पठ. मु. गढमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४४१-४५). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-५आ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संसार का दीवा छइ वीर; अंति: ति सते उद्धर्या. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिदंडक सह टबार्थ, पृ. ५आ-९आ. चतुर्विंशतिदंडक स्तोत्र, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४१. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी चउवीस; अंति: आत्माहित निमित्ते. १८८१६. (+) उपदेशमाला सह टबार्थव कथा, संपूर्ण, वि. १८३९, माघ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २१६, ले.स्थल. कालंद्रीनगर, प्रले. पं. कपूरविजय गणि; पठ. मु. नगविजय (गुरु पं. कपूरविजय गणि); राज्यकाल रा. अमरसिंह महाराजा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ७०००, जैदे., (२६४११, ४-१३४२८-३८). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, ग्रं.७००. उपदेशमाला-टबार्थ, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)नमिऊण क० नमस्कार करी; अंति: (१)संजात इति भद्रं, (२)वाणी श्रुतदेवता ते. उपदेशमाला-कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा वीरजिनं; अंति: शोधनीयैव सुधी धनैश्च. १८८१७. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. छः व्रत के आलोवा तक है।, जैदे., (२६४१०.५, १२-१३४३४-३८). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (१)अन्नाणमोह दलणी जणणी, (२)तित्थंकरे अतित्थे; अंति: (-), __ प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८८१८. भुवनदीपक व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १७४७, कार्तिक, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. बालोतरा, प्रले. मु. पुणहर्ष ऋषि (परंपरा गच्छा. जिनरत्नसूरि); पठ. कर्मचंद; राज्ये गच्छा. जिनरत्नसूरि; राज्यकाल रा. अजितसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४१०.५, १३४५१). १. पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. १अ-६आ. आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिणा, श्लोक-१७७. २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह-, पृ. ६आ. ज्योतिष*, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २२५ १८८२३. (+) विमलमंत्रीप्रबंध आदि की कथासारसंग्रह विगेरे, संपूर्ण, वि. १६४२, पौष शुक्ल १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. १३, ले.स्थल. कालावाड, प्रले. कीके, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५x१०, १९-२०x४५-४९). १. पे नाम, पंचाख्यान के चयनितश्लोक संग्रह सह आंशिक वालावबोध, पृ. १अ-७आ. पंचतंत्र-श्लोक संग्रह, विष्णु शर्मा, सं., पद्य, आदि: सकलार्थशास्त्रसारं; अंतिः सुप्तेषु जागृयात्, आख्यान-५. पंचतंत्र - लोक संग्रह का आंशिक बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: दक्षिण देश मध्ये महि; अंतिः काल अतिक्रमतउ हूओ. २. पे नाम, नंदयत्रीसीचीपाई कथासार, पृ. ७आ-८आ. मा.गु., गद्य, आदि: पाडलीपुर नगरि नंदराज, अंतिः सुखि राज भोगवतो हूओ. ३. पे नाम, विक्रमराजा परकायाप्रवेशप्रबंध कथासार, पृ. ८-१०अ. मा.गु., गद्य, आदि: उजेणीनगरी तिहा; अंति: त्याग उपरि ए कथा छइ. ४. पे. नाम. सदयवच्छनरेन्द्रप्रबंध कथासार, पृ. १०-१२ आ. मा.गु., गद्य, आदि: मालवदेशि उजेणीनगरीइ; अंति: राज भोगवता हूया. ५. पे नाम, बंकधूलचीपाई कथासार, पृ. १२-१३अ. वंकचूलप्रबंध कथासार, मा.गु., गद्य, आदि: दक्षिणार्द्ध भरति; अंति: गयउ आगलि मोक्ष जासि. ६. पे. नाम. अढारनातरा विचार, पृ. १३अ. मा.गु., गद्य, आदि: रे बालक तुं मुझन; अंतिः पामीनइ चारित्र लीधा, ७. पे नाम, सीमंधरजिनवीनती स्तवन प्र. १३ आ. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनेश्वर ३० तुंकारा दुहा, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर तुं करि ते होय; अंति: तुंकारा छाजइ तुझ, गाथा-५. ८. पे. नाम, नंदराजविरोचनमंत्रीकक्षागत लोकसंग्रह, पृ. १३ आ. श्लोक *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १०. ९. पे. नाम. श्रीपालनरेन्द्र कथासार, पृ. १३आ - १५अ. मा.गु., गद्य, आदि: मालवदेशनइ विषइ उजेणी; अंति: नवकारनो प्रभाव जाणवो. १०. पे. नाम. मुनिपतिनरेन्द्र कथासार, पृ. १५अ - १७अ. मा.गु., गद्य, आदि: मणपतिका नगरी मनपति; अंति: आवी मोक्ष जास्यइ. ११. पे. नाम. सुरपरिकुमारचीपाई बालावबोध, पृ. १७अ १७आ. सुरपतिकुमार कथासार, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मनगर तिहां अंतिः केवली मोक्ष पहूता. १२. पे. नाम. सिंहासनवत्रीसीगत बत्तीसपुतली विचार, पृ. १७आ. सिंहासनबत्रीसी की ३२ पुतली विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जया१ विजयार जयंति ३; अंति: देवलोकि उत्पति गई. १३. पे नाम, विमलमंत्रीप्रबंध की कथासार, पृ. १७-२२अ. विमलमंत्री प्रबंध - कथासार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, वि. १५६८ - १६४२, आदि: प्रथम सरस्वतीदेवी; अंति: संख् १८०० श्लोक छड़. For Private And Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८८२४. (+) संग्रहणी सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७ - १ ( ३३ ) = ३६, अन्य. सा. दैपाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१०.५, ५X३२-३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊ अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३११, पूर्ण. बृहत्संग्रहणी - टवार्थ में, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंतिः वीरनुं तीर्थ ति लगी, पूर्ण, १८८२५. चौवीसठाणा, गुणठाणा द्वार, भरतऐरावतक्षेत्रे अतीत अनागतवर्तमान चोविसजिन नाम आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ७, ले. स्थल. नारनवल, प्रले. शोभाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४१०.५, २४-२६X१६-२४). १. पे. नाम. चौबीसठाणा, प्र. १-१२ आ. २४ स्थानक २४ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ इंदिय काय जोय वेय; अंति: हेतु आहारक २ टल्पा. २. पे नाम, गुणठाणा द्वार, पृ. १२-१४आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणठाणाद्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार लक्षणद्वार; अंति: बहुत्व द्वार कर्यो. ३. पे नाम, बासठिया गाथा, पृ. १४आ. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि: ( - ); अंति: (-), गाथा - २. ४. पे. नाम. पुलपरावर्त्त भेद, पृ. १४-१५ आ. पुद्गल परावर्तन के सात भेद, मा.गु., गद्य, आदि: औदारिक वैक्रिय तेजस; अंतिः परावर्त कीधो कहीए. ५. पे नाम, दसप्रकारमुंडण नाम, पृ. १५ आ. मुंडन १० प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: १ करोधमुंडे श्मानमुंड अंति: मुंडे १० दव्वमुंडे. ६. पे. नाम. अढीद्वीपे अतीतवर्तमानअनागतचौवीसी नाम, पृ. १५आ - १९अ. मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रथम भरत तीर्थंकर, (२) केवलग्यानीनाथ निरवाण; अंतिः अख्यामती क्तुमेतनाथ. ७. पे. नाम. चारकषाय के भांगा यंत्र, पृ. १९आ. ४ कषाय के भांगा यंत्र, मा.गु., को., आदि (-); अंति: (-). १८८२७. मध्याह्न पद्धत्ति व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६.५x१०.५, १७५५०). मध्याह्नपद्धति व्याख्यान, प्रा., सं., पद्य, आदि: (१) अध समागता श्रावणस्य, (२) जिणधम्मो मुक्खफलो; अंति: (-), अपूर्ण. १८८२८. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टवार्थ व समास, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. अमरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१०.५, ६X३०-३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण ते मंगलिक; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू. वि. अंतिम दो गाथाओं का टबार्थ नहीं लिखा हैं.) कल्याणमंदिर स्तोत्र - समास, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: कल्याणानां मंदिरं अंतिः यस्ते विगलितमलनिचयाः, For Private And Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १८८२९. (+#) एकीभाव स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६ प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैये., (२६X११, ५X३० ). एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: एकीभावं गत इव मया; अंति: वादिराजमनुभव्य सहाय, श्लोक-२६. १८८३१. तेजसारराजरपिरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैवे. (२६४११, १३-१४४४४-५०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेजसारकुमार रास, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६२४, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलो; अंति: तेहना सह मनोरथ फलइ, गाथा - ४१२. १८८३२. (५०) क्षेत्रसमास प्रकरण व क्षेत्रपरिधि गाथा संपूर्ण, वि. १६१५ आश्विन शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले. स्थल, मोरबी, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ११४३८-४२). १. पे. नाम. क्षेत्रसमास परिकरण, पृ. १आ-७अ. बृहत्क्षेत्रसमास- संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहर निभस्स; अंतिः समयखेत्तस्स परिरओ, गाथा-१३२. २. पे. नाम. क्षेत्रपरिधि गाथा, पृ. ७आ. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि: ( - ); अंति: ( - ), गाथा - ३. १८८३३. (+) ठाणांगसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २९७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X११, १५-१७X३१-४८). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणंता पण्णत्ता, स्थान-१०, ग्रं. ३६००. २२७ स्थानांगसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनं नाथं; अंतिः धमाध्ययननी परि जाणवा १८८३४. (+) कूर्मापूत्र कथा, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. ग. अमरप्रभ (गुरु उपा. अनन्तहंस, तपागच्छ); पठ. सा. सौभाग्यवृद्धि गणिनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, ११-१२४३६-४१). कूर्मापुत्र कथा, मु. जिनमाणिक्य, उपा. अनन्तहंस, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण वद्धमाणं असुरि; अंति: वाइद्यतं चिरं जयउ, गाथा - १९४. १. पे नाम, कल्पिकासूत्र, पृ. ९आ-१३अ. प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः णवमायातो सरिसणामातो, अध्ययन १०. For Private And Personal Use Only - १८८३५. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२७११.५, ११x२८-३१). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं, १८८३६. सिद्धांतचंद्रिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १८, जैवे. (२७४११, १३-१४४३६-४५) , सिद्धांतचंद्रिका - सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८८३७. (+) निरयावलियादि पंचोपांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६००, चैत्र कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुल पे. ५, ले. स्थल. अह्मदाबाद, प्रले. मु. गुणशील, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. ११०९, जैदे., (२७X११, १३x४१-४६). Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२८ www.kobatirth.org २. पे नाम, कल्पावर्तसिकासूत्र, पृ. १३-१४अ. कप्पवडिंसिया, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंतिः महाविदेहे सिद्धे, अध्ययन - १०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १४अ - २६ आ. प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाई जहा संगहणीए, अध्ययन - १०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. २६आ-२८आ. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन - १०. ३. पे नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. २० आ-३७अ. प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन - १०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. २८आ-३२अ. प्रा., गद्य, आदि जड़ णं भंते पंचमस्स; अंतिः मइरित एक्कारससु वि, अध्ययन- १२. १८८३९. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (१७X११, ६-७X३३-३९). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्वावि, गाथा - ६४. गौतमपृच्छा-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अति हुंती प्रकाशी छड़. १८८४०. निरियावलियादि पंचोपांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, कुल पे. ५, जैदे., (२७४११, ११४३४-३९). १. पे नाम. कल्पिकासूत्र, पू. १ अ-१९अ. प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: भणियच्वो नंदी, अध्ययन १०. - २. पे नाम. कप्पवडिंसिया, पृ. १९-२० आ. प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंतिः महाविदेहे सिद्धे, अध्ययन - १०. ४. पे नाम, पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ३७अ ३९आ. प्रा., गद्य, आदि जड़ णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन- १०. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ३९आ-४४आ. प्रा., गद्य, आदि जड़ णं भंते पंचमस्स; अंतिः मइरित एक्कारससु वि, अध्ययन- १२. १८८४१. इलापुत्रकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १५५२, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. जैदे., ( २६.५X११, १३x४४-४६). (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इलापुत्र चरित्र, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १६, आदि: श्रीजिनसानि जिण जयउ; अंति: अष्टमहासिद्धि लहर, गाथा - १६४. १८८४३. (*) कलावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १९९४ माघ शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. अणहिलपत्तण, प्रले. मु. सिद्धराज ऋषि (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६.५X११, १५x५१-५३). कलावतीसती रास, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रइ रे नयरी; अंति: वेग वरसइ सयंवरा, गाथा - ८०. १८८४५. । वाक्यप्रकाश मौक्तिक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६X११, १३X३९-४६). वाक्यप्रकाश मौक्तिक, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं; अंतिः हितो वाक्यप्रकाशोयम्, श्लोक-१२८. For Private And Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १८८४६. (#) जंबुस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४११, १५-१८४४६-५२). जंबूस्वामी कथा, मु. बुद्धि, मा.गु., पद्य, आदि: पदमश्री कहि सुंदरी; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८८४७. धूर्ताख्यान, संपूर्ण, वि. १६५५, आश्विन कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. सूरतिबंदर, प्रले. वा. उदयमंदिर (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११, १५-१७४५५-५८). धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे तिअस; अंति: जिणागमे एरिसा भत्ती, आख्यान-५. १८८४८. रत्नचूड चौपाई, संपूर्ण, वि. १७१४, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. सिद्धपूर, जैदे., (२७४११.५, १५४५०-५३). रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५०९, आदि: सरसति सामिणि वीनवू; अंति: नीत करइ जय जयकार, गाथा-३१९. १८८४९. सिद्धांतविचारसार्द्धशतक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२७४११.५, ६४२४-२६). सिद्धांतविचारसार्द्धशतक, म. तेजसिंह, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं प्रणम; अंति: (-),प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १८८५०. शालिभद्र चौपाइ, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, पृ.वि. पूर्णता गाथा १-११ तक नही है., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३८-४२). शालिभद्र रास, मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, वि. १४५५, आदि: (-); अंति: नवनिधि आयइ घरि तीहट, गाथा-२२०, पूर्ण. १८८५२. भक्तामरस्तोत्र बालावबोध कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६४११.५, १३-१५४४१-४६). भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: कीधु मोटि महिमा हुइ. १८८५३. (+) भक्तामरस्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. सूर्यपूर, प्रले. उपा. रत्नचंद्र (गुरु उपा. शांतिचंद्र, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टीकाकार उपाध्याय रत्नचंद्रजी के द्वारा प्रत का प्रतिलेखन कीया गया है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-त्रिपाठ., जैदे., (२७४११.५, २-३४४२-४६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४, ग्रं. ७७. भक्तामर स्तोत्र-टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., गद्य, आदि: प्रणतसुरासुरनरवर; अंति: ललितार्थपदप्रपंचाम, ग्रं. ४८१. १८८५५. (+#) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६६-१८६७, श्रेष्ठ, पृ. २६५, प्रले. मु. रतनलाल (गुरु मु. हरजीमलजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, (५६२) भग्नि पृष्टि कटि ग्रीवा, (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२८x१२, ७-८४३७-५२). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, ग्रं. ४८००, (वि. १८६६, आश्विन शुक्ल, १४, रविवार) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ण. नमस्कार हुवो माहर; अंति: सर्वजीव कह्या छइ, ग्रं. २२७२१, (वि. १८६७, चैत्र शुक्ल, ८, गुरुवार) १८८५६. वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. १९६३, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १५४, प्रले. कनयालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२९x१२, ११-१२४३७-४६). For Private And Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंति: शोधयंतु गतमत्सराः, उल्लास-१०, ग्रं. ४७००. १८८५८. वैद्यवल्लभ व औषधसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, जैदे., (२९.५४१२, १०-११४३७-४०). १. पे. नाम. वैद्यवल्लभ, पृ. १आ-१३आ. मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि ध्यात्; अंति: परोपकाराय विहितोयम्, विलास-८. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८८५९. उपासकाध्यायन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२८.५४१२, १०-११४३५-३८). उपासकाध्यायन, मु. वसुनंदि सैद्धान्तिक, सं., गद्य, आदि: प्रसिद्धात्मसद्भवान्; अंति: सिद्धस्थानमिति. १८८६४. (+) सिद्धांतचंद्रिकावृत्ति व अढार पुराणनाम, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२-६(१ से ६)=६६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३०x१२, ९-१०४२७-४६). १. पे. नाम. सिद्धांतचंद्रिकावृत्ति, पृ. ७अ-७२आ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. मूल का मात्र प्रतिकपाठ ही दिया गया सिद्धांतचंद्रिका-वृत्ति, उपा. रुपचंद्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: विशेषार्थं न्यरुपयत्, प्रतिअपूर्ण. २. पे. नाम. अज्ञात, पृ. ७२आ. १८ पुराणनाम, सं., गद्य, आदि: वैष्णवं नारदीयं च; अंति: निरयप्राप्तिहेतवः, श्लोक-४. १८८६५. निरीयावलीयादि पंचोपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८१, कार्तिक कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८, कुल पे. ५, प्र.वि. जैदे., (२९.५४११.५, ८४४६-५०). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१९अ. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण तेणं०; अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि: तेणि कालि तेणि; अंति: वर्गश्चोक्तो हि मुदा. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १९अ-२०आ. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिज्झीहिति, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पूज्य० कप्पवडि; अंति: वर्गः प्रोक्तः. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २०आ-३९आ. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पूज्य० त्रीजा; अंति: तृतीयोवर्गः समाप्तः ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३९आ४२आ. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेण०; अंति: खलु जंबू निक्खेवउ, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पूज्य० दस; अंति: वर्गः संपूर्णः. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४२आ-४८आ. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पूज्य० पांचमा; अंति: बारइं उद्देशा कह्या. For Private And Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १८८६६. उबवाईसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे., (३०x११, १९-२१x६८-७१). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता, औपपातिकसूत्र अवचूरि, मा.गु., गद्य, आदि उपजवं ते उत्पात नरक; अंतिः क्लेश नथी गाथा सुगम. १८८६७. सुदरिसणश्रेष्ठि प्रबंध, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. सोमरत्न गणि-शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२८.५४१२, १६४६०-६३). सुदर्शनसेठ प्रबंध, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५०१, आदि: पहिलउ प्रणमिसु; अंतिः चतुर्विध संघ प्रसन्न, गाथा - २५८. १८८६९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र व जिनरक्षितजिनपालसझाय, संपूर्ण, वि. १६४९, भाद्रपद कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, ले. स्थल, देवपत्तन, पठ, मु. मेरा ऋषि (अचलगछ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२८.५५११.५, १६४५१). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र - सज्झाय, पृ. १अ - १४अ. संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु गौतम गुण; अंतिः ते मंगल कमला लहइसिई, सज्झाव - ३६. २. पे. नाम. जिनरक्षितजिनपालसज्झाय, पृ. १४-१४ आ. २३१ जिनरक्षितजिनपाल सज्झाय, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी चंपावती जाणीये; अंति: बेसी आप पार उतारी, गाथा - ९. १८८७१. (+) चैत्यवंदन चौवीसी सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. संशोधित त्रिपाठ, जैये. (२७.५x११.५, २-८४५२-५९). स्तुतिचतुर्विंशतिका, वा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०९-१८४१, आदि: सद्भक्त्या नतमौलि; अंति: देवता सा जयतादजस्रम्, स्तुति-२४, श्लोक ७७. स्तुतिचतुर्विंशतिका - वृत्ति, गच्छा. जिनरत्नसूरिजी, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य जिनं; अंतिः शोध्या गतमत्सरैः. १८८७२. कामदेव कथा व आरामशोभा चरित्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१ (१) १७, कुल पे. २, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५X११.५, १५ - १६X६१-७०). १. पे. नाम. कामदेव कथा, पृ. २अ १५अ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. कामदेव चरित्र, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: अक्षरनिरीक्षणात्, ग्रं. ७४८, पूर्ण. २. पे नाम, आरामशोभा चरित्र, पृ. १५अ १८आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि अन्यदा श्रीमहावीरस्व अंति: (-), अपूर्ण. १८८७३. (+४) क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६४०, आषाढ कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. जेसलमेरगढ, प्रले. श्राव. नरपाल; पठ. मु. वीरदास ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२८.५x११, ७-११५२६-३६). For Private And Personal Use Only बृहत्क्षेत्रसमास- लघुक्षेत्रसमास, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलाहर निभरसण; अंति: झाएजा सम्मदिडीए, अध्याय ५. बृहत्क्षेत्रसमास- लघुक्षेत्रसमास का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहेता नमीनइ; अंति: करइ सम्यग्दृष्टी. Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८८७५. प्रासुकपानीय विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, प्रले. करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत विशेष : ईस ग्रंथ के पत्रांक १ से ७ है. किन्तु प्रत देखने से प्रारंभ अपूर्ण प्रतीत हो रहा है. अतः काल्पनिक रूप से प्रथम व अंतिम पत्र को २ एवं ८ पत्रांक दिया हआ है., जैदे.. (२७४११.५.१०४२६-२९). प्रासकजल विचार. म. आनंदविमलसरि-शिष्य, प्रा.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: विचारो मतिनोद्धतः, अपूर्ण, १८८७६. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x११, ११४३९-४२). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाइं नामाई, गाथा-७००. १८८७८. आचारांगसूत्र-प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदे., (२७.५४११, ११४४२-४८). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १८८७९ (+) चित्रसेनपद्मावती कथा चौपाई, संपूर्ण, वि. १६४३, वैशाख कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. मु. विजयनिधान (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२८.५४११, १४-१६x४३-४८). चित्रसेनपद्मावती चौपाई, आ. सोमकलशसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६१०, आदि: पहिलूं प्रणमूं ऋषभ; अंति: संघ चतुर्विध जयजयकार, गाथा-६२९, ग्रं. ८५०. १८८८०. (+) नंदीसत्र, संपूर्ण, वि. १५२२, आषाढ़ कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. देवाक, प्र.ले.प. सामान्य प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४११, १३४५१-५५). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: अणुजाणामि, गाथा-७००. १८८८४. (+) निरयावलीयादिपंचोपांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., जैदे., (२७.५४११, ११४२८-३४). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-२२आ. प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण: अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन-१०. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. २३अ-२५अ. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिज्झीहिति, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. २५अ-४६आ. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेण०; अंति: चेइयाई जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ४६आ-५०अ. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ५०अ-५६अ. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. १८८८७. (#) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २७-४(१ से २,५ से ६)=२३, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११, ११४३४-३८). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८८८८. कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२७४११, १८-१९४३८-४५). For Private And Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: विजयपुरे कमल; अंतिः ज्ञातवान् बुद्ध्यादी. १८८८९ (४) स्थूलीभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५x११.५, १३-१७४४०५१). १८८९० (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६६२, पौष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२८x११.५, ६X३०-३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुलिभद्रगुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: करो सहिजसुंदर मया, अध्याय- ४. कल्याणमंदिर स्तोत्र- अवचूरि, मा.गु. सं., गद्य, आदि (अपठनीय); अंति: विशिष्टाः स्वर्गसंपदः. १८८९१. (+) औपपातिकसूत्र सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७३६, जीर्ण, पृ. ८४, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ., जैदे., (२८x११, ६३४-३६). (+) १. पे नाम औपपातिकसूत्र सह टवार्थ, पृ. १अ ८४अ औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता, सूत्र - १८९, ग्रं. ११६७. औपपातिकसूत्र - टबार्थ, मु. राजचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: ( अपठनीय); अंति: सुख पाम्या थका. २. पे नाम, जैन लोक प्र. ८४अ. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८८९३. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७८२ आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १६२, प्र. वि. अंतिम पत्र पर ३६ अध्ययनो का नाम व टवार्थ दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७११ ५-६४३५-४९). (+) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स; अंतिः पुव्वरिसी एवं भासति, अध्ययन- ३६. उत्तराध्ययनसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बे प्रकारे; अंति: एह वचन भाष्यकारनो, ग्रं. ११५८७. १८८९४. (*) भगवतीसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०३, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X११, १५X४९-५६). - भगवतीसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंतमसं अंतिः श्लोकमानेन निश्चितम् शतक- ४१, ग्रं. १८६९६. For Private And Personal Use Only २३३ १८८९६. 'षडावश्यकसूत्र सह टवार्थ-विस्तृत, अपूर्ण, वि. १८००, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १३१-५१(१ से १८,२० से २१,२३ से २५,२८ से ३८,४० से ४४, ४६ से ५१, १०८ से १०९, ११४,११६ से ११८) = ८०, ले. स्थल, सूरति, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., ( २६.५X११, १-१४X४१-४३). आवश्यक सूत्र- षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: इअ समत्तं मे गहिअं, अपूर्ण. षडावश्यक सूत्र- टवार्थ + बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७५१, आदि: (); अंतिः लिलेखार्कपुरे मुदेति, अपूर्ण. Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८८९८. (+) सुरसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रावण शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०४, ले.स्थल. गोधावी, प्रले. पं. जतनकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१२, ११-१३४३२-३५). सुरसुंदरी रास, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: सकल गुणागर पासजी; अंति: (१)विर कहे जयलीला वरो, (२)चतुर्थ खंड, खंड-४, गाथा-१५८४, ग्रं. २२७१. १८८९९. (+) समकित सडसठबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, १३४३३). समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; ___अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-७५. १८९००. (+) धन्यकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १०४३३-३४). धन्यकुमार चरित्र, आ. गुणभद्र सूरि, सं., पद्य, आदि: स्वयं भुवं महावीर; अंति: शिवायेति शिवार्थिना, परिच्छेद-७, ग्रं. ८९०. १८९०१. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रावण शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले.स्थल. नारनवल, प्रले. नूणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५००, जैदे., (२८x१२, ८-११४३९-५३). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: से तं नंदी सम्मत्ता, गाथा-७००. नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नंदी शब्दनो स्यो, (२)नंदी कहतां आणंदनो; अंति: संपूर्ण कीधा छे. १८९०२. अर्हच्छांतिकमहाभिषेकविधिआदिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १५२८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९, कुल पे. ३, लिख. पं. करमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, १०४३७). १. पे. नाम. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. १आ-८अ. श्राव. आशाधर, सं., पद्य, वि. १२८७, आदि: प्रभो भवांगभोगेषु; अंति: जिनायते, श्लोक-१४३. २.पे. नाम. प्रतिष्ठासारोद्धार - अध्याय २, पृ. ८अ-२६आ. प्रतिष्ठासारोद्धार, श्राव. आशाधर, सं., पद्य, वि. १२८५, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. अर्हच्छांतिक महाअभिषेक विधि, पृ. २६आ-५९अ. अर्हदेवमहाभिषेक विधि, श्राव. आशाधर, सं., पद्य, आदि: अथाधिवास्य चिद्रूपमि; अंति: सुखसुधांबुधौ मज्जति. १८९०३. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पंन्या. कल्याणरत्न (गुरु आ. दानरत्नसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३३-३५). स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सुगुण सोभागी; अंति: मालाबालाने वरे रे लो, स्तवन-२४. १८९०४. (+) महीपालचरित्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७५५, चैत्र, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. १०४-१(१)=१०३, पू.वि. प्रारंभ की गाथा १-७ तक नही है., ले.स्थल. पिपापुर, प्रले. मु. दाना ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x११.५, ८X४२-४५). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: निययगुरूणं पसाएण, गाथा-१८३४, पूर्ण. महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: के प्रसाद करि सही, पूर्ण. १८९०५. स्तवनचौवीसी वस्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ५, जैदे., (२८x११, १०४३६-४१). For Private And Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १आ-१०आ. ग. जयसौभाग्य वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: आणंदकारी हो अनोपम; अंति: सुखदायक जिनराय रे, स्तवन-२४. २. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ. ग. जयसौभाग्य वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव जिन; अंति: सौभाग्य प्रणमुंहेज, गाथा-७. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ११अ. ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे भाई श्रीरिसहे; अंति: जीतनिशान बजाउं लाल, गाथा-५. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ११आ. ग. जयसौभाग्य वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: जय आदीश्वर जय परमेसर; अंति: पद निकट निवासी रे, गाथा-५. ५.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ११आ. आदिजिन पद, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: तुम ही हो हम सामी; अंति: भवि प्रणमो सिर नामी, गाथा-३. १८९०६. (+) अंतगडदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २७, अन्य. श्राव. मेघराज संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मेघराज संघवी की प्रति है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१०.५, १२४४२-४५). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: अंतगडदसाउ समत्ताउ, अध्याय-९२, ग्रं. ८५०. १८९०७. मौनएकादशीदेववंदन व दोहा, संपूर्ण, वि. १८८५, फाल्गुन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. प्रांतीज, प्रले. पं. ऋद्धिसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १४४२९-३३). १.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, पृ. १अ-७अ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सयल संपत्ति सयल; अंति: (१)बेसी ११ नोकार गणीइ, (२)लाल नामे नवनिध थाय. २. पे. नाम. दुहा, पृ. ७अ. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. १८९०८. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. श्रीनाथ जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, ११४२७). नववाडि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०. १८९०९. सिद्धांतलक्षण सह आधारपाठ वटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. नडुलाइ, प्रले. ऋ. मनोहरदास (गुरु ऋ. दामाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४१२.१, ७४३२-४०). सिद्धांतसार, मु. तेजसिंह, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं प्रणम; अंति: कृत्वा कृपां वः सदा, गाथा-१०२. सिद्धांतसार-आधारपाठ, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: विवगय जरमरणभये मणवय; अंति: मिओ मद्दव संपन्ने, गाथा-१०१. सिद्धांतसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेवनइ; अंति: पंडितजणइ शुद्ध करवो. १८९१०. चोमासानी चोवीसजोडनी विधि, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१(१)=२१, जैदे., (२६४१२.५, १०४३०-३१). For Private And Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: पास सामलनु चेई रे, पूर्ण. १८९११. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रले. मु. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, १२-१३४३३-३५). देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १८९१२. संबोधसत्तरी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१५, आषाढ़ शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले.स्थल. अमदाबाद, जैदे., (२६४१२.५, १०४२९). संबोधसत्तरी, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-८५. संबोधसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण क० मनवचनकायाई; अंति: तेहनें मोक्षसुख हुइ. १८९१३. (+) सुरसुंदरीरास व दुहो, पूर्ण, वि. १६८७, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २२-१(१)=२१, कुल पे. २, ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्रले. मु. सवजी ऋषि; मु. कल्याण ऋषि; मु. भवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १३-१५४३७-४५). १. पे. नाम. सुरसुंदरी चरित, पृ. १अ-२२आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-८ तक नहीं हैं. सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: (-); अंति: एम भणे आनंदपूरि, ढाल-२१, गाथा-५०९, पूर्ण. २. पे. नाम. दुहो, पृ. २२आ. काव्य/दहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. १८९१४. (+) आठकर्मनी प्रकृति बालाबोद, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रावण शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. मु. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, ११-१२४२८-२९). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा; अंति: सो प्रकृति थई. १८९१५. (+) नवपदकलश पूजा, संपूर्ण, वि. १८९७, कार्तिक कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. फलोदी, प्रले. मु. रावत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४४४९). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: परम मंत्र प्रणमी करी; अंति: कोई नये न अधूरी १८९१६. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थव प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १८८९, आषाढ़ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. मु. संभूविजय; पठ. श्रावि. चंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ५४३५). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: भुवन लोकने प्रकाशिवा; अंति: परंपराई कह्यो छइ. २. पे. नाम. प्रश्नोत्तर, पृ. ७आ. जैन प्रश्नोत्तर संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८९१७. नवस्मरण, स्तोत्र संग्रह व पद्मावतीदेवी मंत्र, संपूर्ण, वि. १९४५, पौष कृष्ण, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ५, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. वासदेव (कवलागछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १८४३१-४४). १. पे. नाम. आत्मरक्षाकरं स्तोत्र, पृ. १आ. For Private And Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २३७ आत्मरक्षाकर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १आ. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिर्मतः, श्लोक-१२. ३. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. २अ-९आ, पू.वि. संतिकरं स्तोत्र नहीं है. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: मोक्ष प्रतिपद्यते, प्रतिपूर्ण. ४. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. २आ-३अ. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५. पे. नाम. पद्मावतीदेवी मंत्र, पृ. ९आ. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). १८९१८. (+) गुणस्थानक्रमारोह सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९४२, आश्विन कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर, प्रले. पं. नरायणचंद (गुरु ग. नेत्रविशाल वाचक, बृहत्खरतरगच्छ); पठ. श्राव. इंद्रचंद कन्हैयालालजी, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १२००, जैदे., (२५४१२, १५४३७-४७). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: चैव रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६. गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: (१)अहँ पदं हृदि, (२)यत्र यत्र पूर्वा; अंति: प्रकटित इत्यर्थः. १८९२०.(+) श्राद्धपाक्षिकअतिचार, अपूर्ण, वि. १९०४, श्रावण शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदे., (२५.५४१२, १४४३२-३५). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, अपूर्ण. १८९२१. दीपालीकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदे., (२६४१२, ६x४५-४८). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४३२. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: (१)अहँ नत्वाल्पबुद्धि, (२)अष्टमहाप्रातिहार्यनी; अंति: तिवार लगे प्रतपो, ग्रं. १२००. १८९२२. साधुप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८५२, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १४-३(१ से ३)=११, जैदे., (२५४१२, १२४२६-२७). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: अप्पाणं वोसिरामि, अपूर्ण. १८९२३. जंबूद्वीपसंग्रहणी व लाखयोजन विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, ४४३४). १. पे. नाम. जंबूदीवसंघयणी, पृ. १अ-५अ. जंबूद्वीप संग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण सव्वन्; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. २. पे. नाम. जंबूद्वीपलाखयोजन विवरण, पृ. ५आ. For Private And Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३८ www.kobatirth.org (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९८९२५. नवतत्त्व सह टबार्थ - विस्तृत, संपूर्ण, वि. १९०७, कार्तिक कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प् युक्त विशेष पाठ, जैदे., ( २४.५X१२, ४-५X३२-३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५२, (ले. स्थल. आसोपनगर, प्रले. पं. क्षमासागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले. लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाक्षे, (४६६ ) पोथी प्यारी प्राणी, (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, वि. शांतिनाथजी प्रसादात्) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवा क० जीवतत्व चेतन; अंति: एकसमै अनेकसिद्ध, (प्रले. पं. विनीतसागर, प्र. ले. पु. सामान्य ) , १८९२६, (+) नवतत्त्व सह टवार्थ व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९८८०, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, ले, स्थल, कुचेरा, प्रले. मु. पठ. श्रावि. वृंदाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१२, ६३४). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा ४९. नवतत्त्व प्रकरण- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: सिद्ध ते अनेकसिद्ध. २. पे. नाम. स्वप्नकथन मंत्र, पृ. ७आ. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, सं., प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). माणिकविजय; १८९२७. वारभावना, सामायिक सझाय व सुभाषित, संपूर्ण, वि. १९वी कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले. स्थल. सेवाडी, पठ. मु. लाडु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४१२, १२४३२-३४). १. पे. नाम. बारभावना, पृ. १अ - ६आ. १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल कुल कमलना हंस; अंति: मुनिवर ध्यायवो रे, ढाल - १४. २. पे. नाम. सामायक सज्झाय, पृ. ६आ. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामाइक मन सुद्धे करो; अंति: समाइक करीवा निसदीस, For Private And Personal Use Only गाथा - ५. ३. पे. नाम. सुभाषित, पृ. ६आ. काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १. १८९२८. (+) कर्मग्रंथ १-३ सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८०८ भाद्रपद कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे, ३, प्र. मु. मलूकरत्न शिष्य (गुरु मु. मलूकरत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैये. (२६.५x१२, ४X३९). १. पे. नाम. कर्मविपाक सुत्र स्तव सह टबार्थ, पृ. १आ-१०आ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिन वांदी; अंतिः लही क० अर्थ जांणो छइ. २. पे. नाम. कर्मस्तव सूत्र सह टबार्थ, पृ. १०आ-१६आ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तथा श्रीमहावीरनी; अंति: वीरनइ नमउ अहो प्राणी. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १६आ-१९अ, अपूर्ण, पू. वि. गाथा - १५ तक लिखा है. वंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि; बंधविहाणविमुखं; अंतिः (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधना कारणथी मूकाणा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८९३२. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ नमिप्रवज्या अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., ( २५X१२, ३-६x४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ ", मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण १८९३३. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-६ (३,६,८,१६,१९,२१) = १६, कुल पे. २, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., ( २६१२, ११-१५x२५-२८). १. पे नाम श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टवार्थ, पृ. १आ-२२अ पू. वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: सेसो संसारफलहेउ, अपूर्ण. २३९ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनई नमस्कार; अंतिः जाणवउ थाक कारण, अपूर्ण. २. पे. नाम. गाथासंग्रह, पृ. २२आ. गाथा प्राकृत, प्रा., पद्य, आदि: (); अंति: (-), गाधा ५. १८९३४. (+) गुणकरंडकगुणावली रास, संपूर्ण, वि. १८१४, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल. वाराहीग्राम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, १४- १७३९-४८). गुणकरंडकगुणावली रास- बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: नहर्ष० दिन दिन आणंद, डाल- २६, गाथा ४९३. १८९३५. उपदेशवावनी, संपूर्ण, वि. १९३१, फाल्गुन कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल, गौडल, प्रले. मु. मुक्तिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१२, १२x२८-३०), अक्षरबावनी, वा. किशन, पुहिं., पद्य, वि. १७६७, आदिः ॐकार अमर अमार अविकार; अंति: किसन कीनी उपदेशबावनी, गाथा - ६२. (+) १८९३७. आर्यवसुधाराधारिणी, संपूर्ण, वि. १९५६, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, उज्जैन, प्रले. ऋ. अनोपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४x१२, ११-१२x२८-३३). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. १८९३९. जंबुपृच्छा, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है, अंतिम ढाल की कुछेक गाथा ही नहीं है., जैदे., (२५X१२.५, ११x२०-२२ ). जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सरवदा पुरे; अंति: (-), पूर्ण. १८९४०. कल्पसूत्र सह टबार्ध व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९४-२८ ( ६२ से ८९) = ६६, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., पार्श्व जिन चरित्र अधूरा है., ले. स्थल. रवनगर, प्रले. पंन्या. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६१२, १६ - १८x४४-४६). For Private And Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४० - www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (१) णमो अरिहंताणं० पढमं, (२) तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), अपूर्ण, कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतदेव भणि; अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि प्रणम्य शारदादेवी अंति: (-), अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८९४१. महीपालनरेन्द्र चतुष्पदिका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४१, जैवे. (२५.५x१२.५, १६४३८-४१). " महीपालराजा चौपाई, मु. विनयचंद, मा.गु., पच, आदि; श्रीनाभेव युगादिजिन; अंतिः श्रीसंघरंग वधामणी खंड-४, ढाल १२३. १८९४२. (#) जंबूअध्ययनप्रकीर्णक सह टबार्थ व समवसरण विचार, संपूर्ण, वि. १८४४, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ९२, कुल पे. २, ले. स्थल, सादडीनगर, प्रले. पं. कनकविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., ( २६.५x१२, ४X३१-३४). १. पे. नाम. समवसरणकाल विचार, पृ. १आ. मा.गु., गद्य, आदि: सोधर्मनो कीधो समोवशर; अंति: स्त्री ए तीन वेशे. २. पे नाम, जंबू अध्ययन प्रकीर्णक सह टवार्थ, पृ. १-९२अ. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देश - २१. जंqअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काल जे चोथा; अंतिः प्राणी मोक्ष जास्ये. १८९४५. जंबूअध्ययन का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, जैवे. (२५.५x१३, १४४३७). " जंबू अध्ययन प्रकीर्णक - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे चोथा आराने विषे; अंति: भव भवने विशे पामशे. १८९४६. दानाधिकारे प्रियमेलकतीर्थप्रबंध सिहलसुत चउपड़, संपूर्ण, वि. १८९९, माघ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. हिरविंस व्यास; पठ. मु. मानविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५x१२.५, १४४३८-४२). अंतिः पुण्य दानाधिकारे प्रियमेलक चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; पुण्य अधिक परमोद, ढाल ११, गाथा- २३० नं. ३५० - १८९४८. प्रश्नोत्तर ग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९२२, भाद्रपद कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. २३१, ले. स्थल. अहमदाबाद, प्रले. पंडित. वासीलाल सोटका; पठ. श्राव. दलसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X१३, १२-१४X३३-४२). अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: (१) चेतः कैरव कौमुदी सहचर, (२) जय भगवान त्रिलोक्य; अंति: लीला पामे अपार. १८९४९. चतुर्मासिकत्रयी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९६४ आश्विन शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. वलानगर, प्रले. नाथावत जोगीदास व्यास मारवाडी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे., (२८x१२.५, १२-१३३७-४२). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद अंतिः व्याख्यानमाख्यानभृत्, ग्रं. ४०१. १८९५०. चौमासाना चोविसजोडाना देववंदनविधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे., (२७X१३, ११x२६-२७). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: सांमलनुं चैत्य रे. १८९५२. चतुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैवे., (२७४१२.५, १४४४५). चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग, आदि: प्रणम्य परमानंद पंचा; अंतिः आत्मा निरमल करिवो. For Private And Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ,जैदे., १८९५७. (+) पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. ६५ पाट तक., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२६.५x१२.५, १३४३७-४०). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनशासन संप्रति; अंति: चंद्रार्कयो आयु. " १८९५८. (*) जीवविचार सह लघवृत्ति व विचारषट्त्रिंशिका सह स्वोपज्ञ अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १८७५, चैत्र ८, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, ले. स्थल. हरिदुर्ग, प्रले. पं. जगच्चन्द्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ त्रिपाठ., जैये., (२७X१३, १३ - १५X३५-३७). १. पे नाम, जीवविचारप्रकरण सह लघुवृत्ति, पृ. १अ ११अ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनी टीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५०, आदि (१) ध्यात्वा जैनं महः, (२) इह हि संसारसागरे; अंति: (१) वृत्तिकाम्, (२) कल्पित इति सूचितम् . २. पे नाम. विचारषट्त्रिंशिका सह अवचूर्णि, पृ. ११ आ-१९अ. विचारषट्त्रिंशिका प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिठं चडवीस जिणे; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा - ३८. दंडक प्रकरण- स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेयं; अंति: मत्वेदं बालचापल्यम्. २४१ १८९५९. अंजना रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., ( २६.५x१२.५, १६X५५-५६). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलइनइ कडाव हो पाय; अंतिः भार्या जगतनी मात, गाथा - १५८. १८९६०. (+) निरियावलियादिपंचोपांग सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९६, कार्तिक शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ७६, कुल पे. ५, ले. स्थल. पोरबंदर, प्रले. पं. हस्तिविजय; पं. वलभविजय (लुकागच्छ); उप. मु. गुमान ऋषि; लिख श्रावि. नवीबाई (ि श्राव. ताराचंद परसोत्तम), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैये., (२७४१२.५, ७X३०-३९). १. पे नाम. निरयावलीया प्रथम वर्ग सह टबार्थ, पृ. १आ ३१ आ. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः भणियव्वो तहा, अध्ययन - १०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्तमान काल चउथा आरा; अंति: सर्वना जाणवा तिमज. २. पे. नाम. कप्पवडिसीया सह टवार्थ, पृ. ३१आ-३४आ. - कल्पावर्तसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते समणेनं०; अंतिः महाविदेहे सिज्झति, अध्ययन १०. कल्पावतंसिकासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि तिमज हे पूज्य श्रमण; अंतिः महाविदेहे सीझसे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३४आ - ६३ आ. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाई जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जदपि हे पूज्य श्रमण; अंतिः जिम संग्रहणीनी परे. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ६३आ-६८अ. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भते समणेणं०; अंतिः विदेहे वासे सिज्झति, अध्ययन- १०. पुष्पचूलिकासूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जदपि हे पूज्य श्रमण; अंतिः संसारनो छेद करसे. For Private And Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टवार्थ, पृ. ६८अ ७६आ. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जड़ णं भंते ० पंचमस्स; अंति: महरित एक्कारससु वि, अध्ययन- १२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जदपि हे पूज्य; अंति: इग्यार सर्वनइं. १८९६१. (+) सीमंधरजिनविज्ञप्ति स्तवन सह टवार्थ विस्तृत, संपूर्ण वि. १८८९ कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७४, ले.स्थल. पत्तन, राज्ये गच्छा. दिनेंद्रसूरि; प्रले. ग. रत्नविजय ( परंपरा गच्छा. दिनेंद्रसूरि ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचास पार्श्वनाथ के प्रसाद से., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X१३, ३-४x२९-३७). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाधा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिब; अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल १७, गाथा- ३५४, ग्रं. ३५५. सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा- टवार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य पार्श्वनाथ, (२)सीमंधरस्वामी पूर्व; अंति: आसीषवचन मंगलिक जाणवो, ग्रं. १५०७. १८९६२. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५५, प्र. वि. अंतिम पत्र नया है., जैदे., (२५X११.५, ११-१४X३४-४०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड- ४, ढाळ ४१. १८९६३. चोविसदंडकना ओगणत्रिस द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२७X१२.५, १२३१-३४). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अधिका कहेवा सहि. १८९६५. महावीरजिन दिपालिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. छबील वीरचंदजी व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X१२.५, १०X३२-३८). महावीर दीपावली स्तवन, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंतिः श्रीगुणहर्ष वधामणे, ढाल - १०, गाथा - १२३, ग्रं. २००. १८९६६. (४) सिंदूर प्रकरण, ज्ञानपंचमी स्तुति व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, प्रले, मु. हरसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२.५, १३-१४X३१-३९). १. पे नाम. सिंदूरकरसुभाषित कोश, पृ. १आ- ९अ. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक १००, २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. ९अ - ९आ. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. द्वितीय श्लोक अपूर्ण तक है. ज्योतिष, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. द्वितीय श्लोक अपूर्ण तक है.) १८९६७. गौतमस्वामीरास, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२७४१२.५, ११४३२-४०). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः वृद्धि कल्याण करो, गाथा - ६६. १८९६८. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७.५x१२.५, १०x३०-३६). For Private And Personal Use Only अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जिय सव्वभयं अंति: जिणवयणे आयरं कुणह गाथा- ४०. Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २४३ १८९६९. आतमप्रबोधकज्ञायक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७४१२, १२४३०-३२). आत्मप्रबोध सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल-८. १८९७०. सडसठिबोल समकित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२२, माघ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पालणपुर, लिख. श्रावि. धनबाई; प्रले. पं. कुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६४७) मंगलं लेखकानांच, जैदे., (२७४१२.५, १३४३०). समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. १८९७१. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ व प्राकृतगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. ऋ. धनजी; पठ. मु. वीरचंद (गुरु मु. केसव ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ६४३८-४१). १. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-९आ. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत श्रीमहावीर कहै; अंति: तरे अनंतसुख पामे. २. पे. नाम. प्राकृत गाथा, पृ. १अ+९आ. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-२. १८९७२. गहुंली, भाससंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १८, जैदे., (२६.५४१२, १३-१६४३४-३७). १. पे. नाम. गौतमस्वामी गहुली, पृ. १अ. मा.गु., पद्य, आदि: वर अतिशय कंचनवाने अंति: उल्लस्य आतमरांम हो, गाथा-७. २. पे. नाम. पजुसण गहुली, पृ. १अ-१आ. पर्युषणपर्व गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुन्यनें; अंति: अमुलक भावना भावो रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. १आ-२अ. मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर हे के मुनिवर; अंति: मानथी पांमे लाभ अपार, गाथा-७. ४. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. २अ. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यानमा; अंति: चीत चाहे अमृतसुख सार, गाथा-७. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी गहंली, पृ. २अ-२आ. ___ मा.गु., पद्य, आदि: गोतम गणधर मुख्य; अंति: सुख शाश्वता हो लाल, गाथा-५. ६. पे. नाम. गौतमस्वामीगहुली, पृ. २आ-३अ. मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकरण व्रत धारता; अंति: लहे० पामजो सुख अभंग, गाथा-६. ७. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. ३अ-३आ. मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानादिक गुणखाण; अंति: गावे जिनशासन धणीजी, गाथा-८. ८. पे. नाम. जंबूस्वामी गहुंली, पृ. ३आ. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजी गणधर; अंति: देवचंद्र सूत सच्छ रे, गाथा-६. ९. पे. नाम. गुरूगुण गहुंली, पृ. ३आ-४अ. For Private And Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आगम वयण सुधारस पीजे; अंति: सकल मंगल घरि लावे रे, गाथा ५. १०. पे. नाम गौतमस्वामी गहुंली, पृ. ४अ. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनिधि है गुणनिधि; अंति: गुहली करो विज्ञान, गाथा - ८. ११. पे. नाम वासुपूज्यजिन गहुली, पृ. ४-४आ. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी अति है; अंति: कहे मुझ आस्या फली, गाथा - ५. १२. पे नाम महावीरजिन भास, पृ. ४आ. महावीरजिन गहुली, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीजिनवीर समोसर्या अंतिः पामीजे देवविमान, गाथा - ९. १३. पे. नाम. जंबूस्वामी भास, पृ. ५अ. मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्म, आदि: स्वामी सुधर्मा सेवी अंतिः ऋद्धिसौभाग्य सुखसार, गाथा- ९. , १५. पे. नाम. गुरुगौतमनी गहुली, पृ. ५आ-६अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४. पे. नाम. गुरुगौतम भास, पृ. ५अ-५आ. गौतमस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जगगुरु जिनपति हो; अंति: ऋद्धिसौभाग्य० दातार, गाथा - ९. स्वामी गली, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा गुरु गछपति; अंतिः सदा सुख पावती रे, गाथा - ५. १६. पे. नाम. सुधर्मास्वामी भास, पृ. ६अ. मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही उद्यान गुण; अंति: पाप दोहरा दुख वामवाजी, गाथा-७. १७. पे नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ६अ ६आ. मु. . सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवयणे अनुरंगी मुनि; अंति: धर्मनई वरता रे, गाथा - ६. १८. पे. नाम. गुरुगुण गहुली, पृ. ६आ. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे शुभ परिणामें; अंति: उत्तमने मंगलमालो रे, गाथा - ७. १८९७३. सकलाईत्, अजितशांति, वृहत्शांति, पाक्षिक अतिचार व व्रतादिनाम संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७५ (१ से २,७ से ८, १५) = १२, कुल पे. ५, जैदे., ( २६४१२, १०x३३-३६). १. पे. नाम. सकलात् स्तोत्र, पृ. ३अ, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है., अंतिम गाथा भी अपूर्ण है. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः श्रीवीरभद्रं दीस, श्लोक-२७, अपूर्ण. २. पे नाम, अजितशांति स्तवन, पृ. ३अ ६आ. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह गाथा- ४०. ३. पे नाम, बृहत्शांति स्तोत्र तपागच्छीय, पृ. ६आ ९अ, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं, प्रारंभ व अंत का कुछेक अंशमात्र ही है. हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्, अपूर्ण. ४. पे नाम श्रावकना अतिचार, पृ. ९अ १७अ पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. For Private And Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं, अपूर्ण. ५. पे. नाम. व्रत, इंद्रिय, जीवभेद, छकाय व आठकर्मना नाम, पृ. १७अ. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १८९७४. (#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२२, माघ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ११, ले.स्थल. धांगंध्रा, प्रले. पं. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३-१६४३३-४६). १. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १अ-२आ. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमि जिणं; अंति: जिनविजय जय सिरी वरी, गाथा-४१. २. पे. नाम. अष्टमीतप स्तवन, पृ. २आ-३आ. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२४. ३. पे. नाम. कर्मछतीसी, पृ. ३आ-४आ. कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करम थकी को नवी छुटिं; अंति: धरमतणे परमाण जी, गाथा-३६. ४. पे. नाम. शीयलबत्रीसी, पृ. ४आ-५आ. मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: शीयल रतन जतने करी; अंति: राजसमुद्र सुविचारजी, गाथा-३२. ५. पे. नाम. सचित्ताचित स्वाध्याय, पृ. ५आ-६आ. सचित्तअचित्त सज्झाय, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: नयविमल कहे सज्झाय, गाथा-२३. ६.पे. नाम. तेरकाठिया सज्झाय, पृ. ६-७आ. १३ काठिया सज्झाय, मु. सुमतिरत्न-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर करी रे; अंति: माननी जिम लीला __ वरो, गाथा-२९. ७. पे. नाम. द्रुमपत्तीयाध्ययन हितशिक्षा स्वाध्याय, पृ. ७आ-८आ. द्रुमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर विमल केवल धणीजी; अंति: परसे बहु गुणवेल, गाथा-२२. ८. पे. नाम. गुणठाणा स्वाध्याय, पृ. ८आ. १४ गुणठाणा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: होइ मिथ्यात्व अभव्य; अंति: निश्चयने विवहारि रे, गाथा-७. ९. पे. नाम. बावीसअभक्ष बत्रीसानंतकाय स्वाध्याय, पृ. ८आ-९आ. बाईसअभक्षबत्तीसअनंतकाय स्वाध्याय, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देव गुरु केलं लीजिं; अंति: तणा फल लहस्ये तेह, गाथा-२१. १०. पे. नाम. कर्मविचित्रता स्वाध्याय, पृ. ९आ-१०अ. For Private And Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अति: नमोनमो कर्म राजा रे, गाथा-१७. ११. पे. नाम. दशविधयतिधर्म सज्झाय, पृ. १०अ-१४आ. १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतलता वन सींचवा; अंति: सुजस लीला अनुभवई, ढाल-११. १८९७५. स्तुति संग्रह, परमेष्टि स्तोत्र व नवपद छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१६(१ से ५,८ से १२,१४ से १५,१८ से २१)=८, कुल पे. २७, जैदे., (२६४१२, १३-१४४३१-३९). १. पे. नाम. चतुर्दशी स्तुति, पृ. ६अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रथम गाथा अपूर्ण से है. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, अपूर्ण. २. पे. नाम. दीपोत्सवी स्तुति, पृ. ६अ-६आ. दीपावलीपर्व स्तुति, म. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसति वरवाणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. ६आ-७अ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघनां विघन निवारी, गाथा-४. ४. पे. नाम. सुखडीढोअण आदिजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ. आदिजिन-सुखडी ढोयण, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: जो तुसे देवी अंबाई, गाथा-४. ५. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., द्वितीय गाथा अपूर्ण तक है. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. लब्धिरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन गोडीपार्श्व; अंति: (-), अपूर्ण. ६. पे. नाम. पर्व स्तुति, पृ. १३अ, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., अंतिम गाथा अपूर्ण से है. पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दिनदिन अधिक वधाइजी, गाथा-४, अपूर्ण. ७. पे. नाम. रोहिणीनी स्तुति, पृ. १३अ. रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. ८. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १३अ-१३आ. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८उ, आदि: पहिले पद जपीइ अरिहंत; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ९. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १३आ, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., आठवी गाथा का प्रथम पाद तक है. ___ सं., पद्य, आदि: परमेष्टी नमस्कार; अंति: (-), अपूर्ण. १०. पे. नाम. विमलगिरि स्तुति, पृ. १६अ, पे.वि. कृति का प्रारंभिक अंशवाला पत्र न होने से बाद में किसी और ने लिखा शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय तीरथसार; अंति: पाया ऋषभदास गुणगाया, गाथा-४. ११. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १६अ-१६आ, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. For Private And Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ सं., पद्य, आदि: सकललब्धिपदं विपदापह; अंति: मनंतफलं श्रुतदेवता, श्लोक-४. १२. पे. नाम. प्रथमजिन स्तुति, पृ. १६आ, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गजकुंभे बेसी आवे; __ अंति: विबुधनो मोहन जयजयकार, गाथा-४. । १३. पे. नाम. सुमतिजिन स्तुति, प्र. १६आ-१७अ. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: मोटो ते मेघरथ राय रे; अंति: ऋषभ कहे रक्षा करोए, गाथा-४. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १७अ. सं., पद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: सत्कल्याणमाहात्म्यतः, श्लोक-१. १५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १७अ. मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरगिरिस्वामी आदि; अंति: सौभाग्यनो दातार, गाथा-१. १६. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १७अ-१७आ. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १७. पे. नाम. रिषभ स्तुति, पृ. १७आ. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अंति: द्यो सुख कंदाजी, गाथा-१. १८. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १७आ. श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइ; अंति: साभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. १९. पे. नाम. नवपदछंद स्तव, पृ. २२अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ अपूर्ण से है. नमस्कार महामंत्र छंद, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा-१७, अपूर्ण. २०. पे. नाम. अन्नपूर्णा स्तोत्र, पृ. २२अ-२२आ. सं., पद्य, आदि: भगवति भवरोगात्; अंति: विद्या च परत्रमुक्तौ, गाथा-४. २१. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. २२आ. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. २२. पे. नाम. शंखेश्वर स्तुति, पृ. २२आ-२३अ. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसर पास जिणंद; अंति: द्यो दोलति मुज माई, गाथा-४. २३. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. २३अ-२३आ. औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठ सवारां सामायक; अंति: थईइ सविसुख भोगीजी, गाथा-४. २४. पे. नाम. विमलगिरी स्तुति, पृ. २३आ-२४अ. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय तीरथसार; अंति: पाया ऋषभदास गुणगाया, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. २४अ, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. ____ सं., पद्य, आदि: सकललब्धिपदं विपदापह; अंति: मनंतफलं श्रुतदेवता, श्लोक-४. २६. पे. नाम. प्रथमजिन स्तुति, पृ. २४अ-२४आ, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गजकुंभे बेसी आवे; अंति: विबुधनो मोहन जयजयकार, गाथा-४. २७. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २४आ. महावीरजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर मोटो जगनाथ; अंति: रूचि दिनदिन दोलत करे, गाथा-४. १८९७६. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२.५, १७४४६-५९). १.पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: जेणे मनवंछित लीधोजी, गाथा-१०. २. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १अ. मु. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: मनही में वैरागी भरत; अंति: मुक्ति मे मागी, गाथा-५. ३. पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. १अ-१आ. मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज तणे दिन दाखवू; अंति: देवनां सर्यां काजरे, गाथा-९. ४. पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. १आ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित्य विविध विनोद रे, गाथा-८. ५.पे. नाम. रहनेमि सज्झाय, पृ. १आ-२अ. रथनेमि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि; अंति: निर्मल सुंदर देह रे, गाथा-८. ६. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. २अ-२आ. ___ ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. ७. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. २आ. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु चरण पसाउले; अंति: कान्तिविजय गुण गाय, गाथा-७. ८. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. २आ-३अ. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीस्थूलिभद्र मुनि; अंति: तेहने करीए वंदना जो, गाथा-१७. ९. पे. नाम. वयरस्वामी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलजो तुमे अद्भूत; अंति: नित्य नमिये नरनारी, गाथा-१४. १०. पे. नाम. अष्टमीतिथि सज्झाय, पृ. ३आ-४अ. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनि वारिये; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे, गाथा-११. ११. पे. नाम. सिद्धगुण सज्झाय, पृ. ४अ. मु. देवविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अष्ट कर्म चूरण करी; अंति: देव दीए आशीष रे, गाथा-६. १२. पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. ४अ-४आ. For Private And Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुंआरी चंदनबाला; अंति: कुंवर कहे करजोडि रे, गाथा- १३. १३. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. ४. मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदिः समदम गुणना आगरुजी अंतिः साधु तणी ए सज्झाय, गाथा - १४. १४. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्जाय, प्र. ४-५ अ. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि आज म्हारे एकादशीर; अंतिः अविचल लीला लहेशे, गाथा- १२. १५. पे नाम, प्रसनचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. ५अ. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं तमारा पाय; अंतिः प्रणमुं तमारा पाय, गाथा - ६. १६. पे. नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. ५अ - ५ आ. उपा. सकलचंद्रगणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: पूछे उलट मनमां आणी, गाथा - १२. १७. पे. नाम. नवकारवाळी सज्झाय, पृ. ५आ. मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कहेजो चतुर नर ए कोण; अंति: पविजय बुद्धि सारी रे, गाथा - ५. १८. पे. नाम. पर्युषण सज्झाय, पृ. ५आ, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, प्रथम गाथा अपूर्ण है, पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण आवीया रे; अंति: (-), अपूर्ण. १८९७७. शील को रास व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५०-१८५१ आश्विन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ११, ले. स्थल. अहिपुर, मु. जीवनराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४१२.५, १९५० -५३). प्रले. १. पे नाम. शीलको रास, पृ. १-६अ, वि. १८५०, फाल्गुन शुक्ल, १४. शीयल रास, मु. ज्ञानचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहला श्रीअरिहंत; अंति: गणि करे एह वखाणके, गाथा - १८१. २. पे. नाम. राजेमती गीत, पृ. ६अ. २४९ नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., पद्य, आदिः यदुनाथ के हाथ की अंतिः साची सती राजेमतीयां, गाथा- ७. ३. पे. नाम. जिन पद, प्र. ६अ. साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि देख्या दरसण तिहारा; अंतिः वारी तेरा आधारा रे, गाथा- ३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ. पुहिं., पद्य, आदि: किस दूतीने भोलायां; अंति: जगत जाल सा देखाया रे, गाथा -६. ५. पे. नाम. पद, पृ. ६अ. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्म, आदि: दिलदा मै हरम जानी; अंति: नाथ निरंजन न्यारा है, गाथा-४. ६. पे. नाम. जिन पद, पृ. ६आ. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारो कौन बतावै रे; अंति: चरनां लग पौहचावे रे, गाथा- ४. ७. पे. नाम. जिन पद, पृ. ६आ. पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरै दिलमै तु; अंति: साहिब तीन भुवनमै, गाथा - ३. ८. पे. नाम. भक्ति पद, प्र. ६आ. सुरदासजी, पुहिं., पद्य, आदि: तुम्ह आज रयण वसि जाउ, अंति: तनमन कीनो पेस, गाथा - ३. ९. पे. नाम. नवकारगणना पद, पृ. ६आ. For Private And Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५० www.kobatirth.org मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: माहामन इम जपीयै; अंति: मोटो मुखथी मति वीसार, गाथा- ७. १०. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: अवधुं क्या सोवै तन; अंति: मूरत नाथ निरंजन पावै, गाथा-४. ११. पे नाम. पार्श्वनाथ पद, पृ. ६आ, वि. १८५१ आश्विन शुक्ल, ७. पार्श्वजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: साधो भाई चित्त जिन; अंति: अपने कुं रख वारैगा, गाथा-५. १८९७८. सझाय संग्रहादि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. १६, जैदे., (२७X१२, २१ - २२x४७-५५). " १. पे. नाम. विजैकवर सज्झाय, पृ. १आ - २अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंतिः रामपुरे गुणगाया, गाथा १८. २. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. २अ - २आ, पे.वि. यह प्रति में रचनाप्रशस्ति लिखने के बाद ३ गाथाएँ लिखी गयी है. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: समताधारी सुधमतीजी; अंति: जातिसमरण होई, गाथा - १९. ३. पे. नाम. पंचपांडव सज्झाय, प्र. २-३अ. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तीनागपुर अति भलो; अंति: मुज आवागमन निवार रे, गाथा - १९. ४. पे. नाम. जीवदयाविषये मृगरथराजा सज्झाय, पृ. ३अ -३आ. मृगरधराजा सज्झाय-जीवदया, मा.गु., पद्य, आदि दया बरोबर धर्म नही; अंतिः संत सुखी अणागारो जी, गाथा - ३१. ६. पे. नाम. भरतबाहुबली संवाद, पृ. ४अ-५अ. कुसल, मा.गु., पद्म, आदि सारदमाता समरीयें; अंतिः प्रणमुं शिरनामी, गाथा- ६५. ५. पे नाम. सोलासुपना सज्झाय, पृ. ३आ-४अ. चंद्रगुप्तराजा सोलस्वप्न सज्झाय, ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपूर नामें नगर; अंति: रिष जैमल करी जोड रे, गाथा - ३५. ७. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ५अ-५आ. पुहिं., पद्य, आदि: दुर्लभ लाधो मनुष्य; अंति: क्रोध लोभ अहंकार नही, गाथा - २०. ८. पे नाम, पंचपद स्तुति, पृ. ५आ-६आ. नवकार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: तंत्र जगमें मंत्र; अंतिः स्याँ सदा नर पाइये, गाथा- ६०. ९. पे. नाम. साधारणजिन विनती स्तवन, पृ. ६आ-७अ. पंन्या. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभूवनगुरु स्वामी; अंति: हो रे निरभय कीजीयेजी, गाथा - १८. १०. पे. नाम भावपचीसी, पृ. ७अ ७आ. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: भावपचीसी जोरु भारी; अंति: विधसुं ढाल रसालो, १९. पे. नाम संसारसगपणपचीसी, पृ. ७आ-८अ. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: अरिहंत सिद्ध आचार्य अंतिः शहर भानूपुर के माहि, गाधा २५. , For Private And Personal Use Only गाथा - २५. १२. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. ८अ. क्र. चौथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: हर्ष करी गाई, गाथा- २३. Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २५१ १३. पे. नाम. क्रोधपचीसी, पृ. ८आ. ऋ. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण हो भवियण करोध; अंति: मने जोडी जुगति ढाल, गाथा-२५. १४. पे. नाम. निंदापचीसी, पृ. ८आ-९अ. औपदेशिक सज्झाय-निंदक, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: निखरो माणस नींदक; अंति: चंद कहे। लग जावे ए, गाथा-२४. १५. पे. नाम. मानछत्रीसी, पृ. ९अ-९आ. मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे रे मानवी; अंति: एही जीतीनो डाण रे, गाथा-३७. १६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०आ. चौवीसजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ करिजे; अंति: भक्ति द्यो कंठ मेरै, गाथा-३२. १८९७९. स्तवन, स्तुति, सझायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २०, जैदे., (२६.५४१२, १४-१८४३७-४१). १. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १अ. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी मोरारे रात; अंति:रे पद्मने मंगल माल, गाथा-७. २. पे. नाम. वीरजिन भास, पृ. १अ-१आ. महावीरजिन भास, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: जग उपकारी रे वीर; अंति: अमृतवाणी रंगसुंरे, गाथा-८. ३. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्व स्तवन, पृ. १आ. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लगी लगी आंखीआने रही; अंति: साह्यबा पुगी छे आसतो, गाथा-११. ४. पे. नाम. नेमराजुल पनरतिथी स्तवन, पृ. २अ-२आ. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुख कमले राजे अंति: रंगविजय वधते रंगे, गाथा-२३. ५. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २आ. महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीर जिणंदने; अंति: भवोभव तुम पाय सेव हो, गाथा-५. ६.पे. नाम. गच्छपति भास, पृ. २आ-३अ. महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आया रे गुणशैल; अंति: लक्ष्मीसूरि गुणठाण, गाथा-५. ७. पे. नाम. समेतशिखरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ. वीसजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थमंडन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज आणंद थयां समेत; अंति: पद्मविजय वीसवावीस, गाथा-९. ८. पे. नाम. गहुली, पृ. ३आ. गुणसागरगुरु गुंहली, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: सोल वरसें संयम लिओ; अंति: रे सुणि पामें शिवराज, गाथा-७. ९. पे. नाम. गहुली, पृ. ४अ. आत For Private And Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: मुनीवर हे कें मुनीवर; अंति: मानथी पामे लाभ अपार, गाथा-७. १०. पे. नाम. गहूली, पृ. ४अ. महावीरजिन गहूंली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यानमा; अंति: चीत चाहे अमृतसुख सार, गाथा-७. ११. पे. नाम. साधुनी गहुली, पृ. ४अ-४आ. साधुगुण गहंली, मु. क्षमाविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सागर सम समता मुनीवरा; अंति: परिणामे सुख पावे रे, गाथा-७. १२. पे. नाम. गहुंली, पृ. ४आ. गुरूगुण गहुली, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आगम वयण सुधारस पीजे; अंति: सकल मंगल घरि लावे रे, ___ गाथा-५. १३. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ४आ-५अ. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वरस दिवस सार चोमास; अंति: जिनेंद्रसागर जयकार, गाथा-४. १४. पे. नाम. फागवसंत गहुली, पृ. ५अ. वसंत गहुंली, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिकानगरी सुंदरु; अंति: विनय सफल फली आस हो, गाथा-१२. १५. पे. नाम. स्तुति, पृ. ५अ-५आ. महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु. धीरविमल-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गंधार बिंदर सकलसुंदर; अंति: नितनित मंगलमाल ए, गाथा-४. १६. पे. नाम. समस्यागर्भित अष्टमी स्तुति, पृ. ५आ. अष्टमीतिथि स्तुति, सं., पद्य, आदि: संप्रात संसारसमुद्र; अंति: देहि मे देवि सारम्, गाथा-४. १७. पे. नाम. रोहिणीतपस्तुति, पृ. ५आ-६अ. ___पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नक्षत्र रोहिणी जे; अंति: थाय पद्मविजय गुण गाय, गाथा-४. १८. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ६अ. मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेशर अति अलवेसर; अंति: सानिध करज्यो मायजी, गाथा-४. १९. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ६अ-६आ. मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र तुमे; अंति: अधिकुं हेज रे लाल, गाथा-१२. २०. पे. नाम. दुहो, पृ. ६आ. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. १८९८०. छंद, निसीणी संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-३(१ से ३)=११, कुल पे. ७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३८-४०). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. ४अ-६अ, पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-१४ अपूर्ण से है. पार्श्वजिन छंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: स्तविओ छंद देशांतरी, गाथा-४७, अपूर्ण. २. पे. नाम. चोवीसतीर्थंकर छंद, पृ. ६अ-७अ. चौवीसतीर्थंकर छंद, मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति संपति द्यो सदा; अंति: जिम परम करे सुप्रमाण, गाथा-२३. For Private And Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २५३ ३. पे. नाम. पार्श्वनाथनो छंद, पृ. ७अ-८अ. पार्श्वजिन स्तवन-फलवृद्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परतापूरण प्रणमीइ अरि; अंति: सेवकनइ सानिधि करि, गाथा-२०. ४. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथबृहत् छंद, पृ.८अ-९आ. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसीह, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धरमसीह ध्याने धरण, गाथा-२९. ५. पे. नाम. पद्मावती स्तवन, पृ. ९आ-१०अ. पद्मावतीदेवी स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय जिनशासन सामिनी; अंति: करजोडी कवियण विनवइ, गाथा-१५. ६. पे. नाम. निसाणी, पृ. १०अ-१२आ. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: जिनहरष कहंदा है, गाथा-२८. ७. पे. नाम. अंबादेवी छंद, पृ. १२आ-१४आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५२ अपूर्ण तक है. पुहिं., पद्य, आदि: ॐकार अथाह अपारं बावन; अंति: (-), अपूर्ण.. १८९८१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ११, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. शिवलाल मलुकचंद वैद्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १२-१३४२८-३२). १. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १आ. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १आ-२अ. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ३. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २अ-२आ. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोडि कल्याणजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. २आ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: वारो संघ तणा निशदिश, गाथा-४. ५. पे. नाम. चतुर्दसी स्तुति, पृ. २आ-३अ. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ६.पे. नाम. शांति स्तुति, पृ. ३अ-३आ. शांतिजिन स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइ; अंति: साभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५४ लाक कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. रिषभदेव स्तुति, पृ. ३आ-४अ. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ८. पे. नाम. पजूसण स्तुति, पृ. ४अ-४आ. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंति: पूरे देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ९. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ४आ-५अ. पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसरपास जिनेसर; अंति: मनवंछित सुख थायजी, गाथा-४. १०. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. ५अ. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ११. पे. नाम. कथला स्तुति, पृ. ५अ-५आ. औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठि सवारें सामायक; अंति: थईइ सविसुख भोगीजी, गाथा-४. १८९८२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २१, प्र.ले.श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१२, १३४४०-४३). १.पे. नाम. सज्झाय, पृ. १अ. साधुगुण सज्झाय, ग. मणिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रवण कीर्तन सेवन ए; अंति: पदवी लहिस्यै तेह, गाथा-११. २. पे. नाम. सज्झाय, पृ. १अ-१आ. आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जे देखं ते तुज नही; अंति: चंद हवइ सीधला काज के, गाथा-७. ३. पे. नाम. सज्झाय, पृ. १आ. आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जेहनइं अनुभव आतम; अंति: आप सभावमई रातोरे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सज्झाय, पृ. १आ-२अ. आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतम अनुभव जेहनइं; अंति: परमातम मे मन्न रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. सज्झाय, पृ. २अ. __ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अनुभव सिद्ध आतम जे; अंति: श्रीहरिभद्र बुद्ध रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. सज्झाय, पृ. २अ-२आ. औपदेशिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कोइ कीनहीकुं काज न; अंति: दुःखादिकने प्रीछे रे, गाथा-६. ७. पे. नाम. सज्झाय, पृ. २आ. आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतना चेतनकुं; अंति: मणीचंद्र गुण जाणोरे, गाथा-७. ८. पे. नाम. सज्झाय, पृ. २आ-३अ. For Private And Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २५५ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतन में धरि; अंति: मणीचंद होये भवअंता, गाथा-५. ९. पे. नाम. सज्झाय, पृ. ३अ-३आ. आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जग सरूप चेतन संभलावइ; अंति: मणिचंद्र गुण आवइ रे, गाथा-९. १०. पे. नाम. सज्झाय, पृ. ३आ. आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समकित तेह यथास्थित; अंति: यथास्थिति जाणो, गाथा-५. ११. पे. नाम. सज्झाय, पृ. ३आ-४अ. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतमारामई रे मुनि; अंति: मणिचंद आतम तारी रे, गाथा-५. १२. पे. नाम. सज्झाय, पृ. ४अ. औपदेशिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन जब तुं ज्ञान; अंति: सुखसंपत्ति वाधइ, गाथा-८. १३. पे. नाम. सज्झाय, पृ. ४अ-४आ. आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अणविमास्युं करइ काइ; अंति: मणिचंद्र पामे ठकुराई, गाथा-६. १४. पे. नाम. सज्झाय, पृ. ४आ-५अ. आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन तुमही आपें; अंति: चंद्र० आपणी ठकुराई, गाथा-५. १५. पे. नाम. सज्झाय, पृ. ५अ. औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जो चेते तो चेतजे जो; अंति: पूरे शिवपुर वास, गाथा-६. १६. पे. नाम. सज्झाय, पृ. ५अ. औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: शिवपुरवासना सुख सुणो; अंति: पार न किमे नहि आवै, गाथा-४. १७. पे. नाम. सज्झाय, पृ. ५अ-५आ. औपदेशिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदित जाइने आपणी; अंति: मणीचंद शुद्ध वाणी, गाथा-८. १८. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. ५आ-६अ. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शुकलपक्ष पडवेथी निश; अंति: मणिचंद्र एह लखाणी जी, गाथा-९. १९. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. ६अ. औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मिच्छत्व कहिजे; अंति: परवस्तु म संचि, गाथा-७. २०. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. ६अ-६आ. औपदेशिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज का लाहा लीजीइं; अंति: चंद्र० परमाणंद साधइ, गाथा-८. २१. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. ६आ. आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सम्मदीट्ठी ते यथा; अंति: समश्रेणि सिद्ध पावइ, गाथा-८. For Private And Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५६ १८९८३. साधुप्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, पाखीप्रतिक्रमणादि विधि व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. १०, पठ. मु. कस्तुर (गुरु मु. शिवलाल ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, जैदे., (२७१२, १२-१४x२७-३४). १. पे नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पू. १ आ-१६ अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: तस्स मिच्छामिवुकडं. २. पे. नाम. प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, पृ. १६अ - १९अ. आवश्यक सूत्र- तपागच्छीय प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: देवसिय आलोय पडिकंत्त; अंति: जुत्तो० गाथा ३ कहेवी. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १८अ १८आ. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. १८आ. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंतिः सन्नो देवीदेयावा, लोक-४. ५. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १८आ. मु. विजयदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जय गौतम हितकर वीर; अंति: कमला गले मुगताफलहार, गाथा - १. ६. पे नाम. आदिश्वर स्तुति, पृ. १८आ. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंतिः शासनं ते भवे भवे, श्लोक ५. ७. पे. नाम. गुरु स्तुति, पृ. १९अ - १९आ. प्रा., पद्य, आदि: गोयम सोहम जंबू पभवो; अंतिः सव्वपावप्पणासणो, श्लोक १४. ८. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. २०अ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: वारो संघ तणा निशदिश, गाथा- ४. ९. पे. नाम. बीजनी थोय, प्र. २०अ २०आ. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. १०. पे. नाम. साधारण स्तुति, पृ. २०आ-२१अ. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: जो तुसे देवी अंबाई, गाथा-४. १८९८४. नवतत्त्वबोल, संपूर्ण, वि. १९३१, आषाढ़ कृष्ण, ७, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले. स्थल. सुदामिपुर, प्रले. मोरारजी भगवानजी जोशी; पठ. श्राव देवकरण हरजीवन गोसरीबा, प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे., (२७.५x१२.५, १२-१३४३२-३६). नवतत्त्व प्रकरण- बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि ज्ञानना रागी समकीत; अंति: तेतरीस अग्रहणा जाणवी. १८९८५. दशवैकालीकसूत्र सह टवार्थ व प्राकृत जैन गाथा, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, कुल पे. २, जैवे., (२६.५x१२, ४x२६-३१). १. पे नाम दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, पृ. १अ ७९आ, पू. वि. अध्ययन ५ से १०+२ चूलिका तक है. For Private And Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५७ दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदि: (-); अंति: कहणा पवियालणा संघे, प्रतिपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विचार कीधउ जे ए सत्य, प्रतिपूर्ण. २. पे नाम, प्राकृत जैन गाथा, पृ. ७९आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैन गाथा", प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. " १८९८६. (+) गौतमकुलक सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२७४१२.५, १३x४०-४३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सुहं लहंति, गाथा - २०. गौतम कुलक-बालावबोध + कथा, ऋ. रिधु, मा.गु., गद्य, आदि: सुयदेवी समरि करि; अंति: सेवै ते सुखी थायै. १८९८८. (+) विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित. जीवे. (२७४१२, १३४३२-३५). " विविधविचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पुरिमड्ड१ एकासणं१; अंति: २१ लेइ खमासणा देवा. १८९८९. गौतमपृच्छा रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. सा. लीला (गुरु सा. रुपा ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७X११.५, १३-१५X३४-४० ). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: मन जे जिनवचने वसिउ, गाथा- १२१. १८९९१. (+) स्तवनचौवीसी, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., पूर्णता र. प्र. / कलश गा. १-५ तक है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X१२.५, १४X३३-३५). जिनस्तवनचीवीशी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आदिकरण अरिहंतजी ओलगड अंति (-), पूर्ण. १८९९२. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, प्रले. मु. शंकरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२६.५X११.५, ११X३०). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ - १५आ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे नाम, पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १५-१६ आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंतिः नित्थारग पारगा होह, सूत्र ४. १८९९३. मौनएकादशीकल्प सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७९४-१८२२ श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल, पालणपूर, प्रले. पं. सौभाग्यविजय; मु. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मू. प्रति- कांतिविजय टा. प्रति - सौभाग्यविजय, प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २६.५X१२, ५-६X३९-४०). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१, (वि. १८२२, चैत्र अधिकमास कृष्ण, २) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने; अंति: विद्यमान हुते, (वि. १७९४) १८९९४. श्रद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १६९२, फाल्गुन कृष्ण, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, धावता, प्रले. मु. . सवजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७.५X१२, ६x४०-४३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंतिः तियागारेणं वोसिरामि. For Private And Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनइ नमस्कार; अंति: आगर नभाजइ वोसिराउ. १८९९५. गौतमपृच्छा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. भेंसाण, प्रले. ऋ. जेठा (गुरु ऋ. वेलजी, लुंकागच्छ वृद्धपक्ष), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (१७.५४१२, १४-१७४३३-४१). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: जे जिनवरनुं वस्युं, गाथा-११६. १८९९६. (+) हंसराज वच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १७५८, आश्विन शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१-८(३ से ४,१६ से २१)=२३, ले.स्थल. वल्लभावती नगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, १५४३८-४१). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीसर आदि करी चोऊवीस; अंति: ए हंस अनै वच्छराज, खंड-४, ढाल ४७, अपूर्ण. १८९९७. श्रीमोकली आराधना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७४११.५, १३४२८-३२). अंतिम आराधना, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० नमिउण; अंति: एके पद बिपद धारज्यो. १८९९८. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ६४३४-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (१)मुच्चइ त्ति बेमि, (२)कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१०, चूलिका २, गाथा-७००. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरूपीओ मंगलिक; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. अध्ययन ५ उद्देशा २ गा.५ तक ही टबार्थ लिखा गया है.) १८९९९. सातस्मरण व लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, ११४३२-३५). १. पे. नाम. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, पृ. १अ-११अ. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभय; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ११अ-११आ. ____ आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. १९०००. श्रीवेल्हणपंचाशिका चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७४११, १७४६२). मकरध्वजराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: मकरध्वज महीपति; अंति: भणइ रस लीणा तेह, गाथा-२०४. १९००१. (+) गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६६६, माघ शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. हालारदेश(नवानगर, प्रले. मांडण हाथी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१७४११.५, ७२३२-३७). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६५. गौतमपृच्छा-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: प्रगटार्थ कह्यो. १९००२. धन्नाशालीभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्रले. मु. रंगसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १३४४४-५०). धन्नाशालिभद्र रास, मु. भावरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: अरिहंत अनंत सिद्ध; अंति: पामइ नवनिधि मंगलमाल, खंड-२. For Private And Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १९००३. अभिधानचिंतामणी नाममाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है., द्वितीय कांड, गाधा ६९ तक है., जैवे. (२६.५४११.५, १४४३१-४२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: ( - ), अपूर्ण. अभिधानचिंतामणि नाममाला- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतसिद्ध: अंति: (-), अपूर्ण. १९००४. भक्तामरस्तोत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८२०, माघ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदे., (२७.५X११.५, १२-१३X३६-४६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- बालावबोध + कथा, मा.गु., गद्य, आदि: उजेणी नगरीनई विषई; अंति: छे जेह मालाने विषे. १९००५. चैत्यवंदन, स्तुति, स्तवनादिसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-२ (५,१९) = २०, कुल पे. १४५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६.५X१२.५, १७x४९). १. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ. सं., पद्य, आदि सद्भक्त्या नत मौलि; अंतिः वंदे युगादिश्वरम्, श्लोक-३, २. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १.अ. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल शिखरे चढी: अंति: शासने शीवरमणी संयोग, गाथा- ७. ३. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ. शामल, गु., पद्य, आदिः शत्रुंजय गिरि वंदीए; अंति: ओलखी शामल करे गुणगान, गाथा- ७. ४. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय माहात्म; अंतिः धरु अधिक नहीं त्रिलोक गाथा- ३. ५. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १.आ. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिश्वर जिनरायनो; अंति: नाम दान सुखकंद, गाथा - ३. ६. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ. चैत्री पूनमपर्व चैत्यवंदन, मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्रीपूनमने दिवस; अंति दान अधिक आनंद, गाथा-३, ७. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ. ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान; अंतिः पद्मविजय सुविहितकरम्, श्लोक ८. ८. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पू. १ आ. मा.गु., पद्य, आदिः शत्रुंजय सिद्ध; अंति: जिनवर करुं प्रणाम, गाथा - ३. ९. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि आदिदेव अलवेसरु; अंतिः थकी लहीये अविचल ठाण, गाधा- ३. १०. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ. मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि जय जय नाभिनरिदनंद अंतिः निस दिन नमत कल्याण, गाथा- ३. ११. पे. नाम बीजतिथी चैत्यवंदन, पृ. २अ. वीजतिथि चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सकलसुखसमृद्धिर्यस्य; अंतिः मां पुण्यमूर्तिः, गाथा-३, For Private And Personal Use Only २५९ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६० www.kobatirth.org १२. पे नाम बीजतिथि चैत्यवंदन, पृ. २अ. मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपद पंकज नमी सेवो; अंति: पामो सुख श्रीकार, गाथा - ७. १३. पे. नाम. संभवजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ. त्रीजतिथि चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः यद्मक्त्यासक्तचित्ता; अंति: भ्यर्चनीयो न केषाम्, गाथा - ३. १४. पे. नाम संभवजिन चैत्यवंदन- त्रीजतिथि, प्र. २अ-२आ त्रीजतिथि चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संभवनाथ सदा जयो मन; अंतिः रूप नमे नीत पाय, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा वीर; अंति: रंगविजय लहो सार, गाथा - ९. १८. पे. नाम. पंचमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. २आ. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - ३. १५. पे. नाम संभवजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सावत्थि नवरी धणी; अंतिः नमतां शिव सुख धाय, गाथा-३, १६. पे. नाम. अभिनंदनजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ. उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: विशदशारद सोमसमाननः; अंति: भक्तिसुयुक्तिभृतो मम, गाथा-३. १७. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पृ. २आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: सुवर्णं वर्णों हरिणा; अंतिः स्वांतमितो मदीयम्, गाथा ३. १९. पे. नाम पद्मप्रभजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु छठा भया; अंति: रूप नमे करजोडि, गाथा - ३. २०. पे नाम. सप्तमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ. For Private And Personal Use Only मु. पद्म, सं., पद्य, आदि: जयवंतमनंतगुणैर्निभृत; अंतिः दयोद्भवभूरितरप्रमदा, गाथा- ३. २१. पे नाम. सप्तमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ३अ. ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: श्रीसुपासजिणंद पास; अंतिः राजतो तार तार भव तार, गाथा-३, २२. पे नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ३अ. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महा सुदी आठमने दिने; अंतिः सेव्याथी सिव वास, गाथा-७. २३. पे. नाम. सुविधिनाथ चैत्यवंदन, पू. ३.अ. नवमी तिथि चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: विश्वाभिवंद्यमकरांकि; अंति: भुवनेश तथा विधेहि, गाथा - ३. २४. पे नाम. सुविधिजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुविधिनाथ नमुं नवमा; अंति: मने लहिए शाश्वत धाम, गाथा- ३. २५. पे नाम. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ३आ. मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक० वर केवल अंति: शासने सफल करो अवतार, गाधा- ९. २६. पे. नाम. वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ. उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: पूर्णचंद्रकमनीय; अंतिः न हि तं विपश्चितः, गाथा-३. २७. पे नाम वर्द्धमानजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ. Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २६१ महावीरजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ सुत वंदिये; अंति: पद्मविजय विख्यात, गाथा-३. २८. पे. नाम. अमावस्यातिथि चैत्यवंदन, पृ. ३आ. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुदि आषाढ छठ दिवसे; अंति: पर्व दीपोत्सव होत, गाथा-३. २९. पे. नाम. सामान्यजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ-४अ. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय तुं जिनराज आज; अंति: मल्यो भवजल पार उतार, गाथा-६. ३०. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ४अ. ___आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तुज मुरतिने निरखवा; अंति: तेह शुंजे नवि होय, गाथा-३. ३१. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ४अ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभुने वासुपुज; अंति: ज्ञानविमल कहि शिष्य, गाथा-३. ३२. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, पृ. ४अ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थकर तणा; अंति: तणो ज्ञानविमल गुणगेह, गाथा-३. ३३. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, पृ. ४अ. पंचपरमेष्ठिगुणगर्भितजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बार गुण अरिहंतदेव; अंति: नय प्रणमे नितसार, गाथा-३. ३४. पे. नाम. २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, पृ. ४अ-४आ. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभलंछन ऋषभदेव अजित; अंति: लक्ष्मीरतन सूरिराय, गाथा-९. ३५. पे. नाम. पंचतीर्थी चैत्यवंदन, पृ. ४आ. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: आज देव अरिहंत नमुं; अंति: पहोंचे मननी आश, गाथा-५. ३६. पे. नाम. शांतिनाथ चैत्यवंदन, पृ. ४आ. शांतिजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: विपुलनिर्मलकीर्तिभरा; अंति: सिद्धिसमृद्धये, गाथा-३. ३७. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर सोलमा अच; अंति: दीठे परम कल्याण, गाथा-३. ३८. पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिनाथ बावीसमा; अंति: नमतां अविचळ ठाण, गाथा-३. ३९. पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ. सं., पद्य, आदि: विशुद्धविज्ञानभृता; अंति: नेमिं विलसद्विवेकम्, गाथा-३. ४०. पे. नाम. शीतलजिन चैत्यवंदन, प्र. ४आ, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: कल्याणांकुरवर्धने जल; अंति: (-), अपूर्ण. ४१. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ६अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कर्या त्रणसो ओगणपचास, गाथा-५, अपूर्ण. ४२. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ६अ. For Private And Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आशा पूरे प्रभु पासजी; अंति: गया नमतां सुख निरधार, गाथा-३. ४३. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ६अ. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: कृष्णचोथ चैत्र तणी; अंति: अविचल सुख भरपूर, गाथा-३. ४४. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ६अ.. मा.गु., पद्य, आदि: जय चिंतामणी पार्श्व; अंति: लहिये अविचल ठाण, गाथा-३. ४५. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. ६अ. सं., पद्य, आदि: श्रीशेत्रुजयमुख्य; अंति: संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ४६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६आ. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: शुभ्रामरी भासिता, गाथा-४. ४७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ६आ. मु. रविबुधसागर, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय मंडण ऋषभ; अंति: संघना संकट चूर, गाथा-४. ४८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ६आ-७अ. श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशजय तीरथसार; अंति: पाया ऋषभदास गुणगाया, गाथा-४. ४९. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ७अ. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरीक गणधर पाय; अंति: द्यो सुख कंदाजी, गाथा-१. ५०. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ७अ. मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल मंडण जिनवर; अंति: समवसर्या सुखकंद, गाथा-१. ५१. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ७अ. मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल मंडन ऋषभ; अंति: आव्या जाणी लाभ अपार, गाथा-१. ५२. पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ७अ. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय आदि; अंति: एकसो आठ गिरि नामजी, गाथा-१. ५३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ७अ. ___मा.गु., पद्य, आदि: चैत्रीपूनम दिन; अंति: वर नाभिनरींद मल्हार, गाथा-१. ५४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिनवर राया जास; अंति: पद्मने सुख दिता, गाथा-४. ५५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ७आ. मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभ; अंति: गावे नर नारीना वृंद, गाथा-१. ५६. पे. नाम. नवपदनी स्तुति, पृ. ७आ. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक जग; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदाजी, गाथा-४. ५७. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ७आ. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८. पे नाम, सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ. वीजतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि अजुवाळी बीज सोहावे; अंतिः जगतचंद्र विख्याता रे, गाथा-४. ५९. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. ८अ . मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजया सुत वंदो तेजथी; अंतिः सेवना सुख कंदो, गाथा - १. ६०. पे. नाम. १० त्रिक स्तुति, पृ. ८. तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निसिहि त्रण; अंति: शासन सुर संभारोजी, गाथा-४. २६३ ६१. पे नाम. प्रीजनी स्तुति, पृ. ८अ. संभवजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु. सं., पद्म, आदि संभव सुखदाता जेह; अंतिः जास नामे पलाता, गाथा- १. ६२. पे नाम शाश्वतजिन स्तुति, पृ. ८अ पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ चंद्रानन वंदन; अंतिः पद्मविजय नमे पायाजी, गाथा-४. ६३. पे. नाम. श्रीपंचमीनी स्तुति, पृ. ८अ -८आ. अभिनंदनजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदिः संवर सुत साचो; अंतिः भव्यप्राणी निकालो, गाथा - १. For Private And Personal Use Only ६४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ८आ. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि: पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ६५. पे नाम. सुमतिजिन स्तुति, पृ. ८आ. सुमतिजिन स्तुति - ३, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सुमति दाइ; अंति: कांइ सेवीये ए सदाइ, गाथा- १. ६६. पे. नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. ८आ. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंतिः ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४, ६७. पे नाम, पद्मप्रभजिन स्तुति, पृ. ८आ-९अ. पद्मप्रभजिन स्तव, सं., पद्य, आदि उदारप्रभामंडलैर्भास अंतिः स्वेर्धाम रम्यम्, श्लोक-३ ६८. पे नाम. श्रीनेमिनाथ स्वामीनी स्तुति, पृ. ९अ. मिजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल वरनारी रुपथी; अंति: पद्मने जेह प्यारी, गाथा-४. ६९. पे. नाम पद्मप्रभजिन स्तुति, पृ. ९अ. मा.गु., पद्य, आदि: अढीशें धनुष काया; अंति: मोक्ष नगरे सिधाया, गाथा-१. ७०. पे नाम, शांतिजिन स्तुति, पृ. ९अ. क. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति सुहंकर साहिबो; अंति: तो कवि वीर ते जाणे, गाथा-४. ७१. पे. नाम. श्रीअष्टमीनी स्तुति, पृ. ९अ. सुपार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुपास जिन वाणी सांभळ; अंति: कर्म पीले ज्युं घाणी, गाथा - १. ७२. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ९अ - ९आ. आ. सुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीशे जिनवर अंतिः जीवित जन्म प्रमाण, गाथा- ४. ७३. पे नाम, चंद्रप्रभजिन स्तुति, पृ. ९आ. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवे सुर वृंदा जास; अंतिः पाय मानुं सोविंदा, गाथा - १, Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप स्तुति, पृ. ९आ. मा.गु., पद्य, आदि: नंदिश्वर वरद्विप; अंति: देवी सानिध्य कीजे, गाथा-४. ७५. पे. नाम. पार्श्वनाथस्वामीनी स्तुति, प्र. ९आ. पार्श्वजिन स्तुति, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शंखेश्वर पासजी पूजीए; अंति: नयविमलनां० पूरती, गाथा-४. ७६. पे. नाम. एकादशीनी स्तुति, पृ. ९आ. शीतलजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिनस्वामी पुण्य; अंति: प्रणमीये शीश नामी, गाथा-१. ७७. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ९आ-१०अ. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: गोपीपति पूछे पभणे; अंति: पसरे शासन विनय करत, गाथा-४. ७८. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तुति, पृ. १०अ. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विष्णु जस मात जेहना; अंति: पामीआ मोक्ष शात, गाथा-१. ७९. पे. नाम. रोहिणीवासुपूज्यनी स्तुति, पृ. १०अ. वासुपूज्यजिन स्तुति, वा. मेघचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य पूजीये; अंति: घचंद्र हुवा सुखसंपदा, गाथा-४. ८०. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. १०अ. ___ मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वना उपगारी धर्म; अंति: जाउं हुं नित्य वारी, गाथा-१. ८१. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १०अ. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. ८२. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १०अ. मा.गु., पद्य, आदि: गिरनारे गीरवो वाल्हो; अंति: द्यो अंबाइ विवेक, गाथा-१. ८३. पे. नाम. सुविधिनाथजिन स्तुति, पृ. १०अ. सुविधिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: नरदेव भाव देवो; अंति: मोक्ष दे ततखेवो, गाथा-१. ८४. पे. नाम. विमलनाथजिन स्तुति, पृ. १०अ. विमलजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: विमलजिन जुहारो पाप; अंति: पुण्यना एह प्रकारो, गाथा-१. ८५. पे. नाम. अनंतजिन स्तुति, पृ. १०अ. मा.गु., पद्य, आदि: अनंत अनंत नाणी; अंति: पामीया सिद्धराणी, गाथा-१. ८६. पे. नाम. धर्मनाथजिन स्तुति, पृ. १०अ-१०आ. धर्मजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धरम धरम धोरी कर्मना; अंति: ते वरे सिद्धि गोरी, गाथा-१. ८७. पे. नाम. कुंथुनाथजिन स्तुति, पृ. १०आ. कुंथुजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: कुंथुजिननाथ जे करे; अंति: जे सुणे एक गाथ, गाथा-१. ८८. पे. नाम. अरनाथजिन स्तुति, पृ. १०आ. अरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अरजिनवर राया; अंति: इंद्र इंद्राणी गाया, गाथा-१. ८९. पे. नाम. मल्लिनाथजिन स्तुति, पृ. १०आ. मल्लिजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मल्लिजिन नमीये पूर्व; अंति: कर्ममल सर्व धमीये, गाथा-१. For Private And Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org ९०. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तुति, पृ. १० आ. मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रत नामे जे; अंति: जइ वसे सिद्धिधामे, गाथा - १. ९१. पे. नाम नेमिजिन स्तुति, पू. १०आ. मा.गु., पद्य, आदि: नमिये नमि नेह पुण्य; अंति: गेह कर्मनो आणी छेह, गाथा - १. ९२. पे. नाम भीडभंजन पार्श्वनाथजिन स्तुति, पृ. १० आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १. पार्श्वजिन स्तुति - भीडभंजन, मा.गु., पद्य, आदि: भीडभंजन पास प्रभु; अंति: सवि विघ्न हरो, ९३. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १० आ. २६५ पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर जिणंदा राय; अंति: पद्म भाखे सुशिस, गाथा-४. ९४. पे. नाम जिनपंचक स्तुति, पृ. १० आ. सं., पद्य, आदि: श्रीआदिशांति नेमि; अंतिः सेवे सुरवर लळी, गाधा १. ९५. पे. नाम. रात्रीभोजन स्तुति, पृ. ११ अ. रात्रिभोजन स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजीए पामी; अंति; जीव कहे तस शिष्य तो, गाथा-४. ९६. पे. नाम. औपदेशिक स्तुति, पृ. ११. आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः ऊठी सवारे सामायिक; अंति: साधे ते शिवपद भोगीजी, गाथा-४. ९७. पे. नाम. अध्यात्म स्तुति, पृ. ११अ-११आ. आध्यात्मिक स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सोवनवाडी फूलडे छाइ; अंति: समकितने अजवालोजी, गाथा- ४. For Private And Personal Use Only ९८. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ११. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वरस दिवसमा अषाड अंतिः जिनंदसागर जयकार, गाथा-४. ९९. पे नाम पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ११-१२अ. मु. चिदानंदजी, मा.गु., पद्य, आदि मणि रचित सिंहासन; अंति: शासनदेव सहाई, गाथा-४, १००. पे. नाम. पर्युषण पर्व स्तुति, पृ. १२अ. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यनुं पोषण पापनु; अंति: दिनदिन अधिक वधाइजी, गाथा-४. १०१. पे नाम पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १२अ. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंति: पूरे देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. १०२. पे नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १२ आ. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी जावु अंतिः शिवसुख आपजो रे लोल, गाथा-७, १०३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १२ आ. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. खीमारतन, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचल गिरि भेट्या; अंति: रतन प्रभु प्यारा रे, गाथा - ५. १०४. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १२आ - १३अ. Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमळाचळ विमळा पाणी; अंति: शुभवीर विमळगिरि साचो, गाथा-७. १०५. पे. नाम. पुंडरीकस्वामी स्तवन, पृ. १३अ. पुंडरीकगणधर स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन पुंडरीक गणधरु; अंति: ज्ञानविशाल मनोहारीरे, गाथा-५. १०६. पे. नाम. सिद्धाचलजीनुं स्तवन, पृ. १३अ. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल; अंति: श्रीसिद्धाचल गायो, गाथा-५. १०७. पे. नाम. प्रतिपदा स्तवन, पृ. १३अ-१३आ. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जग वालहो; अंति: सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. १०८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १३आ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. १०९. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १३आ. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंदशुप्रीतडी; अंति: मुझ हो अविचल सुखवास, गाथा-६. ११०. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १३आ-१४अ. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेश्वर; अंति: जेम थाउ अक्षय अभंग, गाथा-७. १११. पे. नाम. आदिजिन विनंती स्तवन, पृ. १४अ-१४आ. आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेजूंजा; अंति: हर्ष० देजो परमानंद, गाथा-१९. ११२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १४आ. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी ओलभडे मत; अंति: लांछन बलिहारी हो, गाथा-७. ११३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १४आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: नित नित गुण गाय के, गाथा-५. ११४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १४आ-१५अ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालुं रे; अंति: रे आनंदघन मत अंब, गाथा-६. ११५. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १५अ. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानादिक गुण संपदा; अंति: रे भावधर्म दातार, गाथा-१०. ११६. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: संभवदेव ते घुर सेवो; अंति: याचना आनंदघन रस रूप, गाथा-६, प्र.ले.पु. मध्यम. ११७. पे. नाम. संभवनाथजिन स्तवन, पृ. १५आ. संभवजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्री संभव जिनराजजीरे; अंति: र शुद्ध सिद्ध सुखखाण, गाथा-९. ११८. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १५आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जिनवर विनती; अंति: फलशे ए मुज साचुरे, गाथा-५. For Private And Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २६७ ११९. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १५आ-१६अ. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन जिन दरिसण; अंति: थकी आनंदघन महाराज, गाथा-६. १२०. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १६अ. देवचंदजी, हिं., पद्य, आदि: क्युं जाणु क्यु; अंति: अभ्यास हो मित्त, गाथा-९. १२१. पे. नाम. सुमतिनाथजिन स्तवन, पृ. १६अ. सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिनाथ गुणस्यु; अंति: मुझ प्रेम प्रकार, गाथा-५. १२२. पे. नाम. श्रीपंचमीनुं स्तवन, पृ. १६आ. ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी तप तुमे करो; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. १२३. पे. नाम. श्रीपद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. १६आ. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु जिन गुण; अंति: लाल आप अवर्ण अकाय रे, गाथा-८. १२४. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १६आ-१७अ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: सुपार्श्व जिन वंदीए; अंति: करे आनंदघन अवतार, गाथा-८. १२५. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १७अ. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुपास आनंद में; अंति: परमानंद समाध होजि, गाथा-८. १२६. पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ. __चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: देखण दे रे सखी; अंति: सखि आनंदघन प्रभु पाय, गाथा-७. १२७. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १७आ. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीराजगृही शुभ ठाम; अंति: न्यायसागर गुण गाया, ढाल-२. १२८. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १७आ. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: में कीनो नहीं तुम; अंति: लीजें भक्ति पराग, गाथा-५. १२९. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १८अ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: सुविधि जिणेसर पाय; अंति: आनंदघनपद धरणी रे., गाथा-८. १३०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १८अ. मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आवो रे आवो पासजी; अंति: अम माणिकविजय गुण गाय, गाथा-८. १३१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १८अ-१८आ. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर; अंति: मुजने भवसागरथी तारो, गाथा-५. १३२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १८आ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: ध्रुवपद रामी हो; अंति: आनंदघन मुजमांहि, गाथा-८. १३३. पे. नाम, श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १८आ, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांस जिन; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २०अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., द्वितीय गाथा अपूर्ण से शुरुआत है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, गाथा-५, अपूर्ण. १३५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २०अ. मु. चिदानंदजी, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम पूरणकला; अंति: हो प्रभु नाण दिणंद, गाथा-८. १३६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २०अ-२०आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आवी रथ फेरी; अंति: ए दंपति दोइ सिद्ध, गाथा-६. १३७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, प. २०आ. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साचो; अंति: देव सकल मे हो जीनजी, गाथा-५. १३८. पे. नाम. देवयश:जिन स्तवन, पृ. २०आ. देवयशाजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: देवजसा दरिसण करो; अंति: अमृत सुखकार लाल रे, गाथा-८. १३९. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. २०आ-२१अ. युगमंधरजिन स्तवन-१, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयुगमंधर विनवू; अंति: जिन पदकज सुपसाय रे, गाथा-१०. १४०. पे. नाम. वज्रधरजिन स्तवन, पृ. २१अ. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: मुगति मुझ आपज्यो, गाथा-७. १४१. पे. नाम. चंद्राननजिन स्तवन, पृ. २१अ-२१आ. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रानन जिन सांभलिय; अंति: रे देवचंद्र पद साररे, गाथा-११. १४२. पे. नाम. श्रीबाहुजिन स्तवन, पृ. २१आ-२२अ. बाहुजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुजिणंद दयामयी; अंति: एहने देवचंद्र सुखकार, गाथा-११. १४३. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, पृ. २२अ, पू.वि. मात्र प्रथम ढाल है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमधर विनती; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २२अ-२२आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कुमति इम सकल दूरे; अंति: एह तुज आगले देवरे, गाथा-१२. १४५. पे. नाम. श्रीधर्मनाथजी-स्तवन, पृ. २२आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. धर्मजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: धन धर्मनाथ धरमावतार; अंति: (-), अपूर्ण. १९००६. स्तोत्र स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८०, पौष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ७, ले.स्थल. वगडी, प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, ५-१७४४०-४६). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-५अ, वि. १८८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, प्र.ले.श्लो. (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत देवता नमता; अंति: सेवइ लक्ष्मी तेहनै. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ५आ-७अ. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. For Private And Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org - ३. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ७अ. आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः उवसग्गहरं पासं पासं०; अंति: गाण सवेविदां संति, गाथा-८. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, ले. स्थल. वगडी. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि स्फुरदेवनागेंद्रवृ; अंतिः चिंतामणिः पार्श्वः, गाथा-६, ५. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १, पृ. ७आ. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ७आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरुआ रे गुण तुम; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन प्रभाती, पृ. ७आ. मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदिः उठोनी मेरे आतमराम; अंति: वरतु सदा बधाइ रे, गाथा-५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९००७. (+) रास, अष्टक, छंद, गीत, पदआदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८७ - १८९२, श्रावण शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. १३, ले. स्थल. राधनपुर, प्र. मु. माणिकविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२.५, १४X३६-३७). १. पे नाम, गौतमस्वामी रास, पृ. १अ ४अ वि. १८८७, फाल्गुन कृष्ण, १३, ले. स्थल, राधनपूर, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा - ७२. २. पे. नाम गौतमस्वामी छंद, पृ. ४आ, वि. १८८७, फाल्गुन शुक्ल, १३, ले. स्थल. राधनपूर. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पच, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति; जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा - ९. ३. पे. नाम गौतमस्वामी अष्टक, पृ. ५अ, वि. १८९२ आषाढ शुक्ल, ६, बुधवार, ले. स्थल, राधनपूर. मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गुरु लबधि; अंति: परि मनरंगि पदमराजइ, गाथा - ९. ४. पे. नाम गौतमस्वामी छंद, पृ. ५अ-६अ, वि. १८९२, आषाढ़ कृष्ण, ३०, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि सिरिवसुभुई पुत्तो; अंतिः फलं सचो लभतेतराम्, गाथा - १७. ५. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. ६अ - ७अ. वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: वांछित० श्रीजिनशासन; अंतिः वृद्धिऋद्धि संपद लहे, गाथा - १३. मा.गु., पद्य, आदि: (); अंति: (-), गावा-२, २६९ ६. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. ७अ, वि. १८९२, श्रावण शुक्ल, २, लिख. पं. माणेकविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: गौतम आव्या वाद करेवा; अंति: गणे तिहां अविहड रंग, गाथा - ७. ७. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी छंद, पृ. ७आ. पंचपरमेष्ठि छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि सुख कारण भवीवण समरो; अंतिः प्रभसूरिवर सीस रसाल, गाथा - १४. ८. पे. नाम. जैन गाथा *, पृ. ७आ. ९. पे. नाम. ४ मंगल रास, पृ. ८अ -८आ. ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ भूपति सोहिए; अंति: उदयरत्न भाखे एम, गाथा - २१. १०. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८-१०अ ले. स्थल. राधनपूर For Private And Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल० जिन चरण जनम; अंति: नवी गर्भावासे अवतरे, गाथा-२७. ११. पे. नाम. सामान्य पद, पृ. १०अ. साधारण पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे जिउ आरति कांइ; अंति: जवरइ समयसुंदर कहे जो, गाथा-३. १२. पे. नाम. धूपद, पृ. १०अ. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: करि चतुर च्यारि ए; अंति: जिम त्रटकि त्रूटई, गाथा-१. १३. पे. नाम. चउसरण गीत, पृ. १०अ-१०आ, पठ. पं. माणेकविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. पुण्यसागर, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सूरअसूरनरनिकर जासू; अंति: जीवडा जेम जाचा, गाथा-५. १९००८. (+) विधिसंग्रहवर्द्धमानविद्याजापमंत्र व साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३, १६-१७४४४-५२). १. पे. नाम. दीक्षाग्रहण विधि, पृ. १अ-३अ. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दीक्षा थकी पहिलइ; अंति: प्रथम विहार करावीजइ. २.पे. नाम. प्रतिष्ठाविधि संग्रह, पृ. ३अ-५आ. चैत्यप्रतिष्ठा विधिसंग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मूल गंभारैकुं अछी; अंति: वादित्राणि वाद्यते. ३. पे. नाम. चौवीसमांडला, पृ. ५आ. प्रा., गद्य, आदि: आगाढे आसन्ने उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे अहियासे. ४. पे. नाम. वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, पृ. ५अ. लघुवर्द्धमानविद्या, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवओ अरहओ; अंति: ॐ ह्रीं नमः स्वाहा. ५. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. ५आ-६आ. प्रा., पद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. ६. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमणादि विधि, पृ. ६आ-७आ. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: देवसिय आलोय पडिकंत्त; अंति: सामायक पारण गाथा कहै. ७. पे. नाम. साधप्रतिक्रमणसुत्र, प. ७आ-९अ. पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहत; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. ८. पे. नाम. पौषधविधि सह सूत्र, पृ. ९अ-११आ. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खमासमण देइने इच्छा; अंति: दर्शन करणो. १९००९. स्वाध्याय, होरी, स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १५, जैदे., (२६.५४१३, १८४४०-४२). १. पे. नाम. साधारणजिन वीनती, पृ. १अ. साधारणजिन विनती, मा.गु., पद्य, आदि: कायापिंड काचो राज; अंति: नटवा थइ मति नाचो, गाथा-४. २.पे. नाम. नेमनाथजी राजल का व्यावला, पृ. १अ-१आ. For Private And Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २७१ नेमजिन व्याहलो, मु. गुमानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: छपनकोड जादव मिल आया; अंति: सह श्रावक मन समजावे, गाथा-३०. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १आ-२अ. वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: वांछित पूरण विबुधजन; अंति: विविधरूप वंछित फले, गाथा-१४. ४. पे. नाम. समकित स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ. सम्यक्त्व स्वाध्याय, मा.गु., पद्य, आदि: सम्यक्त्व वीन जीव; अंति: सेवा पुरी से अटको, गाथा-१०. ५. पे. नाम. राजा दशार्णभद्र की ढाल, पृ. २आ. दशार्णभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: में तो वेम छराला हो; अंति: मझार साधुजी गुण गाया, गाथा-१०. ६. पे. नाम. सीता सज्झाय, पृ. २आ. सीतासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: इम झुरवरा घोराणी; अंति: दींगे आवगे सारगपाणी, गाथा-५. ७. पे. नाम. होली की सज्झाय, पृ. २आ-३अ. होलि सज्झाय, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: नेमीसर वनखंड रो; अंति: दुखीयाकु दरस दइयो, गाथा-४. ८. पे. नाम. आदिजिन होरी, पृ. ३अ. ___ मा.गु., पद्य, आदि: बिसरो मत नाम सदा जिन; अंति: लहै रंग पतंग फिको, गाथा-३. ९. पे. नाम. उपदेश सीज्झाय, पृ. ३अ-३आ. १५तिथि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एकम कहे तुं एकलो रे; अंति: भजो जिम टल जाय संताप, गाथा-१७. १०. पे. नाम. विजयकुमारविजयाकुंवरी सज्झाय, पृ. ३आ. विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: विजयकुमर व्रतधारी; अंति: नमये सांज सवारी, गाथा-९. ११. पे. नाम. लावणी, पृ. ३आ-४अ. परनिंदात्याग लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: कुम भजो निरंजन नाम; अंति: एक मोय जीन दरसन चइए, गाथा-४. १२. पे. नाम. श्रावक की ढाल, पृ. ४अ-४आ. श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कइ मीलसी रे श्रावग; अंति: सफल जन्म तिण लाधो जी, गाथा-२१. १३. पे. नाम. श्रीमहावीरजी की ढाल, पृ. ४आ-५अ. महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: वीर जिणंद सासण धणी; अंति: धन धन वीर जिणंद, गाथा-९. १४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ. ऋ. रतनचंद, हिं., पद्य, वि. १९११, आदि: देखोजी आदिसर सामी; अंति: वीनोली मे गाया हेजी, गाथा-८. १५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५आ. मा.गु., पद्य, आदि: नेमनाथ जादुवंससीरोमन; अंति: उतार लाज है तुमकू, गाथा-५. For Private And Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९०१०. (#) पर्वव्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७, कुल पे. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२८४१३, ८४४१-४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा, पृ. १आ- ९अ. सुव्रतश्रेष्ठिकथा, सं., गद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंतिः सुखिनी बभूवुरिति, २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व कथा, पृ. ९अ १७अ. वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन: अंति: मेडतानगरे, लोक-१४८. ३. पे नाम, पौषकृष्णदशमी व्याख्यान, पृ. १७अ-२१अ. पौषकृष्णदशमी कथा, सं., गद्य, आदि: अभिनवमंगलमाला० दुरंत; अंति: स्मरणादानंदमाला भवतु. ४. पे. नाम, होलिका व्याख्यान कथा, पृ. २१अ - २४अ. होलिका कथानक, सं., पद्य, आदि ऋषभस्वामिनं वंदे; अंतिः यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक ६५. ५. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. २४-२६आ. रा., गद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खु; अंति: श्रेयांस समो भावश्च. ६. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, पृ. २७अ - ३०अ. चैत्री पूर्णिमा मध्याह्न व्याख्यान, सं., गद्य, आदिः सिद्धो विज्जा चक्की; अंतिः स्मरणवानंदमाला भवतु. ७. पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. ३०अ ३७आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदात्; अति: (-), अपूर्ण. चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान- बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. गाथा नं ९ से बालावबोध मिलता है.) १९०११. नंदीसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१७, प्र.ले. श्लो. (६९७) अर्हंतो मंगलं मे स्युः, जैदे., (२८x१२.५, १३४३९-४६). नंदीसूत्र- टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि; जयति भुवनैकभानुः; अंतिः तेनाश्रुतां लोकः, ग्रं. ७७३२. १९०१२. (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू. वि. ३ कांड तक है., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२८.५x१२, १६-१७X४५-४९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण, १९०१३. (+) अभिधान चिंतामणी नाम माला, पूर्ण, वि. १५१०, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ३४-१(६)=३३, कुल पे. २, ले. स्थल. गोपधात्री, प्रले. मु. सोमरत्न (गुरु आ. सिंहदत्त सूरि ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१२, १५-१९६२-६६). १. पे नाम. अभिधानचिंतामणी नाममाला, पृ. १-३०अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्ताबु नतौ नमः, कांड-६, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २. पे. नाम. शेषनाममाला, पृ. ३०आ-३४अ. शेष नाममाला, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: प्रत्यगादयः, श्लोक-२०७. १९०१४. (+) नवतत्त्व, जीवविचार प्रकरण,चतु:शरणप्रकीर्णक व कायस्थिति प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८६७, माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ४, पठ. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४१२, १२४२४-२७). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-५अ. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: तिन्निवि ए उववाए वा, गाथा-५८. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ५आ-८आ. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. ३. पे. नाम. चतु:शरण प्रकीर्णक, पृ. ८आ-१२आ. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६२. ४. पे. नाम. कायस्थिति प्रकरण, पृ. १२आ-१४अ. कायस्थिति स्तोत्र, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपदसंपदं देसु, गाथा-२४. १९०१५. (+) संबप्रद्युम्नकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७६०, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. मु. खीमजी जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२, १४-१७४३९-४७). सांबप्रद्युम्न रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: पभणइ संघ सुजस जगीस ए, खंड-२, ढाल २२. १९०१७. पंचकारण वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२८x१२.५, ८४३०-३६). महावीरजिन स्तवन-पंचकारणगर्भित, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथ सुत वंदिये; अंति: परे विनय कहे आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५९. १९०१९. प्रदेशीनृपचौपाई, पूर्ण, वि. १९१६, भाद्रपद, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१३)=१४, पू.वि. ढाल-१९ गाथा-१० से ढाल-२२ तक नहीं है., पठ. जोधनर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, १५४३६-३९). प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: रायप्रसेणीसूत्रमे; अंति: कहि सूत्रथी काढो रे, ढाल-२७, पूर्ण. १९०२०. (#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०९, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. वाव, प्रले. मु. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, ४४२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रण भुवनने विषे; अंति: कर्यो छे सूत्रमाहिथी. १९०२१. (#) सिद्धपाहुडसूत्र व सिद्धपाहुड की टीका, संपूर्ण, वि. १८४९, वैशाख कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. चंदहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२८x१३, १८४४४-४५). १. पे. नाम. सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, पृ. १अ-४आ. For Private And Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७४ www.kobatirth.org प्रा., पद्य, आदि तिहुयणपणए तिहुयणगुणा; अंतिः सुयाणुसारेण णावव्वं, गाथा - १२१. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक- टीका, पृ. ४आ-१९आ. सं., गद्य, आदिः सकलभुवनेशभूतान्निखिल; अंतिः टीकाकृद्भिश्चिरंतनैः, १९०२२. ओघनिर्युक्तिसूत्र, संपूर्ण वि. १६५०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४२+२ (२८, ३४ ) - ४४, जैवे., (२९x१२.५, १३X३७-४७). ओपनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंते वंदित्ता; अंतिः अहिएहिं संगहिआ, गाथा - १९६४. १९०२३. जंबुकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७, जैदे., (२७.५X१२.५, १४४४१-४५). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः प्रणमी पास जिणंदना; अंति: नितु कोडि कल्याण, ढाल - ३५, गाथा- ६०८, ग्रं. १०००. १९०२४. बासठबोल गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. अजयदुर्ग, प्रले. मु. चंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९x१३, ११×३१). ६२ बोल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: गइ इंदिए काए जोए वेए; अंति: भवसम्मे सन्निमाहारे, गाथा - १. ६२ बोल गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: देवगति मे जीव का भेद; अंति: दश लेस्या ६ स्तोक. १९०२५. संवत्सरी आदि प्रतिक्रमण विधिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९२५, आषाढ़ शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. पेक्षापुर, प्रले. सु. केसरचंद; पठ. पं. मोहनविजय ( लघुपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम जैवे. (२८x१३, १६-१७४४४). प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: देवसिय आलोय पडिकंत्त; अंति: पोरसी भणाववी रात्रि. १९०२६. पार्श्वजिन पंचकल्याणकपूजा, अपूर्ण, वि. १९१५, वैशाख कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७ - १ (५) = ६, ले. स्थल. प्रांणपुर, प्रले. मु. नवलरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २८.५X१३, १२X३४-३५). पार्श्वजिन पंचकल्याणकपूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीसंखेश्वर साहिबा ; अंति: वंछित सहायो रे, अपूर्ण. १९०२७, (४) चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १८८०, भाद्रपद कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल, प्रांतिज, प्रले. पं. रीद्धिसोम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (५०६) वादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७०४) हालगी मेरु अडिग है, (७०५) भग्नपृष्टी कटिग्रीवा, जैदे., (२८x१३, १२-१३X२४-३६ ) . चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई रे. For Private And Personal Use Only १९०२८. अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९११ श्रावण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. मुडारा, प्रले. पं. रंगसागर; पठ. हिंदु, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८x१३, १३३३-३४). अढारपापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलुं कहि; अंति: वाचक जस इम भाजी, सज्झाय - १८. १९०२९. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह व सथारापोरिसीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४४, कुल पे. २, प्र. वि. जैदे., (२८x१३, ४X३०-३२). १. पे. नाम. षडावश्यक सूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ - ४२अ. श्रावकषडावश्यकसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १९०३२. २७५ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, श्राव. ताराचंद, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत विहरमाननइ; अंति: पाप मिच्छामि दुक. २. पे. नाम. संथारापोरसी सूत्र सह टबार्थ, पृ. ४२अ - ४४आ. १९०३१. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा - १४. संथारापोरसीसूत्र - टबार्थ, श्राव. ताराचंद, मा.गु., गद्य, आदि: गौतमादिक मोटा; अंति: निश्चल मनि करी. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८१७, ज्येष्ठ शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. २६, ले. स्थल, आसपुर, प्रले. पं. इंद्रविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१२.५, २- १६३७-४४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र - टीका, मु. रायमल्ल ब्रह्म, सं., गद्य, वि. १६६७, आदिः श्रीवर्द्धमानं; अंति: नत्वा श्रुतादिकं. 'गुणठाणाद्वार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२८x१३, (+) १३४३४). www.kobatirth.org १९०३३. गुणठाणाद्वार प्रकरण, मु. देवचंद, प्रा., पद्य, आदिः नमिअ जिणं गुणठाणे; अंतिः संतिदासस्स वयणेणं, गाथा - १०७. (*) वीरजिन स्तवन सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०७ पौष शुक्ल ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७६, प्रले, मु. प्रीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. ३५६४, जैवे. (२८x१३, १-६x३९). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुंडकमतनिवारणवीर जिन स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, बि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पयः अंतिः आणा शिर वहस्ये जी, दाल-७, ग्रं. २२८. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित - बालावबोध, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. ९८४९, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंतिः तिष्ठताच्छुद्धवासनः ग्रं. ३११७. १९०३७. सेनप्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०७, ले. स्थल. अहिपुर, प्रले. माईदास मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, १५X४०-४७ ) . प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य परं ज्योति; अंति: वाच्यमानो वचस्विभिः, उल्लास-४. १९०३८. (+) सुसढकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५५, प्र. वि. संशोधित - टिप्पणयुक्त पाठ. कुल ग्रं. ८००, जैदे., (२७X१३, ५X३८-३९). सुसर चरित्र, प्रा., पद्य, आदि जे परमाणंदमय परप्पमा; अंतिः जयणा चैव धम्मक्रमा, गाथा-५१८. (+) सुसढ चरित्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा ६२ तक का टबार्थ उपलब्ध है. ) १९०३९. निशीथसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४६ - १ (६) = ४५, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., पूर्णता उद्देश १० अपूर्ण तक है. टवार्थ पत्र ५आ तक है. जैवे. (२८x१२, ६x२८-३४). , निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्मं; अंति: (-), अपूर्ण. निषीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतराग प्रतइ; अंति: (-), अपूर्ण. १९०४०. अध्यात्मकल्पद्रुम सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७८, ले. स्थल. पाटण, प्रले. गोवरधन त्रिवेदी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ - संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२७X१२.५, २- ३x४१-४२). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीरांतरारीणां अंतिः जयश्रिया शिवश्री, अधिकार- १६, श्लोक-२७८. For Private And Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अध्यात्मकल्पद्रुम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., गद्य, वि. १६७४, आदि: प्रणत सुरासुरकोटी; अंति: वर्द्धते वर्णयामलम्, अध्याय-१६, ग्रं. २४५९. १९०४१. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ-द्वितीय श्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८४२, चैत्र कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ९१, पू.वि. द्वितीय श्रुतस्कंध है., ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. नूणाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, ५-६x४०-४१). सूयगडांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, (प्रतिपूर्ण, वि. १८४२, चैत्र कृष्ण, ४, सोमवार) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तुम प्रति कडं छे, (प्रतिपूर्ण, वि. १८४२, वैशाख शुक्ल, १२, शनिवार) १९०४२.(+) शीलवती रास, संपूर्ण, वि. १८२०, वैशाख शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८, ले.स्थल. वीशलनगर, प्रले. पं. रूपविजय (गुरु पं. सुबुद्धिविजय गणि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, १६४३९-४५). शीलवती रास, मु. नेमीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५०, आदि: ॐकार अक्षर अधिक; अंति: वृद्धि पद थाजो हे, खंड-६ ढाल८४, गाथा-२०६१, ग्रं. २०६०. १९०४३. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८७३, पौष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ५२, ले.स्थल. सुरतबिंदर, प्रले. ग. सौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२.५, १३-१४४४१-४६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, ढाळ ४१. १९०४४. सुक्तमुक्तावली सहटबार्थव कथा-वर्ग २-३-४, प्रतिपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. ४३, पू.वि. वर्ग २-३-४., ले.स्थल. सरदारपुर, प्रले. पं. जीतविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४१२, ५-१५४३६-४०). सूक्तमुक्तावली, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: जगति तेपि चिरं जयंति, प्रतिपूर्ण. सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वरस चीरंजीवी रेहज्यो, प्रतिपूर्ण. १९०४५. (+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०९, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७+१(३३)=४८, ले.स्थल. मोधावी, प्रले. पं. जतनकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८.५४१२, ६x४३-४४). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: तेणे कालेइ ते समइने; अंति: ते आराधकजीव कह्यां. १९०४६. (#) ऋषिदत्ता रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६७-२(१ से २)=६५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल २ गाथा ९ से ढाल ६३ गाथा ८ तक है।, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १५४३१-३३). ऋषिदत्तासती रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९०४९. (+) श्रावकाचार सारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८५४, चैत्र कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७, प्रले. श्राव. उमेद पांडे, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७.५४१३, ९४३५-५०). For Private And Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ श्रावकाचारसारोद्धार, मु. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: स्वसंवेदनसुव्यक्तमहि; अंति: जयति पद्मनंदीश्वरः, परिच्छेद-३. १९०५१. श्रीपाल रास सह टबार्थ-खंड ४, प्रतिपूर्ण, वि. १८८३, पौष शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ८५, ले.स्थल. पलादपुर, प्रले. मु. ऋद्धिसोम (गुरु पं. खांतीसोम), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६.५४१३, ४४२४-२७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ*,मा.गु.,रा., गद्य, आदि: त्रीजो खंड पूरो थयो; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. ढाल १४ की गाथा ७ तक ही टबार्थ है.) १९०५२. समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १९०६, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३७, ले.स्थल. बडोत, प्रले. ऋ. नेणसुखदास (गुरु ऋ. ख्यालीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, ९४२३-२५). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर; अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, गाथा-७२७. १९०५४. भक्तामरस्तोत्र टीका व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १५२४, आश्विन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. २, ले.स्थल. अणहल्लपुरपत्तन, प्र.ले.श्लो. (१२७) शिवमस्तु सर्वजगतः, जैदे., (२९x११.५, १९-२०४५१-५६). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र की गुणाकरीय टीका, पृ. १अ-२३आ. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंति: मयः स्यात्सदानंदी, ग्रं. १५००. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २३आ. श्लोक संग्रह-,सं.,प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९०५५. (+) औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६८६, कार्तिक शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ८९, प्रले. मु. वाघा ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. *ग्रंथ के सभी पन्ने चिपके हुवे है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३०x१२.५, ६४३७-४१). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मु. राजचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिन; अंति: सुख पाम्या थका. १९०५६. (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, आश्विन शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३६, ले.स्थल. रायधणपुर, प्रले. रगनाथ; पठ. मु. लापविजय; लिख. पं. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (६१८) जलाद क्षेत् स्थलाद रक्षेत्, जैदे., (२९.५४१२.५, ५४३०-४६). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, __ अध्ययन-१०३, ग्रं. १६६७. समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: विषई बहुमान देखाडीउ, ग्रं. ७०७५. १९०६५. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९२५, चैत्र कृष्ण, ५, गुरुवार, जीर्ण, पृ. १९, ले.स्थल. स्थंभनपुर, प्रले. कामेश्वर सीवलाल व्यास, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८.५४१२.५, ९४३१-३७). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. For Private And Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९०६६. नववाडीढाल व कमलावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९६९, ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. मु. लक्ष्मीचंदजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८x१२, १३-१४४४२-४८). १. पे. नाम. नववाडी ढाल, पृ. १आ-८आ. मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: श्रीनेमिसर चरण जुग; अंति: सुण अपतरै परतारो, ढाल-११. २. पे. नाम. कलावती चौपाई, पृ. ८आ-१४अ. कलावतीसती चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: जुगमंद्र जिन जगतगुरु; अंति: मेडतेनगर चोमास, ढाल-१६. १९०६७. होलीकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९२, फाल्गुन कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. इडर, प्रले. ग. जीतविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८.५४१२, ४४३२-३८). होलिका कथा, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: ज्ञानं विकाशय विधेहि; अंति: कात्यादिवजयोलिखत्, श्लोक-३६. होलिकापर्व प्रबंध-टबार्थ, मु. कांतिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७९२, आदि: हे भविन हे प्राणीन; अंति: नामे लीखीतो हूपो. १९०७१. शालीभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९२६, भाद्रपद शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, पठ. मु. रूपचंदजी (गुरु मु. ऋषभचंदजी, चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (३०x१२, १०-१९x४१-४६). ___ शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ढाल-२९. १९०७२. (+) धातुपाठ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १५८०, आश्विन कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, ले.स्थल. गंधारबंदिर, प्रले. पं. शिवदास, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२, ९४३१-३४). १. पे. नाम. धातुपाठ, पृ. १आ-१८आ. भीमसेनी धातुपाठ, भीमसेन, सं., गद्य, आदि: धातुपाठः कृतो येन; अंति: नवत्युत्तरताययुः. २. पे. नाम. श्लोक, पृ. १८आ. श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९०७७. श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९४६, फाल्गुन शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ.८, जैदे., (२९.५४१३, ११४३३-३९). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १९०७८. (+) इष्टोपदेश सह टीका, पूर्ण, वि. १५८६, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. २२-१(१)=२१, पू.वि. पूर्णता- प्रथम गाथा व टीका नही है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ६००, जैदे., (२९.५४१३, ११-१२४३३-३६). इष्टोपदेश, आ. देवनंदी, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: निरूपमामुपयाति भव्यः, श्लोक-५१, पूर्ण. इष्टोपदेश-टीका, श्राव. आशाधर भट्ट, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: टीकेयं कृताशाधरधीमता, पूर्ण. १९०७९. गुणठाणा व योनिद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९६९, कार्तिक शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, कुल पे. २, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. मु. ग्यानचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८.५४१३, १६४३८-४६). For Private And Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २७९ १. पे. नाम. चौदगुणस्थान एकसोचारद्वार विचार, पृ. १आ-४१आ. १४ गुणस्थान १०४ द्वार विचार, ऋ. रतनचंद, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार लक्षण; अंति: ते अभव्य मे लाधइ. २.पे. नाम. योनीद्वारविचार, पृ. ४१आ-४२अ. योनिद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जुणी तीन प्रकरकी सीत; अंति: वंसीपत्तामाहिं जाणवी. १९०८०. सिद्धांतचंद्रीका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-२(१३ से १४)=१४, जैदे., (२९४१३.५, १४-१६x४५-५२). सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंति: (-), अपूर्ण. १९०८१. नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. तिजयपहुत्त,भक्तामर,मोटीशांति व कल्याणमंदिर नही है., जैदे., __ (२८x१३, १२४२९-३३). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९०८२. जीवविचार प्रकरण, सिद्धपंचाशिका, भाष्यत्रय व नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ४, प्रले. पं. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१३, १२-१४४३६-४५). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १आ-३आ. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २.पे. नाम. सिद्धपंचाशिका, पृ. ४अ-६अ. सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्ध सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०. ३. पे. नाम. भाष्यत्रय, पृ. ६अ-११आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१४५. ४. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ११आ-१३आ. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-५५. १९०८३. पोसदसमी, अक्षयतृतीया व मेरुत्रयोदशी कथा, संपूर्ण, वि. १८५७, चैत्र कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. पं. गुलाबसागर (गुरु पं. कल्याणसागर गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२८.५४१३, १६४४९-५३). १.पे. नाम. पौषवदिदशमी कथा, पृ. १आ-३आ. पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथां; अंति: इदं संबंध रचनीयम्. २. पे. नाम. अखात्रीजपर्व कथा, पृ. ३आ-७अ.. ___अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंति: गद्यवार्ता रचितवान्. ३. पे. नाम. मेरुत्रयोदशी कथा, पृ. ७अ-११आ... मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भारतीं; अंति: मुक्तिसाधनं कृतः १९०८६. चतुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२८.५४१३, १५४५०-५३). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: इत्यभिप्रायेणेति. For Private And Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९०८८. (+) गणधरवाद विवरण, नैगमादिनयभावना व चतुर्विध बौद्धमत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९x१३, १७४५६-५९). १. पे. नाम. गणधरवाद का विवरण, पृ. १आ-१३आ. गणधरवाद-विवरण, सं., गद्य, आदि: हे गौतम किं मन्यसे; अंति: इति न काचित्क्षतिः. २. पे. नाम. नैगमादिनयभावना-अनयोगद्वारसत्रगत, प. १३आ-१६अ. अनुयोगद्वारसूत्र-नैगमादिनयभावना, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: नैगमादिनयानामनुयोग; अंति: एवार्थभेदोपगमात्. ३. पे. नाम. चतुर्विध बौद्धमत, पृ. १५आ-१६अ. सं., गद्य, आदि: वैभाषिक सौत्रांतिक; अंति: तदर्थं शेषभावना. १९०८९. (+#) दंडकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१३.५, ४४३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउवीस तीर्थंकर ऋषभ; अंति: विज्ञप्ति अप्रहिता. १९०९६. (+) सम्यक्त्वकौमुदीकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२६, भाद्रपद कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८८, प्रले. ऋ. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५९८७, प्र.ले.श्लो. (३३९) मंगलं लेखकानां च, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६५४) जला रक्षे स्थलात् रक्षे, (७०६) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, जैदे., (२९x१४, ६x४४-४८). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः, ग्रं. १५८७, (वि. १९२६, भाद्रपद कृष्ण, ५, शनिवार) सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: मोक्षादिक सुख पामे, ग्रं. ४४००, (वि. १९२६, आश्विन शुक्ल, १, बुधवार) । १९१०३. लघुस्वयंभू स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४२, कार्तिक शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. परशुराम जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३०x१४, ४४१७-१९). लघुस्वयंभू स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: येन स्वयं बोधमयेन; अंति: सवर्गापवर्गस्थिति, श्लोक-२५. १९१०४. भुवनदीपक व नवग्रहजाति व उत्पत्तिस्थान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, फाल्गुन शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, ले.स्थल. वीलाडी, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१३.५, ७७३८-४३). १. पे. नाम. भुवनदीपक सह टबार्थ, पृ. १अ-१०आ. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७५. भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीयउ; अंति: पद्मप्रभसूरि आचार्यै. २. पे. नाम. नवग्रहजाति व उत्पत्तिस्थान सह टबार्थ, पृ. १०आ. नवग्रहजाति व उत्पत्तिस्थान, प्रा., पद्य, आदि: कंसारो भरडो लोहार; अंति: केतो वासीय कुकणयं, गाथा-१. नवग्रहजाति व उत्पत्तिस्थान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य कंसारो चंद्रमा; अंति: केतुजन्म कुंकण देश. १९१०५. (-) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२८.५४१३.५, ३-१२४२८-३५). For Private And Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीगुरौ; अंति: क० राजइदीक संपदा. १९११२. कालीकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२९x१४.५, १६-१८४३७-४३). कालिकाचार्य कथा, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: स्थविरा बभूवुः. १९११६. (+) योगचिंतामणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८७-१(७२)=८६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्याय-६ अपूर्ण तक है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९x१४, ७२३२-३५). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), अपूर्ण. योगचिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वज्ञ प्रणम्यादौ; अंति: (-), अपूर्ण. १९११७. पद, स्तवन, आरती, सझाय, लावणी आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१३.५, १६x४०-४३). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरंजन यार वोरे अब; अंति: मेरा दुजो देव न उर, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मनभाव जनतनमनतोसु आव; अंति: दरसण मोकु द्यो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ. मु. भाव, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण द्यो प्रभु रिषभ; अंति: उपजे जगमे जस पावो, गाथा-८. ४. पे. नाम. आदिजिन आरति, पृ. १अ-१आ. आदिजिन आरती, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आरति आदिजिणंदा; अंति: वंदन करह सुग्यानी, गाथा-४. ५. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि आरति, पृ. १आ. पंचपरमेष्ठि आरती, मा.गु., पद्य, आदि: पहली आरति अरिहंतदेवा; अंति: जदतुं फरसे दिनदयाला, गाथा-६. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ. मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: युहि जनम गमायो भजन; अंति: मे शरणे तोहि आयो, गाथा-४. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदररूप सोहामणो; अंति: मुज आपो परमाणदे रे, गाथा-६. ८. पे. नाम. पद, पृ. २अ. पार्श्वजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे यो प्रभु चाहिये; अंति: मे तो अवर न ध्यावं, गाथा-३. ९. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. २अ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इणने डुंगरियारि झिणि; अंति: उतारो मोरा राजिंदा, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ. मा.गु., पद्य, आदि: जीउ रेचल्यो जात; अंति: तेरो समज जिनराजान, गाथा-३. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ. राज, मा.गु., पद्य, आदि: मनरे छार माया जाल; अंति: स्वामि नाम संभाल, गाथा-३. For Private And Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-मगसि, पृ. २अ-२आ. पार्श्वजिन स्तवन-मगसीजी, जसवंत, मा.गु., पद्य, आदि: एक निरंजन की ध्यान; अंति: चरण जसवंत को मन भाया, गाथा-५. १३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ. श्राव. देविचंदन, मा.गु., पद्य, आदि: जिन दरबारां जावजो रे; अंति: हां लागु लुल पाया रे, गाथा-४. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ. मु. चेनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कोण निंद सुतो मन; अंति: हस्तविजेरा चेला, गाथा-४. १५. पे. नाम. नेमराजिमतीपद, पृ. २आ. मु. शिवरतन, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमां सुभटने; अंति: फाडिया चिर चिर चररर, गाथा-४. १६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ.. मु. माणिक्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुण प्यारे जिनजी आय; अंति: गुण गाया तसु फागमे, गाथा-४. १७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ-३अ. मु. लालसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लाल जीवडा घडि एक; अंति: प्रेमे करि रे लाल, गाथा-४. १८. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. ३अ. ग. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: मे तेरी प्रित पीछाणि; अंति: दीजै निज सहि नाणी हो, गाथा-५. १९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ. __मा.गु., पद्य, आदि: दुख सुख काहा डर रे; अंति: ज्यु शिवकमलावर रे, गाथा-६. २०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ. मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: छाया सुरतरु की, गाथा-७. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ-३आ. मु. खेमा ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: निर्मल होय भजले; अंति: खेमाकी लियण अपारा, गाथा-४. २२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३आ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज के पाये लाग; अंति: खंदा आनंदघन रचपाल रे, गाथा-३. २३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३आ. उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु तेरो रूप बन्यो; अंति: पेखत जनम सफलताहि को, गाथा-३. २४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३आ. शांतिजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मेरइ आंगन कल्प फल्यो; अंति: हुं रहिस्यु सोहलो र, ___गाथा-३. २५. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ३आ. मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: नेम गयो रथ फेरि ही; अंति: सफल हुइ तेरी हो, गाथा-५. २६. पे. नाम. गिरनार-शजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३आ-४अ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखाओ; अंति: विमल प्रभु सिर धरीया, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org २७. पे नाम, चंद्रप्रभुजिन पद, पृ. ४अ. चंद्रप्रभजिन पद, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु जिनवर अंतिः चरणोरी जाउं बलिहारी, गाथा- ४. २८. पे नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ४अ. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मेरा अंति: नाथनिरंजन केरा रे, गाथा ५. २९. पे नाम आदिजिन स्तवन- जन्मबधाई, पृ. ४अ. मा.गु., पद्य, आदि आज तो वधाइ राजा नाभि; अंति: निरंजन आदिसर दयाल रे, गाथा - ५. ३०. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. ४-४आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, मु. चंदकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: देखोनि आदेसरस्वामी; अंति: चंदकुसल गुण गाया है, गाथा - ३. ३१. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. ४आ. विराग, मा.गु., पद्य, आदि: नेमनाथजी किरपा किजो; अंति: कहे० सुरग अवतारीने, गाथा-४. ३२. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ४आ. मु. खीमारतन, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचल गिरि भेट्या; अंतिः रतन प्रभु प्यारा रे, गाथा-५, ३३. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ४-५अ. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आव्या रे; अंतिः पद्मविजय परिमाण, गाथा - ७. ३४. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, पृ. ५अ. मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि उठोनें मेरे आतमराम; अंति: वरतुं सिंध वधाई, गाथा ५. ३५. पे. नाम. आदिजिन आरती, ए ५आ. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि जय जय आरती आदिजिणंदा; अंति: मूलचंद ऋषभ गुण गावे, गाथा-६, ३६. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५आ. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल; अंति: करी विमलाचल गुण गावा, गाथा - ६. ३७. पे नाम, दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. ५आ. २८३ For Private And Personal Use Only उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: मोक्षतणा सुख त्यांह, गाथा-६. ३८. पे. नाम. निरंजन पद, पृ. ५आ-६अ. रूपचंद, हिं., पद्य, आदि देव निरंजन भव भय अंतिः जे बेठा सो तरीया है, गाथा - ३. ३९. पे नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. ६अ. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भोर भयो भयो भयो जागी; अंतिः सुखमंगल माल रे, गाथा - ६. ४०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रात भयो प्रात भवो; अंति: सिवसुख कोन लहे रे, गाथा-६, ४१. पे. नाम. सम्यक्त्व पद, पृ. ६अ. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जागे सौ जिनभक्ति; अंति: ताकुं वंदना हमारी है, गाथा- ४. ४२. पे नाम. आध्यात्मिक पद, प्र. ६अ ६आ. मु. हंस, मा.गु., पच, आदि: प्रात भयो प्रात भयो; अंतिः करो सुप्रमाणि रे, गाथा ५. Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ६आ. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभ विहारि तोरि तो; अंति: तुम छो पर उपगारी, गाथा-४. ४४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ६आ. मा.गु., पद्य, आदि: भाव धर धन्यदिन आज; अंति: जिनचंद सुरतरु कहायो, गाथा-६. ४५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ६आ. मु. महिमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जागि जग मुकुटमणि; अंति: कहे काट भवफंदा, गाथा-३. ४६. पे. नाम. चौवीसजिन पद, पृ. ६आ. मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु महाराज राज; अंति: जदुराय चरन के चेरे, गाथा-४. ४७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ६आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: वनडो नेमकुमार देखो; अंति: (-), अपूर्ण. १९१२१. (#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०+१(१५)=२१, पृ.वि. गाथा-२०६ अपूर्ण तक है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१३.५, ९x१६-२४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९१२२. नवतत्त्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०-४(१ से ४)=४६, जैदे., (२८.५४१३.५, १०-११४२४-३२). नवतत्त्व विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९१२३. ऋषभजिन विवाहलो, संपूर्ण, वि. १८९३, आश्विन कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. राधनपूर, प्रले. ग. ऋद्धिविजय; लिख. सा. तेजश्री, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८x१३.५, ११४२४). आदिजिन विवाहलो, मा.ग., पद्य, आदि: सासनदेवीय पाय प्रणमे: अंति: थाइ बोले सेवक इम सदा, ढाल-४४ १९१२६. पूजा, सझाय व स्तवनसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. ५, जैदे., (२८x१३, १३४३६-४०). १. पे. नाम. २० स्थानक पूजा, पृ. १आ-१०आ. आ. लक्ष्मीसरि, मा.ग., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी: अंति: सयल संघ मंगल करो, ढाल-२०, २. पे. नाम. सडसठबोल सम्यकित सज्झाय, पृ. १०-१५अ. समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. ३. पे. नाम. ११ अंग सज्झाय, पृ. १५अ-१९आ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: आचारांग वडु कह्यु; अंति: रही रे कीधो ए सुपसाय, स्वाध्याय-११. ४. पे. नाम. ६ अट्ठाइ स्तवन, पृ. १९आ-२२आ. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्याद्वाद शुद्धो; अंति: बहु संघ मंगल पाइया, ढाल-९. ५. पे. नाम. ज्ञानादिनयमत विवरण गर्भित वीरजिन स्तवन, पृ. २२आ-२७अ. महावीरजिन स्तवन-ज्ञानादिनयमतविवरणगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीइंद्रादिक भावथी; अंति: पभणे संघने जयकार ए, ढाल-८+कलश. For Private And Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २८५ १९१२७. सज्झाय संग्रह व आरती, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-५(१ से ३,५,११)=१४, कुल पे. १७, जैदे., (२७.५४१३, ११४२९-३०). १. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्रभाषा, पृ. ४अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जयतिहुअण स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सीस क्षमाकल्याण जगीस, गाथा-४१, अपूर्ण. २. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सासण स्वामी रे; अंति: (-), अपूर्ण. ३. पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. ६अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पद संपद सहज वरे सौ, गाथा-५, अपर्ण. ४. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ६अ-६आ. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: औ जग कारमौ जाणौ जो; अंति: परमानंद पद सारो रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. ६आ. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु निज पर उपगारी; अंति: परमानंद पद वरे रे, गाथा-७. ६. पे. नाम. जिनआज्ञा सज्झाय, पृ. ७अ-७आ. __ मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जिनआणा सिर वहीयै; अंति: तास पसायइ लहियै, गाथा-९. ७. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. ७आ-९अ. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अरथ; अंति: गुण गावै सुजगीसजी, गाथा-२१. ८. पे. नाम. वांदणादोष सज्झाय, पृ. ९अ-१०आ. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी आणी; अंति: सीस क्षमाकल्याण जगीस, गाथा-१९. ९. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १०आ, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: आज म्हारै आनंद रंग; अंति: (-), अपूर्ण. १०. पे. नाम. थावच्चापुत्र चौढालीयो, पृ. १२अ-१५आ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल १ गाथा ४ तक नहीं है. थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदिः (-); अंति: भणी सीस क्षमाकल्याण, ढाल-४, गाथा-५३, अपूर्ण. ११. पे. नाम. सुदर्शनमुनींद्र सज्झाय, पृ. १५आ-१६आ. सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: शील रतन जतने धरो रे; अंति: सीस क्षमाकल्याण रे, गाथा-११. १२. पे. नाम. अइमुत्तामुनीश्वर सज्झाय, पृ. १६आ-१७अ. अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: अइमंता मुनिवर जूके; अंति: गुण गावे जयकारी रे, गाथा-५. १३. पे. नाम. श्रीथूलभद्राचार्य सज्झाय, पृ. १७अ-१७आ. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर जिनेसरू; अंति: शिष्य क्षमाकल्याण, गाथा-१३. For Private And Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४. पे. नाम. आरतीगीत, पृ. १७आ-१८अ. आरती गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: भवजनि मंगल आरती करिय; अंति: क्षमाकल्याण ते पावै, गाथा-५. १५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि सज्झाय, पृ. १८अ-१८आ. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वर्धमान जिनेसरू शासन; अंति: तणा एम क्षमाकल्याण, गाथा-११. १६. पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. १८आ-१९अ. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु को ध्यान हृदै; अंति: करज्यो गुरु मेरे, गाथा-३. १७. पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. १९अ-१९आ. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी नित प्रणमीय; अंति: होज्यो वंदना वारंवार, गाथा-५. १९१२८. (+) शत्रुजयरास, संपूर्ण, वि. १९२८, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १६२+१(१९)=१६३, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. हरखचंद जेचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३.५, १७X४८-५५). शत्रुजयतीर्थ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: विश्वनाथ चरणे नमुं; अंति: रचीयो रास रसाल, खंड-९, गाथा-६४५२, ग्रं. ८९९४. १९१३०. (+) विमलाचल तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. भावनगर, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., जैदे., (२९४१३, १२४३३-३७). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: नीत नमो ___ गीरीराया रे, ढाल-९. १९१३१. प्रतिक्रमणविधि, पंचमी स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१३, ८-१०x२०-२३). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणविधि, पृ. १अ-१६आ. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छामि खमा० वंदिउं; अंति: मिच्छामि दुक्कड. २. पे. नाम. पंचमी वृद्धस्तवन, पृ. १६आ-१९आ. पंचमीपर्व वृद्धस्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३+कलश, गाथा-२५. ३. पे. नाम. द्रुमपुष्पिका अध्ययन, पृ. १९आ-२०अ. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ४. पे. नाम. नवकारमंत्र सज्झाय, पृ. २०अ-२१अ. नवकार सज्झाय, मु. गुणप्रभुसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभुसुंदर सीस रसाल, गाथा-७. ५. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. २१अ-२१आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. त्रिकालभाव वंदना, मा.गु., पद्य, आदि: पढो मंत्र नवकार ताप; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २८७ १९१३२. सुक्तमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. वर्ग ४ गाथा ६ तक लिखा है., जैदे., (२८x१३.५, १४-१५४३९-४७). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण. १९१३५. पुण्यप्रकाश स्तवन व पंचमी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. श्राव. ललुभाई देसाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १३४३१). १.पे. नाम. पुण्यप्रकाश स्तवन, पृ. १आ-६अ. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८+कलश. २. पे. नाम. पंचमी चैत्यवंदन, पृ. ६अ-६आ. पंचमीपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: युगला धर्म निवारि; अंति: खिमाविजय जिनचंद, गाथा-३. १९१३६. अणुत्तरोववायदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२८x१३.५, ४-५४२४-३२). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९१३८. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२७.५४१३, १३४३१-३३). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. १९१४०. नवाण्णुप्रकारी पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. प्राणपुर, प्रले. मु. नवलरत्न, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (७१९) लिखणहार अतिचतुर है, जैदे., (२८x१३, १२४३५-३६). ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: आतम आप ठरायो रे, ढाल-११+कलश. १९१४२. द्वादशविधा जिनपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९१५, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. माणपुर, प्रले. मु. नवलरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१३, १२४३२-४०). १२ व्रत पूजाविधि, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंति: जग जस पडह वजायो रे. १९१४३. (+) बिंबप्रतिष्ठा विधिसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. जलयात्रा विधि अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३.५, २४-२६७५०-५७). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, आ. रत्नशेखरसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वेशो विभा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९१४५. (#) वीरजिन स्तवन वदसपच्चक्खाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, ११४२२-२४). १.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-६अ. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु: अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३. For Private And Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. ६अ-८आ. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथ नंदन नमु; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. १९१४६. जीवविचार, संपूर्ण, वि. १९३०, पौष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. वीरचंद्र ऋषि; पठ. श्राव. हरखचंद गुलाबचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४१३, ४४२६-३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-४९. १९१४७. (+) आवश्यकसूत्र संग्रह सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८७७, आषाढ़ कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, ले.स्थल. केलवानगर, प्रले. मु. सवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३, २-७४३८-४९). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: खमामि सव्वस्स अहयंपि, पूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: स० सर्वनइ अ० हुं पण, पूर्ण. १९१४८. नवाण्णुप्रकारी पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२७.५४१३, ११४२५-३४). ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; ___अंति: आतम आप ठरायो रे, ढाल-११+कलश. १९१४९. ३५ बोल एवं समकित के ६७ बोल, संपूर्ण, वि. १९३४, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१३, ११४२२-२७). १. पे. नाम. ३५ बोल अर्थसहित, पृ. १आ-११अ. ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले गति चार; अंति: गुण श्रावकना कह्या. २. पे. नाम. ६७ बोल समकित का, पृ. ११आ-१३आ. सम्यक्त्व के ६७ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: चउसद्दहणा तिलिंग दस; अंति: मोक्षनो उपाय छे. १९१५०. चौमासीदेववंदन विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. शाश्वताजिन स्तवन तक लिखा है., प्रले. मु. सौभाग्यविजय (गुरु ग. मानसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १२-१३४३१-३६). चौमासी देववंदन सविधि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम ईरियावहि पछे; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९१५१. (+) यशोधर चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९७, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. पालीताणा, पठ. मु. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, ११४२४-२६). यशोधर चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य जगतां नाथ; अंति: पाली मोक्ष पधार्या. १९१५२. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९२२, आषाढ़ शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. दोलतराम भोजक; लिख. सा. जडावश्री; पठ. श्राव. हरखचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७७१३, १३४३५). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: कोई नये न अधूरी १९१५३. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रावण कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. मु. राजाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१३.५, ५४३३-३६). For Private And Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चौदराज लोकनै विषि; अंति: (१)सूत्रसमुद्रमाहिथी, (२)शोध्यं वाच्यतां. १९१५५.(#) मौनएकादशी कथा व गोपालसंतान मंत्र, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १२-१४४२८-३१). १.पे. नाम. मौनएकादशी कथा, पृ. १अ-७आ. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामीनै; अंति: स्वर्गना सुख पामे. २. पे. नाम. गोपालसंतान मंत्र, पृ. ७-८आ. सं., गद्य, आदि: अस्य श्रीसंतानगोपाल; अंति: कुर्यात् भक्तिपरायणः. १९१५८.(+) स्वरोदयज्ञान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पूर्णता गाथा ४४१ तक है., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२७४१३.५, २८-३१x१९-२१). स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०५, आदि: नमो आदि अरिहतदेव; अंति: (-), अपूर्ण. १९१५९. व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-३(१ से ३)=८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१३, १४-१६४३४-३६). व्याख्यान संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९१७०. अष्टमी चैत्यवंदन व अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ.६-१(१)=५, कुल पे. २, ले.स्थल. मेसाणा, प्रले. तलजाराम बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१४, १३४३३). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. २अ. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महा सुदी आठमने दिने; अंति: सेव्याथी सिव वास, गाथा-७. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. २अ-६अ. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: मोक्षं हि वीराः, ढाल-८. १९१७२. ६३ शलाकापुरुष सज्झाय व गुणठाणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१४, १२४२४-२७). १.पे. नाम. त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तवन, पृ. १अ-२आ. मु. वसतौ, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरण० अवतार ए; अंति: नमै मुनि वसतौ मुदा, गाथा-१८. २. पे. नाम. चौद गुणठाणारो स्तवन, पृ. २आ-५आ. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमति जिणंद० वंदु मन; अंति: कहे एम मुनी धरमसी, ढाल-६+कलश, गाथा-३४. १९१७३. विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९३१, आषाढ़ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १७-२(१० से ११)=१५, ले.स्थल. पाटण, प्रले. नरभेराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१४, २-३४२३-२८). विचारषत्रिंशिका प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दंडक प्रकरण- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध्यात्वा शंखेश्वर; अंतिः हितनी करणहारो, अपूर्ण. १९१७४. नवाणुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. जेतपूर, पठ. श्राव. हीराचंद वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१४, ११-१२X३१-३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अति: (१) आत आप ठरायो रे, (२) ९९ चोखाना करी, डाल- ११+ कलश. १९१७५. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२३, माघ कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. पचवाड, प्रले. मु. जगदानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X१४, ४x२८ - ३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा कुछेक गाथाओं का ही टवार्थ लिखा गया है.) १९१७६. (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., २४४३९-४२). . जैवे. (२४.५x१३.५, विचार संग्रह *, मा.गु, गद्य, आदि (-); अंति: (-), १९१७७. स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९१०, आषाढ़ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. वल्लभीपुर, प्रले. पं. तिलोकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१४, ११x२९-३०). स्नात्र पूजा, मु. नगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्ध्यानविज्ञानघन; अंतिः फले तमु बंछित सही. १९१७८. पूजा, प्रतिक्रमणसूत्र, चैत्यवंदन, स्तुति व रासस्तवनादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०२-१(२८*)=१०१, कुल पे. ५०, प्र. वि. * पत्रांक २७ व २८ दोनो एक ही पत्र पर है., जैदे., ( २६.५X१३.५, १०X३८-४०). १. पे नाम. सतरभेदी पूजा, पृ. १आ-८अ १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: सब लीला शिवसुख साजै, डाल- १७. २. पे नाम, नवपदजी री पूजा, पृ. ८अ १५ आ. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: परम मंत्र प्रणमी करी; अंति: कोई नये न अधूरी रे. For Private And Personal Use Only ३. पे. नाम. स्नात्रपाठ, पृ. १६अ - २०आ. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल - ८. ४. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजाविध, पृ. २०आ - २४अ. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: गंगा मागध क्षीरनिधि; अंति: क्लेशक्षयाकांक्षा. ५. पे. नाम. विंशतिस्थानकस्तुतेरतीमय पूजाविधि, पृ. २४-४२अ. २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८५८, आदि सुख संपति दायक सदा; अंति: जनपंक विखंडनाय. ६. पे. नाम. प्रतिक्रमण सूत्र, पृ. ४२अ - ७२अ, पे. वि. विभिन्न पत्रानुक्रम में यह कृति लिखी गयी है, जो इस प्रकार है४२अ-४८आ, ५८आ-७२अ. Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: समुन्नय निमित्तं. ७. पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. ४७आ. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. ८. पे. नाम. स्थंभनकपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ४८आ. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. ९.पे. नाम. ऋषभ स्तव, पृ. ४८आ. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निस दिन नमत कल्याण, गाथा-३. १०. पे. नाम. शांति स्तव, पृ. ४८आ-४९अ. शांतिजिन चैत्यवंदन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहीये कोड कल्याण, गाथा-३. ११. पे. नाम. नेम स्तव, पृ. ४९अ. नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमू नेम; अंति: अहनिश करै प्रणाम, गाथा-३. १२. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ४९अ. सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिणवर विहरमाण; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-३. १३. पे. नाम. सिखरजी स्तुति, पृ. ४९अ. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव देसै दीपतो ए; अंति: तीरथ करत कल्याण, गाथा-३. १४. पे. नाम. पंचतीर्थी नमस्कार, पृ. ४९अ-४९आ. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल श्रीनाभिराय; अंति: नमो कारण क्षमाकल्याण, गाथा-३. १५. पे. नाम. जिन स्तव, पृ. ४९आ. जिनस्तुत्यादि संग्रह*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. १६. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. ४९आ. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. १७. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. ४९आ-५०अ. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. १८. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ५०अ-५९आ. ____ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. १९. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ५०आ-५१अ. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: इम जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४. २०. पे. नाम. मौनैकादशी स्तुति, पृ. ५१अ. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रवज्या; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. For Private And Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजीकृत स्तुति, पृ. ५१अ-५१आ. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. २२. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ५१आ-५२अ. ___ साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. २३. पे. नाम. महावीर स्तुति - अणोझारी, पृ. ५२अ-५२आ. __ महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. २४. पे. नाम. चैतरपूनिम स्तुति, पृ. ५२आ. ___ चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजुजगिर नमीयै; अंति: श्रीजिनलाभसुरिंद, गाथा-४. २५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५३अ. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. २६. पे. नाम. पर्जूषणा स्तुति, पृ. ५३अ-५३आ. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावू; अंति: कहै जिनलाभसुरींद, गाथा-४. २७. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ५३आ-५४अ. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक जग; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदाजी, गाथा-४. २८. पे. नाम. दीवाली स्तुति, पृ. ५४अ-५४आ. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारुष; अंति: सार्दूलविक्रीडितं, श्लोक-४. २९. पे. नाम. त्रिगडै स्तुति, पृ. ५४आ. समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: मिलि चौविह सुरवर; अंति: पामै जयति सुनाणी, गाथा-४. ३०. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. ५४आ-५५अ. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-४. ३१. पे. नाम. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, पृ. ५५अ-५५आ. ____ मा.गु., गद्य, आदि: आजुणा चौपहुर दिवसमाह; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३२. पे. नाम. स्तंभनकपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५५आ-५८आ. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ अणिदिय, गाथा-३०. ३३. पे. नाम. मुहपत्तीपडिलेहण विचार, पृ. ६४अ-६४आ. मुहपत्ति पडिलेहण के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अरथ तत्व साचौ; अंति: जीमणै पगै परिहरीयै. ३४. पे. नाम. सेतुयजीरो रास, पृ. ७२आ-७८अ. शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: ए सुणतां आणंद थाय, ढाल-६. For Private And Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३५. पे. नाम. महावीरजीरौपारणौ, पृ. ७८अ-७९आ. महावीरजिन पारणा स्तवन, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: नेजी ते नमे मुनि माल, गाथा-३१. ३६. पे. नाम. श्रावककरणी, पृ. ७९आ-८१अ. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणि दुखहरणि छे एह, गाथा-२२. ३७. पे. नाम. पार्श्वजिन वृद्धिस्तवन, पृ. ८१अ-८४अ. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी; अंति: जिण नाम अभिराम जपंतै, ढाल-५. ३८. पे. नाम. ऋषभदेवजी स्तवन, पृ. ८४अ-८४आ. आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिनेसर त्रिभुवन; अंति: बीकानेर मझारो रे, गाथा-११. ३९. पे. नाम. सीमंधरजी स्तवन, पृ. ८४आ-८६अ. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हं; अंति: पूरि आस्या मनतणी, गाथा-१८, (वि. प्रति में कर्ता का नाम नहीं लिखा गया है.) ४०. पे. नाम. ज्ञानपंचमी वृद्धिस्तवन, पृ. ८६अ-८७आ. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. ४१. पे. नाम. पंचमी लघुस्तवन, पृ. ८७आ-८८अ. ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी तप तुमे करो; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ४२. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. ८८अ-८८आ. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: सफल फली सहु आस, गाथा-९. ४३. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ८८आ-८९आ. पार्श्वजिन बृहत्स्तवन-गोडीजीदशमतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर जगतिलोए; __ अंति: समयरंग इण परि बोले, ढाल-५, गाथा-२३. ४४. पे. नाम. मौनीएकादशी स्तवन, पृ. ८९आ-९०आ. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहै कहौ द्याहडी, गाथा-१३. ४५. पे. नाम. दानशीलतपभाव चौढालीयो, पृ. ९०आ-९५आ. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४. ४६. पे. नाम. सामाइकवत्तीसदोसण स्तवन, पृ. ९५आ-९६अ. For Private And Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सामायिक ३२ दोष स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरना प्रणमुं; अंति: रमणि वहलौ संचरै, गाथा-१३. ४७. पे. नाम. गौतमस्वामीजीरौरास, पृ. ९६अ-१००आ. गौतमस्वामीरास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: नितनित मंगल उदय करो, गाथा-५२. ४८. पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. १००आ-१०१अ. गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गौतम प्रणमी; अंति: उदय प्रगट्यो निधान, गाथा-८. ४९. पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. १०१अ-१०१आ. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेश्वरकेरो शिष; अंति: तूठा संपति कोडि, गाथा-९. ५०. पे. नाम. तीर्थावली स्तवन, पृ. १०१आ-१०२अ. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजे ऋषभ समो; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१६, (वि. दो--दो पदों की एक-एक गाथा गिनने से १६ गाथा हुई है.) १९१८१. बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(७)=८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१४, १४-१५४३०-३५). बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९१८२. अध्यातमगीता सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. मेसाणां, प्रले. तलजाराम बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१४, १२-१६४३४-४४). अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिए विश्वहित; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४९. अध्यात्मगीता-बालावबोध, मु. अमीकुंयरजी, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: (१)संवेगी सिरदार सिरोमण, (२)एतलै प्रणमीयै कहिता; अंति: तस घर लछि लीला करै. १९१८३. समयसार नाटक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३२, वैशाख कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०८, ले.स्थल. अमरापुर, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१४, ६x४१-५१). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर; अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, गाथा-७०९, ग्रं. १७०७. समयसार नाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, क्र. रूपचंद, पुहि., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथस्वामी; अंति: सिद्ध साख हम दीन. १९१८४. विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९३२, पौष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. पाटण, प्रले. नरभेराम अमुलख ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१३.५, १३४२७-३०). नेमिजिन विवाहलो, म. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: नेम जिनेसर साथे लेइ; अंति: हेजसू एते लहे जयकार, ढाल-१७. १९१८८. योगदृष्टि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६४१३.५, १०x२६-२९). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)शिवसुख कारण उपदेशी, (२)मित्रा तारा बला; अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल-८, गाथा-८४, (वि. मित्रा तारा बला से प्रारंभ होता दुहा कृति के अंत होने पर दिया गया है.) For Private And Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १९१८९. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा व्याख्यान १-८, प्रतिपूर्ण, वि. १९३९, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १४१, प.वि. स्थविरावली तक लिखा है., ले.स्थल. कंबोइ, प्रले. मु. राजरतन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रानुक्रम इस प्रकार है. १५+१६+१३+११+१६+१९+१५+१८+१८=१४१., जैदे., (२७४१३, ५-१६४३१-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-). प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतने नमस्कार; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९१९१. बोलसंग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४१३, १३४३४-३५). १. पे. नाम. १९२ शिखामणना बोल, पृ. १अ-५अ. ___ शिखामण के १९२ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: कोइ पण शुभ कार्य; अंति: नाणुं आपवूनही. २. पे. नाम. पचीस बोल, पृ. ५अ-५आ. औपदेशिक २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीवदया जयणा सदा; अंति: पण यथोचित दान करवू. ३. पे. नाम. आठबोल संग्रह, पृ. ५आ-६अ. करने, नहि करने, मन में रखने व विश्वास न करने के आठ-आठ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: दुर्जन पुरुषनी __ सोबत; अंति: नाणुं आपq नही. ४. पे. नाम. मार्गानुसारीना ३५ बोल, पृ. ६अ-६आ. मार्गानुसारी के ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: न्यायथी धन कमावq १; अंति: इंद्रियो वश राखवी. ५. पे. नाम. सो प्रकारना मूर्ख, पृ. ६आ-८आ. मूर्ख के १०० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: छते सामर्थ्य उद्यम; अंति: हसे ते मूर्ख जाणवो. ६. पे. नाम. मूर्ख को उपदेशन देने विषय में श्लोक, पृ. ८आ. श्लोकसंग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. १९१९२. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१३, १२-१३४३०-३४). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८+कलश, गाथा-१२७. १९१९४. मौनएकादशी गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४१४.५, १२४२१). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः १९१९७. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२४.५४१३, ४४२२-२६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५०. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा-१८ तक लिखा है.) १९१९९. आणंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १८६७, फाल्गुन कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. राधनपूर, प्रले. मोतिचंद; पठ. श्राव. नानजी सेनाडा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१३.५, १२-१४४२६-३१). For Private And Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आनंदश्रावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमान जिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल-१५. १९२०१. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, अन्य. सुगनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१४, ३४२७-३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण क० त्रण भुवननइ; अंति: ए ग्रंथ वांध्यो. १९२०५. चैत्रिपुनिमदिने देववांदवानी विधि, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. मगनीराम काकड, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१३.५, १३४३०-३५). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तिहां प्रथम प्रतिमा; अंति: धर्म शर्म घरि आवी रे, ग्रं. २२६. १९२०६. (+) पुष्पांजलि स्तोत्र सह अवचूरि, सर्वजिन स्तुति व अध्यात्मचत्वारिंशिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्रले. अणतु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१५, १३४३६). १. पे. नाम. पुष्पांजलि स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-२आ. पुष्पांजली स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: केवल लोकित लोकालोक; अंति: मुक्तिजयं कुरुते, गाथा-१०. पार्श्वजिन स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे केवलज्ञानविलोकित; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभिक ५ गाथा तक क्रमशः इसके बाद यत्र-तत्र ही अवचूरि मिलती है.) २. पे. नाम. सर्वजिन स्तुति, पृ. २आ. साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: जय वीतमोहः जय वीतदोष; अंति: सुचंद्राभिरूपः, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पार्श्वेश्वरजिनेंद्रस्तुतिगर्भित अध्यात्मचत्वारिंशिका, पृ. २आ-६आ, पे.वि. कहीं-कहीं अवचूरि भी दी गयी है. पार्श्वजिन स्तुतिगर्भित अध्यात्मचत्वारिंशिका, उपा. शिवचंद्र, सं., पद्य, आदि: संसारांभोनिधि तरण; अंति: मनसांजनि वामानंदनः, गाथा-४४. १९२११. (+) अष्टाह्निका महोत्सव ग्रंथ, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रावण शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदे., (२६४१३, १२४२८-३१). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: करगामिनी भवति. १९२१२. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६०, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. खिचंद, प्रले. ऋ. रामप्रताप; पठ. श्राव. हिमतमल टाटिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१३, १०-११४३३-३९). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: सेत्तं परोक्खणाणं, गाथा-७००. १९२१४. मार्गपरिशुद्धि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. अन्य पत्रानुक्रम ३३ से ४९ भी संलग्न है., जैदे., (२६४१२.५, ११-१३४३१-३५). मार्गपरिशुद्धि प्रकरण, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनताय; अंति: विरचितो ग्रंथः, श्लोक-३१४. १९२१५. श्रावकतणा अतिचार, संपूर्ण, वि. १९४१, आश्विन शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. माडल, प्रले. सांकलामावेसर व्यास; पठ. श्रावि. जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१५, ११४३१). For Private And Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: पक्षदिवस माहि, ग्रं. ११०. १९२१७. प्रश्नोत्तररत्नमालानो बालाबोध, पूर्ण, वि. १९१९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(१)=१२, प्रले. दयाशंकर हरजीवन जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१४.५, १४४३६-३९). प्रश्नोत्तररत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्राणीने परमसुख होइ, ग्रं. ४०१, पूर्ण. १९२२०. अठाई व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२७४१४, १३-१४४३३-३४). अठाईपर्व व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: श्रीयुगादिजिनं वंदे; अंति: सद्गतं भवते. १९२२१. नवाणुंप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रावण शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. कंबोइ, प्रले. मु. राजरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१४.५, ११-१३४२९-३२). ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: (१)आतम आप ठरायो रे, (२)९९ चोखाना करीइ, ढाल-११+कलश. १९२२७. स्तवन, स्तोत्र, सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ६, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. मु. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१४.५, १५-१७४२८-३०). १. पे. नाम. तीर्थवंदन, पृ. १आ-२अ. सकलतीर्थवंदना, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीर्थ वंदु कर; अंति: जीव कहे भवसायर तरु, गाथा-१५. २. पे. नाम. २४ जिन नमस्कार, पृ. २अ-३आ. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: तानि वंदे निरंतरम्, श्लोक-३४. ३. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ३आ-६अ. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ४. पे. नाम. वृधशांति, पृ. ६अ-७आ. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ५. पे. नाम. नववाडी सील, पृ. ८अ-१०अ. नववाडि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०. ६. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १०आ, अपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हवि राणी पद्मावती; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभिक गाथा-८ तक लिखा है.) १९२२९. आचारांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथम श्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१, पू.वि. प्रतिलेखन पुष्पिकावाला पत्र नहीं है., जैदे., (२४४१२.५, २-७४३६-४३). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीश; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९२३०. जंबूद्वीपसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५४१३.५, ४४२७). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. १९२३१. शत्रुजयउद्धार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२४४१४, १०x२५). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: द्यो दरिशन जयकरो, ढाल-१२, गाथा-१२४. १९२३२. (+) हस्तसंजीवन, संपूर्ण, वि. १९८०, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. जयनारायण लहीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १६४३०). हस्तसंजीवन, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर; अंति: (१)मेघाद्विजयाख्य वाचकः, (२)यः श्रीरस्तु शाश्वती, श्लोक-२८३, ग्रं. ५२५. १९२३३. महावीरजिन सत्तावीसभववर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५४१२.५, १२४३२-३५). महावीरजिन २७ भव स्तवन, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: पूरण प्रेमे प्रणमीइ; अंति: वीर जिनवर जय करो, ढाल-११, गाथा-८७, ग्रं. १४०. १९२३४. (+) संग्रहणी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. सुधदंति, प्रले. मु. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आवश्यकतानुसार कहीं-कहीं टिप्पण एवं कोष्टक दिये गये है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, जैदे., (२३.५४१२.५, १२४२७-३०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, ___ गाथा-३९४. १९२३५. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२३४१२, १२४३१). स्तवनचौवीसी, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धक्षेत्र; अति: सुखविजयनी वाणीजी, स्तवन-२४. १९२३६. समेतशिखरतीर्थमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अंदाजित गाथा-११७ तक है., जैदे., (२३४१३.५, १३४२५). सम्मेतशिखर तीर्थमाला, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: प्रणमीय प्रथम परमेसर; अंति: (-), अपूर्ण. १९२३७. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन १० गाथा ३ तक है।, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१२, १६४३६-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), अपूर्ण... १९२३८. (+) बृहत् ज्ञानपूजा, अपूर्ण, वि. १९०७, वैशाख शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. २६-१४(९ से २२)=१२, ले.स्थल. लसकरपुर, प्र.वि. चिंतामणि पार्श्वजिन प्रसादात., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४१३.५, ९४३२). ज्ञान पूजा-बृहत्, उपा. चारित्रनंदी, मा.गु., पद्य, वि. १८९५, आदि: नाभिनंद प्रणमी करी; अंति: (१)चारित्र सुखकारोजी, (२)भावै वहु कमला वरियै, अपूर्ण. १९२३९. बोलसंग्रह- ज्ञाताधर्मकथा, अपूर्ण, वि. १९१७, श्रावण शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(३ से ४)=९, पू.वि. बोल २४ से ४६ तक नही है।, प्रले. मु. बालचंद्र; पठ. श्राव. लक्ष्मीपतिजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ९४२५-२९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाताधर्मकथा साढि; अंति: होय ते कर्मने उदै, अपूर्ण. १९२४०. कुमतीउथापण चरचा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२४४१२.५, १२४२९). For Private And Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २९९ कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि., गद्य, आदि: मनोमती झूठी प्ररुपणा; अति: लाभवको अर्थ कह्यौ है. १९२४१. नवकार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-४(१ से ४)=३४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल ६ गाथा ११ से ढाल ४० गाथा १८ है।, जैदे., (२४.५४१२, १४४३३-३६). नवकार रास, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९२४२. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२४४१२, १७X४०-५१). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: से तं परोक्खणाणं, गाथा-७००. १९२४४. (+) भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. मात्र अंतिम श्लोक का चतुर्थ पाद नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२, ७४३५-३८). भवनदीपक, आ. पद्मप्रभसरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः श्लोक-१७४. भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वति सबंधियो मह; अंति: सूरि इसो नामे आचार्य. १९२४५. पिस्तालीसआगम गणगुं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. कुबेरदास रणछोडदास पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १२४१३-३४). पीस्तालीसआगम गणj, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम श्रीनंदीसूत्र; अंति: ययन उपांगसूत्राय नमः, ग्रं. २१०. १९२४९. सिद्धदंडिका स्तोत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, जैदे., (२५४१३, ११४३३). सिद्धदंडिका स्तव-बालावबोध, पन्या. अमीविजय , मा.गु., गद्य, वि. १८४६, आदि: (-); अंति: (१)विजय इति शेषः, (२)धारणा विसेष करवी, अपूर्ण. १९२५०. कल्पसूत्र सह बालावबोध व्याख्यान १-७, प्रतिपूर्ण, वि. १९३२, भाद्रपद कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १०५, पू.वि. आदिनाथचरित्र तक है. (वाचना-९ तक), ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. कृष्णसुंदर (उपकेशगच्छ); पठ. पं. हस्तिसुंदर (उपकेशगच्छ); अन्य. श्रावि. मगनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १८४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)णमो अरिहंताणं पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-). प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (१)अज्ञान तिमिरांधानां, (२)अहँत भगवंत उत्पन्न; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९२५१. कानडकठीयारा चरित्र, अपूर्ण, वि. १८८०, श्रावण शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१ से ३)=६, पू.वि. ढाल ३ गाथा २ तक नही है।, ले.स्थल. नागौर, प्रले. उदयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १०-१३४२९-३९). कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: (-); अंति: दिन दिन वधते रंग, ढाल-९, ___अपूर्ण. १९२५२. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४४१२, १०४२३-२५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. १९२५७. (+) चौवीसजिनवर्णन यंत्र-१०६ द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५). चौवीसजिनवर्णन यंत्र-१०६ द्वार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९२५८. सिद्धांत बोल, संपूर्ण, वि. १८७४, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. हिद्राबाद, जैदे., (२५४११.५, १३-१४४३५-३६). बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९२६०. आठकर्मनी १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६४१२, १३४३३-३९). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इहां सुशिष्य पूछ; अंति: मिलै निसंदेहपणे. १९२६१. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११.५, १२४२५-२८). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिनेशर; अंति: गुणविजय रंगे मुनि, ढाल-६. १९२६२. (+) नवस्मरण व लघुशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, पौष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, ले.स्थल. देवकापटण, प्रले. पं. दर्शनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ६४३५-४०). १. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १आ-२२अ, पू.वि. ८ स्मरण है. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताण० हवइ; अंति: जैन जयति शासनम्, प्रतिपूर्ण. नवस्मरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने माहरो; अंति: शासन जयवंतो वर्ता, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. लघुशांति सह टबार्थ, पृ. २२अ-२३आ. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शांतिनाथ शांतिनु घर; अंति: करणहारने पुंहचे वली. १९२६३. नवतत्त्व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. २७ गाथा का मात्र प्रतिक पाठ दिया है., जैदे., (२६४१२, १५-१७४३६-४०). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए पहिला नवतत्त्वना; अंति: संसार हुअउ निश्चइं. १९२६६. दशवैकालिकसूत्र-१ से ४ अध्ययन व जैन गाथा, प्रतिपूर्ण, वि. १८९१, आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १४४३३). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १ से ४, पृ. १अ-६आ. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. जैन गाथा, पृ. ६आ. जैन गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९२६७. (+) अंगुलसत्तरी व कालसप्ततिका सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, २२-२३४४१-४४). १. पे. नाम. अंगुलविचार, पृ. १अ-२अ. अंगुलसत्तरी, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभ समगमण मुसभं जिण; अंति: रइअमिणं सपरगुणहेउ, गाथा-७०. २. पे. नाम. कालसप्ततिका सह अवचूरी, पृ. २अ-५आ. For Private And Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०१ नावा 8. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदणयं विज्जाणंद; अंति: कालसरूवं किमवि भणियं, गाथा-७४. कालसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: देवेंद्रनत; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९२७०. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०१, माघ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. गंगापुर, प्रले. जूहारचंद, पठ. श्राव. सांवतराम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१२, ९-१०४२२-२४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. १९२७१. स्नात्रपूजा विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४१२.५, १६-१८x स्नात्रपूजा सविधि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: स्नात्रसुंगीत भणीजे. १९२७३. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६४१२.५, ११४२६-३०). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. १९२७४. (+) श्येनश्रेष्ठि व नंदश्रेष्ठि कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुलपे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२.५, १२४३८-४२). १.पे. नाम. श्येनश्रेष्ठि कथा, पृ. १अ-३अ. प्रा.,सं., पद्य, आदिः (१)इह अत्थि पुरीकंची, (२)पढमाई सज्झाय वेरगा; अंति: संतः सततं यतंतां, गाथा-४८. २. पे. नाम. नंदश्रेष्ठि कथा, पृ. ३अ-६अ. प्रा.,सं., पद्य, आदि: (१)सुहवासामो यज्जुया, (२)तव नियम वंदणाइ करणं; अंति: विधत्त यत्नं, गाथा-६६. १९२७७. श्राद्धविधि रास, पूर्ण, वि. १८४२, भाद्रपद शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६१-३(२ से ४)+१(५४)=५९, प्रले. पं. जससागर (गुरु ग. ज्ञानसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४-१५४३५-४३). श्राद्धविधि रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: सोमवदन तुझ सरस्वती; अंति: संघ सकलतणी पोहती आसो, गाथा-१६५१, ग्रं. १९१४, पूर्ण.. १९२७९. विविध बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, ११-१४४२८-३३). १. पे. नाम. इक्यासीबोल, पृ. १अ-९अ. ८१ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: ते डाह्या हुवे ते; अंति: सूत्र १० उद्देशे क०. २. पे. नाम. नवतत्त्व १३ द्वार, पृ. ९अ-२१आ. नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मूल १ दृष्टं २ कोण ३ अंति: समान मोक्ष जाणवो. ३. पे. नाम. पचीस बोलरो थोकडो, पृ. २१आ-२७आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले गत च्यार; अंति: (-), अपूर्ण. १९२८०. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९६५, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदे., (२४४१२, ८x२३-२६). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच इरव जाण; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३. १९२८१. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-२(११ से १२)=११, पू.वि. मू+टबा.गाथा ३४ - ४१ नही है., जैदे., (२६४१२, २१४३३-५२). For Private And Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४, अपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: लक्ष्मी स्वयं वरइ, अपूर्ण. १९२८२. गुणमाला सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(१२)=१२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १५४३७-४१). गुणमाला, उपा. रामविजय, प्रा.,सं., गद्य, वि. १८१७, आदि: प्रत्यक्षीकृत्य; अंति: (-), अपूर्ण. गुणमाला-स्वोपज्ञ टीका, उपा. रामविजय, सं., गद्य, वि. १८१७, आदि: स श्रीसिद्धार्थसूनुः; अंति: (-), अपूर्ण. १९२८४. चौवीसदंडक २९द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १८८०, माघ कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. माणेकचंद्र (खरतरगछ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४१२, १५-१६४३३-३८). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: अनंतगुणा अधिका कहवा. १९२८५. नयचक्र स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल १३ की गाथा ६९ तक है., जैदे., (२५.५४१२, ८-९४४४-५१). नयविचार रास, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणकमल; अंति: (-), अपूर्ण. सप्तनय रास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. टबार्थ द्वितीय ढाल से लिखा गया १९२८६. (+) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. २०६, ले.स्थल. जेसलमेरदुर्ग, प्रले. पं. जयविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, ५-९x४३-५०). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहताणं णमो; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, ग्रं. ५९००. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७२, आदि: प्रणम्य ज्ञानविज्ञान; अंति: एतलई जीवाभिगमसूत्रइ. १९२८९. (+) सिद्धचक्र, ऋषिमंडल पूजन व जयलायात्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५५१, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३१-३५). १. पे. नाम. नवपदजीरी विधि, पृ. १अ-१५अ. ___ सिद्धचक्रयंत्र पूजनविधि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम स्नात्रीया ९; अंति: यांतु कल्याणभाजः. २. पे. नाम. ऋषिमंडल पूजनविधि, पृ. १५अ-१९अ. संबद्ध, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐ ऋषभदेवजी १ अजितनाथ; अंति: श्रीवैरोट्या रक्षतु. ३. पे. नाम. जलयात्रा विधि, पृ. १९अ-२१अ. __ मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सयवारक बेहडा ४ सिंहा; अंति: अर्धे वसर्जन कीजै. १९२९०. (+) उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४३, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १३६, प्रले. मु. मंगलसेन (गुरु मु. ख्यालीराम); पठ. सा. चंदरावलजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, ४-१४४१७-३७). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-१८९. औपपातिकसूत्र-दुर्गमपद बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: थका सीधनइ विषइ. For Private And Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १९२९१. २१ चर्चा प्रश्न, संपूर्ण, वि. १८९३, आषाढ़ शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. गोपाचलपुर, प्रले. ऋ. हरजीमल (गुरु ऋ. रतनचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १७४४८). २१ चर्चा प्रश्न, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मआग्या में तो; अंति: ते विचारि जोइज्यो. १९२९३. गौतमपृच्छा बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. गुवालेर, जैदे., (२६.५४१२, २२-२४४४५-४८). गौतमपृच्छा-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: गौतमस्वामी श्रीमहावी; अंति: कीधी ते कर्मनइ उदइ. १९२९५. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदे., (२५४१२.५, ५४२८-३१). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: पालण भावसुद्धित्ति, (वि. १९०१, श्रावण शुक्ल, १२, रविवार) षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अरिहंतने अंति: ते सद्दहणा जाणवी, (वि. १९०१, __ भाद्रपद कृष्ण, ९, शनिवार) १९२९६. (+) चंदनमलयगिरिरास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १७-१८४४६-४८). चंदनमलयागिरी चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: गोयम गणधर पयनमी; अंति: लाभइ सघला थोक, ढाल-१९. १९२९७. घग्घरनिसाणी, संपूर्ण, वि. १९२९, फाल्गुन शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. सरस्वतीनगर, प्रले. मु. रामलाल साधू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन दिन- अग्निवेशदिने इस तरह लिखा हुआ है., जैदे., (२६४१२.५, ११४३१). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: गुण जीनहर्ष कहंदा है, गाथा-२६. १९२९८. प्रश्नसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८९०, वैशाख कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६.५४१२.५, २२४४५-४७). प्रश्न संग्रह, म. दोलतराय, मा.ग., गद्य, आदि: सिद्धत्थ सवसंजलया; अंति: जिन सब्द ठहराववो. १९३००. बारआरा स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. गाथा १-१३ नहीं है., जैदे., (२५४१२, १०४२७-२९). १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: रीषभ० कहे मंगल करूं, ढाल-१२, गाथा-७६, अपूर्ण. १९३०१. (+) दशवैकालीकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२५४१२.५, १६४६३-६५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. १९३०३. सझाय वस्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, प्रले. पं. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १२-१३४३१-३४). १. पे. नाम. सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, पृ. १अ-४आ. समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; ____ अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. २. पे. नाम. शाश्वतजिनबिंब स्तवन, पृ. ५आ-८आ. For Private And Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता मन धरि; अंति: जंपड़ सार ए अधिकार ए. डाल- ६, गाधा - ५८. १९३०४. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९९४ आश्विन कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२४.५x१२, १२x२४-३३). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पच, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल - ८ + कलश. १९३०५. षडशीति चतुर्थ कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, पठ. श्राव. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१२.५, ५X३०-३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा -८६. १९३०८. गौतमस्वामी रास व अष्टक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५X१२.५, ११X३४-४०). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ - ५अ. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः सयल संघ मंगल करुं ए. गाथा - ७८. २. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. ५अ - ५आ. मु. धीर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो गणधर वीरनो रे; अंति: साउले धीर नमे निसदीस, गाथा - ८. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. ५आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति अंति: ( - ), अपूर्ण. १९३१०. नयचक्रसामान्य वचनिका, संपूर्ण, वि. १९२९, ज्येष्ठ कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. जोधपुर, प्रले. पं. जुहारमल यति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७४१२, १३-१६x४६-५१). नयचक्र-भाषावचनिका, आव, हेमराज शाह, पुहिं., गद्य, वि. १७२६, आदि: वंदो श्रीजिनके वचन; अंतिः कीनो वचन विलास. १९३१२. मदनसतक, संपूर्ण, वि. १८९९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. कही कही बालावबोध भी लिखा है., प्रले. हीरजी बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२, १३-१५X३५ -४३). मदनशतक, मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वानंदी पय नमी; अंति: हुं करहुं मन लाय, गाथा - ११०. १९३१३. (+) ठाणांगसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९०७ भाद्रपद कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २२७-१(५६)+३(४६,५५,६१) = २२९, ले. स्थल. सहरकांधला, प्रले. मु. सोभागचंद ( गुरु मु. डालूराम ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - त्रिपाठ., जैदे., ( २६.५X१३, १-१७X३६-४८). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउस तेण; अंति: अणता पण्णत्ता, स्थान - १०, ग्रं. ३६००, पूर्ण. स्थानांगसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनं नाथं अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९३१८. श्राद्ध आलोचना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५X१२.५, १०X३२-३५). श्रावक आलोयणा विचार, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: प्रथमं मुहूर्तं; अंति: करि मिच्छामि दुक्कडं. १९३१९. वृद्ध आलोचना, संपूर्ण, वि. १८८७, पौष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. अंत के तीन पत्रों में प्रायश्चित्त विधि का कोष्टक है., जैदे., (२५.५X१३, १-१९x४०-५० ). For Private And Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३०५ श्रावक आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम मुहूर्तं; अंति: सज्झाये उपवास १. १९३२०. शुकनदीपिका चौपाई, अपूर्ण, वि. १९१०, माघ कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३-५(१ से ४,६)=८, ले.स्थल. बीजापूर, प्रले. श्राव. बेचर बादर दोसि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१३, १७४३४-३६). शुकनदीपिका चौपाई, मु. जयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भणतां गणता सदा आणंद, गाथा-३४९, अपूर्ण. १९३२१. स्तवनवीसी व अढारपापस्थानक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-३(१ से ३)=१४, कुल पे. २, प.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३०-३६). १.पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. ४अ-९अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., १-७ जिन का स्तवन नहीं है. विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक यश इम बोलई रे, स्तवन-२०, अपूर्ण. २. पे. नाम. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, पृ. ९अ-१७आ, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., सज्झाय १८ अपूर्ण तक है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलुं कहि; अंति: (-), अपूर्ण. १९३२२. मानतुंगमानवती रास, पूर्ण, वि. १९१३, माघ कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रतिलेखन पुष्पिका वाला पत्र नहीं है., जैदे., (२५.५४१३, १५४२८-३३). मानतुंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: श्रीऋषभजिणंद पदांबुज; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१७. १९३२६. गुणठाणा द्वार, संपूर्ण, वि. १९३५, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. हुस्यारपुर, प्रले. सा. अमरती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, १८-१९४३९-४२). गुणस्थानक द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम लक्षण करिया कामा; अंति: स्त्रीभेद नपुंसकभेद. १९३२७. समकितसडसठबोल सझाय, व औपदेशिक सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१४, १०४३१). १. पे. नाम. सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, पृ. १अ-६आ. समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; ___अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-११, गाथा-६८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकरण नमी जिनचरण; अंति: (-), अपूर्ण. १९३२९. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१३, १५४२५-३६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. १९३३०. साधुगुणमाला, संपूर्ण, वि. १९१९, माघ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. छपरोलि, प्रले. श्राव. भगवानदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १६४३१-४३). साधुगुणमाला, श्राव. हरजसराय जैन, पुहि., पद्य, वि. १८६४, आदि: श्रीत्रैलोकाधीस को; अंति: गाया नाथजी आस पूरे, गाथा-१२५. For Private And Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९३३१. आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९८४, कार्तिक कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. दुलीचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४१३ ४९-५०४४१-५०). ラ आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: अतीत काल अठार पाप; अंति: साधुश्रावक आराधक होय. १९३३२. संयमश्रेणिविचार स्तवन सह टवार्थ व संयमश्रेणीविचार स्तवन का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८८, भाद्रपद कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्रले. श्राव. डुंगरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x१२, ३३८). " १. पे. नाम संयमश्रेणिविचार स्तवन सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ. संयमश्रेणिविचार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः ध्यानमां ध्यावो रे, ढाल - २, गाथा - २१. संयमश्रेणिविचार स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) ऐंद्रवृंदनतं नत्वा, (२) गुरुना चरणकमल ते; अंति: यशोविजइं कह्यो. २. पे नाम, संयम श्रेणी विचार, पृ. ७आ-८आ. संयमश्रेणिविचार स्तवन- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (१) सव्वामि वृविणं, (२) सर्व जघन्य संजमस्थान; अंतिः अंतरमुहुर्त थाइ. १९३३३. नवतत्त्व सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२७१४, ३X२७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-५३. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्त्व अजीवतत्त्व अंतिः परावर्त जास्यई. १९३३७. (+) बृहत्सिद्धचक्र पूजन व जैनसंध्या विधि, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२५.५x१२.५, २६-२९४५१). १. पे. नाम. बृहत्सिद्धचक्रपूजा विधि, पृ. १अ ५अ, वि. १८७६, श्रावण शुक्ल, ८, ले. स्थल. अहिपुर. बृहत्सिद्धचक्र पूजनविधि, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, आदि: सिद्धं शुद्धं; अंति: चंद्रयतीश्वर सूक्ता. २. पे नाम, जैनसंख्या, पृ. ५आ, वि. १८७६, कार्तिक कृष्ण, ५, ले. स्थल, नागोरनगर, जैन संध्या, सं., गद्य, आदि जिनं जिनं जिनं वाक्: अंतिः द्रव्यानुवेद स्वाह. १९३३८. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, वटपद्रनगर, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५X१२.५, १३x४०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः कपर्दस्य पद्ये. १९३३९. (+) पौषदशमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. देवक्वपत्तन, प्रले. पं. आनंदरुचि पठ. पं. भाग्यचंद्र गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१३.५, ६५३४). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथां; अंतिः सुखं प्राप्ति. पौषदशमीपर्व कथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वनाथना चरण; अंति: मोक्षना सुख पामे. १९३४०. चंद्रलेहा रास व जिनवीर्य, संपूर्ण, वि. १८७८, आश्विन शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. २, ले. स्थल. चंडावलनगर, प्रले. मु. हुकमहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२.५, १५-१६३५-३९). १. पे नाम, सामायिकाधिकारे चंद्रलेखा रास, पृ. १अ-२५अ. For Private And Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org ३०७ सामायिकाधिकारे चंद्रलेखा चौपाई, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल २९, गाथा ६२४. २. पे नाम. जिनवीर्य, पृ. २५अ. मा.गु., गद्य, आदि: सुणो वीर्य बोलुं; अंति: अंगुली अग्र जिनवीर्य . १९३४१. मानतुंग- मानवती रास व जैन गाथा, संपूर्ण, वि. १८७७, आश्विन शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, कुल पे. २, ले. स्थल. बीकानेर, पठ. मु. सेरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५x१२.५, १५-१६४३३-४८). , २. पे. नाम. जैन गाथा, पृ. ३४अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. मानतुंगमानवती रास, पृ. १आ-३३आ. मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल ४७, गाथा-१०१७. जैन गाथा", मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), १९३४२. अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५x१३, १०X३०-३१). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं अंति: जिणवयणे आयरं कुणाह गाथा- ४०. १९३४३. (+) निरियावलियादिपंचोपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, कार्तिक शुक्ल, ५ श्रेष्ठ, पृ. ६६+१ (१७) =६७, कुल पे. ५, ले.स्थल. दादरी, प्रले. मु. आत्माराम साधु; पठ. मु. गुलाबचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल प्र. २६६८, जीवे. (२५.५४१२.५, ७४३९-४६). " १. पे नाम कल्पिकासूत्र सह टवार्थ, पृ. १आ-२५आ. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः भणियव्वो तहा, अध्ययन - १०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि: तेणि कालि चोथा आराने; अंति: श्चोक्तो हि मुदा. २. पे नाम, कल्पावर्तसिकासूत्र सह टवार्थ, पृ. २५-२८अ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जड़ णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिति, अध्ययन- १०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पूज्य० कप्पवडि; अंति: वर्गः प्रोक्ताः. ३. पे नाम, पुष्पिकासूत्र सह टवार्थ, पृ. २८अ - ५४आ. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाई जहा संगहणीए अध्ययन - १०. पुष्पिकासूत्र - टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि जड हे पूज्य० त्रीजा; अंति: त्रीजो वर्ग संपूर्ण. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५४आ-५८आ. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः खलु जंचू निक्वड, अध्ययन- १०. पुष्पचूलिकासूत्र - टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि जड हे पूज्य० दस; अंति: वर्गः संपूर्णः. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५८आ - ६६अ. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जड़ णं भंते पंचमस्स; अंति: मइरित एक्कारससु वि, अध्ययन- १२. वृष्णिदशासूत्र - टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि: जउ हे पूज्य० पांचमा; अंतिः बार उद्देशा का. For Private And Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९३४५. शांतिजिन रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पू.वि. गाथा १२९७, ढाल ६० तक है., जैदे., (२६४१२.५, १८-१९४४९-५४). शांतिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सकलसुखसंपतिकरण गउडि; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९३४६. (+) भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. भीषणदास ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, ५४३०-३४). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१७६, (वि. १८३७, पौष शुक्ल, ८, बुधवार, ले.स्थल. नागपुर) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सारस्वतीकुं नमीनै; अंति: सप्तवर्गेषु कीर्तितं, (वि. १८३७, माघ, १, गुरुवार, ले.स्थल. अहिपुर) १९३४७. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक सूचीमात्रभाषा-उत्तरार्द्ध, संपूर्ण, वि. १८७१, वैशाख कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, पठ. सा. भागश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १४४३२-३५). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थंकर; ___ अंति: शास्त्रमै कह्यो छे, प्रश्न-१५१. १९३४९. पंचमहाव्रत व पंचसुमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. जैदे., (२६४१३.५, ११४२७). १. पे. नाम. पंचमहाव्रतभावना सज्झाय, पृ. १अ-३अ. मु. जस, मा.गु., पद्य, आदि: महाव्रत पहेलुं रे; अंति: वीधई सेवतां पाया हो, सज्झाय-५. २. पे. नाम. पंचसुमति सज्झाय, पृ. ३अ-७अ. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमहाव्रत आदरी आतम; अंति: तो नही तुज परचार, गाथा-५२. १९३५०. (+) निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१२, आश्विन कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले.स्थल. पिंडनगर, प्रले. अमरदास गुसाई; पठ. मु. गुलाबरायजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंत मे प्रायश्चित्त कोष्टक दिया हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ९४४७-५४). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्म; अंति: पसिस्सो भवोजं च, उद्देशक-२०. निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे कोई भि० अणगार; अंति: शिष्यनइ भणवानइ अर्थइ. १९३५१. (#) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संपूर्ण, वि. १९४७, वैशाख कृष्ण, ३०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. हर गाथा का प्रतिक पाठ मात्र दिया गया है.अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ११४४०-४४). भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहँ णमो; अंति: नमः स्वाहा, मंत्र-४८. १९३५२. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४७, आषाढ़ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. जोधपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, ४४३२-३६). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंदसंपदाम, श्लोक-८१. १९३५३. नवकार रास व आषाढभूति चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. २, प्रले. सा. गुलाब, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १३४३०). १. पे. नाम. नवकार रास, पृ. १अ-३अ, पे.वि. पत्र चिपके हुए होने के कारण अंतिमवाक्य पढा नही जा सका है. For Private And Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि पहिलो लीजि; अंति: (अपठनीय), गाथा - २१. २. पे नाम. अषाढभूत रो चोदालियो, पृ. ३अ-७आ, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आषाढाभूति पंचढालिया, क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दर्पण परिसो बाविसमो; अंति: जगमें जाणु धन्य हो, ढाल - ५. ३०९ १९३५५, (+) कर्मग्रंथ १-६, संपूर्ण, वि. १९०१, विधुविरामसुनंदविधौ वरे, आषाढ़ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे, ६, ले. स्थल. मकसूदाबाद, लिख. मु. गणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४१२, ११४३६-३९). १. पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र कर्मग्रंथ, पृ. १आ-४आ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय; अंतिः लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६१. २. पे. नाम. कर्मस्तव कर्मग्रंथ, पृ. ४-६ आ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ, पृ. ६आ-८अ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा - २४. ४. पे. नाम. षडशीती कर्मग्रंथ, पृ. ८आ-१२आ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा -८६. ५. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ, पृ. १२आ-१८अ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा - १००. ६. पे. नाम. सप्तक कर्मग्रंथ, पृ. १८अ - २३आ. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नउईड, गाथा - ९०. १९३५६. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१६, ज्येष्ठ कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५ प्रले. सा. चंद्रमा (गुरु सा. गुमानाजी); पठ. सा. केसर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. बालावबोध टबार्थ शैली में लिखा गया है. अंत में कथा की टीप (अनुक्रमणिका) भी दी गयी है. जैदे., (२६x१२, १-१८४४२-४५), '9 गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा - ६४. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरं जिनं; अंति: सूरेण हर्षपूरण भावतः १९३५८. (*) नलदमयंती रास, संपूर्ण वि. १८२८, आषाढ़ कृष्ण, १३, जीर्ण, पृ. ३०, ले. स्थल. फलौदी, प्रले, मु. , फतैचंद्र (खरतरगच्छ); राज्यकाल रा. विजयसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंतिम पत्र की उपर की किनारी टूटी होने से अंतिमवाक्य नहीं दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६.५४१२, १५-१६x४०-४२). , नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख अंतिः (अपठनीय), खंड ६, हाल ३९. For Private And Personal Use Only १९३५९. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले. स्थल. आहडसर, प्रले. वा. रत्नधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६१३.५, ९५५). Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु उद्दिसंति, अध्याय-१०, ग्रं. ८९०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चोथा आराने; अंति: दसदिवसने विषे कहइ, ग्रं. १६१०. १९३६०. (+) अजितशांतिजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. उजीरपुर, प्रले. मु. वजैराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१३.५, ६४३०). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४१. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत श्रीअजीतनाथनइ; अंति: वचन विषै आदर करउ, ग्रं. २५१. १९३६२. अष्टादशपापस्थानकवर्जन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५४१३.५, १४४४०). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलूंका; अंति: सेवक वाचकजस इम आखेजी, सज्झाय-१८. १९३६३. सिद्धचक्र आराधना विधि, संपूर्ण, वि. १९४०, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५.५४१२, १६x४५-४९). सिद्धचक्र आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथमवर्ष मास दिन; अंति: यथाशक्तियै करायवौ. १९३६४. आसाढानी चतुर्मासानी देववंदन व दुहा, संपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१३.५, १२४३१). १. पे. नाम. आषाढानी चतुर्मासानी देववन्दन, पृ. १अ-१७अ. चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सामलन चेई रे. २. पे. नाम. दुहा, पृ. १७आ. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. १९३६५. गर्गावलीनी सुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४१२, १७४३७). पाशाकेवली-भाषा*, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति कुष्मांड; अंति: काम प्रमाण चढस्यै. १९३६६. मंगलकलश चतुपदी, संपूर्ण, वि. १८५१, भूमींद्रिनागचंद्राब्दे शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. पचेरग्राम, प्रले. पं. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२.५, १६४३२-३८). मंगलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: पास जिनेसर पय कमल; अंति: आदरिज्यो गुणवंत, ढाल-२१. १९३६८. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. मु. भेरुदान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४-१५४३३-४३). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: सेत्तं परोक्खणाणं, गाथा-७००. १९३६९. लीलावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. इस प्रति में कृति रचनासंवत् १७२१ लिखा गया है., जैदे., (२४.५४१२, १९४४९-५५). लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: त्रेवीसमो त्रिभुवन; अंति: ऋद्धि वृद्धि सुखकार, ढाल-२९, गाथा-६१५. १९३७०. दोहावली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १६४७२). For Private And Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org १. पे. नाम. दोहावली, पृ. १अ - १ आ. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: लोचन प्यारे पलकको कर; अंति: ते विक्रम से होय, गाथा - ६३. २. पे. नाम. जैनदुहा संग्रह, पृ. २अ -५आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैन दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९३७२. दशवैकालीकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८५३, मार्गशीर्ष कृष्ण २, श्रेष्ठ, पृ. ६५-१७(१ से १७ ) - ४८, पू.वि. पंचम अध्ययन से है., प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६x१२, ४-६X२३-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि (-); अंतिः गई ति बेमि, अध्ययन १०, ( अपूर्ण, वि. १८५३, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, प्रले. मु. देवजी ऋषि) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानवंतनो प्ररुप्यो, (अपूर्ण, वि. १८५३, कार्तिक कृष्ण, ९, प्रले. मु. जेठा) सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंतिः विहरति ति बेमि, प्रतिपूर्ण, सूत्रकृतांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: छं इत्यादि पूर्ववत्, प्रतिपूर्ण ३१९ १९३७३. सुयगडांगसूत्र सह टबार्थ - द्वितीय श्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७०, ले. स्थल. विक्रमपुर, जैवे., (२५.५x१२.५, ६-७९४८-५५), १९३७४. भवणद्वार, संपूर्ण, वि. १९३७, भाद्रपद शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैवे. (२५.५x१२, १६-१७X४०-४५). +9 भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सातमी नारकीनां नाम; अंतिः च्यार विमाण जाणवा. १९३७५. विपाकसूत्र सह टवार्थ सुखविपाक, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५x१२, ९x४४ ). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंतिः सेसं जहा आयारस्स, प्रतिपूर्ण विपाकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः यस अध्ययन कह्या प्रतिपूर्ण , १९३७६. निरयावलियादिपंचोपांगसूत्र सह टवार्ध, संपूर्ण, वि. १९४४, कार्तिक कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२, कुल पे. ५, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्र. वि. जैवे. (२५.५x१२, ७-८x४१-५०). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ - २४अ. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः भणियव्वो तहा, अध्ययन - १०. कल्पिक सूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणै कालै चउथा; अंति: सर्वनो जाणवो तथा तिम. २. पे. नाम. कल्पावर्तसिकासूत्र सह टवार्थ, पृ. २४अ - २६ आ. कल्पावर्तसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जति णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन - १०, कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जउ भं० हे पूज्य; अंति: सर्वदुखनो अंत करई. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २६ आ - ५२अ. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाई जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जउ भ० हे भगवंत; अंति: गाथाई कह्या तिम ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५२अ-५५आ. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः विदेहे वासे सिज्झति, अध्ययन- १०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जिवारै हे पूज्य; अंतिः खपावी मुक्तै जास्यै. For Private And Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५५आ-६२आ. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ ण भंते पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज०जो हे पूज्य उ०ए; अंति: ब०बारे उद्देशा कह्या. १९३७८. पासाकेवली, पंदरियो यंत्र व अजैन श्लोक, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, ७-९४२०-२८). १.पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १अ-११अ. पाशाकेवली-भाषा*, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति कुष्मांड; अंति: उपजै मनकाम सिद्धि. २. पे. नाम. पंदरियो यंत्र, पृ. ११आ. ___मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. अजैन श्लोक, पृ. ११आ. अजैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. १९३७९. व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६९, श्रेष्ठ, पृ. ४४, ले.स्थल. सरदार, प्रले. मु. रेवतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ६x४१-४९). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासियं; अंति: महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक-१०, __ (वि. १९६९, पौष कृष्ण, ९, बुधवार) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु; अंति: क्षय करवारूप फल हुइ, (वि. १९६९, फाल्गुन कृष्ण, ४, सोमवार) १९३८०. विद्याविलास चतुप्पदिका, अपूर्ण, वि. १७८५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २५-८(१ से ८)=१७, पू.वि. ढाल १० दोहा ४ तक नहीं है., ले.स्थल. पोटाधी, प्रले. पं. ऋषभ, प्र.ले.प. विस्तृत, जैदे., (२५.५४११, १५४५०). विद्याविलास चौपाई, म. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, वि. १७११, आदि: (-): अंति: तीस ढाल सुख पायाजी. ढाल-३०, अपूर्ण. १९३८१. प्रतिक्रमणसूत्र वस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७१, आश्विन शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ३, ले.स्थल. दसरथपूर, प्रले. ग. निधानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १८४३५). १.पे. नाम. पडिक्कमणा सूत्र, पृ. १अ-१२अ. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: जैन जयति शासनं. २. पे. नाम. पजूसणपर्वनी स्तुति, पृ. १२अ-१२आ. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदी जिनपूजा; अंति: पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. रोहणी स्तुति, पृ. १२आ. रोहिणीतप स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुखदायक नायक ए; अंति: जो जिन भक्ते राचे जी, गाथा-४. १९३८२. (+) सिधिपंचाशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५४३९). For Private And Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir जाए.) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३१३ सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्ध सिद्धत्थसुअं; अति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०. सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रसिद्ध सिद्धार्थनो; अंति: (अपठनीय), (पृ.वि. अंतिम गाथा के मात्र अंतिम तीन पदों का टबार्थ नहीं लिखा है.) १९३८३. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. राधनपूर, प्रले. ग. धर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १९४४४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्ष प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीमत्पार्श्वजिनं, (२)अथ काव्यद्वयस्य; __ अंति: आम्नायाद्विज्ञेयाः. १९३८४. पार्श्वजिन स्तवन व भैरव छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३९-४०). १. पे. नाम. अंतरीकजिन स्तवन, पृ. १आ-५अ. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारदा पाय प्रणमी; अंति: भणै जयो देव जय जयकरण. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५अ-६अ. पार्श्वजिन स्तवन-फलवृद्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परतापूरण प्रणमीइ अरि; अंति: सेवकनइ सानिधि करि, गाथा-२१. ३. पे. नाम. भैरव छंद, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय भैरव लाला; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा-६ तक लिखा है.) १९३८५. जंबूपृच्छया प्रश्न, संपूर्ण, वि. १८६९, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. बहियल, प्रले. ग. हितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२६४१२, १७४४२). जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सरवदा पुरे; अंति: वीरजी मुनि सुखकारी, ढाल-१३. १९३८६. सीमंधरस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६३, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. य. विजय; पठ. श्रावि. यतन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१३.५, १२४३२). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती%B अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५. १९३८७. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१३, १०४३०). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. १९३८८. सत्तरभेदी जिनपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. पं. भावचंद्र (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. मु. रूपचंद (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ९-१०४२२-२७). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: सब लीला ___ शिवसुख साजै, ढाल-१७, ग्रं. २१२. १९३८९. वैराग्यशतक सह वाक्यार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, कार्तिक शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६४१३.५, ६४३०). For Private And Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०१, (वि. १८५५, कार्तिक शुक्ल, १०) वैराग्यशतक-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: संसारे असारे नास्ति; अंति: लभते शाश्वतं स्थानं, (वि. १८५५, कार्तिक कृष्ण, १०, शनिवार) १९३९२. (+) संबप्रद्युम्न रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४१२.५, ११४३६). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: पभणइ संघ सुजस जगीस ए, खंड-२, ढाल २२. १९३९३. (+) भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रावण कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. आणंदपूर, प्रले. पं. रीद्धीसागर (परंपरा गच्छा. धरणेन्द्रसूरि, तपागच्छ); राज्ये गच्छा. धरणेन्द्रसूरि (तपागच्छ); राज्यकाल रा. मोडजी देवाजी जाडेजा, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. चंद्रप्रभू प्रासादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३, ६४३३). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१७८. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधी जे; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. अंतिम दो श्लोकों का टबार्थ नहीं लिखा है.) १९३९४. मौनैकादशी कथा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९०३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ.८-१(१)=७, पू.वि. गाथा-७ तक नहीं है., प्रले. पं. ईसरविजय; पठ. पं. मणीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३.५, ७४३८). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: (-); अंति: हम्मीरपुरसंश्रितैः, __ श्लोक-११८, पूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मीरपुरनगर चोमासै थका, पूर्ण. १९३९५. प्रास्ताविकधार्मिकविचारयुक्त कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३०-३६). जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९३९६. पाक्षिकसूत्र व पाखीचोमासीसंवछरी खावणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १०x२३-२६). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१९आ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पखीचोमासीसंवछरी खावणा, पृ. १९आ-२०आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासणौ पिअं; अंति: नित्थारग पारगा होह. १९३९७. (+) आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९९, आश्विन कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. बुधमल्ल (परंपरा आ. सबलदासजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २१३१, जैदे., (२५.५४१२.५, १-६४३१-४०). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं आवस्स; अंति: खमामि सवस्स अहियंपि. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने म्हारो; अंति: आज्ञाई पाल्यौ. For Private And Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (+) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १९३९९. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२६४११.५, १४-१५४४४-४७). कालिकाचार्य कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (१) हिवै कालिकाचार्यनो, (२) मगहे सुधरावासे पुरे अंतिः त्र्वाणुं वरसे थया. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४००. वसुधारा, संपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. अजमेर, प्रले. कनीरामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५X१२, ७X२९). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. १९४०२. बृहत् पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८, जैवे. (२५x१२, ९३०-३५ ). 9 पंचकल्याणक पूजा- बृहत् उपा. चारित्रनंदि, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: पण कल्याणक जिन तणा; अंति: (१) चारित्रनंदि पाया, (२) संतति शिव प्राप्त है. १९४०३. अष्टापदनी महापूजा, संपूर्ण, वि. १९३५ आश्विन अधिकमास कृष्ण, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. स्थंभतीर्थ, प्रले. कामेश्वर व्यास (पिता अन्य. शिवलाल व्यास), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., ( २६१२, १२-१३४३३-४५). अष्टापद महापूजा, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: ए अष्टापदनी अष्ट; अंति: शोभा जिन किर गाई. १९४०५ (+) न्यायप्रवेश सूत्र की व्याख्या व षड्दर्शन सामान्य लोकादि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६x१२, १३X३५). १. पे नाम, न्यायप्रवेश सूत्र की टीका, पृ. १आ- २२अ. न्यायप्रवेशसूत्र - शिष्यहिता वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः सम्यज्ञानस्य अंति: (१) भव्यो जनस्तेन, (२) निरूपितेत्यर्थः. २. पे. नाम षड्दर्शन सामान्यश्लोक एवं व्याख्या, पृ. २२अ-२२आ. न्यायदर्शनसंग्रह * सं., प+ग, आदि: (); अंति: (-). 9 ३१५ १९४०७. (+) जंबूजी की चौपड़, संपूर्ण, वि. १९५४, चैत्र शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले. स्थल. हाथरसनगर, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६x१२, १६५८ ) . जंबूस्वामी चौपाई, आव आणंद जेठमल, मा.गु., पच, वि. १९२०, आदि: शासनपत वृधमांननो भजन; अंतिः सेवो थायसे कल्यान ए, ढाल - ३५. For Private And Personal Use Only १९४०८. (+) सतरभेदी जिनपूजा विधि व सम्मेतशिखर पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१२, ७-९२१-३२). १. पे नाम, सतरभेदी जिनपूजा विधि, पृ. १आ-१७आ. १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: सब लीला शिवसुख साजे, ढाल १७. प्र. २१२. - २. पे नाम, सम्मेतशिखरतीर्थ पद प्र. १७आ-१८आ. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि आज भलै मै भेट्या हो; अंतिः थई जात्र सफल जयकार, गाथा- ९. Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९४१२. प्रायश्चितप्रदान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५४१३.५, ९x११). प्रायश्चित्तप्रदान बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान आसातनाई जघन्य; अंति: कराय तो एकासणो. १९४१३. गौतमस्वामी रास सह अन्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. गाथा-१-४१ तक अन्वय लिखा गया है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२४४१२, ६४२४). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-६३. गौतमस्वामी रास-अन्वय, सं., गद्य, आदि: मया विजयभद्राचार्येण; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९४१४. सारदियाभिधान लघुनाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१२.५, १३४२६-३३). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: कीर्ति० बत नाममाला, कांड-३, श्लोक-४६३. १९४१५. भाष्यत्रय व संघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६९, कार्तिक शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, ले.स्थल. समीनगर, प्रले. पंन्या. निधानविजय; पठ. मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. महावीरजिन प्रसादात्., जैदे., (२५.५४१२, १५४३१). १. पे. नाम. भाष्यत्रय, पृ. १आ-८अ, वि. १८६९, आश्विन शुक्ल, २. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५२. २. पे. नाम. संघयणिसूत्र, पृ. ८अ-२३अ, वि. १८६९, कार्तिक शुक्ल, ९, शुक्रवार.. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३६२. १९४१७. जीवविचार प्रकरण की दीपिका व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, जैदे., (२५४१३.५, १५४४३). जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: अहं किंचिदपि जीवस्य; अंति: सकलसंघाय श्रेयसेस्तु. १९४१९. सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदे., (२६.५४१२.५, ४-५४३९-४७). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य महावीरं, (२)बुज्झि० छकाय जीवना; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९४२०. अंतकृतदशांगाष्टमं सूत्रं, संपूर्ण, वि. १८७७, भाद्रपद शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. २९, जैदे., (२६४१३, १५-१६४३०). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२. १९४२१. सिंदरप्रकरण सह टबार्थव धर्मलाभ श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२४, फाल्गुन शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. य. केसरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१२, ६४३२). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, पृ. १आ-१९आ. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: शुक्तिरत्नावलीय, श्लोक-१००. For Private And Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org सिंदूरकर - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसिंदूर प्रकरणनाम; अंति: माला इयं केहेतां एह. २. पे नाम, धर्मलाभ लोक सह टवार्थ, प्र. २०अ. धर्मलाभ श्लोक, सं., पद्य, आदि लक्ष्मीर्वेश्मनि; अंतिः श्रीधर्मलाभोस्तु वः, श्लोक १. धर्मलाभ श्लोक - टबार्थ, सं., गद्य, आदि: जे धर्मनई प्रभावे; अंति: दीपतो धर्मलाभ छई. १९४२२. योगदृष्टि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५x१२.५, १०X३१-३३). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जराने वयणेजी, ढाल ८, गाथा- ८४. - १९४२४. होलीकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५.५X१२.५, ६X३०-३३). 9 होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं मन्ये; अंतिः यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक ६९. होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभं कर्षुकं नौमि; अंति: हुव तेतलो जय हुवे. १९४२५. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., ( २६x१२.५, ४X२३-२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४२३. उपधान विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६६, आश्विन कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., ( २६.५X१३.५, १४X३२). उपधानतय विधि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: प्रथम शुभ दीवसे पोषध; अंतिः आलोयण आणि ते तप देवो, ३१७ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा - २५. ४. पे नाम षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ५अ-६आ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, गाथा ४० अपूर्ण तक है. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जियमगण अंति: (-), अपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पच, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवन विषई; अंति: रूप समुद्र : थकी. १९४२६. मवणरेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९६०, वैशाख कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. हाथरस, पठ. सा. रायकर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४१२, १८-१९४३८). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जुवां मास दारु तणो; अंति: मीछामी दुकडं मोईयो, गाथा - १६८. १९४२७. (+) चंदनबाला रास, संपूर्ण, वि. १९०३, पौष शुक्ल १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. आगरा, प्रले. सा. जयंतीश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६.५X१२.५, १७३४). चंदनवाला चौपाई, मु. ब्रह्म, पुहिं., पद्य, आदि: मोह पिसाच वसकरणकुं; अंतिः चहुं गत तणां फंदतो, गाथा - १४७. १९४२८. (+) कर्मग्रंथ १-४, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (२) -५, कुल पे. ४, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे., (२५x१२.५, १६३५-३८). १. पे नाम, कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ ३अ, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं गाथा ६०, अपूर्ण. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ३-४अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. ३. पे नाम, बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, प्र. ४-५ अ. For Private And Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९४२९. बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(६)=१०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., बोल १०३ तक है., प्र.वि. पत्रांक ५ और ६ एक ही पत्र पर है., जैदे., (२५.५४१२.५, १६४३९-४५). बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पेलै बोलै साध थइनै; अंति: (-), अपूर्ण. १९४३०.(+) पाक्षिक नमस्कार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९१, आषाढ़ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १७५, जैदे., (२६४१३, ३४३०). सकलाहत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: भावतोह नमामि, श्लोक-२९, (वि. १८९१, आषाढ़ शुक्ल, १५) सकलार्हत् स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंति: भावथी प्रणाम करु छु, (वि. १८९१, आषाढ़ शुक्ल, १२) १९४३५. शत्रुजयरास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५.५४१४.५, १०४३३). शत्रुजयतीर्थरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: ए सुणतां ____ आणंद थाय, ढाल-६. १९४३६. (+) वंगचूलिका प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१०, कार्तिक शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि (पार्श्वचंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१४.५, ७४३५). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमियसुरवर; अंति: दढचित्तो होह पइदियह. वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर प्रभु; अंति: हितका वांछणहारनइ. १९४३७. (+) पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२६, आषाढ़ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. यशकरण ब्राह्मण; लिख. श्राव. केशरीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१४.५, ६४१९). चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३४. १९४३८. (-) समकित सडसठ बोल सझाय व सवैया, अपूर्ण, वि. १९१८, आश्विन शुक्ल, २, गुरुवार, जीर्ण, पृ. ८-१(१)=७, कुल पे. २, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्रले. श्राव. लवजी मोतीचंद; लिख. श्राव. देवचंद त्रिकम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१४.५, ११४२५). १. पे. नाम. सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, पृ. १अ-८अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ढाल १ नहीं है. समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६७, अपूर्ण. २. पे. नाम. परनारी सवैया, पृ. ८अ. मा.गु., पद्य, आदि: नारि कहें सुण प्राण; अंति: जाणे तो थाय हलुंयाइ, गाथा-१. १९४३९. ६रमार्गणा यंत्र व १४गुणस्थानक मूलोत्तरप्रकृति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२५४१३, ११४१५-३७). १.पे. नाम.६२ मार्गणा यंत्र, पृ. १अ-३आ. मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. १४गुणस्थानक मूलोत्तरप्रकृति संग्रह, पृ. ४अ-५आ. For Private And Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३१९ १४ गुणस्थानक मूलोत्तरप्रकृति संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: उदयभाव२१ गत ४ लेश्या; अंति: वसतो ६ बाकी २० शून्य. १९४४०. (+) जीवविचार व नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ४४२७-२९). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-१०अ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्ग मर्त्य पाताल; अंति: थकी एशास्त्र रच्यो, (वि. १८९१, श्रावण कृष्ण, ८, मंगलवार) २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १०आ-२०आ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: पनरस भेया उदाहरणं, गाथा-६१, (वि. १८९१, श्रावण कृष्ण, ६, शनिवार) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: १५ भेदे सिद्ध कह्या, (वि. १८९१, श्रावण कृष्ण, ११) १९४४३. कल्याणमंदिर,संतिकरं स्तोत्र व विमलगिरि स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १०x२८-२९). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-५अ. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. ५अ-६अ. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ६अ. प्रा., पद्य, आदि: सिद्धो विज्झाय चक्कि अंति: महं तित्थमेयं नमामि, गाथा-१. १९४४४. (+) श्रीपालरास सह टबार्थ+कथा-खंड ४, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-२९(१ से २९)=१२, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., खंड ४, ढाल ६ , दोहा २ से ढाल ८ गाथा २ तक है.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ४-१२४३४-३९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १९४४५. सिद्धचक्र स्तवन व सिद्धचक्रयंत्रोद्वार द्वादशगाथा सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, ११४३२-३५). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-४आ. सं., पद्य, आदि: देवं देवाधिदेवं परम; अंति: तन्नास्ति मे दोषः, श्लोक-३७. २. पे. नाम. सिद्धचक्रयंत्रोद्वार द्वादशगाथा सह व्याख्या, पृ. ५अ-८आ. सिद्धचक्रयंत्रोद्वार द्वादशगाथा, प्रा., पद्य, आदि: गयणमकलियायं तं; अंति: महंत सिद्धिओ, गाथा-१२. For Private And Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धचक्रयंत्रोद्वार द्वादशगाथा- व्याख्या, सं., गद्य, आदि: अथ गगनादिसंज्ञा; अंति: रहस्यभूतमित्यर्थः. १९४४६. स्तवनचौवीसीव पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८२, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. धानेरा, प्रले. मु. तेजविजय (गुरु पंन्या. हेमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १६४३९-४१). १. पे. नाम. स्तवनचौबीसी, पृ. १अ-६आ, प्रले. मु. तेजविजय (गुरु पंन्या. हेमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. स्तवनचौवीसी, आ. सुमतिप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: आदिसर आधारीये दास; अंति: जन होवे सयल जगीसजी, अध्याय-२४ स्तवन+प्रशस्ति ढाल २५. २. पे. नाम. श्रीगोडी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६आ, वि. १८८२, पठ. मु. राजविजय. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. वस्ता, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि थलवट स्वामि; अंति: वस्तानी सुखशाता रे, गाथा-८. १९४४७. (+) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८९९, आषाढ़ शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. पल्लिका, प्रले. मु. ऋषभचंदजी (गुरु मु. प्रेमचंदजी, चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५, ८४३०). सोमशतक, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: ज्ञानगुणास्तनोति, श्लोक-९८. १९४४९. दशवैकालीकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-१०(१ से २,११ से १८)=३१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन ९ उद्देशा ४ अपूर्ण तक है., जैदे., (२५.५४१२.५, ५४४८-५३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९४५०. भुवनभानुकेवली चरित्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १०५, जैदे., (२६४१२.५, १२-१३४३८-४३). भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमीअजिणं; अंति: ज्ञानवृद्धि १९४५१. द्रव्यगुणपर्याय रास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८९, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९१, ले.स्थल. सूरति, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (४६०) यां लगि मेरु महीधर, (७२०) लेखयंति नरा धन्या, जैदे., (२६.५४१२.५, ३-४४२१-२४). द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीगुरु जितविजय मन; ___ अंति: जसविजय बुध जयकरी, ढाल-१७, गाथा-२८२. द्रव्यगुणपर्याय रास-टबार्थ, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतं नत्वा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९४५२. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदे., (२६४१२.५, २-८x२४-४६). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्ठिई त्तिबेमि, अध्याय-६. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: तिहां ते भाषा चपल. १९४५५. अंतगडशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., वर्ग-३ अपूर्ण तक है., जैदे., (२४.५४१२, ६४३३-३५). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: (-), अपूर्ण. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिण कालने विषे ते; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३२१ १९४५७. व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, वैयावच्च व प्रायश्चितविचार, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. ७२, कुल पे. ३, ले. स्थल. नागोर, प्रले. खतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५x१२, २-८X३८-४२). १. पे. नाम. व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-७२अ. व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खू मासिवं; अंति: महापज्जवसाणे भवह, उद्देशक १०, (वि. १९३६, ज्येष्ठ कृष्ण, ६) व्यवहारसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ( १ ) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) जे० जे कोइ भि० साधुः अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, वि. १९३६, आषाढ कृष्ण, ७, पू. वि. अंतिम ५ गाथाओं का टवार्थ नही लिखा हुआ है.) २. पे नाम, वैयावच्चविचार- एकसोत्रीसवोल, पृ. ७२ आ. वैयावच्च विचार- १३० बोल, मा.गु., गद्य, आदि आचार्यरी वेयावच; अंतिः चाल्यौ छे ते जाणवो. ३. पे. नाम. प्रायश्चितविचार, पृ. ७२आ. प्रायश्चित्त विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भीन मास कहतां लूखो; अंति: गाह संपउगेसु. १९४६०. (-) कयवन्ना व अमरसेनचौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५X१२, १३X३७-४२). १. पे. नाम. कयवन्ना चौपाई, पृ. १अ - ५अ. मा.गु., पद्य, आदि: सासण नायक समरीये; अंति: मोन कए यदौ जावो जीव. २. पे. नाम. अमरसेनचौपाई, प्र. ५अ १४ आ. अमरसेन चौपाई, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमद् जिन आववे; अंतिः कहे कुस्यालचंदो रे, डाल- २४. १९४६१. मानतुंग-मानवती रास व जिनपूजा दोहो, पूर्ण, वि. १८८६, श्रावण शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६४-४ (१,१४, १७ से १८) = ६०, कुल पे. २, ले. स्थल अकलेश पठ, श्राव, मोकमसा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५x१२, ११-१२x२८-३४). १. पे नाम, मानतुंगमानवती रास, पृ. २२-६४अ, पू. वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल ४७, गाथा - १०००, पूर्ण. २. पे. नाम. जिनपूजा दोहो, पृ. ६४अ. मा.गु., पद्य, आदि जीवडा जिनवर पूजीये; अंतिः तेनी आण न लोपे कोय, गाथा - १. १९४६२. क्षेत्रसमास सह बालावबोध व तारासंख्या, संपूर्ण, वि. १८८८, माघ कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८२, कुल पे. २, ले. स्थल ऊडनगर, प्र. वि. श्रीगोडीपार्श्वसंतिप्रसादात्, जैवे. (२६४१०.५, १२-१३४३८-४२). १. पे नाम, लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह वालावबोध, पृ. १अ ८२ आ. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपवपट्टिय अति: कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा-२६२. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. उदयसागर, मा.गु., गद्य, वि. १६७६, आदि: निश्शेषकर्मदलनं; अंति: प्रसादमाधाय तत्सर्वं. २. पे. नाम. तारासंख्या, प्र. ८२आ. For Private And Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२२ www.kobatirth.org मा.गु., गद्य, आदि: भरतेरवरत मे तारानी; अंति: मे तारानुं मान आवे. १९४६३. कृष्णजी की ढाल, संपूर्ण, वि. १९१४, आश्विन कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. लुहारी, प्रले. ऋ. नेणसुखदास (गुरु ऋ. ख्यालीराम), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५x१२, १७-१९३५-४७). कृष्ण ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: नेमनाथ समसर्यां; अंति: जास्ये शिवपुरमाहि रे, ढाल - १८. (+) १९४६४. सदयवछ सावलिंगा रास, संपूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८२, ले. स्थल. शीघ्रपुर, प्रले. मु. तेजविजय (गुरुग. हेमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैदे., (२५x१२, १७४४५-५१). (+) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सदयवछसावलिंगा रास, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: स्वस्ति श्रीरमणि रमण; अंति: पूर्ण मनोरथमालिजी, खंड-४ ढाल ८३, गाथा - २६६८, ग्रं. ४१८४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४६५. 'ब्रह्मदत्त चौपड़, संपूर्ण, वि. १९७३, आषाढ़ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६४, प्रले. ज्ञानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X१२, १९३८-४८). चित्तसंभूति रास, मु. कन्हीराम ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९०२, आदि: प्रथम देव जुगादधर; अंति: कहे कांनऋष गुणतीलो, खंड-४. १९४६६. (+) श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैवे., (२६४१२, १४X३९-४१). सुभाषित लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: स्पृष्ट्वा शत्रुंजय; अंति: जिनो वा नमस्तस्मै श्लोक-२१०. १९४६७. सतीसुभद्रा चोपाइ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैये. (२६४१२, १३४३२ ). 9 ', सुभद्रासती पंचढालीयो, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: सिवदायक लायक सदा; अंति: अ जल कर दीयो, ढाल - ५, (पू. वि. प्रतिलेखकने अंतिम गाथा व कलश नहीं लिखा है.) १९४६८. पोसहविधिसंग्रहसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. अंत मे मुहपत्ति के ५० बोल दिये हुवे है., जैदे., (२६X१२, ८-१२X३७-४७). पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसहं; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: करुं छु हे भगवान; अंति: करीने कहुं हुं जी. १९४६९. अष्टाह्निकाव्याख्यान - १, प्रतिपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. २१, पू. वि. प्रथम व्याख्यान आर्द्रकुमार कथानक तक है., ले. स्थल, कोढारांमपुरा, प्रले. पं. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५x१२.५, ९४२५-३४). पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्थ; अंति: (-), ग्रं. ३६१, प्रतिपूर्ण, For Private And Personal Use Only १९४७०. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७२, माघ कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. राजनगर, पठ. श्राव. झमकु बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१२, १०X३३-३८). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: ना पुण्यप्रकाश ए, ढाल - ८ + कलश. १९४७१. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२७, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. सांतलपुर, प्रले. ग. उत्तमविजय (गुरु ग. सुबुद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथप्रसादात्, जैदे., ( २६४१२, ३x२३-२५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय हक्कणिकाय, गाथा ५३. Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवा कहेता जीवतत्त्व; अंतिः घणा जीव मोक्षे गया. १९४७३. वसुधारा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६X१२, १३x४०-४४). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं ऋषि; अंति: मभ्यनंदन्निति. १९४७४. पर्यंताराधना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६X११.५, १३X२७-३६). १९-२०x४७-५१). १. पे नाम, ५६३ जीव बोल थोकडा, प्र १अ - ३आ मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदीये काये; अंति: तीनसोने एकावन थया. " २. पे नाम, पंचसुमति त्रणगुप्ति थोकडो, पृ. ३आ-५अ. पर्यताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणड़ एवं भयवं; अंति: लहंति ते सासयं ठाणं, गाथा - ७०. पर्यंताराधना - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेवने; अंति: ते शाश्वता सुख पामइ. १९४०६. जीव ५६३ भेद व पंचसमिति त्रणगुप्ति थोकडो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैवे. (२५.५४१२, पंचसुमतित्रणति थोकडा, मा.गु., पद्य, आदिः उत्तराध्ययनसूत्ररा; अंतिः थकी निरजरा के हेतु. १९४७७. नेमिजिन रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५. ५X१२, १६ - १९X२७-३१). नेमिजिन रास, मा.गु., पद्य, आदिः संखराजाने जसोमती; अंति: छैतीससू सिवपूरी, ढाल - १७. १९४७८. सुभद्रा चोपड़, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५x१२, १५-१७X२९-३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुभद्रासती चौपाई, क्र. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५८ आदि अरिहंत सिध समरं सदा अंति: जैणा मुखसुं वाचजो, डाल-७, १९४७९. अणुत्तरोववाई दशांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल, कांधला, प्रले. ऋ. नेणसुखदास (गुरु ऋ. ख्यालीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१२, ६X३५-४५). अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं नवमस्स; अंतिः तहा णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. १९४८०. त्रेवीस उदयविचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदे., (२५x१२, १५X३९). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणइ कालइ चउथा; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू. वि. अंतिम कुछेक सूत्रों का टवार्थ नहीं लिखा गया है.) ३२३ त्रेवीस उदयविचार, आ. देवेंद्रसूरि, मा.गु., सं., यं., आदि: नमः श्रीभद्रबाहवे; अंति: वरगुणा जुगप्पहाणसमा, उदय- २३. १९४८१. श्रावकपाक्षिकअतिचारचौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. मु. हर्षचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२.५, ९४२४-२६). श्रावकपाक्षिकअतिचार-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नाणे दंसण चरणे जाण; अंतिः लहिजो शिवसुखनी संपदा, गाथा ५५. For Private And Personal Use Only १९४८२. (#) मानतुंग मानवती चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १९२१, चैत्र शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, ले. स्थल. जालणा लसकर, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x१२, १२-१४X३६-४४). Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदिः श्रीऋषभजिणंद पदांबुज; अंतिः होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल ४८, गाथा - १०१७. १९४८३. गौतमपृच्छा सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८०९, पौष शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८-४ (१ से ४) = ३४, पू.वि. गाथा १-१७ तक मू+टबा नही है., ले. स्थल. समीनगर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय (गुरुग. अमृतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२, १७-१८X३५-३८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा - ६४, अपूर्ण. गौतमपृच्छा- टीका, मु.] मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: (); अंति: नगर्यां च शुभे दिने, अपूर्ण. १९४८४. भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ९४-१ (९२) - ९३, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., शतक १ उद्देश १ से शतक ३ उद्देश ५ अपूर्ण तक है., जैदे., (२५.५X१२, ६X३८-४९). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१) तेणं कालेणं तेणं, (२) तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), अपूर्ण. भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तेणं० णं इसे; अंति: (-), अपूर्ण. १९४८५. . (+) दशाश्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, ६x४४). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा - १०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो० नमस्कार अरिहंत; अंतिः उपदिसह ते ब्रवीमी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४८८. नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२-३ ( ७ से ९) ९, पू. वि. गाथा २२ - ३६ नही है., जैवे., (२५.५X१२, ३X२४-२९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा- ४७, अपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जैनमतनइ विषइ नवतत्त्; अंति: सिद्धजीवना पन्नर भेद, अपूर्ण. १९४८९. (+) ऋषभजिन पंचकल्याणक कल्पसूत्र व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. बार भव तक लिखा है., प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५, १३-१५x२९-३३). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, सं., गद्य, आदि: तत्रादौ श्री ऋषभदेव; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९४९०. (+) जीवविचारवृत्ति व इंद्रदेवीसंख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे. (२४.५४१३, ११-१३३१-३५ ). १. पे. नाम जीवविचार प्रकरण सुबोधिनीटीका, पृ. १अ १२ आ. जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनी टीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५०, आदि ध्यात्वा जैनं महः; अंतिः धांतांभोनिधेरुतः २. पे. नाम. इंद्रजीवन में देवीसंख्यासूचक गाथा, पृ. १२आ. प्रा., पद्य, आदि: दो कोडाकोडीओ पंचासी; अंति: चवंति इदस्स जम्मंमि गाथा - २. १९४९१. स्वरोदयज्ञान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. गाथा ७६ तक लिखा है., जैदे., ( २६१२.५, ११×३५-३९). स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०५, आदि: नमो आदि अरिहंतदेव; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. - १९४९२, (+) संग्रहणीसूत्र सह टवार्थ विस्तृत, संपूर्ण, वि. १९०१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.७४, ले. स्थल, साथीयानगर, प्रले. मु. विवेकविजय; पठ, मु. उदयचंद्र (गुरु मु. विवेकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीअजितनाथजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१२.५, १-५X३२-४३). For Private And Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३८९, (वि. १९०१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, मंगलवार) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउ कहता नमी वांदी; अंति: संसारीक सर्वसुख पामै, (वि. १९०१, माघ शुक्ल, ५, मंगलवार) १९४९३. दशवकालिकसूत्र-अध्ययन १-४, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४१२.५, १५४४७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटें; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९४९५. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४२६-२८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. १९४९७. श्रीपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४१२.५, १०x२४-२६). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि मंगल करे, ढाल-६. १९४९८. प्रश्नोत्तर तिलोकचंद्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदे., (२६.५४१२.५, १०x४०-४४). प्रश्नोत्तर, श्राव. तिलोकचंद लुणिया, मा.गु., गद्य, आदि: तुमे कह्यु जे समकित; अंति: बोधिकामांहे कह्यौ छे. १९४९९. चतुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८२६, आषाढ़ कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. भीलाड, प्रले. पं. उदयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १३४३६-४१). चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, आदि: सामायिकावश्यक पौषधान; अंति: दक्कडं देवो. १९५००. कल्पसूत्र व्याख्यान-१ सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. मात्र प्रथम वाचना है., जैदे., (२५.५४१२.५, १३-१४४३२-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९५०१. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.६, जैदे., (२६४१२.५, ६x४०-४४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सा०सर्वसावद्य; अंति: मोक्षना अनंता सुखनउ. १९५०२. आचारांगसत्र सह टबार्थ-प्रथमश्रतस्कंध, प्रतिअपर्ण, वि. १९५८. भाद्रपद कृष्ण, १. शक्रवार, श्रेष्ठ पृ. ६६-१(१)=६५, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. मु. गणेश महात्मा (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६) कर कूबड मस्तक अधो, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४१३, ६४३१-३५). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, वि. १९५८, भाद्रपद कृष्ण, १, शुक्रवार) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, वि. १९५८, पौष कृष्ण, ५) १९५०४. (+) गौतमपृच्छा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८६, आश्विन कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२, ले.स्थल. मकसूदाबाद, प्रले. पं. उद्यौतविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२.५, १६-१९४२४-३६). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६३. For Private And Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंति: पृच्छा महार्थे मोटी. १९५०५. (+) तेतीसबोल थोकडो, संपूर्ण, वि. १९४३, आश्विन शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. विजेलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १७-२२४३८-४१). ___ तेतीसबोल थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: इहलोक भय मनुष्य थकी; अंति: जीवविवगती नामा अधेन. १९५०८. योगदृष्टिसमुच्चय व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९१४, पौष कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. मु. चतुर्भुज ब्रह्मचारी; पठ. मु. वृद्धिविजय (गुरु आ. विजयदयासूरि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१३, १०४३४). योगदृष्टि समुच्चय-स्वोपज्ञ टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: योगतंत्रप्रत्यासन्न; अंति: तरायप्रशांत्यर्थमिति. १९५०९. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ (स्थानकवासी), अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-३(१ से ३)=४५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३.५, ५४३१). साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९५१२. आर्यवसुधारा व लघुवसुधारा, संपूर्ण, वि. १९१९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. महिमापुर, प्रले. पं. कल्याणनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १३४३५-३८). १. पे. नाम. आर्यवसुधारा धारिणी स्तोत्र, पृ. १अ-६अ. आर्यवसुधारा, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. २. पे. नाम. लघुवसुधारा, पृ. ६अ-६आ. सं., गद्य, आदि: ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ; अंति: आर्या वसुधारा ज्ञेया. १९५१३. श्रावकसंक्षिप्त अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४१३.५, १३४४०). श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). १९५१४. नेमराजुल चौवीसचोक चारमासो व नेमजिन पद, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. ३, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १४४३४). १. पे. नाम. नेमराजुल संवाद चौवीसचोक, पृ. १अ-७अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: तस सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४, पूर्ण. २. पे. नाम. चारमासो, पृ. ७अ-७आ. चारमासी, सिवराम, मा.गु., पद्य, आदि: भरयोवन में आई युवानी; अंति: धरती छोड किंहा चल्या, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ७आ. नेमराजिमती पद, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुम बिन मेरी कुन खबर; अंति: लगे रंग सदा सुखदानी, गाथा-३. १९५१५. हरिश्चंद्रकथानक-पार्श्वजिन चरित्रगत, प्रतिपूर्ण, वि. १९६७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. सर्ग ३ श्लोक ५५७ से १०३१ तक लिखा हुवा है., ले.स्थल. बोरसद, प्रले. प्राणजीवन इश्वरदास भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३.५, १२४५३). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३२७ १९५१६. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९९, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६, पठ. श्रावि. पानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १०४३९). नववाडी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमिसर चरणयुग; अंति: व्रत पालज्यो ०नववाडी, ढाल-९. १९५१८. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अजितशांति गाथा ४ तक है., जैदे., (२७४१२, ८-९४२८-३१). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं० हवइ; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९५१९. नवस्मरण व मणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, जैदे., (२६४१३, १२४३९). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-१२अ, पू.वि. कल्याणमंदिर नहीं है. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: शिवं भवतु स्वाहा, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १२अ-१३आ. आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाय; अंति: वीर आपो मुज सुखसंपदा, गाथा-४०. १९५२०. (+) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ११४३२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-९९. १९५२१. (+) सिंदूर प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. इलोलग्राम, प्रले. पं. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ६x४३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-९८. सिंदूरप्रकर-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर कर कह; अंति: श्रेणी ते वर्णवी कही. १९५२२. दीवसागरपन्नत्तीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. उझानगर, प्रले. दोलतराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ७४३८). द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: पुक्खरवरदीवड्ड; अंति: पंतीओ चंद सूराणं, गाथा-२५२. १९५२३. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति व वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२-३(१ से ३)=६९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१२, १४४४८). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. आवश्यकसूत्र-टीका #, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९५२६. आलोयणा व एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, ११४३४-३५). १. पे. नाम. आलोयणा, पृ. १आ-४अ. आदिजिन स्तवन- आलोयणाविचारगर्भित, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदीसर प्रणमु; अंति: बोले पाप आलोउं आपणा, ढाल-५. २. पे. नाम. श्रीएकादशी स्तवन, पृ. ४आ-७आ. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिका नयरी; अंति: घणो पामीये मंगल घणो, ढाल-३. For Private And Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९५२७. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८९४, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. विक्रमपुर, जैदे., (२६४११.५, १४४४२-५२). मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीजिनशांति जिनेसरू; अंति: प्रसादे० जयनगरे कही, ढाल-७. १९५२८. उपदेशरसाल सह बालावबोध व कथा, प्रतिपूर्ण, वि. १९३२, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू.वि. अर्थवर्ग गाथा २४ तक नही है., ले.स्थल. सूरतबंदर, प्रले. मु.रूपविजय (गुरु पं. मेघविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १५-१६४५८-८३). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: गम्य विचारणीयं, प्रतिपूर्ण. सूक्तमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कडं ते वीचारवो, प्रतिपूर्ण. १९५२९. (+) अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५६, आश्विन कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. वडौत, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४११.५, १६x६३-७१). १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १९०२, आदि: चितानंद चिरआतमा; अंति: यो ही नाम पिछान, स्थानक-१८. १९५३०. षद्रव्य विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, लिख. मु. सांतिविजय, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, जैदे., (२६४१२.५, १३४३२). षद्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ते मध्ये प्रथम षट; अंति: छे ते थकी जाणवू, ग्रं. १८२. १९५३१. जीवविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, पौष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. धनजी; पठ. मु. पद्मविजय (गुरु पंन्या. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १३४३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहिता स्वर्ग; अंति: समुद्र सिद्धांत थकी. १९५३२. कानडकठियारा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. हलदूवागंज, प्रले. मु. चेतनराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १४-१६४३७-४२). कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंति: दिन दिन वधते रंग, ढाल-९. १९५३३. वरदत्तगुणमंजरी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, पौष शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. प्रतापगढ, प्रले. मु. भक्तिसुंदर (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२, ७४३५-३९). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१४६, (वि. १८८४, पौष शुक्ल, ४, शनिवार) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लक्ष्मी शोभायुक्त; अंति: गणि नामे मेडता नगरे. १९५३४. चंदनमलयगिरी रास व तेतलीपुत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४४३-५०). १.पे. नाम. चंदनमलयागिरीरास, पृ. १आ-१७अ. पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७०४, आदि: चउवीसे जिन पाय नमी; अंति: ते पामे सुख अनंतोरे, ढाल-१३. For Private And Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३२९ २. पे. नाम. तेतलीपुत्र चौढालिया, पृ. १७अ-२३आ. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि: अरिहंत सिधनै आयरिया; अंति: चतुर सुणै रचावो रे, ढाल-४. १९५३६. (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १९११, माघ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ६९, ले.स्थल. देसणोक वडैवास, प्रले. पं. दानविशाल (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. २१००, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३३-३९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. अभिधानचिंतामणि नाममाला-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: अहं श्रीहेमचंद्राचार; अंति: (-). १९५३७. (+) समयसारनाटक, संपूर्ण, वि. १८५४, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२, ले.स्थल. मुथरा छावणी, प्रले. सदाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४४६). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर; __ अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, गाथा-७२७. १९५३८. योगविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६३, आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदे., (२६.५४१३, ११४३२). योगविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीआवश्यक सुअखंध; अंति: उहडावणीयं काउस्सगं. १९५३९. चारप्रत्येकबुद्ध प्रबंधव चौदगुणठाणा नाम, संपूर्ण, वि. १७९०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. २, ले.स्थल. कर्मवाट्टाँभल, प्रले. पं. उदेविजय (गुरु मु. प्रमोदविजय), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.ले.श्लो. (७२२) जाद्रिसं पुस्तके द्रिष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२.५, १९-२२४३८-४२). १.पे. नाम. प्रत्येकबुद्ध प्रबंध, पृ. १अ-२१अ. ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: आणंद लील विलास, खंड-४, ग्रं. १०००. २. पे. नाम. १४ गुणठाणा नाम, पृ. २१अ. प्रा., पद्य, आदि: मिच्छे सासण मीसे; अंति: सजोगी अयोगिगुणा, गाथा-१. १९५४०. (+) क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२८, कार्तिक शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०५, ले.स्थल. वर्धमानपुर, प्रले. मु. प्रेमरत्न; पठ. मु. लब्धिरत्न (गुरु मु. प्रेमरत्न), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १४४४५-४६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: तं कुसलरंगमयं पसत्थं, अधिकार-६, गाथा-२६२, ग्रं. २३९. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , पंन्या. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १५२९, आदि: अहँ अहमिति; अंति: दयासिंहगणि कीधो, ग्रं. ४८६४७. १९५४१. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९११, आश्विन शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४०, ले.स्थल. आदिपुर, प्रले. मु. छगमल ऋषि (बृहन्नागोरी लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२६४१२, १२४४१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५३. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचंद, मा.गु., गद्य, वि. १७६६, आदि: ज्ञानं पंचविध; अंति: करे सुलभबोध फुनि होय. For Private And Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९५४३. (*) सिंदूर प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. ग. धर्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X१३, ५X३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः स जानाति जाग्रतः, श्लोक १७. सिंदूरकर - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर समुह; अंतिः ते जाणइं लोक आगलई. १९५४४. दीपालीकाकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७५, माघ शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले. स्थल. घाणौराव, प्रले. ग. नित्यविजय (गुरु पं. भक्तिविजय); पठ, मु. जीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्र. ले. नो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे., (२६x१२, ५४३३). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४३२. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: नत्वार्हं० जिनेन्द्र; अंति: (१)वोर्हद्धर्मदीपोत्सव:, (२) तिवार लगे प्रतपो. १९५४५. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. स्तवन १० गाथा १ तक लिखा है., जैदे., ( २६४१२, ११x२५-२८). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: रिषभ जिनेसर प्रीतम; अंति: ( - ), प्रतिलेखक द्व अपूर्ण. कुल १९५४६. भक्तामरस्तोत्र की कथासंग्रह व महावीरजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७२, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १५, पे. २, ले. स्थल. आंबोरी, प्रले. पं. नथमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१२, १६X३२-३६). १. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र की कथा, पृ. १अ १५अ. भक्तामर स्तोत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति: सगला कष्ट विलय जाये. २. पे. नाम महावीरजी स्तवन, पृ. १५ आ. महावीरजिन स्तवन, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमहावीर महंत मुझ; अंति: बुध विसाल लहैजी, गाथा - ७. १९५४८. मदनधनदेव रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदे., (२७.५X१३.५, १२X३८). मदनधनदेव रास, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: विहरमान प्रभु राजता; अंतिः पद्मविजय० मंगलमाल, डाल- १९. गाथा ४५९. १९५४९. पून्यशतक, भववैराग्यशतक व आदिनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. ३, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. दानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२८x१३.५, ६X३२). १. पे नाम पून्य कुलक सह टबार्थ, पृ. १आ-२ आ. पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपुन्न इदिवतं सुमाण; अंति: भंति न थोवपुन्नेहिं, गाथा- १०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुरु पंचिन्द्रियपणो; अंति: हे जीव तुं सांभल. २. पे. नाम भववैराग्यशतक सह टवार्थ, पृ. २आ-१३ आ. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिओ सासयं ठाणं, श्लोक १०२. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: लहइ जीव शाश्वतुं ठाम. ३. पे. नाम. आदीनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, पृ. १३आ- २३अ. For Private And Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३३१ आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुहं; अंति: सिवं जंति, श्लोक-८८. आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीम संसारमाहि नथी; अंति: शिव मोक्ष पहुंचइ. १९५५०. लोकनालि प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२८x१४, २४३५). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३४. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मु. कल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १७००, आदि: (१)श्रीमद्विमलनाथस्य, (२)जिन तीर्थंकरना दर्शन; अंति: (१)सप्तदससते वर्षे, (२)क० अतिहिं दूख न पामो. १९५५२. इंद्रियपराजयशतक की छाया, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-९० तक है., प्र.वि. पत्रानुक्रम १३९ से १४५., जैदे., (२६.५४१२.५, ९-१२४३०-४८). इंद्रियपराजयशतक-छाया, सं., पद्य, आदि: स एव निश्चयेन शूरः; अंति: (-), पूर्ण. १९५५३. (+) पार्श्वजिन स्तोत्र सह पंजिका टीका व पार्श्वजिन स्तोत्र की पंजिका टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१४, ११४३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र सह पंजिका टीका, पृ. १आ-९अ. पार्श्वजिन स्तोत्र, श्राव. आशाधर, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्काश्यपराजराज; अंति: परां सोश्नुते, श्लोक-१६. पार्श्वजिन स्तोत्र-पंजिका टीका, पंडित. वीझा, सं., गद्य, आदि: (१)नत्वा श्रीपार्श्वनाथ, (२)स्तुमोनुमो वयं कं तं; __ अंति: संध्या इति यावत्. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र की पंजिका टीका, पृ. ९आ-१०आ. पार्श्वजिन स्तोत्र-पंजिका टीका, पंडित. वीझा, सं., गद्य, आदि: श्रेयसि प्रशस्ते; अंति: नरयोनुसंवरोदि ऽविजः. १९५५४. नर्मदासुंदरी रास व शास्त्रलेखन काव्य, संपूर्ण, वि. १८८२, फाल्गुन शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८, कुल पे. २, ले.स्थल. माहुवी, प्रले. मु. अभेचंद (गुरु मु. लालचंदजी ऋषि, लोंकागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. चरमजिन प्रसादात्., जैदे., (२६४१२.५, १५४४८). १. पे. नाम. नर्मदासूंदरी रास, पृ. १आ-४८अ. नर्मदासुंदरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: प्रभुचरणांबुजरजतणी; __ अंति: मोहन वचन विलासै जी, ढाल-६३, गाथा-१४५४. २. पे. नाम. शास्त्रलेखन काव्य, पृ. ४८अ. श्लोकसंग्रह*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. १९५५६. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., चूलिका २ गाथा १४ तक है., जैदे., (२७४१३, १-४४३२-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), पूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)संसारमाहे धर्म ते, (२)श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: (-), पूर्ण, १९५५७. देउलामंडनजुगादि स्तव सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९,प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४१२.५, १२४३६-३९). आदिजिन स्तव-देउलामंडण, मु. शुभसुंदर, प्रा., पद्य, आदि: जय सुरअसुरनरिंदविंद; अंति: सेवासुखं प्रार्थये, गाथा-२४. For Private And Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तव-देउलामंडण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: कियदनुभूतमंत्रतंत्रै; अंति: स्थितं धारबंधकरं. १९५५९. गुणस्थान प्रकरण सह चूर्णि व गुणस्थानकविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९५०, भाद्रपद कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. २, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. पुनमचंद रामकिसन बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२६४१४.५, १४४५३). १. पे. नाम. गुणस्थान प्रकरण सह चूर्णि, पृ. १आ-२४अ, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३४. गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अहँ पदं हृदि; अंति: प्रकटित इत्यर्थः. २. पे. नाम. गुणस्थानविचार प्रकरण, पृ. २४अ-२७अ, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. गुणस्थान विचार, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६. १९५६०. सिद्धपंचाशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. जैदे., (२७.५४१४, ४४३७). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्ध सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०. सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धं क० आपणो अर्थ; अंति: देविंद्रसूरिभिः. १९५६१. (+) आचारोपदेश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. डुंगरविजय; लिख. मु. ऋद्धिविजय (गुरु मु. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१४, ५४२२). आचारोपदेश, ग. चारित्रसुंदर, सं., पद्य, आदि: चिदानंदस्वरूपाय; अंति: निजयोर्धनजन्मनौ, वर्ग-६. आचारोपदेश-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान अने आनंद तेहज; अंति: देईने सफल करे पोतानो. १९५६३. परदेशीराजानो रास, संपूर्ण, वि. १९०६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. गोधावी, प्रले. पं. जतनकुसल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वर्द्धमानस्वामी प्रसादात्., जैदे., (२८.५४१४.५, १४४३३). प्रदेशीराजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: सकल सिद्ध संपद करण; अंति: लहीये मंगल मालो रे, ढाल-३३, ग्रं. ११००. १९५६४. गौतमस्वामीनौरास व सोलसतीसझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. २, जैदे., (२६४१३, ९-१०४३२-४२). १.पे. नाम. गौतमस्वामिनौरास, पृ. १आ-६आ. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-४७. २. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. ६आ-७अ. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: लेसे सुख संपदा ए, गाथा-१७. १९५६५. सिलवेल, संपूर्ण, वि. १८९९, आषाढ़ कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. चाणोद, प्रले. मु. चमरु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, ९-१०४२७-२९). स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहकर पासजी; अंति: विमला कमला वरशे रे, ढाल-१८. For Private And Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३३३ १९५६६. (+) लोकस्वरूप विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३, १३-१७४३३-३७). लोकस्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पणयजणपुरीआसो; अंति: (-), अपूर्ण. १९५६७. भक्तामरस्तोत्र सह पंचांगपद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, पू.वि. २६ वीं गाथा अपूर्ण तक है., जैदे., (२६४१३, १२-१३४४१-४४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-पंचांगपद्धत्ति, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहँ णमो; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण १९५६८. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. मु. वाघजी ऋषि (गुरु मु. जयानंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १३-१५४३३-३६). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १९५६९. ज्ञानसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन कृष्ण, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. ऋद्धिरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ३-४४३२). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन; अंति: (१)मेषाकृति प्रीतये, (२)स्वीयं कृतं मंगलम्, अष्टक-३२, श्लोक-२७३.. ज्ञानसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्र क० इंद्र संबंध; अंति: पोतानु ज मंगलीक कीधु. १९५७०. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. समीनगर, प्रले. श्रावि. वजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३.५, ४४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५४. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण क० तिन भुवन; अंति: घणा दिवस जयवंतो वरतो. १९५७१. पांचमो कर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदे., (२७७१३.५, ३४३०). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागनि नमीनि ध्रुव; अंति: अर्थिकीधु ए ग्रंथ. १९५७२. दीपपूजाविषये नृप श्रीतेजसार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पू.वि. ढाल-३९, जैदे., (२७४१२.५, १७-१९४३९-६०). तेजसारकुमार रास, म. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८७, आदि: परम परमेश्वर परम: अंति: थायो नेमि सदा सुखकार, ढाल-३९. १९५७३. श्रीमत्कोणिकराज भक्तिगर्भित वीरजिननमनाभिगमनोत्सव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. पाटण, प्रले. पं. मयासागर; पठ. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १२४२७-३१). महावीरजिन स्तवन-कोणिकाराजाभक्तिगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: विमल वचन रस वरसती; अंति: घनेइ शांति करायो रे, ढाल-११. १९५७४. विचारपंचासिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. पंन्या. लालविजय; पठ. मु. नानचंद (गुरु पंन्या. लालविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३७). For Private And Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्म, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा अंतिः विमलसूरिवराणं विणएण, गाथा - ५१. विचारपंचाशिका - टबार्थ में, मा.गु., गद्य, आदि: वीरपयकयं नमिठं क०; अंति: परोपकारार्थे० अर्थे. १९५७५. दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९६९ वैशाख कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैवे., (२७४१२, ६X३२-४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदिः धम्मो मंगलमुकि; अंतिः गई ति बेमि अध्ययन - १०, गाथा - ७००. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: इम श्रीगुरु कहिइ. १९५७६. आठकर्मनी अट्ठावन सो (१५८ ) प्रकृतिविचार वालावोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., ( २६.५x१२.५, १३-१४X२४-२७). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि आठ कर्म ते केहा; अंतिः विष उद्यम करवो. १९५७७. जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९३९, आषाढ़ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. मुंबइबंदर, प्रले. उपा. कल्याणनिधान; पठ. पं. गुणपद्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (४६६) पोथी प्यारी प्राणथी, जैदे., (२६x१२.५, ३३१-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवनने विषे दीपक; अंति: संक्षेपे उद्धर्यो छे. १९५७८. शास्त्रवार्त्तासमुच्चय सह स्याद्वादकल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७- २ (१,१४)=१५, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., गाथा ५०० से ५०९ तक है।, प्र. वि. वस्तुतः अपूर्ण रूप से बीच के पत्र है, परंतु प्रतिलेखक द्वारा १ से पत्रांकन किया गया है. ग्रंथ अपूर्ण होने तथा लहिया द्वारा पत्रांकन १ से क्रमशः होने पर तकनीकि अवरोध न हो इसलि काल्पनिक पत्रांकन किया गया है., द्विपाठ, जैदे., (२७४१२.५, १२४३८-४५). शास्त्रवार्त्ता समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. शास्त्रवार्त्ता समुच्चय- स्वाद्वादकल्पलतावतारिका टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९५७९. मलयासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., ढाल - १४ गाथा- २ तक है., जैदे., (२६.५४१२, १४-१६४३८-४२). मलयासुंदरी रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल समीहित श्रेयकर अंति: (-), अपूर्ण. १९५८०. आलोयण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. १८१ प्रकार के पापों का प्रायश्चित बताया गया है., जैदे., (२७४१२.५, १२-१८४२६-२८ ) . श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि अगलित जल व्यापारे; अंति: पंचगांण भांगे उ. २. १९५८१. योगशास्त्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३, पू.वि. चतुर्थ प्रकाश द्वितीय श्लोक तक लिखा है., जैदे., (२६x१२, ६-८x२८-३४). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, For Private And Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३३५ योगशास्त्र-हिस्सा १ से ४ प्रकाश का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर भणी नमः; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९५८२. दयाछतीसी, ज्ञान पद व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१९, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. खेमचंद; लिख. सा. भावधी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १०४२६-३४). १. पे. नाम. कपुरचंदजीकृत दयाछतीसी, पृ. १अ-५आ. दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, मा.गु., पद्य, वि. १९०५, आदि: चरण कमल गुरूदेव के अंति: कृपाथी सफल फलि मन आश, गाथा-३६. २. पे. नाम. पद, पृ. ५आ-६अ. ज्ञानपद, सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: पढ्यो कन्ह बेठो पास; अंति: जेसें अंधेरामां आरसी, गाथा-१. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ६अ. मु. रतनरूप, मा.गु., पद्य, आदि: नमो अचिरादेवीनो नंद; अंति: देख रे जगजन मोहे रे, गाथा-६. १९५८४. समयसारनाटक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११९-१७(१ से ९,४३ से ४८,९४ से ९५)=१०२, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, गाथा २२ से ३९९ तक है।, जैदे., (२७४१२, १३४३३-३८). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. समयसार नाटक-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९५८६. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८५३, आषाढ़, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. जैदे., (२६.१४१२, १८४५५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (१)पार्श्वनाथप्रसादतः, (२)आम्नायाद्विज्ञेयाः. १९५८८. सुभद्रा रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सप्तम ढाल गाथा ४ तक लिखा है., जैदे., (२७४१२, १३४३४-३८). सुभद्रासती चौपाई, ऋ. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: श्रीअरिहंत सिध समरु; अंति: (-), पूर्ण. १९५८९. स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६.५४१३, १३४४३). स्नात्रपूजा संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)प्रथम कलस ४ धुपीइं, (२)नमो अरिहताणं नमो; अंति: जिनेसर जयोजयो जयवंत. १९५९०. चउशरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. ग. रत्नविमल; पठ. श्रावि. लाली, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३.५, ४४२८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पापसहित व्यापार; अंति: मूर्तिनानुधारी सदैव. १९५९१. शीलोपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६४११.५, ५४४२). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अबालभआरि नेमिकुमार; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, गाथा-११४. For Private And Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शीलोपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आबाल ब्रह्मचारी नेमि; अंति: पामइ धर्मनुं फल. १९५९२. अवंतिसुकुमाल रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा १०१ अपूर्ण तक है।, जैदे., (२६४१३, ११४३४). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंति: (-), पूर्ण. १९५९३. योगप्रदीप, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२७४१२, १०४४२). योगप्रदीप, सं., पद्य, आदि: यावन्न ग्रस्यते रोगै; अंति: तद् ब्रह्म परमं पदम्, श्लोक-१४०. १९५९५. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७२, ले.स्थल. रणसी, प्रले. मु. सुरतराम ऋषि (गुरु मु. वखतावरमल ऋषि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (३७) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२.५, ७४३५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, (वि. १८७८, चैत्र शुक्ल, ६, रविवार, ले.स्थल. अहिपुर) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबू ए प्रत्यक्ष; अंति: तेणइज भवि मोक्ष जाइ, (वि. १८७८, श्रावण शुक्ल, ३, बुधवार, ले.स्थल. रणसी) १९५९७. अष्टप्रकारीपूजानोरास, संपूर्ण, वि. १८९०, आश्विन शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९९, ले.स्थल. गोधावी, प्रले. ग. जतनकुशल (गुरु ग. अमृतकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वीरवर्धमानस्वामी प्रसादात्., जैदे., (२७.५४१२.५, ११-१२४३५-४०). ८ प्रकारी पूजा रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: अजर अमर अविनाश जे; अंति: सुख संपति० पाया रे, ढाल-७८, ग्रं. २०९५ गाथा. १९५९८. आत्मशिक्षाभावना, संपूर्ण, वि. १९२७, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. पट्टण, जैदे., (२५४१२, १४४३९). आत्मशिक्षा भावना, मु. रतनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: श्रीजिनवर मुखवासिनी; अंति: ते लहशे शिवनाम, गाथा-१८५. १९५९९. तपोपधान विधि, संपूर्ण, वि. १८३१, माघ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. विक्रमपूर, जैदे., (२७४१२.५, १५-१६x४४-४८). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलै नवकारनै उपधानै; अंति: १८ थुई देव वांदवा. १९६०१. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४४, श्रावण कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्रले. बेलीराम मिश्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१३, ७४५०-५३). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमयं पसिद्ध, अधिकार-६, गाथा-२६३. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: महावीर कैसे हैं जगत; अंति: प्रसिद्धि समृद्धि. १९६०२. (+) अणुत्तरोववाईदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. पाली, प्रले. पं. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३, ७४३१-३९). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० नवमस्स; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-३३,ग्रं. १९२. For Private And Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३३७ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिण काल तिण समय; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९६०३. . (+) श्रीपाल चरित्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६.५x१२.५, १२-१४४३४-४१). १. पे नाम. श्रीपाल चरित्र, पृ. १आ-४३अ. जयकीर्ति-शिष्य, सं., गद्य, वि. १८६८, आदिः प्रणम्य सिद्धचक्रं अंतिः श्रीसद्गुरु प्रसादतः प्रस्ताव ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. २. पे. नाम श्लोक, पृ. ४३आ. श्लोकसंग्रह, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), श्लोक - १. १९६०६. रायप्रसेणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१९, फाल्गुन कृष्ण, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८९, ले. स्थल. अहरिदुर्ग, प्रले. गोपीनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७४१३, ८-११४३८-४६). राजप्रनीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः पस्से परसावणीए णमो सूत्र - १७५, राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो अरिहंत; अंति: तेह भणी नमस्कार थाओ.. १९६०७. (+) पंचसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें - त्रिपाठ - टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X१२.५, ११३९-४५). पंचसूत्र, आ. चिरंतनाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: णमो वीयरागाणं सव्व; अंति: पवज्जाफलसुत्तं, सूत्र- ५. पंचसूत्र- टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: वसीत्यधिकानि, ग्रं. ८८०. १९६०८. आत्मानुशासन सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५४ श्रावण शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैवे. (२६.५x१२.५, १४४३४). आत्मानुशासन, मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि लक्ष्मी निवास निलयं अंतिः कृतिरात्मानुशासनं श्लोक-२७१. आत्मानुशासन- टीका, मु. प्रभाचंद्र, सं., गद्य, आदि वीरं प्रणम्य भववारिन; अंतिः यस्य दधाति कमलाकृति. १९६०९. वीरजिन विचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६६, माघ कृष्ण, ७, गुरुवार, जीर्ण, पृ. १०, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. हठिसिंग मानसिंग बारोट, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, ११४३३-३७). महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: गरुआणा शिर बहेरोजी, ढाल ६. १९६१०. . (+) चतुर्मासिक व्याख्यान व श्लोक संग्रह, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैवे. (२६.५x१२.५, १०४३५-३६). १. पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान - सामायिक दृष्टांत, पृ. १आ-१३आ, पू.वि. सामायिक के ८ दृष्टांत तक है. चातुर्मासिक व्याख्यान, रा. सं., पद्य, आदि: सामायिकावश्यक पौषधान; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ. जैन श्लोक सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). " १९६१२. (+) महीपाल कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६२, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५X१२.५, १३-१४X३९-४३). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल अंति: नियवगुरूणं पसाएण, गाथा - १८१८. १९६१३. श्रद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे, (२७.५X१२.५, ८x२६-२९). For Private And Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १९६१६. वसुधाराकल्प, संपूर्ण, वि. १९३७, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. पं. धीरसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५x१२.५, १३३० ). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदन्यस्यः अंतिः विजयकरं भवति, १९६१७. षट्पर्वीवीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७X१४, ११४३७). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन- षट्पर्वी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगुरुपदपंकज नमी; अंति: नाम षट्पव धर्यो, ढाल ९. १९६१८. अजाकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८६९ आषाढ़ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदे., (२७,५x१३.५, १४४३९). अजाकुमार रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: वाघेसरी वेगे नमु; अंति: सकल संघ मंगल करूं, गाथा - ५५८. १९६१९. (+) चउशरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२७४१२, ३X३१-३५). चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-वालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १५९७, आदि: वर्द्धमानं जिनं; अंतिः सुखनो ए कारण जाणिवउ. १९६२०. कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., महावीर जन्मवांचन से है., जैवे. (२७४११.५, १३-१४४३०-३६). कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १९६२१. युगादिदेव स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८४५, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. बहादुर सिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ पदच्छेद सूचक लकीरें, जैये. (२६.५४१२, ४४३३-३७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि भक्त कहतां भक्ति; अंति: लक्ष्मीवंत होय. १९६२२. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. केलसकर, प्रले. दोलतराय सिंधीया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५४१२, १७४३८-४० ). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि; अंतिः गई त्ति बेमि अध्ययन - १०. 2 १९६२४. सत्तरीसयठाणायंत्र, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है। जैदे., (२५.५x१२). सत्तरीसयठाणा यंत्र, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १९६२५. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. डाल ५ तक लिखा है., जैवे. (२६.५x१२.५, १२-१४४२८-३० ). महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: ( - ), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९६२६. ठाणांग प्रश्न, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. वसुग्राम, प्रले. पं. शिवचंद्र गणि (गुरु पं. उत्तमचंद्र गणि); जयचंद्र (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११.५, १२४३५ ). पठ. मु. For Private And Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १० स्थानक बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: बे प्रकारे क्रिया; अंति: लघु ९ शब्द परिणाम १०. १९६२७. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७६४, कार्तिक कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. पूर्णता मू+टबा.गाथा १-४ नही है., ले.स्थल. सिद्धपूर, पठ. मु. कमलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१३, ४४३९). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, पूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तेणइ कारणि छे, पूर्ण. १९६३२. मौनएकादशी माहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. वेलावल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३, ८४३९). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१, (प्रले. पं. भाग्यतिलक; पठ. पं. धीरकल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीने रीषभदेव; अंति: १६५७ वरसे रच्यो, (प्रले. पं. भवानजी; पठ. पं. धर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य) १९६३३. (+) रिषिदत्ता चौपाई, संपूर्ण, वि. १६६८, चैत्र शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७७१३.५, १४४४०). रिषिदत्ता चौपाई, मु. देवकलश, मा.गु., पद्य, वि. १५६९, आदि: श्रीसरसति सुपसाउलइ; अंति: अलिय विघन सवि दूरि, गाथा-२९९. १९६३४. सत्तरीसयठाणायंत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१२)=१६, पू.वि. ठाणा १११-१२० तक नही है., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, जैदे., (२५.५४११.५). सत्तरीसयठाणा यंत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पूर्ण. १९६३५. (+) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ व यंत्र, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रावण कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३१, कुल पे. २, प्रले. मवजीराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ७४३६-४३). १. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३१अ. बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्ठिई तिबेमि, अध्याय-६. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नो० क० न कल्पइ नि०; अंति: कही इम हं कहं छं. २. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र का प्रायश्चित्तविधियंत्र, पृ. ३१आ. बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि यंत्र, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १९६३६. (+) भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, चैत्र कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ४४४६-४८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मु. रूपचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: जिनपादयुगं प्रणम्य; अंति: शिष्यबोध हेतवे. १९६३७. (+) वसुधारा, अपूर्ण, वि. १९०७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(५)=६, ले.स्थल. पालिपुर, प्रले. मु. प्रेमचंदजी (गुरु मु. ताराचंदजी, चंद्रगच्छ); पठ. मु. ऋषभचंदजी (गुरु मु. प्रेमचंदजी, चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १२४२९-३४). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९६३८. लंघनपथ्यनिर्णय, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., ( २६.५x१२.५, १२३७-४२). लंघनपथ्यनिर्णय, मु. दयातिलक शिष्य, सं., पद्य, वि. १७९२, आदि: श्रीसर्वज्ञं नमस्कृ; अंतिः प्राप्नोति नो बलं. १९६३९ उपसर्गहर स्तोत्रवृत्ति व उवसग्गहर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९१-१९१९, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. २, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२.५, ४ - १९२६-५०). www.kobatirth.org १. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्रे प्रियंकरनृप कथा, पृ. १अ - २२अ, वि. १८९१, फाल्गुन शुक्ल, ८, शनिवार, ले. स्थल धोराजीनगर, प्रले. ऋ. हीराचंद (गुरु ऋ. सुंदरजी); पठ. सुंदरजी; श्राव. हेमचंद श्राव. करसनजी, प्र.ले.पु. सामान्य. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की प्रियंकरनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, प्रा., सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: वंशाब्जश्रीकरो हंसो; अंतिः सुखभाजो भवंति ते. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम, उवसमाहर स्तोत्र सह टवार्थ, पृ. २२आ-२४आ, वि. १९१९ फाल्गुन शुक्ल, ११, ले. स्थल, भावनगर, प्रले. ऋ. हीरजी प्रेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं० ॐ अंति: कोइ पास जगनाहो, गाथा-१४. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा १३ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हुं नमुं छं उपसर्ग; अंति: नाथ प्रभु जाणवा. १९६४१. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६६ कार्तिक शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्रले. त्रीभुवनदास पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (५०६) वादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२८x१२.५, ३-१३X३०-४७). 9 पगाम सज्झायसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंतिः वंदामि जिणे चवी, सूत्र- २१. पगामसज्झायसूत्र टवार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि ऐं नत्वा पार्श्वनाथ; अंतिः तीर्थंकर जिन प्रति - १९६४३. गौतमीयप्रकाश काव्य सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-१४ (२ से ७,१४,१९ से २४, ३०)=२२, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., सर्ग ५ श्लोक २५ तक है., जैदे., (२७.५X१२.५, १४-१५X४८-५१). गौतमीय काव्य, पा. रूपचंद्र गणि, सं., पद्य, वि. १८०७, आदि: श्रीराविरासीदिवदिव्य; अंति: (-), अपूर्ण. गौतमीय काव्य- गौतमीयप्रकाश टीका, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५२, आदि: ( १ ) अनंतविज्ञानमयं विशुद, (२) अथ तत्रभवंतः श्रीमंत; अंति: (-), अपूर्ण. १९६४४. पंचमीदेववंदन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. माधवजी पटेल; पठ. श्रावि. मोतीकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१३, १०-१२४३५-३८), ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: संघ सल सुखदाइ रे. १९६४५. भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ व गुण, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रावण शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९८, ले. स्थल. सींदरी, प्रले. सा. कस्तुरा ( गुरु सा ऊदाजी), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२७१२.५, ४-६X३२-३३), भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकरदेवनी; अंति: प्रभाव कह्यउं. भक्तामर स्तोत्र- गुण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: दोनुं काव्यसुं पाणी; अंति: काम पड्या गुणजही. For Private And Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३४१ १९६४६. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९६, वैशाख कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६५, ले.स्थल. पोतनपुर, प्रले. पं. वलभविजय (लुकागच्छ); लिख. श्रावि. लखमीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४१३, ६-८४३४-३८). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंग तहेव, अध्याय-१०, ग्रं. ८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: श्रुतस्कंध उपदेशे. १९६४७. पृथ्वीचंद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२७४१३, १०४२७-२८). पृथ्वीचंद्र सज्झाय, पंडित. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक सुखकरु वंदी; अंति: जिवविजय धरे ध्यान, ढाल-३, गाथा-६७, ग्रं. ११०. १९६४८. साधुप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१३.५, १२४३१). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० इच्छामि; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. १९६५०. ज्ञानपंचमी देववंदनविधि, संपूर्ण, वि. १८४७, फाल्गुन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. खंभात, प्र.वि. श्रीजीरावला पार्श्वनाथा, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४४४). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १९६५१. शत्रुजयउद्धार, मौनएकादशी स्तुति वचैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्रले. पं. क्षमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १३४३५). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, पृ. १अ-७अ. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: दर्शन जय करो, ढाल-१२, गाथा-११५. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ७अ-७आ. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ७आ. मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक० वर केवल; अंति: शासने सफल करो अवतार, गाथा-९. १९६५२. श्रीपंचमी नी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८३, चैत्र शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२७४१४.५, १२४३७). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: संघ सयल सुखदाइ रे. १९६५३. शांतिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४४२). शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अथ प्रतिष्ठायां वा; अंति: गाजते धारा देवी. १९६५४. पुण्यपाल-गुणसुंदरीरास, संपूर्ण, वि. १९१७, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, ले.स्थल. बिलावस. प्रले. पं. लक्ष्मीविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादाता, जैदे., (२७७१३, ११४२९-३२). पुण्यपालगुणसुंदरी रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: सकलसिद्धि दायक सदा; अंति: रच्यो० धणकण मंगलमाल, ढाल-३६. १९६५५. उवसग्गहरस्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ., जैदे., (२७.५४१३, १२-१३४३३-३९). For Private And Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पासजिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की पार्श्वदेवीय टीका, ग. द्विजपार्श्वदेव, सं., गद्य, आदि: धरणेद्रं नमस्कृत्य; अंति: मिथ्यादुष्कृतम्. १९६५६. सिंदूरप्रकरणकाव्य सुभाषितवार्तिकटीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदे., (२७४१३, ९४३२-३६). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: चतुर्धा मुनयो वदंति, श्लोक-१०१. सिंदूरप्रकर-वार्तिक, नृसिंह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवामेयं जिनं; अंति: चैव मनुष्यादागतो नरः. १९६५८. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १९३९, चैत्र शुक्ल, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. २, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. सुखलाल ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१४, ९४२५). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-२३आ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. २३आ-२४आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे ज भे; अंति: नित्थारग पारगा होह, सूत्र-४. १९६५९. (+) योगदृष्टि सज्झाय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्रले. मेघजी कुंअरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, ४४३०). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल-८. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ऐंद्रश्रेणिनतं, (२)शिव क० निरुपद्रव; अंति: भूरि सुखावबोधार्थः. १९६६०. मौनएकादशीमाहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, फाल्गुन शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. मु. जतनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१४, ६x४३). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीने ऋषभदेव; अंति: १६५७ वरसे रच्यो. १९६६१. भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१७(१ से २,७ से १३,१६,१८,२०,२३ से २६,२८)=१३, प्रले. श्राव. जेठालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, ३-४४२९-३४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, अपूर्ण. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नवमो द्वार पूरो थयो, अपूर्ण. १९६६२. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १८७४, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ११-१(९)=१०, पू.वि. गाथा ३१,३२,३३ नही है., ले.स्थल. सोझित, प्रले. पं. दलपतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१३, १५४३८-४५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४, पूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: अस्यैव काव्ययुगल; अंति: गर्भित संपूर्णम्, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३४३ १९६६३. भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. टबार्थ गा. १४ तक लिखा है., प्रले. मु. पेमचंद (चंद्रगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, ४४२७-३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त क० रागी एहवा जे; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९६६५. चौवीसजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७.५४१२.५, १०४३४). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता वाणी; अंति: भाव धरीने भणो नरनारी, गाथा-२७. १९६६७. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९९५, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. पं. चुन्नीलाल (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १९४५६-६४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६. १९६६९. चित्तब्रह्मदत्त रास, पूर्ण, वि. १९५५, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ५४-२(१० से ११)=५२, ले.स्थल. भिलाड, प्रले. मु. पनालाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, २१४४८-५४). चित्तसंभूति रास, मु. कन्हीराम ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९०२, आदि: प्रथम देव जुगादधर; अंति: कहे कांनऋष गुणतीलो, खंड-४, पूर्ण. १९६७०. सित्तरसौजिननाममाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७४१२, ११४३०-३२). १७० जिननाम स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: कास्मेरी मुखमंडणी; अंति: देवविजय जय जयकार के, ढाल-६, गाथा-५२. १९६७१. नाममाला वदोहा, प्रतिपूर्ण, वि. १८५१, वैशाख शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, ले.स्थल. जावाल, प्रले. पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय); पठ. श्राव. किसना, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (३४३) पोथी पर सौथी नही, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७२३) मंगलं लेखकानां च, (७२४) जलाद् रक्षे थलाद्रक्षे, (७२५) जहां लग मेरु अडग है, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४२८-३२). १. पे. नाम. अभिधानचिंतामणि नाममाला, पृ. १आ-१६आ, पू.वि. कांड २ तक है. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. सामान्य दूहो, पृ. १६आ-१७अ. दोहासंग्रह-, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९६७२. चंदन-मलयगिरीरास, संपूर्ण, वि. १९१५, माघ कृष्ण, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. रत्नपुरी, प्रले. डुंगरसी ब्राह्मण, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४१२.५, १२-१३४३१-३५). चंदनमलयागिरीरास, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध नमु सदा; अंति: जिम पामो सुख अभंग, ढाल-८, ग्रं.४०५. १९६७३. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९३७, वैशाख शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ.७, प्रले. मु. मंगलसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १३-१६४३९-४२). स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदिश्वर सामी हो; अंति: महास्तुत पुरण करी, स्तवन-२४. १९६७४. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३१, श्रेष्ठ, पृ. २४+१(११)=२५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ८४३५-३६). For Private And Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिइ; अंतिः जा वीरजिण तित्वं, गाथा - ३२४. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९६७५. सम्यक्त्व पच्चीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५५, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. पीधापुर, प्रले. पं. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२.५, १६X३१-३७). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा - २५. सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मनोवांछितदातारं; अंति: मांगलिकवचनमिदं कवेः. १९६७८. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१०, माघ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८४, प्र. वि. संशोधित - टिप्पणयुक्त पाठ., जैदे., (२६X११.५, २-१३X३०-४५). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, श्लोक ५४४. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनई तीर्थ; अंति: वचन थकी नीकली वाणी. १९६७९ श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९१९ माघ शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. लीबडी, प्रले. मु. माणेकचंद्र पठ. श्राव, वालजी टोकर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X१२.५, १०X३०-३४). - श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १९६८०. (+) लघुसंग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल. तांडा, प्रले. मु. धनरूप ( गुरु पंडित. नथमल ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., ( २६.५x१२, १३३०-३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठिङ; अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा - २८८. १९६८१. (+) जीवविचार सह टवार्थ व त्रेसठशलाकापुरुष विवरण व नाम, संपूर्ण, वि. १८६१ फाल्गुन कृष्ण श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१२, ४x२५-३०). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ - ९अ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पच, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवनमांहि प्रदीप; अंति: जोइने रच्यौ. २. पे नाम. त्रिषष्टिशलाकापुरुषविवरण व नाम, पृ. ९अ. For Private And Personal Use Only मा.गु., गद्य, आदि: ९ वासुदेव, ९ बलदेव अंतिः वासुदेवनाम इत्यादिक, १९६८२. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रावण अधिकमास कृष्ण, २, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. तलोली, प्रले. पं. देवेंद्रकीर्ति (गुरु मु. शिवकीर्ति); पठ. मु. ऋषभकीर्ति ( गुरु पं. देवेंद्रकीर्ति), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २६.५x१२.५, १२-१६X३८-४४). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्थंकरे अ तित्थे; अंति: जेसिं सुवसायरे भत्ति. १९६८३. प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९१३, फाल्गुन शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल, वडलू, प्रले. पं. पृथ्वीहंस, पठ. मु. तिलकरत्न, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१२, ११४३४-३६). १. पे नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ ६आ. Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी. २. पे. नाम. जैन श्लोक, पृ. ६आ. जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९६८४. नयचक्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४०, कार्तिक शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७२, ले.स्थल. आऊग्राम, प्रले. पुरणचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (३४४) अज्ञानाच्च मति भ्रंशात्, (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, (७२६) अक्षरमात्रपदस्वरहीनं, (७२७) मंगलं लेखकस्यापि, (७२८) भग्नपृष्ट कटीग्रीवा, (७२९) संकोडी करचरणं, जैदे., (२७४१३, ९४३३-३४). नयचक्र-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणम्य परमब्रह्म; अंति: कृति भणता परमानंद. १९६८६.(+) रत्नसंचय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले.स्थल. वीरपुर, प्रले. पं. क्षमावर्द्धन; पठ. मु. दोलतवर्द्धन (गुरु पं. क्षमावर्द्धन),प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, ६x४२-४५). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं वीरं उवया; अंति: धणु गाहा आगमे भणिया, श्लोक-५४७. रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउण क० नमस्कार हो; अंति: आगमनै विषे कही छइ. १९६८९. सिंदूरप्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८७०, चैत्र शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्रले. मु. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४१२, ४-५४२२-३१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: ज्ञानगुणास्तनोति, श्लोक-९७. सिंदूरप्रकर-टीका, सं., गद्य, आदि: पार्श्वप्रभोः क्रमयो; अंति: ज्ञानगुणास्तनोति. १९६९०. तपविधि संग्रह व विविधगणणा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १०-१२४३०-३४). १.पे. नाम. विविध तपविधि संग्रह, पृ. १आ-१५अ. विविधतपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ पिस्तालिस आगमनो; अंति: कस्तुरीना अक्षर लखिइ. २. पे. नाम. विवध गणणा संग्रह, पृ. १५आ-१८अ. विविधगणणा संग्रह, सं., गद्य, आदि: श्रीजयदेव पारगते नमः; अंति: पारंगताय नमः २०००. १९६९१. विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, माघ कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९, ले.स्थल. सींधाणा, प्रले. सा. सुंदरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२६४१२.५, ८४५०-५७). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, अध्ययन २०, ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइं कालई चउथा; अंति: अर्थ करी पूरा थया. १९६९३. समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, ५४३६-४०). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे; अंति: (-), अपूर्ण. समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: पांचमो गणधर सुधर्मा; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९६९५. महाबलमलयसुंदरीरास, अपूर्ण, वि. १९३९, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १००, पू.वि. खंड ४, ढाल ३१ गाथा ४ तक है., जैदे., (२६.५४१२, १४-१५४३२-३८). मलयासुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९६९७. (+) कल्पसूत्र का टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७५+१(३२)=२७६, प्र.वि. टबार्थ बालावबोध के स्वपरुप मे __ लिखा गया है., द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, ११४३१-३६). कल्पसूत्र-टबार्थ+कथा, सं., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिन; अंति: माहरो अपराध खमज्यो. १९६९८. (+) भरत चरित्र सहटबार्थ-जंबूद्वीपप्रज्ञप्ती, संपूर्ण, वि. १७६६-१७६७, भाद्रपद शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. राजपाल ऋषि (लौंकागच्छ-वरसिंहपक्ष), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ५-६x२६-३१). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं से भरहे राया; अंति: सव्वदुक्खप्पहीणे, (वि. १७६६, भाद्रपद शुक्ल, १४, ले.स्थल. राणपुर) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा भरत चरित्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिहवार पछी ते भरतराज; अंति: सर्व दुखक्षय कीधो, (वि. १७६७, भाद्रपद शुक्ल, १४, ले.स्थल. व्वहाणपुर) १९६९९. कर्मग्रंथ १ से ४, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१२.५, १३४३३-३९). १.पे. नाम. कर्मविपाक प्रथम, पृ. १अ-४अ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६२. २. पे. नाम. कर्मग्रंथ स्तव, पृ. ४अ-६अ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व, पृ. ६आ-८अ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ८अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक लिखा है. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९७००. चारमंगल रास - प्रथम मंगल, प्रतिपूर्ण, वि. १९५७, चैत्र शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. मात्र प्रथम मंगल., ले.स्थल. पाली, जैदे., (२५४१२.५, ९४२९-३३). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध साधु; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९७०२.(+) प्रज्ञापनासूत्र सह टबार्थ व अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४६०००, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१२.५, २-८४३०-४८). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, सूत्र-२१७६, ग्रं.७७८७. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७८४, आदि: (१)प्रणम्य पुण्यपदपद्म, (२)नमस्कार हो अरिहतनें; अंति: सुखी थका रहे छे, ग्रं. ३३०००. For Private And Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (+) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १९७०३. प्रज्ञापनासूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सीतं वद्धं अष्ट; अंतिः सेलेसी प्रतिपद्यते, ग्रं. ६०००. उत्तराध्ययनसूत्र व धर्मोपदेश श्लोक सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९११, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ७०४-१(५५२)+१(४२३) = ७०४, कुल पे. २, ले. स्थल. पाल्हणपूर, प्रले. मु. चतुरविजय (गुरु मु. कस्तूरविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१२, ५-७X२६-३९). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ - ७०३, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन- ३६, पूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीवर्द्धमानजिनं, (२) पूर्वसंजोग मातापिता; अंति: (१) जंबू प्रतई कहई छइ, (२) चुलीकानो अर्थ कही मइ, पूर्ण. २. पे. नाम. धर्मोपदेश श्लोक सह टवार्थ, पृ. ७०३आ - ७०४अ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टवार्थ", मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १९७०४. ऋषिमंडल स्तोत्र सह प्रभातव्याख्यानपद्धति टीका गाथा १ से १५, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९०, पू. वि. प्रतिलेखन पुष्पिकावाला पत्र अनुपलब्ध है., जैवे. (२७४१२.५ १६ १७x४६-४९). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पच, वि. २४वी, आदि भत्तिव्भरनमिरसुरवर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण ऋषिमंडल प्रकरण- प्रभातव्याख्यानपद्धति टीका, ग. हर्षनंदन, सं., गद्य, वि. १७०४ आदिः स्वस्ति श्रीसुखकर्ता; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९७०६. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५३, पू. वि. गाथा ५४ तक लिखा है., जैदे., (२६.५४१३, १०-११x२५-३५ ). सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: (-), पूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध क० निश्चल; अंति: (-), पूर्ण. ३४७ शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि आबालबंभयारि नेमि, अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. शीलोपदेशमाला-बालावबोध + कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: (१) श्रीवामेयममेयश्रीसहि, (२) आबाल ब्रह्मचारी आजन; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९७०७. कर्मग्रंथ ६ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा- ८३ तक हैं., जैदे., (२६x१२, ३x३५). १९७०८. अढाइद्वीपक्षेत्र विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९-३ (१ से ३) - १६, जैवे. (२७४१२.५, १६-१७४३४-४८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण - अढीद्वीपक्षेत्र संक्षेपविचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति शास्त्रधी जाणवो, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only १९७०९ नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४०, आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले. स्थल. अमदाबाद, प्रले. सीवशंकर गौडब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टबार्थ गाथा - ७३ तक का ही लिखा गया हैं., जैदे., ( २८x१२.५, ३X२५-२७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः सव्वगय इअर अप्पवेसे, गाथा-७४ (वि. १९४०, आश्विन शुक्र ११, शुक्रवार) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवा क० जीवतत्त्व; अंति: एक समये अधिको जाणवो, ग्रं. ५५०. Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९७१०. दानविषये रत्नचूड चौपाई, यंत्र व प्रश्न, संपूर्ण, वि. १८२६, भाद्रपद कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०-१(११*)=४९, कुल पे. ३, ले.स्थल. शंकरदत्त, प्रले. शंकरदत्त नागर ब्राह्मण; लिख. मु. रतनचंद ऋषि (गुरु मु. हरजीमल्लजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पेज नंबर १० और ११ दोनो एक ही पेज पर दिये हुए है।, प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२६.५४१२.५, १८-२०४३७-४४). १. पे. नाम. दानविषये रत्नचूड चौपई, पृ. १आ-५०अ. रत्नचूड चौपाई-दानविषये, मु. अमरसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: पुंहती मनह जगीस कि, ढाल-६२. २. पे. नाम. यंत्र, पृ. ५०अ. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. प्रश्न, पृ. ५०आ. जैन प्रश्नोत्तर संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. २ प्रश्नोत्तर.) १९७११. ९ तत्व चरचा, संपूर्ण, वि. १९०४, पौष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले.स्थल. निसाढ, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२.५, १७-१९४४५-५०). नवतत्त्व वचनिका, मु. टीकमजी, मा.गु., गद्य, आदि: (१)अथ ९ पदार्थना २४, (२)नामद्वार लक्षणद्वार; अंति: तो केवलि गम्य छै. १९७१२. (+) दिसानुवाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. पर्याप्ता-अपर्याप्त अल्पबहुत्व अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १९-२२४६१-७६). दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दिसि गति इंदिय काए; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण. १९७१३. ककानी व इरियावहिनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५, ९४२४-२९). १. पे. नाम. ककानी सझाय, पृ. १अ-३आ. ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: जीववर्द्धन इम वीनवि, गाथा-३३. २. पे. नाम. इरियावहीनी सज्झाय, पृ. ३आ-५आ. इरियावही सज्झाय, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति: विनयविजय उवज्झाय रे, ढाल-२, गाथा-२५. १९७१४. (+) बंधसामित्वाख्यस्तृतीयः कर्मग्रंथः सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, ५४३०-३८). बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधना कारण ५७ हेतु; अंति: कर्मस्तव सांभलीने. १९७१७. (+) मौनैकादशीकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रावण कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. पालडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, ७-८४३०-३९). मौनएकादशीपर्व कथा माहात्म्य, मु. दानचंद्र, सं., पद्य, वि. १७०८, आदि: ऐश्वर्यौदार्यगांभीर; अंति: जिनाष्टम्याम्, श्लोक-१९४, (प्रले. मु. पुण्यसौभाग्य) For Private And Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org मौनएकादशीपर्व कथा माहात्म्य - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ईश्वरपणुं दातारपणुं; अंति: कृष्णाष्टमी दिने, (प्रले. पं. विवेक) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९७१८. (+) दंडकनामा २९ द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X१२.५, १२X३५-४० ). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. १९७२०. नवतत्त्वनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२७.५X१३, १२X२७-३०). नवतत्त्व स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: सरस्वतीनें प्रणमु; अंति: भणे विवेक लहे आणंद ए, ढाल - ११. १९७२९. (*) अष्टाह्निकामहोच्छव सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. ५०, ले. स्थल, अजमेर, प्रले. रामरिष ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अजयदुर्ग का अन्य नाम अजमेर है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २०००, जैदे., ( २६४१३.५, ६५३१-३६). (+) शुक्ल, १३, बुधवार) १९७३०. व्याख्यान १–२, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५+५ (१ से ५) = १०, प्र. वि. श्लोकों के संग्रह को ही व्याख्यान दिया गया हैं., जैदे., ( २४.५X१३.५, १५X३० ). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: ( - ); अंति: ( - ). लोक संग्रह जैनधार्मिक- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्थ; अंति: विलसितानंदहेतुसकामन्, (, कार्तिक कृष्ण, ३, रविवार) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ; अंति: करणहार धर्म है, (, कार्तिक १९७३१. दानशीयलतपभावनासंवाद रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. गोपीनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६x१३.५, १२x२९-३२). ३४९ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १६६२, आदि प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे, बाल-४, ग्रं. १२५. १९७३४. (+) चडशरण सूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रावण कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल, उंझा, प्रले, जोईतादास मनोहरदास मोदी; पठ. श्रावि. उजमबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X१४, ४x२७-३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावज क० सपाप जे; अंति: चडशरण अध्ययन गुणवु. १९७३९. पद्मावत्यष्टक सूत्र सह टीका व अन्नपूर्णा स्तुति, संपूर्ण, वि. १९८०, वैशाख शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. जयगोपाल पुरोहित पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे., (२७४१४.५, १७x४९-५० ). १. पे. नाम. पद्मावत्यष्टक सूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-९अ. पद्मावत्यष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंतिः स्तुता दानवेंद्र, लोक ९. For Private And Personal Use Only पद्मावत्यष्टक—पार्श्वदेवीय वृत्ति, ग. पार्श्वदेव, सं., गद्य, आदि: (१) प्रणिपत्यं जिनं देवं, (२) ननु किमिति भवद्भि; अंति: छंदसां प्रायः, ग्रं. ५००. Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. अन्नपूर्णा स्तुति, पृ. ९- ९. अन्नपूर्णादेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि भगवति भवरोगात; अंति: मायेति तुभ्यं नमः, श्लोक ९. १९७४६. सिद्धगिरि उपरे शेठमोतिसाइं जिनभुवन कराव्युं तेनी अंजनसलाका करी तेनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१२, फाल्गुन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. सामलदास प्रह्लादजी बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१४, ११X३०-३६). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुंजयतीर्थे मोतीशाट्रंक स्तवन- इतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः उठी प्रभाते प्रभु; अंति: क विरविजय महाराज, ढाल-७. १९७४८. १२ भावना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैये. (२६.५x१३.५, १२४३५-३६). , १९७४७. वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३५, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. विरमगाम, प्रले. रामजी वीरचंद भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५X१४, १६-१७४३६-३७). महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंतिः श्रीगुणहर्ष वधांमणई, ढाल १०, गाथा- १२१. १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेश्वर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल - १३, गाथा - १३०, ग्रं. १९४. १९७४९. (+) भीषणमत प्रश्नोत्तर, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे., (२७४१४, १७४३७-४१). तेरापंथी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: छ लेस्या हुति वीरके; अंति: समयरस करल्यो आतमलीन. १९७५०. अतिचार, संपूर्ण, वि. १९४३, आश्विन कृष्ण, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. सांकल महेश्वर व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१३.५, ११x२९-३४). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, ग्रं. २२५. १९७५२. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ+कथा, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. २५५, ले. स्थल, लाडणु प्रले. मु. चैनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. चूलिका युक्त, श्री आदिनाथजी प्रसादात्., प्र. ले. श्लो. (५६५) याद्रसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७.५X१४, १-५X३०-४० ). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स; अंति: (१) पुब्वरिसी एवं भासंति, ( २ ) पावइ सासयं ठाणं, अध्ययन- ३६, प्र. २००० (, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, शुक्रवार) उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ+कथा संग्रह. मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१) कर्द्धमानं जिनं, (२) पूर्वसंजोग मातापिता; अंति: एह वचन भाष्यकारनउ, (, पौष शुक्ल, १, , सोमवार) For Private And Personal Use Only १९७५३. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. मांडल, प्रले. मु. गौतमचंद्र ऋषि; पठ. श्रावि. विजीबाई पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री गाडलियाजी प्रसादात्., जैदे., (२७X१३.५, १२x२६-२९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: वोसिरियं० मएगहियं. १९७५५. लग्नकुंडली व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. पं. अनोपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५X१३.५, १७X३९). १. पे. नाम. लग्नकुंडली, पृ. १अ-४आ. Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ लमशुद्धि, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अविहतसव्वाएसं नमिउं; अंतिः सोहिंतुं तं विउसा, गाथा- १३०. २. पे नाम ज्योतिष संग्रह आचारदिनकर से संकलित, पृ. ४आ-५आ. ज्योतिष संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९७५६. कल्पसूत्र सह बार्थ + व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९३८, फाल्गुन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २७८-१७२ (१ से ३,५,४० से १४५, २१० से २७१ ) = १०६, ले. स्थल, कपडवन, प्रले नागरदास; लिख. सा. जमनाश्री, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र.वि. श्री जिराउला पार्श्व प्रसादात्., संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (४) जलं रक्षेत् स्थलं रक्षेत्, (३४७) क्रपी कज्जल केश कंबलमहो मंध्ये च शुभ्रं कुसं, (४७१) भग्नपृष्टं कटिग्रीवा, जैदे., (२७.५X१३.५, ४-१२×३२-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान ९, ग्रं. १२१६, अपूर्ण. कल्पसूत्र - टवार्थ+ व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंतिः संशोध्य सर्वधीधनैः, अपूर्ण. १९७५७. बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९४९, फाल्गुन शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, ले. स्थल. सिघाणा, पठ. मु. रघुनाथ (गुरु मु. मंगलसेन ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१३, २८-३६x४२-५०). १. पे नाम, भगवतीसूत्रे बोलसंग्रह, पृ. १अ ६अ, भगवतीसूत्र - बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: एक मासनी दिक्षा सुभ; अंति: विराधना ६ षटकाय. २. पे. नाम. मूर्ख के १५० बोल, पृ. ६-६ आ. - मूर्खशतक, मा.गु., पद्य, आदि: बालकसुं प्रीत करे; अंतिः खायके सराहे सो मूरख. ३. पे. नाम. चोसठबोलनी हाण, पृ. ७अ. महावीरस्वामी के निर्वाण बाद बारवरसीदुकाल से ६४ वस्तु हानि के बोल, मा.गु., गद्य, आदिः कल्पवृक्षनी होण १; अंति: गोशिर्षचंदननी हां.. १९७५८. कल्पसूत्र सह भाषार्थ वाचना ९, प्रतिपूर्ण, वि. १८९४ श्रावण शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. पं. गोडीचंद, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, जैदे., ( २६४१३, १९४४२७-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: उबव॑से ति बेमि, प्रतिपूर्ण कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु., रा., गद्य, आदि (-); अंतिः संघ प्रवर्ती जयवंतो, प्रतिपूर्ण, १९७५९. भक्तामर स्तोत्र सह मंत्र व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९५०, वैशाख शुक्ल, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे. (२६.५X१३, २४-२७४४४-४६). ३५१ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४+४, ग्रं. ७७. भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं अर्ह णमो अंतिः उसा घीपनी स्वाहा, मंत्र- ४८. भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ( - ). (-). For Private And Personal Use Only १९७६० (+) विचारपंचाशिका सह टवार्थ व पुगल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२८४१४.५, ५४३२). १. पे. नाम. विचारपंचाशिका सूत्र सह टीका, पृ. १आ-८आ, पे. वि. अंत में जुम्मास्वरूप वर्णन भी दिया गया है. कुल ग्रं. २४० Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: विमलसूरिवराणं विणएण, गाथा-५१. विचारपंचाशिका-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: वीर पय क० महावीरदेव; अंति: प्रधान विनयें करी. २. पे. नाम. पुद्गलनो विचार, पृ. ९अ-९आ. पुद्गल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: क्षेत्रथी अप्रदेशी; अंति: यंत्रथी भावना जाणवी. १९७६१. सतरिसयठाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२७.५४१३, १६४४६-५३). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिंदे; अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे, गाथा-३५९. १९७६२. (+) जातकदिपिकापद्धति व ज्योतिष श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, माघ शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, ले.स्थल. आडीसर, प्रले. मु. गोविंद (गुरु ग. हेमसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रेयांसजिन प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१४, ६४३३). १. पे. नाम. जातकदीपिकापद्धति सह टबार्थ, पृ. १आ-१२आ. जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक-८१. जातक पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीने; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा ७५ तक __ का ही टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक सह टबार्थ, पृ. १२आ. ज्योतिष श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ज्योतिष श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९७६३. परमानंदपचवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७.५४१३, ४४२३-३४). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: परमानंदसंयुक्तं; अंति: परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५. परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: परमानंद क० मोक्ष तेण; अंति: रहतां आत्माने पर. १९७६५. (+) नवतत्त्व सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १८७३, फाल्गुन शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. मु. उतमचंद्र ऋषि; पठ. श्राव. नंदलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३.५, १५४४०-४३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-३०. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)जयति श्रीमहावीर, (२)एतानि नवानां तत्त्वा; अंति: सेधनादनेकसिद्धाः. १९७६६. (+) नवतत्त्व सह बालाबोध, संपूर्ण, वि. १८६७, चैत्र कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. मु. हेमराज ऋषि (गुरु मु. जिणराज ऋषि, गुजरातीलुंकागच्छ); पठ. मु. उतमचंद ऋषि (गुरु मु. हेमराज ऋषि, गुजरातीलुंकागच्छ); श्राव. लखमीचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१३, १३४४०-४६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: जाणवो योग्य छै. For Private And Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३५३ १९७६९. (+) स्याद्वादपुष्पकलिका, संपूर्ण, वि. २०वी, वैशाख कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. खंभात, प्रले. सोमेश्वर शीवलाल व्यास; पठ. श्राव. अमथा देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा दिया गया वर्ष वि. १९१३ गलत प्रतीत होता है, क्योंकि कृति का रचनावर्ष ही १९१४ मिल रहा है, तो प्रतिलेखन वर्ष १९१३ की जगह रचना वर्ष के परवर्ती समय में होना चाहिये., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२७४१३, ४४२८-३३). स्याद्वादपुष्पकलिका, उपा. संयम वाचक, सं., पद्य, वि. १९१४, आदि: नत्वा संयमवामेयं; अंति: स्वेप्सताय व्यरच्यत, श्लोक-१४६. १९७७०. श्रावकतणा अतिचार, संपूर्ण, वि. १९४५, चैत्र शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, अन्य. श्रावि. डाईबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १२४३५). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, ग्रं.२००. १९७७१. सूर्ययशराजा कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६४१३, १४४४३-४६). सूर्ययशराजा कथा, मा.गु., गद्य, आदि: पुन कहतां फेर इण परव; अंति: फल री सिद्धी हुवो. १९७७२. सुक्तावली सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पृ.वि. गाथा-११ तक हैं., जैदे., (२७४१३, १९४६३-७८). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सूक्तमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम काव्यने विषं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९७७३. मोटायोग कालग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४२८-३०). कालग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: योगकालिक अने उत्कालि; अंति: मिच्छामिदुक्कड. १९७७४. आलोयणा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. जैदे., (२६४१३, ११४२९-३०). १. पे. नाम. आलोयण, पृ. १अ-८अ. आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: बहिरात्मा करीने कर्म; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. २. पे. नाम. दुष्कृतगर्हा, पृ. ८अ-११अ. आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: संसारंमि अनंते; अंति: सर्व पाप निष्फल थाओ. १९७७५. ज्ञानपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६.५४१३, १३-१४४३०-३३). ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल कुशल कमलावली; अंति: (१)उपर भेला ५१ थापिइं, (२)रूपविजय गुण गाया रे. १९७७७. (+) जीवविचार सूचामात्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३.५, ११४२१). जीवविचार प्रकरण-यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना २ भेद एक मुक्त; अंति: सादि अनंतस्थिति. १९७७८. द्वादशश्राद्ध अतीचार, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रावण कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३.५, ११x१९-२३). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १९७७९. (-) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१३.५, ११४२७-३०). For Private And Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: श्रीसंघहर्ष वधामणा, ढाल-१०, गाथा-१२५. १९७८०. श्रेणिकराजाअभयकुमारसबंधे पांचसाधु चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. भदावताराखारीया, प्रले. पं. क्षेमकुशल, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२७.५४१३, १३४२४-३६). अभयकुमारसंबंधे पंचसाधु चौपाई, उपा. कीर्तिसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: जगगुरु प्रणमु वीरजिन; अंति: कानजी संघ उदय सुखकार, ढाल-१२. १९७८१. (+) श्रीपालचरित्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९०६, फाल्गुन कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. २, ले.स्थल. बालोचर, प्रले. मु. सदासुख ऋषि; लिख. मु. सुखलालजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१३, १७४३८-४१). १. पे. नाम. श्रीपाल चरित्र, पृ. १आ-३१आ. मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं; अंति: श्रीसद्गुरुप्रसादात्, प्रस्ताव-४, ग्रं. १२५७. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३१आ. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९७८२. दशवैकालीकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२७७१३, १२-१३४२९-३४). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: ए गायो सकल जगीसे रे, सज्झाय-११. १९७८४. (+) श्रीपालचरित्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३५, चैत्र कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७८, ले.स्थल. विक्रमपूर, प्रले. मंगूमल ___ व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३.५, १२४३१). श्रीपाल चरित्र-बालावबोध, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: श्रीअरिहंत सुसिद्धपद; अंति: (१)मुनि कथा लिखी सुजगीस, (२)अर वंश वृद्धि पामौ, खंड-४. १९७८५. अंगचूलीयासूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदे., (२६४१४, १२४३०). अंगचूलिका प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदि: नमो सुय० नमो अरि०; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९७८६. श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७७१३.५, १२४५४-५६). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: (-), अपूर्ण. १९७८९. श्रावकविधिप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. अंत मे सूचीपत्र भी दिया हुवा है., जैदे., (२७४१४.५, १६४५०). श्रावकविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: विधिप्रकाशो निर्मितः. १९७९०. लघुसंग्रहणीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. पाली, पठ. श्रावि. जेठी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३.५, ४४२५-३१). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्न; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय क० नमस्कार करी; अंति: श्रीहरिभद्रसूरीश्वरे. For Private And Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३५५ १९७९१. नवतत्त्व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९५१, पौष कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२८x१३.५, १३४४४-४९). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो जीवतत्त्व बीजो; अंति: अजीवनै मिश्र कहिये. १९७९३. (+) जीवविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१३.५, १५-१६४३८-४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रण भुवनमाहि दिवा; अंति: भणी बालबोध लिख्यो छे. १९७९४. विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ व प्रस्ताविकश्लोक, संपूर्ण, वि. १९१७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, ले.स्थल. मुंबईबंदर, प्रले. चतुर्भुज ओझा औदिच्य ब्राह्मण., प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३.५, १-४४२९-३४). १.पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. १आ-१४आ. मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४९. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. सोमशिष्य, सं., गद्य, आदि: नमिउं कहता नमस्कार; अंति: टबार्थं दंडकस्तुतिः. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १४आ. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९७९५. आत्मानुशासन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. *पत्र के दोनो और पेज नंबर है., जैदे., (२६.५४१४, १३-१४४२७-३२). आत्मानुशासन, ग. पार्श्वनाग, सं., पद्य, वि. १०४२, आदि: सकलत्रिभुवनतिलकं; अंति: भाद्रपदिकायां, श्लोक-७७. १९७९६. दंडकप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. मुविबंदिर, प्रले. शिवलाल भट्ट; उप. मु. फतेहविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४१३.५, ३४२९-३३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४४. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने चोवीस; अंति: वीनती छे ते धरज्यो. १९७९७. सिद्धाचलनव्वाणुखमासणादहा सह विधि व आलोयणा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१३.५, १२४३३-३९). १. पे. नाम. शत्रुजय नवाण्णुखमासणादोहा सह विधि, पृ. १आ-९आ. शत्रुजय नवाणुंखमासमणाना दोहा विधियुक्त, श्राव. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सेजो तिरथ वंदिइ; अंति: (१)इणि परे चित्तधरु, (२)पाम्या केइक पामस्ये. २. पे. नाम. आलोयणा विचार, पृ. ९आ-२२आ. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धाचल समरु सदा; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. १९७९८. सत्तरीसयठाणायंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. काणुंड, प्रले. ऋ. रघुनाथ (गुरु मु. मंगलसेन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर माहिती बाकी है., जैदे., (२७४१३.५, -१४-१). सत्तरीसयठाणा यंत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९७९९. योगरत्नमाला सह (सं.)लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५६, कार्तिक शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. अहिपुर, प्रले. ऋ. अनोपचंद (गुरु क्र. भवानीराम, बृहन्नागोरी लुकागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२७७१३.५, २२४४३-४७). योगरत्नावली, आ. नागार्जुनाचार्य, सं., पद्य, आदि: विमलमति किरणनिकर; अंति: स्खलति प्रमादनिवहेन, श्लोक-१४१. योगरत्नावली-टीका, मु. गुणाकर भिक्षु, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: गुरुचरणकमलममलं; अंति: भिक्षुणा विवृत्ति, ग्रं. ७८०. १९८०१. पाक्षिकअतिचार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१३.५, १२-१३४३१-३४). पाक्षिकअतिचार चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९८०२. नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-२(१ से २)=१३, पृ.वि. गाथा ३७ तक ही लिखा हुवा है., जैदे., (२७७१३.५, १४४३९-४१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९८०३. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ-अध्ययन २८, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. मात्र अध्ययन ८ का ही मू+टबा है., जैदे., (२७.५४१३.५, ४-२३४३७-४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९८०४. नेमराजुल स्नेहवेली, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. बीजापूर, प्रले. मु. दोलतसोम; लिख. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७३०) जलाद रक्षेत् तैलाद रक्षेत्, जैदे., (२६.५४१३, १४४३४). नेमराजुल स्नेहवेली, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: शंखेश्वर पासजी हरी; अंति: जय उत्तम स्यबासरे, ढाल-१५. १९८०५. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६४१३.५, ११४३२-३७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४०. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो जीवतत्त्व बीजो; अंति: ए वातनुं संदेह नही. १९८०६. दीवालीकल्प व सरस्वती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, प्रले. पं. राजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१३, १२-१५४३३-३७). १. पे. नाम. दीपावलीकल्प स्तवन, पृ. १आ-८अ. दीपावली स्तवन, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणे, ढाल-१०, गाथा-१२२. २. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. ८आ. सरस्वतीदेवी छंद, दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मा भगवती विद्यानी; अंति: जाउं तोरी बलीहारी, गाथा-६. १९८०७. सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२७७१३.५, १०४२५-३०). For Private And Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३५७ सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. १९८१०.(+) अरिष्टाध्याय, छायापुरुष व जापमंत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१३, १७४५८-६०). १. पे. नाम. अरिष्टाध्याय, पृ. १अ-५अ. प्रा.,सं., पद्य, आदि: पणमंत सुरासुर; अंति: पयाहिणं तत्थ, गाथा-२०२. २. पे. नाम. छायापुरुषज्ञान, पृ. ५अ.. छायापुरुष ज्ञान, सं., पद्य, आदि: निरभ्रे गगने सम्यक; अंति: श्वेतं वै चीरजीवितं, श्लोक-८. ३. पे. नाम. भैरवीमंत्र, पृ. ५अ. भैरवी मंत्र, सं., गद्य, आदि: ऊँ नमो भगवती भूचरी; अंति: मंत्र जाप वार २१. ४. पे. नाम. छायापुरुषलक्षण, पृ. ५आ. छायापुरुष लक्षण, प्रा., पद्य, आदि: असिरेणय छम्मासं जंघ; अंति: जोइज्जइ बाहुहीणेण, गाथा-१. १९८११. () हस्तसंजीवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. पल्लिका, प्रले. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१३, १७-१८४३२-३९). हस्तसंजीवन, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर; अंति: यः श्रीरस्तु शाश्वती, श्लोक-२८३. १९८१२. श्रीमहावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५१, आषाढ़ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. जीवणसिंग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, ११४३१-३४). महावीर दीपावली स्तवन, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणां, ढाल-१०, गाथा-१२१. १९८१५. वंकचूलरास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ९ गाथा ३ तक है., जैदे., (२८x१३, १३-१४४३५-३९). वंकचूल रास, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर चरणकमल नमु; अंति: (-), अपूर्ण. १९८१६. (+) नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १७८४, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नही है., ले.स्थल. बीजापूर, पठ. भगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१३, १३४३२-३९). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: शिवं भवतु स्वाहा, प्रतिपूर्ण. १९८१८. पार्श्वजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सर्ग १ श्लोक ६८६ तक ही है., जैदे., (२७.५४१३, १५४४३-५०). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: नाभेयाय नमस्तस्मै; अंति: (-), अपूर्ण. १९८१९. पार्श्वजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९-२९(१ से २९)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७.५४१३, १५४४५). पार्श्वजिन चरित्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९८२२. स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. जेसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१४.५, १४४३४). For Private And Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्नात्रपूजा विधिसहित, पंन्या. रूपविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकारसार; अंति: संपदा निज पामे तेह. १९८२४. (+) तपसीपंचढालीयो व माणेकचंद चौढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३, १७-१९४४०-४५). १. पे. नाम. तपसीपंचढालीयो, पृ. १अ-५अ. तपसी पंचढालियो, मु. गुलाबचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: अरिहणीया अरहतजी; अंति: निज दास __ ही थापो, ढाल-५. २. पे. नाम. माणेकचंदजी चौढालीयो, पृ. ५अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. ढाल ४ की गाथा ४ तक लिखा हुआ है. __मा.गु., पद्य, आदि: समरुं आदि अरिहंतकुं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९८२६. २४ दंडक २९ द्वारविचार, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रावण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.ले.श्लो. (३४९) हाथ पावै कडी ग्रीवा, जैदे., (२८.५४१३, १४-१६x४४-४९). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ नारकी १० भवनपती; अंति: संख्याता आउखानी. १९८२७. कुमारपालरास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०-१२(१ से १२)=६८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा २३०-१५८९ है., जैदे., (२७.२-२७.५४१३.५, १४-१५४२९-३५). कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९८३०. नवतत्त्व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४३, श्रावण शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १३-१६x२५-२९). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो जीवतत्त्व बीजो; अंति: सिद्धगाया एग समयमि. १९८३१. भगवतीसूत्र-जयंतीआलापक सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, ८४४१). भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह*, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अति: (-), प्रतिपूर्ण. भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९८३२. दोढसोकल्याणक स्तवन इग्यारसनु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२८x१३.५, १०४२६-२८). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमु जिन; अंति: सेवक जसविजय सिरीवरी, ढाल-१२. १९८३३. देवचंदजी कृत वीसी, संपूर्ण, वि. १९१९, आश्विन कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. पाटडी, प्रले. हरजीवन प्रेमचंद भोजक; पठ. श्रावि. मंछीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३.५, १३-१४४३१-३३). विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: सुजस महोदय वृंदो रे, स्तवन-२०. १९८३८. दंडकशास्त्र, संपूर्ण, वि. १८५०, आश्विन शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. रतलामनगर, प्रले. मु. राजाराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१३.५, १७४४०-४१). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंति: अजर अमर पद पामे. १९८४२. रघुवंश सह टिप्पण - सर्ग १ से २, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदे., (२८x१५, १५४४५). रघुवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव संपृक्तौ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ रघुवंश-टिप्पण, ग. क्षेमहंस, सं., गद्य, आदि: (१)नमो मातृपितृभ्यां, (२)अहं कविकालिदास; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९८४३. तीर्थमाला स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, दे., (२७.५४१३, १०४४५). तीर्थमालास्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत भगवंत सव्वन; अंति: पुणिवंद थुय महिया, गाथा-१११. तीर्थमाला स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अर्हतं पूजायोग्य; अंति: महिताः सकृताश्च. १९८४४. कर्मग्रंथ-५ शतक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९०४, माघ शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २४९-१४४(१ से १४४)=१०५, जैदे., (२८x१४, ९४२१-२२). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००, अपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७१२, आदि: (-); अंति: भाषामात्मस्मृतौ ___ शतके, अपूर्ण. १९८४५. त्रीसबोलना चोवीसदंडक व दशाणुंवाई, संपूर्ण, वि. १९००, श्रावण कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ५२, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्र.वि. श्री आदिश्वरजिन प्रसादात्., जैदे., (२८x१४, ११-१२४२८-३८). १. पे. नाम. त्रीसबोलना चोवीसदंडक, पृ. १अ-५०अ. २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: छ मासनु आंतरु पडइं. २. पे. नाम. दशाणुंवाई, पृ. ५०अ-५२आ. दसाणुवाइ, मा.गु., गद्य, आदि: जीव समुचय सर्व थोडा; अंति: अधोग्राम मोटो छे. १९८४६. प्रतिष्ठाविधि संग्रह-आचारदिनकरे, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६, पृ.वि. प्रतिष्ठा विधि उदय ३३ से ३६ तक है., जैदे., (२८x१४.५, १३-१६४३२-४०). आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९८४७. (+) शतक सूत्रं, संपूर्ण, वि. १८८६, चैत्र कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२८x१४, १-५४३९-४२). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिण आयसरणट्ठा, गाथा-१००. १९८४८. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. चौथे अध्ययन प्रारंभिक पाठ तक है., जैदे., (२८x१४, ५४३५-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म म० मंगलिक; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९८५१. उपदेशमाला सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१०६ तक है., जैदे., (२९x१५.५, ४-१६x४२-४६). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), अपूर्ण. उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदि: श्रेयस्करं कामितदानद; अंति: (-), अपूर्ण. १९८५४. मार्गशुद्धिप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२८x१३.५, १४४३५). For Private And Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मार्गपरिशुद्धि प्रकरण, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनताय; अंति: विरचितो ग्रंथः, श्लोक-३१५. १९८५८. नयचक्रविवरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३३, चैत्र कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. आहोर, जैदे., (२९x१३.५, १८४५३). नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: परममंगलभावमश्नुते. नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: (१)प्रणम्य परमब्रह्म, (२)श्रीजिनागमने विषे; अंति: (१)कृति भणता परमानंद, (२)परंपराने संभारुं छु. १९८६०.(#) पंचसंग्रह-कर्मसारे १ से ३ अधिकार सह टीका, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५२-४१(४४ से ५१,५३ से ६२,६५ से ६९,७१,७३ से ७६,१२८ से १२९,१३१ से १३२,१४१ से १४९)+३(१३४,१३८ से १३९)=११४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१४, १२-१५४३३-४०). गोम्मटसार, मु. कनकनंदी, प्रा., पद्य, आदि: उसहाइजिणवरिंदेअसहाय; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. गोम्मटसार-टीका, मु. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, सं., गद्य, आदि: असहायपराक्रमान; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १९८६२. नयचक्रसार, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रशस्ति का अंतिम भाग नहीं है., जैदे., (२७.५४१३, ११४३४). नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), पूर्ण. १९८६५. (+) गोम्मटसार सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३७-९(१ से २,५२ से ५६,७५,७८)+२(४०,९९)=१३०, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२६४ तक है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१४, १३४३५-४०). गोम्मटसार, मु. कनकनंदी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. गोम्मटसार-टीका, मु. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. १९८६६. जंबूद्वीप-गणित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२९४१३, २७-२८x१४-२१). जंबूद्वीपगणित विचार, मा.गु., गद्य, आदि: परिधि गणितपद इखुबाण; अंति: इम हरेक पर्वतनो करवो. १९८६७. ताजिकसार की कारिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-६(८ से १२,२१)=२५, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२९x१३.५, १२-१३४३५-३८). ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७७, आदि: श्रीसूर्यचंद्रारबुधे; अंति: (-), अपूर्ण. १९८७०. महादंडकविचार, नक्षत्र तारा संख्या,कामभोगीद्वार व चौदगुणठाणा तेरद्वारविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४, कुल पे. ४, जैदे., (२८.५४१३.५, ७४२४-२९). १.पे. नाम. २४ दंडक ३० द्वार विचार, पृ. १अ-८२अ. __मा.गु., गद्य, आदि: दंडक१ लेस्यार ठिति३; अंति: संतरं निरंतर दुवार. २. पे. नाम. नक्षत्रनाम, तारासंख्या व संस्थान, पृ. ८२अ-८३आ. मा.गु., गद्य, आदि: अभीषच नक्षत्रना तारा; अंति: वंठासिंहनो ००००. ३. पे. नाम. कामीभोगीद्वार, पृ. ८३आ. कामीभोगीद्वारविचार, मा.गु., गद्य, आदि: विकलेंद्री ३ ए भोगी; अंति: कामी नही भोगी नही. For Private And Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३६१ ४. पे. नाम. चौदगुणठाणा तेरद्वारविचार, पृ. ८४अ, अपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो नामद्वार दूजो; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९८७६. शांतिनाथचरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९१, ले.स्थल. भरतग्राम, प्रले. मु. तेजहंस (गुरु मु. जीतहस), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (३५०) बंधमुष्टि कटी ग्रीवा, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६५५) जलात् रक्षेत् स्थलात् रक्षेत्, जैदे., (२९४१३.५, ६x४३-५२). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंति: स करोतु शांतिः, प्रस्ताव-६, श्लोक-१६२९, ग्रं. ५५००. शांतिनाथ चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७९९, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (१)सद्वाच्यमान क्षितौ, (२)विषे जयवंता वर्ता. १९८७८. सम्यकत्व पांचदोषरास, संपूर्ण, वि. १९२८, चैत्र, १४, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. फगवा, प्रले. मु. मुरारी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३.५, १६४३८-४२). सम्यक्त्व पांचदोष रास, श्राव. नंदलाल, मा.गु., पद्य, आदि: विना दृष्टिकी सुद्धत; अंति: भणीजी टालो समकितदोष, ढाल-५. १९८७९. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. व्यासजी ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७.५४१३, १५४४२-५३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-दीपिका टीका, मु. माणिक्यचंद्र, सं., गद्य, वि. १६६८, आदि: रैवतादिशिरश्चुलामण; अंति: पाप्तिवरस्तवस्य, ग्रं. ७१२. १९८८२.(+) नेमराजुल संवादचोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. पत्रांक ९ और १० एक ही पत्र पर है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९x१३, १०x२७-२९). नेमराजुल संवादचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: तिहा मेरुशिखर पर जे; अंति: तस सीस ___ अमृत गुण गाया, चोक-२६. १९८८३. उत्तराध्ययनसूत्र नियुक्ति व प्रीतिगाथा, संपूर्ण, वि. १७९६, आश्विन शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. कमलाब्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१२.५, ११४४५). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र नियुक्ति, पृ. १आ-२६अ. उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: कयपवर पणामो वोच्छ; अंति: अहिजेज्जा, गाथा-६४७, ग्रं. ८००. २.पे. नाम. प्रीतिगाथा, पृ. २६अ. अजैन गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९८८७. (+) न्यायलोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४१३, १६x४३). न्यायालोक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: प्रवचनरागः शुभोपायः, प्रकाश-३. For Private And Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९८९०. आचारांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२८.५४१३, (+) www.kobatirth.org ६५३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंतिः एवं रीति तिबेमि, अध्ययन- २५. आचारांगसूत्र- टबार्थ, ऋ. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वजिनं; अंति: ( - ), ( प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू. वि. बार्थ अध्याय - ५ उद्देशक ६ तक लिखा है.) १९८९१. (+) स्तवचौवीसी सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्तव १६ गाथा १ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - त्रिपाठ., जैदे., (२८x१२.५, ५-९X३३-४६). जिनस्तव चौवीसी, आ. समंतभद्राचार्य, सं., पद्य, आदि: स्वयंभुवा भूतहितेन; अंति: (-), अपूर्ण. स्वयंभू स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: स्वयं परोपदेशमंतरेण; अंति: (-), अपूर्ण. १९८९४. कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५२, पठ. मु. भवानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२८.५X१२.५, १५X४१). कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: खमिइ ते आराधक जाणवा. १९८९६. अष्टाह्निकामहोत्सव, संपूर्ण, वि. १८६२, चैत्र कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल पाडलिपुर, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२९x१२.५, १२-१४४३४-४४). अष्टाह्निका महोत्सव, मु. रायचंद, सं., पद्य, आदि: धर्मेशानसनत्कुमार मध; अंति: षम्यतां वाक्प्रजल्पं, श्लोक-१३८. १९८९८. बीसवीसी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैवे. (२७४१२, १३४३७). विंशतिविंशिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण वीरनाहं सव्व; अति: लहंतु जिणसासणे बोहिं, ग्रं. ६००. १९८९९. (+) चतुर्थ कर्मग्रंथ सह टवार्ध व औपदेशिक लोक, संपूर्ण, वि. १९०८, आषाढ़ शुक्ल, ८, जीर्ण, पृ. २४, कुल पे. २, ले. स्थल. पादलिप्त, प्रले. मु. दोलतराज; पठ. सा. चंदणश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X१३.५, ३X२८). १. पे नाम षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह टवार्थ, पृ. १आ-२४आ. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणं जियमगण; अंतिः लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा -८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागदेवनइ नमस्करी; अंति: भणिओ देवेंद्रसूरिहिं. २. पे नाम, औपदेशिक लोक, पृ. २४आ. लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (); अंति: ( - ). १९९०१. प्रवचनसारोद्धार सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६६, अब्दे रसरसांकेंदु मिते, पौष शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५७+२ (४४६ से ४४७ ) = ५५९, ले. स्थल, काशी, प्रले. मंगलदास बाबा; लिख. मु. भक्तिविजय (गुरु आ. धर्मसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. आत्मारामजी के प्रशिष्य मुनि हंसविजयोपदिष्ट ऋषि रामप्रताम नागोरी द्वारा वि. १९५५ स्थल- पोहकरण में लिखित प्रति पर से यह प्रति लिखी जाने का प्रतिलेखन पुष्पिका सहित उल्लेख मिलता है., प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (५५६) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२८.५X१३, ११X३४-५१). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पच, वि. १२वी, आदि नमिऊण जुगाईजिणं; अंतिः नंदउ बहु पढिज्जतो, श्लोक-१५९९. ग्रं. २५००. For Private And Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org ३६३ प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, आदि: सन्नद्धैरपि यत्तमोभि; अंति: गिरिर्जयतु तावदियम्, ग्रं. १८०००. १९९०२. धन्यचरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदे., (२९x१३.५, ५X३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः स श्रेयस्त्रिजगद्; अति: (), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९९०३. (+) दशाश्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. ४५, ले. स्थल. नारनवल, प्रले. लुणकरणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८X१२, ५-१०X४०-४७). दशाgतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः सुयं मे आउस तेण; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०, (, श्रावण कृष्ण, ७, मंगलवार) दशाक्षुतस्कंधसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीदशाश्रुतस्कंध; अंतिः अधिकार कहुं हुं हुं, (, भाद्रपद शुक्ल, १४, गुरुवार) १९९०५. (+४) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १४७५, फाल्गुन अधिकमास कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८, ले. स्थल स्तंभतीर्थ, प्रले. पं. देवकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०x१२.५, १६-१८४५०-६१). नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः परिवतो भवेसिद्धि, गाथा - ३२. नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवीरं विश्वविभुः अंति: (१) तद्बुधैर्विशदाशयै:, (२) संख्यातानंत विचार. १९९०६. चौमासीदेववंदन, संपूर्ण, वि. १९२७, पौष शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले. स्थल. विरमगाम, प्रले. पं. जयचंद्र (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९x१३.५, ११x२५). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सामलनु चेई रे. १९९०९ (+) निशीथसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ८१, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९x१२.५, ४-७X३९-४७). ラ निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि जे भिनु हत्थ कम्म; अंति: (-), अपूर्ण. निशीथसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो सु०; अंति: (-), अपूर्ण. १९९१२. मौनेकादशी कल्प सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, सोमवार, जीर्ण, पृ. १७, जैदे., ( २६.५४११.५, ६५३६). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने; अंति: विद्यमान हुते. १९९१४. अष्टादशपापचानक सझाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, जैवे. (२८x१३, १३४५०). १. पे. नाम. अष्टादशपापथानक सझाय, पृ. १अ - ५अ. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, आदिः पापस्थानक पहिलुं कहि; अंतिः सेवक वाचकजस इम आखेजी, सज्झाय - १८. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ५अ ५आ. For Private And Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद जगत उपगारी; अंतिः सिद्धि निदानजी, गाथा - ७. ३. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. ६आ. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो विमल जिनेसर; अंति: विजय उवज्झायने लाला, गाथा-७. १९९१५. (+) गणितसार संग्रह सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १६३४, माघ कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५३, ले. स्थल. गोपाचल, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२८.५X१२, ९-१२X३२). गणितसार संग्रह, आ. महावीराचार्य, सं., प+ग, आदि: अलंघ्यं त्रिजगत्सार; अंति: गच्छधनं, अध्याय-८. गणितसार संग्रह टिप्पण, सं., गद्य, आदि: मिथ्यादृष्टिभिः अनंत अंतिः रूपेणो गच्छ इत्यादि, १९९१८. साधुगुण गुणमाला, संपूर्ण, वि. १७२२ आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ७, ले, स्थल, कालवड, प्रले, मु. नानजी ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य जीवे. (२८४१२, १४४४६). , साधुगुण गुणमाला, मु. श्रीधर, मा.गु., पद्य, आदि: पढम नाह सिरी रिसह; अंति: कहई जयभर जयकरा, ढाल - १३, गाथा - १६३. १९९२१. () विक्रमसेनलीलावती रास, संपूर्ण, वि. १८२२ श्रावण शुरू, २ शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले. स्थल, पालणपुर, प्रले. ऋ. जीवणजी (गुरु ऋ. इंद्रजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१२.५, १७x४७-५२). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकास अंति: परमसागर आणंदा रे, ढाल - ६४, ग्रं. २५००, (वि. सर्वगाथा - १३५५.) १९९२५. नंदीसूत्र सह टवार्थ व सर्वजीवआश्रयी अवधिज्ञान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, जैदे., (२७.५X१२.५, २-१४X३६-४६). १. पे. नाम. नन्दीसूत्र सह टवार्थ विस्तृत, पृ. १आ-२२अ, अपूर्ण. नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि जवइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, नंदीसूत्र - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी ते आनंदनी देण; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. सर्वजीव आश्रयी अवधिज्ञान विचार, पृ. २२आ, अपूर्ण. जैन सामान्यकृति”, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९९२६. . (+) दशवैकालिक सूत्र - अध्ययन १ से ४ व जैन श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५, ११४३७). १. पे. नाम. दशवैकालिक सूत्र अध्ययन १ से ४, पृ. १अ ६अ. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंति: (-), ग्रं. १७५, प्रतिपूर्ण २. पे. नाम. जैन श्लोक, पृ. ६आ. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १. १९९२७. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैवे. (२९x१२, ३-४X३५-४३). For Private And Personal Use Only जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण जे त्रिन भुवन; अंति: विषेथी उद्धर्यो. १९९३३. (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य - महावीरचरित्र तक, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ११-१४४२९-३८). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, आदि: पुत्राः पंचमतिश्रुता; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९९३४. नलदवदंती चौपाई, संपूर्ण, वि. १७४०, पौष कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदे., (२७४१३, १४४३९). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर भणै भावसुं, खंड-६, ढाल ३९, गाथा-९१३, ग्रं. १३५०. १९९३५. (+) द्वादशव्रतविधौ जिनपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८८७, चैत्र शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२८x१२, १३४४१-४३). १२ व्रत पूजाविधि, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: (१)उच्चैर्गुणैर्यस्य, (२)सुखकर शंखेश्वरप्रभु; __ अंति: (१)टालवा १२४ दीवा करीइं, (२)जग जस पडह वजायो रे, गाथा-१२४, ग्रं. २०३. १९९३६. जंबूप्रीछा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२८.५४१२, ११४३४-३८). जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सरवदा पुरे; अंति: वीरजीमुनि सुखकारी, ढाल-१३. १९९३७. संदेहदोहावली सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पृ.वि. म. गाथा-७ तक हैं., जैदे., (२८.५४१२, १४४१-५४). संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पडिबिंबिय पणय जय; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. संदेहदोलावली प्रकरण-बृहद्वृत्ति, वा. प्रबोधचंद्र, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानप्रभु; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १९९३८. सूयगडांगसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१-१२(१५ से १७,१९ से २१,३३,४२,४७ से ५०)=४९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२८x१२.५, १३-१५४५०-५७). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), अपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: स्वपरसमयार्थसूचकमनंत; ____ अंति: (-), अपूर्ण. १९९४०. (+) सारस्वतप्रक्रिया सह दीपिका टीका - प्रथमवृत्ति, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, पू.वि. समास प्रकरण से प्रथम वृत्ति तक हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२८x१२.५, ८-९४३५-४१). सारस्वत प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९९४१. चतुर्विंशतिजिन पूजा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९८, जैदे., (२८x१२.५, ७-९४३०-३५). चतुर्विंशतिजिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहिं., पद्य, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: कीर्ति जग विस्तरै, पूजा-२४. For Private And Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६६ , जै... १९९४२. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८७-५० (१ से २१,२४,३१,३४, ३६ से ३९, ४२ से ४३, ४९, ५१ से ५२,५४ से ५५,५७,६०,६३ से ६४, ६७ से ७०, ७५ से ७७,७९, ८२ से ८३, ८५ ) - ३७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२८x१२.५, ७४२६-२७ ). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, १९९४३. योगशास्त्र सह स्वोपज्ञ वृत्ति ५ से १२ प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्र. वि. जैवे. (२८x१२.५, १३४४८). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि (-); अंति: श्रीहेमचंद्रेण सा प्रतिपूर्ण, 9 योगशास्त्र- स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि (-); अंतिः भव्यो जनो भवतात्, प्रतिपूर्ण. १९९४४. भाव प्रकरण सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है, गाथा १-१४ तक है।, प्र. वि. त्रिपाठ, जैदे., (२७.५४१३.५, ११४१४-४२). , , भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदिः आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: (-), अपूर्ण. भाव प्रकरण- स्वोपज्ञ टीका, ग. विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नत्वा श्रीजिनशंभव; अंति: (-), अपूर्ण. १९९४७. (+) पाखी सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे., (२८x१३.५, १४४३४). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्यंकरे व तित्थे; अंति: जेसिं सुबसाखरे भत्ति. १९९४८. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७१२, १७४५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: ( ), ( प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू. वि. गाथा - ३८ तक लिखा है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: तत्रेदमादिवृत्तइयं अंतिः सुगुरुप्रसादात्. १९९४९. विचारपंचासिका सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १० -२ (१ से २) = ८, पू. वि. गाथा ७ तक नहीं हैं., जैवे. (२७.५x१२.५, ३-४४३३-३७). विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: विमलसूरिवराणं विणएण, गाथा- ५१, अपूर्ण. विचारपंचाशिका-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हुये कस्यो इत्यादि, अपूर्ण. १९९५०. भावनावेलि, संपूर्ण, वि. १८८३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२७.५X१३.५, ११×३६). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेश्वर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल - १३, गाथा - १२८. १९९५२. दानशियलतपभावनुं चोढालिय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२७.५X१४, १०x३२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल - ५. १९९५४. अढारपापस्थानक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैवे. (२७४१२.५, १२x३९). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः पापस्थानक पहिलुं कहि; अंतिः सेवक वाचकजस इम आखेजी, सज्झाय - १८. For Private And Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १९९५५. सिद्धांतप्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. सावइजेपूर, . फतां ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२९.५x१२.५, २०-२३४५८-६६ ). प्रले. मु. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धांत प्रश्नोत्तर, मु. दोलतराय, मा.गु., गद्य, आदि (१) सिद्धत्य सवसंजलवा, (२) लोकांतिक देवता नियमा; अंति: साथ रोज भोगवे. १९९५८. (+) 'कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८८+२ (९४,१७१) - २९०, प्रले. ग. कस्तुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२८.५१३, ५-१७३१-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (१) णमो अरिहंताणं० पटमं, (२) तेणं काले० समणे; अंति: उवदंसे ति बेमि, व्याख्यान ९ ग्रं. १२१६. , कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो० नमस्कार होजो; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू. वि. अंतिम कुछेक भाग का ही टबार्थ नहीं लिखा है.) कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही अंतिः आज्ञानो आराधक जाणवो. १९९५९. भविष्यदत्त चरित व श्लोक, संपूर्ण, वि. १६६१, भाद्रपद शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६१ - १ (३५*) = ६०, कुल पे. २, ले.स्थल. अंबावती, राज्यकाल रा. मानसिंघजी; लिख. श्राव. साधु शाह; गृही. श्रावि. वाल्हाबाई, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र. वि. पेज नं. ३४ और ३५ एक ही पेज पर लिखे हुए है। श्री आदिनाथ चैत्यालये लिखितं., जैवे. (२८.५x१२.५, १०-११४४०-४६). १. पे नाम, भविष्यदत्त चरित, पृ. १आ ६१अ. भविष्यदत्त चरित्र, मु. श्रीधर, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं त्रिजगन्नाथ; अंति: कीर्तिधवलीकृतलोकाः, सर्ग १५. २. पे. नाम. श्लोक, पृ. ६१ आ. श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. १९९६०. दानसीलतपभाव कुलं सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८१५-१८१६, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, पोरविंदर, प्रले. सा, कूयर आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७.५१३, ५-६३९-४१). " दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः सूरि खमउ तेणं, गाथा-४९, (वि. १८१५, कार्तिक कृष्ण, ०) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेवनई नमस्कार; अंतिः ते खमज्यो सूरि अरथ, (वि. १८१६, आश्विन कृष्ण, ० ) १९९६१. सम्यक्त्वकौमुदी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२८.५X१३, ९X५०-५४). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सम्यक्त्वकौमुदी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमान चतुर्विंशत; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. तृतीय पत्र तक ही रचार्थं लिखा है.) १९९६३. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे., (२८x१३, १३X३६-४०). ३६७ पट्टावली खरतरगच्छीय, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३०, आदि: प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंति: भट्टारकपदं प्राप्ता. For Private And Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९९६५. मालारोपण, उपस्थापना व अनुयोग विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, जैदे., (२८x१३.५, ११४४७). १.पे. नाम. मालारोपण विधि, पृ. १आ-४अ. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: महरत प्रथम दिवसे; अंति: पछी पहिरावी सुझइं. २. पे. नाम. उपस्थापना विधि, पृ. ४आ-५आ. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नांदि मांडिने खमा; अंति: उत्तर साह्मउ राखीनइं. ३. पे. नाम. अनुयोग विधि, पृ. ५आ. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: काजउ पुंजी डांडा; अंति: उपस्थापना आलोचना. १९९६६. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२८.५४१२.५, १३-१६x२५-३०). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: थुण्यो जिन चौविसमो, ढाल-८. १९९६७. अणुत्तरोववाइयदसा सुत्तं सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२८x१२.५, १४४४०-४१). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंति: (१)शेषमंतकृद्दशांगवदिति, (२)न क्षायमिति क्षमा, ग्रं. २२०४. १९९६८. शतार्थवृत्त काव्य सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९६९, आश्विन शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. कला गोपीनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, १४४२९-४५). साधारणजिन शतार्थी स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणसारसवितानहरे; अंति: भाव परमागम सिद्धसूरे, गाथा-१. साधारणजिन शतार्थी स्तुति-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., प+ग., आदि: अत्र स्तुताश्चतुर्वि; अंति: (१)वृत्तान्युत्पद्यते, (२)शतार्थं व्यधात्. १९९६९. सुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., वर्ग २ गाथा ३२ तक है।, जैदे.. (२७.५४१२.५, १३४४६-५३). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: (-), अपूर्ण. १९९७०. अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, १४४४६). अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: ब्रूमः किमध्यात्ममहत; अंति: न चित्छूद्धस्वरूपः, श्लोक-३२. अध्यात्मबिंदद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या, म. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, आदि: अनंतविज्ञानविभूति; अंति: ज्ञानं न सिद्ध्येत. १९९७१. (+) सोभन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१४, १४४४३). शोभन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. For Private And Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३६९ १९९७२. शुद्धआंबिल विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संस्कृत, प्राकृत पाठ का मारुगूर्जर भाषा में टबार्थ रूप विवरण भी दिया गया है., जैदे., (२७४१४, ६-१२४२८-३६). शुद्धआंबिल विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: साधुने आंबिलमाहि; अंति: तिसुवि विभासियव्वं. १९९७३. (+) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९२, फाल्गुन शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले.स्थल. पादलिप्तनगर, प्रले. मु. शांतिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२८x१३.५, ७४४७-६०). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषई ते; अंति: ते जीव आराधक कह्या. १९९७५. सज्झायसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१३, ६४२१-२४). १.पे. नाम. साधु अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, पृ. १अ-१६अ. ___मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: भिष्ट भागल विकल हुवा; अंति: पोससुदि आठम मंगलवार, गाथा-६१. २. पे. नाम. श्री उपर सज्या, पृ. १६अ-२७आ. मिश्रदृष्टि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: केई भेषधार्यांरी; अंति: न जाण्यों लिगारो रे, गाथा-५६. ३. पे. नाम. सिंजीयानिठारी सिझाय, पृ. २७आ-३१आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२१ अपूर्ण तक हैं. संजयनियंठा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: परिसेवणा दुवार छठो; अंति: (-), अपूर्ण. १९९७६. षट्पर्विमाहात्म्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७.५४१२, १२४४०). महावीरजिन स्तवन-षट्पर्वी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगुरुपदपंकज नमी; अंति: नाम षटपर्वी धर्यो, ढाल-९. १९९७७. (+) अतिचार श्रावकना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ५. प्रले. म. सौभाग्यमाणेक (खरतरगच्छ): पठ. श्रावि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२.५, १३-१४४३३-३६). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमिदंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम. १९९७८. दया उपर हरिबलनी चोपई, संपूर्ण, वि. १९३६, कार्तिक कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. मंगलसेन (गुरु मु. ख्यालीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, १४-१७४३५). हरिबल चौपाई, उपा. पुन्यहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८, आदि: श्रीगुरु पाय प्रणमी; अंति: पाठक० घरघर मंगलमाल, ढाल-१७. १९९८०. मेरुत्रयोदशी कथा, संपूर्ण, वि. १९०४, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. गोधावी, प्रले. पं. जतनकुसल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीविरवर्द्धमानस्वामी प्रसादात्., जैदे., (२८.५४१४, १२४३९). मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भारतीं; अंति: मुक्तिसाधनं कृतः. १९९८१. भवनदीपक ज्योतिषशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९५०, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. आनंदपूर, प्रले. पं. ऋद्धिसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आणंदपूर का अन्य नाम वाढिया भी है., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२८x१४.५, १५४४४). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७८. For Private And Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७० www.kobatirth.org भुवनदीपक बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सास्वती संबंधीओ; अंति: (-), (पू. वि. अंतिम श्लोक का लावबोध नहीं लिखा है. ) १९९८२. विवेकविलास सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २१३ - १ ( ९९* ) = २१२, ले. स्थल. आमलनेर, लिख. श्रावि. चुनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक ९९ अवास्तविक घटते पत्र है., त्रिपाठ., जैदे., (२८.५X१३, १-३४४०-५१ ). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस; अंतिः परैरभ्यस्यमानो बुधैः, उल्लास - १२. विवेकविलास- वृत्ति, उपा. भानुचंद्र, सं., गद्य, वि. १६७१, आदि : आनम्रकम्रामरपूर्व; अंतिः तत् परैः तत्परेति. १९९८३ () नर्मदासुंदरी चोपाई व ककावतीसी, संपूर्ण, वि. १९१३ कार्तिक शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे, २, प्रले. चतरुंछजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२८x१३.५, २०x४६). १. पे. नाम. नर्मदासुंदरी चौपाई, पृ. १-६अ. क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक समरीयै; अंतिः ए शीलगुणारी खानक, डाल- १५. २. पे नाम, ककाबत्तीसी, पृ. ६२-६आ २. पे. नाम. सामान्य पद, पृ. २२आ. ककावत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका कर कुछ काज धर्म; अंतिः कोय लखाया अकननमाट, गाथा-३३. १९९८४. () ज्ञानप्रकाश व पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९५९, कार्तिक कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुल पे. ३, प्रले. मु. श्रीचंदजी ऋषि ( गुरु ऋ. रघुनाथ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२८x१३, १४x२६-२८). १. पे. नाम. ज्ञानप्रकाश, पृ. १आ - ३२अ. क. नंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: वद्धमाण नमो किच्चा, अंतिः मिच्छामि दुक्कडं था, २०. अजैन गाथा *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), गाथा - १. For Private And Personal Use Only स्कंध १, कांड ३. पे. नाम, साधु श्रावक के पांचअभिगम, पृ. २२आ. मा.गु., पद्य, आदि: पांच अभिगम साधुकै; अंति: पांचअभिगम चीन, गावा- २. १९९८६. शिष्यहितान्यायप्रवेशकावृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २२, जीये. (२८४१५, १०४५०). " " न्यायप्रवेशसूत्र - शिष्यहिता वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः सम्यग्ज्ञानस्य अंति: भूमिरिति चार्वाकाः. १९९८८. (+) उपदेश बावनी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९३३ फाल्गुन शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, कुल पे. २, प्र. वि. श्री आदिजिनप्रसादात, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८४१३, ४४३८). १. पे. नाम. कृष्णदासबावनी, पृ. १आ - २८अ. वा. किशन, पुहिं, पच, वि. १७६७, आदि अकार अमर अमार अविकार; अंतिः किसन कीनी उपदेशबावनी, गाथा - ६१. अक्षरबावनी- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम ॐकार अथवा अंतिः श्रीकृष्णजह कीधी. २. पे. नाम. कवित्त, पृ. २८अ - २८आ. औपदेशिक कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: समर एक अरिहंत रयण; अंति: अवर आल मम उच्च.. Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३७१ १९९८९. पर्युषणदशशतक सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९६२, माघ शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. पट्टण, लिख. मणिलाल ओझा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२८.५४१३, १५४४३). पर्युषणादशशतक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं वीरजिणिंदं; अंति: लिहिआ दसगाहसयगेणं, गाथा-११२. पर्युषणादशशतक-वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: बोध्यमिति गाथार्थः. १९९९०. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९२५, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. पाटण, प्रले. नरभेराम अमुलख ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचासराजी प्रसादात्।, जैदे., (२८x१४.५, १३४३७). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदीनाथनी जो; अंति: रामविजय जयसिरी लहि, स्तवन-२४. १९९९१. (+) अगडदत्त व चंदन-मलयगिरीरास, संपूर्ण, वि. १९७२, वैशाख कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्रले. मु. जीतमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२७४१२.५, २२-२४४५०-५८). १. पे. नाम. अगडदत्त रास, पृ. १अ-६अ, वैशाख कृष्ण, ८, मंगलवार, ले.स्थल. जिंद. क. नंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: सिद्धरिधनिधदायका; अंति: पढे गुणे सुखसाता पाम, ढाल-१६. २. पे. नाम. चंदनमलयगिरी रास, पृ. ६अ-१०आ, वैशाख कृष्ण, १४. सा. पार्वतीजी, मा.गु., पद्य, वि. १९५१, आदि: सासण नायक समरिये; अंति: कीयो अमृतवेलासार, ढाल-२१. १९९९२. दीवाली स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९६, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. पं. शिवचंद (पार्श्वचंद्रसूरी गच्छ); पठ. श्रावि. सांकलीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४१२, १०-१२४२४-३४). दीपावली स्तवन, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: श्रीगुणहर्ष वधांमणइं, ढाल-१०, गाथा-१२१. १९९९३. कायस्थिति स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७.५४१२.५, ४४३३-३६). कायस्थिति स्तोत्र, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपदसंपदं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जिम ताहरा दर्शन रहित; अंति: संपदा प्रते दिओ. १९९९४. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, संपूर्ण, वि. १८५२, पौष कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. सूर्यपूर, प्रले. मु. मयारत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, १५-१६x४८-५२). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: श्रीजिन सरस्वती संत; अंति: नित होय मंगलमाल रे, ढाल-२७, ग्रं. ५३२. १९९९५. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(२)=८, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., है. कलस अधूरा है., जैदे., (२७७१३, ११४२८-३०). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), अपूर्ण. १९९९६. (#) पासाकेवली शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रावण शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. योधपूर, प्रले. पं. शिवचंद (खरतरबृ.आचार्यग.), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १०४२७-३०). पाशाकेवली-भाषा*,मा.गु., गद्य, आदि: ऊँ नमो भगवति; अंति: कियां भलो थास्यै. For Private And Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९९९७. तृतीय कर्मग्रंथ-६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, जैदे., (२६.५४१३). बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., आदि: श्रीवर्धमान जिनचंद्र; अंति: तिर्यंचआउ एवं १५ हीन. १९९९८. द्वितीय कर्मग्रंथ सूचामात्र यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, जैदे., (२६.५४१३). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९९९९. (+) कल्पसूत्र अंतर्वाच्य+कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पृ.वि. मेघकुमार वर्णन तक लिखा है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१३, ८x२६-२७). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २००००. अट्ठाइ व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. धोलेरा, प्रले. रामजी झवेरदास पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, १२४३५-३७). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: वांछित सिद्ध थाये. २०००२. पंचमी देववंदनविधि, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., केवलज्ञान स्तवन गाथा ६ तक है., जैदे., (२७.५४१४.५, १३४३३). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: (-), पूर्ण. २०००४. ऋषभजिन तेरभव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२७.५४१४.५, १३४४२). आदिजिन १३ भव स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी पासजिन; अंति: प्रेमविजय आनंद करो, ढाल-१५, गाथा-१३१. २०००६. समोवसरण स्तोत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. जैदे., (२७.५४१४.५, ४४३२). समोसरण स्तोत्र, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलित्थ; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-टबार्थ, पंन्या. रुपविजयजी, मा.गु., गद्य, आदि: स्तवनां करुं छु; अंति: टबार्थः प्रयत्नेन. २०००७. (+) २४ दंडक २९ द्वारविचार, संपूर्ण, वि. १९४७, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. लिंबडी, प्रले. श्राव. अमुलख वलुभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१३, ११४३४-४०). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. २०००९. अठाई स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६४१३, १२४२६-२९). ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: स्याद्वाद शुद्धोदधि; अंति: बहु संघ मंगल पाइया, ढाल-९. २००१०. दानशीलतपभावना चोपाई व सर्वार्थसिद्धचंद्रोदय सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(६)=६, कुल पे. २, श्लो. (१२८) पोथी प्यारी प्रेमकी, (६१८) जलाद् रक्षेत् स्थलाद् रक्षेत्, (७३२) मुरख कुंपोथी दीये, जैदे., (२७.५४१३, १२-१३४३०-३१). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना चोपाइ, पृ. १आ-५आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल ४ दूहा ४ तक है. For Private And Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org ३७३ दालशीलतपभाव चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), अपूर्ण. २. पे नाम. सर्वार्थसिद्धचंद्रोदय सज्झाय, पृ. ७अ ७आ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः पुण्य थकी फले आश रे, गाथा - १५, अपूर्ण. २००११. पुण्यपाप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैवे. (२७.५x१३, १०x२९-३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्यपाप स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: सरसतिनं प्रणमु सदा; अंतिः विवेक लहे आणंद ए, ढाल - ११. २००१२. षट्अठाई स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे., (२७.५४१३, १०x२७-२९). ६ अड्डाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्याद्वाद शुद्धो; अंति: बहु संघ मंगल पाइया, ढाल - ९. २००१३. मयणरेहा व चंदनबाला की ढाल, संपूर्ण, वि. १९३४, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. पं. मंगलसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६x१२.५, १८x४० - ४८). १. पे. नाम. मदनरेखा रास, पृ. १अ - ४अ. मदनरेखासती रास, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि आदि धर्म धोरी प्रथम; अंति: ए सुणो भवि एक मन, ढाल - ६. २. पे. नाम. चंदनबाला चौपाई, पृ. ४अ - ६आ. चंदनबाला री ढाल, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदिः फणीमणीमंडित निलतन; अंति: चंदजी ढाल की रसाला, ढाल - १४. २००१४ (+) नलदवदंती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९५४ वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले. स्थल, सिंघाणा, प्रले. पं. मंगलसेन; पठ. मु. रूघनाथ (गुरु पं. मंगलसेन ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X१२.५, १८-२३x४३-५९). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंतिः चित्त वसी, खंड ६, डाल ३८, गाथा-९१२. ग्रं. १३५०. २००१५. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९४०, आषाढ़ कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैवे., (२८x१३, ११४३०-३४). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इहां सुशिष्य पूछै; अंति: मुक्तपदार्थ मिले. २००१६. (+) रत्नाकरपच्चीसीगर्भित वीतराग स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६ कार्तिक कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७१२.५, ४X३१-३४). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मंगल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक २५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः श्रेयः क० कल्याण; अंति: छं बीजुं नथी मागतो. २००१७. (+) चतुर्मासिकत्रयी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८९६, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. पं. क्षेमचंद्र ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७१२.५, १०-१२x३२-३६). For Private And Personal Use Only 'चतुर माणस Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: व्याख्यानमाख्यानभृत्, ग्रं. ४०१. २००१८. श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रावण शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ.८, जैदे., (२७X १२४३२-३६). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमि०; अंति: पक्षदिवस माहि, ग्रं. २००. २००१९. समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ६०४ तक है., जैदे., (२७४१२.५, १०-११४२९-३७). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर: अति: (-), अपूर्ण. २००२०. अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रावण कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले.स्थल. फतेगढ, प्रले. मु. मोतीविजय; राज्यकाल रा. वागसिंघजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५६६) अदृष्टिदोषात् प्रतिविभ्रमा च, (६५४) जला रक्षे स्थलात् रक्षे, जैदे., (२६४१२.५, ७४३१-३८). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मास्वामीइं जंबू; अंति: सगलुं कहवू जाणवू. २००२१. वीरजिननिर्वाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५३, फाल्गुन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. अहमदाबाद, जैदे., (२७४१२.५, १०४२६-२९). महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणां, ढाल-१०, गाथा-१२५. २००२२. जीवविचार सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. मांडल, प्रले. मु. दयासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, ३४२४-२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० स्वर्ग; अंति: क० सूत्रसमुद्र थकी. २००२३. दंडकनामा २९ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९७१, चैत्र कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. स्तंभनपूर, प्रले. कुबेरदास रणछोडदास पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, ११४३४-४३). चौबीसदंडक उनतीसबोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. २००२४. जंबुपृच्छा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पूर्णता ढाल १३ गाथा ३ तक है., जैदे., (२७४१२.५, १३४३६-४२). जंबूपृच्छा चौपाई, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सरवदा पुरे; अंति: (-), अपूर्ण. २००२५. पच्चीसी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६०, ज्येष्ठ शुक्ल, ७ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, ११४३४-३७). १. पे. नाम. सुगुरुपच्चीशी सज्झाय, पृ. १आ-२आ. For Private And Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३७५ मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु पीछाणों एणे; अंति: शांतिहर्ष उछरंगजी, गाथा-२५. २. पे. नाम. कुगुरुपच्चीसी, पृ. ३अ-४अ. मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: भणे तेजपाल सुखदाय, गाथा-२५. ३. पे. नाम. ढुंढकपच्चीसी, पृ. ४अ-५आ. ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी प्रणमी; अंति: पयंपे हितकारी अधिकार, गाथा-२५. २००२६. चौवीसजिनवर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७४१२.५, १०४३०-३३). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता वाणी; अंति: भाव धरीने भणो नरनारी, गाथा-२९. २००२७. विविधतपगणणु विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२८x१२.५, १०x२८-३६). विविधतपगणणुविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलगिरीराजा; अंति: ५वाना पकवान फूल ढोइए. २००३१. (+) सम्यक्त्वकौमुदी कथानक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४३, फाल्गुन शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ५५-२४(१,३० से ४०,४२ से ५३)=३१, ले.स्थल. जावला, प्रले. प. प्रेमविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ९४३९-४८). सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदि: (-); अंति: स्वर्गमश्नुते, ग्रं. ११५१, अपूर्ण. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षनो सुख पावै, अपूर्ण. २००३२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९३४, कार्तिक कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले.स्थल. रुपनगढ, प्रले. मु. अभयराज (गुरु मु. पाहडमल); पठ. मु. हरनाथ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, १८-२१४४३-५४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. २००३३. प्रदेशीराजा चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२.५, १३४४५-५०). प्रदेशीराजा चरित्र, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभिभूपालकुले; अंति: (-), अपूर्ण. २००३४. (+) अंतगडदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६३२, पौष शुक्ल, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. सारंगपुर, प्रले. मु. थावर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संबंधित यंत्र दीये गये है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२, १६x४५-४८). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२. २००३५. २४ दंडक ३० द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३३-३७). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणा अधिक. २००३६. स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्तवन ४ गाथा १ तक है., जैदे., (२७.५४१२.५, १३-१४४४१-४६). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणंदशु प्रीतडी; अंति: (-), अपूर्ण. स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथ प्रमुख; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २००३८. आठकर्म विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, २१-२५४६२-६७). आठकर्म प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो ज्ञानावरणीकर्म; अंति: (-), अपूर्ण. २००३९. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९३५, कार्तिक शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. जयतारण, प्रले. शिवचंद वाणारस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, ११४३१-३५). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सांजरी वेला चारित्र; अंति: चलाइजै अक्षत चलाइजै. २००४०. (+) वैद्यवल्लभ सहटबार्थ व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-७(६ से ९,११ से १२,१८)=१९, कुल पे. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४१२, ६४३३-४१). १.पे. नाम. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, पृ. १आ-२६आ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि ध्यात्; अंति: परोपकाराय विहितोयम्, विलास-९, अपूर्ण. वैद्यवल्लभ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसरस्वतीने; अंति: अर्थी कर्यु, अपूर्ण. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २००४२. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदे., (२६४१२, १३४५०-५५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, __ अध्ययन-१०, गाथा-७००. २००४३. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५९, भाद्रपद शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. कासंद्रा, प्रले. मु. शिवरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १२-१३४३५-३७). जीवविचार स्तवन, म. वद्धिविजय. मा.ग.. पद्य, वि. १७१२. आदिः श्रीसरसती रे वरसती: अंति: विजय भणइ आणंदकारी, ढाल-९, गाथा-७९. २००४४. एकीभाव स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८५४, पौष शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. नीबडी, प्रले. पं. नथमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ४-६x२९-३१). एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: एकीभावंगत इव मया; अंति: वादिराजमनुभव्य सहाय, श्लोक-२६. एकीभाव स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: जिनेषु रविः सूर्यस्त; अंति: अनुयोगे द्वितीया. २००४५. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८२१, भाद्रपद कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३३, ले.स्थल. भमराणां, प्रले. ग. विनयविजय; पठ. पं. भाग्यविजय (गुरु ग. विनयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १५-१६x४१-४५). मानवतीमानतुंग रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४६. २००४६. (+) उपासकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५७, आश्विन शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५+१(१३)=३६, प्र.वि. अंतिम पत्र नया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२७७१२, १२-१३४३२-३६). For Private And Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७७ उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: (१) दिवसेसु अंगं तहेव, (२) सिद्धिं गमिस्संति, अध्याय- १० प्र. ८१२. २००४७. वाग्भट्टालंकार, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२७१२, ११x४०-४४). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु अंति: सारस्वतध्यायिनः परिच्छेद ५. २००४८. जीवविचार स्तवन, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा ७८ अपूर्ण तक है., जैदे., (२७१२, ११३२-३५). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसती रे बरसती; अंति: (-), पूर्ण. २००५०. भगवतीसूत्र बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३६-२२ (१,३, ६ से १०,१२ से १४,२१ से ३२ ) - १४, जैवे., (२७१२, ३७-४८x२४-२८ ) . भगवतीसूत्र- बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मार्गनुं आराधक हुइ, अपूर्ण. २००५१. विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६४, माघ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६x१२, २-३X१६-३१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चडवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ गाथा ४०. दंडक प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः हितनी करणहारी छइ. २००५३. श्रेणिकराजा रास, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, पू. वि. मात्र प्रथम खंड ही है., पठ. सा. रंभाई आर्या (गुरु सा. आर्या राणी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १२-१५४३२-३८). श्रेणिकराजारास, मु. भीमजी, मा.गु., पद्य, वि. १६२१, आदि: गोतिमनइ सिर नमिय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, २००५४. ऋषिदत्ता रास, संपूर्ण, वि. १६६६, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. मु. धर्मसिंह ऋषि पठ. मु. नानजी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२८x१२, १५ - १६x४४-४९). ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., पद्म, वि. १६४३, आदिः उदय अधिक दिन दिन; अंति: फल्यो दिन दिन आस, ढाल - ३८, गाथा - ५६५. २००५५. साधुश्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२८x१२, ४-५X३३-३७), साधुआवक प्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं०; अंतिः (-), अपूर्ण. साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र स्थानकवासी टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार होज्यी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व वंदित्तासूत्र के कुछेक अंश का ही टबार्थ लिखा गया है.) , २००५८. श्रेणिकराजा रास खंड-२, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है, अंतिम गाथा का अंतिम पाद नही है।, अन्य. मु. कल्याणभवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X१२, १३-१६X३८-४५). श्रेणिकराजा रास, मु. भीमजी, मा.गु., पद्य, वि. १६२१ - १६३६, आदि: (-); अंति: ( - ), प्रतिअपूर्ण. २००५९. सुरप्रियऋषि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले, मु. जोधा ऋषि (गुरु मु. रामजी ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (२८x१२, १२-१३x२८-३२ ). सुरप्रियसाधु रास, मु. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवि सदा मनि; अंतिः ते निश्चइ भवसावर तरइ. २००६१. (+) पंचमंगल, संपूर्ण, वि. १९०८, चैत्र शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. अमरकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X१२, १० - १३३०-३३). For Private And Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचकल्याणक स्तवन, मु. रूपचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: पणमवि पंच परम गुरु; अंति: जिनपतिदेव चोसंघह जयो, गाथा-२५. २००६२. संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८-१(१)=५७, पृ.वि. गाथा ३ से १५० तक लिखा है., जैदे., (२६४१२.५, १०४२७-३१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २००६३. कानहड चउपइ वसज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, ले.स्थल. लिजपुर, जैदे., (२६४११.५, १६४३९). १.पे. नाम. कानहड चउपइ, पृ. १अ-७अ. कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं मुदा; अंति: दिन दिन वधते रंग, ढाल-९. २. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ७अ-७आ. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल दे मात मल्हार; अंति: लबधे लिखमि घणीजी, गाथा-१७. ३. पे. नाम. सज्झाय, पृ. ७आ. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: मुगति तणा फल त्याह, गाथा-६. २००६४. नियंठाविचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ३१ द्वार तक है., जैदे., (२६.५४१२.५, १६-१७४५२-५४). नियंठाविचार-भगवतीसूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पण्णवय१ बेयर रागे३, (२)पुलाक१ वकुश२ कुसील३; अति: (-), अपूर्ण. २००६५. जिनचैत्य तथा जीर्णचैत्य बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रावण कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. रणोज, लिख. मु. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १४४३८-४०). बिंबप्रवेश विधि, सं.,मा.गु., गद्य, आदि: हिवे पूर्वोक्त भला; अंति: रात्रि जागरण करे. २००६६. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८१४, ज्येष्ठ कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२-२(५ से ६)=१०, प्रले. पंन्या. हर्षसौभाग्य (गुरु ग. जयसौभाग्य); पठ. श्राव. अमरा; लिख. श्रावि. संतोष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१२, ११-१३४३३-३५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: वोसिरियं० मएगहियं, ग्रं. १९००, अपूर्ण. २००६७. वीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(३)=५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-८३ तक है. (बीच मे गाथांक २९ से ४७ तक नहीं हैं), जैदे., (२७४१२, १०४२६-३०). महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति द्यो मति; अंति: (-), अपूर्ण. २००६८. संबोधसप्तति, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रावण कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. १८+१(१६)=१९, ले.स्थल. जैतारण, ___ पठ. श्राव. युवारमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, ५४२०-२५). For Private And Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३७९ संबोधसत्तरी, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरु; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-१०५. २००६९. पाक्षिकसूत्र व खाम्मणा, संपूर्ण, वि. १९६४, आषाढ़ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३५-३८). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१२आ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (१)मिच्छामि दुक्कडं, (२)जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १२आ-१३आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (१)इच्छामि खमासमणो पियं, (२)पियं च मे जं भे; अंति: नित्थारग पारगा होह. २००७२. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १२५-२४(१ से १६,११४ से ११८,१२२ से १२४)=१०१, जैदे., (२६.५४१२.५, ६x२२-२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, अपूर्ण. २००७३. श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४+५(१ से ५)=१९, प्र.वि. प्रारंभ में श्लोकानुक्रम दिया गया है., दे., (२७४१२, ११४३३-३८). श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमाना; अंति: यान्ति विनायकाः, श्लोक-१९२. २००७४. चतुःशरणाध्ययनं सह बालविबोध (टबार्थ), संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२७.५४१२.५, ६४३०-३४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६२. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, ग. लाभकुशल, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलिक भणी पहिलउ; अंति: सुखनु कारण छइ. २००७५. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टीका व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. मु. तुलसीराम (गुरु मु. लूणकरण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, (५६१) यावत् चंद्ररविलोके, (६१४) यादृसं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२६.५४१२.५, ८-९४६०-६५). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, (वि. १८८५, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मंगलवार) अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंति: ननु विधीयतां सर्वथा. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइं कालई चउथई; अंति: (१)शोध्य वाच्यताम्, (२)धर्मकथामाहि छिई तिम, (वि. १८८५, आषाढ़ कृष्ण, ७, बुधवार) २००७६. (+) दशाश्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. मु. तुलसीराम (गुरु मु. लूणकरण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२६.५४१२.५, ७४४४-४५). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीदशाश्रुतस्कंध; अंति: मात्र अर्थ पुरो थाइं. २००७८. द्रव्यगुणपर्याय रास, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. १८, पठ. श्रावि. मूलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१२, ११-१२४३३-३५). For Private And Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीगुरु जितविजय मन; अंति: जसविजय बुद्ध जस करी, ढाल-१७, गाथा-२८५. २००७९. विरनिर्वाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२७.५४१२, ११४२८-३१). महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रमणसंघतिलकोपमं; ___ अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणां, ढाल-१०, गाथा-१२५, ग्रं. १९५. २००८०. (+) भगवतीसूत्र - शतक १२, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०-१(२७)=२९, अन्य. मु. हाथी ऋषि (गुरु ऋ. मांडण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२, ११४४०-४५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २००८१. विरजिन दिवालीमहोच्छव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२८x१२, ११-१३४३४-३७). महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, म. गणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रमणसंघतिलकोपमं; ___ अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणे, ढाल-१०, गाथा-११९. २००८२. सीमंधरजिनवीनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-२(४ से ५)=६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-९० तक है., जैदे., (२७४१२, १२४२१-२५). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमधर विनती%B ___ अंति: (-), अपूर्ण. २००८३. (+) लघुसंग्रहणीदंडक स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, आश्विन अधिकमास कृष्ण, १२, गुरुवार, जीर्ण, पृ. ५, ले.स्थल. वीरपूर, प्रले. डाया लटकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, ४-५४४६-४८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४१, ग्रं. ५५. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने चोवीस; अंति: आपणा हितने अर्थे, ग्रं. १२०. २००८५. अक्षयनिधितप स्तवन व तपविधि, संपूर्ण, वि. १९७१, कार्तिक कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, पठ. सा. मोहनश्रीजी (गुरु सा. जतनश्रीजी, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, ११४३८-४०). १. पे. नाम. अक्षयनिधितप स्तवन, पृ. १आ-४आ. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: श्रीशंखेश्वर शिर; अंति: नाचवा घर बारणे, ढाल-५, गाथा-५१. २. पे. नाम. अक्षयनिधितपनी विधि, पृ. ४आ-८आ. अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम इरियावही कहेवी; अंति: च्यार वरस लगे करवू. २००९०. (+) मदनराजरिषि चतुःपदी, संपूर्ण, वि. १७०८, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. उष्मांपुर, प्रले. ग. कमलविजय (गुरु ग. धनहर्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, १५-१६x४५-५२). मदननरेश्वर चौपाई, मु. दामोदर, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: आदि जिणेसर अतुलबल; अंति: परभवि सुर शिव लील, गाथा-५५५, ग्रं. ८५०. २००९१. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ७-९४३९-५३). For Private And Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. ५००. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रश्नव्याकरण दसमउ; अंति: अनंतसिद्ध सुख पामिइ, ग्रं. ११००. २००९२. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ+कथा, संपूर्ण, वि. १९४४, कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ६६, ले.स्थल. रणी, प्रले. मु. ठाकरसी महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, जैदे., (२६४१२, ४-५४३१-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, गाथा-७००. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)ध० दुर्गत पडता जीवनइ; अंति: स्वमति करी नथी कहतउ, ग्रं. ६०००. २००९४. (+) द्रौपदीरा पछालाभवांरो इधकार चोपी, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. टोडरमल; पठ. मु. पोमा (गुरु मु. टोडरमल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जेतसीस्वामी के पास चातुर्मास में रहकर लिखी गयी प्रति., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४१२, १६x४०-४३). द्रौपदीसती रास, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: सकल जिनेसर नित नमु; अंति: रिषि चोथजी कहे हुलास. २००९५. समोसरण व २३ पदवी विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १६४३९-४६). १. पे. नाम. समोसरण विचार भगवती शतक ३०, पृ. १अ-४अ. समवसरण विचार-भगवतीसूत्रे-शतक३०, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाय लेश पखी दिट्ठी; अंति: द्वारनी परि जाणवा. २. पे. नाम. पदवी २३ पन्नवणासूत्रोक्त, पृ. ४अ-५आ. २३ पदवी विचार - पन्नवणासूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर चक्रवर्ति; अंति: केवली साधु समदृष्टि. २००९७. (+) संग्रहणी सूत्ररूपयंत्रसहित, संपूर्ण, वि. १७७८, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ११४४१-४७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३७१. २००९८. अवंतीसुकमाल चौपइ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५.५४११.५, १२४२९-३२). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंति: शांतिहरख सुख पावे रे, ढाल-१३. २००९९. साधबंदणा व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. दीपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १९-२०७४३-४९). १. पे. नाम. साधबंदणा, पृ. १अ-६अ. साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पांच भरत पांच एरवत; अंति: श्रीदेवमुनि० संथुणा, ढाल-१३, गाथा-१६१. २. पे. नाम. मंत्र, पृ. ६अ. For Private And Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २०१००.(+) बृहत् कल्पसूत्र व गम्मा विचार, अपूर्ण, वि. १७७९, कार्तिक कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १८-३(१०,१४ से १५)=१५, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. सा. उदा आर्याजी; पठ. सा. रामा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, ११४३५-४४). १.पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र, पृ. १आ-१८आ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई तिबेमि, अध्याय-६, अपूर्ण. २. पे. नाम. गम्मा विचार, पृ. १८आ. गम्मा व ऋद्धिविचार, प्रा., पद्य, आदि: उववाय परिमाणं संघेण; अंति: अणुबंधकायसंवेहे, गाथा-२. २०१०१. नववाडी सज्झाय व अध्यात्म गीत, संपूर्ण, वि. १७९६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, ९४३०-३३). १. पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. १आ-५अ. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो जाउ तेहने भामणेजी, ढाल-१०. २. पे. नाम. अध्यात्म गीत, पृ. ५अ-५आ. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: परम गुरु जैन कहो; अंति: जैनदिशा जस उंची, गाथा-९. २०१०२. (+) मौनएकादशी माहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३९, पौष शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले. मु. फतेचंद्र (पार्श्वचंद्र गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१२, ५-६x२८-३४). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२००. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य कहता; अंति: ए कथा जोडी छे. २०१०३. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(२)=८, पू.वि. अ. २ की सज्झाय नही है., जैदे., (२६.५४१२, १०-११४२८). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: ए गायो सकल जगीसे रे, सज्झाय-१०, अपूर्ण. २०१०४. (+) संबप्रद्युम्न प्रबंध, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-३(१ से ३)=२२, पू.वि. ढाल ४ गा. ३ तक नही है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, १२-१५४३३-४८). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: (-); अंति: पभणइ संघ सुजस जगीस ए, खंड-२ ढाल २१, गाथा-५३५, ग्रं. ८००, पूर्ण. २०१०५. वीसस्थानकतप स्तवन वस्तुति, संपूर्ण, वि. १९१६-१९१७, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, १२-१४४४१-४५). १. पे. नाम. २० स्थानकतपस्तवन, पृ. १आ-९अ, वि. १९१६, आश्विन शुक्ल, १४, ले.स्थल. वीरपुर, प्रले. श्राव. डाया लाटकचंद कपासी, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: पभणै सयल संघ जयकरू, ढाल-२०. For Private And Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २. पे. नाम. वीसस्थानक स्तुति, पृ. ९अ-९आ, वि. १९१७, कार्तिक कृष्ण, ५, ले.स्थल. वीरमगाम. २० स्थानक स्तुति, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: वीसथानक विश्वमा; अंति: सौभाग्य सुखकारीजी, गाथा-४. २०१०६. भक्तामर व ग्रहशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६१, आषाढ़ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. शुभटपुर, प्रले. पं. चमनमल; पठ. कुणनमल्ल, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४१२.५, ८४२६-३१). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ-७आ. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४+४. २. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. ७आ-८आ. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: शांतिर्विनिर्मितः, श्लोक-१२. २०१०७. लघुशांति, बृहद्शांति संतिकरं व पार्श्वजिन वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. १९६१, आषाढ़ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ४, जैदे., (२७४१२.५, ८x२७-३३). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-२आ. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१७+२. २. पे. नाम. बृहद्शांति, पृ. २आ-७अ. बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: भो भो भव्या शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ३. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. ७अ-८आ. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: सिद्धी भणइ सिसो, गाथा-१४. ४. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजी वृद्धस्तवन, पृ. ८आ-१३आ. पार्श्वजिन वृद्धस्तवन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी; अंति: जिण नाम अभिराम मंते, ढाल-५, गाथा-५५. २०१०८.(+) सुक्तावली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. ३२, पू.वि. ४ वर्ग., ले.स्थल. कंदलीया, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (३५३) कडी कुबड गावड नडी, (३५४) लिखणहार अति चतूर, जैदे., (२६.५४१२.५, ५४३०-३४). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृद; अंति: घणी रिद्ध घरे भराई, वर्ग-४, (वि. १९१०, वैशाख कृष्ण, ६, मंगलवार) सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व जे शुभ करणीनी; अंति: हूवे बोलबाला हूवे, (वि. १९१०, वैशाख कृष्ण, १०, शनिवार) २०१०९. (+) भरत चरित्र सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, ५४३५-३९). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं से भरहे राया; अंति: सव्वदुक्खप्पहीणे, प्रतिपूर्ण. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा भरत चरित्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिहवार पछी ते भरतराज; अंति: सर्व सारी मानसी दुख, प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०११०. (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. सलाणां, प्रले. पं. धर्मनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, १३४३५-४१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३९३. २०१११. (+) हंसराजवछराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १९५८, भाद्रपद कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. वीनोली, प्रले. सा. बालवुधी (गुरु सा. जीयोजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १६४५२). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; ___अंति: हंसराजवच्छराज वे, खंड-४, ढाल ४२. २०११२. मृगावती रास, संपूर्ण, वि. १८८३, माघ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष १६८८ मे ६ को मिटाकर ८ लिखा हुआ है जो १८८३ पढा जाता है. लेकीन संवत् १६८८ के प्रतिलेखक व पठनार्थे का समय दूसरी प्रत मे उपरोक्त व १६९२ वर्ष मिलता है. इससे प्रतीत होता है, कि संवत १६८८ मे लिखी हुइ प्रत पर से यह प्रत लिखी गइ है., जैदे., (२६४१२.५, १९-२०४५९). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३ ढाल ३८, गाथा-७४५, ग्रं. ११००. २०११३. चारप्रत्येकबुद्ध चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदे., (२३४१२.५, २१४४६). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: आणंद लील विलास, खंड-४, ढाल-४५. २०११४. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, कार्तिक कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५८, ले.स्थल. फरकनगर, प्रले. मु. भोलारामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२,८-९x४०-४२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, अध्ययन २०, ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणई कालई चउथा; अंति: अर्थ करी पुरो थयो. २०११५. (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६२, भाद्रपद कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. वेणीदास; पठ. श्राव. पृथ्वीमल शाह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२, ५४४१). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० लोए; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० सांभलउ मे० मुज; अंति: दिखाडइ ति० पूर्ववत्, (पू.वि. नवकारमंत्र का टबार्थ नहीं लिखा है.) २०११६. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९०४, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले.स्थल. मेडता, जैदे., (२६.५४११.५, १३-१४४३१-३७). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: तिथि सफल फली मन आस. २०११९. आचारांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८५३, कार्तिक शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ८४, ले.स्थल. बिहाणी, प्रले. मु. देवकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४११.५, ३-१४४२८-३६). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३८५ आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०१२२. लघुशांति स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१२, ३४२६-२८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ प्रति श; अंति: क० जिनेश्वरनइ पूजता. २०१२३. स्तवनचौवीसी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, पठ. पंन्या. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४३५-३९). १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १आ-८आ. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद; अंति: मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन-२४. २. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ. ___ क. नरसिंह महेता, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे उरहा आवो रे कहु; अंति: वलग्यो माहरी वेलडीइ, गाथा-४. ३. पे. नाम. लौकिक पद, पृ. १अ. मा.गु., पद्य, आदि: म्हारा डोबाने मठडा; अंति: झापा सुधी भाणी, गाथा-४. २०१२४. (+) भक्तामर स्तोत्र सह मंत्र, संपूर्ण, वि. १९४२, आषाढ़ शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. भवानीराम वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. साथ मे मंत्र भी दिये गए है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२, १०४३६-३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४+४. २०१२७. चौबोली चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४१२, २०४६६). चोबोली चौपाई, वा. अभयसोम, मा.ग., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: मतिमंदिर काजे कही, ढाल-१७. २०१२९. महासतीपदी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२०, चैत्र कृष्ण, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, पठ. सा. जगीसा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १५-१७४३९-५६). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: कनककीरति सुखकार, ढाल-३९. २०१३०. प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५९, चैत्र कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. समडीयाला, प्रले. मु. खेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४११.५, १७-१९४४०-४८). परदेशीराजा चौपाई, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभोवन नयणानंदकर; अंति: तणी सफल करू संसार, गाथा-२६१. २०१३२. प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७७, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. मु. गणेश महात्मा (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (३८) कर कूवड मस्तक अधो, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७३५) मंगलं लेखकस्यापि, जैदे., (२७४१२, ३-६४३६-५२). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं आवस्स; अंति: खमामि सवस्स अहियंपि, (वि. १९७७, आषाढ़ कृष्ण, १२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आवसही करतो सावधान; अंति: स० सर्वने अ० हूं पिण, (वि. १९७७, श्रावण शुक्ल, ७) For Private And Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०१३३. (+) अगीयारअंग पूजा, संपूर्ण, वि. १९९७, फाल्गुन कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैवे. (२७४११.५, ११४२८-३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगीयारअंग पूजा, उपा. चारित्रनंदी, मा.गु., पद्य, वि. १८९५, आदि: वाजीचमु कुलदिनमणि; अंति: अनुभावे कमलावाचा, ढाल - १२. २०१३४. पंचकल्याणक पूजा व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९१७, माघ शुक्ल, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. २, प्रले. कामेश्वर व्यास (पिता अन्य शिवलाल व्यास); पठ. श्राव. देवचंद कस्तुरचंद वाणीया, प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे., (२७४१२, ११x२८-३१). १. पे. नाम. पंचकल्याणक पूजा, पृ. १आ-२३अ. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २३आ. पंचकल्याणक पूजा-बृहत्, उपा. चारित्रनंदि, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: पंच कल्याणक जिन तणां; अंति: चारित्रनंदि पाया, ग्रं. ५००. श्लोक संग्रह -, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). " २०१३५ (+) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-१ (६) = १५, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, ११४३८-४० ). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्म, वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठिङ अंति: (-), अपूर्ण. २०१३६. संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८२२ आश्विन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. भीनमाल, प्रले. मु. प्रधानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्, जैदे., (२७४११.५, ४x२५-३५), संबोधसत्तरी, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तिलोअगुरु; अंतिः सो लहई नरिब संदेहो, गाथा ७६. २०१३७. (+) कर्मग्रंथ १ से ५, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४- १ (१) = १३, कुल पे. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X१२, १५X३७-४३). १. पे. नाम. प्रथम कर्मग्रंथ, पृ. २अ-४अ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा १-१३ नहीं है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६४, अपूर्ण. २. पे नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४-५ आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ५-६ आ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्तं अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोठं, गाथा - २५, ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ६आ-१०अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १०अ १४अ. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं ध्रुवबंधोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणड्डा, गाथा - १००, २०१३८. (+) अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. पाली, प्रले. संतोषचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६x११.५, २२x४८-५५). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि पहले कडावैजी पाय; अंति भार्या जगतनी मात, गाथा - १६४. For Private And Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३८७ २०१३९. क्षेत्रसमास विवरण-१ उल्लास, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२७ ११.५, १४-१६x४०-४६). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-क्षेत्रसमास चौपाई, संबद्ध, मु. सुमतिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५९४, आदि: सरसति सामिणि करुं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०१४०. नंदीसूत्र कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६४१२, १९-२२४४१-४२). नंदीसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: ते ज्ञानस्रुप; अंति: पछी चांपानगर भांजिउ. २०१४१. आनंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदे., (२६.५४११.५, ११-१२४२७-३१). आनंदश्रावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमान जिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल-१५, गाथा-२५२. २०१४२. (+) श्वेतांबरदिगंबर चर्चा, संपूर्ण, वि. १९२४, ज्येष्ठ शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. लुहारी, प्रले. मु. वर्धमान (गुरु मु. मंगलसेन), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १६-१७४३७-३९). श्वेतांबर-दिगंबर चर्चा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनराज वीतरागदेव; अंति: सिरवेभ अप्पणोलंब. २०१४३. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०७, आश्विन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ३३, ले.स्थल. गूंगेरीनगर, प्रले. मवजीराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १०x४४). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२. अंतकृदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेण० तेणइ कालि चोथा; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच व अंत के सूत्रों का टबार्थ नही लिखा गया है.) २०१४४. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३६, पौष शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पाली, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण मेवाडा; पठ. सा. चंपाश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १०४४१). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसती रे वरसती; अंति: विजय पभणे आनंदकारी, ढाल-९, ग्रं. १२५. २०१४५. चौमासी देववंदन व सवैया, संपूर्ण, वि. १९४०, भाद्रपद कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १०x२८-३२). १.पे. नाम. चौमासीपर्व देववंदन, पृ. १अ-२३अ. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सामलनु चेई रे. २. पे. नाम. कृष्ण सवैया, पृ. २३अ. मा.गु., पद्य, आदि: धुधु कटि धुधु कटि; अंति: बजत जद नाचत कनइया, गाथा-१. २०१४६. धनमित्र कथानक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदे., (२६.५४११.५, १३-१५४३४-३७). धनदत्तमित्र कथानक, सं., पद्य, आदि: धनदो धनमिच्छूना; अंति: धनमित्रसाधुः शिवंगतः, गाथा-१८८. २०१४७. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व पंचमी स्तुति, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, ८-११४३३-३७). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. २अ-१३अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: वोसिरियं० मएगहियं, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १३आ. ___ पंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २०१४८. (+) क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९, प्रले. काहान जोसी; पठ. श्रावि. लखमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, ५४३३-३५). बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलह निभस्सण; अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५. बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ जेह भगवंतनइ; अंति: कुणइ० समकितदृष्टिए, (वि. टबार्थ के स्वरुप मे बालावबोध दिया हुवा है.) २०१४९. श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२७४११, १०४३२-३४). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमि०; अंति: पक्षदिवस माहि. २०१५०. (+) शोभन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७७९, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. नेम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १४४३०-३८). स्ततिचतर्विंशतिका. म. शोभनमनि.सं.. पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनक: अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तति-२४. श्लोक-९६. २०१५१. द्रौपदी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२७, चैत्र कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२६.५४११.५, १७-२०४४४-५०). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: कनककीरति सुखकार, ढाल-३९, गाथा-१११७. २०१५२. अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२३-१८२४, श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४१२, ७४३७-४१). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, (वि. १८२३, कार्तिक शुक्ल, ५, शुक्रवार, ले.स्थल. रविनगर, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, वि. सुमतिजिन प्रसादात्।) अंतकद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: तेणे काले चोथे आरइ; अंति: ज्ञाताधर्मकथानी परे, (वि. १८२४, चैत्र शुक्ल, ५, बुधवार, ले.स्थल. गेडीग्राम, अन्य. मु. जीवणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) २०१५३. समयसार भाषाबंध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गा. ४० तक है., जैदे., (२६४११.५, ११४३१-३२). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर; अंति: (-), अपूर्ण. २०१५४. (#) विविध द्वारविचार, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, प्रले. पं. देवमंडण गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १९४५६-६४). विविध द्वारविचार, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हुइ ते विचारियां, अपूर्ण. २०१५५. जिनशतक सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-३(२ से ३,५)=१९, जैदे., (२६.५४११.५, १७-१९४५७-६२). For Private And Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३८९ जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., पद्य, वि. १००१-१०२५, आदि: श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंति: वागसौ द्राग्विधेयात, परिच्छेद-४, श्लोक-१००, अपूर्ण. जिनशतक-पंजिकाटीका, मु. शांबमुनि, सं., गद्य, वि. १०२५, आदि: निष्क्रांतौ कृत पंचम; अंति: वाग्देवता विश्रुता, ग्रं. १५५०, अपूर्ण. २०१५६. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३१-२(१ से २)=२९, पृ.वि. प्रथम तीन अध्ययन नही है., पठ. मु. चंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३७-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: कहणा पवियालणा संघे, ___ अध्ययन-१०, चूलिका २, अपूर्ण... २०१५७. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५६, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२८x११.५, ६-९४३५-४४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: आम्नायाद्विज्ञेयाः.. २०१५९. ऋषिदत्ता चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-२(८ से ९)=१५, पू.वि. गा. २१९ से ३०७ तक नही है., जैदे., (२७४११.५, १५४५१-५५). ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४३, आदि: उदय अधिक दिन दिन; अंति: फल्यो दिन दिन आस, ढाल-४१, गाथा-५६४, ग्रं. ८२५, अपूर्ण. २०१६०. (#) शालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १७३५, कार्तिक कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. पोरबिंदर, प्रले. मु. रूपजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १७X४८-५३). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ढाल-२९, गाथा-५१०. २०१६३. बारभावना, संपूर्ण, वि. १७१५, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सोझित, प्रले. मु. लक्ष्मीहर्ष (तपागच्छ); पठ. श्राव. मनि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११.५, १२-१३४४२-४८). बारभावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेश्वर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२३. २०१६४. शोभन स्तुति, अपूर्ण, वि. १७८१, श्रेष्ठ, पृ.८-१(२)=७, पू.वि. स्तुति ४ गा. ३ से स्तु. ८ गा. १ तक नही है., ले.स्थल. सोझत, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४२८-३२). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, __ श्लोक-९६, अपूर्ण. २०१६६.(+) आचारांगसूत्र सह टीका-प्रथम श्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९८, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १-३४५१). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदि: शासनाधीश्वरोजीयाद्व; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०१६७. महादंडक त्रीसबोल, संपूर्ण, वि. १७७२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. सांगानेर, प्रले. श्राव. लीलाधर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४४८). ___ २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: मास ६ - आंतरु. २०१६८. पाक्षिकसूत्र व खामणा सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, अन्य. उपा. यशोविजयजी गणि** (गुरु मु. नयविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनयविजय गणि शिष्य गणि जसविजयस्येयं प्रतिः। इस तरह का लिखा हुआ मिलता है., पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, ७-१४४४२-५५). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र सह अवचूरि, पृ. १आ-६अ. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थंकरान् वंदे; अंति: मे दुःकृतमस्तु. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र सह अवचूरि, पृ. ६अ-७आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, सूत्र-४. क्षामणकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा राजानं पुष्प; अंति: युयमित्याशीर्वचनमिति. २०१६९. इग्यारगणधर देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८६७, मुनिषट्गजशशिसंवत्सरे, भाद्रपद कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६४१३, ९४३४). ११ गणधर देववंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बिरुद धरी सर्वज्ञनु; अंति: तो शुद्ध समकित लहिये. २०१७०. (#) भक्तामर स्तोत्र की कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. जलालपुर, प्रले. मु. लब्धिकीर्ति; पठ. मु. सकलकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४८). भक्तामर स्तोत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: उजेणी नगरीइ वृद्धभोज; अंति: सुखेइ राज्य भोगवइ, (वि. २७ कथाएँ है.) २०१७१. (+-) पापबुद्धि राजा धर्मबुद्धि मंत्री कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३६). ___ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथा, सं., गद्य, आदि: कुलं विश्वश्लाघ्य; अंति: मोक्षं गत्वा मुक्तः, ग्रं. २००. २०१७२. सिद्धांतसार, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रावण कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. जावालग्राम, प्रले. ग. खंतिविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. सुमतिनाथजी प्रसादात्।, जैदे., (२६४११.५, १३-१७४४२-५०). सिद्धांतसार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: एगेआया एगेलोए; अंति: शुभाशुभ जाणवो. २०१७४. जीवविचार की भाषा, संपूर्ण, वि. १९०९, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. रांणवास, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि (पार्श्वचंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ९४३७). जीवविचार प्रकरण-पद्यानुवाद, संबद्ध, मु. कृष्णचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०६, आदि: तिन लोक में दीपक; अंति: सुखी रहो नगरी का लोक, गाथा-८६. २०१७५. ज्योतिषसार, ज्योतिष श्लोक व कवित्त, पूर्ण, वि. १८३१, भाद्रपद शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १५-१(१४)=१४, कुल पे. ६, ले.स्थल. सोझत, प्रले. मु. जीवणदास ऋषि (गुरु मु. जसराजजी); पठ. मु. रामचंद ऋषि (गुरु मु. जीवणदास ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११.५, १७४४५-४९). १. पे. नाम. ज्योतिषसार, पृ. १आ-१४अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: गरुदद्यान्न संशयः, श्लोक-४७२, पूर्ण. २. पे. नाम. पुरुषघातचंद्र विधि, पृ. १४अ. For Private And Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ सं., पद्य, आदि: मेषे आदि १ वृषे पंच; अंति: मेषाद्या घातचंद्रमा, श्लोक-२. ३. पे. नाम. स्त्रीघातचंद्र विचार, पृ. १४अ. ___ सं., पद्य, आदि: शशि १ नाग ८ शैलं ७ क; अंति: अजादि विवा , श्लोक-२. ४. पे. नाम. ज्योतिष श्लोकसंग्रह, पृ. १४अ. सं., पद्य, आदि: मेषे च मीने त्रियुगा; अंति: खलु घातिका ग्रहा, श्लोक-३. ५. पे. नाम. कवित, पृ. १४आ. औपदेशिक प्रहेलिका कवित, देवीदास, पुहिं., पद्य, आदि: दाबलै वकार पांच पांच; अंति: सारो गुन नसीयै, ___गाथा-१, (वि. गाथाक्रम १ व २ क्रमशः है, परन्तु दोनो गाथाओं के कर्ता अलग-अलग है.) ६. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १४आ. औपदेशिक कवित, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमो प्रवीण वार; अंति: पंचमरास उपमा लहीजीयै, गाथा-१, (वि. गाथाक्रम १ व २ क्रमशः है, परन्तु दोनो गाथाओं के कर्ता अलग-अलग है.) २०१७६. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. पं. प्रतापसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, १४४४६-४८). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: चक्रे ___ बालावबोधिकाम्, ग्रं. ४४१. २०१७७. (+) श्रेणिकराजा रास, संपूर्ण, वि. १९६०, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. झूटा, प्रले. मु. नथमल्ल ऋषि, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १७४६१-७ श्रेणिकराजा रास, क्र. तिलोक, मा.गु., पद्य, वि. १९३९, आदि: जे जे जे जिन जग गुरु; अंति: (१)तेही भवजल से तिरेजी, (२)जन्मादि अधिकार, ढाल-८४, ग्रं. ३२५०. २०१७८.(+) अणुत्तरोववाइदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. मु. तोलाराम महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, ६x४५-५०). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: तहाणेयव्वं, अध्याय-३३, (वि. १९६७, वैशाख कृष्ण, ३) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काल चउथा० तेणइ; अंति: त० तिमज ने० जाणवो, (वि. १९६७, वैशाख शुक्ल, ११) २०१८०. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४११.५, ५-७४३७-४२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहताण पंचिद; अंति: तियागारेण वोसिरामि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ नमस्कार होओ; अंति: करइ तो पण भंग नहि. २०१८१. तेजसार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२६.५४११.५, १७४३९-४४). तेजसारकुमार रास, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६२४, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलो; अंति: तेहना सहु मनोरथ फलइ, गाथा-४१२. For Private And Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०१८२.(+) सुक्तमाला सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४२, पौष कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. विश्वत्तारणी, प्रले. पं. क्षमासौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४३५-३६). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लीवृंद; अंति: मोक्ष साधै जि कोई, वर्ग-४. सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व जे शुभ करणीनी; अंति: केइ अजरअमरपद भुगतइ. २०१८३. (+) बृहत् कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, आश्विन कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५४, ले.स्थल. कुताणीसलाम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५४२७-३१). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि, अध्याय-६. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नो० क० न कल्पइ नि०; अंति: ति० एम हुं कहुं छु. २०१८४. ज्योतिषसार सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७८४, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. मढाड, प्रले. मु. भागचंदजी ऋषि; पठ. मु. पृथ्वीराज ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११.५, १३-१४४४१-४२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: शनि प्रोक्तो न संशयः, श्लोक-३४२. ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: (-). २०१८५. शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गा. १७८ तक है., जैदे., (२६.५४११.५, १३-१४४३८-४७). शालिभद्र चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: धरमधोरिधर धन्य अवतार; अंति: (-), अपूर्ण. २०१८६. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-६(२ से ७)=१०, पृ.वि. गाथा ३ से २० तक नही है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३१-३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४, अपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: किल इति संभावनाया; अंति: सूराः जलहलती अंबइ, अपूर्ण. २०१८७.(+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ६-७४२९-३१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: दुर्गति जाता राखे ते; अंति: कहुं ए गुरु वचन. २०१८८.(+) पार्श्वजिन स्तवन व गजसुकमाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(७)=७, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३३-३७). १. पे. नाम. श्रीफलवर्द्धि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-२अ. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. क्षेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु शिरोमणि मनिधर; अंति: खेमराज मुनिवर पभणंति, गाथा-२४. २. पे. नाम. गजसुकुमाल रास, पृ. २आ-८अ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गा. ८०-९५ तक नहीं है. मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देसाख देस सोरठ द्वार; अंति: गातां हुवइ रे आणंद, गाथा-१००, अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ३९३ २०१८९ (+) उपदेशछत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ५, ले.स्थल. भरुच, प्रले. मु. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १२४३७-३९). उपदेशछत्तीसी, ग. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, आदि: सकल सरुप यामे; अंति: मोकं दिजीयो, गाथा-३६. २०१९०. (#) गोराबादल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. जहलाबाद, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५३). गोराबादल रास, जटमल, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: चरण कमल चितलाय कै; अंति: विघन न लागै कोइ, गाथा-१४६. २०१९१. विक्रमादित्यराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९०, भाद्रपद कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. जावालनगर, प्रले. मु. खूमचंद (गुरु मु. उत्तमविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. सुमतिनाथजी प्रसादात्।, जैदे., (२७४११.५, १३४४३-४४). विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरसादाणी प्रणमीयै; अंति: तेहने सदा हुइ कल्याण, ढाल-२७, गाथा-६०५. २०१९३. (+) कुमतिकदलीकृपाणिका चौपाई व सिद्ध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, प्रले. मु. कीर्तिचंद्र (गुरु ग. पुन्यकलश), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १५४३७-४२). १. पे. नाम. कुमतकदलीकृपाणिका चौपाई, पृ. १अ-१आ. मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर पणमिय; अंति: जिनशासननउ एहजि सार, गाथा-१२. २. पे. नाम. सिद्धांतसारोद्धार-देवतत्त्वस्थापनाअधिकार, पृ. १आ-२२अ. उपा. कमलसंयम, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संवत १५०८ वर्षे; अंति: सम्यक्त्व राखिस्यइ. २०१९४. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथम श्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १७२१, मध्यम, पृ. ५८, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ५-६४३५-४३). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. १७२१, ___कार्तिक कृष्ण, ५, गुरुवार, प्रले. मु. रत्नाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य) आचारांगसूत्र-टबार्थ, ऋ. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत श्रीसुधर्मा; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. १७२१, कार्तिक शुक्ल, ५, शुक्रवार, प्रले. मु. हेमराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य) २०१९९. (+) संघयणि सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १७५७, जैदे., (२६.५४११, ११४४१-४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: सन्नि गईरागई वेए, गाथा-२७६. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: (१)नत्वा श्रीवीरजिनं, (२)श्रीमहावीर ___ चोवीसमो; अंति: मांगलिकनइ अर्थि हुओ, ग्रं. १७५७अक्षर८. २०२००. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१० की गाथा-१४ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४४-४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म केवलीउ भाष्यउ; अंति: (-), पूर्ण. २०२०३. (+) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रस्ताव-६ श्लोक-५६२ तक है., जैदे., (२६.५४११, १७४५४-५७). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंति: (-), अपूर्ण. २०२०६.(+) पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३४). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-११आ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (१)जेसिं सुयसायरे भत्ति, (२)मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. पाक्षिकखामणानि, पृ. ११आ-१२अ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: नित्थारग पारगा होह, सूत्र-४. २०२०७. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८५६, फाल्गुन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. जवालनगर, प्रले. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री सुमतिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२६.५४११.५, ११-१३४३२-३७). स्तवनचौवीसी, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ ऋषभ जिणंद निरखी; अंति: सेवक साहमुनिहालो, स्तवन-२४. २०२०८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका - नमिप्रव्रज्या अध्ययन, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१(१)=२३, जैदे., (२६.५४११, १३४४०-४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २०२०९. (+) त्रिभुवनसिंहकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, चैत्र शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. जीर्णदर्ग. प्रले. पं. रामविजय गणि (गुरु पं. विजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३-१५४३८-५०). त्रिभुवनसिंहकुमार रास, मु. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीश्रुतदेवी सार; अंति: मुनि० घर मंगलमाल के, ढाल-४४, गाथा-६४२. २०२१२. अनुपानमंजरी सह टबार्थ व अर्कविष मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ५४३०). १. पे. नाम. अनुपानमंजरी सह टबार्थ, पृ. १आ-१९आ. अनुपानमंजरी, आ. विश्रामाचार्य, सं., पद्य, वि. १८४३, आदि: यस्य ज्ञानमयी; अंति: विश्राम ग्रंथकारकः, समुद्देश-५. अनुपानमंजरी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे प्रभुनी ज्ञानमयी; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. अर्कविष मंत्र, पृ. १अ. तंत्र-मंत्र-यंत्र आदि संग्रह, गु.,सं.,हिं.,अं.,उ.,अ.भा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २०२१३. (+) तेतलीपत्रमहिता रास, संपूर्ण, वि. १७१२, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. भृगुकच्छ, प्रले. ग. कमलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १९४५०). For Private And Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९५ तेतलीपुत्र रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५९५, आदि: चतुर चतुर मुख जगत; अंति: जिम हुइ जई सफल विहाण, गाथा - २५८. २०२१४. (४) लघुसंग्रहणीरत्न सह देवभद्रीयटीका की अवचूर्णि, पूर्ण, वि. १६५७, चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३६-१(११)=३५, पू. वि. गाथा ६४ अपूर्ण से ६८ अपूर्ण तक नहीं है., ले. स्थल. कोरटानगर, प्रले. मु. खीमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२.५, १ - ५X१८-५८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिठं अरिहंताई ठिङ; अंतिः जा वीरजिण तित्वं, गाथा - २७६, पूर्ण. बृहत्संग्रहणी - टीका की अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: नमि० आदौ शास्त्रकारो; अंति: वेदाश्च प्रायुक्ताः, ग्रं. २१००, पूर्ण. २०२१५. (+#) पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., विजयराजसूरि तक है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२.५, १३x२९). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर पाटे; अंति: (-), अपूर्ण. २०२१६. भावनायं सुरसुंदर कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, दत्त. मु. अमृतधीर (गुरु मु. सुगुणतिलक), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. सुगुणतिलकजी के शिष्य मुनि अमृतधीर ने सं. १७९१ में यह प्रति भंडार को अर्पण की., जैदे., (२६४११.५, १३४४५). २०२१८. सुरसुंदर कथा, सं., गद्य, आदि: (१) संसारजलहिजाणं दाणं, (२) बाणारसीनामपुरी मकर; अंति: भूते राज्ये निवेसितः. (+) वैराग्यशतक सह बालावबोध व अन्वय, संपूर्ण, वि. १९६६, भाद्रपद शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६७, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. . रामगोपाल महात्मा (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५x११.५, १-१७४३८-५१). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिओ सासयं ठाणं, श्लोक १०४. वैराग्यशतक - टीका का बालावबोध, रामचंद्र दीनानाथ शास्त्री, मा.गु., गद्य, आदि: ( १ ) प्रणम्य परमात्मानं, (२) सार रहित एवो अने; अंति: (१) ज्ञानसारे तु गौर्जरी, (२) मयि संघदृष्टे :. वैराग्यशतक - अन्वय, रामचंद्र दीनानाथ शास्त्री, सं., गद्य, आदि: संसारे असारे नास्ति; अंतिः जीव शाश्चतस्थानं. २०२१९. () सिंदूरप्रकरण सह वृत्ति व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, ४-७X४३-५१). १. पे. नाम. लोकसंग्रह, पृ. १अ. श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. २. पे. नाम. सूक्तमुक्तावली सह टीका, पृ. १आ- १४ आ. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः अंतिः श्रीपार्श्वदेवः, श्लोक ९८. सिंदूरप्रकर- टीका, सं., गद्य, आदि: सिंदूर० पार्श्वप्रभो; अंति: मुक्तिकमलां वृणु, ग्रं. ७००, (वि. इसमें टीका मूल के श्लोक १-९५ तक ही है.) २०२२०. (+) वैराग्यशतक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७४९, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल वीरमग्राम, प्रले. ग. मेघविजय (गुरु ग. अमरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११, ७x४०-४४), For Private And Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, श्लोक-१०३, (वि. १७४९, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मंगलवार) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: शाश्वता ठामनई विषइ, (वि. १७४९, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, बुधवार) २०२२१. योगशास्त्र - प्रकाश १ से २, प्रतिअपूर्ण, वि. १६७१, श्रावण कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रतिलेखन पुष्पिका का कुछ अंश अनुपलब्ध है., राज्ये गच्छा. जिनसिंघसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (६५१) याद्रीसं पुस्तकं द्रिष्टा, जैदे., (२६४११, ९४३३-३९). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०२२२. (+) धर्मपरीक्षा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., परिच्छेद १० गा. २७ तक है।, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, २१-२२४४२-४९). धर्मपरीक्षा, आ. अमितगति , सं., पद्य, आदि: श्रीमानभस्वत्त्रय; अंति: (-), अपूर्ण. २०२२३. (+) आचारोपदेश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१५, पौष शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ७X४१-४४). आचारोपदेश, ग. चारित्रसुंदर, सं., पद्य, आदि: चिदानंदस्वरूपाय; अंति: निजयोर्धनजन्मनौ, वर्ग-६. आचारोपदेश-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान अने आनंद तेहज; अंति: करे पोतानो जनमारो. २०२२४. पडिक्कमणासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२५४१२.५, ४४३६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: अम्ह सया पसत्था. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार गुणे सहित; अंति: निरंतर प्रधान छे. २०२२५. (+) नव्य कर्मग्रंथ १ से५ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ५-११४२८-३८). १. पे. नाम. कर्मविवाग सूत्र सह बालावबोध, पृ. १आ-६अ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान प्रति; अंति: देवेंद्रसूरि कहिउ. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह बालावबोध, पृ. ६अ-८अ. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: तिम श्रीमहावीर प्रति; अंति: ते महावीर प्रति नमु. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह बालावबोध, पृ. ८अ-१०अ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: सामान्यइ सविह जीवा; अंति: स्वामित्व विचार कहिउ. ४. पे. नाम. छयासीया सह बालावबोध, पृ. १०अ-१५अ. For Private And Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागदेव नमस्करीनई; अंति: लिखि देवेंद्रसूरिहिं. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १५अ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १ से ११ तक है. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), अपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतराग नमस्करीनइ; अंति: (-), अपूर्ण. २०२२७. लोगस्सउज्जोअगरे सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, कार्तिक शुक्ल, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. मेसाणा, प्रले. पं. विद्याविजय; पं. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३५). लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्स उज्जोअगरे; अंति: सिद्धिं मम दिसंतु. लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चऊद राजलोकमांहि; अंति: मुझनई दिसंतु क० दिउ. २०२२८. दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., द्वितीय चूलिका की १२ गाथा तक है., जैदे., (२६.५४११.५, १४-१५४५१-५५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), पूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: धर्म उत्कृष्टमंगलं; अंति: (-), पूर्ण. २०२२९. आराधना सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५५, माघ शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. पटणा, प्रले. मु. भारमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२६४१२.५, ५४३६). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: लहंति ते सासयं ठाणं, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने इम; अंति: अनुक्रम मोक्ष जाइ. २०२३०. चैत्यवंदना प्रथमभाष्य, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रावण शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७.५४१३, १०४३६) चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: परमपयं पावइ लहुं सो, गाथा-६३. २०२३१. नयचक्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२७४१३, १२४४३). नयचक्रसार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: वंदो श्रीजिनवचन; अंति: कीधो वचन विचार. २०२३३. कल्पसूत्र सह सुबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७.५४१२, १-५४१७-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-सुबोधिकाटीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०२३४. अनुयोगद्वारसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., नाम निष्पत्ति के प्रारंभसूत्र तक है., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२७४११.५, ११-१२४४४-५१). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविह; अंति: (-), अपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: जिनवचनेहिं आचारांग; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभिक पाठ तक ही है.) For Private And Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०२३५. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ - प्रथम श्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८३७, मध्यम, पृ. ३९, ले. स्थल. हिंसारकोट, मु. लक्षजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X११.५, ६X५०-६०). प्रले. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउद्वेज्ज; अंति: (-), ग्रं. ८००, ( प्रतिपूर्ण, वि. १८३७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, रविवार) - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य महावीरं, (२) प्रथम श्रीआचारांग अंति: (-), ग्रं. २०००, (प्रतिपूर्ण, वि. १८३७, पौष शुक्ल, ६, सोमवार) २०२३६. दशवैकालिकसूत्र पंचम अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. गाथा १५० तक है., जैवे., (२७X११.५, ११X३३-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि (-); अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण. २०२३७. (+) मीरगलेखानी चोपड़, संपूर्ण, वि. १८६२, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. २१, ले. स्थल. सोजत, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५X११.५, १८ - १९X३८-४५). मृगांकलेखा चौपाई, क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदिः आदेसर जिन आदहे चोवीस; अंति: वर कल्याण, ढाल - ६२. २०२३८. सीमंधरजिन १२५ गाथा व पंचकारणगभिंत महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६९, कार्तिक शुरू, १, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, ले. स्थल, सीरोहीनगर, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X११.५, ९-११x२७-२८). १. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, पृ. १आ-१०अ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधरा वीनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, डाल- ११, गाथा-१२५, ग्रं. १८८. २. पे. नाम. पंचकारणगर्भित श्रीमहावीरजिन स्तवन, पृ. १०अ १३आ. पांचबोलगर्भित महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथ सुत वंदिये; अंतिः परे विनय कहे आणंद ए. ढाल ६, गाथा-५८. " २०२३९. स्थूलभद्र नवरसो ढाल व दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, अहम्मदाबाद, प्रले. पं. प्रेमविजय गणि पठ. तेजकुयर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११.५, १२-१३X३०-३२). स्थूलभद्र नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगे फल्या रे, ढाल - ९. २०२४०. दानशीलतपभावना, संपूर्ण, वि. १८६९, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२६.५x११.५, ११-१२x२४-३०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः सकल संघ सुजगीसो रे, दाल-४, गाथा- ९७. २०२४१. विक्रमचोबोली चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. हरजी, प्र. ग. खतिविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अजारीमाताजी सुप्रसादात्, जैवे. (२६.५४११.५, १३X३४-३६). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंतिः मतिमंदिर काजे कही, ढाल १७. For Private And Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०२४२. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५X११, १३३६-४०). १. पे नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१२अ. हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्यंकरे व तित्थे; अंति: जेसिं सुवसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १२-१२ आ. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंतिः नित्धारण पारगा होह, सूत्र- ४. २०२४३. वैराग्यशतक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२ ज्येष्ठ शुक्ल, ४, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ७, ले. स्थल, कीष्णगढ, प्रले. मु. दयाचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २६४११.५, ६४५०-५५). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहड़ जिओ सासयं ठाणं, श्लोक १०४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैराग्यशतक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स० चतुर्गतिरूप संसार; अंति: स्थानक कुण मोक्षरुप. , २०२४४. जैदे., (*) अभिधानचिंतामणी नाममाला, संपूर्ण, वि. १७५९, पौष शुक्ल १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७, ले. स्थल, स्वंभनतीर्थ, प्रले. . महिमाविजय ( पूनमगच्छ); पठ. मु. रायचंद (लुंकागच्छ ), प्र. ले. पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२५.५४११.५, १७३७-४३), मु. (+) २०२४५. भगवतीसूत्र, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. शतक १६ उ.६ संपूर्ण व ७ अपूर्ण है., जैवे., (२७४११.५, १२-१३X२८-२९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्ताव नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १६४६. भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०२४६. अणुत्तरोववाईदशांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७८६, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. रउहतग, प्रले. मु. खेमाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४१२, ७x४२-५० ). अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः अवमट्ठे पण्णत्ते, अध्याय-३३, (वि. १७८६, वैशाख कृष्ण, ५, सोमवार) अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते; अंतिः वर्गना ए अर्थ कह्या, (वि. १७८६, वैशाख कृष्ण, १२) २०२४८. पार्श्वजिनबृहत्सहश्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २४.५X११.५, १४X४०). पार्श्वजिन बृहत्सहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पार्श्वः पातु नतांगि; अंतिः मुच्यते नात्र संशयः, श्लोक - १५४. २०२४९. 'ज्ञानपंचमीपर्व व मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. १५०, जैवे., (२७४१३, १६४३५). १. पे नाम. पंचमीतपविषये गुणमंजरी वरदत्तकथा, पृ. १अ ३आ. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल मंगल करे, ढाल - ६. ३९९ For Private And Personal Use Only • २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ३-५ आ. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमि जिणं; अंतिः जिनविजय जय सिरी वरी, गाथा-४२. २०२५०. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०७ कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२५.५x११.५, ९४२९). Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. २०२५१. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४२३, ९४२७). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २०२५२. (+) आराधनासूत्र, बावीसअभक्ष्य व बत्रीस अनंतकाय गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१३, ७४३७). १.पे. नाम. पर्यंताराधना, पृ. १अ-६अ. आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: भगवंतनइ नमस्कार; अंति: शाश्वता सुख प्रतइं. २. पे. नाम. बावीसअभक्ष्य गाथा, पृ. ६अ-६आ. २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचुंबर चउविगई हिम; अंति: वजह अभक्खबावीस, गाथा-२. २२ अभक्ष्य गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वड पीपल उंबरि अंजीर; अंति: ए बावीस अभक्ष वर्जवा. ३. पे. नाम. ३२ अनंतकाय गाथा, पृ. ६आ. प्रा., पद्य, आदि: सव्वाउ कंदजाई; अंति: परिहरियव्वा पतत्तेणं, गाथा-५. ३२ अनंतकाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व कंदजाति अणंतकाय; अंति: परिहरवा यत्नइ करीनइ. २०२५३. (+) दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. १७४६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, शनिवार, जीर्ण, पृ. २७-१(१३)=२६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१२, ११४३३-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, __ अध्ययन-१०, पूर्ण. २०२५४. (#) उत्तमसेन रास, संपूर्ण, वि. १९१५, आषाढ़ शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. देवगढ, अन्य. दलपतसिंघ वीरप्रताप रावत, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २६४५५-६६). उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सरसति सामण पय नमी; अंति: सुणीयो सहु मन रंगरे, ढाल-५१, ग्रं. १६३६. २०२५५. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२०, वैशाख कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१३, ६४३७). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. वंदित्तुसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: वांदि नमस्कार करीने; अंति: चउवीस तिर्थंकर प्रति. २०२५६. चारप्रत्येकबुद्ध चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. ग. ज्योतविजय (गुरु ग. रत्नविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३४६३). प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., गद्य, आदि: करकंडू कलिंगेसु पंचा; अंति: सिद्धिगया एग समयेणं. २०२५७. स्तवनवीशी, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., स्तवन २० गाथा १ तक है., जैदे., (२६.५४११.५, १६x४४). For Private And Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४०१ विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे; अंति: (-), पूर्ण. २०२५८. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. खुशालदास पंडा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४४०). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१५२. २०२५९. नवतत्त्व सूचीमात्र यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. *अक्षर माहिती अनियमित है।, जैदे., (२४.५४१२). नवतत्त्व प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., को., आदि: नवतत्त्व नामस्वरूप; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध. २०२६०. अढारपापस्थानक सझाय, अपूर्ण, वि. १७९९, वैशाख शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(३)=७, पू.वि. स्था.६ गा.५ से स्था.८ तक नही है., जैदे., (२७४१२.५, ११४३७). अढारपापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलु कहि; अंति: वाचक जस इम भाखेजी, सज्झाय-१८, अपूर्ण.. २०२६१. विविधकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, १५४३६). विविध कथासंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: यथा जंबूद्वीपे; अंति: (-), अपूर्ण. २०२६२. (+) परमात्मप्रकाश सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ५४३९). १. पे. नाम. परमात्मप्रकाश, पृ. १आ-३७आ. मु. योगींद्रदेव, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: चिदानंदैकरूपाय जिनाय; अंति: केवलो कोवि बोहो, गाथा-३५५. परमात्मप्रकाश-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: महात्मानः जातः; अंति: तदाधारो भगवान. २. पे. नाम. जैन श्लोक , पृ. १अ. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. २०२६३. (+) सत्तरी कर्मग्रंथ-६ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१३, १४४४६). सत्तरी कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नउईउ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धपएहिं एसिद्ध जे; अंति: निपजावी एकइ उणीनिउ. २०२६४. (+#) वरदत्त-गुणमंजरी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२१, कार्तिक शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, ६४३८). सौभाग्यपंचमी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५१, (प्रले. पं. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) वरदत्तगणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.ग.,गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ: अंति: ते ए मेडतानगरने विषे, (ले.स्थल. लिंबडी. प्रले. मु. रविविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) २०२६६. (#) प्रतिष्ठाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४४०). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ प्रतिष्ठाविधिनु; अंति: पूजा यथाक्रम. For Private And Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०२६७. साधुमर्यादापट्टक, संपूर्ण, वि. १९७०, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. रामधन दामोदरजी पुरोहित; उप. मु. हंसविजय* (गुरुमु. लक्ष्मीविजय *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११, १०x४८). साधुमर्यादापट्टक, आ. देवसूरि, मा.गु., गद्य वि. १६७७, आदि: सं. १६७७ वर्षे वैशाख; अंति: उवेखी न मूकवु. २०२६८. (+) कार्यस्थिति सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पठ श्रावि. सुंदरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखकने प्रथम पत्रांक १-६ देने की जगह २-७ दिया हुवा है., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५x११.५, ४x२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदंसणरहिओ कायठि; अंतिः अकायपयसंपयं देसु, गाथा - २५. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम ताहरा दर्शन रहित; अंति: संपदा प्रते दिओ. २०२६९. (+) दंडक प्रकरण सह टवार्थ व आयुष्ण प्रमाण, संपूर्ण, वि. १८६०, चैत्र कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले. स्थल. मुमईबिंदर, प्रले. पं. निधानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., जैदे., (२५x११.५, ४x२९). १. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-८अ. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा - ४१. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने चौवीस; अंति: हितनी करणारी. २. पे. नाम. पंचमआरे आयुमान, पृ. ८अ. मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यनो १२० वरसनो; अंति: कह्यो संक्षेप थकि २०२७० (+) कर्मग्रंथ १ से ३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५x११, ५४३९). १. पे नाम, कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह बार्थ, पृ. १-८अ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं बंदिय; अंतिः लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६४. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, ग. साधुकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: हेतु प्रकाश्यो. २. पे नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टवार्थ, पृ. ८अ १२आ. - कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह धुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तिम स्तव्या छे अमे; अंति: वीरनइ नमउ अहो प्राणी. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २आ-१६अ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्त; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा - २५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बंधना कारणथी मूकाणा; अंति: कर्मस्तवथी सांभलीनइ. २०२७१. अनुत्तरोववाईदशांगसूत्र सह टबा, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैये. (२६१२.५, ६x४३). " अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेनं नवमस्स; अंतिः तहा णेयव्वं, अध्याय-३३. For Private And Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०२७२. अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणं कालेणं ते कालन; अंतिः धर्मकथानी परे जाणिवा, । भक्तामर स्तोत्र सुखवोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १८४९ वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल, जयनगर, प्रले. मु. इंद्रभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल का मात्र प्रतिक पाठ दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२६.५X१२.५, १५X४३). भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: किलेति सत्ये अहमपि; अंति: विबुधैः शोध्यतामियम्. २०२७३. रोहिणी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे., ( २६.५X१२.५, १३x४२). (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोहिणी रास, ग. कुंअरजी, मा.गु., पद्य, वि. १६५३, आदि: प्रणमीअ जिनवर सुखतणो; अंतिः सेवक मनि मनोरथ फलि. गाथा ५१९. ४०३ २०२७४. नवकार कथा, बालावबोध व पंचिंदिय सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६१६, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ९, कुल पे, ३, ले. स्थल, सम्याणा, लिख, मु. सिघ; राज्यकाल रा. मालदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२६१२.५, १४४४३). १. पे. नाम. नवकार कथा संग्रह, पृ. १आ - ९अ. मा.गु., गद्य, आदि: नवकार इक अक्खर पाव; अंतिः करिवु उद्यम करिवु. २. पे, नाम, नमस्कार महामंत्र बालावबोध, पृ. ९आ. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अरिहंतनइ; अंति: ते श्रीसाधु कहीइ. ३. पे. नाम. पंचिंदियसूत्र सह टबार्थ, पृ. ९आ. पंचिंदियसूत्र, प्रा., पद्य, आदि पंचिदिअ संवरणो तह; अंतिः छत्तीसगुणो गुरु मज्झ, गाथा-२. पंचिंदियसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांच इंद्रियना संवरण; अंति: हुइ ते माहरड़ गुरु. २०२७५. अभिधानचिंतामणी नाममाला सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४६ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- पंचपाठ, जैदे. (२६.५x१२.५, १४४४७). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः अंति: रोषोक्ताबु नतौ नमः, कांड-६. अभिधानचिंतामणि नाममाला- अवचूरि", आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्धं प्रतिष्ठां अंति चेति मंगलार्थ:, " २०२०८. सत्तरी कर्मग्रंथ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र. वि. जैवे. (२७४१२.५, १५४५३). सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नउईउ, गाथा - ९०. For Private And Personal Use Only सप्ततिका कर्मग्रंथ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध निश्चल जे छइ; अंति: नीपजावी एकइ उणी नेउ. २०२७९. (४) उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा ९५ तक है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२.५, ६X३६). " उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: ( - ), अपूर्ण. उपदेशमाला - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंति: (-), अपूर्ण. २०२८०. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ प्रथमश्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८२८, ६, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ८५, ले. स्थल. कोटला, प्रले. मु. मानजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, ५x२९). Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० सांभल्यउ मे० मइ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०२८१. (+) भक्तामर स्तोत्र, चौदनियम गाथा सह टबार्थ व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १७६८, फाल्गुन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, पठ. गुलाबो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ४४३४-३७). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-१०अ. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त क० भक्तिवंत अमर; अंति: क० राज्यादिक संपदा. २. पे. नाम. चौदनियम गाथा सह टबार्थ, पृ. १०अ. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. श्रावक १४ नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्तनो प्रमाण; अंति: प्रमाण भातनो प्रमाण. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०अ. श्राव. बनारसीदास, मा.गु., पद्य, आदि: भ्रमत अनंतकाल बीत्यौ; अंति: करजोरी बनारसी बंदन, गाथा-३. २०२८२. (+) चंदनमलयगिरीरास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १७७ अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १६४४३-४४). चंदनमलयागिरिरास, म. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: (-), अपूर्ण. २०२८३. (+) मनिपति चरित्र व विक्रमराजा चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४२९-३५). १. पे. नाम. मुनिपति चरित्र, पृ. १अ-१८आ. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिउण वद्धमाणं चउ; अंति: रम्मं हरिभद्दसूरीहिं. २. पे. नाम. विक्रमराजा चरित्र, पृ. १८आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: शूरः क्षमी भयहर कृत; अंति: (-), अपूर्ण. २०२८४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरी व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७१५, आषाढ़ कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्रले. मु. तेजसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३०-३४). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरी, पृ. १आ-११अ. ___ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं श्रीसिद्धसेन; अंति: मलसमुहाः इत्यन्वयः. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ+११आ, पे.वि. कुछेक श्लोक पत्र १अ और कुछेक श्लोक पत्र ११आ पर दिये हुए हैं. जैन गाथा*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २०२८५. आदिनाथ प्रतिमा प्रासादप्रतिष्ठाधिकार, संपूर्ण, वि. १६५६, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४८, ले.स्थल. देनवालनगर, प्रले. मु. गुणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १३४४४-४७). For Private And Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org ४०५ विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि : आदिजिनवर आदिजिनवर; अंति: नूंमुं खंड वखाणि खंड-९, गाथा-२७३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२८७ (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला, संपूर्ण, वि. १८६६, फाल्गुन शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६५, ले. स्थल. जावालग्राम, प्र. मु. देवेंद्रविजय (गुरु मु. केशरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. शांतिनाथजीमहादेवजी प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ टिप्पण बुक्त विशेष पाठ., प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५१८) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षेत्, जैदे., ( २६.५X११.५, १२X३२-३८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः अंति: रोषोक्ताबु नतौ नमः, कांड-६. २०२८८. (+) पिंडविशुद्धि सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X११, ८X३६-४२). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदबिंदनंदिय पवार अंति: बोहिंतु सोहिंतु य गाथा - १०३. पिंडविशुद्धि प्रकरण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि इंद्रना वृंद समूह; अंति अने सोधउ निर्दोष करउ, २०२८९. मानतुंग- मानवतीरास संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. मु. मंगलसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५.५x११, १६x४१-४६). मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद - शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीजिन शांतिजिनेश्व; अंतिः प्रसादे० जयनगरे कही, ढाल - ८. २०२९१. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैवे. (२६.५x११, १३-१५X३९-४३). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मन आणंद संथुण्या, ढाल-७, गाथा - ८६, ग्रं. १७५. २०२९२. (*) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७३४, आषाढ़ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ७८, प्रले. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित - त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X११, १-६x४८). . सोभा ऋषि, For Private And Personal Use Only मु. प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः अंग जहा आयारस्स, अध्याय- १०, गाथा - १२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: जाई अनंतासुख ग्रं. ४५५८. पामइ, २०२९३. (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६६ - १४ (१ से १४) = ५२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२७४११, १३४३५-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र- टीका में, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. *, २०२९५. बृहत्संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गा. २२७ तक है., जैदे., (२७X११, ११४३९-४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), अपूर्ण. २०२९६. सीयलनववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६X११, १०X३७-३९). Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नववाडि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणि, ढाल - १०. २०३००. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मू+टबा. गा. ३१० तक ही है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६११, ५-६X४१-४८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठि; अंति: (-), अपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं कहता नमस्कार; अंति: (-), अपूर्ण. २०३०२. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ व सामान्य श्लोकसंग्रह, पूर्ण, वि. १७५०, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ७६-१ (१) =७५, कुल पे. २, पू.वि. गाथा ४ तक नही है., ले. स्थल. खरवाग्राम, पठ. मु. अनोपसागर; मु. मयगलसागर (गुरु मु. महिमासागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७३९) तैलाद्रक्षे जलादर्क्षे, जैदे., (२५.५x१०.५, २-५X३४-४०). १. पे. नाम. उपदेशमाला सह टबार्थ, पृ. २अ-७६अ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वयण विणिग्गया वाणी, श्लोक - ५४४, पूर्ण. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः सिद्धांतप्राय जांणवी, पूर्ण, (+) २. पे. नाम. सामान्य गाथासंग्रह, पृ. ७६अ. जैन गाथा, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), गाथा - ३. २०३०५ (+) सिंदूरप्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७६८, आश्विन शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. पं. खेतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X१०.५, ७-९x४८-४९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: मानेन शमेति नाशम्, श्लोक-१००. सिंदूरकर - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनउ समूह तापरूप; अंति: अनिसं सदा नाश पमाडइ. २०३०६. भुवनदीपक व षट्पंचाशिका, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-१२ (१) १०, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., , (२६x१०.५, ११४३६). १. पे नाम, भुवनदीपक, पृ. १आ ९अ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., श्लोक १-१२ नहीं है. आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि १३, आदि (-); अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक १७३, पूर्ण. २. पे. नाम षट्पंचाशिका, पृ. ९अ ११ आ. - आ. पृथुयशा सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्य रविं; अंति: जातिश्च लग्नपात, अध्याय ७, श्लोक ५६. २०३०७. (+) प्रतिमासिद्धि सिद्धांतसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६२, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ४-७X२७-३१). प्रतिमासिद्धि सिद्धांतसंग्रह, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: प्रथम विहारभूमिं वा; अंति: ७ अं० अध्ययन २ मध्ये, ग्रं. ४७५. प्रतिमासिद्धि सिद्धांतसंग्रह-टबार्थ, पं. लालकुशल, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा जिनपति चरणौ; अंतिः अंगे बीजे अध्ययने छद. ग्रं. २०००. २०३०८. आठकर्मभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. नागोर, प्रले. मु. लाभविजय (गुरु वा. लक्ष्मीविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३x४२-४४). ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीयकर्म; अंति: ते अंतरायकर्म बांध . For Private And Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४०७ २०३०९. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मू+टबा. अ१ गा. १५ तक मिल रहा है., जैदे., (२५४११, १३४३८-४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: भिक्षो विनयं प्रादुष; अंति: (-), अपूर्ण. २०३१३. समस्याबद्धभक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, १-६४३३-३५). वीरभक्तामर, उपा. धर्मवर्धन, सं., पद्य, वि. १७३६, आदि: राज्यर्द्धिवृद्धि; अंति: धर्मसिंहो व्यधत्त, गाथा-४५. वीरभक्तामर-स्वोपज्ञ टीका, उपा. धर्मवर्धन, सं., गद्य, आदि: श्रीआदिशस्तुतिर्यत्र; अंति: नामगर्भित विशेषणं. २०३१४. खंदककवार रोचोढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.ले.श्लो. (६०७) जलं रक्षे थलं रक्षे, जैदे., (२५.५४११, १०x२८-३१). खंधकमुनि चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिध आचारज नमु; अंति: हो करज्यो सहु कोय, ढाल-४. २०३१५. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-स्थानकवासी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, ११-१२४२६-३२). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: तिखुत्तो आयाहीणं; अंति: (-), __ अपूर्ण. २०३१७. (#) संग्रहणीसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, पू.वि. नरकपृथ्वीमान तक हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४५९-६७). बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: नत्वा श्रीवीरजिनं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०३१८. नमस्मरणादि स्तोत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८५३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ४, ले.स्थल. कालद्री, प्रले. मु. जीतसागर (गुरु मु. दीपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ११४३६-४०). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-१७आ. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: मोक्ष प्रतिपद्यते, स्मरण-९. २. पे. नाम. लघुशांति स्तव, पृ. १०आ-११आ. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १३अ. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ४. पे. नाम. ऋषभादयजिन स्तुतयः, पृ. १३आ-१४आ. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरस्वामिने नमः, श्लोक-२६. २०३२४. प्रत्येकबुद्ध ४ ना ४ खंड रास, संपूर्ण, वि. १७१८, आश्विन कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. धोळका, प्रले. ग. जीतविजय (गुरु ग. रंगविजय); पठ. सा. तेजश्री (गुरु सा. गौरश्रीजी), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, जैदे., (२५.५४११, १४-१५४४१). For Private And Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अति: आणंद लील विलास, खंड-४, ढाल-४५, ग्रं. ११२०. २०३२५. दशवकालिकसूत्र - अध्ययन १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३४-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०३२७. (+) सर्मकर्ताधर्मप्रभावे पापबुद्धिनृपति धर्मबुद्धिमंत्रीसर चउपई, पूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २९-१(२७)=२८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १२-१३४३६-४१). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. प्रीतिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: सकल सरुपी अलख गति; ___ अंति: प्रीतिसागर लहे जयकार, ढाल-२८, पूर्ण. २०३२९. तेरकाठियानी कथा, संपूर्ण, वि. १८९४, आषाढ़ शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. कुसाबारी, प्रले. ग. खंतिविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १०-११४३३-३६). १३ काठिया कथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय%; अंति: शांतिनाथनु० धरवुजी. २०३३०.(+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१७, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. सहिबाज, प्रले. मु. जीवण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ४४४३-४६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, __ श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मु. सुमतिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १६९९, आदि: (१)श्रीपार्श्वनाथमानम्य, (२)कल्याण क० मंगलीकनउ; अंति: (१)वाचंता अतिसुक्खकर, (२)तिके भव्य प्राणी. २०३३१. (+) भववैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१०, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६.५४११, ५४३०-३५). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहिओ जिओ सासयं ठाणं, श्लोक-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारनै विषे; अंति: तै प्रतै जीव लाभै. २०३३३. प्रतिष्टा कल्प, संपूर्ण, वि. १८८७, पौष कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राज्ञपुर, प्रले. पं. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४४५-५२). जिनबिंब प्रतिष्ठाकल्प, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हवै पूर्वोक्त भला; अंति: पूजा रातिजगो कीजै. २०३३६. सूयगडांगसूत्र सह बालावबोध - प्रथम श्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, ३-११४२२-२९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: (-), ग्रं. ५००, प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य सद्गुरुन्, (२)एक दर्शनीनि केवल; __अंति: (-), ग्रं. २७००, प्रतिपूर्ण. २०३३८. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५८७, जीर्ण, पृ. ७, ले.स्थल. सारंगपुर, पठ. मु. श्रीकुल (गुरु ग. हर्षकुल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अंतिम पत्र का किनारीवाला भाग टूटा होने से टबार्थ का अंतिमवाक्य नहीं लिया जा सका है., पंचपाठ., प्र.ले.श्लो. (७४०) याद्रिशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२५४११, ६-९४२२-२४). For Private And Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४०९ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां पहिलु स्तवना; अंति: (अपठनीय). २०३४०. (+) जातकपद्धति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७६, माघ कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. थांकणपुर, प्रले. पं. रविंद्रसागर; पठ. मु. गौतमसागर (गुरु पं. रविंद्रसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री आदिसर प्रसादात्., जैदे., (२४.५४११, ६४१४-२४). जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: नाडी विवर्जियेत्, श्लोक-१५१. जातक पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. श्लोक-१३४ तक लिखा है.) २०३४१. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४११, ६-१०४३५-४०). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; __ अंति: सव्वनुमइक्कचित्ता, अधिकार-६, गाथा-२६४. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वीर क० श्रीमहावीर; _अंति: समासविवरण: संक्षेपतः. २०३४२. पासाकेवली व दोहा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. वीरक्षेत्र, प्रले. मु. खीमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ११४३१-३२). १. पे. नाम. पासानी सुकनावली, पृ. १अ-९आ. पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मा; अंति: पासकढालन कार्यते. २. पे. नाम. सज्जननादोहरा, पृ. ९आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५ तक है. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २०३४३. (+) उपधान विधिसंग्रह, पूर्ण, वि. १८७१, माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, ले.स्थल. सूर्यपुरबंदिर, प्रले. मु. लालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३-१४४३३-४४). उपधानतपआदि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पाघडी १ इम माल पहेरे, पूर्ण. २०३४४. (+) नेमनाथ चरित्र, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. पालीयाद, प्रले. छगनलाल अविचलभाई लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १६-१७४४४-४७). नेमिनाथ चरित्र, ग. गुणविजय, सं., गद्य, आदि: जयति नाभिभवो जिननायक; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०३४५. जंबुस्वामीचरित्र कथा, संपूर्ण, वि. १८१७, आषाढ़ कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. रतना ऋषि (गुरु मु. दुलिचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १९४४७-५०). ___ जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सप्रभावं जिनं नत्वा, (२)श्रीमहावीर एकवार; अंति: भवंति ___ भविनां सदा. २०३४६. (#) प्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३१). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), अपूर्ण. २०३४७. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१३, वैशाख शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२५.५४११.५, १०-११४२८-३१). For Private And Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८. २०३५०. (#) लीलावती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्र.वि. प्रतिलेखकने अंतिम ४ गाथा लिखे बिना ही ग्रंथसमाप्ति कर दी है.अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५-२१४३८-४४). लीलावती रास, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकाशकर; अंति: नामे नवनिध थायो रे, ढाल-६४, गाथा-१३०५. २०३५१. विद्याविलास रास, श्लोक व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. ३, पठ. सा. हीरा (गुरु सा. कुंका), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११-१४४३१-३३). १. पे. नाम. विद्याविलास चउपई, पृ. १अ-२१अ. विद्याविलास चरित्र, उपा. आज्ञासुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५१६, आदि: गोयम गणहर पय नमी; अंति: प्रभाव मनोरथ फलइ, गाथा-३६३. २. पे. नाम. श्लोकसंग्रह, पृ. २१अ. श्लोकसंग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. २१आ. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. २०३५२. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६६४, आषाढ़ कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६, लिख. श्रावि. लालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३०-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरुपीउ मांगलिक; अंति: ते गतिनइ विषइ जाणइ. २०३५३. लोकनालिबत्रीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८४, पौष शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. शांतलपूर, प्रले. पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसादात्., त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १५-१७४४१-४४). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मु. सहजरत्न, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमदाप्तं प्रणम्या, (२)जिन कहीइ तीर्थंकर; अंति: विशोध्य धीधनै शं. २०३५४. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ व पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ४४४३-५०). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५१, (वि. १८१७, आषाढ़ कृष्ण, ९) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: साचा वस्तुनो स्वरूप; अंति: गइ मुक्ति गया छे. २. पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, पृ. ६आ. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुरे उग्गए अब्भत्तट; अंति: गारेणं वोसिरामि. For Private And Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०३५५. (+#) | कल्पसूत्र सह बालावबोध वाचना, प्रतिअपूर्ण, वि. १८९५, चैत्र कृष्ण, ०, श्रेष्ठ, पृ. १२-१ (१) - ११, प्रले. मु. हुकमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे., (२५.५x११.५, ९-११x२७-३५), २०३५६. योग विधि, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (१) नमो अरिहंताणं नमो, (२) तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १८, जैवे. (२५.५x११.५, १३४४४-४६). , योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि : आवश्यक सुअक्खंध; अंति: व्यतीतेषु दीयते. २०३५७. (#) अभिधानचिंतामणी नाममाला व एकाक्षर नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५-४४(१ से ४४)=११, कुल पे. २, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११.५, २१x४६-५३). ४११ १. पे. नाम. अभिधानचिंतामणि नाममाला, पृ. ४५अ - ५५आ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., चतुर्थ कांड के श्लोक १४६ से है. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि; (-); अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, अपूर्ण, २. पे. नाम. एकाक्षर नाममाला, पृ. ५५आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., १० वाँ श्लोक अपूर्ण तक है. एकाक्षरनाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: विश्वाभिधानकोशानि; अंति: (-), अपूर्ण. २०३५९. समवायांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९७, प्रले. मु. दूधराजजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, ६-८X३९-४२). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र- १५९, ग्रं. १६६७. समवायांगसूत्र- टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: (१) देवदेवं जिनं नत्वा, (२) पांचमो गणधर सुधर्मा अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभिक कुछ अंश तक ही टवार्थ लिखा है.) २०३६०. नलदमयंतीन रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. ले. श्री. (१४८) यदक्षरपदभ्रष्ट, जैदे., ( २६४१२, ११-१२×३२-३७). नलदमयंती रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि सुगुरु; अंति: वृद्धि तेहना घरबारि, गाथा - ५३. २०३६३. गौतमपृच्छा उपदेशरत्नकोश सह टवार्थं व ज्योतिष श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, जैदे., (२५x१०.५, ५X३१-३३), १. पे. नाम गौतमपृच्छा सह टबार्थ, पृ. १अ -८अ. गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्वावि, गाथा - ६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: अडतालीस प्रछा ते कही. २. पे. नाम. उपदेशरत्नमाला सह टबार्थ, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू. वि. गाथा- २ तक है. उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः उपदेशरूप रतन तेहनो; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३. पे नाम ज्योतिष लोकसंग्रह, पृ. ८आ. For Private And Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१२ www.kobatirth.org (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - ५. २०३६४. लघुसंग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४५ - ३० (१ से ३०) = १५, पू.वि. गाथा - १७६ तक नहीं हैं., जैदे., ( २६.५X११.५, २०-२१X५२-५४). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा - २७५, अपूर्ण. बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: संसारिक सर्वसुख पामइ, अपूर्ण. २०३६५. 'अभयकुमार चतुः पदिका, पूर्ण, वि. १६६६, आश्विन शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५-१ (१) १४, ले.स्थल. सिणली, प्रले. ग. श्रीधर्म; ग. श्रीधर्म (गुरु ग. समयकलश, सागरचंद्रसूरिशाखा खरतरगच्छे); पठ. मु. मानसिंह; मु. मानसिंह (गुरु ग. श्रीधर्म, सागरचंद्रसूरिशाखा खरतरगच्छे); राज्ये गच्छा. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैदे. (२६.५x११.५, १९-२३४५१-५५), = " अभयकुमार चौपाई, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, वि. १६५०, आदि: (-); अंति: सिद्धि सुख ते पामंत, गाथा - ५०८, पूर्ण. २०३६६. भवनदीपक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, भाद्रपद कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले. स्थल. जीदुवारा, प्रले. मु. नेणचंद (गुरुमु, लखमीचंद, बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र. ले. श्लो. (६४४) वाद्रिशं पुस्तकं द्रिष्ट्वा, जैदे., (२६×११.५, ५x२८-३०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१७३. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वति सबंधियो मह; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. लोक ६१ तक बार्थ लिखा है.) २०३६७. सरावकनो पडिकमणो, चौदनियम गाथा व छकायना नाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, ले.स्थल. विहिलारा, प्रले. मु. हरचंद (गुरु मु. सामीदास), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१२, १५ - १६x२९). १. पे. नाम. सरावक पडिकमणो, पृ. १अ १०अ पे. वि. अज्ञातगच्छीय प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वे. मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: खमामि सव्व अहपि. २. पे. नाम. चौदनियम गाथा, पृ. १० आ. प्रा., पद्य, आदि सच्चित्त दव्व विगई; अंतिः दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा - १. ३. पे. नाम. छकाय नाम, पृ. १०आ. ६ कायजीव नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय अपकाय; अंति: वनस्पतिकाय जसकाय. २०३६८. हेमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, पू. वि. कांड ३ श्लोक ९१ तक लिखा है।, जैदे., (२५X११.५, २०x२२-५५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal Use Only २०३६९. परदेशीराजा रास, संपूर्ण, वि. १६९५ वैशाख कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल, भीनमाल, प्रले, मु. मुनिसोम (गुरु ग. रंगसोम), प्र.ले.पु. मध्यम जैवे. (२६११, ११४४६). Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४१३ प्रदेशीराजा रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन नयणानंदकरि; अंति: तणी सफल करू संसार, गाथा-२५२. २०३७०. वसुधारा पठनविधि, संपूर्ण, वि. १८०८, चैत्र शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. खमणोर, प्रले. पं. हंसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३-१४४२७-३०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: शिखाई वषट् स्वाहा. २०३७१. (+) सिंदूरप्रकर्ण काव्य, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६.५४११.५, १४४३३-४०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-९८. २०३७३. चैत्रीपूनमदेववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५४११.५, १४४४४-४८). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदनविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम पवित्र स्थानकै; अंति: कीजै स्तवना कीजै. २०३७४. रतनपाल चरित्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(१)=२२, पू.वि. द्वितीय ढाल से है., जैदे., (२५४११.५, १६x४४-५२). रत्नपाल रास-दानाधिकार, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदिः (-); अंति: वरत्या जयजयकार रे, खंड-३, ढाल ३६, पूर्ण. २०३७५. पुरुष-स्त्रीब्रह्मचर्य बोल, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, प्रले. मु. लटकण; पठ. ग. रंगविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३२). पुरुष-स्त्रीब्रह्मचर्य बोल, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: बीजाई समस्त जाणवा, अपूर्ण. २०३७८. माधवानल चौपाई व दोहासंग्रह, अपूर्ण, वि. १६९७, पौष कृष्ण, ५, जीर्ण, पृ. १८-६(८,१०,१२ से १४,१७)=१२, कुल पे. २, ले.स्थल. नागिलग्राम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १२-१३४४९-५४). १. पे. नाम. माधवा चरित्र, पृ. १अ-१८अ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. त्रिकम. माधवानल चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवि सरसति देवि सरसत; अंति: सुख पामइ संसारि, गाथा-५३७, अपूर्ण. २. पे. नाम. दुहासंग्रह, पृ. १८अ-१८आ, प्रले. मु. रंगविमल. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१९. २०३७९. सिंदूर प्रकरण शतक, श्लोकसंग्रह व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १३-१४४३९-४८). १. पे. नाम. सिंदूर प्रकरण शतक, पृ. १अ-७अ. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. २. पे. नाम. श्लोकसंग्रह, पृ. ७अ. श्लोकसंग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ३. पे. नाम. मंत्रसंग्रह, पृ. ७अ. मंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. ७अ. For Private And Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: (-); अति: (-), श्लोक-१. २०३८०.(+) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. पांचवटा मरुधर, प्र.वि. संभव प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ३४२८-३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-५२. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: एक समय अधिको जाणिवओ. २०३८१. (+) दसप्रत्याख्यानानि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२९, वैशाख शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ३-४४३०-३३). दसप्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सुरे नमुकारसिय; अंति: गारेणं वोसिरामि. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ", मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य उग्या पछी; अंति: तेहथी आत्मा निवर्तवु. २०३८२. वैराग्यदीपक मनदवजीपकाद्यनेकगुणजनितोद्भव भावजलरेलिरंतकृतकेली सीयलवेल थुलीभद्रस्य, संपूर्ण, वि. १८७२, पौष शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. वेलांगरी, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वीरप्रभुजिन प्रसादात्., जैदे., (२६४११.५, ११-१२४३६-४०). स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजी; अंति: विमला __कमला वरशे रे, ढाल-१८, गाथा-२४६. २०३८३. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८११, पौष शुक्ल, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्र.ले.श्लो. (७२३) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४३४-४३). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद चरणांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१५४०. २०३८५. भासचौवीसी, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., पार्श्वनाथ भास की प्रथम गाथा तक है., जैदे., (२४.५४११, १३-१४४२९-३६). भासचौवीसी, मु. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंद मया करी रे; अंति: (-), पूर्ण. २०३८६. वर्धमानस्वामी जन्ममंगल स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८१, भाद्रपद शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ.६, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. वरधीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १०-११४२४-२९). महावीरजिन जन्ममंगल स्तवन, मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम हि मंगलमाल सदा; अंति: मन तणां वांछित फलै, गाथा-२१. २०३८७. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदे., (२५४११.५, १९४४८-४९). रत्नपाल रास-दानाधिकार, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीऋषभदेव जिनवर; अंति: वरत्यो जय जयकारजी, खंड-३, ढाल ३६. २०३८९. पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२५.५४११, ५४३३-३९). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: लहति ते सासयं ठाणं, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर तीर्थंकर; अंति: लहइ ते शाश्वता सुख. २०३९२. सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०-४३). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: कलह राचंति संखनी. For Private And Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org ४१५ सामुद्रिकशास्त्र- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि : आदि पहिलउदेव नमस्करी; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम श्लोक का बालावबोध नहीं लिखा गया है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०३९३. नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १६७०, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू. वि . कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है., ले. स्थल. बीबीपुर, प्रले. ग. कीर्तिविजय (गुरुग. कमलविजय); पठ. पं. वीरसागर गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्रतिलेखक ने चित्रांकन पद्धति से स्तोत्रों के बीच में गुरुनाम, स्वनाम एवं पठनार्थ नाम लिखा है., जैदे., ( २६x११, ११३६ ) . नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० हवइ अति: (-), प्रतिपूर्ण, २०३९५. कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २९-१ (१) - २८, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६११, १५४४५-५३). (+) , कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवयंसेत्ति बेमि, व्याख्यान ९ ग्रं. १२१६, पूर्ण. २०३९६. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५X१०.५, १०X३२-३४). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: मन जे जिनवचने वस्यो, गाथा- १२१. २०३९७. (+#) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७९, कार्तिक शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. कठाडग्राम, प्र. मु. लक्ष्मीतिलक ( खरतरगच्छ); राज्यकाल रा. कर्मसिंह सिसोदिया, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२६४११, ११४४०-४३ ). " बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठिङ्ग; अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३१५. २०३९८. (+) प्रवचनसारोद्धारसूत्र, पूर्ण, वि. १७५१, पौष कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७३-१ (१) ७२, ले. स्थल. मेदिनीपूर प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११.५, ११-१२X४०-४४). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नंदउ बहु पढिज्जंतो, श्लोक - १५३९, पूर्ण. २०४०२. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, चोवीसजिन व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, मु. .नागजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४११, ५-१४४३२-३९). प्रले. १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १ अ-८अ. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक - ४४+४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत जे अमरदेवता; अंति: लक्ष्मी होइ सौभाग्य. २. पे नाम, २४ जिननामगर्भित मंगलाष्टक, पृ. ८अ -८आ. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र अंतिः मम मंगलम् श्लोक ९. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ८आ. मु. धर्मसिंघ, सं., पद्य, आदि: वंछित आस पुरण प्रभू अंति: प्रभु जग आभरणं, श्लोक ५. २०४०३. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. ग. कुंअरसागर, पठ. मु. राजधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२५X११, १२-१५X३८-४१). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: मन जे जिनवचने वस्यो, गाथा - ११८. २०४०४. नवतत्त्वभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५X११, १३-१४४४१-५२). For Private And Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-भेद विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तत्रादौ जीवतत्त्व; अंति: ८४ जीव योनि जाणवी. २०४०७. (+) नाममालासंग्रह, संपूर्ण, वि. १६७३, माघ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३०, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १७४५८-६५). १.पे. नाम. अभिधानचिंतामणि नाममाला, पृ. १अ-२६अ. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. २. पे. नाम. शेष नाममाला, पृ. २६अ-२९अ. अभिधानचिंतामणि नाममाला-शेष नाममाला, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: प्रत्ययादयः, श्लोक-२०६. ३. पे. नाम. एकाक्षर नाममाला, पृ. २९अ-२९आ. एकाक्षरनाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अः कृष्ण आः स्वयंभू; अंति: थैकाक्षराणामियं मया, गाथा-१९. ४. पे. नाम. एकादिसंख्या नाममाला, पृ. २९आ-३०अ. सं., पद्य, आदि: आदित्यमेरु चंद्र; अंति: संख्या अमी ज्ञेया, गाथा-३०. २०४०८. (+) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. जगतारणनगर, प्रले. मु. न्यायविशाल (गुरु गच्छा. जिनसंभवसूरि, बृहदाचार्यगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (७४२) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७४३) यावन्महीधरो मेरु, (७४४) भग्नपृष्टि कटिग्रीव, (७४५) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेत्, जैदे., (२६४११.५, १२४३२-३५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. २०४०९. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ-विस्तृत, संपूर्ण, वि. १८१०, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. अंजार, प्रले. पंन्या. विशेषसागर (गुरु पंन्या. लालसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. युगादिदेव प्रसादाता, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, २-४४३५-४५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: तिन्निवि ए पउवा एया, गाथा-५५. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मु. उत्तमसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७१९, आदि: भव्य प्राणीइ समकित; अंति: (१)वएया क० आदरवा योग्य, (२)कृष्णपक्षेष्टमी तिथौ. २०४१०. दंडक प्रकरण, समयक्त्व पच्चीसी, आदिजिन स्तवन व कायस्थिति प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६८६, फाल्गुन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ४, ले.स्थल. सुरेतबिंदर, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ५-११४२३-२७). १. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह अवचूरी, पृ. १आ-५आ. विचारषविंशिका प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेयं; अंति: मत्वेदं बालचापल्यम्. २. पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी सह अवचूरी, पृ. ५आ-९अ. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: होउ सम्मत्त संपत्ती, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा येन औपशमिकत्वादि; अंति: भवतु अन्यत्सुगम. For Private And Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४१७ ३. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन सह अवचूरी, पृ. ९अ-१२आ. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ पणमिय देव; ___ अंति: विजयतिलओ निरंजणो, गाथा-२९. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-अवचरि, सं., गद्य, आदि: विजयतिलकोपाध्याय कवि; ___ अंति: शासनं सुवधिवासनं. ४. पे. नाम. कायस्थिति प्रकरण सह टीका, पृ. १२आ-१७आ. कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: वर्द्धमानं जिन; अंति: कोटिरिति इय कलयट्ठि. २०४१२. दशवैकालिकसूत्र चूलिका सह टबार्थ, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(३)=५, पू.वि. चूलिका १ गाथा ५-१४ तक नही है., जैदे., (२५४११.५, ५४३६-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: कहणायवि आलणा संघे, प्रतिअपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: छ्या तिवारै गुरु कहै, प्रतिअपूर्ण. २०४१६. चौवीसदंडक स्तुति सह टबार्थ व पंचपरमेष्टि स्तुति, संपूर्ण, वि. १६७५, संवद्वाणाब्धिचंद्रकलासमन्विता, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. सुभटपुर, प्रले. मु. हस्तिहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३९-४६). १. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-५आ. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ चउवीस; अंति: हितनी करणहारी. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तुति, पृ. ५आ.. सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. २०४१८. दीपावलीकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३३, श्रेष्ठ, पृ. ३४-१(१२)=३३, ले.स्थल. खांभलग्राम, प्रले. पं. आणंदजस (बृहदाचार्यगच्छ); पठ. मु. मतिकीर्ति; मु. सरूपचंद; मु. माणेकचंद (गुरु पं. आणंदजस, बृहदाचार्यगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३८-४१). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४३७, (वि. १८३३, श्रावण शुक्ल, ४, शनिवार) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: अर्हन् बालबोधानां; अंति: करे त्यां लगे प्रतपो, (वि. १८३३, भाद्रपद कृष्ण, १०) २०४१९. सिद्धहेमशब्दानुशासन स्वोपज्ञलघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-२(११ से १२)=१२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अ. २ पाद ३ सूत्र ९ तक है., जैदे., (२६.५४११.५, १७-१९४५४-५७). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०४२०. (#) ताजिकसार टीका, संपूर्ण, वि. १७४८, आश्विन कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. गगनपुरी, प्रले. मु. पुण्यराज (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५. १७-१८४४७-५७). ताजिकसार-टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७७, आदि: श्रीसूर्यचंद्रारबुधे; अंति: रचिता तनुताच्चिर. २०४२१. (+) षडशीती कर्मग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६६१, माघ शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. वीरमग्राम, प्रले. मु. रामदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ६४४३-४६). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार जिननइ करीनइ; अंति: देविंदसूरइ कीधउं. २०४२२. चौवीसदंडक २९ द्वारविचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. सीद्धपुर, प्रले. पं. गुलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १६४४५). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: अनंतगुणा अधिका कहवा. २०४२३. अंजनसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२१, फाल्गुन कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदे., (२६४११.५, १५४४२-४३). अंजनासुंदरी चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७०६, आदि: करतां सगली साधना; अंति: जीवित जनम प्रमाण, खंड-३, गाथा-२५३, ग्रं. ७०७. २०४२५. चोसठप्रकारी पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५३+१(४७) =५४, प्रले. कामेश्वर सीवलाल व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यह प्रत संवत् १९०६ मे हर्षचंद्र के शिष्य वीरमुनि के द्वारा लिखी गइ प्रत पर से प्रतिलिपी की हुई है., जैदे., (२६४११.५, ९४२८-३५). ६४ प्रकारी पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: पधराविई महामहोत्सवे. २०४२६. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. पं. येष्टहस; पठ. मु. हिमतहस, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ६-७४३५-३७). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१५२. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु कहतां वांदी; अंति: अणाबाह कहता बाधारहित. २०४३०. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. जावाल, प्रले. पं. नायकविजय (गुरु पं. कपूरविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुमतिजिन प्रसादात्।, प्र.ले.श्लो. (५३३) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२५४११.५, ४४२५-२८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: मोक्ष प्रपद्यते, श्लोक-४४, (वि. १८५१, ज्येष्ठ कृष्ण, ९) । कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मांगलिक्यनउ निकेतन; अंति: सही चिरकाल लगे सदाइ. २०४३२. हेमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. कांड ३ गाथा ३ तक लिखा है., जैदे., (२५४११.५, १४-१६४३८-५०). For Private And Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४१९ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०४३४. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पू.वि. अ. ६ गा. २ तक लिखा हुआ है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२, ५-७४३५-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरूपीउ मांगल्य; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०४३५. (+) विपाकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४३७). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, अध्ययन २०. विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमाना; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. वृत्ति अध्ययन ८ तक लिखा हुआ है.) २०४३६. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदे., (२६४१२, ११४३२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंब इणमो अण्हयसंवर; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०. २०४३७. चंदरासमाहिला सुभाषित व देसी, संपूर्ण, वि. १८७५, भाद्रपद शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. सिंघराम, प्रले. पं. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १५-२२४३६-४१). १. पे. नाम. चंदरासमांहिला सुभाषित, पृ. १अ-६आ. ___ चंद्रराजा रास-सुभाषित संग्रह, मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: चंदरासरो उल्लासदूजो; अंति: जणमयरद पुहवीपउमे. २. पे. नाम. चंदरासनी देसी, पृ. ७अ-८अ. चंद्रराजा रास-रागनाम संग्रह, संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: चोपइनी १ दिलशुद्ध; अंति: धन्यासीरी देशी ३३. २०४४०. (+) नवतत्त्व, दंडक संमूच्छिमजीवादि गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २४-१३(१ से १३)=११, कुल पे. ५, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय (गुरु मु. भाणविजय, तपगच्छ); पठ. मु. कुंवरजी (गुरु मु. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ३-४४२८-३४). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १४अ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, अपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १४अ-२३अ. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४८. ३. पे. नाम. संमूर्छिमजीवविचार गाथा सह टबार्थ, पृ. २३आ. समूर्छिमजीवविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चूलसी चउप्पयाणं बाया; अंति: मूच्छिमाणु य पंचिंदि, गाथा-३. समूर्छिमजीवविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: समुर्छिम चतुष्पदनु; अंति: नव प्राण सहित होइ. For Private And Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी गाथा सह टबार्थ, पृ. २४अ. पंचपरमेष्ठि गुणविवरण, प्रा., पद्य, आदि बारस गुण अरिहंता; अंतिः साहु सगवीस असवं, गाथा - १. पंचपरमेष्ठि गुणविवरण- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि; बार गुण अरिहंतना आठ; अंति मलीने १०८ गुण थाइ ५. पे. नाम. ५६३ जीवभेद सह टबार्थ, प्र. २४- २४आ. जीवभेद श्लोक, सं., पद्य, आदिः प्रोक्ता नैरयिका; अंतिः पंचत्रिषष्टिक्रमात श्लोक-१. जीवभेद श्लोक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः प्रोक्ता क० कहे छे; अंतिः मध्ये विस्तीर्ण छई. २०४४३. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६०, कार्तिक कृष्ण, रविवार, जीर्ण, पृ. ९, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. छो सवजी लहिया; पठ. सा. सोभाग्यश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४१२, १०२८-३१). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसती रे वरसती; अंति: विजय भणे आनंदकारी, ढाल ९, गाथा- ८४. २०४४४. (+) जंबुद्वीपसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, आषाढ़ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. हरजीनगर, प्र. ग. खतिविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६४११, ४X३४-३५). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा - ३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने सर्वज्; अंति: श्रीहरीभद्रसूरीइं. २०४४५ (+) बीसस्थानक पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रावण कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, पठ. श्राव, तनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. यह प्रत संवत् १८७९ मे शिवचंद्र गणी द्वारा लिखी गई प्रत पर से प्रतिलिपि की गई है., संशोधित.. जैदे., ( २४.५X१२, ११x२७-३०). २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: सुख संपति दायक सदा; अंति: विधि तणी रचना करी. २०४४६. दृष्टांतशतक बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९२१, पौष शुक्ल, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११ - १ (१) = १०, पू. वि. दृष्टांत १०१ तक है., ले.स्थल. पल्लिका, प्रले. पं. हंसराज, पठ. मु. वच्छराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११, २४-३२X३७-५३). दृष्टांतशतक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (); अंतिः विचारीने काम करणो, अपूर्ण. २०४४७. होलिकाप्रबंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२०, कार्तिक कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. वटपद्र, पठ. मु. लावण्यसौभाग्य ( गुरु मु. रत्नसौभाग्य), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. दादापार्श्वप्रसादात्, जैदे., (२५x१२, ५-६४४२-४४). होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: प्रणम्य सम्यक् परमार; अंति: श्चिरं वाच्यताम्, श्लोक-३६. होलिकापर्व प्रबंध-टबार्थ, मु. कांतिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७९२, आदि: नमस्कार करिनेंइ; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू. वि. गाथा १६ तक टबार्थ है . ) २०४४८. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८० आश्विन शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. बामणी, प्रले. मु. उमेदचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१२, १४x२५ - २८ ) . For Private And Personal Use Only प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वे. मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: चालीसरो काउसग करणो. Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०४५१. अध्यात्मगीता व गाथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. २, प्रले. सा. चंदणा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १०४२६-२७). १.पे. नाम. आध्यात्मगीता, पृ. २अ-६आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-९ अपूर्ण से है. अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रमणी मुणी सुप्रतीता, गाथा-४९, अपूर्ण. २. पे. नाम. जैन प्राकृत गाथा, पृ. ६आ. जैन गाथा , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. २०४५२. (+#) संग्रहणी प्रकरण व श्लोक, पूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(१)=२०, कुल पे. २, ले.स्थल. वारासिंघाराम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४३२-३७). १. पे. नाम. संग्रहणी प्रकरण, पृ. २अ-२१आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१८ अपूर्ण से है. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३९४, पूर्ण. २. पे. नाम. जैन प्राकृत गाथा, पृ. २१आ. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. २०४५३. चउसरण पइनो सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६४१२, ५४५४-५७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध व्यापरनइ विषय; अंति: सुख- देणहारु छै. २०४५५. प्रदेशीराजा रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पू.वि. अंतिम ढाल नहीं है., जैदे., (२६.५४११.५, १९-२१४४७-५३). प्रदेशीराजा चौपाई, ऋ. जेमल, रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरीआ; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०४५६. दशाश्रुतस्कंध सह टबार्थ, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-१(४८)+१(४६)=४९, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३०-४६). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहताणं० लोए; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, दशा-१०, ग्रं. ८००, पूर्ण. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमो कहतां नमस्कार; अंति: तिम कहुं छु, ग्रं. १७००, पूर्ण. २०४५७. वीसस्थानक पूजा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पूजा १९ गाथा ९ तक है।, जैदे., (२५४११.५, १२४३२-३५). २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: सुख संपति दायक सदा; अंति: (-), पूर्ण. थ १-६, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रावण शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. ६, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. सर्वगाथा ४०३., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७२४) जलाद रक्षे थलाद रक्षे, जैदे., (२५४१२, ११४३१-३६). १. पे. नाम. कर्मविपाक सूत्र, पृ. १आ-५आ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६४. २. पे. नाम. द्वितीय कर्मग्रंथ, पृ. ६अ-८आ. For Private And Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३५. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व तृतीय कर्मग्रंथ, पृ. ८आ-११आ. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति चतुर्थ कर्मग्रंथ, पृ. ११आ-१६आ, वि. १८७८ कृष्ण, १२, ले.स्थल. वणारस, प्रले. मु. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम. पंचम शतकनामा कर्मग्रंथ, पृ. १६आ-२४अ. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ६. पे. नाम. सप्ततिका सूत्र, पृ. २४अ-३१आ, वि. १८७८, श्रावण शुक्ल, ८, ले.स्थल. चाखंभा, प्रले. मु. पेमचंद. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: पूरेऊणं परिकहतु, गाथा-९३. २०४६०. सझायस्तवनसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९०१, फाल्गुन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. बिंझोवा, प्रले. मु. तीर्थसागर; पठ. श्रावि. जेठी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२-१३४३०-३५). १. पे. नाम. झांझरियासाधु सिज्झाय, पृ. १अ-३अ. झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीस नमावी; ___अंति: सांभलता गुण वृंदा के, ढाल-४. २. पे. नाम. भीलणी री सिज्झाय, पृ. ३अ-४आ. भीलडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण विनवू; अंति: उधरी जाणे सहु कोयो, गाथा-२५. ३. पे. नाम. वर्द्धमान विनती, पृ. ४आ-५आ. महावीरजिनविनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-१९. २०४६१. दशाश्रुतस्कंधसूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३०, ले.स्थल. आणंदपुर, प्रले. मु. सबला ऋषि (गुरु मु. जीवण ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र २६,२७ का पाठ एक ही पत्र २६ पर नये से लिखा है। टबार्थ नहीं लिखा है।, जैदे., (२६४१३, ७४५७). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० लोए; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०, ग्रं.८००. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमो० नमस्कार अरिहंत, (२)नमो कहतां नमस्कार; अंति: ए अधिकार ब्रवीमि. २०४६४. महावीर स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ३ गाथा २० तक है।, जैदे., (२६४१३.५, १२४३९). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०४६६. किंचित् हेतुगर्भः प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९५०, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले. स्थल. भावनगर, प्रले. पुनमचंद मारवाडी ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. जैदे., (२५.५X१२.५, १३X५१). प्रतिक्रमणगर्भहेतु संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, वि. १५०६, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः मिथ्यादुष्कृतं तस्य. (+) २०४६७. दोढसो कल्याणकनो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३४, आषाढ़ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. श्राव. मोहन डामरसी; अन्य श्रावि, जडीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१३, १३x२४), २०४६८. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२६×१३, १३४३३), " मौनएकादशीपर्व स्तवन- १५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन: अंतिः सेवक जसविजय सिरीवरी, डाल- १२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य- ३. २०४६९. ढुंढियानो रास, संपूर्ण, वि. १९१८, वैशाख शुक्ल, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. पेंकडीग्राम, प्रले. य. वीरविजय गोरजी; पठ. श्राव. वजकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. शांतिनाथ प्रसादात्., जैदे., (२५.५X१३, ९×२९). ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरसती चरण नमी करी; अंति: अविचल पद लीला रे, ढाल-७. सामुद्रिकशास्त्र * सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). " २०४७०. दीवाली कल्प का बालावबोध, पूर्ण, वि. १७९६, कार्तिक शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४२-१ (१) =४१, प्र. मु. आनंदचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४१३, ९४२८). दीपावलीपर्व कल्प - बालावबोध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गद्य वि. १७५३, आदि: (-); अंति: जगत्रयन विषह रहउ, ग्रं. १६५०, पूर्ण. २०४०१ (+) वैद्यकसारोद्धार सह वालावबोध, मणीपरिक्षा, सामुद्रिकशास्त्र व औषधसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८४६, तर्कपयोजयोनिवदनक्ष्माद्धृतधृजेश, माघ कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२८, कुल पे. ५, ले. स्थल. नागोर, प्रले. मु. . विद्याविजय (गुरु मु. सौभाग्यविजय), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में विषयानुक्रमणिका दी गयी है. सांकेतिक वर्ष सुस्पष्ट नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र. ले. श्लो. (७५०) अद्रष्टदोषं मतिविभ्रमेन, जैदे., (२५X११.५, १७४४). १. पे नाम, मणिपरीक्षा कल्प, पृ. १अ ३अ. मणिपरीक्षा, सं., पद्य, आदि: मणिनां वर्णचिह्नानि; अंति: जगनिर्विषता व्रजेत्, श्लोक - ५७. २. पे. नाम. सामुद्रिकशास्त्रे हस्तरेखा, कररेखा, कट्यादिलक्षण, कट्यादिलक्षण, पृ. ३अ ४अ. ३. पे. नाम. श्वेतार्कादि कल्पसंग्रह, पृ. ४अ ११अ. कल्पसंग्रह, मा.गु., सं., पद्य, आदि: श्वेतार्ककल्पं अंतिः सर्वज्वरं नाशयेत्. ४. पे. नाम. वैद्यकसारोद्धार सह बालावबोध, पृ. ११ अ - १२५आ, पू. वि. मूलप्रकरणगत चुने हुए पाठों का संकलन व औषधनिर्माण एवं प्रयोगविधि दी गयी है. योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण. योगचिंतामणि- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (), प्रतिपूर्ण, ४२३ ५. पे. नाम. औषधसंग्रह, पृ. १२६अ - १२७अ. औषधवैद्यक संग्रह, सं., प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०४७२. (+) नवतत्त्व, जीवविचार प्रकरण व वंदित्तु सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ३, प्रले. मु. शुक्लचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ५४४३). १. पे. नाम. नवतत्व सह टबार्थ, पृ. १आ-६अ. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: सिद्ध एकै समै हुवै. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ६अ-११अ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभवन रै विषै दीपक; अंति: सिद्धांतथकी कह्यौ छे. ३. पे. नाम. श्रावक पडकमणा सूत्र सह टबार्थ, पृ. ११आ-१६अ. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-४८. वंदित्तुसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: वलै सारांही सिद्धान; अंति: चौवीस जिनेन्द्र. २०४७६. आराधना सह टबार्थ व साधुगुण पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, राज्ये गच्छा. जिनोदयसूरि; प्रले. पं. रत्नसिंह (गुरु ग. अमरसुंदर); पठ. सा. लाला, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११, ५४३३-३९). १. पे. नाम. आराधना सह टबार्थ, पृ. १अ-८अ. आराधना सूत्र, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करी ग्लान कहे इम; अंति: लहइ ते सासतउ सुख. २. पे. नाम. साधुगुण स्वाध्याय, पृ. ८आ. साधुगुण पद, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह समि समरी सादरइ; अंति: सदा धरि अंगि उमंग, गाथा-१०. २०४७८. पाक्षिकसूत्र की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६.५४११.५, २०-२३४५५-७३). पाक्षिक सूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तित्थंकरे० च शब्दाद; अंति: नाभिहितत्वात्. २०४७९. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १४७६, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. लींबाक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४५१). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनक; अंति: हारतारावलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भव्यां० हे नाभिनंदन; अंति: भव्यलोकमवेति संबंधः. २०४८१. औपदेशिक व्याख्यान व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १३४४०). १. पे. नाम. औपदेशिक व्याख्यान, पृ. १अ-१८आ. ___व्याख्यान संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सद्व्यं सत्कुले; अंति: श्रेय कल्याण संपजै. २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १८आ. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २०४८३. उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२+१(५)=२३, जैदे., (२६४११.५, ७४३३-३८). For Private And Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४२५ उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०४८४. नंदीसूत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९५९, आश्विन कृष्ण, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १६-१८४४१-४९). १.पे. नाम. नंदीसूत्र, पृ. १अ-१५आ. आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: सेत्तं परोक्खणाणं, गाथा-७००. २. पे. नाम. दया विषयक श्लोक, पृ. १५आ. जैन दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. २०४८५. आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. राजद्रग, प्रले. मु. दयारत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ४४३७). आराधना सूत्र, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ, मु. लावण्यविजयवाचक शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: महावीर प्रति नमस्कार; अंति: सुख अनुक्रमई पामई. २०४८६. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६४, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. पाटण, प्रले. ग. सुखविजय (गुरु ग. रूपविजय); पठ. मु. अमृतविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४१३, ९४५१). वैद्यवल्लभ, म. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि ध्यात; अंति: परोपकाराय विहितोयम, विलास-९. वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसारदा प्रति नमुं; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. अंतिम कुछेक श्लोकों के टबार्थ नहीं लिखे गये हैं.) २०४८७. गतागति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. द्वितीय द्वार अपूर्ण से हैं., जैदे., (२६४१३, १२४४१). गति आगति ८ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: बांधनारा विशेषाईया, अपूर्ण. २०४८९. (+) विचारषत्रिंशिका सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(१)=१२, पृ.वि. गाथा-२ अपूर्ण से हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१३, ३४२६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३, पूर्ण. दंडक प्रकरण-टबार्थ, उपा. तेजविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पोतानई हीतनी करनारी, पूर्ण. २०४९१. भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-६५ अपूर्ण तक हैं., जैदे., (२६४१२.५, ६४३२). भूवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), अपूर्ण. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधी जे; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. श्लोक-५८ तक ही टबार्थ लिखा है.) २०४९३. (+#) दानकल्पद्रुम, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४८-५४). दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स श्रेयस्त्रिजगद्; अंति: श्रीदानकल्पद्रुमः, पल्लव-९, ग्रं. १६९२ अ.१७. For Private And Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०४९४. गजसुकमाल संबंध, संपूर्ण, वि. १८३८, आश्विन शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. बोरावड, प्रले. मु. चिमनराम ऋषि; पठ. मु. कपूरचंद ऋषि (गुरु मु. चिमनराम ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४४०). गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: नेमिसर जिनवरतणा चरण; अंति: दुक्कडं दीजे, ढाल-३०. २०४९६. विक्रम चरित्र व सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १०४२४). १. पे. नाम. विक्रम चरित्र, पृ. १अ-२३आ. विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: मतिमंदिर काजे कही, ढाल-१७. २. पे. नाम. सवैया, पृ. २३आ. सवैया संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), सवैया-१. २०४९७. षट्दर्शनसमुच्चय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. खुडाला, प्रले. मु. मोहनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ११४३३). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: लोच्यः सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७. २०४९८. दानशीलतपभावना चऊपड़, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मणीलाल हरिनंद श्रीमाली ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२.५, १०४३२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-९८. २०४९९. सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६०, वैशाख कृष्ण, ०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१३, ११४३५). सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रीगुरु चरणे नमी; अंति: सेवक केशरकुशल जयकरो, ढाल-५. २०५००. (+) भक्तामर स्तोत्र सह समास व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८११, चैत्र कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. कर्मवाटी, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ., जैदे., (२५४१०.५, ९४२९). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-७अ. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४+४, ग्रं. ७७. भक्तामर स्तोत्र-समास, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: भक्ताश्च ते अमराश्च; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा-३० तक लिखा है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ७आ, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-४ तक है. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंति: (-), अपूर्ण. २०५०१. उपासकदशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६८६, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. २०८६, जैदे., (२५४१२.५, २-१६x२५-४४). For Private And Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, ग्रं. ८१२. अध्याय- १०, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपासक दशांगसूत्र- वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य वि. १११७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. २०५०२. दामनक चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१ (१) = १५, पू.वि. बीच के पत्र हैं, जैदे., (२५.५x११.५, ५-१४४४१-४३). दामनक चौपाई, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९९९, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २०५०३. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९७४ आश्विन कृष्ण, ३०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल, कासाल, प्रले. मु. भेरुलाल, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२५X११, १५-१७३८-४४). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: (१) पूर्वे परंपराय आवै, (२) समण भगवंत श्रीमहावीर; अंति: प्रभु मोक्ष पहता. २०५०४. काव्यसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८५, माघ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५. ५X१२, ४X३९). काव्यसंग्रह, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभोवं विधिना; अंतिः सकलं पारालभारावते, श्लोक-२३. काव्यसंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवा क० च्यारनिकायना; अंति: भारानी परई आचरइ छई. २०५०५. नंदीश्वरद्वीप स्तव सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २४.५X१३, १३×३६). नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: वंदिय नंदियलोअं; अंति: बत्तीसं सोलसय वंदे, गाथा - २५. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र - टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, आदि: नत्वा निजगुरुचरणान; अंतिः विहिता नंदिताच्चिरं. २०५०८. संबोधसत्तरी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. वा. धर्मकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६११, ६४३७-४३). (+) २०५०९. नलदमयंती चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३२, जैवे. (२६.५x११, १६४४४-४६). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा - ९३. संबोधसप्ततिका - बालावबोध, वा. धर्मकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तिनि; अंति: ते लाभइ इह संदेह नही. ४२७ २०५१०. 'भाष्यत्रय सह टवार्थ व वंदनविधि, संपूर्ण, वि. १७३३, पौष शुक्ल १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५x११, ४x२६-२७). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंतिः केरी चतुर माणस गहगही, खंड ६, दाल ३९, ग्रं. १४५२. For Private And Personal Use Only १. पे. नाम. भाष्यत्रय सह टबार्थ, पृ. १आ-४२अ. भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा - १५२. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदी नमस्कार करीन; अंति: सुख बाधा पीडा रहित. २. पे नाम, वंदनविधि, प्र. ४२-४२आ. संध्याकालवंदन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरिआवही पडिकमवी; अंतिः इति संजाकाल वंदनविधि, Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०५११. सप्तस्मरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पठ. श्रावि. रतनबाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ५४३०-३१). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाथ जीता छई भय; अंति: पार्श्वना० चंद्रसमान. २०५१२. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११, १३४४२-५१). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: तदुभयेणं अणुजाणामि, गाथा-७००. २०५१३. पंचाशक प्रकरण सह वृत्ति- पूजापंचाशक, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. मात्र पूजापंचाशक है., जैदे., (२६.५४११.५, १५४५३-६१). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. पंचाशक प्रकरण-प्रस्तावना की आनंदलहरी टिप्पणी, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०५१४. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदे., (२६४११, ६-७४३३-४१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०५१५. श्रेणिकराजा चौपाई, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पू.वि. चतुर्थ प्रस्ताव मात्र है., पठ. सा. चंदाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४३९-४३). श्रेणिकराजा चौपाई, म. नारायण, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: (-); अंति: भावि भणज्यो शुभ मति, प्रतिपूर्ण. २०५१६. (#) शांबप्रद्युम्न रास, संपूर्ण, वि. १६७६, आश्विन शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मथेन खीमसी (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३४-३९). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: पभणइ संघ सुजस जगीस ए, खंड-२, ढाल २१, गाथा-५३५, ग्रं. ८००. २०५१७. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४११.५, ११४३४-३९). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८+कलश, गाथा-१०२. २०५१८.(+) क्षेत्रसमास सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३-१(३)=४२, पू.वि. गाथा ११-१७ नही है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ४४३४-३५). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; ___ अंति: कुशलरंगमयं पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-२६५, पूर्ण. लघक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, आदि: वीर श्रीमहावीर केहवा; अंति: संशोधनीयं धीधनैः, पूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४२९ २०५१९. 'दसठाणा बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९-२ (१,६ ) - १७, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६११, १६-१७४०-४८). १० स्थानक बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, २०५२०. (४) श्रीपालरास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-१ (१) ८, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४११.५, १६४४२-४५). , (+) www.kobatirth.org श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पच, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: (-), अपूर्ण, २०५२१. () सुदर्शनशेठ रास, संपूर्ण, वि. १५६८, वैशाख शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. जालोर, प्र. ग. विनयरूचि पठ. श्रावि. मृगी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., ( २६.५४११, १२-१५X३८-४०). २०५२३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५२२. नवतत्त्व सह बालावबोध, असंख्यात अनंत विचार व निगोद विचार, संपूर्ण, वि. १५७२, माघ शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८५, कुल पे. ३, प्र.ले. श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., ( २६.५X११.५, १२ - १३x४२ - ५०). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १-८२. नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टंतो भवेसिद्धि, गाथा - ३२. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि - शिष्य, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवीरं विश्वविभुं ; अंति: (१) तद्वधैर्विशदाशय, (२) असंख्य बार हुई. २. पे नाम, असंख्यात अनंत विचार, पृ. ८२आ-८५अ. सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५०१, आदि: पहिलउ प्रणमिसु; अंति: चतुर्विध संघ प्रसन्न, गाथा - २६८. (+) मा.गु., गद्य, आदि: वधा जंबूदीप जेवडा, अंति: इम १८ भेद हुइ. ३. पे नाम. निगोद विचार, पृ. ८५आ. निगोदगोलक विचार, प्रा., पद्य, आदि: वालगो इक्कंमिअ असंख; अंति: अणंतगुणिअं विआणाहिं, गाथा-३. 'प्रथम कर्मग्रंथवालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., १५-१६x४८). जैदे., (२६x११, कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, ग. साधुकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंतिः वीरनइ नमउ अहो भविको. २०५२४. (+) विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X११.५, १३x४१-४६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध - २, अध्ययन २०, ग्रं. १२२५. २०५२५. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह कठिनपदटिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, अन्य. मु. काहानजी मांडण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६११.५, ११४३६-४०). राजप्रश्रीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: पस्से परसावणीए णमो सूत्र - १७५ ग्रं. २०७९. राजप्रश्नीयसूत्र - टिप्पण *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०५२६. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ११४३१-३६). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: धम्ममि च निच्चला होइ, अध्ययन-१०, चूलिका २, गाथा-७००. २०५२७. (+) अभिधानचिंतामणी नाममाला, संपूर्ण, वि. १८४५, मार्गशीर्ष शक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६३, ले.स्थल. दझाणा, प्रले. मु. लालसागर (गुरु पं. नित्यसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमहावीरस्वामी., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३०-३५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. २०५२८. (+) उववाईसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १६५०, भाद्रपद कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले.स्थल. अम्हदाबाद, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २०००, जैदे., (२६४११.५, १०-११४३७-४४). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, ग्रं. १२६७. औपपातिकसूत्र-विषमपद टिप्पण", सं.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ५००. २०५२९. (+) जमाली आलापक सह टबार्थ व विविध गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, कुल पे. २, पठ. मु. वर्धमान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, ६-७४३३-४०). १. पे. नाम. जमाली आलापक- भगवतीसूत्र श. ९ उद्दे. ३३ गत, पृ. १आ-२९अ. भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. विविध गाथासंग्रह, पृ. १अ+२९आ. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २०५३०. (#) नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६०१, कार्तिक कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १३, प्रले. वा. बुद्धिप्रभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६-१८४४५-५३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-४१. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: जिम मोक्ष पहुंचीयइ. २०५३१. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६६७, फाल्गुन कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ९४३३-३५). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाई नामाई, गाथा-७००. २०५३३. अणुत्तरोववाईदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. तृतीयवर्ग तक लिखा हुवा है., जैदे., (२६४११.५, ६४३४-३५). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०५३४. इकवीसठाणा प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२५४११.५, ५४२५-२७). For Private And Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४३१ एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: अवसेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. २०५३५. तैतीस द्वार गाथा सह बालावबोध व भाव प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७९७, कार्तिक कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ.६, कुल पे. २, ले.स्थल. उदैपुरा, जैदे., (२६४११.५, २६-२७४७७-८१). १. पे. नाम. तैंतीसद्वार गाथा सह बालावबोध, पृ. १अ-६अ.. ३३ द्वार गाथा, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय जिणं मुणमग्गणे; अंति: संखेवेणं जहा वुच्छं, गाथा-४. ३३ द्वार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी१ दर्शना; अंति: चौवीसी भांगा जाणिवा. २. पे. नाम. भाव प्रकरण, पृ. ६अ-६आ. ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: रम्माओ पुव्वगंथाओ, गाथा-३०. २०५३९. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६९८, वैशाख शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. खेरवाग्राम, प्रले. मु. गोपालजी ऋषि (गुरु क्र. लालजी); पठ. मु. लीबजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १४४४१-४३). बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहर निभस्स; अंति: समयखेत्तस्स परिरओ, गाथा-१३९. २०५४०. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७२६, आश्विन शुक्ल, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, पठ. मु. वीरविमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १७४३५-४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: कहणा पवियालणा __ संघे, अध्ययन-१०, चूलिका २, गाथा-७००. २०५४१. (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे.. (२५.५४११. ११४४१). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१५१. २०५४२. उत्तराध्ययनसूत्र- मृगापुत्रअध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४११.५, ११४३१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०५४५. सिद्धाचलतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ५ गाथा १ तक है., जैदे., (२७४११, १०४३३-३८). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाल्हा वारू; अंति: (-), अपूर्ण. २०५४६. नूतन ढालसागर, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(५ से ६)=७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल १९ गाथा २ तक है., जैदे., (२५.५४११.५, १५४५०). नूतन ढालसागर, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: श्रीमत् शांतिप्रभू; अंति: (-), अपूर्ण. २०५४७. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध-चतुर्थ अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ३-९४३४-३७). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०५४८. ढुंढीयाउत्पत्ति चौढालीया व ढुंढियामत दुहा, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रावण कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. दारु, प्रले. पं. उदैचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४३८-४१). १. पे. नाम. टुंढियाउत्पत्ति चौढालियो, पृ. १अ-५अ. मु. हेमविलास, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: सरसति माता समरि करि; अंति: विलास मुनि रचना कीनी, ढाल-४. २. पे. नाम. ढुंढियामत दूहा, पृ. ५अ.. __ मा.गु., पद्य, आदि: मुंडे बांधे मुंपति; अंति: करे तेरे तीन हुय जाय, गाथा-७. २०५४९. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ४१५ तक है., जैदे., (२६४११.५, ९-१०४३४-३८). ___ उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), अपूर्ण. २०५५०. (+) जातकपद्धति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मू+टबा. गा. ७५ तक है., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सचक लकीरें..जैदे.. (२६४११.५. ६x४०-४२). जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: (-), अपूर्ण. जातक पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीने पार्श्व; अंति: (-), अपूर्ण. २०५५३. पर्यंताराधना व भवचरिम प्रत्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, ९४२६-२८). १. पे. नाम. पर्यांताराधनासूत्र, पृ. १आ-६अ. पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. २. पे. नाम. भवचरिम प्रत्याख्यान, पृ. ६आ. __प्रा., गद्य, आदि: भवचरिमं पच्चखामि; अंति: अरिहंत० वोसिरइ. २०५५४. (#) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८७०, आषाढ़ कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. गढवोर, प्रले. मु. प्रथीराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४३५-३७). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मां; अंति: गुरु भक्ति कर सही. २०५५५. (+) ज्योतिषसारोद्धार,नरपतिजयचर्या व मुहूर्तसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१०(१ से १०)=११, कुल पे. ३, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १५४४५-४८). १.पे. नाम. ज्योतिषसारोद्धार, पृ. ११अ-१४आ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लो.१३९ तक नहीं है. आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: संकलितवानेनम्, अध्याय-३, श्लोक-२६४, ग्रं. ५००, अपूर्ण. २. पे. नाम. नरपतिजयचर्या-सप्तनाडीचक्र, पृ. १४आ-१९अ, पू.वि. मात्र सप्तनाडी अधिकार है. नरपतिजयचर्या, क. नरपति, सं., प+ग., वि. १२३२, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. मुहूर्त्तसंग्रह, पृ. १९अ-२१आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मुहूर्त संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: चतुष्कं च चतुष्कं च; अंति: (-), अपूर्ण. २०५५६. भावनाविलास, संपूर्ण, वि. १८४२, चैत्र अधिकमास शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४२८-३०). १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमि चरण युग पास; अंति: बुद्धि न होइ विरुद्ध, गाथा-५२. २०५५८. आलोयणा व शत्रुजय तप फल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५४३८-४०). For Private And Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ १. पे. नाम. आलोयणा, पृ. १आ-४आ. ___ मा.गु., गद्य, आदि: प्रतिमा भागे उप. १०; अंति: चरित्रमा अधिकार छे. २. पे. नाम. शत्रुजय तप फल, पृ. ४आ-५आ. शत्रुजय तपफल, मा.गु., गद्य, आदि: नमुकारसिनो पच्चक्खाण; अंति: चोखानो साथीयो करवो. २०५५९. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२४४११, ९४३३-३७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. २०५६०. स्वस्त्ययनमनप्रसादविधान, कर्मदहनपूजा, चौवीसस्वयंभू, लब्धिविधान पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-४(१ से ४)=८, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १९-२२४३८-४६). १.पे. नाम. स्वस्त्ययनमनप्रसादन विधान, पृ. ५अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रथम २ श्लोक अपूर्ण तक नहीं है. ___ सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मुदार मुदो भजंतः, श्लोक-१६, पूर्ण. २. पे. नाम. कर्मदहन पूजा जयमाला, पृ. ५अ-११अ. कर्मदहन पूजा, आ. मलयगिरिसूरि , सं., पद्य, आदि: सकल कर्म विमुक्ताय; अंति: श्रेयस्करी शंकरी. ३. पे. नाम. चौवीसस्वयंभू स्तोत्र, पृ. ११अ-१२अ. लघुस्वयंभू स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: येन स्वयं बोधमयेन; अंति: स्वर्गापवर्गस्थिति, श्लोक-२५. ४. पे. नाम. लब्धिविधान पूजा, पृ. १२अ-१२आ. ___ मु. हर्षकीर्ति, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान जिनराज; अंति: पांजलिभिनिंदयेत्. २०५६१. (+) कर्मविपाक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., मू. गा. ३ से१७ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, २-१५४३३-५५). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०५६२. अष्टप्रवचनमाता व दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. जैदे., (२६४११.५, ११४४१-४५). १. पे. नाम. अष्टप्रवचनमाता सज्झाय, पृ. १आ-७आ. पा. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृत कल्पतरु श्रेणि; अंति: परम मंगल सुख सदा, ढाल-९. २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. ७आ-१३अ. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: ए गायो सकल जगीसे रे, सज्झाय-१०. २०५६६. पन्नवणासूत्र २१ द्वारविचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११.५, २१-२३४५१-५८). प्रज्ञापनासूत्र-बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जाव गय इंदिय काय जोय; अंति: स्थानक जीव अनंतगुणा. २०५६८. आर्यवसुधारा धरणी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४६, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२६४१२.५, ९४३१). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. २०५६९. (+) संबोधसत्तरी सह टबार्थ व सामान्य श्लोक, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, प्रले. पं. निहालसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४१३.५, ३४४०). For Private And Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, पृ. १आ-१७अ. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-८९, (वि. १८१०, चैत्र कृष्ण, ७, सोमवार) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऍनमस्ते जगन्नेत; अंति: सुख हुइ निश्चै. २. पे. नाम. सामान्य श्लोक, पृ. १७आ. जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २०५७०. विक्रमसेन चौपाई, अपूर्ण, वि. १८५६, पौष शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५३-५(१ से ५)=४८, पू.वि. पूर्णता ढा.६ गा.६ तक नही है., ले.स्थल. वासडा, प्रले. मु. कल्याणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३-१६४३८). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: परमसागर आणंदे रे, ढाल-६४, अपूर्ण. २०५७१. रत्नपालरत्नावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९९, आश्विन शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले.स्थल. देसणोक, प्रले. पं. धनसुख मुनि; पठ. पं. हुकमचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११, ११४३४-३९). रत्नपालरत्नावती चौपाई, पं. माणिक्यराज, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: स्वस्ति श्रीप्रभु; अंति: वरतै मंगलीकमालाजी, ढाल-३५, गाथा-६६५, ग्रं. ९०५. २०५७२. (+) पाखी विचार स्तवन सह टीका, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रावण शुक्ल, १, जीर्ण, पृ. ६, पू.वि. प्रथम गाथा की टीका लिखी है., ले.स्थल. भावनगरबंदर, पठ. पं. अमीचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, १०४२४). महावीरजिन स्तवन-पाक्षिक विचार, उपा. श्रुतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचनरस वरसती सरसत; अंति: संस्तव्या तीर्थंकरा, गाथा-४६. महावीरजिन स्तवन-पाक्षिक विचार-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण. २०५७३. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १६९७, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. पं. आणंदवर्द्धन; पठ. मु. दानसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१२.५, १३४४३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: लक्ष्मी स्वयं वरइ. भक्तामर स्तोत्र-कथा *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २०५७४. सत्तरिसयठाणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२६४११.५, १३x-१). सत्तरीसयठाणा यंत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २०५७६. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १७८०, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. मु. विद्यातिलक; पठ. सा. सरूपा, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४११, ११४३८-४३). साधुवंदना, आ. भावहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२६, आदि: साधुसुगुरु समरी करी; अंति: हरिखि शिवरमणी वरै, गाथा-१६२. For Private And Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०५७७. प्रवचनसारोद्धार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, प्र. वि. अंतिम पत्र चिपके होने से मूल का अंतिम अनुपलब्ध है., पंचपाठ., जैदे., (२५X११.५, १२-१३X३७-४३). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: (अपठनीय). प्रवचनसारोद्धार - विषमपदार्थावबोध टिप्पण, आ. उदयप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रवचनसारोद्धारे; अंति: तावन्नद्यादसौ भुवि. ४३५ २०५८०. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति व थिरावली, संपूर्ण, वि. १५७२, श्रेष्ठ, पृ. ७८, कुल पे. २, राज्ये गच्छा. जिनहंससूरि; लिख. श्रावि. लखमादे लाखण, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र. वि. लाखणभार्या लखमादे सपरिवार ने ज्ञानपंचमी के उद्यापन में ज्ञानपूजार्थे लिखवाया, जैये. (२६४११, १५४४१). " १. पे नाम, धेरावलिया, पृ. १आ-३अ. नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीविआणओ; अंतिः नाणस्सपरूवणं वुच्छं, गाथा-५०. २. पे नाम, आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, पृ. ३अ-७८ आ. आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि : आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू. २०५८२. नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८७०, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, पठ. मु. सरुपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, ६X५०). १. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. १आ-४आ, पे. वि. मात्र प्रारंभिक ४ गाथाओं का ही टबार्थ है. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा - ५०. २. पे. नाम. जीवविचार, पृ. ४आ-८अ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. २०५८३. २४ दंडक २९ द्वार, संपूर्ण, वि. १८०१, माघ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, ले. स्थल. पाटणनगर, प्रले. पं. वाल्हचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, ९×३६). १. पे. नाम. चौवीसदंडक २९ द्वार, पृ. ९आ - १९अ. २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: अनंतगुणा अधिका कहवा. २. पे. नाम. तेरकाठिया गाथा, पृ. १९अ. १३ काठिया गाथा, प्रा., पद्य, आदि आलस मोह अवन्ना थंभा; अंतिः पखेव कोहला रमणा, गाथा - १. २०५८४. जै..... . (+) वीरजिन स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२३.५x१२, १२-१७X३२-४३). महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: (-), पूर्ण. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जत्थयजं जाणिज्जा; अंति: जे माने ते धन्य, (वि. अन्तिम गाथा व कलश का बालावबोध नहीं है . ) For Private And Personal Use Only २०५८५. कोणक रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. सरुपागोर, प्रले. सा. सीताजी शिष्या (गुरु सा. सीता आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १५-१६X३६-३७). Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कोणिकराजा रास-लोभविषये, मा.गु., पद्य, आदि: आधा रातरो एम वीचार्य; अंति: ए जु पामो भव सुरसार, ढाल-१७, ग्रं. २४०, (वि. प्रतिलेखकने प्रारंभिक दूहा नहीं लिखा है. ढाल से ही प्रारंभ किया है.) २०५८७. (+) उपाशकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ११४३६-४०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्याय-१०. २०५८८. साधुप्रतिक्रमण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३४, भाद्रपद कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२४.५४११.५, ५४३५-४२). साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० तिख्त; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार होज्यौ; अंति: वंदना जे दीसही. २०५८९. (#) सातेस्मरण व पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १८४४, आश्विन कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. २, ले.स्थल. बरांदीया, प्रले. पं. मनरूपविजय (गुरु पं. सोमविजय); राज्यकाल रा. गुलाबसिंघजी उदावत, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४११, ९४२८-३१). १.पे. नाम. साते स्मरण, पृ. १आ-२४अ, पू.वि. नवकार एवं उवसग्गहर स्तोत्र नहीं लिखे हैं. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यते, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १५आ-१६अ. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २०५९२. सातिस्मरण स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८०६, भाद्रपद कृष्ण, १०, शनिवार, जीर्ण, पृ. १२-१(१)=११, कुल पे. २, प्रले. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १३४३८). १. पे. नाम. सातिस्मरण स्तोत्र, पृ. २अ-१२आ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., नवकार, संतिकरं व तिजयपहुत्त स्तोत्र नहीं हैं. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: भवेभवे पास जिणचंद, अपूर्ण. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १२आ. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पुरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५ २०५९३. उत्तराध्ययनसूत्र के गीतसंग्रह, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., छत्तीस अध्ययन के गीत तक हैं, रचनाप्रशस्तिवाली अंतिम ढाल नहीं है., जैदे., (२५.५४११, १३४४७-५३). उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, म. मान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर पदजुग नमी; अंति: (-), पूर्ण. २०५९४. (+) योगचिंतामणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, पू.वि. तृतीय अधिकार अपूर्ण तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११४३३). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०५९५. (+) श्रावक रोपडिकमणारी विध, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रावण शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १४४४१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम तो चोइसथो करणो; अंति: कहीने तवन सझाय कहणी. For Private And Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०५९७. कल्याणमंदिर सह टबार्थ व उवसग्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५१, फाल्गुन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, मु. . नंदकिशोर ऋषि; पठ. सरदारमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१०.५, ६-७X३९-४४). प्रले. १. पे नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टवार्थ, पृ. १अ ५अ. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारम; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलिकनुं मूल छइ; अंति: मोक्षनो सुख पामइ. २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. ५अ - ५आ. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पास पास ; अंति: भवे भवे पासजिणचंद, गाथा ५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५९९. (*) संघवणी सह वालावबोध, पूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४९-१ (१) = ४८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४४५-४६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: सन्नि गईरागई वेए, गाथा-२७६, पूर्ण. बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: (-); अंति: मांगलिकनइ अर्थि हुओ, ग्रं. १७०० अक्षर८, पूर्ण. २०६००. आयारदसाउ, संपूर्ण, वि. १६२०, आश्विन कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदे., (२६X११.५, ११x३१-३२). आयारदसा, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० लोए; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा - १०. २०६०२. वृद्धशत्रुंजयउद्धार, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. शीवपूरी, प्रले. मु. खीमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १४-१५X३७-४५). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: देही दस ज करूं, ढाल - १२, गाथा - १२२. ४३७ २०६०३. अष्टप्रकारी, स्नात्र व १७ भेदी पूजासंग्रह, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५ - २ (११ से १२) = २३, कुल पे. ३, जैदे., (२५x११.५, ९२९-३५), २०६०५. संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., ( २६x११, १३X३६-४०). १. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा सिद्धचक्रकी, पृ. १आ - ६आ. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: गंगा मागध क्षीरनिधि; अंतिः फलं यजामहे स्वाहा. २. पे नाम, स्नात्रपूजा, पृ. ६आ-१४अ, पू. वि. बीच के पत्र नहीं है. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि; चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: लाभाय भवक्षयाय, अपूर्ण. ३. पे. नाम. १७ पूजा, पृ. १५-२५अ. १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८ आदि भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: सब लीला शिवसुख साजै, डाल-१७. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊ अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३१५. २०६०६. आउरपच्चक्खाणं, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५X११.५, ९X२५-३०). For Private And Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आउरपच्चक्खाण पयन्ना, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणम्, गाथा-५७. २०६०७. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अष्टम अध्ययन अपूर्ण तक है., जैदे., (२६४११.५, १५४५०-५२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: (-), अपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-बालावबोध, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरं सततं ध्यात्; अंति: (-), अपूर्ण. २०६०८. (+) सम्यक्त्वप्रकटप्रभावाविर्भावकं श्री सम्यक्त्वकौमुदीकथानकं, संपूर्ण, वि. १७२४, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु. आनंदनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १७४४१-४८). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: कथां सम्यक्त्वकौमुदी. २०६०९. कोणकनी चेडानी ढाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४८-५२). ___ कोणिकराजा चौपाई, ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ म कर रे जीवडा; अंति: सतरमी ढाल सोय रे, ढाल-१७. २०६१०. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८५८, ज्येष्ठ कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. वैर, प्रले. मु. मलुकचंद (गुरु मु. दयाराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२४.५४११.५, २-३४३९-४८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६३. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार करी; अंति: पृच्छा अतिश्रेष्ट छै. गौतमपृच्छा-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: एक गाममे सेठनइ घरे; अंति: नास्तिकमति न हूइजे. २०६११. संघयणिसूत्ररत्न प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५, दत्त. ग. सुमतिसार (गुरु ग. धनसार), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सकलपंडितशिरोमणि पंडित श्री धनसारगणि शिष्य पंडित श्री सुमतिसारगणिना सूरतिनगरस्य भांडागारे संघयणिसूत्रवृत्ति प्रति मुक्ता., त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११, १-३४११-४६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७६. बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (१)अत्यद्भुतं योगिभि, (२)इहाद्यपादेनेष्टदेवता; अंति: लोकानां सर्वसंख्यया, ग्रं. ३५००. २०६१५. वाग्भट्टालंकार सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ३२, पृ.वि. परिच्छेद ४ श्लोक १५ तक लिखा है।, जैदे.. (२६४११, ११-१२४४०-४७). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. वाग्भटालंकार-ज्ञानप्रमोदिका वृत्ति, वा. ज्ञानप्रमोद, सं., गद्य, वि. १६८१, आदि: (१)यस्यानेकगुणास्पदस्य, (२)इह खलु ग्रंथारंभे; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०६१७. वृहच्छांति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. २४५, जैदे., (२६४११, १-४४५२). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: सिवं भवंतु स्वाहा. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५६, आदि: स्ताच्छांतिः शांति; __ अंति: (१)विलिखिता चेयम्, (२)विहिता बृहत्छांतिः. २०६१८. उत्तराध्ययनसूत्र की सझायसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-२२ की गाथा-२ तक हैं., जैदे., (२५४११, १३४३३-४१). For Private And Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४३९ उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्तधरीजी; अंति: (-), अपूर्ण. २०६१९. वासुपूज्यजिन महिमावर्णनगर्भित प्रतिष्टाकल्पनो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५१, माघ शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. उदेपुर, प्रले. ग. नेमकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४०-४२). वासुपुज्यजिन स्तवन-महिमावर्णन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य जिणंदने; अंति: सकल संघ मंगल ___ लहे, ढाल-१२. २०६२१. आलोचनादान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, चैत्र कृष्ण, ०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४.५४११, ९४३८). आलोयणा विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: पणगं १ मासलहुँ २; अंति: छट्ठ अट्ठमदीकमसो. २०६२३. लोग्गस्स ऊयोगरे का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७०२, श्रेष्ठ, पृ. ८, अन्य. ग. हितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, ९४२९). लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चउद राजलोकमाहि; अंति: कहीइ मुझ प्रतिई दिउ. २०६२४. बारभावना, संपूर्ण, वि. १७९५, वैशाख कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. वाचरीया, जैदे., (२५, १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेश्वर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२७. २०६२५. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९८२, फाल्गुन शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. नागौर, प्रले. लालचंद ब्राह्मण पुष्करणा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४४३६-४१). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच इरवत जाण; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३. २०६२६. (+) सुदर्शनसेठ रास, संपूर्ण, वि. १६९२, माघ शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४२७). सुदर्शनशेठ रास, मु. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: प्रणमूं रिषभ जिणंद ए; अंति: होज्यो लील विलासो रे, ढाल-११, गाथा-२०५. २०६२८. नवकार, भक्तामर स्तोत्र व वृधशांति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. ३, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३२). १. पे. नाम. नवकार, पृ. १आ. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ-५आ, ले.स्थल. पत्तन, पठ. सा. लावण्यलक्ष्मी; सा. अमरादे. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४, ग्रं. ७७. ३. पे. नाम. वृधशांति, पृ. ५आ-७आ, पठ. मु. मीठा. वृद्धशांति, हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैन जयति शासनम्. २०६२९. सिद्धचक्रविषये श्रीपाल चौपई, संपूर्ण, वि. १७८४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, जीर्ण, पृ. ४२, ले.स्थल. पीटोला, प्रले. मु. महिमाविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२.५, १३४३५). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: लहियो सुजस जगीसे रे, ढाल-४०, गाथा-७५६, ग्रं. ११३१. For Private And Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०६३०. प्रदेशीराजानी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९६४, माघ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. मु. चुनीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४९-५२). प्रदेशीराजा चौपाई, म. जेमल, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: सिंध प्रदेशीरायनी; अंति: कहि सूत्रथी काढोरे, ढाल-२५. २०६३१. ठाणाअंगजीरा बोलको गोटको, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५-४१). स्थानांगसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: किस्युं ते ठाणांग; अंति: योगथी ज्ञान बांधे. २०६३२.(+) अभिधानचिंतामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-३(१३,१७ से १८)=१६, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., कांड ३ गाथा १७ तक है।, ले.स्थल. हणाद्रा, प्रले. ग. सुमतिसार (गुरु ग. धनसार), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११-१२४३१). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), अपूर्ण. २०६३३. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदे., (२५४११.५, १५४३९-४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. २०६३४. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, आश्विन कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. ४१, ले.स्थल. सरीयारी, प्रले. सा. तुलसी (गुरु सा. मृगा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११.५, ७-९४३३-४०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अगं तहेव, अध्याय-१०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणे काले चोथो आरो; अंति: जंबू प्रतै कहै. २०६३५. संथारपइन्ना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५०, पौष कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. आलवर, प्रले. मु. श्रीचंद (गुरु मु. लक्ष्मीचंदजी), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११.५, २-८४४१-४७). संथारा पयन्नो, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: संकमणं सया मम दिंतु, गाथा-१२२. संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: का० करीनइ न० नमस्कार; अंति: हे भगवन् द्यउ आपउ. २०६३६. छट्ठो भवणदुवार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२५.५४१२, १५४३६-४२). भुवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली नारकी असंख्यात; अंति: गुणपचास झाझेरी छै. २०६४०. वैदर्भी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१(११)=११, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१७९ तक है।, जैदे., (२७.५४१३.५, १०४३१). वैदर्भी चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जिनधर्ममय जागता करीय; अंति: (-), अपूर्ण. २०६४१. लिंगानुशासन सूत्रं, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६.५४११, १३४४५). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंग कटणथपभमयर; अंति: शासनानि लिगानाम्, अध्याय-८, श्लोक-१३९. २०६४२.(+) उवाईयसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८३५, आश्विन शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७६-१(१)=७५, ले.स्थल. कोसाणा, प्रले. सा. फतु (गुरु सा. लालजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५६५) याद्रसं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६०७) जलं रक्षे थलं रक्षे, जैदे., (२१४११.५, ६४५२). For Private And Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४४१ औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-१८९, ग्रं. १२२५, पूर्ण. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुख पाम्या थका, ग्रं. १२८८, पूर्ण. २०६४४. शतक सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९६, कार्तिक कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८४, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. प्रेमजी नाथा जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जैदे., (२८x१२, ११-१४४४५-६३). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनें श्रीभगवंत; अंति: देविंद्रसूरीश्वरे. शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७१२, आदि: ऍद्र श्रीकर पीडनविध; __ अंति: भाषामात्मस्मृतौ शतके. २०६४५. (+) सम्यक्त्वकौमुदी कथानक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१५, वैशाख कृष्ण, ९, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ६८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (६०५) भग्न पुष्टि कट निवा, (६४४) यादिशं पुस्तकं द्रिष्ट्वा, (७५१) जलं रक्षे स्तिला रक्ष्या, जैदे., (२८x१२, ७-५०). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: अक्षयं स्वर्गमश्नुते, गाथा-४४४. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान चतुर्व; अंति: ते नर मोक्षसुख पामै. २०६४६. यशोधर चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सर्ग ३ श्लो.१९ तक है., जैदे., (२९x११, १३४६२-६६). यशोधर चरित्र, सं., पद्य, आदि: श्रृंगारः सिद्धिवध्व; अंति: (-), अपूर्ण. २०६४७. चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., उल्लास २ ढा. १५ गा ६ तक है., जैदे., (२८.५४११.५, १७-२०४३४-४४). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), अपूर्ण. २०६४८. श्रीपालरास, अपूर्ण, वि. १८३८, कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ५०-२२(१ से २२)=२८, पू.वि. खंड ३ ढा. ५ गा. ४९ तक नही है., ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्रले. ग. रूपसागर (तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७४११, ११-१२४३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, अपूर्ण. २०६४९. वर्णमाला व अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२७४११, १२४४०-४२). १. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ. वर्णमाला*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १आ-७आ. क्र. लालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८७०, आदि: सरस वचन सरस्वति तणा; अंति: पंडित अतिगुणखान, गाथा-५८. २०६५०. बहोत्तरद्वारविचार, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(११)=१६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ४३ द्वार तक है., जैदे., (२७४११, ११४३६-४३). ७२ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तत्त्वज्ञान अंग धर्म; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०६५३. (+) हेमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(५)=१६, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., कांड ३ श्लो.१४६ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x११.५, १२-१३४३८-४६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), अपूर्ण. २०६५६. ऋषिमंडल स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४७, पौष शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२९४११, ३-४४३३-३८). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंदसंपदं, श्लोक-८१. ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आदिको अक्षर अंतको; अंति: पामे निहचे करी जाणजो. २०६५७. बृहत्कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२९४११, १३४४२-४६). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि. अध्याय-६. २०६५९.(+) त्रिशष्टिशलाकापुरुष चरित्र-पर्व ८, प्रतिअपूर्ण, वि. १५५८, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १३४-३०(१०४ से १३३)+१(५३)=१०५, पू.वि. सर्ग ८ गाथा ७ से सर्ग १२ गाथा १२७ तक नही है. पूर्णता १२ सर्ग है., ले.स्थल. महाजन, पठ. पं. सुमतिकुशल (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२९x११, १२-१४४५०). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ७७११, प्रतिअपूर्ण. २०६६०. (+) कल्पसूत्र सह टिप्पण व कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४११, ६४२८). १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टिप्पण, पृ. १आ-१२३अ. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: अत्र चाध्ययने त्रय; अंति: कर्षतीति सर्वमनघम्. २. पे. नाम. कालिकाचार्य कथा, पृ. १२३अ-१३३आ. आ. जिनदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: मोहांधकारप्राग्भार; अंति: जिनदेवमुनीश्वरः, श्लोक-९६. २०६६५. सुमित्रकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १६५०, आषाढ़ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १६, पठ. मु. देवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१०, १४-१५४४३-५२). सुमित्रकुमार चौपाई, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १५६७, आदि: पस्ममि सुमण वयण तण; अंति: तां लगइ चिर जयवंत, गाथा-४३१. २०६६६. (+) सूर्यप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५५, चैत्र शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २४४, प्रले. ललुवल्यम शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१०.५, ५४३२-३५). सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: तीसोक्खं पाइसंपाए, प्राभृत-२०. सूर्यप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)यथास्थितं जगत्सर्व, (२)तेणे काले चउथा आराने; अंति: (१)समय प्रते वादु छु, (२)जनस्तेन भवतु कृती, (पू.वि. टबार्थकार ने आदि-अंतिम वाक्य मलयगिरि महाराज की टीका से लिया है.) For Private And Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०६६७. (+) राजप्रश्नीयसूत्रटीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. वा. सुमतिशेखर (अंचलगछ); पठ. पं. हर्षरत्न गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१०.५, १२-१३X५०-५४). राजप्रश्रीयसूत्र - हिस्सा आद्यपद की आद्यपदभंजिका टीका, उपा. पद्मसुंदर, सं., गद्य, आदि अथ राजप्रश्नीयटीका; अंति: निर्ममे पद्मसुंदरैः. २०६६९. चतुर्थ कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९५७ आश्विन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८७, प्रले. जेनीवा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२८x११, ११४३८). चतुर्थ कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८७. २०६७३. आगमसारोध्दार, संपूर्ण, वि. १८९२ आषाढ शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२, ले. स्थल. जावाल, प्रले. मु. खूबचंद ( गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७.५X११.५, १३x४१-४८). ४४३ आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: तिथि सफल फली मन आस, ग्रं. २०००. २०६७५ (+) नंदीताढ्यछंद सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. हीरजी ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अंत मे . ग्रन्थांतर से उद्धृत छंद संबंधि अन्य माहिती दी हूइ है., पंचपाठ- संशोधित., जैदे., (२७११.५, ४-१०X२९-३२). नंदिताढ्य छंद, मु. नन्दिताढ्य, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण चलणजुयलं नेमि; अंति: च जस्साय वुच्चसेयउ, गाथा - ९४. नंदिताढ्य छंद - टीका, मु. रत्नचंद्र, सं., गद्य, आदि: जैनीवाचं नमस्कृत्य; अंतिः दिताढ्यस्य निर्मिताः. २०६७६. दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १९, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे., (२७४११, १३-१४४४३-५५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे; अंति: कहणायवि संघे, अध्ययन १०, चूलिका २ नं. ६३९. ग्रं. दशवैकालिकसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदि धर्मः क्षांत्यादिरूप; अंतिः विचारणासंघे. २०६७९. विवेकविलास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, पू. वि. उलास ५ गाधा १६ तक लिखा है., जैये., (२७४११.५, १५-४६x४९). For Private And Personal Use Only विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस; अंति: ( - ), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०६८०. विविधविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, जैवे. (२७४११.५, २४४६६-६८). " १. पे नाम, नवतत्व विचार, पृ. ९-४आ. नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः एक सिद्ध अणेक सिद्ध. २. पे. नाम. शुक्लध्यान विचार, पृ. ४-५ आ. मा.गु., गद्य, आदि: शुक्लध्यानना भेद दोइ; अंति: वेगलो विलय न पामइ. है. ३. पे नाम, १४ गुणस्थानक विचार, पृ. ५आ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. पांचवे गुणस्थानक तक लिखा हुआ १४ गुणठाणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गुणस्थान ते जिहां; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०६८२. (+) श्रेणिक चरित्र - पद्मनाभ पुराणे, पूर्ण, वि. १६८४, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, बुधवार, जीर्ण, पृ. १०८ - ३ (१ से ३) = १०५, , पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रथम सर्ग के लोक-६० तक नहीं है व प्रतिलेखन पुष्पिकावाला पत्र नही है., ले.स्थल. भौंरोदा(मारवाड), प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२, १०X३५-४०). पद्मनाभ पुराण, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: शुभचंद्रकथितं ध्रुवं, सर्ग १५, श्लोक - २४००, पूर्ण. Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०६८४. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, कुल पे. २, प्र.वि. बालावबोध टबार्थ के रूप मे दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२,५-९४२४-४०). १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-६४आ. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं पढम; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: कहि भगवंते उपदेश्युं, ग्रं. २८००. २. पे. नाम. कल्प फल, पृ. १अ.. कल्पसूत्र-कल्पफल, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: पुत्रा पंचमतिश्रुताव; अंति: घूका इव रविप्रभा, श्लोक-१४. २०६८५. (+) सिंदूरप्रकरण सह टबार्थ व अवचूरी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गा.८४ अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ४-३३४४०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), अपूर्ण. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनउ समूह तापरूप; अंति: (-), अपूर्ण. सिंदरप्रकर-अवचरि, सं., गद्य, आदि: पार्श्वप्रभोः; अंति: (-), अपूर्ण. २०६८७. संवेगमंजरी चोपाइ, संपूर्ण, वि. १६६४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. मूली, जैदे., (२८x१२, ११-१५४३१-३६). संवेगद्रुममंजरी चौपाई, मु. कुशलसंयम, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सकल सरूप प्रणमी; अंति: मंजरी संविगइ चउसाल, गाथा-११९. २०६८८. शांतिस्नात्र, अष्टोत्तरीस्नात्र पूजा विधि, ज्वारारोपण विचार व वज्रपंजर स्तोत्र, पूर्ण, वि. १९५२-१९५३, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २८-२(१९,२३)=२६, कुल पे. ४, ले.स्थल. गयांनाणा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ११-१२४२५-३१). १. पे. नाम. शांतिस्नात्र पूजाविधि, पृ. १आ-१३आ, वि. १९५२, पौष शुक्ल, ३, रविवार. शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: यात्रायां शूद्रोप; अंति: वाजा वागते धारा देवी. २. पे. नाम. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, पृ. १३आ-२८अ, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. आ. भद्रबाहुस्वामी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीपार्श्व; अंति: (१)विशेष पहेरामणी करीइ, (२)समर्पयामि नमः, पूर्ण. ३. पे. नाम. ज्वारारोपण विचार, पृ. २८अ, वि. १९५३, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ३, रविवार, प्रले. पं. माणक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. ज्वारारोपण विधि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कुसंभकं वर्णकमंडप; अंति: विवर्जयेत्. ४. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. २८आ, प्रले. पं. मेघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: ॐ नमो अरीहताणं; अंति: राधिश्चापि शरीरजा. २०६८९. समताशतक व समाधितंत्र दोधक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, १०४३०-३८). १. पे. नाम. समताशतक, पृ. १आ-७अ. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: समता गंगा मगनता उदास; अंति: सुसीख ए आप आपकु देत, गाथा-१०५. For Private And Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org २. पे नाम. समाधितंत्र दोधक, पृ. ७अ १२ आ. समाधिशतक दोधकछंदमय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: समरी भगवति भारती; अंत: ध सो पावे कल्याण, गाथा - १०४. २०६९० (+) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८३९, वैशाख शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल, वीरमग्रामां, प्रले. पं. जयविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२६.५x११.५, १३४३५-३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६९१. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२७४१२, १२-१९३४३१-३८). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: अमतणा नाथ देवाधिदेवो. अष्टप्रकारी पूजा, पं. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: श्रुतधर जस समरें सदा; अंति: उत्तम पदवी पावो रे. ४४५ २०६९२. साधु वंदना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. सा, लीला ( गुरु सा. रुपाइ), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X१२, १३४३५-३९). साधुवंदना, आ. पाचंचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चडवीस; अंतिः मनि आनंदि संधुवा, ढाल ७, गाथा - १०७. २०६९३. त्रिभुवनसिंहकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७९६, चैत्र शुक्ल, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, (२६.५X११.५, १६-१७x४१-४८). पू. १८, ले. स्थल रायपुर, जैदे., त्रिभुवनसिंहकुमार रास, मु. उत्तमसागर, मा.गु., पद्म, वि. १७१२, आदि: श्रीश्रुतदेवी सार; अंतिः मुनि० घर मंगलमाल के, ढाल - ४४, गाथा - ६४८. For Private And Personal Use Only २०६९५. लीलावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१७ आश्विन अधिकमास कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. हमावस, प्रले. मु. उत्तमचंद्र ऋषि (नागोरीलुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (२६२) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, जैदे., (२७X१२, १५X४९-५४). शीयलविषये लीलावती चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६०३, आदि : आदिजिनवर आदिजिनवर; अंति: पामीये हेमरतन भरपूर गाथा ४६७. " २०६९६. साधुपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. चैनसुख ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, ८-९X२५-३२). साधुपाक्षिक अतिचार वे.मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. २०६९७. वसुधारा महाविद्या सह यंत्र व विधि, संपूर्ण, वि. १८६१, माघ कृष्ण, ४ सोमवार, जीर्ण, पृ. ६, पठ. मु. लक्ष्मीकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७१२, १३-१४X३४-३६). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. वसुधारा स्तोत्र - यंत्र, सं., यं., आदि: (-); अंति: (-). वसुधारा स्तोत्र - विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मास ६ पर्यंत सेवा; अंति: जसकीर्तिजयो भवेदिति. २०६९८. (+) मौनएकादशीमाहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, ले. स्थल. राधनपुर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१२, ५-६x२९-३४). Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वदेवं नमस्कृत; अंति: कर्यो वर्ष संख्या. २०७००. अनुत्तरोववाइदशांगसुत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. १० अध्ययन, ले.स्थल. तोस्याम, प्रले. मु. लखजी (गुरु मु. मउजीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (५६२) भग्नि पृष्टि कटि ग्रीवा, (६५१) याद्रीसं पूस्तकं द्रिष्टा, जैदे., (२७४१२, ७४२४-४२). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण कालेण० नवमस्स; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-३३, (, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, रविवार) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते; अंति: वर्गना ए अर्थ कह्या, (, ज्येष्ठ शुक्ल, ९,शुक्रवार) २०७०१. चंदराजा चरित्र, प्रतिअपूर्ण, वि. १८६१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४३-२(१ से २)=४१, पू.वि. उल्लास-१ ढाल-२ गाथा १५ नही है. उल्लास ३ गा. १८५० तक है., ले.स्थल. जय, प्रले. मु. भाग्यचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११.५, १५४४४-४८). चंदराजा चरित्र, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. २७००, प्रतिअपूर्ण. २०७०२. (+) चौवीस दंडक ३० द्वारविचार, संपूर्ण, वि. १६५८, श्रावण शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १६, प्रले. सा. पूरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १२४२६-२९). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: अंतरद्वार समत्तं. २०७०३. (+) वसुधारा, संपूर्ण, वि. १८१६, कार्तिक शुक्ल, ५, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. १०, ले.स्थल. माणकपुर, प्रले. मु. उद्योतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, ९४२६-३०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: कामप्राप्तिर्भवति. २०७०४. अमरजस रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पठ. सा. चांपा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११.५, १३-१४४४२-४६). अमरजस रास, मु. वीरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन सुसमरीयइ पास; अंति: तां प्रतप्यउ ए रास, गाथा-२७६. २०७०५. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२६.५४११.५, १०-११४२५-३२). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदीनाथनी जो; अंति: रामविजय जयसिरी लहि, स्तवन-२४. २०७०६. ओघनियुक्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२७४११.५, २१-२२४७६-८०). ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहते वंदित्ता; अंति: अहिएहिं संगहिआ, गाथा-११६४. २०७०७. (+) नवतत्त्व क्षेपकगाथा सह टबार्थ व सामान्य जैन गाथा, संपूर्ण, वि. १८१८, माघ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. सुरत-बिंदर, प्रले. पंन्या. भूधर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, २-१६४२८-६२). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण क्षेपकगाथा सहटबार्थ, पृ. १अ-११आ. नवतत्त्व प्रकरण-क्षेपक गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सद्दधयार उज्जोय; अंति: नाहं मरणस्स बीयामि, गाथा-५०. नवतत्त्व प्रकरण-क्षेपक गाथा का-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवइ पर्याप्तिनो; अंति: बीजा प्ररुपणामात्र. For Private And Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २. पे. नाम. सामान्य जैन गाथा, पृ. ११आ. जैन गाथा*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५. २०७०८. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६१०, भाद्रपद शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. सरहबादरंग, प्रले. कामा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ५४२५-३३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: जिण पास पयछो वंछिओ. श्रावकप्रतिक्रमणसत्र-तपागच्छीय-टबार्थ.मा.ग., गद्य, आदि: समोसरणि बइठा अरिहंतः अंति: (-). (प्रतिलेखक ___द्वारा अपूर्ण, पू.वि. अंतिम चउक्कसाय का टबार्थ नहीं लिखा है.) २०७०९. (+) आवश्यकसूत्र नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १७-२०४५७-६७). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, ग्रं. २७५१. २०७११. कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-५(१२ से १६)+१२(१ से ११,१७)=२४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., पत्रांक १-१२ तक प्रथम वाचना और पुनः पत्रांक १ से १७ छट्ठी वाचना लिखी हुइ है., जैदे., (२७४११, १०-११४२७-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २०७१२. उपासकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदे., (२७४११, ११४३७). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंग तहेव, अध्याय-१०,ग्रं. ९१२. २०७१३. देविंदथओसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, जैदे., (२६४११.५, १०४३४). देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., पद्य, आदि: अमर नरवदिए वंदिऊण; अंति: इह सम्मत्तो अपरिसेसो, गाथा-३०४. २०७१४. अंतगडदशांगसूत्र वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५७, श्रावण कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ.७, सम. आ. जिनसिंहसूरि (गुरु आ. जिनचंदसूरि); दत्त. श्राव. पद्मसी संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १७४५३). अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंति: ननु विधीयतां सर्वथा, ग्रं. १५०. २०७१६. (+) विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४११, १५४४९-५६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेवं भंते सुहविवागा, श्रुतस्कंध-२, अध्ययन २०. २०७१७. (+) चौवीसदंडक २९ द्वारविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ११४२९-३२). For Private And Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: अनंतगुणा अधिका कहवा. २०७१९. अभिधानचिंतामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३३-२० (१ से २०) = १३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., कांड-३ गाथा ३६४ से कांड-४ गाथा २६८ तक है., जैदे., ( २६.५x१०.५, १४-१५X३९-४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २०७२०. (+) तर्कभाषा टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३१, प्रले. ग. हर्षविमल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, १५X४६-५६). तर्कभाषा-वार्तिक, ग. शुभविजय, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीपार्श्वनाथ पादा; अंति: संपूर्णमिति भद्रम्, ग्रं. १७००. २०७२१. नंदीसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. २०१६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १६४, पू.वि. पृ. १४८ से १६४ तक नये पत्र लिखे है., ले. स्थल, प्रातिज, प्रले. श्राव. चीमनलाल वैद्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५४११.५, १५४५०-५६), 9 नंदीसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि जयति भुवनैकभानुः अंतिः जैनोधर्मश्च मंगलम् ग्रं. ७७३२. २०७२२. .(+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमंजरी टीका व षड्दर्शनप्रमाण श्लोक, संपूर्ण, वि. १६६२, चैत्र अधिकमास शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ५९, कुल पे. २, ले. स्थल. राधनपुर, पठ, उपा. यशोविजयजी गणि** (गुरु मु. नयविजय, तपागच्छ); राज्ये गच्छा. विजयसेनसूरि (गुरु आ हीरसूरि *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, ८-१८x४१-५५). १. पे. नाम. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमंजरी टीका, पृ. १आ-५९अ. (+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अंतिः कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३२. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका - स्याद्वाद्मंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, श. १२१४, आदि: यस्य ज्ञानमनंतवस्तु अंतिः स्याद्वादमंजरी. २. पे. नाम. षड्दर्शनसिद्धांत श्लोक, पृ. ५९अ-५९आ. सं., पद्य, आदि: चार्वाकोध्यक्षमेकं सः अंतिः स्पष्टतो स्पष्ट, श्लोक १. २०७२३. आवश्यकसूत्र नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १६१३, कार्तिक शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२५, जैदे. (२६.५X११, ११X३६-४१). आवश्यक नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: जयड़ जगजीव जोणी विआण; अंति: चरणगुणडिओ साहू, ग्रं. ३५००. २०७२४. कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १४७६ श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५२-१ (१) ५१, ले. स्थल, अणलुपत्तन, लिख. ग. दयार्द्धन (तपगच्छ); पठ. ग. रत्नकलस; प्रले. राजाक विप्र, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७११.५, ११X३५-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवयंसेति बेमि, व्याख्यान ९ ग्रं. १२१६, पूर्ण. २०७२५. (+) कल्पसूत्र अंतर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ४५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. श्री. (३५६) अदृष्ट दोषात् मतिविभ्रमाच्च, जैवे. (२६.५x११, १५-१६x४९-५६). कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य, मु. रंगसार, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः श्रीवर्द्धमानं चरमं अंतिः श्रीसंघभट्टारकः, For Private And Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०७२६. (+) ज्योतिषसार संग्रह प्रकरण-१, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअहँतजिनं नत्वा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०७२७. (+) प्राकृतलक्षण सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७३३, चैत्र शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. महारोठ, प्रले. मु. अमरेंद्रकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१०.५, ६x२८-३२). प्राकृतलक्षण, क. चंड कवि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा वीरं; अंति: भाषाश्च प्रकीर्तिताः, विधान-४. प्राकृतलक्षण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: प्रकृतिः संस्कृत; अंति: (-). २०७२८. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, जैदे., (२६.५४११, १३-१४४३२-३९). विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २०७२९. रामजसरसायन, संपूर्ण, वि. १८००, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५१, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. सा. फतु आर्या (गुरु सा. अखुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११, १७-१८४७१-७७). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: मुनिसुव्रतस्वामीजी; अंति: जपे सदा हरष __वधावणी, अधिकार-४, ढाल ६२, गाथा-३१९१, ग्रं. ४३७५. २०७३२. (+) धन्य कथा दानोपरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १७X४६-५०). धन्य कथानक-दानधर्मे, मु. दयावर्द्धन, सं., पद्य, वि. १४६३, आदि: श्रीवीरजिनमानम्य; अंति: चक्रे धन्यनिदर्शनम्, श्लोक-२६५. २०७३४. सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७५२, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. मंडपनगर, प्रले. पं. कुशलसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १७४४६). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: पगसोभाग्यं संखनी, श्लोक-१८०. सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुष स्त्रीना लक्षण; अंति: लक्षण कुलक्षण जाणवा. २०७३५. संबोधसत्तरी व श्रावकमहेश्वरी संवाद, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, ८४४१). १. पे. नाम. संबोधसत्तरी, पृ. १अ-५आ. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-७६. २. पे. नाम. श्रावकमहेश्वरी संवाद, पृ. ५आ, अपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रावक अनइ महेसरी; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०७३६. (+) पाक्षिकसूत्र सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १६२८, भाद्रपद शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. ग. सौभाग्यसुंदर (गुरु वा. देवसमुद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ. कुल ग्रं. १२५१, जैदे., (२६४११, २-१०४५५-६२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिक सूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनं नत्वा; अंति: नाभिहितत्वात. For Private And Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०७३७. तंदलवैचारिक प्रकीर्णक का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६८७, आश्विन शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्रले. मु. शिवराज (गुरु उपा. हंसकीर्ति, नागपुरीय तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूलपाठ प्रतीकमात्र दिया गया है., जैदे., (२८x११, १३४४८-५४). तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः (१)कल्याणवल्लीतती०, (२)ग्रंथकर्ता कहइ छइ हउ; अंति: मुक्ति पहोचें ए भाव. २०७३८. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ- द्वितिय श्रुतस्कंध, प्रतिअपूर्ण, वि. १८२७, कार्तिक शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७८-१(१)=७७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ६x४६-४७). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, प्रतिअपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आपणा शिष्य प्रतइ, प्रतिअपूर्ण. २०७३९. वृहत्कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १९६०, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६२-१(१)+४(८,१९,१९,२१)=६५, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. मु. रतनलाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, २-४४२९-३०). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्ठिई त्तिबेमि, अध्याय-६. २०७४०. (+) चउसरण सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ४४३२-३७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावधव्यापार त्याग; अंति: अनइ मुक्तिना सुख लहइ. २०७४१. (+) सप्तस्मरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्मरण-६ गाथा-४ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, ८४४९-५६). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: (-), अपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीअजितं द्वितीयतीर; अंति: (-), अपूर्ण. २०७४४. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला - कांड १, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १०-११४३५). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०७४५. श्रमण सूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पंचपाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४११, १-९४३६-४२). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. पगामसज्झायसूत्र-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनाधिपति; अंति: श्रेय एवेति मन्यते, ग्रं. २९६. २०७४६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १४-१६x४६-५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६. २०७४७. विपाकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६४०, आषाढ़ शुक्ल, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५३, ले.स्थल. अलवर, प्रले. मु. माधव ऋषि (गुरु ऋ. डीडा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ११४३४). For Private And Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, अध्ययन २०. विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमाना; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच व अंत के कुछेक पाठ नहीं है.) २०७४८. नेम विवाह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. वढवाण शहेर, प्रले. खीमचंद पोपटलाल गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १६x४७-५३). नेमिजिन विवाहलो, श्राव. केवलदास अमीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९१९, आदि: सती सरस्वतीने शीर; अंति: केवल कहे करजोडी रे, ढाल-४३. २०७४९. दसवेयालिय सुयक्खंधो, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, लिख. गच्छा. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. उपा. रंगनिधान (गुरु गच्छा. जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३५-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, __ अध्ययन-१०, चूलिका २, गाथा-७००. २०७५०. संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, श. १३९४, वैशाख कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०-२(१ से २)=३८, पू.वि. गाथा १ से ८ तक नहीं है., ले.स्थल. देवगिरी, जैदे., (२६४११.५, १४-१६x४४-५१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: णिम्मिया अत्तपढणट्ठा, गाथा-२७४, पूर्ण. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: (-); अंति: मांगलिकनइ अर्थि हओ, ग्रं. १८५७अक्षर८, पूर्ण. २०७५५. उवाईउपांग, संपूर्ण, वि. १७०८, फाल्गुन कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. २०, दत्त. मु. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १७४५३-६६). उववाईयसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-१८९. २०७५६. बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. वडनगर, प्रले. पं. शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ९४२०-२७). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, हिस्सा, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. २०७६०. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, विचार संग्रह व जमाली अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, ४-५४३३-४०). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र की चूलिका सहटबार्थ, पृ. १आ-७अ, पू.वि. मात्र अंतिम दो चूलिकाएँ हैं. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (१)मुच्चइ त्ति बेमि, (२)निच्चला ___ होसु, प्रतिपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करी मिच्छामि दुक्कड, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ७अ. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. जमाली अध्ययन, पृ. ७अ-७आ. भगवतीसूत्र-जमाली अध्ययन, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०७६१. (+) स्थानांगसूत्र सह टबार्थ - चतुर्थ अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२६.५x११.५, ३-१०X३०-४३ ). " स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. स्थानांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, २०७६२. धर्मबावनी व श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १७८८, माघ कृष्ण ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ६-१ (१) -५, कुल पे. २, ले. स्थल, पंचेटक, जैवे. (२६११, १४-१५X३५-३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम, धर्मवावनी, पृ. १अ ६अ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. गाथा १२ अपूर्ण तक नहीं है, अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पच, वि. १७२५, आदि (-); अंतिः नाम धर्मचावनी, गाथा ५७, अपूर्ण. २. पे. नाम. दुहासंग्रह, पृ. ६अ-६आ. दुहा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. २०७६३. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदे., (२७X११.५, ११४३८-४२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा - २९. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१) यथा स्थित साचउं जे, (२) पहिलुं जीव तत्त्व; अंति: (१)सूरिपादैर्विरचितः, (२) अर्द्धमाहि मोक्ष जाई. २०७६४. संबोधसत्तरी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२५.५४११.५, ६-७x४०-४४). संबोधसत्तरी, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरु; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा - ७२. संबोधसप्ततिका बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनई त्रिलोकगुरु; अंति; लहई ईहा संदेह नही, ग्रं. २५०. २०७६६. कर्मस्तव कर्मग्रंथ सह टबार्थ व बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २५, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-३४ अपूर्ण तक है., जैवे. (२६११.५, १-१३४३४-५५) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्म, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), पूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि; तिम स्तवीश श्रीवीरजी; अंति (-), पूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिजगत् सृष्टिस्थित; अंति: (-), पूर्ण. २०७६७. उपदेशमाला व अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. २, पठ. श्रावि. रूडी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११, १३४३३-४२). १. पे. नाम. उपदेशमाला, पृ. १आ-२४आ. ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, श्लोक - ५४०. २. पे नाम, अजितशांति स्तव, पृ. २४आ२७आ. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः तस्मै श्रीशांतयेनमः, गाथा-४४. २०७७० (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १५८७, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. मु. विजयकीर्ति (काष्टासंघ गच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कही कही संस्कृतभाषामय टिप्पण भी दिया गया है., पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें -संधि सूचक चिह्न, जैवे., (२७.५x१२, ५६x२७-३२). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: (१) मोक्षमार्गस्य नेतारं, (२) सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: (१) चउगइदुक्खं णिवारेड, (२) बहुत्वत्तः साध्याः, अध्याय १०, सूत्र - १९८. For Private And Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४५३ २०७७२. भागवतपुराणे सुभाषित, पूर्ण, वि. १८३७, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २७-२(२,२०)=२५, ले.स्थल. सवाईमाधोपूर, पठ. श्राव. चंद्रभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ५-६४३५-४१). पुराण श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्मसर्वस्व; अंति: स्मरणेनापि तत्फलं, श्लोक-२९२, पूर्ण. पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म सघलाई सांभल; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के ४१ श्लोक तक ही टबार्थ लिखा है.) २०७७३. (+) उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. ७४, ले.स्थल. कांधलानगर, प्रले. मु. तुलसीराम (गुरु मु. लूणकरण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बालावबोध टबार्थ शैली में लिखा गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१०) जावत्तं चंद्र रविलोके, (४७९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (६२७) जलात् रक्षे तैलात् रक्षे, (७२२) जाद्रिसं पुस्तके द्रिष्ट्वा, जैदे., (२६.५४१२, ६x४६-४७). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-१८९, (वि. १८७६, आश्विन कृष्ण, १, रविवार) औपपातिकसूत्र-दुर्गमपद बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)तेणं कालेणं णं शब्द; अंति: थका सीधनइ विषइ, ग्रं. ५०००, (वि. १८७६, कार्तिक कृष्ण, १३, शनिवार) २०७७४. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८-१४(१३,२१ से ३३)=४४, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११.५, १३४४४-४९). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), अपूर्ण. गौतमपृच्छा-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करीनइ श्रीगौतम; अंति: (-), अपूर्ण. २०७७५. संग्रहणीरत्न, संपूर्ण, वि. १७८३, फाल्गुन शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. लघुपद्मावती, प्रले. मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १४४५१-५४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३८, ग्रं. ४००. २०७७६. सिंदूरप्रकरण, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-९७ तक है।, जैदे., (२६.५४११.५, ७४२७-३०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), पूर्ण. २०७७७. ज्ञानपंचमीदेववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८८३, पौष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. राजनगर, लिख. श्रावि. बीजीवह (पति श्राव. अनोपभाई), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १४४४१). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)प्रथम बाजठ उपरि तथा, (२)श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: (१)लोगस्स प्रगट कहीइ, (२)विजयलक्ष्मी शुभ हेत, ग्रं. २७०. २०७७८. (+) हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६-१३(१ से १३) =३३, पू.वि. ढाल १७ गाथा २ तक नहीं है व प्रतिलेखन पुष्पिकावाला पत्र नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, १३४२३-३०). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: सूरि० हंस अनै वछराज, खंड-४, ढाल ४६, अपूर्ण. २०७८०. (#) बारव्रत कथा, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. १२ वें व्रत में साधु को दान देने संबंधि कथा अपूर्ण है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, १५४४७-५०). For Private And Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ व्रत कथानक, मा.गु., गद्य, आदि: समकित सूधउं पालता; अति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०७८१. (+) सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. ईस ग्रंथ के पत्रांक १ से ७ है. किन्तु प्रत देखने से प्रारंभ अपूर्ण प्रतीत हो रहा है. अतः काल्पनिक रूप से प्रथम व अंतिम पत्र को २ एवं ८ पत्रांक दिया हुआ है., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १३४४६-५४). जैन सुभाषित*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २०७८२. (+#) श्रीपालनृप कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १२-१३४४१-४९). श्रीपालराजा कथा, आ. हेमचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइं नवपयाइं०; अंति: मंगलावली दद्यात्, ग्रं. २३०. २०७८३. चौवीसदंडकगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(४)=११, पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण तक लिखा है., जैदे., (२४४११, ५४१३-१७). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पास जिणेसर; __ अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०७८४. (+) सांबप्रद्युम्न रास, संपूर्ण, वि. १७२६, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७.५४११.५, १४-१५४३७-४१). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: एम भणै संघ सुजस जगीस, खंड-२, ढाल २१, गाथा-५३५, ग्रं. ८००. २०७८५. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १७८३, माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ६, पठ. मु. देवराज; श्रावि. धनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४३-४७). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मन आणंद संथुण्या. २०७८७. मैणरेहानी चोपड़, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१४१ तक है., जैदे., (२६.५४११.५, १६४३८-४३). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जुवो मांस दारु थकी; अंति: (-), अपूर्ण. २०७८८.(+) ऋविदत्तारास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-४(१ से ४)=१७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा ७४ से ५१८ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १५४४१-४९). ऋषिदत्तासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २०७८९. संग्रहणी सूत्र की अवचूरि व जैन गाथा सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११.५, २२-२३४६६-७१). १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी की अवचूरि, पृ. १अ-१५आ. बृहत्संग्रहणी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तिष्ठति नारकादिभवे; अंति: शशांकेन निर्मिता. २. पे. नाम. जैन गाथा सह अवचूरि, पृ. १५आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अलग-अलग गाथा २ तक है. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. जैन गाथा की अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०७९०. (+) कालिकाचार्य कथानक, संपूर्ण, वि. १५३४, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. सितपत्र, प्रले. ग. वीरशेखर (गुरुग, दवारत्न वाचनाचार्य); पठ, सा. लक्ष्मीमाला गणिनी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त जैदे., (२७.५x११, ९४३४ ). विशेष पाठ., कालिकाचार्य कथा, प्रा., पद्य, आदि: अत्थि धरावासपुरे; अंति: तेसिं चरियं पवक्खामि, गाथा-८३. २०७९१. स्तवचीवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२५x११.५, १५९५२-५६ ). स्तवचौवीसी, गच्छा. जयकेसरीसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणकोटिसमसेवित; अंति: तेषामद्रमहद्वीया, अध्याय- २४. २०७९४. श्रावक विधि व पाक्षिकप्रतिक्रमण गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, जैवे. (२५x११.५, १४-१५X४४-४८). १. पे नाम. आवक विधि, पृ. १अ १०आ. श्रावकविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु. सं., गद्य वि. १८३८, आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: ईहा सो सोधीयो सुजान. २. पे नाम, पाक्षिकप्रतिक्रमण गाथा, पृ. १०आ. २०७९६. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा प्राकृत, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-). २०७९५. तपसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६ १३, १०X२८). तपावली, मा.गु., गद्य, आदि: पुरिमढ्ढ १ एकासणां; अंति: (-), अपूर्ण. | नंदीसुत्र सह टवार्थ विस्तृत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५x१२, ६-२४X३२-५४). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: देस्सामि अणुजाणामि, गाथा - ७००. ४५५ नंदीसूत्र - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी ते आनंदनी देण; अंतिः किस्युं अ० आचारांग. २०७९८. दानसीलनो रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) -६, पू. वि. प्रथम डाल गाथा ४ अपूर्ण तक नहीं है., प्रले. श्राव. मोहन डामरसी; लिख श्रावि. संधुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २५X१२, ११-१३x२२-२७). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि (-); अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, डाल-५, अपूर्ण. २०७९९. वारव्रत अतिचार व आवक आलोचना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे २, जैदे., (२३१३, १७३७). १. पे. नाम. बारव्रत अतिचार, पृ. १आ-२आ. १२ व्रत अतिचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानाचारई पोथीपाटी; अंति: जि को अतिचार लागो. २. पे नाम, श्रावक आलोचना, प्र. २आ-६अ. For Private And Personal Use Only मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथम गृहस्थना अविरत अंतिः सम्यक्त्वोच्चारः, २०८०१. उपधानविधि, संपूर्ण, वि. १९३७, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पू. १६, प्र. वि. अंत मे उपधान तप गिनती का कोष्टक भी दीया गया है., जैदे., (२५. ५x१२.५, ११४९). उपधानविधि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: प्रथमनंदी द्वितीयो; अंति: आज्ञा थकी जाणवा Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०८०६. चंद्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १८१०, चैत्र कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले. स्थल. खेमलीनगर, प्रले. पं. विजेहंस; राज्यकाल रा. राजसिंघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, १६-१८X३७-४३). २०८०७. पंचाख्यान चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदे., ( २४४११, १७४४८). www.kobatirth.org २०८०८. (+) नारचंद्र ज्योतिष, नवकार व लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. ४, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१२, १२४३४ ). १. पे. नाम. नारचंद्र ज्योतिष, पृ. १आ-२२अ, पठ. मु. साधविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंतिः सर्वको विजयो भवेत् श्लोक-३५६. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, प्रले. मु. जशराज, प्र.ले.पु. सामान्य. शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवइ मंगलं, पद- ९. ३. पे. नाम. दैनिकषट्कर्म श्लोक, पृ. १अ. चंद्रलेखा रास, मु.] मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल - २९, गाथा - ६२४. ४. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. १अ + २२अ. ज्योतिष लोकसंग्रह" मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २०८१३. पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पच, वि. १६२२, आदि: प्रणम्य पूर्व अंति: गुणमेरूसूरि कहई सिस, अधिकार ५ ग्रं. ३१००. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८०९. नवाणु प्रकारी पूजाविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. जामला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५x१२.५, ८३५). (+) जैन श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १. ९९ प्रकारी पूजा - शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: (१) आतम आप ठरायो रे, (२) ९९ चोखाना करीइ, ढाल - ११ + कलश. २०८१२. आवश्यकसूत्र नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १२६-६० ( १, ३ से ५७, ७१ से ७३, १२२ ) = ६६, जैदे., ( २४४११, ११५३२). २०८१९. आवश्यकसूत्र - नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: चरणगुणओ साहू, अपूर्ण. कल्पसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५X११.५, ७X३६-४४). (+) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र - टबार्थ में, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने माहरो; अंतिः (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०८१८. वीरजिन निर्वाणस्तवन, संपूर्ण, वि. १९४१, पौष कृष्ण ३०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५X११.५, १०x३६-३७). वीरनिर्वाण स्तवन, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रमणसंघतिलकोपमं अंतिः श्रीगुणहर्ष वधांमणई, डाल- १०, गाथा - १२३. सीता चौपाई शीलप्रबंधे, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२४.५x१२, २४-२५×५८-६६). For Private And Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४५७ सीतासती चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १६२८, आदि: सकल मनोरथ सिद्ध करी; अंति: सिद्धि सिवपुर दीओ, गाथा-८०३. २०८२३. (+) पर्युषण चिंतामणी प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४०, प्रले. पंन्या. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ७४३२-४३). पर्युषणाचिंतामणी प्रकरण, पं. अमृतकुशल, सं., गद्य, वि. १८५६, आदि: चिदानंदस्वरूपाय; अंति: लभतां प्रभाः. पर्यषणाचिंतामणी प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वि. १८५८, आदि: चिदा० क. परमात्मानु; अंति: ग्रंथपण पामे __ शोभाने. २०८२४. सम्यक्त्वदोषनिवारण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१२, १०४३६). समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-७२. २०८२५. (+) सूयगडांगसूत्र सहटबार्थ-प्रथम श्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १७८८, श्रेष्ठ, पृ. ६७, ले.स्थल. कांधला, प्रले. मवजीराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ५४३९-४३). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुज्झि० छकाय जीवना; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०८२६. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७९१, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. पत्तण, प्रले. पं. दीपचंद्र (गुरु ग. दानचंद्र); पठ. श्राव. पूजा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३-१४४३८-४७). श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: चउवीसे प्रणमु जिनराय; अंति: सुणतां सदा कल्याण, ढाल-२०, गाथा-२७२. २०८२७. (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७३, माघ कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले.स्थल. सूर्यपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, ६४२९-३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३३, ग्रं. ४१२. २०८२८. (+) भक्तामर, लघुशांति व उवसग्गहरं स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १०४३२-३५). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २अ-५अ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., श्लोक-१-१० नहीं है. ____ आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४, अपूर्ण. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ५अ-६अ.. __ आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र, पृ. ६अ-६आ. उपसर्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पासजिणचंद, गाथा-५. २०८२९. आउर पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६.५४१२, १०४३०-३२). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणम्, गाथा-७०, ग्रं. १०९. For Private And Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई अंतिः कारणं निव्वुह सुहाणं, गाथा - ६३, ग्रं. ८०. २०८३०. चतुः शरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २६.५X१२, १०X३० ). २०८३१. नववाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २६.५४१२, १०x३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नववाडि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल १०. २०८३२. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., २-६X३७-३८). पगाम सज्झायसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि पडिक्कमिङ; अंतिः वंदामि जिणे चडवीस, सूत्र- २१. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छना वांछु छु है; अंतिः जिन चोवीसने हुं. २०८३३. सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., ( २६.५x१२, १०३४-३७). सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, बि. १७५८, आदि: श्रीगुरु चरणे नमी; अतिः सेवक केशरकुशल जयकरो, ढाल ५ . ११८. २०८३४. अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र सह टवार्थ, पूर्ण, वि. १९१०, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २२-१ (१) २१, जैदे., (२५.५x११.५, ५-६४३१-३९). अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंतिः तहा णेयव्वं अध्याय ३३, " ग्रं. १९२, पूर्ण. .जैदे., (२६x१२, - अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: परे ना० तिम जाणवो, पूर्ण. २०८३६. गौतमपृच्छा सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८१८, फाल्गुन कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ४८, ले.स्थल. सादडी, प्रले. पं. जीवणविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११.५, ५-१५X३७-४७). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा - ६५. गौतमपृच्छा - बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरं जिन अति: सूरेण हर्षपूरण भावतः . २०८३७. समकित सडसठबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९९४, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. बालगिर बाबा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११.५, १०-१२X४०-४२). समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः सुकृतवह्नि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल - १२, गाथा - ६८. २०८३८. गौतमकुलक सह लुद्धानराटीका+कथा व कथासूचि, संपूर्ण, वि. १८२८, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले. स्थल. सोझित, प्रले. पं. देवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. जैदे., (२५.५X१२, २२-२३५२-५६). For Private And Personal Use Only गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहंति, गाथा - २०. गौतम कुलक- टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: नत्वा श्रीदेवगुरुन; अंतिः भुवि चिरं जीयात्. २०८३९. चतुर्विंशतिजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६४, श्रावण कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. श्रावि. विरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १२४३३-३६). Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्विंशतिजिन पंचकल्याणक स्तवन, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: सारदमात नमी करी; अंतिः जिनगुरु सुखकार रे, गाथा ६९. २०८४०. बारभावना व औपदेशिक दूहो, संपूर्ण, वि. १८४९, भाद्रपद शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले. स्थल. सादडी, प्र. ग. गजेंद्रविजय; पठ. श्रावि. बाई सरुप, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २६.५X११.५, १०X३१-३५ ) . १. पे. नाम. १२ भावना सज्झाय, पृ. १अ - ९अ. उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेश्वर पाय नमी; अंति: रची जेसलमेर मझार, ढाल - १३. २. पे. नाम. औपदेशिक दूहो, पृ. ९आ. औपदेशिक दूहा*, पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाधा - १. ४५९ २०८४३. (+) बृहत्संग्रहणी, निगोदगोला विचार, भावी २४ जिननाम व नवदसारपुरुषाधिकार, संपूर्ण, वि. १६९९, पौष शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ४, ले. स्थल. द्वीपबिंदर, प्रले. मु. यशोराज (गुरु मु. धर्मसी ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे. (२६.५x११.५, १५-१८४४८-५८). १. पे. नाम. संग्रहणीसूत्र, पृ. १अ - ११अ. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि नमिठं अरिहंताई ठिङ; अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३१२. २. पे नाम. निगोदगोला विचार, पृ. १९अ. मा.गु., पद्य, आदि: बिहु भेदे एगिंदीया; अंति: भगवइ पन्नवणा अणुसारि, गाथा - १४. ३. पे. नाम. भावी २४ जिनगाथा, पृ. ११ आ. भावी २४ जिननाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जंबूदेणं दीवे भरहे; अंतिः कराणं तु पुव्वभव्वा, गाथा - १०. ४. पे. नाम. नवदसार विचार, पृ. ११. नवदसार पुरुषाधिकार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूदीवेणं० उसपिणी; अंतिः रामे पाविअपच्छिमे २०८४६. (+) जीवविचार व दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैये., (२७४११.५, ६x४२ - ४४), १. पे नाम, जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ प्र. १-५अ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रण भुवनमां दिवा; अंतिः सूत्ररूप समुद्र थकी. २. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ५अ - ९अ. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा -४७. दंडक प्रकरण - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने ऋषभादि; अंति: विनती आत्महेते. २०८४७. मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १८३१, चैत्र कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २०, ले. स्थल. पत्तननगर, प्रले. पं. देवविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५४११.५, १५४४३). " For Private And Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिऊण महावीरं चउ; अंति: नंदउ मणिवई चरियं, गाथा - ६४२. २०८४८. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, ले. स्थल, विजापूर, प्र. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. चिंतामणी पार्श्वनाथ प्रसादात्, जैवे. (२८x१३, ११x४०). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ - १८आ. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. १९अ १९आ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, सूत्र- ४. २०८४९. चौमासीदेववंदन व पाक्षिकचोमासीसंवच्छरी प्रतिक्रमणविधि, संपूर्ण, वि. १९०१, माघ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, ले. स्थल. अमदावाद, प्रले. लालजी; लिख. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (६६९ ) भग्नपृष्टी कटिग्रीवा, जैदे., (२८x१३, १२X३२). १. पे नाम, चौमासी देववंदनविधि, पृ. १अ १७अ. चतुर्मासिकदेववंदन विधि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम ईरियावहि पछे; अंतिः विजय शिव मंदिरीई रे. २. पे. नाम. पाखीचोमासीसंवच्छरी पडीक्कमणाविधि, पृ. १७. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: मुहपत्तिवंदणय अंतिः पक्खियं पडीकमणं, गाथा - ३. २०८५०. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. पेधापूर, प्रले. मु. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११, १०X३७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: अम्ह सया पसत्था. २०८५१. चउशरण सह अवचुरी, संपूर्ण, वि. १६७९, वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २६x१२.५, २५६१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक- अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदिः इदमध्ययनं परमपद; अंतिः भवतीति गाथार्थः, २०८५२. नंदीसूत्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. मूल का प्रतिकपाठ मात्र ही दिया हुवा है., जैदे., (२७४११.५, २६x२६). नंदीसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि नंदी शब्दनो सो अर्थ; अंतिः तदेतत्परोक्षं इतिः. २०८५३. जंबूपृच्छा चौपाई, संपूर्ण वि. १९१९ आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल राजनगर, प्रले. खेमचंद; लिख. सा. बुद्धिश्री, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २६.५X१२, ११×३२-३६). जंबूपृच्छा चौपाई, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सर्वदा पूर; अंति: वीरजीमुनि सुखकारी, ढाल १३, ग्रं. ३४०, - २०८५४. () संथारापयन्नासूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैबे, (२७४११, १७-१९४४४-४७). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंतिः सुहसंकमणं मम दिंतु, गाथा - १२१. संस्तारक प्रकीर्णक- टीका, सं., गद्य, आदि: काउण० कृत्वा नमस्कार; अंति: कृतेति भद्रं भवतु. For Private And Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ २०८५५. (+) वसुधारा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३-१५४४६-५१). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: शिखाई वषट् स्वाहा. २०८५६. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, ८x२४-२६). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), अपूर्ण. २०८५८. कालसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१०, कार्तिक शुक्ल, ८, जीर्ण, पृ. १९, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. मु. खेमचंद (गुरु पं. दीपविजय); लिख. सा. नवलश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ३४२८-३१). कालसित्तरी, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: देविंदणयं विज्जाणंद; अंति: कालसरूवं किमवि भणिय, गाथा-७४. कालसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्र महारायनइ; अंति: स्वरुप काइक कह्यो. २०८५९. जंबुस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १७७४, चैत्र कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्रले. ग. उदयविजय (गुरु आ. देवरत्नसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १५४३९-४७). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्रणमी पास जिणंदना; अंति: नितु कोडि कल्याण, ढाल-३५, ग्रं. १०३५. २०८६०. (+) नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १६२१, कार्तिक शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. फतेपुर, प्रले. मु. नाना ऋषि; पठ. मु. शिवदास ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११.५, १३-१७X४४-४९). नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: अचलपुर नगर; अंति: मोक्षे पोहुंचसइ. २०८६३. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४११.५, १०४३८). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसतीजी वरसति; अंति: विजय पभणे __ आनंदकारी, ढाल-९, गाथा-७९. २०८६४. (+) अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १७२६, फाल्गुन शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. सातसेण, प्रले. पं. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १५४४४). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: ऋद्धि वृद्धि मंगलमाल, खंड-३, ढाल २२. २०८६५. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. हरिदुर्ग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ६४३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (, माघ शुक्ल, ३, रविवार, प्रले. मु. कपूरचंद ऋषि (गुरु मु. चिमनराम ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० तीन भवन तेह; अंति: जोइ संखेप मात्र कीधो, (, माघ कृष्ण, ४, रविवार, प्रले. मु. चिमनराम ऋषि; पठ. मु. कपूरचंद ऋषि (गुरु मु. चिमनराम ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य) २०८६६. योगशास्त्र टीका-प्रकाश-१सै ४, प्रतिअपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-३(२ से ४)=१५, प्र.वि. टीका को अवचूरी का नाम दीया गया है., जैदे., (२६४११, २०४७२). For Private And Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य सिद्धाद्भुत; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २०८६७. वाग्भट्टालंकार सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. मू.+टी परिच्छेद ४ गा. ८२ तक लिखा गया है., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४१३.५, ८-१३४२३-२९). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्द्धमानसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमान् श्रीआदिनाथः; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०८६८. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६४११, १५४५४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं० पंचिद; अंति: तियागारेण वोसिरामि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जे त्रिभुवननी पूजानइ; अंति: संध्या प्रत्याख्यान. २०८७०. आचारांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८-९३(१ से ९३)=१५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., गा. ७ से संपूर्ण ८वां अध्ययन है., जैदे., (२६.५४११, ११४३६-३८). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. आचारांगसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २०८७३. शत्रुजयरास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ढाल ३ गा.३ से ढाल ७ गा.१८ तक __ है., जैदे., (२६.५४११, ९४२७). शत्रुजयतीर्थ रास*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २०८७४. (+) सुक्तावली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४४०-५२). सूक्तावली संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धैर्यं यस्य पिता; अंति: संसारीणां दुर्लभाः. २०८७५. सारशिखामण रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पठ. श्रावि. दीवा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११, ११४३४-३६). सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५४८, आदि: श्रीजीराउलि पासनाह; अंति: नित्य मंगल जय करुए, गाथा-२२९. २०८७६. शालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४७-५३). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: मनवंछित सुख पावेजी, ढाल-२९, गाथा-४९९. २०८७८. उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अ.२५ गा.३ तक है., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १२-१७४३६-४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: संजोगा० संयोगान्; अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४६३ २०८७९. (+) सम्यक्त्व कौमुद्दी कथानक, संपूर्ण, वि. १५१३, आषाढ़ कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. पूजा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखकने प्रतिले. वर्ष मे आ० वदि १३ इस तरह लिखा हुवा है इस लिए आषाढ या आश्विन दोनो मे से कोइ एक हो सकता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १७४५६-६७). सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: विपर्ययादिष्यते बंधः. २०८८२. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ५०, ले.स्थल. रोहीठनगर, प्रले. मु. धर्मसुंदर (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. जैदे., (२६४११, ६x४२-४५). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेस अंग तहेव, अध्याय-१०,ग्रं. ८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: दिवसे श्रुतांग तिमज. २०८८३. यशोधर चरित्र, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ३६, प्रले. छगनलाल अविचलभाई लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १६-१७४४४-४९). यशोधर चरित्र, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३९, आदि: सकलसुरनरेंद्रश्रेणि; अंति: सकलोपि तेन जनः. २०८८५.(+) उपाशकदशांगसूत्र सह टबार्थ व संग्रहगाथा, संपूर्ण, वि. १८३३, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कोटहिसार, प्रले. दीनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११.५, ७४३९). १. पे. नाम. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-५१आ. उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, __ अध्याय-१०,ग्रं.८८६. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनें विषं ते; अंति: अर्थ प्ररुप्या कह्या. २.पे. नाम. संग्रहगाथा, पृ. ५१आ. गाथासंग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २०८८६. अष्टाह्निका विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. प्रथम पत्र पर अष्टाह्निका विधि मे उपयुक्त औषधिओ के नाम दिये हुवे है., जैदे., (२५.५४११, १६४५०). अष्टाह्निका विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पूर्वं नमस्कार ३ पठि; अंति: भाजो हि जिनाभिषेके. २०८८७. अजितशांतिजिन स्तव सह वार्तिक, संपूर्ण, वि. १६७३, आश्विन शुक्ल, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२६.५४११, १५४५५-६०). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: कित्तणे अजियसंतीणं, गाथा-४१. अजितशांति स्तव-वार्तिक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १६०१, आदि: विपुलमंगलकारणमुत्तमं; __ अंति: (१)पार्श्वचंद्र०जिनागमः, (२)वार्तिकमिदं विहितं. २०८८८.(+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५६-१४३(१ से १३३,१३५ से १३७,१४० से १४४,१५४ से १५५)=१३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, १६४३८-४३). For Private And Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६४ www.kobatirth.org कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. कल्पसूत्र - टीका, सं., गद्य, आदि: ( - ); अंति: ( - ), अपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 9 २०८८९. (+) उपदेशमाला सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मू+टबा. गा. ४०१ तक है., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६४११.५, ७४४०-४३). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्म, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), अपूर्ण. उपदेशमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंति: (-), अपूर्ण. २०८९०. क्षेत्रसमास प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. पंचपाठ., जैवे., (२७४११.५, ५-२१x२१-२५). क्षेत्रसमास प्रकरण, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहर निभस्स; अंतिः लोगो चउदसरज्जुओ, गाथा ११०. बृहत्क्षेत्रसमास- जंबूद्वीप प्रकरण की टीका, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य परमभक्त्या; अंति: लोकञ्चतुर्दशरज्जुकः. २०८९१. (+) आद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. जसवंत ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५x११.५, ५-१२३१-३९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० पंचिव अंतिः तियागारेणं वोसिरामि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनइ नमस्कार; अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०८९३. लिंगानुशासनसूत्र सह अवचूरी, संपूर्ण वि. १७४५-१७४६, मध्यम, पू. १५, प्रले. मु. पंचानन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., ( २६११, १०X२४-२६). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंगं कटणथपभमयर; अति: शासनानि लिंगानाम्, अध्याय-८ (वि. १७४५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३) हैमलिंगानुशासन- अवचूरि, आ. रत्नशेखराचार्य, सं., गद्य, आदि: कटणवपभमयरषस इत्येदंत; अंतिः मवचूरिं मुदा कृतवान्, (वि. १७४६, चैत्र) २०८९४. (+) समयसार कलश, संपूर्ण, वि. १७७७, माघ शुक्ल ८, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल. हाजीपुरपट्टण, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२५.५४११.५, १३३७-४८), समयसार - आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदिः नमः समयसाराय स्वानुः अंति: मेवामृतचंद्रसूरेः. For Private And Personal Use Only २०८९५. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८८९, मार्गशीर्ष कृष्ण, २ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २६.५X११, १५-१६x४१-५७). स्तवनचीवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सुगुण सोभागी; अंति: मालाबालाने वरे रे लो, स्तवन- २४. २०८९६. नंदीसूत्र, पूर्ण, वि. १८५२ ज्येष्ठ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २४-१ (१३) २३, प्र.ले. श्लो. (३५७) यो पोथी गुण पूर है, जैवे. (२६.५x११, १२३१-३७). 9 नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: से तं नंदी सम्मत्ता, गाथा- ७००, पूर्ण. Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४६५ २०८९७. विपाकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, प्र.वि. पंचपाठ. कुल ग्रं. २०५५, जैदे., (२७४११, ११४४०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेणं तेण; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, अध्ययन २०. विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमाना; अंति: नवाप्यनुगंतव्यानीति. २०८९८. (+) श्रीचंद चरित्र, संपूर्ण, वि. १७३६, आश्विन कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. साथा, प्रले. मु. ऋषभसागर (गुरु पंडित. ऋद्धिसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४११, २१-२८४६९-७९). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक प्रणमीने; अंति: तेहना सयल मनोरथ फलइ, खंड-६, ढाल १०३,ग्रं. ३३००. २०९००. शीलोपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पठ. श्रावि. वरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ८-९x४०-४४). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अबालबभआरि नेमिकुमार; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३, गाथा-११५. शीलोपदेशमाला-टबार्थ+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: बालपणा लगइ ब्रह्मचार; अंति: भवांतरि बोधरुप फल. २०९०१. सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८४०, आश्विन शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले. मु. चतुरा (गुरु ग. कपूरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११.५, ११४२४-३०). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४. २०९०२.(+) एकवीसठाणा सह टबार्थव २४ जिन छद्मस्थकाल गाथा, संपूर्ण, वि. १६५५, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. मु. जासा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ६-८४३६-३८). १. पे. नाम. एकवीस ठाणा प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ. एकवीस ठाणा, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: च्यवन विमाननाम नगरी; अंति: साधारण सरीखा कहीया. २. पे. नाम. २४ जिन छद्मस्थकाल गाथा, पृ. ७आ. जैन गाथा , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २०९०३. (+) विदग्ध मुखमंडण सह अवचूरी, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मू.+अवचू. परिच्छेद २गाथा ५९ तक, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १३४४६-४९). विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदि: सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति: (-), अपूर्ण. विदग्धमुखमंडन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: ग्रंथादौ धर्मदासनामा; अंति: (-), अपूर्ण. २०९०७. (+) कल्पसूत्र कल्पकिरणावलीटीका-समाचारी व्याख्यान, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. मूल प्रतिकपाठ मात्र ही दिया हुवा है, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १४-१५४४७-५३). कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: (-); अंति: पारतंत्र्यमभिहितमिति, ग्रं. १४४८, प्रतिपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०९०८. पार्श्वजिन महाकाव्य, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २४-११ (१ से ४,७ से ९,१९ से २१, २३) = १३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७X११, १३-१५X४१-४८). पार्श्वजिन चरित्र महाकाव्य, मु. पद्मसुंदर, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण. (+) www.kobatirth.org २०९०९. नवतत्व सह टवार्थ, पूर्ण, वि. १७६१ आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ८-९ (१) -७, पू. वि. मू+टला. गा. १-४ नही " है., प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, ४X३३-३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा ४९, (पूर्ण, पठ, श्रावि, साहु, प्र.ले.पु. सामान्य ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०९१९. नवतत्त्व प्रकरण- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: सिद्ध ते अनेकसिद्ध, (पूर्ण, पठ. मु. रत्ना, प्र.ले.पु. सामान्य ) २०९१०. (+) कालज्ञान भाषा, संपूर्ण, वि. १८६०, पौष शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. पंन्या. लाभसमुद्र; मु. अमृतसमुद्र (गुरु मु. धर्मसुंदर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५x११, १५४४३-४७), कालज्ञान- भाषा, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: शकति शंभू संभूतन; अंतिः लिख्यो अर्थ लवलेश, समुद्देश-५, २०९११. (+) कालज्ञान भाषा व वैधकसार, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २२-१ (१)-२१, कुल पे. २, जैये. (२६४११, १७-३३४५०-८६). १. पे, नाम, कालज्ञान भाषा, पृ. १२-५अ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है, प्रथम उद्देश नहीं है, कालज्ञान- भाषा, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (); अंति: लिख्यो अर्थ लवलेश, समुद्देश-५ गाथा - १७७, अपूर्ण. २. पे नाम, वैद्यकसार, पृ. ५अ-२२आ. मा.गु., गद्य, आदि: अब हडकीया श्वान लागा; अंतिः १४ माथी दुखतो रहे. २०९१२. नारचंद्रयोतिष ग्रंथ, संपूर्ण, वि. १८३५, माघ कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १४, ले. स्थल. बोरावड, प्र. मु. चिमनराम ऋषि; पठ, मु. कपूरचंद ऋषि (गुरु मु. चिमनराम ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११, १२-१४४३५-३८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: वर्षमेकं हि यावत्, श्लोक-३४१. २०९१४. (+) संग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७X११, ११x४२-४७). वृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिऊं अरिहंताई थिइ अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३१२. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, ३५३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. २०९२०. समवायांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जीवे., (२७४११, ११४३६-४०). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुवं मे० इह खलु समणे; अंति: (-), अपूर्ण. २०९२२. संग्रहणी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले. स्थल. मेडता, पठ. पं. चतुर, प्र.ले.पु. सामान्य, (२७.५x१०.५, ११-१२x३०-३६). जै... (+) For Private And Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ (+) www.kobatirth.org (+) वृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिकं अरिहंताई थिइ अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३९४. २०९२३. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५८-७ (१ से ७) = ५१, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६.५x१०.५, २९x४५-५२). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. आठ वाचना तक है. ( सामाचारी नहीं है)) कल्पसूत्र - टीका * सं., गद्य, आदि (-); अंति ज्ञेया वाच्याच, (अपूर्ण, पू. वि. सामाचारी २४ तक है. ) - 9 २०९२४. चउसरणपन्न सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२६x१०.५, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६X३८-४१). चउसरण पण्णय, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्म, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (अपठनीय); अंतिः छै नि० मोक्षसुखनं. २०९२५. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५, प्र. वि. संशोधित पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. जैन श्लोक सं., पद्य, आदि: (); अंति: (-). " - (+) (२६.५४११.५, ८-११४४०-४५ ). , उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स; अंतिः त्ति बेमि, अध्ययन- ३६. उत्तराध्ययनसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीउत्तराध्ययनानुयो; अंतिः तदधीतत्वात् स्येति नं. ८१००. २०९२६. (+) जीवविचार सह टवार्थ, श्लोक व पंचमआरे जीवआयुष्य विचार, संपूर्ण, वि. १७३३, आषाढ़ शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले. स्थल भइसरोड दुर्ग, प्रले. उपा. महिमाउदय; पठ. मु. कीर्तिविशाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. श्री. (६१२) बादृशं पुस्तके दृष्टं जैये., (२५.५x११, ५x२९-३९). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, पृ. १आ-६आ. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पच, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण- टवार्थ में, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनर विषह दीवा; अंति: शास्त्र समुद्र की. २. पे नाम, श्रोक, पृ. ६आ. (२६x१२, १५x५१). १. पे. नाम. पुन्यविषये राजकुमार श्रीकुलध्वजकुमार चतुःप्पदिका, पृ. १अ - १८आ. For Private And Personal Use Only ४६७ 2 ३. पे. नाम. पंचमआरे जीवआषुष्य विचार, पृ. ६आ. जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). . प्रेमराज, २०९२७, (+) वैराग्यशतक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, वैशाख कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल, वीकानेर, अन्य. मु. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, ६x४५-५१). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, श्लोक - १०४. वैराग्यशतक - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असार अप्रधान; अंति: सास्वतो ठा० स्थानक, २०९३०. पुन्यविषये राजकुमार श्रीकुलध्वजकुमार चतुःप्पदिका व दुहो, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २, जैवे., " जोड़े..... Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कुलध्वजकुमार चौपाई, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: लखमी विसाला फलकारी; अंतिः सारदमात सानिधि करी, ढाल ३० गाथा ५३८, ग्रं. ५१५. २. पे. नाम. दुहो, पृ. १८ आ. जैन दुहा संग्रह*, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. २०९३१. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १८२३, वैशाख शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. अवरंगाबाद, लिख. श्रावि. रती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२, १३X३४). विहरमानजिन स्तवनवीसी, पंन्या, जिनविजय, मा.गु., पद्म, वि. १७८९, आदि: सगुण सुगुण सोभागी अंतिः धर्मध्यान सुख पाया, स्तवन- २०, २०९३३. कल्पसूत्र व्याख्यान ६-९ का बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १८४७, भाद्रपद शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४, पू. वि. व्याख्यान ६ से ९ तक का बालावबोध है, प्रले. पं. गौडीदास (गुरुग. बुक्तधीर, बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. अंत में चोविस जिन आयुष्य वर्ण नगरी आदि के कोष्टक है, जैदे, (२५.५४११, १३३५-४३). " कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि (-); अंति: तणी आज्ञा प्रवर्ते, प्रतिपूर्ण २०९३४. अंजना रास, पूर्ण, वि. १७०३, पौष शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २२-१ (१) = २१, पू.वि. गाथा १ से १३ तक नहीं हैं., ले. स्थल. देलवाडा, प्रले. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६x१०.५, १५-१६X३२-३७). अंजनासुंदरी रास, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: (); अंतिः लखमी तस घरि बासई रे, गाथा - ५९९, पूर्ण. २०९३६. भगवतीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८-१३ (१ से १३) = ३५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५x११, १६-२२x५२-६०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. भगवतीसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २०९३७. व्यवहारसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदे. (२६.५X११, ४-५X३२-४४), , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. गमा यंत्र, पृ. १अ. व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खू मासिवं; अंतिः महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक- १०. व्यवहारसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु; अंतिः क्षय करवारूप फल हुई. २०९३८. जीवादि चोविसदंडके २१ द्वार विचार व गम्मा विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित है। जैवे. (२७.५४११). गम्मा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम जीवादि २४ दंडके २१ द्वार विचार, पृ. १आ १७आ. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २०९३९. (+) षष्टिशतप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. संशोधित - पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५X१२.५, ७x४७). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भांडागारिक, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जाणंतु जंतु सिवं, श्लोक-१६१. For Private And Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४६९ षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अरिहंत देव सुसाधु; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. अंतिम दो गाथाओं का टबार्थ नहीं लिखा है., वि. गाथा-१२० तक मारूगुर्जर भाषा में एवं १२१ से अंत तक संस्कृत भाषा में टबार्थ लिखा गया है.) २०९४०. नवतत्त्व सूत्र व नवतत्त्व प्रकरण का भाष्य, संपूर्ण, वि. १६५७, चैत्र शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. शिवपूरी, प्रले. ग. समयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १४४५४). १. पे. नाम. नवतत्व सूत्र, पृ. १अ. नवतत्त्व प्रकरण, आ. जिनचंद्र गणि, प्रा., पद्य, आदि: सम्मंच मोक्खबीयं; अंति: सरणत्थं अप्पणो रइया, गाथा-१४. २. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण का भाष्य, पृ. १आ-५आ. नवतत्त्व प्रकरण-भाष्य, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: भूयत्था इह अवितहभावा; अंति: मंदमईणं विबोहत्थं, गाथा-१५३. २०९४१. (+) षष्टिशतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६४०, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. खइंयाबाद, प्रले. रा. अकबर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, ९x४९). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भांडागारिक, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जाणंतु जंतु सिवं, श्लोक-१६१, (प्रले. मु. समयकलश (गुरु ग. चारुधर्म, बृहत्खरतरगच्छ)) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: सर्वज्ञदेव सुसाधु; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा-१५८ तक टबार्थ लिखा है., प्रले. मु. सुखनिधान (गुरु मु. समयकलश, खरतरगच्छ)) २०९४३. (+) सिद्धाचलनवाणुंयात्रा पूजा, संपूर्ण, वि. १८७७, पौष शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. खांतिसागर (गुरु पं. विनयसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३५). ९९ प्रकारी पूजा, क. पद्मविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८५१, आदि: उत्तम गुरु चरणे नमी; अंति: श्रीविमलाचल पायो रे, गाथा-१११. २०९४४. चतुःशरणप्रकीर्णक सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १६५४, माघ कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पाडीव, प्र.ले.श्लो. (७४०) याद्रिशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२६४११, ५-६x२८-५२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६५. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: नित्य चउसरण गुणवउ, (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ___ पू.वि. प्रारंभ की १३ गाथाओं का टबार्थ नहीं लिखा है.) २०९४५. महीबाल चरियं, संपूर्ण, वि. १६२७, चैत्र कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, प्रले. मु. मानसागर (गुरु उपा. देवसागर, ___ रुद्रपल्लीयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १४-१७X४१-५२). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंति: वुट्टुिं करतेहिं. २०९४६. चंद्रप्रभजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३०, जैदे., (२६४११, १४-१६५४२-५१). चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १२६४, आदि: दृष्टोपि हृष्टजन; अंति: व्यतीतेषु नवस्वभूत्, ग्रं. ५३२५. For Private And Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २०९४९. (+) भरतआलावा सह टबार्थ- जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति तृतिय वक्षस्कारगत, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति के तृतीय वक्षस्कारगत., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ५४३४-३८). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०९५०. उपदेशमाला, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-५३२ अपूर्ण तक है., जैदे., (२७४११, १३-१५४३४-४९). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: (-), पूर्ण. २०९५१. (+#) उपदेशमाला सह विवरण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १००-७०(१ से १८,४८ से ९९)=३०, पू.वि. गाथा ४७ से १४० तक हैं., प्र.वि. अंतिम पत्र का पृष्ठांक भागवाला कोना टूटा हुआ है अत पत्रांक १०० काल्पनिक रूप से दिया गया है. बीच के अच्छे खासे पत्र अनुपलब्ध है.अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३७). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: साधनपरः खलु जीवलोकः, अपूर्ण. २०९५२. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४१२, १३४४६). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखकज वासिनी; अंति: चितवित तस फल भणिओ रे, ढाल-१७. २०९५३. सूयगडांसूत्र सह बालावबोध द्वितीय श्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १७०२, कार्तिक कृष्ण, ०, श्रेष्ठ, पृ. ४५, ले.स्थल. महरमपुर, प्रले. मु. कल्याण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४१२.५, १३४४५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तुम्ह प्रति कहउ छउ, प्रतिपूर्ण. २०९५४. (+) खरतरगच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८०१, आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. पाली, प्रले. रामचंद गोर्धन; लिख. मु. देववल्लभ (गुरु ग. देवधीर, खरतरगच्छ); मु. चैत्रहर्ष (गुरु मु. देववल्लभ, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ११-१३४३२-३७). पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरनै पाटि; अंति: चिरंजीव प्रतपौ. २०९५५. मुनिसुव्रतजिनेंद्र चरिते अष्टमभवग्रहणगतगाथा:, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२२.५४१०.५, १७-१८४६१-६४). मुनिसुव्रतस्वामी चरित्र-अष्टमभवग्रहणगत गाथा, हिस्सा, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: विमलप्पहे विमाणे; अंति: अणुहवमाणो गमइ कालं, गाथा-३१७. २०९५६. व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८७-१(१)=८६, प्र.वि. जैदे., (२६४११, ५४२२-२८). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक-१०, पूर्ण. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होइ इम हुं कहुं छउं, पूर्ण. २०९५७. स्तुति चौवीशी व सामान्यजिन स्तुति, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५४१०, ११४३३). १. पे. नाम. स्तुति चतुर्विंशतिका, पृ. १आ-९आ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अंतिम गाथा का अंतिम पाद नहीं है. For Private And Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ स्तुति चोविशी, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: (-), पूर्ण. २. पे नाम, सामान्यजिन स्तुति, पृ. १अ, अपूर्ण. जैन श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०९५८. बसस्थानक पूजाविधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैवे. (२४४१२, १०x३१). www.kobatirth.org (+) २०९६०. सूयगडांगसूत्र सह बालावबोध- प्रथम श्रुतस्कंध, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६२, पू. वि. १६ अध्याय / प्रथम श्रुतस्कंध है., जैवे. (२६४१२, १५x५७ ). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउलेज्ज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, सूत्रकृतांगसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य सद्गुरुन्; अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण. २०९६१. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें., जैवे. (२६४१२, ५X४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी अंति: (१) पभणे सवल संघ जयकरू, ( २ ) पूजीने ठामे मूके, ढाल २०, (+) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत अमरदेवता; अंति: वर्तिनी पामइ लक्ष्मी. २०९६३. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २४७, जैये. (२५x११, ६-७X२५-४५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंतिः पुरिससिहेणं, "" अध्ययन - १९, ग्रं. ५५००. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: धर्मकथांगना संपूर्ण, ग्रं. १३९१०. २०९६४. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., .जैदे., (२३.५x११, ५-२३X३८-४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३९३. ४७१ २०९६५. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं कहितां वांदीने; अंति: संसारीक सर्वसुख पामै. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १११, प्र. वि. पंचपाठ - संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६.५x१०.५, ७३५-३६). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: (१) शरीरधरे भविस्सत्तीति, (२) अंगं जहा आयारस्स, अध्याय- १०, ग्रं. १२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र - टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: संशोधित चेयम, प्र. ४६३०. २०९६६. कल्पसूत्र का आरंभणुं, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२६.५x१०.५, ९-१०x२९-३६). कल्पसूत्र - पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः नैतत्पर्वसमं पर्व नच; अंतिः तणां कल्याणक यांची. २०९७१. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४१, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मू.+बाला. तस्सउत्तरीसूत्र तक है., जैदे., ( २४x१०, १५X३१). For Private And Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: (-), अपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७५१, आदि: बार गुणे करी सहित; अंति: (-), अपूर्ण. २०९७३. श्रावक पाक्षिक अतिचार व चोर्यासीलाख जीवयोनि क्षमापनाविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०, १६४३७-३९). १. पे. नाम. श्रावक पाक्षिक अतिचार, पृ. १अ-५अ. श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. चोर्यासीलाख जीवयोनि क्षमापनाविचार, पृ. ५अ-५आ. ८४ लाख जीवयोनि क्षमापना विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: जो को विह पाणगणो दुक; अंति: दुक्कडं तस्स. २०९७६. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७९६, आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२४४१०.५, १०४३०-३४). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: गायौ सफल जगीसो रे, सज्झाय-११. २०९७७. उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १७५४, भाद्रपद कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. युक्तिसुंदर (गुरु वा. यशोलाभ गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १६४६२). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: चोमुख प्रतिमा मांडी; अंति: विकालेणं कीरइ. २०९७८. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८३४, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४१२, ११४४२). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयप्रमुखार्हता; अंति: मुक्तां करिष्यति ते, गाथा-७६. २०९७९. संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३०-३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७३. २०९८०. मेतारज चोपाइ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पठ. चनी, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १३-१४४२५-२८). मेतार्यमुनि चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: सासणनायक समरीयै; अंति: कीयो आसोज मास अभ्यास, ढाल-२०. २०९८१. (+) अनुत्तरोववाईदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रावण कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. कोटा, प्रले. सा. रोडा (गुरु सा. सत्याजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ९-१०४४१-५२). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० नवमस्स; अंति: जहा धम्मकहा णेयव्वा, अध्याय-३३, ग्रं. १९८. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते कालनइ विषइ ते; अंति: छई तिम जाणवो. २०९८२. नवतत्त्व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६७, कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. रायदेकोर, प्रले. मु. गोविंदराम, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५४१०, १७X४५). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीव अजीव पुन्य पाप; अंति: सिद्ध विराजमान छे. २०९८४. नाममाला भाषा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४४-४५). For Private And Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ www.kobatirth.org नाममाला भाषा, बनारसीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६१७, आदिः ॐकार परनाम कर भनु; अंति: तह परमानंद बिलास, गाथा - ११२. २०९८५. गजसुकमाल चोपाइ, संपूर्ण, वि. १८७४ पौष कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२५.५५१०.५, १६४५६-६३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गजसुकुमाल चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्म, वि. १६०३, आदि: त्रिभुवनपति पुण्यातम; अंति: सुकमाल मुनीनो रास ए, ढाल - ३४, गाथा - ६२१. २०९८६. मच्छोदर रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैवे. (२६x१०, १३३९-४७). (+) मच्छोदर रास, मु. जयराज, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: देव अरिहंत देव; अंति: आणी एकमना भवीयण सुणु, गाथा - १५९, ग्रं. २४०. २०९८७. (+) गौतमपृच्छा सह बालावबोध व सूचि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्रले. मु. सहजसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत मे कक्षासूची भी दी हुई है., पदच्छेद सूचक लकीरें. प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैवे. (२६.५x१०.५, १२-१३४४१-४८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा - ६४. गौतमपृच्छा - बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरं जिन; अंति: हर्षपूरेण भावतः. २०९८८. । वृहत्कल्प सह टवार्थ व प्रायश्चितविधि यंत्र, संपूर्ण, वि. १८३२ आश्विन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४.५X१०.५, ४-६x४३-४७). ४७३ बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पड़ निगंधाण; अंतिः कप्पट्टिई तिवेमि, अध्याय ६. बृहत्कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नो० क० न कल्पइ नि०; अंति: आज्ञा अतिक्रमइ नही. वृहत्कल्पसूत्र- प्रायश्चित्तविधि यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), २०९८९. () जंबूद्वीप विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x१०.५, ११५२७-२८). लघुसंग्रहणी - खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा १ जोयण २ वासा ३; अंति: सर्व नदी १४५६०९०. २०९९०. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२० आश्विन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. ग. कमलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X१२.५, ७X३९). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, श्लोक - १०४. वैराग्यशतक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमांहि नथी सुख; अंति: लहई जीव शाश्वतु ठाम. २०९९२. ज्योतिषसार सह टिप्पणक, संपूर्ण, वि. १७४८, आश्विन कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले. स्थल. इंटडीया, प्रले. पं. विनोदसागर (गुरु मु. विनयसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. जैदे., ( २५.५X१०.५, १७x४३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हंतजिनं नत्वा; अंति: लब्भइ दिवसनिरुत्तः. ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वती नमस्कृत्य; अंति: (१) यंत्रकोद्धारटिप्पनम्, (२) उभी संक्रांति आवइ. For Private And Personal Use Only २०९९३. वीसविहरमानजिन भास व शाश्वतजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५X१२, ११३० ). Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. वीसविहरमानजिन भास, पृ. १आ-१०आ. विहरमानजिन स्तवनवीसी , उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: सीमधरस्वामी सुणजो; अंति: ए लहिई मंगल कोडी, स्तवन-२०. २. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. १०आ, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभचंद्रानन नमु; अंति: (-), अपूर्ण. २०९९४. (+) भक्तामरस्तोत्र सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मू+बाला. गा.४२ तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२०x१०.५, १२-१५४३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), अपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मु. शुभवर्द्धन, मा.गु., गद्य, वि. १२०२, आदि: श्रीमदादिजिनं नत्वा; अंति: (-), अपूर्ण. २०९९६. क्रियारत्नसमुच्चय, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२२-३(७१ से ७२,७८)=११९, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२.५, १४४५२). क्रियारत्नसमुच्चय, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४६६, आदि: जयतिजिनवर्द्धमानो; अंति: (-), अपूर्ण. २०९९९. दानाधिकारे प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२५४१२, १२४४३). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमु सद्गुरु पाय; अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२३०. ॥ इति श्री कैलासश्रुतसागरे हस्तप्रतविभागे जैनसाहित्ये पंचम: खंडः॥ For Private And Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir परिशिष्टः कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या यद्यपि भविष्य में कृति की विस्तृत सूचनाओं के साथ इस तरह के परिशिष्टों के स्वतंत्र खंड २.१ आदि प्रकाशित करने का आयोजन है, तथापि विद्वानों की मांग तथा उपयोगिता को दृष्टि में रख कर कैलास श्रुतसागर- जैन हस्तलिखित साहित्य के द्वितीय खंड से सूची के अंत में दो परिशिष्ट कृति परिवार अनुसार हस्तप्रतों की अनुक्रम संख्या के प्रकाशित किए जा रहे हैं. ___परिशिष्ट-१ में संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं के कृति परिवार अनुसार प्रत क्रमांक दिए गए हैं. परिवार की मुख्य कृति की भाषा के अनुसार पूरा परिवार इस परिशिष्ट में समाविष्ट कर लिया गया है. मुख्य कृति के पुत्र-पौत्र-प्रपौत्रादि स्तर की देशी भाषाओं की कृतियों को भी यहीं सम्मिलित कर लिया गया है. ध्यान रहे कि ऐसी कृतियों को परिशिष्ट-२ में पुनः सम्मिलित नहीं किया गया है. इसी तरह एकाधिक भाषा वाली कृतियों में संस्कृत आदि व देशी भाषा दोनो हों, वैसी कृतियाँ मात्र इस परिशिष्ट में सम्मिलित की गई हैं. परिशिष्ट-२ में मात्र देशी भाषाओं वाली मूल कृति परिवार अनुसार प्रत क्रमांक दिए गए हैं. इनके संस्कृत आदि भाषा के पुत्रपौत्रादि का समावेश भी यहीं कर लिया गया है. इस परिशिष्ट में कृति की - कृतिनाम, कर्तानाम, भाषा, अध्याय-ढाल आदि संख्या, गाथा/श्लोक संख्या, ग्रंथाग्र, रचना संवत, गद्य-पद्य आदि कृति प्रकार, धर्म संकेत व मुख्य आदिवाक्य - इतनी सूचनाओं का समावेश किया गया है. . इस परिशिष्ट में मूल आदि स्व-स्व स्तर के अकारादि क्रम से कृति परिवार को क्रमशः मूल व मूल के ऊपर रचित उसकी संतति स्वरूप कृतियों को प्रथम स्तर- पिता, द्वितीय स्तर पुत्र, तृतीय स्तर पौत्र, चतुर्थ स्तर प्रपौत्र, इत्यादि सदस्य के रूप में वंशवृक्ष शैली में प्रकाशित किया जा रहा है. • प्रथम स्तर के बाद द्वितीय, तृतीय आदि प्रत्येक स्तर का सूचक अंक (२), (३) इत्यादि कृति नाम के प्रारम्भ में ही दे दिया गया है. यथाकल्पसूत्र (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका (३) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका का टबार्थ • कृतियाँ परिवारानुसार दी गई हैं. यथा- लोगस्स, शक्रस्तव, चैत्यवन्दन, प्रतिक्रमण, पच्चक्खाण आदि स्वतन्त्र तत्-तत् अक्षर पर न मिलकर आवश्यकसूत्र के परिवार में स्व-स्व स्तर पर मिलेंगे. • कृतियाँ निम्न तरह के अकारादि क्रम में दी गई हैं. ० सभी मूल कृतियाँ कृति नाम, कर्ता नाम व आदिवाक्य इस तरह त्रिस्तरीय अकारादि क्रम से दी गई हैं. यानि प्रथम अकारादिक्रम से समान नामवाली कृतियाँ एक साथ दी गई हैं. उसमें भी समान कर्तानाम वाली कृतियाँ एक साथ कर्ता नाम के अनुक्रम से दी गई है और उन समान कर्ता नाम वाली कृतियों को भी आदिवाक्य के अकारादिक्रम से रखा गया ० मूल कृति के परिवार की पुत्र-पौत्रादि कृतियाँ स्व-स्व द्वितीय, तृतीय आदि स्तरों पर स्व-स्व परिवार के साथ अपने नियुक्ति आदि कृति स्वरूपों के अनुसार दी गई है. यह क्रम कृति स्वरूप के अकारादि क्रम का न होकर कृति स्वरूप की महत्ता के अनुसार निम्न क्रम से रखा गया है. ० कृति स्वरूप क्रम : मूल, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, वृत्ति, व्याख्या, वार्तिक, अवचूर्णि, अवचूरि, अनुवाद, भाषा, भावार्थ, अर्थ, टबार्थ, बालावबोध, अन्वय, प्रक्रिया, विवरण, टिप्पण, प्रवचन, अंतर्वाच्य, कथा, अनुक्रमणिका, बीजक, हिस्सा, संबद्ध, संक्षेप, चयन, यंत्र, आधारित. ० इस क्रम में समान स्वरूप की एकसाथ आनेवाली टीका आदि कृतियों को पुनः उपरोक्त कृतिनाम, कर्तानाम व आदिवाक्य के अकारादि क्रम से दिया गया है. आशा है यह क्रम-विन्यास, आवश्यक सूत्र''कल्पसूत्र' आदि बडे कृति परिवारों में एवं २४ जिन स्तुति' जैसी समान नाम ४७५ For Private And Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir वाली अनेक कृतियों के समूह में कृति को ढूंढने में उपयोगी सिद्ध होगा. • कृति को उसके पर्यायवाची नामों से भी खोजें. यथा- नमस्कार हेतु नवकार, पंचपरमेष्ठि; नवपद हेतु सिद्धचक्र आदि. • सामान्य पद, सज्झाय, लघुकाव्यों आदि को औपदेशिक एवं आध्यात्मिक इन नामों से अभिहित कर बाद में विषयानुसार नामाभिधान करने का प्रयत्न किया गया है. • कृति नाम में यदि कोई संख्यावाचक शब्द है, तो एकरूपता लाने के लिए वह संख्या यथासम्भव अंकों में ही लिखी गई हैं. इससे अष्टकर्म व आठकर्म की जगह ८ कर्म लिखा होने से वे अलग-अलग न मिलकर एक ही जगह मिलेंगे. जहाँ तक हो सका है, संख्याओं को नाम के प्रारम्भ में ही ले लिया गया है. • प्रत व पेटाकृति नाम के रूप में कृति के प्रतिलेखक द्वारा प्रत में उल्लिखित नाम को ही रखकर कृति नाम के रूप में कृति का यथार्थ व बहुमान्य नाम रखने का नियम अपनाया गया है. इस वजह से प्रत, पेटाकृति नाम व उसके नीचे आने वाली कृति नाम में उल्लेखनीय भिन्नता मिल सकती है. इससे एक ही कृति के अनेकविध प्रचलित नामों का भी पता चल जाता है. यथाप्रत नाम - बारसासूत्र या पज्जोसणा कप्पो या दशाश्रुतस्कंध अष्टम अध्ययन. कृति नाम - कल्पसूत्र • जिन कृतियों के अंत में प्रत क्रमांक की जगह <प्रतहीन> ऐसा लिखा हो, वहाँ यह समझना होगा कि प्रस्तुत कृति मात्र उसके नीचे दिए गये पुत्रादि कृति का संबंध बताने हेतु है. कृति नामों में विशेषण अंत में दिए गए हैं ताकि मूल नामों में एकरूपता बनी रहे और अकारादि क्रम में एक साथ आएँ. यथा- २४ अनागत जिन स्तवन के स्थान पर २४ जिन स्तवन-अनागत लिखा गया है. इसी तरह शंखेश्वरमंडन पार्श्वजिन स्तवन की जगह पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन दिया गया है. • प्रत की अपूर्णता आदि कारणों से जिन कृतियों के आदिवाक्य नहीं मिल सके हैं, वहाँ आदिवाक्य में (-) ऐसा दिया गया है. • गाथा आदि छोटे परिमाणवाली मारूगुर्जर भाषा की कृतियों में क्वचित् वास्तव में राजस्थानी, गुजराती तथा प्राचीन हिन्दी भाषा होने की संभावना हो सकती है. कई बार कालांतर व क्षेत्रांतर की वजह से 'गुजराती, राजस्थानी' आदि देशी भाषा की एक ही कृति की भाषा के स्वरूपों में विभिन्न प्रतों में इतना परिवर्तन मिलता है कि यथार्थ भाषा का निर्धारण दुरुह हो जाता है. ऐसे में सुविधा की दृष्टि से उस कृति की भाषा के रूप में पश्चिमोत्तर भारत की प्राचीन भाषा 'मारुगूर्जर' लिखने का नियम रखा है. • संभावित अप्रकाशित कृतियों का नाम (आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की कम्प्यूटर आधारित सूचना प्रणाली में अब तक उपलब्ध माहिती के अनुसार) italics में मुद्रित किया गया है. यथा-अजितशांति स्तव-बोधदीपिका टीका. चूंकि अनेक प्रकाशनों की विस्तृत सूचना अभी भी कम्प्यूटर में प्रविष्ट करनी बाकी है एवं बहुत-सी प्रविष्ट कृतिगत सूचनाओं का अंतिम पुष्टिकरण भी बाकी है - इत्यादि अनेक कारणों से कुछ एक प्रकाशित कृतियाँ भी सम्भवतया अप्रकाशित के रूप में यहाँ आ गई हैं. खासकर लघु कृतियों हेतु यह सम्भावना अधिक है. अतः कृपया इसे एक संकेत मात्र के ही रूप में देखा जाय. • इन परिशिष्टों हेतु यद्यपि कृति-एकीकरण का शक्य प्रयत्न किया गया है, तथापि यह सम्भव है कि एक ही कृति भिन्न-भिन्न नामों से एकाधिक जगहों पर भिन्न-भिन्न प्रतों के साथ मिल सकती है. इस कार्य में सांगोपांगता तो भविष्य में सुसंपादित होकर प्रकाशित होनेवाले-कृति पर से प्रत माहिती वाले खंडों के प्रकाशन के समय ही आ सकेगी. क्वचित् ऐसा भी प्राप्त हुआ है कि एक ही कृति के लिए भिन्न-भिन्न कर्ताओं के नाम मिले हैं. कृति का प्रायः सब कुछ एक समान होते हुए भी मात्र रचना प्रशस्ति में अन्तर मिलता है. ऐसी स्थिति में सामान्यतः प्रत्येक कर्ता के अनुसार उस कृति की एकाधिक स्वतंत्र प्रविष्टियाँ दी गई हैं. • अनेक कृतियों के एकाधिक प्रचलितनाम भी मिलते हैं, इनमें से यहाँ पर सूचीपत्र का कद बढ़ने के भय से मात्र एक मुख्य नाम ही दिया गया है. यथा- बारसासूत्र आदि के लिए कल्पसूत्र ही दिया गया है. • इसी प्रकार कृतियों के सामान्य या विशेष फर्क के साथ एकाधिक आदिवाक्य भी मिलते हैं. उन सब की प्रविष्टि कम्प्यूटर ४७६ For Private And Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पर तो कर दी जाती है परंतु इनमें से यहाँ मात्र एक ही आदिवाक्य दिया गया है. जबकि सूचीपत्र में तो तत-तत प्रतगत प्रथम स्तर व क्वचित् कृति के ज्यादा सही निर्धारण हेतु मंगल आदि के बाद के द्वितीय स्तर के आदिवाक्य भी दिए गए हैं. जो कि सम्भवतः यहाँ दिए गए आदिवाक्य से न भी मेल खाते हों. ऐसा ज्यादातर टबार्थ व बालावबोधों में पाया गया • प्रत में प्रस्तुत कृति यदि प्रतिपूर्ण है अर्थात् प्रतिलेखक ने कृति को संपूर्ण न लिख कर प्रति में उपलब्ध अंश मात्र को ही लिखा है तो प्रत क्रमांक टेढ़े Italic अंकों में दिखाए गए हैं. यथा- ५८१६. कृति के आदिवाक्य के पहले कृति का धार्मिक स्रोत चिह्नित करने हेतु मूपू., स्था., ते., श्वे., दि., जै., वै., बौ. इन संकेतों का प्रयोग क्रमश: जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक, जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी, जैन श्वेतांबर, जैन दिगंबर, जैन, वैदिक व बौद्ध के लिए किया गया है. जहाँ पर ये संकेत नहीं हैं वे सामान्य कृतियाँ हैं. इन संकेतों को यथोपलब्ध सूचनाओं के आधार पर दिया गया है तथा इनकी कहीं-कहीं अंतिम रूप से पुष्टि होनी बाकी है. कहीं पर धर्म स्रोत की निःशंक परिपुष्टि न हो पाई हो उन धर्म संकेतों के साथ प्रश्नार्थ चिह्न किया गया है. जैसे बौ?, जै?. • वाचकों की सुविधा एवं उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए कृति के साथ दिए हुए प्रत क्रमांक क्रमशः प्रत की शुद्धि आदि महत्ता, संपूर्णता, दशा, अपूर्णता व अशुद्धि की वरीयता से दिए गए हैं. शुद्धता सूचक निशानी (+) वाले प्रत क्रमांकों को सर्वाधिक महत्व दिया गया है, उसके बाद संपूर्ण, पूर्ण व प्रतिपूर्ण प्रत क्रमांकों को तथा अंत में (5) (#) () निशानी वाले प्रत क्रमांकों को रखा गया है. अतः प्रत क्रमांक अपने स्वाभाविक अनुक्रम से नहीं मिलेंगे. • कृति माहिती के सामने प्रत क्रमांक तथा यदि प्रत में एकाधिक कृतियाँ हैं तो प्रस्तुत कृति प्रत में किस क्रमांक की पेटाकृति है, वह पेटांक भी दिया गया है. यथा प्रत क्रमांक १०२०७ के तीसरे पेटांक में महावीरजिन स्तवन है, इसका क्रमांक इस प्रकार लिखा गया है - १०२०७-३. पाप ताप के हरण को, चंदन रस श्रुतज्ञान | श्रुत अनुभव रस राचिये, माचिये जिन गुण तान || दुषम काल जिन बिम्ब जिनागम | भवियण कुं आधारा ।। श्रुतथी शुभमति संपजे, श्रुतथी जाय विकार, श्रुत वासित जाणे भला, तत्त्वातत्त्व विचार || ৪gg For Private And Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., अ. ९, पद्य, मूपू., (करकंडू कलिंगेषु), १८४९६ (+) ४ रत्न गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जीवदया जिणधम्मो ), १७८१८-३०) (२) ४ रत्न गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवनी दया श्रीजिन), १७८१८-२(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., श्लो. ८, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), १९१७८-४, २०६०३-१ ८ प्रकारी पूजा, प्रा., पूजा. ८, पद्य, मूपू., (विहडय कम्मकलंकं), १८०५५ (२) ८ प्रकारी पूजा - कथा, मा.गु., ग्रं. २२७५, गद्य, मूपू., (श्रीविजयचंद केवली), १८०५५ ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विमल केवल भासन), १८५२२-२ १३ काठिया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (आलस मोह अवन्ना थंभा), २०५८३-२ १४ गुणठाणा नाम, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (मिच्छे सासण मीसे), १९५३९-२ १४ रत्न नाम, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (लक्ष्मी कौस्तुभ), १७८२७-२ (+) १८ पुराणनाम, सं., श्लो. ४, गद्य, वै., (वैष्णवं नारदीयं च), १८८६४ - २ (+) २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, जे., (पंचुंबर चडविगई हिम) २०२५२-२१ (२) २२ अभक्ष्य गाधा - टवार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे. (वड पीपल उंबर अंजीर), २०२५२-२(५) " २४ जिननामगर्भित मंगलाष्टक, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मृपू., (नतसुरेंद्र जिनेंद्र), १८४३३-४ (+), २०४०२-२ २४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., ( आदी नेमिजिनं नीमि), १८१७४-७(+) २७ साधु गुणगाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, भूपू, (छन्वय ६ छक्काय ६), १७७०६-५ () ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, वे, (सव्वाउ कंदजाई), २०२५२-३() (२) ३२ अनंतकाय गाथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, वे., (सर्व कंदजाति अणंतकाय), २०२५२-३ (+) ४५ आगम तपविधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., ( प्रथम बीजें श्रीनंदि), १७८२० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (नाणेम जाणइ भावे), २०१७२ ६२ बोल गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, भूपू., (गइ इंदिए काए जोए वेए), १९०२४ (२) ६२ बोल गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवगति मे जीव का भेद), १९०२४ ६२ मार्गणा यंत्रम्, मा.गु., सं., को., भूपू., (), १९४३९-१ ८४ लाख जीवयोनि क्षमापना विचार, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (जो को विह पाणगणो दुक), २०९७३-२ ९९ प्रकारी पूजा, क. पद्मविजय, मा.गु., सं., गा. १११, वि. १८५१, पद्य, मूपू., (उत्तम गुरु चरणे नमी), २०९४३(+), १७६०९ अंगचूलिका प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, मूपू., ( नमो सुय० नमो अरि०), १९७८५ अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (उसभसमगमणमुसभजिणमणि), १९२६७-१ (+) अंतकृदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२ नं. ८९९, गद्य, मूपु., (तेणं कालेणं० चंपा०), १७६२२ (+), १७६२६ (+), १७६२८(+), १७८०४(+), १८४९१(०), १८९०६(+), २००३४(+), २००७५ (+), २०१४३(+), १७३८०, १७४३७, १९४२०, २००२०, २०१५२. १८६२१(१ १९४५५) (२) अंतकृदशांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, मूपू., (अधांतकृतदशासु किमपि), २००७५ (+), १७४३७, २०७१४ (२) अंतकृद्दशांगसूत्र - टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु. ग्रं. २२११, गद्य, मूपू., ( तेण कालई चउथई), २००७५ (+) " For Private And Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७९ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतगड शब्दस्य कः), १७६२८(+), १७८०४(+), १८४९१(+), २०१४३(+), २००२०, २०१५२, १९४५५(६) । अंबड चरित्र, पं. अमरसुंदर, सं., गद्य, स्पू., (धर्मात् संपद्यते), १८४६६(+$) अंबाशत, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (त्रिनेत्रा अंबका), १८२१९-९ अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखदातार), १७८८३, १९०८३-२ अग्यारगणधर नाम, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (गणानवास्यर्षिसंघा), १८६४१-२ अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जिय सव्वभयं), १७४३०-२(+#$), १७६१५-१(+), १९३६०(+), १७८६७-१, १८९६८, १८९७३-३, १९२२७-३, १९३४२, २०२५०, २०७६७-२, २०८८७, १७६७४(#) (२) अजितशांति स्तव-वार्तिक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., वि. १६०१, गद्य, मूपू., (विपुलमंगलकारणमुत्तम), २०८८७ (२) अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ जीता छइ सर्व), १९३६०(+) अजीव ५६० भेद विचार, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रोक्ता वर्णरसाकृति), १८७४४-३ अजैन श्लोक , सं., पद्य, वै., (--), १९३७८-३ ।। अजैन सुभाषित , सं., पद्य, वै., (--), १८०५३-२ अठाईपर्व व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (श्रीयुगादिजिनं वंदे), १९२२० अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., अधि. १६, श्लो. २७२, पद्य, मूपू., (जयश्रीरांतरारीणां), १९०४०(+) (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., अ. १६, ग्रं. २४५९, वि. १६७४, गद्य, मूपू., (प्रणत सुरासुरकोटी), १८१८३(+), १९०४०(+) अध्यात्मचत्वारिंशिका- पार्श्वजिनस्तुतिगर्भित, उपा. शिवचंद्र, सं., गा. ४४, पद्य, मूपू., (संसारांभोनिधि तरण), १९२०६-४(+) अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., श्लो. १२८, पद्य, मूपू., (ब्रूमः किमध्यात्ममहत), १९९७० (२) अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या, मु. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, पू., (वयमध्यात्ममहत्वं), १९९७० अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), १८५२३(+), १८५६५(+), १८६४६(+), १९६०२(+), २०१७८(+), २०९८१(+), १७७०७, १७७४४, १८३२६, १८७४५, १८७७६, १९१३६, १९४७९, १९९६७, २०२४६, २०२७१, २०५३३, २०७००, २०८३४ (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., वि. १२वी, गद्य, पू., (अथानुत्तरौपपातिकदशा), १९९६७ (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथाआराने), १८६४६(+), १९६०२(+), २०१७८(+), २०९८१(+), १७७०७, १८७४५, १८७७६, १९१३६, १९४७९, २०२४६, २०२७१, २०७००, २०८३४ अनुपानमंजरी, आ. विश्रामाचार्य, सं., समु. ५, वि. १८४३, पद्य, जै., (यस्य ज्ञानमयी), २०२१२-१ (२) अनुपानमंजरी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, जै., (जे प्रभुनी ज्ञानमयी), २०२१२-१ अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षित, प्रा., गा. १६०४, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविह), १८७८८(s), २०२३४(६) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., ग्रं. ५९००, गद्य, मूपू., (सम्यक्सुरेंद्रकृत), १७३८८ (२) अनुयोगद्वारसूत्र-अवचूरि@, सं., गद्य, मूपू., (जिनवचनेहिं आचारांग), २०२३४ (२) अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिन), १८७८८(5) For Private And Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ (२) अनुयोगद्वारसूत्र-नैगमादिनयभावना, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (नैगमादिनयानामनुयोग), १९०८८-२(+) अनुयोग विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (काजउं पुंजी डांडा), १९९६५-३ अनेकार्थनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. ४६, पद्य, दि., (गंभीरं रुचिरं चित्र), १८६४१-३ अन्नपूर्णादेवी स्तुति, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (भगवति भवरोगात्), १९७३९-२(+) अन्नपूर्णा स्तोत्र, सं., गा. ३, पद्य, वै., (भगवति भवरोगात्), १८९७५-२० अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानमतीत), २०७२२-१(+) (२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वामंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., श. १२१४, गद्य, मूपू., (यस्य ज्ञानमनंतवस्तु), २०७२२-१(+) अबयदीशुकनावली, सं., प्रक. ४, गद्य, मूपू., (संसारपासनाशार्थं), १८०४७ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः), १७४१२(+$), १७४१८(+$), १७४३५ (+$), १८०३९-१(+), १८२९६(+), १८५४५(+#), १८७२५ (+), १९०१२(+), १९०१३-१(+), १९५३६(+), २०२४४(+), २०२७५(+), २०२८७(+), २०४०७-१(+), २०५२७(+), २०६३२(+$), २०६५३(+$), २०७४४(+), १८३४४, १८५८५, २०३६८, २०४३२, १९६७१-१, १९००३(5), २०३५७-१(#S), २०७१९(5) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अवचूरि@, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धं प्रतिष्ठा), २०२७५(+) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, जै., (प्रणिपत्यार्हतसिद्धः), १९००३(६) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-बालावबोधबीजक, पं. देवविमल गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (हेमाचार्य नाममाला), १८२९६(+) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (अहं श्रीहेमचंद्राचार), १९५३६(+) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-शेष नाममाला, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २०४, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः), १८०३९-२(+), १९०१३-२(+), २०४०७-२(+), १८५०६ अभिनंदनजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (विशदशारद सोमसमाननः), १९००५-१५ अरिष्टाध्याय, प्रा.,सं., गा. २०२, पद्य, मूपू., (पणमंत सुरासुर), १९८१०-१(क) अर्हदेवमहाभिषेक विधि, श्राव. आशाधर, सं., पद्य, दि., (णमो अरिहताणं साहण), १८९०२-३ अष्टमीतिथि स्तुति, सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (संप्रात संसारसमुद्र), १८९७९-१६ अष्टादशस्तवी, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., स्त. १८, वि. १४९७, पद्य, मूपू., (स्तुवे पार्श्व), १७९१९ (२) अष्टादशस्तवी-अवचूरि, आ. सोमदेवसूरि, सं., वि. १४९७, गद्य, मूपू., (बहुव्रीहरेकवचने), १७९१९ अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्ता), १७९३४ अष्टाह्निका महोत्सव, मु. रायचंद, सं., श्लो. १३८, पद्य, श्वे., (धर्मेशानसनत्कुमार मध), १९८९६ अष्टाह्निका विधि, मा.गु.,सं., गद्य, पू., (ते माहिली शांतिकविध), १८६२७-२, २०८८६ अष्टाह्निकाव्रत कथानक, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), १७५५२ अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, आ. भद्रबाहुस्वामी, मा.गु.,सं., पद्य, म्पू., (नत्वा श्रीपार्श्व), २०६८८-२ आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (तेणं कालेणं तेण), १७५९८ For Private And Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८१ आचारदिनकर , आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ३६, प+ग., पू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), १९८४६ आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), १८१७०(+$), १८४००(+), १८५४८(+), १८५५२(+६), १९८९०(+), २०१६६(+), २०१९४(+), २०२८०(+), १८४०१, १८८७८, १९२२९, २०११९, १७४४५(६), १८५३७(६), १९५०२(5), २०८७०(६) (२) आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहससूरि, सं., ग्रं. ९५००, वि. १५७३, गद्य, मूपू., (शासनाधीश्वरं नत्वा), २०१६६(+) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, ऋ. देवजी, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तु सारसुरसाखी), १८५३७(६) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, ऋ. धर्मसी, मा.गु., ग्रं. १२५५४, गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीसुधर्मा), १९८९०(+), २०१९४(+) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागने नमस्कार), १८१७०(+६), १८५४८(+), १८५५२(+S), २०२८०(+), १८४०१, १९२२९, १९५०२(5) (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), १८४००(+), २०११९ (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीसुधर्म), १७४४५(६), २०८७०(६) आचारोपदेश, ग. चारित्रसुंदर, सं., वर्ग. ६, पद्य, मूपू., (चिदानंदस्वरूपाय), १९५६१(+), २०२२३(+) (२) आचारोपदेश-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञान अने आनंद तेहज), १९५६१(+), २०२२३(+) आतरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा.,गा. ७१, प+ग., मप., (देसिक्कदेसविरओ), १७९४३-१(+), १७७२७, १८३३९, २०६०६, २०८२९ आत्मानुशासन, मु. गुणभद्र, सं., श्लो. २७१, पद्य, दि., (लक्ष्मी निवास निलयं), १९६०८ (२) आत्मानुशासन-टीका, मु. प्रभाचंद्र, सं., गद्य, दि., (वीरं प्रणम्य भववारिन), १९६०८ आत्मानुशासन, ग. पार्श्वनाग, सं., श्लो. ७७, वि. १०४२, पद्य, मूपू., (सकल त्रिभुवन तिलक), १९७९५ आत्मावबोध कुलक, आ. जयशेखरसूरि *, प्रा., श्लो. ४३, पद्य, मूपू., (धम्मप्पहारमणिज्जे), १७६८३-२ (२) आत्मावबोध कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (धर्मनी प्रभा कांति), १७६८३-२ आदिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्यानतमौलि), १९००५-१ आदिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सुवर्णवर्ण गजराज), १८६३७-११ आदिजिन स्तव, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (सकलदानवदेवसभाजित), १८६२३-४ (२) आदिजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, मूपू., (सकल० अहं चिरं चिरकाल), १८६२३-४ ।। आदिजिन स्तव-देउलामंडण, मु. शुभसुंदर, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जय सुरअसुरनरिंदविंद), १९५५७ (२) आदिजिन स्तव-देउलामंडण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (कियदनुभूतमंत्रतत्रै), १९५५७ आदिजिन स्तवन-यमकबंध, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुललितकल्याणरुचि), १८६२३-३ (२) आदिजिन स्तवन-यमकबंध-टीका, सं., गद्य, मूपू., (सुललिता० अहं वृषभं), १८६२३-३ आदिजिन स्तव-सिंहावलोक, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (मनोहरं तं जगतो), १८६२३-२ (२) आदिजिन स्तव-सिंहावलोक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (मनोहर० कं पुमान् तं), १८६२३-२ आदिजिन स्तुति, उपा. कुशलसागर, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (जय वृषभध्वज देव), १८१५६-५९ For Private And Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ आदिजिन स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यां चक्रे भरतः), १८१८१-१३, १८६३०-३ आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भव्याभोजविबोधनैक), १९००५-४५ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (भव्याभोजविबोधनैकतरण), १८४२९-२०) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरुषंद्राय), १८४१६-९ आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरमुक्तियहार सुतार), १८४१६-६ आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., श्लो. ८८, पद्य, मूपू., (संसारे नत्थि सुह), १९५४९-२ (२) आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारमाहि नथी सुख), १९५४९-२ आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., विम. ५, ग्रं. ४६०, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमः सकलारंभसिद्धि), १८८०८(+) आरामशोभा चरित्र, सं., पद्य, म्पू., (अन्यदा श्रीमहावीरस्व), १८८७२-२($) आलोयणा, प्रा.,मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पणगई पणवीसं भिन्नो), १८५३२-२(#) आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदेसह), १९७९७-२ आलोयणा विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (पणगं १ मासलहुँ २), २०६२१ आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहंताणं० सव्वसा), <प्रतहीन> (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, पू., (आभिणिबोहियनाणं), २०७०९(+), २०५८०-३, २०७२३, १९५२३६), २०८१२($) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा सामायिकअध्ययन नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अ. प्रथमअध्ययन, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं सुयना), <प्रतहीन>. (४) विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. प्रथम अध्ययन, गा. ३६०३, पद्य, मूपू., (कयपवयणप्पणामो ___वोच्छं), <प्रतहीन>. (५) गणधरवाद, हिस्सा, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ४७६, पद्य, मूपू., (जीवे तुह संदेहो पच्च), <प्रतहीन>. (६) गणधरवाद-विवरण, सं., गद्य, मूपू., (हे गौतम किं मन्यसे), १९०८८-१(+) (२) आवश्यकसूत्र-टीका #, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. १८०००, गद्य, मूपू., (पांतु व: पार्श्वनाथ), १९५२३(६) (२) लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (लोगस्स उज्जोअगरे), १७५४१, २०२२७ (३) लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउद राजलोकमाहि), १७५४१, २०२२७, २०६२३ (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, पू., (सकलकुशलवल्ली), १७८७६-२ (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १८७५३(+६), १८८९६(45), १७५७८, १७६५७, १८३१५, १९२९५, १७५९६-१(६), १८६०४(६) (३) षडावश्यकसूत्र-वृत्ति, पंन्या. हितरूचि, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीया सेवित), १८७५३(+5) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रेयांस श्रीमहावीरः), १७५७८ (३) षडावश्यकसूत्र-टबार्थबालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., वि. १७५१, गद्य, म्पू., (श्रीजसविजय चरणे नमः), १८८९६(+$) For Private And Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८३ (३) षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहतने नमस्कार), १८५४३(+$), १७६५७, १८३१५, १९२९५, १८६०४(६) (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (नमो अरिहंताणं), १७६७६(#) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., पू., (नमो अरिहंताणं नमो), १७९२८, १८९११(६) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), १७८९१(+) (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमि भंते पोसह), १९४६८ (४) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (करुं छु हे भगवान), १९४६८ (२) पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), १७४६२-२(+), १८२२२(+), १९००८-७(+), २०८३२(+), १९३८७, १९६४१, १९६४८, २०७४५, १८६४९-२(१), १८६७३($) (३) पगामसज्झायसूत्र-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं. २९६, गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनाधिपति), २०७४५ (३) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १७४९, गद्य, मूपू., (ऐं नत्वा पार्श्वनाथ), १९६४१ (३) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (चार बोल तेम मंगलिक), १८२२२(+), १८६४९-२(5) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुहपत्तिवंदणयं), २०८४९-२ (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पाखी पडीकमणुं करजो), १८६३८-२८ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि चार नवकारनो), १९००८-८(+) (२) प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.,सं., वि. १५०६, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), २०४६६ (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (देवसिय आलोय पडिकंत्त), १९००८-६(+), १८४३८-३, १८९८३-१२, १९०२५ (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कर पडिकमणुंभावशु), १८४२८-१ (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (निज थानिकथी परथानीके), १८६३८-५ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.@, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १८४३५-१६, १९१३१-१, २०३६७-३, २०४४८, २०३४६(#5) । (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ@, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतरागदेव तुमे), १९१४७(+) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर@, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० करेमि), १८२८२(+), १९६८३-१ (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीगुरुदेवजीकुं), १८२८२(+) (२) प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १९, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर प्रणमी), १८२६५(+) (२) प्रतिलेखनकालमान गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (आसाढे मासे दुप्पया), १८२२५-२(+) (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, मूपू., (उग्गए सुरे नमुकारसिय), २०३५४-२(+), २०३८१(+), १७८५१-२, १८४३५-१४ (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ@, मा.गु., गद्य, मपू., (सूर्यनइ उदये बै घटिक), २०३८१(+) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), १९१७८-५१ (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), <प्रतहीन>. For Private And Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), <प्रतहीन>. (४) भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., अ. २, वि. १५०९, गद्य, मूपू., (युगादौ व्यवहाराध्वा), १७९९९(+), १८३८६ (+9) (५) भरहेसर सज्झाय-टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (युगने आदे व्यवहार), १७९९९(+) (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), १८५२१(+), २०२५५(+), २०४७२-२(+), १७७९९, १८७६२ (३) वंदित्तुसूत्र-टबार्थ@, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदितु क० वांदीनै), १८५२१(+), २०२५५(+), २०४७२-२(२) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र (श्वे.मू.पू.), संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), १७४७५(+) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (अरिहंतनइ नमस्कार हओ), १७४७५ (+) (३) श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि दंसणंमि०), १७६१५-३(+), १७६४७(+#), १७६४९(+), १८९२०(+$), १९९७७(+), १७४६४, १७५५५, १७७२५, १८१३७, १८५०४, १८७३०, १८८३५, १९०७७, १९२१५, १९५६८, १९६१३, १९६७९, १९७५०, १९७७०, १९७७८, २००१८, २०१४९, २०९७३-१, १७८६६६६), १८५०२६), १८९७३-९(६), १९७८६(5) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., पू., (णमो अरिहंताणं णमो), १८२१७-११, १९१७८-६ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० पंचिद), १७३७१-१(+), १७४००(+), १७६२१(+$), १७६३०(+), १७६६५(+), १७७०६-३(+), १८०९३(+), १८५४३(+६), १८७९२(+), २०८९१(+). १७४०६. १७५२३, १८३१९, १८९९४, १९०२९-१, १९७५३, २०१४७-२, २०१८०, २०२२४, २०७०८, २०८५०, २०८६८, १७४५५(s), १८९३३-१(६), २००६६(s), २०९७१(६) । (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, श्राव. ताराचंद, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत विहरमाननइ), १९०२९-१ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरउ नमस्कार अरिहंत), १७३७१-१(+), १७४००(+), १७६२१(+$), १७६३०(+), १७६६५(+), १७७०६-३(+), २०८३२(+), २०८९१(+), १८९९४, २०२२४, २०७०८, १७४५५ () (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., वि. १७५१, गद्य, मूपू., (बार गुणे करि सहित), १८०९३(+), १८७९२(+), २०९७१(६) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., वि. १५०१, गद्य, म्पू., (श्रेयांसि श्रीमहावीर), १८२५८, १८२६९ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइं नमस्कार), १७४०६, २०१८०, २०८६८, १८९३३-१() (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,.,मा.गु., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), <प्रतहीन>. (३) श्रावकपाक्षिकअतिचार-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५५, पद्य, मूपू., (नाणे दंसण चरणे जाण), १९४८१ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं० तिखुत), २०५९५(+) For Private And Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार@, संबद्ध, मा.गु., प+ग., मूपू., (--), १९५१३ (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताणं नमो), २०८५६(+$), १८९८३-११, १८९२२(5) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० आवस्स), १८०५७(+६), १९३९७(+), २०१३२ (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), १९३९७(+), २०१३२ (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग., म्पू., (नमो अरिहंताणं नमो), १७४७१(+), १७९२५(+). १९१४७(+) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आवसही कहेतउ सावधान), १७९२५(+) (३) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (श्वे.मू.पू. का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्व), १७४७१(+) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), १७४६२-४(+), १७६८७-२(+), १७८५७-२(+), १८७०१-२(+), १८७१६-२(+), २०२०६-२(+), १७३२४-२, १७४२७-२, १७५३३-२, १८७९६-२, १८९९२-२, १९३९६-२, १९६५८-२, २००६९-२, २०१६८-२, २०२४२-२, २०८४८-२,१७६४३-२), १८२९३-३(६), १८६४३-२($) । (४) क्षामणकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा राजानं मंगलपाठका), १८६७२-२, २०१६८-२ (४) क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छु छु वाछु), १८७१६-२(+), १७३२४-२ (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), १७४५७(+), १७४६२-१(+), १७६८७-१(+), १७८५७-१(+), (+), १८७०१-१(+), १८७१६-१(+), १९३२९(+), १९९४७(+), २०२०६-१(+), २०२५१(+), २०७३६(+). १७३२४-१, १७३५४, १७४२७-१, १७५३३-१, १७६५०-१, १७८०९, १७८३९, १७८९४, १८०३५, १८६०२-१, १८६४३-१, १८७९६-१, १८८१७, १८९९२-१, १९०६५, १९१३८, १९२७३, १९३९६-१, १९६५८-१, १९६८२, २००६९-१, २०१६८-१, २०२४२-१, २०८४८-१, १७३३६(६), १७६४३-१(#), १८२९३-२(६), १८६२२(#) (४) पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थंकरान् वंदे), १८६७२-१, २०१६८-१ (४) पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), १७४५७(+), २०७३६(+), २०४७८ (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर प्रते वादउ), १८७१६-१(+), १७३२४-१, १८६२२(#) (३) साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), १७४२७-३, १७६७१, २०६९६ (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं० तिखूत), १९५०९(+), २०५८८ (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., स्था., (नमस्कार होज्यो), १९५०९(+), २०५८८ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १९३८१-१ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं०), १८६१७(+-), ___ १७३१२, १८४२७-२८(4), २००५५(७), २०३१५(६) (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ@, मा.गु., गद्य, स्था., (न० नमस्कार होज्यौ), २००५५(5) (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., स्था., (नमस्कार हो कर्मरूप), १७३१२ आस्रवत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., गा. ६२, वि. १४वी, पद्य, दि., (पणमिय सुरिंदपूजिय), १८६२६-१ इंद्रजीवन में देवीसंख्यासूचक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (दो कोडाकोडीओ पंचासी), १९४९०-२(+) For Private And Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ इंद्रियपराजयशतक, प्रा.,गा. १००, पद्य, मूपू., (सुच्चिअसूरो सो), <प्रतहीन>. (२) इंद्रियपराजयशतक-छाया, सं., पद्य, मूपू., (स एव निश्चयेन शूरः), १९५५२ इष्टोपदेश, आ. देवनंदी, सं., श्लो. ५१, पद्य, दि., (यस्य स्वयं स्वभावाप), १९०७८(+) (२) इष्टोपदेश-टीका, श्राव. आशाधर भट्ट, सं., वि. १३वी, गद्य, दि., (परमात्मानमानम्य), १९०७८(+) उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (भक्त्या वस्त्राणि), १७३९७(+) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), १७३६४(+5), १७४२२(+), १७४४८(+$), १७४९२(+६), १८३९७(+), १८७९१(+), १८८९३(+), १९७०३-१(+), २००३२(+), २०७४६(+), २०९२५(+), १७३६८, १८३८३, १८४१४, १८७९३, १९६६७, १९७५२, १७४०७, १७४९८, १८७८६, १८९३२, १९८०३, २०५४२, १८८६३(#, २०२०८(१), २०३०९(६), २०८७८९६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ६०७, पद्य, मूपू., (नाम ठवणादविए), १९८८३-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टीका @, सं., गद्य, मूपू., (--), १७३६४(+$), २०२०८($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, मूपू., (भिक्षो विनयं प्रादुष), २०३०९(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. १२०००, वि. ११२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य विघ्नसंघात), १८७९३, १८८६३(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. १५३००, वि. १८, गद्य, मूपू., (अर्हतो ज्ञानभाजः), १८३८३ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीउत्तराध्ययनानुयो), २०९२५(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (संजोगा० संयोगान्), १७४४८(+६), २०८७८(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे), १८३९७(+), १८७९१(+), १८८९३(+), १८७८६, १८९३२, १९८०३ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थकथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वसंजोग मातापिता), १९७०३-१(+), १९७५२, १७४०७ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, मूपू., (संजोग बि प्रकारे), १८४१४ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), १७३६४(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, पंन्या. पद्मसागर, सं., ग्रं. ४५००, वि. १६५७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १७४०३(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., मूपू., (--), १८७२० (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा की अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (--), १८७२० (२) उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, मु. मान, मा.गु., ढा. ३६, पद्य, पू., (श्रीजिनवर पदजुग नमी), २०५९३ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्तधरीजी), २०६१८(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (अमीयसमाणी वाणी वरसता), १८८६९-१(+), १८७६३-१ For Private And Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८७ उदयत्रिभंगी, मु. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ७३, पद्य, दि., (पंचणवदोणिअट्ठावीस), १८६२६-३ उपदेशचिंतामणि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., अ. ४ भाग, गा. ५४०, पद्य, मूपू., (तित्थयरे भयवंते परमग), <प्रतहीन>. (२) उपदेशचिंतामणि-स्वोपज्ञ टीका, आ. जयशेखरसूरि, सं., ग्रं. १२०६४, वि. १४३६, गद्य, मूपू., (प्राचीमेकां पुनानामि), १८५६७-१(+$) उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., स्तंभ. २४, वि. १८४३, प+ग., मूपू., (स्वस्ति श्रीदो नाभि), १७५३० (२) उपदेशप्रासाद-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १७५३० (२) उपदेशप्रासाद-कमलकर्ममल कथा, हिस्सा, सं., प+ग., मूपू., (अनुयोगसमयेस्वक्ति), १७६७५-१(+) (३) उपदेशप्रासाद-कमलकर्ममल कथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वखाण समे पोतानी), १७६७५-१(+) उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), १७४६९(+), १७४८१(+), १७४८२(+5), १७७३२(+), १८३९२(+), १८८१६(+), १९६७८(+), २०३०२-१(+), २०८८९(+$), २०९५१(+#S), १७३०६, १७३१७, १७३२९-१, १७४२५, १७४९६, १७५२६, २०७६७-१, २०९५०, १८०३२, १८७०६ (६), १८८८७(१६), १९८५१(६), २०२७९ (#s), २०५४९() (२) उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., ग्रं. ७६००, वि. १७८१, गद्य, मूपू., (श्रेयस्कर कामितदानद), १९८५१(5) (२) उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., ग्रं. ९५००, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (हेयोपादेयार्थोपदेश), २०९५१(+#$) (२) उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा जिनवरेंद्रान), १७४८१(+) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), १७७३२(+), १९६७८(+), २०३०२-१(+), १७३२९-१, १७५२६ (२) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., वि. १७१३, गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ जिण), १८३९२(+), १८८१६(+), १८०३२ (२) उपदेशमाला-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., ग्रं. ५९००, वि. १४८५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानजिनवरमा), १७४२५ (२) उपदेशमाला-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने तीर्थं), २०८८९(+$), १८७०६), २०२७९(#$) (२) उपदेशमाला-कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा वीरजिनं), १८८१६(+) (२) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, पू., (हवे श्रीउपदेशमाला), १८७०६() (२) उपदेशमाला कथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीउपदेसमालासु त्रन), १८०३२ उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (उवएसरयणकोसं नासिअ), २०३६३-२ (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपदेशरूप रतन तेहनो), २०३६३-२ उपदेशरत्नमाला, आ. सकलभूषण, सं., परि. १८, ग्रं. ३१००, वि. १६२७, पद्य, दि., (--), १७४२४($) उपधानतपआदि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम द्वितीयोपध्यान), २०३४३(+) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलुं नवकारर्नु), १९५९९, २०९७७ उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम शुभ दीवसे पोषध), १९४२३, २०८०१ For Private And Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ " उपधाननंदी आदि विधि-खरतरगच्छीय, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, वे (पूर्व श्रावकादि लोक), १८७२९-१ उपमितिभवप्रपंचा कथा, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., अ. ८ प्रस्ताव, ग्रं. १६०००, वि. ९६२, पद्य, मूपु. ( नमो निर्नाशिताशेषमहा), < प्रतहीन> (२) उपमितिभवप्रपंचा कथा हिस्सा संसारीजीव चरित्र, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., वि. ९६२, पद्य, मूपू., (अस्तीह लोके सुमेरूर), प्रतहीन, (३) उपमितिभवप्रपंचा कथा हिस्सा संसारीजीव चरित्र का वालावबोध, ग. अमृतसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., (वाग्देवीं प्रणिपत्य), १७५१७ - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपस्थापना विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., ( नांदि मांडिने खमा), १९९६५-२ उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, ग्रं. ८१२, प+ग, मूपू., (तेणं० चंपा नाम नयरी), १७४८३-१(+), १७८४२) २००४६(+), २०५८७(०) २०८८५-१(०), १७५८३, १८१०८, १८६५९, १९३५९, १९६४६, २०४८३, २०५०१, २०६३४, २०७१२, २०८८२ (२) उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., वि. १११७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), २०५०१ (२) उपासकदशांगसूत्र-छाया, सं., अध्य. १०, गद्य, मूपू., ( तस्मिन् काले तस्मिन), १८१०८ (२) उपासकदशांगसूत्र- टवार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., वि. १६९३, गद्य, भूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १७८४२(०), १८६५९, १९६४६, २०८८२ (२) उपासकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (श्रीवर्द्धमानमानम्य), २०८८५-१(+), १८१०८, १९३५९, २०६३४ (२) उपासकदशांगसूत्र- विषमस्थल टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपु., (उपासगदसा० सातमा अंग), १७४८३-१(+) उपासकाध्यायन, मु. वसुनंदि सैद्धान्तिक, सं., गद्य, दि., (प्रसिद्धात्मसद्भवान्), १८८५९ ラ उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १३, पद्य, श्वे. ( उवसग्गहरं पासं० ॐ), १९६३९-२ (२) उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा १३ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हुं नमुं हुं उपसर्ग), १९६३९-२ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., ( उवसग्गहरं पासं पासं), २०८२८ - ३ (+), १९६५५, २०५९७-२ (२) उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की पार्श्वदेवीय टीका, ग. द्विजपार्श्वदेव, सं., गद्य, मूपू., (अर्हं आवश्यकादिनिर्य), १९६५५ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की प्रियंकरनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, प्रा., सं., वि. १६वी, गद्य, मूपू., (वंशाब्जश्रीकरोहंसो), १९६३९-१ उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., ( उवसग्गहरं पासं पासं०), १९००६-३ ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. २०९, प्र. २५९, वि. १४वी, पद्य, म्पू., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), १७७३४(+), १८२४१(+), १९७०४ (२) ऋषिमंडल प्रकरण- प्रभातव्याख्यानपद्धति टीका, ग. हर्षनंदन, सं., ग्रं. ४५६४, वि. १७०४, गद्य, मूपू., (अथ मल्लिस्वामीपूर्व), १९७०४ (२) ऋषिमंडल प्रकरण- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्ति घणी करी नम्या), १७७३४(+) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), १७५३५ (+), १८१७४-९ (+४), १९३५२(+), १८८०४-१, २०६५६ For Private And Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (आदिको अक्षर अंतको), २०६५६ (२) ऋषिमंडल पूजनविधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (ॐ ऋषभदेवजी १ अजितनाथ), १९२८९-२(+) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., गा. ७६, पद्य, मूपू., (नाभेयप्रमुखार्हता), २०९७८ एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), १७७६१(+#), २०९०२-१(+), १७९९२, २०५३४ (२) एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (चोवीस तीर्थंकरना २१), १७७६१ (+#), २०९०२-१(+), १७९९२ एकाक्षरनाममाला, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (विश्वाभिधानकोशानि), २०४०७-३(+), २०३५७-२(#$) एकादिसंख्या नाममाला, सं., गा. ३०, पद्य, श्वे., (आदित्यमेरु चंद्र), २०४०७-४(+) एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., श्लो. २६, ई. ११वी, पद्य, दि., (एकीभावं गत इव मया), १८८२९(+#), २००४४ (२) एकीभाव स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., दि., (जिनेषु रविः सूर्यस्त), २००४४ ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ११६४, पद्य, मूपू., (अरहते वंदित्ता चउदस), १७४२१, १९०२२, औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. १८९, ग्रं. १६००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेण० चंपा०), १७४१७(+), १७७३७(+), १७७५२(+), १८३९८(+), १८८९१-१(+), १९०५५(+), १९२९०(+), २०५२८(+), २०६४२(+), २०७७३(+), १८८६६, २०७५५ (२) औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३१२५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १७४१७(+), १७७३७(+) (२) औपपातिकसूत्र-अवचूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपजq ते उत्पात नरक), १८८६६ (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा श्रीजिन), १७७५२(+), २०६४२(+) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मु. राजचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा श्रीजिन), १८३९८(+), १८८९१-१(+), १९०५५(+) (२) औपपातिकसूत्र-दुर्गमपद बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १९२९०(+), २०७७३(+) (२) औपपातिकसूत्र-विषमपद टिप्पण@, सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २०५२८(+) औषधवैद्यक संग्रह (सं.प्रा.मा.गु.), सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, वै., (--), १७३७१-२(+), २०४७१-५(+), १८४११-४ कथा संग्रह, सं., गद्य, श्वे., (विजयपुरे कमल), १८८८८ कर्मदहन पूजा, आ. मलयगिरिसूरि , सं., पद्य, मूपू., (सकल कर्म विप्रमुक्ता), २०५६०-२ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसरि. प्रा..गा. ६०. पद्य, मप.. (सिरिवीरजिणं वंदिय), १७४६१(+). १७८९७-१(+$). १८२६४-१(+), १८३२९-१(+), १८३९०-१(+), १८६४०-१(+), १८७५१-१(+), १८९२८-१(+), १९३५५-१(+), १९४२८-१(+$), २०१३७-१(+5), २०२२५-१(+), २०२७०-१(+), २०४५९-१(+), २०५६१(+5), १८३८८-१, १८४८७-१, १८४८८-१, १८४९०-१, १९६९९-१ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. १८८२, गद्य, मूपू., (दिनेशवद्ध्यानवर), १८३८८-१ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं वीरं), १७८९७-१(+$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, ग. साधुकीर्ति, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), २०२७०-१(+), २०५२३(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन वांदी), १७४६१(+), १८२६४-१(+), १८९२८-१(+), २०५६१(+) For Private And Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थबालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं वीर), १८३९०-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान प्रति), १८६४०-१(+), २०२२५-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, पू., (श्रीवीरजिन प्रते), १९९९८ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), १७८९७-२(+), १८२६४-२(+), १८३२९-२(+), १८३९०-२(+), १८६४०-२(+), १८७५१-२(+), १८९२८-२(+), १९३५५-२(+), १९४२८-२(+), २०१३७-२(+), २०२२५-२(+), २०२७०-२(+), २०४५९-२(+), १८३८८-२, १८४८७-२, १८४८८-२, १८४९०-२, १९६९९-२, २०७६६ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, भूपू., (बंधोदयोदीरण सत्पदस्थ), १८३८८-२ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (तथा तिणे प्रकारे), १७८९७-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तह क० तिम हवे बिजा), १८२६४-२(+), १८३९०-२(+), २०७६६ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (बंध ते स्यु कहीयइ), १८९२८-२(+), २०२७०-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिम श्रीमहावीर प्रति), १८६४०-२(+), २०२२५-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रिजगत् सृष्टिसंतान), २०७६६ कल्पसंग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, (श्वेतार्ककल्प), २०४७१-३(+) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० समणे), १७३५८(+), १७३९४(+), १७४२०(+), १७४६७(+), १७४८४(+5), १७७९५(+), १८०५४(+६), १८४४१(+), १८४५०(+), १८६९५(+), १८९४०(+$), १९७५६(+$), १९९५८(+), २०२९३(+$), २०३५५(+#), २०३९५(+), २०६६०-१(+), २०६८४-१(+), २०७२४(+), २०८१३(+), २०८८८(+$), २०९२३(+६), १७३९३, १७४५०, १८१०४, १८४१२, २०२३३, १८१८५, १८५९९, १८६७५, १९१८९, १९२५०, १९५००, १९७५८, १७३०७(६), १७४३२-१(६), १८११०(६), १८५४१(#S), १९९४२(६), २००७२(६), २०७११(६) (२) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं. ५२१६, वि. १६२८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), २०९०७(+) (२) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. ४१०९, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्य), १७५३८ (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), १८६९५ (+), २०७११(६) (२) कल्पसूत्र-टीका @, सं., गद्य, मप., (प्रणम्य प्रणताशेष), १८४५०(+), २०२९३(+$), २०८८८(+$), २०९२३(+$), १८११०६) (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., ग्रं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), २०२३३ (३) कल्पसूत्र-कल्पसुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, म्पू., (वेदपदानि च विज्ञान), १७५२९ (४) गणधरवाद-टबार्थ @, सं., गद्य, जै., (हवे वेद पद कहे छे), १७५२९ (२) कल्पसूत्र-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (तेणं इति प्राकृत), १७४६७(+) For Private And Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) कल्पसूत्र - टवार्थं @, मा.गु., गद्य, म्पू., (अरिहंतन माहरो ), १७४८४+३), १७७९५ (+), १८०५४+४, १८९४० (+), १९९५८(+), २०८१३(+), १८५९९, १८६७५, १९१८९, १७३०७ ($) (२) कल्पसूत्र- टवार्ध @. सं., गद्य, भूपू., (श्रीमद्वीरचरित्रबीज), १८४४१(+) (२) कल्पसूत्र- टवार्थकथा, सं., गद्य, मृपू., (वर्द्धमानं जिनं), १९६९७(+) (२) कल्पसूत्र-टबार्थव्याख्यानकथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), १७३९४(+), १९७५६ (+३) (२) कल्पसूत्र - बालावबोध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गद्य, भूपू., (सर्वसिद्धिकरादेवी), १७४८४+३) (२) कल्पसूत्र- बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६८०, गद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), १८१८५ (२) कल्पसूत्र- बालावबोध @, मा.गु., रा., गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं), २०३५५ (+#$), २०६८४ - १(+), १८४१२, १७९३५, १९२५०, १९५००, १९७५८ २०९३३, १७४३२-१ (३), १७६२४(३), १७९०१(३) १८५४१० (२) कल्पसूत्र - टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (अत्र चाध्ययने त्र्यं), २०६६०-१(०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) कल्पसूत्र-व्याख्यानकथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), १९९९९(+) (२) कल्पसूत्र व्याख्यानकथा @. सं., गद्य, भूपू., (तत्रादी श्रीऋषभदेव), १८४४१(+), १९४८९(+) (२) कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, मूपू., (पुत्राः पंचमतिश्रुता), १९९३३(०) (२) कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, मु. रंगसार, सं., वि. १६२३, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानं चरमं ), २०७२५ (+) " (२) कल्पसूत्र व्याख्यानकथा @ मा.गु., गद्य, भूपू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), १७७९५ (०) १८९४०(०४), १९९५८(०), १८०४४, १९१८९, १७३०७३) (२) कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), १९८९४ (२) कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य, प्रा.सं., प+ग, भूपू., ( पुरिमचरिमाणकण्पो), १९६२० (४) (२) कल्पसूत्र - हिस्सा १४ स्वप्न विचार, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, मूपु., (--), १८७५४ (३) कल्पसूत्र-हिस्सा १४ स्वप्न विचार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम सपना तत्र), १८७५४ (२) कल्पसूत्र कल्पफल, संबद्ध, सं., श्लो. १४, पद्य, भूपू (पुत्रा पंचमतिश्रुताव), २०६८४-२ (०) (२) कल्पसूत्र- पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हंत भगवंत उत्पन्न), १८६०७, २०९६६ " (२) कल्पसूत्र भास, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., डा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति ध्याउं), १८२८५-१ (२) कालिकाचार्य कथा, संबद्ध, प्रा., सं., गद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्धमानाय ), १९११२ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०) १८८३७-२१), १८८८४ - २(१), १८९६०-२ (०), १९३४३-२(०), १८८४०-२, १८८६५-२, १९३७६-२ (२) कल्पावतंसिकासूत्र -टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., ग्रं. २८६८, गद्य, म्पू, (जड हे पूज्य० कप्पवडि), १९३४३-२(२), १८८६५-२ (२) कल्पावतंसिकासूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (जौ हे भगवंत समण०), १८९६० - २ (+), १९३७६-२ कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपु. ( तेणं कालेणं तेणं०), १८८३७-१ (+), १८८८४-१(+), १८९६० -१ (ख), १९३४३-१(०), १८८४०-१, १८८६५ १, १९३७६-१ 9 For Private And Personal Use Only ४९१ Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., ग्रं. २८६८, गद्य, मूपू., (तेणि कालि तेणि), १९३४३-१(+), १८८६५-१ (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), १८९६०-१(+), १९३७६-१ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदारम), १७३३८(+), १८०६७(+), १८१३२-२(+), १८१८४(+), १८१९८(+), १८२९९-२(+), १८४२२(+), १८५९३(+), १८६५०-२(+), १८७६६-१(+), १८८२८(+), १८८९०(+), १९२७०(+), १९३८३(+), १९६६२(+), २०१८६(+६), २०२८४-१(+), २०३३०(+), २०३३८(+), २०५००-२(+5), १७७३०, १८२५७, १८३२७, १८३७८, १८५२०, १८७७८, १९००६-२, १९४४३-१, १९४९५, १९५८६, १९८७९, १९९४८, २०१५७, २०४३०, २०५९७-१ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वज्ञ जिनमानम्य), १९९४८ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), १९३८३(+), १९५८६, २०१५७ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (अस्यैव काव्ययुगल), १९६६२(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-दीपिका टीका, मु. माणिक्यचंद्र, सं., ग्रं. ७२०, वि. १६६८, गद्य, मूपू., (रैवतादिशिरश्चुलामण), १९८७९ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-सौभाग्यमंजरी टीका, सं., ग्रं. ३४६, गद्य, मूपू., (किलेति सत्ये एषः), १८३२७ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं श्रीसिद्धसेन), २०२८४-१(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरं गृह), १७७३० (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थानां ईश्वरः तीर), १८६५०-२(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि @, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (रागादि शत्रूणां), १८८९०(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु., ग्रं. ४२५, गद्य, मूपू., (कल्याण कहता मंगलीक), १७३३८(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मु. सुमतिविजय, मा.गु., वि. १६९९, गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथमानम्य), २०३३०(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (केहबुं छे कमल ते), १८६५०-२(+), २०५९७-१ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), १८०६७(+), १८१८४(+), १८१९८(+), १८४२२(+), १८८२८(+), १८३७८, २०४३०, १८७७८(६) । (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध @, मा.ग., गद्य, मप., (किल इति संभावनायां), २०१८६(+$), २०३३८(+), १८२५७ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-समास, संबद्ध, सं., गद्य, म्पू., (कल्याणानां मंदिरं), १८८२८(+) कल्लाणकंद स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम), १८१८१-१, १८२१७-१२, १८४३५-१, १८४२९-२७(-) कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह ,सं., प्रता. ४, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (वाचं नत्वा महानंदकर), १८६९१ कामदाशत, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (कामदा कमला कामा), १८२१९-५ कामदेव चरित्र, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., ग्रं. ७४८, गद्य, मूपू., (जयतिकामितपूर्ति), १८८७२-१ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुहदसणरहिओ कायठि), १९०१४-४(+), २०२६८(+), १९९९३, २०४१०-४ (२) कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), २०४१०-४ (२) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे दर्शनइ), २०२६८(+), १९९९३ For Private And Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९३ कार्तिकपूनम व्याख्यान, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धो विजाय चक्की), १७९८१-५ कालग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (योगकालिक अने उत्कालि), १९७७३ कालज्ञान, शंभूनाथ, सं., श्लो. २५५, पद्य, वै., (कालज्ञानं कलायुक्तं), १७९३२, १९८५०-१, १९९६२, २०१२५-१, २०४६२ (२) कालज्ञान-भाषा, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., समु. ५, गा. १७७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., वै., (शकति शंभू संभूसुतन), २०९१०(+), २०९११-१(+$) कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ७४, पद्य, मूपू., (देविंदणयं विज्जाणंद), १९२६७-२(+), २०८५८ (२) कालसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (देवेंद्रनतं), १९२६७-२(+) (२) कालसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंद्र महाराय पण), २०८५८ कालिकाचार्य कथा, आ. जिनदेवसूरि, सं., श्लो. ९७, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (मोहांधकारप्राग्भार), २०६६०-२(+), १७३४६ कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., ग्रं. ४४१, वि. १६६६, प+ग., मूपू., (प्रणम्य श्रीगुरु), २०१७६(+) कालिकाचार्य कथा, प्रा., गा. ८३, पद्य, मूपू., (अत्थि धरावासपुरे), २०७९०(+) काव्यसंग्रह, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभोयं विधिना), २०५०४ (२) काव्यसंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवा क० च्यारनिकायना), २०५०४ कुमारसंभव, कालिदास, सं., स. १७, पद्य, वै., (अस्त्युत्तरस्या), १८२०७(+), १८६८०(+), १८६८३-१(+#), २०३०१(+), २०७५२(+), १७५५३ (२) कुमारसंभव-सुबोधिका व्याख्या, ग. श्रीविजय, सं., स. ७, गद्य, मूपू., वै., (श्रीशंखेश्वरपार्श्वम), १७३३५(5) कुम्मापुत्त चरिअं, मु. जिनमाणिक्य, उपा. अनन्तहस, प्रा., गा. १९८, ग्रं. १०००, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं असुरं), १७८२७-१(+), १८८३४(+) (२) कुम्मापुत्त चरिअं-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमान स्वामीनें), १७८२७-१(+) क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्षांबिकाद्या), १७८५७-३(+) गणरत्नमहोदधि, आ. वर्द्धमान, सं., अ. ८, श्लो. ४६०, वि. ११९७, गद्य, मूपू., (वाग्देवतायाः क्रम), १७४१४, १८६६२ (२) गणरत्नमहोदधि-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वर्द्धमान, सं., वि. ११९७, गद्य, मूपू., (सुखेनैव ग्रहीष्यन्ति), १८६६२ गणितसार संग्रह, आ. महावीराचार्य, सं., अ. ८, प+ग., दि., (अलंध्यं त्रिजगत्सारं), १९९१५(+) (२) गणितसार संग्रह-टिप्पण, सं., गद्य, दि., (मिथ्यादृष्टिभिः अनंत), १९९१५(+) गम्मा व ऋद्धिविचार, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (उववायं परिमाणं संघयण), २०१००-२(+) गाथासंग्रह @, प्रा., पद्य, श्वे., (--), २०८८५-२(+) गुणठाणाद्वार प्रकरण, मु. देवचंद, प्रा., गा. १०७, पद्य, जै., (नमिअजिणं गुणठाणे), १९०३२(+) गुणमाला, उपा. रामविजय, प्रा.,सं., वि. १८१७, गद्य, म्पू., (प्रत्यक्षीकृत्य), १९२८२($) (२) गुणमाला-स्वोपज्ञ टीका, उपा. रामविजय, सं., वि. १८१७, गद्य, पू., (स श्रीसिद्धार्थसूनुः), १९२८२(5) गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा.,मा.गु., गा. १, गद्य, श्वे., (चउरिक्कदुपणपंचय), १८७५१-७(+) (२) गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा-विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (चउक्क० च्यारि पैडा), १८७५१-७(+) For Private And Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोहहत), १८९१८(+), १९५५९-१, १९५५९-२ (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. १४४७, गद्य, म्पू., (अहँ पदं हृदि), १८९१८(+), १९५५९-१, १८३२१(5) गुरुशिष्य लक्षण श्लोक, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्च वयण पडिवन्न), १७८६८-२(+) (२) गुरुशिष्य लक्षण श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सत्य वचन पालें), १७८६८-२(+) गोचरीदोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहाकम्मं १ उदेसियं), १७९०४-३ गोपालसंतान मंत्र, सं., गद्य, वै., (अस्य श्रीसंतानगोपाल), १९१५५-२(#) गोम्मटसार, मु. कनकनंदी, प्रा., पद्य, दि., (उसहाइजिणवरिंदेअसहाय), १९८६५(+$), १९८६०(#5) (२) गोम्मटसार-टीका, मु. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, सं., गद्य, दि., (असहायपराक्रमान्), १९८६५(+६), १९८६० (#$) गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), १८४८१(+#), १८९८६(+), १७७२१, १८५१८-२, २०८३८ (२) गौतम कुलक-टीकाकथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., वि. १६६०, गद्य, पू., (नत्वा श्रीदेवगुरुन), १७७२१, २०८३८ (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), १८५१८-२ (२) गौतम कुलक-बालावबोधकथा, ऋ. रिधु, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुयदेवी समरि करि), १८९८६(+) (२) गौतम कुलक-अर्थव कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुददेवी स्मर फुन), १८४८१(+#) गौतमपृच्छा, प्रा.,मा.गु., गा. ५१, पद्य, पू., (जिणवयणमोयगस्स), १८०९९ (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ व कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (तथा श्रीवीरनी वाणी), १८०९९ गौतमपृच्छा , प्रा., गा. ६४, पद्य, म्पू., (नमिऊण तित्थनाह), १७४२३(+), १८०२४(+), १८१५३-१(+), १९००१(+), १९५०४(+), २०९८७(+), १७५८१, १८७१४, १८८३९, १९३५६, २०३६३-१, २०६१०, २०८३६, १८३७५(६), १९४८३(), २०७७४($) (२) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., ग्रं.१६८२, वि. १७३८, गद्य, मपू., (वीरजिनं प्रणम्यादौ), १७४२३(+), १९५०४(+), १८३७५(६), १९४८३(5) (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), १८१५३-१(+), १८८३९, २०३६३-१ (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा वीरं जिन), २०६१० (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा कहता नमीने), १८०२४(+), २०९८७(+), १९३५६, २०८३६ (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. मुनिसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीरजी गोतमपृच्छा), १७५८१ (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध@, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), १९००१(+), १८७१४, १९२९३, २०७७४(६) (२) गौतमपृच्छा-कथा, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, मूपू., (एकस्मिन् ग्रामे एको), १७४२३(+) (२) गौतमपृच्छा-कथा संग्रह @, मा.गु., कथा. ३५, गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगरने विषे), १८०२४(+), २०६१० गौतमस्वामी छंद, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १७, पद्य, जै., (सिरिवसुभुई पुत्तो), १९००७-४(+) गौतमस्वामी छंद, सं.,प्रा.,मा.गु., गा. ७, पद्य, जै., (गौतम आव्या वाद करेवा), १९००७-६(+) For Private And Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूति), १८४२९-३१(-) गौतमस्वामी स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सकललब्धिपदं विपदापह), १८६३०-२, १८९७५-११, १८९७५-२५ गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), १८४३३-९(+), १९३०८-३(६) गौतमीय काव्य, पा. रूपचंद्र गणि, सं., स. ११, वि. १८०७, पद्य, मूपू., (श्रीराविरासीदिवदिव्य), १९६४३(5) (२) गौतमीय काव्य-गौतमीयप्रकाश टीका, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८५२, गद्य, मूपू., (अथ तत्रभवंतः श्रीमंत), १९६४३) ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, पू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), १८३८०-२, १८९१७-२, २०१०६-२ चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., परि. २, ग्रं. ५३२५, वि. १२६४, गद्य, मूपू., (दृष्टोपि हृष्टजन), २०९४६ चंपकश्रेष्ठि कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (चंपानाम नगरी सौगंधिक), १८३५९ चउसरण गीत, मु. पुण्यसागर, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ५, पद्य, जै., (सूरअसूरनरनिकर जासू), १९००७-१३(+) चक्रेश्वरी स्तोत्र, सं., पद्य, मूपू., (चक्रेश्वरी च), १८२१९-१० चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, पद्य, पू., (सावज जोग विरई), १७५६३(+$), १७५६८(+), १७५९२(+), १७५९७(+), १७७६०(+), १८५९४(+), १८६०३(+), १८७५५(+), १९०१४-३(+), १९६१९(+), १९६२७(+), १९७३४(+), २०७४०(+), २०९२४(+), १७५३१-१, १७५९०-१, १७९४८, १८६९४, १९५०१, १९५९०, २००७४, २०४५३, २०८३०, २०८५१, २०९४४ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (इदमध्ययनं परमपद), १७७६०(+), १८६९४, २०८५१ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, ग. लाभकुशल, मा.गु., गद्य, पू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), २००७४ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), १७५६३(+5), १७५९२(+), १७५९७(+), १८५९४(+), १८६०३(+), १८७५५(+), १९६२७(+), २०७४०(+), २०९२४(+), १७५९०-१, १९५०१, १९५९०, २०९४४ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ३४१, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य महावीर), १७५६८(+), १९७३४(+), १७५३१-१, २०४५३ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.ग., वि. १५९७, गद्य, मपू., (वर्द्धमानं जिन), १९६१९(+), १७९४८ चतुर्दशीतिथि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (देवाधीशयुतै भृशं), १८६३०-६ चतुर्विध बौद्धमत, सं., गद्य, बौ., (वैभाषिक सौत्रांतिक), १९०८८-३(+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. ४०१, गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं स्फुरद), २००१७(+), १८०१८, १८२४५, १८९४९, १९०८६ चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सामाइकावश्यक पौषधानि), १८१४०(+) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद), १९०१०-७(#$) (२) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान-बालावबोधकथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १९०१०-७(#$) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, सं., जै., (--), <प्रतहीन>. (२) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (अहो भव्यजीवो वारंवार), १८२७६ For Private And Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, पू., (सामायिकावश्यक पौषधान), १९६१०-१(+), १९४९९ चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., श्लो. १२३२, वि. १५२४, पद्य, मूपू., (नत्वा जिनपतिमाद्यं), १८४८५(६) (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (अद्य क० पहेला युगला), १८४८५(६) चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), १८१४४, २०२३० (२) चैत्यवंदनभाष्य-टबार्थ , मा.गु., गद्य, म्पू., (वंदित्तुं कहिता), १८१४४ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदनविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (प्रथम पवित्र स्थानकै), २०३७३ चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धो विजाइ चक्की), १९०१०-६(१) चौवीसमांडला, प्रा., गद्य, म्पू., (आगाढे आसन्ने उच्चारे), १९००८-३(+) छंदोनुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, गद्य, मूपू., (वाचं ध्यात्वाहती), १७३६३ छायापुरुष ज्ञान, सं., श्लो. ८, पद्य, श्वे., (निरभ्रे गगने सम्यक), १९८१०-२(+) छायापुरुष लक्षण, प्रा., गा. १, पद्य, (असिरेणय छम्मासं जंघ), १९८१०-४(+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० रायगिहे), १७५६४(+), १८०२५(+), १९०४५(+), १९९७३०, १८०८५, १८९४२-१६) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथो आरो तेवा), १७५६४(+), १८०२५(+), १९०४५(+), __ १९९७३(+), १८०८५, १८९४२-१(#) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-बालावबोध@, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे चोथा आराने विषे), १८९४५ (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुप्रभावं जिनं नत्वा), १८७१३, २०३४५ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), २०९४९(+) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते० ते काल चउथा आरा), २०९४९(+) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., वक्ष. ३, सू. ६७७१, गद्य, मूपू., (तेणं से भरहे राया), १९६९८(+), २०१०९(+) (३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा भरत चरित्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहवार पछी ते भरतराज), १९६९८(+), २०१०९(+) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-क्षेत्रसमास चौपाई, संबद्ध, मु. सुमतिसागर, मा.गु., उल्ला. ६, गा. ५७८, वि. १५९४, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि करुं), २०१३९ जंबूस्वामी कथा, सं., श्लो. ७२१, पद्य, मूपू., (देशोस्ति मगधनामा), १८५६७-२(+) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जयतिहुयणवर कप्परुक्ख), १८१३२-७(+), १७६५९, १८२१७-९, १९१७८-३२ (२) जयतिहुअण स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमेशिता), १९१२७-१(६) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ@, मा.गु., गद्य, मूपू., (जयवंतो वर्ति), १७६५९ जयविजय चरित्र, सं., श्लो. ४७३, पद्य, श्वे., (जीवाई नव पयत्थे जो), १८२०३-१ जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सयवारक बेहडा ४ सिंहा), १९२८९-३(+) For Private And Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. ९३, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वदेवेश), १९७६२ - १(+), २०३४० (+), २०५५०/०३) (२) जातक पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणाम करीने), १९७६२ - १ (+), २०३४० (+), २०५५० (+$) जिनअष्टोत्तर नामावली, रामचंद्र, सं., गद्य, भूपू., (), ९८४११-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनतपपारणादिवस गाथा, प्रा., गा. २, गद्य, भूपू., (दिवसूणू० जंभिय बहि०), < प्रतहीन, (२) जिनतपपारणादिवस गाथा - टीका, सं., गद्य, मूपू., (दिवसूणू० जंभिय बहि०), १७३५२-२ जिनपंचक स्तुति, सं., गा. १, पद्य, मूपु., (श्रीआदिशांति नेमि ) १९००५ ९३ जिनबिंब प्रतिष्ठाकल्प, मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (हवै पूर्वोक्त भला), २०३३३ , जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, आ. रत्नशेखरसूरि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वशो विभा), १९१४३(+), १७६१८ जिनभवन ८४ आशातना सूत्र, प्रा., गा. ४, पद्य, जै., (खेलं १ केली २ कलि ३), १८२७७-२ जिनमाताशत, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (जिनमाता जिनेंद्राच), १८२१९-३ जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं. परि. ४, श्लो. १००, वि. १००१-१०२५, पद्य, मूपू. (श्रीमद्धिः स्वैर्महो), १८२१३, २०१५५ (३) (२) जिनशतक-पंजिका टीका, मु. शांबमुनि, सं., ग्रं. १५५०, वि. १०२५, गद्य, मूपू., (निष्क्रांती कृत पंचम), २०१५६ (३) जिनसंहिता, आ. जिनसेन, सं., अधि. ६, पद्य, दि., (श्रीमंतं त्रिजगल्लोक), १८४७५ जिनसहस्रनाम स्तोत्र, श्राव. आशाधर, सं., श्लो. १४३, वि. १२८७, पद्य, दि., (प्रभो भवांगभोगेषु), १८९०२-१ जिनस्तुत्यादि संग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (श्रीअर्हतो भगवंत), १९१७८-१५ जीवभेद श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, मृपू., (प्रोक्ता नैरयिका), २०४४०-५ (+) " (२) जीवभेद श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम साते नारकी), २०४४० -५ (+) " जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. गा. ५१, पद्य, मूपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), १७३४० (+), १७६३३(०), १७६६१), १७८६८-१(०), १७९१०-२ (+), १९८१३२-८(१), १८८१३-१(+), १८९१६-१(+), १८९५८-१(०), १९०१४-२ (*), १९१५३(+), १९२०१(+), १९४४० - १ (+), १९६८१-१(+), १९७९३ (+), २०४७२-३ (+), २०८४६ - १(+), २०८६५ (+), २०९२६-१(+), १७३९९-३, १७४१५-१, १७५३२-१, १७७७४, १७८३२, १७८६३ -२, १८४६७, १९०८२-१, १९१४६, १९४२५, १९५३१, १९५७० १९५७७, १९९२७, २००२२, २०५८२-२, १७५९०-२(३) १७८५६-३(१), १९०२०) (२) जीवविचार प्रकरण- अक्षरार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, मूपू., (अहं किंचिदपि जीवस्य), १९४१७ (२) जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनी टीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८५०, गद्य, मूपू., ( इह हि संसारसागरे), १८९५८-१(१), १९४९०-१(+) ४९७ For Private And Personal Use Only (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मु. ऋद्धिसागर, मा.गु., वि. १९१५, गद्य, मूपू., (कैहवा करी भगवान छै), १७८५६-३(#) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चौदराज लोकनै विषि), १९१५३(+) (२) जीवविचार प्रकरण- टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रे विष), १७३४० (+), १७६३३०, १७६६१), १७८६८-१(०), १७९१०-२ (+), १८८१३-१(१), १८९१६-१(*), १९२०१०), १९४४०-१(*), १९६८१-१ (५), २०४७२-३(+), २०८४६-१ (+), २०८६५ (+), २०९२६ - १ (+), १७७७४, १७८३२, १८४६७, १९४२५, १९५७०, १९५७७, १९९२७, २००२२, १७५९० - २ ($), १९०२० (#) Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), १९७९३), १९५३१ (२) जीवविचार प्रकरण-पद्यानुवाद, संबद्ध, मु. कृष्णचंद, मा.गु., गा. ८६, वि. १८०६, पद्य, मूपू., (तिन लोक में दीपक), २०१७४ (२) जीवविचार प्रकरण-यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना २ भेद एक मुक्त), १९७७७(+) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), १८१५९(+), १८४१५(+), १८८५५(+#), १९२८६(+), १८५५८ (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., ग्रं. ९३००, वि. १७७२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य ज्ञानविज्ञान), १८४१५(+), १९२८६(+) (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. २००००, गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), १८८५५(+#) -जैन गाथा, प्रा., पद्य, श्वे., (--), १८७११-२(+), १८८३२-२(+#), १८९७१-२(+), २०४५२-२(+#), २०९०२-२(+), १८७३२-२, १८७४०-२, १८८२५-३, १८९३३-२, २०४५१-२, २०७९४-२, १८९८५-२($), २०७८९-२($) -जैन गाथा , प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (--), १८५८६-२(+), २०२८४-२(+), २०३०२-२(+), २०७०७-२(+) (२) -जैन गाथा की अवचूरि, सं., गद्य, श्वे., (--), २०७८९-२(६) (२) -जैन गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पचास आंगुल लांबो), १८७३२-२ जैन गाथासंग्रह@, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (--), १७६८५-२ जैन दुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (--), २०४८४-२, २०९३०-३, १९३७०-२($) जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, जै., (--), १८९१६-२(+), १९७१०-३ जैनरक्षा स्तवन, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सर्वातिशय संपूर्णान्), १८१७४-३(+) -जैन श्लोक , सं., पद्य, मूपू., (--), १८८९१-२(+), १९६१०-२(+), २०२६२-२(+), २०५६९-२(+), २०८०८-३(+), २०९२६-२(१), १८५५७-२, १९६८३-२, २०९५७-२ जैन संध्या, सं., गद्य, श्वे., (जिनं जिनं जिनं वाक्), १९३३७-२(+) जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), २०९२६-३(+), १७५३१-२, १८०८२-२, १८९२३-२, १८९७३-१०, __ १९९२५-२, १९३९५(६) -जैन सुभाषित , सं., पद्य, मूपू., (--), १८००७-२(+5), २०७८१(+६) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., म्पू., (तेणं कालेणं० चंपाए), १७३६१(+#), १७७६४(+), १७९९६(+), १८५५९(+#), १८५८०(+), १८५४७, २०५१४, २०९६३, १८१००(६), १८५८८(६), २०६०७(5) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., ग्रं. ८५००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १८५४७ (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, ग. प्रेमजी, मा.गु., वि. १६९९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १७९९६(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. १०४१०, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), २०५१४, २०९६३ (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-बालावबोध, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं सततं ध्यात्वा), २०६०७(६) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टिप्पण@, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १७३६१(+#) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूप., (ज्ञाताधर्मकथा साढि), १९२३९($) For Private And Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९९ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतक सुप्रपंच), १८२१७-६, १८४१६-२, १९१७८-१७ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), १८१८१-४, १८४३५-३, १८९८३-१, १९००५-६३, २०१४७-३, १८९६६-२(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, पू., (समुद्रभूपालकुलप्रदीप), १८४३०-३, १८६३०-७ ज्ञानवर्णन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (असत्यं मुर्ख हेतु), १७८०३-२ ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., अष्ट. ३२, श्लो. २७३, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन), १९५६९ (२) ज्ञानसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्र क० इंद्र संबंध), १९५६९ ज्योतिष, मा.गु.,सं., पद्य, वै., (लग्ने १ कु जेशिश), २०७१५-२(+), १८८१८-२, २०९१६-२, १८९६६-३(#) ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (--), १९७६२-२(+), १९१०८-२, २०३७९-४ (२) ज्योतिष श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, (--), १९७६२-२(+) ज्योतिष श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (मेषेच मीने त्रियुगा), २०१७५-४ ज्योतिष श्लोकसंग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, (--), २०८०८-४(+), १८१९४-२, १९३९१-२, २०३६३-३ ज्योतिष श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, (--), १८७७०-२ ज्योतिष संग्रह-, मा.गु.,सं., गद्य, (आदित्यं १सोम मंगल), १९९५१-२(+), २०२६५-२(+), १७७११, १८२४०-३, १८९५६, १९४३४-२, १९७५१-४, १९७५५-२, २०१९२, २०२७७, २०४८२-१, २०७९७ ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), १७७२९(+), २०७२६(+), २०८०८-१(+), १८२२१, २०१७५-१, २०१८४, २०९१२, २०९९२, १८५८२(#) (२) ज्योतिषसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १८५८२(१) (२) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सरस्वतीं नमस्कृत्य), २०१८४, २०९९२ ज्योतिषसार संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., (मंगलवार जया तिथि), १८६३५-१६(2) ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ३, श्लो. ३३७, ग्रं. ५००, पद्य, मूपू., (तं नमामि जिनाधीशं), २०५५५-१(+$), २०६८६ ज्वारारोपण विधि, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (कुसंभकं वर्णकमंडप), २०६८८-३ तंत्र-मंत्र-यंत्र आदि संग्रह, गु.,सं.,हिं.,अं.,उ.,अ.भा., प+ग., (--), २०२१२-२ तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., मूपू., (निजरिय जरामरणं), <प्रतहीन>. (२) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (कल्याणवल्लीतती०), २०७३७ तत्त्वसंबंधि श्लोक, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सत्तविराहणपावं अणंत), १७८५२-२(क) (२) तत्त्वसंबंधि श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथव्यादि ४ पृथ्वी १), १७८५२-२(+) तत्त्वार्थसारदीपक, सं., प+ग., जै.?, (ज्ञानांदैकरुपाय), १८५१३-१(+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, सू. १९८, पद्य, मूपू., (सम्यग्दर्शनशुद्ध), २०७७०(+) तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), २००२७ तपांसि, आ. पूर्वाचार्य, सं., तप. २७, पद्य, मूपू., (तत्र प्रथम सर्वांग), १८२०६-२ For Private And Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ तपावली, सं., तप. ५७, पद्य, मूपू., (उपधानानि सर्वाणि), १८२०६-१ तर्कभाषा, केशव मिश्र , सं., गद्य, वै., (बालोपि यो न्यायनये), १८२०४(+), २०६५१(+) (२) तर्कभाषा-वार्तिक, ग. शुभविजय, सं., ग्रं. १७००, वि. १६६५, गद्य, मपू., वै., (श्रीपार्श्वनाथ पादा), २०७२०(+) ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., अ. ४४द्वार, श्लो. ४००, श. ११०५, पद्य, वै., (श्रीरामस्य पदारविंद), १८५९५(+), २०२२६(+), २०३११(+), १९२९२ (२) ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७७, गद्य, मूपू., वै., (श्रीसूर्यचंद्रारबुधे), १९८६७६६), २०४२०(4) तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ), १८१५३-२(+), १८७६६-२(+) (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन जग प्रभुत्व), १८१५३-२(+) तीर्थमाला स्तवन, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (पंचानुत्तरसरणाग्रैवे), १८२९३-१ तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., गा. १११, पद्य, मूपू., (अरिहतं भगवतं सव्वन), १८०५६(+), १९८४३ (२) तीर्थमाला स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अर्हतं पूजायोग्य), १९८४३ तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (सद्भक्त्या देवलोके), १८४३३-१४+), १७५३२-६ तृतीयातिथि स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु.,सं., गा. १, पद्य, मूपू., (संभव सुखदाता जेह), १९००५-६० तेरापंथी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (छ लेस्या हुँति वीरके), १९७४९(+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०+परिशिष्ट, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), १७९१६(+), १८००८(+), २०६५९(+$) (२) सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), १९४३०(+), १९२२७-२, २०३१८-४, १८९७३-२(६) । (३) सकलार्हत् स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), १९४३०(+) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, पद्य, मूपू., (नमिउंचउवीस जिणे), १७३२६(+), १७६२३(+), १७६२९-२(+), १७७८८-१(+), १७७८९(+), १७८७२(+), १७८९२(+), १७९१०-१(+), १८१३२-१०(+), १८६१०(+), १८७५८-१(+), १८७६४(+), १८८१३-२(+), १८९५८-२(+), १९०८९(+#), २००८३(+), २०२६९-१(+), २०४४०-२(+), २०४८९(+), २०८४६-२(+), १७३९९-१, १७४१५-३, १७५३२-३, १७८६३-३, १८३४१, १८७९८, १९७९४-१, १९७९६, २००५१, २०४१०-१, २०४१६-१, १७८५६-२(#), १९१७३(६) । (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयं महिमामयं), १७३२६(+), १८९५८-२(क), २०४१०-१ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. ऋद्धिसागर, मा.गु., वि. १९१५, गद्य, मूपू., (न० चउवीस तीर्थंकरां), १७८५६-२(#) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, उपा. तेजविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २०४८९(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. सोमशिष्य, सं., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनै मन वचन), १९७९४-१ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), १७६२३(+), १७८९२(+), १७९१०-१(+), १८७६४(+), १८८१३-२(+), १९७९६ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (ऋषभादिक महावीर), १८६१०(+), १९१७३(5) For Private And Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रराजं जिनं नत्वा), १७६२९ - २(+) (२) दंडक प्रकरण- टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु., (चवीस तीर्थंकर ऋषभ), १९०८९ (+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (नमस्कार करी चउवीस), १७८७२(+), २००८३(+), २०२६९-१(+), २०८४६-३(+), १८७९८, २००५१, २०४१६-१ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, रा., गद्य, मृपू., ( नमी क० नमस्कार), १७७८९(*) " (२) दंडक प्रकरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्करी चडवीस तीर्थ), १८३४१ दशवैकालिकसूत्र, आ. शब्वंभवसूरि प्रा. अध्य. १०+ चूलिका २ गा. ७०० वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किहं), " " १७३५७(*), १७४४६(*), १७४६३ (+), १७५२८(+), १७७४७(*), १७७५६ (+), १७७९१ (+३), १८१९७(+), १८२१५(५), १८२७० (+), १८३९४-२ (+), १८५६६ (+), १८५६९(+), १८५७५ (+४), १८५७६ (+४), १८९९८ (+), १९२३७ (+), १९३०१ (+), १९९२६-१(+), २०१५६ (+३), २०१८७(+), २०२०० (+), २०२५३(+), २०४३४ (+), २०५२६ (+), १७८२९, १७९३३, १७९३७, १८०३८, १८२३४, १८२५०, १८४०९, १८६७८-१, १८६८८, १९५५६, १९५७५, १९६२२, १९८४८, २००४२, २००९२, २०२२८, २०३५२, २०५४०, २०६३३ २०६७६, २०७४९, १८०००-५, १८६९६, १८९८५-१, १९००६-५, १९२६६-१, १९४९३ २०२३६ २०३२५, २०७६० १ १७४४२ (०३), १७८४६(१), १८५६४(१), १८६८१(#), १८७७४(#), १९३७२ (६), १९४४९ ($), २०४१२($) (२) दशवैकालिकसूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुत्कृष्टं), २०२२८, २०६७६ (२) दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मृपू., ( ध० जीवन दुर्गति), १७३५७(१), १७४४६ (*१, १७५२८(०), १७७५६(+), १८३९४-२ (०), १८५६९ (+), १८९९८(+), २०१८७(०) २०२०० (+), २०४३४ (+), १८४०९, १९५५६, १९५७५, १९८४८, २००९२, २०३५२, १८९८५ १, २०७६०-१, १८६८१), १९३७२(३) १९४४९ (३) २०४१२६ (२) दशवैकालिकसूत्र- बालावबोध, उपा. राजहंस, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवर्द्धमान), १७७४७(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), १८४३१-२४), १९१३१-३ (२) दशवेकालिकसूत्र - अध्ययन १०- सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (ते मुनि वंदो ते मुनि), १८४२८-३६ (२) दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), १७५९५, १८६५६, १९७८२, २०५६२-२, २०९७६, २०१०३ (३) (२) द्रुमपत्रीयाध्ययन सज्झाय, संबद्ध, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (वीर विमल केवल धणीजी), १८९७४-७(A) दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. दशा. १०, ग्रं. १३८०, पद्य, भूपू., ( नमो अरिहंताणं० हवइ), १७५२१(+), १७७१६(+), १९४८५(+), १९९०३ (+), २००७६(+), २०११५ (+), १८६६९, १८७४७, २०४५६, २०४६१, २०६०० (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीदशाश्रुतस्कंध ), १७५२१ (+), १९४८५ (+), १९९०३ (+), २००७६ (+), २०११५, २०४५६, २०४६१ ५०१ (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र - विषमपद टिप्पण@, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १७७१६(+) दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पल. ९, पद्य, मूपू., ( स श्रेयखिजगद), २०४९३(+), १९९०२, १८५६०१३) For Private And Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, श्वे., (देवाहिदेवं नमिऊण), १८३४५(+), १९९६० (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (देवाधिदेवनइं नमस्कार), १८३४५(+), १९९६० दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, पू., (परिहरिय रज्जसारो), १८०९१ (२) दानशीलतपभावना कुलक-बालावबोध, मु. विनयकुशल, मा.गु., गद्य, पू., (नत्वा जिनपद युगल), १८०९१ दिनमान श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (अयनादिक वास २ राम), १७७१८-२ (२) दिनमान श्लोक-अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अयनना दिन गया होवें), १७७१८-२ दीक्षाग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, जै., (दीक्षा थकी पहिलइ), १९००८-१(+) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पुच्छा वासे चिइ वेस), १७४२६ दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (सांजरी वेला चारित्र), २००३९ दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., वि. १३८७, गद्य, पू., (पणमिय वीरं वुच्छं), १७३३७, १७३७२(4) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), १७५२७, १७५४८, १८९२१, १९५४४, २०४१८, १८७६०(5) । (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., ग्रं. १२००, वि. १७६३, गद्य, मूपू., (अर्हत बालबोधानां), १७५४८, १८९२१, १९५४४, २०४१८, १८७६०(६) (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., वि. १७५३, गद्य, मूपू., (--), २०४७० (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मंगलिक दीवा सरीखी पी), १७६८१ दीपावलीपर्व कल्प, आ. विनयचंद्रसूरि, सं., श्लो. २७८, वि. १३४५, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १७३३९(+) दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २७८, पद्य, मूपू., (संतु श्रीवर्द्धमानस), १८४६८ (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (छई श्रीपदावीरसांवा), १८४६८ दीपावलीपर्व व्याख्यान, पा. मेदचंद्र, सं., वि. १८९६, गद्य, स्पू., (श्रीनेमीशं जिन), १८३५८ दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पापायां पुरि चारुष), १९१७८-२८ दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (दुरिअरयसमीर मोहपंको), १८००९(+), १७३५२-१ (२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र-टीका, ग. साधुसोम, सं., वि. १५१९, गद्य, मूपू., (वर्द्धयतु वर्द्धमानः), १७३५२-१ (२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र-वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, मूपू., (अहं तस्य महावीरदेव), १८००९(+) दहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, ?, (--), १८६४२-२, १९३६४-२, २०३५१-३, २०३७८-२, २०४८१-२, २०७६२-२, २०३४२-२($) दृष्टांतशतक, सं., गा. १००, पद्य, श्वे., (तेजोङत्युग्रमपि द्वव), <प्रतहीन>. (२) दृष्टांतशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २०४४६($) देवकुमार कथानक, सं., श्लो. ५२३, पद्य, मूपू., (प्राग्जन्मसुकृतान्), १८०१३ देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने), १७५९६-२ देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., गा. ३११, पद्य, मूपू., (अमर नरवंदिए वंदिऊण), २०७१३ द्रव्यानुयोगतर्कणा, मु. भोजसागर, सं., अ. १५, ग्रं. २९५६, पद्य, मूपू., (श्रीयुगादिजिनं नत्वा), १८०९८(+) For Private And Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८०९८०) संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट १ (२) द्रव्यानुयोगतर्कणा - स्वोपज्ञ टीका, मु. भोजसागर, सं., गद्य, भूपू (श्रियं निवासं निखिला), द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रकीर्णक, प्रा., गा. २२५, पद्य, मूपू., (पुक्खरवरदीव), १९५२२ धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. २११, पद्य, दि., (तन्नमामि परं ज्योति), १८६४१ - १ धनदत्तमित्र कथानक, सं., गा. १८८, पद्य, मूपू., (धनदो धनमिच्छूनां), २०१४६ धन्य कथानक - दानधर्मे, मु. वयावर्द्धन, सं., श्लो. २६६, वि. १४६३, पद्य, मूपु. ( श्रीवीरजिनमानम्य), २०७३२(+) धन्यकुमार चरित्र, आ. गुणभद्र सूरि, सं., परि. ७, ग्रं. ८९०, पद्य, मूपू., (स्वयं भुवं महावीरं), १८९०० (+) धर्मपरीक्षा, आ. अमितगति, सं., परि. २०, पद्य, दि., ( श्रीमान्नभस्वत्त्रय), २०२२२ (+$) धर्मलाभ श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (लक्ष्मीर्वेश्मनि ), १९४२१ - २ (२) धर्मलाभ लोक- टवार्थ, सं., गद्य, वे (जे धर्मनई प्रभावे), १९४२१-२ , धर्मसंग्रह, उपा. मानविजय, सं., प्रक. ४, श्लो. १५९, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेषसुर), १७९९८ (२) धर्मसंग्रह - स्वोपज्ञ टीका, उपा. मानविजय, सं., प्रक. ४, वि. १७३१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य विश्वेश्वर), १७९९८ धूपद, प्रा., मा.गु., सं., गा. १, पद्य, ? ( करि चतुर च्यारि ए) १९००७-१२(+) " " धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., आख्या ५, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे तिअस), १८८४७ नंदश्रेष्ठि कथा, प्रा., सं., गा. ६६, पद्य, श्वे., (सुहवासामो यज्जुया), १९२७४ - २(+) नंदिताढ्य छंद, मु. नन्दिताढ्य, प्रा., गा. ९४, पद्य, श्वे., (णमिऊण चलणजुयलं नेमि), २०६७५ (+) (२) नंदिता छंद - टीका, मु. रत्नचंद्र, सं., गद्य, खे, (जैनीवाचं नमस्कृत्य), २०६७५ (०) नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदिय नंदियलोअं), २०५०५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - (२) नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र - टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, मूपू., (वंदित्वा प्रणम्य), २०५०५ नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गा. ७००, प+ग, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), १७५०४(+), १७९७६ (+), १८२६१ (+), , १८५१६(+), १८५६२(+#), १८८७६ (+), १८८८० (+), १८९०१ (+), २०५१२(+), २०५३१(+), २०७९६ (+), १८३८४, १८४८२-१, १८६००, १९२१२, १९२४२, १९३६८, १९९२५-१, २०४८४-१, २०८९६, १८४०३ (६) (२) नंदीसूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. ग्रं. ७७३२, गद्य, मूपु. ( जयति भुवनेकभानुः ), २०७२१ " 9 " (२) नंदीसूत्र टीका, आ. हरिभद्रसूरि सं., प्र. २३३६, गद्य, मूपु. ( जयति भुवनैकभानुः ), १८२६१ (+), १९०११, १८४०३ (३) (२) नंदीसूत्र - टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (नंदी ते आनंदनी देण), १७९७६ (+), १८९०१ (+), २०७९६ (+), १८३८४, १९९२५-१ (२) नंदीसूत्र - बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ नंदि इति कः), २०८५२ (२) नंदीसूत्र - टिप्पण, मा.गु., गद्य, भूपू., (जयई० विषय कषायादि), १७५०४) ५०३ For Private And Personal Use Only (२) नंदीसूत्र - कथा संग्रह @, मा.गु., कथा. ८९, गद्य, मूपू., (नंदनं नंदि प्रमोदोहर), २०१४० (२) नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, भूपू., (जयइ जगजीवजोणी वियाणओ), २०५८०-२ नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद. ९, पद्य, मृपू., (णमो अरिहंताणं), २०८०८-२(+), २०६२८-१ (२) नमस्कार महामंत्र - बालावबोध@, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), १७५१२, १८३३२ (२) नमस्कार महामंत्र - बालावबोध@, मा.गु., गद्य, मृपू., (माहरउ नमस्कार), २०२७४-२ (+), १८५८७) Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ नमस्कार माहात्म्य, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., प्रका. ८, पद्य, मूपू., (नमोस्तु गुरवे कल्प), १८१७४-१(+) नयचक्र, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., गा. ४५३, पद्य, दि., (दव्वाविस्स सहावा), <प्रतहीन>. (२) नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., वि. १७२६, गद्य, दि., (वंदो श्रीजिनके वचन), १८२६३, १९३१० नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्यपरमब्रह्म), १९८५८, १९८६२ (२) नयचक्रसार-बालावबोध, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (वंदो श्रीजिनवचन), २०२३१ (२) नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमब्रह्म), १९६८४, १९८५८ नरपतिजयचर्या, क. नरपति, सं., अ. ५, वि. १२३२, प+ग., वै., (अव्यक्तमव्ययं शांतं), २०५५५-२(+) नवग्रहजाति व उत्पत्तिस्थान, प्रा., गा. १, पद्य, वै., (कंसारो भरडो लोहार), १८१४७-२, १९१०४-२ (२) नवग्रहजाति व उत्पत्तिस्थान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., (सूर्य कंसारो चंद्रमा), १९१०४-२ नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), १९९०५ (+#), २०५२२-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं विभु), १९९०५(+#), २०५२२-१ नवतत्त्व प्रकरण, आ. जिनचंद्र गणि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (सम्मं च मोक्खबीय), २०९४०-२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-भाष्य, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १३८, पद्य, पू., (भूयत्था इह अवितहभावा), २०९४०-१ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), १७६०५(+), १७६४६-१(+), १७८२६(+), १७८५२-१(+), १८१३२-९(+), १८७११-१(+), १८९२५(+), १८९२६-१(+), १९०१४-१(+), १९१७५ (+), १९४४०-२(+), १९७६५(+), १९७६६(+), २०३५४-१(+), २०३८०(+), २०४०९(+), २०४४०-१(६), २०४७२-१(+), २०९०९(+), १७३०५, १७३९९-२, १७४१५-२, १७५३२-२, १७८६३-१, १८२३०, १८७४०-१, १९०८२-४, १९१९७, १९३३३, १९४७१, १९५४१, १९७०९, १९८०२, १९८०५, २०५८२-१, २०७६३, १७७७८(१), १७८५६-१(#), १९४८८(६), २०५३०(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयति श्रीमहावीर), १९७६५(+), १८२३०, १८७४०-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मु. उत्तमसागर, मा.गु., वि. १७१९, गद्य, मूपू., (भव्य प्राणीइं समकित), २०४०९(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मु. ऋद्धिसागर, मा.गु., वि. १९१५, गद्य, मूपू., (जी० जीवलो हूवों जीवै), १७८५६-१(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मु. पद्महर्ष, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वदेवं), १७८२६(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतांच्यार), १७६०५(+), १७८५२-१(+), १८७११-१(+), १८९२५(+), १८९२६-१(+), १९१७५ (+), १९४४०-२(+), २०३५४-१(+), २०३८०(+), २०४४०-१(+६), २०४७२-१(+), २०९०९(+), १७३०५, १९१९७, १९३३३, १९४७१, १९७०९ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जैनमतनइ विषइ नवतत्त्), १९४८८६६) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचंद, मा.गु., वि. १७६६, गद्य, म्पू., (ज्ञानं पंचविध), १९५४१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (यथा स्थित साचउंजे), २०७६३ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), १७६४६-१(+), १९७६६(+), १९२६३, १९७९१, १९८०५, १९८३०, २०९८२, १७७७८(#), २०५३०(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध @, रा., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा० जीवतत्त्व), १९८०२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.ग., ग्रं. २००, गद्य, मप., (हवे विवेकि सम्यग), १८२७१(+) For Private And Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-क्षेपक गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सद्दधयार उज्जोय), २०७०७ - १(+) (३) नवतत्त्व प्रकरण - क्षेपक गाथा का- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवइ पर्याप्तिनो), २०७०७ - १ (+) (२) नवतत्त्व प्रकरण चौवीस भेद, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपु., (नवपदार्थना द्वार २४ ), १८२८०-१ " (२) नवतत्त्व प्रकरण - पचीसबोल, संबद्ध, मु. यश ऋषि, मा.गु., पद्य, मूपू., (सासणपति श्रीवीरजिन), १७५१८ (२) नवतत्त्व प्रकरण - बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), १८०३३ - १, १८९८४ (२) नवतत्त्व प्रकरण-भेद विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्रादी जीवतत्त्व), २०४०४ (२) नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., (नवतत्त्व नाम जीव ), २०६८०-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., को. मूपू., (नवतत्त्व नामस्वरूप), २०२५९ " नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुत्रं पावा), १८६७४ (३) नवपद आराधनाविधि, आ, ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (प्रथम प्रभातें), १७९७० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवपद खमासण विचार, पुहिं., सं., गद्य, मूपू., ( तिहां प्रथम पदै), १७८०० नवपद पूजा, उपा यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, भूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), १८९१५ (+), २०६९०(१), १८५२२-१, १९१५२, १९१७८-२ नवस्मरण, सु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.सं., स्मर. ९, प+ग, भूपू., ( नमो अरिहंताणं० हव), १७५४३-१(+), १८२६२(+), १९२६२-१(+), १९८१६ (+), १९५१८, २०३१८-९ १७३१५, १७८२४, १७८३४, १७९५१, १८९१७-३, १९०८१, १९५१९–१, २०३९३, १७६०७ (३), १७६५१-१ (४), १७८८९(३), १८००६ (०) २०५८९ - १(०) २०५९२-१(३) (२) नवस्मरण-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतन माहरो ), १९२६२-१(०), १७३१५ - (२) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, हिस्सा, सं., गद्य, मूपू., (भो भो भव्याः श्रृणुत), १७६१५ - २ (+), १८१३२-३ (+), १७८६७-२, १९२२७-४, २०६१७, २०६२८-३, २०७५६, १८९७३-४ ($) (३) बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं. वि. १६५६, गद्य, म्पू., (स्ताच्छांतिः शांति), २०६१७ नागी कथा, मु. ब्रह्म नेमिदत्त, सं., श्लो. ३६५, पद्य, मृपू., (श्रीमज्जिनं जगत्), १८५७१ (०४) नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (नमिय जिणमुसभमुभयंस), १७४६२ - ३ (+) नाममाला, मु. रुप, सं., श्लो. १२५, पद्य, जै., ( प्रणम्य प्रमोदेन), १८६४५ (+) निगोदगोलक विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मृपू., (वालगो इक्कमिअ असंख), २०५२२-३ निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मृपू., (जे भिखु हत्थ कम्मं ), १९३५०(*), १९९०९ (+), १९०३९(३) (२) निशीथसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., ( नमस्कार हुवो सु० ), १९३५० (+), १९९०९ (६), १९०३९(३) नेमिजिन चैत्यवंदन, सं., गा. ३, पद्य, जै, (विशुद्धविज्ञानभृतां ), १९००५-३९ नेमिनाथ चरित्र, ग. गुणविजय, सं. ग्रं. ५२८५, गद्य, भूपू (जयति नाभिभवो जिननायक), २०३४४) " निर्वाण महाकाव्य, क. मंडन कवि, सं., स. १५, ई. १२वी, पद्य, मृपू., ( श्रीनाभिसूनोः पदपद्म), १८६५४(+) (२) नेमिनिर्वाण महाकाव्य - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (युगादि देवस्य), १८६५४(क) न्यायदर्शनसंग्रह, सं., प+ग., (--), १९४०५-२ (+) न्यायप्रवेशसूत्र, दिङ्नाग, सं., गद्य, बी., (साधनं दूषणं चैव), <प्रतहीन > For Private And Personal Use Only ५०५ Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ (२) न्यायप्रवेशसूत्र-शिष्यहिता वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., बौ., (सम्यग्ज्ञानस्य), १९४०५-१(+), १९९८६ न्यायालोक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., प्रका. ३, ग्रं. १२००, गद्य, मूपू., वै., (प्रणम्य परमात्मानं), १९८८७(+) पंचकल्याणक पूजा, सं., पद्य, दि.?, (वृषभाय नमस्तुभ्यं), १८४९८(+) पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (नाभेयं संभवं तं अजिय), १८२१७-८ पंचतंत्र, विष्णु शर्मा, सं., गद्य, वै., (ब्रह्मा रुद्रः कुमार), <प्रतहीन>. (२) पंचतंत्र-श्लोक संग्रह, विष्णु शर्मा, सं., आख्या. ५, पद्य, वै., (सकलार्थशास्त्रसार), १८८२३-१(+) (३) पंचतंत्र-श्लोक संग्रह का आंशिक बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (दक्षिण देश मध्ये महि), १८८२३-१(+) पंचतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूप., (श्रीशत्रुजयमुख्य), १९००५-४४, १८४२९-२६पंचपरमेष्टि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. ३५, पद्य, मूपू., (भत्तिभर अमर पणयं), १८१७४-२(+) पंचपरमेष्ठि गुणविवरण, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (बारस गुण अरिहता), २०४४०-४(+) (२) पंचपरमेष्ठि गुणविवरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंतना), २०४४०-४(+) पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), १७५४६-२(+), १८४३३-६(+), २०४१६-२ पंचमीतिथि चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुवर्ण वर्णो हरिणा), १९००५-१७ पंचवस्तुक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १७१४, पद्य, मूपू., (णमिऊण वद्धमाणं सम्म), <प्रतहीन>. (२) मार्गपरिशुद्धि प्रकरण, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ३२०, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनताय), १९२१४, १९८५४ पंचसूत्र, आ. चिरंतनाचार्य, प्रा., सूत्र. ५, गद्य, मूपू., (णमो वीयरागाणं सव्व), १९६०७(+) (२) पंचसूत्र-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. ८८०, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), १९६०७(+) पंचाख्यान वार्तिक, सं., श्लो. ४८, पद्य, श्वे.?, (कुश्रितं कुप्रनष्टं), १८७०७(१) (२) पंचाख्यान वार्तिक-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे.?, (--), १८७०७(६) पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पंचा. १९, गा. ९४०, ग्रं. ११८७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं सावग), २०५१३ (२) पंचाशक प्रकरण-प्रस्तावना, संबद्ध, ग. अभयसागरजी म., सं., गद्य, मूपू., (--), <प्रतहीन>. (३) पंचाशक प्रकरण-प्रस्तावना की आनंदलहरी टिप्पणी, सं., गद्य, मूपू., (विदिताः प्रख्याताश्च), २०५१३ पंचिंदियसूत्र, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचिदिअ संवरणो तह), २०२७४-३(+) (२) पंचिंदियसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंचेंद्रिय स्पर्शना), २०२७४-३(+) पट्टावली खरतरगच्छीय, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३०, गद्य, पू., (प्रणिपत्य जगन्नाथं), १९९६३ पद्मनाभ पुराण, आ. शुभचंद्र, सं., स. १५, श्लो. २४००, पद्य, दि., (श्रीमद्भट्टारक प्रभु), २०६८२(+) पद्मप्रभजिन स्तव, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (उदारप्रभामंडलैर्भास), १९००५-६६ पद्मावतीदेवी स्तुति, सं., श्लो. २, प+ग., वै., (देवीयात्रिपुरा), १८२१८-९(+) पद्मावतीपटल स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (श्रीमन्माणिक्यरश्मि), १८२१८-५(+) पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या ), १७३०१-२, १८२१९-१ पद्मावत्यष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), १९७३९-१(+) For Private And Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) पद्मावत्यष्टक पार्श्वदेवीय वृत्ति, ग. पार्श्वदेव, सं. ग्रं. ५००, गद्य, मूपू (प्रणिपत्यं जिनं देवं), १९७३९-१(+) "" " (पद्म सुगंध स्वेद), १७६७५-२ (+) 9 पद्मिन्यादि नारीलक्षण, मा.गु. सं., श्लो. ११, गद्य परमात्मप्रकाश, मु. योगींद्रदेव, प्रा., गा. ३४५, वि. १२वी, पद्य, दि., (जे जाया झाणमियए), २०२६२-१ (+) (२) परमात्मप्रकाश - अवचूरि, सं., गद्य, दि., (महात्मानः जातः), २०२६२-१(+) परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (परमानंदसंपन्नं), १७६८३ - १, १९७६३ (२) परमानंद स्तोत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (परमात्माने नमस्कार), १७६८३ १, १९७६३ पर्वताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (नमिउण भणड़ एवं भयवं), २०२५२-१ (०), १७५८७, १७९५६, १८२३७, १९४७४, २०२२९, २०३८९, २०४७६-१, २०४८५, २०५५३-१ (२) पर्यंताराधना-टवार्थ, मु. लावण्यविजयवाचक शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., ( श्रीमहावीर प्रतिइं), २०४८५ (२) पर्यंताराधना-टबार्थ@, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करिने), २०२५२ - १(+), १७५८७, १७९५६, १८२३७, २०२२९, २०३८९, २०४७६-१ (२) पर्यंताराधना वालाववोध @. मा.गु., गद्य, म्पू., (नमीनइ नमस्करीनई), १९४७४ पर्यंताराधना, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही), १८३२५ , पर्युषणाचिंतामणी प्रकरण, पं. अमृतकुशल, सं., वि. १८५६, गद्य, मृपू., (चिदानंदस्वरूपाय), २०८२३(+) (२) पर्युषणाचिंतामणी प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., वि. १८५८, गद्य, मूपू., (चिदा० क० परमात्मानुं), २०८२३(+) पर्युषणादशशतक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. ११०, पद्य, मूपू., (नमिउं वीरजिणिंद), १९९८९ (२) पर्युषणादशशतक-वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं ), १९९८९ पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, भूपू (स्मृत्वा पार्थ), १९२११(+), १९७२९(+), १९४६९ ५०७ (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान - टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ), १९७२९(+) पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( स्नातस्याप्रतिमस्य), १७९८२ - २ (+), १८१८१-७, १८२१७-१, १८४३५-६, १८९८१-५, १८९७५-१ ९८४२९-१९) पातालकलश गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, भूप. (जोवण सहस्सदसणं मूले), १८५३९-३ (+) (२) पातालकलश गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (हवे पातालकलश प्रमाण), १८५३९-३(+) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथा, सं. ग्रं. २००, गद्य, वे., ( कुलं विश्वश्वाध्यं), २०१७१(+) ', " पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., मूपू., (धर्मतः सकलमंगलावली), १७३३० पार्श्वजिन अष्टक-कलिकुंड, मु. कल्याण, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विबुधादिराजैर्नतपाद), १८४३३-१०(+) पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., स. ८ नं. ६४००, वि. १३१२, पद्य, भूपू., ( नाभेयाय नमस्तस्मै), १९५१५, १९८१८(5) पार्श्वजिन चरित्र, सं. ग्रं. १६००, गद्य, म्पू., (पार्श्वनाथो भवपापताप ), १९८१९ (४) " For Private And Personal Use Only पार्श्वजिन चरित्र- महाकाव्य, मु. पद्मसुंदर, सं., स. ७, पद्य, मूपू., (भास्वद् भोगीन्द्रभोग), २०९०८($) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपु. ( ॐ नमः पार्श्वनाथाय), १७५४३-३ (+), २०३१८-३, २०५९२ २ १७६५१-२(४), , २०५८९ - २ (#) Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ पार्श्वजिन चैत्यवंदन - चिंतामणी, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपु. ( पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), १८४३३-१८(*), १८६३७-९ पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका-चिंतामणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं जगद्देवं), १८१७४-४(+) पार्श्वजिन लघुस्तोत्र, प्रा.सं., श्लो. ५, पद्य, मृपू., (ॐ हत्थमिलेवण मुहमिलं), १८१७४-८ (+) पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, सं., लो. १५०, पद्य, म्पू., (पार्श्व: पातु नतांगि), १८५८१, २०२४८ पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (देवोबालतमालकज्जल), १८४३३-१२(+) पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि देवकुशल पाठक, सं., श्लो. ७, पद्य, भूपू (स्फुरदेवनागेंद्र ), १९००६-४ पार्श्वजिन स्तवन जीरावला, आ. महेंद्रसूरि, सं., श्लो. ४५, पद्य, भूपू., (प्रभुं जीरिकापछि), १७९१८ (२) पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला - टीका, सं., गद्य, मूपू., (अहं पार्श्वजिनं), १७९१८ ', पार्श्वजिन स्तवन-मक्षी, पंन्या. कनकविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रियोयच्चरण), १८४३३ -१५ (+) पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थमंडन, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., श्लो. ८, पद्म, मूपु, ( आयाति नित्यं परमारमा), १८६२३-१ (२) पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थमंडन- व्याख्या, सं., गद्य, मृपू., ( आयाति० के पुरुषाः ), १८६२३-१ पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थमंडन, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., ( श्रीसेढीतटिनीतटे), १९१७८-८ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), १८९७५-१४ पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ट्रें दें कि धप ), १८४१६-११, १९१७८-२१ पार्श्वजिन स्तुति-पलबंध, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं ज्योतिर), १८४१६-८ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), १८४१६-७, १९१७८-२५ पार्श्वजिन स्तोत्र, श्राव. आशाधर, सं., श्लो. १६, पद्य, दि. १ ( श्रीमत्काश्यपराजराज), १९५५३ - १(०) 9 (२) पार्श्वजिन स्तोत्र - पंजिका टीका, पंडित, वीज्ञा, सं., गद्य, दि. १, (नत्वा श्रीपार्श्वनाथ), १९५५३ - १(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, श्राव. आशाधर, सं., श्लो. ८, पद्य, दि. १, (--), <प्रतहीन> . (२) पार्श्वजिन स्तोत्र - पंजिका टीका, पंडित. वीझा, सं., गद्य, दि. ?, (श्रेयसि प्रशस्ते), १९५५३-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. धर्मसिंघ, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (वंछित आस पुरण प्रभू), २०४०२-३ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., गा. ९, पद्य, मूपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), १८६३७-१० पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., गा. १०, पद्य, मूपु., (केवल लोकित लोकालोक), १९२०६-१(०) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे केवलज्ञानविलोकित), १९२०६-१(+) , पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपु (प्रणमामि सदा प्रभु), १८४१९ - १७) पार्श्वजिन स्तोत्र - कलिकुंड, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपु., (पायाद्वः कलिकुंड), १८४३३-१३(*) For Private And Personal Use Only पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी, आ. प्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सकल मंगल मंजुल मालिन), १८४३३ - १७(+) पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित, आ, जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, पद्य, मूषू., (दोसावहारदक्खो नालिया ), १८१३२-१(+) पार्श्वपरमेश्वर स्तोत्र, मु. मानविजय, सं., श्लो. १०, पद्य, मृपू., ( चरण कमलं श्रीवान्देव), १८४३३-१६ (+) " पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., श्लो. १९६, पद्य, वे (महादेवं नमस्कृत्य), १८१२३-१, १८४७०, २०२९७, २०३४२-१, १८६३५-१(१६), २०५५४) (२) पाशाकेवली-भाषा @, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ उत्तम थानक लाभ), १७५९३ - १, १९३६५, १९३७८-१, १९९९६(#) Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०९ पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (देविंदविंदवंदिय पयार), १८२२५-१(+), २०२८८(+) (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-बालावबोध, ग. संवेगदेव, मा.गु., वि. १५१३, गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनेशं), १८२२५-१(+) (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (इंद्रना वृंद समूह), २०२८८(+) पीस्तालीसआगम गणj, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रीनंदीसूत्र), १९२४५ पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (सपुन्न इंदिअत्त माणु), १९५४९-३ (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरु पंचिन्द्रियपणो), १९५४९-३ पुराणहुंडी, सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः), १८३४६(+), २०७७२ (२) पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (ध० धर्म सघलाई सांभल), १८३४६(+), २०७७२ पुरुषघातचंद्र विधि, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (मेषे आदि १ वृषे पंच), २०१७५-२ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते समणेणं०), १८८३७-४(+), १८८८४-४(+), १८९६०-४(+), ___ १९३४३-४(+), १८८४०-४, १८८६५-४, १९३७६-४ (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., ग्रं. २८६८, गद्य, मूपू., (जउ हे पूज्य० दस), १९३४३-४(+), १८८६५-४ (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), १८९६०-४(+), १९३७६-४ पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५०५, पद्य, मूपू., (सिद्ध कम्ममविग्गह), १७४९७(+), १७६६३ पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), १८८३७-३(+), १८८८४-३(+), १८९६०-३(+), १९३४३-३(+), १८८४०-३, १८८६५-३, १९३७६-३ (२) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., ग्रं. २८६८, गद्य, मूपू., (जउ हे पूज्य० त्रीजा), १९३४३-३(+), १८८६५-३ (२) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य०), १८९६०-३(५), १९३७६-३ पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथां), १९३३९(+), १९०८३-१ (२) पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मप., (पार्श्वनाथना चरण), १९३३९(+) पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अभिनवमंगलमालाकरण), १९०१०-३(१) पौषधविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (खमासमण देइनें इरिया), १७७१७ पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), १८१३२-६(+) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ववगयज), १७४१९(+$), १८३८५(+), १९७०२(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सीतं वद्धं अष्ट), १९७०२(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., ग्रं. २८०००, वि. १७८४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पुण्यपदपद्म), १९७०२(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १७४१९(+5), १८३८५(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोल@, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १८४७६(६) (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जाव गय इंदिय काय जोय), २०५६६ प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. १०४, पद्य, पू., (ऐंद्रश्रेणि नता), १७९९५ (२) प्रतिमाशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिप्रणत), १७९९५ For Private And Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१० www.kobatirth.org प्रतिमासिद्धि सिद्धांतसंग्रह, प्रा., मा.गु., सं., ग्रं. ४७५, प+ग, मूपू., ( प्रथम विहारभूमिं वा ), २०३०७(+) (२) प्रतिमासिद्धि सिद्धांतसंग्रह-टबार्थ, पं. लालकुशल, मा.गु., ग्रं. २०००, गद्य, मूपू., (नत्वा जिनपति चरणौ), २०३०७(+) प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु., सं., पद्य, थे., (तद्यथा सह वारक बहेंड), १७५९१ , प्रतिष्ठा विधि, सं., मा.गु., गद्य, मृपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), २००६५ प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (अथ प्रतिष्ठाविधिनुं), २०२६६ (#) प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य स्वस्ति), १७७९६ (+), १७८६४ प्रतिष्ठा विधिसंग्रह, मा.गु. सं., पद्य, मूपू., (मूल गुंभारेकुं आछीतर), १९००८-२ (०) " प्रतिष्ठासारोद्धार, श्राव. आशाधर, सं., अ. ६, वि. १२८५, पद्य, दि., (जिनान्नमस्कृत्य जिन), १८९०२-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., गद्य, मूपु., (करकंडू कलिंगेसु पंचा), २०२५६ प्रदेशीराजा चरित्र, सं., पद्य, मूपु., ( श्रीनाभिभूपकुले गर्भ), २००३३(४) प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (गोयम सोहम जंबू पभवो), १८९८३-५ प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि प्रा. द्वा. २७६, श्लो. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिकण जुगाईजिणं), २०३९८(+), १७५००, १८७८९, १९९०१, २०५७७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ (२) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., ग्रं. १८०००, वि. १२४२, गद्य, म्पू., ( सन्नद्धैरपि यत्तमोभि) १८७८९, १९९०१ (२) प्रवचनसारोद्धार - विषमपदार्थावबोध टिप्पण, आ. उदयप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., ( प्रवचन सारोद्धारे), २०५७७ प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसार विसम सायर भवजल), १८१३२-५ (+३) - प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५० ग्रं. १३००, प+ग, मूपु, (जंबू अपरिग्गहो संवुड), १८०२०(५), १८५६८(+), २००९१(+), २०२९२ (+), २०५४७ (+), २०९६५ (+), १९५९५, २०४३६ (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं. ग्रं. ५६३०, वि. १२वी, गद्य, मृपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), २०९६५ (+) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( हे जंबू एह प्रत्यक्ष), १८०२० (+), २००९१ (+), १९५९५ " (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो जंबू इणमो कहतां), २०२९२ (+), २०५४७ (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र ), <प्रतहीन >. (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला - बालावबोध, मा.गु. ग्रं. ४०१, गद्य म्पू, (--), १९२१७ प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं., उल्ला. ४, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य परं ज्योति), १९०३७ प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, वा. क्षमाकल्याण, सं., प्रश्न. १५१, वि. १८५१, गद्य, भूपू., (श्रीसर्वज्ञं नत्वा), <प्रतहीन > (२) प्रश्नोत्तरार्द्धशतक बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., प्रश्न. १५१, वि. १८५३, गद्य, म्पू., (पहिले बोलै तीर्थंकर), १९३४७ प्रस्ताविक लोकसंग्रह- मा.गु., सं., गा. ११३, पद्य, श्वे. (विद्या भल पण अधांग), १८३२० - २(+), १९१५४-१ प्राकृतलक्षण, क. चंड कवि, सं., विधा. ४, गद्य, जै ? (प्रणम्य शिरसा वीरं), २०७२७/*) (२) प्राकृतलक्षण- अवचूरि, सं., गद्य, जै. ?, (प्रकृतिः संस्कृत), २०७२७ (+) प्रासुकजल विचार, मु. आनंदविमलसूरि-शिष्य, प्रा.सं., गद्य, मूपू., (--), १८८७५ (३) For Private And Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १८१, पद्य, मूपू., (नमोस्तु देवदेवाय), १७७८८-३(+) प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै.?, (दाता दरीद्री कृपणो), १७६७९-२ बंधत्रिभंगी, मु. नेमिचंदजिन, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ४१, पद्य, दि., (णमिऊण णेमिचंदं असहाय), १८६२६-२ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्क), १७८९७-३(+), १८२६४-३(+), १८३२९-३(+), १८३९०-३(+), १८६४०-३(+), १८७५१-३(+), १८९२८-३(+), १९३५५-३(+), १९४२८-३(+), १९७१४(+), २०१३७-३(+), २०२२५-३(+), २०२७०-३(+), २०४५९-३(+), १८३८८-३, १८४८७-३, १८४८८-३, १८४९०-३, १९६९९-३ (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (सम्यग्बंधस्वामित्व), १८३८८-३ (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जयसोम, मा.गु., वि. १७१६, गद्य, मूपू., (कर्मबंधननु विधानक), १८७७१-१() (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १८०३, गद्य, मूपू., (जीवप्रदेश साथे कर्म), १७८९७-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्म बंधना प्रकारथी), १८२६४-३(+), १८३९०-३(+), ___ १८९२८-३(+), १९७१४(+), २०२७०-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (बंध सामित्त विचार), १८६४०-३(+), २०२२५-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., मूपू., (श्रीवर्द्धमान जिनचंद), १९९९७ बीजतिथि चैत्यवंदन, सं., गा. ३, पद्य, जै., (सकलसुखसमृद्धिर्यस्य), १९००५-११ बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), १८२१७-५, १८४१६-१, १९१७८-१६ बुद्धिचतुष्क कथा, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (सेलघण कुडग चालिणि), १८२३१ बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), १९६३५-१(+), २०१००-१(+$), २०१८३(+), २०९८८(+), १९४५२, २०६५७, २०७३९ (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, पू., (कव० कश्चित नगरं), १९६३५-१(+), २०१८३(+), २०९८८(+) (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), १९४५२ (२) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १९६३५-२(+), २०९८८(+) बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. ५ अधिकार, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), <प्रतहीन>. (२) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, संक्षेप, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. ५, पद्य, मूपू., (नमिऊणसजलजलहर निभस्सण), १८८७३(+#), २०१४८(+), १८५९१, १८७३२-१, १८८१२ (३) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहेता नमीनइ), १८८७३(+#), २०१४८(+) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहर निभस्स), १७९५०(+), १८५६१(+), १८८३२-१(+#), २०५३९(+), १८६४४, १८८११, २०८९० (३) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण की टीका, सं., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य परमभक्त्या), २०८९० (३) बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण काटबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहेतां नमस्कार), १८८११ बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, मपू., (सिरिनिलयं केवलिणं), १७५७३($) For Private And Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ बृहत्शांति स्तोत्र- खरतरगच्छीय, सं., पद्य, मृपू., (भो भो भव्या शृणुत), २०१०७-२ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिङ), १७३२२-१(+), १७३५०(०), १७५७२(*), १७७०८(०), १८३७७(+), १८४८०(+), १८५३९-१(+), १८६८६ (+३), १८८२४(+), १९२३४(*), १९४९२ (०), १९६७४(+), १९६८०(+), २००९७ (+), २०११० (+), २०१३५ (+), २०१९९ (+), २०३००(+), २०३९७ (+#), २०४५२-१(+#), २०५९९(+), २०८२७(*), २०८४३-१(०) २०९१४(*), २०९६४(*), १७३२५, १७३७९, १७४०९, १७४९५ ४, १७६०१, १७९२४, १७९५८, १९४१५-२, २००६२, २०६०५, २०६११, २०७५०, २०७७५, २०९२२, २०९७९, १८०६४ (३), १९१२१(०) २०२१४०, २०२९५(३), २०३६४(४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (अत्यद्भुतं योगिभि), २०६११ (३) बृहत्संग्रहणी-टीका की अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (नमि० आदौ शास्त्रकारो), २०२१४(#) (२) बृहत्संग्रहणी - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तिष्ठति नारकादिभवे), २०७८९-१ , (२) बृहत्संग्रहणी - टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, मूपु. ( नमस्कार करीने अरिहंत), १८५३९-१(+), १९४९२ (०), २०९६४ (*) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता), १७५७२(+), १८६८६ (+), १८८२४ (+), १९६७४(+), २०३०० (+), १७३२५, १७४०९, १७६०१, १८०६४ (३) (२) बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., ग्रं. १७५७, वि. १४९७, गद्य, मूपु., (नत्वा श्रीवीरजिनं), २०१९९(+), २०५९९०) २०७५०, २०३१७(१) (२) बृहत्संग्रहणी- बालावबोध @, मा.गु., गद्य, म्पू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), २००६२, २०३६४ (३) (२) बृहत्संग्रहणी - टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (सुष्ठु राजते शोभते), १७३५० (+) भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १७२, पद्य, मृपू., (नमिऊण महाइसयं महाणु), १७९४३ - २(क) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४+४, ग्रं. ७७, पद्य, मृपू., ( भक्तामरप्रणतमीलि), १७५६७(२), १७७३९(+), १८०२१(+), १८२९९-१(+), १८६५०-१०), १८६९०(०), १८८१०१०), १८८५३(+), १९०३१ (+), १९२५२(०), १९६२१(+), १९६३६(+), २०१२४(+), २०२८१-१(+), २०५००-१(०), २०८२८-१(०३), २०९१९(०) २०९६१(+), २०९९४ (+३), १७७९२, १८०७०, १८३००, १८३२८, १८४३५-११, १८४५९, १८५००, १८७५०, १८७७५, १९००४, १९००६-१, १९५६७, १९६४५, १९६६३, १९७५९, २०१०६ - १, २०४०२ - १, २०५५९, २०५७३, २०६२८-२, १९२८१($), १९१०६ (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, मूपू., (पूजाज्ञानवचोपायापगमा), १८८१०) १९०५४-१ For Private And Personal Use Only (२) भक्तामर स्तोत्र - टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., ग्रं. ४८१, गद्य, मूपू., (प्रणतसुरासुरनरवर), १८८५३(+) (२) भक्तामर स्तोत्र- टीका, मु. रायमल ब्रह्म, सं., वि. १६६७, गद्य, म्पू., वि., (श्रीवर्द्धमानं) १९०३१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र - बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., प्र. ६९३, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंददायक ), १८४५९, १८७७५ (२) भक्तामर स्तोत्र - सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति निश्चये अहम ), २०२७३(०), १८७५० (२) भक्तामर स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिनस्य वीतरागस्य), १८६५०-१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सम्यग् जिनपादयुगं), १७७३९(+) , Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मु. रूपचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनपादयुगं प्रणम्य), १९६३६ (+) (२) भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिवंत जे देवता), १८६५० - १(+), १८६९० (+), १९६२१(+), २०२८१-१(+), २०९६१(+), १८०७०, १८३२८, १९००६ - १, १९६४५, १९६६३, २०४०२ - १, १९१०५ () (२) भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध, ग. मेस्सुंदर, मा.गु., वि. १५२७, गद्य, म्पू, (प्रणम्य श्रीमहावीर), १७५६७(+), १८८५२, २०५७३, १९२८१ ($) (२) भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध, मु. शुभवर्द्धन, मा.गु., वि. १२०२, गद्य, मृपू., ( श्रीमदादिजिनं नत्वा), २०९९४ / +६) (२) भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये ), १८३०० (२) भक्तामर स्तोत्र - बालावबोधकथा, मा.गु., गद्य, मूपू., ( उजेणी नगरीनइं विषई), १९००४ (२) भक्तामर स्तोत्र-पंचांगपद्धत्ति, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ अर्हं णमो ), १९५६७ (२) भक्तामर स्तोत्र - कथा, मा.गु., कथा, २८, गद्य, मूपु. ( वर्द्धमानजिनं नत्वा), १९५४६- १, २०१७००) , (२) भक्तामर स्तोत्र कथा @, सं., गद्य, भूपू., (--), २०५७३ (२) भक्तामर स्तोत्र- गुण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपु., (दोनुं काव्यसुं पाणी), १९६४५ ', (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., मंत्र. ४८, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं अहं णमो ), १९७५९, १९३५१(७) , (२) भक्तामर स्तोत्र - समास, संबद्ध, सं., गद्य, मृपू., ( भक्ताचते अमराच), २०५००- १(क) (२) भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, सं., गद्य, भूपू (--), १९७५९ , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., ( नमो अरहंताणं० सव्व), १७६४० (+), १८१९३(+), १८५५३(*), २००८० (+), २०५२९-१(+), २०२४५, १७५४०(5), १८३९१(३), १९४८४(5), २०९३६ (३) (२) भगवतीसूत्र - टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., शत. ४, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंतमसं), १८८९४) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते कालनइ विषइ ते), १७६४० (+$), २०५२९-१(+), १९४८४($) (२) भगवतीसूत्र - बालावबोध @, मा.गु., गद्य, भूपू., (--), २०९३६ (४) (२) भगवतीसूत्र - पर्यायार्थ, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (अथ विवाहपन्नत्तित्ति), १८५५३ (+) (२) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह @, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (--), १८५९७(+), १९८३१ (३) भगवतीसूत्र - आलापक संग्रह-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १८५९७(५), १९८३१ (२) भगवतीसूत्र-द्रव्यानुगम, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (कइ विहाणं भंते दव्वा), १७९५७ (२) भगवतीसूत्र - बोलसंग्रह @, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मासनी दिक्षा सुभ), १९७५७-१, २००५०) (२) भगवतीसूत्र- सज्झाय, संबद्ध, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अरथ), १९१२७-७ भगवतीसूत्र - जमाली अध्ययन, प्रा., गद्य, वे., (--), २०७६०-३ , भवचरिम पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, म्पू., (भवचरिमं पच्चखामि ), २०५५३-२ भवानीदेवी स्तुति, सं., . ४, पद्य, वै., (), १९७३०१-१(5) श्लो. भविष्यदत्त चरित्र, मु. श्रीधर, सं., स. १५, पद्य, मूपु. ( श्रीमंत त्रिजगन्नाथ), १९९५९-१ " भविष्योत्तरपुराण, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन ५१३ For Private And Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ (२) भविष्योत्तरपुराण-इंद्राक्षी स्तोत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १३, पद्य, वै., (ॐ अस्य श्रीइंद्राक्ष), १८२१८-६(+) भावत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., गा. ११६, वि. १४वी, पद्य, दि., (खवियघणघाइकम्मे अरहत), १८६२६-५ भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., (आणंदभरिय नयणो आणंद), २०५३५-२, १९९४४(5) (२) भाव प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, ग. विजयविमल, सं., वि. १६२३, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीजिनशंभव), १९९४४(5) भावी २४ जिननाम गाथा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (जबूदेणं दीवे भरहे), २०८४३-३(+) भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, गा. १४५, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), १७८१७(+), १७८२५(+), २०४२६(+), २०४६८(+), २०५१०-१(+), २०५४१(+), १७५३२-७, १७७६३, १७८३७, १८०२३-१, १९०८२-३, १९४१५-१, २०२५८, १७५१३(#5), १९६६१(६) (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तु क० वादीने), १७८२५(+), २०४२६(+), २०५१०-१(+), १७८३७, १७५१३(#s), १९६६१(६) (२) भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. ३५०, वि. १७५८, गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनुत), १८०२३-१ भीमसेन चरित्र, आ. अजितसागरसूरि, सं., स. १०, वि. १९६७, पद्य, मूपू., (यद्वाक्यामृत सेविनो), १८०६३(+) भीमसेनी धातुपाठ, भीमसेन, सं., गद्य, जै., (धातुपाठो कृतो येन), १९०७२-१(+) भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३, पद्य, मूपू., (सारस्वतं नमस्कृत्य), १७६५५(+), १८५०५-१(+), १९२४४(+), १९३४६(+), १९३९३(+), २०३०६-१(+), १७५०३, १७७१८-१, १८१४७-१, १८१९५, १८८१८-१, १९१०४-१, १९९८१, २०३६६, २०४९१(६) (२) भुवनदीपक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (सरस्वत्याः संबंधि), १७५०३ (२) भुवनदीपक-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरस्वती संबंधीओ मह), १७६५५(+), १८५०५-१(+), १९२४४(+). १९३४६(+), १९३९३(+), १७७१८-१, १९१०४-१, २०३६६, २०४९१ (२) भुवनदीपक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (ग्रहाधिपति १ उच्च), १९९८१ भुवनभानुकेवली चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., पद्य, मूपू., (--), <प्रतहीन>. (२) भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमीअ जिणं), १९४५० भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., ग्रं. १८००, गद्य, मूपू., (अस्तीह जंबूद्वीपे), १८६५८(+) भुवनेश्वरीशत, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (भुवनेश्वरी भूषणा), १८२१९-७ भैरव षोडशपूजन, सं., पद्य, वै.?, (एकं खड्गांगहस्तं), १८२१८-४(+) भैरवी मंत्र, सं., गद्य, श्वे., (ऊँ नमो भगवती भूचरी), १९८१०-३(+) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (--), १८९२६-२(+), १८८०४-२, १८९१७-५, १९३७८-२, १९७१०-२, २००९९-२ मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वः पातु), १८४३३-११(+), १९४३७(+) मणिपरीक्षा, सं., श्लो. ५७, पद्य, (मणिनां वर्णचिह्नानि), २०४७१-१(+) मध्याह्नपद्धति व्याख्यान, प्रा.,सं., पद्य, जै.?, (अथ समागता श्रावणस्य), १८८२७(5) मलयासुंदरी चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., प्र. ४, ग्रं. २४३०, पद्य, मूपू., (चतुरंगो जयत्यर्हन), १७४५३(+$) For Private And Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ महाज्योतिवतीशत, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (महाज्योतिर्वती माता), १८२१९-२ महादेवी दीपिका सारणी, वा. धनराज, सं., को., जै., (--), १८२६६(६) महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), <प्रतहीन>. (२) महानिशीथसूत्र-भावार्थ, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., वि. १८९०, गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमन्नृपति), १७९६८ (२) महानिशीथसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भवसयसहस्स० अर्हत), १८५०७(+) महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, श्वे., (आद्यं प्रणवस्ततः), १८२१८-८(+) महावीरजिन आयुविवरण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (तिन्नि सय तीसासट्ढा), १८६३२-२ (२) महावीरजिन आयुविवरण गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिथिपत्रे आह), १८६३२-२ महावीरजिनद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेन, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (स्तोष्ये जिन), १८१७४-६(+) महावीरजिनद्वात्रिंशिका स्तव, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (सदा योगसाम्यात् समुद), १८१७४-५(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमोस्तु वमानाय), १८६०२-३ । महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (परसमयतिमिरतरणिं भव), १८६०२-२, १९१७८-७ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदहिनमनादेव देहिन), १८४१६-४, १९१७८-२३ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), १८४१६-३, १८९८३-२, १९००५-८०, १९१७८-३० महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संप्राप्तसंसारसमुद्र), १८६३०-५ महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., गा. १८०९, ग्रं. २५००, पद्य, मूपू., (नमिऊण रिसहनाहं केवल), १८७८७(+5), १८९०४(+), १९६१२(+), २०९४५ (२) महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी श्रीऋषभ), १८९०४(+) मांगलिकवस्तु नाम, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अश्वत्थो वटवृक्ष), १७८२७-३(+) मालारोपण विधि, प्रा.,मा.ग., पद्य, मप.. (महरत प्रथम दिवसे). १९९६५-१ मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, वि. ११७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं चउ), १८५३६(+), २०२८३-१(+), २०८४७ (२) मुनिपति चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रणम्य परमानंदप्रद), १८५३६(+) मुनिसुव्रतस्वामी चरित्र, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा., गा. १०९९४, वि. ११९३, पद्य, मूपू., (--), <प्रतहीन>. (२) मुनिसुव्रतस्वामी चरित्र-अष्टमभवग्रहणगत गाथा, हिस्सा, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा., गा. ३१७, पद्य, मूपू., (विमलप्पहे विमाणे), २०९५५ मुहर्त संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (चतुष्कं च चतुष्कं च), २०५५५-३(+$) मुहर्तमुक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., श्लो. ४५, पद्य, वै., (श्रीशं श्रीहरशारदां), १७९६९(+), १८६८७ १९९५१-१(+), २०२६५-१(+), १७६०६, १७७१९, १८१९४-१, १८२४३-१, १८४७४, १८७४६, १८७७७, १९७५१-१, २०३२२, २०६२७, १७६६८-१(#), १९१४१(६) (२) मुहूर्तमुक्तावली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (श्रीपार्श्वनाथ), २०२६५-१(+), १८७४६, १८७७७ For Private And Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ मेघदूत, कालिदास, सं., श्लो. ११५, ग्रं. ३५०, पद्य, वै., (कश्चित्कांताविरहगुरु), २०४१७(+), २०७१५-१(+$), १७५०१, १८१६३, १८९३०, १९३६७, २०३१६, १७४०१(७), १७४०२(5) (२) मेघदूत-सुखबोधिकाटीका, वा. महिमासिंह, सं., वि. १६९३, गद्य, पू., वै., (नत्वा श्रीभास्कर), १८१७१(+) मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य भारती), १७५२५(+), १८३५३, १९०८३-३, १९९८० मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, म्पू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), १८१२६(+) (२) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-भाषांतर, मा.गु., गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), १७९८१-८ मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋषभदेवं), २०१०२(+), २०६९८(+), १७८०३-१, १७८११, १८९९३, १९६३२, १९६६०, १९९१२ (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वदेवं नमस्कृत), २०६९८(+), १७८०३-१ (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमीने चरणकमल), २०१०२(+), १७८११, १८९९३, १९६३२, १९६६०, १९९१२ मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), १९३९४ (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १९३९४ ।। मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), १९०१०-१(#) मौनएकादशीपर्व कथा माहात्म्य, मु. दानचंद्र, सं., श्लो. २२०, वि. १७०८, पद्य, मूपू., (ऐश्वर्योदार्यगांभीर), १९७१७(+) (२) मौनएकादशीपर्व कथा माहात्म्य-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (ईश्वरपणुं दातारपणुं), १९७१७(+) मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., मूपू., (जबूद्वीपे भरते), १९१९४ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रवज्या), १९१७८-२० यंत्रराज, आ. महेंद्रसूरि, सं., अ. ५, श. १२९२, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञपदांबुजं), <प्रतहीन>. (२) यंत्रराज-टीका, आ. मलयेंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सर्वज्ञपदारव), १८२६७(+) यशोधर चरित्र, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३९, गद्य, मूपू., (सकलसुरनरेंद्रश्रेणि), १७८४४(+), २०८८३ यशोधर चरित्र, आ. माणिक्यदेवसूरि, सं., स. १४, पद्य, मूपू., (करामलकवद्विश्वं), १७९७९ यशोधर चरित्र, सं., पद्य, म्पू., (श्रृंगारः सिद्धिवध्व), २०६४६(5) युगप्रधान स्वरुप, आ. भद्रबाह, प्रा., गद्य, जै., (नमः श्रीभद्रबाहवे), <प्रतहीन> (२) युगप्रधान स्वरुप-यंत्र, आ. देवेंद्रसूरि, मा.गु.,सं., उद. २३, यं., मूपू., (नमः श्रीभद्रबाहवे), १९४८० योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ.७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (यत्र वित्रासमायांति), १९११६(+5), २०४७१-४(+), २०५९४(+) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वज्ञं प्रणम्यादौ), १९११६(+$) (२) योगचिंतामणि-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम स्त्री योग्य), १७७५७(+$), २०४७१-४(+) योगदृष्टि समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. २२८, पद्य, मूपू., (नत्वेच्छायोगतोयोग), <प्रतहीन>. (२) योगदृष्टि समुच्चय-स्वोपज्ञ टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (योगतंत्रप्रत्यासन्न), १९५०८ योगप्रदीप, सं., श्लो. १४३, पद्य, मूपू., (यावन्न ग्रस्यते रोगै), १९५९३ For Private And Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ योगरत्नावली, आ. नागार्जुनाचार्य, सं., श्लो. १४०, पद्य, वै., (विमलमति किरणनिकर), १९७९९ (२) योगरत्नावली-टीका, मु. गुणाकर भिक्षु, सं., ग्रं. ७८०, वि. १२९६, गद्य, मूपू., वै., (गुरुचरणकमलममल), १९७९९ योगविधि, प्रा., गद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवराणं गणहा), १८५८४(#$) योगविधि कालग्रहणविधि क्रियाविधि-खरतरगच्छीय, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम शुभ दिन शुभ), १८७२९-२ योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), १७६४४(+), १७८३३(+), १७३५३, १९५८१, १९९४३, २०२२१, १७७४२(#5), १८३६२() (२) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, म्पू., (अत्र महावीरायेति), १९९४३, २०८६६(१) (२) योगशास्त्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीगुरु अज्ञानलोचन), १७३५३ (२) योगशास्त्र-बालावबोध, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १७९२, गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम श्रीहेमच), १७८३३(+) (२) योगशास्त्र-हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, मूपू., (--), <प्रतहीन>. (३) योगशास्त्र प्रकाश १ से ४-अवचूरि, सं., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (नमस्कारोस्तु कचिनराग), १७४९३ (३) योगशास्त्र-हिस्सा १ से ४ प्रकाश का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हउ दुरावई), १९५८१ (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य जिनसिद्धादीन), १८३६२(६) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअक्खंधो), १९५३८, २०३५६ रघुवंश, कालिदास, सं., स. १९, पद्य, (वागर्थाविव संपृक्तौ), १७७२२(+), १७७३६-१(+), १९१६८(+), १९५१०(+), २०४०६(+), २०५३८(+), २०९७२(+#), १७५२०, २०९२९, १९८४२ (२) रघुवंश-टीका, मु. धर्ममेरु, सं., स. १९, वि. १७४८, गद्य, मूपू., वै., (वागर्थेति कवीनां), १८०६८(5) (२) रघवंश-टिप्पण, ग. क्षेमहंस, सं., गद्य, मप., (अहं कविकालिदास),१९८४२ रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., श्लो. ५५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे उवया), १९६८६(+), १८१०३ (२) रत्नसंचय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीमहावीरनै नमस्कार), १९६८६(+) रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), २००१६(+), १७५३२-५, १७९२९ (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो कल्याणक लक्ष्मी), २००१६(+), १७९२९ राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), १८३८७(+), १८३९५(+), १८७८४(+), २०५२५(+), १७४९५, १८५७७, १८६८५, १९६०६ (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३७००, गद्य, मूपू., (प्रणमत वीरजिनेश्वर), १७३५५ (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., ग्रं. ५५००, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), १८३८७(+), १७४९५, १९६०६ (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवउ० चउथा), १८७८४(+), १८६८५ (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टिप्पण@, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २०५२५(+) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-हिस्सा आद्यपद, प्रा., गद्य, मूपू., (--), <प्रतहीन>. For Private And Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ (३) राजप्रश्रीयसूत्र - हिस्सा आद्यपद की आद्यपदभंजिका टीका, उपा. पद्मसुंदर, सं., गद्य, मूपू., (अध राजप्रश्नीयटीका), २०६६७(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रूपसेनकनकावती चरित्र - चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., श्लो. २२४, ग्रं. १५३०, पद्य, मूपू., (श्रीमंतं विदुरं शांत), १८७६८ लंघनपथ्यनिर्णय, मु. दयातिलक शिष्य, सं., गा. ३०४, वि. १७९२, पद्य, मूपू., वै., (श्रीसर्वज्ञं नमस्कृ), १७३८६, १९६३८ लग्नशुद्धि, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १३३, पद्य, मूपू., (अविहतसव्वाएसं नमिउं), १९७५५-१ लघीयस्त्रय, आ. अकलंकदेव, सं., परि ६, पद्य, दि., (धर्मतीर्थकरेभ्योस्तु), १८१९२ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपर्याय), १८७५८-३(०३), १९५४०(०), १९६०१ (०), २०५१८१), १९४६२-१, २०३४१ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., ग्रं. २१३५, गद्य, मूपू., (वीर श्रीमहावीर केहवा), २०५१८(०) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीर कैसे हैं जगत), १९६०१(+) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण - बालावबोध, मु. उदयसागर, मा.गु., वि. १६७६, गद्य, मूपू., (निश्शेषज्ञानविज्ञान), १९४६२-१ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण बालावबोध, पन्या, दयासिंह, मा.गु. ग्रं. ४११७, वि. १५२९, गद्य, म्पू., (हुं ब्रह्मज्ञाननुं), " १९५४०(+) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, म्पू., (वीर क० श्रीमहावीर), २०३४१ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण - अढीद्वीपक्षेत्र संक्षेपविचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १९७०८ ($) लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., कां. ३, श्लो. ४६१, ग्रं. ५५०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), १९४१४ लघुवसुधारा, सं., गद्य, वे., (ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ), १९५१२-२ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७+२, पद्य, मूपू. (शांति शांतिनिशांत), १७५४३-२ (१), १९२६२-२ (०), २०८२८-२(१), १८४३५-१७, १८९१७०४, १८९९९-२, २०१०७ १, २०१२२, २०३१८-२ (२) लघुशांति - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ शांति), १९२६२ - २ (+), २०१२२ लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नं), १८०५० (+), २०४४४(+), १७५३२-४, १८७५९, १८९२३-१, १९२३०, १९७९० (२) लघुसंग्रहणी - अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय कहतां नमसकार), १८७५९ (२) लघुसंग्रहणी - टवार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपु., (नमिय क० नमस्कार करी), १८०५०११), २०४४४ (+), १९७९० , (२) लघु संग्रहणी - खंडाजोयण बोल @, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( लाख जोयणनो जंबूद्वीप), २०९८९(#) (२) लघु संग्रहणी - जंबूद्वीप विचार @, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १८६२५-१(*) लघुस्नात्र विधि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मृपू., (प्रथम नित्य जिसी), १८७५७ लघुस्वयंभू स्तोत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, जै. ?, (येन स्वयं बोधमयेन), १९१०३, २०५६०-३ लब्धिविधान पूजा, मु. हर्षकीर्ति, सं., पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान जिनराज ), २०५६०-४ लीलावती, आ. भास्कराचार्य, सं., प+ग, वै., (प्रीतिं भक्तजनस्य), १९७२७(+), २०४११(+), १८३३३, २०८३५ For Private And Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ (२) लीलावती भाषानुवाद, मु, लालचंद, मा.गु., अ. १६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., वै., (सोभित सिंदूर पुर), १८७२७ (+), १७३०४ लीलावतीशत स्तोत्र, सं., श्रो. १९, पद्य, मूपू., (लीलावती लीलमाभा), १८२१९-८ लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणदंसणं विणा जं), १७९१२, १८७१७-१, १९५५०, २०३५३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), २०२६४(१), १९५३३ (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रतै), १७८१२(+), १८७८० वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, म्पू., (ज्ञानं सारं सर्व), १७९८१-४ वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., उल्ला. १०, ग्रं. ४३००, गद्य, मूपू., ( नमः श्रीपार्श्वनाथाय ), १८८५६ वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवओ अरहओ), १९००८-४) " " (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका बालावबोध, मु. कल्याण, मा.गु., वि. १७००, गद्य, मूपू. (श्रीमद्विमलनाथस्य), १९५५० (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका बालावबोध, मु. सहजरत्न, मा.गु., गद्य, मूपू. (श्रीमदासी प्रणम्या), १८७१७-१, २०३५३ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागीना दर्शन), १७९१२ लोकप्रकाश, उपा. विनयविजय, सं., स. ३७, ग्रं. २०६२१, वि. १७०८, पद्य, मूपू., (ॐ नमः परमानंद), १८३०३ (३) वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमियसुरवर), १९४३६ (*) (२) वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिना समुहे करीने), १९४३६ (+) वक्ता-श्रोतागुण श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (वाग्मी व्याससमासवित्), १८३७९-२(+) (२) वक्ता - श्रोतागुण श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ वक्तागुणावाग्मी), १८३७९-२ (+) वच्छराजराजर्षि चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., श्लो. ४८२, पद्य, मूपू., (अत्रांतरे जिन सर्व), १८०८२-१ (२) वच्छराजराजर्षि चरित्र- स्वोपज्ञ टबार्थ, आ. अजितप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रणम्य श्रीपार्श्व), १८०८२-१ वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठि), १८९१७-१, २०६८८-४, १८९७५-९(३) वज्रहस्ताशत, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (वज्रहस्ता च वरवा), १८२१९-४ वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूषू., ( श्रीमत्पार्श्वजिन), १७८१२ (०) २०२६४/० १८६०५, १८७८०, १९५३३, १९०१०-२०१ ५१९ वसुदेवहिंडी, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण; ग. धर्मसेन, प्रा., उपा. २८, ग्रं. १०४८०, प+ग, मूपू., (जयह नवनलिणिकुवलयवियस ), १७५३९(३) वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूप., बी., (संसारद्वयदैन्यस्य), १८२३५ (+), १९२५५ (+), १९४००(+), १९६३७(+), २०७०३ (+), २०८५५(+), १७८५३, १७८५५, १८७७०-१, १८९३७, १९३३८, १९४७३, १९५१२-१, १९६१६, २०३७०, २०५६८, २०६९७ (२) वसुधारा स्तोत्र - विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., बौ., (पुत्रवती स्त्री पासे), २०६९७ (२) वसुधारा स्तोत्र यंत्र, सं., यं., मृपू., बी., (--), २०६९७ - वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., श्लो. १२८, वि. १५०७, पद्य, मूपू., (प्रणम्यात्मविद), १८८४५ (+), १८६५५-१ For Private And Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ (२) वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., वि. १५८०, गद्य, पू., (श्रीमज्जिनेंद्रमानम्), १८६५५-१ वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (श्रियं दिशतु), २००४७, २०६१५, २०८६७, १७६३६(#) (२) वाग्भटालंकार-ज्ञानप्रमोदिका वृत्ति, वा. ज्ञानप्रमोद, सं., ग्रं. २९५६, वि. १६८१, गद्य, मपू., (यस्यानेकगुणास्पदस्य), २०६१५ (२) वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्द्धमानसूरि, सं., परि. ४, गद्य, मूपू., (श्रीमान् श्रीआदिनाथः), २०८६७ (२) वाग्भटालंकार-टीका, ग. सिंहदेव, सं., गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानसंतति), १७६३६(#$) वासुपूज्यजिन स्तव, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू., (पूर्णचंद्रकमनीय), १९००५-२६ विंशतिविंशिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., ग्रं. ५००, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयरायं सव्व), १९८९८ विक्रमराजा चरित्र, सं., गद्य, श्वे., (शूरः क्षमी भयहर कृत), २०२८३-२(+$) विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपू., (वीरपयकयं नमिउं देवा), १९७६०-१(+), १९५७४, १९९४९(5) (२) विचारपंचाशिका-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर पय क० महावीरदेव), १९७६०-१(+), १९५७४, १९९४९(5) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (आचारांगने २ श्रुत), १८६३६-५ विचार संग्रह (सं.प्रा.मा.गु.), प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), १७३२९-२, १८६७१-२ विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., परि. ४, श्लो. २७६, पद्य, बौ., (सिद्धौषधानि भवदुःख), १७३१६-१(+), २०९०३(+$), १९३६१, २०६१३, १८८३०(#) (२) विदग्धमुखमंडन काव्य-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., बौ., (स्मृत्वा जिनेंद्रमपि), १७३१६-१(+) (२) विदग्धमुखमंडन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., बौ., (ग्रंथादौ धर्मदासनामा), २०९०३(+६) विद्याविलास कथा, सं., गद्य, मपू., (तपो विजयतामेकं कार्म), १८६७७ विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २, अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), १७७२०(+), १८१६९(+), २०११४(+), २०४३५(+), २०५२४(+), २०७१६(+), १८२५४, १९६९१, २०७४७, २०८९७, १९३७५ (२) विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ९००, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवर्द्धमाना), १८१६९(+), २०४३५(+), २०७४७, २०८९७ (२) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ विपाकश्रुत किसउ), १७७२०(+), २०११४(+), १९६९१, १९३७५ विविधगणणा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (श्रीजयदेव पारगते नमः), १९६९०-२ विविधतपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ पिस्तालिस आगमनो), १९६९०-१ विविधविचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (पुरिमव१ एकासणं१), १८९८८(+) विविध विचारसंग्रह, प्रा.,हिं., गद्य, मूपू., (स्त्री के जब स्त्री), १८१७६ विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., उल्ला. १२, पद्य, मूपू., (शाश्वतानंदरूपाय तमस), १८९४४-३(+), १९९८२, २०६७९, १८१६४(६) (२) विवेकविलास-वृत्ति, उपा. भानुचंद्र, सं., वि. १६७१, गद्य, मूपू., (आनम्रकम्रामरपूर्व), १९९८२ विशेषणवती, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ३१७, ग्रं. ३८०, प+ग., मूपू., (उस्सेहगुलमेगं हवइ), १८७३३ विशेषसत्तात्रिभंगी, मु. नेमिचंदजिन, प्रा., गा. ३७, पद्य, दि., (णमिऊण वद्धदमाण कणयण), १८६२६-६ For Private And Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, प्रा., गा. ५, पद्य, म्पू, (सीमंधरं चैव जुगंधर), १८६३७-१९ वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), १७४३० -१(+#), १७४६० (+) (२) वीतराग स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (केवलात्मामुक्तिप्राप), १७४६० (+) (२) वीतराग स्तोत्र - टिप्पण, सं., गद्य, भूपू., (--), १७४३०-१ (+) वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपु. ( शिवं शुद्धबुद्ध), १८४३३-५ (+) ७ २०३१३ वीरभक्तामर, उपा. धर्मवर्धन, सं., श्लो. ४५, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (राज्यर्द्धिवृद्धि), (२) वीरभक्तामर - स्वोपज्ञ टीका, उपा. धर्मवर्धन, सं., गद्य, मृपू., (श्रीआदिशस्तुतिर्यत्र), २०३१३ वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., अ. ६, ग्रं. १८९, पद्य, वै., (सुख संतान सिध्यर्थं), १८०३९-४ (+), १८७९७ - १ (+), २०७६९(+) वृष्णिदशासूत्र, प्रा., अध्य. १२, गद्य, मूप, (जड़ णं भंते० पंचमस्स), १८८३७-५ (+), १८८८४-५ (०), १८९६०-६(), १९३४३-५(१), १८८४०-५, १८८६५-५, १९३७६-५ (२) वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., ग्रं. २८६८, गद्य, मूपू., (जउ हे पूज्य० पांचमा), १९३४३ - ५ (+), १८८६५-५ (२) वृष्णिदशासूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य० पांचमान), १८९६० -५ (+), १९३७६-५ वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूप., (सरस्वतीं हृदि ध्यात्), २००४० - १(+), १७६३१-१, १८८५८-१, २०४८६, १८४८४ (#S), १८७०८ ($) (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसरस्वती देवता), २००४०-१ (+), १७६३१-१, २०४८६, १८४८४ (# ), १८७०८(5) 19 वैराग्यशतक, प्रा., श्लो. १०५, पद्य, भूपू (संसारंमि असारे नत्थि ), १८५५६ (*), १८९७१-१ (+), २०२१८ (०) २०२२० (+), २०३३१(*), २०९२७(*), १७३३३, १७६१७, १७७०९, १७८०९, १८२०५, १८६३२-१, १८६४२-१, १९३८९, १९५४९-१, २०२४३, २०९९० (२) वैराग्यशतक- टीका, आ. गुणविनय, सं., ग्रं. ९९५, वि. १६४७, गद्य, मूपू., (असारे अप्रधाने संसार), < प्रतहीन > . (३) वैराग्यशतक-टीका का बालावबोध, रामचंद्र दीनानाथ शास्त्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (सार रहित एवो अने), २०२१८(+) ५२१ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स० चार गतिरूप संसार), १८५५६(+), १८६३२-१, २०९९० (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार असारमाहि नथी), १८९७१ - १(+), २०२२० (+), २०३३१(+), २०९२७(+), १७३३३, १७६१७, १७७०९, १७८०१, १८२०५, १८६४२-१, १९५४९-१, २०२४३ (२) वैराग्यशतक - टबार्थ, सं., गद्य, मृपू., (संसारे असारे नास्ति), १९३८९ (२) वैराग्यशतक - अन्वय, रामचंद्र दीनानाथ शास्त्री, सं., गद्य, मूपू., वै., (संसारे असारे नास्ति), २०२१८(+) व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, मूपू., (जे भिक्खू मासियं), १९३७९, १९४५७-१, २०९३७, २०९५६ (२) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. २५००, गद्य, मूपू., (जे० जे कोइ भि० साधु), १९३७९, २०९३७, २०९५६ (२) व्यवहारसूत्र - टवार्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १९४५७-१ व्याकरण अपूर्ण व छूटक पन्ने, सं., प्रा., मा.गु., प+ग., (--), १८६५५-२ व्याख्यान संग्रह @, मा.गु., सं., गद्य, मृपू., (देवपूजा दया दानं), २०४८११, १९१५९(5) For Private And Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), १७३३४+), १७४३१-२(+), १७६६०(+), १८३२९-५(+), १८३९०-५(+), १८६१४-१(+), १८७५१-५(+), १९३५५-५(+), १९८४७(+), २०१३७-५(+), २०२२५-५(+६), २०४५९-५(+), १८३८८-५, १९५७१, २०६४४, १९८४४(६) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४३४०, गद्य, मूपू., (यो विश्वविश्वभविनां), १८३८८-५ (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. यशस्वी, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ रागादि), १७३३४(+) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमात्मानइं भव्य), १७६६०(+), १८३९०-५(+), १८६१४-१(+), १९५७१, २०६४४ (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. जयसोम, मा.गु., वि. १७१२, गद्य, मूपू., (ऐंद्र श्रीकर पीडनविध), २०६४४, १९८४४(६) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतराग नमस्करीनइ), २०२२५-५(+$) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (विमलकेवलज्ञान), १८४१७-२(+), १८६३७-७, १९००५-७ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सिद्धो विजाय चक्की), १८६३७-४, १९४४३-३ शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. १००००, पद्य, मूपू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), १८१६५(६) (२) शत्रुजय माहात्म्य विषयसूचि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १७७७१(+) शांतिक विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथात्र श्रीनंदीश्वर), १८६२७-१ शांतिजिन चैत्यवंदन, सं., गा. ३, पद्य, जै., (विपुलनिर्मलकीर्तिभरा), १९००५-३६ शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., प्र. ६, श्लो. १६३२, ग्रं. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मूपू., (श्रेयोरत्नकरोद्भूता), २०२०३(६), १७४३४, १९८७६, १७५६१(६) । (२) शांतिनाथ चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., वि. १७९९, गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), १९८७६ शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (अथ प्रतिष्ठायां वा), १७५१९(+), १८४५४, १९६५३, २०६८८-१ शास्त्रवार्ता समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. ७०१, ग्रं. ७००, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), १९५७८६) (२) शास्त्रवार्ता समुच्चय-स्याद्वादकल्पलतावतारिका टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनताय दोष), १९५७८ () शीतलजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कल्याणांकुरवर्धने जल), १९००५-४०() शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, पद्य, मूपू., (आबालबंभयारि नेमि), १७५४६-१(+$), १७४८५, १९५९१, १९७०६, २०९००, १७५४२(१) (२) शीलोपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आबाल ब्रह्मचारी नेमि), १९५९१ (२) शीलोपदेशमाला-टबार्थकथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (आबाल ब्रह्मचारी), २०९०० (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोधकथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., ग्रं. ६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयममेयश्रीसहि), १७४८५, १९७०६ शुद्धआंबिल विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (साधुने आंबिलमांहिं), १९९७२ For Private And Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, पद्य, मूपू., (धर्मारामदवाभिधूम), १७३२७, १७९०७ (२) शृंगारवैराग्यतरंगिणी सुखबोधिका टीका, मु. नंदलाल, सं., वि. १७८०, गद्य, मृपू., (श्रीपार्श्वनाथं), १७३२७, १७९०७ श्येनश्रेष्ठि कथा, प्रा., सं., गा. ४८, पद्य, श्वे., (इह अत्थि पुरीकंची), १९२७४-१(+) श्राद्धजीतकल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. १४२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., ( कयपवयणप्पणामो जीयगयं), < प्रतहीन>. (२) श्राद्धजीतकल्प- अवचूरि, सं., गद्य, भूपू., ( कृतः प्रकर्षेण परसमय), १८०७३ श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, भूपू., ( दंसण वय सामाई पोसह), १७४८३-२ (+) (२) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मास लगइ समकित), १७४८३-२(+) (२) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पढम उव० पहिली दसण), १७४८३ -२ (+) आवक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू, (सच्चित्त दव्व विगई), २०२८१-२(*), २०३६७-४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) श्रावक १४ नियम गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणी फल बीज दातण ते), २०२८१ - २ (+) आवक आराधना, उपा, समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, म्पू., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत), १८२७९ (+), १८१६२, १८१८८, १८७६७ श्रावक आलोचना, मा.गु., सं., गद्य, वे., ( प्रथम गृहस्थना अविरत ), २०७९९-२ श्रावक आलोयणा विचार, प्रा., मा.गु., सं., प+ग. पु. ( प्रथमं मुहूर्त) १९३१८, १९३१९ श्रावकविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., सं., वि. १८३८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), १९७८९, २०७९४-१ श्रावकाचारसारोद्धार, मु. पद्मनंदि, सं., परि. ३, पद्य, दि., (स्वसंवेदनसुव्यक्तमहि), १९०४९(+) श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति शिष्य, सं., प्र. ४ नं. १२५७, वि. १८६८, गद्य, भूपू (प्रणम्य सिद्धचक्र), १९६०३-१(*), १९७८१-१(+) (२) श्रीपाल चरित्र - बालावबोध, मु. देवमुनि, मा.गु., प्र. ४ ग्रं. १८००, वि. १९१७, पद्य, म्पू., (श्रीअरिहंत सुसिद्धपद), १९७८४(+) श्रीपालराजा कथा, आ. हेमचंद्रसूरि, सं. ग्रं. २३०, वि. १४२८, गद्य, म्पू., (अरिहाई नवपयाई०), २०७८२ (४०) " - श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (--), १८५३४ - २ (+), १८८२३-९ (+), १९०७२- २ (+), २०२१९-३ (+), १८७१७-२, १९९५९-२ श्लोकसंग्रह, प्रा.,सं., पद्य, (उत्तमासरी रसढे जीवा), १७३२२-३ (+), १९६०३ -२ (+), १९१९१-६, १९५५४ - २, २०३५१-२, २०३७९-२ श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., हिं., पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), १७३१६-२(+) श्लोक संग्रह -, सं., पद्य, जै., वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), १८९४४ - २ (+), १९७७६-२ (+), १९७८१-२ (+), १९८३४-२ (+$), १९८३७-२ (०), १९८९९-२(१), २०४९५-२०), १८९१४-२, १८७३६-२, १८७४३-२, १९३४४-२, १९३५७-२, १९७०५-२, १९७४४, १९७९४-२, १९८९२-२, २००७३, २०१३४- २, २०४१४- २, २०५९८-२ श्लोक संग्रह -, मा.गु., सं., गा. ३, पद्य, (प्यार पाया छे वेररा), १८६३५ - २२(#) श्लोक संग्रह, सं., प्रा., पद्य, (--), १९०५४-२ श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., श्लो. ३, पद्य, खे, (देहे निर्ममता गुरौ ), १९७०३-२ (+), १९९२६-२ (१), १८१५५-२, १९७३० (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक- अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), १९७३० For Private And Personal Use Only ५२३ Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १९७०३-२(+), १८१५५-२ षट्दर्शन नाम, सं., गा. १, पद्य, जै., वै., (यं शैवाः समुपासते), १८२१६-४ षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा, सं., अ. ७, श्लो. ५६, पद्य, वै., (प्रणिपत्य रविं), २०३०६-२(+), १७३७३, १८८५७, २०२१०, २०३१९, १७७८१(२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), १७४३१-१(+$), १७९४६(+), १८२००(+), १८३२९-४(+), १८३९०-४(+), १८६४०-४(+), १८७५१-४(+), १९३५५-४(+), १९४२८-४(+$), १९८९९-१(+), २०१३७-४(+), २०२२५-४(+), २०४२१(+), २०४५९-४(+), १८३८८-४, १८४८७-४, १८४९०-४, १८७७१-२, १९३०५, १९६९९-४, २०६६९, १८४८८-४(5) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २८००, गद्य, मूपू., (यद्भाषितार्थलवमाप्य), १८३८८-४ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. यशसोम-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिधाय परंतेजो), १८७७१-२ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवइं चउथा कर्मग्रंथ), १८२००(+), १८३९०-४(+), १९८९९-१(+), २०४२१(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतरागदेव नमस्कार), १८६४०-४(+), २०२२५-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, मप., (जीवरा भेद१४ ६२मार्गण). १७९४६(+) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., (निच्छिन्नमोहपासं), १७५११ (२) षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सिद्धिशास्ता), १७५११ षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ७, श्लो. ८७, पद्य, पू., (सद्दर्शनं जिनं नत्वा), १७९६५, २०४९७ षड्दर्शनसिद्धांत श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (चार्वाकोध्यक्षमेकं स), २०७२२-२(+) षड्वर्गफल, सं., पद्य, वै., (होरास्थिते वासरपश्य), १८५०५-२(+$) षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भांडागारिक, प्रा., श्लो. १६१+४, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो सुगुरू), १८३६६(+), २०९३९(+), २०९४१(+), १७४९१ (२) षष्टिशतक प्रकरण-अवचूरि@, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (धन्यानां कृतार्थानां), १७४९१ (२) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अरिहंत देव सुसाधु), २०९३९(+) (२) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, जै., (श्री अरिहंत देव १), <प्रतहीन>. (३) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (सर्वज्ञदेव सुसाधु), २०९४१(+) संग्रामसूर कथा, प्रा., गद्य, मूपू., (अत्थि इहेव जंबुदीवे), १८६१९-२(+) संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं), १९४४३-२, २०१०७-४ संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, पू., (निसिही निसिही निसीहि), १९००८-५(+), १७६५०-२, १९०२९-२ (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, श्राव. ताराचंद, मा.गु., गद्य, मूपू., (गौतमादिक मोटा), १९०२९-२ संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १५०, पद्य, मूपू., (पडिबिंबिय पणय जयं), १९९३७ (२) संदेहदोलावली प्रकरण-बृहद्वृत्ति, वा. प्रबोधचंद्र, सं., ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानप्रभु), १९९३७ For Private And Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ , संध्याकालवंदन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, थे, (इरिआवही पडिकमवी), २०५१०-२(१) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५+२, पद्य, मृपू., (नमिऊण तिलोअगुरु), १७६२९-१(+), १७७८८-२(+), १७८१८-१(+), २०५६९-१ (+), १७३८३, १८९१२, २००६८, २०१३६, २०५०८, २०७३५-१, २०७६४, १८५१८-१(5) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मु. जयसोम, मा.गु., वि. १७२३, गद्य, मूपू., (नमिऊण कहतां मन वचन ), १७६२९-१(+) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ तिन), १७८१८ -१ (+), २०५६९-१ (+), १७३८३, २०७६४, १८५१८-१(३) (२) संबोधसप्ततिका - बालावबोध, वा. धर्मकीर्ति, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ तिनि), २०५०८ (२) संबोधसप्ततिका - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण क० मनवचनकायाइं), १८९१२ संभवजिन चैत्यवंदन, सं., गा. ३, पद्य, जै, (यद्मक्त्वासक्तचित्ता), १९००५- १३ संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., प्रा., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीरं), १८४३५-४, १८९८१-१०, १८४२९-२८१ संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूपू., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), १७९४३ -३ (+), १८६९८(+$), १७३७७, २०६३५, २०८५४ (२) संस्तारक प्रकीर्णक- टीका, सं., गद्य, मूपू., ( शमितनिःशेषकर्म्मणे), २०८५४) (२) संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं० करीनइं), २०६३५ (२) संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मु. क्षेमराज, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं च प्रणम्याद ), १७३७७ (२) संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( इहां सघलाइ शाखना), १८६९८ (०३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्तरीसयठाणा यंत्र, प्रा., गद्य, भूपू., (), १९६२४, १९६३४, १९७९८, २०५७४ सत्तात्रिभंगी, मु. नेमिचंदजिन, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ३५, पद्य, दि., (पंचणवदोणिअट्ठावीसं०), १८६२६-४ सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ७२, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थं), १७४३१-३ (+), १८३२९-६ (+), १८५४६-१ (+), १८६१४-२(+३), १८७५१-६ (+), १९३५५-६ (+), २०२६३(+), २०४५९-६ (+), १८३८८-६, १९७०७, २०२७८ (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ - टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., ग्रं. ३८८०, गद्य, मृपू., (अशेषकर्माशतमः समूह), १८३८८-६ " (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध निश्चल पद छइ), १९७०७ (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. जयसोम, मा.गु., ग्रं. ४०००, वि. १७०२, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य पार्श्वदेव), १८५४६-१(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए गाथाने विषै च्यार), २०२६३(+), २०२७८ सप्ततिशतस्थान गाथा - जिनमातापिताविषये, प्रा., गा. २, पद्य, मूपु., (अडण्डं जणणीओ तित्थ), १८५४६ - २( सप्ततिशत स्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३६०, वि. १३८७, पद्य, मृपू., (सिरिरिसहाइ जिशिंदे), १८६९७, १९७६१ सप्तनारक प्रतरनाम, प्रा., गद्य, मूपू., (सिमंत उच्छ पढमो बिउ ), १८५३९-२ (+) सप्तमीतिथि चैत्यवंदन, मु. पद्म, सं., गा. ३, पद्य, जे., ( जयवंतमनंतगुणैर्निभृत), १९००५- १९ सप्तमीतिथि चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., गा. ३, पद्य, जै, (श्रीसुपासजिणंद पास), १९००५-२० For Private And Personal Use Only ५२५ Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं० हवइ), २०७४१ (+), १८९९९-१, १९८०७, २०५११ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) सप्तस्मरण - खरतरगच्छीय- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू. (श्रीअजितं द्वितीयतीर), २०७४१ (०६) (२) सप्तस्मरण - खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( अजितनाथ जीता छह सर्व), २०५११ समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), <प्रतहीन > . (२) समयसार - आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., प+ग. दि., ( नमः समयसाराय स्वानुभ), < प्रतहीन > , (३) समयसार - आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., श्लो. २७८, पद्य, दि., (नमः - समयसाराय स्वानु), २०८९४ (+) (४) समयसार नाटक - पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर), १७४१६(+), १८००७-१(+), १९५३७(+), १८०३४, १९०५२, १९१८३, १७६८०(३), १८१५०(३), १९५८४(३), २००१९($), २०१५३($) (५) समयसार नाटक- अर्थ, मा.गु., गद्य, दि., (--), १९५८४ (S) (५) समयसार नाटक- पद्यानुवाद का दवार्थ, क्र. रूपचंद, पुहिं, गद्य, म्पू., दि., (जिन वचन समुद्रकौ), १८००७-१ (+), १९१८३ समरादित्यकेवली चरित्र, वा. क्षमाकल्याण; पंन्या. सुमतिवर्धन, सं., अ. ९, ग्रं. १००००, वि. १७७४, प+ग. म्पू., (श्रीमंत परमात्मतापद), १८४०६ (+), १७९९७ समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (थुणिमो केवलीवत्थं), २०००६ (२) समवसरण स्तव-टबार्थ, पंन्या. रुपविजयजी, मा.गु., गद्य, मूपू., ( स्तवनां करूं छु), २०००६ समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), १९०५६ (+), १७७४९, १८१४२, २०३५९, १९६९३ (७), २०९२० ($) (२) समवायांगसूत्र- टवार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., ग्रं. ४४७४, वि. १७उ, गद्य, मूपू., ( देवदेवं जिनं नत्वा), १९०५६ (+), २०३५९. १९६९३) " समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०६, पद्य, दि., (येनात्माबुध्यतात्मै), <प्रतहीन > (२) समाधिशतक दोधकछंदमय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं, गा. १०४, पद्य, म्पू., दि., (प्रणमी सरसति भारती), २०६८९-२ (२) सम्यक्त्वकौमुदी - कथा, मा.गु., वि. १४५७-१६६५, गद्य, मूपू., (मगध देश राजगृह नगरनई), १८७३९ सम्यक्त्वना ६७ वोलभेद, प्रा., मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चउसदहण तिलिंग दस), १८६३६-४ समूर्च्छिमजीवविचार गाधा, प्रा., गा. ३, पद्य, वे., (चूलसी चउप्पवाणं बाया), २०४४० -३ (+) (२) समूर्च्छिमजीवविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, ., (समुर्च्छिम चतुष्पदनु), २०४४०-३(+) सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि सं., गा. ४४४, ग्रं. १६७५ वि. १४५७, गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १९०९६ (+), २००३१(+$), २०६०८(+), २०६४५ (+), २०८७९ (+), १९९६१ (२) सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थ@, मा.गु., गद्य, भूपू., (श्रीवर्द्धमान चतुर्व), १९०९६ (+), २००३१ (०६), २०६४५ (०), १९९६१ For Private And Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) सम्यक्त्वना ६७ बोलभेद-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलै बोले नवतत्त्वसु), १८६३६-४ सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, भूपू., (जह सम्मत्तसरूवं), १९६७५, २०४१०-२ , (२) सम्यक्त्वपच्चीसी अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा येन औपशमिकत्वादि), २०४१०-२ (२) सम्यक्त्वपच्चीसी - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू., ( मनोवांछितदातारं), १९६७५ सम्यक्त्व विवरण, सं., गद्य, मृपू, (प्रथम सम्यक्त्व लाभ ), १८२०३-२ सरस्वतीशत स्तोत्र, सं. लो. ११, पद्य, मूप. (सरस्वती सरण्या व सह), १८२१९-६ , , सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, (--), १९८०० (+) , (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मानं ), १७३६९ (+), १७४३३(०), १७५५१), १७५७५-१(०), १७७४५-१(+), १८०३७(+), १८०५८(*), १८२८८(+), १८४६५ (*), १८४९५ (०), १८७०३ (+), १८७३५ (+), १८८४४(+), १८९४७(१), १९०९८(१), १९७२२-१ (+), १९८००(+), १९८९५ (१), १९९४०(+), २०००१(+), २०२९९ (+), २०४००(+), २०७५१(+), १७३८२, १७४०८, १७५८०, १७७२३, १७८२१, १७९६७, १८१८२, १९१५७, १९२००, १९९२४- १, २००८६, २०३३२, २०४१३, २०६७२, २०७६८-१ (३) सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., वृ. ३, ग्रं. ७५००, वि. १६२३, गद्य, मूपू, वै., ( नमोस्तु सर्वकल्याणपद), १८१३३(३) १८५५५ (१), १९९४० (+), १७७५१(३), १८७८५ (६) (३) सारस्वत व्याकरण- (मा. गु. सं.) बालावबोध, मु. अमीचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपु, वै., (सिद्धजीवानं प्रणिपत्), १८४६५ (+) (२) सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., ( नमस्कृत्य महेशानं), १७५५८(*), १७५६२(*१, १७८७७(+), १८७९०१०), १९०९९), १९६९४०), १९८६३(०), १८८८६, १९४३१-१ (३) सिद्धांतचंद्रिका-वृत्ति, उपा. रुपचंद्र, सं., गद्य, मूपू., वै., (--), १८८६४-१(+$) (३) सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., वि. १७९९, गद्य, मूपू., वै., (पुराणपुरुषं ध्यात्वा), १७८७७(+), १९०७४+ १८८३६ १९०८०३) सर्वज्ञस्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मृपू., ( वीतरागविगत्स्मरकोपमा), १८४३३-२(+) सर्वज्ञाष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., ( जयति जंगमकल्पमहीरुहो), १८४३३-१(+) साधारणजिन शतार्थी स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू, (कल्याणसारसवितानीय), १९९६८ (२) साधारणजिन शतार्थी स्तुति स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., प+ग, मूपू., (यद्भारती कामगवीव), १९९६८ साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभो यं विधिन), १८०४० (+) (२) साधारणजिन स्तवन- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (देवाः प्रभोयमित्यादि), १८०४० (+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( अविरलकमलगवल), १८४१६-१०, १९१७८-२२ साधारणजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू, (जय वीतमोहः जय वीतदोष), १९२०६-२ (+) सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, म्पू., (आदिदेवं प्रणम्यादौ), १७५८९, १८७१०, २०३९२, २०७३४, १८१६८(३) (२) सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिदेव प्रते प्रथम ), २०३९२ , (२) सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिला आउनु जीइजे), १८७१०, २०७३४ For Private And Personal Use Only ५२७ Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ सामुद्रिकशास्त्र @. सं., पद्य, (--), २०४७१-२) सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. १००, पद्य, मृपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः), १७४०५(१), १७६९४९), १७९४१(+), १८२०२ (+), १८२४९(+), १८५४४(+), १९४४७(+), १९५२० (+), १९५२१ (+), १९५४३ (+), २०२१९ - १ (+), २०३०५ (+), २०३७१(+), २०४०८(+), २०६८५ (+४), १७३०८, १८१३८, १८६०१, १९४२११, १९६५६, १९६८९, २०३७९-१, २०७७६, १७६००(5), १७६१६-१(१), १८९६६-१(०) (२) सिंदूरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं. वि. १६५५ गद्य म्पू, ( श्रीमत्पार्श्वजिनं), १७३०८ " (२) सिंदूरप्रकर- टीका, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वप्रभोः क्रमयो) १८२०२०) २०२१९-१(+), २०६८५ (०३), १९६८९, १७७३३(5) (२) सिंदूरप्रकर- वार्तिक, नृसिंह, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीवामेयं जिनं), १९६५६ (२) सिंदूरप्रकर- टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (सिंदूरनउ समूह तापरूप), १७९४१(*), १८२४९ (), १९५४३(*), २०३०५(*), २०६८५ (+३), १८६०१, १९४२१-१, १७६००(5) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) सिंदूरप्रकर- बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (सिंदूरनो प्रकर कर कह), १९५२१(+) " (२) सिंदूरप्रकर- बालावबोध व कथा, पा. राजशील, मा.गु., सं., गद्य, मूपु., (शारदाचरणयुग्ममतीतपाप), १८५४४(१) सिद्धचक्र आराधना विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, भूपू (प्रथमवर्ष मास दिन), १९३६३ सिद्धचक्र पूजनविधि, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, भूपू (सिद्धं शुद्धं), १९३३७-१(+) सिद्धचक्रयंत्र पूजनविधि, मा.गु., सं., पद्य, मूपु., (प्रथम स्नात्रीया ९) १९२८९-१(*) सिद्धचक्रयंत्रोद्वार द्वादशगाथा, प्रा., गा. १२, पद्य, भूपू., ( गयणमकलियायं तं), १९४४५-२ 19 (२) सिद्धचक्रयंत्रोद्वार द्वादशगाथा - व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (अथ गगनादिसंज्ञा), १९४४५-२ सिद्धचक्र स्तवन, सं., श्लो. ३७, पद्य, भूपू (देवं देवाधिदेवं परम ) १९४४५-१ " " सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जं उसहकेवलाओ अंतमुह), <प्रतहीन> (२) सिद्धदंडिका स्तव - बालावबोध, पंन्या. अमीविजय, मा.गु., वि. १८४६, गद्य, मूपु., (पुत्र पौत्रादिका), १९२४९(S) सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, भूपू., (सिद्धं सिद्धत्यसुअं) १९३८२ (०) १८०१७, १९०८२-२, , १९५६० (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध कहतां मोक्ष), १९३८२(+), १९५६० (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध० प्रसिद्ध छ), १८०१७ सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा., गा. ११९, ग्रं. १३५, पद्य, मूपू., ( तिहुवणपणए तिहुयणगुणा), १९०२१-१(२) (२) सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक- टीका, सं., ग्रं. ८१५, गद्य, मूपू., (सकलभुवनेशभूतान्निखिल), १९०२१-२(#) सिद्धवर्णनअष्टक, सं., गा. ९, पद्य, भूपू (शेवं सिद्धिबुद्धिपर), १८१२२-९ सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, सू. ४६८५, ग्रं. २९८५, वि. ११९३, गद्य, मूपु., (अर्ह सिद्धि: स्वाद), १८६६१ (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., . ६०००, गद्य, भूपू., (अर्हमित्येतदक्षरं ), २०४१९(३) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन अवचूरि @, सं., गद्य, जे., (--), १७४७७ For Private And Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) धातुपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०३, गद्य, मूपू., (अर्हं भू सत्तायां), १८२०१(+) (२) क्रियारत्नसमुच्चय, आ. गुणरत्नसूरि, सं. ग्रं. ५६६१, वि. १४६६, गद्य, मृपू., ( जयतिजिनवर्द्धमानो), २०९९६(७) सिद्धांतसार, मु. तेजसिंह, सं., गा. १०२, पद्य, श्वे., (श्रीमद्वीरजिनं प्रणम), १८८४९, १८९०९ " (२) सिद्धांतसार - टवार्थ, मा.गु., गद्य, वे., ( श्रीमहावीरदेवनइ), १८९०९ सीमंधरजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि सं., श्लो. ५, पद्य, मृपू., (जयश्रियाढ्यं कनकाभ), १८४३३-३(+) सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., सं., गा. ४, पद्य, भूपू., (माहा केवलनाण कल्याण), १८४३०-२ सुनंदारूपसेन कथा, सं., गद्य, म्पू., (पृथ्वीभूषण नाम्नि ), १८३११ सुभाषित श्लोक सं., श्लो. २, पद्य, क्षे., (दुरितवनघनालीशोककासार), १८४६० - २) 7 "" सुभाषित लोक संग्रह @, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. ७१५, ग्रं. २५५१, पद्य, श्वे. (दानं सुपात्रे विशुद), १७९७२ (२) सुभाषित श्लोक संग्रह-वार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (--), १७९७२ सुभाषित लोकसंग्रह, सं., श्लो. २१०, पद्य, मूपू., (स्पृष्ट्वा शत्रुंजयं), १९४६६ (+) , सुभाषित श्लोकसंग्रह -, मा.गु., सं., गा. २१, पद्य, श्वे., (--), १८६३५-५(#) सुभाषित संग्रह @, प्रा., मा.गु., सं., गा. ७७, पद्य, वे., (अन्ना सत्ये पेमं पाव), १८१५५ १ ९८४३५-१२ (२) सुभाषित संग्रह - टबार्थ @, मा.गु., गद्य, वे., ( मिथ्यात्वीना शास्त्र), १८१५५-१ सुभाषित संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, (--), १७५१०१०), १७३९०-२ सुरसुंदर कथा, सं., गद्य, मूपू. ?, (संसारजलहिजाणं दाणं), २०२१६ सुलसा चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., स. ८, श्लो. ७४०, पद्य, भूपू., (अर्ह नमस्यामि), १७५५मण सुविधिजिन चैत्यवंदन, सं., गा. ३, पद्य, जै., (विश्वाभिवंद्यमकरांकि ), १९००५-२३ सुसढ कथानक - यतनाविषये, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५१८, पद्य, मूपू., ( रायगिहे गुणसिलए), १७६६६ सुसढ चरित्र, प्रा., गा. ५१६, पद्य, मूपू., (जे परमाणंदमय परप्पमा), १९०३८ (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) सिद्धांतसार - आधारपाठ, संबद्ध, प्रा., गा. १०१, पद्य, श्वे., (विवगय जरमरणभये मणवय), १८९०९ सिद्धांतसारोद्धार-देवतत्त्वस्थापनाअधिकार, उपा. कमलसंयम, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (संवत १५०८ वर्षे), २०१९३-२(+) सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१ ग्रं. १६७५ वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपयाई झायित), १७४६५ (+), १७५३७ (+), १७६५६ (+), १८४०८ (+) (२) सिरिसिरिवाल कहा- टवार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., वि. १८०६, गद्य, मूपू., ( स जयति सिद्धसमूहो), १७५३७*) (२) सिरिसिरिवाल कहा- टवार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपु., (अरिहंतादिक नवपद), १८४०८ (+) (२) श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ४०, गा. ७५६, ग्रं. ११३१, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर जेहना ), २०६२९ (२) सुसद चरित्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १९०३८ (+) 9 ५२९ For Private And Personal Use Only सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., वर्ग. ४, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), १८३६८ (+), १८४६०-१(१), २०१०८ (+), २०१८२ (+), १७३९०-१, १८०४५, १८०५३-१, १८२२९, १८२३२, १८३९६, १९१३२, १९७७२, २०९०१, १९०४४, १९५२८. १७६७९-१(5), १९९६९ (5) Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ (२) सूक्तमाला-टबार्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., वि. १८२७, गद्य, मूपू., (सघलि पुण्य रुप वेलनी), १८३९६ (२) सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्व जे शुभ करणीनी), २०१०८(+), २०१८२(+), १९०४४ (२) सूक्तमाला-बालावबोध @, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल सर्व जे शुभ करणी), १९७७२, १९५२८ (२) सूक्तमाला-कथा, मु. धर्मविजय, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रणमी सद्गुरु शारदा), १८३९६ सूक्तावली, सं., श्लो. १३८, पद्य, श्वे., (राज्यं निःसचिवं गत), १९३११(+), १७६०२, १७६६२ सूक्तावली संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (धैर्यं यस्य पिता), २०८७४(+) सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २६०, पद्य, मूपू., (वीरं विश्वगुरुं), १८३२०-१(+) सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज), १७३६०(+5), १७४७३(+), १७४८९(+), १८६२०(+), १९०४१(+), २०२३५(+), २०७३८(+$), २०८२५(+), १७३५९-१, १८६८२, १८६९२, १९३७३, १९४१९, २०३३६, २०९५३, २०९६०, १७४७२(5), १९९३८(5) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २०५, पद्य, मूपू., (तित्थयरे य जिणवरे), १७३५९-२ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., ग्रं. ७०००, वि. १५८३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिन), १७४७३(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., ग्रं. १२८५०, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (स्वपरसमयार्थसूचकमनंत), __१७४६६(६), १९९३८(5) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झि० छकाय जीवना), १७३६०(+$), १९०४१(+), २०२३५(+), २०७३८(+5), २०८२५(+), १८६९२, १९३७३, १९४१९ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सद्गुरुन्), १८६२०(+), २०३३६, २०९५३, २०९६०, १७४७२() सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. २२००, गद्य, मूपू., (नमो अरि० तेणं० मिथिल), २०६६६(+) (२) सूर्यप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेणे काले चउथा आराने), २०६६६(+) (२) सूर्यप्रज्ञप्ति-(अंक)यंत्र, मा.गु., को., म्पू., (--), १८२५५ () स्तवचौवीसी, गच्छा. जयकेसरीसूरि, सं., अ. २४, पद्य, मूपू., (कल्याणकोटिसमसेवित), २०७९१ स्तुतिचतुर्विंशतिका, वा. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, भूपू., (सद्भक्त्या नतमौलि), ___ १८८७१(+), १८२७३ (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-वृत्ति, गच्छा. जिनरत्नसूरिजी, सं., गद्य, मूपू., (नमस्कृत्य जिन), १८८७१(+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), १७९३९(+), १९९७१(+), २०१५०(+), २०४७९(+#), १८०६५, १८०८७, १८१५८-१, १८४३०-१, १८६३०-१, २०९५७-१, २०१६४(६) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, मु. जयविजय, सं., ग्रं. २३५०, वि. १६७१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंददायिन), १८१५८-१ (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (धनपालपंडितबांधवेन०), २०४७९(+#) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टिप्पण, मु. जयविजय, सं., गद्य, मूपू., (भव्या एवाभोजानि), १७९३९(+), १८१५८-२ स्त्रीघातचंद्र विचार, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (शशि १ नाग ८ शैलं ७ क), २०१७५-३ For Private And Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १० नं. ३७००, प+ग, मूपू., (सुयं मे आउस तेणं), १८५५१ (*), १८८३३ (+), १९३१३(+), २०७६१ (+), १८७२४($) , (२) स्थानांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (श्रीसुधर्मा कहि हे), २०७६१(+) (२) स्थानांगसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीवीरजिनं नाथं), १८८३३(+), १९३१३(+) (२) स्थानांगसूत्र- बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एगे अरिहंता एगे समए), २०६३१ स्नात्रपंचाशिका, ग. शुभशील, सं., कथा. ५०, श्लो. ५०, पद्य, म्पू, (प्रणम्य श्रीजिनान्), १७७९७ (+) (२) स्नात्रपंचाशिका - बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रणम्य क० प्रणाम), १७७९७(*) स्नात्र पूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा., मा.गु., कुसु. ५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पवित्र उदक लेइ अंग), १७६२० स्नात्रपूजा विधिसहित, पंन्या. रूपविजय, प्रा., मा.गु., पद्य, मूपू., (मुक्तालंकार विकारसार), १९८२२ स्नात्रपूजा संग्रह@, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो ), १८०४३) १९५८९ स्नात्रपूजा सविधि, मा.गु., सं., पद्य, भूपू., (पूर्वे तथा उत्तरदिसे), १९२७१, १७८५९(१) ५३१ स्याद्वादपुष्पकलिका, उपा. संयम वाचक, सं., श्लो. १४६, वि. १९१४, पद्य, मूपू., (नत्वा संयमवामेयं), १९७६९(+) स्वयंभू स्तोत्र, आ. समंतभद्राचार्य, सं., श्लो. १४३, पद्य, दि., (स्वयंभुवा० समंजस ), १९८९१ (+$) (२) स्वयंभू स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, दि., (स्वयं परोपदेशमंतरेण), १९८९१(१४) स्वस्त्ययनमनप्रसादन विधान, सं., श्लो. १६, पद्य, वे., (), २०५६०-१ हरिवाहन कथा, सं., श्लो. २०८, पद्य, मूपू., (भोगिभिर्विहितावासानं ), १८६१९-१(०) हस्तसंजीवन, उपा. मेघविजय, सं., श्लो. २८३, ग्रं. ५२५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीभरणं), १९२३२(+), १७८८६ (०३), १९८११() हुताशनीपर्व कथा, आ. लक्ष्मीसूरि, सं. ग्रं. १०८४, गद्य, मूपू., ( पर्व हुताशनिसंज्ञ), १७६४८*) (२) हुताशनीपर्व कथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पर्वहोलीनुं लोकसंबंध), १७६४८ (+) हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, श्लो. १३९, वि. १२वी, पद्य, म्पू., (पुडिंग करणथपभमवर), १८०३९ - ३ (+), २०६४१, २०८९३ (२) हैमलिंगानुशासन-अवचूरि, आ. रत्नशेखराचार्य, सं., गद्य, मूपू., (कटणथपभमयरषस इत्येदंत), २०८९३ होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि सं., श्लो. ५३, पद्य, मृपू., ( वर्द्धमानजिनं नत्वा), १७६८९(+) (२) होलिकापर्व कथा - टबार्थ @, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरजिन प्रते), १७६८९(+) होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, म्पू., (ऋषभस्वामिनं वंदे), १८७९४, १९४२४, १९०१००४) (२) होलिकापर्व कथा - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभस्वामीने नमस्कार), १८७९४, १९४२४ होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., श्लो. ३४, वि. १४८५, पच, मूपू., (प्रणम्य सम्यक् परमार), १८३४७(१), १९०६७, २०४४७ For Private And Personal Use Only (२) होलिकापर्व प्रबंध-टबार्थ, मु. कांतिविजय, मा.गु., वि. १७९२, गद्य, मूपू., ( हे भविन हे प्राणिन), १८३४७(+), १९०६७, २०४४७ Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ मा.गु., प्राचीन हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती आदि देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट ४ कषाय के भांगा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), १८८२५-७ ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४, ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, स्पू., (सिद्धारथ शशिकुलतिलो), १७३२८(+#), १८१८९(+#), १९५३९-१, २०११३, २०३२४ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (चिहुं दीसथी च्यारे), १८१५७-६ ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), १९००७-९(+) ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी जे नमु), १९७०० ४ शरण सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहिलो मंगलिक कहुं), १८६२९-५८ ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काम अंध गजराज अगाज), १८१५६-१ ५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ सुत वंदिये), १८२२८, १९०१७, २०२३८-२ ५ समिति ३ गुप्ति ढाल, ऋ. चौथमल, रा., ढा. ८, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (पांच सुमत तीने गुपत), १८४२७-२३(#) ६ अट्ठाइस्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (श्रीस्याद्वाद शुद्धो), १८३५५, १९१२६-४, २०००९, २००१२ ६ आरास्वरूप विवरण@, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम भरतादि दश), १८३१४ ६ कायजीव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथ्वीकाय अपकाय), २०३६७-५ ६ काय नाम, वर्ण व अधिपति नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंदिय थावरकाय ते), १८७४४-२ ६ द्रव्य गुणपर्याय, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकायरा गुण), १७६४६-२(+) ६ नियंठा ३६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण महावीर० पनवण), १८२२३ ७ वार सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीब्राह्मी प्रणमी), १८१५७-१० ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), १७७८४(+), १८१५३-३(+), १८९१४(+), १७६८४-१, १८२७८, १९२६०, १९५७६, २००१५, २००३८(१) ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानावरणीयकर्म), २०३०८ ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर निकलंक जे), १९१७०-२ ८ प्रकारी पूजा रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ७८, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (अजर अमर अविनाश जे), १८३८९, १९५९७ ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), १९६५९(+), १७९२१, १८९६९, १९१८८, १९४२२ (२) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतं), १९६५९(+), १७९२१ १० दृष्टांत सज्झाय, मु. विद्यारत्न शिष्य, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (समोसरणि जिनवीरजी), १८१७९-७ १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ नंदन नमुं), १८४२१-३, १९१४५-२(2) For Private And Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., डा. ११, गा. १३६, पद्य, मूपु., (सुकृतलता वन सींचवा), १८४४५, १७६७७(१), १८९७४- ११) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ भावना, मा.गु., गा. १७७, पद्य, मूपू., (पहिली अनित्य भावना), १७७४१ १२ भावना चौपाई, मा.गु., गा. १८६, प्र. २६०, पद्य, वे., ( कहइ आगम सूत्रना अरथ), १८७६५ " १० स्थानक बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, थे., (बे प्रकारे क्रिया), २०५१९(३), १९६२६ ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मूपु. ( आचारांग पहेलुं ह्यु), १९१२६-३ ११ गणधर देववंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (बिरुद धरी सर्वज्ञनुं), १७८३८, २०१६९ १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., डा. १२, गा. ७७, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति भारती), १९३००(5) १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२, गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (आदीसर जिणवर तणा पद), १८६३९-४ १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ५२, वि. १७२७, पद्य, म्पू., ( प्रणमि चरण युग पास), २०५५६ , १२ भावना सज्झाय, उपा, जयसोम, मा.गु. दा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपु, (पास जिणेसर पाय नमी), " १७६९५, १७८७६-१, १९७४८, १९९५०, २०१६३, २०६२४, २०८४०-१, १८६३५-३) १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., ढा. १४, पद्य, मूपू., (विमल कुल कमलना हंस), १८९२७-१ १२ व्रत अतिचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानाचारई पोथीपाटी), २०७९९-१ १२ व्रत कथानक, मा.गु., गद्य, थे., (समकित सूध पालता), २०७८०२) १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, ओ., (--), १८६३२-४ श्वे., १२ व्रत पूजाविधि, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), १८४६१ (*), १९९३५ (+), १९१४२ १२ व्रत रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., डा. ७७, गा. १६६५, वि. १७८६, पद्य, म्पू, (बंदु अरिहंत सिद्धने), १८०१९ १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., ढा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवाणी धन वुठडो भवि), १८६३९-३ १२ व्रत सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. १३, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (जीवदया नित पालीयें), १८४२८-१३ १३ काठिया सज्झाय, मु. सुमतिरत्न - शिष्य, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर करी रे ), १८९७४-६ (क) , १३ काठिया स्वरुप, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, भूपू., (अथ हवें श्रीवर्धमानस), २०३२९ १४ गुणठाणा १३ द्वारविचार, मा.गु., गद्य, थे., (पहिलो नामद्वार दूजो), १९८७०-४ ५३३ १४ गुणठाणा २५ द्वार, मा.गु., गद्य, म्पू., (नामद्वार लक्षणद्वार), १८८२५-२ १४ गुणठाणा ४१ द्वार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नाम द्वार लक्षण), १७८४५-१, १७९८०-१ १४ गुणठाणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं जिनं), २०६८०-३ १४ गुणठाणा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (होइं मिथ्यात्व अभव्य), १८९७४-८(#) १४ गुणस्थान १०४ द्वार विचार, ऋ. रतनचंद, मा.गु., गद्य, श्वे. ?, ( प्रथम नामद्वार लक्षण), १९०७९-१ १४ गुणस्थानक ८८ द्वार, मा.गु., गा. ८८, गद्य, म्पू., (नामद्वार ते १४ गुणठा), १७८०७(+) १४ गुणस्थानक मूलोत्तरप्रकृति संग्रह, मा.गु., गद्य, वे., ( उदयभाव २१ गत ४ लेश्या), १९४३९-२ १४ समूर्च्छिमपंचेंद्रिय उत्पत्तिस्थानक जीव सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर प्रणमी पाय), १८४२८-१२ For Private And Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ १४ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (--), १८६२९-६० ($) १५ तिथि सज्झाय, मु. गंगदास, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (अवगुण अंगी न आणिइये), १८१५४-२ १५ तिथि सज्झाब, मा.गु., गा. १७, पद्य, मृपू., (एकम की तू एकलो रे), १९००९-९ १६ जिन स्तवन, क्र. रायचंद, मा.गु., गा. १२, वि. १८३६, पद्य, वे., (ऋषभ अजीत संभवस्वामी), ९८४४०-२ १६ द्वार २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम दुवार १ अर्थ), ९८४७१ १६ वचन, मा.गु., गद्य, जै., (सोल वचन जाण्या जोइय), १८२३३ - २ १६ सती सज्झाय, वा, उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, पद्य, म्पू., ( आदिनाथ आदि जिनवर), १९५६४-२ १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, मा.गु., गा. १४, पद्य, थे, (सील सुरंगी भांलि ओटी), १८४३१-२३(+) १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., ढा. १७, गा. १०८, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकज वासि), १७९११, २०९५२ १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, वि. १६१८, पद्य, मूपू., (भाव भले भगवंतनी पूजा), १९४०८-१(+), १७९६६, १९१७८-१, १९३८८, २०६०३-३, १८६६६ (W) १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सत्तर भेद पूजा फल), १७७९८-२ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा, १८ नं. २११, पद्य, भूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), १७८९८-१(०), १८४३७-११, १८६५७, १९०२८, १९३६२, १९९१४ १, १९९५४, १९३२१-२(३), २०२६०(३) १८ पापस्थानक सज्झाय, मा.गु., स्थान. १८, वि. १९०२, पद्य, श्वे. (चितानंद चिरआतमा), १९५२९ (*) २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८६८, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरस्वामि), १८६३७-१३ २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (अनंत चउवीसी जिन नमुं), १८६३७-१५ २० विहरमानजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरस्वामि), १८६३७-१८ , २० विहरमानजिन स्तवन, मु. दयाधर्म, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसति देव नमु निसदीस), १७३२२-२ (+) २० स्थानकतप काउसग्ग चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चोवीस पन्नर), ९८४१७-२६ (+) २० स्थानकतप चैत्यवंदन, ग, पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पहेले पद अरिहंत नमुं), ९८४१७-१२(क) २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर - शिष्य, पुहिं., प+ग., मूपू., (अथ वीसस्थानक तप का ), १८४७९ (+) २० स्थानकतप स्तुति, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्म, मूपु, (पुछे गौतम वीर जिणंदा), १८४२९-२४) २० स्थानकपद काउसग्ग संख्या, मा.गु., अंक. २०, गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं लोगस्स), १८४२६-२ (+) २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., वि. १८५८, पद्य, मूपू., (सुख संपति दायक सदा), २०४४५ (+), १९१७८-५, २०४५७ २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., डा. २०, वि. १८४५, पद्य, म्पू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), १९१२६-१, २०१०५-१, २०९५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ २० स्थानक सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरणे करौ), १८४३७-७ २० स्थानक स्तुति, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीसथानक विश्वमां), २०१०५-२ २१ चर्चा प्रश्न, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्मआग्या में तो), १९२९१ For Private And Personal Use Only २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., ढा. २१, गा. १९०५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रथम जिणंद), १७६०३ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, म्पू., (देव गुरु केरुं लीजिं), १८९७४-९(१) Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्म, मूपु., (जिनशासन रे शुद्धि), १८१५६-९ २३ पदवी विचार पत्रवणासूत्रगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर चक्रवर्ति), २००९५-२ २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा, रामचंद्र, पुहिं., प+ग, मूपू., (वृषभआदि अंति वीर ), १८४११-२ २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा - प्रत्येकजिनभिन्नभिन्न, रामचंद्र, पुहिं., प+ग., मूपू., (सुषमदखम थिति मेटी), १८४११-३ २४ जिन काल, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० लाख कोड २. ३० लाख), १८४८२-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन चैत्यवंदन, श्राव. अमीकुमार, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव नमो ), १८४३८-१ २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( प्रथम तीर्थंकर तणा), १८४१७-१९ (+), " ३२ बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, थे., (पहले बोल अलोवनी सल) १८६२५-६) ३३ गुरु आशातना, मा.गु., गद्य, श्वे. (शिष्य गुरु के आगलि), १८६२५-४/१ " ३३ द्वार गाथा, मा.गु., गा. ४, गद्य, थे., (नमिव जिणं मुणमाणे), २०५३५-१ (२) ३३ द्वार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानावरणी १ दर्शना), २०५३५-१ ३३ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मृपू., (सात भये इहलोक भय), १९५०५ (खा ३४ अतिशय, मा.गु., गद्य, श्वे., (केश श्मश्रु नख रोम), १८६२५-७ (+) ५३५ १९००५- ३२ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुंजे ऋषभ समो), १९१७८-४९ २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहिं., पूजा. २४, पद्य, दि., (सिद्धि बुद्धि दायक ), १९९४१ २४ जिन मातापितादि ७ बोल स्तवन, मु. दीप, मा.गु., गा. ३१, वि. १७१९, पद्य, वे., (श्रीजिनवाणी सरस्वती), १८२२०-४ २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वृषभ लंछन ऋषभदेव), १९००५ - ३४ २४ जिनवरप्रथमगणधर साहूणीपरिवार स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. २७, पद्य, मृपू., (ऋषभादिक चवीस जिणंद), १८२२०-३ २४ जिनवर्णगर्भित चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभने वासपूज्य), १८४१७ - २०(+), १९००५-३१ २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी), १९६६५, २००२६ २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., ( कनक तिलक भाले हार), १८१८०-२ २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (शरीर अवगाहणा संघावण), १८०३३-२, १९८३८, १८४७७) २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपु., ( प्रथम नामद्वार बीजु), १७८९३ (+३), १९७१८(+), २०००७(+), २०७१७/*), १७६९७, १७८२२, १७८४५-२, १७९८०-२, ९८४२५, ९८६०६, १८६१५, १८९६३, १९२८४, १९८२६, २००२३, २०४२२, २०५८३-१ २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (दंडक लेश्या ठित्ति), १८५७८(+), २०७०२ (१), १७९४२-१, १८७४४-१, १९८४५-१, १९८७०-१, २००३५ २०१६७, १७९३८ (३) २४ दंडक ३० बोल विचार, आ. रूपजीवर्षी, मा.गु., पद्य, श्वे., (दंडक १ लेसा २ ठिति), १७३८४ २४ स्थानक २४ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गइ इंदिय काय जोय वेय), १८८२५-१ २५ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., ( नरकगति १ तिर्यंचगति), १९२७९ - ३ ($) For Private And Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ ३५ जिनवाणी गुण, मा.गु., गद्य, श्वे., (संसक्त वचन न बोलइ), १८६२५-८(+) ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेले बोले गति चार), १७८६१, १८३५४, १९१४९-१ ३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (एगे असंजमे १ एगे), १८६३६-१ ४५ आगमनाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचारांग१. सुयगडांगर.), १७७०६-४(+), १७६८४-३ ६४ प्रकारी पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८७४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर साहिबो), २०४२५ ७२ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (तत्त्वज्ञान अंग धर्म), २०६५०(5) ८१ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (ते डाह्या हुवे ते), १९२७९-१ ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), १७९८८, १९१४०, १९१४८, १९१७४, १९२२१, २०८०९ १७० जिननाम स्तवन, म. देवविजय, मा.ग., ढा. ६, गा. ५२, वि. १७१६, पद्य, मूप., (कास्मेरी मुखमंडणी), १९६७० ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, स्था., (जीव गइ इंदीये काये), १९४७६-१ १४५२ गणधर चैत्यवंदन, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गणधर चोराशी कह्या), १८४१७-२९(+) अंजनासुंदरी चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., खं. ३, ढाल ४३, गा. २५३, ग्रं. ७०७, वि. १७०६, पद्य, मूपू., (करतां सगली साधना), २०४२३ अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., खं. ३, ढाल २२, गा. ६३२, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (गणधर गौतम प्रमुख), २०८६४(+), १७४८०(#S) अंजनासुंदरी रास, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ५७१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (सरस वचन वर वरसती), २०९३४ अंजनासुंदरी रास, मा.गु., गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), २०१३८(+), १८१८६, १८३५२, १८९५९ अंतिम आराधना, मा.गु., गद्य, श्वे., (नमो अरिहताणं० नमिउण), १८९९७ अंबादेवी छंद, पुहिं., पद्य, वै., (ॐकार अथाह अपारं बावन), १८९८०-७($) अंबिकादेवी छंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, वै., (सदा पूर्ण ब्रह्मांड), १८६३५-१२(१) अंबिकामाता गीत, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (भेसांभंजणी दहीता), १८४३६-५ अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अइमंता मुनिवर जूके), १९१२७-१२ अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वांदीने), १८२२०-११ अइमुत्तामुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सासण स्वामी रे), १९१२७-२($) अक्षयतृतीया व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खु), १७९८१-१०, १९०१०-५५) अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही कहेवी), २००८५-२ अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५१, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर शिर), २००८५-१ अक्षरबावनी, वा. किशन, पुहि., गा. ६१, वि. १७६७, पद्य, श्वे., (ॐकार अमर अमार अज), १९९८८-१(+), १८९३५ (२) अक्षरबावनी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐकार पद पंचने समवेय), १९९८८-१(+) अक्षरबावनी , मु. केशवदास, पुहिं., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (ॐकार सदा सुख देत), १८६३५-८(#) अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहि., गा. ५७, वि. १७२५, पद्य, म्पू., (ॐकार उदार अगम अपार), २०७६२-१($) अक्षरबावनी, ऋ. लालचंद, पुहि., गा. ५८, वि. १८७०, पद्य, स्था., (सरस वचन सरस्वति तणा), २०६४९-२ For Private And Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ अक्षर वर्ग, मा.गु., गद्य, मूपू., (आईउऐ गुरड कखगघन), १८१२२-११ अगडदत्त रास, क. नंदलाल, मा.गु., ढा. १६, वि. १८९६, पद्य, स्था., (सिद्धरिधनिधदायका), १९९९१-१ (+) अगीवारअंग पूजा, उपा. चारित्रनंदी, मा.गु., डा. १२, वि. १८९५, पद्य, मूपू., (वाजीचमु कुलदिनमणि), २०१३३(०) अजाकुमार रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ५५८, वि. १६७०, पद्य, मूपू., (सकल जिनवर सकल जिनवर), १९६१८ अजितजिन पद, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजितराय तुम दयाल मे), १८१७५-६ अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पंथडो निहालुं रे), १९००५-११३ अजितजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिक गुण संपदा), १९००५-११४ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ओलगडी अजित जिणंदनी), १८१५६ -२४ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू, (अजित जिणंदस्यु प्रीत), १८१५६-१३, १९००५-११२ अजितजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहिब अजित जिनेसर मन), १८१७८-४ अजितजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (विजया सुत वंदो तेजवी), १९००५-५८ " अजितजिन स्तुति-तारंगा, मु. पुण्यसागर, मा.गु, गा. १, पद्य, मूपू., (तारंगा मुख मंडण अजीत), १८१८१-१४, १८६३०-९ - अजैन गाथा, मा.गु., पद्य, जै. ?, (--), १९८८३-२, १९९८४-२ ) अढारनातरा चौढालीयो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (लख चोरासी भटकतां), १८६२९-४२ अढारनातरा विचार, मा.गु., गद्य, जै., (रे बालक तुं मुझनइ), १८८२३-७(+) अडारनातरा सज्झाय, मु. राघवविजय, मा.गु., डा. ३, पद्य, मूपू., (पेले ने प्रणमु रे), १८१५७-२९ अढारनातरा सज्झाय, आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (गोतम गणधर पर नमी), १८६३१-२ अढीद्वीपे अतीत वर्तमान अनागतचौवीसी नाम, मा.गु., गद्य, भूपू., ( प्रथम भरत तीर्थंकर), १८८२५ ६ अतिचार आलोषणा-रात्रिदिवसगत, मा.गु., गद्य, भूपू., (आजुणा चौपहुर दिवसमाह), १९१७८-३१ अध्यात्म गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( प्रात भयो प्रात भयो), १९११७-४० अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा, ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित ) १८३७९-१(+), १७३३२, १९१८२, २०४५१-१(३) 9 (२) अध्यात्मगीता-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमियै कहतां अहो ), १८३७९-१(+) (२) अध्यात्मगीता - बालावबोध, मु. अमीकुंवरजी, मा.गु., ग्रं. १२५०, वि. १८८२, गद्य, भूपू., (संवेगी सिरदार सिरोमण), १९१८२ (२) अध्यात्मगीता-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमीये क० भक्ति), १७३३२ अध्यात्म पद, जै.क. बनारसीदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (हम बइठे अपने मौन), १८२१६-३ अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद, पुहिं., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, श्वे., (अजर अमर पद परमेसरकुं), १८२४४-१ अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मु. अमीकुंअर, मा.गु., वि. १८८२, गद्य, म्पू., (जय भगवान त्रिलोक्य), १८९४८ अनंतजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मे तेरी प्रित पीछाणि), १९११७-१८ अनंतजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( प्रणमी हो प्रभु), १८१७८-१८ अनंतजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, भूपू., (अनंत अनंत नाणी), १९००५-८४ अनाथीमुनि चौपाई, मा.गु., गा. ६३, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (सिद्ध सवेनइ करुं ), १८७४१ For Private And Personal Use Only ५३७ Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), १८१७९-४, १८४३७-२ अभयकुमार रास, वा. पद्मराज, मा.गु., गा. ५०८, वि. १६५०, पद्य, मूपू., (अविचल सुखसंपतिकरण), २०३६५(+) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अभिनंदन जिन दरिसण), १९००५-११८ अभिनंदनजिन स्तवन, देवचंदजी, हिं., गा. ९, पद्य, जै., (क्युं जाणुं क्यु), १९००५-११९ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोरा प्रभु हो), १८१७८-६ अभिनंदनजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (संवर सुत साचो), १९००५-६२ अमरजस रास, मु. वीरचंद, मा.गु., गा. २७६, पद्य, मूपू., (सरस वचन सुसमरीयइ पास), २०७०४ अमरसेन चौपाई, मु. खुशालचंद, मा.गु., ढा. २४, पद्य, मूपू., (श्रीमद् जिन आददे), १९४६०-२) अमावस्यातिथि चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, जै., (सुदि आषाढ छठ दिवसे), १९००५-२८ अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान अजुवाळीए), १८४२८-९ अरजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहिब अरजिन देव रे), १८१७८-२३ अरजिन स्तुति, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरजिन आराधो संयम), १८४२९-२९-) अरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अरजिनवर राया), १९००५-८७ अरणिकमुनिरास, मु. विजयशेखर, मा.गु., ढा. ८, गा. ७८, पद्य, मूपू., (विमल विमल मति दायक), १७५२४-२ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (इक दिन अरणक जाम), १८२२०-२० अरणिकमनिसज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), १८४३१-१७(+). १ १८९७६-१ अर्जुनमाली ढाल, ऋ. जैमल, मा.गु., ढा. ७, वि. १८२३, पद्य, स्था., (राजगरी नगरी हुंती), १८४२७-२९(#) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आबुगढ तीरथ ताजा अष्ट), १८१५६-४६ अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ती), १७७२४(+), १८४१८, १८६०९, १८६१२, १९५९२, २००९८, १८४२७-२(#) अविश्वास कवित्त, क. गद्द, पुहि., गा. २, पद्य, (सापां कीसो सेद ठगा), १८४३३-२०(+) अष्टप्रकारी पूजा, पं. उत्तमविजय, मा.गु., वि. १८१३, पद्य, मूपू., (श्रुतधर जस समरें सदा), २०६९१ अष्टप्रवचनमाता सज्झाय, पा. देवचंद्रजी, मा.गु., ढा. ९, गा. १३०, पद्य, मूपू., (सुकृत कल्पतरु श्रेणि), २०५६२-१ अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (महा सुदी आठमने दिने), १८४१७-१०(+), १९००५-२२, १९१७०-१ अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय वाचक, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (अष्ट करम चूरण करी), १७३०९-२, १८९७६-११ अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आ छे लालजी गणधर गौतम), १८१५७-१५ अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मद आठ महामुनि वारीइं), १८४२८-३२, १८९७६-१० अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांति, मा.गु., ढा. २, गा. २४, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), १८९७४-२(#) अष्टमीतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीराजगृही शुभ ठाम), १८१५७-१३, १९००५-१२६ अष्टमीतिथि स्तवन, पंन्या. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (पंचतिरथ प्रणमु सदा), १८४२१-९ For Private And Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमु), १९१७८-१९ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), १७९८२-१०(+), १८१८१-२२, १८९८१-३, १८४२९-१७०) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. सुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीशे जिनवर), १९००५-७१ अष्टमीतिथि स्तुति , मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), १८१८१-५ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), १८२१७-७, १८४१६-५, १९१७८-१८ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., (--), १७९८२-१२(+$) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (तिरथ अष्टापद नित), १८१५६-२७ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अष्टापद गिरि जात्रा), १८१५६-१० अष्टापद महापूजा, क. दीपविजय, मा.गु., वि. १८९६, पद्य, मूपू., (ए अष्टापदनी अष्ट), १९४०३ अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्ता), १७९८१-२, २०००० असंख्यात अनंत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (यथोक्त भेद स्पष्ट), २०५२२-२ असज्झाय विचार-खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (रज मांस रुधिर केशनइ), १८७२९-३ असमाधि स्थान, मा.गु., गद्य, श्वे., (दबदब सुचाले तउ), १८६२५-३(+) आगमगाथा संख्या, मा.गु., गद्य, श्वे., (सूत्र नाम आचार ग्रंथ), १८६२५-९(+) आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (हिवै भव्यजीवने), १८५३८, २०११६, २०६७३ आठकर्म विचारसंग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (आठ कर्म ते कहीये), १८६२५-२(+) आतम सज्झाय, क. सुंदर, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (दया विन करणी सवै), १८६२९-३४ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, पुहि., गद्य, श्वे., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), १७७९० आत्मप्रतिबोध सज्झाय, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (मायाने वस खोटु बोले), १८४२८-२० आत्मशिक्षा भावना, मु. रतनहर्ष, मा.गु., गा. १८५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (जिनवर मुख वासिनी जग), १९५९८ आत्मशिक्षा सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सदगुरु निज पर उपगारी), १९१२७-५ ज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आतमरामे रे मुनि रमे), १८९८२-११ आत्महितशिक्षा सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रभु संघाते प्रीत), १८४१९-२२(+) आत्मा के ६५ गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (असंख्यात प्रदेशी), १८०७१(६) आदिजिन १३ भव स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १३१, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी पासजिन), २०००४ आदिजिन आरती, मूलचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय आरती आदिजिणंदा), १९११७-३५ आदिजिन आरती, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय जय आरति आदिजिणंदा), १९११७-४ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिदेव अलवसरु), १८४१७-४(+), १९००५-९ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकर आदि), १८६३७-५ आदिजिन पद, मु. महिमराज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जाग जग मुगटमणि नाभि), १९११७-४५ आदिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (रिषभ विहारि तोरि तो), १९११७-४३ For Private And Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४० www.kobatirth.org आदिजिन पद, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुम ही हो हम सामी), १८९०५-५ आदिजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (रमक झमक० आवे ऋषभ), १८१२२-८ आदिजिन प्रभाती, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू, (प्रभाते पंखीडा बोले), १८१५७-३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सुण जिनवर शेत्रुंजा), १७९६२-२, १९००५-११० आदिजिन विनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पडम जिणेसर), १८०००-२ आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, आ. विजयतिलकसूरि, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपु., (पहिलं पणमीय देव), १८५७० (+) " (२) आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीविजयतिलकमहो), १८५७० (+) आदिजिन विवाहलो, मा.गु., ढा. ४४, गा. २४३, पद्य, मूपू., (सासनदेवीय पाय प्रणमे), १९१२३ आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम ) १९००५ - १०७ आदिजिन स्तवन, कमल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., ( श्रीरिषभजी की ध्यान), १८६३३-३ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरुजी), १८१५६-२६ आदिजिन स्तवन, मु. चंद्रकुशल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (देखोने आदेसर बाबा), १९११७-३० , For Private And Personal Use Only आदिजिन स्तवन, ग. जयसौभाग्य वाचक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय आदीश्वर जय परमेसर), १८९०५-४ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., डा. २, गा. २६, वि. १७वी, पद्य, श्वे. (श्रीनाभिकुलगुर), १८२२००५, १८६२९-७० आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी), १९००५- १०८ आदिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( प्रथम जिनेश्वर), १९००५ - १०९ आदिजिन स्तवन, मु. भाव, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( दरसण द्यो प्रभु रिषभ), १९११७-३ आदिजिन स्तवन, श्राव. मूलचंद, पुहिं., गा. १७, पद्य, मूपू., ( आदिसर जिनराय पणमु), १८४३२-५ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( एतो प्रथम तीर्थंकर), १८१५६-४३ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुजी ओलंभडे मत), १९००५-१११ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (राज मरुदेवी केरा), १८१५६-३० आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जगजीवन जग वालहो), १८१५६ - १२, १९००५-१०६ आदिजिन स्तवन, ऋ. रतनचंद, हिं., गा. ८, वि. १९११, पद्य, श्वे., (देखोजी आदिसर सामी), १९००९-१४ आदिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिजिनेसर केसर चरित), १८१७८-२ आदिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु, (मरुदेवी सुत सुंदरू), १८१७८-१ आदिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेंवारी जीयरा हो जीन), १८१७८-३ आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन), १९१७८-३७ आदिजिन स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आदिजिन भावे भवीजन), १७८८०-२ आदिजिन स्तवन, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हां रे भाई श्रीरिसहे), १८९०५-३ आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रथम जिनेसर), १८४२१-८ Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन- आलोयणाविचारगर्भित, मु. ऋषभविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५८, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर प्रणमु), १९५२६-१ आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), १८१५७-२३, १९११७-२९ आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पहिलु पणमिअ देव), २०४१०-३ (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (विजयतिलकोपाध्याय कवि), २०४१०-३ आदिजिन स्तवन-मुंबईबंदरकोटे भायखलामंडन, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १८८८, पद्य, मूपू., (सुखकर साहेबरे पामी), १७७७२ आदिजिन स्तवन-राणकपुर, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणो रे), १८१५६-२८ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण ससनेहि), १७७८६-२(+) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), १८१८१-१८, १८४३०-९, १८४३५-८, १८९७५-१६, १८९८१-७, १८४२९-३०) आदिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदि जिनवर राया जास), १९००५-५३, १८४२९-४८) आदिजिन स्तुति, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कनक तिलक भालें हार), १८१८०-८ आदिजिन स्तुति, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकगिर स्वामी), १८१५६-५७, १८४३५-९, १८९७५-१५ आदिजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभ), १९००५-५४ । आदिजिन स्तुति-उन्नतपुर, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उन्नतपुर मंडण जगतधणी), १८१८१-१६ आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गजकुंभे बेसी आवे), १८९७५-१२, १८९७५-२६ आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विसलपुर वांदु), १८१८१-२० आदिजिन होरी, मा.गु., गा. ३, पद्य, जै., (बिसरो मत नाम सदा जिन), १९००९-८ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आस्या औरन की कहा), १७६२५-३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (औधूं क्या सोचे तन), १८९७७-१० आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (ग्यान भाण भयो भोर मे), १८४२३-२ आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (किसके बे चेले किसके), १८६३८-२६ आध्यात्मिक पद, मु. हंस, मा.गु., गा. ५, पद्य, स्पू., (प्रात भयो प्रात भयो), १९११७-४२ आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे.?, (तन का तनक भरोसा नाहि), १८६२९-४ आध्यात्मिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुझ विराणि क्या पडित), १८६२९-१२ आध्यात्मिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, जै.?, (हारे माहरें जोवनीआ), १८६३५-१०(#) आध्यात्मिक फाग, मु. महानंद, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (ऐसे आतमराम खेले होरी), १८१५७-२० आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अणविमास्युं करइ काइ), १८९८२-१३ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनुभव सिद्ध आतम जे), १८९८२-५ For Private And Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४२ www.kobatirth.org आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( आतम अनुभव जेहनई), १८९८२-४ आध्यात्मिक सज्झाच, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन चेतन में धरि), १८९८२-८ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन तुमही आपें), १८९८२-१४ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( चेतना चेतनकुं), १८९८२-७ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जग सरूप चेतन संभलावइ), १८९८२-९ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जे देखुं ते तुज नही), १८९८२-२ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( जेहन अनुभव आतम), १८९८२-३ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समकित तेह यथास्थित), १८९८२-१० आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( सम्मदीट्ठी ते यथा), १८९८२-२१ आध्यात्मिक सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (यार एक तार थिर साई), १७६२५-२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ आध्यात्मिक स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सोवनवाडी फूलडे छाइ), १९००५-९६ आध्यात्मिक स्वाध्याय, मा.गु., रा. अधि. ९, गद्य, भूपू., (मन राजा तिण रे दोइ), १८०११ " आनंदघन गीतवहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुर्हि, पद. ७८, पद्य, भूपू., ( क्या सोवेउठि जाग), १७९२३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आनंदधावक तप परिमाण, मा.गु., गद्य, म्पू., ( १७१३ उपवास पारणा २६७), १७४८३-३(+) आनंदश्रावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., डा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान जिनवर चरण), १८३७६, १८४५८-१, १९१९९, २०१४१ आबुतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३४, वि. १७२८, पद्य, म्पू., (आज अनोपम पुन्यथी में), १८६३५ -१८(१) आयुष्य विचार @, मा.गु., गद्य, मृपू., (१२० हाथीनो आयु १२० ), १७९४२-३ आरती गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( भवजनि मंगल आरती करिय), १९१२७-१४ आराधक-विराधक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( न जाणें न आदरें न ), १८०२३-२ आराधना, मु. हंस, मा.गु., गा. ९६, पद्य, म्पू, (पहिलउ नमस्कार अरिहंत), १७५४७ (*) आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलोचन वरस ५ लगि माता), १८५३२ - १(#) आलोयणा, मा.गु., गद्य, थे. (प्रतिमा भागे उप. १०), २०५५८-१ आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (अतीत काल अठार पाप), १९३३१ आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं ३ ), १८११४-१, १८५३२-३ (#) आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., डा. १६ गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, मृपू., (सकल ऋद्धि समृद्धिकर), १७६८५-१ आषाढाभूति चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ७, गा. ४१४, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (सासण नायक सुरवरूं), १८७७३ आषाढाभूति पंचढालिया, ऋ. रायचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (दरसण परिसोह बावीसमो), १८६२९-८१, १९३५३-२ For Private And Personal Use Only इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., डा. ४, वि. १७४७, पद्य, मूपू., (परम दयाल दवाकर आसा), १७९५५ इरियावही मिच्छामि दुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. ४, गा. १५, पद्य, मूपू., (पद पंकज रे प्रणमी), १८६३९-५ Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ इरियावही सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २ गा. २५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., ( श्रुतदेवीना चरण नमी), १९७१३-२ इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकलसिद्धदायक सदा), १७८३५ (१), १८३४० इलाचीकुमार रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. १६४, वि. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासनि जिगि), १८८४१ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( नाम इलापुत्र जाणीए), १८४३१-१० (+), १८१२२-३, १८४२८-२४ उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., ढा. ५१, ग्रं. १६३६, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सरसति सामण पय नमी), १८३०६, २०२५४११ उत्तराध्ययन सूत्र सज्झाय, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., (श्रीजिनवाणी चित्तधरी), १८६२४-१३(०) उदाइराजा छढालियो, मु. जैमल ऋषि, रा., ढा. ६, पद्य, श्वे., (चंपानगर पधारीया), १८४२७-१६(#) उपदेशछत्तीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल सरूप यामें), २०१८९ (+) उपधानतप वृद्धस्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर धरम), १८४२१-१२ ऋषभाननजिन स्तवन, मु. नयविजय - शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभानन गुणनिलौ), १८१५६-२१ ऋषिदत्तासती चौपाइ - शीलव्रतविषये, मु. देवकलश, मा.गु., गा. ३०१, वि. १५६९, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति सुपसाउलइ), १९६३३(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५६२, ग्रं. ८५०, वि. १६४३, पद्य, मूपू., (उदय अधिक दिन दिन), १८२९२-१(+$), २००५४, २०१५९ ($) ऋषिदत्तासती रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १९०४६(#$) ऋषिदत्तासती रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), २०७८८ (+$) एकसौवीस कल्याणक पूजा, मु. दोलतरुचि, मा.गु., ढा. २८, वि. १९३८, पद्य, वे., (श्रीपार्श्वनाथ), १७७९३(+) एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु. ( शासननायक वीरजी प्रभु), १८४१७-११(+), १९००५-२५, १९६५१-३ एकादशीतिथि सज्जाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आज म्हारे एकादशीरे) १८९७६-१४ एकादशीतिथि सज्झाय, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( आज एकादसी रे नणदल), १८४२८-३३ एलाचीकुमार छढालि, मु. माल, मा.गु., डा. ६, वि. १८५५, पद्य, स्था., (मात मया करो सरस्वती), १८१५७-१७ औपदेशिक २५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवदया जयणा सदा), १९९९१-२ औपदेशिक कवित, क. गिरधर, पुहिं., गा. १, पद्य, ?, (सांइ वेर न कीजीये), १८४३३-१९(+) औपदेशिक कवित, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., ( दाब ले वकार पांच), २०१७५-६ औपदेशिक कवित्त, मा.गु., पद्य, वे., ( समर एक अरिहंत रयण), १९९८८-३(+) औपदेशिक गहुली, मु. दोलत, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू, (सासन करते जिणंदवीर), १७६७३-२ औपदेशिक दूहा @ पुहिं., पद्य, (सोरठ गढवी उतरी कंस), २०८४०-२ 9 औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., पद्य, (थाकी रे नयण मएणगत), १८३९४-३(+) औपदेशिक पद, कबीरदास संत, मा.गु., गा. ८, पद्य, (देखा संत सिपाहि सत), १८६२९-२६ For Private And Personal Use Only ५४३ Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४४ www.kobatirth.org औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं, गा, ४, पद्य, वै., (नायक रामजी हमारो ऐजी), १८६२९-११ औपदेशिक पद, गंगादास, मा.गु., गा. ४, पद्य, वे. १, (हिवै जनम प्याला खूब), १८६२९-३ औपदेशिक पद, क. गिरधर, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (बेरी वधू बावलो ज्यार), १८१२२-४ औपदेशिक पद, मु. चेनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( कोण निंद सुतो मन), १९११७-१४ औपदेशिक पद, ऋ. धर्मसी, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (ऐक अनेक कपायपड), १८२८०-२ औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ३, पद्य, खे, (पुद्दल क्या विसवासा), १८६३३-८ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (देखो भाई महाविकल), १८६३३-१२ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, थे., (भ्रमत अनंतकाल बीत्वौ), २०२८१-३ (+) औपदेशिक पद, मु. मान, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीत पडो भय जाय सखी), १८६३५-४(#) औपदेशिक पद, मु. मान, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( युहि जनम गमायो भजन), १९११७-६ औपदेशिक पद, मिहिमूद काजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, (पारधीआ माहरू मृयो), १८७६३-२ औपदेशिक पद, मु. मेघ, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., ( नीप प्रतें नाम जप), १८४१९-१३(+) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं. गा. १०, पद्य, भूपू., (परम गुरु जैन कहो ), २०१०१ २ " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ औपदेशिक पद, राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मनरे छार माया जाल), १९११७-११ औपदेशिक पद, सुखदेव, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (दमका नही भरोसा वे), १८६२९-९ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इमकुं सीमरो रे भाई), १८४३२-१२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., ( काहेकु सोचवीचार करे), १८२४४-२ औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ६, पद्य, जे. २, (किस दूतीने भोलावां), १८९७७-४, १८९७७०५ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, १, (चेतन मानवै असाडी), १८६२९-१३ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, वे., (जिननाम सुमर मन वाव), १८६३३-१० औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीउ रे चल्यो जात), १९११७-१० औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपु., (दुख सुख काहा डर रे), १९९१७-१९ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (नरभव कुनिक दियावोगे), १८६२९-४४ औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, जे. १, (प्यारो कौन बतावे रे ), १८९७७-६ , औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू, (शिवपुरवासना सुख सुणो), १८९८२ १६ औपदेशिक पद - काबाउपदेश, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, खे, (चरखा भया पुराना रे), १८६३३-१२ औपदेशिक पद - बुढ़ापा, मु. भुधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., ( आयो रे बुढापो वेरी), १८६२९-१७ औपदेशिक पद-योवन, मु. उदयरत्न*, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (योवनीयानी फोजां मोजं), १८४२८-८ औपदेशिक प्रभाती, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चुपे करीने तुम चेतो), १८१५७-२ औपदेशिक प्रहेलिका कवित, देवीदास, पुहिं, गा. १, पद्य, ( दाबले वकार पांच पांच), २०१७५०५ औपदेशिक रेखता, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (झुठी जगत की आस तजि ), १८६२९-१० औपदेशिक लावणी, अखपत, पुहिं., मा.गु., पद्य, जै.?, (खबर नहिं हे पलकी), १८१२२-१ " For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू., (चल चेतन अब उठकर अपने), १८१५७-२८ औपदेशिक सज्झाय, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ते सुरू भाई ते सुरु), १८१७९-१३ औपदेशिक सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., वि. १८२०, पद्य, स्था., (परम देवनो देव तुं), १८४२८-१४ औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (आउखु तुट्याने सांधो), १८४२८-१९ औपदेशिक सज्झाय, मु. जिन, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (ते बलीया रे भाई ते), १८१७९-१० औपदेशिक सज्झाय, जेठो, मा.गु., गा. १०, पद्य, वे., (धर्मध्यान करो प्राणी), १८६२९-४१ औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जो चेते तो चेतजे जो ), १८९८२ - १५ औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मिच्छत्व कहिजे), १८९८२ - १९ औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( शुक्लपक्ष पडवेथी), १८९८२-१८ औपदेशिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आज का लाहा लीजीइं), १८९८२-२० औपदेशिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (आदित जाइने आपणी), १८९८२ १७ औपदेशिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कोइ कीनडीकोड काज न), १८९८२-६ औपदेशिक सज्झाय, ग. मणीचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( चेतन जब तुं ज्ञान), १८९८२-१२ औपदेशिक सज्झाय, मु. माला कवि, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (म्हारी परम सुहागण), १८१५४-७ औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( कांइ नवी चेतो रे चित) ९८४२८-१६ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीव कहे सुणी जीवड), १८१७९-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), १८१७९-१८ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), १९००७-१० (+), १९३२७-२ (३), , १८४२०-३०) औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया पुर पाटण मोकली), १८९५४-५ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे. ?, (इस जगमाही कोई नही), १८६२९-८२ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १०, पद्य, वे., ( एह संसार खार सागर), १८२२०-१६ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, ?, (ऐसी जीवा तै करी रे ), १८६२९-१४ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे. ?, (काया माया कारमी), १८६२९-१ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ७, पद्य, म्पू, (गइ सो गड़ अब राख रही), १८६२९-७ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( गणधर गीतम पाय नमीनें), १८२२०-२७ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, जे., (जगत स्वपुनों जाणि रे), १८६२९-१६ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, जै.?, (जगत स्वपुनो जाण रे), १८६२९-१५ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (तु मनमोहन मीलवा रे), मनमोहन मीलवा रे), १८२२०-२२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, भूपू., ( पहिला धुरि समरु), १८१५४-४ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, म्पू., (सतगुरु आगम सांभलि), १८२२०-२१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु., (सीख दीडं ते सांभलि), १८१५४-३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ५४५ Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुखदुख अणवांछिउं), १८१७९-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (सोवत थोडी रे जीव ठग), १८६२९-२३ औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. पदमतिलक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वनमाली धणी इम कहे), १८१७९-५ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधनां), १८४२८-२६, १८६३८-२१ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्रोध न करिये भोला), १८४३१-३(+) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पा. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), १७६६७, १८२२०-२ औपदेशिक सज्झाय-जीव, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आरंभ करतारे जीव), १८४२८-२ औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीयाजी), १८४३१-११(+), १८४२८-२१, १८६२९-३७ औपदेशिक सज्झाय-निंदक, ऋ. रायचंद, मा.गु., गा. २८, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (नवरो माणस तो नंदक), १८९७८-१३ औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी), १८४२८-३५ औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), १८४३७-१०, १८६३८-१४ औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, क. मान, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सुगण बुढापो आवीयो), १८४३१-१९(+) औपदेशिक सज्झाय-मानोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अभिमान न करस्यो कोई), १८४३१-४(+) औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (लोभ न करीये प्राणीया), १८४३१-५(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, ऋ. जैमल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), १८४२८-३० औपदेशिक सज्झाय-शीयलविषे, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एतो नारि रे बारि छे), १८१७९-१२ औपदेशिक सवैया, क्र. धर्मसी, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सब गुणरीति गहै हठमै), १८४३४-७ औपदेशिक सवैया, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे.?, (एक नारी जलमाहे तरे), १८६३५-२४(#) औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसरि, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (उठी सवेरे सामायिक), १८९७५-२३, १८९ १९००५-९५ औपदेशिक स्वाध्याय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंचप्रमाद तजी पडिकमण), १७९२७-२, १८१५४-१२ औषध संग्रह@, मा.गु., गद्य, वै., (--), १७६९९(+), १९६२८-२(+), १९९१६(+), १९९५१-३(+), २००४०-२(+), २०८४१-२(+), २०९९७(+), २०९९८(+), १७३७६-२, १७६३१-२, १७६३४, १८१०१-२, १८८५८-२, १८९१९, १९०८५, १९४५४, १९५६२-२, १९६७७, २०००३, २००३७, २०३७६-३, २०६४३, १८६३५-१४(#) (२) औषध संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., (--), १७६३१-२ ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कका करमनी वात करी), १९७१३-१ ककाबत्रीसी, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (कका कर कुछ काज धर्म), १८६२९-७२, १९९८३-२(-) कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकदा समयनिं विषई), १७४८७(5) कनकावती रास, वा. ज्ञानशेखर, मा.गु., गा. ४१९, वि. १६४८, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणवर आदिजिण), १७३४७-२ कमलावती सज्झाय, ऋ. जैमल, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (महिला में बेठी राणी), १८२२०-१ For Private And Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), १७५३६, १८३५६, १८३७४ कयवन्ना चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (सासण नायक समरीये), १९४६०-१(-) करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपानगरी अतिभली), १८४३१-२६(+), १८१५६-३ करने, नहि करने, मन में रखने व विश्वास न करने के आठ-आठ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, पू., (दुर्जन पुरुषनी सोबत), १९१९१-३ कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), १८१५४-८, १८९७४-३(#) कर्मविचित्रता स्वाध्याय, म. ऋद्धिसौभाग्य, मा.ग..गा. १७, पद्य, मप., (देव दाणव तीर्थंकर), १८९७४-१०(#) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देव दाणव तीर्थंकर), १८२२०-२६ कर्म सज्झाय, मु. दान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुखदुःख सरज्यां पामी), १८१५६-३४ कलावतीसती चौपाई, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ८९, वि. १५८०, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पयनमी), १८३६१(5) कलावतीसती चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., ढा. १६, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (जुगमंद्र जिन जगतगुरु), १९०६६-२ कलावतीसती रास, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ८४, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रइ रे नयरी), १८८४३(+) कल्पबोल संग्रह, मा.गु., गद्य, ?, (काल्पथीतना १० बोल), १८६३६-२ कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमु सदा), १७८९९, १९५३२, २००६३-१, १९२५१(६) कामदेवश्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, श्वे., (एक दिन इंद्रे), १८४४०-९ कामावती रास, शिवदास, मा.गु., गा. ५६८, पद्य, मूपू., (प्रथम गुणपति सरस्वती), १८५९२(+) कामीभोगीद्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (विकलेंद्री ३ ए भोगी), १९८७०-३ काया पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (काया मांजत कुन गुना), १८६२९-६ कार्तिकशेठ चौढालीयो, मा.गु., ढा. ४, वि. १८४६, पद्य, मूपू., (आदेसर आदि करी चोवीसु), १७३९२-१ कालिकाचार्य कथा @, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां पूर्वइ स्थविरा), १९३९९(+) काव्यदुहाकवित्तपद्य, मा.गु., पद्य, ?, (--), १८९१३-२(+), १८६७८-२, १८९०७-२, १८९२७-३, १८९७९-२०, २०८२२-२ कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कुंथुजिन मनडु किमहि), १८१५६-४२ कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनजी मोरा रे रात), १८९७९-१ कुंथुजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कुंथुजिणेसर साहिब), १८१७८-२२ कुंथुजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, पू., (कुंथुजिननाथ जे करे), १९००५-८६ कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (जिनवर प्रणमी सदा), २००२५-२ कुमतकदलीकृपाणिका चौपाई, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पयामिय), २०१९३-१(+) कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहिं., गद्य, मूपू., (मनोमती झूठी प्ररुपणा), १९२४० कुमतिसंगनिवारण जिनबिंबस्थापना स्तवन, श्राव. लधो, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीजिन पंकज प्रणमी), १८६३४-९ For Private And Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. ४९४९, ग्रं. ५८००, वि. १६७०, पद्य, मूपू., (सकल सिद्ध सुपरि नमु), १७३९८, १९८२७६) कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १२९, गा. २८७६, ग्रं. ४१६०, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति भगवति नमु), १८०४१(+), १८५३४-१(+) कुमारपाल रास, मु. हीरकुशल, मा.गु., गा. ८०४, वि. १६४०, पद्य, मूपू., (पय पंकय जस प्रणमतां), १८७२८(#) कुलध्वजराजा कथा, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ३०, गा. ५३८, वि. १६९३, पद्य, मूपू., (लखमी विसाला फलकारी), २०९३०-२ कृष्ण ढाल, मा.गु., ढा. १८, पद्य, मूपू., (नेमनाथ समसाँ), १९४६३ कृष्णभक्ति पद, क. नरसिंह महेता, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (तुमे उरहा आवो रे कहु), २०१२३-२ कृष्ण सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., (धुधु कटि धुधु कटि), २०१४५-२ केशीगणधर-परदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीअरिहंत), १७३७८ केशीगौतम स्वाध्याय, मु. रुपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ए दोय गणधर प्रणमीये), १८६३८-९ कोणिक चौपाई. मा.ग.. ढा. १७. पद्य, श्वे.. (लोभम कर रेजीवडा). २०५८५. १८४२७-६(#) कोणिकराजा चौपाई, क्र. जेमल, मा.गु., ढा. १७, पद्य, श्वे., (लोभ म कर रे जीवडा), २०६०९ क्रोधपचीसी, ऋ. चंद्रभाण, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (भवियण हो भवियण करोध), १८९७८-१२ क्रोधमानमायालोभपरिहार सज्झाय, मु. हर्षविमल-शिष्य, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (समरी सरस्वतीमाय), १८२८३-२ क्षमासूरि स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जय जय गणधारक विजय), १८१५६-६० खंधकऋषि चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (पांचसैइ तिण अवसरै), १८६२९-७४ खंधकमुनि चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिध आचारज नमु), २०३१४ खंधकमुनि चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, वि. १८०५, पद्य, श्वे., (आदि सिद्ध नवकार गुरु), १८६२९-५३ खामणा भास, मु. सुखसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अति अतिशयी अरिहंत), १८२८५-२ गंगकवि पद, रा. अकबर, मा.गु., गा. १, पद्य, (गंग प्रवाह वहै अजी), १८१५६-६४ गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., ढा. ३०, गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, मूपू., (नेमिसर जिनवरतणा चरण), १७३८९, २०४९४ गजसुकुमाल चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., ढा. ३४, गा. ६२१, वि. १६०३, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनपति पुण्यातम), २०९८५ गजसुकुमाल चौपाई, मा.गु., ढा. १८, पद्य, मूपू., (भदलपुर नामे नगर तिहा), १८४२७-२५(२) गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, मा.गु., गा. ९१, पद्य, मूपू., (देस सोरठ द्वारापुरी), २०१८८-२(+$) गजसुकुमाल सज्झाय, ऋ. चौथमल, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुखमाल देवकीनंदन), १८९७८-११ गजसुकुमाल सज्झाय, मु. मकनमोहन, मा.गु., ढा. २, गा. ४३, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीयाजी), १७३०९-१ गजसुकुमाल सज्झाय, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे.?, (गजसुकुमाल भये वैरागी), १८६२९-५ गजसुकुमाल सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (छप्पनकोडि यादवकुलि), १८१७९-१ For Private And Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गति आगति ८ द्वार, मा.गु., गद्य, थे., (), २०४८७ (३) गत आगति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकीनी गति ४० ते), १७९४२-२ गम्मा यंत्र, मा.गु., को., ओ., (), २०९३८-१ गिरनार - शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), १९११७-२६ गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., डा. २७, गा. १६०३, वि. १७५४, पद्य, वे., ( संपति सुखदायक सरस ), १८२९१ गुणकरंडकगुणावली रास - बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २६, गा. ४९३, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनं गुण), १८९३४ (+), १८३०७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणसागरगुरु गुंहली, मु. पद्म, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोल वरसें संयम लिओ), १८९७९-८ गुणस्थानक द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम लक्षण करिया कामा), १९३२६ , गुणस्थानक सज्झाय, मु. सुंदरविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपु. ( समरवि वीरजिणेसर देव), १८९७९-६ गुरुगुण गहुंली, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (तुमे शुभ परिणामें), १८९७२-१८ गुरुगुण गली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिनवचणे अनुरंगी), १८९७२-१७ गुरुगुण गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (उदउ अवनिपतिजि सूर). १८२६८-२ गुरुगुण गीत, पुहिं., पद्य, वे., (श्रीगुरुचरन सरोज), १८५१३-२ (+) गुरुगुण सज्झाय, मु. भूधर, पुहिं., गा. १३, पद्य, मूपू., (ते गुरु मेरे उर वसे), १८६२९-५७ गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, वे., (आज म्हारे आनंद रंग), १९१२७-९ (5) गुरुस्वाध्याय, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू., (35 थंभण पास जिणेसर), १८६२४-३(+) गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., अ. ४, वि. १५७२, पद्य, मूपू., (शशिकरनिकर समुज्वल), १८२१८ - १ (+), १७७४३, १७९१३, १७९२६, १८८८९(१) गुरूगुण गहुली, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( आगम वयण सुधारस पीजे), १८९७२ - ९, १८९७९-१२ गोराबादल रास, जमल, मा.गु., गा. १४६, वि. १६८०, पद्य, जे., (चरण कमल चितलाय के), २०१९०(क) ५४९ गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., खं. ३, दाल ३९, गा. ८१६, ग्रं. ११५७, वि. १७०७, पद्य, मूपू., ( श्रीआदिसर प्रथम जिण), १८१२१(३) 9 गौतमस्वामी अष्टक, मु. धीर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपु. ( पहिलो गणधर वीरनो रे), १९३०८-२ गौतमस्वामी अष्टक, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, जै. (इंद्रभूति गुरु लबधि), १९००७-३(+) गौतमस्वामी गहुली, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चरणकरण व्रत धारता), १८९७२-६ गौतमस्वामी गहुली, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपु., (गुणनिधि है गुणनिधि), १८९७२-१० गौतमस्वामी गहुली, मु. सुखसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सखी गूंहली करो गुरु), १८२८५-३ गौतमस्वामी गली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोतम गणधर मुख्य ), १८९७२-५ गौतमस्वामी गहुली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (राजगृही रलियामणि जिह), १८१५६-३९ " गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२४, वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), १७९८४, १८४६३, १८९८९, १८९९५, २०३९६, २०४०३ For Private And Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ गौतमस्वामी गहुंली, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वर अतिशय कंचनवाने), १८९७२-१ गौतमस्वामी गहुली, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहिबा गुरु गछपति), १८९७२-१५ गौतमस्वामी गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रह उठी नित प्रणमीय), १९१२७-१७ गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मात पृथ्वी सुत प्रात), १८४१९-१६(+), १९००७-२(+) गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर जिनेश्वरकेरो शिष), १९१७८-४८ गौतमस्वामीनुं स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहेलो गणधर वीरनो रे), १८०००-३ गौतमस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जगगुरु जिनपति हो), १८९७२-१४ गौतमस्वामी भास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुनीवर हे कें मुनीवर), १८९७९-९ गौतमस्वामीरास, ऋ. जैमल, रा., गा. १८, वि. १८२४, पद्य, श्वे., (गुण गाय गोतम तणा), १७३७५ गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर चरण कमल), १९००७-१(क), १८१३०, १८२४२, १८९६७, १९१७८-४६, १९३०८-१, १९४१३, १९५६४-१ (२) गौतमस्वामी रास-अन्वय, सं., गद्य, पू., (मया विजयभद्राचार्येण), १९४१३ गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभाते गोतम प्रणमी), १९१७८-४७ चंदकेवली रास, मु. सुमतिरत्न-शिष्य, मा.गु., प्र. ९, वि. १६९२, पद्य, मूपू., (सकल जिनेसर मनिधरीए), १८००१(+) चंदनबाला चौपाई, मु. ब्रह्म, पुहि., गा. १६०, पद्य, मूपू., (मोह पिसाच वसकरणकुं), १९४२७(+), १७९०४-१, १८५६३ चंदनबाला चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. १४, पद्य, मूपू., (फणीमणीमंडित निलतन), २००१३-२, १८४२७-२४(#) चंदनबाला सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (बालकुंआरी चंदनबाला), १८९७६-१२ चंदनमलयागिरीरास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १७०४, पद्य, मूपू., (जिनवर चउवीसे नमी), १९५३४-१ चंदनमलयागिरीरास, सा. पार्वतीजी, मा.ग., ढा. २१. वि. १९५१. पद्य, स्था.. (सासण नायक समरिये), १९९९१-२(+) चंदनमलयागिरीरास, मु. भद्रसेन, पुहि., अ. ५, गा. १९९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीविक्रम), २०२८२(+$) चंदनमलयागिरी रास, मा.गु., ढा. ८, ग्रं. ४०५, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध नमु सदा), १९६७२ चंदनमलयागिरी चौपाई, मा.गु., ढा. १९, गा. २७३, वि. १७७८, पद्य, मूपू., (गोयम गणधर पयनमी), १९२९६(+), १८११५ चंदराजागुणावली चरित्र, मु. दर्शनविजय, मा.गु., ढा. ४४, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (श्रीसुखदायक जिनवरु), १८०८८ चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., गा. १२५, पद्य, मूपू., (समरु सरसती मात मनाय), १८७२१-२(5) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. जैमल, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), १८९७८-५ चंद्रप्रभजिन पद, मु. मान, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु जिनवर), १९११७-२७ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, पद्य, जै., (देखण दे रे सखी), १९००५-१२५ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु वंदीए), १८१७८-१२ चंद्रप्रभजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सेवे सुर वृंदा जास), १९००५-७२ चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४, ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मपू., (प्रथम धराधव तीम), १७७१३(+), १८५१०(+#$), १८११२, २०६४७(६), २०७०१६) (२) चंद्रराजा रास-(मा.गु.रा.)रागनाम संग्रह, संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (चोपइनी १ दिलशुद्ध), २०४३७-२ For Private And Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ (२) चंद्रराजा रास-(सं.मा.गु.रा.)सुभाषित संग्रह, मा.गु.,रा.,सं., गा. ११६, प+ग., मूपू., (चंदरासरो उल्लासदूजो), २०४३७-१ चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक समरीइ), १८३६९(+$), २०८९८(+) चंद्रलेखा चौपाई, मु. हर्षमूर्ति, मा.गु., गा. १५५, वि. १५६६, पद्य, पू., (--), १८२३६ चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमी करी), १८५४२(+$), १७३४२, १७८३६, १८१४३, १८२२६, १९३४०-१, २०८०६ चंद्राननजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, दि., (चंद्रानन जिन सांभलिय), १९००५-१४० चंपकमाला रास, ऋ. पुनमचंद, मा.गु., गा. ६२०, वि. १५७८, पद्य, मूपू., (आदि जिनवर २ आदि मुनी), १८४८९(+) चतुर्विंशतिजिन पंचकल्याणक स्तवन, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. ६९, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सारदमात नमी करी), २०८३९ चातुर्मासिक व्याख्यान @, रा., गद्य, पू., (पंचापि परमेष्टिन), १७९१५(+), १७९८१-१ चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रणम्य परमानंद पंचा), १८९५२ चारमंगल सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (पहिलो मंगल अरिहंतनो), १८६२९-३९ चारमासी, सिवराम, मा.गु., गा. ४, पद्य, ?, (भरयोवन में आई युवानी), १९५१४-२ चारित्रभेद विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (सामायक चारित्र मै), १८६३२-३ चित्रसंभूति चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रणमु सरसति सामणी), १८६२९-४९(६) चित्रसंभूति सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चित्र अनि संभूतए), १८४३१-२१(+) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), १८६२९-५९६६) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बांधव बोल मानोजी), १८२२०-१५ चित्रसेनपद्मावती चौपाई, आ. सोमकलशसूरि, मा.गु., गा. ६२९, ग्रं. ८५०, वि. १६१०, पद्य, मूपू., (पहिलूं प्रणमूंऋषभ), १८८७९(+) चित्रसेनपद्मावती रास, उपा. रत्नविमल, मा.गु., ढा. ४१, पद्य, मूपू., (सरसति मति आपौ सदा), १७३४८ चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), १८१५४-६ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम प्रतिमा ४ माडी), १७५८८, १७७०३, १९२०५ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, मु. दानविजय, मा.गु., देवजो. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम चौमुख प्रतिमा), १७७६७-१, १८०७९, १७६१३() चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (तीर्थराजं नमस्कृत्य), १७९८१-९ चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सेजुजगिर नमीयै), १९१७८-२४ चौदपूर्वनाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्पाद पूर्व १ अग्र), १७६८४-२ चौमासी देववंदन सविधि, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४२५, पद्य, मूपू., (प्रथम ईरियावहि पछे), १९१५०, २०८४९-१ चौमासीपर्व देववंदन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम ऋषभ देवचैत्य), १७७०१, १७८८०-१, १७८७९-१(२) For Private And Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), १७७८५(+), १७७८६-१(+), १७८१३(+), १७५९९, १७६१०, १७६९२, १७७७९, १७८०८, १७८७३, १८२३८, १८४७८, १८९१०, १८९५०, १९३६४-१, १९९०६, २०१४५-१, १७७०४(६), १९०२७(#) चौवीसजिन छंद, मु. सौभाग्यसागर, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (बह्माणि सुता वाणि), १८४२६-१(+) चौवीसजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., (प्रणमु महाराज राज), १९११७-४६ चौवीसजिन फाग, मु. महानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनराज सदा दिल ध्याइ), १८१५७-२१ चौवीसजिन लेखो, मा.गु., गद्य, मूपू., (पैहला वांदु श्रीऋषभ), १८४६४-१ चौवीसजिन वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभदेवस्वामि), १७६७२ चौवीसजिनवर्णन यंत्र-१०६ द्वार, मा.गु., को., मूपू., (--), १९२५७(+) चौवीसजिन विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिनाथ प्रथम), १८६६५ चौवीसजिन स्तवन, ग. जयसौभाग्य वाचक, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव जिन), १८९०५-२ चौवीसजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (सकल सुहकर जिनवरा), १८१७८-३८ चौवीसजिन स्तवन, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ करिजे), १८९७८-१५ चौवीसजिन स्तुति नमस्कार, मु. लक्ष्मण, मा.गु., गा. ७८, पद्य, मूपू., (--), १८१८०-१ चौवीसतीर्थंकर छंद, मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सरसति संपति द्यो सदा), १८९८०-२ छन्नूजिन स्तवन, वा. मूला, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (केवलनाणी श्रीनिरवाणी), १७९६२-३ जंबू चरित्र, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (पाणी जोड प्रभवो कहें), १८४२७-२१(१) जंबूद्वीपगणित विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (परिधि गणितपद इखुबांण), १९८६६ जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., ढा. १३, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ सर्वदा), १७८१९, १८२८३-१, १८९३९, १९३८५, १९९३६, २०८५३, २००२४(६) । जंबूस्वामी कथा, मु. बुद्धि, मा.गु., पद्य, श्वे., (पदमश्री कहि सुंदरी), १८८४६(#) जंबूस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (सप्रभावं जिन), १७६९८, १८३०२-३ जंबूस्वामी गहुंली, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरजी गणधर), १८९७२-८ जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., ढा. ३५, वि. १९२०, पद्य, मूपू., (शासनपति वर्धमाननो), १९४०७(+) जंबूस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्वामी सुधर्मा सेवीइ), १८९७२-१३ जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ३५, गा. ६०८, ग्रं. १०३५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणंदना), १८२५९, १९०२३, २०८५९ जंबूस्वामी रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १८५, वि. १५२२, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पय नमी), १८४२३-१ जंबूस्वामी रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (तीण दिन वात ज सांभलि), १८६२८-४(+) जंबूस्वामी सज्झाय, ऋ. खुशालचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (मगध देश राजगृही नगरी), १८२२०-७ जंबूस्वामी सज्झाय, पं. शीलविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (राजगृह नगरी वसै ऋषभ), १८६२९-७३ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे), १८१५६-३६ For Private And Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जयविजयकुंवर रास, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., अधि. ४, ढाल ३३, ग्रं. ७२५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (आदि आदि जिणेसरु पय), १८०७८(+) जिणरस, मु. वेणीराम, मा.गु., गा. १९५, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (गणपद सारद पाय नमी), १८२२७ जिनआज्ञा सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जिनआणा सिर वहीयै), १९१२७-६ जिनकुशलसूरि सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनेसरू शासन), १९१२७-१५ जिनदत्तसूरि गीत, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सदगुरु को ध्यान हृदै), १९१२७-१६ जिनपंचकप्रभाति स्तवन, वा. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (पंच परमेश्व० परम), १८४१९-१४(+) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (ज्ञातारा नमा), १८६२९-५०($) जिनपूजा दोहो, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (जीवडा जिनवर पूजीये), १९४६१-२ जिनपूजा स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भवि जिन पूजा करजो), १८३२४-२ जिनप्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिले तिर्छालोकें), १७७८०-२(+) जिनप्रतिमास्थापना निक्षेपा चर्चा, मा.गु., गद्य, मपू., (इहां कोई अग्यांनीजीव), १७४३८ जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदन), १८६३८-२० जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भरतादिके उद्धारज), १८४१९-१(+) जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, रा., ढा. ४, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), १८४२०-७(-) जिनरक्षितजिनपाल सज्झाय, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नयरी चंपावती जाणीये), १८८६९-२(+) जिनवीर्य, मा.गु., गद्य, श्वे., (सुणो वीर्य बोलु), १९३४०-२ जिनस्तवनचौवीशी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदिकरण अरिहंतजी ओलगड), १८९९१(+), १७३१० जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मपू., (जगजीवन जगवाल्हो), १७७१५(+#) जिनस्तवनचौवीशी-१४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव नितु वंदिये), १८७२१-१ जिनेश्वर ३० तुकारा दुहा, मा.गु., गा. ५, पद्य, जै., (जिनवर तुं करि ते होय), १८८२३-८(+) जीवदया सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (दयाधर्म विन मुक्तिन), १८६२९-२० जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., ढा. ९, गा.८३, वि. १७१२, पद्य, मपू., (श्रीसरसती रे वरसती), १७६११, १८४५१, २००४३, २००४८, २०१४४, २०४४३, २०८६३ जीवहित सज्झाय, मु. खिमा, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गरभावासमे चिंतवइहै), १८४३१-९(+) जीवादि २४ दंडके २१ द्वार विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), २०९३८-२ जैन गाथा, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १८०१६-२(+), १९००७-८(+), २०५२९-२(+), १७७६८-२, १९२६६-२, १९३४१-२ ज्ञानना १० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनपर्यवज्ञान १ परम), १८३०२-५ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (युगला धर्म निवारिओ आ), १९१३५-२ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा वीर), १८४१७-८(+), १९००५-१६ ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), १७८८४-१(+), १७८९६(+), १८४१७-९(१, १७८४१, १७८५८, १७९८३, १९६४४, १९६५०, १९६५२, २०००२, २०७७७ ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., वि. १८८७, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलावली), १७९५९, १९७७५ For Private And Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीगुरुपाय), १९१३१-२, १९१७८-३९ ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (पंचमी तप तुमे करो), १९००५-१२१, १९१७८-४० ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (सद्गुरू चरण पसाउले), १८९७६-७ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर), १७९८९-१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), १८४२४, १९२६१, १८४२७-२०(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), २०२४९-१(+), १७८९५, १९४९७ ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २५, पद्य, श्वे., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), १८१५४-९ ज्ञानपद, सुंदर, मा.गु., गा. १, पद्य, जै.?, (पढ्यो कन्ह बेठो पास), १९५८२-२ ज्ञान पूजा-बृहत, उपा. चारित्रनंदी, मा.गु., वि. १८९५, पद्य, मप.. (नाभिनंद प्रणमी करी). १९२३८(+$) ज्ञानप्रकाश, क. नंदलाल, मा.गु., स्कं. २, कांड २०, वि. १९०६, पद्य, श्वे.?, (वद्धमाण नमो किच्चा), १९९८४-१(-) झांझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (महियलि मांहि मुनिवरु), १८६३५-२०(#) झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्नसूरि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे शीस नमावी), २०४६०-१, १८४२७-४(#) ढंढणऋषि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), १८४३१-१४(+), १८२२०-१९, १८९७६-६ ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी प्रणमी), २००२५-३ ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सरसती चरण नमी करी), २०४६९ हँढियाउत्पत्ति चौढालियो, मु. हेमविलास, मा.गु., ढा. ४, वि. १८७६, पद्य, मूपू., (सरसति माता समरि करि), २०५४८-१ ढुंढियामत दूहा, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (मुंडे बांधे मुंपति), २०५४८-२ ढोलामारु चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ७००, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सामिनी), १८०७६ तपसी पंचढालियो, मु. गुलाबचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ५, वि. १८९८, पद्य, श्वे.?, (अरिहणीया अरहतजी), १९८२४-१(+) तपा-खरतरभेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (एता बोल तपा तथा खरतर), १८२७४ तपावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरिमढ्ढ १ एकासणां), २०७९५(६) तमाकुपरिहार सज्झाय, मु. आणंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती विनवे), १८६२९-२७ तारासंख्या , मा.गु., गद्य, मूपू., (भरतेरवरत मे तारानी), १९४६२-२ । तीर्थमाला, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., ढा. १३, गा. ३१२, ग्रं. ४१३, वि. १७८५, पद्य, मूपू., (आणंददाई आगरे प्रणम्य), १८३०९ तीर्थमाला, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहे कह्यां तेतलां), १८६३५-१९(#) तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निसिहि त्रण), १९००५-५९ तेजसारकुमार रास, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ४०६, वि. १६२४, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथ कुलतिलो), १८८३१, २०१८१ For Private And Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५५५ तेजसारकुमार रास, मु. नेमिविजय, मा.गु., ढा. ३९, वि. १७८७, पद्य, मूपू., (परम परमेश्वर प्रभू), १९५७२ तेजसिंहगुरु भास, ऋ. तेजसिंह-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, स्था., (आजनुं दिवस भाई सफल), १८४८६-२ तेजसिंह भास, मा.गु., गा. ४, पद्य, स्था., (सह गुरु मन मोहनारे), १८४८६-३ तेतलीपुत्र चौढालिया, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, वि. १८२५, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिधनै आयरिया), १९५३४-२ तेतलीपुत्र रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २६०, वि. १५९५, पद्य, मूपू., (शासनदेवि नमुं महासती), २०२१३(+) त्रिकालभाव वंदना, मा.गु., पद्य, मूप., (पढो मंत्र नवकार ताप). १९१३१-५ ($) त्रिभुवनसिंहकुमार रास, मु. उत्तमसागर, मा.गु., ढा. ४४, गा. ६४७, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी सार), २०२०९(+), २०६९३ त्रिषष्टिशलाकापुरुषविवरण वनाम, मा.ग., गद्य, श्वे., (९ वासूदेव. ९ बलदेव.), १९६८१-२(+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरणकमल मन), १९१७२-१ त्रैलोक्यसुंदरी चौपाई, क्र. कनीरामजी, मा.गु., ढा. २२, वि. १८११, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्ध अनंतगुण), १७३४३ थावच्चापुत्र नवढालियो, रा., ढा. ९, पद्य, श्वे., (आरिसाना भवनै बैठा), १८४२७-१७(१) थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., ढा. ४, गा. ५३, वि. १८४७, पद्य, मूपू., (--), १९१२७-१०(5) दमयंती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मा.गु., गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसु जागता हुवो), २०६४०($) दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, मा.गु., गा. ३६, वि. १९०५, पद्य, मूपू., (चरण कमल गुरूदेव के), १९५८२-१ दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, जै., (में तो वेम छराला हो), १९००९-५ दशार्णभद्रराजा सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाइ सेवक), १८४३१-७(+), १८६३८-२२ दशार्णभद्र सज्झाय, आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद एवंदी धरि), १८६३१-३ दसाणुवाइ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव समुचय सर्व थोडा), १९८४५-२ (२) दसाणुवाइ-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी गुणसल), १८२७२-१ दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय), १८४३१-६(+), १९११७-३७, २००६३-३ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), १९१७८-४४, १९७३१, १९९५२, २०२४०, २०४९८, २००१०-१(६), २०७९८९६) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (दान एक मन देह जीवडे), १८६२९-६१ दामनक चौपाई, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., वि. १९९९, पद्य, स्था., (परम धरम धारक प्रभु), २०५०२(5) दिक्पट ८४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १६१, पद्य, मूपू., (सुगुण ज्ञान शुभध्यान), १७३०३ दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (दिसि गति इंदिय काए), १९७१२(+) दीपावलीपर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मूपू., (पणमिय वीरं वुच्छं), १७९८१-३ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जयजय कर मंगलदीपक), १८१५६-५५ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), १७९८२-८(+), १८९७५-२ दीपावलीपर्व स्तति, मा.ग., गा. १, पद्य, मप., (जय मानव सेवित), १८१५६-५६ दुष्कृतगर्हा, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारंमि अनंते), १९७७४-२ For Private And Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५६ www.kobatirth.org दुष्कृतनिंदा, मा.गु., गद्य, भूपू (बहिरात्मा करीने कर्म), १९७७४-१ " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ दुहासंग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, क्षे., (), १८४५८-२, १८६३५-२७८०१ दूमराय- प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नगर कपीलानो धणी रे ), १८१५६-४, १८१५७-६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृढप्रहारी सज्झाय, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., डा. ५, वि. १८३५, पद्य, क्षे., (पंच प्रभूनें नीत नमु), १८४२७-१०) देवयशाजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (देवजसा दरिसण करो), १९००५ -१३७ देवाधिदेव रचना, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ५६९, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (सकल जगपति पर्व पद), १७८४३(+) देवानंदा सज्झाय, उपा सकलचंद्रगणि, पुहिं, गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन), १८६३८-८, १८९७६-१६ दोहावली, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ६३, पद्य, श्वे., (लोचन प्यारे पलकको कर), १९३७०-१ दोहासंग्रह -, मा.गु., पद्य, (सजन तोरा गुण धणा), १९१९५, १९६७१-२ द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३८४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु जितविजय मन), १८३२३-१(+), १९४५१, २००७८, १७८४० (#) (२) द्रव्यगुणपर्याय रास-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतं नत्वा), १९४५१ द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., डा. ३९, गा. १११७, वि. १६९३, पद्य, मूपू, (पुरिसादाणी पासजिण), १८१२० (+), २०१२९, २०१५१ द्रौपदीसती रास, मु. चोथमल ऋषि, रा. वि. १८५४, पद्य, ., (सकल जिनेसर नित नमु), २००९४ (+) धनदत्तधनदेव रास, मु. मलयचंद्र, मा.गु., गा. २४२, वि. १५१९, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि मनि), १८२६८-१ धना चौढालियो ऋ. आसकरण, रा. डा. ७, वि. १८५९, पद्य, से., (नगरी काकंदी हो अति), १८४२७-१५ () धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (जिनवचने वयरागी हो), १८६३८-१५ धन्नाअणगार सज्झाय, सिघो, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनि वीनवुं), १८६२९-३१ धन्ना रास, वा मतिशेखर, मा.गु., गा. ३३०, वि. १५१४, पद्य, मूपु, (पहिलउं पणमी पयकमल), १८७२३ धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मा.गु., खं. ४, ढाल ८५, गा. २२४२, ग्रं. २५००, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणि क्रम), १७५६०(१) " धन्नाशालिभद्र रास, मु. भावरत्नसूर, मा.गु., खं. २, वि. १७७२, पद्य, मूपू (अरिहंत अनंत सिद्ध), १९००२ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजीया जोरावर कारमी), १८४३७-५ धन्ना सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सुणवाणी वैराणीयोजी ए) १८६२९-४६ धन्ना सज्झाय, मु. तिलोकसी - शिष्य, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे., (जंबुतोदीप हो धन्ना), १८६२८-२(+) धमाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, वे., (दस लछन फाग सुहावनो), १८६२९-६९ धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हां रे मारे धरम जिणं), १८६३४-२ धर्मजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू, (धास्युं प्रेम बन्यौ, १८९५६ १६ धर्मजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धर्म जीनेसर वंदीए), १८१७८-१९ धर्मजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (धन धर्मनाथ धरमावतार), १९००५ -१४४३) धर्मजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., ( धरम धरम धोरी कर्मना), १९००५-८५ For Private And Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५५७ धर्मपरीक्षा वार्त्तिक, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोइक भलो शिष्य विनइ), १७५६५ धर्ममित्रकरण सज्झाय, क. कनकसुंदर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन मुड), १८१७९-१७ धर्मलाभउपाय रास, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२२, पद्य, मूपू., (धम्म सवणाणु रत्ता), १८२३३-१ धर्म व पाप की सज्झाय, वा. चारुदत्त, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीजीनवरनाथ णमे पाय), १८४२८-३ ध्यानस्वरुपनिरुपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. १६३, वि. १६९६, पद्य, म्पू., (सकल जिणेसर पाय वंदे), १७८८७ नंदनमणियार चौढालियो, रा., ढा. ४, पद्य, श्वे., (ग्यातारा तेरमां अधेन), १७३९२-२ नंदबत्रीसीचौपाई कथासार, मा.गु., गद्य, (पाडलीपुर नगरि नंदराज), १८८२३-३(+) नंदिषेण भास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज पणि दसमा रे सखी), १८१७९-११ नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, ग्रं. ४२१, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), १७५७४ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), १८४३१-२२(+), १८१५६-२, १८६३८-१६ नंदीश्वरद्वीप स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, स्पू., (नंदिश्वर वरद्विप), १९००५-७३ नक्षत्रनाम, तारासंख्या व संस्थान, मा.गु., गद्य, जै.?, (अभीषच नक्षत्रना तारा), १९८७०-२ नमस्कार महामंत्र छंद, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वंछित ०श्रीजिनशासन), १९००७-५(+), १८४३६-७, १९००९-३, १८९७५-१९(३) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुख कारण भवीयण समरो), १९००७-७(+) नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पहिलो लीजि), १९३५३-१ नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, मु. गुणप्रभुसुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), १९१३१-४ नमस्कारमहामंत्र स्तवन, ऋ. रायचंद, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (प्रथम श्रीअरिहंत), १८६२९-६५ नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे अयाण), १८१३२-४(+) नमिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनजी सुरनर वंदन हो०), १८१७८-२८ नमिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नमिजिनचंद नरिंद), १८१७८-२७ नमिराजर्षि सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देवतणी ऋधि भोगवी), १८४३१-१६(+) नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी हो मिथीला नगरीनो), १८१५७-१९ नमिराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नयर सुंदरसण राय हो), १८१५६-५, १८१५७-७ नरकदुःखवर्णन सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (हो प्राणी रे नरकतणा), १८४४०-६ नरभवरत्नचिंतामणि सज्झाय, अभयराम, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आ भव रत्नचिंतामणी), १८४२८-२३ नर्मदासती चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., ढा. १५, पद्य, श्वे., (सासणनायक समरीयै), १९९८३-१(-) नर्मदासुंदरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ६३, गा. १४५४, ग्रं. १४६६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., ___ (प्रभुचरणांबुजरजतणी), १७५०७, १९५५४-१ नलदमयंतीरास, आ. ऋषिवर्द्धनसूरि, मा.गु., गा. ३३१, ग्रं. ५००, वि. १५१२, पद्य, मूपू., (सयल संघ सुहसंतिकर), १८५७२(+) For Private And Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६, ढाल ३९, गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपू., (सीमधरस्वामी प्रमुख), १८०८४(+), १८७६९(+5), १९३५८(+), २००१४(+), १८८०२-१, १९९३४, २०५०९ नलदमयंतीरास, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि सुगुरु), २०३६० नवकार कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवकार इक्क अक्खर पाव), २०२७४-१(+) नवकारगणना पद, मु. मान, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (माहामन इम जपीयै), १८९७७-९ नवकारमंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बार जपुं अरिहंतना), १८६३८-७ नवकार रास, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १९२४१(६) नवकारवाळी सज्झाय, मु. रुपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कहेजो चतुर नर ए कोण), १८४४०-५, १८९७६-१७ नवकार सज्झाय, मा.गु., गा. ६०, पद्य, श्वे., (तंत्र जगमें मंत्र), १८९७८-८ । नवकार होरी, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (नमुं आदि अरिहंतकु जी), १८६२९-६४ नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव चेतन १ अजीव), १८४५७(+), १९२७९-२ नवतत्त्व चौपाई, आ. आणंदवर्धनसूरि, मा.गु., गा. २८९, वि. १६०७, पद्य, मूपू., (अरिहंतना पय जुगल), १७७५०(+) नवतत्त्वभाषा, मु. निहालचंद, मा.गु., गा. १४९, वि. १८०७, पद्य, मूपू., (मंगलकरन हरन दुखदंद), १८५८९ नवतत्त्व वचनिका, मु. टीकमजी, मा.गु., गद्य, श्वे.?, (अथ ९ पदार्थना २४), १९७११ नवतत्त्व विचार @, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १९१२२, १८०८१(६), १८४९९(६) नवतत्त्व स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८७२, पद्य, मूपू., (सरस्वतीनें प्रणमुं), १९७२० नवदसार पुरुषाधिकार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूदीवेणं० उसप्पिणी), २०८४३-४(+) नवपद, अज्ञा., जै., (--), <प्रतहीन>. (२) नवपद-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सिद्ध सरूपी), १७९०२(+) नवपद चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., (सिद्धचक्र पद वंदिय), १८६३७-२१ नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमोनंत संत प्रमोद), १८६३७-२२ नवपद स्तुति, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनशासन वंछित पूरण), १८४२९-१२(८) नवबोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीसूगडांगना सूत्र), १७७८३ नववाड सीयलवेल, श्राव. मकन, मा.गु., ढा. ८, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती समरं सदा), १७६७०(+) नववाडि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), १८६३८-२३, १८९०८, १९२२७-५, २०१०१-१, २०२९६, २०८३१ नववाडि सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (रमणीपशुपंडगतणी रे), १८४३१-२५(+) नववाडी ढाल, मा.गु., ढा. ११, वि. १८४१, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिसर चरण जुग), १९०६६-१ नववाडी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), १८६३९-१, १९५१६ नववाडी सज्झाय, मा.गु., ढा. १, गा. ३१, पद्य, श्वे., (ऋषभ जीणेस्वर प्रणमी), १८६२९-७८ नागीला ढाल, मु. रामजी, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमु हो के), १८६२९-२८ नाममाला भाषा, बनारसीदास, मा.गु., गा. १७५, वि. १६१७, पद्य, श्वे., (ॐकार परनाम कर भनु), २०९८४ For Private And Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ निगोदगोला विचार, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (बिहु भेदे एगिंदीया), २०८४३-२(+) नियंठाविचार-भगवतीसूत्रगत, मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूपू., (पण्णवय१ बेयर रागे३), २००६४(5) निरंजन पद, रूपचंद, हिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (देव निरंजन भव भय), १९११७-३८ नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (पुंडपुर वर्धन राजीयो), १८१५६-६, १८१५७-८ नूतन ढालसागर, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, स्था., (श्रीमत् शांतिप्रभू), २०५४६(६) नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवस वसै नेमकुंवर), १९८८२(+), १७७०५-१, १९५१४-१, १७५०९(६) नेमजिन व्याहलो, मु. गुमानचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (छपनकोड जादव मिल आया), १९००९-२, १८४२७-१८(१) नेमराजिमती ख्याल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नही करीयेजी नही करीय), १८१५७-२६ नेमराजिमती गीत, मु. मेघाशिष्य ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल सिणगार सजी करी), १८२९४-२ नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (यदुनाथ के हाथ की), १८९७७-२ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (आज सखी योवनि भरि), १८२६८-३ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जाउ रइ सखी मोरो नाहो), १८२६८-४ नेमराजिमती पद, मु. दान, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (बलीहारी हो प्रभु), १८२२०-२३ नेमराजिमती पद, मु. भानचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (गिरनारी डुगर प्यारो), १८१७५-५ नेमराजिमती पद, मु. रंग, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (तुझ वन मेरी कुन खबर), १८३०२-४, १९५१४-३ नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बावीस सुभटनेजी पवारे), १८४४०-१०, १९११७-१५ नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (सारद पय पणमी करी), १८१७३-५ नेमराजिमती रेखता, मु. चंदविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल पुकारे नेम), १८४१९-१२(+) नेमराजिमती सज्झाय, अमीकुवर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (लावें रे बालुडा थारो), १८४६४-२ नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (कपूर होवे अति उजलो), १८४३७-८ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुनि सुनि सहेलडी हे), १८८०२-३ नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जे जिन मुख कमले), १८९७९-४ नेमराजुल पद, मु. कांति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेम गयो रथ फेरि ही), १९११७-२५ नेमराजुल बारमासो, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावण पहिलइ मासि हो), १८६३१-४ नेमराजुल लेख, मु. रंग विजय, मा.गु., गा. ४७, वि. १७३३, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीगढ), १८६३५-७(#) नेमराजुल स्नेहवेली, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. १५, वि. १८७६, पद्य, मूपू., (शंखेश्वर पासजी हरी), १९८०४ नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (अचलपुर नगर), २०८६०(+) नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रह सम प्रण{ नेम), १९१७८-११ नेमिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेमिनाथ बावीसमा), १८४१७-२२(+), १९००५-३८ नेमिजिन पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जादव ती सब मंगल गावे), १८६३३-५ For Private And Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ नेमिजिन पद, विराग, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमनाथजी किरपा किजो), १९११७-३१ नेमिजिन पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (वनडो नेमकुमार देखो), १९११७-४७(६) नेमिजिन फाग, मु. वर्द्धमान, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीनेम जिनेश्वर), १८६२९-३३, १८८०२-२ नेमिजिन बारमासो, मु. गोपालदास, पुहिं., गा. २३, पद्य, मूपू., (अथवा हमै देउ कन्ह), १८१७३-२ नेमिजिन बारमासो, मु. पद्मविजय, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., (फिरि मेरी गली कब), १८१७३-३ नेमिजिन बारमासो, मु. रूपविजय, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (सुणो हो सनेही साहिब), १८१७३-१ नेमिजिन बारमासो, मु. ललितसागर, मा.गु., गा. १५, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (अरज सुणी मोरी साहबा), १८४२०-४(८) नेमिजिन बारमासो, पुहि., गा. १४, पद्य, मूपू., (अब सखी आयो है सावण), १८१७३-४ नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रंगीला नेमजी चैत्र), १८४३२-१० नेमिजिन बारमासो. मा.ग.. पद्य. मप.. (राजल सहीयन इम कहथ), १८४२०-६(-) नेमिजिन बारमासो, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु प्रणमिवे), १८४३१-१२(+) नेमिजिन रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. २, वि. १५४६, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा श्रीशारदौ), १७९२०, १८३३८, १८३६४ नेमिजिन रास, मा.गु., ढा. १८, पद्य, श्वे., (संखराजाने जसोमती), १९४७७ नेमिजिन विवाहलो, मु. ऋषभविजय, मा.गु., ढा. १७, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (नेम जिनेसर साथे लेइ), १९१८४ नेमिजिन विवाहलो, श्राव. केवलदास अमीचंद, मा.गु., ढा. ४३, वि. १९१९, पद्य, मूपू., (सती सरस्वतीने शीर), २०७४८ नेमिजिन स्तवन, मु. आनंदरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (थां पर वारी हो नेम), १८६३४-१० नेमिजिन स्तवन, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पशु पुकार सुण्या), १८२१६-२ नेमिजिन स्तवन, म. क्षमाकल्याण, मा.ग., गा.१३, वि. १८६६, पद्य, मप., (श्रीनेमीश्वर वंदीयै), १८४२१-६ नेमिजिन स्तवन, मु. चिदानंदजी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (परमातम पूरणकला), १९००५-१३४ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे रथ वालो), १८६३४-६ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (का रथ वाळो हो राज), १८६३४-४ नेमिजिन स्तवन, ग. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसती मातना पाउले), १७८८४-२(+) नेमिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तोरणथी रथफेरी गया), १८१५६-१७, १९००५-१३५ नेमिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मात सिवादेवी जाया), १८१७८-३१ नेमिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरे लाल छबीले नेमजी), १८१७८-३३ नेमिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (म्हारा नेमि पियारालो), १८१७८-३२ नेमिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (यादव जान लेइ करी रे), १८१७८-२९ नेमिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामलीया तुम्हसों), १८१७८-३० नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उजलगिरि अहमइ जायसउए), १८१८०-५ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, जै., (नेमनाथ जादुवंससीरोमन), १९००९-१५ नेमिजिन स्तवन, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहीया ए मोरी नेमीसर), १८४३२-७ For Private And Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६१ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (श्रावण सुदि दिन), १७९८२-१५(+$), १८१८१-३, १८९७५-२१, १८९८१-२, १९००५-६५, १८४२९-१६) नेमिजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गिरनार सिहरि पर नेमि), १८४१६-१५ नेमिजिन स्तति. म. पद्मविजय, मा.ग..गा. ४. पद्य, मप.. (राजल वरनारी रुपथी). १९००५-६७. १८४२९-८(-) नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुगति कुमति छोडी), १८१८०-१० नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (गिरनारे गीरवो वाल्हो), १९००५-८१ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (नमिये नमि नेह पुण्य), १९००५-९० नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुरअसुरवंदितपायपंकज), १८१८१-१५, १८४३०-६, १८४३५-७, १८६३०-४, १८४२९-३२(-) नेमीश्वर बारमास, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., गा. ७७, पद्य, मूपू., (विमल विहंगमवाहिनी), १८२९२-२(+$) पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), १७९७३, १९०२६ (६) पंचकल्याणक पूजा-बृहत्, उपा. चारित्रनंदि, मा.गु., वि. १८८९, पद्य, मूपू., (पण कल्याणक जिन तणा), १९४०२, २०१३४-१ पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, पुहि., ढा. ५, गा. २५, पद्य, श्वे., (पणमवि पंच परम गुरु), २००६१(+) पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचल), १८६३७-२, १९१७८-१४ पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), १८४३३-७(+) पंचतीर्थी चैत्यवंदन, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज देव अरिहंत नमु), १८४१७-१४(+), १८६३७-६, __ १९००५-३५ पंचपरमेष्ठि आरती, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहली आरति अरिहंतदेवा), १९११७-५ पंचपरमेष्ठिगुणगर्भितजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (बार गुण अरिहंतदेव), १८४१७-१५(+), १९००५-३३ पंचपांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तीनापुर नगर भलो), १८९७८-३ पंचमआरा सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिनचरण कमल नमी), १८२२०-१२ पंचमआरे आयुमान, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्यनो १२० वरसनो), २०२६९-२(+) पंचमहाव्रतभावना सज्झाय, मु. जस, मा.गु., सज्झा. ५, गा. ३४, पद्य, मूपू., (महाव्रत पहेलुं रे), १९३४९-१ पंचमहाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवै रे), १८४३७-१ पंचमीतिथि सज्झाय, मु. अमीचंद्र, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसति भगवती मनवसी), १८१५७-१४ पंचसहेली रास, क. छहल, पुहि., गा. ६१, वि. १५७५, पद्य, (देख्या नगर सुहामणा), १८६३५-१३(#) पंचसाधु चौपाई-अभयकुमारसंबंधे, उपा. कीर्तिसुंदर, मा.गु., ढा. १३, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (जगगुरु प्रणमु वीरजिन), __१९७८० पंचसुमति त्रणगुप्ति बोल, मा.गु., पद्य, श्वे., (उत्तराध्ययनसूत्ररा), १९४७६-२ पंचसुमति सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (पंचमहाव्रत आदरी आतम), १९३४९-२ पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., अधि. ५, गा. २६१६, वि. १६२२, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पूर्व), २०८०७ For Private And Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ पच्चक्खाण सज्झाय, आ. सौभाग्यरत्नसूरि, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर प्रणमी करी), १८१७९-१९ पट्टावली, मा.गु., गद्य, स्था., (पूर्वे परंपराय आवै), २०५०३ पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन संप्रति), १८९५७(+) पट्टावली @, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानतीर्थं), १७७६५ पट्टावली उकेशगच्छीय, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीपार्श्वनाथ तीर्थ), १७४३२-२ पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुबरग्रामवासी वसुभूत), २०९५४(+) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य त्रिविध), २०२१५(+#$) पट्टावली स्तवन, मु. सिंघविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रणमी मनरंगि वीर), १८७०९-२() पद्मप्रभजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु छठा भया), १९००५-१८ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभु जिन गुण), १९००५-१२२ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम रस भीनो म्हारो), १८६३४-३ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुम मूरति मनमानी हो), १८१७८-८ पद्मप्रभजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अढीशें धनुष काया), १९००५-६८ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), १९२२७-६ पद्मावतीदेवी स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जयजय जिनशासन सामिनी), १८९८०-५ पद्मावती स्तोत्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (जय जय जिण सासणि), १८२१८-७(+) परदेशीराजा सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीजिणपास), १८८०६ परनारी सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (नारि कहें सुण प्राण), १९४३८-२०) परनिंदात्याग पद, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (किसी की नंद्या न करी), १९००९-११ परनिंदानिवारक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (म कर हो जीव परतांत), १७८०५-२ पर्युषणपर्व गहुंली, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुन्यनें), १८९७२-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, पू., (सकलपर्व शृंगारहार), १८४१७-१७(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीदेवाधि), १८४१७-१६(+) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. फतेसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमा सार), १८४२१-१४ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुषण आवीया रे), १८९७६-१८९६) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये), १८६४९-१ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पजुषण सर्व सजाई), १८४२९-२३() पर्युषणपर्व स्तुति, मु. चिदानंदजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., (मणि रचित सिंहासन), १९००५-९८ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुं ध्या), १९१७८-२६ पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुण्य, पोषण पापर्नु), १९००५-९९, १८९७५-६(s), १८४२९-२१) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमा अषाड), १८९७९-१३, १९००५-९७ For Private And Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पर्युषण पर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु., (वीर जिणेसर अतिअलवेसर), १७९८२-७(१), १८९८१-१७ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेवे जिन पूजा), १८४३०-७, १८९८१-८, १९००५-१००, १९३८१-२, १८४२९-२०१ पर्युषणपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( पर्व पजुसण पुण्ये), १८४२९-२२) पर्युषणापर्व अठाईस्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पास जिणंदा), १८४२१-७ पांडव चरित्र रास, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., खं. ६, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), १७७७३ (+) पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९, ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, म्पू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), १८४४६(+#), १८४०४ पाक्षिक अतिचार चौपाई, मा.गु., पद्य, थे. ?, (), १९८०१(३) पाक्षिकतपवृद्धस्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. २, गा. १४, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीप सोहामणो), १८४२१-१३ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २७, वि. १७६८, पद्य, मूपू., (श्रीजिन सरस्वती संत), १९९९४ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. प्रीतिसागर, मा.गु., डा. २८, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (सकल सरुपी अलख गति), २०३२७(+) पार्श्वजिन गीत - गोडीजी, मु. चारित्रकीर्ति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (गुणसायर गौडीपासजी), १८४३४-३ पार्श्वजिन घग्घर नीसाणी, मु. जिनहर्ष *, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (सुख संपति दायक सुरनर), १८६२९-७६ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कृष्णचोथ चैत्र तणी), १९००५-४२ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आशा पूरे प्रभु पासजी), १८४१७ - २३ (+), १९००५-४१ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय चिंतामणी पार्श्व), १९००५-४३ पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्ष वा. भावविजय, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., ( सरसत मात मना करी), १८२१८-२ (+), १९३८४-१ पार्श्वजिन छंद - अमीझरा, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., ( उठत प्रभात अमीझरो), १८०००-६ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), १८४३६-३ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपो शारदा मया), १८९८० - १(5) पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), १८४३४-६ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदवरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ९८४१७-३० (+) पार्श्वजिन निसाणी- घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), १८९८०-६, १९२९७ पार्श्वजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरइ एतौ चाहियै नित), १९९१७-८ पार्श्वजिन पद, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, जै., ( पासकि पासकि पासकि ), ९८४१९-७(+) , (तूं मेरे मन में तूं), १८९७७-७ (निर्मल होव भजले ), १९११७-२१ , , पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन पद, मु. खेमा ऋषि, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू पार्श्वजिन पद, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरे पास प्रभु के ), ९८४१९-२१(+) पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नित नमीयै पारसनाथजी), १८४१९-१९(०) पार्श्वजिन पद, मु. रुप, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( डगरा वतायदे पाहाडवा), १८१७५-४ पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (साधो भाई चित्त जिन), १८९७७-११ For Private And Personal Use Only ५६३ Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ पार्श्वजिन पद-गोडीचा, मु. कल्याण, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (लग्या मेरा तेहरा), १८१७५-२ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसीह, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सरसती एह), १८९८०-४ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कृपा करो ने गोडिपास), १८४१९-११(+) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. भानुचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभु को दरिशण पायो), १८४१९-८(+) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. वीरविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजब जोत मेरे प्रभु), १८४१९-६(+) पार्श्वजिन बृहत्स्तवन-गोडीजीदशमतिथि, मु. समयरंग, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर जगतिलोए), १९१७८-४२ पार्श्वजिन लघुस्तवन, वसंत, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (त्रिभुवन साहिब सांभल), १८६२९-४८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (ध्रुवपद रामी हो), १९००५-१३१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मन मोहनगारो साम सहि), १८४२०-८५पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय बोलो पास जिनेसर), १९११७-२० पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहरष, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर वाल्हा), १८२२०-९ पार्श्वजिन स्तवन, क. धर्मसिंह, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (ऊगौ धन दिन आज सफले), १८४१९-१८(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आवो आवो पार्श्वजी), १९००५-१२९ पार्श्वजिन स्तवन, श्राव. मूलचंद, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (अश्वसेन तात विचार), १८४३२-३ पार्श्वजिन स्तवन, श्राव. मूलचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (पास प्रभुजी कू पूजो), १८४३२-१ पार्श्वजिन स्तवन, श्राव. मूलचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (हांजी हुतो पूज्यु), १८४३२-९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्राण थकी प्यारो), १८६३४-७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (साहिब आंगी तुम्हारी), १८६३४-१(६) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अहनिसि सूर सेवे पाया), १८४३४-४ पार्श्वजिन स्तवन, ऋ. रायचंद, मा.गु., गा. १४, वि. १८४१, पद्य, श्वे., (वामाराणीयें एक जायो), १८४४०-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अश्वसेन जातक प्रति), १८१७८-३५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (अश्वसेन सुत सुंदर), १८१७८-३४ पार्श्वजिन स्तवन, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (क्युं न करे रे), १८१५६-४९ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आजसुदिनभाइ मे जिनजी), १८४३२-६ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (पूर मनोरथ पास जिणेसर), १८४२१-२, २०७८३ पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), १९१७८-३६, २०१०७-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीथलपति थलदेशे), १८१५६-५४ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. गंगाराम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीगौडी पारसनाथ सुन), १८६२९-८० पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., ढा. ९, वि. १७२२, पद्य, मपू., (इणै भव आइ जिणै धन), १८४३४-५ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हेसर मुझ वीनती), १८४३४-२ For Private And Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, म्पू., (ॐकाररूप परमेश्वरा), १८००० १ १८४३६-२ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जैनेंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुं थल वट केरो पतसाह), १८२२४-३ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., डा. १५, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं नित परमेश्वर), १७३४९, १८४९२, १७८६२(१ , पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुरति प्यारी हो), १८१७८-३६ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. वस्ता, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सांभलि थलवट स्वामि), १९४४६ - २ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शिवरत्न, मा.गु., गा. ९, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (गोडीपासजी सेवीइ रे), १८४३६-८ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, श्रीचंद, पुहिं, गा. ९, वि. १७२२, पद्य, म्पू., ( अमल कमल जिम धवल ), १९९७८-४१ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. हरिदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रगटथा भला पासजी), १८१२२-५ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (परमेसर प्रभु सांभलौ), १७७६७-२ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु., ( आणि मनसुध आसता देव), १८१५६-२९ पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा, ७, पद्य, मूपु., (अरज सुणो मुझ साहिबा ), १८२२४-४ पार्श्वजिन स्तवन- पुरिसादानी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुखकारी हो साहिब), १८४१९ - २४(+) पार्श्वजिन स्तवन- पुरुषादाणी, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू., (जिवन प्यारा लागो), १७६१६-२ पार्श्वजिन स्तवन- प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारद वदन अमृतनी वाणी), १८१५६-४७ पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( उठो रे मारा आतमराम), १८४१९-५ (+), १८१५७-४, १९००६-७, १९११७-३४ पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धि, मु. क्षेमराज, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुगुरु शिरोमणि मनिधर), २०१८८ - १ (+) पार्श्वजिन स्तवन- फलवृद्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (परतापूरण प्रणमी अरि), १८९८०-३, १९३८४-२ पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, मु. उदय, मा.गु., गा. ५, वि. १७७८, पद्य, मूपू., (श्री भीडभंजन प्रभु), १८४१९-१५ (+) पार्श्वजिन स्तवन- मगसीजी, जसवंत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक निरंजन की ध्यान), १९११७-१२ पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणा, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. ७, वि. १८४२, पद्य, मूपू., (श्रीवरकाणे वंदिये), १८१५६-४५ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( लगी लगी आंखी आने रही), १८९७९-३ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), १९००५- १३० पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (सुणो सखि संखेश्वर जइ), १७९९०-२ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मूरत त्रेवीसमो), १८१८०-६ पार्श्वजिन स्तुति, मु. नयविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शंखेश्वर पासजी पूजीए), १९००५-७४, १८४२९-९) पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्वरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपास जिणेसर पुजा), १८१८१-२१ पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जलण जल वियोगा नाम), १८१८०-११ पार्श्वजिन स्तुति - गोडीजी, मु. लब्धिरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिन गोडीपार्श्व), १८९७५-५ ($) पार्श्वजिन स्तुति- ब्राह्मणवाड, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., ( पारसनाथ के नामसे सब ), १८४३३-८ (+) पार्श्वजिन स्तुति भीडभंजन, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू, (भीडभंजन पास प्रभु), १९००५-११ For Private And Personal Use Only ५६५ Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ पार्श्वजिन स्तुति-वरकाणा, पंन्या. कमलविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरकाणइ वर मंडण पास), १८१८१-२३ पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. महिमारुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शंखेसर पास जिणंद), १७९८२-९(+), १८९७५-२२ पार्श्वनाथ अमृतध्वनि, मु. जसराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (चित्त धरि गुन ॐकारके), १८४३६-६ पार्श्वनाथ स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (भावे वंदो रे गोडीपास), १८१५६-६१ पुंडरिककंडरिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, श्वे., (कंडरीक ऋद्धि तजी), १८६२९-३८ पुंडरीकगणधर चैत्यवंदन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदीश्वर जिनरायनो), १८४१७-१८+), १९००५-५ पुंडरीकगणधर स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (एक दिन पुंडरीक गणधरु), १९००५-१०४ पुण्यपाप सज्झाय, मा.गु., ढा. २, पद्य, मूपू., (चारुंगत में भटकता), १८२२०-२४ पुण्यपाप स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८७२, पद्य, मूपू., (सरसतिनैं प्रणमु सदा), २००११ पुण्यपालगुणसुंदरी रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ३६, गा. ७७५, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (सकलसिद्धि दायक सदा), १९६५४ पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), १७५८५, १७७२६, १७७५९, १७७६८-१, १७८४८, १७८६५, १८२३९, १९१३५-१, १९१९२, १९३०४, १९४७०, १९९६६, २०३४७, २०५१७ पुद्गलपरावर्त भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (औदारिक वैक्रिय तेजस), १८८२५-४ पुद्गल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पुद्गलनो विचार), १९७६०-२(क) पुरुषगुण वर्णन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सिंघ अने छुग गुण एके), १८१५४-११ पुरुष-स्त्रीब्रह्मचर्य बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २०३७५() पृथ्वीचंद्रकुमार रास, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १७४, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (प्रणमुंभगतिं भगवति), १७८१६(३) पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, पंडित. जीवविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ६८, पद्य, मूपू., (शासननायक सुखकरु वंदी), १९६४७ पौषदशमीपर्व कथा, रा., गद्य, मूपू., (ध्यात्वा वामेयमहँत), १७९८१-७ पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर पासजिणे), १८९८१-९ पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (जेसलमेर नगर भलो जिहा), १८४२१-१५ प्रथमआरामनुष्य वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेला आरामां जुगलानी), १७७०५-२ प्रदक्षिणा दूहा, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (अनंत चऊवीसी जिन नमु), १८१२२-२ प्रदेशीराजा चौपाई, ऋ. जेमल, रा., ढा. ३८, गा. ७००, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धने आयरीआ), २०४५५ प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल, मा.गु., ढा. २७, वि. १८०७, पद्य, मूपू., (रायप्रसेणीसूत्रमे), १९०१९, २०६३० प्रदेशीराजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३३, ग्रं. ११००, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (सकल सिद्ध संपद करण), १९५६३ प्रदेशीराजा रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २६१, ग्रं. ३००, पद्य, मूपू., (त्रिभोवन नयणानंदकर), २०१३०, २०३६९ प्रबोधचिंतामणि ढाल, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., खं. ६, ढाल ७६, गा. १७१२, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (चिदानंद चित चाहतूं), १८५५४(+) प्रश्न संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ सिद्धविग्रहगइ), १८४९३ For Private And Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ प्रश्नोत्तर, श्राव. तिलोकचंद लुणिया, मा.गु., गद्य, श्वे., (तुमे कह्युं जे समकित ), १९४९८ प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, वे., (तथा आप लिख्यौ इण), १७४४० (+) प्रसनचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणयं तमारा पाव), १८९७६-१५ प्रायश्चित्तप्रदान बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, भूपू (ज्ञान आसातनाई जघन्य), १९४१२ , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रायश्चित्त विचार, मा.गु., गद्य, वे., (भीन मास कहतां लूखो), १९४५७-३ प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), १७३८१, १८०६२. १८९४६, २०९९९. १८५११ For Private And Personal Use Only ५६७ बलचंद रास, ऋ. सबलदास, मा.गु., डा. १३, वि. १८६०, पद्य, थे., (श्रीशांतिनाथ जिनना) १८४२७-१९१०) बारमासो, मा.गु., पद्य, भूपू (आवा मास असाद धू), १८४२०५१) , बाहुजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( बाहुजिणंद दयामयी), १९००५- १४१ बाहुबली सज्झाय, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीराजी मानो वीनती), १८१५६-३२ बाहुबली सज्झाय, मु. माणिक्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बेहनड बोले हो बाहूबल), १८४३७-३ बाहुबली स्वाध्याय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( बाहूबली वन काउसा), १८६३८-११ बीजतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., ( दुविध धर्म जिणे), १८४१७-७(+) वीजतिथि चैत्यवंदन, मु. हंसविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (जिनपद पंकज नमी सेवो), १९००५ १२ बीजतिथि सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( बीज तणे दिन दाखवुं), १८९७६-३ बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( बीज कहे भव्य जीवने), १८९७६-४ तिथि स्तवन, पन्या, गणेशरुचि, मा.गु., गा. १९, वि. १८१९, पद्य, म्पू., (श्रीश्रुतदेवि पसाउले), १८१५६-४८ वीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), १८९८१-२, १८४३५-२, १८९८१-१, १८९८३-७, १९००५-५६, १८४२९-१५ (-) वीजतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु., (अजुवाळी बीज सोहावे), १९००५-५७ बुढ़ापा सज्झाय, मु. कविवण, मा.गु., गा. १८, पद्य, जे., (सुगुण बुढापो आइयो), १८२२०-१३ बुढ़ापा सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (बुढो होलुं होलुं चाल), १८६२९-४५ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (पेलै बोलै साध थइनै), १९४२९ ($) बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), १८७४८, १८७४९, १८८०५, १९२५८, १९१८१(s) ब्रह्मदत्त चौपाई, मु. कन्हीराम ऋषि, मा.गु., खं. ४, वि. १९०२, पद्य, श्वे. ?, ( प्रथम देव जुगादधर), १९४६५ (+), १९६६९ भक्ति पद, सुरदासजी, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (तुम्ह आज रचण बसि जाउ), १८९७७-८ भद्रबाहुसूरि कथा, मा.गु., गद्य, वे., (श्रीजसोभद्रसूरै दोय), १८६३२-६ भरतचक्रवर्ति सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( आकार अलुकार सबही), १८६२९-७९(S) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. कनककीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनमें ही वैरागी भरत), १८९७६-२ भारतबाहुबली संवाद, कुसल, मा.गु., गा. ६४, पद्य, स्था., ( सारदमाता समरीयें), १८९७८-६ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( बाहुबल चारित लीयो), १८१५६-३१, १८६२९-६६ " Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), १८४४०-८ भरथरीराजा सज्झाय, कालू, मा.गु., गा. २१, पद्य, वै., (मोती वैरागर छै घणा), १८६२९-५६ भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मृपू., (लोक में अलोक में जे), १७८३०) भवणद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( सातमी नारकीनां नाम), १९३७४ भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घरे आवीयो), १८४३१-२(+) भवदेवभावदेव स्वाध्याय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू., ( नारी रे निरुपम नागील ), १८६३८ २७ भावपचीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८४३, पद्य, ., (भावपचीसी जोरु भारी), १८९७८-१६ भासचौवीसी, मु. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंद मया करी रे), २०३८५ भीमसेनचंद्रावती चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., ( एक मुनी आगल थयो तीणै), १८४२७-७(#) भीलडी सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामीने), १८६२८-३(०) भीलडी सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सांमण विनवुं), २०४६०-२ भुवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, वे., (पहिली नारकी असंख्यात), २०६३६ भैरव छंद, मा.गु., पद्य, वै., (जय भैरव लाला), १९३८४-३ मंगलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., डा. २१, वि. १७१४, पद्य, मृपू., ( पास जिनेसर पर कमल), १९३६६ मंत्र, मा.गु., गद्य, (-), १८१२८-३, २०३७६ २, २०३७९-३ मकरध्वजराजा चौपाई, मा.गु., गा. २०४, पद्य, मूपू., ( मकरध्वज महीपति), १९००० मत्स्योदर रास, मु. जयराज, मा.गु., गा. १६१, वि. १५५३, पद्य, म्पू., (देव अरिहंत देव), २०९८६ १९३१२ मदनधनदेव रास, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., ढा. १९ गा. ४६२, वि. १८५७, पद्य, मूपू., (विहरमान प्रभु राजता), १९५४८ मदननरेश्वर चौपाई, मु. दामोदर, मा.गु., गा. ५५७, ग्रं. ९३८, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (आदि जिणेसर अतुलबल), २००९० (+) मदनरेखासती रास, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८७०, पद्य, स्था., (आदि धरम धोरी प्रथम ), २००१३-१ मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, मृपू., (जूआ मांस दारु तणी), १७८०६ (+), १७९६०, १९४२६, २०७८७) मदनशतक, मु. दान, मा.गु., गा. ११०, पद्य, श्वे., (विश्वानंदी पय नमी), मदनसेन चौपाई, ऋ. सांवतराम, मा.गु., डा. ३१, वि. १८९८, पद्य, वे (प्रथम नमी भगवंतने) १७३५१ मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद - शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), १८१५४-१ मनभमरानी सज्झाय, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भूल्यो मन भमरा तुं), १८४२८-१५ मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत सज्झाय, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., डा. १०, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (श्रीजिन वीर नमी), १७७१४, १८६३९-२ , मलयासुंदरी रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १२३, गा. २९७५, ग्रं. ४०८४, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल समीहित श्रेयकर), १९५७९ (5) For Private And Personal Use Only मलयासुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., खं. ४, डाल९१, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), १८३७०, १९६९५ मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, वि. १७५६, पद्य, मूपु, (नवपद समरी मन शुद्धे), ९८४२१-५ मल्लिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मल्लीजिणेसर देव सेवु), १८१७८-२४ Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६९ मल्लिजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (मल्लिजिन नमीये पूर्व), १९००५-८८ महाबलमलयसंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., खं. ४, वि. १८५२, पद्य, स्पू., (श्रीपार्श्वनाथ), १७९९४(+) महावीरजिन २७ भव स्तवन, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., ढा. ११, गा. ८७, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (पूरण प्रेमे प्रणमीइ), १९२३३ महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८१, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमलकमलदललोयणा दिसे), १७६१२, १७९२७-१ महावीरजिन अंतिमदेशना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अपापानगरीमा देवताओए), १८६७६ महावीरजिन गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जग उपकारी रे वीर), १८९७९-२ महावीरजिन गहुंली, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवीर समोसर्या), १८९७२-१२ महावीरजिन गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पुरि जनजीवनजी), १८२६८-५ महावीरजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ सुत वंदिये), १८४१७-२४(+), १९००५-२७ महावीरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), १९००५-१४६(६) महावीरजिन जन्ममंगल स्तवन, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू., (प्रथम हि मंगलमाल सदा), २०३८६ महावीरजिनजन्म महोत्सव, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवइ भगवंत नइ चउसठि), १७४५९ महावीरजिन निर्वाणमहिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मूपू., (श्रमणसंघतिलकोपमं), १७७७५, १७७९८-१, १८३४८, १८४६२, १८९६५, १९७४७, १९८०६-१, १९८१२, १९९९२, २००२१, २००७९, २००८१, २०८१८, १९७७९८) महावीरजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (माधुरी जिनवानिमा), १८६३३-६ महावीरजिन पारणा स्तवन, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), १९१७८-३४ महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीरजी आया रे गुणशैल), १८९७९-६ महावीरजिनविनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती), १८६२९-४०, । २०४६०-३ महावीरजिन सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (एक वरसीजी ऋषभ करी), १८६३८-१० महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीजरां रहस्यांजी), १८६३५-२८(#) (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १८६३५-२८(१) महावीरजिन स्तवन, पं. कपूरविजय गणि, रा., गा. ११, वि. १८२३, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर वंदीई), १८१५६-५१ महावीरजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद जगत उपगारी), १९९१४-२ महावीरजिन स्तवन, श्राव. मूलचंद, पुहिं., गा. १४, पद्य, मूपू., (वरधमान भगवंत तीनलोक), १८४३२-४ महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गिरुआ रे गुण तुम), १८१५६-१८, १९००६-६, १९००५-१३३(5) महावीरजिन स्तवन, मु.रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीर जिणंदने), १८९७९-५ महावीरजिन स्तवन, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (महावीर महंत मुझ मन), १९५४६-२ महावीरजिन स्तवन, ऋ. रायचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सासन नायक वीरजिणंद), १८२२०-१४ For Private And Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ महावीरजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ कुल कमल), १८१७८-३७ महावीरजिन स्तवन, रूपचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (महावीरजी तुमारो जिन), १८१२२-६ महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८६२, पद्य, वे., (वीर जिणंद सासण धणी), १९००९-१३ महावीरजिन स्तवन- १४ गुणस्थानकगर्भित, उपा. विनयविजय, मा.गु., डा. ४, गा. ७३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर प्रणमी), १७६७८-१ महावीरजिन स्तवन- कोणिकाराजाभक्तिगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, गा. २१२, ग्रं. २७०, वि. १८६४, पद्य, मूपू., (विमल वचन रस वरसती), १९५७३ महावीरजिन स्तवन - ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूपनयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ८, गा. ८१, वि. १८२७, पद्य, मूपू., (श्री इंद्रादिक भावथी), १९१२६-५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन- नवतत्त्वविचारगर्भित, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., कडी. ९६, वि. १७१३, पद्य, जै., (सरसती सरसती सरसती दे), १८६५३ महावीर जिन स्तवन- पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., डा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, म्पू, (शासननायक शिवकरण बंदु), १८५१४(*), १८२१२, १८४२१-१, १९१४५ - १ाक महावीरजिन स्तवन- पाक्षिक विचार, उपा. श्रुतसागर, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सरस वचनरस वरसती सरसत), २०५७२(+) (२) महावीरजिन स्तवन- पाक्षिक विचार- टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानमानम्य), २०५७२(+) महावीरजिन स्तवन-षट्पर्वी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७१, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (गुरु पद पंकज नमी रे), १९६१७, १९९७६ महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति दिओ मति), १७७३१, १७८५०, १७८५४, २००६७(६) महावीरजिन स्तवन- सांचोरमंडन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( साचोरिपुरवर जगत्र), १८१८०-७ महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., डा. ६, गा. १४८, प्र. २२८, वि. १७३३, पद्य, भूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), १९०३३ (*), २०५८४(+), १७९४९, १८७०५, १९६०९, १९६२५, २०४६४१३) (२) महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित बालावबोध, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., वि. ९८४९, गद्य, मृपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं १९०३३(+) " .प्र. ३११७, (२) महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए स्तवनमां प्राइ पद), २०५८४(+) For Private And Personal Use Only महावीरजिन स्तुति, मु. कृष्ण, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (सासननो नायक जिनवर), १८९८१-१२ महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मनमोहन कंचन), ९८४१६ १४ महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय जय भवि हितकर वीर), १८४२९-३०) महावीर जिन स्तुति, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महावीर जिणंदा राय), १९००५ ९२, १८४२९-१० महावीरजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महावीर मोटो जगनाथ), १८१८१-२४, १८९७५-२७ महावीरजिन स्तुति, मु. विजयदेव, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जय गौतम हितकर वीर), १८९८३-३ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कठन करम मेली काठीआ), १८१८०-१२ Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७१ महावीरजिन स्तुति-गंधारमंडन, मु. धीरविमल-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गंधार बिंदर सकलसुंदर), १८९७९-१५ महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेवो वीरने चित्तमा), १८१५७-५ महावीर रागमाला, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. ३६, वि. १७८४, पद्य, मूपू., (महावीरजिन वंदो भविक), १७६१४ महावीरस्वामी के निर्वाण बाद बारवरसीदकाल से ६४ वस्तु हानि के बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (कल्पवृक्षनी हाण १), १९७५७-३ महीपालराजा चौपाई, मु. विनयचंद, मा.गु., खं. ४, ढाल १२३, ग्रं. ५५०४, पद्य, स्था., (श्रीनाभेय युगादिजिन), १८९४१ माणिभद्रवीर अडतालो, देवरुपो, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (ध्रु छे मादला मृदंग), १८४३६-४ माणिभद्रवीर छंद, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), १८२१८-३(+) माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाय), १९५१९-२ माणेकचंदजी चौढालीयो, मा.गु., पद्य, श्वे.?, (समरु आदि अरिहंतकुं), १९८२४-२(+) माताजी स्तुतिसंग्रह, मा.गु., गा. ८, पद्य, वै., (श्रीगणपत सुख कद नीत), १८४२०-१०.) माधवानल चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, मूपू., (देवि सरसति देवि सरसत), १८२१६-१, २०३७८-१(६) (२) माधवानल चौपाई-चयन, मा.गु., गा. ६१, वि. १६५०, पद्य, मूपू., (अक्षाण केली फलीयो), १८६३५-६(#) मानछत्रीसी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (मान न कीजे रे मानवी), १८९७८-१४ मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., ढा. ८, वि. १८७०, पद्य, मूपू., (सरी संत जणेसरु नमता), १७३१४-१, १९५२७, २०२८९ मानतुंगमानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १४, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमु माता सरसती), १७३४७-१ मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), १८६४८(+), १८८००(+), १७३१८, १८३७२, १९३२२, १९३४१-१, १९४६१-१, २००४५, २०३८३, १९४८२(#) मानवभव १० दृष्टांत, आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., कुल. १०, पद्य, मूपू., (कंपिलपुरि ब्रह्म नरे), १८६३१-१ मान सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रे जीव मान न कीजीए), १८४२८-२७ माया सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), १८४२८-२८ मार्गानुसारी के ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (न्यायथी धन कमावq १), १९१९१-४ मिश्रदृष्टि सज्झाय, मा.गु., गा. ५६, पद्य, श्वे., (केई भेषधार्यांरी), १९९७५-२ मुंडन १० प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ करोधमुंडे रमानमुंड), १८८२५-५ मुनिगुण भास, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ज्ञानदिवाकर सोभता), १७८७९-२(#) मुनिगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नित नित वंदु रे मुनि), १८४२८-६, १८६२९-६७ मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., खं. ४, ढाल ६५, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (शंखेसर सुखकरू नमता), १७९०५, १८०२८() मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., ढा. २७, गा. ६०६, वि. १५५०, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर गोयम गणहर), १७९५४(+-), १७६४५ For Private And Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ मुनिपतिनरेन्द्र कथासार, मा.गु., गद्य, श्वे.?, (मणपतिका नगरी मनपति), १८८२३-११(+) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (चित्रोडी राजा रे), १८१७८-२६ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रत सुव्रत), १८१७८-२५ मुनिसुव्रतजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, पू., (मुनिसुव्रत नामे जे), १९००५-८९ मुनिहित स्वाध्याय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एहवा मुनीगुण रयणना), १८१५६-७ मर्ख के १०० बोल, मा.गु., गद्य, (छते सामर्थ्य उद्यम), १९१९१-५ मूर्खशतक, मा.गु., पद्य, ?, (बालकसुं प्रीत करे), १९७५७-२ मृगांकलेखा चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., ढा. ६२, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (आदेसर जिन आददे चोवीस), १७९८६(+), २०२३७(+) मृगापुत्र रास, मा.गु., गा. १०३, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर प्रणमु), १८७३१ मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनगर सुहामणों), १८६२९-२४ मृगावती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ३, ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (समरु सरसति सामिणी), १७३७४(+#), १७४७६(+), १७६३७, २०११२, १८३१७(5) मृगावती चौपाई@, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १८७८१(६) मृगावती रास, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., गा. ४२१, पद्य, म्पू., (सिद्धारथ नरपति कुलिं), १८३१६ मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (वीर जिणंद समोसर्याजी), १८६२९-३५ मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), १८१५६-३३, १८४२८-३४, १८४३७-६, १८६३८-१९ मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. १७, पद्य, मूपू., (कोई परठण जावैजी मातर), १८४२७-९(#) मेघकुमार सज्झाय, पुहिं., गा. २०, पद्य, मूपू., (दुर्लभ लाधो मनुष्य), १८९७८-७ मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडानी विनती, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (दया बरोबर धर्म नहीं), १८९७८-४ मेतारजमुनि चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४९, पद्य, स्था., (सासणनायक समरीयै), २०९८० मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरुजी), १८९७६-१३ मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (धन धन मेतारज मुनि), १८४३१-१५(+), १८२२०-२५ मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोक्षनगर माहरु सासरु), १८४२८-२५ मोरसुकनावली, मा.गु., पद्य, (दुखी चां चां पाख), १८१२३-२ मोहनीयकर्मबंध के ३० स्थानक, मा.गु., गद्य, श्वे., (एजे त्रस पाणी जीवनइ), १८६२५-५(+) मौनएकादशीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), १८८०३ मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (सयल संपत्ति सयल), १७७९४, १८९०७-१ मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण), १७९८१-६, १८३२४-१, १९१५५-१(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिका नयरी), १९५२६-२ मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १७९५, पद्य, म्पू., (जगपति नायक नेमि जिणं), २०२४९-२(+), १८९७४-१(#) For Private And Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ___ ५७३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७३ मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), १९१७८-४३ मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (धुरि प्रणमुं जिन), १९८३२, २०४६७ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), १७९८२-१(+5), १८१८१-६, १८४३५-५, १८९८१-४, १८९८३-६, १८४२९-१८९८) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (गौतम बोले ग्रंथ), १८९७५-३, १९६५१-२ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. विनय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गोपीपति पूछे पभणे), १९००५-७६ यंत्र संग्रह, मा.गु., यं., जै., (--), १८५१३-३(+), १८२२०-२९ यशोधर चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य जगतां नाथं), १९१५१(+) युगमंधरजिन स्तवन, मु. चंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बे कर जोडी हो), १८६२९-२ युगमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभु मारा जुगबाहु), १८१५७-१ युगमंधरजिन स्तवन-१, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीयुगमंधर विनवू), १९००५-१३८ योनिद्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे.?, (जुणी तीन प्रकरकी सीत), १९०७९-२ रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे), १८४२७-३(#) रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसोभा), १८३०८ रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ३४५, वि. १५०९, पद्य, मूपू., (सरसति देवी पाय नमी), १८१३५, १८८४८ रत्नचूड चौपाई-दानविषये, मु. अमरसागर, मा.गु., ढा. ६२, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (सरसति मात मया करी), १९७१०-१ रत्नपालरत्नावती चौपाई, पं. माणिक्यराज, मा.गु., ढा. ३५, गा. ६६५, ग्रं. ९०५, वि. १८१९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीप्रभु), २०५७१ रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४, ढाल ६६, गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (सकल श्रेणि में दुर), १८५५७-१ रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३, ढाल ३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभादिक जिनवर नमु), १८१३४(+), १८०७५, १८४५२ रत्नपाल रास-दानाधिकार, मु. कवियण, मा.गु., खं. ३, ढाल ३६, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेव जिनवर), २०३७४, २०३८७ रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २९९, वि. १५८२, पद्य, मूपू., (सरसति हंसगमनि पय), १८२८६, १८८०९ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (काउसग व्रत रहनेम), १८१५७-२५ रथनेमिराजिमती स्वाध्याय, मु. हितविजय, रा., गा. ११, पद्य, पू., (प्रणमी सदगुरुपाय), १८४३१-१८(+), १८४३७-९, १८६३८-३ रथनेमि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग ध्याने मुनि), १८४४०-४, १८९७६-५ राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मा.गु., ढा. २४, गा. ६०५, ग्रं. ८८५, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (सारद शुभमतिदायिनी), १८२८४(+), १७४५४ For Private And Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ राजास्वागत गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, (मलीया मलीया हो), १८६३५-९(१) राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सतगुरु प्रणमुजी पाय), १८६२९-२२ राजिमतीरथनेमि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अगनिकुंडमां निज तनु), १८६३८-४ राजिमती लावणी, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (नव भव केरी प्रीतधरी), १८४४०-७ राजिमती लावणी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरा पीया चले गीखरकु), १८१५७-२७ । राजिमतीसती सज्झाय, मु. प्रेम, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), १८१५७-१८ राजिमतीसती सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (गोखमा सखीयो संघात), १८१५७-११ राजीमतीरथनेमि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल चाली रंगसु रे), १८६३८-१ राता-धोला-कालावरणजिन स्तवन, क्र. रायचंद, मा.गु., गा. १०, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (प्रभातें उठीने), १८४४०-३ रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहस, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (सुबुधि लबधि नव निध), १७६३२ रात्रिभोजन चौपाई, मा.गु., गा. २२८, पद्य, मूपू., (पणमि गोयम गणहर राय), १७३४१(+$) रात्रिभोजन सज्झाय, क. प्रमाणहंस, मा.गु., ढा. ३, वि. १८२१, पद्य, जै., (सरसति श्रुतदेवी नमी), १७९६१-२ रात्रिभोजन सज्झाय, मु. वसता, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ग्यान भणो गुण खाणी), १८४२८-१८ रात्रिभोजन स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरजीए पामी), १९००५-९४, १८४२९-११-) रामचंद्रजीरो मुदडो, मा.गु., गा. ३२, पद्य, जै.?, (सरसत सामण विनउं), १८२२०-१७ रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४, ढाल ६२, गा. ३१९१, ग्रं. ४३७५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतस्वामीजी), २०७२९ रामसीतारास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ९, गा. २४१२, ग्रं. ३७०४, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), १७५०६, १८३९९ रायसंयती चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (चरम जिणेसर प्रणमी), १८४२७-५(#) रावणऋद्धिविस्तार कवित, क. ज्ञान, मा.गु., गा. ६, पद्य, (लवण समुद्र मझार सतसय), १८६३५-२५(#) रावण सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (एक दिन राणों राजवी), १८६२९-५५ रुक्मिणी सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामो गाम नेमि), १८६३८-१८ रूपकमाला, मु. पुण्यनंदि, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मपू., (आदि जिणेसर आदिसउ), १८२१४ रूपचंद्रकुमार रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., खं. ६, वि. १६३७, पद्य, म्पू., (आदि जिणवर आदि जिणवर). १८६१८(5) रेखता, मा.गु., गा. ५, पद्य, जै., (सुवा गुजस्त स्याम), १८६२९-८ रेवतीश्राविका चौढालियो, मु. चोथमल ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (सिद्धारथ नंदण नमु), १८४२७-१२(#) रोटला सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सर्व देव देव में), १८४२८-५ रोहिणीतपचैत्यवंदन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रोहिणी तप आराधीए), १८४१७-२७(+) रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासण देवता सामणीए), १७९८९-२, १८४२१-१० रोहिणीतप स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शिवसुखदायक नायक ए), १९३८१-३ रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नक्षत्र रोहिणी जे), १८९७९-१७, १८४२९-२५(-) For Private And Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७५ रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासपूज), १८१८१-१०, १८९७५-७ रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासुपूज), १७९८२-११(+$) रोहिणीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (नलिखै तैहै उचिट्ठम), १७९८१-११ रोहिणीयाचोर रास, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., गा. ३४५, वि. १६८८, पद्य, मूपू., (सार सकोमल बुधिभली), १८२९०, १८७९५ रोहिणी रास, ग. कुंअरजी, मा.गु., गा. ५१९, वि. १६५३, पद्य, मूपू., (प्रणमीअ जिनवर सुखतणो), २०२७३ लज्जा सज्झाय, मु. साधुहस, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुणि जीव पहिलु अपसम), १८१७९-८ लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., ढा. २९, गा. ६१९, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (त्रेवीसमो त्रिभुवन), १९३६९ लीलावती चौपाई-शीयलविषये, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., गा. ४७२, वि. १६०३, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर आदिजिनवर), २०६९५ लीलावती रास, मा.गु., गा. १५२, पद्य, श्वे., (पहेलुं ते लंबोदर), १८२९४-१ लोकस्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पणयजणपुरीआसो), १९५६६(45) लोभपचीसी, ऋ. रायचंद, पुहिं., गा. २५, पद्य, श्वे., (माहालोभी मनुषसुं), १८२२०-१० लोभ सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तमे लक्षण जोजो लोभना), १८४२८-२९ लौकिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै.?, (म्हारा डोबाने मठडा), २०१२३-३ वंकचूल चौपाई, मु. तीकम, मा.गु., ढा. १७, गा. ३४१, वि. १७०६, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पायनमी), १७४४३ वंकचूल चौपाई, ऋ. रतनचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (वंकचूल भाखी कथा जथा), १८४२७-१३(#) वंकचूलप्रबंध कथासार, मा.गु., गद्य, जै., (दक्षिणार्द्ध भरति), १८८२३-६(+) वंकचूल रास, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे.?, (जिनवर चरणकमल नमु), १९८१५(5) वच्छराज रास, मा.गु., गा. २७२, पद्य, मूपू., (प्रणमसिउं पहिलु भाव), १८७३८ वच्छराजहंसराज चतुष्पदी, असाइत नायक, मा.गु., खं. ४, गा. ४३७, वि. १४१७, पद्य, मूपू., वै., (अमरावई समाणां पंखि), १८५८६-१(+), १८८०७ वज्रधरजिन स्तवन, मु. जीवण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वाल्हेसर वज्रधर देवा), १८१५६-२३ वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विहरमान भगवान सुणो), १९००५-१३९ वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १५, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (अरध भरतमांहि शोभतो), १७९८५, १८६३५-२(#) वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गणधर दश पूरवधर सुंदर), १७८९८-२(+) वयरस्वामी सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सांभलजो तुमे अद्भूत), १८९७६-९ वर्णमाला @, मा.गु., गद्य, (--), २०६४९-१ वसंत गहुंली, मु. विनय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी सुंदरु), १८९७९-१४ वसत्यादि अष्टदान दृष्टांत, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य स्वगुरु), १७७६६ वसुदेव चौढालियो, मा.गु., पद्य, मूपू., (रूपसीरै लषणा सिरै), १८४२७-२२(#) वांदणादोष सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाणी आणी), १९१२७-८ वासुपुज्यजिन स्तवन- महिमावर्णन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., ढा. १२, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिणंदने), २०६१९ For Private And Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ वासुपूज्यजिन गहुंली, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंपानयरी अति हे), १८९७२-११ वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचंद्रगणि, मा.गु., ढा. ६१, गा. ४५६, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव जिनो), १७९४० वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (स्वामि तुमे काइ), १८१५६-१५ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज अमीए मेह वुठोजी), १८१७८-१६ वासुपूज्यजिन स्तुति, मु. जिनवर्द्धमान, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोसठि इंद्र जसु सेवा), १८२१७-४ वासुपूज्यजिन स्तुति, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (वसुपूज्य नरेश्वर मात), १८४१६-१६ वासुपूज्यजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (विश्वना उपगारी धर्म), १९००५-७९ वासुपूज्यजिन स्तुति, वा. मेघचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य पूजीये), १९००५-७८ विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), २०१२७, २०२४१, २०४९६-१ विक्रमराजा परकायाप्रवेशप्रबंध कथासार, मा.गु., गद्य, (उजेणीनगरी तिहां), १८८२३-४(+) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., ढा. ६४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (परम ज्योति प्रकास), १७४९९, १८३३१(६), १९९२१(१), २०३५०(१), २०५७०६६) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ५२, गा. ११६२, ग्रं. १६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सुखदाता संखेश्वरो), १८६८९(६) विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., ढा. २७, गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी प्रणमीई), १८६६८, १८७०४, २०१९१ विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, स्था., (२० सतक उद्देसु), १८५७३(+) विचार संग्रह @, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिं त्रीजे), १८२७७-३ विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (समजवा हेतु सूत्रमाहि), १९१७६(+), २०७२८ विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), २०७६०-२ विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८८०, पद्य, श्वे., (विजयकुमर व्रतधारी), १९००९-१० विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. लालचंद, मा.गु., गा. १७, वि. १८६१, पद्य, स्था., (प्रथम नमु श्रीअरिहंत), १८९७८-१ विजयसेनसूरि सज्झाय गीत, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि समरीइ), १८६२४-११(+) विजयसेनसूरि स्वाध्याय, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वंदिय चरम जिणेसर वीर), १८६२४-४(+) विजयसेनसूरि स्वाध्याय, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीनवू), १८६२४-७(+) विद्याविलास चरित्र, उपा. आज्ञासुंदर, मा.गु., गा. ३६३, वि. १५१६, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पय नमी), २०३५१-१ विद्याविलास चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ३०, वि. १७११, पद्य, मूपू., (सरसति नित आपो सुमति), १९३८०(१) विनयअध्ययन सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पवयण देवी चीत धरीजी), १८४२८-१७ विमलजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जी हो विमल जिनेसर), १९९१४-३ विमलजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरज करूं कर जोडी), १८१७८-१७ विमलजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (विमलजिन जुहारो पाप), १९००५-८३ For Private And Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७७ विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ९+चूलिका, गा. ३८७, ग्रं. १७००, वि. १५६८, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर ___आदिजिनवर), २०२८५, १७४२८(६), १८७२२(5) (२) विमलमंत्री प्रबंध-कथासार, संबद्ध, मा.गु., वि. १५६८-१६४२, गद्य, मूपू., (प्रथम सरस्वतीदेवी), १८८२३-१४(+) विविध कथासंग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (यथा जंबूद्वीपे), २०२६१(६) विविध द्वारविचार, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २०१५४(#$) विविध पदसंग्रह, मा.गु., पद्य, (नीपट अती प्यारें मन), १८६३५-२३(#) विशालजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (घातकीखंडे हो के पछिम), १८१५६-२२ विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय), १८४१६-१२ विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुखलवई विजये जयो रे), २०२५७, १९३२१-१(६) विहरमानजिन स्तवनवीसी, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., स्त. २०, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (सुगुण सुगुण सोभागी), २०९३१ विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर जिनवर), १८४५३, १९८३३ विहरमानजिन स्तवनवीसी , उपा. विनयविजय , मा.गु., स्त. २०, गा. ११६, ग्रं. २५०, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी सुणजो), २०९९३-१ वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मा.गु., ढा. ६५, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी सानिध करो), १७७१२ वीरसेनराजा रास, क. ऋषभदास संघवी , मा.गु., वि. १६४४, पद्य, मूपू., (सरसती भगवती भारती), १८५९८(+) वीसजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थमंडन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज आणंद थयां समेत), १८९७९-७ वेदनिर्णयपंचासिका, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ५१, पद्य, दि., (जगत विलोचन जगतहित), १८६३३-११ वैद्यकसार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अब हडकीया श्वान लागा), २०९११-२(+) वैयावच्च विचार-१३० बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (आचार्यरी वेयावच), १९४५७-२ वैराग्यपच्चीसी, गोपालदास, पुहिं., गा. २५, पद्य, श्वे., (इह प्रमादी जीव जग), १८६२९-४३ वैराग्यपच्चीसी, मु. मेघलाभ, मा.गु., गा. २५, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (माताने उदरे उपनो नव), १८४२८-३१ वैराग्य सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (औ जग कारमौ जाणौ जो), १९१२७-४ वैराग्य सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आप स्वभाव मां रे), १८४२८-७ वैराग्य सज्झाय, जीवो, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (चंचल जीवडा रै मैं तु), १८६२९-३६ वैराग्य सज्झाय, मु. पद्मकुमार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुणि सुणि जीवडारे), १८१७९-१४ वैराग्य सज्झाय, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (देव दानव तिर्थंकर), १८४२८-२२ वैराग्य सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (आण जिणारी वरतती रे), १८६२९-५४ वैराग्य सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, श्वे., (सदगुरु आगम साखिथी), १८६२९-७७ शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमाहे तिरथ), १८४३०-१० शत्रुजय तपफल, मा.गु., गद्य, श्वे., (नमुकारसिनो पच्चक्खाण), २०५५८-२ शत्रुजयतीर्थ २१ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशेजेजय नमः), १७७८७-२, १८५०३-१ For Private And Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), १७६९०(+), १७७८०-१(+), १७५३४, १७६७३-१, १७८०५-१, १७८९०, १८७०९-१, १९२३१, १९६५१-१, २०६०२, १८६३५-१७(१), १९९९५($) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय नाभिनरिंदनंद), १८६३७-८, १९००५-१०, १९१७८-९ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. दान, मा.गु., गा. ३, पद्य, जै., (चैत्रीपूनमने दिवस), १९००५-६ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल शिखरे चढी), १९००५-२ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, शामल, गु., गा.७, पद्य, जै., (शत्रुजयगिरि दिए), १९००५-३ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शत्रुजय सिद्ध), १८४१७-३(+), १८६३७-३, १९००५-८ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), १८६३७-१, १८९८३-४ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., (श्रीशत्रुजय माहात्म), १९००५-४ शत्रुजयतीर्थ पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (भाव धर धन्यदिन आज), १९११७-४४ शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे कर जोडी विनवूजी), १७९६२-१ शत्रुजय तीर्थमाला, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाल्हा वारु), १७७५५(+) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाहला वारु), १९१३०(+), २०५४५(६) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, स्पू., (जगजीवन जालम जादवा), १७५८६(5) शजयतीर्थ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., खं. ९, गा. ६४५२, ग्रं. ८९९४, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (विश्वनाथ चरणे नमुं), १९१२८(+) शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), १७८८२, १८४३४-१, १८६०८, १९१७८-३३, १९४३५ ।। शत्रुजयतीर्थ रास @, मा.गु., पद्य, जै., (--), २०८७३(७) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शेजूंजा गढना वासी), १८१५६-३५ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १११, पद्य, मूपू., (श्रीआदेश्वर अजरामर), १८५०३-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्री रे सिद्धाचल), १९००५-१०५, १९११७-३६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. खीमारतन, मा.गु., गा. ५, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल गिरि भेट्या), १८४१९-२(+), १८१२२-७, १९००५-१०२, १९११७-३२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (हांजी विमलाचल मन०), १८१५६-४४ शत्रुजयतीर्थस्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इण डुंगरीयानी झिणी), १९११७-९ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरि ध्यायो), १८४१९-३(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालोने प्रीतमजी), १८४१९-४(+) शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (वीरजी आव्यारे), १९११७-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुजी जावू), १९००५-१०१ For Private And Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु., ( विमलाचल विमला पाणी), १९००५- १०३ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन-आदिजिन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेत्रुंजा रलीआमणो), १८१८०-३ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुंजय तीरथसार), १७९८२-४ (+), १८१८१-८, १८४३०-४, १८९७५-१०, १८९७५-२४, १९००५-४७, १८४२९-६ (-) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुंजयमंडण), १८४१६-१३ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मु. रविबुधसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शत्रुंजय मंडण ऋषभ), १९००५ ४६, १८४२९-५ () शत्रुंजयतीर्थं स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १, पच, भूपू., (पुंडरिकमंडण पाय), १८१५६-५८, १८९७५-१७, , १९००५-४८ शांतिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर सोलमा रे), १८६२९-३२ शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (नगर हथिणापुर अतिहि), १८६२९-५१ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साचो), १९००५- १३६ शांतिजिन स्तवन, पं. ज्ञानविजय गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (शांतिजिनेसर साहेब), १८२०९ (5) शांतिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु. ( सुणो शांतिजिणंदा), १८९८०-४ शांतिजिन स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेवा शांति जिणेसरकी), १८४२१-११ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (साहिब शांतिजिणंद), १८६३४-५ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोलमा श्रीजिनराज), १८१५६-४१ शांतिजिन स्तवन, मु. रतनरूप, मा.गु., गा. ६, पद्य, मृपू., ( नमो अचिरादेवीनो नंद), १९५८२-३ " शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( आगे पूरव वार नीवाणु), १७९८२-१३(०) शत्रुंजयतीर्थं स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, जे., (चैत्रीपूनम दिन), १९००५-५२ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( विमलाचल गिरिवर राजे), १८९८१-११ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., ( विमलाचल मंडण जिनवर ), १९००५-४९ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुंजय आदि), १९००५-५१ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल मंडन ऋषभ), १९००५-५० शत्रुंजयतीर्थे मोतीशाट्रंक स्तवन- इतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., डा. ७, पद्य, मूपू., ( उठी प्रभाते प्रभु), १९७४६ शत्रुंजय नवाणुं खमासमणाना दोहा विधियुक्त, श्राव. प्रेम, मा.गु., पद्य, मूपु (सेतुंजो तिरथ वंविइ), १९७९७-१ शत्रुंजय माहात्म्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए श्रीविमलाचल), १७७८७-१ शांतिकुंथुअरमल्लिजिन पद - गजपुरमंडन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (गजपुर जगमें सुखदाई), १८६३३-७ शांतिजिन चरित्र, मा.गु., गा. १९६, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर), १८७३७ शांतिजिन चैत्यवंदन, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोलम जिनवर शांतिनाथ ), १८४१७- १ (+), १९१७८-१० शांतिजिन चैत्यवंदन, पन्या, पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शांतिजिनेसर सोलमा अच), ९८४१७-२१(०), १९००५-३७ , शांतिजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक ध्यान संतजी का ), १८४१९-१० (+) शांतिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ६६, गा. १४२८, ग्रं. २२०५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सकलसुखसंपतिकरण गउडि), १९३४५ For Private And Personal Use Only ५७९ Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ शांतिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहज सलूणो हो सुसनेही), १८१७८-२० शांतिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांति जिणेसर साहिबा), १८१७८-२१ शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो), १८४१९-२०(+), १९११७-२४ शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुंदररूप सोहामणो), १९११७-७ शांतिजिन स्तवन-भुजनगर, आ. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हारे हुं तो गइती), १८४१९-२५(+), १८४३२-११ शांतिजिन स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीइं), १८१८१-१९, १८४३०-५, १८९७५-१८, १८९८१-६, १८४२९-१(-) शांतिजिन स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मयगल घरबारी नार), १८१८०-९ शांतिजिन स्तुति, क. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति सुहंकर साहिबो), १९००५-६९, १८४२९-७(-) शांतिजिन स्तुति-जावरापुर, मु. पुन्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिकर शांतिकर), १८४३८-२ शांतिजिन स्तुतिसंकेत, मु. पुण्यसागर, मा.ग.,गा. ४, पद्य, मप., (अचिरानं. दरशण. मोहतम), १८६३०-८ शांतिलेख, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रणमुं सरसति पयकमल), १७६७८-२ शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक समरियै), १८०१०(+), १८०३०(+$), १८३६०-१(+), १८७१२(+), १७३१३, १८१४९, १८६१३, १८७८२, १९०७१, २०८७६, २०१६०(#) शालिभद्र चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (धरमधोरिधर धन्य अवतार), २०१८५(६) शालिभद्रधन्नाजी सिलोको, मु. सिंह, मा.गु., गा. १४७, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (सरसति साम्मण समरु), १७३६७ शालिभद्र धन्ना सज्झाय, वा. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजिया मुनि० वेभारगिर), १८१५७-१६ शालिभद्र रास, मु. साधुहस, मा.गु., गा. २१९, वि. १४५५, पद्य, मूपू., (देवि सरसति २ सकल), १८८५० शालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, मप., (--), १८६९३($) शाश्वतजिन चैत्यवंदन, मु. रुपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (ऋषभ चंद्रानन वारीषेण), १७७८६-३(+), २०९९३-२(5) शाश्वतजिनबिंब स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ६, गा. ६०, पद्य, मूपू., (सरसति माता मन धरि), १९३०३-२ शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिकविमल, मा.गु., ढा. ७, गा. ८४, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पाय नमी), १७९९३ शाश्वतजिन स्तुति, पन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभ चंद्रानन वंदन), १९००५-६१, १८४२९-१४-) शिक्षा सज्झाय, मु. केसा, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सीख भली हीयडै धरो रे), १८६२९-६८ शिखामण के १९२ बोल, मा.गु., गद्य, जै.?, (कोइ पण शुभ कार्य), १९१९१-१ शिवपुर सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (अहो सिधसिला सगला), १८६२९-७५ शीतलजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जनस्वामी), १८१७८-१४ शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), १८१५६-२५ शीतलजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (शीतल जिनस्वामी पुण्य), १९००५-७५ शीयलबत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (शीयल रतन जतने करी), १८९७४-४(#) शीयलमुंदडी सज्झाय, श्राव. पुनो, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सीयल मुंदडी खरीय), १८६२९-२१ शीयल रास, मु. ज्ञानचंद्र, मा.गु., गा. १९६, पद्य, श्वे., (पहिला अरिहंत प्रणमी), १८९७७-१ For Private And Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शीयल सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (माय बापनी किजि भगति), १८१७९-१५ शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं ), १७४५८ शीलवती रास, मु. नेमीविजय, मा.गु., खं. ६, ढाल ८४, गा. २०६१, वि. १७५०, पद्य, मूपू., (ॐकार अक्षर अधिक), १८४०५ (+), १९०४२) १७७५३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शीलसुंदरी चौपाई, पन्या. राजविजय, मा.गु., डा. ३८, गा. ८५६, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (त्रिहुं जगनो शंकर), १८५०१(३) शुकनदीपिका चौपाई, मु. जयविजय मा.गु., गा. ३४९, पद्य, मूपू., (--), १९३२० (३) शुक्लध्यान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (शुक्लध्यानना भेद दोइ), २०६८०-२ श्राद्धविधि रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. १६५१, ग्रं. १९९४, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (सोमवदन तुझ सरस्वती), १९२७७ श्रावक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (अगलित जल व्यापारे), १९५८० श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), १९१७८-३५, १८४२०-१ (१) श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू., (कहिए मिलस्ये रे), १९००९-१२ आवक मनोरथ, मा.गु., पद्य, भूपू (पहिलो मनोरथ समणोपासण), १८१५४-१० " श्रावकमहेश्वरी संवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावक अनइ महेसरी), २०७३५-२ श्रीपालनरेन्द्र कथासार, मा.गु., गद्य, जै. ?, (मालवदेशनइ विषइ उजेणी), १८८२३-१० (+) श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., डा. ४९ गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत अनंतगुण धरीये), १७८७१ (+) श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२३, वि. १५३१, पद्य, मूपू., ( करकमल जोडि करि सिद्ध), १८०६०, १८१२४/३), २०५२० (#S) ; श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४, डाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपु., ( कल्पवेल कवियण तणी), १७५१४/+), १७८०२(+), १८४१३(१), १८४४४(+), १९०४३(+), १९४४४(+४), १७५७७, १८९६२, १८००२, १९०५१, १७५८२(३) १८०४६ (३) २०६४८(३) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ @, मा.गु., रा., गद्य, मूपू., (त्रीजो खंड पूरो थयो ), १९४४४ (+), १९०५१, १८००२ (२) श्रीपाल रास-दुहा, संबद्ध, मा.गु., गा. १, पद्य, म्पू., (उद्ध उपर आथम्यु पसरं ), १८६३२-५ (३) श्रीपाल रास का दुहा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( इहां प्रधान राजानै), १८६३२-५ श्रीपाल रास- लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., डा. २०, गा. २७१, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (चउवीसे प्रणमु जिनराय), १८०४८ (+), २०८२६(+) श्रीमतिसती सज्झाय, मु. नरसिंघ ऋषि, मा.गु., गा. ३२, वि. १८८५, पद्य, भूपू., (श्रीमित्र प्रसादथी), १८४२७-८(१) श्रेणिकराजा चौपाई, मु. नारायण, मा.गु., खं. ४, वि. १६८४, पद्य, श्वे., (--), २०५१५ श्रेणिकराजा रास, ऋ. तिलोक, मा.गु., डा. ८४, ग्रं. ३२५०, वि. १९३९, पद्य, म्पू., (जे जे जे जिन जग गुरु), २०१७७(+) श्रेणिकराजारास, मु. भीमजी, मा.गु., खं. ३, गा. ७१८, वि. १६२१, पद्य, स्था., (गोतिमनइ सिर नमिव ), २००५३ श्रेणिकराजा रास, मु. भीमजी, मा.गु., खं. ३, वि. १६२१-१६३६, पद्य, स्था. (मात सरसति तण सुपसाय), २००५८ (5) ', श्रेयांसजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांस जिन), १९००५ -१३२($) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (श्रीश्रेयांसजिणंदा), १८१७८-१५ For Private And Personal Use Only ५८१ Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ श्रेयांसजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (विष्णु जस मात जेहना ), १९००५-७७ श्लोक संग्रह -, मा.गु., पद्य, (--), १८२७२-२, १८६३५-१५(#) श्वेतांबर - दिगंबर चर्चा, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीजिनराज वीतरागदेव), २०१४२ (+) द्रव्य विचार, मा.गु., ग्रं. १८२, गद्य, मूपू., (ते मध्ये प्रथम षट), १९५३० षडाष्टक आदियोग, मा.गु., गद्य, थे., (--), १७५९३-२ संघयात्रा स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल सीद्धगीरी), १७९९०-१ संजयनियंठा सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (परिसेवणा दुवार छठो), १९९७५ - ३(5) " संभवजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मृपू., (सावत्थि नवरी धणी), १९००५ - १४५ संभवजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, भूपु (संभवनाथ सदा जयो मन), १९००५- १४ संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुजी संभव), १८६२९-२५ संभवजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मृपू., (संभवदेव ते घुर सेवो), १९००५-११५ संभवजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्री संभव जिनराजजीरे), १९००५-११६ संभवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समकित दाता समकित), १८६३४-८ संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर विनती), १९००५-११७ संभवजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (संभव साहिब माहरो हुँ), १८१७८-५ संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुने संभव जिनशु), १८३२३-२ (+) संयमश्रेणिविचार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना ), १९३३२ - १ (२) संयमश्रेणिविचार स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (ऐंद्रवृंदनतं नत्वा), १९३३२-१ For Private And Personal Use Only (२) संयमश्रेणिविचार स्तवन- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सव्वामि वृड्डिणं), १९३३२-२ संवर सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर गौतमने), १८४२८-११ संवेगद्रुममंजरी चौपाई, मु. कुशलसंयम, मा.गु., गा. १२१, ग्रं. १७८, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सकल सरूप प्रणमी), २०६८७ संसारसगपणपचीसी, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३६, पद्य, वे., (अरिहंत सिद्ध आचार्य), १८९७८-१० सकलतीर्थवंदना, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, जै., (सकल तीर्थ वंदु कर), १९२२७-१ सगपण सज्झाय, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (केहनां सगपण केहनी), १८६३८-६ चित्तअचित्त सज्झाय, मु. नयविमल, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू., (प्रवचन अमरी समरी) १८९७४ दाण सदयवच्छनरेन्द्रप्रबंध कथासार, मा.गु., गद्य, जै. ?, (मालवदेशि उजेणीनगरीइ), १८८२३-५ (+) सदयवच्छ रास, मु. रंगविजय, मा.गु., खं. ४, डाल ८३, गा. २६६८, प्र. ४१८४, वि. १८५६, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीरमणि रमण), १९४६४(+) सगुरु पद, श्राव. मूलचंद, पुहिं, गा. ५, पद्य, म्पू., (सतगुरजी को मै दरसण), १८४३२-२ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (सुरपति प्रशंसा करे), १८४३१-१(०), १८४३१-२०११) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन रस), १८१७९-९ Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८३ सनत्कुमार सज्झाय, मु. सिवकुसल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सरस्वती चरणे वचन हु), १८१५७-२४ सप्तनय रास, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १८५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुचरणकमल), १८७७९, १९२८५(5) (२) सप्तनय रास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १९२८५(5) । सभागुण गीत, मु. कवियण, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (प्रथम सभा गुणहं जे), १८६३५-२१(#) समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), १८८९९(+), १८९७०, १९१२६-२, १९३०३-१, १९३२७-१, २०८२४, २०८३७, १९४३८-१(-३) समताशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०५, पद्य, मूपू., (समता गंगा मगनता उदास), २०६८९-१ समरादित्यकेवली रास, क. पद्मविजय, मा.गु., खं. ९, ढाल १९९, पद्य, मूपू., (कालादिक जे आठ आचार), १७९५२(+$) समवसरण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोधर्मो इंद्रनु), १८९४२-२() समवसरण विचार-भगवतीसूत्रे-शतक३०, मा.गु., गद्य, पू., (जीवाय लेश पखी दिट्ठी), २००९५-१ समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मिलि चौविह सुरवर), १९१७८-२९ सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पूरव दिसे दीपतो), १९१७८-१३ सम्मेतशिखर तीर्थमाला, मु. जयसागर, मा.गु., गा. १३२, वि. १६११, पद्य, मूपू., (प्रणमीय प्रथम परमेसर), १९२३६($) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हुं तो जाउं रे सिखर), १८४१९-२३(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८४६, पद्य, म्पू., (आज भलै मै भेट्या हो), १९४०८-२(+) सम्यक्त्व के ६७ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन सुद्ध मन सुद्ध), १९१४९-३ सम्यक्त्व के ९ नाम विचार, मा.गु., गद्य, जै., (द्रव्य समकित भाव), १८६३६-३ (२) सम्यक्त्व के ९ नाम विचार-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्यसमकित कहता), १८६३६-३ सम्यक्त्वकौमुदी कथाष्टक, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४२, ग्रं. १८००, वि. १८८५, पद्य, स्था., (विज समान श्रीवीरजिन), १८०१२(+) सम्यक्त्व कौमुदी चौपाई, मु. आलमचंद, मा.गु., खं. ६, ग्रं. ५५००, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर चरण युग), १८४०२ सम्यक्त्वदोष रास, श्राव. नंदलाल, मा.गु., ढा. ५, पद्य, श्वे., (विना दृष्टिकी सुद्धत), १९८७८ सम्यक्त्व पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागे सौ जिनभक्ति), १९११७-४१ ।। सम्यक्त्वमूलबारव्रत टीप, मु. तिलकसागर कवि, मा.गु., वि. १७२१, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि तुम्हनि), १८०८० सम्यक्त्व स्वाध्याय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (स्मक्त समकित वीना), १९००९-४ सरस्वतीदेवी छंद, दयानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मा भगवती विद्यानी), १९८०६-२ सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), १८१५६-८, २००१०-२६) सवैया संग्रह, मा.गु., पद्य, वै., (अली आय खरी सन्मुख), २०४९६-२ सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २, ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं. ८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ), १८३६०-२(+), १९०१५(+), १९३९२(+), २०१०४(+), २०७८४(+), १८६१६, १८६७०, २०५१६(#) सागरचंदमुनि रास, मु. विजयशेखर, मा.गु., ढा. ८, गा. १२८, वि. १६७९, पद्य, मूपू., (सारद सार सदा दीयई), १७५२४-१ साधारण गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, (झीलण जास्यांजी सरोवर), १८६३५-११(१) For Private And Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब जिनराज कृपा होवे), १८१५६-६३ साधारणजिन गीत, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (साधु सुपात्र बडे), १८६२९-६२ साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परमेश्वर परमात्मा), १८४१७-२५(+) साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुज मुरतिने निरखवा), १९००५-३० साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय तुं जिनराज आज), १८४१७-१३(+), १९००५-२९ साधारणजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनराज के पाये लाग), १९११७-२२ साधारणजिन पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (हमरें तो प्रभु सुरति), १८६३३-२ साधारणजिन पद, श्राव. देविचंदन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिन दरबारां जावजो रे), १९११७-१३ साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (दरसण करि करि अघ सब), १८१७५-३ साधारणजिन पद, मु. माणिक्यसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुण प्यारे जिनजी आय), १९११७-१६ साधारणजिन पद, श्राव. मूलचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरणे तिहारै हुँ), १८४३२-८ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, पू., (देख्या दरसण तिहारा), १८९७७-३ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरंजन यार वोरे अब), १९११७-१ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनभाव जनतनमनतोसु आव), १९११७-२ साधारणजिन पद, मु. लालसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., (लाल जीवडा घडि एक), १९११७-१७ साधारणजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (रूप वण्यो अति नीको), १९११७-२३ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेरे दरसण के देखे), १८१२२-१० साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभु तुम विना कौंन), १८६३३-४ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (--), १८६३३-१(5) साधारणजिन विनती, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., (कायापिंड काचो राज), १९००९-१ साधारणजिन विनती स्तवन, पंन्या. भूधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (त्रिभूवनगुरु स्वामी), १८९७८-९ साधारणजिन स्तवन, मु. गुरुदास, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (अरिहा रे मो मन जिन), १८६३३-९ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भोर भयो भयो भयो जागी), १९११७-३९ साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडलि न किजें हो), १८६३५-२६(#) साधारणजिन स्तवन-देवनाटक विचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (प्रभु आगलनाचे सुर), १८१५६-४० साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), १७९८२-३(+), १८२१७-३, १८४३५-१०, १८९७५-४, १८९८३-८ साधारण पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरे जिउ आरति काइ), १९००७-११(+) साधारण पद, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (राय कहै ते पाधरो पास), १८२२०-२८ साधु अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, मा.गु., गा. ६१, वि. १८५७, पद्य, श्वे., (भिष्ट भागल विकल हुवा), १९९७५-१ साधुक्रियाबोल विचार, मा.गु., ग्रं. ६३०, गद्य, श्वे., (अथप्रश्न शिष्य गुरु), १७८८८ साधुगुण गहुंली, मु. क्षमाविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सागर सम समता मुनीवरा), १८९७९-११ For Private And Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ " साधुगुण पद, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रह समि समरी सादरइ), २०४७६-२ साधुगुणमाला, श्राव. हरजसराय जैन, पुहिं. गा. १२५, वि. १८६४, पद्य, म्पू., (श्रीत्रैलोकाधीस को), १९३३० साधुगुण सज्झाय, ऋ. आशकरण, पुहिं. गा. १०, वि. १८३८, पद्य, ओ., (साधुजीने वंदना नीत) ९८४२८-१० साधुगुण सज्झाय, ग. मणिचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रवण कीर्तन सेवन ए), १८९८२-१ " साधुपद सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर सवे करी), १८१७९-१६ साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (समकितधारी सुधमतीजी), १८९७८-२ साधुमर्यादापट्टक, आ. देवसूरि, मा.गु., वि. १६७७, गद्य, म्पू., (सं. १६७७ वर्षे वैशाख), २०२६७ साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., डा. ७, गा. ८८, पद्य, मूपू, (रिसहजिण पमुह चउवीस), १८०१६ - १ (०), १८६६३, २०२९१, २०६९२, २०७८५ साधुवंदना, उपा, पुण्यसागर, मा.गु., गा. ८८, पद्य, भूपू., (पंच परमेठि पयकमल), १८९४५ साधुवंदना, आ. भावहर्षसूरि, मा.गु., गा. १६२, वि. १६२६, पद्य, मूपू., (साधुसुगुरु समरी करी), २०५७६ साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), १९२८०, २००९९-१, २०६२५, १८४२७-१(१) साधुवंदना, मु. श्रीधर, मा.गु., ढा. १३, गा. १६३, पद्य, मूषू, (पदम नाह सिरी रिसह), १९९१८ साधुवंदना रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., डा. १४, गा. ५०२, पद्य, मूपू., (शासननायक गुणनिलो), १८५०९०६) साधुवंदना स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आदिनाथ समोसर्या), १८६२९-५२ साधु श्रावक के पांचअभिगम, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (पांच अभिगम साधुकै), १९९८४-३ () साधुसंगति सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( धर वचन सिद्धांत), १८६२९-४७ सामायिक ३२ दोष स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू , (जिनवरना प्रणमुं पाय), १९१७८-४५ सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय- शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू., (प्रणमिय श्रीगौतम), १८०००-४ सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (सामायिक मन सुधे करो), १८४३७ ४, १८६३८-२४, १८९२७-२ सारदा छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, म्पू., (सरस वचन समता मन), १८४३६-१ सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., गा, २३७, वि. १५४८, पद्य, मूपु. ( श्रीपार्श्वनाथ सुमरन ), २०८७५, १७५९४१०१ सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय, मा.गु., गा. १५४७, ग्रं. १६००, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सकल मंगल धर्म धुरि), १८१११(s) सिंहासनबत्रीसी की ३२ पुतली विचार, मा.गु., गद्य, (जया १ विजया २ जयंति३), १८८२३-१३(+) सिंहासनबत्रीसी चौपाई - दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., गा. २४३०, ग्रं. ३५००, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (आ श्रीरिषभप्रभु), १७५४४(क सिकोतरीदेवी छंद, गांग, मा.गु., गा. १०, पद्य, वै., (अगम हुताहुं ऊतरी), १७३६५-२ सिचियामाता छंद, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (मुज मन आस्था अज फली), १८४२०-३(-) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (श्रीसिद्धचक्र), १८६३७-२० ', सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्ति शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नवपदनो ध्यान धरीजे), १८४२१-१६ सिद्धचक्र स्तवन, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू., (सिद्धचक्र तुमे), १८९७९ - १९ For Private And Personal Use Only ५८५ Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ सिद्धचक्र स्तवन, वा. विनयविजय, मा.गु., गा. १४, वि. १६५१, पद्य, मूपू., (भारती भगवति पाय नमी), १८४२१-४ सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १४१७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), १८१५६-५० सिद्धचक्र स्तुति, मु. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), १७९८२-५(+), १८१८१-९ सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८उ, पद्य, मपू., (पहिले पद जपीइ अरिहंत), १८४३०-८, १८९७५-८ सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक जग), १९००५-५५, १९१७८-२७ सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो वळी सिद्ध), १८४२९-१३(-) सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेशर अति अलवेसर), १७९८२-१४(+), १८९७९-१८ सिद्धांत प्रश्नोत्तर, मु. दोलतराय, मा.गु., गद्य, श्वे., (सिद्धत्थ सवसंजलया), १९२९८, १९९५५ सिद्धांत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (समझवा हेतु मन राखवा), १८६७१-१ सीखामण सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पांच सुमती ने पासे), १८१५७-२२ सीतासती चौपाई, मा.गु., गा. ८०६, वि. १६२८, पद्य, श्वे., (सकल मनोरथ सिद्ध करी), २०८१९(+) सीतासतीशील सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), १८४३१-८(+), १८६२९-१८, १८६३८-१७ सीतासती सज्झाय, मु. उदयरतन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुं नाम), १८६३८-२ सीतासती सज्झाय, मु. लक्ष्मीचंद, पुहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., (मुनिसुवरतस्यामी कुं), १८२२०-१८ सीतासती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, जै., (इम झुरवरा घोराणी), १९००९-६ सीतासती सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (मुनिसुव्रतसामि कु), १८६२९-६३ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सीमंधर परमातमा शिव), १८४१७-५(+), १८६३७-१२ सीमंधरजिन चैत्यवंदन , उपा. विनयविजय , मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीतराग), १८४१७-६(+), १८६३७-१६ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (पूरव दिशि इशान कुण), १८६३७-१४ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदु जिणवर विहरमान), १८६३७-१७ सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिब), १८९६१(+), १७५१५ (२) सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. १२०१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीपार्श्व), १८९६१(+), १७५१५ सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हु), १९१७८-३८ सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, पद्य, मूपू., (स्वामी सीमंधर विनती), १७८५१-१, १९३८६, २०२३८-१, १९००५-१४२, २००८२(5) सीमंधरजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण शिष्य, मा.गु., गा. ११, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर स्वाम हो), १८४२१-१७ सीमंधरजिन स्तवन, ऋ. चंद्रभाण, मा.गु., गा. २१+१, पद्य, श्वे., (सीमधरस्वामी तुम दरस), १८२२०-६ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., गा. १२, पद्य, मूपू., (कुमति इम सकल दूरे), १९००५-१४३ For Private And Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पुष्कलवइ विजये जयो), १८१५६-१९ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीमंधर तमें सें मन), १८२२०-८ सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर मुझनै), १७९८२-६(+) सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदु जिणवर विहरमाण), १९१७८-१२ । सीमंधरप्रमुखजिन चैत्यवंदन, मु. महोदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सीमंधर प्रमुख नमुं), १८४१७-२८(+) सुगुरुपच्चीशी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरू पिछाणो एणे), २००२५-१ सुजातजिन स्तवन, मु. नयविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (साचो स्वामी सुजात), १८१५६-२० सुदर्शनशेठ रास, मु. विजयशेखर, मा.गु., ढा. ११, गा. २०५, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (प्रणमूं रिषभ जिणंद ए), २०६२६(+) सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (शील रतन जतने धरो रे), १९१२७-११ सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २५५, वि. १५०१, पद्य, मूपू., (पहिलउ प्रणमिसु), १७३२ १८८६७, २०५२१(4) सुधर्मागणधर भास, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिक गुणखाणि), १८१५६-३८, १८६३८-१३, १८९७२-७ सधर्मास्वामी गहंली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंपानयरी उद्यानमां), १८९७२-४, १८९७९-१० सुधर्मास्वामी गहुंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुनिवर हे के मुनिवर), १८९७२-३ सुधर्मास्वामी गहुंलीभास गीत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंपानयरी उद्यान सुरत), १८१५६-३७, १८६३८-१२ सुधर्मास्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजग्रही उद्यान गुण), १८९७२-१६ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (सुपार्श्व जिन वंदीए), १९००५-१२३ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, जै., (श्रीसुपास आनंद में), १९००५-१२४ सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसुपास जिनराज), १८१५६-१४ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जयो सकल सुख वारु), १८१७८-११ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहज सलूणा साहिबा जीन), १८१७८-१० सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुसनेही साहिब मन), १८१७८-९ सुपार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सुपास जिन वाणी सांभळ), १९००५-७० सुभद्रासती चौपाई,ऋ. लालचंद, मा.गु., ढा. ७, वि. १८५८, पद्य, स्था., (अरिहंत सिध समरूं सदा), १८६२८-१(+), १९४७८, १९५८८ सुभद्रासती पंचढालीयो, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७०, पद्य, स्था., (सिवदायक लायक सदा), १९४६७, १८४२७-१४(#) सुभद्रासती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (मुनिवर सेजे विचरता), १८४२०-९(२) सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुस्युं तो बांधी), १८१५६-११ सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ गुणस्युं), १९००५-१२० सुमतिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु सुणज्यो रे), १८१७८-७ सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सुमति जिणंद सुमति), १९१७२-२ For Private And Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ सुमतिजिन स्तुति, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मोटो ते मेघरथ राय रे), १८९७५-१३ समतिजिन स्तति-३. म. पद्मविजय, मा.ग.,गा. १, पद्य, जै., (समति समति दाइ), १९००५-६४ सुमित्रकुमार चौपाई, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., गा. ४३१, वि. १५६७, पद्य, मूपू., (पस्ममि सुमण वयण तण), २०६६५ सुरपतिकुमार कथासार, मा.गु., गद्य, जै.?, (सूधर्मनगर तिहां), १८८२३-१२(+) सुरप्रियसाधुरास, मु. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति देवि सदा मनि), २००५९ सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., अ. ४, ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सासण जेहनउ सलहियइ), । १७९७५ (+$), १८४९७(+#) सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. २१, गा. ५१७, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (आदि धरमने करवा ए), १८६४७(+), १८९१३-१(+), १८५७४ सुरसुंदरी रास, पं. वीरविजय, मा.गु., खं. ४, गा. १५८४, ग्रं. २२७१, वि. १८५७, पद्य, मूपू., (सकल गुणागर पासजी), १८८९८(+) सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन सुलसा साची), १८१५६-५३ सुविधिजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुविधिनाथ नमुनवमा), १९००५-२४ सुविधिजिन पद, मु. कनककुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुजरा साहिब मेरा रे), १८१५६-५२ सुविधिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, जै., (सुविधि जिणेसर पाय), १९००५-१२८ सुविधिजिन स्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (श्रीसुविधि जिणंद), १८५२४ सुविधिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सोभागी सुविधिजिणंद), १८१५६-६२ सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (में कीनो नहीं तुम), १९००५-१२७ सुविधिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भव भय भंजन छो भगवंता), १८१७८-१३ सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (मुजरा साहिब मेरा), १८४१९-९(+), १९११७-२८ सुविधिजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (नरदेव भाव देवो), १९००५-८२ ससीलादेवी सज्झाय, म. सिवलाल, मा.ग.,गा. २७, वि. १८८०, पद्य, श्वे.. (पंचपरमेष्टि हं नम), १८४२७-११(# सूतकविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेहने गृह मध्ये जन्म), १८२७७-१ सूरसेन रास, मु. हर्षराज, मा.गु., वि. १६१३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर धुरि), १७४४९ सूर्ययशराजा कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुन कहतां फेर इण परव), १९७७१ सौभाग्यपंचमीपर्व कथा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिनाधी), १७८७८, १८८०१ सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ५, गा. ७५, ग्रं. ११०, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरणे नमी), १७६२७(+), २०४९९, २०८३३ सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., ढा. ५, वि. १८४५, पद्य, श्वे., (श्रीअरिहंत प्रणमु), १८१५७-१२ स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., स्त. २४, वि. १८, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), १७६२५-१, १७६९१, १७९४७, १७९६१-१, १८१७५-१, १८२४७, १८७६१, १९५४५ (२) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. ८२८, गद्य, मूपू., (आनंदघनस्यास्या गीत), १८७६१(६) स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (सुगुण सुगुण सोभागी), १७८१४, १८९०३, २०८९५ For Private And Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८९ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ स्तवनचौवीसी, ग. जयसौभाग्य वाचक, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आणंदकारी हो अनोपम), १८९०५-१ स्तवनचौवीसी, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदीसर सुखकारी हो), १८२२४-१ स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), १७४५१, २००३६(३) (२) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., स्त. २४, गद्य, म्पू., (श्रीआदिनाथ प्रमुख), १७४५१, २००३६() स्तवनचौवीसी, मु. न्यायसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (वृषभ लंछन जिन वनिता), १८१६७ स्तवनचौवीसी, क. पद्मविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर ऋषभ), १८३१२ स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद), २०१२३-१ स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकर सेवना), १८४९४(+) स्तवनचौवीसी, मु. रवि, मा.गु., स्त. २४, वि. १७१६, पद्य, स्था., (--), १८४८६-१ स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ओलगडी आदीनाथनी जो), १७७६९, १९९९०, २०७०५, १८३१० (६) स्तवनचौवीसी, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ ऋषभ जिणंद निरखी), २०२०७ स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, श्वे., (श्रीआदिश्वर सामी हो), १९६७३ स्तवनचौवीसी, मु. सुखविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धक्षेत्र), १९२३५ स्तवनचौवीसी, आ. सुमतिप्रभसूरि, मा.गु., स्त. २४, ढाल २५, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (आदिसर आधारीये दास), १९४४६-१ स्थूलिभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ९, पद्य, मूपू., (करी श्रृंगार कोशा), १८३५७ स्थूलिभद्र नवरसो, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्ति दायक सदा), १७६८८(#) स्थूलिभद्र नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपति दायक सदा), १७८१५, २०२३९ स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (सयल सुहंकर पासजिन), १७६८६, १८५३०, १९५६५, २०३८२, १७३१४-२() स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीस्थूलिभद्र मुनि), १८९७६-८ स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (महावीर जिनेसरू), १९१२७-१३ स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुरायना), १८४३१-१३(+) स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (लाछल दे मात मल्हार), २००६३-२ स्थूलिभद्र सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंदलीया तुं वेहलो), १८६३८-२५ स्नात्र पूजा, मु. नगविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सद्ध्यानविज्ञानघन), १९१७७ स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), १९१७८-३, । २०६०३-२($) स्वरोदयज्ञान, मु. कपुरचंद, मा.गु., गा. ४५३, वि. १९०५, पद्य, मूपू., (नमो आदि अरिहंतदेव), १९१५८(+5), १९४९१ हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४, ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे करी चोवीसे), १८१२९(+), १८९९६(+$), २०१११(+), २०७७८(+$), १७३७० । हंसहर्षमाला रास, मु. लहुजी, मा.गु., ढा. २५, गा. ५११, वि. १७७२, पद्य, जै., (सेवं सिद्धारथ सुत), १८६६७ For Private And Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.५ हठिसिंहमंदिर अंजनशलाकाप्रतिष्ठा स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (विनय विवेकी लोकतणा), १७८७४ हरिबल चौपाई, उपा. पुन्यहर्ष, मा.गु., ढा. १७, वि. १८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पाय प्रणमी), १९९७८ हरिबल रास, म. जितविजय, मा.गु., ढा. ३५, गा. ८४९, पद्य, मपू., (सुखदाई समरूं सदा), १७३६५-१, १८३६३, १८५१२ हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., खं. ३, ढाल ३९, गा. ७८१, वि. १६९७, पद्य, पू., (पास जिणेसर पाय नमु), १७७१०, १८६२९-२९ हितशिक्षा सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), १९१२७-३(६) हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सबे भृग नयन चलीगु), १७६७८-३ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (गोयम गणधर पाए नमु), १८६२४-१०(+) हीरविजयसूरि स्तुति, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु नयरीचंपा अवतरो), १८६२४-८(+) हीरविजयसूरि स्तुति, गच्छा. विजयसेनसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य कांति), १८६२४-९(+) हीरविजयसूरि स्वाध्याय, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं मनि समरी रे), १८६२४-१(+) हीरविजयसूरि स्वाध्याय, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन भासन), १८६२४-२(+) हीरविजयसूरि स्वाध्याय, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (समरिय सरसति माय), १८६२४-५(+) हीरविजयसूरि स्वाध्याय गीत, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरणकमल नमी), १८६२४-६(+) हीरविजयसूरि स्वाध्याय-पट्टचतुष्कसूरिनामगर्भित, मु. क्षेमकुशल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीपति प्रणमइ जस पद), १८६२४-१३(+) हेलीका सज्झाय, सुखदेव, मा.गु., गा. १०, पद्य, वै., (अरी ए घर आपणा नाहि), १८६२९-१९ होका सज्झाय, मु. खुसालरत्न, मा.गु., गा. १३, वि. १८७६, पद्य, मूपू., (होको रे होको सुं करो), १८४२८-४ होलि व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिणनैं लोक होली कहै), १७९८१-१२ होलि सज्झाय, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., (नेमीसर वनखंड रो), १९००९-७ For Private And Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirthoro Acharya Shri Keilassage suivanmandir 4 आराधना हावीर जैन केन्द्र कोबा. ) अमृतं तु विद्या तु Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org 'Website : www.kobatirth.org (ISBN: 81-89177-05-2 Set: 81-89177-00-1 Formate And Personal use only