Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 5
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 489
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.५ ४६९ षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अरिहंत देव सुसाधु; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. अंतिम दो गाथाओं का टबार्थ नहीं लिखा है., वि. गाथा-१२० तक मारूगुर्जर भाषा में एवं १२१ से अंत तक संस्कृत भाषा में टबार्थ लिखा गया है.) २०९४०. नवतत्त्व सूत्र व नवतत्त्व प्रकरण का भाष्य, संपूर्ण, वि. १६५७, चैत्र शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. शिवपूरी, प्रले. ग. समयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १४४५४). १. पे. नाम. नवतत्व सूत्र, पृ. १अ. नवतत्त्व प्रकरण, आ. जिनचंद्र गणि, प्रा., पद्य, आदि: सम्मंच मोक्खबीयं; अंति: सरणत्थं अप्पणो रइया, गाथा-१४. २. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण का भाष्य, पृ. १आ-५आ. नवतत्त्व प्रकरण-भाष्य, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: भूयत्था इह अवितहभावा; अंति: मंदमईणं विबोहत्थं, गाथा-१५३. २०९४१. (+) षष्टिशतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६४०, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. खइंयाबाद, प्रले. रा. अकबर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, ९x४९). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भांडागारिक, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जाणंतु जंतु सिवं, श्लोक-१६१, (प्रले. मु. समयकलश (गुरु ग. चारुधर्म, बृहत्खरतरगच्छ)) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: सर्वज्ञदेव सुसाधु; अंति: (-), (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पू.वि. गाथा-१५८ तक टबार्थ लिखा है., प्रले. मु. सुखनिधान (गुरु मु. समयकलश, खरतरगच्छ)) २०९४३. (+) सिद्धाचलनवाणुंयात्रा पूजा, संपूर्ण, वि. १८७७, पौष शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. खांतिसागर (गुरु पं. विनयसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३५). ९९ प्रकारी पूजा, क. पद्मविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८५१, आदि: उत्तम गुरु चरणे नमी; अंति: श्रीविमलाचल पायो रे, गाथा-१११. २०९४४. चतुःशरणप्रकीर्णक सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १६५४, माघ कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पाडीव, प्र.ले.श्लो. (७४०) याद्रिशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२६४११, ५-६x२८-५२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६५. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: नित्य चउसरण गुणवउ, (प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ___ पू.वि. प्रारंभ की १३ गाथाओं का टबार्थ नहीं लिखा है.) २०९४५. महीबाल चरियं, संपूर्ण, वि. १६२७, चैत्र कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, प्रले. मु. मानसागर (गुरु उपा. देवसागर, ___ रुद्रपल्लीयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १४-१७X४१-५२). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंति: वुट्टुिं करतेहिं. २०९४६. चंद्रप्रभजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३०, जैदे., (२६४११, १४-१६५४२-५१). चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १२६४, आदि: दृष्टोपि हृष्टजन; अंति: व्यतीतेषु नवस्वभूत्, ग्रं. ५३२५. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611