Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कर इसा छे शब्दराशि, (पू.वि. श्लोक-४ की टीका अपूर्ण से है.) ६८४५८. (#) श्रीपालचरित्र रास-खंड-१-३, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रावण शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५२, प्रले. पंन्या. रुपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२, १०-१३४३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. ६८४५९. रास, चौपाई व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५, कुल पे. ४२, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३५-३९). १.पे. नाम. गौतम प्रश्नोत्तर बार आरानुं स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बार आरा. १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरसति भगवति भारती; अंति: कही तपगछ मंगल करु, ढाल-१२. २. पे. नाम. नवतत्त्व चौपाई, पृ. ४आ-१४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. मुनराबंदर, पे.वि. हुंडी:नवतत्त्वचो. शीतलनाथजी प्रसादात्. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमी; अंति: गणतां संपति कोडि, ढाल-९. ३. पे. नाम. जीवनी उत्पत्तिनी सज्झाय, पृ. १५अ-१७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:उतपतीनी. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जो जीव आपणी मन; अंति: रत्नहरष० सुवि सार ए, गाथा-७२. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्रोध परिहार, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन उपसम रस नाही, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मान परिहार, पृ. १८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइं; अंति: उदयरतन० देसवटो रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं बीज जाणजो; अंति: ए मारग छे शुद्ध रे, गाथा-६. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: भावसागर० सयल जगीस रे, गाथा-८. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोजो लोभ; अंति: लोभ तजे तेहने सदारे, गाथा-७. ९.पे. नाम. पंचेद्री सज्झाय, पृ. १९आ-२०आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आपु तुजने शीख चतुरनर; अंति: जिनहर्ष० सुख सास्वता, गाथा-७. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: निंदरडी वेरण हुइ; अंति: हो मुनि कनकनिधान के, गाथा-८. ११. पे. नाम. इरीयावहीना जीवभेद मिछामि दुकडंनी सज्झाय, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण. जीवभेद सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद चितमा धरि; अंति: जिनवचन सदा सद्दहै, ढाल-२, गाथा-२०. १२. पे. नाम. रहनेमि सज्झाय, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग व्रत रहनेमि; अंति: ते सिवनारी वरसे रे, गाथा-१२. १३. पे. नाम. शालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. २२आ-२४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only

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