Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८४८१. (i) स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १८२१, पौष शुक्ल ५, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. राजधन्यनगर, प्रले. मु. कुशलविजय (गुरु ग. सत्यविजय); पठ. मु. गुणचंद (गुरु मु. नाथा); गुपि. मु. नाथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२, ११X३५). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिनिंदसु प्रीतडी अंतिः देवचंद पद० समाजो जी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवन- २४. ६८४८२. (#) चौवीसदंडक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२, १५x२९-३२). २४ दंडक बोल संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व गर्भज मणुसा; अंति: आरण अचुतइंद्र १०. ६८४८३. (+*) द्वादशव्रतविधौ जिनपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. १२४ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७४११.५, ९४२७-३२). " १२ व्रतपूजा विधि, पं. वीरविजय, मा.गु. सं., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य, अंति: ( १ ) जग जस पडह बजायो 3 रे, (२) टालवा १२४ दीवा करीई, ढाल १३, गाथा-१२४. ६८४८४. (+) २४ दंडक ३० द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. संशोधित, दे., (२७४१२, ११४३५) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजो अंतिः जीव अनंतगुणा अधिक. ६८४८५. (*) अध्यात्मगीता, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७४१२.५, १४४४२). अध्यात्मगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: इष्टदेव प्रणमी करी; अंति: विनय० जोतसु जोत मिलाय, डाल-९, गाथा-२४२. ६८४८६. (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह विधिसहित अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९-५ (१ से ४,१८) = १४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७११.५, ११X३४-३९). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., सं., प+ग, आदि (-) अंति: (-), (पू. वि. रात्रीपीषध लेने की विधि से संथारा विधि तक है.) " ६८४८७. (+) प्रियंकरनृपकथामध्यगत काव्यो, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे., (२७.५X११.५, ८४३१-३४) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की प्रियंकरनृप कथा के चयनित काव्य, प्रा., सं., पद्य, आदि: चित्तानुवर्तिनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २८० अपूर्ण तक है.) ६८४८८. (+) धर्मशीमुनिकृत जीवठाणा व थोकडा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४०, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२७४१२, ७-१२x२६-३२). १. पे. नाम. धर्मसीमुनिकृत जीवठाणा सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १आ-१६अ, संपूर्ण, ले. स्थल अमदावाद, प्रले. श्राव. कचराभाई गोपालदास शाह, प्र.ले.पु. सामान्य. जीव १० स्थान द्वार विचार, मु. धर्मसी, प्रा., पद्य, आदि: जीव ठाणं नाम लक्खाणं; अंति: जीव अनंत पदेशी खंधे, गाथा - १०. जीव १० स्थान द्वार विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जी० जीवनुं स्थानक, अंति: पुदगल जाय ने आवे. जीव १० स्थान द्वार विचार - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो चउद प्रकारना, अंति जीवठाणे मनुष ए ५. २. पे. नाम. थोकडा संग्रह, पृ. १६आ, संपूर्ण, ले. स्थल. विसलपुर, प्रले. श्राव. रंगजीभाई (पिता श्राव. अमथाभाई); गुपि. श्राव. अमथाभाई; अन्य. संतोकबाई; श्रावि. रतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. थोकडा संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कोष्टक में लिखा गया है.) ६८४८९. (M) द्रव्यप्रकाश भाषा, संपूर्ण, वि. १८८४ वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १६. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे.. (२७.५x१२.५, १६x४८). द्रव्यप्रकाश, ग. देवचंद्र, पुहिं. पद्य वि. १७६७, आदि: अज अनादि अक्षयगुणी, अंति: देवचंद० पूरन भयो गरंध, द्वार- ३, गाथा - २६८. For Private and Personal Use Only

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