Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ श्री महावीराय नमः ॥ ॥ श्री बुद्धि - कीर्ति - कैलास - सुबोध - मनोहर - कल्याण- पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ " ६८४५२. (*) चौवीसजिन आयुमान व पट्टावली, संपूर्ण वि. १८७७, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. मोतीविजय, अन्य. मु. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२८x१२, ११-१४४३८). १. पे. नाम. २४ जिन आयुष्य विचार, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. वस्तुतः किसी प्रत का अंतिम पत्र है, इसके पूर्वपत्र में १ से १९ जिन का आयुमान होना चाहिये. २० से २४ जिन आयुमान के बाद पत्रानुक्रम १ से ५ में पट्टावली लिखकर पत्र का उपयोग किया गया है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वरसनो आउखो जाणवा २४, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मुनिसुव्रत स्वामी के आयुष्य से लिखा है.) २. पे. नाम. पट्टावली तपागच्छीय, पृ. १अ ५आ. संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चोथा आराना वरस ३ तिन अंति: श्रीविजयजिनेंद्रसूरि.. ६८४५३. (+#) शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२८४१२, ४X४०). पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर समरीने; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २ की गाथा-९ अपूर्ण तक है.) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउपासगदशांगसूत्र, अंति: (-). ६८४५४. (+#) शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास व पार्श्वनाथजीरो चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१ (१)=५, कुल पे. २, प्रले. मु. भागचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२८४१२, १६४३८). १. पे. नाम. सेत्रुंजगिर उधार, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. भागचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्म, वि. १६३८, आदि (-); अंति नयसुंदर० दरसण जय करो, ढाल १२, गाथा-१२०, ग्रं. १७०, ( पू. वि. गाथा- २३ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो चउढाल्यो, पृ. ५अ- ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चौडालिया, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १७२६, आदि आज सफल दिन माहरो रे, अंतिः भीनो रे मे दीठो दीठो, ढाल ४. ६८४५५. (#) श्रेणिकराज ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८४१२, १८x४०-४५ ). श्रेणिकराजा रास *, मा.गु., पद्य, आदि: समगधदेशना अधिपति, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ७ तक है.) ६८४५६. धर्मनाथज्ञानप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२८४१३, १३३६-४०). धर्मजिन स्तवन- आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतनुं अंति विनयविजय रसपूर, गाथा- १३८. ६८४५७. (+) समयसारनाटककलश सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९१४, कार्तिक कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२५ - २ (१ से २) = १२३, ले. स्थल, रामपुरा, प्रले ॐकार पठ. मु. सुखलाल (गुरु आ. देवीचंद) गुपि आ. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने लेखन काल के लिये "अंगरेज विद्ध्वंस हुवौ जणी शाल लिखी" का उल्लेख किया है., पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., (२८x१३, १३-१६x४५ ). " समयसार - आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वामृतचंद्रसूरे, अधिकार १२ श्लोक-२६०, (पू.वि. श्लोक ५ से है.) For Private and Personal Use Only

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