Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 09
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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४१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति-सहस्रफणा, मा.गु., पद्य, आदि: सहसफणा प्रभुपासजी; अंति: अंतरपडदो खोलो रे, गाथा-७. ३८५०२. तृष्णा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. महावडनगर, प्रले. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४१०.५, १४४३३).
तृष्णा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोधमान मद मछर माय; अंति: विघन विना निरवाणे, गाथा-११. ३८५०३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०x१०.५, २०४३२-३७). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नारी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
नारी सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: मूरख के भावै नहीं; अंति: आगैइच्छा थारी रे, गाथा-२२. २. पे. नाम. आदिजिन गल, पृ. १आ, संपूर्ण.
आदिजिन स्तुति, मु. केसरकुसल, पुहिं., पद्य, आदि: आदिनाथ देव के देवा; अंति: केसरकुसल० चांद हये, गाथा-१२. ३८५०४. नेमजिन नव भव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०.५, २०४३८). नेमराजिमती नवभव स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: प्रभुजी आया रे; अंति: पद्मविजय
जिनराय, गाथा-१७. ३८५०५. साधु आलोचना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२०x१०.५, ११४२५).
आलोचना विधि-साधुधर्म, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआगमे तिविहे पन्न; अंति: (१)श्रावकसूत्र भणेमी, (२)मिच्छामि
दुक्कडम. ३८५०६. बारमासो व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२०४१२, ११४२४). १. पे. नाम. नेमनाथ राजेमती बारमासो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.
नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वामि; अंति: एह नवनिध पामिरे, गाथा-१३. २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण.
दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: तुह मंदिर तुह मालीया; अंति: नही सौसाले घट सैण, गाथा-२. ३८५०७. धर्म कुटुंब अने पाप कुटुंबनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०४१२.५, १२४२९).
धर्मकुटुंब व पापकुटुंब सज्झाय, मु. जितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीस जिन प्रणमी करी; अंति: जीत नमे तेना
पाय जी, गाथा-११. ३८५०८. आदिजिन विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६७, आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जंबुसरबंदर, पठ. मु. कपूर; प्रले. मु. कल्याणचंद (गुरु पं. दीपविजय); गुपि.पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२.५, ११४२८).
आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पामी सुगुरु पसायरे; अंति:
मांगुर्छ एतलुंए, गाथा-५७. ३८५१०. बासठ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९७५, माघ कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. आहोर, प्रले. पीतांबर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. * पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२३.५४१२, १०x१२-२२).
६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: आहारक अणाहारक. ३८५११. (+) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१२, १५४३८). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति:
भगति भाव प्रशंसियो, ढाल-३, गाथा-२०. ३८५१२. चक्रवर्तिनी रिद्धि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१२.५, २०४३८).
चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नवतौ निधान होइ १४; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
"नवसै सोरठदेस" पाठ तक लिखा है.) ३८५१३. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १४४२६).
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