Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 09
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९
___४३७ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ
सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३८७०९. (+) विविधगाथा संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.,
(२१४१२.५, ६४१८-२५). १. पे. नाम. दसआशातना सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण.
जिनभवन १० आशातना, प्रा., पद्य, आदि: तंबोल पाण भोयण वाहण; अंति: अंबजे जिणनाह जगइए, गाथा-१.
जिनभवन १० आशातना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पान सोपारि सुठ अजमो; अंति: मुलगंभारानी सर्वथा. २.पे. नाम. जिनमातापितागति गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषये, प्रा., पद्य, आदि: उसभपिय नागेसुसेसाणं; अंति: पुणवत्त अच्चुऐवावि,
गाथा-३. सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषये-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभदेवना पीता भवनपति; अंति:
अच्युतदेवलोके पहुंता. ३. पे. नाम. बारेकुलरो विचारगाथा-आचारांगसूत्रे सह टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र-के द्वितीय श्रुतस्कंध का हिस्सा अध्ययन१ उद्देश२१२कुल विचारसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा.,
प+ग., आदि: से भिक्खू वार जाव पव; अंति: सुयं जाव परिगाहेज्जा. आचारांगसूत्र-के द्वितीय श्रुतस्कंध का हिस्सा अध्ययन उद्देश२१२कुल विचारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि:
ते साधसाधवी ग्रस्थना; अंति: वास्ते साधु पेसै. ४. पे. नाम. देशविरति श्रावक सूत्र सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.
देशविरति श्रावक सूत्र, प्रा., पद्य, आदि: अह हुज्जदेसविरओ संपत; अंति: तित्थतित्थयरपुअसु, गाथा-३.
देशविरति श्रावक सूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ क हिवे हुज क०; अंति: पुजाअर्थे द्रव्यखरचे. ५. पे. नाम. १० श्रावक नाम, पृ. २आ, संपूर्ण.
महावीरजिन १० श्रावक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आणंद१ कामदेवर गाथापत; अंति: लयणीपिता१०. ३८७१०. अविरल स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२०.५४१२.५, १३४३०).
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कुवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ३८७११. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, २३४१८).
प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सुअदेवया भगवई नाणा; अंति: मणसा मत्थएण
वंदामि. ३८७१२. (#) पार्श्वजिन स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं,
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१२, १२४३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण..
सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु; अंति: पार्श्वजिनं शिवम्, श्लोक-७. २. पे. नाम. १८ अक्षरी नमिऊणबीज मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.
प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमिऊण पास विसहर; अंति: जानाति गुरूपदेशात्. ३८७१३. श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१६.५४१२.५, १०x२०-२२).
१. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण.
___ सं., पद्य, आदि: नाभेयादि जिनाः; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. २. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-५. ३८७१४. (#) अठ्ठावीस लब्धीनाम सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं,
जैदे., (२२४१२, ६४२१).
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