Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 09
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.९) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol-1.1.9) यह प्रमाण अणा ब्रह्मगावादयगम बदरिमीणामिवमा वादमनगरावति॥। गानामा झिणाडि आचार्य श्री adमहावीर फला हरता ससागरसूरि कावा ती ज्ञानमाल प्यांतरमनाग For Private and Personal Use Only मात कर्म कि गाराश्रीयाद am Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.९) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची • आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाजन आराधना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमृतं तु विद्या प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५३८ ० वि.सं. २०६८ ० ई. २०१२ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ९ Ācārya Shri Kailāsasāgarasūi Smrti Granthasūci - Ratna 9 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.९ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci: 1.1.9 ० ग्रंथसूची निर्देशन समिति ० मुकेश एन. शाह (ट्रस्टी) श्रीपाल आर. शाह (ट्रस्टी) रजनीभाई एन. शाह (कारोबारी सदस्य) कनुभाई एल. शाह (नियामक) ० संपादक मंडल ० पं. नवीनभाई वी. जैन पं. संजयकुमार आर. झा ०सह संपादक ० ० संपादन सहयोग ० पं. रामप्रकाश झा डॉ. हेमंत कुमार पं. अरुण कुमार झा पं. नितेश आर. वणकर परबत ठाकोर ब्रिजेश पटेल संजय गुर्जर दिलावरसिंह विहोल ० कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग ० केतन डी. शाह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ९ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृतसूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची • वर्ग - १ : जैन साहित्य खंड - ९ ले आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Dēvarddhigani Kșamāśramana Hastaprata Bhāņdāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section-I: Manuscripts' Catalogue .Class - I: Jain Literature Volume-9 Blessings & Inspiration of Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Published by Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, India 2012 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 9 Kailasa Śrutasagara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts 1.1.9 www.kobatirth.org Dēvarddhigani Kṣamāśramana Hastaprata Bhāṇḍāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir © Copy rights Reserved by Publisher © Vir Samvat 2538, Vikram Samvat 2068, A. D. 2012 o Edition : First • प्रकाशन सौजन्य : शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद Preserved in © Published by : Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra O Available at: Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Koba Tirth, Gandhinagar 382007. INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 978-81-89177-40-9 (Vol.9) Website: www.kobatirth.org Email: gyammandir@kobatirth.org © Price: Rs. 1500/ © Printed by : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad ISBN: 81-89177-00-1 (Set) + उपलक्ष+ श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की पावन निश्रा में आयोजित श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जिनालय के द्वि-शताब्दी महोत्सव Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुनीत प्रसंग पर वि. सं. २०६८, वैशाख कृष्णपक्ष, अमावस्या, शनिवार, दि. २१-४-२०१२ श्रीगोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, १२, पायधुनी, विजयवल्लभ चौक, मुंबई - ४००००३ For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || अहम् नमः || मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋण स्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत-से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर, सर्वप्रथम सन् १९७४ में, अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान, ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके, उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से, कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरेधीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का भगीरथ कार्य हमारे मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है, जिनका आकस्मिक व अतिदुःखद कालधर्म गतवर्ष जेठ वद-२, ता. १७-६-२०११, शुक्रवार को हो गया. उन्होंने अत्यंत समर्पित भाव से यह कार्य किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर पंन्यास श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबको मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के निदेशक श्री कनुभाई शाह की देखरेख में पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को अंतिम रूप दिया है वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक है. श्री नवीनभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, डॉ. हेमंत कुमार, श्री अरुण कुमार झा आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. ज्ञानमंदिर का कार्य सम्भालने वाले संस्था के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई एन. शाह, श्री श्रीपालभाई आर. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत नवम खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी - अहमदाबाद एवं समस्त ट्रस्टीगण के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ.. परम गुरुभक्त श्री रविचंदजी बोथरा के सुपुत्र श्री वीरचंदजी बोथरा एवं श्री अजितचंदजी बोथरा परिवार का उदार सहयोग प्रस्तुत चार खंडों हेतु प्राप्त हुआ है, यह कार्य बहुत ही अनुमोदनीय एवं प्रशंसनीय है. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार की कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची के खंड ९ से १२ प्रकाशित होने जा रहे हैं, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वद्वर्ग इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. पभसागर सरि संस्था अपने विकास पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 2- सादर समर्पण - कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के कर कमलों में... जिनकी बदौलत यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही. O O मूक व समर्पित, अतिविरल श्रुतसेवक तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी म. सा. के चरणों में... जिनके अथक परिश्रम एवं कुशल मार्गदर्शन के फलस्वरूप यह ग्रंथसूची साकार हो सकी. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतोपासक तपस्वी मुनि श्री निर्वाणसागरजी म. सा. का परिचय तारक तीर्थंकर परमात्मा श्रीमहावीरस्वामी की यशस्वी पाटपरंपरा में सुप्रसिद्ध योगनिष्ठ। आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज की शिष्य-परंपरा में श्रुतोद्धारक राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज के पट्टधर स्व. उपाध्यायजी श्री धरणेन्द्रसागरजी महाराज के शिष्यरत्न तपस्वी मुनि श्री निर्वाणसागरजी महाराज का चरित्र वर्तमान काल में एक सच्चे निर्विकारी व सन्निष्ठ साधु के रूप में सर्वविदित है. | आपश्री का जन्म दिनांक २२/९/१९५२ के दिन गुडा-बालोतान (राजस्थान) में माता स्व. सोनीबाई की कुक्षि से पिताश्री लालचंदजी हीराचंदजी जैन के परिवार में हुआ था. आपका सांसारिक नाम पारसमलजी था. आप बी. एस-सी. तक की लौकिक शिक्षा प्राप्त कर बेल्लारी। (कर्नाटक) में चल रहे पिताश्री के व्यापार में सहयोगी के रूप में प्रवृत हो गये. श्रीसंघ में गुरुमहाराज श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी की निश्रा में आयोजित उपधान तप की आराधना में शामिल होकर पूज्य आचार्यश्री के परिचय में आए. इसी अवधि में आपश्री धर्माभिमुख हुए और मानवजीवन की सफलता प्रव्रज्याधर्म में ही जानकर विक्रम संवत २०३७ फाल्गुण शुक्ल सप्तमी के दिन बेल्लारी में पूज्य गुरुदेव की निश्रा में दीक्षित होकर पूज्य उपाध्याय श्रीधरणेन्द्रसागरजी के शिष्य के रूप में मुनिश्री। निर्वाणसागरजी जैसे लोकप्रिय नाम से अपना संयम जीवन प्रारम्भ किया। दीक्षा के प्रथम दिन से ही अप्रमत्त भाव से संयमयात्रा शुरु कर अन्तिम दिन तक प्रभु-आज्ञामय संयम जीवन व्यतीत किया. वे नित्य एकासणा अथवा आयंबिल तप किया करते थे. कभी भी खुले मुंह आहार ग्रहण नहीं किया. साथ ही २०-२० घन्टों तक सतत प्रवृत्तिशील रहते थे. बाह्य तप के साथ-साथ स्वाध्याय तथा वैयावच्च उनके जीवन के खास पर्याय बन चुके थे.३० वर्षों के दीक्षापर्याय में उन्होंने जिस प्रकार श्रुतज्ञान की आराधना की है, वह अद्भुत है , जोधपुर निवासी विरल श्रुतसेवक श्री जौहरीमलजी पारेख को आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में। स्थित विशाल हस्तप्रत संग्रह के सूचीकरण के प्रारम्भिक कार्य में उन्होंने हस्तप्रत के पत्र गिनने व आवरण चढ़ाने रूप सहयोग प्रदान किया और आगे जाकर श्रुतभक्ति के आदर्श के रूप में उन्होंने ६०,००० से अधिक हस्तप्रतों की विस्तृत सूचनाएँ १,००,००० फॉर्म में भरकर अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है. अपने आप में विलक्षण ऐसे प्रत-दशा संकेत, विशेषता संकेत व प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोकों का संकलन आदि सारगर्भित सूचनाएँ उनकी सूक्ष्मदर्शिता का परिचायक है. इतना ही नहीं, बल्कि आज ज्ञानमंदिर की अधिकांश हस्तप्रतों के आवरण पर लिखी गई प्रत-नामादि संक्षिप्त सूचनाएँ उन्हीं की देन है, छोटी से छोटी सामान्यतः व्यर्थ लगनेवाली अनुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोग में लाना उनकी कार्यकुशलता का विशिष्ट परिचायक था. वीरविजयजी उपाश्रय, अहमदाबाद में स्थित ऐतिहासिक ज्ञानभण्डार में संग्रहीत। हस्तप्रतों की सूची स्वयं अकेले तैयार कर उन्होंने श्रुतज्ञान के प्रति समर्पण भाव का और एक परिचय दिया. पूज्यश्री ने वर्तमान समय की आवश्यकता को ध्यान में रखकर सर्वप्रथम रोमन लिपि में डायाक्रेटिक चिह्नों से युक्त दो प्रतिक्रमणसूत्र व पंचप्रतिक्रमणसूत्र हिन्दी शब्दार्थ, गाथार्थ तथा भावार्थ के साथ प्रकाशित कराके लोकोपयोगी बनाया. जिसे विश्वभर के श्रीसंघों द्वारा खूब आदर प्राप्त हुआ. इन दोनों पुस्तकों की प्रथम आवृत्ति हेतु पूज्यश्री ने महीनों तक दिन-रात मेहनत कर प्रत्येक अक्षर पर डायाक्रेटिक मार्क। स्वयं चिपकाए थे. श्रुतभक्ति के जीवंत चमत्कार भी पूज्यश्री के जीवन में देखने को मिलते हैं. पूज्यश्री की सूत्रों की धारणा शक्ति प्रारंभ में कमजोर थी. खूब मेहनत करने पर भी सूत्रों को पुनः पुनः भूल जाते थे. इसी कारण वे संस्कृत, प्राकृत भाषाओं का अध्ययन भी नहीं कर पाए थे. श्रुतभक्ति का ही प्रभाव था कि बाद में बड़े-बड़े सूत्र भी उनको सरलता से याद रहने लगे थे. हस्तप्रतों में से ग्रंथों की सूचनाएँ निकालने के लिए जहाँ बड़ेबड़े विद्वानों को भी परिश्रम करना पडता है, वहीं पूज्यश्री का ध्यान सारे पन्नों में से जो उपयोगी पाठ होता था, उसी जगह सबसे पहले सहज ही चला जाता था, भले वह पाठ संस्कृत या प्राकृत में ही क्यों न हो! उनके साधुजीवन में नम्रता, सरलता, समता, सजगता, तीव्र जिज्ञासा, निःस्पृहता, प्रभुभक्ति, ज्ञानभक्ति, अप्रमत्त स्वाध्याय, गच्छ-मत के भेदभाव से रहित बाल-ग्लान की सेवा-सुश्रूषा, वैयावच्च आदि दुर्लभ गुण अपनी सोलह कलाओं के साथ खिले हुए थे. प्रत्येक व्यक्ति के लिए। सहायक सिद्ध होना, 'वेस्ट से बेस्ट' बनाना, आरम्भ किए गए कार्य को जी-जान लगा कर पूर्ण करके ही दम लेना आदि अनेक गुणों से वे जीवन के अन्तिम महीनों में उन्होंने २२-२३ घन्टों तक सतत मौन रहकर आराधनाएँ करते हुए शासनदेवता की सहायता प्राप्त की थी. उसकी फलश्रुति के रूप में उन्होंने अत्यन्त चमत्कारी सर्वतीर्थार्हन सिद्धमहायंत्र का संयोजन किया था. मोक्षमार्ग के विरल यात्री पूज्य मुनि श्रीनिर्वाणसागरजी महाराज ने अपने संयम जीवन को यशस्वी बनाकर दिनांक १७/६/२०११ को समाधिपूर्वक कालधर्म प्राप्त किया. धन्य है, हे मुनिवर आपको! धन्य है, आपके सफल जीवन को! धन्य हैं, आपकी अपूर्व आराधनाएँ, हे मुनिवृषभ! आपके चरणों में हमारी कोटिशः वन्दना ! वन्दना !! वन्दना !!! श्रद्धावनत - समग्र श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र परिवार For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के नवम खंड को मुंबई की पुण्यमयी धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की शुभ निश्रा में श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जैन मंदिर के द्विशताब्दी महोत्सव के पावन प्रसंग पर चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है... _ विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. प्रस्तुत ग्रंथसूची के मूल आधार पूज्य मुनिश्री ही है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितजनों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. सात पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकर्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती है. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण अत्यंत उत्सुक और गतिशील रहे हैं. विशेषतः ट्रस्टीवर्य श्री मुकेशभाई एन. शाह एवं श्री श्रीपालभाई आर. शाह तथा कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. तदुपरांत समय-समय पर ज्ञानमंदिर का तन-मन-धन से कार्यभार निर्वाह करनेवाले के ट्रस्टीवर्य स्व. श्री शांतिलाल मोहनलाल शाह, स्व. श्री उदयनभाई आर. शाह, श्री हेमंतभाई राणा, श्री सोहनलालजी एल. चौधरी, श्री चांदमलजी गोलिया, श्री किरीटभाई कोबावाला, श्री कल्पेशभाई जे. शाह, श्री गिरीशभाई वी. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री मोहितभाई शाह का भी ज्ञानमंदिर को आज की ऊंचाईयों तक पहुंचाने के लिए सुंदर योगदान प्राप्त हुआ है, जिसे इस अवसर पर याद किये बिना नहीं रहा जा सकता. परम गुरुभक्त श्री रविचंदजी बोथरा के सुपुत्र श्री वीरचंदजी एवं श्री अजितचंदजी बोथरा परिवार का जो उदार सहयोग प्रस्तुत चार खंडों हेतु प्राप्त हुआ है वह अत्यंत अनुमोदनीय है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस नवम खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी - अहमदाबाद के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस नवम रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में परम श्रद्धेय आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की पावन निश्रा में हो रहे मुंबई, श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जिनालय के द्वि-शताब्दी महोत्सव के ऐतिहासिक प्रसंग पर एक साथ प्रकाशित हो रहे रत्न चतुष्टय ९ से १२ में से इस नवम रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. सूचीकरण कार्य के परिणाम स्वरूप इस बार भी प्राकृत, संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल, टीका, अवचूरी आदि व व्याख्या साहित्य की लघु कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही हैं. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक विद्वानों की कृतियाँ भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. इस खंड में लघु प्रतों की ही सूची है. सामान्यतः ऐसी प्रतों को अल्प-महत्त्व की समझकर जत्थे में बांधकर उपेक्षित सा रख दिया जाता है. लेकिन परिशिष्टों को देखने से पता चलेगा कि आश्चर्यजनक रूप से ऐसी प्रतों में से भी प्रचुरमात्रा में महत्व की अप्रकाशित लघु कृतियाँ प्राप्त हुई हैं. इन लघु प्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही कष्टसाध्य होता है, लेकिन उसका यह सुंदर परिणाम बहुत संतोष दे रहा है. प्रकरण, कुलक व चरित्र आदि अनेक प्रकार के ग्रंथ अप्रकाशित प्रतीत हुए हैं. ऐसा ही देशी भाषा की कृतियों में भी है. इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपया वहाँ पर देख लें. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत बड़ा जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित, द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री इस तरह छ: भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकृत कर दिया गया है. प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी को आधार रखकर हमने यह संपादन कार्य किया है. मुनिश्री के हम अनेकशः कृतज्ञ हैं. समग्र कार्य दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक पंन्यास श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्यप्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु, त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्रस्तुति के लिए हम त्रिविध मिच्छामि दुक्कडं देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और अधिक बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, ताकि अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 102 थसूची खंड ९ से के विशिष्ट सहयोगी कैलास श्रुतसागर धन्यधरा व पुण्यतमा बंगभूमि के जाह्नवीतट पर अवस्थित सुप्रसिद्ध अजीमगंज-मुर्शिदाबाद के धर्मनिष्ठ, संस्कारसमृद्ध, श्री-संपन्न एवं श्रीसंघ सेवापरायण श्रीबोथरा जैनकुल की उज्ज्वल परंपरा में स्वनामधन्य पितामह श्रीमान प्रसन्नचन्द्रजी बोथरा, धर्मनिष्ठ पिता श्री गंभीरचंदजी बोथरा, उनके ज्येष्ठ बंधुद्वय श्री परिचंदजी एवं श्री श्रीचन्दजी बोथरा जैसे जाज्वल्यमान् नक्षत्रसम महानुभावों ने अपना जीवन सफल और यशस्वी बनाया, उसी गौरवमयी परंपरा में देवगुरुश्रुतभक्तिकारक श्री रविचन्द्रजी बोथरा एवं उनकी धर्मपलि सौभाग्यशालिनी श्रीमती कुमुदकुमारी ने भी अपने जीवन में अनेकविध शासन प्रभावना व धर्मप्रभावना के कार्य करके वीतराग परमात्मा के श्रद्धासम्पन्न एवं समर्पित सन्निष्ठ श्रावक-श्राविका के रूप में अपने अपने नाम को यथार्थ करते हुए स्वजीवन को सही अर्थ में सफल बनाया है. उनके कार्य वास्तव में श्रीसंघव समाज के लिये कल्याणकारी है. सुकृतसागर की झलक तृतीय तीर्थकर श्री संभवनाथ परमात्मा के गृहजिनालय का निर्माण. पोरुर (चेन्नई) में मूलनायक श्री मुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिष्ठा. विशाखापत्तनम् (आन्ध्रप्रदेश) स्थित श्रीसंघमंदिरजी में कायमी ध्वजारोहण का लाभ एवं अजीमगंज से लायी गयी नयनरम्य व मनोहारी पार्श्वनाथ प्रभु की प्राचीन प्रतिमा की प्रतिष्ठा का भी लाभ प्राप्त किया. वहीं पर दादावाड़ी के प्रांगण में आपने अपनी मातामही-नानीमां परम सश्राविका श्रीमती ताराबेन कांकरिया के साथ मिलकर समवसरण मंदिर की संरचना का लाभ लिया. - कंडलपरतीर्थ (बिहार में) श्री अजितनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की. इस्वी सन् १९९३ में पूज्य गुरुदेव राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में मधुपुरीतीर्थ (महुड़ी) से तारंगातीर्थ का छ' री पालित पदयात्रा संघ का सुंदर आयोजन किया. - पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा से कोबातीर्थ के मूलनायक चरम तीर्थपति श्री महावीरस्वामी परमात्मा को रत्नजड़ित स्वर्णहार अर्पण का धन्यतम लाभ लिया. कोवा तीर्थ में ही आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में तृतीय तल पर स्थित आर्य रक्षितसूरि शोधसागर (कम्प्यूटर कक्ष) का सुंदर एवं अनुमोदनीय लाभ लिया है. - श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में नूतन श्राविका उपाश्रय का भव्य एवं यशस्वी लाभ लिया है. पूज्य आचार्यश्री की ही पावन निश्रा में उज्जैन से नागेश्वर तीर्थ का ऐतिहासिक छरी पालित संघ का भव्य आयोजन कार्य) आपश्री ने पूज्य गुरुदेवश्री की प्रेरणा पाकर जीवदया, साधर्मिकभक्ति, अनुकंपा, जीर्णचैत्योद्धार, श्रुतसंरक्षण इत्यादि बहुविध सुकृतों की सुवास से अपने जीवन को सार्थक किया. आपश्री ने जीवन का सही मर्म समझकर अंतिम साँस तक धर्म को ह्रदयस्थ किया. अपने परिवार को सद्धर्म-सदगुरु व सुसंस्कार की संपत्ति विरासत में देते हुए धर्मवैभव को समृद्ध किया. परिवार को समर्पण-सरलता एवं सदाचार के पथ पर चलने का अनमोल शिक्षापाठ देकर धर्मरसिक बनाया. जिनशासन के प्रति श्रद्धान्वित एवं पूज्य गुरुदेव के प्रति समर्पित आपश्री के जीवन का प्रत्येक कार्य परिवार और श्रीसंघ को सदैव नया संदेश, नई शक्ति व नई प्रेरणा देता है. आज भी आपके द्वारा बतलाए गए इस उज्ज्वल पथ पर चलते हुए आपके दोनों सुपुत्र श्री वीरचंदजी एवं श्री अजितचंदजी बोथरा सपरिवार श्री जिनशासन की सेवा और धर्मप्रभावना के अनेक सुकृत करने के लिए अग्रसर और उत्सुक है. For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना समर्पण प्रकाशकीय .............. viii प्राक्कथन अनुक्रमणिका..... .............V प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत ...........vi-vii हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य.. हस्तप्रत सूची ........१-४६८ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या.......................४६९-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १..... ........ ...४६९-५१९ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ ... ५२०-५९६ इस सुचीपत्र में हस्तप्रत, कति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सुचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सुचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपया वहाँ पर देख लें. umlion DIL Talulail प्रस्तुत खंड ९ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. प्रत क्रमांक - ३४४५१ से ३९०५० ० इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से ३६६० प्रतों की सूचनाओं का समावेश इस खंड में हुआ है. ० समाविष्ट प्रतों में कुल ४०६० कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ० इन परिवारों की कुल ४५८२ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. ० सूची में उपरोक्त कृतियों कुल ६५६५ बार आई हैं. For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत (का........... कृति कृति नाम के अंत में, विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. ........... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक.- इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. #............ कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में उर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--)...........आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप.............अपभ्रंश (कृति भाषा) अंतिः ........ अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ. ......... आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप. ........... प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा......... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ. ......... ऋषि (विद्वान स्वरूप) क........... कवि (विद्वान स्वरूप) कुं..............कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं........मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्व ग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पे......... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत............ प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को.............. कोष्टक (कृति स्वरूप) ग. .......... गणि (विद्वान स्वरूप) गडी. ..........गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य............ गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा..............गाथा (कृति परिमाण) गु.............. गुजराती (कृति भाषा) गुटका ........बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 515 गृही. .......... गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) गोल ...........गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ग्रं. ............. ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) जै........ .जैन कृति (कृति परिशिष्ट) क......... जैन कवि (विद्वान स्वरूप) जैदे............जैन देवनागरी (प्रत लिपि) ते...............जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) ............. आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) दि. ......... .जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) देना............देवनागरी (प्रत लिपि) पं............. पंजाबी (कृति भाषा) पं. .......... पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) पठ. ........... पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) प+ग ..........पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) पद्य.............पद्यबद्ध (कृति प्रकार) पा........... पाठक (विद्वान स्वरूप) पु. हिं.........पुरानी हिंदी (कृति भाषा) पू. वि.......... पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व कृतिमाहिती स्तर) कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि.' 'श.' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. पृ. ........... पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर) पे. नाम........ पेटाकृति नाम पे. वि.......... पेटाकृति विशेष पै...............पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) प्र. वि......... प्रत विशेष. प्रले............ प्रतिलेखक, लहिया, Scribe (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) प्र. ले. पु...... प्रतिलेखन पुष्पिका की - (प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) ('सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) प्र.ले.श्लो...... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) प्रा..............प्राकृत (कृति भाषा) प्रे. .............. प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) बौ.............बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) म...............मराठी (कृति भाषा) महा. ..........महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा) मा. ............मागधी प्राकृत (कृति भाषा) मा. गु..........मारुगुर्जर (कृति भाषा) मु. .......... मुनि (विद्वान स्वरूप) मु. ............. मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) यं.............. यंत्र (कृति स्वरूप) रा........... राजा (विद्वान स्वरूप) रा...............राजस्थानी (कृति भाषा) राज्यकाल.... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. राज्ये........... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो. लिख.......... प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वा........... वाचक (विद्वान स्वरूप) वि............. विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्रे. ले. पु., कृति रचना वर्ष) विक्र.......... विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) वी............. ..वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी'. यथा-८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष) वै. .......... वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) व्याप. ......... व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. पूर्व .......... विद्वान) श..............शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र. ले. पु.) श्राव......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) श्रावि........ श्राविका (विद्वान स्वरूप) श्रु.............. श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान) जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) ............. संस्कृत (कृति भाषा) ........... समर्पक. ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) सा.......... साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) स्था............जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) हिं..............हिंदी (कृति भाषा) Vii For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ० सुकृत के सहभागी o हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ अमेरिका, पालडी " जैना" हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका मुंबई १५. मुंबई १६. श्री सांताक्रूज़ जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन देरासर मार्ग, सांताक्रुज़ (वे.) मुंबई १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, सुरत १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद | २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, आरे रोड, गोरेगाँव मुंबई २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर २२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट बेंग्लोर २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड पेरीटीज, मुंबई २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई अहमदाबाद २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार अहमदाबाद ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर मुंबई ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ मुंबई ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ मुंबई ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया मुंबई ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका अहमदाबाद १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल मुंबई १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट मुंबई १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी १. श्रीमद् यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला, श्री जैन श्रेयस्कर मंडल २. श्री अर्बुद गिरीराज जैन श्वे. तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट ४. शेठ श्री शायरचंदजी नाहर ५. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर ट्रस्ट, पालडी ६. संघवी श्री पुखराजजी हंजारीमलजी दांतेवाडीया मांडवला ७. श्री रांदेर रोड जैनसंघ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर, रांदेर रोड ८. श्री जिन आराधक मंडल, कांदीवली ९. श्री जयेशभाई हिरजीभाई शाह, नरीमन प्वाइंट १०. प. पू. आ. देव श्री जगच्चन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की प्रेरणा से श्री सिद्धगिरि महातीर्थ चातुर्मास आराधना हेतु श्री बेतालीस के विशा श्रीमाली जैन ज्ञाति मंडल ११. श्री आदिनाथ सोसायटी जैन टेम्पल ट्रस्ट, पूना - सातारा रोड १२. श्री बिरला एकेडेमी ऑफ आर्ट एन्ड कल्चर १३. दक्षिण-पावापुरी तीर्थ, चंद्रप्रभु जैन सेवामंडल ट्रस्ट viii Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only महेसाणा इन्दौर मुंबई अहमदाबाद चेन्नई सुरत मुंबई मुंबई मुंबई पूना कोलकाता पेनई Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रस्तुत खंड सौजन्य शेठ आणंदजी कल्याणजी (अखिल भारतीय जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक श्री संघ के प्रतिनिधि) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "श्रेष्ठी लालभाई दलपतभाई भवन" 25, वसंतकुंज, नवा शारदामंदिर रोड, पालडी, अहमदाबाद- 380007 फोन - 079-26608244, 26608255 इ-मेल - shree_sangh@yahoo.com For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org ॥ श्री महावीराय नमः ॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति - कैलास - सुबोध - मनोहर - कल्याण- पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ " ३४४५१. (+) शत्रुंजय स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैवे (२३४११.५, १०४३२). १. पे. नाम. शत्रुंजय स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति - शत्रुंजयमंडन, सं., पद्य, आदि: शैले शत्रुंजयाख्ये; अंतिः कृतांकूरमूरं जगत्यां श्लोक-३. २. पे. नाम. शत्रुंजय स्तुति, पृ. १अ -१आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि आनंदानप्रकप्रस्त्रि, अंतिः ज्ञेयवस्तुप्रदीपः श्लोक-३. ३४४५२. नवग्रहशांति विधि व गौतमस्वामी मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X११.५, १०x३७). १. पे. नाम. नवग्रहशांति विधि, प्र. १२-१आ. संपूर्ण. " मा.गु. सं., गद्य, आदि: श्रीसूर्यस्य पद्म, अंति: १०८ इति केतुशांति. २. पे. नाम. गौतमस्वामी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. सं., गद्य, आदि अरिहो भगवओ गोयमस्स, अंतिः कुरु कुरु स्वाहा. ३४४५३. (+) पार्श्वनाथजिन कल्याणमंदिर स्तोत्र व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८१४, पौष शुक्ल २, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. श्राव. गोवो भावचारित्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२३४१०.५, १२४३१-३४). १. पे नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र प्र. ९अ-४आ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते श्लोक-४४. २. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो पार्श्वनाथाय अंतिः पूरि मे वांछितं नाथ, लोक-५, , 3 ३४४५४. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सोमजी ऋषि, पठ. सा. जीवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२०.५X११.५, १०x२४). २४ जिन स्तोत्र- पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदौ नेमिजिनं नौमि अंतिः मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक- ८. ३४४५५. सनत्कुमार प्रबंध व साधुगुण पद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (२२४११, ११४३२). १. पे. नाम. सनत्कुमार प्रबंध, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध, प्रा., गद्य, आदि: सणकुमारेण भंते, अंतिः दुक्खाणमंत करिस्सति. २. पे. नाम. साधुगुण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वाणी तो० गुरु तो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम पद लिखा है.) ३४४५६. चिंतामणीपार्श्वनाथ स्तोत्र मंत्रगर्भित, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२३४११, १०X३०). पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११. ३४४५७. (+) पार्श्वजिन नमस्कार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे (२१x१०.५, ९४२८-३४). For Private and Personal Use Only 2 जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभवदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अंतिः अभव० विन्निवह आणदिव गाथा- ३०. ३४४५८. शत्रुंजयकार्तिपुनमचेत्रिपुनिमतिर्थकल्प सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९१० कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. नगविजय; पठ. पं. चुनीविजय गणि (गुरु पं. नगविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०X११, ७x४२). १ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२५. शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अइमुत्तइ केवलीइ; अंति: जात्रानो फल पामइ. ३४४५९. पुष्पसचित्तअचित्त चर्चा, संपूर्ण, वि. १९१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. नगविजय; पठ.पं. चुनीविजय गणि (गुरु पं. नगविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११, २६४५९). पुष्पसचित्त-अचित्त चर्चा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पुष्प ते सचित्त छे; अंति: जिनभद्रक्षमाश्रमण छे. ३४४६०. चउदसरी थुइ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, विक्र. श्राव. वजान मारु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४१०.५, १०x२५). - चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३४४६१. (+) वीरजिन स्तवन, बलभद्रऋषि सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६७, श्रावण शुक्ल, २, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले.मु. अमृतशील (गुरु पं. उत्तमशील गणि); गुपि.पं. उत्तमशील गणि (गुरु वा. जयशील गणि); वा. जयशील गणि; पठ. श्रावि. रतनबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२२.५४१०.५, १६४३७). १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नणदल हे नणदल सीधारथ; अंति: प्रीतविजय गुण गाय, गाथा-१५. २. पे. नाम. बलभद्रऋषि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. __ बलभद्रमुनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: एस्यो आज अबोलणो कानइ; अंति: निसदिन जिनवरधमांन रे, गाथा-१६. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-मौधामंडण, ग. लावण्यशील, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: सुरनर सूखदाई सदा हो; अंति: लावण्य० नित निराबाध, गाथा-११. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अति: (-), गाथा-२. ३४४६३. प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. उत्तमविजय (गुरु पं. सुबुद्धिविजय); अन्य. पं. हर्षविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५, १३४३८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. ३४४६५. उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मू+टबा. गाथा-२० तक हैं., जैदे., (२३.५४११.५, ९४५०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-). उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करिनइ; अंति: (-). ३४४६९. गंगेयभंग प्रकरण सह अवचूरी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., मू+टबा. गाथा-९ अपूर्ण तक है., जैदे., (२४४११.५, ३-४४४६). गांगेयभंग प्रकरण, मु. श्रीविजय, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वद्धमाणं; अंति: (-). गांगेयभंग प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वंदित्तुत्ति वंदित्व; अंति: (-). ३४४७१. अनुत्तरोपपातिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११, १५४५२-५५). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: कहा तहाणंणेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. ३४४७२. (+) नवपद पूजा, गृहबिंब लक्षण व विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११.५, १७४४७-५४). १. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नये न अधूरी रे. २. पे. नाम. बिंब विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण. गृहबिंब लक्षण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: येकांगुलश्रेष्ठं; अंति: होइ मांगल्य हुइ सदा. For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३. पे. नाम. विविधविचार संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. विविधविचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३४४७३. (+) दोसावहार स्तोत्र सह अवचूरी व लोकविजय अध्ययन-आचारांगसूत्रे, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १८-२२४५५-६१). १.पे. नाम. दोसावहार स्तोत्र सह अवचूरी, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा नपीडति, गाथा-१०. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: दोषा दूषणानि तेषां न; अंति: केतु इति शेष युग्म. २. पे. नाम. लोगविजय अध्ययन-आचारांगसूत्रे, पृ. १आ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३४४७४. मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२४४१२, १३४३०). मंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४४७५. पद व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४११, १५४४२). १. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. सोभाचंद, पुहिं., पद्य, आदि: भज श्रीऋषभ जिणंद; अंति: ध्यावही सेवक सुखदाई, गाथा-३. २.पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. भाव, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण द्यो प्रभु रिषभ; अंति: दरस की टालो भव फेरा, गाथा-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे तो एही चाव है; अंति: कहै० हु अवर न ध्याय, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: रे अग्यानी जीव तुं; अंति: नही जाकै धर्म सहाई, गाथा-३. ५. पे. नाम. साधुवंदना सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: ऐसा साधु नमुसदा; अंति: एहवा वंदुं वारो वार, गाथा-७. ३४४७८. वंदित्तुसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२२४११.५, ९४२७). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चौवीस, गाथा-५०. ३४४८०. जिनगर्भितनवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५८, माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३२). नवग्रह स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिस्फुट, श्लोक-११. ३४४८२. चतुरशीत्याशातना नाम गाथा सह विवरण, संपूर्ण, वि. १७८१, आश्विन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सादडीनगर, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२४४१०.५, ५४४५). जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं केलि कलिंकला; अंति: वजे जिणिंदालये, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: देहरे श्लेषमा हास्या; अंति: करइ स्नाननु करिवं. ३४४८६. साधुअतीचार, संपूर्ण, वि. १८५२, आश्विन, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४.५४११, ११४३३-३५). आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का साधु पाक्षिक अतिचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मिय; अंति: अनेरोजे कोई अतिचार. ३४४८७. पार्श्वजिन चैत्यवंदन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, ११४२४). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहि., पद्य, आदि: आसा संतो भाइ घर को; अंति: कुंस होसी घरवासा, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४४८८. श्रीपार्श्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११, ८४३५). पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु, अंतिः पार्श्वजिनं स्तुव, श्लोक ७ ३४४८९. सरस्वतीभगवतीदेवता स्तवन, संपूर्ण वि. १८८२ फाल्गुन कृष्ण, ७ मंगलवार श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, योधनगर, प्रले. पं. मुक्तिधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, ३०x४८). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: सरभसलसद्भक्तिप्रद्धी, अंतिः पुमान् सुकृति कृती श्लोक-२५. ३४४९१. मुहपत्तिपडिलेहणबोल गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैवे. (२४४११.५, ४४२८)प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी, अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. "" प्रतिलेखनबोल गाथा - गाथार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम दृष्टिपडिलेहण; अंति: परमात्मजी कही छइ. ३४४९२. पार्श्वनाथजिन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, ११x६७-७०). पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसे वरस, अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, लोक- ७. पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरं प्रधाना संवरस्य; अंति: संबोधनं शेषं सुगमं. ३४४९३. नमस्कार चतुर्विंशतिजिन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५X११.५, १२X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कारचतुर्विंशति, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १२वी आदिः सकलात्प्रतिष्ठान; अंतिः श्रीवीरभद्रं दीस, लोक-२९. ३४४९४, २४ मांडला व संधारापरसी विधि, संपूर्ण, वि. १८३६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, वडनगर, प्रले. पं. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, १३x४६). . १. पे. नाम. २४ मांडलासूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ स्थंडिल मांडला पाठ, गु, गद्य, आदि आगाडे आसन्ने उच्चारे, अंतिः दूरे पासवणे अहियासे. २. पे. नाम. संधारापोरसि विधि, पृ. १आ, संपूर्ण रात्रीसंथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि, अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. ३४४९५. दीपमालिकापर्व सिझाय, संपूर्ण, वि. १८२१ आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११, १४X३४). महावीर जिन सज्झाव- निर्वाणकल्याणक, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि तीरधनायक वंदिये अंति: हर घरी श्रीपासचंद, गाथा २२. ३४५०० विचार संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै, (२५x११, १६४३३). 1 विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). ३४४९७. पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२०.५x९.५, ७X२५). पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि : ऊँ हाँ ह्रीँ हृद्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १८ अपूर्ण तक है.) ३४४९८. समाधि अध्ययन १० सूत्रकृतांगसूत्रे, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२४.५४१०.५, १५X४७). - , सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदिः (-) अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. मात्र १०वां अध्याय है. ३४४९९ अस्वाध्याय विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२४४११.५, १९५४२). असझाय विचार, सं., गद्य, आदि: सूक्ष्मं रज आकाशाद, अंति: ग्रंथा विलोकनीयाः. 1 ३४५०३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०X१०.५, १६x२८-२९). १. पे नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ३४५०१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३X११, १६X३५). १. पे. नाम. बुढ़ापा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- बुढ़ापा, रा., पद्य, आदि बुढो हलव हलवें चाल, अंतिः इणका कारन लोप नारी, गाथा- १४. २. पे. नाम. चार शरण, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: पो उढीन सिवरिययो भवी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १० अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तारक धरम जीनेसर केरो; अंति: जुग में धरमध्यान कीज, गाथा १०. २. पे. नाम. चार शरण, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ मंगल शरण, मु. चोमल ऋषि, मा.गु पद्य वि. १८५२, आदि सदा पो उठीने सीवरी अंति हो सुणजी बालगोपाल, गाथा - ११. ३४५०४. (+) संतोकचंद गीत व सामान्यकृति, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रावण शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. दांसफानगर, प्रले. हीमतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित जैवे. (२०x११, १९४१८-२१)१. पे. नाम. संतोकचंदमहाराज गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. + संतोकचंदमुनि गीत, मोतिलाल, मा.गु., पद्य, वि. १९६४, आदि: (१) मुरधरदेश दक्षण दिशे, (२) संवत उगीच वरस, अंति: मोति० अरजमोरी अवधारो, गाथा- १२. २. पे. नाम. अज्ञात जैनेत्तर कृति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है। सामान्य कृति, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ३४५०५. उत्तराध्ययन सूत्र विणय अध्ययन-१, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२५x१०, १०x३२-३५). - उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स, अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३४५०७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०.५X११, १४X३२). औपदेशिक सज्झाय-क्षमाविषये, मा.गु., पद्य, आदिः ख्वाम्यां धरम पली कय अंतिः थकी सुख सांपजे, गाथा २०. ३४५०८. (#) धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २०x१०.५, 3 १७४२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्ना अणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: हुंउ वारी धन्ना तं; अंति: होवे जय जयकार हो, गाथा- १२. ३४५०९ गंभिरापार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (२०.५x१०.५, १०x२३). पार्श्वजिन स्तवन- गंभीरा, मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगंभिरापार्श्वजी, अंति: धर्मविजय गुण गाव जी. गाथा ७. ३४५१०. गोचरी के ४२ दोष, श्लोक संग्रह व द्विजवदन चपेटा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे., (२०.५x११-११.५, २३४५१). १. पे नाम, गोधरी के ४२ दोष, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गोवरी के ४२ दोष * मा.गु., गद्य, आदि आधाकर्मि क० षट्काय, अंतिः ते छर्दित दू: कहीये. 1 २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रस्ताविक लोकसंग्रह, पुहिं. सं., पद्य, आदि: (-): अंति: (-), गाथा-४, ३. पे. नाम. द्विजवदनचपेटागत लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि सं., पद्य, आदि: अरण्ये निर्जलदेशे अंतिः मन्यते बुधैर्जनैः श्लोक ५. ३४५१२. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २३४११, १४४३८). गौतमस्वामी रास, रा., पद्य, आदि: सुरसत सामण विनय, अंतिः भणन वालारा पुरवीस आस, गाथा- १४. ३४५१३. नेमिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जै.. (२३१०.५, १४४४१). १. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि समुद्रविजे सुत लाडलो, अंति: गुण चोथमलजी गाया रे, गाथा- १७. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चोथमल रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीनेमीश्वर साहिबा, अंतिः चोथमम० एकीधी अरदास, गाथा-८. ३४५१५. (+) पार्श्वजिन स्तवन सह टीका व पंच समवाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३x१०, २१ - २३X५७). १. पे. नाम. यमकबंध पार्श्व स्तवन सह अवचूरि, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: शिवसुंदरसौख्यभरम्, श्लोक- ७. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरा प्रधाना संवरस्य; अंति: संबोधनं शेषं सुगमं. २. पे. नाम. पंच समवाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ समवाय, मा.गु., गद्य, आदि: कालवादी बोले छै काल; अंति: खपावी मुगते पोहता. ३४५१६. ८४ लाख जीवयोनिआयुष्यादि विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४११, १३४५५). ८४ लाख जीवयोनिआयुष्यादि विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३४५१७. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०.५, १५४४५). १. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: प्रभु श्रीअसजीन राय; अंति: संमत अठारईकोतर रे लो, गाथा-१४. २.पे. नाम. उदाईराजा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उदायीराजा सज्झाय, मु. कुशलचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: सोले देस तणो धणी नम; अंति: देवगढ कीओ चोमासा जी, गाथा-१३. ३४५१८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२२४१०.५, २३४४२). १. पे. नाम. पार्श्व तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: आज भलइ दिन उगियो; अंति: चरणजी चुवि रह्यो, गाथा-७. २.पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: आज भला दिन उग्यो हो; अंति: काइराम सफल अरदास, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नगर सुहामणो; अंति: हो मनरूप प्रणमे पाय, गाथा-१५. ४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो मरुदे; अंति: सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: मन वचन काया वसि करो; अंति: अजितजिन धाइये मना, गाथा-८. ३४५२१. सज्झाय, स्तवन व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, प्रले. मु. भगवान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६४११, १३४२४-२६). १. पे. नाम. दसश्रावक सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: दश श्रावक भगवंतना; अंति: कहै सोभागरतन्न हो, गाथा-१४. २.पे. नाम. वीर जन्मोत्सव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनमुख देखण जावू; अंति: विमल गुण गावुरे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: जिनराज जुहारण जास्या; अंति: अविचल सुखए सरास्याजी, गाथा-६. ४. पे. नाम. संतकुमार स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो सोहम इंद्र; अंति: इम जपई जिनराज, गाथा-७. ५. पे. नाम. गच्छाधिराज स्वाध्याय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. विजयक्षमासूरि सज्झाय, पंन्या. रूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: विजय खिमासूरीसरू; अंति: नित नित गुण गाय कि, गाथा-९. ६. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३४५२२. तप चिंतवणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४११.५, ११४३०). छमासी तपचितवन विधि, पुहि., गद्य, आदि: तप निर्जरा का बारा; अंति: के दिन उत्कृष्टि. ३४५२४. ऋषभजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०x१०.५, ९४२५). आदिजिन स्तवन, आ. धरणेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एसजन ए साजिन हे ए; अंति: जोडी खडा एकदम हे ए, गाथा-१२. ३४५२५. (#) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११, १३४३३). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जय पढम जिणंद जय जय; अंति: संपद सगली पामीइए, गाथा-१२. ३४५२६. सज्झाय व ६ द्रव्यपरिणाम विचार सह विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९.५४१०.५, १२४३३). १.पे. नाम. इकादसीनी सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: अवचल लीला लहसी, गाथा-७. २. पे. नाम. षड्द्रव्यपरिणाम विचार सह व्याख्या, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६ द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा., पद्य, आदि: परिणामि जीव मुत्ता; अंति: सबगई ईयरसहिय चेव, गाथा-१. ६ द्रव्यपरिणाम विचार-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: षटद्रव्य मध्ये जीव१; अंति: (अपठनीय). ३४५२७. लावणी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२०.५४१०.५, १२४१९-३५). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सोजत, पठ. मु. तीजांजी, प्र.ले.पु. सामान्य. पुहिं., पद्य, आदि: चंद चीकोर अलीमे जपे; अंति: की मुज भांग पीलाइये, गाथा-४. २. पे. नाम. भांनीमल महाराज लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ भानीमल महाराज लावणी, मु. दयाचंद, पुहि., पद्य, वि. १९३०, आदि: मुनि का गुण गावो भाई; अंति: दीवसे दयाचंद गाइ, गाथा-९. ३. पे. नाम. गंगकवि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. गंग, पुहि., पद्य, आदि: सभा भइ सब देवन की जब; अंति: गंग० लेण गणे सव ठायो, गाथा-१. ३४५२९. औपदेशिक सज्झाय, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२०.५४१०.५, १५४३०). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आद अनादरो जीवडोरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण तक है.) ३४५३१. १४ स्वप्न गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५४१०.५, ९४२४). १४ स्वप्न गीत, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम सुपने हाथी; अंति: तेणे भव मोक्ष जाइ, गाथा-१४. ३४५३४. (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (१८x१०, १४४२८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गुरुवंदनभाष्य गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ३४५३५. सेजा को रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-२७(१ से २७)=२, जैदे., (१५.५४११, ११४१८). आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिम पामो भवपार ए, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से है.) ३४५३६. नेमराजीमती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४११, ९४३८). नेमराजिमती स्तवन-लघु, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: काइ हठ मांड्यो रे; अंति: वसीया सिवपुर वास, गाथा-६. ३४५३७. गौतमप्रश्न सझाय, संपूर्ण, वि. १९५४, आश्विन कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले.पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४११.५,११४२४). देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: सकल० प्रणमे उलट आंणी, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४५३९. चैत्यवंदन व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १६, प्रले. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, ११-१४४२२-२८). १. पे. नाम. ऋषभ नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, मु. विजयराजसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल समीहित कल्पवृक्ष; अंति: शिष्य कहे कर जोडि, गाथा-३. २.पे. नाम. अजीत नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अजितजिन चैत्यवंदन, मु. विजयराजसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: जित मोहादिक अजीतदेव; अंति: सिष्य सकल सुखकार, गाथा-२. ३. पे. नाम. संभव नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. संभवजिन चैत्यवंदन, मु. विजयराजसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: शंभवजिन भव जलधि मध्य; अंति: सिष्य धरे प्रभूध्यान, गाथा-२. ४. पे. नाम. अभीनंदन नमस्कार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन चैत्यवंदन, मु. विजयराजसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन जिन अधीक रूप; अंति: शिष्य नमे प्रभुपाय, गाथा-२. ५. पे. नाम. शत्रुजा नमस्कार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेव॒जो सिद्ध; अंति: जिनजी करु प्रणाम, गाथा-३. ६. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन *, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमु; अंति: नमु साधुसवे नीसदीस, गाथा-२. ७. पे. नाम. ऋषभ नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अरिहंत नमु; अंति: आदिदेव महिमा घणो, गाथा-३. ८. पे. नाम. ऋषभ नमस्कार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, मु. जिन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिन युगादीदेव; अंति: जिन कहे अंतरमांन, गाथा-३. ९. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति का नाम "ऋषभ नमस्कार" लिखा है। उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा; अंति: विनय धरें इम ध्यान, गाथा-३. १०. पे. नाम. अजित नमस्कार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अजितजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: अजितनाथ अवतार सार; अंति: अजितनाथ नित्ये जपो, गाथा-३. ११. पे. नाम. सुविधि नमस्कार, पृ. ३आ, संपूर्ण. सुविधिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: सुवधिनाथ जिनराज जपी; अंति: पाप गीयां सवि परजली, गाथा-३. १२. पे. नाम. शीतल नमस्कार, पृ. ३आ, संपूर्ण. शीतलजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल नामु शीस जपु; अंति: जे श्रीजिन चरणे रमें, गाथा-३. १३. पे. नाम. श्रेयांस नमस्कार, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. श्रेयांसजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण पुरुष श्रेयांस; अंति: श्रेयांसजीन महिमाथयो, गाथा-३. १४. पे. नाम. वासुपूज्य नमस्कार, पृ. ४अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य जिन विख्या; अंति: ऋषभ० प्रभुनो जनम हवो, गाथा-३. १५. पे. नाम. चंद्रप्रभु नमस्कार, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभ जिनराज; अंति: पाप पूरव गयां घटी, गाथा-३. १६. पे. नाम. माहावीरजीरो भास, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ महावीरजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रूडीने रढीयाली रे; अंति: अनंत गुणा करू जौ, गाथा-५. ३४५४०. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४३९). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुजस, पुहिं., पद्य, आदि: आज चलो तुम जिनमंदिर; अंति: तीन लोक जयकार भयो है, गाथा-४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अक्षय, मा.गु., पद्य, आदि: जगचिंतामणि तुं सही; अंति: अक्षय सुख धाम प्यारा, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: अवनासी के गुण गावतां; अंति: परम अंसकुं रिझावना, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेम पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निपटहि कठिन कठोर री; अंति: रयन बिती भयो भोररी, पद-५. ५. पे. नाम. नेम पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: म्हौल चढी हो म्हारा; अंति: द थइ छ खुस्याली रे, गाथा-३. ३४५४१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४४५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. नगराज, पुहि., पद्य, आदि: तूं रे अचेतन क्यु; अंति: चतुर चुतर विधि संग, गाथा-९. २.पे. नाम. जीवकाया संबोधकरण गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवकायासंबोध करण, मु. नगराज, पुहि., पद्य, आदि: काया कामिण सौं कहै; अंति: वात सुन प्यारीरी, गाथा-११. ३४५४२. गयसुकमालरिषि चउढालियउ व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, १९४४६). १. पे. नाम. गयसुकमालरिषि चउढालियउ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. कनकावतिनगर, प्रले. मु. अचलाजी ऋषि; पठ. सा. मिरघाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. गजसुकुमालमुनि चौढालियो, मु. केशव, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: पास जिणेसर प्रणमिइ; अंति: केसव० कूकडे सरस मझार, ढाल-४, गाथा-३१. २. पे. नाम. चोवीसतिर्थंकर पद, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभ अजित संभव अभिनं; अंति: समयसुंदर० सिरनामी, गाथा-३. ३४५४३. औषध संग्रह व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०४११, १२४२७-३०). १. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, पुहिं., पद्य, आदि: यामें वास में बें; अंति: मुगतपुरी मे खेलो, गाथा-७. ३४५४५. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१४१०.५, ९४३०). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. गोपालसागर, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: वारी जाउ फलोधी पारस; अंति: गोपालगुण मीलैरेलो, गाथा-१२, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है अतः गिनकर उल्लेख किया गया है.) ३४५४६. १५ तिथि पखवाडौ, संपूर्ण, वि. १९२८, भाद्रपद कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२२४१०, ९४२३). १५ तिथि पखवाडो, मु. मूलचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०४, आदि: भजियै भगवान परम; अंति: तंत परमपद पावै, गाथा-१९. ३४५४७. सज्झाय, गीत व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२१.५४११, १५४३०). १.पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. रूपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: प्रीत्०चरणे अम्ह वास, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. सातवार गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदित्य जोइ तूंजीवडा; अंति: लाव० वंदउ श्रीमहावीर, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: सब स्वारथ के मित हइ; अंति: जिन जिणि आप संभारा, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सुरनर सेवत लीलविलास; अंति: प्रसादि पामु सुखकोडि, गाथा-८. ३४५४९. स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२२४१०.५, ८x२८-३०). १. पे. नाम. पंचमिरो सिझाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९५८, माघ शुक्ल, १०, सोमवार, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. जितमल, प्र.ले.पु. सामान्य. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगत भाव प्रसंसयो, ढाल-३, गाथा-२०. २. पे. नाम. चातुर्मासिककर्तव्य श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सामायिकावश्यक पौषधा; अंति: चतुर्मासमंडनानि, श्लोक-१. ३. पे. नाम. वस्त्रपरिधानविधि श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आदित्ये जजितें वस्त; अंति: नेवेदान सनीसरे, श्लोक-१. ३४५५०. पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२१.५४१०.५, ९४३१). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पदम, पुहि., पद्य, आदि: राग को नांव कल्याण; अंति: पदम कौ चितहर ध्याय, गाथा-५. २. पे. नाम. मलिनाथ पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मोय कैसै तारोगै दीन; अंति: गावत रूप रसाल, गाथा-५. ३. पे. नाम. मनऊपर सीज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा काई; अंति: लेखो प्रभूजीकै हाथ, गाथा-९. ४. पे. नाम. सिचियायजीरोस्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सिचीयायदेवी स्तुति-ओसिया, मु. जुगति पाठक, पुहि., पद्य, वि. १७७२, आदि: आज सफल दिन आया गढ; अंति: तू सैसाचल मात भवानी, गाथा-७. ३४५५१. सरस्वतीदेवी छंद व समस्यादुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२५, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. रामपुरा, प्रले. मु. पेमचंद ऋषि (गुरु मु. मान ऋषि); गुपि. मु. मान ऋषि; पठ. मु. किष्णचंद (गुरु मु. कल्याणचंद); गुपि. मु. कल्याणचंद (गुरु मु. मान ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२१.५४१०, १२४३०). १.पे. नाम. सरस्वतीजी को छंद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन सुमता मनि; अंति: समरी सारदा वखाणी, गाथा-३५. २. पे. नाम. समस्यादुहा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___ दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. सामान्य श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३४५५४. स्थूलिभद्र नवरसोव सिद्धचक्र स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, जैदे., (२०४११, १५४३०). १.पे. नाम. नवरसो, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: मनोरथ वेगे फल्यारे, ढाल-९, (पू.वि. अंतिम ढाल की गाथा ५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र सेवो; अंति: जगीस विनयविजय इम दीस, गाथा-४. ३४५५५. राजिमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४११, ९४३०). नेमराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अवलमोल अमूल झरूखे; अंति: सेवक देवविजय जयकारि, गाथा-७. ३४५५६. (+) चैत्यवंदन संग्रह आदि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१४१०, १५४३७-४४). १. पे. नाम. सिद्धचक्रनी स्तुत, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धचक्र सेवो भवि; अंति: उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. २. पे. नाम. श्रावकनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. ३. पे. नाम. विहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान ते जिनवर; अंति: जिनवर द्यो सुख सासता, गाथा-७. ४. पे. नाम. सीमंधरस्वामी चैत्यवंदना, पृ. २अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिशि इशान कुण; अंति: द्यो पूरो संघ जगीश, गाथा-८. ५. पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरुं श्रीआदिदेव; अंति: कहै त्यां घर जयजयकार, गाथा-६. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: सकल सुरासुर सेवित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ३४५५७. आदिजिन स्तवन व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १२४३१). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सोझत, प्रले.मु.रंगसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिनेसर साहिबो; अंति: अहनिशि चाहे सेवा रे, गाथा-८. २. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदोरे; अंति: भक्ति करुं इक तारी, गाथा-५. ३४५५८. पांचबोल रोतवन, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मालीया, प्रले. पं. हुकमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४११, ११४३१-३३). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: श्रीसयल जिनेसर प्रणम; अंति: साधुविजय० गुण गाय, गाथा-२९, (वि. अंतिम गाथा का उत्तरार्द्ध लिखे बिना ही पूर्वार्द्ध में सामान्य फेरफार करके पूर्ण कर दिया है. पूर्वार्द्ध में पूज्य शिरोमणि पंडितराय, साधुविजय गिरुआ गुरुराय' इस प्रकार है, जबकि इस प्रति में 'साधुविजय गिरवा गुण गाय' इस प्रकार लिखा हुआ है.) ३४५५९. २० थानक, संपूर्ण, वि. १७३०, फाल्गुन शुक्ल, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०४११.५, १५४२७-४०). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं २४ नमो; अंति: तप दान देवू. ३४५६०. सवारनुं मंगलीक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४१०, २६४१५). प्रात:मंगल पद, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी ते निज गुरु; अंति: जो पूज्या होइ भगवंत, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " मौनएकादशी सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति सुव्रतरूप सज्झाय भणी, गाथा - १५. ३४५६१. मौनएकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैये. (२५x११.५, ११४३२). ३४५६२. सीताजीनो तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २२x११, १५X३४). सीतासती सज्झाय, मु. जुठो, मा.गु., पद्य, आदि: कयो रे मानो रे हीणा, अंति: कहे जे जेकार हुवो, गाथा- १७. ३४५६४. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२२x११, १x२८). יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: पांचमी तप तुमे करो, अंतिः पामो पंचम भेदरे, गाथा-५. ३४५६५. सिद्धाचलजी स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२x२१.५, १५X४२). १. पे नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ पद, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: कामित कामगवी सुगुरु, अंतिः प्रेम घणे चित आणी रे, गाथा-९. २. पे. नाम. राजुल होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी, मु. रूप, पुहिं., पद्य, आदि: हेरी नैन तेरे मतवारे; अंति: रूप० गुन जन सारै, गाथा - ३. ३४५६७. जंबुस्वामीनी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २१x११, ११x२७-३१). जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसे अंतिः सिद्धिव० उवज्झाया रे, गाथा- १४. ३४५६८. सहस्रकूटजिन स्तवन व दूहो, संपूर्ण वि. १९०७ श्रावण कृष्ण, १ श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल नागोर, 3 प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५x१०, १३४३२). १. पे नाम, सहअकूटजिन स्तवन, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण, सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु, पद्य, वि. १८वी आदिः सहस्रकूट जिनप्रतिमा, अंतिः देवचंद्रनी प्रीति, गाथा - १४. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं, पद्म, आदि अपनी अपनी ठोड पर लाग; अंतिः थल पर गाडी नाव, दोहा-१. ३४५६९. बांदणा सज्झाय व यंत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, २, जैदे. (१४४९.५, १८x२०). " १. पे. नाम. वांदणा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विजयरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: राई खमावुं देवसीजी; अंति: वांदिस्या० संग मनाय, गाथा-१४. २. पे. नाम. स्त्रीवशीकरण यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह उ. पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि: (-); अंति: (-) *, ३४५७० (-) लघुअजितसांति स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, पट. पं. हरिचंद गणि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ.. जैदे., ( २४.५X११, १०X३३). अजितशांति स्तवलघु- अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., पद्य, आदि गन्भ विहार सोहम्मसुर, अंतिः भविअ० सयलसुह संपजए, गाथा-७. ३४५७१. बीसविहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ आणि कोडिमके, अन्य श्राव. नाकराज साह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १x२५). विहरमान २० जिन स्तवन, उपा. अनंतहंस, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवि नमउं; अंति: इम जंपइ जिनमाणिकसीस, गाथा - ९. ३४५७२. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. ग. गौतमविजय, पठ. श्रावि. चंपाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जै.. (२२४१०.५, १०x२७) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि जिनजी चंद्रप्रभु अंतिः रामे जस लह्यो रे, गाथा ८. ३४५७३. (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (४८.५X११.५, २८x२५). विचार संग्रह प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि (-) अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १३ ३४५७५. (+) पद संग्रह, चिंतामणि पार्श्वजिन स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ८. प्र. वि. टिप्पण बुक्त विशेष पाठ, जैवे. (२४४११.५-१४.० १७३७). १. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. द्यात, पुहिं., पद्य, आदि: भलाया पानी मै आतम घट; अंति: ज्ञान सुधारस झट में, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पु,ि पद्य, आदि: अवधू इणविध इन पाप, अंतिः पुनम चंद कला परकासी, गाथा ५. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. www.kobatirth.org मु. गुणविलास, पुहिं., पद्य, आदि: दया विन करणी दुःखदान, अंति: जो न सुणत जिनवर वाणी, गाथा-४. ४. पे नाम ज्योतिष श्लोक, पृ. १अ संपूर्ण. 1 ज्योतिष मा.गु. सं. हिं. प+ग, आदि: (-): अंति: (-). (वि. श्लोक-१.) ५. पे नाम. चिंतामणीनुं स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. मोहन, पुहिं., पद्य, आदि: आसापूरण चिंताचूरण; अंति: साहिब मै सेवक बंदा, י' गाथा - ६. ६. पे. नाम. जैन दुहो, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन गाथा", मा.गु, पद्य, आदि: (-): अंति: (-), गाथा- १. ७. पे. नाम. छप्पय व श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-३ (वि. छप्पय १ एवं श्लोक २.) ८. पे. नाम. औषध, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ३४५७६. आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २३.५X११.५, १४४१२-१८). आदिजिन स्तवन, मु. अमीकुंअर, मा.गु., पद्य, आदि आवो रंगरंगीला प्रभु, अंतिः सम अवर न दीवो, गाथा- ७. ३४५७७. पंचमी स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३. जैवे. (२४४११, ११x२८). " ज्ञानपंचमीपर्व महावीर जिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीगुरु पाय अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल - ३, गाथा-२०. ३४५७९. औपदेशिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., ( २१.५X११, ११२५). जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४५८०. पद संग्रह व दुहो, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ४, जैदे. (१७५४१७.५, १८x२१-३०). १. पे नाम साधारणजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानज्योत, पुहिं, पद्य, आदि ध्यान धरम का धरना, अंतिः शिवसुंदर सुख वरना, गाथा-५, २. पे नाम. आध्यात्मिक पद, प्र. १अ, संपूर्ण, वि. १८७६ आश्विन शुक्ल, ४. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन समता मलना ममता; अंति: चिदानंद हित करना, गाथा- ३. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुडिं, पद्य, आदि: मत जाओ रे पीया तुम अंतिः मगन भयो संजम भार में, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक दूहो, पृ. १अ, संपूर्ण. दुहा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). गाथा-१. ३४५८१. जिनप्रतिमा सूत्रहुंडी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (२४.५x१२, १२४४४). जनप्रतिमा सूत्रहुंडी स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी हीयडे, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २४ अपूर्ण तक लिखा है.) ३४५८२. (०) धना सज्झाय, संपूर्ण वि. १८१९ ज्येष्ठ कृष्ण १४, श्रेष्ठ, पृ. १. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे.. (२०.५X११, १७x९). For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धन्नाकाकंदी सज्झाय, श्राव. संघो, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणी विनवू; अंति: मुजने साधुनुसरण, गाथा-१४. ३४५८४. साधवंदणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५४१०.५, १३४३६-४२). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिण पमुह चउवीस; अंति: पासचंदइ० साथइ संथुया, ढाल-७, गाथा-८८. ३४५८५. प्रश्नोत्तरमाला, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. हुबली, प्रले. मु. लालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४११.५, १४४३१). जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४५८७. चोवीसदंडक सज्झाय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०८, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. मु. हर्षविमल (गुरु मु. लाभविमल); गुपि. मु. लाभविमल (गुरु ग. अमृतविमल); ग. अमृतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११, ४४२४). २४ दंडक गतिआगति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरसति सांमण देव; अंति: गुरुणो कहु करयोडि, गाथा-१०. २४ दंडक गतिआगति सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसरस्वती मातनइ; अंति: ते सुणज्यो कही छै. ३४५८८. आत्मनंद्या भाषा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२४४११.५, १३४३६). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: (१)ते नर सुगुन प्रवीन, (२)तो लेखै लागसी. ३४५८९. स्तवन संग्रह व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (११.५४१०.५, १३४१६). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मनभावन जन तन मन तोसे; अंति: मुजरा हमाराल्योरे, गाथा-५. २. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. लाभकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सनेही प्यारा छो जी; अंति: सेवक लाभकुशल सुख थाय, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आपे खेल खेलंदा; अंति: अब तो जीत तमारी रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन रेम्हारा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३४५९०. सिद्धांतसारविचार सज्झाय व आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, १५४४२-४६). १. पे. नाम. सिद्धांतसारविचार सझाइ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धांतसारविचार सज्झाय, आ. आणंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजगनाथि सईमुखि; अंति: जंपिखरतपागच्छ नायको, गाथा-१५. २. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल सहुकर सयल सहुकर; अंति: भणई - वयण सुहकरो, गाथा-२१. ३४५९१. स्वाध्याय संग्रह व नाडी विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११, ३५४१८). १. पे. नाम. दशानभद्रऋषि स्वध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., पद्य, आदि: सारद बुधिदाई सेवक; अंति: बोले लालविजे निसदीस, गाथा-१८. २. पे. नाम. चौदठाणा स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. धर्मसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पाअनमो रे; अंति: तसु मनि जिनवर आणो रे,गाथा-१७. ३. पे. नाम. नाडी-स्वरोदय विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org नाडी स्वरोदय विचार", मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४५९२. (+) पार्श्व स्तव व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७० आषाढ शुक्ल ९, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, ले. स्थल. वाहली, प्रले. मु. रविसागर (गुरु मु. जीतसागर); गुपि. मु. जीतसागर (गुरु ग. दीपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रां होने के कारण पत्रांक काल्पनिक दिया गया है., कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., प्र.ले. श्लो. (८६१) लक्षणहारो अति चतुर, जैदे., (२३X११, १०X२८). , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम, पार्श्व स्तव, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- भीनमाल, मु. जीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: श्रीश्रीमाल सुहंकर, अंतिः जीत नमे जयकारजी, गाथा - ११. २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. 2 जैनदुहा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा- २ (वि. कुल २ दोहा, १ जैन दोहा एवं १ सामान्य दोहा.) ३४५९३. मृगापुत्र री सीझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. नागोर, प्रले. सा. चैना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X१०.५, १५X३७). मृगापुत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुग्रीवनयर सोहामणो; अंति: जासी मुगत परधान हो, गाथा - १७. ३४५९४. सचित्ताचित्तपरिमाण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४४११, १३५१). सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी, अंतिः नयविमल कहे सज्झाय, गाथा - २५. ३४५९६. अष्टमि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., ( २३११.५, १०X२९). अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अष्ट कर्म चूरण करी, अंतिः श्रीविजेसिंहसूरिस, गाथा-६, (वि. कर्ता के उल्लेखवाले भाग को नहीं लिखकर कृति पूर्ण कर दी गई है. ) ३४५९७. सेडुंजैजी रो रास व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-२ (२ से ३ )-३, कुल पे. २. प्र. वि. मात्र प्रथम पत्र पर ही पत्रांक दिया हुआ है. अन्य पत्रों पर पत्रांक नहीं होने से काल्पनिक अंक दिए गये हैं., जैदे., (१५.५X११, १०x१८). १. पे नाम, सेडुंजेजी से रास, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. . शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी, अंतिः (-), (पू. वि. प्रथम ढाल की प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ४अ- ५आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १७ से २९ अपूर्ण तक है.) ३४५९८. चौदगुणठाणाविचार पद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२१.५x११.५, ३१४३०). १४ गुणस्थानक विचार पद, मा.गु., पद्य, आदि: जे मिथ्यात्व अनादि, अंति: वचने ते शिवसुख लहै, गाथा- ३१. ३४६००. पांचपदा रा सवेया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., ( २१x११.५, १४X३०). ५ पद सवैया, मु. मेघराज, मा.गु. पद्य वि. १९३५, आदिः घणे हरख वैरागस्युं, अंति: जोड कला गुण सार है, सवैया- १३. ३४६०१. अर्जुनमाली लावणी, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, वे. (२२४११, २३४१८). १५ अर्जुनमाली लावणी, मु. हीरालाल, रा. पद्य वि. १९३२, आदि उरजनमाली नाम जणाको अंति: गावो हीरालाल उलासो, गाथा- १७. For Private and Personal Use Only ३४६०२. ढुंढरास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. अमरावती, जैदे., (२२×१०, १४X४४-५०). ढुंढक रास, मु. अविचल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी आप; अंति: रच्यौ रास ए उलास ए, गाथा- १०८. ३४६०३. स्तवन, पद व गहुली संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, दे. (२१११, ११x२५). . ', १. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संतिजिणेसर साहिबा रे; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा- ७. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. होली पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: मधुवन मे जाय मची; अंति: सुधक्षमा कहै करजोडी, गाथा-३. ३. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आज माहरें आनंदरंग; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३४६०६. राणपुरारो तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४११.५,१३४२८). आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: रांणपुरै मन मोहीयो; अंति: सीहसुंदर सुख थाय, गाथा-१६. ३४६०७. सीलविषे झांझरीयाअणगारनु चोढालीयु, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रावण कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. मेघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, ११४३५). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसती चरणे सीस नमा; अंति: इम सांभलतां आणंदे के, ढाल-४. ३४६१०. (#) सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११.५, २६-३०४३०). १.पे. नाम. थूलभद्र वीनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोसा कामनि कहें चंद; अंति: ग्यान करे निसदीसो रे, गाथा-२२. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: आदिजिणंद मया करो; अंति: रभु हम तुमारी आसारे, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमिराजुल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सद्गुरु पाय; अंति: चल पदराजुल लडोजी, गाथा-११. ३४६११. (+) विषापहार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४३४-३७). विषापहार स्तोत्र, जै.क. धनंजय कवि, सं., पद्य, ई.७वी, आदि: स्वात्मस्थितः सर्वगत; अंति: सुखानि यशोधनंजयंच, श्लोक-४०. ३४६१२. २४ तीर्थंकर नाम राशी जन्मनक्षत्र लंछनादि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. पत्र १४४ हैं., जैदे., (२१.५४११, १३४५५-७४). २४ जिन नाम राशी जन्मनक्षत्र लंछनादि विचार, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ३४६१३. चोवीसजिनमातापितानामादिगर्भित स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२४४११.५, ११४२८). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २५ अपूर्ण तक है.) ३४६१४. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (१९.५४१०, १४४३१-३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३४६१७. (+) नवकार स्तुति व कवित संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, १४४३५). १.पे. नाम. नवकार स्तुति, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. सा. संवीरा आर्या; पठ. सा. केहेलु आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org १७ नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: तणी सेव ज्यो नित, गाथा १३. २. पे. नाम. कवित संग्रह, पू. २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. कवित्त संग्रह *, अज्ञा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है., वि. संग्रहात्मक कृति यह कृति बाद में लिखी गई है.) " ३४६१८. २४ तीर्थंकर परिवार कल्याणकभूमि आदि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. राघवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२२४१०, ३०५२). २४ जिनपरिवार कल्याणकभूमिआदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला श्रीऋषभदेव; अंतिः अप्पापानगरी मोक्ष. ३४६१९. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पोखरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २१x११, ११x२८). महावीरजिन स्तुति - २७ भव, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारि श्रीमाहाविर, अंति: कनक० जसविजे सुखकारी, गाथा-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६२१. कल्याण पार्श्वनाथजीनी लावणी, संपूर्ण, वि. १८७६, चैत्र कृष्ण, ११. मध्यम, पु. १. पू. वि. पत्र १४२ हैं और नंबर नहीं हैं. पठ. मु. मेघजी (गुरु पं. वीरविजय, वडीपोसालगच्छ) प्रले. पं. वीरविजय (वडीपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २३X११, २६X१७). पार्श्वजिन लावणी - कल्याण, मु. गुलाबचंद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: नाथजी तुही बडा, (वि. प्रत का ऊपरी भाग खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा है.) ३४६२३. (-) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ८. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२१४११, २७४२१). १. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष, पृ. १अ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: निर्विवेक १ यशकीर्ति२; अंति: करे११ कडिका फोडे१२. २. पे. नाम. देशावगासीक १० दोष, पृ. १अ. संपूर्ण. देशावगासिकतप के १० दोष, मा.गु., गद्य, आदि: मन के आरतध्यान१; अंति: मस्तक धूणे इत्यादि... ३. पे. नाम. पोसह १८ दोष, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषध के १८ दोष *, पुहिं., मा.गु., गद्य, आदि: विना पुछ्या आग्या; अंति: मान अपमानादि करा. ४. पे. नाम. दान के ५ दोष, पृ. १अ संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदिः कृपण भाव१ मत्सर भावर; अंति: निदानं४ कथन५. ५. पे. नाम. वंदन के ३२ दोष, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९२९. वंदन के ३२ दोष-प्रवचनसारोद्धारगत, मा.गु., गद्य, आदि: अणादर वंदन करे१; अंति: गुरु एकही पदे वंदे३२. ६. पे. नाम. २१ प्रकारे धोवण, पृ. १आ, संपूर्ण. २१ प्रकार के धोषण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७. पे. नाम. गुरु ३३ आसातना, पृ. १आ, संपूर्ण. ३३ आशातना विचार - गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: बेसता३ उभा३ गमनं३; अंतिः समासणे ३२ उच्चासणे३३. ८. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ३४६२४. माणिभद्रवीर छंद, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., ( २१.५X११.५, ११x४३). माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनी पाय पण; अंति: (-), (पू.वि. कलश गाथा ४० अपूर्ण तक है.) ३४६२५. रोहणीतपनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. पत्र ३x२ हैं., जैदे., ( २१.५X१०.५, ३८-४१X१४-२०). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि हां रे मारे वासुपूज, अंति: रोहिणी गुण गाईंया, ढाल ६. For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४६२८. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, अपूर्ण, वि. १८४१, आषाढ़ कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. नंदकोटनगर, प्रले. पंन्या. हर्षविजय; पठ. श्राव. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४११.५, ११४२०). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: श्रीवीरभद्रं दीस, श्लोक-३०, (पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण से है.) ३४६२९. (+) जिन स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२०४१०, ९४२७). २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., पद्य, आदि: श्रीलीलायतनं महीकुल; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ४ अपूर्ण तक है.) २४ जिन स्तवन-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रियो लक्ष्म्या ; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १ तक टीका लिखी है.) ३४६३०.(-) माणभद्रजीरोतवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४१०.५, १०४२८). माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वसन दीयो सरस्वती; अंति: लाख लाखरी मांजा लहे, गाथा-२२. ३४६३१. (#) महावीर तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ८x२०-२१). महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: मे तो नजरे रहेंसाजी; अंति: जय जय श्रीमहावीर, गाथा-६. ३४६३२. स्तवन व बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ., (२४४१०.५, १८४३३-४३). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन हरियाली, मा.गु., पद्य, आदि: एक अचंभो उपनो कहोजी; अंति: सुणो भविक सहु संत, गाथा-१२. २.पे. नाम. नेमराजुल बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांवण मासे स्वामे; अंति: करजोड नेमीसर नामी रे, गाथा-२५. ३४६३३. (#) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, ११४३२). १. पे. नाम. बंभणवाडजी स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८१०, आश्विन कृष्ण, ८, गुरुवार, ले.स्थल. खेमलीगाँव, पठ. ग. नेमहंस; प्रले. पेमजी मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरेवि समरथ सारदाय; अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. २.पे. नाम. धनाकाकंदीरी सझाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. धन्नाऋषि सज्झाय-काकंदी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणवर मुख वाणी; अंति: गाया हे मनने गहगही, गाथा-२१. ३४६३४. (+) स्तवन संग्रह व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १३४३४). १.पे. नाम. गौडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: प्रभु श्रीगोडीपासजी; अंति: मान मुनवर सुखकरूं, गाथा-१५. २. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल दिन एहजी गौडी; अंति: सिद्धविजै सेवै सदा, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, पा. सदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: सूरत थारी लागै; अंति: सदानंद सीधा सगला काज, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, वा. महिमासुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गौडी प्रभु जिनवर सेव; अंति: दौलत मुझ दीजै रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति, अंति: वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. ३४६३५. स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २३x११, ११x२९). १. पे. नाम. वज्रधर स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. गाथा-७. वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: वात कहु छु मुज पती, २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ३४६३६. (+) शनिवर छंद संग्रह, अपूर्ण. वि. १८५६ श्रावण शुक्र. २. बुधवार श्रेष्ठ, पू. २- १ (१) १. कुल पे. २, प्रले. पं. अमीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५X११, १५X३२). १. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. भेरवादास, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वली सनिश्चर वखाणिइ, गाथा - १६, ( पू. वि. गाथा १४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, शनीशर छंद, प्र. २अ २आ, संपूर्ण , शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदिः छायानंदन जग जयो रवि, अंतिः वली शनीसर वखाणी, गाथा- १६. ३४६३८. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४४१०.५, १२४३८). १. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, ले. स्थल. पंचपदरा . आदिजिन स्तवन, मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि : आज नंदनवन जोगी आयौ, अंति: गुण जसराजिद गायौ है, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंतिः थुण्यो त्रिभुवन तिलउ, गाथा- १९. ३४६४० औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२१x११.५, १९४३६). " गाथा-८. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण मु. शिवचंद, पुहिं., पद्य, आदि सफल घड़ी रे प्यारा, अंति: शिवचंद० वंदना करी, गाधा ४. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि दीजे माहरा राज दिल, अंति: म्हे छोजी छोजी छोजी, गाथा-३. ३४६३९. (+) महावीरवीनती स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५X११, १३X३८). महावीरजिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणउ मोरी बीनती १९ औपदेशिक सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चेतन रे तु गुण; अंति: राम० जनम मरणसु डरीया, गाथा-५. ३४६४१. (#) आदिजिन छंद व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पू. वि. पत्र १x२ हैं. प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे. (२४४१०, ३०x१८). , " १. पे नाम, ऋषभदेवजीनो छंद, पृ. ९अ, संपूर्ण. आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोद रंग धारणी, अंतिः ऋद्धिसिद्धि पाईए, गाथा-८. २. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only आ. चारित्रसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदिः आदीश्वरं स्वतिशयालि; अंतिः श्रीरत्नसिंहायते, श्लोक - १२. ३४६४२. षट् अठाई स्तवन, संपूर्ण वि. १८८३ भाद्रपद शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३ प्रले. मु. प्रधानसागर, पठ. श्रावि. घुनीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २३११, ११x४५-४८). ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु. पद्य वि. १८३४, आदि: श्रीस्वाद्वाद सुधोदध, अंति: बहु संघ मंगल पाइया, "" ढाल - ९. ३४६४३. चित्रसंभूति सज्झाय, संपूर्ण वि. १८५१ आश्विन शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. पद्म प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२४x११.५, १५X३९). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु, पद्य, आदि: चित्र कहें ब्रह्मराय, अंतिः भणे ते शिवपद लहिस्ये, गाथा- १९. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४६४४. नेमराजुल बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. लाल, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५x११, १४४३४). नेमराजिमती बारमासो, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: काति कंत विना किम; अंति: करजोडी कहे कवि कान, गाथा - १३. ३४६४५, (+) सरस्वतीदेवी स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२५.५४१०.५, १०X३५). सरस्वतीदेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सारद सारद तुं जगि; अंति: रोटा घी गुल चूरि, गाथा - ७, (वि. प्रतिलेखक ने गाथाक्रम २ तक लिखा है.) ३४६४७. (+) स्तवन संग्रह व १० प्रकार यतिधर्म, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., ( २३X११.५, ११X३० ). १. पे नाम. माहावीरजीरो छंद, पृ. १अ २अ संपूर्ण वि. १९५४ वैशाख शुक्ल, १५ प्रले. मु. खीवराज, पठ जीतमल प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तोत्र - प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो वीरनै चीतमां मन; अंति: विवेके० दर्श तेरो, गाथा - १५. , २. पे नाम. वरकांणापारस्वजीन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कांय रे जीव मनमें, अंतिः श्रीपास पसावै रंगरली, गाथा- ९. ३. पे. नाम. दसविध जातीधर्म, पृ. २आ, संपूर्ण. १० प्रकार यतिधर्म, मा.गु, गद्य, आदि: क्षमा मार्दवर आर्जव अंतिः अकिंचन‍ ब्रह्मचारी१०. ३४६४८. प्रतिक्रमणविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५X११.५, १९x४५). प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही० नो०४ लोगस; अंतिः इतरो बीचमै आवै, (वि. देवसीप्रतिक्रमण, सामायिक लेना- पारना, पक्खीप्रतिक्रमण, मुहपत्ति के बोल इत्यादि.) , ३४६५०. (+) दसार्णभद्ररि सज्झाय, संपूर्ण वि. १९५५ श्रावण शुक्ल ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, खीवसर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२३×११.५, ११×३२). दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदिः प्रणमु सदगुरू पाय; अंति: पाय जय जय सूखकरू, गाथा - २१. ३४६५३. चैत्यवंदन, स्तवन, स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., ( २५X११, १२-१४X५०). १. पे नाम. वीसविहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: द्वीपेत्र सीमंधर; अंति: कर्मणामष्टकं च, श्लोक - ४. २. पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चउजिन जंबूद्रीपमा अंति: शिर धरीये शुभ आण, गाथा- ३. ३. पे नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण, अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जिन आगल; अंति: कोडि कल्याण जी, गाथा- ४. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. परमात्मा स्तुति संग्रह, प्रा.,म., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१०. ३४६५४. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. रामविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( १८x११, १०X२९). , शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी सिद्धाचल, अंतिः कनक गुण गाय जी कांइ, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने मात्र ६ तक ही गाथांक लिखा है, आगे का गाथांक नहीं लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३४६५६. नवकार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ग. श्रीधीरसिंधु; पठ. सा. सकललक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १५४४२). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुंजी लीजइ अरिहंत; अंति: जगमाहे नही कोइ आधार, गाथा-२२. ३४६५७. सीमंधरस्वामी व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४११.५, २३४३९). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन-वृद्ध, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारी विनतडी अवधारो; अंति: अनोपम जनपद वचन वीसाए, गाथा-२१. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ कुळ शणगार; अंति: मुनिभाव प्रधान, गाथा-५. ३४६५८. (+#) स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१५.५४१०, ८x२१). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-बीबडोदमंडन, मु. धनमुनि, पुहि., पद्य, वि. २०वी, आदि: आदिजिणंद अलबेलो सोहे; अंति: धनमुनी दरसण लाधोरे, गाथा-७. २. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संतीजिनेसर सायबा सुख; अति: दीजीए सिवरमणी महाराज, गाथा-३. ३.पे. नाम. वासुपूजजी चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ___ वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: वासपूज्य माहाराजजी; अंति: सदा मिथ्या दुर निवार, गाथा-३. ४. पे. नाम. प्रद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभुजिन पेखता; अंति: जाणी में जगदीस रे, गाथा-५. ३४६५९. आउखानी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, १९४३७-४०). आयुष्य सज्झाय, मु. कवियण, रा., पद्य, आदि: आउखो टुटा साधो लाग; अंति: भाखो ते सहु सार रे, गाथा-१६. ३४६६०. माणीभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. १८७०, फाल्गुन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पेंपलधणग्राम, प्रले. मु. लब्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४९, ११४२७). माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनी पाय पण; अंति: आपे मुज सुख संपदा, गाथा-४०. ३४६६१. (+#) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८४९.५, १६४३०). नेमिजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठ करी हरीय मनावीओ; अंति: दोलतिनो दातार रे, गाथा-३०. ३४६६२. संयोग बत्तीसी, अपूर्ण, वि. १७७५, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(४)=४, ले.स्थल. खंडपनगर, प्रले. पंन्या. कपूरविजय (गुरु ग. कपूरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७४१०.५, १५४३३). योगबत्रीसी, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: बुद्धिवचन वरदायनी; अंति: रचीयु संयोगबत्तीसी, गाथा-७४, (पू.वि. गाथा ४९ से ६१ तक नहीं है.) ३४६६३. (#) सीमंधरस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. १५७८, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्राव. गणपति दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४११, १५४२३). सीमंधरजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिरसुर असुर नरवंदि; अंति: भव मे बोधिबीजह दायगो, गाथा-२१. ३४६६४. २९भावना छंद, संपूर्ण, वि. १७४२, चैत्र शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., प्रले. मु. हीरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १३-१५४४१). __२९ भावना छंद, मा.गु., पद्य, आदि: अविचल पद मन थिर करी; अंति: समरशे ते तरशे संसार, गाथा-३१. For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४६६६. प्रथम कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, ६-९४२५-२८). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वदिय; अति: (-), (पू.वि. गाथा ४२ तक है.) ३४६६७. सिद्धचक्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, ११४३२). सिद्धचक्र सज्झाय, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमुनिचंद्र मुनिसर; अंति: पे सुख सदैव सुज्ञानी, गाथा-१३. ३४६६८. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२५४११.५, ११४३१). १. पे. नाम. पद-पार्श्वजिन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: निरमल होय भजलै; अंति: क्षमाकल्याण उदारा, गाथा-५. २. पे. नाम. पद-पार्श्वजिन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. हरखचंद, पुहि., पद्य, आदि: लग्या मेरा नेहडा तुं; अंति: मेटो भव जंजाल, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: जिनजी सैं नेह लगावो; अंति: गमण मीटायोरे मनवा, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: तारोतारो म्हाराज; अंति: गंगा सरन तिहारो जी, गाथा-४. ५.पे. नाम. पद- पार्श्वजिन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: चालो देखोरी मधुवन; अंति: वाके मन वच काय चालो, गाथा-३. ६.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम कैसे तिरोगे भव; अंति: जब धर्म कीयै सै, गाथा-४. ३४६६९. वैराग्यपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९०५, वैशाख शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. तिलोकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४४८). वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., पद्य, आदि: एह संसार अथिर कर; अंति: रंग कहै जो इनसे तरणा, गाथा-३९. ३४६७१. ऋषभमोरादेवी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१७४११.५, १७४२६). आदिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: विनतानगरी भलि विराजै; अंति: जे नर पामे साता जी, गाथा-१६. ३४६७२. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, दे., (२१.५४१०, ९४२१). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठोने मोरा आतमराम; अंति: वरतु सिद्ध सवाई रे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन साहिब सांभल; अंति: वसतो० वंदना त्रिकाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. फलोधिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित फलदायक स्वामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जस, मा.गु., पद्य, आदि: सलुणे सामि भरे भक्ति; अंति: भक्ति नमे देसु दास, गाथा-२. ५. पे. नाम. मगसिपार्श्वजिन स्तवनम्, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-मक्षीजी, मु. सोमकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: कल्याण वामा को नंदन; अंति: बाल लीला गुण गाउरी, गाथा-२. ६.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. जैनधर्म पद, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: जैन धर्म नही कीतावो; अंति: भारी करमसुरीता वो, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३४६७३. व्याख्यानश्लोक संग्रह सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., मू+अर्थ श्लोक-७ तक ही हैं., जैदे., (२५४११.५, २२४४६). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरु; अंति: (-). व्याख्यानश्लोक संग्रह-विवेचन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत; अंति: (-). ३४६७४. समवसरणविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६३, कार्तिक शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १८४४०). समवशरण विचार स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरोजग; अंति: पाठक धरमवरधन धार ए, ढाल-२, गाथा-२७. ३४६७५. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, जैदे., (२४.५४११, १६x४६). १.पे. नाम. ग्यानपंचमी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रिषभसागर रस लागिरे, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा ६ से है.) २. पे. नाम. अरहन्ना सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधोजी, गाथा-८. ३. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी पुरूषोत्तम; अंति: ऋषभनी अहनिसि ए अरदास, ___ गाथा-७. ५. पे. नाम. नेमि गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. जिनहरख, मा.गु., पद्य, आदि: नेमि काइ घिरि; अंति: जिनहरख पयं हो, गाथा-९. ६. पे. नाम. नेमिनाथ सवैयो, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिनाथ सवैया, मु. ज्ञानसुंदर, पुहि., पद्य, आदि: लाल घोडो लाल पाघ लाल; अंति: लाल जाने मेरो सामरि, पद-२. ३४६७६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०, १३४३९). १.पे. नाम. आदेसर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. केसरविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: आदेस्वर अतीरुप अनोपम; अंति: अमीगुण गावता हो लाल, गाथा-८. २. पे. नाम. संखेसर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आप अरूपी होय के; अंति: तुज पद पंकज सेव हो, गाथा-७. ३४६७७. महावीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. तत्त्वहस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४७). महावीरजिन स्तवन, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं महा; अंति: पढह कयं देवसूरीहिं, गाथा-२२. ३४६७८. (+) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ६४३५). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनदर्शन विना जे लोक; अंति: कहतां अत्यंतपणे करी. ३४६७९. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १२४५४). For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिणवर रिसह जिणव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वासुपूज्यजिन स्तवन की गाथा १२ तक ही लिखा है.) ३४६८०. कल्पसूत्र व्याख्यानपद्धति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. ग. किसनकुशल (गुरु ग. सकल); गुपि. ग. सकल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, २०४४५-४८). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रणताशेषं; अंति: नमस्कारे भण्यते. ३४६८१. अट्ठाणु बोलारी अल्पबहुत्व, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४११, १६x२४-३७). ९८ बोल यंत्र, मागु., को., आदि: सर्वसुं थोडा गर्भेज; अंति: सव्वजीवा विसेसाहीया. ३४६८२. महावीर स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, आषाढ़ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पीपाड, जैदे., (२५.५४१०.५, ७४३८). महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबरी सेवामइ रहिस्; अंति: जय जय श्रीमहावीर, गाथा-७. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंतनी; अंति: निजरांरहिस्युं. ३४६८३. त्रेसठशलाका पुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४.५४११, १५४३३). ६३ शलाका पुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४६८४. (-) पार्श्वनाथ स्तवन व नंदिषेणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. उदयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११, ११४३३). १.पे. नाम. नाकोडोपारसनाथरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणे घर बेठा लील करो; अंति: कहै गुण जोडो, गाथा-८. २. पे. नाम. नंदषेण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी न जइएरे परघर; अंति: एकलो परघर गमण निवार, गाथा-१०. ३४६८५. (#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८१२-१८१३, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. ३, प्रले. मु. लखमीचंद; पठ. मु. जोइता (गुरु मु. लखमीचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४४८). १. पे. नाम. साधूनां सप्तविंशतिगुण स्वाध्याय, पृ. १३अ, संपूर्ण, वि. १८१२, फाल्गुन कृष्ण, ३. साधु २७ गुण सज्झाय, पंडित. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत मुखकमल; अंति: चरण प्रणमै करजोडि, गाथा-७. २. पे. नाम. धनाजी सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: अमां होवैजय जयकार, गाथा-१३. ३. पे. नाम. परस्त्रीगमन सज्झाय, पृ. १३आ, संपूर्ण, वि. १८१३, वैशाख कृष्ण, ४. परनारी परिहार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: नेह न कीजे रे जीव पर; अंति: पामि सुख अपारो जी, गाथा-५. ३४६८८. (+) गीत व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०, १४४४७). १.पे. नाम. गीत- औपदेशिक, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. दाम, मा.गु., पद्य, आदि: करि संतोष समझि मन; अंति: कहि० सुख सिर जणहारा, गाथा-५. २.पे. नाम. गुरु गीतं, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण गीत, उपा. दाम, मा.गु., पद्य, आदि: सगुरु अब प्रगटिउ वखत; अंति: सुख संपद विस्तारो, गाथा-८. ३. पे. नाम. पार्श्वस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. दाम, मा.गु., पद्य, आदि: गोडीमंडण गुणनिलु ए; अंति: इस्युं एहिज मुज आधार, गाथा-५. ४. पे. नाम. सासणदेवी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीशासनदेवी गीत, मु. ज्ञानसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सूरगिर हूंती उतरै; अंति: भणे ज्ञानसमुद्ररे, गाथा-१२. ३४६९०. (#) विमलाचलमंडण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १७४५३). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीअसयल जिणंद; अंति: ते पांमे भवनो पार ए, गाथा-२२. ३४६९१. अढारनातरारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७६, वैशाख शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, १२४२८-३०). १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलां ने समरूं पास; अंति: कांई हेतविजय गुण गाय, ढाल-३. ३४६९२. औपदेशिक सज्झाय संग्रह व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४४१०, २९x१५-२५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: काया पुर पाटण मोकलु; अंति: सहीजसुंदर उपदेस रे, गाथा-६. २.पे. नाम. वेराग सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: भूल्यो मन भमरा; अंति: तो काइ आवेजी साथ, गाथा-१०. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अलगी रहेने अलगी रहे; अंति: पभणे देववीजय जयकारी, गाथा-६. ३४६९४. संसारदावानल स्तुति व उवसग्गहरं स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६९४, चापनंदरसचंद्राब्दे, ?, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. महिमावती, प्रले. मु. धर्ममुनि (गुरु आ. रूपसिंह ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि. आ. रूपसिंह ऋषि (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ले.सं.-चापनंदरसचंद्राब्दे के अनुसार चंद्र १ रस ६ नंद ९ चाप १९ (सं.वा.शब्दकोष )या चार हाथ प्रमाण (श.र.महो.) १६९४ प्रतीत होता है जो विचारणीय है., त्रिपाठ., जैदे., (२४४१०.५, २६४७१-७८). १.पे. नाम. संसारदावानल स्तुति सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. संसारदावानल स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: संसा० नमामि प्रणमामि; अंति: वरं देहीति समन्वयः, २. पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. उपसर्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ अवचूरि, सं., गद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं०; अंति: चंद्रस्तस्यामंत्रणं. ३४६९५. (+) मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १८४४२). मंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४६९६. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१०.५, १४४४४). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: ओजीव काल अनादि; अंति: लालचंदजी इम भाखेरे, गाथा-७. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कायानी माया सगली; अंति: प्रभुजी रो ध्यान रे, गाथा-६. ३४६९७. नष्टोद्दिष्ट विधि-भंगरत्नावल्यां, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १०x४०). भंगरत्नावली, मु. गांगेय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४६९८. (+) स्तोत्र व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७०८, आषाढ़ शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. उपा. रत्नहर्ष गणि (अंचलगच्छ); पठ. मु. जयचंद्र (गुरु उपा. रत्नहर्ष गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १६४३७-४०). १.पे. नाम. वीतराग स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. वीतराग स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतरागसर्वज्ञ; अंति: मम केवला स्यात्, श्लोक-१३. २. पे. नाम. शांति स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... शांतिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ विश्वातिशायिमहिम; अंति: शांतिनाथसेवाकरे मयि, श्लोक-५. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: कल्याणकरं करुणानिलय; अंति: लभते नित्यपरमानंदकं, श्लोक-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: देवपूजादयादानं तीर्थ; अंति: नाल्पपुण्यैः, श्लोक-४. ३४६९९. नमस्कार व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, दे., (२५४११, १६४३५). १. पे. नाम. परमेष्ठि नमस्कार, पृ. ३आ, संपूर्ण.. परमेष्ठिमंत्र स्तुति, मु. रामचंद्र, सं., पद्य, आदि: सकलदेवमानवपतिमहित; अंति: स्तवगोचरं नीतं, श्लोक-७. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशलानंदन जिनवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३४७००. कायस्थिति व भवस्थिति प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १७७५४). १. पे. नाम. कायस्थितिविचार स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कायस्थिति स्तोत्र, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. २. पे. नाम. भवस्थितिविचार स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. भवस्थिति स्तोत्र, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: सिरिधम्मकित्ति कुलहर; अंति: मणो सिग्घमभव ठिई, गाथा-१९. ३४७०१. (+) औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१४११, ११४३२). औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु उपदेश; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ९ तक लिखा है.) ३४७०२. (-) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०x१०.५, ११४२४). नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: छान छान चोथमानह; अंति: सीमेर सादा सुख पाया, गाथा-९. ३४७०४. श्रीमान हीरविजयसूरि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, गु., (१६.५४१०.५, ११४७-१३). हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. अमरहर्ष, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीसूरिश्वर पदवी; अंति: वसु दान चिंतामणेः, गाथा-१४. ३४७०५. विविध व्यक्ति आयुष्य विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१३.५४१०.५, १५४२२). जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४७०६. (+) चंदनबाला सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२०.५४१०.५, १४४२५-३०). चंदनबालासती सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबि नयरि पधारिया; अंति: आणंद पुरि हो स्वामी, गाथा-२६. ३४७०७. ग्यांनपचीसी व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२०.५४१०, १५४३०-३५). १. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: माहाराज श्रीश्रीसांम; अंति: जोधाण कीयो चोमास रे, गाथा-२५. २.पे. नाम. जुगमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ युगमंधरजिन स्तवन, मु. कुसालचंद, रा., पद्य, वि. १८२३, आदि: जुगमधरजी री जुगदीस; अंति: कर सीवपुर वरस, गाथा-६. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जसरुप, रा., पद्य, आदि: सीमंधर सीमंधर प्रभु; अंति: सतगुरु रो उपगारो, गाथा-५. ३४७०८. पद व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (१९.५४१०.५, १३४२७). १. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन आरती, पुहिं., पद्य, आदि: जै जै आरती शांति; अंति: से नरनारी अमरपद पावै, गाथा-६. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, रा., पद्य, आदि: हुं तो मोह रहीजी; अंति: उलगेजी रंग घणै राजद, गाथा-४. ३. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. दहा संग्रह", प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: इस सहर विच कौण दिवान; अंति: ग्यांन का कवांण है, गाथा-४. ५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: कुशल वडो संसार कुशल; अंति: घरि घरि होइ वधामणो, गाथा-२. ६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कुशल अंग उछरंग कुशल; अंति: नवनिधान लक्ष्मी मीलै, गाथा-२. ३४७१०. थुलभद्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४१०.५, १४४३३-३७). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सरोवर साधजी; अंति: तुटे करम रा कोडी रे, गाथा-११. ३४७११. होरी, गीतादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (४१x११, ४३-४७४२५). १. पे. नाम. नेमिजिन वसंत, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. अंजार, पे.वि. श्री गोडीजी सत्य छे. मु. ज्ञानसागर, पुहि., पद्य, आदि: रंग होरी सामरो खेलै; अंति: ज्ञानसाग० अविचल जोरी, गाथा-११. २. पे. नाम. सामान्यजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन होरी, मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: फागरमे रस रंग प्रभू; अंति: इणी परि खेले होरी, गाथा-१२. ३. पे. नाम. औपदेशिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भानचंद, पुहिं., पद्य, आदि: या विधि होरी खेलीइं; अंति: सिद्धिवधु को वरै, गाथा-१३. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ राय ते नंदन; अंति: इंद्र कहे एवा धीर, गाथा-६. ५. पे. नाम. नेमनाथजी शिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. सौभाग्यचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठदेसनी राज अधिक; अंति: नित सुख पावे हो राज, गाथा-८. ३४७१२. सीमंधरजिन लावणी व सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०x१०.५, १४४२७). १.पे. नाम. सीमंधरजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रामचंद, रा., पद्य, वि. १९०९, आदि: चंदा तुंजाइये जिण; अंति: वृद्धिचंदजी पासे, गाथा-११. २. पे. नाम. धर्मदलाली सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. दलाली सज्झाय-धर्मदलाली, मा.गु., पद्य, आदि: दलाली इस जीवन कीधी अ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ३४७१३. स्तुति संग्रह व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, दे., (११.५४११, ११४२७). १.पे. नाम. महावीरजिन चतुर्दशी स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, (पू.वि. श्लोक ३ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. कल्लाणकंदं स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, कल्लाकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा ३ तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. गौडीपार्श्वजीन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरो मानीने लेजो हो; अंति: उठी परम नमीजे हो, गाथा ५. ३४७१५, (+) नवकार स्तवन व दूहा संग्रह, संपूर्ण वि. १८५५ आश्विन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे २ ले, स्थल, विकानेर, प्रले. मु. गुमानचंद ऋषि; पठ. सा. चतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (१९.५X१०.५, १५X३० ). १. पे नाम औपदेशिक दूहा, पृ. १-२अ संपूर्ण दुहा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-): अंति: (-), गाथा- ३५. २. पे. नाम. नवका स्तावन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पैहलै पद अरिहंत देवा; अंति: जेमलजी रे प्रसादो, गाथा - १३. ३४७१६. मुनिगुण सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५X१०, ७X२३). मुनिगुण पद, मु. शांतिरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः सुण सहेली जंगमे अंतिः शांतिरतन मुनि मनमानी, गाथा-५, ३४७१८. दानफल सज्झाय, संपूर्ण वि. १९२२ चैत्र शुक्ल ८. श्रेष्ठ, पृ. १. ले. स्थल, सीवगढ़, प्रले. सा. तीजी (गुरु सा छोटा सती); अन्य. श्रावि. साराबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९.५X१०.५, १४x२५-३२). दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., पद्य, आदि: दान एक मन दे रे जीव; अंति: सुणे जोणंतीदास रे, गाथा - १३. ३४७१९. सामान्यजिन स्तवन व आत्म पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १ कुल पे. २, ले. स्थल. कुचेरानगर, प्रले. मु. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१X११, १०X२७). १. पे. नाम. सामान्यजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, जै. क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: अहोजी जगतगुरु सुणीयो; अंतिः इह प्रभु ढील न कीजे, गाथा - ११. २. पे. नाम. आत्म पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: पंथीडा पंथ चलेगो; अंति: अब तेरो ही आधार, गाथा- ३. ३४७२०. प्रथमतीर्थपति स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै (२१.५४११.५, १०x२५). " आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि : आदिजिनं वंदे गुणसदनं, अंतिः मुखानि सततं सुखानि, श्लोक-६. ३४७२१. नमिऊण स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. मु. नाथा, मु. बखता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४१०.५, , १४४३४). " नमिण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा. पद्य, आदि नमिऊण पणवसुरगण, अंतिः नासह तस्स दूरेण, गाथा २४. ३४७२२. औपदेशिक सज्झाव, संपूर्ण वि. १८४८ वैशाख कृष्ण श्रेष्ठ, पृ. १ ले स्थल पीसांगणसर, प्रले. गुली, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २१.५x१०.५, १६x२८). औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: रतन चिंतामण नरभव पाय; अंति: ज्युं थारी रे सरम, गाथा-१८. ३४७२३. पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२x१०.५, १४X३७). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: अरिहंतजीने वले साध, अंति: (१) थारो हुवै निसतारो, (२) सुख नहि पंचमे आरो, गाथा- ११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. आशकरण, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: नगर वेणारसी ते; अंति: सुं तन लागोजी, गाथा - १६. For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३४७२५. चोविसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२२४१०.५, १२४३०). २४ जिन स्तवन, मु. जीजाण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुकत मारग पग धरो, गाथा-८, (पूर्ण, पू.वि. पहली गाथा नहीं है.) ३४७२६. शल्यछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२१.५४११, १६x२८). शल्यछत्रीशी सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरीय; अंति: सीधो साहमो देखोरे, गाथा-३७. ३४७२७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्राव. धर्मचंद भिखारी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०.५, २३४१४-१७). १.पे. नाम. गणधरसंशय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ११ गणधरसंशय सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभाते उठीने भविका; अंति: नमंता लहीइं शिवमेवा, गाथा-९. २. पे. नाम. आत्मशिक्षा स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धसोम पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: माया ममता मुकीइंजी; अंति: ते लहे शिवसुख सार रे, गाथा-७. ३४७२८. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांकभाग कटा हुआ होने से काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२२४१०.५, १२४३२-३४). १.पे. नाम. चौवीसतिर्थंकर स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८९०, फाल्गुन, ३, प्रले. पं. खिमाविजय गणि (तपागच्छ); अन्य. पं. जसरूप (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: (-); अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, मु. गौतमसोम, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: बोल्या अमरत वाण, गाथा-६, (वि. कर्ता नाम गौतमसोम की जगह गौतमस्वामी लिखा है.) ३. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३४७२९. (-) चोविसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५४११, १४४३०). २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कवल गुणहार; अंति: तम पाइ पणमुं, गाथा-१८. ३४७३०. (+) युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४१०.५, १३४३४). युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२५, आदि: युगमंधर जिन सांभलो; अंति: मारी समगत देसी साख, गाथा-१६. ३४७३५. (-) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२४१२, १५४२३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: गरुरा क्या केरा; अंति: कहे धनीदास कर जोरा, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: देस तो बिगाना आपना; अंति: माहरे मन की रेप्यास, गाथा-५. ३४७३६. फकिरचंद-साधु जीवन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४११, १४४३०). फकिरचंद जीवन चरित्र, मु. उत्तम, रा., पद्य, आदि: जंबुदीपना भरतमे किसन; अंति: अवागवण नीवार रे, गाथा-१८. ३४७३७. (-) औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१.५४१०.५, १५४३५). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: तन धर कोय न सुखीया; अंति: संत सुखीया मन जीतमे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३० www.kobatirth.org २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ संपूर्ण कबीरदास संत, पुडिं, पद्य, आदि: एकलडी मत मेलो हो; अंतिः हंस चल्दी एको हो, गाथा-४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐसौ प्रभू चरणा चीत; अंति: इण वीध लीजै नाम रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जसरूप ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि: मोने वालो लागे छेजी, अंति: चीत माव कर दीवो चेन, गाथा ५. ५. पं. नाम औपदेशिक पद. पू. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जसरूप ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: फरक मन रेणा होर भजन; अंति: जस० फेरो नव नव गेणा, गाथा - ५. ६. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि भजन बीना कायकु देह, अंति: साथ हर चरणासु धरी, गाथा-४, ३४०३८. धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैवे. (२१x११, ११x२८). . धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मुने धरमजिण; अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा- ७. ३४७४१. गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. वे (२०x१०.५, १६४३३). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १३ तक लिखा है.) ३४७४२. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२०x११, १८३५). 1 " पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वांणी ब्रह्मावादनी अंति: (-), (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १७ अपूर्ण तक लिखा है.) ३४७४३. प्रहेलिका संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९.५X१०.५, १२४३२). १. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: देख्यां रे चेला बीन; अंति: गुराजी बीन खार खारा, गाथा- ८. २. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि मुनीवर बाणी बागरी, अंति: तेंसी बात सुहाव, गाथा-६. ३४७४४ स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७० आश्विन शुक्ल, २. सोमवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. पुना, प्रले. मु. मानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१X११, ११x२७). १. पे. नाम. अष्टमीनी स्तुति पू. १अ १ आ. संपूर्ण. " अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि अठम जिन चंद्रप्रभु अंतिः अष्टमी पोसहसार, गाथा-४. २. पे नाम, नवतत्व स्तुति, पृ. ९आ- २आ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति-नवतत्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि जीवा रे जीवा पुन्य, अंतिः समकितगुणचित धरजोजी, गाथा-४. ३४७४७, (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४. कुल पे, २. प्र. वि. संशोधित दे. (२१४११.५, ६४१८). ', " , १. पे नाम, औपदेशिक लावणी, प्र. १अ-२अ, संपूर्ण, अखेमल, पुहिं., पद्य, आदि: जगत मे खबर नहि पल; अंति: उनकु वीनती अखैमल की, गाथा- ७. २. पे नाम, बेराग सीजाय, पृ. २आ-४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि देव दाणव तीर्थंकर, अंतिः (-), (पू. वि. गाथा १३ अपूर्ण तक है.) ३४७४८. हीयाली सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५X११, १२x२९). हरियाली सज्झाय, मु. प्रीतिसागर, पुहिं., पद्य, आदि: नरसेती नर निपजइ रे; अंति: कीजै कितना वखाण, गाथा- ७. ३४७४९. गुरुगुण भास व दान प्रकार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २ जैवे. (२३४१०.५, १३४०). " Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १.पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १८२५, आदि: सहीयां रे सहीयां रे; अंति: वांछित लीलविलास हे, गाथा-९. २.पे. नाम. दान प्रकार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३४७५०. बुधि रास, संपूर्ण, वि. १८१६, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. करमावस, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १०४३३). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देव अंबाई; अंति: सविटले कलेस तो, गाथा-६६. ३४७५१. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७२७, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. हीराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०, १४४३७). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सुहामणो; अंति: हूज्यो तास प्रणाम रे, गाथा-२३. ३४७५२. जिनपदम्, संपूर्ण, वि. १९००, कार्तिक कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, १०४२९). पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनबिंब जुहारो; अंति: श्रीजिनचंद सवायोरे, गाथा-११. ३४७५३. आदिजिन, पार्श्वजिन स्तवन व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १४४४९). १. पे. नाम. राणपुरजीरो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणपुरै मन मोहीयो; अंति: लाल शिवसुंदर सुख दाय, गाथा-१५. २.पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. ३. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३४७५४. सामायक गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ., (२४.५४१०.५, १०४२६). औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चतुर नर सामाइक नय; अंति: ज्ञानवंत के पासे,गाथा-८. ३४७५५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८१, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. बिराटीया, प्रले. मु. शिवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १६-१८४३२-४०). १. पे. नाम. रावण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रावणमंदोदरी सज्झाय, मु. खुशालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८८१, आदि: कहगे मंदोदरी सुण हो; अंति: चीत चोखे लवणी गाई, गाथा-११. २.पे. नाम. ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: श्रीवीर हि ए वाणी, गाथा-१२. ३. पे. नाम. कुसलचंदगुरु गहंली, पृ. १आ, संपूर्ण. कुशलचंदमुनि गीत, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कुसालचंदजी रीष राया; अंति: दाता हरख गुण गाया, गाथा-९. ३४७५६. (-) कामदेव श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३२). कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: श्रावक श्रीवीरनो; अंति: कुसलचंदजी __कीयो परकास, गाथा-१६... ३४७५७. जिनवंदन व ३४ अतिशय स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १२४४२). १.पे. नाम. जिनवंदन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीसे करूं; अंति: विमल वंदे निसदीस, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. ३४ अतिशय स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन प्रणमुं सुख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ३४७५८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, २०४५९). १. पे. नाम. सिखामण सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करु; अंति: कह्यो एह विचार, गाथा-२५. २.पे. नाम. जिनचंद्रसूरि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सगुरु जिणचंद सोभाग; अंति: सुंदर बिरूद साच बोलै. ३. पे. नाम. दानाधिकार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं सरसति सामिणीजी; अंति: परिमाण रे जीवडा, गाथा-१४. ३४७५९. (#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११, १४४४१). सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए हु; अंति: स्वामी आस्या मनतणी, गाथा-१९, (वि. गाथांक नहीं लिखा हुआ है.) ३४७६०.(+) कंस-कृष्णनेमिनाथादि कथा संग्रह-कल्पसूत्रगत, अपूर्ण, वि. १८६२, वैशाख शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४१). कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४७६१. (#) कलंकी सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, १०-१२४२८-३८). पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: एह सिज्झाय रसालोरे, गाथा-२०. ३४७६३. नेमिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, १७४३७). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: नेम नगीनो साहेबजी; अंति: नित नित परणमुंपाय, गाथा-१५. २.पे. नाम. नेमजी की सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जादवपत नेम प्रभु एक; अंति: दिनमें सो सो बारी, गाथा-५. ३४७६४. नेमिराजुल सज्झाय व बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १९x४०). १. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन सज्झाय, मु. गुमानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: छपनकोड जादव मिल आया; अंति: सरावग चित्त लाई, ढाल-४, गाथा-३६. २. पे. नाम. नेमराजीमती चोमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिनराजिमती चोमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सावण बर हो सामी मेल; अंति: मनवंछत कारज सीधो, गाथा-५. ३४७६५. (#) सुखदेवजीरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. राही, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १४४३७-४८). सुखदेव सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वर्ग थकी अवतों; अंति: देवजीरो कीधो इधकार, गाथा-२६. ३४७६६. (#) सिद्धाचलतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अलायनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x१०.५, १२४२२). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आव्यारे; अंति: रै पद्मविजय परिणाम, गाथा-७. ३४७६७. श्रीवाडीनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९११, श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१५४११, ११४१८). पार्श्वजिन स्तवन-श्रीवाडी, मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवाडीपास जुहारिये; अंति: मनरी पूरे सहु आसरे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३४७६९. नलदवदंती भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. परमचंद (गुरु मु. न्यानचंद); गुपि.मु. न्यानचंद; पठ. श्रावि. धना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १०-१३४९-४५). नलदमयंती सज्झाय, मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: सारद चरणे नमी करी; अंति: पाम्यु शिवपुर सुख, गाथा-२०. ३४७७०. नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, १३४३४). नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सखीरी सांभलि हेतूं; अंति: मुक्ति मजारा हो लाल, गाथा-१४. ३४७७१. पांचसमवाय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, ९४३०). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १० तक लिखा है.) । ३४७७२. शनत्कुमार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाटण, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३०). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कुरुदेशे गजपूर ठामे; अंति: करजोडिने वंदु पाय, ढाल-४, गाथा-२९. ३४७७४. (#) नवावाड सझाय, संपूर्ण, वि. १८७७, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. हरकवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (१८x१०,१४४२९). ९वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पशुपंडग तणी रे; अंति: रेविजयदेवसूर के, गाथा-१४. ३४७७५. नेमराजुल लेख, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१०.५, १३४४१). नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरैवतगिरे; अंति: रूपविजय उलास रे, गाथा-१९. ३४७७६. संथारा पाठ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, २१४४०-५०). संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहं भंते अपछिम मारणं; अंति: भुएसु वेरमज्झन केणइ. ३४७७७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४३०). १.पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अभिनंदन जिन दरिसण; अंति: थकी आनंदघन महाराज, गाथा-६. २.पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरम परम अरनाथनो केम; अंति: आनंदघन निरधार रे, गाथा-८. ३४७७८. नवकारनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२०.५४११.५, १०४२१). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित० श्रीजिनशासन; अंति: ऋद्धि वांछित सुख लहे, गाथा-१८. ३४७७९. भरतबाहुबली सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (१९४१०, १६४३२). भरतबाहुबली संवाद, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता समरीमैं; अति: (-), (पू.वि. गाथा १६ तक है.) ३४७८०. चतुर्विंशतिजिन व शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११, १५४३८-५१). १. पे. नाम. चतुर्विंशतीजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: मुनि लावण्यसमई भणै, गाथा-२८. २.पे. नाम. शाश्वतजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ३४७८२. (+) सोलेसतीया की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१०.५, १२४४२). १६ सती सज्झाय, मु. त्रिकम, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: ऋषभ तणी धुया; अंति: पुगी मननी कोड, गाथा-८. ३४७८४. (-) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४११.५, १४४३९). For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अनि ए मां देखो नेम; अंति: जाइ लालचंद रस बीना, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अनिय ए मेरो मन लाग्य; अंति: चैन० चाह नही कछु और, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, मु. भीमा, पुहिं., पद्य, आदि: नैननसु प्रभु दरसन; अंति: कहा कहुं जगनाथसुं, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: धीरज तात खिमा जननी; अंति: जाहर दगा है यारो, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, पुहि., पद्य, आदि: कहा के सरनमें जाउं; अंति: सदा परम सुख पाउं, गाथा-३. ६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कहोगी मै बरजीनारह; अंति: म्हारे पहुचाउ गिरनार, गाथा-३. ३४७८५. पार्श्वनाथजिनो छंद, संपूर्ण, वि. १७६१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३७१०.५, १५४३०). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपोशारदा मया; अंति: इम तवीयो छंद देशतरी, गाथा-४६. ३४७८६. (#) अष्टापदऋद्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. श्रावि. वाल्हाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४८). __ अष्टापदतीर्थ स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति अमृत वसति मुखि; अंति: जाणउ अवर नमो जिणाणु, गाथा-६२. ३४७८८. सिद्धगिरिराज वधावोव दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. प्रतापविजय; पठ. मु. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१६४११, १२४२५). १. पे. नाम. सिद्धगिरिराज वधावो, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ वधावो, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिराज वधावो मोतीयन; अंति: मिल गुण गावोरे, गाथा-८. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ३४७८९. साधुपडिक्कमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४४११.५, २०४३५). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३४७९१. (+) गौतमस्वामि रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१०.५, १०-११४४५-४६). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-५१. ३४७९५. साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४४१). साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर सवि करूं; अंति: लहइसइ पदवी अविचल तेह, गाथा-१६. ३४७९६. वासुपुज्य स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४१०.५, ९४३२). वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. विजयानंदसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: ऋतु वसंत आवे थकेजी; अंति: प्रभु मोह विछोड, गाथा-१३. ३४७९९. बीजपर्व व मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१०.५, ११४३६). १. पे. नाम. बीज सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org जतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने अंतिः नित विविध विनोद रे, गाथा-८. २. पे. नाम. मारूदेवामातानी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारूदेवी माता रे इम, अंति: रुपविजय गुण गाय, गाथा-७. ३४८००. पांचमनी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२३४१०.५, ९४३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कारतकसुद पंचमी तप की; अंति: जसविजय अधिक दीवाजे, गाथा-४. ३४८०३. सिधचक्र स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२२x१०, १३४३०). ३४८०५. स्तवन, स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २३१०.५, ९×३१). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिधचक्र सेवो भविलोगा अंतिः वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीडा सदेशो देजो मा; अंति: जिनदास० सो कहेवायजो, गाथा-५. २. पे. नाम. १६ सती स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है। सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका, अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक - १. ३. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है। सं., पद्य, आदि: सर्वमंगल मांगल्यं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१. २४८०६. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, जैवे. (२३११.५, १२४३२). " १. पे. नाम फलवर्धिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धि, मु. माणिक्य, मा.गु., पद्य, आदिः फलवर्द्धिपास जुहारीय; अंति: निरमल थाये देह, गाथा-८. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु, पद्य, आदिः लाखीणो सोहावें जिनजी, अंतिः वंदू श्रीगुरुहीर गाथा-७. ३. पे, नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि : आणी मनसुध आसता देव; अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ४ तक लिखा है.) ३४८०७. आचार्य करमचंदऋषि के आज्ञाप्रमाण देश गामना नाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जयचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३५.५X११, १८-४८४१३-२२). करमचंदमुनि आज्ञा क्षेत्र, रा. गद्य, आदि (-): अंति: (-). " २४८०८. पांचमनी धोय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२३४१०.५, १०x२७). ३५ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, ग. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कारतक सुदि पंचमी तप; अंतिः भावविजय अधिक वाधे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only ३४८०९. नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जै. (१८.५४११, २९३७). " नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः समरीअ समरस सागरु रे, अंतिः मानि एक परणेवी लाडी, गाथा- १९. ३४८१०. अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. रूपलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५X११, ९x१९). अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ अष्टापद नित नमी; अंति: जिनेंद्र बधते नेह रे, गाथा- ८. ३४८११. आत्मनिंदा, संपूर्ण, वि. १८१०, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. कीसनगढ, प्रले. सा. चनणा आर्या (गुरु सा. रामकवर आय); गुप. सा. रायकुवर (गुरु सा. केसरजी आव), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२१.५४१०.५, १७४२७-४०). ., Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची __ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे चेतन हे आत्मा हे; अंति: सोनर सुगुण प्रवीन. ३४८१२. चौवीसजिन आयु स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पठ. श्राव. रामजी धनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९x१०.५, ९x१७-२१). २४ जिनआयु स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: वंदीइ वीर जणेस्वरराय; अंति: मूझनइ देज्यो वासि, गाथा-७, संपूर्ण. ३४८१३. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १५४३६). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम प्रभु परमेस; अंति: भाणनी जयत करेवी, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: तुसे देवी अंबाई, गाथा-४. ३४८१४. बारैमासी तपरो तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. पत्र १४२ पेज की किनारी पर अष्टमंगल के नाम लिखा है।, दे., (२२.५४११, १०४२७). १२ मासी तपस्तवन, मु. विजयविमल, मा.गु., पद्य, वि. १९०२, आदि: त्रिभुवन नायक तुं; अंति: सुपसाय विजयविमल वरे, गाथा-१५. ३४८१५. क्षमा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४३२). __ औपदेशिक सज्झाय-क्षमाविषये, मा.गु., पद्य, आदि: खमा धरम पहलो खरोजे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १५ अपूर्ण तक लिखा है.) ३४८१६. विंशतिस्थानक विधि व पासत्था के प्रकार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १७५२५-३१). १. पे. नाम. विंशतिस्थानक विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकपूजा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिकाल जिनपूजा कीजई; अंति: पालीइ शील पालीइ. २. पे. नाम. पासत्था के प्रकार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: नवे वखाणे कल्प वाचइ; अंति: देशत पासत्थाना भेद. ३४८१७. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४१०.५, १४४२८-३२). १. पे. नाम. सीधाचल चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल सिद्ध; अंति: शिवलक्ष्मी गुणगेह, गाथा-५. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पज्जुसण गुणनीलो; अंति: शासने पामो जयजयकार, गाथा-९. ३४८१८. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७४, माघ शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पू.वि. पत्र १४३ हैं., प्रले. पं. पुण्यविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०.५, १०x२६). १.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गांगा, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जिनवर रुपे रुडा; अंति: अणी परे उच्चरे रेलो, गाथा-६. २.पे. नाम. पंचइंद्रीदमन स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामांध गजराज अगाध; अंति: लहो सुख सास्वता, गाथा-६. ३४८१९. नेमराजिमती होरी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पू.वि. पत्र १४२ हैं., जैदे., (२५४१०, १६४१०). १. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जादु पति नेमजिणंद छो; अंति: नयसुंदर कहे कर जोडी, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी, मु. नयसुंदर, पुहि., पद्य, आदि: जादुपती नेम व्याहन; अंति: जन्म मरण मेर मीट जाइ, पद-१. ३४८२०. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. ५, जैदे., (२१.५४११, ११४३८-४३). . .. For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १. पे. नाम. वैराग्य सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमहाव्रत जे धरे; अंति: ब्रह्मौ नमै जगीसैजी, गाथा-८. २. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझरे माता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लालविजय निसदीश, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. पच्चक्खाण सिज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविधि प्रहऊठि पचखाण; अंति: पामे निहचै निरवाण, गाथा-८. ५. पे. नाम. सत्तावीसगुणसहितसाधु सिज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ते मुनिनेइं करूं; अंति: ज्ञानविमल गुणवाधोरे, गाथा-७. ३४८२१. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९९, चैत्र कृष्ण, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जपुर, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है।, जैदे., (२२४१०, १२४३६). सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: श्रीसीमंदरसामी मारी; अंति: प्रसादी जगीस हो लाल, गाथा-२७. ३४८२३. श्लोकसंग्रह, अर्थ व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२१.५४१०.५, ११४२८). १.पे. नाम. ४ मंगल श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ मंगल, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: धम्म सरणं पवज्जामि, गाथा-१. २. पे. नाम. ४ मंगल श्लोक का अर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ मंगल-अर्थ, रा., गद्य, आदि: अरिहंतारोसरणौ सिधां; अंति: अजर अमर पद होय. ३. पे. नाम. दयाधर्म माहात्म्य श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दयासूंखारी वेलडी; अंति: दया तणै परमाण, गाथा-१. ४. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगर वनीता भली विराजे; अंति: हाथी होदै बैठा जी, गाथा-१०. ३४८२५. सज्झाय व मार्गणाद्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४११, १४४३२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कहुन गलाल कहु मोति; अंति: काहेकु करत मनी हे, गाथा-५. २. पे. नाम. मारगणा दुवार, पृ. १आ, संपूर्ण. मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आवण जावण पेला गुणठाण; अंति: चवदमा को मुगत जावे. ३४८२६. कूसालचंदजी गहुँली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२०.५४१०.५, ९४३२). कुशालचंदजी गहुली, रा., पद्य, आदि: आजरो दिहाडोजी भलाइ; अंति: लफरा कर दीया दूर, गाथा-६. ३४८२७. औपदेशिक पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२१.५४११, ९४२९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: पूजो क्युनी पास प्रभ; अंति: मूल० पातीक सबही कापै, गाथा-४. २.पे. नाम. समकित पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सम्यक्त्व, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित सैहस किरण रवि; अंति: मोहन अनुभव मागै, गाथा-५. ३. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: तुम हो दीनबंधू दयाल; अंति: मिटि गयो दुरित जंजाल, गाथा-९. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: जिवरे अथिर ओसंसार; अंति: मेरी सीख इमृतधार, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८ www.kobatirth.org ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: टुक नजर मैहरदी करणा; अंति: हस्त कमल सिर धरणा, गाथा-६. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. १६×३१). १. पे. नाम, नेमराजिमती तवन, पृ. ९अ संपूर्ण. साधारणजन स्तवन, मु. मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जी मन मोह्यो प्रभूजी; अंति: पातिक दुरै हरणां, गाथा-५. ३४८२८. भक्तामर स्तोत्र का बालावबोध व सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X१०.५, ११३०). १. पे. नाम. सवैया एकतिसा, पृ. १अ, संपूर्ण. सवैयाएकतीसा पुहिं, पद्य, आदि जसै काहु कंज में अंति: तेरी बनी है सुवन है, पद- १. " २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र का बालावबोध, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. भक्तामर स्तोत्र वालावबोध कथा. ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीयुगादीश, अंतिः (-). ३४८२९. () लावणी, स्तवन, पद व होरी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., जै. (२२x११. ५. पे. नाम, नेमिजिन होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि ऐसे स्वांम सलूने खेल, अंति: आवत सब जादव सिरदार, गाथा- ६. ६. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, पुहिं., पद्य, आदि: अरी मेरा दुख मत कर, अंतिः चारत वखत भले बरनी, गाथा ५. " २. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार, अंतिः मुख बोलो जयकुमार, गाथा- ६. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन होरी, पृ. ९अ १आ. संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहि, पद्य, आदि जय बोलो पास जिनेसर, अंतिः छावा सुरतरु की गाथा ६. ४. पे. नाम औपदेशिक होरी, पृ. १ आ. संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलो रे भविक अंति: तेरा पापने थरकै गाथा-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नेमि निरंजन ध्यावो, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण है. ) ३४८३१. सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे २, जैदे (२१x११.५, १५X३३). ३४८३२. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २२x१०.५, १०x२९). १. पे. नाम. थुलभद्र स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि लाछल दे मात मलार बहु अंतिः लीला लीखमी घणीजी, गाथा - १७. २. पे. नाम, मगसीपार्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मक्षी, मु. विवेकविजय, मा.गु, पद्य, आदि माहरो सफल हुआ अवतार, अंतिः पाया प्रेम रस बुटी, गाथा - १०. आदिजिन स्तवन, मु. किसनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: विनीतानगरीनो राजियो; अंति: किसनविजै गुण गाय, गाथा- ९. For Private and Personal Use Only " ३४८३३. भीलडी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९९८, मार्गशीर्ष शुरू, ९. श्रेष्ठ, पू. १ ले स्थल सावरी, प्रले. सा. तीजी (गुरु सा. छोटा सती); गुपि. सा. छोटा सती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२२x१०.५, १४४३२). भीलडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सांमण वीनवु; अंति: वरतीया मंगलमालो, गाथा-२०. ३४८३६. () सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे, २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ जैदे. (२२x११.५ १४x२५). १. पे. नाम. रत्न दृष्टांत स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. जीतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. " Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org : अंति: औपदेशिक सज्झाय- हितोपदेश, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: नगर रतनपुर जाणीइ सुर सोमविमलसूरि इम भणे ए. गाथा-८, २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १ अ- १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे एलापूत्र जाणीइं; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा - ९. ३४८३९. (-) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ दे. (२१x११, १६x२९). १. पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरिहंतदेवा, अंति: मुगत चावो तो धरम करो, गाथा - १३. ज्योतिष संग्रह *, मा.गु., सं., हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. क्षौरमुहूर्त व सिद्धयोगफल श्लोक.) ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: श्रेणिक रेवाडी, अंतिः बंदुरे वे कर जोड, गाथा- ९. ३४८४० (-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जै. (२१.५४११, १७४३०). औपदेशिक सज्झाय, मु. नथमल, रा., पद्य, आदि: सुणो नरनारी वाता मत; अंति: कह नथमलजी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३४८४२. (+) औपदेशिक पद, ज्योतिष श्लोक व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूच लकीरें जै. (२२x१०.५, १०x३६). १. पे नाम, औपदेशिक पद, पू. १अ संपूर्ण मु. आनंदघन, पु,ि पद्म, वि. १८वी, आदि उदर भरन के कारणे रे, अंतिः इस विध समरो नाम रे, गाथा-४. २. पे नाम तोतिष लोकसंग्रह, पृ. १अ संपूर्ण, 3 ३४८४३. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५X१०.५, ९X२४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पं. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि आज मारा पास प्रभुजी, अति दशा हीवे जागी रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- करैडा, मु. विद्याकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः आज श्रीजिनराज वंदे, अंति: दिन दिन इधकी दीजै, गाथा-७. ३. पे. नाम पद संग्रह, पू. २अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ५. ३४८४७. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. ११वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (१९.५५११, १६४२६). ३९ For Private and Personal Use Only शांतिजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शारद नाम रिदय धरी हो; अंतिः सिद्धि० मन इहज कोडी, गाथा - १२. ३४८५१. नंदिसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. प्रथम पत्र पर बाद में किसी ने पूर्णता सूचक लेखन कर दिया है, वस्तुतः यह अपूर्ण है., जैदे., ( २४x१०, १२X४५). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइजगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (पू. वि. गाथा २६ तक है.) ३४८५२. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ५. वे. (२३४११.५, १५४३०) १. पे. नाम. मेरूगिरि चैत्यवंदन जंबूद्वीपे स्थित, पृ. १अ संपूर्ण मेरुगिरि चैत्यवंदन - जंबूद्वीप स्थित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबू पूर्व कुरूक्षेत; अंति: कहे ते बंदो निरधार, गाथा-३. २. पे. नाम. मेरूगिरि चैत्यवंदन- धातकीखंडपुष्करार्द्धस्थित, पृ. १अ संपूर्ण. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मेरुगिरि चैत्यवंदन-धातकीखंड-पुष्करार्द्धस्थित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: धातकीखंडे मेरू दोय; अंति: धन्य जे करे दीदार, गाथा-३. ३. पे. नाम. जिन चैत्यवंदन-ज्योतिश्चक्रस्थित, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समभूतलथी उपरे ज्योति; अंति: ज्योतिश्चक्र अमंद, गाथा-३. ४. पे. नाम. शाश्वतजिन चैत्यवंदन-पुष्करार्द्धज्योतिश्चक्रस्थित, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नवसें जोयण ज्योतिश्च; अंति: जिनविणुंए सवि आल, गाथा-३. ५. पे. नाम. शाश्वतजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: लाख बहोतरि कोडी सात; अंति: जाणीइं आगम नहि संदेह, गाथा-३. ३४८५३. चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १३४४२-४५). १.पे. नाम. सकलकुशलवल्ली चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. २. पे. नाम. सकलार्हत् चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३० तक है.) ३४८५४. पंचंगुलिस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. फूल्या, प्रले. मु. पहिलाद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२२.५४१०, १६४५३). पंचांगुलीमंगल स्तोत्र, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सामी सीमंधर पइ नमेवि; अंति: इम हरख पयंपइ वार वार, गाथा-३७. ३४८५५. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२२.५४१०.५, १३४२६). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरोमन; अंति: उदयरत्न० आप तुट्ठा, गाथा-७. ३४८५९. गौतमस्वामी स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११, १३४३८). १. पे. नाम. गोतमस्वामि स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., पद्य, आदि: आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण; अंति: हृदि मे यदि मेरुधीर, श्लोक-५. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गुरु लबधि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ३४८६०. वीरजिन स्तोत्र व साध्वाचारषट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०, १७४५०). १.पे. नाम. वीरजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, मु. रूपचंद्र, सं., पद्य, आदि: यामवाप्य महतीं तरी; अंति: शाश्वतं शर्म दद्यात्, श्लोक-१७. २.पे. नाम. साध्वाचार षट्त्रिंशिका, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. साध्वाचारषट्त्रिंशिका, मु. रूपचंद्र, सं., पद्य, आदि: गृहित्वा वैराग्यं; अंति: भूयसे श्रेयसे स्तात, श्लोक-३६. ३४८६१. सकलत्रैलोक्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, ११४३६). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: तत्र चैत्यानि वंदे, श्लोक-१०. ३४८६२. चोविसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४८, २२४१६-१८). २४ जिन स्तोत्र, मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: वंदे धर्मजिणं सदा; अंति: संपथितः सौख्यदः, श्लोक-४. ३४८६३. वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२३४१०.५, ८x२९). For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१ www.kobatirth.org वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीनमो अरि, अंति: राधिचापि कदाचन (वि. प्रतिलेखक ने प्रारंभिक कुछ पाठांश तथा गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५X१०.५, ५X४३). ३४८६४. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५X१०.५, १५X४०). महावीर स्तवन, आ. अभयदेवसूरि प्रा., पद्य, आदि जइज्जा समणे भयवं अंतिः पतयकयं अभयसूरिहिं, गाथा-२२. ३४८६६. (+) गाथा संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण जैन गाथा *, प्रा.सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - ३. जैन गाधावार्थ ००, मा.गु, गद्य, आदि: (-): अंति: (-). ** ३४८६७. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८०, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. खींवराज (बृहद्भट्टारक खरतरगच्छ); पठ. मु. चोथमल ऋषि (गुज.लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५X१०.५, १५X३६). , ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आद्यताक्षरसंलक्ष्य अंतिः स्तोत्रमुत्तमम् श्लोक ८९. ३४८६९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. रिषभदेवजी प्रसादात्।, दे., (२२.५X११, १४X३९). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदिः सिद्धचक्र सुहामणो रे; अंतिः कीयो मन खंत हां रे, गाथा - १२. २. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन. पू. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि सरवारथसिद्धी चवी, अंतिः दसी कीवो शुभ काम, गाथा- ११. ३४८७१. संधारापोरसि संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२२x११, १०x२५). " संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा, अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा - १४. ३४८७२. संधारा विधि सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२४४१०.५, ८४४२). " " संधारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निसिही निसिही निसीहि अंतिः इअ समतं मए गहिअं, गाथा- १४. संधारापोरसीसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व व्यापार निषेधी, अंतिः सम्यक्त्व मई लीधुं ३४८७३. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२२.५X११, ११३२). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तुति- चतुर्थी तिथि, सं., पद्म, आदिः उद्यत्सारं शोभागारं अंति: तारा भूत्यै स्तात् श्लोक-४. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति-पलबंध, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंतिः बुद्धिरुद्धि वैदोषम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद, अंति: अष्टसुख सानिध करे, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) २४८७४. जिनकुशलसूरि स्तवन व ज्योतिष यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. ले. स्थल. मांडवला, प्रले. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५X१०, १३x४५ ). १. पे. नाम. रेखद आदि यंत्र, पृ. १अ संपूर्ण. ज्योतिष मा.गु. सं., हिं. प+ग, आदि: (-) अंति: (-). " (२२.५X१०, ३३X२२). १. पे नाम, गौतम स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, ४१ २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टक, आ. जिनपद्मसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: सुखं सर्वा संपद्वसति, अंति: लक्ष्मी चिरस्थायिनी, श्लोक - ९. ३४८७५. (#) स्तव संग्रह व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: ॐ नमस्त्रिजगन्नेतुर; अंति: भव सर्वार्थसिद्धये, श्लोक-९. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. धर्ममंदिर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: खरी खंति हुंति प्रभो; अंति: मितेत्वदर्शनेकादरम्, गाथा-७. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक , सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-२३. ३४८७६. (+) वीतराग स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्र के दोनों तरफ का हांशिया कटा होने से पत्रांक अनुपलब्ध है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., (२२४१०.५, १३४४८). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा पर; अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश ३ श्लोक ३ अपूर्ण तक है.) ३४८७७. पार्श्वनाथपद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. हरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक की जगह का भाग टूटा हुआ है, इसलिए काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२३४११, १३४३८). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-२१, (पू.वि. श्लोक १२ अपूर्ण से है.) ३४८७८. घंटाकर्ण आराधना विधि व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (१६.५४११, १२-१४४२३-२६). १. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर आराधना विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. घंटाकर्ण आराधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम अजूयालि पक्षे; अंति: पाईजे सर्प विष उतरे. ३४८७९. शारदा छंद, औपदेशिक स्वाध्याय व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२२.५४१०, २७-३६४१९-२३). १. पे. नाम. सारदाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल नमो केवल; अंति: तजे संसार किलेस, गाथा-१०. २.पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. छिनीयारगाम, प्रले. ग. कृष्णविमल; पठ. मु. ईंद्रजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८६२) जिहां द्रुसायर चंद रवि, (८६३) हम तो निपट अतीमहै. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), सवैया-३. ३. पे. नाम. भक्ष्याभक्ष्यविचार स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. भक्ष्याभक्ष्य विचार सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजाण्या फल फुल सब; अंति: सुयगडांग व्रतथी लहे, गाथा-१३. ४. पे. नाम. जिनप्रतिमास्थापना स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनप्रतिमा हो जिन; अंति: जिनप्रतिमासु नेह, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ३४८८०. दादाजी कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४१०, १३४३८-४३). जिनकुशलसूरि कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: जडधारवडजगोसर; अंति: दिनपति दूसरा जिणदत्त, सवैया-४. ३४८८१. गौतमस्वामी अष्टक व विविध संवत्सर विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक की जगह का भाग टूटा हुआ होने से पत्रांक काल्पनिक दिया गया है., जैदे., (२२४१०, १०४३६-३८). १.पे. नाम. विविध संवत्सर विचार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २. पे. नाम. गौतमस्वामी अष्टक, पृ. २आ, संपूर्ण. गौतमाष्टक, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक-१०. ३४८८२. भक्तामरकाव्य फलाफल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., जैदे., (२३४१०.५, १४४४१). भक्तामर स्तोत्र-काव्य फल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेला २ भूत प्रेत; अंति: मानमुगट कंठमाला टालइ. ३४८८३. संथारापोरसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक की जगह का भाग टूटा हुआ होने से काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२२४१०.५, ९-१०४३५). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं. ३४८८४. प्रायश्चित्त आराधना विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३.५४९.५, १७४५२-५६). आलोयणा आराधना विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अति: (-). ३४८८७. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. फतेचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, १३४३५). उपदेशमाला स्वाध्याय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. ३४८८८. (#) बृहत्शांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४२५-२७). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-). ३४८९०. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १-२ व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४४८). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १-२, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७७५, फाल्गुन शुक्ल, १३, शनिवार, ले.स्थल. नागोरी सराह, प्रले. ग. रत्नविमल; पठ. मु. सौभाग्यविमल (गुरु ग.रत्नविमल). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. अध्ययन २ तक है.) २.पे. नाम. आवश्यक की प्रारंभिक कुछेक गाथाएँ, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन गाथा , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४८९१. सूक्ष्मविचारगर्भित श्रीऋषभ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५५, चैत्र शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जगतारणी, प्रले. मु. प्रेमचंद्र पंडित (गुरु मु. राजसोम पंडित); गुपि.मु. राजसोम पंडित (गुरु ग. सुगुणकीर्ति); ग. सुगुणकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०.५, १३४३५-३७).. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ पणमिअदेव; __ अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा-२१. ३४८९२. (+) पच्चक्खाणसूत्र संग्रह व पंद्रहयोगादि नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०.५, १४४४३). १. पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. २. पे. नाम. पनर योग व चउदै गुणठाणा नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४८९३. वंदेतुसूत्र व मंत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८७२, आषाढ़ शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. उदयचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, १२४३०). १.पे. नाम. वंदेतुसूत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चोवीसं, गाथा-५०. २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४८९६. चोमासारि चोदसरो व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२१.५४११, १४४२८). चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग., आदि: प्रणम्य परमानंद; अंति: (-). ३४८९८. जीवविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२२.५४१०.५, १०x२७-३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३४८९९. १४ बोल गाथा सह टबार्थ, इंद्रियविषय विचार व मुहपत्ति के ५० बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११.५, १५४३४). १. पे. नाम. १४ बोल सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ अशुचिस्थान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उच्चारेसू वा पासवणे; अंति: सव्वे असूइ ठाणेसूवा, गाथा-२. १४ अशुचिस्थान गाथा- टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: उ० बडीनीतमैं छमूर्छम; अंति: छमूर्छम असणी उपजै. २. पे. नाम. तेवीस विषय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इंद्रियविषय विचार, रा., गद्य, आदि: स्पर्शेद्रीरा आठ; अंति: तेवीस विषय जाणवा. ३. पे. नाम. मुहपत्तीपडिलेहण बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्वमोहनीय१; अंति: विराधना परिहरूं. ३४९००. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १५६६, आश्विन शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. गतिसुकमाल; पठ. मु. क्षमारत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११,११४४९). साधुप्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ३४९०१. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, १०-१२४२४-२६). १. पे. नाम. श्रीआदिनाथ वृद्धस्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-वृद्ध, आ. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी इम वीनवं; अंति: कहीय मगसिर सुभ दीनइ, गाथा-१७. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३४९०२. नेमिजिन सलोको व आदिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १७७९, श्रावण कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. माहावजी (गुरु मु. कृष्णजी ऋषि); मु.प्रेमजी (गुरु गच्छाधिपति शिवजी); मु. धनजी ऋषि; मु. कृष्णजी ऋषि (गुरु मु. रत्नसीऋषि); गुपि.मु. शिवजी; मु. विजयकर्ण; मु. कल्याणजी ऋषि; मु. रत्नसी ऋषि (गुरु मु. गांगजी ऋषि); मु. गांगजी ऋषि (गुरु मु. लखमसी ऋषि); मु. लखमसी ऋषि, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४८-५०). १. पे. नाम. नेमिजिन सलोको, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुद्ध बुद्धदाता; अंति: परे बोले० सुजस सवायो, गाथा-५४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: आदि धर्म जिणि उधों; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के दुहा ५ व ढाल १ की गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३४९०४. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, १३४४२). १. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम. सरस्वतीषोडशनामानि स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: देवी सारदा वरदायिनी, श्लोक-६. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तवनम्, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि जयसिरिजिणवर तिहुअणजण अंतिः नियपय सुअदाणओ अझा, गाधा-५. ३४९०८. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३X१०.५, १४X३२). 3 लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१७. , ३४९०९. रजोच्छवपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १७९८, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. जालोर, जैदे., ( २४४१०.५, १४४१). रजोच्छवपर्व कथा, सं., पद्य, आदि: श्रीऋषभस्वामिनं, अंतिः यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक ६९. ३४९१३. आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५x१०.५, १२X४०-४२). आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानाशातनायां; अंति: अप्रमार्जन पुरिमङ्क. ३४९१८. पार्श्वजिन व सरस्वतीदेवी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २ जैवे. (२४४११. ११४३७). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - यमकबंध, उपा. समयसुंदर गणि, सं., पद्य, आदि: प्रणत मानव मानवं गतप; अंति: समृद्विकरो स्तवः, श्लोक-२५ २. पे नाम सरस्वती स्तोत्र, पृ. ९अ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमल करणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ तक है.) ३४९१९. पार्श्वजिन छंद व मिथ्यात्व के १० बोल, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रावण कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३ ११.५, १३X२८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजिनजी को छंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वामामात उयर जगवंदन, अंति: वाट घाट टालै विघन, गाथा- १०. २. पे. नाम. मिथ्यात्व १०बोल. पू. १ आ. संपूर्ण. मिथ्यात्व के १० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीवने अजीव सद्दहे ते; अंति: जाणे ते मिथ्यात्वी. ३४९२०. (#) जिनचंदसूरिनिर्वाण गीत, जाप फल व श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१०, १५X४३). १. पे. नाम. युगप्रधानजिनचंदसूरिनिर्वाण रास, पृ. २अ - ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. जिनचंद्रसूरिनिर्वाण रास, मु. समयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हो जंपर समयप्रमोद, गाथा - ७०, ( पू. वि. ढाल २ की गाथा १२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जाप फल, पृ. ३आ, संपूर्ण.. प्रा.सं., पद्य, आदि: अंगुल्याग्रेण यज्जप; अंति: कोडाकोडीय कमलबंधेण, श्लोक ८. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: यदि वहति त्रिदंड; अंति: सर्वमेतत् न किंचित्, श्लोक - १. ३४९२२. असज्झाय गाथा सह टबार्थ व अल्पबहुत्व विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, १५४५२). १. पे. नाम. असज्झाई गाथा सह टवार्थ पू. १ अ- १ आ. संपूर्ण. ३२ असज्झाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उक्कावाए दिसादाहे; अंति: काल समए दो घडीए, गाथा-३. ३२ असज्झाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः उलकापात ते आकास थकी; अंति: ठाणांगरे न्याय. २. पे. नाम. अल्पबहुत्व विचार, पृ. १आ, संपूर्ण मा. गु, गद्य, आदि: सरव थोडा अवधदंसणी ते अंतिः छह ते भणी जीवाभिगम. ४५ ३४९२३. नमस्कार व शांतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४ १०, १५x५८). १. पे. नाम. नमस्कार स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पंचजिन बृहत्स्तोत्र, उपा. जयसागर सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: बोधा बोधिलाभाय संतु, श्लोक-२६. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. जयसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीशांतिदेवं दित; अंति: बोधिलाभप्रदीपः, श्लोक-१५. ३४९२४. आचारछत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१४१०, १७-१८४३५-३९). आचारछत्तीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शुद्ध समकित पाया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३३ तक है.) ३४९२५. सचित्तअचित्त सज्झाय व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १४-१६४५३-६२). १. पे. नाम. सचित्तअचित्त स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सचित अचित सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगोतम; अंति: विरविमल करजोडी कहइ, गाथा-१८. २. पे. नाम. चतुर्विंशति चैत्यवंदन, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-उपधानतपगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ की गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ३४९२६. वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. नित्यसागर; पठ. मु. कर्पूरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३१-३५). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. ३४९२७. (+) उपदेशरत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. हरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ५४४२). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: विउलं उवएसमालमिणं, गाथा-२६. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रत्न तेहनु; अंति: ए उपदेश रत्नमाला. ३४९२९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४११, १२४३२). १.पे. नाम. ऋषभ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: आनंदघन पदरेह. गाथा-६. २. पे. नाम. अजित पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालुंरे; अंति: रे आनंदघन मत अंब, गाथा-६. ३४९३१. योगशास्त्र-प्रथम प्रकाश, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४७). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३४९३४. (+) दशवैकालिकसूत्र व द्रुमपत्री गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. कीर्तिविमल (गुरु मु. प्रीतिविमल); गुपि. मु. प्रीतिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ९४२९). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र- अध्ययन १ से ३, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. प्रतिलेखक ने अध्ययन १ से ३ तक की गाथा को क्रमशः गिना है.) २.पे. नाम. द्रुमपत्री गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-द्रुमपत्री गीत, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: जिम तरुपाक उद्यानडउ; अंति: ब्रह्मउ नमइ विसेस, गाथा-१२. ३४९३६. अष्टप्रकारीपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अलायनगर, जैदे., (२४४१०, १५४४२). ८ प्रकारी पूजा विधिसहित, मु. अमृतधर्म, पुहिं., प+ग., आदि: (१)पूरबदिसि अथवा उत्तर, (२)सुचि सुगंधवर कुसुम; अंति: (१)अमृतधर्म० पद कल्याण, (२)सुधी चैत्यवंदन कीजे, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४७ ३४९३७. शीलोपदेशमाला व परमसुखद्वात्रिंशिका प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १५४३७). १. पे. नाम. सीलोपदेशमाला प्रकरण, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, गाथा-११४, (पू.वि. गाथा १०६ तक नहीं है.) २. पे. नाम. परमसुख द्वात्रिंशिका, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. परमसुखद्वात्रिंशिका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: धर्माधर्मांतर मत्वा; अंति: तदा ते परमं सुखम्, श्लोक-३२. ३४९३८. नवकारमंत्र छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३८). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विवधवर; अति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ३४९३९. नंदीसूत्र व अष्टमंगल नाम, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १५४४७). १.पे. नाम. नंदीसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. योगनंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदि: नाणं पंचविहं पण्णत्त; अंति: त्तई नित्थारपारगाहोह, सूत्र-९. २. पे. नाम. अष्टमंगल नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३४९४२. जीवविचार प्रकरण व भक्तामर स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-३(१ से ३)=४, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३१-३७). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा ३१ तक नही २.पे. नाम. भक्तामर स्तवन, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण. आदिजिन भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३४९४५. पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, १०४३२). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जगनायक पार्श्वजिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ तक है.) ३४९४९. पौषधविधि सझाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२०४११, १६x४४). पौषधविधि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीस्ये जिन कीजइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३० अपूर्ण तक है.) ३४९५०. (#) चतुःशरणं, संपूर्ण, वि. १५२७, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाण, गाथा-६२. ३४९५१. वीसस्थानकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०, १२४४०). २० स्थानकतप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर शिरनामी; अंति: लहेस्ये जिनपद भोग, गाथा-२२. ३४९५२. इग्यारस सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. दयाचंद; पठ. मु. सवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १२x२३). एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति: सुरूप सज्झाय भणी, गाथा-१५. ३४९५३. (+#) इकवीस स्थानक, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०,१४४२७-३३). For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: दिसंतु महमंगलं एयं, गाथा-६४, (पू.वि. गाथा २२ से ४२ अपूर्ण तक नहीं है.) ३४९५४. नेमिजिनगीत, ज्योतिष, श्लोक व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे.७, जैदे., (२५४१०.५, १४४४९). १.पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती गीत, ग. शिवनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: शिवराजुलकउ वडभाग, गाथा-१२, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २.पे. नाम. नेमि गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. राजिमतीरथनेमि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रूडा रहनेमि मत करि; अंति: लीयु मनवाल रे, गाथा-२. ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण. ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: इच्छिय विक्कम वरसे; अंति: दीजइ बाकइते आयपवरठ. ४. पे. नाम. दूहा, पृ. ३अ, संपूर्ण. दूहा संग्रह , पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: धरइ चित चतुर ध्यान; अंति: कहता आवई नहि अंत. ५.पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पठ. मं. देवकर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर मंडनहीर; अंति: वंदे पार्श्व मभीरं, गाथा-५. ६. पे. नाम. गौडी पार्श्व लघुस्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गौडी गाजइ रे गिरुयउ; अंति: प्रणमै समयसुंदर पाया, गाथा-७. ७. पे. नाम. सक्रांतिविचार यंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण संक्रांतिविचार यंत्र, सं., पद्य, आदि: यस्मिन् दिने संक्रमम; अंति: चक्रं गणितज्ञ हेतौः. ३४९५६. (#) महावीर स्तुति व आगम गाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२४४११,१५४४५). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. आगम गाथा, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आगम छुटक पन्ने , प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण से १२ तक है.) ३४९५७. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३६-३९). १.पे. नाम. नमिण स्तोत्र, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भयं तस नासेई दूरेण, गाथा-२४, (पू.वि. मात्र अंतिम २ गाथाएँ हैं.) २.पे. नाम. संतिकर स्तोत्र, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. ___ संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुअसंपयं परमं, गाथा-१३. ३. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासं अट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ तक है.) ३४९५८. चिंतामणि पार्श्व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०,११४३५). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४९ ३४९६१. (#) नवतत्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. सुंदरदास, पठ. पं. भीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्ष की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३.५x१०.५, १५४३६). . नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंतिः बुद्धबोहेक्कणिक्काय, गाथा-५०. है. ३४९६२, (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए है अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X११, १३X३२-३६). १. पे नाम. आदिजिन द्वात्रिंशिका, पृ. १अ संपूर्ण. आदिजिनद्वात्रिंशिका, सं., पद्य, आदिः युगादिदेवाय युगादिवो अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १० अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. शत्रुंजय माहात्म्य, पृ. १आ, अपूर्ण. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय अंतिः (-). (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४९६४. बृहत्ग्रहशांति स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै. (२३.५४१०.५, १५४५२). " नवग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगगुरुं नमस्कृत्य अंतिः शांति विधी श्रुतम्, श्लोक-२३. ३४९६५. (#) आलापक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१०, १६x४६). १. पे. नाम. आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पं. वीरदास, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः उवाई मध्ये अंबडनइ आल; अंति: ए लाभ कह्या छइ. २. पे नाम, अंबड परिव्राजक आलापक, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. औपपातिकसूत्र- अंबडपरिव्राजक आलापक, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: अम्मड समणो कप्पर, अंति: (-). ३४९६७. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८३१, आषाढ़ कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. नागोर, प्रले. मु. सांवलदाऋष (नागोरीलुकागच्छ); पठ. सम. गोकल (नागोरीलुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५४१०.५, १२४३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४३४९६८. . (#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की "" स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१०, १३३२-४२). १. पे नाम गौडी पार्श्वदेव स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी सं., पद्य, आदि: कमोलावय मंगल कीर्ति, अंतिः श्रेयसे ते लभते श्लोक- ९. २. पे नाम, नवग्रह स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण ९ ग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकाशं; अंति: ब्रूयान्न संशय, श्लोक-१४. ३४९६९. (#) पुत्र कुलं सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. मु. कला ऋषि (गुरुमु खेतसी ऋषि), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१०, ५X४०). 1 पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि इंदियत माणुसतं च अंतिः ते सासवं सुखं गाथा- १०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांचैईद्रिय पणु मनुष; अंति: करी पामइ एतलावाना. ३४९७१. (+) सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२०.५X१०.५, ८- ९X२२). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. मन्हजिणाणं सज्झाय - तपागच्छीय, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्नह जिणाण आणं; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. २. पे. नाम. नवणपूजा स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जन जन्माभिषेक दोहा, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेरुशिखर नवरावे हो; अंति: जिनउत्तम पद पावै, गाथा-५. ३४९७२. जीव विचार, संपूर्ण, वि. १७९१, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. दीपसूंदर, पठ. मु. मानसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४१०, १४X३९). Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुदाइ सूअसमुदाउ, गाथा-५१. ३४९७३. श्रावक गुण व मतिज्ञान भेद विचार, संपूर्ण, वि. १९३९, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. सुभटपुर, पठ. मु. पुनमचंद (ओसवालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११, ११x१९-२७). १.पे. नाम. श्रावक इक्कीस गुण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २१ श्रावक गुण, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो गुण अक्षुद्र; अंति: कहत समान तुरत समझै, अंक-२१. २. पे. नाम. मतिज्ञानना २८ भेद, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. २८ मतिज्ञान भेद, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रोतिंद्रिरै; अंति: पिण मतिज्ञान कहियै. ३४९७४. पार्श्वजिन यमकबंध स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. औरंगाबाद, प्रले. पं. चतुर्भुज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, १४४३८). ___ पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक-९. ३४९७९. (+#) शांति स्तव, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४९.५, १३४४३). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरि: श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३४९८०. (#) चक्रेश्वरी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२०.५४१०.५, ५-९४१७-२६). चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: चक्रदेव्याः स्तवेन, श्लोक-९. ३४९८१. प्रव्रज्याभिधान कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. सा. सरूपा (गुरु सा. मृगावती), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५,१३४३१-३५). प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसारविसमसायरभवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. ३४९८२. बोल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १७४५२). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कंद १ मूल २ फल ३ पुष; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३४९८३. (+#) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, ५४१८). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: मनुसा चितमोनंदकारि, श्लोक-१०. ३४९८४. (+#) सीमंधर स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, ४४३४). सीमंधरजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: जोरझ्यं पिविहत्तु; अंति: मे पच्चं गिरा देवया, गाथा-४. सीमंधरजिन स्तुतिटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो कहतांजे सीमंधर; अंति: गिरादेवी एहनै नांमैं. ३४९८५. (+) अष्टक व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४०-४८). १. पे. नाम. वीतरागाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्ध; अंति: श्रीमानभ्युदच्युत, श्लोक-९. २. पे. नाम. गौडि-पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., पद्य, आदि: जैजैगोडीजी माहाराज; अंति: त्वं प्रणमाम सदैव, श्लोक-९. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: सर्वदेव सेवित पदपदम; अंति: मुक्तालतवन्मुदे, श्लोक-७. ३४९८६. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२२.५४१०,१२४२७-३०). For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ४० अपूर्ण तक है.) ३४९८८. (+) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२४१०.५, १०४२३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदुर प्रकर स्तपः; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २५ अपूर्ण तक ३४९८९. (+) साधारणजिन स्तोत्र सह अवचूरि व व्याकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. वचन विभक्ति संकेत-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-त्रिपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२२.५४१०.५, १६४३६-५१). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाःप्रभो यं विधिना; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. साधारणजिन स्तव-वृत्ति की अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: हे प्रभो सत्वं मया; अंति: द्विचत्वारिंशताधिकम्. २.पे. नाम. व्याकरण, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___ व्याकरण अपूर्ण व छूटक पन्ने , सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३४९९१. (#) लघुशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल ___ गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३२). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ३४९९२. (+#) राम यशोरसायन चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११, ११-१६x२३-२७). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: श्रीमुनीसुव्रतसवामी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ३४९९३. (+) तपगच्छ पट्टावली छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११, १०-१२४२६-३९). तपागच्छीय पट्टावली छंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३० से ६१ तक लिखा है) ३४९९४. श्रावक कुलक व ४ गति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०, ११४३८). १. पे. नाम. श्रावक कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १० श्रावक कुलक, प्रा., पद्य, आदि: वाणियगामपुरम्मि आणंद; अंति: बारसवयधारया सव्वे, गाथा-१२. २. पे. नाम. ४ गति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कवित्वमारोग्यमवेधा; अंति: चैव मनुष्यादागतो नरः, श्लोक-४. ३४९९६. (+) चैत्य स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, १२४३७). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सदभक्त्या देवलौक रवि; अंति: त्तत्र चैत्याति वंदे, श्लोक-१०. ३४९९७. (+) स्तवन, श्लोक व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४२). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोसयाण; अंति: सिद्धचक्क नमामि, गाथा-६. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. ऋषिमंडल व सिद्धचक्र की गाथाएँ.) ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजूत्ताण सत्ताण; अंति: चक्क महंताण कल्लाणगं, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४९९८. वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण वि. १६३५, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, सादलपुर, प्रलं. ग. रामविजय पठ. मु. विवेकविजय (गुरु ग. रामविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१०, १५x५२-५४). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः यः परात्मा परं; अंतिः फलमीप्सितम्, प्रकाश- २०. ३४९९९. होली चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैवे. (२४.५४१०.५, १८४४२). " होलिकापर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनवरेंद्र, अंतिः क्रमेण शिवं यास्यति. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५०००. ज्ञानपंचमी स्तुति, नमस्कारमहामंत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७४५, वैशाख कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. पं. लावण्यरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४१०, १३x४८). १. पे नाम, परमेष्ठी नमस्कार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु. पद्य वि. १२वी आदिः किं कप्पतरु रे आयाण; अंतिः तणी सेवा ज्यो नित, गाथा - १३, (वि. एक गाथा को दो गाथा के रूप में गिना गया है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तोत्र, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः परमिङिमंतसारं सारं अंतिः आरोग्यं देउ सुहपन्नो, गाथा ७. . ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि पंचानंतकसुप्रपंचपरमा, अति: सिद्धाविका नायिका श्लोक-४. ३५००३. दसपचक्खाणसूत्रक्रम, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २४४१०.५, १६३२). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार अंति: (-), (पू. वि. उपवास के पच्चक्खाण तक है.) ३५००४. नेमिजिन स्तवन व प्रश्नोत्तररत्न पद्धति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ६-२ (१ से २) ४, कुल पे. २, जैवे. (१७४९. ११x२१-२७). १. पे. नाम. नेमिनाथ समोसरण स्तवन, पृ. ३अ - ६आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु, पद्य वि. १६वी, आदि: जायवकुल सिणगार सिरि, अंति: अनंती ते लहइ ए, कडी - ३९. २. पे नाम, प्रश्नोत्तररत्नमाला, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र, अंति: (-) (पू.वि. रोक ३ अपूर्ण तक है.) ३५००५. (+#) जंबुद्वीपपरिधि विचार गाथा सह अवचूरी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १९३७-५२). जंबुद्वीपपरिधि विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: विक्खंभवग्गदह गुण, अंति: (-), (पू. वि. गाथा २ तक है.) जंबुद्वीपपरिधि विचार गाथा- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: करणी करण प्रकारो यथा अंति: (-). ३५००६. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पद व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५. जैवे. (२५x१०.५, , ११x२८-३४). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ ४अ संपूर्ण, वि. १८२५. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्येते श्लोक-४४. २. पे. नाम. अंगफुरकवाना विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. अंगस्फुरण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: माथउ फुरकइ तर पृथ्वी, अंति: वृद्धि नाकं अंखि ३. पे. नाम. शुक्र विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: एक ग्रामे पुर वापि; अंति: शुक्र दोषो न विद्यते, श्लोक - १. ४. पे नाम. सुविधिजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मुजरा ; अंति: दास निरंजन तेरा रे, गाथा- ३. ५. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पुडिं, पद्य, आदि: नीरंजन यार वो अंतिः (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक हैं.) For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३५००७. वृद्धआचार्याया गच्छोजान, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. आ. शांतिसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४६). पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामि पट्; अंति: श्रीजिनभक्तिसूरि६६, पीठ-६६. ३५००९. सामायिकपौषधग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४६२). सामायिकपौषध विधि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: यः श्राद्धः प्रभाते; अंति: शेष सर्ववत्. ३५०११. (+) विधिव बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, २०४५४). १.पे. नाम. पंचदशबंधन विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचदशबंधन विचार, सं., पद्य, आदि: औदारिकोदारमितिकिं; अंति: संहननं नहि. २. पे. नाम. लोच विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गुरोः पार्श्वमागत्य; अंति: सुहलोअंपुच्छंति. ३. पे. नाम. लोग स्वरूप, पृ. १आ, संपूर्ण. लोकस्वरूप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: लोए असंख जोअण माणेपइ; अंति: तहत्ति जिणवुत्तं. ४. पे. नाम. बोल संग्रह-तत्वार्थंगत, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: प्रति परमाणुनानंताः; अंति: अनंता पर्यायाः. ३५०१२. (+) सारस्वतवर्ण काव्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १८४६६). सारस्वतवर्ण काव्य, मु. रत्न ऋषि, सं., पद्य, आदि: गणिमनीषितमंगलपेटकं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उल्लास २ के श्लोक १२ तक है.) ३५०१३. पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १०४३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३५०१४. (#) सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११.५, १०४२२). १.पे. नाम. द्वितीयव्रत सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मृषावादपापस्थानक सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: असत्य वचन मुखथी नवि; अंति: सीये ते कहे सुध आचार, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुवारे गुण तुम्ह; अंति: वाचक जस० आधारोरे, गाथा-५. ३५०१५. वीरस्तुति अध्ययन तथा महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १३४३१-३६). १.पे. नाम. बीरत्थइनाम छठोअज्झयण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., गाथा ३ तक लिखा है.) ३५०१६. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, ५०४३३). औपदेशिक पद, मु. वरदराज, मा.गु., पद्य, आदि: अमान अमाय अलोभ; अंति: वरदराज० पखने कह नीर, गाथा-२४. ३५०१७. कल्याणमंदिर भाषा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२२४९.५, ११४३३-३७). For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परमयोति परमातमा परम; अंति: कारन समकित शुद्धि, गाथा-४४. ३५०१८. गौतमस्वामी स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४४१). १.पे. नाम. गौतमस्वामि स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७९८, ले.स्थल. खैरवानगर, प्रले. पं. अमरहस गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम. पंचासरापार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इंदु किरण सम तुम्ह; अंति: मोहन अनुभव पायौ, गाथा-७. ३५०१९. (+) अवंतिपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. लालपुर, पठ. मु. फतेचंद्र (गुरु ग. अमीचंद, तपगच्छ); प्रले. ग. अमीचंद (गुरु मु. आणंदचंद, तपगच्छ); गुपि.मु. आणंदचंद (गुरु मु. सुमतिचंद, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३४१०, ११४२८). पार्श्वजिन स्तवन-अवंति, ग. अमीचंद, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य सिद्धक्षेत्र; अंति: अमी० स्तुतिः कृताः, श्लोक-१०. ३५०२०. (+) गौतमकुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. अजमेर, पठ.मु. सिवराम (गुरु आ. चतुर ऋषि); गुपि. आ. चतुर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्र.ले.पु. में पठनार्थ विद्वान के गुरु का नाम "आचार्यजी ऋषि श्री चतुराजी" ऐसा पाठ है, प्रायः यह अशुद्ध होने की संभावना है., पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १७४५३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-बालावबोध *, मागु., गद्य, आदि: लुद्धा० लोभी नर अर्थ; अंति: देवलोकनइ विषइ जाइ. ३५०२१. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४१०, ९४२७-३२). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, (वि. प्रत का ऊपरी भाग फटा होने से आदिवाक्य नहीं भरा है.) ३५०२२. विवेकविलास चयनितश्लोक संग्रह व पिपीलिका विचारगाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०, १९४५२). १. पे. नाम. विवेकविलासांतर्गता श्लोकाः, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विवेकविलासचयनितश्लोक संग्रह, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: सांगुली पर्वभीः केशौ; अंति: यद्युक्तंतद्विधेहिभौ, श्लोक-४४. २.पे. नाम. पिपीलिका विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बिचमें लिखि गयी है. पिपीलिका विचार गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: घयतिल्लनेह कुंकुम; अंति: (१)देसं गामं विणा संति, (२)पुव्वाइ कमेण काडीसु, गाथा-१०. ३५०२३. (+) भक्तामर स्तोत्र, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्रले. पं. कल्याणहस गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, १३४३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक १७ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण तक नहीं है.) ३५०२४. विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १६४३७-४०). १. पे. नाम. जिनप्रतिमानीरात्रिपूजा रात्रिजागरण निषेध करवानो आलोवो-छेदग्रंथ, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा की रात्रिपूजा रात्रिजागरण निषेध करने का आलावा-छेदसूत्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तिहां देहरा ३ तीन; अंति: सर्व निषेध जाणिवा. २. पे. नाम. षट्लेस्या द्रष्टांत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ६ लेश्या द्रष्टांत, सं., गद्य, आदि: एकदा प्रस्तावेकोपि; अंति: गौवृषभ० शुक्ललेश्याह. ३. पे. नाम. पडिक्कमणापरा सासोस्वास गाथा सह अर्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण श्वासोश्वासविचार श्लोक, प्रा., पद्य, आदि: पन्नाससयतिसयं पणसय; अंति: उज्जोया समुहक्कमे, गाथा-१. प्रतिक्रमण श्वासोश्वासविचार श्लोक-अर्थ, रा., गद्य, आदि: राईपडिकमणारा ५० सासो; अंति: परंपरा इत्यादि विधि. ४. पे. नाम. चौभांगा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. आराधक-विराधक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: न जाणे १ न आदरै२; अंति: पालै ३ तै सूधा साध. ३५०२५. (+) गौतमस्वामि का मंत्रयंत्र विधिसहित व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १८४५५-५८). १.पे. नाम. गौतमसामि का मंत्र-यंत्र विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी मंत्र-यंत्र जापविधि सहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ भगवो गोयमसामिस्स; अंति: पुत्र होइ सही. २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५०२७. ऋषिकुलक सह टबार्थ व पांचअणुव्रत बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १७४७, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०, ६४३५-४०). १.पे. नाम. ऋषिकुलक सह टबार्थ, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०, (वि. १७४७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, सोमवार) गौतम कुलक-टबार्थ+कथासंकेत, मा.गु., गद्य, आदि: लोभिया नर अर्थनई; अंति: पुण्यसारनीकथा पामीयइ, (वि. १७४७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मंगलवार, ले.स्थल. द्विपबंदर) २. पे. नाम. पांचअणुव्रत बोल संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५०२८. नवग्रहस्तुतिगर्भ पार्श्वजिन स्तवन व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०, १५४४८-५४). १.पे. नाम. नवग्रह जापमंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: आदित्य१ पीडाया; अंति: मिमादि फल ॐनमोलोए. २.पे. नाम. नवग्रहस्तुतिगर्भपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं थुणामि पास; अंति: अवतिष्टतु स्वाहा, गाथा-१३. ३. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५०२९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०.५४१०.५, ११४३२). औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुदास, पुहिं., पद्य, आदि: मोहो मंदगी नींध सूता; अंति: दे सूपात्रदान बे, गाथा-१३. ३५०३२. महादेव स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२१४१०,१४४३०-३४). महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांते दर्सनं जस्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २२ अपूर्ण तक है.) ३५०३३. चैत धमाल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२०.५४१०.५, १२४४१). नेमिजिन धमाल, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात मया करी गाइस; अंति: गावति मुनि शिवचंद, गाथा-१९. ३५०३४. पार्श्वनाथ स्तवन व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, १३४३१). १.पे. नाम. संखेसरपार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मा.गु., पद्य, आदि: संखेसर संख पूरियओ; अंति: निरदली कान्ह घरि आयओ, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. विविधमंत्र संग्रह विधिसहित, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३५०३५. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४३२). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३५०३६. विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२४४१०.५, २३४१०). १.पे. नाम. श्वासोश्वास विचार संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सासउसास थाय एक मुहुर; अंति: उपरि सूख भोगवै छै. २.पे. नाम. मनवचनकायाना जोगे धर्मध्यानमांहि रहे तो केटलो लाभ थाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मनवचनकायासे धर्मध्यानमें रहनेका लाभ, मा.गु., गद्य, आदि: २७से कोडपल्य ७७कोड; अंति: सूभ आउखो बांधे. ३. पे. नाम. १६ स्त्री सिणगार, पृ. १अ, संपूर्ण. स्त्री के १६ शृंगार नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ सनान २ चीर ३ तिलक; अंति: १५ कांकण १६ चतुराइ, अंक-१६. ४. पे. नाम. १६ पुरुषना सणगार, पृ. १अ, संपूर्ण. पुरुष के १६ श्रृंगार, मा.गु., गद्य, आदि: १खिजमत २ सनान; अंति: १६ सीलवंत गुणवंत, अंक-१६. ५.पे. नाम. ८४ व्यापार के नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ सोनाहटी २ नाणावटी; अंति: कंदोइ ८४ कुतीयावण, अंक-८४. ६. पे. नाम. सामान्य जैन कृति, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५०३८. (#) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १७९२, आश्विन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. लब्धिविजय; पठ. मु. गोविंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०,१४४३६). शारदामाता छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकलसिद्धिदातार; अंति: होउसया संघकल्लाणम्, गाथा-४४. ३५०४१. गोडीपार्श्व स्तुति व जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०, १५४३९). १.पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. शुभसागर, सं., पद्य, आदि: गोडीप्रभु पार्श्व मम; अंति: सुभ० सिद्धि प्रदा, श्लोक-१७. २. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सर्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: जिनपते द्रुतमिंद्रिय; अंति: मोह तमो रिपुवीर ते, श्लोक-९. ३५०४२. सिद्धचक्र पूजा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४१०.५, ९४२६). १. पे. नाम. सिद्धचक्र पूजा-प्रतिष्ठाकल्पगत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रतिष्ठा कल्प-सिद्धचक्र पूजा, हिस्सा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथाष्टदलमध्याब्जक; अंति: वायव्यादिशि शर्मदम्, श्लोक-९. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५०४३. लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५१, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १३४४७). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१९. ३५०४६. सियलनी नववाड व प्रहेलिका संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२१४११.५, १५४३७). १.पे. नाम. सियलनि नववाड, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९४५, पौष कृष्ण, ११, ले.स्थल. कालावड, प्रले. आबामाडण खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य. ९ वाड ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नवनहं बभचेरगुत्तेहि, (२)१ पेहली ब्रह्मचर्यनि; अंति: तो सिअलनो भंग थाय. २.पे. नाम. दोहरा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: सरोवर पाय पखारति; अंति: एनोसाधोनईकेसेण, गाथा-८. ३५०४७. नेमराजुल पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२०.५४१०, ६-८x१९-२४). For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ नेमराजिमती पद, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उमट आई साहिबाजी वादल; अंति: भावसुंवंदे वारोवार, गाथा-११. ३५०५३. स्नात्र पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२१४१२, १२४२०-२५). स्नात्रपूजा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अति: (-). ३५०५४. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०, १०४३९). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: दिवसासितमानंधकारे, श्लोक-९. ३५०५५. पदमावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४४१०.५, १४४३५). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: जगत्पदमावतीस्तोत्रम्, श्लोक-३६. ३५०५६. पार्श्वनाथ स्तवन व विज्ञप्ती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १७४४०). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पं. धर्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पारकर देसमें परगडो; अंति: द्यो तुमे वचन रसालजी, गाथा-६. २.पे. नाम. वामनस्थली वीज्ञप्ती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रत्नविजयगुरु विज्ञप्ती, मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतपगच्छगुरु; अंति: धर्म संपती नीत थाय, गाथा-९. ३५०५७. (+) बप्पभट्ट व वंकचूल प्रबंध, अपूर्ण, वि. १६९०, फाल्गुन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०, १५४५८). १.पे. नाम. बप्पभट्ट प्रबंध, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: याम्रस्वस्थितवाश्र; अंति: दिवंगतागुरोपिदिवंगतः. २. पे. नाम. वंकचूल प्रबंध, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: कोपि ग्रामे भिल्लवास; अंति: लीधी ते देवता थयु. ३५०५८. सागरोपमस्थितिमान विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२४११, १६४३३). जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५०५९. (+#) चउसरण, संपूर्ण, वि. १८८५, वैशाख कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६x४२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३५०६०. महावीरजिन विशेषण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १७४३७). महावीरजिन विशेषण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीज्ञानवान् भगवान; अंति: जय जय अभय सुख करन. ३५०६१. विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ८, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३२). १.पे. नाम.६३ शलाकापुरुष नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. तीर्थंकर, चक्रवर्ति व वासुदेवनाम, अवगाहना व आयुष्य, प्रा., प+ग., आदि: चक्किदुगं हरि पणगं; अंति: केशवासव्वै अहोगामी, गाथा-११. २. पे. नाम. चतुर्दश रत्न, पृ. १आ, संपूर्ण.. १४ रत्न नाम, प्रा., गद्य, आदि: सेणावई१ गाहावई२; अंति: खगा१३ दंडोय१४. ३. पे. नाम. सातरत्न नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. रत्ननाम श्लोक, प्रा., पद्य, आदि: चक्कं१ खग्गं२ धणू३; अंति: सव्वेसिं वासुदेवाणं, गाथा-१. ४. पे. नाम. च्यार शाश्वतजिन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ शाश्वतजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभ१ चंद्रानन२; अंति: वारिषेण३ वर्द्धमान४. ५. पे. नाम. ११ रुद्रगति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ११ रुद्रगति विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचेव पंचपुढवीसु; अंति: रुद्दाणगई आगमे भणिया, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६.पे. नाम. नवनारद देहमांनआउ विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. नारद देहमानआयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ भीम धनु ८० वर्ष; अंति: मुख धनु १० वर्ष १०००. ७. पे. नाम. समकित नवनाम सह अर्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व के ९ नाम विचार, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य समकित१ भाव; अंति: समकित दीपक समकित. सम्यक्त्व के ९ नाम विचार-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्यसमकित कहता; अंति: ए नवमो दीपक समकित. ८. पे. नाम. १४ गुणठाणा विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उपरि; अंति: गुणठाणाथी जीव पडेनही. ३५०६२. उवसग्गहरं स्तोत्र सह टबार्थ व वृत्ति व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८३, कार्तिक शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. कनीराम ऋषि (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १५४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन सह टबार्थव वृत्ति, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपसर्गनो हरणहार; अंति: माहि चंद्रमा सहि. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५-वृत्ति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १७वी, आदि: (१)उपसर्गहरमिति इदं च, (२)यथा श्रीभद्रबाहु; अंति: मंदमतीनां हितार्थाय. २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५०६३. (+) शाश्वताचैत्य जिनबिंबसंख्या स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(३ से ४)=३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ९४२७-३२). अतीतअनागतवर्तमान जिनचौवीसी भाष, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल कारण पणमिउण; अंति: सिद्धि लच्छीय सयंवरा, गाथा-३८, संपूर्ण. ३५०६४. पद व गहुंली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जसराज, पुहिं., पद्य, आदि: जागो मेरे लाल विसाल; अंति: परि त्रिभुवन मोहनां, गाथा-३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तिहारी साची सुधारस; अंति: अजब मिठाई ठहरानी, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. क. केसोदास, पुहिं., पद्य, आदि: मत कोई परो प्रेमकै; अंति: होत परवश कहत केसोदास, पद-३. ४. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुजी जो तुम्ह तार; अंति: बाह गहेंकी वहीय, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल तू वडभागीनि; अंति: हरखचंद हितकारी, गाथा-५. ६.पे. नाम. गुरुमहिमा पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जिन चरण गुरु कमल चित; अंति: हरखचंद० जात कहीना, गाथा-३. ७. पे. नाम. महावीरजिन गहंली, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कौनै वन वीर समोसर्या; अंति: सार्या निज आतम काजरी, गाथा-५. ८. पे. नाम. अज्ञात जैन कृति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., कृति अपूर्ण होने से नाम का पता नहीं चलता है. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३५०६९. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३४). १. पे. नाम. सूर्य स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ सं., पद्य, आदि: आदित्येः कूक्षि; अंति: सर्वदा भास्करोगृहम्, श्लोक-८. २. पे. नाम. चंद्र स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अत्र नेत्र समुद्भूत; अंति: कुरु क्षां जयश्रीयम्, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पद्मावति स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: ऋद्धि वृद्धि ददातुम्, श्लोक-१०. ३५०७०. (+) वीर स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.६, १०४२६). ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ३५०७३. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १३४२५-२७). प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: स्वयं चिंता न चिंतंत; अंति: विना ग्रंथि सन्निभा, श्लोक-१३. ३५०७६. प्रास्तविक श्लोक संग्रह सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पत्रांक नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४४०). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, गु.,प्रा.,सं.,हिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-अर्थ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३५०७७. स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२, १६x४२). स्नात्र पूजा, मु. नगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्ध्यानविज्ञानघन; अंति: फले तसु वंछित सही. ३५०७८. पाखी सूत्र, संपूर्ण, वि. १८०५, कार्तिक शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. अमदावाद, जैदे., (२५.५४११.५, २१४५२-५७). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. ३५०७९. (#) वीर चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ६x४७). दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीर मोहपको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. दुरिअरयसमीर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दुरितरूप जे रज धूलि; अंति: पोतानो नाम कह्यौ. ३५०८०. ज्योतिष व नाम संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पंचपाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२२४१०.५, ११४२७). १. पे. नाम. बेटीबेटारो जन्मपत्रीज्ञान, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. बारचक्रवर्ति नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम भर्थजी१ सगर२; अंति: जय११ ब्रह्मदत्त१२. ३. पे. नाम. नवरस नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ९ रस नाम, मा.गु., गद्य, आदि: संगार१ हास्य२ करुणा; अंति: अद्भूत८ संतरस९. ४. पे. नाम. ग्रहण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: माहा महीने ग्रहण पडे; अंति: भक्ष तुरत लाभ हुवे. ३५०८१. विविध गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १५४६१). १.पे. नाम. जीवाप्रमुख गणितनी संग्रह गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने गाथा १ से ८ क्रमशः लिखा है. आगे गाथा-९ से क्रमश जारी जीवादिगणित संग्रह गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जोयण सहस्स नवगं; अंति: लक्खं जीवा विदेहद्धे, गाथा-८. २. पे. नाम. धनुपृष्टि संग्रह गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने गाथा ९ से १९ क्रमशः लिखा है. आगे गाथा-२० से क्रमश जारीधनुपृष्ठबाहा संग्रह गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नवचेव सहस्साई छावट; अंति: पिड्ड परिरयद्धस्स, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. प्रतर संग्रह गाथा, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने गाथा २० से ३० क्रमशः लिखा है. आगे गाथा- ३१ से क्रमश जारी प्रतरप्रमाण संग्रह गाथा, प्रा., पद्य, आदि: लक्खड्डारस पणतीस; अंति: पनरस कला विदेहद्धे, गाथा - ११. ४. पे. नाम. घन संग्रह गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक ३१ से ३७ क्रमशः लिखा है. घनगणित संग्रह गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दसजोयणस्सए पुण तेवीस अंतिः णसीई निसहस्स पणगणियं गाथा-७, ३५०८२. सिद्धांतगाथा शतक, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२५.५x११.५, १६x४२-४५). , सिद्धांतसार, पं. विवेकविजय, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि परिमंगाणि अंति: चारित्रमाश्रितं गाथा- १०३. . ३५०८४. संघयणी जंबूद्वीप सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २६११.५, ५X३३). " लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा - ३०. ३५०८८. ढोलामारू चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२२x१०.५, १३x४०). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिनी, अंति: (-), (पू.वि. डाल १ की गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ३५०८९. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५X१०.५, १२४३५). १. पे. नाम. शत्रुंजयगिरनारतीर्थं स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंथी कहेने शनेशरू, अंति: आवागमन नीवार लाल, गाथा- ७. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. विनतसागर, मा.गु, पद्य, आदि आज मुझघर नाथ पधार्या, अंति: वीनतसागर गुण गाव रे, गाथा- ३. ३. पे नाम, नेमराजिमती पद. पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तोरणसुं रथ फेर चल्या; अंति: रूपविजय० पुरी आसडली, गाथा-२. ३५०९०. (+) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४५, पौष कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. सोजत, प्रले. मु. गुलालचंद (गुरु मु. गुमानचंद, ओसवालगच्छ); गुपि. मु. गुमानचंद (ओसवालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, ११x४३). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंतिः क्षमस्व परमेश्वरी, श्लोक-२७. ३५०९१. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्राव. बलम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x११.५. ११४३०-३३). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत, अंति: पुव्वुप्प० विणासंति, गाथा - ३२. ३५०९२. विधिसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे ४, प्रले. पं. हरीसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, दे. (२५x११, १२४३०-३६). १. पे नाम, पोसह विधि, प्र. १अ १आ, संपूर्ण, पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहिउं पडिक्कमा, अंति: मिच्छामि दुक्कडम. २. पे नाम, राईप्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमीइं; अंति: मणसा मथएण बंदामि. ३. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरीयावहीपडि० तस्सउत्; अंति: जैनं जयति शासनं. ४. पे. नाम. सांझनीपडिलेहण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमी; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. ३५०९३. दसपच्चक्खाण संग्रह व पचखाणविधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६X११.५, १४४४२). १. पे. नाम. दसपच्चक्खाण संग्रह, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तिआगारेणं वोसिरइ. २. पे. नाम. पचखाण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण.. काउसग्ग आगार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: रायभीओगेणंगणाभीओगेण; अंति: त्याज्य जाणवी. ३५०९५. नेमराजुल संवाद व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. कवरपाल पं., प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १७X४७). १.पे. नाम. नेमराजुल संवाद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. श्रीपुरनगर. नेमराजिमती संवाद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १८१६, आदि: स्वस्ति श्रीगिरिनारि; अंति: शिव० नर बह रीझै, गाथा-२३. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धींगडमल तुंधणी; अंति: जागती योति है जोर रा, गाथा-५. ३५०९६. (+) पार्श्वनाथ स्तंभनक विज्ञप्तिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १५४४८). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ अणिदिय, गाथा-३०. ३५०९७. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २१-२३४३२). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २९ अपूर्ण तक है.) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंलोयंक० जे लोक पूर; अंति: (-). ३५१०२. पाखीखमासण, संपूर्ण, वि. १७४४, फाल्गुन कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वडेद, प्र.वि. प्रत में 'सवत अठारास चतुरदसकी सालमा झीपडो जल कारता मदुनी' इस प्रकार का उल्लेख है., जैदे., (२५.५४११.५,१२४२८). पक्खीखामणा, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जंभे; अंति: इच्छामो अणुसट्ठिअं, आलाप-४. ३५१०६. प्रतिलेखन विधि व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३४). १. पे. नाम. स्थापनानीपडिलेहण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रभातरोपडिकमणौ करे; अंति: अमुक घर करेह. २. पे. नाम. दुमपुफय अज्झयण, पृ. १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ३५१०७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०, ८४३१). १.पे. नाम. दशवीकालिक तृतीयाध्ययन स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा अध्ययन-३ की-सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सूधो साधु निग्रंथ; अंति: जेतसी मन रूचे ए, गाथा-७.. २. पे. नाम. सामायक स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक मन सुधे करो; अंति: सामायिक पालो निसदीस, गाथा-५. ३५१०९. स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, १०x२७). १.पे. नाम. महावीर मोक्षकल्याणक गीत, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावली, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वंदन करी; अंति: श्रीलब्धिउदय सुविहाण, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६२ www.kobatirth.org २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सुमति कामनी वीनवै हो; अंति: ( - ), ( पू. वि. गाथा - ६ अपूर्ण तक है.) ३५११०. (+) मूलाचार सह टीका प्रथम अध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५X११, ६X३६-४० ). मूलाचार, आ. वट्टेरकाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: मूलगुणेसु विसुद्धे, अंति: खिविइत्तु णीरओ होइ, प्रतिपूर्ण. मूलाचार - टीका, सं., गद्य, आदिः श्रीवरयतिवडकेरा, अंति: (-), प्रतिपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५११२. श्रावकदिनकृत्त्व कुलं सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७ भाद्रपद शुक्ल, २, मध्यम, पू. १, ले. स्थल राजनगर, प्रले. खेमचंद, लिख. सा. हतश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६१२, ४x२९). महजिणाणं सज्झाव- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ, अंति: निच्वं सुगुरूवएसेणं, י' गाथा-५. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मानवी श्रीवितरागनी, अंति: एतला कर्तव्य करवा. ३५११३. सीद्धाचल स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. प्र. वि. पत्रांक की जगह फटा होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है., जैदे., (२५.५X११.५, ११x४० ). 3 सिद्धाचतीर्थस्तव, सं., पद्य, आदि धरणेंद्रमुखानागा, अंतिः लप्स्यते फलमुत्तमम् श्लोक-१३. ३५११५. (+) संलेखना पाठ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. जै. (२४४११, १६५६०). संलेखना पाठ, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: अहं भंते अपछिम मारणं; अंतिः तस मिच्छामिदुकडं. ३५११६. प्रतिलेखनादिविचार गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. साथ में कोष्टक भी दिया गया है., जैदे., । (२६X११, १३X२०). प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., पद्य, आदि आसाठे मासे दुपबा पोस, अंति: आसाडे निडिया सव्वे, गाथा- ६. ३५११७. शरीरादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६११, ३१४९९). बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. किनारी खंडित होने से आदि - अंतिम वाक्य नहीं भरा है.) ३५११८. (+) चक्रेश्वरि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२५४१०.५, ११४३७). चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: पाहि मां देवी चक्रे, श्लोक ८. 3 ३५११९. (+) स्तवन, पद, रास व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३ कुल पे. ७. प्र. वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. दे., (२४x११.५, २०X३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. माणेकविजय, मा.गु, पद्य, आदि आवो आवो पासजी मुजे अंतिः मांणकवीजय गुण गाया, गाथा ८. २. पे. नाम, नेमजी री जान प्र. १अ १आ, संपूर्ण, 1 नेमराजिमती सज्झाय, मु. नवलराम, पुहिं., पद्य, आदि: नेमकी जान बणी भारी; अंतिः हो गये अधिकारी, गाथा - ७. ३. पे. नाम. जैन धर्मोपदेश पद, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: षटदरब ज्यामे कया हो; अंति: कहीये पांच परदांन, गाथा-५. ४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, प्र. २अ, संपूर्ण मु. हीराचंद, पुठि, पद्य, आदि लखचोरासी मां पसवे अंतिः चंद० मुगती पद भजे रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. अंजणसती स्तवन, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण. अंजनासती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: पती भर्ता और सतीअंजण, अंति: पाम्या हे मन में, गाथा - २४. ६. पे. नाम. जोवनीयारो स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाव- यौवनविशे, पुहिं., पद्य, आदि जब तक फुलरही फुलवाडी, अंति: ये क्या लडे गेरन में, गाथा ६. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. चोथमल, पुहिं., पद्य, आदि: सुंदर संग सेजमे सोवे; अंति: इंदोर आलीजी सेरमे, गाथा- ४. ३५१२०. सझाव संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) -१, कुल पे. ४, जैये. (२०.५४१०, २१४४४). . " For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १. पे. नाम. अध्यात्म सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पं. सहल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जीस सुमाँ सुख होय, गाथा-११, (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चोखी सिंडासण सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मीथला नगरी मांहि वसै; अंति: हुई ने पाछी सिद्धाई, ढाल-२, गाथा-२६. ३. पे. नाम. अध्यात्म सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आज आधार छै सूत्रनु; अंति: छोडनै लेवै संजम भार, गाथा-११. ४. पे. नाम. गरगाचार्य सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गर्गाचार्य सज्झाय, रा., पद्य, आदि: गरगाआचार्ज हुतो मोट; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ तक है.) ३५१२२. (-#) चौपाई व रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-४(३ से ६)=३, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२०.५४९, २३४६३). १.पे. नाम. माधवानल चौपाई, पृ. १अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देव सरसति देव सरसति; अंति: कुशल सुख पामें संसार, गाथा-४८५, (पू.वि. गाथा १२३ अपूर्ण से ४१२ तक नहीं है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सजन देसांतर गया जे; अंति: भरिषडा उछालिस सिमद, गाथा-१०. ३५१२३. (+#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२-१४४४३). १. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रत्रिदश; अंति: विघ्नमर्दी कपर्दी, श्लोक-४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: समुद्रभूपालकुलप्रदीप; अंति: तु देवी जगतः किलांबा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: सत्कल्याणमाहात्म्यतः, श्लोक-१. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: ददतां शिवं वः, श्लोक-१. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: शं नो देवी: देयादंबा, श्लोक-१. ६. पे. नाम. विजयप्रभसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नयविभूषण पारगतागम; अंति: विजयप्रभ सद्गरो, श्लोक-१. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कमलोदय, सं., पद्य, आदि: ब्रह्मेन्द्रनीलमणि; अंति: लीलावती भगती कमलोदयी, श्लोक-१. ८. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. क. कमलविजय, सं., पद्य, आदि: विजयतां परमागम देवता; अंति: विजयसेनगुरो कमलोदयी, श्लोक-१. ९. पे. नाम. साधारणजिन शतार्थी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: कल्याणसारसवितानहरे; अंति: भाव परमागम सिद्धसूरे, श्लोक-१. १०. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादि पुरूषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ३५१२४. (+) अंतर पइनो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४२८). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंता मंगलं मज्झ; अंति: सव्वं तिवहेण बोसिरिय, गाथा-३०. ३५१२६. जंबूद्वीप संग्रहणी व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५४४०). For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. जंबूद्वीप संग्रहणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण सव्वन्नु; अंति: रइया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५१२८. सीमंधरस्वामि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. छाजूऋषि; पठ. मु.रतना ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ८४३८). __ अनंतकल्याणकर स्तोत्र, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: अनंतकल्याणकर; अंति: तेषांबत साधुरूपाः, श्लोक-५. ३५१२९. विधि यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित हैं., जैदे., (२१४८). १.पे. नाम. परमाणुं पुद्गल यंत्र, पृ. १, संपूर्ण. परमाणुपुद्गल यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., आदिः (-); अति: (-). २.पे. नाम. प्रायच्छित विधि यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रायश्चित विधि यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३५१३१. महावीरजिन हुंडी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४११.५, १३४३५-३९). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ की गाथा १८ तक लिखा ३५१३२. (+) चउसरण, संपूर्ण, वि. १८०८, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४३५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३५१३४. (+) रहनेमि अध्ययन, संपूर्ण, वि. १७६२, भाद्रपद शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. ऋषभदास (गुरु पं. भाणकुसल पंडित); गुपि.पं. भाणकुसल पंडित; राज्यकालरा. अमरसिंघ; अन्य. श्राव. लखमीदास लाधाजी सा; श्राव. कुसलाजी लाधाजी सा; श्राव. देवजी लाधाजी सा (पिता श्रावि. रूखमादे लाधाजी सा); श्रावि. रूखमादे लाधाजी सा, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३८). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा रहनेमिजं द्वाविंशं अध्ययनम्, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: सोरियपुरंमि नयरे आसि; अंति: एवं करंति संवुड्डा, गाथा-४९. ३५१३५. (+) एकाक्षर नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-संशोधित., जैदे., (२५४११, १०४४३). एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि; आ. हिरण्याचार्य, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: नाममालिकामतनोत्, श्लोक-५०. ३५१३६. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५,१३४३६-४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३५१३७. (#) आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४८, १०x२७). __ आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल आदिजिणंद जुहारीय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ३५१३८. (+) वीवाह चुलीय-अध्ययन ९ उद्देश ८, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १५४५६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३५१३९. बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रत खंडित होने के कारण प्रतिलेखक का नाम पढा नहीं जा रहा है., जैदे., (२६४११, १५४५०). बिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गुरु शुक्रोदये भव्यं; अंति: सर्वकार्यसिद्धिः. ३५१४०. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जावाल, जैदे., (२५.५४११.५, ११४२५). For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भावानयाणेगनरिंदविंदं; अंति: गोखीरतुसारवन्ना, श्लोक-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं नतनाकि; अंति: वीरं गिरसारधीरं, श्लोक-४. ३५१४१. चैत्यवंदन, स्तवन व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१२, १६x४५). १.पे. नाम. जिनदर्शन श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐनमो विश्वनाथाय; अंति: जिन साक्षात सुरद्रुम, श्लोक-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगनाथ विमलाचल; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: जिनेद्र तव दर्शनात्, श्लोक-५. ४. पे. नाम. नमि स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: हेलांदोलित दैत्यारि; अंति: कल्पलतेव मूर्तिः, श्लोक-५. ५.पे. नाम. पार्श्व स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंति: तीर्थेश स्मृतिमानये, श्लोक-५. ३५१४३. (+) स्तुति व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४४, चैत्र अधिकमास, १२, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १२४३३). १.पे. नाम. बिरथुइ अज्झयण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुछिसुणं समाणा; अंति: आगमेस्संतिई तिबेमो, गाथा-२९. २.पे. नाम. प्रश्नव्याकर्ण, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच माहाबय सुबए मूल; अंति: पहस्स वडिसंग पंग, गाथा-३. ३. पे. नाम. तीर्थंकर नामकर्म गोत्रकर्म गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण.. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: तित्थयरत्तं लहइ जीवो, गाथा-३. ३५१४४. विपाकसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४४१२, १८४४०). विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेसं जहा आयारस्स, प्रतिपूर्ण. ३५१४६. विपाकसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १९७५, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नागोर, दे., (२४४१२, १४४४३). विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेसं जहा आयारस्स, प्रतिपूर्ण. ३५१४७. (+) दुमपत्तइयं अज्झयण व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १५४४०-४३). १. पे. नाम. दुमपत्तइयं अज्झयण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा १०वाँ अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: दुमपत्तय पंडुए जहा; अंति: गइ गए ___ गोयमुत्तिबेमि. २.पे. नाम. सीमंधरस्वामीजी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: मनडा सीमंधरजिणवर; अंति: तारो श्रीजिनराज रे, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५१५०. (+) पचक्खाण सूत्र व आगार संख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १७४५०). १.पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा सह अर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (१)नवकार१ पोरसी२ परिमड्, (२)दोचेव नमुक्कारे आगार; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-४. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. दशपच्चक्खाण सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उग्गए अब्भत्त; अंति: वत्तियागारेण वोसिरइ, (वि. मात्र तिविहार, चउविहार उपवास का पच्चक्खाण लिखा है.) ३५१५२. स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११.५, १८४३७). १.पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. २अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८, (पू.वि. श्लोक २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अन्नपूर्णा स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ अन्नपूर्णा स्तुति, सं., पद्य, आदि: भगवति भवरोगात्पीडितं; अंति: महतीं च कीर्तीः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. नवकारसी पच्चक्खाण, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उग्गए नमुक्कार; अंति: सहसागारेणं वोसिरामि. ४. पे. नाम. सांतीकरण स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. संतिकरंस्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: सांतिकरं सांतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ५.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. ___प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. वशीकरण व लक्ष्मी मंत्र.) ३५१५३. (+) कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२, १५४३६). ___ कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-). ३५१५४. (+) समवसरण स्तव सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२,९४३५). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलित्थं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २१ अपूर्ण तक है.) समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: थुणिमो केवलिवत्थ; अंति: (-)... ३५१५५. नवतत्त्व व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४११, १४४३३). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५८. २. पे. नाम. जीवभेदानुसार सिद्धिगमन गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-जीव भेदानुसार सिद्धिगमन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जीवो संवरनिज्जरमुक्ख; अंति: सव्वगदइ अरपवेसा, गाथा-३. ३५१५७. (-) पार्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७९, माघ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्राव. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४१२, १२४३०). पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जिणेंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ; अंति: नाथ सर्वसंताप नाशय, श्लोक-१५. ३५१५९. आदिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, ११४२७). आदिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐनमोर्हते विघ्नहर्त; अंति: जानंति स्वतो अन्यतः, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३५१६१. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १२४३४). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, श्लोक-९. ३५१६६. (+) नवतत्त्व, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२४११, १०४३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ३५१६७. संथारापोरसी सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२.५, १३४३१). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. ३५१७०. (+#) तित्थजत्ता विही, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, ८४४७). तीर्थयात्रा विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, आदि: सोयअहिणवसूरि तित्थजत; अंति: च संबद्धारिज्झत्ति. ३५१७२. आवश्यक सूत्र, संपूर्ण, वि. १९२०, आश्विन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२४४११, २०४६८). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: करेमि भंते सामाइय; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ३५१७३. स्तोत्र, छंद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७२, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, पठ. श्राव. हरखचंद मुत्ता, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२, १९४५२). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसंवरसं वरसं; अंति: शिवसुंदरसौख्यभरम्, श्लोक-७. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: नानाविचित्रं बहुदुख; अंति: बंधमध्ये इह जीवबंधम्, श्लोक-८. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेश्वरो; अंति: पास संखेसरोआप तूठा, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथस्वामीनो छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: समयसुंदर कहे कर जोडो, गाथा-७. ५. पे. नाम. रावण प्रति शूर्पणखा द्वारा सीता रूप वर्णन-रामचरित्र अंतर्गत, पृ. १आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरा सीता सीतारो रुप; अंति: संगे सुख विलससूजी, गाथा-८. ३५१७४. जिनप्रतिमा आलापक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. श्राव. रायण जैन पं., प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११.५, ५४२०-२६). आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: पायच्छित्तंउवदसिज्झा. आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते काल ते चोथा; अंति: वीर्षे एहवो पाठ छे. ३५१७५. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१२.५, ७४१७-२०). पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: मदमदन रहित नरहित; अंति: दूनद्रूनसत्रासत्रा, श्लोक-४. ३५१७६. आयुष्य विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, ६४२९). आयुष्य विचार, अप., पद्य, आदि: मणुअण वीसोत्तरसयं सय; अंति: अइर आऊ जिणे दिठ, गाथा-५. आयुष्य विचार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: मनुष्यनो १२० वरसनो; अंति: जिनेस्वरे कह्यो छे. For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५१७७. कुलक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५६, माघ कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. रिणिनगर,बिकानेर, प्रले. मुनीलाल गणेशदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. खरतरगच्छे पोसाल., दे., (२५४१२, ५४२६). १. पे. नाम. पुन्य कुलक सह टबार्थ, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.. पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: ते सासयं सुखं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इ० पांच इंद्री प्रवड; अंति: सास्वतउ सु० सुख पामइ. २. पे. नाम. विनय कुलक सह टबार्थ, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण, वि. १९५६, माघ कृष्ण, ३, शुक्रवार. विनय कुलक, प्रा., पद्य, आदि: विणउ जिणसासणे; अंति: तिसारं सलेहणा मरणं, गाथा-१३. विनय कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वि० विनउ जि० जिनसासण; अंति: संलेखणानो मरवउ. ३५१८२. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १७४१२-३३). १. पे. नाम. अरिहंत के १२ गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष प्राति; अंति: अपाय०अरिहतेभ्यो नमः, अंक-१२. २. पे. नाम. पांचकल्याणक टीप, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कातिवदि संभवजिनज्ञान; अंति: आसोज सुदी नमिनाथ चवन. ३५१८४. (+) पचीसकिरीया सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ४४२८). नवतत्त्व प्रकरण- २५ क्रिया गाथा, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: काईआए१ अहिगरणियाए२; अंति: इरियाबहीयाकिरिया२५, गाथा-५. २५ क्रिया गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: का० ते काया थकी लागै; अंति: अलगा थाय खय जाय २५. ३५१८५. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४.५४११, ३४३३-३९). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १९ तक लिखा है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउ क० नमस्कार करी; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३५१८८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, ७-१०४२६-३७). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि करुं; अंति: करइ ते सुखीओ होई, गाथा-१२. ३५१८९. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८३, फाल्गुन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. गोदा (गुरु मु. भगवानसागर); प्रले. मु. भगवानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १२४२५). __ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भगतामर प्रणति मोलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३५१९५. साधु साध्वी प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४१२, १९४३१). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छामि पड्डीकमिउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चौथे आवश्यक तक लिखा है.) ३५१९८. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४१०.५, १४-१६४३७-४०). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण... ____ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१८. ३५१९९. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२४१०.५, १५-१७४३६-४०). For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-). ३५२००. वृद्धावस्था वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२१.५४११.५, ९४२८). वृद्धावस्था वर्णन, सीवजी रामजी, रा., पद्य, वि. १९६१, आदि: बालपणो हँसखेलगमायो; अंति: सीवजी कीयो नुकशान रे, गाथा-२२. ३५२०१. अढार नात्रानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४१२.५, १०४३३). १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मागु., पद्य, आदि: पेहेलां ने समरुं पास; अंति: गुण गायरै मनरंगीला, ढाल-३. ३५२०३. साधु पाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२२४११, १३४२९). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. ३५२०९. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर अनियमित हैं., जैदे., (२१.५४१०). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंद नंदितः, श्लोक-६५. २. पे. नाम. जिनरक्षा स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनरक्षा स्तवन, सं., पद्य, आदि: सर्वातिशयसंपूर्णान्; अंति: प्रबुधस्तौ तथालिखेत्, श्लोक-१७. ३५२११. दुम्मपुफियानाम पढमंअज्झयण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, ६४१९). दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ३५२१२. (+) बावनजिनालय स्तुति, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. लखणेऊ, राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५,११४३२-३७). नंदीद्वीपस्थजिनालय स्तुति, सं., पद्य, आदि: दिशि श्रीपूर्वस्या; अंति: मदमानव सिंधुरात्, श्लोक-५४. ३५२१५. गति आगती सझाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२३४१०, ११-१४४३७-४३). ४ गति वेलि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: देवदया पर नमीय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५२ अपूर्ण तक है.) ३५२१६. स्तुति सह टबार्थ व पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, ९-१३४२३-२६). १.पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तुति सह बालावबोध, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: निर्वृतानंदहेतु, श्लोक-३. पंचपरमेष्ठि स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत भगवंत उत्पन्न; अंति: (-). २.पे. नाम. दश पच्चक्खाण, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: अप्पाणं वोसरामि. ३५२१७. (#) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ७ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, ७४२४). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ७, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं०० ॐ अंति: दासत्तं० पास जिणचंद, गाथा-०७. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ७ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सेवकनइ उपसर्गनो हरण; अंति: चंद्रमा समान छै. ३५२१८. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.मु. नित्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२, १३४३३). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मंत्राम्नायगर्भित, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐनमः पार्श्वप्रभु; अंति: जयसौभाग्य सुखकल्प रे, गाथा-७. २. पे. नाम. चतुर्विंशति स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८, (वि. साथ में यंत्र भी है.) ३५२१९. (4) सूरिमंत्रबृहत्कल्प विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ३१४४४-४८). सूरिमंत्रबृहत्कल्प विवरण, आ. जिनप्रभसूरि, सं., प+ग., आदि: अर्हद्वीजं नमस्कृत्य; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३५२२०. समवसरण स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७७०, श्रावण कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. स्थंभतीर्थ, प्रले. ग. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११.५, १-८४४०-४४). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थंकर समवसरणस्थ; अति: मोक्षपदस्थंकरोतु. ३५२२१. पद्मावति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४.५४१२, १२४३५-३८). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-३५. ३५२२२. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुलपे. २, जैदे., (२२.५४११,१२-१४४२३-२६). १.पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: आग्या मागै मातनी; अति: पाप सरीर जाय रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हो सोरठ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ३५२२३. (+) बोल संग्रह व आत्मनिंदा अष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२, ३३४५१-५७). १.पे. नाम. नवतत्व तेरै द्वार, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तत्र प्रथमं मूल; अंति: मनप्रवृत्ति इक वृत्त. २. पे. नाम. आत्मनिंदाष्टक, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि*, सं., पद्य, आदि: श्रुत्वा श्रद्धाय; अंति: कार्यं हहा कर्मभिः, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. दशाश्रुतस्कंधे जपमाला विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. जपमाला विचार, प्रा., पद्य, आदि: संखेण जइअजप्पइ सय; अंति: निप्फलं होइ गोयमा, गाथा-४. ३५२२४. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, ३१४५१-५४). १.पे. नाम. ३६३ मतानां भेद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ३६३ मतों के भेद, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वसमय परसमय ज्ञाने; अंति: संशोधनीय० विज्ञप्तिः. २.पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५२२५. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४४१२.५, १२४२२-२५). २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: जीनर्षभणिसंभव्यसार्थ; अंति: त्रैलोक्यलक्ष्मीसूरा, श्लोक-८, संपूर्ण. ३५२२६. पच्चक्खाणसूत्र के आगार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१२, १८४३३). प्रत्याख्यानसूत्र- २२ आगार शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अनथणा० अनथ कहिए; अंति: सव्वसमा० वोसरे. ३५२२७. सीयल नववाड सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३४११, १३४२६-३४). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ की गाथा ३ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३५२२८. विधिपचीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२२.५४१०, १०४२५). विधिपंचविंशतिका, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: यदुकुलांबरचंद्रक नेम; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १२ अपूर्ण तक है.) ३५२२९. दानशीलतपभावना चौढालीयो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)-४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३४११.५, ११४१८-२६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा १ अपूर्ण से ढाल ४ गाथा १२ तक है.) ३५२३०. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३४११, १३४२६-३३). १. पे. नाम. आदीश्वर वीनती, पृ. २०अ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देज्यो श्रीजिनराज, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिनविनती स्तवन, पृ. २०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुणि श्रीमंधर साहिबा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ३५२३१. पोसारी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जगत्तारण, प्रले. मु. कीर्तिहंसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १६४५१). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पोसा त्रिणप्रकार३; अंति: लिखीही छे ते जाणवो. ३५२३२. (4) गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. किसतूरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *अक्षर अनियमित है., मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२२.५४१०). १. पे. नाम. दादा गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि दादा गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, रा., पद्य, आदि: महिमा तो थारी हो; अंति: लक्ष्मी० ठामे ठामे, गाथा-५. २. पे. नाम. थूलभद्र गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वाट जोवंती निसिदिनै; अंति: लक्ष्मीव०करीय प्रणाम, गाथा-९. ३५२३३. वर्धमान विद्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४१२, ६x२९). वर्द्धमानविद्या मंत्र, प्रा., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं ॐ नम; अंति: अणिहए ॐ ह्रीं स्वाहा. ३५२३४.(-) आदिजिन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से २,५)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५४११.५, ११-१३४३१-४२).. आदिजिन रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५२३६. पूजादिविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४१२, १७४३८). १.पे. नाम. दिनकृत्य पूजाविधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)प्रथम इरियावही ४, (२)ॐ भूरसी भूतधात्री; अंति: आनंद करो लाभ हो. २. पे. नाम. हवन विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: भूमिशुद्धी अंगन्यास; अंति: १२ हजार करणो सिद्धि. ३. पे. नाम. संकल्प विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. पूजन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ अस्मिंस्तिर्यग्लोक; अंति: गच्छ गच्छ स्वाहा. ३५२४१. (+) वृहत्सांति, संपूर्ण, वि. १८६८, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. प्र.ले.वर्ष सं०६८ ऐसा लिखा है, प्रत देखने से अनुमानित १८६८ होना चाहिए., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१२, ११४२६-३२). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ३५२४२. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२,११४३०). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: त्रीण संदे कोट वखाणी; अंति: चतुदि प्रकल्पयेत्, गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५२४५. लघुशांति, गुरुवंदना व २४ जिनके नाम, संपूर्ण, वि. १७८८, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२२४१२.५, १०x१७). १.पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१९. २.पे. नाम. गुरु वंदना, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, वि. १७८८, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, प्रले.पं. मणिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रा., पद्य, आदि: इच्छकार भगवन् पसाउगर; अंति: अणुगाहो कायव्वो, गाथा-१. ३. पे. नाम. चोवीसजिन नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ१ अजितर संभव३; अंति: पार्श्व२३ महावीर २४. ३५२४६. (#) अष्ट प्रकारी पूजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२३४१०.५, १२४२५). ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ तक है.) ३५२४७. (#) सत्तरभेदी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२२.५४११, १०४२६). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ढाल-१७, गाथा-१०८, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १ की गाथा १ अपूर्ण से ढाल २ तक लिखा है.) ३५२४८. चैत्यवंदन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३.५४११.५, १४४३६). स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: सद्भक्त्या नतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. सुमतिजिन स्तुति अपूर्ण तक हैं.) ३५२५०. (+) नवकार, उवसग्गहर, दशवैकालिकसूत्र व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१०.५, १०४२८). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ३. पे. नाम. दशवकालीक सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ४. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्रदक्षिणा दूहा, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चऊवीसी जिन नमु; अंति: (-), (पू.वि. दोहा ३ अपूर्ण तक है.) ३५२५१. (+) स्वाध्याय, स्तुति व मंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, १०४२१). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५.. २. पे. नाम. २४ जिन मोक्षस्थान स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापदे श्रीआदिजिन; अंति: सयल संघने सुहकरु, गाथा-१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रमणनाथाय; अंति: पार्श्वनाथाय नमः. ३५२५३. ग्यानपंचमी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२२.५४१२.५, १०४३३). For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३६ अपूर्ण तक है.) ३५२५४. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२.५४१२.५, १२४२८). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथि, सं., पद्य, आदि: उद्योत्सारं शोभागारं; अंति: तारा भूत्यै स्तात, श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: ऋद्धि वैदोषाम्, श्लोक-४. ३५२५५. पर्वव्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२.५, १५४३५). १.पे. नाम. होलिका व्याख्यान, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: किंचिद्विशेषोदर्श्यत; अंति: व्याख्यानमाख्यानभृत्. २.पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. २आ, संपूर्ण. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३५२५७. कुमती रास, अपूर्ण, वि. १८८१, पौष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. हरिदुर्ग, जैदे., (२२४९, ८x२८). कुमतिनिरसन रास, श्राव. वधो साह, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः (-); अति: वधो० श्रीगुरु तूठोरे, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण से है.) ३५२५८. (+) भक्तामर स्तोत्र व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१२.५, १२४२७-३५). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९५६, आषाढ़ शुक्ल, १२, गुरुवार, प्रले. पं. सरूपचंद; पठ. मैतापचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अवगुण ओगन आणजे रे; अंति: जिम पामो भवपार रे, गाथा-५. ३५२५९. गाथाष्टक व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२, ९४२४). १.पे. नाम. गाथाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिअ; अंति: नायव्वो वीरियायारो, गाथा-८. २. पे. नाम. रोहिणीतपस्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. लाभरूची, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासुपूज; अंति: लाभरूची जयकार, गाथा-४. ३५२६१. दश प्रकारनी दीक्षा व संथारापोरसी सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१३, १३४२४). १.पे. नाम. दश प्रकारनी दीक्षा, पृ. १अ, संपूर्ण. १० दीक्षा प्रकार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: दसविहा पवजा पन्नत; अंति: परै दीक्षाल्यै. २.पे. नाम. संथारापोरिसी सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६तक लिखा है, बीच की एक गाथा नहीं लिखा है.) ३५२६२. पद व आरति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२२.५४११, १५४४२-४६). १.पे. नाम. बावीसअभक्ष बत्रीसअनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८८०, वैशाख शुक्ल, ७, बुधवार, ले.स्थल. शुद्धदंति, प्रले. पं. प्रेमविलास, प्र.ले.पु. सामान्य. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनसासन रेसूधी सद्द; अंति: प्राणि ते सविसुख लहे, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूप, पुहि., पद्य, आदि: नेन रे निहारो पीया; अंति: वा को नाम संभारी, गाथा-५. ३. पे. नाम. जिन गीत-सादडीपुरमंडण, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत-चिंतामणि सादडीपुरमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामण पास चिंत; अंति: सागर एम पभणे रंगेरे, गाथा-७. ४. पे. नाम. चोवीसजिन आरति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन आरती, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय श्रीजगतनाथ जग; अंति: हर्षचंद मंगल करनम्, गाथा-२५. ५. पे. नाम. बोध पद, पृ. २आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व सज्झाय, मु. देवीदास, पुहिं., पद्य, आदि: समकित नालही रे; अंति: देवीदास वार हम कीनौ, गाथा-५. ३५२६३. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२३४१०.५, ८४२७). १.पे. नाम. पंचमी थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुबदिनाथजिण जनम पंचम; अंति: जेह तेह. सुख करनी, गाथा-४. २.पे. नाम. इग्यारसि थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांसजिन; अंति: संघ नित तेह मंगल करो, गाथा-४. ३. पे. नाम. बीज की थूई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, आ. नंदसूरि, मागु., पद्य, आदि: अजुवालडी बीजनैं बार; अंति: बिज दिन होइ प्रसन, गाथा-४. ४. पे. नाम. शांतिनाथथूई-जावरापुरतीर्थमंडन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुन्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकर शांतिकर जावर; अंति: टालजे देवी अंबाईका, गाथा-४. ५. पे. नाम. चौवीसजिन थूई, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. विनय सूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभादिक चोविसजिनां; अंति: विनयसूरि विजयगछ साता, गाथा-४. ३५२६४. पर्युषणापर्वविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. करमचंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२, ९४२८). पर्युषणपर्व अठाई स्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंपास जिणंदा; अंति: शिष जपे हेमसोभागी हो, गाथा-४०. ३५२६५. (4) जिनकुशलसूरि अष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अंत में मंत्र दिया हुआ है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १६x४५). जिनकुशलसूरि अष्टक, सं., पद्य, आदि: पद्म कल्याण विद्या; अंति: स्याद्भोक्ता वक्ता च, श्लोक-९. ३५२६६. (+) स्थानांगसूत्रे सह बालावबोध-९ ठाणे ९ पदार्थ, संपूर्ण, वि. १९०७, आषाढ़, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वाराणसी, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२.५, १७४५८). स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक पदार्थ निरूपण, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जीवाजीव व्यतिरिक्तः; अंति: मुख्यानि तत्वानिसं. स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक पदार्थ निरूपण-बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदि: शिष्य शंका करते हैं; अंति: उपन्यास किया है. ३५२६८. वीपाकसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. बीकानेर, जैदे., (२४४१२, १४४४५-५०). सुखविपाक-द्वितीय श्रुतस्कंध विपाकसूत्रगत, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अति: वि सेसं जहा आयारस्स, अध्याय-१०. ३५२७०. साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. वृद्धिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२, १४४४१). For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामिखमा० इच्छाकार; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., इर्यासमिति तक लिखा है.) ३५२७३. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२.५, १६४३२). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिन नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८. ३. पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २ __ अपूर्ण तक है.) ३५२७४. पच्चक्खाणसूत्र, विधि व १४ नियम गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१२.५, १०४२४-२५). १.पे. नाम. दशपच्चक्खाण सूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. २. पे. नाम. पचखाणपारण विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पचखाण फासिओ पारियो; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. १४ नियम गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ३५२७५. स्तोत्र संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९२९, आषाढ़ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. कीसनगढ, प्रले. सीमरत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२,११४२६-२९). १.पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. २.पे. नाम. बृहतशांति, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रभु के सामने बोलने की स्तुति, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: जैन धर्मोस्तु मंगलम्, गाथा-१. ३५२७६. विचारषट्विंशिका सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. देवेंद्रसागर; पठ. श्राव. हेमराज कपूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, १५४३२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊं चउवीस जिणे तसु; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. ३५२७७. भावविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२२.५४१०, ९४४३). १.पे. नाम. मुखवस्त्रिका प्रतिलेखना विचार स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. २. पे. नाम. गुरुगुण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचिंदियसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: पंचिदिअसंवरणो तह; अंति: छत्तीसगुणो गुरु मज्झ, गाथा-२. ३. पे. नाम. भाव विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: औदयक चतुर्भगीइं; अंति: अनादि अपर्यवसान. ४. पे. नाम. गत्यागति लक्षण, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)गत्यागति लक्षण चिहु, (२)यथा पुर्व पद व्याहत; अंति: जीव कहीइ उपयोग. For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५२७८. शांतिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२३४११.५, ११४३६). शांतिस्नात्रविधि भाषा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहां चंद्रबल योगइ; अंति: जलइ करी सींचउ घालीयइ. ३५२७९. संथारानो पाठ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, १४४४१). संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहं भंते अपछिम मारणं; अंति: करुं तिवारै सुध. ३५२८१. दिक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२६४११.५, ११४४०). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा वासे चिइ वेसे; अंति: नोकार गुणवो सहि. ३५२८३. विषयतृष्णा निवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२). विषयतृष्णा निवारण सज्झाय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धिक्काम धिग्महामोह; अंति: सा पूजा परमेश्वरै, गाथा-२०. ३५२८४. जयपताका यंत्रकल्प विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४११.५, ११४४३). महापुराण-जयपताकायंत्र कल्प, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: पूर्वावायू यमश्चैव; अंति: कोष्टकेषु लिखतव्यानि, (वि. स्तोत्र, मंत्र विधियुक्त होने से परिमाण नहीं दिया है.) ३५२८५. मंत्र नाममाला व मंत्र मातृका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, ११४३६). १. पे. नाम. मंत्र नाममाला, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __सं., पद्य, आदि: कामं क्रोधं तथा लोभं; अंति: मातृका निर्मिता मया, श्लोक-२७. २.पे. नाम. मंत्र मातृका, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ प्रणवो ध्रुवब्रह्म; अंति: ल्व्यू पिंडबीम्, अंक-४३. ३५२८६. (+) पार्श्वनाथ व शांतिनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४३८). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: मुदा प्रसन्नः, गाथा-३२. २.पे. नाम. शांतिनाथ छंद, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: सुखसंपति पावें, गाथा-२१. ३५२८८. (+) काजल मेघा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है, परंतु कृति के परिमाण के आधार पर काल्पनिक पत्रांक-१० दिया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२.५४१२,११४२५). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १० गाथा ६ अपूर्ण से ढाल ११ गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३५२८९. नेमिजिन वर्णनस्वरूपा पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, ९४२३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३५२९१. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८०५, भाद्रपद कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पोरबंदर, पठ. पंन्या. ललितकुशलजी; श्राव. रतन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८६४) मंगलं लेखकानांश्च, जैदे., (२३४१२.५, १०४२९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धिबोहिकणिकाय, गाथा-५३. ३५२९२. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२४११, १४४३३). १.पे. नाम. जिन जन्ममहोत्सव पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुजी को जनम भयो; अंति: ज्ञानविमल गुन गाउरी, गाथा-४. २.पे. नाम. रिषभनाथ पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. गुणेससागर, मा.गु., पद्य, आदि: ये माहरी अरदास रिषभ; अंति: गुणेस०वंदै तेहना पाय, गाथा-९. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: मारो पिऊ ब्रह्मचारी, गाथा-७. ३५२९३. गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, १९४३५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवितु सुहत्ति, गाथा-२०. ३५२९४. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१.५४११.५, १२४२९). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३५२९९. (+#) पाखीपडिकमणानी विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३३). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पेहलवेलु वंदेतु कही; अंति: खाम इम कहेवू. ३५३०१. पचखाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, ११४३७). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए अब्भत्त; अंति: असित्थेणवा वोसरइ. ३५३०२. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५६, भाद्रपद शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. मु. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, २०४४२-४३). १.पे. नाम. पक्खिचोमासीसंवच्छरीपडिक्कमण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम वंदेतु तथा; अंति: वडीशांति कहीय. २. पे. नाम. सामायकनी बत्रीस सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुरि गौतमनु लीजै; अंति: मुनि मेरु धरीय जगीस, गाथा-९. ३.पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मन सुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. ३५३०३. (-) माहाशति चतुर्दशआगम स्वप्न, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १३४३४). त्रिशलादेवी १४ स्वप्न श्लोक, सं., पद्य, आदि: कुंडलनगरं तस्य; अंति: बहुलं लक्षजोजनम्, श्लोक-५४. ३५३०४. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. पं. सरूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, ११४४४-४९). पद्मावती स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: तस्य पद्मावती स्वयं, श्लोक-३४. ३५३०५. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १३४४२). पट्टावली, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जगन्नाथ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ___पाट तक लिखा है.) ३५३०६. (-) क्षमा कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३४११, ११४३०-३६). क्षमा कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पुव्वपुरिसाण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ३५३०७. सीखामण सज्झाय व साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. कमोजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १२-१३४३०-४१). १. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: समरीस जिन मन सारदमाय; अंति: सवे ते इणि परि भणेइ, गाथा-१०. २. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: (-). ३५३०८. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ व श्लोक, अपूर्ण, वि. १७८६, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. मयाकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, ९४२९). १.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लोक संग्रह-, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अति: (-). २.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. आवश्यकसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करई दीनि नीवी. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: चरिमेय अभिग्गहे विगई. ३५३०९. (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१०.५, १४४३४). वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ९ से १७ तक है.) वरदत्तगुणमंजरी कथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५३१०. (+) स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. उदैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १६४३६). १. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमुत्तमं, श्लोक-६३, ग्रं. १५०. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनानां नवग्रहगर्भित स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांति विधिर्मतां. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३५३११. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-२४(१ से २४)=२, कुल पे. ५, जैदे., (२२.५४१०, १४४३६). १. पे. नाम. अरणकमुनि सज्झाय, पृ. २५अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मागु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधो जी, गाथा-८. २. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. ढंढणमुनि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषिजीने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. इलापुत्र सज्झाय, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण. __ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ४. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चौमासै आय; अंति: दिन दिन सुख सवाया, गाथा-११. ५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २६आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, मु. जिनहर्ष, हिं., पद्य, आदि: काहे कायारूप देखी; अंति: या होती सनतकुमार की, गाथा-१. ३५३१२. अजितजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४२४). अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिणेसर साहिबोरे; अंति: राम अधिक तनु वान, गाथा-७. ३५३१३. साधो अतीचार, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रावण कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२२४१२, १५४४४). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: करि मिच्छामि दुक्कडं. ३५३१४. नवकार सवैया व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११, १५४४१). १. पे. नाम. नवकारमंत्र सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र लावणी, मु. विनोदिलाल, पुहि., पद्य, आदि: जग मै सजी वचनह पंच; अंति: मंत्र पान को आधारह, सवैया-७. For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुभाचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नाभि नरिंद के नंदन, अंति: सुभाचंद सब सुख पाय, पद- १. ३. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दूहा संग्रह *, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: दीन कु दीजीए होत दय; अंति: दीए अकार ज जाए. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझनै, अंतिः शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. २. पे नाम चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण ३५३१५. (+) स्तुति व चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७-५ (१ से ५) = २, कुल पे. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २३x१०, १२x२६). १. पे नाम, सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्विंशतिजिननमस्कार स्तवन, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्य वि. १२वी आदि (-); अंति: तानि वंदे निरंतरम्, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, प्रतिलेखक ने गाया क्रमांक नहीं लिखा हैं.) ३. पे. नाम. वीस पदनो चैतवंदन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु, पद्य, वि. १९वी आदि पहेले पद अरिहंत नमु; अंतिः नमता होए सुखखाण, गाथा ५. ४. पे. नाम. वीसस्थानक च्वैतवंदण, पृ. ७अ संपूर्ण. वीशस्थानक चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: चोवीस पन्नर; अंति: नमी निज कारज साधे, गाथा - ५. ५. पे. नाम. आठमनो च्यैतवंदन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु, पद्य वि. १९वी आदि माहा सुदि आठमनें दिन अंतिः सेव्याधी सिववास, गाथा-७. ३५३१६. नमीपवज्जा उत्तराध्यनरो नवमो अध्ययन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २४.५X११.५, २१-२५X४५-५१). उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ९ हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. पद्य, आदिः चणं देवलोगाओ उबवन, अंतिः "3 नमीरायरिसित्ति बेमि, गाथा - ६२. ,י ७९ ३५३१७. (+) प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३-१ (१) २. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२x९.५, ४x२६). प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १२ अपूर्ण तक है.) " ३५३१८. दानशीलतपभावना वेली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-४(१ से ४) ४. पू. वि. बीच के पत्र हैं. जैवे. (२२४९, ८४३०). दानशीलतपभावना वेली, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: (-). (पू.वि. बाल ३ ,गाथा ६ से ढाल ४,गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ३५३२०. चौवीसतीर्थकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२२४१०.५, १५४४२). २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः साधुविजय० गुण गाय, गाथा-२९. ३५३२१. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४८, आश्विन शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. खलचीपुरा, प्रले. मु. भागचंद्र; अन्य. मु. दयाचंदजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X११.५, १३x४२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३५३२२. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. द्विपाठ. जैवे. (२२.५x९, १४४४५). कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु. रा. गद्य, आदि: पुरिम चरिमाण कप्पो अंतिः (-). . ३५३२३. अनेकांतवाद सिद्धि राजवार्तिक टीकागत, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे. (२३.५४१२, २२-२४४६०). For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - तत्त्वार्थवार्तिक वृत्ति हिस्सा अनेकांतवादसिद्धि, आ. अकलंकदेव, सं., गद्य, ई. ७वी, आदि: व्याख्यातो जीवः स च अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३५३२५. भोजन विच्छित्ति, संपूर्ण वि. १८३० आषाढ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल बीकानेर, प्रले. मु. लद्धाजी (नागोरीलुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११.५, १६४५०-५२). " भोजन विच्छित्ति, मा.गु., गद्य, आदि: मांड्यो उतंग तोरण, अंतिः प्रमुख पहिराया. ३५३२६. मांडला, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५X११.५, १०x१९-२६). २४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: आघाडे आसन्ने उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे अहियासे. ३५३२८. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५x१२, १२X३४). १. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले पततां जनानाम् श्लोक-४. २. पे. नाम. विर स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति - कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद; अंतिः नमभिनय जिनेश्वरस्य श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति- रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल, अंति: जब ज्ञानकलानिधानम्, लोक-४. ३५३२९. नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. प्रेमकोर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X११.५, १५X३०). नवग्रह स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंतिः शांतिविधिश्रुतां, श्लोक-११. ३५३३१. जिन स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैये. (२५x१२, १४४४०). " महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरः सर्वसुरासुरेंद अंतिः वंदे श्रीज्ञातनंदनम्, श्लोक - १९. ३५३३४. गोचरी छन्नुदोष, संपूर्ण, वि. १९६३, वैशाख कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. वशराम आंबाभाई खत्री, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X११.५, १०X३०-३२). आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, आदिः आहाकम्मं १ उदेसिय २ अंतिः नीसाए निसिडिए पारसीय, गाथा १०. ३५३३७. पडिलेहणा कुलक संग्रह, संपूर्ण वि. १८८१, भाद्रपद शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे २, प्रले. पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४१२, ८x४५). १. पे. नाम. मुहपत्तिपडिलेहणा कुलक सह टवार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि सुतत्थतत्वदिट्टी, अंति: तगत्थं मुणि चिंति, गाथा-५. प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली पडिलेहणानुं; अंति: चिंतववा कह्या. , २. पे. नाम. पडिलेहणा कुलक सह टवार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि पडिलेहणाविसेस, अंति: सीसेण विनयविमलेण, गाथा - २८. . पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदिः प्रतिलेखन विशेष ते अंतिः विचार रच्यो है. ३५३३८. अजितशांति स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२४.५४१२, १४४४६). " अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत, अंति: जिणवयणे आयरं कुणह गाथा ४०. ३५३३९. आचारांगसूत्र- श्रुतस्कंध २ सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५X११.५, ७३१). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: (-); अंति: (-) (प्रतिपूर्ण, पू. वि. श्रुतस्कंध २, अध्ययन १ का उद्देश २.) आचारांगसूत्र- टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३५३४०. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-९(१ से ९)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३४१०, ६४३०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५३४१. भगवतीसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५१२-५११(१ से ५११)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२३४९, १६x४८-५४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: (-); अंति: (-). ३५३४२. बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १८४३६). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ३५३४३. (+) कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११.५, १६४३३-३८). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५३४४. (+) रत्नाकरपच्चीसी व समवसरणविस्तार गाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४९.५, ९४३१). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५, (पू.वि. श्लोक २२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. समोवसरण मान गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. समवसरणविस्तार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: रिसहो बारस जोयण; अंति: पासे वीरेण पंच चउ, गाथा-१. ३५३४५. चेलणाराणी नवढालीयो व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२३४१०, १७४३५). १. पे. नाम. चेलणाराणी चौढालीयो, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर जो नर अटकलो ते; अंति: वीतरागजीरा वचन परमाण, ढाल-९. २. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३५३४६. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. पं. विमलरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४९, १९४४६-५२). १. पे. नाम. धन्ना स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वैरागीयो हो; अंति: अम्हा मोह न कीजै बै, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. राजमती स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. राजीमतीसती सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: गोखि चढी राजुल इम; अंति: तसु बलिहारी रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. अचित भूमि का सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. अचित्त भूमिका सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुसहगुरुनो; अंति: सुगडांगवृत्तिथी लहइ, गाथा-५. ४. पे. नाम. पंचेंद्रीयोपरि सदृष्टांत स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: सुजाण लहो सुख सासता, गाथा-६. ३५३४८. (#) सत्ताउली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. पांचा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४९, १३४३८). For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७ सुखदुख सज्झाय, श्राव. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: पहलूं सुखजेन जइय; अंति: एसात दुख देहइ शरीर, गाथा-१२. ३५३४९. पौषध विधि व पच्चखाण फल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४९, १२४३५-४५). १.पे. नाम. पोसा ठाइवा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषध विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. पौषधपारणसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सागरचंदो कामो; अंति: वंदढव्वयंतो महावीरो. ३. पे. नाम. प्रत्याखान फल, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान फल, मा.गु., गद्य, आदि: नउकारसीइ वर्ष शत; अंति: दसमि कोडाकोडि फल थाइ. ३५३५०. लेख, तवन व पद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४१०, १०४२७). १.पे. नाम. नेमराजुल प्रेमपत्री, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. नेमिजिन लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरेवंगिर; अंति: रुपविजय तुह्म दास, गाथा-१६. २. पे. नाम. नेमिनाथ तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उमट आई साहिबाजी वादल; अंति: भावसुं वंदे वारोवार, गाथा-११. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. ___ मु. बुधर, मा.गु., पद्य, आदि: दीठी मुरत पारस की; अंति: बुधर० हो निवार जी, पद-४. ३५३५१. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. विजापूर, प्रले. मु. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१३, १५४३६). १.पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: असज्झाईना बि भेद एक; अंति: असज्झाईमाहि जाणिवी. २.पे. नाम. निगोद विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अनंतानां जीवानां; अंति: तहत्ति जिण भणियं, गाथा-१३. ३५३५३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२४.५४११, १३४४४). १.पे. नाम. नंदमणिआर संधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नंदमणियार संधि, ग. चारुचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १५८७, आदि: वीरजिणेसर चरण नमेवी; अंति: मास फागुण मणहरे, गाथा-३८. २. पे. नाम. अखकारी अध्ययन संधि, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. इक्षुकार चौपाई, ग. खेमराज, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पणमवि वद्धमाणजिण; अंति: ते उत्तम फल लहइं ए, गाथा-५८ ३५३५५. (+) शत्रुजयमंडण आदिनाथ विज्ञप्तिका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४५६). आदिजिनविनती स्तवन, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ पणमिय देव; अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा-२१. ३५३५६. प्रतिलेखनादि कालमान व वीसस्थानकनाम गाथा, संपूर्ण, वि. १६३१, आश्विन शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.ग. समयकलश (गुरु ग. चारुधर्म वा, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); गुपि.ग. चारुधर्म वा (गुरु ग. लाभ वा, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); राज्यकालगच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४१). १.पे. नाम. प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. साथ में यंत्र भी दिया हुआ है. For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ प्रा., पद्य, आदि: आसाढे मासे दुपया पोस; अंति: आसाढे निट्ठिया सव्वा, गाथा-५. २. पे. नाम. वीसस्थानक नाम गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. २० स्थानक विधि गिनने व देववंदन के लिये यंत्र दिया गया है. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध बीयो; अंति: नमः समएसु भत्तिं च, गाथा-३. ३५३५७. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १९-२१४५८-६४). साधुप्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. ३५३५८. शक्रस्तव सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, ९४३६-३९). शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमोत्थुणं अरिहताण; अति: संपत्ताणं नमो जिणाण, गाथा-१०. शक्रस्तव- बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अति वाक्यालंकारे नमः; अंति: माहरउ नमस्कार नीपजइ. ३५३६०. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १६९९, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. मु. लावण्यसागर (गुरु ग. नेमसागर); गुपि.ग. नेमसागर; पठ. श्रावि. पदमां मेलाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४०). १. पे. नाम. नेमनाथ बारमास, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन बारमास, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाणी सुणतां हुई आणंद, गाथा-७९, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम. थूलभद्र गीतं, पृ. ६अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वेगि करी वेहेलेरा; अंति: कीधी मन उल्लासई, गाथा-६. ३. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल राजराजेश; अंति: आदिजिनवर जयकरु, गाथा-१४. ३५३६१. (2) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४२, फाल्गुन शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३८). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधबीज ददातु, श्लोक-११. ३५३६२. श्रावकरी करणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष हरणी छे एह, गाथा-२२. ३५३६३. विविधतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, ११४४६-५०). विविधतपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: निमित्त द्रव्य मुकइ. ३५३६५. इष्टतिथ्यादि सारणी, अपूर्ण, वि. १७९४, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. जैदे., (२४.५४१०, १०४३७). इष्ट तिथ्यादि सारणी, मु. लक्ष्मीचंद्र, सं., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अति: शोधनीयाश्च धीधनैः. ३५३६८. सामुद्रिक शास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११, १३४४०-४३). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: उक्तं सामुद्रके; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ४९ तक है.) ३५३६९. पासा केवली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२४.५४११, ११४३२). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५३७१. कार्तिकशुक्लपंचमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. कुल ग्रं. १९८, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४४९). सौभाग्यपंचमी व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: मुक्तिं गतः. ३५३७२. होरी संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, जैदे., (२४.५४११.५, १८४३९). १.पे. नाम. नेमराजुल होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरी, मु. मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अब कैसे घर रहु एरी; अंति: मूलचंद हरखत हिया हो, गाथा-५. २. पे. नाम. होलीपर्व सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरी, मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सुध ग्यानीजी फागुणमे; अंति: मुक्तिवधु सोहत जोरी, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे भवजण खेले सुमत; अंति: आस फलै जीया तोरी रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक होरी, पृ. १अ, संपूर्ण.. पुहि., पद्य, आदि: नर बहुर न ऐसो दाव; अंति: भइया जीत लेउ अभिमान, गाथा-३. ५. पे. नाम. होरी पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ आध्यात्मिक होरीपद, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: होरी के खिलइया प्रभु; अंति: अनूपम भव निसतर रे, गाथा-८. ६.पे. नाम. औपदेशिक होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धानुप्रसाद, पुहि., पद्य, आदि: अरे मन खेल ग्यानरंग; अंति: सो ब्यान कोरी, गाथा-६. ७. पे. नाम. औपदेशिक होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अरमन खेल ग्यानरंग; अंति: जन्म सफल कर ले रे, गाथा-१०. ८. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: नेमजी से होरी मचाइ; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा ही है.) ३५३७३. (+) सनत्कुमार आलावोसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. हरदेव छगनजी त्रेवाडीया; पठ. श्रावि. झबूबा बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ४४३२). सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध, प्रा., गद्य, आदि: सणंकुमारेणं भंते; अंति: करिस्संति सेवं भंते. सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स० सनतकुमार भ० हे; अंति: प्रमाण स्वामीजी. ३५३७४. जयचंद्रसूरि प्रशस्तिपत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १५४५२). जयचंद्रसूरि प्रशस्तिपत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीआदिजिनं; अंति: जयचंद्रसूरीश्वरान्. ३५३७५. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४१. ३५३७६. चतुर्विंशतिजिन व वर्द्धमानजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७९४, कार्तिक शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. धिणलाग्राम, प्रले. ग. गंभीरहंस; पठ. श्राव. पेमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १८४४९). १.पे. नाम. शोभन स्तुतयः, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, __श्लोक-९६. २.पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३५३७७. महावीर स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ९४४९-५२). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं; अंति: पढयकयं अभयसूरिहिं, गाथा-२२. महावीरजिन स्तवन-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० समण तपस्वी भगवन्; अंति: मनोवंछित सुख उपजइ. ३५३७८. (+#) गणधरवाद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४१-४५). गणधरवाद, प्रा.,सं., प+ग., आदि: जाणमाणे पासमाणे; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३५३७९. (+) अक्षयतृतीया व्याख्यान व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७०, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४४३). १. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-५. ३५३८०. शास्वता चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११,११४४२). त्रिभुवन चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउं चैत्यवंदन; अंति: प्रमाण प्रतिमा वांदू. ३५३८१. नवतत्त्व व दंडक प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, ८४३७). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा ४५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा २ तक लिखा है.) ३५३८२. पासाकेवली सुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११, १४४३४-३७). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: (-). ३५३८३. (+) चतुशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, ११४३२-४०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, चतुःशरणप्रय गाथा-६४. ३५३८४. भावारिवारण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. सांकरसी; पठ. सा. सहजा (गुरु सा. गुणविजयाश्री); गुपि. सा. गुणविजयाश्री (गुरु सा. हर्षविजयाश्री), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ९४३६-३९). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०, ग्रं. ३५७. ३५३८५. (+) ३६ द्वारप्रतिबद्ध पंचनिग्रंथ विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, २५४६९-७४). भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: पनवणा १ वेय २ रागे ३; अंति: बहु ३६ नियंट्ठाणं. पंचनिग्रंथ विचार-३६ द्वारबद्ध, सं., को., आदि: पुलाको द्विविधो; अंति: मोह १सयोगी २अयोगी. ३५३८६. आर्यदेश नाम व हरियाली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १२४३८). १.पे. नाम. आर्यदेश नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साढीपचविसआर्यदेशनाम व अनार्यदेस संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: मुगधदेश राजगृह नगरी; अंति: २लाख ८ सहस्र ग्राम. २. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुडाडालि पीपल वासइ; अंति: कवि देपाल वखाणै, गाथा-११. ३५३८७. (#) पार्श्वनाथ स्तवन व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. स्वरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२-१४४४२). १.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजंबोधिबीज ददातु, श्लोक-११. २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५३८८. गणधर रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, १४४२८-३२). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: साखी जिम विस्तरोए, गाथा-६३. For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५३८९. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६०, माघ शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बाहडमेर, प्रले.पं. रत्ननिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १२-१३४४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३५३९०. जयतिहुयण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१०, १२४४०-४२). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण तक है.) ३५३९१. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, १६४३९). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विवधवर; अंति: ऋद्धि वंछित लहै, गाथा-१३. ३५३९२. जिननिर्वाणकल्याणक गीत व ऋषिमहासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १२४५२). १.पे. नाम. जिननिर्वाण कल्याणक गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन सज्झाय-निर्वाणकल्याणक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: तीरथनायक वंदिये; अंति: हरख धरी श्रीपासचंद, गाथा-२२. २.पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ३५३९३. लघुसंग्रहणी दसद्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. *अक्षर अनियमित है., जैदे., (२४४१३, १८४३२). लघुसंग्रहणी-यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. २००. ३५३९४. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय व अनागतचोवीसीजिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. नेतुजी शिष्या (गुरु सा. नेतुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १६४४०-४१). १. पे. नाम. अध्ययन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र नामाधिकार सज्झाय, मु. खेमराज कवि, मा.गु., पद्य, आदि: परिणमी पह पास पयाल; अंति: खेमराज कवियण भणए. २.पे. नाम. अनागतचौवीसीजिन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: पद्मनाभ१ सुरदेव२; अंति: अनंतवीर्य२३ भद्रकर२४. ३५३९६. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६४३६). १.पे. नाम. सिझाइ-साधुगुण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर सवि करूं; अंति: सेवकनइ द्यो परिमारथ, गाथा-१५. २. पे. नाम. वैराग्य सीज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि जीवडा; अंति: मानव भव तणा फल लीजइ, गाथा-४. ३५३९७. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२४४१०.५, ७४२२). १. पे. नाम. नवपदजी महाराज को स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो कहै; अंति: जपे हो बहु सुख पाया, गाथा-५. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलभडे मत खीजो हो; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७, (संपूर्ण, वि. अंतिम गाथा का कुछ अंश नहीं है.) ३५३९८. (+) पंचजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४०). For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ पंचजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जयति कनकावदातः कृष्ण; अंति: कुर्वंतु वो मंगल, श्लोक-२४. ३५३९९. दीपावली देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४११.५, १०४२७). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: (-). ३५४००. शत्रुजय रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४४१०.५, ११४३०-३१). शत्रुजयतीर्थरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसह जीणेसर पाय; अति: (-), (पू.वि. ढाल २ की गाथा १ तक है.) ३५४०१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. वीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १७४३७-३९). १. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीज ददातु, श्लोक-११. २. पे. नाम. चंद्रप्रभस्वामि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५. ३५४०२. ऋषभजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४१२,११४२८-३०). आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु सयल जिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ३५४०३. भरतबाहुबली सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४४११, १४४३८). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: इम नवि कीजि हो सगुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २१ अपूर्ण तक है.) ३५४०४. (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ९४३४). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता कंन भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिनवरेंद्रनई नमस्का; अंति: पवित्र निर्मलरत्न. ३५४०५. पडिलेहण कुलक व मुहपत्ति पडिलेहण गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, ५४३१). १.पे. नाम. पडिलेहण कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.. पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: पडिलेहणाविसेस; अंति: सीसेणं विजयविमलेणं, गाथा-२८. पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रतिलेखनाना विशेष; अंति: लेखणा विचार लख्यो. २. पे. नाम. मुहपत्ति पडिलेहण गाथा सह बालावबोध, पृ. ४आ, संपूर्ण. सूर्योदयपूर्वे १० पडिलेहण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मुहपत्ती रयहरणं दुन; अंति: दसप्पेहाणुग्गए सूरे, गाथा-१. सूर्योदयपूर्वे १० पडिलेहण गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए दस वाना सूर्योदय; अंति: पव्वकस्य गमागमो. ३५४०६. प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, दे., (२३४११, १२४२५). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ऊभा थई इरियावही पडिक; अंति: ध्याय मिश्र कही वइसै, संपूर्ण. ३५४०७. समकीत स्वरूप व समकीत नवभेद, संपूर्ण, वि. १७१८, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १७४४६). १. पे. नाम. समकितना सतसट्टि बोल सह बालावबोध, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. बीबीपुर. सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: चउसद्दहण तिलिंग दस; अंति: अविसुद्धंतु सम्मत्तं, गाथा-२. सम्यक्त्वना ६७ बोलभेद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सद्दहणा कहिई परम; अंति: ते वती पालई तो वारू. २. पे. नाम. नवभेद समकितना, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व के ९ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य समकित भाव; अंति: दीपक अभव्यनई कहीइं. For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५४०८. शक्र स्तव, संपूर्ण, वि. १७७३, माघ कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४४०). शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोअर्हते भगवते; अंति: महासुखाय स्यादिति. ३५४०९. राजप्रश्नीय सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२०-११९(१ से ११९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४४१०.५, ४४२८-३२). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५४१०. (+) बृहत्कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १५४४३). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देश १ सूत्र १२ से ३९ अपूर्ण तक है.) ३५४११. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-९(१ से ९)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१०.५, १०४२९). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३५४१३. अंतरिक्ष पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४४१०, १७४५६). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जयो देव जयजय करण, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा २५ अपूर्ण से है.) ३५४१४. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३१). १.पे. नाम. शांतिकर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संतिकरंस्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. २. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २ अपूर्ण तक है.) ३५४१५. षष्टिशतक प्रकरण व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १०-१५४४०-५५). १. पे. नाम. षष्टिशतक प्रकरण, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरहं देवो सुगुरो सुद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५४१६. खंधकमुनि सझाय, अपूर्ण, वि. १८६४, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. श्राव. रूपजी अमरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११,५४३३). खंधकमुनि सज्झाय, मु. जेसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: (-); अंति: जेसींघ० गाय के जोजो, गाथा-८, (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण से है.) ३५४१७. नंदीसूत्र, आदिजिन स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, ११४२७-४०). १. पे. नाम. नंदीसूत्र सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जयई जगजीवजोणीविआणओ; अंति: भई दम संघ सुरस्स, गाथा-१०. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: शुभ्रामरी भासिता, श्लोक-४. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३५४१८. पार्श्वजिन निसाणी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२४४९, १४४४१). For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७३ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने १ पद को २ पद गिना है.) ३५४१९. चेलणाराणी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-७(१ से ७)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२३.५४१०.५, १३४३३). चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंदजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ८ की प्रारंभिक गाथा से ढाल ११ का गाथा ३ तक है.) ३५४२०. नवतत्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. सा. भागा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १०४३०-३४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५०. ३५४२१. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४५). १.पे. नाम. आदिजिन वीनती स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जइ पढम जिणेसर अति; अंति: मन वइरागइ इम भणीय, गाथा-४२, (वि. इस प्रत में रचनाकार का नाम नहीं है.) २. पे. नाम. धनासालीभद्र सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धनो सालभद मुन; अंति: अहि निसतारी नामइ सीस, गाथा-१०. ३५४२५. वीरशासने प्रमुख घटना व काल, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. *अक्षर अनियमित है., जैदे., (२४४१०). वीरशासने प्रमुख घटना व काल, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: श्रीवीरात् २९१; अंति: कारिता हजायाम्. ३५४२७. (+) महावीरजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, १०४३३-३८). महावीरजिन स्तव, आ. सिद्धिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: कमला सोहगसुहनिहाण; अंति: सिद्धिसूरि० सुहकरू, गाथा-९. ३५४२८. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ११४३०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. ३५४३०. (+) नवतत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४१०.५,११४४१-४६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४२. ३५४३१. (+) पुण्य कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. भगवान (गुरु पं. रत्नजय); गुपि.पं. रत्नजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ६४३३). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पंचेंद्रीय पणानो; अंति: ते जीव सास्वता सुखनइ. ३५४३२. व्यवहारसूत्र का बीजक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १९४४०-५१). व्यवहारसूत्र-बीजक, सं., गद्य, आदि: उपक्रमव्यवहारयोनामा; अंति: तस्य विचारः सविस्तरः. ३५४३३. उत्तराध्ययन सूत्र-नमिपवजा अध्ययन-९, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, १३४३०). उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ९, हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइऊण देवलोगाओ उवयन्न; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४७ अपूर्ण तक है.) ३५४३४. गोचरी दोष व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ७-११४४५). १.पे. नाम. सइतालीसदोष आहार लेणके, पृ. १अ, संपूर्ण. आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मु १ देसिय २; अंति: वा रसहेउ दव्वसंजोगा, गाथा-६. २. पे. नाम. वैराग रेवती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. रेवतीश्राविका सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासण रेवती; अंति: सफल कीओ अवतार रे, गाथा-१०. ३५४३५. वीरथुइनाम अध्ययन व प्रास्ताविकगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ९४३१). १. पे. नाम. वीरथुइनाम अध्ययन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्सति तिबेमि, गाथा-२९. २.पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: संति तहावरेत्तिबेमि, गाथा-६. ३५४३६. दशवकालिक सूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, १२४४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन २ की गाथा १५ तक है.) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जगमाहि धर्मरूपियउं; अंति: (-). ३५४३७. गोम्मटसार-कर्मकांड, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४२८-३०). गोम्मटसार-कर्मकांड, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय सिरिसा णेमि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १८ तक लिखा है.) ३५४३८. कार्तिकश्रेष्ठि कथासह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७२-१७०(१ से १७०)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, ७४४५). कार्तिकश्रेष्ठि कथा, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). कार्तिकश्रेष्ठि कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५४३९. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४४). कल्पसूत्र-बालावबोध *, मागु.,रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (वि. शुरुआत में सौराष्टि गच्छि पट्टावली दी गयी है.) ३५४४०. गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १०४५८). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अति: सेवित्तु सुहं लहति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभिया नर मनुष्य; अंति: सुखसर्व मोक्षांत लहइ. ३५४४१. जैनरक्षा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १२४३७-४०). जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: संपदश्च पदे पदे, श्लोक-१८. ३५४४२. स्तवन व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०, ८x२८). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. यशोवर्द्धन, रा., पद्य, आदि: हु बलिहारि थाहरी; अंति: मोनइ दरसण दिराज्यो, गाथा-५. २.पे. नाम. थुलभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रियडा मानो बोल; अंति: कहै प्रणमु पाया रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णगर्भित, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ तक है.) ३५४४३. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११, ८४३५). १.पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: मुनिवर सूरि रसाल, गाथा-७.. २.पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि चारित्र लीयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३५४४४. अंतरिक्ष पार्श्वजिन छंद स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १६x४९). For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: (-), (पू. वि. गाथा २७ अपूर्ण तक है.) ३५४४५. (+) ऋषिदत्तासती कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, दत्त. सुखमल्ल गिरधर साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें कुल ३५०, जैवे. (२५.५४१०.५, २५४५३-५७) ऋषिदत्तासती कथा, सं., पद्य, आदि: ( १ ) इति परिहृतानां अपि, (२) अत्रैव मध्यदेशास्ति; अंति: स्थितिमाप युक्तं, श्लोक-२५०. ३५४४६. श्लोक संग्रह व हमचडी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १, कुल पे. ३, जैदे., (२५X११, १७X३३). १. पे नाम, नेमिजिन श्लोक, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नेमीस्वर जयजय जीकार, गाथा - १९, ( पू. वि. गाथा १५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिश्वर श्लोक, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. आदिजिन श्लोक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीआदिश्वरनर, अंति: शुभ श्रेय पांमइ, गाथा - ११. ३. पे नाम, आदिजिन हमची, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन हमचडी, मा.गु, पद्य, आदि: सरसतिन चरणे नमी रे, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ९ तक है.) ३५४४७. गौतमऋषि कुलक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १६७६, फाल्गुन शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पु. २, जैवे. (२५.५X१०.५, ७X४३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि लोभी मनुष्य अर्थ कहत, अंति: करी जीव सदा सुख पामइ. ३५४४८. गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५- ४(१ से ४) = १, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, ८X३१). १. पे. नाम. मलिजिन गीत, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मल्लिजिन स्तवन, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: आनंदधन० मगन की री, गाथा-५, (पू. वि. अंतिम गाथा ५वी अपूर्णमात्र है.) २. पे नाम, माहावीरजिन गीत, पृ. ५अ संपूर्ण. ९१ महावीरजिन स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मन मान्यो वीरजी; अंति: आणंदमूनि गुणगाय, गाथा-५. ३५४४९. चेलणाराणी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-४ (१ से ४) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं. दे., (२५x१०.५, १३५३४). चेलणासती चौडालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८३३, आदि: (-); अंति: (-). 13 ३५४५०. (+) पण्णवणा पद २३ उद्देशा सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है, प्रत को अपूर्ण दर्शाने के लिए पत्रांक २ काल्पनिक दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११, ३X३६). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३५४५२. (+) पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैवे (२५x१०.५, ११४२६) " पट्टावली, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी, अंति: (-), (पू.वि. पाट परंपरा २८ समुद्रसूरि तक है.) ३५४५४. (+) ऋषभपंचाशिका सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न - संशोधित, जैदे., (२५.५X१०.५, ९३४). ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि जयजंतुकप्पपायव चंदाय अंतिः बोहित्व बोहिफलो, " , गाथा - ५०. ऋषभपंचाशिका - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सुरैः प्रणतपादस्य; अंति: दर्शयति धनपाल इति ३५४५७. (+) जयंती आलावो - भगवतीसूत्रगत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X१०.५, ११४३३-४०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. शतक १२, उद्देश २ . ) For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५४५८. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ- अध्याय-११, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४३२-३६). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ३५४५९. तपयंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. “पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२६४११). तपयंत्र विधि संग्रह, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३५४६०. चउसरण प्रकर्ण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ग. सुमतिचंद्र (गुरु ग. क्षमाचंद्र, अचलगच्छ); गुपि.ग. क्षमाचंद्र (अचलगच्छ); पठ. मु. गोपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३५४६१. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. सा. पेमा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १७४३६). १.पे. नाम. जीणमारग सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. साधुवंदना, रा., पद्य, आदि: जिणमार्ग में धूरसुं; अंति: कर्म खपाय मुगते गईजी, ढाल-२, गाथा-३८. २. पे. नाम. कवलाती सजाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं., पद्य, आदि: महला मे बेठीजी राणी; अंति: मिछामि दुक्कडं मो, गाथा-२८. ३५४६२. (+) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८२४, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ९-५(१ से ५)=४, कुल पे. ३, ले.स्थल. दीव बिंदर, प्रले. मु. सुजाण (गुरु मु. नरसिंघ ऋषि); गुपि. मु. नरसिंघऋषि (गुरु मु. रूपचंद ऋषि); मु. रूपचंद ऋषि (गुरु मु. दलाजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक गुरुपितृपरंपरा पत्रांक ७आ पर है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३६-३९). १.पे. नाम. लघुशांति सह टबार्थ, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ शांति; अंति: शांतिपदनै पुहचैपामइ. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जेहना शासननां उपद्रव; अंति: बीजो स्मरण थयो छै. ३. पे. नाम. १७० जिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण जगत्रनी प्रभूत; अंति: सदार्चित पूजित थसो. ३५४६५. भरहेसरबाहुबली सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १२४४१). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पढहो तिहुअणे सयले, गाथा-१३. ३५४६६. प्रतिमाधिकार व बल मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पू.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक नही दिया हुआ है., दे., (२५४११, ११४३२). १. पे. नाम. प्रतिमाधिकार-शिल्पसिद्धिग्रंथगत, पृ. १अ, संपूर्ण. शिल्पसिद्धि ग्रंथ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. बल मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५४६७. स्तुति व कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १५४५६). १.पे. नाम. आशीर्वचन, पृ. १अ+१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: भाले भाग्यकला मुखे; अंति: शत्रुगण नृप हंतु सदा, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि कवित्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: बार बार वडीरौ दादैजी; अंति: गुण उणवेला गाईयै, गाथा-३. ३. पे. नाम. मोन एकादसी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. ३५४६९. (+) वीसस्थानकतप विधिआदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १२४४५). १. पे. नाम. वीसस्थानकतप विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: त्रिकाल देवपूजा नमो; अंति: तित्थस्स २००० गुणीइ. २. पे. नाम. विविध आगम आलापक, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आगमे तिविहे पण्णते; अंति: पच्छी पंपरागम बोलउ. ३. पे. नाम. वीसस्थानकतप गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धर पवयण३; अंति: तित्थयरत्तं लहइ जीवो, गाथा-२. ४. पे. नाम. ब्रह्म दंडक, पृ. १आ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहण्हं भंते तुम्हाणं; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ५. पे. नाम. परिग्रहप्रमाण दंडक, पृ. १आ, संपूर्ण. परिग्रहव्रतउच्चारण विधि, प्रा., गद्य, आदि: अहण्णं भंते तुम्हाणं; अंति: अप्पाणं वोसरामि. ६. पे. नाम. विसस्थानकतपो दंडक, पृ. १आ, संपूर्ण.. २० स्थानकतपोच्चारण विधि, प्रा., गद्य, आदि: अहण्ह भंते तुम्हाणं; अंति: अप्पाणं वोसरामि. ७.पे. नाम. सर्वतपोच्चारण दंडक, पृ. १आ, संपूर्ण. सर्वतपोच्चारण आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहण्हं भंते तुम्हाण; अंति: तव्वचरण पडिवत्ती. ८. पे. नाम. वासक्षेपनिक्षेप गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सावयकुलमजमो पुण्णेहि; अंति: निर्देशेन वाच्या, गाथा-२. ३५४७१. पाक्षिकसूत्र व पाक्षिक खामणा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. दलपतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १५४५४). १. पे. नाम. पाक्षक सूत्र, पृ. ७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षक क्षामणकानी, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जंभे; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ३५४७२. गौतम कुलक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०,१०४३३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ३५४७३. (#) योगसार-प्रस्ताव १ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४५-५४). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २.पे. नाम. योगसार-प्रथम प्रस्ताव, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. योगसार, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३५४७४. विधि संग्रह व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १०-११४३०-३६). १.पे. नाम. ज्ञानपंचम्यादितपउच्चरावण विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: लोगस्सनो काउसग्ग करे. २. पे. नाम. देववंदनमाला विधि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सपूण. For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९४ www.kobatirth.org प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही अंति: जयवीयराय० कहणो. ३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की भंडारगाथा *, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः ॐ तुह दंसणेण सामिय; अंतिः सव्वेवि दासत्ता, गाथा - ३. ३५४७५. मीनएकादशीपौषध विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे. (२५४११.५, १९३५). मी एकादशी पौषध विधि, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि: प्रथम १०मी के दिन अंतिः मि उपमहं न कहै. ३५४७७. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २६११.५, १४४२). १. पे. नाम. वज्रपंजरनाम स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. बज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि अंतिः राधिश्वापि कदाचन, श्लोक ८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे नाम, शनैश्वर स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा, अंतिः तस्य भवेन्नैव कदाचन, श्लोक १०. ३. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगतुरुं नमस्कृत्य अंति: ग्रहशांतिरुदीरिता, लोक-११. ३५४८०. आदिजिन स्तवन- आबुगढ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४X११, १५X३२). 1 आतीर्थ स्तवन, पंन्या. रविविजय, मा.गु. पद्य वि. १७६९, आदि उचो गढ आबू तणो नीची, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ की गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ३५४८३. दशवीकालिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-४ (१ से ४) ४, पू. वि. बीच के पत्र हैं. जैवे. (२६.५४११.५, १३x४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन ४ तेउकाय के आलापक से अध्ययन ५, गाथा ६७ अपूर्ण तक है.) ३५४८४. सूयगडांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. मू+बाला. अध्याय- १, गाथा - २८ तक ही है., पंचपाठ., जैदे., ( २६११, ६x२५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि बुज्झिन तिउज, अंति: (-). सूत्रकृतांगसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य सद्गुरुन्, अंति: (-). " ३५४८५. सुभाषित श्लोक संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९९वी, मध्यम, पृ. ४-१ (१) = ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पत्रां नहीं है., त्रिपाठ., जैदे., (२५X११, ७X३७). सुभाषित श्लोक संग्रह " पुहि., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-) (वि. श्लोक क्रमांक अलग-अलग क्रम में 5 . दिया गया हैं.) सुभाषित लोक संग्रह बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). - ३५४८६. पार्श्वजिन स्तोत्र व आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे. (२६४१०.५, ९३०-३५). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र सह अवचूरी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. पद्य वि. १४वी आदि दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा " ३५४८९. विविधविचार संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै. (२५.५x११, १८४५६). 2 "" न पीडंति, गाथा - १०. पार्श्वजिन स्तोत्र - नवग्रहगर्भित - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: दोषा दूषणानि तेषाम; अंति: गुंफितं कृतमित्यर्थः. २. पे. नाम वस्त्रैषणा सह अवचूरी आचारांगसूत्रगत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. पण, आदि (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. आचारांगसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्रुतस्कंध २, चूला १, अध्ययन ५ व उद्देश १ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ विविधविचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५४९१. अध्यात्मकल्पद्रुम सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४४५). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीरांतरारीणा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक ७ अपूर्ण तक है.) अध्यात्मकल्पद्रुम-अधिरोहिणी वृत्ति, उपा. धनविजय, सं., गद्य, आदि: ॐ नमः परमाप्ताय; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., श्लोक ७ अपूर्ण तक है.) ३५४९२. (+) सीलविषये विजयसेठ विजयासेठानी सझाय, अपूर्ण, वि. १७१६, श्रावण कृष्ण, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १३४४९).. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रे रे; अंति: कुसल नित आणंद करै, ढाल-३, गाथा-२३, संपूर्ण. ३५४९३. संख्यातादिभेद विचार, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ५-१(१)=४, जैदे., (२५४१०.५, १३४४९). संख्यातादिभेद विचार, मु. पार्श्वचंद्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शोधनीयमिति विज्ञप्ति. ३५४९४. सर्वजिन स्तोत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, १४४३९). चतुर्विंशतिजिन स्तुति-यमकमय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि तत्त्वानि; अंति: लोक्य लक्ष्मीश्वरा, श्लोक-२८, संपूर्ण. २४जिन स्तुति-यमकमय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: विस्तार्य विनीतेषु; अंति: अंतराय स श्री० पद्मा, संपूर्ण. ३५४९५. सुमित्र व मित्रानंद कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १८४६०). १. पे. नाम. देशावकाशिके सुमित्र कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. सुमित्रमंत्री कथा- देशावकाशिकव्रतविषये, सं., प+ग., आदि: प्रभावादस्य नश्यति; अंति: मोक्षः प्राप्तः. २. पे. नाम. पौषधे मित्रानंद कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मित्रानंद कथा- पौषधव्रते, सं., प+ग., आदि: भवोरुगमदच्छेदे; अंति: जातो मित्रानंदः.. ३५४९६. अतिचार व पद्मप्रभ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रावण कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. उदैपुर, प्रले. मु. अमीविजय (गुरु ग. गंगविजय गणि); गुपि.ग. गंगविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०, १२४३८). १.पे. नाम. अतिचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का साधु पाक्षिक अतिचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २.पे. नाम. पद्मप्रभ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: दीयो भव भव सेवरे, गाथा-९. ३५४९७. (+) गोतम कुलो सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. मु. कल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ४४४०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहंतु, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लु० लोभी न० मनुष्य; अंति: धरम करी मोखि परापत. ३५४९८. (+) बितालीस भाषा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ४४२७). ४२ भाषाभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जणवय सम्मय ठवणा नामे; अंति: वायड अव्वोयडा चेव, गाथा-५. ४२ भाषाभेद गाथा-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जणवय कहीइ जे जे देस; अंति: ते अवितथ भाषा कहीइ. ३५४९९. उत्तराध्ययन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१०.५, १४४३५-३८). For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति अति निरमली अंति: (-), (पू. वि. गीत ४ गाथा १ अपूर्ण तक है.) ३५५०२. तीर्थंकर कल्याणक १५० मुनि अग्यारसरो गुणणो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. सुधदंति, जैदे., (२६११, १२X३०). मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंतिः श्रीआरणनाथाय नमः ३५५०३. अजितशांति खरतरगच्छीय स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है... दे. (२४.५x११.५, ८x२९). '. अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण १७ अपूर्ण तक है.) " ३५५०४. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २- १ (१)-१, कुल पे. ३, जै., (२५x११.५, १५X३६). १. पे. नाम. अध्यात्म सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. सुमतिकुमति सज्झाय, मु. लालविनोद, पुहिं, पद्य, आदि: (-); अंति लाल० सुमत करो पटरानी, गाथा-१२, ( पू. वि. गाथा ११ से है.) २. पे नाम, राजिमतीरथनेमि सज्झाय, पृ. २अ. संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: संजम लेईनें परिवरी; अंति: हनी हो चिंता सब जाय, गाथा- ९. ३. पे नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण मु. ,जिनदास, पुहिं., पद्य, आदिः आठही कर्म बलवंत जोधा, अंति: वीर जिनदास गाए, गाथा- १०. ३५५०५ (+) शक्रस्तव सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२६४१०.५, " १४४४७). शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमोत्थुणं अरहंताणं, अंतिः नमो जिणाणं जियभवाणं, शक्रस्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमो नमस्कारोस्तु भवत; अंतिः शक्रस्तव उच्यते. ३५५०८. श्राद्धदिनकरवा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५X११, ७X३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ, अति: निच्वं सुगुरुवएसेणं, गाथा ५. ३५५११. चंद्रलेखा रास, अपूर्ण, वि. १८५२, चैत्र शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पू. २७-२६ (१ से २६) - १, ले. स्थल. गांठीयग्राम, प्रले. पं. मानहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पठनार्थे का नाम अवाच्य है. जैदे. (२५.५x१०.५, १६५३६). "" चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: मेडता० अधिक वांना रे, (पू.वि. अंतिम ढाकी गाथा ३ अपूर्ण मात्र है.) ३५५१२. कल्पसूत्र वाचना १-२ का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४-२२ (१ से २२ ) = २, जैदे., (२४.५X१०, ८X३५). २०x४९). १. पे. नाम. मंगलाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, द्वितीय वाचना अपूर्ण है.) ३५५१४. (+) अष्टक व लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ४. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२५.५x११. मु. ब्रह्म, सं., पद्य, आदि: तीर्थेशाचतुरादि अंतिः कृतमिदं वरमंगलाय, श्लोक ९. २. पे नाम, जिनेश्वर मंगलाष्टक, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण मंगलाष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नम्रसुरासुर, अंतिः कुर्वंतु मे मंगलं, श्लोक - ९. ३. पे नाम. जिन भुवनाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. दृष्टाष्टक स्तोत्र, मु. सकलचंद्र, सं., पद्य, आदि: दृष्टं जिनेंद्रभवनं; अंति: चंद्रमुनींद्रवंद्यम्, श्लोक-१०. For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: धूपोदहनिपापानि दीपो; अंति: दत्त प्रदक्षिणा, श्लोक-१. ३५५१७. अजितशांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८३, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ४, पठ. श्राव. वखत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १०४३२-३८). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ३५५२०. जय तिहुअण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ८-९४३४-३६). __ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २८ अपूर्ण तक है.) ३५५२१. द्वादश व्रत टीप, संपूर्ण, वि. १९३१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४११.५, १७X४५). १२ व्रत टीप, पुहि., गद्य, आदि: भव्य जीव अपना मनुष्य; अंति: परवस पणां की जयणा. ३५५२२. मेरुपर्वत से ज्योतिष्कमंडल अंतर विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १९४५४). ___ मेरुपर्वत से ज्योतिष्कमंडल अंतर विचार, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३५५२३. आलोयणाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १५४३७). १. पे. नाम. श्रावक आलोचना विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ श्रावकस्य सम्यक्त; अंति: ज० उप०२ उ० उप०१०. २. पे. नाम. साधु आलोयणा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान अतीचार ज० उप०२; अंति: उ०२० प्रायश्चित लेवा. ३५५२४. बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११, १५४५८). प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गुरुश्चशुक्रोदयेभव्य; अंति: सर्वकार्यसिद्धिः. ३५५२५. सूयगडांग सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५-५२(१ से ५२)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, ११४३८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३५५२६. पाक्षिक सूत्र व खामणा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. २, प्र.वि. कुल ग्रं. ७००, जैदे., (२५४११, १५४४५). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, (पू.वि. मात्र अंतिम भाग है.) २. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ३५५२७. नवपद स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२५४१२, ११४३७). १.पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. पूनिमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: नवपद भज जीव सिवसुख; अंति: पूनिम० भजौ शुचि थाई, गाथा-९. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. पूनिमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९२, आदि: सुभ ध्यान धरकै भजौ; अंति: पूरणचंद० कारज थावरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. पूनिमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: नवपद महिमा जगमै वारू; अंति: पूरणचंद० सिवसुख कारण, गाथा-६. ४. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. २आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. पूनिमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९५, आदि: नवपद शुद्ध निरंजन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) ३५५२८. पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५.५४११.५, १०४३५). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पासजिनेसर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ की गाथा ५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५५२९. अकर्म चेतालांरी वीनती, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१२, १५४३८). साधारणजिन स्तवन-अकर्मचेतालां की वीनती, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतदेव परसाद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २९ अपूर्ण तक है.) ३५५३०. शत्रुजयतीर्थयात्रा दृष्टांत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-२८(१ से २८)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३६). शत्रुजयतीर्थयात्रा दृष्टांत, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २७८ से ३०० तक है.) ३५५३४. सिद्ध दंडिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३३). सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: पद्मविजय जिनराया रे, ढाल-५, गाथा-३८. ३५५३५. नेमजी (राजुल-रहनेमी) सझाय, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, १८४३५). नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: समदर बजजीरा नंद परभु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३४ तक है.) ३५५३६. नेमिजिन बारमासो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, १६x४५). नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से गाथा-५२ अपूर्णतक है.) ३५५३८. संथारापोरसी सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८६८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्रले.पं. ओरजन; पठ. जसरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ५४२८-३०). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: एसमत्तमे गहीइं, गाथा-१४, (पूर्ण, पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: समकित में ग्रह्यो, पूर्ण. ३५५३९. भोलेना अर्थ-वर्णमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, दे., (२४.५४१२.५, १३४३९). भले विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नंद परमानंद पामस्यै. ३५५४०. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. नेमीश्वर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३५५४१. कथा संग्रह-पूजादिविषये, संपूर्ण, वि. १६५५, भाद्रपद कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, प्रले. नेमी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४९-५२). कथा संग्रह-पूजादिविषये, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३५५४२. प्रत्याख्यानसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १६४५३). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पोरिसि साढपोरसिय; अंति: ससत्थेणवा असत्थेणवा. ३५५४३. ६४ स्थान बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, २४४५८). ६४ स्थान बोल संग्रह, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). ३५५४४. स्तुति, स्तवन, स्तोत्र व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, जैदे., (२६४११, ११४३५-४१). १. पे. नाम. पुंडरीक स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि: सिद्धं श्रीपुंडरीका; अंति: विद्याश्च मे श्रुता, श्लोक-४. २. पे. नाम. पुंडरीक स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि: पुंडरीकगिरि राजशेखर; अंति: मे श्रुतसुरी शिवकरी, श्लोक-४. ३. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमादिने चैत्यवंदना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ पुंडरीकस्वामी स्तवन, मा.गु, पद्य, आदि जय जयठ सिरिगणहर अंतिः शिवसुख सिद्धि साथ, गाथा ६. ४. पे नाम, चैत्री पूर्णिमादिने देववंदनक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण यात्रापुण्य स्तोत्र, अप., पद्य, आदि: जे पुण्य नंदीसरजत्त; अंति: विलसइ ऋद्धिवृद्धि, गाथा-५. ५. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमादिने देववंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन, मा.गु., पद्य, आदि: एकेकइ पगि पनि सिद्धि; अंति: पय पणमंता हुई कयत्थ, गाथा-५. ६. पे. नाम, पूर्णिमा देवबंदन, पृ. २आ, संपूर्ण चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन, अप., पद्य, आदि: चउदस इगपमुह असंखसेढि, अंति: पुणमुंभविईधम्ममुत्ति, गाथा-५. ७. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: पंचासय जोअणयट्ठमूल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ अपूर्ण तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या-३ के बाद की गाथाओं में संख्या नहीं लिखी है.) ३५५४६. सुभाषित संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२५x१०, १०x२८-३०). औपदेशिक सुभाषित संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: जीव सवेति आत्मा धम्म; अंति: वाटडी मन हुतो लगि, गाथा-५५. ३५५४७. (#) महादंडक स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६११, २३४३८). महादंडक स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवम्मि भमिओ, अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १६ अपूर्ण तक लिखा है.) महादंडक स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भीमे भवेजिनेंद्रा जय; अंति: (-), पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३५५४८. रजपर्व कथानक, संपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै. (२६४१९, १८४५०-५५). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होलिकापर्व कथा सं., पद्य, आदि वर्द्धमानं जिनं, अंतिः विज्ञानां वाचनोदितः, श्लोक ५१. गाथा - १. २. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ. संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कमलदललोचनं विमलकुलरो; अंति: गुणं शासनस्वामिनम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जिनशासनभासन श्रीगौतम, अंति: जय दीपालीध्येयाभिधान, श्लोक - १. ४. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. क. कमलविजय, सं., पद्य, आदि: विजय परमागम देवता; अंति: विजयसेनगुरोः कमलोदयः, श्लोक - १. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ३५५४९. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२६X११, १२x११-३१). १. पे. नाम. दीपालीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. दीपावली पर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि जयजय कर मंगलदीपक, अंति: कमला भालतिलक वर हीर, सं., पद्य, आदि: शुभवता भवता नवतारिणा; अंति: विदधता दधता कमलोदयम्, श्लोक - १. ३५५५०. प्रकीर्णक टीप संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X११, १९४० - ५१). प्रकीर्णक टीप संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). "" " ९९ For Private and Personal Use Only ३५५५१. स्तवन व सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६X१२, १५X३७). १. पे. नाम, पार्श्वनाथस्य स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण पाजिन स्तवन, मु. धर्मषी, मा.गु., पद्य, आदि: कासीदेश वाणारसी गंगा अंतिः फलज्यो वंछित आसरे, गाथा-१०. २. पे नाम, मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुण निलो; अंति: (-), (पू. वि. ढाल ३ अपूर्ण तक है.) ३५५५२. लोक नालिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५X१२, ४x२९). Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनदर्शन विना जे लोक, अंति: (-). ३५५५३. षडावश्यक सूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ९४३८). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). आवश्यकसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ३५५५५. शालीभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, १०४३८). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ३५५५६. श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, १३४४५). आध्यात्मिक श्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हंसा केरि बिसणि बगला; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण तक ३५५५८. पार्श्वजिन स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १९४३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोतम हो पाया; अंति: मत वीसालसु खाया करो, गाथा-१३. २. पे. नाम. दया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: दसमोग दखीया तणी; अंति: रायचंदजी भणउलासवो, गाथा-१३. ३५५५९. प्रज्ञापनासूत्र-चयनितगाथा सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२४४१०, ९४२२-२७). प्रज्ञापनासूत्र-चयनितगाथा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वीरनाह पन्नवण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३२ तक है.) प्रज्ञापनासूत्र-चयनितगाथा कीवृत्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत् प्रज्ञापना; अंति: (-). ३५५६१. कल्पसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४९-१४६(१ से ४,६ से १०१,१०३ से १४८)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४८). कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५५६२. जीव विचार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२०(१ से २०)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१२, १५४३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५५६३. कर्मग्रंथ-२ व ४, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १०x४६). १. पे. नाम. कर्मविपाक सूत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-५९. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ३५५६४. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२, १६४५३). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जयमोक्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए कपील रिषिसर करुणा; अंति: त्तराध्येयनें होयरे, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १०१ औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण कारिमो; अंति: सहजसुंदर उपदेस रे, गाथा-८. ३.पे. नाम. देहनो गरबो, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवू; अंति: दोहिलो नर अवतार, गाथा-३. ३५५६५. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२६४११.५, १५४५५). १. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण शुगण सोभागि; अंति: हो जी पुरो परम विलास, गाथा-५. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे प्रभु संभव; अंति: नो सवि लेखे थइ रे लो, गाथा-५. ३.पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीउडा तुझ विषया रे; अंति: कांति सेवा नित मागे, गाथा-५. ४. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपदमप्रभू राजियो; अंति: बिहू नैण हुआ धन्य धन, गाथा-५. ५. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल समिहीत सूरतरु रे; अंति: कांति लोकांमा सेवास, गाथा-५. ६.पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु चितथी; अंति: कांति० गोहिर निसाण, गाथा-५. ७. पे. नाम. सुविधिनाथ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. सुविधिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरि अजबसि जोगनि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ तक है.) ३५५६६. मुनिगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १४-१७४२७-३८). मुनिगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध सवेनइ करूं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३८ अपूर्ण तक है.) ३५५६७. आचारांग सूत्र अध्ययन ४- सम्यक्त्व अध्ययन सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४३७). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अति: (-), (पू.वि. सम्यक्त्व अध्ययन का प्रारंभिक पाठ "नमो अरिहंताणं० सेबेमिजेय अतीता" से है.) आचारांगसूत्र-टिप्पण*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५५६८.(+) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १३४४१). प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आचार्य पुस्तक निवास; अंति: निवला कीधा नारी. ३५५६९. मौनएकादशीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १७९१, पौष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. मानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४५१-५४). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: मौनैकादशी तपोविधेयम्. ३५५७०. वृद्धि शांति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४६०). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: ध्याइमाने जिनेस्वरे. ३५५७१. (+) वैराग्य शतक व शीतलजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १७४४६). १.पे. नाम. वैराग्यशतक, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४, (पू.वि. गाथा ३९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. स्तवन संग्रह, मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५५७२. कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, १५४३८-४२). कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)तत्र तीन थिवर हूआ एक, (२)जंबूद्वीप भरतक्षेत्र; अंति: पाल्य स्वर्ग गतः. ३५५७४. अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १५५४, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. मु. उदयसागर; पठ. श्राव. मेलादे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. खंडित भाग पर कागज चिपकाए होने से पत्रांक का पता नहीं चल रहा है, एतदर्थ अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२६४११, ८४३३). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: हीएण जिणं वहताणं, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा ३९ से है.) ३५५७५. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११,१५४६४). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. नवकार से संसारदावा सूत्र गाथा ४ अपूर्ण तक है.) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टीका*, सं., गद्य, आदि: इह चैत्यवंदनादर्शनशु; अंति: (-). ३५५७६. (+) अंतगडदशांग सूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, १३४४१). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५५७७. वंदेतु सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११,१९४४१). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चोवीस, गाथा-५०. ३५५७८. दशवैकालीक सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१६(१ से १६)=२, जैदे., (२६.५४११.५, १३४५४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: निच्चला होसु, ग्रं. ७००, (वि. अध्ययन १० चूलिका २) ३५५७९. जीवाभिगम सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६-६५(१ से ६५)=१, जैदे., (२६४११.५, ११४४०). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: धम्ममिय निच्चलाहोसु, (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण से १९ तक है.) ३५५८०.(+) सम्यक्त्वपच्चीसीसह अवचूरि व महादंडक स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६६९, कार्तिक कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. पीपाडनगर, प्रले. मु. जसवंत ऋषि (गुरु मु. हमीर ऋषि); गुपि.मु. हमीर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २२४४७-६१). १. पे. नाम. सम्यक्त्व स्तव सह अवचूरि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउसम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा येनोपशमिकत्वादि; अंति: भवत्विति सुगममन्यत्. २. पे. नाम. महादंडक स्तव सह वृत्ति, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. महादंडक स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवंमी भमीओ जिण; अंति: सामि अणुत्तरपयं देसु, गाथा-२१. महादंडक स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भीमो जिनेंद्राज्ञया; अंति: शरीराणि असंखअयेयगुणा. ३५५८१. आठकर्म प्रकृति- भगवती सूत्रे, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, १०४३५). भगवतीसूत्र-विचार संग्रह*, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३५५८२. अट्ठावीसलब्धिगाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ५४२५). २८ लब्धि विचार, प्रा., पद्य, आदि: आमोसहि१ विप्पोसहि२; अंति: एट्ठाई हुति लद्धिओ, गाथा-४. २८ लब्धि विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जेहनै सरीरने फरस से; अंति: एवं १४ न थाइ. ३५५८३. (+) उपदेशरत्नमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४८). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएस रयणकोसं नासइ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २३ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १०३ ३५५८४. अजितशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १०४३०). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ३५५८५. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४७-४६(१ से ४६)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १९४४१). १.पे. नाम. चउढालीयो, पृ. ४७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणसागर हमारी आस, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-३ की अंतिम गाथा से है.) २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४७अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: तुझ बिराणि क्या पडि; अंति: चरण कवल चित्त दैय, गाथा-५. ३. पे. नाम. मान परिहार सज्झाय, पृ. ४७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मान न करजो रे मानवी; अंति: मुक्ति सुख लेइरे, गाथा-२०. ३५५८६. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४५२). १.पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहि नगरी वशे; अंति: सीद्धी० गुण गायारे, गाथा-१४. २. पे. नाम. लोभनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोजो लोभ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ३५५८७. (+) पाक्षिक स्तुति सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५२, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. मु. महानंद (गुरु ग. विवेकहर्ष); गुपि.ग. विवेकहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२५.५४१०.५, १९४४०-४३). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-वृत्ति, ग. विवेकहर्ष, सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: स्नातस्या० स श्रीवर; अंति: शिशुना जयहर्षनाम्ना. ३५५८८. रतन गुरु रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १५४४५). रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतन गरुं गुण आलगाजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३४ अपूर्णतक है.) ३५५८९. चेलणाराणी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १४४३०). चेलणासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: मगधदेस राजगरी श्रीसण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ गाथा १० अपूर्ण तक है.) ३५५९०. सुदर्शनसेठ चौपाई, अपूर्ण, वि. १८७४, माघ शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. ३०-२९(१ से २९)=१, प्रले. सा. केसर (गुरु सा. वदुजी); गुपि.सा. वदुजी (गुरु सा. अजवाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४३१). __सुदर्शनशेठ रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुणता रस उपज घणो, (पू.वि. अंतिम ढाल की गाथा ७ अपूर्ण से है.) ३५५९१. आगमादिसूत्रों का बीजक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११, १९४५४). आगमादिसूत्रों का बीजक संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५५९२. (+) पडिक्कमण निजुत्ती, संपूर्ण, वि. १६०२, फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, लिख. वा. हेमशील (अचलगच्छ); पठ. श्रावि. रूपी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४४०). प्रतिक्रमणनियुक्ति अध्ययन, हिस्सा, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पडिक्कमणं पडिकमउं; अंति: निप्फन्नो निक्खेवो, गाथा-५२. ३५५९३. (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, १३४५२). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, सं., गद्य, आदि: पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति: (-). ३५५९४. (2) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६७४, फाल्गुन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ९-५(३ से ७)=४, प्रले. मेघजी; पठ. मु. डुंगा ऋषि; मु. पदारथ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. "वार, शुभवासरे", अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३०-३२). २९). For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: कम्माणं वग्गणाणंता, गाथा-८७, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से गाथा-८४ अपूर्ण तक नहीं है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एह नवतत्वनुं संखेप; अंति: अनंतीवर्गणा जाणिवी. ३५५९५. जिनचैत्य नमस्कार सोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. कीर्तिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १३४३८). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ३५५९६. (#) संसारदावानल स्तुति सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४२९-३६). संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. संसारदावानल स्तुति-टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नमामि प्रणम; अंति: मोक्ष देहि मह्यमिति. ३५५९७. स्तोत्र, मंत्र व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अंत में प्र.पु.श्लोक लिखा है लेकिन बीच के अक्षर घिस जाने से अवाच्य है., जैदे., (२६४११.५, २५४७२). १. पे. नाम. भत्तिभर गत-पंचपरमेष्ठि पद विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि मंत्राराधन विवरण-भत्तिभर स्तोत्रगत, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं; अंति: निउणा साहू सयासरह. २. पे. नाम. चंद्रप्रभस्वामि भक्तायाजाला मालिनीदेवता सबीज स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र-सबीजमंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: (१)ज्ञापयति स्वाहा, (२)नाशिनी भवति नियतम्. ३. पे. नाम. बप्पहट्टि कृत सारस्वत स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: कुंदाकुंडिलिनित्वदीय; अंति: तस्य वाचां विशेषः, श्लोक-१२. ४. पे. नाम. महामंत्रमय-पार्श्वतीर्थाधिपति स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर; अंति: नमामः कुशलं लभामः, श्लोक-५. ३५५९८. घंटाकर्णमहावीर मंत्र विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १५४३६). घंटाकर्णमहावीर मंत्र विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रां ह्रीं श्रीं; अंति: प्रति लाभ थाइ सही. ३५५९९. (+) विवेक मंजरी, अपूर्ण, वि. १५४६, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, प्रले. पंन्या. समयरत्न (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, ११४३३). विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदि: (-); अंति: जलहिदिणेस वरिसम्मि, गाथा-१४४, (पू.वि. गाथा ३३ अपूर्ण से है.) ३५६००. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-७(४ से १०)=४, जैदे., (२६४१०.५, ७X३५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिह० सव्वसाहूण; अंति: गारेणं वोसिरामि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अरिहंतनई; अंति: (-), (वि. अंतिमवाक्य का टबा नहीं लिखा है.) ३५६०१. (+) प्रतिक्रमणसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १५३५, कार्तिक शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. गोपाल महंत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, २६४९८-१००). यतिप्रतिक्रमणसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि भं०; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. पगामसज्झायसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: शुभयोगेभ्योशुभयोगांत; अंति: तत्संभवादित्यदोषः. ३५६०२. (+) स्तोत्र, स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५,११४३८). १. पे. नाम. संकटहरण स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गाथा- ७. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१ १०५ उपसर्गहर स्तोत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः उवसग्गहरं पास पास अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५२. पे. नाम बीनती पू. १अ- १ आ. संपूर्ण सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु, पद्य, आदि: सीमंधरजी सुनियो मोरी, अंतिः स्वामीजी यह अरदास जी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीमंधरजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी मे चरनन; अंति: ऐसा समरथ साहिब मेरा, गाथा-४. ४. पे नाम, पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पदसंग्रह *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५६०३. स्तुति चौवीसी व मंत्र, संपूर्ण वि. १८६८, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४. कुल पे. २, ले. स्थल, अणहलपुर पाटण, प्रले. पं. ऋषभविजय गणि (गुरु पंन्या, रंगविजय); गुपि, पंन्या. रंगविजय (गुरु पंन्या. रूपविजय) पठ. पं. प्रेमविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपंचाक्षराजी प्रसादात् जैवे (२५.५४१२, १५४४३). . १. पे. नाम. सोभन स्तुति, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. शोभन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्याभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति - २४, श्लोक - ९६. २. पे. नाम, अप्रबंधन मंत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. मंत्र, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ३५६०४. बनारसी विलास विषयसूचनिका व जिनसहस्रनाम स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. जैवे., (२५.५X११, १५X४४). १. पे. नाम. बनारसीविलास विषयसूचनिका, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, जै.क. बनारसीदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम सहस्रनाम सिंदू; अंति: यो त्यों अधिकी होइ, गाथा-५. २. पे नाम, जिनसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. " जै.. बनारसीदास, पु,ि पद्य वि. १६९०, आदि परम देव परनाम करि अंति: (-). (पू.वि. गाथा ३ तक है.) ३५६०५. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११.५, १६-१९x४७-५९). १. पे. नाम. सुतारासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. खंड ३ की ढाल ११ वीं मात्र है.) २. पे. नाम जीभलडीनी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- रसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडली रे जीभलडी तुं, अति: कसुण प्राणी रे, गाथा- ८. ३. पे. नाम. प्रमाद सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सुण रे प्राणी तु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ३५६०७. पार्श्वजिन निसाणी व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) ०४ कुल पे. २, जैवे. (२६४११.५, १०x२८-३२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरी घग्घर नीसाणी, पृ. २अ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी - घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अंति: गुण जिनहरख गावंदा है, गाथा - २८. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी तप तुम्हे करो, अंतिः पामुं पंचमो भेद रे, गाथा-५. ३५६०८. (+) रात्रिभोजन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८०१, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११.५, १५X३७). For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 3 रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि *, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुपद प्रणमी आणी; अंति: सु सोभाग लहीजे रे, गाथा - ३६. www.kobatirth.org 1 ३५६०९. एकादशी माहात्म्य व सुमतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६X११.५, १७x४२). १. पे. नाम. मौनएकादशी महात्म, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीरजिनं नत्वा; अंति: माराधनतत्पराः समभवन्. २. पे नाम, सुमतिजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. . सुमतिजिन स्तवन- उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वारी हुं उदआपुर तणी; अंति: (-), ( पू. वि. गाथा ६ तक है.) ३५६१० (+) २४दंडक गतिआगति गाथा, अपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पू. ३-१ ( १ ) -२ प्रले. मु. सत्यमंडन (गुरु उपा. आगममंडण गणि); गुपि. उपा. आगममंडन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. जैवे. (२६.५४११.५, ८४२१-२७). २४ दंडक गतिआगति गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंतिः सम्मपि न तेउवाउजुआ. ३५६११. (+) आवश्यकसूत्रटीकागत विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५x११.५, २३४७८-८०), आवश्यक सूत्र- शिष्यहिता टीका का विचार, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५६१२. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६.५x११, १३X३३). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू. वि. संतिकरं की गाथा १० तक है.) ३५६१३. पार्श्वजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैवे. (२७.५४१२, १४४३२) "" पार्श्वजिन स्तवन, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: कस्तूरीतिलकं भुवः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक ९ तक लिखा है.) ३५६१४. (+) विविध मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, १३x३३). मंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). (वि. जैन धार्मिक विविध मंत्र संग्रह.) १. पे. नाम. चतुष्कषायभांगा यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६१५. चतुष्कषाय भांगा यंत्र व विचार संग्रह - भगवतीसूत्रगत शतक - २०, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है. दे. (२५.५x११). चतुष्कषाय भांगा, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे नाम, विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: (-): अंति: (-). ३५६१६. विचार संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे, ५. प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है जैदे. (२५x११). " १. पे. नाम. शरीर पर्याप्त विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः आहारपर्या० पूरी करता अंतिः मनः पर्याप्त कहीह. २. पे नाम श्वासोश्वाश परिमाण विचार, पू. १अ १ आ. संपूर्ण. श्वासोश्वासपरिमाण विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: ब्रह्मदच चक्रवंत ७सह, अंति: सर्वसं अनंतनाणाहिं. ३. पे. नाम. कलश विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ४. पे नाम ज्योतिष संग्रह, पू. १ आ. संपूर्ण. ज्योतिष, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. सम्यक्त्वलक्षण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. समकितलक्षण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३५६१७. वीर चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, जैदे (२६४११, १२४३१). महावीरजिन चरित्र, प्रा. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रमोदः संपन्न.. ३५६१८. शलाकापुरुष विवरण व पच्चक्खाण फल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६X११.५, २१X१५). १. पे. नाम. शलाका पुरुष विवरण, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु, गद्य, आदि: तिपेष्ट नामा वासुदेव, अंतिः उमी नरके गया. २. पे. नाम. पच्चक्खाण फल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रह उठीने दस पचखाण, अंति: करता कोडाकोड वर्स. ३५६१९. परमार्थ वचनिका, उपादान विचार व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) = २, कुल पे. ४, जैदे., (२६१२, २३x४७-५२). १. पे. नाम. परमार्थ वचनिका, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: सोइ भगवान समझे सो. २. पे. नाम. निमित्तकारनउपादानकारन भेद, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण निमित्त -: -उपादानकारणवचनिकासंग्रह, पुहिं., गद्य, आदि: प्रथम ही कोइ पूछत है; अंति: शुद्धाशुद्ध विचार. ३. पे. नाम निमित्तउपादान दोहरा, पृ. ४आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: गुरु उपदेस निमित्त अंतिः करे जूं तेसी भेस, गाथा- ७. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो चिदानंद अविनासी; अंति: ब्रह्म अभ्यासी हो, गाथा-६. ३५६२० साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. जैदे. (२६४१०.५, १५-२०४५५-७५). " पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ, अंति: (-). पगामसज्झायसूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमस्कारपूर्वं करेमि; अंति: (-). ३५६२२. शक्रस्तव सह अवचूरी व पदसंपदादि गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १-२ की जगह ५-६ लिखा है. त्रिपाठ, जैटे., (२५.५४१०.५, १४४५३-५९) " १. पे. नाम. शक्रस्तव सह अवचूरी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमुत्थुणं अरिहंताणं; अंति: संपत्ताणं नमो जिणाणं, गाथा-१०. शक्रस्तव - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमो नमस्कारोस्तु; अंतिः शक्रस्तव उच्यते. २. पे. नाम. शक्रस्तव पदसंपदादि गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि तित्तीसं च पवाई, अंति: अहिगारो एस पढमोत्ति, गाथा- १. ३५६२३. श्लोक संग्रह, अंगस्कुरण फल व तंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३८-३७(१ से ३७) = १, कुल पे. ३, जैदे., (२६११, १४४४३). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३८अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है.. श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ९२ से है.) २. पे. नाम. अंगस्फुरण विचार, पृ. ३८अ - ३८आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: मस्तक फरके तु राज्य; अंति: फरके तो धन लाभ कहइ. ३. पे. नाम. वशीकरण तंत्र संग्रह, पृ. ३८आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह " उ. पुहिं, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). 3 ३५६२४. आवक आराधना, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे. (२६.५४९.५, १४५४६-५०). 3 १०७ For Private and Personal Use Only श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत; अंतिः कृतं भवति इह भवे०, अधिकार-५. ३५६२५. दोसापहार स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३. जैवे. (२६४११. १४४५०). Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा नपीडंति, गाथा-१०. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित- बालावबोध, मु. हर्षरंग, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: देवं गुरुं प्रणम्याह; अंति: श्रीहर्षरंगेण हि. ३५६२६. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४९, कार्तिक कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जावालग्राम, पठ. मु. जगरूप (गुरु पं. नायकविजय गणि); प्रले. पं. नायकविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४३२). १. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधि स्तुतं, श्लोक-११. २.पे. नाम. चोवीसजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन स्तव, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिन नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासम्, श्लोक-८. ३५६२७. (+) वैराग्य शतक वैष्णवना सिलोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. मेघा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, २१४५९-६१). १.पे. नाम. वैराग्य शतक, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे नत्थ; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. २.पे. नाम. वैष्णवना सिलोक, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद संग्रह, विष्णु भगत, मा.गु., पद्य, आदि: वंच प्रोह परधन नवि; अंति: पुरी नर लेहिसि तेह, गाथा-२१. ३५६२८. समाधिमरण विधि, संपूर्ण, वि. २००१, कार्तिक शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, प्रले. श्राव. मोहन गिरधर भोजक; अन्य श्राव. रसीकभाई शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. रुषभदेव प्रासादो, जैदे., (२७.५४१०.५, ९x४४). श्रावक समाधिमरण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ईरियावही पडकमी; अंति: आगार सइयेणं वोसिरामि. ३५६२९. वीस स्थानकगर्भित शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५४). शांतिजिन स्तवन-वीसस्थानक विधि गर्भित, मु. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नमिय सिरि संतिजिणं; अंति: सदा निज मनि आणियइ, गाथा-१७. ३५६३०. आदिनाथ स्तवन व सम्यक्त्व पच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३८). १.पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुंपणमीय देव; अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा-४१. २.पे. नाम. सम्यक्त्व पच्चीसी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १४ तक लिखा है.) ३५६३१. (+) वांदना व बोलसूत्र सह टबार्थ आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११,५४४५). १.पे. नाम. वांदणासूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. वांदणासूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो वंदि; अंति: अप्पाणं वोसिरामि, सूत्र-०१. आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इ० वांछउ छउंख० अहो; अंति: आसातना थकी छोडवउं. २.पे. नाम. मान उन्मान प्रमाण, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पाणीइ भरी कुंडमाहे; अंति: जघन्य अधम पुरुष. ३. पे. नाम. अढारपुराण नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ पुराण नाम, सं., गद्य, आदि: ब्रामं पद्म वैष्णव; अंति: गारुडं ब्रह्मांड. For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१ ४. पे. नाम. स्मृति नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ६. www.kobatirth.org ५. पे. नाम, चौदविद्या नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, आदि: शिक्षा कल्प व्याकरण, अंति: ए चौदह विद्या जाणवी. नाम. अठारहव्याकरण नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. पे. सं. गद्य, आदि: धर्मशाखं संव्रत, अंति: बल्कीयं धर्मशास्त्रं, १८ व्याकरण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्र व्याकरण१; अंति: १८ जयहेमव्याकर्ण. ७. पे. नाम. बोलसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. बोलसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). बोलसूत्र - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५६३२. वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५X११, १०X३६). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु अति: (-). (पू.वि. डाल २ की गाथा १ तक है.) (२५.५X११.५, १९४७). १. पे. नाम. उपदेशपच्चीसी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुध कर्या सुज्ञानजी, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा ८ से है.) २. पे नाम, ज्ञान चौपाई, पृ. ३ आ-६अ, संपूर्ण, ३५६३४. दशवैकालिकसूत्र का टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६.५X११.५, २१x६१). दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३५६३५. उपदेश पच्चीसी, ज्ञान चौपाई व स्वयंभू स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६-२ (१ से २) ०४ कुल पे. ३, जैबे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानचिंतामणी दोहा, मु. मनोहरदास, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल बुद्धिवरदायीनी, अंति: के कहै मनोहरदास गाथा - १२८. ३. पे. नाम. स्वयंभू स्तोत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण. लघु स्वयंभू स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: जेना स्वयं बोधमयोन ल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २० तक लिखा है.) ३५६३६. रास व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १५-११(१ से ५, ८ से १३०४, कुलपे. ३, जैवे. (२६४११.५, १९५३). १. .पे. नाम. मृगांकलोढानो चौडालियो, पू. ६अ-७आ, अपूर्ण. पू. वि. बीच के पत्र हैं. मृगलोढा रास, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. ढाल १ की गाथा ४ से बाल ८ की गाथा १ तक है.) २. पे. नाम. अभीचकुमार रास, पृ. १४अ १४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अभीच कुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जासी मुक्तिमंझारो रे, ढाल-५, (पू.वि. ढाल ४ की गाथा ५ अपूर्ण से है.) ३. पे नाम, ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, पृ. १४आ-१५आ, पूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु, पद्य, आदि: तिण कालेन तीण समें, अंतिः (-) (पू.वि. ढाल ६ की गाथा १० अपूर्ण तक है. ) १०९ ३५६३७. नेमिजिन रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-७ (१ से ७) = १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५X११.५, २०x४५). नेमिजिन चरित्र, मु. जैमल ऋषि, मा.गु, पद्य वि. १८७४ आदि नगरी सोरिपुर राजीयो अंतिः (-), (पू. वि. दाल २ , " गाथा २० अपूर्ण तक है.) ३५६३८. चार मंगल सिझाय, संपूर्ण, वि. १८९०, आषाढ़ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, २०x४१-४६). ४ मंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसीजिन नमु; अंतिः ऋष जैमलजी कहे एम तो, गाथा - ३९. ३५६३९. स्तवन संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १. कुल पे. ७ जैवे (२५.५४११, १८४४२). , " For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir C ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोहि रह्यो; अंति: सेवै बे करजोडिरे, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार करतार संसार सागर; अंति: ते तरै जे रहै पासे, गाथा-५. ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बेकर जोडी बीनवूरे; अंति: सम विषमी महाराज रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुमतिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: करतां सेती प्रीति सह; अंति: बिरूद साचो वहेरे, गाथा-४. ५. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घर आंगण सुरतरु फल्यौ; अंति: तुहि ज देव प्रमाण, गाथा-५. ६. पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आराधो अरनाथ अहोनिस; अंति: गाने करिस्यै सेव, गाथा-५. ७. पे. नाम. पासजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन, मु. चारित्रसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: परमप्रमोद सुखाकरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ तक है.) ३५६४०. पूजा, अष्टक व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४११.५, ३३४६३). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजीरी अष्टप्रकारीपूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सुरनदी जलनिर्मल धारय; अंति: (१)प्रदीपक धूप फलादिभि, (२)श्रीश्रीजि० अर्घनि०, गाथा-९. २. पे. नाम. दादाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टक, सं., पद्य, आदि: पद्म कल्याण विद्या; अंति: भोक्ता च वक्ता च, श्लोक-९. ३. पे. नाम. दादाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि अष्टक, सं., पद्य, आदि: सुरकिन्नर वंदित; अंति: वागीश्वराः श्रीधराः, श्लोक-९. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवार्यदेव; अंति: भृतां मुदेस्तात्, श्लोक-९. ५. पे. नाम. जिनदत्तसूरी अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि अष्टक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरतीर्थेश्वर; अंति: मनां वांछितपूरकोस्तु, श्लोक-९. ६. पे. नाम. गुरु गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि गीत, ग. सूरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १२११, आदि: आसापूरण कामगवी भवियं; अंति: सूरचंद हिव सफल दिणा, गाथा-१७. ३५६४१. विवाह पडल व ज्योतिष संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१२.५, १५४४७). १.पे. नाम. विवाह पडल, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अंति: कलाधीर सुख पामै मुदा, गाथा-५५. २. पे. नाम. विवाहपडल, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु वाणी समर; अंति: लिखी ज्योतिस तणौ मरम, गाथा-३७. ३. पे. नाम. चालण विधि, पृ. ४अ, संपूर्ण. चालन विधि, मा.गु., पद्य, आदि: सात पाव शनि सुक्र; अंति: तृण गहै तौ कंचण होय, गाथा-२. ४. पे. नाम. वाण विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १११ ज्योतिष संग्रह *, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १९ तक है., वि. प्रत की स्याही उखडी हुई है, आदिवाक्य नहीं भरा है.) ३५६४२. (-) पगामसज्झायसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११, १७४३०-३४). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ३५६४३. स्तवन, स्तुति व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१,३ से ५)=२, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३१). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमराजिमतीस्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: रामविजय० कोडि कल्याण, गाथा-७, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. बाहुजिन फाग, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: परणे रे बाहू रंग; अंति: न्याय०जिन आणि खरी रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउजीरे पिउजी नाम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वासुपूज्यजिन स्तुति- आंतरोलीमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: वाणी वाचक जशसुखखाणी, गाथा-४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण है.) ५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: आदि आदिजिनेसर सुंदर; अंति: जिनशासन कल्याणजी, गाथा-४. ६. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ६आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशीतलजिन भेटीई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ३५६४४. प्रत्येकबुद्धचरित्रे सुपात्रदानोपरि धन कथानक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, २०४४९-६६). धन कथानक-सुपात्रदान, सं., गद्य, आदि: इहैव भारतेवर्षे अवंत; अंति: स्वातमुक्ति करोति. ३५६४५. (+) देवसिकादिप्रतिक्रमणविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. *अक्षर अनियमित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहिला इरियावहि पडिक्; अंति: (-), (पू.वि. पक्खीप्रतिक्रमण अपूर्ण तक हैं.) ३५६४६. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११, ५४१५). महावीरजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: जगपति तुं तो छै देवा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा है.) ३५६४७. स्तोत्र, स्तुति संग्रह व स्तुति सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १८६८, माघ शुक्ल, ५ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. १५-१२(१ से १२)=३, कुल पे. ४, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२६४१२). १.पे. नाम. चतुर्विशतिजिन स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मयतामिह नम्रताम, श्लोक-२९, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अष्टमहाप्रातिहार्य स्तव, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति-अष्टप्रातिहार्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: प्रातिहार्यकलितासम; अंति: मे निजपदाव्ययभक्तिम्, ___ श्लोक-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिनराज स्तुति सह अर्थ, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वराज विमलो; अंति: जगति कल्पतरूपमानः, श्लोक-१. पार्श्वजिन स्तुति-अर्थ, सं., गद्य, आदि: हे श्रीपार्श्वराज भव; अंति: विमल:न्यत् पूर्ववत्. For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. धरणेंद्र स्तोत्र, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्र सुरपति; अंति: तस्यैतत् सफलं भवेत्, श्लोक-३९. ३५६४८. विविधगणणा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, दे., (२६४१२, १४४३९). विविधगणणा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीनंदीकेशनाथाय नमः. ३५६४९. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२,७४३९). १. पे. नाम. पंचकल्याणक मोश्चव स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. पंचकल्याणक महोत्सव स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, श. १६८२, आदि: प्रणमी पासजिनेसरु; अंति: पद्मविजये ध्याइया, ढाल-५. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: आज गईती हुं जिनमंदिर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ तक है.) ३५६५०. (+) दानशीलतपभावना कुलक, संपूर्ण, वि. १७९१, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ.पं. रंगवल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४४). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिअरज्जसारो; अंति: सो लहइ सिद्धिसुह, वक्षस्कार-४. ३५६५१. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान+कथा व संघस्तुति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३४-१३०(१ से १३०)=४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (११०) वाच्यमाना पाठ्यमाना, (८६५) भग्न पृष्टि कटि ग्रीवा, जैदे., (२६.५४१२, १५४३८). १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पृ. १३१अ-१३४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-टबार्थ* मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: इम उपदेस देता हवा. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इम पजूसण आराधीई. २. पे. नाम. संघ स्तुति सह टबार्थ, पृ. १३४अ, संपूर्ण. संघ स्तुति, सं., पद्य, आदि: संघोयं गुणरत्नरोहणगि; अंति: संघमहामंदिरं वंदे, श्लोक-६, संपूर्ण. संघ स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए श्रीसंघ गुणरूप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ तक टबार्थ लिखा है.) ३५६५२. स्तवनचौवीसी व नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-५(१ से ५)=४, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, २८४४२). १.पे. नाम. स्तवन चोवीसी, पृ. ६अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. स्तवनचौवीसी, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: न्यायरंगरटके हो राज, स्तवन-२४, (पू.वि. संभवजिन स्तवन गाथा ४ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम. अनागत चोवीसी नमस्कार, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. अतीतअनागतचौवीसी नमस्कार, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अतीतचोवीसी प्रणमीइं; अंति: न्यायल्सयल जिनेसर पाय, गाथा-६. ३५६५४. आचार्यगुण वर्णन सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, ६४३७). प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा आचार्य के ३६ गुण, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: अट्ठविहा गणिसंपइ चउ; अंति: विणए चउहे सपडिवत्ती, गाथा-७. प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा आचार्य के ३६ गुण की व्याख्या, सं., गद्य, आदि: गुणानां साधूनां वा; अंति: त्रिंशद्गुणा भवंति. ३५६५५. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९४०, चैत्र शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, ले.स्थल. कानोड, प्रले. मु. धनरूचि (गुरु पं. सरूपरूचि); गुपि.पं.सरूपरूचि (गुरु पं. अमृतरूचि); पं. अमृतरूचि; अन्य.पं. केशरकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४१२, ८x२४). For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ३५६५७. (+) रास व सझाय, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, २०४५३). १.पे. नाम. रतनसीरास, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. रतनसीऋषि रास, मु. कान्हजी कवि, मा.गु., पद्य, वि. १६५३, आदि: (-); अंति: संघ चतुरवधि जय जयकार, गाथा-४८, (पू.वि. गाथा ३४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. असज्झाइनी सज्झाइ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय वीर जिणेस्वर; अंति: वधू जिम हेलासुंवरो, गाथा-२५. ३५६५८. जिनबिंब नमस्कार व स्तवन, अपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, २२४६२). १.पे. नाम. शाश्वताशाश्वत जिनबिंब नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. त्रिभुवन चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: जिनबिंब नमस्करूं. २.पे. नाम. पार्श्वजिन कल्याणक स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. अप.,मा.गु., पद्य, आदि: आससेण नृप कुलि अवतरि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ३५६५९. दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १५४४४). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण तक है.) ३५६६०. स्तवन व गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११,११४३३). १.पे. नाम. मोरिला पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मोरिला, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सुजस तुहारो सांभली; अंति: लखमीवल्लभ जयकार, गाथा-७. २. पे. नाम. दादाजी गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो आनंद मेरे आई; अंति: लखमी० लगति सुहावना, गाथा-४. ३. पे. नाम. प्रास्तावित पद, पृ. २अ, संपूर्ण. तानसेन, पुहिं., पद्य, आदि: मंडीरी घटा घरररररर; अंति: रंग महला लीजै घररररर, गाथा-५. ४. पे. नाम. दादागुरु गीत, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. दादागुरू गीत, मा.गु., पद्य, आदि: हस्ती तौ चढियो रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ तक है.) ३५६६१. पर्यंताराधना सह टबार्थव श्रावक २१ गुण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७५६, ज्येष्ठ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ५)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. रोहीडानगर, प्रले. पं. विनय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ५४४४). १.पे. नाम. आराधना प्रकरण सहटबार्थ, पृ. ६अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, (पू.वि. गाथा-५५ से हैं.) पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गुणिवो ते भाव सहित. २. पे. नाम. श्रावकगुण इकवीस सह टबार्थ, पृ. ७आ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: धम्मरयणस्स जुग्गो; अंति: इगवीसगुणहिं संजुत्तो, गाथा-३. श्रावक २१ गुण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मनै जोग्य ते; अंति: सात मोटका गुण जोइ जइ. ३५६६२. पच्चक्खाणसूत्र, पार्श्वस्तव व साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-८(१ से ८)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १५४५१). १.पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: गारेणं वोसिरामि, (पू.वि. पच्चक्खाण ८ से है.) २. पे. नाम. स्तंभनकतीर्थराज श्रीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ आणंदि, गाथा-३०. ३. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक पाठ है.) ३५६६३. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, कुल पे. ७, जैदे., (२५४१०.५, १८४५४). १. पे. नाम. जंबूस्वामी चरित्र कथा संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. उपा. माणिक्यसुंदर (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. ___ मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: स्त्रीनइ वसि आवु, (वि. प्रत का ऊपरी भाग खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा है.) २. पे. नाम. षडावश्यकसूत्र-बालावबोध की कथा, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयांसि श्रीमहावीर; अंति: (-). ३. पे. नाम. नवकार प्रभाव कथा-श्रीमतीकथा, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. श्रीमती कथा-नमस्कार महामंत्र विषये, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पाली सगुतिइं पहुतउ. ४. पे. नाम. नवकारमंत्र प्रभावे-शिवकुमार कथा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शिवकुमार कथा-नमस्कार महामंत्र विषये, मा.गु., गद्य, आदिः (१)नवकारनइ प्रभाविइ, (२)रत्नपुरनगर यशोभद्र; अंति: पाली सगुतिइं पुहुतउ. ५.पे. नाम. जिनदास श्रावक कथा, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)नउकारनइ प्रभाविई, (२)क्षितप्रतिष्टित नगर; अंति: धर्मपाली सगति पहुतउ. ६. पे. नाम. चंडपिंगलचोर कथा, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. चंडपिंगलचोर कथा-नवकार विषये, मा.गु., गद्य, आदि: वसंतपुर नगर जितशत्रु; अंति: पाली सुगतिइं पहुता. ७. पे. नाम. हुंडीकचोर कथा, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. हुंडकचोर कथा-नवकार प्रभाव, मा.गु., गद्य, आदि: मधुरनगरी शत्रुमर्दन; अंति: (-). ३५६६४. प्रतिक्रमण ८ भेद दृष्टांतकथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १५४५१-५४). १. पे. नाम. प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पडिक्कमणं१ पडियरणार; अंति: पडिक्कमणं अट्ठहा होइ, गाथा-१. २. पे. नाम. प्रतिक्रमण ८ भेद दृष्टांतकथा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा-कथा, सं., पद्य, आदि: पुरे क्वापि नृपः कोप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मणिदीप दृष्टान्त कथा के श्लोक ३२ अपूर्ण तक है.) ३५६६५. लघुशांति व बृहच्छांति सह टीका, अपूर्ण, वि. १७१५, फाल्गुन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, कुल पे. २, ले.स्थल. रूपनगर, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, ४-५४५१-५५). १. पे. नाम. लघुशांति स्तव सह टीका, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६४४, आदि: श्रीसार्वसर्वसिद्ध्य; अंति: यायात् प्राप्नुयात्. २.पे. नाम. बृहत्तशांति सह टीका, पृ. २आ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: केचिद्दपद्रवा लोके. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५६, आदि: स्ताच्छांतिः शांति; अंति: विहिता बृहत्छांतिः. ३५६६६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४२९-४०). १. पे. नाम. भुजंग जिनेंद्र तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. भुजंगजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पुखरवइंदीविहोकिं; अंति: नित नित शक्ति वधे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१ www.kobatirth.org २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: जीन० तेहने जाणो रे, गाथा-७, (वि. आदिवाक्य की स्याही पानी से फैल गई है.) २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, आदि: वडनाफल पीपलना फल; अंतिः कुनुफल चलित रस. २. पे. नाम. ८४ गच्छ नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः १ बेवंदनीक २ धर्मघोष अंतिः ८३ साचोरा ८४ चारणगण ३. पे. नाम. ८४ ज्ञाति नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. " ३५६६८. विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे २० प्र. वि. अक्षर अनियमित है. जैवे. (२५.५४१०.५). १. पे. नाम. बावीस अभक्ष्य नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमाली१ ओसवाल२ पोर; अंति: नीफाडा८३ श्रीगउलवाल ८४. ४. पे. नाम. साडा बार ज्ञाति, पृ. १अ, संपूर्ण. साडा वार ज्ञाति नाम, मा.गु, गद्य, आदि: श्रीमाली ओसवाल अंतिः १२ मेडतवाल खंडेलवाल. ५. पे. नाम. ९६ पाखंडी नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ६ दर्शने ९६ पाखंडी नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जैनदर्शने श्वेतांबर; अंति: रसीआ धातुर्वादि. ६. पे. नाम. नव नारु, पृ. १अ, संपूर्ण. ९ नारु नाम, मा.गु., गद्य, आदि: कंदोई पटइल कुंभार; अंति: गंधर्व वइद सत्तआरा. ७. पे. नाम. नव कारू नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४. पे नाम. चार बुद्धि ज्ञान, पृ. १आ, संपूर्ण, ४ बुद्धि ज्ञान, मा.गु, गद्य, आदि: स्वाभाविक उत्पातिकि, अंतिः पारिणामिकी कार्मकी, ९ का नाम, मा.गु., गद्य, आदि: खांची मोची गांछी, अंतिः खारवा कोर भील. ८. पे. नाम. अठार कर नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ कर के नाम, मा.गु., गद्य, आदि: दाण पुंठी हल मोभ भाग, अंति: घाटक सुंनदड. ९. पे. नाम. पुरुष ७२ कला नाम श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. ७२ कला नाम- पुरुष, सं., पद्य, आदि लिखित‍ पठितर संख्या: अंति: पुरुषस्यकला काव्यानि श्लोक-३. १०. पे नाम. द्वादशतुर्घनंदा गाथा, पृ. १अ संपूर्ण. १२ तुर्यनंदा नाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: भंभी१ मुकुंदर मद्दल३; अंति: वसो११ पणवोअ१२, श्लोक १. ११. पे. नाम. पांच वाजिंत्र नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ वाजींत्र नाम श्लोक, सं., पद्य, आदि: लाल१ ताल२ पुट३; अंति: प्रसिद्धानिखलेजने, श्लोक-१. १२. पे नाम बतीस अनंतकाय नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व कंद जाति सूरण; अंति: (-), (वि. पत्र का कोना खंडित होने से अंतिम वाक्य अवाच्य है.) १३. पे. नाम. स्त्री ६४ कला, पृ. १आ, संपूर्ण. खी ६४ कला नाम, सं., गद्य, आदि: नृत्य ओचित्य चित्र, अंतिः (१) प्रहेलिका नीतिनिपुण, (२) क्षरिका प्रश्नहेलिका, १५. पे. नाम. षट् त्रिशद आयुध, पृ. १आ, संपूर्ण. ३६ आयुध प्रकार, सं., गद्य, आदि: चक्र धनु वज्र खड्ग, अंति: कुडी हिनंबर तुंब. १६. पे, नाम, ४ राजनीति, पृ. १आ, संपूर्ण मा.गु, गद्य, आदि: सात्विकी तामसी अंतिः कौशकी आभंटी, १७. पे. नाम. सात राजबल, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ राज बल, मा.गु., गद्य, आदि: स्वामी अमात्य जनपद, अंति: मित्रबल अंगबल. १८. पे नाम. ३६ राजकुलिका, पृ. १आ, संपूर्ण. ११५ For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यवंश १ सोमवंश २; अंति: हरित३४ डोड३५ नारद३६. १९. पे. नाम. ऋषभदेव १०२ पुत्र-पुत्री नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन १०२ पुत्र-पुत्री नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भरत बाहुबलि श्रीमस्त; अंति: ब्राह्मी सुंदरी. २०. पे. नाम. अठ्यासी ग्रह नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ८८ ग्रह नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अंगारक वीकालक लोहिता; अंति: ८६पुष्प ८७भाव ८८केतु. ३५६६९. वर्धमान विद्या, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १७४४१). वर्धमान विद्या, सं., गद्य, आदि: शुधःशुभ शुकुनैः; अंति: श्री ठः ठः स्वाहा. ३५६७०. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, दे., (२६४१२, ११४३०). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन पाठक कहे श्रुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. २.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: सुणज्यो एक ही चित, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवत्सरी दिन; अंति: चरणे नांमु शिष्य, गाथा-३. ३५६७१. व्रतउच्चार व दीक्षा विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३०). १. पे. नाम. व्रत उच्चार, पृ. १अ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: वट्ठाहित्ति गुणगाह. २. पे. नाम. दिक्षा विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पुराग्राम, प्रले. मु. सिद्धराज शिष्य (गुरु मु. सिद्धराज ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि.मु. सिद्धराज ऋषि (गुरु मु. हाथी ऋषि, लुंकागच्छ); मु. हाथी ऋषि (लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: मोखपहस्स विडिंसगभूयं, गाथा-३. ३. पे. नाम. व्रत उच्चार अधिकार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: एएहिं पंचहिं असंवरेह; अंति: सतरविहा संजमो होइ, गाथा-५. ३५६७२. (#) स्तवन व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९४५१). १. पे. नाम. वीरजिन वीनति स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: __ थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-२०. २.पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहि., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांतिस्यु; अंति: प्रसन्न सदा पद्मावती, गाथा-७, (वि. चार पद के हिसाब से गाथांक लिखा है.) ३. पे. नाम. सप्त व्यसन सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: सीस रागें जिणरंग कहै, गाथा-१८, (वि. दो पद के हिसाब से गाथांक लिखा है.) ३५६७३. उपासक दशांगसूत्रभास संग्रह, अपूर्ण, वि. १७१६, श्रेष्ठ, पृ. १३-१०(१ से १०)=३, कुल पे. ३, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. शिवलाभ (गुरु ग. हेमलाभ, अंचलगछ); गुपि.ग. हेमलाभ (अंचलगच्छ); पठ. श्रावि. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ११४३५). १. पे. नाम. माह शतक सज्झाय, पृ. ११अ-१२आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कीरति० माहशतक गुणीए, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से हैं.) For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २.पे. नाम. नंदणपिया भास, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तेणि कालि तेणि समइ; अंति: सेवउ श्रीवीरजिणंद, गाथा-८. ३.पे. नाम. तेतलीपीया भास, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तेणि कालि तेणि समि; अंति: भणि आतम हित सुखकार, गाथा-७. ३५६७४. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)=४, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३५-३८). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. गाथा ३१ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तव, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण.. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३५६७५. विचार गाथा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १६४३९-४५). १. पे. नाम. विचारगाथा संग्रह, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: दव्वत्थएण पावइ आराहे; अंति: हवइ कवाडं पिसन्नमए, गाथा-९९. २. पे. नाम. जीवभेद श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. जीवभेद श्लोक, सं., पद्य, आदि: प्रोक्तानैरयिकाश्चतु; अंति: भिदाः शतमेकविश, श्लोक-३. ३५६७६. स्तवन व गणेसाष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४३५). १. पे. नाम. दादापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु प्रणमी पाया; अंति: कांतिविजय गुणगाया रे, गाथा-७. २.पे. नाम. गणेशाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: उमागंगजकर्णवक्रांगण; अंति: विघंदसासोभवंतम्, श्लोक-८. ३५६७७. जयतिहुअण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १३-१४४४२-४६). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ आणदि, गाथा-३०.. ३५६७८. छंद, सवैया संग्रह व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२६४११.५, १३४५०). १.पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार मंत्र उद्धरणं; अंति: करण वदे हेम इम वीनती, गाथा-१६. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरिस्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि सवैया, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: बावन वीर कीयै अपने; अंति: जिणदत्त की एक दुहाई, सवैया-१. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरिस्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि सवैया, मु. धर्मसीह, पुहिं., पद्य, आदि: राजै थंभ ठोर ठोर ऐसो; अंति: नाम युं कहायौ है, गाथा-२. ४. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ३५६७९. १७० तीर्थंकरजिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. क. गोपाल (गुरु प्रेमचंद रूपचंद पांडे); गुपि. प्रेमचंद रूपचंद पांडे; पठ. श्राव. रत्नसीह कृष्णजी साह (पिता श्राव. कृष्णजी कल्याण साह), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३२-३४). १७० तीर्थंकर नाम, सं., गद्य, आदि: श्रीजयदेवसर्वज्ञाय; अंति: श्रीबलभद्रनाथाय नमः. ३५६८०.(+) पर्व व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४११.५, १२४३१). १. पे. नाम. दिपावली व्याख्यान, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पापायां पुरिचारुषष्ट; अंति: मंगलीकमाला विस्तरंतु, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. होलीका व्याख्यान, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: मंगलीकमाला विस्तरंतु. ३. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खु; अति: मंगलीकमाला विस्तरंतु. ३५६८१. मौन एकादशीगणर्नु, संपूर्ण, वि. १८८१, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वहाडमेर-जुनानगर, प्रले. पं. मोतीचंद; राज्यकालरा. बभुतसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२२४११). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: (१)जंबूद्वीपे भरते, (२)श्रीमहायशः सर्वज्ञाय; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ३५६८४. सकलार्हत स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १६४३५). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: पाखी नमस्कार, श्लोक-३३. ३५६८७. विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८३, फाल्गुन शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. बरहावदा, पठ.ऋ. हर्षचंद (गुरु मु. नंदराम), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १२४३४). १.पे. नाम. चैत्यवंदन विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. चैत्यवंदनसूत्र का-चैत्यवंदन विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: जीया ते वंदुंनीसदीस. २.पे. नाम. सामायिक विधि, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: होइ ते मिछामिदुक्कडं. ३५६८८. महावीरस्वामीरी निसाणी, संपूर्ण, वि. २०वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२१.५४१२, १३४४४-४७). महावीरजिन निसाणी, मु. सरेमल, पुहि., पद्य, आदि: कुंडलपुर नगरी देख; अंति: सुध मनसूंगावंदा है, गाथा-४२. ३५६८९. नवतत्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४११.५,११-१५४३०-३५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. ३५६९०. दंडक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. रामचंद्र (गुरु मु. विमलचंद्र ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १५४३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अपहिया, गाथा-३९. ३५६९१.(+) आचारज गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. फतहपुर, प्रले. मु. नेता ऋषि; पठ. श्रावि. अहंकारदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४१०.५, ११४२९). आचार्यगुणवर्णन गीत, मु. रामदास, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुर पाय प्रणमी करी; अंति: सामदास० अधिक जगीस, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक द्वारा गाथांक ८ हासिया में लिखा होने से गाथांक ११ हैं.) ३५६९२. सझाय संग्रह व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२२४११, १६४४०). १.पे. नाम. श्रावकना द्वादसव्रतविवरण स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. श्रावक १२ व्रतविवरण सजाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीदेवगुरुधर्मना; अंति: बारैव्रतनी सिझायथुणी, गाथा-३७. २. पे. नाम. कायोत्पत्ति स्वाध्याय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: रंगे इम कहे श्रीसार, गाथा-७०. ३. पे. नाम. नववाडि स्वाध्याय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, वा. जयविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: चोविसमो जिनवीर होजी; अंति: सत्रुप्रलय जायै सहु, गाथा-३९. ४. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: आज सकल मंगल मिलै आज; अंति: जिनराज० अनभो रस मान, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३५६९३. दसदिग्पालविधि व बलिबाकुला, संपूर्ण, वि. १९४४, आषाढ़ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. लक्ष्मणपुर, जैदे., (२१.५४११, १०४२५). १.पे. नाम. दसदिक्पाल आह्वान विसर्जन विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो इंद्राय पूर्व; अंति: प्रसीद परमेश्वरी, पद-१०. २. पे. नाम. बलिबाकुला के सातधान विधि सहित, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मूंगका१ उडदर चीणां३; अंति: बीदामपीस्ता खीरक फुल. ३५६९४. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ८४४१). पट्टावली, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: श्रीगौतमस्तान्मुदे, श्लोक-१९. ३५६९५. संवच्छरीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३३). संवच्छरीप्रतिक्रमण-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदेस तस; अंति: मतेशांतिना० शिवमस्तु. ३५६९६. अतिचार, वंदित्तुसूत्र व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२३.५४११.५, १५४३४). १.पे. नाम. अढारैपापस्थानक-श्रावक संक्षिप्त अतिचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहलाथूल प्राणातिपात; अंति: माहामुझ हुज मरणंते, (प्रतिपूर्ण, वि. संक्षिप्त अतिचार. पहले प्राणातिपात से लिखा है.) २.पे. नाम. वंदेत्तू सुत्र, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८८१, पौष कृष्ण, १४, रविवार, ले.स्थल. आणंदपुर, पठ. मु. हुकमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चौवीस, गाथा-४३. ३. पे. नाम. जैन श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मूख देखतही मन भावके; अंति: जैनाजखुद्याकै कारणै, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: लसण वाडोवावीयो वाड; अंति: काग कलेवर अब सूवो, पद-१. ३५६९८. (+) सकलार्हत् स्तोत्र व स्नातस्या स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११, ११४२८). १.पे. नाम. पाक्षिक नमस्कार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. सकलार्हत् के मूल नियत पाठ के बाद अन्य विद्वान रचित मांगलिक रूप पाठ मिलते हैं. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: सजयतिजिराउलीपार्श्वः, श्लोक-३३. २.पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३५७००. सिद्धांत गाथा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१९४८, ९४२५). सिद्धांत गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचसु पंचसु पंचसु; अंति: बियं सीवकप्परूक्खस्स, गाथा-७. ३५७०१. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. शवजी शा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१७.५४१२, १९४२०). पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजिणेसर पूरण; अंति: प्रभु संघने मंगल करो, गाथा-१४. ३५७०४. विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१७४११, २३४१८). १.पे. नाम. कल्याणक लेहण की विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा., प+ग., आदि: गुरुके आगे इरियावही; अंति: प्रकट लोगस्स कहै. २. पे. नाम. कल्याणक पारनेकी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही तस्सुत्तरी; अंति: कहै बैठके नमोत्थुणं. ३५७०५. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०,४६४१७). १. पे. नाम. ६२ मार्गणा बोल संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: असन्नी आहारक अणाहारी. २. पे. नाम. चवदैगुणठाणा कोष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानकविवरण- यंत्र, अज्ञा., को., आदि: मिथ्यात्व सास्वादन; अंति: क्षीणमोह सजोगी अजोगी. ३. पे. नाम. २१ उदयादि प्रकृति बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ३५७०६. बोल संग्रह-भगवतीसतक१६ उद्देश ८, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १९४५८). जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५७०७. गुरणी चेली गुण सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१६.५४११, १८x२३). गुरुणी चेली गुण सज्झाय, ऋ. रायचंद, रा., पद्य, आदि: सीखणी सामो जोयनए गुर; अंति: रायचंद० जारो अवतारक, गाथा-१७. ३५७०८. महावीर स्तुति, संपूर्ण, वि. १७९१, माघ शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. साहिपुर, प्रले. मु. नयणचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ११x१९-३५). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. ३५७०९. छन्नूजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १९४४६). ९६ जिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भविअण भावधरी घणो जिन; अंति: मान नमइ आणंद, गाथा-७. ३५७१०. अंतरिक्ष पार्श्वनाथ स्तवन सह टबार्थ व दोहासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. वाघजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११, ५४२८). १.पे. नाम. अंतरीक्ष पार्श्वनाथ स्तवन सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पाहिला पासो वावो; अंति: विजयदेवसूरि० जालइ, गाथा-५, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दीठा पार्श्वनाथ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक लिखा है.) । २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: रे मन सपना सब जग; अंति: साहिब सुणता हि, दोहा-३. ३५७११. (+) सम्यक्त्व द्वादश व्रतआलापक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १५-१९४५३). सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ईर्यापथिकी; अंति: उवसंपज्जताणं विहरामि. ३५७१२. जीवभेद व कृष्ण परीवार, संपूर्ण, वि. १९३१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसुदाबाद, प्रले. मु. हुकमिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११, १२४२९). १. पे. नाम. २४ दंडक ५६३ जीव भेद, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. २४ दंडक ५६३ जीवभेद, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्य ५६३ जीवना; अंति: ३०३ एवं ५६३ भेद थाय. २. पे. नाम. कीसनजी को परिवार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. कृष्णमहाराजा परिवार, मा.गु., गद्य, आदि: बेटा ६० हजारबेटा; अंति: वर्षोनो आयु संपूर्ण. ३५७१३. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४२९). शांतिजिन स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर वंदिये; अंति: उत्तम० दिन दोलत थाय, गाथा-७, (वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुइ है, देखीये पेज १आ साईड.) For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ____ १२१ ३५७१४. पद्मावती स्तुति, संपूर्ण, वि. १९०८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. हरिदूर्ग, प्रले. मु. हमीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११, १३४३२). पद्मावतीदेवी स्तोत्र-सबीजमंत्रयुत, मु. मुनिचंद्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ॐ ॐकार बीजं; अंति: अमरापदमाश्रिते, श्लोक-२६. ३५७१७. पद्मावती आराधनविधि व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १५४२७). १. पे. नाम. पद्मावती आराधन विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी आराधन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: आदि करनारा कीजै ॐ अंति: स्थानं गछ गछ स्वाहा:. २. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १५ अपूर्ण तक लिखा है.) ३५७१८. चतुर्विंशतिजिननाम नवग्रहगर्भित स्तोत्र व सूर्यमध्यमफल श्लोक, संपूर्ण, वि. १९१६, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३८). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिननाम नवग्रहगर्भित स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिस्तवः, श्लोक-१२. २. पे. नाम. सूर्यमध्यमफल वर्णन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सूर्यमध्यमफल श्लोक, सं., पद्य, आदि: त्रिषष्ठोदशमश्चैव एक; अंति: शरीरे क्लेशदायकः, श्लोक-२. ३५७१९. दिक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२१.५४१०.५, ११४२७). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा वासे चिइ वेसे; अंति: नोकारवाली गणावीई. ३५७२१. (+) चंद्रसूर्यमंडलविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४७९). चंद्रसूर्यमंडल विचार प्रकरण, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदि: इह दीवे दुन्नि रवी; अंति: (-), (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक ९ के बाद नहीं लिखा है.) ३५७२२. (+#) नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२८, श्रावण कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जेसलमेरौ, अन्य. पं. जीवणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४७२-७६). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताण; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरहंत; अंति: भणी सिद्ध वडा कहीयइ. ३५७२५. नमस्कार फल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४५५). नवकार कुलक, प्रा., पद्य, आदि: घणघायकम्ममुक्का; अंति: संसारो तस्स किं कुणइ, गाथा-२३. ३५७२७. श्रमणपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. वनीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२, १३४३०). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३५७२८. सरस्वती स्तोत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८२८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११.५, १०४२७). १.पे. नाम. सरस्वतीअष्टक स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: जिनादेशजाता जिनेंद्र; अंति: विलोका निरस्तानिदानी, श्लोक-८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३५७२९. श्राद्धप्रतिक्रमण सुत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१२, १९४४०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: वंदामी जीण चोवीसं, गाथा-५०, (वि. प्रतका ऊपरी भाग खंडित होने से आदिवाक्य नहीं भरा है.) For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ခုခု TI. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५७३०. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, १८४३६). मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजैरे मानवी; अति: रायको बीछडतानइ बार, गाथा-२८. ३५७३१. बुढला चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३३). बुढ़ापा रास, श्राव. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया ज माता वीनवू; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २ की गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ३५७३२. पार्श्वनाथजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६१, चैत्र शुक्ल, १४ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४४४३). १.पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय; अंति: मतिविसाल सुखै करी, गाथा-१२. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक, पृ. १आ, संपूर्ण. ३५७३३. (+) स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १५-१६४५०). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ मंत्राक्षर स्तवन-जीरिकापल्लि, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति: लभेत् ध्रुवम्, श्लोक-१४. २. पे. नाम. नवग्रहस्तोत्र पार्श्वनाथ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रह गर्भित, सं., पद्य, आदि: त्रिभुवन विभोतानि; अंति: जिनपतिपुरतोवतिष्टंति, श्लोक-१३. ३.पे. नाम. शांति स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: विश्वातिशायिमहिमो; अंति: शांतिनाथ सेवा परेमयि, श्लोक-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., पद्य, आदि: पायाद्वः कलिकुंड; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २ अपूर्ण तक लिखा है.) ३५७३४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२, २१४४९-५८). १.पे. नाम. थूलिभद्रऋषीकोस्यानारी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत्ति दायक सदा; अंति: मनोरथ सवी फल्याजी, ढाल-९. २. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: प्रणमुरे विजया रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ३५७३५. चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १६५०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. ग. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४३७-४७). - चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३५७३६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, १४४३३). १.पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारौ मन मोह्यौरे; अंति: सेव्या परमानंद, गाथा-५. २.पे. नाम. केशरीयानाथजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org १२३ आदिजिन स्तवन- केशरीया, पंन्या. आणंदविनय, मा.गु., पद्य, वि. १९९६, आदि: आदिजिणेसर अंतरजामी; अंति: आनंद० गुणगावै रे लोय, गाथा- ११. ३. पे. नाम सेजगिरि स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. आणंदविनय, मा.गु, पद्य, वि. १९७८ आदि सेडुंजे सनमुख चालत, अंतिः सदा रहे आणंद रे, गाथा - ११. ३५७४०. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७३, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. स्याणानगर, पठ. मु. गोरधन (गुरु मु. राजेंद्रविजय) प्रले. मु. राजेंद्रविजय (गुरु पं. फतेविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२३४११.५, १३x२६-३०). पगामसझायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि, अंतिः वंदामि जिणे चठवीस, ३५७४९. गौतमस्वामी रास व दान सझाय, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे २, जैदे. (२४४१२, १४४३१-३४). १. पे. नाम. गौतम रासो, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि विरजिणेसर चरण कमला अंतिः भद्र प्रभु ऐम भी रे, गाथा ४६. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ४अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रथम ढाल की प्रथम गाथा लिखा है.) , ३५७४२. श्लोक संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२४४१२, १७३८). १. पे. नाम सिद्धसेनदिवाकर ने विक्रमादित्य को धर्मलाभ द्रष्टांत. पू. १अ संपूर्ण. सिद्धसेनदिवाकरजी ने विक्रमादित्य को धर्मलाभ द्रष्टांत श्लोक, सं., पद्य, आदि: (१) धर्मलाभ इति प्रोक्तै, (२) दूरादुत्थितपाणये सूर, अंति: सोस्तुवो धर्मलाभः श्लोक-३. २. पे नाम, प्रस्तावीक लोक संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण प्रस्ताविक लोकसंग्रह, पुहिं. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-८, ३. पे. नाम. प्रस्तावीक सवेड्या, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रस्ताविक सवैया पुडिं, पद्य, आदि: भेस को चरेइया कही अंतिः वडे मान सम्मानमे, पद- १. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५७४३. पंचमी स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जै. (२६११, १०x३९). 13. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३५७४४. (*) अनाथीरी सझाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२३.५x१०.५, १३X३९). अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिपति श्रेणिक, अंतिः राजन पंचमहाव्रत धारी, गाथा - ३०. ३५७४५. नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै, (२५x११, १२४३४). पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. पद्य वि. १४वी आदि दोसावहारदक्खो नालीया, अंति: गहा न पीडंति, गाथा - १०. "T ३५७४६. परमानंद पच्चीसी सह टवार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जै. (२३.५x१२, ५X३०-३४). " १. पे नाम, परमानंद पचीसी सह टवार्थ, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदिः परमानंदसंयुक्तं; अंतिः परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५. परमानंद स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः परमानंद क० मोक्ष तेण; अंति: एहवी स्थिति रहता. २. पे नाम लोक संग्रह, प्र. ३आ, संपूर्ण जैन श्रोक, सं., पद्य, आदि: (-): अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५७४७. सोल स्वप्न नी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७४, फाल्गुन कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. कोडींग कार्य बाकी है। जैदे. (२४.५x११.५ १२४३१). " १६ स्वप्न सज्झाय, मु. सीवचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि : आदिसर चरणे नमी सिमरु; अंति: सीवचंद ० सवसुख लहै, गाथा - ३९. ३५७४८. स्तवन संग्रह, हरीचाली व दुहा, संपूर्ण, वि. १८८९, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पू. २. कुल पे. ४, ले. स्थल. भीनमाल, प्र. म. रायसंद, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२३.५x११, १२x२२). मु. १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सोहावें जिनजी; अंति: वांदु श्रीगुरु हीर, गाथा - ९. २. पे. नाम. शांतिनाथजिन स्तवन, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साहिब, अंति: मोहन जय जयकार, गाथा- ७. ३. पे. नाम. हरीयाली, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. प्रहेलिका पद मा.गु, पद्य, आदि वनमे तो जाई राज वस्त; अंतिः अरथ कहो नीतर देउगाली, गाथा- ९. ४. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. दूहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: सुख उपने दुख गल गए ; अंति: जब प्रगटी राग कल्याण, गाथा - १. ३५७४९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१२, ८x२३). १. पे. नाम. विरजीन स्तवन, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, वि. १९३६, फाल्गुन शुक्ल, १४, प्रले. कीसनसंद, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि विर सूणोजी मांरी विन; अंतिः संधुणो त्रीभवन तणो गाथा- १९. २. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचम भे रे, गाथा - ५. ३५७५०. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. ले. स्थल, विक्रमपुर, प्रले. मु. क्षिमासागर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२४X११.५, १४X३८). साधुपाक्षिक अतिचार से.मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०, अंतिः तप लेखे पोचाडवो. 1 ३५७५२. स्तोत्र व मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे ३, जैदे. (२४४१०.५, २६१३). १. पे नाम, जीरिकापट्टि पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ- ९आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य वि. १५वी आदिः ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंतिः लभेत् ध्रुवम्, श्लोक-१४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव- अहेमद्वेमंत्राम्नाय गर्भित, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवते श्रीपार, अंति: कुरु कुरु स्वाहा, श्लोक-१३. पे. नाम, मंत्र संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह " मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-) ३५७५५. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५X११, १४x२७). १. पे. नाम ऋषभदेवरी लावणी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन लावणी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जाणु सरद पुनीम चंदा, गाथा-९, (पू. वि. गाथा ८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमनाथजीरी लावणी, पृ. २अ, संपूर्ण, वि. १८७९, आषाढ़ शुक्ल, २, ले. स्थल. भीनमाल, प्रले. मु. रायसंद, पठ. वदाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. राजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल पुडिं, पद्य, आदि: नेमनाथ मेरी अरज सुण, अंतिः फेरा नहीं फिरनेकी, गाथा-५, (वि. दो पद के हिसाब से गाथा ५ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३. पे. नाम. शंखेश्वरजीरोतवन, पृ. २आ, संपूर्ण, ले.स्थल. श्रीमालनगर. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. माणिक्य, पुहिं., पद्य, आदि: प्रीत बनी तो नीभाय; अंति: माणीक्य०सेवा फल पइया, गाथा-७. ३५७५६. गौतमस्वामी रास वगंधक तेल निर्माण चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, जैदे., (२२.५४१२, १३४३३). १.पे. नाम. गौतमस्वामीरास, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विनयभद्रगुरु इम भणिए, गाथा-६८. २. पे. नाम. चौपाई, पृ. ४आ, संपूर्ण. गंधकतेल निर्माण चौपई, पुहिं., पद्य, आदि: आंवल सारो सूधले ताको; अंति: पीछे गंधक तेल वखाण, दोहा-५. ३५७५७. पार्श्वजिन स्तवन व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४११.५, १३४३४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुखदेव, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीजिननायक तु; अंति: कीसनगढ वीस वावीसे, गाथा-७. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मेघानंच घटा घटा; अंति: जयति रुघनाथ क्षतपति, गाथा-२. ३५७५८. विचार संग्रह-आगमसूत्रगत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४१२.५, ९४२३). आहार उपधि वसती प्रमुख विचार संग्रह-आगमसूत्रे, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३५७५९. (-) सझाय संग्रह व समायिक दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३४१२, १५४४०-४३). १.पे. नाम. सामायिक ३२ दोष, पृ. १अ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर प्रणमी पाय; अंति: श्रीकमलविजय गुरु सीस, गाथा-१३. २. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: विक्षात निमित करे १; अंति: निंद्रा करे १२. ३. पे. नाम. छआरा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ६ आरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: समय समय आरो सुवीचार; अंति: कवी० भवजल निधि करो, गाथा-७. ३५७६०. पल्योपम सागरोपम विचार-संग्रहणीमध्ये, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४०). पल्योपम सागरोपम विचार-संग्रहणीमध्ये, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इहतावत्तत्रपल्योपम; अंति: भवंति नापि भविष्यंति. ३५७६२. ऋषभ वीवाहलो, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४४१०.५, १३४३४). आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: आदि धरम जिणइ उधर्यो; अंति: कविता नर रीषभदासो, गाथा-६८. ३५७६३. प्राग्वाटवंशीय प्रशस्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेख ने पत्रांक.७४-७५ लिखा है., दे., (२५४११, १५४४४-५२). प्राग्वाटवंशीय प्रशस्ति, सं., पद्य, आदि: प्राग्वाटान्वयभूषणं; अंति: महासुखं दद्यात्, श्लोक-१८, (वि. कृति अपूर्ण लगती __ है, किंतु प्रतिलेखक ने संपूर्ण लिखकर पूरा कर दिया है.) ३५७६५. नवतत्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १४४४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-५२. ३५७६६. सम्यक्त्वद्वादशव्रतालापक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, १३४३७). सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ईर्यापथिकी; अंति: उवसंपज्जताणं विहरामि. For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२६ ३५७६७. प्रत्याख्यानसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. ग. कुशलरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ जैवे. (२४.५४१०.५, १७४३८-३९). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उगए सुरे नमुक्कारस, अंति: असित्वेण वा बोसिरामि प्रत्याख्यानसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः उगए सूरे सूर्य उगव, अंतिः मध्ये अर्थ लख्यो छड़. ३५७६८. (+) गौतमऋषि कुलक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३, प्रले. पं. विद्याशेनमुनि पठ. पं. प्रेमविजय गणि प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, ५X३७-३९). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्ड, सं., गद्य, आदि: लुब्धा लोभिष्ठा, अंतिः भव्याः सुखं लभते (प्र. ले, श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा) ३५७६९. कुलक, श्लोक व पद, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४.५X१०, ३X३१). १. पे. नाम. असज्झाई कुलक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. असज्झाय कुलक, मा.गु., पद्य, आदि: पणमिय सिरिपास जिणंद, अंति: सुर सिवसुख रम्म, गाथा - ११. २. पे नाम ज्योतिष लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिष संग्रह *, मा.गु., सं., हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. श्लोक२. ३. पे. नाम वीरजिन पद, प्र. १ आ. संपूर्ण. महावीरजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: बलिहारी जिनवीर की अंतिः ऋद्धि सबही दिखावे, गाथा-४. ३५७७० (+) पौषदशमीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैये. (२५x१०.५, १३४४०). पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमर्हंत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २१ अपूर्ण तक लिखा है.) ३५७७१. (+) कको चतुराईपणा व संधी सूत्र, संपूर्ण वि. १८६२, चैत्र शुक्ल ९. श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. ले. स्थल. पेसुई, प्रले. पं. नायकविजय; पठ. खुशाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११.५, १३x४०). १. पे. नाम. कको चतुराईपणां, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कका पद, रा., पद्य, आदि: ककारे भाई काम करता; अंति: कीणही वाते हठ न कीजे, पद- १. २. पे नाम, संधी सूत्र. पू. १आ, संपूर्ण संधिविभक्ति परिचय, मा.गु. सं., पद्य, आदि समान सवरणे दीरपी अंतिः ओरीने वर जूजूआ, (वि. गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) ३५७७२. बलदेव विवरण व बारआरा वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, १५x५४). १. पे. नाम. बलदेव नाम नगर माता पितादि वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. बलदेवनामादि १७ द्वार वर्णन, मा.गु. को, आदि: अचल पोतनपुर, अंति: निला हलादि तालवृक्ष. २. पे. नाम. बारआरा वर्णन, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. १२ आरा विचार, रा. गद्य, आदि पहिलो आरो मुखमसुखम, अंतिः काल चक्र हूबह , ३५७७३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., ( २४.५X११, १०X३५). १. पे. नाम. सीमंधरजिन गीत. पू. १अ. संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ हिवडुं हेजालुउं अंतिः कहई मत मुंको वीसार, गाथा-७. २. पे. नाम. शत्रुंजय आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- शत्रुंजय, आ. शांतिसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: दइ सरसति सामणि बुद्ध, अंतिः शांतिसूरि० इम भइ ए. गाथा - ९. ३. पे नाम, ऋषभदेव गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- आदिजिन, मु. केशरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सहियां ऋषभजिनस्युं; अंति: केसर० ज जयकारी रे, गाथा- ८. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि साहिब प्रभु अंति: केसर ० तुम्ह पय सेवरे, गाथा-५. ३५७७४. आलोचना विधिसंग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४. कुल पे २ जै (२५४११.५ १५४७५०), १. पे नाम श्रद्धालोचना, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण, आवक आलोयणा विचार, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदिः प्रथमं मुहूर्त अंतिः करिमिच्छामि दुक. २. पे. नाम. प्रायश्चित्तदैण विधि, प्र. ४अ ४आ, संपूर्ण. . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रायश्चित्तप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानाशातनायें जघन्य; अंति: गीतार्थ मुखे जाणज्यो. ३५७७५. (+#) श्रावक आराधना व पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पड गये हैं, जैवे. (२४.५४११, १७४६-५०). १. पे. नाम. श्रावकाराधना, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण. श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रपपु; अंति: मुनिषडरसचंद्रवर्षे, अधिकार-५. १८४३७). १. पे. नाम. जिन पूजा कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. २. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: (१) पापथी छूटे ते ततकाल, . (२) कीयो जाणपणानो सार, ढाल -३, गाथा- ३६. ३५७७६, (+) विचार संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है, अशुद्ध पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३X१०.५). १. पे नाम. नव निधि नाम सह टवार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. ९ निधि नाम, प्रा., गद्य, आदि: नेसप्पीय पलुए पागले, अंतिः माहानेहा संखेचेव. ९ निधि नाम सह टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते ते मेह्यगाम नगर, अंति: आव्या देखवा जउ गछ. २. पे. नाम. बार कुल नाम सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ कुल नाम, प्रा., गद्य, आदि: फासुय जीव पडिगाहेत्त; अंति: पसुवा अगरहिप्पसुवा. १२ कुल नाम सह चार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: फामुक सुजतो जीव रहीत, अंति: (अपठनीय). ३. पे. नाम. चार प्रकारके आहार सह टबार्थ, पृ. १, संपूर्ण. ४ प्रकार के आहार, प्रा., गद्य, आदि असणं वा पाणं वा खावं, अंति: (अपठनीय). ४ प्रकारके आहार - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अन की जात पा० पाणी, अंति: (अपठनीय). ३५७७७. महावीर स्तवन निगोदविचार गर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, प्रले. श्राव. लीलाधर आणंदजी सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, १३३६). " महावीरजिन स्तवन- निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे धन दिन मुझ आज, बाल-२, गाथा- ४३, (पू.वि. अंत के पत्र हैं. डाल १ की गाथा ११ अपूर्ण से है.) ३५७७८. गणधर पर्याय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, जैवे. (२५.५४११, ११४३१-३८). जैदे., गणधर पर्याय, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: पन्नासा गिहवासे वारस, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३५७७९. (-) कथा, सझाय, यंत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., (२३×११.५, For Private and Personal Use Only १२७ सं., गद्य, आदि: एकदा श्रीपत्तने कपर; अंतिः ध्यान प्रभावाज्जाता. २. पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुहंस, पुहिं., पद्य, आदि मन शुद्धि सुणि जीव अंति: सफल करु संसारा, गाथा-८. Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. ६४ योगिनी यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. शकुन विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व दिशि पीयाण करि; अंति: (अपठनीय), गाथा-४. ५. पे. नाम. ६४ योगिनी यंत्र विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: ३२० कागडी माडीइ ६४; अंति: चितवी काठी आलीइ, गाथा-१. ३५७८०. पांचपांडव सिझाय, संपूर्ण, वि. १९१५, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कूचेरानगर, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १५४३८). ५पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिपुर नगर सुहामणो; अंति: कवियण मरण निवार, गाथा-१९. ३५७८१. जीवविचार व नवतत्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११.५, ११४२७). १. पे. नाम. जीवविचार, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पइवं वीरं नमिउण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ३५७८२. चौवीस जिनकल्याणक व जीवगति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. *अक्षर अनियमित है., दे., (२१.५४१२). १. पे. नाम. चोविस तिर्थकर १२० कल्याणिकतिथि, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कार्तिकसुदि १ सुविधि; अंति: स्वामि पारंगताय नमः २. पे. नाम. कल्याणक आराधन विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण. पंचकल्याणकआराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: चवने परमेष्टिने नमः; अंति: गुरु गम जोइ लेवू. ३. पे. नाम. जीव गति, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. पांच प्रकारे कायामांथी जीव जाय तेनी गती विशे विचार जीवगति लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: पांच प्रकारे कायामां; अंति: जाय ते मोक्षे जाय. ३५७८३. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रावण शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. डमांणी, प्रले. पं. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १४४३०). १. पे. नाम. औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: ते सुखीया भाई ते; अंति: विनय कहे तस बंदारे, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्ववीर सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्थविर सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासनमा कहिउं; अंति: मान कहइ धरी प्रेम रे, गाथा-९. ३५७८४. (+) पखीचोमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वल्लरकांजरनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, ३४३०). पक्खि चउमासी संवत्सरी पडिक्कमण विधि, प्रा., पद्य, आदि: मूहपत्ति वंदणयं समुद; अंति: सव्वे पखि पडिक्कमणं, गाथा-३. पक्खि चउमासी संवत्छरी पडिक्कमण विधि-टबार्थ, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)इच्छाकारेण संदिसह, (२)दौय वंदणा देणा पछे; अंति: ए आयार्य मत छै. ३५७८५. गौतमस्वामी स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११.५, ८x२४). १. पे. नाम. गौतमस्वामि स्तवन-महामंत्रमय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: ॐ नमस्त्रिजगन्नेतुर; अंति: भव सर्वार्थसिद्धये, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १२९ २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५७८७. व्याकरण न्याय दर्शनादि मूल व टीकादि विविध ग्रंथों की ग्रंथाग्र सूचि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १७४५०-५१). व्याकरण न्याय दर्शानादि मूल व टीकादि विविध ग्रंथों की ग्रंथाग्रं सूचि, सं., गद्य, आदि: कलापक सूत्रं ५०० आदि; अंति: कार्याबुद्धवृतिः. ३५७८९. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३२, आश्विन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. सा. रूपाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४८. ३५७९०. श्लोक व ज्ञानपंचमी दोह, संपूर्ण, वि. १९२४, आषाढ़ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४६.५, २५४११). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी दहा, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व दुहा, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित श्रद्धावंतने; अंति: विजयलक्ष्मी सुभ हेज, गाथा-५. ३५७९१. स्तवन व स्तुति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १४४५४). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नोदय शिष्य, सं., पद्य, आदि: श्रेयःश्रीणांवाम; अंति: निकाहयेनस्याम्, श्लोक-१७. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-पादपूर्तिरूप, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीमद्गुरुभ्य; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम श्लोक है.) ३५७९२. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १४४३७). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रदक्षिणात्रय; अंति: गुरु मासुस खित्त जाई. ३५७९३. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३९-४४). ___पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० इच्छामि; अंति: नित्थारपारगा होह. ३५७९४. (+) औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १६x४२). औपदेशिक श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३७. ३५७९५. चैत्यवंदन व पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१५४१२, १३४२४). १. पे. नाम. सर्वजिन स्तुती, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुरनरकिन्नरनाग; अंति: कमले राजहंससमप्रभाः, श्लोक-५. २.पे. नाम. हरीसागरजी ने चुनीलाल सेठ को लिखा पत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. हरीसागर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५७९६. साधु वंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११, १५४४०). साधुवंदना, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रीजिनभाषित भारती; अंति: पावै अविचल मोख, गाथा-३२. ३५७९९. साधारणजिन स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१५४१०,११४२६). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति-चतुःश्लोकी, सं., पद्य, आदि: सहसा महसा सहसा; अंति: गौरवमासितगौरवमा, श्लोक-४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: असमरं असमरं जनमंजन; अंति: मांसि तमांसि सरस्वती, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५८००. (+) पंचवीस क्रिया, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १४४४५). क्रिया के २५ भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: कायिकी क्रिया कायानइ; अति: छद्मस्थ वीतरागनइ. ३५८०१. फाग संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, जैदे., (२६४११, १३४३३). १. पे. नाम. समेतशिखरतीर्थ फाग, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण कीयो आज शिखरगिर; अंति: रसमे पायौ मुगत पद कौ, गाथा-४. २. पे. नाम. धर्मजिन फाग, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन होरी, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: मधुवनमे धौम मची हौरी; अंति: क्षिमा कहे कर जोडी, पद-८. ३. पे. नाम. आदिजिन फाग, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. चतुरकुशल, रा., पद्य, आदि: विसरो मत नाम जिनेसर; अंति: लहै रंग पतंग फीको, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदेसर फाग, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन फाग, मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: अब कर ले भजन जिनेस्व; अंति: लाख चोरासी नहि फरको, गाथा-६. ५. पे. नाम. नेमराजुल फाग, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती फाग, पुहिं., पद्य, आदि: एक सुणले नाथ अरज; अंति: शीवपूरी कि सेरी, गाथा-६. ६. पे. नाम. नेम फाग, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: जादवपत मेरो मन हर; अंति: चंद० मन हर लीयो रे, गाथा-६, (वि. गाथा १को २ की गिनती क्रम से कुल ३ गाथा को गाथा-६ लिखा है.) ७. पे. नाम. पार्श्व फाग, पृ. २अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: छाया सुरतरु की, गाथा-७. ३५८०२. सझाय व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१६४११, १८४३२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: दलाली लालन कीम्हारे; अंति: सुझ पडै निज धाम, गाथा-२५. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सरव गिरव मुकरमै भार; अंति: आप्प इही बुझ जाय, गाथा-२. ३५८०३. पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१८x१०.५, १०४२८). १.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दोलत, पुहि., पद्य, आदि: मुरति मोहनगारी माने; अंति: (१)दोलत० आ भव पार उतारी, (२)मुरत तारी मौहनगारी, गाथा-३. २. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिरि जात्रा; अंति: सुरनर नायक गावे, गाथा-८. ३५८०४. (+) प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४४४). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ३५८०५. (+) स्थानांगसूत्रगत मेघपद से परिनिंदिता पद सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १४-१५४५०-७०). स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक४ उद्देश४ मेघपद से परिनिंदिता पद, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: चत्तारि मेहा प० त०; अति: धन्नसंकङ्घिय समाणा. स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक४ उद्देश४ मेघपद से परिनिंदिता पद का टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुषनइ गाजवउ ते दान; अंति: खले आणीता धान समान. ३५८०६. संसत्तनिजुत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, ११-१३४३९). संसक्तनियुक्ति, प्रा., पद्य, आदि: बीआओ पुव्वाओ अग्गेणि; अंति: सोअव्वा साहुपासाओ, गाथा-२४. For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १३१ ३५८०७. ग्रहण विचार व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. २, दे., (२०x१०, १०४२७). १.पे. नाम. ग्रहण विचार, पृ. ११अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जे मासने त्रीज अंधार; अंति: राहु चंद्रने गले, गाथा-२. २. पे. नाम. मल्लिनाथजीन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. पुरण, मा.गु., पद्य, वि. १९५४, आदि: प्यारो मल्लीजीनेशर; अंति: पुरण ससी सुखदाय जो, गाथा-६. ३५८०८. दोहा, पद व औषध, संपूर्ण, वि. १८९९, आषाढ़ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१८४८, २५४१५). १. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. दूहा संग्रह*, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. गाथा-२) २.पे. नाम. प्रहेलिका-श्रावक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रहेलिका पद-श्रावक, रा., पद्य, आदि: जाजमरी नहि जुगत; अंति: अईओ अरबुद देस, गाथा-६. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह* मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५८०९. जैनगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०, १७४५८). जैनगाथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५८११. प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पठ.पं. चारित्रधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ४४३५). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला श्रीआदिनाथनइ; अंति: भणइ तिको भलउ दीसइ. ३५८१२. दुम्मपत्तयनामाज्झयण, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, जैदे., (२४४११, १७७५२). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा १०वाँ अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: दुपपत्तए पंडुअए जहा; अंति: गई गए गोयमे ति बेमि. ३५८१३. मांगलिक स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११, १२४३०-३७). मांगलिक स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्रम; अंति: ऋषभं जिनोत्तमम्, श्लोक-२०. ३५८१४. पच्चक्खाण आगार विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १६४५६). पच्चक्खाण आगार विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ३५८१५. (+) चैत्यवंदन, घंटाकर्ण स्तोत्र व लक्ष्मी मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१४११.५, ९४२१). १. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. २. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. महालक्ष्मी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५८१६. गौतमऋषि कुलक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३४११.५, ६४३१). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टीका, सं., गद्य, आदि: लुद्धा नरा अर्थपराः; अंति: सेव्यतव्यासुखं लभंति, (वि. टीका टबार्थ की तरह लिखी हुई है.) ३५८१७. नेमनाथजीरी लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, ११४३५). For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तजकर राजुलनार तज; अंति: जीणदास सूणौ जीनवर रे, गाथा-४. ३५८१८. गुरुणी सीखणीसझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले.सा. लखु (गुरु सा. वदुजी); गुपि.सा. वदुजी (गुरु सा. अजवाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११, १३४-१). गुरुणी चेली गुण सज्झाय, ऋ. रायचंद, रा., पद्य, आदि: सीखणी सामो जोयनए गुर; अंति: अत्त गुरणी रोतागक, गाथा-१७. ३५८१९. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, १२-१५४४०-४७). चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग., आदि: प्रणम्य परमानंद; अंति: (-). ३५८२०. सूक्तावली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११.५, ११४३४). सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: राज्यं निःसचिवंगत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ३१ अपूर्ण तक लिखा है.) ३५८२१. श्रेणिक राजा सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. 'पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२०.५४१०.५). श्रेणिकराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मतो पुरव सुकरत न कीय; अंति: आयो मारा छरना छयार, गाथा-१६. ३५८२२. औषध व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२३४१२, १४४३०). १.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.. औषधवैद्यक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: स्नान करो उपसमरसपूर; अंति: निहचै सिवरमणी वरै, गाथा-४. ३. पे. नाम. च्यार बोलरी सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ ४ मंगल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलीक पैहलो कहु एह; अंति: सुख लहे अनंत, गाथा-५. ४. पे. नाम. २४ जिन परिवार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिनपरिवार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस तिर्थंकरनो पर; अंति: करजोडीने करु प्रणाम, गाथा-७. ५.पे. नाम. श्रावकरी सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष० हरणी छे एह, गाथा-२१. ३५८२३. भक्तामर स्तोत्र व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३७-४७). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तव, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३५८२४. (+) प्रज्ञाप्रकाश सह टबार्थ, स्तुति व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ६x४०). १.पे. नाम. प्रज्ञाप्रकाश सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३६. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: बुद्धि प्रकाशनिइ; अंति: कीधी रूपसी नामकेन. २.पे. नाम. भवनदेवी स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: ज्ञानादिगुणयुताना; अंति: सदा सर्वसाधुनाम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. क्षेत्रदेवता स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: यस्याः क्षेत्रं समाश; अंति: भूयान्नः सुखदायिनी, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org ४. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३५८२५. स्तवन व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४७ श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४) = १ कुल पे २, ले. स्थल, मांडलगढ, प्र. मु. विनयचंद ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२३४११, १४४३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. सीमंधरजी की वीनती, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लालचंद० एह अरदासजी, गाथा-७, (पू.वि. गाथा - ४ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम. चेलणा सिझाय, पृ. ५अ संपूर्ण चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदीने चलता; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-७. ३५८२६. महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२, अठारासबहत्र, फाल्गुन कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. लक्षणेउ, प्रले. विमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४११, ४x२६). महावीरजिन स्तवन, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि जदजा समणे भयवं महा अंतिः पढउ कयं अभयसूरीहिं गाथा - २२. महावीर जिन स्तवन -टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जड़ कता जयवंतो प्रवतो, अंतिः जय श्रीअभयदेवसूरीने. ३५८२७. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, जैदे., ( २३x१०.५, १२x२९). १. पे. नाम. दशश्रावकरी स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: दश श्रावक भगवंतना; अंति: कहे सोभाग्यरत्तन हो, गाथा - १४. २. पे नाम. तेरेकाठीया स्वाध्याय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण वि. १८९०, आश्विन शुक्ल, ६, ले, स्थल, सादडीनगर, प्रले. पं. तिलोकविजय, अन्य पं. फतेविजय, प्र. ले. पु. सामान्य. १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि सोभागी भाई काठीया, अंतिः सीस उत्तम गुण गेह, गाथा- १५. ३. पे. नाम. नंदीषेणरी सिज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो वासी; अंति: मेरु०को नवी तोले हो, १३३ ढाल-३, गाथा - १२. ४. पे. नाम. जीव उपर स्वाध्याय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: इक घर घोडा हाथीयाजी; अंतिः (१) पून्य प्रमाण रे, (२) पुण्य तणा प्रमाण रे, गाथा - ९. ५. पे. नाम. सामायकरी स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक मन सुधे करो, अंति: सामावक करयो निसदीस, गाथा-५. ३५८२८. सत्तरभेद पूजा, गीत व औधष संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५X११, १३X५१). १. पे. नाम. सत्तरभेद पूजा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा, मा.गु., पद्य, आदि चंद्रवदन वीतरागनूं अंतिः एह पूजाविधि जाणि, गाथा- ३५. २. पे नाम, नेमिजिन गीत, प्र. २आ, संपूर्ण, नेमराजिमती स्तवन, मु. रतनपाल, मा.गु., पद्य, आदि: अष्ट भवतर नेह कीओ; अंति: रतन०मगते सर्गसख पावि, गाथा ५. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. औषध संग्रह " मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३४ ३५८२९. (#) स्तुति, सझाय संग्रह व आयरियउवज्झायसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ९, प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १२X३०). १. पे. नाम कलाकंद स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज अंतिः लवधि० पूरि मनोरथ माय गाथा-४, ३. पे. नाम. पंचमी दिन स्तुति, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, लोक-४. " ४. पे. नाम. ग्यारस स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: गोपीपति पूछे पभणे; अंति: पसरे शासन विनय करंत, गाथा-४. ५. पे. नाम. १४ दिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ६. पे. नाम. सामाइक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाव, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामाइक मन सुद्धि करो, अंतिः सामाइक पालो निशिदीस, गाथा ५. ७. पे. नाम. आयरियउवज्झायसूत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. आयरियउवज्झायसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्रगत, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदिः आयरिय उवज्झाय सीसे; अंति: खमामि सव्व अहयंपि, गाथा-३. ८. पे. नाम. अनाथीऋषी सज्झाय, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण. अनाधीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहिं, पद्य, आदिः मगध देश को राज राजे अंतिः छोडयो गर्भावासा के, गाथा - २१. ९. पे. नाम. नवकार सज्झाच, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सकल ऋद्धि दायक नायक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ तक है.) ३५८३०. पंचपीठ आम्नाय - सूरिमंत्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. आ. अमरसमुद्रसूरि, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., गाथा - १४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. (२५.५X११, १३x४२-४७). सूरिमंत्रपूजा विधि, प्रा., सं., गद्य, आदि: अथ देवतावसरविधि; अंतिः सिद्धिऋद्धिवृद्धिश्च. ३५८३१. गौतमादि गणधरनामगोत्रादि परिचय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५x१०.५, १८४५८-६१ ). गौतमादि गणधरनामगोत्रादि परिचय, सं., गद्य, आदि: सांप्रत वक्तव्यताशेष, अंतिः स्थानत इति गाथार्थः. ३५८३२. वंदित्तुसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५. ५X११, १४X३६). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ३५८३३. मध्याह्न स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२६.५४९०.५, १३x४३). अन्नायउंछ कुलक, प्रा., पद्य, आदि: अन्नायउंछगहणे कयचित; अंति: छंति सुग्गइ तिबेमि, गाथा-२८. ३५८३६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४.५X११.५, १८x४६). १. पे. नाम. ऋषभजिणंदना द्वादसमास, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन बारमासो, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणंद प्रणमु; अंति: दिजिए दिनतणा देवा, गाथा - १४. २. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पं. प्रेमविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकरा ऋषभ, अंति: गुण देहरामे गायातो, For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १३५ मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: निरमल होय भजले; अंति: भवजल समरण पार उतारे, गाथा-५. ३५८३७. उपधानतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, १४४३८). उपधानतप स्तवन, मु. हर्षकशल, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि श्रीजिणपयकमल; अंति: जे नरनारि पतप निरवहइ, गाथा-२२. ३५८३८. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, ११४३७). १.पे. नाम. चैत्यपरवाडि स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. वीजापुर, पठ. मु. वनिसुंदर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरवाडि स्तवन, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: शारदमनि समरी सदा रे; अंति: राज० सम को नहिरेलो, गाथा-३४. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. हरखसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवीरजी वंदु; अंति: हरख० संघलि व्यापइ जी, गाथा-५. ३५८३९. सरस्वती स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १५४४०). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक; अंति: भवत्युत्तम संपदः, श्लोक-९. २.पे. नाम. भगवति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधावी मावहति सततईह, श्लोक-९. ३५८४०. जिनप्रतिमादृढकरण हुंडी, संपूर्ण, वि. १८४७, वैशाख कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. तेजसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लुंका वीजैराजजी की प्रति से प्रतिलिपि की गयी है., जैदे., (२६४११, १४४३७). जिनप्रतिमाहंडिरास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुहदेवी हियडै धरे; अंति: जिनहर्ष कहत कै, गाथा-६७. ३५८४१. स्तवन, स्तुति व औषध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५, १३४३९). १. पे. नाम. स्तंभनकपार्श्वनाथ-श्रृंगाटकबंधमय लघुस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तवन-श्रृंगाटकबंधमय, उपा. समयसुंदर गणि, सं., पद्य, आदि: कमनकंदनिकंदनकर्मद; अंति: ममस्तावीत सुविशेष्य, श्लोक-१०. २. पे. नाम. आदिजिनदेव स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि: शेव्रुजयप्रभृति; अंति: मतं सृजतां श्रयंतु, श्लोक-४. ३. पे. नाम. धातु बंद होने का औषध, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५८४२. योगोद्वहन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४११, १०x१८-५८). योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: आचारांग प्रथम श्रुत; अंति: काल १४ दिन १४ नंदि. ३५८४३. सिद्धचक्रनी वासक्षेप पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, दे., (२५.५४१०.५, ९४२६-२८). नवपद उलाला, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (१)देवचंद्र सुसोभता, (२)वासं ययामहे स्वाहा, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., साधु पद अपूर्ण से हैं.) ३५८४४. (+) नर्मदासुंदरी चौपाई वसझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११.५, २३४५४). १.पे. नाम. नरबदासती चोपइ, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८७२, फाल्गुन कृष्ण, ३०, ले.स्थल. चांवड्य, प्रले. मु. कनीराम (गुरु मु. घासी ऋषि); गुपि. मु. घासीराम (गुरु मु. उग्रसेन ऋषि); मु. उग्रसेन ऋषि (गुरु मु. स्वामीदास ऋषि); मु. स्वामीदास ऋषि (गुरु मु. दीपचंद), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (८९३) ए नरबदानी चोपई, पे.वि. प्रतिलेखन मास में वदि १५ ऐसा लिखा है. For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नर्मदासुंदरीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: (-): अंति: रायचंद० लील विलास के, डाल- २७, (पू.वि. डाल २५ की गाथा ८ अपूर्ण से है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. उदायीऋषि सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण, प्रले. काना, प्र.ले.पु. सामान्य. रा., पद्य, आदि: घणा लोक आव जावै वाणी; अंति: दटण पट्टण करीई रे, गाथा - १९. ३५८४५, (४) उपधान स्तवन व पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१६ (१ से १६) = १, कुलपे, ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१०, १५X४५). १. पे नाम, सप्तोपधान स्तवन, पृ. १७अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा - १८, उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंतिः समय० वंछित सुख करो, (पू.वि. गाथा १७ से है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १७अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर सं., पद्य, आदि धर्ममहारथसारथिसार, अंतिः जय० नंदतु जूयमखंडम्, श्लोक ५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: अमरतरु कामधेणं; अंति: कुणुसुं पहु पास, गाथा- ३. " ३५८४६. चिंतामणी पार्श्वजिन स्तोत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ४, जैबे (२६११, २०५०). १. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, पु. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. जयसागर, प्रा., पद्य, आदि: चिंतामणि पासजिण तं; अंति: राजसायर गुरु पसाएण, गाथा - ९. २. पे नाम. चिंतामणि पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. राजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अनोपम मूरिति जिन तणी; अंति: राजसागर प्रणम पायरे, गाथा - ९. ३. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ विघ्नहर स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - विघ्नहर चिंतामणि, मु. जयसागर, प्रा., पद्य, आदि: पणमामि पासनाहं सुरा; अंति: कमलसायर गुरु पसाएण, गाथा ५. ४. पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ. संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: गणदीवी वृषवी द्वीपा; अंति: जयसागर केन सद्यः, श्लोक- ७. ३५८४७. गुणावलि चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. दे., ( २६.५X११.५, १७X३५-३९). गुणावल चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १७५७, आदि संपत सुखदायक सरस अंतिः (-), (पू.वि. डाल ३ की गाथा १७ अपूर्ण तक है.) ३५८४८. जीरापल्ली पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६X११.५, १६X५४). १. पे नाम, जीरापल्ली स्तव, पृ. ९अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तोत्र- जीरापट्टि, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जीरापल्लीचूतविस्फार, अंति: मुनिसुंदर स्तुतः, लोक-१७. २. पे. नाम. जीरापल्ली स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरापछि, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदिः स्फूर्जिद्यशोभिर्जित, अंति: गुरुसोमसु० चाचिरात्, लोक-१०. ३. पे. नाम जीरापल्ली स्तवन, पृ. १आ. संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जीरापट्टि, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि जीरापल्ली वसुंधरासु अंतिः विधौ निश्शेषदुःखापह, श्लोक-७. ३५८४९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (२६४११.५, १८४५५). For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org १. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: सुमति सुमतिदाता सुख; अंति: गुण गावे अधिकेरा रे, गाथा - ७. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. कान्हजी मा.गु., पद्य वि. १७६२, आदि: तुं तो त्रीजो रे, अंतिः कहे० सकल संघ सुख लहे, गाथा-५, ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरण पास नंदन; अंति: पारस गुण मनरली रे, गाथा-५. ३५८५०. विचारामृतसार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २६.५X११.५, १८X६६-७२). विचारामृतसार संग्रह, आ. कुलमंडनसूरि, सं., प+ग. वि. १४७३, आदि: श्रीवर्द्धमानसूर्यो; अंति: (-). ३५८५१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २६.५X११.५, १४X३५). १. पे. नाम गोतमस्वामी स्वाध्याय, पृ. १अ संपूर्ण गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीर जिणेशर केरो शिस, अंतिः श्रीसंपदानी कोडि १३७ गाथा - ९. २. पे. नाम. वीसवेरमान स्तवन प्रभाती, पृ. १ अ- १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजंबुदीप विदेह मझ; अंति: जपतां कोड कल्याण, गाथा-८. ३. पे नाम प्रभाति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. २४ जिन प्रभाति, ग. तेजजी, मा.गु., पद्य, आदि: सासनपति चोवीसना जे; अंति: तेजसी चोवीसे अभीधान, गाथा-४. ३५८५२. जंबूद्वीप संग्रहणी व परमाणुमान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. असारा, प्रले. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, ५X४७). १. पे. नाम. लघुसंग्रहणी सह टबार्थ, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. " लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्म, आदिः नमिठं जिणसव्वन्नुं अंतिः रइया हरीभदसूरिहि गाथा - ३०. लघुसंग्रहणी-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीय कहतां नमस्कार, अंतिः कीधी कीधी संपवणी. २. पे नाम परमाणु मान सह टवार्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण परमाणुमान गाथा, प्रा. सं., पद्य, आदि पुढवाइ आसत्ता सव्य अंतिः भाग सो परमाणु उच्यते, गाथा-४, संपूर्ण परमाणुमान गाथा- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ जीवनी संता कहे छे अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. बार्थ गाथा ३ तक है.) ३५८५३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, ९×३२). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पू. १अ ३अ, संपूर्ण, वि. १९०१ श्रावण अधिकमास शुक्ल, १५, ले. स्थल. योधपुर, प्रले. पं. सूरजमल प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्रो. (८५) जलाक्षे स्थलाद्रक्षे. . कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे माहरे ठाम धरम, अंति: कांति सुख पामई घणो, ढाल - २, गाथा- २३. २. पे. नाम. महावीरजिन जन्मपद, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन जन्मबधाइ पद, मु. रतन, पुहिं., पद्य, आदि: जगनायक के जगनायक के; अंति: मनवंछित सुख पईया, For Private and Personal Use Only गाथा-४. ३५८५४. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, दे., (२६X११.५, १२X३७). १. पे नाम साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण, पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तार मंगलं अरिहंता, अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं २. पे नाम. साधु अतिचार चिंतवन गाथा. पू. ४आ, संपूर्ण. . साधु अतिचार चितवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे चेईय, अंतिः वितहा अरिणेअ अइयारो, गाथा - १. ३. पे. नाम. गोचरी आलोअण गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. गोरी आलोय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहं आसावज्जा; अंति: साहु देहस्स धारणा, गाथा- १. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५८५५. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६६, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४०). १. पे. नाम. सोले सुपना, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: ऋष जेमल कीधी जोडोरे, गाथा-४५. २. पे. नाम. श्रावकरी करणी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक धर्म करो; अंति: होजो पडमाधारी जी, गाथा-११. ३५८५६. (-#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सेहला ग्राम, प्रले. मु. माना (गुरु मु. डूंगर); गुपि.मु. डूंगर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४५). १. पे. नाम. महासतमहासती कुलं, पृ. १अ, संपूर्ण. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभइ; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-११. २.पे. नाम. श्रावकनी करणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मनह जिणाणं आणं मिछं; अंति: निचं सगरूपएसेणं, गाथा-५. ३५८५७. सझाय, वर्णमाला व परमेष्ठिगुण गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १२४३६). १.पे. नाम. विजयहीरसूरि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विजयहीरसूरि सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता जगमा; अंति: प्रेमविजय० तपगछ धोरी, गाथा-११. २. पे. नाम. वर्णमाला*, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिगुणवर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा.,सं., पद्य, आदि: बारसगुण अरिहंता; अंति: साहु सगवीस अट्ठसय, गाथा-१. ३५८५८. पंचजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२६४११, १४४५३). १. पे. नाम. आदि स्तवन सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन, आ. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, अर्ध.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., पद्य, आदि: श्रीणां प्रीणातु दान; अंति: नमहं __आणंदे नच्चं तया, श्लोक-७, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भूर्भुवः स्वः कर्मता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र श्लोक २ तक की अवचूरि लिखी है.) २.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, अप.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., पद्य, आदि: श्रीमान् शांतिजिन; अंति: केरी वट्टडी संतिनाहो, श्लोक-७. ३. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, अप.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., पद्य, आदि: पारावार समान संसृति; अंति: नेमीदेव हुं देव देओ, श्लोक-७. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, अप.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., पद्य, आदि: भक्तिव्यक्ति प्रणमदम; अंति: णेणं सो सुहं पासुदेउ, श्लोक-६. ५. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, अप.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., पद्य, आदि: विद्यानां जन्मकंदस्त; अंति: (१)राग्भारगौराः श्रियः, (२)सीसल्लडइं अम्महे, श्लोक-६. For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३५८५९. (+) निगोदषत्रिंशका व भावनासूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ९४३०). १.पे. नाम. भगवती एकादशशते दशमोद्देशके निगोदषविंशका, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. __ भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्विंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सेगपएसे जहन्नय; अंति: तेअ अणता असंखा वा, गाथा-३६. २. पे. नाम, भावनासूत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बीच में लिखी गयी है. प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सणं भंते एगम्मि; अंति: विसेसाहिया जीवपएसा. ३५८६०. छंद व पद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १४४५२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वदन सुखकारं सारं; अंति: नयप्रमोद० वंछित सकल, गाथा-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. गाथा-३.) ३५८६१. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, २१४२३). १. पे. नाम. त्रेवीस पदवी विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररत्न पदवी १ छत्र; अंति: रत्न वासदेवना जाणवा. २. पे. नाम. १२ पर्षदा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इसाण कुणनि विसइ देव; अंति: बृहत्कल्पनी छे. ३. पे. नाम. धन्ना अणगार श्वासोश्वास प्रमाण, पृ. १आ, संपूर्ण. ___धन्नाअणगार श्वासोश्वास प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: धन्ना अनगारना दिक्षा; अंति: वरसना सासोस्वास थाइ. ३५८६२.८) पोसह, सामायिक, पच्चक्खाण सूत्र व अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, ले.स्थल. सरीयारी, प्रले. टेकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १०४३५). १. पे. नाम. पोसहपच्चक्खाण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम अरियावहि आये; अंति: अपाणं वोसरामी. २. पे. नाम. सामायिक पारने की विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: समाइ वयजुत्तो जाव; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. पोसह विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सागरचंदो कमोचंद; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४. पे. नाम. पाणाहार पोरसी सूत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-प्रत्याख्यानसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पणाहार पोरसी साढपोरस; अंति: महश्रेण वोसरामि. ५. पे. नाम. रातरिदिवस अतिचारविधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: अतिचाररी आगना कहनै; अंति: चालीस लोगसो कहिणा. ३५८६३. बृहत् शांति व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३४४५). १.पे. नाम. बृहध शांति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: वृधमाने जिनेश्वरे. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१९. ३५८६४. (+) उत्पादव्ययध्रौव्यसिद्धि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११, १८४७५). For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्पादव्ययध्रौव्यसिद्धि निरूपण, सं., गद्य, आदि: अनंतधर्मात्मता; अंति: विरुद्धमनेकांतशासनं. ३५८६५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १५४३५-३८). १.पे. नाम. नय स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, प्रले. पं. विनीतकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिइ; अंति: परि विनय कहै आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५२. २.पे. नाम. रथनेमि सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: यादवकुलना रे तुझने; अंति: कहई तस शीस रे, गाथा-९. ३५८६६. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२,१३४३८). १.पे. नाम. अरणिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण, ले.स्थल. हीरा कोटडा, प्रले. गभ, प्र.ले.पु. सामान्य. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधोजी, गाथा-८. २.पे. नाम. जंबूसामीनी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. हीरचंद्रजी, प्र.ले.पु. सामान्य. जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामीने वीनवं; अंति: पामीआ पोता मुगत मझार, गाथा-११. ३५८६७. (+) बिंबपरीक्षा व प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १७४६०). १.पे. नाम. विवेकविलासगत-बिंबपरिक्षा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विवेकविलास-हिस्सा बिंबपरीक्षा, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: उपविष्टस्य देवस्य; अंति: योज्यतेत्र शिल्पिभिः, श्लोक-३२. २.पे. नाम. प्रतिष्ठा विधि संक्षेप, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: हृदये मस्तके भाले; अंति: हुंति जिणबिंबकारीणं. ३५८६८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१२, १५४४६). १.पे. नाम. अंतरीक छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन दियो सरसति; अंति: होज्यो सुख संपदा, गाथा-५५. २. पे. नाम. शंखेश्वर स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: मुदा प्रसन्नः, गाथा-३२. ३. पे. नाम. गोडी पार्श्वनाथजीनो छंद, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, वि. १८७०, पौष कृष्ण, ८, ले.स्थल. श्रीपालनगर, प्रले. पंन्या. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कुसलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीचा जगतगुरु; अंति: कुसलचंद विनती करे, गाथा-११. ४. पे. नाम. महामंत्र स्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: जिनप्रभ० सीस रसाल, गाथा-१४. ३५८६९. (4) सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८५, फाल्गुन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. ३, ले.स्थल. वल्लभीनगर, प्रले. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १६x४३-४५). १.पे. नाम. पुरुषहितोपदेश स्वाध्याय-शियलोपरि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंतारे सिख; अंति: कुमुदचंद कहे समुजलो, गाथा-१०. २.पे. नाम. स्त्रीहितोपदेशोपरि शियल स्वाध्याय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपमरे सीखामण; अंति: उदयरतन इम उचरे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. दशार्णभद्र राजऋषीस्वर सिझाय, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुद्धिदाई सेवक, अंति: पभणे लालविजय निसदीस, गाथा-९. ३५८७०. (+) कूर्मापुत्र कथानक, संपूर्ण, वि. १६०४, वैशाख कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. उज्जयिनी, प्रले. ग. रत्नविमल (गुरु आ. आनंदविमलसूरि, तपा० विमलशाखा); गुपि. आ. आनंदविमलसूरि (गुरु आ. हेमविमलसूरि, तपा० विमलशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, २०-२३४४८-६०). कुम्मापुत्तचरिअ, मु. जिनमाणिक्य; उपा. अनंतहंस, प्रा., पद्य, वि. १६वी, आदि: नमिऊण वद्धमाणं; अंति: वाइअंतं चिरंजयउ, गाथा-१९१, ग्रं. १०००. ३५८७१. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १५४३९). १.पे. नाम. नवकार चउपई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र चौपाई, मु. हीरानंद, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीसह जिणवर पाय; अंति: बोलि सुरवर हीरानंद, गाथा-२०. २. पे. नाम. असज्झाई सज्झाइ, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वंदी वीरजिणेसर राय; अंति: जिम भवसायर लीला तरु, गाथा-२५. ३५८७२. स्तवन, सझाय, दोहा व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३६). १. पे. नाम. नेम स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-त्रंबावतीमंडन, उपा. गुणकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: त्रंबावती मुखमंडणु; अंति: गुणक० श्रीजिनराय रे, गाथा-९. २. पे. नाम. थूलिभद्र स्वाध्याय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोशि कामिनि कहइ चंदल; अंति: गान करइ तस हींसी रे, गाथा-२२. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: वाहली भवि नयन रचीइ; अंति: नमइ पणि मारणि मृगाह, गाथा-१. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में लिखी गयी है. कुल ग्रं.१ मु. विशालसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सोलिसमा श्रीशांतिनाथ; अंति: सुत हुं नित नामु सीस, गाथा-१. ३५८७३. पद्मावती मंत्र व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. धर्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४४२). १. पे. नाम. पद्मावतीमाता जापमंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. पद्मावतीदेवी जापमंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ आँक्रॉएँ० पद्मा; अंति: साधय हुं फूट् स्वाहा. २. पे. नाम. पद्मावतीमाता स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद्मावतीदेवी छंद, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ह्रीं श्रीं क्ली; अंति: सेवो सूखकारणी, गाथा-११. ३५८७४. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १२४३३). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु आदिस्वरजिने; अंति: हो दीन दीन कीरतार, गाथा-५. २.पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-गहुंली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयर सुणीय रे भगवति; अंति: सुणता मंगल कोड वधाई, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४२ ३५८७५. आदिजिन विनती व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३० आश्विन शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले. स्थल. खारलांग्राम, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५४११. १५४४१). १. पे. नाम. आदिजिन विनती प्र. १अ-२आ, संपूर्ण आदिजिनविनती स्तवन - शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंतिः लावनसमै ० इम भणीय, गाथा- ४५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. परनिंदात्याग पद, भैया, पुहिं, पद्य, आदिः परनिंदा त्याग करि मन अंतिः निगोद तेरो घर रे, पद- १. " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. अनुभव दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण.. " औपदेशिक दूहा* पुहिं. पद्य, आदि ३५८७६, (+) सिद्धांत स्तव सह टीका, संपूर्ण, वि. अनुभो चिंतामण रतन, अंति: अनुभौ मोख सरूप, गाथा- १. १६वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत प्रायः शुद्ध पाठ- संशोधित त्रिपाठ, जै. (२६.५४११, ७-८७७). . सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा गुरुभ्यः श्रुत, अंतिः तत्समागमनोत्सवं श्लोक-४६. सिद्धांतस्तव टीका, आदिगुप्त, सं., गद्य, आदि: ध्यायंति श्रीविशेषाय अंति: (१) विवृत्तिर्लिखितामिता, (२)स्वनामाभिहितवान्. ३५८७८. सझाव संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. ३, वे (२५.५४१२, १०४३८). १. पे. नाम. वीसस्थानक सझाय, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सुयदेवी समरी कहुं, अंतिः भवेइ जिनपद सुजस जमाव, गाथा - १४. २. पे. नाम. पोसा स्वाध्याय, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. पौषधव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु, पद्य, आदि: पेहलो संवर आंणी तज, अंतिः खपे कर्मनी कोड रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य वि. १७८९, आदि: जगपति तु तो अंति: भगवंत चोविसमा भेटीया, गाथा ५. ३५८७९. छंद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, दे., (२५X१२, ११x२४). १. पे. नाम. पंचांगुलीनो छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि भगवती भारती पय नमी, अंतिः संपती न्यत्व बीलसंत, गाथा- १४. २. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो मरुदे; अंतिः सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि अजित जिणंदस्यु प्रीत अंतिः वाचक यस० गुण गाव के, गाथा ५. ४. पे. नाम संभवजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर वीनती; अंतिः फलस्ये एमज साचू रे, गाथा ५. ३५८८०. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २४.५X१०.५, १२X३९). १. पे. नाम. गणईसनी सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. गाथा - ११. २. पे. नाम. दसदाअंग प्रश्नव्याकरणसूत्रनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उदयसूरि गच्छति सज्झाय, मु. सुमति, मा.गु, पद्य, आदि: सरसतिना पाय नमी रे; अंतिः सुमति सदा उछाय For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ प्रश्नव्याकरणसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रश्न व्याकरणांग; अंति: वाचक जस० सुख लहस्ये, गाथा-५. ३५८८१. (+#) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. ग. मंगलचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (५३३) मंगलं लेखकानांच, (८५१) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४०). १. पे. नाम. गोडीचा छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सुमति आपइं; अंति: कुशललाभ० गोडी धणी, गाथा-२२. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ जीराउलानी नीसाणी, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपति दाइक सुरनर; अंति: जिनहर्ष गहंदा है, गाथा-१०. ३५८८२. स्तव, २० स्थानक, प्रभात मंगलीक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १९४५७). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन कल्याणक पंचक गर्भस्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. २४ जिनकल्याणक स्तव, जै.क. आशाराज, सं., पद्य, आदि: तिथिक्रमाग्जिनेंद्रा; अंति: आशाराज०पूरयंतु जिनाः, श्लोक-३२. २. पे. नाम. स्थानकानि, प्र. १आ, संपूर्ण. २० स्थानक श्रावककर्त्तव्य, सं., पद्य, आदि: तत्रैकमर्हतामहत्; अंति: तद्विंशतितमं पुनः, श्लोक-२०. ३. पे. नाम. प्रभात मंगलीक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रभात मंगलिक सप्तक, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी प्रभु प्रणम; अंति: कम्मरिहिउ मह लेजि, गाथा-७. ३५८८३. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. २, प्र.वि. कुल ग्रं. १२५, जैदे., (२६४११, १३४४०). १.पे. नाम. १७ भेद पूजाविचार स्तवन, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पास० भावना भावीइ, गाथा-२९, (पू.वि. प्रारंभिक दो गाथाएं नहीं हैं.) २. पे. नाम. सीमंधरस्वामि स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जगबंधव जगमीया वीनतडी; अंति: अजितदेवसूरे० पुर राज, गाथा-१९. ३५८८४. चउसरण पयन्ना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. वर्द्धमान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४४५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३५८८५. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १३४३४). १.पे. नाम. त्रेवीस पदवी स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. २३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पभणै धरमलाभ घणौ थयौ, गाथा-२३, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा की उत्तर पाद है.) २. पे. नाम. त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तवन, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. वसतौ, मा.गु., पद्य, आदि: धरम महारथ सारथ सार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण तक है.) ३५८८६. भास संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ६, जैदे., (२४४११, १३४३३). १.पे. नाम. सोहमगणधर भास, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सुधर्मास्वामी भास, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति: भानु पंकज जीम विहशे, गाथा-७, (पू.वि. पहली गाथा नहीं २. पे. नाम. गौतमगणधर गुंहली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी भास, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी राजगृहीनां; अंति: झलहलतां समकित भांण, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४४ www.kobatirth.org ३. पे नाम, गुरुगुण गली, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आतिम धरम शुणण भणी, अंति: उत्तम पदवी थाय गाथा ७. ४. पे नाम, सुधर्मास्वामी गहुली, पृ. ३अ संपूर्ण. सुधर्मास्वामीगणधर गहुली, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सोहमस्वामी समोसर्या, अंति: हंसथी मोहन मंगलमाल, गाथा-७. ५. पे नाम, सोहमस्वामी गहुली, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण सुधर्मास्वामी गहुली, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: चउनाणी चोखे चित्ते; अंति: लहे सुख श्रीकार हो, गाथा-७. ६. पे. नाम. गच्छरायगुरुगुण गहुंली, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. विजयजिनेंद्रसूरि गच्छरायगुरु गहुंली, पं. माणिक्यविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सजनी श्रीगुरु चरणकमल, अंति: (-), (पू. वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३५८८८. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २-२ (१) -१, कुल पे. ३, जैवे. (२८४११.५, १७४३२). १. पे. नाम. अकलंकाष्टक, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे नाम, साधारणजिन स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण सं., पद्य, आदि: पापं ध्रुवं परे; अंतिः चेद्व्यर्थस्तवार्हतः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. देवागम स्तोत्र, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मतिः संताड्यतेतस्ततः, श्लोक - १६, (पू. वि. श्लोक १४ से है.) ३५८९०. अष्टक व स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., ( २६११, १३x४०). १. पे. नाम. परमेश्वराष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. आप्तमीमांसा, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: (१) मोक्षमार्गस्य नेतारं, (२) देवागमनभोयानचामरादि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, भोक १८ तक है.) मु. जयवलभ, सं., पद्म, आदि: कल्याणकल्पद्रुम, अंतिः यो लभते सुमनप्रियां, लोक- ९. २. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभवनपति रे मल्य, अंति: (-), (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण तक है.) ३५८९२. विद्वद्गोष्टि व गर्भकाल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११, १७X५७). १. पे नाम. विद्रोष्ठी, पृ. १अ संपूर्ण. पंडित. . सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदि: (१) श्रीभोजराज सभायां, (२) येषां न विद्या न तपो; अंति: नैव च किदृशाः स्युः, लोक-१९. २. पे. नाम. २४ जिन गर्भस्थितिकाल, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: दु चउ नवम बारस तेरस, अंति: सत्त हुंति गब्भदिणा, गाथा- ३. ३. पे. नाम. चउवीस तीर्थंकरनी गर्भस्थिति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. " २४ जिन गर्भावास काल, मा.गु., को. आदिः श्रीआदिनाथ नव मास अंति वीर मास ९ दिन ७ गर्भ ३५८९४. वीरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३५, आषाढ़ शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. ग. खंतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १०४३३-३६). १. पे नाम, महावीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, महावीरजिन स्तवन- मुनरामंडन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: माहरी वीर प्रभूजीने; अंति: कल्याण० नित वंदना रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंतिः रंगविजय० पाय सेव हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: सिधारथना रे नंदन; अंति: विनयविजय गुणगाय, गाथा-५. ३५८९५. गुहलीव भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२,१०४३१). १.पे. नाम. केसीगोयम गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. केशी गौतमगणधर गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: सावथी उद्यानमारे; अंति: घूयली रंग रसाल रे, गाथा-७. २. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु हे सदगुरु; अंति: मानथी सहीरो गावे भास, गाथा-५. ३५८९६. वस्तुपाल प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, २२४६५). वस्तुपाल प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४०५, आदि: श्रीवस्तुपालतेजःपालौ; अंति: (-), (पू.वि. वस्तुपाल द्वारा स्तंभतीर्थ में जाकर चारो वर्णों को दान देकर तुष्ट करने प्रसंग तक है.) ३५८९७. सिद्धचक्र नमस्कार व ऋषभजिन स्त्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. इल्लोलनगर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय गणि; पठ. श्रावि. सांकलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३१). १. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधता; अंति: साधुविजयतणो० करजोड, गाथा-५. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पं. सुरेंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज वधाइ वधाइ वधाइ; अंति: सुरेंद्रविजय० आसरे, गाथा-९. ३५८९८. गणधर संशय सह बालावबोध व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२६४११.५, १२४४१). १. पे. नाम. गणधर संशय सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. गणधरवाद-गणधर संशयगाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जीवे१ कम्मेर तजीवी; अंति: परलोय१० निवाणे११, गाथा-१. गणधरवाद-गणधर संशयगाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)भगवंत श्रीमहावीरदेव, (२)जीवे इंद्रभूतिनई; अंति: बीजी देशना इत्यर्थः. २. पे. नाम. चतुर्दश विद्या सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ विद्या नाम, सं., पद्य, आदि: षडांगी६ वेद चत्वारि४; अंति: विद्या एता चतुर्दश, श्लोक-१. १४ विद्या नाम- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: षटां अग्निशिख्या१; अंति: १४ विद्या जाणिवी. ३. पे. नाम. कमलविचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पढमित्थ कमलेमेकं अठ; अंति: एवं सेसेसुवि दहेसु, गाथा-५. ४. पे. नाम. समयक्षेत्रविचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सव्वेवि पव्वयवरा समय; अंति: सेसा पायं समोगाथा, गाथा-२. ५. पे. नाम. पद्मद्रह मान, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: पद्मद्रह कमलवासनी; अंति: दंडैरभिषिच्यमानं. ३५८९९. (+#) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १४९८, आश्विन शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५९). १. पे. नाम. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: सानंद महानंदैककारणं, प्रकाश-१०. २. पे. नाम. जैन श्लोक संग्रह , पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४६ www.kobatirth.org २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: रयण खाण नही काय नहि; अंति: जिनहर्ष० जाता थकां ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन श्लोक सं. पद्य, आदि: बाह्यः परिग्रहविधि, अंतिः द्रविणमंदिरमोहपाशैः श्लोक-१. , ३५९००. सझाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे (२५.५X१०.५, १७x४०). १. पे. नाम. १० श्रावक स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. वाल्हीनगर, प्रले. मु. चतुररुचि, प्र.ले.पु. सामान्य. १० श्रावकबत्रीसी, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: जिन चोविसे करु, अंति: कोरंटग० भणै नंदसूर, गाथा - ३२. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: यंत्र अनोपम वाजै हो; अंति: कबीर० यौ यंत्र बनाया, पद- ४. ३५९०९. भास संग्रह गीत व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५. ५X११, १४४३६). १. पे. नाम, केशवगुरु भास, पृ. १अ संपूर्ण. मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन मुखि सरसति; अंति: प्रेममुनि गुण गाय, गाथा- ६. २. पे. नाम, केशवगुरु भास, पृ. ९अ, संपूर्ण, १०X३५). १. पे. नाम. शांतिनाथनो छंद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १. मु. प्रेम, मा.गु, पद्य, आदि मेरे गुरु तुम्ह दरसन, अंतिः प्रेम० पावन हुं थाउं, गाथा-४. ३. पे. नाम. उदायन विनती गीत, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर वेगे आवणारे; अंतिः प्रेम० गुण गावणारे, गाथा- ६. ४. पे नाम, उदायननृप मुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण उदायननृप सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सिंधु सुवीर सुदेसमइ; अंति: प्रेममुनि सुखदाय, गाथा-८. ३५९०२ (+) शांतिनाधनो छंद व घंटाकर्ण मंत्र, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५४१२, शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सारद माय नमुं सिरनाम अंतिः मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा - २१. २. पे. नाम. घंटाकर्ण महावीर मंत्र, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, पे. वि. बाद में लिखी गयी है. घंटाकर्ण महावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीरः अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ३५९०४. सझाय संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, जैदे. (२६.५४११.५, १७४३२). . : १. पे. नाम. जंबूस्वामीनी स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि, लुकागच्छ वृद्धपक्ष); गुपि. मु. वेलजी ऋषि (लुकागच्छ वृद्धपक्ष), प्र.ले.पु. सामान्य. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सहसकिरण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसरने हुं पाय; अंति: सहसकरण सुखकारो रे, For Private and Personal Use Only गाथा - ११. २. पे. नाम. गोरवांदुनी तेजसी भास. पू. १आ, संपूर्ण. तेजसी गुरु भास, मु. सगाल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि वीनवु, अति: मुनि सगाल कहे ए भास, गाथा - १०. ३. पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. बाद में लिखी गयी है. चंदनबालासती सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदिः आज अमारे आंगणडइ; अंति: नारायणि० वीरदयाल रे, गाथा ५. ३५९०५. (+) स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६ ११.५, १६x४२). १. पे. नाम. सहस्रनाम स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी- १३वी, आदिः ॐ नमोर्हते परमात्मने; अंतिः अनुकूलानि भवति, Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १४७ २. पे. नाम. कालिकादेवी मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५९०६. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९४, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, १४४३५). १. पे. नाम. दस बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतम प्रश्न १० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (१)दश बोल गोतमस्वामी, (२)क्रोधनो वासो केहने; अंति: वासो महाऋषीने घरे. २.पे. नाम. धर्मसंबंध बोल, पृ. १अ, संपूर्ण.. धर्म संबंध बोल, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मनो बाप जाणपणो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १५ बोल तक लिखा गया है.) ३. पे. नाम. शीलना बत्तीस बोल उपमा, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. शीलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली उपमा ग्रह; अंति: संग्रामे करीने मोटो. ४. पे. नाम. पyसण थुई, पृ. २आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जिन पूजा; अंति: पूरवे देवी अंबाइजी, गाथा-४. ३५९०७. लावणी, सझाय व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२५४११, १३४३४-३६). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरी लावणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन लावणी, पुहि., पद्य, आदि: आगड दौ आगड दौ वाजै; अंति: पारसनाथजी मतवाला, गाथा-१२. २. पे. नाम. बाहुबलजीरी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अतिलोभीया भरथ; अंति: समयसुंदर० पाया रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमिराजुल पद, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: राजुल इण परि वीनवै; अंति: चौथमल. पाचम भौमवार, गाथा-२१. ३५९०८. जन्मपत्री, श्लोक व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १०४३१-३४). १.पे. नाम. कलंकी जन्मपत्री, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. कलंकी कुंडली जन्मचक्र भी संलग्न है. कलंकी जन्मपत्री फलकथन, प्रा.,रा., गद्य, आदिः (१)मम निव्वाणं गोयमा, (२)श्रीमहावीरदेवना; अंति: वीर० प्रमाणत हत्य छै. २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोकसंग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३. पे. नाम. शिवमति विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. शिवमत विचारपद, गोस्वामी तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: साखरे मन धीरज क्यों; अंति: तुलछीदास नास करै, गाथा-५. ३५९०९. (#) ज्योतिष संग्रह व बारव्रत विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३५-३८). १. पे. नाम. चोघडीया चक्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: उद्वेगवेला चलवेला; अंति: रोगवेला कालवेला. २. पे. नाम. अंगस्फुरण फल, पृ. १अ, संपूर्ण... प्रा., पद्य, आदि: सिरफुरणे किरि रज्ज; अंति: वामाज हुत्त फला, गाथा-७. ३. पे. नाम. बारव्रत विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गृहस्थधर्म स्वरूप, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्वमूलानि पंचा; अंति: वराकश्चा० समाचरेत्, श्लोक-६९. For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. रोगीस्नान मुहूर्त, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३५९१०. (#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४५५). १.पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मेघरथराजा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरण भणी पारेवडउ आवी; अंति: मूनइ मयण निवारू रे, गाथा-१८. २. पे. नाम. नारीरुप सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चित्रलेखित जे पूतली; अंति: जिनहर्ष० धूरि राग, गाथा-८. ३५९१२. (+) लघु स्तव व अष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राजधानी, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४४७). १.पे. नाम. द्वीपालंकार सुविधिनाथ लघुस्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. सुविधिजिन लघुस्तव-द्वीपमंडन, मु. उदयसागर, सं., पद्य, आदि: सुविधिरविधि मन्य; अंति: मुदयाब्धिना मुदा, श्लोक-७. २. पे. नाम. जिनवर्द्धमानसूरिवराणामष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनवर्द्धमानसूरि अष्टक, मु. उदयसागर, सं., पद्य, आदि: विविधनृपतिपूज्य:; अंति: मुनिनोदयाब्धिना, श्लोक-९. ३५९१३. (+) सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४४०). १. पे. नाम. राजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. सा. झूमऋद्धि, प्र.ले.पु. सामान्य. राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि चतुर सुजाण; अंति: जइइज तमइ यतशि हो, गाथा-१४. २. पे. नाम. भवानीमाता पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मुरली कविराज, पुहि., पद्य, आदि: मानु दौज को चंद; अंति: मुरली० नर मात भवानि, पद-३. ३५९१४. (+) दशवैकालिकसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३६). दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)जयति विजितान्यतेजाः, (२)इहार्थतस्तत्प्रणीत; अंति: (-), (पू.वि. टीका का प्रारंभमात्र है.) ३५९१५. पार्श्वजिन लावणी व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४२८). १. पे. नाम. पार्श्वप्रभु लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. ___पार्श्वजिन लावणी, मु. शिवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सुनीयो रे सुनीयो; अंति: शिवचंद० दिन सुखकरना, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. शिवचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: हम आए है सरन तिहारे; अंति: शिवचंद्र० सम उजीयारे, पद-११. ३५९१६. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४४२). १.पे. नाम. रहनेमिराजीमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. अजा मनसुखदे, प्र.ले.पु. सामान्य. राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि चतुर सुजाण; अंति: सीस जंपइ इम जैतसी हो, गाथा-१६, (वि. एक गाथा को दो-दो के क्रम से गिनती की गयी है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में लिखी गयी है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. गाथा १ से १२ अपूर्ण तक नहीं है. प्रतिलेखक ने गाथा १२ से ही लिखना शुरु किया है तथा अन्तिम भाग भी अपूर्ण प्रतीत होता है.) ३५९१७. (+) मंगल स्तोत्र सह अवचूरि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत., जैदे., (२५४११, ४४३३). For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीजिनकल्याणवल्लि, अंतिः श्रेयः सुखास्पदम्, श्लोक- ५. साधारणजिन चैत्यवंदन- अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: जयेत्यादि० श्रिया; अंतिः पदं सुखास्पदं. साधारणजिन चैत्यवंदन- अवचूरि, सं. गद्य, आदि हे श्रियायुक्तो जिन अंतिः श्रेयः मोक्षं कुरु " ३५९१८. पुष्पाणि सह टीका, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. जसवंतसागर गणि, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२५X११, १७४४२). आसरे, गाथा - १८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. वैराग्यबोल सज्झाय, पुहिं., रा., पद्य, आदि: बाइए मई कोतिग दीठ; अंतिः सुखि सुखीउ किम थओ, गाथा- २३. फूलडा सज्झाय-टीका, सं., गद्य, आदि: (१) श्रीवीरनिर्वाणात्, (२) हे भगवन् मया कौतुकं, अंतिः सुखभागी जीवो यज्ञे. ३५९१९. (+) आतम संख्या, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५४११, १२४४१). औपदेशिक चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १६४१, आदि: पासजिणेसर पाए नमी, अंति: तेहना सफल फलउ संसारि, "" गाथा- ७१. ३५९२० (+) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जै., (२५x११, , २०x३९-५१), १. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे अंति: गुणविजय० फल मु. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीए सरसती मायेने; अंति: गंग० समो अवर न कोय, गाथा - १०. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: तारे ने मारे साहिबा, अंति: हंसरतन० नेम न जाणा, गाथा ५. ४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५९२१. अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-३ (१ से ३) =२, जैदे. (२५.५४११, ११४३९-४१). १४९ मु. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: चोथो आरो जिनवर वारो; अंति: तेजसिंघ० गुण जुगते, गाथा-५. ५. पे. नाम. पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रीतम पद, मा.गु., पद्य, आदिः सखी आज वदन कमलाय कहो, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद २ तक लिखा है.) सुपडासुपडी संवाद, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-). ३५९२६. रत्नाकरपच्चीशी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६.५४११.५, ९x४५). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंतिः अजिय संतिनाहस्स, गाथा-४४ (पू.वि. गाथा १५ से है.) ३५९२२. संबोधसत्तरी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-५ (१ से ५ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५X११, ५X४०-४२) " संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य, आदि: (-); अंति: (-). (पू.वि. गाथा ५२ से ६१ अपूर्ण तक है ) संबोधसत्तरि-वार्थ, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). ३५९२५. सुपडासुपडी चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५X११.५, १५X३४-३६). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं. पद्य वि. २४वी आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंति: (-), (अपूर्ण, 13 For Private and Personal Use Only पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ९ अपूर्ण तक है.) " ३५९२७ (१) स्तवनबीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जी. (२५४११.५ १४४३८). Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विशालजिन स्तवन १० से चंद्रबाहु स्तवन १३ गाथा-५ अपूर्ण तक है।) ३५९२८. (4) स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३५). विहरमानजिन स्तवनवीशी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन १० विशालजिन स्तवन गाथा-३ सेस्तवन १३ चंद्रबाहुजिन स्तवन गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३५९२९. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १७४४९-५१). प्रतिक्रमणविषयक*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २४ से ६५ तक है., वि. गाथाक्रम अस्तव्यस्त है.) ३५९३०. कालविचारशतक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १५४५०-५२). कालविचारशतक, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण काल कीलं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३७ तक है.) ३५९३१. कल्पसूत्र-साधुसमाचारी सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १५४४२-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. समाचारी प्रारंभ मात्र ही है.) कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: अथ नवमं व्याख्यायते; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ मात्र है.) ३५९३२. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ७९, जैदे., (२५४११.५, ९४२८). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. अंत के पाठ हैं.) ३५९३३. (#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ९४३०-३२). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., नमिऊणसूत्र की गाथा १ तक है.) ३५९३४. (+) इंद्रीयजयशतक व श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४३२-३४). १. पे. नाम. इंद्रीयजयशतक, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: संवेग रसायणं निच्चं, गाथा-१०१, (पू.वि. गाथा ६० से है.) २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोकसंग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा १ अपूर्ण है.) ३५९३५. खंडाजोयण, अपूर्ण, वि. १८१८, भाद्रपद शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्रले. मु. जैमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२५.५४११.५). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तारा जंबूदीउ प्रछइ, (पू.वि. अंत के पाठ हैं.) ३५९३६. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र श्रुतस्कंध १ अध्ययन ८ मल्ली जितशत्रु कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६५-२६४(१ से २६४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२४.५४११, ४४३८-४०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र ८० वा अपूर्ण.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "इम कहइ हुं तइ बोलिउ" पाठ से "मोकल्यान सच करइं" पाठ तक है.) ३५९३७. (+#) नवतत्त्व, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११, १२४३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अतिथसिद्धाय मरुदेवी, गाथा-५३, (पू.वि. गाथा ३७ अपूर्ण तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १५१ ३५९३८. ऋषभ जिन-९८ पुत्र कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १५४५४-५६). आदिजिन ९८ पुत्र कथा, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. किसी ग्रंथ के मध्य की दृष्टांतकथा है.) ३५९३९. (4) पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, ., (२४.५४९.५, १४-१६५३०-३२). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ की गाथा ६० तक है.) ३५९४०. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १८४४७). १. पे. नाम. ४ मंगल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहलो मंगल अरिहंतनो ए; अंति: रीष जैमल० दातार तो, गाथा-२५. २. पे. नाम. जीवोपदेश सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, सा. सुंदरीबाई, मा.गु., पद्य, आदि: समझ अवसर पाया रे जीव; अंति: सुंदरी० संभालुंगीरी, गाथा-११. ३५९४१. मुनिपति रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४-८२(१ से ४१,४३ से ८३)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११.५, १४४४५). मुनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३५ की गाथा २ से गाथा ३२, दोहे ४ अपूर्ण तक एवं ढाल ७३ की गाथा २६ से ढाल ७४ की गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ३५९४२. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, ११४३८). १. पे. नाम. नेमिनाथ समस्यास्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-समस्यामय, आ. जयसिंहसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीरैवताद्रौ जिनपं; अंति: सरोजांहि दृष्ट, श्लोक-९. २. पे. नाम. श्रीकृष्ण भक्तिपद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिणि करि गिरि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद ३ तक है.) ३५९४३. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३६-३७). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: चक्क महंताण कल्लाणगं, गाथा-४, (पू.वि. पहली गाथा नहीं है.) २.पे. नाम. चक्र स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.. सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: अरिहाणं सिद्धाणं; अंति: दुरियाई सव्वाई, गाथा-४. ३५९४४. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, १६४५७). १.पे. नाम. वैरोट्यादेव्याः स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वैरोट्यादेवी स्तुति, अप., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं पास; अंति: पार्श्वनाथउ नामा, गाथा-३४. २. पे. नाम. जैनरक्षा स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सर्वातिशयसंपूर्णान; अंति: जैनेन्द्र० तथालिखत, श्लोक-१८. ३. पे. नाम. पार्श्वस्तवन मंत्रगर्भित, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-बीजमंत्रयुक्त, मु. कुलप्रभ कवि, सं., पद्य, आदि: नत्वोपासित चरणं कमठे; अंति: कविकुलप्रभुतया घटते, श्लोक-१२. ४. पे. नाम. समंत्र पार्श्वस्तव, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-समंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: शतान्यपि वांछितानि, श्लोक-९. ५. पे. नाम. प्रवचन मंगलसार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. उद्योतनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंते नमिऊणं सिद्ध; अंति: मंगल्लं होइ तं तस्स, गाथा-२३. For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. अरिहाण स्तोत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: अरिहाण नमो पूर्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ३५९४५. (#) श्रावक पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १७८९, आषाढ़ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४४-४६). श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मागु., प+ग., आदि: (-); अंति: करी मिच्छामि दुक्कड, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ३५९४६. (+) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७०८, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, ले.स्थल. खंभाति, प्रले. मु. ठाकुरसी ऋषि (गुरु मु. तिलोकसी); पठ. श्रावि. सुषमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिकांतर्गत श्राविका हेतु सुंदर विशेषण दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४४०). विचार संग्रह *मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: चउवीसनउ वर्ण जाणिवउ, ३५९४७. संग्रहणी यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. 'पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, दे., (२५४१०). बृहत्संग्रहणी-अंकयंत्रसंग्रह *, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३५९४८. प्रत्याख्यानानि, संपूर्ण, वि. १८१५, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पंन्या. मिठासागर; पठ. श्राव. जीवण शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, ९४२८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: असित्थेण वा वोसिरई. ३५९४९. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११.५, ९४२६-२८). __ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. काव्य ३३ से ४१ तक है.) ३५९५०. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, ५०-५७४१७-२५). १. पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथा प्रथमअध्ययनगत विचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा प्रथमअध्ययन का विचारसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: हस्तताल ताह क० संताल; अंति: उपनी एहवी हुइ.. २. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: समरवीर राजा महावीरनउ; अंति: करिक वाता अर्गल पुरु. ३५९५१. नियमपालने रूपसेनराज कथा, अपूर्ण, वि. १८१७, वैशाख कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१, ले.स्थल. थांबलानगर, प्रले.पं. मनरूपसागर (गुरु ग. माणिकसागर); गुपि.ग. माणिकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसीतलनाथ प्रसादातु., जैदे., (२४.५४११.५, ५४३२).. रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनसूरेण कृता यथा, (पू.वि. मात्र प्रशस्ति का अंतिम भाग है.) ३५९५२. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५,११४३०-३२). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक हैं.) ३५९५३. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १८९३, पौष कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, ले.स्थल. अजमेर, जैदे., (२५४१२, १०४३०). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-८२, (पू.वि. गाथा ७४ से है.) ३५९५४. शिलगमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. रंगविजय (गुरु पं. विनयविजय); गुपि.पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १८४५२). शेलगमुनि सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसोहमस्वामी कहैं; अंति: प्रीतसुणो प्राणी रे, गाथा-६९. For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३५९५५. (4) साधुपाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण, वि. १८११, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. डांबराग्राम, प्रले. मु. सुजाणविजय (गुरु मु. गजविजय, तपगछ); पठ. श्राव. मनरुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४८). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: संबंधीओ अनेरो०. ३५९५६. सिद्धांत बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४१०.५, १४४४०). सिद्धांत बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: जे इम कहइ छइ अम्हारई; अंति: आदरसो तो भलो छइ. ३५९५७. दिवालीदिन मोटको रास, संपूर्ण, श. १७६०, चैत्र शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. औरंगाबाद, प्रले. रामचंद्र रघुनाथ सैतवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १४४३३). दीपावलीपर्व रास, ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो श्रीभगवंतरो; अंति: जेमल० दिवाली कर जान, गाथा-४३. ३५९५८. (+) चउवीसदंडक स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, ७५३२). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमउपासनाह प्रहि; अंति: प्रसादि परमारथ लहइ, गाथा-२४, ग्रं. ३४. ३५९५९. आचार्य छंद, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. काहानजी मांडण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ९४२९). आचार्य छंद, मु. संकर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति सदा धु; अंति: संकर० प्रतइ चडती कला, ढाल-२, गाथा-३३. ३५९६०. राजवंशावलि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४८). १. पे. नाम. पाटणसूर्यवंशीराजा पाट संख्या, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पाटणसूर्यवंशीराजा पाटपरपंरा संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: (१)अथ सूर्यवंशीराजा, (२)संवत ८०२ वर्षे वैशाख; अंति: आगरामांहि राज्य बेठा. २. पे. नाम. राज वंशावलि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जेचंद भट्ट, मा.गु., पद्य, आदि: संवत् आठबीडोतरे ८०२; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ३५९६१. नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, २०४४७). नेमिजिन स्तवन, मु. धनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिन पाय नमी; अंति: ध्यनवजय सब सुख करो, ढाल-४, गाथा-५१. ३५९६२. (+) उवसग्गहर पार्श्वजिन स्तोत्रं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१०.५, ७४२८). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पासं०; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-९. ३५९६३. सुभाषित श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ३,५ से ६)=२, जैदे., (२६४११, १५४४५-५४). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ८७ अपूर्ण से १३० तक है.) ३५९६५. (#) जैन धार्मिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १५वी, जीर्ण, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांकवाला भाग नष्ट होने से एवं पत्रानुसार श्लोकक्रमानुसंधान न मिलने से पत्र संख्या काल्पनिक दी गयी है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, २४४८२-८५). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पाठानुसंधान क्रमशः नहीं है.) ३५९६६. धनदत्तश्रेष्ठि चौपाई, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५.५४१२, १७४५५). व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: शांतिनाथ जिन सोलमो; अंति: (-), (पू.वि. मात्र अंतिम कुछेक भाग नहीं है.) ३५९६७. नवतत्व प्रकरण व विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३४३७-३८). For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५४ www.kobatirth.org १. पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा-४४. २. पे. नाम. पंचकल्याणकतपउच्चरण विधि - ठाणांगसूत्रे, पृ. २आ, संपूर्ण. + पंचकल्याणकतपउच्चरण विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नवविहे पुन्ने पन्नते; अंति: अकिरिया९ सिद्धी१०. ३५९६८. लघुशांति व तिजयपहुत स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. ग. राजकुशल (गुरुग. दानकुशल, तपागच्छ); प्रले. ग. दानकुशल (गुरु मु. हेमकुशल, तपागच्छ); गुपि. मु. हेमकुशल (गुरु पं. रत्नकुशल गणि, तपागच्छ); पं. रत्नकुशल गणि (गुरुग. आनंदकुशल, तपागच्छ); ग. आनंदकुशल (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (२६.५४११, १८४५०-६३). 1 १. पे नाम, लघुशांति स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. २. पे. नाम. तिजयपहुत स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. विजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ अंतिः निवांत निच्चमच्चेह, गाथा- १४. ३५९६९. भक्तामर स्तोत्र सह स्तवाम्नाय संपूर्ण, वी. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२६४११, १२X४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४, (वि. मूलसूत्र का मात्र प्रतिकपाठ लिया गया है.) भक्तामर स्तोत्र - स्तवाम्नाय, सं., गद्य, आदिः ॐनमोवृषभनाथाय मृत्यु, अंति: स्यराणोदेव शुभं भवति.. ३५९७०. पच्चखाण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५X११.५, ११x४४). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा. गद्य, आदि: सूरे उगए अब्भन्त, अंतिः बत्तियागारेणं बोसिरह कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५९७१. सिद्धचक्र स्तव व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैवे. (२६.५४११, ११४४३). १. पे नाम. सिद्धचक्र स्तव, पृ. १अ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्कं नमामि गाथा ६. २. पे नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण प्रा. पद्य, आदि: जिणसिद्धसूरिउवज्झाय अंतिः सव्वेविकुतुकलाणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्ध स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: देहिमे सिद्धचक्रेष्ट, अंतिः समुदिताः कुशलानिकामं, गाथा-४. ४. पे नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदिः कृतिसुकृतिसुरेंद्रा अंति (-) श्लोक-४ (वि. किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य अवाच्य है.) " ३५९७३. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२६४११, ९४२४). " " ३५९७२. (+) पगामसज्झायसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २६ ११.५, १९६०). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नउकार करेमिभंते; अंति: (-). सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः समरी सारदामाय प्रणमु: अंतिः अमर नमे लली ललीजी, गाथा-८. ३५९७४. संधारा पोरसी सूत्र संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५.५४९.५, ८४३७). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: नमोकार३ करेमिभंते, अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा- १४. ३५९७५. नमिपब्वजा अज्झषण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२६४१०.५, १४४३०-३५ ). For Private and Personal Use Only उत्तराध्ययन सूत्र - अध्ययन ९, हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइऊण देवलोगाओ उवयन्न, अंति: नमीराए रिसी तिबेमि, गाथा - ६२. ३५९७६. (#) काउसग्गना १९ दोष, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., । (२६X११, १६५३९). Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १९ कायोत्सर्ग दोष विचार, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: घोडानी परिइ एकणि पगि; अंतिः बहुनइ दोष न लागिइ. ३५९७७ (+) स्तुति व लोक संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें क्रियापद संकेत अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२६५११, २०५६८-७२). १. पे. नाम. महावीरजिन नमस्कार सह टीका, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन नमस्कार, फा., सं., पद्य, आदि: (१) श्रीवीरः श्रवणसुखां, (२) दोस्ती ख्वादे तुरा; अंतिः कूरो जीम रामेदहि, गाथा - १. महावीरजिन नमस्कार- टीका, सं., गद्य, आदि दोस्ती अनुरागः ख्वाद, अति मे मह्यं दहीति देहि.. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह गूढार्थगर्भित सह टीका, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, पे. वि. श्लोकानुक्रम क्रमशः है परंतु अलग-अलग विषय से संबंधित है. श्लोक संग्रह - गूढार्थगर्भित, सं., पद्य, आदि: गोश्रावः किमयंग; अंतिः रामोहं दशकंधरः, श्लोक-२३. लोक संग्रह- गूढार्थगर्भित टीका, सं. गद्य, आदि: (-); अंतिः इत्यतः कारणादिति. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६३ शलाका पुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३५९८३. छुटक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६११, ११x२५). ३५९७८. भगवती सूत्र शतक उद्देश ३ संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५.५५११.५, १०x२९). -3 भगवतीसूत्र - हिस्सा *, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ३५९७९ (४) चौबीसजिन विवरण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अक्षर अनियमित है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२६x११.५). २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: अढार कोडाकोडि सागरो अंतिः फालगनी नदणराजा पांणय. ३५९८०. जिनशतक - परिच्छेद १, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५X११, १५X४५). जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., पद्य, वि. १००१-१०२५, आदि: श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंति: (-). ३५९८२, (४) त्रैसठशलाका पुरुष विवरण यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११). १५५ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., सं., पद्य, आदि: जयसिरिवंछिअसुहए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १९ तक लिखा गया हैं.) ३५९८४. जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे. (२०x११, १८x४३). 3 जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंता सिद्ध आगे हुआ; अंति: खेत्र चव जासी मोख, ढाल - ४. ३५९८५. (+) ब्रह्मव्रतोच्चार विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x११, १५X४६). व्रतोच्चारण विधि आलापकयुक्त, प्रा. सं., प+ग, आदि: प्रथम प्रदक्षणा दातव, अंतिः धर्मोपदेश प्रदेय.. ३५९८६, (+) विद्वगोष्ठी व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जै (२६४१०.५, १८४५५). १. पे. नाम. विद्वगोष्ठी, पृ. १अ, संपूर्ण. "" पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीभोजराजरसभायां०; अंति: नैव च किदृशाः स्युः, श्लोक-२१. , For Private and Personal Use Only २. पे नाम, सुवर्ण गुंजा श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सुवर्णगुंजा श्लोक सं., पद्य, आदि: न कषैश्छेदनैर्भेदै, अंतिः त्यक्ता वनं गता श्लोक-४. ३. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोकसंग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. 1 लोक संग्रह जैनधार्मिक प्रा. सं., पद्य, आदि: इको अवगुण कोडिगुण, अंतिः तद्विलोप्यस्ति भारत, श्लोक-२०. ३५९८७. वीस वीहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. रामचंद ऋषि, पठ. तिलकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५X११.५, १०X३०). २० विहरमानजिन स्तवन, मु. श्रीपाल, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: श्रीश्रीगुणधर गुण; अंति: निश्चै ते सुख पावसे, ढाल- ३, गाथा - ३०. ३५९९०. नेमराजुल स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२६४११.५, १५४५०). Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: बीनवै उग्रसेनकी लाडल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ तक है.) ३५९९२. पांच पांडव सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. दादी, प्रले.पं. कवरसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १४४२९). ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर अति भलो; अंति: मुज आवागमन निवार रे, गाथा-१९. ३५९९३. पाक्षिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४११, १८४५२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३५९९४. आगमिक पाठ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५०). १. पे. नाम. आगमिक पाठ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: जागरीआ धम्मीणं अहम्म; अंति: देवीणं वन्नं वयमाणे. २. पे. नाम. तीर्थयात्रा नियम, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: एकाहारी शुद्धसम्यक्त; अंति: विदधाती यात्रां, श्लोक-२. ३. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३५९९५. वीश स्थानक तपनी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, ११४३०). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं २०००; अंति: (१)काऊसग्ग लोगस्स ५, (२)उली संपूर्ण करवी, पद-२०.. ३५९९६. जीवद्रव्य प्रमाण सह व्याख्या-पंचसूत्रांतरगत, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४८-२४७(१ से २४७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, १८४६२). पंचसंग्रह-जीवद्रव्यप्रमाण गाथा संग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: पत्तेय पज्जवण काइयाउ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ तक हैं.) पंचसंग्रह-जीवद्रव्यप्रमाण गाथा संग्रह की-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: पर्याप्त प्रत्येक; अंति: (-). ३५९९७. पाखी खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. महेसाणा, प्रले. हरचंद कचरा भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १३४३३). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पिअंच मे जभे हट्ठा; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. ३५९९८. मौनएकादशी गुणण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. अगस्तपुर, पठ. श्रावि. रामकुंवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *अक्षर अनियमित है., जैदे., (२६४१२). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: (१)जंबूद्वीपे भरते, (२)श्रीमहायशसर्वज्ञाय; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ३५९९९. (+) संथारा पइन्ना व आराधना, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, २२४६६). १. पे. नाम. संथारा पइन्ना, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सुहसंकमणं सया दिंतु, गाथा-१२२, (पू.वि. गाथा ९७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आराधना, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. ३६०००. (+#) गौतमस्वामि रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४४६). For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १५७ गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-४६. ३६००१. प्रवचनसारोद्धार सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४१०.५, ३४५४). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार-२७६ के ६४ गाथान्तर्गत गाथा ४९ अपूर्ण से ५६ अपूर्ण तक है.) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, आदिः (-); अंति: (-). ३६००२. (+) सिद्धपंचाशिका सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, ६x४७). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण से ४५ तक है.) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अवचूरि गाथा १४ अपूर्ण से ४५ अपूर्ण तक है.) ३६००३. शीलविषये रूपकमाला, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, ११४३४). रूपकमाला-शीलविषये, मु. पुण्यनंदि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर आदिसउ; अंति: हे पभणइ श्रीपुण्यनंद, गाथा-३३. ३६००४. (+) आउरपचक्खाण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १०४३९). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेस विरउ सम्म; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ से ८ अपूर्ण तक एवं २० से ३५ अपूर्ण तक है.) ३६००५. (+) कुलक व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४२८). १.पे. नाम. पुण्य कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहिस्सा वास; अंति: जिणकत्तीइमी० उजमह, गाथा-१७. २. पे. नाम. श्रावकआचार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में लिखी गयी है. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्नह जिणाण आणं; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. ३६००७. कलंकीजन्मपत्रिका उत्पत्तिवेला बोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. कलंकी जन्मकुंडली का चक्र दिया है., जैदे., (२५४११, १५४४४). कलंकी जन्मपत्री फलकथन, प्रा.,रा., गद्य, आदि: मम निर्वाण तु गोयम; अंति: आपणाउ संवत घालसी. ३६००८. आयंबिली बिदल न हुइ निरूपण, षट्दर्शन संक्षेप व सामायारी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १७४४२). १. पे. नाम. आयंबिली बिदल न हुइ प्रमाण संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आयंबिल तप द्विदल नहीं विषयक शास्त्रप्रमाण संग्रह, प्रा., प+ग., आदि: श्रीजिनशासनमाहि; अंति: एसा आणा जिण जिणदणे. २. पे. नाम. षड्दर्शन संक्षेप, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. लघुषड्दर्शन समुच्चय, संक्षेप, सं., पद्य, आदि: जैन नैयायकं सांख्य; अंति: आगम अर्थापत्ति अभाव. ३. पे. नाम. खरतरगच्छ सामायारी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सामाचारी-खरतरगच्छीय, आ. जिनपतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आयरिय उवज्झाए इच्छाइ; अंति: जिणस्स छ कल्लाणयाई, गाथा-६०. ३६००९. दशवैकालिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-७(१ से ७)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११, ११४४३-४९). For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पिंडैषणा अध्ययन- ५ उद्देश १ गाथा ५७ अपूर्ण से अध्ययन ६ उद्देश१ गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ३६०१०. (४) नवतत्त्व प्रकरण व भडली वाक्य, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११, १७४५०), १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १आ - ३अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ तक लिखा गया है.) , नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) यथास्थित साचुं जे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ७ अपूर्ण तक बालावबोध है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम भडली वाणी, पृ. ३आ, संपूर्ण. भडलीपुराण संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी गयी है.) ३६०११. (#) सुखडी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (४) =४, ले. स्थल. बीकानेर, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५४११.५, ९-१०x२३-२८). आदिजिन सुखडी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसरत माता देवी चरण; अंति: रीद्ध पूत संपदा घणी, गाथा- ५५, (पू. वि. गाथा ३६ से ४९ अपूर्ण तक नहीं है.) ३६०१३. (+) समोसरण स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२६४११, ५X३८). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य, आदि: धुणिमो केवलीवत्थं अंतिः कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अह्मे स्तवस्युं केवल; अंति: भला पदार्थ प्रतिइं. ३६०१४. (+) चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १७०७, आषाढ़ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. कपरवाडा, प्रले. पं. देवचंद्र (गुरु ग. तेजचंद्र); गुपि. ग. तेजचंद्र (गुरु ग. शिवराज); ग. शिवराज (गुरु ग. जीवराज); ग. जीवराज; पठ. श्रावि. वजुबाई सेठ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६.५X१२, ११x२८-३२). 1 नमस्कारचीवीसी, मु. लखमो, मा.गु, पद्य वि. १६वी, आदि पदम जिणवर पदम जिणवर अंतिः नमुं पहि आमतइ दीह, गाथा - २४, (वि. कर्त्ता का उल्लेख नहीं है.) २६०१५. प्रस्ताविका, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२५४११.५, १५४४०-४९). जैन श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदिः स्पृष्ट्वा शत्रुंजय, अंति: यतिनां पतनानि षट् श्लोक- ७६. ३६०१६. वीरजिन स्तवन अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ६-४ (१ से ३५) - २, दे. (२५.५४११, १०४२९-३१). + स्तवन संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ गाथा ६ से ढाल ६ गाथा २ तथा ढाल ८ से ढाल ९ गाथा ११ अपूर्ण तक है.) "" ३६०१७. संवप्रजुनकुमार रास, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैवे. (२५.५x१०, १५४६२). सांप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलुं, अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा १२ तक है.) " ३६०१८. (+) वसुधारानाम धारणी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. जै. (२६११, १३x४८). वसुधारा स्तोत्र, सं. गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति "" ३६०१९. शांतिनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ - २ (१ से २ ) = ४, जैदे., ( २६.५X११.५, १२४३३-३८). शांतिजिन स्तवन- चतुर्दश गुणस्थान गर्भित, आ. सौभाग्यरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज आधार छे जगदीश रे, ढाल -८, गाथा - ९५, ( पू. वि. गाथा ३४ से है. ) ३६०२०. (+) दशवैकालिकसूत्र सझायसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २ ) = २, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. जैसे. (२६४११.५. १३४५१-५४). " For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १५९ दशवकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., सज्झाय ४ गाथा १३ से सज्झाय ९ पूर्ण तक है.) ३६०२१. प्रसन्नचंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १७४४८). प्रसन्नचंद्रराजा रास, मा.गु., पद्य, आदि: पोतनपुर वर ते नगर; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा ५३ अपूर्ण तक दान ३६०२२. (+) तत्त्वार्थाधिगमसंग्रह भाष्यस्याद्याः कारिकाः सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२६४११, ३-८४४३-५३). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-संबंधकारिका आदि, संबद्ध, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: सम्यग्दर्शनशुद्धं; अंति: मार्ग प्रवक्ष्यामि, का.-३१. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-आद्य संबंधकारिका कीटीका, आ. देवगुप्तसूरि, सं., गद्य, आदि: सम्यगर्हत्प्रवचनम; अंति: धर्मार्थिना सता. ३६०२३. अष्टमी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६.५४११.५, १३४३४). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारेमाहरे ठांम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३६०२५. जनरख अने जनपालनो रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पठ. मु. धनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४३३). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)भव दुर्लभ मानव जाण, (२)महावदेहथी जासे मोख्य, ढाल-४, गाथा-६८, (पू.वि. गाथा ५५ अपूर्ण तक नहीं है.) ३६०२६. हंसवत्सराज कथा, अपूर्ण, वि. १६३१, वैशाख शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, ले.स्थल. मांडल, प्रले. मु. माना (गुरु मु. अभयसुंदर, बृहद्ब्रह्माणीयागच्छ); गुपि. मु. अभयसुंदर (बृहद्ब्रह्माणीयागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२५४१०.५, १५४४७). वच्छराजहंसराज चतुष्पदी, असाइत नायक, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: (-); अंति: आसायत० अफल्यां फिलइ, खंड-४, गाथा-४२३, (पू.वि. गाथा ४०७ तक का पाठ नहीं है.) ३६०२७. सुगुरु २५सी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १३४४१). सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू पिछाणो एणे; अंति: जिनहरष० उछरंगजी, गाथा-२५. ३६०२८. (+) सीलविषये विजयसेठ रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. जोजावर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३-१४४४५-४९). विजयसेठविजयासेठाणी रास-शीलविषये, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६८६, आदि: ऋषभादि करे जिन चउवीस; अंति: रच्यो ए कृत धरि मुदा, ढाल-६, गाथा-८९. ३६०२९. (+#) अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १०४३०-३६). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण से है.) ३६०३०. पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १३४४०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पदमावती जीव; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा ३२ अपूर्ण तक है.) ३६०३१. सिद्धचक्र माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, ११४३३). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० तक है.) For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६०३२. संबोधसित्तरी गाहा सह टबार्थव विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ६४५२). १.पे. नाम. संबोधसित्तरी गाहा सहटबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में संबोधसित्तरीगाहा ऐसा लिखा हुआ है परंतु संबोधसत्तरी से पाठ मिलाने पर यह कृति नहीं मिलती है. कर्त्तव्याकर्त्तव्य औपदेशिकगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: जाईकुलरुव्वबलसूय तव; अंति: मोत्तं जो मन्नए आणं, गाथा-१७, (प्रले. मु. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) कर्तव्याकर्त्तव्य औपदेशिकगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जातिमद क० मातापक्ष; अंति: मानवा योग्य धन्य, (प्रले. पं. अमीविजयशिष्य (गुरु मु. अमीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. देवपरिचय विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. विचार संग्रह *मा.गु., गद्य, आदि: देव ते केहने कहीइं; अंति: दूषणे करी सहीत हुई. ३६०३३. (+) पौषध कुलक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ९४३४). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वास; अंति: जिणकित्ति० उज्जमिह, गाथा-१५. ३६०३४. सौभाग्यपंचमीमाहात्मविषये वरदत्तगुणमंजरी कथा, अपूर्ण, वि. १९२५, चैत्र शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, ले.स्थल. जितपर, प्रले. मु. प्रेमजी ऋषि (गुरु मु. हीरजी ऋषि); गुपि.मु. हीरजी ऋषि; पठ. मु. मोतीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ६४३२). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: (-); अंति: (१)मितसद्गुणम्, (२)विनिर्मिता कनककुशलेन, श्लोक-१५०, (पू.वि. श्लोक १४७ अपूर्ण तक नहीं है.) ३६०३५. (+) भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-५(१ से ५)=३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ७४४७-५१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक ११ अपूर्ण से भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: आगच्छति ऋद्धिः, (पू.वि. श्लोक ११ अपूर्ण से टबार्थ है.) ३६०३६. अक्षौहिणीसैन्यमान व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १२४५५). १. पे. नाम. अक्षौहिणीसैन्यमान प्रमाण संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. कोष्ठक सहित. प्रा.,सं., पद्य, आदि: एकेभैकरथा अश्वा: पंच; अंति: मान मुनयो वदंति, श्लोक-२. २.पे. नाम. अजशब्दपर्याय श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: अजो ब्रह्मा अजो; अंति: छागः स उच्यते, श्लोक-१. ३६०३७. सुरप्रिय कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिकांतर्गत चारित्रविजयजी के शिष्य आनंदविजय की प्रशस्ति दी गयी है., दे., (२६४११.५, १७४४५). सुरप्रिय कथा-आत्मनिंदाविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५६, आदि: प्रणम्य महिमागारं; अंति: लिखिता शिवाय स्तात्, श्लोक-१२५. ३६०३८. स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१०.५, २०४२७). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: दुरिततिमिरध्वांता; अंति: द्योतनैकाभ्ररत्न, श्लोक-७. २.पे. नाम. प्रासंगिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: प्राची कुंकुमराग; अंति: तापहरा त्रिफला मता, श्लोक-७. ३६०३९. (+) चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १०, प्रले. गिरधरलाल; पठ. श्रावि. पार्वतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४३४). १.पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेव॒जो सिणगार; अंति: आगम वाणी विनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाणी विनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय विनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वीनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बेनी सुदर्शना; अंति: धरे सुणजो एकह चीत, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. विनीतविजय, मागु., पद्य, आदि: पास जिनेसर नेमनाथ; अंति: सारखी वंदु सदा विनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वराज संवच्छरी दिन; अंति: वीरने चरणे नामु शीश, गाथा-३. ८. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वडा कल्पय पूर्वदिने; अंति: पद्म० सुणता पामे पार, गाथा-४. ९. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नवमासी तप कर्या तण्य; अंति: पद्म० नीतु कल्याण, गाथा-७. १०. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. अंतिम दो अतिरिक्त गाथाएँ बाद मे लिखकर इसके साथ जोड़ दी गयी है. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजुसणगुणलीलो नव; अंति: चरण चरण निरधार, गाथा-९. ३६०४०. (+) इष्टसाधन मंत्र व ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८०८, कार्तिक कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. भावहर्ष (गुरु ग. माणिक्यमूर्ति); गुपि.ग. माणिक्यमूर्ति (गुरु आ. कीर्तिरत्नसूरि); आ. कीर्तिरत्नसूरि; पठ. मु. अमरविमल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १७४५६). १. पे. नाम. मायाबीज कल्प, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐप्रां प्रीं प्रः अम; अंति: वैरीनु कार्य न सीझइं. २. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसलक्ष्यम; अति: स्तोत्रमुत्तम, श्लोक-७४. ३६०४१. निगोदषट्त्रिंशिका सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, १९४६६-६९). भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषत्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सेगपएसे जहणयपय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ तक है.) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ पंचमांग एवैकादशशत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक टीका है.) ३६०४२. (+) समण साध सूत्र, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. रामपुरा, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १८४४५). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छामी पडिकमिओ पगाम; अंति: वंदामी जिण चोवीसं. ३६०४३. पांडव रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११, १६४५०-५२). For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पांडव चरित्र रास, आ. ईश्वरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: कासमीर मुखमंडण माडी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ९६ अपूर्ण तक है.) ३६०४४. सारस्वतीप्रक्रिया सारस्वतदीपिकाटीका-तद्धितप्रक्रिया-प्रथमा वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९४-९३(१ से ९३)=१, पू.वि. मात्र टीकावाला ही भाग है परंतु अंतिम पत्र ९४ होने से प्रतीत होता है कि मूलपाठ भी साथ में होना चाहिये., ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. जयसमुद्र पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ९x४०). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. स्यादिप्रक्रिया तद्धितटीका का अंतिम भाग है.) ३६०४५. (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १२४२८-३०). वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: (-), (पू.वि. जिनदेवश्रेष्ठि द्वारा गुरु से ज्ञानपंचमी विधि पूछने के प्रसंग तक है.) ३६०४६. (+) सुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-३(१,३ से ४)=४, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. यत्र-तत्र शब्दार्थ दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ११-१३४३७). श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १२ से १३९ अपूर्ण तक है.) ३६०४७. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन ३ की गाथा १ तक है., वि. प्रतिलेखक ने अध्ययन ३ की गाथा १ को १७ नं. दिया है और अपूर्ण होने पर भी संपूर्ण लिखकर बाकी पाठ लिखना छोड़ दिया है.) ३६०४८. (#) कलावती आदि कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३८-४०). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कलावतीकथा अपूर्ण से वसंतपुर नगर में एक याचक द्वारा भिक्षा मांगने के प्रसंग अपूर्ण तक है.) ३६०४९. बार भावना वेली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १३४३५). १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल कुल कमलना हंस; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ की गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३६०५०. बंधीना बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. यंत्र-कोष्ठक के साथ., दे., (२६४१२, २२४४९). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जीवाय १ लेसा ८ पखीय; अंति: (-), (पू.वि. लेस्याद्वार बोल का मात्र प्रारंभिक अंश है.) ३६०५१. (+) चउद स्वपन धवल, गौतमस्वामि रास व उपदेशरत्न कोश, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५-२(१,४)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १४-१५४४२-४५). १.पे. नाम. चऊद स्वपन धवल, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मरुदेवामाता १४ स्वप्न धवल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: घइरि श्रीसंपइ होसिइ, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. गौतमस्वामि रास, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि __कल्याण करो, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा ३६ अपूर्ण से ६० अपूर्ण तक पाठ नहीं है.) ३. पे. नाम. उपदेशरत्नकोश सह बालावबोध, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. मूलपाठ एवं बालावबोध दोनो एक साथ में लिखा गया है. For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ उपदेशरत्नकोश, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण तक है.) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रत्न तेहनउ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक का बालावबोध है.) ३६०५२. स्तोत्र, स्तवन व छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, प्रले. ग. हर्षराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४४७). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भलु आज भेट्यो प्रभु; अंति: चक्रे समयादिसुंदरः, गाथा-८. २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. प्रतिलेखक ने किसी अन्य कृति के दो श्लोकों को इस में जोड़कर गाथानुक्रम १३ व १४ दे दिया है. मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गोयमसामी गुणनिलो; अंति: (१)श्रीजयसार बोलइ सही, (२)ध्यायामि योगीश्वरं, गाथा-१४, (वि. गाथांक १३ व १४ अन्य कृति का है.) ३. पे. नाम. गौतमनाम स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: लावण्यस० संपति कोडि, गाथा-९. ३६०५३. (+) पद्माजय स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १२४३९). पद्मावतीदेवी स्तोत्र-सबीजमंत्रयुत, मु. मुनिचंद्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ॐ ॐकार बीजं; अंति: अमरापदमाश्रितम्, श्लोक-२६. ३६०५४. (+) जिनपूजाविषयक शास्त्रप्रमाण संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १४-१५४५९). जिनपूजा विषयक शास्त्रप्रमाण संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीपंचमांग भगवतीसूत; अंति: (-). ३६०५५. (#) सत्यकादेवी स्तुति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३८). ___ सत्यकादेवी स्तुति, मु. देवगुप्त, सं., पद्य, आदि: सुरनरगतपादा ध्वस्त; अंति: श्रीदेवगुप्तो गुरुः, श्लोक-१०, संपूर्ण. ३६०५६. गौतमऋषिभाषित कुलं, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मटो, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४३७). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. ३६०५७. ५ ज्ञान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. *अक्षर अनियमित है., जैदे., (२६.५४११.५). ५ज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सा० जोगी मणजोगी वय; अंति: पज्जवा अनंतगुणा. ३६०५८. सरस्वत्यष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, १०४३४). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., पद्य, आदि: त्वं शारदादेवी समस्त; अंति: पूर्ण कमला निवासम्, श्लोक-९. ३६०५९. नवचउसी कुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११, १३४४६). चतुर्विंशतिजिन स्तव-चत्तारिअट्ठदसदोय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारिअट्ठदसदो वंदि; अंति: देविंद० जगगुरू विति, गाथा-१२. चतुर्विंशतिजिन स्तव-चत्तारिअट्ठदसदोय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: च्यार शंभवादी जीन; अंति: सेमेत सरवरे सीद्धांत. ३६०६१. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१,४)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४२८-३६). For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६०६२. (#) श्रमणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१०(१ से १०)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक न होने से उपलब्ध गाथा के आधार पर काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४११.५, ३४२१). आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पगाम सज्झायसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "पन्नरसहिं परमाहम्मि" से "वायणायरिय आसायणाए" पाठ तक है.) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पगाम सज्झायसूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ३६०६३. उपदेशइकवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पहली गाथा गुजराती लिपि में है., दे., (२५४११.५, १२४३५). औपदेशिक एकवीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: श्रीजिनवर दीजीई सिरी; अंति: रायचंद संसारना फंद, गाथा-२१. ३६०६५. (+#) उत्तराध्ययन सूत्र सह कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९-६(१ से ५,७)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३-१७४४४-६२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन २२ परीसह अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. २२ परीसह अध्ययन अपूर्ण से चूल्लक दृष्टांत में ब्रह्मदत्तसंबंध अपूर्ण तक है.) ३६०६६. भक्तामर स्तोत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १४७२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २५-२४(१ से २४)=१, पृ.वि. पत्रांक नहीं होने से काल्पनिक नं. २५ दिया है., ले.स्थल. मंडप महादुर्ग, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में "अल्पखानु राज्ये खरतरगच्छे" लिखा है जो नाम अशुद्ध प्रतीत होता है., जैदे., (२६.५४११, ११४४१-४४). भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: (-); अंति: पमतिः० प्रायशः संति, ग्रं. १५७२, (पू.वि. टीका की प्रशस्तिमात्र है.) ३६०६७. (+) उपदेशतरंगिणी, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १७४६७). उपदेशतरंगिणी, ग. रत्नमंदिरगणि, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभेयः सवो देया; अंति: (-). ३६०६८. चमरचंचा राजध्यानी, संपूर्ण, वि. १९५२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सोवन ऋषि; ___ पठ. मु. जादव, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, २६४६६-६९). चमरेंद्र कथा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चोसठ असुराणं चौरासीय; अंति: खपावीने मोक्षे जासे. ३६०६९. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३६, पौष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पालि, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ९०, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३३-३७). नेमिजिन स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: गायसुं नेमजिणंद; अंति: ऋषभ० नेमिजीणेसरू, ढाल-४, गाथा-६८. ३६०७०. होलीरज: पर्वप्रबंध कथा, संपूर्ण, वि. १५३४, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १७४५६). होलिकापर्व कथा , सं., पद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिन; अंति: विज्ञानां वाचनोचितः, श्लोक-५३. ३६०७१. भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १२४३६). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ३६०७२. (+) नंदिसूत्र स्थविरावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, ११४३६). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जग जग जोणी जाणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ___१६५ ३६०७३. साधुप्रतिक्रमण सूत्र व संस्तारक विधि, संपूर्ण, वि. १७१८, कार्तिक कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वटपुर, जैदे., (२६.५४११.५, १५-१६४४६). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पगाम सज्झायसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. २.पे. नाम. संस्तारक विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही निसीही निसीही; अंति: इय सम्मतं मए गहियं, गाथा-११. ३६०७४. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११,५-६४३९-४३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३४ अपूर्ण तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वजिनमानम्य; अंति: (-). ३६०७५. कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्रत की हुंडी में कल्पसूत्रटबो लिखे होने से प्रत टबार्थ की लग रही है परंतु नवकार वर्णन शुरुआत तक ही है., जैदे., (२५.५४११.५, १४४३४). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं माहरो; अंति: (-), (पू.वि. नवकार मंत्र का पदार्थ प्रारंभमात्र है.) ३६०७६. साधुपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१२, ८४२१-२६). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: (-). ३६०७७. (+) पुण्याढ्य नरेश रास, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४५). पुण्याढ्यनरेश रास, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय वासुपूज्य जिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण तक है.) ३६०७९. प्रकरणचतुष्क सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५-२(१ से २)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१०.५, ५-६४४१-४५). प्रकरण चतुष्क, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जीवविचार गाथा २३ अपूर्ण से नवतत्त्व गाथा ११ तक का पाठ है.) प्रकरणचतुष्क- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जीवविचार गाथा २३ अपूर्ण टबार्थ से नवतत्त्व की गाथा ११ तक का टबार्थ है.) ३६०८०. (+) सम्यक्त्व सत्तिरी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३-१५४४७-५४). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सणसुद्धिपयास; अंति: दसणसुद्धिं धुवं लहइ, गाथा-७०. ३६०८१. ब्रह्मवाटकमुकुट वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. १, जैदे., (२६४११, १७४६२). महावीरजिन स्तवन-बंभणवाडामंडन, आ. सोमसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणावलिवल्लीण; अंति: गुरु रयणसेहररस, गाथा-२५. ३६०८२. युगादिजिन स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२६४११.५, ६४५०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक ११ से है.) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: निहचै लक्ष्मी पामे, (पू.वि. श्लोक १० तक का टबार्थ नहीं है.) ३६०८३. अल्पबहुत्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४४१). महादंडक स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवंमि भमिओ; अंति: सामि अणुत्तरपयं देसु, गाथा-२०. ३६०८४. नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, १३४४२-४४). नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: आसडह धुरिऊ नयउ घण; अंति: सामला गेरुया गुणवंत, गाथा-३०. ३६०८५. जिनस्तुतिस्तोत्ररत्न कोश सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, १३४४२-४७). For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनस्तुतिस्तोत्ररत्न कोष, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जय श्रीऋषभ श्रेयः; अंति: श्रेयोचिराच्छाश्वतम्, अध्याय-२, श्लोक-७५, ग्रं. ८१. जिनस्तुतिस्तोत्ररत्न कोष-अवचूरि, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: लौकिकलोकोत्तरादिभेदा; अंति: (१)च सुंदरैः स्तवगणैः, (२)वर्द्धमानत्वमिति. ३६०८६. (+) लोकनालद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९३, कलानारदवन्हीवर्ष, चैत्र कृष्ण, ३०, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. लाडपूरा, प्रले. मु. हीरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि.सं.१६९३ की लिखी प्रत पर से प्रतिलिपि होनी चाहिये, कारण कि लिखावट से प्रत १९वी की प्रतीत होती है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४३९). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जो लोय; अंति: धम्मकित्ति० इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेवना; अंति: विषइ भिसं कहता अतिह. ३६०८७. चंदनबाला गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. कुल ग्रं. ७०, दे., (२५.५४११.५, १०४३२-३४). चंदनबालासती गीत, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुण गाय हो स्वामि, गाथा-३५, (पू.वि. गाथा २१ तक नहीं है.) ३६०८८. अजितशांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४११.५, १३४३४-३६). अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २२ अपूर्ण तक है.) ३६०८९. (+) अंतर्कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, २१४७३-७५). अंतर्कथा संग्रह, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: यन्नैकामपि कामिनीं; अंति: (-), (पू.वि. गुर्जरदेश उत्तमनगर संबंधी व्यासकथा अपूर्ण तक है.) । ३६०९०. सज्झाय, दोहा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११.५, १५४३७). १. पे. नाम. ७ व्यसन सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साधु सुगुर; अंति: सीस जयरंग इम कहै, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: पग थंभे तक ओलखे निपट; अंति: कथे भिक्षालंबन एह, गाथा-१. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उच्चैरध्ययनं पुरातन; अंति: विधिभिर्गुणा द्वादश, श्लोक-१. ३६०९१. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२६४११, १९४५५-७१). अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ से प्रकाश ५ पर्यन्त पूर्ण एवं प्ठे प्रकाश के श्लोक १ का अर्धपाद है.) ३६०९२. स्थुलीभद्रबत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु. पंचा ऋषि (गुरु आ. गुणसागरसूरि); गुपि. आ. गुणसागरसूरि; पठ. श्रावि. रंगदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४३६). स्थुलिभद्रबतीसी, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणसागर० करावंदा, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से है.) ३६०९३. क्षेत्रसमास सत्क विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४६४). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-विचार*, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: (-); अति: सर्वसपि फड्डके अस्ति. ३६०९४. संलेखनादि विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४११, ४४४२७). विविध विचार संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६०९५. आत्मप्रबोधक ज्ञापक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, दे., (२६.५४१३, १२४३७). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जसनइ वयणे जी, ढाल-८, गाथा-७६, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., ढाल ४ से है.) ३६०९६. पिंडविशुद्धि की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १७४५८-६४). पिंडविशुद्धि प्रकरण- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: देवि० शोभनं विहित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २८ अपूर्ण तक की टीका है.) ३६०९७. (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १६४५२). १.पे. नाम. साधुश्रावक सम्यक्त्व विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: भावविआणसामणुवत्तणाउ; अंति: समित्र समानः. २. पे. नाम. जीव आयुमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: समाषष्टिघ्निा ; अंति: स्वयमवगंतव्यं. ३. पे. नाम. पुलाकबकुशकुशीलादि पंचभेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. पुलाकबकुशकुशीलादि पंचभेद विवरण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: वंदे पंचचरित्ते पंचय; अंति: साधवः शेष स्पष्टं. ३६०९८. जावडभावडसेठ रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, २०४६६). जावडभावडसेठ रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पणमवि मरुदेवि सामिणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५७ तक है.) ३६०९९. संविभागवत कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२७४११.५, १८४४०). चंद्रधवल कथा-अतिथिसंविभागवते, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इह भरतक्षेत्रे काश्म; अंति: (-), (पू.वि. श्रीपतिश्रेष्ठि अंतर्कथा अपूर्ण तक है.) ३६१००. जयपताका यंत्रलेखन पूजनविधि सहित, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५.५४११.५, १३४४४). महापुराण-जयपताकायंत्र कल्प, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. यंत्रलेखन विधि व फलश्रुति का __ आंशिक भाग है.) ३६१०१. परमात्माद्वात्रिंशिका व आत्मनिंदाद्वात्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १७४५८-६२). १.पे. नाम. परमात्माद्वात्रिंशिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसात्म्यात्; अंति: तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३. २. पे. नाम. आत्मनिंदा द्वात्रिंशिका, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. साधारणजिन स्तव, श्राव. कुमारपाल महाराजा, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: नम्राखिलाखंडलमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २५ अपूर्ण तक है.) ३६१०२. (+#) स्तवन, स्तोत्र व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. ४, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १८-१९४६०). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २४ जिन स्तव, मु. कुलप्रभ कवि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कुलप्रभ० सुखप्रदाः, श्लोक-२६, (पू.वि. श्लोक १७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. भक्तामर स्तव, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तव, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ४. पे. नाम. सकलाहत स्तोत्र के चयनित स्तुति-प्रार्थना श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र-जिनभवन स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: अवनितलगतानां कृत्रिम; अंति: (१)भावतोहं नमामि, (२)भ्यर्चितांघ्रये, श्लोक-२. ३६१०३. त्रिंशच्चतुर्विंशतिका स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११, १९४६३). त्रिंशच्चतुर्विंशतिका स्तवन, मु. देवेंद्रसूरी म., सं., पद्य, आदि: केवलज्ञानिनं निर्वाण; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन ५ गाथा ११ तक है.) A . ३६१०४. वैराग्यशतक, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-४(१ से ४)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १६४४८-५०). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ११ से ९३ अपूर्ण तक है.) ३६१०५. चतुयेति विलि, अपूर्ण, वि. १६७९, पौष कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(३ से ५)=३, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४६-४९). ४ गति वेलि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: देवदया पर नमीय; अंति: हुवाछु गुणठाण, गाथा-१३५, (पू.वि. गाथा-५६ से १३३ अपूर्ण तक नहीं है.) ३६१०६. साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१०.५, ९४२३-२८). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: फ्रेनें कि धप; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा संख्या ३ तक लिखकर संपूर्ण कर दिया है.) ३६१०७. सालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १३४४२). शालिभद्र रास, मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, वि. १४५५, आदि: देवि सरसति देवि सरसत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ३६१०८. अणुत्वपुद्गलादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४१०.५, १९४६३). अणुत्वपुद्गलादि विचार संग्रह, सं., गद्य, आदि: अणुत्वं पुद्गलसंज्ञा; अंति: परिगणिता इत्यर्थः. ३६१०९. क्रियारत्नसमुच्चय सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, ७४३२). क्रियारत्नसमुच्चय, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४६६, आदि: जयतिजिनवर्द्धमानो; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र १४७ अपूर्ण तक है.) क्रियारत्नसमुच्चय-टीका, सं., गद्य, आदि: सर्वासां विभक्तीना; अंति: (-). ३६११०. (#) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१९(२ से २०)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३३). कल्पसूत्र-कल्पकल्लोलिका बालावबोध, मु. अमृतकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७७५, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; ___ अंति: (-). ३६१११. (+) भक्तामर स्तोत्र सह कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-१७(१ से १७)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, ९४३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२६ से ३१ अपूर्ण तक हैं.) भक्तामर स्तोत्र-कथा *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६११२. (+) परमसुखबत्तीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११, ५-६४३३). परमसुखबत्तीसी, प्रा., पद्य, आदि: धर्माधर्मांतरमत्वा; अंति: तदा ते परमं सुख, गाथा-३२. परमसुखबत्तीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म अधर्मर्नु आंतर; अंति: तुंहरइ परम सुख. ३६११४. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८). महावीरजिन हमचडी-५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नंदनकुं तिसला हुलारा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६११५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२, १३४२९). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव नित वंदीयइं; अंति: भणे ए प्रभु चिरंजीवो, गाथा-५. २.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. __उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: माता सेना जेहनी तात; अंति: नय० सीस कहे दूख टाल, गाथा-५. ३६११६. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३६११७. (#) हियाली, सज्झाय व दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४१). १.पे. नाम. हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक हरियाली, वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक अचंभो जगमाहि मई; अंति: श्रीकमलविजयगुरु सीस, गाथा-९. २. पे. नाम. गुरू सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयदेवसूरि गहंली, वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चंद्रमुखी सखी; अंति: गुण० गुरुजी चिरनंदो, गाथा-५. ३. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दूहा संग्रह", पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ३. ३६११८. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पठ. मु. भगवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१०.५, ८४५५-५७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-६०. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ* मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व१ अजीवतत्व२; अंति: प्रत्येक संसारी जीव. ३६११९. (+) लुंकागच्छ प्रशस्ति पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १६x६८). लुकागच्छ प्रशस्ति पत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमदादिजिनं नत्वा; अंति: तं गणि राजरत्नम्, श्लोक-१४. ३६१२०. आवश्यकसूत्र संबंधी प्रमाणभूत साक्षिपाठ संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २७-२५(१ से २५)=२, जैदे., (२६.५४११, २३४५७). आवश्यकसूत्र संबंधी प्रमाणभूत साक्षिपाठ संग्रह, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: श्रीसूरिपरंपरांगने; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अंत के पाठांश नहीं है.) ३६१२१. (+) जिनमातापितागति गाथा सह टीका,दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व व आत्मशिक्षा प्रकरण की गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११, ४४२७-२९). १. पे. नाम. जिनमातापितागति गाथा सह टीका, पृ. १अ, संपूर्ण. सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषये, प्रा., पद्य, आदि: अट्ठण्हं जणणीओ तित्थ; अंति: हिंदे अट्ठ बोद्धव्वा, गाथा-२. सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषये-टीका, सं., गद्य, आदि: अष्टानां तीर्थकृता; अंति: वलोके गता बोद्धव्या:. २.पे. नाम. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पपुदउ कमसो जीवा जल; अंति: अहगामा दाहिणे झुसिरं, गाथा-२. ३. पे. नाम. आत्मशिक्षा प्रकरण, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आत्मशिक्षा प्रकरण की-चयन गाथा, वा. सकलचंद्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा-३२ तक लिखा है., वि. प्रत का ऊपरी भाग फटा होने से आदिवाक्य नहीं भरा है.) ३६१२३. जैनव्याकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२४.५४११,१२४४६). जैन व्याकरण, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ से ५ तक हैं.) जैन व्याकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६१२४. भृगुप्रोहतरो चउढालीयो, अपूर्ण, वि. १८८३, श्रावण कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. खांनराहवडा, प्रले. मु. उमेदचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १७४३३). भृगुपुरोहित चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुगत गया दुख मुकाय, (पू.वि. अंतिम ढाल की गाथा १५ से ३६१२६. कुलक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५४११, १६४४१-५४). १. पे. नाम. दानशीलतपोभावना कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महिअमोहं वीर; अंति: जयसारो जयउ जिणधम्मो, गाथा-२९. २. पे. नाम. क्षमा कुलक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पुव्वपुरिसाण; अंति: सो पावइ पसमवररयणं, गाथा-२५, ग्रं. ७२. ३. पे. नाम. खामणा कुलक, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जो कोवि मए जीवो चउगइ; अंति: कमक्खइ कारणं होइ, गाथा-३६. ४. पे. नाम. प्रमोद विपाक कुलक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रमादपरिहार कुलक, प्रा., पद्य, आदि: दुक्खसुक्खे सयामोह; अंति: जिणपयसेवा फलं रम्म, गाथा-३३. ५. पे. नाम. कर्मकुलक, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कर्म कुलक, प्रा., पद्य, आदि: तियलुक्किमल्लस्स; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ३६१२७. स्वप्नविचार व पर्वकर्तव्य गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १६४४३). १.पे. नाम. १४ स्वप्न गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ स्वप्नविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वेयङ्सेल ससहर किरणा; अंति: पविसंताणिय सुविणाणी, गाथा-२८. २. पे. नाम. पर्वकर्त्तव्य गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्वकर्तव्य गाथा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: मंत्राणां परमेष्टि; अंति: गुणा इमे हुंति, गाथा-७. ३६१२८. शालिभद्र चरित्र की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, जैदे., (२६४११, १५४६५). शालिभद्र चरित्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा मांगल्याष्टो; अंति: मोक्ष पथरथेवृषभः, प्रस्ताव-७. ३६१२९. नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२६४११, ११-१२४५८). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइजगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४६ अपूर्ण तक ३६१३०. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा २० की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२५४११, १२-१४४४३). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा २०-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: उपवासेन गतं दिनम्, (पू.वि. श्लोक ९ की वृति से है.) ३६१३३. (+) जंबुद्वीप संग्रहणीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ५४४०). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: निमिय कहता नमस्कार; अंति: कीधी हरिभद्रसूरै. ३६१३६. (+#) नमस्कारफल दृष्टांत संग्रह व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. १५-१२(१ से १२)=३, कुल पे. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १३४३५). १.पे. नाम. नमस्कारफल दृष्टांत संग्रह, पृ. १३अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ नमस्कारफल दृष्टांतसंग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मंत्र सदा सौख्यदम्, श्लोक-३१९, (पू.वि. श्लोक-२५२ अपूर्ण से २.पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्रा.,सं., पद्य, आदि: नवकारेण जहन्ना दंडग; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पाठ मात्र है.) ३६१३८. कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं, जैदे., (२६४११,११४४६). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नैतत्पर्वसमं पर्वं न; अंति: (-), (पू.वि. आर्य सुहस्तिसूरि के पाट तक है.) ३६१३९. चक्रवर्ति रिद्धि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, २०-२१४६४-७०). १२ चक्रवर्ति नामआयुआदि विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ३६१४०. कुरगुड रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, १९४६०-६४). कुरगडुमुनि रास, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: संतनाथनै सीमरीये; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ४ गाथा ६ तक है.) ३६१४१. आचारांग सूत्र सह टबार्थ-द्वितीय श्रुतस्कंध, अपूर्ण, वि. १९वी, ?, श्रेष्ठ, पृ. ११३-११२(१ से ११२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११, ६x४३). ___आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३६१४२. खीमा छत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४११.५, ११४२९). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ३६१४३. सम्यक्त्व रो अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १४४३६). सम्यक्त्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो ऊपशमिक तेहनी; अंति: (-), (पू.वि. क्षायिकसम्यक्त्व-३ अपूर्ण तक है.) ३६१४५. दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८७०, चैत्र शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २७-२५(१ से २५)=२, ले.स्थल. कीसनगढ, प्रले.सा. सारांजी (गुरु सा. बखताजी); गुपि.सा. बखताजी (गुरु सा. चीमलाजी); सा. चीमलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ११x१६-३३). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन ९ अपूर्ण से है.) ३६१४६. गुरुगुण छत्तीसी, स्तुति व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १३४४६). १. पे. नाम. गुरुगुण छत्तीसी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. गुरुगुणषट्त्रिंशत्पत्रिंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भव्वा पावंतु कल्लाणं, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा ३३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. स्नातस्या स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. युगादि स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सुरराजसमाजनतांद्रि; अंति: भवभविनां भवभीतिहारम्, श्लोक-९. ३६१४८. नमस्कारमंत्रमहिमा श्लोक व प्रासंगिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-२१(१ से २१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, २२४७०). १. पे. नाम. नमस्कारमंत्रमहिमा श्लोक, पृ. २२अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: आकृष्टिः सुरसंपदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १० तक लिखा है.) २. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. २२आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६१४९. (+) जिनस्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४१०.५, १५४६२). जिनस्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: कः प्रौढि मंचति जनें; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २२ अपूर्ण तक है.) जिनस्तुति संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीयुगलक्ष्मीवान्; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २२ अपूर्ण तक की अवचूरि ३६१५०. पंच महाव्रत व रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १३४४३). १.पे. नाम. पांचमहाव्रतनी सझाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवैरे; अंति: भणे ते सुख लहैं, ढाल-५. २. पे. नाम. रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरम तुंसार ते; अंति: कांति० धन अवतार रे, गाथा-६. ३६१५१. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११, १८४६७). १.पे. नाम. अर्बुदस्थ ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरिमंडन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १६वी, आदि: श्रीअर्बुदाचल विभूषण; अंति: ये बोधि लाभाय भूयात्, श्लोक-३३, (वि. श्लोक ३२ के बाद ३३ की जगह ३६ लिखा है.) २.पे. नाम. गिरिनारगिरिमंडल नेमिजिन स्तव, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: श्रीमदैवतकाभिधान; अंति: रेणाप्यश्रुतेसावनंत, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-स्तंभन, आ. देवसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: स्फुरत्केवलज्ञानचारु; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २१ अपूर्ण तक है.) ३६१५२. (+) गिरिनार चैत्यपरिपाटी, महावीर कलश व लघु आराधनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २६-२५(१ से २५)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, २३४७३). १. पे. नाम. गिरिनार चैत्य परिपाटी, पृ. २६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. रैवताचल चैत्यपरिपाटी स्तवन, आ. चंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: दुष्टाष्टकर्मच्छिदे, श्लोक-२१, (पू.वि. श्लोक१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीर कलश, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. महावीरजिन जन्माभिषेक कलश, आ. मंगलसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रेयःपल्लवयंतु वः; अंति: मंगलसूरि० पुज्जउ देउ, गाथा-१६. ३. पे. नाम. लघु आराधना, पृ. २६आ, संपूर्ण. आराधना कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नाणे दसण चरणे तव; अंति: गई मई हुतु सयकालं, गाथा-८. ४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. २६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: पढमो नरेसराणं पढमो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २८ तक है., वि. प्रकाशित कृति में कुल गाथा २७ मिलती है परंतु गाथा २८ के बाद भी गाथा होनी चाहिए. कारण कि कृति पूर्णता संबंधी कोई उल्लेख नहीं है.) ३६१५३. जीवदया सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, ९४३२). औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., पद्य, आदि: सकल नारिय जोउ विचारी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ तक है.) ३६१५४. स्वप्न विचार, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १३४३८). स्वप्न चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५६०, आदि: पहिलुमनि आणी करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २५ पर्यंत है.) For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६१५५. (+) सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. गाथाक्रम सभी जगह नहीं हैं., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६x४५). सुरसुंदरी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मध्यभाग के पाठांश हैं.) ३६१५६. (+) दशवैकालिकसूत्र की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, २१४८७). दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: संहितादि षड्विधा; अंति: (-). ३६१५७. पंद्रहतिथि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५४१०.५, ११४३८). १५तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वितीयातिथि स्तुति गाथा २ से पंचमीतिथि गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३६१५८. (#) ककाबत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ९४२५). ककाबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका करी कछु काम धरम; अंति: लिखे अंक जे नर भला, गाथा-३३. ३६१५९. (#) रहनेमिराजीमतीरास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १७४३६). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ५ की गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ३६१६०.(+) शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ११४३८). शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांतिकरण जिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण तक है.) ३६१६१. (#) आदिजिनवीनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १८६०, भाद्रपद शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. राणावस, प्रले. मु. मयाचंद ऋषि; पठ. मु. मनरूप (गुरु मु. मयाचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३४). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: (-); अंति: मान वईरागै इम भणीया, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा १५ से है.) ३६१६२. दोढसो गाथानुंस्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १४४३४). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ की गाथा २ अपूर्ण से गाथा ४ अपूर्ण तक है.) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६१६३. नंदिषेण सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, ९४३२). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मेरुविजयकुण तोले हो, ढाल-३, (पू.वि. प्रारंभ से ढाल २ की गाथा ४ तक पाठ नही है.) ३६१६४. परदेशीराजा सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. कुल ग्रं. २९, दे., (२४.५४११, १०४२९). परदेशीराजा सज्झाय, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति: उत्तम नित्य जयकार हो, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक पाठ नहीं है.) ३६१६५. स्नात्रपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १७२८, पौष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ४, प्रले. ग. दीप्तिविजय; पठ. श्रावि. कल्याणबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १२४४१). १. पे. नाम. महावीर कलश, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वा १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्नात्र पूजा, आ. मंगलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अति: मंगलसूरि० एहज देव, गाथा-२१, (पू.वि. महावीरजिन कलश की गाथा २० अपूर्ण तक पाठ नहीं है.) २.पे. नाम. लूणपाणी विधि, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.. प्रा., गद्य, आदि: उवणेउ मंगले वो जिणाण; अंति: लब्भइ सिद्धइ गमणु, गाथा-८. ३. पे. नाम. आरात्रिकं, पृ. ६आ, संपूर्ण. साधारणजिन आरती, प्रा., पद्य, आदि: मरगयमणि घटिअविसाल; अंति: तुह उत्तारह आरत्तिय, गाथा-४. ४. पे. नाम. मंगल प्रदीप, प्र. ६आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: कोसंबिअसंठिअस्सय; अंति: तुह पासह मंगलपइवो, गाथा-३. ३६१६६. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२४४१०.५, १३४३३). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (१)करेमि भंते सामाइय, (२)वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३१ अपूर्ण तक है.) ३६१६८. (+) नव्यबृहत्क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. पत्रांकवाला भाग फटे होने के कारण काल्पनिक नंबर दिया है., अन्य. ग. तीर्थसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. गाथा में संख्यात्मक पाठांश को अंक के साथ स्पष्ट किया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३८६, जैदे., (२६.५४११.५, १८४६४). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: (-); अंति: सोमतिलय० सुअहरेहिं, गाथा-३८७, (पू.वि. प्रारंभ से धाइय अधिकार ३ गाथा २६ अपूर्ण तक पाठ नहीं है.)। ३६१६९. चौवीस दंडके जीव आयुष्य विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४४११, १६४४४). २४ दंडक में जीव के जघन्य उत्कृष्ट आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेहेलि नरगेजघन आउखु; अंति: (-), (पू.वि. सौधर्म देवलोक में आयुविचार तक है) ३६१७०. (-) नेमजिन नवरसो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(३)=४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, ११-१३४२५-३२). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: रूपसुंदर० ने पार, ढाल-९, गाथा-४०, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-११ से ढाल-७ गाथा-८ तक नही है.) ३६१७१. महावीरजिन शांतिजिन यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., दे., (२५४११.५). यंत्र संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (१)सिद्धार्थकुलि अवतार, (२)विश्वसेन नरिंद पिता; अंति: (१)मनवंछत पूरण महावीर, (२)ध्यान धरो हृदय जिनको, गाथा-२. ३६१७२. स्थानांग व आचारांगसूत्र आलापक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१०.५, १२-१४४३५-५६). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)सत्तहिं ठाणेहिं छउमत, (२)से भिक्खू वा जाव; अंति: (१)चरित्त अइक्कमे, (२)जाव पडिगाहेज. आगमिकपाठ संग्रह- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (१)सत्तहिं ठाणेहीत्यादि, (२)से भिक्खू वेत्यादि; अंति: (१)केवलिसूत्रं सुगममेव, (२)मानो गृह्णीयादिति. ३६१७३. वस्तुपालतेजपाल सुकृत विवरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६.५४११.५, १६-१९४४२-७०). वस्तुपालतेजपालकृत धर्ममार्ग धनव्यय संख्या, अप., गद्य, आदि: (-); अंति: श्राद्धानां कृतानि, (पू.वि. प्रारंभिक पाठांश नहीं है.) ३६१७४. मृगावती भास, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४१०.५, ११४३५). मृगावतीसती भास, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनपति वीरजिण; अंति: खमावू आणी ऊलट अंगिइ, गाथा-२२. ३६१७५. (+) परिशिष्ट पर्व, अपूर्ण, वि. १४०७, ?, मध्यम, पृ. १००-९९(१ से ९९)=१, प्र.वि. पत्रांक न होने एवं अंतिम पत्र के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया गया है. प्रतिलेखन वर्ष वाला भाग फटे होने से संवत अस्पष्ट है, संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १६४७४). For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१ १७५ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: स्फाति पुरस्तात्पुनः सर्ग- १३, ग्रं. ३७६० (पू. वि. सर्ग १३ श्लोक ४३ अपूर्ण तक पाठ नहीं है.) ३६१७७. क्षमाछतीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५x१०५ १५X४६). " क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मागु, पद्य, आदि आदरि जीव खिमागुण आदर, अंतिः समयसुंदर संघ जगीस जी, गाथा - ३६. ३६१७८. भक्तामर स्तवन, संपूर्ण वि. १८७४ श्रावण शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, नडुलाइ, प्रले. पं. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५४१०.५, १२४३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ३६१७९. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २५X११, १५X४८). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामी जीण चोवीसं, गाथा- ५०, ( वि. अंतिम २ गाथा ४९ ५० का मात्र प्रतिकपाठ है.) ३६१८०. सीमंधरस्वामी वीनती, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. चतुरा ( गुरु मु. मनोहर ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१०.५, १३४४३). सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुं; अंति: भक्तिलाभ० आया मनतणी, गाथा - १९. ३६१८९. शांतिसुधारस सझाय, संपूर्ण वि. १७५९ वैशाख शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. प्रत की लिखावट से प्रति २० वी की प्रतीत होती है. सं. १७५ १वाली प्रत पर से लिखी जाने की संभावना है, कुल ३६, जैवे. (२४.५x१०.५, १३४४१). मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति सुधारस कुंडमा, अंति: सुख चित्त पूर रे, गाथा - २०. ३६१८२. कल्पसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २-२ (१) १. प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख न होने तथा बीच के पत्र होने से काल्पनिक पत्र संख्या दी गयी है., जैदे., ( २४.५X१२, १२x२६). कल्पसूत्र- टीका. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, भगवदर्शन के बाद इंद्र के मन में विचार उठने के प्रसंग तक है.) " " ३६१८३. उत्तराध्ययनसूत्र कथा संग्रह, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे. (२५४१२, १५X३३). उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह". सं., पद्य, आदि: एकस्य आचार्यस्य अंतिः (-). (पू.वि. आचार्य पर पत्थर प्रक्षेप द्वारा मृत्यु प्रसंग का आंशिक भाग है.) ३६१८४. तपग्रहण विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १, दे., (२४X१२, १३×३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चतुर्दशी तप आराधन विधि से तपस्या ग्रहण विधि अपूर्ण तक है.) ३६१८५. (+) पासा केवली, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २, प्रले. वा. उदयसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, १३४३९). ३६१८७. मौनएकादशीनुं गुणणुं, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५X११, १२X३१). पाशाकेवली - भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ थानकथी लाभ पुत्र; अंति: होसी चित हाम राखे. " ३६१९०. काल विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२५.५X११, १८x४६-५२). मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को., आदिः श्रीमहायशसर्वज्ञाय; अंतिः श्रीअरण्यकनाथाय नमः. ३६१८८. माणिभद्रजीनो छंद, संपूर्ण, वि. १८७१, माघ कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. वापीनगर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X१२, १२x२८). माणिभद्रवीर छंद - मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सूरपति नती सेवीत सूभ; अंति: माणिभद्र ज करण, गाथा २१. For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची काल विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: वाघाई अडरत्ती; अंति: कहइ ढाई काल पच्छित, (वि. काललेवा विधि भी संलग्न है.) ३६१९१. इरियावहि कुल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५,११४३३). इरियावहि कुलक, प्रा., पद्य, आदि: दवा अडनउय सयं १९८ चउ; अंति: रे जीव निच्चंपि, गाथा-११. ३६१९२. नववाड स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १२४३२). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: उदयरत्न० जाउ भामणे, ढाल-१०, गाथा-४०. ३६१९३. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १४८२, श्रावण शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४११, १६x४८-५५). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. २४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. २४ जिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: वः शंवरदो महेंद्रः, श्लोक-३०, (पू.वि. प्रारंभ से श्लोक १७ तक पाठ नहीं है.) २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तुति, पृ. २४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: देवैर्यस्तुष्टवे; अंति: परमा कमलासना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. शांति स्तव, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण, पे.वि. श्लोक-८ का अंतिम पाद किसी कारण से नहीं लिखा गया है. शांतिजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशांतिनाथो भगवान; अंति: हिमप्राग्भारमद्भारती, श्लोक-२०. ४. पे. नाम. पार्श्वप्रातिहार्य स्तव, पृ. २४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: त्वां विनुत्य महिमश; अंति: जिनप्रभ० इवेषनेमुखां, गाथा-१०. ३६१९५. पुण्य कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, ७४३२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया नर अर्थनइ; अंति: योग्य धर्म सेवी. ३६१९६. माणभद्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३०). माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति सेवित तसु; अंति: राजरतन० जय जय करण, गाथा-१४. ३६१९७. (+) औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ६४३१). औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहयो पंडित ते कुण; अंति: वाचक जस सुख लहस्य, गाथा-१४, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देखीइ जाणीइते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम ३ गाथाओं का टबार्थ नहीं है.) ३६१९८. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १५१०, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नाही ग्राम, प्रले. ग. शूरहस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२,१६४३९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: परिअट्टो चेव संसारे, गाथा-२७. ३६१९९. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, प्र.वि. किनारी खंडित होने से पत्रांक वाला भाग नहीं है., कुल ग्रं. २२२, जैदे., (२५४१०.५, ५४४२-४४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, ग्रं. ७०, (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से है., प्रले. ग. उदयसौभाग्य (गुरु ग.शंकरसौभाग्य); गुपि.ग. शंकरसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य) For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १७७ चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तेह भणी नित्य गुणवु, ग्रं. १५२, (वि. १७२५, कार्तिक कृष्ण, ३०, प्रले. मु. सिंहसौभाग्य, पठ. मु. उत्तमसौभाग्य (गुरु पं. दीपसौभाग्य गणि); गुपि. पं. दीपसौभाग्य गणि, प्र.ले.पु. सामान्य वि. प्रतिलेखन संवत १७२५ की तिथि हेतु पूर्णातिथि का उल्लेख है.) ३६२०० (+) सिंहलसुत चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३९ ३५ (१ से ३५) ४, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२४X११, १३X५२). सिंहलसुत चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ७ गाथा १४ अपूर्ण से ढाल १४ गाथा १ अपूर्ण तक है.) ३६२०१. शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५x११.५, १२४३५ ). , तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके, अंतिः सततं चित्तमानंदकारी, श्लोक १०. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२०२. (+) अनार्यदेशे तीर्थंकरविहार प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५x११, १५X४८). अनार्यदेशे तीर्थंकरविहार प्रश्नोत्तर, सं., गद्य, आदि: श्रीधर्मार्थमनार्य, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंत के पाठ नहीं हैं) ३६२०४. (+) होलीरज: पर्व कथा संपूर्ण, वि. १६९२, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. सकंदरपुर, प्रले. ग. कल्याणचंद्र (गुरुग. विजयचंद्र); गुपि. ग. विजयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत- क्रियापद संकेत अन्य दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे. (२५.५४११, १३४३५). होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानं जिनं; अंतिः विज्ञानां वाचनोचितः, श्लोक-५१. ३६२०५. १८ पापस्थानक नाम आदि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जै. (२५४११, ७१७). १. पे. नाम. १८ पापस्थानक नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातपात१ मृषावादर; अंति: दरसणसल्य ए १८. २. पे. नाम. सामायक पारवानी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मन वचन काया जोगे; अंति: आणाए अणुपालीयं भवई. ३. पे नाम. सामायिक के ३२ दोष, पू. १अ संपूर्ण सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मनरा दोष १० से कहै, अंति तो दोष १२ ए ३२ दोष. ४. पे. नाम. २३ पदवी विचार, पृ. १अ- १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररत्न पदवी १ छत्र, अंति: (-), (पू.वि. श्रावक के ११ पदवी विचार तक है.) ३६२०६. (+) प्रश्नव्याकरण सूत्र सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पू. ६१-६० (१ से ६०) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित, जैदे., ( २४.५X११, ५X४२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन ६ के बीच का पाठ है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र - बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु, गद्य, आदि (-); अंति: (-). ३६२१०. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण वि. १८३५, कार्तिक शुरू, २ श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. जावाल, पठ. मु. रुपा (गुरु मु. फतेविजय); प्रले. पं. कपूरविजय, गुपि. मु. फतेविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X११, १२X३१). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि भं०: अंतिः वंदामि जिणे चडवी, ३६२११. जैन साखा, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, जै. (२५x११, १२४३१). 3 " जैन साखा, मा.गु., पद्य, आदि वंदो देव जुगाद जिन, अंतिः सुचिर ऋषभदेव परसाद, गाथा-२९. ३६२१२. (+) मूत्र परीक्षा सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X१२, ५X४४). मूत्र परीक्षा, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिना; अंति: ध्रुवे देयो विचक्षणे, श्लोक-२३. मूत्रपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथजी; अंति: जाणवो पंडिते कह्यौ. ३६२१३. आषाढामुनि सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैवे (२४.५४१२, १६४३६) For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी हि अंतिः भावरत्न सुजगीसो रे, ढाल -५, गाथा - ३७. ३६२१४. (+) ज्ञानपंचमी स्तुति सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५४११.५, ५X४१). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीनेमि क० भगवंत, अंति: मंगलीक प्रते धीमतां. ३६२१५. सुविधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. लखमसिंहजी ऋषि, गुजराती गच्छ); गुपि. मु. लखमसिंहजी ऋषि (गुरु मु. राजपालजी ऋषि, गुजराती गच्छ); मु. राजपालजी ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि, गुजराती गच्छ); मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, गुजराती गच्छ); मु. नानजी ऋषि (गुजराती गच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२५x११.५, ११x२७). सुविधिजिन स्तवन, मु. तेजसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुवधि जिणेसर सुदरु, अंति: संघ सहुने आणंद रे, गाथा-५. ३६२१६. (+) गुरुगुण भास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. प्रेमजी ऋषि (गुरु मु. वीरजी ऋषि); अन्य. सा. रुपा आर्या; सा. लीला आर्या (गुरु सा. रुपा आर्या); पठ. मु. माधव (गुरु मु. प्रेमजी ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., ( २४.५X११, ११४३२). गुरुगुण भास, मु. प्रेमजी ऋषि, म. पद्य, आदि: सकल मुनीचा स्वामी, अंतिः मुनी सांगी लावो, गाथा १०. ३६२१८, (+) आउर पच्चक्खाण व अहिंसाभेद विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५x१०.५, ११x२४-४२). १. पे नाम. आतुरप्रत्याख्यान लघु, पृ. १अ संपूर्ण. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंता मंगलं मज्झ; अंति: तिवहेण वोसिरामि, गाथा - १८, ( वि. मात्र पद्यांशों का ही गाथाक्रम लिखा गया है.) २. पे. नाम. संवरअहिंसागुणसंपन्न ६० नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र-हिस्सा षष्ठअध्ययनगत संवरअहिंसामाहात्म्यबोधक ६० नाम, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः निव्वाणं१ निव्वुई२; अंति: निम्मलतर त्ति. ३६२१९. (+) पदमावतीरी ढाल, संपूर्ण वि. १९७४ माघ शुक्ल ६ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२४४११.५, १३X३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती ढाल - जीवराशीक्षमापना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि मोटी सति पदमावती अंतिः पापथी छूटे ते तत्काल, गाथा- ८२. ३६२२०, (+) पाचमांग सिज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जै, (२५x१२, ११४३५). - भगवतीसूत्र सज्झाय संबद्ध उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य वि. १८४३, आदि; वीर जिणेसर अरथ; अंति: गुण गावै सुगीसरे, गाथा - २१. ३६२२१. सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २४.५X१२, ९-१०X३२-३४). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंतिः श्रीवीर भद्रं दिश, भोक-२८. ३६२२२. मौनएकादशीपर्व गणणुं, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२५४१२-१४-१). मौनएकादशीपर्व गणणं. सं., को, आदि: जंबू भरते अतित चोवी, अंति: सर्वज्ञा श्रीअरणनाथ. ३६२२३, (+) मलवादि प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित, जैदे, (२५.५X११, " १३४५५). मल्लवादि प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि सं., पद्य वि. १४०५, आदि: श्रीइंद्रभूतिमानम्य, अंति: (-), (पू. वि. श्लोक ३५ अपूर्ण तक है., वि. श्लोक ३२ का उल्लेख नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६२२४. व्याख्यान श्लोक संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१७, चैत्र शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. रामनगर, जैदे., (२४.५४११, १५४४२-४५). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: देवपूजा दयादानं; अंति: छतीसगुणो गुरुमुजं. व्याख्यान श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरीहंत भगवंत गुर; अंति: मंगलीकमाला संपजें. ३६२२५. अनाथी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, ११४२५). अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रेवाडी चढ्यो; अंति: प्रणमुरेबे कर जोड, गाथा-९. ३६२२६. गोडिजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११.५, १४४२७-३५). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: वामानंदन वंदीये रे; अंति: हेमविजय जजकार, गाथा-१३. ३६२२७. श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११,१०४३२). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: धन्यास्तेवीतरागागुरु; अंति: भवभयंभूधपारतजितुम्, ग्रं. ७. ३६२२९. (+) सप्तोउपधान स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. क्षेम माणक्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५४११, १४४४२). १.पे. नाम. सप्तोउपधान स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर धरम; अंति: समय० वंछित सुख करो, ढाल-३, गाथा-१८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ३६२३०. (+) कुसुमांजलि, आदिनाथ जन्माभिषेक व महावीरकलश आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, २४४५५-६०). १. पे. नाम. कुसुमांजलि, पृ. ३अ, संपूर्ण. कुसुमांजलि श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकारसारसौम्यक; अंति: ईअकुसुमंजलि वाहँ, गाथा-९. २. पे. नाम. आदिनाथ जन्माभिषेक, पृ. ३अ, संपूर्ण. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: विणीअनयरी विणीअ; अति: जिम तुअदइ वरमुत्ति, गाथा-१२. ३. पे. नाम. महावीर कलस, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन कलश, आ. मंगलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रेयः पल्लवयंतु वः; अंति: भविआं पूजहु एयज देउ, श्लोक-१८. ४. पे. नाम. स्नात्रविधि, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. समराइच्चकहा-स्नात्र विधि, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवणेउ मंगलं वो जिणाण; अंति: पयाहिणं दितो, गाथा-१४, (वि. लूण उतारण विधि, लूणपाणी विधि एवं आरती गाथा भी सम्मिलित हैं.) ५. पे. नाम. शांतिनाथ कलस, पृ. ४अ, संपूर्ण. शांतिजिन कलश, प्रा.,सं., पद्य, आदि: श्रेयः पल्लवयन्न; अंति: दिसउ अनंत सुह ठाणहेव, गाथा-११. ६. पे. नाम. पार्श्वनाथ कलस, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन कलश, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अहो भव्या देवानुप्रि; अंति: ठुइ विणओ भविजणस्स, गाथा-९. ७. पे. नाम. स्नात्र पूजा, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में लिखी प्रतीत होती हैं. स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पवित्र उदक लेई अंग; अंति: कवि देपाला जाइ जूहिर, कुसुमांजलि-१५. ३६२३१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १२४२८). For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. नाभेय स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: कांतिक्रमौ, श्लोक-४. २.पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: तमजितमभिनौमि यो विरा; अंति: मदभासुरजिताशम्, श्लोक-४. ३.पे. नाम. संभवजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: निर्भिन्नशत्रुभवभय; अंति: समानमानमानवमहिताम्, श्लोक-४. ३६२३२. सितारामचंद्रजीरो बारमासो, संपूर्ण, वि. १९१८, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. हरजीनगर, प्रले. ग.खंतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषभदेवजी सुप्रसादात्, जैदे., (२६४१२, १२४४३). सीतारामचंद्र बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: सखी आवेलो कारतिक मास; अंति: दास संभलावे गायने, गाथा-१३. ३६२३३. नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, १२४३४). नेमराजिमती सज्झाय, मु. तुलसीराम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम मनाउं श्रीहुं; अंति: केंरी चरनापुर जायेई, गाथा-२५. ३६२३४. (+) दानसीलतपभावना स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४३८). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: सूरि खमंतु एणं, गाथा-५०. ३६२३५. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०, १५४४४-५२). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरे. ३६२३६. वधमाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १९x४२). महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: श्रीवीर जिणंद सासण; अंति: धन धन श्रीविरे जिणंद, गाथा-९. ३६२४०. चंद्र सूर्य प्रज्ञप्ति-बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १३४४५). चंद्र सूर्यप्रज्ञप्ति-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मो पाहुडो युग संवछर; अंति: हेमवंतरी १०मी आउ करे. ३६२४१. बृहत्संग्रहणी सूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४१२, १०४३२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक ३६२४२. आचार्य पदस्थापन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२-४५). आचार्यपद प्रदान विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदिः (-); अंति: श्रावक संघ भक्ति करै. ३६२४४. (+) पाक्षिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४५०-५३). ____ पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: (-). ३६२४५. दशवकालिक सूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४११, -१४-१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-). दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६२४६. (+) केशवजी ऋषिनो संथारो, संपूर्ण, वि. १७२२, नयनस्तनतुरंगराजा, चैत्र कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जीरणगढ, प्रले. मु. भिखूऋषि (गुरु मु. मुरारि, जीरण गच्छ); पठ. सा. रूपाई आर्या; सा. लीला आर्या (गुरु सा. रुपाइ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत की लिखावट एवं कागज से २०वी शताब्दी प्रतीत होती हैं., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४१२, १५४४१). केशवऋषि संथारो, मु. भिखू ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीमंगलकरण; अंति: सुखकर भणतां पूजइ आसए, ढाल-३, गाथा-४१. ३६२४७. योगोद्वहनविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १७X४८). योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इच्छकारी भगवन अमुक; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६२४८. सीतलनाथनी वीनती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३७). शीतलजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सखी नवी नवेरी भगति; अंति: लहे सूख संपतडी, गाथा-१७. ३६२४९. पच्चक्खाण आगार गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, २०४१८-५४). पच्चक्खाण आगार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नवकार १ पोरसी २; अंति: हवंति सेससुचत्तारि. ३६२५१. द्वादश भावना, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. अमरी आंबा श्रेष्ठि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १४४४४). वीतराग प्रार्थना, मा.गु., गद्य, आदि: हे वीतरागस्वामी माहर; अंति: बिंब तेहूं नमस्करउं. ३६२५२. मौन एकादशीनुं गुणगुं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. निरा, प्रले. पंडित. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १८४३६). मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., आदि: (१)जंबूद्वीपे भरते, (२)श्रीमहायशः सर्वज्ञाय; अंति: (१)श्रीपारणनाथाय नमः, (२)३ गुणणौ दोइ दोई हजार. ३६२५४. (+) श्लोकावली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १४४३५-३७). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे वसदंत; अंति: कर्तव्योधर्मसंग्रहः, गाथा-४०. ३६२५५. श्रीसार बावनी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १७-१९४६०-६२). श्रीसारबावनी, मु. श्रीसार कवि, मा.गु.,रा., पद्य, वि. १६८९, आदि: ॐ ॐकार अपार पार न; अंति: श्रीसार० साचै मनै, गाथा-५५. ३६२५६. बृहत् शांति, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रावण शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जेतारणनगर, प्रले. पं. सवाईसागर (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३८-४१). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ३६२५७. साधुगुण बत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जेपुर, जैदे., (२५४११.५, १६४३५-४४). साधुगुणबत्तीसी, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: पापपथ परहरै मोक्षपथ; अंति: पढ्यो सुंध थात है, गाथा-३२. ३६२५८. गौतम पृच्छा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. सुजणा दे; पठ. श्रावि. बाइ रुको, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११,१५४३०-३५). गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी पूछा करई; अंति: वछ गोयमा सांभलोरे. (वि. गाथांक नहीं लिखा हैं.) ३६२५९. शनैश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. संमेराग्राम, प्रले. मु. विजयरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १३४४६-४८). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: (१)हेम० अलगी टालि आपदा, (२)हेम० सनीसरवर, गाथा-१७. ३६२६०. शत्रुजय गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, ११४३५). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलिहे सखी सांभलि; अंति: राज सिवसुख संवरइ, गाथा-७. ३६२६१. (+) दस पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १६४३३). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गेसूरे नमोक्कार; अंति: सहसा० म० स० वोसरामि. ३६२६२. कल्प भास, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित होने की संभावना है.. जैदे.. (२६४११.५, १२४३३). पर्युषणपर्वकल्प भास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिवर माहे मेरु वड; अंति: नवनिधि तीहंघरबारी. गाथा-१४. ३६२६३. पच्चक्खाण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४८). For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरेउगे चउहपिआहार; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. पच्क्खाण-५ तक लिखा ३६२६४. शनिसर जाप, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १५४५०). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: प्रसन थाय सदा सनीशर, गाथा-१७. ३६२६५. अठाणुं बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर अनियमित है., जैदे., (२५.५४११.५). ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: अहमंते सव्व जीवा; अंति: ९८सव्वजीवाविसेसाहिया. ३६२६६. मौनएकादसी वृद्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, ११४३४). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: समयसुंदर कहो द्याहडी, गाथा-१३. ३६२६७. सिद्धदंडिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२६). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जंउसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. ३६२७०. ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१३, कार्तिक कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३४). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगत भाव एम सीर्म, ढाल-३, गाथा-२४. ३६२७१. नवकार लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. जेठामल गंदरप, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, ८x२६). नवकारपद लावणी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तुम जपो मंत्र नोकार; अंति: जीनदास लीया बासा, गाथा-३. ३६२७३. (+#) चतुःशरणप्रकीर्णक, आवश्यकसूत्र व अतिचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १३४३८). १. पे. नाम. चउसरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २. पे. नाम. आवश्यकसूत्र आदेश, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संथारा उवट्टणकि परिय; अंति: मिच्छा मि दुक्कडं. ३६२७४. (+) भगवतीसूत्र की टीका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, २१४३८-६८). भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत; अंति: (-), (वि. मात्र पीठिकारूप प्रथम श्लोक व उसका बालावबोध लिखकर संपूर्ण किया है.) भगवतीसूत्र-टीका का-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)अयं अर्थः श्रीजिन के, (२)श्रीजिन केहवा छइ; अंति: ३६२७५. २४ दंडक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. *अक्षर अनियमित है., जैदे., (२५.५४११.५). २४ दंडक बोल संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: शरीर३ वैक्रिय१ तैजसर; अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १३वांद्वार तक लिखा है.) ३६२७६. समोसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. कुल ग्रं.७३, जैदे., (२५.५४१२, ८x२४). समवसरणविचार स्तवन, मु.रूपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीनें प्रणमी करी; अंति: परे धर्ममंगल गाववा, ढाल-६. ३६२७८. (+) मिथ्यात्वस्थान कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नवानगर, पठ. वासण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ६४२७-२९). मिथ्यात्वस्थान कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लोइअलोउत्तरिय देवगय; अंति: धुवं सिवं सुहाई, गाथा-२६. For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ९८३ मिथ्यात्वस्थान कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लौकिक लोकोत्तर देवगत; अंति: निश्चई मोक्ष सुख. ३६२८०. पंचपरमेष्टि नमस्कारमय साम्नाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२, १२४२५). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: सेवा देज्यो नित्त, गाथा-२६, (वि. दो पद के हिसाब से गाथांक-२६ लिखा है.) ३६२८२. पार्श्वनाथजीनो छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, २०४४५). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आपि सूर; अंति: कुशललाभ० गोडी धणी, गाथा-२२. ३६२८३. (+#) पार्श्वजिन अष्टक फलवर्द्धि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, ९४५७). पार्श्वजिन अष्टक-फलवर्द्धि, सं., पद्य, आदि: श्रीमच्छ्रीफलवर्द्धि; अंति: श्रीसूरचंद्र प्रभुः, श्लोक-९. ३६२८४. इरीयावही कुलक व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०, ११४३८-४४). १. पे. नाम. इरीयावही कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ईर्यापथिकी कुलक, प्रा., पद्य, आदि: पणमवि सिरिवीरजिणं; अंति: खमामिरे जीव निच्वंपि, गाथा-१२. २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह-अष्टकवर्ग, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह *, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३६२८५. (+) श्रीधर कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, १२४४५-४८). श्रीधर कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीउज्जयनीपुरवरे; अंति: वपुषि च सुखं भवतु. ३६२८६. पार्श्वनाथजी छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२४.५४१०.५, २६४५८). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: जयो देव जयजय करण, गाथा-५१. ३६२८७. जीव विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ., (२५.५४१२, ४४२५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ अपूर्ण तक लिखी हुई हैं.) ३६२८९. निश्चय व्यवहार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. फुलाभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पठनार्थे का नाम बाद का लिखा हुआ प्रतित होता है., जैदे., (२६४११.५, १३४२९). सीमंधरजिन विनती स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधर साहिब आगे; अंति: वाचक जसविजय जयकरो, ढाल-४, गाथा-४१. ३६२९०. मनमोहन पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११,८-११४२८-३३). पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंदघन परम निरंजन; अंति: जस कहई भवजल तारि, गाथा-२५. ३६२९१. सोलसुपना विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ.सा. साजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १३४४२-४४). १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनमुउ; अंति: विद्या० मुगतिनउ राजा, गाथा-१८. ३६२९२. बियतालीस दोस, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. रंभाई आर्या (गुरु सा. आर्या राणी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३१). गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १देसिअ२; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-६. ३६२९३. नेमराजिमती द्वादशमास, संपूर्ण, वि. १८५४, आषाढ़ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १२४४०). For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती बारमासो, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जदुपति जानलेई आव्या; अंति: अमृत नित भणज्यो लाल, ढाल-१२. ३६२९४. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१२, ११४२८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं नमो; अंति: मिच्छामि दुक्कड. ३६२९८. (+) सिद्धाचलजीनी तीर्थमाला, अपूर्ण, वि. १८४६, माघ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, ले.स्थल. भृगकच्छ बंदर, प्रले. पं. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमुनिसुव्रतस्वामि प्रसादथी., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., प्र.ले.श्लो. (८७०) यादृशं दृष्ट तीर्थेस्मिन्, जैदे., (२५४११, ५४४६). शत्रुजय तीर्थमाला, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: कवि अमृत जयसिरि वरी, (पू.वि. मात्र अंतिम कलश का भाग हैं.) ३६२९९. घंटाकर्ण कल्प व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ९-११४४७). १. पे. नाम. घंटाकर्ण मंत्र आराधना विधि, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: घंटाकर्ण तणा जाणिवा. २. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: (१)नमोस्तुते स्वाहा, (२)देई इण मंत्रिइंसिउ, श्लोक-४. ३६३०१. शक्रस्तव सह टबार्थ व मेघकुमारनो दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ६-२२४५०-५३). १.पे. नाम. शक्रस्तव सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमोथूणं अरिहंताण; अंति: नमोथूणं श्रमणस्स, गाथा-९. शक्रस्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुउ सगलइ ठाम; अंति: हुइ श्रमण तपस्वीनइ. २. पे. नाम. मेघकुमारनो दृष्टांत, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मेघकुमार दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: एकदा श्रीभगवंत; अंति: वीषइ सीजसी मोखजावसी. ३६३०२. (+) शांतिजिन कलश, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १३४४०). शांतिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रीजयमंगला; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ३६३०४. आचार्यपद प्रतिष्ठा विधि व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, १२४३८). १.पे. नाम. आचार्यपद प्रतिष्ठा विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: पसत्थेतिहि १ करण; अंति: वत सव्वं कायव्वं. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: प्राणभाजा श्रुतांगी, श्लोक-४, (वि. यह स्तुति पत्र क्रमांक १असे १आ पर पूर्ण होती है, किन्तु २आ पर स्तुति का अंतिम श्लोक फिर से दिया गया है.) ३६३०५. संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११, १५४३६-४६). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक संबोधसत्तरि-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नत्वा नमस्कार; अंति: (-). ३६३०६. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१,३ से ४)=२, जैदे., (२६.५४११, १२४३४). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६३०८. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से २,४)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १०४३६-४०). स्तवनचौवीसी, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्तवन ५ गाथा ३ अपूर्ण से स्तवन ८ गाथा ३ अपूर्ण तक एवं स्तवन १० गाथा ९ पूर्ण से स्तवन १७ गाथा ६ अपूर्ण तक हैं.) ३६३०९. सील रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, जैदे., (२६४१०.५, १४-१५४४३-४९). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: एम श्रीविजयदेवसूर, गाथा-७६, (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण से है.) ३६३१०. गौतम पृच्छा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४१). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अति: (-), (पू.वि. मात्र ४८ प्रश्नों वाला भाग है, उत्तर वाला पत्र नहीं ३६३११. (+) स्थानांग सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, ८४४४). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन १ स्थान १ सूत्र ३५ अपूर्ण तक है.) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेवनइ नम; अंति: (-). ३६३१२. (+) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-११(१ से ३,५ से ६,८ से ९,११ से १४)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, ७४३५). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम अध्ययन वर्ग १ अपूर्ण से बीच-बीच के पाठ हैं.) अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६३१३. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, ११४२७). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८९८, ज्येष्ठ कृष्ण, शनिवार, ले.स्थल. अलायनगर, प्रले. मु. रामचंद; अन्य. श्राव.सुरजमल, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इण रे डुगरीयानी; अंति: नयविमल० भव पार उतारो, गाथा-६. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ अजित संभव; अंति: (-), (पू.वि. अरनाथजिन स्तवन तक है.) ३६३१६. (+) नवमंगल-नेमिजिन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. जपुर, पठ. सा. उदाजी आर्या (गुरु सा. कीसनोजी); प्रले.सा. कीसनोजी (गुरु सा. पांचा); गुपि.सा. पांचा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १८४४२). नेमिजिन तपकल्याणक, मु. सुनंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: अजी गुरु गणधर देव; अंति: लाल मंगल गाइया, ढाल-९, गाथा-३८. ३६३२०. (+) आज्ञाकुल वजीराउलि पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४१०, १५४५९). १.पे. नाम. आज्ञाकुल, पृ. १अ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नयगमभंगपहाणा विराहि; अंति: विग्धं कुणउ अम्हाणं, गाथा-११. २. पे. नाम. जीराउलि पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीराउलि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिपास जिणेसर तुज्झ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा-९ तक लिखा है.) ३६३२२. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४११.५, ९४३४). For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० समणे; अंति: (-), (पू.वि. "उव्वेय सामवेय" पाठ तक ३६३२३. शीलोपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२७४१२, १५४४३). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारं नेमि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १०१ अपूर्ण तक है.) ३६३२४. चोर के १८ प्रकार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८७-८६(१ से ८६)=१, अन्य. मु. कहानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, १४३२). चोर के १८ प्रकार, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "संवर विचार" अपूर्ण तक का पाठ है.) चोर के १८ प्रकार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "संबर विचार" अपूर्ण तक का पाठ है.) ३६३२५. योगशासात्र-चयन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२८.५४११, २३४९५). योगशास्त्र-चयन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). योगशास्त्र-चयन की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६३२६. हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९-३७(१ से ३७)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १५४३५). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७९५ अपूर्ण से गाथा ८४८ अपूर्ण तक है.) ३६३२७. प्रदेशीराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७४११, १८४३९). प्रदेशीराजा रास*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ११ गाथा ८ अपूर्ण से ढाल १३ गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३६३२८. (+) आदिजिन चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११, १६४३५). आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३८ गाथा २१ अपूर्ण से ढाल ४० गाथा ५ अपूर्ण तक हैं.) ३६३२९. (#) षड्भाषामय ऋषभजिन स्तव सह अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२८x११, १५४५३). आदिजिन स्तव-षड्भाषामय, आ. जिनप्रभसूरि, अप.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., पद्य, आदि: निरवधिरुचिरज्ञानं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३७ अपूर्ण तक हैं.) आदिजिन स्तव-षड्भाषामय-अवचूरि, पं. मतिविजय, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३७ तक की अवचूर्णि हैं.) ३६३३०. भगवतीसूत्र-शतक८ उद्देसर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७.५४११.५, ४१४२७). भगवतीसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६३३१. (+) भक्तामर स्तोत्र सह ऋद्धिमंत्र व विधिगुण काव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ४४४२०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १, २,११,१२,१३,१५,१६ एवं २७ श्लोक हैं.) । भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहणमो; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-विधिगुण काव्य, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: या प्रथम काव्य पढवा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. ३६३३२. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, १८४४२). For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १८७ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: मोहो मीथ्यात की नींद; अंति: पुज जमलजी कह छै एम, गाथा-३५. ३६३३५. ऋषभजिन, वीरजिन व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२८x११.५, ११४४८). १.पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद; अंति: नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय ज्ञानकलानिधानम्, श्लोक-४. ३६३३६. (+) बोल संग्रह-भगवतीसूत्र शतक २६ उद्देश ११, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, २३४५५). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जीवाय १ लेस ८ पखी २; अंति: भांगा २ पहिलउ त्रीजउ, (वि. भगवतीसूत्र शतक २६ उद्देश ११) ३६३३७. परमाणुंचरिमाचरिम भांगा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२७४११). परमाणुंचरिमाचरिम भांगा यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: परमाणु माहि चरम अचरम; अंति: चरिमपदनउंजाणिवउ. ३६३३८. बोल संग्रह-भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, २७४६५). बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जीवाय १ लेस ८ पखी २; अंति: बीजा बोल पहलानी परई, (वि. भगवतीसूत्र शतक ३० उद्देश ११) ३६३३९. चंदनमलयागिरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १४४३०). चंदनमलयागिरी रास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७०४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ दोहा ७ अपूर्ण से ढाल ३ गाथा १ से १८ एवं दोहा ४ अपूर्ण तक हैं.) ३६३४०.(+) अभिधानचिंतामणिनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधिसूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १३४४४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड १ श्लोक ३४ अपूर्ण से कांड २ श्लोक३१ तक हैं.) ३६३४२. पंचोपाक्षान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२७.५४११, ११४६७-७०). पंचोपाक्षान, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ ह्रीँ श्रीमद्; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ९१ अपूर्ण तक हैं.) ३६३४३. नूतनबिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १५१०, श्रावण कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. जीवा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x११.५, १३४५५). नूतनबिंब प्रवेश विधि, सं., गद्य, आदि: सविस्तरो लिख्यते यथा; अंति: लिखितोस्मीति ज्ञेयं. ३६३४४. (+) बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १२४३७). बिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गुरु शुक्रोदये भव्यं; अंति: सर्वकार्यसिद्धिः. ३६३४५. (+) सोल सुपन विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ९४३४). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि वीनवउं; अंति: धन एह गुण तणा साहो, (वि. गाथा क्रमांक ११ तक ही लिखा हैं.) For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६३४६. (+) समोसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १३४४९). समवसरण स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमिणि पणमीय; अंति: धरि अविचल रिद्धि, गाथा-३१. ३६३४७. (+) लोकस्थिति सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२, ७४४१). लोकस्थिति, प्रा., गद्य, आदि: दस विहा लोग ठिती पं; अंति: (-). लोकस्थिति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सविइं नव गुण लुक्खा; अंति: (-). ३६३४८. बृहत्क्षेत्रसमास*, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४११.५, १५४४०). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से गाथा-११६ अपूर्ण तक है.) ३६३४९. स्वाध्याय व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १५४३६). १. पे. नाम. नेमिसागर स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा-११ नेमिसागरसूरि सज्झाय, मु. कनकसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जवहरि साचउरेजगमा; अंति: कनकसौ० लीजइ नाम रे, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा-७ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: कुता सोमसुंद सुखभरम्, श्लोक-७, (वि. प्रतिलेखकने गाथा-६ तक लिख कर इतिश्री करने के बाद गाथा- ७मी लिखा गया है.) ३६३५०. (+-) नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११.५, १३४४०). नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ गाथा २८ अपूर्ण तक हैं.) ३६३५१. (+) विरागबावनी व सुभाषित दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४३५-४०). १.पे. नाम. विरागबावनी, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. वैराग्यबावनी, ग. लालचंद, मागु., पद्य, वि. १६९५, आदि: समझ समझरे भोला; अंति: लालचंदजी०सुख अपार जी, गाथा-५१. २. पे. नाम. सुभाषित दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: रसक वात जामे सवे जो; अंति: सवतें लगै सुहाय, गाथा-१. ३६३५२. मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७६४, आषाढ़ शुक्ल, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४३७). मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुणनेलो; अंति: जादव०भणता रे सुख थाइ, ढाल-४, गाथा-२३. ३६३५३. (+) जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, १३४२८-३०). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीँ श्रीँ अह; अंति: श्रीकमलप्रभाक्ष, श्लोक-२५. ३६३५४. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. प्रतलेखन शैली पुस्तक पत्र पलटने के क्रम जैसी लिखी गयी है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १५४४२-४४). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: वात्यादोषाद्विमुंचति, श्लोक-८८. ३६३५५. (+) सुमतिपचीसी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ११४३०). वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., पद्य, आदि: ए संसार अथिर कर; अंति: कहै सदारंग इणथी ढलणा, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६३५६. (+#) कार्तिकसौभाग्यपंचमीमहात्मविषये वरदत्तगुणमंजरी कथानक, संपूर्ण, वि. १६६२, फाल्गुन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. विमलविजय (गुरु उपा. मुनिविजय गणि, तपगछ); गुपि. उपा. मुनिविजय गणि (तपगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४४६-४८). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (१)मेडतानगरे, (२)विनिर्मिता कनककुशलेन, श्लोक-१४८. ३६३५७. जंबूस्वामि विवाहलु, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १७-१९४४०). जंबूस्वामी रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, ई. १५१६, आदि: सरसति सहि गुरु पय; अंति: सहजसुंदर० सुखवासु, गाथा-६२. ३६३५८. लोगस्स सूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२३.५४११,१४४३५-३७). लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विमलनाथ से अरनाथ नाम तक पाठ है.) लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मध्यभाग का पाठांश है.) ३६३५९. प्रायश्चित विधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४९.५, ३४२७). प्रायश्चित विधि, प्रा., गद्य, आदि: सेकिंत पायछित्ते दस; अंति: पारंचियारेहे. प्रायश्चित विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: के कहितां ते प्रायछि; अंति: तप थकी बाहरि करवउ. ३६३६१. (+) आगमिकपाठ संग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३४). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: चउदसपुव्वी उप्पन्न; अंति: अदसणे दासे. आगमिकपाठ संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वधकत्वात् अंकतः. ३६३६२. (+) आवश्यकसूत्र नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २४४८०). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नियुक्तिपीठिका की गाथा ६२ से उपोद्घातनियुक्तिअध्ययन-१ गाथा ९४ अपूर्ण तक है.) ३६३६३. (+) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, ११४३०-३३). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा ३७ तक नहीं है.) ३६३६४. पुण्यछत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२३.५४११, ९४२६-२८). पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० परतक्ष जी, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा ३० तक पाठ नहीं है.) ३६३६५. भोलेनो अर्थ-वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १९४५६). भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, आदि: प्रभु नीशालै वैठा; अंति: नंद परमानंद पामस्यौ. ३६३६६. शालिभद्र गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. गाथाक्रम ५ तक ही दिया है बाकी गिनती करके लिखा है., जैदे., (२५४११, ११४४१). शालिभद्र गीत, मा.गु., पद्य, आदि: नयर वेलाउल जाणीइ ए; अंति: छूटीइ वाही गयु कहिक, गाथा-१२. ३६३६८. सिद्धार्थराजा भोजन विधान, संपूर्ण, वि. १९२०, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. रिणी नगर, प्र.वि. शीतलनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२५४१२, १५४४६-४८). सिद्धार्थराजा भोजन विधान, रघुपति, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीऋद्धि; अंति: रघुपति० सागर सैतार, गाथा-५१. For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६३६९. (+) समाधि तंत्र दोधक, संपूर्ण, वि. १८५०, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, १३x४३). समाधिशतक दोधकछंदमय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, पुडिं, पद्म, वि. १८वी, आदिः समरी भगवति भारती; अंति: जसविजये० कल्याण, गाथा - १०४. ३६३७०. अढार नातरा सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५X१२, ९३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ नातरा सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (१) प्रभवो कहै जंबू प्रत, (२) मथुरापुरी रे कुबेर; अंति: नयविमल इम उपदिसै, गाथा - १४. ३६३७१, (+) चतुर्दशी - पाक्षिकतिथि निर्णय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१ (१) =४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., ( २६ ११, १७६०-६२). पाक्षिकचतुर्दशी तिथिनिर्णय- विविध शाखोद्धृत, मु. चारित्रसिंह, प्रा. सं., प+ग, आदि (-): अंति: चारित्रसिंहमुनि, (पू. वि. प्रारंभिक पाठांश नहीं है.) ३६३७२. पच्चक्खाण संग्रह व आगारसंख्या गाथा संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल, विकानेर, जैदे., (२५X१०.५, १३x४१). १. पे. नाम. १० पच्चक्खाण सूत्र संग्रह, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. आवश्यक सूत्र- प्रत्याख्यानसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: बत्तियागारेण वोसिरह. २. पे. नाम. आगारसंख्या गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण आवश्यक सूत्र- प्रत्याख्यानसूत्र संग्रह की प्रत्याख्यान आगारसंख्यागाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: इम गठिसहि मुठसहि, अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. ३६३७३. सुभद्रा सझाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२६४११, १३४३८-३९). " सुभद्रासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु, पद्य, आदि: मुनिवर सोधइ ईरजा, अंतिः कविअण० केरई ठाम, गाथा-२१. ३६३७४, (+) इग्यारस स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५X११.५ १५४४२-४५). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानेरी समोसर्य; अंति: कांति० मंगल अति घणो, ढाल -३, गाथा- ४४. ३६३७५. नंदिषेणमुनि सिज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५x११, ११४३०-३२). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी न जाईव परि अंति: जिनराज० गमन निवार, गाथा - १०. ३६३७६. कुगुरु सुगुरु प्रदीप स्तवन, संपूर्ण, वि. १२वी मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२६४१०.५, १४-१७४४०-४२). गुरुस्वरूप प्रदीप स्तवन, वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि जगदायक जिनराज ए अंति: पूरो वंचित काज ए. ढाल - ९. ३६३७७. सेतुंजा उद्धार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., ( २६१२.५, १९x४९). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल, अंति: नयसुंदर० जय करूं, ढाल - १२, गाथा - ११५. ३६३७८. (+) आलोयण स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२, १२X३३). महावीरजिन स्तवन- अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन सासन वीर जिनवर, अंतिः धर्मसि० फलवर्द्धिपुरे, ढाल-४, गाथा-३०. ३६३७९. (+१) चारित्रग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल, फलोदी, प्रले. मु. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. साध्वी पुण्यश्रीजी म.सा. के पत्र पर लिखे जाने का उल्लेख है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गय है. दे. (२६.५x१२.५, ११४३३). For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org विधिमार्गप्रपा- प्रव्रज्या विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रोप; अंति: पयाहिण वा उवसगो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६३८१, (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे ७ प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, जैदे., (२५x९.५, १७४१-४३). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तय सह अवचूरि पृ. १अ १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरापल्लिपुरमंडन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं अंतिः भूयाद् भूरिविभूतये, लोक- ९. पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरापल्लिपुरमंडन अवचूरि, सं., गद्य, आदि: प्रकर्षेण नम्यते इति, अंतिः शब्देन देव उच्यते. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन सह अवचूरि, पृ. १आ - २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं बरसं वरस, अंतिः शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक- ७. पार्श्वजिन चैत्यवंदन- यमकबद्ध- अवचूरि, सं., गद्य, आदि वरा प्रधाना संवरस्य अंतिः अविभः तस्य संबोधनम् ३. पे. नाम. ऋषभजिनेंद्र स्तुति, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, वा. पुण्यशील गणि, सं., पद्य, आदि: ऋषभ योगीश्वरं भजत, अंतिः प्राणिनाम्, श्लोक- ८. ४. पे नाम. अजितनाथजिन स्तुति, पृ. ३अ संपूर्ण अजितजिन स्तवन, वा. पुण्यशील गणि, सं., पद्य, आदि: अजितजिनेश्वर विजित अंतिः पुण्यशील० महोयुतः, श्लोक- ८. ५. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. वा. पुण्यशील गणि, सं., पद्य, आदि: जय जय जय हे विश्वजन; अंतिः पुण्यशीलगणि० महोयुत, श्लोक-१५. ६. पे. नाम. पद्मप्रभजिनप्रभु स्तुति, पृ. ३-४आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तुति, वा. पुण्यशील गणि, सं., पद्य, आदि: स्थाणुर्यस्य घनोदधि, अंतिः पुण्यशील० महोयुतः, श्लोक-१३. ७. पे. नाम. २० स्थानक आरती, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः यो जीमूतांजनौघांजन, अंति: जैनचंद्रः प्रदीपः श्लोक-३. " ३६३८२. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. सूरगढ, प्रले. ऋ. नंदलाल, पठ. मनरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५X१०.५, १२X३९). १९१ 1 " नेमराजिमती गीत. ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि तोरण आयो है सखी की अंतिः प्रीत की जी के जी गाथा १५. ३६३८३. मनोरथमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे. (२६४११, ११५४१). . चारित्रमनोरथमाला, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि सहि गुरुपाय प्रणमं; अंतिः पासचंद० सुखदाय कहा, गाथा - ५२. ३६३८४. नवस्व प्रकरण संपूर्ण वि. १६८३ आश्विन शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल, पालणपुर, प्रले सा. पदमा ( अज्ञा. सा. मोहण दे); गुपि. सा. मोहण दे, सा. लालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११.५, ११४२६-३८). " गाथा - १४. २. पे. नाम गौतमस्वामि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, गौतमस्वामी स्तुति, सं., पद्य, आदि: जिना अर्हत् सिद्धि, अंति: कुर्याः स्मृति, श्लोक-१. ३. पे नाम. विमलजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा, अंति: अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा-४४. " ३६३८५. () स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२६४११, ११४३५). १. पे. नाम. भविष्यजिनजीव संबंध, पृ. १अ, संपूर्ण. अनागत २४ जिन स्तोत्र, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरवरस्स भगवड बोलिव, अंतिः चंदसूरि० हुतु सबका, For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: विमलजिन स्वामि पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ३६३८७. (+) कुशलानुबंधि अध्ययन व आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १५४४६-४८). १.पे. नाम. कुसलाणबंधज्झयण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (१)चत्तारि मंगल अरिहंत, (२)सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६७. २. पे. नाम. आउर पच्छक्खाण, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेस विरउ सम्म; अंति: खयं सव्वदुरियाणं, गाथा-८४. ३६३८८. (+) अजितशांति स्तवन की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, २२४८३). अजितशांति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भगवति गर्भस्थे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० की टीका व छंद परिचय ___ अपूर्ण तक है.) ३६३८९. (+) तपावली यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५). तपस्या विधिसंग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: रयणावलीए तव कम्म; अंति: तवो सुत्त भणियाओ, गाथा-४. ३६३९०. (+) जिनसहस्रनाम गद्य स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७२२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ४, पठ. श्रावि. लहुकन्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंक्तियों पर क्रमशः नामपरक संख्याएँ दी गयी हैं., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३१). शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमो अर्हते परमा; अंति: प्रपेदे संपदा पदं. ३६३९२. शनिशर रो छंद, संपूर्ण, वि. १८६७, वैशाख शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. माणकचंद ऋषि (गुरु मु. वृजलाल ऋषि); गुपि. मु. वृजलाल ऋषि (गुरु मु. खुस्यालचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४३३). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: हेम० अलगी टालि आपदा, गाथा-१८. ३६३९३. प्रज्ञापनासूत्र-पद १ वनस्पतिकाय अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४१२, १५४४३). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गंधप्रकार तक वर्णन है.) ३६३९५. (+) चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. जिनेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १३४४२). दृष्टाष्टक स्तोत्र, मु. सकलचंद्र, सं., पद्य, आदि: दृष्टं जिनेंद्रभवनं; अंति: चंद्रमुनींद्रवंद्यम्, श्लोक-१०. ३६३९६. पडिकमणा नी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, ९४३०). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मागु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुंभावशू; अंति: धर्मसिंह० लालरे, गाथा-७. ३६३९७. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, १४४३२). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-९०. ३६४००. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६.५४११.५, १०-१३४२०-२५). आवश्यकसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सयणासणन्नपाणे चेइअ: अंति: मणसा __ मत्थएण वंदामि. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टीका , सं., गद्य, आदि: शयनासण वितथा चरणे; अंति: पदमावृत्या योज्यं. For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १९३ ३६४०१. (+) मौनएकादशीपर्व गणगुं, संपूर्ण, वि. १८७५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. पं. राजश्री; पठ. मु. अमर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *अक्षर अनियमित है., संशोधित., जैदे., (२६४१२). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीप भरत अतीत; अंति: श्रीआरुण्यकनाथाय नमः, ३६४०२. (+) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ९४२१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनंजयति शासनम, श्लोक-१९. ३६४०३. (+) नेमिश्वर वीवाहलक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३-१४४५५). नेमिजिन विवाहलो, ग. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जादवकुल सिरिसितिलउए; अंति: जयसागरगणिवर चरणवए, गाथा-२६. ३६४०४. (+) सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३६). सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रीगुरु चरणे नमी; अंति: सेवक केसरकुसल जयकरो, ढाल-५, गाथा-७५, ग्रं. १६८. ३६४०५. (-) तेरकाठियानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. प्रेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५४११, १३४२९). १३ काठिया सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंगौतम गणधार; अंति: हेमविमलसुरीस्वर कही, गाथा-१५. ३६४०६. पानीय ग्रहण विधि शास्त्र सम्मत, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, २१४६०). पानीय ग्रहण विधिशास्त्रसम्मत, प्रा.,सं., प+ग., आदि: तउ पभाईए देवी एस; अंति: (-), (पू.वि. निशीथसूत्र के उद्धरण तक है.) ३६४०७. (+) जैन विविध लक्षण संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १९४६२-६५). जैन विविध लक्षण संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: श्रीवीतराग वाणी संसा; अंति: माइइ तिसिउ फल पामिइ, गाथा-२२. ३६४०८. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-२९(१ से २९)=१, जैदे., (२६४११, १३४३६-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र हरिणीगमेसीगर्भसाहरणं प्रसंग अपूर्ण है.) ३६४०९. (+) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११, १९४४७). सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धरा उच्चरणं वेद; अंति: वदै हेम इम वीनती, गाथा-१६. ३६४११. (+) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८२७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. हर्षविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ९-१२४२५-३५). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरं नत्वा; अंति: तत्पराः समभवत्. ३६४१२. चौदगुणस्थान आठकर्मनी १५८ प्रकृतिविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२२४११.५, १०४३०). १४ गुणस्थानक ८ कर्म की १५८ प्रकृतिविचार, मा.गु., गद्य, आदि: ते मधे प्रथम वंद्व; अंति: (-). ३६४१३. (+) कायस्थिति प्रकरण की अवचूरि व जीवाल्पबहुत्व सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, २५४८१). १.पे. नाम. कायस्थिति प्रकरण की अवचूरि, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: वस्थानं तस्य स्थितिः, (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण की अवचूरि से है.) २. पे. नाम. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व सह अवचूरि, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, प्रा., पद्य, आदि: पपुदउ कमसो जीवा जल; अंति: अहगामा दाहिणे झुसिर, गाथा-२. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व-टीका, सं., गद्य, आदि: पपुदउत्ति पश्चिम; अंति: बहुतमोवायुरिति. है। For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६४१४. (+) अरिहंतगुण स्तुति सह टबार्थ व ७ भय नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पह्लादनपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ३४३२). १.पे. नाम. अरिहंतगुण स्तुति सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. अरिहंतगुण स्तुति, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: अन्नाण १ कोह २ मय ३; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नमामि देवाहिदेवत्तं पाठ तक है.) अरिहंतगुण स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवि देवना अढार दोष; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. ७ भय नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यादिकनिं मनुष्य; अंति: भय ७ एसात भय जाणवा. ३६४१५. संवच्छरीखांमणानी ढाल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४३८-४२). संवच्छरी खामणा, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: खामणलांखामोरे सजनी; अंति: पनोता त्हेनी बलीहारी, गाथा-१५. ३६४१७. (+) जिनमंदिरदर्शनफल चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१२, १२४३४). जिनमंदिरदर्शनफल चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुराज; अंति: तुम सेव्याना कोडि, गाथा-१४. ३६४१८. प्रतिक्रमणसूत्र व श्रावकअतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १२४४०). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: अप्पाणं वोसिरामि. २. पे. नाम. श्राद्धलघुअतिचार, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. श्रावकलघुअतिचार-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छा० भगवन्० अरिहंत; अंति: वत्तीयागारेणं वोसिरइ. ३६४१९. (+) त्रिकाल चतुर्विंशतिका कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, १०४२९). २४ जिनव्रत कथा-त्रिकालवर्ती, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: टगुणनंदीच सोद्भुतम्, श्लोक-३५, (वि. गाथा क्रमांक तीन पद के हिसाब से लिखा है.) ३६४२०. (+) पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८४२, कार्तिक कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. जयविजय (गुरु पं. दोलतविजय); गुपि. पं. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४१२, १७४३९). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: जयो पास जय जय करण, गाथा-५२. ३६४२१. (+) ऋषिमंडल स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४१२, १२४३३). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दोषैर्विमुच्यते, श्लोक-८६, (पू.वि. गाथा ७९ ___ अपूर्ण से है.) ३६४२२. बलभद्रनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. जससोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३१). बलभद्रमुनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सेहसुजन मनावणां; अंति: निसदिन जिनवरधमांन रे, गाथा-१६. ३६४२३. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४३५). पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: जीरावला देव करउ; अति: करी सेवका मुज थाप्पउ, गाथा-१०. ३६४२४. निगोद विशारा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सिरोही, अन्य. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११,११४३०). निगोद विचार, मा.गु., पद्य, आदि: ईद्र पुछे भगवन कहे; अंति: अणु अनंत पर्याय, गाथा-१०. ३६४२६. जैन धार्मिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १९-२१४६८-७०). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: व्रतानां ब्रह्मचर्यह; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १९५ ३६४२७. (+) वंदनक भाष्य, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १२४३०-३५). गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुरुवंदणमिह तिविहं; अंति: अणभिनिवेसी अमच्छरिणो, गाथा-४१. ३६४२९. (+) पारसनाथनी राणी प्रभावतीनुं मोसालुं, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वालोडनगर, प्रले. पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित., जैदे., (२२.५४११, १३४४२). प्रभावतीराणी मोसालु, पं. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९५, आदि: कुसस्थलपुर नरवरम; अंति: मोसालुं वखाख्यु, गाथा-१४. ३६४३०. (+) जीव रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ८x२५). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवइ राणी पदमावती; अंति: कहे पापथी छूटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. ३६४३१. (+) बार भावना, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४३९). १२ भावना, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली अनित्य भावना; अंति: एन लाभइ इम चंतवइ, गाथा-१२. ३६४३२. (+) पाशा केवली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १३४४७). पाशाकेवली-भाषा*,संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: धान्यलाभ मनोरथ पूजै. ३६४३३. समयसार नाटक नाममाला सूचनिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३७). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३३ से ५० तक ३६४३४. अनानुपूर्वी विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १३४३६). __ अनानुपूर्वी विधिसहित, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३६४३६. कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १७४५२-५४). १. पे. नाम. कुंडरीकपुंडरीक कथा-ज्ञाताधर्मकथांगोद्धृत, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-कुंडरिकपुंडरीक कथा, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)वाससहस्सपि जई काऊणं, (२)महाविदेहे पुंडरीकि, अंति: सुख प्राप्स्यति. २. पे. नाम. नंदमणिकार कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)संपुण्णगुणोविजओ, (२)राजगृहे श्रीवीरः समव; अंति: विदेहे मोक्षंगमी. ३. पे. नाम. विद्यापतिनृप कथा परिग्रहपरिमाणे, पृ. १आ, संपूर्ण. विद्यापतिनृप कथा-परिग्रहण परिमाणे, सं., गद्य, आदि: पोतनपुरे शूरोराजा; अंति: स्पृहैर्मित ग्रहै:. ३६४३७. (+) प्रत्याख्यान गाथा संग्रह व आगारसंख्या, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-२८(१ से २८)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १६४२४-५१). १.पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या, पृ. २९अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अन्नत्थणाभोगेणं; अंति: हुंति वय भंगरखट्ठा. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. २९आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. __ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६४३९. मौनएकादशीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४१२, १७४४५). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंति: एकादशीमाराध्य समभवत्. ३६४४०. (+) साधारणजिन स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ३-५४५८-६२). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-१०. For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, आदि: देवाः प्रभोयमिति; अंति: श्रीजयानंदसूरिनाम. ३६४४१. नंदिश्वरद्वीप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सूरत, प्रले. ग. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १२४२८). नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीश्वर बावन जन्नाल; अंति: धर्म गुण गावो रे, गाथा-१५. ३६४४२. कल्याणमंदिर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. माणिक्यसोम; पठ. श्रावि. मूहनी (गुरु सा. जयसुंदरी); गुपि. सा. जयसुंदरी (गुरु सा. विनयसुंदरी); सा. विनयसुंदरी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२४.५४११, ११४२९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३६४४३. आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२४४११.५, १३४४६). आलोयणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एक प्रकार की असंजम; अंति: होई तस मिछामि दुकडं. ३६४४४.) पारस्वनाथनु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १३४३५). पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरत्य श्रीपास; अति: विजयसील० आणंद घणे, गाथा-१०. ३६४४५. साधारणजिन स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११.५, ९४३०). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. साधारणजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे प्रभो सत्वं सदा; अंति: अर्धमयट् प्रत्ययः. ३६४४६. सोल सपना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवउं; अंति: विद्या०मुगतिनु राज्य, गाथा-२६. ३६४४७. चतुर्विंशति दंडक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्रावि. देवकुंवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, ८४३०). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूरि मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३३. ३६४४८. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७४११.५, ६४४१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊंचउवीस जिणे तसु; अंति: एसा विणत्ति अप्पहिया, ___ गाथा-४४. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीचउवीस तीर्थंकर; अंति: निवत्यं हुयु जेहेनउ. ३६४४९. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १९४५२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३६४५०. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, दे., (२६४१२, १४४४०). १.पे. नाम. आमग तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आगम स्तवन, वा. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंदनी वाणी; अंति: लालचंद० गुण गावैरे, गाथा-९. २.पे. नाम. छ मासीतप स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामिरे बुद्धि; अंति: आपो स्वामी सुख घणा, गाथा-१०. ३. पे. नाम. वरसीतप स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. मु. रूप ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: आदिराय आदीसरू आदिनाथ; अंति: रूप० पूरी मन की आस, ढाल-४. ४. पे. नाम. आठकरम की सिज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. ८ कर्म सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: आठ करम जिणवर कह्या; अंति: ब्रह्म मारग पालो रे, गाथा-७. ५.पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: कुशललाभ० संपत फल लहै, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १९७ ३६४५१. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१४, आश्विन शुक्ल, १;वि. १९१५, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सांडेरा, प्रले.मु. तीर्थसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक १आ पर प्र.ले.वर्ष-१९१४ आसोज सुद १ दिने मिलता है., जैदे., (२५.५४१२, ६४३६). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: एगग्ग चित्ता जिण; अंति: नह देवातेण आवंति. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: एकाग्रचित्ते जिन; अंति: देवता इहां नथी आवता. ३६४५२. लक्ष्मीसागरसूरि परंपरा-पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४११.५, ४३४२८). लक्ष्मीसागरसूरि परंपरा, सं., गद्य, आदि: भट्टारक श्रीलक्ष्मी; अंति: वृद्धि०शि० रामसागर. ३६४५३. (+) चोमासी प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १०४३३-३९). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संखेप करिनै तिहां; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जयवीयराय स्तोत्र व दादाजी का ध्यान करने का उल्लेख तक है.) ३६४५५. शनैश्चर वार्ता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, १६४४५). शनिश्चर वार्ता, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामिणि मति; अंति: लहै ललितसागर इम कहै, गाथा-३१. ३६४५६. अक्षय तृतीया व्याख्यानम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३४१०.५, १३४३८). अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंति: क्षमाकल्याणपाठकैः, ग्रं. ७०. ३६४५७. संजमनो गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४११.५, १६x४८). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संयम लेवा संचर्या; अंति: नय कहे धन सुजगीस, गाथा-१९. ३६४५८. अतिचार गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, १०४३०). पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मिअ; अंति: नायव्वो विरियायारो, गाथा-८. ३६४५९. (+) अतिचार गाथा व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १०४३८). १. पे. नाम. अतिचार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नांणमिदंसणंमिअचरण; अंति: नायव्वो विरियायारो, गाथा-८. २. पे. नाम. त्रिषष्टीपुरुष स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. त्रिषष्ठिशलाकापुरुष स्तुति, सं., पद्य, आदि: नाभेयादि जिनः; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, गाथा-१. ३६४६०. २४ जिन कल्याणक आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४१२, ११४३८-४०). २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)कातिकसुदपक्ष, (२)श्रीसुविधिनाथसर्वज्ञ; अंति: स्वामि पारंगताय नमः. ३६४६३. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व संथारा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अंत का पत्र बाद में लिखा गया प्रतीत होता है., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४३२-३५). १.पे. नाम. श्राध प्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. २.पे. नाम. संथारा विधी, पृ. २आ, संपूर्ण. संथारापोरसी विधिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: इय सम्मतं मए गहियं, गाथा-१४. ३६४६४. (+) साधूप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १०४२९-३६). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (१)चत्तारि मंगलं अरिहंत, (२)इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९८ ३६४६५. श्रीदेवी कमलस्वरुप वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२१x१०.५, १४X३०). " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीदेवी कमलस्वरुप वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: हेमवंतपर्वत १०० जोजन, अंति: एक पल्योपमने आउखे छे. ३६४६६. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५X१२, ११४३४). १. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भक्तामर स्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद, अंतिः नमभिनय जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंतिः वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-४. ४. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ-२अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति- रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रिया मंगल, अंतिः जय ज्ञानकलानिधानम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. नेम स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: कमलवल्लुपनं तव राजते; अंति: विभाभरनिर्जितभाधिपाः, श्लोक-४. ३६४६७. लघुसंघयणी सुत्र, संपूर्ण वि. १८७९ आश्विन अधिकमास कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, वडनगर, जै.. (२७४११.५, १२४३८-४०). . लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा- ३०. ३६४६८. बोल संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x११.५. ३७x९-२२). १. पे. नाम, दंडक बोल संग्रह, प्र. १-१ आ. संपूर्ण २८ दंडक बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. साथ में कोष्ठक -यंत्र दिया गया है.) २. पे. नाम. ५६३ भेद जीवका व्योरा, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६३ जीव भेद यंत्र, मा.गु. को., आदि: (-); अंति: (-). ३६४६९. दश पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५x१२, १२४३२). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उगए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि , ३६४७०. गुरूस्तुप प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. राजनगर, जैदे., ( २६ ११.५, ११x४१). गुरुप्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथम रात्रि जागरणं; अंति: लोद मरोडाफली मीढल. ३६४७१. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५X११.५, १०-१२X३५-३७). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: तस्स मिछामि दुकडं. ३६४७२. (+) वीरस्तुतिनाम अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे... (२६.५४११.५, ५४४१) सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण, अंति देवाहिव आगमिस्संति, गाथा २९. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुछिथइ भगवंतरा गुण; अंतिः कुसीलीया कहाइ छइ. ३६४७३. (+#) । साधू अतिचार व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, ११X३६). For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १.पे. नाम. साधू अतिचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. २.पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अति: (-), गाथा-३. ३६४७५. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२, ११४३४). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ; अंति: तेनाह सुरा भगवंत, गाथा-१३. ३६४७६. रत्नसंचय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१८.५४११, ६४२३). रत्नसंचय-हिस्सा गाथा ३६० से ३६५ सर्वजीव की१० संज्ञा, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आहारभयपरिग्गहमेहूणतह; अंति: रुक्खेसु वल्लीउ. रत्नसंचय-हिस्सा गाथा ३६० से ३६५ सर्वजीव की १० संज्ञा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आहारसंज्ञा१ भयसंज्ञा; अंति: चढे छे उघसंज्ञा१०. ३६४७७. आदिजिन स्तुति, वज्रपंजर स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रत के दोनों ओर संख्या दी गई है., जैदे., (२६.५४१२, १०४३३). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: शुभ्रामरी भासिता, श्लोक-४. २. पे. नाम. वज्रपंजरकवच, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई प्रतीत होती है. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६४७९. पार्श्वजिन स्तवन गोडि, संपूर्ण, वि. १७९५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१८.५४१०.५, १२४२९). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ऋद्धिहर्ष कवि, मा.गु., पद्य, आदि: जस नामे नवनिध ऋद्धि; अंति: ऋद्धिहरख कहै कर जोडी, गाथा-२०. ३६४८१. (+) वीरथुई अज्झयणं व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८४३, कार्तिक शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. हरसोर, पठ.मु. पचाण ऋषि (गुरु मु. सुजाण ऋषि); प्रले. मु. सुजाण ऋषि (गुरु मु. तुलछीरामजी ऋषि); गुपि. मु. तुलछीरामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८७२) बुधं फलं तत विचारणंच, जैदे., (२६.५४११.५, १८४४७). १.पे. नाम. वीर थुई अज्झयणं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: मोखपदस्स छंडिसंगभूयं, गाथा-३. ३६४८२. (+) जिनप्रासाद विचार व नंदीश्वरद्वीप वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. जिनप्रासाद व जंबूद्वीप का चित्र दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२, २४४२६-३४). १.पे. नाम. जिनप्रासाद व जिनबिंब विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वतजिन प्रासाद जिनबिंब विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. जंबूद्वीप मान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. लघुसंग्रहणी-जंबूद्वीप विचार * संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६४८४. अजितसांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७४१२,१२४३२-३७). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६४८५. सिद्धदंडिका स्तवन वटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५८, भाद्रपद शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. प्रहलाद मोहनलाल बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कृति को समझने के लिये कोष्ठक दिये गये है., जैदे., (२७४१२, ३४३७). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धि सुह, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंक० जे उसभक० ऋषभ; अंति: ते सिद्धिनां सुख आपो. ३६४८७. शेजागीरि फाग, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. इडरगढ, प्रले.ग. चंद्रविजयगणि; पठ. श्रावि. दुद्धी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१६४११.५,११४२२). शत्रुजयतीर्थ होरी, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी शेजा; अंति: भणे जनम जनम तोरो दास, गाथा-४. ३६४९१. बांभणवाडि वीरजिन नीसाणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. जेतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९४११, १४४२९). महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसत्ती सेवग सत; अंति: हुइ हर्षमाणिक मुनि, गाथा-३७. ३६४९२. जैनधार्मिक प्रश्न संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१२, १६४५८). जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर-विविधग्रंथोक्त, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: द्वादशव्रतधारक केवल; अंति: (-), ग्रं. १५१. ३६४९३. वृद्धशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४१२.५, १०४२८). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ३६४९४. सिद्धदंडिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. कृति को समझाने के लिये कोष्ठक दिया गाया है., दे., (२७४१२.५, ३४२९). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिआदितु सिद्धि सुह, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंक जे उसभक० ऋषभ; अंति: सिद्धिनांसुख आपो. ३६४९६. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८६, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जगाधरी, प्रले. श्राव. मोहनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १५४३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणति मौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४८. ३६४९७. भरेसर सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२, ११४३१). भरहेशर बाहुबली स्वाध्याय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरेसर बहुबलि अभय; अंति: झस आपडो ताहुने सयलै, गाथा-१३. ३६४९८. (+) संथारा पोरिसि, संपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४३२). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही निसीही नमो; अंति: इय सम्मतं मए गहियं, गाथा-१४. ३६४९९. (+) वीरत्थुई अज्झयण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४१२, ७४४२). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुनरकविभत्ति सांभली; अंति: जंबूस्वामि प्रते. ३६५००. वीस स्थानक गुणन काउसग विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४२७). २० स्थानक नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं १२; अंति: (१)२८ लोगस्सनो काउसगः, (२)दोयहजार गुणणो करणो. ३६५०१. (+) थोय, सज्झाय वस्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १२४३६). १.पे. नाम. मौनएकादशी थोय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीभाग्नेमिर्बभाषे; अंति: न्यस्तपादांबिकाख्या, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २. पे. नाम. शेजयतीर्थगिरि उपरि अनंतफलदायक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानफल सज्झाय-शत्रुजयतीर्थे, मु. प्रीति, मा.गु., पद्य, आदि: पचखी पच्चखाण परभावती; अंति: तीर्थ अभिधान धरता, गाथा-७. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सांभलो रे संभव; अंति: (-), (पू.वि. मात्र पहली गाथा अपूर्ण है.) ३६५०२. कुंथुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. धनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४११, ११४२२). कुंथुजिन स्तवन, मु. जोतरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: हारे लाल कुंथुजिण; अंति: जोतरत्न० सायर रेलाल, गाथा-७. ३६५०३. (-#) कलिकुंड पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x११.५, ६४१६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देविंद्रवृंदा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. ऋद्धि मंत्र, पृ. १, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्र १अपर है. ___ मंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६५०५. (4) आर्यवसुधाराधारिणी, संपूर्ण, वि. १९वी, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जामला, प्रले. पं. माणक्यविजय; अन्य. पं. दर्शनविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४३६). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ३६५०६. वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १५४३५). वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३६५०७. (+) सकलार्हत् स्तोत्र पाक्षिक नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८७४, वैशाख कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. अमनगर, पठ. मु. मोती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १३४३९). सकलार्हत स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलाहत्प्रतिष्ठान; अंति: (१)बीसं परिनिव्वुइ वंदे, (२)तानि वंदे निरंतरम्, श्लोक-४३. ३६५०८. (-) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८५७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १५४३४). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांत; अंति: सूरिश्रीमानदेवशः, श्लोक-१७. ३६५०९. परभातियु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ईश्वरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१२, ८x२७). तपपद सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वदेवमा प्रतक्ष; अंति: पास धीर मुनि गाजे, गाथा-१०. ३६५१०. वैराग्यभावना गीत, संपूर्ण, वि. १८१०, आश्विन कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. द्राका ग्राम, प्रले. मु. जगसी ऋषि (गुरु मु. शिवजी ऋषि, बृहल्लौंकागच्छ); गुपि.मु. शिवजी ऋषि (गुरु मु. गांगजी ऋषि, बृहल्लौंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०.५, ८x२९). वैराग्यभावना गीत, मा.गु., पद्य, आदि: सख रास रमंतो साथि; अंति: माटी माटी में मलेयो, गाथा-९. ३६५१२. स्तुति व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, ११४३३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९५९, माघ कृष्ण, ३, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापण; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. २.पे. नाम. दीवानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दीवा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दश द्वारे दीवो कहो; अंति: निश्चे मोक्षे जाय, ढाल-२, गाथा-९. ३६५१३. (+) वधावो व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ३५४१८). १. पे. नाम. जिनहर्षसूरिजी रोवधावो, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनहर्षसूरि वधावो, मु. लक्ष्मीचंद, रा., पद्य, आदि: थे वहिला आजो हो; अंति: राजरा पभणै लखमीचंद, गाथा-१०. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सामी तुमे काइ कामण; अंति: जस कहै हेजे हलस्युं, गाथा-५. ३६५१४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. हरजी, जैदे., (२५.५४९.५, ३२४१४). १. पे. नाम. नारंगा पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-नारंगामंडन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विषय त्रेवीस नीवारी; अंति: पद्मविजय० शुभमति के, गाथा-८. २. पे. नाम. राजेमती स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब झरूखे उग्रसेन; अंति: देवविजय जयकारी, गाथा-८. ३६५१५. (-) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११, १७X४१). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-रतनपुरी, मा.गु., पद्य, आदि: रतनपुरी सणगार रे; अंति: भवीयण सवि आणंद करु, गाथा-२२. २. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सदा जिन चोवीस मन; अंति: नवारो मुवीरस्वामी, गाथा-१४. ३६५१६. (+) स्थापनाचार्य परीक्षा व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १२४४२). १.पे. नाम. स्थापनापरीक्षा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभद्रबाहुस्वामि; अंति: हाथे बांधवा थकी जाई. २. पे. नाम. स्थापनाकल्प सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद मे लिखी गयी है. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुरब नवमाथी उधरी जीम; अंति: वाचक जस गुणगेहरे, गाथा-१५. ३६५१७. दंडक प्रकरण व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५९, कार्तिक शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ९४३८). १.पे. नाम. चउवीसदंडक विचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउचउवीस जिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४२. २. पे. नाम. शील उपमा के ३२ बोल, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में लिखी गयी है. शीलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जिम ग्रह नक्षत्र; अंति: व्रतमाहे शीलव्रत. ३६५१८. गुणानुराग कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५४११.५, ५४४०). गुणानुराग कुलक, मु. जिनहर्ष, प्रा., पद्य, आदि: सयल कल्लाण निलयं; अंति: सो पावइ सव्वनमणिजं, गाथा-२८. गुणानुराग कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल कल्याणना निवास; अंति: तीर्थंकरपदने पामे. ३६५१९. श्राद्धसंक्षिप्तपाक्षिकअतिचार व श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४१, पौष कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. सरीयारी, जैदे., (२६४११.५, १५४४६). १. पे. नाम. श्राद्धसंक्षिप्तपाक्षिक अतिचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहलाथूल प्राणातिपात; अंति: अठारे पापथानक आलोचना. २. पे. नाम. वंदेतु सूत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चोवीसं, गाथा-४३. ३६५२०. अष्टक, स्तोत्र, छंदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१०.५, १०४३९). १. पे. नाम. सरस्वत्यष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८६२, माघ शुक्ल, ११, गुरुवार. For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org गाथा-७. ४. पे. नाम. शंभुनाथ स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम वासकिवलास गवरी; अंति: तो शिव शिव शंकर शरण, गाथा - १. ५. पे नाम औपदेशिक लोक, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८६२, माप शुक्ल, १४. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुध विमल करणी विबुध, अंति: जाणी राजराणी सरस्वति, गाथा - १०. २. पे. नाम. पार्श्व स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव - चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: स्फुरदेवनागद्रवृंद, अंतिः चिंतामणिः पार्श्वः, श्लोक-६. ३. पे. नाम. संखेसरा पार्श्व छंद. प्र. २अ २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन छंद - शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदवरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सेवो पास संखे, अंतिः पास संखेसरो आप तूठा, औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: गृहे त्यक्ता बाला; अंतिः कथमपि नृणां हंसगमने, श्लोक-१. ३६५२१. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५X११.५, १०X२८). १. पे नाम श्रीमंधिरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीमंधरजिन स्तवन, बा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा हु, अंति होज्यो मुज चित्त हो, गाथा-९, २. पे. नाम. ज्ञानपांचमी सज्झाय, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. 3 २०३ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु, पद्य, आदि अनंत सिद्धने करी, अंतिः ऋद्धिकीर्ति० थाओ धणी, गाथा- ११. ३६५२२. () विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. जैवे. (२५४१२, १८४४६). १. पे. नाम. दु श्रावण भाद्रवा संवाद. पू. १अ १ आ. संपूर्ण , For Private and Personal Use Only २ श्रावण व २ भाद्रवा संवाद, मा.गु., गद्य, आदि: चंद्रपन्नती सिद्धांत; अंतिः न करइ ग्यानइ जाणवा.. २. पे. नाम. १३ बोल देख के चमासा करे, पृ. १आ, संपूर्ण. चातुर्मास योग्य स्थान के १३ बोल, पुहिं., गद्य, आदि: चिकडगारा थोडा होवे, अंति: विघन पडे नहीं. ३. पे. नाम जीव जन्ममृत्यु विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं, गद्य, आदिः सुष्म निगोदिया जीव; अंतिः ९ जर्म मर्ण करे. 11 ३६५२३. (+) स्तवन व ज्योतिषश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १ कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जी. (२५x११, १९x४७). " १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्म, वि. १६६७, आदि सारद नाम सोहामणुं मन, अंतिः शांतिकुशल०० सुख लहे, गाथा-३१. २. पे. नाम दृष्टिबल, लमबल, पंचमभावे पुत्रपुत्रीज्ञानादि ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण ज्योतिष मा.गु. सं., हिं. प+ग, आदि: चंद्रात्सप्तमकेर्के, अंतिः जायासंख्या सतां मता. ३६५२४. समवसरण विचार व कुलक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, जैदे. (२५x११, २१x६५ ). " १. पे. नाम. समवसरण स्वरुप किंचिन्मलयगिरीयावश्यकवृहद्वृत्तिगत, पृ. १अ संपूर्ण आवश्यक सूत्र- टीकागत समवसरण विचार, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः प्रथमं वायुकुमारदेवा, अंतिः पुरुषः ३ अस्थिमाली४. २. पे. नाम. सूरिसंख्या कुलक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सिरिवद्धमाणतित्थं; अंति: होइ पच्छित्तं, गाथा - ११. ३. पे. नाम. नवनिदान कुलक. पू. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: निव१ धणी२ नारी३ नर४; अंति: सुगुणे ते एय परिच्चए, गाथा-१६. ३६५२५. मुनिमालिका व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२० श्रेष्ठ, पृ. ३ कुल पे. ३. ले. स्थल, रिणी, जै. (२५४१२, १५४४६)१. पे. नाम. मुनिमालिका स्तवन पू. १अ २आ, संपूर्ण. Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: रिषभ प्रमुख जिन पाय; अंति: फलै सदा सदा कल्याण, गाथा-३६. २. पे. नाम. ९६ जिनवरनाम स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमान चौवीसी वंदू: अंति: सदा जिणचंदसूरिए, ढाल-५, गाथा-२३. ३.पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. नमस्कार सज्झाय, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा-७, (वि. दो गाथाओं की १ की गिनती क्रम से गिनी हुई प्रतीत होती है.) ३६५२६. (+) शतक, कुलक, सिद्धभेदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १६x४५). १.पे. नाम. इंद्रियपराजयशतक, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिय सूरो सोचेव; अंति: संवेग रसायणं निच्चं, गाथा-१०१. २.पे. नाम. देह कुलक, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. देहस्वरूप कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं वीरं किंच; अंति: ए भविअजण विबोहणट्ठाए, गाथा-२३. ३. पे. नाम. महासत्वमहासती कुलक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ४. पे. नाम. सिद्धों के १५ भेद उदाहरण, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जिणसिद्धा अरिहंता; अंति: पनरस भेया उदाहरणं, गाथा-४. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुक्खलवइए विजए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक है.) ३६५२८. दुषम आरा विचार व सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३९). १.पे. नाम. दुषमकाल विचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)समणा अवगयवेया परिहार, (२)श्रीमहावीरना शिष्य; अंति: तिवारे सर्व आवे. २. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. सवैया संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: नृप मार भलि अपने घर; अंति: को सोच कहा करह, सवैया-१. ३६५२९. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४१०.५, ४०४२३). भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक-बोल, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै पनवणा द्वार; अंति: (-), (पू.वि. उवसप्पिणी विवरण तक है., वि. बोल की सूचि बीजक रूप में दी गयी है.) ३६५३१. खामणा व दोहा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४३५). १.पे. नाम. पाक्षिक क्षामणकानि, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. २.पे. नाम. प्रासंगिक दोहा, पृ. १२आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: किहां कोइलि किहा; अंति: वीसरि गिरूआतणा सनेह, गाथा-१. ३६५३२. महावीरजिन सप्तविंशतिभव चरित्र, पूर्वभव तप व गर्भापहार विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-२५(१ से २४,२६)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १५४४२). १.पे. नाम. महावीरदेव सप्तविंशति भव, पृ. २५अ-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. महावीरजिन २७ भव चरित्र, मु. मेघराज, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कल्पसूत्रादवसेयं, भव-२७, (पू.वि. प्रारंभ से १७वें भव किंचित् अपूर्ण तक तथा १९वें भव अपूर्ण से २०वें अपूर्ण तक पाठ नहीं है.) २.पे. नाम. महावीरजिन तपमान, पृ. २७आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: मासक्षमणानि ११ लाख; अंति: यथोक्तस्य लाभात्. जा, सण. For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३. पे. नाम. महावीरजिन गर्भापहार विचार, पृ. २७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गर्भापहार गाथा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: गब्भत्ताएसहारइत्ति; अंति: (-), (पू.वि. गर्भसंक्रमण दृष्टांत भागवत श्लोक ४ तक तथा अन्य दृष्टांत प्रारंभमात्र तक है.) ३६५३३. गोचरी दोष सह टबार्थव गोचरीदोष विचार, संपूर्ण, वि. १६५४, माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन तिथि- तेरिसि युक्त चउदसी., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४११, ७४२८). १. पे. नाम. गोचरी दोष, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: आहाकमु १ देसिय २; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-६.. गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जतिनी मति छकाइ; अंति: छ कारणे छेडिइ. २.पे. नाम. गोचरीदोष विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. __ गोचरी के ४२ दोष *, मा.गु., गद्य, आदि: १आधाकमि २ अधोकमि; अंति: करुणा कहता दया पर. ३६५३४. पोरसीपडिलेहणगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अलग से एक यंत्र बनाया गया है., जैदे., (२५४१०.५,१०४४८). १.पे. नाम. पडिलेहण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. पडिलेहण के कोष्ठक भी दिये गये हैं. प्रतिलेखनकालमान गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: आसाढे मासे दोपया पोस; अंति: आसाढ नट्ठिया सव्वे, गाथा-५. २. पे. नाम. प्रभात प्रतिलेखना, पृ. १अ, संपूर्ण. सूर्योदयपूर्वे १० पडिलेहण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मुहपत्ती रयहरणं; अंति: दसप्पेहाणुग्गए सूरे, गाथा-१. ३. पे. नाम. पोरसी प्रतिलेखनागाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मुहपुच्छो तेण दोरे; अंति: अंते पेहंति महरंमि, गाथा-३. ४. पे. नाम. प्रथम प्रहर प्रतिलेखणा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रथम प्रहर प्रतिलेखना गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तिहुअणभवणपईवं वीर; अंति: छायतो कुणह पडलेह, गाथा-६. ५. पे. नाम. पोरसि पडिलेहणा, पृ. १आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-पोरसीपडिलेहणा गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: निअजाणूवरि संठिय; अंति: अंगुलाणि पय उवरिं, गाथा-५. ३६५३५. लीलावती रास, श्लोक व पद, अपूर्ण, वि. १७८९, चंद्राद्रिगजांक, मध्यम, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. पत्तन नगर, प्रले. पं. रामविजय गणि; पठ. पं. मतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३८). १.पे. नाम. लीलावतीसुमतिविलास रास, पृ. १५अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं.. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: उदयरतन संपति रसाल जी, ढाल-२१, (पू.वि. मात्र अंतिम २१ वी ढाल है.) २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १५आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में लिखी गयी है. सं., पद्य, आदि: न चौर हार्य न च राज; अंति: धनं ये पुरुषा वहति, श्लोक-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १५आ, संपूर्ण. क. गंगदास, पुहिं., पद्य, आदि: गंगा केरु नीर छाडि; अंति: गंगदास० निचुंग नइ, पद-१. ३६५३६. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४५०). १. पे. नाम. उदयपुरमंडन सुपार्श्वजिन बृहत्स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, मु. जिनवर्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: जोडि कर कोड धरि; अंति: जिनबधमान० जगीस ए, गाथा-१३. २.पे. नाम. जिनवीनती स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधारणजिनवीनती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: कर जोडी आगलि रही मन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६५३७. चौसठ योगिनी स्तोत्र, सोल विद्यादेवी व बावन वीर नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, ९४३३). १.पे. नाम.६४योगिनी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं दिव्य; अंति: विघ्नं प्रणश्यति, श्लोक-९. २.पे. नाम. १६ विद्यादेवी, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ विद्यादेवी मंत्र, सं., गद्य, आदि: रोहिणी प्रज्ञप्ति; अंति: वैरोट्या महामानसि. ३. पे. नाम. ५२ वीर नाम, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., गद्य, आदि: वापुलवीर बुदीयो नलपह; अंति: (-), (पू.वि. नाम २५ तक है.) ३६५३८. अजितशांति स्तव, स्तुति व संक्षिप्त पाक्षिक अतिचार श्रावक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १३४३३-४९). १.पे. नाम. अजितशांति स्तव-लघु, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रियमखिलंपि थुणंतह, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा १४ तक नहीं है.) २.पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. ७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. सं., पद्य, आदि: सर्वमंगल मांगल्य; अंति: जैन धर्मोस्तु मंगलम्, श्लोक-२. ३. पे. नाम. पाक्षिक श्राद्ध अतिचार, पृ. ७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: आजूणा पक्खी दिवसमाह; अंति: मिच्छामि दुक्कड. ३६५३९ (+#) अष्टक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, ११४४२-४५). १. पे. नाम. जिनलाभसूरि अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जगद्वल्लभ, सं., पद्य, आदि: समुन्नतघनागमस्तनित; अंति: जगद्वल्लभ नामभाक्, श्लोक-९. २.पे. नाम. जिनलाभसूरि स्तुत्यष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जगद्वल्लभ, सं., पद्य, आदि: श्लाघ्यो जनानां सुजन; अंति: जगद्वल्लभ एव सः, श्लोक-९. ३६५४०. संवाद व सझाय, संपूर्ण, वि. १८२४, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. सोजत, प्रले. पं. माणकचंद (भावडगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४४४). १. पे. नाम. दानशीलतपभाव संवाद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेशर पाय नमी; अंति: ऋद्धि समृद्ध सुखकारे, ढाल-४, गाथा-९६. २.पे. नाम. साधमहिमा माहात्म सिझाय, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में लिखी गयी है. आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतमगुण जाणरे; अंति: वाणारसी० मुकावणहार, गाथा-९. ३६५४१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वडु, दे., (२५४११.५, १५४३६). १.पे. नाम. आदिनाथ विनती, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिनविनतीस्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढमजिणेसर अति; ___ अंति: लावनसमय० इम भणीयं, गाथा-४५. २.पे. नाम. सिमंधर तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ हीयडो हेजालउ; अंति: जिनराज० मुको विसार, गाथा-७. ३६५४२. (+) सती सझाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८९०, फाल्गुन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. पना ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४२७). For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २०७ १.पे. नाम. सतीयांरी सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २७ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रसमै उठी मननै भाय; अंति: सजन मिलै लहै बहु सुख, गाथा-२९. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: सजन समै परखीयै अपणै; अंति: वैर व्याह अरु प्रीत, गाथा-१. ३६५४३. (+) वीर थुई अज्झयण, दोहा व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५,१३४३४). १.पे. नाम. वीरथुइ अज्झयण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २.पे. नाम. गंगा विषयकदोहाव श्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: जे गंगा लठा जाय हेक; अंति: भूत न हुवै भागीरथी, गाथा-१. ३. पे. नाम. गंगामाहात्म्य श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: दृष्ट्वा जन्मशतं पाप; अंति: हंती गंगा कलुयुगे, श्लोक-१. ३६५४४. सप्तनय व निह्नव वर्णन, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांकवाला भाग नष्ट हो गया है., जैदे., (२५४११, २२४५०-५२). १.पे. नाम. नैगमादि सप्तनय विवरणसंक्षेप, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नैगमादि सप्तनय विवरण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वशाच्च शब्द इति, (पू.वि. प्रारंभ से शब्दनय विवरण किंचित् अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. अष्टनिह्नव वर्णन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. ८ निह्नव वर्णन, प्रा.,सं., पद्य, आदि: जावंतो वयणपहा तावंतो; अंति: रहवीरपुरे समुप्पन्ना. ३६५४५. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४११.५, २०४५६). १. पे. नाम. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा सह टीका, पृ. १अ, संपूर्ण. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय५ समणधम्म१० संजम१७; अंति: अभिग्गहा चेव करणं तु, गाथा-२. चरणसत्तरी-करणसत्तरी-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: तत्र श्रमणधर्मो दशधा; अंति: करणभेदाः कंठ्याः . २. पे. नाम. गोचरी पडिक्कमण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-गोचरी प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)विहत्यागतः सपात्र एव, (२)इच्छाकारेण संदिसह; अंति: (१)नेसी१७ गाथा कहीइ, (२)अहो जिणेहि चिंतनीया. ३. पे. नाम. अंगपूर्वव्यवच्छेद कालमान, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मुत्तूण दिट्ठिवाय; अंति: कालमसंखं च केसिंच, गाथा-४. ४. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र गुणनांतर विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: खमासमण इच्छाकारेण०; अंति: नमस्कारचिंतनं. ५. पे. नाम. घृताधुत्सर्जन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: खमासमण इच्छाकारेण; अंति: यावत् प्रगट लोगस्स१. ६. पे. नाम. प्रथम लोचकरण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. लोच विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: खमासमण इरियावही पडिक; अंति: सुखलोच पृच्छा कार्या. ३६५४६. (-#) शांतिजिन स्तवन व मेघकुमार सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १२४२७). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वर्धमान विजेराज सोनी, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: सांति नमी कहंसाते; अंति: वर्धमान प्रकाश ए, ढाल-२, गाथा-११. २.पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुण नीलो; अंति: जादव० भणवा सुखय थाय, ढाल-४, गाथा-२३. ३६५४८. (+) स्तोत्र व हीआली, संपूर्ण, वि. १७३१, चैत्र शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटलीपुत्र, पठ. श्रावि. रतनवहू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४१). १.पे. नाम. जयतिहुअणद्वात्रिंशिका, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विन्नवइ आणदि, गाथा-३०. २. पे. नाम. हीआली गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली, मु. जिनवर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: कहज्यो पंडित एहीआली; अंति: जिनवधमान० सुविचारी, गाथा-६. ३६५४९. सझाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १५४३६). १.पे. नाम. परनारीपरिहार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सीख सुणोरे प्रिउ; अंति: कहे जिनहर्ष० आगमवाणि, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर निझरणांवहि; अंति: उदय भणे प्रतपो जगभाण, गाथा-९. ३६५५०. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १७४३६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन विमलाचलमंडण, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचलमंडण गत; अंति: पुण्यकल्याण लीला, गाथा-१०. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८८३, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. मु. जसवंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिजिनं वंदे गुणसदन; अंति: वितनोतु सतां सुखानि, श्लोक-६. ३. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में लिखी गयी है. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब हो साहिब मुझ; अंति: हर्षने आपो अविचल वास, गाथा-७. ३६५५२. दश पच्चक्खाण आगारसंख्या व देसावगासी पच्चख्काण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११,८-१०४२३-५०). १.पे. नाम. दश पच्चख्काणआगारसंख्या, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. २. पे. नाम. देसावगासी पच्चख्काण, पृ. ३आ, संपूर्ण. देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ३६५५३. अजितशांति स्तव बृहत् व लघु, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, १७-१९४३९). १. पे. नाम. अजितशांति सह अवचूरि, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. जिनराज, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ अजितशांति स्तवबृहत्-अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जयशेखरसूरि० मुदम्, श्लोक-१७, (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से है.) अजितशांति स्तवबृहत्-अंचलगच्छीय की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भाजनं स्थानमित्यर्थः. २. पे. नाम. अजितशांति सह अवचूरि, पृ. २आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., पद्य, आदि: गब्भ अवयारि सोहम्म; अंति: सुह सयल संपज्जए, गाथा-८. अजितशांति स्तवलघु की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (१)गब्भ० गर्भावतारे सौध, (२)गर्भावतारे सौधर्मसुर; अंति: वश्रेयांसि संपद्यते. ३६५५४. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १२४३२). १.पे. नाम. ध्यान विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चत्तारिज्झायाणं तं; अंति: प्पेहा अवायाणुप्पेहा, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३६५५५. जीवदया साठ नाम सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. सा. रेसोपा (गुरु सा. गंगाजी); गुपि. सा. गंगाजी (गुरु सा. सहिजबाई आर्या); सा. सहिजबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ४४२४). अहिंसा कुलक, प्रा., पद्य, आदि: तत्थ पढम अहिंसा; अंति: भगवतीए एसा भगवत्तीआ, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) अहिंसा कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम श्रीजीव; अंति: अहिंसाजीवदया केहवीछइ. ३६५५६. सझाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १८४५९). १. पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: कर्मथी को छूटइ नहीं; अंति: धर्म तणइ परमाणि जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. पुण्यछत्रीसी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुण्यतणां फल परतखि; अंति: समयसुंदर० परतक्ष जी, गाथा-३६. ३. पे. नाम. औपदेशिकश्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६५५७. शुकबहोत्तरी कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, १५४४८). शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: सयल सुरासुर माया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण तक है.) ३६५५८. औपदेशिक श्लोक संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२५.५४११.५, १७४४५-४८). औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं दयादमरींद्रियाण; अंति: (-), (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) औपदेशिक श्लोक संग्रह@-बालावबोध, रा., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत सर्ण; अंति: (-). ३६५५९. वाणी के ३५ गुण व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १५४३९). १. पे. नाम. तीर्थंकर वाणी के पात्रीसगुण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अरिहंतवाणी के ३५ गुण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: केवल उपनीथि कइहोते; अंति: वाणीनु मज्झनि सरणहोउ. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ३६५६०. वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४१२.५, १३४२८). For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ३६५६२. भववैराग्य शतक सह टचार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२-९ (१ से ९ ) - ३ ले. स्थल अमदावाद, प्रले. गोपीलाल, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्य. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२.५, ६x२८). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा- १०४, (पू. वि. गाथा- ८४ अपूर्ण से हैं.) वैराग्यशतक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीव सास्वतुं ठाम. ३६५६३. (+) वैराग्यशतक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. कुल ग्रं. १०४, जैदे., (२५X११, १५X३२-४१). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा - १०४. ३६५६४. पंचकल्याणक विचार, संपूर्ण वि. १७६५, माघ शुक्ल २, मध्यम, पृ. १, जै. (२६४११, १७५४). " २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: जम्मो पासनाहस्स २३; अंति: पारं० नमः १००० गुणवो. ३६५६५. (+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र गौतमस्वामी अष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैवे., (२५.५४११, १३-१५४३१-५०). १. पे. नाम. महामंत्रनिबद्ध सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक, अंतिः भवत्युत्तम संपदः, श्लोक- ९. २. पे. नाम. गौतमस्वामी अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक - ९. ३६५६६. गौतमस्वामिनो रास, संपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. मेहसाणा, पठ. मु. आणंद (गुरु पं. अमृत); गुपि. पं. अमृत (गुरुग, भाग्यविजयजी पंडित) ग. भाग्यविजयजी पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे, (२७४१२.५, १६५३९). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि विरजिणेसर चरण कमला, अंतिः जयभद्रसूरि इम भणे ए. गाथा- ७१. २६५६७. पार्श्वनाथनो देसांतरी छंद, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, वे. (२६.५४१२.५, १४४३७). पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदिः सुवचन सुपो सारदा मय; अंति: स्तव्यो छंद देशांतरी, गाथा-४७. ३६५७१ (+) धन्नाशालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २२-१८(१ से १७,१९) ४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१२.५, १३x४६). धन्नाशालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-) ३६५७२. रात्रिभोजन चौपाई, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, प्र. २- १ (१) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं दिया है, अतः पत्रांक २ काल्पनिक दिया गया है, जैदे. (२६.५४१२, १६x४७). रात्रिभोजन चौपाई, मु. धर्मविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १५ गाथा ७ अपूर्ण से ढाल १६ गाथा १२ तक है.) ३६५७३. (+) गौतमस्वामी रास व विष्णुपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२५x१०, १५४५१-५६) १. पे. नाम. गौतमस्वामीनो रास. पू. १अ ३अ संपूर्ण, वि. १७८३ भाद्रपद कृष्ण, ३. ले. स्थल खिंवाणनगर, प्रले. मु. रायचंद (गुरु मु. दयातिलक); गुपि. मु. दयातिलक, प्र.ले.पु. सामान्य. गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरण कमल, अंतिः वृद्धि कल्याण करो, गाथा ४६. २. पे. नाम. विष्णुपंजर, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण ब्रह्मांडपुराणे विष्णुपंजर स्तोत्र, हिस्सा, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदिः ॐ विष्णुपंजर सहदीव्य अंतिः विष्णुलोक च संगति, लोक-१७ (वि. अंत में मंत्र दिया गया हैं.) ३६५७४. बलभद्रमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., ( २६११, १८x४२). बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत अरिहंत सहु सिद्, अंति: (-), (पू.वि. गाथा २२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६५७५. (+) पदस्थापन विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६११.५, १०-११X३२-३४). पदस्थापन विधि, प्रा.मा.गु. सं., पग, आदि: जगुण कालर निसिज्जा, अंतिः वखाण चैत्यपरिपाटी, ३६५७६. (+) भाव षट्त्रिंशिका सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९३७ श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल. चाणोदनगर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६१२, ६x४०). भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्म, वि. १८६५, आदि: क्रिया अशुद्धता कछु अंतिः मुनिज्ञानसार मतिमंद, गाथा - ३९. भावछत्रीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः क्रियानो असुद्धपणो; अंतिः शिष्य मंदबुद्धियें. ३६५७७. क्षिमा छत्रीसी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८९९, फाल्गुन कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. वीसलनगर, प्रले. ग. जीतविजय, पठ. श्रावि. रलियात बाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीकल्याण पार्श्वनाथजी प्रसादात्, कुल ग्रं. ६०, जैदे., (२६×१३, १५X३१). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आदरि जीव क्षमागुण; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा - ३६. ३६५७८. पांच पांडवनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६१२, १६x४३). ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तनागपुर वर भलो; अंति: मूझ आवागमण नीवार रे, गाथा - १९. ३६५७९. एकादशी स्तवन, संपूर्ण वि. १८७३ कार्तिक कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. सा. कस्तूरश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे ( २६१२.५, १०X२४). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या, जिनविजय, मा.गु., पद्म, वि. १७९५, आदि: जगपतिनायक नेमिजिणंद, अंति जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल ४, , गाथा-४२. ३६५८०. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-१३ (१ से १३) -१, कुल पे. ८, जैवे. (२५x१०.५, ९४५०). १. पे. नाम. विचार संग्रह. पू. १४अ संपूर्ण विचार संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: चुलसी असीइर बावतरि३ अंतिः सर्व जौति चक्र छड़ २. पे. नाम. मेरुपर्वत मान, पृ. १४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मेरुपर्वत मूल परिधि, अंतिः धनुष पिहला पड़सता. ३. पे. नाम जंबूद्वीप मान पू. १४अ संपूर्ण. 3 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपमान जोजन; अंति: १२८ धनुष १३ डांगु. ४. पे. नाम. सिद्ध जीव के ८ गुण, पृ. १४अ, संपूर्ण. सिद्धजीव के ८ गुण, मा.गु, पद्य, आदि: नाण१ दंसणार समकित३ अंतिः अगुरुलघु अव्याबाध८. ५. पे. नाम. ४५ आगम नाम, पृ. १४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः आचारांगर सुयगडांगर, अंतिः मिली ४५ आगम जाणिवा ६. पे. नाम. रत्नों के १४ नाम, पृ. १४आ, संपूर्ण. १४ रत्न नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सेनानी रतन१ पुरोहित, अंति: ए सात एकेंद्री१४. ७. पे नाम, अरिहंत के १२ गुण, पृ. १४ आ. संपूर्ण. २११ मा.गु, गद्य, आदि: संघासन छत्रत्रय: अंतिः मोहनी९१ अंतराय१२. ८. पे. नाम. वृष्टिभेद विचार, पृ. १४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मा.गु., गद्य, आदि: वसुधारावृष्टि१ चेलो; अंति: जहन्नि आहो वसुहारा ३६५८४. आवकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैदे (२७४१४, १५x४५). " " आवकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि० अंतिः करौ पोहोचाडजो जी. ३६५८५. आषाढभूत चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९७२, कर ऋषि निधि भू, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २६.५X१२.५, १७४६ ). Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दर्सण परिसो बाविसमो; अंति: करे ज्यु धन धन्न हो, ढाल-७. ३६५८७. जीराउला पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२.५, १४४२५). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: जीराउलो जन मंडन पास; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा ३१ अपूर्ण तक है.) ३६५८८. सिद्धिदंडिका सह अवचूरि यंत्र सहित, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५२). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: देविंद० सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: य ऋषभकेवल ज्ञानात्; अंति: ददंतु सिद्धि सुखं. सिद्धदंडिका स्तव-यंत्र, सं., को., आदि: अनुलोम सिद्धिदंडिका; अंति: दंडिकाः स्वयंज्ञेया. ३६५८९. थेरावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, १७४३९). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: णाणस्सपरूवणं वोच्छं, गाथा-५०. ३६५९०. (#) दशवकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन २ तक लिखा हैं.) ३६५९१. पाक्षिक स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खोड, पठ. मु. पृथ्वीधर्म (गुरु ग. जयधर्म); प्रले. ग. जयधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ५४४०). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्नान करीइ न्हवराविउ; अंति: कार्यनइ विषइ सिद्धि. ३६५९३. देव विशेषक्रिया विवरण-आगमसूत्रे, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १४४४९). देव विशेषक्रिया विवरण-आगमसूत्रे, प्रा.,सं., गद्य, आदि: एत्थं च गोअमाजमच्छिय; अंति: स्तद्धक्तव्यतोक्ता. ३६५९४. चतुःशरण प्रकीर्णक व शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२-१८(१ से १८)=४, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ११४४२-४४). १.पे. नाम. कुसलाणुबंधि अज्झयण, पृ. १९अ-२२अ, संपूर्ण. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २. पे. नाम. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, पृ. २२अ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आबाल ब्रह्मचारी बालक; अंति: (-). ३६५९५. गणधरवाद का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६.५४१२, १६४४१). कल्पसूत्र-कल्पसुबोधिकाटीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मध्यभाग का पाठांश है) ३६५९६. रामसीता रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६४१२, १९४४३-४६). रामसीता रास, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३३ गाथा २ अपूर्ण से ढाल ३६ गाथा ५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २१३ ३६५९७. (+) शांतिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १७४४५). शांतिजिन चरित्र, सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीपे भरतक्षेत्; अंति: (-). ३६५९९. (+) वर्धमानजिन स्तुति सह टीका व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६६, ज्येष्ठ कृष्ण, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अन्नहलपत्तन, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधिसूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४११, ५४४४). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धम्, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: (१)स्नातस्येति स श्रीवर, (२)स श्रीवर्धमानो; अंति: भितः जगप्तिविशेष. पाक्षिक स्तुति-शब्दार्थ, सं., गद्य, आदि: स्नानं कुरुतः अनुपम; अंति: केषु स्थानं कंकः. ३६६००. (+#) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९१, पौष कृष्ण, ८ अधिकतिथि, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. राजसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पठनार्थे का नाम अपठनीय है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ* मा.गु., गद्य, आदि: न० चउवीस तीर्थंकर; अंति: आपणनइ हितकारिणी. ३६६०१. सीमंधरजिन वीनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१२, १२४२९-३२). सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनंत चउवीसि जिन नमु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३४ अपूर्ण तक है.) ३६६०२. गजसुकुमाल सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १९४३६). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: दुजै दीन श्रीकीसनजी; अंति: उतो परनै पाठीगत गयो, गाथा-१६. ३६६०३. (+) बृहत्संग्रहणी सह अंकयंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-४५(१ से ४३,४५*,४७)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७० अपूर्ण से ७१ तक है.) बृहत्संग्रहणी-अंकयंत्रसंग्रह *मा.गु., य., आदि: (-); अंति: (-). ३६६०४. आत्मरक्षा परमेष्टी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १०४२३). वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३६६०५. पार्श्वजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. १५६-१५५(१ से १५५)=१,प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथाय नमः, श्रीशांतिनाथाय नमः., कुल ग्रं. ६११०, जैदे., (२६४१२.५, १५४४६-४८). पार्श्वजिन चरित्र, सं., गद्य, आदि: (-); अति: विशाखायां निर्वाणम्. ३६६०६. स्तव, स्तोत्र व अष्टक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १५४३९-४३). १.पे. नाम. सारदा स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. २. पे. नाम. वैरोट्या स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. वैरोट्यादेवी स्तुति, अप., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं पास; अंति: श्रीपार्श्वनाथी मुदु, गाथा-१९. ३. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. २अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत; अंति: लभते नितरांक्रमेण, श्लोक-९. ३६६०७. उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ३६ जीवाजीव विभत्ति सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, १५४३८-४०). For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवविभत्तिं सुणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ से ३६ अपूर्ण तक है.) ३६६१०. (+#) अभयकुमार महामात्य आलोचना छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४११, १८४४५). अभयकुमार महात्म्य आलोचना छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि गोअम गणधरु नमी; अंति: करिसु अभय० धन दिण, गाथा-२४. ३६६११. श्रमणसूत्र, स्तुति व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४११, १६४३४). १.पे. नाम. श्रमणसूत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: गब्भावयारजम्मण; अंति: सुणदेवी देउसुअनाणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: जयपयडपयावंमेहगंभीर; अंति: रंगी देउ सुखं सुअंगी, गाथा-४. ५. पे. नाम. कल्याणकंदं स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ६. पे. नाम. सिद्ध १५ भेद, पृ. २आ, संपूर्ण. सिद्ध १५ भेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जिणसिद्ध१ अजिणार; अंति: एकसिद्ध१४ अनेकसिधं१५, गाथा-१. ३६६१२. स्तवन व सामायिक दोष सह टबार्थ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३५-४८). १. पे. नाम. नेमजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. अमरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलुनो सांमलो रे; अंति: अमरसागर० अविहड नेह, गाथा-१७. २. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पल्हथी१ अथिरासण२; अंति: वसे सव्व सुह लच्छी, गाथा-६. सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पलाठी नवी लवी अस्थि; अंति: ए ३२ सामायक दोष. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रियजन संदेसितानि; अंति: तिणय मगणइविसिट्ठ, श्लोक-२. ३६६१३. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, ११४३४). १.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: शुभ्रामरीभासिता, श्लोक-४. २.पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. शोभनमनि, सं., पद्य, आदि: तमजितमभिनौमि यो विरा; अंति: मदभासुरजिताशम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: निर्भिन्नशत्रुभवभय; अंति: समानमान मानवसहिताम्, श्लोक-४. ३६६१४. कर्म विपाक, अपूर्ण, वि. १८२४, कार्तिक शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१२, ११४४४). कर्मविपाक, मु. सकलकीर्तिदेव भट्टारक, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: संस्तुवे तद्गुणाद्वै. ३६६१५. नेमजी की ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १६x६०). For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ नेमराजिमती ढाल, आ. गुणसागरसूरि, रा., पद्य, वि. १६१३, आदि: नेमजी वातामें चल्यो; अंति: निरवह्यो अधक अपार, गाथा-२६. ३६६१८. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२७४१४, १३४३४). मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: चेतः कैरवकौमुदी सहचर; अंति: रमाणु आनों दृष्टांत. ३६६१९. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, ११४२८-३३). महावीरजिन हमचडी-५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नंदनकुंत्रीसिला हुल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५९ अपूर्ण तक है.) ३६६२१. शांतिक पूजाधिकार विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-६(२ से ७)=२, जैदे., (२६४१३, ३०-३७४७०-७१). आचारदिनकर-शांतिकमहापूजन विधि, हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तद्यथा तत्रादौगुरु; __ अंति: नमः इति मूलमंत्र. ३६६२२. (+) महावीरजिन स्तव टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, ६४३६-४१). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०, ग्रं. ३५७. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, उपा. मतिकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: भावअरि क्रोधादिक; अंति: डित मतिकीर्तिगणिना, ग्रं. ३५७. ३६६२३. (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७५४, पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. लखमीचंद (गुरु पं. अमरसी गणि); गुपि. पं. अमरसी गणि; पठ. भोजराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४५८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१६१. ३६६२५. जैन रक्षा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, ९-११४२५-३०). जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: मान् संपदश्च पदेपदे, श्लोक-१८. ३६६२६. (+) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, आदि: श्रीवीरजिन प्रते; अंति: समास श्रुत कहीये. ३६६२८. शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७९, चैत्र शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. लाखोरा, जैदे., (२५.५४१२.५, १८-१९४५०-५७). शीयल सज्झाय, मु. एकलिंगदास, पुहिं., पद्य, आदि: या प्रबल प्रेमको फास; अंति: एकलिंगदास० विछरताजी, गाथा-१८. ३६६३०. कार्तिक पूर्णिमा व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-२०(१ से २०)=३, जैदे., (२५४१२, १५४३७-४०). कार्तिकपूर्णिमापर्व व्याख्यान, ग. जयसार, सं., गद्य, वि. १८७३, आदि: श्रीसिद्धाचलतीर्थेश; अंति: व्यलेखि शिष्यहेतवे, संपूर्ण. ३६६३२. वंदित्तुसूत्र, भरहेसर बाहुबली स्वाध्याय, असणादिक कालप्रमाण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १५४३९). १. पे. नाम. वंदित्तु सूत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. गाथा ४७ अपूर्ण ५० तक है.) २.पे. नाम. भरहेशर बाहुबली स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८४५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. मु. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपढहो तिहुअणशैले, गाथा-१३. ३. पे. नाम. असणादिक कालप्रमाण सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमूं श्रीगोत्तमगण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ३६६३३. (+) पापबुद्धि राजा धर्मबुद्धि मंत्री कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १५-१७४५६). पापबुद्धिराजाधर्मबुद्धिमंत्री कथा, सं., गद्य, आदि: प्रथ्वीभूषणपुरे पापब; अंति: पाद्यमोक्षंजग्मषु. ३६६३४. (#) आदिजिन स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४११, १३-१७४५६-६७). आदिजिन स्तव-षड्भाषामय, आ. जिनप्रभसूरि, अप.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., पद्य, आदि: निरवधिरुचिरज्ञानं; अंति: सिंह सोभीष्टलक्ष्मीः, श्लोक-४०. आदिजिन स्तव-षडभाषामय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अवधिरहितं रुचिर; अंति: (अपठनीय), (वि. अवचूरि का अंतवाला भाग फटे होने से अवाच्य है.) ३६६३५. (-) श्रावक प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. १८३९, चैत्र शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. अरटवाडा, प्रले. पं.लाभरुच; अन्य. ग. मयारुचि पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथ प्रसादात्, अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, ११४२९). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्व सिद्धे; अंति: वांदामी जणे चोवीसं, गाथा-५०. ३६६३६. सुरसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, १३४४८). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: आदि धर्मनी करिवाए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ३६६३७. कर्मग्रंथ-१ कर्म विपाक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२५.५४१२, ४४३३-३८). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: श्रीवीर जिणं वंदिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २४ अपूर्णतक है.) ३६६३८. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १३४५०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चोबीस, गाथा-५०. ३६६३९. पंदर तिथि सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(३)=४, जैदे., (२५.५४१२, १२-१४४४४-५०). १५ तिथि ७ वार चरित्र, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमद् गौडी धणी; अंति: लहइ सदा सुखशर्मरे, ढाल-१५, संपूर्ण. ३६६४०. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५३-५०(१ से ५०)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५४१२.५, ११४३१). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६६४१. सामाचारी प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पृष्ठ संख्या अनुपलब्ध, जैदे., (२६४११, २१४५५). सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: आयारमयं वीरं वंदिय; अंति: (-), (पू.वि. पडिलेहना विधि अपूर्ण तक है.) ३६६४२. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, पूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. पत्रांक वाला भाग नष्ट होने से पाठ के अनुसंधान के अनुसार पत्र संख्या दी गई है., जैदे., (२६४११.५, ९४३४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जिण पास पयच्छो वंछिय, (पू.वि. पोसह _ विधि से है.) ३६६४३. शास्त्र के ३२ दोष व ८ गुण वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११, २१४६०). शास्त्र के ३२ दोष व ८ गुण वर्णन, प्रा.,सं., पद्य, आदि: यच्च द्वात्रिंशद्दोष; अति: काख्येय रूपश्वात्, श्लोक-३२. ३६६४७. (-) प्रश्नोत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१२, १६x४५). प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्रसन तीर्थंकर; अंति: थाय ते कारन अचरकू, प्रश्न-१३. ३६६४९. वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १५४४४). " . For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१ www.kobatirth.org वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र मध्यभाग है.) ३६६५०. चतुशरण विषमपदविवरण व आतुरप्रत्याख्यान अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६-२ (३ से ४)-४, कुल पे. २, जैदे., ( २६११.५, १९६२). १. पे नाम, चतुशरण विषमपद विवरण, पृ. १-५आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. चतुः शरण प्रकीर्णक- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सावज्ज० सह अवद्येन; अंति: सुखानि तेषामित्यर्थः, (पू. वि. गाथा २६ अपूर्ण से ६० अपूर्ण तक की अवचूरि नहीं है.) अंत के पत्र नहीं हैं. २. पे नाम, आतुरप्रत्याख्यान अवचूरि, पृ. ५आ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-अवचूर्णि आ. गुणरत्नसूरि, सं. गद्य वि. १५वी आदि देशस्य त्रसकायस्य, अंतिः (-), (पू.वि. गाथा ५७ तक की अवचूरि है.) , ३६६५१. महावीरजिनशासने प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६-२६.५X११-११.५, ४६x२२-२६) महावीर जिनशासने प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरात् २९१ वर्षे अंति: क्रिवोद्धार कृतः. ३६६५२. सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७X११, ५-१७३२-४८). १. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- परिग्रहत्याग, रा., पद्य, आदि: इण परिग्रहारे कारणेय, अंतिः तीन मनोरथ मांहि गाथा-२१. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि: (-) अंति: (-). . ३६६५३. दश दिग्पाल विसर्जन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २-९ (१) = १ . (२५४१२, १३३५-३८). १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: प्रसीद परमेश्वरी, पद-१०. ३६६५४. भगु पुरोहित छ ढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५X१२, १६५०). भृगुपुरोहित छढालीयो, मु. जेमलजी मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: दर्शण कीधां साधरो; अंति: जेमल० गुरु सेवा करे, ढाल - ६. ३६६५५. पार्श्वनाथजीरो सिलोको, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४१२, १४४३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा. पद्य वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल, अंति: जोरावर अंतरजामी, गाथा-५६. २६६५६. २३ पदवी विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२५.५४१२, १२४३८-४६). १६ द्वारे २३ पदवी विचार- पत्रवणासूत्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: ७ एकंद्रीरतन चक्ररतन, अंति: (१) पनवणासुत्रधी जाणवो, (२) श्रावक समदिसदि४. ', ३६६५७. प्रतिष्ठा योग्य उपगरण सूचि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५X१२, ३५-४०X९-२६). प्रतिष्ठा उपकरण सूचि, मा.गु., गद्य, आदि: छावडीलघु ३२ जवाराने, अंति: पुष्प इणासुं स्नान. ३६६५९. पंचांगलि कवच, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५X१२.५, ३८x२१-२४). २१७ पंचांगुलीकवच स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: मुक्ति च मंगलं नाम ॐ; अंतिः स्वयमेव शंकरोपमा, श्लोक-२७. ३६६६०. बारव्रत व धन्ना अणगारनी सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., ( २६११.५, ११४३८). १. पे. नाम. बारव्रत सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, वि. १७९५, कार्तिक शुक्ल, ८, मंगलवार. १२ व्रत सज्झाय, पंन्या, जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रुत अमरी समरी, अंतिः जीनविजये कह्या, गाथा-२२. २. पे. नाम. धन्ना अणगार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. धन्नाऋषि सज्झाय, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि वीनवु, अंति: मूझने साधुनु सरण, गाथा - १५. For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६६६१. सझाय वस्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. वाराहीनगर, प्रले. पं. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री शांतिनाथ प्रसादे, जैदे., (२६४११.५, १३४४२). १.पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवेरे; अंति: भणै ते सुख लहे, ढाल-५. २. पे. नाम. रात्रिभोजनषष्टमव्रत स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरमनुसार ते; अंति: कांति० धन अवतार रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: धर ले तु दल में दास; अंति: आप स्वामी नाम० में, गाथा-३. ३६६६२. गौतम कुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, जैदे., (२६४११, ५४२७). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहति, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से १० अपूर्ण तक नहीं हैं.) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लु लुधापरा लोभीया; अंति: करवो आणंदादीकनी परे. ३६६६५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२६४११, २१४५५). १.पे. नाम. प्रमाद सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, वा. श्रीकरण, मा.गु., पद्य, आदि: समवसरण सिंहासनेजी रे; अंति: करण वंदु बेकर जोड, गाथा-८. २. पे. नाम. चेलणा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थका; अंति: समयसुंदर० भवतणो पार, गाथा-७. ३.पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधो जी, गाथा-८. ४. पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: दम का नाही भरोसा हे; अंति: प्रभु भज तज अभिमान, गाथा-११. ५.पे. नाम. असज्झायनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. असज्झाय सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता आदे नमीये; अंति: वहली वरसो सिद्धी, गाथा-११. ३६६६६. शीलोपदेशमाला प्रकरण व संबोधसप्ततिका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १५४४६). १.पे. नाम. शीलोपदेशमाला प्रकरण, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, गाथा-११५, (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम. संबोधसप्ततिका, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक हैं.) ३६६६७. (+) देलुल्लापुर आदिजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ग. अनंतहस (गुरु ग. जिनमाणिक्य); गुपि.ग. जिनमाणिक्य (गुरु गच्छाधिपति लक्ष्मीसागरसूरि); राज्ये गच्छाधिपति लक्ष्मीसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, ११४४४). आदिजिन स्तव-देउलामंडन, ग. शुभसुंदर, प्रा.,सं., पद्य, आदि: जय सुरअसुरनरिंदविंद; अंति: सेवासुखं प्रार्थये, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २१९ आदिजिन स्तव-देउलामंडण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: कियदनुभूत मंत्रयंत्र; अंति: (अपठनीय), (वि. अंतिमवाक्य अपठनीय है.) ३६६६९. सझाय व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३४३८). १. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. २.पे. नाम. महाकाली मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. महाकाली मंत्र विधिसहित, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो कालीमहाकाली; अंति: नाखीए उत्तारणी. ३६६७०. स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६४११, १०४३३). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुंसदा; अंति: तस घर सीव कमला परधान, ढाल-४. २. पे. नाम. एकादशीनी थोय, पृ. २आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीभाग्नेमि भाषे; अंति: न्यस्तपादांबिकाख्या, श्लोक-४. ३६६७१. (+) विचारसारार्हद्विज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-संशोधित., जैदे., (२६४११, ६x४५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीचउवीस तीर्थंक नम; अंति: पछइ गाथाबंध कीधी. ३६६७२. पद्मावती सिज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. जयतारण मारवाड़, प्रले. मु. दीपचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, १३४५१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवैराणी पदमावती; अंति: पापथी छटै तत्काल, ढाल-३, गाथा-३६. ३६६७३. समवसरण विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२५४१०.५, ११४४६). नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: (-); अंति: अनंती ते लहइ ए, कडी-३३, (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण से है.) ३६६७४. स्थापनाचार्य विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४४१). १.पे. नाम. स्थापना विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., आदि: स्थापना विधि प्रवक्ष; अंति: सिद्धिदः, श्लोक-९, (वि. प्रतिलेखक ने प्रारंभ में गाथांक नहीं लिखकर बाद की गाथाओं का क्रमांक लिखा है.) २. पे. नाम. स्थापनाचार्य विशेषविधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संध्यार्य दुग्धमध्ये; अंति: सदृशं भवति राज्यवस्. ३६६७५. (+) कर्मग्रंथ व सम्यक्त्व स्वरूप, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४४९). १. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्ध पएहिं महत्थ; अंति: मिआणं एगूणा होई नउईओ, श्लोक-९२. २. पे. नाम. सम्यक्त्व स्वरूप, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)अथ प्रथम सम्यक्त्वना, (२)औपसमिक अंतर्मुहूर्त; अंति: अरूपी पिण कहीयै. ३६६७६. औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, २०४६६). १.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: इक्कुच्चिअ उदयगिरी; अंति: (अपठनीय), श्लोक-७०. For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, सं., पद्य, आदि: लोके को न वशं याति; अंति: कमध्य प्रीतफल प्रदा:. ३. पे. नाम. सूक्तमाला, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य परंज्योतिः; अंति: स्फर्लवणा लवणांभसि, श्लोक-११६. ३६६७७. उपदेशरत्नकोश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, ६-८४३७). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: विउलं उवएसमालमिणं, गाथा-२६. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रत्न तेहनु; अंति: उपदेश श्रेणि. ३६६७८. (+) प्रतिष्ठादीक्षादि विधिमुहुर्त संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५४११.५, २५४३०-५३). प्रतिष्ठादीक्षादि विधिमुहर्त संग्रह, सं., प+ग., आदि: अंशक यामित्रपतौ पश्य; अंति: गतनाडी क्रमो भवेत्. ३६६७९. संजया नियंद्यान अधिकार, अपूर्ण, वि. १८२३, चैत्र शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, ले.स्थल. पापार, प्रले. सा. जीउ आर्या (गुरु सा. जेठाजी आर्या); गुपि.सा. जेठाजी आर्या (गुरु सा. लाछांजी आर्या); सा. लाछांजी आर्या (गुरु मु. जेमल ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११.५, १०४४२). भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक-बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सातमै वर्णव्या छै. ३६६८०. शतक व सप्ततिका प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-८(१ से८)=३, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १८४४८). १.पे. नाम. शतक सूत्र, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००, (पू.वि. गाथा ७९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सप्ततिका सूत्र, पृ. ९आ-११आ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थ; अंति: चंदम०ऐ एगूणा होउनउईउ, गाथा-९०. ३६६८१. बीज प्रसाधन-मंत्र बीजाक्षर, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४११.५, १५-१७४२९-३७). बीज प्रसाधन-मंत्र बीजाक्षर, सं., गद्य, आदि: वर्द्धमानंजिनं नत्वा; अंति: (-). ३६६८३. एकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. रणोदनगर, प्रले. पं. माणक्यविजय (गुरु पं. दोलतविजय); गुपि.पं. दोलतविजय (गुरु पंन्या. जिनविजयगणि); पंन्या. जिनविजयगणि (गुरु पंन्या. ज्ञानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३३). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरं नत्वा; अंति: समोक्षसौख्यं प्राप्त. ३६६८४. योगविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४१०.५, १३-१५४४१-४८). १.पे. नाम. नंदिसूत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. नंदिसूत्र, योगप्रवेशविधि, योगऊतारणविधि.) ३६६८५. (+) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४४१-४७). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-२८. ३६६८६. प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, १०४३६-४०). प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, आदि: कोयं नाथ जिनो न कितव; अंति: धूर्तोऽपराश्चबति, श्लोक-१५. ३६६८७. ज्ञानपंचमी देववंदन व ज्ञानपंचमी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-९(१ से ९)=३, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १२४३०-३२). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, पृ. १०अ-११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण.. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सयल सुखदायरे, ढाल-५, गाथा-१६. ३६६८८. नवकार महामंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, ३४३१). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरुहंताणं नमो; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९. ३६६८९. वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११, ३४३२). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा पर; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, _ वि. मात्र प्रथम प्रकाश है.) ३६६९०. सर्वविरति नय विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १७४५७). सर्वविरति नय विवरण, सं., प+ग., आदि: सदा साध्युदयेध्विंदु; अंति: चक्रे किंतु सर्वमपि. ३६६९१. सिद्धाचल स्तवन व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२५.५४११,१०४२८). १.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: खिमा० मने सिद्ध थाए, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सिद्धाचल चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल सिद्ध; अंति: शिवलक्ष्मी गुणगेह, गाथा-५. ३६६९२. औपदेशिक सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३७). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८८६, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, शुक्रवार, ले.स्थल. नागोर. रा., पद्य, आदि: जीवरला रे नेणारे; अंति: भव काइ तुरे हारीयो, गाथा-९. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन-साधुक्रिया गर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: आज भलाइ दीन उगीयो; अंति: मारी आवागमण नीवार रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. आदिसरजीरो तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पुहि., पद्य, आदि: आज वधाइ नाभराया घर; अंति: तुम चरणां की सेवा, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३६६९३. (#) सिद्धाचल तीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७१, आषाढ़ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, ले.स्थल. मेडता, प्रले. पं. ऋषभविजय गणि (गुरु पंन्या. रंगविजय); पठ. बाई रिद्ध कुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ६४११-२९). शत्रुजय तीर्थमाला, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: नित नमो गिरिराया रे, ढाल-१०, (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण से है.) ३६६९४. छिन्नू जिनवर स्तवन व पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४३९). १. पे. नाम. छिन्नू जिनवर स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: (-); अंति: सदा जिनचंद सूरए, ढाल-५, (पू.वि. ढाल ४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सुविधिनाथ स्तवन पद, पृ. १०आ, संपूर्ण. सुविधिजिन पद, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: मेरा दिल लगा साई; अंति: दीजै शिव सुखमामसुं, गाथा-३. ३६६९५. (+) २४ जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. सा. कनका आर्या; सा. सवीरा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४२४-२८). २४ जिन स्तुति, आ. जसवंत, सं., पद्य, आदि: श्रीदेवार्चितदेवं; अंति: वा कीर्तिमंतस्ते, श्लोक-२७. ३६६९६. नंदिषेणमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, २२४६३-६६). For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदिषेणमुनि चौपाई, मु. दानविनय, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: पणमी संति जिणेसरण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६१ अपूर्ण तक है.) ३६६९७. (+) अइमुत्तामुनि सझाय, अपूर्ण, वि. १९१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. पं. मनरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४२५). अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदे ए मुनीवरना पाया, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण से है.) ३६६९८. विक्रमराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१०.५, १३४४६). विक्रमराजा रास, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवरदायक सारदा गज; अति: (-), (पू.वि. गाथा १४ तक है.) ३६६९९ (+) विमलमंत्री रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५३-५०(१ से ३०,३२ से ४४,४६ से ५२)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३९-४१). विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि: (-); अंति: (-). ३६७००. साधारणजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १०४२७). साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवीएण ने बहुपारी दी, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., ढाल ३तक है.) ३६७०१. (+) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. निधानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४४३७). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणउ; अंति: केवलनाणंच पंचमयं, गाथा-५१. ३६७०२. (#) कुमुदचंद्र प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. पत्रांक खंडित और अंत के हैं इसलिए पत्र अनुमानित २ से ४ लिया है., मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४११, २२४५९-६२). मुद्रितकुमुदचंद्र प्रकरण, श्राव. यशश्चंद्र, सं., प+ग., वि. १२उ, आदि: (-); अंति: कलामनुशीलयामः, अंक-५, ग्रं. ७००. ३६७०३. (+) आदिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ११४३८-४०). आदिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: जय वृषभजिनोभिष्ट्रयसे; अंति: गीत्यादिकृत्बंधुरंगी, श्लोक-८. ३६७०४. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२.५,४४३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा २३ अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वचने होइ ते प्रमाण. ३६७०५. बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ., (२६४११.५, ५४३४). बृहत् संग्रहणीप्रकरण- जीवआयुष्यबंध विचारगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: आउस्स बंध कालो अबाह; अंति: सेसा मुणेयव्वा, गाथा-१०. बृहत्संग्रहणी प्रकरण- जीवआयुष्यबंध विचारगाथा संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आउखानो बंधकाल ते; अंति: शेष जीव जाणवा. ३६७०६.(+) विचारसार छत्रीसी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७१७, आश्विन कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, ले.स्थल. थिरानगर, प्रले. मु. माणिकविजय (गुरु ग. रतनविजय); गुपि.ग. रतनविजय; अन्य. आ. विजयराजेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ४४३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा ४० अपूर्ण से है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आपणा आत्मा नइ हितुई.. ३६७०७. (+) गुर्वावलीखरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३२). For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २२३ पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: श्रीगौतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१४. ३६७०८. (+) कायस्थिति स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१९, वैशाख शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. गोविंददास खुशालदास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, ४४३६). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जहत्तुह दसण रहिउ; अंति: अकाय पद संपदं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जिम ताहरा दर्शन रहित; अंति: संपदा प्रति दिओ. ३६७०९. २४ जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४११.५, १४४४४). २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: आनम्रनाकिपतिरत्न; अंति: परमार्थसिद्धिम्, श्लोक-२५. ३६७१०. (+) आचारारांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्रुतस्कंध१ अध्ययन९ के उद्देश२ अपूर्ण तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ४७-५१४२७-२९). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-). आचारांगसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. लेशार्थ रूप में है.) ३६७११. नव्वाणुप्रकारी पूजा विधि, अपूर्ण, वि. १८८८, कार्तिक शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२८x१२, १२४४२). ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: (-); अंति: (१)आतम आप ठरायो रे, (२)९९ चोखाना करीइ, (पू.वि. पूजा ढाल-९ अपूर्ण तक नहीं है.) ३६७१४. (+#) विचारसप्ततिका व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८.५४११, १५४५५-६५). १.पे. नाम. विचारसप्ततिका, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पडिमा मिच्छा कोडी; अंति: छिय सिवपासाए सया वसह, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जाणता वि य विणयं; अंति: न नज्झति सुविणेवि. ३६७१५. (-) भृगुपुरोहित सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२९४११, १३४३७). भृगुपुरोहित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: देव हुंता भव पाछलै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ की गाथा ११ तक है.) ३६७१६. (+) लघुउपसर्गसह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., जैदे., (२७.५४१०.५, ९४३७-४३). उपसर्गगण, सं., पद्य, आदि: प्रपरापसमन्ववनिर्दुर; अंति: स्थानादिकर्मण्यपि, श्लोक-२१. उपसर्गगण-दीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: अयं उपसर्ग गणः प्राक; अंति: आरभते विद्यामध्येतुं. ३६७१९. दशवैकालिक सूत्र सह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२८x११.५, १३४४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन ३ अपूर्ण तक लिखा है.) दशवैकालिकसूत्र-सूत्रार्थ, पुहि., गद्य, आदि: धर्म खोटी गति जाते; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३६७२०. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. गोधावीनगर, प्रले. पं. जतनकुशल गणि; पठ. ललुबहादुर; श्राव. दिपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१३, १३४४३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३६७२१. वीरजिनवर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२८x१२.५, १४४४४). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सीद्धीदायक सदा; अति: नासई पुण्य परकास ए, ढाल-८, गाथा-१०२. For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६७२४. सझाय, स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२८x११.५, १२४४१). १. पे. नाम. गणधर सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. गणधर स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनि मंडल तारी भव; अंति: वीर नमें गणधारी रे, गाथा-७. २. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वर्धमान जगदीसरु जगबा; अंति: लहे वीर जिणंद जुहार, गाथा-३. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: गुरूक्रम पंकज भ्रमर; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा का प्रारंभिक भाग है.) ३६७२५. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, प्रले. सा. चनणा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x११, १७४३६). १. पे. नाम. अज्ञात सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. जैनकाव्य संग्रह , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. धनाजी सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिणसासणसामी अंतरजामी; अंति: डुकरकार मुनीसर धना, गाथा-२१. ३.पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वादीने; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा-१८. ३६७२६. तीर्थंकरनामादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. *पत्रांक नहीं दिया है., जैदे., (३१x१२, ४१-४३४१८-२०). तीर्थंकरनामादि विचार संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: त्रिणि स्थानानि; अंति: भावशून्यत्वात, (वि. श्रमण, अरिहंतनाम आदि के आगमिक साक्षिपाठ दिये गये हैं.) ३६७२८. नवतत्त्व प्ररूपणा प्रकरण सह भाष्य, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (३०x११.५, १६४४९-६०). नवतत्त्व प्रकरण, आ. देवगुप्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सम्मंच मोक्खबीय; अंति: सरणत्थं अप्पणो रइया, गाथा-१४. नवतत्त्व प्रकरण-भाष्य, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: भूयत्था इह अवितहभावा; अंति: मंदमईणं विबोहत्थं, गाथा-१३८. ३६७२९. तीर्थद्वात्रिंशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (३०x११, १३४५७-६८). तीर्थद्वात्रिंशिका, सं., पद्य, आदि: विभो न नाभेय जिताश्त; अंति: मनसः सदृशः शांतियोम, श्लोक-३२. तीर्थद्वात्रिंशिका-टीका, आ. सोमप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: विभो० हे नाभेय जिन; अंति: सम्यक्दृष्टयति. ३६७३०. (+) बारमासो व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १९x४५). १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेमकुमर तोरण चढो ए; अंति: छटकायक धर्म आराधा ए, गाथा-२२. २.पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: बैसाखै बन मोरीया मोर; अंति: मेलीया मुक्ति मझार, गाथा-१४. ३. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: क्रसन नरसर पुछीयो जी; अंति: पहुच्या मुक्त मझार, गाथा-९. ३६७३१. (+) सिंदुरप्रकर व श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, संपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९.५४११, १७४६९). १.पे. नाम. सिंदूरप्रकर, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सुक्ति मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१०२. . . For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २२५ २. पे. नाम. श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २३ अपूर्ण तक लिखा है.) ३६७३२. चड्या पड्यानो सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १५४४१). औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चड्या पड्यानो अंतर; अंति: मति नवी काची रे, गाथा-४१. ३६७३३. ककाबत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सरदारपुर, प्रले. पेढामली; पठ. श्रावि. रलियात बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२, १२४३३). ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: जीवो ऋषी इम विनवे, गाथा-३२. ३६७३४. वीरस्वामीनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १३४२८). __ महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो वीरने चित्तमां; अंति: आज म्हें दास तेरो, गाथा-१५. ३६७३५. आदिजिन विनती, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७४११.५, १३४३३). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पामी सुगुरु पसायरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३१ अपूर्ण तक है.) ३६७३६. आर्यवसुधाराधारिणी, संपूर्ण, वि. १८४७, भाद्रपद कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. विक्रमपुर, जैदे., (३०x११, १७४५६). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ३६७३७. नवतत्व प्रकरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (३०x११, ५४४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १७ अपूर्ण तक नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वीरं विश्वेश्वरं; अंति: (-), पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ३६७३८. सारावली प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पंडित. गोगा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३०x११, १३४५२-५५). सारावली प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: आरभेसु नियत्ता सव्व; अंति: अरेणं साहुसक्कार, गाथा-११६. ३६७४०. एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११.५, ९४३३). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयश्री वरी, ढाल-४, गाथा-४२. ३६७४१. कृष्णसुकलपक्ष स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७४१२.५, १२४३५). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रऊठी रे पंचपरम; अंति: हर्ष० निरपरि अवतरई, ढाल-३, गाथा-२५. ३६७४२. नंदीसूत्र सज्झाय व व्याख्यान पीठीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२७४११.५, १२४३८). १.पे. नाम. नंदीसूत्रनी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीविआणओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २७ तक लिखा है., वि. प्रक्षेप गाथायुक्त.) २.पे. नाम. व्याख्यान पीठीका, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवान वीतरागदेव; अंति: परमानंद पद पाम्ये. ३६७४३. (+) खिमाछत्रीशि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाटणनगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४३५). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: चतुर्विधसंघ जगीश जी, गाथा-३६. ३६७४४. नेमदूत काव्य, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२९.५४११, १८४६४). For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिदत, श्राव. विक्रम, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्राणित्राणप्रवणहृदय; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा १११ अपूर्ण तक है.) ३६७४५. महावीरजीन हालरडु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७४१२, १०४३१). महावीरजिन पारj, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसला झूलावे; अंति: उत्तम० लखमी सुतधसैण, गाथा-११. ३६७४६. (#) दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. क्षमासागर (गुरु आ. अजितदेवसूरि); गुपि. आ. अजितदेवसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९-३०.०४१२, १७४५२-५८). दशाश्रुतस्कंधसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहु पाईण; अंति: संसार महन्नवं तरइ, गाथा-१३०. ३६७४९. (+) श्रीपाल महासमकित रास, अपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ शुक्ल, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५-५४(१ से ५४)=१, ले.स्थल. देवदुर्गपुर, प्रले. मनरूप; राज्यकालरा. नरसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (८९१) राश लख्यौ श्रीपालरौ, जैदे., (२८x१२, १३४४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: हस्य ज्ञानविशालाजी, खंड-४ ढाल ४१, (पू.वि. ढाल ४० गाथा १० अपूर्ण से है.) ३६७५०. अजीवकप्पो, संपूर्ण, वि. १९३३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. जगन्नाथ ब्राह्मण; लिख. श्राव. मूलजी पारिख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९४१२, १३४४८). अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: आहारे उवहिम्मिय उवस्; अंति: च्छामि अहाणुपुव्विए, गाथा-४५. ३६७५२. आचारांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध अध्याय-८ उद्देश-४, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२९४११, १६x४२-४७). आचारांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध का हिस्सा अध्ययन८ उद्देश४, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३६७५३. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७.५४११, १६४३८). औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: (१)जणवर दे असडो उपदेस, (२)जिणवर दे असडो उपदेस; अंति: चेतरेचेत तुं मानवी, गाथा-२०. ३६७५४. कृष्ण चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२७.५४१०.५, १३४३४). द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमा श्रीनेमिजिण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४० तक है.) ३६७५५. (+) पंचपरमेष्ठी व अरिहाण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८.५४११, १८४७७). १.पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभरअमरपणयं पणमिय; अंति: पुत्थयभरेहि, गाथा-३५. २. पे. नाम. परमेष्ठि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अरिहाण स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: अरिहाण नमो पूअ अरिहं; अंति: मोहं हयतमोहं, गाथा-३६. ३६७५७. (+) लघु संग्रहणी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४११.५, ११४४०). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं जिणसव्वन्नु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २० तक है.) ३६७६१. ठाणांगसूत्र-आलापक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४११.५, १५४४१). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ३६७६६. पार्श्वजिन स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. *इस प्रत में ५ यंत्र दिये हुए है., पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ९४२८-३०). पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरुगेंद्र सुरपति; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १४ अपूर्णतक है.) For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तोत्र- टीका, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य लोकनाथ, अंतिः (-). ३६७६७. वेदांत स्तवन सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. पंचपाठ. जैदे. (२५.५४११. ७X३५). वेदांत स्तवन, मु. इंद्रनंदी, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभिसद्वंशसरोज, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २७ अपूर्ण तक है.) वेदांत स्तवन- टीका, मु. धर्महंसशिष्य, सं., गद्य, आदि: श्रीनाभेयजिनं नत्वा; अंति: (-). ३६७६८. (+) जीवंधर चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ११० १०९ (१ से १०९)-१, गृही. आ. विशालकीर्त्ति (गुरु आ. भुवनकीर्त्ति, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); गुपि. आ. भुवनकीर्त्ति (गुरु आ. रत्नकीर्ति, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); आ. रत्नकीर्त्ति (गुरु आ. प्रभाचंद्र, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); आ. प्रभाचंद्र (गुरु आ . जिनचंद्र, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); आ. जिनचंद्र (गुरु आ. शुभचंद्रदेव, सरस्वतीगच्छ मूलसंघ- बलात्कारगण); आ. शुभचंद्रदेव (गुरु आ. पद्मनंदिदेव, सरस्वतीगच्छ मूलसंघ- बलात्कारगण): सम. श्रावि. लालीबाई वोहिथभाई शाह, राज्यकालरा. सलीम शाह पातिशाह, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२७.५X११, १०X३३-३५). जीवंधर चरित्र, आ. गुणभद्राचार्य, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. मूल पाठ नहीं है, मात्र प्रतिलेखनपुष्पिका पत्र है., प्र. ले. श्लो. (८९०) ज्ञानवान ज्ञानदानेन) " "" ३६७६९. वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-१ (१) =२, पू.वि. बीच के पत्र हैं. जै. (२७४११, ७५२५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश हैं.) ३६७७०. ठाणांग सूत्र बोल, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) =४, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४११, १८X३८-४४). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. पण, आदि: (-); अंति: (-). " ३६७७९. उपधान विधि स्तवन, संपूर्ण वि. १८९७ कार्तिक कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मोतिसागर, पठ सुरज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७४१२, १९४३१). महावीरजिन स्तवन- उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदिः श्रीवीरजिणेसर सुपरि; अंतिः विनय० देज्यो भवो भवि, गाथा - २४. ३६७७२. वंदितुसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०१ माघ कृष्ण, २ मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. इल्लोलनगर, प्रले. पंन्या. लक्ष्मीविजयः 1 पठ मु. वखतचंद (गुरु पंन्या. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२७.५x१२.५, १३५३५). " दिसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वदेत्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामी जिणे चठवीस, गाथा- ५०. ३६७७३. दशार्णभद्रनी सज्झाय, संपूर्ण वि. १८७९ आश्विन अधिकमास शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, भुजनगर, प्रले. पं. गंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीऋषभदेव प्रशांत., जैदे., (२७४१२, १२X३७). २२७ दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु, पद्य, आदि: शारद बुध दाई सेवक नव, अंतिः पभणे लालविजय निसदीस, गाथा - ९. ३६७७४. पार्श्वजिन मंत्र, स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२७१२, ३०X२४-३५). १. पे. नाम. कलिकुंड पार्श्वनाथ जापमंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन जाप मंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीपार्थ, अंति: (-). (वि. जाप १२०० जुही कुसुमे.) २. पे. नाम, चोविशजिन स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदिः आदिनाथ आत्म अघ हरता; अंति: विनय० विपति विडारी, गाथा-८. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पदसंग्रह *, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६७७६. (-) अढार नातरा व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. राघवऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७११, १३-१४X३५). १. पे. नाम. अढारनातरा गति, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ नातरा विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: बालक सूउ सगपम भाई एक; अंति: एवं १८ नातरा जाणवा. For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२८ www.kobatirth.org २. पे नाम, दुहा संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण जैन हा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ९. ३६७७७. (+) ज्योतिष, स्तवन संग्रह व मेरूपर्वत मान, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, कुल पे. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२७.५४११.५, १५४४५-४७), १. पे नाम ज्योतिषश्लोक संग्रह, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्योतिष संग्रह मा.गु. सं., हिं. पण, आदि (-); अंति: (-). , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: संतिकरं करुणाकर देवं, अंतिः संतिजिणेसं जवकारम, (वि. प्रतिलेखक ने गायांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. उवसगहर स्तोत्र. पू. ३अ- ३आ, संपूर्ण. उवसगहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं पासं, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, गाथा - ५. ४. पे. नाम. मेरुपर्वत मान, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति वास्तव में पत्र - ३ अ पर ही लिखा गया है. मा.गु., गद्य, आदि धरतीनइ तलइ पहोलो अंतिः हजार जोजननो सुवर्णमय ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीजिनवर पासजिनिंद, अंतिः राम० दीउ मुगतिसिरी, गाथा- १३. ३६७७८. बृहत्शांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७X११.५, १३x४०-४६). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः (-). ३६७८०. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२६.५४११.५, १२X४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि. सं., पद्म, वि. १वी आदि कल्याणमंदिरमुदार, अंति: (-). " (पू.वि. लोक १७ अपूर्ण तक है. ) ३६७८२. चतुःशरणप्रकीर्णक सह बालाबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २६.५X११, ११४३३-४१). चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत अंति (-) (पू. वि. गाधा ३ तक है.) יי चतुः शरण प्रकीर्णक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: च्यारि मांगलिक हुई; अंति: (-). ३६७८७. स्तवन व दूहा संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे, २, जैदे. (२६.५x१०.५, १०x४५). " १. पे. नाम. पार्श्वजिन दसभवसंबंधि स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- १० भवगभिंत, मु. साधुहंस, मागु, पद्य, आदि: पाय पणमीय सरसतिदेवि अंतिः हंस० करयो अम्ह तणी, गाथा-४६. For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. औपदेशिक दुहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक चूहा संग्रह, मा.गु, पद्य, आदि जीभइ साचूं बोलीइ राग, अंतिः लीला माहि ज रंग, गाथा-२. ३६७८८. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) -१, कुल पे. २, दे., (२७४११.५, १२-१५४४६ ४८) १. पे. नाम, साधुपद सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति विनवि विजयदेवसूरीजी, गाथा- १२. ( पू. वि. गाथा ६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. देवओलख गीत, प्र. २अ-२आ, संपूर्ण. देवस्वरूप गीत, श्राव. रामलाल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम देवने उलखो रे; अंति: लालोराम० वली मननी आस, गाथा - ११. ३६७८९ (+) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ४. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ, जैदे (२७४११.५, १८४३८-४६). Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २२९ १.पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: वंदेरे बेकर जोड, गाथा-१०. २. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: समयसुंदर० भव तणो पार, गाथा-६. ३.पे. नाम. धर्मनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धर्ममहिमा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: समरि निज मनि सारदमाय; अंति: ध सहु ते इणि परि भणइ, गाथा-१०. ४. पे. नाम. कायानी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: तु मेर प्रीती साजना; अंति: रे तो पामै सुख कोड, गाथा-९. ३६७९१. स्तवन व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९३३, श्रावण शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. धनराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३६-४७). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: ग्यानचंद० कोइ न तोलै, ढाल-२, गाथा-२६, (पू.वि. ढाल १ की गाथा १४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: समयसुंदर०तिण किधौ जी, गाथा-८. ३६७९२. श्लोक व सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३९). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: यावत्फलोदयमुखसहकार; अंति: तुल्यं किंचित्फलम्, श्लोक-२. २. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: वंदे श्रीज्ञातनंदनम्, श्लोक-३२. ३६७९३. (-) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४११, १८४४०-४२). १. पे. नाम. गर्भ विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जीवोत्पत्तिविचार संग्रह, रा., गद्य, आदि: स्त्री तणी नाभि हेठि; अंति: (-). २.पे. नाम. गर्भ पोषण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. गर्भपोषण विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वातलैश्चभवेद्गर्भः; अंति: (-). ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिषश्लोक संग्रह, सं.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६७९४. पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२७४११, १६४३४-३६). १.पे. नाम. कबीर होरी, पृ. १अ, संपूर्ण.. आध्यात्मिक होरीपद, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: असी होरी खेलता सुहर; अंति: कबीर० लाजरहरी, गाथा-४. २. पे. नाम. पद संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. पद संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: तम सेती नही बोलु; अति: वरत्या जैजैकारोजी, गाथा-८. ४. पे. नाम. पद संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ३६७९६. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२७४११.५, १३४४६-४८). १. पे. नाम. आत्मबोध विनंति, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पाय लागी करूं; अंति: स्वामि सदा सुखकरस्ये, गाथा-१०. २. पे. नाम. नागिलानी सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भावदेव भाई घेर आविया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण तक है.) ३६७९७. (+) कारक विभक्ति विवरण, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६-२७.०४११.५, १९४५३). कारकविभक्ति विवरण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: त्रिहुं प्रकारि उक्त; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सप्तमी विभक्ति विवरण अपूर्ण तक है.) ३६७९८. ईर्यापथिकषट्त्रिंशिका कुलक सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४११.५, १४-१६x४५-५७). ईर्यापथिकषत्रिंशिका कुलक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, वि. १६२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ _ अपूर्ण से गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ईर्यापथिकषत्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-). ३६७९९. कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-३७(१ से ३७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, १३४४१-४३). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच का पाठांश है.) ३६८००. नवाणुंप्रकारी पूजा व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ११-१२४३०-३२). १.पे. नाम. सिद्धाचलनवाणुंजात्रा पूजा, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ९९ प्रकारी पूजा, क. पद्मविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८५१, आदि: (-); अंति: श्रीविमलाचल पायो रे, गाथा-१११, (पू.वि. गाथा ९५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: भरते षट अवसरपिणी आरक; अंति: वंदे तमादीश्वरं, गाथा-५. ३६८०१. मांगलिक स्मरणीय श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., जैदे., (२७.५४११.५, ८३४१९-२२). मांगलिक स्मरणीय श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रीनतनाकि; अंति: (-), श्लोक-६२, (वि. अंतिमवाक्य का पाठ नष्ट होगया है.) ३६८०२. गणधरगुणस्तवसार्द्धशत प्रकरण, संपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२८x११, १७४५१-५६). गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिरोहणगिरिणो; अंति: तं भवरविसंतावमवहरउ, गाथा-१५०. ३६८०४. साधुवंदना व उपसर्गहर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १७४४७). १.पे. नाम. साधुवंदना, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अनंत चौवीसी रिषभ; अंति: जैमल कीयां वखांन, गाथा-११३. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १७, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ अंति: भवे भवे पासि जिणचंदो, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६८०५. उपदेशरूपरत्नमाला, संपूर्ण, वि. १६०४, माघ शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. देवसुंदर (गुरु वा. सत्यमेरू), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४११.५, १०४५५). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: वच्छयले रमइ सिच्छाए, गाथा-२५. ३६८०६. संबोधसत्तरि प्रकरण व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३८-४३). १. पे. नाम. संबोधसत्तरी प्रकरण, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ___ संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: सो लहइ नत्थि संदेहो, गाथा-७२. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६८०७. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, जैदे., (२७४१२, १४४३४). १.पे. नाम. नेमजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन नमस्कार, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: नेम नमु निसदीस जन्मल; अंति: जस महीमा जगमे रह्या, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वांदुं पासजिणंद कमठ; अंति: ऋषभ० जस महिमा जग कीध, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. वीर चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन नमस्कार, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वादं वीरजिणंद महिय; अंति: ऋषभ० जन पाम्या पार, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम तीर्थकरतणा भव; अंति: नय प्रणमे धरी नेह, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ५. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु.रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण श्रीशांति; अंति: रूपवि० पूरण सकल जगीस. ६. पे. नाम. नमिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूप, मागु., पद्य, आदि: विजयराज विप्राधणी; अंति: रूप०मनमोहन प्रभु नाम, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा ७. पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुलवर श्रीनेमनाथ; अंति: रूपविजय० जगजीवन आधार, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ८. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीपार्श्वनाथ; अंति: रूप कहे नितमेव, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा ३६८०८. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, जैदे., (२६.५४११.५, १७४४४). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८४२, भाद्रपद शुक्ल, ११, बुधवार, पठ. पं. विजेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६८०९. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १३४३७). १. पे. नाम. दामोदरगुरु स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. दामोदर गुरुगुण स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीदामोदर गुरु गाईए; अंति: संघ सकल सुखकारि रे, गाथा-८, (ले.स्थल. दीवबंदिर) २.पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, मु. लाला ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: लाला० शिवसुख थायो रे, गाथा-१३. ३६८१०. गीत व भास संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२७४११, १३४३१). १. पे. नाम. गुरुगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. जसवंत गुरुगुण गीत, मा.गु., पद्य, आदि: सखि जसवंतु आवइ आवइ; अंति: सकलसंघ मनि आणंद पावइ, गाथा-३. २.पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ जसवंत गुरुगुण भास, मु. जसवंतशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजसवंत प्रभु नमो; अंति: जसवंत प्रभु देव नमो, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. ज्ञानकुंजर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल संसार ज मोजि आगि; अंति: भमरा कहो हमारा कीजिइ, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. जसवंत गुरुकी चरचरी, पृ. १आ, संपूर्ण. जसवंत गुरु चर्चरी, मु. जसवंतशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: कमलनयन कनक कांति देह; अंति: सोहि जयो जसवंत पाया, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३६८१२. दश पच्चक्खाण आगार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १४४३५-३८). १० पच्चक्खाण के आगार, प्रा., गद्य, आदि: नमोक्कारसी अन्नत्थणा; अंति: समाहि वत्तियागारेणं. ३६८१४. साधुगुण स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२७४१२, १०४३३). साधुगुण स्तव, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरणि सुरमणी; अंति: घरि रिद्धि समृद्धि, गाथा-४२. ३६८१५. क्षिमाछत्रिसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२, १३४३६). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६, ग्रं. ६०. ३६८१६. शत्रुजय महातीर्थाधिराज स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४११.५, ८४३८). शत्रुजयतीर्थस्तव, सं., पद्य, आदि: धरणेंद्रमुखानागा; अंति: लभते फलमुत्तमम्, श्लोक-१३. ३६८१७. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत-संशोधित., जैदे., (२८x१०, १७४२०). १. पे. नाम. वीतराग स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा परं; अंति: फलमीप्सितम्, प्रकाश-२०. २.पे. नाम. लघुशांति, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३.पे. नाम. वीतराग स्तव, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीवीतरागसर्वज्ञ; अंति: मम केवला स्यात्, श्लोक-१३. ३६८१८. (4) पत्रलेखन विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-४(१ से २,५ से ६)=३, कुल पे. ८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १९४५७-६०). १. पे. नाम. संघप्रमुख प्रतिलेख, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. संघप्रमुख प्रति लेख, श्राव. प्रमोद, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रमोद० मिति मंगलम्, श्लोक-४३, (पू.वि. श्लोक २७ से है.) For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१ www.kobatirth.org २. पे. नाम. शांतिजिन विज्ञप्ति, पू. ३१-३आ, संपूर्ण. श्राव. प्रमोद, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रियं स, अंति: सहस्रभानाविति श्रेयः, श्लोक-२३. ३. पे. नाम. आदिजिन लेख, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमरुदेवी अंतिः (१) वाचकपादान् प्रणमंति, (२) प्रणमत्यनुवासरं श्लोक-३८. ४. पे. नाम. पत्रलेखन काव्य, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मंदारभासुरतरं द्विज, अंति: चरणान्प्रतिनं नमीति श्लोक-२५. ५. पे. नाम. पत्रालेखन विशेषण काव्य, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरमणी मणी, अंति: (-), (पू. वि. श्लोक २ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. पे. नाम. पत्रलेखन विधि, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. गुरुशिष्य पत्रलेखन विधि, श्राव. प्रमोद, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सुस्त्रीवशं दिशतु, श्लोक - ८१, (पू.वि. श्लोक ७३ अपूर्ण से है.) ७. पे नाम, भारती वर्णनद्वारा गुरुराजवर्णन प्रस्तावना पत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण गुरुराजवर्णन प्रस्तावना पत्र- भारतीवर्णनद्वारा सं., पद्य, आदि: अंभोवाहमिवांबुवाह, अंतिः लसत्पत्री पयोमुग्धया, लोक-२०. ८. पे नाम, पत्रालेखन पद्धति, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. पत्रालेखन विधि, आव, प्रमोद, सं., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रीर्विकच अंतिः (-), (पू.वि. श्लोक २ तक है.) ३६८१९. (+) सझाय संग्रह व २० जिन नाम, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५X१०.५, १६x४५). १. पे. नाम. जीवविचार सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: रतन चिंतामण नरभव पाय अंतिः तु करि रहनु धारी सरम, गाथा- १८. For Private and Personal Use Only २३३ २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरहंतदेवा; अंति: मुगत चावो तो धरम करो, ३. पे. नाम. वीसविहरमानजिन नाम, पृ. १आ, पूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. विहरमान २० जिन नाम, मा.गु, गद्य, आदि श्रीमंदरसामी जुग: अंति: (-). (पू.वि. १९ नाम तक हैं.) ३६८२० (+) शांतिनाथ चरित्रगत वत्सराजदेवराज कथानक, अपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ६-४ (१ से ४)= २, ले. स्थल, आग्रा, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत- क्रियापद संकेत. जैदे., (२६×१९, १९५६१). श्लोक-४६३, देवराजवत्सराज कथानक - दानविषये, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: स्वर्गमगुः क्रमात्, (पू.वि. लोक-३०० अपूर्ण तक नहीं है.) ३६८२१. (४) सुभाषित व पंचपरमेष्ठि गुणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पु. १. कुल पे. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, २२५८४). १. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सुभाषित लोक संग्रह में पुहिं. प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदिः येन सहासितमसितं हसित, अंति: बहुधान्यस्य खंडनम्, लोक-२७. 3 २. पे नाम, पंचपरमेष्ठि गुण, पृ. १आ, संपूर्ण, पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा., सं., पद्य, आदि: अरिहंतगुणा बारस, अंति: गुणिया पुव्वसूरीहिं, गाथा - १. ३. पे. नाम. पंचस्थावर नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ स्थावर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इंदियथावरकाए१ बंभी; अंति: पायावच्च थावरकाए ५. ४. पे. नाम. इंद्राणि संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा - १२. Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची इंद्र के आयुष्य में च्यवन होनेवाली इंद्राणी की संख्या, मा.गु., पद्य, आदि: दो कोडाकोडीओ पंचासी; अंति: हवंति इंदस्स जम्मंमि, गाथा-२. ५. पे. नाम. मनुष्यदेवतातिर्यंचस्त्री संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: उत्तमनर पंचोत्तराय; अंति: जिणेहि जियरागदोसेहिं, गाथा-३. ३६८२३. हैमधातुपाठ, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२६.५४११, १८४४७-६२). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: भू सत्तायां पांपाने; अंति: दीप्तौव परस्मैभाषाः. ३६८२४. जैन तत्वज्ञान बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२४(१ से २४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७४११.५, १५४३१-३४). बोल संग्रह * प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६८२६. (+) चंद्रप्रभुशासनदेवी ज्वालामालिनी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. भीनासर, प्रले. पंडित. समेरमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४११, ११-१२४३६). ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: ज्ञापयति स्वाहा. ३६८२७. जिन स्तुतिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२६.५४११, १२४५४). १.पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले पतता जनानाम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद; अंति: नमभिनम्य जिनेश्वरस्य, श्लोक-४. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय ज्ञानकलानिधानः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. नेमजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: कमलवल्लपनं तव राजते; अंति: विभाभरनिर्जितभाधिपाः, श्लोक-४. ६.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., पद्य, आदि: ज्ञात्वा प्रश्न; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २ अपूर्ण तक है.) ३६८२८. तीन उपकार विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १३४३८). ३ उपकार विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (१)बहुना कीधा उपगार, (२)पहिलइ ठाणे मातापिता; अंति: प्रति उसीकल थाइ. ३६८२९. महावीरजिन सत्तावीसभवगर्भित स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३६). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंति: विजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८५. ३६८३०. चतुर्विंशति नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, ९४३२). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-२८. ३६८३१. नंदिविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, १५४४०-४६). योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., को., आदि: आवश्यकश्रुतस्कंधे; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २३५ ३६८३२. द्वार यंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२६.५४१२.५). १.पे. नाम. अल्पबहुत्वद्वार, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ९८ बोल यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बोल ३० से १०४ तक हैं.) २. पे. नाम. चौदगुणस्थानके अल्पबहुत्व, पृ. ४आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानकविवरण- यंत्र, अज्ञा., को., आदि: मिथ्यात्व सास्वादन; अंति: अनंतगुणा अधिक. ३. पे. नाम. ५ शरीर द्वार विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-).. ३६८३३. पार्श्व व नेमि जिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२७४११.५, १३४२७-३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन चरित्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पासे नामेणंति धात्री; अंति: स्थानं निजंनिजं, श्लोक-१५. २.पे. नाम. नेमिजिन चरित्र, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,सं., पद्य, आदि: अरिठनेमी नामेणंति वत; अंति: (-). ३६८३६. रहनेमि राजुल सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११,११४३४). १. पे. नाम. रहनेमि राजेमति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: नेम वंदन राजुल चली; अंति: उत्तम मत आणी बेलो, गाथा-१७, (वि. दो पद के हिसाब से गाथांक-१७ लिखा है.) २. पे. नाम. रहनेमिराजुल सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३६८३७. सीमंधरजिन वीनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४११, ११४४१). सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १९ अपूर्ण तक है.) ३६८३८. मयणरेहा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१०.५, १६x४५). मदनरेखासती रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १५३७, आदि: श्रीजिणचउवीसइ नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ की गाथा १ अपूर्ण तक है.) ३६८३९. गुणस्थानक क्रमारोह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १९४६१). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक ६७ अपूर्ण तक है.) ३६८४०. (+) सिद्धदंडिका स्तव सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, ८४३४-३६). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धि पदं, गाथा-१३, (वि. १६३०, चैत्र शुक्ल, ६, रविवार) सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदित्यजसोनृपाद्याः; अंति: पुणरविचउदसलखाइत्यादि, (वि. १६३०, ___चैत्र शुक्ल, ७, सोमवार) ३६८४१. पाक्षिक चैत्यवंदन, गुरुस्तुति व दोहो संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१३, १२४३०-३२). १.पे. नाम. सकलकुशलवल्ली चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. २. पे. नाम. पाक्षिक चैत्यवंदन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (१)सकलकुशलवल्ली पुष्करा, (२)सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: जिनसाक्षात्सुरद्रुमः, श्लोक-५०. ३. पे. नाम. गुरु स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: गोअम सोहम जंबू पभवो; अंति: पढम हवई मंगलं, गाथा-१४. ४. पे. नाम. औपदेशिक दूहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्ञानमहिमा दुहा, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान समो कोइ धन; अंति: लोभ समो नही दुःख, गाथा-१. ३६८४२. पच्चक्खाण सूत्र व दीवाली कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, १५४३४). १. पे. नाम. नवकारसी पच्चक्खाणसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुकार; अंति: गारेणं वोसिरामि, (वि. मात्र नवकारसी का पच्चखाण २.पे. नाम. दिवाली कल्प, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दीपावली कल्प, मा.गु., गद्य, आदि: मांगल्य पीत कार्ती; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३६८४३. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व अतिचार गाथा, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. बरोडा, प्रले. ग. कल्याणनिधान; पठ. मु. गुणपद्म (गुरु ग. कल्याणनिधान), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ८-१०४३६-३८). १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. वंदित्तुसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ अरिहंतसिद्ध; अंति: चउवीस तीर्थंकर प्रतइ. २. पे. नाम. अतिचारगाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: काले विणए बहूमाणे; अंति: अभिंतरओ तवो होइ, ग्रं. ५. ३६८४४. (+) जयतिहुअण स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२, ८४४५). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयवान् भव त्रिभूवने; अंति: (-). ३६८४५. (+) अजितशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. वजेराम वनमाली देव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३.५, ११४३६). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ३६८४६. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९०, चैत्र शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. पंन्या. खुशालसुंदरजी (तपा पक्ष); पठ. श्रावि. सूरज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १४४३६). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८. ३६८४७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२.५, १४४४१). १.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: जे कोइ सिद्धगिरिराज; अंति: दीप० सुख साजने रेलो, गाथा-१५. २. पे. नाम. विमलजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: विमल ताहरु मुख जोता; अंति: हुं तो ताहरोरागीरे, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३७ .. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६८४८. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८४, पौष कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वीसलनगर, प्रले. पं. फतेविजय; पठ. मु. लक्ष्मीविजय (गुरु ग. देवविजय); गुपि.ग. देवविजय; अन्य. पं. तेज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १४४३६). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांती सोहंकर साहिबो; अंति: तो कवि वीर ते जाणे, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने स्तुति के अंत में वीर स्तुति लिखा है. पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, मु. वीरमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिरावल पुजी; अंति: वीर० सासनासूरी दीपती, गाथा-४. ३६८४९. सीमंधरजिन स्तवन-प्रथम ढाल, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन अधिकमास शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पूनमचंद श्रीमाली, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ११४३८). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर साहिब; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम ढाल है.) ३६८५०. पुच्छीसुणं, संपूर्ण, वि. १९६५, आश्विन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२७४१३, ७४२८-३२). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. ३६८५२. स्नातस्या स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१३, ९४३३). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३६८५३. सरस्वति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. निशांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, ११४३९). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंत समस्तलोक; अंति: स्य भवेत्युत्तम संपद, श्लोक-९. ३६८५५. नेमसागर गहुंली, संपूर्ण, वि. १९६०, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १०४३५-३९). नेमसागर गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी मोरी पेथापुर; अंति: सुभव मांहे माहालो रे, गाथा-८. ३६८५६. (+) सिद्धदंडिका स्तव सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७.५४१२.५, ३४३५). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: देविंद० सिद्धि सुह, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंक० जे उसभक० ऋषभ; अति: सुख ते प्रते आपो. ३६८५७. इंद्रमाला परीधापन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२७.५४१२.५, ११४२७-४२). इंद्रमाला परीधान विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीआदिदेवाय विश्व; अंति: मुकीइं सदा मंगल्यम्. ३६८५८. एकसोवीस कल्याणिक पूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१२.५, १६x४१). १२० कल्याणकपूजा विधिसहित, मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम शुभ दीवस जोइ; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक विधि पाठ हैं.) ३६८५९. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१२, १६x४१). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रीषभजिणंदा रीषभजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन ३ की गाथा १ अपूर्ण तक है.) ३६८६०. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२, ११४२८-३०). १.पे. नाम. तेसठिशिलाका पुरुष स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरणकमल मन; अंति: नमै मुनि वसतौ मुदा, गाथा-१८. २. पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भविका श्रीजिनबिंब; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ३६८६१. (+) कार्तिक पूर्णिमा व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ५)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १९४४०-४१). कार्तिकपूर्णिमापर्व व्याख्यान, ग. जयसार, सं., गद्य, वि. १८७३, आदि: श्रीसिद्धाचलतीर्थेशं; अंति: व्यलेखि शिष्यहेतवे, संपूर्ण. ३६८६२. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, १२४३७). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: जीवंतु मे शत्रुगणाः; अंति: समो वइरियो नत्थि, श्लोक-१५. ३६८६३. चैत्यवंदन व समवसरणमान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. माणेकचंद खेतसी झवेरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, १४४३३). १. पे. नाम. जगचिंतामणी चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जगचिंतामणी० जगगुरु; अंति: ताइं सवाई वंदामि, ग्रं.६. २.पे. नाम. चौवीसजिन समवसरणमान विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन समवसरणमान विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभ समोसर्ण गाउ ४६; अंति: महावीर स० गा० ४. ३६८६४. कल्याणमंदिर स्तव, संपूर्ण, वि. १८४३, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३, १४४३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३६८६५. घंटाकर्ण मंत्र-कल्प, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४१२, १३४३६). घंटाकर्णमहावीर मंत्र विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६८६७. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. कुल ग्रं. ५०, दे., (२५.५४१२, १२४३५). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जिव खिमागुण आदर; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ३६८६९. स्तोत्र व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, ७४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह; अंति: कलिकुंडस्वामिने नमः, श्लोक-४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: स्वारथ कै साचे परमार; अंति: अइसे जीव समकती है, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३६८७०. शांतिजिन देववंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५४१२, ११४२७). शांतिजिन देववंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३६८७३. चौद सुपन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. माणशा, प्रले. मु. जयसागर (अचलगछ); पठ. मु. भगवानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५,११४२६). १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तिर्थंकर केरडी; अंति: लावन० ते पामे भवपार, गाथा-२०. ३६८७४. राजुल बारमासो वस्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२७४१२, ७४३०). १.पे. नाम. राजुलरो बारामाशीयो, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९११, आदि: (-); अंति: वारी करे धरमरो काम, गाथा-२२, (पू.वि. मात्र अंतिम दो पद हैं.) For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयःश्रियं मंगल; अंति: जय ज्ञानकलानिधानम्, श्लोक-४. ३६८७५. शेजूंजानी ढाल, संपूर्ण, वि. १९४२, आश्विन कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सिद्धाचल तीर्थ, प्रले. पंन्या. सोभागविजय साधु; पठ. सा. रामबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३, १२४२९). शत्रुजयतीर्थस्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: शेत्रुजे गया पाप; अति: तप करिजे तेही जी, गाथा-१२. ३६८७६. स्तवन वसझाय, संपूर्ण, वि. १८९०, इंदु वसुनंद पूर्णं, आश्विन, ६, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १७४४६). १.पे. नाम. सोलेसुपनारी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. नंदलाल, प्र.ले.पु. सामान्य. १६ स्वप्न सज्झाय, मु. महानंद, रा., पद्य, आदि: श्रुतदेवी रे ध्यान; अंति: भाखे मुनिमहानंद मुदा, ढाल-२. २.पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमु; अंति: तास सीस प्रणमु आणंद, गाथा-२९. ३६८७८. मुहपत्ति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८.५४१३, १७४५५). मुखवस्त्रिका विचार-विशेषावश्यकादिसूत्रे, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६८८०. धर्म देशना व पंच प्रस्थान फल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७०-६९(१ से ६९)=१, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १६४३७). १. पे. नाम. श्रेणिकराजा के आगे महावीरजिन देशना, पृ. ७०अ, संपूर्ण. श्रेणिकराजा के आगे महावीरजिन की देशना, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ विरप्रभू आगे; अंति: श्चेतिनवपदधानम्. २. पे. नाम. पंच प्रस्थान फल, पृ. ७०आ, संपूर्ण. सूरिमंत्र पंचप्रस्थापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम विद्यापीठ तेह; अंति: पामे सर्वथि अजय होई. ३६८८१. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२.५, २३४५०). कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३६८८२. विवाह पडल भाषा व श्लोक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ५)=२, कुल पे. २, दे., (२४४१२, १०४२८). १.पे. नाम. विवाहपडल, पृ. ६अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कला धीर सुख पामै सदा, गाथा-५५, (पू.वि. गाथा- ३९ अपूर्ण से हैं.) २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ७अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अति: (-), ग्रं. १... ३६८८३. मौनएकादसी गुणणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४२७). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबुद्वीप भरतक्षेत्र; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ३६८८४. कारकविभक्ति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२.५, ३४२९). कारकविभक्ति निरूपण, प्रा., गद्य, आदि: निद्देशे पढमा होति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पंचमी विभक्ति तक है.) कारकविभक्ति निरूपण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली विभक्ति हुइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पंचमी विभक्ति तक बाला० है.) ३६८८५. गौतमकुल ऋषिभाषित सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्राव. छगनकपुर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, ५४३३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४० www.kobatirth.org गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर मनुष्य अर्थ, अंति: मोटो छे तेहथी जाणवा... ३६८८६. परमात्म पंचविशि, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे (२६.५४१३, १२४३४-३६). י' परमज्योतिपंचविंशतिका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि; ऐंद्र तत्परमं अंतिः स यशोविजय श्रियम्, लोक-२५. ३६८८७, (+) शांति स्नात्र पूजा विधि, संपूर्ण वि. १९६६, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. राणपुर (मालवदेश), प्रले. मु. मणिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२४X१२.५, १५X३८). शांतिस्नात्र विधि, गु., प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: प्रथम पाट उपर रातुं अंति: सहीत सिद्धि भवतु. ३६८८८. चउवीस दंडक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५X१३.५, १२३६). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा - ४१. ३६८८९. साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (६१) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, जैदे., (२५X१३, १३३५). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: अनेरो जे कोई अतिचार. ३६८९०. श्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, प्रले. कृष्णजी वेलजी दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७X१३, १४४४२). १. पे नाम, साधु अतिचार, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण, २. पे नाम अभुडीयो सूत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण, अट्ठओ सूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: स्स मिच्छामि दुक्कडं. साधुपाक्षिक अतिचार थे. मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु, गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०: अंतिः मिच्छामि दुकडम् 3 ३. पे. नाम. खामणा सूत्र, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप ४. ४. पे. नाम क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. ४अ संपूर्ण संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या, अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः श्लोक-१. ५. पे नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. ४अ संपूर्ण संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणेय अईयारो, गाथा- १. ३६८९१. सिद्धदंडिका सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२६.५X१२.५, १०x२३-३१) सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत, अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा- १३. ३६८९२. नव स्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५-३ (१ से ३)-२, पू. वि. बीच के पत्र हैं, जैये. (२३४१३, १३x२८)नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नमिऊण स्तोत्र की गाथा १८ अपूर्ण अजितशांति की गाथा - १८ अपूर्ण तक हैं . ) ३६८९३. सुमति बिलास रास, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं. दे. (२३४१२, ११x२६). लीलावती सुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-): अंति: (-), (पू.वि., दाल-१ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल -२ गाथा - १२ अपूर्ण तक हैं.) For Private and Personal Use Only ३६८९४. (+) नमिप्रवज्या अध्ययन - ९ उत्तराध्यायनसूत्रे, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जै.. (२३.५४१२, १७४२४). " उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. गाथा २५ अपूर्ण तक है.) ३६८९५. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५-२६.५X१२-१२.५, १४x२९-३३). १. पे. नाम. अष्टापद आदिनाथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रावण शुक्ल, ८, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु, पद्य, आदि: तिरथ अष्टापद नित अंतिः जिनेंद्र बघते नेहोजी, गाथा-८. Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिववार छु मोरा वाल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. सालभद्र स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धनो सालभद्र बेउं; अंति: समय० हंसदाजी हो, गाथा-८. ३६८९६. नवग्रहपूजा प्रकार विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, १३४४७). नवग्रहपूजा प्रकार विधिसहित, सं., गद्य, आदि: कस्मिन् रिष्टग्रहे; अंति: रहपीडोपशांतिः स्यात्. ३६८९७. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, दे., (२६.५४१२.५, १७४४६-४८). १.पे. नाम. नवकार महामंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. २. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३. पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पास पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ४. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ५. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: स्तोत्रमुत्तमम्, श्लोक-९६. ६. पे. नाम. चक्रेश्वरी अष्टक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: चक्रदेव्याः स्तवेन, श्लोक-९. ३६८९८. सकलार्हत स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १५-१६४३३). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलाहत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरभद्रं दीस, श्लोक-२६. ३६९०१. (+) शत्रुजयतीर्थ महिमा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. कल्याण लक्ष्मीचंद पटेल; पठ. श्रावि. रुखमणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१२, ४४२८-३०). शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तइ केवलिणा; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२४. शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अतिमुक्तिक नामें; अंति: चित्ते ध्याये तो. ३६९०२. (+) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि; पठ. मु. गुलाबचंद ऋषि (परंपरा मु. गोपीलाल ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५४१२.५, १६४३७). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदिः (-); अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-७६, (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण से है.) ३६९०४. परमानंद स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१०, पौष शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. मु. जगा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ६-१६४३९-५०). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंपन्न; अंति: परमानंदमात्मनः, श्लोक-२५. परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामि; अंति: स्वरूप अनंत सुख पामइ. For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६९०५. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रावण शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. ध्रांणपुर, प्रले. मु. राजविजय; पठ. मु. माणकमेरु (गुरु मु. राजविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले. श्लो. (१२८) पोथी प्यारी प्रेमकी, जैदे., (२६४११.५, १३४३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३६९०६. द्रुमपुप्फियज्झयण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, ६४२७). दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म केवली भगवंतनउ; अंति: मनक आगलि कहइ छइ. ३६९०७. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१३, १६४४६-४८). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जय जगजीवजोणी वियाणउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा-१९ तक ही लिखा है.) ३६९०८. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९६१, भाद्रपद कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, प्रले. गोवर्धन लक्ष्मीशंकर त्रवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ठे.खडा खोटडीना पाडामां., दे., (२७४१२.५,८४३६-४०). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रेनें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ३६९०९. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९६१, चैत्र कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालि, प्रले. अंबादत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १०४३०). ___ साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: ठाणे कमणे चंकमणे आउत; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (वि. ठाणेकमणे और संथाराउवट्टण के २ सूत्र हैं.) ३६९१०. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, १६x४४). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: चित्तमानंदकारी, श्लोक-१०. ३६९१२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९.५४१२.५, ३१४२७). १.पे. नाम. पदमप्रभुनुंस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८२२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, ले.स्थल. मांगरोल, प्रले. मु. सोमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मप्रभजिन स्तवन, ग. मेघराज, रा., पद्य, वि. १८२१, आदि: पदमप्रभुसासनराआरे; अंति: मेघराज गुण गायारे, गाथा-१२. २. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. मेघराज, रा., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीसुपासजिन वंदिये; अंति: कहे गणी मेघराज उदार, गाथा-८. ३६९१३. स्तवन व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वलाद, प्रले. मु. हर्षरत्न; पठ. मु. खुशालरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१५४१२.५, १७४२१). १.पे. नाम. गौडीचा पार्श्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: रुडीने रढीयारी रे आज; अंति: पेखीयार करी पतिसाह, गाथा-७. २.पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १. ३६९१४. सुभाषितानि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १८-२०४६२). सुभाषित श्लोक संग्रह * पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गोभिर्विप्रैश्चदेवैश; अंति: तु नस्यादनवस्थितस्य, गाथा-५३. For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६९१६. (+) पोसदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १८६४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. भृगुकच्छ, प्रले. पं. राजेंद्र; पठ.पं. लक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३८). पौषदशमीपर्व कथा, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वजिनमानम्य; अंति: नहि वामांगजो जिनः, श्लोक-६१. ३६९१७. साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२६.५४१२, १२४३३). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३६९१८. कल्प, १४ पूर्वनाम व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४११, १३४४१). १.पे. नाम. रूद्रदंति कल्प, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: २८ नक्षत्र गमन विचार; अंति: धनलाभ सुख संपदा होय. २.पे. नाम. चौदपूर्व नाम पदसंख्या सहित, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ पूर्व नाम पदसंख्या सहित, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: १श्रीउत्पादपूर्व; अंति: सर्व पूर्व लिखाई. ३. पे. नाम. गर्भधारण मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. गर्भधारण मंत्र विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐह्रींश्रींजींकलि; अंति: नाभ कमल मसलिइ. ३६९१९. बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. दुर्ग, पठ. श्रावि. जवेरकुवर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १५४३६). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ३६९२०. लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. फतेचंद रामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, ११४३९). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१९. ३६९२३. अणहलपुर गोडीपार्श्वजिन प्रतिष्ठामहोत्सव स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१.५४१२.५, १०x२०). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ की गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३६९२४. स्तोत्र व अष्टक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १३४३३). १. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह; अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. जिनाष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. विविध स्तुतिसंग्रह-प्रार्थना, सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: श्वरी कल्पलतेवमूर्ति, श्लोक-१५. ३६९२५. दशवैकालिकनी साधु-साध्वीओने बोलवानी १७ गाथा व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. दुर्लभराम रायचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १४४३७). १. पे. नाम. दशवैकालिकनी साधु-साध्वीओने बोलवानी १७ गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुसाध्वी के बोलने योग्य गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगल मुक्किट्ठ; अंति: निग्गंथाणं महेसिणं, गाथा-१७. २.पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: सयसाहंसधारणा, गाथा-२. ३६९२६. साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४१२, १३४२७-३३). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: (१)अतिचार पक्ष दिवस०, (२)तप लेखे पोचाडवो. ३६९२७. पच्चक्खाण संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१२.५, १०४३०). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: असित्थेण वा वोसिरै. For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६९२८. साधु उपमा, पुद्गल परावर्तन व साधु समाचारी के भेद, संपूर्ण, वि. १८६९, कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पठनार्थे का नाम अवाच्य है., जैदे., (२०.५४१२.५, २४४४६). १.पे. नाम. साधुजीनी ८४ उपमा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मुनि की ८४ उपमा, मा.गु., गद्य, आदि: पहली ओपमा सरप की; अंति: कुगुरु की पारखा करणी. २. पे. नाम. पुद्गल परावर्तन के सात भेद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: उदारीक१ वैकर २ तेजस; अंति: पुदगल परावरतन कहीजे. ३. पे. नाम. साधु की १० समाचारी, पृ. २आ, संपूर्ण. __साधु समाचारी, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आवसही१ नसहीर आपुछणा३; अंति: गरुपाया९ अघाहणेउसपया. ३६९३०. निश्चय व्यवहार शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३०, फाल्गुन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९४१२,१५४३१). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजीनेशर केशर; अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल-६. ३६९३१. स्तंभनक पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. चनणमल; पठ. मु. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१३, ११४२८). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ आणदिय, गाथा-३०. ३६९३३. ग्रंथनाम सूचि व बृहद्कल्पसूत्र- आर्यदेश वर्णन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२, १७४३८). १. पे. नाम. ग्रंथनाम सूचि, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ ग्रंथसूचि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. बृहद्कल्पसूत्र-आर्यदेश वर्णन सह अवचूरि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक दो गाथाएँ लिखी हैं.) बृहत्कल्पसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: कप्प० कल्पते निर्ग्र; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र आर्यदेश का वर्णन लिखा है.) | ३६९३४. (+) देववंदनादि विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१२, १३४३२). १.पे. नाम. देववांदण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि तसु; अंति: वीयराय संपूर्ण केणो. २. पे. नाम. सामायक करण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: एक नवकार गुणी पंचिं; अंति: धर्मध्यान स्तवन भणे. ३. पे. नाम. सामायक पारण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खमासमण देइ इरियावहि; अंति: पछे पच्चखाण करवो. ४. पे. नाम. देवसी प्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम सामायक लीजे; अंति: एक नवकार गुणीने ऊठे. ५. पे. नाम. पडिकमणारी गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुहपती वंदणेणं समुद्अंति: तपस्या ईणी केहणी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३६९३६. (#) साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३६). For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३६९३७. (+) लघुशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२५, आश्विन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., ., (२४४१३, १२४३२). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१९. ३६९३८. आउरपच्चक्खाण पयन्ना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२६४१२, १५४३१). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणं, गाथा-६०. ३६९३९. विणयसमाही नामज्झयण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य. श्राव. रंगुबाई आणंदजी पारेख, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ११४३१). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा विणयसुयंप्रथमअध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: रए महिड्डिएत्ति बेमि, गाथा-४८. ३६९४०. जीवविचार, संपूर्ण, वि. १८७२, चैत्र कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. देवजी जसराजजी ऋषि; पठ. मु. भाणजी (गुरु मु. देवजी जसराजजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१३, १७४३७-३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३६९४१. आराधना दूहा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (१७४१०.५, ११४२१). आराधना सार दुहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: अरीहंत सिद्ध समरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ३६९४२. पार्श्वनाथ स्तोत्र नवग्रह स्तुति गर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१२.५, १०४३१). पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा नपीडति, गाथा-९. ३६९४३. (+) लघुपट्टावलिका व तीर्थंकर विशेषण, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रावण कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मक्सुदाबाद(अजीम, प्रले. मु. अबीरचंद ऋषि; पठ. मु. सुमतिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न., दे., (२४.५४१२.५, १३४३२). १.पे. नाम. लघुपट्टावली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हेमचंद्र, सं., पद्य, आदि: विदित सकलशास्त्रान्; अंति: (१)कोमलोंगीर्वाणिः, (२)तस्मै श्रीगुरवे नमः, श्लोक-७. २. पे. नाम. तीर्थंकर विशेषण, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पीठिका, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत अशरणसरण; अंति: धरम स्वरूप उपदिशै. ३६९४४. (+) वंकचूल कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४.५४१२.५, १७४३६). वंकचूल कथा, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: चौरस्यापि शीलकणिका; अंति: गृहस्थोपि स वंकचूलः, श्लोक-१०९. ३६९४५. (+) पगाम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९६, फाल्गुन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. रत्नपुरी, पठ. मु. वृद्धिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१३, १२४३२). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: खामेमि सव्वे जीवे०. ३६९४६. आलाप पद्धति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा हैं., दे., (२४.५४१२.५, ११४२५-२८). आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीय अधिकार अपूर्ण तक लिखा है) ३६९४७. साधु-साध्वी उपकरण गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्रले. मु. खुस्यालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२.५, ६४३५). For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुसाध्वी उपकरण, प्रा., पद्य, आदि पत्तं पत्ताबंधी पायठ, अंतिः विजंतणत्वमुणिविंती, गाथा-५, संपूर्ण. साधुसाध्वी उपकरण टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: पातर पात्रबंध झोली, अंतिः प्रतिलेखणा विचार, संपूर्ण ३६९४८. स्तोत्र व छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. गोपीलाल ऋषि; पठ. मु. गुलाबचंद ऋषि (परंपरा मु गोपीलाल ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४.५४१२.५, ९२६). www.kobatirth.org १. पे नाम, जिन स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र - पंचषष्ठियंत्रगर्भित मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: वंदे धर्मजिनं सदा, अंतिः संग्रस्तितसोख्यदः श्लोक-४. २. पे. नाम चतुर्विंशतितीर्थंकराणां पंचषष्टीय स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र - पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदिः आदौ नेमिजिनं नौमि, अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, लोक ८. " ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल दे सार सुरत जग; अंति: पार्श्व त्रिभुवनतिलो, गाथा-११. ३६९५०. (+) केशरियानाथ महिम्न स्तोत्र, स्तुति व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९३६, माघ कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, ले. स्थल. मक्सुदाबाद(अजीम, प्रले. मु. अवीरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. श्रीजान्हव्यास्तटे, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें.. दे. (२४.५४१२.५, १९४३४). १. पे. नाम. युगादिदेव केशरियानाथमहिम्न स्तोत्र, पृ. १-४आ, संपूर्ण. आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: रमाब्रह्मैकतेजोमयी, श्लोक-३८. संशोधित. दे. (२४.५४१३, १९४४५). " " २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि मयैवं दुदैवं शमय, अंतिः प्रभव भवतो गौतम नमः, श्लोक-१. " ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. सुभाषित लोक" मा.गु. सं., पद्य, आदिः खचरस्य सुतस्य सुतः, अंतिः परिरोदति हा खचरः, श्लोक-१. 5 ३६९५१. (+) महावीरजिन श्लोक सह अन्वय व व्याख्या, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन श्लोक, सं., पद्य, आदि: जयति वीर ते वाग्गुणा, अंति: शुक्लपाक्षिकः, श्लोक - १. महावीरजिन लोक- अन्वय, सं., गद्य, आदिः अहं करोमि हे वीर ते अंतिः भजति एवं भूतं पत्कजं. महावीरजिन लोक व्याख्या, सं., गद्य, आदि हे वीर वीर शब्दस्य अंतिः श्लोकार्थी बोध्यम्. ३६९५२. चौद गुणस्थान यंत्र, संपूर्ण, वि. १८८०, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. लालकाडगी, प्र. वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है. जैदे. (४८४३३). - १४ गुणस्थानक यंत्र, मा.गु., पं., आदि: (-); अंति: (-). ३६९५३. सकलार्हत चैत्यवंदन सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८८५ फाल्गुन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. सूरतविंदर, प्रले. मु. मनरूपहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१३, ६x२५-३१). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंतिः (१) श्रीवीरं प्रणिदध्महे, (२) दर्शनं मोक्ष साधनम्, श्लोक-३५, (वि. प्रतिलेखक ने कुछेक प्रक्षेपगाथाओं को भी अंत में कृति के साथ जोड दिया गया है.) कलात् स्तोत्र- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: समग्र अरिहंतनुं पर अंतिः मोक्षनुं साधन है. ३६९५४. (+) बंधषट्त्रिंशिका सह अवचूरि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. स्थापना सहित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., दे., ( २४.५X१२.५, १३X५०). भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः ओरालसव्वबंधा धोवा अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १० तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only " Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ - भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण अवचूरि, सं., गद्य, आदि: ( १ ) इहाल्पबहुत्वाधिकार, ( २ ) इहौदारिक सर्वबंधादीन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ९ तक की अवचूरि लिखी है.) ३६९५५. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५७, भाद्रपद शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., ( २४.५X१२.५, १४X३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ३६९५६. राणपुर स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. जी. (२०.५x१२.५, १७२७). " पार्श्वजिन स्तवन- राणपूर, मु. गोविंद, मा.गु., पद्य वि. १६४६, आदि: श्रीसारदा हो देवी अंति: गोव्यंद० भोला भावसु, गाथा-२०. ३६९५७. परमेष्टी स्तोत्र व नवग्रह पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. राजेंद्र, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२५.५X१३, ६-९X३२-४१). १. पे. नाम. परमेष्ठी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ परमेष्ठि, अंति: राधिचापि कदाचन, श्लोक ८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , י २. पे. नाम. नवग्रह पूजा, पृ. १आ, संपूर्ण. ९ ग्रह मंत्र पूजाविधि, मा.गु., सं., प+ग, आदिः ॐ आदीत्यसोममंगलबुध, अंति: सनी पीडा न करे. ३६९५८. महावीरजिन चौडालियो, संपूर्ण वि. १८९९, फाल्गुन कृष्ण, १३. मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, बीकानेर, पठ. मु. रावजी (गुरु मु. राजाराम); गुपि. मु. राजाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१२.५, १४x२८). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुल उपना; अंति: राय० मन गोमन राख्यो, ढाल ४. ३६९५९. ऋषभजिन पद, संपूर्ण, वि. १९०८, वैशाख शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. वाधनवाडानगर, प्रले. मु. प्रेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अमृतसागरजी के मेला मध्ये. दे. (१७१२.५, १०x२६). आदिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदि रीषभदेव सांवरा तेरा, अंतिः संकट पड्यां तो हजुर, गाथा- ६. ३६९६०. मंत्र संग्रह-शांतिस्नात्रादि पूजनविधि मध्ये, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५X१२.५, ११-१२X३७). मंत्र संग्रह - शांतिस्नात्रादि पूजनविधि मध्ये, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीँ यक्षाधिपतये; अंति: कारिणो भवंतु स्वाहा. ३६९६१ (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, अन्य बालूराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित अशुद्ध पाठ. वे. (२५४१२.५, १५-१९४२५-३८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदिः परकम्मणे आवसही इच्छा; अंति: भंते० जाव वोसरामि ३६९६३. सूक्ष्मवादर निगोदविचार संग्रह-आगमसूत्रगत, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, वे. (२७४१२, १०४४१). सूक्ष्मबादर निगोदविचार संग्रह - आगमसूत्रगत, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: एणि करीनई बादरनिगोद; अंति: तेन्येपि " व्यवहारिणः ३६९६४. (+) मार्गशीर्षेकादश्यां कथा, संपूर्ण, वि. १८९४ पौष शुक्ल ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. भास्करचंद्र जती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१२, १०X३६). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंतिः सोद्यमा समभवन्निति. २४७ For Private and Personal Use Only ३६९६५. (+) जिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. जेसलमेर, प्रले. मु. ताराचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२६.५४१२.५, ६५३३) रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं., पद्य वि. १४वी आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्कर प्रार्थये श्लोक-२५, (वि. १९११ श्रावण शुक्ल, ३) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण लक्ष्मीरो मंग; अंतिः छु एतलो हे स्वामी, (वि. १९११, श्राव शुक्र. ४) ३६९६६. पार्श्वनाथ स्तुति व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१२.५, १६-१८X३६). १. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तुति, पृ. १ अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - चिंतामणी, मा.गु., पद्य, आदि: अचिंत चिंतामनि पारस; अंति: स्वामीजी आपोजी सेव, गाथा- ७. " Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ११ अपूर्ण तक लिखा ३६९६७. ग्रहशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१३, ११४२८). ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: रहशांति विधिं शुभात्, श्लोक-११. ३६९६८.(+) जंबूद्वीपादिविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, ९-१८४३२-५३). जंबूद्वीपादिविचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३६९६९. ग्रहशांति स्तोत्र व ग्रह अधिष्ठायक मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१३, १२४२८). १. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगत्गुरु नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांति विधीयताम्, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोक संख्या नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. ग्रह अधिष्ठायक मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. नवग्रह जापमंत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६९७०. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१२.५, १२४२५-२८). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लोगस्ससूत्र तक लिखा है.) ३६९७१. पाक्षिक खामणा व स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८६७, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. हर्षसागर; पठ. सा. सूर्यश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१३, १३४३७). १. पे. नाम. पाक्षिक खामणा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जंभे; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. २.पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: जिणिंदवर वीर सासणयं, गाथा-२४. ३६९७२. साधु प्रतिक्रमणसूत्र व नेम राजीमती आयुष्य विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१२(१ से १२)=३, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२.५, १३४३५). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १३अ-१५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, (पू.वि. चत्तारिमंगलं पाठ से है.) २. पे. नाम. नेमिराजुल आयुष्य विचार, पृ. १५आ, संपूर्ण. विविधविचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६९७३. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६८, फाल्गुन कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सुरत, प्रले. मु. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१३, १३४२८). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ३६९७४. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. *पत्रांक नहीं है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२३४१२.५, ७-१२४२४). पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवेंद्रवृंदा; अंति: तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक-८. ३६९७५. चैत्यवंदन सूत्र विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११.५, ११४२८-३०). चैत्यवंदनसूत्र का-चैत्यवंदन विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जगचिंदामण जगनाह जग; अंति: अपाणं वोसिरामी. For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २४९ ३६९७६. आशातना विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१२.५, १७५२४). १.पे. नाम. ३३ आशातना गुरुप्रति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. __३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: (१)तेत्तीसा आसायणाए, (२)तेत्रीस आशातना तेसू; अंति: तेत्रीस __ आसातना टालवी. २. पे. नाम. जिन भवन १० आशातना नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)अरिहंत वीतराग बारगुण, (२)तंबोल१ पाण२ भोयण३; अंति: वर्जी जिणनाह जगइए. ३. पे. नाम. ८४ आशातना, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. ८४ आशातनासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: काव्यखेल केलि कलिं; अंति: सुजओ वजे जिणंदालए. ३६९७७. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२४४१२, १६x४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन ४ अपूर्ण तक लिखा है.) ३६९७८. अल्पबहुत्व १४ बोल गाथा व जीवदया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. हिरु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १७४४४). १. पे. नाम. अल्पबहुत्व १४ बोल गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. अल्पबहत्व १४ बोल गाथा, प्रा., गद्य, आदि: एतेसिणं भंते जीवाणं; अंति: अबंधगा विसेसादिया. अल्पबहुत्व १४ बोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एह नव हे भगवान पूज्य; अंति: विशेष अधिक जाणवा. २. पे. नाम. नरभवदुर्लभ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मनुष्यभवदुर्लभता सज्झाय, मु. पासचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दुलहो नरभव भमता; अंति: पासचंद० दया धरम पालो, गाथा-१५. ३६९७९. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४३६). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्वं किल चित; अंति: श्रीपार्श्वचिंतामणिः, श्लोक-१५. ३६९८०. बृहत्शांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१२.५, १३४३५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ३६९८३. (#) मंगल स्वाध्याय आदि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रावण कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, अन्य. जसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४१२, ११४३०). १.पे. नाम. दशवकालिकसूत्र-मंगल पाठ, पृ. १अ, संपूर्ण. दशवकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: साहुणो तिब्बेमि, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिण नमु; अंति: सदा रखे श्रीगोडीराव, पद-२. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथांक नहीं दिया गया है. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: संखेश्वरा आप तुठा, गाथा-७. ४. पे. नाम. १६ सती स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ५. पे. नाम. गौतमस्वामि स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अंगुठे अमृत वसे लवधि; अंति: लच्छी लील करत, गाथा-२. ६.पे. नाम. दोहा संग्रह जैनधार्मिक, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदजिनवर; अंति: चोवीसे जिनवरा नदी. t For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६९८५. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१२.५, १५४३१). नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वालम वेहेला पधारज्यो; अंति: थाउं सीधसरूप हो लाल, गाथा-१०. ३६९८६. रात्रिभोजन सज्झाय व महावीरजिन विनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२३.५४१२.५, १३४२२). १. पे. नाम. रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल वासो बसै जी; अंति: सार्यां आतम काजरे, गाथा-२०. २. पे. नाम. महावीरजीरी विनती, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-१९. ३६९८७. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मुहूर्तचिंतामणि वाले पत्र पर टबार्थ हेतु खाली छोड़ी गयी जगह में यह सज्झाय लिखा गया है तथा मुहूर्तचिंतामणि के पाठ को काटकर रद्द कर दिया है. हुंडी में भी मुहूर्तचिंतामणि का ही नाम है., जैदे., (२३.५४१२, १५४३३). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. खानपुर, प्रले. मु. गंगाधरविजय; अन्य. मु. उदयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: ओ दिन क्यारे ऊगसिरे; अंति: कवि० अलवसरू रे लोल, गाथा-९. २. पे. नाम. त्रीजा व्रत की सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. खानपुर, प्रले. पंडित. वीरविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. ३ रा व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नीसूणो श्रावक समकीत; अंति: तिलकविजय सुखपाया रे, पद-५. ३६९८८. रुक्मणीसती सज्झाय, नेमिजिन स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३.५४१२.५, १३४३६). १. पे. नाम. रुक्मिणीसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामोगाम नेमज; अंति: राजविजय रंगे भणे जी, गाथा-१४. २. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी द्वारामति जाणीइ; अंति: समयसुंदर तसुध्यान, गाथा-६. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: जंजनीयमण इ8 तं; अंति: (-), श्लोक-१. ३६९८९. औपदेशिक हरियाली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१३, ५४३७). औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहयो पंडित ते कुण; अंति: जसविजय० सुख लहस्य, गाथा-१४. ३६९९०. श्रावक कर्तव्य बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अगवरी, प्रले. मु. खुशाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०४१२, २७४२५). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम श्रावक होइ; अंति: ए २२ अभक्ष्य जाणवा. ३६९९१. (#) विहरमानजिन स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. इस कृति को पहली १ गाथा लिखकर छोड़ दिया गया पुन: गाथा १ से लिखा गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४१२.५, १२४२७). विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ हियडो हे जालुओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ३६९९३. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१.५४१३, १७४३६). औपदेशिक पद, मु. नाथुराम, पुहिं., पद्य, वि. १९११, आदि: जुठा जगत संसार दया; अंति: नाथुराम० की साल, पद-४. For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६९९४. (+) पन्नवणासूत्र थोकडा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१४११.५, १७४४०). प्रज्ञापनासूत्र-थोकडा संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इदा अगीए जमी नीरती; अंति: घणा उपजे ते जाणवा, प्रश्न-८. ३६९९५. (#) सत्यासीयाछतीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४१२, १४४३२). सत्यासीयाछतीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८७, आदि: रुडी श्रीगुजराति देस; अंति: समैसुंदर० आणंद करो, गाथा-३६. ३६९९६. उपदेसरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१४१२, १२४२४). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: घर घोडा घर हाथियां; अंति: जीवडा दिनारा फल जोय, गाथा-१०. ३६९९७. पल्योपमसागरोपममान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२१४१२, १३-१५४३१). सागरोपमपल्योपम पूर्वमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तीखै सबै देवतानी; अंति: सागरोपम हुवै. ३६९९८. (+) राजगीता व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१२, १२४३२). १. पे. नाम. राजगीता, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी कल्प; अंति: पास जिनवरतणी राजगीता, गाथा-३६. २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६९९९. (+) थंभण पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४१२, १४४३१). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुप्रणमुरेपास; अति: जाणी कुसललाभ __ पजपये, ढाल-५, गाथा-१८. ३७०००. सज्झाय, पनरियो व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२२४१२, १५४३३). १. पे. नाम. सुदर्शनसेठ सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: श्रीगुरुपदपंकज नमी; अंति: लई पुग काम धुर रसाल, गाथा-४५. २. पे. नाम. नेमनाथजीरो पनरीयो, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुख कमले राजे; अंति: रंगविजये वधते रंगे, गाथा-२३. ३. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन बारमासो, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणंद प्रणमी; अंति: मुलचंद० देवतणी सेवा, गाथा-१४. ३७००१. पगाम सज्झाय व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(३)=४, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२.५, ११४२२-२४). १.पे. नाम. पगाम सज्झाय सूत्र, पृ. १आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अ० करेमि, (२)इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. सूत्र-५०, (पू.वि. भत्तकहाए देसकहा के बाद कालिहि सत्तावीसा के बीच का पाठ नहीं है.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: कि नंदि किं मुरारी; अंति: भूपति भोजदेव, श्लोक-१. ३७००३. पल्योपम सागरोपमनी हगीगत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१४१२, ११४२७). १. पे. नाम. पल्योपम सागरोपमनी हगीगत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५२ www.kobatirth.org पल्योपम सागरोपम हकीकत, मा.गु., गद्य, आदि: चार गाउनो उंडो अने; अंति: देवगतीमां जाय छे. २. पे. नाम. पूर्व परिमाण विचार, पु. १ आ. संपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गु., गद्य, आदि: दसवारना सो भेगा; अंति: त्यारे एक पूर्व थाय. ३७००४. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पृ. १ पर कोई संख्या नहीं लिखी है तथा पृ. २ पर संख्या १ लिखी है., जैदे., (२१X१३, १३-१४x२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. पद्मनाभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले. स्थल. गोपालगढ, प्रले. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. पद्मविजय, मा.गु, पद्य वि. १८४५, आदि श्रीपद्मनाभ जिनराया अंतिः पद्मवि० अक्षयपद लेवा. २. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पंन्या. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावथी जी; अंति: रूपवि० नरसुर सिवसद्म. ३. पे नाम, सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण पंन्या पद्मविजय, मा.गु, पद्य, आदिः सिद्धचक्र वर सेवा, अंतिः निज आतम हित साधे, गाथा- १३. ३७००५. वैराग्यनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२१४११.५, ११४२०). " औपदेशिक पद, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सार नहीं छे संसारमा; अंति: धारो मनशुं प्रेम जी, गाथा- ८. ३०००६ (-) स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पु. १. कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैये. (२१.५X१२, १५४२६-२९). १. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सौभागपंचम परव मोटो, अंति: देवचंद सुपसाय, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कारतकसुद पंचमी तप की अंति: जशविजय अधिक बीराजे, गाथा-४. ३७००७. वर्धमान जिनेस्वर को चोढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., ( २१x११.५, १९३५). महावीरजिन चौढालीया, मु. तिलोक ऋषी, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक सुरतरु; अंति: तिलोक० दीजो जेजेकार ए. ढाल - ४, ग्रं. ८२. ३०००८. भीलीनी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, पालीताणा, प्रले श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१X११.५, ११x२४). भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिने विनवूं अंति पूरी वन के अति रूअडो, गाथा - १८. ३०००९. पुन्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ५-४ (१ से ४) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैवे.. (२२.५X१२, १३X२७). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ६ की गाथा ५ अपूर्ण से ढाल ८ की गाथा २ प्रारंभ मात्र तक है.) " ३००११. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे ५ जै. (२२x११.५ १३४३०-३३). १. पे. नाम. जीववैराग्य स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, आ. रतनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जीव रे एह जगत जन नात; अंति: रतनसूरि बडासरणारे, गाथा-७. २. पे. नाम मुनिजीवन सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण साधुजीवन सज्झाय, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु मोह महारिपू, अंति: लगइ भुधर मांगे सोय, गाथा- १८. ३. पे. नाम. मृगापुत्र सिझाय, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सुहामणो म; अंति: सर तेह नमुं जनवाण हो, गाथा- १३. ४. पे. नाम. वृद्धमानजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २५३ महावीरजिन स्तवन, मु. दयासागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सासणनायक वीरजीणंद, अंतिः करिजोड करिहै वंदना, गाथा - ५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं भवदं; अंति: सविसुंदर सौभरम्, श्लोक- ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७०१२. स्थापनाकल्प संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, दे. (२३.५x१२.५, १४४३२). १. पे नाम, स्थापनाचार्य विशेषविधि बालावबोध, पृ. १अ संपूर्ण. स्थापनाचार्य विशेषविधि-वालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: सांजे दूधमांहि थापना अंतिः होए तो राजा वस्य करे, २. पे. नाम. स्थापनाकल्प, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. स्थापना कल्प, मा.गु., गद्य, आदि राती स्थापना मांहे, अंतिः हुए ते वस्तु कहे छे. ३७०१३. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, जैदे. (२१.५x१२, ७१४-१७). शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिजिणेसर प्रणमु; अंति: भवि पामे सुख भरपूर, गाथा- १८. ३७०१५. महावीरजिन विनति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २१.५X१३, २१X३१-३५). महावीरजिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंतिः थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा- १८. ३७०१९. स्तवन व थोय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २१.५X१२, १४x२६). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचल नित वंदिई क; अंति: लहे ते नर चिर नंदे, गाथा-५. २. पे. नाम. श्रामंधर विनति, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंदर विनति, अंति: काहा कहुं बहो तेरा, गाथा-५. ३. पे. नाम. पर्युषण पर्वनी थोय, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व स्तुति, मु. खीमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्यनुं पोषण पापनुं अंतिः दिनदिन अधिक बडाइ जी, गाथा-४, ३७०२२. १२ आरा रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे. (२४.५४१२, ११४३६). १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरसति भगवति भारती, अंति: (-), " (पू. वि. गाथा १९ अपूर्ण तक है.) ३७०२३. (#) चैत्यवंदन व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ - अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०.५X१२, १२x२३). १. पे नाम. आदिजिन चैत्यवंदन. पू. १अ संपूर्ण. क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदिः आदिदेव अरिहंत नमु; अंति: आददेव मेहेमा घणो, गाथा- ३. २. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिसीअंश जिणंदनी रे; अंति: जिननाम लागि मोहनीरे, गाथा - ९. ३७०२४. (-) कान्हडकठियारा रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-६ (१ से ६) =२, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५X१२, १४X३१). कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. ढाल ७ गाथा ४ अपूर्ण से ढाल ९ गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ३७०२५. भक्तामर स्तोत्र रिद्धिमंत्र-तंत्र विधिविधान, अपूर्ण, वि. १९०२ कार्तिक कृष्ण, ११, शनिवार, मध्यम, पू. २- १ (१) -१, ले. स्थल. जुनीयानगर, प्रले. सा. बदना (गुरु सा. अमरु); पठ. अंबादत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है. अतः अन्तिम पत्र होने के कारण काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., जैदे., ( २४४१२, ५x२९). For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र-मंत्र-यंत्र विधिविधान, संबद्ध, पुहिं. सं., प+ग, आदि (-); अंति: कार्य की सिद्धि होय, (पू.वि. मात्र अन्तिम गाथा अपूर्ण है.) ३७०२६. १२ भावना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., ( २४ ११.५, १३X२८). १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि : आदिसर जिनतणा पद पंकज, अंति: (-), (पू.वि. अंत पत्र नहीं हैं., ढाल ५ गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३७०२७. बलभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. प्र. ले. श्लो. (८६८) कागद थोडो हित घणो, दे., ( २२x१२, १३X२४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. जयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडि रे सारददेवी; अंति: स्वेक जयसुंदर सुखकरो, गाथा - १४. ३७०३०. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८५२ श्रावण शुक्ल, ७ गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, पालणपुर, पठ. श्रावि, वजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१३, १३३४). महावीरजिन स्तवन, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति द्यो मति; अंति: इं कहे धन ए मुज गुरु, ढाल - ९, गाथा- ७१. ३७०३१. (+) शेत्रुंजाजी वृद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८२, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. मेडता, प्रले. पं. कीर्तिविजय, पठ श्रावि चतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. श्रीरिषभदेवजी प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जै, (२३x१३, १५x२२). आदिजिन बृहत्स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय शयल जिणंद पा अंतिः जिम पामो भवपार ए, गाथा ४३. ३७०३२. नीनव तेरेपंथीना ढाल, संपूर्ण, वि. १८८८, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. रामकसन ( गुरु मु. हीरानंद); लिख. क्र. लालचंदजी, गुपि मु. हीरानंद (गुरु मु. सुखानंद): मु. सुखानंद (गुरु मु. देवचंद): मु. देवचंद (गुरु मु. प्रधीराज); मु. प्रथीराज; अन्य. मु. भगवान; प्रे. रोडमल, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२३.५X१३, १७३९). निह्नव सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., मा.गु., पद्य, वि. १८३१, आदि: धूरथी उथापी दानदया व; अंति: नवानी कला पांच आरे, गाथा - ५३, प्र.ले.पु. सामान्य. ३७०३३. सुमतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२१X१३.५, ११x२०). सुमतिजिन स्तवन- १४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ३७०३४. पार्श्वप्रभु छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. कृति पूर्णता सूचक पुष्पिका नहीं है., दे., (२३×१२.५, १२x४२). पार्श्वजिन छंद, पुहिं, पद्य, आदि प्रभुश्री पासकुमार अंतिः रीस पुराणी सिलगाणी, गाथा- ३१. ३७०३५. (+) महावीरजिन पारणो व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४X११.५, १४X३२). १. पे. नाम. महावीरजिन पारणो, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुणा, अंति: तेहनै नमे मुनिमाल, गाथा - ३१. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: सुगुण नर श्रीजिनवर ग; अंति: परम पद संपद कु भजणां, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ २आ, संपूर्ण साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुंही निरंजन तुं ही अंति: रन हुवै बहु फेरा वे, गाथा-६. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि शांति जिनेश्वर साचो अंतिः देख्या देव सकल में, गाथा ५. ५. पे. नाम. धर्मजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ पंडित. खीमाविजय, पुहिं., पद्य, आदि इक सुणले नाथ अरज मे; अंति: ओनोपमा कीरति जग तेरी, गाधा-४. ३७०३६. महावीर जन्माभिषेक कलश, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. खुस्यालचंदजी जीवराजजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५X१२.५, १५X३६). महावीरजिन कलश, आ. मंगलसूरि, प्रा. मा. गु. सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकारविकारसार अंतिः भवियां पुजओ एहजि देव, श्लोक-१८, प्र.ले.पु. सामान्य. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७०३७. प्रतिक्रमण सूत्र व पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १८३६, आश्विन शुक्ल, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ७-३ (१ से ३)=४, कुल पे. २, पठ. श्राव. मोतीराम, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२१X१३, १३X२३). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दिसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-) अंतिः वंदामि जिणे चठवीस, गाथा ५० (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे नाम, अतिचार साधूनो पाक्षिक चतुर्दशी, पृ. ४अ-७आ, संपूर्ण आवश्यक सूत्र - साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का साधु पाक्षिक अतिचार, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०, अंति: मांहि अनेरो जे कोई. ३७०४२. पद्मावती ढाल, संपूर्ण, वि. १९६९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. इंदरचंद (गुरु मु. दिपचंद ); गुपि. मु. दिपचंद, पठ. मु. मणिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५X१२.५, १४X३०). "" ३७०३८. साधु प्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. जैवे. (२१४१३, १३x२२). आवश्यक सूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पगाम सज्झायसूत्र, प्रा., गद्य, आदि ईच्छामि परिक्रमीयं प अंति: (-). (पू.वि. "मुंचती परिनिवार्य" पाठ तक है.) २५५ पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि हिवे राणी पद्मावती अंतिः सुटे ततकाल ते मुजमी, गाथा - ३१. ३७०४३. चंदनवाला कक्षा संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. ले. स्थल, मंदसौर, प्र. वि. प्रतिलेखक का नाम क्र-से-म दिया है, जै.. ( २३१२, १९३०-३२). चंदनबालासती कथा, मा.गु., गद्य, आदि: इण सम भगवंत कोसंबी न; अंति: छ मासनी भिक्ष्या ली. ३७०४४. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्रवे श्राव. प्रवीणभाई वर्धमानभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, वे (२४४१३. ८x२५). महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि : आवो आवो जसोदाना कंत; अंतिः सुपसाअ नत दीवाली रे, गाथा - ६. ३७०४६. महावीर गुण वर्णन, संपूर्ण वि. १९६९ श्रावण कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. मु. अनोपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२३.५X१२.५, १५X४६). महावीरजिन गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रमण भगवंत माहावीरद, अंतिः तिरनै पार गति पामै ३७०४८. (+) नवपद स्तवन, संपूर्ण वि. १९३१ ज्येष्ठ शुक्ल, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, कामठी, प्रले. पं. धीरसुंदर (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५x११.५, १३x२९). नवपद स्तवन, मा.गु, पद्य, आदि: अरिहंतपद आराधी आणी अंतिः सूरि० धारो तप शिवहेत, स्तवन- ९. ३७०४९. ऋषभजिन स्तुति, संपूर्ण बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल मेसाणा, प्रले. रामनारायण प्रोहित (पुष्करणज्ञाती), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२x१२, ११x४३). आदिजिन चैत्यवंदन चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि: अरिहंत नमो भगवंत, अंति: ज्ञानविमलसूरिस नमो, गाथा-८, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only ३७०५० (-) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (२१.५x१२.५ १७४३०). 1 " औपदेशिक सज्झाय, मु. रामचंद, रा., पद्य, वि. १९१८, आदि: मूरख लखजा स्वे तेन स; अंति: रपा थकी सरवरत मगलमाल, गाथा- १५. ३७०५१. महावीरजिन पालणं, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२३४१२.५, १३x२८). Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन पारणुं, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला झुलावे, अंति: नमता लखमी सुत्तवरसेण, गाधा-१२. ३७०५२. स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९७, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५X१०.५, १५X३६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. वीर, मा.गु पद्य, आदि आदि जिणेसर वीनती, अंतिः इम वीर नमे करजोडी रे, गाथा-५. २. पे. नाम. भीड़भंजनपार्श्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदिः स्वा माटे साहिब सामु अंतिः न रह्यो लोभनो लासो, गाथा - ९. ३. पे. नाम. नाकोडा पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणे घर बेठा लील करो; अंतिः समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८, ४. पे. नाम. धुलेवामंडन ऋषभजिन स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-धुलेवा, मु. देव, मा.गु., पद्य, आदि: खमा खमा खमा घणी खमा, अंति: प्राणधणी धुलेवावाला, गाथा - ३. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि ऐसे ऐसे सेहरवसे, अंति: रूपचंद० की कमान है, गाथा-४. ३७०५४. मौन एकादशीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६.५X११.५, ९X२८). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः आज मारे एकादशी रे; अंति: अवीचल पदवी लेसे, गाथा-७. ३७०५५ (१) तीन मनोरथ, संपूर्ण वि. १८८९ आषाद कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, किसनगढ़, प्रले. सा. रायकंवरजी आर्या (गुरु सा. वीराजी आर्या); गुपि. सा. वीराजी आर्या (गुरु सा. रावकंवरजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने उप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१२.५, १९४३५-३७). "" श्रावकमनोरथ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ दिन प्रते, अंतिः कर्मसंसारनो अंत करइ, प्र.ले.पु. सामान्य ३७०५६. लावणी, स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८२, आषाढ़ कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, ले. स्थल नागोर, जैदे. (२६४१२, १५४४३) .पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अखपत, पुहिं., पद्य, आदि: खबर नहीं है जग में; अंति: जिनकुं विनती खपत की, गाथा- ९. २. पे. नाम. नेमजीनो तवन प्र. १-१ आ. संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी, अंतिः नवनिद्ध कोड कीलाण, गाथा- ७. ३. पे. नाम. वैराग्यनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. काया अनित्यता सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि सुणि बहिनी प्रिड पडो अंतिः तजे सो वडभागी रे, गाथा-७. ३७०६१. जीवना १४ चउद भेदनी चरचा, संपूर्ण, वि. १९३२, फाल्गुन कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, लिख. श्रावि . इंदरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१३, १३५२३). जीव के १४ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना १४ भेद तेमा; अंति: विषे नगरना दाह सरीखो. ३७०६३. स्तवन व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. महेसाणा, प्रले. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X१३, १४X३०). १. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. प्रमोदसागर, पुहिं., पद्य, आदि: (१) रहेने रहेने रहेने, (२) रहेने रहेने लीनो; अंति पद सुख पावे, गाथा-५. २. पे. नाम. सात वार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २५७ ७वार गीत, क. नरसिंह महेता, मा.गु., पद्य, आदि: सोमवारे सामलिओ; अंति: नरसिं इने दील भाव्या, कडी-७. ३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शQजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणुं करीये; अंति: पद्म कहै भव तरीयै, गाथा-१०. ३७०६४. नियंठा व संजया विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-३(२,४ से ५)=३, कुल पे. २, दे., (२४४१२, २०७४४). १.पे. नाम. नियंठा विचार, पृ. १अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. भगवतीसूत्र-नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पण्णवणा बेय रागे कये; अति: कुसिल संख्यातगुणा, द्वार-३६, (पू.वि. द्वार १३ से २८ अपूर्ण तक नहीं हैं.) २.पे. नाम. संजया विचार, पृ. ३आ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. संजया विचार-भगवतीसूत्रे-शतकर५उद्देश, मा.गु., गद्य, आदि: भगवतीजी शतक २५; अंति: चारित्र संख्यातगुणा, द्वार-३६, (पू.वि. द्वार ३ से २७ अपूर्ण तक नहीं हैं.) ३७०६५. २२ बोल संग्रह व श्रावक के २६ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२३.५४१२, १३४३७). १.पे. नाम. २२ बोल संग्रह, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: होके पूजजी का हो; अंति: तिण पापरै उदैसु, गाथा-२७. २.पे. नाम. श्रावक के २६ बोल, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: उल्लणिया विहं १; अंति: २५ दच्च विहं २६. ३७०६६. रात्रिभोजननी सिझाय, संपूर्ण, वि. १८८३, आश्विन शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. देवपुर, प्रले. मु. सरूपसागर (गुरु मु.रंगसागर); गुपि.मु. रंगसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुंथुनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२४४१३, १४४३४-३६). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. पुनव, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल वारु वसेजी; अंति: रात्रीभोजन निवार, गाथा-२२. ३७०६७. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१२.५, १३४२८). महावीरजिन स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: इक वार कछदेश आविये; अंति: जीत निसांण वजावीए, गाथा-११. ३७०६८. अनुभव पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१२.५, ११४३०). अनुभव पद, मा.गु., पद्य, आदि: सुखानंद समरस भजो; अति: उपम लहीये अंकुर तदा, गाथा-१२. ३७०६९. सुबाहुकुमरनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९६४, फाल्गुन कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १३४३०). सुबाहुकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हवे सुबाहु कुमर इम; अंति: संजम आदर्यो, गाथा-१७, प्र.ले.पु. सामान्य. ३७०७०. सिद्धगिरि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पंडित. मतिपुरंदर; पठ. सा. लक्ष्मीश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ९४२८). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा-१६. ३७०७१. (#) भडलीपुराण व सूतक अध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४-१५४४२). १.पे. नाम. भडलीपुराण, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सारद मात पसाव करि; अंति: जाणजौ एक रुपीयै जोय, गाथा-१११. २. पे. नाम. सूतकाध्याय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सूतक अध्याय, सं., गद्य, आदि: चंद्रो यदि लग्न; अंति: (-), (पू.वि. जन्म के समय चंद्र की स्थिति तक का पाठ है.) ३७०७२. चोवीस तिर्थंकरनि बावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४४१३, ११४३५). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता वाणी; अंति: धरी आनंद भणो नरनारी, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७०७३. पुछेसुणं, संपूर्ण, वि. १९०४, कार्तिक कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. धोराजी, प्रले. मु. सुंदरजी ऋषि (गुरु मु. संपजी) पठ मु. वीरजी ऋषि (गुरु मु. सुंदरजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५x१२, १४x२७). सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुछेसणं समणा माहणा; अंति: गमीसं तबेमी, गाथा-२९, प्र.ले.पु. विस्तृत . ३७०७४. सीलनी नववाडनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२४X१३, १६x४०). नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमिसर चरणयुग; अंति: हो जुगति नववाडी, ढाल - ११, गाथा - ९७. ३७०७६. (+) पद्मावती आराधना, वीरजिन स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५X१२, १२४३८). १. पे नाम, पद्मावती आराधना, पृ. १अ २आ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती, अंतिः कहै पापथी छूटै ततकाल, दाल-३, . गाथा - ३६. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय, अंति: मयि विस्तरो गिराम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. लोक संग्रह, पृ. २आ. संपूर्ण. लोक संग्रह " प्रा. सं., पद्य, आदि कस्मिन् तर्कविहीनस्य, अति: (-), श्लोक १. ३७०७७. प्रश्न संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., ( २४.५X१२, १६५०-५५). 3 साधु प्रश्न, मा.गु., गद्य, आदि बासीस समदायमांवसुं अंतिः पूनमे किम रहेवो, प्रश्न- ३८, ग्रं. ३८. ३७०७८. समोवसरण विचारगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे (२४.५४१३, १४X३५). पार्श्वजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित. मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरो जग अंतिः पाठक धरमवरधन धार ए, ढाल - २, गाथा - २८. ३७०७९. हुतासनी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., ( २४४१३.५, १०x१८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुतासनी कथा, मा.गु, गद्य, आदि: हवे एवे सुगुरु, अंति: अज्ञानदशा काढि नाखवी. ३७०८०. प्रियमेलकनो रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५X१२.५, १३X३१). जुगलीया की कथा, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं सारद गुरुपाय, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ५की गाथा १६ तक है.) ३७०८१. डोढीया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५०, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., ( २४१२.५, १२X३४). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. देवचंद, मा.गु, पद्य, आदि: सू फुल्यो फरे छे; अंतिः सुरशशी भवनो पार, गाथा-५. २. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ संपूर्ण. मु. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: माहरु माहरु करी; अंति: सूरशशी० रही जाशे इम, गाथा ५. ३. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण, मु. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तुं तो भूलि गयो, अंति: सूरशशी ० मूखडुं डाट, गाथा-५. ४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सु मुखडु देखाडे छे; अंति: देखाडे छे लोकमां रे, गाथा-५. ३७०८३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २१x१२.५, १९×३७). १. पे. नाम. ऋषभदेवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि ऋषभ जिणेसर प्रीतम, अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा- ६. २. पे. नाम. अजितनाथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहाळु रे; अंति: आनंदघन मत अंब, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३. पे. नाम. सुमतिनाथजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुमती चरण कज आतम; अंति: संपजे आनंदघन रस पोष, गाथा-६. ३७०८६. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. झवेर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १२४२५). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही सुभठाम अधिक; अंति: तस न्यायसागर जस थाइ, ढाल-२, गाथा-१२. ३७०८७. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०-४८(१ से ४८)=२, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४.५४१२.५, १३४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान -९, सूत्र १९ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक है.) ३७०८८. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१२(१ से १२)=३, कुल पे. ८, जैदे., (२४४१२, २०४४८). १. पे. नाम. अन्यत्व संबंधनी सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. अन्यत्व संबंध सज्झाय, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केहनां सगपण केनी रे; अंति: नमें सुखदाई रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. नेमराजुल स्वाध्याय, पृ. १३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल महेल अवल झरुखे; अंति: सेवक देवविजय हितकारी, गाथा-७. ३. पे. नाम. स्थुलीभद्र कोस्यानी सीझाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लटकालीरे कोस्या; अंति: जिनविजय कहे उलासे रे, गाथा-१३. ४. पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित विविध विनोद रे, गाथा-८. ५. पे. नाम. पंचमी सज्झाय, पृ. १४अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुनयी पांचम एम वदे; अंति: सुखह अनंतस्युं लब्ध, गाथा-८. ६. पे. नाम. अष्टमीनी सज्झाय, पृ. १४अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठम कहे आठ मदनो प्रा; अंति: पुण्यनी रेहरे, गाथा-९. ७. पे. नाम. इग्यारस सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व सज्झाय, पंन्या. देव वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु पाय नमीई; अंति: वाचक देव कहदाजी, गाथा-११. ८. पे. नाम. चौदस सज्झाय, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. चतुर्दशीतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हवै चौदसी तिथि इम; अंति: तोलहि ऋद्धि समृद्धि, गाथा-९. ३७०८९. (+) द्वादशावर्त वंदन सूत्र टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२४.५४११.५, १४४३५). आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो वंदि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रारम्भ से वयदुक्खडायाति सूत्र तक है.) आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन-टीका, सं., गद्य, आदि: इच्छं वांछित क्षमा; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्रारम्भ से वचनदुष्कृत तक है.) ३७०९१. सुंदरीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४१२, १२४२८). For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुंदरी की आयंबिल सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि करी; अंति: प्रणमे शिरनामी रे, गाथा-८. ३७०९३. नवतत्त्व विचार, देसावगासिक पच्चक्खाण व उपधानतप सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१ (१)=४, कुल पे. ३, जैदे., (२५X१२, १४X३४-३८). १. पे. नाम. नवतत्त्व विचार, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. नवतत्त्व वलतणीयो, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: स्वरूप जाणवो, (पू. वि. प्रारम्भिक अंश नहीं है.) २. पे. नाम. देसावगासिक पच्चक्खाण सूत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण. देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहनं भंते तुम्हाणं; अंति: यागारेण वोसर. ३. पे. नाम. उपधानतप सूत्र नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. उपधानतप सूत्र, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नोकारनां पंच महामंगल; अंति: भाष्यमा है लिख्यो है. ३७०९४. (+) औपदेशिक पद व पंचप्रमेष्टि स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५X१२.५, १९३५). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति: लेख गमारे है कर्मटग, गाथा-९, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचप्रमेष्टि स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: त्रिभुवननाथ त्रिगुणा; अंति: में विराज रहे आप ही, गाथा - ५. ३७०९५. वीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १, जै. (२४.५४१२. १७४२). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: (-), (पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., ढाल ५ के प्रारम्भिक अंश तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७०९६. () स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., । .ज. (२४.५४११.५. १७x४४). १. पे. नाम. गर्भ उत्पन्न बहुत्तरी सझाय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि उतपत जोव जीव आपणी, अंतिः इम कहीये श्रीसार ए. गाथा - ७२. २. पे. नाम. दस पच्चक्खाण सझाय, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद्र तपविधि भणें, ढाल - ३, गाथा- ३३. ३. पे. नाम. गौतमस्वामीजीको तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: गोतमसामि पुसा करे, अंतिः नां मलीया निस्तार हो, गाथा- १६. ३७०९७. आठकर्म भेद व विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., ( २४४१२, १८x१९). १. पे नाम, आठकर्म भेद १५८ प्रकृति नाम, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु, गद्य, आदि: ज्ञानावरणीना भेद ५: अंतिः नहीं तो दूषण जाणिवी २. पे. नाम. आठकर्म विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी कर्म आंखै; अंति: रसबंध ते कर्मरो बंध. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. ३७०९८. चौपाई व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (२)=४, कुल पे. २, जैदे., (२५X११.५, १९x४५). १. पे नाम. कुरगडुमुनि चौपाई, पृ. १ अ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. कुरगडुमुनि रास, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४२, आदि: संतनाथजीने सीमरीया, अंति: नागोर सहर चोमासजी, ढाल-६, (पू.वि. ढाल - २, गाथा - १५ से ढाल-५, गाथा ५ तक का पाठ अनुपलब्ध है., वि. पत्र सं. २ अनुपलब्ध है) For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (२४.५X११.५, १५X३८). १. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ मा.गु., पद्य, आदि: नगरमांसु एक दासी आई; अंति: बेठी च्यारपेइ, गाथा- ११, प्र.ले.पु. सामान्य. ३७०९९_ (4) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३-१ (१)-२, कुल पे. ७. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टलब्धि नवनिधि; अंति: जीवदया प्रतिपाल, गाथा- ७. २. पे. नाम. पुरुषादानीय पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पार्श्वनाथ, अंतिः कटै सर्व आददेखीया, गाथा ५. ३. पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि आणी मन सुधी आसता देव, अंति: मेरी चिंता चूर, गाथा-७. ४. पे. नाम, नाकोडा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण पार्श्वजिन छंद - नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अतिः नाम जपौ श्रीनाकोडो, गाथा-७. ५. पे. नाम. वरकाणे पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणा, मु. जिण, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणे वरमंडण पास, अंति: मांगु तुम पाये वास, गाथा - १०. ६. पे. नाम. करेडा पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- करेडामंडण, मा.गु., पद्य, आदि: महीमंडण सूण श्रवण, अंति: प्रभु सेवक होवुं, गाथा- १२. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु, पद्य, आदि: वंछितपूरण आदि नमो अंतिः शांतिकुशल० सुख थयो, गाथा ५. ३७१०१. आलोयणा संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे २, दे. (२६४१४.५, १५X३०). १. पे नाम, आलोयणा विधि, पृ. १आ-३अ संपूर्ण मा.गु. गद्य, आदि देववंदन अकरणे पुरिमद अंतिः तो उपवास १ तथा २ नं. ११७. " 3 २६१ २. पे. नाम. बारव्रत आलोयणा, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. आवक १२ व्रत आलोयणा, मा.गु, गद्य, आदि: प्राणातिपात प्रथम १: अंतिः अतिचार आलोवणी, ३७१०३. सनतकुमार चौढालियो व दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे. (२६४१३, "" १७X३८). १. पे. नाम. सनतकवार चोढालियो, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, वि. १९४०, प्रले. मु. मंगलसेन, प्र.ले.पु. सामान्य. सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: तिणकालने तिण समें; अंति: कह चोथरीष सुखकारी, ढाल ४. For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, पृ. २आ, अपूर्ण. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: (-), (पू. वि. गाथा ५ तक है.) ३७१०५. चैत्यवंदन व घोष, संपूर्ण वि. १९४४, पौष कृष्ण १४, श्रेष्ठ, पृ. १. कुलपे २ प्रले. श्राव. मूळचंद सूरचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१४, ७X३७). १. पे. नाम. बीस स्थानक तपनुं चईतवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु, पद्य वि. १९वी आदि पेहेले पद अरहंत नमो अंतिः नमतां होय सुख खाणी, गाथा - ५. २. पे नाम, पार्श्वनाथनी धोय, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति, मु. विजय, गु. पद्य, आदि: श्रीचिंतामणी कीजे, अंतिः पद्मावतीनो महिमा घणी गाथा १. 1 3 Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३X३६). १. पे. नाम औपदेशिक पकली, पृ. १अ संपूर्ण. २६२ ३७१०६. गहुँली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. बजीबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., । (२६X१४, आत्मोपदेशक पद, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जाय छे जाय छे जाय छे; अंति: बांहे साय छे रे, गाथा- १२. २. पे. नाम. महावीरजिन गुहली, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ३७१०८. मौनएकादशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., ( २६१३.५, १८x४७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन गहुली, मु. अमृतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे जिनवर वचन, अंतिः अमृत शिव निसान रे, गाथा- ७. ३७१०७. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६X१३.५, ११×३३). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा २७ अपूर्ण तक है.) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीसाने; अंतिः हम्मीरपुरसंस्थितैः, लोक-११६. ३७१०९. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, मांडल, प्रले श्राव लक्ष्मीचंद, पठ श्रावि धरमयेन श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पार्श्वचंद्रसूरि गच्छ के अंतर्गत लिखा गया है., दे., ( २६x२४, १२x२८). सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सिद्धचक्र वर सेवा, अंति: नीज आत्महित साधे, गाथा- १३. ३७११०. स्नान पूजा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, जैवे. (२६.५४१४, १५-१९४२५-३२). " स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोउतिसव अतिसव जुओ वचः अंतिः कहे सूत्र मोझार, ढाल -८, गाथा- ६०. अंति: कहे नय ते गुणखाण, गाथा-३. २. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १-१ आ. संपूर्ण ३७१११. चैत्यवंदन, स्तवन, स्तुति व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ९, ले. स्थल. इल्लोल, प्रा. पं. सुरेंद्रविजय (गुरु पं. चतुरविजय): गुपि पं. चतुरविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२६४१३.५, १५३२). १. पे नाम, दीवाली चैत्यवंदन, पृ. ९अ, संपूर्ण. दीपावली पर्व देववंदन विधिसहित आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी आदि वीरजिनवर वीरजिनवर, " आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि मनोहर मुरत महावीर, अंतिः जिनशासनमां जयकार करे, गाथा-४. ३. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय जय भवि हितकर वीर; अंति: गुण पुरो वांछित आस, गाथा- ४. ४. पे. नाम. दीपावली पर्व स्तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः श्रीमहावीर मनोहरु, अंति: ज्ञानविमल कहिई, गाथा- ९. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी चैत्यवंदन, पृ. २अ संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नमो गणधर नमो गणधर लब; अंति: नामथी होवे जय जयकार, गाथा - ३. ६. पे नाम, गौतमस्वामी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: इंद्रभुति अनोपम गुण; अंति: नित नित मंगलमालिका, गाथा-४. ७. पे नाम, गौतमस्वामी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण गौतमगणधर थोय, आ. ज्ञानसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभुतिं गणवृद; अंति: सूरेर्वरदायकाश्च, गाथा-४. ८. पे नाम, गौतमस्वामी स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि: वीर मधुरी वाणी भाखे, अंतिः नय करे प्रणाम रे, गाथा ७. ९. पे. नाम. दीपावलीपर्व सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दुखहरेणी दिपालिका रे; अंति: प्रगटे सयल गुण खाण, गाथा-९. ३७११२. सूरीयाभदेव वर्णन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६४१३.५, ६४३१). आगम छुटक पन्ने , प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). आगम छुटक पन्ने-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३७११३. पर्युषण सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१३.५, १०४३३). १.पे. नाम. परब पजूसण की सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजूसण आवीयारे; अंति: मतिहस नमै करजोडिरे, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: परम धरम अवधार तुं; अंति: सुख संपति रहै पूर, गाथा-१. ३७११४. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४९, ?, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. कानपुर, प्रले. मु. तेजविजय (गुरु मु. कुसलविजय); गुपि. मु. कुसलविजय (गुरु पंन्या. अमीविजय); पंन्या. अमीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष में मात्र ४९ दिया गया है. प्रत का अनुमानित वर्ष १९वी शताब्दी होने से प्रतिलेखन वर्ष में १८४९ किया गया है., जैदे., (२६४११.५, १६x४४). १.पे. नाम. भक्तामर चतुर्काव्यानि गोप्यानि, पृ. ३अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-गोप्य काव्यचतुष्क, संबद्ध, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ आदिनाथामर सेवित; अंति: सुदयामृतधर्मपालान्, गाथा-४. २. पे. नाम. सूर्याष्टक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आदित्ये पूजिते नित्य; अंति: यावत् देव निरंजनं, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. मंगलाष्टक, पृ. ३आ, संपूर्ण. कालिदास, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पंकज विष्टरो; अंति: राप्नोति पुण्यं महत्, श्लोक-९. ३७११५. न्हावण वडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५.५४१२.५, १६४४९). आदिजिन अभिषेक विधि सहित, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतरागममृतेशमनंत; अंति: (१)किमपिसाध्यमिदं तदेव, (२)क्रियां _ नमोस्तु, श्लोक-३७. ३७११६. ढूँढकमत प्रश्नोत्तर व ३२ आगम नाम, अपूर्ण, वि. १९५५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-८(१ से ६,८ से ९)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. वीसलनगर, प्रले. हरगोवन मोतीराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीकल्याण पार्श्वनाथ., जैदे., (२५.५४१३.५, १५४२७). १.पे. नाम. सूचना प्रश्न, पृ. ७अ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. सूत्रना प्रश्न, अज्ञा., पद्य, आदि: (-); अंति: जाणवा लिख्यो छे. २. पे. नाम. ढुंढिया मान्य ३२ आगम सूत्रना नाम, पृ. १०अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अंग ११ उपांग १२ नंदि; अंति: १ दशाश्रुतस्कंध १. ३७११८. पौषदशमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१३.५, १८४४०). __ पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: ध्यात्वा वामेयमहँत; अंति: येन शीघ्रं रचयांचकार, श्लोक-७५. ३७११९. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रावण शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. रिद्धकरण पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३.५, १९४४१). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. ३७१२०. लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४१३.५, १३४२८). For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. नेमजी की लावणी, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. नवलराम, पुहिं., पद्य, आदि: नेमजीरी जान बनि भारी अंतिः जिनोकी कीरपा बूधसारी, " गाथा-८. २. पे. नाम. परनारी परिहार सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण क. दोलतराम, पु.ि, पद्य, आदि: चतुर पर नारी मत निरख, अंतिः दौलतरामजी० गढ को, गाथा ८. ३७१२२. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२६X१४, १३x४२). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाच, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: चोरासी लख जोनमें रे, अंति: मुनिवर करह विचार, गाथा- ११. २. पे. नाम. धरमजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेसर गावं रंग; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय निंदात्याग, पृ. १आ- २अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झायनिंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निद्या म करज्यो कोइ, अंतिः समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. चैत्रीपूनिमोपरि श्रीसिद्धगिरि स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आया रे विमलाचल; अंति: रै पद्मविजय परिणाम, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-७. ५. पे नाम. नववाडि ब्रह्मचर्य सज्झाय ७ से १ डाल, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अंति: नववाडि राखो निरमली, प्रतिपूर्ण. ३७१२३. (+) चार मंगल प्रभाती व सहस कोटनी संख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. पालणपूर, प्रले. मु. दोलतरुचि, पठ. मु. पुनमचंद (गुरु मु. दोलतरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. चंडेसर मध्ये पालनपुर, टिप्पणयुक्त विशे पाठ. वे. (२६.५४१४, १५४३९). पे. नाम. च्यार मंगल प्रभाति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धारथ भूपति सोहे; अंति: उदयरत्न भाखे एम, गाथा-२१. २. पे. नाम. सहस कोटनी संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. सहसकूट जिनपरिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दस खेत्रनी तीस चोवीस; अंति: थया ए सेस कूट जाणवो. ३७९२४. चउद गुणठाणा स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९३१ वैशाख कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६-२ (१ से २)=४, ले. स्थल, फलोधीनगर, प्रले. मु. जीवराज महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. आदिनाथजी प्रसादात्, जैदे., (२५X१३, १३X३३). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: (-); अंतिः निजमति ने अनुसार, दाल-१७, गाथा- ११९, (पू. वि. प्रारंभ से ३ कर्मप्रकृति डाल की गाथा ८ अपूर्ण तक नहीं है तथा गुणस्थानक ३ से गुणस्थानक ५ की गाथा ५ अपूर्ण तक नहीं है.) ३७१२५. महावीर पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. लिंबडी, प्रले. व्रजलाल ईश्वर पारेख, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५X१४, १३X३७). महावीरजिन स्तवन- ५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदुः अंतिः नामे लहे अधिक जगीस ए, ढाल - ३, गाथा-५६. ३७१२०. रोहिणीत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. दे. (२४४१३.५, १२x२७). " रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य नमि; अंति: अमृतपदना होई सामि हो, गाथा- ११. ३७१२८. (+) कर्मबंध भांगा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१३, १४X३५). कर्मबंध भांगा, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३७१३०. (+) महावीरस्वामिना ७२ वर्षना आयुगणवानी वीगत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२.५, १७४४३). महावीरजिन आयुष्य विवरण, ग. रामविजय गणि, मा.गु., गद्य, आदि: आऊखो गर्भथी गणवो; अंति: प्रकारांतरि जाणवा. ३७१३१. (-) सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४१३, १४४३१). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति: पुरव पुन्ये पायोरे, ढाल-७, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा २३ अपूर्ण से है.) ३७१३२. आरती व लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१३, १३४३६). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीनी आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन आरती, य. अगरचंद, पुहि., पद्य, आदि: आरती करत श्रीपासजिणं; अंति: जिवित सफल भया उनका, गाथा-५. २.पे. नाम. केसरीयाजीनी लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरीया, मु. मूलचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १८६३, आदि: सुनीया बातां रांओ; अंति: वार किधी जव धुलेवा, गाथा-९. ३७१३३. ऋषभ बत्रीसि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३४१३, १२४३९). ___ अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद श्रीआदिजिणंद; अंति: जिनहरष नमुकर जोड, गाथा-३२. ३७१३४. पुण्यफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१३, १५४३५). ___ पुण्यफल सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: दया निरसींगो बाजीयो; अंति: बाडी खुली गुलावरे, गाथा-२२. ३७१३५. पांचकर्मप्रकृति प्रथम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२८x१३, १२४३२). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसरपूर धणीजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र ५ कर्मप्रकृति सज्झाय १ लिखा है.) ३७१३६. (+) मेघरथ सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रानेर, प्रले. मु. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१३.५, १७४३२). मेघरथराजा सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: दशमें भवे श्रीशांतजी; अंति: कहे रायचंद सुभवाण, गाथा-२०. ३७१३७. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१३, १३४२२). औपदेशिक सज्झाय, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: आरे आ दुखा संसार छ; अंति: कमल० कोडी कल्याणजी, गाथा-१६. ३७१३८. मौनएकादशी डोढसो कल्याणकनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३४, पौष कृष्ण, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. धानेरानगर, प्रले. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अजितनाथ शांतिनाथ प्रशादे., दे., (२४४१३, १५४३६). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन; अंति: जसविजय जयसिरि लही, ढाल-१२, गाथा-६२. ३७१३९. सीखामण छत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२६४१३.५, १५४२५). उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विर० वांणि मोहन वेलि, गाथा-३६, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ३७१४०. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १४४४५). १४ गुणठाणा जीवभेद, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-).. ३७१४१. आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१३, ११४३२). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता दीयो मुझ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १७ के बाद गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७१४६. चौवीस दंड २९ द्वार विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६.५४१३, १४४३०). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: (-), (पू.वि. लेश्याद्वार विचार अपूर्ण तक है) ३७१४७. शांतिजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१३, ११४२६). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण तक है.) ३७१४८. नवपदजिन स्तवन वदोहा, संपूर्ण, वि. १९३१, आश्विन शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, जैदे., (२७४१३, ९४२४). १.पे. नाम. नवपदजिन स्तवन, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, ग. हर्षेदु गणि, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: ए दिन सफल भयो मे; अंति: हर्षेदुगणि० निहाल, गाथा-५. २.पे. नाम. सत्संगति फलदोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: संगत गुरु गुणवंत की; अंति: (-). ३७१४९. ज्ञानपंचमी कथा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३.५, १८४४६). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी कथा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. सौभाग्यपंचमी कथा-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य पार्श्वनाथां, (२)सकल मंगलवेलि वधारवा; अंति: नवनीधि पामीइं प्राणी. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ३७१५०. अष्टमीनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६.५४१३.५, १२४३३). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुंसदा; अंति: लावण्य० कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. ३७१५१. अतीत अनागत वर्तमान चोवीशी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. * पंक्ति अक्षर अनियमित है., जैदे., (२७४१३.५). मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते; अंति: श्रीआरुण्यकनाथाय नमः. ३७१५२. (+) पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. कलोल, प्रले. प्रह्लाद मोहनलाल लहिया; अन्य. मु. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२७४१३.५, १४४३६). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमि दसणंमि य; अंति: मिच्छामि दुक्कड. ३७१५३. जंबूद्वीप संग्रहणीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. कुल ग्रं. १०३८, जैदे., (२७.५४१५, ६४३५). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमियं जिणसव्वन्नु; अंति: रइया हरिभदसूरीहै, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमीय केहता नमस्कार; अंति: थई हरिभद्रसूरीपद्वी. ३७१५४. मौन एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२८x१४.५, १२४३७). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन; ___ अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रशस्ति की गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३७१५५. (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१३, १६४३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ गाथा १ अपूर्ण तक है.) ३७१५६. मौन एकादशी गणनु, संपूर्ण, वि. १९२३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. * पंक्ति अक्षर अनियमित है., दे., (२७.५४१४). For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २६७ मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ३७१५८. सरस्वतीनो छंद, संपूर्ण, वि. १९६१, पौष कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. गुमानविजय (गुरु मु. रत्नविजय); गुपि.पंन्या. रत्नविजय (गुरु पं. प्रेमविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल हेतु ग्रा.पा.न. का प्रतीक मिलता है., दे., (२६.५४१४, १५४२५-२९). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मागु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: आस फलसे सवि माहरी, गाथा-३३, प्र.ले.पु. मध्यम. ३७१५९. अध्यात्म गीता, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१३, ११४२६-३०). अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमियै विश्वहित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३५ अपूर्ण तक ३७१६०. विचार गर्भित जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२७७१३, ११४२७). साधारणजिन स्तवन-विचारगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक है.) ३७१६१. चारित्र ५ भेद ३६ द्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. *पंक्ति अक्षर अनियमित हैं., दे., (२७७१३.५). चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: पनवणा १ वेद २ रागे ३; अंति: संख्यातगुणा ३. ३७१६२. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१३.५, ११४३१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पइवं वीरं नमिउण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २० अपूर्ण तक है.) ३७१६४. (-) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. दादरा, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७.५४१३.५, १६४३४). १.पे. नाम. कमलावतीसती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. दादरा, प्रले. सोनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. ऋ. जैमल, पुहिं., पद्य, आदि: महलाम वठी जी राणी; अंति: संजम लेइ होवे सासता, गाथा-२७. २.पे. नाम. नेमराजुल बार मासो, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती बारमासो, पुहिं., पद्य, आदि: क्या आया याकू का; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ३७१६५. सुदर्शनचरित्र चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२८x१५, १९४५०). सुदर्शन चरित्र, पुहि., पद्य, आदि: धन शेठ सुदर्शन शियल; अंति: दर्शन भवी जीव हितकार. ३७१६६. लावणी संग्रह व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-६(१ से ६)=२, कुल पे. ६, जैदे., (२७.५४१३.५, १६x४०). १.पे. नाम. ऋषभ लावणि, पृ. ७अ, संपूर्ण. ___ आदिजिन लावणी, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सुमत; अंति: तुम साहिबने मे बंदा, गाथा-८. २.पे. नाम. नेम लावणि, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहि., पद्य, आदि: नेमनाथ मो अरज सुणिजे; अंति: फेरा नहि फिरणे कि, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणि, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, अखेमल, पुहिं., पद्य, आदि: खबर नहि हे जुग में; अंति: जिनकु विनति अखेमल की, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक लावणि, पृ. ८अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर नर दिल कुं समझ; अंति: देवा ब्रह्मचाना रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक लावणि, पृ. ८अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: किसि कि भूडिरे नवि; अंति: अब एक जिन दरसण चहिये, गाथा-५. ६. पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदिः उपदेश न लागे अभव्यने; अंति: उत्तम संघ निदान रे, गाथा - ६. ३७१६७. वर्धमानस्वामीनूं पारणुं, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. सरदारपूर, पठ. श्रावि. पानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जै., (२७.५X१३.५, १२x२८). गाथा - १८. महावीरजिन पारणुं, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशलाए पुत्र; अंति: कहे थास्ये लीला लहेर, ३७१६८. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. पं. जितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३.५, १४X३४). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मयगल घरबारी नार, अंतिः संघने सुख देवई, गाथा-४. २. पे. नाम नेमिजिन स्तुति, पू. १अ १आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: कुगति कुमति छोडी, अंति: नेमी सेवें सुहेबा, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि जलण जल विजोगा नाग; अंति: चंदो जाणे अमृतबिंदो, गाथा-४. ४. पे. नाम वीरजिन छोड़. प्र. १आ-२अ संपूर्ण. 3 महावीर जिन स्तुति, मा.गु, पद्य, आदि: कठिन करम मेली काठिआ, अंतिः टाले संघना कोडि पाले, गाथा-४. ३७१६९. (#) नेमजीराजेमती चीठी, लोकसंग्रह व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८४१४, १६x४२). १. पे नाम, नेमजीराजेमती चीठी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण वि. १८२६, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, ले. स्थल, रामपुरा, नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्ररिवंतगिर, अंतिः सदा रूपविजे तुम दास, गाथा- १८, (वि. प्रतिलेखक की भूल से संयोजित अन्तिमवाक्य में कर्त्ता के गुरु के नाम की जगह कर्त्ता का ही नाम लिखा गया है) २. पे. नाम. साधु असाधु गुणदोष वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. सं., पद्य, आदि गुणायंते दोषाः स्वजन, अंति: भुजंगो मणिगुणान् श्लोक-२. " ३. पे. नाम. जिनपूजा स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ५ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने श्लो. सं. ३ की जगह ४ लिखी है.) ३७१७०. कोष्ठक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ ( २ ) -२, कुल पे. ३, दे. (२६४१३.५, ३३४१६). "3 १. पे नाम, चतुर्दश जीवस्थानकेषु अष्टौ द्वाराणि, पृ. १अ संपूर्ण १४ जीवस्थानक के ८ द्वार, मा.गु., को. आदिः एकेद्रिसूक्ष्म अंतिः पंचिद्रि अपर्याप्ता. २. पे. नाम. द्वाषष्टी मार्गणेषु षट्द्वारकाणि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ६२ मार्गणा ६ द्वार, मा.गु., को., आदि: मनुष्यगति नरकगति, अंति: (-), (पू.वि. २२ मार्गणा के छः द्वार तक है.) ३. पे, नाम, द्वाषष्टिमार्गणे षट्द्वारकाणि प्र. ३अ- ३आ, संपूर्ण ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु, को. आदिः मनुष्यगति नरकगति, अंतिः संज्ञी अनाहारि आहारि ३७१७३. नमस्कारचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, लिख. श्राव. पानाभाई सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५X१३, ११४३८). नमस्कारचीवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अशरिरी अजर अमर तु अंतिः पद्मने०होई सुख खाणि, चैत्यवंदन- २४. ३७१७४. कुबेरदत्त - कुबेरदत्ता सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२८x१३, १२X४७). कुबेरदत्तकुबेरदत्तानी सज्झाय, मु. प्राद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). (पु.वि. आरंभ व अंत के पृष्ठ नहीं हैं) For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २६९ ३७१७५. थंभणा पार्श्वनाथजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७४१४, १०४३१). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २ की गाथा १ तक है.) ३७१७८. महावीरप्रसादे स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वडनगर, दे., (२८x१३, १३४३२). महावीरजिन स्तवन, क. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: तारकदेव त्रिभुवनधणी; अंति: गायो एम गुणमणिमाल. ३७१७९. जीयव्यवहारकप्पसुत्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२९.५४१३, १६४५३). जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: कयपवयणप्पणामो; अंति: सुपरिच्छि गुणम्मि, गाथा-१०३. ३७१८१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२८x१४, ८x१८-२१). १.पे. नाम. मोक्ष सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: मोक्षनगर माहरु सासरु; अंति: मुत्तिनो गुण जाण रे, गाथा-५. २.पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत स्वामिने विनवू, अंति: नामे हो जय जयकार, गाथा-१५. ३७१८२. अनुयोग विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, दे., (३०x१५.५, १३४३३). १.पे. नाम. अनुयोग विधि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम गुरु शिष्य; अंति: पच्चक्खाण करवू. २.पे. नाम. अनुयोग विधि पाठांतर, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. हंसविजय, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गुरुशिष्य बन्ने जणा; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३.पे. नाम. अनुयोग विधि, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ___प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अनुयोग आठवा पछी; अंति: मिच्छामी दुक्कडम्. ३७१८३. पांचमनी ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२८.५४१३, १५४३७). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जनेशर; अंति: (-), (पू.वि. कलश अपूर्ण तक ३७१८४. (#) अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९०८, भाद्रपद, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८.५४१३, १३४३५). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: (-); अंति: आणी आप समोवड थापीये, ढाल-९, (पू.वि. धूपपूजा अपूर्ण से है.) ३७१८८. आठम तवन, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रावण शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. नडियाद, प्रले. मु. प्रेमविजय; अन्य. द्वारका हरिभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. द्वारका हरिभाई के प्रत की नकल., दे., (२७.५४१३, १२४२८). __ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतीर्थ प्रणमुंसदा; अंति: संघकोड कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. ३७१९०. षड्द्रव्यनी चरचा व चतुर्थव्रत उच्चराववानी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२८.५४१४.५, २१४४२-४४). १.पे. नाम. षड्द्रव्यनी चर्चा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य१ गुण२ पर्याय३; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सात नयों की चर्चा तक है.) २.पे. नाम. चतुर्थव्रत उच्चराववानी विधि, पृ. ४अ, संपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक शुक्ल, ७, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. चतुर्थव्रत उच्चारण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: पच्चक्खाण करावीइं. For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७१९१. (+) परदेसीराजा केशीकुमार संवाद- जीवचरचा विषे, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५X१४, १३X३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परदेसीराजा केशीकुमार संवाद - जीवचरचा विषे, रा., गद्य, आदि: राजा पूछै हे महाराज; अंति: पश्चात्ताप करैला . ३७१९२. अठारानाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे. (३१.५X१४, १३x४६). १८ नातरा सज्झाय, मु. कविषण, मा.गु., पद्य, आदि: मानव भव पायोजी, अंतिः कवियण करे बखाण. ३७१९३. अष्टप्रकारी पूजा, आरती व चार मंगल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२८x१३, १३x४०). १. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख; अंति: दर्शनं संल्लभंते, ढाल -८, श्लोक- ८. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. ३अ. संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरति शांति, अंति: सो नरनारी अमरपद पावे, गाथा-७. ३. पे. नाम. चार मंगल, पृ. ३अ, संपूर्ण. ४ मंगल पद, मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज म्हारै च्यारुं; अंति: आनंदघन उपगार, गाथा-७. ३७२०० पृथ्वीचंद्रनी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, विरमगाम, प्रले. शांतिलाल लवजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१४, १६X३८). पृथ्वी चंद्रगुणसागर सज्झाय, पंडित. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक सुखकरुं; अंति: जीवविजय धरे ध्यान, ढाल ३. ३७२०४. मौनएकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पीपलदर, पठ. रलीबाई, प्रले. पं. विद्याविजय गणि प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८.५X१४, १३X३३). एकादशीपर्व सज्झाय. मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो अंति सुव्रतरूप सज्झाय भणी, गाथा - १५. ३७२०६. चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२९x१४, १०x४४). " पार्श्वजिन चैत्यवंदन, क. हेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगततारण दुखवारण; अंतिः कवी हेमसिंधू कहे, गाथा ५. ३७२०९. सज्झाय, स्तवन व थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२९x१४, १२x२३). १. पे. नाम. चेलणासतिनी सजाय, पृ. १अ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: पामशे भवतणो पार. २. पे. नाम. नेमनाथनुं स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी मा.गु., पद्य, आदि: नेमी जीनेसर निज कारज अंतिः करता वाघ जगिसोजी, गाथा ७. ३. पे. नाम. पंचतीर्थ थोय, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचतीर्थ स्तुति, मा.गु, पद्य, आदि आबु अष्टापद गडनर समत, अंतिः तेने करूं प्रणाम, गाथा- १. ३७२१० (+) शांतिजिन लावणी, संपूर्ण वि. १९४७ मध्यम, पृ. १. ले. स्थल, धानेरा, प्रले. मु. सुंदरविजय, पठ पंन्या दोलतविजय (परंपरा आ. लालविजय, देवसूरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे., (२७.५X१४, १०X३७). शांतिजिन लावणी, मु. सुंदरविजय, पुहिं., पद्य, वि. १९४७, आदि: तुंम भले बीराजो सांत; अंति: जे जेकार जाओ बलीहारी, गाथा- ७. ३७२११. प्रथ्वीचंद्रनी सज्झाच, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२९४१३.५ १२४३५). पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, पंडित. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक सुखकरु; अंति: जीवविजय धरे ध्यान, ढाल ३. ३७२१२. महावीर सत्तावीसभवगर्भित स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३५, अज्ञात अधिकमास शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, विजापुरनगर, प्रले. हरिभाई लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रत लेखन का मास नहीं दिया गया है केवल मासोतमासे पुरुषोत्तममासे ऐसा लिखा हुआ है. जैवे. (२८४१३.५, १२४३७). For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंति: विजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८५. ३७२१३. जैनसिद्धांत स्तवन व वर्णानाम उच्चारणस्थानानि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२८x१२.५, १३४५३). १.पे. नाम. जैनसिद्धांत स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा गुरुभ्यः श्रुत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १५ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. वर्णानामुच्चारणस्थानानि, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वर्णानां स्थान; अंति: तावन्मात्रार्थः, श्लोक-५, (वि. आधुनिक गुजराती लिपि.) ३७२१४. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८३४, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. द्वीप, लिख. श्राव. लखमीचंद अभेचंद ठकर; प्रले. मु. भवान ऋषि (गुरु पं. कृष्णजी ऋषि, वृद्धिलोंकागच्छ); गुपि.पं. कृष्णजी ऋषि (गुरु पं. रत्नसीह ऋषि, वृद्धिलोंकागच्छ); पं. रत्नसीह ऋषि (गुरु गच्छाधिपति मेघराजजी ऋषि, वृद्धिलोंकागच्छ); राज्ये गच्छाधिपति मेघराजजी ऋषि (वृद्धिलोंकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्री लखमीचंद अभेचंद ठकर ने अपने स्वगृह ज्ञानभंडार में रखने के लिए लिखवाया. पत्रांक न होने के कारण पत्रांक २ काल्पनिक लिखा है., जैदे., (२९x१३, १२४३०). कल्पसूत्र अपूर्ण व छूटक पाना**, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३७२१५. मुर्खशतम् सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२९४१२.५, ६४३९). मूर्खशतक, क्षेमेंद्रजी, सं., पद्य, आदि: शृणु मूर्खशतं राज; अंति: मूर्खश्च सहासगी, श्लोक-२६. मूर्खशतक-टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: कुमारपाल राजाने बाहड; अंति: बोलते जाय ते मूर्ख. ३७२१६. मौनएकादशीनुंगणj, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वडनगर, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम अवाच्य है., जैदे., (२७.५४१२.५, १५४५-४४). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: भरतक्षेत्र अतीत चोवीशी; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ३७२१७. अतीत अनागत वर्तमानचोवीसी दशक्षेत्रनां कल्याणक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाटण, अन्य. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१३, १२४४३). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीप प्रथम भरते; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ३७२१८. बह्मचर्यव्रत उचरावानी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२८x१३.५, १५४३९). ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: महामहोत्सव पूर्वकः; अंति: प्रदक्षिणा देवरावीइं. ३७२१९. अन्य दर्शननी शीखामण, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, जैदे., (२८x१३.५, १६४३२). औपदेशिक सज्झाय-अन्यदर्शन, मा.गु., पद्य, आदि: मीथ्यातिनो मत जुओ; अंति: नहिं तस सरगे अवतार, गाथा-३९. ३७२२१. वंगचूलिया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७७१३, १४४५५). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमेर सुरनर; अंति: दउचित्तो होइय इंदिय. ३७२२३. (+) गाथा लक्षण व छंद लक्षण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. पंडित. रामलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पंचपाठ., जैदे., (२७४१३, १४४५२). १. पे. नाम. नंदिताढ्यछंद सह टिप्पण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. चित्रकूट महादुर्ग, प्रले. मु. सोममूर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य. नंदिताढ्य छंद, मु. नन्दिताढ्य, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण चलण जुयल नेमि; अंति: च जस्साइ च्चोव्वसेवओ, गाथा-९२ नंदिताढ्य छंद-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: गाथासु समानि लघ्वक्ष; अंति: वंविधत ज्ञानं हेमत. २. पे. नाम. छंद लक्षण विचार, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. छंदलक्षण विचार, प्रा.,सं., पद्य, आदि: बंभो हीरो कण्हो रामो; अंति: ध्येयं रत्नत्रयं सदा, गाथा-६. ३७२२४. स्तवन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(२ से ३)=२, कुल पे. २, दे., (२८.५४१२, १०४३५). For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. वीरजिन सत्तावीसभव स्तवन, पृ. १अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: श्रीशुभविजय सुगुरू; अंति: सेवक वीरविजय जयकरो, ढाल-५, गाथा-५२, (पू.वि. ढाल २ गाथा ५ अपूर्ण से ढाल ५ गाथा ४ तक नहीं २.पे. नाम. इरियावहिया प्रतिक्रमण सझाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सन्मुख रही विनय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ३७२२५. वीरसत्तावीस भवनो स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१,४)=४, ले.स्थल. पालीताणा, पठ. मु. कनकविमल; प्रले. गौरीशंकर गोविंदजी भट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२, १०४३३-३६). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: शुभविजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८५, (पू.वि. गाथा १ से २० अपूर्ण तथा ५४ अपूर्ण से ७० अपूर्ण तक नहीं हैं.) ३७२२७. (+) मयणरेहा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, प्रले. सा. चनणा आर्या (गुरु सा. रामकवर आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१३, १९४४०-४३). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सतीरो भाव सुधावो, गाथा-१७२, (पू.वि. गाथा ३० से है.) ३७२२८. सिद्धदंडिका प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. यंत्र व कोष्ठक सहित., जैदे., (२८x१३, १३४१०-४३). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाउ अंतमुह; अंति: दिआदितु सिद्धि सुहं. ३७२२९. चैत्यवंदन व होरीसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३५). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजीनुं चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस; अंति: शिवसुंदरसौख्यभरम्, श्लोक-७. २. पे. नाम. महावीरजिन होरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: महावीर ऐसे जिनवंदनकु; अंति: निजस्वर्गगयो री, गाथा-५. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीस नमाइ चरण ग्रह; अंति: खुसी से खेलो होरी, गाथा-४. ३७२३०. उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा सामाचारी अध्ययन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२.५, ६४३७). उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा सामाचारी अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: सामायारी पव्वक्खामि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४५ अपूर्ण तक है.) ३७२३१. (+) न्यायप्रवेशकसूत्र व पाक्षिक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१२.५, १८४५५). १.पे. नाम. न्यायसूत्र प्रवेशकसूत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. न्यायप्रवेशसूत्र, दिङ्नाग, सं., गद्य, ई. ४वी, आदि: साधनं दूषणं चैव; अंति: सान्यत्र सुविचारिता. २.पे. नाम. पाक्षिक विचार, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: केचित् पंचदश्या; अंति: करी तहत्ति करीए छे. ३७२३२. राणी पद्मावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२८.५४१२, २०४४७). पद्मावती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ गाथा १ से ढाल ६ गाथा ८ तक है.) ३७२३३. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५९, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मंबाइ, प्रले. जुगलजोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, १५४४०). For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि आद्यंताक्षरसंलक्ष्य अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, लोक- ९३. ३७२३६. (+) सार संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४. कुल पे. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ दे., (२८४१२.५, ११४३८). १. पे. नाम. चरणसत्तरी- करणसत्तरी गाथा सह शब्दार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाधा, प्रा., पद्य, आदिः वय ५ समण धम्म १० अंतिः भिग्गहा ४ चैव करणंतु, गाथा २. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा - शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वय क० पांचमहाव्रत, अंति: सित्तरी ७० बोल पालइ. २. पे. नाम. तीन आंगुलमान गाथा सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. ३ आंगुलमान गाथा, प्रा., पद्य, आदिः परमाणुं तसरेणुं रहरे, अंतिः रसायंगुलं भणियं, गाथा- ३. ३ आंगुलमान गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः आठ परमाणुए एक त्रस, अंति बाई एहवड क छे. ३. पे. नाम मुनिनेविसविस्वानि अने श्रमणोपासकने सवाविस्वानी दया विचार, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. साधुकी बीसवसा और आवककी सवावसा दया, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना वे भेद सुक्ष्म अंतिः माटे अणुव्रत कही . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे नाम, जंबुद्विपनाएकसोनेने उखाडुआनो विचार, पृ. ४अ संपूर्ण जंबूद्वीप के १९० खांडुआ विचार- भगवतीसूत्रे, मा.गु., गद्य, आदि: एकलाख योजन जंबुधिप, अंति: १९० खांडु (+) ३७२३८. आउर पच्चक्खाण सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., ७-१०X३२-४०). थाय. ५. पे. नाम. सुवा केवली, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: केलवी १ अने केवलिना, अंतिः धर्म सांभलिने केवा. ३७२३७. (+) चुर्विंशतिदंडकसूत्र सह ट्वार्थ, संपूर्ण, वि. १८४२ आषाढ़ शुक्र १०, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल नागोर, प्र. मु. गुणचंद्र (गुरु मु. सूर्यमल्ल लुकागच्छ गुपि मु. सूर्यमल (गुरु मु. नगराज, लुकागच्छ); मु. नगराज (परंपरा ग. ज्ञानचंद्र, लुकागच्छ); प्रले. ग. ज्ञानचंद्र (लुकागच्छ); पठ. मु. रत्नचंद्र ( लुकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२, ६x४८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊं चउवीस जिणे तसु; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा - ४१. दंडक प्रकरण-वार्थ मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनह चडवीस, अंति: आपणनह हितकारिणी. प+ग. वि. ११वी, आदि: देसिकदेशविरओ, अंति: (-), (अपूर्ण, अपूर्ण तक लिखा है.) , वे., (२८.५x१२.५, आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५० ३७२३९. भगवतीसूत्र शतक २५ उद्देश ७ व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) = ४, कुल पे. ६, दे., ३. पे. नाम प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा. पृ. ५अ संपूर्ण संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि पडिकमणा परिवरणा, अंति: पडिक्रमण अडहा होई, गाथा- १. ४. पे. नाम. लोक संग्रह, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. प्रा. सं., पद्य, आदि: दिवा विभेति काकेभ्यो; अंतिः तिसलाए अचूए कप्पे श्लोक-४९. ५. पे. नाम. सिद्धना एकत्रीस अतिशय, पृ. ५आ, संपूर्ण. २७३ (२७.५X१२.५, १५x२६-३९). १. पे. नाम. भगवती सूत्र - शतक२५ - उद्देश - ७, पृ. २अ -५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. संजया विचार- भगवतीसूत्रे शतक२५ उद्देश, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भंते सेवं भंतेत्ति, द्वार- ३६, (पू. वि. प्रारम्भिक अंश नहीं है.) २. पे. नाम. दिवा रात्रिमान श्लोक, पृ. ५अ, संपूर्ण. दिवारात्रिमान श्लोक, सं., पद्य, आदि: अंगुष्टादौ विजानीया; अंति: दिवारात्रिमान. For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्ध के ३१ अतिशय, प्रा., पद्य, आदि: संस्तान वर्ण गंधश्च; अंति: जन्मरहिताश्च सिद्धयः, गाथा-१. ६. पे. नाम. अढीद्वीप परिधि विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपनी परिधि; अंति: १५२३ धनुष ३ आंगुल. ३७२४०. कलिकुंड पार्श्वनाथ स्तोत्र व पंचांगुलीमाता छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७.५४१३, ११४४६). १. पे. नाम. कलिकुंड पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-कलिकुंडमंडन, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: वार्द्धित निश्चिता, श्लोक-१३. २. पे. नाम. पंचांगुलीमाता छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती पय नमी; अंति: संपती नीत विलसंत, गाथा-१३. ३७२४१. स्तवन, चैत्यवंदन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. १५, प्र.वि. प्रत्रांक दोनो तरफ लिखी हुई है गु., (२७.५४१२.५, १७४१२-५२). १. पे. नाम. अतित चोवीसी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. अतीतचौवीसी चैत्यवंदन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अतीतचोवीसी वंदीए आतम; अंति: ध्यानथी अमृतपद पाउ, गाथा-५. २. पे. नाम. आवति चौवीशीर्नु चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. अनागत चौवीसी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीपद्मनाभ पहेला; अंति: ततणो ज्ञानविमल सूरिश, गाथा-१५.. ३. पे. नाम. सिद्धचक्रजी चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. नवपद चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: जैनेंद्रमिंद्रमहितं; अंति: खदं प्रणमामि नित्यं, श्लोक-५. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: स्तुवे पार्श्व जिना; अंति: भवं ननुं बोधिलाभम्, श्लोक-६. ५. पे. नाम. कुंथुनाथ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. कुंथुजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: जय जय कुंथुजिनोत्तम; अंति: निर्वृति नित्यविशोक, श्लोक-३. ६. पे. नाम. तपसझाय, पृ. २अ, संपूर्ण. तप सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कीधां कर्म निकंदवा; अंति: उदयदुर्गति जावे दूर, गाथा-७. ७. पे. नाम. गौतम गणधर सझाय, पृ. २अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र दशमाअध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. करण, मा.गु., पद्य, आदि: समवसरण सिंहासने जी; अंति: बे करजोड संयम मे, गाथा-८. ८. पे. नाम. वैराग्य सझाय, पृ. २आ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, आदि: उंचा ते मंदिर मालीया; अंति: इम भणे मने पार उतारो, गाथा-८. ९. पे. नाम. जीव हितशीख सझाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जोइ जतन कर जीवडा; अंति: ईम कहे केवळनाणी रे, गाथा-११. १०. पे. नाम. जीवदया सझाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर नर जीवदया धर्म; अंति: रे एह छे मुगतिनो दाय, गाथा-१०. ११. पे. नाम. उपदेशी सझाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: जावू जरुर मरी जीवडा; अंति: करो तो संसार जाओ तरी, गाथा-११. १२. पे. नाम. मानपरिहार सझाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे मानवी रे; अंति: वीर० शिवरमणी करी सान, गाथा-१०. १३. पे. नाम. कृपणता सझाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: कृपणपणाथी बीहतो रे; अंति: वीर० भाखे भगवान रे, गाथा-९. १४. पे. नाम. आठमद सझाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनि वारिये; अंति: अविचल पदवी नरनारिरे, गाथा-११. १५. पे. नाम. आप स्वभाव सझाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. जीवविजय, पुहि., पद्य, आदि: आप स्वभाव मां रे; अंति: जीव वरे शिवनारी, गाथा-७. ३७२४२. सज्झाय व साधुअतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)=४, कुल पे. २, दे., (२७४१२, १४-१६४३६-३९). १. पे. नाम. पगामसूत्रसज्झाय, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. २.पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: बीखइ अने रउजको. ३७२४३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ८, प्र.वि. पत्र के दोनो तरफ पत्रांक लिखा है., दे., (२७४१२.५, १५-१७४४७-४९). १.पे. नाम. षडावश्यक स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोविशे जिनवर नमु; अंति: तेह शिव संपद लहे, ढाल-६. २. पे. नाम. परमात्म स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सकल समता सुरलतानो; अंति: होय सुजस जमावरे, गाथा-८. ३. पे. नाम. अजीतनाथजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विजयानंदन गुणनीलोजी; अंति: दिन दिन चडतो रंग, गाथा-३. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु.ज्ञानविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधिय; अंति: विनोद प्रसिद्ध लाल, गाथा-५. ५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेहि; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७. ६.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणंद महाराज; अंति: मोहन० ज्ञान विलास, गाथा-५. ७. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदो रेनर; अंति: भक्ति करु एक तारी, गाथा-५. ८.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो महावीर जिनेसर; अंति: सेवक जिन गुणगायारे, गाथा-७. ३७२४४. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२८x१२.५, १०४३४). नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (पू.वि. "संतिकरं स्तोत्र" की गाथा ९ तक है.) ३७२४५. विचारसंग्रह व श्लोक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, १२४४२). १.पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तेनो निर्णय करी लेवो, (पू.वि. प्रश्न ४० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरु; अंति: वृक्षस्य फलान्यमूनि, श्लोक-१. ३७२४६. (+) शृंगार वैराग्यतरंगीणी, संपूर्ण, वि. १८८६, आषाढ़ कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सुभटपुर, प्रले. मु. रूपचंद्र (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १६x४७-५२). शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: धर्मारामदवाग्निधूम; अंति: निशमेति नाशं, श्लोक-४६. ३७२४७. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, ८४३८). पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सर्वज्ञ योतिरूप; अंति: ऋद्धि वृद्धी वैदोसं, श्लोक-४. ३७२४८. नेमनाथजिनि लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७४१२.५, १३४३३). नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमि निरंजन बाल; अंति: गावे लावणी मनने कोडे, ढाल-४, गाथा-१६. ३७२४९. (+) ४७ दोष अहारना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, ३४४७). आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मु १ देसिय २; अंति: रसहेतु दव्वसंजोगा, गाथा-६. आधाकर्मी आहारदोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आह० आधाकर्मि ते कहीइ; अंति: ४७ नाठामसूत्रे जोवा. ३७२५०. गुरुनी उपाश्रानी चोरासी आसातना सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१९, फाल्गुन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. भावनगर, जैदे., (२६.५४१२.५, १४-१७४३८). जिनभवन ८४ आशातनापरिहार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर प्रणमी; अंति: रमणी हेलां ते वरे, गाथा-२८. ३७२५१. मुखवस्त्रिका स्थापन प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१३, १५४४५). मुखवस्त्रिकास्थापन प्रकरण, आ. वर्धमानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: मोह तिमिरोह सूरं नमि; अंति: संसिअंजइ महह सुक्खं, गाथा-२८. ३७२५२. मांडला बोल २४, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४१३.५, १२४३०). मांडला विधि, प्रा.,रा., गद्य, आदि: वडिनीत्य लघुनीत्यादि; अंति: दुरे पासवणे अहियासे. ३७२५३. स्तंभनपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. श्राव. वीरधीचंदजी मुहणोत ठाकुर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, १२४२३). पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देविंद्रवृंदा; अंति: तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक-८. ३७२५४. (+-) पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१३, २९४६५). १.पे. नाम. साधु उपदेश पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-साधु, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: पाचु इंद्रि जिति नहि; अंति: बाबोने हारि को हारि, गाथा-९. २.पे. नाम. अरिहंतगुण पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बरमा के वावत तन मन; अंति: हंत भज अरिहंत भयहरणं, गाथा-९. ३. पे. नाम. पांचमहाव्रत पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषी, मा.गु., पद्य, आदि: पालो पालो रे संजम कि; अंति: सुमिलि एह विरिया रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुही तुही आद आद आवे; अंति: रूपचंद० कोई रे पलकमे, गाथा-६. ५.पे. नाम. संयम पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. संयमव्रत पद, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन पुरस जो संजम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ३७२५७. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुलपे. २, जैदे., (२७.५४१३, १२४३१). For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org १. पे नाम. अमृतवेल सज्झाय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजुआलीये; अंति: लहि सुजस रंग रेल रे, गाथा - २९. २. पे. नाम. आठमदनी सज्झाच, पृ. २आ, संपूर्ण. ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदि मद आठ महामुनि वारिये, अंतिः अविचल पदवी नरनारि रे, गाथा - ११. सरदारपूर, " ३७२५८. उपधान विधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०२, भाद्रपद शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. प्रले. पं. जीतविजय पठ. श्रावि. जयकुंअरवाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पठनार्थ- अहमदनगर, जैदे. (२७.५X१३.५, १३४३१). महावीरजिन स्तवन- उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७३ आदिः श्रीवीरजिणेसर सुपरे अंति: : मुझ देयो भवि भवि, गाथा-२७. ३७२५९. दिक्षा विधि लोचविधि सहित संपूर्ण वि. १९६० मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. अमराफली, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. ९०, गु., (२८x१३, १०x४०). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पुच्छा १ वासे २ चिइ, अंति: (१) पूर्वाभिमुखोशिष्यरहे, (२)वधावे ते छेल्ली वारे, (वि. लोच विधि सहित.) ३७२६०. चोवीश तिर्थंकर परिवारादि विवरण, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित है., जैदे., (२७X१३.५). २४ जिन गणधरसंख्या मातापिता कल्याणकभूमि परिवारादि विवरण, मा.गु., को., आदि: ऋषभदेवस्वामी ८४ गणधर अंति: पुरीनगरमा० २७ भव. " ३७२६१. सीमंधरस्वामिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. कुल ग्रं. ७०, जैवे. (२७४१३.५, १५४३९). सीमंधरजिनवीनती स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसति भगवति, अंति: पुरव पुने पायो रे, ढाल - ७, गाथा- ४०. ३७२६२. साधारण जिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१३, आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. वडगाम, प्रले. अमरचंद माणिकचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X१३, ४x२७). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके रवि अंतिः ति सततं चितमानंदकारी, श्लोक-१०. तीर्थवंदना चैत्यवंदन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सात्विक भगति उरध; अंति: मन आनंदन करणार. ३७२६३. समकित स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९४७, मध्यम, पृ. २, प्रले. जीवणसिंह, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ३१, जै. (२८४१३, १२४३५). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: तुज सम्मत सरुवं पर, अंति: होउ सम्मत्त संपत्ति, गाथा - २५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७X३५). १. पे. नाम. देवसी पडिकमण गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. २७७ ३७२६५. गुणवर्मा रास - ढाल ७, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. भावनगर, पठ मु. कल्याणविमल अन्य श्राव. बीराजी अमरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X१३, १४४०). १७ भेदी पूजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ३७२६६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२५.५x१३, २. पे नाम ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., पद्य, आदि: नृपतिनाभिकुलांबरभास, अंति: गणाद्विपती श्रियम्, श्लोक-४. पंचप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय देवसीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाधा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि चेइवंदण नमुत्थुर्ण अंतिः रचसानो सिद्धाणं, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७२६७. (+-) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १८५८, कार्तिक शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-३(१ से ३)=४, ले.स्थल. बसुया, प्रले. मु. आंबाविजय (गुरु पंन्या. गोकविजय); पठ. मु. कस्तुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२८x१३, १४-१६४३२-३८). स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मालाबाला ते वरेरे लो, स्तवन-२४, (पू.वि. श्रीशीतलजिन स्तवन की गाथा १ अपूर्ण से है.) ३७२६८. तिजयपहुत्त स्तोत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. कपडवांणिज्य, प्रले. पं. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १७X४०). तिजयपहुत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: कृत्वा चतुर्णा; अंति: नित्यं अर्चयेत्. ३७२७२. पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९६६, आश्विन कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. जयगोपाल लहीया नागोरवाला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १०४३५). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. चतुर, सं., पद्य, आदि: भो भो भव्यजनाः सदा; अंति: सा संघस्य सिद्धायिका, श्लोक-४. ३७२७३. वर्द्धमान तप स्तवन, थोय व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, दे., (२७४१३.५, ११४३६). १.पे. नाम. आंबिल वर्धमान्नतप स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन तप स्तवन, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वर्धमान जिनपति नमिव; अंति: रत्नविजय कहे शिव वरो, ढाल-३. २. पे. नाम. वर्धमान तपनी थोयो, पृ. २आ, संपूर्ण. वर्धमानतप स्तुति, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वर्धमान ओली करो भव भ; अंति: रत्नविजय० सिद्धादिका, गाथा-४. ३. पे. नाम. वर्धमान तप स्वाध्या, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. वर्धमानतप सज्झाय, मु. धर्मरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा चेतन हो कहुं; अंति: धर्मरत्न पद अनुसरो, गाथा-१०. ३७२७४. (+) पार्श्वजिन स्तवन अवचूरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१४, १३४४६). अध्यात्मचत्वारिंशिका- पार्श्वजिनस्तुतिगर्भित-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: स: पार्श्वेशः श्रीपा; अंति: (१)रूपस्ताप निवर्तकः, (२)नैव शोधिनमतः दातव्यं. ३७२७६. सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७४१२, १०४३०). नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: विश्व जयकार पावे, गाथा-२१. ३७२८०. जैन विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७४१२.५, ११४३३). जैनविधि संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३७२८१. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, दे., (२७४१२.५, १३४३७). १. पे. नाम. चतुर्दशी स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चतुर्दशीतिथि स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, (पू.वि. श्लोक १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८उ, आदि: पेले पद जपिये अरिहंत; अंति: कांतिविजये गुण गाया, गाथा-४. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जिन पूजा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३७२८२. मौन एकादशी गुण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४१२.५, १२४३६). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ३७२८३. कलावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४१२, १९४३८). कलावतीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: जुगबाहु जिन जगत गुरु; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ४ गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३७२८४. श्रावकगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ७४३४). मान For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्नह जिणाणं आणं; अंति: निच्चं सुगुरुवएसेणं, गाथा-५. ३७२८५. संथाराविधि सह टबार्थ व मुहपत्ति के ५० बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७७१३, ५४३८). १.पे. नाम. संथारापोरसीविधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले.ग. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअसमत्तं मएगहियं, गाथा-१४. संथाराविधिपाठ-टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: निसीही कहेता बाह्य; अंति: उचरीइ समकित प्रते, गाथा-१४. २. पे. नाम. मुहपत्तिना पच्चास बोल, पृ. २आ, संपूर्ण. मुहपत्ति पच्चास ५० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व; अंति: दाभ्यां छकायजयणा करे. ३७२८६. शनीश्चरदेवनी कथा, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. माणसा, प्रले. पं. मनरूपसागर (गुरु मु. मोहनसागर); पठ. भगवान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१३, १४४३०). शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामणी मती दीओ; अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा-४७. ३७२८७. सम्यक्त्व बोल व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १६४३२). १. पे. नाम. समकितना ६७ बोल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. समकित के ६७ बोल की सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चउसदहणा तिल्लिंग दस; अंति: मोक्ष का उपाव है, ढाल-६. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाई अब हम कीनी; अंति: मुकत महल मे जाइ, गाथा-७. ३. पे. नाम. गुरुआज्ञा सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. हिं., पद्य, आदि: गुर का कहा मान लेरे; अंति: समझाया बहुतेरा, गाथा-७. ३७२८८. तीन मनोरथ, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. माणसा, प्रले.पं. मनरूपसागर (गुरु मु. मोहनसागर); पठ. मु. भगवानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १४४३२). श्रावकमनोरथ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ दिन प्रते; अंति: मुझने होज्यो. ३७२८९. कायापुर पाटण नो कागल, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. नलीनपुर, प्रले. मु. सुमतिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३.५, ११४३२). कायापुर पाटणनो कागल, मु. सुमतिविमल, मा.गु., गद्य, वि. १९१५, आदि: स्वस्ती श्रीमोक्षनगर; अंति: जाणवा सारु लीख्यो छे. ३७२९०. संथारा पोरसी विधि व चौवीस मांडला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६.५४१३, ८४३५). १.पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इय सम्मतं मए गहियं, गाथा-१४. २.पे. नाम. चोवीस मांडला, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: आगाढे आसणे उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे अहियासे. ३७२९१. पंचपरमेष्ठि श्लोक सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१२.५, १३४४०). पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-४. पंचपरमेष्ठि स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हतभगवंत अशरणशरण; अंति: ऋद्धि वृद्धि सिद्धिः. ३७२९२. (+) शांति विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, १३४३८). शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ननु संघादीनां विघ्नो; अंति: पावको मेघवाहनः. ३७२९३. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२, १६४३७-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३७२९४. (-) धर्मसंग्रह सह स्वोपज्ञ टीका-अधिकार २ पंचमाणुव्रतविवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. किसी अपूर्ण प्रत को पूर्ण करने हेतु अनुपूर्तिरूप लिखा गया पत्र प्रतीत होता है, कारण कि प्रथम पत्र होते हुए भी उक्त ग्रंथ की टीका के अपूर्ण भाग से प्रारंभ किया गया है., अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१२, १४४५६). For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धर्मसंग्रह, उपा. मानविजय, सं., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक ३० वा मात्र धर्मसंग्रह-स्वोपज्ञ टीका, उपा. मानविजय, सं., गद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., __श्लोक २९ की अपूर्ण टीका से श्लोक ३० अपूर्ण टीका तक है.) ३७२९५. चैत्यवंदन स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-८(१ से ८)=४, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१२, ७४२८). १.पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ____ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरिश्रीमानदेवशः, श्लोक-१७, (पू.वि. गाथा १७ तक है.) २. पे. नाम. अतिचार आलोचना रात्रिदिवसगत, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजुणा चउपहरी रात्रमा; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-विविधतीर्थमंडन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सकलतीर्थाधिराज; अंति: ताइ सव्वाइं वंदामि, गाथा-१. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: अढाई जेसुदीव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३७२९६. (-) नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १८५८, भाद्रपद कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. षटकपुर, पठ. श्राव. गीरधर पानाचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १४४२८-३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्ण पावा; अंति: बुद्धबोहीकरणं काय, गाथा-५४. ३७२९७. अजितशांति स्तवन व भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९२८, आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १३-९(१ से ९)=४, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १४४२९). १. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा ३५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १०अ-१३आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३७२९८.(+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. १२९-१२७(१ से १२७)=२, ले.स्थल. दिली, प्रले. श्राव. नुणाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सूत्र संख्या का कोष्ठक दिया गया है. रामदासजी प्रसादे., जैदे., (२६.५४१२, ५४३३). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, अध्ययन-२५, ग्रं. २६५४, (पू.वि. श्रुतस्कंध- २, अध्ययन-१६, गाथा ६ अपूर्ण तक नहीं है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होइ एम कहुंछु, (पू.वि. अध्ययन १६ गाथा ९ अपूर्ण से १२ तक ३७२९९. कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १६x४५). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य*मा.गु., गद्य, आदि: ते त्रिसला; अंति: (-). ३७३००. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८५, माघ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सहसपुर, प्र.वि. श्री आदिनाथ प्रसादात, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४२८). नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन विनवू; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३५. ३७३०१. अर्थ सहित पांत्रिस बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२६४१३.५, १२४४३). ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलै बोले गति च्यार; अंति: ए गुण श्रावकना कह्या. ३७३०२. पार्श्वजिन स्तवन सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ५४४९). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसंवरसं वरस; अति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक-७, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरं प्रधाना संवरस्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ५ तक की टीका है.) ३७३०३. सिद्धदंडिका स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पाठ के भाव को समझने के लिये कोष्ठक एवं विधि दी गई है., जैदे., (२६४१२, १२४३६). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: देविंद सिद्धि सुह, गाथा-१३. ३७३०५. पंच महवयनी गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. रत्नापूर, पठ. श्राव. जगजीवनभाई मोनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ५४२८). महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच महवय सुवयमूलं सम; अंति: श्रीजंबूस्वामी जाणीए, गाथा-१८. ३७३०६. पार्श्वजिन स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, १०-१२४३३). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र यमकाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महंतुत्य सत; अंति: पद्मप्रभदेव मंगलं, श्लोक-९. २. पे. नाम. सामान्य श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अंग गलितं पलित मुंड; अंति: कीर्चिधृति श्रियः. ३७३०७. कर्मविपाक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.५४१२.५, १७४४०-४५). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ तक है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०३, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीरं; अंति: (-). ३७३०८. नियंठाविचार-भगवतीसूत्रगत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. पोखरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., दे., (२६.५४१३). भगवतीसूत्र-नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पणवा १ बेद २ राग ३; अंति: संजम नांठाम जाणवा, द्वार-३६. ३७३०९. (+) स्थापना विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१३, ९४४०-४२). १. पे. नाम. स्थापनाचार्य विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: स्थापनाविधि; अंति: सिद्धिदः, श्लोक-१९. २.पे. नाम. स्थापना विशेष विधि, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र के बाई ओर हासिये में लिखा गया है. स्थापनाचार्य विशेषविधि, सं., गद्य, आदि: संध्यार्य दुग्धमध्ये; अंति: भवति तदा राज वशकृत्. ३७३११. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७४१२.५, २०४४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (वि. मात्र पद्यांश भागों का प्रतीक पाठ दिया गया है.) ३७३१२. विविध तपविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९६०, मध्यम, पृ. १९-१५(१ से ४,६ से ९,१२ से १८)-४, कुल पे. ९, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२६.५४१३, १२४३०). १.पे. नाम. चउदपूर्व नाम आराधन विधि, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १४ पूर्व नाम आराधना विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)श्रीउत्पाद प्रवाद, (२)उतपाद प्रवाद पूरव नम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण तक है.) । २. पे. नाम. परदेशीराजाना छठ, पृ. १०अ, संपूर्ण. परदेशीराजा छठ आराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीसमकित पारगतायनमः; अंति: काउसग नोकरवालि २०. ३. पे. नाम. सिद्धाचलना बे अठम, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. सिद्धाचल दो अठम तपविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीपुंडरिकगणधराय नम; अंति: साथीया २० नोकरवालि. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ १० गणधर आराधनविधि, पृ. १०आ, संपूर्ण. दशव For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन १० गणधर आराधनविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीसुभग गणधराय नमः; अति: काउसग २० नोकरवालि. ५. पे. नाम. महावीरना ११ गणधर आराधन विधि, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. __ महावीरजीन ११ गणधर आराधनाविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति गणधराय; अंति: नोकरवालि २० गणवि. ६. पे. नाम. संसार तारण तपनु गुणणु, पृ. ११अ, संपूर्ण.. संसारतारण तप आराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीकेसि गणधराय नमः; अंति: नोकरवालि २० गणवि. ७. पे. नाम. तेर काठियानो गुणणो, पृ. ११आ, संपूर्ण. १३ काठिया तपविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आलस काठियो निवारणाय; अंति: १३ छठ करवा नोक २०. ८. पे. नाम. समोसरण तपनु गुणणु, पृ. ११आ, संपूर्ण. समवसरणतप विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पेह जी बारि भाविझिनन; अंति: साथीया खमासण जुदा. ९.पे. नाम. विविधतप ग्रहण विधि संग्रह, पृ. १९अ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: यथा सक्ते उजमणो किजे, (पू.वि. तप ७ अपूर्ण से है.) ३७३१३. चतुविंसति जिनेंद्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२२, पौष कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. स्थभतीर्थ, प्रले. पं. मोहनविजय; पठ. श्रावि. बेहनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १३४३२). २४ जिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: भवियण भावे रेशुभ; अंति: लक्ष्मीसूरी० हो पार, गाथा-१९. ३७३१५. संथाराना मांडलां, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२.५, २१४१७-१९). २४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: आगाढे आसणे उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे अहियासे. ३७३१६. (+) सिद्धिदंडिका विचार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. जीवणविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पाठ के भाव को समझने के लिये कोष्ठक एवं विधि दी गई है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१२, ६४३३). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: देविंद० सिद्धि सुह, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: युगानि कालमानविशेष; अंति: दंडिकासुभावनीयं. ३७३१७. (#) गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. संकर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१३, १२४३६-३८). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. ३७३१८. पाखी खामणा सूत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. एमदाबाद, प्रले. छबील व्यास पूष्करणा ज्ञाति; पठ.सा.सोभागश्रीजी (गुरु सा. सिणगारश्री); गुपि. सा. सिणगारश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १२४३२). १.पे. नाम. पाखी खामणा सूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इछामि खमासमणो पिअंच; अंति: निथार पारग्ग होह, आलाप-४. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.,मागु.,सं., पद्य, आदि: जुवो आलस सोक भय; अंति: भ्रम निद्रा मद मोह. ३७३१९. महाबीरनी बीनती व कवित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, १३४३५-३७). १.पे. नाम. महावीरनी बीनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी बीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रहीयै लुट सिहन सांपन; अंति: जिनचंद० हित ना करावै, गाथा-१. ३७३२०. राजुल पचीसी, अपूर्ण, वि. १८६१, श्रावण शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ५-१(१)-४, ले.स्थल. बरेली, प्रले. मु. कल्याणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३७). For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org २८३ राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वर संघ कौ रक्षा करे, गाथा-२६, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) ३०३२१. नयोपदेश प्रकरण, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. ४, ले. स्थल मंमोईबंदर, प्रले. पं. चुत्रभुज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५X१३, १५X४८). नयोपदेश, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐंद्र धाम हृदि स्मृ: अंतिः याख्याभृदाख्यातवान् श्लोक-१४४. ३७३२२. सिद्धिदंडिका प्रकृण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पाठ के भाव को समझने के लिये कोष्ठक दी गई है.. वे. (२६४१२.५, ३४३१-३६). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाओ अंतमुह, अंति: देविंद० सिद्धि सुहं, गाथा- १३. सिद्धदंडिका स्तव बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंक० जे उसभ क० ऋषभ, अति: सुख आपो अनेक. ३७३२३. जैन सामान्य मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्रावि. हरकुंवर बाई, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२६.५X१३, ६-१०X३७). जैन मंत्र संग्रह - सामान्य", प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदिः ॐ नमो अरिहंताणं, अंति: (-). ३७३२४. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., ( २६१३, १३X२८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवार जीवार पुण्णं३: अंति: अनंतभागो व सिधिगाओ, गाथा - ५१. ३७३२५. प्रतिबोधकुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६६, भाद्रपद कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., ( २६.५X११, ६X३४-३७). वैराग्य कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जम्मजरामरणजले; अंतिः शिवसुखं जेण पाविहिसि, श्लोक-२१. आत्मसंबोधन कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: संसाररूपि समुद्रिजन, अंतिः मोक्ष नां सुख लहिसिं ३०३२६. सौभाग्य पंचमी देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. दे. (२६.५४१२, १२४३६). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ ऊपरि तथा; अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., चैत्यवंदन विधि तक दिया गया है.) " " ३७३२७. वडी दीक्षा योग विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. वे., ( २६४१२.५, १६४४५). वडीदीक्षा योगविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथम शिष्य आवीने एम, अंति: (-), (पू.वि. गुरुवंदना अपूर्ण तक है) ३७३२८. संथारा विधि व २४ मांडला, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. कल्याणविजय; पठ. श्रावि. नदिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७१३, १५X४५ ). १. पे. नाम. संथारा विधि, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: ( १ ) प्रथम इरियावही पडिक्, (२) निसिही निसिही निसीहि; अंति: इय समत्तं ए गहियं, गाथा - १४. २. पे नाम, २४ मांडला, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा. गद्य, आदि आधाडे आसतें उच्चार, अंतिः अहियासे ३ डावे पासे. , ३०३२९. मौन इकादसी नो गुण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है. वे (२६१२.५, १२X३०-३२). मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को., आदि: (१) भरतक्षेत्र अतीत जिन, (२) श्रीमहायशः सर्वज्ञाय; अंति: वर्द्धमानना नमः. ३७३३०. पिंडेषणा दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. त्रिपाठ., दे., (२७X१३, ११३३-३९). गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदिः आहारकमु १ देसिय २ पु अंतिः रसहेड दव्य संजोगा, गाथा-५. गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आधाकमी ते कहीइ जे; अंतिः मिलीने ४२ दोष कह्या. ३०३३१. पडिकमण विधि, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१)=४, दे. (२६४१३, १७४२६). For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: तस मिछामि दुक्कडं, (पू.वि. "चीनामतिथं" से आगे का पाठ है.) ३७३३२. (+) युगादिदेव स्तुति महिम्न स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२.५, १२४४६). आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्नः पारं ते परमल; अंति: रमा ब्रह्मैकतेजोमयी, श्लोक-३८. ३७३३३. (+) लघुशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १९२४, आषाढ़ कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्राव. गुलाबकुमर; अन्य. सा. सुंदर आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ११४२८). लघुशांति स्तव, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-२०. ३७३३४. सारदा सिद्ध स्तवराज व सरस्वती मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२, ३१४२१). १.पे. नाम. सारदासिद्ध स्तवराज, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंत समस्तलोक; अंति: स्य भवेत्युत्तम संपद, श्लोक-९. २. पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शारदा जाप मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ अर्हन्मुखकमलवासिनी; अंति: वंव हुँहु स्वाहा. ३७३३५. स्थापनाचार्य विधि संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२६.५४१३, ५४२२-२६). १.पे. नाम. स्थापना कल्पसह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., आदि: स्थापना विधि प्रवक्ष; अंति: वेष्वर्थेषुसिद्धिदः, श्लोक-९. स्थापनाचार्य विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: थापनानो विधि प्रति; अंति: नइ विषय सिधिदिइ. २.पे. नाम. स्थापना विशेष विधि सह टबार्थ, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. स्थापनाचार्य विशेषविधि, सं., गद्य, आदि: संध्यार्य दुग्धमध्ये; अंति: तदा राजवंशं कृत्. स्थापनाचार्य विशेषविधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सांजइ दूधमांहि थापन; अंति: हुइ तउराजा वश करइ. ३७३३६. साधुपाक्षिक अतिचार, पाक्षिकादि तप व अब्भुट्टिओखामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२, १४४३५). १.पे. नाम. साधुपाक्षिकादि अतिचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, पृ. ३अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पखी तप प्रसाद करोजी; अंति: सिज्झायकरीप्रवेशज्यो. ३. पे. नाम. पाक्षिक अब्भुट्टिओ गुरुवंदनसूत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (१)शमुदा खामणेणं उब्भुट, (२)इच्छा० संदि० अब्भु; अंति: (१)दीयाणं ___जंकचियं क, (२)मिच्छामि दुक्कडं. ३७३३८. रथ संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२६४१२). १. पे. नाम. आलोयणा रथ, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: कय चउसरणो नाणी नियमि; अंति: अरिंतयमक्खं खमोवेमि, गाथा-१. २.पे. नाम. शीलांगरथ, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांगरथ, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जे नो करंति मण्मया न; अंति: ९ वंभं १० जइ धम्मो, गाथा-२. ३. पे. नाम. दशविधचक्रवाल समाचारी रथ, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मणगुत्तो अन्नाणी पसम; अंति: इच्छाकारी नमो तस्स, गाथा-१. ४. पे. नाम. संसार रथ, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., प+ग., आदि: उड्ढदिसि पुरिस जीवे; अंति: सो संसारं परजम, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३७३४०. जसवंतजीनो संथारोवगीत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १४४३७). १.पे. नाम. जसवंतजीनो संथारो, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले.सा. पद्माबाई (गुरु सा. मोहनदे); गुपि. सा. मोहनदे (गुरु सा. लालबाई); सा. लालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. जसवंतजी संथारा, मु. भोजाजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अति: जप फलइ मनोरथ मन तणा, (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जसवंतजीगुण वर्णन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पठ.सा. लालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. प्रतिलेखक द्वारा गाथा क्रमांक नहीं दिया गया है.) ३७३४१. महावीर द्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१३, ९४२९). महावीरजिनद्वात्रिंशिका स्तव, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसात्म्यात्; अंति: तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३. ३७३४२. पाखी खामणा, अपूर्ण, वि. १९३६, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. अमरदत्त मेवाडा; पठ.सा. सुखश्रीजी (गुरु सा. सोभागश्रीजी); गुपि.सा. सोभागश्रीजी (गुरु सा. सिणगारश्री), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संथारा पोरसी विधि की समाप्ति की सूचना दी गई है., जैदे., (२६४१३, ९४३३). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिअ; अंति: निथार पारग्ग होह, आलाप-४, संपूर्ण ३७३४३. स्तवन व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, कुल पे. ३, दे., (२६४१२.५, ११४२१). १. पे. नाम. नेम राजुल स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती सज्झाय, अमीकुवर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मीकुवर० हुवो जयजयकार, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. राणपूरारो स्तवन, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणपुरो रलियामणोरे; अंति: लाल शिवसुंदर सुख दाय, गाथा-१६. ३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: चोरासी लख जुनमै रेल; अंति: री मानजोरे लाल, गाथा-१०. ३७३४४. सझाय व हरियाली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १५४२८). १. पे. नाम. कायाकुटुंब सझाय सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलोन माने रे; अंति: जोज्यो पंडित विचार, गाथा-११. औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावनामांहि; अंति: जोज्यो अभ्यंतर में. २. पे. नाम. हरियाली, पृ. ३अ, संपूर्ण, वि. १९११, कार्तिक कृष्ण, ३. प्रहेलिका हरियाली, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक नारी बहु पुरुष; अंति: कांतिविजय० बलिहारी, गाथा-६. ३. पे. नाम. रात्रीभोजननी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन संजोगे मानव भव; अंति: मुनि वखता० अधिकार रे, गाथा-१३. ३७३४५. आलोचना संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, जैदे., (२६४१२, १४४४४). १२ व्रत अतिचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., सप्तम् व्रत आलोचना अपूर्ण से वृद्धालोचना तक है.) ३७३४६. नवतत्त्व सह बालावबोध व सझाय, संपूर्ण, वि. १८९८, माघ शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्र.वि. सुमतिजीन प्रसादे, कुल ग्रं. २००, जैदे., (२६४१२.५, १५४४९). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: परिअटठो चेव संसारो, (वि. प्रतिलेखक द्वारा गाथा क्रमांक नहीं लिखा गया है.) . For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८६ www.kobatirth.org नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीवतत्त; अंति: तदनंतरे मोक्ष पहुंचे. २. पे. नाम. शरीर वर्णन सज्झाय, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. मा.गु, पद्य, आदि: रुधिर सेर दस देहमां, अंतिः नवि चाले कोई उपाय, गाथा- ६. ३७३४७. सझाय स्तुति संग्रह व ग्रंथसूचि, संपूर्ण, वि. १८५१, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२६X१२, १५X३८). १. पे. नाम. नववाड स्वाध्याय, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण. नववा सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु, पद्य, वि. १८वी आदि वीर जीणेशर इम भणे रे, अंतिः केशरकुशल जयकार रे, ढाल - ९. . २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: दरसन विन जीया तरसत; अंति: प्रभु पद फरसत दरसउ, गाथा - ३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. कुशल, पुहिं. पद्य, आदि मो सुभ परी री पल छिन, अंतिः फणि फणधर मम परम सहाई, गाथा-४. ४. पे. नाम. ग्रंथसूचि, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३७३४८. (-) स्तोत्र व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-७ ( ४ से १०) = ४, कुल पे. ५, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६x१२.५, १२-१३X२७-२९). १. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण मु. रतीराम, मा.गु., पद्य, आदि नगरी बनीता अति सोह ए अंतिः सुणता होवे हितकारी, गाथा- १४. २. पे. नाम. धन्नाशालीभद्र सज्झाय, पृ. १आ- ३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्नाशालिभद्र सज्झाय, रा., पद्य, आदि: धनाजी चौकी प्रथयाजी; अंति: केवली बचन परमान हो, गाथा - २२. ३. पे. नाम. इलाचीपुत्र सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ३७३४९. कल्पसूत्र तपो विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., ( २६.५X१३, १३X३४). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम महेलापुत्र जानीय, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है) ४. पे. नाम. सती सुभद्रा सज्झाय, पृ. १९अ ११ आ. अपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पाप सरीरुं जी जाय रे, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से आगे है.) ५. पे. नाम. दान शील तप भावना सज्झाय, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंतिः (-). (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है) योगविधि कालग्रहणविधि क्रियाविधि- खरतरगच्छीय, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदिः योगवाही मुनि पश्चिम, अंतिः धानुज्ञानंद्यां काउ१. ३०३५० (+) पर्व व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २) = ३, कुल पे २ प्रले. ग. ज्ञानविजय, पठ. मु. पूर्णचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५X१२.५, १५X४२-४६). १. पे. नाम. चैत्री पुनम व्याख्यान, पृ. ३अ- ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चैत्री पूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, आदि: (-); अंति: कांतिरत्नसहायतः. २. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only " अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य प्रभुं अंतिः क्षमाकल्याणपाठकैः ग्रं. ७० ३७३५१. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५X१२, १६३२). १. पे. नाम एलायचीपुत्र चोढालीयो, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. एलाचीपुत्र चौढालीयो, मु. भूपति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुण नीलोर, अंति: तुम्है नामै सुख अनंत, ढाल-४. २. पे. नाम. अषाढाभूति सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिणवदन सुवासणी, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ३७३५२. यति प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७४१३, १३४३१-४०). " पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा. गद्य, आदि: करेमि भंते० इच्छामि, अंतिः वंदामि जिणे चडवीस, सूत्र- २१. ३७३५३. सूयगडांग षष्ठमोध्ययन व दशवेकालिकसूत्र प्रथमोध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे (२७४१२.५, १. पे. नाम. शेत्रुंजा थोय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मा.गु, पद्म, आदि: सकल मंगल लीला मुनिः अंतिः चक्केसरी रखवाली, गाथा-४, २. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७X३०-३५). १. पे नाम. सूयगडांग षष्ठमोध्ययन, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण वि. १९६५ कार्तिक शुक्ल, ११, बुधवार, ले. स्थल, वृद्धसादडि, प्रले. पं. तिलोकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. दशवैकालिक प्रथमोध्ययन, पृ. ४आ, संपूर्ण, वि. २०वी, ले. स्थल, साइडि, प्रले. नाथुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य. दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि धम्मो मंगलमुक्ि अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ३७३५४. स्तुति व सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे २, दे. (२५X१२, १३३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरुवचन सांभलज्यो; अंति: (-), (पू. वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ३७३५६. दशपच्चक्खाण विधि व चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. प्रतिलेखक ने प्रताकार शैली में लिखा है, परन्तु पत्र पलटे बिना ही पत्र १ और २ में पाठ क्रमशः लिखा है, जैदे., (२७४१२, १६४४८) १. पे. नाम. दसपच्चक्खाण विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा. गद्य, आदिः उगए सूरे नमुक्कार, अंतिः तग तांइ नाम लिज्यै, (वि. उदाहरणरूप कोष्ठक यंत्र दिया गया है.) ३७३५७. उत्तराध्ययनसूत्र- मृगापुत्र अध्ययन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जै. (२५४११.५, १५४४९). २. पे. नाम. चंद्रराजानो रास - उल्लास ४, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. ढाल २१ गाथा ७ से ढाल २२ गाथा १० अपूर्ण तक है.) ३७३५८. स्थापनाचार्य विशेषविधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., ( २६.५X१३, ५३६). स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग, आदि: स्थापनाविधिं; अंतिः तदा राजवश्यं कृत्. २८७ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ३३ तक है.) स्थापनाचार्य विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि : थापनानो विधि प्रतिइं; अंति: तो राजानई वस्य कर. ३७३५९. विचार चोसठी, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) १. दे. (२५४१२, १३४३९). विचारचोसठी, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५४४, आदि: (-); अंति: भणे नंदसूरि, गाथा- ६०, ( पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा ४८ अपूर्ण से है . ) ३७३६०. घरगट्टाजी चैत्यवंदन व तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २६.५x१२.५, १४४४८). १. पे. नाम. घरगट्टाजी का चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण वि. १९३६. चैत्यवंदन विधिसंग्रह, मा.गु, गद्य, आदि: तीन वर वंदन करइ अंतिः चडवीस जिन बलिहारीजी, २. पे नाम तीर्थमाला, पृ. १आ, संपूर्ण वि. १९३६ वैशाख कृष्ण ३, प्रले. मुन्नालाल भाई, प्र.ले.पु. सामान्य, तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८८ ३०३६२. प्रस्ताविक लोक संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, पेथापुर, प्रले जेठालाल चुनिलाल लहिया, " प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६.५x१२.५, ११५३४). . , प्रास्ताविक लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: अद्याभवत्सफलता, अंतिः देवो वीतरागस्तमेव, रोक- ९. १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि विधातारं तावद्, अंतिः विशोध्या शिखरिणी, गाधा- १५. ३७३६३. सिद्धचक्र स्तुति व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. धनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंतिम पत्र में पार्श्वरेखा नहीं है. दे. (२६४१३, १०४२५). मा.गु., को., आदि: गौतम अगनीभूति; अंति: ८३९५ ७८ ७२ ६२ ४०. २. पे. नाम. वीसविहरमानजिन विवरण, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक *, प्रा.सं., पद्य, आदि: अर्हत्सिद्धमुनींद्र, अंति: जीयाद्रढालंबनम्, श्लोक-२. ३७३६५. गणधर विवरण, वीसविहरमान जिन व पुण्यपापकुलक आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२ (१ से २)=४, कुल पे. ६, प्रले. ग. कस्तुरविजय (गुरु ग. मोहनविजय); गुपि. ग. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५X११, १५X४९). १. पे. नाम. गणधर विवरण, पृ. ३अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., को., आदिः श्रीमंधरस्वामी; अंति: विजया अजोध्यानगरी.. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन दस गणधर गणणु, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे. वि. कृति पैराग्राफ मे लिखी गयी है. पार्श्वजिन १० गणधर गणनुं, सं., गद्य, आदि: श्रीशुभगणधराय नमः अंतिः विजयस्वामि गणधराय नमः ४. पे. नाम. राशी वर्ण, पृ. ४आ, संपूर्ण. राशि वर्ण, सं., गद्य, आदि: मेषरगतं वृषस्वेतं अंति: मकरस्यामंतुभमीनपीलम् ५. पे. नाम जीव आयुष्यमान, पृ. ४आ, संपूर्ण रा., गद्य, आदि: काक पक्षीनी १०००; अंति: एतला जीवानी आवरदा. ६. पे. नाम. पुण्यपापकुलक सह बालावबोध, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा. पद्य वि. १५वी आदि छत्तीसदीणसहदिण: अंतिः (-). (पूर्ण, " 1 पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अन्तिम गाथा नहीं लिखा है.) पुण्यपाप कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सोए बरीसे छत्रीस, अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अन्तिम गाथा का बालावबोध नहीं लिखा है.) ३७३६६. पापस्थानक सज्झाय व समवसरण स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २५X१२, १५X४५). १. पे. नाम. अष्टम पापस्थानक सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पापस्थानक सज्झाय-अष्टम, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक आठमुं कहिउं; अंति: आवे अंग गुणवंताजी, गाथा- ८. २. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १५X४९). १. पे. नाम. मंगल कलश कथा, पृ. ९अ- ११अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मंगलकलश कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंतिः मोक्षपदं प्रापतुः " , नेमिजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु पद्य वि. १६वी, आदि जायव कुलसिंगार; अंति: (-), (पू. वि. गाथा १८ अपूर्ण तक है.) ३७३६८. मंगलकलश व श्रीषेणमहीपति कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ११-८ (१ से ८) ३. कुल पे. २, जैवे. (२५.५४१२.५, For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. श्रीषेणमहीपति कथा, पृ. ११अ ११ आ. अपूर्ण. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रीषेणनृपति कथा, सं., गद्य, आदिः एतां धर्मकथां निशम्य; अंति: (-). ३७३६९. साधु अतिचार व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२७१२.५, १२X३३). Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १.पे. नाम. साधू अतिचार, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रावण शुक्ल, ७, ले.स्थल. महिसाणा, प्रले. ग.खांतिविजय (गुरु मु. दयाविजय पंडित); गुपि. मु. दयाविजय पंडित (गुरु ग. हरखविजय पंडित); ग. हरखविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लगी लगी अखीयोने रही; अंति: तन कहे रे पुगी रे आस, गाथा-८. ३७३७१. मैथुनविरमण गाथा सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२.५, १५४४१-४८). मैथुनविरमण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मेहूणसन्नारूढो नवलख; अंति: भणिओ निगोयजीवाणं, गाथा-४. मैथुनविरमण गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: मैथुनसंज्ञारूढः; अंति: संभवति तच्चित्तम्. ३७३७२. समकित विचार, अपूर्ण, वि. १९२६, श्रावण शुक्ल, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. मु. जीवराज महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १२४३९). समकित विचार, मा.गु., पद्य, आदि: हिवै समकितना ६; अंति: कह्या चउथाना जाणवा, संपूर्ण. ३७३७३. खिमा छत्रीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, दे., (२५४१२,१०४२८). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा ७ अपूर्ण तक नहीं है.) ३७३७४. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७४१२.५, १४४३०-३३).. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४८ तक लिखा है.) ३७३७५. (+) त्रिभंगी सवइया, चतुर्विंशति जिन नमस्कार व दूहा, संपूर्ण, वि. १९२९, श्रावण शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. अबीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१३, १२४३८-४०). २४ जिन नमस्कार-त्रिभंगीसवैयामय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, ब्र., पद्य, आदि: गुनह गंभीर अचल; अंति: नरबंद तासुपयदासै, गाथा-२५. ३७३७६. लघुशांति भयहर्ता, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. आउवा, प्रले. पं. तिलोकहस; पठ. मु. रिधकरण (गुरु पं. तिलोकहस), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ११४३१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांत शांतिन शांति; अंति: जयनां जयति शाशनम्, श्लोक-१९. ३७३७७. व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १५४३८). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: तित्थरा गणहारि सुख; अंति: मंगलीक माला संपजे. ३७३७८. संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०४१२.५, १३४२१-२३). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ३७३७९. संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०४१२.५, १३४२०-२२). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ३७३८०. प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७४१३, १३४४९). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: अरिहंत १ सिद्ध २ पवय; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३७३८१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१२.५, १५-१६४३८). १.पे. नाम. सामायक सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम श्वामी पुछा करै; अंति: वरो पामै सुख अथाग हो, गाथा-१६. २.पे. नाम. सिद्ध स्वरूप सझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमश्वामी पुछाकरै; अंति: पामै सुख अथाग हो, गाथा - १६. ३. पे नाम. अर्जुनमाली चौढालीयो सझाय, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण, अर्जूनमाली चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नगरी अती, अंति: ताहरी धन धन तु अणगार, ढाल ४. ३७३८२. लावणी व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, २, दे (२६.५४१२.५, १०२९). "" १. पे नाम, आदिजिन लावणी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. जिनवास, पुहिं, पद्य, आदि मेरे दीड़ के मेहरम अंतिः तोरे यो दरसन भगवान, गाथा ४. २. पे नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम कुण दिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३७३८३. (+) प्रास्ताविक लोकसंग्रह, संपूर्ण वि. १८९२, कार्तिक कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. लाभचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५.५X१३, १७x४४). प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: धर्माज्जन्मकुले शरीर, अंति: साहू सव्वे वीस वीसा, गाथा-३९. ३७३८६. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १ कुल पे २, दे. (२६×१२.५, १०x३१). 13 " १. पे नाम वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. वासुपूज्यजिनस्तुति, मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः सा क्षमालाभवंतम्, श्लोक-४ (पू. वि. मात्र अंतिम श्लोक अपूर्ण है.) २. पे नाम, नेमिजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदि चिक्षेपोर्जितराजकं अंतिः चारिपुत्रासकृत् श्लोक-४. ३७३८९. स्तुति व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६X१२, १२X४३). १. पे. नाम. सिद्ध स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ जगतभूषण विगतदूषण, अंति: नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा-१३. २. पे नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १आ. संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमां जीनवर शांति, अंति: लये कोड कल्लाण, गाथा-३. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदिः आद्यदेव अरिहंत नमु ध; अंति: कवी ऋषभ० महिमा घणो, गाथा-३. ३७३९०. साधु अतिचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. गजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५X१३, १०X२८). १. पे नाम, साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ संपूर्ण, साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. प+ग, आदि ठाणे कमणे चकमणे आउत अंति: तरस मिच्छामिदुकडं. २. पे. नाम. रात्रि आलोयण, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: संथारा ओवट्टणकी परिअ; अंति: तस्स मीच्छामी दुक ३. पे नाम. गोचरी आलोवण गाथा. पू. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहि असाविजा, अंति: साहु देह साधारण, गाथा- १. ४. पे. नाम. काउसग्ग गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. साधु अतिचारचितवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहा अरिणेअ अइयारो, गाथा - १. For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३७३९१. घंटाकर्णमहावीर मंत्र व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, दे., ( २६.५X१३, १४४४६). १. पे नाम, घंटाकर्ण महावीर मूलमहामंत्र, पृ. १अ संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घंटाकर्णमहावीर मूलमहामंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ आं क्रीं ह्रीं द्र, अंतिः ठः ठः ठः स्वाहा, मंत्र-४, २. पे. नाम. घंटाकर्ण महावीर मूलमहामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. घंटाकर्ण महावीर मूलमहामंत्र, आ. बुद्धिसागरसूरि, सं., पद्य, वि. २०वी, आदिः ॐ क्रौं ह्रीं श्रीं अंतिः कुरुष्व मंगलम, लोक-४. ३. पे. नाम. घंटाकर्ण महावीर मंत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा श्लोक-४. ४. पे. नाम. घंटाकर्ण महावीर मूल मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीर, अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ५. पे. नाम. घंटाकर्ण महावीर मंत्र स्तोत्र, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीर मंत्रस्तोत्र, मु. विमलचंद्र, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अंतिः सिद्धिमंगलम् श्लोक ६६. (वि. पुस्तक संख्या W८४५७ में ७१ श्लोक की कृति है, जिसमें कर्ता का नाम स्पष्ट है, किन्तु इस प्रत में वह पाठ नहीं होने के कारण कर्ता नाम नहीं मिलता है. ) " ३७३९२. सिद्धचक्रयंत्र महिमा स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२७१२.५, ६४३६). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः सिद्धचके नमामि गाथा - ६. सिद्धचक्र चैत्यवंदन - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: छं सदा सर्वदा काले, (वि. आदि वाक्य वाला भाग फटे होने से अवाच्य है.) ३७३९३. प्रमाणनय तत्त्वत्लोकालंकार, अपूर्ण, वि. १८८५, चैत्र कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ८-४(१ से ४) ४, ले. स्थल. जालोर नगर, जैदे., ( २३x१०, १३x४९). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., प+ग., वि. १९५२-१२२६, आदि: (-); अंति: त्स्फूर्ति च वाच्यम्, परिच्छेद-८, सूत्र- ३७९, (पू. वि. आगमाख्य स्वरूप निर्णय नामक चतुर्थ परिच्छेद अपूर्ण से आगे है.) ३७३९४ (+) विंशतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखक द्वारा प्रारंभ में गीतमपृच्छा के बालावबोध लिखने की सूचना दी गई है, किन्तु कृति नहीं लिखी गयी है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जै, (२७४१२, २०x४२). २४ जिन स्तुति, आ. जसवंत, सं., पद्य, आदि: श्रीदेवार्चितदेवं अंतिः वा कीर्तिमंतस्ते, श्लोक-२७. ३७३९५. गोशालाकृतोपसगं प्रथमाश्चर्य, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. १, दे. (२६.५४१२, १३४३८). . गोशालककृत उपसर्ग प्रथम आश्चर्य, सं., गद्य, आदि: एकदा श्रीवीरो विहरन्; अंति: पसर्गस्तदाश्चर्यमिति. ३७३९६. (+) संथारा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ( २४.५X११, १३x४२). संधारा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: सागारी तथा नरागारी, अंति: गुणस्तवन करवु, ग्रं. १२. २९१ יי ३७३९७. उपसर्गहर स्तोत्रं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७१२.५, १०x४०). उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पास पास अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, गाथा - ९. ३७३९८. (#) जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२ (१ से २) = ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, ४३३-३८). For Private and Personal Use Only जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा ११ अपूर्ण से ३४ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण बालावचोय * मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). - *, ३७३९९. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२६४१२, ७४३३). Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ४३ अपूर्ण तक नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीवतत्त; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १० तक बालावबोध लिखा है.) ३७४००. सिद्धदंडिका स्तव, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पाठ को समझने हेतु कोष्ठक दिया गया है., दे., (२६.५४१२, ६४२६). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जंउसहकेवलाओ अंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक ३७४०२. विपाकसूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध-सुबाहुअध्ययन, संपूर्ण, वि. १६७७, फाल्गुन शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नवानगर, पठ. मु. गुणचंद्र (गुरु ग. क्षमाचंद्र); गुपि.ग. क्षमाचंद्र; प्रले. मु. गोपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ११४४१-४७). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १२५०, प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३७४०४. (#) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. ग.खेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११,११४४०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ३७४०५. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. स्वर्णगिरि, प्रले.पं. जसविजय (पुनमगच्छ); पठ. मु. माणिक (गुरु मु. केसरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४-२५.५४१०-११.०, १०४३४-३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ३७४०६. कायस्थिति प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६९७, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. खंभाइतबंदीर, प्रले. मु. मेरुविजय (गुरु मु. जयविजय); गुपि.मु. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४४८). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: हे जिनेंद्र तव दर्शन; अंति: पदं ददस्व ममेति शेषः. ३७४०७. (+) नेमिजिन व महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, १७४५८). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नेमिजिणंद समुद; अंति: सासय सुक्ख विलास वर, गाथा-८. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: कंसारिक्रमनिर्यवापगा; अंति: भावता भावितानाम्, श्लोक-२५. ३७४०८. महावीर स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, १०४३५). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: संतु मित्ते सुवावि, गाथा-२१. महावीरजिन स्तवन-बृहत्-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंत उवर्त्तइ श्रमण; अति: तणउ प्रतइ विषइ समति, (वि. गाथा १७ के बाद संक्षिप्त पाठ कर दिया गया है.) ३७४०९. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०, १५४४०-४४). चातुर्मासिक व्याख्यान, प्रा.,सं., गद्य, आदि: सामायिकावश्यकपौषधानि; अंति: (-), (पू.वि. चिलातिपुत्र कथा अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३७४१०. पंचविंशति भावना सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. मु. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जै, (२७४११.५, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४५०). २९ भावना प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि, अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाणं, गाथा-२९. २९ भावना प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संसारे जन्म मर्णरूपे; अंति: सर्व दुःखेभ्यः. ३७४११. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्रले. पंन्या. रूपकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, १४X३७-४३). १. पे. नाम. गुरुभास, पृ. १अ, संपूर्ण. विजयदेवसूरी भास, ग. रंगकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: कांमणगारो रे गुरुजी; अंति: रायनो रंगकुशल करजोडि, गाथा-६. २. पे नाम. मांकड सझाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मांकण, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: मांकणनो चटको दोहिलो; अंति: राधनपूरमां गायो रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमजिन लेख, पृ. १आ - २अ, संपूर्ण. राजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरैवतगिरे, अंति: रूपसदा तुम्ह दास, गाथा - १९. ४. पे नाम. नेमराजुल गीत, पृ. २अ २आ, संपूर्ण नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदिः एतो राजुल कहे सुणो न अंतिः रामविजय० कोडि कल्याण, मु. कुशल, सं., गद्य, आदि: श्रयि कुशलशालिनः पंड, अंति: प्रमोद महोदयमनुभवामः. २. पे. नाम. जैन धार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक *, प्रा.सं., पद्य, आदि: दानं प्रभावात् भवे ध; अंति: क्रुति सीग्रं वुद्धः. गाथा-७. ५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., पद्य, वि. १८वी, आदि : मरुदेवी केरा जाया; अंति: मोहनविजय गुण गाया, गाथा-७. ३७४१२. (+) असज्झाई विधि, संपूर्ण, वि. १७१८, आश्विन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. अवरंगावाद, प्रले. मु. वीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित, जैदे., (२५X११, १३X३५). असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: असज्झाईना बे भेद एक; अंति: शरीरक असज्झाई जाणवी. ३७४१३. प्रश्नोत्तर, धार्मिक श्लोक व सवैया संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, जैदे (२५.५४११, १५४५०). १. पे. नाम. कुशल प्रश्नोत्तर, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८३२, वैशाख कृष्ण, ११, पठ. मु. सुखराम, प्र.ले.पु. सामान्य. "" ३. पे. नाम. वर्गमूल एवं घनमूल सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण वर्गमूल व घनमूल सवैया, पुहिं., पद्य, आदि आदि तै विषम समलीक तै; अंति: निज सिखछु सिखाइयै, गाथा-२. ३७४१४. (+) कथा व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५X११.५, १६X६०). १. पे नाम. गोशालक भूत भावि विचार, पू. १अ २अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि प्रभु श्रीवर्द्धमानो अंतिः श्रावकत्वं च केप्यधु, श्लोक- ७२. २. पे. नाम. चेत्यद्रव्य भक्षण रक्षण प्रवर्द्धन फलोपदर्शकं संकासजीवाख्यानकं, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. संकासजीवाख्यान - देवद्रव्य भक्षण रक्षण प्रवर्द्धन फलोपदर्शकं, सं., गद्य, आदि: जंबूद्रीपाभिधे द्वीप, अंति: ते मोक्षलक्ष्मीः. २९३ For Private and Personal Use Only ३. पे. नाम. मानपिंडे क्षुल्लक कथा, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः अभवद् भुवनाभोग लब्धख अंतिः साजातु ततो द्रव श्लोक ५९. , ४. पे. नाम. पंचजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. पार्श्वजिनेंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः यः पंच त्रिदेशेश भूमि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक ६ अपूर्ण तक लिखा है.) "" Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५.पे. नाम. पोसह विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३७४१५. निर्वाण पूजा, सतोतर, आरती व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, दे., (२६.५४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. निर्वाण पूजा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी निर्वाण पूजा, सं., गद्य, आदि: कर्पूरवासितजलैः भृतद; अंति: इदं अर्घायामहे. २. पे. नाम. महावीर चरित्र स्तोत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरियरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. ३. पे. नाम. जिन आरती, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. महावीरजिन निर्वाण आरती, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जगदीश जिनेसर; अंति: भाबै जिन घट परवाना, गाथा-११. ४. पे. नाम. महावीराष्टक, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति के अंत में नमोत्थुण, जावंति आदि के पाठ को पढने का संकेत किया गया है. मु. शांतिसूरि, सं., पद्य, आदि: कंदप्पैक दृठोवीर य; अंति: शिवालक्ष्मी, श्लोक-९.. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देस मोक्षनोरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ तक है.) ३७४१७. पोसह विधि व चंद्रगुप्त १६ सुपर्ण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पामराणा, प्रले. मु. सरूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०.५, १३४२७). १.पे. नाम. पोसह विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही जावत्; अंति: मुहपतति पडिलेहु. २. पे. नाम. सोल स्वप्न सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रगुपत राजा १६; अंति: महावीर देव भाख्या छे, गाथा-१६. ३७४१८. भाष्यत्रय की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२६.५४११.५, २३४७८). भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: वंदि० वंदनीयान् परमे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गुरुवंदनभाष्य की अवचूरि अपूर्ण तक है.) ३७४१९. (+#) क्षमापना दृष्टांत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७X४४). क्षमापना दृष्टांत संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सिंधुसोवीर नामा देस; अंति: आपी क्रोध मूक्यां ना. ३७४२०. (+) दशवैकालिकसूत्र-विनय समाधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-१७(१ से १७)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १३४४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विनयसमाधि तृतीय उद्देश से पंचम उद्देश अपूर्ण तक है.) ३७४२१. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ३५, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, १२४४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र अध्ययन ३५ लिखा है.) ३७४२२. (#) श्राद्धगुण धर्मरत्न प्रकरण व श्रावक के १४ गुण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४१). १.पे. नाम. श्राद्धगुण धर्मरत्न प्रकरण, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण से गाथा २२ पूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक द्वारा गाथा २२ के पश्चात् पूर्णता सूचक संकेत दिया गया है.) For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २९५ २. पे. नाम. श्रावक १४ गुण सह बालावबोध, पृ. ३आ, संपूर्ण.. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त दव्व विगइ; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. श्रावक १४ नियम गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त द्रव्य संख्या; अंति: (१)कहइ जिमवानी संख्या, (२)संध्याइं संवरवा. ३७४२३. संध्या प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१०.५, १४४४०). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ईछाकारेण ईरी तस्स उत; अंति: उपसगक्षियं जातिं. ३७४२४. चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७००, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. शक्तिपुरिनगर, प्रले. मु. सहस्समल्ल ऋषि (गुरु मु. समरचंद ऋषि); गुपि.मु. समरचंद ऋषि; पठ. श्रावि. वरछाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४६). चतु:शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. ३७४२५. हंसराजवछराज चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२४.५४११.५, १९x४५). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के ___ पत्र नहीं हैं., ढाल १ की अंतिम गाथा से ढाल ४ की गाथा १ तक है.) ३७४२६. (-) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, ११४५०). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. __शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंति: जिस्मतात् द्धिस्सदा, श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: हर्षनताशुरनिर्जर; अंति: मजन सुस्ति नजाघः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अर्बुदाचल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमोत्तीहारसतारगणं; अंति: सुहाणि कुणे ससया, गाथा-४. ३७४२७. सात कुव्यसन सझाय, अपूर्ण, वि. १८७९, ज्येष्ठ कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. उमरकोट, प्रले. सा. हीरा (गुरु सा. वद्); गुपि.सा. वद्, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३६). ७व्यसन सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पुज लालचंदजी इम गाए, ढाल-४, गाथा-१८, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा १३ अपूर्ण तक नहीं है.) ३७४२८. (-) स्तवन, पद व तुर्की मास वारनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. लिपि-देवनागरी व उर्दु., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१२, ३२४२२). १. पे. नाम. संखेसर बीजमंत्र स्तुत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. भक्तिरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. गुणरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: सोभागूभाग्यादसा; अंति: परं देव सदा रजसेव, श्लोक-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पद संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: सीधने गणेस बुध देवे; अंति: इसी लेवे अतीमसी, पद-१. ३. पे. नाम. तुर्की मास व वार नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ___सामान्य कृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३७४२९. स्तवन, चैत्यवंदन, स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९३६, रसशिवनेत्रनिधिधरा, माघ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ८-४(१ से ४)=४, कुल पे. १७, ले.स्थल. उज्जैन, प्रले. मु. रणधीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४४३४). १.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. स्तवनक्रम-५.. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रणधीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धीरविजय० आनंद थाई, गाथा-६, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ऐवंती पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-६. For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-अवंतिमंडन, मु. लाभविजय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरी भक्ति सदा; अंति: लाभवि०विद्याधन वरदाई, गाथा-७. ३.पे. नाम. संखेश्वर पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-७. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. लाभविजय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरे दरसण कौ; अंति: लाभ सदा सोभागी, गाथा-५. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-८. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. लाभविजय, पुहिं., पद्य, आदि: पूजन कर ग्यान कौ; अंति: लाभ ऐवंती कहानी, गाथा-४. ५. पे. नाम. केसरियाजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-९. आदिजिन स्तवन-केसरिया, मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केसरिया बांह गहीनें; अंति: लाभ कहै० ऐवंती हमारो, गाथा-५. ६.पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१०. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लाभविजय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल भेटन हो; अंति: लाभ जुहारै आज, गाथा-५. ७. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवन क्रम-११. पार्श्वजिन स्तवन, मु. लाभविजय, पुहिं., पद्य, आदि: सेवग की वीनती चित; अंति: तस सिष्य भवोदधि तारौ, गाथा-७. ८. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवन क्रम-१२. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर; अंति: जिनह० भवसायरथी तारौ, गाथा-५. ९.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवन क्रम-१३. महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जय जिनवर जग हितकारी; अंति: कहे वीरप्रभु हितकारी, गाथा-७. १०. पे. नाम. नेमनाथ चैत्यवंदन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदू जगदाधार सार; अंति: शिष्य वंदै नित पाय, गाथा-३. ११. पे. नाम. नेमनाथजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन नेम निरंजन; अंति: लाभ कहै। नित मानजौ, गाथा-५. १२. पे. नाम. नेमिनाथ थुई, पृ. ७आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१४. नेमिजिन स्तुति, मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमीसर वंदु चरणकमल; अंति: लाभ कहै करजोड, गाथा-१. १३. पे. नाम. ऋषभदेव चैत्यवंदन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१५. आदिजिन चैत्यवंदन, मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीभगवई मरुदेविमाय; अंति: लाभ कहै। अविचल ठान, गाथा-३. १४. पे. नाम. संखेश्वर पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१६. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पासजिन; अंति: जिनचंद० रिपु जीपतौ, गाथा-७. १५. पे. नाम. गोडी स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१७. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडिप्रभु पास; अंति: लाभ कहै अयवंती वरदाई, गाथा-५. १६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे.वि. पदक्रम-१८. मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेम गिरनार गये काई; अंति: लाभ सुजस पसौं, गाथा-५. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-मकसी, पृ.८आ, संपूर्ण, पे.वि. पदक्रम-१९. मु. लाभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मकसी पास जइ भेटौ कर; अंति: लाभविजय जस थाय, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २९७ ३७४३०. ऐमंताऋषिनो रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) ०४ पट मु. खेमजी ऋषि (गुरु मु. जेठा ऋषि); प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि, कागच्छ वृद्धपक्ष); गुपि. मु. वेलजी ऋषि (लुंकागच्छ वृद्धपक्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १७X३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अइमुत्तामुनि रास, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: नारायणि० उल्हास ए, ढाल-२१, (पू.वि. ढाल ६ गाथा ३० अपूर्ण तक नहीं है.) "3 "" ३७४३१. सुकोशलमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२५४११, १३४३३). सुकोशलमुनि चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., पद्य, आदि सहि गुरुववणे सांभली, अंति: (-). (पू.वि. बाल ३ की गाथा १ अपूर्ण तक है.) ३७४३२. चौवीस जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २४.५X११, ११x२८-३५). नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु. पद्य वि. १६वी, आदि: पठम जिणवर पठम जिणवर, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३७४३३. दशार्णभद्र विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २४.५X११, १२X३५). दशार्णभद्रराजा रास, आ. हीरानंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीर जिणेसर पय नमी; अंति: (-), (पू. वि. गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ३७४३४. चारित्र मनोरथमाला, अपूर्ण वि. १६५९ कार्तिक शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २ ले स्थल, दीव, प्रले लहुआ जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १२४३३-४१). चारित्रमनोरथमाला, आ. पाचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः पास० सिवसुखदायक होइ, गाथा-४१, (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण से है . ) "" ३७४३५. अध्यात्मकल्पद्रुम की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. द्विपाठ. जैवे. (२६४१२, १३४४४-४९). अध्यात्मकल्पद्रुम- अधिरोहिणी वृत्ति, उपा. धनविजय, सं., गद्य, आदिः ॐ नमः परमाप्ताय, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ३७४३६. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७०, फाल्गुन कृष्ण, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले. स्थल. नाडोलनगर, प्रले. मु. मोहनसागर (गुरु मु. शिवसागर); गुपि. मु. शिवसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २६१२, १४४५३-५६). १. पे नाम, पार्श्वनाथ चिंतामणि महामंत्र स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्व पांतु वो अंतिः प्राप्नोति स श्रियं श्लोक-३३. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. १९आ-२अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं विधिना, अंतिः भावं जयानंदमयप्रदेवा, श्लोक १. ३. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके, अंतिः सततैवेत्रमानंदकार, श्लोक १०. , ३७४३७. बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २६.५X१२, १४X३७). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., पग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत, अंति: (-), (पू. वि. अंतिम भाग के कुछेक पाठांश नहीं हैं.) ३७४३८. स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२७X१२, १२X४४). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अर्हन्मूलं प्रकांडो, अंति: मुक्तिसौभाग्यबीजं, श्लोक-४. २. पे नाम, साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण चंद्रप्रभजिन स्तवन, श्राव. खुसाल सेठ, पुहिं., पद्य, आदि: चंदाप्रभुजी से लागु; अंति: वंदत सेठ खुसाला रे, गाथा- ४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चिमनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो सिद्धचक्रने रे; अंति: चिमनसागर० निस्तार हो, गाथा-५. ३७४३९. भाव कुलक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२६.५४११.५, ७x४२). For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भावना कुलक, प्रा., पद्य, आदि: निसाविरामे परिभावयाम; अंति: निवाणसुहं लहति, गाथा-२२. भावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: रात्रिनइ अंति इम भाव; अंति: मोक्षनु सुख पामइ. ३७४४०. कल्पसूत्र व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १५४४२). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: जयवंतो प्रवर्तो. ३७४४१. (+) इक्कवीस ठाणा व समोसरण विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. समयमूर्ति गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ९४४५-५०). १.पे. नाम. इक्कवीस ठाणा सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाण नयरी जिणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जिहां थकांचव्या ते; अंति: समस्त भव्यनइ काजइ. २. पे. नाम. समोसरणविचार गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. समवसरणविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नागेसुं उसभविया सेसा; अंति: समोसरणं परमाणे, गाथा-४. ३७४४२. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२, १२४३६). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ३७४४३. अजितशांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. नायकविजय गणि; पठ. श्रावि. जीवी; अन्य. जडाव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रशादात्., जैदे., (२६४१२, १३४३२). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ३७४४४. खरतरगच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. जुहारमल मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १२४२८). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्री० उद्योतन; अंति: श्रीगौतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१५. ३७४४५. रोहिणीअशोकचंद्र साधुजीवन व अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-६(१ से ६)=४, कुल पे. २, प्रले. पं. देवविजय; पठ. मु. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६०८) जिहां लगे मेरू अडग हैं, जैदे., (२६४१२, १२४३४). १.पे. नाम. रोहिणीअशोकचंद्र साधुजीवन, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. रोहिणी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. मात्र ढाल २८ की गाथा १८ अपूर्ण से है., वि. अशोकचंद्र के साधुजीवन का वर्णन है.) २. पे. नाम. अजितसंति स्तव, पृ. ७आ-१०आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ३७४४८. स्थापना कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, ११४५०). स्थापना कल्प लक्षण सहित, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., प+ग., आदि: (१)रक्त स्थापना तन्मध्य, (२)जलपारदसंकाशः कृष्ण; अंति: हि तद्विदः, श्लोक-७. ३७४४९. कृष्णभव चतुष्ट्य वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, ७X४५-५०). कृष्णभव चतुष्ट्य वर्णन, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ननु श्रीकृष्णवासुदेव; अंति: बारसमो अममतित्थयरो. ३७४५१. राइअप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३५). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमीजै; अंति: (-), (पू.वि. राइ प्रतिक्रमण अपूर्णतक है.) ३७४५२. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४१०, ४-१२४५२-५६). १. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ प्रा.,सं., गद्य, आदि: सारस्सय माइच्चा; अंति: भेदाः इर्यापथिक्या. २. पे. नाम. आलोचना, पृ. २अ, संपूर्ण. दुष्कृतगर्हा, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमि अणंत परिभव; अंति: जंच कुटुंब मुत्तं. ३. पे. नाम. जीवभेद विचार संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. ६ कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय? आउकाया; अंति: चउदस तवण जीवा११०. ४. पे. नाम. अनाहारी वस्तु नाम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अणाहारीवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मूत्र१ नींबर गिलो३; अंति: तिवहारमांहि न कल्पइ. ५.पे. नाम. प्रत्याख्यान ४९ भांगा, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., गद्य, आदि: श्रावक भंगा ४९ ते; अंति: (-), (पू.वि. भांगा ३८ तक है.) ३७४५३. (+) पट्टावली, प्रास्ताविक श्लोक संग्रह वरंभाष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२६४१०.५, ११-१३४३६-४६). १.पे. नाम. पट्टावली, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, वि. १७८६, रसोवसुद्वीपशशांक, चैत्र शुक्ल, ४, ले.स्थल. कर्मवाटी, प्रले. मु. सुखदेव ऋषि (गुरु मु. गिरिधर ऋषि); गुपि. मु. गिरिधर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. पट्टावली लौंकागच्छीय, मु. सुखदेव ऋषि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: गच्छे गच्छशिरोमणौ; अंति: श्रीसुखदेव० सादरात्, श्लोक-२५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में लिखी गयी है. सं., पद्य, आदि: हरनयन हुताशः ह्वालया; अंति: जंगलो वीचि लोटी, श्लोक-८, (वि. अहमदाबाद में महमदि पाति० द्वारा पूछे जाने पर एक विद्वान द्वारा प्रत्युत्तर दिया गया है.यह वार्ता धर्मकथारत्नाकर अन्तर्गत उल्लिखित है.) ३. पे. नाम. रंभाष्टक, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में लिखी गयी है. सं., पद्य, आदि: वसंतमासे कुसुमः कुला; अंति: मूढा न चरति पंडिताः, श्लोक-८. ३७४५४. गुर्वावली व कल्पसूत्र व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १७५६, भाद्रपद शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सोझित, प्रले. उपा. आनंदनिधान गणि; पठ. मु. महिमाहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिकांतर्गत अष्टायकायांशुभ दिने ऐसा लिखा है., जैदे., (२५.५४११, १३४३८). १.पे. नाम. गुर्वावली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पट्टावलीखरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय०; अंति: श्रीगौतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१४. २.पे. नाम. कल्पसूत्र व्याख्यान पीठिका, पृ. १आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहु०; अंति: लाभाय भवक्खाहाय. ३७४५५. (+) मौनैकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८१३, पौष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४४३-४५). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: हम्मीरपुरसंश्रितैः, श्लोक-११८. ३७४५६. स्तुतिचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: (-), (पू.वि. जिनस्तुति १४ की गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३७४५७. (+#) कार्तिकसुदि पंचमीमहातपविषये वरदत्तगुणमंजरी कथानक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३-१५४४३-५०). वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, आदि: ज्ञानं सारं सर्व; अंति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः. ३७४५८. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १९४५८-६५). १.पे. नाम. जगड कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. जगडू कथा-देवद्रव्यपूजाविषये, सं., गद्य, आदि: श्रीकुमारपालः; अंति: ऋषभकंठाभरणं जातम्. पीठिका, पृ. १आ, स बाह; अंति: लाभाय भवनाव. पदच्छेद सूचक For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नमस्कारजापे देवनृप कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. देवनृप कथा-नमस्कारजापविषये, प्रा.,सं., गद्य, आदि: मणवंछीअरिद्धीओ इहयर; अंति: भवे मुक्तिं यास्यति. ३. पे. नाम. देवद्रव्ये भ्रातृद्वय कथा, पृ. १आ, संपूर्ण.. नंदननागदेव भ्रातृद्वय कथा-देवद्रव्य विषये, सं., गद्य, आदि: विश्वपुरे नगरे क्षेम; अंति: विदेहे स यास्यति. ४. पे. नाम. कथा संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सत्थायहसुओ दक्खत्तणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३७४५९. जिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१०.५, ९४२८). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक-७. ३७४६१. विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१०.५, २२४७१). १. पे. नाम. चैत्री पूनमि देव वांदिवा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण.. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उस्सप्पिणीहि पढम; अंति: जयति चैत्रपूर्णिकाम्. २. पे. नाम. पुंडरीकपूजा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपुंडरीक शत्रुजय; अंति: करइ तउतप नउ अलप फल. ३. पे. नाम. ग्यानपंचमीतपोग्रहण ऊजमण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीतपउद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: तपनउ ऊजमणउ आदइ अथवा; अंति: तेहनउ मिच्छाम दुक्कड. ४. पे. नाम. पूजापद १२ आदि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. नवकार मंत्र यंत्र दिया गया है. विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३७४६२. (+) महावीरजिन स्तुति, कल्पसूत्र विचार व छेदग्रंथ मत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३९). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सिद्धार्थक्षितिपाल; अंति: श्रीवर्धमानं जिनम्, श्लोक-१. महावीरजिन स्तुति- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धार्थराजा क्षिति; अंति: माहारो नमस्कार हउ. २. पे. नाम. कल्पसूत्र पीठिका, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तो सामाचारी; अंति: एणि हेति कल्प कह्यो. ३. पे. नाम. छेदग्रंथ मत, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: जे भिक्खूवा भिखूणी; अंति: सव्व पज्जवा अंतगुणं. ३७४६३. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. प्रेमकुशल (गुरु ग. मानकुशल, तपागच्छ); गुपि.ग. मानकुशल (गुरु ग. भावकुशल, तपागच्छ); ग. भावकुशल (गुरु पं. उदयकुशल गणि, तपागच्छ); पं. उदयकुशल गणि (गुरु पं. धर्मकुशल गणि, तपागच्छ); पं. धर्मकुशल गणि (गुरु ग. राजकुशल, तपागच्छ); ग. राजकुशल (गुरु ग. दानकुशल, तपागच्छ); ग. दानकुशल (गुरु मु. हेमकुशल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३३-४१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. ३७४६४. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र व वंदेतूप्रकरण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४८). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. वंदेतू प्रकरण, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण... वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ३७४६५. वंदित्तु सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४४११, १३४४५). For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३०१ वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, (पू.वि. "सुक्कलेसाए पडिक्कमामि" पाठ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं दिया है.) ३७४६६. साधुपडिकमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४२४-३५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चोवीसं, गाथा-५०, (पू.वि. प्रारंभिक पाठ नहीं है.) ३७४६७. (4) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११-१२४४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४६ अपूर्ण तक लिखा है.) ३७४६८. (+) तपागच्छीय पट्टावली, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-२४(१ से २४)=२, पठ. ग. दर्शनसौभाग्य; प्रले. ग. उदयसौभाग्य (गुरु ग. उदयसौभाग्य); गुपि.पं. शंकरसौभाग्य गणि (गुरु पं. विशालसौभाग्य गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाने का प्रयास किया गया है परंतु पुष्पिका पढी जाती है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १८४३७). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पट्टे विजयसिंहसूरि, (पू.वि. पट्टावली महागिरि सुहस्ति से विजयसेनसूरि तक पाठ है.) ३७४६९. कानडकठीयारा रास व प्रयाणदिशा घडी काल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, २१४५५). १.पे. नाम. कान्हडकठियारा रास-ढाल १ से २, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुंसदा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. प्रयाणदिशा घडी मुहुर्त व काल, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. ज्योतिष संग्रह, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३७४७०. नग्नपाखंडिमतस्वरूप निरूपणाष्टक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, ४४३८). नग्नपाखंडिमतस्वरूप निरूपणाष्टक, सं., पद्य, आदि: परनिंदा परं तत्त्वं; अंति: सद्यः प्रलयमेष्यति, श्लोक-९. नग्नपाखंडिमतस्वरूप निरूपणाष्टक-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: (१)हिवणां नवौ प्रगट हुव, (२)पर कहता उत्कृष्टो; अंति: प्रलय प्रते पामस्यै. ३७४७१. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ११४२७-३१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पइवं वीरं नमिउण; अंति: रुदाउ सूयसमुद्दाओ, गाथा-५०. ३७४७२. सुविधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १६४५९). सुविधिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: श्रीयसुवधिजिणंद; अंति: गुण देवाधिदेवनारे, ढाल-२, गाथा-२९. ३७४७३. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२५.५४११.५, १५४५४). १.पे. नाम. अष्टापद थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारिय देव हरे; अंति: वंदउं तित्थयरे, गाथा-१. २. पे. नाम. सत्तरिसयजिण थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. सप्ततिशतजिन स्तुति, उपा. जयसागर, अप., पद्य, आदि: भरहेरवए विजएसुतहा; अंति: सत्तिरिमेगसयं, गाथा-१. ३. पे. नाम. थंभणा थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-स्तंभन, उपा. जयसागर, अप., पद्य, आदि: धरणिंदनिवेसिय फारफणं; अंति: विकरेसु सुहं सुलहं, गाथा-१. ४. पे. नाम. महातीर्थ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिनेमिपार्श्वजिन स्तवन-शत्रुजयगिरिनारजिरावलामंडन, उपा. जयसागर, अप., पद्य, आदि: सित्रुजयआदिजिणिंदवर; अंति: जयसायर वंदउं नामसुह, गाथा-१. ५. पे. नाम. पंचकल्याणी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचकल्याणक स्तुति, उपा. जयसागर, अप.,सं., पद्य, आदि: असोगचंदेणय रोहिणीए; अंति: वः पंचकल्याणकीयं, गाथा-३. ६. पे. नाम. साधारणजिन थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, उपा. जयसागर, अप., पद्य, आदि: वरकेवलदसणनाणधरा; अंति: विगणंतुअतदु हंसगुणा, गाथा-१. ७. पे. नाम. वयरसामिगुरु रास, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. वयरसामि रास, अप., पद्य, आदि: सुकृतसरोवर राजहंस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण तक है.) ३७४७४. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१०.५, १७४६१). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छामि खमासमणो०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शक्रस्तव के 'मुत्ताणं मोयगाणं' पाठ अपूर्ण तक है.) ३७४७५. कालसप्ततिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जालोर, प्रले. ग. शांतिविमल; अन्य. पं. न्यायकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक की भूल से धर्मघोषसूरि रचित कालसप्ततिका की गाथा १ से ५८ तक तथा मुनिचंद्रसूरि रचित वनस्पतिसत्तरि की गाथा ५९ से अंत पर्यंत अवचूरि सहित लिखी गयी है. इस प्रकार दो कृति एक ही प्रत में मिश्रित रूप से भूलवश लिखी गयी है., त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १०x४०-५५). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देवेंदणयं विजाणंद; अंति: (-). कालसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: देवेंद्रनतं विद्यानं; अंति: (-). ३७४७६. कल्पसूत्रव्याख्या पीठिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१०.५, ९४४०). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मागु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: कल्याण प्रवत्र्ते. ३७४७७. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत-प्रथमश्रुतस्कंध उपनयअध्ययन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "आराहणमीसि बहुमियरे जह उभय" पाठ अपूर्ण तक है.) ३७४७८. (+) भाव प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, प्र.वि. १४ गुणस्थान कोष्ठक भी दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १६४५२-५५). भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: रम्माओ पुव्वगंथाओ, गाथा-२९, संपूर्ण. ३७४७९. महाप्रभाव स्तवन व एकेंद्रिय मोहनीयस्थिति विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४१०.५, ११४३१-३६). १. पे. नाम. महाप्रभाव स्तवन सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. सत्तरिसय यंत्र भी उपलब्ध है. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: अंतिजयपहुत्तपयास; अंति: निब्भंत निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहत्त स्तोत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं जिनेंद्राणां; अंति: निवारणार्थं कृतमिति. २. पे. नाम. एकेंद्रिय मोहनीय स्थिति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. एकेंद्रिय मोहनीयस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एकेंद्रीनइ मोहनी; अंति: ५ सय ३६ इतरा भव करइ. ३७४८०. भगवतीसूत्र आलावु, संपूर्ण, वि. १६०७, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. नागेंद्रलाल उपाध्याय; पठ. श्रावि. जिनमती जगमाल शाह खभाइता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४३७). भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह* संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० जाव पज; अंति: अंत करिस्संति. For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३७४८१. (+) सूर्यकामधेनु, संपूर्ण, वि. १७६३, माघ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. धणलानगर, प्रले. ग. कुशलविजय (गुरु ग.शांतिविजय); गुपि.ग.शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १५४५५-६०). सूर्यसहस्रनाम संग्रह, पं. हेमविजय, सं., पद्य, वि. १६४७, आदि: सिद्धार्थजातो भगवान्; अंति: हेमविजयो० विदधे, प्रकाश-१०. ३७४८२. नवतत्त्व प्रकरण सह व्याख्या, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, २२४६०-६६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३७४८३. महावीर स्तवन व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. ग. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४४५-५०). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: सत्तुमित्तेसु वा वि, गाथा-२१. २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, सं., पद्य, आदि: नागो भाति मदेन कंजलर; अंति: लोकत्रयं धार्मिकैः. ३७४८४. (+) संबोधसत्तरि, संपूर्ण, वि. १५९०, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. गुणनंदि (खरतरगच्छ); प्रे. गच्छाधिपति जिनमाणिक्यसूरि (खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४४०-४५). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहइ नत्थि संदेहो, गाथा-७५. ३७४८६. दोढसो कल्याणक चैत्यवंदन व सिद्ध स्तवना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. गिरधरलाल; पठ. सा. पार्वती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १४४३५). १. पे. नाम. दोढसो कल्याणक चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १५० जिनकल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जगजयो; अंति: शिवलक्ष्मी वरीजे, गाथा-१६. २. पे. नाम. सिद्ध स्तवना, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण; अंति: पूजो देव निरंजन, गाथा-१४. ३७४८७. (+) विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १६४३२-३५). १.पे. नाम. योगप्रवेश विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ठवणी कांबलीइं पडिलेह; अंति: मिछामि दुक्कडं. २. पे. नाम. नंदि विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नांदि मांडीइ खमासमण; अंति: प्रगट लोगस्स १. ३. पे. नाम. जोगोत्तारण विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ योगोत्तारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: खमासण देई मुहपुत्ती; अंति: मिच्छामि दुक्कड. ३७४८८. (#) पंचेंद्री सझाय व गोडीजिन स्त्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३१). १. पे. नाम. पंचिद्री सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामांध गजराज अगाध; अंति: संबंध लहो सुख सासता, गाथा-६. २. पे. नाम. गोडीजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: जिनचंद० फली मन आस, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७४८९ (+) थेरावलिया, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. अमृतविजय (गुरु ग. अमरविजय); गुपि.ग. अमरविजय; अन्य. गणेश व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४३५). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीविआणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. ३७४९०. खरतर सामाचारी व व्यवस्था बोल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५२). १.पे. नाम. खरतर सामाचारी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सामाचारी-खरतरगच्छीय, आ. जिनपतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आयरिय उवज्झाए इच्छाइ; अंति: जिणस्स छ कल्लाणयाई, गाथा-६०. २. पे. नाम. खरतरगच्छ सामाचारी व्यवस्था बोल, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सामाचारी व्यवस्थापत्र-खरतरगच्छीय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: यथा सर्वं वस्त्र; अंति: भंगजो दोषो धर्मः. ३७४९१. (+) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३६). १.पे. नाम. पद संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक १ है किन्तु गाथा १ का प्रारंभिक अंश नहीं है. __ औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: वनारसि० अखैरस लूटै, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे कौं प्रभु पाईय; अंति: मूढ जानइ नाही, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. परमार्थ अष्टपदी, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे युं प्रभु पाईय; अंति: तब को कहि भेटइं, गाथा-८. ३७४९२. (#) क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. भीखू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३-१५४३२-३३). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव क्षमागुण; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा-३६. ३७४९३. (+#) षड्दर्शनमत, औषध विचार व विभक्ति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ४४३०). १. पे. नाम. षण्मतप्रमाणित भिन्न भिन्न प्रमाणकथनज्ञापक काव्य सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. ६ दर्शन विचार, सं., पद्य, आदि: चार्वाकोध्यक्षमेक; अंति: स्पष्टतोस्पष्टतश्च, श्लोक-१.. ६ दर्शन विचार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नास्तिकवादी एक; अंति: रूप इहां लिख्यौ छै. २. पे. नाम. भूख लगने का औषध, पृ. १अ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अनार दाणा टां.८०; अंति: लोचन टां.५ सर्व लागे. ३. पे. नाम. विभक्ति परिचय, पृ. १आ, संपूर्ण. व्याकरणपत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. पंद्रहिया यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३७४९४. शांतिजिन व आत्मशिख्या स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३५). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामि; अंति: गुणसूरि० दायक सुणीये, गाथा-२२. २. पे. नाम. आत्मशिख्या स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिनराय मन; अंति: कनककीरत० भगत रचै जी, गाथा-१७. ३७४९५. पौषध विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११, १२४४५). For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३०५ पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., देववंदन विधि अपूर्ण तक लिखा है.) ३७४९६. (+) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, २०४८१). मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांतकथा संग्रह, सं., पद्य, आदि: (१)चुल्लग पासग धन्ने, (२)भरतार्द्धत्र पांचाल; अंति: (-), (पू.वि. सातवीं दृष्टांतकथा का श्लोक २९ अपूर्ण तक है.) ३७४९७. (+) दशवैकालिकादि योगोद्वहनविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. यंत्र-कोष्ठक सहित., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३०-८१). योगोद्वहन विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: दसवेयालिय सुयक्खंधे; अंति: दिण ७ हवंति तवोविही, (पू.वि. महानिशीथसूत्र का कुछ अंश नहीं है.) ३७४९८. रत्नाकर छंद सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, फाल्गुन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. गेमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ४४४०). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मु. कुंवरविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१४, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)श्रेयः क० मंगलीक; अंति: (१)लबोधमिह पूर्णतां दधौ, (२)एहवो नाम पिण जणाव्यु. ३७४९९. साधुप्रतिक्रमणसूत्र वस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२३.५४१०.५, १४४४१). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चोवीसं. २. पे. नाम. महादेवजीरी बैन, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. चौदशनी थुई, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्ध, श्लोक-४. ४. पे. नाम. नेमजीरोतवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, ग. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेम थकी एप्रणामु; अंति: लब्धिविजै०मननी आसरे, गाथा-६. ३७५००. भक्तामर स्तोत्रावचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, २२४८५-८८). भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सम्यग् जिनपादयुगं; अंति: समुपैति समागच्छति. ३७५०१. लोकनालीद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(३)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२५४११.५, १३४१५-३७). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा ज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ से ९ तथा १५ अपूर्ण से १७ तक है.) लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिणहंस वइसाह प्रसारि; अंति: (-). ३७५०३. (#) व्याख्यान संग्रह वीरशासन प्रसंग व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, १९४३४). १. पे. नाम. व्याख्यान संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: अभवजीवान् पावेंति, (पू.वि. मात्र अन्तिम अंश है.) २. पे. नाम. वीरजिन शासन प्रसंग, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवीरकेवलात्; अंति: सत्य जाणी वा. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोकसंग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मूले भुयंगा सखरे; अंति: आरूढा गजमस्तके, श्लोक-३. For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७५०४. (+) स्तंभन पार्श्वनाथ नमस्कार सह बालावबोध, आदिजिन नमस्कार व शांतिस्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४०). १.पे. नाम. स्थंभनपार्श्वनाथ नमस्कार सह बालावबोध, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ ___ अणिंदिय, गाथा-३०, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हे स्वामितुं जयवंतो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा का बालावबोध लिखा है.) २. पे. नाम. आदिजिन नमस्कार, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वंदे देवाधिदेवं तं; अंति: मम भूयात् भवे भवे, श्लोक-३. ३. पे. नाम. शांति स्तव, पृ. ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: शांतये शांतिकामाय; अंति: स्य पापशांतिर्भवेदपि, श्लोक-३. ३७५०५. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५४१०.५, १५४३९). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. उपा. लावण्यविजय गणि; प्रले. ग. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २.पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: भुवनमोहन रूप मनोहरं; अंति: ददातु सदा सुखमंबिका, गाथा-४. ३. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में लिखा गया है. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ४. पे. नाम. गौतम स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में लिखा गया है. गौतमस्वामी स्तुति, सं., पद्य, आदि: मुखश्रिया निर्मित; अति: समुखी प्रकामम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. सामान्यजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., पे.वि. बाद में लिखा गया है. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रेयः सरोरुह वनांबर; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १ अपूर्ण मात्र है.) ३७५०६. (+#) रूपसुंदरीकथा-धर्मोपरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १८-२०४७२-७६). रूपसुंदरीकथा-धर्मोपरि, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंति: पाल्य मुक्तिं गता. ३७५०७. स्तुति व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १०-१४४३६-३९). १. पे. नाम. पंचतीर्थी नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. __ पंचजिन स्तुति, मु. कांतिविजय, सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराज; अंति: श्रीवीरभद्रदिशः, श्लोक-९. २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५. ३. पे. नाम. चौबीसजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८. ४. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, सं., पद्य, आदि: खीरसागर समोद्पन्न; अंति: बीजचंद्र नमोस्तुते, श्लोक-१. ३७५०८. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. कमलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, १४४३६). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजंबोधिबीज ददातु, श्लोक-११. For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३७५०९. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. घोघाबंदर, प्रले. मु. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०,११४३६). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरजिननेत्रयोः, श्लोक-२६. ३७५११. (+) देवा प्रभो स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत., जैदे., (२६४१०.५, ५४५२). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावंजयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. साधारणजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे श्रेयः हे प्रभो; अंति: अर्धमयट् प्रत्ययः. ३७५१२. सिद्धचक्रस्तुति व नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. सिद्धचक्र का चित्र दिया गया है., जैदे., (२६४११, ७४४२-४४). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अरिहा सिद्धायरिया; अंति: थुणंताण कल्लाणगं, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्कं नमामि, गाथा-६. ३७५१३. (+) उपकरण सह टबार्थ, फासू के भेद, जीव के प्रकार व ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ७४४१). १. पे. नाम. उपकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुसाध्वी उपकरण, प्रा., पद्य, आदि: पत्तं पत्ताबंधो; अंति: अज्झाणंतु पणवीसं, गाथा-७. साधुसाध्वी उपकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पात्रानी मर्याद; अंति: २५ उपगरण जाणवा. २. पे. नाम. भूमिका फासूनो भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. __ भूमिका फासु के भेद, मा.गु., गद्य, आदि: अवावरु क्षेत्रनी; अंति: भूमि आंगुल १०८ फासू. ३. पे. नाम. नवतत्वरा २७६ भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. नवतत्व २७६ भेद, रा., गद्य, आदि: अजीव तत्त्वरा ४ खंध; अंति: एवं १०२ भेद अरूपी छै. ४. पे. नाम. जीव प्रकार, पृ. १आ, संपूर्ण. जीव के प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वजीव ४ च्यार; अंति: भव्य निमेष मोक्षगामी. ५. पे. नाम. ब्रह्मदत्तचक्रवर्ति विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती विवरण, रा., गद्य, आदि: ब्रह्मदत्त; अंति: स्थिति जाणवी. ३७५१४. (+) शारदा स्तव, गौतमाष्टक व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १५४४६). १. पे. नाम. सारदा स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: कुंदाकुंडिलिनित्वदीय; अंति: तस्य वाचां विशेषः, श्लोक-१२. २. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. प्रा.,सं., पद्य, आदि: अस्त्यद्यापि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ३७५१६. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. हंसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२-४७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७५१७. (+) चौबीस जिन एक सौ बीस कल्याणक कोष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०, १३-१५४३९). २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कार्त्तिकवदि १ नाणं; अंति: चवणने मिस्सउ १. ३७५१८. (+) काल सत्तरी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १८४४७-७१). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदणय विज्जाणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४५ अपूर्ण तक है.) ३७५२०.(+) वीतराग स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४१०.५, ११४२७-३४). पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतराग भगवंस्तव; अंति: श्रेयःश्रियं प्रापय, श्लोक-११. पुद्गलसंख्या स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे श्रीवीतराग हे; अंति: देव हे सुखान्मोचय. ३७५२१. नवकार-बालावबोधव कल्पसिद्धांत, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२७४१०.५, ११४३१-३८). १.पे. नाम. नवकारमंत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: माहरु नमस्कारु; अंति: तुम्हि विशेषि भणउ. २. पे. नाम. कल्पसिद्धांत, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मतिप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: झंबुद्वीपि भरतखेत्रि; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारंभिक अंश है.) ३७५२२. दसदृष्टांत विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४२१). मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,सं.,मा.गु., पद्य, आदि: चुल्लग पासग धन्ने; अंति: सचेत् पूर्ववत्, श्लोक-११. ३७५२३. चातुर्मास व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४०-४७). चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदात्; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३७५२४. शीलविषये विजयश्रेष्ठिन: कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १७४५०-५२). शीलविषये विजयश्रेष्ठि कथा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: सीलं सुहाणमूलं सीलं; अंति: स्वर्गापवर्ग साधकं, गाथा-५२. ३७५२५. जिनप्रतिमा स्थापन विचार व पंचपरमेष्टि नमस्कार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४९.५, १४४४४). १.पे. नाम. जिनप्रतिमा स्थापन विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र १अपर जंबूद्वीप का सचित्र वर्णन किया गया है. जिनप्रतिमास्थापन विचार, सं., गद्य, आदि: प्रासादाः शतायामाः; अंति: धारपरयणमई इत्यादि. २. पे. नाम. पंचपरमेष्टि नमस्कार स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३७५२६. पार्श्वनाथ स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं दिया गया है., जैदे., (२५४११, १६४५७). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: स्नातस्मै नमरोंनमो; अंति: पदृ रक्षां वहेत्, गाथा-३. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ मंत्राक्षर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्राक्षर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अहँ श्रीपार्श्वनाथ; अंति: अष्टो महासिद्धयः, श्लोक-८. ३७५२७. (+) चार प्रत्येक बुद्ध चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १७७५३). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ७ की गाथा ४ तक है.) ३७५२८. (+) स्तवन व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. थिराद्रपद्र, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १०४३३). For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३०९ १. पे. नाम. दिसित्रिगस्तवन, पू. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है, ले. स्थल. विराद्रपद्र, पठ. श्राव. बुंगा साहा, प्र.ले.पु. सामान्य. दिसित्रिग स्तवन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मुगति तणा दातार, श्लोक-२४ (पू.वि. श्लोक ११ अपूर्ण से है ) २. पे नाम श्लोक संग्रह, पू. २आ, संपूर्ण श्लोक संग्रह -, सं., पद्य, आदि: राज्यं च संपदो जोगा; अंतिः सेविते सप्तजिह्वा, श्लोक-४. ३७५२९. (+) पंचजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २१ (१) -१, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५४११. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७x४४). १. पे नाम, नेमीजन स्तव, पृ. २अ, अपूर्ण. पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. नेमिजिन स्तवन, मु. देवविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आपो आपो सिवपुरवास, गाथा - १६, ( पू. वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) २. पे नाम. पार्श्वनाथ जिन स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पास संखेसरो भेटीइ रे, अंतिः सीस देवविमल चलणे वास, गाथा - १०. ३. पे. नाम. महावीर जिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. देवविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वांदुवली, अंति: विमलनो सीस साधुरोजी, गाथा - १२. ४. पे. नाम. सामान्य जिनस्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. देवविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वइणपमंडण सुहकरा; अंति: देवविमलनी मंगल करो, गाथा-४. ३७५३०. (+) शीयल रास व नववाड गाथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २) = २, कुल पे. २, ले. स्थल. जालोर, प्रले. पंडित, देवविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित प्र. ले, श्लो. (९६) यादृशं दृष्टं जै.. (२६४११, १७४३६). १. पे. नाम, सील रास, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं, "" शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विनती विजयदेवसूरि, गाथा- ७२, ग्रं. २५१, (पू.वि. गाथा ३४ से है.) २. पे. नाम. नववाड, पृ. ४आ, संपूर्ण. शील नववा गाथा, प्रा., पद्य, आदि वसही कहर निसिज्ज अंति: नवबंभचरेगुत्ति, गाथा- १. ३७५३१. पट्टावली व कल्पसूत्र व्याख्यान फलश्रुति, अपूर्ण, वि. १७८४, चैत्र शुक्ल, २. शुक्रवार, श्रेष्ठ, पू. १६९-१६५ (१ से १६५)=४, कुल पे. २, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. मु. खुशालचंद्र (गुरु पंन्या. भुवनचंद्र पंडित); गुपि. पंन्या. भुवनचंद्र पंडित (गुरु ग. पेमचंद्र पंडित) ग. पेमचंद्र पंडित, प्र. ल. पु. सामान्य, जैदे (२४.५४१० १२-१५X४५-५४% "" १. पे नाम. पट्टावली, पृ. १६६ अ- १६८ आ, संपूर्ण. मा.गु. सं., गद्य, आदिः श्रीवीरपट्टे सुधर्मा अंतिः महाप्रभाविक थया. २. पे. नाम. कल्पसूत्र व्याख्यान फलश्रुति, पृ. १६८आ - १६९अ, संपूर्ण. सं. गद्य, आदिः यद्रेणुर्विकलीकरोति, अंतिः श्रीसंघ भट्टारकः ३७५३२. पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १(१) १, प्र. वि. प्रत्रांक न होने कारण पत्र संख्या २ लिया गया है. दे., " (२५x११.५, १३५३२). पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वर, ग. कनकरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: (-); अंति: साभलता सीव सुख लीधो, गाथा - २५, (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण से है.) ३७५३३. होलिका कल्प, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६ १०.५, १२५०-५४). होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: प्रणम्य सम्यक् परमार, अंतिः चिरं वाच्यताम्, श्लोक-३४. For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७५३४. विचार सत्तर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्रावि. वाल्हा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, ११४३७-४७). विचारसप्ततिका, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पडिमा मिच्छा कोडी; अंति: सिवपासाय सयावसह, गाथा-७६. ३७५३५. स्तवन संग्रह व श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, ११x१२-३५). १.पे. नाम. सुमति स्तव, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुज वाहलो जिनवर एह, गाथा-७, (पू.वि. मात्र गाथा ७ अपूर्ण है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-उडनगर, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: उंडनगरनो राजीयो रे; अंति: लाल अमृत कोड कल्याण, गाथा-८. ३. पे. नाम. ज्योतिष गाथा, पृ. ५अ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, मा.गु., पद्य, आदि: सूर्यनक्षत्रथी आददेः; अंति: निचे एकार्गल होय, गाथा-१. ३७५३६. नैषधीयचरित-चतुर्थ सर्ग श्लोकचतुष्टय सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, १४४४१). नैषध चरित्र-चतुर्थ सर्ग श्लोकचतुष्टय, क. हर्ष, सं., पद्य, आदि: अमृतदीधितिरेख विदर्भ; अंति: सेयमनर्थमयीं मयि, श्लोक-४. नैषध चरित्र-चतुर्थ सर्ग श्लोकचतुष्टय-जैनराजी वृत्ति, सं., गद्य, आदि: हे विदर्भजे एषः; अंति: कोकिलस्यचेति हेमसूरि. ३७५३७. प्रश्नोत्तर रत्नमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १८४५१). १.पे. नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता कं न भूषयति, श्लोक-२९. २.पे. नाम. अक्षौहिणीसेना वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. अक्षोहिणी मान कोष्टक, मा.गु., को., आदि: पत्थि सेना सेना; अंति: २१५ ३६४५ १५२३ १०२३५०. ३७५३८. (+) प्रश्न संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५४). प्रश्न संग्रह, आ. लक्ष्मीवल्लभवादि, सं., गद्य, आदि: (१)एकादशाधिकापूर्व इति, (२)यः काश्चिद्विपश्चित्; अंति: भवंति परं किं श्रमेण. ३७५४०. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन-आदिजिन स्तुति से अभिनंदनजिन स्तुति पर्यंत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १३४४६). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. आदिजिन स्तुति से अभिनंदनजिन स्तुति तक है.) ३७५४१. वृद्धमान बासठीया व पच्चक्खाण आगार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु.सौभाग्यचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, २०४३७-४६). १.पे. नाम. वृद्धमान बासठीयो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: गर्भ विना जीम जीवडा; अंति: अके संचीया मै. २.पे. नाम. पच्चक्खाण आगार विचार सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यंत्रसहित. पच्चक्खाण आगार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (१)नवकार १ पोरसी २, (२)भाविअ अइयं कोडिसहिय; अंति: हवंति सेससु चत्तारि, संपूर्ण. पच्चक्खाण आगार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पर्व आवतो जाणीतें; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा का अपूर्ण टबार्थ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३११ ३७५४२. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१७.५, १६४५१). १. पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: स्फुरदेव नागेंद्र; अंति: चिंतामणिः पार्श्वः, श्लोक-७. २. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल नमो केवल; अंति: वनारसी० संसार कलेस, गाथा-१०. ३. पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्थाय ॐ अंति: अंधकारादनिशं बिभेमि, श्लोक-१७. ३७५४४. जोगोत्तर गणित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ३५४२०). जोगोत्तर गणित, मा.गु., को., आदि: वग्गे वग्गेषुगुणा; अंति: सुमेलोगोत्तमे गणिए. ३७५४५. स्तुति, स्तवन व अष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५४१०.५, १५४५६). १.पे. नाम. नंदीश्वर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप जिनप्रतिमा स्तुति, सं., पद्य, आदि: अनाद्यनंताघटितानि; अंति: दुरितीं श्रुतिधारिणी, श्लोक-४. २. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबौधनैकतरण; अंति: शुभ्रामरी भासिता, श्लोक-४. ३. पे. नाम. स्तंभण पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं; अंति: पूरइ मे वांछित नाथ, श्लोक-५. ४. पे. नाम. सारस्वत्यष्टकं, पृ. १आ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजती श्रीमतीदेवता; अंति: मेधामाहवति चिरकालम्, श्लोक-९. ५. पे. नाम. वीरस्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नताऽशेषलेख कृतद्वे; अंति: तिर्भयं स्वर्णकांति, गाथा-४. ३७५४६. नात रासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५१). नात रासो, मु.रूपकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसत आपो सुमति; अंति: अवचल शशि हरतरण, गाथा-५३. ३७५४७. भावप्रकरण सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १७१८, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले.ग. प्रितिविजय (गुरु ग. दयासेन); गुपि. ग. दयासेन (गुरु ग. नयनसुंदर); ग. नयनसुंदर (गुरु ग. जीवकलश); ग. जीवकलश, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४१०.५, ३४५३-७६). भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: आणंदभरिय नयणो आणंद; अंति: रम्माओ पुव्वगंथाओ, गाथा-३०. भाव प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, ग. विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नत्वा श्रीजिनशंभव; अंति: सूत्रटीका लिखितम्. ३७५४८. नवकारमंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२४४१०.५, ९४३२). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरउ; अंति: (१)ध्यातव्य गुणिवू, (२)संसारो तस्स किं कणइ. ३७५५०. (+) विजयदानसूरिस्वाध्याय व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले.मु. विवेककुशल (गुरु मु. लक्ष्मीरुचि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४३). १.पे. नाम. विजयदानसूरीश्वराणा स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. विजयदानसूरीश्वर स्वाध्यायः, मु. लक्ष्मीरुचि, सं., पद्य, आदि: परममहानंदपद दानं; अंति: विजयदानसूरि जुगपवरम्, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. परमगुरूनां स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विजयदानसूरि स्वाध्याय, मु. लक्ष्मीरुचि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिअ गुरुपयजुअलं; अंति: थूओसया दिसउ नाणकर, गाथा-११. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीसार्वराजीव; अंति: गौरव नायकामिता, श्लोक-१. ३७५५१. नवकार रास व इरियावहि सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ११४३०). १.पे. नाम. नवकार रास, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९५२, वैशाख कृष्ण, १२, ले.स्थल. गोधावी, प्रले. श्राव. मोतीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य. नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रास भणु श्रीनवकारनो, गाथा-२५, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा का अंतिम पद है) २. पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सन्मुख रही विनय; अंति: एकवीस वरस हजार, गाथा-१४. ३७५५२.(-) रावण सझाय व स्थूलिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१०.५, १८४४०). १.पे. नाम. रावण सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. रावण सज्जाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कह अर गावा सरावगदास, (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण से आगे है.) २. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: थुलभद्र मुनीसुर आवो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १६ तक है.) ३७५५३. मोतीकपासिया संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १५४३६). मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सुंदर रुप सोहामणो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने मात्र ३० गाथा तक लिखकर पूर्णता सूचक संकेत दे दिया है.) ३७५५४. नेमिनाथ राजीमती अबोला वसाधु दिनचर्या सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १४४३८). १. पे. नाम. नेमनाथ राजीमती अबोला, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती अबोला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: आज साई साई सिउं करुं; अंति: समइ० त्रिभुवन नाथरे, गाथा-१९. २. पे. नाम. साधु दिनचर्या सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधुदिनचर्या सज्झाय, आ. आनंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गोअम पूछेइ वीर पासि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३७५५५. गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११, १७४४४). १. पे. नाम. सिखामण गीत, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. धर्मसी ऋषि (गुरु मु. सिद्धराजजी ऋषि); गुपि.मु. सिद्धराजजीऋषि (गुरु मु. हाथीजी), प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, मु. वर्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वरद्धमान० वालिरे, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. देव स्वरूप गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण. देवस्वरूप गीत, श्राव. रामलाल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम देवनि ओलखोरे; अंति: लालोराम० वली मननी आस, गाथा-११. ३. पे. नाम. वाडी फूल सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ औपदेशिक सज्झाय-वाडीफूलदृष्टांत, मा.गु., पद्य, आदि: वाडी राव करे करजोडी; अंति: ने वीर न सके वारी जी, गाथा-१५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. निजाम, मा.गु., पद्य, आदि: फुलडीयां म चूंटीसर; अंति: सब जग धंधे लाया रे, गाथा-४. ३७५५६. उत्तराध्ययनसूत्र-पंद्रहवे व चौथे अध्ययन का गीत, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४७). उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन १५ के गाथा ५ अपूर्ण से तथा अध्ययन ४ का संपूर्ण पाठ है.) ३७५५७. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, १४४३३). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव दर्शन की बलि; अंति: केहे तेजसिंघ गणथारी, गाथा-६. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: संभव नाम सोहामणो वर; अंति: मुनि काहन उल्हास रे, गाथा-७. ३.पे. नाम. चौदस्वप्न स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. १४ स्वप्न सज्झाय, ग. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: सकल जिननाम चित धरीने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६तक है.) ३७५५८. (+) पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वडेचानगर, प्रले. मु. हीर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१०.५, १२४४२). १. पे. नाम. आध्यात्मिक टपो, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: करण फकीरी तोक्य दलगी; अंति: नर दोषण अनलेणा छे, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: गत चारु मे भटक भटक; अंति: दास तुमारा चरणारे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. भरतक्षेत्र विस्तार वर्णन, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: (१)समरु श्रीअरीहंतने, (२)दीप तो जंबु जाणीये; अंति: भावजण ___लोक ते सांभलो, गाथा-१०. ३७५५९.(-) सज्झाय, हमची व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२४१०.५, १२-१४४२९). १.पे. नाम. बारव्रत सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, मु. पुण्यशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: सूरगमण हिव प्रणमीये; अंति: पुनसेखर लहै संसार रे, गाथा-२२. २. पे. नाम. गोडी पारसनाथ हमची, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन हमची-गोडीजी, मु. लब्धिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पाटणथी पाराकर आव्या; अंति: हमची गावौ देहरे आवै, गाथा-१५. ३.पे. नाम. राणपुर मंडण स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-राणपूर, मु. गोविंद, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: श्रीसारदा हो देवी; अंति: भणज्यो भोला भावसु, गाथा-२१. ३७५६०. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१.५४१०-१०.५, १२४१६). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभ जिणंद सुखकारी ए; अंति: जिनहर्ष सदा कल्याण, गाथा-५. ३७५६१. भारती स्तोत्र व जिन स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १४४३५). १. पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: सरस्वती महाभागे वरदे; अंति: हरतु मे दुरितम्, श्लोक-६. २. पे. नाम. जिनस्तुति प्रार्थना संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकल तीर्थाय नमः; अंति: तस्मैश्रीगुरवे नमः, गाथा-९. ३७५६२. (+) प्रतिष्ठा विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १६x४५). १.पे. नाम. प्रतिष्ठा विधि संग्रह, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: नेम पडिकमणी करावीय, (पू.वि. शांतिकलश अपूर्ण से आगे २.पे. नाम. स्तूप प्रतिष्ठा विधि, प्र. ३आ-४आ, संपूर्ण. स्तूपप्रतिष्ठा विधि, सं., गद्य, आदि: स्तूप पार्श्वेसर्वतो; अंति: कारी प्रतिमा दृढकारी. ३७५६३. वीशस्थानक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. पं. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १०४३७). २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतभक्ति प्रसाद; अंति: त्रिकाल देवपूजा कीजइ. ३७५६४. स्तवन व फाग संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५,११४३७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. गौतमदास, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनंदनी मुखकी; अंति: आनंद अधिक सवाय, गाथा-५. २. पे. नाम. चेतन फाग, पृ. २अ, संपूर्ण.. औपदेशिक पद, मु. देवब्रह्म, पुहि., पद्य, आदि: चेतन को आछो दाव; अंति: मुगती फल ल्यो उमगो, गाथा-७. ३७५६५. आठ कर्मप्रकृति बोल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५१). ८ कर्मप्रकृति बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीय कर्म मति; अंति: सायुध वुद्यमा धनहर. ३७५६६. कल्पसूत्र का कल्पफल, सामान्य श्लोक व पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १३४४०). १. पे. नाम. कल्पफल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पफल, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: पुत्रा पंचमतिश्रुताव; अंति: घूकाईव रविप्रभा, श्लोक-१४. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: किरं त्रउय सेवनं किम; अंति: (-). ३.पे. नाम. पंचपरमेष्ठि गुण वर्णन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: बारसगुण अरिहंता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३७५६७. नेमराजुल गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. अनोपसागर; पठ. श्रावि. राइकुमर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १२४४२). नेमिजिन स्तवन, मु. गजानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पीय नेम पधारो हो कि, अंति: गजानंद० पावो सुखघणा, गाथा-१०. ३७५६८. आदिनाथ व ज्ञानपंचमी स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १४४३०-४०). १.पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बेकरजोडी विनवू जी; अंति: समयसुंदर गुण __ भणई, गाथा-३१. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी बृहत् स्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणZ श्रीगुरुपाय; अंति: भगत भाव एम सीर्म, ढाल-३, गाथा-२५. ३७५६९. दुहा सवइया कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४१०.५, १०४३७). औपदेशिक पद-पकवानवर्णन गर्भित, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: आछी फूल खंडके अखंड; अंति: विचमै ऐसा होय तो आव. For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३१५ ३७५७०. मगदुजी महासती चौडालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२५.५४१०.५, १६x४४). मगदुजी महासती चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी वंदन करु लागु, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ अपूर्ण तक है.) ३७५७१. औपदेशिक पद व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) १, कुल पे. ३, जै (२४४१०.५ " १५४५१). १. पे नाम, आत्मसंबोध गीत, प्र. ३४-३आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीसे जिणवर नमी रे; अंति: रे सुगरा लहइ विवेक, गाथा - २५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. रतनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि रे जीउ करि जिनवर की अंति: रतनलाभ मुख देवा, गाथा-३. ३. पे. नाम. उपदेश पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. लोक संग्रह प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७५७२. स्थूलीभद्र नवरसो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१)=४, दे., (२५.५X१०.५, १५X३५). स्थूलभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल १ अपूर्ण से ढाल ८ अपूर्ण तक है.) ३७५७३. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X१२, १६×३९). दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: दाखा दुहे वीयादरीजी; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन ९ अपूर्ण तक है.) ३७५७४. नागसिरी कथा व सील सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२५.५-२६.०X१०.५, १४X३९-४२). १. पे. नाम. नागसिरी कथा, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. नागश्री सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धरमघोष आचार्यना शिष्; अंति: दुख जात परैरा रे, ढाल -२, गाथा-४६. २. पे. नाम. सील सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सील रतन मोटो रतन रे; अंति: तज दो थे नारी को संग, गाथा - १५. ३७५७५. (+) स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०, १३x४०). २४ जिन स्तवन, मु. विद्याविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिसहेसर प्रथम, अंति: (-), (पू.वि. स्तवन १५ अपूर्ण तक है.) ३७५७६. ' . (-) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., (२५X१०, ११३०). मिजिन स्तवन रा., पद्य, आदि: पहिला देवलोकनो धणी स; अंति: उस गली जान म कसयो ए. गाथा - १५. ३७५७८. राजमती रहनेमी बारमासियो व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, दे. (२५.५x१०.५० 2 १५X३५) १. पे. नाम. राजमती रहनेम चारमासियो, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. लिपिकारने अंत में राजैमतिरहनेमरो बारमासो ऐसा लिखा है, वास्तव में यह कृति नेमराजिमती बारमासो है. मराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणजोरी बात सहाली जा, अंतिः जादुर्वा संखरी सहेली, गाथा- १७. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय पु. १आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: कातग म कौतग करीय घरघ; अंति: मूढ न जाण मरम, गाथा - १३. ३७५८९. चोवीस तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. सा. उमा (गुरु सा. फूलाजी); गुपि. सा. फूलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१०.५, १४४४३). २४ जिन स्तवन, मु. सायब कवर, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: श्रीनमुं श्रीआदजीसाम; अंति: बारस भरगु सुख पायो गाथा- १४. For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१६ www.kobatirth.org ३७५८२. अरहनक चोउपड़, अपूर्ण, वि. १७६०, फाल्गुन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २) -२ प्रले. पं. ज्ञानचंद, (#) प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै. (२६४१०.५, १४४४०). . 1 अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., पद्य वि. १७०२, आदि: (-); अंति हेतु लील विलास कि ढाल-८, (पू.वि. ढाल ३ अपूर्ण से आगे है.) ३७५८५. मोती कपासीधा संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, १८४४७). ३७५८३. बुढा सीज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे. (२५x१०.५, १७x४५-४७). बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: नीरधन के घर बैटी जाई, अंतिः धर्म वीना जीवनी कमाई, ढाल - १२. ३७५८४. सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २६ ११, १७x४६). सिंदूरप्रकर- पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९१, आदि: सोभित तप गजराज सीस; अंति: (-) (पू.वि. गाथा ४३ तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७५८६. गुरुना छत्रीस गुण, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे (२५.५४१०५ १३४३९). , " मोतीकपासीया संवाद, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६८७, आदि: श्रीसारदसुपसाइलै सुह; अंति: दिन दिन अधिक उछाह गाथा - ३१. आचार्य ३६ गुणवर्णन, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: विनयप्रतिपत्तिना; अंति: गुण गुरुना हुई. ३७५८७. नवतत्त्व स्तुति व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५X१०.५, ८x२८). १. पे. नाम. नवतत्त्व स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा रे जीवा पुन, अंति: मानविजय०चित धरन्यीजी, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराज पदपदमसे, अंति: भावदाता दधतं सीवं वा श्लोक-१. ३७५८८. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, बे. (२५.५४१०.५, १०x३१). औपदेशिक सज्झाय, मु. रामसकल, मा.गु., पद्य, आदि: भाखे वीर जिनेसर जगधण; अंति: रामसकल गुणवंतोजी, गाथा - ११. ३७५८९. आराधना प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१ (१)=४, जैदे., (२६X१०, ५X३९). पर्वताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं, गाथा १२ अपूर्ण से ५४ अपूर्ण तक है.) पर्यंताराधना - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ३७५९०. राजिमती सज्झाय व सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. घणाहु, जैदे., (२५.५X१०, १५X४३). १. पे. नाम. राजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. राजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजल निकस भवनम ठाढी; अंति: जिणवर कीया वखाण, गाथा- १८. २. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सवैया, मु. जिनहर्ष, पुहिं, पद्म, आदि बार बार कहु तोय सावध, अंतिः जोडि ऐसे धर्मभाग री, सवैया-८, संपूर्ण. ३७५९१. श्रीराणभूमीशवंश प्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) = ३, जैदे., (२५.५X११.५, १२३४). श्रीराणभूमीशवंश प्रकाश:, मु. मेघविजय, सं., पद्य, आदि (-); अंति: प्रभवति मनीषी कथमहो, लोक-५६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. गाथा १४ अपूर्ण से है.) , For Private and Personal Use Only ३७५९२. (+) जिनशतक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५) = १, पठ. मु. कमलविजय (गुरु पं. लक्ष्मीविजय); गुपि. पं. लक्ष्मीविजय (गुरु पं. अमरविजय गणि); पं. अमरविजय गणि (गुरु पं. मेरुविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत क्रियापद संकेत- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- पंचपाठ., जैदे., ( २६.५X११, १३x४९). Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org जिनशतक, मु. जंबू कवि सं., पद्य वि. १००१-१०२५, आदि: (-) अंति: वागसौ द्राविधेयात् परिच्छेद-४, 3 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - श्लोक-१०० (पू. वि. अंतिम परिच्छेद के श्लोक १० अपूर्ण से है.) जिनशतक - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: न भवते न प्राप्नोति. ३७५९३. भगवतीसूत्र - जयंतीश्राविका प्रश्नपृच्छा, संपूर्ण, वि. १७८६, फाल्गुन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. गंगाराम (गुरु मु. धर्मसी); गुपि. मु. धर्मसी, पठ. सा. भामाजी (गुरु सा. हीराजी); श्रावि. माऊजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X१०.५, १५X३८). जयंतीश्राविका प्रश्नोत्तर, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ते काले अने ते समाने; अंति: जीवडा हीया रे भला. ३७५९४. पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. दयाविमल (गुरु मु. देवविमल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२४४१०.५, १९२७). " पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामि, अंतिः श्रीविजयप्रभसुरि ३७५९५. भगवती सूत्र - शतक- ८ उद्देश ९, संपूर्ण वि. २०बी, श्रेष्ठ, पु. १, दे. (२५.५४११.५, ७४४२). भगवतीसूत्र - शतक ८ उद्देशक ९, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: कम्मसरीरपयोग बंधेणं, अंतिः बंधे ८ सेवं भत्ते. ३७५९६. (+) विचार संग्रह भगवती सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२६४११. १९x४६). भगवतीसूत्र बोलसंग्रह " संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३७५९७. लोद्रपुरमंडन सहस्रफणा श्रीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६ १०.५, १२X४३). पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुर, मु. पुन्यकलस, मा.गु., पद्य, आदि: सोहइ सहस्रफणा सोहामणा, अंति: जयतसी जनम प्रमाण, ढाल ६. ३७५९८. सिद्धचक्र नमस्कार, वासक्षेप पूजा व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X१०.५, १४४४२). १. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत, अंति: निधि प्रगटै चेतन भूप, गाथा- ६. २. पे. नाम. वासक्षेप पूजा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ३१७ नवपद वासक्षेप पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. सं., पद्य, आदि अरिहंत पद ध्यातो थको अंतिः कोयें न रही अधुरी रे, गाथा- १४. ३. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), लोक- ९ (वि. सभी श्लोकों के मात्र प्रतीक पाठ ही दिया गया . है.) ३७५९९. (+) पंचकारण महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., १६-१७३८-४१). जै.. (२५x१०.५, ५ कारण छ डालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु, पद्य वि. १७३२, आदि: सिधारथसुत वंदी जगदी अंतिः विनय क आणंद ए, ढाल ६, गाथा- ५९. For Private and Personal Use Only ३७६००. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६११, ८x२४). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालोने पीतमजी पारा; अंतिः सेवा संबल लीजे रे, गाथा-५. ३७६०१. (+) वैराग्य सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २४.५X१०.५, ९३०). औपदेशिक सज्झाव, पा. धर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदिः पीउ चलण परदेस वचन, अंति: कहे एक धरम मनमै धरो, गाथा - ११. ३७६०२. अष्टकर्म प्रकृति विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पठ श्रावि. चंपा, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे (२५४१०.५, ११X३९). ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी दर्शनावरण, अंति: तेतीस सागरोपम स्थिति. Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१८ ३७६०३. बोल संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २. दे. (२५x११. २५४१५-१७). " १. पे. नाम. १७० तीर्थंकर नाम, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सं. गद्य, आदि: श्रीजयदेवनाथाय नमः: अंतिः श्रीबलिभद्र, , २. पे. नाम. २४ जिन समवसरणमान गणधर संख्यादि विवरण, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: श्रीऋषभ अजित संभव: अंतिः पार्श्वनाथ महावीर " ३७६०४. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, कुल पे ३ जै. (२५.५४११, १६४३३). १. पे नाम जंबूस्वामी विवाहलो, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ले. स्थल, सकलाणा, प्रले. ग. विमलविजय (गुरुग. अमरविजय पंडित, तपगच्छ); गुपि. ग. अमरविजय पंडित (गुरु गच्छाधिपति सोमविमलसूरि, तपगच्छ); गच्छाधिपति सोमविमलसूरि (तपगच्छ). प्र.ले.पु. सामान्य जंबूस्वामी रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, ई. १५१६, आदि: (-); अंति भणइ जयवंतु सुखवास, गाथा- ६४, (पू.वि. गाथा ५८ अपूर्ण से है.) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. नेम राजुल बारमासो, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. मिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: आषाढ धुरि जन युरे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने गाथा ६ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. स्थुलीभद्र सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., पद्य, आदि: च्यारि पडि मुझ कही अंति: (-). (पू.वि. प्रारंभिक अंश मात्र है. वि. प्रतिलेखक ने गाथांक का उल्लेख नहीं किया है.) लकीर, जी... (२५.५X१०.५, १२x२९). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३७६०५ (+) स्तुति संग्रह व व्याकरण, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुलपे ३, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक २. पे. नाम. व्याकरण, पृ. १आ, संपूर्ण. सं. गद्य, आदि: (-); अंति: (-). '. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीशांति: श्रुतशांत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ अपूर्ण तक लिखा है.) ३७६०७. कुगुरू सज्झाय व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, १६x४४). १. पे. नाम. कुगुरू सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु, पद्म, आदि: जिनवर प्रणमी सदा अंतिः तेजपाल भणे सुखदाय, गाथा - २५. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सूर छिपें घन वादलथें, अंति: अग्रजिन वीर्ज तेतो,' पद-६. " ३७६०८. जैनधार्मिक लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-३ (१ से २,४)= २ जी. (२६.५४१०.५, १३४३५). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक *, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः कस्य नस्या भमस्यः, श्लोक - ८२, (पू. वि. गाथा ४१ पूर्ण है.) For Private and Personal Use Only ३७६०९. सीतलजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५४११, १६४४८). "3. शीतलजिन स्तवन, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनिधि गाउरे सीतल, अंति: जंपि सकलजिण कल्याण, गाथा-३३. ३७६१०. मनस्थिरकरण सामायक स्वाध्याय व जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५x१०.५, ११x४०-४३). १. पे. नाम. मन स्थिरिकरण सामायक स्वाध्याय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. शुभवर्द्धन, मा.गु, पद्य, आदि मइ सेवी रे देवी सरसत, अंति: तेह नर मंगल करू, गाथा २०. Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २. पे. नाम. विहरमान २० जिन वीनती, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर पमुहा; अंति: त्रिकाले जिण चरणं, गाथा-५. ३७६१२. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५६, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३२). १.पे. नाम. शेव्रुज स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८५६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७ श@जयतीर्थ स्तवन, आ. पायचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार माह; अंति: बिनती सफल करेज्यो, गाथा-१२. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, रा., पद्य, आदि: सूरति प्यारी हो लागै; अंति: सुमतिकुशल नित जयकरू, गाथा-७. ३. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदे हे आदिजिनेस्वरूए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३७६१३. (+) ५६ दिसि कुमारीका व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१०.५, १२४३९). १. पे. नाम. ६४ दिगकुमारी विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६४ दिग्कुमारी विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहो लोग वत्थवयाउ; अंति: गीत गाइए अधोलोकनी. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जोयण लखएमाणं अणु; अंति: सुयंभूरमण मच्छावो, गाथा-३. ३७६१४. (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सुजाणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११,११४३०). पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: सहसफणा चिंतामणि पासा; अंति: विनीत०पभणे धरीप्रेम, गाथा-२२. ३७६१५. (+) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४८-४६(१ से ४६)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३५). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ८ गाथा ८३ अपूर्ण से ढाल १० गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ३७६१७. (+#) बुद्धि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४३). बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवि अंबाई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २९ अपूर्ण तक है.) ३७६१८. नवकार रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १५४५७). नवकार रास, मा.गु., पद्य, आदि: वंदवि जिण सिद्ध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४० अपूर्ण तक है.) ३७६२०. स्तवन संग्रह व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, १३४४५). १.पे. नाम. धरमनाथजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, पं. आनंदविजय, पुहिं., पद्य, वि. १८४६, आदि: श्रीजिनधरम जिनेसर; अंति: आणंद चढत दिवाजैरे, गाथा-७. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-मेदनीपुरमंडण, पं. आनंदविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: शांतिजिनेसर वंदीयै; अंति: आणंद भेट्या आधार हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. सुपार्श्व पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन पद, पं. आनंदविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि: हारे मारो सुकलपक्ष; अंति: गुण भणीयो हितमैरेलो, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७६२१. शत्रुजय गीत व औपदेशिक श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १२४४०). १.पे. नाम. शत्रुजय गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. उपा. कीर्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन-शजयमंडन, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति आपु भली; अंति: कुसल शिष्य बोले रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अयोध्या मथुरा माया; अंति: लीजीइंजो जें गुणाह, ग्रं. ३, (वि. यहां मोक्षपुरी के नामों के साथ लेखनी के बारे में भी बताया है.) ३. पे. नाम. जिन तनुमान, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन शरीरमान, सं., पद्य, आदि: पंचाशद्धनुराधशाद; अंति: वीरस्य विदुर्बुधाः, श्लोक-२. ३७६२२. (+) चौवीस दंडक विचार यंत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १८४६७). २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३७६२३. (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. त्रिपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३१). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपईट्ठिय: अंति: (-), (पू.वि. गाथा २३ अपूर्ण तक है.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टिप्पण , सं., गद्य, आदि: (१)जगशेखर पद प्रतिष्ठित, (२)अहं क्षेत्र विचाराणु; अंति: (-). ३७६२४. (+) छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १७४४३). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धविमल ऋणी विबुद्; अंति: विद्या दे प्रमेस्वरी, गाथा-१०. २.पे. नाम. पदमावतीनो छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीकलिकुंड दंड; अंति: पद्मावती अमा सुखकरणी, गाथा-१०. ३७६२५. (#) उपधान स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४४७). उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर धरम परकास; अंति: समय० वंछित सुख करो, ढाल-३, गाथा-१८, संपूर्ण. ३७६२६. हितशिक्षाद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८७१, आषाढ़ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३३). हितशिक्षाबत्रीसी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सकल विमल गुन कलित; अंति: क्षमादिकल्यान सुबंदन, गाथा-३३. ३७६२७. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १८१९, फाल्गुन, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उदयपुर, पठ. मु. गजेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४३). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर निकर समुज्वल; अंति: सदा सोय पूजो सरसती, ढाल-३, गाथा-१४. ३७६२८. बलभद्रमुनि सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०.५, २३-२९४१८-२२). १. पे. नाम. बलभद्रजीरो तान, पृ. १अ, संपूर्ण. बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मासखमण रे पारण तपसी; अंति: सरसती तारा भावो रे, गाथा-१४, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाति, पृ. १आ, संपूर्ण.. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जीण धरम कीजीय; अंति: गत तणा फल लेहरे जीव, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३२१ ३७६२९. जीवविचार बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६-४ (१ से ४) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं., पत्रांक नंबर खंडित हैं., जैदे., (२५X१०, १७४२३-४२). जीवविचार बोल", मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). ३७६३०. मुनिपतिराय चोपाई, अपूर्ण, वि. १७६७, आश्विन कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. २३-२१ (२ से २२ ) = २, ले. स्थल. झंगीग्राम प्र. ग. दीपविजय (गुरु मु. लब्धिविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. लब्धिविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपागच्छ); आ. विजयप्रभसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१०.५, १४-१५X४५). मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु, पद्य वि. १५५०, आदि: गोवम गणहर गोयम गणहर, अंति: गुणई तेहनें 3 हरषअपार, ढाल - २७, गाथा- ६०६, ग्रं. ६११. ३७६३१. अनाथीमुनि रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२३.५X१०.५, १४-१६x२८). अनाथीमुनि रास, मा.गु., पद्य, आदि: सधसमी करं प्रनाम जीण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५७ तक लिखा है.) ३७६३२. (+) बारमास व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) -२, कुल पे. ३, प्र. क्र. धनराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२५४१०५, १४४३५). १. पे. नाम. नेमिजिन बारमासी पू. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: लाभोदय ० विलासी हो लाल, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, नेमराजिमती बारमासो, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: राणी राजुल इणपरि वीन अंतिः पाले अविहड प्रीत रे, गाथा- १३. ३. पे. नाम. नेमराजिमती बारमास सज्झाय, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण. आ. विनयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल पीठ सूं वीनवे अंतिः धनि राजुल नारी हो, गाथा- १५. ३७६३३. (+#) चौरासी आशातना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X११.५, ५X३२). जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं केलि कलिं कला; अंति: इटालणं जिणंदणालए, गाथा -४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्लेष्मानं परठई राम; अंति: वधे जिण मंदिर विषे. ३७६३४. सिद्धार्थराजानी जीमणवार वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक नहीं हैं., जैदे., (२५.५X१०.५, १८x४२). १४४३६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धार्थराजा का भोजनसमारंभ वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे मांड्यो उत्तंग; अंति: दसोटण करी दान दीजइ. ३७६३६. (१) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४४१०, क. आसो, रा., पद्य, आदि: सरसती सांमण हु तुझ; अंति: ० कांइ नही आवे रे साथ, गाथा-८. २. पे. नाम. श्रावक २१ गुणरी सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आवक २१ गुण सज्झाय, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: क्यारे मिलसे रे; अंतिः सफल जनम त लाधो जी, ३७६३८. गाथा - २०. ३७६३७. जंबूकुमार सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २५.५X११, १३X३४). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेणक नरवर राजी; अंतिः लीयो पौहता मुगत मझार, गाथा-१६. (#) सूतक सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६ ११.५, १७५१). सूतक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः सुतक तणो हुं कहुं, अंतिः आठ पोहर गाडर मुत्र, गाथा - २०.. For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७६३९. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. भावविजय; पठ. श्रावि. हांसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४३७). __ मौनएकादशीपर्व स्तवन, आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर चरण जुगि; अंति: जिनलबधि० संपद सदा, गाथा-२८. ३७६४०. हितशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३०). औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: तो सुख जो आवै संतोष; अंति: लावण्य० मुगति संचरै, गाथा-९. ३७६४१. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, १७४३७). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भव जीव आदजणेसर बीहीन; अंति: दया हीनइ लभण रह, गाथा-२०. ३७६४२. विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२५४१०.५, २०४६९). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३७६४३. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, २१४६१). १.पे. नाम. शून्याशून्यमिश्रकाल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___ मा.गु., गद्य, आदि: पहिलु अशून्यकाल; अंति: र्यचमान लाभइत्यर्थः. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र विचार संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-विचार संग्रह , संबद्ध, मा.गु., को., आदि: अत्थिणं भंते समणवि; अंति: होओ पूज्यत्वात्. ३७६४४. स्नात्र पूजा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४०). स्नात्र पूजा, आ. मंगलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १३वी, आदि: मुक्तालंकारविकारसारस; अंति: (-), (पू.वि. मात्र अंतिम मंगलदीवो अपूर्ण हैं.) ३७६४५. (+) गग्धर पार्श्वजिन नीसाणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १७४६८). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपति दायक नरसुर; अंति: गुणहरष गहंदा है, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३७६४६. (+) नवतत्त्व भेद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मा प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्रांक नहीं हैं., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४१). नवतत्त्व प्रकरण-रुपी अरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नवत्तव मांहि रूपी; अंति: (-). ३७६४८. राइपायच्छित्त प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १५४४२). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडि; अंति: पछै सिज्झाय भणी ३७६४९. वीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३६). महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण से ४८ अपूर्ण तक है.) ३७६५०. स्तवन व नववाडि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२४.५४१०.५, १४-२२४२८-७७). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: आनंदघन पद रेह, गाथा-६. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालूं रे बीज; अंति: रे आनंदघन मत अंब, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३. पे. नाम. अनंतनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धारि तरवारनी सोहली; अंति: आनंदघन राज पावई, गाथा-७. ४. पे. नाम. धरमनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मागु., पद्य, आदि: धरमजिणेशर गाऊं रंगसु; अंति: आनंदघन० शेवक अरदासजि, गाथा-८. ५. पे. नाम. कुंथुनाथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुंथुजिन मनडो किणही; अंति: आनंद० करि जाणं हो, गाथा-९. ६. पे. नाम. शीलोपरि नववाड स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पशुपंडग तणी जी; अंति: श्रीजितदेवसूर किं, गाथा-१५. ३७६५९. सूत्रकृतांगसूत्र के बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१२, १३४३८). सूत्रकृतांगसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: २३ सुगडांगजी के अध्य; अंति: ४२ हजार वर्ष उणा. ३७६६२. दशार्णभद्र ऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. लोहिया, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५३). दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुद्धिदाई सेवक; अंति: लालविजय निश दिश, गाथा-९. ३७६६३. पार्श्वजिन छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १३४३७-४०). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ छंद, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नमो नमो गोडीधवल, गाथा-३७, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) २.पे. नाम. फलविधि पार्श्वजिन छंद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता सेवका; अंति: अभयसोम० दायक भगति, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ देसांतरी छंद, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन देशांतरी छंद, क. राज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन आपो शारदा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण तक ३७६६५. विवेकमंजरी वशीलोपदेशमाला सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-४(१ से ३,५)=३, कुल पे. २, अन्य.सा. विमलरुद्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ११४५१). १.पे. नाम. विवेकमंजरी सह अवचूरि, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदि: (-); अंति: जलहिदिणेस वरिसम्मि, गाथा-१४४, (पू.वि. गाथा १२२ से है.) विवेकमंजरी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: विस्तरात् भयेभ्यः. २.पे. नाम. शीलोपदेशमाला सह अवचूरि, पृ. ६अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३, गाथा-११५, (पू.वि. गाथा २२ अपूर्ण से ५८ अपूर्ण तक नहीं है.) शीलोपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आबा० आबाल ब्रह्मचारि; अंति: नखंडयति शीलं. ३७६६६. (+) भवानीजी, सरस्वती छंद व पार्श्वजिन आरती, संपूर्ण, वि. १७४८, आषाढ़ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. लाडणू, प्रले. मु. हर्षसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत की दूसरी ओर पार्श्वरेखा नहीं है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३०). १. पे. नाम. भवानीजीरो छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: कितुं योगिजी रंग मै; अंति: परदेश मैं सेवाधारी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) - २. पे. नाम. कैवाच छंद सरस्वती छंद. पू. १अ १आ, संपूर्ण. कैवाय छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सोहै हंस वाहणी, अंतिः केव्यांतो मै कंथ, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ३. पे नाम. पुरुषादानीय पार्श्वनाथ आरति, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन आरती- पुरुषादानीय, मु. प्राषभ, मा.गु, पद्य, आदिः परम पुरुष प्रभु अंतिः आण प्यारा छो, (वि. प्रतिलेखक ने गाया संख्या नहीं लिखी है.) ३७६६७. पूण्यछत्तीसी व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५X१०, १४४०). १. पे नाम. पुण्यछत्तीसी, पृ. ९अ-२अ संपूर्ण. पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुण्यतणां फल परतखि; अंति: समयसुंदर पक्ष जी, गाथा - ३६. २. पे नाम. वैदिक मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, उ., पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: श्री ॐ नमः आदि सुदिन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मंत्र अपूर्ण है.) ३७६६८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १. जैवे. (२४.५x१०.५, ११४४३). पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वादल दहदीस उनह्या; अंतिः प्रतपो जग भांण रे, गाथा - ९. ३७६६९. महावीरजिन चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १८७३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. सोवकरण (गुरु मु. नानगरामजी स्वामीजी); गुपि. मु. नानगरामजी स्वामीजी, पठ. सा. मानाजी आर्या (गुरु सा. कुशला आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४९). महावीरजिन चौडालीयो, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८३९, आदि: सिद्धारथकुल उपना, अंतिः कीयो चरित 1 יי चोढालिया, ढाल ४. ३७६७०. (+) क्षेत्र समास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, ११X३०). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभन्द्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य वि. ६वी, आदि नमिऊण सजलजलहरनिभस्साण, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ३७६७१. (+) " षट्कारक चर्चापत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X१०.५, १७५४-५६). साधकसाध्य विचार-षट्कारक गर्भित, मा.गु., गद्य, आदि: तत्र षट्कारक बाधक; अंति: ते स्वधर्मनो थाशै. ३७६७२. अंबड परिव्राजक आलापक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जै. (२५.५४११ १३X३०-३२). औपपातिकसूत्र - अंबडपरिव्राजक आलापक, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: (-), (पू. वि. परिग्रहं पच्चक्खामि" पाठ तक है.) ३७६७३. स्तवन व गहुँली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५X१०.५, १५X४७). १. पे नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदिः सिद्धचक्र सुहावणो अति अति उत्तम अधिकारजी, गाथा-१६, (वि. एक गाथा को दो बार गिना गया है.) २. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गाथा - ९. गुरुगुण गहुली, मु. दौलतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सांमणजी हो; अंति: करे आपणी आस राजेसर, ३७६७४. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. रूपनगढ, प्रले. खेमती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १४X३१-३५). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली धुर समरु; अंति: जीवजु पावो भवनो पार, गाथा- १९. ३७६७५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, दे. (२४४१०५ १२४२९-३३). " For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. पडीकमणानी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: कर पडिक्कमणुं भावशुं; अंति: चेतनजी एम भव तरोजी, गाथा- ९. २. पे नाम, पडिकमणानी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ले. स्थल, फलोदी, प्रले. मु. पानाचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रतिक्रमण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: समकितवंत सदा; अंति: पडीकमणो नीत कीजे, गाथा-८. ३. पे नाम, आरणक मुनिनी सज्झाय, पृ. १आ २अ संपूर्ण अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: वरु वंछित फल लीधुजी, गाथा- ८. ४. पे. नाम. सुभद्रानी सज्झाय, पृ. २आ - ३आ, संपूर्ण, ले. स्थल. वीकानेर. सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोधे इरजा जीव; अंति: भणे राखो सीएलनी चाल, गाथा-२५. पे. नाम. चंदनबाला सती सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि आज अमारे आंगणीए कांइ, अंतिः मुझ तुठा वीरदवालो रे, ३२५ गाथा ५. ३७६७६, (+) प्रज्ञापनासूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैदे. (२६५११, ५x२९). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २ अपूर्ण तक है.) प्रज्ञापनासूत्र बार्थ, मु. धनविमल, मा.गु, गद्य, वि. १७०५, आदि: अरकिहंतनई नमस्कार, अंति: (-). पू. वि. अंत के - पत्र नहीं हैं. ३७६७७. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे.. (२६४१०.५, १३४३८-४०). औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: मनुष्य जन्म मिलियो, अंति: धर्म म करतुं ढील रे, गाथा- १२. ३७६७८. (+) स्वाध्याय व गीत, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, जैवे. (२६४११, १४४४५). १. पे. नाम. लखिमीसागरसूरि स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. लक्ष्मीसागरसूरि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुहासणि गजगति, अंति: गणधरराज जयवंता करु, गाथा-१५. २. पे नाम. नेमि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण मिजिन गीत, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: चमकती चालती मयणची; अंति: विनवइ विरह रसालीय, कडी - ४. ३७६७९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५X१०.५, १५x५१). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रमोदविजय शिष्य मा.गु., पद्य, आदि आदिदेव जपियह अरिहंत, अंति: गुणिगुण गणधारिणो, गाथा- ७. २. पे. नाम. हियाली गीत, पृ. १अ संपूर्ण प्रले. मु. मतिवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रहेलिका हरियाली, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: पुहवी भल जेहनउ निज, अंति: कह्यांथी तुं मुज भाई, For Private and Personal Use Only गाथा - १०. ३. पे नाम, पार्श्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण . पार्श्वजिन स्तन, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि पास जिणेसर पूजियइरे, अंतिः सुमतिसरे चतुरनर, गाथा- ७. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. मतिवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: तुझ दरसण उतकंठा घणी; अंति: सुमति० कीधी वचन विलास, गाथा-७. ३७६८०. रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, जैवे. (२६४११, ६-१५x१५-३८). " रोहिणीत स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि (-); अंतिः श्रीसार मन आस्वा फली, बाल-४, ( पू. वि. गाथा १३ अपूर्ण से है . ) Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७६८१. (+) स्तवन व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, २६x४४-४८). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. मणिसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर धरयो सदा सेवक, अंति: मणिसुंदर० आव्यो देव, गाथा-७. २.पे. नाम. नेमिनाथजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: पिया नेमि सुणी जद हो; अंति: जेमल सकल सुखानंदो, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमराजीमती सती लोरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. डापलाणा. नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठ करी हरीय मनावीयै; अंति: पद्मणी प्रीतम हाथरे, गाथा-३२. ४. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मागु., पद्य, आदि: गिरवर मह जिम सुरगिरि; अंति: श्रीनेमजी रे० बलिहार, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमगीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल बोले हो बे; अंति: फलीया म्हारा लाल, गाथा-९. ३७६८२. विद्याविलासी लीलावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-६(१ से ६)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, १३४३५-३८). विद्याविलासी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२२ से १८६ तक है.) ३७६८३. चेलणाराणी षढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२६४११, १६x४७). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: (-); अंति: भाखे भवियणने हितकार, ढाल-४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल ५ गाथा ५ से है.) ३७६८४. (+) युगबाहुजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४४८). युगबाहुजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान युगबाहु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ३७६८५. शरीर अशुचिविचार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १९४१६-४६). शरीर अशुचिविचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि करु; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा ४० अपूर्ण तक है.) ३७६८६. स्तुति व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. ग. रामविजय (गुरु ग. हर्षविजय); प्रले. ग. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२५४१०, १०४२७). १. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २. पे. नाम. कामाख्या मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: कामरु देश कुमख्या; अंति: गेसोई मेरो पास बसे. ३७६८७. नवांगीपूजा व पौषध सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, ११४३१). १. पे. नाम. ९ अंगपूजा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रमा; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०. २. पे. नाम. पोसानी सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पौषध सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मनह जिणाणं आणं मीछ; अंति: इमेयनि च सगुरु वयसेण, गाथा-५. ३७६८८. (+) विषम काव्यस्य अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०, २५४७१). विषम काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवीर० श्रीवीरः; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८१ अपूर्ण तक की अवचूरि है.) For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३७६९०. (+) नेमिनाथ वेली, भास व सुभाषित, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६.५X११, १६x४० ). १. पे. नाम. प्रभवा जंबूस्वामी वेली, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. जंबूस्वामी वेली, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मुगतिरमणि वरनारि, (पू. वि. गाथा २२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिवर भास, पृ. २अ संपूर्ण. मिजिन भास, मा.गु., पद्य, आदि मोरह अंगणि जनवउ रे, अंतिः वरदायक ब्रह्मचारि, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: हंसा सो सर सेविइं जो; अंति: पिण माहेमा लेरा, गाथा- १०. ३७६९१. (+) संघवणसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७९२ वैशाख शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पू. ६६-६४ (१ से ६४ ) -२, पठ. श्रावि. रामकुंवरबाई; प्रले. ग. ज्ञानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११.५, ४X३२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदिः (-); अंतिः जा वीरजिण तित्यं गाथा- ३४४ (पू.वि. मात्र " अन्तिम दो गाथाएँ हैं.) बृहत्संग्रहणी-टबार्ड, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंतिः ए संपवण जयवंती वरतो. ३७६९२. राडवरमंडण-चरमजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. मु. तेजसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, दे. (२६४१०.५, ११X३६-४३). महावीरजिन स्तवन- छट्टाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणदह पाय नमी; अंतिः सेवक सकलसंघ मंगल करे, गाथा - ६६. ३७६९७. गीत संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, जैवे. (२५४११. १४४३८). १. पे. नाम राजीमती गीत, पृ. १अ. संपूर्ण. राजिमतीसती गीत, मु. दयातिलक, मा.गु., पद्य, आदि: सखी जाइ कहौ जदुपति; अंति: दया धीरगुण धारइजी, ३२७ गाथा - ९. २. पे. नाम, नेमिनाथ गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, मु. दयातिलक, मा.गु, पद्य, आदि: राजलि नेमि भणी कहदं अंतिः पाल्यौ सयणाचार हो, गाथा ९. ३. पे. नाम, पार्श्वनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन गीत, मु. दयातिलक, मा.गु., पद्य, आदि नित सेवी पारसनाथजी अंतिः सदगति सीए सावजी, गाथा- ३. ३७६९९. मौन एकादशी गणनु, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै, (२५.५x१०.५, १७९५५). मौनएकादशीपर्व गणणं. सं., को. आदि, जंबुद्वीप भरत क्षेत्र, अंतिः श्रीआरणनाथाय नमः, " ३७७००. पाक्षिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५X१०.५, १३X३९). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. "दिआवा राओवा भावओणं पाण का पाठ है.) " ३७७०१. सज्झाय व कुलक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पू. ६-२ (१ से २) ४, कुल पे. ३, जैवे. (२६४१०.५, १३४३८). १. पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. ३अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: सुगुणनिधान इम बोलेरे, गाथा-१६, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से है. ) २. पे. नाम. नववाडि सज्झरा, प्र. ३अ-६अ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि आदि आदि जिणेसर नमुं; अंति: वृद्धि रे मंगलमाल कर, ढाल -९, For Private and Personal Use Only गाथा - ५६. ३. पे. नाम ब्रह्मचर्य १० समाधि स्थान कुलक, पृ. ६अ ६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ब्रह्मचर्य १० समाधिस्थान कुलक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीश्वर पाय; अंति: (-), (पू. वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७००२. चार भावना व झांझरिया मुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२ (२ से ३ ) ०४ कुल पे. २, वे. (२६४११.५, 3 १५X४१). १. पे. नाम. १२ भावना सज्झाय, पृ. १ अ-५अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: भान भणी जेशलमेर मझार, ढाल - १३, गाथा-१२८, (पू.वि. ढाल३ दूहा २ से ढाल९ गाथा ४ तक नहीं है.) २. पे नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण . 1 मु. भावरत्न, मा.गु, पद्य वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे सीस नमावि, अंतिः कवीयणना मनमोहे, दाल- ४, गाथा-४३. ३७७०३. श्रावक पाक्षिक अतिचार- लघु, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. मल्लासुणातर, पठ. सा. सहिजबाई आर्या, प्रले. पं. लब्धिमेरु गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, १५X४१). "1 श्रावक पाक्षिक अतिचार- लघु, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि इच्छामि खमा० इच्छं, अंति: गारेण वोसिरामि ३७७०४. (+) २४ तीर्थंकर नाम राशि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. वस्तासूरविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६x१०.५, २३४५६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ तीर्थंकर नाम राशि विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). " ३७७०५. स्तवन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, कुल पे २ जैदे. (२५.५x११, १२x१६-२४). १. पे. नाम, सीमंधर तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि: (-): अंतिः यशोविजय० भयभंजन भगवंत, गाथा-७, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि भुलो मनभमरा तु अंतिः लेषु साहिबाने हाथ गाथा- १०. ३७००६. कचून रास व ऋषभ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१ (१)=४, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक ९-१२ मिटाए हुए हैं., जैदे., ( २६११, १३x४१). . १. पे. नाम, चंकचूल रास, पृ. २अ ५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सयलसंघनी पूरइ आस, गाथा - ९४, (पू. वि. गाथा १५ से है.) २. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: आवो आवो सही उर साथो; अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३७७०७. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११, १४X३७). १. पे. नाम. वर्धमानजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८वी, पठ. सा. विद्याश्री, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमदमर शिरोरुह, अंतिः हारतारा बल क्षेमदा, श्लोक-४. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदि राजत्या नवपद्मरागरु, अंतिः यो धारयन्मूढधीः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: त्वमशुभान्यभिनंदन, अंति: ततनुंत महारिणा, श्लोक-४. ३७७०८. (+) पार्श्वजिन स्तवन सह बालावबोध व चौदराजलोक परिमाण विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १(१) = १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२६.५४११.५, १३४३७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन सह बालावबोध, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन- शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि (-); अंति: मुक्तालतावन्मुदे, श्लोक ७, (पू. वि. गाधा ६ अपूर्ण से है.) पार्श्वजिन स्तवन- शृंखलाबंध-बालाववोथ, मु. हर्ष, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंतिः परे हर्षभणी हूऔ २. पे. नाम. चौद राजलोक परिमाण विचार. पु. २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३२९ १४ राजलोक परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सातमी प्रथवी तेहनी; अंति: (-), (पू.वि. ग्यारहवें राजलोक तक का वर्णन है.) ३७७०९. व्रत आलापक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३४). १.पे. नाम. तुर्यव्रतालापक, पृ. १अ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाण; अंति: संपजित्ताणं विहरामि. २.पे. नाम. सम्यक्त्वालापक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाण; अंति: अरिहंतो महदेवो. ३७७१०. आदिजिन स्तवन संग्रह व औषध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१०.५, ११४४५). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल भवन सिरसेहरो; अंति: भवि तू हि ज स्वामि, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणीज्यो हो; अंति: बुद्धिविजै सुहितधरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. औषधवैद्यक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३७७११. शिक्षा छत्तीसी, अष्टप्रकारी पूजा के दोहे व गोडीपार्श्व जिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १२४३५). १.पे. नाम. उपदेशछत्तीसी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सज्जन नर; अंति: शुभवीर वाणी मोहनवेली, गाथा-३७. २. पे. नाम. नवांगीपूजा दुहा, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. प्रतिलेखक ने असाईड में ही पत्र संख्या दी है. नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने असाईड में ही पत्र संख्या दी है. पार्श्वजिन ढालिया-गोडीजी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सानिध्यकारी भारती पद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ तक लिखा है.) ३७७१२. स्तवन व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक न होने के कारण पत्र सं. २ दिया गया है., जैदे., (२५.५४११, १६४३९). १.पे. नाम. जीराउला पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावली, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: राजहंस लीलाभवतः, श्लोक-२०, (पू.वि. गाथा ५ तक नहीं २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: लास्यमकार हारिणा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ तक है.) ३७७१३. (+) स्तोत्र संग्रह सह अवचूरी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १-४४३५). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति-पंचार्थमय सह अवचूरि, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. महावीरजिन स्तुति-पंचार्थमय, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सायानिआसूदमुरादिशंदः, श्लोक-१, (पू.वि. मात्र अन्तिम पद है.) महावीरजिन स्तुति-पंचार्थमय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रवणत्वाद्भगवतः. २. पे. नाम. व्यक्षरनेमिजिन स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानून मानेनानोन्; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: आनुमः स्तुमः के; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७७१४. (-) होरी संग्रह व लघुचाणक्यनीति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., ., (२५.५४१०.५, ७-१०४३३). १.पे. नाम. आदिजिन होरी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: वारी भवभव पातिक जाय, गाथा-४, (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. साधारणजिन होरी, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रतनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लाल गुलाल उडावो गावो; अंति: रतनसागर० नामे जयकार, गाथा-४. ३. पे. नाम. लघु चरणायक, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. लघु नीतिशास्त्र, कौटिल्य, सं., पद्य, आदि: किं कुलेन विशालेन; अंति: गरिमा सिरस्थितः, श्लोक-२७. ३७७१५. पद्मावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १५४४९). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवि प्राणी तु बापिडा; अंति: कहइ पापथी छुटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३४. ३७७१६. (+) सत्तर प्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. सुरजन पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४५३). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: ज्योति सकल जग जागती; अंति: लीला सवि सुख साजई, ढाल-१७. ३७७१७. (+) छंद, कवित्त व पद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १३४३८-४०). १. पे. नाम. जगडूसाह छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जगडूसाह, मु. श्रीधर, मा.गु., पद्य, आदि: भद्रेसर कणयगिरि नामह; अंति: कंकण घल्ली एणि परि, गाथा-५. २. पे. नाम. जगडूसाहसत्क कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. जगडूसाह, मु. श्रीधर, मा.गु., पद्य, आदि: अट्ठय मूडि सहस्स; अंति: नावउं काल पनरोतरो, गाथा-२. ३. पे. नाम. एक स्वरमय षटपद, पृ. १आ, संपूर्ण. एक स्वरमय षट्पद, अप., पद्य, आदि: सकल अकल नयस सबल; अंति: प्रगट अकब्बर पक्कघट, गाथा-१. ३७७१९. (+) पद्मावती आराधना व चारसरणा गीत, संपूर्ण, वि. १८६२, पौष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. सीसर, प्रले. पं. श्रीचंद्र श्रीमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४३७). १.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: समय०पापथी छूटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. २. पे. नाम. चारसरणा गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. चउसरण गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मुजने चार सरणा; अंति: कल्याण मंगलकारोजी, गाथा-३. ३७७२०. फलवर्धि परमेश्वर स्तवन व आशीर्वचन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. ग. खिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३५-४१). १. पे. नाम. फलवर्द्धि परमेश्वर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, ग. उदयविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुत अमरी समरी हो; अंति: होकि जगजसवाद भणई, गाथा-२७. २. पे. नाम. आशीर्वचन पाठ, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नक्षत्राक्षतपूरित; अंति: श्रीसंघभट्टारकः, श्लोक-१. ३७७२१. स्तव चौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, ११४४२). चैत्यवंदन चतुर्विंशतिका, आ. शीलरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: चिदानंदलीला रसास्वाद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३७७२२. पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८३५, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. सूरत, प्रले. मु. मनरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४४२९). पद्मावती माता छंद, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पूजो सुख कारीणी, गाथा-११, (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) ३७७२३. (#) सज्झाय व बत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५-२०४३३-३८). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ.पं. जसरूप; प्रले. मु. लालचंद पं., प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणवर इम उपदिसै; अंति: इम पभणै रूपचंदरे, गाथा-२१. २. पे. नाम. राचा बत्तीसी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जागरे सोवे; अंति: रूडां कहै कविराचौ, गाथा-३२. ३७७२४. (#) कर्मविपाक सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १५४०, आश्विन शुक्ल, १०, गुरुवार, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. पंडित. रामा; उप. आ. अमररत्नसूरि (गुरु आ. हेमरत्नसूरि, आगमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक खडित होने के कारण पत्रांक २ लिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२६४११, १३४५७). कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, क्र. गर्गमहर्षि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: कम्मविवागंच सो अइरा, गाथा-१६८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा १६६ अपूर्ण से है.) कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ-पारमानंदी टीका, आ. परमानंदसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: तये कृतमिति गाथार्थः, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ३७७२५. रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७३८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. कलाबाई हीरादे, प्रले. मु. जीवण (गुरु मु. रायचंद ऋषि); गुपि.मु. रायचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४३). रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितलि वास उसइजी; अंति: ते पामइ निरवाणरे, गाथा-२३. ३७७२६. पंचमी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं दिया गया है., जैदे., (२५.५४११, १३४४०). सौभाग्यपंचमी देववंदन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम बाजोठ ऊपर तथा; अंति: चेइयाइं जावंती. ३७७२७. (८) २४ मांडला व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ७४३५). १. पे. नाम. चोवीस मांडला विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: आगारे आसन्ने उच्चारे; अंति: पासवणे अहीयासे. २.पे. नाम. सुविधिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: में कीनो नहीं तुम; अंति: लीजें भक्ति पराग, गाथा-५. ३७७२८. सुकोशलमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४११.५, १३४४४). सुकोशलमुनि चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., पद्य, आदि: सहि गुरूवयणे सांभली; अंति: देवराज प्रणमइ पाय, (पूर्ण, पू.वि. अंतिमवाक्य अपूर्ण है.) ३७७२९. (+) वीसी जिनगुण विहरमान, अपूर्ण, वि. १८५०, आषाढ़ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्रले. पं. आनंदविजय (गुरु मु. उत्तमविजय); पठ. मु. आनंदविजय शिष्य (गुरु पं. आनंदविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४९). २० विहरमानजिन स्तवन, पं. आनंदविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: (-); अंति: संपद वीसजिनवर मनरली, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., स्तवन १७ गाथा ३ अपूर्ण से स्तवन २० तक है.) ३७७३०. (-) बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११, १५४४२). प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वच्छ शुक्र सन्मुख; अंति: शुक्र सन्मुख टालीइ. ३७७३१. (#) सोल स्वप्न विचार- व्यवहार सूत्र चूलिका मध्ये, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची __ चंद्रगुप्त १६ स्वप्न विचार, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सो सुही भविस्सइ, (पू.वि. स्वप्न ७ अपूर्ण से है.) ३७७३३. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४३८). १.पे. नाम. सुकोशल कीर्तिधरमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सुकोशलमुनि सज्झाय, मु. सूरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भणइ श्रीसंघ प्रसन्न, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा २८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. हीरविजयसूरि सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीसइ जिण प्रणमइ; अंति: हरख धरी बोलइ आसीस, गाथा-७. ३. पे. नाम. विजयसेनसूरि सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मु. जयवंत शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीसइ जिनमनि धरी; अंति: जीवन कोडिवरीसरे, गाथा-९. ३७७३६. (#) महावीरजिन स्तव व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. श्रावि. चिम्मो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३२-३८). १.पे. नाम. महावीरचरित्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०, ग्रं. ३५७. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयरसमीरं मोहपंक; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. ३७७३७. (+) नमस्कार महामंत्र सह अवचूरि व भयहर स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६२०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. ग. समयसागर (गुरु आ. विजयसागर पंडित); गुपि. आ. विजयसागर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ३४५३). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: शक्रादिकृतां पूजा; अंति: त्यादिना ज्ञेयम्. २. पे. नाम. भयहर स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (१)दिव्यामानुषतिरि, (२)श्रीयशोभद्रसूरिप्रदत; अंति: (अपठनीय). ३७७३८. कायोत्सर्ग २१ दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३७). कायोत्सर्ग २१ दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: घोडैरी परै ऊंचो नीचो; अंति: ते अनुपेक्ष दोष. ३७७३९. (+) हैमधातु पाठ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४२). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: भू सत्तायां पांपाने; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "परस्मैपद" तक का पाठ है.) ३७७४०. स्तवन व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. मनोरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११,११४३४). १. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, उपा. अमरसी, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीडा हरकर कहै रे; अंति: अमरसी कहै उवझाय, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमिश्वर गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नेम काइ फिर चाल्या; अंति: जिनहरख पयापै हो, गाथा-९. ३७७४१. कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४४०). १.पे. नाम. शत्रकेतु कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ शत्रुकेतु कथा, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वदेस भूमिभूषण; अंति: थयो मन माहि खेद धरई. २. पे. नाम. त्रिदडिया कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. त्रिदंडिया कथा, मा.गु., गद्य, आदि: नमगुत्तस्सति; अंति: इति अष्टम मदः. ३७७४२. गौतमस्वामी अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. सागर जोगी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १२४३४). गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी गोतम; अंति: प्रगट्यौ परधाना, गाथा-८. ३७७४३. (+) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १२-१४४३७). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणइ; अंति: मिच्छामिदुक्कडं. ३७७४४. (+) श्रीदेवीनो इंदकार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १९४४५). श्रीदेवीनो इंदकार, मा.गु., गद्य, आदि: पीला सोना मांहे कणकी; अंति: आसारी धरन हारीने. ३७७४५. दशार्णभद्र रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४११, ९x४२). दशार्णभद्रराजा रास, आ. हीरानंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीर जिणेसर पय नमीए; अंति: बोलइ हीरानंद सूरि के, गाथा-३१. ३७७४६. कृष्णपक्ष शुक्लपक्ष दंपति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३२). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ___ १३ अपूर्ण तक है.) ३७७४७. चंद्रप्रभु ढाल व अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १५४४७). १.पे. नाम. चंद्रप्रभु ढाल, पृ. १अ, संपूर्ण. __ चंद्रप्रभजिन ढालिया, पं. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चंदाप्रभु चित मोह; अंति: भगत में पाछ राखो मती, गाथा-१५. २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: चंपानगरथी चालिया; अंति: रतनचंद गुण० ए अधिकार, गाथा-१५. ३७७४८. चौबीसजिन राशि नक्षत्र व प्रतिमा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, पठ. श्राव. खूबा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १०४३८). १. पे. नाम. चोवीशजिन राशि नक्षत्र विचार, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: रासधणीन मेल जाणवो, (पू.वि. सुपार्श्वजिन अपूर्ण से महावीरजिन तक का वर्णन.) २. पे. नाम. प्रतिमा अधिकार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. जिनप्रतिमा लक्षण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रति स्वरूप गुणागण; अंति: प्रसादे पूजाइ. ३७७४९. स्तुति, स्तवन व गहुँली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४४). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रेयोलता पल्लवनैक; अंति: शांतिनाथप्रणौम्यहम्, गाथा-५. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: कुंकुम चंदन गुअलि; अंति: कोडि कल्याणनीरै, गाथा-५. ३. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. विद्याविमल, मा.गु., पद्य, आदि: क्षत्रीकुंड नयर; अंति: विद्याविमल०परमेश्वरो, गाथा-१०. ३७७५०. औपदेशिक सज्झाय व लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४९, १५४५१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर इम उपदिसै आगै; अंति: इम पभणै रूपचंदरे, गाथा-२१. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ___ मा.गु., पद्य, आदि: एक छे पालखाजी बहुला; अंति: नरक मे खायरे प्राणी, गाथा-९. ३७७५१. योगोद्वहनविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पाठ को समझने हेतु यंत्र दिया गया है., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४२८-६५). योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आवश्यकाक्वाकालिकेषु; अंति: स्कंधे काल दिन नंदि. ३७७५२. शाश्वतजिन प्रासाद जिनबिंब विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११, १२४२२). शाश्वतजिन प्रासाद जिनबिंब विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: असुरकुमारे जिणहरलाख; अंति: भवने १२० बिंब संख्या. ३७७५३. (+) चंद्रप्रभजिन अष्टक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०,५४३७). चंद्रप्रभजिन अष्टक, मु. गणेश ऋषि, सं., पद्य, आदि: चंद्रप्रभं नौमि यदीय; अंति: नौमि सुकांतियुक्तम्, श्लोक-८. चंद्रप्रभजिन अष्टक सह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहं चंद्रप्रभं नौमि; अंति: कांतिर्यस्य सुकांति. ३७७५४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. मु. कासी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ११४४६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३७७५५.(+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४४-४७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ३७७५६. समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८-५७(१ से ५७)=१, जैदे., (२५४१०.५, ११४३८). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: नाममैं परमारथ विरतंत, __अधिकार-१३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७, (पू.वि. १३वें अधिकार की गाथा २२ अपूर्ण से है.) ३७७५७. (+) स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१०.५, १४४५०). १.पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: शांतिविधिश्रुतां, श्लोक-११. २.पे. नाम. नवग्रह मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ९ग्रह मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ आदित्यायः काशिबपुत; अंति: जाताय सर्व० शांति०, श्लोक-९. ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३७७५८.(+) संघपट्ट प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले.ग. पद्मवल्लभ पं. (गुरु आ. जिनवल्लभसूरि); गुपि. आ. जिनवल्लभसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५२). संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: वह्निज्वालावलीढं; अंति: यापीत्थं कद.महे, श्लोक-४०. ३७७६१. आदिजिन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४१०.५, ११४३०). १.पे. नाम. सिद्धाचलमंडण ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: सुगुण सहेजा साभलो; अंति: जिनभक्तिसुरिंद कि, गाथा-१२. २. पे. नाम. लोद्रवपुर चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज फली रे जिनराज निज; अंति: भाजै भवनो खेलोरे, गाथा-७. ३७७६२. नेमीनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३४). नेमिजिन स्तवन, मु. जिनकीर्तिसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वर देहि हे मुझ सासण; अंति: अष्टमहासिद्धि ते लहइ, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३३५ ३७७६३. धन्नाअणगार व धन्नाकाकंदी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. रतु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१०, १६x४१). १. पे. नाम. धन्ना अणगार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नगर काकंदी हो मुनीसर; अंति: वसी रतन कह कर जोड, गाथा-१६. २. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सजाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: गाया है मनमै गहगही, गाथा-२२. ३७७६४. मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. माहा कवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१०, १५४३०). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: भवरो अंत हो सामी, गाथा-२१. ३७७६५. (+) जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५२). १.पे. नाम. जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जीव उतपति जोयनी आपणी; अंति: लीजै भव लाहोरे, गाथा-३१. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: धर्म म मुकीस विनय; अंति: चिरकाल जनंदोरे, गाथा-९. ३७७६७. नवकार स्तवन व सीमंधरस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१०.५, १७४५४). १. पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरिहंतदेवा; अंति: चाहो तो धरम करो, गाथा-१३. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामीरो स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. चौथमलजी म., रा., पद्य, आदि: आज भलो दिन उगो हो; अंति: मेरा आवागमण निवार, ढाल-३. ३७७६९. इलाचीकुमर चोपाई, संपूर्ण, वि. १७६८, माघ कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पद्मावती, प्रले. मु. ऋषभसौभाग्य (गुरु पं. सुमतिसौभाग्य); गुपि. पं. सुमतिसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४६१-६५). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदाइक सदा; अंति: भावतणा गुण एहवा जाणी, ढाल-१६, गाथा-१८७, ग्रं. २९९. ३७७७०. गजसुकुमालमुनि छढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०, १६४४५-५०). गजसुकुमालमुनि छढालियो, मु. केशव, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: आदिजिनेसर आदिकर प्रण; अंति: हो संघ सुख अपार, ढाल-६, गाथा-५३. ३७७७१. सप्त नय विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, १६४५०). नैगमादिसप्तनय विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ऋजुसूत्र नय विवरण अपूर्ण से दृष्टांत कथा अपूर्ण तक है.) ३७७७२. (+) जीवाजीव विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १७४४२). १.पे. नाम. वनस्पतिजीव विचार सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र-हिस्सा शस्त्रपरिज्ञा उद्देश-५ वनस्पतिजीव विचार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: से वेमि एयंमि जाइधम्; अंति: एयंपि विपरिणामधम्मयं. आचारांगसूत्र-हिस्सा शस्त्रपरिज्ञा उद्देश-५ वनस्पतिजीव विचार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सेवेमि एम ते कहुं छु; अंति: फीरे एह विचार करजो. For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. वनस्पतिआहार विचार सह बालावबोध, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा आहारपरिज्ञा अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इह खलु; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पाठ है.) सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा आहारपरिज्ञा अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामि; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पाठ है.) ३७७७३. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१०.५, २२४५४). १. पे. नाम. शालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल तणे भवे; अंति: सुंदररूप निधातोरे, गाथा-१८. २.पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: कामसेना र इ पुत्रनु; अंति: लाल ते पामइ भवपार रे, गाथा-१७. ३.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम लोग मित्र सुत; अंति: तात चउरासी गति फिरना, गाथा-१३. ३७७७६. पंचांग विधि भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वटपद्रनगर, प्रले. ग. विनीतविजय (गुरु ग. नेमविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सत्ताईस नक्षत्रों के नामों का कोष्ठक तथा रोहिणीचक्र आदि दिए गए हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, २७४६२). पंचांग विधि, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: गवरीनंद आनंद करि; अंति: राज० भांति करि काज, गाथा-५८. ३७७७७. (+) स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८११, पौष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. भीनमाल, प्रले. पंडित. जोधाक पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १२४३१-३९). १. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीर जिणेसर केरोसीस; अंति: गौतम तूठे संपति कोडि, गाथा-९. २.पे. नाम. जंबूकुमारऋषि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेणक नरवर राजी; अंति: पोहता मोक्ष दुआर, गाथा-१६. ३. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण वीनवू; अंति: सांभलो सकोई साधरे, गाथा-१६. ३७७७८. आदिनाथना १३ भव, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०). आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप पछिम; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ३७७७९. जीवणदासरो गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४४१). जीवणदासजी गीत, मु. खीमसी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि पाय नमी; अंति: खीमसी० उदार रेसईयां, कडी-७. ३७७८०. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १७७७, कार्तिक कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. भटनेर, पठ. मु. जयसिंह ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १५४५०). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिसहजिण पमुह; अंति: मनि आणंदई संथुआ, ढाल-७, गाथा-८८. ३७७८१. षोडश सत्यवादी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४४). १६ सत्यवादी सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचारी चूडामणी; अंति: खेम सदा सुखकार हो. ३७७८२. (#) चौद गुणस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४४९). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि वीरजिणेसरदेव; अंति: तेह घरि सुख हुइ घणुं, गाथा-२३. For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३३७ ३७७८३. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११,७४४६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ से ७ व २६ से ४१ अपूर्णतक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण भवन स्वर्गलोक; अंति: (-). ३७७८४. पच्चक्खाण गाथा, पडिलेहण गाथा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४२४). १. पे. नाम. पच्चक्खाण आगारसंख्या गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. कोष्ठक सहित. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमुक्कारे; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. २. पे. नाम, पडिलेहण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. कोष्ठक सहित. प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आसाढे मासे दुपया पोस; अंति: चित्त अट्ठ वइसाहे, गाथा-६. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. योगशास्त्र के तृतीय प्रकाश से उद्धृत. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुखवस्विम पिसंपातिम; अंति: रक्षणाच्चोपयोगि, गाथा-१. ३७७८६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०, १२४३८). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: वीर त्रिभुवन तिलो, गाथा-१९. २. पे. नाम. विमलनाथ स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. विमलजिन स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: विमल जिणैसर वंदीयै; अंति: तिम धरीय निजमन सारदा, गाथा-२१. ३. पे. नाम. काप्रेडा पार्श्व स्तवन, प्र. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कापडहेडा, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: कापडहेडा सै धणी रे; अंति: हरष विघन विहंडणो, गाथा-११. ३७७८७. (2) आभाणक शतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १८४३५). आभाणशतक, मु. धनविजय, सं., पद्य, वि. १६९९, आदि: प्रणम्य लंबोदरमादरेण; अंति: स्वसुखानि भुक्ष्वः, श्लोक-१००. ३७७८८. गौतम पृच्छा , संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १७४४०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. ३७७८९. पट्टावली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. ग. खुशालहस गणि (गुरु ग. युक्तिहस); गुपि.ग. युक्तिहंस (गुरु पंन्या. कनकहंस), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३७). १.पे. नाम. तपागच्छीय पट्टावली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: ६५ चरणकमलेभ्यो नमः. २. पे. नाम. मुनिसुंदरसूरि पट्टावली, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. युक्तिहंस शिष्य, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरपश्चात् मुनी; अंति: चरणकमलेभ्यो नमः. ३७७९०, पंचपरमेष्टि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११, ९४३२). पंचपरमेष्ठि गीत, चरणकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: परम जगतगुरु ध्याईयइ; अंति: इम कह चरणकुमार रे, ढाल-५. ३७७९२. (+) स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १८२८, आषाढ़ शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. लीबडी, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २१४५९). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो; अंति: रामविजय जयश्री लही, स्तवन-२४. For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७७९३. स्तवन व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्रांक नहीं दिया गया है. यंत्र सहित., जैदे., (२४.५X१०.५, १४५४६). १. पे नाम, गुरुवंदन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. मु. रामसुंदर, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीजिनवर प्रणमी करी, अंतिः हो सखी पातिक दूरि, गाथा ६. . २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर परम दयालु, अंतिः पुरुष नहि पण रासभा, गाथा- ९. ३. पे नाम, मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, यंत्र-मंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-), अंति: (-). ३७७९४. कुसुमांजली, विणीय नयरी व महावीर कलस, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११.५, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११-१६X३९-४६). १. पे. नाम. कुसुमांजली, पृ. १आ, संपूर्ण स्नात्रपूजा, आव, देपाल भोजक, प्रा., मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: मुक्तालंकार विकार, अंतिः सरिस भविवह पुरउ आस, कुसुमांजलि-३. २. पे. नाम. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: विणीयनयरीय २ नाभिनिव; अंति: तुम्ह दियो वर मुक्ति, गाथा- ११. ३. पे नाम, महावीर कलश, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन कलश, आ. मंगलसूरि, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदिः श्रेयः पल्लवयंतु वः अंतिः भविआ पूजहु एयज देउ, श्लोक-१९. ३७७९५. सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, जैदे (२४.५४१०.५, २३४५२). "" १. पे. नाम. जंबुस्वामी पंचभव सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय- पंचभववर्णन, मु. रामजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद प्रणमुं हो; अंति: हो के मुनिवर रामजी, गाथा - ३३. २. पे. नाम. धनाअणगार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. धन्ना अणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना, अंति: गाया हो मन में गहगही, २. पे नाम, ऋषभजिन पद, प्र. १अ संपूर्ण गाथा - २२. ३. पे. नाम. वीस विहरमान स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर स्वामी प्रमुख; अंति: जासो सिरपुर ठाम, गाथा - १०. ३७७९६. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८९, चैत्र कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ४, ले. स्थल. उटाला, पठ मु. तुलसीदास (गुरु मु. लालरत्न); प्रले. मु. लालरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२४४१०.५, १३४३९). " १. पे. नाम. राणपुर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरो रलीयामणौ रे; अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा- ७. आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं, पद्य, आदि देखो माइ आज रिषभ घर अंतिः साधुकीरति गुण गावे, गाथा- ३. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: गाजे गौडी राजीयो; अंति: तुठौ आपइ तुरतइ नामकि, गाथा - ९. ४. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली, अंतिः श्रीयसे पार्श्वनाथ, श्लोक - १. For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३७७९७. (+) ज्ञानपंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, १५४५२). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वदीयइए; अंति: श्रीभावहरष सुहंकरो, गाथा-२३, संपूर्ण. ३७७९८. आषाढभूति रास, संपूर्ण, वि. १६५६, मार्गशीर्ष, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. महमदाबादनगर, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७). आषाढाभूतिमुनि रास, मु. धर्मरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिसंति जिणेसर भुवण; अंति: घरि घरि मंगलमालू ए, गाथा-५७. ३७७९९. सज्झाय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नही दिया गया है., जैदे., (२५४१०, १५४५३). १. पे. नाम. आत्मशीख सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७५७, गुरुवार, ले.स्थल. माधवदुर्ग, प्रले. कुशला, प्र.ले.पु. सामान्य. वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास, पुहि., पद्य, आदि: इह प्रमादी जीव जग; अंति: गोपाल० वैकुंठ ले जाइ, गाथा-२४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमस्ते देवदेवाय; अंति: नवनवनवमभ्युदयं तव, श्लोक-९. ३७८००. उपदेश रत्नकोष सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११, १३-१५४३४-४२). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अति: पामइ रमइ सएच्छाए, गाथा-२५. उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रत्न तेहर्नु; अंति: स्थलिं स्वेच्छाइ रमि. ३७८०१. गौतमस्वामी रास व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १४४४३). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, वि. १८७६, वैशाख शुक्ल, १०, प्रले. मु. राजा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र मुनि० भणे ए, गाथा-४८. २. पे. नाम. चौबीसजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. २४ जिन मोक्षस्थान स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापदे श्रीआदिजिन; अंति: सयल संधै सुख करो, गाथा-१. ३७८०३. (+) गौतम पृच्छा स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक नहीं दिया गया है., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १६x४६). १.पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३२ तक लिखा है., वि. मात्र प्रतीक पाठ दिया गया है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: श्रियंत इव शाश्वती, श्लोक-१६. ३. पे. नाम. मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन के ५० बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: दृष्टपडि सूत्रअर्थनु; अंति: विराधना परिहरुं. ४. पे. नाम. पंच परमेष्ठिपद गणना, पृ. १आ, संपूर्ण. __ पंचपरमेष्ठिपद गणनु, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३७८०४. सप्त कुव्यसन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं दिया गया है., जैदे., (२४.५४११, १३४३४). ७ व्यसन सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जूआ विसनई वाहीयउ; अंति: पामउ अविचल धाम रे, गाथा-१५. ३७८०६. स्तोत्र व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. सामत ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरती जग जाण; अंति: त्रिभुवन तिलो, गाथा-५. २. पे. नाम. सीमंधर स्वामीनी विनती, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. गंग मुनि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: श्रीमंधिरसांमी सुणो; अंति: कहे करी प्रणाम, गाथा-१३. ३७८०७. पद्मावती आराधना व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पडधरी, प्रले. मु. धर्मसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १८४५०). १.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवि राणी पदमावती; अंति: कहे पापथी छूटि ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पडघरी. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घडी घोडा हाथियाजी; अंति: पुण्य तणा प्रमाण रे, गाथा-११. ३७८०८. दोषावली व अंग फरक्यानो विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४७). १. पे. नाम. दोषावली, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. __ ग्रह दोषावली, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होमीइं सुखं सात्, (पू.वि. दोष संख्या ११ अपूर्ण से १२ तक है.) २. पे. नाम. अंग स्फुरण विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. अंगस्फुरण विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति गोयम गुरु वंदि; अंति: पंडित करी विचार, गाथा-२०. ३७८०९. जिनरत्नसूरि गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १७०७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १२४४५). १.पे. नाम. जिनरत्नसूरि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. राजहर्षगणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनि धरिय सरसति माय; अति: सूरिकु देत आशीष, गाथा-७. २. पे. नाम. जिनरत्नसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनडओ उमाह्यओ मिलिया; अंति: दीपइ अधिकइ नूररे, गाथा-९. ३७८१०. थापनकल्प व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १५४४४). १.पे. नाम. थापन कल्प, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थापनाचार्य कल्प, मा.गु., गद्य, आदि: जिम श्रीभद्रबाहु; अंति: ते वस्तु अखूट थाय. २.पे. नाम, औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मागु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३७८११. तीन मनोरथ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१०, १२४३२). श्रावकमनोरथ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ करतो थको; अंति: अंत छेहडो करे. ३७८१२. (+) वीतराग स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४३८). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दुखहरण जिणेंद्र कर्म; अंति: ट्यो तुम ग्यान पायो, गाथा-९. २.पे. नाम. श्लोकसंग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुराणहुंडी, सं., पद्य, आदि: सप्तदीप सरतनंतु; अंति: सर्वधर्मोपुदिष्टतां, श्लोक-२१.. ३७८१३. (+) संतनाथजी की आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ७४२८). __ शांतिजिन आरती, पुहिं., पद्य, आदि: जै जै आरती शांति; अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-६. ३७८१४. केसरबाई स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १३४५३). For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org ३४१ केसरबाई गहुली, मु. चौखमलजी म. रा., पद्य वि. १९६२, आदि: केसरबाई नाम आपको अंतिः उगणीसे बासठ माये, गाथा - १२. 1 ३७८१५. सज्झाय व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५X११.५, ११-१४X३७). १. पे. नाम. दानशीलतप भावना संवाद, पृ. १अ - ४आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि प्रथम जिनेसर पाय अंतिः समृद्धि सुखकारो रे, ढाल - ४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. २. पे. नाम. महादशा अंतर्दशा विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं., गद्य, आदि: सूर्यदिनदशा २०; अंति: एकादशे ११ भृगुः. ३७८१६. स्तवन व श्लोकार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६X११, ९-११X३८-४५). १. पे. नाम. छन्नू तीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. ९६ तीर्थंकर स्तवन, उपा. सुमतिशेखर, मा.गु, पद्य, आदि: त्रणि चडवीसी बहुतिर, अंतिः पर्यपड़ सबल संघ जइकारो, गाथा - १५. २. पे. नाम, श्लोक संग्रह. पू. २अ २आ, संपूर्ण लोकसंग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: दुडुत्तणेण अंतिः केतलाये घिन पामई, गाथा-१ (वि. गाथा का अर्थ भी दिया " गया है.) ३७८१७. स्तवन व कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, १४X४०). १. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. 3 " नेमिजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु पद्य वि. १६वी, आदि जायवकुल सिणगार सिरि, अंति: अनंती ते लहड़ ए. कडी ३३. २. पे. नाम. कवित्त, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रास्तावित कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: विनय देव रंजी विनय; अंतिः ते काम कमह न छंडीअ, गाथा-१. ३७८१८. (#) सप्तभंगी स्वरूप सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२, १०x४२). सप्तभंगी स्वरूप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सिया अत्थि १ सिया; अंतिः सव्वभावे सुसमया, गाथा - ३. सप्तभंगी स्वरूप गाथा- विवरण, पं. दानचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, आदि: सकल पदार्थ आप आपणे; अंति: विषई सम्मत्तं. ३०८१९ (+) स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे २ प्रले गणल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५X११.५, १३३८). १. पे. नाम, नेमि जिन स्तवन, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मन भजुं सुनै गुणनतन, अंति: सरै हमारा काज, गाथा - ५. ३७८२०. जंबूस्वामी चरित्र कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २६x१२, १४४१). मिजिन स्तवन, मु. गजानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पीय नेम पधारो हो कि; अंति: गजानंद० पावो सुखघणा, गाथा - ११. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सुप्रभावं जिनं, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'मधुबिंदु कथा' तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only ३७८२१. (+) शत्रुंजय लघुकल्प, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, १५X३६). शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२५. ३७८२२. कलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६११.५, १५X३५). कलावती सती सज्झाय, मु. यादव ऋषि, मा.गु, पद्य, आदि: सुमति जिणेसर पाय अंतिः ऋषि यादव जयकार रे, गाथा- २३. Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७८२३. मौनएकादशी गणनु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १२४४१). मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरत; अंति: श्रीआरण्यकनाथाय नमः. ३७८२४. बिंबस्थापन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं दिया गया है., जैदे., (२६४११, १२४५५). १. पे. नाम. गृहबिंबस्थापना विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पूर्वं भव्यमुहर्त; अंति: तस्य नाम स्मर्यते. २. पे. नाम. जिनप्रतिमा श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: दालिदं दोहग्ग; अंति: जिन पडिमकारिणं, गाथा-१. ३७८२५. (+) दुसमकाल श्रीसंघ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. श्राव. रत्नदोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११,१०४३२). दुषमकाल श्रीश्रमणसंघ स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: वीरजिण भुवणविस्सुय; अंति: दूसमसंघं नमह निच्चं, गाथा-२६. ३७८२६. (+) सीयल नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १०४३१). साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पाचे अंद्री अहिनसि; अंति: नितिवाडु मुनिवर एहवा, गाथा-१२. ३७८२७. (+) साढीपचवीस देश सह टबार्थ -समवायांगसूत्रे, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ६४३२). समवायांगसूत्र-साढीपंचवीसदेस, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: चक्रिणं रामकन्हाणं. समवायांगसूत्र-साढीपंचवीसदेस-टबार्थ, माग., गद्य, आदिः (-); अंति: देवनी उत्पत्ति छे. ३७८२८. संथारापोरसि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२६४११, १३४३६). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: एसमत्तमे गहीइ, गाथा-१३. ३७८२९. चुर्विंशतिजिन स्तुतयः, संपूर्ण, वि. १५३६, आश्विन शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कुतबपुरनगर, पठ. श्रावि. गउरी; प्रले. ग. भावप्रिय (गुरु ग. सारप्रिय पंडित); गुपि.ग. सारप्रिय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १५४५१). स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: जनेन येन क्रियते; अंति: परमोदकश्रीः, श्लोक-२८. ३७८३०. (+) पुन्यफल कुलक, संपूर्ण, वि. १६१८, चैत्र शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. दीवबिंदर, प्रले. श्राव. रीखवदास लहीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३३). पुण्यफल कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा वासस; अंति: जिणकित्ति उज्जमिह, गाथा-१६. । ३७८३१. (-) ठाणांगसूत्र- अट्ठम ठाणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११.५, १०४३४). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अष्टम स्थानक मात्र, 'उवसमावण तातो अभुट्ठियवं भवंति'- पाठ तक है.) ३७८३२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०, १८४५७). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरंग पडो रे संसार; अंति: कल्पवृक्ष जिम एह फलै, गाथा-१७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नवघाटीमां भटकत रे; अंति: तुम जावो छो हार रे, गाथा-६. ३७८३३. कर लक्षण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, २१४५१). करलक्खण, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय जिणममिअगुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३४३ ३७८३४. पच्चक्खाण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रावण कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. कीसनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३७८३५. लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४२९). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३७८३६. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १२४४०). १.पे. नाम. दशानभद्र सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रावण कृष्ण, ९, ले.स्थल. कालंद्रीनगर, पठ. मु. खीमाविजय (गुरु पं. कपूरविजय गणि); ग. नायकविजय (गुरु ग. कपूरविजय); प्रले. पं. कपूरविजय गणि (गुरु पंन्या. केसरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: भणे लालविजय निशदिश, गाथा-९. २. पे. नाम. आदिसर अजितनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अरिहंत भगवंत; अंति: जयो तुहि देवाधिदेवा, गाथा-५. ३. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साहिब बाहु जिणेसर; अंति: ओ यश कहे सुख अनंत हो, गाथा-५. ३७८३७. अंगुलसत्तरि सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११, १२४३५). अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभसमगमणमुसभजिणमणि; अंति: रइअमिणं सपरगुणहेडं, गाथा-६९. ३७८३८. नववाडनी नवढाल, संपूर्ण, वि. १६५५, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, १४४५०). ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि: आदि आदि जिणेसर नमु; अंति: वृद्धि रे मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-५५. ३७८४०. (+) मौन एकादशी गुणणो, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. लीखमीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३६). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीप भरते अतीत; अंति: आरण्यकाय नमः. ३७८४१. गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. कालाउना, प्रले.पं. कर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, १७४५४). १.पे. नाम. श्रावक गुण २१ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कइयै मिलसइ श्रावक; अंति: सफल जनम तिण लीधो जी, गाथा-२१. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: कबहिं मिलै जो मुज; अंति: करमज है करतारा है, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जीव तुं विमासिकबु; अंति: समयसुंदर० काहुचेरा, गाथा-४. ४. पे. नाम. स्वार्थ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: स्वारथ की सब हेरे; अंति: साचा एक है धरम सखाई, गाथा-६. ५. पे. नाम. लोभ निवारण गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: रामा रामा धन धन फिरत; अंति: समयसुंदर० एक मनं, गाथा-३. ३७८४३. (+) कल्पसूत्र पीठिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४३). For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: पूरो अर्थ कहै. ३७८४५. (#) फलवर्धि पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३३). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. वीरम, रा., पद्य, वि. १७२३, आदि: अरे लाल फलवर्द्धि; अंति: सदा मुझ आवागमन निवार, गाथा-११. ३७८४६. इलाची कुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५८, आषाढ़ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४२४). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे ईलापुत्र जाणीयै; अंति: इम लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ३७८४७. पार्श्वजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४११.५, १७४४८). पार्श्वजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ दीधा; अंति: (-). ३७८४८. प्रायच्छितविधि व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १४४५०). १. पे. नाम. प्रायच्छित विधि, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडकमी; अंति: खामीजै पछै वांदणा. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिनसीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय त्रिभुवन आदि; अंति: शयनंतवंत अंतरगतिगामी, गाथा-१, (वि. प्रतिलेखक ने स्तुति के अन्त में गाथा संख्या १ लिखी है.) ३७८४९. सम्मेतशिखर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६९, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कृष्णगढ, पठ. ग. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३७). सम्मेतगिरितीर्थ स्तवन, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, आदि: समेतशिखर सिर वंदओ; अंति: ते सुख चिर नंदइरे, श्लोक-१४. ३७८५०. (+-) स्तवन पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४११, १३४३१). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. गौतमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडी जिनराया हु; अंति: गौतमना छो तुमे ईसरे, गाथा-५. २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचल नित वंदीये; अंति: लहे ते नर चिरनंदे, गाथा-५. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: आंगन कल्प फल्योरे; अंति: रह्यं स्योहल्यो रे, गाथा-२. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: रेघडीआले बाहो रे मत; अंति: निकला विरला कोय गावै, पद-३. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन पद, मु. वीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अजब जोत मेरे जिनकी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३७८५१. स्वाध्याय पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, १४४३८-४४). १. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंति: सेवकनइ तारइ संसार, गाथा-१६. २.पे. नाम. पद चरचरी, पृ. १आ, संपूर्ण. चर्चरी पद, पुहिं., पद्य, आदि: कर काहा अभिमान बाउरे; अंति: जिन धरम के सरन आउरे, गाथा-६. ३. पे. नाम. वीर जिनपद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ महावीरजिन पद, पुहि., पद्य, आदि: त्रिहोलोकमि प्रधान; अंति: माल मागिदानजी, गाथा-६. ४. पे. नाम. स्वाध्याय पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: माणस माहि माच्छा; अंति: जेणी दिशि हुइ भरतार, गाथा-४. ५. पे. नाम. पद संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. पुहिं., पद्य, आदि: सुंदरी सबही मिली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण तक है.) ३७८५३. उपदेश छत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४१०.५, १३४३६). उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सरुप यामे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३२ तक लिखा है.) ३७८५४. (#) चतुर्विंशतिजिन स्तवन-अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९४५५). जिनभवोत्कीर्तन स्तवन-अवचूरि, पं. रत्नसागर गणि, सं., गद्य, आदि: आद्ये भवे श्रीऋषभोव; अंति: तिर्यग्गत्यं एवं २७. ३७८५५. पर्युषण चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३५). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उपजे विनय विनीत, गाथा-३, (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन पाठक कहे श्रुत; अंति: वाणी विनीत रशाल, गाथा-३. ३.पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहेन सुदर्शना; अंति: सुणज्यो एक ही चित, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सारखी वंदु सदा विनीत, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवत्सरी दिन; अंति: वीरने चरणे नमुशीस, गाथा-३. ३७८५६. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१४(१ से १४)=२, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, १५४४२). १. पे. नाम. शीलविषे परपुरुष गमन परित्याग स्त्री हितोपदेश सज्झाय, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अष्ट महाजस विस्तरे, गाथा-१०, (पू.वि. मात्र अन्तिम गाथा है.) २. पे. नाम. झाझरियामुनि सज्झाय, पृ. १५अ-१६आ, संपूर्ण. मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीस नमावी; अंति: इम सांभलता आणंद के, ढाल-४, गाथा-४३. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउजी रे पिउजी नाम; अंति: मोहन भेट्या आशा फली, गाथा-७. ३७८५७. (+) सांबप्रद्युम्न रास व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११-१५४२८-४५). १. पे. नाम. सांबप्रद्युम्न प्रबंध, पृ. २१अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: (-); अंति: एम भणै संघ सुजस जगीस, गाथा-५३५, (पू.वि. मात्र अन्तिम गाथा है.) २. पे. नाम. वीरजिन पद, पृ. २१अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, तानसेन, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि पंथी वीर पय; अंति: भागउसुख भयो हइ सरीर, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. २१अ, संपूर्ण. : For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir '-) ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती पद, पुहि., पद्य, आदि: चले लाल हो क्युं रथ; अंति: सामरे तूटा सूतन जोरि, गाथा-२. ४. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: कब कीहूं थाढी लाल; अंति: जीवकुं सुख उपजाउं, गाथा-७. ५.पे. नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. २१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सगहुसेनी सजन न देख; अंति: प्रभु कोई आणि मिलावइ, गाथा-३. ६.पे. नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. २१आ, संपूर्ण. तानसेन, पुहि., पद्य, आदि: अला कोउ खूबसूरति; अंति: तानसेन गुण गावे, गाथा-२. ७. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि पद, पृ. २१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भटारिक तीनहु अडभाडी; अंति: चारउ भरम जानित भागी, गाथा-३. ३७८५९. (+) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-५(१ से ५)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५४११, १०-१७४३१-४३). १.पे. नाम. शत्रुजयालंकार श्रीआदिनाथ स्तोत्र बहुविछंद, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयमंडन, ग. अभयतिलक, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: प्रसदात्सदामद्यसौ, श्लोक-३२, (पू.वि. मात्र अन्तिम २ गाथाएँ हैं.) २.पे. नाम. बहुविहछंदजाति शरीऋषभनाथ स्तोत्र, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तोत्र-बहुविहछंद जाति, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सयल भुवणिक्क बंधन; अंति: तुहपवयणिमणुहुज्जमह, गाथा-३३. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तोत्र, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तोत्र-स्तंभतीर्थमंडन, उपा. जयधर्म, प्रा., पद्य, आदि: लावन्नामय कलिय; अंति: सयल दूरे कहनासणे, श्लोक-२५. ३७८६०. (+#) अष्टभंगी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १३४५३). अष्टभंगी, मु. जयसोम-शिष्य, सं., गद्य, आदि: जीवभेदाः ५६३ तद्यथा; अंति: शिष्याशीष कहै लवलेसे. ३७८६२. (4) पार्श्वनाथ स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४४८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: प्रीतिविमल० मंगल करो, ढाल-५, गाथा-५५. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह , पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. __प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जय सिरि वंछिय सुहए; अंति: तूर्योपायोनविद्यते, गाथा-९. ३७८६३. मल्लिनाथ स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, २३४१४). १.पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: मोय कैसै तारोगै दीन; अंति: रूपचंद गुण गावत, गाथा-५. २.पे. नाम. शृंगार पद, पृ. १अ, संपूर्ण. वैद्रग, पुहिं., पद्य, आदि: चक्षु सरखत अद्भुत; अंति: षटविधान वैद्रग कहै, दोहा-२. ३७८६४. प्रश्न संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१२, १९४५०-५४). प्रदेशी प्रश्न, प्रा., गद्य, आदि: अजयसुरीकंता १ तह; अंति: अयभारोराय संबोही ११, संपूर्ण. प्रदेशी प्रश्न-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै प्रश्न परदेशी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रश्न-९ अपूर्ण तक का बालावबोध है.) ३७८६५. इग्यार गणधर देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(३)=४, जैदे., (२७४११, १२४३७). For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ११ गणधर देववंदन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर गोयम गणहर; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अचलस्वामी गणधर विनती तक है.) ३७८६६. ब्रह्मचर्यद्विपंचाशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३५-४३). ब्रह्मचर्य द्विपंचाशिका, मु. समरसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पाय प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २२ अपूर्ण तक है.) ३७८६७. धन्ना रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३९). धन्नाअणगार रास, मा.गु., पद्य, आदि: परम ज्योति परमेसरु; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ३७८६८. उत्तम उपदेशी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, दे., (२५.५४११.५, ८x१२-४७). उत्तमौपदेशी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: बालचंद० रूपछंद जाणीए, गाथा-३३, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा ३१ अपूर्ण से है.) ३७८६९. (+#) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४०). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल २ गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ३७८७१. सूरजजीरो सिलोको, संपूर्ण, वि. १९१७, भाद्रपद शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कोटासर, दे., (२५४१०.५, ९४३४-३६). सूरजजी सिलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि करोने; अंति: प्रह उठीने कहिज्यो, गाथा-१७. ३७८७२. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४१०, १२४४७). पार्श्वजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी परगडउ; अंति: तेहनी धन्या सिरि, गाथा-५१. ३७८७३. (+) दश पच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३४-३८). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ३७८७५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०, १२-१४४३१-४९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन गोडीमंडन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुज वीनती; अंति: इम जपइ जिनराज रे, गाथा-७. २.पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मनिमंदिरमांरमो; अंति: जे प्रणमइ पासकुमार, गाथा-८. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद सार सुमति; अंति: कमलविजय० निधान, गाथा-८. ३७८७६. मधुबिंदुसज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक नहीं दिया गया है., जैदे., (२५४१०, १५४४४). मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: परमसुख इम मांगीइ, गाथा-१०, (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण से है.) ३७८७७. सज्झाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. १९, पठ. मघो; प्रले. मयाराम ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्राकार प्रत के तीन टुकड़े है, प्रथम टुकड़ा अनुपलब्ध है. शेष दो टुकड़े हैं., जैदे., (२४४१०.५, १२-१९४३१-६५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लहीए लखमीसुभगरी सेण, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. संतोषनी सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संज्या भली रे संतोष; अंति: लहे केवल सुखकारी रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हो ऋषभजिन मानु प्यार; अंति: वेणती आवागमन निवारा, गाथा-४. ४. पे. नाम. पुद्गल पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: पुद्गल दाबे क्या; अंति: नवल कहै० घट में वासा, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाथा गिना है.) ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: घोडा जूठा है रे; अंति: तोय वै भव पारा रे, गाथा-८. ६. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनचरणे चरणे चित लाय; अंति: या विध समरो भगवान, गाथा-४. ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: समझ समझ जिया ज्ञान; अंति: रूपचंद० हुवै सरदारा, गाथा-३. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: पारी जिनस्यै नेह लगा; अंति: नवल० गमन मेटावोरे, गाथा-४. ९. पे. नाम. नेमिराजीमति पद, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: मेरी अँखिया शील से; अंति: आनंदघन० चित धरी रे, गाथा-५. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. गुणविलास, पुहिं., पद्य, आदि: दया विन करणी दुःखदान; अंति: गुणविलास० वाणी दया, गाथा-४. ११. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सब दुःख टालेंगे; अंति: सौभागयविमल० भवतीर, गाथा-४. १२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. राजाराम, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन तूं क्या फिरै; अंति: राजाराम० अरज है मोरी, पद-७. १३. पे. नाम. नेमराजीमति पद, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. अमर, पुहि., पद्य, आदि: नेम दुला थारी बाटरी; अंति: दास अमरपद चरण धरी, गाथा-५. १४. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: गुण अनंत अपार प्रभु; अंति: हमको सामी तुम आधार, गाथा-३. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: हे दरबाजे तेरे खोल; अंति: वनारसी० की छब जोर रे, गाथा-५. १६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. धर्मपाल, पुहिं., पद्य, आदि: गरज गरज घन वरसै देखो; अंति: धरमपाल. मोमन सरसै. गाथा-३. १७. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: आज ऋषभ घरि आवै देखो; अंति: फल साधुकीरत गुण गावे, ___ गाथा-५. १८. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरा मन मै तुं; अंति: साहिब तीन भुवन मै, गाथा-३. १९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: इस सहेर के बीच कोन; अंति: दसमान मान गुमान हो, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३४९ ३७८७८. असज्झाय स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १२४३४). असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिय वीरजिनेसर राय; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १७ अपूर्ण तक है.) ३७८७९. नलदवदंती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १७X४८). नलदमयंतीरास, आ. ऋषिवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५१२, आदि: सयल संघ सुहसंतिकर; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २८ अपूर्ण तक.) ३७८८०. नेमराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०, १२४३२). नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वामि; अंति: एह नवनिध पामिरे, गाथा-१३. ३७८८१. (+) गर्भावास सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, अन्य. श्रावि. वीजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ७-९४२४-२७). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कविदास, मा.गु., पद्य, वि. १९३०, आदि: (-); अंति: कविदास० चार निवारजो, गाथा-१२, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा ५ अपूर्ण से है.) ३७८८२. (+#) आदिजिन व महावीरदेव बृहत्स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. धर्मसिंह पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १३४३२-३७). १. पे. नाम. शत्रुजयमंडन आदिनाथ बृहत्स्तवन आलोचनागर्भित, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बेकरजोडी विनवूजी; अंति: समयसुंदर गुण भणई, गाथा-३१. २.पे. नाम. सप्तोपधानविचारगर्भित महावीरदेव बृहत्स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर धरम; अंति: समय० वंछित सुख करो, ढाल-३, गाथा-१८. ३७८८३. उवसर्गहर स्तोत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८८१, शशीनागाष्टकेश्चंद्र, आश्विन शुक्ल, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७-३६(१ से ३६)=१, प्रले. मु. देवविमल (गुरु पं. कुशलविमल); गुपि.पं. कुशलविमल (गुरु पं. गौतमविमल); पं. गौतमविमल (गुरु ग. रंगविमल पंडित); ग. रंगविमल पंडित, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४०). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १८५, (पू.वि. मात्र अंतिम प्रतिक पाठ है.) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५ की लघुटीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ति द्वितीयं स्मरणम्, ग्रं. १०७५, (पू.वि. अंत भाग के पाठांश है.) ३७८८४. वार्ता व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०, २५४५२). १. पे. नाम. चंदनमलयागरि वार्ता, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १७६४, ले.स्थल. जगतारणी, प्रले. मु. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहि., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: भद्रसेन सुवंछित भोग, अध्याय-५, गाथा-१८९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हंसा सो सर सेवीइं; अंति: भलो न कहसी कोइ, गाथा-११. ३७८८५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, २०४५२-५५). १. पे. नाम. श्रावकगुण स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. २१ श्रावकगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रुतदेवी; अंति: नयविमल कहे निशदिस, गाथा-१५. २.पे. नाम. ३२ योगसंग्रह सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भवि प्राणी रे जाणी; अंति: ज्ञानवि० लहि सास्वता, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७८८६. (+) इकवीस ठाणा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६१८, श्रावण कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, ले.स्थल. रयवाडीनगर, प्रले. मु. पासू (अंचलगच्छ); पठ. श्राव. कपूरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३३). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: स साहारणा भणीया, गाथा-६५, (पू.वि. गाथा ६१ से है.) २१ स्थान प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धारण समान जाणिवा, (पू.वि. गाथा ६० अपूर्ण से बालावबोध है.) ३७८८७. (+) लोकनालीद्वात्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ९४२४-२६). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जंलोय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० तक है.) ३७८८८. समवसरणविचारगर्भित नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७०८, वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. मु. परमसागर; मु. भीमसागर; लाभसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४०-५२). नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जायवकुल सिणगार सिरि; अंति: सोमसुंदरसू० ते लहय ए, कडी-३३. ३७८८९. (+) नंदमुनि आलावा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ११४२७). नंदसाधु आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहेव जंबूदीवे दाहण; अंति: नंदो भणईय सव्वमिच्छा. नंदसाधु आलापक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आजे क दीपने विषइ; अंति: कहइ नंद कहि ते मृषा. ३७८९०. (+) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. रूपरंग; पठ. मु. केसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३-१५४३३-३७). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति: समयसुदर० जगीसो रे, ढाल-४, गाथा-१००. ३७८९२. (+) पासाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. यंत्र सहित., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १८४४७). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: (१)ॐ नमो भगवती, (२)महादेवं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. २१४ पासा तक है) ३७८९३. आत्मशिक्षा स्वाध्याय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १४४३२). १.पे. नाम. आत्मशिक्षा स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, अमरचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: क्या करि क्या करि; अंति: अमरचंद० सही मन गमता, गाथा-११. २. पे. नाम. मेघदोहा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: किहां गाज्यो किहा; अंति: सोधिलेउ सुजाण, गाथा-२. ३. पे. नाम. सामायिकपौषध गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइय पोसह संठियस्स; अंति: दुक्कडं तस्स. ४. पे. नाम. जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तार विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप एक लक्ष; अंति: क्षेत्र ५२६ कला ६. ३७८९५. श्लोक संग्रह, स्तवन व चक्रवर्तिनामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४८). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कृष्ण त्वदीय पदपंकज; अंति: प्रत्युद्यमः कीदृशः, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org २. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि सेवी पास संखेसरी मन अंतिः पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ५. पे. नाम. ८४ लाख जीवयोनि विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ७ लाख पृथ्वीकाय, अंतिः नारकी १४ लाख मिनखना. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम, तेसठसिलाकापुरुष नाम, पृ. १आ, संपूर्ण प्रेशठशलाकापुरुष नाम, गु, गद्य, आदि: भरतचक्रवर्ती सगर, अंतिः जरासंध प्रतिवासुदेव (वि. २४ तीर्थंकर का नाम नहीं है.) ४. पे. नाम. १२ देवलोक, ९ ग्रैवेयक व पंचानुत्तर विमान नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सुधरम देवलोक १ ईशान; अंतिः सरवारथसिद्ध ५. ३५१ , ३७८९६. नयकर्णिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५X१०.५, ५X४५). नयकर्णिका, उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७३, आदि: वर्द्धमानं स्तुमः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १३ अपूर्ण क है.) नकर्णिका वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि (१) श्रीवर्द्धमानमानम्य, (२) श्रीवर्द्धमान महावीर, अंति: (-), (पू. वि. गाथा १४ अपूर्ण तक टथार्थ है.) ३७८९७ (१) स्तवन संग्रह व पाक्षिक प्रतिक्रमण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३. ले. स्थल, वडगांमनगर, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.. (२४.५x११, १३४३६). १. पे. नाम, शांति स्तव, पृ. ९अ, संपूर्ण, शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि आवे आवे रे इंद्राणी, अति: एम भज्यो भगवान जी, गाथा- ९. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं, पद्य, आदिः सचा साहेब मेरा चिंता, अंति: बेनारसी बंदा तेरा, गाथा-७. - ३. पे. नाम. पाक्षिकपडिक्कमण गाथा. पृ. १ आ. संपूर्ण पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: मुहपत्ति वंदणय; अंति: पक्खियं पडीकमणं, गाथा - ३. " ३७८९८. (१) भाग्यपंचाशिका सह अवचूरि, अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. पंचपाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, ११X३६). भाग्यपंचाशिका - पुरुष, सं., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपार्श्वे, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २१ अपूर्ण तक है.) भाग्यपंचाशिका पुरुष अवचूरि, सं., गद्य, आदि मंडूक स्फिग् नृपति, अंति: (-). ३७८९९. प्रत्याख्यान ४९ भांगा व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. ग. प्रेमकुशल (गुरुग. रंगकुशल पंडित); गुपि. ग. रंगकुशल पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक नहीं हैं., जैदे., ( २६.५X१०.५, ३८X८-१८). १. पे. नाम. ४९ भांगा, पृ. १आ, संपूर्ण प्रत्याख्यान ४९ भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: (१) न करूं न करावं न, (२) तिविहं तिविहेणे एगो; अंति: (१) ४७ भांगा उत्पद्यते, (२) पुण होइ इगुणवन्नं. २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष लोक संग्रह, सं. पद्य, आदि तिथिरेकं गुणा, अंतिः तस्या चंद्रबलं मत श्लोक-२. ३७९०१. (+#) प्रभंजना स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, ११x२७). For Private and Personal Use Only प्रभंजना सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि गिरि वैताढ्यने उपरे, अंति: मंगललील सदाई रे, दाल- ३, गाथा - ५१. Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७९०२. जीभलडीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ८x२७). औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडी रे जीभलडी तु; अंति: कहे सुण प्राणीरे, गाथा-८. ३७९०३. वैराग्यबावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, २१४५४). वैराग्यबावनी, ग. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: समज समजरे भोला प्रा; अंति: लालचंद० सुख अपार जी, गाथा-५१. ३७९०४. (+) थावच्चा गीत, संपूर्ण, वि. १६५८, श्रावण कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. मु. सुखसागर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषभअजितमहावीर पार्श्वनाथाय नमः. खराकोटडीपाटके., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३१). थावच्चाकुमार भास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: नयरी द्वारामती जाणीइ; अंति: देवपु० शिवपुर जावइ, गाथा-१७. ३७९०५. (+) पद्मावतीमातंगनी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. गाथा ४ के बाद गाथांक का उल्लेख नहीं है., संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४३९). पद्मावतीदेवी छंद, ग. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकति सदा सानिध करो; अंति: चारित्रसागर जयकारिणी, गाथा-२५. ३७९०६. (+) त्रिभंगी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४३६). गोम्मटसार-उदयत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: पंचणवदोणिअट्ठावीस; अंति: माहवचंदेणय णेमचंदेण, त्रिभंगी-३, गाथा-७३. ३७९०७. (#) जिनदतसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रत्नसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३०-३२). जिनदत्तसूरि गीत, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सद्गुरुजी थे सांभलो; अंति: लै लाभउदै सुख सिध हो, गाथा-११. ३७९०८. दशवैकालिक सूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-६(२ से ७)=२, दे., (२५४१०.५, १०४५७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगल मुकटं; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन ४ की गाथा "कासवेणं पवेइया सुअखाया से सुपनंता सेयमे अहिजिउं" तक का पाठ नहीं है तथा "अनथसमापरिणेण" के बाद प्रतिलेखक ने नहीं लिखा है.) ३७९०९. (+) नाभेयाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४२). आदिजिन अष्टक, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: देव मो दीदार दीजै; अंति: मान० युग एकतू करतार, गाथा-८. ३७९१०. युगबाहु स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५४, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. सं.१७५४ में लिखी गयी प्रत की नकल लगती है, लिखावट के आधार से अनुमानित संवत २०वी होना चाहिये., जैदे., (२५४१०.५, १०४३४). युगबाहुजिन स्तवन, मु. जिनदेव, मा.गु., पद्य, आदि: इण जंबूदीपइ जाणीयै; अंति: जाणी ज्यो नितमेवरे, गाथा-१५. ३७९११. मौन एकादशी नो गुणणो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १८४५८). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: श्रीआरणदेवनाथाय नमः. ३७९१२. मौन एकादशी नो गुणणो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १८४४८). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे ऐरवतक्षेत; अति: श्रीआरणनाथाय नमः. ३७९१३. महालक्ष्मी स्तोत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४३६). १.पे. नाम, महालक्ष्मी स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आद्य प्रणवस्ततः; अंति: सर्वदा भूतिमिच्छता, श्लोक-११.. २.पे. नाम, महालक्ष्मी मंत्रमय स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. महालक्ष्मी स्तुति-मंत्रमय, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीँ श्रीचंद्र; अंति: वरदे शिवसार पद्धे, श्लोक-६. For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३. पे. नाम. महालक्ष्मी दशाक्षर मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं; अति: महालक्ष्म्यै नमः. ३७९१५. (+) सवैया व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३२). १.पे. नाम. वर्गमूल सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. वर्गमूल कवित, पुहिं., पद्य, आदि: धुरही ते घन दोय अघन; अंति: भात वर्गमूल करियै, पद-२. २. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: हारे लाल श्रीमहावी; अंति: जिनलाभसू० कार रे लाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज सुदिन सफली घडी; अंति: जिनलाभ० नितमेवा हो, गाथा-९. ३७९१६. तिजयपहुत्त वनमिऊण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७९३, आषाढ़ शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोरनगर, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ९४३५). १.पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१३. २. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. __ आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: भय तस्स नासेइ दूरेण, गाथा-२४. ३७९१७. सीमंधरजिन वीनती पत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५.५४१०.५, १७४४०). सीमंधरजिन पत्र, क. नर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: की युविध नोबत बाजै, पत्र-२. ३७९१८. स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १०४३४). १. पे. नाम. वीशस्थानकनी होलीनुंस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे प्रणमु; अंति: कांतिविजय०भणे रे लोल, गाथा-८. २.पे. नाम. आड पडे तेनी थोय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह स्तुति बाद मे लिखी गयी है. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या; अंति: द्रुतं द्रावयतु नः, श्लोक-१. ३७९१९. उपवासफल, वीरस्वामी अभीग्रह, वीस स्थानक गुणणुंव सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. लींबडी, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसाद., जैदे., (२५४१२, १५४३५). १.पे. नाम. उपवास फल, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एक उपवासे १ उपवास; अंति: लाख ७८ हजार १२५४. २.पे. नाम. वीरजिन अभिग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन अभिग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य थकी अडदना; अंति: वीरस्वामीइं कर्यु. ३. पे. नाम. वीसस्थानकनुंगणj, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, आदि: १ नमो अरिहंताणं लो०; अंति: तित्थस लो०५ नो काउसग. ४. पे. नाम. वीसस्थानकनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानक सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचरणे करी; अंति: श्रीसंघ आराधो निसदीस, गाथा-७. ३७९२०. चौद नियम गाथा व पंचपरमेष्टि गुण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, ३४२०). १. पे. नाम. चौद नियम गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. श्रावक १४ नियम गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: सचित अचित पाणी मोकलु; अंति: करवो केनडी करवा नाम. २. पे. नाम. पंचपरमेष्टि गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचपरमेष्ठि गुण, मा.गु., गद्य, आदि: बारस गुण अरिहतना १२; अंति: तिणरा बोल जाणवा. ३७९२१. (+) कथा व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४४५-५०). १.पे. नाम. दानोपरि हंसपाल कथानक, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. _हंसपाल कथानक-दानोपरि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: संसारजलहिजाणुंदाणं; अंति: मोक्ष्यं यास्यति. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: संतण के एक जीह रावण; अंति: गंग कहि० मोती हार की, पद-२. ३७९२२. साधुप्रतिक्रमणसूत्र व श्रावकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. पं. कर्मसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १६x४०). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. श्रावकना अतीचार, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: जो कोविहुपाणगणो; अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. ३७९२३. स्तवन संग्रह व सिद्धदंडिका स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १२४४०). १. पे. नाम. अट्ठावीस लब्धि स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुं प्रथम जिनेसर; अंति: प्रगट ___ ग्यान प्रकाश, ढाल-३, गाथा-२५. २. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसह केवलाओ अंतरमु; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. ३. पे. नाम. चौदगुणठाणा स्तवन, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: कहे एम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. ३७९२५. भास व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. धना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. रुपराजऋषि भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. गोप ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमदेव सदा समरीनइ; अंति: गोप० साधुनी वाणी रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नीलकंठ सुक: चैव वायु; अंति: (अपठनीय), श्लोक-५. ३७९२६. स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. सा. विद्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १८४३६). १. पे. नाम. अजितशांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए; अंति: मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा-३२. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिदंडक स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंति: विपत्त्रासनं शासनं, श्लोक-३. ३७९२७. वंदेतुसूत्र, कवित व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८१०, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, पठ. श्राव. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५-११.५, १२४३३-४८). १.पे. नाम. वंदेतु सूत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-४८. २. पे. नाम. नयन कवित्त, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ___ ३५५ क. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: नयण वयण निर्वहै नयण; अंति: कहि सयल काज साजै नयण, गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं भोगो नाशस्तिस्र; अंति: तृतीया गतिर्भवति, श्लोक-१. ३७९२८. पर्युषणापर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १०४३१). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. चतुर, सं., पद्य, आदि: भो भो भव्यजनाः सदा; अंति: सा संघस्य सिद्धायिका, श्लोक-४. ३७९२९. उपकेशगच्छीया पट्टावली व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०, १३४४६-४८). १. पे. नाम. उपकेशगच्छीय पट्टावली, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पट्टावली-उपकेशगच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथस्य तत; अंति: सिद्धसूरि तत्पट्टे. २. पे. नाम. उपकेशगच्छीय सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपकेशगच्छ सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अइसारे ओयसपुर नव; अंति: वडसाखा ज्यु विसतरै, गाथा-४. ३७९३०. (4) सकलकुशलवल्लि, श्लोक संग्रह व भरत चक्रवर्ति संपदा, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ४४४२). १. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने श्लोक क्रमशः रखा है, इसके बाद का अनुक्रम श्लोक २ से चालु है परंतु दोनो अलग-अलग विषय होने से उसे अलग रखा है. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल कहीइ समस्तंन; अंति: (-). २. पे. नाम. जैन धार्मिकश्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति श्लोक २ से चालु है. इसका अनुसंधान श्लोक १ चैत्यवंदन श्लोक से दोनो को अलग रखा गया है. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्माजन्मकुले० सौभ; अंति: पुण्यतराः फलमीदृशं, श्लोक-५. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदि: धर्म थकी भला कुलनि; अंति: वृक्षनो एहवा फल हुइ. ३. पे. नाम. भरतचक्रवर्ति संपदा, पृ. १आ, संपूर्ण. ____ भरतचक्रवर्ति संपदा वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: चोरासि लाख हाथि; अंति: कोस लगै कंटक पडै. ३७९३१. (+) सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११,१५४३३). १. पे. नाम. महर्षि साध्वी कुलं, पृ. १अ, संपूर्ण. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: पडहो तिहुअणे सयले, गाथा-१३. २. पे. नाम. लोडना पार्श्वनाथ स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोडन, उपा. विद्यासागर गणि, सं., पद्य, आदि: नमस्कृत्य गुरुं चारु; अंति: विद्यासागर० स्तात्, श्लोक-८. ३७९३२. जिनचंद्रसूरि भास संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, ८४३२). १.पे. नाम. जिनचंद्रसूरिगुरु भास, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि भास, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदगुरु सेवीइ; अंति: ध्यानथी सेवकनइ कलांण, गाथा-४. २. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि भास, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंद खंधलो बरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक २ गाथाएँ लिखी है.) ३७९३३. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १५४४१). १. पे. नाम. भीडभंजन पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तवन-भीडभंजन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी मनमोहन मूरति; अंति: मानविजय सुख पाया, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: प्रह समि ऊठी भाव धरे; अंति: कीरतिविजय इम गुण गाइ, गाथा-७. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तवन-गोडीजी, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौडेचा साहिब लागै; अंति: कीर्तिवि०बंधनथी वारो, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तवन-कापरहेडामंडन, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पूजौ हे सहियां जिनवर; अंति: विद्या० वधौ रेसंसार, गाथा-५. ३७९३४. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, २०४५७). १. पे. नाम. प्रतिलेखनछायासमय श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आसाढे मासे दुपया पोस; अंति: चित्त अट्ठ वइसाहे, गाथा-४. २. पे. नाम. मुहपत्ति रा २५ पडिलेहण बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र१ अरथर तत्व देख; अंति: कायारी पचीस पडलेहण. ३. पे. नाम. वीस विहरमानजिन नाम-माता आदि बोल, पृ. १आ, संपूर्ण.. २० विहरमानजिन नाम व विचार, रा., गद्य, आदि: श्रीमंधरसामि१ श्रेया; अंति: राणी४ साथीयउ लांछन५. ४. पे. नाम. योगिनीप्रदत्त जिनदत्तसूरि को ७ वरदान बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनदत्तसूरिनइ; अंति: जोगणीए दीधा. ३७९३५. (१) जैन कोष्ठक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. उपदेशमालादि विविध ग्रंथों की गाथाओं का प्रतिकपाठ एवं अक्षर संख्या आदि दी गयी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४२८). जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंतिम अंश नहीं है., वि. ग्रंथों के प्रतिकपाठ है.) ३७९३६. (+) ठाणांग सूत्र व आर्यदेशनाम गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. मु. जीवराज (गुरु मु. केशव ऋषि); गुपि.मु. केशव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४२-४५). १.पे. नाम. ठाणांगसूत्र-महापद्म अध्ययन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. आर्यदेशनाम गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: रायगिह मगह चांपा अंग; अंति: चक्कीणं रामकन्हाणं, गाथा-६. ३७९३७. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १४४४५). १. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहि., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी कहे; अंति: जितसागर०निध संपजे जी, गाथा-९. २. पे. नाम. लीलावती रास- २५वी ढाल, पृ. १आ, संपूर्ण. लीलावती रास, क. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुणीए बोल विचार, प्रतिपूर्ण. ३७९३९. चौत्रीस अतिसय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद ऋषि (गुरु मु. चांपसी ऋषि); गुपि.मु. चांपसी ऋषि (गुरु मु. जयसिंह ऋषि); पठ. सा. अमरबाई (गुरु सा. वीहालबाई); गुपि. सा. वीहालबाई (गुरु सा. धुना); सा. धुना (गुरु सा. महीया); सा. महीया, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४४). ३४ अतिशय आलापक, प्रा., गद्य, आदि: ए चउत्तीसं बुद्धाइ; अंति: खिप्पामेव उपसमंति. ३७९४०. अभक्ष्य अनंतकायादि नाम व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, १९४४३). १. पे. नाम. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पांच उंबर वड१ पीपलर; अंति: पिंडालू कंदविशेष. २. पे. नाम. मेरुगिरि विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३५७ मेरुपर्वत वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: मेरु पर्वत हजार १०००; अंति: जाणवउ आगइ काल नही. ३. पे. नाम. ८४ लाख जीवयोनि विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ७ लाख पृथ्वीकाय; अंति: उत्पत्तिस्थानक जाणवा. ४. पे. नाम. देवविमान संख्या विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. देवलोक विमानविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्म ३२ लाख ईशान; अंति: सर्वविमान ८४९७०२३. ३७९४१. (+) ४२ दोष गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. गढा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ६४३७). गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १देसिअ२; अंति: रसहिऊ दव्व संजोगा, गाथा-६. गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: यती निराधी दीइ जे; अंति: द्रव्य मेली जीमई. ३७९४२. (+) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: शिवं भवंतु स्वाहा. ३७९४३. (१) पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उगएसूरे नमुक्कारसहिअ; अंति: आगारेणं वोसिरामि. ३७९४४. पद्मावतीनी प्रत्येकबुद्धना रासनी ढाल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११,११४३०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवइ राणी पदमावती; अंति: समय०पापथी छूटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. ३७९४५. चंद्रावला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३९). केशवऋषि भास, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधरस्वामिजी; अंति: भास भणी ए सुंदर सारी, गाथा-९. ३७९४६. आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४३५). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल सुहकर सयल सुहकर; अंति: सहजसुंदर० वयणसुहकरो, गाथा-२२. ३७९४८. तिथि विचार, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रावण शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जावाल, प्रले. पं. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कवि दीपविजयजी लिखित तिथि विचार विषयक पत्र को प्रतिलेखक ने नकल किया है., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४४). तिथिनिर्णय विचार, क. दीपविजय, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: बीया पंचमी अट्ठमीय; अंति: लखी छु ते जाणवो जी. ३७९४९. नरक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९३२, फाल्गुन कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. मांडल, प्रले. श्राव. भायचंद; पठ. श्रावि. खेमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. भेरुजी प्रसादात्. पार्श्वचंद्रसूरि गच्छे., प्र.ले.श्लो. (१२८) पोथी प्यारी प्रेमकी, (८७३) मुरखकुंपोथी दहि, दे., (२४.५४११.५, १०४२४). नारकी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन विनवू; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-४, गाथा-३६. ३७९५०. सीमंधरजिन विनति, संपूर्ण, वि. १९५४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५.५४११.५, १२४३२). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसति भगवति; अंति: पुरव पुन्ये पायो रे, ढाल-७, ग्रं. ५५. ३७९५१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१७.५४१०.५, ११४२१). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सिद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: वदन अनोपम चंदा निरखं; अंति: सिद्ध सवाइ हो जो, गाथा-७. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मे तो जोगीडा तोने कद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ तक लिखा है.) ३७९५२. चतुर्विंशतिजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४.५४११.५, १७X४३). २४ जिन स्तवन, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: शुभ प्रणमै धरी नेह, स्तवन-२४, (पू.वि. स्तवन १२ की गाथा २ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३७९५६. विषापहार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १९४५९). विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं., पद्य, वि. १७१५, आदि: विश्वनाथ विमलगुण ईश; अंति: (१)अचलकीर्ति० अविचल धाम, (२)तास पद बंदो आदजिणंद, गाथा-४२. ३७९५९. प्रतिष्ठा विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१४(१ से १४)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११.५, १२४३३-३८). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कलशप्रतिष्ठा विधि अपूर्ण से समापन विधि अपूर्ण तक है.) ३७९६३. असज्झाय विधि व उत्कालिक-कालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, १५४५३). १. पे. नाम. असज्झाय विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हरि ना पडै ता; अंति: असज्झाई पहर १२ ताई. २. पे. नाम. उत्कालिकसूत्र कालवेला विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. उत्कालिक कालवेला विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उत्कालिकसूत्र तिके; अंति: उत्कालिक जाणिवा. ३. पे. नाम. कालिकसूत्र कालवेला विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जे दिनरै पहिलै पहर; अंति: नंदीसू०अधिकार में छै. ३७९६५. श्रावक पाक्षिक अतिचार व प्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच काही एक पत्र है., दे., (२५४११.५, १४४३२). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पैशुन्य परिवाद अतिचार पाठ से वंदित्तुसूत्र गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ३७९६६. स्तवन व गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, १७४४८). १. पे. नाम. मिथ्यादष्कृतविचारगर्भित वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-मिथ्यादुष्कृतविचारगर्भित, ग. उदयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर पय नमी; अंति: उदयसागर० प्रणमइ मुदा, गाथा-१७. २. पे. नाम. वयरकुमार गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा ८ दो बार लिखी गई है. - वज्रकुमार गीत, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मइ दस मास उयरि धरु; अति: राजसमुद्र० साध धोटा, गाथा-९. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपउ मनरंगइ; अंति: जास अपाररी माई. गाथा-९. ३७९६७. (#) सझाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८१०, माघ शुक्ल, १३, ले.स्थल. जमुण्या, प्रले. मु. भावहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य.. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जे नाम जगपालरे, गाथा-९, (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, आदि: हीयडो मीलवारे प्रभु; अंति: नरेंदेइ दरसण दीठारे, गाथा-६. ३७९६८. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १३४३९). १. पे. नाम. बंभणवाडमंडणवीर स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदाये; अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३५९ पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन दियो सरसति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३९ अपूर्ण तक है.) ३७९६९. ४५ आगम नाम, १४ पूर्वनाम व दशवकालिक सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, ६४३८). १. पे. नाम. ४५ आगमनाम व सटीक ग्रंथमान, पृ. १अ, संपूर्ण ४५ आगम श्लोक संख्या, सं., गद्य, आदि: आचारांगसूत्र २५००; अंति: आगमसंख्या ४५ जाणवी. २. पे. नाम. चतुर्दश पूर्वनाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ पूर्वनाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउत्पादपूर्वाय नम; अंति: गुणिनौ सहस्र २०००. ३. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १, पृ. १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ३७९७४. (+) योगदृष्टि सझाय व दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४३५-४२). १.पे. नाम. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशी; अंति: वाचक यशने वयणेजी, ढाल-८, गाथा-८४. २. पे. नाम. ध्यानप्रकार दोहा, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. दोहा संग्रह जैनधार्मिक, मा.गु., पद्य, आदि: मित्रा तारा नाव है; अंति: कही परा संपूरण तेह, गाथा-१. ३७९७५. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४३९). १. पे. नाम. शेजेजय स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण, प्रले. मु. खंतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. शQजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. २.पे. नाम. इंद्राक्षि स्तोत्र, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. इंद्राक्षी स्तोत्र-रुद्रयामले, सं., पद्य, आदि: ॐ अस्य श्रीइंद्राक्ष; अंति: भगवत्या प्रसादिता, श्लोक-२८. ३७९७६. भास संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १०४३६). १. पे. नाम. तेजसीगुरु भास, पृ. १अ, संपूर्ण. तेजसिंहगुरु भास, मु. श्रीचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पाय नमी हु; अंति: श्रीचद० गुण गाय किइ, गाथा-६. २. पे. नाम. गुरुगुण परि भास, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुगुण भास, मु. तेजसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीसीमंधरस्वामिनो; अंति: मुनि तेजसिंह भासरे, गाथा-७. ३७९७७. स्तवन, श्लोक व बारलग्न समस्या, संपूर्ण, वि. १८४१, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, अन्य. पडित. नगजी पोसाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४९, १०४३८). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सार करी स्वामी; अंति: सकल सिद्धी सार करि, गाथा-७. २. पे. नाम. सत्पुरुषवचन श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चलंति मेरु प्रचलंति; अंति: वाचा न कदा चलंति, श्लोक-१. ३.पे. नाम. बार लग्न समस्या, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: लग्न तथा रास आगलो; अंति: सोइ तिथि कहीजै. ३७९७९. त्रिषष्टिशलाकापुरूष नामादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, १३४३८). १.पे. नाम. त्रिषष्टिशलाकापुरुष नामादि विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३ शलाका पुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथर्नु ८४ लाख; अंति: वासुदेव पदवी उदय आवै. २. पे. नाम. दस श्रावक नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन १० श्रावक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आणंद१ कामदेवर चुलणी; अंति: लयणीपिता१०. ३. पे. नाम. पूर्व मान व सागरोपम मान, पृ. २आ, संपूर्ण. सागरोपमपल्योपम पूर्वमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वना मान सिति; अंति: ते एक सागरोपम हुवै. ३७९८०. मेवाड व उदयपुर वर्णन छंद, संपूर्ण, वि. १८११-१८१४, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १३-१६४३४-४२). १.पे. नाम. उदयपुरनगर वर्णन छंद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८११, कार्तिक शुक्ल, ७, मंगलवार, ले.स्थल. गुढली, पे.वि. गाथाक्रम ९ से १२ का उल्लेख नहीं है. मु. जसवंतसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: समरी मातासरसती मांगु; अंति: जसवंत० उदयापुर नगरवर, गाथा-४५. २.पे. नाम. मेवाडदेश छंद, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १८१४, फाल्गुन कृष्ण, १४, बुधवार, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. मेवाडदेश वर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., पद्य, वि. १८१४, आदि: मन धर माता भारथी कवि; अंति: जिनेंद्र० चिर नंद, गाथा-११. ३७९८१. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १५४५२). १.पे. नाम. रहनेम स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: तुं तो यादवकुलनो रे; अंति: तेजहरष०माहिरे आण रे, गाथा-९. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय*, मा.गु., पद्य, आदि: कमणस काया कमणस माया; अंति: लावण्यसम० नो साधोरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. हीरविजयगुरु गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: कमल० प्रणमे निस दीस, गाथा-५. ३७९८२. अभयकुमार पंचढालीयओ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, १३४३८-४०). अभयकुमार पंचढालिया, आ. विजयचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: गुणि गिरूओ गौतम वंदी; अंति: विजयचंद० सुखकारो रे, ढाल-५, गाथा-३८. ३७९८४. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, ७-९४२५). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: गाजे गौडी राजीयो; अंति: तुठौ आपइ तुरतइ नामकि, गाथा-९. ३७९८५. (+) महावीरजिन २७ भव विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. उपा. रत्ननिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आवश्यकसूत्रादि ग्रंथों से संकलनकर लिखा गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४५४-५८). महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, आदि: इणइ जंबूद्वीपनाम; अंति: महावीरदेव अवतर्या. ३७९८८. नववाडी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. सीभाई ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११,१३४३६). ९ वाड सज्झाय, मु. लाला ऋषि, मागु., पद्य, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: सीले शिवसुख थायो रे, गाथा-१३. ३७९८९. (-) चोवीसजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११, ११४२७). २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिराय राजा मरुदेवा; अंति: जनमा श्रीमहावीरसामी, गाथा-२३. ३७९९०. (-) चोबीसजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पठ. सा. रूपाई आर्या (गुरु सा. वीराई आर्या); गुपि.सा. वीराई आर्या, प्रले. मु. सभाचंद (गुरु पं. खीमाजी ऋषि); गुपि.पं. खीमाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ६x४५). २४ जिन स्तुति, आ. जसवंत, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वा कीर्तिमंतस्ते, श्लोक-२७, (पू.वि. अंतिम ३ श्लोक है.) For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३६१ ३७९९१. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४११.५,१४४३७). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. करेमि भंते सामाइअंसे वंदित्तु सूत्र गाथा११ अपूर्ण तक है.) ३७९९२. भरटकद्वात्रिंशिका कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्र.वि. पत्रांकवाला भाग खंडित होने से अंतिम पत्रांक ६ काल्पनिक रखा गया है., जैदे., (२५४१०.५, २१४५८). भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: हृष्टो गृहे जगाम, कथा-३२, (पू.वि. कथा २८ अपूर्ण से है.) ३७९९४. आदीश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७७२, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, जीर्ण, पृ. २, ले.स्थल. बीकानेर, जैदे., (२४४१०.५, १०४४१). नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणंद जुहारीयइ मन; अंति: गुणसागर० समरण पाईयै, ढाल-४, गाथा-३४. ३७९९८. नलदवदंती चउपई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-१२(१ से ११,१४)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, १३४४५-४९). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड २ ढाल ५ गाथा ६ अपूर्ण से खंड ३ ढाल ५ गाथा २ तक है.) ३७९९९. राचा बतीसी, सवैया वदोहा, संपूर्ण, वि. १८२४, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. जावला, जैदे., (२४४१०.५, ३२४२१). १.पे. नाम. राचा बत्तीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जागरे सोवे; अंति: रुडां कहै छे राचो, गाथा-३२. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. क. सिंह, पुहिं., पद्य, आदि: कालिकुहाड कूलछन कू; अंति: घर नाहरी व्यानी, गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. महमद शाह, पुहिं., पद्य, आदि: संमन प्रीत न कीजीयै; अंति: कौ कहत महमद शाह, दोहा-२. ३८०००. (+) पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १८६०, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. खंभायत, प्रले. क. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२५४११, ८४३५-४४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पे सहजमां भवदधि तरो, ढाल-४, (पू.वि. अंतिम ढाल गाथा २ से है.) ३८००२. पद संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२३.५४१०,११४२८-३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: घोर घटा करी आयो री; अंति: परमानंद पायो हो, गाथा-५. २. पे. नाम. नेम पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पुहि., पद्य, वि. १८९४, आदि: नाथ केसे पशुवां को; अंति: करवो संघ सवायो नाथ, गाथा-५. ३. पे. नाम. शेजेजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेब्रुजानो वासी; अंति: बोलै औ भव पार उतारौ, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३८००३. सज्झाय स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३३). १. पे. नाम. राजीमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. सा. कमलादे आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची राजिमतीसती सज्झाय, मु. केशव ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी विनवेरे; अंति: मेरो मन मोहिरेलाल, गाथा-१०. २.पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. _चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जणेसर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ तक है.) ३८००४. (+) सकुनसत्तरि व पल्ली विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१०.५, १७४४८). १. पे. नाम. शकुनसत्तरी, पृ. ३२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: सूरिसंकलितवानेतत्, गाथा-७७, (पू.वि. गाथा ५० अपूर्ण से ७७ तक २. पे. नाम. पल्ली विचार, पृ. ३२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: मस्तके पतिता पल्ली; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १ से १५ अपूर्ण तक है.) ३८००५. तेर काठियानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. मु. मोतीलाल साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१०, ८x२६-३०). तेरकाठियानी सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आलस पेलो काठियो धर्म; अंति: साधु धन्य तेह विचारो, गाथा-७. ३८००६. (4) सज्झाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३४११, १५-१७४३५). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. १अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय नमी; अंति: समृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल-४, गाथा-१०१, (पू.वि. ढाल ४ गाथा १० से दोहा ७ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. चौबीसजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: धोली हारज जलद गुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ तक है.) ३८००७. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु.खीमासागर (गुरु मु. नवनिधिसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत की एक ओर गाथा १ से ७ तथा दूसरी तरफ अन्य प्रतिलेखक द्वारा रचना प्रशस्ति की गाथा ३८ से ३९ लिखी है. गाथा ८ से ३७ वाले पत्र अनुपलब्ध हैं., जैदे., (२४४११, १०४३६). प्रतिमास्थापन स्तवन, श्राव. वधो साह, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: श्रीश्रुतदेव तणे; अंति: साह वधो० जिन तूठो रे, गाथा-३९, (वि. गाथा ८ से ३७ तक नहीं हैं.) ३८००९. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०, १६x४०). १.पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: चोथा देव नित्य धारई; अंति: अभयराज० सुख पावि, गाथा-१०. २. पे. नाम. चौवीसजिन आंतरा स्तवन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन आंतरा स्तवन, मागु., पद्य, आदि: वंदिय वीरजिणेसर राय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण तक है.) ३८०१०.(+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १४४४५). १.पे. नाम. वैराग्य सझाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वैराग्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: केवलनाणी रे, (पू.वि. मात्र अन्तिम गाथा का अन्तिम पद है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. विमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: समरसमाहि जीलि चंचल; अंति: विमलहरख० गुण गायस्यु, गाथा-२. ३. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अरणक ऋषि मुनि राजिउं; अंति: सरग नगरी जइ चढई, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४. पे. नाम. नंदीषणमुनि सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. शुभरंग, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर महिअलि विहरइ; अंति: कवि शुभरंग वीनवइ, गाथा-८. ३८०११. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा.रंभा वैरागण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४०). शांतिजिन स्तवन-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात नमुं सिरनामी; अंति: वंछित फल निश्चै पावै, गाथा-२१. ३८०१३. स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२३.५४१०, १४४३९). स्तवनचौवीसी, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., वासुपूज्यजिन स्तवन से शांतिजिन स्तवन गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३८०१४. अइमुत्तामुनि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११.५, १८४३९). ___ अइमुत्तामुनि रास, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: वीरजिणंद नमु सदा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल ६, गाथा ३० अपूर्ण तक है.) ३८०१५. (+) पंचतीर्थ स्तुति व वीसस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. देवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १२४३३). १.पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि ए आदि ए आदिजिने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. वीस स्थानक स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानक सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनचरणे करीय प्रणमु; अंति: श्रीसंघ आराधो निसदिस, गाथा-७. ३८०१६. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०, ७-९४२६-३२). १.पे. नाम. ९६ जिन स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमान चोवीसे वंदु: अंति: सदा जिणचंदसूरिए, ढाल-५, गाथा-२३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: अर केहुं कछु कहो मन; अंति: चांदनी सी रात मानु, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३८०१७. (#) नेमनाथ लावणी व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ३०x१८-२०). १. पे. नाम. नेमनाथ लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन लावणी, श्राव. सुजानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन पाय महाराजा; अंति: सुजानंद प्रणमइ मुदा, गाथा-१३. २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. __ ज्योतिष*, मागु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (१)अईउएगुरु कखगघढ बीडाल, (२)बुधो संद्रे तृतीया; अंति: (१)यरलवग सषशहमीने, (२)उत्तरमंगलबुधावरूधो. ३८०१९. (4) दस दृष्टांत सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७६६, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. उदेपुर, प्रले. पंन्या. गौतमविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४११.५, १०४३२). मनुष्यभव १० दृष्टांत सज्झाय, वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जयवंतो विजयसिंहमुनेस, गाथा-१२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा १० अपूर्ण से है.) ३८०२०. चोवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४३९). तीर्थंकर परिवार सज्झाय, मु. सुखलाल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: राजाराणीरो कटुंबो; अंति: तेरा बेटादीना छोड, गाथा-१७. ३८०२१. (#) चतुःशरण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ५४३९). For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण तक है.) ३८०२२. विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, १३४३६-४०). १.पे. नाम. अनुष्ठान करवानी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. अनुष्ठान विधि, मा.गु., गद्य, आदि: खमासमण देई इच्छाकारि; अंति: परि अनुष्ठान करावीइ. २. पे. नाम. योगोत्तारण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि० पसाउ करी; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. ७ मांडलीय तपविधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७ मांडलीतप विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सुत्ते अत्थे भोयणकाल; अंति: (-). ३८०२४. (+) ऋषिमंडल दृष्टांत विगत, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९७-९६(१ से ९६)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, २२४३९). ऋषिमंडल दृष्टांत, मा.गु., गद्य, वि. १९वी, आदि: आदीश्वर दृ० प्रथम; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., आर्यरक्षत फल्गुरक्षत दृष्टांत तक है.) ३८०२५. (#) चेलणारानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खडित है, दे., (२४४१०.५, १४४२८). चेलणासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मध्य भाग का पाठांश है.) ३८०२६. (#) विक्रम चबोली लीलावती चोपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, पठ. श्राव. गुमान; प्रले. पं. जिनविजयजी (गुरु पंन्या. मनोहरविजयजी पंडित); गुपि.पंन्या. मनोहरविजयजी पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पंक्ति अक्षर अनियमित., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१३). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: कीयो ते जयजयकार ए, ढाल-१७, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., मात्र अन्तिम ढाल है.) ३८०२७. शेव्रुजय थोय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४२९-३५). शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: आगै पूरव वारे निवाणू; अंति: सिद्धि हमारी जी, गाथा-४. ३८०२८. वीस बोला तीर्थंकर गोत्र बोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४३२). २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले श्रीअरिहं; अंति: ५ लोगस्स गुणणो २०००. ३८०२९. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, ११४२८-३१). महावीरजिन स्तवन, मु. दयासागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सासणनायक वीरजिणंद; अंति: गर करजोड करीजे वंदणा, गाथा-५. ३८०३०. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. श्राव. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १७-२०४५५-६५). १.पे. नाम. मांकण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भवसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मांकणनो चटको दोहि; अंति: जीवनी करजोजणा हो, गाथा-८. २.पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धोबीडा तू धोजेरे; अंति: शिवसुखनी दायरे, गाथा-६. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८७५, आश्विन कृष्ण, १, गुरुवार, ले.स्थल. बेला. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र दिल मे; अंति: विद्याविनय गुणगाय, गाथा-१५. ४. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १आ, संपूर्ण.. गुरुगुण गहुंली, मु. सीवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सही मोरी सासननायक; अंति: सिवचंद गुरुगुण खाण, गाथा-५. ३८०३१. १४ गुणस्थानक कर्मबंधहेतुद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३९). १४ गुणस्थानक कर्मबंधहेतुद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य५ शरीर५ इंद्री; अंति: वचन का जोग एम७ पाव. For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३८०३२. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X१०.५, १०X२४). पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि ध्यान धरी प्रभु अंतिः नितयविजय पायो, गाथा-८. ३८०३३. बलभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै. (२४४१०, १३x४५). " बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु, पद्य, आदि द्वारिका हुती निकल, अंतिः नहीं कोई तोले, गाथा-२९. ३८०३४. आत्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २१.५X१०, ९X२४). औपदेशिक सज्झाय, मु. नग, मा.गु., पद्य, आदि: एक काया अरु कामनी; अंति: नग० स्वारथीयो संसार, गाथा-५. ३८०३५. चौवीस जिन वर्णन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२४४११, १४४३८-४२). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन वर्णन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामिनि बुद्ध, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा २६ "" अपूर्ण तक है.) ३८०३६. सज्झाय व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. मेडता, प्रले. पंडित. सांगाजी पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X१०, १५x५६). १. पे नाम यत्रीस दोष सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ३२ दोष सज्झाय, मु. दयारत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नमि नमि जिनवर वर चरण; अंति: वाचक दयारतन आणंद ए, ढाल- ३, गाथा - २१. २. पे नाम. विद्यमान गुरूराज गीत, पृ. १आ, संपूर्ण जिनहर्षसूरि गीत, मु. दयारत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणहरख सुरिंद; अंति: भाय वंदइ भलै छेहा, गाथा-६. ३८०३७. सिद्धदंडिका कोष्ठक व स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०, १५x२४-३१). ३६५ १. पे. नाम. सिद्धदंडिका कोष्ठक, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका यंत्र, सं., को., आदि: अनुलोमसिद्धिदंडिका १; अंतिः असंख्याता ज्ञेयाः. २. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८०३८. (+) हीरविजयसूरि पत्र, संपूर्ण, वि. १६७१, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. अहम्मदावाद, प्रले. आ. विजयसेनसूरि (गुरु आ . हीरविजयसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित, प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२५x१०.५, ३४४१४-२२). गाथा-६. २. पे. नाम. महावीर तप स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामी मति द्य; अंति: टालि सामी दुख घणा, गाथा-१०. ३८०४३. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., ( २४.५X१०, १७३९). १. पे नाम. धन्ना शालीभद्र सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. हीरविजयसूरि पत्र, आ. विजयसेनसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १६७१, आदि: श्रीहीरविजयसूरि; अंति: कीर्त्तिसागर गणि म.. ३८०४१. गीत व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे. (२४.५X१०.५, १४X३६). १. पे. नाम. चार प्रत्येकबुद्ध गीतानि, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हु; अंतिः प्रणम्या पाप पलाय रे, शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: प्रथम गोवालिया तणे, अंति: (-). (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) . २. पे. नाम. गोडीजी पार्श्वनाथ छंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकाररूप परमेश्वरा, अंति: जीत कहे हरखे सदा, गाथा - २२. For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. गोडी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रविविजय, रा., पद्य, आदि: कोसी बिनय री वाय; अंति: रविविजय कहे विनती, गाथा-१२. ४. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, क. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: कहे गंग भंग विजया के; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्णतक लिखा है.) ३८०४६. (#) गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२४४११, २-१०४२७-३०). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: थलपति थल देशे वसीयो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८०४७. (#) रात्रीभोजन सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४१०.५, ४-१५४१८-४५). रात्रिभोजन सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: रंभा जणणी रुयडीजी; अंति: सार्यु आपणुंकाज, गाथा-१७. ३८०५१. (+) साधुगुण सज्झाय, पद व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०,१६४६१). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: सुरा खडग संभाया हो; अंति: सेवक० मन मे भाया हो, गाथा-२२. २. पे. नाम. साधुमहिमा पद, पृ. १आ, संपूर्ण. साधु महिमा पद, मा.गु., पद्य, आदि: गुण विन गुरु कहवाय; अंति: नहीं तो मिथ्या जाण, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधु स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुवंदना स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ समोसर्या; अंति: समयसुंदर० न दिवसे, गाथा-१२. ३८०५२. मनुष्य उत्पति भास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५-५३(१ से ५३)=२, जैदे., (२५४१०, १६४३६). जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जो इन आपणी; अंति: वारीइ लीजइ भव लाऊ रे, गाथा-३१, संपूर्ण. ३८०५६. स्तवन चोवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२४४१०.५, १३४३२). २४ जिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वासुपूज्यजिन स्तवन गाथा १ अपूर्ण से अनंतजिन स्तवन गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३८०६०. बलभद्रमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १३४४६). बलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. सकलचंदजी, मा.गु., पद्य, आदि: राम भणई हरि उठीई; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १० तक है.) ३८०६१. होरी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, १०४२८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे पास प्रभुजी के अंति: निरख्यो नवल वसंत, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन होरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: खेलेइ होरी नर अवर; अंति: भव भव पातिक जाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: पिया माये क्यु; अंति: मानो अरज जिनराज मोरी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३८०६३. बोल संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. ले. स्थल सोझाली, प्रले. पं. विजयराज (गुरु उपा. देवतिलक, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित, जै. (२४१०, ३८x९-१६). * . भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मतिज्ञान श्रुतज्ञान; अंति: आउषो ऋषभदेवजीरो ह्रौ. ३८०६५. गुणावली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३ जै (२२.५x११, १२x२७-३३). 3 , गुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: संपत सुखदायक सरस अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, दाल ३ की गाथा ४ तक लिखा है.) ३८०६७. शीतलजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, दे. (२४.५४१०.५, १५४३१-३८) १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. - मु. मतिहंस, मा.गु, पद्य, आदि: कावा कामिनी इम भणे, अति: मतिहंस जनम प्रमाण, गाधा १२. २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहीब हो; अंति: समयसुंदर जीन मन मोहए, गाथा-१५. ३८०६९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. सूर्यपुर, प्रले. मु. मानरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित, जैदे., ( २४.५X१०, २४-२५X१५-१६). १. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. हीररत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभादिक जिनवर चौवीस, अंति: हीररत्नसूरिंद० माणंद, गाथा-८. २. पे. नाम. प्रासंगिक पदसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पदसंग्रह, पुहिं, पद्य, आदि सीतर लाख तुं खार सबला अंतिः नवसितोत करसूं तारा, पद- ९. ३८०७०. स्तवन वीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५X१०.५, १०X३२). ३६७ विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. युगमंधरजिन गीत की १ अपूर्ण से सुबाहुजिन गीत की गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ३८०७१. (+४) अभिधान चिंतामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२३.५X१०.५, १३x४३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः (-). (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रथम कांड का श्लोक१७ अपूर्ण तक है.) ३८०७२. (#) वीरजिन चौढालिया, अपूर्ण, वि. १८४१, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ३- २ (१ से २ ) = १, प्रले. सा. कुसाला (गुरु सा. फतुजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१०.५, १२३२). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति से दिवाली रे दीन ए, ढाल - ४, गाथा-६३, (पू.वि. अंतिम ढाल की गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ३८०७३. दसपच्चक्खाण स्तवन, अपूर्ण, वि. १९७२ माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १ ले. स्थल. पालिताणा, प्रले करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४४९.५, ८X३४). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: रामचंद्र तपविधि भणें, दाल- ३, गाथा-३२, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं, गाथा ३२ अपूर्ण मात्र है.) ३८०७४. मयणरेहा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१ (१) = ४, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४X११, १८-२०x४०). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि (-): अंति: (-). (पू.वि. गाथा ३४ से १३३ तक है.) ३८०७५. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५X१२, १९x३२). For Private and Personal Use Only आदिजिन भरतचक्रवर्ती स्तवन, मु. आशकरण, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: प्रथम समरूं श्रीरीषभ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. गाथा २२ अपूर्ण तक है.) Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८०७६. अनाथीमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११.५, १७४३३). अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिपति श्रेणिक; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २७ अपूर्ण तक है.) ३८०७७. गणधर चक्रवर्ती जन्मस्थान माता-पितादि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १८x२०-४२). १. पे. नाम. गणधर जन्मस्थान मातापिता गोत्रादि वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ गणधर जन्मस्थल मातापितादिवर्णन, मा.गु., को., आदि: इंद्रभूति मगधदेशे; अंति: राजगृही पुष्य बलि. २. पे. नाम. चक्रवर्ती का जन्मस्थान मातापिता आदि विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चक्रवर्ती जन्मस्थल माता-पितादि विचार, मा.गु., को., आदि: भरत ऋषभ सुमंगला; अंति: ललित ब्रह्मलोक श्वेत. ३८०८०. (#) छ महाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०, १०४२४-३८). १.पे. नाम. पांच महाव्रत सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवैरे; अंति: भणै ते सुख लहे, ढाल-५. २. पे. नाम. छट्ठा महाव्रतनी सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरमर्नुसार ते; अंति: कांति० धन अवतार रे, गाथा-६. ३८०८१. शियल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १८४३५). शीयल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण वीनमु मागु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २३ तक लिखा है.) ३८०८२. (+) उत्तराध्ययननो हेतु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १२-१४४३४-३७). उत्तराध्ययनसूत्र-विषयदर्शन, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम विनइ अध्ययन; अंति: छत्रीसमुंवखाणइ छइ, गाथा-३६. ३८०८४. (#) इलापुत्र सिझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १०४२८). इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: इम लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ३८०८५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. लिखमीचंद शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: काडोनक सीधोजीयणा; अंति: लिखमीचंद ० जीवजाग, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: काया जीवाडी कारमी; अंति: सोइ उत्तम ग्यान, गाथा-८. ३८०८६. औपदेशिक दोहासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. *पंक्ति अक्षर अनियमित., जैदे., (२४.५४१०.५, २७-३४४२८). १. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अरट आधा लीलाट धन; अंति: वांकडा सूर कहावै सोइ, गाथा-१५. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ग्यानी जैसौ गौतम; अंति: वास सोझत रौ कहीयौ. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खीमराज, मा.गु., पद्य, आदि: विद्यावंत वखतैत; अंति: तेहनौ लोक कहै धन धन. ३८०८७. (+) गजसुकमाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १३४४२-४६). For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ गजसुकुमालमुनि रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४९ अपूर्ण से ७४ अपूर्ण तक हैं.) ३८०८८. भरतबाहुबलीनी बेढालना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२३.५४११.५, १५४३२). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा २१ __अपूर्ण से ढाल २ गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ३८०८९. (+) नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, ११४३३). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., मात्र बीच का भाग नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., मात्र बीच का भाग है.) ३८०९०. (+) मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. आदिनाथजी प्रसादात, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १०४२७). मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावेरे मेघ; अंति: रे मुझ मन हरष अपार, गाथा-५. ३८०९२. धर्म आराधना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. उदयभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४५५). धर्म आराधना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म धर्म बहुला कहे; अंति: एसाठ दया का नाम, गाथा-३१. ३८०९३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५-११.०, १४४३९). १.पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी थे काई हठमाड; अंति: मीलिया मुगतरै बास, गाथा-७. २.पे. नाम. युगमंधर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे पामी अति; अंति: पंडित जिनविजये गायो, गाथा-९. ३८०९४. मंत्र व चोवीशी नाम संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५६, भाद्रपद शुक्ल, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. मु. जगनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १०४३८). १.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. अतीत चोवीसी नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ३ चौवीसी नाम, सं., गद्य, आदि: केवलज्ञानी १ निर्वाण; अंति: २३ भद्रवीर्य २४. ३. पे. नाम. वीस विहरमान चोवीसी नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर; अंति: १९ अजितवीर्य २०. ४. पे. नाम. चौसठ इंद्र व बार देवलोक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ६४ इंद्र १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्म१ इशान२ सनत्कु; अंति: (अपठनीय). ३८०९५. पद्मावती स्तोत्र व पद्मावती मंत्र जाप विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४११,१३४३५). १.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८३८, आश्विन कृष्ण, १४, सोमवार, __ले.स्थल. अंजार, प्रले. मु. कीर्तिसार (गुरु मु. कुशलविमल); गुपि. मु. कुशलविमल; पठ. मु.रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: च त्रिकाल पठनेरता, श्लोक-३२, (पू.वि. श्लोक २६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पद्मावती मंत्र जाप विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सूरित. पद्मावती मंत्र व जापविधि, सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं क्लीं क्रीं; अंति: त्वं गतिः परमेश्वरी. For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८०९६. (+) कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १९४५८). १.पे. नाम. विद्यापति कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: (१)संपदो जलतरंगलोला, (२)पोतनपुरे सूरराजा; अंति: मोक्षंगमी सभार्यः. २. पे. नाम. जीवरक्षा कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. जीवरक्षा दृष्टांतकथा, सं., गद्य, आदि: कोपि क्षत्रियः; अंति: कृत्वा स्वर्गं गतः. ३. पे. नाम. धनचंद्र कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: धारायां धनपतिश्रेष्ठ; अंति: दृष्टांतो भावनीयः. ४. पे. नाम. प्रभावे मदिरावती कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. मदिरावती कथा-प्रभावे, सं., गद्य, आदि: बुधैर्विधीयतामेको; अंति: गत्वा धर्मपरौजातो. ५. पे. नाम. बुद्धौ धूर्त कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. धूर्त कथा-बुद्धौ, सं., गद्य, आदि: कश्चिद्धतः; अंति: तथाकृतं गतो धूर्तः. ३८०९८. पंचकल्याणक गुणना व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १९x४२). १. पे. नाम. चौबीसजिन पंचकल्याणक गुणना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन पंचकल्याणक-तिथि व जाप, सं., गद्य, आदि: कारतीक वदि ५ श्रीसंभ; अंति: श्रीनेमिनाथ च्यवनं. २.पे. नाम. चौबीसजिन पंचकल्याणक विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिनपंचकल्याणक विधि, मा.गु., गद्य, आदि: च्यवने लहिणओ ऋषभ; अंति: गुणनादिविधि कारणीय. ३. पे. नाम. वीशस्थानक तपविधि, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानक तपविधि, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतभक्ति ३ कालजा; अंति: कीजे नमो तित्थस्स. ३८०९९. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०, १७४५७). १. पे. नाम. गोडी पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुमति आपे; अंति: कुशललाभ कल्याण करे, गाथा-२२. २. पे. नाम. अजितजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मु. गंगानंद, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्री पूनिमनी चांदण; अंति: सुखकर जय लक्ष्मीवासे, गाथा-५, (वि. अंतिम वाक्य में कर्ता का नाम मिटाया हुआ है. प्रतिलेखक ने चार पद के अनुसार गाथा की गणना की है) ३. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय जुहारस्यै; अंति: लिंबो० आवागमन निवार, गाथा-४. ३८१००. सज्झाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, ११४३३). १.पे. नाम. चौदगुणठाणा सझाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: देव चउवीसमु वीर; अंति: दीसइ सिद्ध अनंत सुह, गाथा-२१. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: भगतवछल सहु तुझ पछी; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारम्भिक २ गाथाएँ हैं.) ३८१०२. (-#) देवकी ढाल व कर्म सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. शाहजहानाबाद, प्रले. श्राव. ऋषभदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१०.५, २२४३५-३९). १. पे. नाम. देवकी ढाल, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., ले.स्थल. दिल्ली. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पुंहता मुक्त मझार, ढाल-१०, (पू.वि. मात्र अंतिम ढाल है.) २. पे. नाम. कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३७१ मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: कर्मजी राजरे प्राणी, गाथा-१८. ३८१०३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४१). १. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पं. हर्षउदय, मा.गु., पद्य, आदि: गजसुकमाल चारत लीयोर; अंति: हरषउदय० शुभध्यान रे, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-निंदा त्याग, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागे, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छे पुरा रे; अंति: म भणीस ओछारे बोल, गाथा-६. ३८१०४. सीमंधरस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १३४५०-५२). सीमंधरजिन स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: धुरि प्रणमी असिआउसा; अंति: हरखक० अतिघणई ऊमाहलइ, गाथा-३८. ३८१०५. (+#) तुंबडा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर ___ पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१०.५, १५४३०-३५). __द्रौपदीसती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी वखाणीये जी; अंति: जी तुंबडो बहराइयो जी, गाथा-२२. ३८१०६. पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२२.५४११, ९४२५). पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्री पार्श्वः पातु; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण तक है., वि. साथ में यंत्र भी दिया गया है.) ३८१०७. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११.५, १३४३१). १.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबारे संभव जिनरी; अंति: ऋधिकिरत० जग सोहे हो, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक ने एक पद को दो पद गिना है.) २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ___ मा.गु., पद्य, आदि: मुरत ताहरी हो मुरत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ३८१०९. (+) सज्झाय व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१०.५, १८४४६). १. पे. नाम. सामायिकनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. विनयचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक पोसो करे; अंति: विनय० होयसी खेवो पार. गाथा-१९. २. पे. नाम. पौषधव्रत सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. विनयचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बरत इग्यारमो आदरो हो; अंति: विनयचंद० जिण आंण, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि: चवदे नेम छकाय मरजादा; अंति: वछित जिन धर्म दातार, गाथा-५. ३८११०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्र संख्या का उल्लेख नहीं किया है।, जैदे., (२३.५४११, ११४३८). १. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: सुख दुःख शिरज्या; अंति: धरम सदा सुखकार रे, गाथा-८. २. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचनै वैरागीयो हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८११२. (-) शीयल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२२, कार्तिक शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सवाईजयपुरनगर, प्रले. श्राव. दुलीचंद अजमेरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३४११.५, २१४१३). शीयल सज्झाय-तारादे लोचनी, मा.गु., पद्य, आदि: बीरा बीरा मणइ सील; अंति: राय केदारा कीजोरे, गाथा-८. ३८११३. (#) कल्पसूत्र की पीठीका व आरामान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. २, प्रले. य. फतैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १४४३५). १.पे. नाम. कल्पसूत्र की पीठिका, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हरा थेरावलीचरीत्रं. २. पे. नाम. आराना मान, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.. ६ आरामान, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम आरानौ मान; अंति: नौ एवं छ आराना मान. ३८११४.(-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १८४४२). १. पे. नाम. श्रावक गुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. दर्गादास, मा.गु., पद्य, वि. १८३१, आदि: श्रीअरिहंत पेले पद ज; अंति: मंत्र छै टंक साली. गाथा-१५. २. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३१, आदि: पुनजोगै नरभव लहो नीक; अंति: जोड करि रिष रायचंदो, गाथा-१३. ३८११६. गौतम गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, दे., (२३.५४१०.५, १२४३२). गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामी पृच्छा; अंति: करइ त्यांह जीव मुगति, गाथा-३३. ३८११७. जन्ममरणसूतक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४१०.५, ११४२७). सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्म्या दिन १०; अंति: भजे तो प्रहर १२ सूतक. ३८११८.) पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रावण शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्रले. मु. विनयचंद्र ऋषि; अन्य. मु. जेष्टमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२१४११, २९x१८). १. पे. नाम. चार मंगलिक शरणा, पृ. १अ, संपूर्ण. । ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: प्रह उठीने समरीजे हो; अंति: मंगलीक सरणा च्यार, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-मोहमाया, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: कोइ मत करजो प्रीत; अंति: विन किम जावोगे जगजीत, गाथा-५. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरी, मु. मया, पुहि., पद्य, आदि: घर आवो चिदानंद कंथ; अंति: मया० पूर्ष से खेलीये, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: सहियां दूख दीनों; अंति: गायो नेह लगाय, गाथा-९. ५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: नेमकुंवर नर आयो में; अंति: लबधी० गायो मली मंगल, गाथा-४. ६. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन जितसत्रु; अंति: जी हुबलीहारी तोरी, गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदुजी प्रेम नगीनो; अंति: चो सेवक करी जाणो हो, गाथा-५. ३८१२०. काकंदीधन्ना सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. गुमाना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ११४४६). धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धना; अंति: गाया है मनमै गहगही, गाथा-२२. ३८१२१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११,१७४५५). १. पे. नाम. संतनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३७३ शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर हथिणापुर अतिहि; अंति: भवना पातिक दूर हरो, गाथा-२९. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. गोरधन माली, मा.गु., पद्य, आदि: आज भलो दिन उग्यो हो; अंति: गोरधन० गावुचीत लाय, गाथा-६. ३८१२२. पद व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४४१०, १४-१६४५५). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: कुड कपट कर माया मेली; अंति: कुण कुण मिनखा छलीया, गाथा-१०. २. पे. नाम. १४ स्थानकजीव वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ जीवोत्पत्ति स्थान वर्णन, रा., गद्य, आदि: वडीनीतउचार ए पासवण; अंति: (-). ३. पे. नाम. बाराक्षरी लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ताल मृदंग रंग चंग; अंति: ठट्ठे ठावंत सुंदरी, गाथा-१०. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चेत चेत नर गाफल मत; अंति: यही पार उतारेगो, गाथा-६. ३८१२३. प्रत्येक बुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १५४५१). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली हु; अंति: हे पापहरण परिसिध, ढाल-५. ३८१२५. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८०५, आषाढ़ शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, पठ. श्रावि. धनाबाई; प्रले. श्रावि. हरखी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री आदीश्वर प्रसादात्, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४२५). शालिभद्रधन्ना सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: मुनीते वैभारे जइ; अंति: उदय० भवजल तीररे, गाथा-७. ३८१२६. (#) जीवदया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. विवेक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १३४४१). दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करु; अंति: विवेकचंद० एह विचार, गाथा-२५. ३८१२७. नलदमयंतीरास-ढाल ४, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १६x४९). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. प्रतिलेखक ने मात्र ४था ढालही लिखा है.) ३८१२८. पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १८४६, पौष शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रत्नसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १३४३३). पट्टावली तपागग्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: विजयजीनइंद्रसूरि. ३८१२९. (-) यादव रास व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११, २०४४२-५०). १. पे. नाम. जादवानो रास, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय पाय परणमी; अंति: पुन्य० नेमजिणंद कें, गाथा-६५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: प्रगट्या प्रमेसर पास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) ३८१३०. (+) सज्झाय व पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १६४५०). १.पे. नाम. ढंढणकुमार स्वाध्याय, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ढंढणऋषि सज्झाय, पं. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लबध कहइ सीवशर्म, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७४ www.kobatirth.org २. पे. नाम, नेमिजिन गीत, पृ. १२-१२ आ. संपूर्ण. पं. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: राजूल वीट्ठी वागमि; अंति: तुं पाणि सुरतर छउड, गाथा-१५. ३८१३२. आषाढभूति रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैये. (२४.५४१०.५, १२x४३). आषाढाभूतिमुनि रास, मु. धर्मरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: सरिसांतिजिणेसर भवण; अंति: धर्मरूची० मंगलमाल रे, गाथा - ५४. ३८१३३. संवाद व स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X१०, १४४४४). १. पे. नाम. सात सखीयारो संवाद, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७ सहेली संवाद, पुहिं., पद्य, आदि: पहिली सखी उठि बोलीयु; अंति: मोसे तीहे कुणसु कमाल, गाथा- ७. २. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जगरूप, पुडिं, पद्य, आदि: सुजस तुम्हारो श्रवणे, अंतिः रूप० सफल फली मोरी आस, गाथा-७. ३८१३४. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२१ माघ शुक्ल ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पू. ३, पठ. पं. ललितरूचि, प्रले. पं. कुअररूचि प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४१०.५, १४४३२-३९). शांतिजिन स्तवन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अचिरानंदन प्रणमीये; अंति: द्रसागर गुण गाया जी, गाथा - २५. ३८१३६. हरिकेसी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२२.५x११, १७४३६) हरिकेसी सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगवलभ गुरजी तु वसीयो; अंति: बोले उदयविजय उवझाय, गाथा - १४. ३८१३७. (#) सिखर स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही गयी है, दे., (२३.५X१०.५, १०X३६). १. पे नाम, सिखर स्तवन, पू. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: (-); अंति: आनंद भावना भावै रे, गाथा - ११, (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) २. पे नाम, सिखर स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि सेवामें सिखर गिर, अंति: है खूब आनंद सिरनामी, गाथा-६. ३. पे. नाम. सिखर पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि : आज गई थी सिखरगिर ऊपर, अंति: आनंद गुण रस पीधो रे, गाथा ५. ४. पे नाम समेतशिखर स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. आनंद, मा.गु, पद्य, आदिः समेतसिखरगिर घ्यावो अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ३८१३८. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जी. (२३.५x१०.५, १३४३३). " " १. पे नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण वि. १७९४ माघ कृष्ण, २, मंगलवार, ले. स्थल, नवानगर, पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. गुणविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सकल मंगल सदा अतुल, अंति: गुणविजय० हित करू, गाथा - १६. ३८१४०. नववाडि सझाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैदे. (२२.५४११. १३०४०). गाथा - ९. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रविविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि जीवडा मत राखें रे अंतिः ही रविविजय गुण गाव, गाथा- ७. ३८१३९. () महिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२२.५x१०, १३४३०). " मल्लिजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण, पुहिं. पद्य वि. १८५३, आदि जीवडा जप लीज्यो रे, अंतिः चद्रभाण० तनमनम जी, " " For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१ www.kobatirth.org " क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा. गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: मणसा मत्थरण वंदामि ३८१४२. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, जैदे. (२३.५x१०.५, १३४३९-४३). " १. पे. नाम, सीमंधर स्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरूने चरणे नमि; अंति: तेहने जाउ भांमणे, ढाल १०, गाथा ४३. ३८१४९. (१) पाक्षिक क्षामनक, संपूर्ण वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२२.५x१०, ९X३३). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विनयचंद्र, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीसीमंधर सुंदर साह, अंतिः विनयचंद्र करे सेव, गाथा ५. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: बीजा जिनवर बंदीय, अंति: (-) (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८१४४. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१)-२, पू. वि. बीच के पत्र हैं. दे. (२३४१०, १५-१७X४०-४७). भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. युधिष्ठिरनृपकथा अपूर्ण से धनपालकवि दृष्टांत अपूर्ण तक है.) ३८१४६. नेमराजिमती सिलोको व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३x१०, १३X३८). १. पे. नाम. नेमिराजमती सिलोको, पृ. १अ २अ संपूर्ण नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: समरुं सारवनैं गणपति, अंति: कुसल० कैरू में हरखे, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३८१४८. पंचमेरू जयमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५x१०.५, २४X४६-४९). पंचमेरू पूजा, पुहिं., मा.गु., सं., प+ग., आदि: संबौषडाह्वानन विंशती, अंति: पंचमेरू जयमाल भणी. ३८१५०. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२३.५४१०.५, ६-१०x२१-२५). २. पे. नाम. कुजाडो गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे. वि. अक्षर सुवाच्य नहीं है. गुरुगुण गीत, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), गाथा-४. ३८१४७. (+) शारदीया नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८-१६ (१ से १६) = २. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २३x९.५, १२X३५-४२). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंगवर्ग श्लोक २४५ अपूर्ण से पंडितवर्ग प्रारंभमात्र तक है.) तक है.) ३८१५२. तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण वि. १९२८ भाद्रपद शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२१.५x१०.५, ९४२४). ३७५ शांतिजिन स्तवन, पं. धीरविमल, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीजिनशांति प्रभु अंतिः धीर० परदेसे गुण गवाय, गाथा - ९. ३८१५१. आदिजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२१.५४११, १७४४५-४९). आदिजिन स्तव, उपा. शांतिचंद्र, सं., पद्य, वि. १७वी आदिः सकलार्थ सिद्धिसाधन, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ११ . तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुजै रिषभ समोसर; अंति: समय० तीरथ ते नमुं रे, गाथा-२७. २. पे. नाम. वयावस्था संकेत, पृ. ३आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: दसे बालो वीसे भोलो, अंति: सोइ लांबु थई सूतो, गाथा - १. गाथा - १८. ३८१५३. आलोयणा, दूहा व कल्याणक मंत्रजाप संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३. कुल पे. ३, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक अ " तरफ दिया है., दे., (२२x१०.५, १०x१८-२० ). १. पे. नाम. आलोयणा स्तवन. पु. १अ-३आ, संपूर्ण शत्रुंजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवुं जी; अंति: समयसुंदर गुण भणै, For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७६ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. कल्यांण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. कल्याणक विधि, सं., पद्य, आदि: च्यवनपरमेष्टि नमः: अंतिः मोक्षपारंगताय नम, लोक-१. ३८१५४ (-) उदायीराजा चौढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, (२१X१०.५, १८x२८-३० ). उदायीराजा चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगर पधारीया भगवत; अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. अंतिम गाथा का अंतिम वाक्य नहीं है.) " ३८१५५. गंगादेवी कथा, संपूर्ण, वि. १८२४ कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पु. १. जैवे. (२४.५x१०.५, १७४५२). गंगादेवी कथा, मा.गु, गद्य, आदि: ते तपस्वी लाजतो हुत, अंतिः जीवनई उपगार करइ छै. ३८१५६. विचार संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. ४ वे. (२४.५४१०.५, ३५-४२४३०). ', "" विचार संग्रह से, मा.गु, गद्य, आदि: भावनिद्राई करी अंतिः सांभलतां पापविष उत्तरे. -* , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८१५७. (#) ८ कर्म विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. प्रत में खडा लेखन होने के कारण पंक्तिओं की गिनती व्यवस्थित नहीं हैं. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे. (२३.५x११, ३०x१६). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कोइक जीवन अतीत काले, अंति: (-). ३८१५८. (#) विजयशेठविजयाशेठाणी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२१.५४१०.५, १६४३३). विजयसेठ विजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु, पद्य, आदि प्रह ऊठी रे पंचपरमेष, अति: (-), (पू.वि. गाथा १३ तक है.) ३८१६१. (४) पार्श्वनाथजी सिलोको, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम पू. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे., 1 (२२x१०.५, १४x२७). पार्श्वजिन सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सांमण तुझ पाय; अंति: रा तणो कुलइ को कहीयो, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३८१६२. नमस्कार व सुधर्मास्वामी गहुली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३.५X१०.५, १०X३६-४३). १. पे. नाम. पजुसण नमस्कार, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेत्रुजय मंडणौ; अंति: तणौ धीर करे गुणग्यान, गाथा-७. २. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि ज्ञान दर्शन गुण धरत अंतिः भावें एहवा उत्तम जीव, गाथा-५ ३८१६५. (+#) स्तवन व पारणा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१०, १७५२). १. पे. नाम. चोवी तीथंकर स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदनाथं करोजी अंति: भगत द्यो कंठ मेरी, गाथा- ३०. ३८१७०. समाधिपच्चीशी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४४१०.५, १९४३). २. पे. नाम. महावीरजिन पारणा, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. महावीरजिन स्तवन- पारणागभिंत, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीअरिहंत अनंतगुण, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) १५-१८४३०-३५). १. पे. नाम. धन्नामुनि सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८३३, आदि अपूर्व जीव जिन घर अंतिः रायचंद० नगर चौमास रे, गाथा - २५. ३८९७४ (-) सज्झाय व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे. For Private and Personal Use Only (२०-२१.५x९.५, Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३७७ धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३२, आदि: काकंडी नंगरी भली सर; अंति: इम कहहु चरणां रोदास, गाथा-१४. २. पे. नाम. जैन गाथा संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पांच पाट को जा मुपर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ तक है.) ३८१७७. (#) साधुवंदना गुण, संपूर्ण, वि. १८९७, वैशाख शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने ले.सं. में मात्र ००९७ का उल्लेख किया है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १२४४०). साधुगुण सज्झाय, आ. विमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणवरनै करु; अंति: विमलसूरंद लहसी तेह, गाथा-१६. ३८१८२. दानसीलतपभावना संवादचतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १८०७, आश्विन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. शिवपुरीनगर, प्रले. ग. हेतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१४, १५४३६). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि चिरनंदोरे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ३८१८३. संतोष सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, ८४३०). वैराग्य सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिज्झा भली रे संतोष; अंति: विनयवि० अवीचल थान जी, गाथा-६. ३८१८७. विधि, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ५०, दे., (१९.५४११.५, १०४२९). १.पे. नाम. रात्रिसंस्थारक विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेस्सह; अंति: इअसमत्तं मएगहियं. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरिजिणवर तिहुअणजण; अंति: नियपय सुअदाणउ अइरा, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधु अतिचार चिंतवन गाथा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: साहुदेहस्स धारणा, गाथा-२. ४. पे. नाम. दशवकालिकसूत्र १ से २ अध्ययन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३८१९१. जिनबिंब गण, नक्षत्र व योनि परस्पर विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, २७४५५-६१). जिनबिंब गण नक्षत्र योनि आदि विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इह देवस्य तबिंबकार; अंति: तथा वादरणादिति इह च. ३८१९३. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. मु. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१०, ८x२९-३७). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २. पे. नाम. गोरखनाथ मंत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो आदेस गुरु कुं; अंति: मेरी भगत फुरो मंत्र. ३८१९५. (+) विचारषत्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८६०, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सीरोहीनगर, प्रले. मु. जीतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४११, ९४२८). दंडक प्रकरण, मु.गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३. ३८१९८. जिनकुशलसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०x१०, ९x१८-२१). For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनकुशलसूरि गीत, मु. सुमतिरंग, मा.गु., पद्य, आदि: (१)अरज सुणीजे कीजे दीजे, (२)श्रीजिनकुशलसूर दुरत; अंति: सुमतरंग० गुण मुदामो, गाथा-४. ३८१९९. तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२०x१०,११-१४४४६). तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी सुर; अंति: थकां कल्याण संपजै. ३८२००. (+) गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. सावली, प्रले. मु. रंगजी; अन्य. पंन्या. मोतीविजय; मु. जयविजय; मु. जीत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४१ हैं. पत्रांक का उल्लेख नहीं हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१९.५४१०, १७४३२). १. पे. नाम. ऋषभ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणंदा मोरी नीजर; अंति: आनंदघन० हुआ उछाहा बे, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: छांड सबल अरु निंबकी; अंति: उदधी नीर न लेवत कोई, दोहा-२८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-धर्मोपदेश, मार्कंड, मा.गु., पद्य, आदि: तजरे मन गाम गमारन; अंति: मार्कंड०नहीं गुरु की, गाथा-१. ३८२०१. पद व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५४११, १६४२७). १. पे. नाम. लक्ष्मणमूर्छा पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सकती जब लछमण के मारी; अंति: रायकोट में छंद उचाया, पद-४. २. पे. नाम. विद्यारक्षा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. गुजा, पुहि., पद्य, आदि: करोतुम विद्या का पर; अंति: गुजा० कठन सुधार, गाथा-११. ३८२०२. सज्झाय व शुक्रफल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०४९.५,११४३१). १.पे. नाम. २४ जिनपरिवार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. श्रीदतपुर, पठ. श्राव. अखैराज शाह; प्रले.मु. रामा ऋषि (गुरु पं. अमराजी ऋषि); गुपि.पं. जीवाजी ऋषि; पं. अमराजी ऋषि (गुरु पं. जीवाजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस तीर्थंकरनो; अंति: उठीनइ करोप्रणाम, गाथा-५. २. पे. नाम. शुक्र फल, पृ. १आ, संपूर्ण. शुक्रउदय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पडिवा छठ इग्यारसि; अंति: कै छत्रभंग करंति. ३८२०३. (+) ज्ञानपंचमीतपस्तवन, संपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०x१०, ९४२१). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. ३८२०४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०.५४९.५, १३-१५४६०). १. पे. नाम. दानफलशुभाशुभ सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणी विनवू; अंति: लावण्यसमय० परिमाण रे, गाथा-१४. २. पे. नाम. अनंतकाय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: जिनसदस नरे सुधीसदहण; अंति: ते सवे सुख लहे, गाथा-१०. ३८२०५. (+) सामायिकलाभ सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१०.५, ८x२५-२८). प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुंभावशु; अंति: गततणो ए ध्यान लाल रे,गाथा-४. ३८२०६. शालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१९.५४१०, १५४३०). For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org शालिभद्रमुनि सज्झाव, मा.गु., पद्य, आदिः सुतो जाया वरष ए छोय, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २१ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८२०७ ) औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२०x१०, २०X२६-२७). १. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पुहिं., पद्य, आदि: किसी संग वीरवा न बोल; अंति: सुज पाण सुख भरदाइ, गाथा-५. २. पे नाम, अपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: प्राणी पंच इंद्री, अंति: तुरत इस जावे, गाथा-८. ३८२०८. पद्मावती छंद व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. जावाल, पठ. ग. अमृतविजय पंडित; प्र. ग. सुखविजय पंडित (परंपरा ग. मेघविजय); गुपि. ग. मेघविजय (गुरु ग. रूपविजय); ग. रूपविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि); आ. विजयप्रभसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२१X१०.५, ११३१). १. पे. नाम पद्मावती छंद. पू. १अ २आ, संपूर्ण, पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंतिः स्तुता दानवेंद्र, श्लोक-१४. २. पे. नाम. पद्मावती मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ आँ एँ क्राँ ह्रीँ, अंति: तो बहुत खूब होवइ. ३८२०९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २१४९, १५X४१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: बार बार मिनषा भव पाइ, अंति: गाफिल मत रहे, २. पे. नाम. वज्रराजापरिवार सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. - वज्रकुमारपरिवार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि नगर अयोध्याराय जी हो; अंतिः पुरंदरराय संयम लियो, गाथा १२. ३. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण गाथा - ९. ३७९ पुहिं., पद्य, आदि देखी दुनिया बीच वे अंतिः वे कोई अजब तमाशा, गाथा-५, ! ३८२१०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे २, जैदे. (२४.५४१०.५, १४४३५). " १. पे नाम, चितसमाधि सज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण "" समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु पद्य वि. १८३३, आदि अपूरव जीव जिनधर्म अंतिः रायचंद तणो अभ्यास रे, गाथा - २५. २. पे. नाम. उपदेसरी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मनुष्य भवदुर्लभ सज्झाव, मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु. पद्य, वि. १८६८, आदिः सतगुर संग लह्यो, अति: कुसल चंद० गुरनो उपगार, गाथा - १३. ३८२११. नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. वे. (१९४१०, १४४३०). ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधि श्रुतः, श्लोक-११. ३८२१२. () जंबूकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( २४.५X१०, १८X३१). जंबूस्वामी सज्झाय, क्र. खुशालचंद्र, मा.गु., पद्य, बि. १८१७, आदि: मगध देश राजगृही नगरी, अंतिः सो शीलतणी महिमा भारी, गाथा- १५. , For Private and Personal Use Only ३८२१३. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५X१०.५, १२X३८). १. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर, अंति: देहि मे देवि सारम्, लोक-४. २. पे नाम एकादशी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची एकादशीतिथि स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: संघ तणां निशदिश, गाथा-४. ३. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३८२१४. पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१०.५, ८x२२). पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: सुण अरदास सुगुण; अंति: धर्मसी सुखकारी राज, गाथा-४. ३८२१५. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२२४१०.५, १५४३९). १.पे. नाम. आयुष्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आउखो त्रुटा ने साधो; अंति: कीजे धरमतणो उछावरे, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, ऋ. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: वाजा नगारे जीसीया; अंति: जीत नगारा गायाजी, गाथा-८. ३८२१६. स्तवन व औषध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४१०.५, १८-१९x१९). १.पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८५५, फाल्गुन शुक्ल, १५. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आपे ने पाधरीवाले साम; अंति: न्यायसागरन्दान आपो ने, गाथा-६. २.पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८५५, फाल्गुन कृष्ण, ५, ले.स्थल. सिद्धपुर. नेमिजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल गेली करी नेमी; अंति: रंग वंदे नित तेहरे, गाथा-५. ३. पे. नाम. औषध, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८२१७. (-) विजयसेठ विजयासेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५४११, १२४२३). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सेठ सुकल बजीया बरत; अंति: सेठ कथा उत्सुत्र आणी, गाथा-१३. ३८२१९. (+) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४०). सिद्धचक्र स्तवन, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी कही सम; अंति: या संघ विघन दुरो करै, गाथा-१२. ३८२२०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १४४३८). १.पे. नाम. नेमप्रभुनो पनरेतिथि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुखकमलै राजे; अंति: रंगविजये वधते रंगे, गाथा-२३. २.पे. नाम. समेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समेतशिखर सुहामणो; अंति: सदा कर्म कटे ततकाल, गाथा-४. ३८२२१. नंदीसेणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०, १३४३३-३९). नंदिषेणमुनि सज्झाय, म. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगही नगरीनो वासी; अंति: मेरुविजय०कोइ तोले हो, ढाल-३, गाथा-१५.। ३८२२२. चंद्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १७४५३). चंद्रराजा रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणवर नाम हिय धर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ की गाथा १८ तक लिखा है.) ३८२२३. पांच पांडव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३२). ५पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलो; अंति: मुज आवागमन निवार रे, गाथा-१८. ३८२२४. जैन धर्मोपदेश पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१०.५, ७४३१). न For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३८१ औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: षद्रव्यनामै कह्यो; अंति: पदवी कही पांच प्रधान, गाथा-४. ३८२२५. (+) धर्मजिनचैत्य प्रशस्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४१०.५, ८x२५). धर्मजिनचैत्य प्रशस्ति- अहम्मदाबादमंडन, मु. सरूप पं, सं., पद्य, वि. २०वी, आदि: स्वस्ति श्रीमज्जिन; अंति: जिता कृता पसरूपेण, श्लोक-३३. ३८२२६. पोसह विधि व पडिलेहण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४९). १.पे. नाम. पोषह विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहि पडिकमिई; अंति: करि मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. सांझनी पडिलेहण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावनो ४ लोगस्स; अंति: पडिलेहवी वांदणा देवा. ३८२२७. पजूसण थूइ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ., (२१.५४१०.५, ९४२६). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर; अंति: विबुधविजै जयकारीजी, गाथा-४. ३८२२८. (+) गुरु गुणमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. कस्तूरचंद्र (गुरु मु. सबलदास); गुपि. मु. सबलदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३४१०.५, १२४३४). गुरुगुण गहुंली, मु. वृद्धिचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: श्रीजिन वचन प्रमाण; अंति: वृद्धिचंदजी० पोर मे, गाथा-१३. ३८२२९. बिंब प्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११, १२४३१-३२). बिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गुरु शुक्रोदये भव्यं; अंति: श्रेय कल्याणभीय जेयः. ३८२३०. २० विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४१०.५, १३४३६). २० विहरमानजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान तीथंकरवीस; अंति: हरषै० करूं प्रणाम, गाथा-१६. ३८२३१. (#) सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, ११४२६). सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणुरे; अंति: नित प्रणमें पाय रे, गाथा-८. ३८२३२. स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. मु. मोतिचंद; मु. दीपचंद; मु. सीवचंद (गुरु मु. उत्तमचंदजी); प्रले. मु. उत्तमचंदजी (गुरु आ. देवगुप्तसूरिजी); गुपि. आ. देवगुप्तसूरिजी; राज्यकालरा. केसरिसिंघ, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२२४१०.५, १०४३८). १.पे. नाम. नेमराजीमती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रावण कृष्ण, १०, ले.स्थल. आसौप. नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहै सुणो नेमजी; अंति: रामविजय० कोडि कल्याण, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: मान भायौरी मान भायौ; अंति: सरणै राज तुमारै आयौ, गाथा-३. ३. पे. नाम. अध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: हम बैठे अपनै मोनसुं; अंति: सुलझे आवागौनसु, गाथा-४. ३८२३३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, चैत्र, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. साहिपुरा, पठ. मु. मनोहरकीर्ति; प्रले. सा. रंभा (गुरु सा. रायकवरेजी आर्या); गुपि. सा. रायकवरेजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संवत १०८ लिखा होने से अनुमानित वर्ष लिया गया है., जैदे., (२३४१०.५, १९४४६). १.पे. नाम. सालीभद्रनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगरी बले नगरीजी; अंति: अणुत्तर बिमाण गयाजी, गाथा-२७. २.पे. नाम. खामणा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु.गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमु अरिहतने; अंति: गुणसागर सुख थाय, गाथा-१६. ३८२३४. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुलपे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, २३४६४). १.पे. नाम. जीवविचार बोल संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जीवविचार बोल*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. १८ भार वनस्पति मान, प्र. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८२३५. स्तवन व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, २८x१६). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: कुशल करण त्रिभुवननो; अंति: गुण मुनि करई परणाम, गाथा-९. २. पे. नाम. नक्षत्र योनि, पृ. १आ, संपूर्ण.. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३८२३६. माया मृषावाद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१८.५४१०.५, १०४२५). मायामृषावाद पापस्थानक सज्झाय, हिस्सा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरमुपापर्नु ठाम; अंति: सुजस अमूलि हो लाल, गाथा-१२. ३८२३७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३४). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: काल तणै कोई नहीं; अंति: आसकरणजी० रसीयो रे, गाथा-७. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: चित निरमल कर समरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८२३८. गोपीचंदनो ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२४४१०.५, १५४३९). गोपीचंद ढाल, रा., पद्य, आदि: राय उदाई साध फिरतो; अंति: चिहुगत भटके रे, गाथा-२५. ३८२३९. सज्झाय संग्रह व पालना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१०.५, १८४३७). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९४४, आदि: मारी दयामाता थाने; अंति: या गुरुदेवा उपगार हो, गाथा-१३. २. पे. नाम. भरत महाराजा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... भरतमहाराजा सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि: मुक्त पद पाया हो; अंति: पूरो मन की आस, गाथा-११. ३. पे. नाम. आदिजिन पालना, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: मा मोरादेवी गावेरे; अंति: सुगुण कीम जाइ करीयो, गाथा-७. ३८२४०. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१.५४११, १२४२४). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इणे डुगरीये मन मोही; अंति: सिद्धिविजय० तास हो, गाथा-१३. ३८२४२. (4) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१०.५, ११४२८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन गोडी, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कर्मसिह, मा.गु., पद्य, आदि: दीजे दीजे रे गोडीचा; अंति: गाता वंछित फल पामीजे, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ गाथा- ७. ३. पे. नाम. श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. www.kobatirth.org २. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन गीत. पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारो लागह मोने, अंति: पावत वंछित फल नीको, पार्श्वजिन स्तवन, मु. मूलचंद, रा., पद्य, आदि: लागै छै मांनुं पास; अंति: मूलचंद० पार उतारो, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. लोक संग्रह *, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). (-) औपदेशिक पद, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे. (२०.५x१०.५, १६४१५). " औपदेशिक पद, मु. त्रिगुणरतन, रा. पद्म, आदि आंटी कर मांरी राज, अंतिः करम कटक दल नाटी राज, गाथा-५. ३८२४७. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २१.५X११, १x२९). १. पे. नाम, पासजिणेसर पद, पृ. १अ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. मूलचंद, रा., पद्य, आदि: सेवीजै प्रभु संतजिणे; अंति: पद मूलचंद गुण सारै, गाथा-४. ३८२४९. माता सुसाणी स्तुति व नेमिजिन गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २४.५X११, ११x४५). १. पे. नाम. मातासुसाणीजीरी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सुसाणीमाता स्तुति, रा., पद्य, वि. १७८९, आदि: अहनिसि सेवीयै सुरां; अंतिः सेती गुण गौरीरा गाया गाथा ११. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. राजिमती सज्झाय, उपा. अमरसी, मा.गु., पद्य, आदि पंधीडा हरकर कहै रे अंति: अमरसी कहै उवझाय, गाथा- ९. ३८२५०. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. जैवे (२३४१०, १०x२२). " आदिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि आदिजिणंद अवधारीये अंतिः अविचल सूख तुलासारै, गाथा-७. ३८२५१. शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( १७.५X१०, ११x२४). शाश्वतजिन स्तवन, अप., मा.गु., पद्य, आदि: भवणं वयसंते कोडि लाख; अंति: पामइ इम बोलइ भरसहिए, गाथा - ९. ३८२५२. दशवैकालीक सूत्र अध्ययन १ दुम पुफियाध्ययन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (१८.५४११.५, १०x२१). दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्यिका प्रथम अध्ययन, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुहिं, अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. ३८२५३. () अजीतनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१८.५X१०, १०X२३). 1 !י ३८३ अजितजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: अजित जिनराज सुणि आज अंतिः नय० अधीक तुझ सेवा, गाथा- ७. ३८२५४. (+) वीरजिन कल्याणक, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (१५.५४९, १२x२२-२७). " महावीर जिन जन्मोत्सव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीर जन्मावसर; अंति: मंगलीकमाला प्रामउ. ३८२५५ (४) स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षर फीके पड़ गये हैं, जै. (२३१०, ४. पे नाम, पक्षी नाम गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चकवा बुलबुल चकोर चडी; अंति: जंगल माहि उछाह लहै, गाथा - २. For Private and Personal Use Only १५X३७-४०). १. पे. नाम. मौनएकादशीतिथि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. एकादशी तिथि स्तुति, मु. गुणहर्ष - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी तिथि रूअडी; अंति: गुण० संघ तणा निसदीस, गाथा-४. २. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पू. १अ. संपूर्ण सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझनै, अंतिः शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक लोक संग्रह, प्रा. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), श्लोक-३. Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Treff ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८२५६. (#) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १७९२, भाद्रपद शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नंदग्राम, प्रले. आ. विजयदयासूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३८). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीमहावीरस्वा; अंति: श्रीविजयदयासूरि थया, (वि. मूल कृति से अलग १से ७ परंपरा तक अलग से लिखा है.) ३८२५७. महावीरजिन स्तवन व नेमिजिन बारमासो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. अजमेर, जैदे., (२४४१०.५, १३४३८). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: अरज सुणी मोरी साहबा; अंति: ललित० पुरी वंछित आस, गाथा-१५. ३८२५८. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०.५, २४४१६). १.पे. नाम. गोडीजीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वालेसर मुज विनति; अंति: इम जपे० गोडीचाराय, गाथा-७, (वि. कर्ता नाम से संबंधित पाठ वाला भाग फटा हुआ है.) २. पे. नाम. सुबाहुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. बाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो रुडा राजिआ; अंति: कल्याणसागर०परम कृपाल, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेम गीत, पृ. १आ, संपूर्ण नेमराजिमती स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मात सिवादेवी जाया; अंति: रूचिरविमल० सुख पाया, गाथा-९. ४. पे. नाम. प्रभु गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीउडो जिनचरणरी; अंति: सीले मोहन अनुभव मागि, गाथा-७. ३८२५९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जरो., (२३.५४१०.५, १२x२९). १.पे. नाम. प्रशनचंद ऋषि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मारगमें मूझने मिल्यो; अंति: समयसुंदर मनवाल, गाथा-५. २. पे. नाम. माया उपर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनो मूल एह जाण; अंति: ए मारग छे सुध रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. परनारी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री त्याग, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चतुरसुजान; अंति: चाखो अनुभव सुखडली, गाथा-५. ३८२६०. गौडी पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सुराचंद, प्रले. पं. राजसिंह (गुरु ग. लधराज); गुपि.ग. लधराज; पठ. पं. कानजी (गुरु वा. सोभाचंद); गुपि. वा. सोभाचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२४४११, १६x४८). पार्श्वजिन चौढालियो-गोडीजी, मु. लावण्यचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणंद प्रसिद्ध; अंति: शिष्य लावण मुनि __ भणै, ढाल-५, (वि. पीठिका के पाठ को ढाल प्रथम के रूप में लिया गया है। इसलिये कुल ढाल-५ होते हैं।) ३८२६१. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१०-१९.०, १४४२९). For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, आदि: इम सदगुर जीवन्ये समझ, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ११ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८२६२. (०) सुगुरुपच्चीशी सज्झाव, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे., (२३.५x१०, १६x४४). सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगर पछाणो इण अचार, अंतिः चित हरख उछरंग जी, गाथा - २५. ३८२६३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, २, जैदे. (२४४१०.५, १२-१५४४५). " १. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी, अंति: साधुतणी रे सज्झाय, गाथा- १३. २. पे. नाम रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपा. देवविजय, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीगुरु चरणे रे भाव, अंतिः सीखडी सांभलो निसदिस, ढाल २, गाथा- १४. ३८२६४. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., ( २४४१०, १३३५-४२). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरुहंताणं नमो; अंति: नमो लोए सव्वसाहूणं, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. 'नमो लोए सव्वसाहूणं' तक का पाठ है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार श्रीअर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, साधु के गुणों का वर्णन अपूर्ण तक है.) 3 ३८५ ३८२६५. पार्श्वजिन स्तवन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५X१०.५, १५X३९). १. पे. नाम. सुखसागर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. दानरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन- सुखसागर, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदिः सुखसागरनुं लेतां नाम, अंतिः नामि ऋषभ सुख लहि, गाथा-१४. २. पे. नाम. राणपुर आदिश्वर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणिकपुर रलियांमणो; अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा- ७. ३८२६६. सुखदेव लोक की सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. ले. स्थल. कोटले प्रले. सा. नथी, गुपि. सा. विनोजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X१०.५, ११४४४). सुखदेवलोक सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, आदि: सुख देवलोकारा; अंति: आसकरण० चोमासो जी, गाथा - २१. ३८२६७, () स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे. (२३.५-२४.०x१०.५, For Private and Personal Use Only १५X३३). १. पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरिहंतदेवा, अंति: तो धरम करो नवकार, गाथा - १३. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय - जीवकाया, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु भाखे देसना रे; अंति: करतो कुल कुसलो समजाय, गाथा - १२. ३८२६८. महावीरजिन दस अछेरा सझाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२३.५४१०.५ १३४३२-३५). महावीरजिन १० अछेरा सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५५, आदि: हुआ दस अछेरा आचरजकार; अंति: जोगे पर उपकार, गाथा- १३. ३८२६९. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन- २ सामान्यपूर्वी अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. पुण्यविजय, पठ. श्रावि. सलतानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X१०.५, ९३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण. Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८२७०. दीन नक्षत्र लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१०.५-११.०, १०४३०). दिन नक्षत्र लावणी, पुहि., पद्य, आदि: दायपडे सोक हरे; अंति: हिलमल भ्रमनाभांजत हे, गाथा-६. ३८२७१. (+) नवकार महिमा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १५४३१). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपूरण विध परे; अंति: द्धि वृद्धि संपत लहै, गाथा-१३. ३८२७२. स्तवन व गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ७, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४४४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: न्यान तुम्हारउ लाल, गाथा-५, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण, वि. १७५१, वैशाख शुक्ल, १४, शनिवार, ले.स्थल. अहमदावाद, प्रले. ग. दीपसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कुंडनयर भलउरे तिहा; अंति: न्यानसागर०शेवकनी सार, गाथा-६. ३. पे. नाम. विविध विचार मत, पृ. ६अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तपा कहि इरीया पहिली; अंति: कोइ केवली पासे गछइ, गाथा-१. ४. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. ६आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: माहरा आतमरांम किणि; अंति: नयविमल० पद पासु, गाथा-७. ५. पे. नाम. आत्मानुशासन गीत, पृ. ६आ, संपूर्ण. माया गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: एहु मेरा एहुं मेरा; अंति: जीपइ तिन का हुचेरा, गाथा-३. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चेला चेला पदं पदं; अंति: समयसुंदर मुगति पदं, गाथा-२. ७. पे. नाम. तत्वनिर्णय गीत, पृ. ६आ, संपूर्ण. तत्त्वनिर्णय गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: एक बार जो मुझ मिलि; अंति: समयसुंदर० भेद पाया, गाथा-३. ३८२७३. (-) संवेगी कडतल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२ है., अशुद्ध पाठ., दे., (२३४१०.५, २०७१५). संवेगी कडतल, रा., पद्य, आदि: सरसति माता तुझ पाए; अंति: गधे ते मछर भाजे, गाथा-१५. ३८२७४. (#) सज्झाय, शकुन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, २४४२०). १.पे. नाम. मयणरेहा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मदनरेखासती सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: लघुबंधव जुगबाहुनै रे; अंति: हुंवादु त्रिणकाल, गाथा-८. २.पे. नाम. शकुन कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. शकुन विद्या, सरूप कवि, पुहिं., पद्य, आदि: करीणरंभ हरिचंद्र; अंति: सरूप० सुकन राधारमण, दोहा-१. ३. पे. नाम. औषध पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पारोटं. २ भिलामो; अंति: (अपठनीय). ३८२७५. (+-) मल्लिजिन चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३.५४११, १९४४८). मल्लिजिन रास, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२४, आदि: नामस्कार हुवो अरिहंत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल- ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८२७६. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०.५, १३४४४). १.पे. नाम. साधु सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ___३८७ साधुपद सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अविचल पदवी तेह, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. क्षिमा कुल, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपशम सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भयभंजण रंजण जगदेव; अंति: विजयभद्र० नही अवतरइ, गाथा-१२, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा १२ को संख्या-२२ गलती से लिखा है.) ३.पे. नाम. पच्चक्खाण सझाय, पृ. २आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी; अंति: पामउ निश्चि निरवाण, गाथा-८. ३८२७७. चारगतिनो विरहकाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२२४१०.५, १७X४४). ४ गति विरहकाल समय, मा.गु., गद्य, आदि: च्यारुगत कौ समचौविरह; अंति: उतकृष्टो ६ छमहीना कौ. ३८२७८. स्तवन व अधिकमास गुणन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., दे., (२२.५४१०.५, ७-१५४१५-२५). १.पे. नाम. होरंग रसिया, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सरूप, रा., पद्य, आदि: हो रंग रसियाजी सेत्र; अंति: सरूप० दीठौ सीस नमावै, गाथा-५. २.पे. नाम. पाटीयो, पृ. १आ, संपूर्ण. अधिकमास गुणन विधि, म. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: गइ घटिस आधी कीजै; अंति: हीर० बोल्यो जोइस काढ, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३८२७९. पंचपरमेष्ठि वृद्ध नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, १८४४५). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-१३. ३८२८०.(-) चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सावर, प्रले. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२२.५४१०.५, १२४३२). २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: धुर प्रणमु रिषभजिणंद; अंति: ईण धरमसुराखजो पेम ए, गाथा-१७. ३८२८१. स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, ९x४७). १. पे. नाम. आबुजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आबुतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुकुलीणी प्रिउनई कह; अंति: समकित निरमल थाइ, गाथा-६. २.पे. नाम. सिद्धाचल गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मन मोह्यउ हे सखी गिर; अंति: राजसमुद्र० सवि धोईयइ, गाथा-५. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषितश्लोक संग्रह, सं.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८२८२. सज्झाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१०.५, ११४३१). १. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: आज के काल चलसीरे; अंति: वीनां नर सोभागीरे, गाथा-७. २. पे. नाम. सारदा माताजी, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: कुंडल झलकै मझ करण; अंति: जय जय हर हर अजर जरं, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ३८२८३. श्रावक करणीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जिनहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, ११४४२). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮૮ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८२८४. अंतरिक्ष पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. जीतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १४४४५). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भणै जयो देव जय जयकरण, गाथा-५१. ३८२८५. पौषधादिविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२२.५४१०.५, १५४३३). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमी; अंति: (-). ३८२८६. समतारूपणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, ३१४१७-१९). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चरण कमल अरिहंतना; अंति: घर घर कोड कल्याण रे, गाथा-२६. ३८२८७. (+) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक नहीं हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४११, १९४५५). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अविन्यासीनी सेजडीइं; अंति: प्रीत बंधाणीजी रे, गाथा-५. २.पे. नाम. मेवाड़देस छंद, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. उदैपुर. मेवाडदेश वर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., पद्य, वि. १८१४, आदि: मन धर माता भारती कवि; अंति: जिनेंद्र० चिर नंद, गाथा-१२. ३. पे. नाम. जैनदुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३८२८८. थंभणपुर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१०.५, ११४२७). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: मंडण पासनाह चउसालो, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३८२९०. जिनरस, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१०.५, १४४३९). जिणरस, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपत सारद पय नमी आखु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८२९१. कुगुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२९, वैशाख कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कानमेर, प्रले. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०.५, १२४३५). कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर परणमुं सदा; अंति: ते पामे भवनो पार, गाथा-२५. ३८२९२. मुनिगुण सज्झाय व नेमिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, १२४३९). १.पे. नाम. मुनि गुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. साधु गुण सज्झाय, मु. नेत, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु आदिजिणेसरराय; अंति: नेत० आजमेरय मय गाया, गाथा-११. २.पे. नाम. नेमिजी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. नेत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनमीसर नवल नरिंदो; अंति: गावत नेत सदा मनरंगइ, गाथा-२६. ३८२९४. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. उदयविजय; पठ. श्रावि. वन्नादेवी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१०.५, ९४३२). शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद; अंति: एम उदयरतन कहै वाणी, गाथा-११. ३८२९५. धर्मवाणी श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४८). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिनपूजनं विवेक सत्य; अंति: धर्मस्य तत्फलंविदुः, (वि. गाथांक छुटक-छुटक दिया गया है.) ३८२९६. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४१०-१०.५, ११४३०). नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: मागसिर मासई मोहिउं; अंति: विनय गाया हरख उल्हास, गाथा-२७. For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३८२९७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४४१०.५, ११X३०). १. पे. नाम. लघु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु, पद्य, आदि दोस्ती जुडी ये तु अंतिः विदारि दुरोज प्यारे, गाथा-५, २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं, पद्य, आदि आखंदा मई हुं तेडी, अंतिः जिण सुरतरुदा अवतार, गाथा ५. ३८२९८. नवकार पद व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५X१०, १३X३९). १. पे. नाम. वृद्धि नवकार, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण; अंतिः सेवा मागुं नित्त, गाथा - १३. २. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन साररी, अंतिः जास अपार री माई, गाथा- ९. ३. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया, अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३८३००. गीत व कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४X१०.५, १३x४६). १. पे. नाम. गुरुगीत, पृ. १अ, संपूर्ण. उदयराज गुरुगुण गीत, मु. त्रीकम, मा.गु., पद्य, आदिः उदैराज तणा गुण गावं; अंति: त्रीकम चिरनंदो रे, गाथा - ६. २. पे नाम वासुपूज्यजिन कवित, पृ. १अ संपूर्ण. वासुपूज्यजिन कवित- नाडोल, मु. हरखरतन, मा.गु., पद्य, आदि विधि सो इधिक विचार अंतिः हरखरतन० नवनिध संपजै, गाथा- ३. ३. पे. नाम. अबोटी त्रीकम के कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. अंचलगच्छ बोटीक विवरण, मु. त्रीकम, पुहिं., पद्य, आदिः उस्तापतिमति ऊंचई; अंति: अंचलगच्छ अद्योतकर, गाथा-४. ३८३०१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५X१०, १३x४६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि वाहलेसर मुझ विनती, अंतिः इम जपे जिनराज रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ १ आ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रतनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कांमणगारा पासजि तें; अंति: रतनसागर० दिधा रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ३८९ पार्श्वजिन स्तवन- पलाणागोडीजी, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: श्रीपासजिणेसर साहिबो; अंति: गाथा ८. ३८३०२. पार्श्वजिन निसाणी घघर, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२२४१०.५, १२४३५). " पार्श्वजिन स्तवन- घघरनिसाणी, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि सुख संपति दाइक सुरनर, अंति: जिनहरख गहंदा है, ग्रं. १०१ (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३८३०६, (४) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे (२१x१०, १३५३१). १. पे नाम. कायाउपरि सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण, For Private and Personal Use Only औपदेशिक सज्झाय कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि कायापुर पाटण मोकलो अंतिः सैहजसुंदर उपदेस रे, गाथा- ६. २. पे. नाम. जीवकाचा सज्झाय ५. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय - जीवकाया, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरा पिय साजणा, अंति: सहु पकोड मेरे जीव रे, गाथा - १०. Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८३०७. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३१, चैत्र कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, दे., (२१.५४१०.५, ११४२६). सिद्धचक्र स्तवन, मु. रिख महंत, मा.गु., पद्य, आदि: हां ऐ अरिहंत पद पहिल; अंति: रिख० जिन तवन कहत, गाथा-११. ३८३०९. (#) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १३४४०). १.पे. नाम. नेमनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनहरख, मा.गु., पद्य, आदि: राजल बेठी महिलमें; अंति: जिनहरखसु केमरेला, गाथा-१७. २. पे. नाम. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम ढाल की गाथा ४ से ६ तक लिखा ३. पे. नाम. चोवीसी नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. __ अतीतचोवीसीजिन नामादि, मा.गु., गद्य, आदि: निरवाणजी सागरजी; अंति: सुधमताजी श्रीभद्रजी. ३८३१०. (+) जिनजन्म महोत्सव, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२४४१०.५, १४४४८-५१). महावीरजिनजन्म महोत्सव, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: महोछवकरी देवलोकी जाइ. ३८३११. ग्यानपांचमीवृध स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रावण कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. खीचसर, प्रले. पं. रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११, ९४२९). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. ३८३१२. श्रावक आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१०.५, १४४३८). श्रावक आराधना-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञप्रपं; अंति: (-). ३८३१३. गुणठाणा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १८४५२). महावीरजिन स्तवन-१४ गुणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी सदा; अंति: जंपइ वीरजिन सेवो सदा, गाथा-२३. ३८३१४. स्तवन संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१०.५, १०-११४४३). १.पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: जिनप्रभ० सीस रसाल, गाथा-१४. २. पे. नाम. गौडीपारस्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुज वीनती; अंति: इम जंपे जिनराज, गाथा-७. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८३१५. अइमुत्तामुनि सज्झ्या , संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३४१०,८-१४४३७). अईमुत्तामुनि सज्झाय, मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वादीने; अंति: रतन० ते मुनिवरना पाय, गाथा-१९. ३८३१६. पार्श्वनाथ जीराओलानी निसाणी, संपूर्ण, वि. १८१५, आषाढ़ कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४१०, १५४३६-३८). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: जिनहर्ष गहंदा है, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३८३१७. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१०.५, १८४४३). १. पे. नाम. साढापच्चीस देश विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: १ मगधदेश राजगृह १कोड; अंति: नवसय गांम आरज जाणवा. २. पे. नाम. रावण के मातापितादि नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति", प्रा. मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. रामजण की वंशावली, पृ. १अ, संपूर्ण. रामजनकी वंशावली, मा.गु., गद्य, आदि: जनकवंसी भाट त्रिलोक; अंति: मतिसुंदरवंशी मलइला. ४. पे. नाम. जीववैक्रियशरीर समयमान गाथा - जीवाभिगमे, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - १. ३८३१८. चौद नियम गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४५, माघ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( १३.५x९.५, ४X१४-२०). श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई, अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा - १. श्रावक १४ नियम गाथा - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि सचित संख्या वाहयो अंति: बाजरी प्रमुख पावणा ३८३१९. प्रतिक्रमण विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२२x१०.५, ११x४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिक्रमणविधि संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु., गद्य, आदि: प्रथम जयतिहूण कहीजे, अंति: देवश्यक भणिज्यी ३८३२९. स्तवन व श्लोक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जै. (२१x१०, ६-१३४३०-३२). १. पे. नाम. गोडीजी पारश्वनाथ स्तवन, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: बदन अनोपम चंदलो गोडी; अंतिः शांति करतां सुख लहे, गाथा ४१. २. पे. नाम. सुभाषित लोक संग्रह सह टवार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण, *** सुभाषित लोक संग्रह पुहिं. प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: दाक्षिण्यं स्वजने, अंतिः तेस्वलोक स्थिति, गाथा- १. सुभाषित लोक संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भला जनमां चतुराइ पणौ; अंति: सिक्षा माफक चालीए. ३८३२२. () पार्श्वजिन कुंडलीआ, संपूर्ण, वि. १९०२, वैशाख शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. बजांणानगर, प्रले. पं. जशविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. जैवे. (११.५४८.५, १६४१६). " पार्श्वजिन कुंडलीचा, पुहिं., पद्य, आदि: दरसन पारसनाथ का करतन, अंतिः (अपठनीय), गाथा-४. ३८३२३. विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२१x१०.५, ११x४२). १. पे. नाम. चतुर्दशमोटीवीद्या नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ नभोगामीनी २ परसरीर, अंति: १४ मोक्षदायीनी. २. पे. नाम, चौदवक्ता नाम, पृ. १अ संपूर्ण. १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मदेवलोक१ ईसान; अंति: अच्युतदेवलोक १२. ३. पे. नाम, नवप्रवेकरा नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ९ ग्रैवेयक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भद्दे १ सुभद्दे२ सुज, अंतिः प्रियदंसणे८ जसोधरे९. १४ वक्ता नाम मागु, गद्य, आदि: प्रश्नव्याकर्णोक्त, अंति: धर्मवंत १४ संतोषवंत. ३. पे. नाम. छप्पनअंतर्द्विप मनुष्य विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. ५६ अंतद्वप मनुष्य विवरण- पन्नवणामध्ये, मा.गु., गद्य, आदि: १ एकोरुकद्विपनां; अंतिः शिखरीनीदाढानां एवं५६. ४. पे. नाम. षट्संस्थान विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. ६ संस्थान द्वार, सं., गद्य, आदिः समचत्वारो अश्राः कोणा, अंतिः तत्त हुंदक संस्थानम् ३८३२४. स्तवन व विविधबोल संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ५ दे (२२४११, ९४२५). १. पे. नाम. चोवीस तिर्थंकरनो परिवार, पृ. १अ, संपूर्ण. " २४ जिनपरिवार स्तवन मा.गु., पद्य, आदि; चोवीस तीर्थंकरनो अंतिः करजोडीने करु प्रणाम, गाथा-५, २. पे. नाम. बारदेवलोक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ३९९ Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. पांचअणुत्तरविमानरा नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ अनुत्तरविमान नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जयंत१ विजयंत२ पराजय; अंति: जयंत४ सर्वार्थसिद्ध५. ५.पे. नाम. पांचइंद्रीना तेवीस विषय, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सोयंद्रीकांन१ चख्ये; अंति: फरसेंद्री काय५. ३८३२६. सज्झाय, पद व विवरण संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक न होने के कारण २ काल्पनिक लिया है., दे., (२३.५४१०.५, ३१४२०). १.पे. नाम. कर्महिंडोल सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ कर्महिंडोले की सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सकल भवीजन मनहपूरो आस, गाथा-९, (पू.वि. गाथा ८ से है.) २.पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चतूर नर सांमायक नय; अंति: जगजसवास लहि सो बेठो, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: परम गुरू जैन कहो किम; अंति: नहि को जनदसा जसउचि, गाथा-१०. ४. पे. नाम. सात नय विवरण, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. नैगमादिसप्तनय विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: नैगमनय १ संग्रहनय १; अंति: (-), (पू.वि. ६ठे नय तक है.) ३८३२७. पार्श्वनाथ स्तवन १२ पार्षदा सहित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४१०.५, १७४३०). पार्श्वजिन स्तवन-१२ पार्षदा सहित, मु. हापराज, मा.गु., पद्य, आदि: जय निरूपमगुण निकलंक; अंति: हापराबैं संथव्यो, ढाल-३, गाथा-१९. ३८३२८. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्राव. हुकुमचंद मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२१४१०, ११-१३४३४). महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विर सुणो मोरि विनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-१९. ३८३२९. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, संपूर्ण, वि. १८२७, माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेडता नगर, प्रले. मु. चिमनसागरजी (गुरु पं. भोजसागरजी); गुपि.पं. भोजसागरजी; अन्य. पं. सिवसागर (गुरु उपा. हमीरसागर); उपा. हमीरसागर; किसोरसागर; फतेहसागर; अविचलसागर; अमृतसागर, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. *पंक्ति-संख्या अनिश्चित हैं., जैदे., (२४.५४१०, १८x१२). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसरपासजी तुम; अंति: नित चाहै दीदारोरे, गाथा-८. ३८३३०. वैदर्भी चोपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४६). विदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराजशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: जइन धर्म माहि जागतो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २७ तक लिखा है.) ३८३३१. छंद व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२४४१०.५, ११४२८). १.पे. नाम. सरसति छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर निकर समुज्वल; अंति: सोई पूज्य सरस्वति, ढाल-३, गाथा-१५. २.पे. नाम. शेव्रुजय स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चालो सखि जिन वंदन; अंति: देवचंद पदनी कोडोरे, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३९३ ३८३३२. स्तोत्र व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, पठ. पं. अमृतसागर; प्रले. पं. कस्तुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, ११-१३४३७-३८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक पार्श्व; अंति: मुदा प्रणम्या, गाथा-३२. २.पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: तीर्थंकरा मोक्षकामे, गाथा-६. ३८३३३. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२३.५४१०, ११४३५-४२). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख; अंति: गाई जिनवाणी रस पीन, ढाल-८, श्लोक-८. ३८३३४. थुई, सज्झाय व संसार दावानल स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १३४३६). १. पे. नाम. बीजतिथी थूई, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहै पुरौ मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. कर्मबंध सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अजयं चरमाणोय पाण; अंति: जं सेयं ते सेमाय, गाथा-११. ३. पे. नाम. संसार दावानल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम, श्लोक-४. ३८३३५. खंडाजोयण अढीद्वीप विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्रले.पं.स्वरूपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं होने के कारण २, ३ काल्पनिक लिया है., दे., (२५.५४१०.५, १४४४०). लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: च्यारसै पचास नदी छै. ३८३३७. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४१०.५, १२४५१). जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजिन प्रतिमा वंदन; अंति: किजै तास - वखाण रे, गाथा-१५. ३८३३८. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१.५४१०.५, १२४२८). __ आदिजिन स्तवन, पं. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभजिनेश्वर तु मेरो; अंति: उतमचंद० पार उतारो छे, गाथा-६. ३८३३९. (#) औपदेशिक हरीयाली सह टबार्थ व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६६, वैशाख अधिकमास शुक्ल, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, ६x४७). १. पे. नाम. औपदेशिक हरीयाली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसई छइ कांबल भीजई; अंति: कवि देपाल वखांणइ, गाथा-६. औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वरसई कांबलि कहताई; अंति: पद नउ अरथ न जाणइ. २. पे. नाम. पंचकल्याणक गुणणा, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचकल्याणक गणन, सं., गद्य, आदि: श्रीपरमेष्ठिने नमः; अंति: श्रीपारंगताय नमः. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: संवत्सरेण यत्पापं; अंति: सयोति परमांगति, श्लोक-३. ४. पे. नाम. १० मिथ्यात्वबोल, पृ. १आ, संपूर्ण. १० मिथ्यात्व बोल, प्रा., गद्य, आदि: अधमोधम्मसन्ना; अंति: सुत्तेअसुत्तसणा. ५. पे. नाम. आठमद नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ८ मद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जातिमद; अंति: ज्ञानमद बलद थाइ. For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८३४०. (#) स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२१x१०.५, १३३०). १. पे नाम, चोवीसजिन मोक्ष स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. २४ जिन मोक्षस्थान स्तुति, मा.गु, पद्य, आदि: असटापूद श्रीआदजीनवर अंतिः सुकल प्रभु सुखकरूं, गाथा- १. २. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण मु. धर्मसी, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीसीधारथ कूल सीणगा अंतिः समू नही भाव प्रधान, गाथा-५. ३. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. • रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलदीपक; अंति: कायारा प्रभुजी पीहर, गाथा-१३. ३८३४१. श्रीमंधरस्वामि लेख संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र. मु. अमृतविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, जै. (२१.५४१०.५, १५X३८-४०). सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, क. कमलविजय, मा.गु, पद्य, वि. १६८२, आदि: स्वस्ति श्रीपुष्कलवत, अंति कमलविजय सकल गणया, ढाल ७. ३८३४२. घंटाकर्ण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: 3 २८३४३. घंटाकर्ण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. वे. (१२८, १२x१२). घंटाकर्णो माहाविर अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. (८.५४८, ९४१३ ). . घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीरः अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. २८३४४. विजयनी ओली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, दे. (२४४१०.५, ४०४१८). अढीद्वीप ३२ विजय जिन नाम, मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्रीजयदेवनाथाय; अंतिः ऐरवर्ते श्रीबलभद्र. ३८३४५. (+१) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १८९५ वैशाख शुक्ल ८, मध्यम, पृ. ५-१(१) =४, ले, स्थल, जावद, प्रले. मु. जयचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४१०, ११५३२). " गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: विनय० प्रभु इम भणे, गाथा-५४, (पू. वि. गाथा ६ अपूर्ण से है.) ३८३४६. गुरूगुण भाष व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३१०.५, ११x२६). १. पे. नाम. गुरूगुण भाष, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. गुरुगुण भास, मु. मोहनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सहेली नेहसु गुर, अंति: कहे मोहनभावे वेलो, गाथा- ९. २. पे नाम, भास, पृ. १आ, संपूर्ण गुरुगुण सज्झाय, मु. मोहनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर बेसी पाटीयेजी; अंति: जी ते प्रणमुं अणगार. ३८३४७. (+) सज्झाव व छंद, संपूर्ण, वि. १८६८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. मु. मानविजय (गुरु पं. मनोहरविजयजी पंडित) गुपि. पं. मनोहरविजयजी पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२३.५४१०.५, १२x२९). , १. पे नाम, अपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर इम उपदिसै, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ लिखा है.) २. पे. नाम. नवकार महामंत्र छंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि सुखकारण भवियण नित अंति: जिनगुण सुंदर सीसरसाल, गाथा- ७. ३८३४८. सज्झाव व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, वे. (२३.५४१०.५, १३४३३-३६). १. पे. नाम. सती सीतानी सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, प्रले. मु. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सीतासती सज्झाय, मु. धनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदिः सीता आणी रावणि वात, अंति: पिउडा कह्यु अकरिज, गाथा-२१. २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३९५ मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हरे मु. धरमजीणंदस; अंति: उलट अति घणे रेजो, गाथा-७. ३८३४९. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२४४११, १३४४२). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण... नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहि., पद्य, आदि: नही जानधुरे हठील; अंति: उमंग मे रहुं नानाजी, गाथा-५. २. पे. नाम. माया पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मनीराम, पुहि., पद्य, आदि: माया के मजूर सो तो; अंति: जिहां घमी गंध की, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. रुपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जीयाजी हौ तुने वरजू; अंति: चंद० उतारे भव पार जी, गाथा-३. ४. पे. नाम. जिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. उदयरत्न*, पुहिं., पद्य, आदि: जिनजीसू लग्यौ मेरो; अंति: लगीय लगन नही छूटेरी, गाथा-३. ३८३५०. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३.५४१०.५, १३४४१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मन सुद्धी आसता; अंति: समयसुंदर सुख भरपुर, गाथा-६. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजीतजीणंदसुप्रीतडी; अंति: नीत नीत गुण गाह, गाथा-५. ३. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण... पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन सांप्रत चाचोर; अंति: देज्यो भव भव सेवारे, गाथा-९. ३८३५१. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१०, ११४३५). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: देवा नेमि सुहेवा, गाथा-४, (पू.वि. गाथा २ से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जलण जल वियोगा नांग; अंति: चंदो जाणे अमृतबिंदो, गाथा-४. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: कठिन कर्म मेली काठिय; अंति: टाले संघना कोडि पाले, गाथा-४. ३८३५२. विजयराजसूरीश्वर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (११.५४९, ९-१९४१३-१९). विजयराजसूरि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष प्रभु पासज; अंति: मरुनामइ नवह निधान रे, गाथा-११. ३८३५३. मंत्र, सज्झाय, ज्योतिष व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., दे., (२३.५४१०, १२-२१४१५). १.पे. नाम. माणिभद्र मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर मंत्र विधिसहित, सं., पद्य, आदि: ॐ ऑ ह्रीं क्रों; अंति: लाभादिकं कथयति विधि, श्लोक-१. २.पे. नाम. शारदामातानो मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___ सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-१. ३. पे. नाम. नवंगी पूजा, पृ. २अ, संपूर्ण. ९ अंगपूजा स्थान नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पुजा प्रथम अंगुठे; अंति: ज्ञानादिगुण रहा छे. ४. पे. नाम. ७९० योजन उपर तारामंडल विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. वैमानिकज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सातसे नेउ योजन उपरे; अंति: योजन जोतछ चक्र छे. ५. पे. नाम. ४ वाना ४५ लाखयोजन प्रमाण, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४५ लाखयोजन प्रमाण-४ वाना, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंत नामे नरकावासे; अंति: प्राभारा सिद्धसला, गाथा-३. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. गंगालाल, पुहि., पद्य, आदि: धरम कि वात वीवेक कहि; अंति: जाओ दोड्या दोड्या, गाथा-२. ७. पे. नाम. मेघरथराजा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: दसमे भवे श्रीशांतजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा है.) ८. पे. नाम. नेमिराजिमती पद, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे हुँतो भिजु; अंति: भाग्य सुधारे दऊं, गाथा-६. ३८३५५. नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. कपुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१०, १०x२५). नेमराजिमती स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दीठडा नेमजिणसर राय; अंति: तारी ते आपणी नार, गाथा-९. ३८३५६. स्थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. पंडित. राजीव, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, ११४३४). स्थूलिभद्र कोशा सज्झाय, मु. रत्नकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कोशा कहइ सूणि थूलिभद; अंति: सूरि बोली वाणी रे, गाथा-११. ३८३५७. (#) सीतासती वनवास परिहार विलाप गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. योधपुर नगर, पठ. श्रावि. कमली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १२४३७). सीतासती सज्झाय, ग. समयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: लोकवचन सुणि वनिता; अंति: मयप्रमोदगणि गुण गाया, गाथा-१२. ३८३५८. सज्झाय, स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१०, १३-१४४४४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तो सुख जो आवें संतोस; अंति: गति पुरी निश्चय लहैं, गाथा-९. २.पे. नाम. सुविधिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: में कीनो नही तुझ विण; अंति: लीजे ___ भगति परिभाग, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने सुविधिनाथ के जगह सुमतिनाथ लिखा है.) ३. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पठ.पं. हितविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुंअरिहंतना; अंति: कहै। नित नित नवकार, गाथा-९. ४. पे. नाम. जैनश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ३८३५९. थंभण पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. उत्तमसागर; पठ. मु. माधुवा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०,१५४५०-५७). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रूभु प्रणमुरे; अंति: जाणी कुशललाभ पयंपइ, ___ढाल-५, गाथा-१८. ३८३६०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१०.५, ९४२८-३०). १. पे. नाम. रत्नचिंतामणी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नरभवरत्नचिंतामणि सज्झाय, मु. अभयराम, मा.गु., पद्य, आदि: आ भव रत्नचिंतामणी; अंति: जीव अनंता तरीया जी, गाथा-१३. २. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३९७ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहजो चतुरनर ते कुण; अंति: रूप० बुद्धी सारी रे, गाथा-५. ३८३६१. थूई संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. ग. हंसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४१०.५, ११-१२४२६). १.पे. नाम. इग्यारस थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसी अति रूवडी; अंति: गुण संघ तणा निसदीस, ___ गाथा-४. २. पे. नाम. शेजेजा थोई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., पद्य, आदि: आगै पूरब वार निवाणु; अंति: कारिज सिधहमारीजी, गाथा-४. ३८३६३. (-#) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२१x१०.५, १२४२८). आदिजिन स्तवन, मु. गिरधर शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: रेसम रो रजो कसबी रो; अंति: मुगत विहारी री जी, गाथा-१४. ३८३६४. बारव्रत पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. प्र.वि. प्रतिलेखक के द्वारा पत्रांक नहीं लिखे जाने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., दे., (२०४१०.५, १९x१३). १२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८८७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ८ गाथा ६ अपूर्ण से ढाल ९ तक लिखा है.) ३८३६५.(-) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. डाइजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२.५४१०.५, १२४३८). १.पे. नाम. मिदरजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदरजी करजो मया; अंति: मत गालीजो विसार, गाथा-७. २. पे. नाम. ४ मंगल शरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: सदा पो उठीनै सिवरीजे; अंति: सुणजो बालगोपाल हा, गाथा-११. ३८३६६. सज्झाय, गीत व दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८, प्रले. मु. विनयचंद्र; पठ. सोनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पठनार्थ दिया हुआ है पर अशुद्ध प्रतित होता है., जैदे., (२४४१०.५, १५४३४-५१). १.पे. नाम. थूलिभद्र गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., पद्य, आदि: च्यारि घडि मुझ कही; अंति: रेवली प्रणमइ पाइ, गाथा-६. २.पे. नाम. नेमि भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कपूर हुइ अति निरमलुं; अंति: एतु अविहड जोडरे, गाथा-८. ३. पे. नाम. नेम गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सलूणुरे नेमजी; अंति: विमल० हरखी राजलिनारि, गाथा-६. ४. पे. नाम. वर्षारति गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: राजलि नेम नइ वीनवइ; अंति: नरखीरे हरखी साना हि, गाथा-५. ५.पे. नाम. सरतकाल गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: राजीमती कहि राजीया; अंति: साधइ रे आपणडां काज, गाथा-५. ६.पे. नाम. नेम रूतुत्रयी गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उन्हालडउ इति आवीउ; अंति: रे सेवइ प्रीय ना पाय, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. नेम गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणु रस सही ए नही ए; अंति: ते तिहां मिलीउरे, गाथा-५. ८. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: जाता भगी जोड भडभागी; अंति: उल्हा विज्झाइ जेण, गाथा-५. ३८३६७. शांतिनाथजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१५.५४११, १६४२९). शांतिजिन स्तवन, मु. दियाल, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसंत जीणेसर संत; अंति: वृद्ध श्रीसंघ घरै, गाथा-१२. ३८३६८. इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१०.५, ११४३४). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरु सन्मुख रही विनय; अंति: एकवीस वरस हजार, गाथा-१४. ३८३६९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०.५, १४४४५). औपदेशिक सज्झाय, क. करमचंद मुंहतो, मा.गु., पद्य, आदि: थावर जंगम कीटपतंगजु; अंति: है चावन अवसर चूकीय, गाथा-६. ३८३७०. आदिश्वर विनती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११, १६४३४). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पामी सहगुरू पसायरे; अंति: वीनयविनय करी विनवइ ए, गाथा-५८. ३८३७१. अढारे नातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, १३४३६). १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहला ने समरु रे पास; अंति: गुण गायरै मनरंगीला, ढाल-३, गाथा-३०. ३८३७२. अभव्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१०.५, १०४२९). ___अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: उपदेश न लागें अभव्यन; अंति: उतमसंग निदान रे, गाथा-७. ३८३७३. (+-) चोमासी संवछरी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२०.५४१०.५, १२४३२). प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: देवसी पडीकता आलोइछा; अंति: कसोसाठ नो काउसग करवो. ३८३७४. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४११.५, ११४३१). १.पे. नाम. सातवार स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सातवार, मु. जिनरत्नशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: आवो ने अम घेर आज; अंति: न्यउदय० धर्मसखाइ रे, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. जिनरत्नशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: तुही स्वामी तुही; अंति: सीस करो मोरी सार, गाथा-६. ३८३७५. पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४१०.५, ९४२४). १.पे. नाम. थीवीर पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संवर सज्झाय, आ. सौभाग्यलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम पद ने गाइये रे; अंति: भाग्यलजक्ष्मी सुखदाय, गाथा-७. २. पे. नाम. अमीझरा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा साणंदनगरमंडन, उपा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौदराजना सहेरमारे; अंति: रांमवीजय उवझाय हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. महात्मा भद्रजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३९९ महाभद्रजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: देवरायनोनंद मात उमा; अंति: सेवक देव करो दयाल जी, गाथा-७. ३८३७६. (-) मुनिगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२४११, १०४२१). साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचे इंद्री रे; अंति: बोलै विजयदेवसूरोजी, गाथा-९. ३८३७७. (#) ऋषभजिन थोड़वसाधारणजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११, १७४३६). १. पे. नाम. ऋषभजिन थोई, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्यने पाव; अंति: समकितगुण चित धरजोजी, गाथा-४. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३८३७८. हठीसिंग घर्मप्रभावना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२१४११, १३४२७). हठीसिंग नित्य धर्म आराधना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी पडवे से पंथ नीहा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० तक ३८३७९. भृगुपुरोहित चोढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२२.५४११, १७-१८४३४). भृगुपुरोहित चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: देव हंता भव पाछलोर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २ तक लिखा है.) ३८३८०. कर्म सज्झाय व जन्म कुंडली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. महेसाणा, प्रले. पं. भाग्यविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०.५, २७४१९-२२). १. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तिरथंकर गणध; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१९. २. पे. नाम. जन्म कुंडली, पृ. १आ, संपूर्ण. ___जन्मकुंडली विचार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८३८१. (#) स्तुति, स्तोत्र, जैनपारिभाषिक शब्दसंख्या व अरिहंतबारगुण गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२३४११, १३४३४). १.पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल करम खल दलन कमठ; अंति: दहन जयजय परम अभय करन, गाथा-१. २. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यः पुरा राज्यभ्रिष्ट; अंति: पीडान भवंति कदाचन, श्लोक-९. ३. पे. नाम. जैन पारिभाषिक शब्द संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्वानि ९ व्रत ५/१२; अंति: ज्ञेयाः सुधीभिस्सदा. ४. पे. नाम. अरिहंतबारगुण गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. मूल कृति के साथ भावार्थ भी दिया गया है. अरिहंत १२गुण श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्षः १ सुर पुष; अंति: (१)जिनेश्वरणां, (२)गति पधारइ तेतला लगई, गाथा-१. ३८३८२. (+) साधु असाधु गुणदोष वर्णन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२१४११, २७-२९४२४). १.पे. नाम. साधु असाधु गुणदोष वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: साधुतणी एह रित मुख; अंति: ब्रह्म ज्ञानसागर कहइ, गाथा-५. २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह- मूर्ख विषयक, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-७. ३. पे. नाम. जैन गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०० www.kobatirth.org जैनगाथा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष, मा.गु. सं., हिं. पण, आदि (-); अंति: (-). " , ३८३८३. शील महिमा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्रले. अखेराम, प्र. ले. पु. सामान्य, वे. (२०x११, १२४२९). शीलमहिमा सज्झाय, मु. अमरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुण य नमीने जपु; अंति: अमर मुनि गुण गाया रे, गाथा - १४. ३८३८४. तेजा आवक धर्मप्रभावना सज्झाव, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२०x११, २३४१५). तेजा आवक धर्मप्रभावना सज्झाय, मु. दुलभ, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: प्रथम नमुं वरदाई बुद, अंतिः रहा चोमासु ओमाया रे, गाथा २५. मु. चोथमल, पुहिं., पद्य, आदि: प्राणी खंप वस पात; अंति: केहु फेर गणि घोडी, गाथा-७. ४. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १ आ. संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८३८६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५.५x११, १८३९). १. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. चोथमल, पुहिं., पद्य, आदि: अंतरजामी त्रसल के अति बधाने वाले तुमी हो, गाथा- १४. २. पे. नाम. चंदाप्रभु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. चोथमल, पुहिं., पद्य, आदि: चंदाप्रभु सिवसुख के; अंति: आपो आणंदा यह चाहता, गाथा- ७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनदास, हिं., पद्य, आदि: पगरी जो बादने पेच सम; अंति: बची तह जुरी से, गाथा- ६. ३८३८७. सीतासती सज्झाय व शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५X१०.५, ११X३५). १. पे. नाम. सीतासती स्वाध्याय, पृ. १अ १आ. संपूर्ण. सीतासती सज्झाव - शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि जलजलती बलती घणु रे अंतिः नित प्रणमें पाय रे, गाथा- ९. २. पे. नाम. शील स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. शीयल सज्झाय, सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: कुगतपणो जीउ पामीयै; अंतिः सेवो श्रीजिनराजजी, गाथा - ६. ३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. (२२.५X११, १३X३७). १. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, प्रा.मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८३८८. मेतारजमुनि सज्झाय, पद व पार्श्वनाथ धून व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदिः समदम गुणना आगरु जी, अंति: साधु तणी ए सज्झाय, गाथा- १३. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. विबुध, मा.गु., पद्य, आदि: सकल भुवन सिर सेहरो; अंति: भव भव तुही ज स्वाम, गाथा-५. ३. पे नाम. पार्श्वनाथ धून, पृ. १आ. संपूर्ण. पार्श्वजिन अमृतध्वनि, मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि चित्त धरि ओउंकारकै अंतिः कृत जिनगुन की जयमाल, औपदेशिक लोक संग्रह" प्रा. मा. गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). 3 गाथा-४. ४. पे नाम पार्शनाखजीरी धून, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, मु. जीत, मा.गु., पद्य, आदि: गर्जत घन वरसत मेह अङ; अंति: ध्यान धरंद जीत वजंद, गाथा-४. ५. पे नाम औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४०१ ३८३८९. () सिद्धशिला स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७५, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. जीवत छोटी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५X११, १५X३२). www.kobatirth.org सिद्धशिला स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: होजी सीधसीला सगलासी; अंति: हु तो रहो तमार पासजी, गाथा - १७. ३८३९०. विषापहार महामंत्र भाविक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८१२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. म्हेसर, प्रले. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२२.५x१०, १५५३५). " विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं, पद्य, वि. १७१५, आदि: आत्तमलीन अनंतगुण ध्य, अंतिः अविचल ठाम, गाथा-४२. ३८३९१. बावीसपरिसह सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२२.५४१०.५, १५४३३) २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीआदेसर आद दे चोवी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १ की गाथा २५ तक लिखा है.) ३८३९२. नवकार छंद व औपदेशिक पद, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २. दे. (२२.५४१०५ १२४३०). १. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पा. धर्मसिंह, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: कामयंति संपय करणं; अंतिः कविभ्रमसी उवझाय कहि, गाथा - ११. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण, जैनगाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). *, ३८३९३. कपडा भास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. दे. (२५x१०.५, १०x२८). "" विजयदेवसूरी भास, ग. रंगकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: कांमणगारो रे गुरजीनो; अंति: कहीई रंगकुसल करजोड, गाथा ६. ३८३९४. मौनएकादसी पर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X१०.५, ८X३८). 3 मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत धर; अंति: कहै कह्यो दाहडी गाथा १३. ३८३९५. औषध यंत्र, जीवगति अगति विचार यंत्र, अभिनंदनजिन स्तवन व सुभाषित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२३.५X१०.५, ९३२). १. पे. नाम. उत्तम पुत्र प्राप्ति विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, प्रा. मा.गु. सं. गद्य, आदि: (-): अंति: (-). , २. पे नाम, जाकिनी शाकिनी भूतप्रेत दूर करने का यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, जैनयंत्र संग्रह " मा.गु, पं., आदि: (-), अंति: (-). " ३. पे. नाम. जीव गति अगति यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. जीवगति आगति यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन. पू. १आ, संपूर्ण गाथा-८. २. पे नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ग. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे मन तुं अभिनंदन, अंति: भव भव तुम पय सेवा, गाथा- ३. ५. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८३९६. रथनेमि गीत व वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. जैवे. (२४४१०.५. १४४४८). " १. पे. नाम रखनेमी गीत. पू. १अ. संपूर्ण. राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि चतुर सुजाण, अंति: साय जंपै इम जयतसी हो, For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडलारे आपा विमासी; अंति: खंड बीजै पांचमी खरी, गाथा-१३. ३८३९८. श्रावक करणी सज्झाय व नाकोडा पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.सा. मोता (गुरु सा. चंदुजी); गुपि. सा. चंदुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४१०.५, १५४४४). १. पे. नाम. श्रावक करणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारावक तु उठे परभात; अंति: करणी दुख हरणी छ एह, गाथा-२२. २.पे. नाम. नाकोडा पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणे घर बठा लील करो; अंति: समयसुंदर कह गुण जोडो, गाथा-७. ३८४०१. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, आश्विन कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२४११.५, २२४१५). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी तोरा रे पलक न; अंति: साहेबा वाधा छे प्रेम, गाथा-९. ३८४०२. पांचमनी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१४१२, १२४३६). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कारतकसुद पंचमि तप कि; अंति: सुखविजे अतिय विराजे, गाथा-४. ३८४०३. (+) सामायिक विधि व देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४१२, २८x१९). १.पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जिन प्रतिमा आगै तथा; अंति: (१)जइनोधर्मोस्तु मंगल, (२)वंदीया चौवीसे जिणचंद. २. पे. नाम. सामायिक पारने की विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेशहः; अंति: (अपठनीय), (वि. रात्री सामायिक, १४ नियमादि विधि संग्रह.) ३८४०४. सिद्धाचलजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६१, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अजीमगंज, पठ. मु. लाभचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१२.५, १२४२२). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज आपे चालो सहीयो; अंति: घणो चीत प्राणी रे, गाथा-९. ३८४०५. देवानंदा सज्झाय, जिनदर्शन फल वर्णन व सूर्य वासो, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. कालंदीनगर, प्रले. पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१२.५, १३४२८). १. पे. नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन हर; अंति: वात मन आणी हो गोतम, गाथा-११. २. पे. नाम. जिन दर्शन फल वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. जिन स्मरण फल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन समरातां सहस फल; अंति: फल प्रभुजि ठान णेह, गाथा-१. ३. पे. नाम. सूर्य वासो, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पोहर अगन पोहर दक्षणे; अंति: लीजीइं भाजे कोड कलेश, गाथा-३. ३८४०६.(-) बासठीयो, संपूर्ण, वि. १९७२, वैशाख शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. भीलोडा, प्रले. मदन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२०.५४११, २१४१७-२१). १०३ जीव भेद विचार-६२ मार्गणा यंत्र, रा., यं., आदि: एक प्राण को घणी वाटे; अंति: जुगल्यामें जीवरा भेद. ३८४०७. चंद्रप्रभु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४१२, १२४२५-२७). __ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभुजी हो के; अंति: सुख थाशे म्हारा लाल, गाथा-१४. ३८४०८. सिद्धचक्रजी चैत्यवंदन व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९.५४१२.५, १२४२६). For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४०३ १.पे. नाम. सिद्धचक्रजी चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सीव सुख दायक सिध्धचक; अंति: ज्ञानविमल कहे शीष, गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह स्तुति बाद में पेंसिल से लिखी गयी है. सं., पद्य, आदि: भवामो महावीरमते सदा; अति: रामा कर नारकेशा, श्लोक-४. ३८४०९. सिद्धशिला स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८९, चैत्र कृष्ण, २, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रूपनगर, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४१२.५, १८४३१). सिद्धशिला स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: हावो सीधसीला सगलासी; अंति: रीख साधुजी भण उलासजी, गाथा-१८. ३८४१०. धन्नाअनगार सज्झाय व नेमजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४११.५, १३-१५४२८-४०). १.पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणीरै धना; अंति: ण गाया हो मन मै गगया, गाथा-२२. २.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण... पुहिं., पद्य, आदि: छपन कोडे जादु मील्या; अंति: धारा हमकुसरण राखो, गाथा-५. ३८४११. स्त्री सीखामण, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रावण कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. थराद, लिख. श्रावि. जीजी वजेचंदजी, प्रले. माधवजी कल्याणजी तरवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४१२.५, ८४२१-२३). औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपमरे सीखामण; अंति: उदयरत्न इम उचरे, गाथा-१०. ३८४१२. दीवाली गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२१.५४१२, २५४२१). दीपावलीपर्व स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरजीनां गुण; अंति: उदयरतन दुख टाली रे, गाथा-११. ३८४१३. (८) राणपुर स्तवन व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२१.५४१२.५, १२४२४). १. पे. नाम. राणपुराजी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणापुरो मन मोहियो र; अंति: सुदर गुरु सै राय सुख, गाथा-१६. २.पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्राव. सुरतराम, मा.गु., पद्य, आदि: नाम मलह मछाड जाण; अंति: गुणवाण वम कुर धावइ, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नंबर नही लिखा है.) ३८४१४. उपदेश सवैया व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२१४१२, ११-१७४२७-३०). १. पे. नाम. उपदेश सवैया, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, श्राव. हरिदास, रा., पद्य, आदि: कबहु ते जत्थ रंग चढ; अंति: नाथ कैसे भात मारेगो, गाथा-१९. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ३८४१५. नेमिजिन राजिमतीस्तवन १५ तिथिगर्भित, अपूर्ण, वि. २०वी, फाल्गुन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. पत्रांक १ से है परंतु कृति गाथा सं. ९ से प्रारंभ हुई है, अतः पत्रांक २-३ काल्पनिक लिया गया है., दे., (२१.५४१२.५, १०४३५). नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तिथी पुरण थाया, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण से है.) ३८४१६. पंच कल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१९, भाद्रपद शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. श्राव. लालचंद हेमचंद पारेख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१२, १२४३१-३५). For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन- ५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासन नायक सीवकरण वंद, अंतिः नामे लहे अधिक जगीस ए, ढाल - ३, गाथा- ५६. ३८४१७. (-) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. साहेपुरा, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१९.५x११.५, १२x२८). महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुल दीपक, अंति: मन वंछत महावीर गाथा ११. ३८४२१. (४) २१ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (१९.५४१३.५, १६x२५)२१ बोल पुद्गल स्वभाव, मा.गु., पद्य, आदि: एक सार भाषा बोलतो अन; अंति: पुरब को मान कही जे, गाथा-२१. ३८४२२. (#) अनागतजिन स्तवन व जैन पारिभाषिक शब्द संख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे, (२३४१२, १६४३८). १. पे. नाम. आवती चोवीसी तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. अनागत २४ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: संत जिणेसर पाय नमी; अंति: तस घर दीन दीन रीद्ध, गाथा- १६. २. पे. नाम. जैन पारिभाषिक शब्द संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. " जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या, मा.गु. सं. गद्य, आदि अगनांन १ क्रोध २ मद, अंतिः १४ चउद नेम जाणवा ३८४२३ अषाढभूति पंचढालियो संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, अलवर, प्रले. मु. कसतुराजी महाराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३X११, १७३६). आषाढाभूतिमुनि पंचडालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परीसौ बाबीसो ते; अंति: त बचन की आसतारे लाल, ढाल - ५. ३८४२४. सिद्धाचलतीर्थमाला स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३ कुल पे. १२, जैवे. (२३४१२. २८-३४४५०-५२). १. पे. नाम. सिद्धाचलतीर्थ स्तवन, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, ले. स्थल. धनयर, प्रले. पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य. शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाहला वारु; अंति: यथी कवि अमृतजय सीखरी, ढाल - १०. २. पे नाम. गुरू देशना पद, पृ. ३आ, संपूर्ण, गुरु देशना पद, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वरषित वचन झरी हो; अंति: ख सहज स्वभाव फली हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: अवसर फिर नाही हो समझ, अंति: सद्गुरु ते समझाई हो, गाथा-३. ४. पे नाम. श्रेयांसजिन पद, प्र. ३आ, संपूर्ण मु. गुणविलास, पुहिं., पद्य, आदि: महिर करो माहाराज, अंति: लीजे पास जुलाब, गाथा-४. " ५. पे. नाम औपदेशिक पद, पू. ३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: समकित श्रावण आयोरी; अंतिः निज निश्चै घर पायोरी, गाथा-४. ६. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३ आ. संपूर्ण. मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: ध्यासित धन मुनिराई अंतिः वंदित सीस नमाई, गाथा-३. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: महाराजा प्रभुजी हो द; अंति: दास भयो चरनाही को हो, गाथा - ३. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. सुखानंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारे पासजी तुम लीज, अंति: सब दुविधा मिट जासी, गाथा- ३. " ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हमारे प्रभु हैं घर, अंति: गावत आप कुं आप रीझाई, गाथा- ३. १०. पे. नाम २४ जिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ पुहि., पद्य, आदि: प्रणमु जिनदेव सदा; अंति: पाय चरन कमल चेरे, गाथा-४. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: उस मारग मत जाय रे नर; अंति: दिनी वात जताइरे, गाथा-४. १२. पे. नाम. सुपार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. गुणविलास, मा.गु., पद्य, आदि: पूरि मनोरथ साहिब; अंति: जे सुपासजी पास बसेरा, गाथा-३. ३८४२५. कवित व गौतमस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२४१३, १६४३८). १.पे. नाम. कवित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ भक्ष्याभक्ष्य विचार सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: माखण सहत पीव ग्रसत; अंति: कर्यो दयाके वहाने है, गाथा-५. २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ३८४२६. नेमनाथजी लावणी, संपूर्ण, वि. १९२१, चैत्र, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. असटा, पठ. ग. अरविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१२.५, ११४१९). राजिमतीसती विलाप लावणी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: दे गया दगा दिलदार; अंति: सतीके बेठ विनती गाइ, गाथा-४. ३८४२८. (+) शत्रुजय स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१.५४११.५, १२४१४). शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीक्षेत्रुजेगिरि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३८४२९. पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पठ. श्राव. रूपचंद कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८.५४११.५, १७४१९). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा १६ से है.) ३८४३०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१२, ११४२७). १. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आवो आवो हो अलबेल्या; अंति: श्रीविनयविजै उवझायनो, गाथा-५. २. पे. नाम. कामाख्यादेवी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो आदेस गुरुकुं; अंति: सामि चक्र गु. मे फे. ३८४३१. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खेटकपूर, प्रले. मु. खुशालरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११.५, १२४२६). पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो रे सखी मुज नाह; अंति: प्रणमे प्रभुना पाय, गाथा-९. ३८४३२. (+) धुलेवा ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१८x११, ११४२१). आदिजिन स्तवन-धुलेवा, मु. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषहेसर स्वामीय; अंति: दीपसेवक० वधे सुखवास, गाथा-९. ३८४३३. नेमिश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. * पंक्ति अक्षर अनियमित., दे., (२३४१२.५, ३१४१५-१७). नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानअमृत, मा.गु., पद्य, आदि: कोई आन मिलावो श्याम; अंति: ज्ञानअमृत० निरधार, गाथा-६. ३८४३४. उपदेशनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. मेरतानगर, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम अस्पष्ट है., दे., (२५.५४१२,१५४२६-३२). औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: जीणवर दीयो इसो उपदेस; अंति: चेतरे चेत तुंमानवी, गाथा-२२. ३८४३५. १५ तिथी पखवाडो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२.५४१२, १९४४८). १.पे. नाम. १५ तिथी पखवाडो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५ तिथि पखवाडो, मु. मूलचंद, मा.गु., पद्य वि. १९०४ आदि भजिये भगवान परम; अंतिः तंत परमपद पावे, गाथा - १९. २. पे नाम, साधारणजिन पद, प्र. १आ, संपूर्ण. पदसंग्रह, मा.गु, पद्य, आदि: पदराग भरु बोत दिनांक, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रथम पद लिखा है.) पुहिं., पद्य, आदि: जब मेरा सिरे पर; अंतिः कुव कलस कहीयारी, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ३८४३६. (-) सज्झाय व पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैवे. (२२.५४१२.५, १२x२७). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कहोजे मे वैरेजीना अंतिः गिरनारे हो जाओ, गाथा- ३. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन रा., पद्य, आदि: पूर्व पुष्कलावती, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ तक लिखा है.) ३८४३७. आत्मभावना व आध्यात्मिक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे २, दे. (२२.५x१२, १०x२७). १. पे. नाम. आत्मभावना विचार, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. अध्यात्मभावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार; अंति: करीने वंदना होज्यो. २. पे नाम, आध्यात्मिक विचार, पृ. २आ, संपूर्ण ३८४३८. चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., ( २३४१२, १४-१७X३२). मा.गु., गद्य, आदि अध्यवसाय जोवा जेवी अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रारंभिक अंश लिखा है.) ! " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु. सं., पग, आदि: सामाइकावश्यक पौषधानि अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सामायिक कर्तव्य उपर समताभाव विशे देवदत्तराजर्षि कथा अपूर्ण तक लिखा है.) ३८४४०. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५X१२, ८x२४-२६). १. पे. नाम. एकादशीतिथी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीश्रेयांस अंतिः नित्य मंगल करो, गाथा ४. २. पे नाम वीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण , ३८४४२. पजुसण गुहली, संपूर्ण, वि. १९४७, आषाढ़ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, दे., ( २४१२.५, ८x२५). महावीर जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि वीरं देवं नित्यं अंतिः दद्यात्सौख्यम्, श्लोक १. ३८४४१. नमीराजा ढाल, संपूर्ण, वि. १९७५, फाल्गुन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. नागोर, जैदे., ( २४४१२, १४४४५-४८). नमिराजर्षि ढाल, क्र. आसकर्ण, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सासणनायक सीमरतां; अंति: आसकरणजी० तिथ नाम, ढाल ७. ३८४४४. ओली विधि, संपूर्ण, वि. १९९४, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५X१३, १२X३३). ओली विधि संग्रह, प्रा., गद्य, आदिः ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताण; अंति: करवो ऊंना पाणीनो. ३८४४६. सिद्धाचलगिरिनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५X१२.५, ११x२६). पर्युषणपर्व गहुंली. मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सखि परव पजुसण आविवा, अंतिः हितविजय वखाणी० आविया, गाथा-८. शत्रुंजयतीर्थमहिमा स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: अमृत वचने रे प्यारी; अंतिः स्तवीयो गिरि सोहंकर, For Private and Personal Use Only गाथा - २७. ३८४४७. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मोतीबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण विशेष पाठ., जैदे., (२१x१२, १५x२९). Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४०७ १.पे. नाम. परनारी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, शंकर, मा.गु., पद्य, आदि: जेने परनारीसुप्रीत; अंति: काल भमे छे ते जाणोनी, गाथा-१२.. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रीतम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु भजवानी घड़ी एक; अंति: गुरुने उलखी लीजे रे, गाथा-११. ३८४४८. (+) तीर्थावली पूर्ण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (४१४१९, ३६४१८). तीर्थावली स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रादिक सेवित; अंति: जनम कीयो निरमलो, गाथा-१८. ३८४४९. दीवाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५१, कार्तिक कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. ढानला, प्रले. मु. मतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४१२.५, १२४३१). दीपावलीपर्व सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवान रा; अंति: वीरजी आवागमन निवार, गाथा-२२. ३८४५०. श्रीकृष्ण नेमिजिन संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२१.५४१२.५, १६४३१). श्रीकृष्ण नेमिजिन संवाद, मा.गु., गद्य, आदि: द्वारिकाने विषे; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३८४५१. (+) चौवीसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०x१०,११४२८). २४ जिन स्तवन, मु. प्रमोदशील, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: (-); अंति: प्रमोदशील० सुख करो, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण से है.) ३८४५२. अठार व षटनाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५८, वैशाख शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. पुर, प्रले. पं. सेवाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १२-१४४३०). १.पे. नाम. अठार नातरा सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: मानष भव पायोजी ऊचै; अंति: सिल बंच्छित्तै काज, गाथा-४३. २. पे. नाम. षटनाता सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: कुबेरसन का डावडा; अंति: हो हमारी सज्झाय, गाथा-१५. ३८४५३. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१२, ११४३३). पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: तेवीसमो जिन सेवियै; अंति: आपज्यो करजोडी जिनदास, गाथा-५. ३८४५४. उपदेश सित्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१२, १२४३५). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत जोय जीव आपणी; अंति: एम कह्या सिसार ए, गाथा-७२. ३८४५५. आत्मनिंदा भावना व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२३४१२, २३४५४-५६). १.पे. नाम. आत्मनिंदा भावना, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगुन प्रविण. २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हे प्रभु हे प्रभु; अंति: जयह द्रीढता कर देह. ३८४५६. आत्मनिंदा भावना व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ३., (२३४१२, २३४५५). १. पे. नाम. आत्मनिंदा भावना, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगुण प्रवीन. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: हे प्रभु हे प्रभु; अंति: जयह द्रीढता कर देह. ३८४५७. शालिभद्रजीरो सलोको, अपूर्ण, वि. १८६९, आषाढ़ शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२२४१२.५, १२-१९४५२). For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शालिभद्रधन्नाजी शलोको, मु. सिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: (-); अंति: राजे सिंहमुनि गाया, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा १८ से है.) ३८४५८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१२, १८४३६). १. पे. नाम. दया सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विसनलाल, पुहि., पद्य, वि. १९६२, आदि: दया विन करणी नननन; अंति: विसनलाल० हरखे सममम, गाथा-१०. २. पे. नाम. दश बोल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १० बोल सज्झाय, मु. मगन, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन चेतो रे दस बोल; अंति: महीमाहे केवावरे, गाथा-७. ३८४५९. थूई, सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. चोरवाद्र, दे., (२२.५४११.५, १४४२५-२८). १.पे. नाम. ऋषभजिन थुई, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९०५, वैशाख शुक्ल, ८, रविवार. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठीने वंदु; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४, (वि. दो गाथा को एक गिनकर गाथा संख्या दी गई है.) २. पे. नाम. चौदस्वप्न सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: राय सिधारथ घर पटराणी; अंति: ते लेशे सुख संपदा ए, गाथा-६. ३. पे. नाम. ओंकार पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ओंकार महिमा दर्शन, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: वाणी हे विसाल तेरी; अंति: बुद्धि तेसी समझ परी, गाथा-४. ३८४६०. चार सरणां, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२४११.५, १२४२३). १. पे. नाम. चउसरण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुजने चार शरणा होजो; अंति: तो हुं भवनो पारोजी, गाथा-१२. ३८४६१. आत्महित स्वाध्याय व परनारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११.५, १०४३१). १.पे. नाम. आत्महित स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अणसमजुजी सीखामण दीजे; अंति: रूपचंद गुण गावे छे, गाथा-७. २. पे. नाम. परनारी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री त्याग, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नर चतुर सुजाण परनारी; अंति: चाखोने अमृत सुखलडी, गाथा-६. ३८४६२. (-) पजुसण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५४१२, १२४३२). पर्युषणपर्व स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य करो पुन्यवंत; अंति: सिद्धि वरियारे, गाथा-८. ३८४६३. पजुसण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४१२.५, १५४३७). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. फतेसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वरस दिवसमा सार; अंति: सुख आराधशे हो लाल, गाथा-७. ३८४६४. मुनिराज की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४१२,१२४३३). मुनिगुण सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: वे मुनि मेरे मन वस्य; अंति: विनय मागेरी सोइ, गाथा-१२. ३८४६५. उपदेश सित्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२२.५४१२,१५४३५-४६). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत जोय जीव आपणी; अंति: एम कह्यां सिसार ए, गाथा-७२. ३८४६६. औपदेशिक श्लोक सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२२.५४११, ११४४०-४३). औपदेशिक श्लोक, सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरु; अंति: वृक्षस्य फलान्यमूनि, श्लोक-१. औपदेशिक श्लोक-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेव परम; अंति: उत्तम श्रेय पामे. For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३८४६७. ऋषभ बत्तीसी, संपूर्ण, वि. १८६६, कार्तिक कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. श्रीनगर, प्रले. मु. रामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१२, १२-१६४३२-४४). आदिजिन बत्तीसी, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ बत्तीसी सांभलो; अंति: पामे लीलविलासजी, गाथा-४४. ३८४६८. (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१२, १६४३९). १.पे. नाम. वखाण वाचवा की स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन कथा-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, आदि: इहां कुणजे समण; अंति: तीरने पारगत पामेसी. २. पे. नाम. जिनवाणी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: वीर हिमाचल से निकली; अंति: और छोरा सा काहानी है, गाथा-२०. ३८४६९. नेमिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४११.५, ११४२७). नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर विंदित; अंति: मंगल करहु अंबादेवीऐ, गाथा-४. ३८४७०. नेमनाथ थुई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५४१२.५, ११४३१). नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर विंदित; अंति: मंगल करहु अंबादेवीऐ, गाथा-४. ३८४७१. नववाड व गौतमस्वामि अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४१२, १६४३२). १.पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पेली वार वरमचारीने; अंति: पुरसने नववाड कही, गाथा-१०. २.पे. नाम. गौतमस्वामि अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष; अंति: लावण्यस० संपत्ति कोड, गाथा-९. ३८४७२. (#) दिवाली थुई, संपूर्ण, वि. १७८५, फाल्गुन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, १२४२३). दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ऐ दीवापर्व पनुता; अंति: देवचंदा० आणंदाजी, गाथा-४. ३८४७३. (+) जैनधार्मिक श्लोकसंग्रह व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१२.५, ११४४२). १.पे. नाम. जैन धार्मिक श्लोकसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*,प्रा.,सं., पद्य, आदि: अवघुससिघुससिधुत्ता; अंति: प्रीतकरा नराणा, श्लोक-७. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र सुहामणो; अंति: अति उत्तम अधिकारजी, गाथा-८. ३८४७४. (+) सिद्धचक्र स्तुति, उद्यापन विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १५४४१-४८). १.पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मंगल श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अर्हमित्यक्षरं; अंति: अमृहं मण वंछिउ दिउ, श्लोक-१. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजुत्ताण सत्ताण; अंति: चक्क महताण कल्लाणगं, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्रतप उद्यापन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. देवावर हडिया; पठ. श्राव. राणाशा, प्र.ले.पु. सामान्य. सिद्धचक्र उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: वलय ३ प्रथम वलये; अंति: स्थाने नालिकेर ठोईइ. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र ओलीविधि, पृ. २अ, संपूर्ण. नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: आसोज सुदि७ चईत्र; अंति: महानिर्जराना हेतु. ३८४७५. (+) अढार नातरानी कथा, संपूर्ण, वि. १८७१, भाद्रपद कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. रत्नसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१२, १४४३९). १८ नातरा कथा, मा.गु., गद्य, आदि: आजे जंबू नामाधिपने; अंति: अढार नातरानी कथा कही. For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८४७६. गौतमस्वामी सोलइकडा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२४४१२, १४४४२). गौतमस्वामी रास, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२४, आदि: गुण गावो गोतम तणा; अंति: जेमलजी० गुणघणाजी रे, गाथा-१८. ३८४७७. नारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४१२, १६४५२). नारी सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: मूरख के भावै नहीं; अंति: आगै इच्छा थारी रे, गाथा-२३. ३८४७८. अणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखक के द्वारा दिया गया गाथानुक्रम अव्यवस्थित है, अतः संख्या गिनकर लिखी गई है., जैदे., (२३४१२, १५४२८). अणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: धरम ध्यान करता थका; अंति: संत सुखी अणगारोजी, गाथा-२७. ३८४७९. चतुर्विंशतिदंडक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पंडित. राजाराम दफतरी; पठ. मु. नवल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२, ११४२६-२८). चोवीसदंडक स्तवन, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूरि मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ३८४८०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१२, ८४३८). १. पे. नाम. गौतमस्वामी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गौतम नाम जपो परभाते; अंति: समयसुंदर० गातारे, गाथा-३. २. पे. नाम. धुलेवामंडन आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-धुलेवामंडन, पं. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: गजरो चडाईंगजरो; अंति: ऋषभदास० गुणगावुरे, गाथा-४. ३८४८२. मंत्र संग्रह व पाखी पडिकमणाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१२, १७४४३). १. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. पाखी पडिकमणाविधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिक प्रतिक्रमणविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तुं कहीने; अंति: पछे खामणा ४ लेवा. ३८४८३. (+) प्रतिक्रमण हेतु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१३, १२-१४४२९-४१). प्रतिक्रमणहेतु विचार, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, आदि: साधु अने श्रावक दोइ; अंति: बीकानेरपुरे मुदा. ३८४८४. विचार सज्झाय आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२३.५४११.५, ३५४५४-६२). १. पे. नाम. ३६३ पाखंडीमत का भेद, पृ. १अ, संपूर्ण. ३६३ पाखंडी मत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सूयगडांग अंगे १८०; अंति: वादी शुक्लपक्षीओ. २. पे. नाम. पंचानुष्ठानपंचवीसी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धतणी सुख आसिका; अंति: मणिचंद० मंगलीक ठाम, गाथा-२४. ३. पे. नाम. शिखामण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपमरे सीखामण; अंति: उदयरतन इम उच्चरे, गाथा-१०. ४. पे. नाम, चरणसित्तरी करणसित्तरी सह बालावबोध, पृ. २अ, संपूर्ण. चरणसत्तरी-करणसत्तरीगाथा, प्रा., पद्य, आदि: वय समणधम्म संजम; अंति: अभिग्गहा चेव करणं तु, गाथा-२. चरणसित्तरी करणसित्तरी-बालाबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पंचमहाव्रत; अंति: एवं ७० करणसित्तरी. ५. पे. नाम. साधूना सतावीसगुण सह अर्थ, पृ. २अ, संपूर्ण. साधु २७ गुण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: छव्वय ६ छक्काय ६; अंति: मरणं उवसग्गसहणंच, गाथा-२. साधु २७ गुण गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छव्रत ते सर्वथकी; अंति: एवं २७ गुण विराजमान. ६. पे. नाम. पौषध के ८० भांगाओं के यंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४११ पौषधस्याशीतिभंगकानां यंत्रकानि, सं., को., आदि: (-); अंति: (-). ३८४८६. सिखसवासो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. रत्नपुर, प्रले. मु. मनरूप ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है, अतः गिनकर परिमाण दिया गया है., जैदे., (२३४१२.५, १३४२८-३५). औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजै चरण; अंति: जिनहर्षतणी० अवतरे, गाथा-५६. ३८४८७. स्थापनाकल्प सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. कर्मचंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२, १२४३०). स्थापनाकल्प सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुरब नवमाथी उधरी जीम; अंति: वाचक जस गुणगेहरे, गाथा-१५. ३८४८८. पद्मप्रभु स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०४१२, १०४३५). पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रती साचो; अंति: देजो भवोभव सेवरे, गाथा-९. ३८४८९. शालिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२१४१३, १९४३२). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल तणे भवे; अंति: भव भव तुम वो दास, गाथा-१७. ३८४९०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०.५४१२, ११४२५). १.पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहज सुरंगा; अंति: सुबुध गुण गाया हो, गाथा-६. २.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति यति, मागु., पद्य, आदि: श्रीगोडी प्रभु पास; अंति: जतिसर वंदेरे, गाथा-७. ३८४९१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३२, चैत्र शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. भीमासर, प्रले. गांगजी भाट, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१२, १३४३४). १. पे. नाम. नरनारी सिखामण सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नरनारी, मु. उमेदचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंथारे सीख; अंति: उमेदचंद जस विस्तरे, गाथा-१०. २.पे. नाम. सीअल सीखामण सज्झाय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शियलविशे, मु. उमेदचंद, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम सिखामण धरी; अंति: उमेदचंद जस विस्तरे, गाथा-१०. ३८४९२. नवकार महिमा छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्राव. ज्ञानचंद भागचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१x१२.५, १४४२०). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे; अंति: कुशल रिद्ध वंछित लहै, गाथा-१७. ३८४९३. शत्रुजयतिथि थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१४१२.५, १२४२५). शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय आदिजिन; अंति: मेरुविजे जयकारी जी, गाथा-४. ३८४९४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १०, जैदे., (२१.५४१२.५, २१-२३४३८). १. पे. नाम. ऋषभदेवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. २. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालो रे बीजा; अंति: रे आनंदघन मत अंब, गाथा-६. ३. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य वि. १७२०, आदि: संभवदेव चित धरि अंतिः आनंदघन रसरूप संघ, " गाथा - ६. ४. पे नाम, अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अभिनंदन जिन दरिसण; अंति: थकी आनंदघन महाराज, गाथा-६. ५. पे नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुमति चरणकमल आतम; अंति: संपजे आनंदघन रस पोष, गाथा- ६. ६. पे. नाम. सुविधिनाथजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु, पद्य, आदिः सुविधिजिणेसर पाय नमी अंतिः आनंदपन पद धरणी रे, गाथा-८. ७. पे. नाम. विसाल गीत, प्र. २अ संपूर्ण. गुरुगुण गीत. मु. विशालराजसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः आपणे परे आवी हु; अंतिः करज्यो का संभालजी, गाथा-४. ८. पे. नाम. सुरप्रभ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण.. सुरप्रभजिन स्तुति, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काजइ छइ जेहना सहुजी; अंति: इण परिवउलइ जेह, गाथा - ५. ९. पे. नाम. वज्रधरगीता, पृ. २आ, संपूर्ण. वज्रधर गीत, मा.गु., पद्य, आदि: ए सबल मननो धाको; अंति: रूसइ पिणकयइ रूसइ रे, गाथा-५. १०. पे. नाम. युगमंधरजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. . जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सइ मुख हुन सकुं, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८४९५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, दे., (२२x११.५, ११×३३-३५). १. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे आपण ससनेहि, अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा- ७. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण प्रले. मु. झवेरसागर (गुरु मु. गौतमसागर, तपागच्छ-सागरशाख), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. देवचंद्र, मा.गु, पद्य वि. १८वी, आदि ज्ञानादिक गुण संपदा, अंतिः भावधरम दातार, गाथा- १०. ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण मु. देवचंद्र, मा.गु, पद्य, आदि सहज गुण आगरो स्वामि, अंतिः तुज गुण रमाव्यो, गाथा-८. ४. पे नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जगचिंतामणि जगगुरु जग; अंति: शिवसुख था लाल रे, गाथा - ५. ५. पे. नाम. विमलनाथ स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. विमलजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: प्रभुजी मुज अवगुण मत, अंतिः कांति० वेला नवि लागे, गाथा ५. ३८४९६. रोहिणी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (२३.५x१२.५, १३x२८). रोहिणीत सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य नमी अंतिः अमृतपदनो० स्वामी हो, गाथा- ११. ३८४९७. तपस्या पारण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५X१२, १२X३५). तप पारणाविधि, मा.गु., गद्य, आदि: शुभ दिने चंद्र बले, अंतिः साधर्मिभक्ति. For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४१३ ३८४९८. लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२८x१०.५, १७-२३४१०-१४). १.पे. नाम. नेमराजुल लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चंदावदनी मुख से; अंति: मनवंछित फल पावै, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. कका बाराखडी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. य. कपूरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कका को लेकर गये पीया; अंति: ये बात सै सुना कही, गाथा-४. ३. पे. नाम. वीरजिनजन्म लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन जन्म लावणी, मु. ज्ञानमंदिर, मा.गु., पद्य, आदि: घुघुरु वाजत रुन झन; अंति: करम गण गलनन नन नन, गाथा-४. ३८५००. २४ जिन पंचकल्याणकादि वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१२, २२४४६-५४). २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ऋषभदेवजी अजितनाथजी; अंति: महावीरजी. ३८५०१. (+) पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. १४, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२२.५४१२, १५४३२). १.पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, दिनकर, पुहिं., पद्य, आदि: तुम हो कृपानिधान दास; अंति: तोहिकुं पिछानियै, गाथा-५. २.पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: सब जीया जिन बोलो; अंति: ऋषभजिणंद बलिहारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो निरंजन यार कैसे; अंति: आनंदघन ही टरैगो, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. विझैवा, प्रले.मु. दिनकरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. साधारणजिन पद, मु. दिनकरसागर, पुहिं., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम जिनजी; अंति: एकचित्त भाईये, गाथा-४. ५. पे. नाम. विष्णु पद, पृ. १आ, संपूर्ण. विष्णु स्तुति, वखतेश, पुहिं., पद्य, आदि: हमने सुनी एक बात ही; अंति: वखतेश कहै० चंद उजारै, पद-४. ६. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजी जो तुम तारक; अंति: हरखचंद० निवहियै, गाथा-४. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: देख हो सुरराज जिन; अंति: महोछव रचै सुख समाज, गाथा-४. ८. पे. नाम. विष्णु पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. विष्णु स्तुति, सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: मेहा जल आवय रेरित; अंति: सूरदास बलिहारी, पद-४. ९.पे. नाम. विष्णु पद, पृ. २अ, संपूर्ण. विष्णु स्तुति, सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: प्रीत किया पिछतानी; अंति: मै दीवानी रे मधुकर, पद-३. १०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. रूपचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: पाणी के कोट पवन के; अंति: विसमन मान्न गुमान है, गाथा-४. ११. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रतन, पुहिं., पद्य, आदि: शिखर गिरनार जाना है; अंति: रतन कहे ल्याना है, गाथा-३. १२. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: होजी मे बंदीया नेमजी; अंति: कृपा करो मुझ तेरीया, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजी प्रगट; अंति: अवलंब्या तुझ पाय रे, गाथा-५. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति-सहस्रफणा, मा.गु., पद्य, आदि: सहसफणा प्रभुपासजी; अंति: अंतरपडदो खोलो रे, गाथा-७. ३८५०२. तृष्णा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. महावडनगर, प्रले. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४१०.५, १४४३३). तृष्णा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोधमान मद मछर माय; अंति: विघन विना निरवाणे, गाथा-११. ३८५०३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०x१०.५, २०४३२-३७). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नारी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नारी सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: मूरख के भावै नहीं; अंति: आगैइच्छा थारी रे, गाथा-२२. २. पे. नाम. आदिजिन गल, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. केसरकुसल, पुहिं., पद्य, आदि: आदिनाथ देव के देवा; अंति: केसरकुसल० चांद हये, गाथा-१२. ३८५०४. नेमजिन नव भव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०.५, २०४३८). नेमराजिमती नवभव स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: प्रभुजी आया रे; अंति: पद्मविजय जिनराय, गाथा-१७. ३८५०५. साधु आलोचना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२०x१०.५, ११४२५). आलोचना विधि-साधुधर्म, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआगमे तिविहे पन्न; अंति: (१)श्रावकसूत्र भणेमी, (२)मिच्छामि दुक्कडम. ३८५०६. बारमासो व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२०४१२, ११४२४). १. पे. नाम. नेमनाथ राजेमती बारमासो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वामि; अंति: एह नवनिध पामिरे, गाथा-१३. २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: तुह मंदिर तुह मालीया; अंति: नही सौसाले घट सैण, गाथा-२. ३८५०७. धर्म कुटुंब अने पाप कुटुंबनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०४१२.५, १२४२९). धर्मकुटुंब व पापकुटुंब सज्झाय, मु. जितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीस जिन प्रणमी करी; अंति: जीत नमे तेना पाय जी, गाथा-११. ३८५०८. आदिजिन विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६७, आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जंबुसरबंदर, पठ. मु. कपूर; प्रले. मु. कल्याणचंद (गुरु पं. दीपविजय); गुपि.पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२.५, ११४२८). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पामी सुगुरु पसायरे; अंति: मांगुर्छ एतलुंए, गाथा-५७. ३८५१०. बासठ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९७५, माघ कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. आहोर, प्रले. पीतांबर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. * पंक्ति-अक्षर अनियमित है., जैदे., (२३.५४१२, १०x१२-२२). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: आहारक अणाहारक. ३८५११. (+) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१२, १५४३८). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसियो, ढाल-३, गाथा-२०. ३८५१२. चक्रवर्तिनी रिद्धि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५४१२.५, २०४३८). चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नवतौ निधान होइ १४; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "नवसै सोरठदेस" पाठ तक लिखा है.) ३८५१३. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, १४४२६). For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण, वि. १८८६, वैशाख शुक्ल, १, ले. स्थल. सादडीनगर, प्र. मु. रणजितसागर, प्र. ले. पु. सामान्य. सीमंधरजिन स्तवन, मु. सुजशविजय, मा.गु, पद्य, आदि धन्य ते मुनिवरा रे, अंतिः सीमंधर तुझ रागे, गाथा २४. २. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८५१६. कंत तमाखुनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., ( २४४१२, १२x२६). पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. माणिक्य, पुहिं., पद्य, आदि: प्रीत करी तन भाय, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अंतिम गाथा ८ अपूर्ण तक लिखा है.) " ३८५१४. (+) राई पडिकमणानी विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जै. (२४१२, ११x१८). राईयप्रतिक्रमण विधि, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि: विधिसुं सामायिक लेई, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "जिनधर्मतोरै पायकजमा" पाठ तक लिखा है.) ३८५१५. (#) लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४X१२, १९X२८). १. पे नाम. रतनाजी महाराज की लावणी, पृ. १अ - २अ संपूर्ण. तनाजी महाराज लावणी, सा. रत्नाबाई शिष्या, मा.गु., पद्य, वि. १९६२, आदि: रतनाजी महराजा दीप; अंति: राजगुण गाया, गाथा-२७. २. पे. नाम. रतनाजी महाराज की लावणी, पृ. २अ, संपूर्ण. रतनाजी महाराज लावणी, सा. रत्नाबाई शिष्या, मा.गु, पद्य वि. १९६२, आदि: महाराजा रा वाज रह्या अंति: गुणन कह्या न जाए, गाथा - १६. ४१५ औपदेशिक सज्झाय- तमाकुत्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती विनवे, अंति: आणंद० तमाखु परिहरो, गाथा - १८. ३८५१७. मान खंडन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२४४१२, १२४३०) " मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मान म करज्यो रे; अंति: पोहचसी भवतणो पार रे, गाथा-२०. ३८५१८. शत्रुंजयतीर्थ आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४X१३, ११x२७). आदिजिन बृहत्स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमी सयल जिणंद पाय, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १८ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८५१९. गुरुगीत संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे २, जैदे (१३.५x१०, १३४३५). " १. पे नाम, जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ संपूर्ण मु. नेमहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु पय पणमी करी; अंति: नेमह० कल्याण करंत रे, गाथा-१०. २. पे नाम, जिनदत्तसूरि गीत, पृ. २अ संपूर्ण. ग. ज्ञानप्रमोद, मा.गु, पद्य, आदि: वदन सदा सरसत वसई, अंतिः कुशलसमाधि करतो जी गाथा ९. ३८५२०. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २४१२, ९-११x२५-२९). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुं सदा, अंति: संघने कोड कल्याण रे, ढाल - ४, गाथा - २४. - ३८५२१. (+) पार्श्वजिन निसाणी घग्धर, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२३४१२, १०x३०). पार्श्वजिन निसाणी - घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अंति: जिणहरष कहंदा है, गाथा - २७. ३८५२२. हीरजी की सज्झाच, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (२४४१२.५ १२४३३). For Private and Personal Use Only हीरविजयसूरि सज्झाय. मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वे करजोडी जी विनवु अंतिः भणे होज्यो मूल आणंद, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक के द्वारा २ गाथाओं को १ गाथा गिनकर परिमाण लिखा गया है.) Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८५२३. (+) आत्म स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८८६, चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सादडीनगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, १३४२६-२७). आध्यात्मिक सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धरिय उमाहोरस भरी; अंति: रे दिनरंग रसाल, गाथा-११. ३८५२४. (+) पद्मावती ढाल, संपूर्ण, वि. १९४५, वैशाख शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२, १७-१९४३०-३३). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवैराणी पदमावती; अंति: च्यार सरणां हुयज्यो, गाथा-५०. ३८५२५. चैत्यवंदन, आरती व दीपक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१२.५, १४४३७). १.पे. नाम. पंचमीनुं चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपंचमी तणो; अंति: केवल लक्ष्मी नीधांन, गाथा-९. २. पे. नाम. सिद्धचक्रनी आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र आरती, मा.गु., पद्य, आदि: आरति आरति श्रीसीद्ध; अंति: जिनाय नमः नमो जनानं, गाथा-१. ३. पे. नाम. मंगलीक दीप, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मंगलीक दीपक, मा.गु., पद्य, आदि: दीवो रे दीवो मंगलीक; अंति: आरती दीवो नमो जिनानं, गाथा-१. ३८५२६. गुंहली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. देधरोटा,गेरीतानगर, पठ. श्रावि. लाडकुवर बाई; प्रले. मु. सुरचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., दे., (२०४१०.५, २५४१७). १. पे. नाम. गुरुगुण घुयली, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली-तपागच्छीय, उपा. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर चकोर चरडि सहीयर; अंति: कांति सकल सुख पावे, गाथा-७. २. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यानमा; अंति: चीत चाहे अमृतसुख सार, गाथा-७. ३. पे. नाम. वीरजिन गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारो दीइ छे; अंति: दरसण जय जयकार, गाथा-६. ३८५२७. महावीरजिन स्तुति गंधारमंडन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०४१२.५, १५४२९). महावीरजिन स्तुति-गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारै महावीर जिणंद; अंति: जसविजय जयकारी, गाथा-४. ३८५२८. स्नात्र पूजा व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२०४१२, १६४१८-२८). १.पे. नाम. स्नात्र पूजा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: उदय रे वसीकरण लाल. २.पे. नाम. जैन गाथा संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८५२९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२०४१३, ७४१६). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर भाखीयौ आणी; अंति: पटकोरे पापी जीवन रे, गाथा-१८. ३८५३०. माणीभद्र देवता छंद, संपूर्ण, वि. १७९२, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (१९.५४११.५, ११४२७). माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवती भारती; अंति: लालकु० लखमी लीला लही, गाथा-१९. ३८५३१. (#) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१२, ९-११४२३). For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४१७ ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीगुरु पाय; अंति: भगती भाव प्रसंसिया, ढाल-३, गाथा-२५. ३८५३२. पार्श्वजिन स्तुति व विमलाचल स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०x१०.५, १०४२१-२९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-संगीतमय, सं., पद्य, आदि: देंद्रे किं द्रे; अंति: सुर नत म सवेतु लोकि, श्लोक-१. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरसहे समोसर्या; अंति: पसूरो लीखउ नमत हलास, गाथा-४. ३८५३३. आत्म स्वाध्याय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. संडारानगर, प्रले. पं. गणपतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११.५, ५४२९). आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसइ कांबलि भीजइ पाण; अंति: कवि देपाल वखाणे, गाथा-६. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबली कहता इंद्री; अंति: देपाल भोजगे वखाणी छे. ३८५३४. प्रतिष्ठाना सामाननी यादी, संपूर्ण, वि. १९५१, वैशाख शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. धानेरा, प्रले. मु.सुरेंद्रविजय (गुरु मु. लालविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. लालविजय (गुरु ग. चतुरविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादे, दे., (१९.५४१२, १०-१७४२८-३१). ___ अंजनशलाकाप्रतिष्ठा पंचकल्याणकविधि सामग्री, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीप्रतिष्ठा मुहुर्; अंति: क्री आकार नो लागे छे. ३८५३६. पजुषण स्तुति, महावीरजीन स्तवन व सरस्वती बीजमंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (१९.५४११, १४४३०). १. पे. नाम. पजुसण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जीनना जीन चोपडली गाइ; अंति: भाववर्धन जेजेकारी. २. पे. नाम. महावीर जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउडा जिनचरणानी सेवा; अंति: मोहन अनुभव मांगे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सरस्वती बीज मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी बीजमंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो सरस्वती भगवती; अंति: बुद्धिवर्धनी स्वाहा, सूत्र-१. ३८५३७.(-) रागमाला स्तवन वरूपसिंह अणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०४११,१६४३४). १.पे. नाम. रागमाला स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पठ. मु. आणंदऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. शांतिजिन स्तवन-रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वांछीत पूरण मनोहरु; अंति: वांछीत काज सवे फलइए, गाथा-२९. २. पे. नाम. रुपसीह अणगारनी सझाय, पृ. २आ, संपूर्ण. रुपसीह अणगार सझाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि वीनवु; अंति: नु उतारि पेला पार रे, गाथा-१२. ३८५३८. ६४ योगिनी स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२०x१०.५, १४४३३). १.पे. नाम. ६४ योगिनी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं दिव्य; अंति: सर्वोपद्रवनाशिनी, श्लोक-११. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: शिवं श्रीसौख्यदायकं, श्लोक-१४. ३८५३९. औपदेशिक छंद व धान्य नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., दे., (२०x१०, २४४१४). १. पे. नाम. औपदेशिक छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगति भारती चरण नमेव; अंति: लक्ष्मी० मन धरजो चोल, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. धान्य नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८५४१. वरकाणा पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२०४११.५, १५४३४). पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: वरदायनी विमल ब्रह्मा; अंति: इम कहै सकल संपति करण, गाथा-२७. ३८५४२. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (१९.५४१२, १२४३०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: परम मंत्र प्रणमी करी; अंति: कोई नय रहिय अधूरी ३८५४३. औपदेशिक सवैया व पांचमा आरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२.५, १५४४१). १.पे. नाम. सवासो सीख, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरु उपदेश; अंति: ईम केह धर्मसीह सझाय, गाथा-३५. २.पे. नाम. पंचम आरा सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: देखये भाखा वयण रसाल, गाथा-१९. ३८५४४. (+) आहारना ९६ दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, ५४२७). आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, आदि: आहाकम्मे१ उद्देसिक२; अंति: स्साए९५ पारियासियए९६. आहार के ९६ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आधाकम्मा आहार जेस; अंति: विना घणो काल घणी. ३८५४५. श्राविका धर्मकार्य बाधा सज्झाय व वृद्धावस्था वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१२, १६४३६). १. पे. नाम. श्राविका धर्मकार्य बाधा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. श्रीमलजी, रा., पद्य, वि. २०वी, आदि: पहर पाछली राते उठू; अंति: बाया उतरो जो भव पारी, गाथा-१०. २. पे. नाम. वृद्धावस्था वर्णन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वृद्धावस्था वर्णन सज्झाय, म. रामरतनशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे तो हंस खेल गम: अंति: रतनजी समता राचीरे, गाथा-४. ३८५४७. (+) चैत्यवंदन, स्तवन, सज्झाय, पद व कवित संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१९.५४११.५, १४४२६). १. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७९५. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिला प्रणमु; अंति: नय वंदे कर जोड, गाथा-२. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७९५, ले.स्थल. पालडी. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीश्रीमंदर विनति; अंति: काहा कहुं बहो तेरा, गाथा-५. ३. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. कवित संग्रह , पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. हितोपदेश सझाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हितोपदेश, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर रतनपुर जाणीइं; अंति: सोमविमलसूरि इम भणे ए, गाथा-८. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: दातण झारी है सुंदरी; अंति: थारे मे माहिरे, गाथा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. हिं., पद्य, आदि: बावा किसनपूरी तुम वि; अंति: ठीकरु ने काख में छरी, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि आसा सहूने सरखी रे; अंति: कर भुरीइ पापी रे, गाथा- ३. ८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मनरा मानीता साहिबा, अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ३८५४८. जिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१ (१) ०१. कुल पे. ५, जैवे. (२०४९, १५X४७). " १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ले सुर नरे गाव्यो हो, गाथा-५, (पू. वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: हुं हुं रे अबला ताहर; अंति: लेइ मुगतिमां वासी, गाथा-५. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबरी सेवामां रहिस, अंति: जय जय श्रीमहावीर, गाथा-६. ४. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु, पद्य, वि. १७७१, आदि: सकल कुसल वन संचवा हो, अंतिः कीजि कोडि कल्याण, गाथा-८. ५. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवयो रे शांति जिणंद, अंति: देयो दोलति दीपती रे, गाथा-५. ३८५४९. (१) पार्श्वजिन जाप व उवसग्गहर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २- १ (१) १, कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक नहीं होने के कारण २ काल्पनिक लिया है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२०.५x११.५, १२४३०). " १. पे. नाम. पार्श्वजिन जाप मंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. सं. गद्य, आदिः ॐ नमो भगवते श्रीशंखे, अंति: ह्रीं श्रीं लिए. मंत्र- १. ४१९ २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. उवसग्गहरं स्तोत्र, प्रा. सं., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं पासं, अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, गाथा- १५. ३८५५०. (#) सरस्वतीदेवी छंद, सरस्वती स्तुति व क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२०.५X१२.५, १२४३० ). , १. पे नाम, सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ संपूर्ण. मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: मा भगवती विद्यानी; अंति: जाउं तोरी बलीहारी, गाथा- ७. २. पे. नाम. शारदा स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शारदादेवी स्तुति, सं., पद्य, आदिः या कुंदेंदुतुषारहारध, अंतिः निश्शेषजाड्यापहा श्लोक - १. ३. पे. नाम. क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या, अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. "" ३८५५१. स्तोत्र व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६-१४(१ से १४) =२, कुल पे २ जैदे. (२१x११, १२x३२). १. पे. नाम. धरणेंद्रचिंतामहामंत्रगर्भित चिंतामणि स्तोत्र, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणिमहामंत्रगर्भित, धरणेंद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: धीरैः शस्वदन्वेषणीयं श्लोक-३२, (पू.वि. श्लोक २३ अपूर्ण से है) २. पे. नाम. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, पृ. १५ अ - १६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उ.पु., प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि: (-): अंति: (-). For Private and Personal Use Only ३८५५२. स्थूलिभद्र सज्झाय व भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, दे., (२१X११.५, १०X२७). १. पे. नाम. स्थुलिभद्र सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु, पद्य, आदि: (-); अंति: वाचा अविचल पाली, गाथा-१३ (पू. वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि, अंति: (-) (पू. वि. लोक ५ अपूर्ण तक है) ३८५५३. अरणिकमुनि रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२४१२, १४X३५). " " अरणिकमुनि रास, मु. चोथमल शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पारसजीन पारस इधक करी; अंतिः उदीयापुर रे मजारीअ ढाल-४. ३८५५५. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२३.५x१४, १३४३४). "" सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीश्रीमंधरस्वामीना, अंतिः लायक० नमस्कार होजो. ३८५५६. पार्श्वजिन स्तवन व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२३.५X१२५-१३.०, १५X३७). १. पे नाम, पार्श्वजिन २१ दंडक स्तवन, पृ. ९अ-२अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन २४ दंडकविचारगर्भित मु. धरमसी, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर, - 1 अंति: गावै धरमसिंह जगीस ए, ढाल ४, गाथा - ३४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. मंत्र यंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह " उ. पुहिं., प्रा.मा.गु. सं., पग, आदि (-); अंति: (-) ३८५५७. वर्तमानजिन स्तवन व वीस स्थानक तप गणणुं, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, दे. (२०.५X११, , १६x२५-५१). १. पे. नाम. वर्तमानजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: वर्त्तमान जिनवर मैं, अंति: ऋषभ० सगला प्राणी जी, गाथा- ७. २. पे. नाम. वीसस्थानक तपगणणु, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गण, प्रा. मा.गु, को, आदि: नमो अरिहंताणं अरिहंत अंतिः नमो पवयणस्स २०००, पद-२०. ३८५५९, (+) पांचमी स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे.. " (२१-२१.५X११.५, १५X३१). १. पे नाम, पांचमी स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाय; अंतिः समयसुंदर गुण स्तव, ढाल -३, गाथा - २२. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. हस्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर साहिबा तमे; अंति: हस्तीविजय जय जयकार, गाथा - ९. ३८५६०. सूत्र संख्या, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३.५X१२, १३X३०). ११ अंग १२ उपांग परिमाण संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: श्री आचारांगसूत्र अध; अंति: र्वाले संख्या १०३५४४. ३८५६१. (+) अंतरिक्ष पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. मु. अमरविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); गुपि. आ. विजयरत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२३.५४१०५, १३४३६). "" पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु, पद्म, आदि सारद मात मया करी आपो अंतिः भणे जयो देव जय जयकरण, गाथा - ५१. ३८५६२. दशार्णभद्र सज्झाय व प्रभात प्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, प्रले. मु. जेठाऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२५४१०.५, ३८४१३-१९). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. दशारणभद्र सज्जाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: शुभविजे नीसदीस (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. प्रभात प्रतिक्रमण विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही तसोतर, अंति: कमठक्खय सिद्धा कहीइं. Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४२१ ३८५६३. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४-२५.०x१०.५-११.०, ९४३६). महावीरजिन स्तवन, मु. नानजी, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: केवल रे महोछव सुरवर; अंति: पुरउ प्रभु आसा घणी, गाथा-१८. ३८५६४. (+) बालमरण १२ भेद व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. अमोलकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत में पत्र संख्या २ दिया हुआ है किन्तु कृति की पूर्णता को देखते हुए पत्र संख्या १ दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१५४११-११.५, १५४१९-२९). १.पे. नाम. बालमरण के १२ भेद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: विरत पचखाण विण किया; अंति: मांहि पइसी नइ मरइ, गाथा-१२. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८५६६. पार्श्वजिन स्तवन व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सिधाणा, प्रले. सा. कुशाला, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९४११.५, १७४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सूरत मूरत मोहनगारी; अंति: ग्यानी पास जिणदावै, गाथा-५. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: सहस कला छे पूरण पुनु; अंति: आदजि सूनिजर किजौ, गाथा-१०. ३८५६७. जिनवाणी गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१०.५, १२४२५). जिनवाणी गहुँली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: साहेली हो आवी हुं हर; अंति: कुअर बाछे घणू हो लाल, गाथा-१४. ३८५६८. औपदेशिक लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१८x१२, ३४४१८). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: लाभ नहि लियो जिणंद; अंति: जीनदास० कुगुरु भजके, गाथा-४. २. पे. नाम. उपदेशी लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: गई सब तेरी सील समता; अंति: जीनदास० वीना भमता, गाथा-४. ३८५६९. शंखेश्वर पार्श्वजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१७४१२, ११४१८). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: जिणचंद करमदल जीपतो, गाथा-५. ३८५७३. धन्नाअणगार सज्झाय व सुबाहुकुमार संधि, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु.रंगवर्द्धनऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, १५४४९-५१). १. पे. नाम. धन्नाअणगार सजाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, आ. जयवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दोइ करजोडी नइ नित नम; अंति: जयवल्लभ० त्रिकाल रे, गाथा-२१. २.पे. नाम. सुबाहुकुमार संधि, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. सुबाहुकुमार संधी, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: वंदी वीरजिनेसर केरा; अंति: मेघराज कहि० कल्याण, गाथा-७५. ३८५७४. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, क्रीत. श्राव. आणंदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, २६x२१). महावीरजिन स्तुति, उपा. रत्नकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: भविक रे भावै वीर विल; अंति: रतनकीरति० भवतार गो, गाथा-१३. ३८५७५. नेमराजुल लेख, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११, १०४३०). For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन लेख, मु. जयसोम-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्तिश्री यदुपति; अंति: सुठाम साहिबीया, गाथा-२२. ३८५७६. ९८ पद अल्पबहुत्व विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १७४४०). जीव अल्पबहुत्व ९८ पदविचार, सं., यं., आदि: सर्वस्तोका गर्भज; अंति: विशेषाधिका भवंति. ३८५७७. (#) पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, २१४४७). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: लब्धिरुचि० प्रसन्नतः,गाथा-३२. ३८५७८. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२४.५-२५.०४१०.५, १२४३५). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. गाथा ३ की जगह ४ लिखी गयी है. पुहि., पद्य, आदि: अरे भववासी जीव जड को; अंति: राख साचे भगवान कू, गाथा-४. २. पे. नाम. सुखी परिवार कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. देवीदास, पुहिं., पद्य, आदि: पूरे कुल जनम निरोग; अंति: देवीदास० प्रणामु हैं, पद-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित, क. देवीदास, पुहिं., पद्य, आदि: छोटे कुल जन्म कुठोर; अंति: वासी साहबी करतु है, पद-१. ४. पे. नाम. महावीरजिन परिवार सवैयो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: साधा वडा दस च्यार; अंति: धर्म सदा चिरनंदो, गाथा-१. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, पुहि., पद्य, आदि: एक के पाय अनेक परे; अंति: धर्मसी० फिरै है, गाथा-१. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणि प्रभु; अंति: लाभाणंद शिव जावैरे, गाथा-७. ३८५७९. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१०.५, १२४३७-४०). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदरस्वामी प्रमु; अंति: हो जासी सीवपुर ठाण, गाथा-८. २. पे. नाम. प्रथम परिसह सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. परिसह सज्झाय-उत्तराध्ययन २, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: उत्तराध्ययनसूत्र माह; अंति: रायचंद० परिसो दोहिलो, गाथा-९. ३८५८०. (+) षद्रव्य विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३३). ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय१ अधर्मा; अंति: प्रगट करवि एज सार छे. ३८५८१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९१, कार्तिक, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. गुढला, प्रले. मु. लालरत्न; पठ. मु. तिलकरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४४०-४४). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लाभसागर, पुहिं., पद्य, आदि: क्युन भए हम मोर; अंति: लाभ० जनम जरा नहीं उर, गाथा-५. २. पे. नाम. रिषभदेव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शQजयमंडन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिधाचल गायवा मुझ; अंति: कवीयण विमलाचलगायौ, गाथा-५. ३. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, ग. गुणशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: आदीसर हो सुण यो अरदा; अंति: गुणशेखर गणि इम भणै, गाथा-७. ३८५८२. पंचपरमेष्ठि आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१३.५४११.५, १५४२५). पंचपरमेष्ठि आरती, पंडित. चमना, मा.गु., पद्य, आदि: परम नीरंजन श्रीजिन; अंति: चमना० जिन सुखकारी, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ३८५८३. नेमजी की ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. बोराणा, प्रले. य. नानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१०.५, २५X१२). नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुरनगर सुहामणु; अंति: मनरूप प्रणमुपाय, गाथा-१४. ३८५८४. (+) चौपाई व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७००, फाल्गुन कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ११-१० (१ से १०) = १, कुल पे. २, ले. स्थल. रांणपुर, प्रले. मु. यशोराज (गुरु मु. धर्मसी ऋषि); गुपि. मु. धर्मसी ऋषि (गुरु मु. सिद्धराजजी ऋषि); मु. सिद्धरा ऋषि (गुरु मु. हाथीजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जैदे. (२५x११ १९४५१-६१). " १. पे नाम, दानविषये शालिभद्रमहामुनि चरित्र, पृ. १९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शालिभद्रमुनि चौपाई. मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८ आदि (-); अंति: मनवंछित फल लहिसे जी, बाल- २९, ( पू. वि. ढाल २८ की गाथा १२ से है. ) २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण יי मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: भज भज भज भगवंत भविक; अंति: यूं पामो संसारि, गाथा-२७. ३८५८५. (+) गौतमपृच्छा प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. जालोर, पठ. मु. रंगवल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४१०.५, १०४४३). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं जाणं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. ३८५८६. (+) मनुष्यसंख्या स्तव सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित त्रिपाठ जैदे., (२०x११, १९२९-४८). " मनुष्यसंख्या स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जिणवुत्त चरित्तेणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) (२५.५X१०.५, १५X४८). १. पे. नाम. साधु के १४ नाम सह टीका, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. साधु के १४ नाम, सं., पद्य, आदि: सिद्धांतोक्तानि नाम, अंति: साधूनामिह चतुर्दश, श्लोक-४. साधु के १४ नाम- टीका, सं., गद्य, आदि: निर्ग्रथ इति ग्रंथो; अंतिः चारी परिग्रहरहितः. २. पे. नाम. जैनधर्मस्थिरता प्रश्नोत्तर, पृ. १आ, संपूर्ण. मनुष्यसंख्या स्तव - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिनोक्तचारित्रेण, अंतिः प्रसादं कुरु, (संपूर्ण, वि. अवचूरि से संबंधित उदाहरणरूप पाठ अपूर्ण है.) ३८५८७. (+) साधु के १४ नाम व प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., सं., गद्य, आदि: एकदा श्रीमहावीर; अंतिः द्विपरं द्विशतकं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८५८८. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X११, १२X३८). नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समरु श्रीसारददेवी, अंति: पाइ कुसलकामित सुखदाइ, गाथा-२८. ३८५९० (+) २४ जिननाम च्यवनादि नाम, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x११. १४-१८३५-३९). २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३८५९१. (+) ६२ मार्गणा ५७ हेतुविचार यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, दे. (२५.५४११, २३४६४-७०). १४ गुणठाणे ५७ कर्मबंधहेतु, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). ३८५९२. शील सज्झाव, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. वे. (२५४११, १५४३२) ४२३ For Private and Personal Use Only , शीयल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः रीस चढी बोलै छै राणी; अंति: सेठजी मेरा अइपाणा जी, गाथा- ११. ३८५९३. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. ३-२ (१ से २) ०१, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२५४१०.५-११.०, १४४३७-४०). " २४ जिन स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. शीतलजिन स्तवन से विमलजिन स्तवन गाथा ४ अपूर्ण तक है.) Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८५९४. (+) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. घासीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११, १७४४३-४८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: गुणगणरयणतणो भंडार; अंति: खपस्यइ जया वामानंदनो, गाथा-९. २. पे. नाम. अएमंता सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीरजिणंद वांदीने; अंति: लिखमीचंद० अणगारो, गाथा-२४. ३८५९५. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. १३, जैदे., (२६४११, १५-१९४५०). १.पे. नाम. त्रिशष्ठिशलाकापुरुष नाम, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: श्रीरामदेव बलदेव, (पू.वि. १२ चक्रवर्ती के नाम से है.) २.पे. नाम. ४ ध्यान प्रकार, पृ. २अ, संपूर्ण. ४ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आर्तध्यान तिर्यगति; अंति: ध्यान मोक्षगति कारण. ३. पे. नाम. ५ चारित्र नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सामायकर छेदोपस्थापनि; अंति: ५ चारित्र पांच कहिइ. ४. पे. नाम. चतुरशीतिजीवयोनि विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. ८४ लाख जीवयोनि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पुढविकाय योनि लक्ष ७; अंति: गति जीवयोनि लक्ष १४. ५.पे. नाम. ११गणधर नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रभूति१ वायुभूति२; अति: श्रीप्रभासजी११. ६.पे. नाम. ६ पर्याप्तिक नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. ६जीवपर्याप्ति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आहारपर्याप्ति१ शरीर; अंति: ६ पर्याप्ति कहियइं. ७. पे. नाम. २२ परीसह नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, आदि: बुभुक्षापरीसह१ तृषा; अंति: सम्यक्त्वपरीसह२२. ८.पे. नाम. १२ पर्षदा, पृ. २अ, संपूर्ण. १२ पर्षदा विचार, सं., गद्य, आदि: समवसरणे उपवेशनं१; अंति: देवामरनारी ३ ईशाने ४. ९. पे. नाम. १४ गुणस्थानक विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणस्थानकि; अंति: गुणस्थानकि योगनिरो०. १०. पे. नाम. विचारगाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: तस१ बायर२ पजत्तं३; अंति: १० मियनामे सेयरावीस, गाथा-२, (वि. नवतत्त्वगत गाथा.) ११. पे. नाम. १० यतिधर्म विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. १० यतिधर्म भेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खंती१ मद्दवर जव३; अंति: बभंच१० जइधम्मो, गाथा-१. १२. पे. नाम. ६ संस्थानभेद विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: वज्रऋषभनाराच संहनन१; अंति: कुंडसंस्थान६. १३. पे. नाम. २१ श्रावकगुण, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: धम्मरयणस्स जुग्गो; अंति: इगवीस गुणेहिं सपन्नो, गाथा-३. ३८५९६. अंतिम आराधना संग्रह व २० स्थानक गणणु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३-१७४३६-४२). १.पे. नाम. अंतिम आराधना संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: (१)वेरं मझं न कुणइ, (२)सहसागारेणं वोसिरामि. २. पे. नाम. २० स्थानक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गणj, प्रा.,मा.गु., को., आदि: नमो अरिहंताणं १ नमो; अंति: २००० सहस्र गुणिवउ. For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१ ४२५ ३८५९७. (+#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-३ (१ से ३) = ३, कुल पे. ८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत- क्रियापद संकेत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १४४४५-५०). १. पे. नाम. स्तंभनक पार्श्वनाथ पंचविंशतिका, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिनपंचविंशतिका स्तवन - स्तंभनक, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सुंदररमाशिवसंपदस्तां, श्लोक-२५, (पू.वि. श्लोक २१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नवखंड पार्श्वनाथ स्तव, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव नवखंडा, आ. सोमसुंदरसूरि सं., पद्य वि. १५वी, आदि: स्फूर्जनागफणामणीगण, अंतिः नवभवांतः शिवसुखम्, श्लोक- ९. ३. पे. नाम. साधारणजिन च्यवनकल्याणक स्तव, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी आदि गर्भावतीर्ण भववार्धि, अंतिः प्रवरबोधिलाभोदयम् लोक ९. ४. पे. नाम. साधारणजिन जन्मकल्याणक स्तवन, पृ. ४-५अ, संपूर्ण. आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य वि. १५वी आदि भुवनमोहनरूपसुसंपदः अंति: लभते वरमंगलमालिकाम् श्लोक-१६. ५. पे. नाम साधारणजिन दीक्षा कल्याणक स्तव, प्र. ५अ ५आ, संपूर्ण. आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: स्तुवे चारुचारित्र; अंतिः मोक्षसौख्यं सुखेन, श्लोक-१२. ६. पे. नाम. साधारणजिन ज्ञानकल्याणक स्तव, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी आदि केवलालोकसंक्रांत, अंतिः आप्नोति तूर्णम्, श्लोक-१७. ७. पे. नाम. साधारणजिन निर्वाणकल्याणक स्तव, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: प्राप्तमुक्तिवनितामु; अंति: ते पदवी न दवीयसी, श्लोक-१२. ८. पे. नाम. साधारणजिन पंचकल्याणक स्तव, पृ. ६आ, अपूर्ण. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: कल्याणकारीणि जिनेश्व; अंति: बोभुवति प्रभास्वराः, (पूर्ण, पू. वि. मात्र श्लोक ८ का अंतिम पद नहीं है.) ३८५९८. (#) माणभद्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०x११, ५X१५). माणिभद्रवीर छंद, मु.शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणभद्र सदा समरो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८५९९. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६X११, १६X५०). गाथा - ११. २. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, १. पे. नाम. बाहुबल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु, पद्य, आदि बाहुबल चारत लियो जी, अंतिः विमलकीरति गुण गाय, कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: थे तो महाविदेहना; अंति: कान० मनोरथ माहरा जी, गाथा- ९. मु. ३. पे. नाम, उपदेशी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनदेव, पुहिं., पद्य, आदि: सजन नही को आपणो नही; अंति: जिनदेव० जीव उधरना है, गाथा - ९. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सुविधिजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: गुण अनंत अपार प्रभु, अंति: समयसुंदर० तुझ आधार, गाथा-३. ३८६०० () एकादशी स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे., (२५x११. १३X३६-३९). For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य वि. १७६९, आदि द्वारिकानयरि समोसर्य अंतिः लहे मंगल अतिघणो, ढाल -३, गाथा - २५. 5 ३८६०१. आत्मानी आत्मता, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे (२४.५४१०.५, १२४४५). " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मा की आत्मता, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यातप्रदेशी अनंत, अंति: निषेपे थाये ए रीते ज. , ३८६०२. (४) सज्झाव व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७) ०१, कुल पे. ६. ले. स्थल, बलोणी, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२३.५४१०, १४४४५-४७% १. पे. नाम. दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लालविजय निसिदीस, गाथा १८ (पू. वि. गाथा १५ से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. उदयराज, पुहिं., पद्य, आदि: घर विरोध घट भंग उदर, अंतिः घर विरोध किण ही मनुष, गाथा - १. ३. पे नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण, पे. वि. दूसरे पत्र के भी सुभाषित इसमें समाविष्ट है. सुभाषित संग्रह, सं., पद्य, आदि: देयां भोज धनं घन; अंति: तेजः अन्नसमो नहि जः, श्लोक ८. ४. पे. नाम संभवजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर विनती; अंति: जस० ए मन साचुं रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. मिरगी औषध विधि, पृ. ८आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि: मिरच ७ आकरी डोडी, अंतिः नास दीजे मरगी जाइ ६. पे नाम, यंत्रधारण विधि, पृ. ८.आ, संपूर्ण, यंत्र-मंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). , ३८६०३. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जै.., (२४.५X१०.५, १६X३५). १. पे. नाम. सत्या की सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, पठ. सा. मानी आर्या, प्रले. सा. चनणा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य.. सती सज्झाव, रा., पद्य, आदि सहुसरीसी नर नही नही अंतिः कत्या जासी हो लाल, गाथा- ३०. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: नाभिनंदन जगवंदन देव, अंति: बहु सुख केरि बगसिस, गाथा - ११. ३८६०४. रत्नाकरपच्चीसी, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १, दे. (२०.५X११, १९३०). ! रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं. पद्य वि. १४वी, आदिः श्रेयः श्रिया मंगल, अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक-२५. ३८६०६. (+) चोवीस तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे., (२२.५X१०, १२३७-४०). २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, कुंबुजिन स्तवन' तक लिखा है.) ३८६०७. इरियावही मिच्छामिदुक्कड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७३ वैशाख शुक्र, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २३१०.५, ९२८). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीगुरु सनमुख रहि; अंति: वरते एकवीस " वरस हजार, गाथा - १४. ३८६०८. (४) सज्झाच संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे., For Private and Personal Use Only (२३.५X१०.५, ११X३८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं, पद्य, आदि इक काया अरु कामिनी अंतिः स्वारथ को संसार, गाथा - ५. Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४२७ २.पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: जागरे सुग्यानी जीव; अंति: लहिज्यो सुख खेम, गाथा-१९. ३८६०९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४१०.५, ११४३२). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा निलो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८६१०. नेमराजुल गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२१.५४१०.५, १२४२६-२८). नेमराजिमती गीत, आ. विनयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि हीयडें; अंति: विनयसागर० सुजस वधायो, गाथा-१२. ३८६११. चिंतामणिपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२३४११, १०४२६). पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, श्राव. चेतन, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: कल्पवेल चिंतामणि; अंति: समरो मन वच काय, ढाल-२, गाथा-२६. ३८६१२. ढुंढीया कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२४१५, ९४४२). ढूंढकमत कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: भगवंत मूरत भगति वली; अंति: ढूंढस झालै ढूंढीया, गाथा-३. ३८६१३. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२०x१०.५, ९४२८). महावीरजिन स्तवन, मु. नथमल, मा.गु., पद्य, वि. १९३०, आदि: जगपति त्रिशलानंदनदेव; अंति: साध नथमलने नवली करी, गाथा-७. ३८६१४. (#) सज्झाय व झुलणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,१२४४०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. लींबडीयाग्राम. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: पांचे घोरे रथ एक जुत; अंति: राज विनय जीउ पाया, गाथा-५. २.पे. नाम. मनमोहन झुलणा सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ पुहि., पद्य, आदि: लटी झुलती थी पुलक; अंति: सोय रोजी सो रहो, गाथा-३. ३८६१५. सर्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, १२४४३). २४ जिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमुंप्रथम; अंति: लहे पामे बहु संपत्त, गाथा-८. ३८६१६. ऋषभदेवजी छंद, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. घाणोरानगर, प्रले. पं. लेहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२४४१०.५, ११४२७). आदिजिन छंद-केसरिया, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहिं., पद्य, वि. १८६३, आदि: सदाशिव राव आयो कपटकर; अंति: रोड० अवरन को नाहि, गाथा-४५. ३८६१७. (+#) थुई, स्तुति वस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४३७). १.पे. नाम. ऋषभदेवजीरी थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्र उठी वंदु रीषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. २.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: संप्रात संसारसमुद्र; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पशुपकार सुण्या पछे; अंति: उदयविजय वाच० मानो रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: पहिला रांग० पछै करै; अंति: विरहु दहु दुख होय, गाथा-२. ३८६१८. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१२, १४४३०). For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ ज कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि; उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: उप्पनसन्नाणमहोमयाणं; अंति: विश्व जयकार पावे, चैत्यवंदन-९. २. पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: बालब्रह्मचारी नेमजी; अंति: लहे अमृत पद ठाम, गाथा-६. ३८६१९. दिवाली ढाल व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०, २१४५८). १.पे. नाम. दीवालीनी ढाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. कर्ता का उल्लेख नहीं है. दीपावलीपर्व रास, ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंत को; अंति: तणो चेत सकैतो चेत, गाथा-४०. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: (१)सूत्र सिद्धांतनी रहै, (२)चेतन चेतज्यो मिनष; अंति: जैमल० जीताना डाणोरे, गाथा-२५. ३८६२०. (#) दानशीलतपभावनानो संवाद व पाक्षिकप्रतिक्रमणमां छींकनो विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, पठ.सा. किसना (गुरु सा. जयवंता); गुपि.सा. जयवंता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०,१४४४१-४६). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति: भणे० सुप्रसादोरे, ढाल-४, गाथा-१०१. २. पे. नाम. छींक विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पाखी पडिकमणइ करता; अंति: एवं लात ९ दीजै. ३. पे. नाम. मार्जारी विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणमध्ये मार्जारीदोष निवारण विधि, सं., गद्य, आदि: जउ मार्जारी मांडलि; अंति: पछै शांति कही जइ. ३८६२१. (#) मेघकुमार सझाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०x१०, १२४३०). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्याजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ३८६२२. समेतशिखर, नेमिजिन स्तवन व गणेशजी पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वल्लभीनगर, जैदे., (२२४११, १२४१७-२३). १.पे. नाम. समेतशिखर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. वल्लभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समतिशिखर चालो जइए; अंति: फरस्यै भवसायर तर जइए, गाथा-६. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालीने पीली वादली; अंति: कांति नमे वारंवार, गाथा-७. ३. पे. नाम. गणेशजी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने अंतिम वाक्य में कहत मीया तानसेन की जगह मानसेन लिखा हो ऐसा प्रतीत होता है. गणेशजी द्रुपद, तानसेन, पुहिं., पद्य, आदि: जैगणेश जै गणेशजै; अंति: मान० करोउवा की सेवा, गाथा-३. ३८६२३. गीत, पद व विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२१x१०.५, १०-२२४३२-४२). १.पे. नाम. ८४ गच्छ नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम बृहत् तपागच्छ१; अंति: नागोरी लुंका हुआ. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: चामडी की पुतली भजन; अंति: कहत कबीर भ०, पद-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४२९ पुहिं., पद्य, आदि: जीव तुं भुलोरे भाई; अंति: प्यारे अंधकुप सयार, पद-३. ४. पे. नाम. दर्शन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. - जैनविधि संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उतरासण नांखी चावलदान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक अंश है.) ३८६२४. पार्श्वनाथ निसाणी व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५९, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२१.५४११.५, १२४३८). १.पे. नाम. पार्श्व निसाणी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहरख गावंदा है, गाथा-२८. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: क्षितिमंडलमुकटं धर्म; अंति: रम्यारम्यं सहरम्य, श्लोक-४. ३८६२५. (+) गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१२, ९४२६). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, जगरुप, रा., पद्य, आदि: वामासुत मुझने लागेर; अंति: जगरूप० मटको अणीयालो, ___ गाथा-६. ३८६२६. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. पं. उत्तमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११,१४४३३). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___आदिजिन स्तवन, मु. महानंद, रा., पद्य, आदि: प्यारो लागे प्यारो; अंति: माहानंद० थाहरी सेव, गाथा-७. २. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरसती स्वामीने वीनवु; अंति: पोहताछे मूगत मझार, गाथा-११. ३८६२७. (-) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४११, १५-२०४५४). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. छकाय जीव संबंधी बोल.) ३८६२८. वीसस्थानक तप आराधना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१२, १२४२६). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं गुणणो; अंति: ५ नो काउसग्ग कीजै, पद-२१. ३८६२९. महावीरजिन पालणु हालरडुं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. *पंक्ति अक्षर अनियमित है., जैदे., (२२.५४११, ३२४२५). महावीरजिन हालरडु, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला झुलावे; अंति: होजो दीपविजय कविराज, गाथा-१७. ३८६३०. सीतासतीनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पठ. मु. रामलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, १२४२५). सीतासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कदीय न आवे खोडजीरे, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण से है.) ३८६३१. (#) मृगापुत्रनी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३०, आषाढ़ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. शतपत्रनयर, प्रले. पं. उत्तमचंद्र (गुरु वा. विवेकसागर गणि); गुपि. वा. विवेकसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १७४४७). मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: परतिख प्रणमुवीर; अंति: चरित्र जिनहरषै कियो, ढाल-१०, गाथा-१२९. ३८६३२. सोल सुपन व गणपति स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०, १३४३०). १. पे. नाम. सोल सुपन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८३०, पौष शुक्ल, ३, गुरुवार, ले.स्थल. खंभात, प्रले. ग. शिवदत्तसागर (गुरु पंन्या. निर्मलसागर); गुपि.पंन्या. निर्मलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सौला सुहिणां; अंति: हो जिनजी तुम तणी, गाथा-१६. २. पे. नाम. गणपति स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रेम, रा., पद्य, आदि: सदा सेवियांसु चिंगो; अंति: प्रेम० करंदो सुरिद, गाथा-५. ३८६३३. सुभाषित दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२२४११, ११४२८). औपदेशिक सुभाषित संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: जीव सवे ते आतमा धरम; अंति: मित्र शत्रु तव जोय, गाथा-६२. ३८६३४. अभयकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४.५४११, १०४३०). अभयकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुखसागरमांहि नित्यडी, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण से है.) ३८६३५. (+) चोसठ इंद्र नाम, औषध संग्रह, जीवना ५६३ भेद व वासुपूज्य ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ६-१६x४६). १.पे. नाम. चोसठ इंद्र नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.. ६४ इंद्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि: चमरेंद्र धरणेंद्र; अंति: सूर्य इंद्र. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. जीवना ५६३ भेद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १५ दरभलुभी ३० अलभलुम; अंति: १० अपर्याप्ता. ४. पे. नाम. वासुपूज्य ढाल, पृ. १आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन जन्मोत्सव ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जननी जिननें अति; अंति: हरणे सुभ जाचंती, गाथा-५, (वि. गाथांक नहीं लिखे होने से परिमाण गिनकर दिया गया है.) ३८६३६. पार्श्वनाथजी छंद व वीवाहलो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १४४६०). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथनो छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: नाथजी दुखनी जाल तोडी, गाथा-८. २.पे. नाम. पासकूमर विवाहलो, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वकुमार विवाहलो, पं. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: पासकुमर मैहमानिलो; अंति: देवकुसल उलट अंगेरे, गाथा-८. ३८६३७. (+) समकित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१८x१०.५, ७x१४-१८). समकित सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर प्रणमीय; अंति: गतिवधुज निश्चई वरइ, गाथा-२०. ३८६३९. वरकाणापार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४२७). पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. नित्यप्रकाश, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय नमी; अंति: सेवगने सुखीयां करो, गाथा-१३. ३८६४०. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (१६४११, २२४३६). १.पे. नाम. वस्तुपालतेजपाल मंत्रीसर उपना, पृ. १अ, संपूर्ण. वस्तुपालतेजपाल प्रभावना, मा.गु., गद्य, आदि: वस्तुपाल तेजपाल; अंति: तेजपाल स्वर्ग पहुंता. २.पे. नाम. महावीरजिन पट्टावली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: महावीरथी ६० वरसे; अंति: फूलांणी काल कीधो. ३. पे. नाम. महावीर स्वामीनोचोमासो, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन चातुर्मास विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो चौमासो मारवाड; अंति: ४२ चौमासा थया. ४. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १२ व्रतधारी श्रावक; अंति: नंदी व्रत मध्ये छे. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४३१ ३८६४२. स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१७४११, १०४२०). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नंदसलोणानंदणारे; अंति: उदेरतन०भाविइं रेलोल, गाथा-४. २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीवत्यांशोभा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक लिखकर कृति पूर्ण कर दी गई है.) ३८६४३. (-) औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. प्रतिलेखन संवत् अस्पष्ट है., अशुद्ध पाठ., दे., (१७४११, १३४१७). औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: थारी फूल सी देह पलक; अंति: रतनचंद० अबीलाषेरे, गाथा-५. ३८६४४. प्रश्नोत्तरमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११.५, १२४३५-४८). प्रश्नोत्तरमाला, मा.गु., गद्य, आदि: पैले प्रश्नरो उत्तर; अंति: फल खोटा कह्या छै. ३८६४५. जिन स्तवन व मधुबिंदु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, १६-१९४४८-५४). १. पे. नाम. बांभणवाड महावीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. विबुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुण गावारे आवो सोह; अंति: विबुध रे भवि भावसु, गाथा-१३. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. अमरविमल, पुहि., पद्य, आदि: साचै दिल सांई मिले; अंति: अमरविमल० की व्यार, गाथा-८. ३. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझने रे मात; अंति: पइ परमसुख मइ मांगिओ, गाथा-१०. ३८६४६. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ९, जैदे., (२४४११, १०४३०). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कल्याणविमल, पुहि., पद्य, आदि: मेरो मन मगन भयो अब; अंति: गुण ए गिरिराज के गाई, गाथा-४. २. पे. नाम. गौतमस्वामि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. गुणसागर, पुहि., पद्य, आदि: लब्धि गुरु गौतमसामी; अंति: दुख टारेगो मावीर, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: आजुनू दन रडीआमणोरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. मेघलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लाभ० ते नवनध जागी हो, गाथा-६, (पू.वि. अंतिम गाथा के मात्र अंतिम दो पाद है.) ५. पे. नाम. गोडी पार्श्वजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ले लागी ले लागी रे; अंति: आवगमण निवारी रे, गाथा-४. ६. पे. नाम. वर्द्धमानजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण महावीरजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: रसमे रसमे रसमे जिणंद; अंति: केलाण के जसमे जिण, गाथा-३. ७. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: बलीहारी रे जाउ वारी; अंति: तारीया नरने नारी, गाथा-३. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चाल चाल चाल रे कुअर; अंति: प्रभु तुझने नमेरे, गाथा-३. ९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: आई मुरत मेरो मनहर; अंति: सुरत सिवसुख लीनो, गाथा-३. ३८६४७. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८०, पौष शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खंभाइत, प्र.वि. प्रत लेखन वर्ष २०वीं सदी प्रतीत होती है. प्रतिलेखक का नाम अस्पष्ट है., जैदे., (२०.५४१०.५, १०४२७). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीरजी जोयानो; अंति: केरी बलिहारी रे, गाथा-४. ३८६४८. सूत्रपाठ व अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, ९४३१). १. पे. नाम. चौवीसदंडक २५ द्वार विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., आदि: सरीरोगाहणा संघयण; अंति: चवणगइ रागइ चेव, गाथा-२. २.पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रमवा नीसरो; अंति: समयसुंदर० कोर जोड, गाथा-९. ३८६४९. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२१४१२, ९४२३). पार्श्वजिन स्तुति, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिपास जिनवर सकल; अंति: कहई लक्ष्मीकल्लोल, गाथा-४. ३८६५०. विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२०.५४९.५, १२४३८). १.पे. नाम. त्रिकालदेववांदिवा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. त्रिकाल देववंदन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: चैत्यवंदन कीजइ; अंति: करइ नमोत्थुणं, गाथा-४. २. पे. नाम. पडिलेहण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संध्यापोरसी विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलु इरियावही; अंति: ते लुगडां पडिलेहइ. ३. पे. नाम. संथारापोडसि विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. संथारापोरसी विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पहिलु संथाड करावीइ; अंति: इय सम्मत्तं मए गहियं, गाथा-११. ४. पे. नाम. पानी उपयोग की विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमइ पढइ; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३८६५१. रोहिणी तपविधि, संपूर्ण, वि. १८९१, चैत्र शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ३, अन्य. श्रावि. कुसालबाई; मु. तेजरूच, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १०४२६). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत शामणिए मुज; अंति: (-), (अपूर्ण, __पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ की गाथा १२ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८६५२. स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१२, १३४४९). १.पे. नाम. गाथा संग्रह सह अनुवाद, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: सत्तइ रत्ता मत्तइ; अंति: वणे हण फिटेजन्म मरणे. गाथा संग्रह-अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: अस्यार्थ लभ्यख; अंति: मध्ये कुसल्प धाहमा. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: परमेसर सिरिपासनाह; अंति: सिधिमहवंछियपूरण, गाथा-२. ३. पे. नाम. गणधर संख्या स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती आपइ सरस वचन; अंति: वृद्धिविजय गुणगाय, गाथा-९. ३८६५३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. साणंदनगर, प्रले. मु. धर्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विरप्रभु प्रासादात्, जैदे., (२३४१२.५, १३४३४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लीधरे, गाथा-९. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१ ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी, अंति: मुज हो अविचल सुखवास, गाथा- ६. ३८६५४. नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, वे. (२३.५४१२, ११४३०). नवपद स्तवन, मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९५८, आदि: नरनारी रे भमतां भव; अंति: कार्य आ पूरण करिई, गाथा-७. ३८६५५. सामायक लेवा-पारवानी विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२०x११, १०x२२-२४). "" " सामायिक लेवा-पारवानीविधि, मा.गु., प+ग., आदि: पेला नवकारि गिण; अंति: पछे १ नवकार गुणणो. ३८६५६. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १८३९, फाल्गुन शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२०.५X११, १०x२३). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि वंछित पूरे विवधवर अंतिः ऋधी वंछित Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फल लेह, गाथा - १८. ३८६५८. () अष्टादश नातरा सज्झाच, संपूर्ण, वि. १८८५ वैशाख कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १ ले स्थल. भांवरी, प्रले. मु. खुनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैये. (२४४१२, १९-२२४३९) १८ नातरा सज्झाय, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहलीने समरुं रे पास; अंति: नयविजय गुण गाय रे, ढाल - ३. ३८६६० (+) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैवे (२४४१२, १४४४२). १. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. मु. जेठमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि: कहें वभीषण सुण भाई, अंतिः तमे साभलज्यो नरनारी, गाथा १७. २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. अखेमल, पुहिं., पद्य, आदि: खबर नहीं है जग में; अंतिः न मानी विनती अखमल की, ३८६६१. कुंथुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२४४१२, १२x२६). "" गाथा - ११. कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जिनजी मोरा रे रात; अंतिः पद्मने मंगलमालो लाल, गाथा ६. ३८६६२. पापस्थानक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १८८२, पौष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, ले, स्थल, राजकोट, प्रले. पं. खुस्यालरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३१२, ११x२७). १. पे. नाम. बीजु पापस्थानक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मृषावादपापस्थानक सज्झाय, हिस्सा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बीजुं पापनुं स्थान, अंति: कें सुजस ते सुखकरेजी, गाथा-६. २. पे. नाम. त्रीजी पापस्थानक सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. अदत्तादान पापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चोरी व्यसन निवारीये; अंतिः पुण्यथी प्रेम के, गाथा - ६. ४३३ ३८६६४. बाईस अभक्ष बत्तीस अनंतकाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४ ११.५, १३X२७). ३८६६५. नवपद स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२३.५४११.५, १०x२३). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. देवरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनसासन रे सूधी सद्द, अंति: राणी ते विध सुख लहै, गाथा - १०. ३८६६७. धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २१.५X११, १९२१). धर्मजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेसरने ध्याऊं; अंति: पद आप्यो हो जी, गाथा - ९. ३८६६८. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२१.५४१०, १९x१५-२१). "" नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८ आदि सहु नरनारी मिल आवो अंतिः गाया विनीतसागर मुदा, गाथा- ७. सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद माय प्रणमी; अंति: नमी तुझ लली लली जी, For Private and Personal Use Only गाथा - ९. ३८६६९. (०) कुगुरुपच्चीसी, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५४१२, १३४३३). " Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर प्रणमी सदा; अंति: तेजपाल भणे सुखदाय, गाथा-२५. ३८६७०. अष्टक स्तोत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, पठ. ग. कनकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७२५) जहां लग मेरु अडग है, जैदे., (२३४१२.५, ११-१२४२६). १. पे. नाम. गौतमस्वामी अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्व स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: पार्श्वनाथ सह शालो, गाथा-१६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास शंखेश्वरा सार; अंति: उदयरतन० ए पूजो पास, गाथा-५. ४. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गौतम नाम प्रभात जपो; अंति: लब्धिनि० फतेरी फतेरी, गाथा-१. ३८६७१. (+#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. नायकविजय गणि; पठ. श्राव. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१२, १०-१२४२४-२६). १.पे. नाम. सातफणो पारसजी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. मेरो, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिण विनमुं; अंति: आवागमण निवार कै, गाथा-१८. २.पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, प्रले. पं. नायकविजय; पठ. श्राव. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अणसमजुजी सीखामण दीजे; अंति: रूपचंद गुण गावे छे, गाथा-७. ३८६७३. (+) औपदेशिक सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४११, १६४३४). १.पे. नाम. सियल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सीयलपालन सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: बीषीया वीसकी वेली; अंति: पामो सिद्ध हवेली, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ऋ. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: हे कोइ जुगमे सुरारे; अंति: रतन० हेतइ प्यारे रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. मानवभव सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मानव को भव पायके मत; अंति: रतनचंद० मन आसारे, गाथा-७. ४. पे. नाम. आदिजिन पालन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन पालना, मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: मा मोरादेवीजी गावेर; अंति: कीम जाये करीयो, गाथा-७. ५.पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८६७५. (+) पर्युषण स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१२, १२४३०). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पयुषण पुन्ये; अंति: सुजस महोदय कीजे, गाथा-४. ३८६७६. साधुप्रतिक्रमण सूत्र., अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२२४११, १४४४०). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (१)चत्तारि मंगल अरिहंत, (२)इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: (-). ३८६८०. स्तवन संग्रह व औषध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२२.५४१२.५, ३०४२२). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवस्ये; अंति: त्यारे निरमल थासु, गाथा-८. २.पे. नाम. संभव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. सौभाग्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जिनवर विनती; अंति: सोभाग्य० लीजे रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८६८१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मेडता, प्रले. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१२, २२४३६). १.पे. नाम. नेमराजिमती स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, उपा. अमरसी, मा.गु., पद्य, आदि: पंथीडा हरकर कहै रे; अंति: अमरसी कहे०कर नीत उठे, गाथा-१०. २. पे. नाम. नेमराजुल सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: नेमजी जावो तो थाने; अंति: पहुता मुगत मझार जी, गाथा-६. ३८६८२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१२, १९४२९-३१). १.पे. नाम. ग्यान स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञान सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन वचन विचारीये; अंति: मेघ० जयो ग्यान उजास, गाथा-१२. २. पे. नाम. पडिकमणा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणो भावसु दोय; अंति: मुगतनो ध्यान लालरे, गाथा-६. ३८६८३. मुनिसुव्रत स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. शिवरत्न (गुरु पं. प्रतापरत्न, तपागच्छ); अन्य. मु.खुसालरत्न (गुरु मु. शिवरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१०.५, २५४१५). मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: वरसे वरसे वचन सुधा; अंति: हंस०सीच्यो समकीत छोड, गाथा-९. ३८६८४. चऊदगुणठाणा गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५४११.५, १२४३५). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पय नमी; अंति: करमसागर०मनि जिनवर आण, गाथा-१७. ३८६८५. स्तुति व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२.५४११.५, ११४२५). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सवि मली करी आवो; अंति: ध्यानथी नित्य भद्दा, गाथा-४. २.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __शीलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: तेतरीया भाई ते; अंति: जे धर्मे दृढ रेवेरे, गाथा-५. ३८६८६. नेमराजुल लेख, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. उगणज, दे., (२२४११.५, १४४३०). नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सवंत श्रीरैवतगीरे; अंति: रूपविजे गुण गाय, गाथा-१८. ३८६८७. पूजा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२३४११.५, २७-२९४४७-५६). १.पे. नाम. स्नात्रपूजा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा विधिसहित, पंन्या. रूपविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदिः (१)मुक्तालंकार विकारसार, (२)अवणिय कुसुमहरणं पयइ; अंति: संपदा निज पामे तेह. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१३, आदि: श्रुतधर जस समरें सदा; अंति: उत्तम पदवी पावोरे, ढाल-८, गाथा-३७. ३८६८८. रिषभ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२०.५४९.५, ९-११४३३). For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir M ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन-शत्रुजय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इंणि डुगरीयै मनमोही; अंति: सिध० सफल जात्रा हो, गाथा-१३. ३८६८९. गणधर तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२०४९.५, १४४३८). ११ गणधर स्तवन, पुहिं., पद्य, वि. १८९२, आदि: श्रीअरिहंत सिध आचारज; अंति: तिथ चोदस रविवारोजी, गाथा-१३. ३८६९०. सोलसती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२१४९.५, ९४२९). १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीबिर तणा तिरकाल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ३८६९१. (-) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३४११, १३४२८-३०). सीमंधरजिन स्तवन, मु. दोलतराम, मागु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीमींदरजीण जीन परण; अंति: दोलत० श्रीमंदरजीणराई, गाथा-८. ३८६९२. (#) नवतत्वगर्भित स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १०x२४). आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिवा जिवा पुनं पावा; अंति: धर्म कर्णि आच|जि, गाथा-४. ३८६९३. अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४११, ११४२६-३०). अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिकराय रयवाडी चढ; अंति: वंदेरे बेकर जोड, गाथा-९. ३८६९४. सिद्धगिरी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४९.५, १०४३०). __ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १९३२, आदि: छबीला सिद्धाचल उजवाल; अंति: शांतिरतन चिंत, गाथा-१३. ३८६९५. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. नरभेराम अमुलख भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१२.५, १४४३५). सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर सेवा; अंति: निज आतम हित साधे, गाथा-१३. ३८६९७. नवरस, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. गोधरा, प्रले. मु. शांतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४४९). स्थूलिभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: करी श्रृंगार कोश्या; अंति: कहि० हुंजाउ बलिहारी, ढाल-९. ३८७००. (-) निर्मोहीराजा कथा, औपदेशिक पद व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३४११, १५-१८४४८). १. पे. नाम. निर्मोहीराजा कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. निर्मोहीराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सक्रअंद्र प्ररसंस्या; अंति: सांभलेगाव श्रावकदास, गाथा-२९. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: विषिया लालच रस तणो; अंति: भूलइ महा अथिर संसार, गाथा-१४. ३. पे. नाम. जीवस्वरूप गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८७०४. लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. श्राव. तनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११.५, १०x१८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-१९. ३८७०७. विपाकसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४४१३, २०४४२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: यमढे पण्णत्ते सेयं, प्रतिपूर्ण. ३८७०८. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, जैदे., (२१.५४१३, १४४२८). For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ___४३७ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३८७०९. (+) विविधगाथा संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१४१२.५, ६४१८-२५). १. पे. नाम. दसआशातना सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनभवन १० आशातना, प्रा., पद्य, आदि: तंबोल पाण भोयण वाहण; अंति: अंबजे जिणनाह जगइए, गाथा-१. जिनभवन १० आशातना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पान सोपारि सुठ अजमो; अंति: मुलगंभारानी सर्वथा. २.पे. नाम. जिनमातापितागति गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषये, प्रा., पद्य, आदि: उसभपिय नागेसुसेसाणं; अंति: पुणवत्त अच्चुऐवावि, गाथा-३. सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषये-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभदेवना पीता भवनपति; अंति: अच्युतदेवलोके पहुंता. ३. पे. नाम. बारेकुलरो विचारगाथा-आचारांगसूत्रे सह टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र-के द्वितीय श्रुतस्कंध का हिस्सा अध्ययन१ उद्देश२१२कुल विचारसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: से भिक्खू वार जाव पव; अंति: सुयं जाव परिगाहेज्जा. आचारांगसूत्र-के द्वितीय श्रुतस्कंध का हिस्सा अध्ययन उद्देश२१२कुल विचारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते साधसाधवी ग्रस्थना; अंति: वास्ते साधु पेसै. ४. पे. नाम. देशविरति श्रावक सूत्र सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. देशविरति श्रावक सूत्र, प्रा., पद्य, आदि: अह हुज्जदेसविरओ संपत; अंति: तित्थतित्थयरपुअसु, गाथा-३. देशविरति श्रावक सूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ क हिवे हुज क०; अंति: पुजाअर्थे द्रव्यखरचे. ५. पे. नाम. १० श्रावक नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन १० श्रावक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आणंद१ कामदेवर गाथापत; अंति: लयणीपिता१०. ३८७१०. अविरल स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२०.५४१२.५, १३४३०). साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कुवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ३८७११. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, २३४१८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सुअदेवया भगवई नाणा; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि. ३८७१२. (#) पार्श्वजिन स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१२, १२४३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु; अंति: पार्श्वजिनं शिवम्, श्लोक-७. २. पे. नाम. १८ अक्षरी नमिऊणबीज मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमिऊण पास विसहर; अंति: जानाति गुरूपदेशात्. ३८७१३. श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१६.५४१२.५, १०x२०-२२). १. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: नाभेयादि जिनाः; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. २. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-५. ३८७१४. (#) अठ्ठावीस लब्धीनाम सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२४१२, ६४२१). For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३८ www.kobatirth.org ३८७१५. नमीपव्वज्झा अज्झयण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३.५X१२, १५X३४). २८ लब्धि विचार, प्रा., पद्य, आदि : आमोसहि विप्पोसहि, अंति: एमाई हुंति लद्धिउ, गाथा-४. २८ लब्धि विचार - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० हस्तादिकनड फरस ते अंतिः (-) (वि. अंतिम पद का टवार्थ नहीं लिखा है.) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची . उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ९ हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चऊण देवलोगाओ उवयन्न, अंति: नमीरायरिसित्ति बेमि, गाथा- ६२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८७१६. छावा प्रमाण, असझाय विचार व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. मु. सबजी ऋषि, पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३)x१०.५, १२x१४-२९). १. पे. नाम. छाया प्रमाण, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जेठ मासि पग २ आं० १०; अंति: माह मा० प० ५. २. पे. नाम. असज्झाय विचार, पू. १आ, संपूर्ण. मा.गु. गद्य, आदि उलकापाद पोहर दिसदाह, अंतिः धोडतो सूर्यउदइ सूझइ. ३. पे. नाम. बोल संग्रह - स्थानांगसूत्रे, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र - बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८७१०. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. दे. (२१.५x१२, ११४२७). " पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु अंतिः पार्श्वजिनं स्तुव, श्लोक ७. ३८७१८. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १९२१, चैत्र शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हीरा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., प्रत्यंगिरा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि ही " १० तक लिखा है.) ३. पे. नाम. सच्चादेवी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. (२१x१२, १३४३८). १. पे नाम. दिवाळीनं स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा डाल, हिस्सा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सखी आज अमारे दीवाली, अंति श्रीशुभवीर वचन रसालि, गाथा- ९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: लोक रीत गुण करे गुणक; अंति: कहे तेजसिंघजी गणधारी, गाथा-७. ३८७२४. (+) स्तोत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन शुरू, १३, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ४, प्रले. पं. मोहन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जै. (२३४१२, २८x४५-४८). "3 १. पे. नाम. षोडशविद्यादेवी स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. १६ विद्यादेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: मंत्राधिराजवलये विमल अंतिः ममूखिदशांगना हि श्लोक-१९. २. पे. नाम. प्रत्यंगिराया महास्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ही अंतिः परिजन लोक प्रणमति श्लोक-१३ (वि. प्रतिलेखक ने श्लोकांक सच्चीचादेवी स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: गिरिकूडतडनिवड्डा ऊएस, अंति: सच्चादेवी भव हरओ, गाथा- १२. ४. पे. नाम. वैरोट्या स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वैरोट्यादेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनेंद, अति: पुरुषोत्तममागलक्ष्मी, श्लोक-१६. ३८७२७. (४) कडखा व नेमिजिन धमाल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२१x११, १७४२५). १. पे. नाम औपदेशिक कडखा. पृ. १अ. संपूर्ण. पुरीलाल रजपूत, मा.गु., पद्य, आदि: सोई नर सुर जन सुभट; अंति: पुरीलाल रजपूत० नरसूर, गाथा- ७. २. पे. नाम. नेमिजिन धमाल, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. तुलसी, मा.गु., पद्य, आदि जिणवर चरण प्रथम नमि, अंति: तुलसी० धार जिनवर, गाथा- १४. For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४३९ ३८७२८. शनीसर छंद, संपूर्ण, वि. १८८४, चैत्र शुक्ल, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पेढामली, पठ. मु. लक्ष्मीविजय; प्रले. हरीरामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२, १४-१७४३५-४०). शनिश्चर छंद, मु. देवरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: शुभमतिदा गुरु शारदा; अंति: काम सुख श्रेयस्कर, गाथा-२२. ३८७३०. वंदित्तुसूत्र व वैराग्य लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२६४१३, १३४३०-३१). १. पे. नाम. श्रावक प्रतिक्रमण वंदितुसूत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. २. पे. नाम. वैराग्य लावणी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक लावणी, मु. अखपत, पुहिं., पद्य, आदि: खबर नहीं है जग में; अंति: जिनकुं विनती खपत की, गाथा-९. ३८७३१. लक्षनमस्कार गुणानी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१९.५४१२.५, १२४२५-२८). लक्षनमस्कार गुणनविधि, सं., गद्य, आदि: संप्रति मूलनायकस्य; अंति: संघदृश्चापि वर्जनीय:. ३८७३२. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२०४१२.५, ११४२७-२९). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: पूज्यतमा मम मंगलं, श्लोक-९. २. पे. नाम. आदिनाथ स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयतीर्थ, सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: नाभिजन्मा जिनेंद्रः, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. वीतरागाष्टक, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्ध; अंति: मान् हृदाभ्युद्यतम्, श्लोक-९. ३८७३४. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२१.५४१३, १३४३०). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमुक्कारसहिअं; अंति: वत्तियागारेण वोसिरइ. ३८७३५. (#) श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. कुस्याल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १७४२८-३५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: आवस्सही इच्छाकारेणं; अंति: परूपणा पुरसणा करै. ३८७३६. (+) पौषदशमी पर्व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पतन, प्रले.पं. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३.५४१२.५, १५४३४-३८). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति: कनकाचार्य रचनीयं. ३८७३७. आवश्यकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५४११.५, २२४४९-६१). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहताणं० सव्व; अंति: गारेणं वोसिरामि, अध्ययन-६, सूत्र-१०५. ३८७३८. सुखविपाक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२४.५४१२, २०४४४). सुखविपाक-द्वितीय श्रुतस्कंध विपाकसूत्रगत, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: वि सेसं जहा आयारस्स, अध्याय-१०. ३८७४४. पार्श्वजिन छंद व धर्मश्लोक, संपूर्ण, वि. १८१२, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. माणसा, जैदे., (२३.५४१०.५, १६x४५). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जीत कहे हरखे सदा, गाथा-२१. २. पे. नाम. जैनधर्म प्रभाविक श्लोक सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्मप्रभावक श्लोक, सं., पद्य, आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंति: धर्म एव विधीयताम, श्लोक-१. धर्मप्रभावक श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भव्य जीवो इणि; अंति: सकल कल्याण संपजे. ३८७५१. (-) चैत्यवंदन, स्तुति व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १०, पठ. श्रावि. पार्वतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४१२.५, १४४३१-३४). For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४० www.kobatirth.org १. पे. नाम. आदिनाथ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि जय जय जगदानंदन जय, अंतिः भगवते ऋषभाय नमोनमः, श्लोक ५. २. पे नाम, शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः किं कल्पद्रुमसेवया अंतिः सेव्यतां शांतिरेष स श्लोक ५. ३. पे नाम, नेमिजिन स्तोत्र, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि परमान्नं क्षुधार्तन, अंतिः कथं धन्यतमो न गव्यः श्लोक ५. ४. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: वासुराः पुण्यभासुराः, श्लोक ५. ५. पे नाम वीरजिन स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, आदि कनकाचलमिव धीरं अंतिः यथा नित्य सुखि भवामि श्लोक-६. ६. पे नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरि मे वांछितं नाथ, श्लोक ५ ७. पे. नाम. चोवीसजिन स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव - चतुः षष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदिः आदौ नेमिजिनं नौमि अंति मोक्षलक्ष्मी निवासम, श्लोक ८. ८. पे. नाम. वीशविहरमान चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण विहरमान २० जिन स्तव, सं., पद्य, आदिः ॐ द्वीपेत्र सीमंधर; अंतिः वाणीं नमामि भक्त्या, श्लोक - ५. ९. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ चैत्ववंदन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण प्रले. गिरधरलाल, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन चैत्यवंदन- शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रुपविजय, मा.गु, पद्य, वि. १९वी आदि: सकल भविजन चमत्कारी, अंतिः रूप कहे० बुद्धिलाभदं गाथा- ९. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीयामतंजिन सदा; अंतिः शुद्धबोलबुद्धि लाभदं श्लोक-३. ३८७५२. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२३.५x१२.५, १२४३२). सरस्वतीदेवी के १६ नाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदा देवी अंति: मुखकमल तांबूलरचितां लोक- ९. ३८७५३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. गोघाबिंदर, पठ. श्रावि. दीवालीबाई जीवा संघवी, प्रले. गोपाल वेली दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२, ११X३८-४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची יי 1 १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पू. १अ ३अ, संपूर्ण पे. वि. परि. लो. ५१, अक्षर. १६३८. कुल. १६३८ सीमंधरजिनवीनती स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसती भगवती, अंति: पुरव पुन्यह १४x२९-३७). १. पे. नाम. पासठीया यंत्रनो छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पायो रे, ढाल-७, गाथा - ३८. २. पे. नाम. पुंडरिकगिरि नमस्कार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे. वि. परि. श्लो. १०, अक्षर ३४०. कुल ग्रं. ३४० सिद्धाचल चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला; अंति: तत्परपदमविजयसुहितकरं, श्लोक-७ ३८७५४. (+) बीसस्थानगाधा पांखडी संपूर्ण वि. १९बी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४१२.५, १३३०-३४). 3 २० स्थानकगाथा पांखडी, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: लही परम महोदय ठाण, गाथा-२१. ३८७५५. ऋषभदेव स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८९७ आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. रामचंद, प्रले. मु उत्तमविजय-शिष्य (गुरु ग. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५x१२, १०x२९). आदिजिन स्तोत्र. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुद्वीप मझार दिखणा, अंति: भेट गावइ हरख भरि रे, गाथा- १०. ३८७५६. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुलपे ३, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैवे. (२६४१२, For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४४१ २४ जिन स्तवन-पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीश्वर संभव; अंति: जिनवर मुझ करो कल्याण, गाथा-७. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिनाथ शरणागत; अंति: मारा कीधा करम खपावोउ, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वैरागी रंगीले नेमजी; अंति: कीरतविमल० नी आस रे. ३८७५७. स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, जैदे., (१६.५४१२.५, १७४१३). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: क्षमाविजय०आगम रीत रे, गाथा-६, (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: पासजी तोरा पाय पलक; अंति: जोता वाध्यो छै प्रेम, गाथा-१०. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, पुहि., पद्य, आदि: जब लगे विषय घटा न घट; अंति: लब्धिवि० वेली कटी जब, गाथा-५. ३८७५८. (+#) संथारापोरसी विधि व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२३४१२, १५४३४-३८). १. पे. नाम. संथारा पोरसी विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खमासण देइ१ इच्छाकारे; अंति: जे पछे निसहि३ कहि जे. २. पे. नाम. पोसानी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सगुरूवएसेण, गाथा-५. ३८७५९. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. जेठी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १०४२४-३६). साधारणजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तोरी वाणी सुणी; अंति: मुज तुज ध्यानमां, गाथा-८. ३८७६०. स्तुति, स्तोत्र व मंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ३, ले.स्थल. राधणपूर, जैदे., (१७४१३, १६४१३). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति स्नातस्या स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४, (पू.वि. मात्र अन्तिम श्लोक २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. २अ-५अ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. ३. पे. नाम. पंचांगुलि मंत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ नमो पंचागुली; अंति: फ्रीं वः वः स्वाहा. ३८७६१. स्तोत्र व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, १९४५९). १. पे. नाम. चतुःषष्टियोगिनी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ६४ योगिनी स्तोत्र, मु. धर्मनंदन, प्रा., पद्य, आदि: जगमज्झिवासिणीण; अंति: उवयारकर जयउ लोए, गाथा-१५. २. पे. नाम. कलिकुंड स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, प्रा., पद्य, आदि: कलिकुंड सुद्धमंत; अंति: अमरवहुं सिद्धिसंगंच, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४२ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. ६४ योगिनीयंत्र व धरणेंद्रपद्मावती यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह *, मा.गु., यं., आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ३८७६२. सज्झाय व दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X१२.५, १३X३८). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. भीम, मा.गु, पद्य, आदि: कुंभ काचो रे काया, अंति: भीम भणे० निरवाण, गाथा-२१. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. 1 सुभाषित लोक संग्रह में पुहिं प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि को सुख को दुख देत है, अंतिः धजा पवन के जोर, गाथा- १. ३८७६३. (+) प्रतिक्रमण विधि व संधारा पट्टी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२६X१२.५, ३७X१००). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणविधि संग्रह, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पहिली तो आवसही इछाका; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. २. पे नाम, संधारा पट्टी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्रा., मा.गु., प+ग, आदि (-); अंति: (-), संपूर्ण. ३८७६४. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७१२.५, ११x४८). १. पे. नाम चतुर्दशी वीरजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम् श्लोक-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३८७६६. सिद्धाचलजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३९, वैशाख कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. नागोर, प्रले. मु. जसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (८७७) पोथी प्यारी प्राणथी, (८७८) सजन गया गुण रहा, दे., ( २४.५x१२.५, ११x२३). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल भेटता; अंति: पुन्यविजयने तार, गाथा- ७. ३८७६७. सुविधिजिन स्तवन व माणिभद्रजीरो छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५x१२, ११x२८). १. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि सुविधि जिणंदकु, अंति: लाल जैनंद्र वदते नैव, गाथा- ६. २. पे. नाम. माणिभद्रजीरो छंद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. माणिभद्रवीर छंद, मु.शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमाणिभद्र सदा अंतिः (-). (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ३८७६८. समकित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६१२, ९x४१). सम्यक्त्व सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु, पद्य, आदि जिनवाणी पन वुढडो अंतिः तिलकविजय भणे एम रे, गाथा-७. ३८७७० (+) होलीरज पर्वकथा व पोषदशमी कथा अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १३-९ (१ से ९०४, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६१२.५, १५X४२). १. पे. नाम. होलीरजपर्व कथा, पृ. १०अ १०आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विज्ञानं वाचनोचितः, श्लोक ५१, (पू.वि. श्लोक ३१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पोषदशमी कल्याणकविषये सुरंदरश्रेष्टि चरित्रकथा, पृ. १० आ-१३अ. संपूर्ण, पोषदशमी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति: असत्यं ब्रुवेमि. ३८७७१. (+) चतुर्मासी व्याख्यान व जैन धार्मिकश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८-१७ (१ से १७) = १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६११, १६x४९-६३). For Private and Personal Use Only १. पे नाम, चतुर्मासी व्याख्यान, पृ. १८ अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु, गद्य, आदि: (-) अंति मिछाम दुकडं देवो, (पू. वि. अतिचार वर्णन अपूर्ण से है.) Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १८आ, संपूर्ण, पे.वि. तीर्थंकरऋद्धिवर्णन, ८ प्रातिहार्य, ४ रत्न, जैनधर्म लक्षण आदि श्लोक संग्रह. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: तित्थयरा गणहारी सुर; अंति: इलका भमरी भवेत्, श्लोक-६. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८७७२. बिंबप्रवेश विधि व पूंखणा विगत, संपूर्ण, वि. १८६९, पौष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वीकानेरनयर, प्रले. पंन्या. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअजितनाथप्रसाद चतुर्मासक., जैदे., (२६४१२.५, १५-१७४३२-३६). १.पे. नाम, लघुबिंबप्रवेश प्रतिष्टा विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. बिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पहिला मुहूर्त भलु; अंति: सघला दिक्पाल संतोषीइ. २. पे. नाम. पूंखणानी विगत, पृ. २आ, संपूर्ण. पूंखणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पवित्र स्त्री नाही; अंति: पग पेहलुं माहे मुके. ३८७७३. नाकोडा पार्श्वजिन स्तोत्र, सूतक विचार व ऋतुमतीदोष लक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२.५, १२४२८). १. पे. नाम. नाकोडा पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपणे घेर बेठा लील; अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. २.पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सूतकं वृद्धिहानिभ्या; अंति: क्षीरं प्रवर्त्तते, श्लोक-६. ३. पे. नाम. आचारांगे सूतिकाध्ययन ऋतुमतिदोष लक्षण-आचारांगसूत्र सूतिकाध्ययनोद्धृत, पृ. १आ, संपूर्ण. ऋतुमतिदोष लक्षण-आचारांगसूत्र सूतिकाध्ययनोद्धृत, प्रा., पद्य, आदि: नहि जिणभवणे गमणं घर; अंति: सिद्धांतविराहगो सोउ, गाथा-३. ३८७७४. धन्नाऋषि सज्झाय-काकंदी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १०४३४). धन्नाऋषि सज्झाय-काकंदी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: रेसरवारथसिद्ध लह्यो, गाथा-२०. ३८७७५. सतीसीता सज्झाय व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८५६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. रायपुर, प्रले. श्राव. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, ९४२२-३१). १.पे. नाम. सतीसीता सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती बलती घणु रे; अंति: नीत प्रणमीजे पायरे, गाथा-९. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)श्रीमित भोजनृपेंद्र, (२)रचति क्व रचति को देश; अंति: (१)त्वं गोरवर्णं कतोह, (२)स्वति महाप्रदसादेन, गाथा-२. ३८७७६. वृद्ध नवकार, संपूर्ण, वि. १९४०, माघ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. पना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८७९) लेखणे पूस्तका रामा, दे., (२५.५४१२, १२४३०). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कल्पतरु रे अयाण; अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-१३. ३८७७७. पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १५४३४). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीवर्धमान; अंति: जिनसौभाग्यसूरिजी ७५. ३८७७८. (-) गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४३). १.पे. नाम. शक्तिमाता गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४४ www.kobatirth.org ३८७७९ पौषीश जिन गीत, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५.५x१२.५. १८४३३). 1 "" ठाकुर, मा.गु., पद्य, आदि: सगतिमाता नित सेवतां; अंति: ठाकुर० दरसण दीजै, गाथा- ७. २. पे. नाम. त्रिपुरा गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. त्रिपुरामाता आरती, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदिः आरति टालो इश्वरी; अंति: भणे अमां तुम्ह आधार, गाथा-४. ३. पे. नाम. पांचांगुली गीत, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पंचांगुलीदेवी गीत, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदिः प्रह उठीने प्रणमीई, अंतिः प्रत ध्यान धरीजे, गाथा- ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन गीत, मा.गु., पद्य, आदि: पेला वांदु जी श्रीऋष; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नेमिजिन स्तवन तक लिखा है.) י कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८७८०. स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जैवे (२५X१२.५, १३४३७) "3 १. पे. नाम. दीवाली स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जय जिनवर जग हितकारी, अंति: कहे वीरवीजय हितकारी, गाथा- ७. २. पे नाम, पांचमी तिथि स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ३८७८१. वीरविलास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जै. (२५.५५१२.५, १२५३५). " भैरववीर विलास, मा.गु, पद्य, आदि: मुरड दयंता मारणो अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा- ५ तक लिखा है.) " ३८७८२. (४) शिवलवेल, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पु. १. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५.५४११.५, २४X७०-७२). स्थूलभद्रमुनि शीवलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य वि. १८६२, आदि: सवल सुहंकर पासजिन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ४ की गाथा ८ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८७८४. १) गीत संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४. कुल पे. २९. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२६४१२.५, १६४४५-४७). (-) " १. पे. नाम क्रोधनिवारण गीत, पृ. १अ संपूर्ण. औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जीवरा तु म करि किणसु; अंतिः करि धरे धरम संतोष, गाथा - ३. २. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: मुरख नर काहिकुं करत, अंति: धरि भगवंत को ध्यान, गाथा- ३. ३. पे नाम, माया गीत, पृ. ९अ संपूर्ण वैराग्य पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: इहु मेरा ४ जीवतुं; अंति: या जीतै तिणका उंचेरा, गाथा-३. ४. पे नाम. लोभ निवारण गीत, पृ. ९अ. संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं, पद्य, आदि: रामा रामा धन धन फिरत अंतिः समयसुंदर० एक मनं, गाथा- ३. " ५. पे. नाम. अतिलोभ निवारण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चेला चेला पद पद, अंति: अविचल एक मुगती संपदं, For Private and Personal Use Only गाथा - २. ६. पे. नाम. मनशुद्धि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. पेज १आ कोरा है. औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि पुहिं, पद्य, आदि एक मनसुद्धि विण कोउ, अंतिः ध्यान निरंजन ध्याइए. गाथा-३. ७. पे. नाम. जीव प्रतिबोध गीत, पृ. २अ, संपूर्ण, पे. वि. पेज १आ कोरा है. औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जागि जागि जंतुया, अंति: धरम तेही सुख होवई री, गाथा - २. Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८. पे. नाम. जीव प्रतिबोध गीत, पृ. २अ संपूर्ण. औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं, पद्य, आदि रे जीव वखत लिख्या सु; अंतिः कारण एक धरम सरदहियइ, गाथा- ३. ९. पे. नाम. स्वार्थ गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., रा., पद्य, आदि: स्वारथ की सब हे रे; अंति: साचा एक है धरम सखाई, गाथा- ३. १०. पे नाम. आरति निवारण गीत, पृ. २अ संपूर्ण, ४४५ साधारणजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे जिउ आरति कांइ, अंति: करि धर्म चित्त धेरै, गाथा-३. ११. पे. नाम. निंदा परिहार गीत. पृ. २अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झायनिंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि निंदा न कीजे जीवा अंति: देखी हरख मनि धरिज्यो, गाथा - ५. १२. पे. नाम. हुंकार परिहार गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. अहंकार परिहार गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जहां तहां गैर हुं हु; अंति: समयसुंदर० तजि अहंकारा, गाथा - २. १३. पे नाम. कामिनी विश्वास निराकरण गीत, पृ. २आ, संपूर्ण, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: कामिनी कहि कुण वेसा; अंति: ताके चरण कौ हुं दासा, गाथा- ३. १४. पे. नाम. जीव नटाश गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: देखि देखि जीव नचावै; अंति: आप वृथा करि भम्योरी, गाथा-३. १५. पे. नाम. जीव व्यापारी गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि आए तीन जणे व्यापारी, अंति: सब रहिज्यो हुसीयारी, गाथा - ३. १६. पे नाम. घडी लाखीणी गीत, पृ. २आ. संपूर्ण. औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: घडी लाखीणी जाय छे; अंतिः समय० जिन धरम आधारा, गाथा ५. १७. पे. नाम. उद्यम भाग्य गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत- उद्यम भाग्य, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि उद्यम भाग बिना न फले, अंतिः जिम मन अभिष्ट मिले, गाथा-३. १८. पे नाम, सर्व भेख मुगत गमन गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत- सर्वभेख मुगतगमन, उपा. समयसुंदर गणि, पुडिं, पद्य, आदि: हामाइ हर कोड भेख मुग, अंतिः मारग मोकुं समझावै, गाथा-३. १९. पे नाम. जीव दया गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि हा हो जीव दया धरम, अंति: मुगतना फल आप अमूल गाथा-३. २०. पे. नाम. मरण भय निवारण गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. मरणभय निवारण गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः मरण तणो डर म करी मूर; अंति: परभव सुखियो धाय रे, गाथा २. २१. पे. नाम. संदेह गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: करम अचेतन किम हुवै, अंतिः भगवंत कहे ते साचुरे, गाथा- ३. For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२. पे नाम, भणन प्रेरण गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण, औपदेशिक गीत-भणनप्रेरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि: भणोरे भला भाई भगो अंतिः इह लोक परलोक सुहामणौ, गाथा-५. २३. पे. नाम. क्रिया पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद - क्रीया, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: क्रिया करो चेला; अंति: मुगत तणो मारग पाधरो, गाथा- ८. २४. पे. नाम. पारकी होड निवारण गीत. पू. ३आ, संपूर्ण औपदेशिक पद - पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड मत कर रे; अंति: द्रव्य कोटाकोटी, गाथा- ३. २५. पे नाम, परमेश्वररूप दुर्लभता गीत पृ. ३आ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, पुष्टिं पद्य, आदि: कुण परमेसर सरूप की अंतिः ध्यान की जोतिरहेजी, गाथा-३. "" २६. पे. नाम. जीव कर्म संबंध गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि जीवने करम मांहो मांह, अंतिः सिद्धरूप सरदा हीरे, गाथा २. २७. पे, नाम, परमेश्वर लय गीत, प्र. ४अ संपूर्ण. अरिहंत पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: हां हो एक तिल दिल मे; अंति: हरइ एक अरिहंत तूं हि गाथा - ३. २८. पे. नाम. निरंज ध्यान गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण. निरंजध्यान गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुडिं, पद्य, आदि हा हमारे परब्रह्म ज् अंतिः तिल भीमानं समयसुंह, गाथा-२. २९. पे. नाम. दुषमाकाल संयमपालन गीत पृ. ४अ संपूर्ण. 19 औपदेशिक गीत - दुषमकाल संयमपालन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हा हो कहो संयम पंथ, अंतिः करौ रागनै देख टाल, गाथा-२. ३८७८५. चौवीश जिन पंचकल्याणक विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२४.५x११, ११-१३४२९). २४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कार्त्तिक वदि ५; अंति: ४ मोक्षपारंगताय नमः. ३८७८६. चौडालिया, सज्झाव व पद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ३, कुल पे. ३. वे. (२५४११.५, १६x४६-५१). १. पे नाम. जिनरक्षित जिनपाल चौडालियो, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. निपाल जनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत चौवीसी आगे हुई; अंति: महाविदेह जासी मोख, ढाल-४, गाथा - ६८. २. पे नाम इक्षुराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण कमलावतीरानी इक्षुकारराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: महिला में बैठी राणी अंतिः सुख पाम्यो सगला सार, गाथा-३४. ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, हिं., पद्य, आदि: मेरो एक संदेशो कहीयौ, अंति: आरति चिंता दहीयो, गाथा- ३. ३८७८७. गुरुगुण ढाल व जोडकी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २, ले. स्थल असारुआ दे. (२४४१२.५, १३४३७). १. पे. नाम. हेमराजजी स्वामी का गुणा की ढाल, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. हेमराजजी गुण स्तुति, मु. कर्णचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०६ आदि सिवसुखदाता स्वामीजी, अंति: गावीवा माहरा स्वामी, गाथा - १२. २. पे. नाम. करमचंदजी की जोडकी, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रभात, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी जीतनो दरसण; अंति: नहीं कीधी उपगारी, गाथा-७. ३८७८८. (+) असार संसार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (१९x१२, १२x२२-२४). औपदेशिक सज्झाय असार संसार, पं. सोमविजय, मा.गु, पद्य, आदिः आ संसार असार छेरे अंतिः जो तारे तो तार रे, गाथा- ८. For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१ ३८७८९. स्याद्वाद प्रश्नोत्तर व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५x१२, २१-२५X४०). १. पे. नाम जैन सिद्धांत प्रश्नोत्तरमाला प्र. १-३अ, संपूर्ण. स्यादवाद प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: मलिनाथजीने समवायंग, अंति: प्रश्न घणा छे. २. पे. नाम. विविधबोल संग्रह. पू. ३अ ४आ, संपूर्ण. बोल संग्रह . प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-): अंति: (-). *, ३८७९०. सवासो सीख, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५. ५x१२, ११३९). औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीसद्गुरु उपदेश अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १३ अपूर्ण तक लिखा है.) " ३८७९१. दादाजी बीनती व शनिसर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे. (२५४११.५. १४४४८). १. पे नाम, दादाजीरी विनती, पृ. १अ १आ, संपूर्ण जिनकुशलसूरि गीत, पा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बिलसर ऋद्धि समृद्धि; अंतिः साधुकिरति पाठक भाखै, गाथा - १५. २. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १२ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८७९२. आदिजिन आरती, संपूर्ण, वि. १९०५, आषाढ़ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( १७.५X१२.५, १५x१८-२०). आदिजिन आरती, मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: अपछरा करती आरति जिन; अंति: लेवा सीपुर राज, गाथा ६. ३८७९३. पडिकमणानी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (१४.५४९२.५, १७-२३५१८). , " प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. तेजसिंघ, मा.गु, पद्य, आदि: पंच प्रमाद तजी पडिकम, अंतिः संजसंग भवसायर तरसे, गाथा-८. ३८७९४. पार्श्वजिन निसाणी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १ जैदे (२४.५४१२, १२x२३). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन निसाणी घरघर, मु. जिनहर्ष, पुहिं, पद्म, आदिः सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अंति: (-), (अपूर्ण, " पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ६ तक लिखा है.) ३८७९५. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, जैदे., (२६X१२, १२X३३). १. पे. नाम रूकमणी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ४४७ रूकमणीसती सज्झाय, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दीपवि० मंगल पद पावै, गाथा-२२. (पू. वि. गाथा २० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कुतरी बलाडी संवाद, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कुतरी बिलाडी संवाद, मा.गु., पद्य, आदि: छेल छबीली कुतरी रे; अंति: एह वेरना विवाद रे, गाथा - ९. ३८७९६. असंज्ञिया समृत्थिम मनुष्य दंडक विचार, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२५x१२ १२ १९३२-४०). दंडक २६ बोलविचार यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर३ दारिकर तेजसर अंतिः यंत्रतो ज्ञेयम् ३८७९८. त्रियाचरित्र चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२३×१२.५, १४x२८). For Private and Personal Use Only खी चरित्र चौढालिया, आव, हीराचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: लख चोरासी मे भटकर, अंतिः सांभलज्यो नरनारी जी, ढाल ४. "" ३८७९९ पाक्षिक नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३, ले. स्थल. वीरमग्राम, जैवे. (२१४१२.५, १०x२१)सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंति: ताई सव्वाइं वंदामि श्लोक-३०. ३८८००. नेमनाथजी बारमासो, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) ३, जै, (२५x१२, १५४३४-५०). Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन बारमासो, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: रैन दिन जिन ध्यावही, गाथा- ६३, (पू. वि. गाथा १७ अपूर्ण से है) ३८८०१. कुगुरु पच्चीसी, अपूर्ण, वि. १९५९, कार्तिक शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-४ (१ से ४ ) = १, ले. स्थल. रतलाम, जैदे., (२४.५X१२, १०X२१-२३). कुगुरुपच्चीसी, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रत्नविजय इम बोले जी, गाथा - २५. ३८८०२. प्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१२ (१ से २, ५ से १४) = ३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१२.५, १०x२३-२५). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह " संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं. पण, आदि: (-); अंति: (-) 1 " ३८८०४. गौतम स्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२३.५४१२, १७४४०). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल, अंति: (-), (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण तक है.) ३८८०६. अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४४१२.५, १३X३०). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधोजी, गाथा - १०. " ३८८०७. आठ मदनी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. कुल ग्रं. १६, जै. (२४.५x११.५, १०x३१-३४). अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनि वारिये अंतिः अविचलपद नरनारी रे, गाथा - ११. ३८८०८. आदीश्वरनी वीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि); गुपि. मु. वेलजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५X१२, १५x२७). आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय जय पडम जिणेसर, अंति: लावण्यसमे इम भणइ, गाथा- ४५. ३८८०९. गुणठाणा द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., ( २४.५X१२.५, १४X३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि नामद्वार लक्षणद्वार, अंति: (-) (अपूर्ण, पृ. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वार २ तक लिखा है.) ३८८१०. पर्वपजुसणनी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४४१३, १३X२८). पर्युषण पर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी आदि पर्व पजुसण पुण्ये; अंतिः सुजस महोच्छव कीजें, गाथा-४. ३८८११. पजुसणनी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४१३, १३४१८-३१). पर्युषण पर्व स्तुति, पन्या, जिनविजय, मा.गु पद्य वि. १८वी, आदिः पुण्यनुं पोषण पापनुं अंतिः दिन दिन अधिक बधाईजी, गाथा ४. ३८८१७. नमिऊण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पु. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, जैवे. (२३.५X१३, १६x२६-२८). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण, अंति: (-), (पू.वि. गाथा २१ अपूर्ण तक है.) ३८८१९. - पौषध सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पु. १. प्र. वि. अशुद्ध पाठ, वे. (२४४१२, ९४१६ ४१) " पौषव्रत सज्झाय, मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य, आदि आगलें दाडें तेवड, अंति: कह्यु नवी करतीजी, गाथा-५. ३८८२०. आठ दृष्टि सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ८-४ (१,४ से ६) ०४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं, जैवे. (२४४१२.५, ९X२३-२६). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-): अंति (-) (पू. वि. सज्झाय १ गाथा ११. अपूर्ण से सज्झाय ४ गाथा ६ अपूर्ण एवं सज्झाय ८ गाथा ८ अपूर्ण से सज्झाय ८ गाथा ७ अपूर्ण तक है) ३८८२९. पृथ्वीकाय के २० भेद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२३.५X१२, ६x२०-३०). पृथ्वीकाय के २७ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: स्फटिकरत्न १ मणिरत्न; अंति: जाति २७ लूणनी जाति, ग्रं. २७. ३८८२२. (-) अष्टमि स्तवन, संपूर्ण वि. १९६८, आषाद अधिकमास कृष्ण, ५. शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, विजापुर, प्रले नारायण नत्थुजी बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. जैवे. (२४.५४१३ १३४३०-३२). " For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org ४४९ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुं सदा, अंति: संघने को कल्याण रे, ढाल - ४, गाथा - २४. ३८८२३. सम्यक्त्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२२.५X१२, २५x२८). महावीरजिन स्तवन- सम्यक्त्व, मा.गु. पद्म, आदिः समकित दायक वीरना पद अंतिः सहजानंद रे जिणेसर, दाल- ३, गाथा- ३५. ३८८२५. आषाढाभूतीनो पंचदाल, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, वे. (२३४१३ १३४१९-२६) 1 आषाढाभूतिमुनि सज्झाव, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि श्रीश्रुतदेवी हि अंति: हरषनो भावहरष गुण गाय, ढाल - ५, गाथा- ३७. ३८८२८. (+) अष्टप्रकारी पूजाविधि, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११-१० (१ से १०) १ प्रले. मु. वखतकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२३१२.५, ११x२५). ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: वीमल केवल भासन, अंति: भुयोपी भांततु भागवती, श्लोक १०, संपूर्ण. ३८८२९. (+) मेघरथराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९८२, आश्विन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. फलोधीनगर, प्रले. ऋ. लाभचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२३४१२.५, ८-१०X३१-३३). मेघरथराजा सज्झाय- पारेवडाविनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: दसमे भवे श्रीसांतीजी; अंतिः दयाथी सुख नीरवाण, गाथा-२१. "" ३८८३० (+) मोटा जोग विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१)-२, प्र. वि. संशोधित. वे. (२३४१२.५, १२४२३-२५). बृहद् योग विधि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., सज्झाय पट्ठावन अपूर्ण से कालमंडल विधि तक है.) ३८८३१. (+) सात समुद्धात विचार, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, दे. (२३४१३.५, "" १२x२२-२५). ७ समुद्वात विचार - भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: वेदनी १ कसाय २ मरणां; अंति: (-). ३८८३६. (+) तीस बोल, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४४१२, ९-१३x२०-३६). . " ३० बोल संग्रह, रा. गद्य, आदि: पेलाबोल १ तपस्या करी, अंतिः रवालाजीरी मातानी परे. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८८३७, (+) सत्तावीस बोल, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित दे. (२४४१२, १४४३२-३७). 3 " २७ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: मित्रथी कांइ पण अंतर, अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३८८३८. (+) मोहनीयकर्मनी अट्ठावीस प्रकृति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२३.५X१२, ८x२२-३१). मोहनीयकर्म की २८ उत्तरप्रकृति, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्व मोहनीय १; अंति: २७ नपुंसक वेदनो कषाय. ३८८३९. छत्तीस बोल, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२३.५x१२, ४४६ ३६ ). ३६ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एगे आया आत्मा; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल ७ तक है.) ३८८४०. पच्चीसस्थान व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, वे. (२४४१२.५, १३४३६-३९). १. पे. नाम. पच्चीस बोल, प्र. १अ. संपूर्ण. २५ अशुचि स्थान, मा.गु., गद्य, आदिः १ प्रासाद २ बिहार ३: अंति: निषद्यामठशुचिस्थानम्२. पे. नाम. पच्चीस क्रीचा, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. क्रिया के २५ भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: काययै किरिया कीजे ते; अंति: इरज्या पथिकी क्रिया. ३८८४२. () गीत व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२३.५४१२.५, १४४४१). " " १. पे नाम, गीत, पृ. १अ संपूर्ण. . औपदेशिक गीत, कबीर, मा.गु, पद्य, आदि धंधो करी धनमिलीठं, अंतिः कबीर कहि० वीसो गोलणी, गाथा- ६. २. पे. नाम. महावीर तप स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- तपवर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामन दोओ मत नरम; अंति: वादुरि वीरजी सूहामणा, गाथा - ९. For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८८४३. (+) छवीस ठाणा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२,११-१३४६-३०). १.पे. नाम. छवीस बोल, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. गौतमपृच्छा २६ बोल, रा., गद्य, आदि: कोहो पुजजी कोहो; अंति: तिण पापरै उदैसु, गाथा-२६. २. पे. नाम. श्रावकरी मरजादा के छवीस बोल, पृ. ३आ, संपूर्ण. २६ बोल श्रावक मर्यादा, प्रा., गद्य, आदि: उल्लणियाविहं १ दंतणव; अंति: तविहं २५ दच्छविह २६. ३८८४४. सत्तावीस ठाणा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-४०(१ से ४०)=१, कुल पे. २, दे., (२४४१२, ९४२९-३९). १.पे. नाम. साधु के २७ गुण, पृ. ४१अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २७ साधु गुण, मा.गु., गद्य, आदि: पांचमाहाव्रत पाले; अंति: आवे उपसर्ग सहे २७, संपूर्ण. २.पे. नाम. आकाश के २७ नाम-बोल, पृ. ४१अ, संपूर्ण. २७ आकाश नाम, प्रा., गद्य, आदि: आगासेति वा १ आगास छ; अंति: वा २६ अणंतेति वा २७. ३८८४५. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, चैत्र कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१३, २८x१९). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्षः; अंति: परमानंद संपदा, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोकांक नहीं लिखा हैं.) २.पे. नाम. घंटाकर्ण महावीर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ठठठ स्वाहा, श्लोक-४, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोकांक नहीं लिखा हैं.) ३८८४८. (+) तीस ठाणा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६-४४(१ से ४४)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, ७-१३४३२-३८). १.पे. नाम. महामोहणी कर्मबंध के तीस बोल, पृ. ४५अ-४५आ, संपूर्ण.. ३० बोल-महामोहणी कर्मबंध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रस जीवने पाणीमाहि; अंति: देवता आवेछे इम कहे. २. पे. नाम. दुष्टकाल के तीस लक्षण, पृ. ४५आ-४६अ, संपूर्ण. ३० बोल-दुषमकाल, मा.गु., गद्य, आदि: नगर ते गाम सरीखा गाम; अंति: हिंडुराजा अल्प होसी. ३. पे. नाम. साधु की तीस उपमा, पृ. ४६अ, संपूर्ण. ३० उपमा-साधु की, मागु., गद्य, आदि: कासी के भाजनकी १; अंति: २९ पारेवा की ३०. ३८८४९. (+) अठ्ठावीस ठाणा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३-४१(१ से ४१)=२, कुल पे. ४, दे., (२४४१२, १०-१३४३५-३८). १.पे. नाम. अट्ठाइस आचार कल्प, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण. २८ आचार कल्प, मा.गु., गद्य, आदि: आचारंग सूत्रना २५; अंति: जोइने चतुरइसु बोलवो. २.पे. नाम. अट्ठावीस वार फलावतां, पृ. ४२आ, संपूर्ण. २८ वार फलावतां, मा.गु., गद्य, आदि: पुबंगे १ पुबे २; अंति: गरससीप हेली अंगे. ३.पे. नाम. अट्ठावीस लब्धि नाम, पृ. ४२आ-४३अ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आमोसही विप्पोसही; अंति: पुलाकलब्धि २८. ४. पे. नाम. वीरनी अट्ठावीस उपमा, पृ. ४३अ, संपूर्ण. महावीरजिन २८ उपमा, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यानी उपमा १ अग्न; अंति: तिम भगवंत मोटा २८. ३८८५०. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ४, दे., (२४४१२.५, ११४३९-४८). १.पे. नाम. चोरासीगच्छ नाम, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ८३ नाडोल गच्छ ८४, (पू.वि. गच्छ के ४०वें नाम से है.) २.पे. नाम. बार मत नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. १२ मत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आमलीमत १ पासचमती २; अंति: अध्यात्ममती १२. For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. साढी बार न्यात नाम, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. साढी १२ न्यात नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ओसवाल १ महेसरी २; अंति: नागदडा १२ धाचितोडा. ४. पे. नाम. चौरासीगच्छ स्थापना विवरण, पृ. २-३ अ, संपूर्ण. ८४ गच्छस्थापना विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: सं. ९६४ चौरासी गच्छ; अंति: खरतर नीकल्या. ३८८५१. चोवीस तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३९, भाद्रपद शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२३.५X१२.५, १२x२६). २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु, पद्य वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमं अंतिः सीप आनंद, गाथा - २९. . वंदित्सूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसीद्धे; अंतिः वंदामि जिणे चोबीसं, गाथा - ५०. ३८८५३. मांडला पत्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२३४१०.५, ८x२७). पौषधमांडला, प्रा., गद्य, आदिः आगाढे आसन्ने उच्चारे; अंति: पासवणे अहीयासे. ३८८५४. (+) नंदिषेण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे., (२३.५X११, १०X२७). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु, पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो, अंति: कोइ न तोलें हो, गाथा- ११. ३८८५५. (#) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रावण कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. पाहलणपुर, प्रले. हेमराज काजी मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (८८२) जाडीस पोस्तकं भिड्डा, जैवे. (२१.५४११.५, १०x२८). ३८८६१. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २३१०.५, १०X२७). क्षेत्रपाल पूजा, सं., पद्य, आदि: क्षेत्राधिपतये सदा, अंति: भैरवं क्षेत्रपालम् . ३८८६४. गौतमस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२३४१२, १२x२६). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारा ठांम धरम, अंति: कांति सुख पावे पणो, दाल- २, गाथा- १६. ३८८६२. (+) क्षेत्रपाल पूजा जयमाला, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, दे. (२३४१०, १२X३६). (२२४१२, ५-१६४३४-४४). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर सह अन्वय, पृ. १अ-४अ संपूर्ण. ४५१ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य वि. १६वी, आदि: वीरजणेसर केरोसीस, अंति: गौतम तूछि संपति कोड, गाथा - ९. ३८८६५. दशवैकालिकसूत्र सज्झाच, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९-६ (१ से ४, ६ से ७) -३, ले. स्थल. पालिताणा, प्रले. करमसी रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५X११.५, १२x२७). दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गायो सकल जगीसें रे, सज्झाय-११, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., सज्झाय ५ की गाथा ५ अपूर्ण तक व सज्झाय ६ की गाथा ६ अपूर्ण से सज्झाय ९ की गाथा २ अपूर्ण तक नहीं है.) ३८८६७. (+) कल्याणमंदिर व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., " कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते श्रोक- ४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - अन्वय, मा.गु. सं., पद्य, आदि: कमठस्मय धूमकेतो तस्य अंतिः स्वरा जलहलती थकी है. २. पे नाम श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण, प्रा. सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only ३८८६८. बुढापारी ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२२.५X१०, १५X३२). बुढ़ापा रास, श्राव. मोतीचंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया ज माता वीनवु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ अपूर्ण है.) Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८८६९ (+) ह्रींकार महास्तोत्र सह टवार्थ विधि सहित, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२२४१२, ७X३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ह्रीँकार महास्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ह्रीँकारस्य किं तत्व, अंति: (१) तद्भवं वैभवं भवे, (२) कतूहलं मम साधन विधिः, लोक-२३. हीँकार महास्तोत्र बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हीँकार नु स्युं तत; अंति: उपनी ठकुराई भोगवे. ३८८७० (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जै (२२.५x१२.५, १२X३२). " भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं. पद्य, आदि भक्तामर प्रणित मौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. ३८८७१. दिग्पालपूजा आह्वान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२२.५X१२, १६x४० ). दशदिग्पाल पूजाविधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: पूर्व सन्मुख ॐ इंद्र, अंतिः कुरू कुरू स्वाहा. ३८८७२. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२३४१२, १४४२८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३८८७३. (+) पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण वि. १९०३ श्रावण शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पू. १, प्र. मु. विद्याप्रधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. * प्रत में लेखनस्थल - वेगमबजार मिल रहा है, परन्तु वह शहर का नाम नहीं है., संशोधित., जैदे., (२३.५X१२, १५X४५). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय अंतिः श्रीगीतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१४. ३८८७५. करकंडुमुनि सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२०x१२, १४४३३). करकंडुमुनि सज्झाय, प्रा., पद्य, आदि: करकंडु कलिंगेसु; अंति: सपख गुण कारीया, गाथा- १३. ३८८७६. शांतिविधि, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रावण कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. गोरखपुर, प्रले. श्राव. फतेहचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X११.५, २०x४७). शांतिपाठ, सं., प+ग., आदि: शांतिजिनं शशिनिर्मल; अंतिः सर्वेभिष्टा भवंतु ते, गाथा - १३. ३८८७७. स्थापनाकल्प सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. कर्मचंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३४१२, १२४२९) ! स्थापनाकल्प सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्म, वि. १८वी, आदि पुरव नवमाथी उधरी जीम, अंतिः वाचक यश गुण गेहरे, गाथा - १५. ३८८७८. (+) ऋषिमंडल महास्तोत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५X१२.५, १०X३४). " ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आद्याक्षरसंलक्ष्य अंतिः लभ्यते पदमुत्तमम् श्लोक-६३. ऋषिमंडल स्तोत्र - टिप्पण, सं., गद्य, आदिः आद्यक्षरोकारः अंत; अंति: सर्वविघ्न विनाशनै. ३८८७९ महावीरस्वामि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६५, माघ कृष्ण १० सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. लाभविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५x११.५, १२४२८). देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि जिनवर रूप देखी मन, अंति: लकलचंद० मनमा आणी, गाथा - १२. ३८८८०. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८५९, भाद्रपद शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २१x१२, ४०X९-१२). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीर तत्पट्टे, अंति: सूरीसर बीराजमान छे. ३८८८१. कल्याणमंदिर स्तोत्र - श्रीपार्श्वनाथ स्तोत्रगर्भित, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. सांमगढ़, प्र. मु. धनरूप, पठ. मु. भैरा (गुरु मु. धनरूप), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२२.५X१३, ११५३३). For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४५३ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३८८८२. नवग्रहशांतिकर जिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१३.५, १५४२६). ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: शांतिर्विनिर्मितः, श्लोक-१२. ३८८८३. (+) अरिहंतजी जैति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. लखनऊ, प्र.वि. विजयगच्छ में यह प्रत लिखी गई है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१३, १०४२४).. साधारणजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्ष प्रातिहार; अंति: श्रीमदर्हते नमः, श्लोक-१२. ३८८८४. जिन स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२४४१३, १०४२५-२७). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भवजले पततां जनानाम्, श्लोक-४. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. __शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. नेम स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: कमलवल्लपनं तव राजते; अंति: विभाभरनिर्जितभाधिपाः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: जय ज्ञानकलानिधानम्, श्लोक-४. ३८८८५. जीवविचार व दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९३२, माघ शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. पं. हुकमविजय; पठ. श्राव. जेठमल; श्राव. हीरालाल; श्राव. विवेकचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२४.५४१२.५, १४४४१-४५). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. पं. हुकमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५२. २. पे. नाम. विचारषविंशिका, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊं चउवीस जिणे तसु; अंति: एसा विनत्ति अपहिया, गाथा-४३. ३८८८६. (+) कर्मविपाक कर्मग्रंथ सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२३४१३.५, १७४३९-४२). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ तक लिखा है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि: श्रियाष्टप्रातिहार्य; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३८८८७. गुरुवंदन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (१९.५४१३, १०x१३-१७). गुरुवंदन विधि, प्रा., गद्य, आदि: ईछामिखमासम ईछाकारेण; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३८८९०. चैत्यवंदन, स्तवन व वीराअष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१x१३.५, १६४२९). १.पे. नाम. ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कुल गाथा ३ को १ ही लिखा है. आदिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरु; अंति: थकी लहीये अविचल ठाम, गाथा-३. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. वीतरागाष्टकम, पृ. १आ, संपूर्ण. वीतरागाष्टक, सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्धं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा ३८८९२. बृहद्शांति स्तोत्र, जैन श्लोक संग्रह व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८०, आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. मु. जेवंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११.५, १२४२१). १. पे. नाम. बृहद्शांति, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनंजयति शासनम्. २. पे. नाम. जैन श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: संप्रति कालै विश; अंति: शांतिकुसल सुखदाय, गाथा-४. ३८८९३. गोचरी दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्राव. वीरजी रायचंद महेता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ५४३२). गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मं उद्देसिअ; अंति: ९५ निसिहिए पारसीय ९६. गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अह आधाकर्मी ते साधु; अंति: आहार लीयेने दोष. ३८८९४. आदिजिन स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९.५४१३, १२४३०). १. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं नतनाकि; अंति: वीरं गिरिसारधीर, श्लोक-४. २. पे. नाम. जिनस्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-कल्लाणकंदंपादपूर्तिमय, प्रा., पद्य, आदि: भावानयाणेगनरिंदविंद; अंति: गोखीरतुसारवन्ना, गाथा-४. ३८८९५. नवतत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२१.५४१२.५, १३४३३-३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाश्जीवार पुण्णं३; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५२. ३८८९७. शेजा प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विरमगाम, प्रले. श्राव.शांतिलाल लवजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०४१३, ४४२९). शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२५. शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अतिमुक्तककेवली भगवंत; अंति: जात्रा कर्यानु फल. ३८८९८. दीपमाला स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१३, ९४२९). दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: शार्दूलविक्रीडितम्, श्लोक-४. ३८८९९. वीतरागदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४१२.५, १४४२७). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रेया मंगलके, अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. ३८९००. गोचरी ४२ दोष सह विवेचन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२३.५४११.५, १२४४३). गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्म उद्देसिअ; अंति: इंगले धुमे कारणे. गोचरी दोष-विवेचन, पुहि., गद्य, आदि: गृहस्थाने सर्वदर्शन; अंति: को कारण दोष कहते हैं. ३८९०१. पच्चीस अशुचि स्थान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, दे., (२३.५४१२, ५४३५). २५ अशुचि स्थान, मा.गु., गद्य, आदि: १ प्रासाद २ विहार ३; अंति: निषद्यामठशुचिस्थानम्, संपूर्ण. ३८९०२. मोहनीयकर्म की २८ उत्तरप्रकृति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, दे., (२३.५४१२, ७४३६). मोहनीयकर्म की २८ उत्तरप्रकृति, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्व मोहनीय १; अंति: वेदनीय कषाय २८, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ट हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४५५ ३८९०३. पृथ्वीकाय के २७ भेद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. प्रत संख्या ३ दिया गया है किन्तु उसे १ ही मानकर प्रत संख्या १ दिया गया है., दे., (२३.५४१२,५४३५). पृथ्वीकाय के २७ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: स्फटिकरत्न १ मणिरत्न; अंति: जाति २७ लूणनी जाति, संपूर्ण. ३८९०४. गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३.५४१०.५, ११४२५-२८). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धानरा अत्थेपरा ह; अंति: निसेवितु सुहं लहंतु, गाथा-२०. ३८९०५. औपदेशिक सवैया, छींक विचार व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१०.५, १५४४४). १. पे. नाम. सवा सौ शीख, प्र. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु उपदेश; अंति: श्रीधर्मसी उवज्झाय, गाथा-३६. २. पे. नाम. छींक विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: डावी पूठर कुसलकहै सा; अंति: (अपठनीय). ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. कनकमूर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: एक अरज अवधारीयै रे; अंति: साचो धरम सनेह रे, गाथा-७. ३८९०६. साधुआचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पीपाड, प्रले. मु. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११, २१४३९-४६). साधुआचार सज्झाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर उपदिस्यो; अंति: कुस्यालचंदजी० द्वेष, गाथा-३३. ३८९०७. असणादिक काल प्रमाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७९९, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. चंपावती, प्रले. मु. दतसागर; पठ. श्रावि. रतनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२४४२). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमु श्रीगौतम; अंति: वीरविमल करजोडी कहै, गाथा-१८. ३८९११. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पीपार, प्रले.सा.स्वरूपा (गुरु सा. मृगावती); गुपि. सा. मृगावती (गुरु सा. सुजाणश्री); सा. सुजाणश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, २३४५१). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: लख चोरासी जोनमा भाई; अंति: उवरे गाफल खासी मार, गाथा-२१. २. पे. नाम. वणजारा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: सखी विणजारो आवियो भर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २४ तक लिखा है.) ३८९१३. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,ले.स्थल. आहोरनयर, प्रले. मु. खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८८०) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा, दे., (२४.५४११.५, ११४३२). पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: समयसुंदर० जोडो नीत, गाथा-८. ३८९१५. सिद्धगुण विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४१०.५-११.०,१३४३३). सिद्धगुण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक भाग नहीं है.) ३८९१६. (+) कल्पसूत्र पीठिका व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२२, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. केसरीसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १३४२८). १. पे. नाम. कल्पसूत्र पीठिका, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्य जिनेश; अंति: विषै भलो छ जोग जिणरो, (वि. कल्पद्रुम टीका के मंगलाचरण का प्रारम्भिक भाग ही लिखा गया है.) २. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. __ बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३८९१७. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले.सा. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४११, १६-१८४३४-३७). औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: लख चोरासी जोनमा भाई; अंति: उवरे गाफल खासी मार, गाथा-२१. ३८९१८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५६, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. लाधाजी ऋषि; पठ. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, ७४२८). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ध्यान धरी प्रभु; अंति: निधि ऋद्धि भरी पायो, गाथा-८. ३८९१९. कमलावती भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. राघवऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२, १४४३०). कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: कहि राणी कमलावती हो; अंति: हसलारे सुगणनिधान, गाथा-१०. ३८९२०. व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६७, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, १८४४९-५३). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: सुकुलजन्मविभूतिरनेक; अंति: मंगलीक माला वस्तरइ. ३८९२१. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६९, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव.खुस्यालचंदजी जीवराजजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १४४३०-३२). नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो; अंति: जसतणी० न अधूरी रे, गाथा-१४. ३८९२३. (#) स्थूलिभद्र सज्झाय नवरस, संपूर्ण, वि. १७८३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, रविवार, जीर्ण, पृ. २, ले.स्थल. धिणलाग्राम, प्रले. मु. नथमलसागर (गुरु आ. श्रीपतसागर); गुपि. आ. श्रीपतसागर (गुरु आ. अर्जुनसागर); आ. अर्जुनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२४.५४११, १५-१८४४१-५०). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अति: उदयरतन० सहु फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४. ३८९२४. १६ सती सज्झाय व शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२४४११.५, ८x२०). १. पे. नाम. सोल सती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सूरंगी सूभातिक; अंति: पोमराज० सदा पद्मावती, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो-दो पदों को एक गाथा के रूप में गिनकर गाथा संख्या दी है.) २.पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. शीयल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम नमुंते सारदमा; अंति: कहैराय०० तणा ते वरले, गाथा-१३. ३८९२५. (-) भाषासमिति सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उदपोर, अन्य. श्राव. उमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२३.५४१०.५, १५४३८). भाषासमिति सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: सत्य विवहार भाषा; अंति: रायचंद० भाषा बोले जौ, गाथा-१९. ३८९२६. संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४३६). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सुतताइतो पगाम; अंति: कही माथे पागडी धरे. ३८९२८. पजुसणनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १२४३२). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. फतेसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वरस दिवसमा सार; अंति: सुख आराधशे हो लाल, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४५७ ३८९२९. पजूसण चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. जमुनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५-२४.०x११.५, १०४३२). पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण गुणनीलो; अंति: शासने पामे जय जयकार, गाथा-९. ३८९३०. वयरकुमार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. कुल ग्रं. २२, दे., (२४४११, १०४३७). वयरस्वामी सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभळजो तुमे अद्भुत; अंति: नमिये नरनारी रे, गाथा-१४. ३८९३२. २४ दंडक संख्या , संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. *पंक्ति अक्षर अनियमित., दे., (२४.५४११.५, १६४२३-४१). २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., आदि: दंडक २४ नामानि शरीर; अंति: मानिक असंख्यात गुणा. ३८९३३. अंतरंग कुटंबगीत सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४११.५, ६-१९४३२-४९). औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलीउ न मानइरे कोई; अंति: जोज्यौ पंडित विचारी, गाथा-१२. कायाकुटुंबस्वाध्याय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार भावना माहइं; अंति: सोथी विचारयो सही. ३८९३६. मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, १६४२९). मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरु जी; अंति: साधु तणी एसज्झाय, गाथा-१३. ३८९३७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३८-४३). १.पे. नाम. चंद्रप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मागु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभ जिनवर; अंति: देवचंद्र पद पावेजी, गाथा-११. २.पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. . देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: दीठो सुविधि जिणंद; अंति: जगत आधार छे हो लाल, गाथा-७. ३८९३९. चंद्रगुप्त राजाना सोल स्वप्न, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १२४३७). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चोथो आरो थाकता; अंति: राजाने परउत्तर दीधु, गाथा-१७. ३८९४०. चार शरणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. हीराजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४२९). ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: प्रउ प्रहरे उठी; अंति: हो सुणजो बालगोपाल, गाथा-१०. ३८९४१. लघुसंग्रहणी यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. *पंक्ति अक्षर अनियमित., जैदे., (२४-२५.०x११.५-१२.०, १०-१३४१२-३६). लघुसंग्रहणी-यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: खंडद्वार जंबूद्वीपरा; अंति: योजन पृथ्वी म छै. ३८९४२. साधुधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. झमकु बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११.५, १७४२७). साधुधर्म सज्झाय, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: साधु धन ते जीता; अंति: आसकरणजी० कीजो पास, गाथा-२१. ३८९४३. नवतत्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-२८(१ से २८)=१, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३१-३६). नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३८९४४. (+) जिनशांतिसागरसूरि पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १६x२८). जिनशांतिसागरसूरि पट्टावली, सं., गद्य, आदि: श्रीमत् श्रीमलधारि; अंति: सतां श्रेयो भवतु. ३८९४७. जीवउत्पत्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पठ. श्रावि. रतु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५-२४.०४११-११.५, १४४३०). For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय- गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु, पद्य, आदि उतपत जोब जीव आपणी, अंति: इम कहीवे श्रीसार ए. गाथा- ७०. ३८९४८. श्रद्धप्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८) =१, जैदे. (२४४१०.५, १०x३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वंदित्सूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामी जीण चोवीसं, गाथा- ५०, ( पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा ४१ अपूर्ण से है.) ३८९५०. आठ कर्मनुं ववरउ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२३.५-२४.०X१०.५, ११X३२). ८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु, गद्य, आदि: पहिलु ज्ञानावरणीय, अंतिः वातनुं संदेह नहीं. ३८९५१. (#) सप्ततिशत तीर्थंकरनाम आराधनाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, २२x४२). " १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजयदेव श्रीकर्णभव अंति: (१) द्वितीय ऐरवते ५ (२) विषई भाख्वं छह सही. ३८९५२. आठमनो स्तवन, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. कुल ३० वे. (२५x११.५, १०४३२). अष्टमीतिथि स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय हंसासणि सारदा, अंति : शुभविजय० आनंद अति घणो, ढाल - २, गाथा - १२. ३८९५३. मेघमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८६१ फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, प्र. ग. धर्मचंद्र पंडित, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र.वि. श्री भवा पार्श्वनाथ प्रसादात् जैदे. (२४४११.५, १२४३२). मेघकुमार सज्झाय, मु. जिनसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद स्वामिनी, अंतिः प्रेमे प्रणमुं पाय, ढाल-६, गाथा-५२. ३८९५५. प्रश्न, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (१७X१२, २५X३२). जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: समदीसरी किणन कहीजे, अंति: तेजस कारमान तीन जोग. ३८९५६. (+) ६२ मार्गणा द्वार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२५.५४११, ११४३१). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: संज्ञी अनाहारि आहार. ३८९५७. देवलोक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६X१२, ११४३३). देवलोक स्तवन, मु. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरस्वतिः अंतिः भवताणुं पातिक हर्बु, डाल-७, गाथा- ४४. ३८९५८. कलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. कुल ग्रं. २०, जैदे., ( २४ ११.५, १२३०). कलावतीसती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी कोसंबीना राजा; अंति: समयसुंदरमुनि० पार रे, गाथा - १२. ३८९५९. भरत ऐरावते जीवना भेद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२८x११.५, १३५१६-२१). भरत ऐरावत जीवभेद, मा.गु., को., आदि: तिर्यंचना ४८ मनुष्यन; अंति: १२ चौदमाना ४ एवं १६. ३८९६०. वीरमोक्ष गौतम विलाप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४x११, १०x२९). महावीरजिन सज्झाय- गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदिः आधारज हुं तो रे एक; अंति: रे पाम्या शीवपद सार, गाथा - १५. ३८९६१. दीवालीनी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. कुल ग्रं. ११, जैदे., (२४X११.५, ११X३४). दीपावलीपर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ ताता जग; अंति: जंपे एहवी वाणी, गाथा-४. ३८९६३. रोहिणी महिमा स्तवन व पार्श्वप्रभु थुई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २. कुल पे. २, जैवे. (२४.५x१०.५, १३४४२). १. पे. नाम. रोहिणी महिमा स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. रोहिणीत स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवता सामणीए मुझ; अंति: गावता सकल मन आसा फली, ढाल ४, गाथा - २६. २. पे. नाम. पार्श्वप्रभु थुई, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पास देवा करूं; अंति: केरी संघ आस्या पूरणी, गाथा-४. ३८९६४. सज्झाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. पालिताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२, १२४३२). १.पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: भविजन भवजल पार रे, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. वासुपूज्य जिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: नाच च मोह नचावीयो; अंति: राम जपे जिनराजोरे, गाथा-५. ३८९६५. सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७०-६९(१ से ६९)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १६x४४). १.पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ७०अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडी न कीजै हो; अंति: डीजी समयसुंदर कहे एम, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-स्तंभण, पृ. ७०अ, संपूर्ण, ले.स्थल. धनोजग्राम. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: मंडण पासनाह चुसालो, गाथा-१६. ३. पे. नाम. जुगार भास, पृ. ७०आ, संपूर्ण.. जुवटा भास, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: सगण सनेही रे मानो; अंति: कहि करजोड रे रसिया, गाथा-१०. ४. पे. नाम. स्थुलिभद्र गीत, प्र.७०आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: चंदन शीतल सार किं; अंति: प्रीति घई नवी रे, गाथा-६. ३८९६६. नवकार छंद, यतिगुण वर्णन व चौवीश तीर्थंकर परिवार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १०x१६-३४). १. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध परे; अंति: कुशलरिद्ध वंछित लहै, गाथा-१८. २.पे. नाम. चौवीश तीर्थंकर स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मु. दयाल, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल कर जिणराय मणै; अंति: श्रीसंघमें मंगल पूरए, गाथा-६. ३. पे. नाम. जैन यतिगुण वर्णन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. यतिगुण वर्णन, श्राव. खेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: केइ तो समस्त; अंति: खेतसी० असमस्त जती है, गाथा-१. ४. पे. नाम. चौवीस तीर्थंकर परिवार, पृ. ४आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर परिवार, मु. करमसी, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीस तीर्थंकरनो; अंति: श्रीसंघ प्रणमुसही, गाथा-६. ३८९६७. स्तवन, भांगा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १२४३१). १.पे. नाम. महावीरस्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, मु. रूप, सं., पद्य, आदि: विबुधरंजकवीरककारको; अंति: रुपकेण प्रसिद्धा, श्लोक-७. २.पे. नाम. संयोगी भांगा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: क१ खर ग३ घ४ च५ छ७ ज८; अंति: संयोगीया भांगा लेवा. ३. पे. नाम. श्लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः श्रूयतां मानवोवंशः; अंति: विसय मुचगए सुबुढेण, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८९६८. पडिलेहणविधि व राइयप्रतिक्रमणविधि, संपूर्ण वि. १८४३ श्रावण कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. काली, पठ. ग. नायक विजय प्रले. पं. कपूरविजय गणि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५x११, १५X४५). १. पे. नाम. पडिलेहण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम राई प्रतिक्रमणविधि, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण. राई प्रतिक्रमण विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: इच्छाकारेण संदीसह, अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३८९७१. मुहपति के बोल व चंद्रायण संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४x११.५, १२X३८). १. पे. नाम. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, पू. १अ संपूर्ण संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः प्रथम दृष्टि पडिलेहण, अंति: त्रछका ६ जेणा करु. २. पे नाम, चंद्रायण पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि वास वसे चऊहांण के; अंतिः वास सुरंगो जेहडो, गाथा - ५. ३८९७३. प्रास्ताविक लोक सह वालावबोध व आध्यात्मिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४X१०, ११x२४-२६). १. पे नाम, प्रास्ताविक श्लोक सह बालावबोध, पृ. १अ २आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्ताविक श्लोक, प्रा., पद्य, आदि: तिथिराणं गणहारी; अंति: माला वसत्तरि, गाथा - १. प्रस्ताविक लोक - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जु एहवा ए मानभाव, अंति: माला व सत्तरि. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह, पुहिं. प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: शुद्ध ध्यान के देह, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक " द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८९७४. दानशील चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. किसनजी साधु, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., १७x४०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय निम; अंति समृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल ४, गाथा- १०१. इ., (२४.५x११. ३८९७५. अष्टक, स्तुति व सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४४१०.५, १५x५७). १. पे. नाम. सकल जिनसूर संगीत अष्टक, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. खेमकर्ण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. सकल जिनाभिमुखे सुरसंगीत अष्टक, सं., पद्य, आदि द्रों द्रो द्रों अंतिः नृत्ततसुर जिनसम्मुख, गाथा- ९. २. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, नान, मा.गु., पद्य, आदि: धि धि कि टि धों; अंति: नभावन शिशु नान रचैया, गाथा-४. ३. पे. नाम. पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, खेम, पुहिं, पद्य, आदि: बक भव केन नेक रसनाल, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. दोहा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ३८९७६. सामायिक व पोषध दोष, संपूर्ण, वि. ११वी, मध्यम, पृ. १. कुल पं. २, जैवे (२४.५४११.५, ८४३६). "" १. पे. नाम. सामायिक बत्रीस दोष सह टबार्थ, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पलत्थी १ अत्थिरासण २ अंतिः वसे सव्व सुह लच्छी, गाथा- ६. सामायिक ३२ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बाहि तथा वस्त्र पलाठ; अंति: सामायक करे. २. पे. नाम. पौषधना अढार दोष सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण, ६ तक टवार्थ लिखा है. वि. आदिवाक्यवाला भाग नष्ट है.) .. पौषध के १८ दोष, प्रा., पद्य, आदि: असंजयाण नीरं भुंजइ; अंति: भांगा अन्नय अइयारं, गाथा-७, संपूर्ण. पौषध के १८ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४६१ ३८९७८. गौतम पृच्छारा तीस बोल व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१८३) पोथी और पद्मनी, (८८३) विद्या वनिता वेलडी, दे., (२४.५४१०.५, ८४३२). १.पे. नाम. गौतमपृच्छारात्रीस बोल, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. गौतमपृच्छा ३० बोल, रा., गद्य, आदि: पहेले बोलेकहो पूज्य; अंति: खाया जीण पाप रे उदे. २. पे. नाम. भावगाडी पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-भावगाडी पद, श्राव. जुठाराज, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जिनजी पुजन; अंति: पुजन मंदिर जाय जो, गाथा-११. ३८९७९. (+) पार्श्वजिन छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १५४४०). १. पे. नाम. संखेश्वरापार्श्वनाथजीनो छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. मु. रूपविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वदन सुखकार; अंति: नयप्रमोद०मनवंछित सकल, गाथा-१३. २.पे. नाम. पार्श्वनाथनो छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास शंखेश्वरा सार; अंति: उदयरत्न माहाराज भेजो, गाथा-५. ३८९८१. राईप्रतिक्रमण विधि व पाक्षिक विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, ५४४१). १.पे. नाम. राईप्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कुसमण दुसमण राईय सोल; अंति: भगवानहं त्तिबेमि, गाथा-५. राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदि०; अंति: भगवन् बहुवेल करस्यूं. २. पे. नाम. पाक्षिकादिप्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुहपत्तिवंदणय; अंति: पक्खि पडिक्कमणं, गाथा-३. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: इछाकारेण सही सहित; अंति: लोगस्सनो काउसग्ग ओली. ३. पे. नाम. पाक्षिकादितप विधान, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पखी तप प्रसाद करोजी; अंति: प्रवेश करी पहोंचारवो. ३८९८२. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय व जिनगायत्री मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १४४३७). १.पे. नाम. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय प्रथम प्रकाश, पृ. १आ, संपूर्ण. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. जिनगायत्री मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनगायत्री मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: परमात्म भगवते नमः. ३८९८३. (#) षट्लेश्या लक्षण व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. शिवदत्तसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४०). १. पे. नाम. धर्ममार्गविषय षट्लेस्यालक्षण ज्ञान, पृ. १अ, संपूर्ण. षट्लेश्या लक्षण, प्रा.,सं., पद्य, आदि: अतिरौद्र सदा क्रोधी; अंति: सुक्तलेश्या स कथ्यते, श्लोक-६. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक प्रा.,सं., पद्य, आदि: गोभद्रः सागरस्तथा; अंति: नाशाय भावनाभयनाशिनी, ग्रं. ४. ३८९८४. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४-६२(१ से ६२)=२, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२.५, १५४३८-४२). १.पे. नाम. मूर्ख के इकतीस बोल, पृ. ६३अ-६३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ___मूर्ख ३१ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: समर्थ होय उद्यम नही; अंति: धर्म माने ते मूरख. २. पे. नाम. ३१ प्रश्नोत्तर, पृ. ६४अ-६४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: नवकारमाहि पहिलापदना; अंति: (-), (पू.वि. प्रश्न २५ तक है.) ३८९८५. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३३). १.पे. नाम. सिद्धगिरि वसंत पद, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ पद, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: सिद्धगिरिजी को दरशन; अंति: रूपचंद०जल पार उतर ले, गाथा-४. २. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: बाबो ऋषभ बेठे अलबेले; अंति: तारि लिजे अपनो करके, गाथा-४. ३. पे. नाम. शत्रुजावसंत पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ होरी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी विमलाचल जइय; अंति: मोहन० जनम तारो दास, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहि., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: रत्नसागर० बोले जयकार, गाथा-७. ३८९८६. सवैया व स्तवन, अपूर्ण, वि. १७६९, माघ, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्रले. ग. मानविजय; अन्य. ग. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १६४५०). १. पे. नाम. देवगुरुद्वेषी ढुंढीया सवैईया, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ढुंढियामत सवैया-देवगुरुमत द्वेषी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कूगति के कूडीए, गाथा-४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा अपूर्ण है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल कर दुरित; अंति: लक्ष्मी नित ध्यावई, गाथा-१०. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-शापुरमंडण, ग. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाय; अंति: लक्ष्मी०सकल मंगल करो, गाथा-८. ३८९८७. स्तवन, सझाय वस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४४१०.५, १७४५१). १. पे. नाम. मनमोहन पासजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवामासुत पास देवी; अंति: सेवक तेजहर्ष० सहकरो. गाथा-१२. २. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: मांहरी अरज सुणीजे रे; अंति: होज्यो दोलति अति घणी, गाथा-७. ३. पे. नाम. पंचतीर्थंकरनी थोई, पृ. १आ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ४. पे. नाम. बीजदिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहि पूरि मनोरथ माय, गाथा-४. ३८९८८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. कुल ग्रं. २०, दे., (२४४११.५, १०४३१-३३). १. पे. नाम. पर्युषणा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: संवछरी दिन सांभलो ए; अंति: बुध माणिक मन भाय, गाथा-९. २. पे. नाम. समकित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चाखो नर समकित सुखडली; अंति: दर्शनने प्यारी रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ ४६३ ३८९८९. अठारह बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्रांक ३७-३९ भी दिए हुए हैं., दे., (२३.५४१२, १४४४१-४४). १.पे. नाम. अढार दोष रहित अरिहंत प्रभु, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ दोष रहित अरिहंत, पुहि., गद्य, आदि: अरिहंत प्रभु १८ दोष; अंति: वस्तु कोई गुप्त नहीं. २. पे. नाम. अंतराय कर्मबंध के अठारह कारण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. अंतराय कर्मबंध के १८ कारण, पुहिं., गद्य, आदि: दया रहित १ दीन जीवों; अंति: १८ अन्य का दूषण कहैं. ३. पे. नाम. चोर के अठारह प्रसुती, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. चोर के १८ प्रसुती, पुहि., गद्य, आदि: चोर के साथ मिलकै कहै; अंति: व्याकरण में कही है. ४. पे. नाम. अठारह प्रकार से धर्म प्राप्ति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. धर्म पालन के १८ प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: लजा थकी धर्म पाडै; अंति: पाडै जंबूस्वामीवत्. ५. पे. नाम. अठारह दोष रहित भावचारित्री, पृ. २आ, संपूर्ण. १८ दोष रहित भाव चारित्री, मा.गु., गद्य, आदि: अठारै दोष रहित भाव; अंति: पिण दीक्षा न सूझै. ६. पे. नाम. अढारभार वनस्पतिनो विवरण, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पति भाव, मा.गु., गद्य, आदि: अठारै प्रकारै जीव; अंति: घडि दसै घडी एक भार. ३८९९०. सझाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२,१०४३१-३३). १. पे. नाम. नागिलानी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाई घरे आविया; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-१६. २.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिपंचरूप; अंति: कुसलं धिमतां सावधाना, श्लोक-४. ३८९९१. साधु के २७ गुण व आकाश के २७ नाम बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४१२, ९४३५-३७). १.पे. नाम. साधु के सत्तावीस २७ गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. २७ साधु गुण, मा.गु., गद्य, आदि: पांचमाहाव्रत पाले; अंति: सहे २७ गुण साधु के. २. पे. नाम. आकाश के २७ नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २७ आकाश नाम, प्रा., गद्य, आदि: आगासेति वा १ आगास छ; अंति: वा २६ अणतेति वा २७. ३८९९२. नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १७४४५). नेमिजिन चरित्र, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: नगरी सोरिपुर राजीयो; अंति: श्रीनेमजीणंदा, गाथा-५२. ३८९९४. जिन स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १७४४५). १.पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल गोखमें अमुलिक; अंति: सेवा देवविजय __ जयकारी, गाथा-७. २.पे. नाम. लोढण पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोढणपुर, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीलोढणप्रभूपासजी; अंति: प्रमोदसागर० अतिदूरि, गाथा-११. ३. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पिउजीरे पीउजी नाम; अंति: रूपविजय० सवे फली, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३८९९५. शांतिजिन स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. धना ऋषि; प्रले. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३-१५४३८). १.पे. नाम. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमाय नमु सिरनामी; अंति: गुणसागर० निश्चै पावि, गाथा-२१. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति: (-). ३८९९६. भारती स्तोत्र, महालक्ष्मी स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १७४५५). १.पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंतसमस्तलोक; अंति: भवत्युत्तम संपदः, श्लोक-९. २. पे. नाम. महालक्ष्मी स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आद्यं प्रणवस्ततः; अंति: सौभाग्यं भूमिमिच्छता, श्लोक-११. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ माला स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मालामंत्र स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: वरं मंत्र धर्मकीर्ति; अंति: स्वाहा भुजोपि स्युः, श्लोक-१३. ३८९९७. आदिनाथजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (१८.५४११, १७X२६-३१). __ आदिजिन स्तवन, मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: आज आनंदगन जोगसर आयो; अंति: जसराज० गाये हे माय, गाथा-८. ३८९९८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०८, पौष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. पोरबिंदर, जैदे., (२५४११, १२४३२). १.पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. जगजीवन, मा.गु., पद्य, आदि: सुमत सुमतदायक सदा; अंति: जगजीवन० जेयकार हो, गाथा-६. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदेसर अवधारीयै रे; अंति: महानंद० अविचल राज, गाथा-५. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिणेसर साहिब; अंति: महानंद० अविचल थान, गाथा-५. ३८९९९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले.ऋ. वेलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२). १. पे. नाम. आदेश्वरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, ग. जगजीवन, मा.गु., पद्य, वि. १८००, आदि: विमल नयर वनीतावर वदि; अंति: गणी जगजीवन गुण गावे, गाथा-११. २.पे. नाम. अजीतजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, ग. जगजीवन, मा.गु., पद्य, आदि: अजितजिनेसर सेवीएरे; अंति: गणी जगजीवन गुण गाये, गाथा-६. ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. जगजीवन, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन जगवंदन जनतार; अंति: जगतजीवन० नीरमल नाण, गाथा-५. ३९००१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक २५-२६ भी दीए हैं., जैदे., (२३४१२, १३४२८). १. पे. नाम. वैराग्यरूप सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरनी फल दोहिलो रे; अंति: श्रीविजयदेवसूरि कइं, गाथा-१५. २. पे. नाम. जीबापरि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. Tronto For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६५ औपदेशिक सज्झाय, मु. अमरविजय, मा.गु, पद्य, आदि: भडला सुण पहली रे बोल अंतिः विजय० उतम पालइ सोइ रे, गाथा - १९. ३९००२. (+#) सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५x११, १३३६-३८). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पाचि इंद्री रि अहिनस; अंति: वांदु रे मुनीवर एहवा, गाथा- ९. २. पे. नाम. जीवदया सज्झाय, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. औपदेशिक सज्झाय - जीवदया सज्झाय, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत देव गुरू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ३९००३. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१(१) -१, कुल पे. ३. जैवे. (२५४११, १५४३५). १. पे. नाम संभवनाथ गीत पू. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. 1 संभवजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जयकार रे भवियां, गाथा-९, (पू. वि. गाथा ८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम संभवनाथ गीत, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीजिनवर सुभकाय भाय; अंति: वंदन त्रिणकाल, ढाल - २, गाथा - १३. ३. पे. नाम. अभिनंदन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: गुणनिधि गिरुआ गाईयइ, अंति: केशव० सुंदर सुख सफार, गाथा-८. ३९००४. (+) स्तवन व सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. ५-४ (१ से ४) - १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, दे., ( २४.५४११, १६X३०-३२). १. पे. नाम. जीवविचार स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: (-); अंति: विजय पभणे आनंदकारी, ढाल - ९, गाथा-८३, (पू. वि. ढाल ९ गाथा २ से है.) २. पे. नाम. छत्तीसदोष सझाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रावक व्रतधारी गुण; अंति: गण इम भासे, गाथा-८. ३९००५, (+) स्तव संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १(१ ) = १ कुलपे २ प्र. मु. वर्धमानवर्धन (गुरुग, राजवर्धन पंडित); पठ. मु. रविविजय, गुप. ग. राजवर्धन पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२५४११, ९३१). १. पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्य स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक १०, ( पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम वीर स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि जयश्रीजिनकल्याणवलि, अंतिः तद्वितराचिरान्ममापि, श्लोक-६. ३९००७. सवैया इकतीसा अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २०१८ (१ से १८) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं, जै, (२५x११, १५४५०-५५), औपदेशिक सवैया संग्रह", भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: (-) अंति: (-) (पू.वि. गाथा २९७ अपूर्ण से ३३४ तक है.) ३९००८. आदिजिन वीनती, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २४.५X११.५, १०X३२-३५). आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढमजिणेसर अति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १४ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३९००९. यादव रास, अपूर्ण, वि. १८०१, वैशाख कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, ले.स्थल. सक्राणी, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है., जैदे., (२५४१०.५, १३४२८-३०). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पुन्य० नेमीजीणंद के, गाथा-६५, (पू.वि. गाथा ५४ अपूर्ण से है.) ३९०१०. (+#) छंद देशांतरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३४-३६). __ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपओ सारदा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४५ तक है.) ३९०११. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५४१२.५, ११४३६). १. पे. नाम. चैलणासतीस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थका; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-७. २. पे. नाम. अनाथी सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रेवाडी चड्यो; अंति: वंदेरे बे करजोडि. गाथा-९ ३९०१२. (#) पद्मावती पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२१४१२, १५४३६). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवैराणी पदमावती; अंति: करू जन्म पवित्र, ढाल-३, गाथा-३४. ३९०१५. (+) किमाड छतिसि तेरापंथ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१२, २२४६४). कडवाछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: सुत्र सुद्ध परूपणा; अंति: सुनि सुतरपाठ अनुसार, गाथा-४२. ३९०१६. (#) शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १२४४८-५०). शांतिजिन स्तवन, उपा. शांतिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: संतिकर कंतिधर थुणिसु; अंति: सेवक शांतिचंद्र० करो, गाथा-१७. ३९०१७. (+) स्थानकवासी जैनश्रमण संघ का बंधारण, संपूर्ण, वि. १९८२, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३.५४१२, २३४५५). स्थानकवासी जैनश्रमण संघ का संविधान, पुहि., गद्य, वि. १९८२, आदि: सकल गुणनिधि कृतात्म; अंति: चित द्वारा सुद्ध करे, विमर्श-७५. ३९०२१. पार्श्वनाथ निसाणी, संपूर्ण, वि. १८४७, आषाढ़ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. विसाला, प्रले. मु. खेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १३४३०). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: जिनहरख गहंदा है, गाथा-२७. ३९०२२. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. गिरधर हेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४१२, ८x२४). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालो नें भविक; अंति: रत्न० एम ल्हावो लीजे, गाथा-५. ३९०२४. (+) सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०९, चैत्र कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. खेतडी, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११.५, ११४४०). १.पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सिंघाणा. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नावै एलापुत्र जाणियै; अंति: करइ लबधिविजै गुण गाय, गाथा-११. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.९ मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरिहंतदेवा, अंतिः चावो तो दयाधरम करो, गाथा - १३. ३९०२५. काल विधि, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४-१ (१) ३, वे. (२४.५x११.५, ११४३२-३४)साधु साध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंतिः साधवियो ज देव बांदे " (२५X११, ३९०२६. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( १ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., ११X३६-३८). महावीर जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३९०२७. जीव विचार, संपूर्ण वि. १८२० भाद्रपद कृष्ण, २ गुरुवार, मध्यम, पू. ३, जैवे. (२५४११, १२४३०-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९०२८. पाक्षिक नमस्कार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५X११, ११३५). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२वी, आदिः सकलात्प्रतिष्ठान अंति (-), (पू.वि. श्लोक १२ अपूर्ण तक है.) " ३९०२९. छंदोपवीतचतुर्विंशतिजिन पंचविंशतिका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, जैदे. (२५.५x११, ११x४४). २४ जिनपंचविंशतिका स्तव, सं., पद्य, आदि: वृत्ताख्यातं वृषेशं; अंतिः सद्विशोध्यं सुधरैः, श्लोक-२५. ३९०३०. (+) नेमिजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, १३X३३). राजिमती बारमासो, मु. हर्षकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: हो सामी क्युं आये, अंति: छोड्यो गरभाजी बासो, गाथा - २६. ३९०३१. नंदीसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., ( २४.५X१२, ११x२८). नंदीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण तक है.) ३९०३३. पजुसण चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. पुन्यश्री (गुरु सा. देवश्री), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (११.५X११.५, ८x२९). ४६७ पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः पर्व पर्युषण गुणनीलो, अंति: भवीर० होवे जय जयकार, गाथा - ९. " ३९०३४ (-) चंदनमलयगिरी रास, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ४. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे., (२३.५४११.५, १५४३०-३८). चंदनमलयगिरी रास, सा. पार्वतीजी, मा.गु, पद्म, वि. १९५१, आदि: श्रीसासणाजिन समरीये अंतिः (-). (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १० अपूर्ण तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने ढाल की संख्या नहीं लिखी है.) ३९०३५. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३९, माघ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२१.५४११. १३४३२). " गाथा ५. ३९०३६. द्वारका नगरी विस्तार वर्णन, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २- १(१ ) = १, ले. स्थल. हुरडा, जैदे., । १७X२२). १. पे. नाम. ढुंढणऋषि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा - ९. ऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढुंढणऋषजीनै वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, २. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणी पास पास अंति: कुसल गुण मुदाजी, For Private and Personal Use Only जैदे. (२४.५x११.५, द्वारिका नगरी विस्तार, ऋ. साधु, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रीष साधुजी कह एम हे, गाथा- ३१, (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण से है.) ३९०३७. शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) - १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५X११, ११x४०-४२). Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३५ अपूर्ण से ५४ अपूर्ण तक है.) ३९०३८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७७१३.५, १६४३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन १ की गाथा ८ अपूर्ण तक लिखा है.) । उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तराध्यन प्रधान जे; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३९०३९. माणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. १८५४, कार्तिक कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. किसनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२४.५४११, १५४१९). ___माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुसल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: उदय० लाख रीझा लहे, गाथा-२६. ३९०४०. स्थुलिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४११, १२४३०). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीस्थूलिभद्र मुनि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ३९०४२. कल्याणमंदिर स्तोत्र भाषा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४.५४१२,३१४१५). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १९ तक है.) ३९०४३. शेर्बुजा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. हेतवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. 'लखावितं में मात्र "गांधी" दिया हुआ है., जैदे., (२०.५४१३, १२४२६). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामिनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा-१६. ३९०४४. आदिजिन विनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. नेमचंद उजमसी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३.५, १३४३७). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेव्रुजा; अंति: जिन० देजो परमानंद, गाथा-२०. ३९०४५. शाश्वतजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. भावनगर बिंदर, प्रले. मु. वालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ५४३३). शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: (-); अंति: पद्मविजय नमे पाया जी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) ३९०४६. पार्श्वजिन पंचकल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३५). पार्श्वजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. विवेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमजोत परमातमा परम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ की गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ३९०४७. (+) सिद्धसारस्वत स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, ९४३१). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १० अपूर्ण तक है.) ३९०५०. (-) सीमंधरजिन वीनती स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४१३, १३४३३). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि सरसती भगवत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २१ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६९ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ३ आंगुलमान गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (परमाणुं तसरेणुंरहरे), ३७२३६-२(+) (२) ३ आंगुलमान गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आठ परमाणुए एक त्रस), ३७२३६-२(+) ३ चौवीसी नाम, सं., गद्य, श्वे., (केवलज्ञानी १ निर्वाण), ३८०९४-२ ४ गति विचार, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कवित्वमारोग्यमवेधा), ३४९९४-२ ४ प्रकार के आहार, प्रा., गद्य, मूपू., (असणं वा पाणं वा खाय), ३५७७६-३(+-) (२) ४ प्रकारके आहार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अन की जात पा० पाणी), ३५७७६-३(+-) ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमुख्य), ३५०७०(+) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. ३५, पद्य, मूपू., (भत्तिभरअमरपणयं पणमिय), ३६७५५-१(+) ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमिट्ठमंतसारं सारं), ३५०००-२ ५ वाजींत्र नाम श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (लाल१ ताल२ पुट३), ३५६६८-११ ६ दर्शन विचार, सं., श्लो. ६६, पद्य, म्पू., (जैन मैमासिकं बौद्ध), ३७४९३-१(+#) (२) ६ दर्शन विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नास्तिकवादी एक), ३७४९३-१(+#) ६ द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (परिणामि जीव मुत्ता), ३४५२६-२ (२) ६ द्रव्यपरिणाम विचार-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (षटद्रव्य मध्ये जीव१), ३४५२६-२ ६ लेश्या द्रष्टांत, सं., गद्य, मूपू., (जंबूवृक्ष निरीक्ष्य), ३५०२४-२ ६ संस्थान द्वार, सं., गद्य, मूपू., (समचत्वारोअश्रा: कोणा), ३८३२३-४ ६ संस्थानभेद विचार, सं., गद्य, श्वे., (वज्रऋषभनाराच संहनन१), ३८५९५-१२ ७ मांडलीतप विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, श्वे., (सुत्ते अत्थे भोयणकाल), ३८०२२-३(5) ७ रत्ननाम श्लोक, प्रा., गा. १, पद्य, जै.?, (चक्कं१ खग्गर धणू३), ३५०६१-३ ८ निह्नव वर्णन, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (जावतो वयणपहा तावंतो), ३६५४४-२ ८ प्रकारी निर्वाण पूजा, सं., गद्य, श्वे., (कर्पूरवासितजलैः भृतद), ३७४१५-१ ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, श्लो. ८, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), ३५१६१, ३७१९३-१, ३८३३३ ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विमलकेवलभासनभास्कर), ३८८२८(+), ३७५९८-३, ३७१६९-३(#$) ९ ग्रह मंत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (ॐ नमो श्रीआदित्याय), ३७७५७-२(+) ९ ग्रह मंत्र पूजाविधि, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (ॐआदीत्यसोममंगलबुध), ३६९५७-२ ९ ग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (जपाकुसुमसंकाशं काश्य), ३४९६८-२(#) ९निधि नाम, प्रा., गद्य, श्वे., (नेसप्पीय पलुए पागले), ३५७७६-१(+-) (२) ९ निधि नाम सह टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (ते ते मेह्यगाम नगर), ३५७७६-१(+-) १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., पद. १०, प+ग., श्वे., (ॐ नमो इंद्राय पूर्व), ३५६९३-१, ३६६५३(5) १० दीक्षा प्रकार, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (दसविहा पवज्जा पन्नता), ३५२६१-१ १० पच्चक्खाण के आगार, प्रा., गद्य, मूपू., (नमोक्कारसी अन्नत्थणा), ३६८१२ १० मिथ्यात्व बोल, प्रा., गद्य, मूपू., (अधमोधम्मसन्ना), ३८३३९-४(#) १० यतिधर्म भेद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (खंती मुत्ती अज्झबे), ३८५९५-११ १० श्रावक कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (वाणियगामपुरम्मि आणंद), ३४९९४-१ ११ गणधर देववंदन, प्रा.,मा.गु., स्त. ११, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर गोयम गणहर), ३७८६५(5) ११ रुद्रगति विचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पंचेव पंचपुढवीसु), ३५०६१-५ १२ कुल नाम, प्रा., गद्य, श्वे., (फासुय जीव पडिगाहेत्त), ३५७७६-२(+-) परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ (२) १२ कुल नाम सह टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (फासुक सुजतो जीवरहीत), ३५७७६-२(+-) १२ तुर्यनंदा नाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (भभी१ मुकुंदर मद्दल३), ३५६६८-१० १२ पर्षदा विचार, सं., गद्य, मूपू., (समवसरणे उपवेशनं१), ३८५९५-८ १२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), ३८३६४(5) १३ काठिया तपविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (आलस काठियो निवारणाय), ३७३१२-७ १४ अशुचिस्थान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (उच्चारे १ पासवणे २), ३४८९९-१ (२) १४ अशुचिस्थान गाथा-टबार्थ, मा.गु., पद्य, मूपू., (उ० बडीनीतमैं छमूर्छम), ३४८९९-१ १४ पूर्व नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (१श्रीउत्पादपूर्व), ३६९१८-२ १४ पूर्व नाम आराधना विधि, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (श्रीउत्पाद प्रवाद), ३७३१२-१($) १४ रत्न नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (सेणावई१ गाहावई२), ३५०६१-२ १४ विद्या नाम, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (षडांगी६ वेद चत्वारि४), ३५८९८-२ (२) १४ विद्या नाम-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (षटां अग्निशिख्या१), ३५८९८-२ १४ स्वप्नविचार गाथा, प्रा., गा. २८, पद्य, श्वे., (वेयडसेल ससहर किरणा), ३६१२७-१ १६ विद्यादेवी मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (रोहिणी प्रज्ञप्ति), ३६५३७-२ १६ विद्यादेवी स्तव, सं., श्लो. १९, पद्य, श्वे., (मंत्राधिराजवलये विमल), ३८७२४-१(+) १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), ३४८०५-२, ३६९८३-४(#) १८ अक्षरी नमिऊणबीज मंत्र, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमिऊण पास विषहर), ३८७१२-२(#) १८ पुराण नाम, सं., गद्य, वै., (ब्राह्मं पद्म वैष्णव), ३५६३१-३(+) १८ भार वनस्पति मान, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (३८ अडत्रीस कोडि ११), ३८२३४-२ १८ हजार शीलांगरथ, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (जे नो कति मणसा निज), ३७३३८-२ २० स्थानकगाथा पांखडी, प्रा.,मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (अरिहंत १ सिद्ध २), ३८७५४(+) २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताण अरिहत), ३५९९५, ३८६२८ २० स्थानकतप गणगुं, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (नमो अरिहंताणं १ नमो), ३८५५७-२, ३८५९६-२ २० स्थानकतप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ३५१४३-३(+), ३५४६९-३(+), ३५३५६-२ २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहताण २०००), ३७९१९-३ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (१ नमो अरिहंताणं २०००), ३५४६९-१(+) २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम नालिकेरादि), ३४५५९ २० स्थानकतपोच्चारण विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (अहण्हं भंते तुम्हाणं), ३५४६९-६(+) २० स्थानक नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं १२), ३६५०० २० स्थानकरात्रिका, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (यो जीमूतांजनौघांजन), ३६३८१-७(+) २० स्थानक श्रावककर्त्तव्य, सं., श्लो. २०, पद्य, मूपू., (तत्रैकमर्हतामर्हत्), ३५८८२-२ २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ३४९५३(+#s), ३७४४१-१(+), ३७८८६(+$) (२) २१ स्थान प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चवन विमान कहिस्यु १), ३७८८६(+$) (२) २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेह विमान हुंति चव्य), ३७४४१-१(+) २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (खुहा पिवासा सीत उण्ह), ३८५९५-७ २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (कार्तिकसुदि १ सुविधि), ३७५१७(+), ३५१८२-२, ३५७८२-१, ३६४६०, ३६५६४, ३८५०० २४ जिनकल्याणक स्तव, जै.क. आशाराज, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (तिथिक्रमाग्जिनेंद्रा), ३५८८२-१ २४ जिन गर्भस्थितिकाल, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दुचउत्थ नवम बारस), ३५८९२-२ For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ २४ जिन पंचकल्याणक तिथि व जाप, सं., गद्य, मूपू (कारतीक वदि ५ श्रीसंभ) ३८०९८-१ "" २४ जिनपंचविंशतिका स्तव, सं. श्री. २५, पद्य, जे.? (वृत्ताख्यातं वृषेश), ३९०२९ " २४ जिनव्रत कथा -त्रिकालवर्ती, सं., श्लो. २४, पद्य, दि., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ३६४१९ (+) २४ जिन समवसरणमान गणधर संख्यादि विवरण, प्रा., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभ अजित संभव), ३७६०३-२ २४ जिन स्तव, मु. कुलप्रभ कवि, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (यन्नामाभिसमापिताखिल), ३६१०२-१(+#$) २४ जिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि सं., श्लो. ३० वि. १४वी, पद्य, म्पू., (यं सततमक्षमालोपशोभित), ३६१९३-१(३) 3 २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., श्लो. २६, पद्य, भूपू. दि. (श्रीलीलायतनं महीकुल), ३४६२९ (३) . (२) २४ जिन स्तवन - टीका, सं., गद्य, मूपू., दि., (भो देव प्रातः प्रभात), ३४६२९(+$) २४ जिन स्तव-चतुःषष्टियंत्रगर्भित, मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि ), ३५६२६-२, ३८७५१-७/१ २४ जिन स्तवन, प्रा.. गा. २७, पद्य, भूपू (पढमो नरेसराणं पडमो), ३६१५२-४४) २४ जिन स्तुति, आ. जसवंत, सं., श्लो. २७, पद्य, थे. ( श्रीदेवातिदेवं), ३६६९५ (१), ३७३९४(+), ३७९९०(४) २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (आनम्रनाकिपतिरत्न), ३६७०९ २४ जिन स्तुति आ जिनप्रभसूरि सं., श्लो. २९, पद्य, भूपू (ऋषभनम्रसुरासुरशेखर) ३५६४७-१(४) २४ जिन स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि सं., श्लो. २७, पद्य, भूपू ( जनेन येन क्रियते), ३७८२९ " २४ जिन स्तुति, अप., गा. २, पद्य, मूपू., (भरहेसरकारिय देव हरे), ३७४७३-१ २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (सुरकिन्नरनागनरेंद्र), ३५७९५-१ २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नतसुरेंद्रजिनेंद्र), ३८७३२-१ २४ जिन स्तोत्र - पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु, सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू (आदी नेमिजिनं नीमि), ३४४५४(+), ३५१५२-१, ३५२१८-२, ३५२७३-२, ३६९४८-२, ३७५०७-३ २४ दंडक गतिआगति गाथा, प्रा., पद्य, मूपू., (--), ३५६१० (+$) २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( रुचितरुचिमहामणि), ३७९२६-२ २४ मांडला, प्रा., गद्य, म्पू. ( आघाडे आसन्ने उच्चारे), ३५३२६, ३७२९०-२, ३७३१५, ३७३२८-२, ३८८५३, ३७७२७-१८) २६ बोल श्रावक मर्यादा, प्रा. गद्य भूपू (उल्लणिवाविहं १ दंतणव), ३८८४३-२(+) 1 २७ आकाश नाम, प्रा., गद्य, श्वे., ( आगासेति वा १ आगास छ), ३८८४४-२, ३८९९१-२ २८ लब्धि विचार, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., ( आमोसहि विप्पोसहि), ३५५८२, ३८७१४(#) (२) २८ लब्धि विचार-टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (जेहने सरीरने फरस से), ३५५८२, ३८७१४/० ७ २९ भावना प्रकरण, प्रा., गा. ३०, पद्य, श्वे., (संसारम्मि असारे), ३७४१० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) २९ भावना प्रकरण -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, श्वे. (संसार असाररूप छइ), ३७४१० ३२ असज्झाय गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, भूपू (उकावाए विसावाहे), ३४९२२-१ (२) ३२ असज्झाय गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उका० तारा तुटै ते), ३४९२२-१ ३४ अतिशय आलापक, प्रा. गद्य, भूपू (चउती बुधा सेसा), ३७९३९ 19 " ३५ वाणीगुण वर्णन, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (संस्कारत्वं संस्कृत), ३६५५९-१ ३६ आयुध प्रकार, सं., गद्य, (चक्र धनु वज्र खड्ग), ३५६६८-१५ ३६ बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., गा. ३६, गद्य, मूपू., (एगविहे असंयमे एगे), ३८८३९($) ४२ भाषाभेद गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जणवय सम्मय ठवणा नामे), ३५४९८(+) (२) ४२ भाषाभेद गाथा - बालावबोध, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (जणवय कहीइ जे जे देस), ३५४९८ (+) ४५ आगम श्लोक संख्या, सं., गद्य, मूपू., (१ आचारांग २५००२), ३७९६९-१ ६४ दिग्कुमारी विवरण, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो लोग वत्थवयाउ), ३७६१३-१(+) ६४ योगिनी स्तोत्र, मु. धर्मनंदन, प्रा. गा. १५, पद्य, भूपू (जगमग्झिवासिणीण), ३८७६१-१ " For Private and Personal Use Only ४७१ Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ दिव्ययोगी महायोगी), ३६५३७-१, ३८५३८-१ ७२ कला नाम-पुरुष, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (लिखित१ पठितर संख्या३), ३५६६८-९ ८४ आशातनासूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (काव्यखेल केलि कलिं), ३६९७६-३ ९९ प्रकारी पूजा, क. पद्मविजय, मा.गु.,सं., गा. १११, वि. १८५१, पद्य, मूपू., (उत्तम गुरु चरणे नमी), ३६८००-१(६) १७० तीर्थंकर नाम, सं., गद्य, मूपू., (श्रीजयदेवसर्वज्ञाय), ३५६७९, ३७६०३-१ ३६३ मतों के भेद, मा.गु.,सं., गद्य, जै.?, (स्वसमय परसमय ज्ञाने), ३५२२४-१ ५६३ जीवभेद श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (प्रोक्ता नैरयिका), ३५६७५-२ अंगपूर्वव्यवच्छेद कालमान, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुत्तूण दिट्ठिवायं), ३६५४५-३ अंगस्फुरण फल, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिरफुरणे किरि रज्ज), ३५९०९-२(#) अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (उसभसमगमणमुसभजिणमणि), ३७८३७ अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), ३५५७६(+$) अंतर्कथा संग्रह, आ. राजशेखरसूरि, सं., कथा. ८१, ग्रं. २४००, गद्य, मूपू., (यन्नैकामपि कामिनी), ३६०८९(+$) अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (प्रथम इरियावही), ३८५९६-१ अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., श्लो. १६, पद्य, दि., (त्रैलोक्यं सकल), ३५८८८-१(६) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं.७०, गद्य, पू., (प्रणिपत्य प्रभु), ३५३७९-१(+), ३७३५०-२(+), ३६४५६ अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खु), ३५६८०-३(+) अक्षौहिणीसैन्यमान प्रमाण संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (एकेभैकरथा अश्वाः पंच), ३६०३६-१ अजितजिन स्तवन, वा. पुण्यशील गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अजितजिनेश्वर विजित), ३६३८१-४(+) अजितजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (तमजितमभिनौमि यो विरा), ३६२३१-२, ३६६१३-२ अजितजिन स्तोत्र-स्तंभतीर्थमंडन, उपा. जयधर्म, प्रा., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (लावन्नामय कलिय), ३७८५९-३(+) अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जियसव्वभयं संत), ३६०२९(+#S), ३६८४५(+), ३५०९१, __ ३५३३८, ३५५१७, ३६४८४, ३७४४३, ३७४४५-२, ३५५७४(६), ३५५८४(६), ३५९२१(६), ३७२९७-१(६) (२) अजितशांति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भगवति गर्भस्थे), ३६३८८(+$) (२) अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (मंगल कमलाकंद ए), ३७९२६-१, ३६०८८(5) अजितशांति स्तवबृहत्-अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सकलसुखनिवहदानाय सुर), ३६५५३-१(5) (२) अजितशांति स्तवबृहत्-अंचलगच्छीय की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं जिनं श्रीअजितनाथ), ३६५५३-१(६) अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (गब्भ अवयार सोहम्मसुर), ३६५५३-२, ३४५७०(-) (२) अजितशांति स्तवलघु (अंचलग.) की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (गर्भावतारे सौधर्मसुर), ३६५५३-२ अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (उल्लासिक्कमनक्ख), ३५५०३($), ३६५३८-१(5) अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (आहारे उवहिं सिय उवस), ३६७५० अढीद्वीप ३२ विजय जिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीजयदेवनाथाय), ३८३४४ अणुत्वपुद्गलादि विचार संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (अणुत्वं पुद्गलसंज्ञा), ३६१०८ अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., अधि. १६, श्लो. २७२, पद्य, म्पू., (जयश्रीरांतरारीणां), ३५४९१(६) (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-अधिरोहिणी वृत्ति, उपा. धनविजय, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमः परमाप्ताय), ३५४९१(s), ३७४३५(5) अध्यात्मचत्वारिंशिका-पार्श्वजिनस्तुतिगर्भित, उपा. शिवचंद्र, सं., गा. ४४, पद्य, मूपू., (संसारांभोनिधि तरण), प्रतहीन. (२) अध्यात्मचत्वारिंशिका-पार्श्वजिनस्तुतिगर्भित-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सः पार्श्वेशः श्रीपा), ३७२७४(+) अनंतकल्याणकर स्तोत्र, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (अनंतकल्याणकर), ३५१२८ अनागत २४ जिन स्तोत्र, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (वीरवरस्स भगवउ वोलिय), ३६३८५-१(-) अनार्यदेशे तीर्थंकरविहार प्रश्नोत्तर, सं., गद्य, मूपू., (श्रीधर्मार्थमनार्य), ३६२०२(+$) For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४७३ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेण० नवमस्स), ३६३१२(+$), ३४४७१ (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथाआराने), ३६३१२(+$) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविह), प्रतहीन. (२) त्रिविध आगम आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (आगमे तिविहे पण्णते), ३५४६९-२(+) अनुयोग विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अनुयोग आठवा पछी), ३७१८२-३ अनुयोग विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (मुहपत्ती पडिलेही), ३७१८२-१ (२) अनुयोग विधि पाठांतर, संबद्ध, मु. हंसविजय, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (गुरुशिष्य बन्ने जणा), ३७१८२-२ अन्नपूर्णा स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (भगवति भवरोगात्पीडित), ३५१५२-२ अन्नायउंछ कुलक, प्रा., गा. ३१, पद्य, मूपू., (अन्नायउंछगहणे कयचित), ३५८३३ अब्भुट्ठिओ सूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ३६८९०-२ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः), ३६३४०(+$), ३८०७१(+#$). अभिनंदनजिन स्तुति, वा. पुण्यशील गणि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (जय जय जय हे विश्वजन), ३६३८१-५(+) अभिनंदनजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (त्वमशुभान्यभिनंदननंद), ३७७०७-३ अरिहंत १२गुण श्लोक, मा.गु.,सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष १ सुर), ३८३८१-४(१) अरिहंतगुण स्तुति, प्रा.,मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (अन्नाणकोहमयमाणलोह), ३६४१४-१(+) (२) अरिहंतगुण स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवि देवना अढार दोष), ३६४१४-१(+) अरिहाण स्तोत्र, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (अरिहाण नमो पूर्य), ३५९४४-६(+$), ३६७५५-२(+) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, वि. १२वी-१३वी, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापिकण), ३५८९९-१(+#), ३५९०५-१(+), ३८९८२-१, ३६०९१(६) अल्पबहुत्व १४ बोल गाथा, प्रा., गद्य, मूपू., (एतेसिणं भंते जीवाण), ३६९७८-१ (२) अल्पबहुत्व १४ बोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एह नवहे भगवान पूज्य), ३६९७८-१ अष्टभंगी, मु. जयसोम-शिष्य, सं., गद्य, मूपू., (जीवभेदाः ५६३ तद्यथा), ३७८६०(+#) अष्टमीतिथि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संप्रात संसारसमुद्र), ३८६१७-२(+#) असज्झाय विचार, सं., गद्य, मूपू., (सूक्ष्म रज आकाशाद्), ३४४९९ अहिंसा कुलक, प्रा., पद्य, मूपू., (तत्थ पढम अहिंसा), ३६५५५ (२) अहिंसा कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां पहेलो संवर), ३६५५५ आगम छुटक पन्ने, प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., मूपू., (--), ३४९५६-२(#S), ३७११२($) (२) आगम छुटक पन्ने-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३७११२($) आगमादिसूत्रों का बीजक संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (--), ३५५९१(६) आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, मूपू., (जे भिक्खूवा भिखूणी), ३७४६२-३(+) आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (कप्पइ निग्गथाण वा), ३६३६१(+), ३५९९४-१, ३६१७२, ३७३८०(5) (२) आगमिकपाठ संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सत्तहिं ठाणेहीत्यादि), ३६१७२ (२) आगमिकपाठ संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ३६३६१(+) आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (तेणं कालेणं तेण), ३५१७४, ३४९६५-१(#) (२) आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक-टबार्थ, मागु., गद्य, श्वे., (ते० ते काल ते चोथा), ३५१७४ आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ४०, प+ग., मूपू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), प्रतहीन. (२) आचारदिनकर-शांतिकमहापूजन विधि, हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (तिहां प्रथम शुभदिने), ३६६२१(६) For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), ३४४७३-२(+), ३६७१०(+६), __३७२९८(+$), ३५३३९, ३५४८६-२(७), ३५५६७(६), ३६१४१(६) (२) आचारांगसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रुतस्कंधे), ३५४८६-२(६) (२) आचारांगसूत्र-टिप्पण*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३५३३९, ३५५६७($) (२) आचारांगसूत्र बालावबोध *मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीसुधर्म), ३६७१०(+$) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागने नमस्कार), ३७२९८(+$), ३६१४१($) (२) आचारांगसूत्र-हिस्सा द्वितीय श्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १६, प+ग., मूपू., (से भिक्शु वा भिक्खुण), प्रतहीन. (३) आचारांगसूत्र-के द्वितीय श्रुतस्कंध का हिस्सा अध्ययन१ उद्देश२ १२कुल विचारसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (से भिक्खूवार जाव पव), ३८७०९-३(+) । (४) आचारांगसूत्र-के द्वितीय श्रुतस्कंध का हिस्सा अध्ययन१ उद्देश२ १२कुल विचारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते साधसाधवी ग्रस्थना), ३८७०९-३(+) (२) आचारांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध का हिस्सा अध्ययन८ उद्देश४, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (--), ३६७५२ (२) आचारांगसूत्र-हिस्सा शस्त्रपरिज्ञा उद्देश-५ वनस्पतिजीव विचार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (से वेमि एयमि जाइधम्), ३७७७२-१(+) (३) आचारांगसूत्र-हिस्सा शस्त्रपरिज्ञा उद्देश-५ वनस्पतिजीव विचार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सेवेमि एम ते कहुं छु), ३७७७२-१(+) आचार्य ३६ गुणवर्णन, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (पडिरूवाई चउदस१४ खंती), ३७५८६ आचार्यपद प्रतिष्ठा विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (पसत्थेतिहि १ करण), ३६३०४-१ आचार्यपद प्रदान विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (--), ३६२४२(5) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, वि. ११वी, प+ग., मूपू., (देसिक्कदेसविरओ), ३६००४(+s), ३६३८७-२(+), ३७२३८(+$), ३६९३८ (२) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (देशस्य त्रसकायस्य), ३६६५०-२(७) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (अरहंता मंगलं मज्झ), ३५१२४(+), ३६२१८-१(+) आत्मनिंदाष्टक, आ. जिनप्रभसूरि*, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (श्रुत्वा श्रद्धाय), ३५२२३-२(+) आत्मशिक्षा प्रकरण, वा. सकलचंद्र, प्रा., द्वा. ४०, गा. १६७, वि. १५वी-१६वी, पद्य, मूपू., (सिद्धत्थ सुअंसिद्ध), प्रतहीन. (२) आत्मशिक्षा प्रकरण की चयन गाथा, वा. सकलचंद्र, प्रा., पद्य, मूपू., (--), ३६१२१-३(+$) आदिजिन ९८ पुत्र कथा, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (--), ३५९३८(5) आदिजिन अभिषेक विधि सहित, सं., श्लो. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीवीतरागममृतेशमनंत), ३७११५ आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (विणयनयरी विणयनयरी), ३६२३०-२(+), ३७७९४-२ आदिजिनद्वात्रिंशिका, सं., श्लो. ३३, पद्य, पू., (युगादिदेवाय युगादियो), ३४९६२-१(+#$) आदिजिन नमस्कार, सं., श्लो. ३, पद्य, म्पू., (वंदे देवाधिदेवं तं), ३७५०४-२(+) आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. ३८, वि. १५वी, पद्य, मपू., (महिम्नः पारं ते परम), ३६९५०-१(+), ३७३३२(+) आदिजिन लेख, सं., श्लो. ३८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमरुदेवी), ३६८१८-३(#) आदिजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (नयगमभंगपहाणा विराहिआ), ३६३२०-१(+) आदिजिन स्तव-देउलामंडन, ग.शुभसुंदर, प्रा.,सं., गा. २५, पद्य, पू., (जय सुरअसुरनरिंदविंद), ३६६६७(+) (२) आदिजिन स्तव-देउलामंडण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (कियदनुभूत मंत्रयंत्र), ३६६६७(+) आदिजिन स्तवन, वा. पुण्यशील गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ऋषभ योगीश्वरं भजत), ३६३८१-३(+) आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरिमंडन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. ३३, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (श्रीअर्बुदाचल विभूषण), ३६१५१-१ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिजिनं वंदे गुणसदन), ३६५५०-२(+#), ३४७२० For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ आदिजिन स्तव - षडभाषामय - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., ( अवधिरहितं रुचिरं ), ३६६३४(#) आदिजिन स्तव - षड्भाषामय, आ. जिनप्रभसूरि, अप, पै., प्रा., माग. शौ.सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (निरवधिरुचिरज्ञानं), ३६३२९(#$), ३६६३४(५) (२) आदिजिन स्तव षड्भाषामय - अवचूरि, पं. मतिविजय, सं., गद्य, मूपू., (१ज्ञानातिशयः २राग), ३६३२९(#$) आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भव्याभोजविबोधनैक), ३५४१७-२, ३६२३१-१, ३६४७७-१, ३६६१३-१ आदिजिन स्तुति, सं., वो ४, पद्य, भूपू (आनंदानप्रकत्रिदश), ३४४५१-२ (१), ३५१२३-१(+४) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, भूपू (जय जय जगदानंदन जय), ३८७५१-११ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ७, पद्य, श्वे., (दुरिततिमिरध्वांता), ३६०३८-१ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबौधनैकतरण), ३७५४५-२ आदिजिन स्तुति, सं., श्रो. ४, पद्य, भूपू (युगादिपुरुषेंद्राय), ३५१२३-१०००), ३६६११-३ आदिजिन स्तुति- अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, म्पू, (वरमुक्तियहार सुतार), ३७४२६-३ " आदिजिन स्तुति - कल्लाणकंदं पादपूर्तिमय, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भावानयाणेगनरिंदविंद), ३५१४०-१, ३८८९४-२ आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (उद्यत्सारं शोभागार), ३४८७३-१, ३५२५४-१ आदिजिन स्तुति-भक्तामरस्तोत्रप्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), ३५३२८-१, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६३३५-१, ३६४६६-१, ३६८२७-१, ३८८८४-१ आदिजिन स्तुति - शत्रुंजयमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शैले शत्रुंजयाख्ये), ३४४५१-१(+) आदिजिन स्तुति-संसारदावानल प्रथमपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथं नतनाकि), ३५१४०-२, ३८८९४-१ आदिजिन स्तोत्र, सं., श्रो. ९, पद्य, भूप (अनमोहन ३५१५९ आदिजिन स्तोत्र, सं., वो ८, पद्य, भूपू. (जय वृषभजिनोभिष्टवसे), ३६७०३(का " आदिजिन स्तोत्र बहुविहछंद जाति, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. गा. ३३, पद्य, भूपू (सयल भुवणिक बंधन), ३७८५९-२(+) आदिजिन स्तोत्र - शत्रुंजयतीर्थ, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (पूर्णानंदमयं महोदयमय), ३८७३२-२ ३७४७३-४ आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, म्पू. (आहाकम्मु १ देसिय २) ३७२४९ (+), ३५४३४-१ " " (२) आधाकर्मीगोचरी दोष चालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू. (आह० आधाकर्मि ते कहीइ), ३७२४९(+) आध्यात्मिक श्लोक संग्रह, मा.गु. सं., पद्य, थे. (हंसा फेरि विसणि बगला). ३५५५६४ आप्तमीमांसा, आ. समंतभद्र, सं., परि. १०, श्लो. ११५, पद्य, दि., (देवागमनभोयानचामरादि), ३५८८८-३($) आभाणशतक, मु. धनविजय, सं., श्लो. १०८, वि. १६९९, पद्य, मूपू., (प्रणम्य गुरुपादाब्ज), ३७७८७(#) आयंबिल तप द्विदल नहीं विषयक शाखप्रमाण संग्रह, प्रा., प+ग, भूपू (श्रीजिनशासनमाहि), ३६००८-१ आयुष्य विचार, अप., गा. ५, पद्य, मूपू., (मणुआण वीसोत्तरसयं), ३५१७६ (२) आयुष्य विचार -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्यनो १२० वरसनो), ३५१७६ आराधना कुलक, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (नाणे दंसण चरणे तव), ३६१५२-३ (+) आर्यदेशनाम गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, वे (रायगिह मगह चांपा अंग), ३७९३६-२(+) . आदिजिन स्तोत्र - शत्रुंजयमंडन, ग. अभयतिलक, सं., श्लो. ३२, पद्य, भूपू. (--), ३७८५९-१(+३) आदिनाथ स्तोत्र, आ. चारित्रसुंदरसूरि सं. लो. २१, पद्य, भूपू. (आदीश्वरं स्वतिशबालि), ३४६४१-२ (०) आदिनेमिपार्श्वजिन स्तवन -शत्रुंजय गिरिनार जिरावलामंडन, उपा. जयसागर अप. गा. १, पद्य, मूपू.. (सितुंजय आविजिगिंदवर), आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं. अधि. १९ सू. २२८, वि. १०वी, पद्य, दि., (गुणानां विस्तरं), ३६९४६ (३) " आलोयणा, प्रा., मा.गु., गद्य, श्वे., (एक प्रकार कौ असंजम), ३६४४३ आलोयणा आराधना विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ३४८८४(S) आलोषणा रथ, प्रा.मा.गु., गा. १. पा., म्पू, (कव चउसरणो नाणी निअमि), ३७३३८-१ आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६. सू. १०५, प+ग. म्पू, णमो अरहंताणं० सव्व), ३८७३७, ३५५५शा ४७५ For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ " "" (२) आवश्यकसूत्र नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू (आभिणिवोहियनाण), ३६३६२ (+) (३) आवश्यकसूत्र नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #. आ. हरिभद्रसूरि, सं. ग्रं. २२०००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), प्रतहीन (४) आवश्यकसूत्र - नियुक्ति की शिष्यहिता टीका का चयन गौतमादि गणधरनामगोत्रादि परिचय, सं., गद्य, भूपू (सांप्रत वक्तव्यताशेष), ३५८३१ (३) आवश्यकसूत्र नियुक्ति का हिस्सा प्रतिक्रमणनियुक्ति अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गा. ५२, पद्य, मूपू., (पडिक्रमणं पडिकम), ३५५९३(+) (३) आवश्यकसूत्र -निर्युक्ति का हिस्सा सामायिक अध्ययन निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अध्य. प्रथम, पद्य, भूपू., (आभिणिबोहियनाणं सुयना), प्रतहीन. (४) विशेषावश्यकभाष्य आ जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अध्य. प्रथम, गा. ३६०३, पद्य, म्पू, कयपवयणप्पणामो वोच्छं), प्रतहीन (५) गणधरवाद, हिस्सा, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ४७६, पद्य, भूपू., (जीवे तुह संदेहो पच्च) प्रतहीन. (६) गणधरवाद - गणधर संशयगाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जीवे१ कम्मे२ तजीवी), ३५८९८-१ (७) गणधरवाद - गणधर संशयगाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीमहावीरदेना), ३५८९८-१ (२) आवश्यकसूत्र टीका #. आ. मलयगिरिसूरि सं. ग्रं. १८०००, गद्य म्पू. (पांतु वः पार्श्वनाथ), प्रतहीन, 2 " 3 (३) आवश्यकसूत्र - टीकागत समवसरण विचार, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (प्रथमं वायुकुमारदेवा), ३६५२४-१ (२) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), प्रतहीन. (३) आवश्यकसूत्र - शिष्यहिता टीका का विचार, संबद्ध, सं., गद्य, भूपू (--). ३५६११(०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) आवश्यकसूत्र -अवचूरि * सं. गद्य म्पू (--), ३५५५३(३) " 2 (२) आयरियउवज्झायसूत्र - प्रतिक्रमणसूत्रगत हिस्सा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (आयरिय उवज्झाव सीसे), ३५८२९-७) (२) आवश्यकसूत्र - हिस्सा वंदनक अध्ययन, प्रा. सू. ०१, गद्य, मूपू.. (इच्छामि खमासमणो बंदि), ३५६३१-१(+), ३७०८९(+) " (३) आवश्यकसूत्र - हिस्सा वंदनक अध्ययन - टीका, सं., गद्य, मूपू., (इच्छं वांछित क्षमा), ३७०८९(+$) (३) आवश्यकसूत्र - हिस्सा वंदनक अध्ययन टचार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू.. (इ० वांछउ छउं ख० अहो, ३५६३१-१(+) (२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.सं., प+ग, मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो ), प्रतहीन. (३) चैत्यवंदनसूत्र का चैत्यवंदन विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+गा, म्पू (इछामि खमासमणो कही), ३५६८७-१, ३६९७५ (२) लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा. गा. ७. पद्य, भूपू (लोगस्स उज्जो अगरे), ३६३५८ (३) " "" (३) लोगस्ससूत्र -बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोगस्सउजोयगरे कहतां), ३६३५८($) (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा. गा. १०, पद्य, म्पू (नमुत्थुणं अरिहंताणं), ३५५०५ (+), ३५३५८, ३५६२२-१, ३६३०१-१ . (३) शक्रस्तव - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं नमो), ३५५०५(+), ३५६२२-१ , (३) शक्रस्तव - (सं, मा.गु.) बालावबोध, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (अति वाक्यालंकारे नमः), ३५३५८ " (३) शक्रस्तव टवार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (नमस्कार हो अरिहंतने) ३६३०१-१ (२) सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (सकलकुशलवली), ३५८१५-१(+), ३७७९६-४(+), ३४८५३-१, ३६८४१-१, ३७९३०-१(१) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल कहीइ समत्तं न), ३७९३०-१(#)) (२) १९ कायोत्सर्ग दोष विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (घोडानी परि एक पगि), ३५९७६(#) (२) अतिचार आलोयणा - रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू. (आजुणा चौपहुर दिवसमाह), ३७२९५-२, ३५८६२-५ () (२) आवश्यकसूत्र - गोचरी प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. सं., गद्य, मूपू. (विहत्यागतः सपात्र एवं ). ३६५४५-२ " (२) आवश्यकसूत्र -पोरसीपडिलेहणा गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (निअ जाणूवरि संठिय), ३६५३४-५ (२) आवश्यकसूत्र संबंधी प्रमाणभूत साक्षिपाठ संग्रह, संबद्ध, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (श्रीसूरिपरंपरांगने), ३६१२०($) (२) इरिवावही सज्झाथ संबद्ध, पं. वीरविजय, मा.गु. गा. १४. वि. १९वी पद्य भूपू (गुरु सन्मुख रही विनय), ३७५५१-२, ३८३६८, ३८६०७, ३७२२४-२ ($) 3 For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) कलाकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा. गा. ४, पद्य, भूपू (कल्लाणकंदं पदमं), ३६६११-५, ३८९८७-३, ३५८२९-१(१), ३४७१३-२(३) . (२) काउसग्ग आगार, संबद्ध, प्रा., मा.गु., पद्य, मूपू., (रायाभियोगेणं राय बले), ३५०९३-२ (२) कायोत्सर्ग २१ दोष, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (ऐर्यापथिक्यादि), प्रतहीन. (३) कायोत्सर्ग २१ दोष खालावबोध, मा.गु, गद्य, भूपू (पोडैरी पर ऊंचो नीचो), २७७३८ (२) क्षेत्रदेवता स्तुति, संबद्ध सं. लो. १, पद्य, मूपू (यस्याः क्षेत्र समाश), ३५८२४-३(+) + Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) गुरुवंदनसूत्र-श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छा० संदि० अब्भु), ३७३३६-३ (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., ( नमो अरिहंताणं), ३६९३४-४(+) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु., प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० पढमं), प्रतहीन.. (३) श्रावकलघुअतिचार -अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छा० भगवन्० अरिहंत), ३६४१८-२ (२) ) देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, भूपू (अहन्नं भंते तुम्हाण), ३६५५२-२, ३७०१३-२ (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं. पण, म्पू, नमो अरिहंताणं), ३६९७० (३) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय देवसीप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरीआइ च लोगसचइ), ३७२६६-१(+) (३) पौषधपारणसूत्र -तपागच्छीय, संबद्ध प्रा., मा.गु., पग, मृपू. (सागरचंदो कामो), ३५३४९-२ (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मृपू., (मन्दजिणाणं आणं मिच्छ), ३४५५६-२(१), ३४९७१-१(+१), ३६००५-२(१), ३८७५८-२(+४) ३५११२, ३५५०८, ३७२८४, ३७६८७-२, ३५८५६-२(क (४) महजिणाणं सज्झाय सपागच्छीय स्वार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (मानवी श्रीवितरागनी), ३५११२ " (२) पाक्षिकीमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, भूपू (इच्छाकारेण संदिसह), ३७३३६-२, ३८९८१-३ (२) पाक्षिकचीमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (मुहपत्तिवंदणयं) ३५३०२-१(०), . " ३६९३४-५(+), ३८९८१-२, ३७८९७-३(#) (३) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि -टबार्थ, रा., गद्य, मूपू., (अथपक्खिचउमासीसंवत्छर), ३८९८१-२ (३) क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्षांबिकाद्या), ३६८९०-४, ३७९१८-२, ३८५५०-३(#) (३) छींक विचार, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, मूपू (पाखी पडिकमणा करता). ३८९०५-२, ३८६२०-२(४) (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, मूपू. (वेवसिय आलो० इच्छाकार), ३५२९९(+०) (२) पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि पडिकमिइं), ३८२२६-१ (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम इरियावही पडिक), ३५०९२-१, ३७४९५ (६), ३५८६२-१() (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू. (इरियावहि चार नवकारनो), ३८७५८-१(४०), ३७४१७-१, ३८२८५(३), ३५८६२-३-१ ४७७ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (खमासमण देइने इरिया), ३५२३१ (२) प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ३८३७३ (+), ३८७६३-१(+), ३८५६२-२ (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (पाछिली रात्रइ शय्या), ३६४५३ (+$), ३८३१९ (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संवद्ध, प्रा. मा.गु, गद्य, मृपू ( देवसिय आलोइय पडिक), ३५६४५ (+४), ३६०६१(+४), " ३४६४८, ३५०९२-२, ३५४०६, ३७४२३, ३७६४८, ३७८४८-१, ३८९२६, ३७४५१(३) (२) प्रतिक्रमणविषयक संबद्ध, प्रा. सं. प+ग, भूपू (--), ३५९२९(३) . , (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कर पडिकमणुं भावशुं), ३८२०५ (+), ३६३९६, ३८६८२-२ (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे श्रीमहावीर), ३८९६४-१(३) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, पंन्या. रूपविजय, मा.गु, गा. ९. वि. १९वी पद्य, मूपू (कर पडिकमणुं भावशुं), ३७६७५-१ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह " संबद्ध प्रा. मा.गु. सं., प+ग, भूपू (नमो अरिहंताणं नमो), ३६९६१ (+), ३७९६५ (४), ३८८०२(३) "3 " For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ३६२९४, ३६४००, ३६८४३-२, ३६८६३-१, ३७८९३-३, ३८७११, ३५४११(६), ३५५७५ (5), ३६४१८-१(s), ३७४७४(s) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-वे.मू.पू. टीका, सं., गद्य, स्पू., (इह चैत्यवंदनादर्शनशु), ३६४००, ३५५७५ (5) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं करेमि), ३५३०८-२(5) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीगुरुदेवजीकुं), ३५३०८-२(६) (२) प्रतिक्रमणहेतु विचार, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधु अने श्रावक दोइ), ३८४८३(+) (२) प्रतिलेखनकालमान गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (आसाढे मासे दुप्पया), ३६५३४-१ (२) प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुतत्थतत्थदिट्ठी), ३४४९१, ३५२७७-१, ३५३३७-१, ३६५३४-३ (३) प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली पडिलेहणानु), ३५३३७-१ (३) प्रतिलेखनबोल गाथा-गाथार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम दृष्टिपडिलेहण), ३४४९१ (२) प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमी), ३५०९२-४, ३५१०६-१, ३८२२६-२, ३८९६८-१ (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ३४८९२-१(+), ३५१५०-२(+), ३५८०४(+), ३६२६१(+), ३४४६३, ३५०२१, ३५०९३-१, ३५१५२-३, ३५२१६-२, ३५२७४-१, ३५३०१, ३५५४२, ३५७६७, ३५९४८, ३५९७०, ३६२३५, ३६३७२-१, ३६४६९, ३६५५२-१, ३६८४२-१, ३६९२७, ३७३५६-१, ३७८३४, ३८७३४, ३६२६३, ३७९४३(#), ३५००३(s), ३५६६२-१(६), ३५८६२-४(२) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे सूर्य उगव), ३५७६७ (३) प्रत्याख्यानसूत्र-२२ आगार शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अन्नत्थ पद सर्वत्र), ३५२२६ (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दो चेव नमोक्कारे), ३५१५०-१(+), ३६४३७-२(+s), ३६३७२-२, ३७७८४-१ (४) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अन्नत्थणाभोगेण), ३५१५०-१(+), ३६४३७-१(+) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ३७८०३-३(+), ३४८९९-३, ३८९७१-१ (२) राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (कुसुमिण दुसुमिण राईय), ३८९८१-१ (३) राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा-टबार्थ, रा., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदि०), ३८९८१-१ ।। (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ३६५२६-३(+), ३७९३१-१(+), ३५३९२-२, ३५४६५, ३६०७१, ३६४९७, ३६६३२-२, ३६६६९-१, ३५८५६-१(-१) । (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), ३५४२८(+), ३६४६३-१(+), ३७४६४-२(+), ३८१९३-१(+), ३४४७८, ३४८९३-१, ३५५७७, ३५६९६-२, ३५७२९, ३५८३२, ३६१७९, ३६५१९-२, ३६६३८, ३६७७२, ३६८४३-१, ३७९२७-१, ३८७३०-१, ३८८५५(#), ३६१६६(s), ३६६३२-१(६), ३७०३७-१(६), ३७४६५(s), ३७४६६(७), ३८९४८(६), ३६६३५) (३) वंदित्तुसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदितु क० वांदीने), ३६८४३-१ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), प्रतहीन. (३) पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), ३४८८७ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताण), ३६६४२ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनई नमस्कार), ३५६६३-२(5) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (श्वे.मू.पू.), संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), ३५६००+६), ३८७३५(#), ३५१९९(5) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रन्टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ नमस्कार हुओ), ३५६००(+$) (३) पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मिअ), ३६४५९-१(+), ३५२५९-१, ३६४५८ For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४७९ (३) श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमिदंसणंमि०), ३७१५२(+), ३७७४३(+), ३६५१९-१, ३६५८४, ३५६९६-१ (२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., मूपू., (पण संलेहणा पनरस), ३६५३८-३, ३७९२२-२, ३५९४५ (#S) (२) संवच्छरीप्रतिक्रमण-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., मूपू., (इच्छाकारेण संदेस० तस), ३५६९५ (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीरं), ३४६९४-१, ३७५०५-३, ३८२१३-१, ३८३३४-३, ३५५९६(#) (३) संसारदावानल स्तुति-टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नमामि प्रणम), ३५५९६(#) (३) संसारदावानल स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (संसा० नमामि प्रणमामि), ३४६९४-१ (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताणं नमो), ३६०४२(+), ३६९०९, ___३७३९०-१, ३५१९५(s), ३६९७२-१(5) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० आवस्स), ३७९९१(६) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., म्पू., (नमो अरिहंताणं नमो), ३५१७२, ३५६५५(5) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ३५१०२, ३५४७१-२, ३५५२६-२, ३५९९७, ३६५३१-१, ३६८९०-३, ३६९७१-१, ३७३१८-१, ३७३४२, ३८१४१(2) (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भते० चत्तारि०), ३५६०१(+), ३५९३२(+$), ३५९७२(+$), ३६४६४(+), ३६९४५(+), ३७४६४-१(+), ३४७८९, ३४९००, ३५३५७, ३५७४०, ३५७९३, ३५८५४-१, ३६०७३-१, ३६२१०, ३६४७१, ३६९७३, ३७३५२, ३७४९९-१, ३७९२२-१, ३६०६२(#S), ३५०३५(s), ३५३०७-२(5), ३५६२०(5), ३५६६२-३($), ३६६११-१(s), ३७००१-१(s), ३७०३८(), ३७२४२-१(६), ३८६७६($), ३५६४२(-) (४) पगामसज्झायसूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (शुभयोगेभ्योशुभयोगांत), ३५६०१(+) (४) पगामसज्झायसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वं नमस्कारपूर्व), ३५६२०(६) (४) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ साधूनां प्रतिक्रम), ३६०६२(#$) (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ३६२४४(+$), ३५०७८, ३५४७१-१(६), ३५५२६-१(६), ३५९९३(s), ३७७००(६) (३) प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पडिक्कमणा परियरणा), ३५६६४-१, ३७२३९-३ (४) प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा-कथा, सं., पद्य, मूपू., (पुरे क्वापि नृपः कोप), ३५६६४-२($) (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सयणासणन्नपाणे), ३५८५४-२, ३६८९०-५, ३६९२५-२, ३७३९०-४, ३८१८७-३ (३) साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ३६४७३-१(+#), ३४४८६, ३५२०३, ३५३१३, ३५४९६-१, ३५७२७, ३५७५०, ३६८८९, ३६८९०-१, ३६९१७, ३६९२६, ३७०३७-२, ३७२४२-२, ३७३३६-१, ३७३६९-१, ३५२७०, ३५९५५(#), ३६९३६(१), ३६०७६(5) (३) साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (संथारा उवट्टणकि परिय), ३६२७३-३(+#), ३७३९०-२ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ३७३३१(६) (२) सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम १० मन संबंधी), ३६२०५-३, ३४६२३-१(-) (२) सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पालद्धी अथिरासण दिसि), ३६६१२-२, ३८९७६-१ (३) सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पालखीइंन बेसीई), ३६६१२-२ (३) सामायिक ३२ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बाहि तथा वस्त्र पलाठ), ३८९७६-१ (२) सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम खमासमण देई), ३६९३४-३(+), ३८४०३-२(+), ३६२०५-२, ३५८६२-२(-) (२) सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम वस्त्र उतारी), ३६९३४-२(+) आशीर्वचन, सं., श्लो. १०, पद्य, श्वे., (भाले भाग्यकला मुखे), ३५४६७-१ For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ आशीर्वचन पाठ, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नक्षत्राक्षतपूरित), ३७७२०-२ आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, मूपू., (आहाकम्मे१ उद्देसिकर), ३८५४४(+), ३५३३४ (२) आहार के ९६ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आ० आधाकरमी आहा), ३८५४४(+) इंद्रमाला परीधान विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (श्रीआदिदेवाय विश्व), ३६८५७ इंद्राक्षी स्तोत्र-रुद्रयामले, सं., श्लो. २२, पद्य, वै., (ॐ अस्य श्रीइंद्राक्ष), ३७९७५-२ इंद्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., (सुच्चिअसूरो सो), ३५९३४-१(+$), ३६५२६-१(+) इरियावहि कुलक, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (दवा अडनउय सयं १९८ चउ), ३६१९१ इष्ट तिथ्यादि सारणी, मु. लक्ष्मीचंद्र, सं., वि. १७६०, पद्य, मूपू., (श्रीवामेयं नमस्कृत्य), ३५३६५($) ईर्यापथिकषत्रिंशिका कुलक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. ३६, वि. १६२९, पद्य, मूपू., (पणमिअजिणवर वीरं), ३६७९८(5) (२) ईर्यापथिकषट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं. ७४७, वि. १७वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्यात्मविदं वीरं), ३६७९८(5) ईर्यापथिकी कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (पणमिअसिरिवीरजिणं), ३६२८४-१ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ३६०६५(+#$), ३६८९४(+$), ३४५०५, ३७४२१, ३७३५७(s), ३९०३८($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा* मा.गु., गद्य, श्वे., (उत्तराध्ययनो स्यु), ३९०३८($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, सं., पद्य, मूपू., (एकस्य आचार्यस्य), ३६०६५(+#S), ३६१८३(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, हिस्सा, प्रा., गा. २७३, पद्य, म्पू., (जीवाजीवविभत्तिं सुणे), ३६६०७(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ९, हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू., (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न), ३५३१६, ३५९७५, ३८७१५, ३५४३३() (२) उत्तराध्ययनसूत्र का हिस्सा सामाचारी अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ५३, प+ग., मूपू., (सामायारी पव्वक्खामि), ३७२३०(७) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा १०वाँ अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (दुपपत्तए पंडुअए जहा), ३५१४७-१(+), ३५८१२ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा रहनेमिजं द्वाविंशं अध्ययनम्, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ४९, प+ग., मूपू., (सोरियपुरमि नयरे आसि), ३५१३४(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा विणयसुयं प्रथमअध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ४८, पद्य, मूपू., (संजोगा विप्पमुक्कस्स), ३६९३९ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., गी. ३६, पद्य, मूपू., (सरसति मति अति निरमली), ३५४९९(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र दशमाअध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. करण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (समवसरण सिंहासने जी), ३७२४१-७ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विषयदर्शन, संबद्ध, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (प्रथम विनइ अध्ययन), ३८०८२(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (अमीय समाणी वाणी वरस), ३७५५६(5) उत्पादव्ययध्रौव्यसिद्धि निरूपण, सं., गद्य, म्पू., (अनंतधर्मात्मता), ३५८६४(+) उपदेशतरंगिणी, ग. रत्नमंदिरगणि, सं., त. ५, ग्रं. ३३००, पद्य, मूपू., (श्रीनाभेयः स वो देया), ३६०६७(+$) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ३७४६७(45), ३४४६५(5) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), ३४४६५(5) उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (उवएसरयणकोसं नासिअ), ३४९२७(+), ३५५८३(+), ३६०५१-३(+$), ३६६७७, ३६८०५, ३७८०० (२) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर चउवीसमु), ३६०५१-३(+5), ३७८०० (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपदेशरूप रतन तेहनो), ३४९२७(+), ३६६७७ उपधानतप सूत्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नोकारनां पंच महामंगल), ३७०९३-३ उपसर्गगण, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (प्रपरापसमन्ववनिर्दुर), ३६७१६(+) (२) उपसर्गगण-दीपिका टीका, सं., गद्य, मूपू., (अयं उपसर्गगण: प्राक), ३६७१६(+) For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अध्य. १० प्र. ८१२, प+ग, भूपू (तेणं० चंपा नाम नयरी) ३५३४० (३) (२) उपासकदशांगसूत्र -बार्ड, मा.गु, गद्य, मूपू (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ३५३४० (5) " " उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., ( उवसग्गहरं पासं० ॐ), ३६४७५ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १७, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., ( उवसग्गहरं पासं० ॐ), ३६८०४-२ उवसग्गाहर स्तोत्र - गाथा २०, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गा. २०, पद्य, भूपू., ( उवसग्गहरं पासं०० 36 ), प्रतहीन. (२) उवसग्गाहर स्तोत्र -गाथा २० वृत्ति, सं., गद्य, म्पू., (-), ३६१३०(३) יי उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., ( उवसग्गहरं पासं पासं), ३५२५०-२ (+), ३५४६२-२(+), ३५६०२-१(+), ३६७७७-३(+), ३७७३७-२(+), ३४६९४-२, ३५०६२-१, ३६८०८-२, ३६८९७-३, ३५२७३-३(३) ३७८८३(३) (२) उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ०५ की लघुटीका, सं., गद्य, मूपू., (अहं पार्श्वं श्रीपार), ३७८८३ (६ (२) उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५-वृत्ति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १७वी, गद्य, मृपू (उपसर्गहरमिति इदं च), ३५०६२-१ (२) उवसग्गाहर स्तोत्र गाथा ५ अवचूरि, सं., गद्य, मृपू. ( उवसग्गहरं पासं०), ३४६९४-२ (२) उवसग्गहर स्तोत्र -गाथा ५ - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीयशोभद्रसूरिप्रदत), ३७७३७-२(+) (२) उवसग्गाहर स्तोत्र गाथा ५ का टवार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (उपसर्ग जे विप्न तेहन), ३५४६२-२(+), ३५०६२-१ 3 (२) उवसग्गाहर स्तोत्र गाथा ५ की भंडारगाथा संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, म्पू, (तुह दंसणेण सामिय), ३५४७४ ३ उवसग्गहर स्तोत्र गाथा ७, आ. भद्रवाहुस्वामी, प्रा. गा. ०७, पद्य, भूपू (उवसगाहर पासं०० ॐ), ३५२१७१) (२) उवसग्गाहर स्तोत्र गाधा ७ का टवार्थ, मा.गु, गद्य, मृपू., (अहो बुधाः अहं श्रीपा), ३५२१७/०) उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., ( उवसग्गहरं पासं पासं०), ३५९६२ (+), ३७३९७ ऋतुमतिदोष लक्षण आचारांगसूत्र सूतिकाध्ययनोद्धृत, प्रा. गा. ३, पद्य, मृपू (नहि जिणभवणे गमणं पर), ३८७७३-३ ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा. गा. ५०, वि. ११वी, पद्य, मूपू (जयजंतुकप्पपायव चंदाय), ३५४५४नका (२) ऋषभपंचाशिका - अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (जयजत्वित्यादि व्याख), ३५४५४नका 1 ऋषभवीर स्तव, उपा. शांतिचंद्र, सं., श्लो. ३९, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिसाधनहरि), ३८१५१($) ऋषिदत्तासती कथा, सं., श्लो. २५०, पद्य, मूपू., (इति परिहृतानां अपि), ३५४४५ (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं. न. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, भूपू (आद्यताक्षरसंलक्ष्य), ३५३१०-१(+), ३६३५४(-), ३६४२१(+३), ३४८६७, ३५२०९-१, ३६३९७, ३६८९७-५, ३७२३३, ३८८४५-१ ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., श्लो. ६३, पद्य, म्पू, (आद्यताक्षरसंलक्ष्य), ३८८७८(+) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र - टिप्पण, सं., गद्य, म्पू. (आद्यक्षरोकार अंत), ३८८७८) ऋषिमंडल स्तोत्र, सं., श्लो. ८४, पद्य, दि. (आद्यंताक्षरसंलक्ष्यम), ३६०४०-२(१) " एक स्वरमय षट्पद, अप., गा. १, पद्य, मूपू., (सकल अकल नयसज्जं सबल), ३७७१७-३ (+) "" एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि, आ. हिरण्याचार्य, सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे. (श्रीवर्धमानमानम्य), ३५१३५ (+) ओली विधि संग्रह, प्रा., गद्य, भूपू (ए तप प्रथम आसोसुदि), ३८४४४ औपदेशिक लोक, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (जिनेंद्रपूजा गुरु), ३७२४५-२, ३८४६६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) औपदेशिक श्लोक - विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेव परम), ३८४६६ औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (संवत्सरेण यत्पापं ), ३८३३९-३(#) , औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा., सं., श्लो. ७०, पद्य, श्वे. (इक्कुच्चि उदयगिरी), ३६६७६-१ " औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. ५०, ग्रं. ५६८, पद्य, मूपू., (किं लक्ष्मीं गजवाज), ३६०९०-३, ३६५२०-५ औपदेशिक लोक संग्रह, प्रा., पद्य, भूपू (जाणता वि य विषय), ३६७१४-२ (+४) " ४८१ For Private and Personal Use Only औपदेशिक लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. ६१, पद्म, थे. (धर्मे रागः श्रुती), ३५७९४०, ३६५५६-३, ३६५५८, ३६६१२-३, , ३७६२१-२, ३७९२७-३, ३८३८८-५, ३७५०३-३(१) (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह * -बालावबोध, रा., गद्य, श्वे., (अर्हंत भगवंत सर्ण), ३६५५८ औपदेशिक लोक संग्रह, प्रा.सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां काले), ३६५४३-३(+#) Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८२ www.kobatirth.org कैलास अतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), प्रतहीन. (२) औपपातिकसूत्र - अंबडपरिव्राजक आलापक, हिस्सा, प्रा., गद्य, म्पू, (तेणं कालेणं तेणं), ३४९६५-२(४३), ३७६७२(६) औषधवैद्यक संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., गद्य (अनार दाणा टां. ८०), ३४५७५-८+), ३४८४२-३(+), ३७४९३-२(+१), ३८६३५-२(+), ३४८७८-१, ३५८२२-१, ३५८४१-३, ३७७१०-३, ३८२१६-३, ३८३९५-१, ३८५३९-२, ३८२७४-३(#), ३८६०२-५(#) औषध संग्रह *, सं., गद्य, (--), ३८६८०-३ 7 कथा संग्रह, प्रा., मा.गु., पद्य, मूपू., (किं पर ज बहुजाणवणाहि), ३७४५८-४($) कथा संग्रह, सं., गद्य, भूपू (पश्चिम विदेहे गंधिला), ३५३४३(+) कथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानुं नाम), ३६०४८(#$) कथा संग्रह - पूजादिविषये, प्रा., सं., प+ग., मूपू., (--), ३५५४१ कमलविचार गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, भूपू., (पढमित्थ कमलेमेकं अठ), ३५८९८-३ करकंडुमुनि सज्झाय, प्रा. गा. १३. पद्य म्पू. (करकंडु कलिंगेसु), ३८८७५ , करलक्खण, प्रा., गा. ६१, पद्य, भूपू. (पणमिय जिणममिअगुणं). ३७८३३(३) कर्त्तव्याकर्त्तव्य औपदेशिकगाथा संग्रह, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (जाईकुलरुव्वबलसूय तव), ३६०३२-१ (२) कर्त्तव्याकर्त्तव्य औपदेशिकगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (जातिमद क० मातापक्ष), ३६०३२-१ कर्म कुलक, प्रा., गा. २१, पद्य, मृपू.. (तेलुकिकिस्स मल्ल), ३६१२६-५ (३) י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मबंध सज्झाय, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., ( अजयं चरमाणोय पाण), ३८३३४-२ कर्मविपाक, म. सकलकीर्तिदेव भट्टारक, सं. गद्य, दि. (-). ३६६१४) मु. "3 "" कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६०, वि. १३वी - ९४वी, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ३८८८६ (+$), ३४६६६ ($), ३६६३७ ($), ३७३०७ ($) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं. ३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू., (श्रियाष्टप्रातिहार्य), ३८८८६(+$) " 1 (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु. वि. १८०३, गद्य, मूपू (प्रणिपत्य जिनं वीरं), ३७३०७ (३) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ -यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा. गद्य, मूपू (श्रीवीरजिन प्रते), ३६६२६(+) कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ, ऋ. गर्ग महर्षि प्रा. गा. १६८, पद्य, मूपू (ववगयकम्मकलंकं वीरं) ३७७२४(४६) "" (२) कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ - पारमानंदी टीका, आ. परमानंदसूरि, सं. ग्रं. ९२२, गद्य भूपू (निःशेषकर्मादयमेपजालम), ३७७२४(#$) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि कलंकी जन्मपत्री फलकथन, प्रा. रा. गद्य, भूपू (मम निव्वाणं गोवमा), ३५९०८-१, ३६००७ . कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. व्याख. ९. अं. १२१६. गद्य म्पू.. (तेणं कालेणं० समणे), ३५६५१-१+४, ३६३२२+७), " ३५९३१(३) ३६४०८(४) ३७०८७) प्रा. गा. ३४, वि. १३वी १४बी, पद्य, मूपू. (तह थुणिमो वीरजिणं), ३५५६३-२(३) . (२) कल्पसूत्र - टीका *, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ३५५६१ ( s), ३५९३१($), ३६१८२(s) (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा, विनयविजय, सं. नं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, भूपू (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), प्रतहीन. "" (३) कल्पसूत्र-कल्पसुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, मूपू., (वेदपदानि च विज्ञान), प्रतहीन, (४) कल्पसूत्र - कल्पसुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता -बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे श्रीमहावीर), ३६५९५३) (२) कल्पसूत्र - कल्पकल्लोलिका बालावबोध, मु. अमृतकुशल, मा.गु., वि. १७७५, गद्य, मूपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), ३६११०(०३) (२) कल्पसूत्र - बालावबोध " मा.गु. रा. गडा, मृपू. ( नमो अरिहंताणं) ३५३२२(४) ३५४३९) ३५५१२(३) ३६६४०(४) (२) कल्पसूत्र -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरो ), ३५६५१-१ (+5) (२) कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा ". सं., गद्य, भूपू (तत्रादौ श्रीऋषभदेव), ३४६८० For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८३ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) कल्पसूत्र च्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ३५६५१-१(+$) (२) कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (बलदेव बलिदेव वासुदेव), ३४७६०(+5) (२) कल्पसूत्र अपूर्ण व छूटक पाना *, संबद्ध, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३७२१४($) (२) कल्पसूत्र-कल्पफल, संबद्ध, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (पुत्रा पंचमतिश्रुताव), ३७५६६-१ (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहँत भगवंत उत्पन्न), ३७४६२-२(+), ३७४५४-२, ३८११३-१(#$), ३६०७५(६), ३६१३८(5) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ३५१५३(+), ३७८४३(+), ३८९१६-१(+), ३७४४०, ३७४७६ (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तराफाल्गुनी नक्षत), ३७२९९($) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, मूपू., (कल्याणांपुरिम इह), ३६७९९($) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, सं., गद्य, मूपू., (पुरिमचरिमाणकप्पो), ३५५९३(+$) कल्पसूत्र व्याख्यान फलश्रुति, सं., गद्य, मूपू., (यद्रेणुर्विकलीकरोति), ३७५३१-२ कल्याणक पारनेकी विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही तस्सुत्तरी), ३५७०४-२ कल्याणक लेहण की विधि, पुहि.,प्रा., प+ग., मूपू., (गुरुके आगे इरियावही), ३५७०४-१ कल्याणक विधि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (च्यवनपरमेष्टि नमः), ३८१५३-३ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदार), ३४४५३-१(+), ३६१०२-३(+#), ३६११६(+#), ३७७५४(+), ३७७५५(+), ३८८६७-१(+), ३८८७२(+), ३५००६-१, ३५२७३-१, ३५३२१, ३५३८९, ३५६७४-२, ३६४४२, ३६८०८-१, ३६८६४, ३७५१६, ३८८८१, ३४९८६(#5), ३४५९७-२(), ३६०७४(६), ३६७८०) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वज्ञ जिनमानम्य), ३६०७४($) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ३६८८१(#$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., दि., (परम ज्योति परमातमा), ३५०१७, ३९०४२(5) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अन्वय, मा.गु.,सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (किलेति सत्ये तस्य), ३८८६७-१(+) कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुह दसणरहिओ काय), ३६७०८(+), ३४७००-१, ३७४०६ (२) कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ३६४१३-१(+$), ३७४०६ (२) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे दर्शनइ), ३६७०८(+) कारकविभक्ति निरूपण, प्रा., गद्य, श्वे., (निद्देशे पढमा होति), ३६८८४($) (२) कारकविभक्ति निरूपण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिली विभक्ति हुइ), ३६८८४($) कारकविभक्ति विवरण, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (त्रिहुं प्रकारि उक्त), ३६७९७(+$) कार्तिकपूर्णिमापर्व व्याख्यान, ग. जयसार, सं., वि. १८७३, गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलतीर्थेश), ३६८६१(+), ३६६३० कार्तिकश्रेष्ठि कथा, प्रा., गद्य, मूपू., (--), ३५४३८(६) (२) कार्तिकश्रेष्ठि कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३५४३८(5) कालविचारशतक, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., (नमिय जिण काल कील), ३५९३०(5) काल विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (वाघाई अहुरत्ती दक्षि), ३६१९० कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ७४, पद्य, मूपू., (देविंदणयं विज्जाणंद), ३७५१८(+$), ३७४७५ (२) कालसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (देवेंद्रनत), ३७४७५ ।। कुंथुजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (जय जय कुंथुजिनोत्तम), ३७२४१-५ कुम्मापुत्तचरिअ, मु. जिनमाणिक्य, उपा. अनंतहस, प्रा., गा. १९८, ग्रं.१०००, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं असुरं), ३५८७०(+) For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८४ www.kobatirth.org कुशल प्रश्नोत्तर, मु. कुशल, सं., गद्य, श्वे., (श्रयि कुशलशालिनः पंड), ३७४१३-१ कुसुमांजलि श्लोक, प्रा. सं., गा. ९, पद्य, भूपू (मुक्तालंकारसारसौम्यक), ३६२३०-१(+) कृष्णभव चतुष्ट्य वर्णन, प्रा. सं., गद्य, छे. (ननु श्रीकृष्णवासुदेव), ३७४४९ . क्षमा कुलक, प्रा., गा. २५, ग्रं. ७२, पद्य, भूपू. (नमिऊण पुब्वपुरिसाण, ३६१२६-२, ३५३०६(७) " क्षेत्रपाल पूजा, सं., पद्य, मूपू., (श्रीमज्जिनेंद्रयज्ञे), ३८८६२ (+) खामणा कुलक, प्रा., गा. ३८, पद्य, म्पू. (जो कोवि भए जीवो चउगह), ३६१२६-३ . गणधर पर्याय, प्रा.मा.गु., प+ग, मूपू., (पन्नासा गिहवासे तीसा), ३५७७८ ($) गणधरवाद, प्रा., सं., प+ग, मूपू., (जाणमाणे पासमाणे), ३५३७८(+#$) गणधरसार्धशतक, आ. जिनवत्तसूरि प्रा. गा. १५०, पद्य, भूपू (गुणमणिरोहणागिरिणो), ३६८०२ गणेशाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., ( उमांगजं कर्णवक्र), ३५६७६-२ त्यागति लक्षण, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (गत्यागति लक्षण चिहु), ३५२७७-४ गर्भधारण मंत्र विधिसहित, मा.गु. सं., गद्य, (ॐ ह्रीँश्रीँजीँकलि), ३६९१८-३ गर्भपोषण विधि, मा.गु., सं., गद्य, जै. ?, (वातलैश्चभवेद्गर्भः), ३६७९३-२) गर्भापहार गाथा, प्रा., सं., गा. ५, पद्य, मूपू., (योनिद्वारेण गर्भं), ३६५३२-३(S) गांगेयभंग प्रकरण, मु. श्रीविजय, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वद्धमाणं), ३४४६९($) (२) गांगेयभंग प्रकरण - अवचूरि, सं. गद्य, भूपू (वंदितु इति), ३४४६९(5) " गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ३५९३४-२ (+), ३८६५२-१, ३८७००-३(-) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ (२) गाथा संग्रह - अनुवाद, मा.गु., गद्य, श्वे., (अस्यार्थ लभ्यख), ३८६५२-१ गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि सं. सो. १३५, वि. १४४७, पद्य, भूपू (गुणस्थानक्रमारोहहत) ३६८३९(३) " " गुणानुराग कुलक, मु. जिनहर्ष, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (सयल कल्लाण निलय), ३६५१८ (२) गुणानुराग कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल कल्याणना निवास), ३६५१८ . गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., षट्. ३६, गा. ४०, पद्य, मूपू., (वीरस्स पए पणमिय सिरि), ३६१४६-१(३) गुरुप्रतिमा स्तुप प्रतिष्ठा विधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपु. ( शुभ नक्षत्रेषु शुभवे), ३६४७० गुरुराजवर्णन प्रस्तावना पत्र - भारती वर्णनद्वारा सं., वो २०, पद्य, मूपू. (अंभोवाहमिवांबुवाह), ३६८१८-७(१) 1 गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूपू., (गुरुवंदनणमह तिविह), ३६४२७(+) गुरुवंदन विधि, प्रा., गद्य, मूपू.. (इच्छामि खमासमणो), ३८८८७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरु वंदना, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू. (इच्छकार भगवन् पसाउगर), ३५२४५-२ गुरुशिष्य पत्रलेखन विधि, श्राव. प्रमोद, सं., श्लो. ८१, पद्य, मूपू., (--), ३६८९८-६(#$) गृहबिंब लक्षण, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (अथातः संप्रवक्ष्यामि), ३४४७२-२ (+) गृहविंचस्थापना विधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू (पूर्वं भव्यमुहूर्त) ३७८२४-१ गोचरी आलोयण गाथा, प्रा. गा. २. पद्य म्पू (अहो जिणेहिं असावजा), ३५८५४-३, ३७३९०-३ " गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., ( अहाकम्मु १द्देसिअ २), ३७९४१ (+), ३६२९२, ३६५३३-१, ३७३३०, ३८८९३, ३८९०० (२) गोचरी दोष -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आ० आधाकरमी ते कहीइ), ३६५३३-१, ३७३३०, ३८८९३ For Private and Personal Use Only (२) गोचरी दोष -टबार्थ, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (यती निरांधी दीइ जे), ३७९४१(+) (२) गोचरी दोष - विवेचन, पुहिं., गद्य, मूपू., (गृहस्थाने सर्वदर्शन), ३८९०० गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., कां. २ अधिकार ३१, गा. १७०५, पद्य, दि., (सिद्धं सुद्धं पणमिय), प्रतहीन. (२) गोम्मटसार-उदयत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ७३, पद्य, दि., (पंचणवदोणिअट्ठावीसं), ३७९०६(+) (२) गोम्मटसार- कर्मकांड, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, दि., (पणमिय सिरिसा णेमिं), ३५४३७($) गोशालककृत उपसर्ग प्रथम आश्चर्य, सं., गद्य, मूपू (एकदा श्रीवीरो विहरन्), ३७३९५ " Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ गोशालक भूत भावि विचार, सं., श्लो. ७२, पद्य, मूपू., (प्रभु श्रीवर्द्धमानो), ३७४१४-१(+) गौतम कुलक, प्रा. गा. २०, पद्य, मूपू (सुद्धा नरा अत्यपरा), ३५०२० (+), ३५४९७(+), ३५७६८(०), ३५०२७-१, ३५२९३, " ३५४४०, ३५४४७, ३५८१६, ३६०५६, ३६१९५, ३६८८५, ३८९०४ ३७३१७(१) ३५४७२(३), ३६६६२(३) (२) गौतम कुलक- टीका, सं., गद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अर्थपराः), ३५८१६ (२) गौतम कुलक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (लुद्धा० लोभी नरा), ३५०२० (+) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (लुब्धा लोभिष्ठा), ३५७६८ (+) , (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ३५४९७ (+), ३५४४०, ३५४४७, ३६१९५, ३६८८५, ३६६६२ (६) (२) गौतम कुलक-वार्थ + कथासंकेत, मा.गु., गद्य, म्पू. (श्रीमज्जिनं प्रणम्य), ३५०२७-१ गौतमपृच्छा, प्रा. प्रश्न ४८ गा. ६४, पद्य, भूप, (नमिऊण तित्थना), ३७८०३-१(+३), ३८५८५ (+) ३७७८८, ३६३१०(5) . गीतमस्वामी अष्टक, सं. . १०, पद्य, म्पू (श्रीइंद्रभूतिं वसु ३६५६५-२ (क " गौतमस्वामी मंत्र, प्रा. सं., गद्य, म्पू (अरिहो भगवओ गोयमस्स), ३४४५२-२ و Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमस्वामी मंत्र-यंत्र जापविधि सहित, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (ॐ भगवो गोयमसामिस्स), ३५०२५-१(+) गीतमस्वामी स्तुति, क. कमलविजय, सं. लो. १, पद्य, भूपू (विजय परमागम देवता), ३५१२३-८(+४) ३५५४९-४ " , गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूति), ३७१११-७ गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु. सं., गा. ५, पद्य, मृपू., (अंगुठे अमृत वसे लब्ध), ३६९८३-५२०१ गौतमस्वामी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मृपू (जिना अर्हत् सिद्धि), ३६३८५-२) गौतमस्वामी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (मयैवं दुर्देवं शमय), ३६९५०-२ (+) गीतमस्वामी स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (मुखश्रिया निर्मित) ३७५०५-४ गौतमस्वामी स्तोत्र, आ जिनप्रभसूरि, सं. श्री. ९. वि. २४वी पथ, भूपू (ॐ नमखिजगन्नेतुर) ३५७८५-१, ३४८७५-१क्षण गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), ३४९०४-१ (+), ३७५१४-२ (+), ३४८५९-१, ३४८८१-२, ३५०१८-१, ३६६०६-३, ३८४२५-२ ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ३५३१०-२(+), ३७७५७-१(+), ३४४८०, ३५३२९, ३५४७७-३, ३५६२६-१, ३५७१८-१, ३६९६७, ३६९६९-१, ३८२११, ३८८८२ घंटाकर्ण कल्प, मा.गु. सं., गद्य, क्षे. (प्रणम्य गिरिजाका). ३६२९९-१(5) "" घंटाकर्ण महावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ३५८१५-२(+), ३५९०२-२ (+), ३६२९९-२, ३७३९१-४, ३८३४२, ३८३४३, ३८८४५-२ घंटाकर्ण महावीर मंत्र, सं. ४, पद्य, म्पू (ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं). ३७३९१-३ '. " घंटाकर्णमहावीर मंत्र विधिसहित, मा.गु. सं., गद्य, मृपू., (ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं). ३५५९८, ३६८६५ घंटाकर्णमहावीर मंत्रस्तोत्र, मु. विमलचंद्र, सं. न. ७१, पद्य, मूपू (ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं). ३७३९१०५ . घंटाकर्णमहावीर मूलमहामंत्र, आ. बुद्धिसागरसूरि, सं. लो. ४. वि. २०वी, पद्य, मूपू (ॐ क्रीं ह्रीं श्रीं), ३७३९१-२ " + घंटाकर्णमहावीर मूलमहामंत्र, सं., मंत्र. ४, गद्य, भूपू (ॐ ॐ क्रीं ह्रीं), ३७३९१-१ घनगणित संग्रह गाथा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (दस जोयणुस्सए पुण), ३५०८१-४ घृताद्युत्सर्जन विधि, प्रा. सं., गद्य, मूपू., (खमासमण इच्छाकारेण), ३६५४५-५ चंद्रगुप्त १६ स्वप्न विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ३७७३१(#$) "3 1 चंद्रधवल कथा - अतिथिसंविभागव्रते, आ. माणिक्यसुंदरसूरि सं. ग्रं. ४०० गद्य म्पू.. (इह भरतक्षेत्रे काश्म), ३६०९९(३) चंद्रप्रभजिन अष्टक, मु. गणेश ऋषि, सं., श्लो. ८, पद्य, वे (चंद्रप्रभं नौमि यदीय), ३७७५३(+) (२) चंद्रप्रभजिन अष्टक -टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अहं चंद्रप्रभं नौमि ), ३७७५३ (+) चंद्रप्रभजिन स्तुति, सं., श्रो. ४, पद्य, भूपू (देवेर्यस्तुष्टवे), ३६१९३-२ चंद्रप्रभजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू. (लक्ष्मीवत्यां शोभा), ३८६४२-२(६) For Private and Personal Use Only ४८५ Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८६ www.kobatirth.org चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्रो, ५, पद्य, भूपू (ॐ चंद्रप्रभः), ३५४०१-२, ३७५०७-२ चंद्रसूर्यमंडल विचार प्रकरण, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा. गा. २४, पद्य, मूपू., (इह दीवे दुन्नि रवी), ३५७२१(+) चंद्र स्तोत्र, सं. श्री. ५, पद्य, श्वे. (अत्र नेत्र समुद्भूत), ३५०६९-२ "" चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ३५११८(+), ३६८९७-६, ३४९८०) चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, म्पू., (सावजोग विरई), ३५०५९ (५०), ३५१३२(+), ३५३८३(+), ३६२७३-१(+), ३६३८७-१(+), ३७४६३(+), ३५४६०, ३५७३५, ३५८८४, ३६५९४ १ ३७४२४ ३४९५०, ३७४०४(१), ३८०२१(०३), ३६१९९३) ३६७८२६) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (चतुः शरणविषमपदविवरण), ३६६५०-१(३) (२) चतुः शरण प्रकीर्णक खालावबोध, मा.गु, गद्य, भूपू (सावद्य योग विरति ते), ३६७८२(६) " (२) चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), ३६१९९($) चतुर्दशीतिथि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (देवाधीशयुते भृशं), ३७२८१-१(३) "" चतुर्विंशतिजिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ८, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिनर्षभ प्रीणितभव्य), ३५२२५ चतुर्विंशतिजिन स्तुति - यमकमय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (तत्त्वानि तत्त्वानि), ३५४९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ (२) २४जिन स्तुति - यमकमय-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (विस्तार्य विनीतेषु), ३५४९४ चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र - पंचषष्ठियंत्रगर्भित, मु, नेतृसिंह कवि, सं. सो. ४, पद्य, भूपू (वंदे धर्मजिनं सदा). ३४८६२, ३६९४८-१ चमरेंद्र कथा, प्रा., मा.गु, गद्य, वे (चोसठ असुराणं चौरासीय), ३६०६८ , " चरणसत्तरी - करणसत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (एवय समणधम्म १० संजम), ३७२३६-१ (+), ३६५४५-१, ३८४८४-४ (२) चरणसत्तरी -करणसत्तरी व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (तत्र श्रमणधर्मो दशधा ), ३६५४५-१ (२) चरणसित्तरी करणसित्तरी - चालाबोध, मा.गु., गद्य, भूपू., (पंचमहान्नत) ३८४८४-४ (२) चरणसत्तरी -करणसत्तरी गाथा - शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू.. ( वय क० पांचमहाव्रत). ३७२३६-१(+) चातुर्मासिककर्तव्य लोक सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (सामायिकावश्यक पौषधा), ३४५४९-२ "" चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., अं. ४०१, गद्य, मूपू (स्मारं स्मारं स्फुरद), ३५२५५ शा चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु. सं., पग मूपू., (सामाइकावश्यक पौषधानि), ३८४३८ (३) " चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद), ३७५२३($) चातुर्मासिक व्याख्यान, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (सामायिकावश्यकपौषधानि ), ३७४०९ ($) चार मंगल, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चत्तारि मंगलं अरिहंत), ३४८२३-१ (२) ४ मंगल - अर्थ, रा. गद्य, भूपू.. ( अरिहंतारो सरणौ सिधां), ३४८२३-२ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चैत्यवंदन चतुर्विंशतिका, आ. शीलरत्नसूरि, सं., स्तु. २४, श्लो. १२०, पद्य, मूपू., (चिदानंदलीला रसास्वाद), ३७७२१($) चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन, अप., गा. ५, पद्य, मूपू., (चउदस इगपमुह असंखसेढि), ३५५४४-६ चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा. मा.गु. सं., पग, भूपू (उस्सप्पिणीहि पदमं), ३७४६१-१ , चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., वि. १८६९, गद्य, मूपू., (तीर्थराजं नमस्कृत्य), ३७३५०-१(+$) चोर के १८ प्रकार, प्रा., पद्य, श्वे. (--), ३६३२४(s) (२) चोर के १८ प्रकार चालावबोध, मा.गु, गद्य, वे (-), ३६३२४३) छंद लक्षण विचार, प्रा., सं., गा. ६, पद्य, श्वे., (बंभो हीरो कण्हो रामो), ३७२२३-२(+) जंबुद्वीपपरिधि विचार गाथा, प्रा., पद्य, मूपू., (विक्खंभवग्गदह गुण), ३५००५ (+#$) (२) जंबुद्वीपपरिधि विचार गाथा -अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (करणी करण प्रकारो यथा), ३५००५(+#$) जंबूद्वीपादिविचार संग्रह, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (--), ३६९६८ (+) जगडू कथा - देवद्रव्यपूजाविषये, सं., गद्य, मूपू., (श्रीकुमारपालः), ३७४५८-१ जपमाला विचार, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (सूत्रस्य जपमाला), ३५२२३-३ (+) जयचंद्रसूरि प्रशस्तिपत्र, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीआदिजिन), ३५३७४ " For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८७ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जय तिहुयणवरकप्परुक्ख), ३४४५७(+), ३५०९६(+), ३६५४८-१(+), ३६८४४(+), ३७५०४-१(+), ३५६६२-२, ३५६७७, ३६९३१, ३५३९०(), ३५५२०(5) (२) जयतिहअण स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अभयदेवसूरि नवांगीवृत), ३७५०४-१(+5) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (जयवंतो वर्ति), ३६८४४(+$) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (परमेसर सिरिपासनाह), ३८६५२-२ जाप फल, प्रा.,सं., श्लो. ८, पद्य, श्वे., (अंगुल्याग्रेण यजप), ३४९२०-२(#) जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमद्देवार्यदेव), ३५६४०-४ जिनकुशलसूरि अष्टक, आ. जिनपद्मसूरि, सं., श्लो. ९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (सुखं सर्वा संपद्वसति), ३४८७४-२ जिनकुशलसूरि अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (पद्म कल्याण विद्या), ३५६४०-२, ३५२६५(2) जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., गा. ९, प+ग., मूपू., (सुरनदी जलनिर्मल धारय), ३५६४०-१ जिनदत्तसूरि अष्टक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीवीरतीर्थेश्वर), ३५६४०-५ जिनदत्तसूरि अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (सुरकिन्नर वंदित), ३५६४०-३ जिनदर्शन श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (दर्शनं देवदेवस्य), ३५१४१-१ जिनपंचक स्तोत्र, आ. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, अर्ध.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीणांप्रीणातु दान), ३५८५८-१ (२) जिनपंचक स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीणां प्रीणातु), ३५८५८-१(क) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह), ३६३५३(+), ३५६७८-४, ३६८९७-४, ३६९२४-१ जिन पूजा कथा, सं., गद्य, मूपू., (एकदा श्रीपत्तने कपर), ३५७७९-१(-) जिनपूजा विषयक शास्त्रप्रमाण संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीपंचमांग भगवतीसूत), ३६०५४(+5) जिनप्रतिमा की रात्रिपूजा रात्रिजागरण निषेध करने का आलावा छेदसूत्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (तिहां देहरा ३ तीन), ३५०२४-१ जिनप्रतिमा श्लोक, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (दालिदं दोहग्ग), ३७८२४-२ जिनप्रतिमास्थापन विचार, सं., गद्य, मूपू., (प्रासादाः शतायामाः), ३७५२५-१ जिनबिंब गण नक्षत्र योनि आदि विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (इह देवस्य तदिबकार), ३८१९१ जिनभवन १० आशातना, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (तंबोल पाण भोयण वाहण), ३८७०९-१(+) (२) जिनभवन १० आशातना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (पान सोपारी अजमो प्रम), ३८७०९-१(+) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (खेल १ केलि २ कलि ३), ३७६३३(+#), ३४४८२ (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मा क्रीडा हासा), ३७६३३(+#) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (देहरे श्लेषमा हास्या), ३४४८२ जिनभवोत्कीर्तन स्तवन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (यः प्राक् सार्थपतिर), प्रतहीन. (२) जिनभवोत्कीर्तन स्तवन-अवचूरि, पं. रत्नसागर गणि, सं., गद्य, मूपू., (आद्ये भवे श्रीऋषभो व), ३७८५४(#) जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनं भक्तितो), ३५४४१, ३६६२५ जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सर्वातिशयसंपूर्णान), ३५९४४-२(+), ३५२०९-२ जिनलाभसूरि अष्टक, मु. जगबल्लभ, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (समुन्नतघनागमस्तनित), ३६५३९-१(+#) जिनलाभसूरि स्तुत्यष्टक, मु. जगद्वल्लभ, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्लाघ्यो जनानां सुजन), ३६५३९-२(+#) जिनवर्द्धमानसूरि अष्टक, मु. उदयसागर, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विविधनृपतिपूज्य:), ३५९१२-२(+) जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., परि. ४, श्लो. १००, वि. १००१-१०२५, पद्य, मूपू., (श्रीमद्भिः स्वैर्महो), ३७५९२(+$), ३५९८० (२) जिनशतक-अवचूरि, सं., परि. ४, गद्य, मूपू., (एष सूर्यो भुवनं विश), ३७५९२(+$) जिनशांतिसागरसूरि पट्टावली, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमत् श्रीमलधारि), ३८९४४(+) जिनस्तुति संग्रह, सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे., (कः प्रौढि मंचति जनें), ३६१४९(+$) (२) जिनस्तुति संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, श्वे., (श्रीयुगलक्ष्मीवान्), ३६१४९(+$) जिनस्तुतिस्तोत्ररत्न कोष, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., अ. २, श्लो. ७५, ग्रं. ८१, पद्य, मूपू., (जय श्रीऋषभ श्रेयः), ३६०८५ For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ (२) जिनस्तुतिस्तोत्ररत्न कोष-अवचूरि, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., ग्रं. २०२, गद्य, मूपू., (लौकिकलोकोत्तरादिभेद), ३६०८५ जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १०५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (कयपवयणप्पणामो), ३७१७९ जीरापल्ली पार्श्वजिन स्तवन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (जीरापल्ली वसुंधरासु), ३५८४८-३ जीवंधर चरित्र, आ. गुणभद्राचार्य, सं., श्लो. ५०९+४, पद्य, दि., (अन्यदासौ महाराजः), ३६७६८(+$) जीव अल्पबहत्व ९८ पदविचार, सं., यं., श्वे., (सर्वस्तोका गर्भज), ३८५७६ जीव आयुमान विचार, सं., गद्य, मूपू., (समाषष्टिर्द्विघ्ना), ३६०९७-२(+) जीवरक्षा दृष्टांतकथा, सं., गद्य, मूपू., (कोपि क्षत्रियः), ३८०९६-२(+) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ३६७२०(+), ३७४७१(+), ३४८९८, ३४९७२, ३५७८१-१, ३६९४०, ३८७०८, ३८८८५-१, ३९०२७, ३७३९८(#S), ३४९४२-१(६), ३५५६२(s), ३६०७९-१(६), ३६२८७($), ३७१६२(s), ३७७८३(5) (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), ३७३९८(#s), ३५५६२($) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विषै), ३६०७९-१(६) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (त्रिण भुवन स्वर्गलोक), ३७७८३($) जीवादिगणित संग्रह गाथा, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (जोयण सहस्स नवग), ३५०८१-१ जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), ३५५७९(5) जैन गाथा, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (--), ३४८६६(+), ३४८९०-२ (२) जैन गाथा -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३४८६६(+) जैनगाथा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ३८३८२-३(+), ३५८०९, ३८३१७-४, ३८३९२-२, ३८४१४-२, ३८५२८-२, ३६७९४-४(s), ३८१७४-२(-$) जैनगायत्री मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अह), ३८९८२-२ जैनदहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (चिहु नारी नर नीपजइ), ३४५९२-२(+), ३८२८७-३(+), ३८००२-४, ३६७७६-२(-) जैनधर्मस्थिरता प्रश्नोत्तर, सं., गद्य, श्वे., (एकदा श्रीमहावीर), ३८५८७-२(+) जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर-विविधग्रंथोक्त, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (द्वादशव्रतधारक केवल), ३६४९२ जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (तत्वानि ९ व्रत ५/१२), ३८३८१-३(#), ३८४२२-२(#) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ३७३२३ जैनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (उतरासण नांखी चावलदान), ३७२८०, ३८६२३-४($) जैन विविध लक्षण संग्रह, प्रा., गा. २२, पद्य, स्पू., (श्रीवीतराग वाणी संसा), ३६४०७(+) जैन व्याकरण, सं., पद्य, श्वे., (--), ३६१२३($) (२) जैन व्याकरण-टीका, सं., गद्य, श्वे., (--), ३६१२३($) जैन श्लोक, सं., पद्य, मूपू., (बाह्यः परिग्रहविधि), ३५८९९-२(+#), ३५७४६-२, ३८८९२-२ जैन श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (दर्शनज्ञानचारित्रात), ३६०१५ जैन श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (--), ३८३५८-४ जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (त्रीणि स्थानानि), ३४८९२-२(+), ३७४१४-५(+), ३४५७९, ३४५८५, ३४७०५, ___ ३४८४३-३, ३४९३९-२, ३५०२७-२, ३५०३६-६, ३५०५८, ३५२२४-२, ३५४१५-२, ३५७०५-३, ३५७०६, ३८३१७-२, ३४८८१-१(६), ३५०६४-८($), ३४६२३-८(-) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., पू., (तेणं कालेणं० चपाए), ३७४७७(+s), ३५९३६(5) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. १०५००, गद्य, भूपू., (ध्यात्वा वीरं जिनं०), ३५९३६($) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-कुंडरिकपुंडरीक कथा, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (वाससहस्सपि जई काऊणं), ३६४३६-१ (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा प्रथमअध्ययन का विचारसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हस्तताल ताह क० संताल), ३५९५०-१ For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (तिहां प्रथम खमा० इरि), ३५४७४-१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतकसुप्रपंचपरमा), ३५०००-३ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), ३६२१४(+), ३७६०५-१(+), ३५०१३, ३५२८९, ३५५४०-२, ३५७४३, ३७५०५-१, ३७६८६-१, ३८७६४-२, ३८९९०-२, ३५८२९-३(#) (२) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीनेमीनाथ पांच), ३६२१४(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (समुद्रभूपालकुलप्रदीप), ३५१२३-२(+#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-पादपूर्तिरूप, सं., पद्य, भूपू., (नत्वा श्रीमद्गुरुभ्य), ३५७९१-२($) ज्योतिष, मा.गु.,सं., गद्य, (--), ३५६१६-४ ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., (--), ३४५७५-४(+), ३४८४२-२(+), ३६५२३-२(+), ३६७७७-१(+$), ३८३८२-४(+), ३४८७४-१, ३४९५४-३, ३५०८०-१, ३५७६९-२, ३६२८४-२, ३७९७७-३, ३८२३५-२, ३८०१७-२(#), ३५६४१-५(5) ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, (ज्येष्टार्क पश्चिमो), ३६९१३-२ ज्योतिषश्लोक संग्रह, सं.,मा.गु., गा. ३३५, पद्य, (आठ मास पूर्व दिन), ३६७९३-३(-) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, वै., (इष्टस्यावधिसंस्थितौ), ३७७५७-३(+), ३५९०८-२, ३७८९९-२, ३५९०९-४(2) ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, म्पू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ३५५९७-२ ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, म्पू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ३६८२६(+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ.१०, गद्य, मूपू., दि., (सम्यग्दर्शनशुद्ध), प्रतहीन. (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-तत्त्वार्थवार्तिक वृत्ति, आ. अकलंकदेव, सं., अ. १०, ई. ७वी, गद्य, मूपू., दि., (प्रणम्य सर्वविज्ञानम), प्रतहीन. (३) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-तत्त्वार्थवार्तिक वृत्ति (दि.)हिस्सा अनेकांतवादसिद्धि, आ. अकलंकदेव, सं., ई. ७वी, गद्य, मूपू., दि., (व्याख्यातो जीवः स च), ३५३२३(६) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-संबंधकारिका आदि, संबद्ध, वा. उमास्वाति, सं., का. ३१, पद्य, मूपू., (सम्यग्दर्शनशुद्ध), ३६०२२(+) (३) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-आद्य संबंधकारिका की टीका, आ. देवगुप्तसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरं प्रणम्य सर्वज्ञ), ३६०२२(+) तपग्रहणविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम), ३५३६३, ३६१८४(६), ३७३१२-९($) तपस्या विधिसंग्रह, प्रा.,मा.गु., गा. ४, प+ग., मूपू., (नउकार १ पोरसीए २), ३६३८९(+) तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ), ३५४६२-३(+), ३५९६८-२, ३६९६६-२, ३७४७९-१, ___३७९१६-१, ३४९५७-३(5) (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (कृत्वा चतुर्णा), ३७२६८ (२) तिजयपहत्त स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं जिनेंद्राणां), ३७४७९-१ (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन जगत्रन प्रभुताना), ३५४६२-३(+) तिथिनिर्णय विचार, क. दीपविजय, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (बीया पंचमी अट्ठमीय), ३७९४८ तीर्थंकर, चक्रवर्ति व वासुदेवनाम, अवगाहना व आयुष्य, प्रा., गा. ११, प+ग., मूपू., (दो चक्की हरपणगं पणग), ३५०६१-१ तीर्थंकरनामादि विचार संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (सिद्धत्थ१ पुन्नघोसं२), ३६७२६ तीर्थद्वात्रिंशिका, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (विभो न नाभेय जिताश्त), ३६७२९ (२) तीर्थद्वात्रिंशिका-टीका, आ. सोमप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (विभो० हे नाभेय जिन), ३६७२९ तीर्थयात्रा नियम, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (एकाहारी शुद्धसम्यक्त), ३५९९४-२ तीर्थयात्रा विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, मूपू., (सोयअहिणवसूरि तित्थजत), ३५१७०(+#) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या देवलोके), ३४९८३(+#), ३४९९६(+-), ३९००५-१(+$), ३४७८०-२, ३४८६१, ३५०५४, ३५५९५,३६२०१, ३६९१०, ३७२६२, ३७३६०-२, ३७४३६-३, ३७४४२ (२) तीर्थवंदना चैत्यवंदन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात्विक भगतिइ उरध), ३७२६२ त्रिंशच्चतुर्विंशतिका स्तवन, मु. देवेंद्रसूरी म., सं., स्त. १०, पद्य, मूपू., (केवलज्ञानिनं निर्वाण), ३६१०३(5) For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ त्रिशलादेवी १४ स्वप्न श्लोक, सं., श्लो. ५४, पद्य, मूपू., (कुंडलनगरं तस्य), ३५३०३(-) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०+परिशिष्ट, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), प्रतहीन. (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. १३, ग्रं. ३४६०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (श्रीमते वीरनाथाय), ३६१७५(+$) (२) सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ३५३१५-२(+$), ३५६९८-१(+), ३६५०७(+), ३४४९३, ३५६८४, ३६२२१, ३६७९२-२, ३६८३०, ३६८४१-२, ३६८९८, ३६९५३, ३७५०९, ३८७९९, ३४६२८(s), ३४८५३-२(s), ३९०२८($) (३) सकलार्हत् स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ३६९५३ (३) सकलार्हत् स्तोत्र-जिनभवन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अवनितलगतानां कृत्रिम), ३६१०२-४(+#) त्रिषष्ठिशलाकापुरुष स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नाभेयादि जिनः), ३६४५९-२(+) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउंचउवीसजिणे तस्स), ३६६००+#), ३६६७१(+), ३६७०६(+६), ३७२३७(+), ३८१९५(+), ३५२७६, ३५६९०, ३६४४८, ३६५१७-१, ३६८८८, ३८८८५-२, ३५१८५(६), ३५३८१-२() (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ३६६००(+#), ३६६७१(+), ३७२३७(+), ३६४४८, ३५१८५() (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमीनइं चउवीसतीर्थ), ३६७०६(+$) दशदिग्पाल पूजाविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (हवे वलि सहाय दानना), ३८८७१ दशविधचक्रवाल समाचारी रथ, प्रा.,मा.गु., गा. १, प+ग., मूपू., (मणगुत्तो सन्नाणी), ३७३३८-३ दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ३४९३४-१(+), ३६०४७(+$), ३७४२०(+$), ३७३११, ३४८९०-१, ३८१८७-४,३८२६९, ३६५९०(#), ३५४३६(s), ३५४८३($), ३५५७८(), ३६००९(६), ३६१४५(s), ३६२४५(5), ३६७१९(s), ३६९७७(६), ३७९०८(६) (२) दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अध्य. १० चूलिका २, ग्रं. ६८५०, गद्य, मूपू., (जयति विजितान्यतेजाः), ३५९१४(+$) (२) दशवकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (संहितादि षड्विधा), ३६१५६(+$) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म सर्वोत्तम मांगल), ३५४३६(७), ३६२४५(६) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *मा.गु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ दुर्गति), ३५६३४(5) (२) दशवैकालिकसूत्र-(पु.हि.)सूत्रार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., (धर्म खोटी गति जाते), ३६७१९(5) (२) दशवकालिकसूत्र-हिस्सा अध्ययन-३, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., वी. रवी, पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा अध्ययन-३ की-सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सूधो साधु निग्रंथ), ३५१०७-१ (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ३५२५०-३(+), ३५२५१-१(+), ३५१०६-२, ३५२११, ३६९०६, ३७३५३-२, ३७९६९-३, ३८२५२, ३६९८३-१(#) (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म मंगलीक उत्कृष्ट), ३६९०६ (२) दशवैकालिकसूत्र-द्रुमपत्री गीत, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. १२, पद्य, पू., (जिम तरुपाक उद्यानडउ), ३४९३४-२(+) (२) दशवकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो), ३७५७३(s), ३८६०९(s) (२) दशवकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), ३६०२०(+$), ३८८६५() For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९१ (२) साधुसाध्वी के बोलने योग्य गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. १७, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगल मुक्किट्ठ), ३६९२५-१ दशवैकालिकसूत्र गुणनांतर विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (खमासमण इच्छाकारेण०), ३६५४५-४ दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., दशा. १०, ग्रं. १३८०, पद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ), प्रतहीन. (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १४१, पद्य, मूपू., (वंदामि भद्दबाहु), ३६७४६(#) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, स्था., (देवाहिदेवं नमिऊण), ३६२३४(+) दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मूपू., (परिहरिय रजसारो), ३५६५०(+) दानशीलतपभावना कुलक, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (नमिऊण महिअमोहं वीर), ३६१२६-१ दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पपुदउ कमसो जीवा जल), ३६१२१-२(+), ३६४१३-२(+) (२) दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व-टीका, सं., गद्य, मूपू., (पपुदउत्ति पश्चिम), ३६४१३-२(+) दिनकृत्य पूजाविधि, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (प्रथम इरियावही ४), ३५२३६-१ दिवारात्रिमान श्लोक, सं., पद्य, (अंगुष्टादौ विजानीयात), ३७२३९-२ दिसित्रिग स्तवन, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (--), ३७५२८-१(+$) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पुच्छा वासे चिइ वेसे), ३५२८१, ३५७१९, ३५७९२, ३७२५९ दीपावलीपर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., श्लो. ४, प+ग., मूपू., (पापायां पुरिचारुषष्ट), ३५६८०-१(+) दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (पापायांपुरि चारु), ३८८९८ दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (दुरिअरयसमीर मोहपंको), ३७४१५-२, ३५०७९(#), ३७७३६-२(#) (२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दुरिय० दुरित कहता), ३५०७९(१) दुषमकाल श्रीश्रमणसंघ स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (वीरजिण भुवणविस्सुय), ३७८२५(+) दुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, ?, (--), ३४७१५-१(+), ३६४७३-२(+#), ३४५२१-६, ३४५५१-२, ३४५८०-४, ३४७०८-३, ३४७२८-३(s) दृष्टाष्टक स्तोत्र, मु. सकलचंद्र, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (दृष्टं जिनेंद्रभवन), ३५५१४-३(+), ३६३९५(+) देवनृप कथा-मस्कारजापविषये, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (मणवंछीअरिद्धीओ इहयर), ३७४५८-२ देवराजवत्सराज कथानक-दानविषये, सं., श्लो. ४२६, पद्य, मूपू., (अस्मिन्नसारे संसारे), ३६८२०(+$) देववंदनमाला विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ३५४७४-२ देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), ३६९३४-१(+), ३८४०३-१(+), ३५०९२-३ देव विशेषक्रिया विवरण-आगमसूत्रे, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (एत्थं च गोअमाजमच्छिय), ३६५९३ देशविरति श्रावक सूत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अह हुज्जदेसविरओ संपत), ३८७०९-४(+) (२) देशविरति श्रावक सूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ क० हिवे हुज क०), ३८७०९-४(+) देहस्वरूप कुलक, प्रा., गा. २३, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणं वीरं किंच), ३६५२६-२(+) द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, मूपू., (कूर्मवामनमीनाद्यैरवत), ३४५१०-३ धन कथानक-सुपात्रदान, सं., गद्य, मूपू., (इहैव भारतेवर्षे अवंत), ३५६४४ धनचंद्र कथा, सं., गद्य, मूपू., (धारायां धनपतिश्रेष्ठ), ३८०९६-३(+) धनुपृष्ठबाहा संग्रह गाथा, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (नव चेव सहस्साइंसयाइ), ३५०८१-२ धर्मजिनचैत्य प्रशस्ति-अहम्मदाबादमंडन, मु. सरूप पं, सं., श्लो. ३३, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमज्जिन), ३८२२५(+) धर्मप्रभावक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (धर्मतः सकलमंगलावली), ३८७४४-२ (२) धर्मप्रभावक श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो भव्य जीवो इणि), ३८७४४-२ धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. १४५, पद्य, मूपू., (नमिऊण सयलगुणरयणकुलहर), ३७४२२-१(#S) धर्मसंग्रह, उपा. मानविजय, सं., प्रक. ४, श्लो. १५९, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेषसुर), ३७२९४(-६) For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ (२) धर्मसंग्रह-स्वोपज्ञ टीका, उपा. मानविजय, सं., प्रक. ४, वि. १७३१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य विश्वेश्वर), ३७२९४६-६) धूर्त कथा-बुद्धौ, सं., गद्य, मूपू., (कश्चिद्भूतः), ३८०९६-५(+) ध्यान विचार, प्रा., पद्य, मूपू., (चत्तारिज्झायाणं तं), ३६५५४-१ नंदननागदेव भ्रातृद्वय कथा-देवद्रव्य विषये, सं., गद्य, मूपू., (विश्वपुरे नगरे क्षेम), ३७४५८-३ नंदमणिकार कथा, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (संपुण्णगुणोविजओ), ३६४३६-२ नंदसाधु आलापक, प्रा., गद्य, श्वे., (अहेव जंबूदीवे दाहण), ३७८८९(+) (२) नंदसाधु आलापक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (आजे क दीपने विषइ), ३७८८९(+) नंदिताढ्य छंद, मु. नन्दिताढ्य, प्रा., गा. ९४, पद्य, श्वे., (णमिऊण चलणजुयल नेमि), ३७२२३-१(+) (२) नंदिताढ्य छंद-टिप्पण, सं., गद्य, श्वे., (गाथासु समानि लघ्वक्ष), ३७२२३-१(+) नंदि विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नांदि मांडीइ खमासमण), ३७४८७-२(+) । नंदीद्वीपस्थजिनालय स्तुति, सं., श्लो. ५३, पद्य, मूपू., (दिशि श्रीपूर्वस्या), ३५२१२(+) नंदीश्वरद्वीप जिनप्रतिमा स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अनाद्यनंताघटितानि), ३७५४५-१ नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ३४८५१(s), ३६१२९($) (२) नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ३५४१७-१ (२) नंदीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ३६९७१-२, ३९०३१(६) (२) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ३६०७२(+$), ३६७०१(+), ३७४८९(+), ३६५८९, ३६७४२-१(६), ३६९०७(5) नग्नपाखंडिमतस्वरूप निरूपणाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (परनिंदा पर तत्त्व), ३७४७० (२) नग्नपाखंडिमतस्वरूप निरूपणाष्टक-टबार्थ, रा., गद्य, मूपू., (हिवणां नवौ प्रगट हुव), ३७४७० नमस्कारफल दृष्टांतसंग्रह, सं., श्लो. ३२६, पद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं १ नमो), ३६१३६-१(+#$) नमस्कारमंत्रमहिमा श्लोक, प्रा.,सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (आकृष्टिः सुरसंपदा), ३६१४८-१(६) । नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), ३५२५०-१(+), ३५७२२(+#), ३७७३७-१(+), ३८०८९(+$), ३६६८८, ३६८९७-१, ३७५२१-१, ३७५४८, ३८२६४ (२) नमस्कार महामंत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (शक्रादिकृतां पूजां), ३७७३७-१(+) (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरउ), ३७५४८ (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ३५७२२(+#), ३७५६६-३($), ३८२६४(६) (२) नमस्कार महामंत्र बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरु नमस्कारु), ३७५२१-१ (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३८०८९(+$) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पा. धर्मसिंह, प्रा.,मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (कामितसंपय करणं तिम), ३८३९२-१ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (नमिऊण पणयसुरगण), ३४७२१, ३७९१६-२, ३४९५७-१(६), ३५४१४-२(5), ३८८१७(5) नमिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (हेलांदोलित दैत्यारि), ३५१४१-४ नयकर्णिका, उपा. विनयविजय, सं., श्लो. २३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानं स्तुमः), ३७८९६(६) (२) नयकर्णिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ३७८९६(5) नयोपदेश, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. १४४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऐंद्र धाम हृदि स्मृ), ३७३२१ नवकार कुलक, प्रा., गा. २३, पद्य, मूपू., (घणघायकम्ममुक्का), ३५७२५ नवग्रह जापमंत्र, सं., गद्य, श्वे., (आदित्य१ पीडायां), ३५०२८-१, ३६९६९-२ नवग्रहपूजा प्रकार विधिसहित, सं., गद्य, जै.?, (कस्मिन् रिष्टग्रहे), ३६८९६ नवग्रहशांति विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीसूर्यस्य पद्म), ३४४५२-१ नवग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (जगत्गुरुं नमस्कृत्य), ३४९६४ For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ नवतत्त्व प्रकरण, आ. देवगुप्तसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (सम्मं च मोक्खबीयं), ३६७२८ (२) नवतत्त्व प्रकरण - भाष्य आ. अभवदेवसूरि प्रा. गा. १३८, पद्य, म्पू, (भूवत्था इह अवितहभावा), ३६७२८ 3 , " नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ३५१६६ (+), ३५३७५ (+), ३५४३० (+), ३५९३७(+#$), ३६११८) ३६७०४(+), ३७३९९(+३) ३५१५५-१, ३५२९१. ३५४२०, ३५६८९, ३५७६५, ३५९६७-१, ३६१९८, ३६३८४, ३७३२४, ३७३४६-१, ३८८९५, ३४९६१(#), ३६०१०-१ (#S), ३५३८१-१($), ३५७८१-२(s), ३६०७९-२($), ३६७३७ ($), ३७३७४($), ३७४८२ (६), ३७२९६ (-) (२) नवस्व प्रकरण- टीका, सं., गद्य, भूपू (जयति श्रीमहावीर) ३७४८२(३) . (२) नवतत्त्व प्रकरण - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरं विश्वेश्वर), ३६७३७ ($) (२) नवतत्त्व प्रकरण वालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ३७३९९ (६) ३७३४६-१, ३६०१०-१ (४७) (२) नवतत्त्व प्रकरण -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतादिक पंचपरमेष), ३६७०४(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-वार्थ ७, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतां च्यार), ३६११८(+), ३६०७९-२(४) (२) नवतत्त्व प्रकरण- २५ क्रिया गाथा, हिस्सा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (काइअ १ अहिगरणीया २), ३५१८४(+) (३) २५ क्रिया गाथा-वार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (कायाई करी कर्म). ३५१८४(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण -जीव भेदानुसार सिद्धिगमन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीवो संवर निझर), ३५१५५-२ (२) नवतत्त्व प्रकरण रूपी अरूपी बोल, संबद्ध, मा.गु.. गद्य, भूपू. (नवतत्त्व मांहि रुपि), ३७६४६ (+) ३७२४४(३) निगोद विचार, प्रा. गा. १३, पद्य, मूपू. (अनंतानां जीवानां), ३५३५१-२ . नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), ३५५९४(#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व जे प्राणनइ), ३५५९४(#$) नवनिदान कुलक, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (निव१ धणी२ नारी३ नर४), ३६५२४-३ नवपद चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि; उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., चैत्यव. ९, पद्य, मूपू., (उप्पनसन्नाणमहोमयाणं), ३८६१८-१ नवपद चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जैनेंद्रमिंद्रमहितं), ३७२४१-३ नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), ३४४७२-१ (+), ३८३३२-२, ३८५४२ नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. सं. गा. १४, पद्य, भूपू (अरिहंत पद ध्यातो) ३७५९८-२, ३८९२१ " नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., स्मर. ९, प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं० हव), ३५९३३ (०३), ३५६१२३), ३६८९२ (३), " नीतिशास्त्र, कौटिल्य, सं., अ. ८, (--), प्रतहीन. (२) लघु नीतिशास्त्र, कौटिल्य, सं., श्लो. २७, पद्य, वै., (कि कुलेन विशालेन), ३७७१४-३) नूतनबिंब प्रवेश विधि, सं., गद्य, म्पू. (सविस्तरो लिख्यते यथा), ३६३४३ नेमिजिन चरित्र, प्रा. सं., पद्य, भूपू (अरिठनेमी नामेति वत), ३६८३३-२(३) नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., श्लो. ९, पद्य, दि. (मानेनानून मानेनानोन), ३७७१३-२(+३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र व्याख्या, सं., गद्य, दि., (आनुमः स्तुमः के), ३७७१३-२(+$) नेमिजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, अप. पै. प्रा. माग. शौ. सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (पारावार समान संसृति), ३५८५८-३ नेमिजिन स्तवन - समस्यामय, आ. जयसिंहसूरि, सं. वो ९, पद्य, भूपू (श्रीवताद्री जिनप), ३५९४२-१ "" नेमिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (चिक्षेपोर्जितराजक), ३७३८६-२ नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मृपू. (कमलवनं तव राजते), ३६४६६-५, ३६८२७-५, ३८८८४-३ नेमिजिन स्तुति, सं. ४, पद्य, भूपू भुवनमोहन रूप मनोहर) २७५०५-२ " יי नेमिजिन स्तोत्र, सं. ५, पद्य, भूपू (परमान्नं क्षुधार्तन), ३८७५१-३) " नेमिजिन स्तोत्र- गिरिनारमंडन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. १७, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (श्रीमदैवतकाभिधान), ३६१५१-२ नेमिदूत, श्राव. विक्रम, सं., श्लो. १२६, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (प्राणित्राणप्रवणहृदय), ३६७४४($) For Private and Personal Use Only ४९३ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ नैगमादि सप्तनय विवरण, सं., गद्य, मूपू., (--), ३६५४४-१(६) नैषध चरित्र, क. हर्ष, सं., स. १२, पद्य, वै., (निपीय यस्य क्षितिरक), प्रतहीन. (२) नैषध चरित्र-(हिस्सा)चतुर्थ सर्ग श्लोकचतुष्टय, क. हर्ष, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (अमृतदीधितिरेख विदर्भ), ३७५३६ (३) नैषध चरित्र-(हिस्सा)चतुर्थ सर्ग श्लोकचतुष्टय-जैनराजी वृत्ति, सं., गद्य, जै., वै., (हे विदर्भजे एषः), ३७५३६ न्यायप्रवेशसूत्र, दिङ्नाग, सं., ई. ४वी, गद्य, बौ., (साधनं दूषणं चैव), ३७२३१-१(+) पंचकल्याणकआराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (१.चवन कल्याणकें प्रम), ३५७८२-२ पंचकल्याणक गणन, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपरमेष्ठिने नमः), ३८३३९-२(#) पंचकल्याणकतपउच्चरण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (नवविहे पुन्ने पन्नते), ३५९६७-२ पंचकल्याणक स्तुति, उपा. जयसागर, अप.,सं., गा. ३, पद्य, मूपू., (असोगचंदेणय रोहिणीए), ३७४७३-५ पंचजिन बृहत्स्तोत्र, उपा. जयसागर, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (जय जय जगदानंदन जय), ३४९२३-१ पंचजिन स्तुति, मु. कांतिविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सुवर्णवर्णं गजराज), ३७५०७-१ पंचजिन स्तुति, आ. पार्श्वजिनेंद्रसूरि, सं., पद्य, मूपू., (य:पंच त्रिदेशेश भूमि), ३७४१४-४(+$) पंचजिन स्तुति, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (जयति कनकावदातः कृष्ण), ३५३९८(+) पंचदशबंधन विचार, सं., पद्य, मूपू., (औदारिकोदारमितिकिं), ३५०११-१(क) पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा.,सं., गा. १, पद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ३५८५७-३, ३६८२१-२(#) पंचपरमेष्ठि मंत्राराधन विवरण-भत्तिभर स्तोत्रगत, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो अरिहंताणं), ३५५९७-१ पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), ३५२१६-१, ३७२९१ (२) पंचपरमेष्ठि स्तुति बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहँतभगवंत अशरणशरण), ३५२१६-१, ३७२९१ पंचमेरू पूजा, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (संवौषडाहूय निवेश्य), ३८१४८ पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९९१, पद्य, मूपू., (नमिउण जिणं वीरं सम्म), प्रतहीन. (२) पंचसंग्रह-जीवद्रव्यप्रमाण गाथा संग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, मूपू., (पत्तेय पज्जवण काइयाउ), ३५९९६ (5) (३) पंचसंग्रह-जीवद्रव्यप्रमाण गाथा संग्रह की व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (पर्याप्त प्रत्येक), ३५९९६(5) पंचांगुलि मंत्र, सं., गद्य, जै., (ॐ नमो पंचागुली), ३८७६०-३ पंचांगुलीकवच स्तोत्र, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (मुक्ति च मंगलं नाम ॐ), ३६६५९ पंचिंदियसूत्र, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचिदिअसंवरणो तह), ३५२७७-२ पक्खि चउमासी संवत्सरी पडिक्कमण विधि, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (मूहपत्ति वंदिणयं), ३५७८४(+) (२) पक्खि चउमासी संवत्छरी पडिक्कमण विधि-टबार्थ, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ३५७८४(+) पच्चक्खाण आगार गाथा, प्रा., पद्य, मूपू., (नवकार १ पोरिसीए २), ३६२४९, ३७५४१-२ (२) पच्चक्खाण आगार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पर्व आवतो जाणीते), ३७५४१-२(5) पच्चक्खाण आगार विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३५८१४ पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (खमा० इरिया० पडिक्कमी), ३५२७४-२ पट्टावली, मा.गु.,सं., श्लो. १९, प+ग., पू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ३५६९४ पट्टावली, सं., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जगन्नाथ), ३५३०५ (६) पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर), ३५००७ पट्टावली, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), ३५४५२(+$) पट्टावली, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरपट्टे सुधर्मा), ३७५३१-१ पट्टावली-उपकेशगच्छीय, सं., गद्य, मपू., (श्रीपार्श्वनाथ २३मा०), ३७९२९-१ पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ३६७०७(+), ३८८७३(+), ३७४४४, ३७४५४-१ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य त्रिविध), ३८८८० पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), ३७७८९-१ For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९५ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पट्टावली लौंकागच्छीय, मु. सुखदेव ऋषि, सं., श्लो. २५, वि. १८वी, पद्य, श्वे., (गच्छे गच्छशिरोमणौ), ३७४५३-१(+) पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, पू., (पडिलेहणाविसेस), ३५३३७-२, ३५४०५-१ (२) पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रतिलेखनाना विशेष), ३५३३७-२, ३५४०५-१ पत्रलेखन काव्य, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (मंदारभासुरतरं द्विज), ३६८१८-४(#) पत्रालेखन विधि, श्राव. प्रमोद, सं., पद्य, स्पू., (स्वस्तिश्रीर्विकच), ३६८१८-८(#) पत्रालेखन विशेषण काव्य, सं., पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीरमणी मणी), ३६८१८-५ (#$) पदस्थापन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (जइगुण१ कालर निसिज्जा), ३६५७५ (+) पदार्थ संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३४५०० पद्मद्रह मान, सं., गद्य, मूपू., (पद्मद्रह कमलवासनी), ३५८९८-५ पद्मप्रभजिन स्तुति, वा. पुण्यशील गणि, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (स्थाणुर्यस्य घनोदधि), ३६३८१-६(+) पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ३५०६९-३, ३८२०८-१ पद्मावतीदेवी आराधन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (आदि करनारा कीजै ॐ), ३५७१७-१ पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., गा.१०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रींकलिकुंडदंड), ३७६२४-२(+) पद्मावतीदेवी जापमंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐहींश्रीऑक्राँ), ३५८७३-१ पद्मावतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ आँ क्रॉ ही ए), ३८२०८-२ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ३५०९०(+), ३६६८५(+), ३५०५५, ३५२२१, ३५३०४, ३४८७७($), ३५७१७-२(5) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, मूप., (ऊँ हाँ हाँ हृद्य), ३४४९७() पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (--), ३८०९५-१(६) पद्मावतीदेवी स्तोत्र-सबीजमंत्रयुत, मु. मुनिचंद्र, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (ॐ ॐ ॐकार बीज), ३६०५३(+), ३५७१४ पद्मावती मंत्र व जापविधि, सं., प+ग., मूपू., (ॐ ह्रीं क्लीं क्री), ३८०९५-२ परदेशीराजा छठ आराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीसमकित पारगतायनमः), ३७३१२-२ परमज्योतिपंचविंशतिका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऐद्र तत्परम), ३६८८६ परमसुखद्वात्रिंशिका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (धर्माधर्मांतर मत्वा), ३४९३७-२ परमसुखबत्तीसी, प्रा., गा. ३२, पद्य, मूपू., (धर्माधर्मांतरंमत्वा), ३६११२(+) (२) परमसुखबत्तीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म अधर्मनु आंतर), ३६११२(+) परमाणुपुद्गल यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., श्वे., (परमाणु पोग्गलेणं), ३५१२९-१ परमाणुमान गाथा, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, श्वे., (पुढवाइ आसत्ता सव्व), ३५८५२-२ (२) परमाणुमान गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अथ जीवनी संता कहे छे), ३५८५२-२($) परमात्मा स्तुति संग्रह, प्रा.,म.,सं., पद्य, मूपू., (--), ३४६५३-४ परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परमानंदसंपन्न), ३५७४६-१, ३६९०४ (२) परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमात्माने नमस्कार), ३५७४६-१, ३६९०४ परमेश्वराष्टक, मु. जयवल्लभ, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (कल्याणकल्पद्रुम), ३५८९०-१ परमेष्ठिमंत्र स्तुति, मु. रामचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (सकलदेवमानवपतिमहित), ३४६९९-१ परिग्रहव्रतउच्चारण विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (अहण्णं भंते तुम्हाणं), ३५४६९-५(+) पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), ३५९९९-२(+), ३५६६१-१(s), ३७५८९(६) (२) पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करिने), ३५६६१-१(६), ३७५८९(5) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. चतुर, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भो भो भव्यजनाः सदा), ३७२७२, ३७९२८ पर्वकर्तव्य गाथा, प्रा.,सं., गा. ७, पद्य, मूपू., (मंत्राणां परमेष्टि), ३६१२७-२ पल्योपम सागरोपम विचार-संग्रहणीमध्ये, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (इहतावत्तत्रपल्योपम), ३५७६० For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org יי ४९६ पल्ली विचार, सं., पद्य, (मस्तके पतिता पल्ली), ३८००४-२ (+६) पाक्षिकचतुर्दशी तिथिनिर्णय - विविध शास्त्रोद्धृत, मु. चारित्रसिंह, प्रा., सं., प+ग., म्पू., (--), ३६३७१ (+$) पाक्षिक प्रतिक्रमणविधि, प्रा. मा.गु, गद्य, भूपू (वंदितुं कहीने) ३८४८२-२ 1 पाक्षिक विचार, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, म्पू., (जिनमार्गमांहि आठमि), ३७२३१-२(+) पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( स्नातस्याप्रतिमस्य), ३५५८७ (+), ३५६९८-२ (+), ३६५९९(+), ३४४६०, ३५३७६-२, ३५५४०-१, ३६१४६-२, ३६५९१, ३६८५२, ३७४९९-३, ३८२१३-३, ३८७६४-१, ३५८२९-५ (#), ३४७१३-१(३), ३८७६०-१(5) (२) पाक्षिक स्तुति टीका, सं., गद्य, भूपू (स श्रीवर्द्धमानो), ३६५९९(+) (२) पाक्षिक स्तुति-वृत्ति, ग. विवेकहर्ष, सं. वि. १६वी, गद्य, म्पू (स्नातस्या० स श्रीवर), ३५५८७(+) " (२) पाक्षिक स्तुति -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नान कराव्यु छे), ३६५९१ (स्नानं कुरुत: अनुपम), ३६५९९(+) "" (२) पाक्षिक स्तुति-शब्दार्थ सं. गद्य, भूपू पानीय ग्रहण विधि शाखसम्मत, प्रा. सं., पापबुद्धिराजाधर्मबुद्धिमंत्री कथा, सं. गद्य थे. (प्रथ्वीभूषणपुरे पापब), ३६६३३(+) प+ग, भूपू (तड पभाईए देवी एस), ३६४०६ (5) " " " " पार्श्वजिन १० गणधर आराधनविधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीसुभग गणधराय नमः), ३७३१२-४ पार्श्वजिन १० गणधर गणनुं, सं. गद्य, भूपू (श्रीशुभगणधराय नमः), ३७३६५-३ "" पार्श्वजिन अष्टक फलवर्द्धि, सं. ९, पद्य, मूपू (श्रीमच्छ्रीफलवर्द्धि), ३६२८३(+) 23 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू (श्रीमदेवेंद्र वृंदा), ३६९७४, ३७२५३, ३६५०३-१(७६) + Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन कलश, प्रा., सं., गा. ९, पद्य, मूपू., (अहो भव्या देवानुप्रि), ३६२३०-६(+) पार्श्वजिन कल्याणक स्तवन, अप., मा.गु., पद्य, मूपू., (आससेण नृप कुलि अवतरि), ३५६५८-२ (S) पार्श्वजिन चरित्र, सं., श्लो १५, पद्य, मूपू पासे नामेति धात्री), ३६८३३-१ + पार्श्वजिन चरित्र, सं., गद्य म्पू. (--), ३६६०५ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., ( ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ३४४५३-२ (+), ३५३१०-३(+), ३४४८७-१, ३५८२३-२, ३७५४५-३, ३८७५१-६() पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ६, पद्य, भूपू (स्तुवे पार्टी जिना), ३७२४१-४ " पार्श्वजिन चैत्यवंदन - चिंतामणि सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), ३५१४१-५ " पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., श्लो. ७, पद्य, मृपू., (वरसं वरस वरसं वरस), ३४५१५-१(०), ३६३८१-२(+), ३४४९२, ३५१७३-१, ३६३४९-२, ३७०११-५, ३७२२९-१, ३७३०२, ३७४५९ (२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वरं प्रधाना संवरस्य), ३४५१५-१ (+), ३४४९२, ३७३०२ (६) (२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन यमकबद्ध- अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (वरा प्रधाना संवरस्य), ३६३८१-२(+) " पार्श्वजिन जाप मंत्र, सं., मंत्र. १, गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीशंखे), ३६७७४-१, ३८५४९-१०) पार्श्वजिनपंचविंशतिका स्तवन -स्तंभनक, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (--), ३८५९७-१(+#$) पार्श्वजिन पद्मावतीदेवी छंद, मा.गु. सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (कलिकुंडंदंड), ३५८७३-२ पार्श्वजिन मंत्र, सं., गद्य, म्पू, (ॐ ह्रीं श्रमणनाथाय), ३५२५१-३(+) पार्श्वजिन मंत्राक्षर स्तोत्र, सं. श्री. ८, पद्य, मूप, (अर्ह श्रीपार्श्वनाथ), ३७५२६-२ " पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्री पार्श्वः पातु), ३७४३६-१, ३८१०६ (5) For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वः पातु वो), ३८५३८-२ पार्श्वजिन मालामंत्र स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, सं. वो १३, पद्य, मूपू., (वपमंत्र धर्मकीर्तितव), ३८९९६-३ , पार्श्वजिन लघुस्तवन - श्रृंगाटकबंधमय, उपा. समयसुंदर गणि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (कमनकंदनिकंदनकर्मदं), ३५८४१-१ पार्श्वजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, अप. पै., प्रा., माग. शौ. सं., श्लो. ६, पद्य, भूपू (भक्तिव्यक्ति प्रणमदम), ३५८५८-४ पार्श्वजिन स्तव -अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्री), ३५७५२-२ "" " Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९७ पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण), ३४८५९-२ पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (स्फुरद्देवनागेंद्र), ३७५४२-१(+), ३६५२०-२ पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (त्वां विनुत्य महिमश), ३६१९३-४ पार्श्वजिन स्तवन, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (कस्तूरीतिलकं भुवः), ३५६१३($) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नोदय शिष्य, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (श्रेयःश्रीणांवाम), ३५७९१-१ पार्श्वजिन स्तवन-अवंति, ग. अमीचंद, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सिद्धक्षेत्र), ३५०१९(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जय जय गोडीजी महाराज), ३४९८५-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. धर्ममंदिर, मा.गु.,सं., गा.७, पद्य, मूपू., (खरी खंति हुंति प्रभो), ३४८७५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. जयसागर, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (गणदीवी वृषवी द्वीपा), ३५८४६-४ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. जयसागर, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (चिंतामणि पासजिण तं), ३५८४६-१ पार्श्वजिन स्तवन-जीराउलि, प्रा., पद्य, मूपू., (सिरिपास जिणेसर तुज्झ), ३६३२०-२(+$) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावली, सं., श्लो. २०, पद्य, मूपू., (--), ३७७१२-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-मंत्राम्नायगर्भित, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु.,सं., गा.७, पद्य, मूपू., (ॐनमः पार्श्वप्रभु), ३५२१८-१ पार्श्वजिन स्तवन-लोडन, उपा. विद्यासागर गणि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (नमस्कृत्य गुरुं चारु), ३७९३१-२(+) पार्श्वजिन स्तव-नवखंडा, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. ९, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (स्फूर्जन्नागफणामणीगण), ३८५९७-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. गुणरत्नसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (सौभाग्यभाग्या), ३७४२८-१(-) पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (सर्वदेवसेवितपदपञ), ३४९८५-३(+), ३७७०८-१(+$) (२) पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध-बालावबोध, मु. हर्ष, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३७७०८-१(+$) पार्श्वजिन स्तव-बीजमंत्रयुक्त, मु. कुलप्रभ कवि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (नत्वोपासित चरणं कमठे), ३५९४४-३(+) पार्श्वजिन स्तुति, मु. कमलोदय, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्रह्मेन्द्रनीलमणि), ३५१२३-७(+#) पार्श्वजिन स्तुति, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अढाई जेसुदीव), ३७२९५-४(६) । पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), ३५१२३-३(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मदमदन रहित नरहित), ३५१७५ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वराज विमलो), ३५६४७-३ (२) पार्श्वजिन स्तुति-अर्थ, सं., गद्य, मूपू., (हे श्रीपार्श्वराज भव), ३५६४७-३ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (श्रीयामतंजिन सदा), ३८७५१-१०(-) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सर्वज्ञ ज्योतिरूप), ३७२४७ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोक), ३७४२६-२(-) पार्श्वजिन स्तुति-कलिकुंडमंडन, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (ॐ नमो पार्श्वनाथाय), ३७२४०-१ पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. शुभसागर, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (गोडीप्रभु पार्श्व मम), ३५०४१-१ पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नै दें कि धप), ३६१०६, ३६९०८ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), ३४६३४-५(+), ३४८७३-२, ३५२५४-२ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापण), ३६५१२-१ पार्श्वजिन स्तुति-रत्नाकरपच्चीसी प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ३५३२८-३, ३६३३५-३, ____३६४६६-४, ३६८२७-४, ३६८७४-२, ३८८८४-४ पार्श्वजिन स्तुति-संगीतमय, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नै दें किं द्रे), ३८५३२-१ पार्श्वजिन स्तुति-स्तंभन, उपा. जयसागर, अप., गा. १, पद्य, मूपू., (धरणिंदनिवेसिय फारफणं), ३७४७३-३ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (धर्ममहारथसारथिसार), ३५८४५-२(2) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जिणेंद्र, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं), ३५१५७(२) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं धरणोर), ३५५९७-४ For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९८ www.kobatirth.org ײ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., श्लो. ३९, पद्य, भूपू (धरणोरगेंद्रसुरपति) ३६७६६ (६) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र - टीका, सं., पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य लोकनाथ), ३६७६६($) पार्श्वजिन स्तोत्र, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (भलु आज भेट्यो प्रभु), ३६०५२-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (ॐ अमरतरु कामधेणुं), ३५८४५-३(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अभिनवमंगलमालाकरण), ३८७५१-४() पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., सं., गा. १७, पद्य, मूपू., ( उवसग्गहरं पासं पासं), ३८५४९-२(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (क्षितिमंडलमुकुट), ३८६२४-२ " पार्श्वजिन स्तोत्र. सं., लो. ३९, पद्य, भूपू (धरणोगेंद्र सुरपति), ३५६४७-४ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमामि सदा प्रभु), ३४४८८, ३८७१७, ३८७१२-१ (#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (स्नातस्मै नम ॐ नमो), ३७५२६-१ (ॐ ह्रीं तं नमः), ३६८६९-१ ७ पार्श्वजिन स्तोत्र - कलिकुंड, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू पार्श्वजिन स्तोत्र - कलिकुंड, प्रा., गा. ९, पद्य, भूपू पार्श्वजिन स्तोत्र - कलिकुंड, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू (कलिकुंड सुद्धमंत) ३८७६१-२ " (पायाद्वः कलिकुंड), ३५७३३-४/+६) पार्श्वजिन स्तोत्र - गोडीजी, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (कमोलावय मंगल कीर्ति), ३४९६८-१(#) पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि सं., श्लो. ११, पद्य, भूपू (किं कर्पूरमयं सुधारस), ३७८०३-२(०), ३४४५६, ३४९५८, ३५४०१-१, ३७५०८, ३५३६१००, ३५३८७-१० पार्श्वजिन स्तोत्र -चिंतामणि, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वं किल चित), ३६९७९(+) पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वाय ॐ), ३७५४२-३ (+) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ . पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणिमहामंत्रगर्भित, धरणेंद्र, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अह), ३८५५१-१($) पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरापलि, आ. मुनिसुंदरसूरि सं. १७, पद्म, मूपू (जीरापल्लीचूतविस्फार), ३५८४८-१ पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरापछि आ. मुनिसुंदरसूरि सं. १०, पद्य, मूपू (स्फूर्जिधशोभिर्जित) ३५८४८-२ पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरापल्लिपुरमंडन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), ३६३८१-१(+) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरापल्लिपुरमंडन - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रकर्षेण नम्यते इति), ३६३८१-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला महामंत्रमव, आ. मेस्तुंगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (35 नमो देवदेवाय नित्व), " ३५७३३-१(+), ३५७५२-१ पार्श्वजिन स्तोत्र- नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (दोसावहारदक्खो नालिया ), ३४४७३-१(+), ३५४८६-१, ३५६२५, ३५७४५, ३६९४२ (२) पार्श्वजिन स्तोत्र - नवग्रहगर्भित - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (दोषादीनां भूतादीनां), ३४४७३-१(+), ३५४८६-१ (२) पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित - बालावबोध, मु. हर्षरंग, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (देवं गुरुं प्रणम्याह), ३५६२५ पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित प्रा. गा. १२, पद्य, मृपू (अरिहं थुणामि पासं), ३५०२८-२ पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रह गर्भित, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन विभोतानि), ३५७३३-२(+) " पार्श्वजिन स्तोत्र - यमकबंध, उपा. समयसुंदर गणि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (प्रणत मानव मानवं गतप), ३४९१८-१ पार्श्वजिन स्तोत्र - लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं. सो. ९, पद्य, दि. (लक्ष्मीर्महस्तुल्य), ३४९७४ ३७३०६-१ , " पार्श्वजिन स्तोत्र - विघ्नहर चिंतामणि, मु. जयसागर प्रा. गा. ५. पद्य, म्पू. (पणमामि पासनाहं सुरा), ३५८४६-३ , '. पार्श्वजिन स्तोत्र शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, म्पू (जय जय जगनायक), ३५२८६-१(+), " For Private and Personal Use Only ३५८६८-२, ३८३३२-१, ३८५७७ (# ), ३४९४५ ($) पार्श्वजिन स्तोत्र - समंत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते), ३५९४४-४(+) २५, वि. १५वी, पद्य, मूपू. (स्फुरत्केवलज्ञानचा), ३६१५१-३(७) पार्श्वजिन स्तोत्र स्तंभन, आ. देवसुंदरसूरि सं., श्लो. पाशाकेवली. मु. गर्ग ऋषि सं., श्रो. १९६, पद्य, क्षे. (महादेवं नमस्कृत्य), ३७८९२(६) "" (२) पाशाकेवली भाषा *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, वे., (१११ उत्तम थानक लाभ), ३६१८५ (+), ३६४३२ (+), ३५३६९(5), ३५३८२($) Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९९ पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (देविंदविंदवंदिय पयार), प्रतहीन. (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (देवि० शोभनं विहित), ३६०९६(६) पिपीलिका विचार गाथा संग्रह, प्रा., गा. ९+१, पद्य, मूपू., (घयतिल्लनेह कुंकुम), ३५०२२-२ पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (सपुन्न इंदिअत्त माणु), ३५४३१(+), ३५१७७-१, ३४९६९(#) (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरु पंचिन्द्रियपणो), ३५४३१(+), ३५१७७-१, ३४९६९(#) पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ३६००५-१(+), ३६०३३(+), ३७८३०(+), ३७३६५-६ (२) पुण्यपाप कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोए वरीसे छत्रीस), ३७३६५-६ पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (श्रीवीतराग भगवस्तव), ३७५२०(+) (२) पुद्गलसंख्या स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे श्रीवीतराग हे), ३७५२०(+) पुराणहुंडी, सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः), ३७८१२-२(+) पुलाकबकुशकुशीलादि पंचभेद विवरण, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (गमे तु पुलाकबकुश), ३६०९७-३(+) पुष्पसचित्त-अचित्त चर्चा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पुष्प ते सचित्त छे), ३४४५९ पूजन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (ॐ अस्मिंस्तिर्यग्लोक), ३५२३६-३ पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, म्पू., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), ३८७३६(+) पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., श्लो. ७५, पद्य, म्पू., (ध्यात्वा वामेयमहत), ३५७७०(+$), ३७११८ पौषदशमीपर्व कथा, सं., श्लो. ६१, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वजिनमानम्य), ३६९१६(+) पौषध के १८ दोष, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (असंजयाण नीरं भुंजइ), ३८९७६-२ (२) पौषध के १८ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३८९७६-२(5) पौषध विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३५३४९-१ पौषधस्याशीतिभंगकानां यंत्रकानि, सं., को., मूपू., (--), ३८४८४-६ प्रकीर्णक टीप संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ३५५५० प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), ३५४५०(+$), ३७६७६(+S), ३६३९३() (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., वि. १७०५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ३७६७६(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३५४५०(45) (२) प्रज्ञापनासूत्र-चयनितगाथा, प्रा., पद्य, मूपू., (नमिऊण वीरनाहं पन्नवण), ३५५५९(5) (३) प्रज्ञापनासूत्र-चयनितगाथा कीवृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमत् प्रज्ञापना), ३५५५९(5) (२) प्रज्ञापनासूत्र-थोकडा संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प्रश्न. ८, गद्य, मूपू., (इदा अगीए जमी नीरती), ३६९९४(+) प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ३५८२४-१(+) (२) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रज्ञा क० बुद्धि), ३५८२४-१(+) प्रतरप्रमाण संग्रह गाथा, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (लक्खड्वारस पणतीस), ३५०८१-३ प्रतिक्रमणमध्ये मार्जारीदोष निवारण विधि, सं., गद्य, श्वे., (ननु यदि दैवसिक १), ३८६२०-३(#) प्रतिक्रमण श्वासोश्वासविचार श्लोक, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पन्नाससयतिसयं पणसय), ३५०२४-३ (२) प्रतिक्रमण श्वासोश्वासविचार श्लोक-अर्थ, रा., गद्य, मूपू., (राईपडिकमणारा ५० सासो), ३५०२४-३ प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (आसाढे मासे दुपया पोस), ३५११६, ३५३५६-१, ३७७८४-२, ३७९३४-१ प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), प्रतहीन. (२) प्रतिष्ठा कल्प- सिद्धचक्र पूजा, हिस्सा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., श्लो. ९, गद्य, मूपू., (अथाष्टदलमध्याब्जक), ३५०४२-१ प्रतिष्ठादीक्षादि विधिमुहर्त संग्रह, सं., प+ग., श्वे., (अंशक यामित्रपतौ पश्य), ३६६७८(+) For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), ३५५२४, ३७७३०) प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य स्वस्ति), ३५८६७-२(+), ३७९५९(६) प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (--), ३७५६२-१(+$) प्रत्यंगिरा स्तोत्र, सं., श्लो. १३, पद्य, श्वे., (ॐह्रीह्हः ह्री), ३८७२४-२(+) प्रथम प्रहर प्रतिलेखना गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (तिहअणभवणपईवं वीरं), ३६५३४-४ प्रभात मंगलिक सप्तक, प्रा.,मा.गु., गा. ७, पद्य, जै.?, (प्रह उठी प्रभु प्रणम), ३५८८२-३ प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (गोयम सोहम जंबूपभवो), ३६८४१-३ प्रभु के सामने बोलने की स्तुति, मा.गु.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ३५२७५-३ प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि. ८, सू. ३७९, वि. ११५२-१२२६, प+ग., मूपू., (रागद्वेषविजेतार), ३७३९३(७) प्रमादपरिहार कुलक, प्रा., गा. ३१, पद्य, मूपू., (दुक्खे सुक्खे सयामोह), ३६१२६-४ प्रवचन मंगलसार, आ. उद्योतनसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (अरहते णमिऊणं सिद्धे), ३५९४४-५(+) प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., द्वा. २७६, गा. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगाइजिणं), ३६००१(७) (२) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., ग्रं. १८०००, वि. १२४२, गद्य, मूपू., (सन्नद्धैरपि यत्तमोभि), ३६००१(७) (२) प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा आचार्य के ३६ गुण, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (अट्ठविहा गणिसंपइ चउ), ३५६५४ (३) प्रवचनसारोद्धार-हिस्सा आचार्य के ३६ गुण की व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (गुणानां साधूनां वा), ३५६५४ प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसारविसमसायरभवजल), ३४९८१ प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), ३६२०६(+$) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो जंबू इणमो कहता), ३६२०६(+$) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-हिस्सा षष्ठअध्ययनगत संवरअहिंसामाहात्म्यबोधक ६० नाम, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (निव्वाण निव्वुई२), ३६२१८-२(+) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रश्न व्याकरणांग), ३५८८०-२ (२) प्रदेशी प्रश्न, प्रा., गद्य, मूपू., (अजयसुरीकंता १ तह), ३७८६४ (३) प्रदेशी प्रश्न-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलै प्रश्न परदेशी), ३७८६४($) प्रश्न संग्रह, आ. लक्ष्मीवल्लभवादि, सं., गद्य, मूपू., (एकादशाधिकापूर्व इति), ३७५३८(+) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ३५४०४(+), ३५८११, ३७५३७-१, ३५००४-२($) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनवरेंद्र नागनरामर), ३५४०४(+) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमी करी श्रीमहावीर), ३५८११ प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (विसालसुरसहस्सरस्सिए), ३५३१७(+$) प्रस्ताविक श्लोक, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (तिथिराणं गणहारी), ३८९७३-१ (२) प्रस्ताविक श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जु एहवा ए मानभाव), ३८९७३-१ प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे.?, (आहारनिद्राभयमैथुनानि), ३८७१३-२ प्रस्ताविक श्लोकसंग्रह, पुहि.,सं., गा. ४, पद्य, श्वे., (जीवअजीव कछु नविजानत), ३४५१०-२, ३५७४२-२ प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा.६१, पद्य, मूपू., (धर्माजन्मकुले शरीर), ३५५६८(+), ३७३८३(+) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. १३, पद्य, श्वे., (स्वयं चिंता न चिंतंत), ३५०७३ प्राग्वाटवंशीय प्रशस्ति, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (प्राग्वाटान्वयभूषणं), ३५७६३ प्रायश्चित विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (सेकिंत पायछित्ते दस), ३६३५९ (२) प्रायश्चित विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (के कहितांते प्रायछि), ३६३५९ For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०१ प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ३५२४२, ३५४३५-२, ३५६७१-२ प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १८१, पद्य, मूपू., (नमोस्तु देवदेवाय), ३६६८६ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै.?, (दाता दरीद्री कृपणो), ३६८६२, ३८२५५-३(#), ३५९८३($) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २४, पद्य, श्वे., (श्रिष्टेसंगः श्रुतेर), ३७४५३-२(+), ३६१४८-२, ३७३६२ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, गु.,प्रा.,सं.,हिं., पद्य, श्वे., (--), ३५०७६(5) (२) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-अर्थ, सं., गद्य, श्वे., (--), ३५०७६($) बप्पभट्ट प्रबंध, सं., गद्य, श्वे., (याम्रस्वस्थितवाश्र), ३५०५७-१(+) बिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (गुरु शुक्रोदये भव्यं), ३६३४४(+), ३५१३९, ३८२२९ बिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (पहिलं मूहूर्त), ३८७७२-१ बीजतिथि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (खीरसागर समोद्पन्न), ३७५०७-४ बीज प्रसाधन-मंत्र बीजाक्षर, सं., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानंजिनं नत्वा), ३६६८१(६) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), ३५४१०(+$), ३६९३३-२(5) (२) बृहत्कल्पसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (कप्प० कल्पते नि), ३६९३३-२ बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), ___३७६७०(+६), ३६३४८() बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, मूपू., (सिरिनिलयं केवलिणं), ३६१६८(+६) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ३५२४१(+), ३७९४२(+), ३५२७५-२, ३५३४२, ३५५७०, ३५८६३-१, ३६२५६, ३६४९३, ३६९१९, ३६९८०, ३८७६०-२, ३८८९२-१, ३४८८८(25), ३५६६५-२($), ३६७७८(5), ३७४३७(5) (२) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५६, गद्य, मूपू., (स्ताच्छांतिः शांति), ३५६६५-२($) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ३६६०३(+5), ३७६९१(+5), ३६२४१(६) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने अरिहंत), ३७६९१(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-अंकयंत्रसंग्रह *, मा.गु., यं., मूपू., (--), ३६६०३(+$), ३५९४७(5) बृहत् संग्रहणीप्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा.५७९, वि. १२७८, पद्य, मूपू., (नियट्ठवियअट्ठकम्म), प्रतहीन. (२) बृहत् संग्रहणीप्रकरण-जीवआयुष्यबंध विचारगाथा संग्रह, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (आउस्स बंध कालो अबाह), ३६७०५ (३) बृहत्संग्रहणी प्रकरण-जीवआयुष्यबंध विचारगाथा संग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आउखानो बंधकाल ते), ३६७०५ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय), ३६३३६(+), ३५११७, ३६३३८, ३६९९०, ३४९८२(s), ३६०५०(७), ३८६२७(-) बोल संग्रह *, प्रा.,मागु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछे), ३८९१६-२(+), ३७६४२, ३८७८९-२, ३६३०६(s), ३६८२४(६) बोल संग्रह-तत्वार्थंगत, सं., गद्य, श्वे., (प्रति परमाणुनानंताः), ३५०११-४(+) बोलसूत्र, प्रा., गद्य, पू., (--), ३५६३१-७(+) (२) बोलसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (--), ३५६३१-७(+) ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ३५४६९-४(+), ३५६७१-१, ३७२१८, ३७७०९-१ ब्रह्मांडपुराण, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) ब्रह्मांडपुराणे-विष्णुपंजर स्तोत्र, हिस्सा, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. २५, पद्य, वै., (ॐअस्य श्रीविष्णुपंज), ३६५७३-२(+) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), ३५०२३(+), ३५१३६(+), ३५२५८-१(+), ३६०३५(+$), ३६१०२-२(+#), ३६१११(+६), ३६३३१(+$), ३६४४९(+), ३६४९६(+), ३६९०५(+), ३८८७०(+), ३४६१४, ३४९४२-२, ३४९६७, ३५१८९, ३५७८९, ३५८२३-१, ३५९६९, ३६१७८, ३६९५५, ३७२९३, ३७२९७-२, ३७४०५, ३५१९८-१(s), ३५६७४-१(६), ३५९४९(s), ३६०८२(5), ३८५५२-२(5) For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, मूपू., (पूजाज्ञानवचोपायापगमा), ३६०६६() (२) भक्तामर स्तोत्र-स्तवाम्नाय, सं., गद्य, मूपू., (ॐनमोवृषभनाथाय मृत्यु), ३५९६९ (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सम्यग् जिनपादयुग), ३६०३५(+६), ३७५०० (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध + कथा*, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीयुगादीश), ३४८२८-२(5) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (भक्तिवंत जे देवता), ३६०८२(६) (२) भक्तामर स्तोत्र कथा *, सं., गद्य, मूपू., (--), ३६१११(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-(सं+पु.हिं.)मंत्र-यंत्र विधिविधान, संबद्ध, पुहि.,सं., गा. ४८, प+ग., मूपू., (-), ३७०२५(६) (२) भक्तामर स्तोत्र-काव्य फल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेला २ भूत प्रेत), ३४८८२ (२) भक्तामर स्तोत्र-गोप्य काव्यचतुष्क, संबद्ध, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ आदिनाथामर सेवित), ३७११४-१ (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., मंत्र. ४८, गद्य, स्पू., (ॐ ह्रीं अहणमो), ३६३३१(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-विधिगुण काव्य, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (या प्रथम काव्य पढवा), ३६३३१(+$) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., (नमो अरहताणं० सव्व), ३५१३८८+), ३५४५७(+), ३५३४१(६) (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), ३६२७४(+), ३५३४१(६) (३) भगवतीसूत्र-टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अयं अर्थः श्रीजिन के), ३६२७४(+) (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषविंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (लोगस्सेगपएसे जहणयपय), ३५८५९-१(+), ३६०४१(s) (४) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, मूपू., (अथ पंचमांग एवैकादशशत), ३६०४१(६) (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा बंधषत्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (ओरालसव्वबंधा थोवा), ३६९५४(+$) (४) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (इहाल्पबहुत्वाधिकार), ३६९५४(+$) (२) भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (पनवणा १ वेय २ रागे ३), ३५३८५(+) (३) भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक का विवरण, सं., को., मूपू., (पुलाको द्विविधो), ३५३८५ (+) (३) भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक-बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवै पनवणा द्वार), ३६५२९(६), ३६६७९(5) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा*, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (--), ३५९७८ (२) चारित्र के५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (पनवणा १ वेद २ रागे ३), ३७१६१ (२) भगवतीसूत्र-(प्रा.+मा.गु.)नियंठा विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूपू., (पण्णवय १ बेय २ रागे), ३७३०८, ३७०६४-१(६) (२) भगवतीसूत्र-(प्रा.मा.गु.)बोल संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तिविहं तिविहेणं न), ३६३३० (२) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (कहण्णं भंते जीवा गुर), ३७४८० (२) भगवतीसूत्र-गहुंली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सहियर सुणीये रे भगवत), ३५८७४-२ (२) भगवतीसूत्र-प्रश्नोत्तर, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काले अने ते समाने), ३७५९३ (२) भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मासनी दिक्षा सुभ), ३७५९६(+) (२) भगवतीसूत्र बोलसंग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवे तिवा आउखाने), ३८०६३ (२) भगवतीसूत्र-विचार संग्रह, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (अत्थिणं भंते समणवि), ३७६४३-२, ३५५८१(६) (२) भगवतीसूत्र-शतक ८ उद्देशक ९, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (कम्मसरीरपयोग बंधेणं), ३७५९५ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. २१, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अरथ), ३६२२०(+) भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., कथा. ३२, वि. १५वी, गद्य, मूपू., (देवदेवं नमस्कृत्य), ३७९९२($), ३८१४४($) For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०३ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ भवनदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिगुणयुतानां), ३५८२४-२(+) भवस्थिति स्तोत्र, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. १९, पद्य, मूपू., (सिरिधम्मकित्ति कुलहर), ३४७००-२ भाग्यपंचाशिका-पुरुष, सं., श्लो. २१, पद्य, स्पू., (श्रीशंखेश्वरपार्श्वे), ३७८९८(#$) (२) भाग्यपंचाशिका पुरुष-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (मंडूक स्फिग् नृपति), ३७८९८(#S) भावना कुलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (निसाविरामे परिभावयाम), ३७४३९ (२) भावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नि० रात्रीनइ अंतिइ), ३७४३९ भावनासूत्र, प्रा., सू. १, पद्य, मूपू., (लोगस्सणं भंते एगम्मि), ३५८५९-२(+) भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., (आणंदभरिय नयणो आणंद), ३७४७८(+), ३७५४७ (२) भाव प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, ग. विजयविमल, सं., वि. १६२३, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीजिनशंभव), ३७५४७ भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, गा. १४५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), ३४५३४(+$), ३६६२३(+) (२) भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदि० वंदनीयान् सर्व), ३७४१८(5) मंगलकलश कथा, सं., गद्य, मूपू., (--), ३७३६८-१(६) मंगल प्रदीप, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (कोसंबिअसंठिअस्सय), ३६१६५-४ मंगल श्लोक, प्रा.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अर्हमित्यक्षरं), ३८४७४-१(+) मंगलाष्टक, कालिदास, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (श्रीमत्पंकज विष्टरो), ३७११४-३ मंगलाष्टक, मु. ब्रह्म, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (तीर्थेशाश्चतुरादि), ३५५१४-१(+) मंगलाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमन्नम्रसुरासुर), ३५५१४-२(+) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (श्री ॐ नमः आदि सुदिन), ३८१९३-२(+), ३४५६९-२, ३४८९३-२, ३५६२३-३, ३७६८६-२, ३८४३०-२, ३८५५६-२, ३७६६७-२($), ३८५५१-२($) मंत्र नाममाला, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (कामं क्रोधं तथा लोभ), ३५२८५-१ मंत्र मातृका, सं., अंक. ४३, गद्य, पू., (ॐ प्रणवो ध्रुवब्रह्म), ३५२८५-२ मंत्र संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो भगवओ बाहूबलि), ३५०२८-३, ३५०३४-२ मंत्र संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (--), ३५०६२-२, ३५३८७-२(१), ३६५०३-२(-2) मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, जै., वै., बी., (--), ३५७५२-३, ३५७८५-२, ३८४८२-१ मंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ३४६९५(+), ३५६१४(+), ३४४७४, ३५१५२-५, ३५४६६-२ मंत्र संग्रह-शांतिस्नात्रादि पूजनविधिमध्ये, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रींयक्षाधिपतये), ३६९६० मदिरावती कथा-प्रभावे, सं., गद्य, मूपू., (बुधैर्विधीयतामेको), ३८०९६-४(+) मनुष्यदेवतातिर्यंचस्त्री संख्या, प्रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (उत्तमनर पंचोत्तराय), ३६८२१-५() मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांतकथा संग्रह, सं., कथा. १०, पद्य, श्वे., (चुल्लग पासग धन्ने), ३७४९६(+5) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,सं.,मा.गु., श्लो. ११, पद्य, श्वे., (चुल्लग पासग धन्ने), ३७५२२ मनुष्यसंख्या स्तव, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिणवुत्त चरित्तेणं), ३८५८६(+$) (२) मनुष्यसंख्या स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिनोक्तचारित्रेण), ३८५८६(+) मल्लवादि प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., श्लो. ७०, वि. १४०५, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूतिमानम्य), ३६२२३(+S) महादंडक स्तोत्र, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (भीमे भवम्मि भमिओ), ३५५८०-२(+), ३६०८३, ३५५४७(#) (२) महादंडक स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भीमे भवेति० १ गब्भ०), ३५५८०-२(+), ३५५४७(#) महादशा अंतर्दशा विचार, सं., गद्य, जै., (सूर्यदिनदशा २०), ३७८१५-२ महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (प्रशांत दर्शनं यस्य), ३५०३२(5) महापुराण, आ. जिनसेनाचार्य, सं., पर्व. ४७, वि. ९वी, पद्य, दि., (श्रीमते सकलज्ञानसाम्), प्रतहीन. (२) महापुराण-जयपताकायंत्र कल्प, संबद्ध, सं., श्लो. ४५, पद्य, दि., (पूर्वावायू यमश्चैव), ३५२८४, ३६१००(5) महालक्ष्मी दशाक्षर मंत्र, सं., गद्य, वै., (ॐ ह्रीँ श्री महा), ३७९१३-३ For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ महालक्ष्मी मंत्र, सं., गद्य, वै., (--), ३५८१५-३(+) महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (आद्यं प्रणवस्ततः), ३७९१३-१, ३८९९६-२ महालक्ष्मी स्तुति मंत्रमय, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीचंद्र), ३७९१३-२ महावीरजिन २७ भव चरित्र, मु. मेघराज, सं., भव. २७, गद्य, मूपू., (--), ३६५३२-१(६) महावीरजिन कलश, आ. मंगलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (श्रेयः पल्लवयतु वः), ३६२३०-३(+), ३७०३६, ३७७९४-३ महावीरजिन चरित्र, प्रा.,सं., गद्य, पू., (--), ३५६१७(६) महावीरजिन जन्माभिषेक कलश, आ. मंगलसूरि, मा.गु.,सं., गा. १६, प+ग., मूपू., (श्रेयःपल्लवयंतु वः), ३६१५२-२(+) महावीरजिन तपमान, सं., गद्य, मूपू., (मासक्षमणानि ११ लाख), ३६५३२-२ महावीरजिनद्वात्रिंशिका स्तव, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३३, वि. १वी, पद्य, मूपू., (सदा योगसात्म्यात्), ३६१०१-१, ३७३४१ महावीरजिन नमस्कार, फा.,सं., गा. १, पद्य, श्वे., (श्रीवीर: श्रवणसुखां), ३५९७७-१(+) (२) महावीरजिन नमस्कार-टीका, सं., गद्य, श्वे., (दोस्ती अनुरागः ख्वाद), ३५९७७-१(+) महावीरजिन विशेषण, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (श्रीज्ञानवान् भगवान), ३५०६० महावीरजिनशासने ऐतिहासिक प्रसंग वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (१. श्रीवीर केवलात्), ३७५०३-२(#) महावीरजिनशासने प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरे मोक्ष), ३६६५१ महावीरजिन श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (जयति वीर ते वाग्गुणा), ३६९५१(+) (२) महावीरजिन श्लोक-च्याख्या, सं., गद्य, श्वे., (हे वीर वीर शब्दस्य), ३६९५१(+) (२) महावीरजिन श्लोक-अन्वय, सं., गद्य, श्वे., (अहं करोमि हे वीर ते), ३६९५१(+) महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (कंसारिक्रमनिर्यदापगा), ३७४०७-२(+) महावीरजिन स्तव, मु. रूपचंद्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (यामवाप्य महतीं तरी), ३४८६०-१ महावीरजिन स्तव, आ. सिद्धिसूरि, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (कमला सोहगसुहनिहाण), ३५४२७(+) महावीरजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, अप.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (विद्यानां जन्मकंदस्त), ३५८५८-५ महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (कनकाचलमिव धीरं), ३८७५१-५(२) महावीरजिन स्तवन-बंभणवाडामंडन, आ. सोमसुंदरसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (कल्लाणावलिवल्लीण), ३६०८१ महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणे भगवं), ३४६७७, ३४८६४, ३५३७७, ३५८२६, ३७४०८, ३७४८३-१ (२) महावीरजिन स्तवन-बृहत्-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जयवंतउ वर्ति श्रमण), ३७४०८ (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान प्रभु), ३५८२६ (२) महावीरजिन स्तवन-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जइज्जा समणेनो अर्थ), ३५३७७ महावीरजिन स्तव-समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), ३६६२२(+), ३५३८४, ३५७०८, ३७७३६-१(#) (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, उपा. मतिकीर्ति, मा.गु., ग्रं. ३५७, गद्य, मूपू., (भावअरि क्रोधादिक), ३६६२२(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कमलदललोचनं विमलकुलरो), ३५५४९-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदारमवद्), ३६८२७-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (जिनशासनभासन श्रीगौतम), ३५५४९-३ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नताऽशेषलेखं कृतद्वे), ३७५४५-५ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमदसर सीरो रूह सवस्स), ३७७०७-१ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमोस्तु वर्द्धमानाय), ३७०७६-२(+#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमोस्तु वर्द्धमानाय), ३६३०४-२ For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०५ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ३५१४३-२(+), ३६४८१-२(+), ३७३०५, ३५०१५-२($) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भवामो महावीरमते सदा), ३८४०८-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), ३५१२३-५(+#), ३८४४०-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (वीरः सर्वसुरासुरेंद), ३५३३१ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थक्षितिपाल), ३७४६२-१(+) (२) महावीरजिन स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धार्थराजा क्षिति), ३७४६२-१(+) महावीरजिन स्तुति-कल्याणमंदिर प्रथमश्लोकपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदारमवद), ३५३२८-२, ३६३३५-२, ३६४६६-२ महावीरजिन स्तुति-पंचार्थमय, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (--), ३७७१३-१(+$) (२) महावीरजिन स्तुति-पंचार्थमय-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू, (--), ३७७१३-१(+$) महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. ५, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयसिरिजिणवर तिहुअणजण), ३४९०४-३(+), ३८१८७-२ महावीरजिन स्तोत्र, मु.रूप, सं., श्लो. ७, पद्य, स्था., (विबुधरंजकवीरककारको), ३८९६७-१ महावीरजीन ११ गणधर आराधनाविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूति गणधराय), ३७३१२-५ महावीराष्टक, मु. शांतिसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (कंदप्पैक दृठोवीर य), ३७४१५-४ मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नाभेयादि जिनाः), ३८७१३-१ मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वमंगल मांगल्य), ३४८०५-३, ३६५३८-२ मांगलिक स्तुति संग्रह, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्रम), ३५८१३ मांगलिक स्मरणीय श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ६२, पद्य, मूपू., (स्वस्तिश्रीनतनाकि), ३६८०१ मांडला विधि, प्रा.,रा., गद्य, श्वे., (तिहां प्रथम सिंज्यार), ३७२५२ माणिभद्रवीर मंत्र विधिसहित, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नमो माणिभद्राय कृष्ण), ३८३५३-१ मानपिंडे क्षुल्लक कथा, सं., श्लो. ५९, पद्य, मूपू., (अभवद् भुवनाभोग लब्धख), ३७४१४-३(+) मायाबीज कल्प, मा.गु.,सं., श्लो. २९, पद्य, जै., वै., (ॐकार बिंदुसंयुक्त), ३६०४०-१(+) मित्रानंद कथा-पौषधव्रते, सं., प+ग., म्पू., (भवोरुगमदच्छेद), ३५४९५-२ मिथ्यात्वस्थान कुलक, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (लोइअलोउत्तरिय देवगय), ३६२७८(+) (२) मिथ्यात्वस्थान कुलकन्टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लौकिक लोकोत्तर देवगत), ३६२७८(+) मुखवस्त्रिका विचार-विशेषावश्यकादिसूत्रे, प्रा., गद्य, मूपू., (--), ३६८७८ मुखवस्त्रिकास्थापन प्रकरण, आ. वर्धमानसूरि, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (मोह तिमिरोह सूरं नमि), ३७२५१ मुद्रितकुमुदचंद्र प्रकरण, श्राव. यशश्चंद्र, सं., अंक. ५, वि. १२उ, प+ग., मूपू., दि., (श्रेयःकुड्मलमांसला), ३६७०२(#$) मुनिसुंदरसूरि पट्टावली, मु. युक्तिहस शिष्य, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरपश्चात् मुनी), ३७७८९-२ मूत्र परीक्षा, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिना), ३६२१२(+) (२) मूत्रपरीक्षा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथजी), ३६२१२(+) मूर्खशतक, क्षेमेंद्रजी, सं., श्लो. २६, पद्य, वै., (श्रुणु मूर्खशतं राज), ३७२१५ (२) मूर्खशतक-टबार्थ, मा.गु., पद्य, जै., वै., (कुमारपाल राजाने बाह), ३७२१५ मूलाचार, आ. वट्टेरकाचार्य, प्रा., अधि. १२, गा. १२५२, पद्य, दि., (मूलगुणेसु विसुद्ध), ३५११०+) (२) मूलाचार-टीका, सं., गद्य, दि., (श्रीवरयतिवट्टकेरा), ३५११०+) । मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), ३७११९ मेरुपर्वत से ज्योतिष्कमंडल अंतर विचार, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (--), ३५५२२ मैथुनविरमण गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेहूणसन्नारूढो नवलख), ३७३७१ For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०६ (२) मैथुनविरमण गाथा - टीका, सं., गद्य, मूपू., (मैथुनसंज्ञारूढः), ३७३७१ मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), ३७४५५ (+), ३७१०८ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ३५५६९ 5 कैलास तसागर ग्रंथ सूची १.१.९ मौन एकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), ३६४११ (+), ३६९६४ (+), ३५६०९-१, ३६४३९, ३६६८३ एकादशीपर्व गण, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते), ३६४०१ (+), ३७८४० (+), ३५६८१, ३५९९८, ३६१८७, ३६२२२, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२५२, ३६८८३, ३७१५१, ३७२१६, ३७२१७, ३७२८२, ३७३२९, ३७६९९, ३७९११, ३७९१२ मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, सं., को. मूपू. (जंबूद्वीपे भरते अतीत), ३५५०२, ३७१५६, ३७८२३ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मृपू, (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ३५४६७-३ " मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीभानेमिर्बभाषे), ३६५०१-१(+), ३६६७०-२ मौनएकादशी पौषध विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम १० मी के दिन), ३५४७५ यंत्र-मंत्र संग्रह, सं., गद्य, वै., (--), ३७७९३-३, ३८६०२-६ (# ) यात्रापुण्य स्तोत्र, अप, गा. ५. पद्य, भूपू (जे पुण्य नंदीसरजत), ३५५४४-४ १ 3 योगनंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. सू. ९, गद्य, मूपू., (नाणं पंचविहं पण्णत्त), ३४९३९-१ योगप्रवेश विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (ठवणी कांबलीइं पडिलेह), ३७४८७-१(+) " . योगविधि कालग्रहणविधि क्रियाविधि -खरतरगच्छीय, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (प्रथम शुभ दिन शुभ), ३७३४९ "3 योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, भूपू ( नमो दुर्वाररागादि), ३४९३१ (२) योगशास्त्र - चयन, सं., पद्य, मूपू., (--), ३६३२५ ', (३) योगशास्त्र चयन की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ३६३२५ (प्रणम्य परमात्मानं), २५४७३-२३ योगसार, सं., प्र. ५, लो. २०६, पद्य, भूपू योगोत्तारण विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू (खमासण देई मुहपुती), ३७४८७-३(+), ३८०२२-२ योगोद्वहन विधि, प्रा. सं., गद्य, मूपू (पसत्वे खित्ते जिणभवण), ३७४९७(+६) " "" "1 योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., को., मूपू., (आवश्यकश्रुतस्कंधे), ३५८४२, ३६८३१($) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअक्खंधो), ३६२४७, ३७७५१, ३६६८४-१ ($) रंभाष्टक, सं. ८, पद्य, थे. (वसंतमासे कुसुमः कुला), ३७४५३-३(०) , -" रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि प्रा. गा. ५५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिनवरिंदे उवया), प्रतहीन. (२) रत्नसंचय - हिस्सा गाथा ३६० से ३६५ सर्वजीव की १० संज्ञा, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा. पद्य, भूपू.. " (आहारभयपरिग्गहमेहूणतह), ३६४७६ (३) रत्नसंचय - हिस्सा गाथा ३६० से ३६५ सर्वजीव की १० संज्ञा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आहारसंज्ञा१ भयसंज्ञा), ३६४७६ रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं. लो. २५ वि १४वी, पद्य, भूपू (श्रेयः श्रिया मंगल), ३५३४४-१(+), ३६९६५ (+), ३४९२६, ३७४९८, ३८६०४, ३८८९९, ३५९२६ (६) (२) रत्नाकरपच्चीसी वार्थ, मु, कुंवरविजय, मा.गु. " + वि. १७१४, गद्य, मूपू (प्रणम्य श्रीमहावीर) ३७४९८ (अहो कल्याणक लक्ष्मी), ३६९६५ (+) (२) रत्नाकरपच्चीसी एवार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू " राई प्रतिक्रमण विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ३८९६८-२ राई प्रतिक्रमण विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमवा), ३८५१४(+$) राजप्रश्रीयसूत्र प्रा. सू. १७५ ग्रं. २१००, गद्य, भूपू (नमो अरिहंताणं० तेणं). ३५४०९४) (२) राजप्रनीयसूत्र ट्वार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमस्कार हुवाउ० चउथा), ३५४०९(३) राशि वर्ण, सं., गद्य, (मेषरगतं वृषस्वेतं), ३७३६५-४ For Private and Personal Use Only रूपसुंदरी कथा - धर्मोपरि, सं., गद्य, मूपू., ( नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ३७५०६(+#) रूपसेनकनकावती चरित्र- चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., श्लो. २२४, ग्रं. १५३०, पद्य, मूपू., (श्रीमंतं विदुरं शांत), ३५९५१($) Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०७ रैवताचल चैत्यपरिपाटी स्तवन, आ. चंद्रसूरि, सं., श्लो. २१, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (राजीमति युवति मानसरा), ३६१५२-१(+$) लक्षनमस्कार गुणनविधि, सं., गद्य, मूपू., (संप्रति मूलनायकस्य), ३८७३१ लक्ष्मीसागरसूरि परंपरा(पट्टावली), सं., गद्य, मूपू., (भट्टारक श्रीलक्ष्मी), ३६४५२ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीर जयसेहरपयपट्ठिय), ३७६२३(+$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (न केवलंवीह जयशेखरपद), ३७६२३(+$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-विचार*, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (प्रथम जंबूद्वीप), ३६०९३($) लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., कां. ३, श्लो. ४६१, ग्रं. ५५०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मान), ३८१४७(+$) लघुपट्टावली, मु. हेमचंद्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विदित सकलशास्त्रान्), ३६९४३-१(+) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७+२, पद्य, मूपू., (शांतिं शांतिनिशांत), ३४९७९(+#), ३५४६२-१(+), ३६४०२(+), ३६८१७-२(+), ३६९३७(+), ३७३३३(+), ३४९०८, ३५०४३, ३५१९८-२, ३५२४५-१, ३५२७५-१, ३५२९४, ३५६६५-१, ३५८६३-२, ३५९६८-१, ३६९२०, ३७३७६, ३७८३५, ३८७०४, ३४९९१(#), ३७२९५-१(६), ३६५०८-) (२) लघुशांति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६४४, गद्य, मूपू., (सर्वसर्व सिद्ध्यर्थ), ३५६६५-१ (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ शांति), ३५४६२-१(+) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), ३६१३३(+), ३६७५७(+$), ३५०८४, ३५१२६-१, ३५८५२-१, ३६४६७, ३७१५३ (२) लघुसंग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय क० नमस्कार करी), ३६१३३(+), ३५८५२-१, ३७१५३ (२) लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंडा जोयण वासा पव्वय), ३८३३५ (६) (२) लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), ३५९३५(७) (२) लघुसंग्रहणी-जंबूद्वीप विचार*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३६४८२-२(+) (२) लघुसंग्रहणी यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंडद्वार जंबूद्वीपरा), ३५३९३, ३८९४१ लघुस्वयंभू स्तोत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (येन स्वयं बोधमयेन), ३५६३५-३($) लुंकागच्छ प्रशस्ति पत्र, सं., श्लो. १४, पद्य, श्वे., (श्रीमदादिजिनं नत्वा), ३६११९(+) लूणपाणी विधि, प्रा., गा.८, गद्य, मूपू., (उवणेउ मंगलं वो जिणाण), ३६१६५-२ लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मपू., (जिणदसणं विणाज), ३४६७८(+), ३६०८६(+), ३७८८७(+$), ३५०९७, ३५५५२(5), ३७५०१(६) । (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., (जिणहंस वइसाह प्रसारि), ३७५०१(६) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतराग देव ताहरु), ३४६७८(+), ३६०८६(+), ३५०९७, ३५५५२(5) लोकस्थिति, प्रा., गद्य, मूपू., (दस विहा लोग ठिती पं), ३६३४७(+$) (२) लोकस्थिति बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सविइं नव गुण लुक्खा), ३६३४७(+$) लोकस्वरूप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (लोए असंख जोअण माणेपइ), ३५०११-३(+) लोच विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, स्पू., (इच्छाकारेण संदिसह), ३५०११-२(+) लोच विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (खमासमण इरियावही पडिक), ३६५४५-६ वंकचूल कथा, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १०९, पद्य, मूपू., (महार्द्धिभिर्जनैः), ३६९४४(+) वंकचूल प्रबंध, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (कोपि ग्रामे भिल्लवास), ३५०५७-२(+) वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमियसुरवर), ३७२२१ वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठि), ३४८६३, ३५४७७-१, ३६४७७-२, ३६५०६, ३६६०४, ३६८९७-२, ३६९२४-२, ३६९५७-१, ३७५२५-२ वडीदीक्षा योगविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (आवस्सगम्मि एगो सुयखं), ३७३२७(६) वयरसामि रास, अप., पद्य, मूपू., (सुकृतसरोवर राजहंस), ३७४७३-७($) वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानं सारं सर्व), ३६०४५(+s), ३७४५७(+#), ३५३७१ For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०८ www.kobatirth.org वर्णानामुच्चारणस्थानानि, सं., श्लो. ५, पद्य, (वर्णानां स्थान), ३७२१३-२ वर्द्धमानविद्या मंत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ नमो अरिहंता), ३५२३३ वरदत्तगुणमंजरी कथा, सं., पद्य, श्वे., (--), ३५३०९ (+$) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३५३०९(+$) वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपू., ( श्रीमत्पार्श्वजिन), ३६३५६ (४) ३५२५३३३६०३४ वर्धमान विद्या, सं., गद्य, मूपू., (शुधः शुभ शुकुनैः), ३५६६९ वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, भूपू बी. (संसारद्वयवैन्यस्य), ३६०१८(+) ३६७३६ ३६५०५०) ३६५६०(३) ३६६४९६, ३६७६९ (४) " वस्तुपालतेजपालकृत धर्ममार्ग धनव्यय संख्या, अप. गद्य, म्पू, (१२५०००० बारलाख पचास), ३६१७३(७) " वस्तुपाल प्रबंध, आ. राजशेखरसूरि, सं., वि. १४०५, गद्य, मूपू., (पूर्वं गुर्जरधरित्री), ३५८९६($) परिधानविधि लोक, मा.गु. सं. श्री. २, पद्य, (आदित्ये जयते), ३४५४९-३ " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ वाण विचार, मा.गु. सं., गद्य, (यावन्नाम नक्षत्रं च), ३५६४१-४ वासक्षेप निक्षेप गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सावयकुलमजमो पुण्णेहि), ३५४६९-८(+) वासुपूज्यजिनस्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पूज्य श्रीवासुपूज्य), ३७३८६-१($) विचारगाथा संग्रह, प्रा., गा. ९९, पद्य, श्वे. (दव्वत्थएण पावइ आराहे), ३५६७५-१ "" विचारगाथा संग्रह, प्रा. सं., गा. ३. गद्य भूपू (बत्तीसं कवलाहारो), ३८५९५-१० . 23 विचार संग्रह, प्रा. सं., गद्य, मूप. (जोअणसवं तु गंता अणहा), ३७४५२-१ विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, वे., (--), ३७४६१-४ विचार संग्रह, प्रा.मा.गु., गद्य, श्वे. (-), ३५६१५-२ विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, भूपू (समरवीर राजा महावीरनड), ३४५७३(०) ३५९५०-२, ३६५८०-१ , विचार संग्रह - आगमसूत्रे, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (--), ३५७५८ विचारसप्ततिका, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., गा. ८१, पद्य, मूपू., (पडिमा मिच्छा कोडी), ३६७१४-१(+#), ३७५३४ विचारामृतसार संग्रह, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १४७३, प+ग, मूपू., (श्रीवर्द्धमानसूर्यो), ३५८५० ($) विजयदानसूरि स्वाध्याय, मु. लक्ष्मीरुचि, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू (पणमिअ गुरुपयजुअल), ३७५५०-२(+) विजयदानसूरीश्वर स्वाध्यायः, मु. लक्ष्मीरुचि, सं. वो ९, पद्य, भूपू. (परममहानंदपद दानं), ३७५५०-१(+) विजयप्रभसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नयविभूषणपारगतागमः), ३५१२३-६(+#) विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नृपतिनाभिकुलांबरभास), ३७२६६-२ (+) विद्यापति कथा, सं., गद्य, भूपू. (संपदो जलतरंगलोला), ३८०९६-१(+) .. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्यापतिनृप कथा परिग्रहण परिमाणे, सं., गद्य, मूपु. ( पोतनपुरे शूरो राजा), ३६४३६-३ विगोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (येषां न विद्या न तपो), ३५९८६-१(+), ३५८९२-१ विधिपंचविंशतिका, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., श्लो. २६, पद्य, वे (यदुकुलांवरचंद्रक नेम), ३५२२८(३) विधिप्रपा, प्रा., पद्य, जै., (संपयंपुण सम्मत्तारो), प्रतहीन. (२) विधिमार्गप्रपा प्रव्रज्या विधि, आ जिनप्रभसूरि, प्रा. सं., गद्य, मूपू (संध्यायां चारित्रोप), ३६३७९(+) " विनय कुलक, प्रा. गा. १३. पद्य, भूपू (विनयो जिणसासणे मूल), ३५१७७-२ ', (२) विनय कुलक-वार्थ, मा.गु. गद्य, भूपू (विनयते जिनशासननइ), ३५१७७-२ " विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ३८७०७, ३७४०२ ($) (२) विपाकसूत्र - हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अ. १०, गद्य, भूपू तेणं कालेणं तेण), ३५१४४, , " ३५१४६ For Private and Personal Use Only विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., ( जंभाराति पुरोहिते), प्रतहीन. (२) विवाहपडल -पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., (वाणी पद वांदी करी), ३५६४१-१, ३६८८२-१($) , Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०९ विविधगणणा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (श्रीजयदेव पारगते नमः), ३५६४८(६) विविध विचार संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (तस जीवाणविधाउ तेह), ३६०९४ विविधविचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ३४४७२-३(+), ३५४८९, ३६९७२-२ विविध स्तुतिसंग्रह-प्रार्थना, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (दर्शनं देवदेवस्य), ३६९२४-३ विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि , प्रा., गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मूपू., (सिद्धिपुरसत्थवाह), ३५५९९(+$), ३७६६५-१() (२) विवेकमंजरी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (मोक्षपुरी प्रति सार), ३७६६५-१(६) विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., उल्ला. १२, पद्य, मूपू., (शाश्वतानंदरूपाय तमस), प्रतहीन. (२) विवेकविलास-हिस्सा बिंबपरीक्षा, आ. जिनदत्तसूरि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (उपविष्टस्य देवस्य), ३५८६७-१(+) (२) विवेकविलासचयनितश्लोक संग्रह, आ. जिनदत्तसूरि, सं., श्लो. ३२+१२, पद्य, मूपू., (सांगुली पर्वभीः केशौ), ३५०२२-१ विषम काव्य-बहुभाषामय, अप.,प्रा.,फा.,सं., गा. २२, पद्य, मूपू., वै., (यामाता ममता माया), प्रतहीन. (२) विषम काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (श्रीवीर० श्रीवीरः), ३७६८८(+$) विषयतृष्णा निवारण सज्झाय, मा.गु.,सं., गा. २०, पद्य, श्वे., (धिक्काम धिग्महामोह), ३५२८३ विषापहार स्तोत्र, जै.क. धनंजय कवि, सं., श्लो. ४०, ई. ७वी, पद्य, दि., (स्वात्मस्थितः सर्वगत), ३४६११(+) विहरमान २० जिन वीनती, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर पमुहा), ३७६१०-२ विहरमान २० जिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (द्वीपेत्र सीमंधर), ३४६५३-१, ३८७५१-८(-) वीतराग स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीवीतरागसर्वज्ञ), ३४६९८-१(+), ३६८१७-३(+) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), ३४८७६(+$), ३६८१७-१(+), ३४९९८, ३६६८९ वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शिवं शुद्धबुद्ध), ३४९८५-१(+), ३८७३२-३, ३८८९०-३(६) वीरशासने प्रमुख घटना व काल, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरात् २९१), ३५४२५ वेदांत स्तवन, मु. इंद्रनंदी, सं., अ. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीनाभिसद्वंशसरोज), ३६७६७(5) (२) वेदांत स्तवन-टीका, मु. धर्महसशिष्य, सं., गद्य, मूपू., (श्रीनाभेयजिनं नत्वा), ३६७६७(5) वैराग्य कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जम्मजरामरणजले नाणावि), ३७३२५ (२) आत्मसंबोधनकुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसाररुपियइ समुद्रिज), ३७३२५ वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०५, पद्य, मूपू., (संसारंमि असारे नत्थि), ३५५७१-१(+६), ३५६२७-१(+), ३६५६३(+), ३६१०४(६), ३६५६२(६) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार असारमाहि नथी), ३६५६२(5) वैरोट्यादेवी स्तोत्र, अप., गा. ३२, पद्य, मूपू., (नमिउण पासनाहं असुरिं), ३५९४४-१(+), ३६६०६-२ वैरोट्यादेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १६, पद्य, श्वे., (श्रीमत्पार्श्वजिनेंद), ३८७२४-४(+) व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, मूपू., (जे भिक्खूमासिय), प्रतहीन. (२) व्यवहारसूत्र-बीजक, स., गद्य, मूपू., (उपक्रमव्यवहारयोनामा), ३५४३२ व्याकरण, सं., गद्य, (--), ३७६०५-२(+) व्याकरण अपूर्ण व छूटक पन्ने, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., (--), ३४९८९-२(+) व्याकरण न्याय दर्शानादि मूल व टीकादि विविध ग्रंथों की ग्रंथाग्रं सूचि, सं., गद्य, जै., वै., (कलापक सूत्रं ५०० आदि), ३५७८७ व्याकरणपत्र, सं., गद्य, (प्रशद प्रकर्षार्थः), ३७४९३-३(+#) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), ३४६७३($) (२) व्याख्यानश्लोक संग्रह-विवेचन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंत), ३४६७३($) व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (देवपूजा दया दान), ३६२२४, ३७३७७, ३८९२०, ३७५०३-१(#$) (२) व्याख्यान श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत भगवंत गुरु), ३६२२४ व्रत उच्चार अधिकार, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (एएहिं पंचहिं असंवरेह), ३५६७१-३ For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ व्रतोच्चारण विधि आलापकयुक्त, प्रा.,सं., प+ग., श्वे., (प्रथमा नालिकेरादि), ३५९८५(+) शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., म्पू., (ॐ नमोर्हते भगवते), ३६३९०(+), ३५४०८ शक्रस्तव पदसंपदादिगाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (तित्तीसंच पयाई), ३५६२२-२ शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), ३६६८०-१(s) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (विमलकेवल ज्ञानकमला), ३८७५३-२ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (पंचासय जोअणयट्ठमूल), ३५५४४-७(s) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ३५१४१-२, ३७९७५-१ शत्रुजयतीर्थयात्रा दृष्टांत, सं., पद्य, मूपू., (--), ३५५३०($) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ), ३६९०१(+), ३७८२१(+), ३४४५८, ३८८९७ (२) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अइमुत्तइ केवलीइ), ३६९०१(+), ३४४५८, ३८८९७ शत्रुजयतीर्थ स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (धरणेंद्रप्रमुखानागाः), ३५११३, ३६८१६ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पुंडरीकगिरि राजशेखर), ३५५४४-२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शेव॒जयप्रभृति), ३५८४१-२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धं श्रीपुंडरीका), ३५५४४-१ शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. १००००, पद्य, मूपू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), ३४९६२-२(+#$) शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टा), ३५४७७-२, ३८३८१-२(2) शांतिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.,सं., ढा. २, गा. ४२, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रीजयमंगलाभ), ३६३०२(+5) शांतिजिन कलश, प्रा.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रेयः पल्लवयन्नयत्क), ३६२३०-५(+) शांतिजिन चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपे भरतक्षेत्), ३६५९७(+$) शांतिजिन विज्ञप्ति, श्राव. प्रमोद, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रियं स), ३६८१८-२(#) शांतिजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २०, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथो भगवान), ३६१९३-३ शांतिजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, अप.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (श्रीमान् शांति जिन), ३५८५८-२ शांतिजिन स्तवन, सं., पद्य, मूपू., (संतिकरं करुणाकर देव), ३६७७७-२(+) शांतिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (राजंत्या नवपद्मरागरु), ३७७०७-२ शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (किं कल्पद्रुमसेवया), ३८७५१-२(-) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (देवदेवाधिपैः सर्वतो), ३७४२६-१(-) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीशांति: श्रुतशांत), ३७६०५-३(+$) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रेयोलता पल्लवनैक), ३७७४९-१ शांतिजिन स्तुति-सकलकुशलवल्ली पादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), ३५१४१-३, ३६४६६-३, ३६८२७-३, ३८८८४-२ शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नानाविचित्रं बहुदुख), ३५१७३-२ शांतिजिन स्तोत्र, उपा. जयसागर, मा.गु.,सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिदेवं दित), ३४९२३-२ शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ विश्वातिशायिमहिम), ३४६९८-२(+) शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कल्याणकरं करुणानिलयं), ३४६९८-३(+) शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू, (विश्वातिशयिमहिमा ज्व), ३५७३३-३(+) शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (शांतये शांतिकामाय), ३७५०४-३(+) शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सुरराज सम्य जनता), ३६१४६-३ शांतिपाठ, सं., श्लो. १०+३, प+ग., मूपू., (शांतिजिनं शशिनिर्मल), ३८८७६ शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ननु संघादीनां विघ्नो), ३७२९२(+) शांतिस्नात्र विधि, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम पाट उपर रातुं), ३६८८७(+) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ शांतिस्नात्रविधि भाषा, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (तिहां चंद्रबल योगइ), ३५२७८ शारदादेवी स्तुति, सं. १, पद्य, वै. (या कुंदेंदुतुषारहारध), ३८५५०-२०० शालिभद्र चरित्र, पंडित. धर्मकुमार, सं., प्रक्र. ७, श्लो. ११७०, ग्रं. १२२४, वि. १३३४, पद्य, मूपू., ( श्रीदानधर्मकल्प), प्रतहीन. (२) शालिभद्र चरित्र - अवचूरि, सं., प्र. ७, गद्य, मूपू., (यथा मांगल्याष्टो), ३६१२८($) शाश्वतजिन प्रासाद जिनबिंब विचार, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (असुरकुमारे चउसठि), ३६४८२-१(+), ३७७५२ शाश्वतजिन स्तवन, अप., मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भवणं वयसंते कोडि लाख), ३८२५१ शाश्वतप्रतिमा वर्णन, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. १२ पद्य भूपू (चत्तारि अदसदोइ), ३६०५९ (२) चतुर्विंशतिजिन स्तव चत्तारिअट्ठदसदोय - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यार शंभवादी जीन), ३६०५९ शास्त्र के ३२ दोष व ८ गुण वर्णन, प्रा., सं., श्लो. ३२, पद्य, श्वे., (यच्च द्वात्रिंशद्दोष), ३६६४३ शिल्पसिद्धि ग्रंथ, सं., पद्य, जै., (--), ३५४६६-१ शील नववा गाथा, प्रा. गा. १, पद्य, भूपू (वसही कहर निसिज्ज३) ३७५३०-२(५) शीलविषये विजयश्रेष्ठि कथा, प्रा. सं., गा. ५२, पद्य, मूपू (सीतं सुहाणमूलं सीलं), ३७५२४ शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १० वी, पद्य, मूपू., ( आबालबंभयारिं नेमि), ३४९३७-१ ($), ३६३२३($), ३६५९४-२ ($), ३६६६६-१($), ३७६६५ - २ ($) (२) शीलोपदेशमाला - अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (आबा० आबाल ब्रह्मचारि), ३७६६५-२(३) (२) शीलोपदेशमाला घालावबोध, मा.गु, गद्य, म्पू, ( आबाल ब्रह्मचारी बालक), ३६५९४-२(६) शुक्र विचार, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (एक ग्रामे पुर वापि), ३५००६-३ शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (धर्मारामदवाग्निधूम), ३७२४६(+) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. ३४१ ग्रं. ३९०, पद्य, मृपू., (वीरं नमिऊण तिलोयभाणु), ३६७३१-२(+४) . श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ३५२७४-३, ३७९२०-१, ३८३१८, ३७४२२-२(#) (२) श्रावक १४ नियम गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचित्त कहिता सचित्त), ३७४२२-२(#) (२) श्रावक १४ नियम गाथा -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणी फल बीज दातण ते), ३७९२०-१, ३८३१८ श्रावक २१ गुण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (धम्मरयणस्स जुग्गो), ३५६६१-२, ३८५९५-१३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) आवक २१ गुण गाधा-स्वार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (धर्मनै जोग्य ते), ३५६६१-२ श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत), ३५७७५-१(+#), ३५६२४ (२) श्रावक आराधना -बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत), ३८३१२($) श्रावक आलोचना विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (हिवै सर्व पाप आलोए), ३५५२३-१ आवक आलोषणा विचार, प्रा. मा.गु. सं., पग, भूपू (प्रथमं मुहत) ३५७७४-१ श्रावक के २६ बोल, प्रा., गद्य, श्वे. (उल्लणिया विहं १ ), ३७०६५-२ श्रावक पाक्षिक अतिचार - लघु, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (ईच्छामि खमा० ईच्छाका), ३७७०३ आवक समाधिमरण विधि, प्रा. मा.गु., गद्य, वे (प्रथम ईरियावही पडकमी), ३५६२८ " श्रीधर कथा, सं., गद्य, भूपू (श्रीउज्जयनीपुरवरे), ३६२८५ (+) " श्रीराणभूमीशवंश प्रकाश:, मु. मेघविजय, सं., श्लो. ५७, पद्य, भूपू (जयति विजयलक्ष्मीवासव), ३७५९१(३) श्रीषेणनृपति कथा, सं., गद्य, मृपू. (एतां धर्मकथां निशम्य), ३७३६८- ३(क) श्रेणिकराजा के आगे महावीरजिन की देशना, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, म्पू (अध विरप्रभू आगे), ३६८८०-१ "" लोक संग्रह, सं., श्लो. ११. पद्य (अस्मान् विचित्रवपुषि), ३६०३६-२, ३६०३८-२, ३७८९५-१ For Private and Personal Use Only ५११ Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), ३४४६१-४(+), ३५३७९-२(+), ३६२२९-२(+), ३६२७३-२(+#), ३७६१३-२(+), ३४६३५-२, ३५१२६-२, ३५४१७-३, ३५७२८-२, ३५७५७-२, ३६४७७-३, ३६८८२-२, ३७३०६-२, ३७३१८-२, ३७५६६-२, ३७५७१-३, ३७७८४-३, ३७८१६-२, ३७९२५-२,३७९७७-२,३८३१४-३, ३८३८७-३, ३८७७५-२, ३८९६७-३, ३४९२०-३(१), ३७८६२-२(#), ३५६२३-१(६) श्लोक संग्रह-सं., पद्य, जै., वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), ३७५२८-२(+) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (नेत्रानंदकरी भवोदधि), ३५५१४-४(+), ३६०४६(+5), ३८८६७-२(+), ३७२३९-४ श्लोक संग्रह- मा.गु.,सं., पद्य, (--), ३५३०८-१, ३५७९०-१ श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, (--), ३७०७६-३(+#), ३७००१-२, ३८२४२-३(#) श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., वै., (गोश्रावः किमयंग), ३५९७७-२(+) (२) श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित-टीका, सं., गद्य, मूपू., वै., (अमोलक्ष्मीरहितोलक्ष), ३५९७७-२(+) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ३४६९८-४(+), ३४९९७-२(+), ३५९८६-३(+), ३७५१४-३(+$), ३८४७३-१(+), ३८७७१-२(+), ३५०४२-२, ३५६९६-३, ३५९९४-३, ३६२२७, ३६४२६, ३६४५१, ३६५५४-२, ३६५५९-२, ३६६५२-२, ३६७९२-१, ३६८०६-२, ३६९८८-३, ३७३६३-२, ३७४१३-२, ३५४७३-१(#), ३५९६५(#$), ३७९३०-२(#), ३८९८३-२(#), ३७६०८(5) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-चालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३८७७१-२(+) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकाग्रचित्ते जिन), ३६४५१, ३७९३०-२(#) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३८७७१-२(+) श्वासोश्वासपरिमाण विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (ब्रह्मदच चक्रवंत ७सइ), ३५६१६-२ षट्लेश्या लक्षण, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (अतिरौद्र सदा क्रोधी), ३८९८३-१(4) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), ३५५६३-१ षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ७, श्लो. ८७, पद्य, मूपू., वै., बौ., (सद्दर्शनं जिनं नत्वा), प्रतहीन. (२) षड्दर्शन समुच्चय-लघु, संक्षेप, सं., पद्य, मूपू., वै., बौ., (जैन नैयायिक बौद्ध), ३६००८-२ षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १६१+४, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो सुगुरू), ३५४१५-१(5) संकासजीवाख्यान देवद्रव्य भक्षण रक्षण प्रवर्द्धन फलोपदर्शकं, सं., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपाभिधे द्वीप), ३७४१४-२(+) संक्रांतिविचार यंत्र, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (यस्मिन् दिने रवि), ३४९५४-७ संख्यातादिभेद विचार, मु. पार्श्वचंद्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (से किंतंगणण संखा), ३५४९३(5) संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (वह्निज्वालावलीढ), ३७७५८(+) संघप्रमुख प्रति लेख, श्राव. प्रमोद, सं., श्लो. ४३, पद्य, मूपू., (--), ३६८१८-१(#$) संघ स्तुति, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (संघोयं गुणरत्नरोहणगि), ३५६५१-२(+) (२) संघ स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसंघ गुण रूप रत्न), ३५६५१-२(+$) संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं जग), ३४९५७-२, ३५१५२-४, ३५४१४-१, ३७३७८, ३७३७९ संथारा पट्टी, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (--), ३८७६३-२(+) संथारापोरसी विधि, प्रा.,मा.गु., गा. ११, प+ग., मूपू., (पहिलु संथाड करावीइ), ३८६५०-३ संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (निसिही निसिही निसीहि), ३६४६३-२(+), ३६४९८(+), ३४४९४-२, ३४८७१, ३४८७२, ३४८८३, ३५१६७, ३५५३८, ३५९७४, ३६०७३-२, ३७२८५-१, ३७२९०-१, ३७३२८-१, ३७८२८, ३८१८७-१, ३५२६१-२() (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार विना बीजो), ३५५३८ (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुउ क्षमा), ३४८७२ (२) संथाराविधिपाठ-टबार्थ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (निसीही कहेतां बाह्य), ३७२८५-१ For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१३ संधिविभक्ति परिचय, मा.गु.,सं., गा. ५, पद्य, वै., (समान्न सवरणे दुरगी), ३५७७१-२(+) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५+२, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरु), ३७४८४(+), ३६८०६-१, ३५९२२(5), ३६३०५(६), ३६६६६-२($) (२) संबोधसत्तरि-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नत्वा नमस्कार), ३५९२२(5), ३६३०५(६) संभवजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (निर्भिन्नशत्रुभवभय), ३६२३१-३, ३६६१३-३ संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अहं भंते अपछिम मारणं), ३५११५(+), ३४७७६, ३५२७९ संसक्तनियुक्ति, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., (उसभाइवीरचरिमे सुरासु), ३५८०६ संसारतारण तप आराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीकेसि गणधराय नमः), ३७३१२-६ संसार रथ, प्रा., गा. २, प+ग., मूपू., (उढदिसिं पुरिस जीवो), ३७३३८-४ संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूपू., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), ३५९९९-१(+$) सकल जिनाभिमुखे सूरसंगीत अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (द्रों द्रों द्रों), ३८९७५-१ सच्चीयादेवी स्तवन, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (गिरिकूडतडनिवट्ठा ऊएस), ३८७२४-३(+) सत्यकादेवी स्तुति, मु. देवगुप्त, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सुरनरगतपादा ध्वस्त), ३६०५५(#) सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध, प्रा., गद्य, श्वे., (सणंकुमारेणं भंते), ३५३७३(+), ३४४५५-१ (२) सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (सनंतकुमार हे पुज), ३५३७३(+) सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., श्लो. ९१, पद्य, मूपू., (सिद्ध पएहिं महत्थं), ३६६७५-१(+) सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ७२, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थं), ३६६८०-२ सप्ततिशतजिन स्तुति, उपा. जयसागर, अप., गा. १, पद्य, मूपू., (भरहेरवए विजएसु तहा), ३७४७३-२ सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषये, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अट्ठण्हं जणणीओ तित्थ), ३६१२१-१(+), ३८७०९-२(+) (२) सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषये-टीका, सं., गद्य, मूपू., (अष्टानां तीर्थकृता), ३६१२१-१(+) (२) सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषयेटबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभदेवना पीता भवनपति), ३८७०९-२(+) सप्तभंगी स्वरूप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिया अत्थि १ सिया), ३७८१८(१) (२) सप्तभंगी स्वरूप गाथा-विवरण, पं. दानचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल पदार्थ आप आपणे), ३७८१८(#) समयक्षेत्रविचार गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सव्वेवि पव्वयवरा समय), ३५८९८-४ समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ९, गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग., दि., (नमः समयसाराय स्वानुभ), प्रतहीन. (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, दि., (नमः समयसाराय), प्रतहीन. (४) समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., अधि. १३, गा.७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर हरन), ३६४३३($), ३७७५६(5) समराइच्चकहा, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., भव. ९, गद्य, मूपू., (पणमह विजिअसुदुज्य), प्रतहीन. (२) समराइच्चकहा-स्नात्र विधि, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (ओवणेओ मंगलं वो जिणाण), ३६२३०-४(+) समवसरणतप विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (भवजिन नाथाय नमः), ३७३१२-८ समवसरणविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (नागेसु उसभवैया सेसाण), ३७४४१-२(+) समवसरणविस्तार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (रिसहो बारस जोयण), ३५३४४-२(+) समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (थुणिमो केवलीवत्थ), ३५१५४(+$), ३६०१३(+), ३५२२० (२) समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थंकरं समवसरणस्थ), ३५२२० (२) समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (थुणिमो केवलिवत्थं), ३५१५४(+S) (२) समवसरण स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अटे स्तवस्युं केवल), ३६०१३(+) समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ (२) समवायांगसूत्र-साढीपंचवीसदेस, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (--), ३७८२७(+$) (३) समवायांगसूत्र-साढीपंचवीसदेस-टबार्थ, माग., गद्य, मूपू., (--), ३७८२७(+$) समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०६, ई. ५वी, पद्य, दि., (येनात्माबुध्यतात्मै), प्रतहीन. (२) समाधिशतक दोधकछंदमय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. १०४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., दि., (प्रणमी सरसति भारती), ३६३६९(+) सम्मेतगिरितीर्थ स्तवन, उपा. मेघविजय, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (समेतशिखर सिर वंदओ), ३७८४९ सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चउसद्दहण तिलिंग दस), ३५४०७-१ (२) सम्यक्त्वना ६७ बोलभेद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसद्दहणा० जीवजीवदि), ३५४०७-१ सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूव), ३५५८०-१(+), ३७२६३, ३५६३०-२(5) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा येन औपशमिकत्वादि), ३५५८०-१(+) सम्यक्त्व सप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (दसणसुद्धिपयासं), ३६०८०(+) सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणा), ३५७११(+), ३५७६६, ३७७०९-२ सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (जिनादेशजाता जिनेंद्र), ३५७२८-१ । सरस्वतीदेवी के १६ नाम स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, स्पू., वै., (नमस्ते शारदा देवी), ३८७५२ सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे., (सकलसिद्धिदातार), ३५०३८(2) सरस्वतीदेवी जाप मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ अर्हन्मुखकमलवासिनी), ३७३३४-२ सरस्वतीदेवी बीजमंत्र, सं., सू. १, पद्य, वै., (ॐ नमो सरस्वती भगवती), ३८५३६-३ सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ॐहीश्रीझौँ वद), ३८३५३-२ सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (सरस्वती महाभागे वरदे), ३७५६१-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (सरभसलसद्भक्तिप्रवी), ३४४८९ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (कदाकुंडलिनित्वदीयवपु), ३७५१४-१(+), ३५५९७-३ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (त्वं शारदादेवी समस्त), ३६०५८ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (व्याप्तानंत समस्तलोक), ३६८५३, ३७३३४-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), ३५८३९-२, ३७५४५-४ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (व्याप्तानंतसमस्तलोक), ३६५६५-१(+), ३५८३९-१, ३८९९६-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., श्लो. १२, पद्य, जै.?, (नमस्ते शारदादेवी), ३४९०४-२(+) सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मान), प्रतहीन. (३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., वृ. ३, ग्रं. ७५००, वि. १६२३, गद्य, मूपू., वै., (नमोस्तु सर्वकल्याणपद), ३६०४४($) सर्वजिन स्तव, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जिनपते द्रुतमिंद्रिय), ३५०४१-२ सर्वतपोच्चारण आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (अहण्हं भंते तुम्हाणं), ३५४६९-७(+) सर्वविरति नय विवरण, सं., प+ग., श्वे., (सदा साध्युदयेध्विंदु), ३६६९० साधारणजिन आरती, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (मरगयमणि घटिअविसाल), ३६१६५-३ साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो.७, पद्य, मूपू., (जयश्रीजिनकल्याणवल्लि), ३५९१७(+), ३९००५-२(+) (२) साधारणजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, मूपू., (श्रीजिनेत्यादिनि), ३५९१७(+) (२) साधारणजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे श्रियायुक्तो जिन), ३५९१७(+) साधारणजिन चैत्यवंदन*, मा.गु.,सं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी जिन नमु), ३४५३९-६ साधारणजिन चैत्यवंदन, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (नवकारेण जहन्ना दंडग), ३६१३६-२(+#5) For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ साधारणजिन च्यवनकल्याणक स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. ९, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (गर्भावतीर्ण भववाधि), ३८५९७-३(+#) साधारणजिन जन्मकल्याणक स्तवन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (भुवनमोहनरूपसुसंपदः), ३८५९७-४(+#) साधारणजिन ज्ञानकल्याणक स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. १७, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (केवलालोकसंक्रांत), ३८५९७-६(+#) साधारणजिन दीक्षाकल्याणक स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. १२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (स्तुवे चारुचारित्र), ३८५९७-५(+#) साधारणजिन नमस्कार, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष प्रातिहार), ३८८८३(+) साधारणजिन निर्वाणकल्याणक स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. १२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (प्राप्तमुक्तिवनितामु), ३८५९७-७(+#) साधारणजिन पंचकल्याणक स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. ८, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (कल्याणकारीणि जिनेश्व), ३८५९७-८(+#) साधारणजिन शतार्थी स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि , सं., श्लो. १, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (कल्याणसारसवितानीय), ३५१२३-९(+#) साधारणजिन शरीरमान, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (पंचाशद्धनुराधेशाद्), ३७६२१-३ साधारणजिन स्तव, श्राव. कुमारपाल महाराजा, सं., श्लो. ३३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नम्राखिलाखंडलमौलि), ३६१०१-२(६) साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभो यं), ३४९८९-१(+), ३६४४०(+), ३७५११(+), ३६४४५, ३७४३६-२ (२) साधारणजिन स्तव-वृत्ति, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. १४२, गद्य, जै., (देवाः प्रभो. द्याख्य), प्रतहीन. (३) साधारणजिन स्तव-वृत्ति की अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. १४२, गद्य, मूपू., (हे प्रभोसत्वमया), ३४९८९-१(+) (२) साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, मूपू., (देवाः प्रभोयमित्यादि), ३६४४०(+) (२) साधारणजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे श्रेयः हे प्रभो), ३७५११(+), ३६४४५ साधारणजिन स्तुति, उपा. जयसागर, अप., गा. १, पद्य, मूपू., (वरकेवलदसणनाणधरा), ३७४७३-६ साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराज: पदपद्म), ३५१२३-४(+#), ३७५८७-२ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरलकमलगवल), ३८७१०, ३८८९०-२ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (असमरं समरंजनमंजन), ३५७९९-२ साधारणजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (गब्भावयारजम्मण), ३६६११-२ साधारणजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयपयडपयावंमेहगंभीर), ३६६११-४ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., (नमस्ते देवदेवाय), ३७७९९-२ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, दि., (पापं ध्रुवं परे), ३५८८८-२ साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, मूपू., (लास्यमकार हारिणा), ३७७१२-२($) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (शुभवता भवता नवतारिणा), ३५५४९-५ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीसार्वराजीव), ३७५५०-३(+) साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, मूपू., (श्रेयः सरोरुह वनांबर), ३७५०५-५($) साधारणजिन स्तुति-अष्टप्रातिहार्यगर्भित, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (प्रातिहार्यकलितासम), ३५६४७-२ साधारणजिन स्तुति-चतुःश्लोकी, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सहसा महसा सहसा), ३५७९९-१ साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा.८, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ३७५६१-२ साधु २७ गुण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (छव्वय ६ छक्काय ६), ३८४८४-५ (२) साधु २७ गुण गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (छव्रत ते सर्वथकी), ३८४८४-५ साधु असाधु गुणदोष वर्णन, सं., श्लो. २, पद्य, जै.?, (गुणायंते दोषाः स्वजन), ३७१६९-२(#) साधु के १४ नाम, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे., (सिद्धांतोक्तानि नाम), ३८५८७-१(+) (२) साधु के १४ नाम-टीका, सं., गद्य, श्वे., (निग्रंथ इति ग्रंथो), ३८५८७-१(+) For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१६ www.kobatirth.org साधुआवक सम्यक्त्व विचार, प्रा. सं., प+ग, भूपू (भावविआणसामणुवत्तणाउ), ३६०९७-१(+) "" . "" साधु समाचारी, प्रा., मा.गु, गद्य, मूपू (आवसही नही२ आपुछणा३), ३६९२८-३ साधुसाध्वी १४ उपकरण, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (पत्तं पत्ताबंधी पायठ), ३७५१३-१(+), ३६९४७ (२) साधुसाध्वी उपकरण -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पात्रानी मर्यादा), ३७५१३-१(+), ३६९४७ साध्वाचारषट्त्रिंशिका, मु. रूपचंद्र, सं., श्लो. ३६, पद्य, म्पू. (गृहित्वा वैराग्यं), ३४८६०-२ सामाचारी - खरतरगच्छीय, आ जिनपतिसूरि, प्रा., गा. ६०, पद्य, भूपू (आयरिव उवज्झाए इच्छाइ), ३६००८-२ ३७४९०-१ सामाचारी प्रकरण, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (आयारमयं वीरं वंदिय), ३६६४१(s) सामाचारी व्यवस्थापत्र - खरतरगच्छीय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा सर्वं वस्त्र), ३७४९०-२ सामान्य कृति, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, ?, (--), ३४५०४-२ (+), ३७४२८-३ () सामान्य श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (--), ३४५५१-३, ३७१४९-२, ३४८७५-३(#) सामायिकपौषध विधि, प्रा. सं., पग, भूपू (वः श्राद्धः प्रभाते), ३५००९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ सिद्ध १५ भेद गाधा, प्रा. गा. १, पद्य, मूपू (जिण १ अजिण २ तीत्व ३), ३६६११-६ " सामायिक विधि, प्रा.मा.गु., प+ग., मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो), ३५६८७-२ सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., (आदिदेवं प्रणम्यादौ), ३५३६८($) सारस्वतवर्ण काव्य, मु. रत्न ऋषि, सं., पद्य, श्वे., (गणिमनीषितमंगलपेटकं), ३५०१२ (+$) सारावली प्रकीर्णक, प्रा. गा. ११६, पद्य, भूपू (आरंभेसु नियत्ता सव्व), ३६७३८ सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. द्वा. २२ १०० वि. १३वी, पद्य, म्पू (सिंदूरप्रकरस्तपः), ३४९८८ (+३) ३६७३१-१(+) (२) सिंदूरप्रकर- पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., अधि. २२, गा. १०१, वि. १६९१, पद्य, मूपू., दि., (सोभित प सीस), ३७५८४($) " " " 3 ', Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्ध के ३१ अतिशय, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (संस्तान वर्ण गंधश्च), ३७२३९-५ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ३४९९७-१(+), ३५९७१-१, ३७३९२, ३७५१२-२ (२) सिद्धदंडिका स्तव - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (व्युगानि कालमानविशेष ), ३७३१६(+) , (२) सिद्धचक्र चैत्यवंदन - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपन्न कहतां उपनु जे), ३७३९२ सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. लक्ष्मीविजय, सं., भो. ४, पद्य, भूपू (ज्ञात्वा प्रश्न), ३६८२७-६(३) सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहाणं सिद्धाणं), ३५९४३-२ सिद्धचक्र स्तुति, प्रा. गा. ४, पद्य, भूपू. (अरिहा सिद्धायरिया) ३७५१२-१ सिद्धचक्र स्तुति, सं. लो. ८, पद्य, भूपू (अर्हन्मूलं प्रकांडो), ३७४३८-१ . 1 " सिद्धचक्र स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कृतिसुकृतिसुरेंद्रा), ३५९७१-४ सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिणसिद्धसूरिउवज्झाय), ३५९७१-२ सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (देहिमे सिद्धचक्रेष्ट), ३५९७१-३ सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, म्पू. ( भतिजुनाण सत्ताण), ३४९९७-३(+), ३८४७४-२(+), ३५९४३-१६) सिद्धचक्र स्तुति, सं., श्रो. १५, पद्य, भूपू (विधातारं तावद्), ३७३६३-१ सिद्धदंडिका यंत्र, सं., को. मृपू (अनुलोमसिद्धिदंडिका १) ३८०३७-१ " सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जं उसहकेवलाओ अंत), ३६८४० (+), ३६८५६ (+), ३७३१६(+), ३६२६७, ३६४८५, ३६४९४, ३६५८८, ३६८९१, ३७२२८, ३७३०३, ३७३२२, ३७९२३-२, ३७४००(२), ३८०३७-२ (३) (२) सिद्धइंडिका स्त-अवधूरि, सं., गद्य, भूपू (आदित्ययशोनृपप्रभृतयो) ३६८४० (+), ३६५८८. (२) सिद्धदंडिका स्तव -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जं क० जे उसभ क० ऋषभ), ३६८५६ (+), ३६४८५, ३६४९४, ३७३२२ (२) सिद्धदंडिका स्तव -यंत्र, सं., को., मूपू., (अनुलोम सिद्धिदंडिका), ३६५८८ सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. ५०, पद्य, भूपू (सिद्धं सिद्धत्वसु, ३६००२ (+) " For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१७ (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नवरं सिद्धं निष्ठिता), ३६००२(+$) सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), ३९०४७(+$), ३६६०६-१ सिद्धसेनदिवाकरजी ने विक्रमादित्य को धर्मलाभ द्रष्टांत श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (दूरादुत्थितपाणये सूर), ३५७४२-१ सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (अर्ह सिद्धिः स्याद), प्रतहीन. (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ३००, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (भू सत्तायां ___ पापाने), ३७७३९(+$), ३६८२३ (२) क्रियारत्नसमुच्चय, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं. ५६६१, वि. १४६६, गद्य, मूपू., (जयतिजिनवर्द्धमानो), ३६१०९(s) (३) क्रियारत्नसमुच्चय-टीका, सं., गद्य, मूपू., (सर्वासां विभक्तीनां), ३६१०९(5) सिद्धांत गाथा, प्रा., गा.७, पद्य, मूपू., (पंचसु पंचसु पंचसु), ३५७०० । सिद्धांतसार, पं. विवेकविजय, प्रा., गा. १०३, पद्य, मपू., (चत्तारि परिमंगाणि), ३५०८२ सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, पद्य, मूपू., (नत्वा गुरुभ्यः श्रुत), ३५८७६(+), ३७२१३-१(६) (२) सिद्धांत स्तव-टीका, आदिगुप्त, सं., गद्य, मूपू., (ध्यायंति श्रीविशेषाय), ३५८७६(+) सिद्धाचल दो अठम तपविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीपुंडरिकगणधराय नम), ३७३१२-३ सिद्धों के १५ भेद उदाहरण, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिणसिद्धा अरिहंता), ३६५२६-४(+) सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपयाई झायित), ३६०३१(६) सीमंधरजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जोरज्यं पविहित्तु), ३४९८४(+#) (२) सीमंधरजिन स्तुति टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जो कहतांजे सीमंधर), ३४९८४(+#) सीमंधरजिन स्तोत्र, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमिरसुर असुर नरवंदि), ३४६६३(#) सुखविपाक-द्वितीय श्रुतस्कंध विपाकसूत्रगत, प्रा., अ. १०, पद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेण), ३५२६८, ३८७३८ सुभाषित श्लोक*, मा.गु.,सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (अपुत्रस्य गृहं सुन), ३६९५०-३(+) सुभाषित श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (दुरितवनघनालीशोककासार), ३६५३५-२ सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद), ३६२५४(+), ३७६९०-३(+), ३८३८२-२(+), ३६९१४, ३८२९५, ३८३२१-२, ३८३९५-५, ३८७६२-२, ३६८२१-१(#), ३५४८५(६), ३५९६३(६), ३८९७३-२(5) (२) सुभाषित श्लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल क० समस्त कुसल), ३८३२१-२ (२) सुभाषित श्लोक संग्रह -बालाबबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३५४८५(5) सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, (विद्यालक्ष्मीसंपन्ना), ३६९९८-२(+) सुभाषितश्लोक संग्रह, सं.,मा.गु., पद्य, (--), ३८२८१-३ सुभाषित संग्रह *, सं., श्लो. ८, पद्य, (नागो भाति मदेन कंजलर), ३६६७६-२, ३७४८३-२, ३८६०२-३(#) सुमित्रमंत्री कथा-देशावकाशिकव्रतविषये, सं., प+ग., श्वे., (प्रभावादस्य नश्यति), ३५४९५-१ सुरप्रिय कथा-आत्मनिंदाविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १२५, वि. १६५६, पद्य, मूपू., (प्रणम्य महिमागार), ३६०३७ सुवर्णगुंजा श्लोक, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (न कषैश्छेदनैर्भेदै), ३५९८६-२(+) सुविधिजिन लघुस्तव-द्वीपमंडन, मु. उदयसागर, सं., श्लो. ७, पद्य, पू., (सुविधिरविधि मन्यं), ३५९१२-१(+) सूक्तमाला, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., श्लो. ११६, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य परंज्योतिः), ३६६७६-३ सूक्तावली, सं., श्लो. १३८, पद्य, श्वे., (राज्यं निःसचिवंगत), ३५८२०(६) सूक्ष्मबादर निगोदविचार संग्रह-आगमसूत्रगत, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (एणि करीनइं बादरनिगोद), ३६९६३ सूतक अध्याय, सं., गद्य, मूपू., (चंद्रो यदि लग्न), ३७०७१-२(#$) सूतक विचार, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (सूतकं वृद्धिहानिभ्या), ३८७७३-२ For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज), ३५४५८(+६), ३४४९८, ३५४८४(5), ३५५२५() (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सद्गुरुन्), ३५४८४($) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झि० छकाय जीवना), ३५४५८(+$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा आहारपरिज्ञा अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इह खलु), ३७७७२-२(+s) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा आहारपरिज्ञा अध्ययन का (मा,गु.) बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसुधर्मास्वामि), ३७७७२-२(+$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ३५१४३-१(+), ३६४७२(+), ३६४८१-१(+), ३६४९९(+), ३६५४३-१(+#), ३५०१५-१, ३५४३५-१, ३६८५०, ३७०७३, ३७३५३-१, ३४९५६-१(#s) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पु० पुछता हवा कोण), ३६४७२(+), ३६४९९(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (२३ सुगडांगजी के अध्य), ३७६५९ सूरिमंत्रपूजा विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ क्रौं ह्रीं श्रीं), ३५८३० । सूरिमंत्रबृहत्कल्प विवरण, आ. जिनप्रभसूरि, सं., प+ग., मूपू., (अहँ बीजं नमस्कृत्य), ३५२१९(#$) सूरिसंख्या कुलक, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (सिरिवद्धमाणतित्थं), ३६५२४-२ सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. २२००, गद्य, मूपू., (नमो अरि० तेणं० मिथिल), प्रतहीन. (२) चंद्र सूर्यप्रज्ञप्ति बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मो पाहुडो युग संवछर), ३६२४० सूर्यमध्यमफल श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, (त्रिषष्ठोदशमश्चैव एक), ३५७१८-२ ।। सूर्यसहस्रनाम संग्रह, पं. हेमविजय, सं., प्रका. १०, वि. १६४७, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थजातो भगवान्), ३७४८१(+) सूर्य स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, श्वे., (आदित्येः कूक्षि), ३५०६९-१ सूर्याष्टक, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (आदित्ये पूजिते नित्य), ३७११४-२ सूर्योदयपूर्वे १० पडिलेहण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (मुहपत्ती रयहरणं दुन), ३५४०५-२, ३६५३४-२ (२) सूर्योदयपूर्वे १० पडिलेहण गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए दस वाना सूर्योदय), ३५४०५-२ सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, स्पू., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), प्रतहीन. (२) सौभाग्यपंचमी कथा-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथां), ३७१४९-१ । स्तुतिचतुर्विंशतिका, उपा. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या नतमौलि), ३५२४८(६) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), ३७५४०+), ३५३७६-१, ३५६०३-१, ३७४५६(5) स्तूपप्रतिष्ठा विधि, सं., गद्य, मूपू., (शुभदिने चंद्रबले), ३७५६२-२(+) स्त्री६४ कला नाम, सं., गद्य, जै.?, (नृत्यौ ऊचित्ये चित्र), ३५६६८-१३ स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेणं), ३६३११(+$), ३७९३६-१(+), ३६७६१, ३६७७०(७), ३७८३१(-$) (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसुधर्मा कहि हे), ३६३११(+$) (२) स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक४ उद्देश४ मेघपद से परिनिंदिता पद, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (चत्तारि मेहा प० तं०), ३५८०५(+) (३) स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक४ उद्देश४ मेघपद से परिनिंदिता पद का टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरुषनइ गाजवउ ते दान), ___३५८०५(+) (२) स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक९ पदार्थ निरूपण, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (जीवाजीव व्यतिरिक्तः), ३५२६६(+) (३) स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक पदार्थ निरूपण-(पु.हि.)बालावबोध, पुहि., गद्य, मूपू., (शिष्य शंका करते हैं), ३५२६६(+) For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१९ (२) स्थानांगसूत्र-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एगे अरिहंता एगे समए), ३८७१६-३ स्थापना कल्पलक्षण सहित, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ७, प+ग., मूपू., (रक्त स्थापना तन्मध्य), ३७४४८ स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., मूपू., (स्थापनाविधि), ३७३०९-१(+), ३६६७४-१, ३७३३५-१, ३७३५८ (२) स्थापनाचार्य विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (थापनानोविधि ते प्रति), ३७३३५-१, ३७३५८ स्थापनाचार्य विशेषविधि, सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां दुग्ध मध्य), ३७३०९-२(+), ३६६७४-२, ३७३३५-२ (२) स्थापनाचार्य विशेषविधि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सांजे दूधमांहि थापना), ३७०१२-१ (२) स्थापनाचार्य विशेषविधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सांजे दुधमांहि थापना), ३७३३५-२ स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., कुसु. ५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पवित्र उदक लेइ अंग), ३६२३०-७(+), ३७७९४-१ स्नात्रपूजा, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (मुक्तालंकार विकार), ३५०५३(६) स्नात्रपूजा विधिसहित, पंन्या. रूपविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (मुक्तालंकार विकारसार), ३८६८७-१ स्नात्रपूजा संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ३८५२८-१ स्मृति नाम, सं., गद्य, वै., (धर्मशास्त्रं संव्रत), ३५६३१-४(+) हंसपाल कथानक-दानोपरि, प्रा.,सं., गद्य, स्पू., (संसारजलहिजाणुंदाणं), ३७९२१-१(+) हवन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (भूमिशुद्धी अंगन्यास), ३५२३६-२ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. अमरहर्ष, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीसूरिश्वर पदवी), ३४७०४ होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५३, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ३६२०४(+) होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मूपू., (ऋषभस्वामिनं वंदे), ३४९०९ होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ३८७७०-१(६), ३५५४८, ३६०७० होलिकापर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनवरेंद्र), ३४९९९ होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., श्लो. ३४, वि. १४८५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सम्यक् परमार), ३७५३३ होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ३५२५५-१ होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ३५६८०-२(+) ह्रींकार महास्तोत्र, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (हींकारस्य किं तत्व), ३८८६९(+) (२) ह्रींकार महास्तोत्र टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हींकार नु स्युं तत), ३८८६९(+) For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २ श्रावण व २ भाद्रवा संवाद, मा.गु., गद्य, श्वे., (पर्युषणाकल्पस्थापना), ३६५२२-१(-) ३ उपकार विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (बहुना कीधा उपगार), ३६८२८ ३ रा व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद. ५, पद्य, मूपू., (नीसूणो श्रावक समकीत), ३६९८७-२ ४ कषाय पद, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जैन धर्म नही कीतावो), ३४६७२-६ ४ गति विरहकाल समय, मा.गु., गद्य, श्वे., (च्यारुगत कौ समचौविरह), ३८२७७ ४ गति वेलि, मा.गु., गा. १३५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (आदि देव अरिहंतजी आदि), ३५२१५(६), ३६१०५(5) ४ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आरितध्यान जीका), ३८५९५-२ ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ शशिकुलतिलो), ३७५२७(+$) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (नगर कंपिलानो धणी रे), ३८१२३ ४ बुद्धि ज्ञान, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वाभाविकि उत्पातिकि), ३५६६८-१४ ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ३७१२३-१(+) ४ मंगल पद, मु. सकलचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आज म्हारै च्यारु), ३७१९३-३ ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (पो उठीने समरीजै हौ), ३४५०३-२, ३८९४०, ३४५०१-२(६), ३८११८-१(-), ३८३६५-२(-) ४ मंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, स्था., (पहिलो मंगल अरिहंतनो), ३५९४०-१(+), ३५६३८ ४ मंगल सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (मंगलिक पहिलो कहुं एह), ३५८२२-३ ४ राजनीति, मा.गु., गद्य, (सात्विकी तामसी), ३५६६८-१६ ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., अ. ४, गा. १२, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मुजने चार शरणा होजो), ३८४६०-१ ४ शाश्वतजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभ१ चंद्रानन२), ३५०६१-४ ५ अनुत्तरविमान नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (विजय १ वैजयंत २ जयंत), ३८३२४-४ ५ इंद्रिय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोयंद्रीकांन१ चख्ये), ३८३२४-५ ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (काम अंध गजराज अगाज), ३४८१८-२, ३५३४६-४, ३७४८८-१(१) ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ३७५९९(+), ३५८६५-१, ३४७७१(s), ३७०९५(६) ५ चारित्र नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सामायक१ छेदोपस्थापनि), ३८५९५-३ ५ ज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान श्रुतज्ञान), ३६०५७ ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), ३४५५६-५(+) ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ३८०१५-१(+$), ३७६१२-३(5) ५ पद सवैया, मु. मेघराज, मा.गु., सवै. १३, वि. १९३५, पद्य, श्वे., (घणै हरख वैरागस्यु), ३४६०० ५पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ३५७८०, ३५९९२, ३६५७८, ३८२२३ ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), ३६१५०-१, ३६६६१-१, ३८०८०-१(#) ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू., (सुरतरुनी परि दोहिलो), ३९००१-१ ५ शरीर द्वार विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ३६८३२-३ ५ समवाय, मा.गु., गद्य, श्वे., (कालवादी बोले छै काल), ३४५१५-२(+) ५ स्थावर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंदी थावरकाए ए पृथवी), ३६८२१-३(#) ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ९, गा. ५४, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (श्रीस्याद्वाद शुद्धो), ३४६४२ For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५२१ ६ आरा मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीस कोडाकोडि सागरोपम), ३८११३-२(#) ६ आरा सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (समय समय आरो सुवीचार), ३५७५९-३(-) ६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४४, पद्य, मूपू., (चोवीसई जिन चीतवीं), ३७२४३-१ ६ कायजीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथ्वीकाय अपकाय), ३७४५२-३ ६ जीवपर्याप्ति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकेंद्री ४ पर्याप्ती), ३८५९५-६ ६ दर्शने ९६ पाखंडी नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (जैनदर्शने श्वेतांबर), ३५६६८-५ ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मद्रव्य शुद्ध लोक), ३८५८०(+) ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहलोक भय १ परलोक भय), ३६४१४-२(+) ७ राज बल, मा.गु., गद्य, (स्वामी अमात्य जनपद), ३५६६८-१७ ७ वार गीत, क. नरसिंह महेता, मा.गु., कडी.७, पद्य, वै., (सोमवारे सामलिओ), ३७०६३-२ ७ व्यसन सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जूआ विसने वाहीऊ नल), ३७८०४ ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), ३६०९०-१, ३५६७२-३(2) ७ व्यसन सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगण सनेही हो सांभले), ३८९६५-३ ७ व्यसन सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. १८, पद्य, श्वे., (--), ३७४२७(६) ७ समुद्धात विचार-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (वेदनी १ कसाय २ मरणा), ३८८३१(+s) ७ सहेली संवाद, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (पहिली सखी उठि बोलीयु), ३८१३३-१ ७ सुखदुख सज्झाय, श्राव. ऋषभ, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पहलूं सुख जेन जइय), ३५३४८(#) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ३७०९७-१ ८ कर्मप्रकृति बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणीय कर्म मति), ३७५६५ ८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ज्ञानावरणी), ३८९५० ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञानावरणीयकर्म), ३७६०२ ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी कर्म आंख), ३७०९७-२, ३८१५७(#) ८ कर्म सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (आठ करम जिणवर कह्या), ३६४५०-४ ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. ३७, वि. १८१३, पद्य, मूपू., (श्रुतधर जस समरें सदा), ३८६८७-२ ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर निकलंक जे), ३७१८४(#$) ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ७८, गा. २०९४, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (अजर अमर अविनाश जे), ३५२४६(#$) ८ प्रकारी पूजा विधिसहित, मु. अमृतधर्म, पुहिं., गा. ९, प+ग., मूपू., (शुचि सुगंध वर कुसुम), ३४९३६ ८ मद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (जातिमद), ३८३३९-५(१) ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मद आठ महामुनि वारीइं), ३७२४१-१४, ३७२५७-२, ३८८०७ ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा.७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ३७९७४-१(+), ३६०९५(s), ३८८२०(5) ९ अंगपूजा स्थान नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुजा प्रथम अंगुठे), ३८३५३-३ ९ कारु नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (खांची मोची गाछी), ३५६६८-७ ९ ग्रैवेयक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (भद्दे १ सुभद्दे२ सुज), ३८३२४-३ ९ नारद देहमानआयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ भीम धनु ८० वर्ष), ३५०६१-६ ९ नारु नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (कंदोई पटइल कुंभार), ३५६६८-६ ९ रस नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ श्रृंगार २ वीर ३), ३५०८०-३ ९ वाड ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, श्वे., (नवनहं बंभचेरगुत्तेहि), ३५०४६-१ For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ३६१९२, ३८१४०, ३७१२२-५, ३५२२७ ($) ९ वाड सज्झाव, वा. जयविमल, मा.गु. गा. ३९ वि. १७३८, पद्य, मूपू., (चोविसमो जिनवीर होजी), ३५६९२-३ ९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (रमणी पशु पंडग तणी रे), ३७६५०-६, ३४७७४(#) ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., ढा. ९, गा. ५६, पद्य, मूपू., (आदि आदि जिणेसर नमुं), ३७७०१-२, ३७८३८ ९ वाड सज्झाय, मुलाला ऋषि, मा.गु, गा. १३, पद्य, थे. (श्रीगुरुने चरणे नमीज), ३६८०९-२, ३७९८८ " ९ वाड सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पेली वार वरमचारीने), ३८४७१-१ १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), ३४८२०-४, ३८२७६-३ १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., डा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मृपू (सिद्धारथनंदन नमुं), ३७८७३(५), ३८०७३(३) ३७०९६-२० "" १० प्रकार यतिधर्म, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंती क० साधु क्षमा), ३४६४७-३ (+) १० बोल सज्झाय, मु. मगन, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (चेतन चेतो रे दशबोल), ३८४५८-२ १० श्रावकवत्रीसी, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ३२, वि. १५५३, पद्य, मूपू. (जिन चौविसे करु), ३५९००-१ १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (दश श्रावक भगवंतना ), ३४५२१-१, ३५८२७-१ ११ अंग १२ उपांग परिमाण संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्री आचारांगसूत्र अध ), ३८५६० ११ गणधर नाम, मा.गु, गद्य, भूपू (इंद्रभूति अभिभूति), ३८५९५-५ U ११ गणधरसंशय सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू (प्रभाते उठीने भविका), ३४७२७-१ ११ गणधर स्तवन, पुहिं., गा. १३, वि. १८९२, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत सिध आचारज), ३८६८९ १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., डा. १२, वि. १६७८, पद्य, मृपू., (सरसति भगवति भारती), ३७०२२(६) १२ आरा विचार, रा., गद्य, मूपू., (प्रथम सूसमसूसम नामा), ३५७७२-२ १२ चक्रवर्ति नाम आयुआदि विवरण, मा.गु. को.. म्पू.. (--), ३६१३९(5) १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., ( प्रथम भर्थजी १ सगर२), ३५०८०-२ १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., ( पहिलो सौधर्मइ देवलोक), ३८३२४-२ १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू (भवनपति व्यंतर), ३५८६१-२ + १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२ भावना, मा.गु गा. १२, पद्य, भूपू (पहिली अनित्य भावना), ३६४३९(+) " १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ३७७०२-१(३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२, गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (आदिसर जिणवर तणा पद), ३७०२६ ($) १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. १४, पद्य, मूपू., (विमल कुल कमलना हंस), ३६०४९ ($) १२ मत नाम, मा.गु, गद्य, वे. (आमलीमत १ पासचमती २) ३८८५०-२ "" १२ मासी तप स्तवन, मु. विजयविमल, मा.गु., गा. १५. वि. १९०२, पद्य, मूपू. (त्रिभुवन नायक तु), ३४८१४ १२ व्रत अतिचार, मा.गु, गद्य, थे., (ज्ञानाचार पोथीपाटी), ३७३४५(३) १२ व्रत टीप, पुहिं., गद्य, मूपू., (भव्य जीव अपना मनुष्य), ३५५२१ १२ व्रत सज्झाय, पंन्या, जिनविजय, मा.गु. गा. २२, पद्य, भूपू (श्रुत अमरी समरी), ३६६६०-१ १२ व्रत सज्झाय, मु. पुण्यशेखर, मा.गु, गा. २२, पद्य, भूपू (सूरगमण हिव प्रणमीये), ३७५५९-११) " १३ काठिया सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु गा. १५, पद्य, मृपू. (पहिला प्रणमुं गौतम), ३६४०५ () . १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू (सोभागी भाई काठीया), ३५८२७-२ "" १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, म्पू. (आलस पेलो काठियो धर्म), ३८००५ १३ काठिया सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर प्रणमी पाय), ३७८५१-१ For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ १४ गुणठाणा जीवभेद, मा.गु., गद्य, भूपू (पहिले गुणठाणे), ३७१४० " १४ गुणठाणे ५७ कर्मबंधहेतु, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व १ सास्वादन), ३८५९१(+) १४ गुणस्थानक ४९ द्वार विचार, मा.गु. गद्य, वे (नामद्वार लक्षणद्वार), ३८८०९ (३) - , १४ गुणस्थानक ८ कर्म की १५८ प्रकृतिविचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते मधे प्रथम वंद्व), ३६४१२($) १४ गुणस्थानक कर्मबंधहेतुद्वार विचार, मा.गु, गद्य, मूपू., (द्रव्य शरीर५ इंद्री), ३८०३१ १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु. गद्य, भूपू (मिथ्यात्व गुणठाणो १) ३८५९५-९ . १४ गुणस्थानक यंत्र, मा.गु., यं., श्वे. (--), ३६९५२ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां ), ३५०६१-८ (२) १४ गुणस्थानकविवरण यंत्र, अज्ञा, को. म्पू (मिध्यात्व सास्वादन), ३५७०५-२, ३६८३२-२ १४ गुणस्थानक विचार पद, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (जे मिथ्यात्व अनादि), ३४५९८ १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., ( पासजिनेसर पय नमी रे), ३८६८४ १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. धर्मसागर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., ( पासजिणेसर पाअ नमो रे), ३४५९१-२ १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., डा. १७ गा. १२६, पद्य, भूपू (श्रीशंखेश्वरपुर धणी), ३७१२४४), ३७१३५(३) , १४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (देव चउवीसमु वीर), ३८१००-१ १४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (समरवि वीरजिणेसरदेव), ३७७८२(#) १४ जीवस्थानक के ८ द्वार, मा.गु, को. भूपू (एकंद्रिसूक्ष्म), ३७१७०-१ . १४ जीवोत्पत्ति स्थान वर्णन, रा. गद्य थे. (वडीनीत चार ए पासवण). ३८१२२-२ १४ रत्न नाम, मा.गु., गद्य, भूपू (खड्गरत्न चर्मरत्न), ३६५८०-६ १४ राजलोक परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सातमी प्रथवी तेहनी), ३७७०८-२(+$) १४ वक्ता नाम, मा.गु., गद्य, क्षे.? (प्रश्नव्याकर्णीक्त), ३८३२३-२ " १४ विद्या नाम, मा.गु, गद्य, मृपू., (विद्याकला रसायण), ३८३२३-१ १४ विद्या नाम, मा.गु., गद्य, वै., (शिक्षा कल्प व्याकरण), ३५६३१-५ (+) १४ स्वप्न गीत, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे. (प्रथम सुपने हाथी), ३४५३१ १४ स्वप्न सझाय, ग. तेजसिंघ, मा.गु. वि. १७४८, पद्य, थे. (सकल जिननाम चित धरीने), ३७५५७-३(३) "" १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रीदेव तीर्थंकर केर), ३६८७३ १५ तिथि ७ वार चरित्र, मु. लब्धिविजय, मा.गु., ढा. १५, पद्य, मूपू., ( श्रीमत् गौडी जगधणी), ३६६३९ १५ तिथि पखवाडो, मु. मूलचंद, मा.गु., गा. १९, वि. १९०४, पद्य, मूपू., (भजियै भगवान परम), ३४५४६, ३८४३५-१ १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु स्तु १६ गा. ६४, पद्य, भूपू (एक मिष्यात असंयम), ३६१५७(5) , १६ द्वारे २३ पदवी विचार पन्नवणासूत्रगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम दुवार १ अर्थ), ३६६५६ १६ सती सज्झाय, मु. त्रिकम, मा.गु., गा. १६, वि. १७७०, पद्य, श्वे. (श्रीऋषभ तणी धुया), ३४७८२(+) १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं. गा. १४, पद्य, श्वे. (सील सुरंगी भांति ओबी) ३८९२४-१, ३५६७२-२२०१ " १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, थे. (श्रीबिर तथा तिरकाल), ३८६९० (३) १६ सत्यवादी सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मचारी चूडामणी), ३७७८१ १६ स्वप्न सझाय, मु, महानंद, रा. डा. २, पद्य, थे. (श्रुतदेवी रे ध्यान), ३६८७६-१ " १६ स्वप्न सझाय, मु. विद्याधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मृपू (सरसति सामणि वीनवं), ३६२९१, ३६४४६ १६ स्वप्न सज्झाय, मु. सीवचंद, मा.गु., गा. ३९, वि. १८४९, पद्य, श्वे. (आदिसर चरणे नमी सिमरु), ३५७४७ , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, वे., (सौला सुहिणां), ३८६३२-१ १७ भेद पूजाविचार स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु.. गा. २९, पद्य, भूपू (विमल वरनाण जगभाण), ३५८८३-१४) १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, गा. १०८, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ३५२४७(#$) For Private and Personal Use Only ५२३ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, वि. १६१८, पद्य, मूपू., (भाव भले भगवंतनी पूजा), ३७७१६(+) १७ भेदी पूजा, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (चंद्रवदन वीतरागनूं), ३५८२८-१ १७ भेदी पूजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ९५, ग्रं. ७२२५, वि. १७९७, पद्य, मूपू., (सुख संपति दायक सदा), ३७२६५ १८ कर के नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (दाण पुंठी हल मोभ भाग), ३५६६८-८ १८ दोष रहित अरिहंत, पुहि., गद्य, मूपू., (अरिहंत प्रभु १८ दोष), ३८९८९-१ १८ दोष रहित भाव चारित्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (अठारै दोष रहित भाव), ३८९८९-५ १८ नातरा कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (आजे जंबू नामाधिपने), ३८४७५(+) १८ नातरा विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (बालक सूउ सगपम भाई एक), ३६७७६-१(-) १८ नातरा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., ढा. ४, गा. ७५, पद्य, मूपू., (मानव भव पायोजी), ३७१९२ १८ नातरा सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मथुरापुरी रे कुबेर), ३६३७० १८ नातरा सज्झाय, मु. नयविजय, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (पहलीने समरु रे पास), ३८६५८(-) १८ नातरा सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (कामसेना रा पुत्रसुं), ३७७७३-२ १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेलाते समरूं पास), ३४६९१, ३५२०१, ३८३७१ १८ नातरा सज्झाय, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., (कुबेरसन का डावडा), ३८४५२-२ १८ नातरा सज्झाय, रा., गा. ४३, पद्य, मूपू., (मानष भव पायोजी ऊचे), ३८४५२-१ १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलो प्राणातिपात), ३६२०५-१ । १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), प्रतहीन. (२) मायामृषावाद पापस्थानक सज्झाय, हिस्सा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सत्तरमुपापर्नु ठाम), ३८२३६ (२) मृषावादपापस्थानक सज्झाय, हिस्सा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (बीजुंपापर्नु स्थान), ३८६६२-१ १८ भार वनस्पति भाव, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रिण्य कोडि एकासी), ३८९८९-६ १८ व्याकरण नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१. ऐंद्रव्याकर्ण २.), ३५६३१-६(+) २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिले बोले श्रीअरिह), ३८०२८ २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधर १ युगमंधर), ३८०९४-३ २० विहरमानजिन नाम व विचार, रा., गद्य, श्वे., (सीमंधरस्वामी युगमंधर), ३७९३४-३ २० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., को., मूपू., (श्रीमंधरस्वामी), ३७३६५-२ २० विहरमानजिन स्तवन, पं. आनंदविजय, मा.गु., स्त. २०, वि. १८५०, पद्य, मूपू., (--), ३७७२९(+$) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. श्रीपाल, मा.गु., ढा. ३, गा. ३०, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (श्रीगणधर गुण स्तवू), ३५९८७ २० विहरमानजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू., (विहरमान तीथंकरवीस), ३८२३० २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्री जंबुदीप विदेह), ३५८५१-२ २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (सीमधर स्वामी प्रमुख), ३७७९५-३ २० स्थानकतप काउसग्ग चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (चोवीस पन्नर), ३५३१५-४(+) २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतभक्ति), ३७५६३ २० स्थानकतपचैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (पहेले पद अरिहंत नमुं), ३५३१५-३(+), ३७१०५-१ २० स्थानक तपविधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतभक्ति ३ कालजा), ३८०९८-३ २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसत हा रे मारे), ३७९१८-१ २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुअदेवी समरी कहु), ३५८७८-१ For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २० स्थानकतप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर शिरनामी), ३४९५१ २० स्थानकपूजा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीस स्थानक तप माडता), ३४८१६-१ २० स्थानक सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनचरणे करी), ३८०१५-२(+), ३७९१९-४ २१ प्रकार के धोवण, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३४६२३-६(-) २१ बोल पुद्गल स्वभाव, मा.गु., गा. २१, पद्य, म्पू., (एक सार भाषा बोलतो अन), ३८४२१(#) २१ श्रावकगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रुतदेवी), ३७८८५-१ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पांच उंबर वड१ पीपल२), ३७९४०-१ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. देवरत्नसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनसासन रे सूधी सद्द), ३८६६४ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जिनशासन रेशुद्ध), ३५२६२-१ २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (वडोलीया पीप पीपर), ३५६६८-१ २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८२२, पद्य, स्था., (श्रीआदेसर आद दै चौवी), ३८३९१($) २२ बोल संग्रह, रा., गा. २७, पद्य, श्वे., (होके पूजजी का हो), ३७०६५-१ २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ३५८६१-१, ३६२०५-४(5) २३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर पाय), ३५८८५-१(+5) २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० कोडि लाख सागर), ३५९७९(१) २४ जिन आंतरा स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (वंदिय वीरजिणेसर राय), ३८००९-२(+$) २४ जिनआयु स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वंदीइ वीर जणेस्वरराय), ३४८१२ २४ जिन आरती, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. २५, पद्य, मूपू., (जे जे श्रीजगतनाथ), ३५२६२-४ २४ जिन गणधरसंख्या मातापिता कल्याणकभूमि परिवारादि विवरण, मा.गु., को., मूपू., (ऋषभदेवस्वामी ८४ गणधर), ३७२६० २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसती आपे सरस वचन), ३८६५२-३ २४ जिन गर्भावास काल, मा.गु., को., म्पू., (श्रीऋषभदेवस्वामिनो), ३५८९२-३ २४ जिन गीत, मा.गु., पद्य, श्वे., (पेला वांदु जी श्रीऋष), ३८७७९(s) २४ जिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पैहलि प्रणमु प्रथमना), ३८६१५ २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकरतणा), ३६८०७-४ २४ जिन च्यवनागम, नगर, पिता, मातादिविचार कोष्ठक, मा.गु., को., मूपू., (चवणविमान नयरि जिण), ३८५९०(+) २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुजे ऋषभ समोसय), ३८१५२ २४ जिन नमस्कार-त्रिभंगीसवैयामय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, ब्र., गा. २५, पद्य, मूपू., (गुहन गंभीर अचल जिम), ३७३७५(+) २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेवजी अजित), ३५२४५-३ २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, म्पू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), ३५३९४-२ २४ जिन नाम राशी जन्मनक्षत्र लंछनादि विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ३४६१२ २४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कार्तिक वदि ५), ३८७८५ २४ जिनपंचकल्याणक विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यवने लहिणओ ऋषभ), ३८०९८-२ २४ जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीउ जपिजपि जिनवर), ३४५४२-२ २४ जिनपरिवार कल्याणकभूमिआदि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिला श्रीऋषभदेव), ३४६१८ २४ जिनपरिवार स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरनो), ३५८२२-४, ३८२०२-१, ३८३२४-१ २४ जिन प्रभाति, ग. तेजजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सासनपति चोवीसना जे), ३५८५१-३ २४ जिन मोक्षस्थान स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अष्टापदे श्रीआदिजिन), ३५२५१-२(+), ३७८०१-२, ३८३४०-१(-#) २४ जिन राशि नक्षत्रादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३७७४८-१(६) २४ जिन वर्णन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति स्वामिनि बुद्ध), ३८०३५() For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ २४ जिन समवसरणमान विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभ समोसर्ण गाउ ४६), ३६८६३-२ २४ जिन स्तवन, मु. जीजाण ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (--), ३४७२५ २४ जिन स्तवन, मु. प्रमोदशील, मा.गु., गा. ३०, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (--), ३८४५१(+$) २४ जिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, म्पू., (ऋषभजिणंदा ऋषभजिणंदा), ३८०५६($) २४ जिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. १९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (भवियण भावे रे शुभ), ३७३१३ २४ जिन स्तवन, मु. विद्याविमल, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर प्रथम), ३७५७५(+$) २४ जिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आत्म अघ हरता), ३६७७४-२ २४ जिन स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (--), ३८५९३(+$) २४ जिन स्तवन, मु. शुभविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकरनेनमु), ३७९५२(७) २४ जिन स्तवन, मु. सायब कवर, मा.गु., गा. १४, वि. १८८५, पद्य, श्वे., (श्रीनमुं श्रीआदजीसाम), ३७५८१ २४ जिन स्तवन, श्राव. सुरतराम, मा.गु., पद्य, मूपू., (नाम मलह मछाड जाण), ३८४१३-२(-) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (धुर प्रणमु रिषभजिणंद), ३८२८०(२) २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (धोली हारज जलद गुण), ३८००६-२(#$) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (नाभिराय राजा मरुदेवा), ३७९८९(-) २४ जिन स्तवन, पुहि., गा. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ करिजे), ३८१६५-१(+2) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ अजित संभव), ३६३१३-२(5) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सकल कवल गुणहार), ३४७२९(-) २४ जिन स्तवन-पांसठीयायंत्र गर्भित, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर संभव), ३८७५६-१(+) २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमु), ३८६०६(+$), ३४५५८, ३५३२०, ३६८७६-२, ३८८५१, ३४६१३(5), ३४७२८-१(5) २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी), ३७०७२ २४ जिन स्तुति, मु. दयाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (मंगल कर जिणराय मणै), ३८९६६-२ २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (कनक तिलक भाले हार), ३४७८०-१ २४ जिन स्तुति, आ. विनय सूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक चोविसजिनां), ३५२६३-५ २४ जिन स्तुति, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमु जिनदेव सदा), ३८४२४-१० २४ तीर्थंकर नाम राशि विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ३७७०४(+) २४ तीर्थंकर परिवार, मु. करमसी, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (चउवीस तीर्थंकरनो), ३८९६६-४ २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को., मूपू., (दंडक २४ नामानि शरीर), ३८९३२ २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., गा. २, प+ग., मूपू., (सरीरोगाहणा संघयण), ३८६४८-१ २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), ३७१४६($) २४ दंडक ५६३ जीवभेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्य ५६३ जीवना), ३५७१२-१ २४ दंडक गतिआगति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू., (समरी सरसति सांमण देव), ३४५८७ (२) २४ दंडक गतिआगति सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसरस्वती मातनइ), ३४५८७ २४ दंडक बोल संग्रह", मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक २४ ना शरीर ५), ३६२७५ (६) २४ दंडक में जीव के जघन्य उत्कृष्ट आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पेहेलि नरगे जघन आउखु), ३६१६९(5) २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ३७६२२(+$) २४ स्थंडिल मांडला पाठ, गु., गद्य, मूपू., (आगाढे आसन्ने उच्चारे), ३४४९४-१ २५ अशुचि स्थान, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ प्रासाद २ विहार ३), ३८८४०-१, ३८९०१ २७ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (मित्रथी काइ पण अंतर), ३८८३७(+$) For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २७ सती सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (प्रह समै उठी मननै), ३६५४२-१(+) २७ साधु गुण, मा.गु., गद्य, श्वे., (पंचमहाव्र पाले ५), ३८८४४-१, ३८९९१-१ २८ आचार कल्प, मा.गु., गद्य, श्वे., (आचारंग सूत्रना २५), ३८८४९-१(+) २८ दंडक बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नाम द्वार १), ३६४६८-१ २८ मतिज्ञान भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रोतिंद्रिरै), ३४९७३-२ २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आमोसही विप्पोसही), ३८८४९-३(+) २८ वार फलावतां, मा.गु., गद्य, श्वे., (पुबगे १ पुबे २), ३८८४९-२(+) २९ भावना छंद, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (अविचल पद मन थिर करी), ३४६६४ ३० उपमा-साधु की, मा.गु., गद्य, श्वे., (कांसी के भाजनकी १), ३८८४८-३(+) ३० बोल-दुषमकाल, मा.गु., गद्य, श्वे., (नगर ते गामसरखां थशे), ३८८४८-२(+) ३० बोल-महामोहणी कर्मबंध, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रस जीवने पाणीमाहि), ३८८४८-१(+) ३० बोल संग्रह, रा., गद्य, मूपू., (पेलाबोल १ तपस्या करी), ३८८३६(+) ३२ अनंतकाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कचूर हलदनीला आदो वज), ३५६६८-१२ ३२ दोष सज्झाय, मु. दयारत्न, मा.गु., ढा. ३, गा. २१, पद्य, मूपू., (नमि नमि जिनवर वर चरण), ३८०३६-१ ३२ योगसंग्रह सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भवियण प्राणी रेजाणी), ३७८८५-२ ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलो बोल गुरु आगल), ३६९७६-१, ३४६२३-७(-) ३४ अतिशय स्तवन, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिन प्रणमुंसुख), ३४७५७-२($) ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेले बोले गति चार), ३७३०१ ३६ राजकुल नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यवंश १ सोमवंश २), ३५६६८-१८ ४५ आगमनाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचाराग१ सुयगडांग२), ३६५८०-५ ४५ लाखयोजन प्रमाण-४ वाना, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंत नामे नरकावासे), ३८३५३-५ ५२ वीर नाम, मा.गु., गद्य, जै., वै.?, (वापुलवीर बुदीयो नलपह), ३६५३७-३(5) ५६ अंतर्वीप मनुष्य विवरण-पन्नवणामध्ये, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ एकोरुकद्विपना), ३८३२३-३ ६२ मार्गणा ६ द्वार, मा.गु., को., मूपू., (मनुष्यगति नरकगति), ३७१७०-२(5) ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (देवगति मनुष्यगति), ३८९५६(+), ३५७०५-१, ३७१७०-३, ३८५१० ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२ चक्री १ दिर्घदंत), ३८५९५-१(६) ६३ शलाका पुरुष नाम, आयु, देहमान उत्पत्तिकालादि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथर्नु ८४ लाख), ३४६८३, ३७९७९-१, ३५९८२(4) ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरणकमल मन), ३५८८५-२(+६), ३६८६०-१(+) ६४ इंद्र १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, पू., (सौधर्म१ इशानर सनत्कु), ३८०९४-४ ६४ इंद्र नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (चमरेंद्र धरणेंद्र), ३८६३५-१(+) ६४ योगिनी यंत्र, पुहि., यं., जै., वै., (--), ३५७७९-३(-) ६४ योगिनी यंत्र विधि, पुहिं., गा. १, पद्य, जै., वै.?, (३२० कागडी माडीइ ६४), ३५७७९-५(-) ६४ स्थान बोल संग्रह, मा.गु., को., मूपू., (--), ३५५४३ ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बेवंदनीक २ धर्मघोष), ३५६६८-२, ३८६२३-१, ३८८५०-१(६) ८४ गच्छस्थापना विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (सं. ९६४ चौरासी गच्छ), ३८८५०-४ ८४ ज्ञाति नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमाली१ ओसवाल२ पोर), ३५६६८-३ ८४ लाख जीवयोनिआयुष्यादि विचार, मा.गु., को., मूपू., (--), ३४५१६ ८४ लाख जीवयोनि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (बावन लाख साधारण एकिं), ३७८९५-५, ३७९४०-३, ३८५९५-४ For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ ८४ व्यापार के नाम, मा.गु., अंक. ८४, गद्य, (१ सोनाहटी २ नाणावटी), ३५०३६-५ ८८ ग्रह नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंगारक वीकालक लोहिता), ३५६६८-२० ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (वरतमान चोवीसै वंदु), ३६५२५-२, ३८०१६-१, ३६६९४-१(६) ९६ जिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (भवियण भाव धरी घणी), ३५७०९ ९६ तीर्थंकर स्तवन, उपा. सुमतिशेखर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (त्रणि चउवीसी बहुतिर), ३७८१६-१ ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहमते सव्व जीवा), ३६२६५ ९८ बोल यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (सरवथी थोडा गर्भज), ३४६८१, ३६८३२-१(5) ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ३६७११(६) १०३ जीव भेद विचार-६२ मार्गणा यंत्र, रा., यं., मूपू., (एक प्राण को घणी वाटे), ३८४०६(-) १२० कल्याणकपूजा विधिसहित, मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम शुभ दीवस जोइ), ३६८५८(क) १५० जिनकल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (शासननायक जगजयो वर्धम), ३७४८६-१ १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रसन्नचंद्र), ३८९५१(#) ३६३ पाखंडी मत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूयगडेणं असीयस्स), ३८४८४-१ ५६३ जीव भेद यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ३६४६८-२ अंगस्फुरण विचार, मा.गु., गद्य, जै.?, (माथो फूरकें तो), ३५००६-२, ३५६२३-२ अंगस्फुरण विचार, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सरसति गोयम गुरु वंदि), ३७८०८-२ अंचलगच्छ बोटीक विवरण, मु.त्रीकम, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (उस्तापतिमति ऊंचई), ३८३००-३ अंजनशलाकाप्रतिष्ठा पंचकल्याणकविधि सामग्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यवन कल्याणक इंद्र), ३८५३४ अंजनासती सज्झाय, पुहि., गा. २४, पद्य, स्पू., (पती भर्ता और सतीअंजण), ३५११९-५(+-) अंतराय कर्मबंध के १८ कारण, पुहिं., गद्य, मूपू., (दया रहित १ दीन जीवों), ३८९८९-२ अइमुत्तामुनि रास, मु. नारायण ऋषि, मागु., ढा. २१, गा. १३५, वि. १६८३, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद नमु सदा), ३७४३०(s), ___३८०१४(६) अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वांदीने), ३६६९७(+$), ३८५९४-२(+), ३६७२५-३ अईमुत्तामुनि सज्झाय, मु. रतनविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वांदीने), ३८३१५ अक्षौहिणीसैन्य मान, मा.गु., को., मूपू., (६५६१०० रथ ६५६१००), ३७५३७-२ अचित्त भूमिका सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमु सह गुरुनो), ३५३४६-३ अजितजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अजितनाथ अवतार सार), ३४५३९-१० अजितजिन चैत्यवंदन, मु. विजयराजसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जित मोहादिक अजीतदेव), ३४५३९-२ अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पंथडो निहालुरे), ३४९२९-२, ३७०८३-२, ३७६५०-२, ३८४९४-२ अजितजिन स्तवन, मु. गंगानंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चैत्री पूनिमनी चांदण), ३८०९९-२(+#) अजितजिन स्तवन, ग. जगजीवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अजितजिनेसर सेवीए रे), ३८९९९-२ अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तार किरतार संसार), ३५६३९-२ अजितजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (अजित अरिहंत भगवंत), ३७८३६-२(+) अजितजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजित जिनराज सुणि आज), ३८२५३(-) अजितजिन स्तवन, मु. तेजसिंह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चोथो आरो जिनवर वारो), ३५९२०-४(+) अजितजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा.१०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिक गुण संपदा), ३८४९५-२ अजितजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजितजिणेसर साहिब), ३८९९८-३ For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२९ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अजित जिणंदस्यु प्रीत), ३५८७९-३, ३८३५०-२ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विजयानंदन गुणनीलोजी), ३७२४३-३ अजितजिन स्तवन, मु. रतनलाभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (रे जीउ करि जिनवर की), ३७५७१-२ अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अजितजिणेसर साहिबो रे), ३५३१२ अजितजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (धन धन जितसत्रु), ३८११८-६(-) अजितजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मन वचन काया वसि करो), ३४५१८-५ अढीद्वीप परिधि विचार, मा.गु., गद्य, जै., (जंबूद्वीपनी परिधि), ३७२३९-६ अणगार सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (धरम ध्यान करता थका), ३८४७८ अणाहारीवस्तु नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (हलदेर १ बेहडा २ आबला), ३७४५२-४ अतीतअनागतचौवीसी नमस्कार, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अतीतचोवीसी प्रणमीई), ३५६५२-२ अतीतअनागतवर्तमान जिनचौवीसी भाष, मु. मुनिसुंदर, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (मंगल कारण पणमिउण), ३५०६३(+) अतीतचोवीसीजिन नामादि, मा.गु., गद्य, मूपू., (निरवाणजी सागरजी), ३८३०९-३(4) अतीतचौवीसी चैत्यवंदन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अतीतचोवीसी वंदीए आतम), ३७२४१-१ अदत्तादान पापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चोरी व्यसन निवारीये), ३८६६२-२ अधिकमास गुणन विधि, मु. हीर, मा.गु., पद्य, मूपू., (गइ घटिसु आधी कीजै), ३८२७८-२ अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित), ३७१५९($) अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ३७८६८(5) अध्यात्मभावना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धन्य हो प्रभुसंसार), ३८४३७-१ अध्यात्म सज्झाय, पं. सहल, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (--), ३५१२०-१(६) अध्यात्म सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आज आधार छै सूत्रनो), ३५१२०-३ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (जिनसदस नरे सुधी सदहण), ३८२०४-२ अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धार तलवारनी सोहली), ३७६५०-३ अनागत २४ स्तवन, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (संत जिणेसर पाय नमी), ३८४२२-१(#) अनागत चौवीसी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीपद्मनाभ पहेला), ३७२४१-२ अनाथीमुनि रास, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सिद्धसवेनई करु प्रण), ३७६३१(६) अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (मगधाधिप श्रेणिक), ३५७४४(१), ३८०७६($) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ३६७८९-१(+-), ३६२२५, ३८६४८-२, ३८६९३, ३९०११-२, ३४८३९-२(८) अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहि., गा. १९, पद्य, मूपू., (मगध देश को राज राजे), ३५८२९-८(१) अनानुपूर्वी विधिसहित, मा.गु., को., मूपू., (--), ३६४३४ अनुभव पद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सुखानंद समरस भजो), ३७०६८ अनुष्ठान विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (खमासमण देई इच्छाकारि), ३८०२२-१ अभयकुमार पंचढालिया, आ. विजयचंदसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (गुणि गिरूओ गौतम वंदी), ३७९८२ अभयकुमार महात्म्य आलोचना छंद, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सिरि गोअम गणधरु नमी), ३६६१०(+#) अभयकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (--), ३८६३४(६) अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (उपदेश नलागे अभव्यने), ३७१६६-६, ३८३७२ अभिनंदनजिन चैत्यवंदन, मु. विजयराजसूरि शिष्य, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (अभिनंदन जिन अधीक रूप), ३४५३९-४ अभिनंदनजिन पद, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरो एक संदेशो कहीयो), ३८७८६-३ For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चोथा देव नित्य धारई), ३८००९-१(+) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अभिनंदन जिन दरिसण), ३४७७७-१, ३८४९४-४ अभिनंदनजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (गुणनिधि गिरुआ गाईयइ), ३९००३-३ अभिनंदनजिन स्तवन, ग. जगजीवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अभिनंदन जगवंदन जनतार), ३८९९९-३ अभिनंदनजिन स्तवन, ग. समयसुंदर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरे मन अभिनंदन देवा), ३८३९५-४ अभिनंदनजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कर जोडी वीनQरे), ३५६३९-३ अभीच कुमार सज्झाय, मा.गु., ढा.५, पद्य, जै., (--), ३५६३६-२($) अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान अजुवालीए), ३७२५७-१ अरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धरम परम अरनाथनो केम), ३४७७७-२ अरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आराधो अरनाथ अहोनिस), ३५६३९-६ अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीन), ३७५८२(#$) अरणिकमुनि रास, मु. चोथमल शिष्य, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (पारसजीन पारस इधक करी), ३८५५३ अरणिकमुनिसज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (चंपानगरथी चालिया), ३७७४७-२ अरणिकमुनि सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ३४६७५-२, ३५८६६-१, ३८८०६ अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ३५३११-१, ३६६६५-३, ३६७९१-२, ३७६७५-३ अरणिकमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अरणक ऋषि मुनि राजिउं), ३८०१०-३(+) अरिहंत के १२ गुण, मा.गु., अंक. १२, गद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष प्राति), ३५१८२-१, ३६५८०-७ अरिहंतगुण पद, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (बरमा के वावत तन मन), ३७२५४-२(+-) अरिहंत पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (हां हो एक तिल दिल मे), ३८७८४-२७(-) अर्जुनमाली लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा. १७, वि. १९३२, पद्य, श्वे., (उरजनमाली नाम जणाको), ३४६०१ अर्जुनमाली चौढालीयो (सझाय), मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (राजगृही नगरी अती), ३७३८१-३ अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सरव थोडा अवधदसणी ते), ३४९२२-२ अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (महा सुदी आठमने दिने), ३५३१५-५(+) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय वाचक, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अष्ट करम चूरण करी रे), ३४५९६ अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आठम कहे आठिम दिने), ३७०८८-६ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हारे मारे ठाम धर्म), ३५८५३-१, ३८८६१, ३६०२३() अष्टमीतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीराजगृही शुभ ठाम), ३७०८६ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (पंचतिरथ प्रणमु सदा), ३६६७०-१, ३७१५०, ३७१८८, ३८५२०, ३८८२२(-) अष्टमीतिथि स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जय हंसासणी शारदा), ३८९५२ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), ३४६५३-३ अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमीदिन चंद्रप्रभु), ३४७४४-१ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), ३४८७३-३(5) अष्टापदतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदिजिणंद), ३७१३३ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तिरथ अष्टापद नित), ३४८१०, ३६८९५-१ अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि जात्रा), ३५८०३-२ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (म्हारौ मन मोह्यौरे), ३५७३६-१ For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५३१ अष्टापदतीर्थ स्तोत्र, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (सरसति अम्रत वसति), ३४७८६ (#) असज्झाय कुलक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पणमिय सिरिपास जिणंद), ३५७६९-१ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (असज्झाईना बि भेद एक), ३७४१२(+), ३५३५१-१ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उलकापात पोहर दिसदाह), ३८७१६-२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूक्ष्म रज आकाश थकी), ३७९६३-१ असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (वदिइ वीर जिणेसर राय), ३५६५७-२(+), ३५८७१-२, ३७८७८() असज्झाय सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसती माता आदे नमीये), ३६६६५-५ असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), ३४९२५-१, ३८९०७, ३६६३२-३($) अहंकार परिहार गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (जहां तहां गैर हुहु), ३८७८४-१२(-) आगम स्तवन, वा. लालचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर जीणंदनी वाणी), ३६४५०-१ आचारछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (शुद्ध समकित पाया), ३४९२४($) आचार्यगुणवर्णन गीत, मु. रामदास, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सदगुर पाय प्रणमी करी), ३५६९१(+) आचार्य छंद, मु. संकर, मा.गु., ढा. २, गा. ३३, पद्य, श्वे., (सरसति सुमति सदा धु), ३५९५९ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, मूपू., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), ३४५८८, ३४८११, ३८४५५-१, ३८४५६-१ आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रभु पाय लागी करूं), ३६७९६-१ आत्मा की आत्मता, मा.गु., गद्य, श्वे., (असंख्यातप्रदेशी अनंत), ३८६०१ आदिजिन १०२ पुत्र-पुत्री नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरत बाहुबलि श्रीमस्त), ३५६६८-१९ आदिजिन अष्टक, मु. मान, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (देव मो दीदार दीजै), ३७९०९(+) आदिजिन आरती, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (अपछरा करती आरती जिन), ३८७९२ आदिजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हां मोरा आतमराम कुण), ३८२७२-४ आदिजिन गीत, मु. लींबो, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शैव॒जय जुहारस्यै), ३८०९९-३+#) आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीपई पश्चिम), ३७७७८($) आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), ३४५३९-७, ३७३८९-३, ३७०२३-१(-2) आदिजिन चैत्यवंदन, मु. जिन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम जिन युगादीदेव), ३४५३९-८ आदिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिदेव अलवेसरु), ३८८९०-१ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीभगवई मरुदेविमाय), ३७४२९-१३ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. विजयराजसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सकल समीहित कल्पवृक्ष), ३४५३९-१ आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो भगवंत), ३७०४९ आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनै आयरिय), ३६३२८(+$) आदिजिन छंद-केसरिया, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहिं., गा. ४४, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (सदाशिवराव आव्यो), ३८६१६ आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रमोदरंगकारणी कला), ३४६४१-१(#) आदिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु.,रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिजिणंद मया करो), ३४६१०-२(#) आदिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बाबो ऋषिभ बेठे अलबेल), ३८९८५-२ आदिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (हो ऋषभजिन मानु प्यार), ३७८७७-३ आदिजिन पद, मु. गुणेससागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ये माहरी अरदास रिषभ), ३५२९२-२ आदिजिन पद, मु. चतुरकुशल, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (विसरे मत नाम प्रभूजी), ३५८०१-३ For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ आदिजिन पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ५, पद्य, म्पू., (आज सकल मंगल मिलै आज), ३५६९२-४ आदिजिन पद, दिनकर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुम हो कृपानिधान दास), ३८५०१-१(क) आदिजिन पद, मु. दोलत, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुरति मोहनगारी माने), ३५८०३-१ आदिजिन पद, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दीजे माहरा राज दिल), ३४६३८-३ आदिजिन पद, मु. शिवचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (सफल घडी रे मोरी सफल), ३४६३८-२ आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), ३७७९६-२(+), ३७८७७-१७ आदिजिन पद, मु. सुभाचंद, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (नाभि नरिंद के नंदन), ३५३१४-२ आदिजिन पद, मु. सोभाचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (भज श्रीऋषभ जिणंद), ३४४७५-१ आदिजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सब जीया जिन बोलो), ३८५०१-२(+) आदिजिन पद-धुलेवा, मु. देव, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (खमा खमा खमा घणी खमा), ३७०५२-४ आदिजिन पद-धुलेवामंडन, पं. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गजरो चढाउंरे सहेरो), ३८४८०-२ आदिजिन पालना, मु. हीरालाल, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (मा मोरादेवी गावेरे), ३८६७३-४(+), ३८२३९-३ आदिजिन फाग, मु. चतुरकुशल, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (अब कर ले भजन जिनेस्व), ३५८०१-४ आदिजिन बत्तीसी, मा.गु., गा. ४४, पद्य, म्पू., (ऋषभ बत्तीसी सांभलो), ३८४६७ आदिजिन बारमासो, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (प्रथम जिणंद प्रणमु), ३५८३६-१, ३७०००-३ आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), ३७०३१(+), ३४६९०(#), ३४५३५(5), ३५४०२(5), ३८५१८(5) आदिजिन भरतचक्रवर्ती स्तवन, मु. आशकरण, मा.गु., गा. २७, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (प्रथम जिनेसर ऋषभजिण), ३८०७५ (5) आदिजिन रास, मा.गु., ढा. १७, पद्य, श्वे., (जुगल्यानौ तीन पल्यनो), ३५२३४(-$) आदिजिन लावणी, मु. चतुरविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सरसति माता सुमत), ३७१६६-१ आदिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (मेरे दिल्लके मेहरम), ३७३८२-१ आदिजिन लावणी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (--), ३५७५५-१(६) आदिजिन लावणी केसरीया, मु. मूलचंद्र, पुहि., गा. ९, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (सुणीये बातो रांव), ३७१३२-२ आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सुण जिनवर शेव्रुजा), ३९०४४ आदिजिनविनती स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सकल आदि जिणंद जुहारि), ३५१३७(#$) आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिणेसर), ३५४२१-१, ३५८७५-१, ३६५४१-१, ३८८०८, ३६१६१(#S), ३९००८(६) आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (आदिश्वरप्रभुने विनंत), ३८३७०, ३८५०८, ३६७३५($) आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा.६७, पद्य, मूपू., (आदि धर्म जिणि उधों), ३५७६२, ३४९०२-२($) आदिजिन श्लोक, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (श्रीश्रीआदिश्वरनइ), ३५४४६-२ आदिजिनसीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय त्रिभुवन आदि), ३७८४८-२ आदिजिन सुखडी, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मूपू., (सरसति माता देवी चरण), ३६०११(#$) आदिजिन स्तवन, मु. अमरविमल, पुहि., गा.८, पद्य, मूपू., (साचै दिल साई मिले), ३८६४५-२ आदिजिन स्तवन, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आवो रंगरंगीला प्रभु), ३४५७६ आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंदा मोरी नीजर), ३८२००-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), ३४९२९-१, ३७०८३-१, ३७६५०-१, ३८४९४-१ आदिजिन स्तवन, पं. उत्तमचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रिषभजिनेश्वर तु मेरो), ३८३३८ For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगुण सुगुण सोभागी), ३५५६५-१ आदिजिन स्तवन, मु. किसनविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८६४, पद्य, मूपू., (विनीतानगरीनो राजियो), ३४८३२ आदिजिन स्तवन, मु. केसरविजय-शिष्य, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आदेस्वर अतीरुप अनोपम), ३४६७६-१ आदिजिन स्तवन, मु. गिरधर शिष्य, पुहिं., गा. १४, पद्य, म्पू., (रेसम रो रजो कसबी रो), ३८३६३(-#) आदिजिन स्तवन, ग. गुणशेखर, मा.गु., गा.७, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (आदीसर हो सुण यो अरदा), ३८५८१-३ आदिजिन स्तवन, ग. जगजीवन, मा.गु., गा. ११, वि. १८००, पद्य, मूपू., (विमल नयर वनीता वर), ३८९९९-१ आदिजिन स्तवन, मु. जसराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आज आनंदगन जोगसर आयो), ३४६३८-१, ३८९९७ आदिजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आदिजिणंद अवधारीय), ३८२५० आदिजिन स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. १२, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (सुगुण सहेजा सांभलो), ३७७६१-१ आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मधुकर मोही राउ), ३५६३९-१ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. २, गा. २६, वि. १८वी, पद्य, श्वे., (श्रीनाभिकुलगुर), ३६७९१-१(६) आदिजिन स्तवन, मु. तेजसिंघ, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (ऋषभदेव दर्शन की बलि), ३७५५७-१ आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदर्भुप्रीतडी), ३८६५३-२ आदिजिन स्तवन, मु. धनमुनि, पुहि., गा. ७, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (आदिजिणेद अलबेलो सोह), ३४६५८-१(+#) आदिजिन स्तवन, आ. धरणेंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (ए सजन ए साजिन हे ए), ३४५२४ आदिजिन स्तवन, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल राजराजेश), ३५३६०-३ आदिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (जगचिंतामणि जगगुरु जग), ३८४९५-४ आदिजिन स्तवन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु आदिस्वरजिने), ३५८७४-१ आदिजिन स्तवन, मु. प्रमोदविजय शिष्य, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आदिदेव जपियइ अरिहंत), ३७६७९-१ आदिजिन स्तवन, पं. प्रेमविजय गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकरा ऋषभ), ३५८३६-२ आदिजिन स्तवन, मु. भाव, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (दरसण द्यो प्रभु रिषभ), ३४४७५-२ आदिजिन स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेसर साहिबो), ३४५५७-१ आदिजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आदेसर अवधारीयैरे,), ३८९९८-२ आदिजिन स्तवन, मु. महानंद, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (प्यारो लागे प्यारो), ३८६२६-१ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ३८५३६-२, ३८२५८-४(#) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण ससनेहि), ३५३९७-२, ३७२४३-५, ३८४९५-१ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (राज मरुदेवी केरा), ३७४११-५ आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव नित वंदीयई), ३६११५-१ आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवालहो मरुदे), ३४५१८-४, ३५८७९-२ आदिजिन स्तवन, मु. रतीराम, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (नगरी बनीता अति सोह ए), ३७३४८-१(-) आदिजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज भले दिन उगो हो), ३४५१८-२ आदिजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (विनतानगरी भलि विराजै), ३४६७१ आदिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिन साहेबा तोरा), ३६९५९ आदिजिन स्तवन, मु. लाभसागर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (क्युन भए हम मोर), ३८५८१-१ आदिजिन स्तवन, मु. विबुध, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (सकल भुवन सिर सेहरो), ३८३८८-२ आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिजिनेसर विनती), ३७०५२-१ आदिजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (अरज सुणीज्यो हो), ३७७१०-२ आदिजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल भवन सिरसेहरो), ३७७१०-१ For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ आदिजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सूरति प्यारी हो लागै), ३७६१२-२ आदिजिन स्तवन, पं. सुरेंद्रविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज वधाइ वधाइ वधाइ), ३५८९७-२ आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नाभिनंदन जगवंदन देव), ३८६०३-२(+-) आदिजिन स्तवन, मु. सेवक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सहस कला छे पूरण पुनु), ३८५६६-२ आदिजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, मूपू., (आज वधाइ नाभराया घर), ३६६९२-३ आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (आवो आवो सही उर साथो), ३७७०६-२($) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिणंद जय जय), ३४५२५ (2) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २६, पद्य, पू., (जोग न मांड्यो मै घर), ३५२३०-१(5) आदिजिन स्तवन, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (तुम सैती नही बौलू), ३६७९४-३ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (सरवारथसिद्धथी चवी), ३४८६९-२ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सरसत सामण वीनवू), ३७७७७-३(+) आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (सरसति माता दीयो मुझ), ३७१४१(६) आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमुंप्रथम जिनेसर), ३७९२३-१ आदिजिन स्तवन केशरीया, पंन्या. आणंदविनय, मा.गु., गा. ११, वि. १९१६, पद्य, मूपू., (आदिजिणेसर अंतरजामी), ३५७३६-२ आदिजिन स्तवन केसरिया, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (केसरिया बांह गहीने), ३७४२९-५ आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पहिलु पणमिअ देव), ३५३५५(+), ३४८९१, ३५६३०-१ आदिजिन स्तवन-धुलेवा, मु. दीप, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (श्रीऋषहेसर स्वामीय), ३८४३२(+) आदिजिन स्तवन-मौधामंडण, ग. लावण्यशील, मा.गु., गा. ११, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (सुरनर सूखदाई सदा हो), ३४४६१-३(+) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १६, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (राणपुर नमौ हियो रे), ३४६०६, ३४७५३-१, ३७३४३-२, ३८४१३-१(-) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणो रे), ३७७९६-१(+), ३८२६५-२ आदिजिन स्तवन-वृद्ध, आ. राजसमुद्र, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (करजोडी इम वीन), ३४९०१-१ आदिजिन स्तवन-शत्रुजय, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (दइ सरसति सामणि बुद्ध), ३५७७३-२ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचलमंडण दत), ३६५५०-१(+#) आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सयलि सुहकर सयलि सुहक), ३४५९०-२, __३७९४६ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिधाचल गायवा मुझ), ३८५८१-२ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रिषभ जिणंद सुखकारी ए), ३७५६० आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, ग. दयाकुशल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति मति आपु भली), ३७६२१-१ आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकित द्वार गभारे), ३८७५७-१() आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ३८६१७-१(+#), ३८४५९-१ आदिजिन स्तुति, मु. केसरकुसल, पुहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (आदिनाथ देव के देवा), ३८५०३-२ आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्यने पाव), ३४७४४-२, ३७५८७-१, ३८३७७-१(#), ३८६९२(#) आदिजिन स्तोत्र, मु. मोहन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीप मझार दिखणा), ३८७५५ For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन हमचडी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसतिनइ चरणे नमी रे), ३५४४६-३($) आदिजिन हरियाली, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अचंभो उपनो कहो जी), ३४६३२-१ आदिजिन होरी, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु, (दवामिठाई अति भलौर), ३८०६१-२ आदिजिन होरी, मु. जिनचंद्र, पुहिं, गा. ७, पद्य, मूपू., (होरी खेलिये नर बहुर), ३७७१४-१-३) आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू., (जन लगे विषय घटा न घट), ३८७५७-३ आध्यात्मिक टपो, पुहिं. गा. ५. पद्य थे. (करणि फकीर तो काहा). ३७५५८-१० " " 13 आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन पुडिं. पद ३, वि. १८वी, पद्य, भूपू (रे परियारी बाउरे मत), ३७८५०-४(+) आध्यात्मिक पद, कबीरदास संत, पुडिं, गा. ४, पद्य, वै., (एकलडी मत मेलो हो), ३४७३७-२१-१ आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहि गा. ५, पद्य, भूपू (चेतन समता मिलना). ३४५८०-२ आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं. गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि. (तु आतमगुण जाण रे), ३६५४०-२ " " www.kobatirth.org आध्यात्मिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (समकित श्रावण आयोरी), ३८४२४-५ आध्यात्मिक पद, राजाराम, पुहिं., पद. ५, पद्य, वै., (चेतन तूं क्या फिरै), ३७८७७-१२ आध्यात्मिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., ( है इस सहिर विचको), ३४७०८-४, ३७८७७-१९ आध्यात्मिक पद, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अविनाशीनि सेजडीवें), ३८२८७-१(+) आध्यात्मिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कबहिं मिलइ मुझ जउ), ३७८४१-२ आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (चंद चीकोर अलीमे जपे), ३४५२७-१ आध्यात्मिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुझ विराणि क्या पडित), ३५५८५-२ आध्यात्मिक पद, मा.गु., पद्य, चे., (मे तो जोगीडा तोने कद), ३७९५१-२ (७) " ३८३३९-१(४) (२) आध्यात्मिक हरियाली-टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू.. (कांबली कहता इंद्री), ३८५३३ (२) औपदेशिक हरियाली - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( वरसई काबलि कहतांइं), ३८३३९-१(#) आध्यात्मिक होरी, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, म्पू. (सीस नमाह चरण ग्रह), ३७२२९-३ आध्यात्मिक होरी, मु. मया, पुहिं. गा. ३, पद्य, क्षे. (घर आवो चिदानंद कंथ), ३८११८-३) आध्यात्मिक होरी, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (ऐसे भवजण खेले सुमत), ३५३७२-३ आध्यात्मिक होरी, मु. रतनचंद, पुहिं. गा. ७. पद्य थे. (सुध ग्यानीजी फागुणमे), ३५३७२-२ . . आध्यात्मिक होरीपद, कबीर, पुहिं. गा. ४, पद्य, वै. ! आध्यात्मिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (सरसति सामणि वीनवुं), ३५५६४-३ आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हम बैठें अपनी मोनसौ), ३८२३२-३ , आध्यात्मिक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (अध्यवसाय जोबा जेवी), ३८४३७-२(३) " " आध्यात्मिक सज्झाव, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (धरिय उमाहो रस भरी), ३८५२३ (+) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. जिनदास, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (आठही कर्म बलवंत जोधा), ३५५०४-३ आध्यात्मिक सज्झाय, ऋ. हीरालाल, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (वाजा नगारा जीत्या), ३८२१५-२(#) आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सहगुरुवचन सांभलज्यो), ३७३५४-२($) आध्यात्मिक हरियाली वा गुणविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (एक अचंभो जगमा मे), ३६११७-१(म " आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वरसे कांबल भींजे), ३५३८६-२, ३८५३३, (असी होरी खेलता सुहर), ३६७९४-१ आध्यात्मिक होरीपद, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., ( होरी के खिलइया प्रभु), ३५३७२-५ आबुतीर्थ स्तवन, पंन्या. रविविजय, मा.गु., डा. ४, वि. १७६९, पद्य, मृपू., (उचो गढ आबू तणो नीची), ३५४८० (5) आबुतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु. गा. ६, पद्य, मूपू (सुकुलीणी प्रिउनई कह), ३८२८१-१ आयंबिलतप सज्झाय, पन्या, पद्मविजय, मा.गु, गा. १३, पद्य, मूपू. (श्रीमुनिचंद्र मुनिसर), ३४६६७ יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ५३५ Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ आयुष्य सज्झाय, मु. कवियण, रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (आउखो टुटा साधो लाग), ३४६५९ आयुष्य सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (आउखो त्रुटा ने साधो), ३८२१५-१(#) आराधक-विराधक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (न जाणेन आदरें न), ३५०२४-४ आराधना सार दुहा संग्रह, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (अरिहंत अरिहंत समरता), ३६९४१(5) आलोचना विधि-साधुधर्म, मा.गु., गद्य, श्वे., (ज्ञाननि विषेजे), ३८५०५ आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञाननी आशातना जघन्य), ३४९१३ आलोयणा विधि, मा.गु., ग्रं. ११७, गद्य, मूपू., (देववंदन अकरणे पुरिमढ), ३७१०१-१ आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ६७, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवदन निवासिनी), ३७३५१-२($) आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ३६५८५, ३८४२३ आषाढाभूतिमुनि रास, मु. धर्मरुचि, मा.गु., गा. ५७, पद्य, मूपू., (श्रीसंति जिणेसर भुवण), ३७७९८, ३८१३२ आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ५, गा. ३७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी हिइ), ३६२१३, ३८८२५ इंद्र के आयुष्य में च्यवन होनेवाली इंद्राणी की संख्या, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (दो २ कोडा कोडि पच्चा), ३६८२१-४(#) इंद्रियविषय विचार, रा., गद्य, श्वे., (स्पर्शद्रीरा आठ), ३४८९९-२ इक्षुकार चौपाई, ग.खेमराज, मा.गु., गा.५१, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पणमवि वद्धमाण जिण), ३५३५३-२ इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदायक सदा), ३७७६९ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), ३९०२४-१(+), ३५३११-३, ३७८४६, ३८०८४(#), ३४८३६-२(-), ३७३४८-३(-5) इलाचीपुत्र चौढालीयो, मु. भूपति, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (प्रथम गणधर गुण नीलोर), ३७३५१-१ उत्कालिक कालवेला विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (उत्कालिकसूत्र तिके), ३७९६३-२ उत्तराध्ययनसूत्र नामाधिकार सज्झाय, मु. खेमराज कवि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पणमिय पहुपास पयारवि), ३५३९४-१ उदयपुरनगर वर्णन छंद, मु. जसवंतसागर कवि, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (समरी मातासरसती मांगु), ३७९८०-१ उदयराज गुरुगुण गीत, मु. त्रीकम, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (उदैराज तणा गुण गावं), ३८३००-१ उदयसूरि गच्छपति सज्झाय, मु. सुमति, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसतिना पाय नमी रे), ३५८८०-१ उदायननृप सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (सिंधु सुवीर सुदेसमइ), ३५९०१-४ उदायीऋषि सज्झाय, रा., गा. १९, पद्य, श्वे., (घणा लोक आव जावै वाणी), ३५८४४-२(+) उदायीराजा चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (चंपानगरी पधारीया), ३८१५४(-) उदायीराजा सज्झाय, मु. कुशलचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८७४, पद्य, मूपू., (सोल देशतणो धणी नामे), ३४५१७-२ उपकेशगच्छ सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अइसारे ओयसपुर नव), ३७९२९-२ उपदेशक बारमास सज्झाय, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (जीव सवे ते आतमा धरम), ३५५४६, ३८६३३ उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल सरूप यामें), ३७८५३($) उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सांभलज्यो सज्जन नर), ३७७११-१, ३७१३९(5) उपदेशपच्चीसी, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (--), ३५६३५-१(६) उपधानतप स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पणमवि श्रीजिणपयकमल), ३५८३७ उपधानतपस्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर धरम), ३६२२९-१(+), ३७८८२-२(+#), ३५८४५-१(#s), ३७६२५(#) उपवास फल, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक उपवासे १ उपवास), ३७९१९-१ उपशम सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (भयभंजणरंजण जगदेव), ३८२७६-२ For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (तिण काले तिण समे), ३५६३६-३ ऋषिमंडल दृष्टांत, मा.गु., वि. १९वी, गद्य, मूपू., (आदीश्वर दृ० प्रथम), ३८०२४(+$) एकादशीतिथि सज्झाव, उपा. उदवरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( आज एकादसी रे नणदल), ३४५२६-१, ३७०५४ एकादशी तिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांसजिन), ३५२६३-२, ३८४४०-१ एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे वीरने सुणो), ३४५६१, ३४९५२, ३७२०४ एकेंद्रिय मोहनीयस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकेंद्रीनइ मोहनी), ३७४७९-२ ओंकार महिमा दर्शन, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, भूपू (वाणी हे विलास तेरी), ३८४५९-३ औपदेशिक एकवीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८२०, पद्य, स्था., (श्रीजिनवर दीजीई सिरी), ३६०६३ औपदेशिक कका पद, रा. पद. १, पद्य, वे (कका रे भाई काम करता), ३५७७१-१(+) , औपदेशिक कडखा, पुरीलाल रजपूत, मा.गु., गा. ७, पद्य, वै., (सोई नर सुर जन सुभट), ३८७२७-१(#) औपदेशिक कवित, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., ( रहीयै लुट सिहन सांपन), ३७३१९-२ औपदेशिक कवित, क. देवीदास पुहिं. पद. १, पद्य, वै., (छोटे कुल जन्म कुठोर), ३८५७८-३ औपदेशिक कवित्त, मु. उदवराज, पुहिं., गा. १, पद्य, भूपू. (घर विरोध घट भंग उदर), ३८६०२-२(७) औपदेशिक गीत, कबीर, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., ( धंधो करी धनमिलीउं), ३८८४२-१) औपदेशिक गीत, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सब स्वारथ के मित हइ), ३४५४७-३ औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं, गा. ३, पद्य, मृपू., ( आए तीन जणे व्यापारी), ३८७८४-१५ औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (घडी लाखीणी जाय छे), ३८७८४-१६(-) पदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., ( जागि जागि जंतुया तु), ३८७८४-७(-) (देखि देखि जीव नचावै), ३८७८४-१४ (मुरख नर काहिकुं करत), ३८७८४-२२) . " औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि पुहिं गा ३, पद्य, भूपू औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि पुहिं, गा. ३, पद्य, भूपू., औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (रे जीव वखत लिख्या सु), ३८७८४-८(-) औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. ३, पद्य, मूपू., (हा हो जीव दया धरम), ३८७८४-१९(-) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक दोहा, मा.गु, दोहा १५, पद्य, मूपू (अरट आधा लीलाट धन), ३८०८६-१ औपदेशिक दोहा, मा.गु., पद्य, मूपू., (ग्यानी जैसौ गौतम), ३८०८६-२ औपदेशिक गीत - उद्यम भाग्य, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (उद्यम भाग विना न फलै), ३८७८४-१७ (-) औपदेशिक गीत - सुषमकाल संयमपालन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. २, पद्य, मूपू (हा हो कहो संयम पंथ), ३८७८४-२९(-) " औपदेशिक गीत - भणनप्रेरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भणो रे भला भाई भणो), ३८७८४-२२) औपदेशिक गीत - सर्वभेख मुगतगमन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (हामाइ हर कोउ भेख मुग), ३८७८४-१८) औपदेशिक चौपाई, मा.गु., गा. ७१. वि. १६४१, पद्य, मृपू., ( पासजिणेसर पाए नमी), ३५९१९ (+) औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चरण), ३८५३९-१ औपदेशिक दूहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सजन फल जिम फूलजो वड), ३५८२४-४(+) औपदेशिक दूहा, पुहिं. दोहा १, पद्य, (सोरठ गढधी उतरी कंस), ३५८७५-३ औपदेशिक दूहा संग्रह, मा.गु., पद्य, भूपू (सिद्ध श्रीपरमातमा), ३६७८७-२ औपदेशिक दोहा, मु. खीमराज, मा.गु., पद्य, स्था. (विद्यावंत वखतेत), ३८०८६-३ " औपदेशिक दोहा, महमद शाह, पुहिं, दोहा २, पद्य, जे. २ ( संमन प्रीत न कीजीये), ३७९९९-३ " 3 औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., दोहा. ४६, पद्य, वै., (चोपड खेले चतुर नर), ३६५४२-२(+), ३४५६८-२, ३६०९०-२ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन पुहिं. गा. ४. वि. १८वी, पद्य, भूपू (जिनचरणे चित ल्याव मन), ३७८७७-६, ३४७३७-३८) औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., पद, ५, पद्य, वै., (चामडी की पुतली भजन), ३८६२३-२ For Private and Personal Use Only ५३७ Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (आसा संतो भाइ घर को), ३४४८७-२ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (तन धर कोय न सुखीया), ३४७३७-१(-) औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (भजन वीना कायकु देह), ३४७३७-६(-) औपदेशिक पद, कबीर, पुहि., पद. ४, पद्य, वै., (यंत्र अनोपम वाजै हो), ३५९००-३ औपदेशिक पद, क. केसोदास, पुहिं., पद. ५, पद्य, वै., (मत कोई परो प्रेमकै), ३५०६४-३ औपदेशिक पद, क. गंग, पुहिं., पद्य, वै., (कहे गंग भंग विजया के), ३८०४३-४(६) औपदेशिक पद, क. गंगदास, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (गंगा केरु नीर छाडि), ३६५३५-३ औपदेशिक पद, क. गंग, पुहिं., पद. २, पद्य, जै.?, (संतण के एक जीह रावण), ३७९२१-२(+) औपदेशिक पद, पं. गंगालाल, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे.?, (धरम कि वात वीवेक कहि), ३८३५३-६ औपदेशिक पद, मु. गुणविलास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (दया विन करणी दुःखदान), ३४५७५-३(+), ३७८७७-१० औपदेशिक पद, मु. चोथमल, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुंदर संग सेजमे सोवे), ३५११९-७(+-) औपदेशिक पद, मु. जगतराम, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अवसर फिर नाही हो समझ), ३८४२४-३ औपदेशिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ध्यासित धन मुनिराई), ३८४२४-६ औपदेशिक पद, मु. जसरूप ऋषि, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (फरक मन रेणा होर भजन), ३४७३७-५(-) औपदेशिक पद, मु. जसरूप ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (मोने वालो लागे छेजी), ३४७३७-४(-) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (पगरी जो बादने पेच सम), ३८३८६-४ औपदेशिक पद, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिव रे अथिर ओ संसार), ३४८२७-४ औपदेशिक पद, पं. जिनहर्ष, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (रयण खाण नही काय नहिं), ३५९००-२ औपदेशिक पद, मु. जेठमल ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८२३, पद्य, श्वे., (कहें वभीषण सुण भाई), ३८६६०-१(+) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानकुंजर, मा.गु., पद्य, श्वे., (सकल संसार ज मोजि आगि), ३६८१०-३ औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषी, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (पालो पालोरे संजम कि), ३७२५४-३(+-) औपदेशिक पद, मु. त्रिगुणरतन, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (आंटौ कर मारौ राज), ३८२४६(-) औपदेशिक पद, मु. देवचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुं तो भूलि गयो), ३७०८१-३ औपदेशिक पद, मु. देवचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मारु मारु करी वलगी), ३७०८१-२ औपदेशिक पद, मु. देवचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शुंफुल्यो फरे छे), ३७०८१-१ औपदेशिक पद, मु. देवचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सु मुखडु देखाडे छे), ३७०८१-४ औपदेशिक पद, मु. देवब्रह्म, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (चेतन को आछो दाव), ३७५६४-२ औपदेशिक पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (भलाया पानी मै आतम घट), ३४५७५-१(+) औपदेशिक पद, मु. धर्मसी, पुहि., पद. १, पद्य, मूपू., (ऐक अनेक कपायपड), ३८५७८-५ औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (पुद्गल क्या विसवासा), ३७८७७-४ औपदेशिक पद, मु. नाथुराम, पुहिं., पद. ४, वि. १९११, पद्य, श्वे., (झूठा जगत संसार दया), ३६९९३ औपदेशिक पद, निजाम, मा.गु., गा. ४, पद्य, (फुलडीयां म चूंटीस र), ३७५५५-४ औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुणि सुणि जीवडा रे), ३५३९६-२(#) औपदेशिक पद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा.८, वि. १७वी, पद्य, दि., (देखो भाई महाविकल), ३७४९१-१(+) औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (उस मारग मत जाय रे नर), ३८४२४-११ औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (धीरज तात खिमा जननी), ३४७८४-४(-) औपदेशिक पद, मु. मान, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (रे अग्यानी जीव तुं), ३४४७५-४ औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चतुर नर सामाइक नय), ३४७५४ औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (परम गुरु जैन कहो), ३८३२६-३ For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३९ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मानव को भव पायके मत), ३८६७३-३(+) औपदेशिक पद, पं. रुपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीयाजी हौ तुने वरजू), ३८३४९-३ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (आपे खेल खेलंदा), ३४५८९-३ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (तुही तुही आद आद आवे), ३७२५४-४(+-) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद्र, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (पाणी के कोट पवन के), ३८५०१-१०(+) औपदेशिक पद, मु. वरदराज, मा.गु., गा. २४, पद्य, श्वे., (अमान अमाय अलोभ), ३५०१६ औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (चवदे नेम छकाय मरजादा), ३८१०९-३(+) औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (एक मनसुद्धि विण कोउ), ३८७८४-६(-) औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (करम अचेतन किम हुवै), ३८७८४-२१(-) औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चेला चेला पदं पद), ३८२७२-६ औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीव तुं विमासि कबु), ३७८४१-३ औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीवरा तुम करि किणसु), ३८७८४-१९८) औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (मन चेला पद साध की), ३८७८४-५(-) औपदेशिक पद, मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, मूपू., (सार नहि रे संसारमा), ३७००५ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अबधूइणविध इन पाप), ३४५७५-२(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (अरे भववासी जीव जड को), ३८५७८-१ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (आसा सहूने सरखी रे), ३८५४७-७(+) औपदेशिक पद, रा., गा. १०, पद्य, मपू., (कुड कपट कर माया मेली), ३८१२२-१ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (गत चारु मे भटक भटक), ३७५५८-२(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (घोडा जूठा है रे), ३७८७७-५ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (चेत चेत नर गाफल मत), ३८१२२-४ औपदेशिक पद, मा.गु., दोहा. २८, पद्य, वै., (छांड सबल अरु निंब की), ३८२००-२(+) औपदेशिक पद, पुहि., पद. ३, पद्य, वै., (जीव तुं भुलो रे भाई), ३८६२३-३ औपदेशिक पद, पुहि., पद. ४, पद्य, मूपू., (तुम कैसे तिरोगे भव), ३४६६८-६ औपदेशिक पद, रा., गा. ४, पद्य, वै., (दातण झारी है सुंदरी), ३८५४७-५(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (परम धरम अवधार तुं), ३७११३-२ औपदेशिक पद, हिं., गा. २, पद्य, वै., (बावा किसनपूरी तुम वि), ३८५४७-६(+) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., (माणस मांहि माच्छा), ३७८५१-४ औपदेशिक पद, पुहि., पद. १, पद्य, श्वे., (लसण वाडो वावीयो वाड), ३५६९६-५ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (षद्रव्यनामै कह्यो), ३५११९-३(+-), ३८२२४ औपदेशिक पद , पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (साधो भाई अब हम कीनी), ३७२८७-२ औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (सुमति कामनी वीनवै हो), ३५१०९-२($) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (स्नान करो उपसमरसपूर), ३५८२२-२ औपदेशिक पद, पुहि., पद्य, श्वे., (स्वारथ कै साचे परमार), ३६८६९-२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (हमारे प्रभु हैं घर), ३८४२४-९ औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, श्वे.?, (हे प्रभु हे प्रभु), ३८४५५-२, ३८४५६-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (होरी खेलोरे भविक), ३४८२९-४(-) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (--), ३७०९४-१(+$) औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, मु. जिनहर्ष, हिं., गा. १, पद्य, मूपू., (काहे काया रूप देखी), ३५३११-५ For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ औपदेशिक पद-क्रीया, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (क्रिया करो चेला), ३८७८४-२३(-) औपदेशिक पद-पकवानवर्णन गर्भित, मु. धर्मसी, पुहि., सवै. ४, पद्य, श्वे., (आछी फूल खंडके अखंड), ३७५६९ औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), ३८७८४-२४(-) औपदेशिक पद-भावगाडी पद, श्राव. जुठाराज, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (जीवडा जिनजी पुजन), ३८९७८-२ औपदेशिक पद-मोहमाया, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (कोइ मत करजो प्रीत), ३८११८-२(-) औपदेशिक पद संग्रह, विष्णु भगत, मा.गु., गा. २१, पद्य, वै., (वंच प्रोह परधन नवि), ३५६२७-२(+) औपदेशिक पद संग्रह, पुहिं., गा. २५, पद्य, श्वे., (सतगुर तुम तो भूल गया), ३५८६०-२ औपदेशिक पद-सम्यक्त्व, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समकित सैहस किरण रवि), ३४८२७-२ औपदेशिक पद-साधु, पुहि., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (पाचु इंद्रि जिति नहि), ३७२५४-१(+-) औपदेशिक पीठिका, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहँत भगवंत असरण), ३६९४३-२(+) औपदेशिक लावणी, मु. अखपत, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (खबर नहिं हे पलकी), ३७०५६-१, ३८७३०-२ औपदेशिक लावणी, अखेमल, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (खबर नही आ जगमे पल), ३४७४७-१(+), ३८६६०-२(+), ३७१६६-३ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (किसि कि मँडिरे नवि), ३७१६६-५ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (गइ सब तेरी शील समता), ३८५६८-२ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (लाभ नहि लियो जिणंद), ३८५६८-१ औपदेशिक लावणी, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक एक रेछे पालख्याज), ३७७५०-२ औपदेशिक लावणी, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (चतुर नर दिल कुं समझ), ३७१६६-४ औपदेशिक सज्झाय, अमरचंद्र, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (क्या करि जुठि माया), ३७८९३-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (भडला सुण पहली रे बोल), ३९००१-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (काल तणै कोई नहीं), ३८२३७-१ औपदेशिक सज्झाय, क. आसो, रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसती सांमण हुतुझ), ३७६३६-१(१) औपदेशिक सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (भूल्यो मन भमरा), ३४६९२-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (यामें वास में बें), ३४५४३-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. १६, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (आरे आ दुखा संसार छे), ३७१३७ औपदेशिक सज्झाय, क. करमचंद मुंहतो, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (थावर जंगम कीटपतंगजु), ३८३६९ औपदेशिक सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (जाग रे सुग्यानी जीव), ३८६०८-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (प्राणी खप वस पात), ३८३८६-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. जयमोक्षविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (ए कपील रिषिसर करुणा), ३५५६४-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनदेव, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (सजन नही को आपणो नही), ३८५९९-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ५६, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजै चरण), ३८४८६ औपदेशिक सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, रा., गा. २५, पद्य, स्था., (चेतन चेतियो रे मानुष), ३८६१९-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नाहलो न माने रे), ३७३४४-१, ३८९३३ (२) औपदेशिक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार भावनामांहि), ३७३४४-१ (२) कायाकुटुंबस्वाध्याय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार भावना मांहई), ३८९३३ औपदेशिक सज्झाय, उपा. दाम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (करि संतोष समझि मन), ३४६८८-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (गरुरा क्या केरा), ३४७३५-१(-) औपदेशिक सज्झाय, पा. धर्मसिंह, पुहिं., गा.११, पद्य, मूपू., (करयो मती अहंकार तन), ३७६०१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. नग, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (एक काया अरु कामनी), ३८०३४ औपदेशिक सज्झाय, मु. नगराज, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (तूं रे अचेतन क्यु), ३४५४१-१ For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४१ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. नथमल, रा., पद्य, श्वे., (सुणो नरनारी वाता मत), ३४८४००) औपदेशिक सज्झाय, प्रीतम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रभु भजवानी घड़ी एक), ३८४४७-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रीतिसागर, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (नरसेती नर निपजइरे), ३४७४८ औपदेशिक सज्झाय, मु. भीम, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (कुंभ काचोरेकाया), ३८७६२-१ औपदेशिक सज्झाय, जै.क. भूधरदास, पुहि., गा. १२, पद्य, दि., (अहो जगत गुर एक सुणिय), ३४७१९-१ औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै.?, (भूलो ज्ञान भमरा काई), ३४५५०-३ औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (चड्या पड्यानो अंतर), ३६७३२ औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चिदानंद अविनाशि हो), ३५६१९-४ औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (थारी फूल सी देह पलक), ३८६४३(-) औपदेशिक सज्झाय, ऋ. रतन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रभु तणा गुण गाउ), ३८६७३-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनलाभ, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (चउवीसे जिणवर नमी रे), ३७५७१-१ औपदेशिक सज्झाय, आ. रतनसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीवरे एह जगत जन नात), ३७०११-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. रविविजय, मा.गु., गा.७, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (जीवडा मत राखें रे), ३८१३८-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. रामचंद, रा., गा. १५, वि. १९१८, पद्य, श्वे., (मूरख लखजा स्वे तेन स), ३७०५०(-) औपदेशिक सज्झाय, मु. रामसकल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भाखे वीर जिनेसर जगधण), ३७५८८ औपदेशिक सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (सुण चेतन रे तु गुण), ३४६४० औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २४, वि. १८०८, पद्य, स्था., (श्रीजिण दे इसडो), ३६७५३, ३८४३४ औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अणसमजुजी सीखामण दीजे), ३८६७१-२(+#), ३८४६१-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऐसे ऐसे सेहरवसे), ३७०५२-५ औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जिणवर इम उपदिसै आगै), ३८३४७-१(+s), ३७७५०-१, ३७७२३-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जोय यतन करी जीवड), ३७२४१-९ औपदेशिक सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा.७, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (ओजीवे काल अनादि भटक), ३४६९६-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (भजि भजि भगवंत भविक), ३८५८४-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (आदित्य जोइने जीवडा), ३४५४७-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय , मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कमणस काया कमणस माया), ३७९८१-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), ३७७६५-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लिखमीचंद शिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (काडोनक सीधोजीयणा), ३८०८५-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तो सुख जो आवें संतोस), ३८३५८-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (पांचे घोरो रथ एक), ३८६१४-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ते सुखीया भाई ते), ३५७८३-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. विमलहर्ष, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (समरसमाहि जीलि चंचल), ३८०१०-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. वीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कृपणपणाथी बीहतो रे), ३७२४१-१३ औपदेशिक सज्झाय, मु. वीर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जावू जरुर मरी जीवडा), ३७२४१-११ औपदेशिक सज्झाय, मु. शुभवर्द्धन, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मइ सेवी रे देवी सरसत), ३७६१०-१ औपदेशिक सज्झाय, वा. श्रीकरण, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (समवसरण सिहासनेजी वीर), ३६६६५-१ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (स्वारथ की सब हेरे), ३७८४१-४, ३८७८४-९८) औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुंधोजे मननु), ३८०३०-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुदास, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (मोहो मंदगी नींध सूता), ३५०२९ For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुहंस, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (मन शुद्धि सुणि जीव), ३५७७९-२(२) औपदेशिक सज्झाय, मु. सिद्धसोम पंडित, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया ममता मुकीइंजी), ३४७२७-२ औपदेशिक सज्झाय, सा. सुंदरीबाई, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (समझ अवसर पाया रे जीव), ३५९४०-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीराचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (लखचोरासी मां पसवे), ३५११९-४(+-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (अर केहुं कछु कहो मन), ३८०१६-२ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (अरिहंतजीने वले साध), ३४७२३-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (अवगुण ओगन आणजे रे), ३५२५८-२(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (आद अनादरो जीवडोरे), ३४५२९ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४७, पद्य, श्वे., (इम सद्गुरु जीवने), ३८२६१(६) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (कहुन गलाल कहुं मोति), ३४८२५-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (कातग म कौतग करीय घरघ), ३७५७८-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (काया जीवाडी वारमी), ३८०८५-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.६, पद्य, मपू., (कायानी माया सगली), ३४६९६-२ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा.५, पद्य, श्वे., (किसी संग वीरवा न बोल), ३८२०७-१(-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (घर घोडा घर हाथियां), ३६९९६ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (चतुर नर जीवदया धर्म), ३७२४१-१० औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (चरण कमल अरिहंतनां), ३८२८६ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (चित निरमल कर समरण), ३८२३७-२(5) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (चोरासी लख जोनमे रे), ३७१२२-१, ३७३४३-३ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा.८, पद्य, मूपू., (जब मेरा सिरे पर), ३८४३६-१(-) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (जीवरलारे नेणारे), ३६६९२-१ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (तु मेर प्रीती साजना), ३६७८९-४(+-) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (दम का नहीं भरोसा रे), ३६६६५-४ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. २५, पद्य, श्वे., (दलाली लालन की म्हारे), ३५८०२-१ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (देखी दुनिया बीच वे), ३८२०९-३ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (देसतो विराना अपनां), ३४७३५-२(-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (नगरमांसु एक दासी आई), ३७०९८-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (पहिला धुरि समरु), ३७६७४ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (प्राणी पंच इंद्री), ३८२०७-२(-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रीतम लोग मित्र सुत), ३७७७३-३ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (बार बार मिनषा भव पाइ), ३८२०९-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (भविजीवो आदिजिणेसर वी), ३७६४१(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भुलो मनभमरा काई भम्य), ३७७०५-२ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (मनुष्य जन्म मिलियो), ३७६७७(+-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (मान न करजोरे मानवी), ३५५८५-३ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (रतन चिंतामण नरभव पाय), ३४७२२ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (लख चोरासी जोनमा भाई), ३८९११-१(#), ३८९१७(2) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विषय कषायथी जीवडो), ३५९१६-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (विषिया लालचरस तणो), ३८७००-२(-) For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ___ ५४३ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीरंग पडोरे संसार), ३७८३२-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४+१४, पद्य, म्पू., (श्रीवीर जिणेसर भाखी), ३८५२९ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सजन देसांतर गया जे), ३५१२२-२(-2) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (समरीस जिन मन सारदमाय), ३५३०७-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (सरसति सामणि करु), ३५१८८ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (हंसा सो सर सेवीइ), ३७८८४-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), ३७९६७-१(#$) औपदेशिक सज्झाय-अन्यदर्शन, मा.गु., गा. ३९, पद्य, श्वे., (मीथ्यातिनो मत जुओ), ३७२१९ औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, पं. सोमविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आसंसार असार छे रे), ३८७८८(+) औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तो सुख जो आवै संतोष), ३७६४० औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया पुर पाटण मोकलौ), ३४६९२-१, ३५५६४-२, ३८३०६-१(#) औपदेशिक सज्झाय कुतरी बिलाडी संवाद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (छेल छबीली कुतरी रे), ३८७९५-२ औपदेशिक सज्झाय-क्षमाविषये, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (खिमा धर्म पहिलो कह्य), ३४५०७, ३४८१५(5) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ३५६९२-२, ३८४५४, ३८४६५, ३८९४७, ३७०९६-१८) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु.कुशल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सदगुरु भाखे देसना), ३८२६७-२) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (तुं मेरा पिय साजणा), ३८३०६-२(#) औपदेशिक सज्झाय-जीवकायासंबोध करण, मु. नगराज, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (काया कामिण सौं कहै), ३४५४१-२ औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., पद्य, श्वे., (सकल नारिय जोउ विचारी), ३६१५३(5) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया सज्झाय, मु. हंस, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (अरिहंत देव गुरू), ३९००२-२(+#$) औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. आणंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती विनवे), ३८५१६ औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. हीरालाल, रा., गा. १३, वि. १९४४, पद्य, स्था., (मारी दयामाता थाने), ३८२३९-१ औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी), ३५८२७-४, ३७८०७-२ औपदेशिक सज्झाय अवघाटी, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नवघाटीमां भटकत रे), ३७८३२-२ औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी), ३७१२२-३, ३८७८४-११(-) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागे, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ३८१०३-२ औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक काया दुजी कामनी), ३८६०८-१(#) औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंतारे सिख), ३५८६९-१(#) औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (सीख सुणो रे पीया), ३६५४९-१ औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, शंकर, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (सुण चतुर सुजाण परनार), ३८४४७-१(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीव वारु छु मोरा), ३६८९५-२($) औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री त्याग, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नर चतुर सुजाण परनारी), ३८२५९-३, ३८४६१-२ औपदेशिक सज्झाय-परिग्रहत्याग, रा., गा. २१, पद्य, श्वे., (इण परिग्रहारै कारणैय), ३६६५२-१ औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, रा., गा. १९, पद्य, श्वे., (बुढो हलवे हलवे चाले), ३४५०१-१ औपदेशिक सज्झाय-मांकण, मु. माणेक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मांकणनो चटको दोहिलो), ३७४११-२ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. वीर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मान न कीजे मानवी रे), ३७२४१-१२ For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनु मुल जाणीये), ३८२५९-२ औपदेशिक सज्झाय-यौवनविशे, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (जब तक फुलरही फुलवाडी), ३५११९-६(+-) औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बापलडी रे जीभलडी तुं), ३५६०५-२, ३७९०२ औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (तमे लक्षण जोजो लोभ), ३५५८६-२(5) औपदेशिक सज्झाय चाडीफूलदृष्टांत, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वाडी राव करे करजोडी), ३७५५५-३ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कविदास, मा.गु., गा. १२, वि. १९३०, पद्य, मूपू., (तुंने संसारसुख केम), ३७८८१(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ३६३३२ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसी रे), ३७०५६-३, ३८२८२-१ औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कही), ३८४११, ३८४८४-३, ३५८६९-२(#), ३७८५६-१(६) औपदेशिक सज्झाय-हितोपदेश, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (नगर रतनपुर जाणीइ), ३८५४७-४(+), ३४८३६-१०) औपदेशिक सवैया, खेम, पुहिं., पद्य, (बक भव केन नेक रसनाल), ३८९७५-३() औपदेशिक सवैया, मु. जिनहर्ष, पुहि., सवै. ८, पद्य, मूपू., (वार वार कहु तोय सावध), ३७५९०-२ औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरु उपदेश), ३४७०१(+$), ३८५४३-१, ३८९०५-१, ३८७९०($) औपदेशिक सवैया, क. सिंह, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (कालिकुहाड कूलछन कू), ३७९९९-२ औपदेशिक सवैया, श्राव. हरिदास, रा., गा. १९, पद्य, श्वे., (कबहुं ते जत्थ रंग चढ), ३८४१४-१ औपदेशिक सवैया, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (मूख देखत ही मन भावके), ३५६९६-४ औपदेशिक सवैया-धर्मोपदेश, मार्कंड, मा.गु., पद्य, वै., (तज रे मन गाम गमारण), ३८२००-३(+) औपदेशिक सवैया संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, जै., वै.?, (पांडव पांचेही सूरहरि), ३९००७($) औपदेशिक सवैया संग्रह, पुहिं., पद. ६, पद्य, मूपू., (सूर छिपेंघन वादलथे), ३७६०७-२ औपदेशिक स्वाध्याय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (पंचप्रमाद तजी पडिकमण), ३८७९३ औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, मु. वर्धमान, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसती सामिण पाये नमी), ३७५५५-१(६) औपदेशिक हरियाली, मु. जिनवर्द्धमान, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कहज्यो पंडित एहीआली), ३६५४८-२(+) औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहेयो रे पंडित ते), ३६१९७(+), ३६९८९ (२) औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिसे जाणिइते चेतना), ३६१९७(+$) औपदेशिक होरी, मु. धानुप्रसाद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरे मन खेल ग्यानरंग), ३५३७२-६ औपदेशिक होरी, मु. भानचंद, पुहि., गा. १३, पद्य, मूपू., (या विधि होरी खेलीइं), ३४७११-३ औपदेशिक होरी, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (अर मन खेल ग्यानरंग), ३५३७२-७ औपदेशिक होरी, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (नर बहुर न ऐसो दाव), ३५३७२-४ औषध संग्रह*, मागु., गद्य, वै., (--), ३५०२५-२(+), ३४५४३-१, ३५८०८-३, ३५८२८-३, ३७८१०-२(5) ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कका करमनी वात करी), ३६७३३ ककाबत्रीसी, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (कका कर कुछ काज धर्म), ३६१५८(#) कका बाराखडी, य. कपूरचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कका को लेकर गये पीया), ३८४९८-२ कडवाछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ४३, वि. १८६०, पद्य, श्वे., (सूत्र न्याय परूपणा), ३९०१५(+) कमलावतीरानी इक्षुकारराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (महिला में बैठी राणी), ३८७८६-२ कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहि., गा. २९, पद्य, श्वे., (महिला में बेठी राणी), ३५४६१-२, ३७१६४-१(२) कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (कहे राणी कमलावती), ३८९१९, ३७७०१-१(६) For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपानगरी अतिभली हु), ३८०४१-१ करमचंदमुनि आज्ञा क्षेत्र, रा., गद्य, श्वे., (--), ३४८०७ कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), ३६५५६-१ कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (देव दानव तिर्थंकर), ३८३८०-१ कर्मबंध भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३७१२८(+$) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू., (देव दाणव तीर्थंकर), ३४७४७-२(+$), ३८१०२-२(-2) कर्म सज्झाय, मु. दान, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुखदुःख सरज्यां पामी), ३८११०-१ कर्महिंडोले की सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (दोय खंभ रागने द्वेश), ३८३२६-१(क) कलश विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (-), ३५६१६-३ कलावतीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १६, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (जुगमंद्र जिन जगतगुरु), ३७२८३(5) कलावतीसती सज्झाय, मु. यादव ऋषि, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (सुमति जिणेसर पाय), ३७८२२ कलावतीसती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नगरी कोसंबीना राजा), ३८९५८ कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (तारक धर्म जिनेश्वर), ३४५०३-१ कल्पसिद्धांत, आ. मतिप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (झंबुद्वीपि भरतखेत्रि), ३७५२१-२(5) कवित संग्रह, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, श्वे., (आसराज पोरवार तणै कर), ३८५४७-३(+) कवित्त संग्रह", अज्ञा., गा. १३, पद्य, (राम्म हुन जान्न्यो), ३४६१७-२(+$) कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुंसदा), ३७४६९-१, ३७०२४(-5) कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, श्वे., (एक दिन इंद्रे), ३४७५६(-) कामिनी विश्वास निराकरण गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कामीनी कह कुण वेसा स), ३८७८४-१३(-) कायापुर पाटणनो कागल, मु. सुमतिविमल, मा.गु., वि. १९१५, गद्य, मूपू., (स्वस्ती श्रीमोक्षनगर), ३७२८९ कालिकसूत्र कालवेला विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जे दिनरै पहिलै पहुर), ३७९६३-३ कालिकाचार्य कथा *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां पूर्वइ स्थविरा), ३५५७२ काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य, मा.गु., पद्य, ?, (--), ३४५७५-७(+), ३४६७५-३, ३४७५३-३, ३४७८८-२, ३४८७९-२ कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कुंथुजिन मनडु किमहि), ३७६५०-५ कुंथुजिन स्तवन, मु. जोतरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (हारे लाल कुंथुजिण), ३६५०२ कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (रात दिवस नित सांभरो), ३८६६१ कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (जिनवर प्रणमी सदा), ३७६०७-१, ३८२९१, ३८६६९(#) कुगुरुपच्चीसी, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सद्गुरु केरि परिक्षा), ३८८०१(६) कुबेरदत्तकुबेरदत्तानी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३०, पद्य, मूपू., (पहेलाने समरु रे पास), ३७१७४($) कुरगडुमुनि रास, मु. रायचंद ऋषि, मागु., ढा. ६, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (शांतिनाथनै समरीय), ३६१४०(६), ३७०९८-१(s) कुशलचंदमुनि गीत, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कुसालचंदजी रीष राया), ३४७५५-३ कुशालचंदजी गहुंली, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (आजरो दिहाडोजी भलाइ), ३४८२६ कृष्णमहाराजा परिवार, मा.गु., गद्य, मूपू., (बेटा ६० हजारबेटा), ३५७१२-२ केशवऋषि भास, मु. सुंदर, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीसीमंधरस्वामिजी), ३७९४५ केशवऋषि संथारो, मु. भिखू ऋषि, मा.गु., ढा. ३, गा. ४१, वि. १७२१, पद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीमंगलकरण), ३६२४६(+) केशवगुरु भास, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (मेरे गुरु तुम्ह दरसन), ३५९०१-२ केशवगुरु भास, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (सरस वचन मुखि सरसति), ३५९०१-१ केशी गौतमगणधर गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सावथी उद्यानमारे), ३५८९५-१ केसरबाई गहुंली, मु. चौथमलजी म., रा., गा. १२, वि. १९६२, पद्य, स्था., (केसरबाई नाम आपको), ३७८१४ For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ कैवाय छंद, मा.गु., पद्य, वै., (सोहै हंस वाहणी), ३७६६६-२(+) क्रिया के २५ भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (क्रिया दोय प्रकारनी), ३५८००(+), ३८८४०-२ क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ३६७४३(+), ३६१४२, ३६१७७, ३६५७७, ३६८१५, ३६८६७, ३७४९२(#), ३७३७३() क्षमापना दृष्टांत संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंधुसौवीर देशनो धणी), ३७४१९(+#) खंधकमुनि सज्झाय, मु. जेसिंघ ऋषि, मा.गु., गा. ८, वि. १७५५, पद्य, श्वे., (--), ३५४१६ (5) खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं अरिहंतने), ३८२३३-२ गंगकवि पद, क. गंग, पुहिं., गा. १, पद्य, (सभा भइ सब देवन की जब), ३४५२७-३ गंगादेवी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते तपस्वी लाजतो हुंत), ३८१५५ गंधकतेल निर्माण चौपई, पुहि., दोहा. ५, पद्य, (आंवल सारो सूधले ताको), ३५७५६-२ गजसुकुमालमुनि चौढालियो, मु. केशव, मा.गु., ढा. ४, गा. ३१, वि. १६९५, पद्य, श्वे., (पास जिणेसर प्रणमिई), ३४५४२-१ गजसुकुमालमुनि छढालियो, मु. केशव, मा.गु., ढा. ६, गा. ५३, वि. १६९५, पद्य, दि., (आदिजिनेसर आदिकर प्रण), ३७७७० गजसुकुमालमुनि रास, मा.गु., ढा. १८, पद्य, श्वे., (तिन काले तिनही समे०), ३८०८७(+$) । गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, मूपू., (गजसुखमाल देवकीनंदन), ३४७४१() गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), ३५२२२-२(5) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारामती जाणिय), ३६९८८-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पं. हर्षउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गजसुकमाल चारत लीयो र), ३८१०३-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (दूजै दिन श्रीकृष्णजी), ३६६०२ गणधर जन्मस्थल मातापितादि वर्णन, मा.गु., को., मूपू., (इंद्रभूति मगधदेशे), ३८०७७-१ गणधर विवरण, मा.गु., को., मूपू., (गौतम अगनीभूति), ३७३६५-१ गणधर स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुनि मंडल तारी भव), ३६७२४-१ गणपति स्तुति, प्रेम, रा., गा.५, पद्य, वै., (सदा सेवियांसु चिंगो), ३८६३२-२ गणेशजी द्रुपद, तानसेन, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (जै गणेश जै गणेश जै), ३८६२२-३ गर्गाचार्य सज्झाय, रा., पद्य, श्वे., (गरगाआचार्ज हंतो मोट), ३५१२०-४(5) गुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २८, वि. १७५७, पद्य, श्वे., (संपत्ति सुखदायक सदा), ३५८४७६), ३८०६५(5) गुरुआज्ञा सज्झाय, हिं., गा.७, पद्य, श्वे., (गुर का कहा मान लेरे), ३७२८७-३ गुरुगुण गहुली, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आतिम धरम शुणण भणी), ३५८८६-३ गुरुगुण गहुंली, मु. दौलतविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसत सांमणजी हो), ३७६७३-२ गुरुगुण गहुंली, . वृद्धिचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८१०, पद्य, मूपू., (श्रीजिन वचन प्रमाण), ३८२२८(+) गुरुगुण गहुँली, मु. सीवचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सही मोरी सासननायक), ३८०३०-४(+) गुरुगुण गहुली, मु. सेवक, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (कुकुम चंदन गुअलि), ३७७४९-२ गुरुगुण गहुंली-तपागच्छीय, उपा. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चतुर चकोर चरडि सहीयर), ३८५२६-१ गुरुगुण गीत, उपा. दाम, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सगुरु अब प्रगटिउ वखत), ३४६८८-२(+) गुरुगुण गीत, मु. विशालराजसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आपणे परे आवी हु), ३८४९४-७ गुरुगुण गीत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (--), ३८१४६-२ गुरुगुण भास, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ९, वि. १८२५, पद्य, मूपू., (सहीयां रे सहीयां रे), ३४७४९-१ गुरुगुण भास, मु. तेजसिंह ऋषि, मा.गु., गा.७, वि. १७१७, पद्य, श्वे., (श्रीसीमंधरस्वामिनो), ३७९७६-२ गुरुगुण भास, मु. प्रेमजी ऋषि, म., गा. १०, पद्य, श्वे., (सकल मुनीचा स्वामी), ३६२१६(+) गुरुगुण भास, मु. मोहनसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चालो सहेली नेहसु गुर), ३८३४६-१ For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ गुरुगुण भास, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (सदगुरु हे सदगुरु), ३५८९५-२ गुरुगुण सज्झाय, मु. मोहनसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (मुनिवर बेठा पाटीवेजी), ३८३४६-२ " गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, भूपू., (आज म्हारे आनंद रंग), ३४६०३-३(१) गुरुगुण सज्झाय, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (मांहरी अरज सुणीजे रे), ३८९८७-२ गुरुणी चेली गुण सज्झाय, ऋ. रायचंद, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (सीखणी सामो जोयनए गुर), ३५७०७, ३५८१८ गुरु देशना पद, मु. हर्षचंद, मा.गु, गा. ५, पद्य, म्पू, (वरषित वचन झरी हो), ३८४२४-२ गुरु महिमा पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जिन चरण गुरु कमल चित), ३५०६४-६ गुरुवंदन स्तुति, मु. रामसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर प्रणमी करी), ३७७९३-१ गृहस्थधर्म स्वरूप, मा.गु. श्रो. ६९, गद्य, भूपू (सम्यक्त्वमूलानि पंचा), ३५९०९-३(०) "" こ गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (उद्गम दोष श्रावकथी), ३४५१०-१, ३६५३३-२ गोपीचंद ढाल, रा., गा. २५, पद्य, श्वे., (राय उदाई साध फिरतो), ३८२३८ गौतमपृच्छा २६ बोल, रा., गद्य, मूपू., (कोहो पुजजी कोहो साम), ३८८४३-१(+) गौतमपृच्छा ३० बोल, रा., गद्य, श्वे. (पहेले बोले कहो पूज्य), ३८९७८-१ " " गीतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु.. गा. २०, पद्य, थे. (गोतमस्वामी पूछा करई), ३६२५८ गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामी पृच्छा), ३८११६ गौतम प्रश्न १० बोल, मा.गु, गद्य, मृपू., (दश बोल गोतमस्वामी), ३५९०६-१ गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (प्रह ऊठी गौतम प्रणमी), ३७७४२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गौतम नाम जपो परभाते), ३८४८०-१ गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( नमो गणधर नमो गणधर ), ३७१११-५ गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मात पृथ्वी सुत प्रात), ३८६७०-१ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ३७७७७-१(+), ३५८५१-१, ३६०५२-३, ३८४७१-२, ३८८६४ ३५८८६-२ (गुण गाय गोतम तणा), २८४७६ " "3 गीतमस्वामी भास, मु, प्रेम, मा.गु गा. ६, पद्य, भूपू (नयरी राजगृहीनां), गौतमस्वामी रास, मु. जैमल ऋषि, रा. गा. १८, वि. १८२४, पद्य, स्था. गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., डा. ६, गा. ६६, पद्य, भूपू (वीरजिणेसर चरणकमल कमल). ३५७४१-१, ३६५६६ गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ३४७९१(+), ३६०००(+१), ३६०५१-२(+४), ३६३६३(३), ३६९०२ (-१), ३८३४५ (०३), ३५३८८, ३५७५६-१, ३७८०१-१, ३५९५३(३), ३७१०७(5) " गौतमस्वामी रास, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर चरण कमल), ३६५७३-१ (+), ३८८०४ ($) गौतमस्वामी रास, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (सुरसत सामण विनय), ३४५१२ गौतमस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू (गौतमस्वामी पूछा करे), ३७३८१-२ गौतमस्वामी स्तवन, मु. गुणसागर, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (लब्धि गुरु गौतमसामी), ३८६४६-२ गौतमस्वामी स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (गोयमस्वामि गुण निलो), ३६०५२-२ गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर मधुरी वाणी भाखे), ३७१११-८ गौतमस्वामी स्तवन, मा.गु., पद्य, भूपू (इंद्रभूति गुरु लवधि), ३४८५९-३(३) गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (इंद्रभूति अनुपम गुण), ३७१११-६ गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (गौतम नाम प्रभात जपो), ३८६७०-४ ग्रंथसूचि, मा.गु., गद्य, वे (--), ३६९३३-१, ३७३४७-४ . ग्रहण विचार, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे. (जे मासने त्रीज अंधार), ३५८०७-१ For Private and Personal Use Only ५४७ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४८ ग्रहण विचार, मा.गु., गद्य, (माहा महीने ग्रहण पडे), ३५०८०-४ ग्रह दोषावली, मा.गु, गद्य, श्वे. (देव दोस कोई नही ग्रह), २७८०८-१(३) घंटाकर्ण आराधन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम अजूयालि पक्षे), ३४८७८-२ चंडपिंगलचोर कथा नवकार विषये, मा.गु, गद्य, भूपू (बसंतपुर नगर जितशत्रु), ३५६६३-६ , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ चंदनबालासती कथा, मा.गु., गद्य, श्वे. (इण सम भगवंत कोसंबी न), ३७०४३ "" " चंदनबालासती गीत, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, म्पू (कांसांविते नगरी पधार), ३६०८७ (३) चंदनबालासती सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (कोसंबि नयरि पधारिया), ३४७०६ (+) चंदनबालासती सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आज अमारे आंगनडे सुकृ), ३५९०४-३, ३७६७५-५ चंदनमलयगिरी रास, सा. पार्वतीजी, मा.गु., ढा. २१, वि. १९५१, पद्य, स्था., (सासण नायक समरिये), ३९०३४($) चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन पुहिं., अ. ५. गा. १९९, पद्य, भूपू (स्वस्ति श्रीविक्रम), ३७८८४-१ चंदनमलयागिरी रास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १७०४, पद्य, मूपू., (जिनवर चडवीसे नमी), ३६३३९($) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), ३५८५५-१ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाव, मा.गु, गा. १६, पद्य, मृपू (चंद्रगुपत राजा १६) ३७४१७-२ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाव, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि एम नमुं), ३६३४५ (+) चंद्रप्रभजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभ रय), ३४५३९-१५ चंद्रप्रभजिन डालिया, पं. रायचंद, मा.गु गा. १५. पद्य थे. (चंदाप्रभु चित मोह), ३७७४७-१ (चोथो आरो थाकता), ३८९३९ .. " " चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु चितथी), ३५५६५-६ चंद्रप्रभजिन स्तवन, श्राव. खुसाल सेठ, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंदाप्रभुजी से लागु), ३७४३८-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. चोधमल, पुहिं., पद्य, थे. (चंदाप्रभु सिवसुख के), ३८३८६-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु, गा. ११, पद्य, भूपू. (श्रीचंद्रप्रभ जिनवर ), ३८९३७-१ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. भावविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू. (चंद्र प्रभुजी हो तुम), ३८४०७ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिनजी चंद्रप्रभु), ३४५७२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, भूपू (मुरत ताहरी हो मुरत), ३८१०७-२(३) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, भूपू (सयल जणेसर पाय नमी), ३८००३-२ (६) चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), ३७३५६-२($) चंद्रराजा रास, मा.गु., पद्य, श्वे. (श्रीजिणवर नाम हिय धर), ३८२२२($) "3 चंद्रलेखा रास, मु, मतिकुशल, मा.गु., डा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, मृपू (सरसति भगवति नमी करी), ३५५११(३) " चंद्रायणा, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (वास वसे चऊहांण के), ३८९७१-२ चउसरण गीत, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु, गा. ३, पद्य, भूपू., (तुमने चार सरणा हुज्य), ३७७१९-२(+) चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, मा.गु., गद्य, भूपू. (छ खंड भरतक्षेत्र), ३८५१२(३) चक्रवर्ती जन्मस्थल माता-पितादि विचार, मा.गु., को. म्पू. (भरत ऋषभ सुमंगला), ३८०७७-२ चक्रेश्वरीशासनदेवी गीत, मु. ज्ञानसमुद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (सूरगिर हूंती उतरै), ३४६८८-४(+) चतुर्थव्रत उच्चारण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ३७१९०-२ " 1. चतुर्दशीतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु गा. ९, पद्य, भूपू (हवे चौदसी तिथि इम), ३७०८८-८ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (रिसह जिणवर रिसह जिणव), ३४६७९ (६) चतुष्कषाय भांगा भगवतीसूत्रे शतक -१ उद्देशक ५, मा.गु., को. भूपू (--), ३५६१५-१ चर्चरी पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (कर काहा अभिमान बाउरे), ३७८५१-२ चातुर्मास योग्य स्थान के १३ बोल, पुहिं., गद्य, श्वे., ( किचड गारा थोडा होवे), ३६५२२-२ (-) For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ३८७७१-१(+$) चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु, प+ग, मृपू (प्रणम्य परमानंद), ३४८९६ (६), ३५८१९(३) चारित्रमनोरथमाला, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४१, प्र. ८८, पद्य, मूपू., (सुह गुरुपय प्रणम), ३६३८३, ३७४३४(३) चलन विधि, मा.गु., गा. २, पद्य, (सात पाव शनि सुक्र), ३५६४१-३ चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, भूपू (चित्त कहे ब्रह्मराव), ३४६४३ चेलणासती चौडालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा. डा. ४. गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था. (अवसर जो नर अटकलो ते), ३५३४५-१, " ३५४४९(३), ३७६८३(३) चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंदजी ऋषि, मा.गु., ढा. १३, पद्य, श्वे. (चोवीसमा महावीरजी), ३५४१९($) " चेलणासती रास, मा.गु., पद्य, श्वे., (मगधदेस राजगरी श्रीसण), ३५५८९($) चेलणासती सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, श्वे., (--), ३८०२५(#$) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. ७, पद्य, म्पू (वीर वखाणी राणी), ३६७८९-२ (+), ३५८२५-२, ३६६६५-२, ३७२०९-१, ३९०११-१ चैत्यवंदन विधिसंग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन वेर वंदन करइ), ३७३६०-१ चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एकेकइ पगि पनि सिद्धि), ३५५४४-५ चोखी सिंडासण सज्झाय, मा.गु. बा. २ गा. २६, पद्य, ओ., (मीथला नगरी माहि वसै), ३५१२०-२ , चोघडीया चक्र, मा.गु., गद्य, (उद्वेगवेला चलवेला), ३५९०९-१(#) चोर के १८ प्रसुती, पुहिं., गद्य, मूपू., (चोर के साथ मिलकै कहै), ३८९८९-३ चौदपूर्वनाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्पाद पूर्व १ अग्र), ३७९६९-२ छमासी तपचितवन विधि, पुहिं. गद्य, मृपू, (तप निर्जरा का बारा), ३४५२२ " ,י छाया प्रमाण, मा.गु, गद्य थे. (आसाढे मासे दुप्पया), ३८७१६-१ जंबूद्वीप के १९० खांडुआ विचार-भगवतीसूत्रे, मा.गु, गद्य, वे., (एकलाख योजन जंबुधिप), ३७२३६-४(+) " जंबूद्वीपक्षेत्र विस्तार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (जंबूद्वीप एक लक्ष), ३७८९३-४ " जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य म्पू. (जंबुद्वीप लांबो पहल), ३६५८०-३ जंबूस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, वे., (सप्रभावं जिन), ३७८२० (३) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जंबूस्वामी चरित्र कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३५६६३-१ जंबूस्वामी रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६४, ई. १५१६, पद्य, मूपू., (सरसति सहि गुरु पय), ३६३५७, ३७६०४-१($) जंबुस्वामी बेली, मा.गु, गा. २७, पद्य, मूपू (--), ३७६९०-१(+७) " जंबूस्वामी सज्झाय, ऋ. खुशालचंद्र, मा.गु गा. १४. वि. १८१७, पद्य, मूपू (मगध देश राजगृही नगरी), ३८२१२) " י' जंबूस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (संयम लेवा संचर्या), ३६४५७ जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (सरसत सामीने विनवुं), ३७१८१-२ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सहसकिरण ऋषि, मा.गु. गा. ११, पद्य, क्षे. (सयल जिणेसरने हुं पाय), ३५९०४-१ " जंबूस्वामी सज्झाच, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, म्पू., (राजग्राही नगरी बसे), ३४५६७, ३५५८६-१ जंबुस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजिओ), ३७७७७-२(+), ३७६३७ जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति सामीने वीनवुं), ३५८६६-२, ३८६२६-२ जंबूस्वामी सज्झाय - पंचभववर्णन, मु. रामजी, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे. (श्रीजिन प्रणमु हो), ३७७९५-१ " जडूसाह, मु. श्रीधर, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे. (अट्ठय मूडि सहस्स), ३७७१७-२(+) " जडूसाह, मु. श्रीधर, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (भद्रेसर कणयगिरि नामह), ३७७१७-१ (+) जन्मकुंडली विचार, मा.गु., पद्य, (--), ३८३८०-२ जसवंत गुरुगुण गीत, मा.गु., गा. ३, पद्य, वे (सखि जसवंतु आवह आवइ), ३६८१०-१ ., For Private and Personal Use Only ५४९ Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५० www.kobatirth.org "" जसवंत गुरुगुण भास, मु. जसवंतशिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. (श्रीजसवंत प्रभु नमो), ३६८१०-२ जसवंत गुरु चर्चरी, मु. जसवंतशिष्य, मा.गु., पद्य, श्वे., (कमलनयन कनक कांति देह), ३६८१०-४ जसवंतजी गुण वर्णन, मा.गु., पद्य, स्था., (--), ३७३४०-२ जसवंतजी संथारा, मु. भोजाजी ऋषि, मा.गु., वि. १७वी, पद्य, स्था., (--), ३७३४०-१($) 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ जावडभावडसेठ रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १९४, वि. १६वी, पद्य, श्वे. (पणमवि मरुदेवि सामिणी), ३६०९८ ($) जिणरस, मु. वेणीराम, मा.गु., गा. १९५. वि. १७९९, पद्य, भूपू (गणपद सारद पाव नमी), ३८२९० (३) " जिनकुशलसूरि कवित्त, मु, धर्मसी, मा.गु, गा. ३, पद्य, मूपू, बार बार वडीरी दादेजी), ३५४६७-२ जिनकुशलसूर कवित्त, मा.गु., सवै. ४, पद्य, मूपू., (जडधारवडजगोसर), ३४८८० जिनकुशलसूरि गीत, मु. नेमहर्ष, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सद्गुरु पय पणमी करी), ३८५१९-१ जिनकुशलसूरि गीत पा. साधुकीर्ति मागु गा. १५, पद्य, भूपू (विलसे रिद्धि समृद्धि), ३८७९१-१ 3 + जिनकुशलसूरि गीत, मु. सुमतिरंग, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरज सुणीजे कीजे दीजे), ३८१९८ जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. २, पद्य, भूपू (कुशल अंग उठरंग कुशल), ३४७०८-६ जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू. (कुशल वडो संसार कुशल), ३४७०८५ जिनकुशलसूरि गीत, रा. गा. ४, पद्य, भूपू. (हुं तो मोह रहीजी), ३४७०८-२ जिनकुशलसूरि सवैया, मु. धर्मसीह, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (राजै थूभ ठौर ठौर ऐसौ ), ३५६७८-३ जिनचंद्रसूरिनिर्वाण रास, मु. समयप्रमोद, मा.गु., ढा. ४, गा. ७०, पद्य, मूपू., (गुणनिधान गुरु पाय), ३४९२०-१(#$) जिनचंद्रसूरि पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू (भटारिक तीनहु अडभाडी), ३७८५७-७(+) जिनचंद्रसूरि पद उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. ६, पद्य, भूपू (सगुरु जिणचंद सोभाग), ३४७५८-२ जिनचंद्रसूरि भास, मु. सेवक, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनचंदगुरु सेवीइ), ३७९३२-१ जिनचंद्रसूरि भास, मा.गु., पद्य, भूपू (श्रीजिनचंद खंधलो बरी), ३७९३२-२(३) 3 जिन चैत्यवंदन - ज्योतिश्चक्रस्थित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (समभूतलधी उपरे ज्योति), ३४८५२-३ जिन जन्ममहोत्सव पद, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा. ४, पद्य, भूपू. (प्रभुजी को जनम भयो). ३५२९२-१ 1 जिन जन्माभिषेक दोहा, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरुशिखर नवरावे हो), ३४९७१-२(+#) जिनदत्तसूरि गीत ग. ज्ञानप्रमोद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (वंदन सदा सरसत वसई), ३८५१९-२ जिनदत्तसूरि गीत, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ११, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सद्गुरुजी थे सांभलो), ३७९०७(#) जिनदत्तसूरि गीत ग. सूरचंद मा.गु, गा. १७. वि. १२९१, पद्य, भूपू (आसापूरण कामगवी भवियं), ३५६४०-६ " " जिनदत्तसूरि विचार, मा.गु. गद्य, म्पू (श्रीजिनदत्तसूरिन), २७९३४-४ जिनदत्तसूरि सवैया, मु. धर्मसी, पुहिं, सवै १, पद्य, भूपू. (बावन वीर कीए अपने वस), ३५६७८-२ जिनदास श्रावक कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (नउकारनइ प्रभाविइं), ३५६६३-५ जिनपालजिनरक्षित चौडालियो, रा. बा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ३५९८४, ३८७८६-१, ३६०२५(३) जिनपालजिनरक्षित चौडालियो, मा.गु., डा. ४, पद्य, वे. (ज्ञातारा नुंमा), ३८३०९-२ (०३) , जिनप्रतिमा लक्षण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रति स्वरूप गुणागण), ३७७४८-२ जिनप्रतिमा सूत्रहुंडी स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी हीयडे), ३४५८१($) जिनप्रतिमास्थापना सझाय, उपा यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, भूपू (जिन जिन प्रतिमा वंदन), ३८३३७ For Private and Personal Use Only जिनप्रतिमाहुडि रास, मु, जिनहर्ष, मा.गु. गा. ६७. वि. १७२५, पद्य, मृपू., (सुवदेवी हीयडे घरी), ३५८४० " जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भविका श्रीजिनबिंब), ३६८६० - २ (+), ३४७५२ जिन भवन १० जघन्य आशातना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तंबोल१ पाण२ भोयण३), ३६९७६-२ जिनभवन ८४ आशातनापरिहार स्तवन, मा.गु.. गा. २८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर प्रणमह), ३७२५० जिनमंदिरदर्शनफल चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुराज), ३६४१७(+) " Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 3 देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ जिनरत्नसूरि गीत, ग. राजहर्षगणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मनि धरिय सरसति माय), ३७८०९-१ जिनरत्नसूरि गीत ग. राजहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मृपू. (मनडओ उमाह्याओ मिलिया), ३७८०९-२ जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू. (सयल तीर्थंकर करु), ३४७५७-१ जिनवाणी गहुली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (साहेली हो आवी हुं), ३८५६७ जिनवाणी स्तुति, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (वीर हिमाचल से निकली), ३८४६८-२(+) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जे. क. बनारसीदास पुडिं. शत. १० गा. १०१. वि. १६९०, पद्य, दि. (परम देव परनाम करि), ३५६०४-२ (३) , जिन स्मरण फल, मा.गु., गा. १, पद्य, वे., (जिन समरातां सहस फल), ३८४०५-२ . जिनहर्षसूरि गीत, मु. दयारत्न, मा.गु, गा. ६, पद्य, भूपू (श्रीजिणहरख सुरिंद), ३८०३६-२ जिनहर्षसूरि वधावो, मु. लक्ष्मीचंद, रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (थे वहिला आजो हो), ३६५१३-१(+) जीतमलजी प्रभाती, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (पर उपगारी जीतनो दरसण), ३८७८७-२ जीव आयुष्यमान, रा., गद्य, मूपू., (काक पक्षीनी १०००), ३७३६५-५ जीव कर्म संबंध गीत, उपा. समयसुंदर गणि, रा. गा. २, पद्य, मृपू., (जीवने करम मांहो मांह), ३८७८४-२६ (-) १४ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना १४ भेद तेमा), ३७०६१ जीव के प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वजीव ४ च्यार), ३७५१३-४(+) जीवगति आगति यंत्र, मा.गु., यं., मूपू., (--), ३८३९५-३ जीवगति लक्षण, मा.गु, गद्य, मूपू जीव जन्ममृत्यु विचार, पुहिं, गद्य (पांच प्रकारे कायामां), ३५७८२-३ थे. (सुष्म निगोदिया जीव), ३६५२२-३ "" जीवणदासजी गीत, मु. खीमसी ऋषि, मा.गु., कडी. ७, पद्य, स्था., (सरसति सामणि पाय नमी), ३७७७९ जीवना ५६३ भेद, मा.गु., गद्य, श्वे. (प्रथम नारकी के १४), ३८६३५-३(+) जीवविचार बोल", मा.गु, गद्य, मूपू., (-), ३८२३४-१, ३७६२९(३) जीवविचार सज्झाय, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (रतन चिंतामण नरभव पाय), ३६८१९-१ (+) जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, मूपू., ( श्रीसरसती रे वरसती), ३९००४-१(+$) , जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (उतपति जोइनइ आपणी), ३७७६५-१(+), ३८०५२ जीवोत्पत्तिविचार संग्रह, रा. गद्य, थे. (स्त्री तणी नाभि हेठि), ३६७९३-१) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जुगलीया की कथा, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रणमुं सारद गुरुपाय), ३७०८०($) जैकाव्य संग्रह, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३६७२५-१($) जैन गाथा, मा.गु., पद्य, म्पू. (--), ३४५७५-६ (+), ३५३४५-२ こう जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, म्पू.. (समदीसरी किणन कहीजे), ३८९५५ जैनयंत्र संग्रह (कोष्ठक), मा.गु., यं., मूपू., (--), ३७४९३- ४(+#), ३८३९५-२, ३८७६१-३, ३७९३५ (#$) जैन साखा, मा.गु. गा. २९, पद्य, भूपू. (वंदो देव जुगाद जिन), ३६२११ जोगोत्तर गणित, मा.गु को भूपू वग्गे वो गुणा), ३७५४४ " ज्ञानचिंतामणी दोहा, मु, मनोहरदास, मा.गु., गा. १२८. वि. १७२८, पद्य, स्था. (सकल विद्या वरदायनी), ३५६३५-२ " ज्ञानपंचमीतपउद्यापन विधि, मा.गु, गद्य, भूपू (बिंब ५ पुस्तक ५ झलमल), २७४६१-३ " , י ज्ञानपंचमीपर्व दुहा, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समकित श्रद्धावंतने), ३५७९०-२ ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु गा. ९, पद्य, म्पू (श्रीसौभाग्यपंचमी), ३८५२५-१, ३६६८७-१३), 1 " ३७३२६(७) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन - बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगुरु पाय), ३८२०३ (+), ३८५११(+), ३८५५९-१(+), ३४५४९-१, ३४५७७, ३६२७०, ३७५६८-२, ३८३११.३८५३१(०) ३८४२९(३) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू (अनंतसिद्ध करूं), ३६५२१-२ For Private and Personal Use Only ५५१ Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५२ www.kobatirth.org " ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. जसविजय, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पंडित देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, ग. भावविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (--), ३४६७५-१ ($) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाच, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., डा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू. ( श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ३६६८७-२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ३५५२८ ($), ३७१८३($) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, क. दीपविजय, मा.गु., डा. ४, पद्य, म्पू., (ज्ञानावरणी क्षय करीन), ३८००० (+) " " ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. भावहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु, लाभविजय, पुहिं. गा. ४, पद्य, म्पू, ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३५७४९-२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ (वीर जिणेसर वदीयइए), ३७७९७(+) (पूजन कर ग्यान की), ३७४२९-४ ५, पद्य, मृपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ३४५६४, ३५६०७-२, (कारतकसुद पंचमी तप की), ३४८००, ३८४०२, २७००६-२(-) (सौभाग्यपंचमी पर्व), ३७००६-१) (कारतक सुदि पंचमी तप), ३४८०८ ज्ञानपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (माहाराज श्रीश्रीसांम), ३४७०७-१ ज्ञानमहिमा दुहा, मा.गु. गा. १, पद्य, मूपू (ज्ञान समो कोइ धन), ३६८४१-४ ज्ञान सज्झाय, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रवचन वचन विचारीये), ३८६८२-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिष लोक, मा.गु., गा. २, पद्य, वै., (मे वरदाझिजलहरे काढे), ३७५३५-३ ज्योतिष संग्रह, मा.गु, प+ग. (--), ३७४६९-२ झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु. डा. ४, गा. ४३. वि. १७५६, पद्य, मृपू (सरसति चरणे शीश नमावी), ३४६०७, ३७७०२-२, ३७८५६-२ ढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ३५३११-२, ३९०३५-१ टंडणऋषि सझा, पं. लब्धि, मा.गु गा. १३, पद्य, भूपू (-), ३८१३० १+४) " ऋषि सज्झाव, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (क्रसन नरसर पुछीवो जी), ३६७३०-३(+) ढुंढक रास, मु. अविचल, मा.गु., गा. १०८, पद्य, श्वे. (सरसति मात मया करी आप), ३४६०२ " इंडियामत सवैया -देवगुरुमत द्वेषी, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (--), ३८९८६-१(३) इंडिया मान्य ३२ आगम सूचना नाम, मा.गु., गद्य, स्था. (अंग ११ उपांग १२ नंदि), ३७११६-२ ढूंढकमत कवित्त, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., ( भगवंत मूरत भगति वली), ३८६१२ ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ७०० वि. १६७७, पद्य, म्पू. (सकल सुरासुर सामिनी), ३५०८८(5) " तत्त्वनिर्णय गीत, उपा. समयसुंदर गणि पुहिं गा ३, पद्य, भूपू (एक बार जो मुझ मिलि), ३८२७२-७ . तपपद सज्झाय, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सर्व देवदेव में), ३६५०९ . तप पारणाविधि, मा.गु., गद्य, मूपू., ( शुभ दिने चंद्र बले), ३८४९७ तपयंत्र विधि संग्रह, मा.गु. वं. मूपू (--), ३५४५९ . तप सज्झाय, मु. उदवरन, मा.गु., गा. ७ पद्य, मूपू., (कीधा कर्म नीकंदवा रे), ३७२४१-६ तपागच्छीय पट्टावली छंद, मा.गु., पद्य, भूपू (जिन संख्या पट्टि ३४९९३ (+) तीर्थंकर चक्रवर्ती ऋद्धि वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (तित्थयरा गणहारी चक्क ), ३८१९९ तीर्थंकर परिवार सज्झाय, मु. सुखलाल ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (राजाराणीरो कटुंबो), ३८०२० तीर्थावली स्तवन, मा.गु. गा. १८, पद्य, मृपू. (इंद्रादिक सेवित), ३८४४८(+) " For Private and Personal Use Only तृष्णा सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( क्रोध मान मद मच्छर), ३८५०२ तेजसिंहगुरु भास, मु. श्रीचंद ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., ( पासजिणेसर पाय नमी हु), ३७९७६-१ तेजसी गुरु भास, मु. सगाल ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे (सरसति सामिनि वीन), ३५९०४-२ तेजा श्रावक धर्मप्रभावना सज्झाय, मु. दुलभ, मा.गु., गा. २५, वि. १८७३, पद्य, श्वे. (प्रथम नमुं वरदाई बुद), ३८३८४ Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ तेतलीपीया भास, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (तेणि कालि तेणि समि), ३५६७३-३ त्रिकाल देववंदन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (चैत्यवंदन कीजइ), ३८६५०-१ त्रिदंडिया कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमगुत्तस्सति), ३७७४१-२ त्रिपुरामाता आरती, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., वै., (आरति टालो इश्वरी), ३८७७८-२(-#) त्रिभुवन चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलु देव पूजी चैत्य), ३५३८०, ३५६५८-१ त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (राए सिद्धारथ घर पट), ३८४५९-२ वेशठशलाकापुरुष नाम, गु., गद्य, मूपू., (ऋषभदेवादि २४ तीर्थं), ३७८९५-३ थावच्चाकुमार भास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारामती जाणीइ), ३७९०४(+) दंडक २६ बोलविचार यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर३ वैक्रिय१ तैजस२), ३८७९६ दयाधर्म माहात्म्य श्लोक, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (दयातूंखारी वेलडी), ३४८२३-३ दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु रे), ३४७५८-१, ३८१२६(#) दया सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, स्था., (दसमोग दखीया तणी), ३५५५८-२ दया सज्झाय, मु. विसनलाल, पुहि., गा. १०, वि. १९६२, पद्य, स्था., (दया विन करणी नंननन), ३८४५८-१ दलाली सज्झाय-धर्मदलाली, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (दलाली इस जीवन कीधी अ), ३४७१२-२(5) दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८६, पद्य, मूपू., (सारदमात मनरली समरु), ३७१०३-२(5) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मा.गु., गा. २१, वि. १८८८, पद्य, मूपू., (प्रणमु सदगूरू पाय), ३४६५०(+) दशार्णभद्रराजा रास, आ. हीरानंदसूरि, मा.गु., गा. ३१, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पय नमी), ३७७४५, ३७४३३($) दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, पू., (सारद बुधदाइ सेवक), ३७८३६-१(+), ३४५९१-१, ३६७७३, ३७६६२, ३५८६९-३(#), ३८६०२-१(#$), ३४८२०-३(5), ३८५६२-१(६) दसोटण विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (मांड्यो उतंग तोरण), ३५३२५ दादा गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (महिमा थारी रे हो), ३५२३२-१(#) दादागुरू गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (हस्ती तौ चढियो रे), ३५६६०-४($) दादाजी गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज तो आनंद मेरे आई), ३५६६०-२ दान के ५ दोष, मा.गु., गद्य, श्वे., (कृपण भाव१ मत्सर भाव२), ३४६२३-४(२) दान प्रकार, मा.गु., को., श्वे., (--), ३४७४९-२ दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय), ३७६२८-२, ३७३४८-५(-) दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ३७८९०(+), ३६५४०-१, ३७८१५-१, ३८१८२, ३८९७४, ३८००६-१(#$), ३८६२०-१(2), ३५२२९(६), ३५३१८(६), ३५७४१-२(5) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (दान एक मन देह जीवडे), ३४७१८ दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणी विनवू), ३८२०४-१ दानाधिकार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समरूं सरसति सामिणीजी), ३४७५८-३ दामोदर गुरुगुण स्तुति, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (श्रीदामोदर गुरु गाईए), ३६८०९-१ दिन नक्षत्र लावणी, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (दायपडे सोक हरे), ३८२७० दीपावली कल्प, मा.गु., गद्य, मूपू., (मांगल्य पीत कार्ती), ३६८४२-२(5) दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दुःखहरणी दीपालिका रे), ३७१११-९ दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ३७१११-१, ३५३९९(5) For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५४ www.kobatirth.org दूहा संग्रह, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे. ?, (सुख उपनै दुख गल गए), ३५७४८-४ (--), ३८१०२-१(-#S) दीपावलीपर्व रास, ऋ. जेमल, मा.गु., गा. ४३, पद्य, वे., (भजन करो श्रीभगवंतरो), ३५९५७, ३८६१९-१ दीपावलीपर्व सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु गा. २२, वि. १६वी, पद्य, भूपू (तीरथनायक बंदिये), ३४४९५, ३५३९२-१ दीपावलीपर्व सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.. गा. २२, पद्य, भूपू. (भजन करो भगवंत रो गण), ३८४४९ दीपावलीपर्व स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु, गा. ११, पद्य, मूपू. (श्रीजिनवरजीनां गुण), ३८४१२ " दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर मनोहरु), ३७१११-४ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू (सिद्धारथ ताता जग, ३८९६९ दीपावली पर्व स्तुति, पंडित, देवचंद्र, मा.गु, गा. ४, पद्य, मृपू. (ए दीवाली मंगलमाली), ३८४७२(५) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., ( जयजय कर मंगलदीपक), ३५५४९-१ वा सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ९, पद्य, मूपू., (दस द्वारे दिवो कह्यो), ३६५१२-२ दुषमकाल विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, भूपू (भगवंत कहे जे हे गौतम), ३६५२८-१ दुष्कृतगर्हा, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारंमि अनंते), ३७४५२-२ दूहा संग्रह *, पुहिं., मा.गु., पद्य, जै. ?, (गांमंतरुं घर गोरडी), ३४९५४-४, ३५३१४-३, ३५८०८-१, ३६११७-३(#) दूहा संग्रह, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (सरव गिरव मुकरमै भार), ३५८०२-२ देवकी ढाल, मा.गु., ढा. १०, पद्य, मूपू., देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे. (पहलो सोधर्म देवलोकेइ), ३७८९५-४ देवलोक विमानविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे. (देव दीवे एगो दो नागु), ३७९४०-४ "3 " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ देवलोक स्तवन, मु. चतुरसागर, मा.गु., डा. ७. गा. ४४, पद्य, भूपू (सरस वचन दे सरस्वति), ३८९५७ देवस्वरूप गीत, श्राव. रामलाल, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे. (प्रथम देवने ओलख्योरे), ३६७८८-२, ३७५५५-२ देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन), ३४५३७, ३४७५५-२, ३८४०५-१, ३८८७९ देशावगासिकतप के १० दोष, मा.गु., गद्य, भूपू (मन के आरतध्वान१), ३४६२३-२-१ दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, (ओस ओस सबको कहें मरम), ३८६१७-४(५) ३५७१०-२, ३६५३१-२ " दोहा संग्रह, मा.गु गा. ५, पद्य, थे. (दसे वालो वीसे भोलो), ३८१५३-२, ३८३६६-८ "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, (सजन तोरा गुण धणा), ३८५६४-२ (+), ३५८७२-३, ३७१४८-२, ३७८९३-२, ३८५०६-२, ३८९९५-२ दोहा संग्रह जैनधार्मिक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अष्टापद श्रीआदजिनवर), ३७९७४-२(+), ३६९८३-६(#) . द्रौपदीसती सज्झाय, मा.गु. गा. २१, पद्य, भूपू (चंपानगरी वखाणीइजी), ३८१०५/११ " " द्वारिकानगरी ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (बावीसमा श्रीनेमिजिण), ३६७५४($) द्वारिका नगरी विस्तार, ऋ. साधु, मा.गु., गा. ३१, पद्य, वे (--), ३९०३६ (5) श्वे., धन्ना अणगार रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (परम ज्योति परमेसरु), ३७८६७ (5) धन्नाअणगार श्वासोश्वास प्रमाण, मा.गु., गद्य, मूपू., (धन्ना अनगारना दिक्षा), ३५८६१-३ धन्ना अणगार सज्झाय, आ. जयवल्लभसूरि, मा.गु, गा. २१, पद्य, मूपू., (दोह करजोडी नइ नित नम), ३८५७३-१ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, वे., (जिनवाणी रे धना अमीय), ३७७९५-२, ३८४१०-१ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नगर काकंदी हो मुनीसर), ३७७६३-१ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, स्था., (जिनशासन स्वामी अंतरज), ३६७२५-२ धनाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु, गा. १२, पद्य, म्पू, (जिनवचने वयरागी हो), ३५३४६-१, ३४५०८०), ३४६८५-२००१, " ३८११०.२(३) धन्नाऋषि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनि वीनवु), ३६६६०-२ धन्नाऋषि सज्झाय काकंदी, मा.गु. गा. २०, पद्य, क्षे. (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), ३८७७४, ३४६३३-२(१) 5 " For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणीरे धन्ना), ३७७६३-२, ३८१२० धन्नाकाकंदी सज्झाय, श्राव. संघो, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सरसति सामिणी विनवू), ३४५८२(#) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १६, वि. १९३२, पद्य, स्था., (कनक ने कामनी जुग में), ३८१७४-१(-) धन्नाशालिभद्र गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धन्नौ सालिभद्र बेउ), ३६८९५-३ धन्नाशालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३६५७१(+$) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजिया मुनि० वेभारगिर), ३८१२५ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन धनो सालभद मुन), ३५४२१-२ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, रा., गा. १९, पद्य, श्वे., (धना चौकी पर थयो जी), ३७३४८-२(-) धर्म आराधना सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (धर्म धर्म बहुला कहे), ३८०९२ धर्मकुटुंब व पापकुटुंब सज्झाय, मु. जितविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चोवीश जिन प्रणमी), ३८५०७ धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ३७१२२-२, ३७६५०-४ धर्मजिन स्तवन, पं. आनंदविजय, पुहि., गा. ७, वि. १८४६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनधरम जिनेसर), ३७६२०-१ धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (इक सुणलौ नाथ अरज), ३७०३५-५(+) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (हां रे मारे धरमजिणंद), ३४७३८, ३८३४८-२ धर्मजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धरमजिणेसरने ध्याऊ), ३८६६७ धर्मजिन होरी, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद. ८, पद्य, मूपू., (मधुवन मै धूम मची होर), ३५८०१-२ धर्म पालन के १८ प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (लजा थकी धर्म पाडै), ३८९८९-४ धर्ममहिमा सज्झाय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (समरी निज मनि सारद), ३६७८९-३(+-) धर्म संबंध बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मनो बाप जाणपणो), ३५९०६-२($) नंदणपिया भास, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तेणि कालि तेणि समइ), ३५६७३-२ नंदमणियार सज्झाय, ग. चारुचंद्र, मा.गु., गा. ३८, वि. १५८७, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरण नमेवी), ३५३५३-१ नंदिषेणमुनि चौपाई, मु. दानविनय, मा.गु., गा. ८६, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (जिनेसर पाया समरीय), ३६६९६(5) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजी न जइए रे परघर), ३६३७५, ३४६८४-२(-) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ३८८५४(+), ३५८२७-३, ३८२२१, ३६१६३() नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. शुभरंग, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मुनिवर महिअल विचरे), ३८०१०-४(+) नंदीश्वरद्वीपस्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नंदीसर बावन जिनालये), ३६४४१ नमस्कारचौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मागु., चैत्यव. २४, पद्य, मूपू., (अशरीरी अजर अमर तु), ३७१७३ नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., गा. २५, वि. १६वी, पद्य, श्वे., (पढम जिणवर पढम जिणवर), ३६०१४(+), ३७४३२(5) नमस्कार महामंत्र चौपाई, मु. हीरानंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (चउवीसह जिणवर पाय), ३५८७१-१ नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ३८२७१(+), ३४७७८, ३५३९१, ३६४५०-५, ३८४९२, ३८६५६, ३८९६६-१, ३४९३८(६) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ३८३४७-२(+), ३५८६८-४, ३६५२५-३, ३८३१४-१ नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ३४६१७-१(+), ३५०००-१, ३६२८०, ३८२७९, ३८२९८-१, ३८७७६ नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पहिलो लीजि), ३४६५६ नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सांमिने दो मुझ), ३७५५१-१(६) नमस्कार महामंत्र लावणी, मु. विनोदिलाल, पुहिं., सवै. ७, पद्य, श्वे., (जग मै सजी वचनह पंच), ३५३१४-१ For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ३५४४३-१ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कहेजो चतुर नर एकोण), ३८३६०-२ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बार जपुं अरिहंतना), ३८३५८-३ नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अष्ट लबध नव नीध भंडा), ३७०९९-१(2) नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, स्था., (प्रथम श्रीअरिहंतदेवा), ३६८१९-२(+-), ३९०२४-२(+), ३७७६७-१, ३४८३९-१०), ३८२६७-१(-) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार जपो मनरंग), ३७९६६-३, ३८२९८-२ नमिजिन चैत्यवंदन, मु. रूप, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विजयराज विप्राधणी), ३६८०७-६ नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., ढा.७, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (सासण नायक समरीये), ३८४४१ नयन कवित्त, क. चंद, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., (नयण वयण निर्वहै नयण), ३७९२७-२ नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., ढा. ४, गा. ३१, पद्य, मूपू., (आदिजिणंद जुहारीयइ मन), ३७९९४, ३५५८५-१(5) नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३५, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिन विनवू), ३७३००, ३७९४९ नरनारी सिखामण सज्झाय, मु. उमेदचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सुण सुण कंथारे सीख), ३८४९१-१ नरभवरत्नचिंतामणि सज्झाय, मु. अभयराम, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आ भव रत्नचिंतामणी), ३८३६०-१ नर्मदासुंदरीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २७, वि. १८४१, पद्य, श्वे., (--), ३५८४४-१(+$) नलदमयंतीरास, आ. ऋषिवर्द्धनसूरि, मा.गु., गा. ३३१, ग्रं. ५००, वि. १५१२, पद्य, मूपू., (सयल संघ सुहसंतिकर), ३७८७९() नलदमयंतीरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,खं. ६ ढाल ३९, गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपू., (सीमधरस्वामी प्रमुख), ३८१२७, ३७९९८(६) नलदमयंती सज्झाय, मु.ज्ञान, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सारद चरणे नमी करी), ३४७६९ नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जल भरी संपुट पत्रमा), ३७६८७-१, ३७७११-२(5) नवकारपद लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (तुम जपो मंत्र नवकार), ३६२७१ नवकार रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (वंदवि जिण सिद्ध), ३७६१८($) नवकारवाली सज्झाय, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (करी पडीकमणो प्रेमथी), ३७००४-२ नवकार सज्झाय, आ. हीररत्नसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक जिनवर चौवीस), ३८०६९-१ नवकार सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सकल ऋद्धि दायक नायक), ३५८२९-९(#$) नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव चेतन १ अजीव), ३५२२३-१(+) नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना रागी समकीत), ३८९४३($) नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुन्नं पावा), ३७०९३-१(६) नवतत्व २७६ भेद, रा., गद्य, मूपू., (अजीव तत्त्वरा ४ खंध), ३७५१३-३(+) नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (आसो सुदि सातमी तथा), ३८४७४-४(+) नवपद उलाला, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. २१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तीर्थपति अरिहा नमु), ३५८४३(5) नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमोनंत संत प्रमोद), ३७२७६ नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोयम नाणी हो कहै), ३५३९७-१ नवपद स्तवन, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९५८, पद्य, मूपू., (नरनारी रे भमतां भव), ३८६५४ नवपद स्तवन, मा.गु., स्त. ९, पद्य, मूपू., (अरिहंतपद आराधीयै आणी), ३७०४८(+) नवपद स्तवन, मु. पूनिमचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८९४, पद्य, मूपू., (नवपद भजजीव सिवसुख), ३५५२७-१ नवपद स्तवन, मु. पूनिमचंद, मा.गु., गा. ६, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा जगमै वारू), ३५५२७-३ नवपद स्तवन, मु. पूनिमचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८९५, पद्य, मूपू., (नवपद शुद्ध निरंजन), ३५५२७-४ नवपद स्तवन, मु. पूनिमचंद, मा.गु., गा.७, वि. १८९२, पद्य, मूपू., (सुभ ध्यान धरकै भजौ), ३५५२७-२ For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५५७ नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा.७, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (सहु नरनारी मली आवो), ३८६६५ नवपद स्तवन, ग. हर्षेदु गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १९०१, पद्य, मूपू., (ए दिन सफल भयो मे), ३७१४८-१ नववाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर इम भणे), ३७३४७-१ नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ३७०७४ नागश्री सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. २, गा. ४६, पद्य, मूपू., (धर्मघोष आचार्यना), ३७५७४-१ नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया), ३८९९०-१, ३६७९६-२($) नाडी स्वरोदय विचार*, मा.गु., गद्य, वै., (--), ३४५९१-३ नात रासो, मु. रूपकीर्ति, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति आपो सुमति), ३७५४६ नारीरूप सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चित्रलिखित जे पूतली), ३५९१०-२(4) नारी सज्झाय, पुहि., गा. २३, पद्य, मूपू., (मूरख के भावै नहीं), ३८४७७, ३८५०३-१ निगोद विचार, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (ईद्र पुछे भगवन कहे), ३६४२४ । निमित्तउपादान दोहरा, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा.७, पद्य, दि., (गुरु उपदेस निमित्त), ३५६१९-३ निमित्तकारण उपादानकारणनिर्णय संग्रह, पुहि., गद्य, श्वे., (प्रथम ही कोई पूछता), ३५६१९-२ निरंजध्यान गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (हा हमारे परब्रह्म ज्), ३८७८४-२८(-) निर्मोहीराजा चौपाई, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (सकरेंद्र प्रसंसा), ३८७००-१(-) निह्नव सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, पुहि.,मा.गु., गा.५३, वि. १८३१, पद्य, स्था., (धूरथी उथापी दानदया व), ३७०३२ नेमराजिमती अबोला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (आज साई साई सिउं करुं), ३७५५४-१ नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आया हे सखी कहे), ३६३८२, ३७९३७-१ नेमराजिमती गीत, मु. नेत, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (श्रीनमीसर नवल नरिंदो), ३८२९२-२ नेमराजिमती गीत, मु. परमसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजुल बोलइ हो बेकर), ३७६८१-५(+) नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मोहल चढि माहरा नाथनी), ३४५४०-५ नेमराजिमती गीत, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नेम वंदन राजुल चली), ३६८३६-१ नेमराजिमती गीत, आ. विनयसागरसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि हीयडे), ३८६१० नेमराजिमती गीत, ग. शिवनिधान, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), ३४९५४-१(६) नेमराजिमती गीत, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उन्हालडउ इति आवीउ), ३८३६६-६ नेमराजिमती गीत, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुगुण सलूणु रे नेमजी), ३८३६६-३ नेमराजिमती गीत, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सुणु रस सही ए नही ए), ३८३६६-७ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजलि नेम नइ वीनवइ), ३८३६६-४ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजीमती कहि राजीया), ३८३६६-५ नेमराजिमती ढाल, आ. गुणसागरसूरि, रा., गा. २६, वि. १६१३, पद्य, मूपू., (नेमजी वातामें चल्यो), ३६६१५ नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२८, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं विजया रे), ३५७३४-२($) नेमराजिमती नवभव स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (नेमजी आव्या रे सहसाव), ३८५०४ नेमराजिमती नवरसो, मु.रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), ३६१७०(-$) नेमराजिमती पद, मु. अमर, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेम दुला तेरी वाटडी), ३७८७७-१३ नेमराजिमती पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (मेरी अँखिया शील से), ३७८७७-९ नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (यादव मन मेरो हर लीयो), ३५८०१-६ नेमराजिमती पद, मु. ज्ञानसुंदर, पुहिं., पद. २, पद्य, मूपू., (लाल घोडो लाल पाघ लाल), ३४६७५-६ नेमराजिमती पद, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (उमट आई साहिबाजी वादल), ३५०४७, ३५३५०-२ नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (नहि ज्याने दुगी मे), ३८३४९-१ For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५८ www.kobatirth.org יי मराजिमती पद, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हां रे हुतो भिजु), ३८३५३-८ नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुर्हि, गा. ५, पद्य, भूपू (मत जाओ रे पीया तुम), ३४५८०-३ नेमराजिमती पद, मु. रूप, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नैन रे निहारो पीयां), ३५२६२-२ मराजिमती पद, मु. रूपविजय, मा.गु. गा. २, पद्य, मूपू (तोरणसुं रथ फेर चल्वा), ३५०८९-३ नेमराजिमती पद, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमकुंवर नर आयो में), ३८११८-५(-) 3 "3 राजिमती पद, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (नेमजी थे कांई हठ माड), ३८०९३-१ नेमराजिमती पद, मु. हर्षचंद, मा.गु गा. ५, पद्य, भूपू (राजुल तुं वडभागीन), ३५०६४०५ नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., ( कब कीहूं थाढी लाल), ३७८५७-४(+) नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (चले लाल हो क्युं रथ), ३७८५७-३(+) नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (टुक नजर मैहरदी करणा), ३४८२७-५ नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ५, वि. १८९४, पद्य, मूपू., (नाथ केसे पशुवां को), ३८००२-२ नेमराजिमती पद, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (सहियां दूख दीनों), ३८११८-४(-) मराजिमती पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू. (होजी मे बंदीया नेमजी), ३८५०१-१२ (+) नेमराजिमती फाग, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक सुणले नाथ अरज), ३५८०१-५ राजिमती बारमास सज्झाय, आ. विनयसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (राजुल पीउ सूं वीनवै), ३७६३२-३(+) नेमराजिमती बारमासो, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १२, पद्य, मूपू., (यदुपति जान लेइ आव्या), ३६२९३ नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु गा. १३, पद्य, भूपू (सांवण मासे स्वाम), ३७८८०, ३८५०६-१ . , मूपू कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ नेमराजिमती बारमासो, मु. कान कवि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राणी राजुलनो भरतार), ३४६४४ नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राणी राजुल इण परि), ३७६३२-२ (+) नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु. गा. १४, पद्य, मूपू., (वेसाखे वन मोरिया), २६७३०-२(+) " मराजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, वि. १९११, पद्य, ओ., (राजुल उभी विनवे रे), ३६८७४-१(३) (सावण बर हो सामी मेल), ३४७६४-२ (सावण मासे स्वामि), ३४६३२-२ (विनवे उग्रसेन की), ३५५३६ (६), ३५९९०(४) '. नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू नेमराजिमती बारमासो, मु. रूपविजय, मा.गु. गा. २५, पद्म, नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहिं, गा. २६, पद्य, थे. मराजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु, गा. २८, वि. नेमराजिमती बारमासो, मु. हर्षकीर्ति, पुहिं, गा. २६, पद्य, मृपू नेमराजिमती बारमासो, पुहिं., पद्य, थे. क्या आया याकू का), ३७१६४-२ (४) १७२८, पद्य, भूपू (मागसर मासे मोहिनीयो) ३८२९६ (हो सामी क्युं आये), ३९०३० (+) " " " 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपु. ( सारद पय पणमी करी), ३९००९(5), ३८१२९-१(-) राजिमती लावणी, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (चंदावदनी मुख से), ३८४९८-१ नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (नेमनाथ मेरी अर्ज), ३५७५५-२, ३७१६६-२ नेमराजिमती लावणी, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू (अरी मेरा दुख मत कर), ३४८२९-१/-) " नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीरेवंतगिर ), ३४७७५, ३५३५०-१, ३७४११-३, ३८६८६, ३७१६९-१(#) नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (समरु गणपतिनै सारिद), ३८१४६-१ " राजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा. गा. ३२, पद्य, मूपू मराजिमती संवाद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. २३, वि. नेमराजिमती सज्झाय, उपा. अमरसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, वे., (पंथीडा हरकर कहै रे), ३७७४०-१, ३८२४९-२, ३८६८१-१ नेमराजिमती सज्झाय, अमीकुवर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मृपू., (लावेंरे बालुडा थारो), ३७३४३-१(5) नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८२२, पद्य, श्वे. (राजुल इण परि वीनवै), ३५९०७-३ (हठ करी हरीय मनावीर्य), ३४६६१(+), ३७६८१-३(+) १८१६, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीगिरिनारि), ३५०९५-१ For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५९ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नेम कांइ फिर चाल्या), ३७७४०-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. तुलसीराम, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (प्रथम मनाउं श्रीहु), ३६२३३ नेमराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अवलमोल अमूल झरूखे), ३४५५५ नेमराजिमती सज्झाय, मु. नवलराम, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (नेमजी की जान ववी), ३५११९-२(+-), ३७१२०-१ नेमराजिमती सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पियुजी पियुजी रे), ३७८५६-३, ३८९९४-३, ३५६४३-३($) नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कपूर होवे अति उजलो), ३८३६६-२ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मपू., (नेमकुमर तोरण चढो ए), ३६७३०-१(+) नेमराजिमती सज्झाय, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (नेमजी जावो तो थाने), ३८६८१-२ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू., (राजल निकस भवनम ठाढी), ३७५९०-१ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सुणजोरी वात सहेली), ३७५७८-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनहरख, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (राजल बेठी महिलमें), ३८३०९-१(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अजब झरूंखे उग्रसेन), ३६५१४-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवल गोखने अजब जरोखे), ३७०८८-२, ३८९९४-१ नेमराजिमती स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दीवडा नेम जिणेसरराय), ३८३५५ नेमराजिमती स्तवन, मु. रतनपाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अष्ट भवतर नेह कीओ), ३५८२८-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), ३७०५६-२, ३७४११-४, ३८२३२-१, ३५६४३-१(६) नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वालम वेहेला पधारज्यो), ३६९८५ नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (समरीअसमरस सागर रे), ३४८०९ नेमराजिमती स्तवन, मा.गु., गा. ३६, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (समुद्रविजय के नंद), ३५५३५ नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (--), ३८४१५(5) नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जे जिनमुखकमले विराजे), ३७०००-२, ३८२२०-१ नेमराजिमती स्तवन-लघु, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (काइ हठ मांड्यो छे), ३४५३६ नेमराजिमती होरी, मु. नयसुंदर, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (जादुपती नेम व्याहन), ३४८१९-२ नेमराजिमती होरी, मु. मूलचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (अब कैसे घर रहु एरी), ३५३७२-१ नेमराजिमती होरी, मु. रूप, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (हेरी नैन तेरे मतवारे), ३४५६५-२ नेमसागर गहुंली, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सजनी मोरी पेथापुर), ३६८५५ नेमिजिन गीत, मु. गौतमसोम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), ३४७२८-२ नेमिजिन गीत, मु. दयातिलक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजलि नेमि भणी कहई), ३७६९७-२ नेमिजिन गीत, पं. लब्धि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (राजूल वीट्ठी वागमि), ३८१३०-२(+) नेमिजिन गीत, मु. हंस, मा.गु., कडी. ४, पद्य, म्पू., (चमकती चालती मयणची), ३७६७८-२(+) नेमिजिन चरित्र, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ५२, वि. १८७४, पद्य, स्था., (नगरा सुरीपुर राजायो), ३८९९२, ३५६३७(5) नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (बालब्रह्मचारी नेमजी), ३८६१८-२ नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (राजुलवर श्रीनेमनाथ), ३६८०७-७ नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदूंजगदाधार सार), ३७४२९-१० नेमिजिन तपकल्याणक, मु. सुनंदलाल, मा.गु., ढा. ९, गा. ४२, वि. १७४४, पद्य, श्वे., (अरि गुरु गणधर देव), ३६३१६(+) नेमिजिन धमाल, मु. तुलसी, मा.गु., गा. १४, पद्य, जै.?, (जिणवर चरण प्रथम नमि), ३८७२७-२(#) नेमिजिन धमाल, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. १९, पद्य, म्पू., (सारदमात मया करी गाइस), ३५०३३ For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ नेमिजिन नमस्कार, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेम नमु निसदीस जन्मल), ३६८०७-१ नेमिजिन पद, मु. चेनविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनिय ए मेरो मन लाग्य), ३४७८४-२(२) नेमिजिन पद, मु. धर्मपाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (गरज गरज घन वरसै देखो), ३७८७७-१६ नेमिजिन पद, मु. रतन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (शिखर गिरनार जाना है), ३८५०१-११(+) नेमिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद. ४, पद्य, म्पू., (निपटहि कठिन कठोर री), ३४५४०-४ नेमिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (नेमि निरंजन ध्यावो), ३४८२९-६(-६) नेमिजिन पद, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेम गिरनार गये काई), ३७४२९-१६ नेमिजिन पद, मु. लालचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (अनि एमां देखो नेम), ३४७८४-१(-) नेमिजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कहोगी मै बरजीनां रहु), ३४७८४-६(-), ३८४३६-२(-) नेमिजिन पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (छपन कोडि जादौ मिल्या), ३८४१०-२ नेमिजिन बारमास, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., गा.७७, पद्य, मूपू., (विमल विहंगमवाहिनी), ३५३६०-१(६) नेमिजिन बारमासो, मु. ललितसागर, मा.गु., गा. १५, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (अरज सुणी मोरी साहबा), ३८२५७-२ नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. १६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सखीरी सांभलि हेतूं), ३७६३२-१(+5), ३४७७० नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (आसडह धुरिऊ नयउ घण), ३६०८४, ३७६०४-२($) नेमिजिन बारमासो, पुहि., गा. ६३, पद्य, श्वे., (--), ३८८००(६) नेमिजिन भास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोरइ अंगणि जनयउरे), ३७६९०-२(+) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम तजीय कर राजुल), ३५८१७ नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीनेमि निरंजन बाल), ३७२४८ नेमिजिन लावणी, श्राव. सुजानंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (मनमोहन पाय महाराजा), ३८०१७-१(#) नेमिजिन लेख, मु. जयसोम-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (यदुपति पए नमी गढगिर), ३८५७५ नेमिजिन वसंत, मु. ज्ञानसागर, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (रंग होरी सामरो खेलै), ३४७११-१ नेमिजिन विवाहलो, ग. जयसागर, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (जादवकुल सिरिसितिलउए), ३६४०३(+) नेमिजिन व्याहलो, मु. गुमानचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (छपनकोड जादव मिल आया), ३४७६४-१ नेमिजिन श्लोक, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (--), ३५४४६-१(६) नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५७, पद्य, मूपू., (सिद्धि बुद्धि दाता), ३४९०२-१ नेमिजिन स्तवन, मु. अमरसागर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सहज सलुनो सांमलो रे), ३६६१२-१ नेमिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नंदसलोणा नंदणारे), ३८६४२-१ नेमिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हुंछु रे अबला ताहर), ३८५४८-२ नेमिजिन स्तवन, वा. उदयविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पशु पुकार सुण्या), ३८६१७-३(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गिरवर मह जिम सुरगिरि), ३७६८१-४(+) नेमिजिन स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू., (गायसुं नेमजिणंद), ३६०६९ नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कालीने पीली वादली), ३८६२२-२ नेमिजिन स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (वैरागी रंगीले नेमजी), ३८७५६-३(+) नेमिजिन स्तवन, मु. गजानंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पीया नेम पधारो हो), ३७८१९-१(+-), ३७५६७ नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (समुद्रविजे सुत लाडलो), ३४५१३-१ नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल, रा., गा.७, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (श्रीनेमीसर साहिबा), ३४५१३-२ नेमिजिन स्तवन, मु. जिनकीर्तिसूरि शिष्य, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (वर देहि हे मुझ सासण), ३७७६२ नेमिजिन स्तवन, मु. जिनहरख, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नेमि कांइ घिरि), ३४६७५-५ नेमिजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (पिया नेमि सुणी जद हो), ३७६८१-२(+) For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानअमृत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कोई आन मिलावो श्याम), ३८४३३ नेमिजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (नेमि जिनेसर निज कारज), ३७२०९-२ ご नेमिजिन स्तवन, मु. देवविमल, मा.गु, गा. १६, पद्य, मृपू., (--), ३७५२९-१ (+४) नेमिजिन स्तवन, मु. धनविजय, मा.गु., डा. ४, गा. ५२, पद्य, भूपू (सरसति सामनि पाये नमी), ३५९६१ "" नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), ३४५१८-३, ३८५८३ जिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल गेली करी नेमी), ३८२१६-२ मिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मात सिवादेवी जाया), ३८२५८-३(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आवो आवो हो अलबेल्या), ३८४३०-१ नेमिजिन स्तवन, ग. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रेम थकी ए प्रणामुं), ३७४९९-४ मिजिन स्तवन, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिन नेम निरंजन), ३७४२९-११ नेमिजिन स्तवन, मु. सौभाग्यचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सोरठदेसनी राज अधिक), ३४७११-५ नेमिजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (तारे ने मारे साहिबा), ३५९२०-३(+) नेमिजिन स्तवन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( कहा के सरनमें जाउं), ३४७८४-५(-) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, वे. (छान छान चोथमानह), ३४७०२(-) "" नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( जय जय नेमिजिणंद समुद), ३७४०७-१ (+) (जादवपत नेम प्रभु एक), ३४७६३-२ नेमिजिन स्तवन, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १५. वि. १८५३, पद्य, वे (नेम नगीनो साहेबजी), ३४७६३-१ नेमिजिन स्तवन रा. गा. १५, पद्य, थे. (पहिला देवलोकनो धणी स), ३७५७६ "" नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (समरु श्रीसारददेवी), ३८५८८ नेमिजिन स्तवन, मा.गु. गा. ७, पद्य, भूपू (समुद्रविजय सुत नेम), ३५२९२-३ " नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू (सरसति स्वामिनि पाव), ३६३५० (+) मिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रावण सुदि दिन), ३८७८०-२ नेमिजिन स्तुति, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (नेमीसर वंदु चरणकमल), ३७४२९-१२ (कुगति कुमति छोडी), ३७१६८-२ " जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., नेमिजिन स्तुति, मा.गु, गा. ९, पद्य, म्पू, नेमिजिन स्तुति, मा.गु गा. ४, पद्य, म्पू मिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., श्रीनेमीसर परम दयालु), ३७७९३-२ (सुर असुर वंदित पाय), ३८४६९, ३८४ (--), ३८३५१-१($) ', , मिजिन होरी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पिया मांये क्यूं), ३८०६१-३ मजिन होरी, मु. नयसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जादु पति नेमजिणंद छो), ३४८१९-१ नेमिजिन स्तवन त्रंबावतीमंडन, उपा. गुणकल्लोल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बावती मुखमंडणु), ३५८७२-१ नेमिजिन स्तवन - समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि - शिष्य, मा.गु., कडी. ३६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जायवकुल सिणगार सिरि) ३५००४-१ ३७८१७-१ ३७८८८, ३६६७३(१), ३७३६६-२७) . नेमिजिन होरी, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (एसे स्याम सलुणे), ३४८२९-५ () नेमिजिन होरी, पुहिं., पद्य, श्वे., (नेमजी से होरी मचाइ), ३५३७२-८(S) नेमसागरसूरि सज्झाय, मु. कनकसौभाग्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू (जवहरि साच रे जगमां), ३६३४९-१ " नैगमादिसमनय विवरण, मा.गु., गद्य, म्पू (नगम संग्रह व्यवहार), ३७७७१(३), ३८३२६-४६) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचकल्याणक महोत्सव स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु. दा. ५. श. १६८२, पद्य, मृपू (प्रणमी पासजिनेस), ३५६४९-१ पंचतीर्थजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू., (आदि आदिजिनेसर सुंदर), ३५६४३-५ पंचतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., ( आबु अष्टापद गडनर समत), ३७२०९-३ For Private and Personal Use Only ५६१ Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६२ www.kobatirth.org पंचपरमेष्ठि आरती, पंडित. चमना, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (परम नीरंजन श्रीजिन), ३८५८२ पंचपरमेष्ठि गीत, चरणकुमार, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (परम जगतगुरु ध्याईयइ), ३७७९० पंचपरमेष्ठि गुण, मा.गु., गद्य, म्पू.. (बारगुण अरिहंता सिद्ध), ३७९२०-२ पंचपरमेष्ठिपद गणनं, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३७८०३-४(+) पंचपरमेष्ठि स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे. (पहले पद अरिहंत देव), ३४७१५-२(+) . पंचपरमेष्ठि स्तवन, पुहिं, गा. ५. पद्य, भूपू (त्रिभुवननाथ त्रिगुणा), ३७०९४-२(+) " "" पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहे गौतम सुणो), ३८५४३-२, ३४७६१ (#) पंचमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पुनयी पांचम एम वदे), ३७०८८-५ पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (सुविधिनाथ जिन जनम), ३५२६३-१ , पंचांग विधि, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५८, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (गवरीनंद आनंद करि), ३७७७६ पंचांगुलीदेवी गीत, मु. माणेक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (प्रह उठीने प्रणमी), ३८७७८-३१-०१ पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे. (भगवति भारति पाए नमि), ३५८७९-१, ३७२४०-२ पंचांगुलीदेवी स्तोत्र, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सामी सीमंधर पह नमेवि), ३४८५४ पंचानुष्ठान पंचवीसी, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सिद्धतणी सुख आसिका), ३८४८४-२ पंचोपाक्षान, मा.गु, पद्य, मृपू. (ॐ ह्रीं श्रीमद्), ३६३४२(६) " पक्षी नाम गाथा, मा.गु., गा. २, पद्य, जै., वै.?, (चकवा बुलबुल चकोर चडी), ३८२५५-४(#) पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रह उठीने दस पचखाण), ३५६१८-२ पट्टावली तपागग्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान देव), ३८१२८ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान तीर्थं), ३७४६८ (+$), ३८७७७, ३८२५६(#) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, म्पू, (श्रीवर्द्धमानसामी), ३७५९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ पद संग्रह, मा.गु., पद्य, जै., वै.?, (पदराग भरु बोत दिनांक), ३५६०२-४ (+), ३६७७४-३, ३६७९४-२, ३८४३५-२($) पदसंग्रह, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (सखी आज वदन कमलाय कहो ), ३८०६९-२, ३७८५१-५ (६), ३७४२८-२) पद्मनाभजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (जगचिंतामणी जगगुरु जग), ३७००४-१ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू (श्रीपदमप्रभूराजियो) ३५५६५-४ पद्मप्रभजिन स्तवन, ग. मेघराज, रा., गा. १२, वि. १८२१, पद्य, श्वे. (पदमप्रभु सासनराआ रे), ३६९१२-१ " पद्मप्रभजिन स्तवन, आ. राजेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५. पद्य भूपू (पद्मप्रभुजिन पेखता), ३४६५८-४+४) पद्मप्रभजिन स्तवन- संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे. (धन धन संप्रति साचो), ३५४९६-२, ३८३५०-३, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४८८, ३५४४२-३ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ३५७७५-२(+#), ३६४३०(+), ३७०७६-१(+#), ३७७१९-१(+), ३८५२४ (+), ३६६७२, ३७०४२, ३७७१५, ३७८०७-१, ३७९४४, ३५९३९(#$), ३९०१३(०) ३६०३० יי पद्मावती चौपाई, मा.गु, गा. ८०५, पद्य, क्षे., (चतुर चतुर मुख जगतगुर), ३७२३२(६) पद्मावती ढाल - जीवराशीक्षमापना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ८२, पद्य, मूपू., (हिवे राणी पद्मावति), ३६२१९(+) पद्मावती माता छंद, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्व प्रतिमा), ३७७२२($) (--), ३६१६४(३) (राजा पूछे हे महाराज), ३७१९१(+) " परदेशीराजा सज्झाय, मु. उत्तमविजय, मा.गु, गा. १८, पद्य, भूपू परदेसीराजा केशीकुमार संवाद - जीवचरचा विषे, रा. गद्य, मूपू परनारी परिहार सरझाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (नेह न कीजे रे जीव पर), ३४६८५-३(४) परनारी परिहार सज्झाय, क. दोलतराम, पुहिं, गा. ८, पद्य, वे. (चतुर पर नारी मत निरख), ३७९२०-२ परनिंदात्याग पद, भैया, पुहिं., पद. १, पद्य, वे. (परनिंदा त्याग करि मन). ३५८७५-२ " "" For Private and Personal Use Only , Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६३ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ परमाणुंचरिमाचरिम भांगा यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमाणु माहि चरम अचरम), ३६३३७ परमार्थ अष्टपदी, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसै ज्यौं प्रभु पाईइ), ३७४९१-३(+) परमार्थ वचनिका, पुहि., गद्य, जै.?, (--), ३५६१९-१(६) परमेश्वररूप दुर्लभता गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुण परमेसर सरूप कहै), ३८७८४-२५(-) परिसह सज्झाय-उत्तराध्ययन २, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (उत्तराध्ययनसूत्र माह), ३८५७९-२ पर्युषणपर्व अठाई स्तवन, मु. हेमसौभाग्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (प्रणमुपास जिणंदा), ३५२६४ पर्युषणपर्वकल्प भास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (गिरिवर माहे मेरु वड), ३६२६२ पर्युषणपर्व गहुंली, मु. हितविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सखि परव पजुसण आविया), ३८४४२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नव चोमासी तप कर्या), ३६०३९-९(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वडाकल्प पूर्व दिने), ३६०३९-८(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परवराज संवत्सरी दिन), ३६०३९-७(+), ३५६७०-४, ३७८५५-५ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ३६०३९-३(+), ३७८५५-१(5) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिननी बहिन सुदर्शना), ३६०३९-५(+), ३५६७०-२, ३७८५५-३ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर नेमनाथ), ३६०३९-६(+), ३५६७०-३, ३७८५५-४ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीदेवाधिदेव), ३६०३९-२(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय शृंगार), ३६०३९-१(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुपन विधि कहे सुत), ३६०३९-४(+), ३५६७०-१, ३७८५५-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर्व पर्युषण गुणनीलो), ३६०३९-१०(+), ३४८१७-२, ३८९२९, ३९०३३ पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडणो), ३८१६२-१ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. फतेसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमांसार), ३८४६३, ३८९२८ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुषण आवीयारे), ३७११३-१ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (संवछरी दिन सांभलो ए), ३८९८८-१ पर्युषणपर्व स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुणजो साजन संत पजुसण), ३८४६२) पर्युषणपर्व स्तुति, मु.खीमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुन्यनु पोषण पापर्नु), ३७०१९-३ पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुण्यनुं पोषण पापर्नु), ३८८११ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ३८६७५(+), ३८८१० पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अतिअलवेसर), ३८२२७ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. भावरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिन आगम चौ परवी गाई), ३८५३६-१ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ३५९०६-४, ३७२८१-३(5) पांडव चरित्र रास, आ. ईश्वरसूरि, मा.गु., गा. ८२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (कासमीर मुखमंडण माडी), ३६०४३(5) पाटणसूर्यवंशीराजा पाटपरपंरा संख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ सूर्यवंशीराजा), ३५९६०-१ पानी उपयोग की विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमइ पढइ), ३८६५०-४ पापस्थानक सज्झाय-अष्टम, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पापथानक आठमुकहिउ), ३७३६६-१ पार्श्वकुमार विवाहलो, पं. देवकुशल, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (पासकुमर मैहमानिलो), ३८६३६-२ पार्श्वजिन आरती, य. अगरचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (आरती करत श्रीपासजिणं), ३७१३२-१ पार्श्वजिन आरती-पुरुषादानीय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, मूपू., (परम पुरुष प्रभु), ३७६६६-३(+) पार्श्वजिन कुंडलीया, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (दरसन पारसनाथ का करतन), ३८३२२(-) पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे एही जचाहीइं), ३४४७५-३ For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ पार्श्वजिन गीत, मु. दयातिलक, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (नित सेवौ पारसनाथजी), ३७६९७-३ पार्श्वजिन गीत, मु. भीमा, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (नैननसु प्रभु दरसन), ३४७८४-३(-) पार्श्वजिन गीत-चिंतामणि सादडीपुरमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चिंतामणि पास चिंता), ३५२६२-३ पार्श्वजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ दीधा), ३७८४७(s) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदु पासजिणंद कमठ), ३६८०७-२ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय श्रीपार्श्वनाथ), ३६८०७-८ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, क. हेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जगततारण दुखवारण), ३७२०६ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-विविधतीर्थमंडन, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सकलतीर्थाधिराज), ३७२९५-३ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सकल भविजन चमत्कारी), ३८७५१-९(-) पार्श्वजिन चौढालियो-गोडीजी, मु. लावण्यचंद्र, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (पासजिणंद प्रसिद्ध), ३८२६० पार्श्वजिन छंद, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (वामामात उयर जगवंदन), ३४९१९-१ पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (सरसत मात मना करी), ३६४२०(+), ३८५६१(+), ३६२८६, ३८२८४, ३५४१३(६), ३५४४४($) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा.५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति), ३५८६८-१, ३७९६८-२($) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (धवल धिंगगोडी धणी), ३८६३६-१ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (थलपति थल देशे वसीयो), ३८०४६ (#S) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), ३५८८१-१(+#), ३८०९९-१(+#), ३६२८२ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कुसलचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, पू., (श्रीगोडीचा जगतगुरु), ३५८६८-३ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपो शारदा मया), ३९०१०(+#$), ३४७८५, ३६५६७ पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, श्राव. चेतन, मा.गु., ढा. २, गा. २६, वि. १८३७, पद्य, मूपू., (कल्पवेल चिंतामणि), ३८६११ पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), ३५१७३-४, ३७०५२-३, ३८७७३-१, ३८९१३, ३७०९९-४(#), ३४६८४-१-), ३८३९८-२(-) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पास शंखेश्वरा सार), ३८९७९-२(+), ३८६७०-३ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. कनकरत्न, मा.गु., गा. २५, वि. १७११, पद्य, मूपू., (सरसति सार सदा बुध), ३७५३२(5) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरस वदन सुखकारसारं), ३८९७९-१(+), ३५८६०-१ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ३४८५५, ३५१७३-३, ३६५२०-३, ३७८९५-२, ३६९८३-३(#) पार्श्वजिन ढालिया-गोडीजी, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (सानिध्यकारी भारती पद), ३७७११-३($) पार्श्वजिन देशांतरी छंद, क. राज, मा.गु., गा. ४७, पद्य, श्वे., (प्रवचन आपो शारदा), ३७६६३-३($) पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ३५८८१-२(+#), ३७६४५(+), ३८५२१(+), ३५६०७-१, ३८३०२, ३८३१६, ३८६२४-१, ३९०२१, ३५४१८(६), ३८७९४(5) पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), प्रतहीन. (२) पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा ढाल, हिस्सा, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (रमति गमती हसुनें), ३८७१८-१ पार्श्वजिन पद, मु. अक्षय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जगचिंतामणि तुं सही), ३४५४०-२ पार्श्वजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चाल चाल चाल रे कुअर), ३८६४६-८ पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तूं मेरै मन में तूं), ३७८७७-१८ पार्श्वजिन पद, मु. कुशल, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मो सुभ परीरी पल छिन), ३७३४७-३ For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ पार्श्वजिन पद, मु. जसराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे. (जागो मेरें लाल विसाल), ३५०६४-१ पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, पुहिं, गा. ४, पद्य, क्षे.. (सुण अरवास सुगुण), ३८२१४ पार्श्वजिन पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (दरवाजे तेरे खोल), ३७८७७-१५ पार्श्वजनपद, मु. बुधर, मा.गु., पद. ४, पद्य, वे., (निरखी मुरत पारस की), ३५३५०-३ पार्श्वजिन पद, मु. मूलचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, वे., (पूजो क्युनी पास प्रभ), ३४८२७-१ पार्श्वजिन पद, मु. राज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मान भायौरी मान भायौ), ३८२३२-२ पार्श्वजिन पद, मु. सुखानंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्यारे पासजी तुम लीज), ३८४२४-८ पार्श्वजिन पद, मु. हरखचंद, पुडिं, गा. ३, पद्य, म्पू (श्रीजिनपास दयाल लगा), ३४६६८-२ पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी जिण नमु), ३६९८३-२(#) पार्श्वजिन पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, भूपू (चालो देखो री मधुवन), ३४६६८-५ पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे. (तिहारी साची सुधारस), ३५०६४-२ पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (महाराजा प्रभुजी हो द), ३८४२४-७ पार्श्वजिन पद - अवंतीमंडन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंथीडा पंथ चलेगो), ३४७१९-२ " पार्श्वजिन पद गोडीजी आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु गा. ४, पद्य, भूपू ले लागी ले लागी रे ), ३८६४६-५ पार्श्वजिन पद चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), ३७८९७-२(४) " (मकसी पास जाइ भेटी कर), ३७४२९-१७ (कल्याण वामा को नंदन), ३४६७२-५ (अजब जोत मेरे प्रभु, ३७८५०-५ (+४) भूपू " पार्श्वजिन पद सकसी, मु. लाभविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू पार्श्वजिन पद -मक्षीजी, मु. सोमकुशल, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू पार्श्वजिन पद- शंखेश्वरतीर्थ, मु. वीरविजय, पुडिं, गा. ३, पद्य, पार्श्वजिन लघुस्तवन -कापरहेडामंडन, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा. ५, पार्श्वजिन लघुस्तवन - गोडीजी, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गौडेचा साहिब लागै), ३७९३३-३ पार्श्वजिन लघुस्तवन -भीडभंजन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (जी मनमोहन मूरति), ३७९३३-१ पार्श्वजिन लावणी, मु. शिवचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुनीयो रे सुनीयो), ३५९१५-१ पद्य, मूपू., (पूजौ हे सहियां जिनवर), ३७९३३-४ पार्श्वजिन लावणी, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे. (आगड दौ आगड दौ वाजै), ३५९०७-१ " पार्श्वजिन लावणी कल्याण, मु. गुलाबचंद, पुहिं. गा. १७, पद्य, भूपू (अगडदुं अगडदु बाजे), ३४६२१. " पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा. गा. ५६. वि. १८५१, पद्य, थे.. (प्रणमुं परमातम अविचल ), ३६६५५ . पार्श्वजिन सलोको, मा.गु, पथ, भूपू (सरसती सामण तुझ पाय). ३८१६१(१) " पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (घोर घटा करी आयो री), ३८००२-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. आशकरण, रा. गा. १६. वि. १८३९, पद्य, भूपू (नगर वेणारसी ते), ३४७२३-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), ३७८७७-१ ($) पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जिनवर निझरणां वहि), ३६५४९-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु गा. ९, पद्य, भूपू (सुण सखि रे मुझ वाल), ३८४३१ " " पार्श्वजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ३८५४८-१(S) पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वादल दहदीस उनह्या), ३७६६८ " पार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनजी पुरूषोत्तम), ३४६७५-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलविजय, मा.गु गा. ८, पद्य, भूपू (सारद सार सुमति), ३७८७५-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गुरु प्रणमी पाया गाउ), ३५६७६-१ पार्श्वजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (वंछित पूरण पास नंदन), ३५८४९-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (प्रह समि ऊठी भाव धरे), ३७९३३-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (सुणि साहिब प्रभु), ३५७७३-४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ५६५ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरमल होय भजले प्रभु), ३४६६८-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगुण नर श्रीजिनगुण), ३७०३५-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (पासजिणेसर पूरण आसा), ३५७०१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., गा. १०, पद्य, स्था., (प्रणमीए सरसती मायेने), ३५९२०-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गौतमदास, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (पास जिनंदनी मुखकी), ३७५६४-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. चारित्रसिंघ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (परमप्रमोद सुखाकरु), ३५६३९-७(5) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (जय बोलो पास जिनेसर), ३५८०१-७, ३४८२९-३(-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तेवीसमो जिन सेविये), ३८४५३ पार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (--), ३५६६६-२ पार्श्वजिन स्तवन, पं. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आज मारा पास प्रभुजी), ३४८४३-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुरत मुरत मोहनगारि), ३८५६६-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जीत, मा.गु., गा.४, पद्य, श्वे., (गर्जत घन वरसत मेह अङ), ३८३८८-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ३८२७२-१(६) पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सहज गुण आगरो स्वामि), ३८४९५-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पास संखेसरो भेटीइ रे), ३७५२९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मषी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (काशी देश वाणारसी), ३५५५१-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. माणेकविजय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आवो आवो पार्श्वजी), ३५११९-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपासजी प्रगट), ३८५०१-१३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मूलचंद, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (लागै छै मानुपास), ३८२४७-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी जगतजनेता), ३८११८-७-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रतनसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (कांमणगारापासजि ते), ३८३०१-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (श्रीजिनवर पासजिणिंद), ३६७७७-५(+) पार्श्वजिन स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (आखंदा मै हुं तइंडी), ३८२९७-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दोस्ती जुडी वे तुं), ३८२९७-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सकल मंगल कर दुरित), ३८९८६-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लाभविजय, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवग की वीनती चित), ३७४२९-७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. विजयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरती श्रीपास), ३६४४४(८) पार्श्वजिन स्तवन, पा. सदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोरा पासजिनराय सूरत), ३४६३४-३(+) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (पुरसादाणी परगडउ जेसल), ३७८७२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुखदेव, मा.गु., गा. ७, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (श्रीजिननायक तु), ३५७५७-१ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुझ दरसण उतकंठा घणी), ३७६७९-४ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. सुमतिहस, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पूजियइ रे), ३७६७९-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरमल होय भज ले), ३५८३६-३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हस्तिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर साहिबा तमे), ३८५५९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आज भलइ दिन उगियो), ३४५१८-१ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (गुणगणरयणतणो भंडार), ३८५९४-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (गोतम महो पाया परणमे), ३५५५८-१ पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (धर ले तु दल में दास), ३६६६१-३ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रगट्या प्रमेसर पास), ३८१२९-२(-$) For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., गा. ३१, पद्य, मूपू., (प्रभु श्रीपासकुमार), ३७०३४ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुरनर सेवत लीलविलास), ३४५४७-४ पार्श्वजिन स्तवन-१० भवगर्भित, मु. साधुहंस, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (पाय पणमीय सरसतिदेवि), ३६७८७-१ पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीसारद हो पाय), ३५७३२-१ पार्श्वजिन स्तवन-१२ पार्षदा सहित, मु. हापराज, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू., (जयनिरुपमगुणि निकलंक), ३८३२७ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (पूर मनोरथ पासजिणेसर), ३६४४७, ३८४७९, ३८५५६-१ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रणमुंपारसनाथ प्रह), ३५९५८(+) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पाहिला पासो वावो), ३५७१०-१ (२) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दीठा पार्श्वनाथ), ३५७१०-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), ३७८६२-१(३), ३४७४२(६), ३६९२३(६) पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा साणंदनगरमंडन, उपा. रामविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चउदराजना सहेरमा रि), ३८३७५-२ पार्श्वजिन स्तवन-अवंतिमंडन, मु. लाभविजय, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रभु तेरी भक्ति सदा), ३७४२९-२ पार्श्वजिन स्तवन करेडामंडण, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (महीमंडण सूण श्रवण), ३७०९९-६(#) पार्श्वजिन स्तवन करैडा, मु. विद्याकुशल, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आज श्रीजिनराज वंदे), ३४८४३-२ पार्श्वजिन स्तवन-कापडहेडा, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (कापडहेडा सैधणी रे), ३७७८६-३ पार्श्वजिन स्तवन-गंभीरा, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आव्यो सरणे तुमारे जी), ३४५०९ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पासजी तोरा रे पलक न), ३८४०१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ पूजा), ३७०९९-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ऋद्धिहर्ष कवि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (जस नामे नवनिधऋद्धि), ३६४७९ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कर्मसिह, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (दीजे दीजे रे गोडीचा), ३८२४२-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कर्मसिह, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (प्यारो लागइ मोंने), ३८२४२-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीथलपति थलदेशे), ३७६६३-१(६) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (कुशल करण त्रिभुवननो), ३८२३५-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. गौतमविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगोडी जिनराया हु), ३७८५०-१(+-) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (सुजस तुमारो हो श्रवण), ३८१३३-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति यति, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (श्रीगोडी प्रभु पास), ३८४९०-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हेसर मुझ विनती), ३७८७५-१, ३८३०१-१, ३८३१४-२, ३८२५८-१(4) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (रुडीने रढीयारी रे आज), ३६९१३-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (ॐकाररूप परमेश्वरा), ३८०४३-२, ३८७४४-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दान, मा.गु., पद्य, मूपू., (धन धन रे म्हारा), ३४५८९-४(६) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. दाम, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (गोडीमंडणगुणनिलु ए), ३४६८८-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (लाखीणो सोहावें जिनजी), ३४८०६-२, ३५७४८-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १३७, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (प्रणमुनित परमेश्वर), ३५२८८(+$) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गाजे गौडी राजीयो), ३७७९६-३(+), ३७९८४ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, वा. महिमासुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गौडी प्रभु जिनवर सेव), ३४६३४-४(+) । पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मान, मा.गु., गा. १५, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (प्रभु श्रीगोडीपासजी), ३४६३४-१(+) For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, भूपू (मुजरो मानीने लेजो हो), ३४७१३-३ पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, मु. रविविजय, रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (कोसी बिनय री वाय), ३८०४३-३ पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पारकर देशमां परगडो), ३५०५६-१ पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी मु. लाभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (श्रीगोडिप्रभु पास), ३७४२९-१५ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., ( वदन अनोपम चंदलो गोडि), ३८३२१-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (सारद नाम सुहामणुं), ३६५२३-१(+) पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धवल धींगडमल तुं धणी), ३५०९५-२ पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूपू., ( अमल कमल जिम धवल), ३७४८८-२ (#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू (गौडी गाजइ रे गिरुड), ३४९५४-६ पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, ग. सिद्धविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( आज सफल दिन एहजी गौडी), ३४६३४-२(+) पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. हेमविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १८५०, पद्य, मूपू., (वामानंदन वंदीये रे), ३६२२६ पार्श्वजिन स्तवन - चिंतामणि, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू (चिंतामणि प्रभु, ३८५७८-६ पार्श्वजिन स्तवन - चिंतामणि, मु. कनकमूर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक अरज अवधारीयै रे), ३८९०५-३ पार्श्वजिन स्तवन -चिंतामणि, मु. कुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचिंतामणी पास पास), ३९०३५-२ पार्श्वजिन स्तवन - चिंतामणि, मु. मोहन, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (आसापूरण चिंताचूरण), ३४५७५-५ (+) पार्श्वजिन स्तवन -चिंतामणि, मु. राजसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अनोपम मूरिति जिन तणी), ३५८४६-२ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७. वि. १७वी, पद्य, भूपू (आणी मनसुध आसता देव), ', Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५३०२-३(+), ३४७५३-२, ३८३५०-१, ३७०९९-३(०), ३४८०६-३ (६) 11 " पार्श्वजिन स्तवन- जिनप्रतिमास्थापनगर्भित उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु गा. ७, पद्य, म्पू (जिनप्रतिमा हो जिन), ३४८७९-४३) पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, भूपू (जीराउलि मंडण श्रीपास), ३६५८७३) पार्श्वजिन स्तवन भारंगामंडन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू, (विषय त्रेवीस नीवारी), ३६५१४-१ पार्श्वजिन स्तवन -पंचकल्याणक, मु. विवेकविजय, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (परमजोत परमातमा परम ), ३९०४६ (६) पार्श्वजिन स्तवन -पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (इंदु किरण सम तुम्ह), ३५०१८-२ पार्श्वजिन स्तवन -पलाणागोडीजी, मा.गु., गा. ८, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (श्रीपासजिणेसर साहिबो), ३८३०१-३ पार्श्वजिन स्तवन प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( उठो रे मारा आतमराम), ३४६७२-१ पार्श्वजिन स्तवन - फलवर्द्धि, ग. उदयविजय वाचक, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रुत अमरी समरी हो), ३७७२०-१ पार्श्वजिन स्तवन - फलवर्द्धि, मु. गोपालसागर, मा.गु, गा. १२, वि. १९९७, पद्य, भूपू (वारी जाउ फलोधी पारस), ३४५४५ पार्श्वजिन स्तवन - फलवर्द्धि, मु. माणिक्य, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (फलवर्द्धिपास जुहारीय), ३४८०६-१ , पार्श्वजिन स्तवन फलवर्द्धि, मु. वीरम, रा. गा. ११. वि. १७२३, पद्य, मृपू (अरे लाल फलवर्द्धि), ३७८४५(१) पार्श्वजिन स्तवन - फलवर्द्धितीर्थ, मु. अभयसोम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति माता सेवकां), ३७६६३-२ पार्श्वजिन स्तवन - फलवर्द्धितीर्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( वंचित फलदायक स्वामी), ३४६७२-३ (३) पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जाय छे जाय छे जाय छे), ३७१०६-१ पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्या माटे साहिब सामु), ३७०५२-२ पार्श्वजिन स्तवन -भीनमाल, मु. जीतसागर, मा.गु., गा. ११, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रीमाल सुहंकरु), ३४५९२-१(+) पार्श्वजिन स्तवन -भीनमाल, मु. मेरो, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सामिण विनमुं), ३८६७१-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन -मक्षी, मु. विवेकविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (माहरो सफल हुआ अवतार), ३४८३१-२ पार्श्वजिन स्तवन मनमोहन, मु. तेजहर्ष, मा.गु गा. १२, पद्य, भूपू (श्रीवामासुत पास देवी), ३८९८७-१ पार्श्वजिन स्तवन- मनमोहन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (चिदानंदघन परमनिरंजन), ३६२९० पार्श्वजिन स्तवन - मोरिला, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू.. (सुजस तुहारी सांभली), ३५६६०-१ " For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ___५६९ पार्श्वजिन स्तवन-राणपूर, मु. गोविंद, मागु., गा. २०, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (श्रीसारदा हो देवी), ३६९५६, ३७५५९-३(-) पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. यशोवर्द्धन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (हुं बलिहारी थारी वार), ३५४४२-१ पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. वसतो, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (त्रिभुवन साहिब सांभल), ३४६७२-२ पार्श्वजिन स्तवन-लोढणपुर, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीलोढणप्रभूपासजी), ३८९९४-२ पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, मु. पुन्यकलस, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (सोहइ सहसफणा सोहामणा), ३७५९७ पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (आज फली रेजिनराज निज), ३७७६१-२ पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. २२, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (सहसफणा चिंतामणि पासा), ३७६१४(+) पार्श्वजिन स्तवन-चरकाणा, मु. जिण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वरकाणै वरमंडण पास), ३७०९९-५(#) पार्श्वजिन स्तवन-चरकाणा, मु. नित्यप्रकाश, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सारद हो पाय प्रणमवी), ३८६३९ पार्श्वजिन स्तवन-चरकाणा, मु. सुजस, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (वरदायनी विमल ब्रह्मा), ३८५४१ पार्श्वजिन स्तवन-चरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काइ रे जीव तुं मन), ३४६४७-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आप अरुपी होय नय प्रभ), ३४६७६-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा.१०, वि. १७८०, पद्य, मूपू., (पासजी तोरा पाय पलक), ३८७५७-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल मंगल तणी कल्प), ३६९९८-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मुझ मनिमंदिरमा रमो), ३७८७५-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सकल मंगल सदा अतुल), ३८१३८-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, जगरुप, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (वामासुत म्हानै लागै), ३८६२५(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), ३७४२९-१४, ३८५६९ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. जिनरत्नशिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तुही स्वामी तुही), ३८३७४-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. प्रमोदसागर, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (रहेने रहेने रहेने), ३७०६३-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. माणिक्य, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीत बनी तो नीभाय), ३८५१३-२(+$), ३५७५५-३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. लाभविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु तेरे दरसण कौ), ३७४२९-३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर मंडनहीर), ३४९५४-५ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मा.गु., पद्य, मूपू., (संखेसर संखपूरीयो), ३५०३४-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (लगी लगी आंखीआने रही), ३७३६९-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ३७४२९-८ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. नित्यविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ध्यान धरी प्रभु), ३८०३२, ३८९१८ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रहिने रहिने रहिने), ३४६९२-३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर पासजी तुझ), ३८३२९ पार्श्वजिन स्तवन-श्रीवाडी, मु. हेम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीवाडीपास जुहारिये), ३४७६७ पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन सेहरोजग), ३४६७४, ३७०७८ पार्श्वजिन स्तवन-सातवार, मु. जिनरत्नशिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आवो ने अमघेर आज), ३८३७४-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-सुखसागर, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखसागरनुं लेता नाम), ३८२६५-१ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, म्पू., (प्रभु प्रणमुरे पास), ३६९९९(+), ३८३५९, ३७१७५(६) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपुर श्रीपास जिणं), ३८२८८, ३८६७०-२, ३८९६५-२ पार्श्वजिन स्तुति, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिरिपास जिनवर सकल), ३८६४९ पार्श्वजिन स्तुति, मु. विजय, गु., गा. १, पद्य, मूपू., (श्रीचिंतामणी कीजे), ३७१०५-२ For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७० www.kobatirth.org पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जलण जल वियोगा नाम), ३७१६८-३, ३८३५१-२ पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे. (सकल करम खल दलन कमठ). ३८३८१-१(७) पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. भागविजय, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू., (परम प्रभु परमेश्वर), ३४८१३-१ (अचिंत चिंतामनि पारस), ३६९६६-१ 19 पार्श्वजिन स्तुति - चिंतामणी, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे पार्श्वजिन स्तुति - जीरावला, मु. वीरमुनि, मा.गु. गा. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, ४, पद्य, म्पू., ( पास जीरावलो पुजी), ३६८४८-२ मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय पास देवा करुं), ३८९६३-२ पार्श्वजिन स्तुति सहस्रफणा, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू (सहस्रफणा प्रभुपासजी), ३८५०१-१४(०) . " पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला, मा.गु, गा. ९, पद्य, भूपू (जीरावला देवजी करी), ३६४२३ पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसकल सार सुरतरु), ३६९४८-३, ३७८०६-१ पार्श्वजिन स्थविर सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु गा. ९, पद्य, भूपू पार्श्वजिन हमची गोडीजी, मु. लब्धिसागर, मा.गु, गा. १५, पद्य, भूपू (पाटणथी पाराकर आव्या). ३७५५९-२८१ (श्रीजिनशासनमा कहिउं), ३५७८३-२ , ! पार्श्वजिन होरी, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरे पास प्रभुजी के), ३८०६१-१ पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ३८९८५-४ पार्श्वजिन होरी, हिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (रंग मच्यो जिनद्वार), ३४८२९-२ (-) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ पार्श्वनाथ अमृतध्वनि, मु. जसराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (चित्त धरि गुन ॐकारके), ३८३८८-३ पासत्था के प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवे वखाणे कल्प वाचइ), ३४८१६-२ पुंडरीकपूजा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपुंडरीक शत्रुंजय), ३७४६१-२ पुंडरीकस्वामी स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (जय जयउ सिरिगणहर) ३५५४४-३ पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (पुण्यतणां फल परतखि), ३६५५६-२, ३७६६७-१, ३६३६४१६) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), ३६७२१, ३६८४६, ३७००९ (5) पौषय के १८ दोष, पुहि, मा.गु., गद्य, मूपू., (विना पुछ्या आग्या), ३४६२३-३(-) पौषधविधि सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (चउवीस्ये जिन कीजइ), ३४९४९ (३) पुण्यफल सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (दया निरसींगो बाजीयो), ३७१३४ पुण्याकयनरेश रास, मु. अमर, मा.गु., डा. ५, पद्य, मूपू (वंदिय वासुपूज्य जिन), ३६०७७(+३) पुलपरावर्त भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., औदारिक वैक्रिय तेजस), ३६९२८-२ पुरुष के १६ श्रृंगार, मा.गु., अंक. १६, गद्य, (१ खिजमत २ सनान), ३५०३६-४ पूंखणा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पवित्र स्त्री नाही), ३८७७२-२ पूर्व परिमाण विचार, गु, गद्य, मृपू. (दस वारना सो भेगा), ३७००३-२ पृथ्वीका के २७ भेद, मा.गु., गद्य, श्वे. (स्फटिकरत्न १ मणिरत्न), ३८८२१, ३८९०३ पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, पंडित. जीवविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ६८, पद्य, मूपू., (शासननायक सुखकरु वंदी), ३७२००, ३७२११ पोषदशमी कथा, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रणम्य पार्श्वनाथ), ३८७७०-२(+) पौषव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पहिलु समरण आणीयइ), ३५८७८-२ पौषधव्रत सज्झाय, मु. रतनविजय, मा.गु गा. ५. पद्य, मूपू., ( आगलें दार्डे तेवड), ३८८१९(-) " . पौषव्रत सज्झाय, मु. विनयचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे. (व्रत इग्यारमो आदरो), ३८१०९-२(+) ! For Private and Personal Use Only प्रतिक्रमण सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (समकितवंत सदा), ३७६७५-२ प्रतिमास्थापन स्तवन, श्राव वधो साह, मा.गु गा. ४०, वि. १७२४, पद्य, भूपू (श्रीश्रुतदेव तणें), ३८००७, ३५२५७(5) , प्रतिष्ठा उपकरण सूचि, मा.गु., गद्य, मूपू., (छावडीलघु ३२ जवाराने), ३६६५७ Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ प्रत्याख्यान ४९ भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनई न करूं वचने न), ३७८९९-१, ३७४५२-५ (S) प्रत्याख्यान फल, मा.गु., गद्य, श्वे., (नउकारसीइ वर्ष शत), ३५३४९-३ प्रत्याख्यानफल सज्झाय- शत्रुंजयतीर्थे, मु. प्रीति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पचखि पचक्खाण परभाति), ३६५०१-२ (+) प्रदक्षिणा दूहा, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (अनंत चऊवीसी जिन नमुं), ३५२५०-४(+$) प्रदेशीराजा रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (-), ३६३२७/३) יי प्रभंजनासती सज्झाथ, ग. देवचंद्र, मा.गु., डा. ३, गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, भूपू. (गिरि वैतायने उपरे), ३७९०१(+४) . प्रभावतीराणी मोसालु, पं. दीपविजय, मा.गु गा. १४. वि. १८९५, पद्य, मूपू (कुसस्थलपुर नरवरम), ३६४२९(*) प्रमाद सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (सुण रे प्राणी तु), ३५६०५-३($) प्रश्न संग्रह, मा.गु प्रश्न. ३८, ग्रं. ३८, गद्य, मूपू (वासीस समदायमायसुं) ३७०७७ प्रश्नोत्तरमाला, मा.गु., गद्य थे. (पैले प्रश्न उत्तर) ३८६४४ " प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., प्रश्न. २१, गद्य, मूपू., (नवकारमांहि पहिलापदना), ३८९८४-२ (६) प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., प्रश्न. १३, गद्य, श्वे., (प्रथम प्रसन तीर्थंकर), ३६६४७ (-) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. ५, पद्य, भूपू (मारगमां मुनिवर मल्यों), ३८२५९-१ " प्रसन्नचंद्रराजा रास, मा.गु., पद्य, मूपू., ( पोतनपुर वर ते नगर), ३६०२१($) प्रस्ताविक सवैया, पुहिं. पद. १, पद्य, जे.? (भेस को चरेहवा कही), ३५७४२-३ प्रहेलिका पद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (वनमे तो जाई राज वस्त), ३५७४८-३ प्रहेलिका पद आवक, रा., गा. ६, पद्य, वे., (जाजमरी नहि जुंगत), ३५८०८-२ प्रहेलिका संग्रह, रा. गा. ८, पद्य, थे., (देख्या रे बेला बीन), ३४७४३-१ " प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (मुनीवर बाणी बागरी), ३४७४३-२ प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., गा. ८, पद्य, जै. ?, (सरोवर पाय पखारति), ३५०४६-२ , प्रहेलिका हरियाली, मु. कांतिविजय, मा.गु, गा. ६, पद्य, भूपू. (एक नारी बहु पुरुष), ३७३४४-२ प्रहेलिका हरियाली, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू.. (पुहवी भल जेहनउ निज), ३७६७९-२ प्रात:मंगल पद, मु. पद्म, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रणमी ते निज गुरु), ३४५६० प्रायश्चित विधि यंत्र, मा.गु., को., श्वे. (--), ३५१२९-२ प्रायश्चित्तप्रदान बोल संग्रह, मा.गु, गद्य, भूपू (ज्ञान आसातनाई जपन्य), ३५७७४-२ " प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ७, पद्य, वै., (एक गोरी दुजी सांमलि), ३७४९९-२ प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु. रा., गा. २५, पद्य, वै., (बुरी प्रती भमर की), ३६३५१-२(+), ३६५४३-२(+#) प्रास्ताविक पद, तानसेन, पुहिं., गा. २, पद्य, (अला कोउ खूबसूरति), ३७८५७-६(+) प्रास्ताविक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, (सगहुसेनी सजन न देख), ३७८५७-५ (+) प्रास्तावित कवित्त, मा.गु., गा. १, पद्य, (आज हींग आण तेल आण), ३७८१७-२ प्रास्तावित पद, तानसेन, पुहिं., गा. ५, पद्य, (मंडीरी घटा घरररररर), ३५६६०-३ प्रीतम पद, मा.गु., पद्य, श्वे. (सखी आज वदन कमलाय कहो), ३५९२०-५ (+$) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फकिरचंद जीवन चरित्र, मु. उत्तम, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (जंबुदीपना भरतमे किसन), ३४७३६ फूलडा सज्झाय, पुहिं., रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (बाई रे कोतिग दीठ), ३५९१८ (२) फूलडा सज्झायटीका, सं., गद्य, भूपू (श्रीवीर निर्वाणात्) ३५९९८ " बनारसी विलास, जै.क. बनारसीदास, हिं. गद्य, दि., (--), प्रतहीन. (२) बनारसीविलास विषयसूचनिका, संबद्ध, जै. क. बनारसीदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, दि., ( प्रथम सहस्रनाम सिंदू), ३५६०४-१ बलदेवनामादि १७ द्वार वर्णन, मा.गु., को. मृपू., (अचल पोतनपुर), ३५७७२-१ " बलभद्रमुनि सज्झाव, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (द्वारिका हुंती निकल), ३८०३३ For Private and Personal Use Only ५७१ Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (मासखमणने पारणे तपसी), ३७६२८-१ बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. जयसुंदर, मा.गु., ढा. ४, गा. १४, पद्य, मूपू., (करजोडिरे सारददेवी), ३७०२७ बलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. सकलचंदजी , मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (राम भणइं हरि उठीई), ३८०६०(६) बलभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, म्पू., (अनंत अरिहंत सहु सिद), ३६५७४(5) बलभद्रमुनि सज्झाय, रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (स्नेहसुजन मनावणां), ३४४६१-२(+), ३६४२२ बलिबाकुला के सातधान विधि सहित, मा.गु., गद्य, श्वे., (मूंगका१ उडदर चीणां३), ३५६९३-२ बाराक्षरी लावणी, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (ताल मृदंग रंग चंग), ३८१२२-३ बालमरण के १२ भेद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (विरत पचखाण विण किया), ३८५६४-१(+) बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (परणे रे बाहू रंग), ३५६४३-२ बाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरज सुणो रुडा राजिआ), ३८२५८-२(#) बाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साहिब बाहु जिणेसर), ३७८३६-३(+) बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, म्पू., (बीज कहे भव्य जीवने), ३४७९९-१, ३७०८८-४ बीजतिथि स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजुआलीडी बीजनी बार), ३५२६३-३ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ३८३३४-१, ३८९८७-४, ३५८२९-२(#) बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., ढा. १२, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीपनै भरतमै), ३७५८३ बुढ़ापा रास, श्राव. मोतीचंद, रा., ढा. २२, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (दया ज माता वीनj), ३५७३१(६), ३८८६८(5) बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं देवी अंबाई), ३७६१७(+#$), ३४७५० बृहद् योग विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलु इरियावहि पडिकम), ३८८३०(+$) ब्रह्मचर्य १० समाधिस्थान कुलक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर पाय), ३७७०१-३($) ब्रह्मचर्य द्विपंचाशिका, मु. समरसिंघ, मा.गु., गा. ५३, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पाय प्रणमी), ३७८६६(5) ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती विवरण, रा., गद्य, मूपू., (ब्रह्मदत्त), ३७५१३-५(+) भंगरत्नावली, मु. गांगेय, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम पद करवार), ३४६९७ भक्ष्याभक्ष्य विचार सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (अजाण्या फल फुल सब), ३४८७९-३ भक्ष्याभक्ष्य विचार सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (माखण सहत पीव ग्रसत), ३८४२५-१ भडलीपुराण, पुहिं., गा. १११, पद्य, मूपू., (सारद मात पसाव करि), ३७०७१-१(#) भडलीपुराण संग्रह, मा.गु., पद्य, (अथ शुकाल दुकाल लिष्य), ३६०१०-२(#$) भरत ऐरावत जीवभेद, मा.गु., को., मूपू., (तिर्यंचना ४८ मनुष्यन), ३८९५९ भरतक्षेत्र विस्तार वर्णन, मु. सेवक, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (समरु श्रीअरीहतने), ३७५५८-३(+) भरतचक्रवर्ति संपदा वर्णन, मा.गु., गद्य, मपू., (चोरासि लाख हाथि), ३७९३०-३(#) भरतबाहुबली संवाद, मु. कुशल, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (सारद माता समरी3), ३४७७९(5) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३८, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीवरवा), ३८०८८($) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (इम नविकीजि हो सगुण), ३५४०३(६) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहुबल चारित लीयो), ३८५९९-१, ३५४४३-२(5) भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), ३५९०७-२, ___३८२९८-३($) भरतमहाराजा सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, वि. १९४५, पद्य, श्वे., (मुगतपद पाया हो), ३८२३९-२ भले का अर्थ-महावीरजिन पाठशालापंडित संवादगर्भित, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रभु नीशाल बैठा), ३६३६५ भले विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रभुने शाले बैठा), ३५५३९(5) भवानीजीरो छंद, मा.गु., पद्य, वै., (कि तुं योगिजी रंग मै), ३७६६६-१(+) For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ भवानीमाता पद, मुरली कविराज, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (मानु दौज को चंद), ३५९१३-२(+) भवानी स्तोत्र, ग. कल्याणसागर, मा.गु. गा. २५, पद्य, भूपू (सकति सदा सानिधि करो), ३७९०५ (+) भानीमल महाराज लावणी, मु. दयाचंद, पुहिं. गा. ९, वि. १९३०, पद्य, क्षे. (मुनि का गुण गावो भाई), ३४५२७-२ भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३९, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (क्रिया अशुद्धता कछु), ३६५७६ (+) (२) भावछत्रीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्रियानो असुद्धपणो), ३६५७६(+) " भाव विचार, मा.गु., गद्य, मूपू (औदयक चतुभंगीई), ३५२७७-३ भाषासमिति सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १८, पद्य, श्वे. (सत्य विवहार भाषा), ३८९२५ (-) भीलडी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामीने), ३७००८ भीलडी सज्झाय, मा.गु. गा. २५, पद्य, मूपू (सरसति सामण विन), ३४८३३ ', भुजंगजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पुष्कलावइ विजये हो), ३५६६६-१ भूमिका फास के भेद, मा.गु., गद्य, भूपू (अवावरु क्षेत्रनी) ३७५१३-२(+) . भृगुपुरोहित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (देव हुंता भव पाछलै), ३८३७९ ($), ३६७१५($) भृगुपुरोहित चौडालीयो, मा.गु, पद्य, वे. २ (-), ३६१२४(३) भृगुपुरोहित छढालीयो, मु. जेमलजी मुनि, मा.गु., ढा. ६, पद्य, श्वे., (दर्शण कीधां साधरो), ३६६५४ भैरववीर विलास, मा.गु., पद्य, श्वे., (मुरड दयंता मारणो), ३८७८१ ($) मंगलीक दीपक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (दीवो रे दीवो मंगलीक ), ३८५२५-३ मंत्र, मा.गु, गद्य, (-), ३५६०३-२ मंत्र संग्रह *, मा.गु., गद्य, ?, (--), ३५९०५-२ (+), ३८०९४-१ मगदुजी महासती चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (करजोडी वंदन करु लागु), ३७५७० (S) मदनरेखासती रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. ३६०, वि. १५३७, पद्य, मूपू. (श्रीजिणचवीसह नमी), ३६८३८(३) मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १७८, पद्य, वे., (जल की शोभा कवल है), ३८०७४(२) मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, मूपू., (जूआ मांस दारु तणी), ३७२२७(+$) मदनरेखासती सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु. गा. ८, पद्य, मूपू (लघु बंधव जुगबाहूनो), ३८२७४-१४) मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरण प्रमोद शिष्य, मा.गु., डा. ५. गा. १०, पद्य, भूपू (सरसति मुझने रे मात), ३८६४५-३, ३४८२०-२(३), ३७८७६(३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मरुदेवी माताजी इम), ३४७९९-२ मल्लिजिन रास, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. बा. २० वि. १८२४, पद्य, स्था. (निमस्कार हुवो अरिहंत), ३८२७५ (45) , मल्लिजिन स्तवन, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु गा. ५, पद्य, मृपू., (--), ३५४४८-१श " मल्लिजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण, पुहिं., गा. १६. वि. १८५३, पद्य, क्षे., (जीवडा जप लीज्यो रे), ३८१३९) मनमोहन झुलणा सवैया, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (लटी झुलती थी पुलक), ३८६१४-२(#) मनवचनकायासे धर्मध्यानमें रहनेका लाभ, मा.गु., गद्य, मूपू., (२७से कोडपल्य ७७कोड), ३५०३६-२ मनवशीकरण सज्झाय, मु. आनंदघन, पुहिं, गा. ५. वि. १८वी, पद्य म्पू.. (मनाजी तुं तो जिन), ३४८४२-१(+) मनुष्यभव १० दृष्टांत सज्झाय, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रणमी परमेसर वीर), ३८०१९(#$) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत, मा.गु., गद्य थे. (चेतः कैरवकौमुदी सहचर), ३६६१९८ " मनुष्यभवदुर्लभता सज्झाव, मु. पासचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (दुलहो नरभव भमता), ३६९७८-२ मनुष्यभवदुर्लभ सज्झाव, मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३. वि. १८६८, पद्य, . ( सतगुर संग लह्यो). ३८२१०-२ मरणभय निवारण गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मरण तणो डर म करी मूर), ३८७८४-२० () मरुदेवामाता १४ स्वप्न धवल, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू (--), ३६०५१-१(+) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (नगरी वनीतां भली वीर), ३४८२३-४ For Private and Personal Use Only ५७३ Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७४ www.kobatirth.org मल्लिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन प्रभु रे), ३५८९०-२ ($) मल्लिजिन स्तवन, मु. पुरण, मा.गु.. गा. ६. वि. १९५४, पद्य, मृपू. (प्यारो मल्लीजीनेशर), ३५८०७-२ मल्लिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू. (मोहे केसे तारोगे दीन), ३४५५०-२, ३७८६३-१ महाकाली मंत्र विधिसहित, मा.गु., गद्य, जै. 2. (35 नमो कालीमहाकाली), ३६६६९-२ महावीरजिन चातुर्मास विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे. (पहेलो चौमासो मारवाड), ३८६४०-३ " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ महाभद्रजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (देवरायतो नंद मात उमा), ३८३७५-३ महावीरजिन १० अछेरा सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (हुआ दस अछेरा आचरजकार), ३८२६८ महावीरजिन १० आवक नाम, मा.गु, गद्य, म्पू, ( आणंद कामदेव सुरादेव), ३८७०९-५(+), ३७९७९-२ ', महावीरजिन २७ भव, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहीले भवे जंबुधीप), ३७९८५ (+) महावीरजिन २८ उपमा, मा.गु., गद्य, श्वे., (सूर्यानी उपमा १ अम्न), ३८८४९-४(+) महावीरजिन अभिग्रह, मा.गु, गद्य, वे., (द्रव्य थकी अडवना). ३७९१९-२ महावीरजिन आयुष्य विवरण, ग. रामविजय गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (आऊखो गर्भथी गणवो), ३७१३० (+) महावीरजिन कथा -संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, श्वे. (इहां कुण जे श्रीसमण), ३८४६८-१(+) महावीरजिन गहुंली, मु. अमृतसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू, (जी रे जिनवर वचन), ३७१०६-२ महावीरजिन गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (प्रभु मारो दीइ ), ३८५२६-३ महावीरजिन गहुंली, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (कौने वन वीर समोसा), ३५०६४-७ महावीर जिन गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रमण भगवंत माहावीरद), ३७०४६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. वीरविजय, मा.गु, गा. ३, पद्य, भूपू. (वर्धमान जगदीसरु जगवा), ३६७२४-२ " महावीर जिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (सिद्धार्थकुलमई जी), ३६९५८, ३७६६९, ३८०७२(१६) + महावीरजिन चौडालीया, मु. तिलोक ऋषी, मा.गु., डा. ४, अं. ८२, पद्य, क्षे., (सासणनायक सुरतरु), ३७००७ महावीरजिन जन्मबधाइ पद, मु. रतन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जगनायक के जगनायक के), ३५८५३-२ महावीर जिनजन्म महोत्सव, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवइ भगवंत नइ चउसठि), ३८३१० (+$) महावीरजिन जन्म लावणी, मु. ज्ञानमंदिर, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू (घुघुरु वाजत न झन), ३८४९८-३ महावीरजिन जन्मोत्सव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीर जन्मावसर), ३८२५४(+) महावीरजिन तप स्तवन, मु. रत्नविजय, मा.गु. दा. ३, पद्य, मृपू (वर्धमान जिनपति नमिव), ३७२७३-१ महावीर जिन तप स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामीजी बुद्धि), ३६४५०-२, ३८०४१-२ महावीरजिन नमस्कार, मु. ऋषभ कवि, मा.गु, गा. ३, पद्य, मृपू. (बंदु वीरजिणंद महिवल), ३६८०७-३ महावीर जिन निर्वाण आरती, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( जय जय जगदीश जिनेसर), ३७४१५-३ महावीरजिन निसाणी, मु. सरेमल, पुहिं., गा. ४२, पद्य, वे., (कुंडलपुर नगरी देख), ३५६८८ महावीर जिन निसाणी चामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू (श्रीमाता सरसती सेवक), ३६४९१ , महावीर जिन पट्टावली, मा.गु., गद्य म्पू. (श्रीमहावीर पछै एकसो), ३८६४०-२ " " महावीरजिन पद, आ. ज्ञानविमलसूरि पुडिं, गा. ३, पद्य, भूपू (महावीर तोरे समवसरण), ३८६४६-७ महावीरजिन पद, तानसेन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुणि पंथी वीर पय), ३७८५७-२ (+) महावीरजिन पद, मु. शिवचंद्र पुहिं. पद १९, पद्य, भूपू (हम आए है सरन तिहारे), ३५९१५-२ महावीरजिन पद, मु. सौभाग्यविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सब दुःख टालेंगे), ३७८७७-११ महावीरजिन पद, पुहिं, गा. ६, पद्य, भूपू (त्रिहोलोकमि प्रधान), ३७८५१-३ महावीरजिन पद, पुहिं, गा. ४, पद्य, वे (बलिहारी जिनवीर की. ३५७६९-३ . महावीरजिन पद, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू., (रसमे रसमे रसमे जिणंद), ३८६४६-६ For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७५ महावीरजिन परिवार सवैयो, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (साधु भला दश च्यार), ३८५७८-४ महावीरजिन पारj, मु. अमीविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला ए पुत्र), ३७१६७ महावीरजिन पारj, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला झुलावे), ३६७४५, ३७०५१ महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती), ३४६३९(+), ३५७४९-१, ३६९८६-२, ३७०१५, ३७३१९-१, ३७७८६-१, ३५६७२-१(#), ३८३२८(#), ३८२५७-१() महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (आधारज हुँ तोरे एक), ३८९६० महावीरजिन स्तवन, मु. आणंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुं मन मान्यो वीरजी), ३५४४८-२ महावीरजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा. ९, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (जगपति तु तो देवाधि), ३५६४६(६) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (जगपति तारक श्रीजिनदे), ३५८७८-३ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीजरां रहस्यांजी), ३४६८२, ३८५४८-३, ३४६३१(#) (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंतनी), ३४६८२ महावीरजिन स्तवन, मु. चोथमल, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., (अंतरजामी त्रसल के), ३८३८६-१ महावीरजिन स्तवन, मु. जिनदास, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संदेसो देजो रे कहेजो), ३४८०५-१ महावीरजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज सुदिन सफली घडी), ३७९१५-३(+) महावीरजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (हारे लाल० श्रीमहावी), ३७९१५-२(+) महावीरजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वंदो वीर जिनेश्वर), ३७२४३-८ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनमुख देखण जावू), ३४५२१-२ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कुंडनयर भलउ रे तिहां), ३८२७२-२ महावीरजिन स्तवन, ग. तेजसिंघ, मा.गु., गा. ७, वि. १७५१, पद्य, श्वे., (लोकरीत गुण करे गुणक), ३८७१८-२ महावीरजिन स्तवन, मु. दयासागर, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सासणनायक वीरजिणंद), ३७०११-४, ३८०२९ महावीरजिन स्तवन, मु. देवविमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर वादेवली), ३७५२९-३(+) महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीसीद्धार्थकुल), ३४६५७-२, ३८३४०-२(-2) महावीरजिन स्तवन, मु. नथमल, मा.गु., गा. ७, वि. १९३०, पद्य, श्वे., (जगपति त्रिशलानंदनदेव), ३८६१३ महावीरजिन स्तवन, मु. नानजी, मा.गु., गा. १८, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (केवल रे महोछव सुरवर), ३८५६३ महावीरजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (रुडीने रढीयाली रे), ३४५३९-१६ महावीरजिन स्तवन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नणदल हे नणदल सीधारथ), ३४४६१-१(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरुआ रे गुण तुम), ३५०१४-२(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीरजिणंदने), ३५८९४-२ महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (सिद्धारथ कुल दीपक), ३८३४०-३(-2), ३८४१७-) महावीरजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ राय ते नंदन), ३४७११-४ महावीरजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८६२, पद्य, श्वे.?, (वीर जिणंद सासण धणी), ३६२३६ महावीरजिन स्तवन, मु. विद्याविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (क्षत्रीकुंड नयर), ३७७४९-३ महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (सिद्धारथना रे नंदन), ३५८९४-३ महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (आवो आवो जसोदाना कंत), ३७०४४ महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (जय जिनवर जग हितकारी), ३७४२९-९, ३८७८०-१ महावीरजिन स्तवन, मु. सिद्ध, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (वदन अनोपम चंदा निरखं), ३७९५१-१ महावीरजिन स्तवन, आ. हरखसागरसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवीरजी वंदु), ३५८३८-२(+) महावीरजिन स्तवन, क. हर्षविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (तारकदेव त्रिभुवनधणी), ३७१७८ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, म्पू., (त्रिशलानंदन जिनवर), ३४६९९-२(६) For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (भगतवछल सहु तुझ पछी), ३८१००-२($) महावीरजिन स्तवन, मा.गु.,गा. ४, पद्य, मपू., (श्रीवीरजी जोयानो), ३८६४७ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सदा जिन चोवीस मनि), ३६५१५-२(-) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३५९५२(६) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३९०२६($) महावीरजिन स्तवन-१४ गुणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (महावीर जिनरायना पय), ३८३१३ महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८१, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमल कमलदल लोयणा), ३६८२९, ३७२१२, ३७२२५(5) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५२, वि. १९०१, पद्य, मूपू., (श्रीशुभविजय सुगुरू), ३७२२४-१(६) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति दिओ मति), ३७०३० महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु), ३७१२५, ३८४१६, ३५६३२(६) महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, पद्य, मूपू., (ए धन सासन वीर जिनवर), ३६३७८(+#) महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे), ३६७७१, ३७२५८, ३४९२५-२($) महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय नमी), ३७६९२, ३७६४९(5) महावीरजिन स्तवन-तपवर्णन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसत सामण द्यो मति), ३८८४२-२(-) महावीरजिन स्तवन-दसमताधिकार स्वरूप, वा. मेघविजय, मा.गु., ढा. ९, पद्य, मूपू., (जयदायक जिनराज ए), ३६३७६ महावीरजिन स्तवन-दीपावली, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वंदन करी), ३५१०९-१ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारग देशक मोक्षनोरे), ३८६५३-१, ३७४१५-५(5) महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मूपू., (श्रमणसंघतिलकोपम), ३५६५९($) महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ४३, पद्य, मूपू., (वलि जाउं श्रीमहावीर), ३५७७७(5) महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १८५७, पद्य, मूपू., (गुरूक्रम पंकज भ्रमर), ३६७२४-३(5) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ३७०३५-१(+), ३८१६५-२(+#$) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), ३७९६८-१, ३४६३३-१(2) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. विबुधविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गुण गावारे आवो सो ह), ३८६४५-१ महावीरजिन स्तवन-मिथ्यादुष्कृतविचारगर्भित, ग. उदयसागर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर पय नमी), ३७९६६-१ महावीरजिन स्तवन-मुनरामंडन, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माहरी वीर प्रभूजीने), ३५८९४-१ महावीरजिन स्तवन-विजयसेठविजयासेठाणी विनतीगर्भित, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. ११, वि. १८८८, पद्य, मूपू., (एकवार कछ देस आवीये), ३७०६७ महावीरजिन स्तवन-सम्यक्त्व, मा.गु., ढा. ३, गा. ३५, पद्य, मूपू., (समकित दायक वीरना पद), ३८८२३ महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. १४८, ग्रं. २२८, वि. १७३३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), ३५१३१(६), ३६१६२(६) (२) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (ए स्तवनमांप्राइ पद), ३६१६२(६) For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ " महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, म्पू (जय जय भवि हितकर वीर), ३७१११-३ महावीर जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मृपू. (मनोहर मुरति महावीर), ३७१११-२ महावीरजिन स्तुति, उपा. रत्नकीर्ति, मा.गु., गा. १३, पद्य, मृपू. (भविक रे भावै वीर विल), ३८५७४ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कठन करम मेली काठीआ), ३७१६८-४, ३८३५१-३ महावीरजिन स्तुति-गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गंधारे श्रीवीरजिणंद), ३४६१९, ३८५२७ महावीरजिन स्तोत्र प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मृपू., (सेवो वीरने चित्तमां), ३४६४७-१(+), ३६७३४ महावीरजिन हमचडी -५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ६८, पद्य, मूपू., (नंदनकुं त्रिशला), ३६११४($), " ३६६१९ (5) महावीरजिन हालडु, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला झुलावे), ३८६२९ महावीरजिन होरी, मा.गु गा. ५, पद्य, मृपू, (महावीर ऐसे जिनवंदनकु), ३७२२९-२ मांकण सज्झाय, मु. भवसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मांकणनो चटको दोहि), ३८०३०-१ (+) (सरस वचन द्यो सरसती. ३९०३९, ३४६३०) " माणिभद्रवीर छंद, मु. उदवकुसल, मा.गु., गा. २६, पद्य, भूपू माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु. गा. १९, पद्य, मृपू. (सरसति भगवती भारती), ३८५३० माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., गा. ४४, पद्य, म्पू, (सरस्वती स्वामनी पाय), ३४६२४, ३४६६० माणिभद्रवीर छंद, मु.शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमाणिभद्र सदा), ३८५९८ (#$), ३८७६७-२ ($) माणिभद्रवीर छंद -मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), ३६१८८, ३६१९६ माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, मूपू., (देवि सरसति देवि ), ३५१२२-१(#$) मान उन्मान प्रमाण, मा.गु., गद्य, श्वे., (पाणीइ भरी कुंडमाहे), ३५६३१-२ (+) मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मान न कीजै रे मानवी), ३५७३०, ३८५१७ माया गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीव विमास नहीं कुछ), ३८२७२-५ माया पद. मु. मनीराम, पुहिं, गा. ३, पद्य, वे., (माया के मजूर सो तो), ३८३४९-२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आवण जावण पेला गुणठाण), ३४८२५-२ माह शतक सज्झाय, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (--), ३५६७३-१ मिथ्यात्व के १० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवने अजीव सद्दहे ते), ३४९९९-२ मुनि की ८४ उपमा, मा.गु., गद्य थे. (पहली ओपमा सरप की), ३६९२८-१ . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनिगुण पद, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुण सहेली जंगमे), ३४७१६ मुनिगुण सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वे मुनि मेरे मन वस्य), ३८४६४ मुनिगुण सज्झाय, मा.गु, पद्य, भूपू (सिद्ध सवेनइ करू), ३५५६६४) ', मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु. डा. २७ गा. ६०६, वि. १५५०, पद्य, भूपू (गोयम गणहर गोयम गणहर), ३७६३०(३) मुनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९३, गा. ४००५, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (सकल सुख मंगल करण), ३५९४१ ($) मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख जिन पय), ३६५२५-१ मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू. (शांति सुधारस कुंडमा), ३६१८१ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वरसे वरसे वचन सुधा), ३८६८३ मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र अर्थ साचो सद्द), ३७९३४-२ मुहपत्ति पच्चास ५० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र अर्थ तत्त्व), ३७२८५-२ मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ऐसे क्युं प्रभु पाईइ), ३७४९१-२(+) मूर्ख ३१ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (समर्थ होय उद्यम नही), ३८९८४-१ मृगलोढा रास, मा.गु., पद्य, ओ. (--). ३५६३६- १(३) मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२८, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (परतक्षि प्रणमुं वीर), ३८६३१(#) For Private and Personal Use Only ५७७ Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ मृगापुत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, म्पू., (सुग्रीवनयर सोहामणो), ३४५९३ मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनयर सुहामणो), ३४७५१ मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनयर सुहामणो म), ३७०११-३ मृगावतीसती भास, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (त्रिभुवनपति वीरजिण), ३६१७४ मृषावादपापस्थानक सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (असत्य वचन मुखथी नवि), ३५०१४-१(#) मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., ढा. ४, गा. २३, पद्य, श्वे., (प्रथम गणधर गुण नीलो), ३६३५२, ३५५५१-२(६), ३६५४६-२(-2) मेघकुमार दृष्टांत, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजगृह नगरि राजा), ३६३०१-२ मेघकुमार सज्झाय, मु. जिनसागर कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ५२, पद्य, मूपू., (समरी सारद स्वामिनी), ३८९५३ मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ३७७६४, ३८६२१(#$) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावेरे मेघ), ३८०९०(+), ३४५४७-१ मेघरथराजा सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १७९७, पद्य, श्वे., (दशमें भवे श्रीशांतिज), ३७१३६(+) मेघरथराजा सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरण भणी पारेवडउ आवी), ३५९१०-१(१) मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (दशमे भवे श्रीशांतिजी), ३८८२९(+), ३८३५३-७(5) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरु जी), ३८२६३-१, ३८३८८-१, ३८९३६ मेरुगिरि चैत्यवंदन-जंबूद्वीप स्थित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जंबू पूर्व कुरूक्षेत), ३४८५२-१ मेरुगिरि चैत्यवंदन-धातकीखंड-पुष्करार्द्धस्थित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (धातकीखंडे मेरू दोय), ३४८५२-२ मेरुपर्वत मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (धरतीनइ तलइ पहोलो), ३६७७७-४(+), ३६५८०-२ मेरुपर्वत वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (मेरुपर्वत कनकमय), ३७९४०-२ मेवाडदेश वर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., गा. १२, वि. १८१४, पद्य, श्वे.?, (मन धरी माता भारती), ३८२८७-२(+), ३७९८०-२ मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोक्षनगर माहरु सासरु), ३७१८१-१ मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ५, गा. १०३, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सुंदर रुप सोहामणो), ३७५५३(5) मोतीकपासीया संवाद, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा. ३१, वि. १६८७, पद्य, मूपू., (श्रीसारदसुपसाइलै सुह), ३७५८५ मोहनीयकर्म की २८ उत्तरप्रकृति, मा.गु., गद्य, मूपू., (सम्यक्त्व मोहनीय १), ३८८३८(+), ३८९०२ मौनएकादशीपर्व सज्झाय, पंन्या. देव वाचक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सद्गुरू पाय नमीयेंजी), ३७०८८-७ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसर्य), ३६३७४(+), ३८६००(2) मौनएकादशीपर्व स्तवन, आ. जिनलब्धिसूरि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर चरण जुगि), ३७६३९ मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), ३६५७९, ३६७४० मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ३६२६६, ३८३९४ मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (धुरि प्रणमुं जिन), ३७१३८, ३७१५४ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ३८२१३-२, ३८३६१-१, ३८२५५-१(4) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. विनय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गोपीपति पूछे पभणे), ३५८२९-४(#) For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७९ यंत्र संग्रह, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (परिणामि १ जीव २ मुत), ३६१७१ यतिगुण वर्णन, श्राव. खेतसी, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (केइ तो समस्त), ३८९६६-३ युगबाहुजिन स्तवन, मु. जिनदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (इण जंबुदीवइ जाणीय), ३७९१० युगबाहुजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (विहरमान युगबाहु), ३७६८४(+5) युगमंधरजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सइ मुख हुँन सकुं), ३८४९४-१०(६) युगमंधरजिन स्तवन, मु. कुसालचंद, रा., गा. ६, वि. १८२३, पद्य, श्वे., (जुगमधरजी री जुगदीस), ३४७०७-२ युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काया रे पामी अति), ३८०९३-२ युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हीयडो मीलवारे प्रभु), ३७९६७-२(#) युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १६, वि. १८२५, पद्य, श्वे., (युगमंधर जिन सांभलो), ३४७३०(+) युगमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (बीजा जिनवर वंदीयइ), ३८१४२-२($) रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., ढा. १०, गा. ५३, पद्य, मूपू., (रतन गुरु आगलीजी आगली), ३५५८८(६) रतनसीऋषि रास, मु. कान्हजी कवि, मा.गु., गा. ४८, वि. १६५३, पद्य, श्वे., (--), ३५६५७-१(+s) रतनाजी महाराज लावणी, सा. रत्नाबाई शिष्या, मा.गु., गा. १६, वि. १९६२, पद्य, स्था., (महाराजा रा वाज रह्या), ३८५१५-२(2) रतनाजी महाराज लावणी, सा. रत्नाबाई शिष्या, मा.गु., गा. २७, वि. १९६२, पद्य, स्था., (रतनाजी महराजा दीप), ३८५१५-१(4) रत्नविजयगुरु विज्ञप्ती, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीतपगच्छगुरु), ३५०५६-२ रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी), ३६१५९(#$) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (यादव कुलनारे तुझने), ३५८६५-२, ३७९८१-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (काउसग व्रत रहनेम), ३६८३६-२(5) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सद्गुरु पाय), ३४६१०-३(#) राचा बत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (जीवडा जाग रे सोवे), ३७९९९-१, ३७७२३-२(#) राज वंशावलि, जेचंद भट्ट, मा.गु., पद्य, मूपू., (संवत् आठबीडोतरे ८०२), ३५९६०-२($) राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (प्रथम हि समरुं अरिह), ३७३२०(5) राजिमतीरथनेमि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (रूडा रहनेमि मम करस्य), ३४९५४-२ राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (संजम लेईनें परिवरी), ३५५०४-२ राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (सुणि सुणि चतुर सुजाण), ३५९१३-१(+), ३५९१६-१, ३८३९६-१ राजिमतीसती गीत, मु. दयातिलक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सखी जाइ कहौ जदुपति), ३७६९७-१ राजिमतीसती विलाप लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (दे गया दगा दिलदार), ३८४२६ राजिमतीसती सज्झाय, मु. केशव ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बे कर जोडी विनवे रे), ३८००३-१ राजीमतीसती सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गोखि चढी राजुल इम), ३५३४६-२ रात्रिभोजन चौपाई, मु. धर्मविमल, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३६५७२($) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल धरममा सारज कहिइ), ३६१५०-२, ३६६६१-२, ३८०८०-२(2) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. पुनव, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (अवनीतल वारु वसै जी), ३७०६६ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ग्यान भणो गुण खाणी), ३७३४४-३ रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), ३६९८६-१, ३७७२५ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि*, मा.गु., ढा. ४, गा. ३५, पद्य, मूपू., (गुरुपद प्रणमी आणी), ३५६०८(+) रात्रिभोजन सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १४, पद्य, मूपू., (गुरु चरणे रे भाव), ३८२६३-२ रात्रिभोजन सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (रंभा जणणी रुयडीजी), ३८०४७(#) रामजनकी वंशावली, मा.गु., गद्य, श्वे., (जनकवंशी भाट त्रिलोचन), ३८३१७-३ For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४ ढाल ६२, गा. ३१९१, ग्रं. ४३७५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतस्वामीजी), ३४९९२ (+४४) रामसीता रास, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे. (सुखदायक सांसणधणी), ३६५९६ (5) रावणमंदोदरी सज्झाय, मु. खुशालचंद, पुहिं., गा. ११, वि. १८८१, पद्य, मूपू., (कहगे मंदोदरी सुण हो), ३४७५५-१ रावण सज्जाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे. (--), ३७५५२-१($) रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., ( विचरता गामोगाम नेमि), ३६९८८-१ रुपराजऋषि भास, मु. गोप ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे. (गोतमदेव सदा समरीनइ), ३७९२५-१ "" रुपसीह अणगार सझाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (सरसति सामनि वीनवु), ३८५३७-२ (-) रूकमणीसती सज्झाय, क. दीपविजय, मा.गु गा. २२, पद्य, भूपू (--), ३८७९५-१(5) रूद्रदंति कल्प, मा.गु., गद्य, (२८ नक्षत्र गमन विचार), ३६९१८-१ "1 , रूपकमाला - शीलविषये, मु. पुण्यनंदि, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू. (आदि जिणेसर आदिसउ), ३६००३ रेवतीश्राविका सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोवन संघासन रेवती), ३५४३४-२ रोहिणीत सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य नमी), ३७१२७, ३८४९६ + रोहिणीत स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., डा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू (हां रे मारे वासुपूज), ३४६२५ रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ३८९६३-१, ३७६८० ($), ३८६५१ ($) रोहिणीतप स्तुति, मु. लाभरुची, मा.गु, गा. ४, पद्य, म्पू (जयकारी जिनवर वासुपूज), ३५२५९-२ " रोहिणी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ३१, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (सुखकर श्रीशंखेसरु), ३७४४५-१ ($) लक्ष्मणमूर्छा पद, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे. ?, (सकती जब लछमण के मारी), ३८२०१-१ लक्ष्मीसागरसूरि सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू.. (सकल सुहासणि गजगति), ३७६७८-१(+) लीलावती रास, क. मानसागर, मा.गु., गा. ८१, पद्य, भूपू., (राजवहो राजदहो सूरत), ३७९३७-२ लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु. बा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, म्पू.. (परम पुरुष प्रभु पास), " " ३६५३५-१($), ३६८९३ ($) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोभ निवारण गीत, उपा. समवसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, भूपू., ( रामा रामा धन धन फिरत), ३७८४१-५, ३८७८४-४-) कचूल रास, मा.गु, गा. ९४, पद्य, भूपू (आदि जिनवर आदि जिनवर), ३७७०६-१(४) वंदन के ३२ दोष प्रवचनसारोद्धारगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (अणादर वंदन करे१), ३४६२३-५ (-) वच्छराजहंसराज चतुष्पदी, असाइत नायक, मा.गु., खं. ४, गा. ४३७, वि. १४१७, पद्य, मूपू., वै., (अमरावई समाणां पंखि), ३६०२६ ($) वज्रकुमार गीत, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मइ दस मास उयरि धरु), ३७९६६-२ वज्रकुमारपरिवार सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (नगर अयोध्याराय जी हो), ३८२०९-२ वज्रधर गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ए सबल मननो धाको), ३८४९४-९ वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विहरमान भगवान सुणो), ३४६३५ १ वणजारा सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सखी विणजारो आवियो भर), ३८९११-२ (#$) वयरस्वामी सज्झाय, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सांभळजो तुमे अद्भुत), ३८९३० वरसीतप स्तवन, मु. रूप ऋषि, मा.गु. दा. ४. वि. १८८४, पद्य, थे. (आदिराय आदीसरू आदिनाथ), ३६४५०-३ "" वर्गमूल कवित, पुहिं., पद. १, पद्य, (आदथें विषम संमलिक), ३७९१५-१(+) वर्गमूल व घनमूल सवैया, पुहिं., गा. २, पद्य, (आदि तै विषम समलीक तै), ३७४१३-३ वर्णमाला *, मा.गु., गद्य, (ॐ नमः सिद्धं अ आ ई), ३५८५७-२ वर्तमानजिन स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (वर्तमान जिनवर मैं), ३८५५७-१ For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ वर्धमानतप सज्झाय, मु. धर्मरत्न, मा.गु., पद्य, मूपू., (मोरा चेतन हो कहु), ३७२७३-३ वर्धमानतप स्तुति, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वर्धमान ओली करो भव भ), ३७२७३-२ वस्तुपालतेजपाल प्रभावना, मा.गु., गद्य, मूपू., (वस्तुपाल तेजपाल), ३८६४०-१ वांदणा सज्झाय, मु. विजयरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राई खमावू देवसीजी), ३४५६९-१ वासुपूज्यजिन कवित-माडोल, मु. हरखरतन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विधि सोहै इधिक विचार), ३८३००-२ वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिन विख्या), ३४५३९-१४ वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, मु. प्रमोदरुचि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वासपूज्य माहाराजजी), ३४६५८-३(+#) वासुपूज्यजिन जन्मोत्सव ढाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिन जननी जिननें अति), ३८६३५-४(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामि तुमे काइ), ३६५१३-२(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (नाच च मोह नचावीयो), ३८९६४-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. विजयानंदसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ऋतु वसंत आवे थकेजी), ३४७९६ वासुपूज्यजिन स्तुति- आंतरोलीमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिनराज), ३५६४३-४(६) विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), ३८०२६(#s) विक्रमराजा रास, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४०४, पद्य, भूपू., (श्रीवरदायक सारदा गज), ३६६९८(5) विचारचोसठी, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ६०, वि. १५४४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर प्रणमी पाय), ३७३५९($) विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (१२ व्रतधारी श्रावक), ३८६४०-४ विचार संग्रह *मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिंत्रीजे), ३५९४६(+६), ३६०३२-२, ३८१५६ विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३७२४५-१(६) विजयक्षमासूरि सज्झाय, पंन्या. रूपसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (विजय खिमासूरीसरू), ३४५२१-५ विजयजिनेंद्रसूरि गच्छरायगुरु गहुंली, पं. माणिक्यविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सजनी श्रीगुरु चरणकमल), ३५८८६-६(5) विजयदेवसूरि गहुंली, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो चंद्रमुखी सखी), ३६११७-२(#) विजयदेवसूरी भास, ग. रंगकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कांमणगारो रे गुरुजी), ३७४११-१, ३८३९३ विजयराजसूरि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (परम पुरुष प्रभु पासज), ३८३५२ विजयसेठविजयासेठाणी रास-शीलविषये, मु. रायचंद, मा.गु., ढा. ६, गा. ८९, वि. १६८६, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक जिन चउवीसे), ३६०२८(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रे रे), ३५४९२(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रह उठीरे पंच), ३६७४१, ३८१५८(#s), ३७७४६(s) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (सेठ सुकल बजीया बरत), ३८२१७(-) विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. जयवंत शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चउवीसइ जिनमनि धरी), ३७७३३-३ विजयहीरसूरि सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति माता जगमा), ३५८५७-१ विदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराजशिष्य, मा.गु., पद्य, श्वे., (जैन धर्ममाहि जागता), ३८३३०($) विद्यारक्षा सज्झाय, गुजा, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (करो तुम विद्या का पर), ३८२०१-२ विद्याविलासी चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३७६८२(5) विमलजिन गीत, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विमल ताहरु मुख जोता), ३६८४७-२ विमलजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी मुज अवगुण मत), ३८४९५-५ विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (घर आंगण सुरतरु फल्यौ), ३५६३९-५ For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८२ www.kobatirth.org विमलजिन स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (विमल जिणैसर वंदीयै), ३७७८६-२ विमलजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, मूपू (विमलजिन स्वामि पाव), ३६३८५-३(३) विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु खं. ९, गा. ३८७, ग्रं. १७०० वि. १५६८, पद्य, भूपू (आदिजिनवर आदिजिनवर), ३६६९२/०६/ विवाहपडल, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे. वै., (श्रीसदगुरु वाणी सरसत), ३५६४१-२ विविध विचार मत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १, पद्य, भूपू. (तपा कहि इरीवा पहिली) ३८२७२-३ विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं. गा. ४२, वि. १७१५, पद्य, दि., (आत्मलीन अनंतगुण), ३७९५६, ३८३९० विष्णु स्तुति, वखतेश, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., (हमने सुनी एक बात ही), ३८५०१-५ (+) विष्णु स्तुति, सूरदास, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (प्रीत किया पिछतानी), ३८५०१-९ (+) विष्णु स्तुति, सूरदास, पुहिं. पद ४, पद्य, वै., (मेहा जल आवय रे रित) ३८५०१-८(१) " बिहरमान २० जिन चैत्यवंदन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (विहरमान से जिनवर), ३४५५६-३(+) ... कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी श्रीजुग), ३६८१९-३(+) विहरमान २० जिन स्तवन, उपा. अनंतहंस, मा.गु, गा. ९, पद्य, मृपू., (सरसति देवि नमउ), ३४५७१ "3 विहरमान २० जिन स्तवन, मा.गु, गा. ८, पद्य, थे. (श्रीमंदरस्वामी प्रमु), ३८५७९-१ विहरमानजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं. गा. ९, पद्य, मूपू., (तुम हो दीनबंधू दयाल), ३४८२७-३ विहरमानजिन स्तवनवीशी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., ( श्रीसीमंधरसाहिबा), ३५९२८(#$) बिहरमानजिन स्तवनबीसी, आ जिन्राजसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, भूपू (मुज हीवडी हेजालूवी), ३६९९१(०३), ३८०७० (३) विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., स्त. २०, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (पुंडरीकणी नगरी वखाजी), ३५९२७(#$) "3 वीतराग प्रार्थना, मा.गु., गद्य, भूपू. (हे वीतरागस्वामी माहर), ३६२५१ वीजन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (महावीर वेगे आवणारे), ३५९०१-३ वृद्धमान बासठीयो, मा.गु, गद्य, मृपू.. (गर्भ विना जीम जीवडा), ३७५४१-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृद्धावस्था वर्णन, सीवजी रामजी, रा., गा. २२, वि. १९६१, पद्य, वै., (बालपणो हँस खेल गमायो), ३५२०० वृद्धावस्था वर्णन सज्झाव, मु. रामरतनशिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, खे, (बालपणे तो हंस खेल गम), ३८५४५-२ वृष्टिभेद विचार, मा.गु., गद्य, वे. (वसुधारावृष्टि‍ चेलो), ३६५८०-८ " वैमानिकज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, मूपू (सातसे नेउ योजन उपरे), ३८३५३-४ वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास पुहिं. गा. २५, पद्य, वे (इह प्रमादी जीव जग), ३७७९९-१ "3 " वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., ढा. २, गा. २५, पद्य, मूपू., (ए संसार अथिर करि जाण), ३६३५५ (+), ३४६६९ (कोइ आवो आवो देश हमार), ३८६७३-५ (+) (इह मेरा समझि विचार), ३८७८४-३(-) वैराग्य पद, कबीरदास संत, मा.गु., गा. ७, पद्य, जै., वै., वैराग्य पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुडिं, गा. ३, पद्य, भूपू वैराग्यबावनी, ग. लालचंद, मा.गु., गा. ५१, वि. १६९५, पद्य, भूपू (समज समज रे भोला प्रा), ३६३५१-१(+), ३७९०३ वैराग्यभावना गीत, मा.गु, गा. ९, पद्य, वे. (सख रास रमतो साथि), ३६५१० वैराग्य सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ऊंचा मंदिर मालीया), ३७२४१-८ वैराग्य सज्झाय, मु. जीवविजय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., ( आप स्वभाव मां रे), ३७२४१-१५ वैराग्य सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (जीवडला रे आपा विमासी), ३८३९६-२ वैराग्य सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू (सज्झाय भली संतोषनी), ३७८७७-२, ३८१८३ , " व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, मूपू., (अशरणशरण भवभयहरण), ३६७४२-२ शंभुनाथ स्तुति, पुहिं. गा. १, पद्य, वै., (प्रथम वासकिवलास गवरी), ३६५२०-४ वैराग्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३८०१०- १(+$) व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ९, गा. १६१, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिन सोलमो), ३५९६६ For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८३ शकुन विचार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे.?, (पूर्व दिशि पीयाण करि), ३५७७९-४(२) शकुन विद्या, सरूप कवि, पुहि., दोहा. १, पद्य, (करीण रंभ हरिचंद्र), ३८२७४-२(#) शकुनसत्तरी, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., गा. ७७, पद्य, मूपू., (--), ३८००४-१(+$) शक्तिमाता गीत, ठाकुर, मा.गु., गा. ७, पद्य, वै., (सगतिमाता नित सेवतां), ३८७७८-१(-2) शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंथी कहेने शनेशरू), ३५०८९-१ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), ३६३७७, ३९०३७(६) शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरवाडि स्तवन, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ३४, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (शारदमनि समरी सदा रे), ३५८३८-१(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल सिद्ध), ३४८१७-१, ३६६९१-२ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शत्रुजय सिद्ध), ३४५३९-५ शत्रुजयतीर्थ पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरिजी को दरिशन), ३८९८५-१ शत्रुजयतीर्थ पद, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कामित कामगवी सुगुरु), ३४५६५-१ शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवू जी), ३७८८२-१(+#), ३७५६८-१, ३८१५३-१ शत्रुजय तीर्थमाला, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाल्हा वारु), ३६२९८(+5), ३६६९३(#s) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाहला वारु), ३८४२४-१ शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ३४५९७-१(), ३५४००६) शत्रुजयतीर्थ वधावो, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गिरिराज वधावो मोतीयन), ३४७८८-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. आणंदविनय, मा.गु., गा. ११, वि. १९७८, पद्य, मूपू., (सेज़ुजै सनमुख चालत), ३५७३६-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), ३८६८०-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चालो सखी सिद्धाचल), ३४६५४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कल्याणविमल, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (मेरो मन मगन भयो अब), ३८६४६-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ओ दिन क्यारे ऊगसि रे), ३६९८७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (नाभिनंदन पूर्व नवाणु), ३६६९१-१(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामिनी), ३९०४३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज आपे चालो सहीयां), ३८४०४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू., (करजोडी कहे कामनी), ३७०७० शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल वंदोरे), ३४५५७-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु.ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल वंदोरेनर), ३७२४३-७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इण डुंगरीयानी झिणी), ३६३१३-१, ३८००२-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोरा आतमराम कुण दिन), ३७३८२-२(5) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालोने प्रीतमजी), ३७६०० शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १५, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (जे कोइ सिद्धगिरिराज), ३६८४७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चालो सखी जिन वंदन जइ), ३८३३१-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (यात्रा नवाणु करीए), ३७०६३-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजी आव्या रे), ३७१२२-४, ३४७६६(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. पायचंदसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार माह), ३७६१२-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल भेटता), ३८७६६ For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विमलाचल नित वंदीये), ३७८५०-२(+-), ३७०१९-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रणधीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (--), ३७४२९-१(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो चालो नें भविक), ३९०२२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मोह्यउ हे सखी गिर), ३८२८१-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांभलि हे सखी सांभलि), ३६२६० शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (अमृत वचने रेप्यारी), ३८४४६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लाभविजय, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल भेटन हो), ३७४२९-६ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा. १३, वि. १९३२, पद्य, मूपू., (छबीला सिद्धाचल उजवाल), ३८६९४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सरूप, रा., गा.५, पद्य, श्वे., (हो रंग रसियाजी सेत्र), ३८२७८-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मारु डुगरिये मन), ३८२४०, ३८६८८ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भरतेषर अवसरपिणी आरके), ३६८००-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (शेजेजे गयां पाप), ३६८७५ ।। शत्रुजयतीर्थ स्तवन-आदिजिन, मु. केशरविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सहीयां ऋषभजी जीणंदशु), ३५७७३-३ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय तीरथसार), ३८४२८(+$) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सवि मली करी आवो), ३८६८५-१ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय आदिजिन), ३८४९३ श@जयतीर्थ स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, पू., (आगे पूरव वार नीवाणु), ३८०२७, ३८३६१-२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीरसहे समोसर्या), ३८५३२-२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल मंगल लीला मुनि), ३७३५४-१ शत्रुजयतीर्थ होरी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो सखी विमलाचल जइय), ३६४८७, ३८९८५-३ शत्रुकेतु कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वदेस भूमिभूषण), ३७७४१-१ शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणी मन दियो), ३६४५५, ३७२८६ शनिश्चर छंद, मु. देवरत्न, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (शुभमतिदा गुरु शारदा), ३८७२८ शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (अहि नर असुर सुरपति), ३६२५९, ३६२६४, ३६३९२, ३८७९१-२(5) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., वै., (आनंदन जगजयो रविसूत), ३४६३६-१(+$) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (छायानंदन जग जयो रवि), ३४६३६-२(+) शरीर अशुचिविचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि करु), ३७६८५(5) शरीर पर्याप्ति विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (आहारपर्या० पूरी करता), ३५६१६-१ शरीर वर्णन सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (रूधिर सेर दस देहमां), ३७३४६-२ शलाका पुरूष विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (तिपेष्ट नामा वासुदेव), ३५६१८-१ शल्यछत्रीशी सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ३६, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्ध छे आयरि), ३४७२६ शांतिजिन आरती, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति तुमारी तोरा), ३७८१३(+), ३४७०८-१, ३७१९३-२ शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोलम जिनवर शांतिनाथ), ३७३८९-२ शांतिजिन चैत्यवंदन, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (संतीजिनेसर सायबा सुख), ३४६५८-२(+#) शांतिजिन चैत्यवंदन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांति), ३६८०७-५ शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुंसिरनाम), ३५२८६-२(+), ३५९०२-१(+), ३८०११, ३८९९५-१, ३७१४७($) शांतिजिन देववंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., प+ग., मूपू., (--), ३६८७०(६) For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शांतिजिन लावणी, मु. सुंदरविजय, पुहि., गा.७, वि. १९४७, पद्य, मूपू., (तुम भले बीराजो सांत), ३७२१०(+) शांतिजिन स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर वंदिये), ३५७१३ शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुणो शांतिजिणंद), ३८२९४ शांतिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सेवयोरेशांति जिणंद), ३८५४८-५ शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (नगर हथिणापुर अतिहि), ३८१२१-१ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शाति जिनेश्वर साचो), ३७०३५-४(+) शांतिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मनरा मानीता साहिबा), ३८५४७-८(+$) शांतिजिन स्तवन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (अचिरा नंदनंदन प्रणमी), ३८१३४ शांतिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर प्रणमुं), ३७०१३ शांतिजिन स्तवन, मु. दियाल, मा.गु., गा. १४, वि. १७४२, पद्य, श्वे., (श्रीसंत जीणेसर संत), ३८३६७ शांतिजिन स्तवन, पं. धीरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिन शांति प्रभु), ३८१५० शांतिजिन स्तवन, मु. मूलचंद, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (सेवीजै प्रभुसंतजिणे), ३८२४७-२ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांतिजिणंद महाराज), ३७२४३-६ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ३४६०३-१, ३५७४८-२ शांतिजिन स्तवन, वर्धमान विजेराज सोनी, मा.गु., ढा. २, गा. ११, वि. १७३३, पद्य, श्वे., (सांति नमी कहंसाते), ३६५४६-१(-#) शांतिजिन स्तवन, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (वंछितपूरण आदि नमो), ३७०९९-७(#) शांतिजिन स्तवन, उपा. शांतिचंद्र, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (संतिकर कंतिधर थुणिसु), ३९०१६(#) शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो), ३७८५०-३(+-) शांतिजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (शारद नाम रिदय धरी हो), ३४८४७ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आवै आवैरे इंद्राणी), ३७८९७-१(#) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शांतिनाथशरणागत), ३८७५६-२(+) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीशांतिकरण जिन), ३६१६०(+$) शांतिजिन स्तवन-उडनगर, मु. अमृत, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (उंडनगरनो राजीयो रे), ३७५३५-२ शांतिजिन स्तवन- चतुर्दश गुणस्थान गर्भित, आ. सौभाग्यरत्नसूरि, मा.गु., ढा. ८, गा. ९५, पद्य, मूपू., (सकल मंगल करण सदा), ३६०१९(६) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर केसर), ३६९३० शांतिजिन स्तवन-मेदनीपुरमंडण, पं. आनंदविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८४६, पद्य, मूपू., (शांतिजिनेसर वंदीय), ३७६२०-२ शांतिजिन स्तवन-रतनपुरी, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (रतनपुरी सणगार रे), ३६५१५-१(-) शांतिजिन स्तवन-रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (वंछित पूरण मनोहरु), ३८५३७-१(-) शांतिजिन स्तवन-चीसस्थानक विधि गर्भित, मु. भावहर्ष, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (नमिय सिरि संतिजिणं), ३५६२९ शांतिजिन स्तवन-शापुरमंडण, ग. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुपाय), ३८९८६-३ शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसूरि, पुहि., गा. २२, पद्य, मूपू., (सारद मात नमु सिरनामि), ३७४९४-१ शांतिजिन स्तुति, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मयगल घरबारी नार), ३७१६८-१ शांतिजिन स्तुति, मु. विशालसोम, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सोलिसमा श्रीशांतिनाथ), ३५८७२-४ शांतिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति सुहंकर साहिबो), ३६८४८-१ शांतिजिन स्तुति-जावरापुरतीर्थमंडन, मु. पुन्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिकर शांतिकर), ३५२६३-४ शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा.१०, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो केवल रुप भगवान), ३७५४२-२(+), ३४८७९-१ शालिभद्र गीत, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (नयर वेलाउल जाणीइ ए), ३६३६६ For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ शालिभद्रधन्नाजी सिलोको, मु. सिंह, मा.गु., गा. १४७, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (सरसति साम्मण समरु), ३८४५७($) शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, पू., (सासननायक समरिय), ३८५८४-१(+$), ३५५५५(६) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रथम गोवाल तणे भवे), ३७७७३-१, ३८४८९ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ३६, वि. १६वी, पद्य, मपू., (प्रथम गोवालिया तणे), ३८०४३-१(६) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (राजगृहीय नयरीए वणजार), ३८२३३-१ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (सुतो जाया वरष ए छोय), ३८२०६($) शालिभद्र रास, मु. साधुहस, मा.गु., गा. २१९, वि. १४५५, पद्य, मूपू., (देवि सरसति २ सकल), ३६१०७(5) शाश्वतजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (लाख बहोत्तेर कोडी), ३४८५२-५ शाश्वतजिन चैत्यवंदन-पुष्करार्द्धज्योतिश्चक्रस्थित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नवसें जोयण ज्योतिश्च), ३४८५२-४ शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ चंद्रानन वंदन), ३९०४५(5) शिवकुमार कथा-नमस्कार महामंत्र विषये, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवकारनइ प्रभाविइ), ३५६६३-४ शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोतमस्वामी पुछा करी), ३७०९६-३(-) शिवमत विचारपद, गोस्वामी तुलसीदास, पुहि., गा.५, पद्य, वै., (साखरे मन धीरज क्यों), ३५९०८-३ शीतलजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शीतल नामु शिष जपो), ३४५३९-१२ शीतलजिन स्तवन, मु. मतिहस, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (काया कामिनी इम भणे), ३८०६७-१ शीतलजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतल जिन भेटीए करी), ३५६४३-६ शीतलजिन स्तवन, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (गुणनिधि गाउरे सीतल), ३७६०९ शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ३८४९०-१ शीतलजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सखी नवी नवेरी भगति), ३६२४८ शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मोरा साहेब हो), ३८०६७-२ शीयलव्रत सज्झाय, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (सील रतन मोटो रतन रे), ३७५७४-२ शीयल सज्झाय, मु. एकलिंगदास, पुहि., गा. १८, पद्य, श्वे., (या प्रबल प्रेमको फास), ३६६२८ शीयल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, स्था., (प्रथम नमुंते सारदमा), ३८९२४-२ शीयल सज्झाय, सेवक, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (कुगतपणो जीउ पामीयै), ३८३८७-२ शीयल सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (रीस चढी बोलै छै राणी), ३८५९२ शीयल सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरसत सामण वीनमु मागु), ३८०८१(६) शीयल सज्झाय-तारादे लोचनी, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (बीरा बीरा मणइ सील), ३८११२(-) शीयल सिखामण सज्झाय, मु. उमेदचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (एक अनोपम सिखामण धरी), ३८४९१-२ शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ३७५३०-१(+5), ३६३०९(5) शीलमहिमा सज्झाय, मु. अमरचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सतगुण य नमीने जपु), ३८३८३ शीलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली उपमा ग्रह), ३५९०६-३, ३६५१७-२ शीलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ते तरीया भाई ते), ३८६८५-२ शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., कथा. ७२, गा. २४०१, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (सयल सुरासुर माया), ३६५५७(5) शुक्रउदय विचार, मा.गु., गद्य, वै., (पडिवा छठि एकादशी), ३८२०२-२ शून्याशून्यमिश्रकाल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलु अशून्यकाल), ३७६४३-१ शृंगार पद, वैद्रग, पुहिं., दोहा. २, पद्य, (चक्षु सरखत अद्भुत), ३७८६३-२ शेलगमुनि सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ६९, पद्य, मूपू., (श्रीसोहमस्वामी कह), ३५९५४ For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८७ श्रावक १२ व्रत आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपात प्रथम), ३७१०१-२ श्रावक १२ व्रतविवरण सज्जाय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीदेवगुरुधर्मना), ३५६९२-१ श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., अंक. २१, गद्य, मूपू., (धर्मनई विषइ १ मन वचन), ३४९७३-१ श्रावक २१ गुण सज्झाय, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (क्यारे मिलसे रे), ३७६३६-२(#) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ३७२८८, ३७८११, ३७०५५(#) श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ३५३६२, ३५८२२-५, ३८२८३, ३८३९८-१(-) श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रावक धर्म करो), ३५८५५-२ श्रावक गुण सज्झाय, मु. दुर्गादास, मा.गु., गा. १५, वि. १८३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत पेले पद ज), ३८११४-१(-) श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (कहिए मिलस्ये रे), ३७८४१-१ श्राविका धर्मकार्य बाधा सज्झाय, मु. श्रीमलजी, रा., गा. १०, वि. २०वी, पद्य, स्था., (पहर पाछली राते उठू), ३८५४५-१ श्रीकृष्ण नेमिजिन संवाद, मा.गु., गद्य, श्वे., (द्वारिकाने विषे), ३८४५०(5) श्रीकृष्ण भक्तिपद, मा.गु., पद्य, वै., (जिणि करि गिरि), ३५९४२-२($) श्रीदेवी कमलस्वरुप वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (हेमवंतपर्वत १०० जोजन), ३६४६५ श्रीदेवीनो इंदकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पीला सोना माहे कणकी), ३७७४४(+) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (कल्पवेल कवियण तणी), ३६७४९(+$), ३७१५५(+$) श्रीमती कथा ममस्कार महामंत्र विषये, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ३५६६३-३(5) श्रीसारबावनी, मु. श्रीसार कवि, मा.गु.,रा., गा. ५६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (ॐ ॐकार अपार पार न), ३६२५५ श्रेणिकराजा सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (मतो पुरव सुकरत न कीय), ३५८२१ श्रेयांसजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुगुण पुरुष श्रेयांस), ३४५३९-१३ श्रेयांसजिन पद, मु. गुणविलास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (महेर करो महाराज हम प), ३८४२४-४ श्रेयांसजिन स्तवन, मु. कुसालचंद, मा.गु., गा. १४, वि. १८७१, पद्य, श्वे., (प्रभु श्रीअसजीन राय), ३४५१७-१ श्रेयांसजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांस जिणंदनी), ३७०२३-२(-2) श्वासोश्वास विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (सासउसास थाय एक मुहुर), ३५०३६-१ षड्द्रव्यनी चर्चा, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य१ गुण२ पर्याय३), ३७१९०-१(६) । संजया विचार-भगवतीसूत्रे-शतक२५उद्देश, मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूपू., (पन्नवणा १ वेयरागे), ३७०६४-२(s), ३७२३९-१() संतोकचंदमुनि गीत, मोतिलाल, मा.गु., गा. १२, वि. १९६४, पद्य, श्वे., (मुरधरदेश दक्षण दिशे), ३४५०४-१(+) संथारा विधि, मा.गु., ग्रं. १२, गद्य, मूपू., (सागारी तथा नरागारी), ३७३९६(+) संध्यापोरसी विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलु इरियावही), ३८६५०-२ संभवजिन चैत्यवंदन, मु. विजयराजसूरि शिष्य, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (शंभवजिन भव जलधि मध्य), ३४५३९-३ संभवजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (संभवदेव ते धुर सेवो), ३८४९४-३ संभवजिन स्तवन, मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (साहिबारे संभव जिनरी), ३८१०७-१ संभवजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हारे प्रभु संभव), ३५५६५-२ संभवजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ५, वि. १७६२, पद्य, श्वे., (तुंतोत्रीजो रे), ३५८४९-२ संभवजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ८, वि. १७५१, पद्य, श्वे., (संभव नाम सोहामणो वर), ३७५५७-२ संभवजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., ढा. २, गा. १३, वि. १७१२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर सुभकाय भाय), ३९००३-२ संभवजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीशंभव सुख कर जिन), ३९००३-१(६) संभवजिन स्तवन, मु. गांगा, मा.गु., गा.११, पद्य, श्वे., (संभव जीनवर रुपेरुडा), ३४८१८-१ For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ संभवजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साहिब सांभलो रे संभव), ३६५०१-३(+$) संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (माता सेना जेहनी तात), ३६११५-२ संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर विनती), ३५८७९-४, ३८६०२-४(#) संभवजिन स्तवन, मु. सौभाग्यसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, स्पू., (संभव जिनवर विनती), ३८६८०-२ संयमव्रत पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (ए धन पुरस जो संजम), ३७२५४-५(+-$) संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., अध्य. ४ उन्माद, गा. ७४, वि. १७३१, पद्य, श्वे., (बुद्धिवचन वरदायनी), ३४६६२($) संयोगी भांगा, मा.गु., गद्य, जै., (क१ खर ग३ घ४ च५ छ७ ज८), ३८९६७-२ संवच्छरी खामणा, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (खामणलांखामोरे भविक), ३६४१५ संवर सज्झाय, आ. सौभाग्यलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पांचम पदने गाइरे), ३८३७५-१ संवेगी कडतल, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसति माता तुझ पाए), ३८२७३(-) सगपण सज्झाय, ग. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (केहनां सगपण केहनी), ३७०८८-१ सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रवचन अमरी समरी), ३४५९४ सती सज्झाय, रा., गा. ३०, पद्य, श्वे., (सहुसरीसी नर नही नही), ३८६०३-१(+-) सत्यासीयाछतीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६८७, पद्य, मूपू., (रुडी श्रीगुजराति देस), ३६९९५(#) सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (तिणकालने तिण समें), ३७१०३-१ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (कुरुदेशे गजपुर ठामे), ३४७७२ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जी हो सोहम इंद्र), ३४५२१-४ समकित के ६७ बोल की सज्झाय, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (चउसदहणा तिल्लिंग दस), ३७२८७-१ समकितलक्षण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३५६१६-५ समकित विचार, मा.गु., पद्य, मूपू., (हिवै समकितना ६), ३७३७२ समकित सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (वीरजिणेसर प्रणमीय), ३८६३७(+) समवसरणविचार स्तवन, मु. रूपसौभाग्य, मा.गु., ढा. ५, पद्य, पू., (देवतणा आसण चलइए सुर), ३६२७६ समवसरण स्तवन, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (सरसति सांमिणि पणमीय), ३६३४६(+) समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अपुरव जीव जिनधर्मने), ३८१७०, ३८२१०-१ सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. आनंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आज गई थी सिखरगिर ऊपर), ३८१३७-३(#) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मधुवन में जाय मची रे), ३४६०३-२ सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. वल्लभसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समतिशिखर चालो जइए), ३८६२२-१ सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (दरसण कीयौ आज सीखरगीर), ३५८०१-१ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, मूपू., (समेतसिखरगिर ध्यावो), ३८१३७-४(#$) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सेवामें सिखर गिर), ३८१३७-२(#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८९१, पद्य, मूपू., (--), ३८१३७-१(#S) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (समेतशिखर सुहामणो), ३८२२०-२ सम्यक्त्व के ९ नाम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य समकित भाव), ३५०६१-७ (२) सम्यक्त्व के ९ नाम विचार-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्यसमकित कहता), ३५०६१-७ सम्यक्त्व के ९ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य समकित भाव), ३५४०७-२ सम्यक्त्व विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो ऊपशमिक तेहनी), ३६१४३($) सम्यक्त्व सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जिनवाणी घन वुठडो), ३८७६८ सम्यक्त्व सज्झाय, मु. देवीदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (समकीत नाह सहीरे), ३५२६२-५ For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८९ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चाखो नर समकित सुखडली), ३८९८८-२ सम्यक्त्व स्वरूप, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ प्रथम सम्यक्त्वना), ३६६७५-२(+) सरस्वतीदेवी छंद, मु. दयानंद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (मा भगवती विद्यानी), ३८५५०-१(#) सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), ३७६२४-१(+), ३६५२०-१, ३४९१८-२(5) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन), ३४५५१-१, ३७१५८ सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर समुज्व), ३७६२७, ३८३३१-१ सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐकार धुरा उच्चरण), ३६४०९(+), ३५६७८-१ सरस्वतीदेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, श्वे., (कुंडल झलकै मझ करण), ३८२८२-२ सरस्वतीदेवी स्तुति, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (सारद सारद तुंजगि), ३४६४५(+) सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ३५९२०-१(२) सवैयाएकतीसा, पुहिं., पद. १, पद्य, जै.?, (जसै काहु कंज मै), ३४८२८-१ सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, वै., (अली आय खरी सन्मुख), ३६५२८-२ सहसकूट जिनपरिमाण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दस खेत्रनी तीस चोवीस), ३७१२३-२(+) सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सहसकूट जिन प्रतिमा), ३४५६८-१ सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं. ८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ), ३७८५७-१(+5), ३७८६९(+#$), ३६०१७(5) सागरोपमपल्योपम पूर्वमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (तीखै सबै देवतानी), ३६९९७, ३७९७९-३ सागरोपम पल्योपम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यार गाउनो कुओ), ३७००३-१ साडा बार ज्ञाति नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमाली१ ओसवाल२), ३५६६८-४ साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगधदेस राजग्रहीनगर), ३५३८६-१, ३८३१७-१ साढी १२ न्यात नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (ओसवाल १ महेसरी २), ३८८५०-३ साधकसाध्य विचार-षट्कारक गर्भित, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्र षट्कारक बाधक), ३७६७१(+) साधारणजिनगीत, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तु निरंजन इष्ट हमेरा), ३७०३५-३(+) साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चउजिन जंबूद्वीपमा), ३४६५३-२ साधारणजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, पू., (मेरो निरंजन यार हो), ३८५०१-३(+) साधारणजिन पद, मु. उदयरत्न', पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनजीसूलग्यौ मेरो), ३८३४९-४ साधारणजिन पद, मु. जस, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (सलुणे सामि भरे भक्ति), ३४६७२-४ साधारणजिन पद, मु. दिनकरसागर, पुहि., गा.४, पद्य, मूपू., (उठत प्रभात नाम जिनजी), ३८५०१-४(+) साधारणजिन पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनजी सैं नेह लगावो), ३४६६८-३, ३७८७७-८ साधारणजिन पद, मु. पदम, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (राग को नांव कल्याण), ३४५५०-१ साधारणजिन पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (आई मुरत मेरो मनहर), ३८६४६-९ साधारणजिन पद, मु. रतनसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (लाल गुलाल उडावो गावो), ३७७१४-२(-) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (समझसमझ जिया ज्ञान), ३७८७७-७ साधारणजिन पद, मु. विनतसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (आज मुझघर नाथ पधार्या), ३५०८९-२ साधारणजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरे जिउ आरति कांइ), ३८७८४-१०-) साधारणजिन पद, मु. सुजस, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज चलो तुम जिनमंदिर), ३४५४०-१ साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (अवनासी के गुण गावता), ३४५४०-३ साधारणजिन पद, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (तारो तारो म्हाराज), ३४६६८-४ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (दरसन विन जीया तरसत), ३७३४७-२ For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९० www.kobatirth.org साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, वे., (नीरंजन यार वो), ३५००६-५($) साधारण जिन पद, पुहिं. गा. ५, पद्य, मृपू, मन भनुं सुने गुणनतन), ३७८१९-२(+) " साधारण जिनवीनती स्तवन, मा.गु., पद्य, मृपू., (कर जोडी आगलि रही मन), ३६५३६-२ (४) साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहिं. गा. १२, पद्य, भूपू (बंदु श्रीजिनराय मन), ३७४९४-२ साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानज्योत, पुहिं. गा. ६ पद्य म्पू. (खतरा दूर करणा दूर). २४५८०-१ ', साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनराज जुहारण जास्या), ३४५२१-३ " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ साधारणजिन स्तवन आ ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ८. वि. १८वी, पद्य, मूपू (सकल समता सुरलतानो), ३७२४३-२ 3 साधारणजिन स्तवन, मु. मूलचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे. (जी मन मोह्यो प्रभूजी), ३४८२७-६ साधारणजिन स्तवन, मु. मेपलाभ, मा.गु, गा. ६, पद्य, म्पू (-), ३८६४६-४४३) " साधारणजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु गा. ८, पद्य, भूपू (प्रभु तोरी वाणी सुणी), ३८७५९ " " साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( मनभावन जन तन मन तोसे), ३४५८९-१ साधारण जिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु. गा. ८, वि. १७७१, पद्य, भूपू (सकल कुसल वन संचवा हो), ३८५४८-४ साधारणजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (देख हो सुरराज जिन), ३८५०१-७(+) साधारण जिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू.. (आज गईती हुं जिनमंदिर), ३५६४९-२(३) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वे. (आजुन दन रडी आमणोरे), ३८६४६-३(३) " साधारणजिन स्तवन-अकर्म घेतालां की वीनती, मा.गु., पद्य, मूपू (अरिहंतदेव परसाद), ३५५२९ (5) साधारणजिन स्तवन -विचारगर्भित, मा.गु, पद्य, वे (--), ३७१६०/६) . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन स्तवन - साधुक्रिया गर्भित, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज भलाइ दीन उगीयो), ३६६९२-२ साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपू (चंपक केतकी पाडल जाई), ३४८१३-२, ३८३७७-२ (०६) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, मूपू., (-), ३६७००(३) साधारणजिन स्तुति, मु. देवविमल, मा.गु गा. ४, पद्य, भूपू.. (वइणपमंडण सुहकरा), ३७५२९-४(+) " साधारण जिन स्तुति, नान, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., ( धि धि कि टि धों), ३८९७५-२ साधारण जिन स्तुति, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (दुखहरण जिणेंद्र कर्म), ३७८१२-१ (+) साधारण जिन होरी, मु. न्यायसागर, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., ( फाग रमे रस रंग प्रभू), ३४७११-२ साधु २७ गुण सज्झाय, पंडित. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत मुखकमल), ३४६८५-१(#) साधु असाधु गुणदोष वर्णन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साधु तणी एह रित मुख), ३८३८२ - १(+) साधु आचार सज्झाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर उपदिस्यो), ३८९०६ साधुकी वीसचसा और श्रावककी सवावसा दया, मा.गु., गद्य, मृपू., (जीवना जे भेद सुक्ष्म), ३७२३६-३(+) साधुगुण पद, पु.ि, पद्य, श्वे. (वाणी तो० गुरु तो), ३४४५५-२ (६) साधुगुणबत्तीसी, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे. (पापपथ परहरै मोक्षपथ), ३६२५७ साधुगुण सज्झाव, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू (श्रीजिनवरने करुं), ३४७९५, ३५३९६- १०१ , साधुगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. साधु गुण सज्झाय, मु. नेत, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे. साधुगुण सज्झाय, मु, ब्रह्म, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू साधुगुण सज्झाय, मु, मान, मा.गु., गा. ७. पद्य, म्पू, (ऐसा साधु नमुं सदा). ३४४७lk4 " साधुगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८३१, पद्य, श्वे. (पुनजोगै नरभव लहो नीक), ३८११४-२ (-) साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पांचे इंद्री रे ), ३७८२६ (+), ३९००२-१ (+#), ३६७८८-१ ($), ३८३७६ (-) साधुगुण सज्झाय, आ. विमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिणवरनै करु), ३८१७७ (#) ७, पद्य, मूपू., (ते मुनिने करूं वंदन), ३४८२०-५ (प्रणमुं आदिजिणेसरराय), ३८२९२-१ (पंच महाव्रत जे धरइ), ३४८२०-१ For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५९१ साधुगुण सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सुरा खडग संभाया हो), ३८०५१-१(+) साधुगुण स्तव, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू., (वंछित पूरणि सुरमणी), ३६८१४ साधुजीवन सज्झाय, मु. भूधर, पुहि., गा. १८, पद्य, श्वे., (प्रभु मोह महारिपू), ३७०११-२ साधुदिनचर्या सज्झाय, आ. आनंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे वीर पास), ३७५५४-२($) साधुधर्म सज्झाय, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., गा. २१, वि. १८३२, पद्य, श्वे., (साधु धन ते जीता), ३८९४२ साधुपद सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर सवे करी), ३८२७६-१(६) साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना अतिचार कहै), ३५५२३-२ साधु महिमा पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गुण विन गुरु कहवाय), ३८०५१-२(+) साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. ८८, पद्य, मूपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), ३४५८४, ३७७८० साधुवंदना, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (श्रीजिनभाषित भारती), ३५७९६ साधुवंदना, रा., ढा. २, गा. ३९, पद्य, श्वे., (जिणमार्ग में धूरसुं), ३५४६१-१ साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमु अनंत चोवीसी), ३६८०४-१ साधुवंदना स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आदिनाथ समोसा), ३८०५१-३(+) साधु साध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोइ साधु काल करे तथा), ३९०२५($) सामायिक ३२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (पालखी न बेसे १ अथिरा), ३५७५९-२(-) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ८, वि. १७५८, पद्य, श्वे., (श्रावक व्रतधारी गुण), ३९००४-२(+) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धुरि गौतममुं लीजे), ३५३०२-२(+) सामायिक लेवा-पारवानीविधि, मा.गु., प+ग., श्वे., (इच्छामि खमासमण देइ), ३८६५५ सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमिय श्रीगौतम), ३५७५९-१(-) सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), ३५१०७-२, ३५८२७-५, ३५८२९-६(#) सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चतुर नर साय नायक), ३८३२६-२ सामायिक सज्झाय, मु. विनयचंद ऋषि, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (सामायिक पोसा करे), ३८१०९-१(+) सिंहलसुत चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३६२००(+$) सिचीयायदेवी स्तुति-ओसिया, मु. जुगति पाठक, पुहिं., गा. ७, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन आया गढ), ३४५५०-४ सिद्धगुण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धना ज्ञानावरणादि), ३८९१५(६) सिद्धचक्र आरती, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (आरति आरति श्रीसीद्ध), ३८५२५-२ सिद्धचक्र उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वलय ३ प्रथम वलये), ३८४७४-३(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शिव सुखदायक सिद्धचक), ३८४०८-१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधता), ३५८९७-१ सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत उदार कांत), ३७५९८-१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद माय प्रणमी), ३५९७३, ३८६६८ सिद्धचक्र स्तवन, मु. चिमनसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेवो सिद्धचक्रने रे), ३७४३८-३ सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधिय), ३७२४३-४ सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र वर सेवा), ३७००४-३, ३७१०९, ३८६९५ सिद्धचक्र स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सुहामणो), ३८४७३-२(+), ३७६७३-१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. रिख महंत, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (हां ऐ अरिहंत पद पहिल), ३८३०७ सिद्धचक्र स्तवन, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी कही सम), ३८२१९(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र दिल मे), ३८०३०-३(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १४१७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), ३४५५६-६(+) For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९२ www.kobatirth.org सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., गा. १२, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सुहामणो रे), ३४८६९-१ सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु. गा. ४. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवा), ३४५५६-१(+), ३४८०३ " 1 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु. गा. ४, वि. १८३, पद्य, मूपू. (पहिले पद जपीइ अरिहंत), ३७२८१-२ सिद्धचक्र स्तुति, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सेवो), ३४५५४-२ सिद्धजीव के ८ गुण, मा.गु., पद्य, मूपू., (समत्तनाण दंसण वीरिय), ३६५८०-४ सिद्धदंडिका स्तवन पंन्या पद्मविजय, मा.गु., डा. ५. गा. ३८. वि. १८१४, पद्य, मृपू. ( श्ररिसहेसर पाय नमी), ३५५३४ सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु. गा. १६, पद्य, मूपू (श्रीगीतम पृच्छा करे), ३७३८१-१ , सिद्धपद स्तवन, मा.गु. गा. १३, पद्य, भूपु (जगतभूषण विगत दूषण), ३७३८९-१, ३७४८६-२ सिद्धशिला स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८२०, पद्य, स्था., (होजी सीधसीला सगलासी), ३८४०९, ३८३८९ (-) सिद्धांत बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे इम कहइ छइ अम्हारई), ३५९५६ सिद्धांतसारविचार सज्झाय, आ. आणंदवर्द्धनसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( श्रीजगनाथि सइमुखि), ३४५९०-१ सिद्धार्थराजा का भोजनसमारंभ वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे. (हिवे मांड्यो उत्तंग), ३७६३४ सिद्धार्थराजा भोजन विधान, रघुपति, मा.गु गा. ५१, पद्य, वे (स्वस्ति श्रीऋद्धि), ३६३६८ "3 , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीतारामचंद्र बारमासो, मा.गु, गा. १३, पद्य, म्पू, (सखी आवेलो कारतिक मास), ३६२३२ सीतासती सज्झाय, मु. जुठो, मा.गु., गा. १७, पद्य, थे. (कयो रे मानो रे हीणा), ३४५६२ " सीतासती सज्झाय, मु. धनहर्ष, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सीता आणी रावणिं वात), ३८३४८-१ सीतासती सज्झाय, ग. समवप्रमोद, मा.गु., गा. १२, पद्य, भूपू (लोकवचन सुणि वनिता), ३८३५७(०) सीतासती सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (वीरा सीता सीतारो रुप), ३५१७३-५ सीतासती सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे. (--), ३८६३०($) सीतासती सज्झाय - शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), ३८३८७-१, ३८७७५-१, ३८२३१(४) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (पहिला प्रणमु), ३८५४७-१(क) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिबा ), ३४५३९-९ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु गा. ८, पद्य, मृपू (पूरव दिशि इशान कुण), ३४५५६-४(*) सीमंधरजिन पत्र, क. नर, मा.गु., पत्र. २, गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीमहाविदेह), ३७९१७ सीमंधरजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, वे., (सीमंधरस्वामी मे चरनन), ३५६०२-३(+) सीमंधरजिन लावणी, मु. रामचंद, रा. गा. ११. वि. १९०९, पद्य, वे (चंदा तुं जाइये जिण), ३४७१२-१ " " सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, क. कमलविजय, मा.गु. बा. ७. गा. १०५. वि. १६८२, पद्य, मूपू (स्वस्ति श्रीपुष्कला), ३८३४१ सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिब), ३६८४९ सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं, गा. ५, पद्य, मूपू. (सीमंधर विनती सुणि), ३८५४७-२(+), ३७०१९-२ सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुण सीमंधर साहिबाजी), ३५२३०-२(S) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हु), ३६१८०, ३४७५९(#), For Private and Personal Use Only ३४९०१-२(s) सीमंधरजिन विनती स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. दा. ४, गा. ४१, पद्य, भूपू (श्रीसीमंधर साहिब आगे), ३६२८९ सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (मारी वीनतडी अवधारो), ३४६५७-१ सीमंधरजिन स्तवन, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु गा. १९, पद्य, मृपू (जगबंधव जगमीया वीनतडी), ३५८८३-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु. ( महाविदेह क्षेत्रनो), ३८५९९-२ Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ___५९३ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कुसल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मनडा सीमंधरजिणवर), ३५१४७-२(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. गंग मुनि शिष्य, मा.गु., गा. १३, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी सुणो), ३७८०६-२ सीमंधरजिन स्तवन, श्राव. गोरधन माली, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (आज भलो दिन उग्यो हो), ३८१२१-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. चौथमलजी म., रा., ढा. ३, पद्य, स्था., (आज भलो दिन उगो हो), ३७७६७-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जसरुप, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (सीमधर सीमंधर प्रभु), ३४७०७-३ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधर करजोड मया), ३८३६५-१) सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडु हेजालवू), ३५७७३-१, ३६५४१-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. दोलतराम, मा.गु., गा.८, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (श्रीमींदरजीण जीन परण), ३८६९१(-) सीमंधरजिन स्तवन, मु. मणिसुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधर धरयो सदा सेवक), ३७६८१-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुष्कलवइ विजयेजयो), ३६५२६-५(+s), ३७७०५-१(६) सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिबा हु), ३६५२१-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २७, वि. १८८६, पद्य, स्था., (श्रीसीमंदरसामी मारी), ३४८२१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), ३५६०२-२(+), ३५८२५-१(६) सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ७, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि सरसती भगवत), ३७२६१, ३७९५०, ३८७५३-१, ३७१३१(-६), ३९०५०(-5) सीमंधरजिन स्तवन, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर सुंदर साह), ३८१४२-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ११५, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी जिन नमु), ३६६०१(६) सीमंधरजिन स्तवन, मु. सुजशविजय, मा.गु., गा. २४, पद्य, पू., (धन्य ते मुनिवरा रे), ३८५१३-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (धुरि प्रणमी असिआउसा), ३८१०४ सीमंधरजिन स्तवन, मु. हीरशिष्य, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (सार करी स्वामी), ३७९७७-१ सीमंधरजिन स्तवन, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (पूरव पुष्कलावती हो), ३८४३६-३(-5) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीश्रीमंधरस्वामीना), ३८५५५ सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५६, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (आज अनंता भवतणां कीधा), ३६८३७६) सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर मुझनै), ३५३१५-१(+), ३८२५५-२(#) सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (संप्रति कालै वीस), ३८८९२-३ सीयलपालन सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (बीषीया वीसकी वेली), ३८६७३-१(+) सुंदरीतप सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामिनी), ३७०९१ सुकोशलमुनि चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., ढा. ६, गा. ५७, पद्य, श्वे., (सुगुरू वयणे सांभलीजी), ३७७२८, ३७४३१(5) सुकोशलमुनि सज्झाय, मु. सूरचंद, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (नयरी अयोध्या जयवती), ३७७३३-१(६) सुखदेवलोक सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (देवलोकारा साताकारी), ३८२६६ सुखदेव सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., वै., (स्वर्ग थकी अवतों), ३४७६५(#) सुखी परिवार कवित्त, देवीदास, पुहि., पद. १, पद्य, वै., (पूरे कुल जनम निरोग), ३८५७८-२ सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरू पिछाणो एणे), ३६०२७, ३८२६२(#) सुदर्शन चौपाई, पुहि., गा. १३९, पद्य, श्वे., (धन शेठ सुदर्शन शियल), ३७१६५ सुदर्शनशेठ रास, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३५५९०() सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४५, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पद पंकज नमी), ३७०००-१ सुधर्मास्वामीगणधर गहुली, मु. मोहन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सोहमस्वामी समोसर्या), ३५८८६-४ For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. अमृत, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चंपानयरी उद्यानमा), ३८५२६-२ सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. मोहन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चउनाणी चोखें चित्तें), ३५८८६-५ सुधर्मास्वामी गहुंली, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (ज्ञान दरसण गुण धरता), ३८१६२-२ सुधर्मास्वामी भास, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (--), ३५८८६-१(६) सुपडासुपडी संवाद, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ३५९२५(६) सुपार्श्वजिन पद, पं. आनंदविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८४६, पद्य, मूपू., (हारे मारो सुकलपक्ष), ३७६२०-३ सुपार्श्वजिन पद, मु. गुणविलास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पूरि मनोरथ साहिब), ३८४२४-१२ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल समिहीत सूरतरु रे), ३५५६५-५ सुपार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (साहिब हो साहिब मुझ), ३६५५०-३(+#) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आपे ने पाधरीवाले साम), ३८२१६-१ सुपार्श्वजिन स्तवन, ग. मेघराज, रा., गा.८, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (श्रीसुपासजिन वंदिये), ३६९१२-२ सुपार्श्वजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, मु. जिनवर्धमान, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जोडि कर कोड धरि), ३६५३६-१(4) सुबाहुकुमार संधी, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ७५, पद्य, मूपू., (वंदी वीरजिनेसर केरा), ३८५७३-२ सुबाहुकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (हवे सुबाहु कुमार एम), ३७०६९ सुभद्रासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (मुनिवर सोधइ ईरजा), ३६३७३ सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (आज्ञा मागे मातनी राज), ३५२२२-१ सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मुनिवर सोधेरे इरजा), ३७६७५-४ सुभद्रासती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ३७३४८-४(-$) सुमतिकुमति सज्झाय, मु. लालविनोद, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (चेतन छांडो हो यह रीत), ३५५०४-१() सुमतिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कर तासुं तो प्रीत), ३५६३९-४ सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभुजी जो तुम तारक), ३८५०१-६(+), ३५०६४-४ सुमतिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुमति चरण तुज आतम), ३७०८३-३, ३८४९४-५ सुमतिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जीवडा तुज विषयारी), ३५५६५-३ सुमतिजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ७, वि. १७६९, पद्य, श्वे., (सुमति सुमतिदाता सुख), ३५८४९-१ सुमतिजिन स्तवन, ग. जगजीवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (सुमत सुमतदायक सदा), ३८९९८-१ सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मारा प्रभुजीशुं), ३७५३५-१(६) सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सुमतिजिणंद सुमति), ३७९२३-३, ३७०३३($) । सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुस्युं तो बांधी), ३५६०९-२($) सुरप्रभजिन स्तुति, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (काजइ छइ जेहना सहुजी), ३८४९४-८ सुरसुंदरी चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे.?, (--), ३६१५५(+$) सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. २१, गा. ५१७, वि. १६४४, पद्य, म्पू., (आदि धरमने करवा ए भीम), ३६६३६(5) सुवा केवली, मा.गु., गद्य, मूपू., (केलवी १ अने केवलिना), ३७२३६-५(+) सुविधिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुविधिनाथ जिन जाप जप), ३४५३९-११ सुविधिजिन पद, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरा दिल लगा साई), ३६६९४-२ सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुजरा साहिब मेरा रे), ३५००६-४ सुविधिजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (गुण अनंत अपार प्रभु), ३७८७७-१४, ३८५९९-४ सुविधिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुविधिजिणेसर पाय नमी), ३८४९४-६ सुविधिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु.,ढा. २, गा. २९, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (श्रीसुविधि जिणंद), ३७४७२ For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ (ताहरी अजवशी योगनी मु), ३५५६५-७(३) "3 (सुविधि जिणंद कु पूजि), ३८७६७-१ सुविधिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु गा. ५, पद्य, मूपू सुविधिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू सुविधिजिन स्तवन, मु. तेजसिंह ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, सुविधिजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( दीठो सुविधि जिणंद), ३८९३७-२ श्वे. (सुविधि जिणेसर सुंदरु), ३६२१५ सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं. गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (में कीनो नहीं तुम), ३८३५८-२, ३७७२७-२१) सुविधिजिन स्तवन, मु. लाभकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू. (सनेही प्यारा छो जी), ३४५८९-२ , " सुसाणीमाता स्तुति, रा. गा. ११, वि. १७८९, पद्य, जै., वै.?, (अहनिसि सेवीयै सुरां), ३८२४९-१ . सूतक विचार, मा.गु. गद्य, भूपू (पुत्र जन्म्यां १०) ३८११७ + सूतक सझाव, मा.गु गा. २०, पद्य, चे.. (सुतक तणो हुं कहुँ), ३७६३८ (०) सूत्रना प्रश्न, अज्ञा., पद्य, .. (--), ३७११६-१७) सूरिमंत्र पंचप्रस्थापन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम विद्या पीठ तेह), ३६८८०-२ सूर्य वासो, मा.गु गा. ३, पद्य, (पोहरअशी पोहर दिख्य), ३८४०५-३ सूर्य सलोको, मा.गु., गा. १७, पद्य, जै. ?, (सरसति सांमणि करोने), ३७८७१ सौभाग्यपंचमी देववंदन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम बाजोठ ऊपर तथा), ३७७२६ सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., डा. ५. गा. ७५ ग्रं. ११०, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरणे नमी), ३६४०४(+) स्तवन चौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (सुगुण सुगुण सोभागी), ३७२६७(+) स्तवनचौवीसी, मु. न्यायसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (जग उपगारी रे साहिब), ३६३०८ (+$) स्तवनचीवीसी, मु. न्यायसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मृपू. (वृषभ लंछन जिन वनिता). ३५६५२-१(३) स्तवन चौवीसी, मु. महानंद, मा.गु, स्त. २४ वि. १८०६, पद्य, थे. (आदेशर अवधारीये रे), ३८०१३(३) " स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ), ३६८५९ ($) स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, भूपू (ओलगडी आदिनाथनी जो), ३७७९२(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवन संग्रह, मा.गु, पद्य, भूपू. (--), ३५५७९-२(३) ३६०१६ (४) स्त्री के १६ शृंगार नाम, मा.गु., अंक. १६, गद्य, (१ चोटला गंधन सीधो), ३५०३६-३ स्त्री चरित्र चौढालिया, श्राव. हीराचंद, रा., ढा. ४, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (लख चोरासी मै भटकर), ३८७९८ स्थानकवासी जैन श्रमण संघ का संविधान, पुहिं., विम. ७५, वि. १९८२, गद्य, स्था., (सकल गुणनिधि कृतात्म), ३९०१७ (+) स्थापना कल्प, मा.गु., गद्य, मूपू., ( राती स्थापना मांहे), ३७०१२-२ स्थापनाकल्प सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पूरव नवमथी उद्धरी), ३६५१६-२(+), ३८४८७, ३८८७७ स्थापनाचार्य कल्प, मा.गु. गद्य, म्पू. (जिम श्रीभद्रबाहु ३७८१०-१ स्थापनापरीक्षा विधि, मा.गु. गद्य, म्पू. ( श्रीभद्रबाहुस्वामी), ३६५१६-१(+) स्थूलभद्रबतीसी, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (--), ३६०९२ ($) स्थूलभद्र कोशा सज्झाव, मु. रत्नकीर्तिसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (कोशा कहइ सूणि धूलिभद), ३८३५६ स्थूलभद्रनवरस सज्झाच, मु. ज्ञानसागर, मा.गु. बा. ९. गा. ४९, पद्य, भूपू (करी शृंगार कोशा कहि), ३८६९७ . " For Private and Personal Use Only ५९५ स्थूलभद्रमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू. (प्रिवुडा मानो बोल), ३५४४२-२ स्थूलभद्रमुनि गीत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (चंदन शीतल सार किं), ३८९६५-४ 1 स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा, उदयरत्न, मा.गु, डा. ९, वि. १७५९, पद्य, भूपू (सुखसंपत्ति दायक सदा). ३५७३४-१, ३४५५४-१(३) स्थूलभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा, उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., डा. ९, गा. ७४ वि. १७५९, पद्य, भूपू (सुखसंपति दायक सदा), ३८९२३ (#), ३७५७२(s) 3 Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.९ स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (सयल सुहकर पासजिन), ३८७८२(#S) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीस्थूलिभद्र मुनि), ३९०४०(5) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (लटकाली रे कोस्या), ३७०८८-३ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (कोस्या कामिनि कहे), ३५८७२-२, ३४६१०-१(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वेगि करी वेहेलेरा), ३५३६०-२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वाट जोवंती निशदिनइ), ३५२३२-२(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (लाछल दे मात मल्हार), ३४८३१-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनिवर रहण चोमासे), ३५३११-४ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (थूलभद्र मुनीसर आवो), ३८५५२-१(5) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडली न किजीये), ३८९६५-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (थुलिभद्र मुनिसर आवो), ३७५५२-२(-$) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (च्यारि घडि मुझकही), ३८३६६-१, ३७६०४-३(5) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगण सरोवर साधजी), ३४७१० स्नात्र पूजा, मु. नगविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सद्ध्यानविज्ञानघन), ३५०७७ स्नात्र पूजा, आ. मंगलसूरि, मा.गु., गा. २१, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (मुक्तालंकारविकारसारस), ३७६४४, ३६१६५-१(६) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ३७११० स्यादवाद प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, श्वे., (मलिनाथजीने समवायंग), ३८७८९-१ स्वप्न चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., गा. ४२, वि. १५६०, पद्य, श्वे., (पहिलो मन जोइ करि,), ३६१५४(5) हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे करी ___ चोवीसे), ३७६१५(+$), ३६३२६(5), ३७४२५() हठीसिंग नित्य धर्म आराधना सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सखी पडवे से पंथ नीहा), ३८३७८(5) हरिकेसी सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (जगवलभ गुरजीतु वसीयो), ३८१३६ हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., खं. ५ ढाल ३९, गा. ७८१, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमु), ३५६०५-१ हरीसागरजी ने चुनीलाल सेठ को लिखा पत्र, पं. हरीसागर, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ३५७९५-२ हितशिक्षाबत्रीसी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सकल विमल गुन कलित), ३७६२६ हीरविजयसूरि पत्र, आ. विजयसेनसूरि, मा.गु., वि. १६७१, गद्य, मूपू., (श्रीहीरविजयसूरि), ३८०३८(+) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमु), ३७९८१-३ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीजी वीनवू), ३८५२२ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चउवीसइ जिण प्रणमइ), ३७७३३-२ हुंडकचोर कथा-नवकार प्रभाव, मा.गु., गद्य, मूपू., (मधुरनगरी शत्रुमर्दन), ३५६६३-७($) हुतासनी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे एवे सुगुरु), ३७०७९ हेमराजजी गुण स्तुति, मु. कर्णचंद, मा.गु., गा. १२, वि. १९०६, पद्य, श्वे., (सिवसुखदाता स्वामीजी), ३८७८७-१ * * For Private and Personal Use Only Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आराधना महावीर जी केन्द्र काबा श्री बा. // अमृतं तु विद्या तू Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-81-89177-40-90 Set: 81-89177-00-1 For Private and Personal Use Only