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2- सादर समर्पण -
कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के कर कमलों में...
जिनकी बदौलत यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही.
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मूक व समर्पित, अतिविरल श्रुतसेवक तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी म. सा. के चरणों में...
जिनके अथक परिश्रम एवं कुशल मार्गदर्शन के फलस्वरूप यह ग्रंथसूची साकार हो सकी.
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