Book Title: Jyoti Kalash Chalke
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 12
________________ महावीर चैतन्य के शिखर हैं, अध्यात्म के गौरीशंकर । इसलिए इस चैतन्य-शिखर पर हमें नाज होना चाहिए । महावीर ने साधना-मार्ग में गगनचुम्बी मीनारों को छुआ है, अगर यह कहूँ कि उससे भी दो कदम आगे बढ़ाए हैं तो ठीक होगा । इसलिए महावीर मात्र दार्शनिक नहीं, अपितु अमृत साधक - पुरुष हैं । उन्होंने जिन्दगी को सच में जिया है । ऐसा जिया है, जिसे हम प्रकाश का जीना कहते हैं । महावीरत्व उनके रोम-रोम में समाया था और वर्धमान उस अर्थ को साथ लिये चलता था, जिसमें रुकावट का कभी नामो-निशान भी न हो । महावीर और वर्धमान- ये दोनों नाम केवल नाम तक ही एक-दूजे के पर्याय हों ऐसा नहीं है, वास्तव में इन दो शब्दों में एक जीवन-शैली प्रगट हुई है। अगर हम महावीर की गाथाओं को छुएँ, तो उनके वक्तव्यों में दार्शनिक भाषा कम जीवन की भाषा अधिक दिखायी देगी । बिल्कुल साफ-सुथरे और जीवन के साथ सीधा तालमेल बिठाने वाले हैं महावीर के वचन । उनका उपदेश वही होता था जो जीवन में अनुभूत हो । इसलिए महावीर, जीवन और सिद्धान्त तीनों एक-दूजे के पर्याय और परस्पर पूरक हैं | महावीर के अनुसार उपदेश वही देना चाहिए जिसका स्वयं के जीवन के साथ सीधा तालमेल हो । केवल भाषणबाजी व तर्क-वितर्क हमारे शास्त्रीय ज्ञान को प्रदर्शित कर सकते हैं, लेकिन जीवन के साथ उनका दूर का भी रिश्ता नहीं जुड़ पाता । जीवन का साधना-शून्य होना और किताबी ज्ञान प्राप्त कर सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना मूलतः तो आत्म-प्रवंचना ही है | स्वयं अतिक्रमण करेंगे और दूसरों को प्रतिक्रमण में जीने की बात कहेंगे; कृत्य पाप के और भाषा पुण्य की - यह सब जीवन का दोहरापन नहीं तो और क्या है ? महावीर दोहरेपन के विरोधी हैं । आचरण-शुद्धि के अभाव में, महावीर आचार्यत्व पर भी प्रश्नचिह्न लगाने में संकोच नहीं करेंगे | वह अनुशास्ता किस काम का जो स्वयं अनुशासन की अवहेलना करता हो । कथनी और करनी में ऊँच-नीच न हो इसीलिए महावीर ने महावीर का मौलिक मार्ग / ३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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