Book Title: Jyoti Jale Mukti Mile Author(s): Tulsi Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 8
________________ यह कहना संगत नहीं होगा कि उनके प्रवचन जनता के लिए उपयोगी हैं, बल्कि कहना यह संगत होगा कि इनमें युग को नई दिशा, नई दृष्टि और नया दर्शन देने की क्षमता है। 'प्रवचन प्राथेय ग्रंथमाला' के रूप में संकलित /संपादित हो रहे उनके प्रवचनों की रेखाएं एक चित्र का निर्माण कर सकती हैं - वह चित्र, जिसमें मानवता को झांका जा सकता है। उनकी अनुभूति का एक स्वर विमर्शनीय है 'आचार जीवन की मूल पूंजी है। इस धन से संपन्न व्यक्ति ही वास्तव में संपन्न है। जिसके पास यह पूंजी नहीं है, यह धन नहीं है, वह महादरिद्र है, भले वह कितना भी बड़ा अर्थपति क्यों न हो । यह कितनी गंभीर चिंतनीय बात है कि आज मानव जीवन की यह मूल पूंजी ठुकराकर एकमात्र पैसे के पीछे पागल सा बन रहा है। उसके समक्ष अपना एक ही लक्ष्य है कि येन केन प्रकारेण अधिक-से-अधिक पैसा अर्जित और संगृहीत किया जाए । संयमः खलु जीवनम् - संयम ही जीवन है के स्थान पर पैसा ही जीवन है को उसने अपना आदर्श - सूत्र बना लिया है। इस अर्थप्रधान या अर्थकेंद्रित चिंतन ने समाज में अनेक प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों एवं भ्रष्टाचार को पनपने की उर्वरा तैयार की है । ' उनके प्रवचनों के संकलन / संपादन का प्रयत्न श्रीचंदजी रामपुरिया ने किया, और कई व्यक्तियों ने भी किया, पर इस कार्य में शक्ति का सर्वाधिक नियोजन किया मुनि धर्मरुचि ने। उसी का परिणाम है कि 'प्रवचन पाथेय ग्रंथमाला' के इक्कीस भाग तुलसी वाङ्मय के एक महत्त्वपूर्ण अंग के रूप में एक साथ पाठक को उपलब्ध हो रहे हैं। आचार्यवर की सिद्धवाणी से पाठक लाभान्वित होगा, उससे पूर्व मुनि धर्मरुचि स्वयं भी बहुत लाभान्वित हुए हैं। इसी लिए उन्होंने शारीरिक दुर्बलता के बावजूद इस कार्य में अथक श्रम किया है। उनकी श्रम की बूंदें पाठक को निष्णात करती रहेंगी । आचार्य तुलसी को जनमानस के समक्ष प्रस्तुत करना युग का धर्म है। इस धर्म की आराधना में जो संलग्न है, वह साधुवाद का पात्र है । २६ सितंबर २००४ २०१वां भिक्षु निर्वाण वर्ष सिरिया Jain Education International छह For Private & Personal Use Only आचार्य महाप्रज्ञ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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