________________
संपादकीय
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जिन दो-चार-पांच व्यक्तियों ने युगचेतना और युग-चिंतन को गहराई से प्रभावित किया है, उनमें आचार्य तुलसी का नाम अत्यंत गौरव के साथ लिया जाता है। एक संप्रदायविशेष की वेशभूषा में रहते हुए, उसकी आचार-संहिता पालते हुए तथा उसके नेतृत्व का दायित्व निभाते हुए उन्होंने जिस असांप्रदायिक कार्य-शैली से जन-जीवन में मानवीय, नैतिक, चारित्रिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए सुदीर्घ काल तक एक सघन अभियान के रूप में प्रयत्न किया, उसे इस शताब्दी की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में उल्लिखित किया जा सकता है। अपने इस अभियान के कारण वे तेरापंथ धर्मसंघ के कीर्तिधर अनुशास्ता तथा जैन-धर्म के विशिष्ट प्रभावक आचार्य से भी बहुत आगे जन-धर्म/मानव-धर्म के प्रखर प्रवक्ता और धर्मक्रांति के सक्षम सूत्रधार के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। उनके द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत को मानवीय, नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों के संरक्षण/जागरण/विकास के अग्रणी आंदोलन के रूप में व्यापक पहचान मिली। आचार्य तुलसी और अणुव्रत राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा और जिज्ञासा के विषय बन गए। आचार्य तुलसी और अणुव्रत-दर्शन की यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि ही माननी चाहिए कि आज के शीर्षस्थ राजनेता, प्रमुख समाजशास्त्री, मूर्धन्य साहित्यकार, प्रबुद्ध पत्रकार, उच्चस्तरीय वैज्ञानिक... यह बात बहुत गंभीरता से अनुभव करने लगे हैं कि जब तक मानवीय, नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों की सुरक्षा और जागरण की ओर ध्यान केंद्रित नहीं किया जाएगा, तब तक किसी समाज और राष्ट्र का समुचित विकास नहीं हो सकेगा।
___ आचार्य तुलसी के जन-जागरण के अभियान का एक प्रमुख स्तंभ रहा है-प्रवचन। जलते दीपक की लौ की तरह यह बात बहुत स्पष्ट है कि उनके प्रवचनों से संबोध प्राप्त कर हजारों लोगों ने अपने जीवन की दिशा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org