Book Title: Jo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 2
________________ हमारे भीतर प्रचुर शक्ति है। वैक्रिय की शक्ति है, आहारक की शक्ति है हमारे मन की शक्ति भी कम नहीं है। पर हम अपनी शक्ति को पहचानते नहीं हैं। विचार के मैल दूर करने, विचार को निर्मल बनाने का एक ही उपाय है कि निर्विचार की आग में विचार को डाल दिया जाए, वह अपने आप निर्मल हो जाएगा। विचार के सारै मैल साफ हो जाने के बाद उसमें से सृजनात्मकता, विधायकता, ज्योति और आस्था निकलेगी। किसी के कहने से कोई चोर नहीं बनता और किसी के कहने से कोई साधु नहीं बनता। आत्मा स्वयं को जानती है कि मैं चोर हूंया साहूकार हूं। ग्रंथ या पंथ का धर्म बड़ा नहीं होता। धर्म वह बड़ा होता है जो हमारे जीवन के व्यवहार में उपलब्ध होता है। आधुनिक अर्थशास्त्र ने आसक्ति की चेतना को बहुत उभारा है। उससे भूख की समस्या का समाधान तो हुआ है, किन्तु आर्थिक अपराधों में भारी वद्धि हुई है। अमीरों की अमीरी बढ़ी है, लेकिन उसी अनुपात में गरीबों को उतनी सुविधाएं नहीं मिली हैं। केवल अतीत के सुनहरे सपने दिखाने वाला धर्म चिरजीवी नहीं रह सकता। वही धर्म स्थायी आकर्षण पैदा कर सकता है, जो वर्तमान की समस्या को सुलझाता है। Jain Education इसी पुस्तक से..... Joe Personal Use Only www.jainelibrary.org

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