Book Title: Jiv Vichar Prakaran aur Gommatsara Jiva Kanda Author(s): Ambar Jain Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf View full book textPage 4
________________ २५६ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [खण्ड इसी प्रकार, वर्गीकरण का विस्तार करने पर जीवों के ३२ भेद भी हो जाते हैं : (१) एकेन्द्रिय के २२ भेद पाँच प्रकार के एकेन्द्रियों के सूक्ष्म-बादर-पर्याप्त-अपर्याप्त के भेद से, ५x२x२ = २० सूक्ष्म साधारण वनस्पति (पर्याप्त, अपर्याप्त) २२ (२) २, ३, ४ इंद्रिय जीवों के ६ भेद पर्याप्त, अपर्याप्त, २४३% ६ (३) पंचेन्द्रियों के ४ भेद संज्ञी/असंज्ञी- पर्याप्त अपर्याप्त १४२x२:४ ३२ स्थावर-जीवों के भेद-प्रभेद । (अ) पृथ्वीकायिक उत्तराध्ययन में बताया गया है कि एकेन्द्रिय जाति के सूक्ष्म कोटि के जीवों की एक ही पर पृथक्-पृथक् जातिगत कोटि होती है। इसलिए इस ग्रन्थ में सूक्ष्म स्थावरों की चर्चा नहीं की गई है । स्थावरों के भेद-प्रभेदों में केवल बादर स्थावरों के ही भेद कहे गये हैं । इस दृष्टि से पृथ्वीकायिकी के निम्न २० भेद होते हैं : ३२ सारणी १ : एकेन्द्रिय जीवों के भेद १. पृथ्वोकायिकों के भेद २. जलकायिकों के भेद १. स्फटिक १. भूमिज जल (कूप, ताल आदि) २. मणि (समुद्रोत्पन्न)-१४ २. अन्तरिक्ष ३. रत्न (खनिज) ३. ओस ४. विद्रुम (मंगा) ४. हिम ५. अभ्रक ५. ओला ६. मृत्तिका ६. हरि-तनु (घास पर जमी बूंदें) ७. पाषाण ७. कुहराँ ८. रसेन्द्र (पारद) ३. अग्निकायिकों के भेद ९. कनकादि धातु-७ १. अंगार १०. हिंगुल २. ज्वाला ११. हरताल ३. मुर्मुर १२. मनःशिल ४. उल्का १३. खटिक ५. अशनि १४. अन्वणिक ६. कनक १५. अरणेटक १६. पलेवक ८. शुद्धाग्नि (ईधनहीन अग्नि) १७. तूरी १८. ऊषम (खनिज सोडा, सज्जी) १९. सौवीरांजन (सुरमा) २०. लवण ७. विद्युत् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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