Book Title: Jiv Vichar Prakaran aur Gommatsara Jiva Kanda
Author(s): Ambar Jain
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf

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Page 5
________________ जीवविचार प्रकरण और गोम्मटसार जीवकांड २५७ उत्तराध्ययन में पृथ्वी के दो भेद अधिक गिनाये गये हैं और मणि के १८ प्रकार बताये हैं । इस प्रकार बादर पृथ्वीकायिक के ४० भेद बताये गये हैं । प्रज्ञापना" का भी यही वर्णन है । इस जीव विचार में धातुओं और स्फटिकमणि रत्नों का संक्षेपण कर २० भेद ही बताये गये हैं । प्रज्ञापना में इनके वर्ण - रसादि की विविधता से असंख्यात रूप बताये गये हैं । दिगम्बर ग्रन्थों में सम्भवतः सर्वप्रथम पञ्चसंग्रह ने पृथ्वीकायिक के ३६ भेद गिनाये हैं । जलकायिक जीवों के ग्रन्थगत सात भेदों के विपर्यास में, प्रज्ञापनाकार ने १७ भेद बताये हैं । इसमें उन्होंने झरना, कांजी, क्षार, विभिन्न समुद्रों के जल आदि को भी परिगणित किया है । दिगम्बराचार्य अमृतचन्द्र और उत्तराध्ययन ने केवल पाँच भेद बताये हैं । वट्टकेर जल के ७ और पृथ्वी के ३६ भेद मानते हैं । ४ ] शान्तिसूरि अग्निकायिक जीवों के ८ भेद मानते हैं । इसके विपर्यास में दशवैकालिक एवं उत्तराध्ययन ७, प्रज्ञापना १२ तथा मूलाचार * ६ भेद गिनाते हैं । इसी प्रकार जहाँ शान्तिसूरि वायुकायिकों के ८ भेद बताते हैं, वहीं मूलाचार ७ उत्तराध्ययन ६ एवं प्रज्ञापना १९ भेद निरूपित करते हैं । (i) बादर साधारण वनस्पति १. कंद, (प्याज, लहसुन आदि ) २. अंकुर ३. किसलय ( कोंपल) ४. पनक ( लकड़ी के फंगस) ५. शेवाल (काई) ६. भूमिस्फोटक ( कुकुरमुत्ता) ७. आर्द्रकत्रिक (अदरख, हल्दी, कचूर ) ८. गाजर ९. मोथा (नागरमोथा) १०. बथुआ की भाजी ११. थेग (बल्वनुमा मड़) १२. पल्यंक १३. कोमल फल ( पकने के पूर्व ) १४. गूढ शिर पत्ते १५. कांटेदार पौधे १६. गुग्गुल १७. गिलोय (गडूची) १८. छिन्न- रुह वनस्पतियाँ १९. कुमारी (आलु) सारणी २ : वनस्पतिकायिकों के भेद ३३ Jain Education International (ii) बादर प्रत्येक वनस्पति १. फल २. पुष्प ३. छल्ली या छल्ल ४. काष्ठ ५. जड़ ६. पत्र ७. बीज (iii) विशेष प्रत्येक वनस्पतियाँ १. वृक्ष : एकबीज ३०, बहुबीज ३३ २. गुच्छ ४७ ३. गुल्म २४ ४. लता १० ५. बल्ली ४१ ६. पर्वग १९ ७. सृण १८ ८. वनलता १७ ९. हरित शाक २८ १०. औषधि - धान्य २७ ११. जलोत्पन्न वनस्पति २६ १२. कुकुरमुत्ता ( कुहन ) १० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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