Book Title: Jinsagarsuri Gitani
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ मार्च २०१० इससे ऐसा प्रतीत होता है कि संवत् १७१२ के पश्चात् इनका देहावसान हुआ होगा । २७ इसमें अन्तिम कृति बालचन्द्र के नाम से है, उनका कोई परिचय प्राप्त नहीं होता है । ये समस्त कृतियाँ आचार्य जिनसागरसूरि से सम्बन्धित है अतएव जिनसागरसूरिजी का परिचय देना अनिवार्य है : आचार्य श्रीजिनसागरसूरि बीकानेर निवासी बोथरा शाह बच्छराज की भार्या मृगादे की कोख से सं० १६५२ कार्तिक शुक्ला १४ रविवार को अश्विनी नक्षत्र में इनका जन्म हुआ था | जन्म नाम चोला था पर सामल नाम से प्रसिद्ध हुई । सं० १६६१ माघ सुदि ७ को अमृतसर जाकर अपने बड़े भाई विक्रम और माता के साथ श्रीजिनसिंहसूरिजी महाराज के पास दीक्षा लेकर 'सिद्धसेन' नाम पाया । आगम के योगोद्वहन किए, फिर बीकानेर में छमासी तप किया । कविवर समयसुन्दरजी के विद्वान् शिष्य वादी हर्षनन्दनजी ने आपको विद्याध्ययन बड़े मनोयोग से कराया । श्रीजिनसिंहसूरिजी के साथ संघवी आसकरण के संघ सह शत्रुंजय तीर्थ की यात्रा की । खंभात, अहमदाबाद, पाटण होते हुए वडली में जिनदत्तसूरिजी के स्तूप की यात्रा की । सिरोही पधारने पर राजा राजसिंह ने बहुत सम्मानित किया । जालौर, खंडप, दुनाड़ा होते हुए घंघाणी आकर प्राचीन जिनबिम्बों के दर्शन किये । बीकानेर पधारे, शाह बाघमल ने प्रवेशोत्सव किया। सम्राट जहांगीर के आमंत्रण से विहार कर आगरा जाते हुए मार्ग में जिनसिंहसूरिजी का स्वर्गवास हो जाने से राजसमुद्रजी को भट्टारकपद व सिद्धसेनजी को आचार्यपद से अलंकृत किया गया । चोपड़ा आसकरण, अमीपाल, कपूरचन्द, ऋषभदास और सूरदास ने पदमहोत्सव किया । पूनमियागच्छीय हेमसूरिजी ने सूरिमन्त्र देकर सं० १६७४ फा० सु० ७ को जिनराजसूरिजी व जिनसागरसूरिजी नाम प्रसिद्ध किया । मेड़ता से राणकपुर, वरकाणा, तिंवरी, ओसियां, घंघाणी यात्रा कर मेड़ता में चातुर्मास बिता कर जैसलमेर पधारे । राउल कल्याण व संघ ने वंदन किया । भणशाली जीवराज ने उत्सव किया । वहाँ श्रीसंघ को ग्यारह

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