Book Title: Jinsagarsuri Gitani
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 10
________________ ३४ अनुसन्धान ५० (२) थोड़ा बोला गुण घणा रे पालइ संजय साच । हरखनन्दन करइ वन्दणा रे निकलंक काच नहीं वाय रे ॥५॥ ___ इति गीतम् (१२) गुरु गीतम् (राग खम्भायती-एहनी ढाल) आठ वरस बालक वई रे लीधउ संजम भार । वारु वरस बावीसमइ रे खरतरगच्छ गणधारो रे । पियु ..... पखीयइ जिनसागरसूरि क्रिया करू रे ॥१॥ वड वयराग सोभागसुं रे सग वडइ कुण पूजइ रे । कठिन क्रिया देखीं करी रे शिथिलाचारी धूजइं रे ॥पियु० २॥ छत्रीस गुण अंगइ धरया रे शील सुगन्धित गात्रो रे । ध्यान मौन तप जप धरइ रे निरमल चारित्र पात्रो रे ॥पियु० ३॥ पूरव प्रीयां उधरया रे गुरु गच्छ राख्यउ नामो रे ।। श्रीसंघ हरखित दिन-दिनई रे हरखनन्दन अभिरामो रे ॥पियु० ४॥ इति श्री गुरु गीतम् (१३) (ढाल-पारधीयानी) हरख धरी म्हे आवीयो, मंगलीक कण्ठा गाय रे । चिर जीवउ पूरइ मुख दीठइ दुख जायइ ॥१॥ थारइ दरसण थी सुखथाइ इक वीनती ए वीसी अवधारि रे । धरमलाभ थायइ घणउ रे गुहलडी .............. सांची देसणा दीजीयइ रे ए मोटो उपगार रे । वार-वार कईयइ किसुं रे श्री गुरुजी सब जाण रे ॥चिर० २॥ अभिग्रह पिण पूरा हुवइ रे सुख पामउ भवि जीव रे ।। आज दिवस छइ परवउ रे श्री संघ उदय सदीव रे ॥चिर० ३॥ पूज पधारया पूठीयइ रे, मिरघा मात मलार रे । चि० । श्रीजिनसागरसूरिजी रे सफल मनोरथ सार रे ॥ चिर० ४||

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