Book Title: Jinsagarsuri Gitani
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ मार्च २०१० (१०) गुरुगीतम् (पूजजी चउमास थकी आवियउ - एहनी ढाल ) आज वधावउ जी गाईयइ, उछ्व घरी घरी आज । तोरण बांध्या ऊजलइ, आव्या जिनसागरसूरि राय || आज ० १॥ सात पांच सूहव मिली, गोरी गावइजी भास । मादल ताल बजावतां, गन्धर्व गावइ छइ रास || आज० २|| सूत्र सिद्धान्त वखाणतां, कान होइ । सुललित वाणीजी सांभलइ, निसचल मन सहु कोइ ||आज० ३ || कूकुं तिलकजी श्रावक, उत्तम फल हाथ । केसर अबीरजी छांटणा, साजण सहू को जी साथ ||आज० ४|| साथइ मोटांजी साधुजी, दीठां पातक जाय । तिण्हकाल करउ वन्दणाजी, पडिलाभइ पुण्य थाय ॥ आज० ५ ॥ धन मृगा कीन्नी कूंखडी, धन पिता वच्छराज । बोथरां वंसइजी चांदिलउ, गच्छमई वधसी छई लाज ॥ आज० ६ || गाई वाईजी हरखीया पूजजी द्यउ साबासि । हरखनन्दन सुख संपजइ, हाथ तणउ द्यउ वास || आज० ७ ॥ इति गीतम् (११) गुरुगीतम् (कपूर हुवइ अति ऊजलुं रे-एहनी ढाल) सरवर सरवर जल हुवइ रे, गंगाजल अतसान्ति । घरि घरि कुलगुरु छइ छणां रे नावइ ए गुरु पांति ॥ १ ॥ रे सहियां श्रीजिनसागरसूरि | रतन ग्रही काच नांखीयइ रे, तिम सहगुरु नउ संघ रे सही ॥२॥ फूल्य सुन्दर नींबड़उ रे कोइली छइ नही लाग । पण्डित माणस राचिस्यइ रे ए स्युं रु धरमसम ॥३॥ नयण पदारथ ओलखइ रे लख आवरु लख जाइ । मन मान्या विण आपणइ रे सिर मन मणुं जाय रे सहिया ||४|| ३३

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11