Book Title: Jinsagarsuri Gitani Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ अनुसन्धान ५० (२) कुंकू आणी सोरठउ, माण्डिलगढरी सालि सखीरी । पदमिण जातिनी श्राविका, वात वणइ ततकाल सखीरी ॥सा० २॥ कोकिल कण्ठइ कामिनी, गीतारि त्रिण्ह गाय सखीरी । मोती कीजइ लुंछणा, सफल मनोरण थाय सखीरी ॥सा० ३॥ यथासकतइ साचवइ कलयुगि मे तपे धन्न सखीरी । श्रावककरणी एहवि, उत्तराध्ययन वचन्न सखीरी ॥सा० ४॥ मिरगां माता गाईयइ, धर्मपिता वच्छराज सखीरी । जिण कुलि सद्गुरु उपनउ, खरतरगच्छ गच्छराज सखीरी ॥सा० ५॥ सुखसन्तान सदा हुवइ, सहगुरु आपइ वास सखीरी । जिनसागरसूरि वान्दतां, हरखनन्दन उह्लास सखीरी ॥सा० ६॥ इति गहुली गीतम् (२) गुरु गीत ढाल - लाखा फुलाणी री तिहां सखी वांदण जाउ, जिण देस माहे पूजजी जांणीयइ । हुआ सकुन विचार पांचुही पण्डित तेह वखाणीया ॥१॥ श्रीजिनसागरसूरि कलियुगि सुणीजइ गोयम-सामजी । फुरकइ वामउ नेत्र, आज असोही सुणि अभिरामजी ॥२॥ माल्हा लीनि ज माहली, सन्मुख आवी आडी उडती । वामउ सबद गणेश, दाहिणी देवी दीठीइ उडती ॥३॥ अक समान मुझ हाथ, आम्बा बे दीधा मीठा बहुफल्या । सामा साजण मेलि, मनमान्या पूजजी तउ मील्या ॥४॥ हीयइ कमल उल्हास, नयणे कीजइ पूजजी लुंछणा । भाव भगतिसुं भेटि, सुख समाधि पूजजी पूछणा ॥५॥ नयणे दीठा पूजजी, जीभ न दीठा गुरुगुण कुण तवइ । हरखनन्दन कहइ एम, मंगल कारण पूजजी नवनवइ ॥६॥ इति श्री गुरु गीतम्Page Navigation
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