Book Title: Jinprabhsuri ane Sultan Mahommad
Author(s): Lalchandra Bhagwan Gandhi
Publisher: Jinharisagarsuri Gyanbhandar

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Page 14
________________ सुलतान महम्मद.] [३ क्षणोनो सदुपयोग करी एवा ज्योतिधरोने प्रकाशमां लाववा जोईए अने तेमना सद्गुणो तथा सत्कर्तव्योथी परिचित थई, तेमांथी शुभ प्रेरणा प्राप्त करी, प्रगतिने पंथे प्रयाण करतां एवा ज्योतिर्धरो प्रकटाववा प्रयत्नशील थर्बु जोईए. जेनी सफळतामां स्व-परर्नु श्रेयः समायेलुं छे. प्रस्तुत प्रयत्न पण ए विचारनुं परिणाम छे. प्रस्तुत जिनप्रभसूरिनो सांसारिक परिचय, माता-पितादि, ज्ञाति-गोत्र, पूर्वनाम, जन्म-समय, परिचय जन्म-स्थल, दीक्षा-समय, दीक्षास्थान ए विगेरे संबंधमां खास कई जाणवामां आव्युं नथी; तेम छतां तेओ विक्रमनी चौदमी १. आ न नामना अने आ आचार्य पहेलां पच्चीशेक वर्ष पूर्वे थई गयेला लगभग समकालीन बीजा एक जिनप्रभसूरि आगमिकगच्छना हता. तेओए विक्रमनी तेरमी सदीना अन्तमां तथा चौदमी सदीना पूर्वार्धमां शत्रुजयमा रही प्राकृत-अपभ्रंशादि भाषामां नाना-म्होटा अनेक ग्रंथो रच्या छे, जे पाटण विगेरेना जैन भंडारोमा मळी आवे छे [ जुओ पाटण भं. सूची भा. १ गा, ओ. सिरीझ ]. पोताने शत्रुजय-सेवक तरीके ओळखावनाग आगमिकगच्छना ए जिनप्रभसूरिथी खरतरगच्छना आ जिनप्रभसूरिने जुदा समजवा जोइये. २. विक्रमनी १७ मी सदीना अंतमां रचायेली जणाती एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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