Book Title: Jinandji Bhav Jal Par Utar
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैवल्य-चिद्दृङ्मयम्;
पूर्णानन्द-मयं महोदय-मयं, रूपातीत-मयं स्वरूप- रमणं, स्वाभाविकी - श्रीमयम्. ज्ञानोद्द्योत-मयं कृपा-रस-मयं, स्याद्वाद - विद्यालयम्; श्री सिद्धाचल-तीर्थराज - मनिशं वन्देह - मादीश्वरम्. नेत्रानन्द-करी भवोदधि - तरी, श्रेयस्तरोर्मंजरी; श्रीमद्धर्म-महा-नरेन्द्र-नगरी, व्यापल्लता-धूमरी. र्ष- शुभ प्रभाव - लहरी, राग-द्विषां जित्वरी; मूर्तिः श्रीजिन-पुंगवस्य भवतु, श्रेयस्करी देहिनाम्..
हर्षोत्कर्ष-:
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अद्या-भवत् सफलता नयन-द्वयस्य; देव! त्वदीय-चरणांबुज-वीक्षणेन. अद्य त्रिलोक- तिलक ! प्रति भासते मे; संसार-वारिधि-रयं चुलुक - प्रमाणः .. तुभ्यं नमस्त्रि-भुवनार्ति-हराय नाथ; तुभ्यं नमः क्षितितला-मल-भूषणाय. तुभ्यं नमस्त्रि-जगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन ! भवोदधि-शोषणाय. प्रशम-रस-निमग्नं, दृष्टि-युग्मं प्रसन्नम्; वदन-कमल-मंकः, कामिनी - संग - शून्यः.
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