Book Title: Jinabhashita 2005 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 31
________________ हजारों शिष्य भारत वसुंधरा में स्थान-स्थान पर धर्म की | साथ गोम्मटसार जीवकाण्ड के संक्षिप्तस्वरूप करणानयोग ध्वजा फहरा रहे हैं और लाखों लोगों को सन्मार्ग में चलने का दीपक भाग-१ पर चालीस शिविरार्थियों द्वारा अच्छी तरह मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। उन्हीं आचार्य श्री को नमन करते हये अध्ययन किया गया। इस कथा को स्वयं अधिष्ठाता श्रीमान उन्होंने बतलाया, कि आचार्य विद्यासागर दीक्षा-स्थली पर । रतनलाल बैनाडा ही लेते थे। शिविर में लगभग २५० स्मृति-स्तुप की अपेक्षा अपने गुरु आचार्य १०८ श्री ज्ञानसागर शिविरार्थियों ने भाग लिया। यहाँ भी प्रात: ४५ मिनिट का ध्यान केन्द्र के निर्माण का आशीर्वाद प्रदान कर आचार्यश्री ने | योग का प्रिशिक्षण दिया जाता था जो बारामती-प्रवासी डॉ. अपने गरु के प्रति अपने श्रद्धा के भावों को प्रस्फटित किया। सुधीरकुमार शास्त्री ने दिया। दिनांक १ जन से १० जन आर्यिकाश्री ने जात-पात व पंथ व्यामोहों से दर रहकर सभी २००५ तक औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में प्रथमवार शिविर को इस मंगलमय पुनीत कार्य में अपना सहयोग प्रदान कर | आयोजित किया गया, जिसमें लगभग ३५० शिविरार्थियों ने अपना जीवन धन्य करने का आशीर्वाद प्रदान किया। इस भाग लिया। औरंगाबाद में इस प्रकार का यह अद्भुत संबंध में प.पू.मुनिपुंगव १०८ श्री सुधासागरजी महाराज का शिक्षणशिविर रहा, जिसकी सम्पूर्ण समाज ने बहुत सराहना मंगल आशीर्वाद भी प्राप्त हो गया है। इसे हजारों वर्षों तक और प्रशंसा की। इस शिविर में अधिष्ठाता महोदय के अलावा अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये इस कार्य को अक्षय तृतीया संस्थान के अन्य शास्त्री एवं आचार्य से शिक्षा प्राप्त विद्वानों ने दिनांक ११ मई २००५ का दिन शुभ बतलाते हुये शिलान्यास प्रशिक्षण दिया। इनके अलावा ४७ अन्य जिला एवं तहसील का आशीर्वाद भी प्राप्त हो गया है। स्तर पर शिविर लगाये गये, जिनमें आगम-ग्रन्थों का स्वाध्याय, प्रवचन से पूर्व केसरगंज में कुछ दिन पूर्व स्थापित | स्तोत्र व पूजाओं के अर्थ सिखाये गये। विभिन्न स्थानों में धार्मिक पाठशाला का नामकरण"आचार्य १०८ श्री विद्यासागर | छात्रावास व संस्थान को लगभग २ लाख रुपये सहायतापाठशाला" उद्घोषित किया गया। बतौर भी प्राप्त हुये। अनेक स्थानों में साधर्मी भाईयों ने उनसे हीराचन्द जैन यहाँ प्रतिवर्ष इसी प्रकार शिविर लगाने का अनुरोध किया है, जिसे श्रमण-संस्कृति संस्थान में आयोजकों ने सानन्द स्वीकार श्रमण-संस्कृति संस्थान, सांगानेर द्वारा किया है। आशा है वर्ष २००६ में महाराष्ट्र में लगभग १०० - महाराष्ट्र में ५० स्थानों पर शिक्षणशिविर सम्पन्न स्थानों पर शिक्षणशिविरों का आयोजन किया जायेगा। श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर द्वारा इस वर्ष चारित्र- छात्रावास के भूतपूर्व छात्र एवं वर्तमान में बारामतीचक्रवर्ती आ. शान्तिसागरजी महाराज के ५०वें समाधि वर्ष प्रवास कर रहे डॉ. सुधीरकुमार जैन शास्त्री ने महाराष्ट्र के के उपलक्ष में 'जिनभाषित' अप्रैल २००५ पिछले माह के उपरोक्त समस्त स्थानों पर अत्यंत परिश्रम करके शिक्षणपृष्ठ पर छापे गये ५० स्थानों पर 'सर्वोदय ज्ञान संस्कार एवं शिविरों का आयोजन निश्चित किया था। उनके अथक आध्यात्मिक शिक्षणशिविरों का सफलतापूर्वक आयोजन किया | प्रयास की समस्त समाज ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है। श्रमणगया। सर्वप्रथम संस्थान में अधिष्ठाता महोदय श्रीमान पं. | संस्कृति संस्थान ने भी उनका अभिनन्दन करने की योजना रतनलाल जी बैनाड़ा ने दिनांक १८ अप्रैल २००५ से २८ | बनाई है। अप्रैल २००५ तक बारामती में शिविर लगाया। जिसमें 'बालबोध, छहढाला, तत्त्वार्थसूत्र एवं समयसार का अध्ययन श्री अ.भा.दि. जैन विद्वतपरिषद् का कराया गया। इस वर्षा की एक प्रमुख विशेषता यह रही कि २६वां अधिवेशन सम्पन्न छतरपुर के योगाचार्य पं. फूलचन्द जी जैन द्वारा प्रतिदिन सागर (म.प्र.), यहाँ पू. क्षल्लक श्री गणेशप्रसादजी प्रात: ५.४५ से ६.४५ तक योग का प्रशिक्षण भी दिया गया। वणा द्वारा र वर्णी द्वारा संस्थापित श्री सत्तर्क तरंगिणी दि. जैन पाठशाला शिविर में सभी शिविरार्थियों ने अत्यंत मनोयोग से भाग (वर्तमान नाम श्री गणेशप्रसाद दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय) लिया। शिविरार्थियों की संख्या लगभग २५० रही। यहाँ से | के शताब्दी समारोह के मध्य अक्षयतृतीया पर्व के शुभावसर अधिष्ठाता महोदय व सभी विदतगण कार द्वारा कोपरगाँव । पर पू. वीजी की प्रेरणा से वीरशासन जयन्ती सन् १९४४ में (महाराष्ट्र) चले गये, जहाँ दिनांक ३० अप्रैल से ११ मई | संस्थापित श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वतपरिषद् २००५ तक बालबोध छहढाला एवं तत्त्वार्थ सत्र के साथ- | साधारण सभा का २६ वां अधिवेशन दिनांक ९ से ११ मई २००५ तक संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज - जुलाई 2005 जिनभाषित 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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