Book Title: Jinabhashita 2005 07
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 30
________________ झारखंड सरकार के विभिन्न मंत्रियों ने उपस्थित होकर मुनिश्री | रखनेवालों को ड्राइवर में तथा ऑफिस वालों की स्टाफ में से आशीर्वाद प्राप्त किया एवं प्रवचन श्रवण किया। इनमें | रुचि नहीं रहती। अपने शारीरिक सौन्दर्य को निखारने में झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री श्री अर्जुन मुंडा, सुदेश महतो | अधिकांश लोगों की रुचि ब्यूटीपार्लर की बनी रहती है, (गृह मंत्री), इन्दरसिंहजी नामधारी (विधानसभा अध्यक्ष), लेकिन अपने शीलरूपी अंगार हेतु तप, त्याग आदि में रुचि बाबूलाल जी मरांडी (भूतपूर्व मुख्यमंत्री), जलेश्वर महतो विरलों की ही होती है। जड़ के मामले में जो उत्साह व (पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री), चंद्रप्रकाश चौधरी (भू-राजस्व उमंग तथा समय लगाया जाता है, वैसा उत्साह व उमंग मंत्री), रमेशसिंह मुंडा (समाजकल्याण मंत्री), हरिनारायण आत्म-तत्त्व के लिये नहीं रहता तथा अक्सर समय के अभाव राव (वन मंत्री) आदि मुख्य रूप से उपस्थित हुए। केन्द्रीय | का रोना रोया जाता है। उन्होंने बताया कि ज्ञानी की रुचि खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्री श्री सुबोधकांत सहाय भी पूज्य | परमार्थ की ओर रहती है, जबकि अज्ञानी की संसार की मुनिश्री के दर्शनार्थ पधारे एवं मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।। ओर। फिर भी यह कैसी बात है, कि दोनों संसार में रहते दर्शनार्थियों में झारखंड जैन न्यास बोर्ड के अध्यक्ष ताराचंद | नहीं। ज्ञानी संसार में रहते हुए अपने आप में लीन रहता है, जी देवधर भी पधारे। उन्होंने झारखंड राज्य के समस्त जैनतीर्थों | जबकि अज्ञानी संसार में रहते हुये संसारको अपने आप में के विकास हेतु मुनिश्री से चर्चा करते हुए निर्देश प्राप्त किये।| रखता है। अज्ञानी-व्यक्ति का ध्यान जहां राग की ओर रहता इस आयोजन को सफल बनाने में दि. जैन पंचायत राँची के | है, वहां ज्ञानी की रुझान वैराग्य की ओर रहती है। जितना नवयुवकों ने अथक श्रम किया। श्री अरुण गंगवाल (कोषाध्यक्ष | समय मन-वचन-काय से जड़ की ओर लगाया जाता है, जैन पंचायत राँची) एवं निर्मल रारा (सहमंत्री श्री दि. जैन | उसका एक बहुत छोटा-सा भाग अपने आत्म-तत्त्व की पंचायत रांची) के प्रयास विशेष सराहनीय रहे। इस भव्य | ओर लगाने को उन्होंने श्रेयस्कर बतलाते हुये कहा कि आयोजन का मंचसंचालन राष्ट्रीय जैनकवि श्री चंद्रसेन जैन | परिवर्तनशील संसार में रहते हुये जिन्होंने समय को अपनी ने किया। मंगलाचरण पं. पंकज जैन 'ललित' राँची ने किया। | मुट्ठी में कर लिया और अपने आत्म-कल्याण की ओर ___महावीर जयंती पर आयोजित विशेष धर्मसभा में | अग्रसर हुये, उन्हें मुक्तिधाम की ओर बढ़ने से कोई नहीं मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा मुख्य अतिथि के रूप में पधारे। उन्होंने | रोक सकता। एक मूर्ख को समझाना सहज है, पागल को भी मुनिश्री प्रमाणसागरजी से लम्बी चर्चा के उपरांत मंच से | समझदार बनाया जा सकता है जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि तीर्थराज सम्मेद | दी जा सकती है, लेकिन एक दुर्जन को बुद्धिमान व समझदार शिखर में चौपड़ा कुंड स्थित दि. जैनमंदिर किसी भी हालत में | बनाना कठिन है। दुर्जन का काम तो सज्जनों की टांग खेंचना नहीं तोड़ा जायेगा। इसे विधि प्रक्रिया के अनुसार संरक्षित किया | व अच्छे कार्यों में रोडा डालने का रहता है। बिल्ली तो इंसान जायेगा। का कभी ही रास्ता कांटती है, लेकिन दुर्जन-व्यक्ति सज्जनों पंकज जैन 'ललित',राँची का बार-बार रास्ता काटते हैं। एक उल्लू के कारण ही परेशानी का आलम रहता है, फिर सोचो-हर शाख पर उल्लू मूकमाटी आधारित प्रवचन बैठा हो तो अंजाम गलिस्तां क्या होगा? जिन्हें देव, शास्त्र, गुरु अजमेर १ मई २००५ । परमपूज्या आर्यिकारत्न १०५ | का आशीर्वाद हो तथा अपने गुरु का सम्बल हो, उन्हें ऐसे श्री पूर्णमति माताजी ने परमपूज्य आचार्य १०८ श्री विद्यासागर | दुर्जनों से घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि गुरु के मंगल जी महाराज की महान कृति 'मूकमाटी' महाकाव्य के आधार | आशीर्वाद से उनके पवित्र मन व संस्कारों के कारण उनके पर अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि इस संसार में रहनेवाले | सभी काम निर्विघ्न पूर्ण होते देखे गये हैं। सभी प्राणियों का जन्म व मरण होता है, लेकिन जन्म व कुंडलपुर में विराजमान आचार्य १०८ श्री विद्यासागर मृत्यु के दोनों छोरों के बीच जिन्होंने अपने जीवन के निर्माण | जी महाराज, जिनकी दीक्षा का सौभाग्य अजमेर नगर को की ओर ध्यान दिया, उनका जीवन सार्थक हो जाता है। देखा | मिला एवं उनके गुरु आचार्य १०८ श्री ज्ञानसागरजी महाराज गया है कि जड की पसंदगी में सबकी मास्टरी है, लेकिन | ने एक कुशल जौहरी की त जीव की पसंदगी में घोटाला-ही-घोटाला है। इस दुविधा के | तराशा कि अपनी मृत्यु के पूर्व उन्होंने अपने इस शिष्य को कारण दुनिया का परिचय व समझ सबको है, लेकिन अपने | ही अपना गुरु बना लिया। अपने उत्कृष्ठ साहस व साधना के स्वयं का परिचय व स्वयं की समझ कुछ को ही है। मोटरगाडी | बल पर आज आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज के 28 जुलाई 2005 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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