Book Title: Jinabhashita 2003 04
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 23
________________ नदी के किनारे बड़े बाबा को विराजमान करवाकर इस चमत्कारी । अतिशय क्षेत्र पर पधारने के लिए कई बार निवेदन किया। भक्तों गुफाओं से युक्त भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर का | के पुण्य का उदय हुआ और मुनिश्री सुधासागर जी महाराज 15 निर्माण कार्य चार वर्ष (संवत् 1742 से 1746) तक चला। सेठ जनवरी सन् 2002 को चाँदखेड़ी अतिशय क्षेत्र पर पधारे। मुनिश्री किशनदास जी ने ही भव्य पंचकल्याणक एवं प्रतिष्ठा महोत्सव का का क्षेत्र पर पदार्पण, चाँदखेड़ी अतिशय क्षेत्र का चाँदखेड़ी आयोजन प्रमुख प्रतिष्ठाचार्य आमेर गद्दी के भट्टारक श्री जगत महाअतिशय क्षेत्र बनने का मंगलाचरण था। मुनिश्री के चाँदखेड़ी कीर्ति के सान्निध्य में उत्साह पूर्वक करावाया जिसका अंतिम | पहुँचने पर खानपुर, अशोक नगर, गुना आदि के जैन समाज, चरण संवत 1746 माघसुदी छठ सोमवार को सानंद सम्पन्न हुआ। | मुंगावली दिव्यघोष मंडल एवं क्षेत्र के सभी पदाधिकारी एवं सदस्यों मंदिर के बाहर दीवार पर सैकड़ों वर्ष से लगे प्रशस्ति पाषाण पर | ने अभूतपूर्व, ऐतिहासिक अगवानी की। मुनिश्री ने बड़े बाबा के लिखा हुआ है कि जनश्रुति के अनुसार मंदिर के नीचे बनी किसी | दर्शन किये, तो वे चमत्कृत हुए बिना न रहे पाये एवं कहने लगे गुफा में रत्नमयी चंद्रप्रभु भगवान् की प्रतिमा है। मंदिर की सारी | कि ऐसे अलौकिक जीवंत भगवान् के दर्शन उन्होंने जीवन में जमीन, संपत्ति आदि भी ब्रिटिश कालीन दस्तावेजों के अनुसार श्री | पहली बार किये हैं। मुनिश्री के मन में विचार आया कि जिस क्षेत्र चंद्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर के नाम से है। परन्तु वर्तमान में | पर ऐसे अद्वितीय साक्षात् आदिनाथ भगवान् विराजमान हैं, वह चंद्रप्रभु भगवान् की ऐसी कोई भी बड़ी या प्राचीन प्रतिमा मंदिर | क्षेत्र इतना पिछड़ा क्यों है? मुनिश्री ने तुरंत ही क्षेत्र के वास्तु जी में दर्शनार्थ विराजमान नहीं थी, जिसके आधार पर यह निश्चित | स्वरूप पर विचार करना प्रारंभ कर दिया, तदनुसार अनेक दोष किया जा सके कि दस्तावेजों में मंदिर का नाम श्री चंद्रप्रभु दिगम्बर | क्षेत्र के निर्माण कार्यों में पाये। वास्तु दोषों में सबसे पहला एवं जैन मंदिर उसी मूर्ति के आधार पर रखा गया होगा। इससे यह | महत्त्वपूर्ण दोष यह पाया कि क्षेत्र का प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में संकेत मिलता रहा कि निश्चित ही मंदिर में कहीं चंद्रप्रभु भगवान् खुला हुआ है जो कि यम का द्वार कहलाता है। इसी कारण क्षेत्र की कोई विशिष्ट प्रतिमा छिपी हुई होना चाहिए। पूर्व में क्षेत्र पर | यथोचित विकास नहीं कर पा रहा है। मुनिश्री ने क्षेत्र पर पदार्पण आचार्य देशभूषण जी महाराज, आचार्य विमल सागर जी महाराज | के कुछ दिन बाद ही इस दक्षिण मुखी द्वार को बंद कर उत्तर की एवं आचार्य कल्याण सागर जी महाराज आदि कई निमित्तज्ञानी और बने विशाल द्वार, जो कि 250 वर्ष पूर्व बंद कर दिया गया था, साधु पधारे एवं सभी ने यही बताया कि इस मंदिर के भूगर्भ में कई | उसको अविलंब खोजने की बात कमेटी एवं समाज के सम्मुख जिनबिंब हैं। परंतु कोई भी साधु इन जिनबिम्बों को निकाल नहीं रख दी एवं इस कार्य को करने के लिए मात्र एक दिन का समय पाये और न ही साहस कर पाये, पर सभी ने यही कहा कि भविष्य | निर्धारित किया। कुछ लोगों ने बंद दरवाजे में भृत-प्रेत एवं देवी में कोई महान् तपस्वी बालयति साधु इस क्षेत्र पर आयेगा और | देवताओं के होने की बात मुनिश्री से कही एवं कुछ लोगों ने कह। वही इन भूगर्भ में स्थित प्रतिमाओं को निकालकर लायेगा। सारा कि इतने कम समय में यह काम संभव नहीं है। तब मुनिश्री समाज ऐसे किसी परम तपस्वी साधु का इंतजार करने लगा जो | सुधासागर जी, जो कि सदा से ही असंभव कामों को संभव करते उन प्रतिमाओं को दर्शनार्थ निकाल पायेगा। कितनी ही पीढ़िया आये हैं एवं जिनके नाम से ही देवी-देवता कोषों दूर भागते हैं, चंद्रप्रभु भगवान् के दर्शन की मनोकामना लिये संसार से विदा हो उन्होंने समाज एवं कमेटी को आशीर्वाद देकर उत्साह का ऐसा गईं। पर कुछ लोग जिनका पुण्य प्रबल था इंतजार की घड़ियाँ गिन | संचार कर दिया कि एक ही दिन में दक्षिण दिशावाला यम द्वार रहे थे। पूर्णत: बंद कर उत्तर दिशा का द्वार जो कि कुबेर का द्वार कहलाता है, चंद्रप्रभु भगवान् के दर्शनों के पिपासु लोगों को अपनी | खोल दिया गया। कुबेर का द्वार खुलते ही ऐसा लगा मानों धन की मनोकामना साकार होने की एक झलक परम पूज्य मुनिपुंगव श्री | वर्षा करने कुबेर स्वयं अपना खजाना लेकर चाँदखेड़ी में उतर आया सुधासागर जी महाराज की उत्कृष्ट साधना में दिखाई दी। चांदखेड़ी | हो। मुनिश्री ने अपने प्रवचन में कहा कि अब कुबेर का द्वार खुल क्षेत्र कमेटी पृज्य मुनि श्री सुधासागर जी महाराज, जो कि वर्तमान | गया है, अब इस क्षेत्र का विकास आसमान की ऊँचाई को छुयेगा के श्रेष्ठ संतशिरोमणि आचार्य 108 विद्यासागर जी महाराज के | एवं यह क्षेत्र विश्व के नक्शे पर चमकने लगेगा। हजारों की संख्या में परम मेधावी शिष्य हैं, उनके चरणों में पिछले दो तीन वर्षों से | उपस्थित लोगों ने बड़ी उदारता से एक ही दिन में लाखों रुपये का कई-कई बार चांदखेड़ी क्षेत्र पर पधारने का निवेदन कर रही थी। | दान क्षेत्र के विकास के लिए दिया। उत्तरदिशा के द्वार खलने का पूज्य सुधासागर जी महाराज जो कि अपनी कठोर तपस्या, उत्कृष्ट कार्य चाँदखेड़ी के अतिशय क्षेत्र से महाअतिशय क्षेत्र बनने का साधना. प्रभावी एवं ओजस्वी प्रवचनशैली, आगम के गहन ज्ञाता, | प्रथम चरण था। इसके बाद क्षेत्र पर अतिशयों की श्रृंखला शुरु हो सरल स्वभावी, तीर्थजीर्णोद्धारक, वास्तु -विशेषज्ञ, मूर्तिप्रमाण- | गई। पारंगत आदि कई अन्य विशेषताओं के लिए पूरे भारत में जाने | जैसा कि भारत वर्ष का समूचा जैन समाज जानता है कि जाते हैं, गतवर्ष यानि सन् 2001 में कोटा में चातुर्मास कर रहे थे। मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने ही सन् 1994 में सांगानेर क्षेत्र कमेटी ने कोटा चातुर्मास के दौरान मुनिश्री से चांदखेड़ी । के संघी जैन मंदिर में भूगर्भ स्थित चैत्यालय को निकाला था. -अप्रैल 2003 जिनभाषित 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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