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जयमाला अनुपम गुरुवर को पाकर के, सब धन्य स्वयं को पाते हैं। वो आज हमारे सम्मुख हैं, हम चरणों में झुक जाते हैं।
तीर्थ सनातन अगर बचे, तो ही हम सब बच पायेंगे। देव, शास्त्र, गुरु संगम में, तब ही डुबकी खा पायेंगे ।। इस ओर सदा चिन्तन जिनका, हैं तीरथ के सद्धारक। हे पूज्य पुजारी पूजा के, जो बस एक सच्चे संवाहक। दो कदम जहाँ भी थम जाते, बस तीर्थ वहाँ बन जाते हैं। वो आज हमारे सम्मुख हैं, हम चरणों में झुक जाते हैं।
जिनका बस ध्यान लगाने से, सब दोष पाप धुल जाते हैं। जिनका बस ध्यान लगाने से, सब विघ्न आप टल जाते हैं। जिनका सुमरन करने से ही, मिट जाते हैं दैनिक दुख भी। जिनका सुमरन करने से ही, मिल जाते हैं भौतिक सुख भी।। जिनका चिन्तन भर करने से, सब संचित पाप नशाते हैं। वो आज हमारे सम्मुख हैं, हम चरणों में झुक जाते हैं।
है नमस्कार हे दीनबन्धु, है नमस्कार हे परमधीर। है नमस्कार हे कृपासिन्धु, है नमस्कार हे तपोवीर ।। हे मोक्ष प्रदाता नमस्कार, हे शिव-सुख-दाता नमस्कार । हे शान्तिसुधाकर नमस्कार, हे क्षमादिवाकर नमस्कार ।। हों चिरजीवी गुरुवर अपने, सब यही भावना भाते हैं। वो आज हमारे सम्मुख है, हम चरणों में झुक जाते हैं।
जो सत्य अहिंसा की मूरत, करुणा के गहरे सागर हैं। जो-जो शुचि सुन्दर है जग में, उन सबके ही वो आगर हैं ।। त्यागी भौतिक सुख साधन के, किंचित न पास में हैं रखते। अनमोल रतन संयम से ही, जो कोटि रवि सम हैं दिपते ।। जिनकी छाया में आकर के, हम सब सद्गुण पा जाते हैं। वो आज हमारे सम्मुख हैं, हम चरणों में झुक जाते हैं।
जिनकी छवि है अनुपम सुन्दर, मुस्कान फूल बरसाती है। मुरझायी ज्ञान लता जिनकी, वाणी सुनकर खिल जाती है ।। तप की अग्नि में तप करके, कुन्दन सी जिनकी है काया। उन महातपी के चरणों में, नतमस्तक है जग की माया ।। जिनके आभा-मंडल में आ, सब जीव शान्ति पा जाते हैं। वो आज हमारे सम्मुख हैं, हम चरणों में झुक जाते हैं।
दोहा परम पूज्य गुरू श्रेष्ठ की, पूजा कही बनाए। जो-जो श्रद्धा से पढ़े, 'रमण' मोक्ष पद पाये। बुद्धिहीन होकर गुरु, भक्ति के बस होय। रवि छूने का कृत्य यह, क्षमा कर दियो मोय॥ महा सिन्धु गुण आपके, है भक्ति मम नाव। श्रद्धा के पतवार मम, गुरुवर पार लगाव।। दुर्बल मेरी लेखनी, तब गुण गुरु अनन्त । तेरे गुण का गान ही, करते रहते सन्त।
एम.आई.जी.-७४ इन्द्रा काम्प्लेक्स, विदिशा (म.प्र.)
मेरी कविताएँ
डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती'
छूटी-छुटी मात्र शब्द
अजगर : अजगर खा लिया अजग ने आज निरीह, निरपराध अज को अच्छा होता यदि कर सकता विरोध अज '' गर॥
उ और ऊ के अन्तर नहीं हैं बल्कि रखते हैं बड़ा ही वैचारिक/सामाजिक महत्त्व कम नहीं है इनका अन्तर।
भय
कम नहीं
सूखी-सुखी लुटी-लुटी
राम मरा हो सकता है मरा राम नहीं हो सकता 'आरक्षण' के भय से।
-अप्रैल 2003 जिनभाषित 27
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