Book Title: Jin Murti Lekh Vishelshan Tirthakar Manyata evam Bhattarak Parampara Author(s): N L Jain Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf View full book textPage 4
________________ बुन्देलखंड के जैन तीर्थ : ३२७ जिन मूर्तियों पर उत्कीर्ण लेख विक्रमी ९१९ (देवगढ़, ८६२ ई.) से प्राप्त होने लगते हैं। यह देखा गया है कि देवगढ़, बानपुर, मदनपुर, बजरंग गढ़, बहोरीबन्द ,अहार, खजुराहो आदि स्थानों पर ९१९-१२३७ वि० (८६२-१९८० ई०) के बीच भ० शान्तिनाथ और शान्ति-कुन्थु अरहनाथ की ही मुख्य प्रतिमायें पाई जाती है, पपौरा एवं नैनागिर (आदिनाथ, पार्श्वनाथ) इसके अपवाद है। पपौरा के पड़ोसी क्षेत्र जब भ. शान्तिनाथ के पूजक हों, तब पपौरा में आदिनाथ की मूल प्रतिमा स्थापित हो, यह तथ्य ऐतिहासिक और अन्य कारणों से शोध का विषय है। डा. ज्योतिप्रसाद जी ने इस क्षेत्र में भ० भान्तिनाथ की प्रतिमाओं की बहुलता का कारण तत्कालीन युद्ध एवं अशान्तिबहुल युग में शान्तिप्रदाता की सारणी १ : बुन्देलखंड के कतिपय क्षेत्रों एवं नगरों के जिनमन्दिरों की प्रमुख प्रतिमाओं का प्रशस्ति विवरण क्रमांक क्षेत्र नगर संघ भट्टारक प्रतिष्ठापक राज्य शिल्पकार प्रतिष्ठा तीर्थंकर वि० ई. ९१९ ८४२ शांतिनाथ १. देवगढ़ - कमलदेव शिष्य श्रीदेव पाहिलश्रेष्ठी धंगराज २. बानपुर ३. खजुराहो ४. खजुराहो ५. नैनागिर १००१ ९४४ शांतिनाथ १०११ ९५४ पार्श्वनाथ १०८५ १०२४ शांतिनाथ । ११०९ १०५७ पार्श्वनाथ । गोलापूर्वान्वयी पतरिया श्रेष्ठी सिं० मनसुख ६. डेरा पहाड़ी ११४९ १०९२ शांतिनाथ ७. कुंडलपुर ११८३ ११२७ मदनपुर" १२०० ११४३ शांतिनाथ ९. पपौरा १२०२ ११४५ आदिनाथ ।। ।। १०. पपौरा १२०२ ११४५ आदिनाथ । । ११. चौधरी मंदिर, १२०२ ११४५ नेमिनाथ छतरपुर १२. बहोरीबंद १२०५ ११४८ शांतिनाथ गोलापूर्वान्वय मदनवर्म देव साहू टडा सुत गोपाल साहू गल्ले - सुत अल्पकन लक्ष्मादित्य, मदनवर्म देव कुलादित्य गोला पूर्वान्वयी गयकर्ण देव महाभोज श्रेष्ठि साल्हे गृहपति मदनवमं देव जाहड, उदय- परमद्धि देव चन्द्र श्रेष्ठि पाणाशाह आसुभद्र १३. खजुराहो १४. अहार १२१५ ११५८ संभवनाथ १२३७ ११८० शांतिनाथ रामदेव पापट १५. बजरंगगढ़ १२३६ ११७९ शांतिनाथ धूबीन उपासना की कामना बताया है । भ० शान्तिनाथ के साथ भ० आदिनाथ और भ० पार्श्वनाथ की प्रतिमायें भी पाई गई है, पर संख्या की दृष्टि से ये कम ही हैं। खजुराहो की सम्भवनाथ की प्रतिमा भी एक अपवाद ही माननी चहिये । यहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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