________________ अनानुपूर्वी गुणने की रीति और फल 2. 3. 4. 5. जहाँ एक का अंक है वहाँ ‘णमो अरिहंताणं' बोलना। जहाँ दो का अंक है वहाँ ‘णमो सिद्धाणं' बोलना। जहाँ तीन का अंक है वहाँ ‘णमो आयरियाणं' बोलना। जहाँ चार का अंक है वहाँ ‘णमो उवज्झायाणं' बोलना। जहाँ पांच का अंक है वहाँ ‘णमो लोए सव्वसाहूणं बोलना। फल :- इस प्रकार अनानुपूर्वी गुरााने से छमासी तप का फल होता है और पांचसौ सागरोपम के नरक का आयुष्य टूटता है। कहा है कि - अशुभ कर्म के हरण को, मंत्र बड़ो नवकार। वाणी द्वादश अंग में, देख लियो तत्वसार।।