Book Title: Jayantiprakaranvrutti
Author(s): Malayprabhsuri, Chandanbalashreeji
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha
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उत्तर
૧૦ संशयो उत्पन्न थया ते भगवन्तने पूछ्या. भगवन्ते ते प्रश्नोनो उत्तर आप्यो तेथी पंचमांग श्रीभगवतीसूत्रमा गणधरदेवे बारमा शतकनो बीजो उद्देशो जयन्तप्रश्नोत्तर तरीके रचेल छे. तेना उपरथी पुनमियागच्छीय श्रीमानतुंगसूरिए जयन्तीप्रकरण उद्धर्यु छे एम प्रकरणकार पोते मूल २९मी गाथामां जणावे छे..
"भगवइबारसमसया वियउद्देसाउ पगरणं एयं ।
सपरोभयसरणत्थं उद्धरियं माणसूरिहिं ॥" आ प्रकरणमां नीचे मुजब प्रश्नोत्तरो छे :प्रश्न १ - जीवो भारेकर्मिपणुं शा कारणथी करे ? उत्तर - अढार पापस्थनको सेववाथी करे. प्रश्न २ - भव्यपणुं अने अभव्यपणुं स्वाभाविक छे के परिणामथी छे ?
- स्वाभाविक छे. प्रश्न ३ - जागृतदशा सारी ? के सुप्तदशा सारी ? उत्तर -- धर्मी जागता सारा, अधर्मी जीवो सूता सारा. प्रश्न ४ - दुर्बलपणुं सारुं ? के बलिष्ठपणुं सारु ? उत्तर - पापजीवो दुर्बल सारा, धम्मिजीवो बलवान् सारा. प्रश्न ५ - दक्षपणुं सारुं ? के आलसुपणुं सारं ?, उत्तर
- पापी दुष्टचित्तजीवो आलसु सारा, धर्मश्रद्धालु जागता सारा. प्रश्न ६ - इंद्रियवश थयेला जीवोने शुं नुकशान ? उत्तर - इन्द्रियलुब्ध जीवो चिकणा कम्र्मोने बान्धे.
आ छट्ठा प्रश्नोत्तरमां पांचे इन्द्रियोना पांच प्रश्नोत्तरो छे तेथी प्रश्नोत्तरनी संख्या १० थाय छे. जयन्तीप्रकरण उपर श्रीमानतुंगसूरिना शिष्य श्रीमलयप्रभसूरिए अनेकरसमय मधुर विवरण रच्यु, तेमां मुख्य जयन्तीनी कथा अने बीजी अनेक बोधककथाओ रसमय रची छे, तेथी जयन्तीचरित्र तरीके आ ग्रन्थ प्रसिद्ध छे. मलयप्रभसूरिनो सत्ताकाल पोते प्रान्ते पुष्पिकामां नीचे मुजब पृ. ३२१मां बतावेल छे.
"प्रश्नोत्तरप्रकरणे परिवाराऽभ्यर्थने स्वगुरुभक्त्या । अविभक्तधर्मचन्द्राभिधगणिना भागिनेयेन ॥१५॥ भणितैः श्रीमलयप्रभसूरिभिरेषा विचित्रदृष्टान्तैः । सम्वेगाय यथामति जगति जयन्तीकथा प्रथिता ॥१६॥ द्वादशवर्षशतेषु श्रीविक्रमतो गतेषु षष्टितमे । वर्षे ज्येष्ठे मासे श्रवणगे कृष्णपञ्चम्याम् ॥१८॥"
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