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गुदर्शना सती पै वह पहुंची, नमन किया गन लाय । बोध सुनाया मन हरपाया, संयम की चित्त चाय स २२६॥ विघ्न पड़ेगा पुत्र भाव में, जो में देखें जाय। मन समझाया शीश मुंडाया, दीक्षा शिक्षा पाय रे स।२६०१ सुव्रता है नाम सती का, देव गया निज धाम । संयम पालै दूषण टाले, करे आत्ल का काम है।स२३१॥ पुष्पमाला अरु पद्रमरथ का, सुत से अविचल प्रेम । पंचधाय से पले लालजी, गिरि चम्पक सह खेग रेस १२३२ । शिक्षा से यौवन वय पाया, परणाया धर प्रेग। दो गुंधुक सुर सम सुख भोगे, धर्म कर्म के नेग रेस 1२३: । स्थविर पधारे राय सुधारे, संयम ले निज काज | राजन पति राजा नमिराजा, परजा जन सिरताज रे ।।२३४ । नमिराजा का करिवर छूटा, वन में धूम मचाय । सुदर्शनपुर की सीमा में, परजा को दुखदाय रे । ।२३५ । सबल सैन्य से चन्द्रयश ने, करि को लीना घेर । आलन धम पै वांधा राय ने, करि ने छोड़ा वैर रेस २३६ । नमिराय को खवर पड़ी तव, भेजा दूत बलबान । जलदी देदो हाथी राजा, राय मेरा महान रेस २३७ । बल से मैंने हाथी पाया, नृप को दो समझाय । नहीं माने तो फल पावेगा, करि सम तेरा राय रेस १२३८ । सुन के कोपा नमिरायजी, युद्ध की करी तैयारी । चतुरंग दल ले चन्द्रयश पै, निकल पड़ा बलबारी ।।२६६। रात अंधेरे पुर को घेरा, सदर नृपति जब पाया। सेना राज के चन्द्रयश भी, बदला लेना चाया है । किल्ले से तुम लदो राजदी, मत सोलो पुर द्वार। सेनापति ने कहा राय को, अवसर का गिरधार : ! मार न सुलते नमिराय जी, हो गये हैं ।। पायर नृप इस पुर का मालिया, नहीं कर पा ::: एम भूरों के सम्मुल लाकर, को किरा ! लिया महल में फेल बाल मे, गो
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