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राजनीति में धर्म-नीति की वाणी पड़ी सुनाई सत्य-अहिंसा के पालन की सवको राह वताई। कहा कि जीवन सत्य-परक है इसको सब अपनाओ; अपनी रक्षा-हेतु अहिंसा को ही ढाल बनाओ। चाहे कुछ हो, पर असत्य को मन में जगह न देना; सत्य प्रकाशित परम शक्ति है इसका आश्रय लेना। पुनः अहिंसा की व्याख्या में यह भी थे वतलाये; मूढ़ वही है जो हिंसा पर अपना ध्यान लगाये। हिंसक शत्रु रहे पर फिर भी हिंसा मत अपनाओ। परम अहिंसा के पथ पर चल उसको मित्र बनाओ। कहा अहिंसा में जो ताकत रहती सदा समाई; शस्त्र-अस्त्र के निखिल पुञ्ज में शक्ति कहाँ वह आई ? हिंसक जग है, इसीलिए तो उथल-पुथल है, जग में;
टिका न कोई रह पाता है अपनी संस्कृति-गग में। भारत का आदर्श यही है हिंसा मन से त्यागो परम अहिंसा का पालन कर दिव्य ज्योति में जागो। दुःख किसी को पहुँचाना ही है हिंसा का लक्षण, इससे ऊपर खुद को रखकर ज्योति बनो तुम चेतन। अपने हक को किन्तु माँगना कोई दोप नहीं है; इसके हित अन्तर में लाना कुछ आक्रोश नहीं है। देश हुआ परतंत्र तो इसको तुग आजाद कराओ; भारत की संस्कृति का झंडा अम्बर तक फहराओ।
राजनीति औ धर्म-नीति था इनका शुभ अवलम्बन इसमें ही है निहित व्यक्ति के जीवन का आरोहण। व्यक्ति-व्यक्ति के सद्-विचार पर इनका ध्यान रहा है; उच्चादर्शों का पालन ही इनका मान रहा है।।
सर्ग उन्नीस
व्यक्ति-व्यक्ति के ही विकास से उन्नत राष्ट्र कहाता;
विकसित होकर राष्ट्र व्यक्ति को विकसित खुद कर जाता।