Book Title: Jambudwip aur Adhunik Bhaugolik Manyatao ka Tulnatmaka Vivechan Author(s): Harindrabhushan Jain Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf View full book textPage 6
________________ जम्बूद्वीप और आधुनिक भौगोलिक मान्यताओं का तुलनात्मक विवेचन २३१ (क) जम्बू ( इण्डिया ), प्लक्ष ( अराकात तथा बर्मा), कुश ( सुन्द-आर्चीपिलागो), शाल्मली ( मलाया प्रायद्वीप), क्रौञ्च ( दक्षिण इण्डिया ), शक ( कम्बोज ) तथा पुष्कर ( उत्तरी चीन तथा मंगोलिया ) । (ख) जम्बू ( इण्डिया), कुश ( ईरान ), प्लक्ष ( एशिया माइनर ), शाल्मली ( मध्य योरोप), क्रौञ्च ( पश्चिम योरोप ), शक ( ब्रिटिश द्वीप समूह ) तथा पुष्कर (आईसलैण्ड)२ . (ग) जम्बू (इण्डिया), क्रौञ्च (एशिया माइनर), गोमेद (कोम डी टारटरी-Kome die Tartary), पुष्कर (तुर्किस्तान), शक (सीथिया), कुश (ईरान, अरेबिया तथा इथियोपिया), प्लक्ष (ग्रीस) तथा शाल्मली (सरमेटिया-Sarmatia ?)२ किन्तु प्रसिद्र भारतीय भूगोल शास्त्री डॉ० एस० एम० अली उपर्युक्त चारों मतों से सहमत नहीं हैं। पुराणों में प्राप्त तत्तत्प्रदेश की आबहवा (Climate ) तथा वनस्पतियों (Vegetation) के विशेष अध्ययन से सप्तद्वीपों की आधुनिक पहिचान के विषय में वे जिस निष्कर्ष पर पहुँचे वह इस प्रकार हैं जम्बूद्वीप (भारत), शकद्वीप (मलाया, श्याम, इण्डो-चीन, तथा चीन का दक्षिण प्रदेश), कुशद्वीप (ईरान, ईराक)' प्लक्ष द्वीप (भूमध्यसागर का कछार), पुष्करद्वीप (स्केण्डिनेवियन प्रदेश), फिनलैण्ड, योरोपियन रूस का उत्तरी प्रदेश तथा साइबेरिया), शाल्मली द्वीप (अफ्रीका ईस्ट-इंडीज, मेडागास्कर) तथा क्रौञ्चद्वीप (कृष्ण सागर का कछार)४ मेरु पर्वत जैन परम्परा में मेरु को जम्बूद्वीप की नाभि कहा है-'तन्मध्ये मेरुनाभिर्वत्तो योजनशत सहस्रविष्कम्भो जम्बद्रीपः' ( तत्त्वार्थसत्र ३-९), अर्थात् मेरु जम्बद्वीप के बिल्कल मध्य में है। इसकी ऊँचाई १ लाख ४० योजन है। इसमें से एक हजार योजन जमीन में है, चालीस योजन की अंत में चोटी है और शेष निन्यानबे हजार योजन समतल से चूलिका तक है। प्रारम्भ में जमीन पर मेरु पर्वत का व्यास दस हजार योजन है जो ऊपर क्रम से घटता गया है। मेरु पर्वत के तीन खण्ड हैं। प्रत्येक खण्ड के अन्त में एक एक कटनी है। यह चार वनों से सुशोभित है-एक जमीन पर और तीन इन कटनियों पर। इनके क्रम से नाम हैं-भद्रशाल, नन्दन, सौमनस और पाण्डुक। इन चारों वनों में, चारों दिशाओं में एक-एक वन में चारचार इस हिसाब से सोलह चैत्यालय हैं। पाण्डुकवन में चारों दिशाओं में चार पाण्डुक शिलायें १. Cot Gerini 'Researches On Pltolemy's Geography of Eastern Asia' (1909) Page-725 २. F. Wilford-Asiatic Researches' Vol. VIII, Page 267-346 B. V. V. Iyer ---The Seven Dwipas of the Puranas' - The Quarterly Journan of the Mythical Society ( London ), 15, No. 1. p. 62, Vol. No. 2, pp 119-127, No. 3. pp. 238-45, Vol. 16, No. 4. pp. 273-82 ४. डॉ० एच० एच० अली 'Geo of Puranas' p. 39-46. (Ch. II. Puranic continents and Oceans). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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